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हि�न्दी (Hindi)

हि�न्दी सांवैधाहि�क तौर पर भारत की प्रथम राजभाषा �ै और सबसे ज्यादा बोली और समझी जा�ेवाली भाषा �ै। हि�न्दी और इसकी बोलिलयाँ उत्तर एवं मध्य भारत के हिवहिवध प्रांतों में बोली जाती �ैं । २६ ज�वरी १९६५ को हि�न्दी को भारत की आधिधकारिरक भाषा का दजा6 दिदया गया ।

हि�न्दी Spoken - भारत, �ेपाल, हि9जी, सूरी�ाम, अमरीका, इंग्लैंड, आस्टे्रलिलया, के्षत्र - दक्षिAण एलिCया (South Asia)कुल बोलनेवाले - ४८० धिमलिलय� स्थान - २ सरा भाषाई परि�वा� भाषाई वर्गी�क�ण इंडो युरोहिपय� - इंडो इराहि�य� - इंडो आय6�हि�न्दी आधि�का�ीक स्थिस्थहि - राजभाषा भारत (National language of India)हिनयामक - भारत सरकार भाषा कूट - ISO 639-1 hi - ISO 639-2 hin - SIL HND

ची�ी एवं अन्ग्रेज़ी के बाद हि�न्दी हिवश्व में सबसे ज़्यादा बोली जा�े वाली भाषा �ै । भारत और हिवदेC में ६० करोड़ (६०० धिमलिलय�) से अधिधक लोग हि�न्दी बोलते, पढ़ते और लिलखते �ैं । हिPजी, मॉरिरCस, गया�ा, सूरी�ाम और �ेपाल की अधिधकतर ज�ता हि�न्दी बोलती �ै ।

भाषाहिवद हि�न्दी एवं उर्दू6 को एक �ी भाषा समझते �ैं । हि�न्दी देव�ागरी लिलहिप में लिलखी जाती �ै और Cब्दावली के स्तर पर अधिधकांCत: संस्कृत के Cब्दों का प्रयोग करती �ै । उर्दू6 �स्तालिलक़ में लिलखी जाती �ै और Cब्दावली के स्तर पर उस पर 9ारसी और अरबी भाषाओं का ज़्यादा असर �ै । व्याकरक्षिणक रुप से उर्दू6 और हि�न्दी में लगभग Cत-प्रहितCत समा�ता �ै - लिसP6 कुछ खास Aेत्रों में Cब्दावली के स्त्रोत (जैसा हिक उपर लिलखा गया �ै) में अंतर �ोता �ै। कुछ खास ध्वहि�याँ उर्दू6 में अरबी और 9ारसी से ली गयी �ैं और इसी तर� 9ारसी और अरबी के कुछ खास व्याकरक्षिणक संरच�ा भी प्रयोग की जाती �ै।

इहि �ास क्रम (Historical timeline of Hindi)७५० बी. सी. - संस्कृत का वैदिदक संस्कृत के बाद का क्रमबद्ध हिवकास। ५०० बी. सी. - बोद्ध तथा ज�ै की प्राकहित अAरमाला का हिवकास (पूव^ भारत) ४०० बी. सी. - पाक्षिण�ी �े संस्कृत व्याकरण लिलखा (पच्छि`मी भारत)।

वेदिदक संस्कृ से पाननी की संस्कृ का उदर्गीम।३२२ बी. सी. - मौयb द्वारा ब्रा�मी लिलपी का हिवकास। २५० बी. सी. - आदिद संस्कृत का हिवकास।(आदिद संस्कृत �े धीरे धीरे १०० बी. सी. तक प्राकहित का स्था� लिलया) ३२० - गुप्त या लिसद्ध माहित्रका लिलपी का हिवकास।

अप्रभान्षा था आदिद हि�न्दी का हिवकास४०० - कालीदास �े "हिवक्रमोय6लिCयम" अप्रभान्षा मैं लिलखी।

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५५० - वलभी के दC6� मैं अप्रभान्षा का प्रयोग। ७६९ - लिसद्ध सार�पद (जिजन्�ै हि�न्दी का प�ला कहिव मा�ते �ैं) �े "दो�ाकोC" लिलखी। ७७९ - उदयोत� सुरी हिक "कुवलयमल" मैं अप्रभान्षा का प्रयोग। ८०० - संस्कृत मैं बहुत सी रच�ायैं लिलखी गयीं। ९९३ - देवसे� की "Cवकचर" (हि�न्दी की प�ली पुस्तक)। ११०० - आधुहि�क देव�ागरी लिलपी का प्रथम स्वरूप। ११४५-१२२९ - �ेमचन्द्र �े अप्रभान्षा व्याकरण की रच�ा की।

अप्रभान्षा का अस् था आ�ुहिनक हि�न्दी का हिवकास१२८३ - खुसरो की प�ेली तथा मुकरिरस मैं "हि�न्दहिव" Cव्द क उपयोग। १३७० - "�न्सवाली" की आस�ात �े पे्रम कथाओं की Cुरुआत की। १३९८-१५१८ - कबीर की रच�ाओं �े हि�गु6ण भक्ती की �ीवँ रक्खी। १४००-१४७९ - अप्रभान्षा के आखरी म�ा� कहिव रघु। १४५० - रामा�न्द के साथ "सगुण भक्ती" की Cुरुआत। १५८० - Cुरुआती दच्छिक्ख�ी का काय6 "कालधिमतुल �ाकायत्" बु�6�ुदिq� ज�म द्वारा। १५८५ - �वलदास �े "भक्तामल" लिलखी। १६०१ - ब�ारसीदास �े हि�न्दी की प�ली आत्मकथा "अध6 कथा�क्" लिलखी। १६०४ - गुरु अजु6� देव �े कई कहिवओं की रच�ाओं का सन्कल� "आदिद ग्रन्थ" हि�काला। १५३२ -१६२३ तुलसीदास �े "रामचरिरत मा�स" की राच�ा की। १६२३ - जाटमल �े "गोरा बादल की कथा" (खडी बोली की प�ली रच�ा) लिलखी। १६४३ - रामचन्द्र Cुक्ला �े "रीहित" के द्वारा काव्य की Cुरुआत की। १६४५ - उर्दू6 की Cुरुआत। आ�ुहिनक हि�न्दी (Modern Hindi)१७९६ - देव�ागरी रच�ाओं की Cुरुआती छ्पाई। १८२६ - "उदन्त मात6ण्ड" हि�न्दी का प�ला साप्ताहि�क। १८३७ - ओम् जय जगदीC" के रलिचयता पुल्लोरी क जन्म । हि�न्दी भारत की राजभाषा के रुप में स्थाहिपत

हि�न्दी का मानकीक�णस्वतंत्रता प्राप्तिप्त के बाद से हि�न्दी और देव�ागरी के मा�कीकरण की दिदCा में हि�च्छि{न्लखिखत Aेत्रों में प्रयास हुये �ैं:-

हि�न्दी व्याकरण का मा�कीकरण वत6�ी का मा�कीकरण लिCAा मंत्रालय के हि�द}C पर केन्द्रीय हि�न्दी संस्था� द्वारा देव�ागरी का मा�कीकरण वैज्ञाहि�क ढंग से देव�ागरी लिलख�े के लिलये एकरूपता के प्रयास यूहि�कोड का हिवकास

हि�न्दी की शैधिलयाँ (Dialects)

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बाजारी हि�न्दी हि�ंगे्रजी ब{बइया हि�न्दी दच्छिक्ख�ी हि�न्दी पारसी हि�न्दी मारवाड़ी हि�न्दी

लाठर 

हि�न्दी भाषा की उत्पधि6 औ� हिवकासPosted by: संपादक- धिमलिथलेC वाम�कर on: September 2, 2008

In: हि�न्दी भाषा व लिलहिप Comment!

संसार का सबसे प्राची� ग्रन्थ ऋग्वेद �ै। ऋग्वेद से प�ले भी सम्भव �ै कोई भाषा हिवद्यमा� र�ी �ो परन्तु आज तक उसका कोई लिलखिखत रूप ��ीं प्राप्त �ो पाया। इससे य� अ�ुमा� �ोता �ै हिक सम्भवतः आयb की सबसे प्राची� भाषा ऋग्वेद की �ी भाषा, वैदिदक संस्कृत �ी थी। हिवद्वा�ों का मत �ै हिक ऋग्वेद की भी एक काल अथवा एक स्था� पर रच�ा ��ीं हुई। इसके कुछ मन्त्रों की रच�ा कन्धार में, कुछ की लिसनु्ध तट पर, कुछ की हिवपाCा-Cतद्रु के संभेद (�रिर के पत्त�) पर और कुछ मन्त्रों की यमु�ा गंगा के तट पर हुई। इस अ�ुमा� का आधार य� �ै हिक इ� मन्त्रों में क�ीं कन्धार के राजा दिदवोदास का वण6� �ै, तो क�ीं लिसनु्ध �रेC सुदास का। इ� दो�ों राजाओं के Cास� काल के बीच Cताखिब्दयों का अन्तर �ै। इससे य� अ�ुमा� �ोता �ै हिक ऋग्वेद की रच�ा सैकड़ों वषb में जाकर पूण6 हुई और बाद में इसे संहि�त-(संग्र�)-बद्ध हिकया गया।ऋग्वेद के उपरान्त ब्राह्मण ग्रन्थों तथा सूत्र ग्रन्थों का सृज� हुआ और इ�की भाषा ऋग्वेद की भाषा से कई अंCों में क्षिभन्न लौहिकक या क्लालिसकल संस्कृत �ै। सूत्र ग्रन्थों के रच�ा काल में भाषा का साहि�प्तित्यक रूप व्याकरण के हि�यमों में आबद्ध �ो गया था। तब य� भाषा संस्कृत क�लायी। तब छन्दस् वेद तथा लोक-भाषा (लौहिकक) में पया6प्त अन्तर स्पष्ट रूप में प्रकट हुआ।  डॉ. धीरेन्द्र वमा6 का मत �ै हिक पतञ्जलिल (पाक्षिणहि� की व्याकरण अष्टाध्यायी के म�ाभाष्यकार) के समय में व्याकरण Cास्त्र जा��े वाले हिवद्वा�् �ी केवल Cुद्ध संस्कृत बोलते थ,े अन्य लोग अCुद्ध संस्कृत बोलते थ ेतथा साधारण लोग स्वाभाहिवक बोली बोलते थ,े जो कालान्तर में प्राकृत क�लायी। डॉ. चन्द्रबली पांडेय का मत �ै हिक भाषा के इ� दो�ों वगb का श्रेष्टतम उदा�रण वाल्मीहिक रामायण में धिमलता �ै, जबहिक अCोक वादिटका में पव� पुत्र �े सीता से ‘हिद्वजी’ (संस्कृत) भाषा में बात �

