shivaji college · 2020. 3. 25. · है पर eयान का कोई मह \व नह m,...

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  • कबीर के दोहो की ा�ा एवं संदभ�

    1. hindivibhag.com/kabir-ke-dohe/

    2. https://www.bing.com/videos/search?q=%e0%a4%95%e0%a4%ac%e0%a5%80%e0%a4%b0+%e

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    4. https://www.achhikhabar.com/2013/03/03/kabir-das-ke-dohe-with-meaning-in-hindi/

    कबीर श द का अथ इ लाम के अनुसार महान होता ह.ै वह एक ब त बड़ ेअ याि मक ि थ ेजो क साधू का जीवन तीत करने लगे, उनके भावशाली ि व के कारण उ ह पूरी दिुनया क िसि ा ई. कबीर हमेशा जीवन के कम म िव ास करते थे वह कभी भी अ लाह और राम के बीच भेद नह करते थ.े उ ह ने हमेशा अपने उपदशे म इस बात का िज कया क ये दोन एक ही भगवान के दो अलग नाम ह.ै उ ह ने लोग को उ जाित और नीच जाित या कसी भी धम को नकारते ए भाईचारे के एक धम को मानने के िलए े रत कया. कबीर दास

    ने अपने लखेन से भि आ दोलन को चलाया ह.ै कबीर पथं नामक एक धा मक समुदाय ह,ै जो कबीर के अनुयायी ह ैउनका ये मानना ह ै क उ ह ने संत कबीर स दाय का िनमाण कया ह.ै इस स दाय के लोग को कबीर पथंी कहा जाता ह ैजो क पुरे दशे म फैल े ए

    ह.ै

  • कबीर दास के दोह े हदंी अथ सिहत बुरा जो दखेन म चला, बुरा न िमिलया कोय, जो दल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय. अथ : जब मेने इन संसार म बुराई को ढूढा तब मझेु कोई बुरा नह िमला जब मेने खुद का िवचार कया तो मुझस ेबड़ी बुराई नह िमली . दसुरो म अ छा बुरा दखेने वाला ि सदवै खुद को

    नह जनता . जो दसुरो म बुराई ढंूढते ह ैवा तव म वही ँसबस ेबड़ी बुराई ह ै. पोथी प ढ़ प ढ़ जग मुआ, पंिडत भया न कोय, ढाई आखर ेम का, पढ़े सो पंिडत होय. अथ : उ ान ा करने पर भी हर कोई िव ान् नह हो जाता . अ र ान होने के बाद भी अगर उसका मह व ना जान पाए, ान क क णा को जो जीवन म न उतार पाए तो वो अ ानी ही ह ैले कन जो ेम के ान को जान गया, िजसने यार क भाषा को अपना िलया वह िबना अ र ान के िव ान हो जाता ह.ै धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली स चे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय. अथ : कबीर दास जी कहते ह क इस दिुनयाँ म जो भी करना चाहते हो वो धीरे-धीरे होता ह अथात कम के बाद फल ण म नह िमलता जैसे एक माली कसी पौधे को जब तक सो घड़ ेपानी नह दतेा तब तक ऋतू म फल नही आता. धीरज ही जीवन का आधार ह,जीवन के हर दौर म धीरज का होना ज री ह ै फर वह िव ाथ जीवन हो, वैवािहक जीवन हो या ापा रक जीवन . कबीर ने कहा ह ैअगर कोई माली कसी पौधे को 100 घड़ ेपानी भी डाल,े तो वह एक दन म बड़ा नह होता और नाही िबन मौसम फल दतेा ह ै. हर बात का एक िनि त व होता ह ैिजसको ा करने के िलए ि म धीरज का होना आव यक ह ै. जाित न पूछो साधु क , पूछ लीिजये ान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो यान. अथ : कसी भी ि क जाित से उसके ान का बोध नह कया जा सकता , कसी स न क स नता का अनुमान भी उसक जाित स ेनह लगाया जा सकता इसिलए कसी से उसक जाित पूछना थ ह ैउसका ान और वहार ही अनमोल ह ै . जैसे कसी तलवार का अपना मह व

