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  • अन�ुमिणका अकं – 24वा ं जनवरी–माचर, 2019

    1. िहन्ी ािहहतकार- माखनलाल चतवु�् ी - लखे 2. �ी माखनलाल चतवु�् ी क� रचना – पषु प क� अिभलाषा – किवता 3. �्नाकं 06.12.2018 को रेलव ेबोडर मम भारत र� बाबा ाहबे डॉ. भीमराव अमबडेकर जी के 63वा ंमहाप�रिनवारण �्व के आतोजन के ्शृ त 4. अच्ा वा ात ही अ ली सन हध- वा ात लखे 5. फणी�र नाथ रेण ु– एक महान ािहहतकार – लखे 6. ठे – कहानी 7. �्नाकं 11.12.2018 को रेलव ेबोडर मम आतोिजत रेलव ेबोडर राजभाषा कातारनवतन िमित क� 132व� बधठक के ्शृत 8. रेलव ेबोडर राजभाषा कातारनवतन िमित क� 132व� बधठक के ्ौरान

    “ई-राजभाषा" पि�का के िवमोचन के ्शृत 9 . �्नाकं 11.12.2018 को रेलव ेबोडर मम आतोिजत रेलव ेबोडर राजभाषा कातारनवतन िमित क� 132व� बधठक के ्ौरान परु कार िवतरण के ्शृत 10. उपहार – बाल कहानी 11. ईमान्ारी – कहानी 12. होली मम धतान रखन ेतोोत बातम 13. होली -किवता

    रंकक वी.के. ता्व अधतक, रेलवे बोडर

    ए . एन. अ�वाल ् त का�मरक

    �सान पंा्क

    ए .पी. माही कातरपालक िन्शेक था.(आर)

    पंा्क ज.ेए . नगरकोटी ंतुक त िन्शेक,राजभाषा

    उप पंा्क नी� पटनी

    उप िन्शेक,राजभाषा

    ह पंा्क पु�षपं्र कौर

    हातक िन्शेक, राजभाषा

    पंा्न हतोग मो. ािबर अली ह न ि ��क�,

    व�र. अनुवा्क

    तकनीक� हतोग मन जलु िम�ा आशुिलिपक �ेड ‘ ी’

    पता : राजभाषा िन्ेशालत, रेल मं�ालत (रेलव ेबोडर),

    कमरा न.ं 542, रेल भवन, रेलव ेबोडर नई �्ल ली - 110001. Email : [email protected]

  • िहन्ी ािहहतकार - माखनलाल चतवु�् ी

    (4 अ�धल 1889 – 30 जनवरी 1968) बी व� ्ी के पूवार्र मम अनेक महापुपष� न े

    रा�ीत प�र्शृत पर अपने बबआतामी ििहव वर कालजती कृितहव क� ्ाप ्ोोी हधै े महापुपष� मम ्ा्ा माखनलाल चतुव�्ी का नाम बोे आ्रपूवरक िलता जाता हधै वे ुसी �चंतक, ुकिव वर �खर प�कार होने के ाथ- ाथ वतं�ता ं�ाम के ेनापितत� मम े एक थ ेवर से अथ� मम ंपूणर मानव थेै उनक� मुकममल पहचान 'एक भारतीत आहमा' के �प मम हध, जो वरथा टीक भी हधै �ी माखनलाल चतुव�्ी जी का जनम 4 अ�धल 1889 को मधत �्शे के होशंगाबा् िजले मम बाबई नामक थान पर बआ थाै इनके िपता का नाम नन्लाल चतुव�्ी था जो गाँव के �ाइमरी कूल मम अधतापक थेै �ाइमरी िशका के बा् घर पर ही इनह�ने ं कृत ,बंगला ,अं�ेजी ,गुजराती आ�् भाषा� का जान �ा� �कताै

    तह भारत के खताित�ा� किव, लेखक वर प�कार थ े िजनक� रचनाएँ अहतंत लोकि�त ब�ै रल भाषा वर ओजपणूर भावना� के वे अनूठे �हं् ी रचनाकार थेै �भा वर कमरवीर जध ी �िति�त पि�का� के ंपा्क के �प मम उनह�न ेिि�टश शा न के िखलाफ जोर्ार �चार �कता वर नई पीढ़ी का आहवान �कता �क वह गलुामी क� जंज़ीर� को तोो कर बाहर आएै इ के िलते उनहम अनेक बार िि�टश ा�ाजत का कोपभाजन बनना पोाै वे से ्शे�ेमी थे वर न 1921-22 के अ हतोग आं्ोलन मम ��त �प े भाग लेते बए जेल भी गएै आपक� किवता� मम ्शे�ेम के ाथ- ाथ �कृित वर �ेम का भी िच�ण बआ हधै

    उ मत आ�थरक वतं�ता के िलए व्शेी का मागर चुना जा चुका था, ामािजक ुसार के अिभतान गितशील थे वर राजनीितक चेतना वतं�ता क� चाह के �प मम व�स �ाथिमकता बन गई थीै भारतीत भाषा� क� प�का�रता इ बको �खर अिभ िि �्ान कर रही थीै इ ी प�रवेश मम रा�ीत िकितज पर माखनलाल चतुव�्ी �पी नक� का उ्त बआै

    न् 1908 मम 'रा�ीत आं्ोलन वर बिहषकार' िवषत पर िनबंस �िततोिगता का आतोजन �कता गता िज मम खंडवा के तुवा अधतापक माखनलाल चतुव�्ी का िनबंस �थम चुना गताै मासवराव �े मधत�ांत मम होनहार �ितभा� क� पहचान कर उनहम आगे बढ़ाने, रा�ीत आं्ोलन के िलए कातरकतार तधतार करने वर प�का�रता एवं प�कार� को ं का�रत करने वाले मनीषी के �प मम जाने जाते रह े ह�ै �ेजी को माखनलाल चतुव�्ी क� लेखनी मम अपार ंभावना� े तुि प�कार- ािहहतकार के ्शरन बएै उनह�ने माखनलाल जी को इ �्शा मम �वृ� होने के िलए �े�रत �कताै त�िप अपने तुग क� िहन्ी ं ार क� इन ्ो महान हि तत� का �थम िममलन 1911 मम हो पाता, तथािप उनके बीच गुप-िशषत का नाता तब तक पनप चुका थाै

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0

  • अ�धल 1913 मम खंडवा के िहन्ी ेवी कालूराम गंगराो ेने माि क पि�का '�भा' का �काशन आरंभ �कता, िज के ंपा्न का ्ाितहव माखनलाल जी को �पा गताै ि तंबर 1913 मम उनह�ने अधतापक क� नौकरी ्ोो ्ी वर पूरी तरह प�का�रता, ािहहत वर रा�ीत आं्ोलन के िलए म�परत हो गएै इ ी वषर कानपुर े गणेश शंकर िव�ाथ� ने ा�ािहक '�ताप' का ंपा्न-�काशन आरंभ �कताै ('�ताप' कु् वषर बा् ्धिनक हो गता थाै) 1916 के लखनऊ कां�े अिसवशेन के ्ौरान माखनलालजी ने िव�ाथ� जी के ाथ मधिथलीशरण गु� वर महाहमा गाँसी े मुलाकात क�ै बालकृषण शमार 'नवीन' ने तह� अपने का ा्शर 'एक भारतीत आहमा' को पहचानाै

