सला ेी जिम्ेाी...सल ज म ! व द य र थ क ल ज न प...

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तो सफलता मेरी जिमेदारी ! वियाीकाल जीिनऱपी इमारत की नीि है। इस काल म जजस कार के सकार बच म प जाते ह, उसी कार से उनका जीिन विकसत होता है। इससलए यह आियक क हम बच को भारतीय सक त और योग पर आधारत ऐसी सिा द जजससे उनका सिागीण विकास हो सके। आज का वियाी कल का नागररक है। ाचीन समय म वियाी ग र के साजननय म रहकर सयम, सदाचार, प रषाथ, तनभथयता आदद के सकार एि सदग ण को हण कर देि ि समाज के सलए एक आदिथ नागररक बनता ा। इतहास म हम इसी कार के सकार से य अनेक बालक-बासलकाओ के उदाहरण देखने को समलते ह।

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Page 1: सला ेी जिम्ेाी...सल ज म ! व द य र थ क ल ज न प इम रत क न ह । इस क ल म जजस प रक र क स

तो सफलता मरी जिममदारी ! विदयारथीकाल जीिनरपी इमारत की नीीि ह। इस काल म जजस परकार क सीसकार बचचो

म पड जात ह, उसी परकार स उनका जीिन विकससत होता ह। इससलए यह आिशयक कक हम बचचो को भारतीय सीसकतत और योग पर आधाररत ऐसी सिकषा द जजसस उनका सिाागीण विकास हो सक।

आज का विदयारथी कल का नागररक ह। पराचीन समय म विदयारथी गर क साजननधय म रहकर सीयम, सदाचार, परषारथथ, तनभथयता आदद क सीसकारो एिी सदगणो को गरहण कर दि ि समाज क सलए एक आदिथ नागररक बनता रथा। इततहास म हम इसी परकार क सीसकारो स यकत अनक बालक-बासलकाओी क उदाहरण दखन को समलत ह।

Page 2: सला ेी जिम्ेाी...सल ज म ! व द य र थ क ल ज न प इम रत क न ह । इस क ल म जजस प रक र क स

छोट स सििा को गर समरथथ रामदास ि माा जीजाबाई न दिपरम का ऐसा पाठ पढाया कक सििा म स छतरपतत सििाजी महाराज का उदय हो गया। चनरगपत मौयथ अपन गर चाणकय क मागथदिथन म सिथपररथम भारत को अखीड राषटर क रप म सदढ करन म समरथथ हआ।

भारत को समरथथ राषटर बनाना हो तो नयी पीढी को बचपन स ही भगिननाम-जप, धयान, मौन, पराणायाम आदद का अभयास कराओ। इसस उनकी बवि एकागर होती ह और भीतरी सषपत िजकतयाा जागरत होन लगती ह। तम विशिासपिथक इस राह पर कदम बढाओ, म सफलता की जजममदारी लता हा।

अनकरमणणका

िोड क हाथ झका क मसतक... जोड क हारथ झका क मसतक, मााग य िरदान परभ। दिष समटाय परम बढाय, नक बन इनसान परभ।।

भदभाि सब समट हमारा, सबको मन स पयार कर। जाय नजर जजस ओर हमारी, तरा ही दीदार कर।। पल-पल कषण-कषण कर हमिा, तरा ही गणगान परभ। जोड क हारथ झका क मसतक, मााग य िरदान परभ।।

दःख म कभी दःखी न होि, सख म सख की चाह न हो। जीिन क इस कदठन सफर म, कााटो की परिाह न हो।।

रोक सक ना पााि हमार, विघनो क तफान परभ।। जोड क हारथ झका क मसतक, माागग य िरदान परभ।। दीन दःखी और रोगी सबक, दखड तनिददन दर कर। पोछ क आास रोत नना, हासन पर मजबर कर।।

सीसकतत की सिा करत, तनकल तन स पराण परभ।। जोड क हारथ झका क मसतक, मााग य िरदान परभ।। गर जञान स इस दतनया का, दर अाधरा कर द हम। सतय परम क मीठ रस स, सबका जीिन भर द हम।।

िीर-धीर बन जीना सीख, य तरी सीतान परभ। जोड क हारथ झका क मसतक, मााग य िरदान परभ।।

अनकरमणणका मदहला उतरथान रसट

सीत शरी आिाराम जी आशरम

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सीत शरी आिारामजी बाप आशरम मागथ, साबरमती, अहमदाबाद-5

email: [email protected] Website: http://www.ashram.org

दरभाषः 079-39877749-50-51-88 27505010-11

अनकरमणिका तो सफलता मरी जजममदारी ! ............................................................................................................... 1

जोड क हारथ झका क मसतक... ............................................................................................................ 2

जजजञास बनो....... ................................................................................................................................ 7

अतः .............................................................................................................................................. 7

सोच ि जिाब द- ............................................................................................................................ 7

पजय बाप जी का पणय सीदि ............................................................................................................... 8

मर लाल ! तमहीी हो सचच विदयारथी... हो न !.................................................................................... 8

ददन की िरआत.... सपरभात ! .......................................................................................................... 8

चचरीजीिी भि ! ............................................................................................................................... 8

खाना नहीी खाना, परसाद पाना ............................................................................................................ 8

तजसिी भि ! यिसिी भि ! ............................................................................................................ 8

आराम स बनोग महान .................................................................................................................... 9

सोच ि जिाब द- ............................................................................................................................ 9

जीिनिजकत का विकास कस हो ?......................................................................................................... 9

छातरो क महान आचायथ पजय बाप जी दिारा सकषम विशलषण ................................................................ 9

मानससक आघात, णखीचाि, तनाि या घबराहट का परभािः .................................................................... 10

िजकत सरकषा का एक अदभत उपाय ................................................................................................ 10

सीत दिथन स जीिनिजकत का विकास .............................................................................................. 10

िारीररक जसरथतत का परभािः ................................................................................................................ 10

मनषटय जनम का िासतविक उददशय ................................................................................................... 11

सोच ि जिाब द ........................................................................................................................... 11

तनयम छोट-छोट, लाभ ढर सारा ........................................................................................................... 11

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 12

साहसी बनो ! परषारथी बनो ! ............................................................................................................. 12

पजय सीत शरी आिारामजी बाप ........................................................................................................ 12

त गलाब होकर महक.... .................................................................................................................... 13

पजय बाप जी का सिथदहतकारी सीदि ............................................................................................... 13

जञान, िरागय, योग-सामरथयथ की परततमतत थ सााई शरी लीलािाहजी महाराज ................................................ 14

दशमनो का बल तनकाल रहा हा ........................................................................................................ 14

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 14

सिषटय ऐसा हो कक गर का ददल छलक पडा..... ..................................................................................... 15

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भारतीय मीतर-विजञान ....................................................................................................................... 15

रहसय-भदन .................................................................................................................................. 15

सफलता पर विनमरता ..................................................................................................................... 16

राषटरपतत दिारा सिणथ पदक ............................................................................................................ 16

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 16

िरीर की जविक घडी पर आधाररत ददनचयाथ ......................................................................................... 16

समय ( उस समय सककरय अीग)- सककरय अीग क अनरप कायो का वििरण .......................................... 17

सिा की सिास .................................................................................................................................. 18

सोच ि जिाब द ........................................................................................................................... 18

बवि महान कस होती ह ? ................................................................................................................. 18

पजय बाप जी ................................................................................................................................ 18

बवि नषटट कस होती ह ? ............................................................................................................... 19

बवि महान कस होती ह ? ............................................................................................................. 19

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 19

गर गोविनदससीह क िीर सपत ............................................................................................................. 20

सीजीिनी बटीः ............................................................................................................................... 21

हम भारत क लाल ह ..................................................................................................................... 22

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 22

सतपरथ का सतनशचय .......................................................................................................................... 22

सोच और जिाब द- ....................................................................................................................... 23

सतसीग तार, कसीग डबोि .................................................................................................................... 23

उततरमाला ........................................................................................................................................ 24

सोच ि जिाब द ........................................................................................................................... 24

जनमददिस कस मनाय ? ................................................................................................................... 24

असभभािक एिी बचच धयान द- ....................................................................................................... 25

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 25

जनमददिस बधाई गीत ................................................................................................................... 25

सीकलपिजकत का परतीक – रकषाबीधन ..................................................................................................... 27

पजय बाप जी क सतसीग अमत स ................................................................................................... 27

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 27

मात-वपत गर भजकत .......................................................................................................................... 27

आज भी ऐस उदाहरण ह.... ............................................................................................................ 28

आप कहत ह.... ............................................................................................................................ 28

आओ मनाय 14 फरिरी को मात-वपत पजन ददिस .......................................................................... 29

यगपरितथक सीत शरी आिारामजी बाप .................................................................................................... 30

जनम ि बालयकाल ........................................................................................................................ 30

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यिािसरथा (वििक-िरागय) ................................................................................................................ 30

आशरम सरथापना ि लोक-कलयाण ..................................................................................................... 30

योग-सामरथयथ क धनी ..................................................................................................................... 31

सदगर मदहमा ............................................................................................................................... 31

सचचा अचधकारी कौन ? ..................................................................................................................... 32

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 32

सीत एकनारथ जी की गरसिा ............................................................................................................... 33

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 33

तरतरकाल सीधया .................................................................................................................................... 34

अदभत लाभ ................................................................................................................................. 34

कब कर ? .................................................................................................................................... 34

कस कर ? .................................................................................................................................... 34

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 34

एक विलकषण सदगण – मौन ............................................................................................................... 35

अनमोल िचन ............................................................................................................................... 35

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 35

विजञान भी ससि कर रहा ह परभनाम की मदहमा .................................................................................... 35

सोच ि जिाब द- .......................................................................................................................... 36

सफलता आपक पीछ-पीछ ................................................................................................................... 36

धयान-मदहमा ..................................................................................................................................... 37

आधयाजतमक िजकतयो क कनरः यौचगक चकर ........................................................................................ 38

बराहममहतथ म जागरण कयो ? ............................................................................................................. 38

सयथ को अघयथ दान कयो ? .................................................................................................................. 38

सयथनमसकार कयो कर ? .................................................................................................................... 39

सिजसतक का इतना महतति कयो ? ..................................................................................................... 39

आभषण कयो पहन जात ह ? ............................................................................................................. 40

सिासरथय क दशमन फासटफड .............................................................................................................. 40

खतरनाक ह सॉफटडर ीकस ..................................................................................................................... 41

रासायतनक नहीी, पराकततक रीगो स खल होली ......................................................................................... 41

टी.िी. ि कफलमो का कपरभाि .............................................................................................................. 42

सिासरथय की अनपम की जजयाा ............................................................................................................... 42

सिसरथ सखी ि सममातनत जीिन .................................................................................................... 42

कब खाय, कस खाय ? ................................................................................................................... 43

पय पीना हो तो.... ........................................................................................................................ 43

दीघाथय ि सिसरथ जीिन क सलए... ................................................................................................... 43

िजकतदायक-पजषटटिधथक परयोग ......................................................................................................... 43

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अकल लडाओ, जञान बढाओ .................................................................................................................. 44

सिथगणकारी तलसी ............................................................................................................................ 45

विशि का सिथशरषटठ गरनरथ ..................................................................................................................... 46

गीता-मदहमा ...................................................................................................................................... 47

गीता म हदयी पारथथ.... .................................................................................................................... 47

गौ-मदहमा ......................................................................................................................................... 48

पौजषटटकता की खान गाय का दध .................................................................................................... 48

योगामत ........................................................................................................................................... 48

सपतिजरासन ................................................................................................................................. 49

उजतरथत पदमासन ............................................................................................................................. 49

कोनासन ....................................................................................................................................... 49

उषटरासन ....................................................................................................................................... 50

सयथभदी पराणायाम .......................................................................................................................... 50

चनरभदी पराणायाम ........................................................................................................................ 51

धयान मरा .................................................................................................................................... 52

िीख मरा ...................................................................................................................................... 52

योगयताओी क खजान को खोलन की चाबी ............................................................................................ 52

पराणिजकतिधथक परयोग ........................................................................................................................ 53

एकादिी वरत-मदहमा ........................................................................................................................... 53

विदयारथी परशनोततरी ........................................................................................................................... 54

ह परभ आनीददाता .............................................................................................................................. 55

ददवय-पररणा परकाि जञान परततयोचगता क परशनपतर का परारप ..................................................................... 56

ʹविशिगर भारतʹ की ओर बढत कदम...... ............................................................................................ 57

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जिजञास बनो....... जातनय सफलता का विजञान-पजय बाप जी स

उतसकता हम िरदानरप म समली ह। उसी को जो ʹजजजञासा बना लता ह िह ह परषारथी। सफलता ऐस उदयमी को विजयशरी की माला पहनाती ह।

एक लडक न सिकषक स पछाः "म महान कस बना ?"

सिकषक बोलः "महान बनन की जजजञासा ह ?" "ह।"

"जो बताऊा िह करगा ?" "करा गा।"

"लककन कस करगा ?" "म मागथ खोज लागा।"

सिकषक न कहाः "ठीक ह, कफर त महान बन सकता ह।"

रथामस अलिा एडडसन तमहार जस बचच रथ। ि बहर भी रथ। पहल रलगाडडयो म अखबार, दध की बोतल आदद बचा करत रथ परीत उनक जीिन म जजजञासा रथी, अतः आग जाकर उनहोन अनक आविषटकार ककय। तरबजली का बलब आदद 1093 खोज उनकी दन ह। जहाा चाह िहाा राह ! जजसक जीिन म जजजञासा ह िह उननतत क सिखर जरर सर कर सकता ह।

ककसी ककषा म पचास विदयारथी पढत ह, जजसम सिकषक तो सबक एक ही होत ह, पाठयपसतक भी एक ही होती ह ककी त जो बचच सिकषको की बात धयान स सनत ह एिी जजजञासा करक परशन पछत ह, ि ही विदयारथी माता-वपता एिी विदयालय का नाम रोिन कर पात ह और जो विदयारथी पढत समय धयान नहीी दत, सना-अनसना कर दत ह, ि रथोड स अीक लकर अपन जीिन की गाडी बोझीली बनाकर घसीटत रहत ह।

अतःजजजञास बनो, ततपर बनो। ऐदहक जगत क जजजञास होत-होत ʹम कौन हा ? िरीर मरन क

बाद भी म रहता हा, म आतमा हा तो आतमा का परमातमा क सारथ कया सीबीध ह ? बरहम परमातमा की पराजपत कस हो ? जजसको जानन स सब जाना जाता ह, जजसको पान स सब पाया जाता ह िह ततति कया ह ?ʹ ऐसी जजजञासा करो। इस परकार की बरहमजजजञासा करक बरहमजञानी करक बरहमजञानी-जीिनमकत होन की कषमताएा तमम भरी हई ह। िाबाि िीर ! िाबाि !!.....

सोच व िवाब द-म कौन हा ? – यह ककस परकार की जजजञासा ह ?

ककस तरह क विदयारथी माता-वपता एिी विदयालय का नाम रोिन कर सकत ह ?

करकरयाकलापः आप सफलता पान क सलए कया करोग ? सलख और उपरोकत विषय पर आपस म चचाथ कर।

अनकरमणणका

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पजय बाप िी का पणय सदश

मर लाल ! तमही हो सचच ववदयाथी... हो न !सचचा विदयारथी कौन ? जजसक मन म िाीतत हो, हदय म उततम भािना हो, इजनरयाा िि

म हो, जो सतसादहतय का सिन करता हो और अपन हर कायथ म परभ को साकषी मानता हो िही ʹसचचा विदयारथीʹ ह। आप भी सचच विदयारथी बनो।

ददन की शरआत.... सपरभात !सबह जलदी (परातः 3 स 5 बज) उठो। लट-लट िरीर को खीीचो। कछ समय बठकर

इषटटदि, गरदि का धयान करो। कफर ििक आसन करत हए उनह नमन करो। दोनो हरथसलयो क दिथन करो। बाद म तरबसतर का तयाग करो। माता-वपता का परणाम करो। यिसिी जीिन जजयो।

चचरिीवी भव !जो आजसतक ह, आलसय-परमाद छोडकर सतकायो म लग रहत ह, गर एिी िासतरो की

आजञा सिरोधायथ करत ह, ऐस सदभागी बचच चचरीजीिी होत ह। सतपरषो का सतसीग-साजननधय तजसिी और दीघथ जीिन जीन की की जी दता ह।

जो झककर बठ, ततनक तोड, दाातो स नाखन कतर, हारथ-माह जठ रख, अिि रह, गाली बोल या सन, चाय-कॉफी, पान-मसाला जसी हलकी चीजो का सिन कर उसका आयषटय कम होता ह।

खाना नही खाना, परसाद पानाभोजन क समय पर गील होन चादहए लककन सोत समय कदावप नहीी। भोजन क पिथ इस

शलोक का उचचारण कर- ʹहररदााता हरर भोकता हरररनन परिापततः। हररः सवाशरीरसथो भकत भोियत हररः।।ʹ कफर ʹૐ पराणाय सिाहा। ૐ अपानाय सिाहा। ૐ वयानाय सिाहा। ૐ उदानाय सिाहा। ૐ

समानाय सिाहाʹ। - इन मीतरो स पीच-पराणो को आहततयाा अपथण कर। ʹगीता क 15ि अधयाय का भी पाठ कर, कफर भगिान का समरण करक परसननचचतत होकर भोजन कर। इसस भोजन परसाद बन जाता ह। रातरतर का भोजन हलका और सपाचय होना चादहए।

तिसवी भव ! यशसवी भव !दसरो क िसतर तरथा जत न पहनो। ककसी क ददल को ठस न पहाचाओ। सीधया क समय

तरथा रातरतर को दर तक (9 बज क बाद) न पढो। परातः काल जलदी उठकर रथोडी दर धयान करक पढना अचधक लाभदायक होता ह। यिसिी-तजसिी जीिन जीन की आकाीकषािालो को चादहए कक ि आाखो तरथा चाररतरय-बल का नाि कर ऐसी िब-साइटो, पसतको, अशलील चचतरो, कफलमो, टीिी कायथकरमो, धमथविरोधी चनलो स दर रह। आपक अधयापको को गससा ददलाय ऐसा हासय या

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कतय मत करो। अधयापक जो गहकायथ द, िह सािधान होकर एकागरतापिथक करो। जो विदयारथी तनयसमत अभयास करता ह, तनजशचीत और तनभथय होकर पढता ह तरथा मन इजनरयो को सीयम म रखता ह, िह अिशय सफल होता ह।

आराम स बनोग महानउततर तरथा पजशचम ददिा की ओर ससर करक सोनिालो क सिासरथय की हातन होती ह।

पिथ तरथा दकषकषण ददिा की ओर ससर करक सोन िालो क सिासरथय की रकषा होती ह। रातरतर क समय परमातमा का समरण करत-करत उसी म खो और सो जान स रात की तनरा योगतनरा बन जाती ह और इस परकार का आराम-विशराम महानता का दिार खोल दता ह। सियी की महनत स करोडपतत बनन म समय लग सकता ह ककी त करोडपतत वपता क गोद चल जान मातर स सहज म करोडपतत हो जाता ह। उसी परकार एक-एक सफलता को पान म बहत समय लगता ह परीत जो मानि-जीिन क परम लकषय को पा चक ह, ऐस महापरषो क सतसीग-साजननधय म जान स सहज म ही ढरो सफलताएा समल जाती ह।

सोच व िवाब द-कसा विदयारथी अिशय सफल होता ह ?