  • ह ैपर यान का कोई मह व नह , यान महज़ उसका उपरी आवरण ह ैजैसे जाित मनु य का केवल एक शाि दक नाम. बोली एक अनमोल ह,ै जो कोई बोल ैजािन, िहये तराजू तौिल के, तब मुख बाहर आिन. अथ : िजसे बोल का मह व पता ह ैवह िबना श द को तोल ेनह बोलता . कहते ह ै क कमान स ेछुटा तीर और मुंह स ेिनकले श द कभी वापस नह आते इसिलए इ ह िबना सोचे-समझे इ तेमाल नह करना चािहए . जीवन म व बीत जाता ह ैपर श द के बाण जीवन को रोक दतेे ह ै. इसिलए वािण म िनयं ण और िमठास का होना ज री ह ै. चाह िमटी, चंता िमटी मनवा बेपरवाह, िजसको कुछ नह चािहए वह शहनशाह॥ अथ : कबीर ने अपने इस दोह ेम ब त ही उपयोगी और समझने यो य बात िलखी ह क इस दिुनयाँ म िजस ि को पाने क इ छा ह उस ेउस चीज को पाने क ही चंता ह, िमल जाने पर उसे खो दनेे क चंता ह वो हर पल बैचेन ह िजसके पास खोने को कुछ ह ले कन इस दिुनयाँ म वही खुश ह िजसके पास कुछ नह , उसे खोने का डर नह , उसे पाने क चंता नह , ऐसा

    ि ही इस दिुनयाँ का राजा ह माटी कह ेकु हार स,े तु या र द ेमोय, एक दन ऐसा आएगा, म र दगूी तोय॥ अथ : ब त ही बड़ी बात को कबीर दास जी ने बड़ी सहजता से कहा दया . उ ह ने कु हार और उसक कला को लेकर कहा ह क िम ी एक दन कु हार से कहती ह क तू या मुझे कूट कूट कर आकार द ेरहा ह एक दन आएगा जब तू खुद मझु म िमल कर िनराकार हो जायेगा अथात कतना भी कमकांड कर लो एक दन िम ी म ही समाना ह .

    माला फेरत जुग भया, फरा न मन का फेर, कर का मन का डार द,े मन का मनका फेर ॥ अथ : कबीर दास जी कहते ह क लोग स दय तक मन क शांित के िलये माला हाथ म लकेर ई र क भि करते ह ले कन फर भी उनका मन शांत नह होता इसिलये कवी कबीर दास कहते ह – ह ेमनु य इस माला को जप कर मन क शांित ढंूढने के बजाय तू दो पल अपने मन को टटौल, उसक सुन दखे तुझे अपने आप ही शांित महससू होने लगेगी . ितनका कब ँना नंदये, जो पाँव तले होय .

  • कब ँउड़ आँखो पड़,े पीर घानेरी होय ॥ अथ : कबीर दास कहते ह जैसे धरती पर पड़ा ितनका आपको कभी कोई क नह प चँाता ले कन जब वही ितनका उड़ कर आँख म चला जाये तो ब त क दायी हो जाता ह अथात जीवन के े म कसी को भी तु छ अथवा कमजोर समझने क गलती ना करे जीवन के े म कब कौन या कर जाये कहा नह जा सकता . गु गो वंद दोन खड़,े काके लागंू पाँय, बिलहारी गु आपनो, गो वंद दयो िमलाय ॥ अथ : कबीर दास ने यहाँ गु के थान का वणन कया ह वे कहते ह क जब गु और वयं ई र एक साथ हो तब कसका पहले अिभवादन करे अथात दोन म से कसे पहला थान द े? इस पर कबीर कहते ह क िजस गु ने ई र का मह व िसखाया ह िजसने ई र स ेिमलाया ह वही

    े ह यंू क उसने ही तु ह ेई र या ह बताया ह और उसने ही तु ह ेइस लायक बनाया ह क आज तुम ई र के सामने खड़ ेहो . सुख म सुिमरन सब करै दखु म करै न कोई, जो दखु म सुिमरन करै तो दखु काह ेहोई अथ : कबीर दास जी कहते ह जब मनु य जीवन म सखु आता ह तब वो ई र को याद नह करता ले कन जैसे ही दःुख आता ह वो दौड़ा दौड़ा ई र के चरण म आ जाता ह फर आप ही बताये क ऐसे भ क पीड़ा को कौन सुनेगा ? सा इतना दीिजये, जा मे कुटुम समाय, म भी भखूा न र ,ँ साधु ना भूखा जाय ॥ अथ : कबीर दास कहते ह क भ ुइतनी कृपा करना क िजसम ेमेरा प रवार सखु स ेरह ेऔर ना मै भखूा र और न ही कोई सदाचारी मनु य भी भूखा ना सोये . यहाँ कवी ने प रवार म संसार क इ छा रखी ह . कबीरा ते नर अँध ह,ै गु को कहते और, ह र ठे गु ठौर ह,ै गु ठे नह ठौर ॥ अथ : कबीर दास जी ने इस दोह ेम जीवन म गु का या मह व ह वो बताया ह . वे कहते ह क मनु य तो अँधा ह सब कुछ गु ही बताता ह अगर ई र नाराज हो जाए तो गु एक डोर ह जो ई र स ेिमला दतेी ह ले कन अगर गु ही नाराज हो जाए तो कोई डोर नही होती जो सहारा द े. माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर

