kenopanishad (केनोपनिषद)
Post on 30-Nov-2015
276 Views
Preview:
DESCRIPTION
जो अपने मूल की ओर मुड़ता है, वह महान बनता है। जीव का अंतिम लक्ष्य है अपने मूल की प्राप्ति। मूल (स्वरुप) का अनुसन्धान कैसे हो इसके लिए ऋषियों ने उपनिषदों की शरणागति ग्रहण करने की बात कही है। ब्रह्म सदा से जिज्ञासा का बिषय रहा है। ब्रह्म बिषयक जिज्ञासा का समाधान उपनिषद् सम्यक रूपेण करते हैं। केनोपनिषद में उस आगम ब्रह्म को अनुभव गम्य कैसे बनाया जाय, जो मन, बुद्धि से परे है, इन सारे प्रश्नों का उत्तर प्राप्त है।.................................................................................................................................................................................................... मैं न तो यह मानता हूँ कि ब्रह्म को अच्छी तरह जान गया हूँ और न ही यह समझता हूँ कि उसे नहीं जानता। इसलिए मैं उसे जानता हूँ (और नहीं भी जानता)। हम शिष्यों में जो उसे न तो न ही जानता है और 'जानता ही हूँ' इस प्रकार जानता है, वही जानता है।
TRANSCRIPT
top related