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करके ‘मा�ुषी’ (प्राकृत) भाषा में बातचीत की। लेहिक� डॉ. भोला�ाथ हितवारी �े तत्काली� भाषा को पक्षि�मोत्तरी मध्य देCी तथा पूव^ �ाम से अक्षिभहि�त हिकया �ै। परन्तु डॉ. रामहिवलास Cमा6 आदिद कुछ हिवद्वा�्, प्राकृत को ज�साधारण की लोक-भाषा � मा�कर उसे एक कृहित्रम साहि�प्तित्यक भाषा स्वीकार करते �ैं। उ�का मत �ै हिक प्राकृत �े संस्कृत Cब्दों को �ठात् हिवकृत कर�े का हि�यम �ी� प्रयत्� हिकया। डॉ. श्यामसुन्दर दास का मत �ै-वेदकाली� कलिथत भाषा से �ी संस्कृत उत्पन्न हुई और अ�ायb के सम्पक6 का स�ारा पाकर अन्य प्रान्तीय बोलिलयाँ हिवकलिसत हुईं। संस्कृत �े केवल चु�े हुए प्रचुर प्रयुक्त, व्यवच्छिस्थत, व्यापक Cब्दों से �ी अप�ा भण्डार भरा, पर औरों �े वैदिदक भाषा की प्रकृहित स्व`ान्दता को भरपेट अप�ाया। य�ी उ�के प्राकृत क�ला�े का कारण �ै।” व्याकरण के हिवधिध हि�षेध हि�यमों से संस्कारिरत भाषा Cीघ्र �ी सभ्य समाज की श्रेष्ठ भाषा �ो गई तथा य�ी क्रम कई Cताखिब्दयों तक जारी र�ा। यद्यहिप म�ात्मा  बुद्ध के समय संस्कृत की गहित कुछ लिCलिथल पड़ गई, परन्तु गुप्तकाल में उसका हिवकास पु�ः तीव्र वेग से हुआ। दीघ6काल तक संस्कृत �ी राष्ट्रीय भाषा के रूप में स{माहि�त र�ी।ज�साधारण अल्प लिCक्षिAत वग6 के लिलए संस्कृत के हि�यमों का अ�ुसरण कदिठ� था, अतः वे लोकभाषा का �ी प्रयोग करते थे। इसीलिलए म�ावीर स्वामी �े ज�ै मत के तथा म�ात्मा बुद्ध �े बौद्ध मत के प्रसार के लिलए लोकभाषा को �ी अप�ी वाणी का माध्यम ब�ाया। इससे लोकभाषा को ऐसी प्रहितष्ठा का पद प्राप्त हुआ, जो उससे पूव6 कभी प्राप्त ��ीं हुआ था। हि9र भी संस्कृत भाषा का म�त्त्व कभी कम ��ीं हुआ। भास, कालिलदास आदिद के �ाटकों में सुलिCक्षिAत व्यलिक्त तो संस्कृत बोलते �ैं, परन्तु अलिCक्षिAत पात्र -हिवट-चेट हिवर्दूषक तथा दास-दालिसयाँ आदिद प्राकृत में बात करते �ैं। परन्तु ये सब जिज� प्रश्नों के उत्तर प्राकृत में देते हुए दिदखाई गए �ैं, उ� प्रश्नों को संस्कृत में �ी पूछा गया �ै। इससे स्पष्ट �ोता �ै। हिक ज�साधारण भी संस्कृत को अ`ी तर� समझ लेते थ,े भले �ी बोल�े में उन्�ें कदिठ�ाई प्रतीत �ोती �ो। पंचतंत्र में हिवष्णु Cमा6 �े संस्कृत भाषा में �ी राजकुमारों को लिCAा प्रदा� की थी। डॉ. आर.के. मुकज^ �े क�ा �ै, ब्राह्मण काल एवं उसके प�ात् भी हि�ःसन्दे� संस्कृत सामान्य ज�ता के धार्मिमंक कृत्यों पारिरवारिरक संस्कारों तथा लिCAा एवं हिवज्ञा� की भाषा थी।”1 सरदार के.एम. पक्षिणक्कर �े क�ा �ै संस्कृत हिवश्व की संस्कृहित और सभ्यता की भाषा �ै जो भारत की सीमाओं के पार र्दूर-र्दूर तक 9ैली हुई थी।” हि�न्दी का हि�मा6ण-काल अपभं्रC की समाप्तिप्त और आधुहि�क भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रांहितकाल क�ा जा सकता �ै। हि�न्दी का स्वरूप Cौरसे�ी और अध6मागधी अपभं्रCों से हिवकलिसत हुआ �ै। 1000 ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिरचय धिमल�े लगा था, जब अपभं्रC भाषाए ँसाहि�प्तित्यक संदभb में प्रयोग में आ र�ी थीं। य�ी भाषाए ँबाद में हिवकलिसत �ोकर आधुहि�क भारतीय आय6 भाषाओं के रूप में अक्षिभहि�त हुईं। अपभं्रC का जो भी कथ्य रुप था-व�ी आधुहि�क बोलिलयों में हिवकलिसत हुआ। अपभं्रC के संबंध में ‘देCी’ Cब्द की भी बहुधा चचा6 की जाती �ै। वास्तव में ‘देCी’ से देCी Cब्द एवं देCी भाषा दो�ों का बोध �ोता �ै। प्रश्न य� हिक देCीय Cब्द हिकस भाषा के थ े? भरत मुहि� �े �ाट्यCास्त्र में उ� Cब्दों को ‘देCी’ क�ा �ै ‘जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से क्षिभन्न �ैं।’ ये ‘देCी’ Cब्द ज�भाषा के प्रचलिलत Cब्द थ,े जो स्वभावतया अप्रभंC में भी चले आए थे। ज�भाषा व्याकरण के हि�यमों का अ�ुसरण ��ीं करती, परंतु व्याकरण को ज�भाषा की प्रवृक्षित्तयों का हिवशे्लषण कर�ा पड़ता �ै, प्राकृत-व्याकरणों �े संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिलखे और संस्कृत को �ी प्राकृत आदिद की प्रकृहित मा�ा। अतः जो Cब्द उ�के हि�यमों की पकड़ में � आ सके, उ�को देCी संज्ञा दी गई।  प्राची� काल से बोलचाल की भाषा को देCी भाषा अथवा ‘भाषा’ क�ा जाता र�ा। पाक्षिणहि� के समय में संस्कृत बोलचाल की भाषा थी। अतः पाक्षिण�ी �े इसको ‘भाषा’ क�ा �ै। पतंजलिल के समय तक संस्कृत केवल लिCष्ट समाज के व्यव�ार की भाषा र� गई थी और प्राकृत �े बोलचाल की भाषा का स्था� ले लिलया था।

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हि�न्दी व्याक�ण11.भाषा, व्याक�ण औ� बोलीपरिरभाषा- भाषा अक्षिभव्यलिक्त का एक ऐसा समथ6 साध� �ै जिजसके द्वारा म�ुष्य अप�े हिवचारों को र्दूसरों पर प्रकट कर सकता �ै और र्दूसरों के हिवचार जा�ा सकता �ै।संसार में अ�ेक भाषाए ँ �ैं। जैसे-हि�न्दी,संस्कृत,अंग्रेजी, बँगला,गुजराती,पंजाबी,उर्दू6, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, फ्रैं च, ची�ी, जम6� इत्यादिद।भाषा के प्रकार- भाषा दो प्रकार की �ोती �ै-1. मौखिखक भाषा।2. लिलखिखत भाषा।आम�े-साम�े बैठे व्यलिक्त परस्पर बातचीत करते �ैं अथवा कोई व्यलिक्त भाषण आदिद द्वारा अप�े हिवचार प्रकट करता �ै तो उसे भाषा का मौखिखक रूप क�ते �ैं।जब व्यलिक्त हिकसी र्दूर बैठे व्यलिक्त को पत्र द्वारा अथवा पुस्तकों एवं पत्र-पहित्रकाओं में लेख द्वारा अप�े हिवचार प्रकट करता �ै तब उसे भाषा का लिलखिखत रूप क�ते �ैं।व्याक�णम�ुष्य मौखिखक एवं लिलखिखत भाषा में अप�े हिवचार प्रकट कर सकता �ै और करता र�ा �ै हिकन्तु इससे भाषा का कोई हि�क्षि�त एवं Cुद्ध स्वरूप च्छिस्थर ��ीं �ो सकता। भाषा के Cुद्ध और स्थायी रूप को हि�क्षि�त कर�े के लिलए हि�यमबद्ध योज�ा की आवश्यकता �ोती �ै और उस हि�यमबद्ध योज�ा को �म व्याकरण क�ते �ैं।परिरभाषा- व्याकरण व� Cास्त्र �ै जिजसके द्वारा हिकसी भी भाषा के Cब्दों और वाक्यों के Cुद्ध स्वरूपों एवं Cुद्ध प्रयोगों का हिवCद ज्ञा� कराया जाता �ै।भाषा और व्याकरण का संबंध- कोई भी म�ुष्य Cुद्ध भाषा का पूण6 ज्ञा� व्याकरण के हिब�ा प्राप्त ��ीं कर सकता। अतः भाषा और व्याकरण का घहि�ष्ठ संबंध �ैं व� भाषा में उच्चारण, Cब्द-प्रयोग, वाक्य-गठ� तथा अथb के प्रयोग के रूप को हि�क्षि�त करता �ै।व्याकरण के हिवभाग- व्याकरण के चार अंग हि�धा6रिरत हिकये गये �ैं-1. वण6-हिवचार।2. Cब्द-हिवचार।3. पद-हिवचार।4. वाक्य हिवचार।बोलीभाषा का Aेत्रीय रूप बोली क�लाता �ै। अथा6त् देC के हिवक्षिभन्न भागों में बोली जा�े वाली भाषा बोली क�लाती �ै और हिकसी भी Aेत्रीय बोली का लिलखिखत रूप में च्छिस्थर साहि�त्य व�ाँ की भाषा क�लाता �ै।धिलहिपहिकसी भी भाषा के लिलख�े की हिवधिध को ‘लिलहिप’ क�ते �ैं। हि�न्दी और संस्कृत भाषा की लिलहिप का �ाम देव�ागरी �ै। अंग्रेजी भाषा की लिलहिप ‘रोम�’, उर्दू6 भाषा की लिलहिप 9ारसी, और पंजाबी भाषा की लिलहिप गुरुमुखी �ै।साहि�त्यज्ञा�-रालिC का संलिचत कोC �ी साहि�त्य �ै। साहि�त्य �ी हिकसी भी देC, जाहित और वग6 को जीवंत रख�े का- उसके अतीत रूपों को दCा6�े का एकमात्र साक्ष्य �ोता �ै। य� मा�व की अ�ुभूहित के हिवक्षिभन्न

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पAों को स्पष्ट करता �ै और पाठकों एवं श्रोताओं के ह्रदय में एक अलौहिकक अहि�व6च�ीय आ�ंद की अ�ुभूहित उत्पन्न करता �ै।2वण9-हिवचा�परिरभाषा-हि�न्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वहि� वण6 क�लाती �ै। जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदिद।वण6माला-वणb के समुदाय को �ी वण6माला क�ते �ैं। हि�न्दी वण6माला में 44 वण6 �ैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हि�न्दी वण6माला के दो भेद हिकए गए �ैं-1. स्वर2. वं्यज�1.स्वर-जिज� वणb का उच्चारण स्वतंत्र रूप से �ोता �ो और जो वं्यज�ों के उच्चारण में स�ायक �ों वे स्वर क�लाते �ै। ये संख्या में ग्यार� �ैं-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।उच्चारण के समय की दृधिष्ट से स्वर के ती� भेद हिकए गए �ैं-1. ह्रस्व स्वर।2. दीघ6 स्वर।3. प्लुत स्वर।1.ह्रस्व स्वर-जिज� स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता �ैं उन्�ें ह्रस्व स्वर क�ते �ैं। ये चार �ैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्�ें मूल स्वर भी क�ते �ैं।2.दीघ6 स्वर-जिज� स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगु�ा समय लगता �ै उन्�ें दीघ6 स्वर क�ते �ैं। ये हि�न्दी में सात �ैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।हिवCेष- दीघ6 स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीघ6 रूप ��ीं समझ�ा चाहि�ए। य�ाँ दीघ6 Cब्द का प्रयोग उच्चारण में लग�े वाले समय को आधार मा�कर हिकया गया �ै।3.प्लुत स्वर-जिज� स्वरों के उच्चारण में दीघ6 स्वरों से भी अधिधक समय लगता �ै उन्�ें प्लुत स्वर क�ते �ैं। प्रायः इ�का प्रयोग र्दूर से बुला�े में हिकया जाता �ै।मात्राएँस्वरों के बदले हुए स्वरूप को मात्रा क�ते �ैं स्वरों की मात्राए ँ हि�{�लिलखिखत �ैं-स्वर मात्राए ँ Cब्द अ × कमआ ाा कामइ िा हिकसलयई ाी खीरउ ाु गुलाबऊ ाू भूलऋ ाृ तृणए ाे केCऐ ाै �ै

