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Page 1: Mahatmagandh

गांधीजी की जीवनी और आन्दोलन

Page 2: Mahatmagandh

प्रस्तावना जब गांधीजी का जन्म हुआ, तब देश में अंगे्रजी हुकूमत का साम्राज्य था । यद्यपि" 1857 की क्रांपित ने पि%टि'श सत्ता को पि*लाने का

प्रयास पिकया था, "रंतु अंगे्रजी शक्ति/ ने उस पिवद्रो* को कुचल कर रख टिदया । अंगे्रजो के कठोर शासन में भारतीय जनमानस छ'"'ा र*ा था । अ"नी इच्छाओं की "ूर्तित; के क्तिलए अंगे्रज पिकसी भी *द तक अत्याचार करने के क्तिलए स्वतंत्र थे । देश की नई "ीढ़ी के जन्म लेते *ी, पि%टि'श हुकूमत गुलामी की जंजीरों से उन्*ें जकड़ र*ी थी । लगभग डेढ़ दशक तक अंगे्रजों ने भारत "र एकछत्र

राज्य पिकया ।जब गांधीजी की मृत्यु हुई, तब तक देश "ूरी तर* से आलाद *ो चुका था। गुलामी के काले बादल छँ' चुके थे । देश के करोड़ो मूक

लोगों को वाणी देने वाले इस म*ात्मा को लोगों ने अ"ने क्तिसर-आँखों "र बैठाया । इपित*ास के "न्नों में गांधीजी का योगदान स्वणाJक्षरों में क्तिलखा गया । गांधीजी का जीवन एक आदशJ जीवन माना गया। उन्*ें भारत के संुदर क्तिशल्"कार की संज्ञा दी गई ।

उनके योगदान के प्रपित कृतज्ञता व्य/ करते हुए देशवाक्तिसयों ने उन्*ें 'राष्ट्रपि"ता' की उ"ाधी दी ।स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के योगदान को भुला "ाना एक 'ेढ़ी खीर *ै । पि%टि'श हुकूमत को नाको चने चबवाने वाले इस म*ात्मा के कायJ मील का "त्थर सापिबत हुए। देशवाक्तिसयों के स*योग से उन्*ोंने व* कर टिदखाया, जिजसका स्वप्न भारत के *र घर में देखा जाता था, व* स्वप्न था - दासता से मुक्ति/ का, अंधेरे "र उजाले की पिवजय का । गांधीजी के पिनदTशन में देश के करोड़ों लोगों ने आततायी शक्ति/ के खिखलाफ अ"नी आवाज बुलंद की थी । वे अ"ने आ" में राजा राम मो*न राय, रामकृष्ण "रम*ंस, स्वामी

पिववेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, दादाभाई नौरोजी आदी थे। वास्तव में उनका व्यक्ति/त्व इन सभी का मिमश्रण था । उनके पिवचार-चिच;तन में सभी म*ा"ुरुषों की वाणी को शब्द मिमले थे । इस बात से भी इंकार न*ीं पिकया जा सकता पिक भारतीय राजनीपित के फलक

"र ऐसा नीपितवान और कथन-करनी में एक जैसा आचरण करने वाला नेता अन्य क*ीं भी टिदखाई न*ीं देता ।गांधीजी ने *मेशा दूसरों के क्तिलए *ी संघषJ पिकया। मानो उनका जीवन देश और देशवाक्तिसयों के क्तिलए *ी बना था । इसी देश और

उसके नागरिरकों के क्तिलए उन्*ोंने अ"ना बक्तिलदान टिदया । आने वाली "ीटिढ़ की नज़र में मात्र देशभ/, राजनेता या राष्ट्रपिनमाJता *ी न*ीं *ोंगे, बल्किल्क उनका म*त्व इससे भी क*ीं अमिधक *ोगा । वे नैपितक शक्ति/ के धनी थे, उनकी एक आवाज करोड़ों लोगों को आंदोक्तिलत

करने के की क्षमता रखती थी । वे स्वयं को सेवक और लोगों का मिमत्र मानते थे । य* म*ामानव कभी पिकसी धमJ पिवशेष से न*ीं बंधा शायद इसीक्तिलए *र धमJ के लोग उनका आदर करते थे । यटिद उन्*ोंने भारतवाक्तिसयों के क्तिलए कायJ पिकया तो इसका "*ला