आप अपनी नीीद को योगतनरा कस बनाओग ?

सहज म ही सफलताएा पान की सबस सरल की जी कया ह ?

करकरयाकलापः विदयारथी ददनचयाथ की समय सची बनाय, उसक अनसार कायथ कर और िाम को पणथ हए कायो को √ कर, कारथ ठीक स पर हए या नहीी यह सोच।

अनकरमणणका

िीवनशजकत का ववकास कस हो ?..... छातरो क महान आचाया पजय बाप िी दवारा सकषम ववशलषि

कया ह जीिनिजकत ? जीिनिजकत को आधतनक भाषा म ʹलाइफ एनजीʹ और योग की भाषा म ʹपराणिजकतʹ कहत ह। यह हमारी भीतरी िजकत ह, जो अनक पहलओी स परभावित होती ह। हमार िारीररक ि मानससक आरोगय का आधार हमारी जीिनिजकत ह। हमार पराचीन ऋवष-मतनयो न योगदजषटट स, अीतदथजषटट स और जीिन का सकषम तनरीकषण करक जीिनिजकत विषयक गहनतम रहसय खोज रथ। जो तनषटकषथ ऋवषयो न खोज रथ उनम स कछ तनषटकषो को समझन म आधतनक िजञातनको को अभी सफलता परापत हई ह। विदि क कई बविमान, विदिान, िजञातनक िीरो न विशि क समकष हमार ऋवष-महवषथयो क आधयाजतमक खजान को परयोगो दिारा परमाणणत ककया कक िह खजाना ककतना सतय और जीिनोपयोगी ह ! डॉ. डायमणड न जीिनिजकत पर

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गहन अधययन ि परयोग ककय ह। (जीिनिजकत को परभावित करन िाल आठ घटको म स तनजमनसलणखत दो घटको पर हम विचार करग।)

मानससक आघात, णखचाव, तनाव या घबराहट का परभावःडॉ. डायमणड न कई परयोग करक दखा कक जब वयजकत अचानक कोई तीवर आिाज सनता

ह तो उसी समय उसकी जीिनिजकत कषीण हो जाती ह, िह घबरा जाता ह। शजकत सरकषा का एक अदभत उपाय

तालसरथान (दाातो स करीब आधा स.मी. पीछ) म जजहिा लगान स जीिनिजकत कजनरत हो जाती ह और मजसतषटक क दाय ि बाय भागो म सीतलन रहता ह। जब ऐसा सीतलन होता ह तब वयजकत का सिाागीण विकास होता ह, सजथनातमक परिजतत णखलती ह और परततकलताओी का सामना सरलता स हो सकता ह।

जब सतत मानससक तनाि-णखीचाि, घबराहट का समय हो तब जजहिा को तालसरथान स लगाय रखन स जीिनिजकत कषीण नहीी होती।

सत दशान स िीवनशजकत का ववकास

दिी-दिताओी, सीतो-महापरषो क चचतरो क दिथन स अनजान म ही जीिनिजकत का लाभ होता रहता ह।

कदरती दशय, पराकततक सौदयथ क चचतर, जलरासि, सररता-सरोिर-सागर आदद दखन स, हररयाली एिी िन आदद दखन स, आकाि की ओर तनहारन स हमारी जीिनिजकत बढती ह। इसीसलए हमार दिी-दिताओी क चचतरो म पीछ की ओर इस परकार क दशय रख जात ह।

ककसी वपरय साजततिक कावय, गीत, भजन, शलोक आदद का िाचन, पठन, उचचारण करन स भी जीिनिजकत का सीरकषण होता ह। चलत िकत दोनो हारथ सिाभाविक ही आग-पीछ दहलत ह, इसस भी जीिनिजकत का विकास होता ह।

अनकरमणणका

शारीररक जसथतत का परभावः कमर झकाकर, रीढ की हडडी टढी रखकर बठन-चलन िाल वयजकत की जीिनिजकत कम

हो जाती ह। उसी वयजकत को कमर, रीढ की हडडी, गदथन ि ससर सीध रखकर बठाया जाय और कफर जीिनिजकत नापी जाय तो बढी हई समलगी।

दहटलर जब ककसी इलाक को जीतन क सलए आकरमण की तयारी करता, तब अपन गपतचर भजकर जााच करिाता कक उस इलाक क लोग कस चलत-बठत ह – यिानो की तरह सीधा या बढो की तरह झककर ? इसस यह अीदाजा लगा लता कक िह इलाका जीतन म पररशरम पडगा या आसानी स जीता जायगा।

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सीध-बठन-चलन िाल लोग साहसी, दहममत िाल, बलिान, दबथल, डरपोक ि तनरािािादी होत ह।

चलत-चलत बात करन स भी जीिनिजकत का खह हरास होता ह।हरक परकार की धातओी स बनी कससथयाा, आरामकसी, नरम गददीिाली कससथयाा जीिनिजकत

को हातन पहाचाती ह। सीधी सपाट, कठोर बठकिाली कसी लाभदायक ह।तलसी, रराकष, सिणथमाला धारण करन स जीिनिजकत बढती ह।

मनषय िनम का वासतववक उददशयजीिनिजकत का विकास करना और जीिनदाता को पहचानना यह मनषटय जनम का लकषय

होना चादहए। हजारो तन तन पाय, मन म हजारो सीकलप-विकलप आय और गय। इन सबस जो पर ह, इन सबका जो िाजसतक जीिनदाता ह, िह तरा आतमा ह। उस आतमबल को जगाता रह... उस आतमजञान को बढाता रह... उस आतमपरीतत, आतमविशराजनत को पाता रह। ૐ.... ૐ....!! ૐ...!!!

सोच व िवाब दतनाि क समय कया करन स मजसतषटक का सीतलन बना रहगा ?मनषटय जनम का िासतविक लकषय कया ह ?करकरयाकलापः जीिनिजकत क हरास ि विकास क 5-5 घटक सलख। आप जीिनिजकत को

बढान क सलए कया करोग ?

अनकरमणणका

तनयम छोट-छोट, लाभ ढर सारा हमारा वयिहार हमार विचारो का आईना ह। ऋवष-मतनयो एिी मनीवषयो न मनषटय-जीिन

म धमथ-दिथन और मनोविजञान क आधार पर सिषटटाचार ि अनय जीिनोपयोगी कई तनयम बनाय ह। इन तनयमो क पालन स मनषटय का जीिन उजजिल बनता ह।

सदा सीतषटट और परसनन रहो। दसरो की िसतओी को दखकर ललचना नहीी।हमिा सच बोलो। लालच या ककसी की धमकी क कारण झठ का आशरय न लो।वयरथथ बातो, वयरथथ कामो म समय न गािाओ। कोई बात तरबना समझ मत बोलो। तनयसमत

तरथा समय पर काम करो।ककसी को िरीर स तो मत सताओ पर मन, िचन, कमथ स भी ककसी को नहीी सताना

चादहए।

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जजनक साजननधय स हमार सिभाि, आचार-वयिहार म सिाभाविक ही सकारातमक पररितथन होन लगत ह, उनका सीग करो।

शरीमद भगिद गीता, शरी रामचररत मानस, सीत शरी आिारामजी बाप, सिामी रामतीरथथ, आनीदमयी माा आदद क परिचनो स सीकसलत सतसादहतय का तनतय पाठ करो।

पसतक खली छोडकर मत जाओ। धमथगरनरथो को सियी िि, पवितर ि सिचछ होन पर ही सपिथ करना चादहए। उागली म रथक लगाकर पषटठ मत पलटो।

नतरो की रकषा क सलए न बहत तज परकाि म पढो, न बहत मीद परकाि म। लटकर, झककर या पसतक को नतरो क बहत नजदीक लाकर नहीी पढना चादहए।

अपन कलयाण क इचछक वयजकत को बधिार ि िकरिार क अततररकत अनय ददनो म बाल नहीी कटिान चादहए।

कहीी स चलकर आन पर तरीत जल मत वपयो, हारथ-पर मत धोओ और न ही सनान करो। पहल 15 समनट विशराम कर लो, कफर हारथ पर धोकर, कलला लकर पानी वपयो।

िद-िासतर, सीत महापरष आदद का तनीदा-पररहास कभी न करो और न ही सनो। इनकी तनीदा करक अपन परो पर कलहाडी न मारो।

आतमजञानी सीत-महापरषो का सतसीग-शरिण परततददन अिशय करो। सतसीग-शरिण स उपरोकत परकार की जीिन जीन की का जजयाा सहज म परापत होती ह।

सोच व िवाब द-विदयाचरथथयो को ककस परकार क सतसादहतय का पठन-पाठन करना चादहए ?करकरयाकलापः आप जीिन म कौन सा तनयम लोग ? एक सीकलप-पतर बनाकर ककसी बडी

उमर क वयजकत को द जजनका आप आदर करत हो अरथिा ईशिर या गर-चरणो म अवपथत कर।अनकरमणणका

साहसी बनो ! परषाथी बनो ! पजय सत शरी आशारामिी बाप

सफल और समननत ि ही होत ह जो सदि परयतनिील रहत ह। गीगा की धारा भी जनकलयाण क सलए अविरत बहती रहती ह। दहमाचछाददत चगरर-शरीखलाओी स वपघलकर बहता जल सतत परिादहत हो समर म समलता ह। बडी-बडी चटटानो को काटकर भी िह लकषय तक पहाचन का अपना मागथ बना लता ह। सौरमीडल क गरह, नकषतर, दटमदटमात ससतार भी अपन-अपन तनयत कमो म सीलगन ह अविराम... अतः परषारथी और साहसी बनो।

उदयम, साहस, धयथ, बवि, िजकत, पराकरम – य छः सदगण जहाा ह, िहीी पद-पद पर आतमा-परमातमा का सहायता-सहयोग समलता ह।

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इततहास उन चीद महातमाओी और िीरो की ही गारथा ह, जजनम अदमय साहस, सीयम, िौयथ और पराकरम कट-कटकर भरा हआ रथा। उनहोन दढता ि साहस स मसीबतो का सामना ककया और सफल हो गय। तमहार भीतर भी य िजकतयाा बीजरप म पडी ह। अपनी इन िजकतयो को तम जजतन अीि म विकससत करोग, उतन ही महान हो जाओग। अतः कसी भी विषम पररजसरथतत आन पर घबराओ नहीी बजलक आतमविशिास जगाकर आतमबल, साहस, उदयम, बवि ि धयथ पिथक उसका सामना करो और अपन लकषय को पान का सीकलप दढ रखो। िद भगिान न भी कहा हः मा भमाथ सीविकरथाઽऊजजथ धतसि.... ʹह मानि ! त डर मत, कााप मत। बल, पराकरम और साहस धारण कर। (यजिदः6-25)

ह विदयारथी ! जीिन म तम सब कछ कर सकत हो। नकारातमक विचारो को छोड दो। अपन आदिथ चररतर-तनमाथण क सलए सीतो एिी भकतो का समरण करो। एक लकषय स जड रहो (अरथाथत अपन अमर चतनयसिरप का जञान पान म दढता स लग जाओ)। कफर दखो, सफलता तमहारी दासी बनन को तयार हो जायगी।

अनकरमणणका

त गलाब होकर महक.... आज एक और जहाा सारा विशि चचीता, तनाि, अऩततकता और अिाीतत की आग म जल

रहा ह, िहीी दसरी ओर पजय बाप जी अपन गरदि स समल आिीिाथद और आजञा को सिरोधायथ कर गााि-गााि, नगर-नगर जाकर अपनी पािन िाणी स समाज म परम, िाीतत, सदभाि तरथा आधयाजतमकता की मधर सिास फला रह ह।

पजय बाप िी का सवादहतकारी सदश

एक बार गरदि (पजयपाद भगितपाद सााई शरी शरी लीलािाहजी महाराज) न गलाब का फल ददखाकर जो मझस कहा रथा, िह आज भी मझ ठीक स याद ह। ि बोल रथः "दख बटा ! यह कया ह ?"

"सााई ! यह गलाब ह।""यह लकर ककरान की दकान म जा और इस घी क डडबब क ऊपर रख, गड क रथल पर

रख, िककर क बोर पर रख, तल क डडबब पर रख, मागफली, माग, चािल, चन िगरह सभी िसतओी क ऊपर रख, कफर इस साघ तो सगीध ककसकी आयगी ?"

मन कहाः "सगीध तो गलाब की ही आयगी।"गरदि बोलः "इस गटर क आग रख, कफर साघकर दख तो सगीध ककसकी आयगी ?"

मन कहाः "गलाब की ही।"

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गरदि बोलः "बस, त ऐसा ही बनना। दसर की दगथनध अपन म न आन दना िरन अपनी सगीध फलात रहना और आग बढत रहना। त गलाब होकर महक ! तझ जमाना जान...

त सीसार म गलाब की तरह ही रहना। ककसी क सीसकार अरथिा गण-दोष अपन म कदावप न आऩ दना। अपनी साधना एिी सतसीग की सिास चारो ओर फलात रहना।

तो बचच हो चाह बड हो, म आपको ऐसा बोलता हा कक आप भी ऐसा बनना। दसर क कसीग म आप नहीी आना। त गलाब होकर महक ! तझ जमाना जान...

जञान, वरागय, योग-सामरथया की परततमततासााई शरी लीलाशाहिी महाराि

सदी का मौसम रथा। बरहमितता सीत सााई शरी लीलािाहजी महाराज उनक असरथायी तनिास पर परिचन कर रह रथ। अचानक ही ठीड स रथर-रथर काापती हई एक बदढया िहाा पहाची और हारथ जोडक तनिदन करन लगीः "औ महाराज ! कछ मरा भी भला करो। म ठीड क मार मर रही हा।"

सााई जी अपन सिक को बलाकर कहा कक "कल जो रिमी तरबसतर समला रथा िह इस बदढया को द दो।" सिषटय न सारा तरबसतर, जजसम दरी, तककया, गददा ि रजाई रथी, लाकर उस बदढया को द ददया और िह दआएा दती हई चली गयी। जजस भकत न िह तरबसतर सााई जी को ददया रथा, उसस रहा न गया। िह बोलाः "सााई जी ! कम-स-कम एक ददन तो उस तरबसतर पर विशराम करत तो मरा मन परसनन हो जाता।"

सााई जी बोलः "जजस पल तरबसतर तमन मझ ददया, उस पल स यह तमहारा नहीी रहा और जो तमन दान म ददया िह दान म ही तो गया ! दतनया म ʹतरा-मराʹ कछ नहीी, जो जजसक नसीब म होगा िह उस समलगा।" इस परकार भकतो न अदित जञान, िरागय एिी परदःखकातरता का पाठ किल पढा ही नहीी, िह जीिन म ककस परकार झलकना चादहए यह परतयकष दखा भी।

दशमनो का बल तनकाल रहा हाएक बार सााई जी रससी क बल सलझा रह रथ। पछन पर बोल कक "भारत क दशमनो का

बल तनकाल रहा हा।" उन ददनो भारत-चीन यि चल रहा रथा। दसर ददन समाचार आया कक "यि समापत हो गया और दशमनो का बल तनकल गया।"

बरहमतनषटठ योचगयो को भत, ितथमान एिी भविषटय काल – य तीनो हारथ पर रख आािल की तरह परतयकष होत ह। इससलए उऩक मागथदिथन एिी आजञा म चलन िालो को उनकी तरतरकालदिी दजषटट का लाभ समलता ह।

सोच व िवाब द-इस परसीग दिारा कौन-कौन स ददवय गण सीखन को समलत ह ?

ऐसा परसीग यदद आपक जीिन म आय तो ककस तरह का वयिहार करोग ?

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करकरयाकलापः गरीबो को मददरप हो, ऐसा कोई आयोजन विदयारथी समलकर कर सकत ह।अनकरमणणका

सशषय ऐसा हो करक गर का ददल छलक पडा..... जजसक अीदर जजजञासा ह, िह छोटी-छोटी बातो म भी बड रहसय खोज लगा और जजसक

जीिन म जजजञासा नहीी ह, िह रहसय को दखत हए भी अनदखा कर दगा। जजजञास की दजषटट पनी होती ह, सकषम होती ह। िह हर घटना को बारीकी स दखता ह, खोजता ह और खोजत-खोजत रहसय को भी परापत कर लता ह। ह विदयारथी ! तम भी जजजञास बनो।- पजय बाप जी।

भारतीय मतर-ववजञानगर रोणाचायथजी क कछ सिषटय सोचत रथ कक अजथन पर गर जी की वििष कपा ह। उन

सभी को मन-ही-मन अजथन क परतत दिष हो गया। एक बार रोणाचायथ अपन सिषटयो को लकर नदी ककनार गय और एक िटिकष क नीच खड होकर बोलः "बटा अजथन ! म आशरम म अपनी धोती भल आया हा। जा, जरा ल आ।"

अजथन चला गया। गर रोणाचायथ न दसर सिषटयो स कहाः "बाहर क धनष और गदा म तो िजकत ह लककन मीतर म इनस अनीत गनी िजकततयाा होती ह। म मीतर स असभमीतरतरत एक ही बाण स इस िटिकष क सार पततो को छद सकता हा।" रोणाचायथ जी न धरती पर एक मीतर सलखा। एक तीर को उस मीतर स असभमीतरतरत ककया और छोड ददया। बाण एक-एक पतत म छद करता हआ गया। सभी सिषटय आशचयथचककत हो गय।

रहसय-भदनगर रोणाचायथ और सब सिषटय नहान चल गय। इतन म अजथन लौटा। उसकी दजषटट पड क

पततो की ओर गयी। िह सोचन लगा कक "इस िटिकष क पततो म पहल तो छद नहीी रथ। म सिा क सलए गया तब गर जी न इन सिषटयो को कोई रहसय बताया ह। रहसय बताया ह तो उसका कोई सतर भी होगा, िरआत भी होगी और कोई चचहन भी होगा।ʹ अजथन न इधर-उधर दखा तो धरती पर एक मीतर क सारथ सलखा रथाः ʹिकषछदन क सामरथयथिाला यह मीतर अदभत ह।ʹ उसन िह मीतर पढा। परी एकागरता क सारथ ततलक लगान क सरथान (आजञाचकर) पर मीतर का धयान ककया और दढ तनशचय ककया कक ʹमरा यह मीतर अिशय सफल होगा।ʹ कफर तीर उठाया और मीतर का मन-ही-मन जप करक छोड ददया। िटिकष क पततो म एक-एक छद तो रथा ही, दसरा छद भी हो गया। अजथन को परसननता हई कक ʹगरजी न उऩ सबको जो विदया ससखायी, िह मन भी पा ली।ʹ नहाकर आन पर सबन िकष क पततो म दसरा छद दखा। सब चककत हो गय। रोणाचायथ जी न पछाः "दसरा छद कया तम लोगो म स ककसी न ककया ह ?"

