kavyanjali hindi poem by nandlalbharti

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- कायांजल (कवता संह कवता संह कवता संह कवता संह)

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काव्यांजलि - नंदलाल भारती का काव्य संग्रह - ईबुक -रचनाकार (http://rachanakar.blogspot.com ) की प्रस्तुति

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Page 1: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

-

का� यांज�ल

(कवता सं�हकवता सं�हकवता सं�हकवता सं�ह)

Page 2: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

-

-न� दलाल भारती

का� यांज�ल

Page 3: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

(कवता सं�हकवता सं�हकवता सं�हकवता सं�ह)

*

न� दलाल भारती

*

सवा��धकार-लेखकाधीन

*

तकनीक� सहायक

आजाद कमार भारतीु

अनराग कमार भारतीु ु

*

Page 4: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मनोरमा सा"ह# यमनोरमा सा"ह# यमनोरमा सा"ह# यमनोरमा सा"ह# य सेवा सेवा सेवा सेवा

आजाद द$प, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर

।म�+�!

दरभाषू -0731-4057553 च�लतवाता�-09753081066

Email- [email protected]

http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com

http://www.nandlalbharati.bolg.co.in

1-अजनवी

अजनवी तो नह$ पर हो गया हूं

वह$,ं जहा बस� त खो रहा है जीवन का ।

शहर क� तार$फ अ�धक भी कम लगती है

Page 5: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

3 य45क उंचा कद तो,इसी शहर का तो "दया है

दभा�7 यु नह$ तो और 3 या ?

जीवन 9नचोडकर जहां से

कछ खनकते �स3 केु पाता हूं,

जहां पद क� त9नक ना पहचान,

वहां घाव पर घाव पाता हं ।ू

यो7 यता तड.प उठती है

कद घायल हो जाता है वह$ ।

बढ$ ?े@ ठू ता का मान रखने वाले परखते है

अपनी तला पर और बना देते हैु

9नखरे कद को अजनवी ।

पद दौलत से बेदखल भले हूं

सकन से जी रहा हंू ू

शहर क� पहचान� क� छांव मA

यह$ मेरा सौभा7 य है ।

Page 6: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

अजनवी हो सकता हूं

लक�र खींचने वालA के �लये

पर ना यह शहर म �लये और ना मैA

इस शहर के �लये अजनवी। न� दलाल भारती

2222----इं� तइं� तइं� तइं� तजारजारजारजार

खाईय4 को देखकर घबराने लगा हूं

अपन4 क� भीड. म पराया हो गया हं ।A ू

दद� से दबा गंगा सा एहसास नह$ पाता हूं

आसमान छने क� तम� नाू पर,

पर कतरा पाता हं ।ु ू

पवा��ह4 का +हार जार$ हैू ,

भयभीत हं स"दय4 से इस जहां मू A

मेरा कल ह$ नह$ आज भी ठहर गया है,

रोके गये 9नम�ल पानी क� तरह

सच म घबरा गया ह वषधारा से ।C ू

Page 7: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

डबने के भय से बेचैनू ,

बढ$ � यू वD था के आईने म हा�शये पर पाता हं A ू।

बार बार "दल पकारता है ु

तोड. दो ऐसा आईना जो चेहरे को कGप ु"दखाता है

पर बार-बार हार जाता हूं,

हा�शये के आदमी के जीवन म जंग जो है ।A

हर हार के बाद उठ जाता हं ू ,

बढने लगता हं पHरवत�न क� राहू

3 य45क मानवीय समानता चाहता हूं

इसी�लये अI छे कल क� इ� तजार मA

आज ह$ खश हो जाता हं ।ु ू

न� दलाल भारती

3-यादA

ये म# यृ ुलोक है K यारे

Page 8: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

माट$ के ये पतले अमर नह$ हमारे ।ु

हमसे पीछे Mबछड ेहम भी Mबछडु ु . जायेगे

एक "दन सब पंचत# व म खो जायेगे ।A

याद ना Mबसर पायेगीA ,

अI छN या बर$ यह$ रह जायेगी ।ु

Mबछडने गम खाया करेगाु

"दल मौके-बेमौके Gलाया करेगा ।

जो यहां आये Mबछडते गयेु

सगे या पराये छोड. गये याद ।A

यहां कोई नह$ रहा है अमर

आद�मयत ना कभी मर$ ना पायेगगी मर ।

रहेगा नाम अमर और4 के काम आये,

छोड.ना है जहां नाम अमर कर जाये ।

जीया जो द$न-शोषत4 के �लये,

नेक नर से नारायण हो जायेगा,

मर कर भी अमर हो जायेगा ।

Page 9: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

न� दलाल भारती

4-फHरयाद

कर "दया फHरयाद मतलब भरे जहां मA

आदमी को आदमी समझकर,

दे "दया घाव मतलब के तराज पर तौलकर ।ू

दद� तो बहत है मतलबी द9नया म यार4ु ु A

जा9त-धम�,मतलब कर रहा चट अरमान हजार4

तभी तो पसीने म नहायाA ,

आंस म रोट$ गीला कर रहा कमजोर आदमीू A

दसर$ ओर अ�भमान क�ू �शखा पर बैठा

Page 10: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आदमी का खन चस रहा दबंग आदमी ।ू ू

घाव सहलाते हए अपना मानने क� लत मगरु ,

ना �मला सनने वाला पीते रह गये जहर ।ु

लो�भय4 को नह$ रहा फज� अब याद,

मतलब भरे जहां म A ,शोषत कहां करे फHरयाद ?

