class –x hindi april month syllabus chapters:- ch-1-sakhii -...

30
Chapters:- Ch-1-Sakhii - kabir ke dohe Ch-9-Bade bhaisahab Ch-2-meerabai-padh Ch-1-Sanchayan Class –X HINDI APRIL MONTH SYLLABUS 2020 kabir ke dohe Bade bhaisahab-premchand padh Sanchayan-harihar kaka

Upload: others

Post on 17-Jul-2020

4 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • Chapters:-

    Ch-1-Sakhii - kabir ke dohe

    Ch-9-Bade bhaisahab

    Ch-2-meerabai-padh

    Ch-1-Sanchayan

    Class –X

    HINDI

    APRIL MONTH

    SYLLABUS

    2020

    kabir ke dohe

    Bade bhaisahab-premchand

    padh

    Sanchayan-harihar kaka

  • पद भाग

    पाठ-Ó

    (साखी)

    श�दाथ�Þ-बाणी-बोल� Þ-आपा-अहंकार

    Þ-कंुडल�-ना�भ Þ-घ�ट-घ�ट-कण कण म�

    Þ-भवुंगम-सांप,भजुंग Þ-बौरा-पागल, �दवाना

    Þ-नेड़ा-�नकट Þ-आग�ण-अंगन

    Þ-साबण-साबनु Þआ�षर-अ�र

    Þ-पीव-��य,�यारा Þ-मरुाडा-जलती हुई लकड़ी

    पाठ का �पि�टकरण:-

    संत कबीरदास का ज�म१३९८ ई म� एक �ाहमण के घर हुआ था|

    वह जुलाहे का काम करत ेथे| वह जगह जगह घूम कर �ान अिज�त

    करत ेथे| उनके लेखन म� अव�ध ,राज�थानी,पंजाबीऔर भोजपुर� भाषा

    क� झलक �मलती है | ऐसा मन जाता है �क उ�ह�ने १२० वष� क�

    आयु म� देह �याग क� थी |

    ��तुत पाठ म� ‘साखी ‘ िजसका अथ� है ‘सा�ी’ |सा�ी का अथ� होता

    है ��य� �ान | यह ��याश �ान गु� अपने �श�य को देता है|

    साखी पाठ म� संत कबीर जी के दोहे व ्छ�द है| ��तुत साखी �माण

    है �क स�य क� सा�ी देता हुआ गु� �श�य को जीवन क� �श�ा देता

    है| ��तुत पाठ म� आठ दोहे है इ�सके भावाथ� �न�न�ल�खत है |

    दोहा-1 ऐसी बाणँी बो�लये ,मन का आपा खोइ।

  • अपना तन सीतल करै ,औरन कौ सुख होइ।।

    बाँणी – बोल� आपा - अहम ्(अहंकार )

    खोइ - �याग करना सीतल - शीतल ( ठंडा ,अ�छा )