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सभी चप रथ। गर जी न कफर स पछा तो सबन कहाः "नहीी।"

रोणाचायथ न अजथन स पछाः "कया तमन ककया ह ?"

सफलता पर ववनमरताअजथन रथोडा डर गया ककी त झठ कस बोलता। उसन कहाः "मन आपकी आजञा क तरबना

आपक मीतर का परयोग इससलए ककया कक आपन इन सबको तो यह विदया ससखा ही दी ह, कफर आपस पछकर म अकला आपका समय नषटट न करा , इतना खद ही सीख ला। गर जी ! गलती हो तो माफ कीजजय।"

रोणाचायथः "नहीी अजथन ! तमम जजजञासा ह, सीयम ह, सीखन की तडप ह और मीतर पर तमह विशिास ह। मीतरिजकत का परभाि दखकर य सब तो किल आशचयथ करक नहान चल गय। इनम स ककसी न भी दसरा छद करन का सोचा ही नहीी। तमन दहममत की, परयतन ककया और सफल भी हए। तम मर सतपातर सिषटय हो। अजथन ! तम विशि क महान धनधथर क रप म परससि होओग।" सिषटय ऐसा जजजञास हो कक गर का ददल छलक पड। जजसक जीिन म जजजञासा ह, तडप ह और परषारथथ ह िह जजस कषतर म चाह, सफल हो सकता ह। सफलता उदयसमयो का ही िरण करती ह।

राषरपतत दवारा सविा पदक

पजय बाप जी स मन सारसितय मीतर की दीकषा ली ह। म तनयसमत रप जप करती हा। म जब भी परीकषा दन जाती तो पहल आशरम म जाकर पजय बापजी दिारा िजकतपात ककय गय बडदादा (िटिकष) क फर कफरकर आिीिाथद अिशय लती। सभी परीकषाओी म सदि पररथम आती रथी। बी.ए. क ततीय िषथ की परीकषा म दहनदी विषटय म सिोचच अीक परापत करन पर दीकषाीत समारोह म राषटरपतत जी क हारथो मझ सिणथपदक परापत हआ। म अपनी इस सफलता का शरय पजय बाप जी को एिी उऩस परापत सारसितय मीतर को दती हा। - अनराधा असरथाना, लखनऊ (उ.पर.)

सोच व िवाब द-जजजञास की दजषटट कसी होती ह और िह उसका लाभ कस उठाता ह ?

अजथन गर रोणाचायथ का सतपातर सिषटय ककन गणो स कारण बना ?

सफलता ककसका िरण करती ह ?

अनकरमणणका

शरीर की िववक घडी पर आधाररत ददनचयाा अपनी ददनचयाथ को कालचकर क अनरप तनयसमत कर तो अचधकाीि रोगो स रकषा होती ह

और उततम सिासरथय एिी दीघाथयषटय की भी पराजपत होती ह।

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समय ( उस समय सकरकरय अग)- सकरकरय अग क अनरप कायो का वववरि

परातः 3 स 5 (फफड)- बराहममहतथ म रथोडा सा गनगना पानी पीकर खली हिा म घमना चादहए। बराहममहतथ म उठन िाल वयजकत बविमान ि उतसाही होत ह।

परातः 5 स 7 बि (बडी आात)- जो इस समय सोय रहत ह, मल विसजथन नहीी करत, उऩह कबज तरथा कई अनय रोग होत ह। अतः परातः जागरण स लकर सबह 7 बज क बीच मलतयाग कर लना चादहए।

सबह 7 स 9 (िठर)- इस कछ पय पदारथथ लना चादहए।9 स 11 (अगनाशय व पलीहा)- करीब 9 स 11 बज का समय भोजन क सलए उपयकत

ह।दोपहर 11 स 1 (हदय)- करणा, दया, परम आदद हदय की सीिदनाओी को विकससत एिी

पोवषत करन क सलए दोपहर 12 बज क आसपास सीधया कर। भोजन िजजथत ह।दोपहर 1 स 3 (छोटी आात)- भोजन क करीब दो घीट बाद पयास अनरप पानी पीना

चादहए। इस समय भोजन करन अरथिा सोन स पोषक आहार-रस क िोषण म अिरोध उतपनन होता ह ि िरीर रोगी तरथा दबथल हो जाता ह।

दोपहर 3 स 5 (मतराशय)- 2-4 घीट पहल वपय पानी स इस समय मतरतयाग की परिजतत होगी।

शाम 5 स 7 (गद)- इस काल म हलका भोजन कर लना चादहए। सयाथसत क 10 समनट पहल स 10 समनट बाद तक (सीधयाकाल म) भोजन न कर। सबह भोजन क दो घीट पहल तरथा िाम को भोजन क तीन घीट बाद दध पी सकत ह।

रातरतर 7 स 9 (मजसतषक)- परातः काल क अलािा इस काल म पढा हआ पाठ जलदी याद रह जाता ह।

रातरतर 9 स 11 (रीढ की हडडी म जसथत मररजि)- इस समय की नीीद सिाथचधक विशराीतत परदान करती ह और जागरण िरीर ि बवि को रथका दता ह।

11 स 1 (वपतताशय)- इस समय का जागरण वपतत को परकवपत कर अतनरा, ससरददथ आदद वपतत विकार तरथा नतररोगो को उतपनन करता ह। इस समय जागत रहोग तो बढापा जलदी आयगा।

1 स 3 (यकत)- इस समय िरीर को गहरी नीीद की जररत होती ह। इसकी पतत थ न होन पर पाचनतीतर तरबगडता ह।

ऋवषयो ि आयिदाचायो न तरबना भख लग भोजन करना िजजथत बताया ह। अतः परातः एिी िाम क भोजन की मातरा ऐसी रख, जजसस ऊपर बताय समय म खलकर भख लग।

अनकरमणणका

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सवा की सवास

लोक सिा क आदिथ पजय बाप जी की सिा-पररक सतसीग-सररताएक बार कटक (उडीसा) म पलग फला। िहर का उडडया बाजार भी पलग की चपट म आ

चका रथा। किल बापपाडा जहाा बहत सार िकील लोग, समझदार लोग रहत रथ, इसस बचा रथा। ि घर क आागन ि आसपास म गीदगी नहीी रहन दत रथ। िहाा क कछ विदयाचरथथयो न सिा क सलए एक दल बनाया, जजसका मणखया रथा एक 12 साल का ककिोर।

उडडया बाजार म हदरअली नाम का एक िाततर गीडा रहता रथा। बापपाडा क लडक जब उडडया बाजार म सिा करन आय तो हदरअली को लगा कक ʹबापपाडा क िकीलो न मझ कई बार जल सभजिाया ह। य लडक बापपाडा स आय ह, हरामी ह... ऐस ह... िस ह....ʹ ऐसा सोचकर उसन उनको भगा ददया। परीत जो लडको का मणखया रथा िह िापस नहीी गया। हदरअली की पतनी और बटा भी पलग का सिकार हो गय रथ। िह लडका उनकी सिा म लग गया। हदरअली न लडक स पछाः "तमको डर नहीी लगा ?"

"म कयो डरा ?"

"बालक ! हम तमहारी इस दहममत और उदारता स परभावित ह। बटा ! मझ माफ कर दना। मन तमहारी सिा की कर नहीी की।

"यदद कोई बीमार ह तो हम उसकी सिा करनी चादहए। आप तो हमार वपतातलय ह, आपकी पतनी तो मर सलए मातातलय ह और बटा भाई क समान।"

हदरअली उस बचच की तनषटकाम सिा और मधर िाणी स इतना परभावित हआ कक फट-फटकर रोया। िही परोपकारी बालक आग चलकर नता जी सभाषचनर बोस क नाम स सविखयात हआ। तनषटकाम सिा और मधर िाणी कठोर हदय को भी वपघला दती ह।

सोच व िवाब दविदयाचरथथयो न अपना दल कयो बनाया रथा ?

कठोर हदय का पररितथन कस हो सकता ह ?

करकरयाकलापः विदयारथी भी अपना दल बनाकर गरीब गरबो, पीडडतो की सिा कर तो उनक जीिन म परदहत की भािना का विकास होगा।

अनकरमणणका

बवि महान कस होती ह ?

पजय बाप िी

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बवि को भगितपराजपत क योगय बनाओ। जो जररी ह िह करो, अनािशयक कायथ और भोग सामगरी म उलझो नहीी। जब बवि बाहर सख ददखाती ह तो कषीण हो जाती ह और जब अीतमथख होती ह तो महान हो जाती ह।

बवि नषट कस होती ह ?अपन-आप म अतपत रहना, असीतषटट रहना, ककसी क परतत राग-दिष करना, भयभीत

रहना, करोध करना आदद स बवि कमजोर हो जाती ह।जो काम ह, िासना ह कक ʹयह समल जाय तो सखी हो जाऊा , यह पाऊा , यह भोगा....ʹ

इसस बवि छोटी हो जाती ह।बवि महान कस होती ह ?

सतय बोलन स बवि विलकषण लकषणो स समपनन होती ह।जप-धयान, महापरषो क सतसीग दिारा अपन को परमातम-रस स तपत करन स बवि

महान हो जाती ह।भगिान क, गर क चचनतन स राग-दिष समटता ह और बवि तपत होती ह। जजन कारणो

स बवि उननत होती ह ि सतसीग म समलत ह और जजन कारणो स बवि भरषटट हो जाती ह उनस बचन का उपाय भी सतसीग म ही समलता ह। सतसीग बवि की जडता को हरता ह, िाणी म सतय का सीचार करता ह, पाप दर करता ह, चचतत को आनीददत करता ह और यि ि परसननता का विसतार करता ह। अतः परयतनपिथक ककनहीी समरथथ सीत-महापरष क सतसीग म पहाच जाओ और ईशिरीय भजकतरस स अपन हदय ि बवि को पवितर कर दो। अपन को तो आप जजसक ह उसी को पान िाला बनाओ। आप परमातमा क ह अतः परमातमा को पा लो बस ! इसस आपकी बवि बहत ऊा ची हो जायगी। बवि को तनषटकाम नारायण म आनीददत होन दो। इसस आपकी बवि म चचनमय सख आयगा। ૐ.... ૐ..... ૐ....

दहतकारी वािीः "तमहारा िरीर तीदरसत रह, तमहारा मन परसनन रह, बवि म समता रह, सारथ ही बवि म बविदाता का आनीद परकट हो, यही म चाहता हा।" पजय बाप जी।

सोच व िवाब द-बवि ककन कारणो स कमजोर होती ह ?

सतसीग की मदहमा बताय।करकरयाकलापः बवि को महान बनान क उपायो पर चचाथ कर ि उनह जीिन म उतार।

अनकरमणणका

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गर गोववनदससह क वीर सपत

धमथ की खाततर पराण दन पड तो दग लककन अतयाचाररयो क आग कभी नहीी झक ग। विलाससयो दिारा फलाय गय जाल, जो आज हम वयसन, फिन और चलचचतरो क रप म दखन को समल रह ह, उनम नहीी फा सग। अपनी सीसकतत की रकषा क सलए सदा ततपर रहग। ૐ..... ૐ.... ૐ.....

फतहससीह और जोरािरससीह ससख धमथ क दसि गर गोविनदससीहजी क सपतर रथ। आनीदपर क यि म गरजी का पररिार तरबखर गया रथा। चार पतरो म स दो छोट पतर गर गोविनदससीह की माता गजरी दिी क सारथ तरबछड गय। उस समय जोरािरससीह की उमर मातर सात िषथ गयारह माह तरथा फतहससीह की उमर पााच िषथ दस माह रथी। दोनो अपनी दादी क सारथ जीगलो, पहाडो को पार करक एक नगर म पहाच। गीग नामक बराहमण, जजसन बीस िषो तक गरगोविनदससीह क पास रसोइय का काम ककया रथा, उऩक आगरह पर माता जी दोनो ननह बालको क सारथ उनक घर गयीी। गीग न रातरतर को माता गजरी दिी क सामान म पडी सोन की मोहर चरा लीी, इतना ही नहीी इनाम पान क लालच म कोतिाल को उनक बार म बता भी ददया।

कोतिाल न दोनो बालको सदहत माता गजरी दिी को बीदी बना सलया। माता गजरी दिी दोनो बालको को उनक दादा गर तगबहादर और वपता गरगोविनदससीह की िीरतापणथ करथाएा सनाकर अपन धमथ म अडडग रहन क सलए परररत करती रहीी।

सबह सतनक बचचो को लन पहाच गय। दोनो बालक निाब िजीर खान क सामन पहाच। िरीर पर कसरी िसतर, पगडी तरथा कपाण धारण ककय इन ननह योिाओी को दखकर एक बार तो निाब का भी हदय वपघल गया। उसन कहाः "बचचो ! हम तमह निाबो क बचचो की तरह रखना चाहत ह। एक छोटी सी ितथ ह कक तम अपना धमथ छोडकर हमार धमथ म आ जाओ।"

निाब की बात सनकर दोनो भाई तनभीकतापिथक बोलः "हम अपना धमथ पराणो स भी पयारा ह। जजस धमथ क सलए हमार पिथजो न अपन पराणो की बसल द दी उस हम तमहारी लालचभरी बातो म आकर छोड द, यह कभी नहीी हो सकता।"

निाबः "तमन हमार दरबार का अपमान ककया ह। यदद जजीदगी चाहत हो तो..."निाब अपनी बात परी कर इसस पहल ही ननह िीर गरजकर बोल उठः "निाब ! हम

उन गर तगबहादर क पोत ह जो धमथ की रकषा क सलए कबाथन हो गय। हम उन गर गर गोविनदससीह क पतर ह, जजनका नाम सनत ही तरी सलतनत रथर-रथर काापन लगती ह। त हम मतय का भय ददखाता ह ? हम कफर स कहत ह कक हमारा धमथ हम पराणो स भी पयारा ह। हम पराण तयाग सकत ह परीत अपना धमथ नहीी तयाग सकत।"

इतन म दीिान सचचानीद न बालको स पछाः "अचछा, यदद हम तमह छोड द तो तम कया करोग ?"

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बालक जोरािरससीह न कहाः "हम सना इकटठी करग और अतयाचारी मगलो को इस दि स खदडन क सलए यि करग।"

दीिानः "यदद तम हार गय तो ?"

जोरािरससीह (दढतापिथक)- "हार िबद हमार जीिन म ही नहीी ह। हम हारग नहीी, या तो विजयी होग या िहीद होग।"

बालको की िीरतापणथ बात सनकर निाब आगबबला हो उठा। उसन काजी स कहाः "इन बचचो न हमार दरबार का अपमान ककया ह तरथा भविषटय म मगल िासन क विरि विरोह की घोषणा की ह। अतः इनक सलए कया दीड तनजशचत ककया जाय ?"

काजीः "इनह जजनदा दीिार म चनिा ददया जाय।"फसल क बाद दोनो बालको को उनकी दादी क पास भज ददया गया। बालको न

उतसाहपिथक दादी को परी घटना सनायी। बालको की िीरता दखकर दादी गदगद हो उठी और उनह हदय स लगाकर बोलीः "मर बचचो ! तमन अपन वपता की लाज रख ली।" दसर ददन दोनो िीर बालको को एक तनजशचत सरथान पर ल जाकर उऩक चारो ओर दीिार बनानी परारमभ कर दी गयी। धीर-धीर दीिार उनक कानो तक ऊा ची उठ गयी। इतन म बड भाई जोरािरससीह न अीततम बार अपन छोट भाई फतहससीह की ओर दखा और उसकी आाखो म आास छलक उठ।

जोरािरससीह की इस अिसरथा को दखकर िहाा खडा काजी समझा कक य बचच मतय को सामन दखकर डर गय ह। उसन कहाः "बचचो ! अभी भी समय ह। यदद तम हमार धमथ म आ जाओ तो तमहारी सजा माफ कर दी जायगी।"

जोरािरससीह न गरज कर कहाः "मखथ काजी ! म मौत स नहीी डर रहा हा। मरा भाई मर बाद इस सीसार म आया परीत मझस पहल धमथ क सलए िहीद हो रहा ह। मझ बडा भाई होन पर भी यह सौभागय नहीी समला इससलए मझ रोना आता ह।" सात िषथ क इस ननह स बालक क मख स ऐसी बात सनकर सभी दीग रह गय। रथोडी दर म दीिार परी हई और ि दोनो ननह धमथिीर उसम समा गय।

कछ समय पशचात दीिार को चगरा ददया गया। दोनो बालक बहोि पड रथ परीत अतयाचाररयो न उसी जसरथतत म उनकी हतया कर दी।

विशि क ककसी अनय दि क इततहास म इस परकार की घटना नहीी ह, जजसम सात और पााच िषथ क दो ननह ससीहो की अमर िीरगारथा का िणथन हो।

धनय ह ऐस धमथतनषटठ बालक ! धनय ह भारत माता, जजसकी पािन गोद म ऐस िीर बालको न जनम सलया। विदयाचरथथयो ! तम भी अपन दि और सीसकतत की सिा और रकषा क सलए सदि परयतनिील रहना।

सिीवनी बटीः

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मघो की भयीकर गजथना हो या समर उमड पड, पहाड स पहाड टकराकर भयानक िबद हो या साकषात मतय का मकाबला करना पड परीत तम भयभीत न हो, साहसी बनो। अपन उददशय की पतत थ क सलए अडडग रहो। सदढ, अचल सीकलपिजकत क आग मसीबत इस परकार भागती ह जस आाधी-तफान स बादल तरबखर जात ह। ૐकार का जप करो। अपन आतमा म विशिास करो, अपनी अमरता म विशिास रखो। विघन-बाधाएा आती ह, िरीर मरता ह, तम अमर आतमा हो। ૐ....ૐ....ૐ....

हम भारत क लाल हहम भारत क लाल ह, ऋवषयो की सीतान ह।कोई दि नहीी दतनया म, बढकर दहनदसतान स।। टक ।।इस धरती पर पदा होना, बड गिथ की बात ह।साहस और िीरता अपन, परखो की सौगात ह।। हम भारत क... ।।कद समर म आग आय, जब भी हम ललकारन।उागली दाातो तल दबायी, अचरज स सीसार न।। हम भारत क....।।गौरिपणथ इततहास हमारा, अब भविषटय चमकायग।भारत माा की मदहमा को हम, कफर स िहीी पहाचायग।। हम भारत क.... ।।कभी महकत कभी चहकत, जीत मरत िान स।झकना नहीी आग बढना ह, सराबोर गरजञान स।। हम भारत क लाल... ।।बाल सीसकार कनर क बचच हम सब, भारत को विशिगर बनायग।आतमजञान की विजय पताका, पर विशि म फहरायग।। हम भारत क.... ।।

सोच व िवाब द-माता गजरी दिी दोनो बालको म कस सीसकार भरा करती रथीी ?

जब दीिार चनिायी जा रही रथी तब जोरािरससीह की आाख कयो भर आयीी ?