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ओ ाो चोरऔ ाौ चौखटअ वण6 (स्वर) की कोई मात्रा ��ीं �ोती। वं्यज�ों का अप�ा स्वरूप हि�{�लिलखिखत �ैं-क् च् छ् ज ् झ् त् थ ् ध् आदिद।अ लग�े पर वं्यज�ों के �ीचे का (�ल) लिचह्न �ट जाता �ै। तब ये इस प्रकार लिलखे जाते �ैं-क च छ ज झ त थ ध आदिद।वं्यज�जिज� वणb के पूण6 उच्चारण के लिलए स्वरों की स�ायता ली जाती �ै वे वं्यज� क�लाते �ैं। अथा6त वं्यज� हिब�ा स्वरों की स�ायता के बोले �ी ��ीं जा सकते। ये संख्या में 33 �ैं। इसके हि�{�लिलखिखत ती� भेद �ैं-1. स्पC62. अंतःस्थ3. ऊष्म1.स्पC6-इन्�ें पाँच वगb में रखा गया �ै और �र वग6 में पाँच-पाँच वं्यज� �ैं। �र वग6 का �ाम प�ले वग6 के अ�ुसार रखा गया �ै जैसे-कवग6- क् ख् ग् घ् ड़्चवग6- च् छ् ज ् झ् ञ्टवग6- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्)तवग6- त् थ ् द ् ध् �्पवग6- प् 9् ब् भ् म्2.अंतःस्थ-ये हि�{�लिलखिखत चार �ैं-य् र् ल् व्3.ऊष्म-ये हि�{�लिलखिखत चार �ैं-C् ष् स् है्वसे तो ज�ाँ भी दो अथवा दो से अधिधक वं्यज� धिमल जाते �ैं वे संयुक्त वं्यज� क�लाते �ैं, हिकन्तु देव�ागरी लिलहिप में संयोग के बाद रूप-परिरवत6� �ो जा�े के कारण इ� ती� को हिग�ाया गया �ै। ये दो-दो वं्यज�ों से धिमलकर ब�े �ैं। जैसे-A=क्+ष अAर, ज्ञ=ज+्ञ ज्ञा�, त्र=त्+र �Aत्र कुछ लोग A् त््र और ज्ञ् को भी हि�न्दी वण6माला में हिग�ते �ैं, पर ये संयुक्त वं्यज� �ैं। अतः इन्�ें वण6माला में हिग��ा उलिचत प्रतीत ��ीं �ोता।अ�ुस्वार-इसका प्रयोग पंचम वण6 के स्था� पर �ोता �ै। इसका लिचन्� (ां) �ै। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।हिवसग6-इसका उच्चारण �् के समा� �ोता �ै। इसका लिचह्न (:) �ै। जैसे-अतः, प्रातः।चंद्रहिबंदु-जब हिकसी स्वर का उच्चारण �ालिसका और मुख दो�ों से हिकया जाता �ै तब उसके ऊपर चंद्रहिबंदु (ाँ) लगा दिदया जाता �ै।य� अ�ु�ालिसक क�लाता �ै। जैसे-�ँस�ा, आँख। हि�न्दी वण6माला में 11 स्वर तथा 33 वं्यज� हिग�ाए

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जाते �ैं, परन्तुइ�में ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़�े पर हि�न्दी के वणb की कुल संख्या 48 �ो जाती �ै।�लंत-जब कभी वं्यज� का प्रयोग स्वर से रहि�त हिकया जाता �ै तब उसके �ीचे एक हितरछी रेखा (ा्) लगा दी जाती �ै। य� रेखा �ल क�लाती �ै। �लयुक्त वं्यज� �लंत वण6 क�लाता �ै। जैसे-हिवद्यां।वणb के उच्चारण-स्था�मुख के जिजस भाग से जिजस वण6 का उच्चारण �ोता �ै उसे उस वण6 का उच्चारण स्था� क�ते �ैं।उच्चारण स्था� तालिलकाक्रम वण6 उच्चारण श्रेणी

1. अ आ क् ख् ग् घ् ड़् �् हिवसग6 कंठ और जीभ का हि�चला भाग कंठस्थ

2. इ ई च् छ् ज ्झ् ञ ्य् C तालु और जीभ तालव्य3. ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ़् र् ष् मूधा6 और जीभ मूध6न्य4. त् थ ्द ्ध् �् ल् स् दाँत और जीभ दंत्य5. उ ऊ प् 9् ब् भ् म दो�ों �ोंठ ओष्ठ्य6. ए ऐ कंठ तालु और जीभ कंठतालव्य7. ओ औ दाँत जीभ और �ोंठ कंठोष्ठ्य8. व् दाँत जीभ और �ोंठ दंतोष्3शब्द-हिवचा�परिरभाषा- एक या अधिधक वणb से ब�ी हुई स्वतंत्र साथ6क ध्वहि� Cब्द क�लाता �ै। जैसे- एक वण6 से हि�र्मिमंत Cब्द-� (��ीं) व (और) अ�ेक वणb से हि�र्मिमंत Cब्द-कुत्ता, Cेर,कमल, �य�, प्रासाद, सव6व्यापी, परमात्मा।शब्द-भेदवु्यत्पक्षित्त (ब�ावट) के आधार पर Cब्द-भेद-वु्यत्पक्षित्त (ब�ावट) के आधार पर Cब्द के हि�{�लिलखिखत ती� भेद �ैं-1. रूढ़2. यौहिगक3. योगरूढ़1.रूढ़-जो Cब्द हिकन्�ीं अन्य Cब्दों के योग से � ब�े �ों और हिकसी हिवCेष अथ6 को प्रकट करते �ों तथा जिज�के टुकड़ों का कोई अथ6 ��ीं �ोता, वे रूढ़ क�लाते �ैं। जैसे-कल, पर। इ�में क, ल, प, र का टुकडे़ कर�े पर कुछ अथ6 ��ीं �ैं। अतः ये हि�रथ6क �ैं।2.यौहिगक-जो Cब्द कई साथ6क Cब्दों के मेल से ब�े �ों,वे यौहिगक क�लाते �ैं। जैसे-देवालय=देव+आलय, राजपुरुष=राज+पुरुष, हि�मालय=हि�म+आलय, देवर्दूत=देव+र्दूत आदिद। ये सभी Cब्द दो साथ6क Cब्दों के मेल से ब�े �ैं।3.योगरूढ़-

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वे Cब्द, जो यौहिगक तो �ैं, हिकन्तु सामान्य अथ6 को � प्रकट कर हिकसी हिवCेष अथ6 को प्रकट करते �ैं, योगरूढ़ क�लाते �ैं। जैसे-पंकज, दCा�� आदिद। पंकज=पंक+ज (कीचड़ में उत्पन्न �ो�े वाला) सामान्य अथ6 में प्रचलिलत � �ोकर कमल के अथ6 में रूढ़ �ो गया �ै। अतः पंकज Cब्द योगरूढ़ �ै। इसी प्रकार दC (दस) आ�� (मुख) वाला रावण के अथ6 में प्रलिसद्ध �ै।उत्पक्षित्त के आधार पर Cब्द-भेद-उत्पक्षित्त के आधार पर Cब्द के हि�{�लिलखिखत चार भेद �ैं-1. तत्सम- जो Cब्द संस्कृत भाषा से हि�न्दी में हिब�ा हिकसी परिरवत6� के ले लिलए गए �ैं वे तत्सम क�लाते �ैं। जैसे-अखिग्�, Aेत्र, वायु, राहित्र, सूय6 आदिद।2. तद्भव- जो Cब्द रूप बदल�े के बाद संस्कृत से हि�न्दी में आए �ैं वे तद्भव क�लाते �ैं। जैसे-आग (अखिग्�), खेत(Aेत्र), रात (राहित्र), सूरज (सूय6) आदिद।3. देCज- जो Cब्द Aेत्रीय प्रभाव के कारण परिरच्छिस्थहित व आवश्यकता�ुसार ब�कर प्रचलिलत �ो गए �ैं वे देCज क�लाते �ैं। जैसे-पगड़ी, गाड़ी, थैला, पेट, खटखटा�ा आदिद।4. हिवदेCी या हिवदेCज- हिवदेCी जाहितयों के संपक6 से उ�की भाषा के बहुत से Cब्द हि�न्दी में प्रयुक्त �ो�े लगे �ैं। ऐसे Cब्द हिवदेCी अथवा हिवदेCज क�लाते �ैं। जैसे-स्कूल, अ�ार, आम, कैं ची,अचार, पुलिलस, टेली9ो�, रिरक्शा आदिद। ऐसे कुछ हिवदेCी Cब्दों की सूची �ीचे दी जा र�ी �ै।अंग्रेजी- कॉलेज, पैंलिसल, रेहिडयो, टेलीहिवज�, डॉक्टर, लैटरबक्स, पै�, दिटकट, मCी�, लिसगरेट, साइहिकल, बोतल आदिद।9ारसी- अ�ार,चश्मा, जमींदार, दुका�, दरबार, �मक, �मू�ा, बीमार, बर9, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदिद।अरबी- औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, का�ू�, खत, 9कीर, रिरश्वत, औरत, कैदी, मालिलक, गरीब आदिद।तुक·- कैं ची, चाकू, तोप, बारूद, लाC, दारोगा, ब�ादुर आदिद।पुत6गाली- अचार, आलपी�, कारतूस, गमला, चाबी, हितजोरी, तौलिलया, 9ीता, साबु�, तंबाकू, कॉ9ी, कमीज आदिद।फ्रांसीसी- पुलिलस, काटू6�, इंजीहि�यर, कर्फ्यूयू6, हिबगुल आदिद।ची�ी- तू9ा�, लीची, चाय, पटाखा आदिद।यू�ा�ी- टेली9ो�, टेलीग्रा9, ऐटम, डेल्टा आदिद।जापा�ी- रिरक्शा आदिद।प्रयोग के आधार पर Cब्द-भेदप्रयोग के आधार पर Cब्द के हि�{�लिलखिखत आठ भेद �ै-1. संज्ञा2. सव6�ाम3. हिवCेषण4. हिक्रया5. हिक्रया-हिवCेषण6. संबंधबोधक7. समुच्चयबोधक8. हिवस्मयादिदबोधकइ� उपयु6क्त आठ प्रकार के Cब्दों को भी हिवकार की दृधिष्ट से दो भागों में बाँटा जा सकता �ै-1. हिवकारी2. अहिवकारी

