mahadevi varma in hindi

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Page 1: Mahadevi Varma in hindi

हि�न्दी परीयोजना काय� हि�श्य म�ादे�ी �मा�

लेख रामकी X

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महादेवी वमा

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महादेवी वमामहादेवी वमा (26 मार्च�, 1907 — 11 सि�तंबर, 1987) हि�न्दी की ��ा�धि�क

प्रहितभा�ान क�धियहि"यों में �े �ैं। �े हि�न्दी �ाहि�त्य में छाया�ादी युग के र्चार प्रमुख स्तंभों में �े एक मानी जाती �ैं। आ�ुहिनक हि�न्दी की �ब�े �शक्त क�धियहि"यों में �े एक �ोने के कारण उन्�ें आ�ुहिनक मीरा के नाम �े भी जाना जाता �ै। कहि� हिनराला ने उन्�ें “हि�न्दी के हि�शाल मन्दिन्दर की �रस्�ती” भी क�ा �ै। म�ादे�ी ने स्�तं"ता के प�ले का भारत भी देखा और उ�के बाद का भी। �े उन कहि�यों में �े एक �ैं न्दिजन्�ोंने व्यापक �माज में काम करते हुए भारत के भीतर हि�द्यमान �ा�ाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण �ोकर अन्धकार को दूर करने �ाली दृधि? देने की कोसिशश की। उन्�ोंने मन की पीड़ा को इतने स्ने� और शंृगार �े �जाया हिक दीपसिशखा में �� जन जन की पीड़ा के रूप में स्थाहिपत हुई और उ�ने के�ल पाठकों को �ी न�ीं �मीक्षकों को भी ग�राई तक प्रभाहि�त हिकया।

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उन्�ोंने अध्यापन �े अपने काय�जी�न की शुरूआत की और अंहितम �मय तक �े प्रयाग महि�ला हि�द्यापीठ की प्र�ानार्चाया� बनी र�ीं। उनका बाल-हि��ा� हुआ परंतु उन्�ोंने अहि��ाहि�त की भांहित जी�न-यापन हिकया। प्रहितभा�ान क�धिय"ी और गद्य लेखिखका म�ादे�ी �मा� �ाहि�त्य और �ंगीत में हिनपुण �ोने के �ाथ �ाथ कुशल सिर्च"कार और �ृजनात्मक अनु�ादक भी थीं। उन्�ें हि�न्दी �ाहि�त्य के �भी म�त्त्�पूण� पुरस्कार प्राप्त करने का गौर� प्राप्त �ै। भारत के �ाहि�त्य आकाश में म�ादे�ी �मा� का नाम ध्रु� तारे की भांहित प्रकाशमान �ै। गत शताब्दी की ��ा�धि�क लोकहिप्रय महि�ला �ाहि�त्यकार के रूप में �े जी�न भर पूजनीय बनी र�ीं। �र्ष� 2007 उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया जा र�ा �ै।उन्�ोंने खड़ी बोली हि�न्दी की कहि�ता में उ� कोमल शब्दा�ली का हि�का� हिकया जो अभी तक के�ल बृजभार्षा में �ी �ंभ� मानी जाती थी। इ�के सिलए उन्�ोंने अपने �मय के अनुकूल �ंस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को रु्चनकर हि�न्दी का जामा प�नाया।

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जन्म और परिरवारम�ादे�ी का जन्म 26 मार्च�, 1907 को प्रातः 8 बजे फ़रु� ख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत

में हुआ। उनके परिर�ार में लगभग 200 �र्षY या �ात पीढ़ि[यों के बाद प�ली बार पु"ी का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाबू बाँके हि��ारी जी �र्ष� �े झूम उठे और इन्�ें घर की दे�ी — म�ादे�ी मानते हुए पु"ी का नाम म�ादे�ी रखा। उनके हिपता श्री गोवि�ंद प्र�ाद �मा� भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम �ेमरानी दे�ी था। �ेमरानी दे�ी बड़ी �म� परायण, कम�हिनष्ठ,

भा�ुक महि�ला थीं। म�ादे�ी के हिपता गोहि�न्द प्र�ाद �मा� �ुन्दर, हि�द्वान, �ंगीत प्रेमी, नास्तिस्तक, सिशकार करने ए�ं घूमने के शौकीन, �ँ�मुख व्यसिक्त थे।

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शि�क्षाम�ादे�ी जी की सिशक्षा इंदौर में धिमशन स्कूल �े प्रारम्भ हुई �ाथ �ी �ंस्कृत, अंगे्रज़ी, �ंगीत तथा