    औरन - दसूर� को होइ -होना

    �संग -: ��तुत साखी हमार� �हदं� पा�य पु�तक '�पश� ' से ल� गई

    है। इस साखी के s.t 'कबीरदास 'जी है। इसम� कबीर ने मीठ� बोल�

    बोलने और दसूर� को दःुख न देने क� बात कह� है

    �या�या -: इसम� कबीरदास जी कहत ेहै �क हम� अपने मन का

    अहंकार �याग कर ऐसी भाषा का �योग करना चा�हए िजसमे हमारा

    अपना तन मन भी सव�थ रहे और दसूर� को भी कोई क�ट न हो

    अथा�त दसूर� को भी सुख �ा�त हो।

    दोहा-2 क�तूर� कंुडल� बसै ,मगृ ढँूढै बन माँ�ह।

    ऐस� घ�ट- घ�ट राँम है , द�ुनयां देखै नाँ�ह।ं।

    कंुडल� - ना�भ

    मगृ - �हरण

    घ�ट घ�ट - कण कण

    �संग -: ��तुत साखी हमार� �हदं� पा�य पु�तक '�पश� ' से ल� गई

    है। इसके s.t कबीरदास जी है इसम� कबीर कहत ेहै �क संसार के

    लोग क�तूर� �हरण क� तरह हो गए है िजस तरह �हरण क�तूर�

    �ाि�त के �लए इधर उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ई�वर

    �ाि�त के �लए भटक रहे है।

    �या�या -: कबीरदास जी कहत ेहै �क िजस �कार एक �हरण क�तूर�

    क� खुशब U को जंगल म� ढंूढ़ता �फरता है जब�क वह सुगधं उसी क�

    ना�भ म� �व�यमान होती है पर�तु वह इस बात से बेखबर होता है,

  • उसी �कार संसार के कण कण म� ई�वर �व�यमान है और मनु�य

    इस बात से बेखबर ई�वर को देवालय� और तीथ� म� ढंूढ़ता है। कबीर

    जी कहत ेहै �क अगर ई�वर को ढंूढ़ना ह� है तो अपने मन म� ढंूढो।

    दोहा-3 जब म� था तब ह�र नह�ं ,अब ह�र ह� म� नां�ह।

    सब अँ�धयारा �मट� गया , जब द�पक दे�या माँ�ह।।

    म� - अहम ्( अहंकार ) ह�र – परमे�वर अँ�धयारा - अंधकार

    �संग -: ��तुत साखी हमार� �हदं� पा�य पु�तक '�पश� ' से ल� गई

    है। इस साखी के संत कबीरदास जी ह�। इसम� कबीर जी मन म�

    अहम ्या अहंकार के �मट जाने के बाद मन म� परमे�वर के वास क�

    बात कहत ेहै।

    �या�या -: कबीर जी कहत ेह� �क जब इस �दय म� 'म� ' अथा�त मेरा

    अहंकार था तब इसम� परमे�वर का वास नह�ं था पर�तु अब �दय म�

    अहंकार नह�ं है तो इसम� �भु का वास है। जब परमे�वर नमक द�पक

    के दश�न हुए तो अ�ान �पी अहंकार का �वनाश हो गया।

    दोहा-4 सु�खया सब संसार है , खायै अ� सोवै।

    द�ुखया दास कबीर है , जागै अ� रोवै।।

    सु�खया – सुखी अ� - अ�ान �पी अंधकार

    सोवै - सोये हुए द�ुखया - दःुखी

    रोवै - रो रहे

    �संग -: ��तुत साखी हमार� �हदं� पा�य पु�तक '�पश� ' से ल� गई

    है। इस साखी के s.t कबीरदास जी है। इसम� कबीर जी अ�ान �पी

    अंधकार म� सोये हुए मनु�य� को देखकर दःुखी ह� और रो रहे है ह�।

  • �या�या -: कबीर जी कहत ेह� �क संसार के लोग अ�ान �पी अंधकार

    म� डूबे हुए ह� अपनी म�ृयु आ�द से भी अनजान सोये हुये ह�। ये सब

    देख कर कबीर दखुी ह� और वे रो रहे ह�। वे �भु को पाने क� आशा म�

    हमेशा �चतंा म� जागत ेरहत ेह�।

    दोहा-5 �बरह भुवंगम तन बसै , मं� न लागै कोइ।

    राम �बयोगी ना िजवै ,िजवै तो बौरा होइ।।

    �बरह - �बछड़ने का गम

    भुवंगम -भुजंग , सांप

    बौरा - पागल

    �संग -: ��तुत साखी हमार� �हदं� पा�य पु�तक '�पश� ' से ल� गयी

    है। इस साखी के s.t कबीरदास जी ह�। इसम� कबीर कहत ेह� �क

    ई�वर के �वयोग म� मनु�य जी�वत नह�ं रह सकता और अगर रह भी

    जाता है तो वह पागल हो जाता है।

    �बछड़ने का गम सांप बन कर लोटने लगता है तो उस पर न कोई

    म�� असर करता है और न ह� कोई दवा असर करती है। उसी तरह

    राम अथा�त ई�वर के �वयोग म� मनु�य जी�वत नह�ं रह सकता और

    य�द वह जी�वत रहता भी है तो उसक� ि�थ�त पागल� जैसी हो

    जाती है।

    दोहा-6 �नदंक नेड़ा रा�खये , आगँ�ण कुट� बँधाइ।

    �बन साबण पाँणी ं�बना , �नरमल करै सुभाइ।।

  • �नदंक - �नदंा करने वाला नेड़ा - �नकट

    आगँ�ण – आगँन साबण - साबुन

    �नरमल – साफ़ सुभाइ - �वभाव

    �संग-: ��तुत साखी हमार� �हदं� पा�य पु�तक '�पश� ' से ल� गई है।

    इस साखी के s.t कबीदास जी ह�। इसम� कबीरदास जी �नदंा करने

    वाले �यि�तय� को अपने पास रखने क� सलाह देत ेह� ता�क आपके

    �वभाव म� सकारा�मक प�रवत�न आ सके।

    �या�या -: इसम� कबीरदास जी कहत ेह� �क हम� हमेशा �नदंा करने

    वाले �यि�तओ ंको अपने �नकट रखना चा�हए। हो सके तो अपने

    आगँन म� ह� उनके �लए घर बनवा लेना चा�हए अथा�त हमेशा अपने

    आस पास ह� रखना चा�हए। ता�क हम उनके �वारा बताई गई

    हमार� गल�तओ ंको सुधर सक� । इससे हमारा �वभाव �बना साबुन

    और पानी क� मदद के ह� साफ़ हो जायेगा।

    दोहा-7 पोथी प�ढ़ - प�ढ़ जग मुवा , पं�डत भया न कोइ।

    ऐकै अ�षर पीव का , पढ़ै सु पं�डत होइ।

    पोथी – पु�तक मुवा - मरना

    भया – बनना अ�षर - अ�र

    पीव - ��य

    �संग -: ��तुत साखी हमार� �हदं� पा�य पु�तक '�पश� ' से ल� गई

    है। इस साखी के संत कबीरदास जी ह�। इसम� कबीर जी पु�तक

    �ान को मह�व न देकर ई�वर - �ेम को मह�व देत ेह�।

    �या�या -: कबीर जी कहत ेहै �क इस संसार म� मोट� - मोट� पु�तक�

    (�कताब�) पढ़ कर कई मनु�य मर गए पर�तु कोई भी मनु�य

  • पं�डत(�ानी ) नह�ं बन सका। य�द �कसी �यि�त ने ई�वर �ेम का

    एक भी अ�र पढ़ �लया होता तो वह पं�डत बन जाता अथा�त ई�वर

    �ेम ह� एक सच है इसे जानने वाला ह� वा�त�वक �ानी है।

    दोहा-8 हम घर जा�या आपणाँ , �लया मुराड़ा हा�थ।

    अब घर जाल� तास का, जे चलै हमारे सा�थ।।

    जा�या – जलाया आपणाँ - अपना

    मुराड़ा - जलती हुई लकड़ी , �ान जाल� - जलाऊं

    तास का - उसका

    �संग -: ��तुत साखी हमार� �हदं� पा�य पु�तक '�पश� ' से ल� गई

    है। इस साखी के संत कबीरदास जी ह�। इसम� कबीर मोह-माया �पी

    घर को जला कर अथा�त �याग कर �ान को �ा�त करने क� बात

    करत ेह�।

    �या�या -: कबीर जी कहत ेह� �क उ�ह�ने अपने हाथ� से अपना घर

    जला �दया है अथा�त उ�ह�ने मोह -माया �पी घर को जला कर �ान

    �ा�त कर �लया है। अब उनके हाथ� म� जलती हुई मशाल ( लकड़ी )

    है या�न �ान है। अब वे उसका घर जलाएंगे जो उनके साथ चलना

    चाहता है अथा�त उसे भी मोह - माया से मु�त होना होगा जो �ान

    �ा�त करना चाहता है।

    क - �न�न�ल�खत ��न� के उ�र द�िजये :-

    ��न1 -: मीठ� वाणी बोलने से और� को सखु और अपने तन को शीतलता कैस े

    �ा�त होती है ?

    उ�र -: कबीरदास जी के अनसुार जब आप दसूर� के साथ मीठ� भाषा का

    उपयोग करोगे तो उ�ह� आपस ेकोई �शकायत नह�ं रहेगी। व ेसखु का अनभुव

  • कर�गे और जब आपका मन श�ुध और साफ़ होगा प�रणाम�व�प आपका तन

    भी शीतल रहेगा।

    ��न 2 -: द�पक �दखाई देन ेपर अँ�धयारा कैसे �मट जाता है ? साखी के

    स�दभ� म� �प�ट �किजए।

    उ�र -: तीसर� साखी म� कबीर का द�पक से ता�पय� ई�वर दश�न से है तथा

    अँ�धयारा स ेता�पय� अ�ान स ेहै। ई�वर को सव��च �ान कहा गया है अथा�त

    जब �कसी को सव��च �ान के दश�न हो जाये तो उसका सारा अ�ान दरू होना

    स�भव है।

    ��न 3 -: ई�वर कण - कण म� �या�त है , पर हम उसे �य� नह�ं देख पाते ?

    उ�र -: कबीरदास जी दसूर� साखी म� �प�ट करत ेह� �क ई�वर कण कण म�

    �या�त है ,पर हम अपने अ�ान के कारण उसे नह�ं देख पात े�य��क हम ई�वर

    को अपने मन म� खोजने के बजाये मं�दर� और तीथ� म� खोजत ेह�।

    ��न 4 -: संसार म� सखुी �यि�त कौन है और दखुी कौन ? यहाँ 'सोना' और

    'जागना' �कसके ��तक ह� ? इसका �योग यहा ँ�य� �कया गया है ? �प�ट

    क�िजए।

    उ�र -: कबीरदास के अनसुार संसार के वे सभी �यि�त जो �बना �कसी �चतंा

    के जी रहे ह� व ेसखुी ह� तथा जो ई�वर �वयोग म� जी रहे ह� व ेदखुी ह�। यहाँ

    'सोना ' 'अ�ान ' का और 'जागना ' ई�वर - �ेम ' का ��तक है। इसका �योग

    यहाँ इस�लए हुआ है �य��क कुछ लोग अपने अ�ान के कारण �बना �चतंा के

    सो रहे ह� और कुछ लोग ई�वर को पाने क� आशा म� सोत ेहुए भी जग रहे ह�।

    ��न 5 -: अपने �वभाव को �नम�ल रखन ेके �लए कबीर ने �या उपाय सझुाया

    है ?

    उ�र -: अपने �वभाव को �नम�ल रखन ेके �लए कबीर न े�नदंा करन ेवाल े

    �यि�तओं को अपन ेआस पास रखन ेका उपाय सझुाया है। उनके अनसुार �नदंा

    करन ेवाला �यि�त जब आपक� गल�तया ं�नकालगेा तो आप उस गलती को

    सधुार कर अपना �वभाव �नम�ल बना सकते ह�।

  • ��न 6 -: ' ऐकै अ�षर पीव का , पढ़ै स ुप�ंडत होइ ' - इस पंि�त �वारा क�व

    �या कहना चाहता है ?