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1.हिवकारी Cब्द-जिज� Cब्दों का रूप-परिरवत6� �ोता र�ता �ै वे हिवकारी Cब्द क�लाते �ैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे,�में अ`ा, अ`े खाता �ै, खाती �ै, खाते �ैं। इ�में संज्ञा, सव6�ाम, हिवCेषण और हिक्रया हिवकारी Cब्द �ैं।2.अहिवकारी Cब्द-जिज� Cब्दों के रूप में कभी कोई परिरवत6� ��ीं �ोता �ै वे अहिवकारी Cब्द क�लाते �ैं। जैसे-य�ाँ, हिकन्तु, हि�त्य, और, �े अरे आदिद। इ�में हिक्रया-हिवCेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और हिवस्मयादिदबोधक आदिद �ैं।अथ6 की दृधिष्ट से Cब्द-भेदअथ6 की दृधिष्ट से Cब्द के दो भेद �ैं-1. साथ6क2. हि�रथ6क1.साथ6क Cब्द-जिज� Cब्दों का कुछ-�-कुछ अथ6 �ो वे Cब्द साथ6क Cब्द क�लाते �ैं। जैसे-रोटी, पा�ी, ममता, डंडा आदिद।2.हि�रथ6क Cब्द-जिज� Cब्दों का कोई अथ6 ��ीं �ोता �ै वे Cब्द हि�रथ6क क�लाते �ैं। जैसे-रोटी-वोटी, पा�ी-वा�ी, डंडा-वंडा इ�में वोटी, वा�ी, वंडा आदिद हि�रथ6क Cब्द �ैं।हिवCेष- हि�रथ6क Cब्दों पर व्याकरण में कोई हिवचार ��ीं हिकया जाता �ै।4पद-हिवचारसाथ6क वण6-समू� Cब्द क�लाता �ै, पर जब इसका प्रयोग वाक्य में �ोता �ै तो व� स्वतंत्र ��ीं र�ता बल्किल्क व्याकरण के हि�यमों में बँध जाता �ै और प्रायः इसका रूप भी बदल जाता �ै। जब कोई Cब्द वाक्य में प्रयुक्त �ोता �ै तो उसे Cब्द � क�कर पद क�ा जाता �ै।हि�न्दी में पद पाँच प्रकार के �ोते �ैं-1. संज्ञा2. सव6�ाम3. हिवCेषण4. हिक्रया5. अव्यय1.संज्ञा-हिकसी व्यलिक्त, स्था�, वस्तु आदिद तथा �ाम के गुण, धम6, स्वभाव का बोध करा�े वाले Cब्द संज्ञा क�लाते �ैं। जैसे-श्याम, आम, धिमठास, �ाथी आदिद।संज्ञा के प्रकार- संज्ञा के ती� भेद �ैं-1. व्यलिक्तवाचक संज्ञा।2. जाहितवाचक संज्ञा।3. भाववाचक संज्ञा।1.व्यलिक्तवाचक संज्ञा-जिजस संज्ञा Cब्द से हिकसी हिवCेष, व्यलिक्त, प्राणी, वस्तु अथवा स्था� का बोध �ो उसे व्यलिक्तवाचक संज्ञा क�ते �ैं। जैसे-जयप्रकाC �ारायण, श्रीकृष्ण, रामायण, ताजम�ल, कुतुबमी�ार, लालहिकला हि�मालय

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आदिद।2.जाहितवाचक संज्ञा-जिजस संज्ञा Cब्द से उसकी संपूण6 जाहित का बोध �ो उसे जाहितवाचक संज्ञा क�ते �ैं। जैसे-म�ुष्य, �दी, �गर, पव6त, पCु, पAी, लड़का, कुत्ता, गाय, घोड़ा, भैंस, बकरी, �ारी, गाँव आदिद।3.भाववाचक संज्ञा-जिजस संज्ञा Cब्द से पदाथb की अवस्था, गुण-दोष, धम6 आदिद का बोध �ो उसे भाववाचक संज्ञा क�ते �ैं। जैसे-बुढ़ापा, धिमठास, बचप�, मोटापा, चढ़ाई, थकावट आदिद।हिवCेष वक्तव्य- कुछ हिवद्वा� अंग्रेजी व्याकरण के प्रभाव के कारण संज्ञा Cब्द के दो भेद और बतलाते �ैं-1. समुदायवाचक संज्ञा।2. द्रव्यवाचक संज्ञा।1.समुदायवाचक संज्ञा-जिज� संज्ञा Cब्दों से व्यलिक्तयों, वस्तुओं आदिद के समू� का बोध �ो उन्�ें समुदायवाचक संज्ञा क�ते �ैं। जैसे-सभा, कAा, से�ा, भीड़, पुस्तकालय दल आदिद।2.द्रव्यवाचक संज्ञा-जिज� संज्ञा-Cब्दों से हिकसी धातु, द्रव्य आदिद पदाथb का बोध �ो उन्�ें द्रव्यवाचक संज्ञा क�ते �ैं। जैसे-घी, तेल, सो�ा, चाँदी,पीतल, चावल, गेहूँ, कोयला, लो�ा आदिद।इस प्रकार संज्ञा के पाँच भेद �ो गए, हिकन्तु अ�ेक हिवद्वा� समुदायवाचक और द्रव्यवाचक संज्ञाओं को जाहितवाचक संज्ञा के अंतग6त �ी मा�ते �ैं, और य�ी उलिचत भी प्रतीत �ोता �ै।भाववाचक संज्ञा ब�ा�ा- भाववाचक संज्ञाए ँचार प्रकार के Cब्दों से ब�ती �ैं। जैसे-1.जाहितवाचक संज्ञाओं से-दास दासतापंहिडत पांहिडत्यबंधु बंधुत्वAहित्रय Aहित्रयत्वपुरुष पुरुषत्वप्रभु प्रभुतापCु पCुता,पCुत्वब्राह्मण ब्राह्मणत्वधिमत्र धिमत्रताबालक बालकप�बच्चा बचप��ारी �ारीत्व2.सव6�ाम से-अप�ा अप�ाप�, अप�त्व हि�ज हि�जत्व,हि�जतापराया परायाप�स्व स्वत्वसव6 सव6स्वअ�ं अ�ंकारमम ममत्व,ममता3.हिवCेषण से-

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मीठा धिमठासचतुर चातुय6, चतुराईमधुर माधुय6संुदर सौंदय6, संुदरताहि�ब6ल हि�ब6लता स9ेद स9ेदी�रा �रिरयालीस9ल स9लताप्रवीण प्रवीणतामैला मैलहि�पुण हि�पुणताखट्टा खटास4.हिक्रया से-खेल�ा खेलथक�ा थकावटलिलख�ा लेख, लिलखाई�ँस�ा �ँसीले�ा-दे�ा ले�-दे�पढ़�ा पढ़ाईधिमल�ा मेलचढ़�ा चढ़ाईमुसका�ा मुसका�कमा�ा कमाईउतर�ा उतराईउड़�ा उड़ा�र��ा-स��ा र��-स��देख�ा-भाल�ा देख-भालअध्याय 5संज्ञा के हिवकारक तत्वजिज� तत्वों के आधार पर संज्ञा (संज्ञा, सव6�ाम, हिवCेषण) का रूपांतर �ोता �ै वे हिवकारक तत्व क�लाते �ैं।वाक्य में Cब्दों की च्छिस्थहित के आधार पर �ी उ�में हिवकार आते �ैं। य� हिवकार लिलंग, वच� और कारक के कारण �ी �ोता �ै। जैसे-लड़का Cब्द के चारों रूप- 1.लड़का, 2.लड़के, 3.लड़कों, 4.लड़को-केवल वच� और कारकों के कारण ब�ते �ैं।लिलंग- जिजस लिचह्न से य� बोध �ोता �ो हिक अमुक Cब्द पुरुष जाहित का �ै अथवा स्त्री जाहित का व� लिलंग क�लाता �ै।परिरभाषा- Cब्द के जिजस रूप से हिकसी व्यलिक्त, वस्तु आदिद के पुरुष जाहित अथवा स्त्री जाहित के �ो�े का ज्ञा� �ो उसे लिलंग क�ते �ैं। जैसे-लड़का, लड़की, �र, �ारी आदिद। इ�में ‘लड़का’ और ‘�र’ पुच्छिल्लंग तथा लड़की और ‘�ारी’ स्त्रीलिलंग �ैं।हि�न्दी में लिलंग के दो भेद �ैं-1. पुच्छिल्लंग।2. स्त्रीलिलंग।1.पुच्छिल्लंग-

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जिज� संज्ञा Cब्दों से पुरुष जाहित का बोध �ो अथवा जो Cब्द पुरुष जाहित के अंतग6त मा�े जाते �ैं वे पुच्छिल्लंग �ैं। जैसे-कुत्ता, लड़का, पेड़, लिसं�, बैल, घर आदिद।2.स्त्रीलिलंग-जिज� संज्ञा Cब्दों से स्त्री जाहित का बोध �ो अथवा जो Cब्द स्त्री जाहित के अंतग6त मा�े जाते �ैं वे स्त्रीलिलंग �ैं। जैसे-गाय, घड़ी, लड़की, कुरसी, छड़ी, �ारी आदिद।पुच्छिल्लंग की प�चा�-1. आ, आव, पा, प� � ये प्रत्यय जिज� Cब्दों के अंत में �ों वे प्रायः पुच्छिल्लंग �ोते �ैं। जैसे- मोटा, चढ़ाव, बुढ़ापा, लड़कप� ले�-दे�।2. पव6त, मास, वार और कुछ ग्र�ों के �ाम पुच्छिल्लंग �ोते �ैं जैसे-हिवंध्याचल, हि�मालय, वैCाख, सूय6, चंद्र, मंगल, बुध, राहु, केतु (ग्र�)।3. पेड़ों के �ाम पुच्छिल्लंग �ोते �ैं। जैसे-पीपल, �ीम, आम, CीCम, सागौ�, जामु�, बरगद आदिद।4. अ�ाजों के �ाम पुच्छिल्लंग �ोते �ैं। जैसे-बाजरा, गेहूँ, चावल, च�ा, मटर, जौ, उड़द आदिद।5. द्रव पदाथb के �ाम पुच्छिल्लंग �ोते �ैं। जैसे-पा�ी, सो�ा, ताँबा, लो�ा, घी, तेल आदिद।6. रत्�ों के �ाम पुच्छिल्लंग �ोते �ैं। जैसे-�ीरा, पन्ना, मूँगा, मोती माक्षिणक आदिद।7. दे� के अवयवों के �ाम पुच्छिल्लंग �ोते �ैं। जैसे-लिसर, मस्तक, दाँत, मुख, का�, गला, �ाथ, पाँव, �ोंठ, तालु, �ख, रोम आदिद।8. जल,स्था� और भूमंडल के भागों के �ाम पुच्छिल्लंग �ोते �ैं। जैसे-समुद्र, भारत, देC, �गर, द्वीप, आकाC, पाताल, घर, सरोवर आदिद।9. वण6माला के अ�ेक अAरों के �ाम पुच्छिल्लंग �ोते �ैं। जैसे-अ,उ,ए,ओ,क,ख,ग,घ, च,छ,य,र,ल,व,C आदिद।स्त्रीलिलंग की प�चा�-1. जिज� संज्ञा Cब्दों के अंत में ख �ोते �ै, वे स्त्रीलिलंग क�लाते �ैं। जैसे-ईख, भूख, चोख, राख, कोख, लाख, देखरेख आदिद।2. जिज� भाववाचक संज्ञाओं के अंत में ट, वट, या �ट �ोता �ै, वे स्त्रीलिलंग क�लाती �ैं। जैसे-झंझट, आ�ट, लिचक�ा�ट, ब�ावट, सजावट आदिद।3. अ�ुस्वारांत, ईकारांत, ऊकारांत, तकारांत, सकारांत संज्ञाए ँस्त्रीलिलंग क�लाती �ै। जैसे-रोटी, टोपी, �दी, लिचट्ठी, उदासी, रात, बात, छत, भीत, लू, बालू, दारू, सरसों, खड़ाऊँ, प्यास, वास, साँस आदिद।4. भाषा, बोली और लिलहिपयों के �ाम स्त्रीलिलंग �ोते �ैं। जैसे-हि�न्दी, संस्कृत, देव�ागरी, प�ाड़ी, तेलुगु पंजाबी गुरुमुखी।5. जिज� Cब्दों के अंत में इया आता �ै वे स्त्रीलिलंग �ोते �ैं। जैसे-कुदिटया, खदिटया, लिचहिड़या आदिद।6. �दिदयों के �ाम स्त्रीलिलंग �ोते �ैं। जैसे-गंगा, यमु�ा, गोदावरी, सरस्वती आदिद।7. तारीखों और हितलिथयों के �ाम स्त्रीलिलंग �ोते �ैं। जैसे-प�ली, र्दूसरी, प्रहितपदा, पूर्णिणंमा आदिद।8. पृथ्वी ग्र� स्त्रीलिलंग �ोते �ैं।9. �Aत्रों के �ाम स्त्रीलिलंग �ोते �ैं। जैसे-अक्षिश्व�ी, भरणी, रोहि�णी आदिद।Cब्दों का लिलंग-परिरवत6�प्रत्यय पुच्छिल्लंग स्त्रीलिलंगई घोड़ा घोड़ी  देव देवी  दादा दादी