करकरयाकलापः दोनो बालको क बसलदान क सीदभथ म आपक कया विचार ह ?

अनकरमणणका

सतपथ का सतनशचय

कषणणक भािािि म आकर आदिो और ससिाीतो की राह पर बढन का सीकलप तो कई लोग कर लत ह पर दढता क अभाि म ि परलोभनो स विचसलत हो जात ह। परीत लाल बहादर िासतरी जी कभी भी अपन आदिो स विचसलत नहीी हए।

लाल बहादर जी क विदयालय क पास ही अमरद (जामफल) का एक बगीचा रथा। जब ि पााचिीी ककषा म पढत रथ, तब एक ददन उनक चार-पााच िरारती दोसत अमरद तोडकर खान क

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इराद स बगीच की जा तनकल। ि लाल बहादरजी को भी अपन सारथ ल गय। बगीच की छोटी दीिार को जब ि लडक लााघन लग, तब लालबहादर जी न अीदर जान स आनाकानी की लककन साचरथयो न उनह अीदर कदन क सलए मजबर कर ददया। ि अीदर तो गय पर अमरद न तोडकर चपचाप एक तरफ खड हो गय। लककन उनहोन गलाब का एक फल जरर तोड सलया।

इसी बीच अचानक माली िहाा आ धमका। सब लडक भाग गय पर लालबहादर जी यह सोचकर खड रह कक "जब मन चोरी नहीी की तो माली मझ पर कयो तरबगडगा ?" पर हआ इसका उलटा। माली न उनह ही पकड सलया और अमरद न तोडन की उनकी सफाई पर तरबना धयान ददय दो चााट लगा ददय। लालबहादर जी रोन लग और सससकत हए बोलः "मझ मत मारो। म तरबना बाप का लडका हा।" माली न उनह दो चााट और लगाय और तरबगडकर बोलाः "तरबना बाप का ह तब तरी यह करनी ह। तझ तो नक चलन िाला और ईमानदार होना चादहए। जा, भाग जा यहाा स।"

इस घटना का लालबहादर जी क बाल मन पर भारी परभाि पडा। उनहोन मन-ही-मन तनशचय ककया कक ʹभविषटय म म ऐसा कोई काम नहीी करा गा, जजसस मरी या मर पररिारिालो की बदनामी हो और मझ नीचा दखना पड।ʹ ि भारत क परधानमीतरी बन तब भी एक ददन भी अपन इस आदिथ स विचसलत नहीी हए। उऩहोन अपन उजजिल, तनःसिारथथ जीिन म भरषटटाचार का दाग नहीी लगन ददया।

सोच और िवाब द-कदठन पररजसरथतत आन पर कया हम अपन आदिो स विचसलत होना चादहए ?

माली की नसीहत पर लालबहादर जी पर कया परभाि पडा ?

करकरयाकलापः आग चलकर आप अपन दि की गररमा को बढान हत कया करोग ?

अनकरमणणका

सतसग तार, कसग डबोव

बरहमलीन बरहमतनषटठ सााई शरी लीलािाहजी महाराज क सतसीग-परिचन सदो नाविक रथ। ि नाि दिारा नदी की सर करक सायीकाल तट पर पहाच और एक दसर

स किलता का समाचार एिी अऩभि पछन लग। पहल नाविक न कहाः " भाई ! म तो ऐसा चतर हा कक जब नाि भािर क पास जाती ह, तब चतराई स उस ततकाल बाहर तनकाल लता हा।" तब दसरा नाविक बोलाः "म ऐसा किल नाविक हा कक नाि को भािर क पास जान ही नहीी दता।"

अब दोनो म स शरषटठ नाविक कौन ह ? सपषटटतः दसरा नाविक ही शरषटठ ह कयोकक िह भािर क पास जाता ही नहीी। पहला नाविक तो ककसी-न-ककसी ददन भािर का सिकार हो ही

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जायगा। इसी परकार सतय क मागथ पर चलन िाल पचरथको क सलए कसीगीरपी भािरो क पास न जाना ही शरयसकर ह।

अगर आग क निदीक बठोग िाकर, उठोग एक ददन कपड िलाकर।माना करक दामन बचात रह तम, मगर सक हरदम लात रह तम।।

कोई जआ नहीी खलता ककी त दखता ह तो दखत-दखत िह जआ खलना भी सीख जायगा। विषय-विकार एिी कसीग नक वयजकत का भी पतन कर दत ह। इससलए विषय-विकारो और कसीग स बचन क सलए सीतो का सीग अचधकाचधक करना चादहए। सीत कबीर जी न कहाः ʹसीत-महापरषो की ही सीगतत करनी चादहए कयोकक ि अीत म तनहाल कर दत ह। दषटटो की सीगतत नहीी करनी चादहए कयोकक उऩक समपकथ म जात ही मनषटय का पतन हो जाता ह। सीतो की सीगतत स सदि दहत होता ह, जबकक दषटट लोगो की सीगतत स गणिान मनषटयो का भी पतन हो जाता ह।ʹ

अनकरमणणका

उततरमाला अकल लडाओ जञान बढाओः 1. शरीमद भगिद गीता 2. िाणी 3. ૐ. 4. बरहमजञानी

महापरष/सदगर 5. गरपणणथमा।ढाढो तो िान- 1 सदगर (पषटठ-32) 2. पलाि-पषटप (पषटठ-43) 3. भगिान सििजी (पषटठ

32) 4. सारसितय मीतर (पषटठ-37) 5. फासटफड (पषटठ-42) 6. तरतरकाल सीधया (पषटठ-35) 8. सतसीग-शरिण (पषटठ-10) 9 भगिननाम-जप (पषटठ-37)

दद.पर.पर.जञा.पर. क परशनपतर का परारप- 1. (1). 2. (3). 3. (3). 4. (1). 5. (4). 6. (2). 7. (3). 8. (5). 9. (4). 10. (1). 11. (2). 12. x 13. √ 14. √ 15. x

सोच व िवाब दकसीगरपी भािर क पास कयो नहीी जाना चादहए ?

आप कसी सीगतत म रहना पसीद करोग और कयो ?

अनकरमणणका

िनमददवस कस मनाय ?

जनमददिस पर बचच बड-बजगो को परणाम कर. उनका आिीिाथद पाय। बचच सीकलप कर कक आन िाल िषो म पढाई, साधना, सतकमथ आदद म सचचाई और ईमानदारी स आग बढकर अपन माता-वपता ि दि का गौरि बढायग।

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जनमददिस क ददन बचचा ʹककʹ पर लगी मोमबजततयाा जलाकर कफर फा क मारकर बझा दता ह। जरा सोचचय, हम कसी उलटी गीगा बहा रह ह ! जहाा दीय जलन चादहए िहाा बझा रह ह ! जहाा िि चीज खानी चादहए िहाा फा क मारकर उड हए रथक स जठ, जीिाणओी स दवषत हए ʹककʹ को बड चाि स खा-णखला रह ह !

हम चादहए कक हम अपन बचचो को उनक जनमददिस पर भारतीय सीसकार ि पितत क अनसार ही कायथ करना ससखाय ताकक इन मासमो को हम अीगरज न बनाकर सममाननीय भारतीय नागररक बनाय।

यह िरीर, जजसका जनमददिस मनाना ह, पीचभतो स बना ह जजनक अलग-अलग रीग ह। परथिी का पीला, जल का सफद, अजगन का लाल, िाय का हरा ि आकाि का नीला। रथोड स चािल हलदी, की कम आदद उपरोकत पााच रीग क रवयो स राग ल। कफर उनस सिजसतक बनाय और जजतन िषथ पर हए हो, मान लो 4, उतन छोट दीय सिजसतक पर रख द तरथा 5ि िषथ की िरआत क परतीक रप म एक बडा दीया सिजसतक क मधय म रख।

कफर घऱ क सदसयो स सब दीय जलिाय तरथा बडा दीया कटमब क शरषटठ, ऊा ची समझिाल, भजकतभाि िाल वयजकत स जलिाय। इसक बाद जजसका जनमददिस ह, उस सभी उपजसरथत लोग िभकामनाएा द। कफर आरती ि परारथथना कर।

असभभावक एव बचच धयान द-पादटथयो म फालत का खचथ करन क बजाय बचचो क हारथो स गरीबो म, अनारथालयो म

भोजन, िसतर इतयादद का वितरण करिाकर अपन धन को सतकमथ म लगान क ससीसकार डाल। लोगो स चीज-िसतएा (चगफटस) लन क बजाय अपन बचच को गरीबो को दान करना

ससखाय ताकक उसम लन की नहीी अवपत दन की सिजतत विकससत हो। सोच व िवाब द-

हम कौन सी उलटी गीगा बहा रह ह ?

ऐसा जनमददिस मनान की रीत आप ककतनो को बतायग ? कयो ?

करकरयाकलापः अपन जनमददिस पर आप अपन ददवय जीिन हत कया-कया करग ? सलख। अनकरमणणका

िनमददवस बधाई गीतबधाई हो बधाई, िभ ददन की बधाई।

बधाई हो बधाई, जनमददिस की बधाई।। जनमददिस पर दत ह, तम हम बधाई,

जीिन का हर इक लमहा, हो तमको सखदाई। धरती सखदायी, हो अमबर सखदाई,

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जल सखदाई, हो पिन सखदाई। बधाई.... मीगलमय दीप जलाओ, उजजयारा जग फलाओ। उदयम परषारथथ जगाकर, आतमपद अपना पाओ। हो ितीजीि तम चचरीजीि, िभ घडी आज आई।।

माता सखदाई, हो वपता सखदाई, बीध सखदाई, हो सखा सखदाई। बधाई....

सदगण की खान बन त, इतना महान बन त। हर कोई चाह तझको, ऐसा इनसान बन त।

बलिान हो त महान हो, कर गिथ तझ प अब हम।। दिथन सखदाई, हो जीिन सखदाई। बधाई... ऋवषयो का िीिज ह त, ईशिर का अीि ह त। तझम ह चीदा और तार, तझम ही सजथनहार। त जान ल पहचान ल, तनज िि बि आतम।।

ईशिर सखदाई, ऋवषिर सखदाई, समतत सखदाई, हो सतजञान सखदाई। बधाई.. आनीदमय जीिन तरा, खसियो का हो सिरा। चमक त बन क सरज, हर पल हो दर अाधरा। त जञान का भीडार ह, रखना त धयथ सीयम।।

गरह सखदाई, हो गगन सखदाई, जल सखदाई, हो अगन सखदाई। बधाई....

तझम ना जीना मरना, जग ह किल एक सपना। परमशिर ह तरा अपना, तनषटठा त ऐसी रखना।

त धयान कर आतमसिरप का, त सजषटट का ह उदगम।। मीजजल सखदाई, हो बधाई हो बधाई। बधाई....

बधाई हो बधाई, िभ ददन की बधाई। बधाई हो बधाई, जनमददिस की बधाई।।

जल, रथल, पिन, अगन और अमबर, हो तमको सखदाई। गम की धप लग ना तझको, दत हम दहाई।।

ईशिर सखदाई, ऋवषिर सखदाई, समतत सखदाई, हो सतजञान सखदाई। बधाई....

अनकरमणणका

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सकलपशजकत का परतीक – रकषाबधन

"बहन इस ददन ऐसा सकलप करक रकषासतर बाध करक ʹहमार भाई भगवतपरमी बन।ʹ और भाई सोच करक ʹहमारी बहन भी चररतरपरमी, भगवतपरमी बन।ʹ अपनी सगी बहन व पडोस की बहन क सलए अथवा अपन सग भाई व पडोसी भाई क परतत ऐसा सोच।"

पजय बाप िी क सतसग अमत स

भारतीय सीसकतत का रकषाबीधन-महोतसि, जो शरािणी पनम क ददन मनाया जाता ह, चररतर-तनमाथण, आतमविकास का पिथ ह। भारतीय सीसकतत म सीकलपिजकत क सदपयोग की सनदर वयिसरथा ह। बराहमण कोई िभ कायथ करात ह तो कलािा (रकषासतर) बााधत ह। सािन क महीन म सयथ की ककरण धरती पर कम पडती ह, ककसम-ककसम क जीिाण बढ जात ह, जजसस ककसी को दसत, ककसी को उलदटयाा, ककसी को अजीणथ, ककसी को बखार हो जाता ह तो ककसी का िरीर टटन लगता ह। इससलए रकषाबीधन क ददन एक दसर को रकषासतर बााधकर तन-मन-मतत की सिासरथय-रकषा का सीकलप ककया जाता ह। रकषासतर म ककतना मनोबल ह, ककतना रहसय ह।

रकषाबीधन क ददन बहन भया क ललाट पर ततलक-अकषत लगाकर सीकलप करती ह। बहन का िभ सीकलप होता ह और भाई का बहन क परतत सदभाि होता ह। भाई बहन की धन-धानय, इजजत की दजषटट स तो रकषा कर, सारथ ही ʹबहन का चररतर उजजिल रहʹ ऐसा सोच और ʹभाई का चररतर उजजिल बनʹ ऐसा बहन सोच। अपन मन को काम म स राम की तरफ ल जाय। हम भी इस पिथ का पणथ लाभ उठाय और ककय हए िभ सीकलप पर अडडग रह। ૐ... ૐ... दढता ! ૐ....ૐ.... पवितरता ! ૐ.... ૐ.... परषारथथ ! ૐ... ૐ..... परभपरीतत ! ૐ िाीतत.... ૐ आनीद...

ʹइस पिथ पर धारण ककया हआ रकषासतर समपणथ रोगो तरथा अिभ कायो का विनािक ह। इस िषथ म एक बार धारण करन स िषथभर मनषटय रकषकषत हो जाता ह।ʹ (भविषटय पराण)

सोच व िवाब द-रकषाबीधन क ददन आप कया सीकलप करोग ?

करकरयाकलापः रकषाबीधन पिथ क इततहास क बार म जानकारी परापत कर सलख। अनकरमणणका

मात-वपत गर भजकत

भगिान शरीरामजी न माता-वपता ि गर को दि मानकर उनक आदर-पजन ि सिा की ऐसी मयाथदा सरथावपत की कक आज भी ʹमयाथदापरषोततम शरीरामकी जयʹ कहकर उनकी यिोगारथा गायी जाती ह।

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कसी मदहमा ह हमारी भारतीय सनातन सीसकतत की, जजनक ऋवषयो-महापरषो क मातदवो भव। वपतदवो भव। आचायादवो भव। क सतर को जजनहोन भी अपनाया, ि महान हो गय। आप भी ऐसा करक महान बनो।

िो पि इनको, वह पिनीय बन िाता.... भगिान शरीकषटण न गर साीदीपनी क आशरम म रहकर उनकी खब परम एिी तनषटठापिथक

सिा की। मात-वपत एिी गर भकतो की पािन माला म भगिान गणि जी, वपतामह भीषटम, शरिण कमार, पीडसलक, आरणण, उपमनय, तोटकाचायथ आदद कई सरसभत पषटप ह।

आि भी ऐस उदाहरि ह....ितथमान यग का एक बालक बचपन म दर रात तक अपन वपताशरी क चरण दबाता रथा।

उसक वपताजी उस बार-बार कहतः "बटा ! अब सो जाओ, बहत रात हो गयी ह।" कफर भी िह परमपिथक आगरह करत हए सिा म लगा रहता रथा। उसक पजय वपता अपन पतर की अरथक सिा स परसनन होकर उस आिीिाथद दतः

पतर तमहारा िगत म, सदा रहगा नाम। लोगो क तमस सदा, परि होग काम।। अपनी पजनीया मातशरी की भी उसन उऩक जीिन क आणखरी कषण तक खब सिा की।

यिािसरथा परापत होन पर इस बालक न भगिान शरीराम और शरीकषटण की भाातत ही अपन सदगर भगितपाद सााई शरी लीलािाहजी महाराज क शरीचरणो म खब आदर-परम रखत हए सिा-तपोमय जीिन तरबताया। आज िही बालक पजय सीत शरी आिारामजी बाप क रप म विशििीदनीय होकर करोडो-करोडो लोगो क दिारा पजजत हो रह ह।

शभ सकलपः ह विदयारथी समतरो ! आप भी परततददन अपन माता-वपता एिी सदगर को परणाम करन और उनकी सिा करन का सीकलप लो। उनकी परसननता परापत करत हए अपन जीिन को उननतत क रासत पर ल जान का पणयमय परषारथथ करो।

आओ मनाय 14 फरवरी को ʹमात-वपत पिन ददवसʹ ! अनकरमणणका

आप कहत ह...."पजय सीत शरी आिाराम बाप जी ʹमात-वपत पजन ददिसʹ की पािन परमपरा क सतरधार

ह। ʹसिकषा मीतरालयʹ और मानि सीसाधन विकास मीतरालयʹ क माधयम स मात-वपत पजन ददिस ʹराषटरीय पिथ क रप म घोवषत होना चादहए।" – शरी समरपीठ (कािी) क िीकराचायथ जगदगर सिामी नरनरानीद सरसिती जी।

"यह ददिस समच दहनदसतान म नय इततहास का सजन करगा।" – जन समाज क आचायथ यिा लोकि मतनशरीजी।

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"मात-वपत पजन ददिस तनजशचत तौर पर बहत ही अचछी बात ह।" – मखतार अबबास नकिी, राषटरीय उपाधयकष, भा.ज.पा.