  • आशा तृ णा न मरी, कह गए दास कबीर अथ : किववर कबीरदास कहते ह मनु य क इ छा, उसका ए य अथात धन सब कुछ न होता ह यहाँ तक क शरीर भी न हो जाता ह ले कन फर भी आशा और भोग क आस नह मरती . बडा आ तो या आ जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नही फल लागे अित दरू अथ : कबीरदास जी ने ब त ही अनमोल श द कह ेह क यँूही बड़ा कद होने स ेकुछ नह होता यंू क बड़ा तो खजूर का पेड़ भी ह ले कन उसक छाया राहगीर को दो पल का सकूुन नही द े

    सकती और उसके फल इतने दरू ह क उन तक आसानी से प चंा नह जा सकता . इसिलए कबीर दास जी कहते ह ऐसे बड़ ेहोने का कोई फायदा नह , दल स ेऔर कम स ेजो बड़ा होता ह वही स ा बड़ पन कहलाता ह .

    सतं कबीर दास का ज म, मृ य ुऔर पा रवा रक जीवन कबीर दास का ज म सन 1440 म आ था और 1518 म इनक मृ यु हो गयी थी. कबीर दास के माता िपता के बारे म कोई जानकारी नह ह ैहालाँ क ऐसा माना जाता ह ै क उनका ज म िह द ूधम के समुदाय म आ था, ले कन उनका पालन पोषण एक गरीब मुि लम प रवार के

    ारा कया गया था. िजस द पित ने उनका पालन कया था उनके नाम नी और नीमा थ,े कबीर उ ह वाराणसी के लहरतारा के छोटे स ेशहर म िमल ेथ.े ये द पित ब त ही गरीब मुि लम बुनकर होने के साथ ही अिशि त भी थ,े ले कन उ ह ने बड़ े यार स ेकबीर को पाला था, वह उनके पास एक साधारण और संतुिलत जीवन तीत कर रह ेथ.े ऐसा माना जाता ह ैक संत कबीर का प रवार अभी भी वाराणसी के कबीर चौरा म रह रहा ह.ै

    कबीरदास का जीवन प रचय

    SN बदं ु कबीरदास प रचय

    1 ज म 1440 वाराणसी

    2 मृ यु 1518 मघर

    3 िस ी कवी, संत

  • 4 धम इ लाम

    5 रचना कबीर थावली, अनुराग सागर, सखी थ,बीजक

    सतं कबीर दास क िश ा माना जाता ह ै क संत कबीर दास क शु आती िश ा उनको रामानंद जो उनके बचपन के गु थ,े उ ह ने दी थी. कबीर ने उनस ेअ याि मक िश ण को ा कया और बाद म वो उनके

    िस ि य िश य बन गए. उनके बचपन के क से म यह माना जाता ह ै क रामानंद उ ह अपने िश य के प म वीकार नह करना चाहते थ,े ले कन एक सुबह जब रामानंद ान करने जा रह ेथे तब उस व कबीर तालाब क सी ढय पर बैठ कर रामा रामा मं का जाप कर रह ेथ,े अचानक रामानंद ने दखेा क कबीर उनके परै के नीचे ह ैतब वो अपने आप को दोषी महससू करते ए उ ह अपने िश य के प म वीकार कर िलए. ावसाियक प से उ ह ने कभी भी कोई क ा म जाकर अ ययन नह कया, ले कन रह यमयी प से वो ब त जानकर ि थे. उ ह ने ज, अविध और भोजपुरी जैसी कई औपचा रक भाषा म दोह को िलखा था.

    सतं कबीर दास के िवचार कबीर दास पहले ऐस ेसतं ह ैिज ह ने िह द ूधम और इ लाम धम दोन के िलए सावभौिमक प को अपनाते ए दोन धम का पालन कया. उनके अनुसार जीवन और परमा मा का अ याि मक सबंध ह ैऔर मो के बारे म उ ह ने ये िवचार कये क जीवन और परमा मा इन दो द िस ांत को यह एकजुट करने क या ह.ै ि गत प स ेकबीर ने केवल ई र म एकता का अनुसरण कया, ले कन उ ह ने िह द ूधम के मू त पूजा म कोई िव ास नह दखाया. उ ह ने भि और सफू िवचार के ित िव ास दखाया. उ ह ने लोग को े रत

    करने के िलए अपने दाशिनक िवचार को दया.

