घर का वैद

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चना के औषधीय ग 1. जलोदर- आधी छटािक चन को क छ पानी म उबालकर अघौटा कर ल। यह जल गम-गमम लगभग एक माह तक सेवन करने से जलोदर रोग द र हो जाता है। 2. उमाद- राी को भीगी ह ई चने की दाल ातः पीसकर चीनी व पानी ममलाकर पीने से मततक म गमी के कारण उपन उमाद के लण शाित हो जाते है। 3. मध मेह (डायबिटीज)- 25 ाम काले चने रात म मभगोकर ातः ननहारकर (खाली पेट) सेवन करने से मध मेह-याधध द र हो जाती है। यदद समान माा म जौ चने की राटी भी दोन समय खायी जाये तो लाभ शी होगा। 4. नप सकता- मभगोये ह ए चने के जल म (चना नकाल लेने के बाद जो जल रह जाये। शहद मलाकर पीने से कहीि भी कारण से उपन नप िसकता समात हो जाती है और तभन-शत(सैतस पावर) म आशातीत व व हो जाती है। 5. चने के आटे का हलवा क छ ददन तक नयममत ऱप से सेवन करना चादहए। यह हल वा वात धान वास के रोग म लाभकारी है। इस योग के साथ उबालकर ठिडा कया ह आ जल पीय ताकहल आ आसानी से पच सके। 6. वीयय ववक योग- मटी कािच या चीनी के बतमन म आवयकतान सार रात को चने मभगोकर रख दे। स बह-सवेरे उठकर ख ब चबा-चबाकर खाय इसके लगातार सेवन करने से वीयम म व व होती है। तथा अय वीयम -सबधी ववकार समात हो जाते है। तवाद के मलए उसम बादाम की धगरी या कशममश भी मभगोयी जा सकती है। 7. वीयय प ट कर योग- भीगे ह ए चने खाकर उपर से द ध पीते रहने से वीयम का पतलापन द र हो जाता है। 8. चने की भीगी दाल और शतकर लगभग 10-10 ाम की माा म दोनो मलाकर 40 दन तक खाने से धात ट हो जाती है। इस योग के त रत बाद पानी नही पीना चादहए। 9. काम- गमम चने ऱमाल या ककसी साफ कपडे म बािधकर स िघने से ज काम ठीक हो जाता है। 10. ि ता- बार-बार थोडा-थोडा पेशाब जाने की बीमारी म भ ने ह ए चन का सेवन करना चादहए। यदद थोडा ग ड भी खाया जाये तो और भी उतम है। व व यततय को इस रोग म चने का योग लबे समय तक करना चादहये। 11. िवासीर- गम-गमम भ ने चन को सेवन नयममत ऱप से क छ ददन तक करते रहने से ारभक तथनत का नी बवासीरठीक हो जाता है। 12. पती ननकलना- काली ममचम को चने के बेसन के लड मलाकर खाने से वपती म लाभ होता है। 13. हचकी, आमाशय पवकार- चने के पौधे के स खे पत को धचम म रखकर पान करने से शीत के कारण आने वाली दहचकी तथा आमाशय की ववक नत म लाभ होता है। 14. पीमलया- चने की दाल लगभग 100 ाम को दो धगलास जल म मभगोकर तपचात दाल पानी से ननकलाकर 100 ाम ग ड ममलाकर 4-5 दन तक खाय।

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घर का वैद

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Page 1: घर का वैद

चना के औषधीय गुण

1. जलोदर- आधी छटाांक चनों को कुछ पानी में उबालकर अघौटा कर लें। यह जल गमम-गमम लगभग एक माह तक सेवन करने से जलोदर रोग दरू हो जाता है।

2. उन्माद- रात्री को भीगी हुई चने की दाल प्रातः पीसकर चीनी व पानी ममलाकर पीने से मस्ततष्क में गमी के कारण उत्पन्न उन्माद के लक्षण शाांत हो जाते है।

3. मधमूेह (डायबिटीज)- 25 ग्राम काले चने रात में मभगोकर प्रातः ननहारकर (खाली पेट) सेवन करने से मधमूेह-व्याधध दरू हो जाती है। यदद समान मात्रा में जौ चने की राटी भी दोनों समय खायी जाये तो लाभ शीघ्र होगा।

4. नप ुंसकता- मभगोये हुए चने के जल में (चना ननकाल लेने के बाद जो जल रह जाये। शहद ममलाकर पीने से ककन्हीां भी कारणों से उत्पन्न नपुांसकता समाप्त हो जाती है और ततम्भन-शस्तत (सैतस पावर) में आशातीत वदृ्वव हो जाती है।

5. चने के आटे का हलवा कुछ ददनों तक ननयममत रूप से सेवन करना चादहए। यह हलुवा वात प्रधान श्वास के रोग में लाभकारी है। इस योग के साथ उबालकर ठांडा ककया हुआ जल पीयें ताकक हलुआ आसानी से पच सके।

6. वीयय वद्र्वक योग- ममट्टी काांच या चीनी के बतमन में आवश्यकतानुसार रात को चने मभगोकर रख दे। सुबह-सवेरे उठकर खूब चबा-चबाकर खायें इसके लगातार सेवन करने से वीयम में वदृ्वव होती है। तथा अन्य वीयम-सम्बन्धी ववकार समाप्त हो जाते है। तवाद के मलए उसमें बादाम की धगरी या ककशममश भी मभगोयी जा सकती है।

7. वीयय प ष्टट कर योग- भीगे हुए चने खाकर उपर से दधू पीते रहने से वीयम का पतलापन दरू हो जाता है।

8. चने की भीगी दाल और शतकर लगभग 10-10 ग्राम की मात्रा में दोनो ममलाकर 40 ददनों तक खाने से धातु पुष्ट हो जाती है। इस योग के तुरन्त बाद पानी नही पीना चादहए।

9. ज काम- गमम चने रूमाल या ककसी साफ कपड ेमें बाांधकर सूांघने से जुकाम ठीक हो जाता है।

10. िह मूत्रता- बार-बार थोडा-थोडा पेशाब जाने की बीमारी में भुने हूए चनों का सेवन करना चादहए। यदद थोडा गुड भी खाया जाये तो और भी उत्तम है। वदृ्व व्यस्ततयों को इस रोग में चने का प्रयोग लम्बे समय तक करना चादहये।

11. िवासीर- गमम-गमम भुने चनों को सेवन ननयममत रूप से कुछ ददनों तक करते रहने से प्रारस्म्भक स्तथनत का ’खनूी बवासीर’ ठीक हो जाता है।

12. पपत्ती ननकलना- काली ममचम को चने के बेसन के लड्डू में ममलाकर खाने से वपत्ती में लाभ होता है।

13. हहचकी, आमाशय पवकार- चने के पौधे के सूखे पत्तों को धचल्म में रखकर धमु्रपान करने से शीत के कारण आने वाली दहचकी तथा आमाशय की ववकृनत में लाभ होता है।

14. पीमलया- चने की दाल लगभग 100 ग्राम को दो धगलास जल में मभगोकर तत्पश्चात दाल पानी में से ननकलाकर 100 ग्राम गुड ममलाकर 4-5 ददन तक खायें।

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15. प्रनतश्याम- इसके मलये ददन भर उपवास करने के बाद रात में सोते समय भुने हूए चने खायें, यदद आवश्यक समझ ेतो उपर से गमम दधू पी लें। पानी कभी नही पीना चादहए। यदद इन्ही चनों से पोटली बनाकर गले की मसकाई कर लें तो आराम जल्दी होता है।

16. बिच्छू का पवष- चने के क्षार का लेप दांश तथान पर करने से बबच्छू का बबष का कोप शाांत हो जाता है।

17. ससर ददय- 25 ग्राम वपसी हुई राई में 150 ग्राम चने के आटे तथा चने के क्षार में ममलाकर लेप करने से वात जन्य मसर की पीडा शान्त हो जाती है। पीडा दरू होते ही लेप हटाकर मसर को धो लेना चादहये।

18. चमय रोग- चने के आटे की की नमक रदहत रोटी 40 से 60 ददनों तक खाने से चमम सम्बन्धी ववकार -दाद, खाज, खजूली आदद नही होते और हो रहे हो तो ठीक हो जाते है। ककन्तु इस कल्प से पुवम ववरेचनादद करके शरीर शुद्व कर लेना चादहये।

19. कफ पवकृनत- भुने हुए चने राबत्र काल में सोते समय चबाकर उपर से गमम दधु पीने से श्वास नली के अनेक रोग कफ बलगम आदद दरू हो जाते है।

20. सफेद दाग पड़ना- देसी काले चने 25-30 ग्राम लेकर उनमें 10 ग्राम बत्रफला चणूम ममला लें और जल में डुबोकर बारह घांटे तक रख दे। तत्पश्चात 12 घटें को उन्हे ककसी साफ कपडें में बाांधकर रख दें, स्जससे वे अांकुररत हो जायें। प्रातः के नाश्ते के रूप में इन्हे खबू चबा चबाकर ववमभन्न अांगो पर चकते समाप्त हो जाते है।

21. नाससका शोध- चने के क्षार को 10 गुना जल में ममलाकर नाक से टपकाना चादहए।

22. दुंत शोध, पपत्त ज्वर- चने के कोमल ताजा पत्तों का शाक या भुस्जया खाने से ज्वर, वपत्त तथा दाांतों के शूल में लाभ होता है।

23. अनत स्वेद (अधधक पानी लगना)- ज्वर की स्तथनत में अधधक पसीना आने पर भूने को पीसकर अजवायन तथा बच का चणूम ममलाकर मामलश करनी चादहये।

महहला रोग- 1. गर्यवस्था की वमन- भूने हुए चनों का सत्तू खखलाने से नारी की गभम की स्तथनत की वमन शान्त

हो जाती है। ककन्तु इसका सेवन ग्रीष्म ऋतु में करना चादहये, तयोकक सत्तू शीत गुण प्रधान होता है।

2. गर्यपात- गभमपात की सम्भवना हो तो नारी को काले चनों का काढा बनाकर वपलाना चादहए, गभम स्तथर बना रहेगा।

3. श्वेत प्रदर (ल्यूकोररया)- भूने हुए चनों में देशी खाांड ममलाकर रख लें। 2-3 चम्मच की मात्रा में खाकर उपर स ेदेशी घी ममधित गाय का गमम दधू पीने से कुछ ददनों बाद ही श्वेत प्रदर (सफेद पानी जाना) बन्द हो जाता है।

इमली के औषधीय गुण

(१) वीयय – प ष्टटकर योग : इमली के बीज दधू में कुछ देर पकाकर और उसका नछलका उतारकर सफेद धगरी को बारीक पीस ले और घी में भून लें, इसके बाद सामान मात्रा में ममिी ममलाकर रख लें

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| इसे प्रातः एवां शाम को ५-५ ग्राम दधू के साथ सेवन करन ेसे वीयम पषु्ट हो जाता है | बल और ततम्भन शस्तत बढती है तथा तव-प्रमेह नष्ट हो जाता है |

(२) शराि एवुं र्ाुंग का नशा उतारने में : नशा समाप्त करने के मलए पकी इमली का गूदा जल में मभगोकर, मथकर, और छानकर उसमें थोडा गुड ममलाकर वपलाना चादहए |

(३( इमली के गदेू का पानी पीने से वमन, पीमलया, प्लेग, गमी के ज्वर में भी लाभ होता है |

(४( ह्रदय की दाहकता या जलन को शान्त करने के मलये पकी हुई इमली के रस )गदेू ममले जल )में ममिी ममलाकर वपलानी चादहयें |

(५( लू -लगना : पकी हुई इमली के गदेू को हाथ और परैों के तलओां पर मलने से ल ूका प्रभाव समाप्त हो जाता है | यदद इस गदेू का गाढा धोल बालों से रदहत सर पर लगा दें तो ल ूके प्रभाव से उत्पन्न बेहोसी दरू हो जाती है |

(६( चोट – मोच लगना : इमली की ताजा पस्त्तयााँ उबालकर, मोच या टूटे अांग को उसी उबले पानी में सेंके या धीरे – धीरे उस तथान को उाँगमलयों से दहलाएां ताकक एक जगह जमा हुआ रतत फैल जाए |

(७) गले की सूजन : इमली १० ग्राम को १ ककलो जल में अधऔ्टा कर (आधा जलाकर) छाने और उसमें थोडा सा गुलाबजल ममलाकर रोगी को गरारे या कुल्ला करायें तो गले की सूजन में आराम ममलता है |

(८) खाुंसी : टी.बी. या क्षय की खाांसी हो (जब कफ थोडा रतत आता हो) तब इमली के बीजों को तव ेपर सेंक, ऊपर से नछलके ननकाल कर कपड ेसे छानकर चणूम रख ले| इसे ३ ग्राम तक घतृ या मध ुके साथ ददन में ३-४ बार चाटने से शीघ्र ही खाांसी का वेग कम होने लगता है | कफ सरलता से ननकालने लगता है और रततिाव व ्पीला कफ धगरना भी समाप्त हो जाता है |

(९) ह्रदय में जलन : पकी इमली का रस ममिी के साथ वपलाने से ह्रदय में जलन कम हो जाती है |

(१०) नेत्रों में ग हेरी होना : इमली के बीजों की धगरी पत्थर पर नघसें और इसे गहेुरी पर लगान े स ेतत्काल ठण्डक पहुाँचती है |

(११) चमयरोग : लगभग ३० ग्राम इमली (गूदे सदहत) को १ धगलाश पानी में मथकर पीयें तो इससे घाव, फोड-ेफुां सी में लाभ होगा |

(१२ (उल्टी होने पर पकी इमली को पाने में मभगोयें और इस इमली के रस को वपलाने से उल्टी आनी बांद हो जाती है |

(१३( र्ाुंग का नशा उतारने में : नशा उतारने के मलये शीतल जल में इमली को मभगोकर उसका रस ननकालकर रोगी को वपलाने से उसका नशा उतर जाएगा |

(१४) खनूी िवासीर : इमली के पत्तों का रस ननकालकर रोगी को सेवन कराने से रतताशम में लाभ होता है |

(१५) शीघ्रपतन : लगभग ५०० ग्राम इमली ४ ददन के मलए जल में मभगों दे | उसके बाद इमली के नछलके उतारकर छाया में सुखाकर पीस ले | कफर ५०० ग्राम के लगभग ममिी ममलाकर एक चौथाई चाय की चम्मच चणूम (ममिी और इमली ममला हुआ) दधू के साथ प्रनतददन दो बार लगभग ५० ददनों तक लेने से लाभ होगा |

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(१६ (लगभग ५० ग्राम इमली , लगभग ५०० ग्राम पानी में दो घन्टे के मलए मभगोकर रख दें उसके बाद उसको मथकर मसल लें | इसे छानकर पी जाने से ल ूलगना, जी ममचलाना, बेचैनी, दतत, शरीर में जलन आदद में लाभ होता है तथा शराब व ्भाांग का नशा उतर जाता है | हाँ का जायेका ठीक होता है |

(१७( िह मतू्र या महहलाओुं का सोमरोग : इमली का गदूा ५ ग्राम रात को थोड ेजल में मभगो दे, दसूरे ददन प्रातः उसके नछलके ननकालकर दधू के साथ पीसकर और छानकर रोगी को वपला दे | इससे तत्री और परुुष दोनों को लाभ होता है | मतू्र - धारण की शस्तत क्षीण हो गयी हो या मतू्र अधधक बनता हो या मतू्रववकार के कारण शरीर क्षीण होकर हड् डयााँ ननकल आयी हो तो इसके प्रयोग से लाभ होगा |

(१८) अण्डकोशों में जल र्रना : लगभग ३० ग्राम इमली की ताजा पस्त्तयााँ को गौमूत्र में औटाये |

एकबार मूत्र जल जाने पर पुनः गौमूत्र डालकर पकायें | इसके बाद गरम – गरम पस्त्तयों को ननकालकर ककसी अन्डी या बड ेपत्ते पर रखकर सुहाता- सुहाता अांडकोष पर बााँध कपड ेकी पट्टी और ऊपर से लगोंट कास दे | सारा पानी ननकल जायेगा और अांडकोष पूवमवत मुलायम हो जायेगें |

(१९) पीसलया या पाुंड रोग : इमली के वकृ्ष की जली हुई छाल की भष्म १० ग्राम बकरी के दधू के साथ प्रनतददन सेवन करने से पान्डु रोग ठीक हो जाता है |

(२०) आग से जल जाने पर : इमली के वकृ्ष की जली हुई छाल की भष्म गाय के घी में ममलाकर लगाने से, जलने से पड ेछाले व ्घाव ठीक हो जाते है |

(२१) पपत्तज ज्वर : इमली २० ग्राम १०० ग्राम पाने में रात भर के मलए मभगो दे | उसके ननथरे हुए जल को छानकर उसमे थोडा बूरा ममला दे | ४-५ ग्राम इसबगोल की फां की लेकर ऊपर से इस जल को पीने से लाभ होता है |

(२२) सपय , बिच्छू आहद का पवष : इमली के बीजों को पत्थर पर थोड ेजल के साथ नघसकर रख ले |

दांमशत तथान पर चाकू आदद से छत करके १ या २ बीज धचपका दे | वे धचपककर ववष चसूने लगेंगे और जब धगर पड ेतो दसूरा बीज धचपका दें | ववष रहने तक बीज बदलत ेरहे |

मूगफली के औषधीय गुण

मूगफली के औषधीय ग ण ननम्न हदये जा रहे है -

दस्त की सशधथलता- भोजन के साथ जैसे खखचडी, खीर, सब्जी आदद में मूगफली डालकर सेवन करने से दतत साफ होता है। और तवात्य बनता है।

स्तनों में दधू वपृि- कच्ची मूगफली का सेवन करनें से माता के ततनों में दधू की ववृि हो जाती है। अतः स्जनका दधू बच्च ेके मलए पयामप्त मात्रा में न उतरता हो उन्हें अवश्य ही मूगफली का सेवन करना चादहए।

अडूसा के औषधीय गुण

अडूसा के औषधीय गणु ननम्न है -

खाुंसी में- अडूसे के पत्तों का रस आधा चाय का चम्मच भर और उतनी ही शहद ममलाकर रोज सबुह शाम सेवन करने से कुछ ददनों में ही खासी में लाभ होता है।

फोड़ो पर- सडूसे की जड का लेप करने से फोडो की जलन ठीक होती है। और कुछ ददन में फोड ेठीक होने लगते है।

दमें पर- अडूसे के पत्तों तम्बाकू की तरह धचलम में भरकर पीना चादहये।

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खाज ख जली पर- अडूसे के पत्तों तथा जड का काढा बनाकर पीना चादहए।

पेधचश पर- इसके पत्तों का काढा नमक ममलाकर पीना चादहए।

रक्तानतसार में- अडूसे के पत्तों के रस का सेवन करना चादहए।

स खकर प्रसव के सलए - अगर बच्चा आसानी से न पैदा हो रहा हो और गमभमणी को कष्ट हो रहा हो तो अडूसे की जड को अमलतास शहद और सेंधा नमक के साथ ममलाकर पीसकर लेप करने से सुख पुवमक बच्चा जन्मता है।

अरबी, घुईया के औषधीय गुण

अरबी, घईुया के औषधीय गणु -

जलना- जले हुए तथान पर अरबी पीसकर लगाने से फेफोले नही पडत ेऔर जलन भी समाप्त हो जाती है।

सूखी खासी- सूखी खासी में अरबी की सब्जी खाने से कफ पतला होकर बाहर ननकल जाता है।

हृदय रोग- बडी इलायची, काली ममचम, काला जीरा, अदरक आदद से तैयार अरबी की सब्जी कुछ ददनों तक ननयममत सेवन करने रहने से हृदय दौबमय, रतताल्पाता (खनू की कमी) व अन्य हृदय रोग जाते रहते है।

िरय या ततैया का काटना- दांमशत तथान पर अरबी काटकर तथा नघसकर लगा देनी चादहए। इससे ववष कम हो जायेगा और सुजन भी कम हो जायेगी।

वाय का गोला- अरबी के पौधे के डन्ठल को पत्तों सदहत वाष्प (भाप) पर उबालकर ननचोंड लें और उसमें ताजा घी ममला 3-4 ददन तक वपलाते रहने से वात गुल्म में लाभ होता है।

गुंजापन- अरबी (घुईया काली) के रस का कुछ ददनों तक ननयममत मसर पर मदमन करने से केशों का धगरना रूक जाता है। तथा नयें केश भी उग आतें है।

रक्ताशय- अरबी का रस कुछ ददनों तक वपलाना दहतकर रहता है।

आाँवला के औषधीय गुण

पेशाि में जलन होने पर : हरे आांवले का रस 50 ग्राम , शहद 20 ग्राम दोनों को ममलाकर एक मात्रा तैयार करे | ददन में दो बार लेन ेसे मूत्र पयामप्त होगा और मूत्र मागम की जलन समाप्त हो जायेगी |

कृसम पड़ना – खान–पान की गडबडी के कारण यदद पेट में कीड ेपड गए हो तो थोडा–थोडा आांवले का रस एक सप्ताह तक पीने से वे समाप्त हो जाते है |

गमी के पवकार – ग्रीष्म ऋतु में गमी की अधधकता के कारण कमजोरी प्रतीत हो , चतकर आये,

मूत्र का रांग पीला हो जाए तो प्रनतददन सुबह के समय एक नाग आांवले का मुरब्बा खाकर ऊपर स ेशीतल जल पी ले गमी के ववकार दरू हो जायेगें |

कट जाने पर - ककसी कारण शरीर का कोई अांग कट जाए और उससे खनू ननकालने लगे तो आांवले का ताजा रस लगा देने से रततिाव बन्द हो जाता है कटी हुई जगह जल्द ठीक हो जायेगी |

पवष–अफीम का असर खत्म करना – आांवले की ताजा पस्त्तयााँ 100 ग्राम को 500 ग्राम पानी में उबालकर और छानकर वपलाने से शरीर में अधधक ददनों से रमा हुआ अफीम का ववष भी शाांत हो जाता है |

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म ख , नाक, ग दा से या खनू की गमी के कारण रक्तश्राव – ऐसा होने पर ताजा आांवले के रस में मध ु(शहद) ममलाकर रोगी व्यस्तत को वपलाना चादहये |

नकसीर – ताजा आांवले के मसथरे हुए रस की 3-4 बूदे रोगी के नथनुों (नासानछद्रों) में डालें तथा इसी प्रकार प्रनत 15-20 ममनट बाद नतय देकर ऊपर को चढाने को कहें , नकशीर बन्द हो जायेगी |

साथ ही आांवले को भी भूनकर छाछ (मठ्ठा) या कााँजी में पीसकर मस्ततष्क पर लेप करा देने से शीघ्र लाभ होगा |

िह मूत्र – आांवले के पत्ते का रस २०० ग्राम में दारूहल्दी नघसकर और ममलाकर वपलाने से बहुमूत्र व्याधध से लाभ हो जाता हैं |

मूच्छाय – वपत्त की ववकृनत कारण हुई मूच्छाम में आांवले के रस में आधी मात्रा गाय का घी ममलाकर, थोडा- थोडा ददन में कई बार देकर ऊपर से गाय का दधू वपला देना चादहये | कुछ ददनों तक इसके इततेमाल से मूछाम रोग हमेशा के मलए खत्म हो जाता है |

पीसलया , शरीर में खून की कमी – जीणम ज्वरादद से उत्पन्न पाण्डु-रोग को दरू करने के मलए ताज ेआांवले के रस में गन्ने का ताजा रस और थोडा सा शहद ममलाकर पीना चादहए, इससे लाभ होगा |

समरगी या अपस्मार – ताजे आांवले के 4 ककलो रस में मलेुठी 50 ग्राम तथा गोघतृ 250 ग्राम ममला मन्दास्नन पर पकाकर घतृ मसि कर ले | इस घतृ के सेवन से ममरगी में लाभ हो जाता है |

अम्लपपत्त , रक्तपपत्त, ह्रदय की धड्कन, वातग ल्म, दाह – ताजे आवले का कपड ेसे छना हुआ रस 25 ग्राम में सममात्रा में मध ु ममलाकर (यह एक मात्रा है ) प्रातः एवां सायां वपलाने से सभी व्याधधयों में आशातीत लाभ होता है |

आाँवले के रस या चणूम का कोई भी प्रयोग ममट्टी , पत्थर या काांच के पात्र में रखकर ही सेवन करना चादहये ककसे अन्य धात ुके पात्र में नहीां |

नेत्रों की लाली – (1) ताजे आाँवले के रस को कलईदार पात्र में भरकर पकावें | गाढा होने पर लांबी – लांबी गोमलयाां बनाकर रखा ल े| इसे पानी में नघसकर सलाई से लगात ेरहने से नेत्रों की लामलमा दरू हो जाती है | (2) आाँख आना या नेत्रामभश्यन्द रोग की प्रारस्म्भक अवतथा में भली प्रकार पके ताजा आाँवले के रस की बूाँद आाँखों में टपकात ेरहने से नेत्रों की जलन, दाहकता, पीडा व लामलमा दरू हो जाती है |

दााँत ननकलना – बच्चों के दााँत ननकलते समय आाँवले के रस को मसूढों पर मलने स ेआराम स ेऔर बबना कष्ट दााँत ननकल आते है |

हहचकी , वमन , तषृा उिकाई – (1) आाँवले के रस में शतकर या मधु ममलाकर देने से वपत्तजन्य वमन, दहचकी आदद बन्द हो जाती है | (2) ककसी भी कारण से वपत्त का प्रकोप हो और नेत्रों में धुधला सा छाने लगे तो आाँवले के रस 20 ग्राम में सामान मात्रा में ममिी ममलाकर वपलानी चादहये |

केश श्वेत हो जाने पर – ताजे आाँवले उबाल, मथ, रस छानकर बचे गदेू में चतथुाांश घी ममलाकर भनू ले | भली प्रकार भनू जाने पर उसमे सामान मात्रा में कुटी हुई ममिी ममलाकर ककसे कलईदार पात्र में या अम्रतावान में भर कर रखें | 20-20 ग्राम मात्रा सबुह-शाम मधु के साथ सेवन करके ऊपर से गाय का दधू वपए | शरीर पषु्ठ होकर असमय पके सफेद बाल काले और धचकने हो जायेगें | यह बाजीकरण का बहुत अच्छा रसायन है |

अदरक के औषधीय गुण

अदरक के औषधीय गुण

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अपस्कार समरगी- गला रूध कर आवाज ननकलना, बेहोशी, दात मभांच जाना, पीडा आदद की स्तथनत में 25 ग्राम अदरक का रस ननकालकर कुछ गमम करके रोगी व्यस्तत को वपलाना चादहये।

िह मूत्र- अदरक के रस में ममिी ममलाकर सेवन कराने से बहुमूत्र में लाभ होता है। हृयद शूल या छाती की पीडा भी शान्त हो जाती है।

हैजा- अदरक के रस में अकम मूल व कालीममचम पीछकर गोमलयाां बनाकर सेवन करना लाभकर रहता हैं।

जलोदर- पेट में पानी भर जाने से अदरक के 10 ग्राम रस में पुराना गुड 20 ग्राम की मात्रा में प्रातः साय कुछ ददनों तक ननयममत लेने से जलोदर रोग समाप्त हो जाता है। ककन्तु प्य में रोगी को केवल बकरी का दधू देना चादहये।

स्वर र्ुंग- अदरक में छेद करके उसमें 1 रत्ती हीांग रखकर कपड ेमें लपेटकर भूभल में भून लें। गन्ध आने पर चने के आकार की गोमलयाॅ बनाकर धीरे धीरे चसूते रहें।

वमन- वमन होने की स्तथनत में अदरक के रस में समान मात्रा में प्याज का रस ममलाकर वपलाना चादहये।

ज काम- यदद जाड ेकी ऋतु में भयांकर जुकाम हो रहा हो स्जसके कारण गला रूध गया हो तो अदरक का रस 10 ग्राम में शहद ममला गमम कर रोगी को ददन में 2-3 बार दें, लाभ होगा।

इन्लूएुंजा पर - इन्लूएांजा के ज्वर में एक चाय के चम्मच भर अदरक का रस और उतनी ही शहद एक ही साथ ममलाकर देने से ननस्श्चत ही लाभ होता है। यह औषधध सूखी या बलगम युतत खाांसी में लाभप्रद है।

र्ूख िढाने के सलये - खाने से पुवम नमक के साथ अदरक खाने से भूख बढती है। और मुह का जायजा ठीक होता है। सोंठ का चणूम भी भोजन के साथ या भोजन से पूवम फाकना लाभदायक होता है।

खाुंसी की औषधध - अदरक का रस 12 ग्राम सेधा नमक 125 मममलगाम शहद 2 ग्राम काली ममचम को बारीक पीसकर अदरक के रस में ममला दें। तत्पश्चात उसमें शहद डालकर अच्छी तरह फेट डाले। इसे सुबह शाम थोडा थोडा कुछ ददनों तक चाटने से खासी दरू होती है। तमरण रहे कक इस उपचार के समय कोई स्तननध वततु खाकर जल न वपयें ऐसा करने से लाभ के बजाय हानन सम्भव है।