    वतं�ता ं�ाम मम उनक� तेज वी-ओज वी भागी्ारी के अलावा माखनलाल जी को जानने के तीन माधतम ह�ै (महाहमा गाँसी ारा आआत न् 1920 के 'अ हतोग आं्ोलन' मम महाकौशल अंचल े पहली िगरफतारी ्नेे वाले माखनलालजी ही थेै न् 1930 के ' िवनत अवजा' आं्ोलन मम भी उनहम िगरफतारी ्नेे का �थम ममान िमलाै) उनके महान कृितहव के तीन आताम ह� : एक, प�का�रता- '�भा', 'कमरवीर' वर '�ताप' का ंपा्नै ्ो- माखनलाल जी क� किवताए,ँ िनबंस, नाटक वर कहानीै तीन- माखनलाल जी के अिभभाषण/ ाखतानै

    4 अ�धल 1925 को जब खंडवा े माखनलाल चतुव�्ी ने 'कमरवीर' का पुनः �काशन �कता तब उनका आहवान था, 'आइए, गरीब वर अमीर, �क ान वर मज्रू, उस वर नीच, जीत वर परािजत के भे्� को ठुकराइएै �्शे मम रा�ीत जवाला जगाइए वर ्शे तथा ं ार के ामने अपनी शिित� को ा �मािणत क�िजए, िज का आने वाली ंतानम वतं� भारत के �प मम गवर करमै'

    इ ी अ�लेख के अिंतम वाकत े उनके िनरिभमानी ििहव व ोच का प�रचत िमलता हध, वर क्ािचत तही उनके ंपा्न क� ब े बोी शिि भी थी, '�भु करे ेवा के इ पथ मम मुझे अपने ्ोष� का पता रह ेवर आडंबर, अिभमान वर आकषरण मुझे पथ े भटका न पाएै' �क ान� क� ्ु् रशा, उनका ंग�ठत शिि के �प मम खोे न होना वर इ वजह े उनके क�� वर म ता� क� अन्खेी करना माखनलालजी को बेचधन करता थाै

    'कमरवीर' के 25 ि तंबर 1925 के अंक मम वे िलखते ह�- 'उ े नह� मालूम �क सिनक तब तक �जं्ा हध, राजत तब तक कातम हध, ते ारी क�ि लम तब तक ह�, जब तक वह अनाज उपजाता हध वर मालगुजारी ्तेा हधै िज �्न वह इंकार कर ् ेउ �्न म त ं ार मम महा�लत मच जाएगाै उ े नह� मालूम �क ं ार का जान, ं ार के अिसकार वर ं ार क� ताकत उ े �क ने ्ीन कर रखी हध वर कत� ्ीन कर रखी हधै वह नह� जानता �क िज �्न वह अजान इंकार कर उठेगा उ �्न जान के ठेके्ार कूल �फ ल पोमग,े कॉलेज न� हो जाएँगे वर िज �्न उ का खून चू ने के िलए न होगा, उ �्न ्शे मम तह उजाला, तह चहल-पहल, तह कोलाहल न होगाै फौज वर पुिल , वजीर वर वाइ रात ब कु् �क ान क� गाढ़ी कमाई का खेल हधै बात इतनी ही हध �क �क ान इ बात को जानता नह�, त�् उ े अपने पतन के कारण� का पता हो, वर उ ेअपने ऊँचे उठने के उपात� का जान हो जाए तो िन ं् हे �क ान कमरपथ मम लग कता हधै ' माखनलाल चतुव�्ी के ािहिहतक तोग्ान का एक प�रचत उ्ूर के नामवर ािहहतकार रघुपित हात '�फराक गोरखपुरी' क� इ �टपपणी ेिमलता हध- 'उनके लेख� को पढ़ते मत ा मालूम होता था �क आ�्शिि शब्� के �प मम अवत�रत हो रही हध ता गंगा वगर ेउतर रही हधै

    https://hindi.webdunia.com/search?cx=015955889424990834868:ptvgsjrogw0&cof=FORID:9&ie=UTF-8&sa=search&siteurl=//hindi.webdunia.com&q=%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF

  • तह शधली िहन्ी मम ही नह�, भारत क� ् ूरी भाषा� मम भी िवरले ही लोग� को न ीब बईै मुझ जध ेहजार� लोग� ने अपनी भाषा वर िलखने क� कला माखनलाल जी े ही ीखीै'

    माखनलाल चतुव�्ी ने ही मधत�्शे िहन्ी ािहहत ममेलन के अिसवशेन मम तह � ताव पा�रत कराता था �क ' ािहहतकार वराजत �ा� करने के धतेत े िलखमै' नागपुर िव�िव�ालत मम भाषण करते बए (2-12-1934) माखनलाल जी ने ािहहत के ं्भर मम अपनी अवसारणा प� क� थी- 'लोग ािहहत को जीवन ेिभ� मानते ह�, वे कहते ह� ािहहत अपने ही िलए होै ािहहत का तह संसा नह� �क हमेशा मसुर धविन ही िनकाला करे... जीवन को हम एक रामातण मान लमै रामातण जीवन के �ारंभ का मनोरम बालकाडं ही नह� �कंतु कपण र मम ओत�ोत अरणतकांड भी हध वर ससकती बई तु्ाि� े �जविलत लंका कांड भी हधै '

    1943 मम उ मत का िहन्ी ािहहत का ब े बोा '्वे पुर कार' माखनलाल जी को 'िहम �करी�टनी' पर �्ता गता थाै 1954 मम ािहहत अका्मी पुर कार� क� थापना होने पर िहन्ी ािहहत के िलए �थम पुर कार ्ा्ा को 'िहमतरंिगनी' के िलए �्ान �कता गताै 'पुषप क� अिभलाषा' वर 'अमर रा�' जध ी ओज वी रचना� के रचितता इ महाकिव के कृितहव को ागर िव�िव�ालत ने 1959 मम डी.िलट्. क� मान् उपािस े िवभूिषत �कताै 1963 मम भारत रकार ने 'प�भूषण' े अलंकृत �कताै 10 ि तंबर 1967 को रा�भाषा िहन्ी पर आघात करने वाले राजभाषा ंिवसान शंोसन िवसेतक के िवरोस मम माखनलालजी ने तह अलंकरण लौटा �्ताै

    रचनाकृितता ँ िहम�करी�टनी, िहम तरंिगणी, तुग चरण, मपरण, मरण जवार, माता, वेणु लो गूँजे सरा, बीजुरी काजल आँज रही आ�् इनक� �ि ् का कृितताँ ह�ै कृषणाजुरन तु्, ािहहत के ्वेता, मत के पावँ, अमीर इरा् े :गरीब इरा् े आ�् आपक� �ि ् ग�ाहमक कृितता ँह�ै

    ममह्ी े त वीर ख�च ली ममह्ी े त वीर ख�च ली �क क� मसुर! हथेली पर ै �ाण� क� लाली- ी हध तह, िमट मत जात हाथ� मम र ्ान �कते तह, ्ुट मत जात तह िबगोी पहचान कह� कु् बन मत जात �ठन �फ लन े मन चाही मन मत जात! बेच न ्ो िव�ा - ाँ को, उ मु कान असेली पर!