    उ�र -: 'ऐकै अ�षर पीव का , पढ़ै स ुपं�डत होइ ' - इस पंि�त म� क�व ई�वर

    �ेम को मह�व देते हुए कहना चाहता है �क ई�वर �ेम का एक अ�र ह� �कसी

    �यि�त को पं�डत बनाने के �लए काफ� है।

    ��न 7 -: कबीर क� सा�खय� क� भाषा क� �वशषेता �कट क�िजए।

    उ�र -: कबीर क� सा�खओं म� अनके भाषाओ� का �भाव �प�ट �दखाई देता है।

    सा�खओं क� भाषा क� �वशषेता यह है �क इसम� भावना क� अनभु�ूत

    ,रह�यवा�दता तथा जीवन का संवेदनशील सं�पश� तथा सहजता को �मखु �थान

    �दया गया है।

    ख - �न�न�ल�खत पंि�तओ ंके भाव �प�ट क�िजये :-

    (1 ) ' �बरह भवुगंम तन बस ै, मं� न लागै कोइ। '

    भाव -: इस पिं�त का भाव यह है �क जब �कसी मन�ुय के मन म� अपन� से

    �बछड़न ेका गम �पी साँप जगह बना लेता है तो कोई दवा ,कोई मं� काम नह�ं

    आते।

    (2 ) ' क�तूर� कंुड�ल बस ै,मगृ ढँूढ़ै बन माँ�ह। '

    भाव -: इस पिं�त का भाव यह है �क अ�ान के कारण क�तूर� �हरण परेू वन

    म� क�तूर� क� खुसब ूके ��ोत को ढंूढता रहता है जब�क वह तो उसी के पास

    ना�भ म� �व�यमान होती है।

    ( 3 ) ' जब म� था तब ह�र नह�ं ,अब ह�र ह� म� नह�ं। '

    भाव -: इस पिं�त का भाव यह है �क अहंकार और ई�वर एक दसूरे के �वपर�त

    ह� जहा ँअहंकार है वहां ई�वर नह� ं,जहा ँई�वर है वहा ंअहंकार का वास नह� ं

    होता।

    ( 4 ) ' पोथी प�ढ़ - प�ढ़ जग मवुा , पं�डत भया न कोइ। '

  • भाव -: इस पिं�त का भाव यह है �क �कताबी �ान �कसी को प�ंडत नह� ंबना

    सकता , पं�डत बनन ेके �लए ई�वर - �ेम का एक अ�र ह� काफ� है।

    -----------------------------------------------------------------------------------------------