न� दलाल भारती

5-अ�भलाषा

अ�भलाषा का द$प जलाये

तमको ढढ रहा हंु ू ू हे बQ दु भगवान,

परमाथ� भल गया आज का इंसान ।ू

इंसा9नयत का चोला उतार चका हैु ,

छल-बल का अD R थाम चका है ।ु

जा9त-धम� के नाम सब कछ जल रहा है वैसेु ,

असाQ य रोगी िज� दगी के �लये तड.प रहा हो

जैसे ।

Page 11: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

भगवान बT दु ,महावीर,ईसा एक बार साथ लौट

आओ,

समता क� बझतीु U यो9त जला जाओ ।

न� दलाल भारती

6- िज� दगी

हे काल अब तो त ह$ गाल बजा देू ,

कब आयेगी बहार अदने क� िज� दगी म ।A

आज अपने बेगाने हो रहे है,

माया से HरV त-ेनाते जडु . रहे है ।

अरमान वं�चत-द$न के दफन हो रहे,

मर रहे सपने "दल पर घाव बन रहे ।

भा7 य दभा�7 यु म बदल रहाA ,

आदमी आदमी क� तकद$र कैद कर रहा ।

कर ब� द तर3 क� के राD ते आदमी ने आंस ू

"दये,

अपराध खद का तकद$र के माथे मढ "दये ।ु

Page 12: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

उW मीदो को �हण थकता जा रहा

"हD से आया पसीना नयन बरस रहा ।

हे काल त बता 3 याू से 3 या हो गया,

9नचोड. रहा हाड. सपना तबाह हो गया ।

कैसी खता कमेर$ द9नया का आदमी बहार से ु

Mबछडु . गया,

हे काल अब तो त ह$ बता देू ,

कब आयेगी बहार द$न-वं�चत क� िज� दगी म ।A

न� दलाल भारती

7-तपती रेत

+भ का अवतरण हआ कई बार जहांु ु ,

Xेष क� तपन बढ रह$ वहां ।

मकमल ख�शयां नह$ ु ु ,खैर कब थी,

5क अब होगी शोषत के जीवन मA,

तपती रेत का जीवन जी रहा द# काु रा,

उW मीद है सय� के उगने सेू

Page 13: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

होगा चमकेगा 5कD मत का तारा ।

धोखा रागXेष उ# पीड.न कब तक बनेगा,

तपती रेत का जीवन,

कब तक लटता रहेगा कलू ,

कब तक झरता रहेगा लट$ 5कD मू त का पेवन ।

उ# पीYड.त भी चाहता है ख�शयांु

कब तक जीयेगा तपती रेत का जीवन,

बीते कईय4 यग करते करते आंसओं का सेवन ु ू

अब तो सपने परे हो जाने दोू ,

तपती रेत के जीवन से उबर जाने दो ।

न� दलाल भारती

8888----U योU योU योU यो9त9त9त9त

नV वर जीवन म अंधकार पर वजय पायेA

शभ संकZ पु व3 त के भाल अमर हो जाये ।

जीवन पवR U यो9त से जग गमक जाये,

Page 14: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

त@ णाृ क� ना दरकार सदकम� आकार पाये ।

मन क� मैल धले आदमी को गले लगायेु ,

गंजे मRैी का संदेश मानवू -धम� हषा�ये ।

शRता के शोले ना मानवता सलगायेु ु ,

बहजन सखाय जीवन का उ[ु ु देV य बन जाये ।

करे +9त\ा मानव-कZ याण के काम आये,

जीवन U यो9त उपजे उिजयारा,

धरा से अं�धयारा �मट जाये ।

न� दलाल भारती

9-खदाईु

हे +भो तW हाु रे इंसान को 3 या हो गया,

संवेदना से बहत दर पहंच गया ।ु ुू

बहा रहा खन आदमी काू ,

कह रहा "ह� द ूतो कोई मसलमान का ।ु

झकझोर रहा आद�मयत नफरत बो रहा,

Page 15: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

व]ोह का ऐलान बेगनाह तडु .प रहा ।

अरे नफरत बोने वालो,

बराईय4 के ^खलाफ आरपार क� लडाु .ई,

हो जायेगा देश धरती का D वग�,

चमक उठेगी तW हाु र$ खदाई ।ु

न� दलाल भारती

10-फHरD ता

आदमी के Gप म फHरD त4A

3 य4 नह$ पहचान रहे खद कोु ,

3 य4 खन के आंस दे रहे द$न को ।ू ू

तW हाु रा तन वतन है खदा काु ,

3 य4 नह$ं Q यान नाम खदा का ।ु

3 य4 �मटा रहे खद के 9नशान आजु ,

संवार डालो िजनके Mबगड.◌े ह आज ।C

तम सदा मD कु ु राते रह जाओगे,

Page 16: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

खद को द$नु -द^खओं के बीच पाओगे ।ु

11-आस

वो "दन कब आयेगा जीवन मA

आद�मयत का द$वाना ^खल^खलायेगा ।

बस� त 5कतने आये गये,

द$वाने सI चे राह$ मरझाये रह गये ।ु

ब�गया म पतझडA . बारहमासी रहा,

बस� त जीवन म दर$ बनाये रहा ।A ू

बड.◌ी उW मीद से आस लगा बैठे है,

आएगा जGर गांठ बांध बैठे ह ।C

आस ना पHरहास बन जाये,

उQ दार क� +9त\ा यौवन पा जाये ।

अफसोस कछ लोग4 का 9छनना आता हैु ,

द$वाने को फज� पर मरना याद रह जाता है।

द$वाना उसल पर है प3 काू ,

Page 17: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

स[ कम� वट-ब` का आकार पायेगाृ ,

हर थाल म सजे रोट$ �सर हो छांवA ,

सच द$वाना तब ये ^खल^खलायेगा ।

न� दलाल भारती

12-वाणी

धम� क� वाणी आदमी क� दV मु न,

अशाि� त का करती बीजारोपण ,

धम�स"हत सोधेपन का एहसास,

सख शाि� तु के उपवन का रोपण ।

सच भाई मीठे वचन बेशीमती र# न समाना,

नर से बने नारायण कई

मीठN वाणी वंशीकरण के म� R समाना ।

धम� क� वाणी बने अटल, यह$ बनाये महान,

कथनी करनी म अ� तA र, अQ ू◌ारे जीवन का

म� तर,

धम� क� वाणी नर से नारायण का� म� तर ।

Page 18: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

न� दलाल भारती

13-दोष

अहंकार और aोध का वसज�न

उ� नत जीवन का 5कया है सजन ।ृ

जग माना aोध जीवन राख 5कया,

धोखा aोध का ब"ह@ कार महान बना "दया ।

लोभ क� 9तजोर$ जीवन म भरे अस� तोA ष,

माया का कोप माथे मढा रहा दोष ।

व3 त करवट बदला, द9नया क� �मट गयी दर$ु ू ,

खद बदलेु ,अहंकार$ बने रहने क� 3 या है

मजबर$ ू ?न� दलाल भारती

14-?Q दा

Page 19: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

दHर]नारायण क� सेवा म# यृ ुलोक अमर कर

देता,

स# संग का गमन जीवन म हर गण भर देता ।A ु

ईV वर का व� तन हर ब� द Xार खोल देता,

समभाव आदमी को देवता का मान दे देता ।

वषमता क� बयार से सखु -सW विृQ द थम जाती,

जग म बढता कलह "दल म वष भर जाती ।A A

मद म बेखबर आदमी भौ9तक सख खोज रहाA ु ,

साधन4 के सख क� अ�भलाषा दख भोग रहा ।ु ु

3 या खोये 3 या पाये करना है �च� तन,

भौ9तक सख साधन जग मे छट है जाताु ू

दHर]नारायण क� सेवा पन�ज� मु सधरु जाता ।

न� दलाल भारती

15-भावना

भावना है सI ची तो जीवन म जU बाA और जोश

मरते भावनाये हआ मदा� मानो खो गया होश ।ु ु

Page 20: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

# यागी � यि3 त जहां म सव�A -समथ� माना जाता,

तभी तो परमाथ� क� राह पग पग बढता जाता

नेक काम आगे देवता �सर है झकातेु ,

मद जैसी अकडु b . से बनते काम Mबगड. जाते ।

नcता का भाव आदमी को महान बनाता,

म�लन मन खद क� आ# माु का दV मु न बन

जाता ।

16-मैRी

अनरोध हमारा कछ है पाने क� चाहु ु

मैRी का थाम दामन `मा क� चलना राह ।

जग जाने कटता Mबखराव का कारण है बनताु

मान पर dरहार जीवन जंग को वफल है करता

मैRी का सदाचार जीवन म रंग है भरताA ,

जडु. जाये `मा तो आदमी आदश� है बनता ।

न� दलाल भारती

Page 21: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

17-परोपकार

3 य4 ना बांट देता �लया जो जहां से,

कछ नह$ ले जा पाओगे रह जायेगा जहां म ।ु A

साथ कछ जायेगा तो वह है नेक�ु ,ईमानदार$,

D वग� का सफर दौलत क� सीढ$ िजद तW हाु र$ ।

ना रौद4 ना रहो मदमD त कनक क� खनक,

ना करो उ# पीड.न ना डालो Hरसते घाव पर

नमक ।

ना Mबगाड.◌ो खद का कल बांटो 9नV छु ल K यार

देखो क@ णृ सदामा क� दोD तीु अमर सदाबहार ।

छोड गमान नेक� क� राह 3 य4ु न पकड. लेता,

Page 22: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

कर बराईयो का 9तरD काु र ,

परोपकार का दामन 3 य4 ना थाम लेता ।

न� दलाल भारती

18-गीत

समझो आंख के पानी का मोल,

खदा के +9त9न�धु ,मन क� गहराई से तोल ।

आस जो पोछा सI चाू इंसान है वो,

जगायी उW मीद देवता क� जबान है वो ।A ु

�मट जायेगे पीछे भी तो यह$ हआ ु ,

5कया काम कZ याण का वह$ खदा हआ ।ु ु

माया के हV नु म तरब# तA र कमजोर को सताया,

व3 त क� गत� म खोया जबान पर नाम ना A

आया ।

आदमी खदा का Gप जग का उिजयाराु ,

उठे हर हाथ �चराग �मट जाये अं�धयारा ।

ना तड.पे भव@ य ना रोये आंखे,

Page 23: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

�लख दो काल के गाल गीत अमर

जग वाले व3 त के आरपार गाएं ।

19-वV वास

पल दो पल का जीवन,पल दो पल का है साथ,

कौन है जाने 5कस मोड. पर छटू � जाये साथ ।

जमाना पराया व3 त 5कसी का ना हआ ु ,

कनक क� दमक आदमी बेगाना है हआ ।ु

वV वास डबोया दबंगु -दW भ क� झंकार,

उबरेगा वV वास से यह जो है संसार ।

कल भी हए थे हमले बार बारु ,

हो रहे आज भी पर है वV वास,

है वV वास हर हाल हारेगा +हार ।

नेककम� संग दआ जडु ु . जाये,

है वV वास आदमी देवता बन जाये । न� दलाल

भारती

20-परवाह

Page 24: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

बादल4 क� कोख म तम� नाA ओं का डेरा,

ना संवर रह$ तकद$र न "टक रहा बसेरा ।

खल$ आंख4 के सपने कम� क� कटार$ु ,

ना छंट रह$ मिV कु ले घाव हो रह$ दधार$ ।ु

3 या है 5कD मत बहक जाता अं�धयारे मA,

पसीने क� क�मत 3 या धंस जाता उिजयारे म ।A

W े◌ाहनकश पर ठोकरे भी करती है अe ठहास,

तकद$र कैद करने वाला कर लेता है पHरहास ।

भींगी पलक4 पर अब होती है वाह वाह,

ठगी तकद$र का जमाने को कहा है परवाह ।

न� दलाल भारती

21-झलक

हलक से 9नकल तZ ख D वर,

कर बरछN का घाव उड.◌ेलता जहर ।

द$न कGणा क� धार आंख4 का नीर,

भल गया आदमी एहसास परायी पीर ।ू

Page 25: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मन क� चंचल लहरे उठती बार-बार,

