class –ix hindi april month syllabus chapters:- chp...
Post on 19-Jan-2021
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TRANSCRIPT
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APRIL
Chapters:-
Chp-1-Dhool
Chp-9-Raidaas-Dohe
Chp-2-Dukh ka Adhikaar
Chp-10-Rahim ke dohe
Chp-1-Gillu(Sanchayan)
Class –IX
HINDI
APRIL MONTH
SYLLABUS
2020
Dohe
Dukh ka Adhikaar
Rahim ke dohe
Gillu(Sanchayan)
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ग�य-भाग
पाठ -1
(धूल)
*-पाठ ‘धलू’ के लेखक �ी राम�वलास शमा� है|
*-लेखक का प�रचय:-आचाय� रामचं� श�ुल के बाद डॉ॰ राम�वलास शमा� ह� एक ऐसे
आलोचक के �प म� �था�पत होत ेह�, जो भाषा, सा�ह�य और समाज को एक साथ
रखकर म�ूयाकंन करते ह�।उनक�आलोचना ���या म� केवल सा�ह�य ह� नह� ंहोता,
बि�क व ेसमाज, अथ�, राजनी�त, इ�तहास को एक साथ लेकर सा�ह�य का
म�ूयांकन करत ेह�।
पाठ का सार:-
*-�मटट� और धूल का अथ�:-��तुत पाठ म� �मटट� के गुण� को ��तुत �कया गया है|
अखाड़ा �मी को अखाड़ ेक� �मटट� देवताओ पैर चड़नेवाल� प�व� �मटट� �तीत होती है|
धलू का भौ�तक,रासाय�नक त�व के साथ साथ सां�कृ�तक �वरासत का �ी�तक भी है| यह धलू
साधारण धलू नह�ं है|
-
इसक� �मटट� म� हमार� स�यता पनपी है| यह भारत क� सबसे �ाचीन स�यता है| यह �मटट� ह�
इसक� पहचान करती है
प�ृवी का मह�वपूण त�व है �मटट�| �मटट� क� आभा धलू से है| �मटट� के रंग �प क� पहचान
धलू से है|
पूर� �कृ�त व ्�ि�ट का ज�म धलू और �मटट� से हुआ है|
�मटट� म� य�द गुण न हो तो �या �कसान इसे अपनी माँ मानता ,इससे �दनरात खेती कर
सबका भरण पोषण कटा?
एक सै�नक इस �मटट� का �तलक लगा कर अपनी जान इस �मटट� के �लय नयोछावर करता?
एक पहलवान �या अखाड़ ेक� �मटट� को अपनी माँ का आचंल समझ कर �मटट� को अपने
शार�र पर लपेट कर द�ुमन को धलू चटाता?
धलू और �मटट� म� �ह� स�ब�ध है जो देह और �ाण म� होता है| जो श�द और रस म� होता है|
*-धूल और गोधु�ल :-
-धलू एक अ�हड ब�च ेक� तरह हर जगह ओ�ती रहती है|
-�गधलू� वः ओ�ती हई धलू है जो गाय के खरु से ओ�ती है| जब शाम को गाँव के पशु चार
के गाँव को लौटते है, तब धलू उनके पैरो से उडती हुई दरू से नजर आती है| यह धलू गाँव क�
स�प�नता का ��तक है|
-लेखक ने दसूरा प� यह रखा है �क जब यह� धलू �कसी के माथे पर लगती है तो मन म� देश
भि�त क� भावना जगती है |
-यह� धलू और �मटट� से ��धा, �ेम, आदर और �नेह का भाव जब चरम पर पहँुचती है तब
हम आदरपूव�क अपन� के बडो के और गु�जन� के चरण छु कर आशीवा�द लेते है
-यह� धलू जब इ�सी मासूम ब�च ेके मुखड़ ेपर लगती है,तब उसका मुख का सौदय� और भी
�नखर जाता है
-उसे �कसी नकल� साज स�जा के साधन� क� ज�रत नह� होती |
*-लेखक इस बात से दखुी है �क आज क� पढ़� �लखी स�यता एक सखु से व�ंचत रह गी है| आज क�
सभी जनता धूल व ्�मटट� क� उप�ेा करत ेहै| आज के आधु�नक लोग इस �मटट� धूल को �दषुण मानत े
है|
*-आज के ब�चे धूल ,�मटट� जैसी इस �कृ�तक चीज से अपने को दरू रखत ेहै|
-लेखक कहत ेहै �क जो बचपन �मटट� म� नह� �बता वः बचपन ह� �या,यह दभुा��य है|
-हम चमकत ेह�रे क� खर�दार� खूब उची क�मत से करने क� इ�छा रखत ेहै,पर�त ु हम सब भलू जात ेहै
�कचमकता हुआ ह�रा �मटट� म� दबे कोयल� से ह� बनता है ,इ�स �मटट� को हम हाथ तक लगाना पसदं
नह�ं करत ेहै| य�द सभी ऐसा सोचने लग जाए तो �या होता जब �कसान खेतो म�. न जाता ,कहां से हम
सब का पेट भरता सभी लोगो का भरण-पोषण कैसे होता| य�द कु�हार भी �मटट� को हाथ न लगाता तो
स�ुदर कला��त ,�श�पकार�,�मटट� के सुदंर बत�न हमे देखने को नह� �मलत े| �या हमार� स�यता पहचान
पा सकती थी|
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Þ-�न�न�ल�खत ��न� के उ�र एक-दो पंि�तय� म� द�िजए –
1. ह�रे के �ेमी उसे �कस �प म� पसंद करते ह�?
उ�र:- ह�रे के �ेमी उसे साफ़ सुथरा खरादा हुआ, आँख� म� चकाच�ध पैदा करता हुआ पसंद करते
ह�।
2. लेखक ने संसार म� �कस �कार के सुख को दलु�भ माना है?
उ�र:- लेखक ने संसार म� अखाड़ ेक� �म�ट� म� लेटन,े मलने के सुख को दलु�भ माना है। यह
�म�ट� तेल और म�ठे से �सझाई जाती है और प�व� होती है। इसे देवता के �सर पर भी चढ़ाया
जाता है। ऐसी इस अखाड़ ेक� �म�ट� को अपनी देह पर लगाना संसार के सबसे दलु�भ सुख के
समान है।
3. �म�ट� क� आभा �या है? उसक� पहचान �कससे होती है?
उ�र:- �म�ट� क� आभा का नाम ‘धलू’ है, उसक� पहचान धलू से ह� होती है।
4. धलू के �बना �कसी �शश ुक� क�पना �य� नह�ं क� जा सकती?
उ�र:- धलू का जीवन म� बहुत मह�व है। माँ और मातभृू�म �वग� से भी बढ़कर ह�। �वशषेकर �शशु
के �लए। माँ क� गोद से उतरकर ब�चा मातभृू�म पर कदम रखता है। घुटन� के बल चलना
सीखता तब मातभृू�म क� गोद म� धलू से सनकर �नखर उड़ता है। यह धलू जब �शशु के मुख पर
पड़ती है तो उसक� शोभा और भी बढ़ जाती है। धलू म� �लपटे रहने पर ह� �शशु क� संुदरता
बढ़ती है। तभी वे धलू भरे ह�रे कहलाते ह�। धलू के �बना �शशु क� क�पना ह� नह�ं क� जा
सकती। धलू उनका स�दय� �साधन है।
5. हमार� स�यता धलू से �य� बचना चाहती है?