प्रसव के िाद की प टटई - औरतो के मलए सोठ अमतृ तुल्य है। प्रसव के बाद की कमजोरी को दरू करने के मलए माताओां को सौठ का पाक खखलाया जाता है। यह पाक सौभानय शुांठी पाक के नाम से बाजारों में भी बबकता है। इसके प्रयोग से प्रसूती के शरीर के समतत ववकार ननकल जाते है। और उसका शरीर बलवान हो जाता है। इससे दधू की शुवि और ववृि भी होती है।

मुंदाष्नन में - पहले आधा ककलो अदरक अच्छी तरह उबाल ले। कफर उसे छीलकर पीस लें और उसमें 100 ग्राम हल्दी पीसकर ममला दे। इसके बाद इसमें सेर भर पुराना गुड ममलाकर रख दे। इस औवषधध को प्रनतददन 3-3 ग्राम की मात्रा में लेने से अस्नन दीप्त होती है। और शस्तत बढती है तथा साथ ही खासी भी दरू हो जाती है।

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1. भखू कम लगने पेट की गसै भोजन के प्रनत अरूधच कब्ज जीभ व गले में बलगम धचपटने की स्तथनत मे लगभग 5 ग्राम अदरक महीन काटकर आवश्यकतानसुार नमक डालकर एक डढे सप्ताह तक प्रनतददन सेवन करे।

चोट लगने पर - अदरक पीसकर गमम कर ले। इसकी ददम वाले तथान पर लगभग आधा इांच (मोटाई) लपे करके पट्टी बाधे लगभग 2 घन्टे पश्चात लेप को हटाये व सरसों का तले लगाकर सेक लें। इस प्रकिया को लाभ हाने पर प्रनतददन करे।

अपच- भोजन के उपरान्त अदरक व नीबू के रस में सेधानमक ममलाकर प्रातःसाय पीते रहने से अपच दरू हो जाती है। और भूख खबू लगती है।

कान का ददय- अदरक का रस ककधचत गमम करके कान में डालने से कान का ददम तुरन्त समाप्त हो जाता है।

दन्तशूल- दातो में ददम होते समय अदरक के टुकडे दातो के बीच में दबाकर रखने से दातो का ददम समाप्त हो जाता है।

सष्न्नपानतक ज्वर- अदरक का रस में बत्रकुटा व सेधानमक ममलाकर देने से गले में नघरा हुआ कफ ननकल जाता है। स्जससें रोगी को आराम ममल जाता है।

न्यूमोननया- अदरक के रस में 2-1 वषम पुराना घतृ व कपुर ममलाकर गमम करके लेप करना तत्काल लाभ करता है।

अम्लपपत- अदरक के रस 2 ग्राम में अनार का रस 5 ग्राम ममलाकर देने से अम्लवपत्त ठीक हो जाता है।

अजीणय- कुछ ददनों तक अदरक का रस सेवन करते रहने से अजीणम में लाभ होता है। और भूख खलुकर लगने लगती है।

नेत्र रोग- अदरक को जलाकर उसकी राख बारीक पीसकर रख ले। यह राख नेत्राांजन करनांॅे से नेत्रों में ढलका जाना, जाला पडना आदद रोग दरू हो जाते है।

सष्न्नपात - सस्न्नपात के कारण जब शरीर एकदम ठांडा पड जाये तब अदरक के रस में थोडा सा लहसुन का रस ममलाकर रोगी शरीर पर मदमन करने से उसमें कफर से गमी लौट आने की सांभावना रहती है।

गधृ्रसी, जुंघा, कहट, िेदना- की स्तथनत में अदरक के रस में शुि ताजा घी ममलाकर पीना दहतकर होता है।

गैस टृिल, मुंदाष्नन- कदट हुई अदरक में नमक नछडककर ददन में कई बार थोडी थोडी खाते रहने से अपान वायु ननकलती है। शरीर का भारीपन समाप्त हाता है। धचत्त प्रसन्न रहता है। और खबू भूख लगती है।

ससर ददय- मसर में ददम या शरीर के जोडों (सांधध तथलो) में ककसी भी कारण से पीडा होने पर अदरक के रस में सेंधानमक या दहगां ममलाकर मामलश करनी चादहऐ।

नाप जाना, नासर् हटना और अनतसार- अदरक के रस में कपडा मभगो-मभगोकर नामभ पर प्रनत 15

ममनट बाद बदलते हुए रखें। अनतसार रूक जाता है और नामभ यथातथान बैठ जाती है।

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आधासीसी का ददय- रोगी व्यस्तत को चारपाई पर कुछ नीचा मसर करके सीधा मलटा दे। उसके बाद स्जधर के दहतसे में ददम हो उधर नासानछद्र में अदरक का रस, मध ुव जल समान मात्रा में ममलाकर 2-3 बूदे टपकाये। 3-4 बार ऐसा करने से लाभ हो जायेगा, दवा मस्ततष्क में अवश्य पहुच जानी चादहए।

प्रनतश्यामा (ज काम)- अदरक 5 ग्राम, ममिी 10 ग्राम, कालीममचम 10 नग इनका 200 ग्राम जल में काढा बनाकर चैथाई (1/4 भाग) शषे रहने पर पीवें।

अुंड वपृि- वायुकार के कारण यदद अांडकोष बढ जाये तो अदरक के रस में शहद ममलाकर प्रनतददन लगभग 40 ददन तक सेवन करे।

नशा मुस्तत उपचार

शराब पीना और ववशषेरूप से धूम्रपान के साथ शराब पीना बहुत ही खतरनाक है | इससे अनेकों रोग जैसे कैं सर (महु का ), मदहलाओां में ततन कैं सर, आदद रोग होत ेहै | ऐसे बरेु व्यसन (आदत) एक मानमसक बीमारी है और इसे को छुडाने के मलए मानमसक बीमारी जैसे इलाज की आवश्यकता होती है |

वात होने पर लोग धचांता और घबराहट को दबाने के मलए धूम्रपान का सहारा लेत ेहै | वपत्त बढने से शरीर के अन्दर गमी लेने की इच्छा होती है और धूम्रपान की इच्छा होती है | कफ बढने से शरीर के अन्दर डाली गयी तम्बाकू की शस्तत बढती है |

लेककन आप इसका इलाज आयवेुद के माध्यम से कर सकत ेहै और इसे बनाने के मलए १८-२० जडी – बदूटयों का प्रयोग ककया जाता है | सभी औषधधयों को ननस्श्चत मात्रा में ममलाकर यह दवा तयैार की जाती है | इस दवा का कोई बरुा प्रभाव नहीां है यदद इसे शरीर के वजन और तवात्य अनसुार दवा की मात्रा तयकर मलया जाता है | इस दवा का प्रयोग ककसी का शराब का नशा छुडाने, धूम्रपान का नशा छुडाने, और अन्य का नशा छुडाने (जैसे गटुका, तम्बाकू) में प्रयोग ककया जा सकता है |

जडी – बदूटयों का वववरण और मात्रा ननम्न है –

गलुबनफशा - 2 ग्राम

ननशोध - 4 ग्राम

ववदारीकन्द (कुटज) – 15 ग्राम

धगलोय – 4 ग्राम

नागेसर - 3 ग्राम

कुटकी - 2 ग्राम

कालमेघ - 1 ग्राम

मिगराज – 6 ग्राम

कसनी - 6 ग्राम

ब्राम्ही – 6 ग्राम

भुईआमला - 4 ग्राम

आमला - 11 ग्राम

काली हरर - 11 ग्राम

लौंग - 1 ग्राम

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अजुमन - 6 ग्राम

नीम – 7 ग्राम

पुननमवा - 11 ग्राम

मेश्िीन्गी कैसे प्रयोग करे – उपर दी गयी सभी जडी – बदूटयों को कूट और पीसकर पाऊडर बना लें । एक चम्मच दवा पाऊडर को एक ददन में दो बार खाना खाने के बाद पानी के साथ ले | इस दवा को खान ेमें ममलाकर भी ददया जा सकता है | जैसे – जैसे नश ेकी लत कम होने लगे इस दवा की मात्रा धीरे – धीरे कम कर दे | इस दवा का असर फौरन पता चलने लगता है और लगभग दो माह में परूी तरह से नश ेकी लत खत्म हो जाती है लकेकन दवा को कम मात्रा में और २ -३ ददन के अांतर के लगभग ६ माह दे स्जससे नश ेकी लत जड से खत्म हो जाए |

आवश्यक ननदेश

चैत्र माह में नया गडु न खाएां बैसाख माह में नया तेल न लगाएां जेठ माह में दोपहर में नहेम चलना चादहए

अषाढ माह में पका बेल न खाएां सावन माह में साग न खाएां भादों माह में दही न खाएां तवार माह में करेला न खाएां कानतमक माह में जमीन पर न सोएां अगहन माह में जीरा न खाएां पूस माह में धननया न खाएां माघ माह में ममिी न खाएां फागुन माह में चना न खाएां अन्य ननदेश

तनान के पहले और भोजन के बाद पेशाब जरूर करें ।

भोजन के बाद कुछ देर बायी करवट लेटना चादहये ।

रात को जल्दी सोना और सबुह जल्दी उठाना चादहये ।

प्रातः पानी पीकर ही शौच के मलए जाना चादहये ।

सयूोदय के पवूम गाय का धारोष्ण दधू पीना चादहये ।

व्यायाम के बाद दधू अवश्य वपयें।

मल, मतू्र, छीक का वेग नही रोकना चादहये ।

ऋत ु )मौसमी (फल खाना चादहये ।

रसदार फलों के अलावा अन्य फल भोजन के बाद खाना चादहये ।

राबत्र में फल नहीां खाना चादहये ।

भोजन के समय जल कम वपयें ।

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नेत्रों में सरुमा /काजल अवतय लगायें ।

तनान रोजाना अवश्य करना चादहये ।

सयूम की ओर महु करके पेशाब न करें ।

बरगद, पीपल, देव मस्न्दर, नदी व ्शमशान में पेशाब न करें ।

गांदे कपड ेन पहने, इससे हानन होती है ।

भोजन के समय िोध न करें बस्ल्क प्रसन्न रहें। आवश्यकता से अधधक बोलना भी नहीां चादहये व बोलत ेसमय भोजन करना रोक दें |

ईश्वर आराधना अवश्य करनी चादहये ।

अतथमा का घरेलू उपचार

अतथमा होने पर ननम्न घरेल ूउपचार अपनाकर आप इसका इलाज कर सकतें हैं और तवतथ रह सकत ेहैं - लहसनु दमा के इलाज में काफी कारगर साबबत होता है। 30 ममली दधू में लहसनु की पाांच कमलयाां उबालें और इस ममिण का हर रोज सवेन करने से दमे में शरुुआती अवतथा में काफी फायदा ममलता है।

अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो वपसी कमलयाां ममलाकर पीने से भी अतथमा ननयांबत्रत रहता है। सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।

दमा रोगी पानी में अजवाइन ममलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमांद होता है। 4-5 लौंग लें और 125 ममली पानी में 5 ममनट तक उबालें। इस ममिण को छानकर इसमें एक चम्मच शुि शहद ममलाएाँ और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढा बनाकर पीने से मरीज को ननस्श्चत रूप से लाभ होता है।

180 मममी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पस्त्तयाां ममलाकर करीब 5 ममनट तक उबालें। ममिण को ठांडा होन ेदें, उसमें चटुकीभर नमक, कालीममचम और नीबू रस भी ममलाया जा सकता है। इस सपू का ननयममत रूप से इततेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।

अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मैथी के काढे और तवादानुसार शहद इस ममिण में ममलाएां। दमे के मरीजों के मलए यह ममिण लाजवाब साबबत होता है। मथैी का काढा तैयार करन ेके मलए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सबेरे-शाम इस ममिण का सेवन करने से ननस्श्चत लाभ ममलता है।

दमा का अटैक में सावधानी - 1. सीधे बैठें और आराम से रहें ।

2. तुरांत सुननस्श्चत मात्रा में ररलीवर दवा लें ।

3. पाांच ममनट के मलए रुकें , कफर भी कोई सुधार न हो तो दोबारा उतनी दवा लें।

पुरुषों में सेतस सांबांधी समतयाएां एवां उपचार

आमतौर पर मदहलाएां सेतस सांबांधी समतयाओां से नघरी रहती है, लेककन ऐसा नहीां कक पुरूषों को यौन समतयाएां नहीां होती। पुरूषों में अकसर तनाव सांबांधी समतयाओां के कारण यौन समतयाएां होती है। ववटाममन बी के सेवन से पुरूष सेतस सांबांधी कई समतयाओां से अपना बचाव कर सकते हैं। बहरहाल,

आइए जानते हैं पुरूषों में सेतस सांबांधी समतयाओां के बारे में।

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पुरुषों में सेतस समतयाओां की बात आते ही सबसे पहले उन लोगों पर ध्यान जाता है, जो चाह कर भी सेतस में रुधच नहीां ले पाते हैं या स्जनकी सेतस करने में कोई ददलचतपी नहीां होती।

सेतस क्षमता में कमी पुरुषों में आम समतया बन चकुी है। इसके वाततववक कारण होते हैं सेतस हॉरमोन टेतटोतटेरोन की कमी। पुरुषों में 40 की उम्र के पार होने पर रतत में टेतटोतटेरोन की मात्रा में कमी आना एक आम बात है। हामोन में कमी उम्र के साथ जुडी समतया है लेककन कुछ लोग अपनी उम्र की शुरुआत में ही इससे पी डत हो जाते हैं। ये डाइबबटीज या अन्य तनाव सांबांधी कारणों से भी पनप सकता है। रतत में टेतटोतटेरोन की कमी से शरीर में थकान, ददमागी पररवतमन,

अननद्रा के साथ ही सेतस की चाहत में कमी हो जाती है।

यौन समतयाओां में सबसे आम समतया है पुरुषों में शीघ्रपतन। सेतस किया के दौरान पुरुष तखलन होने के साथ ही पुरुष की उत्तेजना शाांत हो जाती है कफर चाहे उसकी मदहला साथी की कामोत्तेजना शाांत न भी हो।

ज्यादातर लोगों में सेतस में ददलचतपी खत्म होने का सबसे बडा कारण इरेतटाइल डतफां तशन यानी मलांग की माांसपेमशयाां कमजोर पडना है। ये समतया कई बार ववटाममन बी के सेवन न करने से, कई बार बुरी आदतें व लाइफतटाइल के कारण हो सकती है। कई लोगों में तनाव सांबांधी समतयाओां के कारण ऐसा होता है।

शराब पीने वालों कोकीन, आदद ड्रनस लेने वाले लोग सेतस के प्रनत उदासीन होते हैं। मोटापा व्यस्तत को सेतस से ववचमलत करता है। कई बीमाररयाां जैसे- हृदय रोग, एनीममया और मधमुेह जैसी बीमाररयाां भी पुरुष को सेतस के प्रनत उदासीन बनाती हैं।

तनाव सांबांधी समतयाएां या अत्यधधक व्यतत रहने वाले लोगों का सतेस जीवन भी उदासीन हो जाता है।

बहुत स ेलोगों को यह भम्र हो जाता है कक एक उम्र के बाद शरीर में सेतस शस्तत में कमी आ जाती है। लेककन ये धारणा गलत है तयोंकक यदद इस उम्र के पुरुष अपन ेतवात्य की ठीक प्रकार से देखभाल करते हैं तो वह सेतस का आनन्द उसी प्रकार से ले सकते हैं, स्जस प्रकार से एक युवा पुरुष सेतस किया का आनन्द लेता है।

सेतस इच्छा में कमी कई बार अधधक दवाइयों का प्रयोग करने, शरीर में रोगों का प्रभाव होने, मूत्रनली से सांबांधधत रोग होने, तनाव होने और मानमसक समतया के कारण हो सकते हैं।

बढती उम्र में पुरूषों में सेतस इच्छा तेज हो जाना भी एक समतया है स्जसका कारण प्रोतटेट ग्रांधथ का बढ जाना है।

परुूष अपनी यौन समतयाओां से ननजात पाने के मलए ववटाममन बी का सेवन कर, तनाव सांबांधी समतयाओां को दरू कर और पौस्ष्टक आहार लेत ेहुए अपनी सही तरह से देखभाल कर सकत ेहैं।

अजवायन के औषधीय गणु

अजवायन के औषधीय गणु

वाय के ददय या कफ जमने पर- ककसी प्रकार का वायु ददम हो या सस्न्धयों में वपडा हो अथवा उदर शूल हो या कफर सदी के कारण छाती में बलगम जम गया हो इन सभी मजो पर अजवायन के

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तेल की मामलश करनी चादहये। अजवयान तेल वैस ेतो बाजार में ममल जाता है। मगर यदद न ममले तो अजवायन को सरसों के तेल मे पकाकर भी काम चलाया जा सकता है। यह तेल ददम में भी मुफीद है।

उदर शूल पर- कैसा भी उदर शूल तयों न हो 3-4 ग्राम अजवायन पीसकर थोंड ेसे सेंधा नमक या काले नमक के साथ फाांककर उपर से गुनगुना जल पीने से ददम गायब हो जाता है।

पवसूधचका (हैजे) में- कपूर के साथ अजवायन ममलाकर देना चादहये। कफर अजवायन का अकम 12

ग्राम प्यास लगने पर रोगी को वपलाते रहना चादहये। मगर ध्यान रहे हैज ेमें जल कभी न दें उसके तथान पर यही अकम दें। अगर हैजे के रागी के हाथ पैर ठांड ेपड गये हो तो अजवायन की पोटली बनाकर सेकना चादहये।

उदर शूल हर चणूय- अजवायन 12 ग्राम काली ममचम 12 ग्राम, काला नमक 6 ग्राम, सौठ 12 ग्राम तथा बडी इलायची 12 ग्राम। इन सभी चीजों को कूट पीसकर कपडछन करके रख ले। यह चणूम 6 ग्राम सुबह और 6 ग्राम शाम को भोजनोपरानत सेंवन करने से समतत प्रकार के उदर शूल दरू होते है। तथा वायु ववकार भी नही हाने पात,े भोजन के बाद मुह में थोडी सी अजवायन रखकर धीरे-घीरे उसका रस चसुते रहने से भी पाचन शस्तत बढती है। और पेट के ववकार दरू होते है।

अजवायन का अकय उदर शूल के सलए- अजवायन का अकम ननकलने का सबसे आसान तरीका यह है। कक डढे या दो ककलो अजवायन को चार ककलो पानी में भीगों दो इसे दो रात रखा रहने दें कफर मुनतके द्वारा आसवन ववधी से भट्टी पर चढाकर इसका अकम उतार ले। कफर यह अकम उदरशूल,

वमन, मरोड आदद की रामबाण औसधध है।

िच्चो की सदी पर- अजवायन का बफरा देने से बच्चों की सदी दरू होती है।

नतल के औषधीय गुण

नतल के औषधीय ग ण नीच ेहदये गये है -

घाव होना- पानी में नतलों को पीसकर पुस्ल्टस बाांधने से अशुि घाव साफ होकर शीघ्र भर जाता है।

गर्ायशय की पीड़ा- नतलों को बारीक पीसकर नतल के ही तेल में ममला ककां धचत ्गमम करके नामभ के भाग में धीरे धीरे लेप करने या मलने (मदमन करने) से शीत जन्यपीडा शान्त हो जाती है।

प्रमेह- नतल तथा अजवायन को दो एक के अनुपात में ममलाकर पीस लें और समान मात्रा में ममिी ममलाकर सेवन करवायें।

शीघ्र प्रसव- शीघ्र प्रसव हो सके इसके मलये 70 ग्राम की मात्रा मे काले नतल कूटकर 24 घन्टें के मलये जल में मभगों दे। सुबह उन्हें छानकर प्रसव मदहला को पीला दें। बच्चा शीघ्र हो जायेगा।

रक्त स्त्राव- प्रसूती या गभमवती मदहला के योनी मागम से रतत ननकलना बन्द नही हो तो नतल व जौ को कुटकर शतकर ममलाकर शहद के साथ चाटना चादहए।

रक्ताशय-लगभग 50 ग्राम काले नतलों को सोखने योनय पानी में मभगोये। लगभग 30 ममनट जल में भीगे रहने के बाद उन्हें पीसकर उसमें लगभग एक चम्मच मतखन एांव दो चम्मच ममिी ममला दें। इसका प्रनतददन दो बार सेवन करने से खनूी बवासीर (रतताशम) में लाभ होता है।

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पेट ददय- 20-25 ग्राम साफ नतल चबाकर उपर से गमम पानी वपलाने से पेट का ददम ठीक हो जाता है। साथ ही नतलों को पीसकर लम्बा सा गोला बनाकर उसे तवे पर सहन करने योनय करके पेट के उपर कफराने से अत्यन्त से अत्यन्त कष्टदायी पेट का ददम (उदर शूल) भी शान्त हो जाता है।

सूजाक- 15-15 ग्राम की मात्रा में काले नतल तथा देशी खाड बारीक पीसकर गाय के कच्च ेदधू के साथ रोग की स्तथनत के अनुसार सेवन करने से लाभ हो जाता है।

िवासीर- 1. काले नतल चबाकर उपर से ठांडा जल पीने से बादी बवासीर ठीक हो जाता है।

2. नतल पीसकर गमम करके मतसो पर लेप करने या बाधने से भी बवासीर में लाभ होता है। इसके साथ नतल के तले का एननमा (बासी) देने से आत ेधचकनी होकर शौच के गचु्छे ननकल जात ेहै। स्जससे धीरे धीरे रोग समाप्त हो जाने लगता है।

खूनी दस्त रक्तानतसार- काले नतल एक भाग में ममिी 5 भाग ममलाकर पीसकर बकरी के दधू के साथ देने स ेरततानतसार में लाभ हो जाता है।

वात रक्त- नतलों भूनकर दधू में बुझाकर बारीक पीसकर लेप करने से वात रतत का रोग दरू हो जाता है।

र्गन्दर- भयांकर व्याधध भगन्दर या वेदनायुतत वातजन्य धावों में नतल या असली को भूनकर परन्तु गभम स्तथनत में दधू में बुझाकर व उसी दधू में पीसकर लेप करना चादहए। भगन्दर रोग ममट जायेगा।

िह मात्र- प्रातः साय नतल मोदक (नतल के लड्डू) खाने से अधधक पेशाब आना बन्द हो जाता है।

कब्ज- लगभग 60 ग्राम नतल लेकर उन्हे कूट लें कफर उनमें कोई ममष्ठान ममला लें। इसे खाने से कब्ज का नाश होता है।

िालों में रूसी होना- बालो में नतल के तेल की मामलश कर लगभग 30 ममनट के पश्चात गमम पानी में भीगी एांव ननचोडी हुई तौमलया मसर पर लपेंटें। तौमलया के ठांड ेहोने पर पुनः तौमलया गमम जल में मभगोकर ननचोडकर मसर पर लपेटे। यह किया लगभग 5 ममनट तक करे। कफर कुछ देर के बाद शीतल जल से मसर धो लेने पर रूसी दरू हो जायेगी ।

स खी खासी- यदद सदी के कारण सूखी खासी हो तो 4-5 चम्मच ममिी एांव इतने ही नतल ममधित कर ले। इन्हे एक धगलास मे आधा पानी रहन ेतक उबाले। इसे प्रनतददन प्रातः साय एांव रात्री के समय पीये।

आग से जलना- नतल जल में चटनी की भाती पीस लें। इस का दनध जले तथान पर मोटा लेप करने से जलन शान्त हो जाती है।

मोच आना- नतल की खल लेकर उसे पीसे एांव पानी मे गमम करे कफर उतारकर गमम ही मोच आये तथान पर बाधने से मोच के ददम में लाभ होता है।

मानससक दिूयलता- नतल गुड दोनो सममात्रा में लेकर ममला लें।उसके लड्डू बना ले। प्रनतददन 2 बार 1-1 लड्डू दधू के साथ खाने से मानमसक दबुमलता एांव तनाव दरू होते है। शस्तत ममलती है। कदठन शारीररक िम करने पर साांस फूलना जल्दी बुढापा आना बन्द हो जाता है।

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दुंत धचककत्सा- प्रातः काल तथा साय काल लगभग 50-50 ग्राम की मात्रा में (बबना ममठा ममलाये) धीरे धीरे काले नतल चबाकर उपर से पानी पीने से दात मजबूत मल रदहत हो जाते है। और दहलते हुए दात भी पुनः जम जाते है।

पथरी- नतल क्षार को रोग की दशानुसार देशी शहद में ममलाकर दधू के साथ सेवन करने स ेपथरी रोग में लाभ होता है।

मकड़ी का पवष- नतलो को वपलवाकर तेल ननकाल लेने के उपरान्त बच ेभाग खली में थोडी हल्दी ममलाकर पानी में पीसकर रोग तथान पर लेप कर देने से मकडी का ववष समाप्त हो जाता है।

म हास-े मुहासो के मलए नतल की खली को जलाकर इसकी राख में गोमूत्र ममलाकर लेप करने स ेकुछ ददनों में मुहासे ठीक हो जाते है।

नारू रोग- खली नतल की को काफी में पीसकर लेप करने से नारू रोग में लाभ होता है।

िह मूत्रता- जाड ेके ददनो में गुड नतल की गमम ताजा गजक खाने से अधधक पेशाब आना और गले की खजुली ठीक हो जाती है।

अलसी या तीसी के औषधीय गुण

अलसी या तीसी के औषधीय गणु और रोगों के इलाज के बारे में नीचे ददया जा रहा है -

श्वास कास- 1. अलसी के दाने कूट छानकर जल में उबाल ले। उसके बाद वपसी ममिी 20 ग्राम (जाड ेकी ऋत ुमें शहद) ममला सेवन करात ेरहने से श्वास कास में लाभ होता है।

2. अलसी के साबतु दाने 5 ग्राम चादी (चादी न हाने पर कासा) की कटोरी में 40 ग्राम जल में मभगोकर ढककर 12 घण्टे के मलए रख दे। यह जल छानकर पीये। यह जल सबुह का साय और साय का सबुह 12 घण्टे के अन्तर से लेने से श्वासग्रतत रागी की पीडा शान्त हो जाती है। ककन्त ुखान पान सम्बन्धी परहेज आवश्यक है।

हैजा- अलसी के दानो का चणूम 5-6 ग्राम लेकर उसमें 50 गाम गमम पानी ठांडाकर 3 बार वपलायें। इस प्रकार बार बार वपलाने से हैजे में लाभ होता है।

अननद्रा- अलसी तथा रेंडी का शुि तेल सममात्रा में ममधित कर कासें की थाली में कासे के ही पात्र में भली भानत घोटकर नेत्रों में अांजन करने से अननद्रा दरू हो जाती है। उत्तम सुखद नीांद आती है।

व्रण ग्रष्न्थ- जल के साथ असली पीस और जरा गमम करके पुस्ल्टस बाधने से कच्चा घाव शीध्र पक जाता है। जब तक पुस्ल्टस में गीला पन रहे, तभी उसे बदल कर दसूरी बाध देनी चादहए।

वीयय पवकार- अलसी के बीजों के चणूम में समान खाांड व आधी मात्रा में देशी घी ममलाकर ददन में 3

बार एक एक चम्मच सेवन करते रहने से शरीर ताकतवर बनता है। तवभाववक कोष्ठबिता दरू हो जाती है। शुिमेह नष्ट होकर वीयम गाढा हो जाता है। तथा समतत वीयम सम्बन्धी ववकार ममटकर रोगी पूणमतः सन्तानोत्पत्ती के योनय हो जाता है।

कफ खासी- अलसी के दानों को धीमी धीमी आग के उपर तक रख कर गांध आने तक ममिी ममला पीसकर रख लें। 10 से 20 ग्राम की मात्रा मे गमम जल में यह चणूम कुछ ददनों तक दोंनों समय लेने से कफ पररपतव होकर सरलता से ननकल जाता है। और जुकाम में भी आराम हो जाता है।

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कफवात जन्म ववकारो में काली ममचम वपसी व शहद भी आवश्यकतानसुार ममला, गोली बनाकर रख लें। इन गोमलयों के प्रातःसाय सेवन करने से वाय ुका कफज समतत ववकारों में लाभ होता है। गोली खाने के एक घण्टे बाद तक जल नही पीना चादहए।

राई के औषधीय गणु

राई के कई औषधीय गणु है और इसी कारण से इस ेकई रोगों को ठीक करने में प्रयोग ककया जाता है । कुछ रोगों पर इसका प्रभाव नीच ेददया जा रहा है -

हृदय की सशधथलता- घबराहत, व्याकुल हृदय में कम्पन अथवा बेदना की स्तथनत में हाथ व परैों पर राई को मलें। ऐसा करने से रतत पररिमण की गनत तीव्र हो जायेगी हृदय की गनत मे उत्तजेना आ जायेगी और मानमसक उत्साह भी बढेगा।

हहचकी आना- 10 ग्राम राई पाव भर जल में उबालें कफर उसे छान ले एवां उसे गुनगुना रहने पर जल को वपलायें।