खो जाती ना हआ द$न का उQ दाु र ।

दW भ ने �लख "दया है खf ड खf ड बंट जाना,

जा9त-नD ल भेद का रौ] Gप ना बदला जमाना

मानव सब एक समान मानवता क� आन,

मानव-धम� क� झलक एकता के दत समान । ू

न� दलाल भारती

22-बाधा

5कया उW मीद िजसे उसी के खंजर ने "दल

चीरा,

लालसा उंची उड.◌ान अफसोस अपनो के बीच

�मल$ पीड.◌ा ।

ना �मल$ मराद भरे जहां मु A A उW मीदे जg मी पर

है टटा ू ,

5कसक� 5कससे कGं �शकायत अपन4 ने है लटा ू

Page 26: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

टट$ उW मीू द4 के तार जोड. जीवन का साज है

बजाना,

जमाना बने भले बाधा,नेक म� त� य क� ओर है

जाना । न� दलाल भारती

23-नाता

ये आवेश म बढने वालेA , 3 य4 ना देखा मडु .के

3 या गनाहु था रौद "दये िजसको,

तम तौल रहे थे दौलत क� तला परु ु

तW हाु र$ शान म उसका भी बहा है पसीनाA

न �मल$ दौलत उसे भले उसे,

वह तो आद�मयत का �सपाह$ है

आद�मयत क� कसम देकर तमनेु ,

उची सोहरत पायी है ।

छोड. देगे साथ ये िज� हे समझ रहे 9तनके,

Page 27: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

ढह जायेगा शान का 5कला तW हाु रा

�मला Gतबा िजसक� बदौलत, उसे रौद रहे हो,

अरे नीचे या पीछे मडु .कर देख �लया होता,

पल भर ठहर गया होता

दद� भरे "दल का हाल जान �लया होता,

अफसोस तW हेु मडु .कर कहां देखने क� आदत

रहे याद आंस देने वालेू ,

उचाई से िजस "दन �गरोगो

रोओगे 9नहार-9नहार 5फर 9तनको क� छांव

पाकर

मतलब को सब कछ समझने वालेु ,

याद रख HरV ता हमारा

सI चा आदमी है अगर तो आद�मयत को,

गले लगाना धम�� है तW हाु रा ���������न� दलाल

भारती

24-आंसू

Page 28: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

ना पीर परायी को समझा

ना आदमी को जाना

भल गया सब कछू ु

याद रह$ D वाथ� क� उमंग।

ये कैसी होड. है

चढ रहा �सर वैर$पन का रंग है ।

द$न क� चौखट दHर]ता का है आतंक,

अमीर क� तो दौलत दHरया,

दौलतम� द का जमाना

द$न के "दल पर कf डु ल$ मारे है

जGरत4 का आतंक।

उठ रह$ अरमान क� "हलोरे

मिV कु ल4 से दबा द$न बेचैन हो रहा

महल4 से उठ रहे ठहाके

हा�शये का आदमी आंस से कल सींच रहाू ।

न� दलाल भारती

Page 29: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

25-वलाप

D याह रात म V वाA न का वलाप,

डरावना हो जाता है,

�सयाHरन करने लगे वलाप तो

रात का अ�धयारा और

भयावह हो◌े जाता है ।

ये संकेत है मिV कु लो के

िजसे आदमी जानता और पहचानता है

खल$ आंखु , खले कान रg ताु है,

5कले क� नाकेब� द$ संग

पर$ साू वधानी बरतता है

ता5क हर सW भावत खतर4 से बचा रहे

शोषत द$न क� छाती पर मंग दलता रहे ।ू

नजर नह$ जाती उस ओर

हर रात D याA ह रहती है िजसक�

Page 30: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

चौखट पर मिV कु लA नाच करती है िजनक�

द$न-द^खय4 क� कौन सनता हैु ु ,

वे रोज मर-मर कर जीते है

खाते है गम आसं पीते है ।ू

D याह को हौशले से जीतते है

3 य45क पास उनके नह$ होता�

मिV कु ल4 से लड.ने का इं� तजाम

ना सनने वाला होता कोई वलापु ,

उनक� चौखट पर भख पसरे या अभावू

चाहे V वान चाहे �सयाHरन करे वलाप ।

न� दलाल भारती

26-सW ब� ध

सW ब� ध +V न �चि� हत हो गगया है,

hट प# थर4 के 5कले म रहने वाल4 के बीच ।A

भीड. म आदमी का नयन बरसता हैA ,

व3 त क� धार पर सब कछ चलता है ।ु

Page 31: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

3 या सW ब� ध है 5कसी से

5फर भी उW मीद है हर 5कसी से ।

मानवता म जीवन क� साथ�कता हैA

स[ +ेम स[ भावना क� मादकता है ।

जानकर अनजान बनते है,

कह$ं जा9त तो कह$ धम� के नाम पर,

आदमी को आदमी से अलग करते है।

वरो�धय4 के मGद$प म फंसा पछता हैA ू

3 या मानव जा9त और मानवता धम� नह$,

3 या इतना सW ब� ध काफ� नह$ है

आदमी को आदमी बने रहने के �लये ।

न� दलाल भारती

27-छाया

दखु-सख धपु ू -छांव क� अनभ9त समानु ू ,

एक सोन क� दजी लोहे क� जंजीर मान ।ू

दर रहे दख ना हो सख क� अ�भलाषाू ु ु ,

Page 32: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

हो धरा पर शाि� त क� अ�भलाशा ।

धोवे मन क� मैल फैलेगा उिजयारा,

सW प�ूण शाि� त भाव हो उ[ देV य हमारा ।

द9नया सI चेु स# य क� सI ची छाया,

मान लो K यारे अ�मट है पर"हत क� छाया।

न� दलाल भारती

28-तलाश

कवता क� तलाश म 5फरता हंA ू

खेत,ख�लहान,बरगाद क� छांव

पोखर,तालाब बढे कयू ु A,सW प� न

शहर,साधनवह$न गांव

सामािजक पतन,भय,भख बेरोजगार$ म झाकता ू A

हूं

मन क� दर$ आदमी क� मजबर$ म ताकता हंू ू A ू

खाक� और खाद$ म तलाशता हंA ू

दहेज क� जलन, अध�बदन,अ# याचार आतंक

Page 33: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

चZ हेू क� आग रोट$ क� गोलाई को मापता हूं,

मक पशओं के a� दू ु ु न आदमी के मद�न

उ◌ूचे पहाड. नीचे मैदान म उतरता हंA ू

बैलगाडी क� चाल जहाज क� रफतार� देखता हूं,

गांव के टेढे-मेढे राD ते पर चलता हूं,

शहर क� सीमेf ट-कारa�ट क� सड् .क4 म A

तलाशता हूं

कवता को हर कह$ तलाशता हूं

कह$ भी नह$ पाता हूं,

खद के अ� दु र गहराई म उतरात हंA ू

कवता को अनेको Gप म पाता हंA ू

सच यह$ तो है वह गहराई जहां से उपतजी है

कवता

आ# मा क� उ◌ू◌चंाई और "दल क� गहराई से ।

न� दलाल भारती

29-पहचान

Page 34: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

अj क� कj पर बैठा आदमी

आद�मयत का क# ल कर रहा है आज,

दखती नk जु को कk ज बg श रहा,

पसीजते घाव क� बन रहा है खाज

मन क� मजबत गांठे मतलब टओल रहाू

सकन से परे संदेह म जी रहाू A

बहकाने का जाम का बहाना था काफ�,

आज खद बहक रहा है आदमी ु

HरV ते को आंच दे रहा आदमी

जेहन म जहर बेपरदा हो रहा है आदमीA

छल का आद$ हो गया आदमी

जीवन मZ यू से Mबछडु . गय आदमी,

मानवता के राह$ को दंश दे रहा आदमी

होगा जहां रोशन,

मानवता को धम� मान ले आदमी । न� दलाल

भारती ।

Page 35: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

30-लक�र

खल$ आंखे सपने आते सनहरे K याु ु रे

वषाद क� आधंी उड.◌ा ले जाते सारे ।

कहां उW मीद थमे ,अपने पराये बनते

अवसर क� ता◌ाक अिD तन म सांप रखते ।A

भरे जहां म खो गया सकन उजडी उजासA ू ,

मोह का तफान घायल हो रह$ आस ।ू

आंख4 के नीर से मतलब सींचने लगे है लोग,

हक 9छन उ◌ू◌ंचे आसन क� आड. करते है

उपभोग ।

आहत मन चढे तराज हरदम दबंग क� शानू ,

ईमान पाये हलाहल ?म होता परेशान ।

बूढ$ � यवD था बढ$ हई श"दयां रौनक न आयीू ु ,

अटल लक�रे वषैल$ 3 या खब यौवन है पायी ।ू

फज� क� ओट सह रहा चोट वं�चत इंसान,

Page 36: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

�मटा दो भेद क� लक�र िजसे संवारा है इंसान A

। न� दलाल भारती

31-लk ज

मेरे लk ज ह$ मेर$ गहार हैु

और उपिD थ9त भी,

देना चाहते है दD तक पाषाण "दल4 पर

चाहते है मानवीय एकता का वादा भी ।

मेरे लk ज ह$ मेर$ पहचान है

मांगते है जो समानत का अ�धकार

मानवीय भेद भाव का करते है ब"ह@ कार

Mबखराव को स[ भाव म बदलने क� है ललक A

कद क� उ◌ूचाई का भी यह$ है रहD य ।

मानवता के काम आये महापGष4 केु ,

अमर है 9नशान,

उनके एक-एक लk ज जीवत है,

समानता,शाि� त और स[ भावना के लk ज

Page 37: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मझ ेभी देते है हौशलाु ,शि3 त सामl य� भी ।

तभी तो मानवीय भेद से लहलहानू ु ,

कर$9तय4 के # याु ग क� बात कर रहा हूं

वषमता के धरातल पर वष पीकर भी

समानता के लk ज जोड. रहा हं । न� दू लाल

भारती

32-बदलते व3 त मA

बदलते व3 त म खद क� तD वीA ु र टटती हई ू ुपाता हूं,

रहनमाओ क� भीडु . "दल पर दद� का बोझ पाता

हं ।ू

बहार भरे जहां म कांटो क� छांव पाता हंA ू,

हंसी के बीच आदमी को उखड.◌ा उखड.◌ा पाता

हं ।ू

3 या g वाब थे ,बदले व3 त म भी उजडA .◌ा पाता

हूं,

K यासा मन K यास के आगे सांझ पाता हं ।ू

Page 38: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

3 या उमस है बंजर "दलो क�

ळंसते घाव बहते आसं पाता हं ू ू ,

हवा भी कर रह$ ^खलाफत, बदला तेवर पाता हं ू।

नै9तकता अYडग अथाह पर जड. "हलती पाता हूं,

ना �मल$ समानता पग-पग पर द$वार पाता हं ू।

3 या कहं "दल क� बातू ,

शk द4 क� तपन से ह4ठ सलगता पाता हंु ू

ना बदला जमाना, हर ओर टटती तD वीू र पाता

हं । न� दू लाल भारती

33-पHरवत�न

nदय द$प मेरा पHरवत�न का आगाज है

द$प को लह दे रहा है उजा�ू

तन तपकर दे रहा है रोशनी

मन कर रहा सI चे वचारो का आo वाहन

Page 39: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मानवीय समानता के �लये ।

भख से कराू ह रहा समानता क�

K यास है आ�थ�क उ# थान क�

अ�भलाषा है कायनात के संग चलने क�

सफर म बडA .◌ी मिV कु ले है,

पग -पग पर बंटवारे के शल खडू .◌े है

हम तो पHरवत�न के �लये चल पड.◌े है

कर रहे है हवन जीवन के बस� त को

बस मानवीय समानता के �लये ।

बQ दु ने यह$ कहा है

बहजु न सखाय का म� Rु "दया है

जGर$ है मानवीय एकता के �लये

बराईयो पर हो गया काब िजस "दनु ू

धरती से �मट जायेगा,

शोषण,उ# पीड.न और वं�चत का दमन भी

आओ पHरवत�न क� मशाल

Page 40: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

nदय द$प से जलाये

मानवीय समानता के �लये । न� द लाल भारती

34-म� त� य

ना जाने लोग 3 य4

दबे हुए को दबाना चाहते है

नकाब तो ओढते है

चोट खतरनाक करते है

वह$ लोग # याग क� बात करते है ।

गांठ रखने वालो का कैसा भरोसा

ये तो म� त� य को तरासते है

गर$ब का शोषण शौक,

हक पर डाका अ�धकार समझते है ।

बं"दश4 क� तपन नह$ तो और 3 या कहे?

शोषत आज भी �ससक रहे

हर कोई उW मीद पर खरा चाहता है,

Page 41: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

कर दर5कनार �सस5कयां, दोहन चाहता है ।

दबे हए को दबाने का आतंक जार$ हैु ,

यह$ तो बदनसीबी है,

आंस म बह रह$ यो7 यू A ता सार$

3 या दबे को दबाना खदाई हैु

तफान का डर आद�मयत से जदाई हैू ु

अगर ?े@ ठ बनने क� लालसा है "दल मA

दबे कचल4 काु करे उQ दार सI चे मन से

�मल जायेगा ?े@ ठता का ग� त� य

मन म बसेगा जब गंगा सा म� तA � य ।

35-साथ

जीवन 3 या ? जो जी �लया वह$ अपना

लोग पराये द9नया पराई सच है कहना ।ु

जीवन म कैसेA -कैसे धोखे मोह ने लटूे,

मतलब बस संग डग भरते लोग� खोटे ।

Page 42: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मतलबी और4 को बबा�द कर शौक से जीते ,

आद�मय क� छाती म नD तA र घ4प देते है ।

आद�मयत के राह$ समता के �लये जीते है

भेद के पजार$ चोट गहरा कर देते ह ।ु C

गर$ब के भा7 य का ना हआ उदय �सताराु

गैर4 क� 3 या ? अपन4 ने हक है मारा ।

बदनेक� पर नेक� क� चादर डाल देते है

D वाथ� मA 3 या मरना?सब साथ हो लेते है ।

न� दलाल भारती

36-मौत

जमीन पर अवतHरत होते ह$

ब� द म"eु ठयां भी भींच जाती है,

Gदन के साथ गंज उठता है संगीतू

जमीन पर अवतHरत होते ह$ ।

आंख खलतेु ,होश मे आते,

मौत का डर बैठ जाता है

Page 43: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

वह भी ढ$ठ जट जाती है मकसद म ।ु A

जीवन भर रखती है डर मA,

D वपन म भी भय भार$ रहता हैA

हर मोढ पर बाये खड.◌ी रहती है

मौके क� तलाश म ।A

ढ$ठ पीछा करती है भागे भागे,

आदमी चाहता है 9नकलना आगे

भल जाता है पीछे लगी है मौतू

अ�भमान �सर होता है दौलत का

Gतबे क� आग म कमजोर कोA

भD म करने क� िजद भी ।

अ� ततः खुले हाथ समा जाता है मौत के मंह ु

मA

छोड. जाता है नफरत से सना खद का नाम ।ु

कछ लोग जीवनु -मरन के पार उतर जाते है

आदमी से देवता बन जाते है

Page 44: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

दHर]नारायण क� सेवा कर ।

मौत सI चाई है,अगर अमर है होना

ये जग वालो नेक� के बीज बोना । न� दलाल

भारती

37- आसमान

पीछे डर आगे वरान है◌ ै

वं�चत का कैद आसमान है

जातीय भेद द$वार4 म कैद होकरA

सच ये द$वारे जो खड.◌ी है

आद�मयत से बड.◌ी है ।

कमजोर आदमी RD त है

गले म आवाज फंस रह$ हैA

मेहनत और यो7 यता दफन हो रह$ है

वण�वाद का शोर मच रहा� है

ये कैसा कचa चल रहा ।ु

सािजश ेरच रहा आदमी

Page 45: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

फंसा रहे qम म दबा रहे A

दHर]ता और जातीय 9नW नता के दलदल

बना रहे ?े@ ठता का साcाU य,

अe ठहास करती रहे उ◌ू◌ंचता ।

जा9तवाद सािजश4 का खेल है

यहां आद�मयत फेल है,

जमींदार कोई साहकार बन गया है ू

शोषत शोषण का �शकार है

� यवD था म दमन क� छट हैA ू

कमजोर के हक क� लट हैू

कोई पजा का तो कोई ू ,

नफरत का पाR है

कोई पवR कोई अछत हैू

यह$ तो जा9तवाद का भत है ।ू

ये भत है जहां म जब तकू A

खैर नह$ शोषत4 क� ।

Page 46: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आजाद$ जो अभी दर हैू ,

