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साईं बाबा जब से शिरडी में आये थे| वे रोजाना ाम होते ही एक छोटा-सा बत�न लेकर किकसी भी तेल बेचने वाले दुकानदार की दुकान पर चले जाते और रात को मस्जि&जद में शिचराग जलाने के शिलए थोडा-सा तेल मांग लाया करते थे|
दीपावली से एक दिदन पहले तेल बेचने वाले दुकानदार ाम को आरती के समय मंदिदर पहुंचे| साईं बाबा के मांगने पर वे उन्हें तेल अवश्य दे दिदया करते थे, परंतु साईं बाबा के बारे में उनके किवचार कुछ अचे्छ नहीं थे|
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उन्हें साईं बाबा के पास मस्जि&जद में जाकर बैठना अच्छा नहीं लगता था| वहां का वातावरण उन्हें अच्छा नहीं लगता था, वह उनकी भावनाओं से मेल नहीं खाता था| ाम को दुकान बंद करने के बाद वह मंदिदर में पंकिडत के साथ गप्पे मारना, दूसरों की बुराई करना अच्छा लगता था| साईं बाबा की निनंदा करने पर पंकिडतजी को बड़ा आत्मसंतोष प्राप्त होता था|
"देखा भाई, कल दीपावली है और ा&त्रों में शिलखा है किक दीपावली के दिदन जिजस घर में अंधेरा रहता है, वहां लक्ष्मी नहीं आती है| जो भी लक्ष्मी का थोड़ा-बहुत अं उस घर में होता है, वह भी चला जाता है| सुनो, कल जब साईं बाबा तेल मांगने आए ंतो उन्हें तेल ही न दिदया जाए| वैसे तो उनके पास शिसजिG-किवजिG कुछ है नहीं, और यदिद होगी भी तो कल दीपावली के दिदन मस्जि&जद में अंधेरा रहने के कारण लक्ष्मी, उसका साथ छोड़कर चली जाएगी|"
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"यह तो आपने मेरे मन की बात कह दी पंकिडतजी ! हम लोग भी कुछ ऐसा ही सोच रहे थे| हम कल साईं बाबा को तेल नहीं देंगे|" एक दुकानदार ने कहा|
"मैं तो सोच रहा हूं किक तेल बेचा ही न जाए| पूरा गांव उसका शिष्य बन गया है और उसकी जय-जयकार करते नहीं थकते| गांव में ायद ही दो-चार के घर इतना तेल हो किक कल दीपावली के दीए जला सकें | बस हमारे चार-छ: घरों में ही दीए जलेंगे|" - दूसरे दुकानदार ने कहा|
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"हा,ं यही ठीक रहेगा|" पंकिडतजी तुरंत बोले - "सचमुच तुमने किबल्कुल ठीक कहा है| मैंने तो इस बारे में सोचा भी नहीं था|
"किPर यह तय हो गया किक कल कोई भी दुकानदार तेल न बेचेगा चाहे कोई किकतनी ही कीतम क्यों न दे|“
अगल ेदिदन ाम को साईं बाबा तेल बेचने वाले की दुकान पर पहुंचे| उन्होंने कहा - "सेठजी, आज दीपावली है| थोड़ा-सा तेल ज्यादा दे देना|"
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"बाबा, आज तो तेल की एक बूंद भी नहीं है, कहां से दंू ? सारा तेल कल ही किबक गया| सोचा था किक सुबह को जाकर हर से ल ेआऊंगा, त्यौहार का दिदन होने के कारण दुकान से उठने की Pुरसत ही नहीं मीली| आज तो अपने घर में भी जलाने के शिलए तेल नहीं है|" दुकानदार ने बडे़ दु:खी &वर में कहा|
साईं बाबा आगे बढ़ गए|
तेल बेचने वाल ेसभी दुकानदार ने यही जवाब दिदया|
साईं बाबा खाली हाथ लौट आये|
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तभी एक कुम्हार जो उनका शिष्य था, उन्हें एक टोकरी दीये दे गया|
साईं बाबा के मस्जि&जद खाली हाथ लौटने पर उनके शिष्यों को बड़ी किनराा हुई| उन्होंने बड़ी खुी के साथ दीपावली के कई दिदन पहले से ही मस्जि&जद की मरम्मत-पुताई आदिद करना ुरू कर दी थी| उन्हें आा थी किक अबकी बार मस्जि&जद में बड़ी धूमधाम के साथ दीपावली मनायेंगे| रात भर भजन-कीत�न होगा| कई शिष्य अपन ेघर चले गए| घर से पैसे और तेल खरीदने के शिलए चल पडे़| वह जिजस भी दुकानदार के पास तेल के शिलए पहुंचते, वह यही उत्तर देता किक आज तो हमारे घर में भी जलाने के शिलए तेल की एक बूंद भी नहीं है|