िवासीर अशय- अशम रोग में कफ प्रधान मतसे हों अथामत खजुली चलती हो देखने में मोटे हो और तपशम करने पर दखु न होकर अच्छा प्रतीत होता हो तो ऐसे मतसो पर राई का तेल लगाते रहने से मतसे मुरझाने ल्रगते है।

गुंजापन- राई के दहम या फाट से मसर धोते रहने से कफर से बाल उगने आरम्भ हो जाते है।

माससक धमय पवकार- मामसक तत्राव कम होने की स्तथनत में टब में भरे गुनगुने गरम जल में वपसी राई ममलाकर रोधगणी को एक घन्टे कमर तक डुबोकर उस टब में बैठाकर दहप बाथ कराये। ऐसा करने से आवश्यक पररमाण में तत्राव बबना कष्ट के हो जायेगा।

गर्ायशय वेदना- ककसी कारण से कष्ट शूल या ददम प्रतीत हो रहा हो तो कमर या नामभ के ननचें राई की पुस्ल्टस का प्रयोग बार-बार करना चादहए।

सफेद कोढ़ (श्वेत क टठ)- वपसा हुआ राई का आटा 8 गुना गाय के पुराने घी में ममलाकर चकत्ते के उपर कुछ ददनो तक लेप करने से उस तथान का रतत तीव्रता से घूमने लगता है। स्जससे वे चकत्ते ममटने लगते है। इसी प्रकार दाद पामा आदद पर भी लगाने से लाभ होता है।

काुंच या काुंटा लगना- राई को शहद में ममलाकर काच काटा या अन्य ककसी धातु कण के लगे तथान पर लेप करने से वह वह उपर की ओर आ जाता है। और आसानी से बाहर खीचा जा सकता है।

अुंजनी- राई के चणूम में घी ममलाकर लगाने से नेत्र के पलको की फुां सी ठीक हो जाती है।

स्वर िुंधता- दहतटीररया की बीमारी में बोलने की शस्तत नष्ट हो गयी हो तो कमर या नामभ के नीच ेराई की पुस्ल्टस का प्रयोग बार बार करना चादहए।

गर्य में मरे ह ए सशश को िाहर ननकालने के सलए- ऐसी गभमवती मदहला को 3-4 ग्राम राई में थोंडी सी वपसी हुई हीांग ममलाकर शराब या काजी में ममलाकर वपला देने से मशशु बाहर ननकल आयेगा।

अफरा- राई 2 या 3 ग्राम शतकर के साथ खखलाकर उपर से चनूा ममला पानी वपलाकर और साथ ही उदर पर राई का तेल लगा देने से शीघ्र लाभ हो जाता है।

पवष पान- ककसी भी प्रकार से शरीर में ववष प्रवेश कर जाये और वमन कराकर ववष का प्रभाव कम करना हो तो राई का बारीक वपसा हुआ चणूम पानी के साथ देना चादहए।

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गहठया- राई को पानी में पीसकर गदठया की सूजन पर लगा देने से सूजन समाप्त हो जाती हैं। और गदठया के ददम में आराम ममलता है।

हैजा- रोगी व्यस्तत की अत्यधधक वमन दतत या मशधथलता की स्तथनत हो तो राई का लेप करना चादहए। चाहे वे लक्षण हैजे के हो या वैसे ही हो।

अजीणय- लगभग 5 ग्राम राई पीस लें। कफर उसे जल में घोल लें। इसे पीने से लजीणम में लाभ होता है।

समरगी- राई को वपसकर सूघने से ममरगी जन्य मूच्र्छा समाप्त हो जाती है।

ज काम- राई में शुि शहद ममलाकर सूघने व खाने से जुकाम समाप्त हो जाता है।

कफ ज्वर- स्जहृवा पर सफेद मैल की परते जम जाने प्यास व भूख के मांद पडकर ज्वर आने की स्तथनत मे राई के 4-5 ग्राम आटे को शहद में सुबह लेते रहने से कफ के कारण उत्पन्न ज्वर समाप्त हो जाता है।

घाव में कीड़ ेपड़ना- यदद घाव मवाद के कारण सड गया हो तो उसमें कीड ेपड जाते है। ऐसी दशा में कीड ेननकालकर घी शहद ममली राई का चणूम घाव में भर दे। कीड ेमरकर घाव ठीक हो जायेगा।

दन्त शूल- राई को ककां धचत ्गमम जल में ममलाकर कुल्ले करने से आराम हो जाता है।

रसौली, अि दय या गाुंठ- ककसी कारण रसौली आदद बढने लगे तो कालीममचम व राई ममलाकर पीस लें। इस योग को घी में ममलाकर करने से उसका बढना ननस्श्चत रूप से ठीक हो जाता है।

पवसूधचका- यदद रोग प्रारम्भ होकर अपनी पहेली ही अवतथा में से ही गुजर रहा हो तो राई मीठे के साथ सेवन करना लाभप्रद रहता है।

उदर शूल व वमन- राई का लेप करने से तुरन्त लाभ होता है।

उदर कृसम- पेट में कृमम अथवा अन्िदा कृमम पड जाने पर थोडा सा राई का आटा गोमूत्र के साथ लेने से कीड ेसमाप्त हो जाते है। और भववष्य में उत्पन्न नही होते।

आलू के औषधीय गुण

आल ूके औषधीय गणु का वववरण नीचे ददया जा रहा है -

नेत्र रोग- कच्चे आल ूको साफ पत्थर के टुकड ेपर नघसकर 2-3 माह तक नेत्रों में काजल की भानत लगाने से 4-5 वषम परुानी फुली या जाला नष्ट हो जात ेहै।

आग से जलना- जले हुए तथान पर फफोला पडने से पूवम ही कच्चा आलू पत्थर पर बारीक पीसकर लेप कर देने से दाहकता शाांत हो जायेगी फफोला नही पडगेा और रोगी तथान शीघ्र ठीक हो जयेगा।

स्कवी- दातों की हड् डया सूज गई हो और मसूढों से रतत ननकलता हो तो भुने आलूओां का सेवन करे अथवा नछलके सदहत आलू का पतला शाक या शूप बनाकर खाना चादहए।

िेरी िेरी- कच्चा आलू चबाकर उसका रस ग्रहण करने अथवा आलू कूट पीसकर उसका रस ननचोड कर एक एक चम्मच की मात्रा में वपलाते रहने से ना डया की क्षीणता दरू होने लगती है। और पुनः शस्तत प्राप्त कर चलने योनय हो जाता है।

कमर का ददय (कहटवेदना)- कच्च ेआलू की पुस्ल्टस बनाकर कमर पर लगानी चादहए।

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पवसपय- त्वचा पर पडने वाली लाल लाल फुस्न्सयों को ववसपम कहते है। उन पर तथा घुटने या अन्य सांधध तथलों की शोथ (सूजन) या चोट लगने से नसें नीली पड जाने पर कच्च ेआलू पीसकर रोगी में आलू का सेवन दहतकर रहता है।

ननला पड़ना- चोट लगने पर नील पड जाने की स्तथनत में स्जस तथान पर नील पडी है वहा कच्चा आलू पीसकर लगाना लाभप्रद है।

तेज धपू व लू से त्वचा झुलस जाने पर कच्च ेआलू का रस झुलसी त्वचा पर लगाना लाभदायक है।

गहठया- कण्डों पर चार आलू भूनकर उनका नछलका उतारकर आलूओां में नमक ममचम डालकर खाना गदठया में लाभप्रद है।

आमवात- आलू खाना आमवात में लाभदायक है।

उच्च रक्त चाप- पानी में नमक डालकर आलू उबालकर नछलका सदहत ही रोगी को खखलाये।

त्वचा की झ ररययाुं- सदी में हाथों की त्वचा पर झुररमयाां पड जाने की स्तथनत में कच्चा आलू पीसकर हाथो पर मलें।

पवशषे- कच्च ेआलू के तथान पर ननबू का रस हाथों पर मलना भी लाभप्रद होता है।

दाद, फुस्न्सयाां, गैस, तनायववक तथा माांसपेमशयों के रोग होने पर कच्च ेआलू का रस पीये।

अम्लता- भोजन में ननयममत रूप से आलू का सेवन करने से अम्लता दरू होती है।

आलू पीसकर त्वचा पर मलने से रुंग गोरा हो जायेगा।

ग दे की पथरी- गुदो में पथरी होने पर केवल कच्चा आलू पीसकर लगाना आरामदायक होता है।

घूटनों में सूजन व जोड़ों में ददय होने पर कच्चा आलू पीसकर लगाना आरामदायक होता है।

वातरक्त- कच्च ेआलू को पीसकर अांगूठे पर लगान ेसे ददम समाप्त हो हो जाता है।

सरसों के औषधीय गुण

सूजन- सरसो के दानों के बीच में पीसकर लेप करने से सूजन समाप्त हो जाती है।

गैस टृिल- आधनुनक काल में मनुष्य के शरीररक पररिम न करने के कारण वायुदवूषत होने मानमसक कलेशो में जीने या अनुधचत अप्राकृनतक खान पान के कारण पेट में गैस बनने की बीमारी बहुत होने लगी है। इससे छूटकारा पाने के मलए भोजन में सांयम बरतने के साथ ही सरसों के तेल की नामभ के चारों ओर पेट पर दायी ओर से बायी ओर मामलश करनी चादहए।

नतल्ली िढ़ना- कुछ ददनों तक सरसों के तेल की पेंट पर मामलश करने से नतल्ली की ववृि रूक जाती है।

गहठया रोग- सरसों के तले में कपूर ममलाकर मामलश करने से माांस पेमशयों की गदठया ममट जाती है।

गर्य धारण- सरसों को पीसकर उसका शाफा बनाकर मामसक धमम के तनान के उपरान्त 3 ददनों तक योनन में रखने से बाझपन समाप्त हो जाती है।

कफज खासी- सरसों के दानों को पीसकर शहद के साथ चाटनें से कफ के कारण उत्पन्न खासी समाप्त हो जाती है।

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म ख सौन्दयय- (1) सरसों के कल्फ को गल जाने तक दधू में उबालकर नीच ेउतार लें और ठांडा कर लें इस योग को मुख पर मलने से चहेरे का कालापन समाप्त हो जाता है। और उस पर तेजस्तवता झलकने लगती है।

(2) सरसों के दानों को दधू में डालकर तब तक औटायें जब तक कक सम्पणुम दधू न जल जायें। दधू जलने पर सरसों उतारकर सखूा पीसकर उसका उबटन करने से शरीर की कानत बढ जाती है। और रांग साफ हो जाता है।

पायररया- सरसों के तले में वपसा हुआ सेधा नमक ममलाकर प्रनतददन मांजन करने से दातों का दहलना और दातों की जड से ररसने वाला खून बन्द हो जाता है। दात साफ तथा मजबतू हो जात ेहै।

नासूर- रूई की बत्ती आक के दधू में मभगोंकर सुखा लें। तत्पश्चात सरसों के तेल में डुबोंकर उसका काजल पाट लें। उस काजल को नासूर में भरने से नासूर रोग समाप्त हो जाता है।

कणय शूल- सरसों के तेल को कान में टपकाने से बादी के कारण उत्पन्न कान का ददम ममट जाता है।

थोडा हल्का गमम तेल को कान में टपकाने से सभी प्रकार के ददम बहरापन और आवाज समाप्त हो जातें है। यदद कान मे कीडा घुस गया हो भी तो ननकल जाता है।

उरोज सौन्दयय या स्तनों का उर्ार- यदद मदहला प्रनतददन सरसों के तेल की अपने ततनों पर मामलश करे तो वे उतुांग मोटे उभारयुतत पुष्ट तथा तपहृणीय हो जाते है।

मासलश- जाड ेके ददनों में शरीर पर तेल की मामलश करने से त्वचा की तलवों में तेल की मामलश करने से पैरो का सो जाना तथा शरीर की थकान दरू हो जाती है। नीद खबु गहरी आती है। नेत्रों में ठांडक पडती है। और रोशनी बढने लगती है।

जल जाना- आग से शरीर का कोई अांग जल गया हो तो जलें तथान पर सरसों के तेल लगाने से छाला या फफोडा नही पढेगा।

नाप सरकना या नासर् डडगना- यदद नाप सरक जाये तो सरसों के तेल की 2.1 बूदे नामभ में डालकर लेट जायें अथवा रूई का फाहा तेल में मभगोंकर नामभ पर आवश्यकतानुसार रखने से नाप ठीक हो जाती है। इसके अनतररतत कदट शूल उन्माद मसर की पीडा श्वास िास व अनेक वात व्याधधयों में इससे लाभ होता है।

कुलथी के औषधीय गुण

कुलथी को कई रोगों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है और कुछ का वववरण नीच ेददया गया है -

श्वेत प्रदर- थोडी सी कुल्थी लेकर उसका दस गनुा पानी लेकर उसमें कुल्थी उबाले। उसे छानकर आवश्यकतानसुार यह पानी पीना लाभकारी है।

मोटापा- 100 ग्राम कुल्थी की दाल प्रनतददन खाने से मोटापा घटता है।

वात ज्वर- लगभग 50-60 ग्राम कुल्थी लगभग 1 ककलो जल में चैथाई (250 ग्राम) पानी रहने तक उबालें। कफर उसे छान लें और आवश्यकतानुसार सेंधा नमक व लगभग 1/2 चम्मच वपसी सौंठ लें। इसे पीने से वात ज्वर में लाभ होगा।

मोंठ के औषधीय गुण

मोंठ को कई रोगों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है और कुछ का वववरण नीच ेददया गया है -

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अधधक पसीना आना- मोंठ को सेंक लें कफर उसे पीसकर आटा बना लें। इस एक मुट्ठी आटे में 1/2

चम्मच के अनुपात में नमक डालकर भली भानत ममलायें। इसको सुखा ही अत्यधधक पसीना आने बाले तथान पर मलना लाभकारी है।

अननयसमत माससक धमय- मदहलाओां के अननयममत मामसक धमम से लोबबये का सेवन दहतकर रहता है।

मटर के औषधीय गुण

मटर को कई रोगों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है और कुछ का वववरण नीचे ददया गया है -

चहेरे की झाुंई- कुछ ददनों तक चेहरे पर मटर के आटे का उबटन मलत ेरहने से झाांई और धब्बे समाप्त हो जात ेहै।

आग से जल जाना- ताजा हरे मटर के दानों को पीसकर जले हुए तथान पर लगाने से अस्नन की जलन शाांत होकर जले हुए तथान पर ठांडक पड जाती है।

सौन्दयय वधयक योग- भूनी हुई मटर के दाने और नारांगी के नछलकों को दधू में पीसकर उबटन करने से शरीर का रांग ननखर जाता है।

उुंगसलयों की सूजन- यदद जाडो के ददनों में उांगमलयों सूज जाये तो मटर के दानों का काढा बनाये और थोड े गमम काढे में कुछ देर उांगमलयों डुबोकर रखनी चादहए अथवा इसके साथ मीठा तेल ममलाकर उांगमलयों को धोना चादहये।

चावल के औषधीय गुण

चावल को कई रोगों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है और कुछ का वववरण नीच ेददया गया है -

अनतसार व ज्वर- चावलो की खीलों (लाजा) को पीसकर सत्त ूबनायें और आवश्यकतानसुार दधू या शहद,

चीनी, जल आदद ममलाकर तवाददष्ट कर लें। इस ’लाल तपमण’ कहत ेहै। इसे देशकाल और रोगी की दशानसुार सेवन करने से ज्वर मदात्यय, दाहकता या सीने की जलन, अनतसार आदद में लाभ होता है।

आधा सीसी- प्रातः सूयोदय से पूवम चावल की खील, 25 ग्राम के लगभग शहद के साथ खाकर सो जाये, ऐसा 2-3 ददन करने से अधामवमततक-शूल (आधा सीसी रोग) दरू हो जायेगा।

फोड़ ेकी दाहकता- यदद शरीर के ककसी भी अांग पर ऐसा फोडा ननकला हो स्जसमें अस्नन के समान जलन और दाहकता का अनुभव हो रहा हो, तो कच्च े चावलो को पानी में मभगोकर मसल पर पीसकर लेप करना चादहये। इससे ठण्डक पडगेी और रोगी को चनै ममलेगा।

र्ूख न लगना, अष्ननमाुंध- अस्नन पर चावल पकाकर ननच ेउतारकर 20-25 ममनट के मलये उसमें दधू ममलाकर ढतकर रख दें। तत्पश्चात ्कमजोर और मांदस्नन से वप डत युवको को यह प्य देना चादहये।

आमाशय या आुंत्र का शोथ- जलन (दाहकता) युतत शोथ अथवा सूजन होने पर चावल की काांजी या चावल का माांड वपलाना लाभदायक रहता है। काांजी बनाने के मलये 1:40 के अनुपात में चावल के आटे में जल ममलाकर तैयार करना चादहये। तवाद के मलये दसमें नमक व नीांबू का रस भी ममलाया जा सकता है।

अनतसार- चावलों का आटा लेई की भानत पकाकर उसमें गाय का दधू ममलाकर रोगी को सेवन करायें।

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आन्तररक व्रण- यदद आमाशय का व्रण जठराधित आन्तररक हो तो नमक तथा नीबू का रस नही ममलाना चादहये।

सूजाक, चचेक, मसूररका, रततदोष जन्य ज्वर, जलन व दहकता युतत मूत्रववकार में नीांबू के रस व नमक रदहत चावल की काांजी या माांड का सेवन करना दहतकर रहता है। यदद पेय बनान ेके मलये लाल शामल चावल हो तो अत्युत्तम अन्यथा कोई चावल मलये जा सकते है।

चहेरे के धब्िे या झाई पड़ना- सफेद चावलों को शुद्व ताजा पानी में मभगोकर उस पानी से मुख धोते रहने से झाई व चकते साफ हो जाते है और रांग ननखर आता है।

वीयय वद्र्वक योग- चावल दाल की खखचडी, नमक, ममचम, हीांग, अदरक मसाले व घी डालकर सेवन करते रहन ेसे शरीर में शुद्व वीयम की आशातीत ववृि होती है, पतलापन दरू होता है। यह सुतवाद ुखखचडी बल बुवि विमक मूत्रक और शौच किया साफ करने वाली होती है।

नेत्रों की लाली- सहन करने योनय गरम भात (उबले चावल) की पोटली बनाकर सेंक करने से वादी एवां कफ के कारण नेत्रों में होने वाली ददम युतत लाली समाप्त हो जाती है।

मल पवकार- धचरवा (धचर मुश या धचडवा) दधु में भीगोकर चीनी ममलाकर सेवन करने से पतला दतत (मल भेदन) हो जाता है। ककन्तु दही के साथ खाने से मल बांध हो जाता है। अनतसार ठीक हो जाता है। पानी में भली प्रकार धोकर दधू के साथ सेवन करने से धचरवा तवात्य के मलये दहतकर हैॅै। इसस रांग में ननखार आता है और शरीर पुष्ट होता है।

गर्य ननरोधक- चावलों के धोवन के साथ साथ धान (चावलों का पेड) की जड पीस छानकर, शहद ममलाकर, वपलाते रहने स ेगभम स्तथनत नही हो पाती। यह ननदान हानन रदहत और सहज है।

हृदय की धड़कन- धान की फमलयों के पौधो के उपरी भाग को पानी के साथ पीसकर लेपन करन ेसे हृदय कम्पन और अननयममत धडकन समाप्त हो जाते है।

र्ाुंग का नशा, मूत्र रेचन, तषृा ननवारण- चावल के धोवन में शतकर और खाने का सोडा ममलाकर रोगी को वपलाने से भाॅं ाग का नशा उतर जाता है। पेशाब खलुकर होता है। प्यास शाांत करन ेके मलये इस धोवन में शहद ममला लेना चादहए।

मध मेह व्रण- चावल के आटे में जल रदहत (गाढा) दही ममलाकर पुस्ल्टस बनाकर लेप कर दें। यह पुस्ल्टस रोग की दशानुसार ददन में 3-4 बार तक बदलकर बाांध देने से शीध्र लाभ होता है।

वमन होना- खील (लाजा या लावा) 15 ग्राम में थोडी ममिी और 2-4 नग छोटी इलायची व लौंग के 2 नग डालकर जल मे पकाकर 6-7 उफान ले लें। 1-2 चम्मच थोडी देर बाद लेने से वमन होना रूक जाता है। खट्टी पीली या हरी वमन होने पर उसमें नीांबू का रस भी ममला लेना चादहये।

शरीर की काष्न्त वियन- चावलों का उबटन बनाकर कुछ ददनों तक ननयममत मलते रहने से शरीर कुन्दन के समान दीप्त हो जाता है।

मतका के औषधीय गुण

मतका को कई रोगों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है और कुछ का वववरण नीच ेददया गया है -

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पेशाि मे जलन- ताजा मतका के भुटे्ट जल मे उबाल ले। उस पानी को छान ले, कफर उसमें ममिी ममलाकर पीयें। इससे गुदे की कमजोरी पेशाब की जलन में लाभ होता है।

पथरी- मतके के मखोमलये (डीांडू) की राख मूत्रल होती है। इसके रोग दशानसुार व्यवहार करने से पथरी गलकर मूत्र मागम से ननकल जाती है।

मोटापा िढ़ाने के सलए- मतका के भुने हुए फूल्ले खाने चादहए।

ज काम, खाुंसी, क कर खाुंसी- मतका के भुटे्ट को पीस लें। उसमें आवश्यकतानसुार सेंधा नमक ममला लें। प्रनतददन 1/4 चम्मच प्रातः दोपहर एवां राबत्र में लें।

ग दे की सूजन- भुटे्ट के बालो के समान ही डण्ठलो का काढा गुदे की सूजन में दहतकर है।

सूजाक िष्स्थ शोथ- मतका के भुटे्ट के कोमल ताजा रेशो (उपर के बालों) का काढा बनाकर पीने से वेदना का नाश होता है। मूत्र खलुकर आता है। तथा बस्ततशोथ व सुजाक में लाभ होता है।

ज्वार के औषधीय गुण

ज्वार को कई रोगों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है और कुछ का वववरण नीच ेददया गया है -

आमानतसार- ज्वार के आटे की गमम-गमम रोटी बनाकर दही से बारीक करके मभगोकर रख दें और कुछ समय के बाद ही रोगी को खखलाने से आमानतसार जाता रहेगा।

लकवा (पक्षाघात) जोड़ो में वाय का ददय या सष्न्धवात- उबले हुए ज्वार के दोनो को पीसकर कपडछन करके रस ननकाल ले। तत्पश्चात ्उसमें समान मात्रा में रैण्डी का तेल ममलाकर, गममकर व्याधध ग्रतत तथान पर लेप कर उपर से पुरानी रूई बाांधकर सैंक करनी चादहये। ऐसा रोग की स्तथनत के अनुसार कई ददनों तक करने से अननवायमतः लाभ होता है।

दुंत रोग- ज्वार के दानों की राख बनाकर मांजन करने से दाांतो का दहलना, उनमें ददम होना बांद हो जाता है तथा मसूढो की सूजन भी समाप्त हो जाती है।

प्रश्वेद - ज्वार के सूखे हुए दानों को भाड में भुनवाकर लाही का काढ बनाकर वपलाने से शरीर स ेपसीने आने लगते है। स्जसके कारण अनेक ववकार दरू हो जाते है।

पेट में जलन- भुनी ज्वार बताशो के साथ खाने से पेट की जलन, अधधक प्यास लगना बांद हो जात ेहै।

आधा सीसी- मस्ततष्क के स्जस आधे भाग में ददम हो, उसी ओर के नासा रन्ध्र में ज्वार के पौधे के हर पत्तो के रस में थोडा सा सरसों का तेल ममलाकर टनकाना चादहए।

अन्तदायह- ज्वार के बारीक वपसे आटे की रबडी रात में बनाकर प्रातः उसमे भुना सफेद जीरा डालकर मटे्ठ (छाछ) के साथ वपलाना चादहये।

ख जली- ज्वार के हरे पत्तों को पीसकर उसमें बकरी का मेंगनी की अधजली राख व रैण्डी का तेल समान मात्रा में ममलाकर लगाने से खजुली समाप्त हो जाती है।

कैं सर, र्गुंदर (व र्युंकर व्रण (घाव)- ज्वार के ताजा, हरे कच्च ेभुटे्ट का दधूधया रस लगाने तथा उसकी बत्ती बनाकर घावों में भर देन ेसे उतत भयांकर महाव्याधधयों से छूटकारा पाया जा सकता है।

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धतूरे का पवष- ज्वार काांड के रस में दधू व शतकर सम मात्रानुसार वपलाते रहने से धतूरे का ववष शाांत हो जाता है।

ग दे एवुं मूत्र पवण्डो के पवकार में- ज्वार का काढा बनाकर पीने से लाभ होता है।

शरीर में जलन- ज्वार का आटा पानी में घोल लें, कफर उसका शरीर पर लेप करे।

म हासे एवुं कील- ज्वार के कच्च े दाने पीसकर उसमें थोडा कत्था व चनूा ममलाकर लगाने स ेजवानी में चहेरे पर ननकलने वाली कीलें व मुहासे ठीक हो जाते है।

बाजरा के औषधीय गुण

बाजरा के औषधीय लाभ नीचे ददये जा रहे हैं स्जन्हे प्रयोग करके आप ननरोगी हो सकत ेहै -

गर्यपात में सहायक- गमम होने के कारण इसका अधधक मात्रा में प्रयोग करने से अनचाहे गभम से छूटकारा पाने में सहायता ममलती है।

स पाच्य- जाड ेके ऋतु में इसका सेवन करते समय उधचत मात्रा में घी शतकर गुड का प्रयोग करने से सुपाच्य हो जाता है।

मसूर के औषधीय गुण

मसरू को हमारे घरों मे दाल के रूप मे अधधकतर प्रयोग ककया जाता है परन्त ुइसके कई औषधीय लाभ

है । नीच ेइसके औषधीय लाभ का वणमन ककया गया है स्जस ेप्रयोग कर आप लाभ पा सकतें है ।

नेत्र ज्योनत- देशी घी में मसरू की दाल छौंककर व तलकर खाने से नेत्रों का प्रकाश बढता है।

वमन होना- वात वपत्त कफ ककसी कारण से वमन होने की स्तथनत में मसूर का आटा अनार का रस और शहद समान मात्रा में ममलाकर जल के साथ लेना चादहये।

खनूी िवासीर (रक्ताशय)- प्रातः के भोजन में मसूर की दाल के साथ खट्टी छाछ (मट्ठा) पीने से खनूी बवासीर ठीक हो जाता है।

सौन्दयय एवुं चमय रोग- मसूर पीसकर उसका लेप या उबटन करने से चहेरे का रांग ननखरता है और अनेक चमम रोग दरू हो जाते है।

मसूर के सेवन से बहुमूत्र, कब्ज, गैस-ट्रबल, मुख पाक या छाले गले की सूजन (कां ठ शोथ) वेदना, प्रदर और सूजन में लाभ होता है।

अरहर के औषधीय गुण

अरहर एक दाल है स्जसके कई औषधीय लाभ है और कुछ का लाभ यहााँ ददया गया है -

र्ाुंग का नशा- अरहर की दाल का पानी वपलाने से भाांग का नशा उतर जाता है।

ससर में चकत्ते- चकत्तों को मोटे सूती कपड ेसे रगडकर उन पर वपसी हुई अरहर की दाल का लेप ददन 2-3 बार करें। दसूरे ददन चकत्तों पर सरसों का तेल चपुड कर कुछ देर धपू में बैठ जायें कफर अगले ददन लेप करें। ऐसा कुछ ददनो तक करने से चकत्ते हटकर नये बाल उग आयेंगे।

अण्ड वपृि- अरहर की दाल मभगोकर उसी पानी में उसे पीसकर गमम कर ले। इसका लेप करने से बच्च ेकी अांडववृि होने में लाभ होता है।

पसीना आना- अरहर की दाल को नमक व सौठ ममलाकर छौंके इसकी मामलश से पसीना आना बांद होता है, सदी कां पकां पी लगने पर लाभ होता है।

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म ख पाक या छाले- गमी के कारण या बदहजमी से मुह में छाले हो गये हो तो अरहर की नछलको सदहत दाल को पानी में भीगोकर इस पानी के कुल्ले व गरारे करने चादहए।

मूांग के औषधीय गुण

मूांग का प्रयोग कई तरह के रोगों के इलाज में ककया जाता हैं और उनमें जो प्रमुख है उनका वववरण

नीच ेददया जा रहा है -

आग से जल जाना- जले हुए तथान पर मूांग को पानी में पीसकर लगा देने से जलन समाप्त होकर ठांडक पड जाती है।

ज्वर के दौरान खाने में - ज्वर में मूगां की पतली सी दाल का प्य देना ठीक रहता है। इससे रोगी की स्तथनत के अनुसार काली ममचम, जीरा, अदरक और डाल देने चादहये। लेककन छौंक में घी बहुत कम मात्रा में ही ठीक रहता है।

दाद, खाज, ख जली, आहद चमय रोग- इन समतत रोगो को दरू करने के मलये नछलके वाली मूगां की दाल पीसकर इसकी लुगती रोगी तथान पर लगनी चादहये।