उ�र:- हमार� स�यता धलू से बचना चाहती है �य��क वह आसमान को छूने क� इ�छा रखती है।
धलू के ��त उनम� ह�न भावना है। धलू को संुदरता के �लए खतरा माना गया है। इस धलू से
बचने के �लए ऊँच-ेऊँच ेआसमान म� घर बनाना चाहते ह� िजससे धलू से उनके ब�च ेबच�। वे
बनावट-�ृगंार को मह�व देते ह�। वे क�पना म� �वचरते रहना चाहते ह�, वा�त�वकता से दरू रहते
ह�।
6. लेखक ‘बालकृ�ण’ के मुँह पर छाई गोध�ूल को �े�ठ �य� मानता है?
उ�र:- लेखक ‘बालकृ�ण’ के मँुह पर लगी धलू को �े�ठ इस�लए मानता है �य��क इससे उनका
स�दय� और भी �नखर आता है। यह �शशु क� सहज पा�थ�वता को �नखारती है। यह धलू उनके
स�दय� को और भी बढ़ा देती है। बनावट� �साधन भी वह संुदरता नह�ं दे पाते।
7. लेखक ने धलू और �म�ट� म� �या अतंर बताया है?
उ�र:- लेखक धलू और �म�ट� का अतंर शर�र और आ�मा के समान मानता है। दोन� एक दसूरे
के पूरक ह�। दोन� म� देह और �ाण, चाँद और चाँदनी के समान का अतंर है। �म�ट� क� आभा
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धलू है तो �म�ट� क� पहचान भी धलू है। �म�ट� म� जब चमक उ�प�न होती है तो वह धलू का
प�व� �प ले लेती है।
8. �ामीण प�रवेश म� �कृ�त धलू के कौन-कौन से सुंदर �च� ��तुत करती है?
उ�र:- �ामीण प�रवेश म� �कृ�त धलू के संुदर �च� ��तुत �कए है –
• अमराइय� के पीछे �छपे सूय� क� �करण� धलू पर पड़ती है तब ऐसा �तीत होता है मानो आकाश
पर सोने क� परत छा गई हो।
• सांयकाल गोध�ूल के उड़ने क� संुदरता का �च� �ामीण प�रवेश म� ��तुत करती है जो �क शहर�
के �ह�से नह�ं पड़ती।
• �शशु के मुख पर धलू फूल क� पंख�ुड़य� के समान सुंदर लगती है। उसक� संुदरता को �नखारती
है।
• पशुओं के खरु� से उड़ती धलू तथा गा�ड़य� के �नकलने से उड़ती धलू �ई के बादल� के समान
लगती है।
• अखाड़ ेम� �सझाई हुई धलू का अपना �भाव है।
9. ‘ह�रा वह� घन चोट न टूटे’ – का संदभ� पाठ के आधार पर �प�ट क�िजए।
उ�र:- “ह�रा वह� घन चोट न टूटे”- का अथ� है असल� ह�रा वह� है जो हथौड़ ेक� चोट से भी न
टूटे और अटूट होने का �माण दे। ह�रा हथौड़ ेक� चोट से भी नह�ं टूटता पर�तु काँच एक ह� चोट
म� टूट जाता है। ह�रे और काँच क� चमक म� भी अतंर है। पर��ण से यह बात �स�ध हो जाती
है। इसी तरह �ामीण लोग ह�रे के समान होते ह�- मजबूत सु�ढ़। अथा�त देश पर मर �मटने वाले
ह�रे अपनी अमरता का �माण देते ह�। वह क�ठनाइय� से कभी नह�ं घबरात।े
10. धलू, ध�ूल, धलू�, ध�ूर और गोध�ूल क� �यंजनाओं को �प�ट क�िजए।
उ�र:- धलू, ध�ूल, धलू�, ध�ूर और गोध�ूल का रंग एक ह� है चाहे �प अलग है। धलू यथाथ�वाद�
ग�य है तो ध�ूल उसक� क�वता। धलू� छायावाद� दश�न है और ध�ूर लोक-सं�कृ�त का नवीन
जागरण है। ‘गोध�ूल’ गाय� एवं �वाल� के पैर� से उड़ने वाल� ध�ूल है। इन सब का रंग एक ह� है
परंतु गोध�ूल गाँव के जीवन क� अपनी संप�� है।
11. ‘धलू’ पाठ का मूल भाव �प�ट क�िजए।
उ�र:- लेखक ने पाठ “धलू” म� धलू का मह�व �प�ट �कया है। लेखक आज क� सं�कृ�त क�
आलोचना करते हुए कहता है �क शहर� लोग धलू क� मह�ा को नह�ं समझते, उससे बचने क�
को�शश करते ह�। िजस धूल �म�ट� से हमारा शर�र बना है, हम उसी से दरू रहना चाहते ह�। परंतु
आज का नगर�य जीवन इससे दरू रहना चाहता है जब�क �ामीण स�यता का वा�त�वक स�दय�
ह� “धलू” है।
�न�न�ल�खत के आशय �प�ट क�िजए –
1. फूल के ऊपर जो रेणु उसका �ृगंार बनती है, वह� धलू �शशु के मुँह पर उसक� सहज पा�थ�वता
को �नखार देती है।
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उ�र:- इस कथन का आशय यह है �क फूल के ऊपर अगर थोड़ी सी धलू आ जाती है तो ऐसा
लगता है मान� फूल क� संुदरता म� और भी �नखार आ गया है। उसी �कार �शशु के मुख पर धलू
उसक� संुदरता को और भी बढ़ा देती है। ऐसा स�दय� जो कृ��म स�दय� साम�ी को बेकार कर देता
है। अत: धलू कोई �यथ� क� व�तु नह�ं है।
2. ‘ध�य-ध�य वे ह� नर मैले जो करत गात क�नया लगाय ध�ूर ऐस ेल�रकान क�’ – लेखक इन
पंि�तय� �वारा �या कहना चाहता है?
