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पपपपपपपप

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पपपपपपपप

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कथा-कम

िवजय : 3 वफा का खजर: 14

मुबारक बीमारी: 27 वासना की किडयॉँ : 36

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पपपप

हजादा मसरर की शादी मलका मखमूर से हुई और दोनो आराम से िजनदगी बसर करने लगे। मसरर ढोर चराता, खेत जोतता, मखमूर खाना पकाती और चरखा चलाती।

दोनो तालाब के िकनारे बैठे हुए मछिलयो का तैरना देखते, लहरो से खेलत,े बगीचे मे जाकर िचिडयो के चहचहे सुनते और फूलो के हार बनाते। न कोई िफक थी, न कोई िचनता थी।

श लेिकन बहुत िदन न गुजरने पाये थे उनके जीवन मे एक पिरवतरन आया। दरबार के

सदसयो मे बुलहवस खॉँ नाम का एक फसादी आदमी था। शाह मसरर ने उसे नजर बनद कर रखा था। वह धीरे- धीरे मलका मखमूर के िमजाज मे इतना दािखल हो गया िक मलका उसके

मशिवरे के बगरै कोई काम न करती। उसने मलका के िलए एक हवाई जहाज बनाया जो महज इशारे से चलता था। एक सेकणेड मे हजारो मील रोज जाता ओर देखत-े देखते ऊपर

की दिूनया की खबर लाता। मलका उस जहाज पर बैठकर योरोप और अमरीका की सरै करती। बलुहवस उससे कहता, सामाजय को फैलाना बादशाहो का पहला कतरवय है। इस

लमबी- चौडी दुिनया पर कबजा कीिजए, वयापार के साधन बढाइय,े िछपी हुई दौलत िनकािलय,े फौजे खडी कीिजए, उनके िलए असत- शसत जुटाइये। दुिनया हौसलामनदो के िलए है। उनही

के कारनामे, उनही की जीते याद की जाती है। मलका उसकी बातो को खबू कान लगाकर सुनती। उसके िदल मे हौसले का जोश उमडने लगता। यहा तक िक अपना सरल-सनतोषी

जीवन उसे रखा- फीका मालमू होने लगा। मगर शाह मसरर सनतोष का पुतला था। उसकी िजनदी के वह मबुारक लमहे होते थे

जब वह एकानत के कुजं मे चुपचाप बैठकर जीवन और उसके कारणो पर िवचार करता और उसकी िवराटता और आशयों को देखकर शदा के भाव से चीख उठता-आह! मेरी हसती िकतनी नाचीज है, उसे मलका के मंसबूो और हौसलो से जरा भी िदलचसपी न थी। नतीजा

यह हूआ िक आपस के पयार और सचचाई की जगह सनदेह पैदा हो गये। दरबािरयो मे िगरोह बनने लगे। जीवन का सनतोष िवदा हो गया। मसरर को इन सब परेशािनयो के िलए जो

उसकी सभयता के रासते मे बाधक होती थी, धीरज न था। वह एक िदन उठा और सलतनत मलका के सपुुदर करके एक पहाडी इलाके मे जा िछपा। सारा दरबार नयी उमंगो से मतवाला

हो रहा था। िकसी ने बादशाह को रोकने की कोिशश न की। महीनो, वषों हो गये, िकसी को उनकी खबर न िमली।

२ लका मखमूर ने एक बडी फौज खडी की और बुलहवस खा को चढाइयो पर रवाना

िकया। उसने इलाके पर इलाके और मुलक पर मुलक जीतने शुर िकये। सोने- चादी और हीर-े जवाहरात के अमबार हवाई जहाजो पर लदकर राजधानी को आगे लगे।म

लेिकन आशयर की बात यह थी िक इन रोज-ब- रोज बढती हुई तरिकयो से मुलक के अनदरनी मामलो मे उपदव खडे होने लगे। वह सबूे जो अब हुकम के ताबेदार थे, बगावत क े

झणडे करने लगे। कणरिसंह बुनदेला एक फौज लेकर चढ आया। मगर अजब फौज थी, न कोई हरब-ेहिथयार, न तोपे, िसपािहया, के हाथो मे बदंकू और तीर- तुपुक के बजाय बरबर- तमबरूे और सारिंगया, बेले, िसतार और ताऊस थे। तोपो की धनगरज सदाओं के दले तबले

और मृदगं की कुमक थी। बम गोलो की जगह जलतरगं, आगरन और आकेसटा था। मलका मखमूर ने समझा आन की आन मे इस फौज को िततर- िबतर करती हूँ। लेिकन जयो ही उस

की फौज कणरिसंह के मुकािबले मे रवना हईु, लुभावने, आतमा को शािनत पहुँचाने वाले सवरो की वह बाढ आयी, मीठे और सहुाने गानो की वह बौछार हुई िक मलका की सेना पतथर की मरतो की तरह आतमिवसमृत होकर खडी रह गयी। एक कण मे िसपािहयो की आंखे नशे मे डूबने लगी और वह हथेिलया बजा- बजा कर नाचने लगे, सर िहला- िहलाकर उछलने लगे, िफर सबके सब बेजान लाश की ताह िगर पडे। और िसफर िसपाही ही नही, राजधानी मे भी िजसक े

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कानो मे यह आवाजे गयी वह बेहोश हो गया। सारे शहर मे कोई िजनदा आदमी नजर न आता था। ऐसा मालमू होता था िक पतथर की मूरतो का ितलसम है। मलका अपने जहाज पर बैठी

यह किरशमा देख रही थी। उसने जहाज नीचे उतारा िक देखूं कया माजरा है? पर उन आवाजो के कान मे पहुँचते ही उसकी भी वही दशा हो गयी। वह हवाई जहाज पर नाचने लगी और

बहेोश होकर िगर पडी। जब कणरिसंह शाही महल के करीब जा पहुचँा और गाने बनद हो गये तो मलका की आंखे खुजी जैसे िकसी का नशा टूट जाये। उसने कहा- मै वही गाने सुनूंगी, वही राग, वही अलाप, वही लुभाने वाले गीत। हाय, वह आवाजे कहो गयी। कुछ परवाह नही, मेरा राज जाये, पाट जाये, मे वही राग सुनूंगी।

िसपािहयो का नशा भी टूटा। उनहोने उसके सवर िमलाकर कहा- हम वही गीत सुनेगे, वही पयार-े पयारे मोहक राग। बला से हम िगरफतार होगे, गुलामी की बेिडया पहनेगे, आजादी से हाथ धोयेगे पर वही राग, वही तराने वही ताने, वही धुने।

३ बेदार लोचनदास को जब कणरिसंह की िवजय का हाल मालमू हुआ तो उसने भी िवदोह करने की ठानी। अपनी फौज लेकर राजधानी पर चढ दौडा। मलका ने अबकी जान-

तोड मुकाबला करने की ठानी। िसपािहयो को खबू ललकारा ओर उनहे लोचदास के मुकाबले मे खडा िकया मगर वाह री हमलावन फौज! न कही सवार, न कही पयादे, न तोप, न बनदकू, न

हरब,े न हिथयार, िसपािहयो की जगह सुनदर नतरिकयो के गोल थे और िथयेटर के एकटर। सवारो की जगह भाडो और बहुरिपयो के गोल। मोचो की जगह तीतर और बटेरो के जोड

छूटे हुए थे तो बनदकू की जगह सकरस ओर बाइसकोप के खेमे पढे थे। कही हीरे-जवाहरात अपनी आब- ताब िदखा रहे थे, कही तरह- तरह के चिरनदो- पिरनदो की नुमाइश खुली हईु थी। मैदान के एक िहससे मे धरती की अजीब- अजीब चीजे, झने और बिफरसतानी चोिटया और बफर

के पहाढ, पेिरस का बाजार, लनदन का एकसचेज या सटन की मंिडया, अफीका के जगंल, सहारा के रेिगसतान, जापान की गलुकािरया, चीन के दिरयाई शहर, दिकण अमरीका के

आदमखोर, काफ की पिरया, लैपलणैड के सुमूरपोश इनसान और ऐसे सेकडो िविचत आकषरक दृशय चलते- िफरते िदखायी पडते थे। मलका की फौज यह नजजारा देखते ही बेसुध होगर

उसकी तरफ दौडी। िकसी को सर- पैर का खयाल न रहा। लोगो ने बनदुके फेक दी, तलवारे और िकरचे उतार फेकी और बतेहाशा इन दृशयो के चारो तरफ जमा हो गये। कोई नाचने

वािलयो की मीठी अदाओं ओर नाजुक चलन पर िदल दे बैठा, कोई िथयेटर के तमाशो पर रीझा। कुछ लोग तीतरो और बटेरो के जोड देखने लगे और सब के सब िचत-िलिखत-से मनतमुगध खडे रह गये। मलका अपने हवाई जहाज पर बैठी कभी िथयटेर की तरफ जाती

कभी सकरस की तरफ दौडती, यहा तक िक वह भी बेहोश हो गयी।

सू

लोचनदास जब िवजय करता हुआ शाही महल मे दािखल हो गया तो मलका की आंखे खुली। उसने कहा-हाय, वह तमाशे कहा गये, वह सनुदर- सुनदर दृशय, वह लुभावने दृशय कहा

गायब हो गय,े मेरा राज जाये, पाट जाये लेिकन मै यह सैर जरर देखूँगी। मुझे आज मालमू हुआ िक िजनदगी मे कया- कया मजे है!

िसपाही भी जागे। उनहोने एक सवर से कहा- हम वही सैर और तमाशे देखेगे, हमे लडाई- िभडाई से कुछ मतलब नही, हमको आजादी की परवाह नही, हम गुलाम होकर रहेगे,

परैो मे बेिडया पहनेगे पर इन िदलफरेिबयो के बगैर नही रह सकेगे।४

लका मखमूर को अपनी सलतनत का यह हाल देखकर बहुत दु : ख होता। वह सोचती, कया इसी तरह सारा देश मरेे हाथ से िनकल जाएगा? अगर शाह मसरर ने यो िकनारा न

कर िलया होता तो सलतनत की यह हालत कभी न होती। कया उनहे यह कैिफयते मालमू न होगी। यहा से दम- दम की खबरे उनके पास आ जाती है मगर जरा भी जुिमबश नही करते। िकतने बेरहम है। खरै, जो कुछ सर पर आयेगी सह लूँगी पर उनकी िमनत न करँगी।

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लेिकन जब वह उन आकषरक गानो को सुनती और दशूयो को देखती तो यह दुखदायी िवचार भलू जात,े उसे अपनी िजनदगी बहुत आननद की मालमू होती।

बुलहवस खा ने िलखा- मै देशमनो से िघर गया हूँ, नफरत अली और कीन खा और जवालािसंह ने चारो तरफ से हमला शुर कर िदया है। तब तक ओर कुमक न आय,े मे मजबरू

हूँ। पर मलका की फौज यह सैर और गाने छोडकर जाने पर राजी न होती थी। इतने मे दो सबूेदसरो ने िफर बगावत की। िमजा शमीम और रसराजिसंह दोनो एक

होकर राजधानी पर चढे। मलका की फौज मे अब न लजजा थी न वीरता, गाने- बजाने और सैर-ै तमाशे ने उनहे आरामतलब बना िदया था। बडी- बडी मुिशकलो से सज- सजा कर मैदान मे

िनकले। दुशमन की फौज इनतजार करती खडी थी लेिकन न िकसी के पास तलवार थी, न बनदुक, िसपािहयो के हाथो मे फूलो के खुलदसते थे, िकसी के हाथ मे इतर की शीिशया, िकसी

के हाथ मे गलुाब के फववाहर, कही लवणेडर की बोतले, कही मुशक वगैरह की बहार-सारा मैदान अतार की दकूान बना हुआ था। दसूरी तरफ रसराज की सेना थी। उन िसपािहयो के हाथो मे सोने के तशत थे, जरबफत के खनपेशो से ढके हुए, िकसी मे बफी और मलाई थी, िकसी मे कोरमे और कबाब, िकसी मे खुबानी और अंगरू, कही कशमीर की नेमते सजी हुई थी,

कही इटली की चटिनयो की बहार थी और कही पुतरगाल और फास की शराबे शीिशयो मे महक रही थी।

मलका की फौज यह संजीवनी सुगनध सूंघते ही मतवाली हो गयी। लोगो ने हिथयार फेक िदये और इन सवािदष पदाथें की ओर दौडे, कोई हलुवे पर िगरा, और कोई मलाई पर

टूटा, िकसी ने कोरमे और कबाब पर हाथ बढाय,े कोई खबुानी और अंगरू चखने लगा, कोई कशमीरी मुरबबो पर लपका, सारी फौज िभखमंगो की तरह हाथ फैलाये यह नेमते मागती थी

और बहेद चाव से खाती थी। एक- एक कौर के िलए, एक चमचा फीरनी के िलए, शराब के एक पयाले के िलए खुशामदे करते थे, नाके रगडते थे, िसजदे करते थे। यहा तक िक सारी फौज पर एक नशा छा गया, बेदम होकर िगर पडी। मलका भी इटली के मरबबो के सामने दामन फैला- फैलाकर िमनते करती और कहती थी िक िसफर- एक लुकमा और एक पयाला दो

और मेरा राज लो, पाट लो, मेरा सब कुछ ले लो लेिकन मुझे जी- भर खा- पी लेने दो। यहा तक िक वह भी बहेोश होकर िगर पडी।

५ लका की हालत बेहद ददरनाक थी। उसकी सलतनत का एक छोटा- सा िहससा दुशमनो क े हाथ से बचा था। उसे एक दम के िलए भी इस गुलामी से नजात न िमलती। की कणरिसंह

के दरबार मे हािजर होती, कभी िमजा शमीम की खुशामद करती, इसके बगरै उसे चैन न आता। हा, जब कभी इस मुसािहबी और िजललत से उसकी तिबयत थक जाती तो वह अकेले बैठकर घटंो रोती और चाहती िक जाकर शाह मसरर को मना लाऊं। उसे यकीन था िक

उनके आते ही बागी काफूर हो जायेगे पर एक ही कण मे उसकी तिबयत बदल जाती। उसे अब िकसी हालत पर चैन आता था।

अभी तक बुलहवस खा सवािमभिकत मे फकर न आया था। लेिकन जब उसने सलतनत की यह कमजोरी देखी तो वह भी बगावत कर बैठा। उसकी आजमाई हुई फौज के मुकाबले मे

मलका की फौज कया ठहरती, पहले ही हमले मे कदम उखड गये। मलका खुद िगरफतार हो गयी। बुलहवस खा ने उसे एक ितलसमाती कैदखाने मे बदं कर िदया। सेवक वे सवामी बनद

बैठा। यह कैदखाना इतना लमबा- चौडा था िक कैदी िकतना ही भागने की कोिशश करे,

उसकी चहारदीवारी से बाहर नही िनकल सकता था। वहा सनतरी और पहरेदार न थे लेिकन वहा की हवा मे एक िखचंाव था। मलका के पैरो मे न बिेडया थी न हाथो मे हथकिडया लेिकन शरीर का अंग- पतयगं तारो से बधंा हुआ था। वह अपनी इचछा से िहल भी न सकती थी। वह

