गुुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत...

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NON PROFIT PUBLICATION . गुरव काााल ारा तुत मासिक ई-पिका फरवरी- 2012 Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com

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  • NON PROFIT PUBLICATION .

    गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत मासिक ई-पत्रिका फरवरी- 2012 Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com

    http://gurutvajyotish.blogspot.com/

  • FREE E CIRCULAR

    गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका फरवरी 2012 िपंादक सिंतन जोशी

    िपंका

    गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग गुरुत्व कार्ाालर् 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA

    फोन 91+9338213418, 91+9238328785,

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  • अनुक्रम मडि शत्रि त्रवशेष

    मंि क्र्ा हं? 6 मडि िंस्कार िाधना का आवश्र्क अगं हं? 19 मडि सित्रद्ध का प्रभाव 8 जप माला का महत्व 21 बीि वषा की िाधना का मोल दो पैिे 9 माला िंस्कार 24 मडि एक पूणातः शुद्ध ध्वसन त्रवज्ञान हं। 11 इष्ट कृपा प्रासि हेतु माला िर्न 26 मडि र्ोग का मानव पर प्रभाव 13 त्रवसभडन माला िे कामना पूसता 27 मडि जाप िे लाभ 15 माला मं 108 मनके ही क्र्ं होते हं? 28 मडि सित्रद्ध 16 माला िे िंबंसधत शास्त्रोि मत 30

    अडर् लेख मडि दीक्षा क्र्ा हं? 32 लक्ष्मी प्रासि हेत ुकरं रासश मंि का जप 50 त्रवसभडन देवी की प्रिडनता के सलरे् गार्िी मंि 33 िंत कबीरजी को समली मंि दीक्षा 51 गणेश के िमत्कारी मंि 34 गुरुमंि के प्रभाव िे ईष्ट दशान 52 गणेश के कल्र्ाणकारी मंि 34 गुरु मडि के त्र्ाग िे दररद्रता आती हं 54 मा ँदगुाा के अिकु प्रभावी मंि 37 मंिजाप िे शास्त्रज्ञान 56 लक्ष्मी मंि 41 कृष्ण के त्रवसभडन मंि 57 सशव मंि 42 कृष्ण मंि 58 श्री राम के सिद्धमंि 43 श्री नवकार मंि (नमस्कार महामंि) 59 राम एवं हनुमान मंि 46 त्रवसभडन िमत्कारी जैन मंि 61 नवाणा मंि िे नवग्रह शांसत 47 कासलदाि को गुरु मडि िे प्रासि हुई सित्रद्ध 65 नवाणा मडि िाधना 49

    हमारे उत्पाद मंिसिद्ध स्फफटक श्रीर्ंि 9 मंि सिद्ध दलुाभ िामग्री 35 मंिसिद्ध लक्ष्मी र्ंििूसि 67 पढा़ई िंबंसधत िमस्र्ा 78 मंि सिद्ध रूद्राक्ष 14 भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी 46 मंि सिद्ध दैवी र्ंि िूसि 67 िवा रोगनाशक र्ंि/ 87 द्वादश महा र्ंि 15 शादी िंबंसधत िमस्र्ा 53 िवा कार्ा सित्रद्ध कवि 68 मंि सिद्ध कवि 89 दस्क्षणावसता शंख 20 पुरुषाकार शसनर्ंि 58 जैन धमाके त्रवसशष्ट र्ंि 69 YANTRA 90 मंि सिद्ध पडना गणेश 27 दगुाा बीिा र्ंि 65 अमोद्य महामतृ्र्ुजंर् कवि 71 GEMS STONE 92 कनकधारा र्ंि 29 नवरत्न जफित श्री र्ंि 66 राशी रत्न एवं उपरत्न 71 घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि 70 मंि सिद्ध िामग्री- 45, 60, 64, 80, 81, 82

    स्थार्ी और अडर् लेख िंपादकीर् 4 दैसनक शुभ एव ंअशुभ िमर् ज्ञान तासलका 83 फरवरी मासिक रासश फल 72 फदन-रात के िौघफिरे् 84 फरवरी 2012 मासिक पंिांग 76 फदन-रात फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक 85 फरवरी 2012 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार 78 ग्रह िलन फरवरी-2012 86 फरवरी 2012 -त्रवशेष र्ोग 83 हमारा उदे्दश्र् 95

  • GURUTVA KARYALAY

    िंपादकीर् त्रप्रर् आस्त्मर्

    बंध/ु बफहन जर् गुरुदेव

    ध्र्ानमूल ंगुरुमूासतः पूजामूलम गुरुर पदम।् मंिमूल ंगुरुरवााक्र्ं मोक्षमूल ंगुरुर कृपा।।

    भावाथा: गुरु की मसूता ध्र्ान का मलू कारण है, गुरु के िरण पजूा का मलू कारण हं, वाणी जगत के िमस्त मंिं का और गुरु की कृपा मोक्ष प्रासि का मलू कारण हं। ज्र्ोसतष, र्डि-मडि-तडि इत्र्ाफद शास्त्रोि एवं आध्र्ास्त्मक त्रवषर् आजके आधुसनक रु्ग मं िंदेहास्पद त्रवषर् बन गर्ा हं.....?, आजके रु्ग मं ही क्र्ं र्ह तो िफदर्ं िे र्ा िैकिो वषा पुरानी परंपराओं का पुनरावतान माि हं?, क्र्ोफक हजारो वषा पूवा भी ज्र्ोसतष, रं्ि-मंि-तंि को केवल अंधत्रवश्वाश मानने वालो की कोई कमी नही थी, उिी प्रकार आजके वैज्ञासनक रु्ग मं भी इन त्रवषर्ं को अंधत्रवश्वाश मानने वालो की कोई कमी नहीं हं। जब फकिी व्र्त्रि को फकिी त्रवषर् वस्तु के बारे मं पूणा जानकारी नहीं होती तो व्र्त्रि वह कार्ा आध ेअधूरे मन िे करता हं और आधे-अधूरे मन िे फकरे् कार्ा मं िफलता नहीं समल िकती हं। मंि-तंि-रं्ि के त्रवषर् मं भी कुछ एिा ही हं, आधी-अधुरी जानकारी िे फकए गए मडि जप िे सित्रद्ध समलना नगण्र् हं। अत्रवश्वािु एवं अज्ञानी व्र्त्रिर्ं के त्रवषर् मं भी कुछ एिा ही होता हं। स्जि कारण उडहं िफलता समलती हं। फकिी भी मंि के बारे मं भी पूणा जानकारी होना आवश्र्क है, मंि केवल शब्द र्ा ध्वसन नहीं है, मंि जप मं िमर्, स्थान, फदशा, माला का भी त्रवसशष्ट स्थान हं। मंि-जप का शारीररक और मानसिक प्रभाव िाधक पर असत तीव्र गसत िे होता हं। लेफकन तका शास्त्री एवं आधुसनक व्र्त्रिर्ं का मानना हं, की भारतीर् िंस्कृसत मं पले-बढे व्र्त्रि को बिपन िे ही प्रार्ः िभी लोग एिा िुनत े आ रहे हं फक हमारे भारत देशमं, हमारे पौरास्णक शास्त्रं मं अनेकं िमत्काररक शत्रिर्ं के रहस्र्मर् ज्ञान िे भरे पिे हं। उडहं र्ह बतार्ा जाता हं की हमारे गं्रथो एवं शास्त्रं मं त्रवसभडन िमत्काररक रं्ि-मंि-तंि की अद भुत शत्रिर्ं का वणान है। उन गं्रथो मं त्रवत्रवध प्रकार की सित्रद्धर्ं को प्राि करन ेके रहस्र् छुपे हं। स्जिके प्रर्ोग ि ेव्र्त्रि जैिी िाहे वैिी सित्रद्ध र्ा शत्रि प्राि कर कर िकता हं और िुटफकर्ं मं अपनी मनोकामना की पूसता एवं