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  लड़का लड़की  ब्राह्मण ब्राह्मणी  �र �ारी  बकरा बकरीइय चू�ा चुहि�या  लिचड़ा लिचहिड़या  बेटा हिबदिटया  गुड्डा गुहिड़या  लोटा लुदिटयाइ� माली मालिल�  क�ार क�ारिर�  सु�ार सु�ारिर�  लु�ार लु�ारिर�  धोबी धोहिब��ी मोर मोर�ी  �ाथी �ालिथ�  लिसं� लिसं��ीआ�ी �ौकर �ौकरा�ी  चौधरी चौधरा�ी  देवर देवरा�ी  सेठ सेठा�ी  जेठ जेठा�ीआइ� पंहिडत पंहिडताइ�  ठाकुर ठाकुराइ�आ बाल बाला  सुत सुता  छात्र छात्रा  लिCष्य लिCष्याअक को इका करके पाठक पादिठका

  अध्यापक अध्याहिपका  बालक बालिलका  लेखक लेखिखका  सेवक सेहिवका

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इ�ी (इणी) तपस्वी तपल्किस्व�ी  हि�तकारी हि�तकारिर�ी  स्वामी स्वाधिम�ी  परोपकारी परोपकारिर�ीकुछ हिवCेष Cब्द जो स्त्रीलिलंग में हिबलकुल �ी बदल जाते �ैं।पुच्छिल्लंग स्त्रीलिलंगहिपता माताभाई भाभी�र मादाराजा रा�ीससुर साससम्राट सम्राज्ञीपुरुष स्त्रीबैल गाययुवक युवतीहिवCेष वक्तव्य- जो प्राक्षिणवाचक सदा Cब्द �ी स्त्रीलिलंग �ैं अथवा जो सदा �ी पुच्छिल्लंग �ैं उ�के पुच्छिल्लंग अथवा स्त्रीलिलंग जता�े के लिलए उ�के साथ ‘�र’ व ‘मादा’ Cब्द लगा देते �ैं। जैसे-हि�त्य स्त्रीलिलंग पुच्छिल्लंगमक्खी �र मक्खीकोयल �र कोयलहिगल�री �र हिगल�रीमै�ा �र मै�ाहिततली �र हिततलीबाज मादा बाजखटमल मादा खटमलचील �र चीलकछुआ �र कछुआकौआ �र कौआभेहिड़या मादा भेहिड़याउल्लू मादा उल्लूम`र मादा म`र अध्याय 6वच�परिरभाषा-Cब्द के जिजस रूप से उसके एक अथवा अ�ेक �ो�े का बोध �ो उसे वच� क�ते �ैं।

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हि�न्दी में वच� दो �ोते �ैं-1. एकवच�2. बहुवच�एकवच�-Cब्द के जिजस रूप से एक �ी वस्तु का बोध �ो, उसे एकवच� क�ते �ैं। जैसे-लड़का, गाय, लिसपा�ी, बच्चा, कपड़ा, माता, माला, पुस्तक, स्त्री, टोपी बंदर, मोर आदिद।बहुवच�-Cब्द के जिजस रूप से अ�ेकता का बोध �ो उसे बहुवच� क�ते �ैं। जैसे-लड़के, गायें, कपडे़, टोहिपयाँ, मालाए,ँ माताए,ँ पुस्तकें , वधुए,ँ गुरुज�, रोदिटयाँ, स्त्रिस्त्रयाँ, लताए,ँ बेटे आदिद।एकवच� के स्था� पर बहुवच� का प्रयोग(क) आदर के लिलए भी बहुवच� का प्रयोग �ोता �ै। जैसे-(1) भीष्म हिपताम� तो ब्रह्मचारी थे।(2) गुरुजी आज ��ीं आये।(3) लिCवाजी सच्चे वीर थे।(ख) बड़प्प� दCा6�े के लिलए कुछ लोग व� के स्था� पर वे और मैं के स्था� �म का प्रयोग करते �ैं जैसे-(1) मालिलक �े कम6चारी से क�ा, �म मीटिटंग में जा र�े �ैं।(2) आज गुरुजी आए तो वे प्रसन्न दिदखाई दे र�े थे।(ग) केC, रोम, अश्रु, प्राण, दC6�, लोग, दC6क, समाचार, दाम, �ोC, भाग्य आदिद ऐसे Cब्द �ैं जिज�का प्रयोग बहुधा बहुवच� में �ी �ोता �ै। जैसे-(1) तु{�ारे केC बडे़ सुन्दर �ैं।(2) लोग क�ते �ैं।बहुवच� के स्था� पर एकवच� का प्रयोग(क) तू एकवच� �ै जिजसका बहुवच� �ै तुम हिकन्तु सभ्य लोग आजकल लोक-व्यव�ार में एकवच� के लिलए तुम का �ी प्रयोग करते �ैं जैसे-(1) धिमत्र, तुम कब आए।(2) क्या तुम�े खा�ा खा लिलया।(ख) वग6, वृंद, दल, गण, जाहित आदिद Cब्द अ�ेकता को प्रकट कर�े वाले �ैं, हिकन्तु इ�का व्यव�ार एकवच� के समा� �ोता �ै। जैसे-(1) सैहि�क दल Cत्रु का दम� कर र�ा �ै।(2) स्त्री जाहित संघष6 कर र�ी �ै।(ग) जाहितवाचक Cब्दों का प्रयोग एकवच� में हिकया जा सकता �ै। जैसे-(1) सो�ा बहुमूल्य वस्तु �ै।(2) मुंबई का आम स्वादिदष्ट �ोता �ै।बहुवच� ब�ा�े के हि�यम(1) अकारांत स्त्रीलिलंग Cब्दों के अंहितम अ को ए ँकर दे�े से Cब्द बहुवच� में बदल जाते �ैं। जैसे-एकवच� बहुवच�आँख आँखेंब�� ब��ें

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पुस्तक पुस्तकेंसड़क सड़केगाय गायेंबात बातें(2) आकारांत पुच्छिल्लंग Cब्दों के अंहितम ‘आ’ को ‘ए’ कर दे�े से Cब्द बहुवच� में बदल जाते �ैं। जैसे-एकवच� बहुवच� एकवच� बहुवच�घोड़ा घोडे़ कौआ कौएकुत्ता कुत्ते गधा गधेकेला केले बेटा बेटे(3) आकारांत स्त्रीलिलंग Cब्दों के अंहितम ‘आ’ के आगे ‘ए’ँ लगा दे�े से Cब्द बहुवच� में बदल जाते �ैं। जैसे-एकवच� बहुवच� एकवच� बहुवच�कन्या कन्याएँ अध्याहिपका अध्याहिपकाएँकला कलाएँ माता माताएँकहिवता कहिवताएँ लता लताएँ(4) इकारांत अथवा ईकारांत स्त्रीलिलंग Cब्दों के अंत में ‘याँ’ लगा दे�े से और दीघ6 ई को ह्रस्व इ कर दे�े से Cब्द बहुवच� में बदल जाते �ैं। जैसे-एकवच� बहुवच� एकवच� बहुवच�बुजिद्ध बुजिद्धयाँ गहित गहितयाँकली कलिलयाँ �ीहित �ीहितयाँकॉपी कॉहिपयाँ लड़की लड़हिकयाँथाली थालिलयाँ �ारी �ारिरयाँ(5) जिज� स्त्रीलिलंग Cब्दों के अंत में या �ै उ�के अंहितम आ को आँ कर दे�े से वे बहुवच� ब� जाते �ैं। जैसे-एकवच� बहुवच� एकवच� बहुवच�गुहिड़या गुहिड़याँ हिबदिटया हिबदिटयाँचुहि�या चुहि�याँ कुहितया कुहितयाँलिचहिड़या लिचहिड़याँ खदिटया खदिटयाँबुदिढ़या बुदिढ़याँ गैया गैयाँ(6) कुछ Cब्दों में अंहितम उ, ऊ और औ के साथ ए ँलगा देते �ैं और दीघ6 ऊ के साथ� पर ह्रस्व उ �ो जाता �ै। जैसे-एकवच� बहुवच� एकवच� बहुवच�गौ गौएँ बहू बहूएँवधू वधूएँ वस्तु वस्तुएँ

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धे�ु धे�ुएँ धातु धातुएँ(7) दल, वृंद, वग6, ज� लोग, गण आदिद Cब्द जोड़कर भी Cब्दों का बहुवच� ब�ा देते �ैं। जैसे-एकवच� बहुवच� एकवच� बहुवच�अध्यापक अध्यापकवृंद धिमत्र धिमत्रवग6हिवद्याथ^ हिवद्याथ^गण से�ा से�ादलआप आप लोग गुरु गुरुज�श्रोता श्रोताज� गरीब गरीब लोग(8) कुछ Cब्दों के रूप ‘एकवच�’ और ‘बहुवच�’ दो�ो में समा� �ोते �ैं। जैसे-एकवच� बहुवच� एकवच� बहुवच�Aमा Aमा �ेता �ेताजल जल पे्रम पे्रमहिगरिर हिगरिर क्रोध क्रोधराजा राजा पा�ी पा�ीहिवCेष- (1) जब संज्ञाओं के साथ �े, को, से आदिद परसग6 लगे �ोते �ैं तो संज्ञाओं का बहुवच� ब�ा�े के लिलए उ�में ‘ओ’ लगाया जाता �ै। जैसे-एकवच� बहुवच� एकवच� बहुवच�लड़के को बुलाओ लड़को को बुलाओ बच्चे �े गा�ा गाया बच्चों �े गा�ा गाया

�दी का जल ठंडा �ै �दिदयों का जल ठंडा �ै आदमी से पूछ लो आदधिमयों से पूछ लो

(2) संबोध� में ‘ओ’ जोड़कर बहुवच� ब�ाया जाता �ै। जैसे-बच्चों ! ध्या� से सु�ो। भाइयों ! मे��त करो। ब��ो ! अप�ा कत6व्य हि�भाओ।अध्याय 7कारकपरिरभाषा-संज्ञा या सव6�ाम के जिजस रूप से उसका सीधा संबंध हिक्रया के साथ ज्ञात �ो व� कारक क�लाता �ै। जैसे-गीता �े र्दूध पीया। इस वाक्य में ‘गीता’ पी�ा हिक्रया का कता6 �ै और र्दूध उसका कम6। अतः ‘गीता’ कता6 कारक �ै और ‘र्दूध’ कम6 कारक।कारक हिवभलिक्त- संज्ञा अथवा सव6�ाम Cब्दों के बाद ‘�े, को, से, के लिलए’, आदिद जो लिचह्न लगते �ैं वे लिचह्न कारक हिवभलिक्त क�लाते �ैं।हि�न्दी में आठ कारक �ोते �ैं। उन्�ें हिवभलिक्त लिचह्नों सहि�त �ीचे देखा जा सकता �ै-कारक हिवभलिक्त लिचह्न (परसग6)1. कता6 �े2. कम6 को3. करण से, के साथ, के द्वारा4. संप्रदा� के लिलए, को5. अपादा� से (पृथक)6. संबंध का, के, की7. अधिधकरण में, पर