    लडडू ल ेलो | बाल-किवता

    ले लो ्ो आने के चार, लडडू राज िगरे के तार तह ह� सरती जध े गोल,ढुलक पोमगे गोल मटोल इनके मीठे वा्� मम ही, बन आता हध इनका मोल ्ाम� का मत करो िवचार, ले लो ्ो आने के चारै लोगे खूब मज़ा लातमगे, ना लोगे तो ललचातमगे -------------------------------------------------

    https://www.bharatdarshan.co.nz/magazine/literature/945/mehndi-se-tasvir-geet.htmlhttps://www.bharatdarshan.co.nz/magazine/literature/930/laddu-le-loo-makhanlal-chaturvedi.html

  • पुषप क� अिभलाषा चाह नह� म� ुरबाला के

    गहन� मम गंूथा जाऊँ,

    चाह नह�, �ेमी-माला मम �बसं पतारी को ललचाऊँ,

    चाह नह�, �ाट� के शव

    पर ह ेह�र, डाला जाऊँ,

    चाह नह�, ्वे� के ि र पर चढँू भाोत पर इठलाऊँै

    मुझे तोो लेना वनमाली!

    उ पथ पर ्नेा तमु फम क,

    मातृभूिम पर शीश चढ़ान ेिज पथ पर जातम वीर अनेक

    माखनलाल चतवु�् ी

  • �्नाकं 06-12-2018 को रेलव ेबोडर मम भारत र� बाबा ाहबे डॉ. भीमराव अमबडेकर जी का 63 वा ंमहाप�रिनवारण �्व मनाता गता. इ अव र पर एक �्शरनी का भी आतोजन �कता गता

  • अच्ा वा ात ही अ ली सन हध

    जध ा �क हम भी, ब े तेज, भीो वाले वर त मत मम रह रह े ह�ै हमम सन कमाने के िलए पूरे �्नभर मम बबत े कात� को करना पोता हध हालां�क, हम तह भूल जाते ह� �क, अच्ा वा ात हमारे व थ जीवन के िलए पानी वर हवा क� तरह ही आवशतक हधै हम मत पर पतार� भोजन लेना, ाताम करना, पतार� आराम करना आ�् झूठा सन कमाने के िलए भूल जाते ह�ै हमम तह नह� भूलना चािहए �क, हमारे जीवन मम वा तिवक सन हमारा वा ात हध ै भी के िलए तह हत ह� �क, “ वा ात ही सन हध”ै

    एक अच्ा वा ात तनाव को कम करता हध

    वर िबना �क ी परेशानी के व थ जीवन को बढ़ावा ्तेा हधै हमम हमेशा अपने वा ात के बारे मम जागपक रहना चािहए वर िनतिमत वा ात जाँच करानी चािहएै हमम अच्े वा ात को बनाए रखने के िलए ताजे फल�, ला्, हरी िबजता,ँ ्सू, अंड,े ्ही आ�् वाला नतुिलत भोजन मत पर करना चािहएै एक अच्े वा ात के िलए कु् शारी�रक गितिविसत�, पतार� आराम, वच्ता, व थ वातावरण, ताजी हवा वर पानी, ििगत वच्ता आ�् क� भी आवशतकता होती हधै अ पताल� मम भीो को कम करने के िलए अच्े वा ात को बनाए रखना अच्ी आ्त हधै िज का माता-िपता क� म्् े बचपन े ही अभता करना चािहएै

    पहले के �्न� मम, जीवन इतना अिसक त नह� थाै जीवन बबत रल था वर इन �्न� क� तुलना मम व थ वातावरण के ाथ कई चुनौितत� ेमुि थाै

    लोग व थ थे कत��क, वे अपने ्धिनक जीवन के भी कात� को वतं अपने हाथ� वर शरीर ेकरते थेै ले�कन आज, तकनीक� ं ार मम जीवन बबत रल वर आराम्ातक होन े के ाथ ही �िततोिगता के कारण त हो गता हधै आजकल, आ ान जीवन ंभव नह� हध कत��क, भी ् ूर� ेबेहतर जीवन जीने के िलए अिसक सन कमाना चाहत ेह�ै आजकल, जीवन मँहगा वर क�ठन होने के ाथ ही अ व थ हो गता हध कत��क, भी व तुए;ँ जध -े हवा, पानी, पतारवरण, भोजन आ�् ्िूषत, ं�िमत वर �्िूषत हो गई ह�ै

    लोग� को िबना �क ी शारी�रक गितिविस के

    कातारलत� मम कम े कम 9 े 10 घंटे, कु � पर बधठकर कातर करना पोता हधै वे घर मम ्रे शाम ता रात को आते ह� वर घर के �क ी भी कातर ता ाताम को करने के िलए बबत अिसक थके बए होत ेह�ै �फर ेअगली ुबह वे ्रे ेउठते ह� वर कु् आवशतक कात�, जध -े िश करना, नहाना, नाशता करना आ�् करते ह� वर अपने ऑ�फ चले जाते ह�ै इ तरह, वे अपनी ्धिनक �्नचतार को केवल सन कमाने के िलए जीते ह�, न �क अपने वतं के जीवन के िलएै अपने ्धिनक जीवन क� आसारभतू आवशतकता� क� पू�तर के िलए सन कमाना बबत आवशतक हध हालां�क, एक व थ वर शािनतपूणर जीवन जीना भी आवशतक हध, िज के िलए अच्े वा ात क� आवशतकता हधै

  • फणीश वर नाथ रेणु - एक महान ािहह तकार

    फणी�र नाथ ' रेणु ' का जनम 4 माचर 1921 को िबहार के अर�रता िजले मम फॉरिब गंज के पा वराही �हगंना गाँव मम बआ थाै उ मत तह पू�णरता िजले मम थाै उनक� िशका भारत वर नेपाल मम बईै �ारंिभक िशका फारिब गंज तथा अर�रता मम पूरी करने के बा् रेणु ने मध��क नेपाल के िवराटनगर के िवराटनगर आ्शर िव�ालत ेकोईराला प�रवार मम रहकर क�ै इनह�ने इनटरमीिडएट काशी िहन् ूिव�िव�ालत े 1942 मम क� िज के बा् वे वतं�ता ं�ाम मम कू् पोेै बा् मम 1950 मम उनह�ने नेपाली �ांितकारी आन्ोलन मम भी िह ा िलता िज के प�रणाम वपप नेपाल मम जनतं� क� थापना बईै 1952-53 के मत वे भीषण �प े रोग� त रह ेथे िज के बा् लेखन क� ओर उनका झुकाव बआै उनके इ काल क� झलक उनक� कहानी तबे एकला चलो रे मम िमलती हधै उनह�ने िहन्ी मम आंचिलक कथा क� न�व रखीै िस्ानन् हीरानन् वाह तातन अजेत, एक मकालीन किव, उनके परम िम� थेै इनक� कई रचना� मम क�टहार के रेलवे टेशन का उललेख िमलता हधै इनक� लेखन-शधली वणरणाहमक थी िज मम पा� के �हतेक मनोवधजािनक ोच का िववरण लुभावने तरीके े �कता होता थाै पा�� का च�र�-िनमारण काफ� तेजी े होता था कत��क पा� एक ामानत- रल मानव मन (�ातः) के अित�रि वर कु् नह� होता थाै इनक� लगभग हर कहानी मम पा�� क� ोच घटना� े �सान होती थीै एक आ�्म राि� क� महक इ का एक ुं्र उ्ाहरण हधै

    रेणु क� कहािनत� वर उपनता � मम उनह�ने आंचिलक जीवन के हर सुन, हर गंस, हर लत, हर ताल, हर ुर, हर ुं्रता वर हर कु�पता को शब्� मम बांसने क� फल कोिशश क� हधै उनक� भाषा-शधली मम एक जा्ईु ा अ र हध जो पाठक� को अपने ाथ बांस कर रखता हधै रेणु एक अदभुत �क ागो थे वर उनक� रचनाएँ पढते बए लगता हध मान� कोई कहानी ुना रहा होै �ामत जीवन के लोकगीत� का उनह�ने अपने कथा ािहहत मम बोा ही जरनाहमक �तोग �कता हधै