  • ग्रहं की शांसत कर िकता हं और उनकी िाल को बदल िकत ेहं। तका शास्त्री एवं इि त्रवषर् पर श्रद्धा नहीं रखने वाले लोगं का मानना हं, की र्फद इतना िब कुछ हमारे पाि हं?, इतना ज्ञान हमारे पाि हं?, तब हमारे देश को त्रवश्व का िबिे असधक त्रवकसित एवं िमदृ्ध देश होना िाफहरे्? िबिे असधक शांसत त्रप्रर्देश होना िाफहरे्?, िबिे असधक उपलस्ब्धर्ा केवल हमारे ही देश मं होनी िाफहरे्? क्र्ंफक हमारे पाि िभी प्रकार की शत्रिर्ाँ है? जो अडर् फकिी िंिकृसत र्ा देश के पाि नहीं हं? अत्रवश्वािु व्र्त्रि की मानसिकता ही कुछ इि प्रकार िे सनसमात हो जाती हं की वह भारतीर् ज्र्ोसतष, र्डि-मडि-तडि इत्र्ाफद शास्त्रोि एवं आध्र्ास्त्मक त्रवषर् को हेर् दृत्रष्ट िे देखता हं। आज के तथाकसथत िुसशस्क्षत और वैज्ञासनक द्रत्रष्ट रखने वाल ेव्र्त्रिर्ं का कथन हं- र्डि-मडि और तडि र्ह िब अडधत्रवश्वार की बात ंहं। इि तरह इन सिजं पर त्रवश्वाि करके त्रवसभडन षड्रं्िं िे देश का पतन होता हं। र्डि-मडि-तडि इत्र्ाफद आध्र्ास्त्मक त्रवषर् पर आस्था रखने वाले लोग आलिी, मुफ्तखोर, दररद्र हो जात ेहं। र्फद र्डि-मडि-तडि इत्र्ाफद शास्त्रोत वस्णात बातं मं िच्िाई होती तो, देश का इतना बुरा हाल नहीं होता!, पुरातन काल मं र्ह िब ब्राह्मण-पंफितं ने अपनी आजीत्रवका के सलए व्र्वस्था कर रखी थी। लेफकन र्ह वास्तत्रवकता नहीं हं। कुछ िंद लोगो पुरातन काल मं एवं वतामान िमर् मं एिा कार्ा कर रहे हो र्ह िंभव हं। लेफकन िभी त्रवद्वान एवं शास्त्रं के जानकार केवल अपनी आजीत्रवका की व्र्वस्था के सलए िमाज मं मडि-तडि-र्डि का जाल फेला रखा हं, एिा कतई िंभव नहीं हं, ना हुवा हं र्ा न होगा। क्र्ोफक इि िभी त्रवषर्ो मं उसित मागादशान एवं ज्ञान की प्रासि िे सनस्ित लाभ की प्रासि होती हं। इि मं जराभी िंदेह नहीं हं। क्र्ोफक फहंद ूिंस्कृसत का मूल धमा शास्त्र हं। हमारे िभी गं्रथ एवं धमाशास्त्रं की रिना प्रामास्णक तथ्र् एवं मानव जीवन के मूल सिद्धांतो के आधार पर हुई हं। इि सलए इि मं शंका स्पद कुछ भी नहीं हं। इि फदशा मं मडि िे िंबंसधत आपके ज्ञान की वतृ्रद्ध एवं जानकारी के उदे्दश्र् िे मडि िे िंबंसधत िामाडर् इि त्रवशेषांक को प्रस्तुत करने का प्रर्ाि फकर्ा गर्ा हं। नोट: र्ह अकं मं दीगई मडि िे िंबंसधत िारी जानकारी र्ा गहृस्थ व्र्त्रि को दैसनक जीवन मं उपर्ोगी हो इि उदे्दश्र् िे दी गई हं। र्ंि मंि एवं तंि मं रुसि रखने वाले पाठक बंध/ुबहन एव ंिाधको िे त्रवशेष अनुरोध हं की फकिी भी मडि का अनुष्ठान र्ा जप प्रारंभ करने िे पूवा िुर्ोगर् गुरु र्ा जानकार िे िलाह अवश्र् करले। क्र्ोफक त्रवद्वान गुरुजनो एवं िाधको के सनजी अनुभव त्रवसभडन अनुष्ठा मं भेद होने पर पूजन त्रवसध एव ंजप त्रवसध मं सभडनता िंभव हं।

    सिंतन जोशी .

  • 6 फरवरी 2012

    मंि क्र्ा हं?

    सितंन जोशी

    मंि की परीभाषा: मंि उि ध्वसन को कहते है जो अक्षर(शब्द) एवं

    अक्षरं (शब्दं) के िमूह िे बनता है। िंपूणा ब्रह्माण्ि मं दो प्रकार फक ऊजाा िे व्र्ाि है, स्जिका हम अनुभव कर िकते है, वह ध्वसन उजाा एवं प्रकाश उजाा है। एव ंब्रह्माण्ि मं कुछ एिी ऊजाा भी व्र्ाि है स्जिे ना हम देख िकते है नाही िुन िकते है नाहीं अनुभव कर िकते है।

    आध्र्ास्त्मक शत्रि इनमं िे कोई भी एक प्रकार की ऊजाा दिूरी उजाा के िहर्ोग के त्रबना िफक्रर् नही ंहोती। मंि सिर्ा ध्वसनर्ाँ नहीं हं स्जडहं हम कानं िे िुनते िकते हं, ध्वसनर्ा ँतो माि मंिं का लौफकक स्वरुप भर हं स्जिे हम िुन िकते हं।

    ध्र्ान की उच्ितम अवस्था मं व्र्त्रि का आध्र्ास्त्मक व्र्त्रित्व पूरी तरह िे ब्रह्माण्ि की अलौफकक शत्रिओ के िाथ मे एकाकार हो जाता है और त्रवसभडन प्रकारी की शत्रिर्ा ंप्राि होने लगती हं।

    प्रािीन ऋत्रषर्ं ने इिे शब्द-ब्रह्म की िंज्ञा दी वह शब्द जो िाक्षात ् ईश्वर हं! उिी िवाज्ञानी शब्द-ब्रह्म िे एकाकार होकर व्र्त्रि को मनिाहा ज्ञान प्राि कर ने मे िमथा हो िकता हं। मंि का अथा ही हैः

    मननात ्िार्ते इसत मंिः। अथाात: स्जिका मनन करने िे जो िाण करे, रक्षा करे उिे मंि कहते हं।

    मडि के बारे मं गोस्वामी तुलिीदाि जी का कथन हं, फक मडि के प्रभाव िे िाधन ब्रह्मा, त्रवष्णु एवं सशवजी त्रिदेवं को वश मं करने की शत्रि होती हं।

    मडिो मननात ्अथाातः मडत वणाणं का िमूह हं स्जिका बार-बार मनन फकर्ा जार् और इस्च्छत कार्ा की पूसता होती हं। मडि के त्रवषर् मं शास्त्रोि मत हं-

