hindi poems

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रहीम के दोहे रहीम के दोहे --• • एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। 

रिहमन मूलहिह सींचिचिबो, फूलहै फलहै अगाय॥• दनेहार कोउ और है, भेजत सो िदन रैन। 

लहोग भरम हम प ैधरै, याते नीचिे नैन॥• अब रहीम मुसिकलह परी, गाढे़ दोऊ काम। 

सांचिे से तो जग नहींच, झूठे िमलहै न राम॥• गरज आपनी आप सों रिहमन कहींच न जाया।

जैसे कुलह की कुलह वधू पर घर जात लहजाया॥• छमा बड़न को चिािहये, छोटन को उत्पात।

कह ‘रहीम’ हिर का घट्यौ, जो भृग ुमारी लहात॥• तरुवर फलह निह खात है, सरवर िपयिह न पान।

किह रहीम पर काज िहत, संपित सँचििह सुजान॥• खीरा को मुंह कािट के, मिलहयत लहोन लहगाय। 

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• रिहमन करुए मुखन को, चििहयत इह ैसजाय॥• जो रहीम उत्तम प्रकृित, का किर सकत कुसंग। 

चिन्दन िवष व्यापत नहींच, लहपटे रहत भुजगं॥• ज ेगरीब सों िहत करै, धिन रहीम वे लहोग। 

कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण िमताई जोग॥• जो बड़ेन को लहघु कहे, निह रहीम घिट जांिह। 

िगिरधर मुरलहीधर कहे, कछु दखु मानत नांिह॥• खैर, खून, खाँसी, खुसी, बरै, प्रीित, मदपान।

रिहमन दाबे न दबै, जानत सकलह जहान॥• टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार। 

रिहमन िफिर िफिर पोिहए, टूटे मुक्ताहार॥• िबगरी बात बने नहींच, लहाख करो िकन कोय।

रिहमन िबगरे दधू को, मथे न माखन होय॥• आब गई आदर गया, नैनन गया सनेिह।

ये तीनों तब ही गये, जबिह कहा कछु दिेह॥• चिाह गई िचिता िमटी, मनुआ बेपरवाह।

िजनको कछु निह चिािहये, वे साहन के साह॥• रिहमन देख बड़ने को, लहघु न दीिजये डािर।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलहवािर॥• मालही आवत दखे के, किलहयन करे पुकािर।

फूलेह फूलेह चिुिन िलहये, कािलह हमारी बािर॥

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• रहिहिमन वे नरह मरह गये, ज ेकछु माँगन जािहि।उनत ेपहिहिल ेवे मयुे, िजन मखु िनकसत नािहि॥

• रहिहिमन िवपहदा हिी भली, जो थोरेह िदन हिोय।िहित अनिहित या जगत मे, जािन पहरहत सब कोय॥

• बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जसैे पहेड़ खजरूह।पहंथी को छाया नहिी, फल लागे अित दरूह॥

• रहिहिमन चपुह हिो बिैठिये, दिेख िदनन के फेरह।जब नीके िदन आइहिै, बनत न लिगहि ैदरेह॥

• बानी ऐसी बोिलये, मन का आपहा खोय।औरहन को सीतल करैह, आपहहु सीतल हिोय॥

• मन मोती अरु दधू रहस, इनकी सहिज सुभाय।फट जाये तो ना िमले, कोिटन करहो उपहाय॥

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• वे रहहिीम नरह धन्य हिै, पहरह उपहकारही अंग।बाँटनवारेह को लगै, ज्यौं मेहिदी को रंहग॥

• रहिहिमहि ओछे नरहन सो, बैरह भली ना प्रीत।काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँित िवपहरहीत॥

• रहिहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।टूटे से िफरह ना जुड़े, जुड़े गाँठि पहिरह जाय॥

• रहिहिमन पहानी रहािखये, िबन पहानी सब सून।पहानी गये न ऊबरेह, मोती, मानुष, चून॥

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storystory• लाश

कमलेशरह• सारहा शहिरह सजा हुआ था। खास-खास सड़कों पहरह जगहि-जगहि फाटक

बनाए गए थे। िबजली के खम्बों पहरह झंडे, दीवारहों पहरह पहोस्टरह। वालंिटयरह कई िदनों स ेशहिरह मे पहरहचे बाँट रहहिे थे। मोचे की गितिविधया ँतजे़ी पहकड़ती जा रहहिी थी। ख़्याल तो यहिा ँतक था िक शायद रेहले, बसे औरह हिवाई यातायात भी ठिप्पह हिो जाएगा। शहिरह-भरह मे भारही हिड़ताल हिोगी औरह लाखों की सखं्या मे लोग जुलूस मे भाग लेगे।