अगर उसके Xार पहंचना हैु

पाना है छटकारा जीना हैु ,

सW मानजनक जीवन

बढना है तर3 क� क� राह

गाड.ना है आद�मयत क� पताका तो

तलाशना होगा और आसमान कोई ।न� दलाल

भारती

38383838----आदमी बदल रहा हैआदमी बदल रहा हैआदमी बदल रहा हैआदमी बदल रहा है

देखो आदमी बदल रहा है�

आज� खद को छल रहा हैु ,

अपन4 से बेगाना हो रहा है

मतलब को गले लगा रहा है

देखो आदमी बदल रहा है�����������������

और के सख से सलग रहा हैु ु

गैर के आंस पर हंस रहा हैू ,

Page 47: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आदमी आद�मयत से दर जा रहा हैू

देखो आदमी बदल रहा है�����������������

आदमी आदमी का नह$ हो रहा है

आदमी पैसे के पीछे भाग रहा है

HरV ते को रrद रहा है

देखो आदमी बदल रहा है�����������������

इंसान क� बD ती म भय पसर रहा हैA

नाक पर D वाथ� का सरज उग रहा हैू

मतलब बस छाती पर मंग दल रहा हैू

देखो आदमी बदल रहा है�����������������

खन का HरV ताू घायल हो गया है

आदमी� सािजश रच रहा है

आदमी मखौटा बदल रहा हैु

देखो आदमी बदल रहा है�����������������

दोप खद का समय के माथे मढ रहा हैु

मया�दा का सौदा कर रहा है

Page 48: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

D वाथ� क� छर$ तेज कर रहा हैु

देखो आदमी बदल रहा है�����������������न� दलाल

भारती

39& rqyk

नागफनी सर$खे उग आये है कांटे

दषत माहौल मू A

इI छाय मर रह$ है 9नतA

चभन से दखने लगा है रोम रोम।ु ु

दद� आदमी का "दया हआ हैु

चभन क� यु ु वD थाओ क�

Hरसता जg म बन गया है

अब भीतर ह$ भीतर ।

हक�कत जीने नह$ देती

सपन4 क� उडान म जी रहा हंA ू

उW मीद का +सन ^खल जायेू

कह$ं अपने ह$ भीतर से ।

Page 49: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

डबती हई नांव म सवार होकर भीू ु A

वV वास है हादसे से उबर जाने का

उW मीद टटेगी नह$ू

3 य45क मन म वV वाA स है

फौलाद सा�������

टट जायेगे आडW बू र सारे

^खल^खला उठेगी कायनात

नह$ चभेगे नागफनी सर$खे कांटेु

नह$ं कराहेगे रोम रोम

जब होगा अंधेरे से लडने का सामl य�

पद और दौलत क� तला परु ,

भले ह$ द9नया कहे � यु थ���������� न� दलाल

भारती

Page 50: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

40404040----तD वीतD वीतD वीतD वीरररर

ये कैसी तD वीर उभर रह$ है,

आंख4 का सकनू ,

"दल का चैन 9छन रह$ है ।

अW बर घायल हो रहा है ,

अव9न �ससक रह$ है ।

ये कैसी तD वीर उभर रह$ है���������������

चहंओर तर3 क�ु क� दौड है,

भ@ sाचार,महंगाई �मलावट का दौर है ।

पानी बोतल म कैद हो रहा हैA ,

जनता तकल$फ4 का बोझ ढो रह$ है।

ये कैसी तD वीर उभर रह$ है�����������

बदले हालात मA,

Page 51: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

सांस लेना मिV कु ल हो रहा है ,

जहर$ला वातावरण बवf डर उठ रहा है।

जंगल और जीव तD वीर म जी रहे हैA ,

hट प# थर4 के जंगल क� बाढ आ रह$ है ।

ये कैसी तD वीर उभर रह$ है�����������

आवाम शराफत क� चादर ,

ओढ सो रहा है।

समाज, भेदभाव और गर$बी का,

अ�भशाप ढो रहा है ।

एकता के वरोधी,

खंजर पर धार दे रहे है,

कह$ जा9त कह$ धम� क� तती बोल रह$ है।ू

ये कैसी तD वीर उभर रह$ है�����������

न� दलाल भारती

41414141---- वषबीज वषबीज वषबीज वषबीज

Page 52: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

चa� यूह म फंसाA ,सोचता हूं

आ^खरकार वह कौन सी यो7 यता है

मझमु A नह$ है जो,

उ◌ू◌ंची उ◌ू◌ंची Yड��यां है मेरे पास,

सW मान पR4 क� सवास भीु � तो हC

अयो7 य हं 5फर भीू ,� 3 यूं��������� ?

शायद अथ� क� तला पर � यु थ� हूं

नह$ं नह$�ं�����

पद क� दौलत मेरे पास नह$ं है

बडी दौलत तो है , कद क�

सार$ दौलत उसके सामने छोट$ हC

5फर भी अिD त# व पर हमला,जZ मु शोषण,

अपमान का जहर,भेद क� Mबसात�������������

ये कैसे लोग है ? भेद के बीज बोते हC,

बडा होने का दW भ भरते हC

Page 53: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

अयो7 य होकर� कमजोर क� यो7 यता को नकारते

हC

आदमी को छोटा मानकर द# काु रत◌ेे है

�सफ� ज� म के आधार पर

कम� का कोई D वा�भमान नह$�ं����������

ये कैसा दW भ है� बडा होने◌े का ?

पैमाइस म छोटा हो जाता हैA ,

उ◌ू◌ंचा कम� उ◌ू◌ंचा कद और मान सW मान

भी��������

कोई तर$का है,

वषबीज को न@ ट करने का आपके पास

य"द हां तो ?ीमान ्जी अवV य अपनायA

गर$ब,वं�चत उI चकम� और कदवान को,

कभी न सताने क� कसम खाये ।

सI ची मानवता है यह$

और

Page 54: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आदमी का फज� भी������������������ न� दलाल

भारती

42424242---- सW भासW भासW भासW भावना के फल वना के फल वना के फल वना के फल ूूूू

जg म पर जg म अपने ह$ जहां मA,

साथ चलने� वाला ना �मला ।

रोट$ का ब� दोबD त

�सर क� छांव का इ� तजाम पसीने के भरोसे,

वभािजत जहां म सW माA न ना �मला ।

सव�ससमानता के नारे कान तो गदगदाते ु ु ,

जg म के अलावा कछ न �मला ।ु

qमबस माना तकद$र के ^खल गये फलू

हक�कत म टटा हआ आईना �मला ।A ू ु

घाव और गहरा हो गया,

जब आदमी के चेहरे पर,

मखौटा ह$ मखौटा �मला ।ु ु

कथनी और करनी को खंगला� जब

Page 55: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आद�मयत का लहलहानू ु चेहरा �मला ।

आंखे◌ा म सपनेA ,"दल घायल मगर

अपन4 क� मह5फल म मीठा जहर �मला ।A

बडी म� नते थी चख आजाद$ का D वाA द असल$

Mबखर गयी उW मींदे,

मानवीय एकता को ना अवसर �मला ।

छायेगी समता चौखट चौखट होगी सW प� नता

सW भावना का है भारती फल ू

^खला�������������न� दलाल भारती

43- मखौटा ु

बेकसर चोट खाये◌े है बहत राह चलते चलते ।ू ु

बेगाने जहां मे◌े◌ ंजीते रहे मरते मरते

जहर पीये भेद भर$ द9नया म गम से दबे डबे ु ूA

रहे

आतंक अपन4 अमानवीय दरार4 क� धप छलते ू

रहे

Page 56: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आदमी Xारा खींची लक�र4 पर मरते रहे

ना �मल$ छांव रह गये दW भ म भA टकते

भटकते

बेकसर चोट खाये◌े है राह चलते ू

चलते��������������������

उW मीद क� जमीं पर वV वास क� बनी है परतA

वरोध क� बयार म भी "दन गजरते रहे A ु

D याह रात से बेखबर उजास ढढते रहेू

घाव के बोझ फंक फंक कदम रखते रहेू ू

Mबछड गये कई लक�र पर फक�र रहते रहतेु

बेकसूर चोट खाये◌े है बहत राह चलते ुचलते���������������������������

"दल म जवां मौसमी बहारे गजर रह$ यक�न A ु

पर रातA

ना जाने कौन से न`R व3 त ने फैलायी थी

बाहA

कोरा मन था जो, बेबस है� अब भरने को आहA

Page 57: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आदमी क� भीड म थक रहे अपना ढढते ढढतेA ू ू

बेकसर चोट खाये◌े हैू बहत राह चलते ुचलते����������������������������

नह$ अI छा बंटवारा धम� के नाम पर, जZ मु

रो5कये

खदा के ब� देु है सI चे, छोटे हो या बड ेब� दे को

गले लगाइये◌े

समता शाि� त के नाम मखौटे को न4च द$िजयेु

कारवां गजर गया ना �मला सकन लक�र पीटते ु ूपीटते◌ े

बेकसर ू चोट खाये◌े है बहत राह चलते ुचलते������������������������������न� दलाल भारती

