ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यों

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ओ ओओओओ ओओओ, ओ ओओओओ ओओओओ ओओ ओओओओओ..? उउउउउउउउउ उउउ उउउउउ उउ उउ उउउ उउ उउ उउउ उउउउउ उउ...उउउउ- उउउउउउउ उउउउ उउ...उउ उउउउ उउ उउउउउ उउ उउउ उउउउ उउ उउ उउउउ उउ उउउउउ उउउउउ..? उउउउउ उउ उउ उउउउ उउउउउउउ उउ उउउ उउ उउउउ उउउउ उउउउ उउउउ उउ उउउउउ उउ उउउउ उउ उउ उउ उउउउ उउ उउ..! उउउउउ उउउउ उउउउउ उउउ उउउउउ उउउउ उउ...उउउ उ उउ उउउउउउ उउउउ उउ उउउउउ उउ उ उउ उउउउ उउउउउउउउ उउ..! उउउउ उउ उउ उउउउ उउउ उउ उउउ उउउ उउ उउउउ..! उउउउउ उउ उउउउउउ उउ उउउउउउ उउउउ उउउ उउ उउउउउउउउउ उउ उउउउउ उउउ उउउउ उउ उउउउ...उउउउउउउ उउ उउउउ उउउउउ उउउ उउ उउउउ उउउउ उउउउ उउउ उउउउ उउ उउउउउ उउ उउउ..! उउउउउउ उउउ उउ उउउउ उउ उउउ उउ उउ उउउउउउउ उउ, उउउउ उउउउउउ, उउउउ उउउ, उउउउ उउउउउउउउ, उउउउ उउउउ, उउउउ उउउउउ, उउउउ उउउउउ! उउउउउउउ उउउउ उउ उउउ उउउ उउ उउउउ उउउउउ उउ..! उउउउउ उउउ उउउउउउउ उउउ उउ...उउ उउउ उउ उउउउउ उउउउउ उउ उउ उउउउ उउउउउ उउउउउ उउउउ उउउ उउउ उउ उउ उउ उउउ उउउउ उउ उउउउ उउउउउ उउ..! उउउउ उउउउ उउ उउउउ उउ उउउउ उउउ उउउउ उउ उउउउ उउ उउउउउ उउउउ उउउउ उउउउउ उउ उउ उउउउ उउउ उउ उउउउ उउउ उउउउउ उउउउउ उउउउउउउउउ उउउउउ उउउउउउउ उउ उउउउ उउ उउ उउउ उउ उउउउ उउउउउ उउउउ उउ...उउउ उउउउउउउउ उउ उउउउउउउ उउउ उउउ उउउउ उउउउ उउउ उउउ उउ..! 200-200 उउउ उउउउउ उउउउ उउ 20-20 उउउ उउ उउउउउ उउ उउउउउउ उउउउ उउउउ उउउ उउउउउउ उउउउ उउ उउ उउउउ उउउउ उउउउउउउ उउउउउ उउ उउउउ उउउउ उउउ उउउउ उउउउ उउउउ उउ..! उउउउउ उउ, उउउउउउउउउउ उउउ उउ उउउ उउउउउ उउउउ उउउउ उउउ उउउउउउउउउउ उउ उउउउउ उउउउ उउउ उउउउउ उउउ उउउउ उउ उउउउउउ उउउउउ उउउ उउउउउउउ उउ उउउ उउउउउउ उउ उउउउउ उउ उउउ उउउउ उउउउउउ उउउउ उउउउउउउउ उउ उउउ उउ उउउ उउउउ, उउउउउउउउउउ उउ उउउउ उउउउउउउउ उउ उउउउ उउ उउउउउ उउ उउ उउउउ उउउउ उउउ उउउ उउउ उउउउ उउउउउ..! उउउउउउउउ उउ उउ उउ उउउउ उउउ उउ उउउउ, उउउउउउउउउउ उउ उउउउ उउउउउउउउ उउ उउ उउउउउ उउ उउउउ उउउ उउ उउउउ उउउउ उउउ..! उउउउ उउउउ-उउउउ उउ उउउउ उउउउ उउउ उउउउउउ उउउउ उउउ..!

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Page 1: ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यों

ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यों..?