शष्क्त वियक मोदन- मुांग के लड्डू बनवाकर सेवन करते रहने से शरीर में लाल रतत कणो की ववृि होती है और तफूनतम आती है। वीयम दोष समाप्त हो जाते है।

उडद औषधीय गुण

उडद एक ऐसा अनाज है जो कक कई रोगों के इलाज में काम आता है । कुछ इलाज नीच ेददये जा रहे हैः

सफेद दाग- उडद को पानी में बारीक पीसकर ननयममत रूप से रोग की स्तथनत के अनुसार चकत्तों पर लगाने से कुछ माह के भीतर ही ममटने लगते है।

गुंजापन- उडद की दाल को उबाल कर पीस लें। रात को सोते समय इस वपट्ठी का लेप मसर कुछ ददनों तक करते रहने से गांजापन समाप्त हो जाता है।

पपत्त शोथ- उडद पकाकर हलुए की भानत बनाकर उसकी पुस्ल्टस वपत्त शोथ पर बाांध देने से वपत्त शोथ में शीघ्र लाभ होता है।

चोट या ददय पर- उडद के आटे में वपसी हुई सौठ हीांग नमक मैनफल ममलाकर तवे पर एक ओर रोटी सेके। कच्ची (दसूरी) ओर से नतल का तेल चपुडकर गमम गमम सहन करने योनय रोटी तथान पर बाांध देने से चोट या अन्य प्रकार का ददम समाप्त हो जाता है।

नकसीर और रक्तपपत्त- उडद का वपसा आटा और लाल रेशमी वतत्र की राख दोनो को जल में ममलाकर मततक पर गाढा गाढा लेप करने से रतत वपत्त व नकसीर ठीक हो जाती है।

जौ के औषधीय गुण

जौ एक उपयोगी अन्न है और इसका उपयोग औषधध के रूप म ेककया जा सकता है । जौ के ननम्न औषधीय गुण है :

1. सूजन- यदद शोध के कारण कफ दोष हो तो जौ के बारीक वपसे आटे में अांजीर का रस ममलाकर लगाना चादहये।

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2. कुं ठ माला- जौ के आटे में धननये की हरी पस्त्तयों का रस ममलाकर रोगी तथान पर लगाने से कां ठ माला ठीक हो जाती है।

3. मध मेह (डायिटीज)- नछलका रदहत जौ को भून पीसकर शहद व जल के साथ सत्तू बनाकर खायें अथवा दधू व घी के साथ दमलया का सेवन प्यपूवमक कुछ ददनों तक लगातार करते करते रहने से मधमूेह की व्याधध से छूटकारा पाया जा सकता है।

4. जलन- गमी के कारण शरीर में जलन हो रही हो, आग सी ननकलती हो तो जौ का सत्तू खाने चादहये। यह गमी को शान्त करके ठांडक पहूचाता है और शरीर को शस्तत प्रदान करता है।

5. मूत्रावरोध- जौ का दमलया दधू के साथ सेवन करने से मूत्राशय सम्बस्न्ध अनेक ववकार समाप्त हो जाते है।

6. गले की सूजन- थोडा सा जौ कूट कर पानी में मभगो दें। कुछ समय के बाद पानी ननथर जाने पर उसे गरम करके उसके कूल्ले करे। इससे शीघ्र ही गले की सूजन दरू हो जायेगी।

7. ज्वर- अधपके या कच्च ेजौ (खेत में पूणमतः न पके ) को कूटकर दधू में पकाकर उसमें जौ का सत्तू ममिी, घी शहद तथा थोडा सा दघू और ममलाकर पीने से ज्वर की गमी त हो जाती है।

8. मष्स्तटक का प्रहार- जौ का आटा पानी में घोलकर मततक पर लेप करने से मस्ततष्क की वपत्त के कारण हूई पीडा शाांत हो जाती है।

9. अनतसार- जौ तथा मूग का सूप लेते रहने से आांतों की गमी शाांत हो जाती है। यह सूप लघ,ू पाचक एांव सांग्राही होने से उरःक्षत में होने वाले अनतसार (पतले दतत) या राजयक्ष्मा (टी. बी.) में दहतकर होता है।

10. मोटापा िढ़ाने के सलये- जौ को पानी भीगोकर, कूटकर, नछलका रदहत करके उसे दधू में खीर की भाांनत पकाकर सेवन करने से शरीर पयामत हूष्ट पषु्ट और मोटा हो जाता है।

11. धात -प ष्टटकर योग- नछलके रदहत जौ, गेहू और उडद समान मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चणूम में चार गुना गाय का दधू लेकर उसमे इस लुगदी को डालकर धीमी अस्नन पर पकायें। गाढा हो जाने पर देशी घी डालकर भून लें। तत्पश्चात ्चीनी ममलाकर लड्डू या चीनी की चाशनी ममलाकर पाक जमा लें। मात्रा 10 से 50 ग्राम। यह पाक चीनी व पीतल-चणूम ममलाकर गरम गाय के दधू के साथ प्रातःकाल कुछ ददनों तक ननयममत लेने से वीयम सम्बन्धी अनेक दोष समाप्त हो जाते हैं और पतला वीयम गाढा हो जाता है।

12. पथरी- जौ का पानी पीने से पथरी ननकल जायेगी। पथरी के रोगी जौ से बने पदाथम लें।

13. गर्यपात- जौ का छना आटा, नतल तथा चीनी-तीनों सममात्रा में लेकर महीन पीस लें। उसमें शहद ममलाकर चाटें।

14. कणय शोध व पपत्त- वपत्त की सूजन अथवा कान की सूजन होने पर जौ के आटे में ईसबगोल की भूसी व मसरका ममलाकर लेप करना लाभप्रद रहता है।

15. आग से जलना- नतल के तेल में जौ के दानों को भूनकर जला लें। तत्पश्चात ्पीसकर जलने से उत्पन्न हुए घाव या छालों पर इसे लगायें, आराम हो जायेगा। अथवा जौ के दाने अस्नन में जलाकर पीस लें। वह भतम नतल के तेल में ममलाकर रोगी तथान पर लगानी चादहयें।

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गेंहू के औषधीय गुण

खाांसी- 20 ग्राम गेहूां के दानों को नमक ममलाकर 250 ग्राम जल में उबाल लें और एक नतहाई मात्रा में रहने पर ककां धचज गरम – गरम पीलें। ऐसा लगभग एक सप्ताह करने से खासी जाती रहेगी।

अनैस्च्छक वीयम पात- रात को सोते समय, पेशाब के साथ या पेशाब करने के पश्चात ्अननच्छा से वीयम ननकलने की स्तथनत में एक मुट्ठी गेंहू लगभग बारह घांटे मभगोकर उसकी गारीकी लतसी बनाकर पीयें। तवाद के मलये उसमे उधचत मात्रा में ममिी ममला सकते है।

उदर शूल- गेहू के हरीरा में चीनी व बादाम धगरी का कल्क ममलाकर सेवन करने से मस्ततष्क (ददमाग) की कमजोरी, नपुन्सक तथा छाती में होने वाली पीडा शाांत हो जाती है।

खजुली- गेहू के आटे को गूथ कर त्वचा की जलन, खजुली बबना पके फोड ेफुां सी तथा आग में झुलस जाने पर लगा देने से ठांडक पड जाती है।

मुत्रकृच्छ- लगभग 70-70 ग्राम गेहू राबत्र को सोते समय पानी में मभगोयें और प्रातः उन्हे पीस-छानकर तवाद के मलये थोडी सी ममिी ममलाकर पीयें। ऐसा करने से शरीर में उत्पन्न दहकता (गमी) शाांत हो जाती है। मूत्राशय सम्बन्धी अनेक रोगो से भी मुस्तत ममल जाती है।

अस्तथ भांग- थोड ेसे गेहूओ को तवे पर भूनकर पीस लें और शहद ममलाकर कुछ ददनों तक चाटने से अस्तथ भांग दरू हो जाता है।

नपुन्सकता- अांकुररत गेहू भोजन से पुवम प्रातःकाल ननयममत रूप से कुछ ददन तक खबू चबा चबाकर खाने से जननेस्न्द्रय सम्बन्धी समतत ववकार दरू होते है। नपांॅुसक व्यस्तत पुणमतः पौरूष युतत होकर तत्री प्रसांग करने योनय हो जाता है। तवाद के मलये अांकुररत गेहू के साथ ममिी, ककशममश का भी सेवन ककया जा सकता है। इसका सेवन कुछ समय तक लगातार ननयममत करना चादहये।

कीट दांश- यदद कोई जहरीला कीडा काट ले तो गेहू के आटे में मसरका ममलाकर दांश तथान पर लगाना चादहयें।

बद या ग्रस्न्थ शोध- बद या ककसी फोड ेके पकाने के मलये गेहू के आटे की पुस्ल्टस 7-8 बार बाांध देनी चादहये।

बालतोड- शरीर के ककसी भी अांग पर ककसी प्रकार मलकर बाल टूट जाने से फोडा हो जाता है, जो कक अत्यन्त दाहक और कष्टकर होता है। इसमें मुख से गेहू के दाने चबा चबाकर बाांधने से 2-3

ददन में ही लाभ हो जाता है।

पथरी- गेहू और चने को उबालकर उसके पानी को कुछ ददनों तक रोगी व्यस्तत को वपलात ेरहने से मतू्राशय और गरुदा की पथरी गलकर ननकल जाती है।

फातटफूड के हाननकारक प्रभाव

आजकल के बच्च ेव बड ेदोनों ही फातटफूड को काफी पसन्द करते हैं। जो शरीर के मलए काफी नुकसानदायक होता है। फातटफूड में अत्यधधक वसा, शुगर व अन्य हाननकारक तत्व उपस्तथत रहते हैं जो अनेक रोगों का कारण है। फातट (जांक) फूड में कोस्ल्ड्रांक, केक, पैटीज, बरगर, वपज्जा, धचप्स, नूडल्स,

फ्राइड फूड आदद आते हैं।

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कोस्ल्ड्रांक : कोस्ल्ड्रांक में काबमन, एमसड, शुगर व वप्रजरवेदटव होते हैं। ये एमसड हड् डयों में कैस्ल्शयम व फातफोरस को कम करते हैं और ओस्तटयोपोरोमसस नामक बीमारी उत्पन्न करते हैं।

बेकरी उत्पाद : इसमें केक, पेतट्री, चाकलेट, पेटीज आदद आते हैं। ये उत्पाद वसा, सुगर, मैदा, मतखन आदद से पररपूणम होते हैं जो बच्चों में वसा के सांचय को बढाते हैं। इससे मोटापा, हाईब्लडप्रेशर,

डायबबटीज, हृदयरोग, एनीममया आदद रोगों का कारण बनता है।

चाइनीज फूड : इसमें नूडल्स, धचप्स, बगमर, वपज्जा आदद आते हैं। इसमें अत्यधधक काबोहाइड्रटे्स युतत व मसाले होते हैं। इनके अधधक सेवन से पेस्प्टक अल्सर, डायररया आदद रोग उत्पन्न होते हैं।

अन्य हाननयाां : जांक फूड में फाइबर, ववटाममन, ममनरल आदद कम मात्रा में होते है जो कक शरीर के अांगों के सुचारु रूप से कायम करने के मलए आवश्यक है।

ववटाममन ए, बी व सी काम्प्लेतस आदद की कमी से शरीर की रोग प्रनतरोधक क्षमता कम हो जाती है और इन्फेतशन की सांभावनाएां बढ जाती है। इनमें ट्राांसफैट की मात्रा अधधक होती है जो हृदय के मलए अत्यन्त घातक है।

तवप्नदोष कैसे ठीक करें आप तवप्नदोष को दरू करने के मलये ननम्न घरेल ूउपाय कर सकत ेहै, आपको जरूर लाभ होगा : 1. आाँवले का मुरब्बा रोज खाएाँ ऊपर से गाजर का रस वपएाँ।

2. तुलसी की जड के टुकड ेको पीसकर पानी के साथ पीना लाभकारी होता है। अगर जड नहीां उपलब्ध हो तो तो बीज 2 चम्मच शाम के समय लें।

3. लहसुन की दो कली कुचल कर ननगल जाएाँ। थोडी देर बाद गाजर का रस वपएाँ।

4. मुलहठी का चणूम आधा चम्मच और आक की छाल का चणूम एक चम्मच दधू के साथ लें।

5. काली तुलसी के पत्ते 10-12 रात में जल के साथ लें।

6. रात को एक लीटर पानी में बत्रफला चणूम मभगा दें सुबह मथकर महीन कपड ेसे छानकर पी जाएाँ।

7. अदरक रस 2 चम्मच, प्याज रस 3 चम्मच, शहद 2 चम्मच, गाय का घी 2 चम्मच, सबको ममलाकर सेवन करने से तवप्नदोष तो ठीक होगा ही साथ मदामना ताकत भी बढती है।

8. नीम की पस्त्तयााँ ननत्य चबाकर खाते रहने से तवप्नदोष जड से गायब हो जाएगा।

अमलतास के गुण

पीले फूलों वाला अमलतास का पेड सडकों के ककनारे और बगीचों में प्राय: ममल जाता है | इसकी फली का गदूा ववशषेरूप से उपयोगी होता है साथ ही पत्र, पषु्प और जड का प्रयोग भी औषधध के रूप में ककया जाता है |

त्वचा रोग : त्वचा रोगों में इसका गूदा ५ ग्राम इमली और ३ ग्राम पानी में घोलकर ननयममत प्रयोग से लाभ होता है | इसके पत्तों को बारीक पीसकर उसका लेप भी साथ-साथ करने से लाभ ममलता है |

कब्ज : एक चम्मच फल के गूदे को एक कप पानी में मभगोकर मसलकर छान ले | इसके प्रयोग से कब्ज दरू हो जाता है |

सूखी खाुंसी : इसकी फूलों का अवलेह बनाकर सेवन करने से सूखी खाांसी दरू हो जाती है |

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ि खार : इसकी जड की छाल का काढा ५० ममली. की मात्रा में ननयममत प्रयोग से आमपाचन होकर बुखार ठीक हो जाता है |

गले की खरास : इसके मलए जड की छाल का काढा बनाकर, गुनगुने काढे से गरारा करने से फायदा ममलता है |

एससडडटी : फल के गूदे को पानी मे घोलकर हलका गुन्गुना करके नाभी के चारों ओर १०-१५ ममनट तक मामलस करें । यह प्रयोग ननयममत करने से तथायी लाभ होता है ।

श्वास कटट: अतथमा के रोगी में कफ को ननकालने और कब्ज को दरू करने के मलये फलों का गूदा दो ग्राम पानी में घोलकर गुनगुना सेवन करना चदहये ।

घाव : इसकी छाल के काढे का प्रयोग घावों को धोने के मलये ककया जाता है । इससे सांिमण नही होता है ।

पवशषे : वपत्त कब्ज ववकारों में अमलताश का प्रयोग सांशोधन के मलये और वात वैनतक ववकारों में सांशमन के मलये सफलतापूवमक ककया जाता है ।

बालों के धगरने का उपचार

सुांदरता को बढाने में बालों की महत्वपणूम भमूमका होती है। लेककन जब बालों की देखभाल में लापरवाही बरती जाती है, तो बालों की समतयाएां उत्पन्न होनी शरुू हो जाती है। बालों का झडऩा ऐसी ही समतया है, जो ककसी को भी तनाव में डाल सकती है। आज हर दसूरे व्यस्तत को बालों की समतया से जझूना पडता है। बाल धगरने का कारण कोई एक नहीां बस्ल्क कई हैं जैसे- तनाव , इन्फेतशन ,हामोन्स का असांतलुन ,अपयामप्त पोषण ,ववटाममन और पोषक पदाथों की कमी ,दवाओां के साइड इफेतट्स ,लापरवाही बरतना या बालों की सही देखभाल न होना ,घदटया तवामलटी के शमै्प ूका प्रयोग इत्यादद। बालों के धगरने का आयवेुददक उपचार भी मौजूद है और यह फायदेमांद भी मसि हुआ है। आइए जानें आखखर बालों के झडने के मलए आयवेुददक उपचार ककतना लाभकारी है।

शहद कई बीमाररयों को दरू करने में सक्षम है। शहद के प्रयोग से बालों का झडऩा भी रोका जा सकता है।

दालचीनी भी बालों की समतया को दरू करने का कारगर उपाय है। आयुवेद के अनुसार दालचीनी और शहद के ममिण से कई बीमाररयों का इलाज ककया जा सकता है।

बाल झडते हैं, तो गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर ममलाकर उनका पेतट बनाएां। नहाने से पहले इस पेतट को मसर पर लगा लें और कुछ समय बाद मसर धो लें। इससे बालों की समतया से ननजात ममलेगी।

बालों में आमतौर पर कुछ समतयाएां जैसे-बालो का धगरना, सफेद बाल, डणै्ड्रफ, मसर की त्वचा के रोग इत्यादद शाममल हैं। लेककन बालों की समतया को थोडी सावधानी बरतकर आसानी से दरू ककया जा सकता है।

मजबूत तथा तवतथ बालों के मलए तेल से मामलश आवश्यक है। सर की मामलश करने से बालों की जडो को पोषण ममलता है और बालों के झडने में कमी आती है।

सरसो के तेल में मेहांदी की पत्ती गमम करें। ठांडा कर के बालों में लगायें, इससे बालों का झडना रूक सकता हैं।

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आाँवला,मशकाकाई पावडर को दही में ममलाए। यह ममिण बालों में लगाने से बालों की डीप कां डीशननांग होती है।

बालों की देखभाल के साथ-साथ खाने-पीने का भी खास ध्यान रखें। फलों और सस् ब्जयों का सेवन अधधक करें। शहद में अांडा ममलाकर लगाना भी बालों की सेहत के मलए अच्छा रहता है।

नीम की और बेर की पस्त्तयों को पीसकर नीांबू डालकर लगाने और इसके लगातार प्रयोग से बालों का झडना बांद हो जाता हैं।

बड के दधू में नीांबू का रस ममलाकर ननरांतर लगाने से बालों का झडना बांद हो जाता है।

ग्रीन टी से बालों के झडने को आसानी से रोका जा सकता है।

जडी बूदटयों से बनी औषधी व तेल मामलश से बालों के झडने की समतया को दरू ककया जा सकता है।

बालों की समतया को रोकने के मलए आयुवेद में बालों की मामलश को आवश्यक माना गया है। ऐसे में नाररयल तेल या बादाम के तेल से मसर की अच्छी तरह से मामलश करनी चादहए।

यदद आप तांबाकू और अन्य नशीले पदाथों ध्रमूपान इत्यादद को त्याग देंगे तो आपके बालों का झडना अपने आप ही रूक जाएगा।

अन्य स झाव ः 1. खबू पानी वपयें ॅः बालों को धगरने से रोकने के मलये पानी भी एक सतता और उपयोगी नुतखा है।

कुछ चांद जगहों को छोड कर पानी बबना ककसी मूल्य के ममलता है। तो तयों न खबू सारा पानी पीकर आप अपने बालों को झडने से रोकें ! कई लोग पानी तब पीते हैं जब उन्हें प्यास लगती है।

अगर आप भी ऐसा करेंगे तो आपके बालों को धगरने से कोई नहीां रोक सकेगा। प्यास न लगे कफर भी आप हर दो तीन घांटे पर एक नलास पानी पीयें। हमारे शरीर की बनावट में पानी की मात्रा कुछ ज्यादा, लगभग दो नतहाई होती है। आपकी त्वचा, बाल, रतत, शुिाणु, इन सबको तवतथ रहने के मलए और अपना कायम सक्षमता से करने के मलए पानी की ज़रुरत पडती है। आप अगर पानी तब पीते हैं जब आपको प्यास लगती है तो यकीनन आपकी प्यास बुझती है, लेककन जब बबना प्यास लगे आप पानी पीते हैं तो आप अपने कोमशकाओां और इस्न्द्रयों को एक तरह से सीांचते हैं। इससे आपके रततसांचार में सुधार होता है और आप के अन्दर ककसी भी रोग को रोकने की शस्तत पैदा होती है। आपके शुिाणु तवतथ हो जाते हैं और आपके बालों की जडें भी मज़बूत हो जाती हैं। पानी आपकी त्वचा को एक अनोखी चमक देता है, तयोंकक ये आपके लीवर से और आपकी त्वचा की कई सतहों के नीच ेसे ववषैले तत्व बाहर ननकाल फें कता है। इससे एक और फायदा होता है। आपके अन्दर की पाचन शस्तत बढती है और आपका वज़न भी कम हो जाता है। पानी आपके बालों में भी एक नयी चमक पैदा करता है, और उन्हें तवतथ और मज़बूत रखता है। तो अगर आप अपने बालों को धगरने से रोकना चाहते हैं तो जी भर के पानी पीस्जये और पूरा ददन अपने शरीर को सीांधचत और तवतथ रखखये।

2. पवटासमन डी की शरीर में कमी न हो ः अन् य आवश् यकताओां की तरह बालों को ववडाममन डी की भी आवश् यकता होती है । ये भी एक तरह का ननशुल्क नुतखा है और बालों को धगरने से रोकता है।

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असल में ववटाममन डी बालों को बढने में काफी मददगार साबबत होता है और बालों को बढने के मलए यह बहुत ज़रूरी भी है। यह अपने आप में आयरन और कैस्ल्शयम को सोख लेता है। आयरन की कमी भी बालों के धगरने की वजह होती है। लेककन जब आप अपने शरीर पर कम से कम 15 ममननट के मलए भी सूयम की ककरणें पडने देते हैं, तो आपको उस ददन के मलए ज़रूरी मात्रा में ववटाममन डी की खरुाक ममल जाती है। लेककन एक बात याद रहे, जब बहुत ही ज्यादा गमी हो तो आप अपने मसर और त्वचा को सूयम की ककरणों से बचाकर रखखये। बहुत ज्यादा गमी या तपती धपू आपके मलए नुकसानदेह साबबत हो सकती है। तो बेहतर यही होगा की आप सूयम की ककरणों का फायदा या तो सुबह उठाइए या शाम को।

3. पौष्टटक आहार लें ः कई लोग बालों की झडने का मशकार गलत खाने की वजह से होते हैं। ऐसा नहीां है की वे पौस्ष्टक खाने पर खचम नहीां कर सकते लेककन आदतन वे जांक फूड पर पैसे बबामद करते हैं बननबतत पौस्ष्टक आहार पर खचम करने के । जांक फूड , डब्बाबांद आहार, तैलीय खाना, वगैरह में पौस्ष्टक तत्वों की कमी होती है लेककन कई लोग इन्हें बड ेमज़े से खाते हैं। नतीजा यह होता है कक आपके शरीर को सही मात्रा में आयरन, कैस्ल्सयम , स्जांक , ववटाममन सी और प्रोटीन वगैरह नहीां ममल पाते। यह सब बालों के बढने के मलए बहुत ज़रूरी होते हैं इसीमलए जहााँ तक हो सके ऐसे पोषण रदहत आहार का बदहष्कार ककस्जये और हरी सस्ब्जयाां, फल, सूखे मेवे, दधू, अांड ेखाइए स्जससे कक आपके जीवन में पौस्ष्टक आहारों की कमी पूरी हो सके।

4. तनाव से िच ेः बालों के धगरने की एक अहम ्वजह तनाव भी है। तनाव से कई और बीमाररयााँ भी पैदा होती हैं, इसीमलए इन बीमाररयों से बचने के मलए, और बालों को धगरने से बचाने के मलए तनाव से दरू रदहये। हालाांकक ऐसा कहना बहुत आसान होता है, लेककन अगर आप पूरी तरह स तनाव से छुटकारा नहीां पा सकते तो इसे कम तो कर सकते हैं। और तनाव कम करने के मलए आपको अपनी सोच को बदलना होगा, और योग, मेडीटेशन, वगैरह जैसे उपायों से इसे कम कर सकते हैं।

5. धमू्रपान और शाराि का सेवन बिलक ल न करें ः बालों के धगरने की एक और वजह धमू्रपान भी है, धमू्रपान से अथेरोसेलेरोमसस का ववकास होता है। अथेरोसेलेरोमसस की अवतथा में आपकी नसों और रगों पर मैल जमा हो जाती है स्जससे आपके पूरे शरीर के रततसांचार में अवरोध पैदा होता है। फलतवरूप, अगर आप पौस्ष्टक आहार का सेवन भी कर रहे हैं तो भी पौस्ष्टक तत्व आपके बालों की जडों तक नहीां पहुाँच पाते तयोंकक आपके मसर तक पयामप्त मात्रा में रतत नहीां पहुाँचता। इस दशा में आपके बाल कमज़ोर होने लगते हैं और धगरने लगते हैं। धमू्रपान की वजह से, सेतस समतयाएां , दौरे पडना, उच्च रतत चाप, हाटम एटेक वगैरह जैसे रोग भी पैदा होते हैं। तो, अगर आपको अपनी स्ज़न्दगी से प्यार है (न मसफम अपने बालों से) तो आज ही धमू्रपान करना छोड दीस्जये। शराब आपके लीवर को नुकसान पहुांचाती है और आपके शरीर में ऐसे ववषैले तत्व पैदा करती है जो की आपके बालों के मलए बहुत हीां हाननकारक साबबत होते हैं। शराब आप ननयांबत्रत मात्रा में वपयें; बेहतर तो यही होगा कक आप शराब को हाथ ही ना लगायें।

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6. हाननकारक रसायनों का इस्तेमाल न करे ः अतसर लोग टीवी पर और रांगीन पबत्रकाओां में लुभावने इस्श्तहार देखकर ललचा जाते हैं और अपने बालों के मलए, बबना सोच ेसमझ ेकोई भी शेंफू

और कां डीतनर खरीद लेते हैं। कोई भी शेंफू खरीदने से पहले उसके अन्दर के मसालों के बारे में अच्छी तरह परख लें। कई शेंफू में कडक तरह के मसाले डाले जाते हैं, स्जनसे कक आपके बालों को हानन पहुाँचती है और आपके बाल धगरने लगते हैं और आप गांजे भी हो सकते हैं। एक दो बार खरीदने के बाद अगर आपको लगे है कक कोई शेंफू आपके बालों के मलए ठीक नहीां है तो उसे फौरन इततेमाल करना बांद कर दीस्जये।

7. अत्यधधक गमी और िाल रुंगने से परहेज़ करें ः अत्यधधक गमी और बालों को बहुत ज्यादा रांगना या डाई करना आपके बालों के मलए ठीक नहीां होते। जहााँ तक हो सके अपने बालों को गमी से बचाएां और बालों को तभी रांगें या डाई करें जब बहुत ही ज्यादा ज़रूरी हो।

सााँवली त्वचा को खबूसूरत कैसे बनायें दनुनया की कोई भी िीम आपको गोरा नहीां बना सकती अत: आपको जो त्वचा प्राकृनतक रूप से ममली है उसी को तवतथ और आकषमक बनाने के जतन करने चादहए।

साांवली त्वचा को सलोनी रांगत देने के मलए अपनी मजीठ, हल्दी, धचरौंजी 50-50 ग्रा .लेकर पाउडर बना लें। एक-एक चम्मच सब चीजों को ममलाकर इसमें 6 चम्मच शहद ममलाएां और नीांब ूका रस तथा गलुाब जल डालकर

पेतट बना लें। इस पेतट को चेहरे, गरदन, बाांहों पर लगाएां और एक घांटे के बाद गनुगनेु पानी से चेहरा धो दें। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से चेहरे का साांवलापन दरू होकर रांग ननखर आएगा। नीांब ूव सांतरे के नछलकों को सखुाकर चूणम बना लें। इस पाउडर को हफ्त ेमें एक बार बबना मलाई के दधू में ममलाकर लगाएां, त्वचा में आकषमक चमक आएगी। जाड ेके ददनों में दधू में केसर या एक चम्मच हल्दी का सेवन करने से भी रतत साफ होता है ।

अतथमा का घरेलू उपचार

अतथमा होने पर ननम्न घरेलू उपचार अपनाकर आप इसका इलाज कर सकतें हैं और तवतथ रह सकते हैं -

लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबबत होता है। 30 ममली दधू में लहसुन की पाांच कमलयाां उबालें और इस ममिण का हर रोज सेवन करन ेसे दमे में शुरुआती अवतथा में काफी फायदा ममलता है।

अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो वपसी कमलयाां ममलाकर पीने से भी अतथमा ननयांबत्रत रहता है। सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।

दमा रोगी पानी में अजवाइन ममलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमांद होता है। 4-5 लौंग लें और 125 ममली पानी में 5 ममनट तक उबालें। इस ममिण को छानकर इसमें एक चम्मच शुि शहद ममलाएाँ और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढा बनाकर पीने से मरीज को ननस्श्चत रूप से लाभ होता है।

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180 मममी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पस्त्तयाां ममलाकर करीब 5 ममनट तक उबालें। ममिण को ठांडा होन ेदें, उसमें चटुकीभर नमक, कालीममचम और नीबू रस भी ममलाया जा सकता है। इस सपू का ननयममत रूप से इततेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।

अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मैथी के काढे और तवादानुसार शहद इस ममिण में ममलाएां। दमे के मरीजों के मलए यह ममिण लाजवाब साबबत होता है। मथैी का काढा तैयार करन ेके मलए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सबेरे-शाम इस ममिण का सेवन करने से ननस्श्चत लाभ ममलता है।

दमा का अटैक में सावधानी - 1. सीधे बैठें और आराम से रहें ।

2. तुरांत सुननस्श्चत मात्रा में ररलीवर दवा लें ।

3. पाांच ममनट के मलए रुकें , कफर भी कोई सुधार न हो तो दोबारा उतनी दवा लें।

गोंद के लड्डू

सामग्री )Ingredients)

200 ग्राम गोंद )200gm gond)

200 ग्राम गेहूां का आटा )200gm wheat flour)

200 ग्राम चीनी )200gm sugar)

250 ग्राम घी )250gm ghee)

एक टेबल तपनू खरबजू ेके बीज )1 tbs melons seeds)

20-25 बादाम )20-25 almonds)

10 छोटी इलाइची )10 small cardamom)

पवधध – (process)

गोंद के अगर ज्यादा मोटे टुकड ेहो तो उसे तोड कर थोडा बारीक कर लीस्जये। कढाई में घी डालकर गरम कीस्जये, गरम घी में थोडा थोडा गोंद डाल कर तमलये )गोंद घी में पापका नम की तरह फूलता है, गोंद को बबलकुल धीमी आग पर ही तमलये ताकक वह अन्दर तक अच्छी तरह भनु जाय (। गोंद के अच्छी तरह फूलने और मसकने के बाद प्लटे में ननकामलये, कफर से और गोंद कढाई में डामलये, तल कर ननकाल लीस्जय,े सारा गोंद इसी तरह तल कर ननकाल लीस्जये।

आटा छाननये और बचे हुये घी में डालकर हल्का गलुाबी होने तक भनू कर थाली में ननकाल लीस्जए। बादाम को छोटा छोटा काट लीस्जये। इलाइची छील कर कूट लीस्जये। गोंद के ठांडा हो जाने पर थाली में ही बेलन से दबाव डालकर थोडा और बारीक कर लीस्जये।

कढाई में चीनी और 3/4 कप पानी डामलये, चाशनी बनाने रख दीस्जय,े चाशनी में उबाल आने के बाद 3- 4 ममननट तक उबलने दीस्जये। जमने वाली कनमसतटैन्सी की चाशनी )चाशनी की एक बूांद प्लेट में धगराइये , अपनी अांगलुी और अांगठेू के बीच चाशनी को धचपका कर देखखये, अगर चाशनी मोटा तार ननकालत ेहुये धचपकती है तब चाशनी बन चकुी है (बनाइये। आग बन्द कर दीस्जये।

चाशनी में भनुा हुआ गोंद, भनुा हुआ आटा, बादाम और इलाइची पाउडर डामलये और अच्छी तरह सभी चीजों को हाथ से ममला लीस्जये। ममिण से थोडा थोडा ममिण उठाइये और गोल लड्डू बनाकर थाली में लगाइये, सारे

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ममिण से लड्डू बनाकर थाली में लगा लीस्जये।

इस ममिण को थाली या प्लेट में जमाकर उससे अपने मन पसन्द आकार में काट कर गोंद की बफी बना सकत ेहैं।

परोसने का तरीका )process of serving) – तयैार हैं गोंद के लड्डू। आप इसमे ऊपर से इसमे आप वपतता, बादम, काज,ू ककशममश आदद भी डाल सकत ेहै। इसे आप बनात ेही खा सकत ेहैं या इसे रखकर कुछ ददनों तक खाया जा सकता है।

बबूल की गोंद

बबलू की गोंद का प्रयोग करने से छाती मलुायम होती है। यह मेदा )आमाशय (को शस्ततशाली बनाता है तथा आांतों को भी मजबतू बनॅाता है। यह सीने के ददम को समाप्त करता है, तथा गल ेकी आवाज को साफ करता है। इसका प्रयोग फेफडों के मलए अत्यांत लाभकारी होता है। इससे शरीर में धात ुकी पसु्ष्ट होती है तथा यह वीयम बढता है। इसके छोटे -छोटे टुकड ेघी , खोवा और चीनी के साथ भनूकर खाने से शरीर शस्ततशाली हो जाता है।

पाक

अश्वगांधा का सेवन करने से वात प्रधान रोग नष्ट होते हैं इसीमलये वात प्रधान रोगों के मलये इसका सेवन करने की सलाह दी जाती है .सेवन करने से बहुत लाभ ममलता है .साथ ही यह अश्वगांधा पाक धातु की ननबमलता भी नष्ट करता है, तयोंकक यह पौस्ष्टक, अस्नन प्रदीपक और शस्तत सांवधमक होता है .शुिाशय, वातवादहनी नाडी और गुदों पर इसका गुणकारी प्रभाव पडता है .शीत ऋतु में अश्वगांधा पाक का सेवन करने से यौनशस्तत बढती है, अतः यौन आनांद बढता है .अश्वगांधा पाक 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह -शाम दधू या शहद के साथ सेवन करने से यौनशस्तत में आश्चयमजनक फायदा होता है. .

एरांड पाक का सेवन करने से शारीररक दबुमलता नष्ट होती है, पाचन शस्तत तीव्र होने से भोजन शीघ्र पचता है और शारीररक यौनशस्तत ववकमसत होती है .शीतऋतु में एरांड पाक का सेवन करने से मुांह का रोग नष्ट होता है तथा अन्य वात ववकारों में भी यह बहुत गुणकारी होता है .इसे 10 से 20 ग्राम की मात्रा में दधू के साथ सेवन करना चादहए.

कौंच पाक के गुणकारी कौंच पाक तैयार ककया जाता है .शीतऋतु में इसका सेवन करने से पुरूषत्व शस्तत ववकमसत होती है तथा वीयम के अभाव में उत्पन्न नपुसांकता नष्ट होती है .

इससे यौन क्षमता बढने से पुरूष देर तक यौन समागमन में सांलनन रहकर अधधक यौन आनांद प्राप्त कर सकता है . 20-30 ग्राम की मात्रा में कौंच पाक का सेवन करने से और ऊपर से दधू पीने से यौन

शस्तत ववकमसत होती है तथा यह शारीररक शस्तत भी बढाता है. .

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नाररयल से शीतवीयम, स्तननध और पौस्ष्टक होने के कारण इसका सेवन करने से वपत्त ववकृनत से उत्पन्न रोग नष्ट होत ेहैं तथा शरीर में शिु )वीयम (के अभाव से उत्पन्न ननबमलता में अनतशीघ्र लाभ होतॅा है .नाररयल पाक का सेवन सभी ऋतओुां में ककया जा सकता है .प्रनतददन 10 से 20 ग्राम की मात्रा में दधू के साथ इसका सेवन करने से भरपरू शस्तत एवां शारीररक आकषमण में ववृि होती है. .

अदरक के सेवन से वात ववकार नष्ट होते हैं .शीतऋतु में अदरक का सेवन करने से वात र ॅोगों से मुस्तत ममलती है .प्रनतददन 10 से 20 ग्राम की मात्रा में अदरक पाक सुबह -शाम सेवन करने से अस्ननमाांध, श्वास, खाांसी आदद रोग नष्ट होते हैं और पाचनकिया मजबूत होती है.

आम्र -पाक वीयमवधमक होता है , अतः शुि )वीयम (ववकार से पी डत पुरूषों के मलये इसका सेवन बहुत लाभप्रद है .आम्र-पाक से रतत का ननमामण होता है तथा वीयम की ववृि होने से यौनशस्तत ववकमसत

होती है .भोजन से पहले 20 से 25 ग्राम की मात्रा में दधू या जल के साथ आम्र -पाक सेवन करने से शारीररक शकॅ्नत ववकमसत होती है.

छुहारे में खजूर के सभी गणु ववघमान रहत ेहैं तथा इनका यौन शस्तत व क्षमता पर बेहद चमत्कारी प्रभाव पडता है .वीयम का अभाव होने पर छुहारे को दधू में उबालकर सेवन करने से वीयम ववृि होती है तथा शारीररक शस्तत बढती है.

जवान िनाए रखती है अश्वगुंधा जवान बनाए रखती है अश्वगांधा

अश्वगांधा का प्रयोग करने से जहााँ मनषु्य लम्बे समय तक जवान रह सकता है। वहीां, इसका त्वचा पर प्रयोग करने से उम्र के साथ शरीर पर पडने वाली झरुरमयों भी कम पडती है।

फेडरेशन ऑफ एमशयन ओसेननयन न्यरूोसाइांसेज सोसाइटी की पााँचवी काांफे्रस में कल जापान के नेशनल इांतटीट्यटू ऑफ एडवाांस साइांस एांड टेतनोलॉजी के वजै्ञाननक डॉ .सनुील कौल ने अपने इस शोध को सावमजननक करत ेहुए बताया कक अश्वगांधा के सेवन स ेन केवल मनषु्य लांबी उम्र तक जवान रह सकता है बस्ल्क इसको

शरीर की त्वचा पर लगाने से त्वचा पर पडने वाली झुररमयों से भी बचा जा सकता है।

उन्होंने बताया कक आम तौर पर कैं सर की दवाएाँ बीमार कोमशकाओां के साथ -साथ सामान्य कोमशकाओां को भी नकुसान पहुाँचाती है, स्जसस ेअन्य रोगों के बढने की सांभावना हो जाती है।

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उन्होंने बताया कक कैं सर की दवाओां के साथ अश्वगांधा का सेवन करने से अद्भतु फायदा देखा गया है। अश्वगांधा के प्रयोग से केवल कैं सर ग्रतत कोमशकाएाँ व न्यरूान्स ही नष्ट हुए, जबकक अन्य कोमशकाओां व न्यरूान्स को कोई नकुसान नही पहुाँचा।

डॉ .कौल ने बताया कक अश्वगांधा के सेवन के दौरान लोगों को कुछ खास ध्यान रखने की भी जरूरत है , तयोंकक सभी अश्वगांधा फायदेमांद नहीां होती है। कुछ खास ककतम की अश्वगांधा ही लाभदायक होती है।

इसी काांफे्रस में हैदाराबाद के बबरला इांतटीट्यटू ऑफ टेतनोलॉजी एांड साइांस के डॉ .एस .कपरू ने बताया कक ददमाग के ररसेप्टर को अगर ब्लाक कर ददया जाए तो शराब की लत से छुटकारा पाया जा सकता है।

उन्होंने बताया कक चूहों पर इसका सफल प्रयोग ककया जा चुका है और अब मानव पर इस प्रकिया को अपनाने की कोमशश चल रही है।

वीयय दोष दरू करे

८ .अश्वगांधा , ववधारा, शतावरी ५० -५० ग्राम लेकर पीस लें , अब इसमें १५० ग्राम ममिी ममलाकर रोज प्रातः एक छ्मम्मच चणूम पानी या गो के दधू से खाते रहें !खटाई कुस्छ्मदन नहीां खाएां और कब्ज न हो

तो शरीर शततीशाली बन जायेगा. *९ .रोज सवेरे एक बताश े में ५- ७ बूांदें बड के दधू की डालकर खाने से लडके, लडककयों, बड,े बूढों के वीयम दोष रोग टीक होजाते हैं और शरीर सुन्दर व शततीशाली बनता है!

शस्ततशाकी कैसे bane, वीयम दोष दरू करे

नप ुंसकता पररचय : जो व्यस्तत यौन सांबन्ध नहीां बना पाता या जल्द ही मशधथल हो जाता है वह नपुांसकता का रोगी होता है। इसका सम्बांध सीधे जननेस्न्द्रय से होता है। इस रोग में रोगी अपनी यह परेशानी ककसी दसूरे को नहीां बता पाता या सही उपचार नहीां करा पाता मगर जब वह पत्नी को सांभोग के दौरान परूी सन्तसु्ष्ट नहीां दे पाता तो रोगी की पत्नी को पता चल ही जाता है कक वह नांपसुकता के मशकार हैं। इससे पनत -पत्नी के बीच में लडाई-

झगड ेहोत ेहैं और कई तरह के पाररवाररक मन मटुाव हो जात ेहैं बात यहाां तक भी बढ जाती है कक आखखरी में उन्हें अलग होना पडता है।

कुछ लोग शारीररक रूप से नपुांसक नहीां होत,े लेककन कुछ प्रचमलत अांधववश्वासों के चतकर में फसकर,

सेतस के मशकार होकर मानमसक रूप से नपुांसक हो जात ेहैं मानमसक नपुांसकता के रोगी अपनी पत्नी के पास जाने से डर जात ेहैं। सहवास भी नहीां कर पात ेऔर मानमसक स्तथनत बबगड जाती है।

कारण : नपुांसकता के दो कारण होत ेहैं - शारीररक और मानमसक। धचन्ता और तनाव से ज्यादा नघरे रहने से

मानमसक रोग होता है। नपुांसकता शरीर की कमजोरी के कारण होती है। ज्यादा मेहनत करने वाले व्यस्तत को जब पौस्ष्टक आहार नहीां ममल पाता तो कमजोरी बढती जाती है और नपुांसकता पदैा हो सकती है। हततमथैुन,

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ज्यादा काम -वासना में लगे रहने वाले नवयवुक नपुांसक के मशकार होत ेहैं। ऐसे नवयवुकों की सहवास की इच्छा कम हो जाती है।

लक्षण : मथैुन के योनय न रहना, नपुांसकता का मखु्य लक्षण है। थोड ेसमय के मलए कामोत्तजेना होना, या थोड ेसमय के मलए ही मल ांगोत्थान होना -इसका दसूरा लक्षण है। मथैुन अथवा बहुमथैुन के कारण उत्पन्न ध्वजभांग नपुांसकता में मशशन पतला, टेढा और छोटा भी हो जाता है। अधधक अमचूर खाने से धात ुदबुमल होकर नपुांसकता आ जाती है।

हेल्थ दटप्स : * नपुांसकता से परेशान रोगी को औषधधयों खाने के साथ कुछ और बातों का ध्यान रखना चादहए जैसे सबुह -शाम ककसी पाकम में घमूना चादहए , खुले मदैान में, ककसी नदी या झील के ककनारे घमूना चादहए, सबुह सयूम उगने से पहले घमूना ज्यादा लाभदायक है। सबुह साफ पानी और हवा शरीर में पहुांचकर शस्तत और तफूनत म पदैा करती है। इससे खून भी साफ होता है। * नपुांसकता के रोगी को अपने खाने )आहार (पर ज्यादा ध्यान देना चादहए। आहार में पौस्ष्टक खाद्य-पदाथों घी, दधू, मतखन के साथ सलाद भी जरूर खाना चादहए। फल और फलों के रस के सेवन से शारीररक क्षमता बढती है। नपुांसकता की धचककत्सा के चलत ेरोगी को अश्लील वातावरण और कफल्मों से दरू रहना चादहए तयोंकक इसका मस्ततष्क पर हाननकारक प्रभाव पडता है। इससे बरेु सपने भी आत ेहैं स्जसमें वीयमतखलन होता है।

वाजीकरण

धचककत्सा :

1. असगुंध: 25-25 ग्राम असगांध, ब्रह्मदण्डी और ननगुमण्डी को एकसाथ ममलाकर अच्छी तरह से पीसकर और छानकर इसमें 75 ग्राम खाांड ममलाकर रख लें। इसे 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम दधू के साथ सेवन करने से बाजीकरण के रोग में )यौन शस्तत का कम होना (लाभ ममलता है।

2. इन्द्रजौ: 50-50 ग्राम इन्द्रजौ, तारा मीरा के बीज और उटांगन के बीजों को एकसाथ कूटकर और छानकर 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह -शाम शहद में ममलाकर चाटने से बाजीकरण का रोग )यौन शस्तत

का कम होना (दरू हो जाता है।

3. बिदारीकुं द: 100 ग्राम बबदारीकां द को कूटकर और छानकर इसमें 100 ग्राम खाांड ममलाकर 5-5 ग्राम की मात्रा में घी में डालकर सुबह -शाम सेवन करने के बाद ऊपर से खाांड ममला द ॅूध पीने स ेयौनशस्तत के कम होने का रोग समाप्त हो जाता है।

4. सफेद मूसली: 50 ग्राम सफेद मूसली, 100 ग्राम तालमखाना और 150 ग्राम देसी गोखरू को एकसाथ कूटकर और छानकर रख लें। कफर इसमें 300 ग्राम खाांड ममलाकर 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह -शाम हल्के गुनगुने पानी से लेना बाजीकरण )यौन शस्तत का कम होना (रोग में लाभ होता है।

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5. उड़द :

25 ग्राम उडद की दाल की वपट्ठी या मसांघाढे के आटे को देसी घी में भूनकर लगभग 400 ग्राम दधू में ममलाकर पकायें। पकने के बाद गाढा होन ेपर कम गमम में दधू में चीनी ममलाकर सुबह सवेन करने से बाजीकरण के रोग में आराम होता है। उडद की दाल का एक लड्डू रोजाना खाकर उसके बाद दधू पीने से वीयम बढकर धातु पुष्ट होता है सांभोग करने की शस्तत बढती है। 6. काले नतल : काले नतल और गोखरू को 20-20 ग्राम की मात्रा में पीसकर 400 ग्राम दधू में चीनी डालकर अच्छी तरह से पकायें। गाढा होने पर गुनगुने रूप में बाजीकरण से पी डत रोगी को सुबह के समय खखलाने से लाभ होता हैं। 7. खजूर: 25 से 50 ग्राम खजूर या वपण्डखजूर को 100 से 250 ममलीलीटर दधू के साथ ददन में 3 बार लेने से सांभोगशस्तत बढ जाती है।

8. र्ाुंग:

एक चौथाई से आधा ग्राम भाांग के पत्तों का चणूम 4 से 6 ग्राम शहद और 100-250 ममलीलीटर दधू के साथ लेने से सांभोगशस्तत बढ जाती है। 6 ग्राम भाांग, 6 ग्राम अफीम, 10 ग्राम, छुहारे, 6 ग्राम पोततदाना, 10 ग्राम बादाम धगरी, 10 ग्राम मोठ की जड और 6 ग्राम धतूरे के बीजों को एकसाथ बारीक पीसकर 3 ग्राम की मात्रा में लेने स ेबाजीकरण रोग में लाभ ममलता है। 9. जातीफल: जातीफल का चणूम 1 से 3 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 ममलीलीटर दधू के साथ वीयम तखलन की स्तथनत में ददन में 2 बार सेवन करने से लाभ होता है

10. जापवत्री:

1 से 3 ग्राम जाववत्री के चणूम को 100 से 250 ममलीलीटर दधू के साथ ददन में 2 बार लेने से वीयम का जल्दी ननकलने का रोग दरू हो जाता है। जाववत्री, सफेद कनेर की छाल, समुद्रशोष, अफीम, खरुासानी अजवायन, जायफल, पीपल, ममिी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर गुड के साथ 4-4 ग्राम की गोमलयाां बनाकर रख लें। इसमें से एक गोली रात को सोते समय खाने से सांभोगशस्तत बढ जाती है।

11. नमक: 1 से 3 ग्राम नमक के चणूम को 100 से 250 ममलीलीटर दधू के साथ ददन में 2 बार देने स ेवीयम तखलन नहीां होता है।

12. जायफल: 3 ग्राम जायफल, 6 ग्राम रूमी मततगी, 6 ग्राम लौंग तथा 6 ग्राम इलायची को पीसकर शहद में ममलाकर बेर के बराबर गोमलयाां बना लें। यह 1 गोली रात को सोते समय खाना बाजीकरण रोग में लाभदायक होता है।

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13. लौंग :

लौंग, अफीम, भाांग, इलायची के दाने, जायफल, जाववत्री और कमलगट्टा आदद को बराबर मात्रा में लेकर कूट -पीसकर 2-2 ग्राम की गोली बनाकर खरुाक के रूप में सेवन करने से सांभोग शस्तत बढ जाती है। लौंग, अकरकरा, जायफल, जाववत्री और अफीम को बराबर मात्रा में लेकर 2-2 ग्राम की गोली बना लें। रात को सोने स ेपहले यह 1 गोली खाने से बाजीकरण रोग में लाभ होता है। 14. अदरक: सूखी अदरक, तेजबल, नकनछकनी तथा गुड को एकसाथ ममलाकर पीस लें। कफर इसकी चने के बराबर के आकार की गोमलयाां बना लें। इस एक गोली को रात को सोते समय खान ेसे सांभोग शस्तत बढ जाती है। 15. अकरकरा: अकरकरा, सोंठ, लौंग, केसर, पीपल, जायफल, जाववत्री, और सफेद चन्दन को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीसकर उसमें 20 ग्राम अफीम ममला लें। कफर इसमें शहद ममलाकर उडद के आकार की गोमलयाां बनाकर एक -एक गोली खा लें और ऊपर से दधू पी लें। इससे सांभोग करने की कमजोरी दरू होती है।

16. गूलर :

एक छुहारे की गुठली को ननकालकर छुहारे में गूलर के दधू की 25 बूांदे भरकर रोजाना सुबह खाने से वीयम में शुिाणु बढते हैं तथा सांतानोत्पस्त्त में शुिाणुओां की कमी का दोष दरू हो जाता है।

1 चम्मच गूलर के दधू में 2 बताशों को पीसकर रोजाना सुबह -शाम खाकर उसके ऊपर से गमम दधू पीने से वीयम की कमजोरी दरू हो जाती है। एक बताश ेमें 10 बूांद गूलर का दधू डालकर सुबह -शाम सेवन करने और एक चम्मच की मात्रा में गूलर के फलों का चूणम रात में सोने से पहले लेने से वीयम की कमजोरी, दबुमलता और ततम्भन के रोग में लाभ ममलता है। गोखरू और शतावरी का चणूम 1-1 चम्मच की मात्रा में, 1 कप पानी में कुछ देर तक उबालकर छान लेते हैं। कफर इस े छानकर पी लेते हैं। इससे शीघ्रपतन की मशकायत दरू हो जाती है और यौनशस्तत भी बढ जाती है। गोखरू, तालमखाला, असगांध, शतावरी, मूसली, कौंच के बीज, मुलहठी, गांगेरन और खखरैटी को बराबर मात्रा में पीसकर चणूम बना लें। इन औषधधयों के चणूम के वजन से 8 ग्राम ज्यादा दधू लेकर उसमें यह चणूम डालकर हल्की -हल्की आांच पर पकाना चादहए। कफर उपरोतत औषधधयों की मात्रा के

बराबर गाय का घी लेकर इस घी में इन औषधधयों के लड्डू बना लेते हैं। यह योग पौरुष शस्तत को बढाने वाला होता है।

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पके हुआ गूलर को सुखाकर और पीसकर चणूम बना लेते हैं। गूलर के चणूम में उसके बराबर की मात्रा में ममिी को ममलाकर रोजाना सुबह 2 चम्मच गमम दधू के साथ फां की लेने से मदामना शस्तत बढ जाती है। 2-2 घांटे के अांतराल पर गूलर का दधू या गूलर का यह चणूम सेवन करने से दम्पस्त्त वैवादहक सुख को भोगते हुए तवतथ सांतान को जन्म देते हैं। 4 से 6 ग्राम गूलर के फल का चणूम और बबदारीकां द का चणूम एकसाथ ममलाकर उसमें बराबर मात्रा मे ममिी ममलाकर घी ममले हुए दधू के सुबह -शाम सेवन करने से पौरुष शस्तत की ववृि व बाजीकरण की शस्तत बढ जाती है। अगर स्तत्रयाां इस ममिण को सेवन करती है तो उनके सारे रोग

दरू हो जाते हैं। 17. अकरकरा: अकरकरा, सफेद मूसली और असगन्ध को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इस चणूम को 1-1

चम्मच की मात्रा में सुबह -शाम एक कप दधू के साथ ननयममत रूप से लेने से सांभोगशस्तत बढ जाती है। अकरकरा, अश्वगांधा और सफेद मूसली को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर रोजाना सुबह-शाम 1-1 चम्मच की मात्रा में एक कप दधू के साथ लेने से सांभोग करने की कम हुई शस्तत दबुारा

बढ जाती है। 18. प्याज: प्याज को ककसी बतमन में भरकर, बतमन का मुांह इस प्रकार बांद कर देना चादहये कक उसमें हवा न जाने पाये। कफर इस बतमन को जहाां गाय बांधती हो उस जमीन में गाड देना चादहए। 4 महीने बाद इसे ननकालकर 1 प्याज रोजाना खाने से कामशस्तत तेज होती है। आधा ककलो प्याज का रस, 2 ककलो शहद और 250 ग्राम चीनी, को ममलाकर शबमत के रूप में रोजाना 25 ग्राम की मात्रा में पीने से सांभोगशस्तत तेज हो जाती है। लगभग 15-20 ग्राम प्याज का रस, शहद और शराब को एकसाथ ममलाकर पीने से कमजोरी दरू होकर शरीर में चतुती -फुती आती है।

30 प्याज लेकर इतनें दधू में डालें कक प्याज दधू में अच्छी तरह डूब जायें। कफर इसे आग पर इतना पकायें की प्याज गल जाये। पकने के बाद इसे आग से नीच ेउतार लें, अब इसे प्याज की मात्रा के बराबर गाय के घी और शहद में ममलाकर थोडी देर तक पकायें और अांत में इसमें 60-60 ग्राम कुलांजन डालकर 3-4 चम्मच की मात्रा में खाने से शरीर में कामशस्तत तेज होती है। प्याज खाने से कामवासना जगती है, प्याज वीयम को पैदा तथा उत्तेस्जत करता है। यह देर तक सांभोग करने की ताकत को बढाता है।

60 ग्राम लाल प्याज के बारीक टुकड ेको इतन ेही घी और 250 ग्राम दधू में ममलाकर गमम करके गाढा कर लें। कफर इसे ठांडा करके इसमें ममिी ममलाकर 20 ददन तक रोजाना सेवन करन ेसे खोई हुई मदामनगी वापस आ जाती है।

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1 चम्मच प्याज के रस को आधा चम्मच शहद में ममलाकर पीने से वीयम का पतलापन दरू होता है तथा वीयम में बढोतरी होती हैं। 19. दधूी: दधूी को पीसकर और छानकर इसके 2 से 5 ग्राम चणूम को 2 चम्मच शतकर के साथ खान ेसे कामशस्तत बढती है। छोटी दधूी को रोजाना उखाडकर साफ करके 15 ग्राम की मात्रा में लेकर 6

बादाम की धगरी के साथ अच्छी तरह से पानी के साथ पीसकर एक धगलास में ममिी ममलाकर दोपहर के समय सेवन करने से गमी और शुिप्रमेह आदद दरू होकर वीयमकोष को शस्तत प्राप्त होती है। 20. अलसी: 50 ग्राम अलसी के बीजों और 10 ग्राम काली ममचम को ममलाकर पीसकर चणूम बनाकर रख लें। कफर चणूम में से 1-1 चम्मच को शहद के साथ सुबह -शाम सेवन करने से लाभ होता है।

21. धतूरा:

धतूरा के बीज, अकरकरा और लौंग को एकसाथ ममलाकर पीसकर गोमलयाां बनाकर खाने से सांभोग शस्तत बढ जाती है। धतूरा के बीजों के तेल की पैरों के तलुवों पर मामलश करने के बाद तत्री के साथ सांभोग करन ेसे बहुततम्भन होता है। धतूरा के 15 फलों को बीज सदहत लेकर पीसकर बने बारीक चणूम को 20 ककलोग्राम दधू में डालकर दही जमा देते हैं। अगले ददन दही को मथकर घी ननकाल लेते हैं। इस घी की एक चौथाई ग्राम से कम मात्रा को पान में रखकर खाने से बाजीकरण )सांभोग शस्तत तेज होना (होता है तथा

मलांग पर इस घी की मामलश करने से उसकी मशधथलता दरू हो जाती है।

22. पवदारीकन्द: ववदारीकन्द के 3 ग्राम चूणम को ववदारीकन्द के ही 10 ग्राम रस में ममलाकर तथा 5 ग्राम घी व 10 ग्राम शहद के साथ सुबह -शाम सेवन करने से सांभोग शस्तत बढती है।

ववदारीकन्द के 2 चम्मच चणूम में 1 चम्मच घी ममलाकर दधू के साथ रोजाना कुछ ददनों तक सेवन करने से वीयम पुष्ट होता है। 23. ननग यण्डी: 40 ग्राम ननगुमण्डी और 40 ग्राम शुांठी को एकसाथ पीसकर 8 खरुाक बनाकर एक खरुाक के रूप में रोजाना दधू के साथ सेवन करने से कामशस्तत में ववृि होती हैं। ननगुमण्डी को नघसकर मलांग पर लगाने से मलांग की कमजोरी दरू हो जाती हैं। 24. सेह ुंड: सेहुांड को पकाकर सेवन करने से अथवा दधू के साथ इसके चणूम की खीर बनाकर खाने से सांभोग करने की शस्तत बढती है।