सिर्च"कला की सिशक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर �ी दी जाती र�ी। हि��ा�ोपरान्त म�ादे�ी जी ने 1919 में क्रास्थ�ेट कॉलेज इला�ाबाद में प्र�ेश सिलया और कॉलेज के छा"ा�ा� में र�ने लगीं। 1921 में म�ादे�ी जी ने आठ�ीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त हिकया। य�ीं पर उन्�ोंने अपने काव्य जी�न की शुरुआत की। �े �ात �र्ष� की अ�स्था �े �ी कहि�ता सिलखने लगी थीं और 1925 तक जब उन्�ोंने मैढ़िlक की परीक्षा उत्तीण� की, �े एक �फल क�धिय"ी के रूप में प्रसि�द्ध �ो रु्चकी थीं। कालेज में �ुभद्रा कुमारी र्चौ�ान के �ाथ उनकी घहिनष्ठ धिम"ता �ो गई। �ुभद्रा कुमारी र्चौ�ान म�ादे�ी जी का �ाथ पकड़ कर �खिखयों के बीर्च में ले जाती और क�तीं

“�ुनो― , ये कहि�ता भी सिलखती �ैं”। 1932 में जब उन्�ोंने इला�ाबाद हि�श्वहि�द्यालय �े �ंस्कृत में एम.ए. पा� हिकया तब तक उनके दो कहि�ता �ंग्र� नी�ार तथा रश्मिश्म प्रकासिशत �ो रु्चके थे। �न् 1916 में उनके बाबा श्री बाँके हि��ारी ने इनका हि��ा� बरेली के पा� नबा� गंज कस्बे के हिन�ा�ी श्री स्�रूप नारायण �मा� �े कर ढ़िदया, जो उ� �मय द��ीं कक्षा के हि�द्याथs थे।

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कार्यक्षेत्रम�ादे�ी का काय�क्षे" लेखन, �ंपादन और अध्यापन र�ा। उन्�ोंने इला�ाबाद में प्रयाग

महि�ला हि�द्यापीठ के हि�का� में म�त्�पूण� योगदान हिकया। इ�की �े प्र�ानार्चाय� ए�ं कुलपहित भी र�ीं। 1932 में उन्�ोंने महि�लाओं की प्रमुख पहि"का ‘र्चाँद’ का काय�भार �ंभाला। 1930 में नी�ार, 1932 में रश्मिश्म, 1934 में नीरजा, तथा 1936 में �ांध्यगीत नामक उनके र्चार कहि�ता �ंग्र� प्रकासिशत हुए। 1939 में इन र्चारों काव्य �ंग्र�ों को उनकी कलाकृहितयों के �ाथ �ृ�दाकार में यामा शीर्ष�क �े प्रकासिशत हिकया गया। उन्�ोंने गद्य, काव्य, सिशक्षा और सिर्च"कला �भी क्षे"ों में नए आयाम स्थाहिपत हिकये। इ�के अहितरिरक्त उनकी 18 काव्य और गद्य कृहितयां �ैं न्दिजनमें मेरा परिर�ार, स्मृहित की रेखाए,ं पथ के �ाथी, शंृखला की कहिड़याँ और अतीत के र्चलसिर्च" प्रमुख �ैं। �न 1955 में म�ादे�ी जी ने इला�ाबाद में �ाहि�त्यकार �ं�द की स्थापना की और पं इलार्चंद्र जोशी के ��योग �े �ाहि�त्यकार का �ंपादन �ंभाला। य� इ� �ंस्था का मुखप" था। उन्�ोंने भारत में महि�ला कहि� �म्मेलनों की नी� रखी।