    सतं कबीर दास का ि गत जीवन कुछ ने उप ा याियत कया ह ै क कबीर ने कभी भी शादी नह क थी वो हमेशा अिववािहत जीवन ही तीत कये थ,े ले कन कुछ िव ान ने सािह य िन कष िनकालते ए ये दावा कया ह ै क कबीर ने शादी क थी, और उनक प ी का नाम धा रया था. साथ ही उ ह ने ये भी दावा

  • कया क उनके एक पु िजसका नाम कमल था और एक पु ी भी थी िजसका नाम कमली था.

    सतं कबीर दास के काय कबीर और उनके अनुयाियय ने अपनी मौिखक प से रिचत किवता को बावंस कहा. कबीर दास क भाषा और लखेन क शलैी सरल और सु दर ह ैजो क अथ और मह व स ेप रपूण ह.ै उनके लखेन म सामािजक भेदभाव और आ थक शोषण के िवरोध म हमशेा लोग के िलए स दशे रहता था. उनके ारा िलख ेदोह ेब त ही वभािवक ह ैजो क उ ह ने दल क गहराई से िलखा था. उहोने ब त से ेरणादायी दोह को साधारण श द म अिभ कया था. कबीर दास के ारा कुल 70 रचनाये िलखी गयी ह,ै िजनमे अिधकांशतः उनके दोह ेऔर गान के सं ह ह.ै कबीर िनगुण भि के ित सम पत थ ेकबीर दास ने ब त सी रचनाय क ह ैिजनमे से उनके कुछ िस लखेन ह ैबीजक, कबीर ंथावली, अनुराग सागर, सखी थ, सबदास, वसंत, सुकिनधन, मंगल, सखीस और पिव अि इ या द ह.ै सतं कबीर दास क आलोचना कबीर के ारा एक मिहला मनु य के अ याि मक गित को रोकती ह ैजब वह ि के पास आती ह ैतो भि , मुि और द ान उस ि क आ मा म समािहत नह हो पाते ह,ै वह सब कुछ न कर दतेी ह.ै िजसके िलए उनक आलोचना क गयी ह ैिन गु नंदर संह के अनुसार कबीर क राय मिहला के िलए अपमानजनक और अव ाकारी ह.ै वडी दोिनगेर के अनुसार कबीर मिहला को लेकर एक िमथा ादी पूवा ह स े िसत थ.े सतं कबीर दास जयतंी 2018 म कब ह ै(Sant Kabir das jayanti 2018 Date) संत कबीर दास क जयंती िह द ूच कैलडर के अनुसार जयंता पू णमा के दन मनाई जाती ह,ै और ेगो रयन कैलडर के अनुसार यह मई जून के महीन म मनाया जाता ह.ै संत कबीर दास जयंती एक वा षक काय म ह,ै जो िस संत, किव और सामािजक सधुारक कबीर दास के स मान म मनाया जाता ह.ै यह परेु भारत म ही नह बि क िवदशे म भी बड़ ेउ साह के साथ मनाया जाता ह.ै कबीर क 641 व जयंती इस साल यािन 27 जून 2018 को पू णमा ितिथ को 8.12 िमनट से शु होकर 28 जून को 10.22 िमनट पर समा होगी. िह द ूकैलडर के महीन के नाम व उनका मह व यहाँ पढ़. सतं कबीर दास जयतंी मनान ेका तरीका (Sant Kabir das jayanti celebration) कबीर दास जयंती के अवसर पर कबीर पथं के अनुयायी उस दन कबीर के दोह ेको पढ़ते ह ैऔर उनसे िश ा स ेसबक लतेे ह.ै िविभ थान पर स संग का आयोजन और बैठक करते ह.ै इस

  • दन खास करके उनके ज म थान वाराणसी के कबीर चौथा मठ म धा मक उपदशे आयोिजत कये जाते ह,ै साथ ही दशे के अलग अलग भाग के िविभ मं दर म कबीर दास जयंती का

    उ सव मनाया जाता ह.ै कुछ जगह कबीर दास जयंती के अवसर पर शोभाया ा भी िनकली जाती ह,ै जो क एक िवशेष थान से शु होकर कबीर मं दर तक आ कर ख़ म हो जाती ह.ै सतं कबीर दास क उपलि ध (Sant Kabir das achievement) कबीर दास क हर धम के ि के ारा शसंा क जाती ह ैउनक दी ई िश ा आज भी नई पी ढ़य के िलए ासंिगक और जीिवत ह.ै उ ह ने कभी भी कसी धा मक भेदभाव पर िव ास नह कया था इस तरह के महान कृ य के कारण ही उ ह संत क उपािध उनके गु रामानंद ने दी थी.

