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कविता स नने के लिए लिक कर https://youtu.be/rdqE27kg3-Y दिन जिी-जिी ढिता है - हररिंश राय बचन

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  • कविता सुनने के लिए क्लिक करें https://youtu.be/rdqE27kg3-Y

    दिन जल्िी-जल्िी ढिता है - हररिंश राय ‘ बच्चन ’

    https://youtu.be/rdqE27kg3-Yhttps://youtu.be/rdqE27kg3-Yhttps://youtu.be/rdqE27kg3-Yhttps://youtu.be/rdqE27kg3-Yhttps://youtu.be/rdqE27kg3-Yhttps://youtu.be/rdqE27kg3-Yhttps://youtu.be/rdqE27kg3-Yhttps://youtu.be/rdqE27kg3-Y

  • हरिवंश िाय बच्चनः जीवन परिचय

    जीिन पररचय-कवििर हररिंश राय बच्चन का जन्म 27 निंबर सन 1907 को इिाहाबाि में हुआ था। उन्होंने इिाहाबाि विश्िविद्यािय से अंगे्रजी विषय में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1942-1952 ई० तक यही ंपर प्राध्यापक रहे। उन्होंने कैं ब्रिज विश्िविद्यािय, इंग्िैंड से पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। अंगे्रजी कवि कीट्स पर उनका शोिकायण बहुत चधचणत रहा। िे आकाशिार्ी के सादहक्ययक कायणक्रमों से संबंद्ि रहे और फिर वििेश मंत्रािय में दहिंी विशेषज्ञ रहे। उन्हें राज्यसभा के लिए भी मनोनीत फकया गया। 1976 ई० में उन्हें ‘पद्मभूषर्’ से अिकृंत फकया गया। ‘िो चट्टानें’ नामक रचना पर उन्हें सादहयय अकािमी ने भी पुरस्कृत फकया। उनका ननिन 2003 ई० में मंुबई में हुआ।

  • काव्यगत विशषेताए-ँबच्चन हालािाद के सिवश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं। दोनों

    महायुद्धों के बीच मध्यिगव के विकु्षब्ध विकल मन को बच्चन न े िाणी दी।

    उन्होंन े छायािाद की लाक्षवणक िक्रता की बजाय सीधी-सादी जीिंत भाषा

    और संिेदना से युक्त गये शलैी में अपनी बात कही। उन्होंन ेव्यवक्तगत जीिन में

    घटी घटनाओं की सहजअनभुूवत की ईमानदार अवभव्यवक्त कविता के माध्यम

    से की ह।ै यही विशेषता हहदंी काव्य-संसार में उनकी प्रवसद्ध का मूलाधार

    ह।ै भाषा-शलैी-कवि ने अपनी अनभुूवतया ँ सहज स्िाभाविक ढंग से कही हैं।

    इनकी भाषा आम व्यवक्त के वनकट ह।ै बच्चन का कवि-रूप सबस े विख्यात ह ै

    उन्होंने कहानी, नाटक, डायरी आदद के साथ बेहतरीन आत्मकथा भी वलखी ह।ै

    इनकी रचनाए ँईमानदार आत्मस्िीकृवत और प्राजंल शैली के कारण आज भी

    पठनीय हैं।

  • सोमिार, 19 निंबर, 2007 को 09:22 GMT तक के समाचार

    हालािादी कवि

    बच्चन व्यवक्तिादी गीत कविता या हालािादी काव्य के अग्रणी कवि थ.े

    उमर खयै्याम की रूबाइयों से प्ररेरत 1935 में छपी उनकी मधशुाला न े बच्चन को खूब

    प्रवसवद्ध ददलाई. आज भी मधुशाला पाठकों के बीच काफी लोकवप्रय ह.ै

    अंग्रेजी सवहत कई भारतीय भाषाओं में इस काव्य का अनुिाद हुआ.