अब िदन के िदन बैठी हुई जमीन पर िमटी के घरौदे बनाया करती और समझती यह महल है।

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तरह- तरह के सवाग भरती और समझती दुिनया मुझे देखकर लटू हो जाती है। पतथर टुकडो से अपना शरीर गूंध लेती ओर समझती िक अब हूरे भी मेरे सामने मात है। वह दरखतो से

पछूती, मै िकतनी खबूसरूत हूँ। शाखो पर बैठी िचिडयो से पछूती, हीरे- जवाहरात का ऐसा गुलबनद तुमने देखा है? िमटी की ठीकरो का अमबार लगाती और आसमान से पछूती, इतनी

दौलत तुमने देखी है? मालमू नही, इस हालत मे िकतने िदन गुजर गये। िमजा शमीम, लाचनदास वगैरह

हरदम उसे घेरे रहते थे। शायद वह उससे डरते थे। ऐसा न हो, यह शाह मासरर को कोई संदेशा भेज दे। कैद मे भी उस पर भरोसा न था। यहा तक िक मलका की तिबयत इस कैद

से बेजार हो गयी, वह िनकल भागने की तदबीरे सोचने लगी। इसी हालत मे एक िदन मलका बैठी सोच रही थी, मै कया हो गई ? जो मेरे इशारो के

गुलाम थे वह अब मेरे मािलक है, मुझे िजस कल चाहते है िबठाते है, जहा चाहते है घुमाते है। अफसोस, मेने शाह मसरर का कहना न माना, यह उसी की सजा है। काश, एक बार मुझ े

िकसी तरह अस कैद से छुकारा िमल जाता तो मै चलकर उनके परैो पर िसर रख देती और कहती, लौडी की खता माफ कीिजए। मै खनू के आंसु रोती और उनहे मना लाती और िफर

कभी उनके हकुम से इनकार न करती। मैने इस नमकहराम बुलहवस खा की बातो मे पडकर उनहे िनवािसत कर िदया, मेरी अकल कहॉँ चली गयी थी। यह सोचते- सोचते मलका रोने लगी

िक यकायक उसने देखा, सामने एक िखले हुए मुखडे वाला गमभीर पुरष सादा कपडे खडा है। मलका ने आशयरचिकत होकर पछूा- आप कौन है? यहा मैने आपको कभी नही देखा।

पुरष-हा, इस कैदखाने मे मै बहुत कम आता हूँ। मेरा काम है िक जब कैिदयो की तिबयत यहा से बेजार हो तो उनहे यहा से िनकलने मे मदद दूं।मलका- आपका नाम?पुरष-संतोखिसंह।मलमा- आप मुझे इस कैद से छुटकारा िदला सकते है?संतोख-हा, मेरा तो काम ही यह ह,ै लेिकन मेरी िहदायतो पर चलना पडेगा।मलका- मै आपके हकुम से जौ- भर भी इधर- उधर न करंगी, खुदा के िलए मुझे यहा से

जलद से जलद ले चिलए, मै मरते दम तक आपकी शुकगुजार रहूंगी।संतोख- आप कहा चलना चाहती है?मलका- मै शाह मसरर के पास जाना चाहती हूँ। आपको मालमू है वह आलकल कहा

है?संतोख-हा, मालमू ह,ै मै उनका नौकर हूँ। उनही की तरफ से मै इस काम पर तनैात

हूँ?मलका- तो खुदा के वासते मुझे जलद ले चिलए, मुझे अब यहा एक घडी रहना जी पर

भारी हो रहा है।संतोख- अचछा तो यह रेशमी कपडे और यह जवाहरात और सोने के जेवन उतारकर

फेक दो। बुलहवस ने इनही जजंीरो से तुमहे जाकड िदया है। मोटे से मोटा कपडा जो िमल सके पहन लो, इन िमटी के घरौदो को िगरा दो। इतर और गलुाब की शीिशया, साबुन की

बिटया, और यह पाउडर के डबबे सब फेक दो। मलका ने शीिशयो और पाउडर के तडाक- तडाक पटक िदये, सोने के जेवरो को

उतारकर फेक िदया िक इतने मे बुलहवस खा धाडे मार कर रोता हुआ आकर खडा हुआ और हाथ बाधकर कहने लगा- दोनो जहानो की मलका, मै आपका नाचीज गुलाम हूँ, आप मुझसे

नाराज है? मलका ने बदला लेने के अपने जोश मे िमटी के घरौदो को पैरो से ठुकरा िदया, ठीकरो

के अमबार को ठोकरे मारकर िबखेर िदया। बुलहवस के शरीर का एक- एक अंग कट-कटकर िगरने लगा। वह बेदम होकर जमीन पर िगर पडा और दम के दम मे जहनुम रसीद हुआ।

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संतोखिसंह ने मलका से कहा- देखा तुमन? इस दुशमन को तुम िकतना डरावना समझती थी, आन की आन मे खाक मे िमल गया।

मलका-काश, मुझे यह िहकमत मालमू होती तो मै कभी की आजाद हो जाती। लेिकन अभी और भी तो दुशमन है।

संतोख- उनको मारना इससे भी आसान है। चलो कणरिसंह के पास, जयो ही वह अपना सुर अलापने लगे और मीठी- मीठी बाते करने लगे, कानो पर हाथ रख लो, देखो, अदृशय के पदे

से िफर चीज सामने आती है। मलका कणरिसंह के दरबार मे पहुँची। उसे देखते ही चारो तरफ से धपुद और ितललाने

के वार होने लगे। िपयानो बजने लगे। मलका ने दोनो कान बनद कर िलये। कणरिसंह क े दरबार मे आग का शोला उठने लगा। सारे दरबारी जलने लगे, कणरिसंह दौडा हुआ आया और

बडे िवनय- पवूरक मलका के पैरो पर िगरकर बोला-हुजूर, अपने इस हमेशा के गुलाम पर रहम करे। कानो पर से हाथ हटा कर वरा इस गरीब की जान पर बन आयेगी। अब कभी हुजूर

की शान मे यह गुसताखी न होगी। मलका ने कहा-अचछा, जा तेरी जा- बखशी की। अब कभी बगावत न करना वना जान

से हाथ धोएगा। कणरिसंह ने संतोखिसंह की तरफ पलय की आंखो से देखकर िसफर इतना

कहा-‘जािलम, ’ तुझे मौत भी नही आयी और बेतहाशा िगरता- पडता भागा। सेतोखिसंह ने मलका से कहा- देखा तुमने, इनको मारना िकतना आसान था? अब चलो लोचनदान के पास। जयोही वह अपने किरशमे िदखाने लगे, दोनो आंखे बनद कर लेना।

मलका लोचनदास के दरबार मे पहुँची। उसे देखते ही लोचन ने अपनी शिकत का पदशरन करना शुर िकया। डामे होने लगे, नतरको ने िथरकना शुर िकया। लालो- जमुरदर की किशतया सामने आने लगी लेिकन मलका ने दोनो आंखे बनद कर ली।

आन की आन मे वह डामे और सकरस और नाचनेवालो के िगरोह खाक मे िमल गये। लोचनदास के चेहरे पर हवाइया उडने लगी, िनराशापणूर धैयर के साथ िचलला- िचललकर कहने

लगा, यह तमाशा देखो, यह पेिरस के कहवेखाने, यह िमस एिलन का नाच है। देखो, अंगेज रईस उस पर िकतनी उदारता से सोने और हीर-े जवाहरात िनछावर कर रहे है। िजसने यह

सैर- तमाशे ने देखे उसकी िजनदगी मौत से बदतर। लेिकन मलका ने आंखे न खोली। तब लोचनदास बदहवास और घबराया हुआ, बेद के दरखत की तरह कापता हुआ

मलका के सामने आ खडा हुआ और हाथ जोडकर बोला-हुजूर, आंखे खोले। अपने इस गुलाम पर रहम करे, नही तो मेरी जान पर बन जाएगी। गुलाम की गुसतािखया माफ फीरमाये। अब यह बेअदबी न होगी।

मलका ने कहा- अचछा जा, तेरी जाबखशी की लेिकन खबरदार, अब सर न उठाना नही तो जहनुम रसीद कर दूंगी।

लोचनदास यह सुनते ही िगरता- पडता जान लेकर भागा। पीछे िफरकर भी न देखा। संतोखिसंह ने मलका से कहा- अब चलो िमजा शमीम और रसराज के पास। वहॉँ एक हाथ से

नाक बनद कर लेना और दसूरे हाथ से खानो के तशत को जमीन पर िगरा देना। मलका रसराज और शमीम के दरबार मे पहुँची उनहोने जो संतोख को मलका के साथ

देखा तो होश उड गये। िमजा शमीम ने कसतरूी और केसर की लपटे उडाना हुर की। रसराज सवािदष खानो के तशत सजा- सजाकर मलका के सामने लाने लगा, और उनकी

तारीफ करने लगा- यह पुतरगात की तीन आंच दी हुई शराब ह,ै इसे िपये तो बुडडा भी जवान हो जाये। यह फास का शैमपेन ह,ै इसे िपये तो मुदा िजनदा हो जाय। यह मथुरा के पेडे है, उनहे

खाये तो सवगर की नेमतो को भलू जाय। लेिकन मलका ने एक साथ से नाक बनद कर ली और दसूरे हाथ से उन तशतो को

लमीन पर िगरा िदया और बोतलो को ठोकरे मार- मारकर चरू कर िदया। जयो- जयो उसकी

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ठोकरे पडती थी, दरबार के दरबारी चीख- चीख कर भागते थे। आिखर िमजा शमीम और रसराज दोनो परेशान और बेहाल, सर से खनू जारी, अंग- अंग टूटा हुआ, आकर मलका क े

सामने खडे हो गये और िगडिगडाकर बोले-हुजूर, गुलामो पर रहम करे। हुजूर की शान मे जो गुसतािखया हुई है उनहे मुआफ फरमाये, अब िफर ऐसी बेअदबी न होगी।

मनका ने कहा- रसराज को मै जान से माना चाहती हूँ। उसके कारण मुझे जलील होना पडा।

लेिकन संतोखिसंह ने मना िकया-नही, इसे जान से न मािरये। इस तरह का सेवक िमलना किठन है। यह आपके सब सबूेदार अपने काम मे यकता है िसफर इनहे काबू मे रखने

की जररत है। मलका ने कहा- अचछा जाओ, तुम दोनो की भी जा- बखशी की लेिकन खबरदार, अब

कभी उपदव मत खडा करना वना तुम जानोगे। दोनो िगरत- पडते भागे, दम के दम मे नजरो से ओझल हो गये।

मलका की िरआया और फौज ने भेटे दी, घर- घर शािदयाने बजने लगे। चारो बागी सबूेदार शहरपनाह के पास छापा मारने की घात मे बैठ गये लेिकन संतोखिसंह जब िरआया

और फौज को मसिजद मे शुिकए की नमाज अदा करने के िलए ले गया तो बािगयो को कोई उममीद न रही, वह िनराश होकर चले गये।

जब इन कामो से फुसरत हुई तो मलका ने संतोखिसंह से कहा- मेरे पास अलफाज नही मे इतनी ताकत है िक मै आपके एहसानो का शुिकया अदा कर सकूँ। आपने मुझे गुलामी

ताकत से छुटकारा िदया। मे आिखरी दम तक आपका जस गाऊंगी। अब शाह मसरर क े पास मुझे ले चिल, मै उनकी सवेा करके अपनी उम बसर करना चाहती हूँ। उनसे मुंह

मोडकर मैने बहुत िजललत और मसीबत झेली। अब अभी उनके कदमो से जुदा न हूँगी।संतोखिसंह-हा, हा, चिलए मै तयैार हूँ लेिकन मंिजल सखत है, घबराना मत।

मलका ने हवाई जहाज मंगाया। पर संतोखिसंह ने कहा- वहा हवाई जहाज का गुजर नही ह,ै पेदल पडेगा मलका ने मजबरू होकर जहाज वापस कर िदया और अकेले अपने सवाती को मनाने चली।

वह िदन- भर भखूी- पयासी पैदल चलती रही। आंखो के सामने अंधरेा छाने लगा, पयास से गले मे काटे पडने लगे। काटो से पैर छलनी हो गये। उसने अपने मागर- दशरक से पछूा-

अभी िकतनी दरू ह?ैसंतोख- अभी बहुत दरू है। चुपचाप चली आओ। यहा बाते करने से मंिजल खोटी हो

जाती है। रात हुई, आसमान पर बादल छा गये। सामने एक नदी पडी, िकशती का पता न था।

मलका ने पछूा- िकशती कहा ह?ै संतोष ने कहा- नदी मे चलना पेडगा, यहा िकशती कहा है। मलका को डर मालमू हुआ लेिकन वह जान पर खेलकर दिरया मे चल पडी। मालमू

हुआ िक िसफर आंख का धोखा था। वह रेतीली जमीन थी। सारी रात संतोखिसंह ने एक कण के िलए भी दम न िलया। जब भोर का तारा िनकल आया तो मलका ने रोकर कहा-अभी

िकतनी दरू ह,ै मै तो मरी जाती हूँ। संतोखिसंह ने जवाब िदया- चपूचान चली आओ। मलका ने िहममत करके िफर कदम बढाये। उसने पका इरादा कर िलया था िक रासते

मे मर ही कयो न जाऊँ पर नाकाम न लौटूँगी। उस कैद से बचने के िलए वह कडी मुसीबते झेलने को तयैार थी।

सरूज िनकला, सामने एक पहाड नजर आया िजसकी चोिटया आसमान मे घुसी हईु थी। संतोखिसंह ने पछूा- इसी पहाडी की सबसे ऊंची चोटी पर शाह मसरर िमलेगे, चढ

सकोगी? मलका ने धीरज से कहा-हा, चढने की कोिशश करंगी।

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बादशाह से भटे होने की उममीद ने उसके बेजान परैो मे पर लगा िदए। वह तेजी से कदम उठाकर पहाडो पर चढने लगी। पहाड के बीचो बीच आत- आते वह थककर बैठ गयी,

उसे गश आ गया। मालमू हुआ िक दम िनकल रहा है। उसने िनराश आंखो से अपने िमत को देखा। संतोखिसंह ने कहा- एक दफा और िहममत करो, िदल मे खुदा की याद करो मलका ने

खुदा की याद की। उसकी आंखे खलु गयी। वह फुती से उठी और एक ही हलले मे चोटी पर जा पहुँची। उसने एक ठंडी सास ली। वहा शुद हवा मे सास लेते ही मलका के शरीर मे एक नयी िजदंगी का अनुभव हुआ। उसका चेहरा दमकने लगा। ऐसा मालमू होने लगा िक मै चाहूँ

तो हवा मे उड सकती हूँ। उसने खुश होकर संतोखिसंह तरफ देखा और आशयर के सागर मे डूब गयी। शरीर वही था, पर चेहरा शाह मसरर का था। मलका ने िफर उसकी तरफ