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सभी शिष्य-भक्तों को किनराा के साथ बहुत दुःख भी हुआ| वे सब खाली हाथ मस्जि&जद लौट आए|
"बाबा ! गांव का प्रत्येक दुकानदार यही कहता है किक आज तो उसके पास अपने घर में जलाने के शिलए भी तेल की एक बूंद भी नहीं है|“
"तो इसमें इतना ज्यादा दु:खी होने किक क्या बात है ? दुकानदार सत्य ही तो कह रहे हैं| सच में ही उनकी दुकान और घर में आज दीपावली की रात को एक दीया तक जलाने के शिलए तेल की एक बूंद भी नहीं है, दीपावली मनाना तो उनके शिलए बहुत दूर की बात है|" साईं बाबा ने मु&कराते हुए कहा और किPर मस्जि&जद के अंदर बने कुए ंपर जाकर उन्होंने कुए ंमें से एक घड़ा पानी भरकर खींचा|
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भक्त चुपचाप खडे़ उनको यह सब करते देखते रहे| साईं बाबा ने अपने किडब्बे, जिजसमें वह तेल मांगकर लाया करते थे, उसमें से बचे हुए तेल की बंूदे उस घडे़ के पानी में डालीं और घड़े के उस पानी को दीयों में भर दिदया| किPर रूई की बत्तित्तयां बनाकर उन दीयों में डाल दीं और किPर बत्तित्तयां जला दीं| सारे दिदये जगमग कर जल उठे| यह देखकर शिष्यों और भक्तों की हैरानी का दिठकाना न रहा|
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"इन दीयों को मस्जि&जद की मुंडेरों, गुम्बदों और मीनारों पर रख दो| अब ये दिदये कभी नहीं बुझेंगे| मैं नहीं रहूंगा तब भी ये इसी तरह जगमगाते रहेंगे|"साईं बाबा ने वहां उपस्जि_त अपने शिष्यों और भक्तजनों से कहा और किPर एक पल रुककर बोले - "आज दीपावली का त्यौहार है, लकेिकन गांव में किकसी के घर में भी तेल नहीं है| जाओ, प्रत्येक घर में इस पानी को बांट आओ| लोगों में कहना किक दिदये में बत्ती डालकर जला दें| दीये सुबह सूरज किनकलन ेतक जगमगाते रहेंगे|"
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"बोलो साईं बाबा की जय!" सभी शिष्यों और भक्तों न ेसाईं बाबा का जयकारा लगाया और घड़ा उठाकर गांव में चले गए| सभी प्रसन्न दिदखाई दे रहे थे|
दीपावली की रात का अंधकार धीरे-धीरे धरती पर उतरने लगा था| तब तेल बेचने वाले दुकानदारों और पंकिडतजी के घर को छोड़कर प्रत्येक घर में साईं बाबा के घड़े का पानी पहंुच गया था|
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साईं बाबा के शिरडी में आने के बाद में शिरडी और आस-पास के मुसलमान किहन्दुओं के साथ दीपावली का त्यौहार बडे़ हष� और उल्लास के साथ मनाने लगे थे और किहन्दुओं ने भी ईद और ब्बेरात मनानी ुरू कर दी थी| पूरा गांव दीयों की रोनी से जगमगा उठा| उन दीयों की रोनी अन्य दिदन जलाए जाने वाले दीयों से बहुत तेज थी| पूरे गांव भर में यदिद कहीं अंधेरा छाया हुआ था तो वह पंकिडतजी और तेल बेचने वाले दुकानदारों के घर में|
दुकानदार मारे आश्चय� के परेान थे किक कल ाम तो जो बत�न तेल से लबालब भरे हुए थे, इस समय किबल्कुल खाली पडे़ थे, जैसे उनमें कभी तेल भरा ही न गया हो| यही दा पंकिडतजी की भी थी| ाम को जब उनकी पत्नी दीये जलाने बैठी तो उसने देखा तेल की हांडी एकदम खाली पड़ी है| उसने बाहर आकर पंकिडतजी से तेल लाने के शिलए कहा|
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"तुम चिचंता क्यों करती हो ? मैं अभी लेकर आता हूं|
पंकिडतजी हांडी लेकर जब तेल बेचने वाल ेदुकानदारों के पास पहुंचे| वे सब भी अपने माथे पर हाथ रखे इसी चिचंता में बैठे थे किक किबना तेल के वह दीपावली कैसे मनायेंगे ?