    मनन ंत्रवश्व त्रवज्ञान,ं िाण िंिार बडधनात।् र्िः करोसत िंसित्रद्धः मडि इत्र्चु्र्ते तनः॥

    (त्रपंगलार्त)

    अथाात: मडि जप िमस्त बडधनं को दरू कर िाण देने वाला हं।

    स्वर् ंसशवजी, माता पावाती जी कहते हं। मनन-िाणनाच्िवै मद रुपस्र्ा ब बोधनात।् मडि इत्र्चु्र्ते िम्र्ग:् मदसधष्ठानतः त्रप्ररे्॥

    (रुद्रर्ामल) अथाात: मनन व िाण के द्वारा जो मेरे स्वरुप का ज्ञान कराने मं िमथा हं, स्जिमे स्स्थरता एवं शत्रि हं वहीं मडि हं।

    लसलतािहस्त्रनाम मं मडि की पररभाषा स्पष्ट करते हुए भाष्र्कार ने बतार्ा हं, फक धमा र्ुि अनुिडशान कर जो आत्मा मं स्फुरण पैदा करने मं िमथा हं, तथा स्जिमं िंिार को ऊंिा उठाने की शत्रि हो, वहीं मडि हं।

    राम िररत मानि के अनशुार: कसलर्ुग केवल नाम आधारा, जपत नर उतरे सिंध ु

    पारा।

  • 7 फरवरी 2012

    इि कलर्ुग मं भगवान का नाम ही एक माि आधार हं। जो लोग भगवान के नाम का जप करते हं, वे इि िंिार िागर िे तर जाते हं।

    मन ुस्मसृत के अनशुार: मनु स्मसृत मं उल्लेख हं के "जप फकिी भी

    िफक्रर् पूजा िे दि गुना श्रषे्ठ हं, मन ही मन फकर्ा गर्ा मडिो का जप शत गनुा(िौ गुना) असधक फलदार्क होता हं, मानसिक जप इििे भी िहस्त्र गुना फलदार्क होता हं।"

    जप क्र्ा हं? ज+प= जप ज = जडम का नाश, प = पापं का नाश।

    जप के त्रवषर् मं त्रवद्वानो का कथ हं- जो जडमं जडम के पापो का नाश करता हं उिे जप

    कहते हं। उिे जप कहते हं, जो पापं का नाश करके जडम-

    मरण करके िक्कर िे छुिा दे। जप परमात्मा के िाथ िीधा िंबंध जोिने की एक

    कला का नाम हं। फकिी मंि का जप करने िे मनुष्र् के अनेक प्रकार

    के पाप और ताप का नाश होने लगता हं। उिका हृदर् शुद्ध होने लगता हं।

    सनरंतर मंि जप करते-करते एक फदन िाधक के हृदर् मं हृदतेश्वर का प्राकटर् भी हो जाता है |

    इिीसलए कहा जाता हैः

    जपात ्सित्रद्धः जपात ्सित्रद्धना िंशर्ः

    असधकम ्जपं असधकं फलम।्

    तुलिीदाि जी ने मंि जप की मफहमा मं कहा हं।

    मंिजाप मम दृढ़ त्रबस्वािा। पंिम भजन िो वेद प्रकािा।।

    (श्रीरामिररत)

    श्रीरामकृष्ण परमहंि कहते हं: एकांत मं भगवडनाम जप करना र्ह िारे दोषं को सनकालने तथा गुणं का आवाहन करने का पत्रवि कार्ा है|

    स्वामी सशवानंद कहते हं: इि िंिारिागर को पार करने के सलए ईश्वर का नाम िुरस्क्षत नौका के िमान है | अहंभाव को नष्ट करने के सलए ईश्वर का नाम अिकू अस्त्र है |

    िबिे बिी सित्रद्ध हृदर् की शतु्रद्ध हं। (आिार्ा मनु)

    मंिजप अिीम मानवता के िाथ हृदर् को एकाकार कर देता हं॥ (भगवान बुद्ध)

    मंि फदखन ेमं बहुत छोटा होता है लेफकन उिका प्रभाव बहुत बिा होता है | हमारे पवूाज ॠत्रष-मसुनर्ं ने मंि के बल िे ही तमाम ॠत्रद्धर्ाँ-सित्रद्धर्ाँ व इतनी बिी सिरस्थार्ी ख्र्ासत प्राि की है|

  • 8 फरवरी 2012

    मडि सित्रद्ध का प्रभाव त्रवजर् ठाकुर

    फकिी मडि को सिद्ध करना कोई िरल कार्ा नहीं हं। मडि-र्डि-तडि को सिद्ध करने के सलए र्ोग्र् गुरु के मागादशान की आवश्र्िा होती हं। त्रबना गुरु के मागादशान और आसशवााद के कोइ भी व्र्त्रि अपनी इच्छा िे कोइ भी मडि सिद्ध करने मं िफल नही ं हो पाता। उिका मडि को सिद्ध करने का प्रर्ाि असधकतर अिफल होता हं। इि कारण लोगो का त्रवश्वार मडि-र्डि-तडि जैिे त्रवषर्ो िे कम होने लगता हं और इन त्रवषर्ो की आलोिना होने लगती हं। मडिं पर पूणा श्रद्धा-आस्था एवं त्रवश्वाि होना असनवार्ा हं, इिके िाथ ही र्ोग्र् गुरु का मागादशन भी त्रवशेष रुप िे आवश्र्क होता हं। क्र्ोफक शास्त्रं मं भी वस्णात हं गुरु त्रबना ज्ञान न होई।

    जानकारो का र्हां तक कथन हं की त्रबना गुरु के ग्रंथो एवं पुस्तको िे प्राि फकए गए मडिं का जाप भी असधक फलदार्ी नही ंहोते। लेफकन कई त्रवद्वानो एवं हमारे स्वर्ं के अनुभवं िे हमने र्ह ज्ञात फकर्ा हं की ग्रंथो एवं पुस्तको िे प्राि मडिं का भी र्फद त्रवसधवत उच्िारण फकर्ा जाए तो सनस्ित ही प्रभावशाली होते हं। क्र्ोफक मडि अपने आपमं एक रहस्र्मर् त्रवज्ञान हं जो अपने आपमं पूणा रुप िे िभी प्रकार की सित्रद्धर्ां सलए होते हं।

    कुछ जानकार त्रवद्वानो के मतानुशार मडि कोई भी हो, ॐ कार हो, नमः सशवार् हो, राम नाम हो, नमो नारार्ण हो, र्ा अडर् धमो के मडि हो र्ा मडि आपने स्वर्ं सनसमात फकर्ा हं, उि मडि का ितत मनन एव ंसितंन िाधक की मानसिक एकाग्रता को बढाता हं। मडि के जप िे िाधक की त्रबखरी हुई उजाा इकठ्ठी होने लगती हं। क्र्ोफक मडि के सनरडतर जप िे मनुष्र् के सछपी हुई उजाा अनावश्र्क त्रविारं िे हटकर मडि मं बहने लगते हं। मडि के असधक फदनो तक जाप एवं अभ्र्ाि िे िाधक के सित्त मं स्वतः ही मडि का जप