    इसके अवतररक्त मधुबाला, मधुकलश, वनशा वनमतं्रण, खादद के फूल, सूत की माला, वमलन

    यावमनी, बुद्ध और नाच घर, चार खेम ेचौंसठ खूटें, दो चट्टानें जसैी काव्य की रचना बच्चन ने

    की ह.ै

    1966 में ि ेराज्य सभा के सदस्य मनोनीत हुए.

    'दो चट्टानें' के वलए 1968 में बच्चन को सावहत्य अकादमी पुरस्कार वमला. सावहत्य में

    योगदान के वलए प्रवतवष्ठत सरस्िती सम्मान, उत्तर प्रदशे सरकार का यश भारती सम्मान,

    सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी िे निाजे गए.

    बच्चन को 1976 में पद्म भूषण स ेसम्मावनत दकया गया.

    http://www.bbc.co.uk/cgi-bin/worldservice/ws_mailto.pl?GO=1&site=hindi&enc=utf-8http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2007/11/printable/071118_bachchanspl_profile.shtml

  • ‘ ददन जल्दी जल्दी ढलता ह ै ’ एक प्रेम-गीत ह।ै

    इसमें प्रेम की व्याकुलता का िणवन हुआ ह।ै अपने

    वप्रयजनों स े वमलन े की चाह में ही पवथक के पािँ

    तजे-तेज चलन े लगत े हैं। पवक्षयों के पंखों में

    फड़फड़ाहट भर आती ह।ै परंत ु कवि के जीिन में

    कोई वप्रय नहीं ह ैजो उसकी प्रतीक्षा करे। इसवलए

    उसके कदम वशवथल हैं। जीिन में गवत का सचंार

    तो प्रेम के कारण ही हुआ करता ह।ै

    विषय प्रिेश

  • प्रवतपादय-वनशा-वनमतं्रण से उद्धृत इस गीत में कवि प्रकृवत की दवैनक

    पररितवनशीलता के संदभव में प्राणी-िगव के धड़कत े हृदय को सुनन े की

    काव्यात्मक कोवशश व्यक्त करता ह।ै दकसी वप्रय आलंबन या विषय से भािी

    साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गवत में चंचल तजेी भर

    सकता ह-ैअन्यथा हम वशवथलता और दफर जड़ता को प्राप्त होन ेके अवभवशप्त

    हो जात ेहैं। यह गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गजुरते जान ेके एहसास

    में लक्ष्य-प्रावप्त के वलए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी वलए हुए ह।ै

    सार-कवि कहता ह ै दक साझँ वघरत ेही पवथक लक्ष्य की ओर तजेी से कदम

    बढान े लगता ह।ै उस े रास्त े में रात होन े का भय होता ह।ै जीिन-पथ पर

    चलत ेहुए व्यवक्त जब अपन ेलक्ष्य के वनकट होता ह ैतो उसकी उत्सुकता और

    बढ जाती ह।ै पक्षी भी बच्चों की हचंता करके तेजी से पंख फड़फड़ाने लगते हैं।

    अपनी संतान से वमलन ेकी चाह में हर प्राणी आतुर हो जाता ह।ै आशा व्यवक्त

    के जीिन में नई चेतना भर दतेी ह।ै वजनके जीिन में कोई आशा नहीं होती,

    िे वशवथल हो जात ेहैं। उनका जीिन नीरस हो जाता ह।ै उनके भीतर उत्साह

    समाप्त हो जाता ह।ै अत: रात जीिन में वनराशा नहीं, अवपत ु आशा का

    संचार भी करती ह।ै

  • एक गीत – दिन जल्िी-जल्िी ढलता है

    दिन जल्िी-जल्िी ढलता ह!ै

    हो जाए न पथ में रात कहीं,

    मंदजल भी तो ह ैिरू नहीं-

    यह सोच थक7 दिन का पथी भी जल्िी-जल्िी चलता हैं!

    दिन जल्िी-जल्िी ढोलता हैं!