    ��ुित - डॉ. त�ण

    िबहारी के दोह ेएवं उनके हदंी अथ 1. https://www.deepawali.co.in/bihari-ke-dohe-meaning-in-hindi.html

    कौन थे िबहारी? िबहारी के नाम स ेिव यात महाकिव िबहारीलाल रीित काल के िस किव थ ेजो अपनी रचना सतसई (buy now) के िलए जाने जाते ह। सन 1600 के आसपास वािलयर म ज मे िबहारी जी के बारे म अिधक जानने के िलए यहाँ जाए।ं

  • आइये आज AchhiKhabar.Com पर हम महाकिव िबहारी के 20 िस दोह का अथ सिहत संकलन दखेते ह: 1. दगृ उरझत, टूटत कुटुम, जुरत चतुर-िच ीित।

    प रित गां ठ दरुजन-िहयै, दई नई यह रीित।।

    भाव:- ेम क रीित अनूठी ह।ै इसम उलझते तो नयन ह,पर प रवार टूट जात ेह, ेम क यह रीित नई ह ैइसस ेचतुर ेिमय के िच तो जुड़ जाते ह पर दु के दय म गांठ पड़ जाती ह।ै

    2. िलखन बै ठ जाक सबी गिह गिह गरब ग र। भए न केते जगत के, चतुर िचतेरे कूर।।

    भाव:- नाियका के अितशय स दय का वणन करते ए िबहारी कहते ह क नाियका के स दय का िच ांकन करन ेको गव ले ओर अिभमानी िच कार आए पर उन सबका गव चरू-चूर हो गया। कोई भी उसके स दय का वा तिवक िच ण नह कर पाया य क ण- ित ण उसका स दय बढ़ता ही जा रहा था।

    ➡ कबीर दास जी के िस दोह े हदंी अथ सिहत

    3. िग र त ऊंचे रिसक-मन बूढे जहां हजा । बह ेसदा पसु नरनु कौ ेम-पयोिध पगा ।।

  • भाव:- पवत से भी ऊंची रिसकता वाले ेमी जन ेम के सागर म हज़ार बार डूबने के बाद भी उसक थाह नह ढंूढ पाए,वह नर -पशु को अथात अरिसक वृि के लोग को वो ेम का सागर छोटी खाई के समान तीत होता ह।ै

    4. वारथु सुकृतु न, मु वृथा,दिेख िवहगं िवचा र। बाज पराये पािन प र त ूपिछनु न मा र।।

    भाव:- िह द ूराजा जयशाह, शाहजहाँ क ओर से िह द ूराजा से यु कया करते थ,े यह बात िबहारी किव को अ छी नही लगी तो उ ह ने कहा,-ह ेबाज़ ! दसूरे ि के अहम क तिु के िलए तुम अपने पि य अथात हदं ूराजा को मत मारो। िवचार करो य क इसस ेन तो तु हारा कोई वाथ िस होता ह,ै न यह शुभ काय ह,ै तुम तो अपना म ही थ कर दतेे हो।

    5.कनक कनक ते स गुनी मादकता अिधकाय। इ ह ंखाए ंबौराय नर, इ ह ंपाए ंबौराय।।

    भाव:- सोने म धतरेू से सौ गुनी मादकता अिधक ह।ै धतूरे को तो खाने के बाद ि पगला जाता ह,ै सोने को तो पाते ही ि पागल अथात अिभमानी हो जाता ह।ै

    6. अंग-अंग नग जगमगत,दीपिसखा सी दहे। दया बढ़ाए रह,ै बड़ौ उ यारौ गेह।।

    भाव:- नाियका का येक अंग र क भाँित जगमगा रहा ह,ैउसका तन दीपक क िशखा क भाँित िझलिमलाता ह ैअतः दया बुझा दनेे पर भी घर मे उजाला बना रहता ह।ै

    7. कब कौ टेरत ुदीन रट, होत न याम सहाइ। तुम ँलागी जगत-गु , जग नाइक, जग बाइ।।

  • भाव:- ह ै भु ! म कतने समय से दीन होकर आपको पुकार रहा ँऔर आप मेरी सहायता नह करते। ह ेजगत के गु , जगत के वामी ऐसा तीत होता ह ैमानो आप को भी संसार क हवा लग गयी ह ैअथात आप भी संसार क भांित वाथ हो गए हो।