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इ� प्रकार का प�ला अखिखल भारत�र्षsय कहि� �म्मेलन 15 अपै्रल 1933 को �ुभद्रा कुमारी र्चौ�ान की अध्यक्षता में प्रयाग महि�ला हि�द्यापीठ में �ंपन्न हुआ। �े वि�ंदी �ाहि�त्य में र�स्याद की प्र�र्तितंका भी मानी जाती �ैं। म�ादे�ी बौद्ध �म� �े बहुत प्रभाहि�त थीं। म�ात्मा गां�ी के प्रभा� �े उन्�ोंने जन�े�ा का व्रत लेकर झू�ी में काय� हिकया और भारतीय स्�तं"ता �ंग्राम में भी हि�स्�ा सिलया। 1936 में नैनीताल �े 25 हिकलोमीटर दूर रामग[ क�बे के उमाग[ नामक गाँ� में म�ादे�ी �मा� ने एक बँगला बन�ाया था। न्दिज�का नाम उन्�ोंने मीरा मंढ़िदर रखा था। न्दिजतने ढ़िदन �े य�ाँ र�ीं इ� छोटे �े गाँ� की सिशक्षा और हि�का� के सिलए काम करती र�ीं। हि�शेर्ष रूप �े महि�लाओं की सिशक्षा और उनकी आर्थिथंक आत्महिनभ�रता के सिलए उन्�ोंने बहुत काम हिकया। आजकल इ� बंगले को म�ादे�ी �ाहि�त्य �ंग्र�ालय के नाम �े जाना जाता �ै। शंृखला की कहिड़याँ में स्त्रिस्"यों की मुसिक्त और हि�का� के सिलए उन्�ोंने न्दिज� �ा�� � दृ[ता �े आ�ाज़ उठाई �ैं और न्दिज� प्रकार �ामान्दिजक रूढ़ि[यों की विनंदा की �ै उ��े उन्�ें महि�ला मुसिक्त�ादी भी क�ा गया। महि�लाओं � सिशक्षा के हि�का� के कायY और जन�े�ा के कारण उन्�ें �माज-�ु�ारक भी क�ा गया �ै।[१६] उनके �ंपूण� गद्य �ाहि�त्य में पीड़ा या �ेदना के क�ीं दश�न न�ीं �ोते बस्ति�क अदम्य रर्चनात्मक रोर्ष �माज में बदला� की अदम्य आकांक्षा और हि�का� के प्रहित ��ज लगा� परिरलक्षिक्षत �ोता �ै। उन्�ोंने अपने जी�न का अधि�कांश �मय उत्तर प्रदेश के इला�ाबाद नगर में हिबताया। 11 सि�तंबर, 1987 को इला�ाबाद में रात 9 बजकर 30 धिमनट पर उनका दे�ांत �ो गया।

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कविवता संग्रह 1. नी�ार (1930)

2. रश्मिश्म (1932) 3. नीरजा (1934) 4. �ांध्यगीत (1936)

5. दीपसिशखा (1942) 6. �प्तपणा� (अनूढ़िदत-1959) 7. प्रथम आयाम (1974) 8. अखिग्नरेखा (1990)

श्रीमती म�ादे�ी �मा� के अन्य अनेक काव्य �ंकलन भी प्रकासिशत �ैं, न्दिजनमें उपयु�क्त रर्चनाओं में �े रु्चने हुए गीत �ंकसिलत हिकये गये �ैं, जै�े आस्त्रित्मका, परिरक्रमा, �स्त्रिन्धनी (1965), यामा (1936), गीतप��, दीपगीत, स्मारिरका, नीलांबरा और आ�ुहिनक कहि� म�ादे�ी आढ़िद।

अन्य हिनबं� में �ंकश्मि�पता तथा हि�हि�� �ंकलनों में स्मारिरका, स्मृहित सिर्च", �ंभार्षण, �ंर्चयन, दृधि?बो� उ�लेखनीय �ैं। �े अपने �मय की लोकहिप्रय पहि"का ‘र्चाँद’ तथा ‘�ाहि�त्यकार’ मासि�क की भी �ंपादक र�ीं। हि�न्दी के प्रर्चार-प्र�ार के सिलए उन्�ोंने प्रयाग में ‘�ाहि�त्यकार �ं�द’ और रंग�ाणी नाट्य �ंस्था की भी स्थापना की।

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महादेवी वमा का गद्य साविहत्र्य रेखाचि त्र: अतीत के र्चलसिर्च" (1941) और स्मृहित की रेखाए ं(1943), संस्मरण: पथ के �ाथी (1956) और मेरा परिर�ार (1972 और �ंस्मरण (1983)) ुने हुए भाषणों का संकलन: �ंभार्षण (1974) विनबंध: शंृखला की कहिड़याँ (1942), हि��ेर्चनात्मक गद्य (1942), �ाहि�त्यकार की आस्था

तथा अन्य हिनबं� (1962), �ंकश्मि�पता (1969) लचिलत विनबंध: क्षणदा (1956) कहाविनर्याँ: हिग�ल ू संस्मरण, रेखाचि त्र और विनबंधों का संग्रह: हि�मालय (1963),