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8. संबोध� �े ! �रे !कारक लिचह्न स्मरण कर�े के लिलए इस पद की रच�ा की गई �ैं-कता6 �े अरु कम6 को, करण रीहित से जा�।संप्रदा� को, के लिलए, अपादा� से मा�।।का, के, की, संबंध �ैं, अधिधकरणादिदक में मा�।रे ! �े ! �ो ! संबोध�, धिमत्र धरहु य� ध्या�।।हिवCेष-कता6 से अधिधकरण तक हिवभलिक्त लिचह्न (परसग6) Cब्दों के अंत में लगाए जाते �ैं, हिकन्तु संबोध� कारक के लिचह्न-�े, रे, आदिद प्रायः Cब्द से पूव6 लगाए जाते �ैं।1.कता6 कारक-जिजस रूप से हिक्रया (काय6) के कर�े वाले का बोध �ोता �ै व� ‘कता6’ कारक क�लाता �ै। इसका हिवभलिक्त-लिचह्न ‘�े’ �ै। इस ‘�े’ लिचह्न का वत6मा�काल और भहिवष्यकाल में प्रयोग ��ीं �ोता �ै। इसका सकम6क धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग �ोता �ै। जैसे- 1.राम �े रावण को मारा। 2.लड़की स्कूल जाती �ै।प�ले वाक्य में हिक्रया का कता6 राम �ै। इसमें ‘�े’ कता6 कारक का हिवभलिक्त-लिचह्न �ै। इस वाक्य में ‘मारा’ भूतकाल की हिक्रया �ै। ‘�े’ का प्रयोग प्रायः भूतकाल में �ोता �ै। र्दूसरे वाक्य में वत6मा�काल की हिक्रया का कता6 लड़की �ै। इसमें ‘�े’ हिवभलिक्त का प्रयोग ��ीं हुआ �ै।हिवCेष- (1) भूतकाल में अकम6क हिक्रया के कता6 के साथ भी �े परसग6 (हिवभलिक्त लिचह्न) ��ीं लगता �ै। जैसे-व� �ँसा।(2) वत6मा�काल व भहिवष्यतकाल की सकम6क हिक्रया के कता6 के साथ �े परसग6 का प्रयोग ��ीं �ोता �ै। जैसे-व� 9ल खाता �ै। व� 9ल खाएगा।(3) कभी-कभी कता6 के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रयोग भी हिकया जाता �ै। जैसे-(अ) बालक को सो जा�ा चाहि�ए। (आ) सीता से पुस्तक पढ़ी गई।(इ) रोगी से चला भी ��ीं जाता। (ई) उससे Cब्द लिलखा ��ीं गया।2.कम6 कारक-हिक्रया के काय6 का 9ल जिजस पर पड़ता �ै, व� कम6 कारक क�लाता �ै। इसका हिवभलिक्त-लिचह्न ‘को’ �ै। य� लिचह्न भी बहुत-से स्था�ों पर ��ीं लगता। जैसे- 1. मो�� �े साँप को मारा। 2. लड़की �े पत्र लिलखा। प�ले वाक्य में ‘मार�े’ की हिक्रया का 9ल साँप पर पड़ा �ै। अतः साँप कम6 कारक �ै। इसके साथ परसग6 ‘को’ लगा �ै।र्दूसरे वाक्य में ‘लिलख�े’ की हिक्रया का 9ल पत्र पर पड़ा। अतः पत्र कम6 कारक �ै। इसमें कम6 कारक का हिवभलिक्त लिचह्न ‘को’ ��ीं लगा।3.करण कारक-संज्ञा आदिद Cब्दों के जिजस रूप से हिक्रया के कर�े के साध� का बोध �ो अथा6त् जिजसकी स�ायता से काय6 संपन्न �ो व� करण कारक क�लाता �ै। इसके हिवभलिक्त-लिचह्न ‘से’ के ‘द्वारा’ �ै। जैसे- 1.अजु6� �े जयद्रथ को बाण से मारा। 2.बालक गेंद से खेल र�े �ै।प�ले वाक्य में कता6 अजु6� �े मार�े का काय6 ‘बाण’ से हिकया। अतः ‘बाण से’ करण कारक �ै। र्दूसरे वाक्य में कता6 बालक खेल�े का काय6 ‘गेंद से’ कर र�े �ैं। अतः ‘गेंद से’ करण कारक �ै।4.संप्रदा� कारक-संप्रदा� का अथ6 �ै-दे�ा। अथा6त कता6 जिजसके लिलए कुछ काय6 करता �ै, अथवा जिजसे कुछ देता �ै उसे व्यक्त कर�े वाले रूप को संप्रदा� कारक क�ते �ैं। इसके हिवभलिक्त लिचह्न ‘के लिलए’ को �ैं।1.स्वास्थ्य के लिलए सूय6 को �मस्कार करो। 2.गुरुजी को 9ल दो।इ� दो वाक्यों में ‘स्वास्थ्य के लिलए’ और ‘गुरुजी को’ संप्रदा� कारक �ैं।

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5.अपादा� कारक-संज्ञा के जिजस रूप से एक वस्तु का र्दूसरी से अलग �ो�ा पाया जाए व� अपादा� कारक क�लाता �ै। इसका हिवभलिक्त-लिचह्न ‘से’ �ै। जैसे- 1.बच्चा छत से हिगर पड़ा। 2.संगीता घोडे़ से हिगर पड़ी।इ� दो�ों वाक्यों में ‘छत से’ और घोडे़ ‘से’ हिगर�े में अलग �ो�ा प्रकट �ोता �ै। अतः घोडे़ से और छत से अपादा� कारक �ैं।6.संबंध कारक-Cब्द के जिजस रूप से हिकसी एक वस्तु का र्दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट �ो व� संबंध कारक क�लाता �ै। इसका हिवभलिक्त लिचह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ �ै। जैसे- 1.य� राधेश्याम का बेटा �ै। 2.य� कमला की गाय �ै।इ� दो�ों वाक्यों में ‘राधेश्याम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध प्रकट �ो र�ा �ै। अतः य�ाँ संबंध कारक �ै।7.अधिधकरण कारक-Cब्द के जिजस रूप से हिक्रया के आधार का बोध �ोता �ै उसे अधिधकरण कारक क�ते �ैं। इसके हिवभलिक्त-लिचह्न ‘में’, ‘पर’ �ैं। जैसे- 1.भँवरा 9ूलों पर मँडरा र�ा �ै। 2.कमरे में टी.वी. रखा �ै।इ� दो�ों वाक्यों में ‘9ूलों पर’ और ‘कमरे में’ अधिधकरण कारक �ै।8.संबोध� कारक-जिजससे हिकसी को बुला�े अथवा सचेत कर�े का भाव प्रकट �ो उसे संबोध� कारक क�ते �ै और संबोध� लिचह्न (!) लगाया जाता �ै। जैसे- 1.अरे भैया ! क्यों रो र�े �ो ? 2.�े गोपाल ! य�ाँ आओ।इ� वाक्यों में ‘अरे भैया’ और ‘�े गोपाल’ ! संबोध� कारक �ै।अध्याय 8सव6�ामसव6�ाम-संज्ञा के स्था� पर प्रयुक्त �ो�े वाले Cब्द को सव6�ाम क�ते �ै। संज्ञा की पु�रुलिक्त को र्दूर कर�े के लिलए �ी सव6�ाम का प्रयोग हिकया जाता �ै। जैसे-मैं, �म, तू, तुम, व�, य�, आप, कौ�, कोई, जो आदिद।सव6�ाम के भेद- सव6�ाम के छ� भेद �ैं-1. पुरुषवाचक सव6�ाम।2. हि��यवाचक सव6�ाम।3. अहि��यवाचक सव6�ाम।4. संबंधवाचक सव6�ाम।5. प्रश्नवाचक सव6�ाम।6. हि�जवाचक सव6�ाम।1.पुरुषवाचक सव6�ाम-जिजस सव6�ाम का प्रयोग वक्ता या लेखक स्वयं अप�े लिलए अथवा श्रोता या पाठक के लिलए अथवा हिकसी अन्य के लिलए करता �ै व� पुरुषवाचक सव6�ाम क�लाता �ै। पुरुषवाचक सव6�ाम ती� प्रकार के �ोते �ैं-(1) उत्तम पुरुषवाचक सव6�ाम- जिजस सव6�ाम का प्रयोग बोल�े वाला अप�े लिलए करे, उसे उत्तम पुरुषवाचक सव6�ाम क�ते �ैं। जैसे-मैं, �म, मुझे, �मारा आदिद।(2) मध्यम पुरुषवाचक सव6�ाम- जिजस सव6�ाम का प्रयोग बोल�े वाला सु��े वाले के लिलए करे, उसे मध्यम पुरुषवाचक सव6�ाम क�ते �ैं। जैसे-तू, तुम,तुझे, तु{�ारा आदिद।(3) अन्य पुरुषवाचक सव6�ाम- जिजस सव6�ाम का प्रयोग बोल�े वाला सु��े वाले के अहितरिरक्त हिकसी

