shirdi shri sai baba ji - real story 028
Post on 13-Apr-2017
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पंडि�तजी चुपचाप बैठे अपन ेभडि�ष्य के डि�षय में चिचंतन कर रहे थे| उन्हें पता ही नहीं चला डिक कब एक आदमी उनके पास आकर खड़ा हो गया है| जब पंडि�तजी ने कुछ ध्यान न दिदया तो, उसने स्�यं आ�ाज दी|
"राम-राम पंडि�तजी|“
पंडि�तजी चौंक गये|
"क्या बात है, डिकस सोच में पडे़ हो ?“
पंडि�तजी ने देखा तो देखते ही रह गये| उनके सामने लक्ष्मण खड़ा था|
"लक्ष्मण...तुम...|"
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"हा ंपंडि�तजी|“
"कब आये ?" -पूछा पंडि�तजी ने|
"बस सीधे आपके पास ही चला आ रहा हूं|" लक्ष्मण पंडि�तजी के पास बैठ गया|
पंडि�तजी अभी भी उसे एकटक देखे जा रहे थे| कोई दो साल के बाद लक्ष्मण को देखा था| लक्ष्मण शि:र�ी का म:हूर बदमा: था| दो साल की सजा भुगतने के बाद अब �ह जेल से सीधा आ रहा था| लक्ष्मण का इस दुडिनया में कोई न था| �ह एकदम अकेला था| आ�ारागद>, चोरी, गंु�ागद>, छेड़छाड़, मारपीट करना ही उसके काम थे|
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लक्ष्मण बोला - "क्या बात है, बडे़ चुपचाप और उदास से बैठे हैं आज आप ?“
"हा|ं" - पंडि�तजी ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा|
"क्या बात हो गयी ?“
"कुछ न पूछ लक्ष्मण ! इस गां� में एक चमत्कारी बाबा आया है| उसने मेरा सारा धंधा-पानी ही चौपट कर दिदया है| अब तो भूखों मरने की नौबत आ गयी है|“
लक्ष्मण आश्चयF से बोला - "कौन है �ह ?“
"लोग उसको साईं बाबा कहते हैं|"
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"अच्छा कहां का है �ह ?“
"क्या पता ?" पंडि�तजी ने कहा - "तुम अपना हालचाल कहो|“
"बस ! सीधा जेल से छूटते ही यहां चला आ रहा हूं|" लक्ष्मण मुस्कराया - "यदिद तुम कहो तो बाबा को अपना चमत्कार दिदखा दंू|" और �ह हँसने लगा|
�ैसे इससे पहले कई बार लक्ष्मण की सहायता से पंडि�त अपने डि�रोधिधयों को धूल चट�ा चुका था|
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�ह सोचने लगा, सांप की उस चमत्कारी घटना के कारण, जो स्�यं उसके साथ घदिटत हुई थी, �ह भुला न पा रहा था|
"बोलो पंडि�तजी ! क्या डि�चार है ?“
"कोशि:: कर लो !“
"कोशि:: क्यों ? मैं करके दिदखा दंूगा| एक ही दिदन में छोड़कर भाग जाएगा|" लक्ष्मण हँसन ेलगा|
"जैसी तुम्हारी इच्छा|“
"क्या मैं तुम्हारे शिलए इतना छोटा-सा काम नहीं कर सकता हूं ?" लक्ष्मण ने कहा - "आपके तो बहुत अहसमान हैं मुझ पर|"
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"पंडि�त चुप रह गया|“
"कहां रहता है �ह चमत्कारी बाबा ?“
"द्वारिरकामाई मस्जिस्जद में|“
"क्या पता, कभी �ह मुसलमान बन जाता है और कभी डिहन्दू ! क्या है �ह, कुछ पता नहीं|“
"ठीक है, मैं देख लूंगा उसे|“
"जरा सा�धानी से|" पंडि�त बोला - "सुना है, बड़ा चमत्कारी है �ह|"
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"अच्छा-अच्छा|" लक्ष्मण बोला - "ख्याल रखूंगा|“
"ठीक है सुबह-:ाम मेरे यहां आकर खाना खा गया जाया करो| रात मैं बरामदा सोने के शिलए है ही|“
लक्ष्मण चला गया|
पंडि�त चिचंता में पड़ गया| कहीं डिTर उसने आत्मघाती कदम तो नहीं उठा शिलया| यदिद चमत्कार हो गया तो इस बार साईं बाबा उसे माT नहीं करेगा| �ह परे:ान था डिक आखिखर यह साईं है क्या ?