    कवि जीिन की व्याख्या करता ह।ै िह कहता ह ैवक शाम होते दखेकर यात्री तेजी से चलता ह ैवक कहीं रास्ते में रात न हो जाए।

    उसकी मंवजल समीप ही होती ह ैइस कारण िह थकान होने के बािजदू भी जल्दी-जल्दी चलता ह।ै लक्ष्य-प्रावि के वलए उसे वदन

    जल्दी ढलता प्रतीत होता ह।ै रात होने पर पवथक को अपनी यात्रा बीच में ही समाि करनी पडेगी, इसवलए थवकत शरीर में भी

    उसका उल्लवसत, तरंवगत और आशाववित मन उसके पैरों की गवत कम नहीं होने दतेा।

    दिशेष-

    कवि ने जीिन की क्षणभंगरुता ि प्रेम की व्यग्रता को व्यक्त वकया ह।ै

    ‘जल्दी-जल्दी’ में पनुरुवक्तप्रकाश अलंकार ह।ै

    भाषा सरल, सहज और भािानकूुल ह,ै वजसमें खडी बोली का प्रयोग ह।ै

    जीिन को वबंब के रूप में व्यक्त वकया ह।ै

    वियोग श्रंगार रस की अनभुवूत ह।ै

  • बच्च ेप्रत्याशा में होंग,े

    नीडों से झााँक रह ेहोंगे-

    यह ध्यान परों में दचदडयों के भरता दकतनी चचंलता ह ै!

    दिन जल्िी-जल्िी ढलता ह ै!

    कवि प्रकर वत के माध्यम से उदाहरण दतेा ह ैवक वचवडया भी वदन ढलने पर चचंल हो उठती हैं। िे शीघ्रावतशीघ्र

    अपने घोंसलों में पह ुँचना चाहती हैं। उवहें ध्यान आता ह ैवक उनके बच्च ेभोजन आवद की आशा में घोंसलों

    से बाहर झाुँक रह े होंग।े यह ध्यान आत ेही उनके पखंों में तेजी आ जाती ह ैऔर िे जल्दी-जल्दी अपन े

    घोंसलों में पह ुँच जाना चाहती हैं।

    दिशेष-

    उक्त काव्याशं में कवि कह रहा ह ैवक िात्सल्य भाि की व्यग्रता सभी प्रावणयों में पाई जाती ह।ै

    पवक्षयों के बच्चों द्वारा घोंसलों से झाुँका जाना गवत एिं दृश्य वबंब उपवस्थत करता ह।ै

    तत्सम शब्दािली की प्रमखुता ह।ै

    ‘जल्दी-जल्दी’ में पनुरुवक्त प्रकाश अलंकार ह।ै

    सरल, सहज और भािानकूुल खडी बोली में साथथक अवभव्यवक्त ह।ै

  • मझुसे दमलने को कौन दिकल?

    मैं होऊाँ दकसके दहत चचंला?

    यह प्रश्न दशदथल करता पि को, भरता उर में दिहिलता हैं!

    दिन जल्िी-जल्िी ढलता ह!ै

    कवि कहता ह ैवक इस संसार में िह अकेला ह।ै इस कारण उसस ेवमलने के वलए कोई व्याकुल नहीं होता,

    उसकी उत्कंठा से प्रतीक्षा नहीं करता, िह भला वकसके वलए भागकर घर जाए। कवि के मन में प्रेम-तरंग

    जगने का कोई कारण नहीं ह।ै कवि के मन में यह प्रश्न आन ेपर उसके परै वशवथल हो जात ेहैं। उसके हृदय में

    यह व्याकुलता भर जाती ह ै वक वदन ढलत े ही रात हो जाएगी। रात में एकाकीपन और उसकी वप्रया की

    वियोग-िेदना उस ेअशातं कर दगेी। इससे उसका हृदय पीडा से बेचैन हो उठता ह।ै

    दिशेष-

    एकाकी जीिन वबतान ेिाल ेव्यवक्त की मनोदशा का िास्तविक वचत्रण वकया गया ह।ै

    सरल, सहज और भािानकूुल खडी बोली का प्रयोग ह।ै

    ‘मझुसे वमलने’ में अनपु्रास अलंकार तथा ‘मैं होऊुँ वकसके वहत चचंल?’ में प्रश्नालंकार ह।ै