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सेहुांड और शतावरी के घी के द्वारा शरीर की मामलश करने से कमजोरी समाप्त होती है और बल -वीयम बढता है।

25. र्ाुंगरा: 10 ग्राम शुि गांधक के बारीक चावल जैसे टुकड ेकरके उन्हें 7 ददन तक धपू में रखकर भाांगरा के रस की भावना देते हैं। कफर उसमें जायफल, जाववत्री, कपूर और लौंग का 2-2 ग्राम चणूम ममलाकर गुड के साथ घोटकर आधे -आधे ग्राम की गोमलयाां बना लेते हैं। प्रनतददन सुबह 1 या 2 गोली खाकर उसके ऊपर से 3 कालीममचम चबाकर, 250 ग्राम दधू पीने से सांभोग करने की शस्तत बढ जाती है। 26. पीपल:

पीपल के फल का चणूम आधा चम्मच की मात्रा में ददन में 3 बार दधू के साथ सेवन करते रहन ेसे नपुांसकता दरू होकर, बल, वीयम तथा पौरूष बढता है। पीपल के फल को छाया में सुखाकर और पीसकर छान लें। इस चौथाई चम्मच चणूम को 250

ग्राम गमम दधू में ममलाकर रोजाना पीने से वीयम की बढोतरी होती है और नपुांसकता दरू होती है। इसका सेवन यदद बाांझ तत्री करें, तो उसे सन्तान उत्पन्न होती है। 27. अनार: प्रनतददन मीठा अनार खाने से पेट मुलायम रहता है और कामेस्न्द्रयों को बल ममलता है।

28. िरगद:

बरगद के पके फलों को छाया में सुखाकर कूटकर चणूम बना लें। इस चणूम को इतनी ही मात्रा में ममिी के साथ पीस लें। एक चम्मच की मात्रा में यह चणूम सुबह खाली पेट और सोने से पहले एक कप दधू से रोजाना सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में ही यौनशस्तत बढ जाती है। बरगद के पेड के फल को सुखाकर बारीक पाउडर बनाकर इसमें ममिी पाउडर ममला लें। इसे सुबह 6 ग्राम की मात्रा मे दधू के साथ सेवन करने से वीयम का पतलापन, शीघ्रपतन आदद रोग दरू होते हैं। बरगद के पके फल और पीपल के फल को सुखाकर बारीक पाउडर बना लें। इस 25 ग्राम चणूम को 25 ग्राम घी में भूनकर, हलवा बनाकर सुबह -शाम खाने से तथा ऊपर से बछड ेवाली गाय का दधू

पीने से ववशषे बल ववृि होती है। अगर इसे तत्री-पुरुष दोनों खायें तो रस वीयम शुि होकर सुन्दर सन्तान जन्म लेती है। बरगद की सूखी कोपलों के पाउडर मे ममिी ममलाकर 7 ददन तक रोजाना खाली पेट 7 से 10

ग्राम की मात्रा में दधू की लतसी के साथ खाने से वीयम का पतलापन ममट जाता है। 29. पलास: पलास की जड के रस को 5-6 बूांद की मात्रा में प्रनतददन 2 बार सेवन करने से वीयम का अपन ेआप ननकलने का रोग ममट जाता है और कामशस्तत बढती है।

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पलास के बीजों के तेल की 2 से 4 बूांदे जननेस्न्द्रय के ऊपर सुपारी छोडकर मामलश करने से कुछ ही ददनों में हर तरह की नपुांसकता दरू होती है और कामशस्तत बहुत बढती है। अश्वगुंधा आज मैं एक ऐसी औषधध के बारे में आपको बताने जा रही हूाँ स्जसका नाम ही अजीब सा है --अश्वगांधा । स्जसका अथम उसके नाम में ही छुपा है -स्जसकी घोड ेजैसी महक हो । इसमें एक खास महक तो होती है पर वह घोड ेजैसी होती है कक हाथी जैसी यह आप खुद सूाँघ कर देख लीस्जयेगा पर मैं यह ज़रूर आपको बताना चाहूांगी कक इसको खाने से घोड े जैसी ताकत जरूर आ जाती है । चूाँकक हमारे ऋवषयों ने इसे अश्वगांधा नाम ददया है तो सही ही ददया होगा। वैसे तो अश्वगांधा का प्रत्येक भाग-जड ,पस्त्तयाां ,बीज और फल भी दवाई के रूप में प्रयोग होते हैं। परन्तु इसकी जडों का प्रयोग आम जन-मानस के मलए सरल है । इसकी जडें नर,नारी ,बालक ,बुजुगम सबके मलए एक टाननक का काम कर देती है।

जडों के चणूम का सेवन अगर तीन महीने तक बच्चों को करवाया जाए तो कमजोर बच्चों के शरीर का सही ववकास होने लगता है । सामान्य आदमी अगर इसका प्रयोग करे तो उसके शरीर में तफूनतम ,शस्तत ,चतैन्यता तथा कास्न्त[चमक]आ जाती है। यह जडी सभी प्रकार के वीयम ववकारों को ममटा करके बल-वीयम बढाता है। साथ ही धातुओां को भी पुष्ट करती है। इसका सेवन करने से शरीर का दबुलापन भी खत्म हो जाता है और शरीर कक हड् डयों पर मााँस भी चढता है। साथ ही नसें भी सुगदठत हो जाती हैं। लेककन डररये मत इससे मोटापा नहीां आता । गदठया, धातु, मूत्र तथा पेट के रोगों के मलए यह बहुत उपयोगी है। इससे आप खाांसी, सााँस फूलना तथा खजुली की भी दवा बना सकत ेहैं । इसका आप अगर ननयममत सेवन शुरू कर दें तो आपकी रोग-प्रनतरोधक क्षमता बढ जायेगी स्जसका दरू गामी परररणाम यह होगा कक आप लांबे समय तक युवा बने रहेंगे बुढापे के रोग आपसे काफी समय तक दरू रहेंगे। मदहलाओां कक बीमारी में यह जड काफी लाभकारी है। इसके ननयममत उपयोग से नारी की गभम-धारण की क्षमता बढती है ,प्रसव हो जाने के उपराांत उनमें दधू कक मात्रा भी बढती हैतथा उनकी श्वेत प्रदर, कमर ददम एवां शारीररक कमजोरी से जुडी सारी समतयाएां दरू हो जाती हैं। इसके ननयममत सेवन से दहमोनलोववन तथा लाल रतत कणों की सख्या में ववृि होती है । व्यस्तत की सामान्य बुवि का ववकास होता है। कैं सर से लडने की क्षमता ववकमसत होती है। गैस की बीमारी,एमस डटी ,अल्सर ,जोडों का ददम, ल्यूकोररया तथा उच्च रततचाप में इसे आजमाकर देखखये । आप खदु कहेंगे कक इसका नाम तो सांजीवनी बूटी होना चादहए।

अब मुख्य बात है कक इसका प्रयोग कैसे करें?

आप सामान्य तौर पर अश्वगांधा कक जडें पीसकर उसका चणूम बनालें । और आधा चम्मच [२ ग्राम] सुबह खाली पेट पानी से ननगल जाएाँ कफर एक कप गमम दधू या चाय पी लें .इस प्रकिया के दस ममनट बाद बाकी नाश्ता करें। कोई भी जडी -बूटी सवेरे खाली पेट खाने से ज्यादा फायदा पहुांचाती है। यह २००/- से ५००/- रु० ककलो तक बाज़ार में उपलब्ध है। अगर ककसी बीमारी में इसका प्रयोग करना चाहते हैं तो ककसी वैद्य से थोडा राय-मशववरा कर लें या कफर हमारे न० पर फोन कर लें । तयोकक हर बीमारी में इसकी मात्रा तथा इसे खाने का तरीका बदल जाता है। मेरी राय है कक आपको कोई

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बीमारी न हो तो भी प्रनतददन इसका सेवन करें .चहेरे पर चमक तो बढेगी ही और ककतना ही काम कर लें थकान से bukhaar नहीां होगा । हरारत कक गोली खाने से छुटकारा ममल जायेगा शतावरी

शतावरी वैसे तो तत्री-पुरुष दोनों के मलए ही उपयोगी व लाभप्रद गुणों से युतत जडी है, कफर भी यह स्तत्रयों के मलए ववशषे रूप से गुणकारी एवां उपयोगी है।

गुण : यह भारी, शीतल, कडवी, तवाददष्ट, रसायनयुतत, मधरु रसयुतत, बुविविमक, अस्ननविमक, पौस्ष्टक,

स्तननध, नेत्रों के मलए दहतकारी, गुल्म व अनतसार नाशक, ततनों में दधू बढाने वाली, बलविमक, वात-वपत्त, शोथ और रतत ववकार को नष्ट करने वाली है। यह छोटी और बडी दो प्रकार की होती है।

ववमभन्न भाषाओां में नाम : सांतकृत- शतावरी। दहन्दी- शतावर। मराठी- शतावरी। गुजराती- सेमुखा। बांगाली- शतमूली। तेलुग-ू एटु्टमट्टी टेंडा। तममल- सडावरी। कन्नड- मास्ज्जगे गड्ड।े फारसी- शकाकुल। इांस्नलश- एरेस मोसस। लैदटन- एतपेरेगस रेमसमोसस।

पररचय : यह लता जानत का कााँटेदार पौधा होता है जो जड से ही अनेक शाखाओां में फैला हुआ होता है। इसके पत्ते छोटे और सोया (सुआ) जैसे होते हैं। फूल छोटे और सफेद रांग के होते हैं। इसकी शाखाएाँ नतकोनी, धचकनी और रेखाांककत होती हैं।

उपयोग : इसका उपयोग ववमभन्न नुतखों में व्याधधयों को नष्ट कर शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने के मलए ककया जाता है।

गभमकाल में : गभमवती तत्री के मलए नवमास धचककत्सा का वववरण बताया है। शतावरी के चणूम का उपयोग दसूरे, छठे और सातवें मास में दधू के साथ करने और नवम मास में शतावरी साधधत तेल का एनीमा लेने तथा इसमें मभगोए हुए रूई के फाहे को सोते समय योनन में रखने के बारे में बताया गया है। इससे योनन-प्रदेश लचीला, पुष्ट और स्तननध रहता है, स्जससे प्रसव के समय प्रसूता को अधधक प्रसव पीडा नहीां होती।

प्रदर रोग : प्रनतददन सुबह-शाम शतावरी चणूम 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में थोड ेसे शुि घी में ममलाकर चाटने व कुनकुना गमम मीठा दधू पीने से प्रदर रोग से जल्दी से छुटकारा ममलता है।

वीयम गाढा करने के दटप्स

१ .अश्वगांधा चणूम का सेवन करे.

२ .बड के दधू का सेवन करे.

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शीघ्रपतन

बबना सन्तुष्टी के सांभोग करते हुए अगर वीयम तखलन हो जायें तो उसे शीघ्रपतन कहा जाता है।

कारण :

अश्लील वातावरण में रहना, मस्ततष्क की कमजोरी और हर समय सहवास की कल्पना मे खोये रहना यह शीघ्रपतन का कारण बनती है।

ज्यादा गमम ममचम मसालों व अम्ल रसों से खाद्य -पदाथो का सेवन करने , शराब पीन,े चाय -काांफी का ज्यादा पीना और अश्लील कफल्म देखने वाले, अश्लील पुततकें पढने वाले शीघ्रपतन से पी डत रहते हैं।

लक्षण :

वीयम का पतलापन, सहवास के समय ततांभन )सहवास (शस्तत का अभाव अथवा शीघ्रपतन हो जाना वीयम का जल्दी ननकल जाना।

र्ोजन तथा परहेज :

ददन में खाने के साथ दधू लें, मौसमी फल, बादाम, प्याज और लहसुन का प्रयोग करें। दवा के साथ गुड, ममचम, तेल, खटाई, मैथनु, और कब्ज पैदा करने वाली चीजों का सेवन नहीां करना चादहएां पत्नी के साथ सहवास करते समय यह ध्यान रखें कक वाद -वववाद की उलझनों से दरू रहें।

penis enlargement, मलांग में ववृि

पररचय :

पुरूष अपन ेमशश्न या मलांग के द्वारा शुिाणु को तत्री के योनन में डालता है। मलांग की लम्बाई 7.5

सेटीमीटर से लेकर 10 सेंटीमीटर तथा इसकी चौडाई 2.5 सेंटीमीटर होती है। पुरूश के मलगां के मध्य में एक नमलका होती है। इस नली को मूत्र नमलका कहते है जो इसमें से होती हुई मूत्राशय की थलैी तक जाती है। इसी नमलका द्वारा मूत्र और वीयम की ननकासी होती है। पुरूषों के मलांग में तीन माांसपेमशयाां होती है। दादहनी व बाांई कोरपस कैवरनोसम तथा बीच में कोरपस तपैनजीऔसम। इन माांसपेमशयों में रतत की नमलकाांए होती है। पुरूष मलांग की कठोरता के समय इन माांसपेमशयों से अधधक रतत का सांचार होता है व इसके कारण मलांग की लम्बाई 10-15 सेमी और चौडाई 3.5 सेमी के लगभग हो जाती

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है। मलांग की सुपारी की त्वचा आसानी से ऊपर -नीच ेखखसक सकती है तथा कठोरता के समय मलांग को चौडाई मे बढने के मलए तथान भी देती है। मलांग के अगले भाग को नलैस कहते है जो काफी सांचेतना

पूणम होता है।

सांभोग करने के मलए मलांग का छोटा या बडा होना ज्यादा मायने नहीां रखता है। कुछ लोग अपने मलांग को छोटा होने पर अपने ददमाग में कुछ हीन भावना बना लेते हैं। इससे वह मानमसक रूप स ेप्रभाववत हो जात ेहै। ऐसी स्तथनत में मलांग बढाना आवश्यक हो जाता है।यदद ३ से ४ इांच लम्बा हो तो सेतस में कोई रुकावट नहीां होती है .लेककन इतनी लम्बाई से बच्चदेानी के मुह पर प्रहार कम होता है

और जी पॉइांट पर घषमण में भी कमी रहती है .इस कमी को इस तरह के पुरुष अपनी उाँगमलयों के कमाल और अपने मुह और जीभ के भरपूर प्रयोग से पूती कर सकते हैं .सेतस करते समय स्जस को

जैसी पसांद से अधधक बढकर मजे देने वाली सारी कियाएां करनी चादहए .ये याद रखने वाली बात है कक कफमेल साथी को सेतस में स्जतना आनांद आएगा वो सेतस में उतना ही बढचढ कर भाग लेगी

और अगली बार के मलए तैयार रहेगी.

इसमलए भरपूर फोरप्ले कीस्जये .यदद मलांग की लम्बाई ५ इांच या अधधक है तो प्रकृनत ने आपको इनाम ददया है. यदद मलांग की लम्बाई ३ इांच है तो एक परेशानी जरूर आती है कक बच्चा रुकने में कुछ महीने लग सकते हैं .वैसे तो यह परेशानी ४ से ५ इांच वालों को भी आ सकती है यदद वो मलांग को तखलन के

समय पूरा दबाव नहीां देते हैं तो और थो डा ऊाँ चा कर लेते हैं.

स्वप्नदोष

पररचय-

यह रोग एक प्रकार का पुरुषों का रोग है। जब यह रोग ककसी व्यस्तत को हो जाता है तो रात में या जब व्यस्तत सो रहा होता है उस समय उसके मलांग में उत्तेजना होकर वीयमपात हो जाता है। यदद तवप्नदोष रोग के कारण महीने में 3 से 4 बार वीयमपात हो जाता है तो रोगी के मसर में ददम तथा बदन में सुतती नहीां होता है। लेककन जब वीयमपात इससे अधधक बार रात के समय में हो जाता है तो रोगी व्यस्तत का शरीर कमजोर होने लगता है। इस रोग को जल्दी ही ठीक कराना चादहए नहीां तो रोगी व्यस्तत के तवात्य पर बहुत बुरा असर पडता है तथा इसके कारण शरीर में और भी कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। स्वप्नदोष होने का कारण:- इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में ववजातीय द्रव्य (दवूषत द्रव) का जमा हो जाना होता है, जब यह दवूषत द्रव शरीर के तनायुजाल में रोग उत्पन्न करता है तो यह रोग हो जाता है।

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जो व्यस्तत सेतस के बारे में अधधक सोचता है तथा अनुधचत ढांग से सैतस किया करता है उसे यह रोग हो जाता है। कुछ व्यस्तत ददन के समय में सैतस के बारे में अधधक सोचते है तथा सैतस की अनुधचत किया करते है स्जसके कारण उन्हें सैतस के बारे में सपने आत ेहैं स्जसके कारण रात को सोते समय उनमें अधधक उत्तेजना हो जाती है और उन व्यस्ततयों का वीयमपात हो जाता है।

शरीर में अधधक कमजोरी आने के कारण भी यह रोग हो सकता है। हततमैथनु करने के कारण भी यह रोग हो सकता है। स्वप्नदोष रोग का प्राकृनतक धचककत्सा से उपचार:- तवप्नदोष रोग से पी डत रोगी को प्राकृनतक धचककत्सा से उपचार करने के मलए सबसे पहले रोगी व्यस्तत को इस रोग के होने के कारणों को दरू करना चादहए। इसके बाद इस रोग को इलाज प्राकृनतक धचककत्सा से करना चादहए। तवप्नदोष रोग को ठीक करने के मलए रोगी व्यस्तत को 24 घण्टे तक उपवास रखना चादहए तथा उपवास रखने के समय में कागजी नीांब ूके रस को पानी में ममलाकर पीना चादहए। इसके बाद दो से तीन ददनों तक फलों का रस पीना चादहए। उपवास रखने के समय में सुबह तथा शाम को रोगी व्यस्तत को एननमा किया करके अपने पेट को साफ करना चादहए। स्जसके फलतवरूप शरीर का दवूषत जल शरीर के बाहर हो जाता है और तवप्नदोष रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। तवप्नदोष रोग से पी डत रोगी को सुबह के समय में गाय का दधू पीना चादहए। फल का सेवन करना चादहए तथा शाम के समय में उबली हुई साग-सस्ब्जयाां और सलाद का सेवन करना चादहए। इससे रोगी व्यस्तत को बहुत अधधक लाभ ममलता है। तवप्नदोष रोग से पी डत रोगी को यदद पेट में कब्ज बन रहा हो तो कब्ज को ठीक करने के मलए व्यस्तत को एननमा किया करनी चादहए। स्जसके फलतवरूप तवप्नदोष रोग ठीक हो जाता है।

तवप्नदोष रोग से पी डत रोगी को चोकरयुतत आटे की रोटी का सेवन करना चादहए तथा एक दो प्रकार की उबली हुई साग-सस्ब्जयाां और सलाद का सेवन करना चादहए। तवप्नदोष रोग से पी डत रोगी को सुबह के समय में शौच करना चादहए तथा इसके बाद अपने पेडू तथा जननेस्न्द्रय पर ममट्टी की गीली पट्टी 45 ममनट तक लगानी चादहए, इसके बाद कम से कम 10 ममनट तक कदटतनान करना चादहए। इसके बाद दोपहर के समय में अपने रीढ पर कपडे की गीली पट्टी 30 ममनट के मलए रखना चादहए। कफर रोगी को दसूरे ददन 10 ममनट तक मेहनतनान करना चादहए। इस प्रकार कुछ ददनों तक उपचार करने से तवप्नदोष रोग ठीक हो जाता है। रोगी व्यस्तत को सैतस के प्रनत सारे अनुधचत किया छोड देनी चादहए और इसके बारे में अधधक नहीां सोचना चादहए। कफर इसके बाद अपना इलाज प्राकृनतक धचककत्सा से करना चादहए। रोगी व्यस्तत को रात के समय में अपने कमर पर गीली पट्टी करनी चादहए तथा पेडू पर ममट्टी की पट्टी करनी चादहए।

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यदद रोगी व्यस्तत को हततमैथनु करने की आदत पड गई हो तो उसे यह किया जल्दी ही छोड देनी चादहए और कफर अपना उपचार प्राकृनतक धचककत्सा से करना चादहए तभी यह रोग ठीक हो सकता है। तवप्नदोष रोग से पी डत रोगी को आसमानी या हल्के नीले रांग की काांच की बोतल के सूयमतप्त जल कम से कम 28 ममलीलीटर की मात्रा प्रनतददन सेवन करना चादहए तथा रात के समय में सोने से पहले हल्के नीले रांग की बोतल के सूयमतप्त तेल की मामलश अपने मेरुदांड भाग (मसर के पीछे गदमन तक का भाग) के ननचले दहतसे पर तथा हृदय पर कम से कम पाांच ममनट तक करना चादहए।

रोगी व्यस्तत को अांडकोष तथा जननेस्न्द्रयों को पाांच ममनट तक ककसी ठांड ेपानी से भरे हुए बतमन में रखना चादहए तथा कफर पानी से इसे ननकालकर पोंछ लें और पैरों को घुटनों तक, बाांहों को कोहननयों तक, गले के वपछले भाग को तथा नामभ को ठांड ेपानी से अच्छी तरह धोकर तौमलये स ेपोछना चादहए। इसके बाद एक धगलास गरम पानी में आधा कागजी नीांबू का रस ननचोडकर-पीकर दादहनी करवट लेट जाना चादहए। रात के समय में यदद नीांद खलु जाए तो ठांड ेपानी से भीगे तौमलये से पूरे शरीर को पोछना चादहए और इसके बाद दबुारा सो जाना चादहए। इस प्रकार से उपचार करन ेसे यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। रोगी व्यस्तत को प्रनतददन तनान करना चादहए तथा कम से कम पाांच ममनट तक गदमन के पीछे तथा रीढ पर ठांड ेपानी की धार धगरने देना चादहए।

तवप्नदोष रोग को ठीक करने के मलए रोगी व्यस्तत को सुबह तथा शाम को सवाांगासन,

शीषामसन, अांगूठापादासन, धनुरासन तथा सपामसन करना चादहए और ददन में दो से तीन बार गहरे साांस का व्यायाम करना चादहए। यह किया यदद रोगी व्यस्तत प्रनतददन करें तो उसका तवप्नदोष रोग कुछ ही ददनों में ठीक हो जाता है।

घरेलू दटप्स अपनाएाँ तवप्नदोष के मलए

आाँवले का मुरब्बा रोज खाएाँ ऊपर से गाजर का रस वपएाँ।

तुलसी की जड के टुकड ेको पीसकर पानी के साथ पीना लाभकारी होता है। अगर जड नहीां उपलब्ध हो तो तो बीज 2 चम्मच शाम के समय लें।

लहसुन की दो कली कुचल कर ननगल जाएाँ। थोडी देर बाद गाजर का रस वपएाँ।

मुलहठी का चणूम आधा चम्मच और आक की छाल का चणूम एक चम्मच दधू के साथ लें।

काली तुलसी के पत्ते 10-12 रात में जल के साथ लें।

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रात को एक लीटर पानी में बत्रफला चणूम मभगा दें सुबह मथकर महीन कपड ेसे छानकर पी जाएाँ।

अदरक रस 2 चम्मच, प्याज रस 3 चम्मच, शहद 2 चम्मच, गाय का घी 2 चम्मच, सबको ममलाकरसेवन करने से तवप्नदोष तो ठीक होगा ही साथ मदामना ताकत भी बढती है।

नीम की पस्त्तयााँ ननत्य चबाकर खाते रहने से तवप्नदोष जड से गायब हो जाएगा।

अश्वगन्धा (असगुंध) : अमतृत ल्य जड़ी

शीतकाल में सेवन करने योनय पौस्ष्टक, बलवीयमविमक तथा तनायववक सांतथान को बल देने के मलए सवामधधक उपयोगी एवां लाभप्रद मसि होने वाली जडी-बूदटयों में से एक जडी है अश्वगन्धा। यह तासीर में गरम और उष्णवीयम है, इसमलए शीतकाल में इसका सेवन करना ननववमघ्न और ननरापद रहता है।

ववमभन्न भाषाओां में नाम : सांतकृत- अश्वगन्धा। दहन्दी- असगन्ध। मराठी- आसगन्ध। गुजराती- आसांध। बांगाली- अश्वगन्ध। कन्नड- आसान्द,ु अश्वगन्धी। तेलुग-ू वपल्ली आांगा, पनेरु। तममल- आम कुलाांग। फारसी- मेहेमत वररी। इांस्नलश- ववण्टर चरेी। लैदटन- ववथेननया सोमनीफेरा।

रासायननक सांघटन : अश्वगांधा की जड से तयूमसओहायग्रीन, एनाहायग्रीन, ट्रॉपीन, एनाफेरीन आदद 13 क्षाराभ ननकाले गए हैं। कुल क्षाराभ 0.13-0.31 प्रनतशत होता है। इसके अनतररतत अश्वगांधा की जड में नलाइकोसाइड, ववटाननआल, अम्ल, तटाचम, शकम रा व एममनो एमसड आदद पाए जाते हैं।

गुण : असगन्ध बलविमक, रसायन, कडवी, गरम, वीयमविमक तथा वायु, कफ, श्वेतकुष्ठ, शोथ तथा क्षय, इन सबको हरने वाली है। यह हलकी, स्तननध, नततत, कटु व मधुर रसयुतत,

ववपाक में मधरु और उष्णवीयम है। अत्यन्त शुिल अथामत शुि उत्पन्न करने वाली है।

मात्रा : अश्वगांधा के चणूम को आधे से एक चम्मच (3 से 6 ग्राम) और इसके काढे की मात्रा 4-4 चम्मच सुबह-शाम लेना चादहए।

अश्वगन्धा (असगुंध) : अमतृत ल्य जड़ी

उपयोग : आयुवेद ने अश्वगन्धा का उपयोग वीयमविकम , माांसविमक, ततन्यविमक, गभमधारण में सहायक, वातरोग नाशक, शूल नाशक तथा यौनशस्तत विमक माना है।

मशशुओां के मलए : रोगमुतत होने के बाद मशशु के शरीर को सबल, पुष्ट और सुडौल बनाने के मलए असगन्ध का प्रयोग उत्तम है। असगन्ध का चणूम 1-2 ग्राम मात्रा में लेकर एक कप दधू में डालकर उबालें, कफर इसमें 8-10 बूांद घी डालकर उतार लें। ठण्डा करके मशशु को वपलाएां। 6-7 वषम से 10-12 वषम के बालकों के मलए मात्रा दोगुनी करके यह प्रयोग 3-4 माह

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तक कराएां। यह बना बनाया भी बाजार में ममलता है।

ततनों में दधू ववृि : असगन्ध, शतावर, ववदारीकन्द और मुलहठी, सबका महीन वपसा हुआ चणूम समान मात्रा में लेकर ममला लें। एक चम्मच चणूम सुबह-शाम दधू के साथ सेवन करत ेरहने से कुछ ददनों में, ततनों में दधू की मात्रा बढ जाती है।

ततम्भन शस्तत : स्जन नववववादहत युवकों अथवा प्रौढ वववादहत पुरुषों को शीघ्रपतन की मशकायत हो, उन्हें यह नुतखा 3-4 माह तक लगातार सेवन करते रहना चादहए। असगन्ध,

ववधारा, तालमखाना, मुलहठी और ममिी, सब 100-100 ग्राम खबू कूट-पीसकर कपडछान महीन चणूम करके ममला लें और तीन बार छानकर शीशी में भरकर एयरटाइट ढतकन लगाएां। यह चणूम एक चम्मच, जरा से घी या शहद में ममलाकर चाट लें। यदद घी लें तो कुनकुना गमम दधू पी लें और शहद के साथ लें तो दधू ठांडा करके ही वपएां। यह एक बहुत अच्छा और परीक्षक्षत नुतखा है।

शुिक्षीणता : असगन्ध चणूम 1 चम्मच, वपसी ममिी आधा चम्मच, वपप्पली चणूम पाव चम्मच,

आधा चम्मच घी और डेढ चम्मच शहद सबको ममलाकर चाट लें और ऊपर से, असगन्ध चणूम एक चम्मच व घी एक चम्मच डालकर औटाया हुआ एक धगलास मीठा दधू बबलकुल ठांडा करके ही वपएां। यह उपयोग मसफम सुबह खाली पेट 3-4 माह तक करें। शुिक्षीणता दरू हो जाएगी।

रसायन रूप में : असगन्ध का सेवन, रसायन के रूप में, तत्री-पुरुष और बच्च,े जवान-बूढे सभी कर सकते हैं। शीतकाल के ददनों में इस नुतखे का सेवन अवश्य करना चादहए। नुतखा इस प्रकार है- असगन्ध का चणूम 10 ग्राम, धगलोय चणूम 5 ग्राम और धगलोय सत्व 1

ग्राम, तीनों को थोड ेसे घी में ममलाकर चाट लें और ऊपर से मीठा कुनकुना गमम दधू पी लें। यह प्रयोग सुबह खाली पेट पूरे शीतकाल तक करें।