    इनका लेखन �ेमचं् क� ामािजक तथाथरवा्ी परंपरा को आगे बढाता हध वर इनहम आजा्ी के बा् का �ेमचं् क� ंजा भी ्ी जाती हधै अपनी कृितत� मम उनह�ने आंचिलक प्� का बबत �तोग �कता हधै

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AFhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AFhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95_%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE&action=edit&redlink=1https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6_%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6_%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8_%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A5%87%E0%A4%AF&action=edit&redlink=1https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BFhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%95_%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AE_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%95https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6

  • ठे फणीश वर नाथ “रेण”ु

    खेती-बारी के मत, गाँव के �क ान ि रचन क� िगनती नह� करतेै लोग उ को बेकार ही नह�, 'बेगार' मझत ेह�ै इ िलए, खेत-खिलहान क� मज्रूी के िलए कोई नह� बुलान ेजाता हध ि रचन कोै कता होगा, उ को बुला कर? ् ूरे मज्रू खेत पबचँ कर एक-ितहाई काम कर चुकम गे, तब कह� ि रचन रात हाथ मम खुरपी डुलाता �्खाई पोगेा - पगडडंी पर तौल तौल कर पाँव रखता बआ, सीरे-सीरेै मुफत मम मज्रूी ्नेी हो तो वर बात हधै

    ...आज ि रचन को मुफतखोर, कामचोर ता चटोर कह ल ेकोईै एक मत था, जब�क उ क� मोधता के पा बो-ेबो ेबाबू लोगो क� वा�रताँ बँसी रहती थ�ै उ े लोग पू् त ेही नह� थे, उ क� खुशाम् भी करत ेथेै '...अरे, ि रचन भाई! अब तो तुमहारे ही हाथ मम तह कारीगरी रह गई हध ारे इलाके ममै एक �्न भी मत िनकाल कर चलोै

    कल बो ेभधता क� िच�ी आई हध शहर े - ि रचन े एक जोोा िचक बनवा कर भजे ्ोै' मुझ ेता् हध... मेरी माँ जब कभी ि रचन को बुलान ेके िलए कहती, म� पहल ेही पू् लेता, 'भोग कता कता लगेगा?' माँ ह ँ कर कहती, 'जा-जा, बेचारा मेरे काम मम पजूा-भोग क� बात नह� उठाता कभीै' िा�णटोली के पचंानं् चौसरी के ्ोटे लोके को एक बार मरेे ामन ेही बेपानी कर �्ता था ि रचन न े- 'तुमहारी भाभी नाखून

    े खाँट कर तरकारी परो ती हधै वर इमली का र ाल कर कढ़ी तो हम कहार-कुमहार� क� घरवाली बनाती ह�ै तमुहारी भाभी न ेकहाँ े बना�!'

    इ िलए ि रचन को बुलान े ेपहले म� माँ को पू् लतेा... ि रचन को ्खेत ेही माँ बल कर कहती, 'आओ ि रचन! आज नने ूमथ रही थी, तो तमुहारी ता् आईै घी क� डाोी (खखोरन) के

    ाथ चूोा तमुको बबत प ं् हध न... वर बोी बेटी न े ुराल े वंा् भजेा हध, उ क� नन् �ठी बई हध, मोथी के शीतलपाटी के िलएै' ि रचन अपनी पिनताती जीभ को ँभाल कर ह ँता - 'घी क� ुगंस ूँघ कर आ रहा आ,ँ काक�! नह� तो इ शा्ी बताह के मौ म

    मम ्म मारन ेक� भी ्ु�ी कहाँ िमलती हध?' ि रचन जाित का कारीगर हधै म�न ेघंट� बधठ कर उ के काम करने के ढंग को ्खेा हधै एक-एक मोथी वर पटेर को हाथ मम लकेर बो ेजातां ेउ क� कुसी बनाताै

    �फर, कुिसत� को रँगन े ेल ेकर ुतली लुझान ेमम पूरा �्न मा�... काम करते मत उ क� तनमतता मम जरा भी बासा पोी �क गमबअन ाँप क� तरह फुफकार उठता - '�फर �क ी ् ूरे े करवा लीिजए कामै ि रचन मुहँजोर हध, कामचोर नह�ै'

    िबना मज्रूी के पेट-भर भात पर काम करन ेवाला कारीगरै ्सू मम कोई िमठाई न िमल,े तो कोई बात नह�,

  • �कंत ुबात मम जरा भी झाल वह नह� ब्ारशत कर कताै ि रचन को लोग चटोर भी मझते ह�... तली-बघारी बई तरकारी, ्ही क� कढ़ी, मलाई वाला ्सू, इन ब का �बंस पहले कर लो, तब ि रचन को बुलाओ; ्मु िहलाता बआ हािजर हो जाएगाै खान-ेपीने मम िचकनाई क� कमी बई �क काम क� ारी िचकनाई खहम! काम असूरा रख कर उठ खोा होगा - 'आज तो अब असकपाली ््र ेमाथा टनटना रहा हधै थोोा- ा रह गता हध, �क ी �्न आ कर पूरा कर ्ूगँा... '�क ी �्न' - मान ेकभी नह�!

    मोथी घा वर पटरे क� रंगीन शीतलपाटी, बाँ क� तीिलत� क� िझलिमलाती िचक, तरंगे डोर के मोढ़,े भू ी-चु�ी रखन ेके

    िलए मूजँ क� र ी के बो-ेबो ेजाल,े हलवाह� के िलए ताल के ूखे प�� क� ्तरी-टोपी तथा इ ी तरह के बबत- े काम ह�, िजनहम ि रचन के ि वा गाँव मम वर कोई नह� जानताै तह ् ूरी बात हध �क अब गाँव मम े काम� को बेकाम का काम मझते ह� लोग- बेकाम का काम, िज क� मज्रूी मम अनाज ता पध े्ने ेक� कोई जपरत नह�ै पेट-भर िखला ्ो, काम परूा होन ेपर एकास परुाना-सुराना कपोा ् ेकर िव्ा करोै वह कु् भी नह� बोलेगा...

    कु् भी नह� बोलगेा, ी बात नह�ै ि रचन को बुलान ेवाल ेजानते ह�, ि रचन बात करने मम भी कारीगर हध... महाजन टोल ेके

    भ� ूमहाजन क� बेटी ि रचन क� बात नु कर ितलिमला उठी थी - ठहरो! म� माँ ेजा कर कहती आँै इतनी बोी बात!' 'बोी बात ही हध िब�टता! बो ेलोग� क� ब बात ही बोी होती हधै नह� तो ्ो-्ो पटेर क� प�टत� का काम ि फर खे ारी का � ू

    िखला कर कोई करवाए भला? तह तमुहारी माँ ही कर कती हध बबुनी!' ि रचन न ेमु कुरा कर जवाब �्ता थाै उ बार मेरी ब े्ोटी बहन क� िव्ाई होन ेवाली थीै पहली बार रुाल जा रही थी मानूै मान ूके ्लूह ेन ेपहल ेही बोी