अचरज की आंखो से देखा। संतोखिसंह के शरीर पर से एक बादल का पदा हट गया और मलका को वहा शाह मशरर बडे नजर आए- वही हलका नीला कुता, वही गेरए रगं की तरह। उनके मुखमणडल से तेज की काित बरस रही थी, माथा तारो की तरह चमक रहा था। मलका उनके पैरो पर िगर पडी। शाह मसरर ने उसे सीने से लगा िलया।

-‘ ’जमाना , अपैल,१९१८

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वफा का खंजर

यगढ और िवजयगढ दो बहुत ही हर-ेभर,े सुसंसकृत, दरू- दरू तक फैले हुए, मजबतू राजय थे। दोनो ही मे िवदा और कलाद खबू उननत थी। दोनो का धमर एक, रसम- िरवाज एक,

दशरन एक, तरकी का उसलू एक, जीवन मानदणड एक, और जबान मे भी नाम मात का ही अनतर था। जयगढ के किवयो की किवताओं पर िवजयगढ वाले सर धुनते और िवजयगढी

दाशरिनको के िवचार जयगढ के िलए धमर की तरह थे। जयगढी सनुदिरयो से िवजयगढ के घर- बार रोशन होते थे और िवजयगढ की देिवया जयगढ मे पुजती थी। तब भी दोनो राजयो मे

ठनी ही नही रहती थी बिलक आपसी फूट और ईषया- देष का बाजार बुरी तरह गमर रहता और दोनो ही हमेशा एक- दसूरे के िखलाफ खंजर उठाए थे। जयगढ मे अगर कोई देश को सधुार िकया जाता तो िवजयगढ मे शोर मच जाता िक हमारी िजदंगी खतरे मे है। इसी तरह तो

िवजयगढ मे कोई वयापािरक उनित िदखायी देती तो जयगढ मे शोर मच जाता था। जयगढ अगर रेलवे की कोई नई शाख िनकालता तो िवजयगढ उसे अपने िलए काला साप समझता

और िवजयगढ मे कोई नया जहाज तैयार होता तो जयगढ को वह खनू पीने वाला घिडयाल नजर आता था। अगर यह बदुगमािनयॉँ अनपढ या साधारण लोगो मे पैदा होती तो एक बात

थी, मजे की बात यह थी िक यह राग-देष, िवदा और जागृित, वभैव और पताप की धरती मे पैदा होता था। अिशका और जडता की जमीन उनके िलए ठीक न थी। खास सोच-िवचार और िनयम- वयवसथा के उपजाऊ केत मे तो इस बीज का बढना कलपना की शिकत को भी मात कर देता था। ननहा- सा बीज पलक मारत-े भर मे ऊंचा- परूा दखत हो जाता था। कूचे और

बाजारो मे रोने- पीटने की सदाए ं गूंजने लगती, देश की समसयाओं मे एक भचूाल- सा आता, अखबारो के िदल जलाने वाले शबद राजय मे हलचल मचा देते, —कही से आवाज आ जाती

जयगढ, पयारे जयगढ, पिवत के िलए यह किठन परीका का अवसर है। दशुमन ने जो िशका की वयवसथा तैयार की ह,ै वह हमारे िलए मृतयु का संदेश है। अब जररत और बहुत सखत जररत है िक हम िहममत बाधे और सािबत कर दे िक जयगढ, अमर जयगढ इन हमलो से

अपनी पाण- रका कर सकता है। नही, उनका मुंह- तोड जवाब दे सकता है। अगर हम इस वकत न जागे तो जयगढ, पयारा जयगढ, हसती के परदे से हमेशा के िलए िमट जाएगा और

इितहास भी उसे भुला देगा।

— दसूरी तरफ से आवाज आती िवजयगढ के बेखबर सोने वालो, हमारे मेहरबान पडोिसयो ने अपने अखबारो की जबान बनद करने के िलए जो नये कायदे लागू िकये है, उन

पर नाराजगी का इजहार करना हमारा फजर है। उनकी मंशा इसके िसवा और कछु नही है िक वहा के मुआमलो से हमको बेखबर रकखा जाए और इस अंधेरे के परदे मे हमारे ऊपर धावे िकये जाए ं, हमारे गलो पर फेरने के िलए नये- नये हिथयार तयैार िकए जाए ं, और आिखरकार हमारा नाम- िनशान िमटा िदया जाए। लेिकन हम अपने दोसतो को जता देना अपना फजर समझते है िक अगर उनहे शरारत के हिथयारो की ईजाद के कमाल है तो हमे भी उनकी काट

करने मे कमाल है। अगर शैतान उनका मददगार है तो हमको भी ईशर की सहायता पापत है और अगर अब तक हमारे दोसतो को मालमू नही है तो अब होना चािहए िक ईशर की सहायता हमेशा शैतान को दबा देती है।

२ यगढ बाकमाल कलावनतो का अखाडा था। शीरी बाई इस अखाडे की सबज परी थी, उसकी कला की दरू- दरू तक खयाित थी। वह संगीत की राती थी िजसकी डयोढी पर

बड-े बडे नामवर आकर िसर झुकाते थे। चारो तरफ िवजय का डकंा बजाकर उसने िवजयगढ की ओर पसथान िकया, िजससे अब तक उसे अपनी पशंसा का कर न िमला था। उसके आते ही िवजयगढ मे एक इकंलाब- सा हो गया। राग- देष और अनुिचत गवर हवा से उडने वाली

सखूी पितयो की तरह िततर- िबतर हो गए। सौदयर और राग के बाजार मे धलू उडने लगी,

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िथएटरो और नृतयशालाओं मे वीरानी छा गयी। ऐसा मालमू होता था िक जैसे सारी सृिष पर जादू छा गया है। शाम होते ही िवजयगढ के धनी-धोरी, जवान- बढूे शीरी बाई की मजािलस की तरफ दौडते थे। सारा देश शीरी की भिकत के नशे मे डूब गया।

िवजयगढ के सचेत केतो मे देशवािसयो के इस पागलपन से एक बचेैनी की हालत पैदा हुई, िसफर यही नही िक उनके देश की दौलत बबाद हो रही थी बिलक उनका राषटीय अिभमान

और तेज भी धलू मे िमल जाता था। जयगढ की एक मामूली नाचनेवाली, चाहे वह िकतनी ही मीठी अदाओं वाली कयो न हो, िवजयगढ के मनोरजंन का केद बन जाय, यह बहुत बडा अनयाय था। आपस मे मशिवरे हुए और देश के परुोिहतो की तरफ से देश के मिनतयो की सवेा मे इस खास उदेशय से एक िशषमणडल उपिसथत हुआ। िवजयगढ के आमोद- पमोद के कताओं की

ओर से भी आवेदनमत पेश होने लगे। अखबारो ने राषटीय अपमान और दुभागय के तराने छेडे। साधारण लोगो के हलको मे सवालो की बौछार होने लगी, यहा तक िक वजीर मजबरू हो

गए, — शीरी बाई के नाम शाही फरमान पहुचँा चूंिक तुमहारे रहने से देश मे उपदव होने की आशंका है इसिलए तुम फौरन िवजयगढ से चली जाओ। मगर यह हुकम अंतराषटीय संबधंो, आपसी इकरारनामे और सभयता के िनयमो के सरासर िखलाफ था। जयगढ के राजदतू ने,

जो िवजयगढ मे िनयुकत था, इस आदेश पर आपित की और शीरी बाई ने आिखरकार उसको मानने से इनकार िकया कयोिक इससे उसकी आजादी और खुदारी और उसके देश के

अिधकारो और अिभमान पर चोट लगती थी।३

यगढ के कूचे और बाजार खामोश थे। सैर की जगहे खाली। तफरीह और तमाशे बनद। शाही महल के लमब-े चौडे सहने और जनता के हर-े भरे मैदानो मे आदिमयो की

भीड थी, मगर उनकी जबाने बनद थी और आंखे लाल। चेहरे का भाव कठोर और कुबध, तयोिरया हुई, माथे पर िशकन, उमडी हुई काली घटा थी, डरावनी, खसमोश, और बाढ को

अपने दामन मे िछपाए हुए।

मगर आम लोगो मे एक बडा हगंामा मचा हुआ था, कोई सुलह का हामी था, कोई लडाई की माग करता था, कोई समझौते की सलाह देता था, कोई कहता था िक छानबीने करने के िलए कमीशन बैठाओ। मामला नाजुक थ, मौका तगं, तो भी आपसी बहस-मुबाहसो,

बदगुमािनयो, और एक- दसूरे पर हमलो का बाजार गमर था। आधी रात गुजर गयी मगर कोई फैसला न हो सका। पूंजी की संगिठत शिकत, उसकी पहुँच और रोबदाब फैसले की जबान

बनद िकये हुए था। तीन पहर रात जा चुकी थी, हवा नीद से मतवाली होकर अंगडाइया ले रही थी और

दरखतो की आंख झपकती थी। आकाश के दीपक भी झलमलाने लगे थे, दरबारी कभी दीवारो की तरफ ताकते थे, कभी छत की तरफ। लेिकन कोई उपाय न सझूता था।

—अचानक बाहर से आवाज आयी युद! युद! सारा शहर इस बुलंद नारे से गंज उठा। —दीवारो ने अपनी खामोश जबान से जवाब िदया युद! यद!

यह अदृष से आने वाली एक पुकार थी िजसने उस ठहराव मे हरकत पैदा कर दी थी। अब ठहरी हुई चीजो मे खलबली- सी मच गयी। दरबारी गोया गलफत की नीद से चौक पडे। जैसे कोई भलूी हईु बात याद आते ही उछल पडे। युद मंती सैयद असकरी ने फरमाया

— कया अब भी लोगो को लडाई का ऐलाल करने मे िहचिकचाहट है? आम लोगो की जबान खुदा का हकुम और उसकी पुकार अभी आपके कानो मे आयी, उसको परूा करना हमारा फजर

है। हमने आज इस लमबी बैठक मे यह सािबत िकया है िक हम जबान के धनी है, पर जबान तलवार ह,ै ढाल नही। हमे इस वकत ढाल की जररत ह,ै आइये हम अपने सीनो को ढाल बना

ले और सािबत कर दे िक हममे अभी वह जौहर बाकी है िजसने हमारे बुजुगों का नाम रोशन िकया। कौमी गैरत िजनदगी की रह है। वह नफे और नुकसान से ऊपर है। वह हणुडी और

रोकड, वसलू और बाकी, तेजी और मनदी की पाबिनदयो से आजाद है। सारी खानो की िछपी

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हुई दौलत, सारी दुिनया की मिणडया, सारी दुिनया के उदोग- धधंे उसके पासंग है। उसे बचाइये वना आपका यह सारा िनजाम िततर- िबतर हो जाएगा, शीरजा िबखर जाएगा, आप िमट — जाएगंे। पैसे वालो से हमारा सवाल है कया अब भी आपको जगं के मामले मे िहचिकचाहट

ह?ै —बाहर से सैकडो की आवाजे आयी जगं! जगं!

— एक सेठ साहब ने फरमाया आप जगं के िलए तैयार है?— असकरी हमेशा से जयादा।

— खवाजा साहब आपको फतेह का यकीन ह?ै— असकरी परूा यकीन है।

दरू- ‘ ’ ’ पास जगं जगं की गरजती हुई आवाजो का ताता बधं गया िक जैसे िहमालय क े िकसी अथाह खडड से हथौडो की झनकार आ रही हो। शहर काप उठा, जमीन थराने लगी,

हिथयार बटंने लगे। दरबािरयो ने एक मत लडाई का फैसला िकया। गैरत जो कुछ ने कर सकती थी, वह अवाम के बारे ने कर िदखाया।

४ ज से तीस साल पहले एक जबदरसत इनकलाब ने जयगढ को िहला डाला था। वषों तक आपसी लडाइयो का दौर रहा, हजारो खानदान िमट गये। सैकडो कसबे बीरान हो

गये। बाप, बटेे के खनू का पयासा था। भाई, भाई की जान का गाहक। जब आिखरकार आजादी की फतेह हुई तो उसने ताज के िफदाइयो को चुन- चुन कर मारा । मुलक के कैदखाने देश- भकतो से भर उठे। उनही जॉँबाजो मे एक िमजा मंसरू भी था। उसे कनौज के

िकले मे कैद िकया गया िजसके तीन तरफ ऊंची दीवारे थी। और एक तरफ गंगा नदी। मंसरू को सारे िदन हथौडे चलान पडते। िसफर शाम को आध घटंे के िलए नमाज की छटुी िमलती थी। उस वकत मंसरू गंगा के िकनारे आ बैठता और देशभाइयो की हालत पर रोता। वह सारी

राषटीय और सामािजक वयवसथा जो उसके िवचार मे राषटीयता का आवशयक अंग थी, इस —हगंामे की बाढ मे नष हो रही थी। वह एक ठणडी आह भरकर कहता जयगढ, अब तरेा खुदा ही रखवाला ह,ै तनूे खाक को अकसीर बनाया और अकसीर को खाक। तनूे खानदान

की इजजत को, अदब और इखलाग का, — इलमो कमाल को िमटा िदया।, बबाद कर िदया। अब तरेी बागडोर तेर हाथ मे नही है, चरवाहे तेरे रखवाले और बिनये तरेे दरबारी है। मगर देख लेना यह हवा है, और चरवाहे और साहूकार एक िदन तझुे खनू के आंसू रलायेगे। धन और वभैव अपना ढंग न छोडेगा, हुकूमत अपना रगं न बदलेगी, लोग चाहे ल जाए ं, लेिकन

िनजाम वही रहेगा। यह तेरे नए शुभ िचनतक जो इस वकत िवनय और सतय और नयाय की मूितरयॉँ बने हूए है, एक िदन वभैव के नशे मे मतवाले होगे, उनकी शिकतया ताज की शिकतयो

से कही जयादा सखत होगी और उनके जुलम कही इससे जयादा तेज।

इनही खयालो मे डूबे हुए मंसरू को अपने वतन की याद आ जाती। घर का नकशा आंखो के सामने िखचं जाता, मासमू बचचे असकरी की पयारी- पयारी सरूत आंखो मे िफर जाती, िजसे तकदीर ने मा के लाड- पयार से विंचत कर िदया था। तब मंसरू एक ठणडी आह खीचकर खडा होता और अपने बेटे से िमलने की पागल इचछा मे उसका जी चाहता िक गंगा मे कूदकर

पार िनकल जाऊँ।धीर-े धीरे इस इचछा ने इरादे की सरूत अिखतयार की। गंगा उमडी हुई थी, ओर-छोर

का कही पता नथ । तेज और गरजती हुई लहरे दौडते हुए पहाडो के समान थी। पाट देखकर सनर मे चकर- सा आ जाता था। मंसरू ने सोचा, नही उतरने दूं। लेिकन नदी उतरने

के बदले भयानक रोग की तरह बढती जाती थी, यहा तक िक मंसरू को िफर धीरज न रहा, एक िदन वह रात को उठा और उस पुरशोर लहरो से भरे हुए अंधेरे मे कुछ पडा।