महादेवी वमा का बाल साविहत्र्य म�ादे�ी �मा� की बाल कहि�ताओं के दो �ंकलन छपे �ैं। (i) ठाकुरजी भोले �ैं (ii) आज खरीदेंगे �म ज्�ाला

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समालो नाआ�ुहिनक गीत काव्य में म�ादे�ी जी का स्थान ���परिर �ै। उनकी कहि�ता में प्रेम

की पीर और भा�ों की तीव्रता �त�मान �ोने के कारण भा�, भार्षा और �ंगीत की जै�ी हि"�ेणी उनके गीतों में प्र�ाहि�त �ोती �ै �ै�ी अन्य" दुल�भ �ै। म�ादे�ी के गीतों की �ेदना, प्रणयानुभूहित, करुणा और र�स्य�ाद काव्यानुराहिगयों को आकर्तिरं्षत करते �ैं। पर इन रर्चनाओं की हि�रो�ी आलोर्चनाए ँ�ामान्य पाठक को ढ़िदग्भ्रधिमत करती �ैं। आलोर्चकों का एक �ग� �� �ै, जो य� मानकर र्चलते �ैं हिक म�ादे�ी का काव्य हिनतान्त �ैयसिक्तक �ै। उनकी पीड़ा, �ेदना, करुणा, कृहि"म और बना�टी �ै।

आर्चाय� रामर्चंद्र शुक्ल जै�े मू��न्य आलोर्चकों ने उनकी �ेदना और अनुभूहितयों की �च्चाई पर प्रश्न सिर्चह्न लगाया �ै|

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य� �र्च �ै हिक म�ादे�ी का काव्य �ं�ार छाया�ाद की परिरधि� में आता �ै, पर उनके काव्य को उनके युग �े एकदम अ�मृ्पक्त करके देखना, उनके �ाथ अन्याय करना �ोगा। म�ादे�ी एक �जग रर्चनाकार �ैं। बंगाल के अकाल के �मय 1943 में इन्�ोंने एक काव्य �ंकलन प्रकासिशत हिकया था और बंगाल �े �म्बंधि�त “बंग भू शत �ंदना” नामक कहि�ता भी सिलखी थी। इ�ी प्रकार र्चीन के आक्रमण के प्रहित�ाद में हि�मालय नामक काव्य �ंग्र� का �ंपादन हिकया था। य� �ंकलन उनके युगबो� का प्रमाण �ै।

उन्�ोंने सिर्च"कला का काम अधि�क न�ीं हिकया हिफर भी जलरंगों में ‘�ॉश’ शैली �े बनाए गए उनके सिर्च" �ंु�ले रंगों और लयपूण� रेखाओं का कारण कला के �ंुदर नमूने �मझे जाते �ैं। उन्�ोंने रेखासिर्च" भी बनाए �ैं। उनके अपने कहि�ता �ंग्र�ों यामा और दीपसिशखा में उनके रंगीन सिर्च"ों और रेखांकनों को देखा जा �कता �ै।

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प्रमुख कृवितर्याँ

पन्थ तुम्हारा मंगलमर्य हो। महादेवी के हस्ताक्षर

महादेवी वमा की प्रमुख गद्य र नाए ँ

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पुरस्कार � �म्मानउन्�ें प्रशा�हिनक, अ��प्रशा�हिनक और व्यसिक्तगत �भी �ंस्थाआ� �े पुरस्कार � �म्मान धिमले।1943 में उन्�ें ‘मंगलाप्र�ाद पारिरतोहिर्षक’ ए�ं ‘भारत भारती’ पुरस्कार �े �म्माहिनत हिकया गया। 1956 में

भारत �रकार ने उनकी �ाहि�त्यित्यक �े�ा के सिलये ‘पद्म भूर्षण’ की उपाधि� दी। 1979 में �ाहि�त्य अकादमी की �दस्यता ग्र�ण करने �ाली �े प�ली महि�ला थीं। 1988 में उन्�ें मरणोपरांत भारत �रकार की पद्म हि�भूर्षण उपाधि� �े �म्माहिनत हिकया गया।

�न 1969 में हि�क्रम हि�श्वहि�द्यालय, 1977 में कुमाऊं हि�श्वहि�द्यालय, नैनीताल, 1980 में ढ़िद�ली हि�श्वहि�द्यालय तथा 1984 में बनार� वि�ंदू हि�श्वहि�द्यालय, �ाराण�ी ने उन्�ें डी.सिलट की उपाधि� �े �म्माहिनत हिकया।