उ�र:- इस पंि�त का आशय यह है �क वे �यि�त ध�य ह� जो ध�ूर भरे �शशुओं को गोद म�
उठाकर गले से लगा लेत ेह� और उन पर लगी धलू का �पश� करते ह�। ब�च� के साथ उनका
शर�र भी धलू से सन जाता है। लेखक को ‘मैले’ श�द म� ह�नता का बोध होता है �य��क वह धलू
को मैल नह�ं मानते। ‘ऐसे ल�रकान’ म� भेदबु�धी नज़र आती है। अत: इन पंि�तय� �वारा लेखक
धलू को प�व� और �ाकृ�तक �ृगंार का साधन मानते ह�।
3. �म�ट� और धलू म� अंतर है, ले�कन उतना ह�, िजतना श�द और रस म�, देह और �ाण म�, चाँद
और चाँदनी म�।
उ�र:- लेखक �म�ट� और धलू म� अतंर बताता है पर�तु इतना ह� �क वह एक दसूरे के पूरक ह�।
�म�ट� क� चमक का नाम धलू है। एक के �बना दसूरे क� क�पना नह�ं क� जा सकती। िजस
�कार श�द से रस, देह से �ाण, चाँद से चाँदनी अलग कर देने पर न�ट हो सकती है,उसी �कार
�म�ट� के धलू से अलग हो जाने पर वह न�ट हो जाएगी।
4. हमार� देशभि�त धलू को माथ ेस ेन लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।
उ�र:- आज के युग म� देशभि�त क� भावना का �प ह� बदल गया है। लेखक देशभि�त क� बात
कहकर यह कहना चाहता है �क वीर यो�धा अपनी मातभृू�म के ��त ��धा �कट करते ह�,धलू
म�तक पर लगाते ह�, �कसान धलू म� ह� सन कर काम करता है, अपनी �म�ट� से �यार, ��धा
रखता है। उसी तरह हम� भी धलू से बचने क� को�शश नह�ं करनी चा�हए। अगर माथे से नह�ं
लगा सकते तो कम से कम पैर� से तो उसे �पश� कर�। उसक� वा�त�वकता से प�र�चत हो।
5. वे उलटकर चोट भी कर�गे और तब काँच और ह�रे का भेद जानना बाक� न रहेगा।
उ�र:- ह�रा बहुत मजबूत होता है। इस�लए ह�रा �ामीण स�यता का �तीक है। काँच शहर�
स�यता का �तीक है। ह�रा हथौड़ ेक� चोट से भी नह�ं टूटता पर�तु काँच एक ह� चोट म� टूट
जाता है। ह�रे और काँच क� चमक म� भी अतंर है। पर��ण से यह बात �स�ध हो जाती है। इसी
तरह �ामीण लोग ह�रे के समान होते ह� – मजबूत सु�ढ़। समय का हथौड़ा इस स�चाई को सामने
लाता है। अथा�त देश पर मर �मटने वाले ह�रे अपनी अमरता का �माण देते ह�।
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गध-भाग
पाठ-2
(दःुख का अ�धकार)
लेखक का प�रचय:-यशपालजी का ज�म �फरोजपुर छावनी म� १९०३ म�. हुआ था |यशपालजी
यह मानते है �कसमाज को उ�नत या आ�चा बनाने के �लय एक ह� रा�ता है सामािजक
समानता के साथ साथ आ�थ�क समानता | ��तुत खानी म� देश म� फैले अधं�व�वास और ऊंच
नीच के भेद भाव को बताते है| वह कहते है �क दःुख क� अनुभू�त सभी को एह समान होती है |
यह खानी ध�न लोगो क� अमानवीयता और गर�बो क� दयनीय दशा को उजारार करती है| यह
सह� है �क इंसान पैर जब दःुख पड़ता है तो वः टूट जाता है| इंसान उस दःुख का मातम मनाना
चाहता है| हमारे देश गर�बो को दःुख मनाने या जताने का भी अ�धकार नह� है और दःुख मनाने क� फुस�त भी
नह� है|
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�न�न�ल�खत ��न� के उ�र एक-दो पंि�तय� म� द�िजए –
1. �कसी �यि�त क� पोशाक को देखकर हम� �या पता चलता है?
उ�र:- �कसी �यि�त क� पोशाक को देखकर हम� समाज म� उसका दजा� और अ�धकार का पता
चलता है तथा उसक� अमीर�-गर�बी �ेणी का पता चलता है।
2. खरबूज़ ेबेचनेवाल� ��ी से कोई खरबूज़ े�य� नह�ं खर�द रहा था?
उ�र:- उसके बेटे क� म�ृयु के कारण लोग उससे खरबूजे नह�ं खर�द रहे थे।
3. उस ��ी को देखकर लेखक को कैसा लगा?
उ�र:- उस ��ी को देखकर लेखक का मन �य�थत हो उठा। उनके मन म� उसके ��त सहानुभू�त
क� भावना उ�प�न हुई थी।
4. उस ��ी के लड़के क� म�ृयु का कारण �या था?
उ�र:- उस ��ी का लड़का एक �दन मुँह-अधंेरे खेत म� से बेल� से तरबूजे चनु रहा था क� गील�
मेड़ क� तरावट म� आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डस
�लया। ओझा के झाड़-फँूक आ�द का उस पर कोई �भाव न पड़ा और उसक� म�ृयु हो गई।
5. बु�ढ़या को कोई भी �य� उधार नह�ं देता?
उ�र:- बु�ढया का बेटा मर गया था इस�लए बु�ढ़या को �दए उधार को लौटने क� कोई संभावना
नह�ं थी। इस वजह से बु�ढ़या को कोई उधार नह�ं देता था।
�न�न�ल�खत ��न� के उ�र (25-30 श�द� म�) �ल�खए –
6. मनु�य के जीवन म� पोशाक का �या मह�व है?
उ�र:- मनु�य के जीवन म� पोशाक का बहुत मह�व है। पोशाक� ह� �यि�त का समाज म� अ�धकार
व दजा� �नि�चत करती ह�। पोशाक� �यि�त को ऊँच-नीच क� �ेणी म� बाँट देती है। कई बार अ�छ�
पोशाक� �यि�त के भा�य के बंद दरवाज़े खोल देती ह�। स�मान �दलाती ह�।
7. पोशाक हमारे �लए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उ�र:- जब हमारे सामने कभी ऐसी प�रि�थ�त आती है �क हम� �कसी दखुी �यि�त के साथ
सहानुभू�त �कट करनी होती है, पर�तु उसे छोटा समझकर उससे बात करने म� संकोच करते
ह�।उसके साथ सहानुभू�त तक �कट नह�ं कर पाते ह�। हमार� पोशाक उसके समीप जाने म� तब
बंधन और अड़चन बन जाती है।
8. लेखक उस ��ी के रोने का कारण �य� नह�ं जान पाया?
उ�र:- वह ��ी घुटन� म� �सर गड़ाए फफक-फफककर रो रह� थी। इसके बेटे क� म�ृयु के कारण
लोग इससे खरबूजे नह�ं ले रहे थे। उसे बुरा-भला कह रहे थे। उस ��ी को देखकर लेखक का मन
�य�थत हो उठा। उनके मन म� उसके ��त सहानुभू�त क� भावना उ�प�न हुई थी। परंतु लेखक
उस ��ी के रोने का कारण इस�लए नह�ं जान पाया �य��क उसक� पोशाक �कावट बन गई थी।
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9. भगवाना अपन ेप�रवार का �नवा�ह कैस ेकरता था?
उ�र:- भगवाना शहर के पास डढ़े बीघा भर ज़मीन म� खरबूज़� को बोकर प�रवार का �नवा�ह करता
था। खरबूज़� क� ड�लयाँ बाज़ार म� पहँुचाकर लड़का �वयं सौदे के पास बैठ जाता था।
10. लड़के क� म�ृय ुके दसूरे ह� �दन बु�ढ़या खरबूज़ ेबेचन े�य� चल पड़ी?
उ�र:- बु�ढ़या बेटे क� म�ृयु का शोक तो �कट करना चाहती है परंतु उसके घर क� प�रि�थ�त उसे
ऐसा करने नह�ं दे रह� थी। इसका सबसे बड़ा कारण है, धन का अभाव। उसके बेटे भगवाना के
ब�च ेभूख के मारे �बल�बला रहे थे। बहू बीमार थी। य�द उसके पास पैसे होते, तो वह कभी भी
सूतक म� सौदा बेचने बाज़ार नह�ं जाती।
11. बु�ढ़या के द:ुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस क� सं�ांत म�हला क� याद �य� आई?