    भाभी को खत िलख कर चतेावनी ् े्ी हध - 'मानू के ाथ िमठाई क� पतीली न आए, कोई बात नह�ै तीन जोोी फध शनेबल िचक वर पटेर क� ्ो शीतलपा�टत� के िबना आएगी मान ूतो...' भाभी ने ह ँ कर कहा, 'बधरंग वाप !' इ िलए, एक �ाह ेपहल े ेही ि रचन को बुला कर काम पर तधनात करवा �्ता था माँ न े- '्खे ि रचन! इ बार नई सोती ्ूगँी, अ ली मोहर ्ाप वाली सोतीै मन लगा कर ा काम करो �क ्खेन ेवाले ्खे कर ्खेत ेही रह जाएँै'

    पान-जध ी पतली ्ुरी ेबाँ क� तीिलत� वर कमािनत� को िचकनाता बआ ि रचन अपन ेकाम मम लग गताै रंगीन ुतिलत� े

    झबबे डाल कर वह िचक बुनन ेबधठाै डढ़े हाथ क� िबनाई ्खे कर ही लोग मझ गए �क इ बार एक्म नए फध शन क� चीज बन रही हध, जो पहले कभी नह� बनीै

    मँझली भाभी े नह� रहा गता, पर् े के आो ेबोली, 'पहल े ा जानती �क मोहर ्ाप वाली सोती ्नेे े ही अच्ी चीज

    बनती हध तो भधता को खबर भजे ्तेीै' काम मम त ि रचन के कान� मम बात पो गईै बोला, 'मोहर ्ापवाली सोती के ाथ रेशमी कुरता ्नेे पर भी ी चीज नह�

    बनती बब�रताै मानू ्ी्ी काक� क� ब े ्ोटी बेटी हध... मानू ्ी्ी का ्लूहा अफ र आ्मी हधै ' मँझली भाभी का मुँह लटक गताै मेरे चाची ने फु फु ा कर कहा, '�क े बात करती हध बआ? मोहर ्ाप वाली सोती नह�,

    मूँिगता-लडडूै बेटी क� िव्ाई के मत रोज िमठाई जो खाने को िमलेगीै ्खेती हध नै'

  • ् ूरे �्न िचक क� पहली पाँित मम ात तारे जगमगा उठे, ात रंग केै तभधता तारा! ि रचन जब काम मम मगन होता हध तो उ क� जीभ जरा बाहर िनकल आती हध, होठ परै अपने काम मम मगन ि रचन को खान-ेपीने क� ुस नह� रहतीै िचक मम तुली के फं् ेडाल कर अपन ेपा पो े ूप पर िनगाह डाली - िचउरा वर गुो का एक ूखा ढेलाै म�न ेल�त �कता, ि रचन क� नाक के पा ्ो रेखाए ँउभर आ�ै म� ्ौो कर माँ के पा गताै 'माँ, आज ि रचन को कलेवा �क न े�्ता हध, ि फर िचउरा वर गुो?'

    माँ र ोईघर मम अं्र पकवान आ�् बनाने मम त थीै बोली, 'म� अकेली कहाँ-कहाँ कता-कता ्खँूे!... अरी मझँली, ि रचन को

    बँु�्ता कत� नह� ्तेी?' 'बँु�्ता म� नह� खाता, काक�!' ि रचन के मुँह मम िचउरा भरा बआ थाै गुो का ढेला पू के �कनारे पर पोा रहा, अ्ूताै माँ क� बोली नुत ेही मझँली भाभी क� भ�हम तन ग�ै मु�ी भर बँु�्ता ूप मम फम क कर चली गईै ि रचन ने पानी पी कर कहा, 'मझँली बआरानी अपन ेमधके ेआई बई िमठाई भी इ ी तरह हाथ खोल कर बाँटती हध कता?' ब , मझँली भाभी अपने कमरे मम बधठकर रोन ेलगीै चाची ने माँ के पा जा कर लगाता - '्ोटी जाित के आ्मी का मुँह भी ्ोटा

    होता हधै मुँह लगान े े र पर चढ़ेगा ही... �क ी के नधहर- ुराल क� बात कत� करेगा वह?' मँझली भाभी माँ क� ्लुारी बआ हधै माँ तमक कर बाहर आई - 'ि रचन, तुम काम करन ेआए हो, अपना काम करोै बब� े

    बतकु�ी करन ेक� कता ज�रत? िज चीज क� जपरत हो, मुझ ेकहोै' ि रचन का मुँह लाल हो गताै उ न ेकोई जवाब नह� �्ताै बाँ मम टँगे बए असूरे िचक मम फं् ेडालन ेलगाै मान ूपान जा कर बाहर बधठकखाने मम भजे रही थीै चपुके ेपान का एक बीोा ि रचन को ्तेी बई बोली वर इसर-उसर ्खे

    कर कहा - 'ि रचन ्ा्ा, काम-काज का घर! पाँच तरह के लोग पाँच �क म क� बात करमगेै तमु �क ी क� बात पर कान मत ्ोै' ि रचन ने म ुकुरा कर पान का बीोा मुहँ मम ले िलताै चाची अपने कमरे ेिनकल रही थीै ि रचन को पान खात े्खे कर अवाक

    हो गईै ि रचन न ेचाची को अपनी ओर अचरज े घूरते ्खे कर कहा - '्ोटी चाची, जरा अपनी िडिबता का गमकौआ ज्ार तो िखलानाै बबत �्न बए...ै'

    चाची कई कारण� े जली-भनुी रहती थी, ि रचन ेै गु ा उतारन ेका ा मौका �फर नह� िमल कताै झनकती बई बोली,

    'म खरी करता हध? तुमहारी चढ़ी बई जीभ मम आग लगेै घर मम भी पान वर गमकौआ ज्ार खाते हो? ...चटोर कह� के!' मेरा कलजेा सोक उठा... तहपरो नाि त!

    ब , ि रचन क� उँगिलत� मम तुली के फं् ेपो गएै मानो, कु् ्रे तक वह चपुचाप बधठा पान को मुँह मम घुलाता रहाै �फर,

    अचानक उठ कर िप्वाो ेपीक थूक आताै अपनी ्ुरी, हिँ ताँ वगधरह मेट भँाल कर झोल ेमम रखेै टँगी बई असूरी िचक पर एक िनगाह डाली वर हनहनाता बआ आँगन के बाहर िनकल गताै

    चाची बोबोाई - 'अरे बाप रे बाप! इतनी तजेी! कोई मुफत मम तो काम नह� करताै आठ पपए मम मोहर्ाप वाली सोती आती हध... इ मुँहझ� ेके मुँह मम लगाम हध, न आँख मम शीलै पध ा खचर करने पर धको� िचक िमलमगीै

  • बांतर टोली क� वरतम ि र पर ग�र ले कर गली-गली मारी �फरती ह�ै ' मान ूकु् नह� बोलीै चपुचाप असूरी िचक को ्खेती रही... ातो तारे मं् पो गएै माँ बोली, 'जान े् ेबेटी! जी ्ोटा मत कर, मानू. मलेे े खरी् कर भजे ्ूगँी.' मान ूको ता् आता, िववाह मम ि रचन के हाथ क� शीतलपाटी ्ी थी माँ नेै ुरालवाल� न ेन जान े�कतनी बार खोल कर

    �्खलाता था पटना वर कलक�ा के मेहमान� कोै वह उठ कर बोी भाभी के कमरे मम चली गईै म� ि रचन को मनान ेगताै ्खेा, एक फटी शीतलपाटी पर लेट कर वह कु् ोच रहा हधै मुझ े्खेत ेही बोला, बबुआ जी! अब नह�ै कान पकोता आ,ँ अब नह�... मोहर ्ाप वाली सोती ले कर कता क�ँगा? कौन