    Bihari Satsai in Hindi

    8.या अनुरागी िच क ,गित समुझे न ह ंकोई। य - य बूड़ े याम रंग, य - यौ उ लु होइ।।

    भाव:- इस ेमी मन क गित को कोई नह समझ सकता। जैस-ेजैसे यह कृ ण के रंग म रंगता जाता ह,ैवैसे-वैसे उ वल होता जाता ह ैअथात कृ ण के ेम म रमने के बाद अिधक िनमल हो जात ेह।

    9.जसु अपजसु दखेत नह दखेत सांवल गात। कहा कर , लालच-भरे चपल नैन चिल जात।।

    भाव:- नाियका अपनी िववशता कट करती ई कहती ह ै क मेरे ने यश-अपयश क चंता कये िबना मा साँवले-सलोने कृ ण को ही िनहारते रहते ह। म िववश हो जाती ँ क या क ं य क कृ ण के दशन के लालच से भरे मेरे चचंल नयन बार -बार उनक ओर चल दतेे ह।

    10. मेरी भाव-बाधा हरौ,राधा नाग र सोइ। जां तन क झांई परै, यामु ह रत-दिुत होइ।।

    भाव:- किव िबहारी अपने ंथ के सफल समापन के िलए राधा जी क तुित करते ए कहते ह क मेरी सांसा रक बाधाए ँवही चतुर राधा दरू करगी िजनके शरीर क छाया पड़ते ही साँवले कृ ण हरे रंग के काश वाले हो जात ेह। अथात–मेरे दखु का हरण वही चतुर राधा करगी िजनक झलक दखने मा स ेसाँवल ेकृ ण हरे अथात स जो जाते ह।

    ➡ रहीम दास जी के िस दोह े हदंी अथ सिहत

    11. क न ँको टक जतन अब किह काढ़े कौनु। भो मन मोहन- पु िमिल पानी म कौ लौनु।।

    भाव:- िजस कार पानी मे नमक िमल जाता ह,ैउसी कार मेरे दय म कृ ण का प समा गया ह।ै अब कोई कतना ही य कर ल,े पर जैसे पानी से मनक को अलग करना असंभव ह ैवैसे ही मेरे दय से कृ ण का ेम

    िमटाना अस भव ह।ै —

    12. तो पर वार उरबसी,सुिन रािधके सुजान। तू मोहन के उर बस , वै उरबसी समान।।

  • भाव:- राधा को यूँ तीत हो रहा ह ै क ीकृ ण कसी अ य ी के ेम म बंध गए ह। राधा क सखी उ ह समझाते ए कहती ह ै -ह ेरािधका अ छे से जान लो,कृ ण तुम पर उवशी अ सरा को भी योछावर कर दगे य क तुम कृ ण के दय म उरबसी आभूषण के समान बसी ई हो।

    13.कहत,नटत, रीझत,खीझत, िमलत, िखलत, लिजयात। भरे भौन म करत ह,ैनैननु ही सब बात।

    भाव:- गु जन क उपि थित के कारण क म नायक-नाियका मुख से वातालाप करने म असमथ ह। आंख के संकेत के ारा नायक नाियका को काम- ड़ा हतेु ाथना करता ह,ैनाियका मना कर दतेी ह,ैनायक उसक ना को हा ँसमझ कर रीझ जाता ह।ै नाियका उसे खुश दखेकर खीझ उठती ह।ै अंत मे दोन म समझौता हो जाता ह।ै नायक पुनः स हो जाता ह।ै नायक क स ता को दखेकर नाियका लजा जाती ह।ै इस कार गु जन से भरे भवन म नायक-नाियका ने से पर पर बातचीत करते ह।

    14.प ा ही ितिथ पाइये,वा घर के च ँपास। िनत ित पुनयौई रह,ै आनन-ओप-उजास।।

    भाव:- नाियका क सुंदरता का वणन करत े ए िबहारी कहत ेह क नाियका के घर के चार ओर पंचांग स ेही ितिथ ात क जा सकती ह ै य क नाियका के मुख क सुंदरता का काश वहाँ सदा फैला रहता ह ैिजससे वहा ंसदा पू णमा का स आभास होता ह।ै

    15.कोऊ को रक सं हौ, कोऊ लाख हज़ार। मो संपित जदपुित सदा,िवपि -िबदारनहार।।

    भाव:- भ ीकृ ण को संबोिधत करते ए कहते ह क कोई ि करोड़ एक करे या लाख-हज़ार, मेरी दिृ म धन का कोई मह व नह ह।ै मेरी संपि तो मा यादवे ीकृ ण ह जो सदवै मेरी िवपि य को न कर दतेे ह।