उ�र:- लेखक के पड़ोस म� एक सं�ांत म�हला रहती थी। उसके पु� क� भी म�ृयु हो गई थी और
बु�ढ़या के पु� क� भी म�ृयु हो गई थी पर�तु दोन� के शोक मनाने का ढंग अलग-अलग था। धन
के अभाव म� बेटे क� म�ृयु के अगले �दन ह� व�ृधा को बाज़ार म� खरबूज़े बेचने आना पड़ता है।
वह घर बैठ कर रो नह�ं सकती थी। मान� उसे इस दखु को मनाने का अ�धकार ह� न था। आस-
पास के लोग उसक� मजबूर� को अनदेखा करते हुए, उस व�ृधा को बहुत भला-बुरा बोलते ह�।
जब�क सं�ांत म�हला को असी�मत समय था। अढ़ाई मास से पलंग पर थी, डॉ�टर �सरहाने बैठा
रहता था। लेखक दोन� क� तुलना करना चाहता था इस�लए उसे सं�ांत म�हला क� याद आई।
12. बाज़ार के लोग खरबूज़ ेबेचनेवाल� ��ी के बारे म� �या-�या कह रहे थ?े अपने श�द� म�
�ल�खए।
उ�र:- धन के अभाव म� बेटे क� म�ृयु के अगले �दन ह� व�ृधा को बाज़ार म� खरबूज़े बेचने आना
पड़ता है। बाज़ार के लोग उसक� मजबूर� को अनदेखा करते हुए, उस व�ृधा को बहुत भला-बुरा
बोलते ह�। कोई घणृा से थकूकर बेहया कह रहा था, कोई उसक� नीयत को दोष दे रहा था, कोई
रोट� के टुकड़ ेपर जान देने वाल� कहता, कोई कहता इसके �लए �र�त� का कोई मतलब नह�ं है,
परचनू वाला कहता, यह धम� ईमान �बगाड़कर अधंेर मचा रह� है, इसका खरबूज़े बेचना सामािजक
अपराध है। इन �दन� कोई भी उसका सामान छूना नह�ं चाहता था।
13. पास-पड़ोस क� दकुान� से पूछन ेपर लेखक को �या पता चला?
उ�र:- पास-पड़ोस क� दकुान� म� पूछने पर लेखक को पता चला क�। उसका २३ साल का जवान
लड़का था। घर म� उसक� बहू और पोता-पोती ह�। लड़का शहर के पास डढ़े बीघा भर जमीन म�
क�छयार� करके �नवा�ह करता था। खरबूज� क� ड�लया बाज़ार म� पहँुचाकर कभी लड़का �वयं सौदे
के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती। परस� मँुह-अधंेरे खेत म� से बेल� से तरबूजे चनु रहा था
�क गील� मेड़ क� तरावट म� आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के
को डस �लया। ओझा के झाड़-फँूक आ�द का उस पर कोई �भाव न पड़ा और उसक� म�ृयु हो
गई।
-
�न�न�ल�खत के आशय �प�ट क�िजए –
14. जैस ेवायु क� लहर� कट� हुई पतंग को सहसा भू�म पर नह�ं �गर जान ेदेती ंउसी तरह खास
प�रि�थ�तय� म� हमार� पोशाक हम� झुक सकने से रोके रहती है।
उ�र:- ��तुत कहानी समाज म� फैले अधं�व�वास� और अमीर-गर�बी के भेदभाव को उजागर करती
है। यह कहानी अमीर� के अमानवीय �यवहार और गर�ब� क� �ववशता को दशा�ती है। मनु�य� क�
पोशाक� उ�ह� �व�भ�न �े�णय� म� बाँट देती ह�। �ाय: पोशाक ह� समाज म� मनु�य का अ�धकार
और उसका दज़ा� �नि�चत करती है। वह हमारे �लए अनेक बंद दरवाज़े खोल देती है, परंतु कभी
ऐसी भी प�रि�थ�त आ जाती है �क हम ज़रा नीच ेझुककर समाज क� �नचल� �े�णय� क�
अनुभू�त को समझना चाहत ेह�। उस समय यह पोशाक ह� बंधन और अड़चन बन जाती है। जैसे
वायु क� लहर� कट� हुई पतंग को सहसा भू�म पर नह�ं �गर जाने देती,ं उसी तरह खास
पा�रि�थ�तय� म� हमार� पोशाक हम� झुक सकने से रोके रहती है।
15. इनके �लए बेटा-बेट�, खसम-लुगाई, धम�-ईमान सब रोट� का टुकड़ा है।
उ�र:- समाज म� रहते हुए ��येक �यि�त को �नयम�, कानून� व परंपराओं का पालन करना पड़ता
है। दै�नक आव�यकताओ ंसे अ�धक मह�व जीवन मू�य� को �दया जाता है।यह वा�य गर�ब� पर
एक बड़ा �यं�य है। गर�ब� को अपनी भूख के �लए पैसा कमाने रोज़ ह� जाना पड़ता है चाहे घर
म� म�ृयु ह� �य� न हो गई हो। पर�तु कहने वाले उनसे सहानुभू�त न रखकर यह कहते ह� �क
रोट� ह� इनका ईमान है, �र�त-ेनाते इनके �लए कुछ भी नह�ं है।
16. शोक करने, गम मनाने के �लए भी सहू�लयत चा�हए और… द:ुखी होने का भी एक अ�धकार
होता है।
उ�र:- यह �यं�य अमीर� पर है �य��क समाज म� अमीर लोग� के पास दखु मनाने का समय और
सु�वधा दोन� होती ह�। इसके �लए वह द:ुख मनाने का �दखावा भी कर पाता है और उसे अपना
अ�धकार समझता है। शोक करन,े गम मनाने के �लए सहू�लयत चा�हए। दःुख म� मातम सभी
मनाना चाहते ह� चाहे वह अमीर हो या गर�ब। परंतु गर�ब �ववश होता है। वह रोज़ी रोट� कमाने
क� उलझन म� ह� लगा रहता है। उसके पास द:ुख मनाने का न तो समय होता है और न ह�
सु�वधा होती है। इस �कार गर�ब� को रोट� क� �चतंा उसे द:ुख मनाने के अ�धकार से भी वं�चत
कर देती है।
-
प�य-भाग
पाठ-9
(अब कैसे छूटेराम नाम)
*-संत रैदास का प�रचय:-
- रैदास नाम से �व�यात संत र�वदास का ज�म सन ्1388 (इनका ज�म कुछ �व�वान 1398 म�
हुआ भी बताते ह�) को बनारस म� एक चम�कार के घर हुआ था| रैदास कबीर के समकाल�न