मंसरू सारी रात लहरो के साथ लडता- िभडता रहा, जैसे कोई ननही- सी िचिडया तफूान मे थपेडे खा रही हो, कभी उनकी गोद मे िछपा हुआ, कभी एक रेले मे दस कदम आगे, कभी

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एक धके मे दस कदम पीछे। िजनदगी की िलखावट की िजनदा िमसाल। जब वह नदी के पार हुआ तो एक बेजान लाश था, िसफर सास बाकी थी और सास के साथ िमलने की इचछा।

इसके तीसरे िदन मंसरू िवजयगढ जा पहुचँा। एक गोद मे असकरी था और दसूर े हाथ मे गरीबी का छोटा- साउ एक बुकचा। वहा उसने अपना नाम िमजा जलाल बताया।

हुिलया भी बदल िलया था, हटा- कटा सजीला जवान था, चेहरे पर शराफत और कुशीलनता की कािनत झलकती थी; नौकरी के िलए िकसी और िसफािरश की जररत न थी। िसपािहयो

मे दािखल हो गया और पाच ही साल मे अपनी िखदमतो और भरोसे की बदौलत मनदौर के सरहदी पहाडी िकले का सबूेदार बना िदया गया।

लेिकन िमजा जलाल को वतन की याद हमेशा सताया करती। वह असकरी को गोद मे ले लेता और कोट पर चढकर उसे जयगढ की वह मुसकराती हुई चरागाहे और मतवाले

झरने और सुथरी बिसतया िदखाता िजनके कंगरूे िकले से नजर आते। उस वकत बेअिखतयार उसके िजगर से सदर आह िनकल जाती और ऑंखे डबडबा आती। वह असकरी को गले लगा

—लेता और कहता बेटा, वह तुमहार देश है। वही तुमहारा और तुमहारे बुजुगों का घोसला है। तुमसे हो सके तो उसके एक कोने मे बैठे हुए अपनी उम खतम कर देना, मगर उसकी आन मे कभी बटा न लगाना। कभी उससे दया मत करना कयोिक तुम उसी िक िमटी और पानी से

पैदा हुए हो और तुमहारे बुजुगों की पाक रहे अब भी वहा मंडला रही है। इस तरह बचपने से ही असकरी के िदल पर देश की सेवा और पेम अंिकत हो गया था। वह जवान हुआ, तो

जयगढ पर जान देता था। उसकी शान- शौकत पर िनसार, उसके रोबदाब की माला जपने वाला। उसकी बेहतरी को आगे बढाने के िलए हर वकत़ तयैार। उसके झणडे को नयी अछूती

धरती मे गाडने का इचछुक। बीस साल का सजीला जवान था, इरादा मजबतू, हौसले बुलनद, िहममत बडी, फौलादी िजसम, आकर जयगढ की फौज मे दािखल हो गया और इस वकत जयगढ की फौज का चमकजा सरूज बन हुआ था।

५ — यगढ ने अलटीमेटम दे िदया अगर चौिबस घणटो के अनदर शीरी बाई जयगढ न पहुचँी

तो उसकी अगवानी के िलए जयगढ की फौज रवाना होगी।ज — िवजयगढ ने जवाब िदया जयगढ की फौज आये, हम उसकी अगवानी के िलए हािजर

है। शीरी बाई जब तक यहा की अदालत से हुकम- उदलूी की सजा न पा ले, वह िरहा नही हो सकती और जयगढ को हमारे अंदरनी मामलो मे दखल देने का कोई हक नही।

असकरी ने मुंहमागी मरुाद पायी। खुिफया तौर पर एक दतू िमजा जलाल के पास —रवाना िकया और खत मे िलखा

‘ आज िवजयगढ से हमारी जगं िछड गयी, अब खुदा ने चाहा तो दुिनया जयगढ की तलवार का लोहा मान जाएगी। मंसरू का बटेा असकरी फतेह के दरबार का एक अदना दरबारी बन सकेगा और शायद मेरी वह िदली तमना भी परूी हो जो हमेशा मेरी रह को तडपाया करती है। शायद मै िमजा मंसरू को िफर जयगढ की िरयासत मे एक ऊंची जगह पर

बैठे देख सकूं। हम मनदौर मे न बोलेगे और आप भी हमे न छेिडएगा लेिकन अगर खुदा न खवासता कोई मुसीबत आ ही पडे तो आप मेरी यह मुहर िजस िसपाही या अफसर को िदखा

देगे वह आपकी इजजत करेगा। और आपको मरेे कैमप मे पहुँचा देगा। मुझे यकीन है िक अगर जररत पडे तो उस जयगढ के िलए जो आपके िलए इतना पयारा है और उस असकरी के खाितर जो आपके िजगर का टुकडा है, आप थोडी- सी तकलीफ से ( मुमिकन है वह रहानी

तकलीफ हो) ’दरेग न फरमायेगे। इसके तीसरे िदन जयगढ की फौज ने िवजयगढ पर हमला िकया और मनदौर से पाच

मील के फासले पर दोनो फौजो का मुकाबला हुआ। िवजयगढ को अपने हवाई जहाजो, जहरीले गडढो और दरू तक मार करने वाली तोपो का घमणड था। जयगढ को अपनी फौज

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की बहादरुी, जीवट, समझदारी और बुिद का था। िवजयगढ की फौज िनयम और अनुशासन की गुलाम थी, जयगढ वाले िजममेदारी और तमीज के कायल।

एक महीने तक िदन-रात, मार- काट के माके होता रहे। हमेशा आग और गोलो और जहरीली हवाओं का तफूान उठा रहता। इनसान थक जाता था, पर कले अथक थी। जयगिढयो के हौसले पसत हो गय,े बार- बार हार पर हार खायी। असकरी को मालमू हुआ िक िजममेदारी फतेह मे चाहे किरशमे कर िदखाय,े पर िशकसत मे मैदान हुकम की पाबनदी ही क े

साथ रहता है। जयगढ के अखबारो ने हमले शुर िकये। असकरी सारी कौम की लानत- मलामत का

िनशाना बन गया। वही असकरी िजस पर जयगढ िफदा होता था सबकी नजरो का काटा हो गया। अनाथ बचचो के आंसू, िवधवाओं की आह,े घायलो की चीख-पुकार, वयापिरयो की

तबाही, — राषट का अपमान इन सबका कारण वही एक वयिकत असकरी था। कौम की अगुवाई सोने की राजिसंहासन भले ही हो पर फूलो की मेज वह हरिगज नही।

जब जयगढ की जान बचने की इसके िसवा और कोई सरूत न थी िक िकसी तरह िवरोधी सेना का समबनध मनदौर के िकले से काट िदया जाय, जो लडाई और रसद के सामान

और यातायात के साधनो का केद था। लडाई किठन थी, बहुत खतरनाक, सफलता की आशा बहुत कम, असफलता की आशंका जी पर भारी। कामयाबी अगर सखूे धान का पानी

थी तो नाकामी उसकी आग। मगर छुटकारे की और कोई दसूरी तसवीर न थी। असकरी ने —िमजा जलाल को िलखा

‘ पयारे अबबाजान, अपने िपछले खत मे मैने िजस जररत का इशारा िकया था, बदिकसमती से वह जररत आ पडी। आपका पयारा जयगढ भेिडयो के पजंे मे फंसा हुआ है

और आपका पयारा असकरी नाउममीदो के भवंर मे, दोनो आपकी तरफ आस लगाये ताक रह े है। आज हमारी आिखरी कोिशश, हम मुखािलफ फौज को मनदौर के िकले से अलग करना

चाहते है। आधी रात के बाद यह माका शुर होगा। आपसे िसफर इतनी दरखवासत है िक अगर हम सर हथेली पर लेकर िकले के सामने तक पहुँच सके, तो हमे लोहे के दरवाजे से सर

टकराकर वापस न होना पडे। वना आप अपनी कौम की इजजत और अपने बेटे की लाश को उसी जगह पर तडपते देखेगे और जयगढ आपको कभी मुआफ न करेगा। उससे िकतनी ही

’तकलीफ कयो न पहुचँी हो मगर आप उसके हको से सबुुकदोश नही हो सकते। शाम हो चुकी थी, मैदाने जगं ऐसा नजर आता था िक जैसे जगंल जल गया हो।

िवजयगढी फौज एक खूंरेज माके के बाद खनदको मे आ रही थी, घायल मनदौर के िकले के असपताल मे पहुँचाये जा रहे थे, तोपे थककर चुप हो गयी थी और बनदकूे जरा दम ले रही

थी। उसी वकत जयगढी फौज का एक अफसर िवजयगढी वदी पहने हुए असकरी के खेमे से िनकला, थकी हुई तोपे, सर झुकाये हवाई जहाज, घोडो की लाशे, औधंी पडी हईु हवागािडया,

और सजीव मगर टूट-े फूटे िकले, उसके िलए पदे का काम करने लगे। उनकी आड मे िछपता हुआ वह िवजयगढी घायलो की कतार मे जा पहुँचा और चुपचाप जमीन पर लटे गया।

६ धी रात गुजर चुकी थी। मनदौर या िकलेदार िमजा जलाल िकले की दीवार पर बैठा ‘ हुआ मैदाने जगं का तमाशा देख रहा था और सोचता था िक असकरी को मुझे ऐसा

खत िलखने की िहममत कयोकर हुई। उसे समझना चािहए था िक िजस शखस़ ने अपने उसलूो पर अपनी िजनदगी नयौछावर कर दी, देश से िनकाला गया, और गलुामी का तौक गदरन मे

डाला वह अब अपनी िजनदगी के आिखरी दौर मे ऐसा कोई काम न करेगा, िजससे उसको बटा लगे। अपने उसलूो को न तोडेगा। खुदा के दरबार मे वतन और वतनवाले और बटेा एक भी साथ न देगा। अपने बुर-े भले की सजा या इनाम आप ही भुगतना पडेगा। िहसाब के रोज

उसे कोई न बचा सकेगा।

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‘तौबा! जयगिढयो से िफर वही बवेकूफी हुई। खामखाह गोलबेारी से दुशमनो को खबर देने की कया जररत थी? अब इधर से भी जवाब िदया जायेगा और हजारो जाने जाया होगी। रात के अचानक हमले के माने तो यह है िक दुशमन सर पर आ जाए और कान खबर न हो,

चौतरफा खलबली पड जाय। माना िक मौजूदा हालत मे अपनी हरकतो को पोशीदा रखना शायद मुिशकल है। इसका इलाज अंधरेे के खनदक से करना चािहये था। मगर आज शायद उनकी गोलेबारी मामूल से जया तेज है। िवजयगढ की कतारो और तमाम मोचबेिनदयो को चीरकर बजािहर उनका यहा तक आना तो मुहाल मालमू होता था, लेिकन अगर मान लो आ ही

जाए ं तो मुझे कया करना चािहये। इस मामले को तय कयो न कर लूँ? खबू, इसमे तय करने की बात ही कया है? मेरा रासता साफ है। मै िवजयगढ का नमक खाता हूँ। मै जब बेघरबार,

परेशान और अपने देश से िनकला हुआ था तो िवजयगढ ने मुझे अपने दामन मे पनाह दी और मेरी िखदमतो का मुनािसब िलहाज िकय। उसकी बदौलत तीस साल तक मेरी िजनदगी

नेकनामी और इजजत से गुजरी। उसके दगा करना हद दजे की नमक- हरामी है। ऐसा गुनाह िजसकी कोई सजा नही! वह ऊपर शोर हो रहा है। हवाई जहाज होगे, वह गोला िगरा, मगर खैिरयत हुई, नीचे कोई नही था।‘ मगर कया दगा हर एक हालत मे गुनाह है? ऐसी हालते भी तो है, जब दगा वफा से भी

जयादा अचछी हो जाती है। अपने दुशमन से दगा करना कया गुनाह है? अपनी कौम के दशुमन से दगा करना कया गुनाह है? िकतने ही काम जो जाती हैिसयत से ऐसे होते है िक उनहे माफ नही िकया जा सकता, कौमी हैिसयत से नेक काम हो जाते है। वही बेगुनाह का खनू जो जाती

हैिसयत से सखत़ सजा के कािबल है, मजहबी हैिसयत से शहादत का दजा पाता है, और कौमी हैिसयत से देश- पेम का। िकतनी बरेहिमया और जुलम, िकतनी दगाए ं और चालबािजया,

कौमी और मजहबी नकुत-े िनगाह से िसफर ठीक ही नही, फजों मे दािखल हो जाती है। हाल की यरूोप की बडी लडाई मे इसकी िकतनी ही िमसाले िमल सकती है। दुिनया का इितहास ऐसी दगाओं से भरा पडा है। इस नये दौर मे भले और बरुे का जाती एहसास कौमी मसलहत

के सामने कोई हकीकत नही रखता। कौिमयत ने जात को िमटा िदया है। मुमिकन है यही खुदा की मंशा हो। और उसके दरबार मे भी हमारे कारनामे कौम की कसौटी ही पर परखे जाय।ं यह मसला इतना आसान नही है िजतना मै समझता था।‘ िफर आसमान मे शोर हुआ इतना मगर शायद यह इधर की के हवाई जहाज है। जयगढ वाले बडे दमखम से लड रहे है। इधर वाले दबते नजर आते है। आज यकीनन मैदान

उनही के हाथ मे रहेगा। जान पर खेले हुए है। जयगढी वीरो की बहादुरी मायसूी ही मे खबू खुलती है। उनकी हार जीत से भी जयादा शानदार होती है। बेशक, असकरी दॉँव- पेच का उसताद है, िकस खबूसरूती से अपनी फौज का रख िकले के दरवाजे की तरफ फेर िदया।

मगर सखत गलती कर रहे है। अपने हाथो अपनी कब खोद रहे है। सामने का मैदान दुशमन के िलए खाली िकये देते है। वह चाहे तो िबना रोक- टोक आगे बढ सकता है और सबुह तक

िकये देते है। वह चाहे तो िबना रोक- टोक आगे बढ सकता है। और सुबह तक जयगढ की सरजमीन मे दािखल हो सकता है। जयगिढयो के िलए वापसी या तो गैरमुमिकन है या

िनहायत खतरनाक। िकले का दरवाजा बहुत मजबतू है। दीवारो की संिधयो से उन पर बेशुमार बनदकूो के िनशाने पडेगे। उनका इस आग मे एक घणटा भी ठहरना मुमिकन नही है।

कया इतने देशवािसयो की जाने िसफर एक उसलू पर, िसफर िहसाब के िदन के डर पर, िसफर अपने इखलाकी एहसास पर कबुान कर दूँ? और महज जाने ही कयो? इस फौज की तबाही जयगढ की तबाही है। कल जयगढ की पाक सरजमीन दशुमन की जीत के नककारो से गूंज उठेगी। मेरी माए ं, बहने और बेिटया हया को जलाकर खाक कर देने वाली हरकतो का िशकार