44444444---- अिD तअिD तअिD तअिD त# व# व# व# व

�च� ता क� �चता पर सलगते हएु ु

अिD त# व संवारने म जट गया हंA ु ू,

बाधाय भी 9न�म�त कर द$ जाती हैA ,

Page 58: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

थकने लगा हं बार बार के +हार सेू

म डरता नह$ हार से 3 य4C 5क,

बनी रहती है सW भावनाय जीत क� ।A

अ� त�मन म उपजे स[A वचार4 मA

अिD त# व तलाशने लगा हूं,

मेर$ दौलत क� गठर$ मA� है,

कल$नताु ,कत�� य,9न@ ठा,आद�मयत

बहजन सखाय के U वु ु ल� त वचार ।

जानता हं पीछे मडकर देखता हंू ूु

वV वास प3 का हो जाता है 5क,

म C भी D थायी नह$ पर� तु D वाथt नह$ हं ।ू

म दौलत संचय के �लये नह$C ,

अिD त# व के �लये सघंष�रत ् हं ।ू

टटा नह$ है मेरा वV वाू स हादस4 से

9नखर$ नह$ है मेर$ आस जानता हूं

सW भावनाओं के पर नह$ टटे हू C

Page 59: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

भले ह$ दौलत क� तला पर 9नब�ल हं ।ु ू

कलम का �सपाह$ हूं,

Mबखर$ आस को जोडने म लगा हंA ू

�च� ता क� �चता पर सलगते हए भीु ु

कलम पर धार दे रहा हं ।ू

अभी तक� टटा नह$ हं मै।ू ू

"दल क�◌े गहराई मA� पड.◌े ह C

U वल� त स[ वचार4 के U वालामखी जोु ,

अिD त# व को िज� दा रखने के �लये काफ� ह C

������न� दलाल भारती

45454545---- 9नशान 9नशान 9नशान 9नशान

चाहता हं स[ू भाववना क� उजल$ तD वीर बना दं ू

जमाना मडु . मडु.कर देखे और इतरायA

को�शश और मेहनत भी करता हं "दन रातू

पर ये 3 या तD वीर उभर नह$ पाती

रंग धर नह$ं पाती है परछाईय4 के घाव से ।

Page 60: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

म भयभीत रहने लगा हंC ू

सपने टटने उW मीू दA� Mबखरने लगी है

?म के गारे क� द$वार ढहने लगी है,

आंसओं के रंग को परछाईय4 का कहरा ढंकने ू ुलगा है

सW भावना पर कब तक जी पाउ◌◌ंूगा

सोच सोच कर आतं5कत रहने लगा हं ।ू

संवेदना श� यू बना "दया ह लोग4 कोC

मानवीय HरV ते म दरार डाल "दया हैA

आज भी परछाईयां सवंर रह$ हC

चैन से जीने भी नह$ देती ह ये परछाईयां ।C

Mबखर गया है भव@ य और सपने भी

यो7 यता हारने लगी ह परछाईय4 के आगेC ,

वषबाण सर$खे बेधने लगी ह C

भव@ य को सW भावनाओं म ढढ रहा हंA ू ू

चौपट तो हो गये है सपने मेरे

Page 61: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

पर डर भी अभी बाक� है

कह$ं परछाhय4� के आतंक से ,

9नशान ना �मट जाये ,

पसीने और आंसओं के मेरे◌ेू ����������

46464646---- अ�धकारअ�धकारअ�धकारअ�धकार

उठो वं�चत,शोषत मजदर4ू ,

कब तक जीवन का सार गंवाओगे

कब तक ढोआगे Hरसते जg म का बोझ

कब तक � यथ� आंस बहाओगेू

तम तो अब जान गये होु

सपने मार "दये गये है तW हाु रे सािजश रचकर

तW हाु रे पसीने ने सW भावनाओं को सींचे रखा है

ललचायी आंख4 से राह ताकना छोड. दो

अब तो तनकर अ�धकार क� मांग कर दो◌े����

ब� द नह$ खल$ आंख4 से देखो सपने ु

Page 62: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

कब तक ब� द 5कये रहोगे आंखे भय से

ब� द आख4 के टट जाते है सपनेू ,

तम यह भी जानते होु

ब� द आंख4 का टट जाता है◌ा सपनाू

याद है आं�धय4 से "टकोरे का �गरना

शोषत हो अब सबल कर दो मांग +बल

सब खोया वापस तम पा सकते होु

अब तो तनकर अ�धकार क� मांग कर दो◌े����

बेदखल हए तो 3 याु है तो अपना

मांग पर अटल हो जाओ देखो रोकता है राह

कौन ?

अ�धकार क� जंग म शह$द हए तोA ु

अमर हए अपन4 के काम आयेु

बहत पीु ये गम,सW मान का मौका मत गंवाओ

अब तो तनकर अ�धकार क� मांग कर दो◌े����

Page 63: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

गजरे दख के "दन पर शोक मनाने से 3 याु ु

होगा ?

भय भख म जीने वालोू A , कर दो � यौछावर

जीवन को

व3 त आ गया "हसाब मांगने

सW मान से जीने का अ�धकार मत मरने दो

अब तो तनकर अ�धकार क� मांग कर दो◌े����

गम के आंस म जीयेू A ,

अन�गनत बार चZ हेू से नह$ Gठा धंआु

अ# याचार क� उc बढाने वाल4

दद� का जहर पीने वाल4

हर पल चौखट पर तW हाु र$ गरजता पतझड.

उ# पीड.न,जZ मु ,शोषण के वरान म तपने वाल4A

अब तो तनकर अ�धकार क� मांग कर दो◌े����

लटा गया हक तW हाू ु रा जानता जहान सारा

5फजां म हक क� गंध अभी बाक� हैA

Page 64: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

अ# याचार क� तफान4 ने 5कया तW हाू ु रा मद�न

अ# याचार शोषण के दलदल से बाहर आओ

लटा हआ हक वापस लेने क� "हW मू ु त कर लो

बदले व3 त म समानता का नारा बल� दA ु कर दो

अब तो तनकर अ�धकार क� मांग कर दो◌े����

नफरत का बीज बोने वाल4 ने,

दद� के �सवाय और 3 या "दया है ?

अंगठा काटनेू ,धल झ4कने के �सवाय 5कया 3 याू

है ?

चेतो खल$ आंख से सपने देखोु

बहत ढोया अ# याु चार का बोझ

संवधान क� छांव उपर उठ जाओ

वषमता का कर बि@ हकार,मानवीय समानता

का हक ले लो

अब तो तनकर अ�धकार क� मांग कर

दो◌े����न� दलाल भारती

Page 65: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

47474747---- द$वार को ढहा दोद$वार को ढहा दोद$वार को ढहा दोद$वार को ढहा दो

D ू◌ाना सना अंगना उदास है ख�लहानू ,

K यासी K यासी 9नगाहA,करे वषपान

राह म Mबछे कांटेA , उखड.◌ा उखड.◌ा D वा�भमान

कल से उW मीदA

आज हर द$वार ढहा दोA �������������

तर3 क� से पड.◌ा दर है आदमीू , तम भी हो ु

आदमी को मान दो

Hरसते जg म का भार उतार दो◌े

उजड.◌े हए कल को आज संवार दु A�������������

माट$ क� काया माट$ म �मल जायेगीA

आज आसमान पर कल जमीं पर आना है

होगे वदा होओगे जहां से बहत याद आओगेु

ब� द हाथ आये खले हाथ जाना हैु

थम गया जो उसे ग9तमान कर दो

Page 66: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आदमी हो द$न वं�चत को उबार दो��������

िज� दगी बस पानी का है बलबलाु ु

पल म जीवन पल म मरनA A

कभी "दन तो कभी डरावनी रात है

त9नक छांव तो दसरे पल �चल�चलाती धप हैू ू

ढो रहा बोझ जो मिV कु ल4 का, बोझ उतार दो

आदमी को बराबर$ का अ�धकार दो������������

बराईय4 के दलदल फंसे आदमी क� सांसु है

उखड. रह$,

उखड.ती सांस को K यार क� बयार दो

जडु. सके तर3 क� क� राह,अवसर क� बहार दो

संवर जाये द$न वं�चत का कल आज तो दलार ु

दो�������������

बवf डर4 के चa� यूह म हआ कंगालA ु

सW मान से हाथ धोया ,

जg म पर लगा भेदभाव का �मच� लाल

Page 67: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

टटे पतवार से जीवन नइयाू खे रहे ,

आदमी के हाथ मजबत कटार दोू

छोड.कर ?े@ ठता का D वांग आदमी को गले

लगा लो

आदमी हो आद�मयत क� आरती उतार लो

नीर से भरे नेR क� बाढ. थम जायेगी

आदमी क� घोर D याह रात कट जायेगी

पीयेगा आंसू,कब तक कायम रहेगा अंगने का

सनापनू

मजदर वं�चत को सभंलने का हरू औजार दो

आद�मयत क� कसम उठो

पीYड.त वं�चत को भरपर K याू र दो

वहस उठेगा कोना कोना

वकास क� बयार Xार जब पहंच जायेगीु

धनधा� य हो उठेगा उसका अंगना

वं�चत भलकर सारे दखड झम उठेगाू ु ूA

Page 68: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आदमी क� पीर को समझो K यारे

उ◌ू◌ंच-नीच अमीर-गर$ब क� द$वार को ढहा दो

उठो आदमी हो,आदमी क� ओर हाथ बढा

दो����������न� दलाल भारती

48484848----�शनाg त�शनाg त�शनाg त�शनाg त

�शनाg त कर ल$ है मनेC , का9तल4 क�,

वह$ है वे जो चाहते है,

दर रहं ू ू ,आंख उठाकर भी न देखू

मेर$ आंखे◌ा◌ं क� बाढ और टटते हए सपनेू ु ,

अI छे लगते है उनको ।

धन का प3 काु हं म भीू C

बदले का भाव मेरे मन मA नह$ है,

ना 5कसी तरह का कोई बैर भी ।

9नखर$ छाप छोड.ना चाहता हूं

का9तल4 के हमले थम नह$ रहे हC

चाहते ह कैद$ बना रहं ।C ू

Page 69: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

वकास क� दौड. म बहत पीछे छट गया हंA ु ूू

का9तल है 5क पीछे ह$ खींचने म जटे हैA ु ,

म आगे जाना चाहता हंC ू

श"दय4 क� खींचातानी म पर उखडA गये हC

तर3 क� से वं�चत हो गया हं ।ू

खींचातानी म पांव नह$ जमा पा रहा हंA ू

धैय� मजबत होता जा रहा हैू

वकास क� बयार चौखट तक नह$ पहंच रह$ हैु

कछ लोग धम�ु -जा9त का जहर बो रहे है ।

सच यह$ वकास के दV मु न है,

समाज को Mबखिf डत करने के बहाने है,

नफरत के तराने है

उ�वाद के पोषक है,वं�चत4 के शोषक है ।

�शनाg त तो हो गयी है का9तल4 क�

खद को खंगाल लेु ,मानवता का दामन थाम ले,

कर दे का9तल4 को अपने से बहत दरु ू

Page 70: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

3 य45क ये का9तल वकास म बाधक हैA

और कायनात के दV मु न भी ����������न� दलाल

भारती

49494949----नयन बरस पडेनयन बरस पडेनयन बरस पडेनयन बरस पड.े...������������������������

नयनो क� याचना से नयन बरस पड.े

Mबगड.◌ी तकद$र देख भrहे तन उठN

दद�नाक पल हर माथे मसीबत4 का बोझु

वं�चत4 क� बD ती म जg मA क� टोह

चहंओर धआंधआं द$नता के पांवु ु ु � जम A

नयनो क� याचना से नयन बरस पड.े�����������

अपवR बD ती के कय का पानीु A

जg म Hरस रह$ आज भी परानीु

लक�रो का जाल वं�चत जी रहा बेहाल

गलामी के दलदल भख दे रह$ तालु ू

आजाद देश म वं�चत पराने हाल पर खडेA ु .