    होने लगता हं। क्र्ोफक त्रविारं की धारा मं बहते िमर् व्र्त्रि की उजाा त्रवसभडन फदशा एव ं त्रवषर्ं मं बह रही होती हं। स्जि कारण उिकी उजाा इकट्ठी नहीं हो पाती और व्र्था मं बह रही होती हं। जब तक व्र्त्रि के त्रविार इकठ्ठे नहीं हो पाते, त्रवसभडन फदशाओं मं बंटे होते हं, तब उिकी उजाा त्रवसभडन त्रविारं की धारा मं त्रवभास्जत हो रही होती हं। जब मडिं का सनरंतर जप होना प्रारंभ होता हं, तब िाधक की त्रबखरी हुई उजाा एक ही फदशा मं प्रवाफहत होने लगती हं।

    वैज्ञासनक द्रत्रष्ट कोण िे िमझे तो स्जि प्रकार िूर्ा की त्रबखरी हुई फकरणं को कांि के लंि िे इकट्ठी करने पर उिमं िे आग उत्पडन की जा िकती हं। िूर्ा की फकरणं मं आग और तपन तो सछपी होती हं, लेफकन िूर्ा की फकरण त्रबखरी हुई होने िे िहज रुप िे उििे आग उत्पडन नहीं हो पाती, जबकी िूर्ा की उन त्रबखरी हुई फकरणं को को एकत्रित करने पर ज्र्ादा गमी होने िे िरलता िे आग उत्पडन हो जाती हं।

    उिी प्रकार मनुष्र् के सभतर भी त्रविारं की बहती धारा को एकत्रित करने िे आपकी उजाा िही फदशा मं बह ने लगती हं। ितत मडि जाप करने िे आपकी उजाा मं सनरंतर वतृ्रद्ध होने लगेगी। िमर् के िाथ िाथ आिर्ाजनक घटनाएं घटने लगेगी।

    आपके मुख िे सनकली हुई बाते िि होने लगेगी। फकिी को कुछ अच्छा-बुरा बोल फदर्ा तो उिके िाथ वहीं घटनाए ं होने लगेगी। क्र्ोफकं आपकी शत्रिर्ां र्ा उजाा इतनी असधक मािा मं इकट्ठी हो गई होती हं फक आपके मुख िे सनकने वाले शब्द भी िाथाक होने लगत ेहं। मुख िे सनकले हुए शब्द ही क्र्ं आपके अतंः करण मं उत्पडन होने वाले त्रविार भी आपके मुख िे सनकले शब्द िे कम नहीं होते, इि सलए आपके सभतर उठने वाले त्रविार भी कभी-कभी ित्र् होने लगते हं।

  • 9 फरवरी 2012

    मंि सिद्ध स्फफटक श्री र्ंि "श्री र्ंि" िबिे महत्वपूणा एवं शत्रिशाली र्ंि है। "श्री र्ंि" को र्ंि राज कहा जाता है क्र्ोफक र्ह अत्र्डत शुभ र्लदर्ी र्ंि है। जो न केवल दिूरे र्डिो िे असधक िे असधक लाभ देने मे िमथा है एव ंिंिार के हर व्र्त्रि के सलए फार्देमंद िात्रबत होता है। पूणा प्राण-प्रसतत्रष्ठत एवं पूणा ितैडर् र्ुि "श्री र्ंि" स्जि व्र्त्रि के घर मे होता है उिके सलरे् "श्री र्ंि" अत्र्डत र्लदार्ी सिद्ध होता है उिके दशान माि िे अन-सगनत लाभ एवं िुख की प्रासि होसत है। "श्री र्ंि" मे िमाई अफद्रसतर् एवं अद्रश्र् शत्रि मनुष्र् की िमस्त शुभ इच्छाओं को पूरा करने मे िमथा होसत है। स्जस्िे उिका जीवन िे हताशा और सनराशा दरू होकर वह मनुष्र् अिर्लता िे िर्लता फक और सनरडतर गसत करने लगता है एवं उिे जीवन मे िमस्त भौसतक िुखो फक प्रासि होसत है। "श्री र्ंि" मनुष्र् जीवन मं उत्पडन होने वाली िमस्र्ा-बाधा एव ंनकारात्मक उजाा को दरू कर िकारत्मक उजाा का सनमााण करने मे िमथा है। "श्री र्ंि" की स्थापन िे घर र्ा व्र्ापार के स्थान पर स्थात्रपत करने िे वास्तु दोष र् वास्तु िे िम्बस्डधत परेशासन मे डर्ुनता आसत है व िुख-िमतृ्रद्ध, शांसत एव ंऐश्वर्ा फक प्रसि होती है। गुरुत्व कार्ाालर् मे "श्री र्ंि" 12 ग्राम िे 2250 फकलोग्राम तक फक िाइज मे उप्लब्ध है .

    मलू्र्:- प्रसत ग्राम Rs. 8.20 िे Rs.28.00 GURUTVA KARYALAY,

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    बीि वषा की िाधना का मोल दो पैिे

    स्वस्स्तक.ऎन.जोशी स्वामी रामकृष्ण परमहंि के पाि फकिी व्र्त्रि ने आकर कहा की लोग कहते हं, आप परमहंि हो, लेफकन

    आपके पाि तो ऐिी कोई सित्रद्ध फदखाई नही ंपिती। मेरे गुरुजी हं, उनके पाि ऎिी सित्रद्ध हं की वे पानी पर िल िकते हं। स्वामी रामकृष्ण ने प्रश्न फकर्ा तुम्हारे गुरु ने फकतने वषं मं र्ह कला िीखी होगी? उि व्र्त्रि ने कहा, कम िे कम बीि वषा उनको मडि िाधना मं लगे। स्वामी रामकृष्ण कहने लगे, मं दो पैिा देकर नदी पार हो जाता हंू। रामकृष्ण ने कहने लगे की बिी मूढ़ता हं, की जो काम दो पैिे मं होता हो, उिे बीि वषा का जीवन नष्ट करके प्राि फकर्ा! इि कला िे आस्खर पानी ही तो पार होते हं, तो पानी पार होने मं ऐिी बात क्र्ा हं? नाव िे पार होना हो तो दो पैिे लेती हं, न हो तो आदमी तैर कर पार हो िकता हं। लेफकन नदी पर िलकर जो आदमी पार होता हं, वह फकि प्रकार िे बीि वषा मेहनत कर िकता हं। इि सलए कहने का मूल तात्पर्ा र्ह हं की, स्जि कार्ा को करने मं केवल िदं धन रासश र्ा श्रम खिा होता हं, तो उिके केसलए फकिी मडि-र्डि-तडि को सिद्ध करने का व्र्था मं िमर् और श्रम नष्ट करना कोरी मूढ़ता होगी।

  • 10 फरवरी 2012

    पत्रिका िदस्र्ता (Magazine Subscription)

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  • 11 फरवरी 2012

    बाबा-तांत्रिक इत्र्ाफद छद्म वेश धारण करने वाले भरपूर लाभ उठाते हं और िंद समनटो एवं िंद घंटो मं व्र्त्रि की िारी िमस्र्ाएं दरू करने के नाम पर मोटी धन रासश ले लेते हं। र्ह बिी दभुााग्र् पूणा घटना हं की आज व्र्त्रि ईश्वर को पूजने के बजाए उि ढंगी बाबा-तांत्रिको को पूजने लगे हं...