    पहनेगा? ... ुरी खु् मरी, बेटे बे�टत� को ल ेगई अपन े ाथै बबुआजी, मेरी घरवाली �जं् ा रहती तो म� ी ्ु् रशा भोगता? तह शीतलपाटी उ ी क� बुनी बई हधै इ शीतलपाटी को ्ू कर कहता आ,ँ अब तह काम नह� क�ँगा... गाँव-भर मम तुमहारी हवेली मम मरेी क्र होती थी... अब कता ?' म� चुपचाप वाप लौट आताै मझ गता, कलाकार के �्ल मम ठे लगी हधै वह अब नह� आ कताै

    बोी भाभी असूरी िचक मम रंगीन ्�ट क� झालर लगान ेलगी - 'तह भी बेजा नह� �्खलाई पोता, कत� मान?ू' मान ूकु् नह� बोली... बेचारी! �कंत,ु म� चपु नह� रह का - 'चाची वर मझँली भाभी क� नजर न लग जाए इ मम भीै' मान ूको ुराल पबचँान ेम� ही जा रहा था. टेशन पर ामान िमलात े मत ्खेा, मानू बो ेजतन ेअसूरे िचक को मोो कर िलए जा रही हध अपन े ाथै मन-ही-मन

    ि रचन पर गु ा हो आताै चाची के ुर-मम- ुर िमला कर को ने को जी बआ... कामचोर, चटोर...! गाोी आईै ामान चढ़ा कर म� ्रवाजा बं् कर रहा था �क पलेटफॉमर पर ्ौोत ेबए ि रचन पर नजर पोी - 'बबुआजी!' उ न े

    ्रवाजे के पा आ कर पकुाराै 'कता हध?' म�न ेिखोक� े ग्रन िनकाल कर िझोक� के वर मम कहाै ि रचन न ेपीठ पर ला् ेबए बोझ को उतार कर मरेी ओर

    ्खेा - '्ौोता आता आ.ँ.. ्रवाजा खोिलएै मानू ्ी्ी कहाँ ह�? एक बार ्खँूे!' म�न े्रवाजा खोल �्ताै 'ि रचन ्ा्ा!' मान ूइतना ही बोल क�ै िखोक� के पा खो ेहो कर ि रचन न ेहकलात ेबए कहा, 'तह मरेी ओर ेहधै ब चीज हध ्ी्ी! शीतलपाटी, िचक वर एक

    जोोी आ नी, कुश क�ै' गाोी चल पोीै मान ूमोहर ्ापवाली सोती का ्ाम िनकाल कर ्नेे लगीै ि रचन ने जीभ को ्ाँत े काट कर, ्ोन� हाथ जोो �्एै मान ूफूट-फूट रो रही थीै म� बंडल को खोल कर ्खेन ेलगा - ी कारीगरी, ी बारीक�, रंगीन तुिलत� के फं्� का ा

    काम, पहली बार ्खे रहा थाै

  • �्नाकं 11-12-2018 को रेलवे बोडर मम आतोिजत रेलव ेबोडर राजभाषा कातारनवतन िमित क� 132व� बधठक के ्शृत

  • �्नाकं 11-12-2018 को रेलवे बोडर मम आतोिजत रेलव ेबोडर राजभाषा कातारनवतन िमित क� 132व� बधठक के ्ौरान “ई-राजभाषा” पि�का के 23 वम अकं का िवमोचन

  • �्नाकं 11-12-2018 को रेलवे बोडर मम आतोिजत रेलव ेबोडर राजभाषा कातारनवतन िमित क� 132व� बधठक के ्ौरान परु कार िवतरण के ्शृत

  • इ बार होली पर बबलू बबत खुश था, कत��क नीतू भी उ के ाथ- ाथ नते कपोे वर नई �िडलम पहन केगीै नीतू उ के घर काम करने वाली नौकरानी मालती ्वेी क� लोक� हधै िप्ले ्ो-तीन वष� ेबबलू तह ्खे रहा हध �क होली के �्न जब भी लोग नते कपो ेपहनते ह� तो नीतू पुराने कपोे ही पहन कर खुश होती हधै वह पुराने कपोे बबलू क� ्ोटी बहन ीमा के होते ह�, िज े उ क� मममी मालती ्वेी को उ क� ्ोटी बेटी नीतू के िलए ्तेी ह�ै कई बार तो बबलू ने अपनी मममी े कहा भी �क तुम नीतू को होली के हतोहार पर नते कपोे कत� नह� ्तेी हो, तो उ क� मममी उ े डांटते बए कहत�, ‘जब ते पुराने कपो� ेही खुश हो जाती ह� तो इनहम नत ेकपो े्नेे क� कता ज�रतै’ तह नुकर बबलू को नीतू का ह ंता-मु कराता गोल-मटोल चेहरा ता् आ जाताै चमुच नीतू उ पुराने कपो� को पहन कर ही �कतना खुश रहती हधै िप्ले वषर क� होली के �्न बबलू ने जब नीतू को भी के बीच पुराने कपो� मम ्खेा तो उ े ा लगा था �क वह खुश तो हध पर उ के मन मम तह इच्ा ज�र ्बी बई हध �क वह भी ् ूरे बस� क� तरह नते कपो ेवर नई �िडलम पहनेै बबलू ्रे तक ोचता रहा �क नीतू नते कपो ेकध े पहने, पर उ ेिनराशा ही हाथ लगीै नीतू क� ही उ� क� बबलू क� ्ोटी बहन ीमा हध, िज के िलए उ के पापा जो नता �ॉक लाए ह� वह पूरे ्ो ौ पपए क� हध वर �िडलम डेढ़ ौ पपए क� ह�ै अथारत �ॉक वर �िडलम िमलाकर तीन ौ पचा पपए बएै

    होली का हतोहार तो बीत गता था पर बबलू उ रात ्रे तक िह ाब लगाता रहा �क कध े वह तीन ौ

    पचा पपए इक�ा कर के �क अगले वषर क� होली मम नीतू के िलए भी नई �ॉक वर �िडलम खरी्ी जा कम ै बबत ोचने के बा् उ े अपना ‘एक पपए रोज’ वाला िह ाब ठीक लगाै उ का मन खुशी ेझूम उठाै बबलू ने िह ाब लगाता था �क अगर वह अपने जेब खचर मम े हर रोज एक पपए क� बचत करे तो पूरे एक वषर के तीन ौ प� ठ �्न� मम तीन ौ प� ठ पपए इक�ा कर लेगाै �फर तो अगले वषर क� होली तक वह नीतू के िलए नई �ॉक वर �िडल का �बंस बबत आ ानी े कर कता हधै

    होली बीतने के ् ूरे �्न े ही बबलू अपनी जेब खचर के पध � मम े बचत करके हर रोज एक-एक पपए अपनी गुललक मम डालने लग गताै उ े अपने जेब खचर के पध � मम ेमा� एक पपए हर रोज क� कटौती े कु् भी परेशानी नह� होतीै वह जब भी अपनी गुललक मम हर रोज एक पपए का ि �ा डालता उ े ा लगता जध े आने वाली होली के �्न नीतू नते कपो� मम खुशी े चहकती बई उ के माथे पर गुलाल का टीका लगा गले िमल रही हध वर ह ंती-िखलिखलाती बई पापड , गुिझता वर िमठाइता ंखा रही हधै