"पजय बाप जी न 14 फरिरी को ʹमात-वपत पजनʹ का ददन घोवषत ककया, यह बहत ही सीदर परयास ह, जो आज हमार दि क सलए बहत जररी ह।" - ʹरामायणʹ धारािादहक म शरीराम की भसमका तनभान िाल शरी अरण गोविल जी।

"भारत क राषटरपतत शरी परणब मखजी को यह जानकर हाददथक परसननता हई ह कक भारत को पनः विशिगर बनान हत िजशिक सतर पर परततिषथ 14 फरिरी को ʹमात-वपत पजनʹ असभयान चलाया जा रहा ह।" – राषटरपतत क परस सचचि िण राजामणण

"सीसकार धरोहर का सीरकषण-सीिधथन करन हत हर िषथ 14 फरिरी को परा छततीसगढ राजय ʹमात-वपत पजन ददिसʹ मनायगा।" – डॉ. रमण ससीह, मखयमीतरी, छततीसगढ।

"पजय बाप जी की मात-वपत पजन की पहल स समाज म निचतना का सीचार होगा।" – भपनर ससीह हडडा, मखयमीतरी, हररयाणा।

"माता-वपता पजन ददिस बहत ही अचछा परयास ह। आजकल क यिान-यिततयो को इसका महतति बताना बहत जररी ह।" परससि गातयका अनराधा पौडिाल

अनकरमणणका आओ मनाय 14 फरवरी को मात-वपत पिन ददवस

कयोकक परम तो पवितर होता ह... पजय सीत शरी आिारामजी बाप भारतीय सीसकतत कहती ह किल आदरभाि नहीी, पजयभाि। मातदवो भव। वपतदवो भव।

आचायादवो भव। अपन दहतषी माता-वपता और गर को दि मानन िाल हो जाओ, उनका पजन करो और उननत हो जाओ।

"गणपतत जी न सिि-पािथती जी का पजन ककया और सिि-पािथती जी न उनको गल लगाया और आिीिाथद ददयाः "बटा ! त उमर म तो काततथक स छोटा ह लककन तरी समझ अचछी ह, तरा पजन पहल होगा।"

बट-बदटयाा ! ʹिलटाइन ड कयो मनाना ! तम भी गणिजी जस माता-वपता का पजन करक ʹमात-वपत पजन ददिसʹ मनाओ। ऐसा परम ददिस मनाओ जजसम सीयम और सचचा विकास हो। इस ददन बचच-बजचचयाा माता-वपता का आदर-पजन कर और उनक ससर पषटप रख, परणाम कर तरथा माता-वपता अपनी सीतानो को परम कर। बट-बदटयाा माता-वपता म ईशिरीय अीि दख और माता-वपता बचचो म ईशिरीय अीि दख। मातदवो भव। वपतदवो भव। आचायादवो भव। पतरीदवो भव। पतरदवो भव। माता-वपता का पजन करन स काम राम म बदलगा, अहीकार परम म बदलगा, माता-वपता क आिीिाथद स बचचो का मीगल होगा।" पजय बाप जी।

अनकरमणणका

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यगपरवताक सत शरी आशारामिी बाप आतमारामी, शरोतरतरय, बरहमतनषटठ, योगराज परातःसमरणीय पजय सीत शरी आिारामजी बाप न

आज भारत ही नहीी िरन समसत विशि को अपनी अमतिाणी स पररतपत कर ददया ह। िनम व बालयकाल

बालक आसमल का जनम अखीड भारत क ससीध पराीत क बराणी गााि म ििाख (गजरात-महाराषटर अनसार चतर) कषटण षषटठी वि.सी. 1998 अरथाथत 17 अपरल 1941 को हआ रथा। आपक वपता शरी नगरसठ रथ तरथा माता शरी माा महागीबाजी धमथपरायणा और सरल सिभाि की रथीी। बालयकाल म ही आपशरी क मखमीडल पर झलकत बरहमतज को दखकर आपक कलगर न भविषटयिाणी की रथी कक ʹआग चलकर यह बालक एक महान सीत बनगा, लोगो का उिार करगा।ʹ इस भविषटरिाणी की सतयता आज ककसी स तछपी नहीी ह।

यवावसथा (वववक-वरागय)आप शरी का बालयकाल एिी यिािसरथा वििक-िरागय की पराकाषटठा स समपनन रथ, जजसस

आप अलपाय म ही गह-तयाग कर परभसमलन की पयास म जीगलो-बीहडो म घमत-तडपत रह। ननीताल क जीगल म सााई शरी लीलािाहजी महाराज आपको सदगर परापत हए। मातर 23 िषथ की अलपाय म आपन पणथति का साकषातकार कर सलया। सदगर न कहाः ʹआज स लोग तमह ʹसीत आिारामजीʹ क रप म जानग। जो आजतमक ददवयता तमन पायी ह उस जन-जन म वितररत करो।ʹ

य ही बरहमतनषटठ सीत शरी आिारामजी आज बड-बड दािथतनको, िजञातनको, नताओी तरथा अफसरो स लकर अनक सिकषकषत-असिकषकषत साधक-साचधकाओी तक सभी को अधयातम-जञान की सिकषा द रह ह, भटक हए मानि-समदाय को सही ददिा परदान कर रह ह।

आशरम सथापना व लोक-कलयाि

गरआजञा सिरोधायथ करक समाचध-सख छोडकर आप अिाीतत की भीषण आग स तपत लोगो म िाीतत का सीचार करन हत समाज क बीच आ गय। सन 1972 म आप शरी अहमदाबाद म साबरमती नदी क पािन तट पर जसरथत मोटरा गााि पधार, यहाा ददन म भी मारपीट, लटपाट, डकती ि असामाजजक कायथ होत रथ। िही मोटरा आज लाखो –करोडो शरिालओी का पािन तीरथथधाम, िाीततधाम बन चका ह। इस साबर-तट जसरथत ʹसीत शरी आिारामजीʹ आशरमरपी वििाल िटिकष की 425 स भी अचधक िाखाएा आज भारत ही नहीी अवपत समपणथ विशि म फल चकी ह और इन आशरमो म सभी िणो, जाततयो और समपरदायो क लोग दि-विदि स आकर आतमानीद म डबकी लगात ह तरथा हदय म परमशिरीय िाीतत का परसाद पाकर अपन को धनय-धनय अनभि करत ह। अधयातमविदया क सभी मागो का समनिय करक पजय शरी अपन सिषटयो क सिाागीण विकास का मागथ सगम करत ह। भजकतयोग, जञानयोग, तनषटकाम कमथयोग और की डसलनी

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योग स साधक-सिषटयो का, जजजञासओी का आधयाजतमक मागथ सरल कर दत ह। तनषटकाम कमथयोग हत आशरम दिारा सरथावपत 1400 स भी अचधक शरीयोग िदाीत सिा ससमततयाा आशरम की सिाओी को समाज क कोन-कोन तक पहाचान म जटी रहती ह।

योग-सामरथया क धनीबरहमतनषटठ अपन-आपम एक बहत बडी ऊा चाई ह। बरहमतनषटठ क सारथ यदद योग-सामरथयथ

भी हो तो दगध-िकथ रा योग की जसरथतत उतपनन हो जाती ह। ऐसा ही समल दखन को समलता ह पजय बाप जी क जीिन म। एक ओर जहाा आपकी बरहमतनषटठा साधको को साजननधयमातर स परम आनीद, पवितर िाीतत म सराबोर कर दती ह, िहीी दसरी ओर आपकी करणा-कपा स मत गाय को जीिनदान समलना, अकालगरसत सरथानो म िषाथ होना, िषो स तनःसीतान रह दमपजततयो को सीतान होना, रोचगयो क असाधय रोग सहज म दर होना, तनधथनो को धन परापत होना, अविदिानो को विदिता परापत होना, घोर नाजसतको क जीिन म आजसतकता का सीचार होना – इस परकार की अनकानक घटनाएा आपक योग-सामरथयथ समपनन होन का परमाण ह।

ʹसभी का मीगलʹ का उदघोष करन िाल पजय बाप जी को दहनद, मजसलम, ससख, ईसाई, पारसी ि अनय धमाथिलमबी भी अपन हदय-मीददर म बसाय हए ह ि अपन को पजय शरी क सिषटय कहलान म गिथ महसस करत ह। भारत की राषटरीय एकता-अखीडता ि िाीतत क परबल समरथथक पजय बाप जी न राषटर क कलयाणारथथ अपना परा जीिन समवपथत कर ददया ह।

अनकरमणणका सदगर मदहमा

सदगर सााई शरी लीलािाह जी महाराज

"लाखो-लाखो जनम क माता-वपता जो न द सक, िह मर परम वपता गरदि न मझ हासत-खलत द ददया। मझ घर म घर बता ददया।" पजय बाप जी।

गर तरबन भवतनचध तरइ न कोई। िो तरबरचच शकर सम होई।। (शरीरामचररतमानस) ʹसदगर क तरबना कोई भिसागर स नहीी तर सकता, चाह िह बरहमाजी और िीकर जी क

समान ही कयो न हो !ʹ सदगर क तरबना परमातम-जञान नहीी हो सकता, सभी धमथगरनरथो म इस बात क परमाण समलत ह। िद-िासतरो तरथा पराणो न भी सदगर की मदहमा गायी ह। भगिान सििजी पािथती जी को कहत ह-

गरदवो गरधमो गरौ तनषठा पर तपः। गरोः परतर नाजसत तरतरवार कथयासम त।। ʹगर ही दि ह, गर ही धमथ ह, गर म तनषटठा ही परम तप ह। गर स अचधक और कछ

नहीी ह, यह म तीन बार कहता हा।ʹ आज तक जजसन भी आधयाजतमक उननतत की ह, ककसी-न-ककसी सदगर क मागथदिथन म

ही की ह। राजा जनक न अषटटािकरजी स, राजा भतथहरर न योगी गोरखनारथजी स, अजथन न

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भगिान शरीकषटण स, पजय बाप जी न भगितपाद शरी लीलािाहजी महाराज स आतमजञान परापत ककया और ितथमान म पजय बाप जी उसी का रसपान पर विशि को करा रह ह।

अनकरमणणका

सचचा अचधकारी कौन ?

सदगर सदि अपन सिषटय पर रहमत की बरसात करत ही रहत ह। धनय ह जो गर कपा को पचात ह।

ससख गर अमरदास जी की उमर लगभग 105 िषथ हो गयी रथी, तब उनक कछ सिषटय सोचा करत रथ, ʹमन गर जी की बहत सिा की ह, इससलए यदद गरगददी मझ सौप दी जाय तो ककतना अचछा होगा !ʹ

एक ददन अमरदास जी न सिषटयो को बलाकर कहाः "तम लोग अलग-अलग अचछ चबतर बनाओ !"

चबतर बन गय पर उनम स एक भी पसीद नहीी आया। उनहोन कफर स बनान को कहा। ऐसा कई बार हआ। सिषटय चबतर बनात और गरजी उनह तोडन को कहत।

आणखर सिषटय तनराि हो गय और सिा छोडकर जान लग ककनत सिषटय रामदास अभी भी चबतरा बनान म जटा हआ रथा। उन लोगो न उसस कहाः "पागल का हकम मानकर तम भी पागल कयो बन रह हो ? चलो छोड दो चबतरा बनाना।"

रामदास न कहाः "अगर गर पागल ह तो ककसी का भी ददमाग दरसत नहीी रह सकता। हम तो यही सीख समली ह कक गर ईशिर का ही दसरा रप ह और उनकी आजञा का पालन करना चादहए। अगर गरदि सारी जजीदगी चबतरा बनान का आदि द तो रामदास जजीदगीभर चबतरा बनाता रहगा।"

इस परकार रामदास न लगभग सततर चबतर बनाय और अमरदास जी न उन सबको तडिाकर कफर स बनान का आदि ददया। आणखर गर न उसकी लगन और भजकत दख उस छाती स लगा कर कहाः "त ही सचचा सिषटय ह और त ही गरगददी का अचधकारी होन क कातरबल ह।" इततहास साकषी ह कक गर अमरदासजी क बाद गरगददी साभालन िाल रामदास जी ही रथ।

सोच व िवाब द-गर की कपा पान का सचचा अचधकारी कौन ह ?

सिषटयो स चबतर बनिान क पीछ गर अमरदास का कया उददशय रथा ?

करकरयाकलापः पााच सदगरओी और सजतिषटयो क नाम सलख तरथा एक विदयारथी दसर को बताय।

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अनकरमणणका

सत एकनाथ िी की गरसवा ʹगर की सिा स सिषटय का मन ककसी भी परकार क परयतन तरबना ही अपन-आप एकागर

होन लगता ह।" गरभजकतयोग गरीरथ

सीत एकनारथ जी न 10 िषथ की छोटी उमर म ही दिगढ राजय क दीिान शरी जनादथनसिामी क शरीचरणो म अपना जीिन समवपथत कर ददया रथा। ि गरदि क कपड धोत, पजा क सलए फल लात, गरदि भोजन करत तब पीखा झलत, उनक ऩाम आय हए पतर पढत-ऐस एिी अनय भी कई परकार क छोट-मोट काम ि गरचरणो म करत।

एक बार गरदि न एकनारथ को राजदरबार का दहसाब करन को कहा। दसर ही ददन परातः सारा दहसाब राजदरबार म बताना रथा। परा ददन दहसाब ककताब दखन म सलखन म बीत गया। रात हई। एकनारथ को पता नहीी चला कक रात िर हो गयी ह। दहसाब म एक पाई की भल आ रही रथी। आधी रात बीत गयी कफर भी भल पकड म नहीी आयी।

परातः जलदी उठकर गरदि न दखा कक एकनारथ तो अभी भी दहसाब दख रहा ह ! ि आकर दीपक क आग चपचाप खड हो गय। बदहयो पर रथोडा अाधरा छा गया कफर भी एकनारथ एकागरचचतत स बदहयाा दखत रह। इतन म पाई की भल पकड म आ गयी। एकनारथ हषथ स चचलला उठः "समल गयी... समल गयी....!" गरदि न पछाः "कया समल गयी बटा ?"

एकनारथ चौक पड। ऊपर दखा तो गरदि सामन खड ह ! उठकर परणाम ककया और बोलः "गरदि ! एक पाई की भल पकड म नहीी आ रही रथी। अब िह समल गयी।"

हजारो क दहसाब म एक पाई की भल !... और उसको पकडन क सलए रात भर जागरण ! गर की सिा म इतनी लगन, इतनी ततततकषा और भजकत दखकर शरी जनादथन सिामी क हदय स गरकपा छलक पडी। सदगर की आधयाजतमक िसीयत साभालन िाला सिषटय समल गया। एकनारथ जी क जीिन म पणथ जञान का सयथ उददत हआ। साकषात गोदािरी माता भी लोगो दिारा डाल गय पाप धोन क सलए बरहमतनषटठ सीत एकनारथ जी क सतसीग म आती रथीी। सीत एकनारथ जी की ʹएकनारथी भागितʹ को सनकर आज भी लोग तपत होत ह।

सोच व िवाब द-जनादथन सिामी क हदय स गरकपा कयो छलक पडी ?

इस परसीग स आप कया पररणा लग और अपन जीिन म उस कस उतारग ?

अनकरमणणका

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तरतरकाल सधया रातरतर म अनजान म हए पाप सबह की सीधया स दर होत ह। सबह स दोपहर तक क दोष

दोपहर की सीधया स और दोपहर क बाद अनजान म हए पाप िाम की सीधया करन स नषटट हो जात ह तरथा अीतःकरण पवितर होन लगता ह।

अदभत लाभ

आजकल लोग सीधया करना भल गय ह इससलए जीिन म तमस बढ गया ह। पराणायाम स जीिनिजकत, बौविक िजकत और समरणिजकत का विकास होता ह। सीधया क समय हमारी सब नाडडयो का मल आधार जो सषमना नाडी ह, उसका दिार खला हआ होता ह। इसस जीिनिजकत, की डसलनी िजकत क जागरण म सहयोग समलता ह। िस तो धयान-भजन कभी भी करो, पणयादायी होता ह ककी त सीधया क समय उसका परभाि और भी बढ जाता ह। तरतरकाल सीधया करन स विदयारथी भी बड तजसिी होत ह। अतएि जीिन क सिाागीण विकास क सलए मनषटयमातर को तरतरकाल सीधया का सहारा लकर अपना नततक, सामाजजक तरथा आधयाजतमक उतरथान करना चादहए।

कब कर ?परातःकाल सयोदय स दस समनट पहल और दस समनट बाद म, दोपहर को बारह बज क

दस समनट पहल और बाद म तरथा सायीकाल को सयाथसत क दस समनट पहल और बाद म – यह समय सीचध का होता ह। पराचीन ऋवष-मतन तरतरकाल सीधया करत रथ। भगिान शरीरामजी उनक गरदि िससषटठजी भी तरतरकाल सीधया करत रथ। भगिान राम सीधया करन क बाद ही भोजन करत रथ।

कस कर ?सीधया क समय हारथ पर धोकर, तीन चलल पानी पीकर कफर सीधया म बठ और

पराणायाम कर, जप कर, धयान कर तो बहत अचछा। अगर कोई ऑकफस या कहीी और जगह हो तो िहीी मानससक रप स कर ल तो भी ठीक ह।

सोच व िवाब द-तरतरकाल सीधया कब और कस कर ?

तरतरकाल सीधया स कया-कया लाभ होत ह ?

करकरयाकलापः तरतरकाल सीधया िर करन स आपको अपन पिथ क जीिन म और अभी ितथमान म कया फकथ महसस हआ सलखकर माता-वपता को ददखाओ।

अनकरमणणका

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एक ववलकषि सदगि – मौन

बरहमलीन बरहमतनषटठ सााई शरी लीलािाह जी महाराज की दहतभरी िाणीदीपक जलता ह तो बतती और तल जलता ह। इसी तरह जजतना अचधक बोला जाता ह,

अीदर की िजकत उतनी ही नषटट होती ह।मौन का अरथथ ह अपनी िजकत वयय न करना। मनषटय जस अनय इजनरयो स अपनी

िजकत खचथ करता ह, िस बोलन स भी अपनी बहत िजकत वयय करता ह। आजकल दखोग तो छोट बालक तरथा बासलकाएा भी ककतना िाद वििाद करत ह। उनह इसकी पहचान ही नहीी ह कक हम जो कछ बोलना ह, उसस अचधक तो नहीी बोलत। और जो कछ बोलत ह िह ऐसा तो नहीी ह, जो दसर को अचछा न लग या दसर क मन म दःख उतपनन कर। कहत ह कक तलिार का घाि तो भर जाता ह ककी त जीभ स कडि िबद कहन पर जो घाि होता ह, िह समटन िाला नहीी ह। इससलए सदि सोच-समझकर बोलना चादहए। जजतना हो सक उतना मौन रहना चादहए।

महातमा गाीधी परतत सोमिार को मौनवरत रखत रथ। मौन धारण करन की बडी मदहमा ह। इस धारण करोग तो बहत लाभ परापत करोग।

अनमोल वचन"आप कम बोल, सारगसभथत बोल, समधर और दहत स भरा बोल। मानिी िजकतयो को

हरन िाली तनीदा, ईषटयाथ, चगली, झठ, कपट – इन गीदी आदतो स बच और मौन ि सारगसभथता का सिन कर।" पजय बाप जी।

सोच व िवाब द-वयरथथ की बात करन िाल का कया नकसान होता ह ?

दीपक क दषटटाीत स कया सीख समलता ह ?