  • ग�य-भाग

    पाठ-1

    बड़ ेभाईसाहब

    श�दाथ�ः-दजा� – क�ा ताल�म - �श�ा

    ब�नयाद – नीवं आल�शान - बहुत स�ुदर

    प�ुता – सह� पायेदार - ऐसी व�तु िजसके परै हो ,मज़बतू

    त�बीह-डाँट–डपट �नगरानी - देखरेख

    ज�म�स�ध-ज�म से ह� �ा�त शाल�नता-समझदार�

    हु�म -आ�ा,आदेश अ�ययनशील - पढ़ाई को मह�व देन ेवाला

    हा�शय�-�कनार� सामंज�य - ताल मेल

    मसलन-उदाहरणतः इबारत - लेख

    च�ेटा – को�शश जमात - क�ा टुकड़ े

    �� �प -भयानक या घसुे वाला

    �ाण सखू जाना - बरु� तरह डर जाना मौन – चपु

    स�कार – �वागत अपराध - गलती

    हफ़� – अ�र ऐरा-गैरन�थ-ूखरैा-बेकारआदमी

    खून जलाना-कड़ी मेहनत करना घ�घा - आलसी जीव

    सबक – सीखना कसरू – गलती

    लताड-डाँटफटकार �नपणू� - बहुत अ�छे

    कंक�रया ँ- प�थर के छोटे टुकड़ े

    सिू�त-बाण - �यं�या�मक कथन, चभुती बात� िजगर -�दय,�दल

    �नराशा – दःुख बतूे – बस

    अमल करना - पालन करना अवहेलना - �तर�कार

    अ�ात - िजसे जानते न हो अ�नवाय� - ज�र�

    जानलेवा - जान के �लए खतरा नसीहत - सलाह

    फ़जीहत - अपमान हाथ -पाँव फूल जाना - परेशान हो जाना

  • बदहवास – बोखलाना मरज़ - बीमार�

    महुताज - दसूर� पर आ��त

    कुटु�ब - प�रवार

    लेखक का प�रचय:- जीवन प�रचय �ेमचंद का ज�म वाराणसी के �नकट लमह�

    गाँव म� हुआ था। उनक� माता का नाम आन�द� देवी था तथा �पता मुंशी

    अजायबराय लमह� म� डाकमुंशी थे। उनक� �श�ा का आरंभ उदू�, फारसी से हुआ

    और जीवनयापन का अ�यापन से पढ़ने का शौक उ� ह� बचपन स ेह� लग गया।

    �पि�टकरण:- 'बड़ ेभाई साहब' कहानी �ेमचदं �वारा र�चत है। �मेचंद क�

    कहा�नया ँहमेशा �श�ा�द रह� ह�। उ�ह�न ेअपनी कहा�नय� के मा�यम से �कसी-

    न-�कसी सम�या पर �हार �कया है। बड़ ेभाई साहब समाज म� समा�त हो रहे,

    कत��य� के अहसास को दबुारा जी�वत करने का �यास मा� है। इस कहानी म�

    बड़ ेभाई साहब अपने कत��य� को संभालत ेहुए, अपने भाई के ��त अपनी

    िज़�मेदा�रय� को परूा कर रहे ह�। उनक� उ� इतनी नह�ं है, िजतनी उनक�

    िज़�मेदा�रया ँहै। ले�कन उनक� िज़�मेदा�रयाँ उनक� उ� के आगे छोट� नज़र

    आती ह�। वह �वयं के बचपन को छोटे भाई के �लए �तलाजं�ल देते हुए भी नह� ं

    �हच�कचाते ह�। उ�ह� इस बात का अहसास है �क उनके गलत कदम छोटे भाई

    के भ�व�य को �बगाड़ सकते ह�। वह अपने भ�व�य के साथ �खलवाड़ करन ेसे

    भी नह�ं चकूत।े एक चौदह साल के ब�च े�वारा उठाया गया कदम छोटे भाई के

    उ�जवल भ�व�य क� नींव रखता है। यह� आदश� बड़ ेभाई को छोटे भाई के

    सामने और भी ऊँचा बना देते ह�। यह कहानी सीख देती है �क मन�ुय उ� स े

    नह�ं अपन े�कए गए काम� और कत��य� स ेबड़ा होता है। वत�मान यगु म�

    मन�ुय �वकास तो कर रहा है पर�त ुआदश� को भलुता जा रहा है। भौ�तक सखु

    एक� करने क� होड़ म� हम अपने आदश� को छोड़ चकेु ह�। हमारे �लए आज

    भौ�तक सखु ह� सब कुछ है। अपन ेसे छोटे और बड़� के ��त हमार�

    िज़�मेदा�रया ँहमारे �लए आव�यक नह� ंहै। �ेमचंद न ेइ�ह�ं कत��य� के मह�व

    को सबके स�मखु रखा है।

  • ��तुत पाठ म� एक बड़ ेभाई साहब ह� जो ह� तो छोटे ह� पर�तु उनसे छोटा भी

    एक भाई है। वे उससे कुछ ह� साल बड़ ेह� पर�तु उनसे बड़ी - बड़ी आशाएं क�

    जाती ह�। बड़ ेहोन ेके कारण वे खुद भी यह� चाहत ेह� �क वे जो भी कर� छोटे

    भाई के �लए �ेरणा दायक हो। भाई साहब उससे पाँच साल बड़ ेह�, पर�त ुतीन

    ह� क�ा आगे पढ़त ेह�। व ेअपनी �श�ा क� नींव मज़बतूी से डालना चाहत ेथे

    ता�क व े आगे चल कर अ�छा मकुाम हा�सल कर सक� । व ेहर क�ा म� एक

    साल क� जगह दो साल लगाते थ ेऔर कभी- कभी तो तीन साल भी लगा देते

    थे।वे हर व�त �कताब खोल कर बठेै रहते थे ।

    लेखक का मन पढ़ाई म� �बलकुल भी नह� ंलगता था। अगर एक घंटे भी �कताब

    ले कर बठैना पड़ता तो यह उसके �लए �कसी पहाड़ को चढ़न ेिजतना ह�

    मिु�कल काम था। जसैे ह� उसे ज़रा सा मौका �मलता वह खेलने के �लए मदैान

    म� पहँुच जाता था। ल�ेकन जैसे ह� खेल ख़�म कर कमरे म� आता तो भाई

    साहब का वो गु�से वाला �प देखा कर उस ेबहुत डर लगता था।बड़ ेभाई साहब

    छोटे भाई को डाँटत ेहुए कहत ेह� �क वह इतना स�ुत है �क बड़ ेभाई को देख

    कर कुछ नह� ंसीखता । अगर लेखक अपनी उ� इसी तरह गवाना चाहता है तो

    उसे घर चल ेजाना चा�हए और वहा ंमजे से गु�ल� - डडंा खेलना चा�हए

    । कम से कम दादा क� मेहनत क� कमाई तो ख़राब नह� ंहोगी।

    भाई साहब उपदेश बहुत अ�छा देत ेथे। ऐसी-ऐसी बात ेकरत ेथ ेजो सीधे �दल

    म� लगती थी ले�कन भाई साहब क� डाँट - फटकार का असर एक दो घंटे तक

    ह� रहता था और वह इरादा कर लेता था �क आगे से खूब मन लगाकर पढ़ाई

    करेगा। यह� सोच कर ज�द� ज�द� एक समय सारणी बना देता।पर�त ुसमय

    सारणी बनाना अलग बात होती है और उसका पालन करना अलग बात होती

    है।

    वा�ष�क पर��ा हुई। भाई साहब फेल हो गए और लखेक पास हो गया और

    लेखक अपनी क�ा म� �थम आया। अब लेखक और भाई साहब के बीच केवल

    दो साल का ह� अंतर रह गया था। इस बात स ेउसे अपने ऊपर घम�ड हो गया

    था और उसके अंदर आ�मस�मान भी बड़ गया था। बड़ ेभाई साहब लखेक को

    कहत ेह� �क वे ये मत सोचो �क व ेफेल हो गए ह�, जब वह उनक� क�ा म�

  • आएगा, तब उस ेपता चलेगा �क �कतनी महेनत करनी पड़ती है। जब अलजेबरा

    और जामे�� करत ेहुए क�ठन प�र�म करना पड़गेा और इंि�ल�तान का इ�तहास

    याद करना पड़गेा तब उसे पता चलेगा। बादशाह� के नाम याद रखन ेम� ह�

    �कतनी परेशानी होती है। पर��ा म� कहा जाता है �क -'समय क� पाबंद�' पर

    �नबंध �लखो, जो चार प�न� से कम नह� ंहोना चा�हए। अब आप अपनी कॉपी

    सामने रख कर अपनी कलम हाथ म� लेकर सोच-सोच कर पागल होत ेरहो।

    लेखक सोच रहा था �क अगर पास होन ेपर इतनी बे�जती हो रह� है तो अगर

    वह फेल हो गया होता तो पता नह� ंभाई साहब �या करत,े शायद उसके �ाण

    ह� ल ेलेते। ले�कन इतनी बे�जती होने के बाद भी प�ुतक� के ��त उसक� कोई

    ��च नह�ं हुई। खेल-कूद का जो भी अवसर �मलता वह हाथ से नह� ंजान ेदेता।

    पढ़ता भी था, ले�कन बहुत कम। बस इतना पढ़ता था क� क�ा म� बे�ज़ती न

    हो।

    �फर स ेसालाना पर��ा हुई और कुछ ऐसा इ�तफाक हुआ �क लेखक �फर स े

    पास हो गया और भाई साहब इस बार �फर फेल हो गए।जब पर��ा का

    प�रणाम सनुाया गया तो भाई साहब रोन ेलगे और लेखक भी रोने लगा। अब

    भाई साहब का �वभाव कुछ नरम हो गया था। कई बार लखेक को डाँटन ेका

    अवसर होन ेपर भी व ेलेखक को नह� ंडाँटते थ े,शायद उ�ह� खुद ह� लग रहा

    था �क अब उनके पास लेखक को डाँटन ेका अ�धकार नह� ंहै और अगर है भी

    तो बहुत कम। अब लेखक क� �वतं�ता और भी बड़ गई थी। वह भाई साहब

    क� सहनशीलता का गलत उपयोग कर रहा था। उसके अंदर एक ऐसी धारणा न े

    ज�म ल े�लया था �क वह चाहे पढ़े या न पढ़े, वह तो पास हो ह� जायेगा ।

    उसक� �क�मत बहुत अ�छ� है इसी�लए भाई साहब के डर से जो थोड़ा बहुत

    पढ़ �लया करता था, वह भी बंद हो गया। अब लखेक को पतंगबाज़ी का नया

    शौक हो गया था और अब उसका सारा समय पतंगबाज़ी म� ह� गजुरता था।

    �फर भी, वह भाई साहब क� इ�जत करता था और उनक� नजर� स े�छप कर ह�

    पतंग उडाता था। एक �दन शाम के समय ,हॉ�टल से दरू लखेक एक पतंग को

    पकड़ने के �लए �बना �कसी क� परवाह �कए दौड़ा जा रहा था। अचानक भाई

    साहब स ेउसका आमना -सामना हुआ, वे शायद बाजार से घर लौट रहे थे।

    उ�ह�न ेबाजार म� ह� उसका हाथ पकड़ �लया और बड़ े�ो�धत भाव से बोल े-

  • 'इन बेकार के लड़क� के साथ तु�ह� बकेार के पतंग को पकड़न ेके �लए दौड़त े

    हुए शम� नह�ं आती ? तु�हे इसका भी कोई फक� नह� ंपड़ता �क अब तुम छोट�

    क�ा म� नह�ं हो ,बि�क अब तुम आठवी ंक�ा म� हो गए हो और मझुसे �सफ�

    एक क�ा पीछे पढ़ते हो। आ�खर आदमी को थोड़ा तो अपनी पदवी के बारे म�

    सोचना चा�हए। समझ �कताब� पढ़ लेने से नह�ं आती, बि�क द�ुनया देखने स े

    आती है। बड़ ेभाई साहब लेखक को कहते ह� �क यह घमंड जो अपने �दल म�

    पाल रखा है �क �बना पढ़े भी पास हो सकते हो और उ�ह� लेखक को डाँटन े

    और समझने का कोई अ�धकार नह�ं रहा, इसे �नकाल डालो। बड़ ेभाई साहब के

    रहते लखेक कभी गलत र�ते पर नह� ंजा सकता। बड़ ेभाई साहब लेखक से

    कहत ेह� �क अगर लखेक नह�ं मानेगा तो भाई साहब थ�पड़ का �योग भी कर

    सकत ेह� और उसको उनक� बात अ�छ� नह�ं लग रह� होगी।

    लेखक भाई साहब क� इस समझान ेक� नई योजना के कारण उनके सामने सर

    झकुा कर खड़ा था। आज लेखक को सचमचु अपने छोटे होन ेका एहसास हो

    रहा था न केवल उ� से बि�क मन स ेभी और भाई साहब के �लए उसके मन

    म� इ�ज़त और भी बड़ गई। लखेक न ेउनके ��नो का उ�र नम आँख� से �दया

    �क भाई साहब जो कुछ कह रहे है वो �बलकुल सह� है और उनको ये सब कहने

    का अ�धकार भी है।

    भाई साहब न ेलेखक को गले लगा �दया और कहा �क वे लखेक को पतंग

    उड़ाने स ेमना नह� ंकरते ह�। उनका भी मन करता है �क व ेभी पतंग उड़ाएँ।

    ले�कन अगर व ेह� सह� रा�ते स ेभटक जाय�ग� तो लेखक क� र�ा कैसे कर�गे ?

    बड़ा भाई होन ेके नाते यह भी तो उनका ह� कत��य है।

    इ�तफाक से उस समय एक कट� हुई पतंग लेखक के ऊपर स ेगुज़र�। उसक�

    डोर कट� हुई थी और लटक रह� थी। लड़क� का एक झ�ुड उसके पीछे-पीछे दौड़

    रहा था। भाई साहब ल�बे तो थ ेह�, उ�ह�ने उछाल कर डोर पकड़ ल� और �बना

    सोच ेसमझ ेहॉ�टल क� और दौड़ ेऔर लखेक भी उनके पीछे -पीछे दौड़ रहा था।

    (क ) �न�न�ल�खत ��न� के उ�र द�िजए -

  • ��न 1 -: छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम - टेबल बनात ेसमय �या �या

    सोचा और �फर उसका पालन �य� नह� ंकर पाया ?