उत्तराखंड में कुदरत के इस कहर से हर कोई हैरान है...शासन-प्रशासन बेबस है...हर किकसी के जुबान पर यही सवाल है किक आखिखर ये तबाही क्यों..? तबाही का ये मंजर दद%नाक और दिदल को दहला देने वाला जरुर है लेकिकन आज नहीं तो कल ये होना ही था..! कुदरत अपना किहसाब खुद बराबर करती है...उसे न तो जेसीबी मशीन की जरुरत है न ही किकसी किवस्फोटक की..! उसने तो एक झटके में सब तहस नहस कर दिदया..!आसमान से बादलों की गज%ना शुरु हुई तो जीवनदायकिन ने रौद्र रुप धारण कर लिलया...पहाड़ों का सीना दरकने लगा और जीवन देने वाली मौत देने पर अमादा हो गयी..! रास्ते में जो मिमला सब बहा कर ले गयी…क्या घर, क्या सड़कें , क्या पुल, क्या गाकिड़यां, क्या पेड़, क्या इंसान, क्या जानवर! भागीरथी मानो सब कुछ बहा ले जाना चाहती थी..! चारों तरफ हाहाकार मचा था...हर कोई ये जानना चाहता था किक आखिखर कुदरत क्यों इतना रूठ गयी है किक सब कुछ तबाह कर देना चाहती है..! इसका जवाब को लेकर एक बड़ी बहस शुरु हो सकती है लेकिकन इसका जवाब तबाही के इस मंजर में ही लिछपा हुआ है। याद कीजिजए उत्तराखंड राज्य किनमा%ण से पहले का वो समय जब गंगा अकिवरल बहती थी...उसे अकितक्रमण की दीवारों में कैद करके नहीं रखा गया था..! 200-200 किफट चौड़ी गंगा को 20-20 किफट की नहरों मे तब्दील नहीं किकया गया था। गंगा अपने तट पर बसने वाले करोड़ों लोगों को जीवन देते हुए किबना रुके बहती थी..! इंसान हो, वनस्पकितयां हों या किफर जानवर गंगा सबके लिलए जीवनदामियकिन थी लेकिकन बीते कुछ सालों में गंगा का स्वरुप बदलता चला गया। गंगा को कभी बांधों ने बांधा तो कभी गंगा किकनारे अवैध अकितक्रमण के नाम पर बने होटल, रेस्टोरेंट और अवैध बस्तिस्तयों ने गंगा की पहचान को ही खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी..! अकितक्रमण से भी मन नहीं भरा तो होटल, रेस्टोरेंट और अवैध बस्तिस्तयों का मल मूत्र भी गंगा में ही डाला जाने लगा..! गंगा धीरे-धीरे एक गंदे नाले में तब्दील होने लगी..!किनम%ल पावन गंगा की जगह भ्रष्टाचार की मैली गंगा बहने लगी और हर कोई भ्रष्टाचार की इस गंगा में डुबकी लगाकर अपने ऐशो आराम की हर वस्तु पा लेना चाहता था..!गंगा घुट- घुट कर बहने पर मजबूर होने लगी तो पेड़ों की अवैध कटाई से हरे भरे वनों से आच्छादिदत खूबसूरत पहाकिड़यां भी कंक्रीट के जंगलों में तेजी से तब्दील होने लगी..! गंगा अकितक्रमण की बेकिड़यों से मुक्त होकर अकिवरल करोड़ो लोगों को जीवन देते हुए बहना चाहती थी लेकिकन गंगा के इस दद% को किकसी ने नहीं समझा..! ऐसे में भागीरथी क्या करती..? कई बार छोटी मोटी आपदाओं के जरिरए कुदरत ने अपने किनजिज स्वाथU के लिलए प्रकृकित से खिखलवाड़ कर रहे लोगों को संदेश देने की कोलिशश भी की लेकिकन कुदरत के ये इशारे समझने में इंसान नाकाम रहा या यंू कहें किक किकसी ने समझने की कोलिशश ही नहीं की..! नासमझ लोगों को समझाने के लिलए कुदरत के पास शायद आखिखर में यही एक रास्ता था देवभूमिम को किवकृत होने से रोकने का...देवभूमिम को वापस उसके स्वरूप में लाने का...तो कुदरत ने अपना रास्ता खुद बना लिलया..!

Page 2: ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यों

इसका ये मतलब कतई नहीं है किक पहाड़ों में किवकास काय% न किकए जाए.ं..वहां के लोग किबजली, पानी और सड़क से महरूम रहें लेकिकन प्रकृकित से छेड़छाड किकए किबना भी तो ये सब संभव है। प्रभावी काय%योजना के साथ...किनजिज स्वाथU को त्याग कर भी तो पहाड़ों में किवकास की गंगा बहायी जा सकती है। इस तरह पहाड़ की खूबसूरती भी बरकरार रहेगी और भागीरथी के प्रवाह को रोकने की भी जरुरत नहीं पडे़गी लेकिकन अफसोस ऐसा होता नहीं है..!तबाही के इस भयावह मंजर के बाद भी शासन-प्रशसान के साथ ही स्थानीय लोग सबक लें तो भी भकिवष्य में ऐसी आपदाओं को रोका तो नहीं जा सकता लेकिकन इससे होने वाले जान माल के नुकसान को कम जरुर किकया जा सकता है। लेकिकन सवाल किफर खड़ा होता है किक क्या ऐसा कभी हो पाएगा..?आखिखर में गंगा की हालत और तबाही के इस मंजर पर गंगा पर लिलखी गयी ये पंलिक्तयां याद आ रही हैं।

किवस्तार है अपार प्रजा दोनों पारकरे हाहाकार किनःशब्द सदाओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्योंनैकितकता नष्ट हुयी, मानवता भ्रष्ट हुयीकिनल%ज्ज भाव से बहती हो क्योंइकितहास की पुकार करे हंुकारओ गंगा की धार किनब%ल जन कोसबल संग्रामी समग्र गामी बनाती नहीं हो क्योंओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यों

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