करकरयाकलापः आप परततददन कछ समय मौन रखन का सीकलप कर।अनकरमणणका

ववजञान भी ससि कर रहा ह परभनाम की मदहमा भगिननाम-जप स रोगपरततकारक िजकत बढती ह, अनमान िजकत जगती ह, समरणिजकत

और िौयथिजकत का विकास होता ह।सीत शरी आिारामजी बाप क सतसीग परिचन सनानक जी न बडी ही सीदर बात कही ह-

भयनाशन दमातत हरि, कसल म हरर को नाम।तनशददन नानक िो िप, सफल होवदह सब काम।।

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भगिननाम म, मीतरजप म बडी अदभत िजकत ह। इस िजञातनक भी सिीकार कर रह ह। अभी डॉ. सलिर सलजररया, िॉटस हक, मडम लॉगो तरथा दसर िजञातनक कहत ह कक हरीी, हरर, ૐ आदद क उचचारण स िरीर क विसभनन भागो पर सभनन-सभनन दहतकारी असर पडता ह। 17 िषो क अनभि क पशचात उनहोन यह खोज तनकाला कक ʹहररʹ क सारथ अगर ʹૐʹ िबद समलाकर उचचारण ककया जाय तो पााचो जञानजनरयो पर उसका परभाि अचछा पडता ह। ककी त भारत क ऋवष-मतनयो न इसस भी अचधक जानकारी हजारो-लाखो िषथ पहल िासतरो म िणणथत कर दी रथी।

भगिननाम जप स किल सरथल िरीर को फायदा होता ह ऐसी बात नहीी ह िरन इसस हमार अननमय, पराणमय, मनोमय, विजञानमय और आनीदमय इन पााचो िरीरो पर, समसत नाडडयो पर तरथा सातो कनरो पर बडा साजततिक परभाि पडता ह।

सारसितय मीतर क परभाि स बवि किागर होती ह, समरणिजकत विकससत होती ह। गरीषटमकालीन अिकाि म या अनय छदटटरो क समय सारसितय मीतर का अनषटठान करक बचच इसका अचधकाचधक लाभ उठा सकत ह।

पहल क गरकलो म लौककक विदया क सारथ-सारथ विदयाचरथथयो की सषपत िजकतयाा भी जागरत हो, ऐसी वयिसरथा रथी। यदद आज का विदयारथी िासतरो म िणणथत और िजञातनको दिारा ससि इन परमाणो को समझ ल और ककनहीी बरहमितता महापरष स मीतरदीकषा परापत कर ल तो िह आज भी अपनी सषपत िजकतयो को जागत करन की की जजयाा पाकर अपन जीिन को ि औरो को भी समननत कर सकता ह।

सोच व िवाब द-सारसितय मीतर विदयाचरथथयो क सलए लाभदायक कयो ह ?

भगिननाम-जप स ककन-ककन िजकतयो का विकास होता ह ?

करकरयाकलापः भगिननाम ि मीतर तरथा उनक लाभ – इस परकार की एक तासलका बनाय। पसतक म अनयतर ददय लाभ भी ल सकत ह।

अनकरमणणका

सफलता आपक पीछ-पीछ

पजय सीत शरी आिाराम जी बाप मीतरदीकषा क समय विदयाचरथथयो को सारसितय मीतर और अनय दीकषाचरथथयो को िददक मीतर की दीकषा दत ह। सारसितय मीतर क जप स बवि किागर बनती ह और विदयारथी मधािी होता ह। सारसितय मीतर की दीकषा पाकर कई विदयाचरथथयो न अपना भविषटय उजजिल बनाया ह।

िीरनर महता नामक एक सामानय विदयारथी न ʹऑकसफोडथ एडिाीसड लनथसथ डडकिनरीʹ क 80 हजार िबद पषटठ-सीखयासदहत याद कर एक महान विशिररकाडथ दजथ ककया ह।

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ततनशक (ताीि) बसोया नामक 5 साल क छोट स बचच न ददलली की जोणखमभरी सडको पर 5 कक.मी. कार चलाकर अपन छोट भाई दहमाीि की जान बचायी। उस राषटरपतत, मखयमीतरी एिी अनय अऩक मानयिरो दिारा सममातनत ककया गया।

कमजोर समततिाल अजय समशरा न पजय बाप जी स सारसितय मीतर की दीकषा लकर उसका अनषटठान ककया। पररणाम यह हआ कक अजय समशरा (सालाना ितन 30 लाख रपय) नोककया कमपनी म ʹविशिसतरीय परबनधकʹ (Global Product Manager) हए।

भस चरान िाला कषकषतीि सोनी आज ʹगो एयरʹ हिाई जहाज कमपनी म ʹमखय इीजीतनयरʹ पद पर पहाच ह (सालाना ितन 21.60 लाख रपय)। ऐस लाखो विदयारथी ह, जो अपन यि का शरय बाप जी की कपा स परापत सारसितय मीतर और यौचगक परयोगो को ही दत ह।

भारत क सबस तज बोलर इिाीत िमाथ कहत ह- "पजय बाप जी की मीतरदीकषा ि सीयम-सदाचार क उपदि स जीिन क हर कषतर म विदयाचरथथयो को अपरततम सफलता समल सकती ह। ʹददवय पररणा परकािʹ गरीरथ दि क हर विदयारथी को पढना ही चादहए।"

आशरम दिारा आयोजजत ʹविदयारथी उतरथान सिविरʹ ि ʹविदयारथी उजजिल भविषटय तनमाथण सिविरʹ विदयाचरथथयो क सलए िरदान ही ससि होत ह। ʹददवय पररणा-परकाि जञान परततयोचगताʹ स अब तक 80 लाख स अचधक विदयारथी लाभाजनित हो चक ह।

अनभव परकाशः पजय बाप जी स परापत सारसितय मीतरदीकषा परततभा विकास की सीजीिनी बटी ह। यिा िजञातनक कफजजयोरथरवपसट डॉ. राहल कतयाल

अनकरमणणका

धयान-मदहमा नाजसत धयानसम तीथाम। धयान क समान कोई तीरथथ नहीी।नाजसत धयानसम दानम। धयान क समान कोई दान नहीी।नाजसत धयानसम यजञम। धयान क समान कोई यजञ नहीी।नाजसत धयानसम तपम। धयान क समान कोई तप नहीी। तसमात धयान समाचरत। अतः हर रोज धयान करना चादहए।सयोदय स पहल उठकर, सनान आदद करक गमथ कमबल अरथिा टाट का आसन तरबछाकर

पदमासन म बठ । अपन सामन भगिान अरथिा गरदि का शरीचचतर रख। धप-दीप-अगरबतती जलाय। कफर दोनो हारथो को जञानमरा म घटनो पर रख। रथोडी दर तक शरीचचतर को दखत-दखत तराटक कर (एकटक दखना)। इसक बाद आाख बीद करक आजञाचकर म उस शरीचचतर का धयान कर। बाद म गहरा शिास लकर रथोडी दर अीदर रोक रख, कफर ʹहरर ૐ...ʹ का दीघथ उचचारण करत हए शिास को धीर-धीर बाहर छोड। शिास को भीतर लत समय मन म भािना कर- "म सदगण,

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भजकत, तनरोगता, माधयथ, आनीद को अपन भीतर भर रहा हा।ʹ और शिास को बाहर छोडत समय ऐसी भािना कर- ʹम दःख, चचीता, रोग, भय को अपन भीतर स बाहर तनकाल रहा हा।ʹ इस परकार सात बार कर। धयान करन क बाद पााच-सात समनट िाीत भाि स बठ रह।

लाभः इसस मन िाीत रहता ह, एकागरता ि समरणिजकत बढती ह, बवि सकषम होती ह, िरीर तनरोग रहता ह, परम िाीतत का अनभि होता ह और परमातमा, सदगर क सारथ मानससक सीबीध सरथावपत ककया जा सकता ह।

अनकरमणणका

आधयाजतमक शजकतयो क कनरः यौचगक चकर

हमार िरीर म सात यौचगक चकर (यौचगक कनर) ह। सरथल िरीर म य चकर सामानय आाखो स ददखाई नहीी दत कयोकक य सकषम िरीर म होत ह। परतयक आसन करत समय उसस सीबीचधत कनर का धयान करन स चमतकाररक लाभ होत ह।

बराहममहता म िागरि कयो ?

सयोदय स सिा दो घीट पिथ स लकर सयोदय तक का समय बराहममहतथ कहलाता ह। िासतरो म यही समय तनरा-तयाग क सलए उचचत बताया गया ह। उस समय जप, धयान, पराणायाम आदद साधना-उपासना करन की भारी मदहमा ह।

जगत क करीब-करीब सभी जीि इस समय परगाढ तनरािसरथा म होत ह, जजसस िातािरण उनस तनकलन िाली तनकषटट तरीगो स रहतत होता ह। दसरी ओर इस समय ऋवष, मतन, सीत, महातमा ि बरहमजञानी महापरष धयान-समाचध म तललीन होत ह, जजसस उनकी उतकषटट तरीगो स िातािरण समि होता ह। इससलए जो लोग बराहममहतथ की िला म जागत ह उनह िातािरण की इस शरषटठ अिसरथा का लाभ समलता ह।

इस समय िाीत िातािरण, िि और िीतल िाय रहन क कारण मन म साजततिक विचार, उतसाह तरथा िरीर म सफततथ रहती ह। दर रात तक चाय पीकर, जागकर पढाई करना सिासरथय और बवि क सलए हातनकारक ह। इसकी अपकषा बराहममहतथ म जागकर अधययन करना विदयाचरथथयो क सलए अतत उततम ह।

सया को अरघया दान कयो ?

भगिान सयथ को जल करत ह तो जल की धारा को पार करती हई सयथ की सपतरीगी ककरण हमार ससर स पर तक पडती ह, जो िरीर क सभी भागो को परभावित करती ह। इसस

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हम सितः ही ʹसयथककरणयकत जल-चचककतसाʹ का लाभ समलता ह और बौविक िजकत म चमतकाररक लाभ क सारथ नतरजयोतत, ओज-तज, तनणथयिजकत एिी पाचनिजकत म िवि पायी जाती ह ि िरीर सिसरथ रहता ह। अघयथ जल को पार करक आन िाली सयथककरण िजकत ि सौदयथ परदायक भी ह। सयथ परकाि क हर, बगनी और अलरािायलट भाग म जीिाणओी को नषटट करन की वििष िजकत ह।

अघयथ दन क बाद नासभ ि भरमधय (भौहो क बीच) पर सयथककरणो का आिाहन करन स करमिः मणणपर ि आजञाचकरो का विकास होता ह। इसस बवि किागर होती ह। अतः हम सबको परततददन सयोदय क समय सयथ को तााब क लोट स अघयथ दना चादहए। अघयथ दत समय इस ʹसयथ गायतरी मीतरʹ का उचचारण करना चादहएः

ૐ आददतयाय ववदमह भासकराय धीमदह। तननो भानः परचोदयात।अनकरमणणका

सयानमसकार कयो कर ?

पराचीनकाल म हमार ऋवष मतनयो न मीतर और वयायाम सदहत एक ऐसी आसन परणाली विकससत की, जजसम सयोपासना का भी समािि ह। इस सयथनमसकार कहत ह। इसक तनयसमत अभयास स िारीररक और मानससक सफततथ की िवि क सारथ विचारिजकत और समरणिजकत भी तीवर होती ह। पजशचमी िजञातनक गाडथनर रोनी न कहा हः ʹसया शरषठ औषचध ह। सया की करकरिो क परभाव स सदी, खाासी, नयमोतनया और कोढ िस रोग भी दर हो िात ह।ʹ डॉ. सोल कहत ह- ʹसया म जितनी रोगनाशक शजकत ह, उतनी ससार की करकसी अनय चीि म नही ह।ʹ

सयोदय, सयाथसत, सयथगरहण और मधयाहन क समय सयथ की ओर कभी न दख, जल म भी उसका परतततरबमब न दख। (महाभारत, अनिासन पिथ)

अनकरमणणका

सवजसतक का इतना महततव कयो ?

विसभनन धमो क उपासना-सरथलो क ऊजाथसतरो का तलनातमक अधययन ककया गया तो चचथ म करॉस क इदथचगदथ लगभग 10000 बोविस ऊजाथ का पता चला। मजसजदो म इसका सतर 11000 बोविस ररकाडथ ककया गया ह। सििमीददर म यह सतर 16000 बोविस स अचधक परापत हआ। दहनद धमथ क परधान चचहन सिजसतक म यह ऊजाथ 10,00000 (दस लाख) बोविस पायी गयी। इसस सपषटट ह कक भारतीय सीसकतत म इस चचहन को इतना महतति कयो ददया गया ह और कयो इस धासमथक कमथकाीडो क दौरान, पिथ-तयौहारो म एिी मीडन क उपरानत छोट बचचो क मीडडत

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मसतक पर, गह-परिि क दौरान दरिाजो पर और नय िाहनो की पजा ि अचथना क समय िाहनो पर पवितर परतीक क रप म अीककत ककया जाता ह।

अनकरमणणका

आभषि कयो पहन िात ह ?

आभषणो का सिासरथय-रकषक परभािनाक म नथनीः सदी-खाासी आदद रोगो म राहत दती ह।चाादी की पायलः मदहलाओी की सतरी-रोगो स रकषा तरथा उनका सिासरथय ि मनोबल बढान

म सहायक होती ह।हाथ की सबस छोटी उागली म अागठी- छाती का ददथ ि घबराहट स रकषा करती ह।सोन क किाकडलः मजसतषटक क दोनो भागो को विदयत क परभािो स परभाििाली बनान

म मदद करत ह।मसतक पर चदन या ससदर का ततलकः आजञाचकर को विकससत करता ह तरथा

तनणथयिजकत ि समरणिजकत बढाता ह। तलसी की जड की समटटी रा हलदी का ततलक भी फायदा करता ह। पलाजसटक की तरबनदी नकसान करती ह।

अनकरमणणका

सवासरथय क दशमन फासटफड

हमार आयिद गरीरथो न ऐस िि, ताज और साजततिक आहार का चनाि ककया ह, जजसको खान स मन पवितर और बवि साजततिक रह। परीत दभाथगयिि पजशचमी ʹकलचरʹ का अीधानकरण कर रह भारतीय समाज का मधयम तरथा उचचिगीय भाग फासटफड खान की अीधी दौड म अपन तन मन को विकत कर रहा ह। विदयारथी भी इसकी चपट म आकर अपन सिासरथय क दशमन फासटफड को समतर समझ बठ ह।

फासटफड को आकषथक, सिाददषटट ि जयादा ददन तक तरोताजा रखन क सलए उनम तरह तरह क रसायन (कसमकल) समलाय जात ह। उनम बनजोइक एससड अतयचधक हातनकारक ह, जजसकी 2 गराम मातरा भी एक बीदर या कतत को मार सकती ह। मगनसियम कलोराइड और कजलियम साइरट स आातो म घाि होत ह, मसडो म घाि हो सकत ह एिी ककडनी कषततगरसत होती ह। सलफर डायोकसाइड स उदर-विकार होत ह तरथा एररथरोसीन स अनननली और पाचनतीतर को हातन होती ह।

फासटफड स ई-कोलाई, सलमोनलला, कलोजबसएलला आदद जीिाणओी का सीकरमण होन स नयमोतनया, बहोिी, तज बखार, मजसतषटक जिर, दजषटटदोष, माीसपसियो क रोग, हदयाघात आदद

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बीमाररयाा होती ह। अतः आातो की बीमाररयाा ि आातो को कमजोर करन िाली डबल रोटी, तरबसकट म कतरतरम फासटफडस स बचो। साजततिक नाशता ि आहार करो। हमार िासतरो न भी कहा हः ʹिसा अनन वसा मन।ʹ

अनकरमणणका

खतरनाक ह सॉफटडरकस

िीतल पय (सॉफटडर ीकस) म पसटीसाइडस और एससड अतयचधक नकसानकारक मातरा म मौजद ह। डीडीटी स क सर, रोगपरततकारक िजकत का हरास और जातीय विकास म विकतत होती ह। लीीडन स क सर होता ह तरथा मजसतषटक और चता तीतर (निथस सससटम) को हातन होती ह। मलचरथयोन जञानतीतओी की हातन करता ह और भािी पीदढयो को आनिीसिक विकततयो का सिकार बनाता ह। इनम काबोसलक एससड होन की िजह स य खतरनाक ह, जजनका सिन नहीी ककया जा सकता ह। ʹसटर फॉर साइीस एीड एनिायरोनमटʹ की तनदिक तरथा परखयात पयाथिरणविद सनीत नारायण न बाजार म मौजद तमाम कमपतनयो क सॉफटडर ीकस क नमनो की जााच करिायी और सार नमनो म खतरनाक मातरा म पसटीसाइडस पाय गय, जो उपयोगकताथ क सिासरथय को गमभीर नकसान पहाचात ह। महाराषटर क ʹफड एीड रगसʹ विभाग न अपनी जााच म पाया रथा कक य पय छातरो क सिासरथय का सतयानाि कर रह ह। (सीदभथः लोकमत समाचार)

अनकरमणणका

रासायतनक नही, पराकततक रगो स खल होली आज आधतनक चचककतसक एिी िजञातनक रासायतनक रीगो की हातनयाा उजागर करत जा

रह ह। जस-रीग रसायन दषटपरभािकाला लड ऑकसाइड गद की बीमारीहरा कॉपर सलफट आाखो म जलन, सजन, असरथायी अीधतिससलिर एलयमीतनयम बरोमाइड क सरनीला परसियन बल ʹकानटकट डमटाइदटसʹ नामक भयीकर तिचारोगलाल मरकयररक सलफाइड तिचा का क सरबगनी करोसमयम आयोडाइड दमा और एलजी

पलाि-पषटपो क पराकततक रीग स होली खलन स िरीर म गमी सहन करन की कषमता बढती ह। इतना ही नहीी, पलाि क फलो का रीग रकत-सीचार म िवि करता ह, माीसपसियो को सिसरथ रखन क सारथ-सारथ मानससक िजकत ि इचछािजकत को बढाता ह। िरीर की सपतधातओी,

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सपतरीगो का सीतलन करता ह। अतः पलाि क फलो क रीग स अरथिा अनय पराकततक रीगो स होली खलनी चादहए।

अनकरमणणका

टी.वी. व करफलमो का कपरभाव

दि म आय ददन घदटत होन िाली आपराचधक घटनाओी का कारण कया ह ? अऩक कारणो क अलािा टीिी चनलो, कफलमो ि अनय परचार साधनो की भी इसम महततिपणथ भसमका ह। सििपरी (म.पर.) जसरथत अरोरा गााि की एक घदटत घटना हः 16 िषीय मनोज और 13 िषीय रामतनिास न अपन मासलक क पतर िान का अपहरण करक उसक वपता स धन की मााग की और िान की हतया कर दी। दोनो ककिोरो न पसलस को आतमसमपथण ककया और सिीकार ककया कक यह पररणा उनहोन कफलम दखकर पायी रथी। अमररका और अनय विकससत दिो म परायः ऐसी घटनाएा होती रहती ह।

ससनमा टी.िी. का दरपयोग विदयाचरथथयो क सलए असभिापरप ह। चोरी, मदयपान, भरषटटाचार, दहीसा, बलातकार, तनलथजजता जस कसीसकारो स बाल और यिािगथ को बचाना चादहए। इससलए टीिी क विविध चनलो का उपयोग जञानिधथक कायथकरम, सीत-महातमाओी क सतसीग तरथा पराकततक सौदयथ ददखान िाल कायथकरमो तक ही मयाथददत करना चादहए।

अनकरमणणका

सवासरथय की अनपम कजियाा सवसथ सखी व सममातनत िीवन

िरीर जजतना तनरोग, सिचछ ि पवितर रहगा, उतना ही आतमा का परकाि इसम अचधक परकासित होगा। यदद दपथण ही ठीक न होगा तो परतततरबमब कस ददखाई दगा ? सफलता क सलए भी सिसरथ तन और मन जररी ह। आइय जान सिसरथ रहन की कछ अनपम की जजयो क बार म।

ककसी भी परकार क रोग म मौन रहन स सिासरथय-सधार म मदद समलती ह। जलदी सोय, जलदी उठ । रातरतर 9 बज स परातः 3 या 4 बज तक की परगाढ तनरा स ही

आध रोग ठीक हो जात ह। ʹअधारोगहरी तनरा।ʹ रातरतर म 9 म स 12 बज क बीच 1 घीट की नीीद तीन घीट का आराम दती ह, मधयरातरतर

12 स 3 बज क बीच 1 घीट की नीीद 1.5 घीट का आराम दती ह, 3 स 5 बज क बीच 1 घीट की नीीद 1 घीट का आराम दती ह और सयोदय क बाद 1 घीटा सोन स दो घीट खराब हो जात ह, जयादा रथकान होती ह। जो लोग सयोदय क बाद तक सोत रहत ह, ि लोग अचधक बवि और सफततथ नहीी पा सकत। सयोदय क बाद तक तरबसतर पर पड रहना अपन सिासरथय की कबर खोदना

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ह। जो लोग जलदी सोकर जलदी उठत ह, सीयम और साजततिकता स जीत ह उनम गजब की सफततथ होती ह।

कब खाय, कस खाय ?भोजन कम स कम 20-25 समनट तक खब चबा-चबाकर एिी उततर या पिाथसभमख होकर

कर। जलदी या अचछी तरह चबाय तरबना भोजन करन िाल चचडचचड ि करोधी सिभाि क हो जात ह।

सबह 9 स 11 और िाम 5 स 7 क बीच भोजन करना चादहए। ऋवषयो ि आयिदाचायो न तरबना भख लग भोजन करना िजजथत बताया ह। अतः परातः एिी िाम क भोजन की मातरा ऐसी रख, जजसस ऊपर बताय समय म खलकर भख लग।

तरबना भख क खाना रोगो को आमीतरतरत करना ह। कोई ककतना भी आगरह कर पर आप सािधान रह। पट आपका ह। पचाना आपको ह।

भोजन करन एिी पय पदारथथ लन क बाद पानी स कलल करन चादहए। जठ माह रहन स बवि कषीण होती ह और दाातो ि मसडो म कीटाण जमा हो जात ह।

पय पीना हो तो....कोई भी पय पीना हो तो इडा नाडी अरथाथत नाक का बायाा सिर चाल होना चादहए। यदद

दायाा सिर चाल हो तो दायाा नरथना दबाकर बााय नरथन स शिास लत हए ही वपय।चाय-कॉफी सिासरथय क सलए अतयनत हातनकारक सातरबत हए ह। अतः इनस बच। परातः

खाली पट चाय या कॉफी भलकर भी न वपय ि दशमन को भी न वपलाय।दीघााय व सवसथ िीवन क सलए...