    उ�र -: छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम - टेबल बनात ेसमय सोचा �क

    वह मन लगाकर पढ़ाई करेगा और बड़ ेभाई को कभी �शकायत का मौका नह�ं

    देगा। सबुह छः से रात �यारह बजे तक सभी �वषय� को पढ़ने का काय��म रखा

    गया। पर�त ुपढ़ाई करते समय खेल के मदैान,वॉल�बॉल क� तजेी, कब�डी और

    गु�ल� -डडं ेका खेल उसे अपनी ओर खींचते थ ेइसी�लए वह टाइम टेबल का

    पालन नह�ं कर पाया।

    ��न 2 -: एक �दन जब गु�ल� -डडंा खेलन ेके बाद छोटा भाई बड़ ेभाई साहब

    के सामने पहंुचा तो उनक� �या ��त��या हुई ?

    उ�र -: एक �दन जब गु�ल� -डडंा खेलने के बाद छोटा भाई बड़ ेभाई साहब के

    सामने पहंुचा तो उनक� ��त��या बहुत भयानक थी। वह बहुत गु�से म� थे।

    उ�ह�न ेछोटे भाई को डांटते हुए कहा �क �थम दज� म� पास होने का उसे घम�ड

    हो गया है और घम�ड के कारण रावण जसैे भमू�डल के �वामी का भी नाश हो

    गया था तो हम तो �फर भी साधारण इंसान ह�। बड़ ेभाई साहब ने छोटे भाई

    को गु�ल� - डडंा खेलने के बजाये पढ़ाई म� �यान देने क� नसीहत द�।

    ��न 3 -: बड़ ेभाई साहब को अपने मन क� बात �य� दबानी पड़ती थी ?

    उ�र -: बड़ ेभाई साहब और छोटे भाई क� उ� म� पांच साल का अंतर था। वे

    माता �पता स ेदरू हॉ�टल म� रहते थ।े बड़ ेभाई साहब का भी मन खेलने ,पतंग

    उड़ाने और तमाश ेदेखने का करता था पर�तु व ेसोचते थ ेक� अगर वो बड़ े

    होकर मनमानी कर�गे तो छोटे भाई को गलत रा�त ेपर जान ेसे कैस ेरोक� गे।

    बड़ ेभाई साहब छोटे भाई का �यान रखना अपना कत��य मानत ेथे इसी�लए

    उ�ह� अपनी इ�छाए दबनी पड़ती थी।

    ��न 4 -: बड़ ेभाई साहब छोटे भाई को �या सलाह देते थ ेऔर �य� ?

  • उ�र -: बड़ ेभाई साहब चाहते थ े�क छोटा भाई खेल - कूद म� �यादा �यान

    न देकर पढ़ाई म� �यान दे। वे छोटे भाई को हमेशा सलाह देत ेथ े�क अं�ेजी म�

    �यादा �यान दो ,अं�ेजी पढ़ना हर �कसी के बस क� बात नह� ंहै। अगर पढ़ाई

    म� �यान नह� ंदोगे तो उसी क�ा म� रह जाओगे। इस�लए बड़ ेभाई साहब छोटे

    को खेलकूद से �यान हटान ेक� सलाह देत ेथे।

    ��न 5 -: छोटे भाई ने बड़ ेभाई साहब के नरम �यवहार का �या फायदा उठाया

    ?

    उ�र -: छोटे भाई ने बड़ ेभाई साहब के नरम �यवहार का अन�ुचत लाभ

    उठाया। उसपर बड़ ेभाई का डर कम हो गया। भाई के डर से जो थोड़ी बहुत

    पढाई करता था वह भी बंद कर द� थी �य��क छोटे भाई को लगता था �क वह

    पढ़े या ना पढ़े पास हो ह� जायेगा। वह अपना सारा समय मौज म�ती और

    खेल के मदैान म� �बतान ेलगा था।

    (ख )�न�न�ल�खत ��न� के उ�र �ल�खए -:

    ��न 1 -: बड़ ेभाई क� डाँट फटकार अगर ना �मलती, तो �या छोटा भाई क�ा

    म� अ�वल आता ?अपने �वचार �कट क�िजए।

    उ�र -: बड़ ेभाई साहब को अपनी िज�मेदा�रओं का आभास था व ेजानते थ े

    �क अगर वह अनशुासन ह�नता कर�गे तो छोटे भाई को गलत रा�त ेपर जान ेसे

    नह�ं रोक पाएंगे। छोटा भाई जब भी खेल कूद म� �यादा समय लगाता तो बड़ े

    भाई साहब उस ेडाँट लगात ेऔर पढ़ाई म� �यान लगान ेको कहते। यह बड़ ेभाई

    का ह� डर था �क छोटा भाई थोड़ा बहुत पढ़ लेता था। अगर बड़ ेभाई साहब

    छोटे भाई को डाँट फटकार नह� ंलगत ेतो छोटा भाई कभी क�ा म� अ�वल नह� ं

    आता।

    ��न 2 -: बड़ ेभाई साहब पाठ म� लखेक न ेसमचूी �श�ा के �कन तौर तर�क�

    पर �य�ंय �कया है? �या आप उनके �वचारो से सहमत है ?

    उ�र -: बड़ ेभाई साहब पाठ म� लखेक न ेसमचूी �श�ा के तौर तर�क� पर

    �यं�य करते हुए कहा है �क ये �श�ा अं�ेजी बोलने ,पढ़ने पर जोर देती है चाहे

  • �कसी को अं�ेजी पढ़ने म� ��च है या नह�।ं अपने देश के इ�तहास के साथ साथ

    दसूरे देश� के इ�तहास को भी पढ़ना पढ़ता है जो �बलकुल भी ज�र� नह� ंहै।

    यहाँ पर रटने वाल� �णाल� पर जोर �दया जाता है। ब�च� को कोई �वषय

    समझ म� आये या ना आये रट कर पर��ा म� पास हो ह� जाते ह�। छोटे -छोटे

    �वषय� पर ल�बे -ल�बे �नबंध �लखने होत ेह�। ऐसी �श�ा �णाल�

    जो लाभदायक कम और बोझ �यादा लगे ठ�क नह� ंहै।

    ��न 3 -: बड़ ेभाई साहब के अनसुार जीवन क� समझ कैस ेआती है ?

    उ�र -: बड़ ेभाई साहब के अनसुार जीवन क� समझ केवल �कताबी �ान से

    नह�ं आती। बि�क जीवन के अनभुव� से आती है। इसके �लए उ�ह�न ेअपनी

    अ�मा ,दादा और हेडमा�टर क� माँ के उदाहरण भी �दए है। उनका कहना है �क

    हम इतन ेपढ़े होन ेके बाद भी अगर बीमार भी पड़ जात ेहै तो परेशान हो जात े

    ह� ले�कन हमारे मा ँदादा �बना पढ़े भी हर मसुीबत का सामना बड़ी आसानी से

    करत ेहै इसम� केवल इतना ह� फक� है �क उनके पास हमसे �यादा जीवन का

    अनभुव है। बड़ ेभाई के अनसुार अनभुव ह� समझ �दलाता है।

    ��न 4 -: छोटे भाई के मन म� बड़ ेभाई के ��त ��धा �य� उ�प�न हुई ?