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अन्य पुरुष के लिलए करे उसे अन्य पुरुषवाचक सव6�ाम क�ते �ैं। जैसे-व�, वे, उस�े, य�, ये, इस�े, आदिद।2.हि��यवाचक सव6�ाम-जो सव6�ाम हिकसी व्यलिक्त वस्तु आदिद की ओर हि��यपूव6क संकेत करें वे हि��यवाचक सव6�ाम क�लाते �ैं। इ�में ‘य�’, ‘व�’, ‘वे’ सव6�ाम Cब्द हिकसी हिवCेष व्यलिक्त आदिद का हि��यपूव6क बोध करा र�े �ैं, अतः ये हि��यवाचक सव6�ाम �ै।3.अहि��यवाचक सव6�ाम-जिजस सव6�ाम Cब्द के द्वारा हिकसी हि�क्षि�त व्यलिक्त अथवा वस्तु का बोध � �ो वे अहि��यवाचक सव6�ाम क�लाते �ैं। इ�में ‘कोई’ और ‘कुछ’ सव6�ाम Cब्दों से हिकसी हिवCेष व्यलिक्त अथवा वस्तु का हि��य ��ीं �ो र�ा �ै। अतः ऐसे Cब्द अहि��यवाचक सव6�ाम क�लाते �ैं।4.संबंधवाचक सव6�ाम-परस्पर एक-र्दूसरी बात का संबंध बतला�े के लिलए जिज� सव6�ामों का प्रयोग �ोता �ै उन्�ें संबंधवाचक सव6�ाम क�ते �ैं। इ�में ‘जो’, ‘व�’, ‘जिजसकी’, ‘उसकी’, ‘जैसा’, ‘वैसा’-ये दो-दो Cब्द परस्पर संबंध का बोध करा र�े �ैं। ऐसे Cब्द संबंधवाचक सव6�ाम क�लाते �ैं।5.प्रश्नवाचक सव6�ाम-जो सव6�ाम संज्ञा Cब्दों के स्था� पर तो आते �ी �ै, हिकन्तु वाक्य को प्रश्नवाचक भी ब�ाते �ैं वे प्रश्नवाचक सव6�ाम क�लाते �ैं। जैसे-क्या, कौ� आदिद। इ�में ‘क्या’ और ‘कौ�’ Cब्द प्रश्नवाचक सव6�ाम �ैं, क्योंहिक इ� सव6�ामों के द्वारा वाक्य प्रश्नवाचक ब� जाते �ैं।6.हि�जवाचक सव6�ाम-ज�ाँ अप�े लिलए ‘आप’ Cब्द ‘अप�ा’ Cब्द अथवा ‘अप�े’ ‘आप’ Cब्द का प्रयोग �ो व�ाँ हि�जवाचक सव6�ाम �ोता �ै। इ�में ‘अप�ा’ और ‘आप’ Cब्द उत्तम, पुरुष मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष के (स्वयं का) अप�े आप का बोध करा र�े �ैं। ऐसे Cब्द हि�जवाचक सव6�ाम क�लाते �ैं।हिवCेष-ज�ाँ केवल ‘आप’ Cब्द का प्रयोग श्रोता के लिलए �ो व�ाँ य� आदर-सूचक मध्यम पुरुष �ोता �ै और ज�ाँ ‘आप’ Cब्द का प्रयोग अप�े लिलए �ो व�ाँ हि�जवाचक �ोता �ै।सव6�ाम Cब्दों के हिवCेष प्रयोग(1) आप, वे, ये, �म, तुम Cब्द बहुवच� के रूप में �ैं, हिकन्तु आदर प्रकट कर�े के लिलए इ�का प्रयोग एक व्यलिक्त के लिलए भी �ोता �ै।(2) ‘आप’ Cब्द स्वयं के अथ6 में भी प्रयुक्त �ो जाता �ै। जैसे-मैं य� काय6 आप �ी कर लँूगा।अध्याय 9हिवCेषणहिवCेषण की परिरभाषा- संज्ञा अथवा सव6�ाम Cब्दों की हिवCेषता (गुण, दोष, संख्या, परिरमाण आदिद) बता�े वाले Cब्द ‘हिवCेषण’ क�लाते �ैं। जैसे-बड़ा, काला, लंबा, दयालु, भारी, सुन्दर, कायर, टेढ़ा-मेढ़ा, एक, दो आदिद।हिवCेष्य- जिजस संज्ञा अथवा सव6�ाम Cब्द की हिवCेषता बताई जाए व� हिवCेष्य क�लाता �ै। यथा- गीता सुन्दर �ै। इसमें ‘सुन्दर’ हिवCेषण �ै और ‘गीता’ हिवCेष्य �ै। हिवCेषण Cब्द हिवCेष्य से पूव6 भी आते �ैं और उसके बाद भी।पूव6 में, जैसे- (1) थोड़ा-सा जल लाओ। (2) एक मीटर कपड़ा ले आ�ा।बाद में, जैसे- (1) य� रास्ता लंबा �ै। (2) खीरा कड़वा �ै।हिवCेषण के भेद- हिवCेषण के चार भेद �ैं-1. गुणवाचक।

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2. परिरमाणवाचक।3. संख्यावाचक।4. संकेतवाचक अथवा साव6�ाधिमक।1.गुणवाचक हिवCेषण-जिज� हिवCेषण Cब्दों से संज्ञा अथवा सव6�ाम Cब्दों के गुण-दोष का बोध �ो वे गुणवाचक हिवCेषण क�लाते �ैं। जैसे-(1) भाव- अ`ा, बुरा, कायर, वीर, डरपोक आदिद।(2) रंग- लाल, �रा, पीला, स9ेद, काला, चमकीला, 9ीका आदिद।(3) दCा- पतला, मोटा, सूखा, गाढ़ा, हिपघला, भारी, गीला, गरीब, अमीर, रोगी, स्वस्थ, पालतू आदिद।(4) आकार- गोल, सुडौल, �ुकीला, समा�, पोला आदिद।(5) समय- अगला, हिपछला, दोप�र, संध्या, सवेरा आदिद।(6) स्था�- भीतरी, बा�री, पंजाबी, जापा�ी, पुरा�ा, ताजा, आगामी आदिद।(7) गुण- भला, बुरा, सुन्दर, मीठा, खट्टा, दा�ी,सच, झूठ, सीधा आदिद।(8) दिदCा- उत्तरी, दक्षिAणी, पूव^, पक्षि�मी आदिद।2.परिरमाणवाचक हिवCेषण-जिज� हिवCेषण Cब्दों से संज्ञा या सव6�ाम की मात्रा अथवा �ाप-तोल का ज्ञा� �ो वे परिरमाणवाचक हिवCेषण क�लाते �ैं।परिरमाणवाचक हिवCेषण के दो उपभेद �ै-(1) हि�क्षि�त परिरमाणवाचक हिवCेषण- जिज� हिवCेषण Cब्दों से वस्तु की हि�क्षि�त मात्रा का ज्ञा� �ो। जैसे-(क) मेरे सूट में साढे़ ती� मीटर कपड़ा लगेगा।(ख) दस हिकलो ची�ी ले आओ।(ग) दो लिलटर र्दूध गरम करो।(2) अहि�क्षि�त परिरमाणवाचक हिवCेषण- जिज� हिवCेषण Cब्दों से वस्तु की अहि�क्षि�त मात्रा का ज्ञा� �ो। जैसे-(क) थोड़ी-सी �मकी� वस्तु ले आओ।(ख) कुछ आम दे दो।(ग) थोड़ा-सा र्दूध गरम कर दो।3.संख्यावाचक हिवCेषण-जिज� हिवCेषण Cब्दों से संज्ञा या सव6�ाम की संख्या का बोध �ो वे संख्यावाचक हिवCेषण क�लाते �ैं। जैसे-एक, दो, हिद्वतीय, दुगु�ा, चौगु�ा, पाँचों आदिद।संख्यावाचक हिवCेषण के दो उपभेद �ैं-(1) हि�क्षि�त संख्यावाचक हिवCेषण- जिज� हिवCेषण Cब्दों से हि�क्षि�त संख्या का बोध �ो। जैसे-दो पुस्तकें मेरे लिलए ले आ�ा।हि�क्षि�त संख्यावाचक के हि�{�लिलखिखत चार भेद �ैं-(क) गणवाचक- जिज� Cब्दों के द्वारा हिग�ती का बोध �ो। जैसे-(1) एक लड़का स्कूल जा र�ा �ै।(2) पच्चीस रुपये दीजिजए।(3) कल मेरे य�ाँ दो धिमत्र आएगेँ।(4) चार आम लाओ।

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(ख) क्रमवाचक- जिज� Cब्दों के द्वारा संख्या के क्रम का बोध �ो। जैसे-(1) प�ला लड़का य�ाँ आए।(2) र्दूसरा लड़का व�ाँ बैठे।(3) राम कAा में प्रथम र�ा।(4) श्याम हिद्वतीय श्रेणी में पास हुआ �ै।(ग) आवृक्षित्तवाचक- जिज� Cब्दों के द्वारा केवल आवृक्षित्त का बोध �ो। जैसे-(1) मो�� तुमसे चौगु�ा काम करता �ै।(2) गोपाल तुमसे दुगु�ा मोटा �ै।(घ) समुदायवाचक- जिज� Cब्दों के द्वारा केवल सामूहि�क संख्या का बोध �ो। जैसे-(1) तुम ती�ों को जा�ा पडे़गा।(2) य�ाँ से चारों चले जाओ।(2) अहि�क्षि�त संख्यावाचक हिवCेषण- जिज� हिवCेषण Cब्दों से हि�क्षि�त संख्या का बोध � �ो। जैसे-कुछ बच्चे पाक6 में खेल र�े �ैं।(4) संकेतवाचक (हि�द}Cक) हिवCेषण-जो सव6�ाम संकेत द्वारा संज्ञा या सव6�ाम की हिवCेषता बतलाते �ैं वे संकेतवाचक हिवCेषण क�लाते �ैं।हिवCेष-क्योंहिक संकेतवाचक हिवCेषण सव6�ाम Cब्दों से ब�ते �ैं, अतः ये साव6�ाधिमक हिवCेषण क�लाते �ैं। इन्�ें हि�द}Cक भी क�ते �ैं।(1) परिरमाणवाचक हिवCेषण और संख्यावाचक हिवCेषण में अंतर- जिज� वस्तुओं की �ाप-तोल की जा सके उ�के वाचक Cब्द परिरमाणवाचक हिवCेषण क�लाते �ैं। जैसे-‘कुछ र्दूध लाओ’। इसमें ‘कुछ’ Cब्द तोल के लिलए आया �ै। इसलिलए य� परिरमाणवाचक हिवCेषण �ै। 2.जिज� वस्तुओं की हिग�ती की जा सके उ�के वाचक Cब्द संख्यावाचक हिवCेषण क�लाते �ैं। जैसे-कुछ बच्चे इधर आओ। य�ाँ पर ‘कुछ’ बच्चों की हिग�ती के लिलए आया �ै। इसलिलए य� संख्यावाचक हिवCेषण �ै। परिरमाणवाचक हिवCेषणों के बाद द्रव्य अथवा पदाथ6वाचक संज्ञाए ँ आएगँी जबहिक संख्यावाचक हिवCेषणों के बाद जाहितवाचक संज्ञाए ँ आती �ैं।(2) सव6�ाम और साव6�ाधिमक हिवCेषण में अंतर- जिजस Cब्द का प्रयोग संज्ञा Cब्द के स्था� पर �ो उसे सव6�ाम क�ते �ैं। जैसे-व� मुंबई गया। इस वाक्य में व� सव6�ाम �ै। जिजस Cब्द का प्रयोग संज्ञा से पूव6 अथवा बाद में हिवCेषण के रूप में हिकया गया �ो उसे साव6�ाधिमक हिवCेषण क�ते �ैं। जैसे-व� रथ आ र�ा �ै। इसमें व� Cब्द रथ का हिवCेषण �ै। अतः य� साव6�ाधिमक हिवCेषण �ै।हिवCेषण की अवस्थाए-ँहिवCेषण Cब्द हिकसी संज्ञा या सव6�ाम की हिवCेषता बतलाते �ैं। हिवCेषता बताई जा�े वाली वस्तुओं के गुण-दोष कम-ज्यादा �ोते �ैं। गुण-दोषों के इस कम-ज्यादा �ो�े को तुल�ात्मक ढंग से �ी जा�ा जा सकता �ै। तुल�ा की दृधिष्ट से हिवCेषणों की हि�{�लिलखिखत ती� अवस्थाए ँ �ोती �ैं-(1) मूलावस्था(2) उत्तरावस्था(3) उत्तमावस्था(1) मूलावस्था-मूलावस्था में हिवCेषण का तुल�ात्मक रूप ��ीं �ोता �ै। व� केवल सामान्य हिवCेषता �ी प्रकट करता �ै। जैसे- 1.साहिवत्री संुदर लड़की �ै। 2.सुरेC अ`ा लड़का �ै। 3.सूय6 तेजस्वी �ै।