गभमवती की ननबमलता : गभमवती तत्री का शरीर कमजोर हो तो सुबह एक कप पानी में 10

ग्राम असगन्ध चणूम डालकर उबालें। जब पानी पाव कप (चौथाई भाग) बच ेतब छानकर एक चम्मच शकर या वपसी ममिी डालकर पी लें। यह प्रयोग 2-3 माह तक लगातार करन ेसे गभमवती और गभम दोनों को ही बल-पुस्ष्ट प्राप्त होती है।

श्वेत प्रदर : श्वेत प्रदर से ग्रतत मदहला को सुबह-शाम असगन्ध चणूम और वपसी ममिी एक-एक चम्मच ममलाकर कुनकुने गमम मीठे दधू के साथ 3-4 माह तक सेवन करना चादहए।

वात व्याधध : अपच और कब्ज होने पर वात कुवपत होता है। वात प्रकोप का शमन करन ेमें 'अश्वगन्धादद घतृ' का प्रयोग बहुत गुणकारी मसि होता है। एक-एक चम्मच घतृ सुबह-शाम दधू में डालकर पीना चादहए या असगन्ध, शतावर व ममिी-समान मात्रा में लेकर पीस लें और ममला लें।

अश्वगन्धा (असगुंध) : अमतृत ल्य जड़ी प्रजनन शस्तत : डम्ब की ननबमलता से कुछ स्तत्रयाां गभम धारण नहीां कर पातीां। ऐसी स्तत्रयों

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को मामसक ऋतुस्राव शुरू होने के 3 ददन बाद से यह नुतखा 7 ददन तक सेवन करना चादहए- दस ग्राम असगन्ध जरा से घी में, मन्दी आांच पर अच्छे से सेक लें, कफर एक धगलास उबलते दधू में डालकर 15-20 ममनट तक उबालें। इसके बाद उतार लें। इसमें ममिी ममलाकर सुबह के समय खाली पेट कुनकुना गमम पी लें। इस प्रयोग को लाभ होने तक प्रनत मास 7 ददन तक इसी ढांग से सेवन करत े रहना चादहए।

आधासीसी : असगन्ध की ताजी जड लें। ताजी जड न ममले तो सूखी जड को 1-2 घांटे पानी में डालकर रखें। चन्दन की तरह इस जड को पत्थर पर नघसकर माथे पर लेप करें। सुबह शाम असगन्ध का चणूम 1-1 चम्मच दधू के साथ लें। आधासीसी का ददम दरू हो जाएगा।

आयुवेददक योग

अश्वगन्धादद चणूम : असगन्ध और ववधारा के चूणम को समान मात्रा में ममलाकर यह योग बनाया जाता है। इस चणूम को 1-1 चम्मच सुबह-शाम कुनकुने गमम मीठे दधू के साथ 3-4

माह तक सेवन करना चादहए। शीतकाल के ददनों में तो इसका सेवन अवश्य करना चादहए। इसके सेवन स े तनायववक दौबमल्य, ददमागी कमजोरी, थकावट, शारीररक ननबमलता, दबुलापन, वात प्रकोप, यौन शस्तत की कमी आदद व्याधधयाां नष्ट होती हैं। इसे ककसी भी आयु के तत्री-पुरुष सेवन कर सकते हैं। यह इसी नाम से बाजार में ममलता है।

अश्वगन्धादद गुनगुल : यह योग आमवात की मशकायत दरू करता है। इसकी 2-2 गोली सुबह-शाम, पानी के साथ लेना चादहए। इसके सेवन से उदरवात, उदरशूल, उदरकृमम और मलावरोध आदद व्याधधयाां नष्ट होती हैं।

अश्वगन्धाररष्ट : यह सुबह-शाम भोजन के बाद, आधा कप पानी में 2-2 चम्मच अश्वगन्धाररष्ट डालकर पीना चादहए। यह तत्री-पुरुष, युवा-प्रौढ-विृ सबके मलए एक जनरल टॉननक का काम बखबूी करता है। शरीर को पुष्ट और सबल बनाने के मलए यह उत्तम योग है

अश्वगन्धादद योग : असगन्ध और ववधारा 80-80 ग्राम, बडी इलायची का चणूम और कुतकुटाण्डत्वक भतम 20-20 ग्राम, वांग भतम 10 ग्राम और वपसी ममिी 100 ग्राम- सबको महीन चणूम कर ममला लें और शीशी में भर लें। इसे आधा-आधा चम्मच (लगभग 3-4 ग्राम) दधू के साथ लें। यह चूणम स्तत्रयों का परम ममत्र योग है जो श्वेत प्रदर रोग दरू कर स्तत्रयों के शरीर को सबल, सुडौल और पुष्ट बनाता है। यह बना बनाया बाजार में नहीां ममलता इसमलए बनाएां और सेवन कर लाभ उठाएां।

अश्वगांधा )Withania )

अश्वगांधा )Withania

अश्वगांधा एक शस्ततवधमक रसायन है। अश्वगांधा एक िेष्ठ प्रचमलत औषधध है और यह आम लोगो का

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टॉननक है इसके गुणों को देखते हुए इस जडी को सांजीवनी बूटी कहा जाए तो भी गलत नहीां होगा। यह शरीर की बबगडी हूई अवतथा शरीर का बहुमुखी ववकास को सुधार कर सुसांगदठत कर (प्रकृनत)

प्रनतरोधक क्षमता को बढाती है और -करता है। इसका शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीां पडता। यह रोगबुवि का ववकास भी करती है। अश्वगांधा में एांटी एस्जड, एांटी ट्यूमर, एांटी तटे्रस तथा एांटीआतसीडेंट के गुण भी पाये जाते हैं। घोड ेजैसी महक वाला अश्वगांधा इसको खाने वाला घोड ेकी तरह ताकतवर हो जाता है। अश्वगांधा की जड ,पस्त्तयाां ,बीज, छाल और फल अलग अलग बीमाररयों के इलाज मे प्रयोग ककया जाता है। यह हर उम्र के बच्च ेजवान बूढे नर नारी का टोननक है स्जससे शस्तत, चतुती, सफूनतम तथा त्वचा पर कास्न्त

। अश्वगांधा का सेवन सूखे शरीर का दबुलापन खत्म करके शरीर के मााँस की पूनत म आ जाती है (चमक)करता है। यह चमम रोग, खाज खजुली गदठया, धातु, मूत्र, फेफडों की सूजन, पक्षाघात, अलसर, पेट के कीडों, तथा पेट के रोगों के मलए यह बहुत उपयोगी है, खाांसी, सााँस का फूलना अननद्रा, मूछाम, चतकर, मसरददम, हृदय रोग, शोध, शूल, रतत कोलेतट्रॉल कम करने में स्तत्रयों को गभमधारण में और दधू बढाने में मदद करता है, श्वेत प्रदर, कमर ददम एवां शारीररक कमजोरी दरू हो जाती हैं। अश्वगांधा की जड के चणूम का सेवन 1 से 3 महीने तक करने से शरीर मे ओज, तफूनतम, बल, शस्तत तथा चतेना आती है। वीयम रोगो को दरू कर के शुिाणुओां की ववृि करता है, कामोतेजना को बढाता है तथा पाचन शस्तत को सुधारता है। सूखखया और क्षय रोगों मे लाभकारी है। शस्तत दायक और हर तरह का बदन ददम को दरू करता है। रूकी पेशाब भी खलु कर आती है। इसके पत्तो को वपस कर त्वचा रोग, जोडो के सूजन, घावों को भरने तथा अस्तथ क्षय के मलए ककया जाता है। गैस की बीमारी, एमस डटी, जोडों का ददम, ल्यूकोररया तथा उच्च रततचाप में सहायक और कैं सर से लडने की क्षमता आ जाती है। अश्वगांधा एक आश्चयमजनक औषधध है, कैं सर की दवाओां के साथ अश्वगांधा का सेवन करने से केवल कैं सर ग्रतत कोमशकाएाँ ही नष्ट होती है जब कक तवतथ कोमशकाओां को कोई (जीवन रक्षक)

क्षनत नही पहुाँचती। अश्वगांधा मनुष्य को लांबी उम्र तक जवान रखता है और त्वचा पर लगाने से झुररमयाां ममटती है।

अश्वगांधा की जड का चूणम सेवन तीन माह तक लगातार सेवन करने से कमजोर बच्चा), बडा, बुजुगम, तत्री ,पुरुषसभी की कमजोरी दरू होती है (, चतुती तफूनतम आती है चहेरे ,त्वचा पर कास्न्त (चमक)आती है शरीर की कममयों को पूरा करते हुए धातुओां को पुष्ट करके माांशपेमशयों को सुसांदठत करके शरीर को गठीला बनाता है। लेककन इससे मोटापा नहीां आता। समय से पहले बुढापा नहीां आने देती और इसके तने की सब्जी बनाकर खखलने से बच्चो का सूखा रोग बबलकुल ठीक हो जाता है।

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अश्वगांधा एक शस्ततवधमक रसायन है। इसकी जड का चणूम दधू या घी के साथ लेने से ननद्रा लाता है तथा शुिाणुओां की ववृि करता है।यदद कोई विृ व्यस्तत शरद ऋतु में इसका एक माह तक सेवन करता है तो उसकी माांस मज्जा की ववृि और ववकास हो कर के वह युवा जैसा हल्का व ्चुतत महसूस करने लगता है। अश्वगांधा का चणूम 15 ददन तक दधू या पानी से लेने पर बच्चो का शरीर पुष्ट होता है

मोटापा दरू करने के मलए अश्वगांधा, मूसली , काली मूसली की समान मात्रा लेकर कूट छानकर रख लें, इसका सुबह 1 चम्मच की मात्रा दधू के साथ लेना चादहए। डायबबटीज के मलए अश्वगांध और मेथी का चणूम पानी के साथ लेना चादहए। इसके ननयममत सेवन से दहमोनलोबबन में ववृि होती है। कैं सर रोगाणुओां से लडने की क्षमता बढाती है। अश्वगांधा और बहेडा को पीसकर चणूम बना लें और थोडाटी )सा गुड ममलाकर इसका एक चम्मच-

गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। इससे ददल की धडकन ननयममत और मजबूत होती है। ददल (तपूनऔर ददमॅाग की कमजोरी को ठीक करने के मलए एक एक चम्मच अश्वगांधा चणूम सुबहशाम एक -कप गमम दधू से लें। अश्वगांधा का चणूम को शहद एवां घी के साथ लेने से श्वाांस रोगों में फायदा होता है और ददम ननवारक होने के कारण बदन ददम में लाभ ममलता है। समान मात्रा में अश्वगांधा, ववधारा, सौंठ और ममिी को लेकर बारीक चणूम बना लें। सुबह और शाम इस एक एक चम्मच चणूम को दधू के साथ सेवन करने से शरीर में शस्तत, ऊजाम वीयम बल बढता है। या सुबहएक चम्मच अश्वगांधा चणूम को घी और ममिी ममले हुए दधू के साथ लेने से शरीर में -शाम एक-चतुती तफूनतम आ जाती है। अश्वगांधा के चणूम को शहद के साथ चाटने से शरीर बलवान होता है।हाई ब्लड प्रेशर के मलए 10 ग्राम धगलोय चणूम, 20 ग्राम सूरजमुखी बीज का चणूम, 30 ग्राम अश्वगांधा जड का चणूम और 40 ग्राम ममिी लेकर इन सब को एक साथ ममळाले और शीश ेके जार में भर कर रख ले और एक एक टी तपून ददन में 2-3 बार पानी के साथ सेवन करें हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होगा। एक धगलास पानी में अश्वगांधा के ताजा पत्ते उबाल कर छानकर चाय की तरह तीनचार ददन तक -पीयें, इससे कफ और खाांसी ठीक होती है।अश्वगांधा की जड से तैयार तेल से जोडों पर मामलश करने से गदठया जकडन को कम करता है तथा अश्वगांधा के पत्तों को वपस कर लेप करने से थायराइड ग्रांधथयों के बढने की समतया दरू होती है। अश्वगांधा पांचाांग यानन जड, पत्ती, तना, फल और फूल को कूट छानकर एक (टेबल तपून) डढे चम्मच-सुबह शाम सेवन करने से जोडों का ददम ठीक होता है। आधा चम्मच अश्वगांधा के चणूम को सुबहशाम -

गमम दधू तथा पानी के साथ लेने से गदठया रोगों को मशकतत ममलती है तथा समान मात्रा में

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शाम खाने से सांधधवात दरू होता है।-अश्वगांधा चणूम और घी में थोडा शतकर ममलाकर सुबह

अश्वगांधा का चणूम में बराबर का घी ममलाकर या एक चम्मच अश्वगांधा चूणम में आधा चम्मच सोंठ चणूम और इच्छानुसार चीनी ममला कर सुबहशाम ननयममत सेवन से गदठया में आराम आता है।- अश्वगांधा और मेथी की समान मात्रा और इच्छानुसार गुड ममलाकर रसगुल्ले के समान गोमलयाां बना लें। और सुबहशाम एक एक गोली दधू के साथ खाने से व-ॅात रोग खत्म हो जाते हैं। अश्वगांधा और ववधारा चूणम को सामान मात्रा में ममलाकर सुबह शाम एकदधू के साथ (टी तपून) एक-लेने से वीयम में ववृि होती है और सांभोग क्षमता बढती है, तनायुतांत्र ठीक होकर िोध नष्ट हो जाता है,

बार बार आने वाले सदमे खत्म हो जाते हैं-और जोडो का ददम खत्म हो जाता है। एक चम्मच अश्वगांधा के चणूम के साथ एक चटुकी धगलोय का चणूम ममलाकर शहद के साथ चाटने से सभी रोगो में लाभ ममलता हैं। धगलोय की छाल और अश्वगांधा को ममलाकर शाम को गमम पानी से सेवन करने से जीणमवात ज्वर ठीक हो जाता है। जीवाणु नाशक औषधधयों के साथ अश्वगांधा चणूम को क्षय रोग के मलए देसी गाय के घी या (.बी .टी)ममिी के साथ देते हैं। एक चम्मच अश्वगांधा चूणम के तवाथ में चार चम्मच घी ममलाकर पाक बनाकर तीन माह तक (काढा)सेवन करने से गभमवती मदहलाओां की शारीररक दबुमलता दरू होती हैं। अश्वगांधा, शतावरी और नागौरी तीनो को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूणम बनायें, कफर देशी घी में ममलाकर इस चणूम को ममट्टी के बतमन में रखें, इसी एक चम्मच चणूम को ममिी ममले दधू के साथ सेवन करने से ततनों का आकार बढता है। मामसकधमम शुरू होने से लगभग एक सप्ताह पह-ले समान मात्रा में अश्वगांधा चणूम और चीनी ममला कर रख ले इस चणूम की दो चम्मच सुबह खाली पेट पानी से सेवन करे। मामसकधमम शुरू होते ही -इसका सेवन बांद कर दे।इससे मामसक धमम सम्बन्धी सभी रोग समाप्त होंगे। अश्वगांधा चणूम का लगातार एक वषम तक सेवन करने से शरीर के सारे दोष बाहर ननकल जाते हैं पुरे शरीर की सम्पूणम शुिी होकर कमजोरी दरू होती है। दधू में अश्वगांधा को अच्छी तरह पका कर छानकर उसमें देशी घी ममलकर माहवारी समाप्त होने के बाद मदहला को एक ददन के मलए सुबह और शाम वपलाने से गभामशय के रोग ठीक हो जाते हैं और बााँझपन दरू हो जाता है। अश्वगांधा का चणूम, गाय के घी में ममलाकर मामसकधमम तनान के पश्चात ्प्रनतददन गाय के दधू या - ताजे पानी के साथ1 चम्मच महीने भर तक ननयममत सेवन करने से तत्री ननस्श्चत तोर पर गभमधारण करती है।अथवा अश्वगांधा की जड के काढे और लुगदी में चौगुना घी ममलाकर पकाकर सेवन करने से

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भी तत्री गभमधारण करती है। गभमपात का बाररस गभमवती दो चम्मच-बार होने पर अश्वगांधा और सफेद कटेरी की जड का दो- मदहला5 - 6 माह तक सवेन करने से गभमपात नहीां होता। गभमधारण न कर पाने पर अश्वगांधा के काढे में दधू और घी ममलाकर तत्री को एक सप्ताह तक वपलाए या अश्वगांधा का एक चम्मच चणूम मामसकधमम के शुरू होने के लगभग सप्ताह पहले से सेवन -करना चादहए। समानां मात्रा में अश्वगांधा और नागौरी को लेकर चणूम बना ले। मामसकधमम समास्प्त के बाद तनान -शुिी होने के उपराांत दो चम्मच इस चणूम का सेवन करें तो इससे बाांझपन दरू होकर मदहला गभमवती हो जाएगी। यह औषधध काया कल्प योग की एक प्रमुख औषधध मानी जाती है एक वषम तक ननयममत सेवन काया कल्प हो जाता है। रततशोधन के मलए अश्वगांधा और चोपचीनी का बारीक चणूम समान मात्रा में ममला कर हर रोज सुबह- शाम शहद के साथचाटे। अश्वगांधा कमजोर, सूखा रोग पी डत बच्चों व रोगों के बाद की कमजोरी में, शारीररक और मानमसक थकान बुढापे की कमजोरी, माांसपेमशयों की कमजोरी व थकान आदद में अश्वगांधा की जड का चणूम देसी गाय का घी और पाक ननधामररत मात्रा में सेवन कराते हैं । मूल चणूम को दधू के अनुपात के साथ देते हैं।

सामान्य चतेावनी गमम प्रकृनत वालों के मलए अश्वगांधा का अधधक मात्रा में उपयोग हाननकारक होता -:है।

साधारणतसामान्य आदमी अश्वगांधा जड का आधा चम्मच चणूम सुबह खाली पेट पानी से ले ऊपर से : एक कप गमम दधू या चाय लें सकते है।नाश्ता15-20 ममनट बाद ही करें। ककसी भी जडी बूटी को -सवेरे खाली पेट सेवन करने से अधधक लाभ होता है। और कोई भी औवेददक औषधध तीन माह तक ननयममत सेवन के बाद 10-15 ददन का अांतराल देकर दोबारा कफर से शुरू कर सकते है

आपको कोई बीमारी न हो तो भी अश्वगांधा का तीन माह तक ननयममत सवेन ककया जा सकता है। इससे शारीररक क्षमता बढने के साथ साथ सभी उतत बबमाररयों से ननजात ममली

रोग ननवारक घरेलू धचककत्सा कुदरती पदाथों से इलाज साइड इफेतट रदहत होने के बावजूद प्रभावशाली भी है। इन नुतखों के घटक

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पदाथम हर कहीां सरलता से उप्लब्ध हो जाते हैं और सावधानी पूवमक इततेमाल करने पर अत्यांत दहतकारी साबबत होते हैं। इनके उपयोग से शरीर की रोग प्रनतरोधक शस्तत बढती है और धीरे धीर रोग समूल नष्ट हो जाता है।...dr.aalok dayaram,mob 09926524852

दन्तशूल(toothache) के घरेलू उपचार

दाांत,मसूढों और जबडों में होने वाली पीडा को दांतशूल से पररभावषत ककया जाता है। हममें से कई लोगों को ऐसी पीडा अकतमात हो जाया करती है। दाांत में कभी सामान्य तो कभी असहनीय ददम उठता है। रोगी को चने नहीां पडता। मसूडों में सजून आ जाती है। दाांतों में सूतछम जीवाणुओां का सांिमण हो जाने से स्तथनत और बबगड जाती है। मसूढों में घाव बन जाते हैं जो अत्यांत कष्टदायी होते हैं।दाांत में सडने की प्रकिया शुरु हो जाती है और उनमें केववटी बनने लगती है।जब सडन की वजह से दाांत की ना डयाां प्रभाववत हो जाती हैं तो पीडा अत्यधधक बढ जाती है।

प्राकृनतक उपचार दांत पीडा में लाभकारी होते हैं। सददयों से हमारे बड-ेबूढे दाांत के ददम में घरेलू पदाथों का उपयोग करते आये हैं। यहाां हम ऐसे ही प्राकृनतक उपचारों की चचाम कर रहे हैं।

१) बाय बबडांग १० ग्राम,सफेद कफटकरी १० ग्राम लेकर तीन मलटर जल में उबालकर जब ममिण एक मलटर रह जाए तो आांच से उतारकर ठांडा करके एक बोत्तल में भर लें। दवा तैयार है। इस तवाथ से सुबह -शाम कुल्ले करते रहने से दाांत की पीडा दरू होती है और दाांत भी मजबूत बनते हैं।

[photothumb]38300901[/photothumb]२) लहसुन में जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। लहसुन की एक कली थोड ेसे सैंधा नमक के साथ पीसें कफर इसे दखुने वाले दाांत पर रख कर दबाएां। तत्काल लाभ होता है। प्रनतददन एक लहसुन कली चबाकर खाने से दाांत की तकलीफ से छुटकारा ममलता है।

३) हीांग दांतशूल में गुणकारी है। दाांत की गुहा(केववटी) में थोडी सी हीांग भरदें। कष्ट में राहत ममलेगी।

४) तांबाख ूऔर नमक महीन पीसलें। इस टूथ पावडर से रोज दांतमांजन करने से दांतशूल से मुस्तत ममल जाती है।

५) बफम के प्रयोग से कई लोगों को दाांत के ददम में फायदा होता है। बफम का टुकडा दखुने वाले दाांत के ऊपर या पास में रखें। बफम उस जगह को सुन्न करके लाभ पहुांचाता है।

६) कुछ रोगी गरम सेक से लाभास्न्वत होते हैं। गरम पानी की ॅ्थलैी से सेक करना प्रयोजनीय है।

७) प्याज कीटाणुनाशक है। प्याज को कूटकर लुनदी दाांत पर रखना दहतकर उपचार है। एक छोटा प्याज ननत्य भली प्रकार चबाकर खाने की सलाह दी जाती है। इससे दाांत में ननवास करने वाले जीवाणु नष्ट होंगे।

८) लौंग के तैल का फाया दाांत की केववटी में रखने से तुरांत फायदा होगा। दाांत के ददम के रोगी को

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ददन में ३-४ बार एक लौंग मुांह में रखकर चसूने की सलाह दी जाती है।

९) नमक ममले गरम पानी के कुल्ले करने से दांतशूल ननयांबत्रत होता है। करीब ३०० मममल पानी मे एक बडा चम्मच नमक डालकर तैयार करें।ददन में तीन बार कुल्ले करना उधचत है।

१०) पुददने की सूखी पस्त्तयाां पीडा वाले दाांत के चारों ओर रखें। १०-१५ ममननट की अवधध तक रखें। ऐसा ददन में १० बार करने से लाभ ममलेगा।

११) दो ग्राम हीांग नीांबू के रस में पीसकर पेतट जैसा बनाले। इस पेतट से दांत मांजन करते रहने से दांतशूल का ननवारण होता है।

१२। मेरा अनुभव है कक ववटाममन सी ५०० एम.जी. ददन में दो बार और केस्ल्सयम ५००एम.जी ददन में एक बार लेते रहने से दाांत के कई रोग ननयांबत्रत होंगे और दाांत भी मजबूत बनेंगे।

१३) मुख्य बात ये है कक सुबह-शाम दाांतों की तवच्छता करते रहें। दाांतों के बीच की ॅ्जगह में अन्न कण फां से रह जाते हैं और उनमें जीवाणु पैदा होकर दांत ववकार उत्पन्न करते हैं।

१४) शकर का उपयोग हाननकारक है। इससे दाांतो में जीवाणु पैदा होते हैं। मीठी वसुएां हाननकारक हैं। लेककन कडवे,ख्टे्ट,कसेले तवाद के पदाथम दाांतों के मलये दहतकर होते है। नीांब,ूआांवला,टमाटर ,नारांगी का ननयममत उपयोग लाभकारी है। इन फलों मे जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। मसूढों से अत्यधधक मात्रा में खनू जाता हो तो नीांबू का ताजा रस पीना लाभकारी है।

१५) हरी सस्ब्जयाां,रसदार फल भोजन में प्रचरुता से शाममल करें।

१६) दाांतों की केववटी में दांत धचककत्सक केममकल मसाला भरकर इलाज करते हैं। सभी प्रकार के जतन करने पर भी दाांत की पीडा शाांत न हो तो दाांत उखडवाना ही आखखरी उपाय है।

nuskhe दांतशूल, दाांत का ददम, दाांत की पीडा प्रनतकियाएाँ:

हृदय के रोगों का क दरती,घरेलू पदाथों से ईलाज

हृदय हमारे शरीर का अनत महत्वपूणम अांग है। हृदय का कायम शरीर के सभी अवयवों को आतसीजनयुतत रुधधर पहुांचाना है और आतसीजनरदहत दवूषत रतत को वापस फेफडों को पहुांचाना है। फेफड ेदवूषत रतत को आतसीजन ममलाकर शुि करते हैं। हृदय के कायम में ककसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होने पर हृदय के कई प्रकार के रोग जन्म लेते हैं।हृदय सांबांधी अधधकाांश रोग कोरोनरी धमनी से जुड ेहोते हैं। कोरोनरी धमनी में ववकार आ जाने पर हृदय की माांसपेमशयो और हृदय को आवेस्ष्टत करने वाले ऊतकों को आवश्यक मात्रा में रतत नहीां पहुांच पाता है।यह स्तथनत भयावह है और तत्काल

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सही उपचार नहीां ममलने पर रोगी की शीघ्र ही मतृ्यु हो जाती है। इसे हृदयाघात याने हाटम अटैक कहते हैं। दर असल हृदय को खनू ले जाने वाली नमलयों में खनू के थतके जम जाने की वजह से रतत का प्रवाह बाधधत हो जाने से यह रोग पैदा होता है। धमनी कादठन्य हृदय रोग में धमननयों का लचीलापन कम हो जाता है और धमननयाां की भीतरी दीवारे सांकुधचत होने से रतत पररसांचरण में व्यवधान आता है। इस स्तथनत में शरीर के अांगों को पयामप्त मात्रा में खनू नहीां पहुांच पाता है। हृदय की मासपेमशया धीरे-धीरे कमजोर हो जाने की स्तथनत को का ड मयोमायोपेथी कहा जाता है।हृदय शूल को एन्जाईना पेतटोररस कहा जाता है। धमनी कठोरता से पैदा होने वाले इस रोग में वतछ में हृदय के आस-पास जोर का ददम उठता है।रोगी तडप उठता है। मदहलाओां की तुलना में पुरुषों में हृदय सांबांधी रोग ज्यादा देखने में आते है। अब हम हृदय रोग के प्रमुख कारणों पर ववचार प्रततुत करते हैं--

मोटापा

धमनी की कठोरता

उच्च रतत चाप

हृदय को रतत ले जाने वाली खनू की नमलयों में ब्लड तलाट याने खनू का थतका जमना

ववटाममन सी और बी काम्प्लेतस की कमी होना

खनू की नमलयों में कोलेतटरोल जमने से रतत प्रवाह में बाधा पडने लगती है। कोलेतटरोल मोम जैसा पदाथम होता है जो हमारे शरीर के प्रत्येक दहतसे में पाया जाता है। वाांनछत मात्रा में कोलेतटरोल का होना अच्छे तवात्य के मलये बेहद जरुरी है। लेककन अधधक वसायुतत्र भोजन पदाथों का उपयोग करने से खराब कोलेतटरोल स्जसे लो डसॆ्न्सटी लाईपोप्रोटीन कहते हैं ,खनू में बढने लगता है और अच्छी तवामलटी का कोलेतटरोल स्जसे हाई डसे्न्सटी लाईपोप्रोटीन कहते हैं ,की मात्रा कम होने लगती है। कोलेतटरोल की बढी हुई मात्रा हृदय के रोगों का अहम कारण माना गया है। वतममान समय में गलत खान-पान और टेन्शन भरी स्जन्दगी की वजह से हृदय रोग से मरने वाले लोगों का आांकडा बढता ही जा रहा है। माडनम मेडीमसन में हृदय रोगों के मलये अनेकों दवाएां आववष्कृत हो चकुी हैं। लेककन कुदरती घरेलू पदाथों का उपयोग कर हम ददल सांबधी रोगों का सरलता से समाधान कर सकते हैं। ये उपचार आधनुनक धचककत्सा के साथ लेने में भी कोई हानन नहीां है।

१) लहसुन में एस्न्टआतसीडने्ट तत्व होते है और हृदय रोगों में आशातीत लाभकारी घरेलू पदाथम है।लहसुन में खनू को पतला रखने का गुण होता है । इसके ननयममत उपयोग से खनू की नमलयों में कोलेतटरोल नहीां जमता है। हृदय रोगों से ननजात पाने में लहसुन की उपयोधगता कई वैनयाननक शोधों

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में प्रमाखणत हो चकुी है। लहसुन की ४ कली चाकू से बारीक काटें ,इसे ७५ ग्राम दधू में उबालें। मामूली गरम हालत में पी जाएां। भोजन पदाथों में भी लहसून प्रचरुता से इततेमाल करें।

२) अांगूर हृदय रोगों में उपकारी है। स्जस व्यस्तत को हाटम अटैक का दौरा पड चकुा हो उसे कुछ ददनों तक केवल अांगूर के रस के आहार पर रखने के अच्छे पररणाम आते हैं।इसका उपयोग हृदय की बढी हुई धडकन को ननयांबत्रत करने में सफलतापूवमक ककया जा सकता है। हृद्शूल में भी लाभकारी है।