    मडि एक पूणातः शुद्ध ध्वसन त्रवज्ञान हं। सितंन जोशी

    मडि के त्रवषर् मं वैफदक मत हं फक, मडि धमा-शास्त्रं एवं ग्रंथो िे सल जानेवाली देवी-देवताओं की ऎिी प्राथना, ऎिे शब्द अथवा वाक्र्ा (स्तोि) का स्वरुप हं स्जिि के जप र्ा मनन, र्ज्ञ इत्र्ाफद िे देवी-देवताओ ंिरलता िे प्रिडन करके अपनी कामना पूणा की जा िकती हं। त्रवद्वानो ने मंि के तीन प्रकार बताएं हं- (१) ऋिा: र्ह छंद बद्ध र्ा पद्यात्मक

    होता हं। इिे उच्ि स्वर मं उिाररत फकर्ा जाता हं।

    (२) र्जु: र्ह गद्यात्मक होता हं। इिका मंद स्वर मं उिाररत फकर्ा जाता हं।

    (३) िाम: र्ह पद्यात्मक होता हं। इिे गाकर उिाररत फकर्ा जाता हं।

    ध्र्ान मूल ंगुरोमूासता पूजामूलं गुरोपादम

    मडि मूलं गुरोवााक्र्म मोक्ष मूलं गुरोकृा पा। अथाात: ध्र्ान का मूल गुरु मूसता हं, पूजा का मूल गुरु के िरण हं, मडि का मूल गुरु की वाणी हं और मोक्ष का मूल गुरु की कृपा हं।

    भारतीर् ग्रंथकार एवं शास्त्रकारो ने मडि जप के अनेक रुप माने हं। मडि जप की िामानर् परीभाषा फकिी भी शब्द त्रवशेष का बारंबार उच्िारण करना र्ा मनन करना होता हं। मडि जप की त्रवसधर्ां सभडन-सभडन होती हं। क्र्ोफक शास्त्रकारं ने फकिी भी मडि त्रवशेष को एक दिूरे िे सभडन मनुषर् के इस्च्छत उदे्दश्र् की पूसता, िंबंसधत देवी-देवता, प्रभाव और अडर् पररस्स्थसतर्ं के अनुरुप फकर्ा हं।

    हमारे त्रवद्वान ऋत्रष-मुसनर्ं ने मडिं के िंपूणा प्रभावो का अवलोकन कर उिके पररणामो की त्रवस्ततृ

    जानकारीर्ां ग्रंथो के रुप मं हमं प्रदान की हं, िमर् के िाथ-िाथ इन ग्रंथो एव ं शास्त्रो की रिना मं अडर् त्रवद्वानो की खोज एवं अनुभवं के आधार पर सनरंतर वतृ्रद्ध होती रही हं।

    पुरातन काल मं फकिी शास्त्र र्ा ग्रंथ का ज्ञान प्राि करने हेतु र्ोग्र् गुरु की खोज करनी पिती थी उनके आश्रम मं गुरुिेवा करनी पिती थी और आश्रम मं कई मफहने-वषा अध्र्र्न करना पिता था लेफकन आजके

    आधसुनक र्ुग मं हमं र्ह ज्ञान पुस्तको एव ं इंटरनेट के माध्र्म िे अल्प धन रासश एव ंअल्प श्रम िे प्राि होने लगा हं।

    इिमं िाहे व्र्त्रि को र्ोग्र् गुरु की प्रासि न हो पाती हो लेफकन धमाशास्त्रं का उसित एवं उपर्ुि ज्ञान अवश्र् प्राि हो िकता हं इिमं जरा भी िंिर् नहीं हं। क्र्ोफक की आज िुर्ोग्र् गुरु समलना कफठन हो गर्ा हं जो व्र्त्रि को जीवन मं अग्रस्त होने का मागा फदखा िके।

    गुरु िे ज्र्ादा गुरु का स्वांग रिाने वाले असधक समल जाते हं, क्र्ोफक की आज व्र्त्रि की िोि इि कदर हो गई हं की उिे त्रबना पररश्रम और मेहनत िे फदन दगुसन रात िौगुसन िफलता, धन, िुख,

    ऎश्वर्ा एवं िमस्त भौसतक िुख िाधन प्राि करना िाहते हं, इि सलए बाबा-तांत्रिक इत्र्ाफद छद्म वेश धारण करने वाले भरपूर लाभ उठाते हं और िदं समनटो एव ंिदं घंटो मं व्र्त्रि की िारी िमस्र्ाएं दरू करने के नाम पर मोटी धन रासश ले लेते हं। र्ह बिी दभुााग्र् पूणा घटना हं की आज व्र्त्रि ईश्वर को पूजने के बजाए उि ढंगी बाबा-तांत्रिको को पूजने लगे हं। क्र्ोफक बाबा-तांत्रिको का दावा िमत्कारी होता हं, जो िदं समनटो एवं

  • 12 फरवरी 2012

    क्र्ा आपके बच्िे कुिंगती के सशकार हं? क्र्ा आपके बच्िे आपका कहना नहीं मान रहे हं? क्र्ा आपके बच्िे घर मं अशांसत पदैा कर रहे हं?

    घर पररवार मं शांसत एव ंबच्िे को कुिंगती िे छुिाने हेतु बच्ि ेके नाम िे गुरुत्व कार्ाालत द्वारा शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान िे मंि सिद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत पूणा ितैडर् र्ुि वशीकरण कवि एव ंएि.एन.फिब्बी बनवाले एवं उिे अपने घर मं स्थात्रपत कर अल्प पूजा, त्रवसध-त्रवधान िे आप त्रवशेष लाभ प्राि कर िकते हं। र्फद आप तो आप मंि सिद्ध वशीकरण कवि एवं एि.एन.फिब्बी बनवाना िाहते हं, तो िंपका इि कर िकते हं।

    GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA),

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    घंटो मं उनकी मनोकामना पूणा करने का दावा करते हं। र्फद एिा हो पाना िंभव होता, तो दसुनर्ा भर के िारे मंफदर, मस्स्जत, गुरुद्वारे, ििा इत्र्ाफद कबके बंध हो गए होते।

    एिा भी नही ंहं की हमारे र्हा ंअनेको िमत्कारी महापुरुष एवं गुरुजन अवतररत ही नहीं हुवे हं। हमारे र्हां इसतहाि गवाह हं, फक हमारे र्हा ं अनेको िंत-महात्मा हो गए हं। जो केवल मनुष्र् माि के कल्र्ाण के सलए त्रबना फकिी स्वाथा र्ा धन लोभ के उडहं प्राि त्रवशेष शत्रिर्ं का प्रर्ोग करते रहे हं और अपने भिो पर सनरंतर कृपा करुणा बरिाते रहे हं।

    मडि जप की पौरास्णक परंपरा प्रार्ः िभी धमा एवं िंस्कृसत मं रही हं। लेफकन फहडद ुधमा-ग्रंथं मं मंिो की मफहमा त्रवशेष रुप िे समलती हं। इि सलए कुछ जानकार त्रवद्वानो का र्ह मत हं की त्रवदेशो मं भी फहडद ूधमा-शास्त्र एवं ग्रंथो का अनुिरण र्ा आिरण िहज रुप िे फकर्ा जाता रहा हं।

    धासमाक माडर्ता के अनुिार धमाग्रंथो मं वस्णात कथा एवं प्रिंग को ित्र् माना जाता हं। उडहं काल्पसनक न मान कर वास्तत्रवक माना जाता हं। क्र्ोफक वौफदक काल के ऋत्रष-मुसन, िेता र्ुग के राम और रावण और