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(2) उत्तरावस्था-जब दो व्यलिक्तयों या वस्तुओं के गुण-दोषों की तुल�ा की जाती �ै तब हिवCेषण उत्तरावस्था में प्रयुक्त �ोता �ै। जैसे- 1.रवीन्द्र चेत� से अधिधक बुजिद्धमा� �ै। 2.सहिवता रमा की अपेAा अधिधक सुन्दर �ै।(3) उत्तमावस्था-उत्तमावस्था में दो से अधिधक व्यलिक्तयों एवं वस्तुओं की तुल�ा करके हिकसी एक को सबसे अधिधक अथवा सबसे कम बताया गया �ै। जैसे- 1.पंजाब में अधिधकतम अन्न �ोता �ै। 2.संदीप हि�कृष्टतम बालक �ै।हिवCेष-केवल गुणवाचक एवं अहि�क्षि�त संख्यावाचक तथा हि�क्षि�त परिरमाणवाचक हिवCेषणों की �ी ये तुल�ात्मक अवस्थाए ँ �ोती �ैं, अन्य हिवCेषणों की ��ीं।अवस्थाओं के रूप-(1) अधिधक और सबसे अधिधक Cब्दों का प्रयोग करके उत्तरावस्था और उत्तमावस्था के रूप ब�ाए जा सकते �ैं। जैसे-मूलावस्था उत्तरावस्था उत्तमावस्थाअ`ी अधिधक अ`ी सबसे अ`ीचतुर अधिधक चतुर सबसे अधिधक चतुरबुजिद्धमा� अधिधक बुजिद्धमा� सबसे अधिधक बुजिद्धमा�बलवा� अधिधक बलवा� सबसे अधिधक बलवा�इसी प्रकार र्दूसरे हिवCेषण Cब्दों के रूप भी ब�ाए जा सकते �ैं।(2) तत्सम Cब्दों में मूलावस्था में हिवCेषण का मूल रूप, उत्तरावस्था में ‘तर’ और उत्तमावस्था में ‘तम’ का प्रयोग �ोता �ै। जैसे-मूलावस्था उत्तरावस्था उत्तमावस्थाउच्च उच्चतर उच्चतमकठोर कठोरतर कठोरतमगुरु गुरुतर गुरुतमम�ा�, म�ा�तर म�त्तर, म�ा�तम म�त्तमन्यू� न्यू�तर न्य�ूतमलघु लघुतर लघुतमतीव्र तीव्रतर तीव्रतमहिवCाल हिवCालतर हिवCालतमउत्कृष्ट उत्कृष्टर उत्कृट्ठतमसंुदर संुदरतर संुदरतममधुर मधुरतर मधुतरतम हिवCेषणों की रच�ा-कुछ Cब्द मूलरूप में �ी हिवCेषण �ोते �ैं, हिकन्तु कुछ हिवCेषण Cब्दों की रच�ा संज्ञा, सव6�ाम एवं हिक्रया Cब्दों से की जाती �ै-(1) संज्ञा से हिवCेषण ब�ा�ा-

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प्रत्यय संज्ञा हिवCेषण संज्ञा हिवCेषणक अंC आंलिCक धम6 धार्मिमंक  अलंकार आलंकारिरक �ीहित �ैहितक  अथ6 आर्थिथंक दिद� दैहि�क  इहित�ास ऐहित�ालिसक देव दैहिवकइत अंक अंहिकत कुसुम कुसुधिमत  सुरक्षिभ सुरक्षिभत ध्वहि� ध्वहि�त  Aुधा Aुधिधत तरंग तरंहिगतइल जटा जदिटल पंक पंहिकल  9े� 9ेहि�ल उर्मिमं उर्मिमलंइम स्वण6 स्वर्णिणंम रक्त रलिक्तमई रोग रोगी भोग भोगीई�,ईण कुल कुली� ग्राम ग्रामीणईय आत्मा आत्मीय जाहित जातीयआलु श्रद्धा श्रद्धालु ईष्या6 ईष्या6लुवी म�स म�स्वी तपस तपस्वीमय सुख सुखमय दुख दुखमयवा� रूप रूपवा� गुण गुणवा�वती(स्त्री) गुण गुणवती पुत्र पुत्रवतीमा� बुजिद्ध बुजिद्धमा� श्री श्रीमा�मती (स्त्री) श्री श्रीमती बुजिद्ध बुजिद्धमतीरत धम6 धम6रत कम6 कम6रतस्थ समीप समीपस्थ दे� दे�स्थहि�ष्ठ धम6 धम6हि�ष्ठ कम6 कम6हि�ष्ठ(2) सव6�ाम से हिवCेषण ब�ा�ा-सव6�ाम हिवCेषण सव6�ाम हिवCेषणव� वैसा य� ऐसा(3) हिक्रया से हिवCेषण ब�ा�ा-हिक्रया हिवCेषण हिक्रया हिवCेषणपत पहितत पूज पूज�ीयपठ पदिठत वंद वंद�ीयभाग�ा भाग�े वाला पाल�ा पाल�े वालाअध्याय 10हिक्रया

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हिक्रया- जिजस Cब्द अथवा Cब्द-समू� के द्वारा हिकसी काय6 के �ो�े अथवा कर�े का बोध �ो उसे हिक्रया क�ते �ैं। जैसे-(1) गीता �ाच र�ी �ै।(2) बच्चा र्दूध पी र�ा �ै।(3) राकेC कॉलेज जा र�ा �ै।(4) गौरव बुजिद्धमा� �ै।(5) लिCवाजी बहुत वीर थे।इ�में ‘�ाच र�ी �ै’, ‘पी र�ा �ै’, ‘जा र�ा �ै’ Cब्द काय6-व्यापार का बोध करा र�े �ैं। जबहिक ‘�ै’, ‘थ’े Cब्द �ो�े का। इ� सभी से हिकसी काय6 के कर�े अथवा �ो�े का बोध �ो र�ा �ै। अतः ये हिक्रयाए ँ�ैं।धातु-हिक्रया का मूल रूप धातु क�लाता �ै। जैसे-लिलख, पढ़, जा, खा, गा, रो, पा आदिद। इन्�ीं धातुओं से लिलखता, पढ़ता, आदिद हिक्रयाए ँ ब�ती �ैं।हिक्रया के भेद- हिक्रया के दो भेद �ैं-(1) अकम6क हिक्रया।(2) सकम6क हिक्रया।1.अकम6क हिक्रया-जिज� हिक्रयाओं का 9ल सीधा कता6 पर �ी पडे़ वे अकम6क हिक्रया क�लाती �ैं। ऐसी अकम6क हिक्रयाओं को कम6 की आवश्यकता ��ीं �ोती। अकम6क हिक्रयाओं के अन्य उदा�रण �ैं-(1) गौरव रोता �ै।(2) साँप रेंगता �ै।(3) रेलगाड़ी चलती �ै।कुछ अकम6क हिक्रयाए-ँ लजा�ा, �ो�ा, बढ़�ा, सो�ा, खेल�ा, अकड़�ा, डर�ा, बैठ�ा, �ँस�ा, उग�ा, जी�ा, दौड़�ा, रो�ा, ठ�र�ा, चमक�ा, डोल�ा, मर�ा, घट�ा, 9ाँद�ा, जाग�ा, बरस�ा, उछल�ा, कूद�ा आदिद।2.सकम6क हिक्रया-जिज� हिक्रयाओं का 9ल (कता6 को छोड़कर) कम6 पर पड़ता �ै वे सकम6क हिक्रया क�लाती �ैं। इ� हिक्रयाओं में कम6 का �ो�ा आवश्यक �ैं, सकम6क हिक्रयाओं के अन्य उदा�रण �ैं-(1) मैं लेख लिलखता हूँ।(2) रमेC धिमठाई खाता �ै।(3) सहिवता 9ल लाती �ै।(4) भँवरा 9ूलों का रस पीता �ै।3.हिद्वकम6क हिक्रया- जिज� हिक्रयाओं के दो कम6 �ोते �ैं, वे हिद्वकम6क हिक्रयाए ँ क�लाती �ैं। हिद्वकम6क हिक्रयाओं के उदा�रण �ैं-(1) मैं�े श्याम को पुस्तक दी।(2) सीता �े राधा को रुपये दिदए।ऊपर के वाक्यों में ‘दे�ा’ हिक्रया के दो कम6 �ैं। अतः दे�ा हिद्वकम6क हिक्रया �ैं।प्रयोग की दृधिष्ट से हिक्रया के भेद-प्रयोग की दृधिष्ट से हिक्रया के हि�{�लिलखिखत पाँच भेद �ैं-1.सामान्य हिक्रया- ज�ाँ केवल एक हिक्रया का प्रयोग �ोता �ै व� सामान्य हिक्रया क�लाती �ै। जैसे-

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1. आप आए।2.व� ��ाया आदिद।2.संयुक्त हिक्रया- ज�ाँ दो अथवा अधिधक हिक्रयाओं का साथ-साथ प्रयोग �ो वे संयुक्त हिक्रया क�लाती �ैं। जैसे-1.सहिवता म�ाभारत पढ़�े लगी।2.व� खा चुका।3.�ामधातु हिक्रया- संज्ञा, सव6�ाम अथवा हिवCेषण Cब्दों से ब�े हिक्रयापद �ामधातु हिक्रया क�लाते �ैं। जैसे-�लिथया�ा, Cरमा�ा, अप�ा�ा, लजा�ा, लिचक�ा�ा, झुठला�ा आदिद।4.पे्ररणाथ6क हिक्रया- जिजस हिक्रया से पता चले हिक कता6 स्वयं काय6 को � करके हिकसी अन्य को उस काय6 को कर�े की पे्ररणा देता �ै व� पे्ररणाथ6क हिक्रया क�लाती �ै। ऐसी हिक्रयाओं के दो कता6 �ोते �ैं- (1) पे्ररक कता6- पे्ररणा प्रदा� कर�े वाला। (2) पे्ररिरत कता6-पे्ररणा ले�े वाला। जैसे-श्यामा राधा से पत्र लिलखवाती �ै। इसमें वास्तव में पत्र तो राधा लिलखती �ै, हिकन्तु उसको लिलख�े की पे्ररणा देती �ै श्यामा। अतः ‘लिलखवा�ा’ हिक्रया पे्ररणाथ6क हिक्रया �ै। इस वाक्य में श्यामा पे्ररक कता6 �ै और राधा पे्ररिरत कता6।5.पूव6कालिलक हिक्रया- हिकसी हिक्रया से पूव6 यदिद कोई र्दूसरी हिक्रया प्रयुक्त �ो तो व� पूव6कालिलक हिक्रया क�लाती �ै। जैसे- मैं अभी सोकर उठा हूँ। इसमें ‘उठा हूँ’ हिक्रया से पूव6 ‘सोकर’ हिक्रया का प्रयोग हुआ �ै। अतः ‘सोकर’ पूव6कालिलक हिक्रया �ै।हिवCेष- पूव6कालिलक हिक्रया या तो हिक्रया के सामान्य रूप में प्रयुक्त �ोती �ै अथवा धातु के अंत में ‘कर’ अथवा ‘करके’ लगा दे�े से पूव6कालिलक हिक्रया ब� जाती �ै। जैसे-(1) बच्चा र्दूध पीते �ी सो गया।(2) लड़हिकयाँ पुस्तकें पढ़कर जाएगँी।अपूण6 हिक्रया-कई बार वाक्य में हिक्रया के �ोते हुए भी उसका अथ6 स्पष्ट ��ीं �ो पाता। ऐसी हिक्रयाए ँअपूण6 हिक्रया क�लाती �ैं। जैसे-गाँधीजी थे। तुम �ो। ये हिक्रयाए ँअपूण6 हिक्रयाए ँ�ै। अब इन्�ीं वाक्यों को हि9र से पदिढ़ए-गांधीजी राष्ट्रहिपता थे। तुम बुजिद्धमा� �ो।इ� वाक्यों में क्रमCः ‘राष्ट्रहिपता’ और ‘बुजिद्धमा�’ Cब्दों के प्रयोग से स्पष्टता आ गई। ये सभी Cब्द ‘पूरक’ �ैं।अपूण6 हिक्रया के अथ6 को पूरा कर�े के लिलए जिज� Cब्दों का प्रयोग हिकया जाता �ै उन्�ें पूरक क�ते �ैं।   


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