कारण तो य* था पिक उन्*ोंने इस "ावन भूमिम "र जन्म क्तिलया, और दूसरा प्रमुख कारण उनकी मानव जापित के क्तिलए मानवता की रक्षा करने वाली भावना थी ।

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वे जीवनभर सत्य और अहि�ंसा के माग� पर चलते र�े। सत्य को ईश्वर मानने वाले इस म�ात्मा की जीवनी किकसी म�ाग्रंथ से कम न�ीं �ै । उनकी जीवनी में सभी धम� गं्रथों का सार �ै। य� भी सत्य �ै किक कोई व्यक्ति/ जन्म से म�ान न�ीं �ोता। कम� के आधार पर �ी

व्यक्ति/ म�ान बनता �ै, इसे गांधीजी ने क्तिसद्ध कर दिदखाया । एक बात और वे कोई असाधारण प्रकितभा के धनी न�ीं थे । सामान्य लोगों की तर� वे भी साधारण मनुष्य थे ।

रवींद्रनाथ टागोर, रामकृष्ण परम�ंस, शंकराचाय� या स्वामी किववेकानंद जैसी कोई असाधारण मानव वाली किवशेषता गांधीजी के पास न�ीं थी । वे एक सामान्य बालक की तर� जन्मे थे। अगर उनमें कुछ भी असाधारण था तो व� था उनका शम@ला व्यक्ति/त्व । उन्�ोंने सत्य, प्रेम और अंहि�ंसा के माग� पर चलकर य� संदेश दिदया किक आदश� जीवन �ी व्यक्ति/ को म�ान बनाता �ै । य�ां य� प्रश्न स�ज उठता �ै किक यदिद गांधी जैसा साधारण

व्यक्ति/ म�ात्मा बन सकता �ै, तो भला �म आप क्यों न�ीं ?उनका संपूण� जीवन एक साधना थी, तपस्या थी । सत्य की शक्ति/ द्वारा उन्�ोंने सारी

बाधाओं पर किवजय प्राप्त की । वे सफलता की एक-एक सीढ़ी पर चढ़ते र�े । गांधीजी ने य� क्तिसद्ध कर दिदखाया किक दृढ़ किनश्चय, सच्ची लगन और अथक प्रयास से असंभव को भी

संभव बनाया जा सकता �ै । गांधीजी की म�ानता को देखते हुए �ी अल्बट� आइंटस्टाइन ने क�ा था किक, आने वाली पीढ़ी शायद �ी य� भरोसा कर पाये किक एक �ाड़-मांस का मानव

इस पृथ्वी पर चला था ।    सचमुच गांधीजी असाधारण न �ोते हुए भी असाधारण थे । य� संपूण� ब्रह्मांड के क्तिलए

गौरव का किवषय �ै किक गांधीजी जैसा व्यक्ति/त्व य�ाँ जन्मा । मानवता के पक्ष में खडे़ गांधी को मानव जाकित से अलग करके देखना ए बड़ी भूल मानी जायेगी। 1921 में भारतीय

राजनीकित के फलक पर सूय� बनकर चमके गांधीजी की आभा से आज भी �मारी धरती का रूप किनखर र�ा �ै । उनके किवचारों की सुन�री किकरणें किवश्व के कोने-कोने में रोशनी किबखेर

र�ी �ैं । �ो सकता �ै किक उन्�ोंने बहुत कुछ न किकया �ो, लेकिकन जो भी किकया उसकी उपेक्षा करके भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इकित�ास न�ीं क्तिलखा जा सकता

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जन्म और प्रारंभिभक भिशक्षामो*नदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अ/ूबर सन् 1869 को "ोरबंदर में हुआ था। "ोरबंदर, गुजरात कटिठयावड़ की तीन सौ में से एक रिरयासत थी। उनका जन्म एक

मध्यमवगhय "रिरवार में हुआ था, जो पिक जापित से वैश्य था। उनके दादा उत्तमचंद गांधी "ोरबंदर के दीवान थे। आगे चलकर 1847 में उनके पि"ता करमचंद गांधी को "ोरबंदर

का दीवान घोपिषत पिकया गया। एक-एक करके तीन "त्नी की मृत्यु *ो जाने "र करमचंद ने चौथा पिववा* "ुतलीबाई से पिकया, जिजनकी कोख से गांधीजी ने जन्म क्तिलया। मो*नदास की माँ का स्वभाव संतों के जैसा था। गांधीजी अ"नी माँ के पिवचारों से खूब