ह�। रैदास क� �या�त से �भा�वत होकर �सकंदर लोद� ने इ�ह� �द�ल� आने का �नमं�ण भेजा था।
Þ-wava4R:
1 अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
�भु जी, तुम चदंन हम पानी, जाक� अगँ-अगँ बास समानी।
�भु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे �चतवत चदं चकोरा।
�भु जी, तुम द�पक हम बाती, जाक� जो�त बरै �दन राती।
�भु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोन�ह ं�मलत सुहागा।
�भु जी, तुम �वामी हम दासा, ऐसी भि�त करै रैदासा॥
इस पद म� क�व ने उस अव�था का वण�न �कया है जब भ�त पर भि�त का रंग पूर� तरह से
चढ़ जाता है। एक बार जब भगवान क� भि�त का रंग भ�त पर चढ़ जाता है तो वह �फर कभी
नह�ं छूटता। क�व का कहना है �क य�द भगवान चदंन ह� तो भ�त पानी है। जैसे चदंन क� सुगंध
पानी के बँूद-बूँद म� समा जाती है वैसे ह� �भु क� भि�त भ�त के अगं-अगं म� समा जाती है।
य�द भगवान बादल ह� तो भ�त �कसी मोर के समान है जो बादल को देखते ह� नाचने लगता है।
य�द भगवान चाँद ह� तो भ�त उस चकोर प�ी क� तरह है जो अपलक चाँद को �नहारता रहता
है। य�द भगवान द�पक ह� तो भ�त उसक� बाती क� तरह है जो �दन रात रोशनी देती रहती है।
य�द भगवान मोती ह� तो भ�त धागे के समान है िजसम� मो�तयाँ �परोई जाती ह�। उसका असर
ऐसा होता है जैसे सोने म� सुहागा डाला गया हो अथा�त उसक� संुदरता और भी �नखर जाती है।
ऐसी लाल तुझ �बनु कउनु करै।
2- ऐसी लाल तुझ �बनु कउनु करै।
गर�ब �नवाजु गुसईआ मरेा माथ ैछ� ुधरै।।
जाक� छो�त जगत कउ लागै ता पर तुह�ं ढ़रै।
नीचहु ऊच करै मेरा गो�बदं ुकाहू ते न डरै॥
-
नामदेव कबी� �तलोचनु सधना सैनु तरै।
क�ह र�वदासु सुनहु रे संतहु ह�रजीउ ते सभै सरै॥
इस पद म� क�व भगवान क� म�हमा का बखान कर रहे ह�। भगवान गर�ब� का उ�धार करने वाले
ह� उनके माथे पर छ� शोभा दे रहा है। भगवान म� इतनी शि�त है �क वे कुछ भी कर सकते ह�
और उनके �बना कुछ भी संभव नह�ं है। भगवान के छूने से अछूत मनु�य का भी क�याण हो
जाता है। भगवान अपने �ताप से �कसी नीच को भी ऊँचा बना सकते ह�। िजस भगवान ने
नामदेव, कबीर, ��लोचन, सधना और सैनु जैसे संत� का उ�धार �कया था वह� बाक� लोग� का भी
उ�धार कर�गे।
*-��न-उ�र:-
1: पहले पद म� भगवान और भ�त क� िजन-िजन चीज� से तुलना क� गई है, उनका उ�लेख
क�िजए।
उ�र: बादल-मोर, चाँद-चकोर, मोती-धागा, द�पक-बाती और सोना-सुहागा
2: पहले पद क� ��येक पंि�त के अतं म� तुकांत श�द� के �योग से नाद-स�दय� आ गया है, जैस:े
पानी, समानी, आ�द। इस पद म� अ�य तुकांत श�द छाँटकर �ल�खए।
उ�र: मोरा-चकोरा, बाती-राती, धागा-सुहागा, दासा-रैदासा
3: पहले पद म� कुछ श�द अथ� क� �ि�ट से पर�पर संब�ध ह�। ऐसे श�द� को छाँटकर �ल�खए:
उदाहरण: द�पक – बाती
उ�र: चदंन-पानी, घन-बनमोरा, चदं-चकोरा, सोन�ह-सुहागा
4: दसूरे पद म� क�व ने ‘गर�ब �नवाजु’ �कसे कहा है? �प�ट क�िजए।
उ�र: दसूरे पद म� भगवान को ‘गर�ब �नवाजु’ कहा गया है �य��क भगवान गर�ब� का उ�धार
करते ह�।
5: दसूरे पद क� ‘जाक� छोती जगत कउ लागै ता पर तुह�ं ढ़रै” इस पंि�त का आशय �प�ट
क�िजए।
उ�र: िजसक� छूत पूर� द�ुनया को लगती है उसपर भगवान ह� ��वत हो जाते ह�। अछूत से अभी
भी बहुत से लोग बच कर चलते ह� और अपना धम� ��ट हो जाने से डरते ह�। अछूत क� ि�थ�त
समाज म� दयनीय है। ऐसे लोग� का उ�धार भगवान ह� करते ह�।
6: रैदास ने अपने �वामी को �कन �कन नाम� से पुकारा है?
उ�र: गुसईआ (गोसाई), गर�ब �नवाजु (गर�ब� का उ�धार करने वाले)
7: �न�न�ल�खत श�द� के �च�लत �प �ल�खए: मोरा, चदं, बाती, जो�त, बरै, राती, छ�,ु छो�त, तुह�,ं
गुसईआ।
उ�र: मोर, चाँद, ब�ी, �यो�त, जलना, रात, छाता, छूने, तु�ह�,ं गोसाई|
8:क�व के रोम रोम म� �भु क� भि�त क� संुगंध �कस �कार समाई हुई है?
-
उ-िजस �कार पानी के कण कण म� च�दन क� सुगंध समाई रहती है,उसी �कार क�व के रोम
रोम म� �भु क� भि�त समाई है|
9:क�व ई�वर के बीच कैसे स�ब�ध �था�पत करना चाहते है?
उ:क�व अपने और ई�वर के बीच अन�य स�ब�ध �था�पत करना चाहते है|
10:रैदास के लाल,अथा�त �भु क� �वशषेता �ल�खए|
उ:रैदास ने लाल,अथा�त �भु क� �वशषेताओ का बखान करते हुए कहा है �क मेरे लाल
द�नदयाल,गर�ब �नवाजू और समदश� है|
11:रैदास ने ई�वर को गर�ब �नवाजू �य� कहा है?
उ:रैदास ने ई�वर ओ गर�ब �नवाजू कहा है �यो�क वहद�ुखय� पर कृपा करके उनके द:ुख दरू करते
है|
12:�भु ने �कन-�कन लोग� का उ�धार �कया है?