    द्वापर र्ुग के श्रीकृष्ण, कौरव-पांिवो के अस्स्तत्व को कसलर्ुग मं प्रामास्णक मान सलर्ा गर्ा हं। केवल भारते मं ही भारतीर् िंस्कृसत का प्रिार-प्रिार नहीं बलकी त्रवदेशो मं भी भारतीर् िसं्कृसत का प्रिार होने के प्रमाण उप्लब्ध हुए हं।

    श्रीमद भगवद गीता, रामार्ण एवं महाभारत जेिे प्रािीन ग्रडथं मं मडि िाधनाओं का उल्लेख समलता हं, स्जििे र्ह ज्ञात होता हं की पुरातन काल िे ही मडिं की अलौफकक शत्रि िे िाधक को त्रवशेष प्रकार की सित्रद्ध एव ं शत्रिर्ां प्रासि होती थी। त्रवद्वान ऋषी-मुसनर्ं ने अभीष्ट कार्ं के सित्रद्ध के सलए मंिजप के माध्र्म को अत्र्ासधक फलदार्क माना हं। क्र्ोफक मडिं का जप एवं अनुष्ठान िे िाधक को त्रवशेष प्रकार की दैवी शस्क् त प्राि होती थी, स्जिके बल पर िाधक के सलए कोई भी कार्ा अिंभव र्ा अपूणा नहीं होता था। िाधक िरलता िे अपने कार्ो को पूणा कर लेता था। िाधक अपने मनोवांसछत कार्ा उदे्दश्र् की पूसता हेतु र्ोग्र् मागादशान र्ा गुरु की देखरेख मं मडि जप करके अपने उदे्दश्र् मं सनस्ित िफलता प्राि कर लेते थे। स्जिका पररणाम हं की आजके भौसतक एव ंआधसुनकर्ुग मं हमं सभडन-सभडन ज्ञानवधाक शास्त्र एवं ग्रंथ िरलता िे उप्लब्ध हो रहे हं।

  • 13 फरवरी 2012

    मडि र्ोग का मानव पर प्रभाव स्वस्स्तक.ऎन.जोशी

    जप का िामाडर् अथा हं फकिी मडि र्ा शब्दं को िक्रीर् गसत िे ितत मनन करना र्ा सितंन करना होता हं। सनस्ित मडिं का लर् बद्ध रुप िे उच्िारण करना जाप कहा जाता हं।

    श्री मद भगवत ्गीता मं िाक्षात भववान श्रीकृष्ण ने कहा हं की भंट तथा अपाण मं िवाश्रषे्ठ जाप रुप अपाण मं हंू।

    वैफदक मडि के जप िे फकिी को भी फकिी प्रकार की हासन नही ं हो तथा िकती मडिं के ितत जप िे िीधे इष्ट दशान होता हं।

    इि सलए त्रवद्वानो ने मडि जाप को िभी प्रकार की बसल र्ा भेट र्ा अपाण िे िवाश्रषे्ठ माना हं। इि सलए तो जाप की श्रषे्ठता करने हेतु ही भगवान श्रीकृष्ण ने जाप को स्वर्ं के रुप मं ही अपाण माना हं। भारतीर् धमाशास्त्रो एवं ग्रंथं मं मडिं की रहस्र्मर् शत्रिर्ं का त्रवस्ततृ वणा फकर्ा गर्ा हं।

    क्र्ोफक, कुछ शब्द, अक्षरं के िमूह का सनरंतर जाप करते रहने िे िाधक की अडतर िेतना स्वतः ही जागतृ होने लगती हं। फकिी मडि का सनरंतर जाप करने िे मडिो की ध्वसन एवं तरंगो के उत्पडन होने की फक्रर्ा को मडि र्ोग कहा जाता हं। र्फद जाप मानसिक रुप िे फकर्ा जाए तो भी ध्वसन तरंग अवश्र् उत्पडन होती हं। फफर िाहे मडि कोई भी हो, ध्वसनर्ं के त्रवशेष िंर्ोजन माि मं मडि स्वरुप परमात्मा की शत्रिर्ां िमाफहत होती हं।

    कुछ मडि एक-दिूरे िे इि प्रकार िे जुिे होते हं, फक स्जिका कोई िीधा अथा िामाडर् व्र्त्रि की िमझ के बाहर होते हुए भी िंबंसधत देवी-देवता एवं ब्रह्माण्ि की शत्रिर्ं िे पररपूणा होते हं।

    इिी कारण मडिं द्वारा उत्पडन होने वाली ध्वसन तरंगं का िीधा प्रभाव मनुष्र् के मन एवं अतंर िेतना

    पर होता हं। मडि की ध्वसन तरंगं मं परम ित्र् स्वरुप िाक्षात परमात्मा ही त्रवद्यमान होते हं।

    शास्त्रं मं मडि को िूक्ष्म शत्रिर्ं का पूंज बतार्ा गर्ा हं। मडि िूक्ष्म लेफकन रहस्र्मर् तत्व होते हं। जो कई तरह के स्थलू एव ं िूक्ष्म तत्वं का आदान प्रदान करते हं। मडि को परम ित्र् एव ंितैडर् होते हं। इि सलए मडिं मं प्रकृसत की कई शत्रिर्ं को वश मं करने का िामथ्र्ा ओता हं।

    क्र्ोफक, वाणी मनुष्र् का िबिे मूलभूत और िमत्कारी आत्रवष्कार हं। प्रकृसत ने मनुष्र् के िाथ प्रार्ः िभी जीव एवं प्राणी को अपने िुख-दखु व्र्ि करने के सलए त्रवशेष प्रकार की ध्वसन प्रदान की हं। जीव ही क्र्ो कुदरत ने प्रकृसत के जि तत्वो मं भी आकषाण-त्रवकषाण के सनर्मानुिार कुछ स्वर उत्पडन होते रहते हं।

    प्रासिन भारतीर् ग्रडथं (रामार्ण, महाभारत आफद) मं उल्लेख समलता हं, की राजा/िम्राट र्ुद्ध मं त्रवजर्श्री की प्रासि के सलए त्रवशेष मडिो की सित्रद्ध द्वारा आग्नेर् अस्त्र-शस्त्रं का प्रर्ोग करते थे।

    इि सलए िुर्ोग्र् गुरु के मागादशान मं उत्कृष्ट मडि जाप द्वारा िाधक प्रार्ः िभी प्रकार की सित्रद्धर्ं को प्राि करने मं िमथा हो िकता हं, इिमं जराभी िंदेह नहीं हं।

    इिके पीछे का मूल तका र्ा रहस्र् र्ह हं की मनुष्र् एव ंअस्खल ब्रह्माण्ि एक ही शत्रि के स्वरुप हं। मडि मं परम ित्र् सनफहत होने के कारण ही उच्ि कोफट के िाधक अपनी िमस्त शारीररक एवं बाह्य शत्रिर्ं को अपने वश मं करने मे िमथा हो जाते हं।

    मडिं की सभडनता मं शब्दो के िंर्ोजन की सभडनता के अनुशार ध्वसन तरंगो िे शत्रिर्ं का प्रस्फुटन होता हं। स्जिके अद्दभुत प्रभाव िे िाधक के आिपार का वार्ु मण्िल मडिं िे िंबंसधत शत्रिर्ं िे उत्पडन होने

  • 14 फरवरी 2012

    वाले उजाा िे र्ुि हो जाता हं, और एक त्रवशेष प्रकार का फदव्र् आभामण्िल सनसमात हो जाता हं और िाधक इन शत्रिर्ं के त्रबि मं त्रवद्यमान हो जाता हं।