इ��े पू�� म�ादे�ी �मा� को ‘नीरजा’ के सिलये 1934 में ‘�क्�ेरिरया पुरस्कार’, 1942 में ‘स्मृहित की रेखाए’ँ के सिलये ‘हिद्व�ेदी पदक’ प्राप्त हुए। ‘यामा’ नामक काव्य �ंकलन के सिलये उन्�ें भारत का ���च्च �ाहि�त्यित्यक �म्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। �े भारत की 50 �ब�े यशस्�ी महि�लाओं में भी शाधिमल �ैं।

1968 में �ुप्रसि�द्ध भारतीय हिफ़�मकार मृणाल �ेन ने उनके �ंस्मरण ‘�� र्चीनी भाई’ पर एक बांग्ला हिफ़�म का हिनमा�ण हिकया था न्दिज�का नाम था नील आकाशेर नीर्चे।

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महादेवी — मागरेट थै र से ज्ञानपीठ पुरस्कार लेते हुए|

डाकटिटकट

पुरस्कार व सम्मान के चि त्र

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महादेवी वमा का र्योगदान�ाहि�त्य में म�ादे�ी �मा� का आहि�भा�� उ� �मय हुआ जब खड़ी बोली का

आकार परिरष्कृत �ो र�ा था। उन्�ोंने हि�न्दी कहि�ता को बृजभार्षा की कोमलता दी, छंदों के नए दौर को गीतों का भंडार ढ़िदया और भारतीय दश�न को �ेदना की �ार्दिदंक स्�ीकृहित दी। इ� प्रकार उन्�ोंने भार्षा �ाहि�त्य और दश�न तीनों के्ष"ों में ऐ�ा म�त्�पूण� काम हिकया न्दिज�ने आने�ाली एक पूरी पीढी को प्रभाहि�त हिकया। शर्चीरानी गुटू� ने भी उनकी कहि�ता को �ु�श्मिज्तत भार्षा का अनुपम उदा�रण माना �ै। उन्�ोंने अपने गीतों की रर्चना शैली और भार्षा में अनोखी लय और �रलता भरी �ै, �ाथ �ी प्रतीकों और विबंबों का ऐ�ा �ंुदर और स्�ाभाहि�क प्रयोग हिकया �ै जो पाठक के मन में सिर्च" �ा खींर्च देता �ै। छाया�ादी काव्य की �मृन्दिद्ध में उनका योगदान अत्यंत म�त्�पूण� �ै।

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यद्यहिप म�ादे�ी ने कोई उपन्या�, क�ानी या नाटक न�ीं सिलखा तो भी उनके लेख, हिनबं�, रेखासिर्च", �ंस्मरण, भूधिमकाओं और लसिलत हिनब�ंों में जो गद्य सिलखा �ै �� श्रेष्ठतम गद्य का उत्कृ? उदा�रण �ै। उ�में जी�न का �ंपूण� �ैहि�ध्य �माया �ै। हिबना क�पना और काव्यरूपों का ��ारा सिलए कोई रर्चनाकार गद्य में हिकतना कुछ अर्जिजतं कर �कता �ै, य� म�ादे�ी को प[कर �ी जाना जा �कता �ै। उनके गद्य में �ैर्चारिरक परिरपक्�ता इतनी �ै हिक �� आज भी प्रा�ंहिगक �ै। �माज �ु�ार और नारी स्�तं"ता �े �ंबधंि�त उनके हि�र्चारों में दृ[ता और हि�का� का अनुपम �ामंजस्य धिमलता �ै। �ामान्दिजक जी�न की ग�री परतों को छूने �ाली इतनी तीव्र दृधि?, नारी जी�न के �ैर्षम्य और शोर्षण को तीखेपन �े आंकने �ाली इतनी जागरूक प्रहितभा और हिनम्न �ग� के हिनरी�, �ा�न�ीन प्राक्षिणयों के अनूठे सिर्च" उन्�ोंने �ी प�ली बार वि�ंदी �ाहि�त्य को ढ़िदए।