उ:�भु ने नामदेव,कबीर, ��लोचन ,साधना और सैनु जैसे कई भ�त� का उ�धार �कया है|
*-नीच े�लखी पंि�तय� का भाव �प�ट क�िजए:
1: जाक� अगँ-अगँ बास समानी।
उ�र: भगवान उस चदंन के समान ह� िजसक� सुगंध अगं-अगं म� समा जाए।
2: जैसे �चतवन चदं चकोरा।
उ�र: जैसे चकोर हमेशा चांद को देखता रहता है वैसे ह� म� भी तु�ह� देखते रहना चाहता हँू।
3: जाक� जो�त बरै �दन राती।
उ�र: भगवान य�द एक द�पक ह� तो भ�त उस बाती क� तरह है जो �काश देने के �लए �दन रात
जलती रहती है।
4: ऐसी लाल तुझ �बनु कउनु करै।
उ�र: भगवान इतने महान ह� �क वह कुछ भी कर सकते ह�। भगवान के �बना कोई भी �यि�त
कुछ भी नह�ं कर सकता।
5: नीचहु ऊच करै मेरा गो�बदं ुकाहू ते न डरै।
उ�र: भगवान य�द चाह� तो �नचल� जा�त म� ज�म लेने वाले �यि�त को भी ऊँची �ेणी दे सकते
ह�।
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पाठ-10
(रह�म के दोहे-) *-रह�म का प�रचय :-
अ�दलु रह�म ख़ानख़ाना का ज�म 17 �दस�बर, 1556 ई. (माघ, कृ�ण प�, गु�वार) को स�ाट
अकबर के ��स�ध अ�भभावक बैरम ख़ाँ के यहाँ लाहौर म� हुआ था. ... बाबर क� सेना म� भत�
होकर रह�म के �पता बैरम ख़ाँ ने अपनी �वामी-भि�त और वीरता का प�रचय �दया और बाबर क�
म�ृयु के बाद हुमायूँ के �व�वासपा� बन गए| ज�म से एक मुसलमान होते हुए भी �हदं ूजीवन के
अतंम�न म� बैठकर रह�म जी ने िजस मा�यम से अ�ंकत �कये थे, उनक� �वशाल �दयता का प�रचय
देती ह�। �हदं ूदेवी-देवताओ,ं पव�, धा�म�क मा�यताओं और परंपराओं का जहाँ भी आपके �वारा
उ�लेख �कया गया है, पूर� जानकार� एवं ईमानदार� के साथ �कया गया है। आप जीवन भर �हदं ू
जीवन को भारतीय जीवन का यथाथ� मानते रहे। रह�म ने का�य
म� रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे �ंथ� के कथानक� को उदाहरण के �लए चनुा है और
लौ�कक जीवन �यवहार प� को उसके �वारा समझाने का �य�न �कया है, जो भारतीय सां�कृ�त
क� वर झलक को पेश करता है।उनके का�य म� शृंगार, शांत तथा हा�य रस �मलते
ह�। दोहा, सोरठा, बरवै, क�व� और सवैया उनके ��य छंद ह�। रह�म दास जी क� भाषा अ�यंत सरल है,
आपके का�य म� भि�त, नी�त, �ेम और �ृगंार का सु�दर समावेश �मलता है। आपने सोरठा एवं
छंद� का �योग करते हुए अपनी का�य रचनाओं को �कया है| आपने �जभाषा म� अपनी का�य
रचनाएं क� है| आपके �ज का �प अ�यंत �यवहा�रक, �प�ट एवं सरल है| आपने तदभव श�द� का
अ�धक �योग �कया है। �ज भाषा के अ�त�र�त आपने कई अ�य भाषाओं का �योग अपनी का�य
रचनाओं म� �कया है| अवधी के �ामीण श�द� का �योग भी रह�म जी ने अपनी रचनाओं म� �कया
है, आपक� अ�धकतर का�य रचनाएं मु�तक शैल� म� क� गई ह� जो�क अ�यंत ह� सरल एवं
बोधग�य
रह�म के दोहे-
र�हमन धागा �ेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से �फर ना �मले, �मले गाँठ प�र जाय॥
रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म के इन दोह� म� रह�म जी ने हम� �ेम क� नाजुकता के बारे म�
बताया है। उनके अनुसार �ेम का बंधन �कसी नाज़ुक धागे क� तरह होता है और इसे बहुत
संभाल कर रखना चा�हए। हम बलपूव�क �कसी को �ेम के बंधन म� नह�ं बाँध सकते। �यादा
�खचंाव आने पर �ेम �पी धागा चटक कर टूट सकता है। �ेम �पी धागे या�न टूटे �र�ते को �फर
से जोड़ना बेहद मुि�कल होता है। अगर हम को�शश� करके �ेम के �र�ते को �फर स ेजोड़ ल�, तब
भी लोग� के मन म� कोई कसक तो बनी ह� रह जाती है। दसूरे श�द� म�, अगर एक बार �कसी के
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B0%E0%A4%B8https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%B8_(%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0)https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%B0%E0%A4%B8_%E0%A4%A4%E0%A4%A5%E0%A4%BE_%E0%A4%89%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AFhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%A0%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%88https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AF%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6
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मन म� आपके ��त �यार क� भावना मर गई, तो वह आपको दोबारा पहले जैसा �यार नह�ं कर
सकता। कुछ न कुछ कमी तो रह ह� जाती है।
2-र�हमन �नज मन क� �बथा ,मन ह�रा खो गोय।
सु�न अ�ठलैह� लोग सब, बाँ�ट न लैहै कोय॥
रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म के इन दोह� म� हम� रह�म जी ने बहुत ह� काम क� सीख द� है।
िजसके बारे म� हम सब जानते ह�। रह�म जी इन पंि�तय� म� कहत ेह� �क अपने मन का दःुख हम�
�वय ंतक ह� रखना चा�हए। लोग ख़शुी तो बाँट लेत ेह�। पर�तु जब बात दःुख क� आती है, तो व े
आपका दःुख सुन तो अव�य लेत ेह�, ले�कन उसे बाँटते नह�ं है। ना ह� उस ेकम करने का �यास
करते ह�। बि�क आपक� पीठ पीछे वे आपके दःुख का मज़ाक बनाकर हंसी उड़ाते ह�। इसी�लए हम�
अपना दःुख कभी �कसी को नह�ं बताना चा�हए।
3-एकै साध ेसब सध,ै सब साध ेसब जाय।
र�हमन मूल�ह ंसीं�चबो, फूलै फल ैअघाय॥
रह�म के दोहे भावाथ� : ��तुत पंि�तय� म� क�व हम� यह �श�ा देत ेह� �क एक बार म� एक ह�
काम करने चा�हए। हम� एक साथ कई सारे काम नह�ं करने चा�हए। ऐस ेम� हमारे सारे काम अधरेू
रह जाते ह� और कोई काम पूरा नह�ं होता। एक काम के पूरा होने से कई सारे काम खदु ह� पूरे
हो जाते ह�। िजस तरह, �कसी पौध ेको फल-फूल देने लायक बनाने हेत,ु हम� उसक� जड़ म� पानी
डालना पड़ता है। हम उसके तने या प�� पर पानी डालकर फल �ा�त नह�ं कर सकते। ठ�क इसी
�कार, हम� एक ह� �भु क� ��ृधापूव�क आराधना करनी चा�हए। अगर हम अपनी आ�था-�पी जल
को अलग-अलग जगह �यथ� बहाएंगे, तो हम� कभी भी मो� �ा�त नह�ं हो सकता।