• शहिरह स ेबाहिरह एक मैदान मे पहूरहा नगरह हिी बस गया था। दरूह-दरूह से टुकिडयाँ आ रहहिी थी। कुछ टुकिडया ँठेिके की बसों मे आई थी। बसों पहरह भी झंडे थे। कपहड़े की पहिट्टियों पहरह तहिसील का नाम था। कुछ टुकिड़यों मे औरहत ेभी थी, बच्चे भी। औरहते खाली वक्त मे अिभयान गीत गाती रहहिती।

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• कें द्रीय समिमितिति ने कुछ नए नारे बनाए थे। िज़िला स्तिर के कुछ लोग उन नारों का िरयाज़ि कर रह ेथे। लंगर मितें आपाधापी थी। शहर के समब रास्तिे, होटल, धमितर्मशालाएँ, समराएँ और मितामितूली िरश्तिेदारों के घर प्रदशर्मनकािरयों समे भरे हुए थे।

दो मितहीने पहले दिजियों को झडंे और टोपी िसमलने का ठेका द ेिदया गया था। परचे और पोस्टरों का कामित समाति छापेख़ानों के पासम था िजिन परचों पर मितागँें और नारे छप ेथे, वे समब प्रदशर्मनकािरयों को बाँट िदए गए थे। पिुलसम की समरगमिती भी बढतिी जिा रही थी। यातिायाति पुिलसम न ेनागिरकों की समुिवधा के िलए ऐलान िनकालने शुरू कर िदए- िक मितोचे वाले िदन नागिरक शहर की िकन-िकन समडकों को इस्तिेमिताल न करें... िक नागिरक अपनी गािडयाँ इत्यािद समुरिक्षिति स्थानों पर रखें।

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• मितोचे की िवशालतिा का अंदाज़ि लगाकर पुिलसम किमितश्नर न ेपी.ए.समी. को बुला िलया था। िजिन-िजिन समड़कों समे जिुलूसम को गुज़िरना था, उनकी इमितारतिों पर जिगह-जिगह समशस पुिलसम तिैनाति कर दी थी। समड़कों के दोनों ओर िसमफ र्म वह पुिलसम थी, िजिसमके पासम डंडे थे... तिािक प्रदशर्मनकािरयों को तिाव न आए। यह समब इंतिज़िामित पुिलसम किमितश्नर न ेखदु ही कर िलया था।

अपने चौकसम इंतिज़िामित की खबर दने ेके िलए जिब पुिलसम किमितश्नर मितुख्यमितंत्री के पासम पहुचँा तिो उसमका समारा तिनाव खदु ही खत्मित हो गया। मितुख्यमितंत्री के चेहरे पर कोई िचतिा या परेशानी नहीं थी। व ेहमितेशा की तिरह प्रसमन्न मितुद्रा मितें थे। गृहमितंत्री धीरे-धीरे मितुस्करा रह ेथे। मितुख्यमितंत्री न ेकुछ कहा तिो पुिलसम किमितश्नर न ेतिफ़समील दनेी शुरू की- दो हजिार लोकल फ ोसमर्म है, पाँच समौ  पी.एसम.समी., चार समौ िडिस्ट्रिक्ट सम ेआया है, तिीन समौ रेलवे का है, अस्समी

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• जिवान जिले समे उठा िलए है, दो समौ होमितगाडर्म! इनमितें समे आठ समौ आम्डर्म ह।ै हर पुिलसम चौकी पर शलै्सम का इंतिजिामित ह।ै समोलह समौ लािठयाँ िपछल ेहफ़्तिे आ गई थीं। समाढे़ चार समौ का फ ोसमर्म िसमिविलयन ह।ै

पुिलसम किमितश्नर समब बतिातिा जिा रहा था, पर मितखु्यमिततं्री िवशषे उत्समुकतिा समे नहीं समुन रह ेथ।े गहृमिततं्री भी बहुति िदलचस्पी नहीं ल ेरह ेथे। किमितश्नर कुछ हरैान हुआ। उसमने एक क्षिण रुक कर उन दोनों की तिरफ तिाका, तिो मितखु्यमिततं्री ने अपना चश्मिता समाफ करति ेहुए कहा, 'ख़्वामितख़्वाह आपन ेइतिनी तिवालति की।

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