    उ�र -: एक �दन शाम के समय ,हॉ�टल से दरू जब छोटा भाई एक पतंग को

    पकड़ने के �लए �बना �कसी क� परवाह �कये दौड़ा जा रहा था, अचानक भाई

    साहब स ेउसका आमना -सामना हुआ।उ�ह�ने बाजार म� ह� उसका हाथ पकड़

    �लया और बड़ े�ो�धत भाव स ेबोल े‘लेखक भले ह� बहुत ��तभावान है ,इसम�

    कोई शक नह� ंह� ,ले�कन जो ��तभा �कसी को शम� �लहाज़ न �सखाये वो �कस

    काम क�।बड़ ेभाई साहब कहत ेह� �क लखेक भले ह� अपने मन म� सोचता होगा

    �क वह उनसे �सफ� एक ह� क�ा पीछे रह गया है और अब उ�ह� लेखक को

    डाँटने या कुछ कहन ेका कोई हक नह� ंहै ,ले�कन ये सोचना लखेक क� गलती

    है।बड़ ेभाई साहब उससे पांच साल बड़ ेह� और हमेशा ह� रह�गे । समझ �कताब�

    पढ़ लेने से नह� ंआती ,बि�क द�ुनया देखने से आती है।बड़ ेभाई साहब लेखक

    को कहत ेह� �क यह घमंड जो उसने �दल म� पाल रखा है �क वह �बना पड़ ेभी

  • पास हो सकता है और भाई साहब को उस ेडाँटन ेऔर समझने का कोई

    अ�धकार नह� ंरहा ,इसे �नकल डाले। बड़ ेभाई साहब के रहत ेलेखक कभी गलत

    र�ते पर नह� ंजा सकता।बड़ ेभाई साहब लेखक से कहते ह� �क अगर लेखक

    नह�ं मानेगा तो भाई साहब थ�पड़ का �योग भी कर सकत ेह� और बड़ ेभाई

    साहब लखेक को कहते ह� �क उसको उनक� बात अ�छ� नह� ंलग रह�

    होगी।छोटा भाई , भाई साहब क� इस समझने क� नई योजना के कारण उनके

    सामने सर झकुा कर खड़ा था। आज उसे सचमचु अपने छोटे होने का एहसास

    हो रहा था न केवल उ� से बि�क मन स ेभी और भाई साहब के �लए

    उसके मन म� इ�ज़त और भी बड़ गई।

    ��न 5 -: बड़ ेभाई साहब क� �वभावगत �वशषेताएँ बताइए।

    उ�र -: बड़ ेभाई साहब अ�ययनशील थे। हमेशा �कताब ेखोल कर बठेै रहत ेथे।

    �दन रात क�ठन प�र�म करते थ।े चाहे उ�ह� समझ म� आये या ना आये, वे

    �फर भी एक -एक अ�र को रट �लया करते थे। अपने बड़ ेहोन ेका उ�ह�

    एहसास है ,इस�लए व ेछोटे भाई को तरह तरह स ेसमझते ह�। अपने कत��य के

    �लए व ेअपनी बहुत सी इ�छाओं को दबा देते थे। छोटे भाई को �कताबी �ान

    से हट कर अनभुव के मह�व को समझत ेथे और कहत ेथे क� उनके रहत ेवह

    कभी गलत रा�ते पर नह� ंचल पायेगा।

    ��न 6 -: बड़ ेभाई साहब ने िजंदगी के अनभुव और �कताबी �ान म� से �कसे

    और �य� मह�पणू� कहा है ?

    उ�र -: बड़ ेभाई साहब ने िजंदगी के अनभुव और �कताबी �ान म� से िजंदगी

    के अनभुव को मह�पणू� कहा है। उ�ह�न ेपाठ म� कई उदाहरण� से ये �प�ट

    �कया है। अ�मा और दादा का उदाहरण और हेडमा�टर का उदाहरण दे कर बड़ े

    भाई साहब कहत ेहै �क चाहे �कतनी भी बड़ी �ड�ी �य� न हो िजंदगी के

    अनभुव के आगे बेकार है। िजंदगी क� क�ठन प�रि�थ�तय� का सामना अनभुव

    के आधार पर सरलता से �कया जा सकता है।

    ��न 7 -: बताइये पाठ के �कन अंश� से पता चलता है �क -:

  • (क ) छोटा भाई बड़ ेभाई का आदर करता था।

    उ�र -: छोटे भाई को पतंगबाज़ी का नया शौक हो गया था और अब उसका

    सारा समय पतंगबाज़ी म� ह� गजुरता था। �फर भी वह भाई साहब क� इ�जत

    करता था और उनक� नजर� से �छप कर ह� पतंग उडाता था। मांझा देना ,क�न े

    बाँधना ,पतंग टूना�म�ट क� तैया�रया ँये सब काम भाई साहब से छुप कर �कया

    जाता था।

    (ख ) भाई साहब को िजंदगी का अ�छा अनभुव है।

    उ�र -: भाई साहब का अपन ेकत��य� के �लए अपनी इ�छाओं को दबाना ,छोटे

    भाई को जीवन के अनभुव पर उदाहरण देना ये सब दशा�ता है �क भाई साहब

    को िजंदगी का अ�छा अनभुव है।

    (ग ) भाई साहब के भीतर भी एक ब�चा है।

    उ�र -: जब भाई साहब ने कट� पतंग देखी तो ल�ब ेहोन ेक� वजह स े उ�ह�ने

    उछाल कर डोर पकड़ ल� और �बना सोच ेसमझ ेहॉ�टल क� और दौड़ े,ये दशा�ता

    है क� भाई साहब के अंदर भी एक ब�चा है।

    (घ ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहत ेह�।

    उ�र -: भाई साहब हर समय छोटे भाई को पढ़न ेके �लए कहत ेह� ,समय �यथ�

    करन ेपर डाँटते है और चाहत ेहै क� वह कभी गलत रा�ते पर ना जाये।

    ---------------------------------------------------------------------------------------------

    ------

    प�य-भाग

  • पाठ-2

    (मीरा के पद)

    कव�य�ी का प�रचय:-मीराबाई का ज�म सन 1498 ई.

    म� मेड़ता (कुड़क�) म� ददूा जी के चौथ ेप�ु रतन �सहं के घर हुआ। ये बचपन से

    ह� कृ�णभि�त म� ��च लेने लगी थीं।मीरा का �ववाह मेवाड़ के �ससो�दया राज

    प�रवार म� हुआ। उदयपरु के महाराजा भोजराज इनके प�त थ ेजो मेवाड़

    के महाराणा सागंा के प�ु थे। �ववाह के कुछ समय बाद ह� उनके प�त का

    देहा�त हो गया। प�त क� म�ृय ुके बाद उ�ह� प�त के साथ सती करन ेका �यास

    �कया गया, �क�त ुमीरा इसके �लए तैयार नह�ं हु�। मीरा के प�त का अं�तम

    सं�कार �च�तोड़ म� मीरा क� अनपुि�थ�त म� हुआ। प�त क� ��य ूपर भी मीरा

    माता न ेअपना �ंगार नह� उतारा ॥ �यो�क वह �गरधर को अपना प�त मानती

    थी| वे �वर�त हो गयीं और साध-ुसंत� क� संग�त म� ह�रक�त�न करत ेहुए अपना

    समय �यतीत करन ेलगीं। प�त के परलोकवास के बाद इनक� भि�त �दन-

    ��त�दन बढ़ती गई। ये मं�दर� म� जाकर वहाँ मौजूद कृ�णभ�त� के सामने

    कृ�णजी क� म�ूत� के आगे नाचती रहती थी।ं मीराबाई का कृ�णभि�त म� नाचना

    और गाना राज प�रवार को अ�छा नह� ंलगा। उ�ह�न ेकई बार मीराबाई

    को �वष देकर मारन ेक� को�शश क�। घर वाल� के इस �कार के �यवहार स े

    परेशान होकर वह �वारका और व�ृदावन ग�। वह जहाँ जाती थी,ं वहाँ लोग� का

    स�मान �मलता था। लोग उ�हे देवी के जसैा �यार और स�मान देत ेथे। मीरा

    का समय बहुत बड़ी राजन�ैतक उथल-पथुल का समय रहा है। बाबर का

    �हदं�ुतान पर हमला और ��स�ध खानवा का य�ुध उसी समय हुआ था। इस

    सभी प�रि�त�थय� के बीच मीरा का रह�यवाद और भि�त क� �नगु�ण �म��त

    सगुण प�ध�� सवमा��य बनी।

    पद� का भावाथ�:-

    Ó-ह�र आप हरो जन र� भीर।

    �ोपद� र� लाज राखी , आप बढ़ायो चीर।

    भगत कारण �प नरह�र , धरयो आप सर�र।

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%A4%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A8https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7