होगी। सारे मुलक मे कतल और तबाही के हगंामे बरपा होगे। पुरानी अदावत और झगडो के शोले भडकेगे। किबसतान मे सोयी हुई रहे दशुमन के कदमो से पामाल होगी। वह इमारते जो हमारे िपछले बडपपन की िजनद िनशािनयॉँ है, वह यादगारे जो हमारे बुजुगों की देन है, जो हमार े

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कारनामो के इितहास, हमारे कमालो का खजाना और हमारी मेहनतो की रोशन गवािहया है, िजनकी सजावट और खबूी को दुिनया की कौमे सपदा की आंखो से देखती है वह अदर-बबरर, असभय लशकिरयो का पडाव बनेगी और उनके तबाही के जोश का िशकार। कया अपनी कौम

को उन तबािहयो का िनशाना बनने दूं? महज इसिलए िक वफा का मरेा उसलू न टूट?े‘उफ,् यह िकले मे जहरीले गैस कहा से आ गये। िकसी जयगढी जहाज की हरकत

होगी। सर मे चकर- सा आ रहा है। यहा से कुमक भेजी जा रही है। िकले की दीवार के सरूाखो मे भी तोपे चढाई जा रही है। जयगढवाले िकले के सामने आ गये। एक धावे मे वह

हुंमायूं दरवाजे तक आ पहुचँेगे। िवजयगढ वाले इस बाढ को अब नही रोक सकते। जयगढ वालो के सामने कौन ठहर सकता है? या अललाह, िकसी तरह दरवाजा खुद-ब- खुद खुल

जाता, कोई जयगढी हवाबाज मुझसे जबदरसती कुजंी छीन लेता। मुझे मार डालता। आह, मेरे इतने अजीज हम- वतन पयारे भाई आन की आन मे खाक मे िमल जायेगे और मै बेबस हूँ! हाथो

मे जजंीर ह,ै परैो मे बेिडया। एक- एक रोआं रिससयो से जकडा हुआ है। कयो न इस जजंीर को तोड दूँ, इन बेिडयो के टकुड-े टुकडे कर दूं, और दरवाजे के दोनो बाजू अपने अजीज

फतेह करने वालो की अगवानी के िलए खोल दूं! माना िक यह गुनाह है पर यह मौका गुनाह से डरने का नही। जहनुम की आग उगलने वाले साप और खनू पीन वाले जानवर और लपकते

हुए शोले मरेी रह को जलाये, तडपाये कोई बात नही। अगर महज मेरी रह की तबाही, मेरी कौम और वतन को मौत के गडढे से बचा सके तो वह मुबारक है। िवजयगढ ने जयादती की

ह,ै उसने महज जयगढ को जलील करने के िलए िसफर उसको भडकाने के िलए शीरी बाई को शहर- िनकाले को हकुम़ जारी िकया जो सरासर बेजा था। हाय, अफसोस, मैने उसी वकत

इसतीफा न दे िदया और गुलामी की इस कैद से कयो न िनकल गया।‘ हाय गजब, जयगढी फौज खनदको तक पहुचँ गयी, या खुदा! इन जाबाजो पर रहम

कर, इनकी मदद कर। कलदार तोपो से कैसे गोले बरस रहे है, गोया आसमान के बेशुमार तारे टूट पडते है। अललाह की पनाह, हुमायूं दरवाजे पर गोलो की कैसी चोटे पड रही है। कान के परदे फटे जाते है। काश दरवाजा टूट जाता! हाय मरेा असकरी, मेरे िजगर का

टकुडा, वह घोडे पर सवार आ रहा है। कैसा बहादुर, कैसा जाबाज, कैसी पकी िहममत वाला! आह, मुझ अभागे कलमुंहे की मौत कयो नही आ जाती! मेरे सर पर कोई गोला कयो नही आ िगरता! हाय, िजस पौधे को अपने िजगर के खनू से पाला, जो मेरी पतझड जैसी िजनदगी का

सदाबहार फूल था, जो मेरी अंधेरी रात का िचरा, मेरी िजनदगी की उममीद, मेरी हसती का दारोमदार, मेरी आरजू की इनतहा था, वह मरेी आंखो के सामने आग के भवंर मे पडा हुआ है,

और मै िहल नही सकता। इस काितल जजंीर को कयोकर तोड दूं? इस बागी िदल को कयोकर समझाऊं? मुझे मुंह मे कािलख लगाना मंजूर है, मुझे जहनुम की मुसीबते झेलना मंजूर

ह,ै मै सारी दुिनया के गुनाहो का बोझ अपने सर पर लेने को तैयार हूँ, िसफर इस वकत मुझ े गुनाही करने की, वफा के पैमाने को तोडने की, नमकहराम बनने की तौफीक दे! एक लमहे क े

िलए मुझे शैतान के हवाले कर दे, मै नमक हराम बनूंगा, दगाबाज बनूंगा पर कौमफरोश नही बन सकता!

‘आह, जािलम सुरगंे उडाने की तैयारी कर रहे है। िसपहसालार ने हुकम दे िदया। वह तीन आदमी तहखाने की तरफ चले। िजगर काप रहा है, िजसम काप रहा है। यह आिखरी मौका है। एक लमहा और, बस िफर अंधेरा है और तबाही। हाय, मेरे ये बवेफा हाथ- पाव अब

भी नही िहलते, जैसे इनहोने मुझसे मुंह मोड िलया हो। यह खनू अब भी गरम नही होता। आह, वह धमाके की आवाज हुई, खुदा की पनाह, जमीन कॉँप उठी, हाय असकरी, असकरी, रखसत, मेरे पयारे बटे,े रखसत, इस जािलम बरेहम बाप ने तझुे अपनी वफा पर कबुान कर िदया! मै तरेा बाप न था, तरेा दशुमन था! मैने तरेे गले पर छरुी चलयी। अब धुआं साफ हो

गया। आह वह फौज कहा है जो सैलाब की तरह बढती आती थी और इन दीवारो से टकरा

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रही थी। खनदके लाशो से भरी हुई है और वह िजसका मै दुशमन था, िजसका काितल, वह बटेा, वह मरेा दुलारा असकरी कहा है, कही नजर नही आता....आह.... ’।

—‘ ’जमाना , नवमबर, १९१८

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पपपपपप पपपपपप

त के नौ बज गये थे, एक यवुती अंगीठी के सामने बैठी हईु आग फंूकती थी और उसके गाल आग के कनुदनी रगं मे दहक रहे थ। उसकी बडी- बडी आंखे दरवाजे की तरफ लगी

हुई थी। कभी चौककर आंगन की तरफ ताकती, कभी कमरे की तरफ। िफर आनवेालो की इस दरेी से तयोिरयो पर बल पड जाते और आंखो मे हलका- सा गुससा नजर आता। कमल पानी मे झकोले खाने लगता।

रा

इसी बीच आनेवालो की आहट िमली। कहर बाहर पडा खराटे ले रहा था। बढूे लाला हरनामदास ने आते ही उसे एक ठोकर लगाकर कहा-कमबखत, अभी शाम हुई है और अभी से

लमबी तान दी! — नौजवान लाला हिरदास घर मे दािखल हुए चहेरा बुझा हुआ, िचिनतत। दवेकी ने

—आकर उनका हाथ पकड िलया और गसुसे व पयार की िमली ही हुई आवाज मे बोली आज इतनी दरे कयो हुई?

— दोनो नये िखले हुए फूल थे एक पर ओस की ताजगी थी, दसूरा धपू से मरुझाया हुआ।

—हिरदास हा, आज देर हो गयी, तुम यहा कयो बैठी रही?— देवकी कया करती, आग बुझी जाती थी, खाना न ठनडा हो जाता।— हिरदास तुम जरा-से- काम के िलए इतनी आग के सामने न बैठा करो। बाज आया

गरम खाने से।—देवकी अचछा, कपडे तो उतारो, आज इतनी दरे कयो की?— हिरदास कया बताऊ,ँ िपताजी ने ऐसा नाक मे दम कर िदया है िक कछु कहते नही

बनता। इस रोज- रोज की झझंट से तो यही अचछा िक मै कही और नौकरी कर लूं। लाला हरनामदास एक आटे की चकी के मािलक थे। उनकी जवानी के िदनो मे आस-

पास दसूरी चकी न थी। उनहोने खबू धन कमाया। मगर अब वह हालत न थी। चिकया कीड-े मकोडो की तरह पैदा हो गयी थी, नयी मशीनो और ईजादो के साथ। उसके काम

करनेवाले भी जोशीले नौजवान थे, मुसतैदी से काम करते थे। इसिलए हरनामदास का कारखाना रोज िगरता जाता था। बढूे आदिमयो को नयी चीजो से िचढ हो जाती है। वह लाला हरनामदास को भी थी। वह अपनी पुरानी मशीन ही को चलाते थे, िकसी िकसम की तरकी या

सुधार को पाप समझते थे, मगर अपनी इस मनदी पर कुढा करते थे। हिरदास ने उनकी मजी के िखलाफ कालेिजयेट िशका पापत की थी और उसका इरादा था िक अपने िपता के कारखाने को नये उसलूो पर चलाकर आगे बढाये। लेिकन जब वह उनसे िकसी पिरवतरन या सुधार का

— िजक करता तो लाला साहब जामे से बाहर हो जाते और बडे गवर से कहते कालेज मे पढने से तजुबा नही आता। तुम अभी बचचे हो, इस काम मे मेरे बाल सफेद हो गये है, तुम मुझे

सलाह मत दो। िजस तरह मै कहता हूँ, काम िकये जाओ। कई बार ऐसे मौके आ चुके थे िक बहुत ही छोटे मसलो मे अपने िपता की मजी के

िखलाफ काम करने के जुमर मे हिरदास को सखत फटकारे पडी थी। इसी वजह से अब वह इस काम मे कछु उदासीन हो गया थ और िकसी दसूरे कारखाने मे िकसमत आजमाना चाहता था जहा उसे अपने िवचारो को अमली सरूत देने की जयादा सहूलते हािसल हो।

— देवकी ने सहानुभिूतपवूरक कहा तुम इस िफक मे कयो जान खपाते हो, जैसे वह कहे, वैसे ही करो, भला दसूरी जगह नौकरी कर लोगे तो वह कया कहेगे? और चाहे वे गुससे के मार े कुछ न बोले, लेिकन दुिनया तो तुमही को बरुा कहेगी।

देवकी नयी िशका के आभषूण से विंचत थी। उसने सवाथर का पाठ न पढा था, मगर ‘ ’ उसका पित अपने अलमामेटर का एक पितिषत सदसय था। उसे अपनी योगयता पर परूा भरोसा था। उस पर नाम कमाने का जोश। इसिलए वह बढूे िपता के परुाने ढरो को देखकर

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धीरज खो बैठता था। अगर अपनी योगयताओं के लाभपद उपयोग की कोिशश के िलए दुिनया उसे बरुा कहे, — तो उसकी परवाह न थी। झुंझलाकर बोला कुछ मै अमिरत की घिरया पीकर तो नही आया हूँ िक सारी उम उनके मरने का इतंजार करँ। मूखों की अनुिचत टीका-

िटपपिणयो के डर से कया अपनी उम बरबार कर दूं? मै अपने कुछ हमउमो को जानता हूँ जो हरिगज मरेी- सी योगयता नही रखते। लेिकन वह मोटर पर हवा खाने िनकलते है, बगंलो मे

रहते है और शान से िजनदगी बसर करते है तो मै कयो हाथ पर हाथ रखे िजनदगी को अमर समझे बैठा रहूँ! सनतोष और िनसपृहता का युग बीत गया। यह संघषर का युग है। यह मै जानता हूँ िक िपता का आदर करना मरेा धमर है। मगर िसदातो के मामले मे मै उनसे कया,

िकसी से भी नही दब सकता। — इसी बीच कहार ने आकर कहा लाला जी थाली मागते है। लाल हरनामदास िहनदू रसम- िरवाज के बडे पाबनद थे। मगर बुढापे के कारण चौक के

चकर से मुिकत पा चुके थे। पहले कुछ िदनो तक जाडो मे रात को पिूरया न हजम होती थी इसिलए चपाितया ही अपनी बैठक मे मंगा िलया करते थे। मजबरूी ने वह कराया था जो हुजजत और दलील के काबू से बाहर था।

हिरदास के िलए भी देवकी ने खाना िनकाला। पहले तो वह हजरत बहुत दुखी नजर आते थे, लेिकन बघार की खुशबू ने खाने के िलए चाव पैदा कर िदया था। अकसर हम अपनी आंख और नाक से हाजमे का काम िलया करते है।

२ ला हरनामदास रात को भले- चगंे सोये लेिकन अपने बटेे की गुसतािखया और कुछ अपने

कारबार की सुसती और मनदी उनकी आतमा के िलए भयानक कष का कारण हो गयी और चाहे इसी उिदगनता का असर हो, चाहे बुढापे का, सुबह होने से पहले उन पर लकवे का हमला हो गय। जबान बनद हो गयी और चेहरा ऐठं गया। हिरदास डाकटर के पास दौडा। डाकटर आय,े — मरीज को देखा और बोले डरने की कोई बात नही। सहेत होगी मगर तीन

महीने से कम न लगेगे। िचनताओं के कारण यह हमला हुआ है इसिलए कोिशश करनी चािहये िक वह आराम से सोये, परेशान न हो और जबान खुल जाने पर भी जहा तक मुमिकन हो,

बोलने से बचे।

ला

बचेारी दवेकी बैठी रो रही थी। हिरदास ने आकर उसको सानतवना दी, और िफर डाकटर के यहा से दवा लाकर दी। थोडी देर मे मरीज को होश आया, इधर- उधर कछु खोजती हुई- सी िनगाहो से देखा िक जैसे कछु कहना चाहते है और िफर इशारे से िलखन क े

िलए कागज मागा। हिरदास ने कागज और पेिसल रख दी, तो बढूे लाला साहब ने हाथो को — खबू समहालकर िलख इनतजाम दीनानाथ के हाथ मे रहे।

ये शबद हिरदास के हृदय मे तीर की तरह लगे। अफसोस! अब भी मुझ पर भरोसा नही! यानी िक दीनानाथ मेरा मािलक होगा और मै उसका गुलाम बनकर रहूँगा! यह नही होने

— का। कागज िलए दवेकी के पास आये और बोले लालाजी ने दीनानाथ को मैनेजर बनाया है, उनहे मुझ पर इतना एतबार भी नही है, लेिकन मै इस मौके को हाथ से न दूंगा। उनकी बीमारी

का अफसोस तो जरर है मगर शायद परमातमा ने मुझे अपनी योगयता िदखलाने का यह अवसर िदया है। और इससे मै जरर फायदा उठाऊँगा। कारखाने के कमरचािरयो ने इस दुघरटना की खबर सुनी तो बहुत घबराये। उनमे कई िनकममे, बेमसरफ आदमी भरे हुए थे, जो

िसफर खुशामद और िचकनी- चुपडी बातो की रोटी खाते थे। िमसती ने कई दसूरे कारखानो मे मरममत का काम उठा िलया था रोज िकसी-न- िकसी बहाने से िखसक जाता था। फायरमैन