नयनो क� याचना से नयन बरस पड.े�����������

Page 71: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आजाद हवा वं�चत4 का नह$ हआ उQ दाु र

Gढ.◌ीवाद$ समाज ठकराया जाना संसारु

9छन गया मान 5कD मत पर बैठा नाग

बेदखल जड. से दोषी बना है भा7 य

आज भी अरमान के� पर है उखड.◌ े

नयनो क� याचना से नयन बरस पड.े�����������

भेद,भख बीमार$ से जा रहे नभ के पारू

छोड. वाHरस के �सर कज� का भार

?े@ ठ बनाये दर$◌े वं�चत के जनाजे से भरपरू ू

मानवता तड.पे देख आदमी क� ?े@ ठता का

कसरू

वं�चत4 क� बD ती म◌ं द$नता और 9नW नA ता के

खंट है गडू .◌ े

नयनो क� याचना से नयन बरस पड.े�����������

Gढ.◌ीवाद$ समाज ?े@ ठता क� पीटे नगाड.◌ा

?े@ ठ छोटा मान वं�चत को हरदम है दहाड.◌ा

Page 72: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

अथ� क� तला पर � यु थ� शोषत समानता न

पाया

कहने को आजाद$ आंस पीयाू , गम है खाया

तर3 क� और समानता के आकंडे. कागजो म भरे A

पड.◌ े

नयनो क� याचना से नयन बरस पड.े�����������

बD ती म कब आयेगी शोषत बांट जोह रहाA

पेट क� भख खा9तर हाडू . 9नचोड. रहा

समाज और सता के पहरेदार4 सन लो पकारु ु

वं�चत करे सामािजक समानता क� गहारु

आaे◌ाश बने बवf डर उससे पहले समानता का

ले झf डा 9नकल पडे.

नयनो क� याचना से नयन बरस

पड.े�����������न� दलाल भारती

50505050---- ?मवीर ?मवीर ?मवीर ?मवीर

अपनी ह$ जहां म घाव डसं रह$ परानीA ु

शोषत सं◌ं◌ं◌ंग द# काु र भरपर हई मनमानीू ु

Page 73: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

लपट4 क� नह$ Gक� है शैतानी

शोषत भी खंटा गाडू . खड.◌ा हो जायेगा ।

ढह जायगी द$वारे Gक जायेगी मनमानी

9तल9तल जलता जैसे तवा पर पानी

अंगार4 मे जलता,कंचन हो गया है राख

हाड.फोड. 9नत 9नत पेट क� बझाता आगु

रोट$ और जGरते नह$ वह चाहे सW मान

जीवन म झरता पतझर 9नर� तA र उसके

बढे अW बू र को ताकता कहता बV खो पानी

मेरे अंगना अब कब बस� त आएगा ।

शोषत जग को ग9त देता

वं�चत क� ग9त को वषमतावाद$ करता बा�धत

खेत ख�लहान या कोई हो 9नमा�ण का काम

पसीने के गारे पर थमता शोषत के

Xार दहाड.ता मातमी गीत हरदम

Page 74: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

भखू,अ�श`ा,भेदभाव क� बीमार$ बेरोजगार$ और

भ�मह$नता ू

ढकेलती रहती दलदल म सदाA

मसीबतो का बोझु ढोता,तथाक�थत ?े@ ठ समाज

को खशी देताु

ना �च� ता उसक� ना कोई स�ध है लेताु

?े@ ठता का दम भरने वाल4 हाथ बढाओ

शोषत क� चौखट सावन आ जायेगा ।

ऋतओ क� तकद$र संवारताु ,खद जीता वरान4 ु

मA

"दल पर वं�चत के घाव होता 9नत हरा

नई घाव से नह$ं घबराता

3 य45क चe टान उसके सीने को कहते हC

थाम �लया समता क� मशाल डंटकर तो शोषक

घबरा जायेगा ।

शोषत द�लत� ?मवीर उसके कंधे पर द9नया ु

का भार

Page 75: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

तकद$र म �लख "दया आदमी अं�धयारे का A

आतंक

थम गये हाथ अगर तो ह4ठ पर नाचेगी D याह

समानता के Xार खोलो,ना दो शेषत?मवीर को

कराह

�मटा दो लक�र वरना व3 तA �ध3 कारता जायेगा

।न� दलाल भारती�

51- मशाल

समता का पथ ना हो वरान कभी

मानव है सI चे समता क� राह चल सभी

वषमता क� कj पर समता के पांव बढे

9नर� तर

ना Gके कभी इस�लये 5क मसीहा थक गये कई

जहां वे Gके वह$ं से तम चलोु �����������

"दल पर चोट है शीश पर आसमान

जा9तभेद क� राह म समता क� छांवA

चल रहा रात"दन जा9तभेद का षणय� R

Page 76: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मौन धरती पर समता का रंग पोत दो

कराह रहे दद� से जो उ� हे साथ ले लो��������

ना ताको पीछे, वहां भयावह 9नशान है

समता क� राह 9नत जा चलता

कब �मलेगी बराबर$ नह$ं थाह

आ^खर$ सांस तक चलते रह A

थमती है सांस तो थमने दो,

वषमता क� गोद ना मन बहलाओ

मD कु राओगे मौन धरती पर एक "दन

3 य45क समता क� राह थे चले

जीवन प@ पु झरे उससे पहले और प@ पु ^खलने

का अवसर दो

तमने जो जहर पीया आने वाले◌ा तक मत ु

पहंचने दोु

कम�वीर vरमवीर,शरवीर समता ू क� राह बढे◌े

चलो������������

ना 5कया समता D वर उ◌ु◌ंचा तो

Page 77: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

रह जायेगी कराहती शोषत4 क� बD ती

समता का प@ K पु नह$ ^खला तो

वषमता का� झलकता रहेगा जाम

संवधान से सW भावना है

समता क� राह सI ची स[ भावना है

भेद का पशाच अ�धकार4 को न डंसे

थामकर हक क� लाठN 9नकल पड.◌ो

आदमी हो आदमी का हक तो मांग लो���������

समता का नह$ �मला मान तो

वं�चत का जीवन रह जाएगा V मशान

मरकर जीना आद�मयत का है अपमान

D वा�भमान से जीना है ,"दन Mबत ेया बरस ढले

समता क� राह पर बढे चलो����������

छल कर 5कसी यग आदमी अं�धयारा "दयाु

संघष�रत ् जल रहा जीवन का द$या

कांट4 क� न4क पग पग पर जला

Page 78: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

इंसा9नयत का दV मु न पल पल छला

वं�चत का रो रोकर ह$या जहर पीया

ना पीओ भेद का जहर ना पीने दो

हे समता के प�थक बढे चलो����������

जाग चका है जU बाु D वा�भमान से जीने का

अं�धयारे के आगे उिजयारा हारेगा नह$

आंधी कोई स[ भावना को रौद नह$ पायेगी

समता का प�थक धwतारा क� तरह चमकेगाु

चले थे बQ दु समता क� राह तम भी चलोु

जले थे अW बेडकर द$ये क� तरह

मानवता का उ◌ु◌ंचा रहे भाल तम भी जलोु

समता क� राह न हो वरान

व3 त है पकारताु , तम भी चलोु �����������

भेद क� तफान 9नत कर रहा अ# याू चार

तड.प रहा आदमी समता क� K यास से

जा9तपां9त का बवf डर थम जाये

Page 79: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

जZ मु झेल रहा आदमी वहस जाये

समता क� जंग को मत Gकने दो

जलती रहे समता क� मशाल

लगे थका थम रहा कोई �सपाह$,

समता क� मशाल थाम बढे चलो���न� दलाल

भारती

52525252----"दल से बाहर करके तो देखो"दल से बाहर करके तो देखो"दल से बाहर करके तो देखो"दल से बाहर करके तो देखो