4-�च�कूट म� र�मरहे,र�हमन अवध- नरेस।
जा पर �बपदा पड़तहै,सो आवत यह देस
रह�म के दोहे भावाथ� : इन पंि�तय� म� रह�म जी ने राम के वनवास के बारे म� बताया है। जब
उ�ह� 14 वष� का वनवास �मला था, तो वे �च�कूट जैस ेघने जंगल म� रहन ेके �लए बा�य हुए थे।
रह�म जी के अनुसार, इतने घने जंगल म� वह� रह सकता है, जो �कसी �वपदा म� हो। नह�ं तो, ऐसी
प�रि�थ�त म� कोई भी अपने मज़� से रहन ेनह�ं आएगा।
5-द�रघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आ�ह|ं
�य� रह�म नट कंुडल�, �स�म�ट कू�द च�ढ़ जा�ह ं ||
रह�म के दोहे भावाथ� : ��तुत पंि�तय� म� क�व ने हम� एक दोहे क� मह�ा के बारे म� बताया है।
दोहे के चदं श�द� म� ह� ढेर सारा �ान भरा होता है, जो हम� जीवन क� बहुत सार� मह�वपूण�
सीख दे जाते ह�। िजस तरह, कोई नट कंुडल� मारकर खदु को छोटा कर लेता है और उसके बाद
ऊंचाई तक छलांग लगा लेता है। उसी तरह, एक दोहा भी कुछ ह� श�द� म� हम� ढेर सारा �ान दे
जाता है।
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6-ध�न रह�म जल पंक को लघु िजय �पयत अघाय |
उद�ध बड़ाई कौन है, जगत �पआसो जाय||
रह�म के दोहे भावाथ� : ��तुत पंि�तय� म� कबीर दास जी कहत ेह� �क वह क�चड़ का थोड़ा-सा
पानी भी ध�य है, जो क�चड़ म� होने के बावजूद भी ना जान े�कतने क�ड़-ेमकौड़� क� �यास बुझा
देता है। वह�� दसूर� ओर, सागर का अपार जल जो �कसी क� भी �यास नह�ं बुझा सकता, क�व को
�कसी काम का नह�ं लगता। यहाँ क�व ने एक ऐस ेगर�ब के बारे म� कहा है, िजसके पास धन नह�ं
होने के बावजूद भी वह दसूर� क� मदद करता है। साथ ह� एक ऐस ेअमीर के बारे म� बताया है,
िजसके पास ढेर सारा धन होने पर भी वह दसूर� क� मदद नह�ं करता।
7-नाद र��झ तन देत मगृ, नर धन देत समेत |
त ेरह�म पश ुसे अ�धक, र�झहुे कछू न देत ||
रह�म के दोहे भावाथ� : यहाँ पर क�व ने �वाथ� मनु�य के बारे म� बताया है और उस ेपश ुसे भी
बदतर कहा है। �हरण एक पशु होने पर भी मधरु �व�न से मु�ध होकर �शकार� पर अपना सब
कुछ �योछावर कर देता है। जैस ेकोई मनु�य कला से �स�न हो जाए, तो �फर वह धन के बारे म�
नह�ं सोचता, अ�पतु वह अपना सारा धन कला पर �योछावर कर देता है। पर�तु कुछ मनु�य पशु
से भी बदतर होत ेह�, व ेकला का लु�फ़ तो उठा लेत ेह�, पर�तु बदले म� कुछ नह�ं देते।
8-�बगर� बात बनै नह�,ं लाख करौ �कन कोय |
र�हमन फाटे दधू को, मथ ेन माखन होय ||
रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म जी ने हम� जीवन स ेसंबं�धत कई �श�ाए ँद� ह� और उ�ह� म� से एक
�श�ा यह है �क हम� हमेशा को�शश करनी चा�हए �क कोई बात �बगड़ ेनह�ं। िजस �कार, अगर
एक बार दधू फट जाए, तो �फर लाख को�शश� के बावजूद भी हम उस ेमथ कर माखन नह�ं बना
सकते। ठ�क उसी �कार, अगर एक बार कोई बात �बगड़ जाए, तो हम उस ेपहले जैसी ठ�क कभी
नह�ं कर सकते ह�। इस�लए बात �बगड़ने स ेपहले ह� हम� उस ेसंभाल लेना चा�हए।
9-र�हमन दे�ख बड़ने को, लघु न द�िजये डा�र|
जहा ँकाम आवे सुई, कहा करे तरवा�र|
रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म जी ने हम� इस दोहे म� जो �ान �दया है, उस ेहम� हमेशा याद रखना
चा�हए। ये पूर� िजंदगी हमारे काम आएगा। रह�म जी के अनुसार, हर व�त ुया �यि�त का अपना
मह�व होता है, �फर चाहे वह छोटा हो या बड़ा। हम� कभी भी �कसी बड़ े�यि�त या व�तु के �लए
छोट� व�तु या �यि�त क� उपे�ा नह�ं करनी चा�हए। क�व कहत ेह� �क जहा ँसुई का काम होता
है, वहां पर तलवार कोई काम नह�ं कर पाती, अथा�त तलवार के आकार म� बड़ ेहोने पर भी वह
काम क� सा�बत नह�ं होती, जब�क सुई आकार म� अपे�ाकृत बहुत छोट� होकर भी कारगर सा�बत
होती है। इसी�लए हम� कभी धन-संप��, ऊँच-नीच व आकार के आधार पर �कसी चीज़ क� उपे�ा
नह�ं करनी चा�हए।
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10-र�हमन �नज संप�त �बना, कौ न �बप�त सहाय|
�बनु पानी �य� जलज को, न�ह ंर�व सके बचाय||
रह�म के दोहे भावाथ� : ��तुत पंि�तय� म� क�व हमसे कह रहे ह� �क जब मुि�कल समय आता है,
तो हमार� खदु क� स�प�� ह� हमार� सहायता करती है। अथा�त हम� खदु क� सहायता खदु ह�
करनी होती है, दसूरा कोई हम� उस �वप�� से नह�ं �नकाल सकता। िजस �कार पानी के �बना
कमल के फूल को सूय� के जैसा तेज�वी भी नह�ं बचा पाता और वह मुरझा जाता है। उसी �कार
�बना संप�� के मनु�य का जीवन-�नवा�ह हो पाना असंभव है।
11-र�हमन पानी रा�खए, �बनु पानी सब सनू| ।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चनू|| ॥
रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म जी ने अपने दोह� म� जीवन के �लए जल के मह�व का वण�न �कया
है। उनके अनुसार हमेशा पानी को हमेशा बचाकर रखना चा�हए। यह बहुमू�य होता है। इसके
�बना कुछ भी संभव नह�ं है। �बना पानी के हम� न मोती म� चमक �मलेगी और न हम जी�वत
रह पाएंगे। यहाँ पर मन�ुय के संदभ� म� क�व ने मान-मया�दा को पानी क� तरह बताया है। िजस
तरह पानी के �बना मोती क� चमक चल� जाती है, ठ�क उसी तरह, एक मनु�य क� मान-मया�दा
��ट हो जान ेपर उसक� ��त�ठा �पी चमक ख�म हो जाती है।
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*-�न�न पंि�तय� का आशय �प�ट क�रये -
अ-�मलै गाँठ पार� जाय- का आशय �प�ट क�रये |
�मलै गाँठ प�र जाए का अथ� है �क एक बार य�द स�ब�ध �बगर जाए तो �फर कभी भी पहले
जैसे मधरु नह�ं बन पाते |
ब-दःुख बाँटने का �या अथ� है?
-दःुख बांटने का अथ� है �क अपना दःुख एक दसुरे को बताना ,िजससे दःुख कम हो सके,
सहानुभू�त �य�त करना |
क-एकै साधे सब सधै- से क�व ने �या �ेरणा द� है?
-एकै साध ै,सब सध ै–दोहे म� क�व ने मह�वपूण� ल�य को �ा�त करने क� �ेरणा द� |
ख-सब सध ैसब जाये –का �या आशय है?