    खेल के मध्ान ेआने के बा् बबलू ने तीन �्न� बा् आने वाली होली के हतोहार का खताल कर पुनः िह ाब लगाताै आज उ क� गुललक मम पूरे तीन ौ बा ठ पपए हो गए थेैहोली के हतोहार पर इ �ाह उ ेकु् जता्ा ही जेब खचर िमले थे, उ ने अपनी जेब ेइक�े एक पपए वाले तीन ि �े िनकाले वर गुललक मम डाल �्एै अब उ क� गुललक मम पूरे वषर के �्न� के कुल तीन ौ प� ठ ि �े डाले जा चुके थेै अब तीन ौ पचा पपए

    उपहार- बाल कहानी

    -कमलशे पाणडेत ‘पषुप’

  • मम नीतू के िलए नई �ॉक वर �िडलम आने के बा् पं�ह पपए बच भी जाएगेंै बबलू नीतू के िलए नई �ॉक वर �िडल� के बारे मम ोच ही रहा था �क उ न े नुा, पापा जो अभी-अभी बाजार ेआए थ ेउ क� मममी ेबोल रह ेथ,े ‘इ बार क� होली मम ोचा था �क मालती क� िब�टता के िलए भी एक नई �ॉक खरी् लूं पर न मौके पर पध े कम पो गएै’ तह नुकर बबलू क� मममी ्खुी मन े बोल�, ‘नता कपोा तो उ े ्नेे का मुझे भी मन करता हध पर हर बार होली के हतोहार क� खरी्ारी मम पध े कम पो जाते ह�, इतनी महगंाई जो बढ़ती जा रही हधै ’ बबलू के पापा न ेउ्ा मन ेकहा, ‘इ बार भी नीत ूके िलए ीमा का कोई पुराना �ॉक ही ् े्ोै’ उ क� मममी ने पापा क� बात� का मथरन करते बए कहा, ‘हा,ं तही ठीक रहगेाै’

    बाजार े आए ढेर ारे ामान� को उलटत-ेपलटते बए बबलू के मममी-पापा तह बातम कर ही रह ेथे �क

    तभी हाथ� मम अपनी गुललक थामे बबलू वहां पबचं गताै उ न े खुश होकर मममी-पापा को गुललक ्तेे बए बताता �क म�ने िप्ली होली मम ही नीत ूको पुराने कपो ेपहने ्खेकर तह िन�त �कता था �क अगली होली मम वह भी नत ेकपो ेज�र पहनगेी वर म� तभी े अपने जेब खचर के पध � मम े �ित�्न एक पपए बचाने लग गता थाै लीिजए, अब इ मम पूरे तीन ौ प� ठ पपए ह�ै बबलू के इ ‘एक पपए रोज’ बचत के िह ाब क� तरक�ब ेमालती ्वेी क� िब�टता नीतू के िलए होली पर नए कपो ेका �बंस हो जान ेक� बात े उ के मममी-पापा को बबत ही खुशी बईै उनह�ने पतार ेबबलू को गले लगा िलताै उ क� मझ्ारी पर वे लोग खुश होत ेबए बोल,े ‘हमारा बेटा भिवषत मम ज�र एक महान आ्मी बन केगाै आज इ के ‘एक पपए रोज’ के िह ाब ेहमारी ्ोटी- ी म ता ुलझी हध, कल इ के बो-ेबो े िह ाब� े ्शे वर माज क� बोी-बोी म ता� का मासान होगाै’ अगले ही पल बबलू के पापा बाजार गते वर बबलू के गुललक के पध � े नीतू के िलए नई �ॉक वर �िडलम खरी् लाएै तीन �्न� बा् जब होली का हतोहार आता, भी बसे नत-ेनते कपो ेपहने एक-् ूरे के माथे पर गुलाल का टीका लगा खेल-कू् रह ेथ,े नीत ूभी अपने नते कपो ेवर �िडलम पहन कर खुश हो बस� के माथे पर गुलाल का टीका लगा रही थीै बबलू को ा लग रहा था जध ेनीतू तो नते कपो ेपहनकर खुश हध ही, इ होली मम मा� ‘एक पपए रोज’ के िह ाब ेउ ने नीतू को जो होली का उपहार �्ता हध उ े नीत ूके ाथ- ाथ उ के ्ोटे ेप�रवार मम भी िप्ली बार क� अपेका कई गुनी खुिशतां बढ़ गई ह�ै

  • गुबबारे वाला जब भी आता हध अपनी मीठी बोली वर रंग-िबरंगे गुबबार� े बस� को लुभा लतेा हधै बसे उ के पी्े-पी्े लग जाते ह�, वह मु कुराते बए पतार ेबस� के हाथ� मम गुबबारा थमाता जाता हध वर ि �� े अपनी जेबम भरता जाता हधै बसे खुश हो-होकर गुबबारे लेकर अपन-े अपने घर� को भागते जाते ह� वर गुबबारे वाला ाइ�कल डगराते सीरे-सीरे एक गली े ् ूरी गली मम चला जाता हधै गुबबारे उ क� ाइ�कल के हधिणडल े साग� मम बंसे हवा मम इसर-उसर उोत ेरहत ेह�ै गुबबारे वाला आज भी आता हध, एक ननही बसी िज का नाम रासा हध, ललचाती नजर� ेगुबबारे वाले को ्रे े अपन े्रवाजे क� चौखट पर खोी-खोी ्खे रही हधै रासा गरीब प�रवार क� लोक� हध,उ के िपता ठेले पर बजी बेचत ेह�, वह अपन े काम पर गते ह� वर मां बीमार हधै रासा मा ंक� ्खेभाल वर ्वा इहता�् ्नेे के िलए पा बधठी थी, गुबबारे वाले क� आवाज ुनकर वह चौखट पर आती हधै रासा ोचती हध घर मम इ मत �कतना खचर हध जध े ्कुान े आटा,्ाल,म ाले लाना हधै वर हा,ंउ े धतान आता मां क� ्वा भी तो लानी हध,वह इतन ेखच� मम कध ेकटौती करके मां ेगुबबारे के िलए पध ेमांगेै वह मन ही मन िनणरत लतेी हध- वह गुबबारा नह� खरी्गेी, वर �फर गुबबारे जल्ी ही फूट भी तो जाते ह�ै उ के पापा तो कहते ह� �क गुबबारे हतोहार� पर खरी् ेजाते ह�,मेल� मम खरी् ेजात ेह�ै े गुबबारे खरी्ना तो �फजूलखच� हधै इतना ब कु् ोचन ेके बा् भी रासा का मन गुबबारे लेने के िलए ललचान ेलग गताै

    अ ल मम गुबबारे अच्े तो उ े भी लगते ह�ै वह ोचने लग गती- गुबबारे भी बस� को अच्े लगते ह� तभी तो भी गुबबार� को पतार करत ेह�ै रासा अभी तह ोच ही रही थी �क उ ने ्खेा, एक लोका गुबबारे वाले के हाथ मम ि �ा थमाता वर गुबबारे वाला उ े जल्ी ेजेब मम डालकर लोके को एक पतारा ा गुबबारा थमा �्ता,पर वह ि �ा गुबबारे वाले क� जेब मम न जाकर जमीन पर िगर पोाै वह� नीचे जमीन पर रासा क� काली गात का गोबर पोा था,वह ि �ा िबना आवाज �कए गोबर मम सं गताै गुबबारे वाले को ि �े के नीचे िगरन ेक� भनक तक नह� लगीै वह ाइ�कल डगरात ेबए आगे ् ूरी गली मम मुो गताै अगले ही पल रासा ्ौो कर गती वर उ ि �े को गोबर ेिनकाल लाती,�फर नल े पानी खोलकर उ ेसो डालीै ि �ा चमक उठाै वह ोचन ेलगी, आज वह िबना मेला वर हतौहार के ही गुबबारा खरी्गेी, उ का मन बिललत� उ्ल रहा थाै अचानक ही उ के �्माग मम तह बात आती �क कह� ि �े क� चमक ्खेकर गुबबारे वाला अपना ि �ा पहचान गता तो कता होगाै उ न ेअगले ही पल ोचा- नह�,नह� ा नह� हो कता, ि �े पर उ का नाम थोो ेही िलखा बआ हध, एक जध े ि �े तो बबत होत ेह�ै वह उ ि �े के ब्ले आज एक अच्ा ा गुबबारा अवशत खरी्गेी गुबबारे वाले ेै �फर तो तह ोचकर रासा ने ि �े को मु�ी मम भ�चा वर ्ौो पोी गुबबारे वाले के पा ै जब वह गुबबारे वाले के पा पबचंी तो उ के पा बस� क� भीो