  • बढ़ूतो गजराज रा�यो , काट� कु�जर पीर।

    दासी मीराँ लाल �गरधर , हरो �हार� भीर।।

    �संग:-��तुत पाठ हमार� �हदं� पा�य प�ुतक '�पश� ' से �लया गया है। इस

    पद क� कव�य�ी मीरा है। इसम� कव�य�ी भगवान �ी कृ�ण के भ�त-�ेम को

    दशा� रह� ह� और �वयं क� र�ा क� गुहार लगा रह� है ।

    �या�या-:इस पद म� कव�य�ी मीरा भगवान �ी कृ�ण के भ�त - �ेम का वण�न

    करत ेहुए कहती ह� �क आप अपने भ�त� के सभी �कार के दखु� को हरन ेवाल े

    ह� अथा�त दखु� का नाश करने वाले ह�। मीरा उदाहरण देत ेहुए कहती ह� �क

    िजस तरह आपने �ोपद� क� इ�जत को बचाया और साडी के कपड ेको बढ़ाते

    चले गए ,िजस तरह आपने अपने भ�त ��लाद को बचाने के �लए नर�सहं का

    शर�र धारण कर �लया और िजस तरह आपने हा�थय� के राजा भगवान इं� के

    वाहन ऐरावत हाथी को मगरम�छ के चंगुल से बचाया था ,हे ! �ी कृ�ण उसी

    तरह अपनी इस दासी अथा�त भ�त के भी सारे दःुख हर लो अथा�त सभी दखु�

    का नाश कर दो।

    Ô-�याम �हाने चाकर राखो जी,

    �गरधार� लाला �हाँन ेचाकर राखोजी।

    चाकर रह�यूँ बाग लगा�यू ँ�नत उठ दरसण पा�यूँ।

    �ब�दरावन र� कंुज गल� म� , गो�व�द ल�ला गा�यू।ँ

    चाकर� म� दरसन पा�यूँ, समुरन पा�यूँ खरची।

    भाव भगती जागीर� पा�यूँ , तीनूं बाता ँसरसी।

    मोर मगुट पीता�बर सौहे , गल वजै�ती माला।

    �ब�दरावन म� धेन ुचराव े, मोहन मरुल� वाला।

    ऊँचा ऊँचा महल बनाव ँ�बच �बच राखू ँबार�।

  • साँव�रया रा दरसण पा�यूँ ,पहर कुस�ुबी साड़ी।

    आधी रात �भ ुदरसण ,द��यो जमनाजी रे तीरा।

    मीरा ँरा �भ ु�गरधर नागर , �हवड़ो घणो अधीरा।

    �संग -: ��तुत पद हमार� �हदं� पा�य प�ुतक '�पश� ' से �लया गया है। इस

    पद क� कव�य�ी मीरा है। इस पद म� कव�य�ी मीरा �ी कृ�ण के ��त अपने

    �ेम का वण�न कर रह� है और �ी कृ�ण के दश�न के �लए वह �कतनी �याकुल

    है यह दशा� रह� है।

    �या�या -: इस पद म� कव�य�ी मीरा �ी कृ�ण के ��त अपनी भि�त भावना

    को उजागर करत ेहुए कहती ह� �क हे !�ी कृ�ण मझु ेअपना नौकर बना कर

    रखो अथा�त मीरा �कसी भी तरह �ी कृ�ण के नजद�क रहना चाहती है �फर

    चाहे नौकर बन कर ह� �य� न रहना पड़।े मीरा कहती ह� �क नौकर बनकर म�

    बागीचा लगाउंगी ता�क सबुह उठ कर रोज आपके दश�न पा सकँू। मीरा कहती ह�

    �क व�ृदावन क� सकंर� ग�लय� म� म� अपने �वामी क� ल�लाओं का बखान

    क�ँगी।

    मीरा का मानना है �क नौकर बनकर उ�ह� तीन फायदे ह�गे पहला - उ�ह� हमेशा

    कृ�ण के दश�न �ा�त ह�गे , दसूरा- उ�ह� अपने ��य क� याद नह�ं सताएगी

    और तीसरा- उनक� भाव भि�त का सा�ा�य बढ़ता ह� जायेगा।

    मीरा �ी कृ�ण के �प का बखान करत ेहुए कहती ह� �क उ�ह�ने पीले

    व�� धारण �कये हुए ह� ,सर पर मोर के पंख� का मकुुट �वराजमान है और

    गले म� वजै�ती फूल क� माला को धारण �कया हुआ है। व�ृदावन म� गाय चरात े

    हुए जब वह मोहन मरुल� बजाता है तो सबका मन मोह लेता है। मीरा कहती

    है �क म� बगीच� के �बच ह� ऊँच ेऊँच ेमहल बनाउंगी और कुस�ुबी साड़ी पहन

    कर अपने ��य के दश�न क�ँगी अथा�त �ी कृ�ण के दश�न के �लए साज �ृगंार

    क�ँगी। मीरा कहती ह� �क हे !मेरे �भ ु�गरधर �वामी मरेा मन आपके दश�न के

  • �लए इतना बेचनै है �क वह सबुह का इ�तजार नह� ंकर सकता। मीरा चाहती है

    क� �ी कृ�ण आधी रात को ह� जमनुा नद� के �कनारे उस ेदश�न दे द�।

    शबदाथ�:-

    ह�र - �ी कृ�ण गजराज - हा�थय� का राजा ऐरावत

    कु�जर - हाथी काट� - मारना

    लाल �गरधर - �ी कृ�ण �हार� - हमार�

    जागीर� -जागीर , सा�ा�य कंुज - संकर�

    पीता�बर - पीले व�� धेन ु- गाय

    बार� – बगीचा पहर - पहन कर

    तीरा – �कनारा अधीरा - �याकुल होना

    जन - भ�त भीर - दखु- दद�

    लाज - इ�जत चीर - साड़ी , कपडा

    नरह�र - नर�सहं अवतार सर�र - शर�र

    �याम - �ी कृ�ण चाकर - नौकर

    रह�यूँ - रह कर

    �नत – हमेशा दरसण - दश�न

    ��न� के उ�र:-

    1-पहले पद म� मीरा ने ह�र स ेअपनी पीड़ा हरन ेक� �वनती �कस �कार क� है?

    Ó-पहले पद म� मीरा कहती ह� �क िजस �कार हे ! �भ ुआप अपने सभी भ�त�

    के दखु� को हरत ेहो ,जैसे - �ोपद� क� लाज बचाने के �लए साड़ी का कपड़ा

    बढ़ात ेचले गए ,��लाद को बचाने के �लए नर�सहं का �प धारण कर �लया

    और ऐरावत हाथी को बचान ेके �लए मगरम�छ को मार �दया उसी �कार मरेे

    भी सारे दखु� को हर लो अथा�त सभी दखु� को समा�त कर दो।

  • 2-दसूरे पद म� मीराबाई �याम क� चाकर� �य� करना चाहती है ? �प�ट

    क�िजए।

    Ô-दसूरे पद म� मीरा �ी कृ�ण क� नौकर बनने क� �वनती इस�लए करती है

    �य� �क वह �ी कृ�ण के दश�न का एक भी मौका खोना नह� ंचाहती है। वह

    कहती है �क म� बगीचा लगाऊँगी ता�क रोज सबुह उठत ेह� मझु े�ी कृ�ण के

    दश�न हो सक� ।

    3-मीरा ने �ी कृ�ण के �प स�दय� का वण�न कैस े�कया है ?