और मशीनमैन िदन को झठू- मूठ चकी की सफाई मे काटते थे और रात के काम करके ओवर टाइम की मजदरूी िलया करते थे। दीनानाथ जरर होिशयार और तजुबेकार आदमी था, मगर

‘ ’ उसे भी काम करने के मुकािबले मे जी हा रटते रहने मे जयादा मजा आता था। लाला

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हरनामदास मजदरूी देन मे बहुत हीले- हवाले िकया करते थे और अकसर काट- कपट के भी आदी थे। इसी को वह कारबार का अचछा उसलू समझाते थे।

हिरदास ने कारखाने मे पहुँचते ही साफ शबदो कह िदय िक तुम लोगो को मेरे वकत मे जी लगाकर काम करना होगा। मै इसी महीन मे काम देखकर सब की तरकी करंगा। मगर अब टाल- मटोल का गुजर नही, िजनहे मंजूर न हो वह अपना बोिरया- िबसतर समहाले और िफर

दीनानाथ को बलुाकर कहा- भाई साहब, मुझे खबू मालमू है िक आप होिशयार और सझू-बझू रखनवेाले आदमी है। आपने अब तक यह यहा का जो रगं देखा, वही अिखतयार िकया है।

लेिकन अब मुझे आपके तजबुे और मेहनत की जररत है। परुाने िहसाबो की जाच-पडताल िकिजए। बाहर से काम मेरा िजममा है लेिकन यहा का इनतजाम आपके सुपुदर है। जो कुछ

नफा होगा, उसमे आपका भी िहससा होगा। मै चाहता हूँ िक दादा की अनुपिसथित मे कछु अचछा काम करके िदखाऊँ।

इस मुसतैदी और चसुती का असर बहुत जलद कारखाने मे नजर आने लगा। हिरदास ने खबू इशतहार बटंवाये। उसका असर यह हुआ िक काम आने लगा। दीनानाथ की मुसतैदी की बदौलत गाहको को िनयत समय पर और िकफायत से आटा िमलने लगा। पहला महीना भी खतम न हुआ था िक हिरदास ने नयी मशीन मंगवायी। थोडे अनुभवी आदमी रख िलये, िफर कया था, सारे शहर मे इस कारखाने की धमू मच गयी। हिरदास गाहको से इतनी अचछी तरह

से पेश आता िक जो एक बार उससे मुआमला करता वह हमेशा के िलए उसका खरीदार बन — जाता। कमरचािरयो के साथ उसका िसदात था काम सखत और मजदरूी ठीक। उसके ऊंचे वयिकततव का भी सपसट पभाव िदखाई पडा। करीब- करीब सभी कारखानो का रगं फीका पड

गया। उसने बहुत ही कम नफे पर ठेले ले िलये। मशीन को दम मारने की मोहलत न थी, रात और िदन काम होता था। तीसरा महीना खतम होते- होते उस कारखाने की शकल ही बदल

गयी। हाते मे घुसते ही ठेले और गािडयो की भीड नजर आती थी। कारखाने मे बडी चहल- पहल थी- हर आदमी अपने अपने काम मे लगा हुआ। इसके साथ की पबनध कौशल का यह वरदान था िक भदी हडबडी और जलदबाजी का कही िनशान न था।

३ ला हरनामदास धीर-े धीरे ठीक होने लगे। एक महीने के बाद वह रककर कछु बोलने

लगे। डाकटर की सखत ताकीद थी िक उनहे परूी शािनत की िसथित मे रखा जाय मगर —जब उनकी जबान खुली उनहे एक दम को भी चैन न था। देवकी से कहा करते सारा

कारबार िमटी मे िमल जाता है। यह लडका मालमू नही कया कर रहा है, सारा काम अपने हाथ मे ले रखा है। मैने ताकीद कर दी थी िक दीनानाथ को मैनेजर बनाना लेिकन उसने जरा

भी परवाह न की। मेरी सारी उम की कमाई बरबाद हुई जाती है।

ला

देवकी उनको सानतवना देती िक आप इन बातो की आशंका न करे। कारबार बहुत खबूी से चल रहा है और खबू नफा हो रहा है। पर वह भी इस मामले मे तलू देते हुए डरती

थी िक कही लकवे का िफर हमला न हो जाय। हूं- हा कहकर टालना चाहती थी। हिरदास जयो ही घर मे आता, लाला जी उस पर सवालो की बौछार कर देते और जब वह टालकर कोई —दसूरा िजक छेड देता तो िबगड जाते और कहते जािलम, तू जीते जी मेरे गले पर छरुी फरे

रहा है। मेरी पूंजी उडा रहा है। तझुे कया मालमू िक मैने एक- एक कौडी िकस मशकत से जमा की है। तनूे िदल मे ठान ली है िक इस बुढापे मे मुझे गली- गली ठोकर िखलाये, मुझ े

कौडी- कौडी का मुहतात बनाये। हिरदास फटकार का कोई जवाब न देता कयोिक बात से बात बढती है। उसकी चपुपी

से लाला साहब को यकीन हो जाता िक कारखाना तबाह हो गया। — एक रोज दवेकी ने हिरदास से कहा अभी िकतने िदन और इन बातो का लालाजी से

िछपाओगे?

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— हिरदास ने जवाब िदया मै तो चाहता हूँ िक नयी मशीन का रपया अदा हो जाय तो उनहे ले जाकर सब कुछ िदखा दूँ। तब तक डाकटर साहब की िहदायत के अनुसार तीन महीने परूे भी हो जायेगे।

— देवकी लेिकन इस िछपाने से कया फायदा, जब वे आठो पहर इसी की रट लगाये रहते है। इससे तो िचनता और बढती ही है, कम नही होती। अससे तो यही अचछा है, िक उनसे सब कुछ कह िदय जाए।

— हिरदास मेरे कहने का तो उनहे यकीन आ चुका। हा, दीनानाथ कहे तो शायद यकीन हो

— देवकी अचछा तो कल दीनानाथ को यहा भेज दो। लालाजी उसे देखते ही खुद बुला लेगे, तुमहे इस रोज- रोज की डाट- फटकर से तो छटुी िमल जाएगी।

— हिरदास अब मुझे इन फटकारो का जरा भी दुख नही होता। मरेी मेहनत और योगयता का नतीजा आंखो के सामने मौजूद है। जब मैने कारखाना आने हाथ मे िलया था, आमदनी और खचर का मीजान मुिशकल से बैठता था। आज पाच से का नफा है। तीसरा

महीना खतम होनवेाला है और मै मशीन की आधी कीमत अदा कर चुका। शायद अगले महीने दो महीने मे परूी कीमत अदा हो जायेगी। उस वकत से कारखाने का खचर ितगुने से जयादा है

लेिकन आमदनी पचंगुनी हो गयी है। हजरत देखेगे तो आंखे खुल जाएगंी। कहा हाते मे उललू बोलते थे। एक मेज पर बैठे आप ऊंघा करते थे, एक पर दीनानाथ कान कुरेदा करता था। िमसती और फायरमैन ताश खेलते थ। बस, दो- चार घणटे चकी चल जाती थी। अब दम

मारने की फरुसत नही है। सारी िजनदगी मे जो कुछ न कर सके वह मैने तीन महीने मे करके िदखा िदया। इसी तजुबे और काररवाई पर आपको इतना घमणड था। िजतना काम वह

एक महीने मे करते थे उतना मै रोज कर डालता हूँ। — देवकी ने भतसरनापणूर नेतो से देखकर कहा अपने मुंह िमया िमटू बनना कोई तुमसे

सीख ले! िजस तरह मा अपने बटेे को हमेशा दबुला ही समझती है, उसी तरह बाप बटेे को हमेशा नादान समझा करता है। यह उनकी ममता ह,ै बुरा मानने की बात नही है।

हिरदास ने लिजजत होकर सर झुका िलया। दसूरे रोज दीनानाथ उनको देखने के बहाने से लाला हरनामदास की सेवा मे उपिसथत

हुआ। लालाजी उसे देखते ही तिकये के सहारे उठ बैठे और पागलो की तरह बचेैन होकर —पछूा कयो, कारबार सब तबाह हो गया िक अभी कछु कसर बाकी है! तुम लोगो ने मुझे मुदा समझ िलया है। कभी बात तक न पछूी। कम से कम मुझे ऐसी उममीद न थी। बहू ने मेरी

तीमारदारी ने की होती तो मर ही गया होती— दीनानाथ आपका कुशल- मंगल रोज बाबू साहब से पछू िलया करता था। आपने मेरे

साथ जो नेिकया की है, उनहे मै भलू नही सकता। मरेा एक- एक रोआं आपका एहसानमनद है। मगर इस बीच काम ही कुछ एकस था िक हािजर होने की मोहलत न िमली।

—हरनामदास खैर, कारखाने का कया हाल ह?ै दीवाला होने मे कया कसर बाकी ह?ै — दीनानाथ ने ताजजुब के साथ कहा यह आपसे िकसने कह िदया िक दीवाला होनेवाला

ह?ै इस अरसे मे कारोबार मे जो तरकी हुई ह,ै वह आप खुद अपनी आंखो से देख लेगे। — हरनामदास वयगंयपवूरक बोले शायद तुमहारे बाबू साहब ने तुमहारी मनचाही तरकी कर

दी! अचछा अब सवािमभिकत छोडो और साफ बतलाआ। मैने ताकीद कर दी थी िक कारखाने का इनतजाम तुमहारे हाथ मे रहेगा। मगर शायद हिरदास ने सब कछु अपने हाथ मे रखा।

— दीनानाथ जी हा, मगर मुझे इसका जरा भी दुख नही। वही रइस काम के िलए ठीक भी थे। जो कुछ उनहोने कर िदखाया, वह मुझसे हरिगज न हो सकता।

— हरनामदास मुझे यह सुन- सुनकर हैरत होती है। बतलाओ, कया तरकी हुई?— दीनानाथ तफसील तो बहुत जयादा होगी, मगर थोडे मे यह समझ लीिजए िक पहले

हम लोग िजतना काम एक महीने मे करते थे उतना अब रोज होता है। नयी मशीन आयी थी,

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उसकी आधी, कीमत अदा हो चुकी है। वह अकसर रात को भी चलती है। ठाकुर कमपनी का पाच हजार मन आटे का ठेका िलया था, वह परूा होनवेाला है। जगतराम बनवारीलाल से

कमसिरयट का ठेका िलया है। उनहोने हमको पाच सौ बोरे महावार का बयाना िदया है। इसी तरह और फटुकर काम कई गनुा बढ गया है। आमदनी के साथ खचर भी बढे है। कई आदमी

नए रखे गये है, मुलािजमो को मजदरूी के साथ कमीशन भी िमलता है मगर खािलस नफा पहले के मुकाबले मे चौगुने के करीब है।

हरनामदास ने बडे धयान से यह बात सुनी। वह गौर से दीनानाथ के चहेरे की तरफ देख रहे थे। शायद उसके िदन मे पैठकर सचचाई की तह तक पहुचँना चाहते थे। सनदेहपणूर —सवर मे बोले दीननाथ, तुम कभी मुझसे झठू नही बोलते थे लेिकन तो भी मुझे इन बातो पर यकीन नही आता और जब तक अपनी आंखो से देख न लूंगा, यकीन न आयेगा।

दीनानाथ कुछ िनराश होकर िबदा हुआ। उसे आशा थी िक लाला साहब तरकी और कारगुजारी की बात सुनते ही फूले न समायेगे और मेरी मेहनत की दाद देगे। उस बेचारे को

न मालमू था िक कछु िदलो मे सनदेह की जड इतनी मजबतू होती है िक सबतू और दलील के हमले उस पर कुछ असर नही कर सकते। यहा तक िक वह अपनी आंख से देखने को भी धोखा या ितिलसम समझता है।

दीनानाथ के चले जाने के बाद लाला हरनामदास कछु देर तक गहरे िवचार मे डूबे रहे और िफर यकायक कहार से बगघी मंगवायी, लाठी के सहारे बगघी मे आ बैठे और उसे अपने

चकीघर चलने का हुकम िदया। दोपहर का वकत था। कारखानो के मजदरू खाना खाने के िलए गोल के गोल भागे

चले आते थे मगर हिरदास के कारखाने मे काम जारी था। बगघी हाते मे दािखल हुई, दोनो तरफ फूलो की कतारे नजर आयी, माली कयािरयो मे पानी दे रहा था। ठेले और गािडयो के

मारे बगघी को िनकलने की जगह न िमलती थी। िजधर िनगाह जाती थी, सफाई और हिरयाली नजर आती थी।

हिरदास अपने मुहिररर को कुछ खतो का मसौदा िलखा रहा था िक बढूे लाला जी लाठी टकेते हुए कारखाने मे दािखल हुए। हिरदास फौरन उइ खडा हुआ और उनहे हाथो से सहारा

—‘ देते हुए बोला आपने कहला कयो न भेजा िक मै आना चाहता हूँ, पालकी मंगवा देता। ’ आपको बहुत तकलीफ हुई। यह कहकर उसने एक आराम- कुसी बैठने के िलए िखसका

दी। कारखाने के कमरचारी दौडे और उनके चारो तरफ बहुत अदब के साथ खडे हो गये। —हरनामदास कुसी पर बैठ गये और बोरो के छत चमूनेवाले ढरे पर नजर दौडाकर बोले मालमू

होता है दीनानाथ सच कहता था। मुझे यहा कई नयी सरूते नजर आती है। भला िकतना काम रोज होता है? भला िकतना काम रोज होता ह?ै

— हिरदास आजकल काम जयादा आ गया था इसिलए कोई पाच सौ मन रोजाना तयैार हो जाता था लेिकन औसत ढाई सौ मन का रहेगा। मुझे नयी मशीन की कीमत अदा करनी थी इसिलए अकसर रात को भी काम होता है।

— हरनामदास कुछ कजर लनेा पडा?— हिरदास एक कौडी नही। िसफर मशीन की आधी कीमत बाकी है।

हरनामदास के चेहरे पर इतमीनाना का रगं नजर आया। संदेह ने वह िवशास को जगह दी। पयार- —भरी आंखो से लडके की तरफ देखा और करण सवर मे बोले बटेा, मैने तुमहार ऊपर बडा जुलम िकया, मुझे माफ करो। मुझे आदिमयो की पहचान पर बडा घमणड था, लेिकन मुझे बहुत धोखा हुआ। मुझे अब से बहुत पहले इस काम से हाथ खीच लेना चािहए

था। मैने तुमहे बहुत नुकसान पहुँचाया। यह बीमारी बडी मुबारक है िजसने तुमहारी परख का मौका िदया और तुमहे िलयाकत िदखाने का। काश, यह हमला पाच साल पहले ही हुआ होता। ईशर तुमहे खुश रखे और हमेशा उनित द,े यही तुमहारे बढूे बाप का आशीवाद है।

—‘ ’ पेम बतीसी से

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पपपपप पप पपपपपप

हादुर, भागयशाली कािसम मुलतान की लडाई जीतकर घमंउ के नशे से चरू चला आता था। शाम हो गयी थी, लशकर के लोग आरामगाह की तलाश मे नजरे दौडाते थे, लेिकन