    ईमान्ारी

  • लगी थी गुबबारे लेने के िलतेै वह बारी-बारी े बस� को गुबबारे ्े रहा थाै रासा उ के बगल मम खोी हो गती वर ्ेखन ेलगी गबुबार� के झंुड कोै उ क� आंखम चमक उठ�, वह नीला वाला गुबबारा लेगी जो ाइ�कल के ह�िणडल पर घंटी के पा ितर्ा लहरा रहा हध,हवा ममै

    वह अभी तह ोच ही रही थी �क गुबबारे वाले क� आवाज े वह च�क उठी, ‘तुमहम कौन ा गुबबारा ्े ्ू ंबेटीै रासा एक्म चुप थी, वह कु् न बोल क� ै अचानक ही वह ोचने लग गती थी- नह�, नह�, वह गुबबारे नह� लगेी तह पध ा उ का अपना नह� हध, उ े इ पध े के ब्ले मम गुबबारे लेन ेका कोई अिसकार नह� हध, उ के पापा भी तो े ही गली-कूच� मम ठेला लेकर पबचंते ह�गे नै रासा को गुबबारे वाला बबत ही ि�त लग रहा था, उ के मन मम तह बात आती �क अपन ेि�त लगन ेवाले को कभी सोखा नह� ्ेना चािहएै वह भी गुबबारे वाल ेको सोखा ्ेकर गबुबारा नह� खरी्ेगीै तह िबलकुल अच्ी बात न होगीै

    रासा अभी तह ोच ही रही थी �क तब तक गबुबारे वाला अपने मन े ही एक गलुाबी रंग का गुबबारा उ के हाथ� मम थमात ेबए बोला,‘बेटी, तुम शात् गबुबारे प ं् नह� कर पा रही हो, ते लो गलुाबी रंग का चटक गबुबारा ,जता्ा बसे इ े ही प ं् कर रह ेह�, तुमहम भी प ं् आ ही जाएगाै‘ रासा ने गबुबारा लेन े े मना करते बए कहा, ‘अंकल जी,म� गुबबारा लेन ेनह� आती आ,ं वो कता था �क मेरे ्रवाजे पर आपका एक ि �ा जमीन पर पोे गोबर के ढेर मम िगर कर सं गता था, आपको पता नह� चल पाता था, म� आपका तह ि �ा आपको ्ेन ेआती आंै ‘

    तह कहकर रासा न ेवह ि �ा गुबबारे वाल ेके हाथ मम थमा �्ता वर वहां े ्ौोती बई अपने घर आ गतीै गुबबारे वाला उ े पुकारता ही रह गता, ‘बसी ुनो तो, एक गबुबारा मेरी तरफ े ईनाम मम लेती जाओै‘ पर रासा ने उ क� बात अन ुनी कर ्ीै रासा का मन बबत खुश था, आज वह गुबबारा तो नह� ल ेपाती थी पर उ े मह ू हो रहा था �क उ के हाथ� मम ढेर ारे नील,े गलुाबी, हरे, पीले, ब�गनी गुबबारे ह� वर वे हवा मम उो-उो कर उ े आ मान क� ऊंचाइत� पर ल ेजा रह ेह�ै वह खुशी े झूम उठीै चमुच मन मम उपजी ईमान्ारी क� भावना े िमली खुशी े बढ़कर कोई चीज नह� होतीै

  • होली मम धतान रखन ेतोोत बातम

    होली खेलते मत रखम इन बात� का खा खताल वरना.....

    हतोहार क� म ती मम हम कई बार ेहत को अन्खेा कर ्तेे ह�. िज का खािमताजा हमम बा् मम भुगतना पोता हध. े मम ज�री हध �क आप अपनी ेहत को नजरअं्ाज न करम ता�क हतोहार का तो भरपूर मजा ले ही कम उ के बा् भी �फट रहम.

    रंग� का हतोहार, होली पूरे ्शे मम उह ाह ेमनाता जाता हध. रंग� क� सूम वर पकवान� क� ुगंस इ पवर को वर खा बना ्तेी हध ले�कन हतोहार क� म ती मम हम कई बार ेहत को अन्खेा कर ्तेे ह�. िज का खािमताज़ा हमम बा् मम भुगतना पोता हध. े मम ज�री हध �क आप अपनी हेत को नजरअं् ाज न करम ता�क हतोहार का तो भरपूर मजा ले ही कम उ के बा् भी �फट रहम.

    हवचा रोग िवशेषज डॉकटर� का कहना हध �क बा् मम इलाज कराने े बेहतर हध �क हम शु� मम ही ावसानी बरतम. होली के म�ेनजर उनह�ने कु् खा �टप �्ए ह� िजनहम धतान मम रखकर आप भी ुरिकत होली मना कते ह�. होली खलेन ेके पहल-े

    • होली खेलने े पहले अपने पूरे शरीर पर तेल लगा लम, बाल� पर तेल लगाना न भूलम, र � के तेल क� जगह ना�रतल का तेल लगाना बेहतर िवकलप हध.

    • शरीर को ढककर रखम, होली के मौके पर फुल लीी के कपो ेपहनना बेहतर रहगेा.

    खलेन ेके ्ौरान बरतम त े ावसािनता-ं • नेचुरल रंग� का इ तेमाल करम, • बबत अिसक गहरे रंग� का इ तेमाल न करम, इनमम केिमकल होने क� आशंका अिसक होती हध, िज े ि कन एलज�, एिकज मा वर बाल� ेजुोी म ता हो कती हध,

    • ुरिकत होली खेलम, धतान रखम �क होली का रंग आपके मुंह, नाक वर आंख मम न जाए, वरना ां लेने मम �्�त हो कती हध वर आंख� मम जलन हो कती हध,

    • भागं वर एलकोहल े्रू रहन ेमम ही भलाई हध, इनके ेवन े डीहाइ�ेशन होने का खतरा होता हध.

    • त े ावसानी रखना भी हध ज�री-

    • रंग ्ुोाते मत बबत अिसक ाबुन का इ तेमाल न करम, इ े हवचा ंबंसी म ताएं हो कती ह�.

    • रंग ्ुोाते मत मुंह वर आंख बं् रखम, धतान रखम �क रंग का पानी कान मम न जाए,

    • बसे जब रंग खेलने जाए ंतो उनके ाथ �क ी बोे का होना ज�री हध,

    • अगर आपको जलन मह ू हो रही हो, संुसला- पन लग रहा हो, ां लेने मम �्�त हो रही हो तो तुरंत अपने करीबी डॉकटर े ंपकर करम.

  • मेंहदी से तस्वीर खींच लीलड्डू ले लो | बाल-कविता


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