    िाधक के अविेतन मन पर मडिं का इतना शत्रिशाली प्रभाव होता हं फक िाधक परमात्मा िे िाक्षात्कार करने के सलए व्र्ाकुल हो जाता हं।

    मडि परमात्मा का नाम, प्रतीक स्वरुप होता हं। इि सलए मडि ही िमस्त जगत के मूल कारक हं। मडि

    ब्रह्माण्ि के आधार स्वरुप हं, मडि िमस्त ब्रह्माण्ि के आधार हं। क्र्ोफक, हमारे जीवन मं त्रविारं, िेतना का मूल आधार, प्रकृसत की रहस्र्मर् शत्रि इत्र्ाफद का भीतरी एव ं बाहरी िंिालन औअ सनर्मन मडिं द्वारा होती हं।

    जानकारो के मतानुशार इि अस्खल त्रवश्व र्ा ब्रह्मांि का अस्स्तत्व भी ध्वसन (मडि) िे हुवा हं और िंभवतः अतं भी मडि मं ही सनफहत हं।

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    Indian Rupee

    एकमुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2800, 5500 आठ मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 820,1250 एकमुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 750,1050, 1250, आठ मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 1900 दो मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 30,50,75 नौ मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 910,1250 दो मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 50,100, नौ मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2050 दो मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 450,1250 दि मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 1050,1250 तीन मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 30,50,75, दि मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2100 तीन मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 50,100, ग्र्ारह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 1250, तीन मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 450,1250, ग्र्ारह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2750, िार मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 25,55,75, बारह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 1900, िार मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 50,100, बारह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2750, पंि मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 25,55, तेरह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 3500, 4500, पंि मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 225, 550, तेरह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 6400, छह मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 25,55,75, िौदह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 10500 छह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 50,100, िौदह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 14500 िात मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 75, 155, गौरीशंकर रूद्राक्ष 1450 िात मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 225, 450, गणेश रुद्राक्ष (नेपाल) 550 िात मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 1250 गणेश रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 750 रुद्राक्ष के त्रवषर् मं असधक जानकारी हेत ुिंपका करं।

    GURUTVA KARYALAY, 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA),

    Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: [email protected], [email protected],

  • 15 फरवरी 2012

    द्वादश महा र्ंि र्ंि को असत प्रासिन एवं दलुाभ र्ंिो के िंकलन िे हमारे वषो के अनुिंधान द्वारा बनार्ा गर्ा हं।

    परम दलुाभ वशीकरण र्ंि, भाग्र्ोदर् र्ंि मनोवांसछत कार्ा सित्रद्ध रं्ि राज्र् बाधा सनवतृ्रत्त र्ंि गहृस्थ िुख र्ंि शीघ्र त्रववाह िंपडन गौरी अनंग र्ंि

    िहस्त्राक्षी लक्ष्मी आबद्ध र्ंि आकस्स्मक धन प्रासि र्ंि पूणा पौरुष प्रासि कामदेव रं्ि रोग सनवतृ्रत्त र्ंि िाधना सित्रद्ध र्ंि शिु दमन र्ंि

    उपरोि िभी र्ंिो को द्वादश महा र्ंि के रुप मं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान िे मंि सिद्ध पूणा प्राणप्रसतत्रष्ठत एव ंितैडर् र्ुि फकरे् जाते हं। स्जिे स्थापीत कर त्रबना फकिी पूजा अिाना-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष लाभ प्राि कर िकते हं।

    GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785

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    मडि जाप िे लाभ स्वस्स्तक.ऎन.जोशी

    मडि के जानकारं के कथ अनुशार मनुष्र् के भाग्र् िक्र र्ा कमो के अनुशार उत्पडन होने वाले दःुखं का सनवारण मडिं द्वारा फकर्ा जा िकता हं।

    आजके भौसतकता वादी िमाज मं प्रार्ः हर व्र्त्रि िांिाररक िुखं की प्रासि एवं वतृ्रद्ध के सलरे् लालासर्त रहता हं। जैिे धन, स्त्री, िंतान, भूसम, भवन, वाहन, मान-िम्मान, र्श इत्र्ाफद िुख िाधन।

    व्र्त्रि को अभीष्ट िुख-िाधन एवं वस्तुओं की प्रासि हो और अवांसछत व्र्त्रि र्ा वस्तु िे छुटकाअ समल जाने को ही वास्तत्रवक िुख माना जाता हं। त्रप्रर्जन र्ा असभष्ट वस्तु िे अलगाव एवं अवांसछत व्र्त्रि र्ा वस्तु के िंपका ही िमस्त दःुखं का मूल कारण हं। त्रवद्वान आिार्ं ने दखुं को तीन श्रणेीमं त्रवभास्जत फकर्ा हं- (१) शारीररक दःुख, शरीर, इस्डद्रर्ं र्ा मन के त्रवकारं िे उत्पडन होने वाले दःुख होते हं। (२) प्राकृसतक दःुख,

    कुदरती आपदा जैिे बाढ़, िूखा, भुखमरी, भूकंप, िुनामी, बवंिर, इत्र्ाफद र्ा भूत-पे्रत इत्र्ाफद दषु्ट शत्रिर्ं के प्रभाव िे उत्पडन होने वाले दःुख होते हं। (३) िांिाररक दःुख, मनुष्र्, पशु, पक्षी एवं अडर् प्राणी जीवं िे उत्पडन होने वाले दःुख होते हं।

    िांिाररक भोगं की प्रासि एवं आध्र्ास्त्मक उडनसत की प्रासि हेतु मडि जप अत्र्ासधक प्रभावशाली माना गर्ा हं। क्र्ोफक मडि िभी प्रकार के िांिाररक दःुखो का नाश करने वाले और मुत्रि प्रदान करन मं पूणा रुप िे िमथा हं। पूवाकाल िे ही ऋषी-मुसन एवं त्रवद्वानो ने मडिजप अत्र्डत िरल एव ंकारगर उपार् माना हं। पूणा श्राद्धा एव ंभत्रि पूवाक मडि जाप करने िे सनस्ित मनुष्र् के िमस्त दःुखं एवं पापं का नाश होता हं, उिे जीवन मं िमस्त भौसतक िुख िाधनो की प्रासि होती है और उिे मुत्रि प्राि होती हं।

  • 16 फरवरी 2012

    मडि सित्रद्ध सितंन जोशी

    शास्त्रं मं मडि जाप तीन प्रकार के माने गए हं। (1) वासिक जप (2) उपांशु जप (3) मानसिक जप वासिक जप: वासिक जप उिे कहा जाता हं, जो जप करते िमर् मडि पाि मं खिे अडर् व्र्त्रि के कानं तक िुनाई दं। उपांशु जप: उपांशु जप उिे कहा जाता हं, जो जप करते िमर् मडि को स्वर्ं के असतररि अडर् फकिी के कानं तक िुनाई न दं। मानसिक जप: मानसिक जप उिे कहा जाता हं, जो मन मं ही जपा जाए, जप के दौरान स्जह्वा और होठ भी नहीं िलते हं।

    इष्टदेव का ध्र्ान फकए त्रबना कोई भी मडि जप करना सनष्फल होता हं। इि सलए कोई भी मडि का जाप करते िमर् अपने इष्ट देव का ध्र्ान अवश्र् करना िाफहए। स्जििे शीध्र मडि सिद्ध हो जाए और अपने कार्ा उदे्दश्र् मं शीघ्र िफलता प्राि हो जाए।