प्रभापिवत थे। गांधीजी की आरंभिभक क्तिशक्षा "ोरबंदर में हुई। ज*ाँ गभिणत पिवषय में उन्*ोंने अ"ने

आ"को काफी कमजोर "ाया। कई वषk के बाद उन्*ोंने इस बात को स्वीकार पिकया पिक वे झें"ू, शमhले और कम बुजिm वाले छात्र हुआ करते थे। सात वषJ की उम्र में उनका "रिरवार काटिठयावाड की अन्य रिरयासत राजको' में आकर बस गया। य*ाँ भी उनके

पि"ता को दीवान बना टिदया गया। य*ाँ "र उन्*ोंने अ"नी प्राथमिमक क्तिशक्षा "ूणJ की। बाद में *ाईस्कूल में प्रवेश क्तिलया। अब वे मध्यम शे्रणी के शांत, शमhले और झें"ू पिकस्म के

छात्र बन चुके थे। एकांत उन्*ें बहुत पिप्रय था।पिवद्यालय की गपितपिवमिधयाँ या "रीक्षाओं के "रिरणाम से ऐसा कोई संकेत न*ीं मिमला पिक जिजससे य* अनुमान लगाया जा सके पिक वे भपिवष्य में म*ान बनेंगे। लेपिकन पिवद्यालय में घ'ी एक घ'ना ने य* क्तिछ"ा संदेश अवश्य दे डाला पिक एक टिदन य* छात्र आगे अवश्य जायेगा। हुआ यूं पिक उस टिदन स्कूल पिनरीक्षक पिवद्यालय में पिनरीक्षण के क्तिलए आये हुए

थे। कक्षा में उन्*ोंने छात्रों की 'से्पचिल;ग 'ेस्'` लेनी शुरू की। मो*नदास शब्द की से्पचिल;ग गलत क्तिलख र*े थे, इसे कक्षाध्या"क ने संकेत से मो*नदास को क*ा पिक व* अ"ने

"ड़ोसी छात्र की स्ले' से नकल कर स*ी शब्द क्तिलखें। उन्*ोंने नकल करने से इंकार कर टिदया। बाद में उन्*ें उनकी इस 'मूखJता` "र दंपिडत भी पिकया गया।

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वैसे तो मो*नदास आज्ञाकारी थे, "र उनकी दृष्टी में जो अनुक्तिचत था, उसे वे उक्तिचत न*ीं मानते थे। उनका "रिरवार वैष्णव धमJ का अनुयायी था। इस संप्रदाय में मांस भक्षण और धूम्र"ान घोर "ा" माने जाते थे। उन टिदनों शेख म*ताब नाम का उनका एक स*"ाठी था। म*ताब ने गांधीजी को य* पिवश्वास टिदलाया पिक अंगे्रज भारत "र इसक्तिलए राज कर र*े *ैं, क्योंपिक वे गोश्त खाते *ैं। उस छात्र के मुतापिबक मांस *ी अंगे्रजो की शक्ति/ का राज *ै। दोस्त के इस कुतकk ने मो*नदास को

गोश्त खाने के क्तिलए राजी कर क्तिलया। देशभक्ति/ के कारण उन्*ोंने "*ली बार मांस खाने के बाद वे "ूरी रात सो न*ीं सके। बार-बार उन्*ें ऐसा लगता जैसे बकरा "े' में मिममिमया र*ा *ो। लेपिकन थोडे़-

थोडे़ फासलें "र वे मांस का सेवन करते र*े। माता-पि"ता को आघात "हुँचे इसक्तिलए उन्*ोंने गोश्त खाना बंद कर टिदया। वे शाका*ारी बन गये। इस उम्र में उन्*ोंने धूम्र"ान और चोरी करने का भी अ"राध पिकया। लेपिकन बाद में रो कर "श्चाता" करते हुए उन्*ोंने सारी बुरी

आदतों से पिकनारा कर क्तिलया।तेर* वषJ की आयु में मो*नदास का पिववा* उनकी *म-उम्र कस्तूरबा से कर टिदया गया। उस उम्र के लड़के के क्तिलए शादी का अथJ नये वत्र, फेरे लेना और साथ में खेलने तक *ी सीमिमत था। लेपिकन जल्द *ी