सब साधे सब जाय का आशय है �क हमे मूल ल�य को �यान म� रख केर कम करना चा�हय|
हर का के पीछे एक साथ भागने से हमारा कोइ भी कम पूरा नह� होगा| हमारे सरे कम �बगर
जायगे|
ग-�कस तरह के लोग �च�कूट आते है?
जो लोग बहुत दखुी होते है ,�ह� लोग �च�कूट आते है| क�व ने �प�ट �कया है �कअवध के रजा
राम वनवास के समय �च�कूट आय थ|े
घ-रह�म के अनुसार �वप�� म� कौन हमारे सहायक होते है?
-रह�म के अनुसार �वप�� के समय केवल हमार� अपनी धन –स�प�त ह� सहायक होती है|
च-र�हमन पानी रा�खये –का �या अथ� है?
-र�हमन पानी रा�खय का अथ� है �क मनु�य को अपना मान स�मान बने रखना चा�हय ,�य��क
मान स�मान ह� मनु�य के पास सबसे बड़ी स�प�� है|
छ-�ेम�पी धागे क� �या �वशषेता है?
�ेम�पी धागे क� �वशेषता है �क यह �ेम का बंधन जब एक बार जुड़ जाता है तो ज�द� नह�
टूटता ,और य�द एक बार टूट जाय तो �फर लाख को�शश करने पैर भी पहले जैसा नह� बन
पाता| अथा�त बंधन �वशवास पैर ह� �टका होता है|
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संचयन-भाग
पाठ-1
(�ग�लू)
*-श�दाथ�:- 1-सोनजुह�-जूह� का �पला फूल 2-लघ�ुाण-छोटा जीव
3-छुआ छूआवन-चुपके स ेछुना 4-समाद�रत-�वशषे स�मान
5-अनाद�रत –अपमान 6-अ�तीण�-�कट
7-का��व-ेदो कौए 8-�न�चे�ट-�बना �कसी हरकत के
9-आ�वासन –�नि�च�त 10-वीि�मत-च�कत
11-नीड़-घ�सला 12-पीता�भ –पीला रंग का
��न-उ�र:-
1: सोनजूह� म� लगी पील� कल� को देख ले�खका के मन म� कौन से �वचार उमड़ने लगे?
1: सोनजूह� म� लगी पील� कल� को देख ले�खका को �ग�लू क� याद आ गई। �ग�लू एक �गलहर�
थी िजसक� जान ले�खका ने बचाई थी। उसके बाद से �ग�लू का पूरा जीवन ले�खका के साथ ह�
बीता था।
2: पाठ के आधार पर कौए को एक साथ समाद�रत और अनाद�रत �ाणी �य� कहा गया है?
2: �हदं ूधम� म� ऐसी मा�यता है �क �पतरप� के समय हमारे पूव�ज कौवे के भेष म� आते ह�। एक
अ�य मा�यता है �क जब कौवा काँव काँव करता है तो इसका मतलब होता है �क घर म� कोई
मेहमान आने वाला है। इन कारण� से कौवे को स�मान �दया जाता है। ले�कन दसूर� ओर, कौवे के
काँव काँव करने को अशुभ भी माना जाता है। इस�लए कौवे को एक साथ समाद�रत और
अनाद�रत �ाणी कहा गया है।
3: �गलहर� के घायल ब�च ेका उपचार �कस �कार �कया गया?
3: �गलहर� के घायल ब�च ेके घाव पर लगे खनू को पहले �ई के फाहे से साफ �कया गया।
उसके बाद उसके घाव पर प��स�लन का मलहम लगाया गया। उसके बाद �ई के फाहे से उसे दधू
�पलाने क� को�शश क� गई जो असफल रह�। लगभग ढ़ाई घंटे के उपचार के बाद �गलहर� के
ब�च ेके मँुह म� पानी क� कुछ बँूद� जा सक�ं।
4: ले�खका का �यान आक�ष�त करने के �लए �ग�लू �या करता था?
4: ले�खका का �यान आक�ष�त करने के �लए �ग�लू उनके पैर� के पास आता और �फर सर� से
परदे पर चढ़ जाता था। उसके बाद वह परदे से उतरकर ले�खका के पास आ जाता था। यह
�सल�सला तब तक चलता रहता था जब तक ले�खका �ग�लू को पकड़ने के �लए दौड़ न लगा
देती थीं।
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5: �ग�लू को मु�त करने क� आव�यकता �य� समझी गई और उसके �लए ले�खका ने �या उपाय
�कया?
5: �ग�लू अब युवाव�था म� �वेश कर रहा था। उसे एक जीवन साथी क� ज�रत थी। इस�लए
�ग�लू को मु�त करने क� आव�यकता समझ म� आई। इसके �लए ले�खका ने �खड़क� क� जाल�
का एक कोना अलग करके �ग�लू के �लए बाहर जाने का रा�ता बना �दया।
6: �ग�लू �कन अथ� म� प�रचा�रका क� भू�मका �नभा रहा था?
6: जब ले�खका बीमार पड़ीं तो �ग�लू उनके �सर के पास बैठा रहता था। वह अपने न�हे पंज� से
ले�खका के �सर और बाल को सहलाता रहता था। इस तरह से वह �कसी प�रचा�रका क� भू�मका
�नभा रहा था।
7: �ग�लू �क �कन च�ेटाओं से यह आभास �मलने लगा था �क अब उसका अतं समय समीप है?
7: �ग�लू ने �दन भर कुछ नह�ं खाया था। रात म� वह बहुत तकल�फ म� लग रहा था। उसके
बावजूद वह अपने झूले से उतरकर ले�खका के पास आ गया। �ग�लू ने अपने ठंड ेपंज� से
ले�खका �क अगंुल� पकड़ ल� और उनके हाथ से �चपक गया। इससे ले�खका को लगने लगा �क
�ग�लू का अतं समय समीप ह� था।
8: ‘�भात क� �थम �करण के �पश� के साथ ह� वह �कसी और जीवन म� जागने के �लए सो गया’
– का आशय �प�ट क�िजए।
8: सुबह क� पहल� �करण �नकलते ह� �ग�लू के �ाण पखे� उड़ गये। इस पंि�त म� ले�खका ने
पुनज��म क� मा�यता को �वीकार �कया है। ले�खका को लगता है �क �ग�लू अपने अगले ज�म
म� �कसी अ�य �ाणी के �प म� ज�म लेगा।
9: सोनजूह� क� लता के नीच ेबनी �ग�लू क� समा�ध से ले�खका के मन म� �कस �व�वास का
ज�म होता है?
9: ले�खका को लगता है �क �ग�लू अपने अगले ज�म म� सोनजूह� के पीले फूल के �प म�
आयेगा।
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2. लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?3. मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है?4. धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?5. हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?6. लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है?7. लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है?8. ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?9. ‘हीरा वही घन चोट न टूटे’ – का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।10. धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।11. ‘धूल’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –�1. फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवताको निखार देती है।2. ‘धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की’ – लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?3. मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।4. हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।5. वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –�1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?2. खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूज़े क्यों नहीं खरीद रहा था?3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?5. बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता? �निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –�6. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?7. पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?8. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?9. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?10. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने क्यों चल पड़ी?11. बुढ़िया के दु:ख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?12. बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखि�
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