कािसम को अपने नामदार मािलक की िखदमत मे पहुंचन का शौक उडाये िलये आता था। उन तयैािरयो का खयाल करके जो उसके सवागत के िलए िदलली मे की गयी होगी, उसका िदल उमंगो से भरपरू हो रहा था। सडके बनदनवारो और झिंडयो से सजी होगी, चौराहो पर

नौबतखाने अपना सुहाना राग अलापेगे, जयोिह मै सरे शहर के अनदर दािखल हूँगा। शहर मे शोर मच जाएगा, तोपे अगवानी के िलए जोर- शोर से अपनी आवाजे बलूंद करेगी। हवेिलयो के

झरोखो पर शहर की चाद जैसी सुनदर िसतया ऑखे गडाकर मुझे देखेगी और मुझ पर फूलो की बािरश करेगी। जडाऊ हौदो पर दरबार के लोग मेरी अगवानी को आयेगे। इस शान से

दीवाने खास तक जाने के बद जब मै अपने हुजुर की िखदमत मे पहुचँूँगा तो वह बॉहँे खोले हुए मुझे सीने से लगाने के िलए उठेगे और मै बडे आदर से उनके पैरो को चमू लूंगा। आह, वह शुभ घडी कब आयेगी? कािसम मतवाला हो गया, उसने अपने चाव की बेसुधी मे घोडे को एड

लगायी।

कािसम लशकर के पीछे था। घोडा एड लगाते ही आगे बढा, कैिदयो का झुणड पीछ े छूट गया। घायल िसपािहयो की डोिलया पीछे छूटी, सवारो का दसता पीछे रहा। सवारो के आगे मुलतान के राजा की बेगमो और मै उनहे और शहजािदयो की पनसे और सुखपाल थे। इन सवािरयो के आगे- पीछे हिथयारबनद खवा़जासराओं की एक बडी जमात थी। कािसम

अपने रौ मे घोडा बढाये चला आता था। यकायक उसे एक सजी हुई पालकी मे से दो आंखे झाकती हुई नजर आयी। कािसंग िठठक गया, उसे मालमू हुआ िक मेरे हाथो के तोते उड गय,े

उसे अपने िदल मे एक कंपकंपी, एक कमजोरी और बुिद पर एक उनमाद- सा अनुभव हुआ। उसका आसन खुद-ब- खुद ढीला पड गया। तनी हईु गदरन झुक गयी। नजरे नीची हुई। वह

दोनो आंखे दो चमकते और नाचते हुए िसतारो की तरह, िजनमे जादू का- सा आकषरण था, उसके आिदल के गोशे मे बैठी। वह िजधर ताकता था वही दोनो उमंग की रोशनी से चमकत े

हुए तारे नजर आते थे। उसे बछी नही लगी, कटार नही लगी, िकसी ने उस पर जादू नही िकया, मंतर नही िकया, नही उसे अपने िदल मे इस वकत एक मजेदार बेसुधी, ददर की एक लजजत, मीठी-मीठी- सी एक कैिफयत और एक सुहानी चुभन से भरी हुई रोने की- सी हालत

महससू हो रही थी। उसका रोने को जी चाहता था, िकसी ददर की पुकार सुनकर शायद वह रो पडता, बेताब हो जाता। उसका ददर का एहसास जाग उठा था जो इशक की पहली मंिजल

है।कण- — भर बाद उसने हुकम िदया आज हमारा यही कयाम होगा।

२ धी रात गुजर चुकी थी, लशकर के आदमी मीटी नीद सो रहे थे। चारो तरफ मशाले

जलती थी और ितलासे के जवान जगह- जगह बैठे जमहाइया लेते थे। लेिकन कािसम की आंखो मे नीद न थी। वह अपने लमब-े —चौडे परुलुतफ खेमे मे बैठा हुआ सोच रहा था कया इस जवान औरत को एक नजर देख लेना कोई बडा गुनाह है? माना िक वह मुलतान के राजा की शहजादी है और मेरे बादशाह अपने हरम को उससे रोशन करना चाहते है लेिकन

मेरी आरजू तो िसफर इतनी है िक उसे एक िनगाह देख लूँ और वह भी इस तरह िक िकसी को खबर न हो। बस। और मान लो यह गुनाह भी हो तो मै इस वकत वह गुनाह करँगा। अभी हजारो बेगुनाहो को इनही हाथो से कतल कर आया हूँ। कया खुदा के दरबार मे गुनाहो की माफी िसफर इसिलए हो जाएगी िक बादशाह के हकुम से िकये गये? कुछ भी हो, िकसी नाजनीन

को एक नजर देख लेना िकसी की जान लेने से बडा गुनाह नही। कम से कम मै ऐसा नही समझता।

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कािसम दीनदार नौजवान था। वह दरे तक इस काम के नैितक पहलू पर गौर करता रहा। मुलतान को फतेह करने वाला हीरो दसूरी बाधाओं को कयो खयाल मे लाता?

उसने अपने खेमे से बाहर िनकलकर देखा, बेगमो के खेमे थोडी ही दरू पर गडे हुए थे। कािसम ने तजान- बझूकर अपना खेमा उसके पास लगाया था। इन खेमो के चारो तरफ कई मशाले जल रही थी और पाच हबशी खवाजासरा रगंी तलवारे िलये टहल रहे थे। कािसम

— आकर मसनद पर लेट गया और सोचने लगा इन कमबखतो़ को कया नीद न आयेगी? और चारो तरफ इतनी मशाले कयो जला रकखी है? —इनका गुल होना जररी है। इसिलए पुकारा

मसरर।-हुजुर, फरमाइए?- मशाले बझुा दो, मुझे नीद नही आती।-हुजूर, रात अंधेरी है।- हा।- जैसी हुजूर की मजी।

खव़ाजासरा चला गया और एक पल मे सब की सब मशाले गुल हो गयी, अंधेरा छा गया। थोडी दरे मे एक औरत शहजादी के खेमे से िनकलकर पछूा-मसरम, सरकमार पछूती

है, यह मशाले कयो बझुा दी गयी? मशरम बोला- िसपहदार साहब की मजी। तुम लोग होिशयार रहना, मुझे उनकी िनयत

साफ नही मालमू होती।३

िसम उतसुकता से वयग होकर कभी लटेता था, कभी उठ बैठता था, कभी टहलने लगता था। बार- बार दरवाजे पर आकर देखता, लेिकन पाचो खवा़जासरा दवेो की तरह

खडे नजर आते थे। कािसम को इस वकत यही धुन थी िक शाहजादी का दशरन कयोकर हो। अंजाम की िफक, बदनामी का डर और शाही गसुसे का खतरा उस पुरजोर खवािहश के नीचे

दब गया था।

का

घिडयाल ने एक बजाया। कािसम यो चौकं पडा गोया कोई अनहोनी बात हो गयी। जैसे कचहरी मे बैठा हुआ कोई फिरयाद अपने नाम की पुकार सुनकर चौक पडता है। ओ हो, तीन घटंो से सुबह हो जाएगी। खेमे उखड जाएगे। लशकर कूच कर देगा। वकत तगं है, अब

देर करने की, िहचकचाने की गुंजाइश नही। कल िदलली पहुँच जायेगे। आरमान िदल मे कयो रह जाये, िकसी तरह इन हरामखोर खवाजासराओं को चकमा देना चािहए। उसने बाहर िनकल

आवाज दी-मसरर।--हुजूर, फरमाइए।-- होिशयार हो न?- हुजूर पलक तक नही झपकी।- नीद तो आती ही होगी, कैसी ठंडी हवा चल रही है।- जब हुजूर ही ने अभी तक आराम नही फरमाया तो गुलामो को कयोकर नीद आती।- मै तुमहे कुछ तकलीफ देना चाहता हूँ।-किहए।- तुमहारे साथ पाच आदमी है, उनहे लेकर जरा एक बार लशकर का चकर लगा आओ।

देखो, लोग कया कर रहे है। अकसर िसपाही रात को जुआ खेलते है। बाज आस- पास के इलाको मे जाकर खरमसती िकया करते है। जरा होिशयारी से काम करना।मसरर- मगर यहा मैदान खाली हो जाएगा।कािसम- मे तुमहारे आने तक खबरदार रहूँगा।मसरर- जो मजी हुजूर।

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कािसम- मैने तुमहे मोतबर समझकर यह िखदमत सुपुदर की है, इसका मुआवजा इशंाअलला तुमहे साकर से अता होगा।

मसरम ने दबी जबान से कहा- बनदा आपकी यह चाले सब समझता है। इशंाअलला सरकार से आपको भी इसका इनाम िमलेगा। और तब जोर बोला- आपकी बडी मेहरबानी है।

एक लमहे मे पॉचँो खवाजासरा लशकर की तरफ चले। कािसम ने उनहे जाते देखा। मैदान साफ हो गया। अब वह बेधडक खेमे मे जा सकता था। लेिकन अब कािसम को मालमू

हुआ िक अनदर जाना इतना आसान नही है िजतना वह समझा था। गुनाह का पहलू उसकी नजर से ओझल हो गया था। अब िसफर जािहरी मुिशकलो पर िनगाह थी।

४ िसम दबे पाव शहजादी के खेमे के पास आया, हालािक दबे पाव आने की जररत न थी। उस सनाटे मे वह दौडता हुआ चलता तो भी िकसी को खबर न होती। उसने खेमे से

कान लगाकर सुना, िकसी की आहट न िमली। इतमीनान हो गया। तब उसने कमर से चाकू िनकाला और कापते हुए हाथो से खेमे की दो- तीन रिससया काट डाली। अनदर जाने का

रासता िनकल आया। उसने अनदर की तरफ झाका। एक दीपक जल रहा था। दो बािदया फशर पर लेटी हुई थी और शहजादी एक मखमली गदे पर सो रही थी। कािसम की िहममत बढी। वह सरककर अनदर चला गया, और दबे पाव शहजादी के करीब जाकर उसके िदल- फरबे हुसन का अमृत पीने लगा। उसे अब वह भय न था जो खेमे मे आते वकत हुआ था। उसने जररत पडने पर अपनी भागने की राह सोच ली थी।

का

कािसम एक िमनट तक मूरत की तरह खडा शहजादी को देखता रहा। काली-काली लटे खुलकर उसके गालो को िछपाये हुए थी। गोया काले- काले अकरो मे एक चमकता हुआ

शायराना खयाल िछपा हुआ था। िमटी की अस दुिनया मे यह मजा, यह घलुावट, वह दीिपत कहा? कािसम की आंखे इस दशृय के नशे मे चरू हो गयी। उसके िदल पर एक उमंग बढाने

वाला उनमाद सा छा गया, जो नतीजो से नही डरता था। उतकणठा ने इचछा का रप धारण िकया। उतकणठा मे अिधरता थी और आवेश, इचछा मे एक उनमाद और पीडा का आननद।

उसके िदल मे इस सुनदरी के पैरो पर सर मलने की, उसके सामने रोने की, उसके कदमो पर जान दे देने की, पेम का िनवेदन करने की , अपने गम का बयान करने की एक लहर- सी उठने लगी वह वासना के भवरं मे पड गया।

५ िसम आध घटंे तक उस रप की रानी के पैरो के पास सर झुकाये सोचता रहा िक उसे कैसे जगाऊँ। जयो ही वह करवट बदलती वह डर के मारे थरथरा जाता। वह बहादुरी

िजसने मुलतान को जीता था, उसका साथ छोडे देती थी।

का एकाएक किसम की िनगाह एक सुनहरे गुलाबपोश पर पडी जो करीब ही एक चौकी पर

रखा हुआ था। उसने गुलाबपोश उठा िलया और खडा सोचता रहा िक शहजादी को जगाऊँ या न जगाऊँ या न जगाउँ? सेने की डली पडी हुई देखकर हमं उसके उठाने मे आगा-पीछा

होता ह,ै वही इस वकत उसे हो रहा था। आिखरकार उसने कलेजा मजबतू करके शहजादी के कािनतमान मुखमंणडल पर गुलाब के कई छीटे िदये। दीपक मोितयो की लडी से सज उठा।

शहजादी ने चौकर आंखे खोली और कािसम को सामने खडा देखकर फौरन मुंह पर नकाब खीच िलया और धीरे से बोली-मसरर।

कािसम ने कहा- मसरर तो यहा नही ह,ै लेिकन मुझे अपना एक अदना जाबाज खािदम समिझए। जो हुकत होगा उसकी तामील मे बाल बराबर उज न होगा।

शहजादी ने नकाब और खीच िलया और खेमे के एक कोने मे जाकर खडी हो गयी। कािसम को अपनी वाक्- शिकत का आज पहली बार अनुभव हुआ। वह बहुत कम

बोलने वाला और गमभीर आदमी था। अपने हृउय के भावो को पकट करने मे उसे हमेशा िझझक होती थी लेिकन इस वकत़ शबद बािरश की बूंदो की तरह उसकी जबान पर आने लगे।

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गहरे पानी के बहाव मे एक ददर का सवर पैदा हो जाता है। बोला- मै जानता हूँ िक मेरी यह गुसताखी आपकी नाजुक तिबयत पर नागवार गुजरी है। हुजूर, इसकी जो सजा मुनािशब

समझे उसके िलए यह सर झुका हुआ है। आह, मै ही वह बदनसीब, काले िदल का इसंान हूँ िजसने आपके बुजुगर बाप और पयारे भाईयो के खनू से अपना दामन नापाक िकया है। मेरे ही

हाथो मुलतान के हजारो जवान मारे गये, सलतनत तबाह हो गयी, शाही खानदान पर मुसीबत आयी और आपको यह सयाह िदन देखना पडा। लेिकन इस वकत़ आपका यह मुजिरम आपके सामने हाथ बाधे हािजर है। आपके एक इशारे पर वह आपके कदमो पर नयोठावर हो जायेगा

और उसकी नापाक िजनदगी से दुिनया पाक हो जायेगी। मुझे आज मालमू हुआ िक बहादरुी के परदे मे वासना आदमी से कैसे- कैसे पाप करवाती है। यह महज लालच की आग है, राख मे िछपी हुई िसफर एक काितल जहर ह,ै खुशनुमा शीशे मे बनद! काश मेरी आंखे पहले खुली होती

तो एक नामवर शाही खानदान यो खाक मे न िमल जाता। पर इस मुहबबत की शमा ने, जो कल शाम को मरेे सीने मे रोशन हुई, इस अंधरेे कोने को रोशनी से भर िदया। यह उन रहानी

जजब़ात का फैज है, जो कल मेरे िदल मे जाग उठे, िजनहोने मुझे लाजच की कैद से आजाद कर िदया।

इसके बाद कािसम ने अपनी बेकरारी और ददे िदल और िवयोग की पीडा का बहुत ही करण शदो मे वणरन िकया, यहा तक िक उसके शबदो का भणडार खतम हो गया। अपना हाल

कह सुनाने की लालसा परूी हो गयी।६

िकन वह वासना बनदी वहा से िहला नही। उसकी आरजुओं ने एक कदम और आगे बढाया। मेरी इस रामकहानी का हािसल कया? अगर िसफर ददे िदल ही सुनाना था, तो

िकसी तसवीर को, सुना सकता था। वह तसवीर इससे जयादा धयान से और खामाशी से मेरे गम की दासतान सुनती। काश, मै भी इस रप की रानी की िमठी आवाज सुनता, वह भी मुझसे कुछ अपने िदल का हाल कहती, मुझे मालमू होता िक मेरे इस ददर के िकससे का उसके िदल

पर कया असर हुआ। काश, मुझे मालतू होता िक िजस आग मे मै फुकंा जा रहा हूँ, कुछ उसकी आंच उधर भी पहुँचती है या नही। कौन जाने यह सच हो िक मुहबबत पहले माशकू के

िदल मे पैदा होती है। ऐसा न होता तो वह सब को तोडने वाली िनगाह मुझ पर पडती ही कयो? आह, इस हुसन की देवी की बातो मे िकतना लुतफ आयेगा। बुलबुल का गाना सुन सकता,

उसकी आवाज िकतनी िदलकश होगी, िकतनी पाकीजा, िकतनी नरूानी, अमृत मे डूबी हुई और जो कही वह भी मुझसे पयार करती हो तो िफर मुझसे जयादा खुशनसीब दुिनया मे और कौन

होगा?