उन "र काम का प्रभाव "ड़ा। शायद इसी कारण उनके मन में बाल-पिववा* के प्रपित कठोर पिवचारों का जन्म हुआ। वे बाद में बाल-पिववा* को भरत की एक भीषण बुराई मानते थे। एक दूसरे से कम उम्र में अनजान बच्चों का पिववा* करना, आम रिरवाज था और य* धारणा थी पिक ऐसे पिववा* प्रायः सुखी *ोते थे। कुछ भी *ो, गांधीजी के बारे में ऐसा *ी था। *ालांपिक बाद के वषk में उनकी अंतरात्मा बाल-पिववा*

को लेकर काफी कचो'ती र*ती थी, लेपिकन उन्*ोंने आजीवन कस्तूरबा को एक आदशJ "त्नी के रू" में "ाया। 

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इंग्लैंड में युवा गांधी की क्तिशक्षामैटि{क करने के बाद गांधीजी ने भावनगर के समलदास कालेज में प्रवेश क्तिलया। य*ाँ का वातावरण उन्*ें रास न*ीं आया, उन्*ें "ढ़ाई करने में काफी कटिठनाइयाँ

आ र*ी थी। इसी बीच सन् 1885 में उनके पि"ताजी की मृत्यु *ो गई। उनके "रिरवार के पिवश्वसनीय मिमत्र भावजी दवे चा*ते थे पिक मो*नदास अ"ने दादा व

पि"ता की तर* मंत्री बनें। इस "द के क्तिलए कानून की जानकारी सबस म*त्व"ूणJ थी। इसक्तिलए उन्*ोंने सला* दी पिक मो*नदास इंग्लैंड जाकर बैरिरस्'री की "ढ़ाई करें। मो*नदास इसे सुनते *ी खूब प्रसन्न हुए। उनकी माँ उन्*ें पिवदेश भेजने के खिखलाफ थीं। किक;तु काफी मान-मनौवल के बाद जब वे राजी हुईं तब उन्*ोंने मो*नदास से य* संकल्" कराया पिक वे शराब, त्री और मांस को भूलकर

भी न*ीं छुएगेँ।गांधीजी अ"नी इंग्लैंड यात्रा के क्तिलए बंबई के समुद्री त' "र "हुँचे। य*ाँ भी उनके पिवदेश जान के खिखलाफ जापित-पिबरादरी के लोगों ने आ"भित्त दजJ की।

य*ाँ तक पिक उन्*ें पिबरादरी से बा*र करने की धमपिकयाँ मिमलीं। "र गांधीजी ने इंग्लैंड जाने का दृढ़ पिनश्चय कर क्तिलया था। 4 क्तिसतंबर 1888 को वे इंग्लैंड जाने के क्तिलए रवाना हुए। इसके कुछ मपि*ने बाद उनकी "त्नी कस्तूरबा ने एक संुदर

से लड़के को जन्मे टिदया।आरंभ के कुछ टिदन गांधीजी के क्तिलए काफी दुखदायी थे। उनका व*ाँ मन न*ीं लगता था। "मैं *मेशा अ"ने घर और देश के बारे में सोचा करता था। सब कुछ अस*ज लगता था। अकेला"न "ूरी तर* *ावी *ो चुका था। मांस न खाने की प्रपितज्ञा ने मेरी कटिठनाइयों को और भी बढ़ा टिदया था। संशय और आशंकाए ँअकेले"न की भावना का उभार र*ी थीं। मुझे मेरा भपिवष्य अंधकारमय लगने लगा। अकेले"न के अपितशय दुख से घबराकर जब मैं सोचता पिक लम्बे-लम्बे तीन साल य*ाँ का'ने *ोंगे तो मेरी आँखों की नींद उड़ जाती और मैं फू'-

फू'कर रोने लगता।"

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कुछ टिदनों के "श्चात एम के गांधी ने "ूरी तर* से 'जें'लमैन` बनने का पिनश्चय पिकया। ल्रदन के सबसे फैशनेबल और म*ंगे दर्जिज;यों से सू'

क्तिसलाये गये। घड़ी में लगाने के क्तिलए भारत से सोने की दुलड़ी चैन भी उन्*ोंने मंगवा ली। नाच-गाने की क्तिशक्षा लेने लगे। क्तिसल्की (रेशमी) 'ो"ी