    Õ-मीरा �ी कृ�ण के �प स�दय� का वण�न करत ेहुए कहती ह� �क उ�ह�न ेसर

    पर मोर पखं का मकुुट धारण �कया हुआ है ,पीले व�� पहने हुए ह� और गले

    म� वजैंत फूल� क� माला को धारण �कया हुआ है। मीरा कहती ह� �क जब �ी

    कृ�ण व�ृदावन म� गाय चराते हुए बांसरु� बजाते है तो सब का मन मोह लतेे ह�।

    4-मीरा क� भाषा शलै� पर �काश डा�लए।

    Ö-मीरा को �हदं� और गुजरती दोन� क� कव�य�ी माना जाता है। इनक� कुल

    सात -आठ कृ�तयाँ ह� उपल�ध ह�। मीरा क� भाषा सरल ,सहज और आम

    बोलचाल क� भाषा है, इसम� राज�तानी ,�ज, गजुरती ,पंजाबी और खड़ी बोल�

    का �म�ण है।पद� म� भि�तरस है तथा अन�ुास ,पनु�ि�त ,�पक आ�द

    अलंकार� का भी �योग �कया गया है।

    5-वे �ी कृ�ण को पाने के �लया �या - �या काय� करन ेको तयैार ह� ?

    ×-मीरा �ी कृ�ण को पाने के �लए अनके काय� करन ेके �लए तयैार ह� - वे

    कृ�ण क� स�ेवका बन कर रहने को तैयार ह� ,वे उनके �वचरण अथा�त घमूने के

    �लए बाग़ बगीच ेलगाने के �लए तैयार ह� ,ऊँच ेऊँच ेमहल� म� �खड़�कयां बनाना

    चाहती ह� ता�क �ी कृ�ण के दश�न कर सके और यहा ँतक क� आधी रात को

    जमनुा नद� के �कनारे कुस�ुबी रंग क� साडी पहन कर दश�न करने के �लए

    तैयार ह�।

    आशय �प�ट क�रए:-

  • Ó)ह�र आप हरो जन र� भीर।

    �ोपद� र� लाज राखी ,आप बढ़ायो चीर।

    भगत कारण �प नरह�र ,धरयो आप सर�र।

    का�य Aaxy - इन पिं�तओं म� मीरा �ी कृ�ण के भि�त -भाव को �कट कर

    रह� है। इन पिं�तओं म� शांत रस �धान है। मीरा कहती है �क हे !�ी कृ�ण

    आप अपन ेभ�त� के क�ट� को हरन ेवाल ेहो। आपने �ोपद� क� लाज बचाई

    और साड़ी के कपड ेको बढ़ात ेचले गए। आपने अपने भ�त ��लाद को बचाने

    के �लए नर�सहं का �प भी धारण �कया।

    Ô) बढ़ूतो गजराज रा�यो ,काट� कु�जर पीर।

    दासी मीरा ँलाल �गरधर,हरो �हार� भीर।।

    का�य Aaxy - इन पंि�तओं म� मीरा �ी कृ�ण से उनके दःुख दरू करने क�

    �वनती करती ह�। इन पंि�तओं म� त�सम और त�भव श�द� का स�ुदर �म�ण

    है। मीरा कहती ह� �क िजस तरह हे !�ी कृ�ण आपन ेहा�थओं के राजा ऐरावत

    को मगरम�छ के चगंलु से बचाया था मझु ेभी हर दःुख से बचाओ।

    3)चाकर� म� दरसन पा�यूँ ,समुरन पा�यू ँखरची।

    भाव भगती जागीर� पा�यू ँ,�त�न ूबाता ँसरसी।।

    का�य Aaxy - इन पंि�तओं म� मीरा �ी कृ�ण के ��त अपनी भाव भि�त दशा�

    रह� है। यहा ँशातं रस �धान है। यहा ँमीरा �ी कृ�ण के पास रहने के तीन

    फायदे बताती है। पहला -उसे हमेशा दश�न �ा�त ह�गे ,दसूरा -उसे �ी कृ�ण को

    याद करन ेक� ज�रत नह� ंहोगी और तीसरा -उसक� भाव भि�त का सा�ा�य

    बढ़ता ह� जायेगा।

    _-------------------------------------------------------

    संचयन-भाग

    पाठ-1

    ह�रहर काका

  • त�बयत - शर�र क� ि�थ�त यं�णा - यातना / कलेश / क�ट

    मनःि�थ�त - मन क� ि�थ�त चंद - कुछ

    आसि�त – लगाव �यावहा�रक - �यावहार

    स�ब�धी

    वैचा�रक - �वचार स�ब�धी दलुार - �यार

    सयाना - �य�क / बु��धमान �ती�ा - इंतज़ार

    �फ़लहाल - अभी / इस समय मझधार - बीच म�

    �वल�न - लु�त हो जाना �वक�प - दसूरा उपाय

    �च�लत – चलनसार जा�त - जगाना

    कलेवर - शर�र मनौती - म�नत

    परंपरा - �था / �णाल� अ�धकांश - �यादातर

    स�म�त – सं�था स�चालन - �नयं�ण /

    चलाना

    �नयुि�त - तैनाती / लगाया गया �वमुख - ��तकूल

    चपेट - आघात / �हार अहाता - चार� ओर से द�वार� से �घरा हुआ

    मैदान

    अखंड – �न�व��न �व�फोट - फूट कर बाहर

    �नकलना

    आगमन - आने पर उपल�य - संकेत

    सराहना – �शंसा �नि�चंत – बे�फ�

    *-��न-उ�र:-

    1-कथावाचक और ह�रहर काका के बीच �या संबंध है और इसके �या कारण ह�?

    1-कथावाचक जब छोटा था तब से ह� ह�रहर काका उसे बहुत �यार करते थे। जब वह बड़ ेहो गए

    तो वह ह�रहर काका के �म� बन गए। गाँव म� इतनी गहर� दो�ती और �कसी से नह�ं हुई।

  • ह�रहर काका उनसे खुल कर बात� करत ेथे। यह� कारण है �क कथावाचक को उनके एक-एक पल

    क� खबर थी। शायद अपना �म� बनाने के �लए काका ने �वयं ह� उसे �यार से बड़ा �कया और

    इतंजार �कया।

    2-ह�रहर काका को महंत और भाई एक ह� �ेणी के �य� लगने लगे?

    2-ह�रहर काका को अपने भाइय� और महंत म� कोई अतंर नह�ं लगा। दोन� एक ह� �ेणी के लगे।

    उनके भाइय� क� पि�नय� ने कुछ �दन तक तो ह�रहर काका का �यान रखा �फर बचीकुची

    रो�टयाँ द�, ना�ता नह�ं देत ेथे। �बमार� म� कोई पूछन ेवाला भी न था। िजतना भी उ�ह� रखा जा

    रहा था, उनक� ज़मीन के �लए था। इसी तरह मंहत ने एक �दन तो बड़ े�यार से खा�तर क� �फर

    ज़मीन अपने ठाकुर बाड़ी के नाम करने के �लए कहने लगे। काका के मना करने पर उ�ह� अनेक�

    यातनाएँ द�। अपहरण करवाया, मँुह म� कपड़ा ठँूस कर एक कोठर� म� बंद कर �दया, जबरद�ती

    अँगूठे का �नशान �लया गया तथा उ�ह� मारा पीटा गया। इस तरह दोन� ह� केवल ज़मीन

    जायदाद के �लए ह�रहर काका से �यवहार रखते थ।े अत: उ�ह� दोन� एक ह� �ेणी के लगे।

    3-ठाकुर बाड़ी के ��त गावँ वाल� के मन म� अपार ��धा के जो भाव ह� उससे उनक� �कस

    मनोव�ृ� का पता चलता है?

    3-कहा जाता है गाँव के लोग भोले होते ह�। असल म� गाँव के लोग अधं�व�वासी धम�भी� होते ह�।

    मं�दर जैसे �थान को प�व�, �न�कलंक, �ान का �तीक मानते ह�। पुजार�, पुरो�हत मंहत जैसे

    िजतने भी धम� के ठेकेदार ह� उनपर अगाध ��धा रखते ह�। वे चाहे �कतने भी प�तत, �वाथ� और

    नीच ह� पर उनका �वरोध करते वे डरते ह�। इसी कारण ठाकुर बाड़ी के ��त गाँव वाल� क� अपार

    ��धा थी। उनका हर सुख-दखु उससे जुड़ा था।

    4-अनपढ़ होते हुए भी ह�रहर काका द�ुनया क� बेहतर समझ रखते ह�। कहानी के आधार पर

    �प�ट क�िजए।

    4-ह�रहर काका अनपढ़ �