जब पंकिडतजी ने दुकान पर जाकर तेल मांगा, तो वे बोले - "पंकिडतजी, न जाने क्या हुआ, कल ाम को ही हम लोगों ने तेल ख़रीदा था| सुबह से एक बूंद तेल नहीं बेचा, लकेिकन अब देखा तो तेल की एक बूंद भी नहीं है| बत�न इस तरह खाली पडे़ हैं, जैसे इनमें कभी तेल था ही नहीं|"
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सभी दुकानदार ने यही कहानी दोहरायी|
आश्चय� की बात तो यह थी किक तेल से भरे बत�न किबल्कुल ही खाली हो गए थे| न घर में तेल की एक बूंद थी और न ही दुकान में| पूरा गांव रोनी से जगमगा रहा था| केवल तेल बेचने वाल ेदुकानदारों और पंकिडतजी के घर में अंधकार छाया हुआ था|
"यह सब साईं बाबा की ही करामात है| हम लोगों ने उन्हें तेल देने से मना किकया था और उसने कहा था किक आज तो हमारे घर और दुकान में एक बूंद भी तेल नहीं है|" -एक दुकानदार ने कहा - "चलो बाबा के पास चलकर उनसे माPी मांगें|"
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किPर तेल बेचने वाले सभी दुकानदार साईं बाबा के पास पहुंचे| उनसे माPी मांगने लगे - "बाबा, हम आपकी मकिहमा को नहीं समझ पाए| हमें क्षमा करें| हम लोगों से बहुत बड़ा अपराध हुआ है| हमने आपसे झूठ बोला था|" -दुकानदारों ने साईं बाबा के चरणों में किगरते हुए कहा|
"इंसान गलकितयों का पुतला है| अपराधी तो वह है, जो अपने अपराध को शिछपाता है| जो अपने अपराध को &वीकार कर लेता है, वह अपराधी नहीं होता| तुमने अपराध नहीं किकया|" -साईं बाबा ने दुकानदारों को उठाकर सांत्वना देते हुए कहा और किPर उनकी ओर देखते हुए बोले - "तात्या, अभी उस घड़े में थोड़ा-सा पानी है| उसे इन लोगों के घरों में बांट आओ - और सुनो पंकिडतजी के घर भी दे आना| उन बेचारों के घर में भी तेल की एक बूंद भी नहीं है|"
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तात्या सभी दुकानदारों के घरों में घडे़ का पानी बांट आया, परंत ुपंकिडतजी ने लेने से इंकार कर दिदया| सारा गांव दीयों की रोनी से जगमगा रहा था| इसके बावजूद अभी भी एक घर में अंधेरा छाया हुआ था और वह घर था पंकिडतजी का| दीपावली के दिदन उनके घर में अंधेरा ही रहा| एक दीपक जलान ेके शिलए भी तेल नहीं मिमला| साईं बाबा के गांव में कदम रखते ही लक्ष्मी तो उनसे पहले ही रूठ गयी थी और दीपावली के दिदन घर में अंधेरा पाकर तो किबलकुल ही रूठ गयी| कुछ दुकानदारों जो मंदिदर में सुबह-ाम जाया करते थे, दीपावली की रात से उन्होंन ेमंदिदर में आना छोड़ दिदया| साईं बाबा की भभूत के कारण उनका औषधालय तो पहले ही बंद हो चुका था| मजदूरों ने खेतों में काम करने से मना कर दिदया, तो पंकिडतजी का क्रोध अपनी चरम सीमा को लांघ गया|
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"इस ढोंगी साईं बाबा को गांव से भगाए किबना अब काम नहीं चलेगा|" पंकिडतजी न मन-ही-मन Pैसला किकया|