परातः कम स कम 5 समनट तक लगातार तज दौडना या चलना तरथा कम स कम 15 समनट तनयसमत योगासन करन चादहए।

सबह-िाम हिा म टहलना सिासरथय की की जी ह।महीन म एकाध बार रातरतर को सोन स पिथ नमक एिी सरसो का तल समला क, उसस

दाात मलकर, कलल करक सो जाना चादहए। ऐसा करन स ििािसरथा म भी दाात मजबत रहत ह।

शजकतदायक-पजषटवधाक परयोगजौ का पानी म सभगोकर, कट क, तछलकारदहत कर उस दध म खीर की भाातत पकाकर

सिन करन स िरीर हषटट-पषटट होता ह और मोटापा कम होता ह। 3 स 5 अीजीर को दध म उबाल कर या अीजीर खाकर दध पीन स िजकत बढती ह।

रातरतर म एक चगलास पानी म एक नीीब तनचोडकर उसम दो ककिसमि सभगो द। सबह पानी छानकर पी जाय एिी ककिसमि चबाकर खा ल। यह एक अदभत िजकतदायक परयोग ह।

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कल को सबह खान स उसकी कीमत तााब जसी, दोपहर को खान स चाादी जसी और िाम को खान स सोन जसी होती ह। िारीररक शरम न करन िालो को कला नहीी खाना चादहए। कला सबह खाली पट भी नहीी खाना चादहए। भोजन क बाद दो कल खान स पतला िरीर मोटा होन लगता ह।

दध व चावल की खीरः यह सिथवपरय, िीतल, वपततिामक, मदिधथक, िजकतदायक, िातवपतत, रकतवपतत, अजगनमाीदय ि अरचच का नाि करन िाला साजततिक आहार ह। यह िरद ऋत म वििष लाभकारी ह।

ववचधः परतत वयजकत एक क दहसाब स काली समचथ डालकर चािल को पहल पका ल। कफर उसम दध, समशरी ि डालनी हो तो इलायची डालकर एक उबाल आन पर उतार ल और ढक क रख द। रात को खीर बनानी हो तो काली समचथ न डाल।

अनकरमणणका

अकल लडाओ, जञान बढाओ

700 शलोको का बगीचा, जञान-धयान स जो ह महका।नर-नारायण का ससीिाद, चाह उतरथान हर मानि का।।1।।मीठी मधर ह मरी चाल, पयारी लगा म सबको आज।

अगर उगला म कडिी लार, तो म कर दा तमको बहाल।।2।।एकाकषर बरहम का रप, अनीत तनमथल ह मरा सिरप।तनत ससमर जो मझको, हो जाय िो मझ सिरप।।3।।दत सबको तनतय जञान, कराय सबको अमत का पान।जो पचाय इनका जञान, उस हो जाय मोकष आसान।।4।।आकाि पर पणथ चनरमा, िदवयासजी का परागटय ददिस।

गर पजन का पािन पिथ, बोलो आषाढ मास का कौन सा ददिस।।5।।उततर इसी पसतक म ह, खोजजय।इस पसतक पर आधाररत परशन ददय िा रह ह, उनक सही उततर वगा-पहली स खोजिय। आतमा-परमातमा का जञान दन िाल सिथशरषटठ मागथदिथक। ककस पषटप क रीग स होली खलन स िरीर की सपतधातओी, सपतरीगो का सीतलन बना

रहता ह ?

ʹगर म तनषटठा ही परम तप हʹ। - ककसन कहा ह ?

ककस मीतर क परभाि स बवि किागर ि समरणिजकत विकससत होती ह ?

आकषथक, सिाददषटट परीत सिासरथय का दशमन।

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कया करन स अनजान म हए पाप नषटट हो जात ह तरथा अीतःकरण पवितर होन लगता ह ?

सफलता ककसका िरण करती ह ?

कया करन स जीिन जीन की की जजयाा सहज म ही परापत होती ह ?

ककसका समसत नाडडयो ि सातो कनरो पर बडा साजततिक परभाि पडता ह ?

स शिा वि तम आ क तरब द अ अ ज साद द तसी सा ई रा वि प स उ त रर ि ग म दय र प सा सी तय स सिमी फा ह र तरतर सि क म र आ ि तयतरतर रा ि रा घ दा तरतर तन की षटठ ि मीपा जी बा जी म ण का दा दी ड ग तरल िा बा र ि तम ल प ग रो ङ टीना सा ि शर नना षटप सी डा मी रा ग चीधया नी ग य प ली धया बा र दय पा डज तसी ड ि गा सि ि फा आ ल उ फ

स ि ला सी भ ग िा न सि ि जी सटगी प भ ग ि नना म ज प दी ड फा

अनकरमणणका

सवागिकारी तलसी जहाा तलसी क पौध अचधक मातरा म होत ह, िहाा की हिा िि और पवितर रहती ह।

तलसी को ʹविषटणवपरयाʹ कहा जाता ह। आप भी इस पजनीय पौध का रोपण कर मानि क िारीररक-मानससक सिासरथय ि आधयाजतमक उननतत क सतकायथ म भागीदार बन।

तलसी क पततो म एक विसिषटट तल होता ह, जो कीटाणयकत िाय को िि करता ह। इसस मलररया क कीटाणओी का भी नाि होता ह।

तलसी क पास बठकर पराणायाम करन स िरीर म बल, बवि और ओज की िवि होती ह। परातः खाली पट तलसी का रस पीन अरथिा पााच-सात पतत चबा-चबाकर खान और पानी पीन स बल, तज और समरणिजकत म िवि होती ह।

तलसीदल एक उतकषटट रसायन ह। तलसी सौदयथिधथक एिी रकतिोधक ह।तलसी गद की कायथिजकत को बढाती ह। कोलसरोल को सामानय बना दती ह। हदयरोग

म आशचयथजनक लाभ करती ह। आातो क रोगो क सलए तो यह रामबाण ह।

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तनतय तलसी-सिन स अमलवपतत (एससडडटी) दर हो जाती ह, माीसपसियो का ददथ, सदी-जकाम, मोटापा, बचचो क रोग वििषकर कफ, दसत, उलटी, पट क कसम (70 % बचचो क पट म कसम होत ह) आदद म लाभ करती ह।

सावधानीः अमािसया, पणणथमा, दिादिी को तलसी न तोड। रवििार को न तोड, न खाय। तलसी-सिन क दो घीट पहल और बाद म दध न ल।

गल म तलसी की माला धारण करन स जीिनिजकत बढती ह, बहत स रोगो स मजकत समलती ह। तलसी की माला पर भगिननाम-जप करना कलयाणकारी ह।

ʹमतय क समय मतक क मख म तलसी क पततो का जल डालन स िह समपणथ पापो स मकत होकर भगिान विषटण क लोक म जाता ह।ʹ (बरहमिितथ पराण, परकतत खीडः 21.42)

फर च डॉकटर विकटर रसीन न कहा हः "तलसी एक अदभत औषचध (Wonder Drug) ह, जो बलडपरिर ि पाचनतीतर क तनयमन, रकतकणो की िवि एिी मानससक रोगो म अतयीत लाभकारी ह।"

पजय बाप जी क सिषटयो दिारा ʹपयाथिरण-सरकषा असभयान चलाया जाता ह, जजसम वििषकर तलसी, आािला, पीपल, िटिकष और नीम का रोपण ककया जाता ह।

शासतर-वचनः ʹजजस घर म तलसी का पौधा होता ह िह घर तीरथथ समान पवितर होता ह। उस घर म रोगरपी यमदत नहीी आत।ʹ (सकनद पराण एिी पदम पराण)

अनकरमणणका

ववशव का सवाशरषठ गरनथ

ʹपरतयक विदयारथी को गीता क शलोक की ठसरथ करन चादहए एिी उनक अरथथ म गोता लगाकर अपन जीिन को ओजसिी-तजसिी बनाना चादहए।" – पजय बाप जी

दतनया क दो पसतकालय परससि रथः एक तो भारत म चननई (मरास), दसरा अमररका क सिकागो म ह।

रिीनरनारथ टगोर अमररका गय तब सिकागो क विशिपरससि पसतकालय म भी गय एिी िहाा क मखय अचधकारी स कहाः "लाखो लाखो ककताब ह, िासतर ह। म सब नहीी पढ पाऊा गा, इतना समय नहीी ह। सारी पसतको म, सार िासतरो म आपको जो सबस जयादा महततिपणथ गरीरथ लगता हो, मझ िह बता दो। म िह पढना चाहता हा।"

मखय अचधकारी टगोरजी को एक अलग सनदर, सहािन खीड म ल गया। बड आदर स रखी गयी तमाम पसतको म भी, एक अलग ऊा च सरथान पर बड कीमती िसतर म एक गरीरथ सिोसभत रथा। िसतर खोला तो टगोरजी न दखा कक गरीरथ की जजलद पर रतनजडडत सजािट रथी। टगोरजी दखकर दीग रह गय कक ऐसा कौन-सा महान गरनरथ ह ! कफर सोचा कक इनका कोई

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धमथगरनरथ बाइतरबल आदद होगा। जयो ही उस सिाथचधक आदरपिथक रख गय गरीरथ को खोला गया तो मखय पषटठ पर सलखा हआ रथा - ʹशरीमद भगवद गीताʹ।

करकसी भी िातत को उननतत क सशखर पर चढान क सलए गीता का उपदश अदववतीय ह।ʹʹ परससि पाशचातय तततवचचतक वारन हजसटगस

सोच व िवाब द- कया आप शरीमदभगिदगीता का रोज पठन-पाठन करत ह ?

सिकागो क पसतकालय म जाकर टगोरजी आशचयथचककत कयो हए ?

करकरयाकलापः आप भी परततददन शरीमद भगिदगीता क कछ शलोको का पाठ करन का सीकलप ल।

अनकरमणणका

गीता-मदहमा गीता म हदय पाथा....

"गीता तो मरा हदय ह अिान !" भगवान शरीकषि

"जीिन क सिाागीण विकास क सलए गीतागरीरथ अदभत ह। इस गरीरथ म सभी दि, जातत, पीरथ क मनषटयो क कलयाण की अलौककक सामगरी भरी हई ह।" – भगितपाद पजयपाद सााई शरी लीलािाहजी महाराज

"भगिदगीता ऐस ददवय जञान स भरपर ह कक उसक अमतपान स मनषटय क जीिन म साहस, दहममत, समता, सहजता, सनह, िाीतत और धमथ आदद दिी गण विकससत हो उठत ह। अतः परतयक यिक-यिती को गीता क शलोक की ठसरथ करन चादहए।" पजय सीत शरी आिारामजी बाप

"गीता सब सखो की नीीि ह। खला हआ परम धाम ह और सब विदयाओी की मल भसम ह।" सीत जञानशिर जी महाराज।

"गीता क आधार पर अकला मनषटय सारी दतनया का मकाबला कर सकता ह।" आचायथ विनोबा भाि।

"गीता उपतनषदो स चयन ककय हए आधयाजतमक सतय क सीदर पषटपो का गचछा ह।" सिामी वििकानीदजी

समपणथ विशि म गीता ही एकमातर ऐसा सदगरीरथ ह, जजसकी जयीती मनायी जाती ह। अनकरमणणका

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गौ-मदहमा गाय की रकषा, दि की रकषा। गाय मानिजीिन क सलए बहत ही दहतकारी ह। िासतरो म गाय को माता कहा गया ह। गाय का दध एक उतकषटट परकार का रसायन (टॉतनक) ह, जो िरीर म पहाचकर रस, रकत

माीस, मद, अजसरथ, मजजा और िीयथ को समचचत मातरा म बढाता ह। जसी गाय क दध स सािधान ! राषटरीय क सर सीसरथान (अमररका) क अनसार जसी गाय

का दध क सर करता ह। जसी गाय क दध, दही, घी स परहज कर। "हम गाय को नहीी पालत, गाय हम पालती ह।" पजय बाप जी।

पौजषटकता की खान गाय का दध8 परकार क परोटीनस, 6 परकार क विटासमनस, 21 परकार क एसमनो एससड, 16 परकार क

नाइरोजन यौचगक, 2 परकार की िकथ रा, 4 परकार क फॉसफोरस यौचगक

मखय खतनि लोहा, कजलियम, तााबा, सोना, फलोररन, आयोडीन, सससलकॉन

कतलखान म ल जा रही हजारो गायो को बचाया गया एिी गोझरण, गोबर आदद स धपबतती, खाद, कफनायल, औषचधयाा आदद का तनमाथण कर गौिालाओी का तनमाथण कर गौिालाओी को सिािलमबी बनाया गया।

गौरकषा एिी गौपालन की समसालः सीत शरी आिारामजी गौिालाएा बचचो न लगायी गौ-हतया पर रोक

पजय बाप जी क बाल, छातर ि कनया मीडलो क विदयाचरथथयो न गौ-रकषारथथ रली तनकाली, जजसस छततीसगढ परिासन न कषक पिओी क रकषण क सलए अचधतनयम परसतावित ककया।

अनकरमणणका

योगामत

िरीर एक मीददर ह जजसम जीिातमा का पणथ विकास हो सकता ह। िरीर को सिसरथ, मन को परसनन और बवि को तनमथल ि किागर बनान हत योगविदया का आशरय लना चादहए। योगविदया क अभयास स सिथ सफलताओी की की जी ʹआतमविदयाʹ को आतमसात करन म भी मदद समलती ह।

आसन िरीर क समचचत विकास क सलए अतयीत उपयोगी ससि होत ह। वयायाम स भी अचधक उपयोगी आसन ह। विदयाचरथथयो को परततददन आसन अिशय करन चादहए।

सावधातनयाा- आसन परातः खाली पट सिचछ हिादार कमर म करन चादहए। आसन करत समय िरीर पर िसतर ढील हो तरथा सती िसतर हो तो अतत उततम। भोजन क छः घीट ि दध पीन क दो घीट बाद भी आसन ककय जा सकत ह।

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आसन िौच, सनान आदद स तनितत होकर कमबल, चटाई आदद तरबछाकर कर। आसन करत समय िरीर क सारथ जबरदसती न कर और शिास माह स न लकर नाक स ल।

सगभाथिसरथा ि माससक धमथ की अिचध म मदहलाएा तरथा हदयरोग आदद स गरसत लोग अपन िदय अरथिा योग-परसिकषक की सलाह लकर ही आसनो का अभयास कर।

आठ िषथ स कम आय िाल बचचो का आसन या पराणायाम नहीी करन चादहए। 5 स 8 िषथ क बचचो को वयायाम करा सकत ह। भरामरी पराणायाम 3 िषथ स अचधक उमर िाल बचच कर सकत ह।

सपतवजरासनलाभः मरदीड की कायथिजकत परबल बनती ह। समरणिजकत ि आाखो की दबथलता दर होती ह। तमाम अीतःसरािी गरीचरथयो (Endocrine

Glands) को पजषटट समलती ह। तन मन का सिासरथय सदढ बनता ह। जठराजगन

परदीपत होती ह। ववचधः िजरासन म बठन क बाद चचतत होकर पीछ की

ओर भसम पर लट जाय। दोनो जीघाएा परसपर समली रह। शिास छोडत हए बाय हारथ का खला पीजा दादहन की ध क नीच और दादहन हारथ का खला पीजा बाय की ध क नीच इस परकार रख कक मसतक दोनो हारथ क करॉस क ऊपर आय। धयान विििाखय चकर म रख।

अनकरमणणका उजतथत पदमासन

लाभः हारथ, कोहनी, की ध, िकषःसरथल इन सभी अीगो म भलीभाातत रकतसीचार होता ह और भजाओी म बल आ जाता ह।

खब तनभथयता आती ह। छोटी-छोटी बात म घबरान िालो या रथोडी भी ऊा ची आिाज सनन पर डरन िालो को इसका अभयास अिशय करना चादहए। सनाय-दबथलता दर होती ह। फफडो तरथा हदय को िजकत समलती ह।

ववचधः पदमासन म बठ जाय। दोनो हारथो क बल पर िरीर को जमीन स ऊपर उठा ल।

अनकरमणणका कोनासन

इस आसन म िरीर का आकार कोन (कोण) क समान हो जाता ह, इससलए इस कोनासन कहत ह।

लाभः कफ की सिकायत दर होती ह।

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बौनापन दर करन म मदद समलती ह। कमर तरथा पससलयो का ददथ ठीक हो जाता ह। सिासरथय क सारथ-सारथ सौदयथ भी बढता ह। ववचधः दोनो परो को डढ-दो फट क अीतर पर रखत हए सीध खड हो जाय। अब दाय हारथ