जातीय नफरत का बाGद ना सलगाओु

समता का गंगाजल अब Xार-Xार पहचाओु

जा9तभेद शीतयQ दु है,इस यQ दु को अबब� द

करो

जा9तभेद तोड.◌ो मानवता को D वछ� द करो ।

ना डंसे भेद समभाव क� बयार बह जाने दो

नफरत नह$ D नेह का D पश� दे दो

भारतभ�म ना बने जा9तभेद क� मरघट अबू

ते◌ाड. बंधन सारे समता का द$या जला दो ।

Page 80: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

धरती स[ भाव से होगी पावन

शाि� त भेद से नह$ं एकता म बरसता हैA

आदमी जा9त से नह$ कम� से ?े@ ठ बनता हC

उ◌ू◌ंचनीच से नह$ स[ भाव से स[ K यार फेलता

है ।

जा9त के नाम पर ना अ# याचार करो अब

आगे बढ शोषत वं�चत को गले लगाओ

पतवार समता क� बन बQ दु क� राह हो जाओ

दंश ढो रहे जो उ� हे समता का अमत चखाओ ृ।

िजसके nदय म मानवता बसी हैA

वह$ जातीय भेदभाव को �ध3 कारता है

िजसके सीने म दद� है वं�चत के +9तA

तोड.बाधाये सार$ वं�चत से हाथ �मलाता है ।

घाव है शोषत के nदय पर वकराल

वह समानता क� छांव म हर दद� भल सकता हैA ू

Page 81: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

कम� और फज� पर �मटने वाला उ# पीड.न झले

रहा

Hरसते जg म4 का एहसास उQ दार का सकता है

जा9तपां9त का 5कला मजबत अब तोडू .ना होगा

वषमता जब समता का Gप धर लेगा

जातीयभेद का अं�धयारा ख# म हो जायेगा

भारतभ�म पर समता का द$प जल जाू येगा ।

हाथ जोड.कर बार बार कहता हूं

जहां गरजे भेद वहां D नेह लटाओ ु

जब जब हो भेद का वार तम पर फल चढाओु ू

बोये भेद के बीज जो स[ भाव सीखाओ ।

नफरत से सखशाि� तु नह$ आ सकती धरा पर

जा9तभेद का सI चे मन से # याग करके देखो

आदमी हए देव कई बहजन"हताय क� राह ु ुचलकर

सच मानो वषमता हारेगी वजय होगी तW हाु र$

Page 82: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

जा9तपां9त को "दल से बाहर करके तो देखो।

न� दलाल भारती

53535353----एक बरस औरएक बरस औरएक बरस औरएक बरस और

मां क� गोद पता के कंध4

गांव क� मांट$ और टेढ$मेढ.◌ी पगडf डी से

होकर

उतर पड.◌ा कम�भ�म म सपन4 क� बारात ू A

लेकर ।

जीवन जंग के Hरसते घाव है सबतू

भावनाओं पर वार घाव �मल रहे बहतु

सW भावनाओं के रथ पर दद� से कराहता भर

रहा उड.◌ान, ।

उW मीद4 को �मल$ ढाठN Mबखरे◌े सपने

ले5कन सW भावनाओं म जीवत है पहचानA

नये जg म से� "दल बहलाता पराने के Hरस रहे ु

9नशान ।

जा9तवाद धम�वाद उ� माद क� धार,

Page 83: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

वनाश क� लक�र खींच रह$ है

लक�र4 पर चलना क"ठन हो गया है

उखड.◌ेपांव बंटवारे क� लक�र4 पर,

स[ भावना क� तD वीर बना रहा हं ।ू

लक�र4 के आxरोश म िज� दA �गयां हई तबाह ु

कईय4 का आज उजड. गया कल बबा�द हो गया

ना भभके U वाला ना बह आंसA ू

सW भावना म स[A भावना के शk द बो रहा हं ।ू

अ�भशापत बंटवारे का दद� पी रहा

जा9तवाद धम�वाद क� धधकती ल मू A

Mबत रहा जीवन का "दन हर नये साल पर ,

एक साल का और बढा हो जाता हंू ू

अं�धयारे म सW भाA वना का द$प जलाये

बो रहा हं स[ू भावना के बीज ।

सW भावना है दद� क� खाद और आंस से सीच ू A

बीज

Page 84: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

वराट वृ̀ बनेगे एक "दन

प3 क� सW भावना है व`4 पर लगेगेृ

समानता सदाचार साम� जD य और आद�मयत

के फल

ख# म हो जायेगा धरा से भेद और नफरत ।

स[ भावना के महाय\ म दे रहा हं A ू

आह9त जीवन के पल पल का सW भाु वना बस

स[ भावना होगी धरा पर जब, तब ना भेद

गरजेगा

ना शोला बरसेगा और ना टटेगे सपनेू

स[ भावना से कस�मत हो जाये ये धराु ु

सW भावना बस उखड.◌ेपांव भर रहा उड.◌ान

सव�कZ याण क� कामना के �लये

नह$ 9नहारता पीछे छटा भयावह वरान ।ू

मां क� तपD या पता का # याग,धरती का गौरव

रहे अमर,

वहसते रहे स[ कमy के 9नशान

Page 85: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

सW भावना क� उड.◌ान म कट जाताA � है

मेर$ िज� दगी का एक और बरस

पहल$ जनवर$ को ���������������न� दलाल भारती

54- मeु ठN भर आग

मeु ठN भर आग ने सलगा द$ हैु

अरमान4 क� बD ती

लड. रहा है आदमी अ�भमान के तेग से

आग से उठे धय म दब रह$ है चीखु A A A

हाथ नह$ बढ रहा है कमजोर क� ओर

मeु ठN भर आग� अिD त# व म आते से ह$ ।A

मeु ठN भर आग म सलग रहाA ु

अमानष मान �लया गया हैु

पसीने के साथ धोखा हा रहा है

और हक का चीरहरण भी

मeु ठN भर आग� अिD त# व म आते से ह$ ।A

Page 86: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मeु ठN म आग भरने वालेA

तकद$र का �लखा कहते हC

मरते सपने ढोने वाले छल कहते हC

दंश देने वाले तकद$र बनाने वाले बनते हC

मeु ठN भर आग म सलह रहा आदमीA ु

वं�चत हो गया है

समानता और आ�थ�क सW प� नता से भी

मeु ठN भर आग अिD त# व म आते से ह$ ।A

मeु ठN भर आग ने बांट "दया है

आदमी को खf ड खf ड

मeु ठN म आग भरने वाले गमानA ु कर रहे है

पीYड.त के मरते सपने और Mबखराव को

देखकर

मeु ठN भर आग म सलग रहे आदमी कोA ु

छोटा मान अ# याचार कर रहे है

मeु ठN भर आग� अिD त# व म आते से ह$ ।A

Page 87: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मeु ठN भर आग से उपजा धआु

चीरकर पीYड.त4 क� छाती

द9नया क� नाक के आरपार होने लगा हैु

आग म जल रहा शीA तलता क� बांट जोह रहा

मeु ठN भर आग ऐसा गहरा और बदनमा दागु

छोड. चक� हैु ,

धलने के सारे +यास k यु थ� हो जा रहे है

अ# याचार बढ जाता है �सर उठते ह$

मeु ठN भर आग अिD त# व म आते से ह$ ।A

मeु ठN भर आग म सलग रह$ हैA ु

मानवता और बढ. रहा है उ# पीड.न

मeु ठN भर आग अथा�त जा9तवाद से

मeु ठN भर आग से उपजी पीड.◌ा कह$ं

आaे◌ाश बने,

उससे पहले चल पड समानता क� राहA

3 यो5क आग 9छन रह$ है सकनं ू ,स[ भावना

Page 88: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

बांट रह$ है नफरत

मeु ठN भर आग अिD त# व म आते से ह$ A

।न� दलाल भारती

55- फना

म व� दC ना करता हं ऐसे इंसान क�ू

बोता है बीज जो स[ भावना का

रखता है हौशला # याग का ।

मेरा 3 या म तो द$वाना हंC ू

इंसा9नयत का,

भले ह$ कोई इZ जाम मढ. दे

या कहे◌े पाखf डी

या दे दे दहकता कोई घाव नया।

9नजD वाथ� से दर ू

पर-पीड.◌ा से बेचैन इंसान मA

भगवान को देखता हं ू ,

दसरो के काम आने ू वाल4 क�,

Page 89: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

व� दना करता हं ।ू

सािजश4 से बेखबर,

सI चा इंसान खोजता हूं

जानता हं हो जाउ◌ू◌ंगा फनाू

5फर भी डबता हंू ू

तलाशने पाक सीप

हो िजसम संवेदनाA ,

उसे माथे चढाना चाहता हं ।ू

सच ऐसे लोग परमाथ� के य\ मA

होकर फना देवता बन जाते है,

ऐसे देवताओ क� व� दना करता हं ।न� दू लाल

भारती

56& t;dkj

बंजर हो गये नसीब अपनी जहां मA

Page 90: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

Mबखरने लगी है आस तफान म ।ू A

आग के सम� दर� डबने का डर हैू ,

उW मीद क� लौ के बझने का डर है ।ु

िज� दा रहने के �लये जGर$ है हौशला,

कैद तकद$र का अधर म है फैसला ।A

खद को आगे रखने क� 5फकरु है,

आम आदमी क� नह$ िजकर है ।

आंखे पथराने उW मीदे थमने लगी है

मतलMबय4 को कराहे भी भाने◌े लगी है ।

कैद तकद$र Hरहा नह$ हो पा रह$ है

गनाह आदमी का सजा 5कD मु त पा रह$ है ।

बंजर तकद$र को सफल है बनाना

कैद तकद$र क�◌े मि3 तु का होगा बीड.◌ा

उठाना ।

अगर हो गया ऐसा तो ,

वहस पड.◌ेगा हर आ�शयाना

Page 91: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

काल के भाल होगे 9नशान,

जयकार करेगा जमाना । न� दलाल भारती

57&nfjnzukjk;.k

मै ऐसे गांव क� माट$ म खेला हंA ू

जहां खे9तहर मजदरोू � क�

चौखट पर नाचती है

भय और दHर]ता आज भी

वं�चत4 क� बD ती अ�भशापत है

बिD तय4 के कये का पानी अपवु R है

आज भी

भख नंगा मजदर ना जाने कब से ू ू

हाड फोड रहा है

न �मट रह$ भख ना ह$ ू

तन ढंक पा रहा है

कहने को आजाद$ है पर वो बहत दर पडा हैु ू

भ�मह$नताू � के दलदल मे खडा है

Page 92: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

भय से आतं5कत

कल के बारे म कछ नह$ जानताA ु

आंस ंपोछता आजाद$ कैसी ू

वह यह भी नह$ जानता

वह जानता है

खेत मा�लक4 के खेत म खन पानी करनाA ू

मजबर$ है उसक� ू

भख भय और पीडा मे मरनाू

कब सख क� बयार बह$ हैु

उसक� बD ती मA

इ9तहास भी नह$ बता सकता सह$ सह$

पीYडत जन भयभीत बंटवारे क� आग से

वह भी सपने देखता है

द9नया के और लोगो क� तरहु �

गांव क� धप म पक करू A

उसके सपनो को पंख नह$ लग पात े

Page 93: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

उसे भी पता लगने लगा ह C

द9नया क� तर3 क�ु का

आदमी के चांद पर उतर जाने का भी

वह नह$ लांघ पर रहा है

मजबर$ क� मजबत द$वारू ू A

वह द$नता को ढे◌ाते ढोते आस बोता हआू ु

कंच कर जा रहा है अनजाने लोक कोू

वरासत म भय भख और कछ कज� छोडकरA ू ु

अगला ज� म सखी होु

डाल देते ह पHरजन मंह म गंगाजलC Aु

मि3 तु क� आस म A

दHर]नारायण को गहारकरु

मै◌ै◌ं भी� माथा ठोक लेता हूं

पछता हं 3 याू ू यह$ तेर$ खदाई हैु � ?

3 या इनका कभी इनका उQ दार होगा ?