    तत्सम-प्रधान शब्दािली ह ैवजसमें अवभव्यवक्त की सरलता ह।ै

  • करठन शब्दों के अथव :-

    प्रत्याशा – आशा

    नीड़ – घोंसला

    चंचलता – तीव्रता, तेजी

    विकल – व्याकुल

    वहत – के िास्त े

    वशवथल – ढीला

    उर – हृदय

    विह्िलता – बेचैनी, भाि-आतुरता

  • कविता की पुनरािवृत्त

    हो न जाए पथ में रात कहीं,

    मंवजल भी तो ह ैदरू नहीं-

    यह सोच थका ददन का पंथी भी

    जल्दी जल्दी चलता ह ै!

    ददन जल्दी जल्दी ढलता ह।ै

  • कवि कहता ह ैदक ददन-भर चलकर अपनी मंवजल पर पहुचँने

    िाला यात्री दखेता ह ैदक अब मवंजल पास आन ेिाली ह।ै िह

    अपन ेवप्रय के पास पहुचँन े ही िाला ह।ै उस ेडर लगता ह ैदक

    कहीं चलत-ेचलत े रास्त े में रात न हो जाए। इसवलए िह

    वप्रय-वमलन की कामना स े जल्दी-जल्दी कदम रखता ह।ै

    वप्रय-वमलन की आतुरता के अकारण उसे प्रतीत होता ह ैदक

    ददन जल्दी-जल्दी ढल रहा ह।ै

  • बच्चे प्रत्याशा में होंगे,

    नीड़ों स ेझाँक रह ेहोंगे-

    यह ध्यान परों में वचवड़यों के भरता

    दकतनी चंचलता ह ै!

    ददन जल्दी जल्दी ढलता ह।ै

  • कवि कहता ह ैदक एक वचवड़या जब शाम को अपन ेघोंसले

    की ओर िापस आ रही होती ह ैतो उसके मन में यह ख़्याल

    आता ह ैदक उसके बच्च ेउसकी राह दखे रह ेहोंगे, िे घोंसल े

    में बैठे बाहर की ओर झाँक रह े होंगे; उन्हें मेरी प्रतीक्षा

    होगी। जैस ेही वचवड़या को यह हचंता सताती ह,ै उसके पंखों

    की गवत बहुत तेज हो जाती ह।ै िह तेजी स ेघोंसल ेकी ओर

    बढती ह।ै तब उस े यों लगता ह ै मानो ददन बहुत तेजी स े

    ढलन ेलगा हो। िह प्रेम-वमलन के वलए व्यग्र हो जाती ह।ै

  • मुझस ेवमलने को कौन विकल ?

    मैं होऊँ दकसके वहत चंचल ?

    यह प्रश्न वशवथल करता पद को,

    भरता उर में विह्िलता ह ै!

    ददन-ददन जल्दी जल्दी ढलता ह ै!

  • कवि कहता ह ै- इस दवुनया में कोई मेरा अपना नहीं

    ह ै जो मझुस े वमलने के वलए व्याकुल हो। दफर मेरा

    वचत्त क्यों व्याकुल हो, दकसी के वलए क्यों चंचल हो

    ? मेरे मन में दकसी के प्रवत क्यों प्रेम-तरंग जग े? ये

    प्रश्न मेरे कदमों को वशवथल कर दते ेहैं। प्रेम के अभाि

    की बात सोचकर मैं ढीला पड़ जाता ह।ँ मेरे मन में

    वनराशा और उदासी की भािना उमड़ने लगती ह।ै

    यह प्रेम ही ह ै वजसकी तरंग में खोकर ददन जल्दी-

    जल्दी बीत जाता ह,ै िरना समय काटे नहीं कटता।

    धन्यिाद