को नीच दाय पर क पीज पर रखत हए बाय हारथ को ऊपर ल जाय। दजषटट ऊपर हारथ की ओर हो। इस जसरथतत म 5-6 सकणड रह।

मल जसरथतत म आकर इसी ककरया को पनः दसरी ओर स करना चादहए। धयान रह कक कमर का दहससा यरथासमभि जसरथर रह। इस 4-6 बार कर।

सावधानीः कछ लोग इस आसन को जलदी-जलदी करन का परयतन करत ह और बार-बार करत ह। उसम वििष लाभ नहीी। इससलए इस धीर-धीर कर।

अनकरमणणका उषरासन

इसम िरीर का आकार ऊा ट (ऊषटर) की तरह बनन स इस ʹउषटरासनʹ कहत ह।

लाभः गदथन, की धा, रीढ, हारथ ि परो क सनाय मजबत होत ह। पराणतीतर सककरय, नतरजयोतत म िवि, सीना सडौल ि धडकन की

अतनयसमतता दर होती ह। मखय रकतिाहक नाडडयो को बल समलता ह तरथा णखसकी हई नासभ यरथासरथान जसरथत हो जाती ह।

िारीररक दबथलता, सरथायी ससरददथ, कबज, पटददथ ि मीदाजगन म अतयचधक लाभकारी ह। झक हए की ध, कबड, पीठददथ, कमरददथ, दमा, मधमह, हदयरोग – इन सबक उपचार म यह अतयीत सहायक ह।

ववचधः िजरासन म बठ । कफर घटनो क बल खड हो जाय। घटनो स कमर तक का भाग सीधा रख ि पीठ को पीछ की ओर मोडकर हारथो स परो की एडडयाा पकड ल।

अब ससर को पीछ झका द। शिास सामानय, दजषटट जमीन पर ि धयान विििाखय चकर (की ठसरथान) म हो। इस अिसरथा म 10-15 सकणड रक ।

आसन छोडत समय हारथो की एडडयो स हटात हए सािधानीपिथक िजरासन म बठ ि ससर को सीधा कर। ऐसा 2-3 बार कर। करमिः अभयास बढाकर एक सारथ 1 स 3 समनट तक यह आसन कर सकत ह।

सावधानीः यह आसन हतनथया ि उचच रकतचाप म िजजथत ह। अनकरमणणका

सयाभदी परािायाम

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जस सयथ सार सौरमणडल को उषटणता परदान करता ह, िस ही सयथभदी पराणायाम स िरीर क समपणथ नाडी-मीडल म ऊषटमा का सीचार हो जाता ह।

लाभः इसस सयथ नाडी ककरयािील हो जाती ह। सदी, खाासी, जकाम दर हो जात ह ि पराना जमा हआ कफ तनकल जाता ह। मजसतषटक

का िोधन होता ह। इसस जठराजगन परदीपत होती ह। कमर क ददथ म यह लाभदायी ह। ववचधः परातः पदमासन अरथिा सखासन म बठकर बाय-नरथन को बीद कर और दाय नरथन

स धीर-धीर अचधक-स-अचधक गहरा शिास भर। शिास लत समय आिाज न हो इसका खयाल रख।

अब अपनी कषमता क अनसार शिास भीतर ही रोक रख। शिास बाय नरथन स धीर-धीर बाहर छोड। झटक स न छोड। इस परकार 3 स 5 पराणायाम

कर। सावधातनयाा- इस पराणायाम का अभयास सददथयो म कर। गमी क ददनो म तरथा

वपततपरधान वयजकतयो क सलए यह दहतकारी नहीी ह। सिसरथ वयजकत उषटणता तरथा िीतलता का सीतलन बनाय रखन क सलए सयथभदी पराणायाम

क सारथ उतन ही चनरभदी पराणायाम भी कर। अनकरमणणका

चनरभदी परािायाम

लाभः इसस चनर नाडी ककरयािील हो जाती ह। िरीर क समसत नाडी मीडल म िीतलता का सीचार होता ह।

उचच रकतचाप िालो क सलए यह लाभदायी ह। यह पराणायाम 5 बार तनयसमत करन स वपततपरकोप िाीत होता ह।

आाखो की जलन, नाक स खन बहना आदद रोगो म लाभदायक ह। मन िाीत हो जाता ह। िरीर की रथकान दर होती ह। ववचधः यह सयथभदी स ठीक विपरीत ह। इसम बाय नरथन स शिास

लकर भीतर ही कछ समय रोक । बाद म दादहन नरथन स धीर-धीर शिास छोड द। इस परकार 3 स 5 बार पराणायाम कर।

सावधानीः सददथयो म तरथा कफ परकततिालो क सलए यह दहतकर नहीी ह। तनमन रकतचापिालो क सलए भी यह पराणायाम तनवषि ह।

(आसन-पराणायाम आदद ककसी अनभिी क मागथदिथन म सीख।)

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अनकरमणणका धयान मरा

लाभः सनायमीडल को बल समलता ह। चीचल मन एकागर होता ह। िारीररक ि मानससक तनाि दर करन म मदद समलती ह। ववचधः पदमासन या सखासन म बठ । बायीी हरथली पर दायीी

हरथली रख। दोनो हारथो क अागठ तजथनी (अागठ क नजदीक की उागली) स समलाय। ससर, गदथन और रीढ की हडडी सीधी रखा म रह। आाख और होठ सहज रप स बीद कर। मनःचकषिो क आग अपन इषटटदि, सदगरदि की परततमा को लाय।

अनकरमणणका शख मरा

लाभः िाणी की मधरता ि परभाि बढता ह। ववचधः बाय हारथ का अागठा दाय हारथ की मटठी म पकड और बाय हारथ की

तजथनी दाय हारथ क अागठ क अगरभाग को लगाय। बाय हारथ की अनय उागसलयाा दाय हारथ की उागसलयो पर ककी चचत-सी दबाय। रथोडी दर बाद हारथो को अदल-बदलकर पनः यही मरा कर।

अनकरमणणका

योगयताओ क खिान को खोलन की चाबी पजय बाप जी का विदयाचरथथयो क सलए िरदान

कानो म उागसलयाा डालकर लमबा शिास लो। जजतना शिास लोग उतन फफडो क बीद तछर खलग, रोगपरततकारक िजकत बढगी।

शिास रोककर की ठ म भगिान क पवितर, सिथकलयाणकारी ʹૐʹ का जप करो। मन म ʹपरभ मर, म परभ काʹ बोलो।

माह बीद रख क की ठ स ૐ.... ૐ.... ૐ.... ૐ..... ૐ...... ૐ..... ૐ..... ओઽઽઽम.... का उचचारण करत हए शिास छोडो। इस परकार दस बार करो।

कानो म स उागसलयाा तनकाल दो।

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इतना करन क बाद िाीत बठकर होठो स जपो - ʹૐ ૐ परभ जी ૐ आनीद दिा ૐ, अीतयाथमी ૐ....ʹ दो समनट करना ह। कफर हदय स जपो - ʹૐिाीतत.... ૐ आनीद....ૐૐૐ...ʹ जीभ ि होठ मत दहलाओ। अब की ठ स जप करना ह। यह एक चमतकाररक परयोग ह। इसक तनयसमत अभयास स बवििजकत का अदभत विकास होगा। विदयाचरथथयो क सलए तो यह िरदानसिरप ह।

अनकरमणणका

परािशजकतवधाक परयोग

इसस पराणिजकत का अदभत विकास होता ह। इससलए इस पराणिजकतिधथक परयोग कहत ह।

लाभः इसस सिाचधषटठान कनर को जागत होन म खब मदद समलती ह। सिाचधषटठान कनर जजतना-जजतना सककरय होगा, उतना पराणिजकत क सारथ-सारथ रोगपरततकारक िजकत एिी मनःिजकत बढन म मदद समलगी। िजञातनको न इस कनर की िजकतयो का िणथन करत हए कहा हः This is the mind of the stomach. ʹयह पट का मसतक हʹ।

ववचधः सीध लट जाय। िरीर को ढीला छोड द, जस ििासन म करत ह। दोनो हारथो की उागसलयाा नासभ क आमन-सामन पट पर रख। हारथ की कोहतनयाा धरती पर लगी रह।

अब जस होठो सीटी बजात ह िसा माह बनाकर दोनो नरथनो स खब गहरा शिास ल। माह बीद रह। होठो की ऐसी जसरथतत बनान स दोनो नरथनो स समान रप म शिास भीतर जाता ह।

10-15 सकणड तक शिास को रोक रख। इस जसरथतत म पट को अीदर-बाहर कर, अीदर जयादा बाहर कम। यह भािना कर कक मरी नासभ क नीच का सिाचधषटठान कनर जागत हो रहा ह।

कफर होठो स सीटी बजान की मरा म माह स धीर-धीर शिास बाहर छोडत हए यह भािना कर कक ʹमर िरीर म जो दबथल पराण ह अरथिा रोग क कण ह उनको म बाहर फ क रहा हा।ʹ यह परयोग 2 स 3 बार कर।

अनकरमणणका

एकादशी वरत-मदहमा "एकादिी वरत पापनािक तरथा पणयदायी वरत ह। परतयक

वयजकत को माह म दो ददन उपिास करना चादहए। इसस

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आधयाजतमक लाभ क सारथ-ही-सारथ िारीररक लाभ भी होता ह।" पजय बाप जी।

िासतरो म एकादिी वरत की बडी भारी मदहमा ह। ʹएकादिी जसा कोई वरत नहीीʹ - ऐसा भगिान महादिजी कहत ह। वरत स शरिा, भजकत, पवितरता, जञान आदद सदगणो की िवि तो होती ही ह, सारथ ही आयिद की दजषटट स वरत उततम सिासरथय की पराजपत म भी सहायक ह। उपिास रखकर रातरतर को भगिान क समीप करथा-कीतथन करत हए रातरतर-जागरण करना चादहए। (रातरतर 12 या 1 बज तक जागरण योगय ह)। इस ददन अनन न खाय, फलाहार ल सकत ह। चािल तो भलकर भी नहीी खान चादहए। एकादिी क ददन बाल नहीी कटिान चादहए। (एकादसशयो की वरत-मदहमा एव ववचध की ववसतत िानकारी क सलए पढ आशरम की पसतक ʹएकादशी वरत-कथाएा ।)

"एकादि इजनरयो दिारा जो पाप ककय जात ह, ि सब क सब एकादिी क उपिास स नषटट हो जात ह। अनजान म भी एकादिी का उपिास कर सलया जाय तो िह यमराज का दिथन नहीी होन दती।" शरी िससषटठजी महाराज

तीरथ का ह एक फल, सत समल फल चार। सदगर समल अनत फल, कहत कबीर ववचार।।

सोच व िवाब द-रमा रथोडी-सी ऊा ची आिाज सनकर कााप जाती ह। बहत डरती भी ह। उस आप कौन-सा

आसन करन की सलाह दग ?

मोहन क वपता जी की कमर म बहत ददथ रहता ह। उनह कौन-सा आसन करना चादहए ?

सदी-जकाम होन पर आप कौन सा पराणायाम करग ?

कौन-सी मरा म बठकर धयान करन स सनाय-मीडल को बल समलता ह ?

आपका समतर यदद रोगपरततकारक िजकत कम होन क कारण बहत जलदी बीमार पडता हो तो आप उस कौन-सा परयोग करन की सलाह दग ?

अनकरमणणका

ववदयाथी परशनोततरी पराचीनकाल म गरकल सिकषा-पितत परचसलत रथी। गर क चरणो म बठकर विदयारथी

विदया परापत करत रथ। विदयाचरथथयो की विविध िीकाओी को जानकर गर उनका उततर ददया करत रथ।

परशनः सिोततम लाभ कया ह ? उततरः आतमलाभ (आतमा – परमातमा का अनभि)। परशन सदा फल दन िाला कया ह ? उततर धमथ। परशनः सबस बडी दया कया ह ? उततरः सबक सख की इचछा सबस बडी दया ह।

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परशनः दजथय ितर कौन ह ? उततरः करोध। परशनः ऐसी कौन सी विदया ह जजस पाकर जीि मकत हो जाता ह ?

उततरः बरहमविदया। इस विदया स जीि जनम-मरण स मकत हो जाता ह। परशनः सयोदय क बाद भी सोत रहन स कया हातन होती ह ?

उततरः ʹअरथिथिदʹ म बताया गया ह कक जो वयजकत सयोदय क बाद भी सोता रहता ह, उसक ओज-तज को सयथ की ककरण पी जाती ह।

परशनः जजसक सारथ समतरता कभी जीणथ नहीी होती और धोखा नहीी समलता, ऐसा समतर कौन ह ?

उततरः सजजन की समतरता तनतय निीन रहती ह, कभी जीणथ नहीी होती। सजजन की समतरता दःख और धोखा नहीी दती और भगिान तरथा भगितपरापत महापरषो स बढकर सजजन कौन ह ? अतः समतर बनाओ तो उनहीी को।

अनकरमणणका

ह परभ आनददाता ह परभ ! आनीददाता !! जञान हमको दीजजय।

िीघर सार दगथणो को दर हमस कीजजय।। ह परभ..... लीजजय हमको िरण म, हम सदाचारी बन।

बरहमचारी धमथरकषक िीर वरतधारी बन।। ह परभ.... तनीदा ककसी की हम ककसी स भलकर भी ना कर।

ईषटयाथ कभी भी हम ककसी स भलकर भी ना कर।। ह परभ.... सतय बोल झठ तयाग, मल आपस म कर।

ददवय जीिन हो हमारा, यि तरा गाया कर।। ह परभ.... जाय हमारी आय ह परभ ! लोक क उपकार म।

हारथ डाल हम कभी ना भलकर अपकार म।। ह परभ... परम स हम गरजनो की तनतय ही सिा कर।

परम स हम सीसकतत की तनतय ही सिा कर।। ह परभ.... योगविदया बरहमविदया हो अचधक पयारी हम।

बरहमतनषटठा परापत करक सिथदहतकारी बन।। ह परभ.... अनकरमणणका

सीत शरी आिारामजी दिारा आयोजजत

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ददवय-पररिा परकाश जञान परततयोचगता क परशनपतर का परारप

समय 1 घीटा कल अीक-50 (परतत परशन 1 अीक) आपकी जानकारी क सलए यहाा परशनो क कछ नमन ददय गय ह। ददवय पररणा-परकाि

जञान परततयोचगता म ऐस 50 सरल ि विकलपातमक परशन (MCQ) होग। ददय गय परशनो क सही ववकलप का करमाक दायी तरफ ददय बॉकस म सलणखय। 1.सयोदय स ...... पिथ स लकर सयोदय तक का समय बराहममहतथ कहलाता ह।

1 सिा दो घीट 2 सिा चार घीट 3 आधा घीट 4 तीनो गलत 2.हमार िरीर म ककतन यौचगक चकर ह ?

1 (8). 2 (11). 3 (7). 4 (तीनो गलत). तनमनसलणखत वचन करकनक कह हए ह ? नीच ददय गय ववकलपो म स सही उततर का

करमाक छाादटय। 3 ʹगरदिो गरधमो गरौ तनषटठा परी तपः।ʹ

4 ʹतलसी एक अदभत औषधी (Wonder Drug) ह। 5 ʹभयनािन दमथतत हरण कसल म हरर को नाम।ʹ

6 "हार िबद हमार जीिन म ही नहीी ह। हम हारग नहीी, या तो विजयी होग या िहीद होग।"

विकलप 1. डॉ. विकटर रसीन 2 जोरािर ससीह 3 भगिान सििजी 4 गरनानक जी। उचचत समलान करो। 7 पराणिजकतिधथक परयोग 1 जजजञास 8 धयान मरा 2 परदःखकातरता 9 भगिन शरीकषटण 3 सिाचधषटठान कनर

10 अजथन 4 गर साीदीपनी 11 सााई शरी लीलािाहजी महाराज 5 चीचल मन एकागर होता ह

तनमनसलणखत वाकय सही हो तो √ का तनशान और गलत हो तो x का तनशान कर। 12 तलसी की माला धारण करन स जीिनिजकत घटती ह।

13 भोजन क पहल गीता क 15ि अधयाय का पाठ करना चादहए।

14 मन, िचन और कमथ स ककसी को नहीी सताना चादहए।

15 लटकर या झककर पसतक को पढना चादहए। अनकरमणणका

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ʹववशवगर भारतʹ की ओर बढत कदम...... बालक ही इस दि क भािी नागररक ह। बालको क सीदर भविषटय तनमाथण हत बरहमतनषटठ

सीत शरी आिारामजी बाप क पररक मागथदिथन म दि विदि म 17000 स अचधक ʹबाल सीसकार कनरʹ तनःिलक चलाय जा रह ह।

लाखो विदयारथी पजय बाप जी स सारसितय मीतर की दीकषा परापत कर अपना जीिन कतारथथ कर रह ह। विदयाचरथथयो क विकास हत और उऩह तजसिी, परषारथी, सीयमी तरथा दढ आतमविशिासी बनान हत पजय शरी क साजननधय म ʹविदयारथी तजसिी तालीम सिविरोʹ का आयोजन ककया जाता ह। विदयाचरथथयो की छदटटयो का सदपयोग करन हत ʹविदयारथी उजजिल भविषटय तनमाथण सिविरोʹ का आयोजन होता ह।

विदयाचरथथयो को परततभािान, उननत, सीयमी बनान क सलए विदयालयो-महाविदयालयो म ʹयोग ि उचच सीसकार सिकषाʹ असभयान चलाया जाता ह एिी वपछल पााच िषो स ʹददवय पररणा परकाि जञान परततयोचगताʹ का आयोजन ककया जा रहा ह, जजसम िषथ 2012 म 25,57,823 विदयाचरथथयो न भाग सलया।

ʹिलनटाइन ड जस सीयम-विनािक विदिी तयौहारो स अपन दि क ककिोरो ि यिक-यिततयो की रकषा करन हत पजय बाप जी की पररणा स हर िषथ 14 फरिरी को विसभनन विदयालयो एिी घर-घर म ʹमात-वपत पजन ददिसʹ मनाया जा रहा ह।

बचपन स ही विदयाचरथथयो म तनषटकाम सिा आदद सदगणो का विकास हो, इस हत राषटरवयापी विदयारथी सिाओी क मीडलो - ʹबाल मीडलʹ, ʹकनया मीडलʹ ि ʹछातर मीडलʹ का गठन ककया गया ह। पजय शरी यिानो को राषटर क कणथधार मानत ह। उनक जीिन को तजसिी बनान क सलए पजयशरी क पािन मागथदिथन म ʹयिाधन सरकषा असभयानʹ चलाया जाता ह। यिाओी तरथा मदहलाओी क सिाागीण विकास हत ʹयिा सिा सीघʹ एिी ʹमदहला उतरथान मीडलʹ की सरथापना की गयी ह।

भारत का भविषटय सीतो क आिीिाथद स अिशय ही उजजिल होगा। भारत पनः विशिगर की अपनी गररमा परापत करन की राह पर ह, जो तनःसनदह उस परापत होगी।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

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