मौसिलक रर्चनाकार के अला�ा उनका एक रूप �ृजनात्मक अनु�ादक का भी �ै न्दिज�के दश�न उनकी अन�ुाद-कृत ‘�प्तपणा�’ (1960) में �ोते �ैं। अपनी �ांस्कृहितक रे्चतना के ��ारे उन्�ोंने �ेद, रामायण, थेरगाथा तथा अश्वघोर्ष, कासिलदा�, भ�भूहित ए�ं जयदे� की कृहितयों �े तादात्म्य स्थाहिपत करके 39 र्चयहिनत म�त्�पूण� अंशों का हि�न्दी काव्यान�ुाद इ� कृहित में प्रस्तुत हिकया �ै। आरंभ में 61 पृष्ठीय ‘अपनी बात’ में उन्�ोंने भारतीय मनीर्षा और �ाहि�त्य की इ� अम�ूय �रो�र के �ंब�ं में ग�न शो�पणू� हि�मर्ष� हिकया �ै जो के�ल स्"ी-लेखन को �ी न�ीं वि�ंदी के �मग्र चिर्चंतनपरक और लसिलत लेखन को �मृद्ध करता �ै।

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म�ादे�ी �मा� के हिकताबो के सिर्च"

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म�ादे�ी �मा� के कहि�ता तुम मुझ्मे विप्रर्य ! वि>र परिरच्र्य क्र्या

तुम मुझ्मे हिप्रय ! हिफ़र परिरच्य क्या

ताक� मे छहि�, प्राणों में स्मु्रहित पलकों में नीर� पद की गहित लघु उर में पुलकों की �ं�ृहित

  भर लाई हूँ तेरी रं्चच्ल ऒर करँू ज्ग में �ंच्य क्या !

तेरा मुख श� अरुणोदय परछाई रजनी हि�र्षादमय

�� जागृहित �� नींद स्व्प्नमय  खे�खेल थ्क्थ्क �ोने दे

में �मझूँगी �ृधि? प्रलय क्या !

हिप्रय ! �ान्ध्य गगन

हिप्रय ! �ान्ध्य गगन मेरा जी�न !

य� क्षिक्षहितज बना �ुँ�ला हि�राग, न� अरूण अरूण मेरा �ु�ाग,

छाया �ी काया �ीतराग, �ुधि�भीने स्व्प्न रँगीले घ्न ! �ा�ों का आज �ुन्�लाप्न,

धिघरता हि�र्षाद का हितधिमर �घन, �न्धया का न्भ �े मूक धिमलन,

य� अशु्रम्ती �ँस्ती सिर्चत्व्न !

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वि>र विवक्ल हैं प्राण मेरे !

हिफ़र हि�क्ल �ैं प्राण मेरे !  तोड दो य� क्षिक्षहितज मैं भी देख लूं

उ� ओर क्या �ै ! जा र�े न्दिज� पंथ �े युग क्�प उस्क

छोर क्या �ै ? क्यों मुझे प्रार्चीर ब्न कर आज मेरे श्र्�ा� घेरे ?

सि�नु्ध की हिनः�ीम्ता पर �घु ��र का ला� कै�ा ?

दीप �घु सिशर पर �रे आलोक का आकाश कै�ा !

दे र�ी मेरी सिर्चरन्तन्ता क्ष्णों के �ाथ फे़रे !

वितमिमर में वे पदचि ह्न मिमले !

हितधिमर में �े पदसिर्चह्न धिमले ! युग – युग क पंथी अकुल मन, बाँ� र�ा प्थ के रजक्ण र्चुन ; श्र्�ा�ों में रँू�े दुख के पल

ब्न ब्न दीप च्ले ! अश्मि��त तन में, हि�घुत-�ी भर,

�र ब्न्ते मेरे श्र्म-�ीकर; एक एक आँ�ू में शत शत

शत्दल्-स्व्प्न खिखले ! �जहिन हिप्रय के पदसिर्चह्न धिमले !

Page 23: Mahadevi Varma in hindi

तब क्ष्ण क्ष्ण म्धु-प्र्याले होंगे ! त्ब क्ष्ण क्ष्न म्�ु-प्याले �ोंगे ! ज्ब दूर देश उड जाने को ह्ग-ख्ज्न म्त्�ाले �ोंगे !

  दे आँ�-ूज्ल स्मृहित के �घुक्ण, मैंने उर-विपंजर में उन्म्न,

अप्ना आकुल मन ब�लाने �ुख-दुख के ख्ग पाले �ोंगे ! ज्ब मेरे शूलों पर शत शत, म�ु के युग �ोंगे अश्मिव्�म्बत,

मेरे क्र्न्दन �े अत्प के- ढ़िदन सि�व्न �रिरयाले �ोंगे !

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�न्य�ाद मुझे र्यविकन हे की आपको र्यह पे्रसेनटे�न पसन्द आर्या और आप को महादेवी वमा के जीवन अच्छी

तरह समज आर्या|

�न्य�ाद