गुरु कृपा | january 2013 | अक्रम एक्सप्रेस

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"बालमित्रो, गुरुकृपा के बारे में कवि ने एक सुंदर पद लिखा है। द्वमूंगा वाचा पामता, पंगु गिरी चढी़ जाए। गुरुकृपा बल ओर छे, अंध देखता थाए। ओहो! गुरुकृपा कैसा अद्‌भुत काम करती है! यह तो हुई आध्यात्मिक गुरु की बात। लेकिन गुरु मतलब गुरु। फिर वह धर्म के हों या स्कूल के। गुरुकृपा सभी विघ्नों को दूर करके सीधे लक्ष्य तक ही देती है। इसमें दो मत नहीं। यदि गुरुकृपा में इतना अधिक बल हो, तो उसे प्राप्त करने के लिए अपनी तरफ से कैसा होना चाहिए, उसकी सुंदर समझ परम पूज्य दादाश्री ने इस अंक में दी हैं। तो आओ, हम भी इस समझ के अनुसार चलकर गुरुकृपा के अधिकारी बनें और सरलता से ध्येय तक पहुँचे। देखना, तुम्हारे मित्रों को भी यह अमूल्य चाबी देना भूलना मत। " गुरु कृपा | January 2013 | अक्रम एक्सप्रेस

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