  • 16.कहा क ँबाक दसा,ह र ाननु के ईस। िवरह- वाल ज रबो लखै,म रबौ भई असीस।।

    भाव:- नाियका क सखी नायक से कहती ह-ै ह ेनाियका के ाणे र ! नाियका क दशा के िवषय म तु ह या बताऊँ,िवरह-अि म जलता दखेती ँतो अनुभव करती ँ क इस िवरह पीड़ा से तो मर जाना उसके िलए आशीष होगा।

    17.जपमाला,छाप,ितलक सरै न एकौकामु। मन कांचे नाचै वृथा,सांचे राचै रामु।।

    भाव:- आडबंर क थता िस करत े ए िबहारी कहते ह क नाम जपने क माला स ेया माथे पर ितलक लगाने से एक भी काम िस नह हो सकता। य द मन क ा ह ैतो वह थ ही सांसा रक िवषय म नाचता रहगेा। स ा मन ही राम म रम सकता ह।ै

    18.घ -घ डोलत दीन वै,जन-ुजनु जाचत ुजाइ। दय लोभ-चसमा चखनु लघु पुिन बड़ौ लखाई।।

    भाव:- लोभी ि के वहार का वणन करते ए िबहारी कहते ह क लोभी यि दीन-हीन बनकर घर-घर घूमता ह ैऔर येक ि से याचना करता रहता ह।ै लोभ का च मा आंख पर लगा लेने के कारण उसे िन

    ि भी बड़ा दखने लगता ह ै अथात लालची ि िववेकहीन होकर यो य-अयो य ि को भी नह पहचान पाता।

    19. मोहन-मूरित याम क अित अ भुत गित जोई। बसतु सु िच अ तर, तऊ ितिबि बतु जग होइ।।

    भाव:- कृ ण क मनमोहक मू त क गित अनुपम ह।ै कृ ण क छिव बसी तो दय म ह ैऔर उसका ितिब ब स पूण संसार मे पड़ रहा ह।ै

    20. म समुझयौ िनरधार,यह जगु काँचो कांच सौ। एकै पु अपर, ितिबि बत लिखयतु जहाँ।।

    भाव:- िबहारी किव कहत ेह क इस स य को मने जान िलया ह ै क यह संसार िनराधार ह।ै यह काचँ के समान क ा ह ैअथात िम या ह।ै कृ ण का सौ दय अपार ह ैजो स पूण संसार मे ितिबि बत हो रहा ह।ै

    भूषण क किवता

    ‘सािज चतुरंग सैन..’ का पाठ एवं भावाथ

  • https://www.youtube.com/watch?v=i84rsg99fDM

    ‘इं िजिम जभं पर..’ https://www.youtube.com/watch?v=xXkzqnWw1_w

    https://www.youtube.com/watch?v=qpLvg8j64jM

    जीवन प रचय किव वर भूषण का जीवन िववरण वह जाती के ितवारी ा ण प रवार से थे उनके ज म मृ यु, प रवार आ द के िवषय म कुछ भी िनि त प से नह कहा जा सकता परंतु सजेती क़ बा म एक किव भूषण जी का एक प रवार रहता ह ैजो इस बात का दावा करता ह ै क वो ही किव भूषण के वंशज ह ैव् टकवापुर गाव छोड़ कर अ ेजो के ज़माने म उनके पूवज यहाँ बस गए आज भी उनक जमीने टकवापुर गाव म पड़ती ह ैकिव भूषण क बाद क पीढ़ी का सित माता का एक मं दर टकवापुर म

    बना ह ैिजसे यह प रवार अपनी कुलदवेी मानता ह ैव् हर छोटे मोटे यौहार म उनक पूजा अचना करता ह ैभूषण का ज म संवत 1670 तदनुसार ई वी 1613 म आ। उनके िपता का नाम र ाकर ि पाठी था। वे चंङीसा राव थे-[1]

    भूषण का वा तिवक नाम घन याम था। िशवराज भूषण ंथ के िन दोह ेके अनुसार 'भूषण' उनक उपािध ह ैजो उ ह िच कूट के राज दयराम के पु शाह ने दी थी -

    कुल सुलं क िच कूट-पित साहस सील-समु । किव भूषण पदवी दई, दय राम सुत ॥ कहा जाता ह ै क भूषण किव मितराम और चंतामिण के भाई थे। एक दन भाभी के ताना दनेे पर उ ह ने घर छोड़ दया और कई आ म म गए। यहां आ य ा करने के बाद िशवाजी के आ म म चले गए और अंत तक वह रह।े

    प ा नरेश छ साल से भी भूषण का संबंध रहा। वा तव म भूषण केवल िशवाजी और छ साल इन दो राजा के ही स े शंसक थे। उ ह ने वयं ही वीकार कया ह-ै