३) शकर कां द भूनकर खाना हृदय को सुरस्तछत रखने में उपयोगी है। इसमें हृदय को पोषण देने वाले तत्व पाये जाते हैं। जब तक बाजार में शकरकां द उपलब्ध रहें उधचत मात्रा में उपयोग करते रहना चादहये।

५) आांवला ववटाममन सी का कुदरती स्रोत है। अत: यह सभी प्रकार के ददल के रोगों में प्रयोजनीय है।

’६) सेवफल कमजोर हृदय वालों के मलये बेहद लाभकारी फल है। सीजन में सेवफल प्रचरुता से उपयोग करें।

७) प्याज हृदय रोगों में दहतकारी है। रोज सुबह ५ मम मल प्याज का रस खाली पेट सेवन करना चादहये। इससे खनू में बढे हुए कोलेतटरोल को ननयांबत्रत करने भी मदद ममलती है।

८) हृदय रोधगयों के मलये धमू्रपान बेहद नुकसानदेह साबबत हुआ है। धमू्र पान करने वालों को हृदय रोग होने की दगूनी सांभावना रहती है।

९) जेतून का तैल हृदय रोधगयों में परम दहतकारी मसि हुआ है। भोजन बनाने में अन्य तैलों की बजाय ओमलव आईल का ही इततेमाल करना चादहये। ओमलव आईल के प्रयोग से खनू में अच्छी तवामलटी का कोलेतटरोल(हाई डसे्न्सटी मलपोप्रोटीन) बढता है।

१०) ननांबू हृदय रोगों में उपकारी फल है। यह रततवहा नमलकाओां में कोलेतटरोल नहीां जमने देता है। एक धगलास मामूली गरम जल में एक ननांबू ननचोडें,इसमें दो चम्मच शहद भी ममलाएां और पी जाएां। यह प्रयोग सुबह के वतत करना चादहये।

११) प्राकृनतक धचककत्सा में रात को सोने से पदहले मामूली गरम जल के टब में गले तक डूबना हृदय रोधगयों के मलये दहतकारी बताया गया है। १०-१५ ममननट टब में बैठना चादहये। यह प्रयोग हफ़्ते म ॆदो बार करना कतमव्य है।

१२) कई अनुसांधानों में यह सामने आया है कक ववटाममन ई हृदय रोगों में उपकारी है। यह हाटम अटैक से बचाने वाला ववटाममन है। इससे हमारे शरीर की रतत कोवषकाओां में पयामप्त आतसीजन का सांचार होता है।

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१३) हृदय रोग से मुस्तत के मलये ज्यादा शराब और नमक का व्यवहार ननवषि माना गया है।

१४) आयुवेददक वैध्य अजुमन पेड की छाल से बने अजुमनाररष्ट का प्रयोग करने की सलाह देते हैं।

nuskhe धमनी कादठन्य, हाटम अटैक, हृदय

प्रनतकियाएाँ:

मूत्राषय प्रदाह(cystitis)का कुदरती घरेलू पदाथों से उपचार. मूत्राषय में रोग-जीवाणुओां का सांिमण होने से मूत्राषय प्रदाह रोग उत्पन्न होता है। ननम्न मूत्र पथ के अन्य अांगों ककडनी, यूरेटर और प्रोतटेट ग्रांधथ और योनन में भी सांिमण का असर देखने में आता है। इस रोग के कई कष्टदायी लतछण होते हैं जैसे-तीव्र गांध वाला पेशाब होना,पेशाब का रांग बदल जाना, मूत्र त्यागने में जलन और ददम अनुभव होना, कमजोरी मेहसूस होना,पेट में पीडा और शरीर में बुखार की हरारत रहना। हर समय मूत्र त्यागने की ईच्छा बनी रहती है। मूत्र पथ में जलन बनी रहती है। मूत्राषय में सूजन आ जाती है। यह रोग पुरुषों की तुलना में स्तत्रयों में ज्यादा देखने में आता है। इसका कारण यह है कक स्तत्रयों की पेशाब नली (दो इांच) के बजाय पुरुषों की मूत्र नमलका ७ इांच लांबाई की होती है। छोटी नमलका से होकर सांिमण सरलता से मूत्राषय को आिाांत कर लेता है। गभमवती स्तत्रयाां और सेतस-सकिय औरतों में मूत्राषय प्रदाह रोग अधधक पाया जाता है। ररतु ननवतृ्त मदहलाओां में भी यह रोग अधधक होता है। इस रोग में मूत्र खलुकर नहीां होता है और जलन की वजह से रोगी पूरा पेशाब नहीां कर पाता है और मूत्राषय में पेशाब बाकी रह जाता है। इस शषे रहे मूत्र में जीवाणुओां का सांचार होकर रोगी की स्तथनत ज्यादा खराब हो सकती है। आधनुनक धचककत्सक एन्टीबायोदटक दवाओां से इस रोग को काबू में करते हैं लेककन कुदरती और घरेलू पदाथॊं के उपचार भी इस रोग में फलदायी होते है।

१) खीरा ककडी का रस इस रोग में अनत लाभदायक है। २०० मममल ककडी के रस में एक बडा चम्मच नीांबू का रस और एक चम्मच शहद ममलाकर हर तीन घांटे के फासले से पीते रहें।

२) पानी और अन्य तरल पदाथम प्रचरु मात्रा में प्रयोग करें। प्रत्येक १० -१५ ममननट के अांतर पर एक धगलास पानी या फलों का रस पीयें। मसतटाइदटज ननयांत्रण का यह रामबाण उपचार है।

३) मूली के पत्तों का रस लाभदायक है। १०० मममल रस ददन में ३ बार प्रयोग करें।

४) नीांबू का रस इस रोग में उपयोगी है। वैसे तो नीांबू तवाद में खट्टा होता है लेककन गुण तछारीय हैं। नीांबू का रस मतू्राषय में उपस्तथत जीवाणुओां को नष्ट करने में सहायक होता है। मूत्र में रतत आन ेकी

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स्तथनत में भी लाभ होता है।

५) पालक रस १२५ मममल में नाररयल का पानी ममलाकर पीयें। तुरांत फायदा होगा। पेशाब में जलन ममटेगी।

६) पानी में मीठा सोडा यानी सोडा बाईकाबम ममलाकर पीने से तुरांत लाभ प्रतीत होता है लेककन इससे रोग नष्ट नहीां होता। लगातार लेने से स्तथनत ज्यादा बबगड सकती है।

७) गरम पानी से तनान करना चादहये। पेट और नीच ेके दहतसे में गरम पानी की बोतल से सेक करना चादहये। गरम पानी के टब में बैठना लाभदायक है।

८) मूत्राषय प्रदाह रोग की शुरुआत में तमाम गाढे भोजन बांद कर देना चादहये।दो ददवस का उपवास करें। उपवास के दौरान पयामप्त मात्रा में तरल,पानी,दधू लेते रहें।

९) ववटाममन सी (एतकाबबमक एमसड) ५०० एम जी ददन में ३ बार लेते रहें। मूत्राषय प्रदाह ननवारण में उपयोगी है।

१०) ताजा मभांडी लें। बारीक काटॆां। दो गुने जल में उबालें। छानकर यह काढा ददन में दो बार पीने से मूत्राषय प्रदाह की वजह से होने वाले पेट ददम में राहत ममल जाती है।

११) आधा धगलास मट्ठा में आधा धगलास जौ का माांड ममलाएां इसमें नीांबू का रस ५ मममल ममलाएां और पी जाएां। इससे मूत्र-पथ के रोग नष्ट होते है।

१२) आधा धगलास गाजर का रस में इतना ही पानी ममलाकर पीने से मूत्र की जलन दरू होती है। ददन में दो बार प्रयोग कर सकते हैं।

nuskhe cystitis, मूत्राषय प्रदाह

प्रनतकियाएाँ:

18.12.10स्मरण शष्क्त िढाने के सरल उपचार. how to enhance memory power?

तमरण शस्तत की कमजोरी या ववकृनत से ववद्याथी और ददमागी काम करने वालों को असुववधाजनक स्तथनत से रुबरु होना पडता है। यह कोई रोग नहीां है और न ककसी रोग का लतछण है। इसकी मुख्य वजह एकाग्रता(कन्सांट्र�- ��शन) की कमी होना है। तमरण शस्तत बढाने के मलये ददमाग को सकिय रखना आवश्यक है। शरीर और मस्ततष्क की कसरतें अत्यांत लाभदायक होती हैं। ककसी बात को बार-बार रटने से भी तमरण शस्तत में इजाफा होता है और वह मस्ततष्क में द्रडता से अांककत हो जाती है। आजकल कई तरह के वव डयो गेम्स प्रचलन में हैं । ये खेल भी मस्ततष्क को ताकतवर बनाने में सहायक हो सकते हैं|पत्र-पबत्रकाओां- में प्रकामशत पहेमलयाां हल करने से भी मस्ततष्क की शस्तत बढती

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है। मैं नीच ेकुछ ऐसे सरल उपचार प्रततुत कर रहा हूां जो मेमोरी पावर बढाने मे अत्यांत उपकारी मसि होते हैं--

१) बादाम ९ नग रात को पानी में गलाएां।सुबह नछलके उतारकर बारीक पीस कर पेतट बनालें। अब एक धगलास दधू गरम करें और उसमें बादाम का पेतट घोलें। इसमें ३ चम्मच शहद भी डालें।भली प्रकार उबल जाने पर उतारकर मामूली गरम हालत में पीयें। यह ममिण पीने के बाद दो घांटे तक कुछ न लें। यह तमरण शस्तत वदृि करने का जबदमतत उपचार है। दो महीने तक करें।

२) ब्रह्मी ददमागी शस्तत बढाने की मशहूर जडी-बूटी है। इसका एक चम्मच रस ननत्य पीना दहतकर है। इसके ७ पत्ते चबाकर खाने से भी वही लाभ ममलता है। ब्राह्मी मे एन्टी ओतसीडेंट तत्व होते हैं स्जससे ददमाग की शस्तत घटने पर रोक लगती है।

३) अखरोट स्जसे अांगे्रजी में वालनट कहते हैं तमरण शस्तत बढाने में सहायक है। ननयममत उपयोग दहतकर है। २० ग्राम वालनट और साथ में १० ग्राम ककशममस लेना चादहये।

४) एक सेवफल ननत्य खाने से कमजोर मेमोरी में लाभ होता है। भोजन स े१० ममननट पदहले खाएां।

५) स्जन फलों में फातफोरस तत्व पयामत मात्रा में पाया जाता है वे तमरण शस्तत बढाने में ववशषेतौर पर उपयोगी होते है। अांगरू ,खारक ,अांजीर एवां सांतरा ददमागी ताकत बढाने के मलये ननयममत उपयोग करना चादहये।

६) भोजन में कम शकम रा वाले पदाथम उपयोगी होते हैं। पेय पदाथों में भी कम ॅ्चीनी का प्रयोग करना चादहये।इन्सुलीन हमारे ददमाग को तेज और धारदार बनाये रखने में महती भूममका रखता है। इसके मलये मछली बहुत अच्छा भोजन है। मछली में उपलब्ध ओमेगा ३ फेट्टी एसीड तमरण शस्तत को मजबूती प्रदान करता है।

७) दालचीनी का पावेडर बनालें। १० ग्राम पावडर शहद में ममलाकर चाटलें। कमजोर ददमाग की अच्छी दवा है।

८) धननये का पावडर दो चम्मच शहद में ममलाकर लेने से तमरण शस्तत बढतीहै।

९) आांवला का रस एक चम्मच २ चम्मच शहद मे ममलाकर उपयोग करें। भुलतकड पन में आशातीत लाभ होता है।

१०) अदरक ,जीरा और ममिी तीनों को पीसकर लेने से कम याददाश्त की स्तथनत में लाभ होता है।

११) दधू और शहद ममलाकर पीने से भी याद दाश्त में बढोतरी होती है। ववद्ध्याधथमयों के मलये

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फायदेमांद उपचार है।२५० मममल गाय के दधू में २ चम्मच शहद ममलाकर उपयोग करना चादहये।

१२) नतल में तमरण शस्तत वदृि करने के तत्व हैं। २० ग्राम नतल और थोडा सा गुड का नतलकुट्टा बनाकर ननत्य सेवन करना परम दहतकार उपचार है।

१३) काली ममचम का पावडर एक चम्मच असली घी में ममलाकर उपयोग करने से याद दाश्त में इजाफा होता है।

१४) गाजर में एन्टी ओतसीडेंट तत्व होते हैं। इससे रोग प्रनतरतछा प्राणाली ताकतवर बनती है। ददमाग की ताकत बढाने के उपाय के तौर पर इसकी अनदेखी नहीां करना चादहये।

१५) आम रस (मेंगो जूस) मेमोरी बढाने में ववशषे सहायक माना गया है। आम रस में २ चम्मच शहद ममलाकर लेना उधचत है।

१६) पौस्ष्टकता और कम वसा वाले भोजन से अल्जाईमसम नामक बीमारी होने का खतरा कम रहता है और ददमाग की शस्तत में इजाफा होता है इसके मलये अपने भोजन में ताजा फल-सस्ब्जयाां.मछमलय- ॅाॅां ,ओमलव आईल आदद प्रचरुता से शाममल करें।

१७) तुलसी के ९ पत्ते ,गुलाब की पांखरुी और काली ममचम नग एक खबू चबा -चबाकर खाने से ददमाग के सेल्स को ताकत ममलती है।

nuskhe मेमोरी, तमरण शस्तत

प्रनतकियाएाँ:

27.11.10ककडनी अकमयण्यता (kidney failure) :रतत में किएटनीन का ततर बढना: उपचार कैसे करें?

हमारे गुदे रतत में उपस्तथत अपमशष्ट पदाथों और जल को कफल्टर कर मूत्र के रूप में बाहर ननकालने की किया सांपन्न करते हैं। हमारी माांसपेमशयों में उपस्तथत किएदटन फातफेटस के ववखांडन से उजाम उत्पन होती है और इसी प्रकिया में अपमशष्ट पदाथम किएटनीन बनता है । तवतथ गुदे अधधकाांश किएटनीन को कफल्टर कर मूत्र में ननष्कामसत करते रहते हैं। अगर खनू में किएटनीन का ततर १.५ से ज्यादा हो जाता है तो समझा जाता है कक गुदे ठीक से काम नहीां कर रहे हैं। इसमलये खनू में किएटनीन की मात्रा का परीतछण करना जरूरी होता है। अब मैं कुछ ऐसे उपाय बताना चाहूांगा स्जनको व्यवहार में लाकर रोगी अपने खनू मे किटनीन की मात्रा घटा सकते हैं। ये ऊपाय गुदे का कायम-भार कम करते हैं स्जससे खनू में उपस्तथत किएटनीन का लेववल कम होने में मदद ममलती है। किएटनीनीन कम करने वाले भोजन में प्रोटीन, फातफोरस,पोटेमश�- ��म,नमक की मात्रा बबल्कुल कम होने पर ध्यान ददया जाता है। स्जन भोजन पदाथों में इन तत्वों की अधधकता हो उनका परहेज करना आवश्यक है।

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जब उच्च प्रोटीन वाले खाद्य पदाथम उपयोग नहीां ककये जाएांगे तो माांसपेमशयों में कम किएटीन मौजूद रहेगा अत: किएटनीन भी कम बनेगा। ककडनी को भी अपमशष्ट पदाथम को कफल्टर करने में कम ताकत लगानी पडगेी स्जससे ककडनी की तांदरुतती में इजाफा होगा। याद रखने योनय है कक किएदटन के टूटने से ही किएटनीन बनता है।

एक और जहाां उच्च किएटनीन लेववल गुदे की गांभीर ववकृनत की ओर सांकेत करता है वही शरीर में जल की कमी से समतया और गांभीर हो जाती है। जल की कमी से रततगत किएटनीन में ववृि होती है। अत: मदहलाओां को २४ घांटे में २.५ मलटर तथा पुरुषों को ३.५ मलटर पानी पीने की सलाह दी जाती है। चाय ,काफी में केफीन तत्व ज्यादा होता है जो गुदे के तवात्य के मलये हाननकारक है।अत: इनका सवमथा पररत्याग आवश्यक है।

मूत्र प्रणाली में कोई सांिामक रोग हो जाने से भी रततगत किएटनीन बढ सकता है। अत: इस ववषय में सावधानीपूवमक इलाज करवाना चादहये। उच्च रतत चाप से गुदे को रतत पहुांचाने वाली नमलकाओां को नुकसान होता है। इससे भी रतत गत किएटनीन बढ जाता है। अत: ब्लड प्रेशर ननयांबत्रत करने के उपाय करना जरूरी है।मेरा ब्लड प्रेशर सांबांधी लेख ध्यान से पढें। नमक ३ ग्राम से ज्यादा हाननकारक है।

ननयममत २० ममननट व्यायाम करने और ३ ककलोममटर घूमने से खनू में किएटनीन की मात्रा काबू करने में मदद ममलती है।व्यायाम और घूमने के मामले में बबल्कुल आलतय न करें ।

मधमुेह रोग धीरे -धीरे गुदे को नुकसान पहुांचाता रहता है। इसमलये यह रोग भी रततगत किएटनीन को बढाने में अपनी भूममका ननवामह करता है। खनू में शकम रा सांतुमलत बनाये रखने के उपाय आवश्यक हैं। डायबीटीज पर मेरा लेख पढें और तदनुसार उपाय करें।

प्रोटीन हमारे शरीर के ऊतकों और माांसपेमशयों के ननमामण में उपयोग होता है। इससे रोगों के ववरुि लडने में भी मदद ममलती है। जब प्रोटीन शारीररक कियाओां के मलये टूटता है तो इससे यूररया अपमशष्ट पदाथम बनता है। अकममण्य अथवा तछनतग्रतत ककडनी इस यूररया को शरीर से बाहर नहीां ननकाल पाती है। खनू में यूररया का ततर बढने पर किएटनीन भी बढेगा । माांस में और अांडों में ककडनी के मलये सबसे ज्यादा हाननकारक प्रोटीन पाया जाता है।अत: ककडनी रोगी को ये भोजन पदाथम नहीां लेना चादहये। प्रोटीन की पूनत म थोडी मात्रा में दालो के माध्यम से कर सकते हैं।

ककडनी के सुचारु कायम नहीां करने से खनू में पोटेमशयम का लेववल बहुत ज्यादा बढ जाता है। पोटेमशयम की अधधकता से अचानक हाटम अटेक होने की सम्भावना बढ जाती है। अगर लेबोरेटरी जाांच में रतत में पोटेमशयम बढा हुआ पाया जाए तो कम पोटेमशयम वाला खाना लेना चादहये। खीरा ककडी,गाजर,सेव,अांगू��- � और चावल कम पोटेमशयम वाले भोजन पदाथम हैं । केला,सांतरा,आलू का उपयोग वस्जमत है।इनमे अधधक पोटेमशयम पाया जाता है।लेककन अगर पोतेमशयम वाांनछत ततर का हो

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तो इन फलों का इततेमाल ककया जा सकता है।

ककडनी अकममण्यता एक मुस्श्कल से काबू में आने वाला रोग है। आधनुनक धचककत्सक उपयुतत एस्न्टबायोदटतस का प्रयोग कर बढे हुए मसरम किएटनीन को ननयांबत्रत करने का प्रयास करते हैं। योनय और अनुभवी धचककत्सक के मागमदशमन में मेरे बताये उपायों पर पूरी सावधानी के साथ अमल करने से किएटनीन लेववल में वाांनछत सुधार होगा और ककडनी फैमलयर की स्तथनत से ननपटने में मदद ममलेगी।

nuskhe kidne failure, ककडनी फैमलयर, किएटनीन, यूररया प्रनतकियाएाँ:

18.11.10मोटापा, पेट (तोंद) की चबी ननवारण के कुदरती पदाथों के उपचार

मोटापा के कारण--

१) शरीर की आवश्यतता से ज्याद केलोरी वाला भोजन खाना।

२) मेटाबोमलतम(चयापच�- ��)की दर कम होना।

३)थायराईड अथवा पीयूष ग्रांधथ( वपचटु्री) के ववकार।

४) अधधक समय बैठक का जीवन।

५) हामोन का असांतुलन होना।

शरीर की अनतररतत चबी कम करने के कुदरती उपचार-

१) चबी घटाने के मलये व्यायाम बेहद आवश्यक उपाय है।एरोबबक कसरतें लाभप्रद होती हैं। आलसी जीवन शैली से मोटापा बढता है। अत: सकियता बहुत जरूरी है।

२) शहद मोटापा ननवारण के मलये अनत महत्वपूणम पदाथम है। एक चम्मच शहद आधा चम्मच नीांबू का रस गरम जल में ममलाकर लेते रहने से शरीर की अनतररतत चबी नष्ट होती है। यह ददन में ३ बार लेना कतमव्य है।

३) पत्ता गोभी(बांद गोभी) में चबी घटाने के गुण होते हैं। इससे शरीर का मेटाबोमलतम ताकतवर बनता है। फलत: ज्यादा केलोरी का दहन होता है। इस प्रकिया में चबी समाप्त होकर मोटापा ननवारण में मदद ममलती है।

४) पुदीना में मोटापा ववरोधी तत्व पाये जाते हैं। पुदीना रस एक चम्मच २ चम्मच शहद में ममलाकर

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लेते रहने से उपकार होता है।

५) सुबह उठते ही २५० ग्राम टमाटर का रस २-३ महीने तक पीने से शरीर की वसा में कमी होती है।

६) गाजर का रस मोटापा कम करने में उपयोगी है। करीब ३०० ग्राम गाजर का रस ददन में ककसी भी समय लेवें।

७) एक अध्ययन का ननष्कषम आया है कक वाटर धथरेपी मोटापा की समतया हल करने में कारगर मसि हुई है। सुबह उठने के बाद प्रत्येक घांटे के फासले पर २ धगलास पानी पीते रहें। इस प्रकार ददन भर में कम से कम २० धगलास पानी पीयें। इससे ववजातीय पदाथम शरीर से बाहर ननकलेंगे और चयापचय प्रकिया(मेटाबोल�- ��तम) तेज होकर ज्यादा केलोरी का दहन होगा ,और शरीर की चबी कम होगी। अगर २ धगलास के बजाये ३ धगलास पानी प्रनत घांटे पीयें तो और भी तेजी से मोटापा ननवारण होगा।

८) कम केलोरी वाले खाद्य पदाथों का उपयोग करें। जहाां तक आप कम केलोरी वाले भोजन की आदत नहीां डालेंगे ,मोटापा ननवारण दषु्कर कायम रहेगा। अब मैं ऐसे भोजन पदाथम ननदेमशत करता हूां स्जनमें नगण्य केलोरी होती है। अपने भोजन में ये पदाथम ज्यादा शाममल करें--

नीांब ू

जामफल (अमरुद)

अांगूर

सेवफल

खरबूजा

जामुन

पपीता

आम

सांतरा

पाइनेपल

टमाटर

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तरबूज

बैर

तट्राबेरी

सब्जीयाां स्जनमें नहीां के बराबर केलोरी होती है--

पत्ता गोभी

फूल गोभी

ब्रोकोली

प्याज

मूली

पालक

शलजम

सौंफ

लहसुन

९) कम नमक,कम शकर उपयोग करें।

१०) अधधक वसा युतत भोजन पदाथम से परहेज करें। तली गली चीजें इततेमाल करने से चबी बढती है। वनतपनत घी हाननकारक है।

११) सूखे मेवे (बादम,खारक,वपतता) ,अलसी के बीज,ओमलव आईल में उच्चकोदट की वसा होती है। इनका सांतुमलत उपयोग उपकारी है।

१२) शराब और दधू ननमममत पदाथम का उपयोग वस्जमत है।

१३) अदरक चाकू से बरीक काट लें ,एक नीांबू की चीरें काटकर दोनो पानी में ऊबालें। सुहाता गरम पीयें। बदढया उपाय है।

१४) रोज पोन ककलो फल और सब्जी का उपयोग करें।

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१५) ज्यादा कबोहायड्रटे वाली वततुओां का परहेज करें।शकर,आलू,और चावल में अधधक काबोहाईड्रटे होता है। ये चबी बढाते हैं। सावधानी बरतें।

१६) केवल गेहूां के आटे की रोटी की बजाय गेहूां सोयाबीन,चने के ममधित आटे की रोटी ज्यादा फयदेमांद है।

१७) शरीर के वजने को ननयांबत्रत करने में योगासन का ववशषे महत्व है। कपालभानत,भस्तत्रक�- ��

का ननयममत अभ्यास करें।।

१८) सुबह आधा घांटे तेज चाल से घूमने जाएां। वजन घटाने का सवोत्तम तरीका है।

१९) भोजन मे ज्यादा रेशे वाले पदाथम शाममल करें। हरी सस्ब्जयों ,फलों में अधधक रेशा होता है। फलों को नछलके सदहत खाएां। आलू का नछलका न ननकालें। नछलके में कई पोषक तत्व होते हैं।

प्रनतकियाएाँ:

13.11.10कान ददय,कान पकना: कुदरती पदाथों से सरल उपचार

कणम शरीर का महत्वपूणम अांग है। इसकी रचना जदटल और अत्यांत नाजुक है। कान ददम (earache) का मुख्य कारण युतटेमशयन नली में अवरोध पैदा होना है। यह नली गले से शरुु होकर मध्यकणम को ममलाती है। यह नली ननम्न कारणों से अवरुि हो सकती है--

१) सदी लग जाना।

२) लगातार तेज और ककम श ध्वनन

३) कान में चोंट लगना

४) कान में कीडा घुस जाना या सांिमण होना।

५) कान में अधधक मैल(वातस) जमा होना।

६) नहाते समय कान में पानी प्रववष्ठ होना।

बडों के बननतबत छोटे बच्चों को कान ददम अतसर हो जाता है। बच्चों मे प्रनतरतछा तांत्र अववकमसत रहता है और युतटेमशयन नली भी छोटी होती है अत: इसके आसानी से जाम होने के ज्यादा अवसर होते हैं। रात के वतत कान ददम अतसर बढ जाया करता है। कान में ककसी प्रकार का सांिमण होने से

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पदहले तो कान की पीडा होती है और इलाज नहीां करने पर कान में पीप पडने का रोग हो जाता है।

कान ददम ननवारक कुदरती पदाथों के उपचार नीच ेमलखे जाते हैं-

१) ददम वाले कान में हायड्रोजन पेरातसाइड की कुछ बूांदे डालें। इससे कान में जमा मैल( वातस) नरम होकर बहार ननकल जाता है। अगर कान में कोइ सांिमण होगा तो भी यह उपचार उपकारी रहेगा। हायड्रोजन में उपस्तथत आतसीजन जीवाणुनाशक होती है।

२) लहसुन सांतकाररत तेल कान पीडा में दहतकर है। १० मममल नतल के तेल में ३ लहसुन की कली पीसकर डालें और इसे ककसी बतमन में गरम करें। छानकर शीशी में भरलें। इसकी ४-५ बूांदें रुनण कान में टपकादें। रोगी १० ममननट तक लेटा रहे। कफर इसी प्रकार दसूरे कान में भी दवा डालें। कान ददम में लाभ प्रद नतुखा है।

३) जेतुन का तेल मामूली गरम करके कान में डालने से ददम में राहत होती है।

४) मुलहठी कान ददम में उपयोगी है। इसे घी में भनूें । बारीक पीसकर पेतट बनाएां। इसे कान के बाह्य भाग में लगाएां। कुछ ही ममननट में ददम समाप्त होगा।

५) बच्चों के कान में पीप होने पर तवतथ तत्री के दधू की कुछ बूांदें कान में टपकादें। तत्री के दधू में प्रनतरतछा तांत्र को मजबूत करने के गुण ववध्यमान होते हैं। उपकारी उपचार है।

६) कान में पीप होने पर प्याज का रस लाभप्रद उपाय है। प्याज का रस गरम करके कान में २-४ बूांदे डालें। ददन में ३ बार करें। आशातीत लाभकारी उपचार है।

७) अजवाईन का तेल और नतल का तेल १:३ में ममतस करें। इसे मामूली गरम करके कान में २-४ बूांदे टपकादें। कान ददम में उपयोगी है।

८) पाांच ग्राम मैथी के बीज एक बडा चम्मच नतल के तेल में गरम करें। छानकर शीशी में भर लें। २ बूांद दवा और २ बूद दधू कान में टपकादें। कान पीप का उम्दा इलाज माना गया है।

९) तुलसी की कुछ पस्त्तया और लहसुन की एक कली पीसकर पेतट बनालें। इसे गरम करें। कान में इस ममिण का रस २-३ बूांद टपकाएां। कान में डालते समय रस सुहाता गरम होना चादहये। कान ददम का तत्काल लाभप्रद उपचार है।

१०) कान ददम और पीप में पेशाब की उपयोधगता मसि हुई है। ताजा पेशाब ड्रापर में भरकर कान में डालें,उपकार होगा।