    त्रवद्वानो ने मस्ण माला पर मडि जप करने हेत ुकुछ त्रवशेष सनर्म बताएं हं। आपके मागादशान के सलए र्हां प्रस्तुत फकए गए हं। 1) प्रातः काल मडि जपते िमर् माला को नासभ के

    िामने रखकर जाप करना िाफहए। 2) दोपहर मं मडि जपते िमर् माला को हृदर् के

    िामने रखकर जाप करना िाफहए

    3) िांर्काल मं मडि जपते िमर् माला को मस्तक के िामने रखकर जाप करना िाफहए।

    4) मडि जपते िमर् िुमेरु का उल्लंघन नहीं होना िाफहए। एक िे असधक माला फेरते िमर्, िुमेरु तक पहुिने पर वहीं िे वापिे माला को उल्टा घुमाना िाफहए।

    मडि की सित्रद्ध प्राि करन ेके सलए प्रमखु 12 सनर्म मान ेगए हं।

    1) भूसम पर शर्न 2) ब्रह्मिर्ा का पालन 3) मौन 4) गुरु िेवा 5) त्रिकाल स्नान 6) पाप कमं का पूणा त्र्ाग 7) सनत्र् पूजन 8) सनत्र् दान 9) इष्ट का पूजन-कीतान-स्तुसत पाठ 10) नैसमत्रत्तक पूजा 11) इष्ट एव ंगुरु मं त्रवश्वाि 12) जप मं पूणा सनष्ठा

    मडि के 3 प्रकार होते हं। पुरुष मडि (पुस्ल्लंग): स्जन मंिं के अतं मं "हंू

    फट" का प्रर्ोग फकर्ा गर्ा हो वह पुरुष मडि होता हं।

    स्त्री मडि (स्त्रीसलंग): स्जन मंिं के अतं मं "स्वाहा" का प्रर्ोग फकर्ा गर्ा हो वह स्त्री िंज्ञक मडि होता हं।

    नपुंिक सलंग: स्जन मंिं के अतं मं "हंु नमः" का प्रर्ोग फकर्ा गर्ा हो वह नपुंिक मडि होता हं।

  • 17 फरवरी 2012

    स्जि मडि के असधत्रष्टत देवता पुरुष हो उिे मडि कहा जाता हं।

    स्जि मडि की असधष्ठाता देवी स्त्री हो उिे त्रवधा कहा जाता हं।

    एकाक्षरी मडि को त्रपण्ि कहा जाता हं। फद्वअक्षरी मडि को कतारी कहा जाता हं। तीनाक्षरी मडि को बीज कहा जाता हं। िार िे नौ अक्षर तक के मडि को बीज कहा जाता हं। दश िे बीि अक्षर तक के मडिं को मडि कहा जाता हं। इक्कीि िे असधक अक्षरं वाले मडिं को माला मडि कहा जाता हं। वगीकरण की दृत्रष्ट िे मडि के भेद 9 फकए जाते हं।

    1) स्तम्भन 2) मोहन 3) उच्िाटन 4) वश्र्ाकरषाण 5) जमृ्भण 6) त्रवदे्वषण 7) मारण 8) शास्डतक 9) पौत्रष्टक

    कुछ त्रवद्वान 10 वा ंभेद िाडतसनक को भी मानते हं। 1) स्जि मडि के प्रर्ोग िे िोर, िाकू, िपा, िेना आफद

    के आक्रमण का भर् दरू हो जाए र्ा उनके आक्रमण को उिी िमर् रोका जाए तो उिे स्तम्भन कहा जाता हं।

    2) स्जि मडिं के प्रर्ोग करके िाधक फकिी को वशीभूत कर ले उिे मोहन कहा जाता हं।

    3) स्जि मडिं के प्रर्ोग िे िाधक फकिी को रोगी, मानसिक तौर पर अस्स्थर, हताश, सनराश करदे उिे उच्िाटन कहा जाता हं।

    4) स्जि मडिं के प्रर्ोग िे िाधक को इस्च्छत वस्तु की प्रासि हो जारे् उिे वश्र्ाकषाण कहा जाता हं।

    5) स्जि मडिं के प्रर्ोग िे िाधक िे त्रवरोसध, शि ुआफद दषु्ट जन िरने र्ा कांपने लगे उिे जमृ्भण कहा जाता हं।

    6) स्जि प्रर्ोग िे समिं मं दे्वष हो जारे् उिे त्रवदे्वषण कहा जाता हं।

    7) स्जि मडिं के प्रर्ोग िे िाधक अपने शि ुके प्राणं की हानी र्ा दण्ि देने का प्रर्ि करता हो उिे मारण कहा जाता हं।

    8) स्जि मडिं के प्रर्ोग िे िाधक शिओुं को भर्ंकर महामारी, राज भर्, रोग र्ा उिे त्रवसभडन िमस्र्ाए होने लगे तो उिे शास्डतक कहा जाता हं।

    9) स्जि मडि के प्रर्ोग िे िाधक को धन एवं िुखं की प्रासि, इष्ट दशान, िभी प्रकार िे िुख प्रदान करने वाला हो उिे पौत्रष्टक कहा जाता हं।

    10) वह प्रर्ोग स्जिके करने िे बांझ स्त्री को भी ितंान की प्रासि हो उिे शास्डतक कहा जाता हं।

    दोषर्िु मडि सिद्ध नहीं होता। मडि के दोष आठ हं- 1. अभत्रि 5. ह्रस्व 2. अक्षर भ्रास्डत 6. दीघा 3. लुि 7. कथन 4. सछडन 8. स्वप्न कथन दोषं िे मडिं को मुि करना असनवार्ा हं। अडर्था िफलता मडि की सित्रद्ध िंभव नहीं हो पाती। 1. अभत्रि दोष मडि के अक्षर र्ा वणा को िमत्रष्ट अथाात जफटल िमझना, मडि को केवल शब्द र्ा अक्षर माि िमझते हं,

  • 18 फरवरी 2012

    फकिी मडि को हीन, ओछा, कम ्प्रभात्रव मानना अभत्रि दोष माना गर्ा हं। शास्त्रं मं उल्लेख हं की मडि देवता का रुप होते हं। दोषसनवारण उपार्: फकिी भी मडि का जाप करते िमर् हर एक मडि के उच्िारण के िमर् आनंद की अनुभूसत करते हुए जाप करे। स्जििे मडि शीघ्र सिद्ध हो जाए। क्र्ोफक जप, तप र्ा हवन िे िंबंसधत देवी-देवता प्रिडन होते हं तो सित्रद्ध िहज रुप िे प्राि हो जाती हं। 2. भ्रास्डत दोष मंि ग्रहण करते िमर् गरुु र्ा सशष्र् के भ्रम, प्रमाद िे मडिं के अक्षरं मं उलट-फेर हो जाए, अक्षरो का बढ़ जाए तो उिे अक्षर भ्रास्डत दोष कहते हं। दोषसनवारण उपार्: मडि दोष के सनवारण हेतु फकिी िुर्ोग्र् गुरु िे र्ा गुरु फदक्षा प्राि िाधक िे पुनः मंि ग्रहण करं। 3. लिु दोष मडि मं फकिी वगा की डर्ूनता हो अथाात शब्द कम हो जाए तो उिे लुि दोष कहते हं। दोषसनवारण उपार्: मडि दोष �