    और राव राजा एक मन म न याऊं अब। सा को सराह कै सराह छ साल को॥

    संवत 1772 तदनुसार ई वी 1715 म भूषण परलोकवासी हो गए।

    रचनाए िव ान ने इनके छह ंथ माने ह - िशवराजभूषण, िशवाबावनी, छ सालदशक, भूषण उ लास, भूषण हजारा, दषूनो लासा। पर तु इनम िशवराज भूषण, छ साल

  • दशक व िशवा बावनी ही उपल ध ह। िशवराजभूषण म अलंकार, छ साल दशक म छ साल बुंदलेा के परा म, दानशीलता व िशवाबवनी म िशवाजी के गुण का वणन कया गया ह।ै

    िशवराज भूषण एक िवशालकाय थ ह ैिजसम 385 प ह। िशवा बावनी म 52 किवत म िशवाजी के शौय, परा म आ द का ओजपूण वणन ह।ै छ शाल दशक म केवल दस किवत के अ दर बु दलेा वीर छ साल के शौय का वणन कया गया ह।ै इनक स पूण किवता वीर रस और ओज गुण से ओत ोत ह ैिजसके नायक िशवाजी ह और खलनायक औरंगजेब। औरंगजेब के ित उनका जातीय वैमन य न होकर शासक के

    प म उसक अनीितय के िव ह।ै [2]

    िशवराज भषूण स ेकुछ छ द इ िजिम जंभ पर , वाडव सुअंभ पर। रावन सदभं पर , रघुकुल राज ह ै॥१॥ पौन ब रबाह पर , संभु रितनाह पर। य सहसबाह पर , राम ि जराज ह ै॥२॥

    दावा मुदडं पर , चीता मृगझुंड पर। भूषण िवतु ड पर , जैसे मृगराज ह ै॥३॥ तेजतम अंस पर , का ह िजिम कंस पर। य ले छ बंस पर , शेर िसवराज ह ै॥४॥

    ऊंचे घोर मं दर के अ दर रहन बारी ||5|| िशवा जो न होत तो सुनत हो सबक ||6|

    का गत िवशेषताएँ रीित युग था पर भूषण ने वीर रस म किवता रची। उनके का क मूल संवेदना वीर- शि त, जातीय गौरव तथा शौय वणन ह।ै[3] िनरीह िह द ूजनता अ याचार से पीिड़त थी। भूषण ने इस अ याचार के िव आवाज उठाई तथा िनराश िह द ूजन समुदाय को आशा का संबल दान कर उसे संघष के िलए उ सािहत कया। इ ह ने अपने का नायक िशवाजी व छ साल को चुना। िशवाजी क वीरता के िवषय म भूषण िलखते ह :

    भूषण भनत महाव र बलकन ला यो सारी पातसाही के उड़ाय गये िजयरे।

  • तमके के लाल मुख िसवा को िनरिख भये याह मुख नौरंग िसपाह मुख िपयरे॥ इ ह ने िशवाजी क यु वीरता, दानवीरता, दयावीरता व धमवीरता का वणन कया ह।ै भूषण के का म उ साह व शि भरी ई ह।ै इसम हदं ूजनता क भावना को ओजमयी भाषा म अंकन कया गया ह।ै भूषण ने कहा क य द िशवाजी न होते तो सब कुछ सु त हो गया होताः

    दवेल िगरावते फरावते िनसान अली ऐसे डूबे राव राने सबी गये लबक , गौरागनपित आप औरन को दते ताप आप के मकान सब मा र गये दबक । पीरा पयग बरा दग बरा दखाई दते िस क िसधाई गई रही बात रबक , कािस ते कला जाती मथुरा मसीद होती िसवाजी न होतो तौ सुनित होत सबक ॥ सांच को न मानै दवेीदवेता न जानै अ ऐसी उर आनै म कहत बात जबक , और पातसाहन के ती चाह िह दनु क अकबर साहजहां कह ैसािख तबक । ब बर के ित बर मायूं ह बाि ध गये दो म एक करीना कुरान बेद ढबक , कािस क कला जाती मथुरा मसीद होती िसवाजी न होतो तौ सुनित होत सबक ॥ कु भकन असुर औतारी अवरंगज़ेब क ही क ल मथुरा दोहाई फेरी रबक , खो द डारे दवेी दवे सहर मोह ला बांके लाखन तु क क ह ेछूट गई तबक । भूषण भनत भा यो कासीपित िब वनाथ और कौन िगनती मै भूली गित भव क , चारौ वण धम छोिड कलमा नेवाज प ढ िसवाजी न होतो तौ सुनित होत सबक ॥

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