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लक्ष्मण पंडि�त के पास से उठकर सीधे द्वारिरकामाई मस्जिस्जद गया| टूटी-Tूटी द्वारिरका मस्जिस्जद का कायाकल्प देखकर �ह हैरान रह गया| मस्जिस्जद में चहल-पहल थी| साईं बाबा की धूनी जली हुई थी| �ह उनकी धूनी के पास जाकर बैठ गया|
साईं बाबा के पास उनके शि:ष्य बैठे थे| लक्ष्मण ने देखा, साईं बाबा कोई डि�:ेष नहीं है| दुबला-पतला, इकहरा बदन है| एक ही हाथ में जमीन संूघ जाएगा| हां, चेहरे पर एक अजीब-सा आकषFक-तेज अ�श्य था|“
साईं बाबा ने लक्ष्मण की ओर नजर उठाकर भी न देखा| अजनबी होने के बा�जूद उससे पूछताछ न की|
शि:ष्यगण चले गए| लक्ष्मण अकेला बैठा रह गया|
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उसकी उपस्जिYडित की स�Fथा उपेक्षा कर साईं बाबा आँखें मूंदकर लेट गए| मौका अच्छा जानकर, लक्ष्मण बाबा को धमकी देने के बारे में डि�चार कर रहा था|
इससे पहले डिक �ह कुछ बोलता, साईं बाबा ने स्�यं कहा –
"मैं जानता हूं डिक तू मुझे मारने आया है|“
यह बात सुनते ही लक्ष्मण बुरी तरह से चौंक गया| �ह बुरी तरह घबरा गया|
"मार, मार दे मुझे और अपनी इच्छा पूरी कर ले|"
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साईं बाबा का चेहरा बुरी तरह से तमतमा गया|
लक्ष्मण को काटो तो खून न था| �ह काठ के समान जड़ होकर रह गया| साईं बाबा का रौद्र रूप देखकर �ह घबरा गया| उसका :रीर पसीने से तर-ब-तर हो गया|
"कोई हशिथयार लाया है या खाली हाथ आया है?" – साईं बाबा बोले|
�ह घबरा गया|
"बोल, ज�ाब दे|“
लक्ष्मण पसीन-ेपसीने हो गया| �ह घबराकर साईं बाबा के चरणों पर डिगर गया और डिगड़डिगड़ाने लगा - "क्षमा कर दो बाबा| क्षमा कर दो|"
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"मेरे पैर छोड़|“
"जब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे, तब तक मैं आपके पैर नहीं छोडं़ूगा| आप तो अंतयाFमी हैं| मैं आपकी मडिहमा को न जान सका|“
"जा माT डिकया| नेक आदमी बन|“
लक्ष्मण चुपचाप शिसर झुकाकर चला गया|
तब साईं बाबा खिखलखिखलाकर हँस पडे़| एकदम बच्चों के समान थी उनकी हँसी| यह अंदाजा लगाना मुश्किश्कल था डिक कुछ समय पू�F उनका रूप बेहद रौद्र हो गया था|
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साईं बाबा के पास उनका एक शि:ष्य आया, तो �ह बड़बड़ा रहे थे - "कुते्त की पूँछ क्या भला कभी सीधी हो सकती है ?“
शि:ष्य इस बात को समझ न पाया|
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लक्ष्मण ने पंडि�त के पास जाकर हाथ जोड़कर सारा डिकस्सा बताया, तो पंडि�त का मन ग्लानी, पश्चात्ताप से भर गया| �ह साईं बाबा को मान गया| उसने साईं बाबा का डि�रोध करना बंद कर दिदया और उनका परमभक्त बन गया|
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