सच भारती

Page 94: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

म ऐसे गांव क� माट$ म खेला हं C A ू

जहां� अनक4 A आंस पीकर बसर कर रहे है ू

आज भी�������� �न� दलाल भारती

58585858---- जहरजहरजहरजहर

खले ह पर हाथ बंधे लग रहे हु C C,

खल$ जबान पर ताले जडे लग रहे ह।ु ु C

चाहत4 के सम� दर कंकड4 से भर रहे है,

खल$ आंख4 को अंधेरे डंस रहे है ।ु

लट गयी तकद$र डर मे जी रहे हैू ,

कोरे सपने आसं बरस ू रहे ह।C

फेले हाथ नयन V शरमा रहे है ,

चमचमाती मतलब क� खंजर,

बेमौत मर रहे है ।

समझता अI छN तरह 3 या कह रहे हC,

बंधे हाथ खले कान सन रहे ह ।ु ु C

Page 95: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

बं"दश4 से◌े◌ं 9घरे वं�चत,ताक रहे हC,

9छन गया सपना कल को देख रहे है ।

भीड भर$ द9नया म अकेले लग रहे हैु A ,

अपन4 का भीड म पराये हो गये ह ।A C

झराझर आंसंओ को कछ तकद$र कह रहे हू ु C,

आगे बढने वाले ,

प# थर पर लक�र खींच रहे ह ।C

3 या कह कछ लोगA ु ,

खद क� खदाई पर वहस रहे ह ु ु C ,

कैद तकद$र कर जाम टकरा रहे ह।C

द$वाने धन के भारतीु ,जहां आंस से सींच रहे हू C,

उभर जाये कायनात उW मीद मA,जहर पी रहे

हC������न� दलाल भारती

59- +9तकार +9तकार +9तकार +9तकार

याद है वो बीते लW हे मझेु

भख से उठती वो चीखे भीू

Page 96: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

िजसको रौद देती थी

वो साम� ती � यवD था

डर जाती थी

K ू◌ार$ मजदर4 क� बD तीू

खौफ म जीता था हर वं�चतA

दHर]ता� बैठ जाती चौखट पर

काफ� अ� तराल के बाद सयyदय हआू ु

द$न ब"हK कृत भी,

सपन4 का बीज बोने लगा

व3 त ने तमाचा जड "दया

हैवा9नयत के गाल4 पर

द$न का मौन टट गया हैू

द$नता का "हसाब मांगने लगा है,

आजाद हवा के साथ कल सवंारने क� सोच

रहा� है

आज भी �गQ द आंखे ताक रह$ है

Page 97: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

तभी तो द$न द$नता से,

उबर नह$ पा रहा है

बराईय4 का जाल टट नह$ रहा है ।ु ू

आओ करA� +9तकार

बेबस भखी आंख4 म झांक करू A ,

कर दे सW ब�ृध का बीजारोपण �����न� दलाल

भारती

60606060---- तलातलातलातलाुुुु

नागफनी सर$खे उग आये है कांटे

दषत माहौल मू A

इI छाय मर रह$ है 9नतA

चभन से दखने लगा है रोम रोम।ु ु

दद� आदमी का "दया हआ हैु

चभन क� यु ु वD थाओ क�

Hरसता जg म बन गया है

अब भीतर ह$ भीतर ।

Page 98: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

हक�कत जीने नह$ देती

सपन4 क� उडान म जी रहा हंA ू

उW मीद का +सन ^खल जायेू

कह$ं अपने ह$ भीतर से ।

डबती हई नांव म सवार होकर भीू ु A

वV वास है हादसे से उबर जाने का

उW मीद टूटेगी नह$

3 य45क मन म वV वाA स हैफौलाद सा�������

टट जायेगे आडW बू र सारे

^खल^खला उठेगी कायनात

Page 99: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

नह$ चभेगे नागफनी सर$खे कांटेु

नह$ं कराहेगे रोम रोम

जब होगा अंधेरे से लडने का सामl य�

पद और दौलत क� तला पर भले ह$ द9नया ु ु

कहे � यथ����������न� दलाल भारती

61616161----डरडरडरडर

आसपास देखकर डर जाता हं ू

कह$ं से कराह कह$ं से चीख ,

धमाको क� उठती लपट देखकर ।A

इंसान4 क� बD ती को जंगल कहना,

जंगल का अपमान होगा अब

इंट� प# थर4 के महल4 म भी इंसा9नयत नह$ A

बसती।

मानवता को न4चने ,इU जत से खे◌े◌ेलने लगे

है◌ ै

हर मोड मोड पर हादसा बढने लगा है ।

Page 100: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

आदमी आदमखोर लगने लगा है, सच कह रहा

हूं

hट प# थर4 के जंगल म बस गया हं ।A ू

म अकेला इस मंजर का सा`ी नह$ हंC ू, और भी

लोग है,

कछु � तो अंधा बहरा गंगा बन बैठे हैू

नह$ जमींर जाग रहा है

आद�मयत को कराहता हआ देखकर ।ु

यह$ हाल रहा तो वे खनी पंजेू

हर गले क� नाप ले लेगे धीरे धीरे◌े ।

खनी पंजे हमार$ ओर बढे उससे पहलेू ,

शैतान4 क� �शनाg त कर ब"हK कृत कर दे

"दल से घर पHरवार समाज और देश से ।

ऐसा ना हआ तो खनी पंजे बढते रहेगेु ू ,

धमाके होते रहेगे, इंसानी काया के �चथड ेउडते

रहेगे

तबाह$ के बादल गरजते रहेगे

Page 101: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

इंसा9नयत तडपती रहेगी नयन बरसते रहेगA

शैता9नयत के आतंक से नह$ बच पायेगे

9छनता रहेगा चैन कांपती रहेगी Gंह

3 य45क मरने से नह$ डर लगता

डर लगता है तो मौत के तर$क4

से��������������न� दलाल भारती

62- मखौटा ु

बेकसर चोट खाये◌े है बहत राह चलते चलतेू ु ।

बेगाने जहां मे◌े◌ ंजीते रहे मरते मरते

जहर पीये भेद भर$ द9नया म गम से दबे डबे ु ूA

रहे

आतंक अपन4 अमानवीय दरार4 क� धप छलते ू

रहे

आदमी Xारा खींची लक�र4 पर मरते रहे

Page 102: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

ना �मल$ छांव रह गये दW भ म भटकते A

भटकते

बेकसर चोट खाये◌े है राह चलते ू

चलते��������������������

उW मीद क� जमीं पर वV वास क� बनी है परतA

वरोध क� बयार म भी "दन गजरते रहे A ु

D याह रात से बेखबर उजास ढढते रहेू

घाव के बोझ फंक फंक कदम रखते रहेू ू

Mबछड गये कई लक�र पर फक�र रहते रहतेु

बेकसर चोट खाये◌े है बहत राह चलते ू ुचलते���������������������������

"दल म जवां मौसमी बहारे गजर रह$ यक�न A ु

पर रातA

ना जाने कौन से न`R व3 त ने फैलायी थी

बाहA

कोरा मन था जो, बेबस है� अब भरने को आहA

आदमी क� भीड म थक रहे अपना ढढते ढढतेA ू ू

Page 103: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

बेकसर चोट खाये◌े है बहत राह चलते ू ुचलते����������������������������

नह$ अI छा बंटवारा धम� के नाम पर, जZ मु

रो5कये

खदा के ब� देु है सI चे,

छोटे हो या बड ेब� दे को गले लगाइये◌े

समता शाि� त के नाम मखौटे को न4च द$िजयेु

कारवां गजर गया ना �मला सकन लक�र पीटते ु ूपीटते◌ े

बेकसर चोट खाये◌े है बहत राह चलते ू ुचलते������������न� दलाल भारती

63636363----मां तW हेमां तW हेमां तW हेमां तW हेुुुु सलाम सलाम सलाम सलाम

Page 104: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मां तW हाु र$ देह

२७ २७ २७ २७ अ3टबर अ3टबर अ3टबर अ3टबर ूूूू २००१ २००१ २००१ २००१ कोकोकोको

पंचत#व म खो गयी थीपंचत#व म खो गयी थीपंचत#व म खो गयी थीपंचत#व म खो गयी थीAA AA

म◌ंा मझे याद हो तमम◌ंा मझे याद हो तमम◌ंा मझे याद हो तमम◌ंा मझे याद हो तमु ुु ुु ुु ु

तW हाु र$ याद "दल म बसी है ।A

आज भी तW हाु रा एहसास

साथ साथ चलता है मेरे

MबZ कुल बरगद के छांव क� तरह ।

दख क� Mबजडु ु .◌ी जब कड.कती है

ओढा देती हो आंचल मेर$ मां

अ� दाजा लग जाता है मझे ु ,

तW हाु रे न होकर भी होने का� ।

सखु-दख म तW ह$ु ुA तो याद आती हो

तW हाु र$ कमी कभी कभी बहत Gलाती है ु ,

जब ओसार$ म गौरैयाA ,

जठे बत�न के फके पानी सेू A

Page 105: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

U ू◌ाठन चन कर अपनेू ,

बI चो के मंह म बार$ु A -बार$ से डालती है ।

तब तम और तW हाु ु रा संघष� बहत याद आता हैु

उभर आता है,

धधल$ याद4 म बसाु A � मेरा बचपन भी

मां तम भी उतर आती होु

परछाई D वGप मेरे सामने

और

रख देती हो �सर पर हाथ ।

क"ठन फैसले क� जब घड.◌ी आती है

तब तW हाु र$ तD वीर उभर आती है

जीवत हो जाती हो जैसे तमु

nदय क� गहराईय4 म A

राह बदल लेती है हर मिV कु ले ।

Page 106: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

मां तW हाु रे आशीश क� छांव

फलफल रहे है तW हाू ु रे अपने

सींच रहे ह तW हाC ु रे सपने

और

रंग बदलतt द9नया मेु , "टका हं म भी ।ू C

मां ते◌ेरे +9त ?Q दा ह$ जीवन का उ# थान है

यह$ ?Q दा देती रहेगी हमA

तW हाु र$ थप5कय4 का एहसास भी ।

मां तम तो नह$ होु , देह Gप मA

वV वास है,

तम मेर$ धडु .कन म बसी होA

हर माताओ के �लये ,

Page 107: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

गव� का "दन है मात"दवसृ

आराधना का "दन है आज का,

मेर$ द9नया है मेर$ मां D वु गtय समार$,

करते है व� दना तW हाु र$

जीवनदा9यनी पल पल याद आती है तW हाु र$

मरकर भी अमर है तेरा नाम

हे मां तW हेु सलाम������ हे मां तW हेु

सलाम�����न� दलाल भारती

-----शाि� त�����शाि� त����शाि� त---------

Page 108: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

लेखकलेखकलेखकलेखक----पHरचयपHरचयपHरचयपHरचय

न� दन� दन� दन� दलाल भारतीलाल भारतीलाल भारतीलाल भारती

कव,कहानीकार,उप� यासकार

�श`ा���������������� - एम�ए� । समाजशाD R ।� एल�एल�बी� । आनस� ।

��������������������� पोD ट �ेजएट YडK लोु मा इन o यमन Hरसyस ूडेवलपमेf ट (PGDHRD)

ज� म D थान-������������ �ाम-चौक� ।खरैा।पो�नर�सहंपर िजलाु -आजमगढ

।उ�+।����

+का�शत

पD तु कA

उप� यास-अमानत,9नमाड क� माट$ मालवा क� छाव।+9त9न�ध का� य स�ंह।

+9त9न�ध लघकथा स�ंहु - काल$ माटं$ एवं अ� य ।

उप� यास-दमन,चांद$ क� हंसल$ एवं अ�भशाप । वमश�।आलेख स�ंह।ु

Page 109: Kavyanjali Hindi Poem by Nandlalbharti

पD तु कA �����

मeु ठN भर आग ।कहानी स�ंह। लघकथा स�ंहु -उखड.◌े पांव / कतरा-कतरा आंस

कवताव�ल /का� यबोध ।का� यस�ंह। एव ंअ� य

सW मान����� वV व "ह� द$ सा"ह# य अलकंरण,इलाहाबाद।उ�+�।लेखक �मR ।मानद

उपा�ध।देहरादन।उ# तू राखf ड।

भारती प@ पु । मानद उपा�ध।इलाहाबाद,�� भाषा र# न, पानीपत । डा�ं

फेलो�शप सW मान,

"दZ ल$,� का� य साधना,भसावलु , महारा@ s, U यो9तबा फले �श`ाव[ु ,इंदौर ।म

डा�ंबाबा साहेब अW बेडकर वशेष समाज सेवाव[ यावाचD प9त,पHरयावां।उ�+�।

कलम कलाधर ।मानद उपा�ध। उदयपर ।राजD थाु न।� सा"ह# यकला र# न

उपा�ध।

कशीनगर ।उु �+�।सा"ह# य +9तभा,इंदौर।म�+�।�� सफ� स� तू महाकव

जायसी,रायबरेल$ ।उ�+�।

एव ंअ� य

� आकाशवाणी से का� यपाठ का +सारण ।कहानी, लघ कहानीु ,कवता

और आलेख4 का देश के समाचार पRो/पMRकओं

�म एव ंA www.swargvibha.tk,

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hotbot.com, ourcity.yahoo.co.in/dehradun/hindi,

inourcity.yaho.com/Bhopal/hindi एव ंअ� य ई-पR पMRकाओं म रचनाये +का�शत ।A

सदD य इिf डयन सोसायट$ आफ आथस� ।इंसा। नई "दZ ल$ � सा"हि# यक सांD कृ9तक कला सगंम अकादमी,पHरयांवा।+तापगढ।उ�+�।

� "ह� द$ पHरवार,इंदौर ।मQ य +देश।

� आशा मेमोHरयल �मRलोक पिk लक पD तु कालय,देहरादन ।उ# तू राखf ड।

� सा"ह# य जनमचं,गािजयाबाद।उ�+�।� एवं अ� य

D थायी पता����������

आजाद द$प, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म�+�!�����������������

दरभाषू -0731-4057553 च�लतवाता�-09753081066

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