ले

इस खयाल से कािसम का िदल उछलने लगा। रगो मे एक हरकत- सी महससू हुई। इसके बावजूद िक बािदयो के जग जाने और मसरर की वापसी का धडका लगा हुआ था, आपसी बातचीत की इचछा ने उसे अधीर कर िदया, बोला- हुसन की मलका, यह जखम़ी िदल आपकी इनायत की नजर की मुसतहक है। कडु उसके हाल पर रहम न कीिजएगा?

– शहजादी ने नकाब की ओट से उसकी तरफ ताका और बोली जो खुद रहम का मुसतहक हो, वह दसूरो के साथ कया रहम कर सकता है? कैद मे तडपते हुए पछंी से, िजसक े

न बोल है न पर, गाने की उममीद रखना बेकार है। मै जानती हूँ िक कल शाम को िदलली के जािलम बादशाह के सामने बािदयो की तरह हाथ बाधे खडी हूंगी। मेरी इजजत, मेरे रतबे और

मेरी शान का दारोमदार खानदानी इजजत पर नही बिलक मेरी सरूत पर होगा। नसीब का हक परूा हा जायेगा। कौन ऐसा आदमी है जो इस िजनदगी की आरजू रकखेगा? आह, मुलतान की

शहजादी आज एक जािलम, चालबाज, पापी आदमी की वासना का िशकार बनने पर मजबरू है। जाइए, मुझे मरेे हाल पर छोड दीिजए। मै बदनसीब हूँ, ऐसा न हो िक मेरे साथ आपको भी शाही गुससे का िशकार बनना पडे। िदल मे िकतनी ही बाते है मगर कयो कहूँ, कया हािसल?

इस भेद का भेद बना रहना ही अचछा है। आपमे सचची बहादुरी और खुदारी है। आप दुिनया मे

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अपना नाम पैदा करेगे, बड-े बडे काम करेगे, – खुदा आपके इरादो मे बरकत दे यही इस आफप की मारी हुई औरत की दुआ है। मै सचचे िदल से कहती हूँ िक मुझे आपसे कोई िशकायत नही है। आज मुझे मालमू हुआ िक मुहबबत बरै से िकतनी पाक होती है। वह उस दामन मे मुंह

िछपाने से भी परहेज नही करती जो उसके अजीजो के खनू से िलथडा हुआ हो। आह, यह कमबखत िदल उबला पडता है। अपने काल बनद कर लीिजए, वह अपने आपे मे नही है,

उसकी बाते न सुिनए। िसफर आपसे यही िबनती है िक इस गरीब को भलू न जाइएगा। मरे े िदल मे उस मीठे सपने की याद हमेशा ताजा रहेगी, हरम की कैद मे यही सपना िदल को

तसकीन देता रहेगा, इस सपने को तोिडए मत। अब खुदा के वासते यहा से जाइए, ऐसा न हो िक मसरर आ जाए, वह एक जािलम है। मुझे अंदेशा है िक उसने आपको धोखा िदया, अजब नही िक यही कही छुपा बैठा हो, उससे होिथयार रिहएगा। खुदा हािफज!

७ िसम पर एक बेसुधी की सी हालत छा गयी। जैसे आतमा का गीत सुनने के बाद िकसी योगी की होती है। उसे सपने मे भी जो उममीद न हो सकती थी, वह परूी हो गयी थी।

गवर से उसकी गदरन की रगे तन गयी, उसे मालमू हुआ िक दुिनया मे मुझसे जयादा भागयशाली दसूरा नही है। मै चाहूँ तो इस रप की वािटका की बहार लटू सकता हूँ, इस पयाले से मसत

हो सकता हूँ। आह वह िकतनी नशीली, िकतनी मुबारक िजनदगी होती! अब तक कािसम की मुहबबत गवाले का दधू थी, पानी से िमली हुई; शहजादी के िदल की तडप ने पानी को जलाकर सचचाई का रगं पैदा कर िदया। उसके िदल ने कहा- मै इस रप की रानी के िलए कया कुछ

नही कर सकता? कोई ऐसी मुसीबत नही है जो झेल न सकूँ, कोई आग नही, िजसमे कूद न सकूं, मुझे िकसका डर है! बादशाह का? मै बादशाह का गुलाम नही, उसके सामने हाथ

फैलानेवाला नही, उसका मोहताज नही। मेरे जौहर की हर एक दरबार मे कद हो सकती है। मै आज इस गलूामी की जजंीर को तोड डालूँगा और उस देश मे जा बसूँगा, जहा बादशाह क े

फिरशते भी पर नही मार सकते। हुसन की नेमत पाकर अब मुझे और िकसी चीज की इचछा नही। अब अपनी आरजुओं का कयो गला घोटूं? कामनाओं को कयो िनराशा का गास बनने दूँ? उसने उनमाद की- – सी िसथित मे कमर से तलवार िनकाली और जोश के साथ बोला जब तक

मेरे बाजूओ मे दम है, कोई आपकी तरफ आंख उठाकर देख भी नही सकता। चाहे वह िदलली का बादशाह ही कयो ने हो! मै िदलली के कूचे और बाजार मे खनू की नदी बहा दुंगा, सलतनत की जडे िहलाउ दुँगा, शाही तखत को उलट- पलट रख दूँगा, और कुछ न कर सकूंगा तो मर

िमटूंगा। पर अपनी आंखो से आपकी याह िजललत न देखूँगा।

का

शहजादी आिहसता- आिहसता उसके करीब आयी बोली- मुझे आप पर परूा भरोसा है, लेिकन आपको मेरी खाितर से जबत और सब करना होगा। आपके िलए मै महलहरा की

तकलीफे और जुलम सब सह लूंगी। आपकी मुहबबत ही मरेी िजनदगी का सहारा होगी। यह यकीन िक आप मुझे अपनी लौडी समझते है, मुझे हमेशा समहालता रहेगा। कौन जाने तकदीर

हमे िफर िमलाये। कािसम ने अकडकर कहा- आप िदलली जाये ही कयो! हम सबहु होत-े होते भरतपुर

पहुँच सकते है।– शहजादी मगर िहनदोसतान के बाहर तो नही जा सकते। िदलली की आंख का काटा

बनकर मुमिकन है हम जगंलो और वीरानो मे िजनदगी के िदन काटे पर चैन नसीब न होगा। असिलयत की तरफ से आंखे न बनद की िजए, खुदा न आपकी बहादुरी दी है, पर तेगे

इसफहानी भी तो पहाड से टकराकर टुट ही जाएगी। कािसम का जोश कुछ धीमा हुआ। भम का परदा नजरो से हट गया। कलपना की

दुिनया मे बढ- बढकर बाते करना बाते करना आदमी का गुण है। कािसम को अपनी बेबसी साफ िदखाई पडने लगी। बेशक मरेी यह लनतरािनया मजाक की चीज है। िदलली के शाह

के मुकािबले मे मेरी कया हसती है? उनका एक इशारा मरेी हसती को िमटा सकता है। हसरत-

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भरे लहजे मे बोला- मान लीिजए, हमको जगंलो और बीरानो मे ही िजनदगी के िदन काटने पडे तो कया? मुहबबत करनेवाले अंधरेे कोने मे भी चमन की सैर का लुफत उठाते है। मुहबबत मे वह फकीरो और दरवेशो जैसा अलगाव है, जो दुिनया की नेमतो की तरफ आंख उठाकर भी नही देखता।

– शहजादी मगर मुझ से यह कब मुमिकन है िक अपनी भलाई के िलए आपको इन खतरो मे डालूँ? मै शाहे िदलली के जुलमो की कहािनया सुन चुकी हू,ँ उनहे याद करके रोगेटे खडे हो

जाते है। खुदा वह िदन न लाये िक मेरी वजह से आपका बाल भी बाका हो। आपकी लडाइयो के चचे, आपकी खैिरयत की खबरे, उस कैद मे मुझको तसकीन और ताकत देगी। मै मुसीबते

– झेलूंगी और हसं हसंकर आग मे जलूँगी और माथे पर बल न आने दूँगी। हॉँ, मै शाहे िदलली के िदल को अपना बनाऊँगी, िसफर आपकी खाितर से तािक आपके िलए मौका पडने पर दो-चार अचछी बाते कह सकूँ।

८ िकन कािसम अब भी वहा से न िहला। उसकर आरजूए ं उममीद से बढकर परूी होती जाती

थी, िफर हवस भी उसी अनदाज से बढती जाती थी। उसने सोचा अगर हमारी मुहबबत की बहार िसफर कुछ लमहो की मेहमान ह,ै तो िफर उन मबुारकबाद लमहो को आगे की िचनता से कयो बेमजा करे। अगर तकदीर मे इस हुसन की नेमत को पाना नही िलखा है, तो इस मौक े को हाथ से कयो जाने दूँ। कौन जाने िफर मुलाकात हो या न हो? यह मुहबबत रहे या न रहे?

बोला-शहजादी, अगर आपका यही आिखरी फैसाल है, तो मेरे िलए िसवाय हसरत और मायसूी के और कया चारा है? दखू होगा, कुढंूगा, पर सब करंगा। अब एक दम के िलए यहा आकर मेरे पहलू मे बैठ जाइए तािक इस बेकरार िदल को तसकीन हो। आइए, एक लमहे के िलए भलू जाए ं िक जुदाई की घडी हमारे सर पर खडी है। कौन जाने यह िदन कब आये? शान-शौकत गरीबो की याद भलूा देती है, आइए एक घडी िमलकर बैठे। अपनी जलफो की अमबरी खुशबू से

इस जलती हुई रह को तरावट पहुँचाइए। यह बाहे, गलो की जजंीरे बने जाए।ं अपने िबललौर जैसे हाथो से पेम के पयाले भर- भरकर िपलाइए। सागर के ऐसे दौर चले िक हम छक जाए ं! िदलो पर सुरर को ऐसा गाढा रगं चढे िजस पर जुदाई की तुिशरयो का असर न हो। वह रगंीन शराब िपलाइए जो इस झुलसी हुई आरजूओं की खेती को सीच दे और यह रह की पयास हमेशा के िलए बुझ जाए।

ले

मए अगवानी के दौर चलने लगे। शहजादी की िबललौरी हथलेी मे सुखर शराब का पयाला ऐसा मालमू होता था जैसे पानी की िबललौरी सतह पर कमल का फूल िखला हो कािसम दीनो दुिनया से बेखबर पयाले पर पयाले चढाता जाता था जैसे कोई डाकू लटू के माल पर टूटा हुआ

हो। यहा तक िक उसकी आंखे लाल हो गयी, गदरन झ़कु गयी, पी- पीकर मदहोश हो गया। शहजादी की तरफ वसाना- भरी आंखो से ताकता हुआ। बाहे खोले बढा िक घिडयाल ने चार

बजाये और कूच के डकें की िदल छेद देनेवाली आवाजे कान मे आयी। बाहे खलुी की खुली रह गयी। लौिडया उठ बैठी, शहजादी उठ खडी हुई और बदनसीब कािसम िदल की आरजुए ं िलये खेमे से बाहर िनकला, जैसे तकदीर के फैलादी पजंे ने उसे ढकेलकर बाहर िनकाल िदया हो। जब अपने खेमे मे आया तो िदल आरजूओं से भरा हुआ था। कुछ दरे के बाद आरजुओं ने हवस का रप भरा और अब बाहर िनकला तो िदल हरसतो से पामाल था, हवस का मकडी- जाल उसकी रह के िलए लोहे की जजंीरे बना हुआ था।

९ म का सहुाना वक्त था। सुबह की ठणडी- ठणडी हवा से सागर मे धीरे धीरे लहरे उठ रही थी। बहादुर, िकसमत का धनी कािसम मुलतान के मोचे को सर करके गवर की

मािदरा िपये उसके नशे मे चरू चला आता था। िदलली की सडके बनदनवारो और झिंडयो से सजी हुई थी। गुलाब और कवेडे की खुशब चारो तरफ उड रही थी। जगह- जगह नौबतखाने अपना सुहाना राग गया। तोपो ने अगवानी की घनगरज सदाए बलुनद की। ऊपर झरोखो मे

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नगर की सुनदिरया िसतारो की तरह चमकने लगी। कािसम पर फूलो की बरखा होने लगी। वह शाही महल के करीब पहुचँार तो बडे- बडे अमीर- उमरा उसकी अगवानी के िलए कतार बाधे खडे थे। इस शान से वह दीवाने खास तक पहुचँा। उसका िदमाग इस वकत सातवे

आसमान पर था। चाव- भरी आंखो से ताकता हुआ बादशाह के पास पहुँचा और शाही तखत को चमू िलया। बादशाह मुसकाराकर तख्त से उतरे और बाहे खोले हुए कािसम को सीने से

लगाने के िलए बढे। कािसम आदर से उनके पैरो को चमूने के िलए झुका िक यकायक उसके िसर पर एक िबजली- सी िगरी। बादशाह को तेज खंजर उसकी गदरन पर पडा और सर तन से जुदा होकर अलग जा िगरा। खनू के फौवारे बादशाह के कदमो की तरफ, तखत की तरफ और तख्त के पीछे खडे होने वाले मसरर की तरफ लपक,े गोया कोई झललाया हुआ आग का साप है।

घायल शरीर एक पल मे ठंडा हो गया। मगर दोनो आंखे हसरत की मारी हईु दो मूरतो की तरह दरे तक दीवारो की तरफ ताकती रही। आिखर वह भी बनद हो गयी। हवस ने

अपना काम परूा कर िदया। अब िसफर हसरत बाकी थी। जो बरसो तक दीवाने खास के दरोदीवार पर छायी रही और िजसकी झलक अभी तक कािसम के मजार पर घास- फूस की

सरूत मे नजर आती है।-‘ ’ पेम बतीसी से

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