भी उन्*ोंने खरीदी।लेपिकन आत्मपिनरीक्षण की उनकी आदत ने उनके मन को झकझोर कर रख टिदया। य* तामझाम उन्*ें बेमानी लगने लगा। तीन म*ीने फैशन की चकचौंध में भ'कने के बाद उन्*ोंने पिफजूलखचh छोड़कर मिमतव्यमियता का मागJ चुना। उन्*ोंने पिनश्चय पिकया पिक वे अ"ने जीवन में तड़क-भड़क को स्थान न देकर अ"ने चारिरपित्रक गुणों का पिवकास करेंगे। उनके मत में

"उच्च चरिरत्र *ी व्यक्ति/ को 'जें'लमैन` बना सकता *ै।"दूसरे वषJ उनके एक क्तिथयोक्तिसपिफकल मिमत्र ने उन्*ें एडपिवन अन�ल्ड के

छंद बm गीता अनुवाद वाली "ुस्तक 'टिद सांग सेलेस्टिस्'यल` की जानकारी दी। य* "*ला अवसर था जब उन्*ोंने गीता का अध्ययन पिकया। "*ली बार में *ी गीता से उनके युवा मन को बल मिमला और

धीरे-धीरे गीता उनके जीवन की सूत्रधार बन गई। "इसके अध्ययन ने मेरे जीवन की टिदशा बदल दी।" इसके कुछ *ी टिदनों बाद उनके एक ईसाई

मिमत्र ने उनका "रिरचय 'बाइबल` से करवाया। उन्*ोंने बाइबल का अध्ययन पिकया। य*ीं "र उन्*ोंने बुm की जीवनी से उन्*ें काफी प्रेरणा मिमली। इन सभी "ुस्तकों से उनका युवा मन आंदोक्तिलत हुआ। उनके

चिच;तन में इनका प्रभाव स्पष्ट टिदखाई देता *ै।"रीक्षा "ास करने के बाद तीन वषk के "श्चात गांधीजी 1891 में "ुनः भारत लौ'े। तीन वषJ तक उन्*ोंने माँ को टिदये वचन का "ालन पिकया। पिकसी युवक द्वारा अ"नी प्रपितज्ञा का पिवदेशी सरजमीं "र "ालन करना पिनभिश्चत *ी इसकी म*ानता को दशाJता *ै। वे बैरिरस्'र बनकर स्वदेश

लौ'े। 

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व्यावसामियक जीवन की शुरूआतबम्बई में ज*ाज से उतरते *ी एक अत्यंत दुखद समाचार सुनने को

मिमला। इस समाचार ने उन्*ें पि*ला कर रख टिदया। समाचार य* था पिक जब व* इंग्लैंड में थे तभी उनकी माँ चल बसी थीं। "रिरवरवालों ने जान-बूझकर उनसे य* खबर क्तिछ"ा रखी थी, तापिक वे अ"नी "ढ़ाई "ूरी कर

सकें ।कुछ समय राजको' में पिबताने के "श्चात् गांधीजी ने बम्बई आकर वकालत करने का पिनश्चय पिकया। कुछ टिदनों तक वे य*ाँ र*े। किक;तु अदालत के मा*ौल से वे क्षुब्ध *ो गये। रिरश्वत, झूठ, साजिजश और वकीलों की घटि'या दलीलों से उन्*ें घृणा *ोने लगी। इसक्तिलए मौका मिमलते *ी, वे य*ाँ से अन्य क*ीं और जाने के क्तिलए तैयार बैठे थे।

अ"ने आ"को बम्बई में असफल *ोता देख वे एक पिफर राजको' चले गये। य*ाँ भी उन्*ें सुकून न*ीं मिमला। इसी बीच उन्*ें व* मौका मिमल गया जिजसकी उन्*ें तलाश थी। दभिक्षण अफ्रीका का स्थिस्थत भारतीय

मुस्थिस्लम फमJ दादा अब्दुल्ला एडं कं"नी ने अ"ने मुकदमे की "ैरवी के क्तिलए दभिक्षण अफ्रीका में उन्*ें आमंपित्रत पिकया। दभिक्षण अफ्रीका का य*

प्रस्ताव उन्*ें भा गया। वषJ 1893 के अप्रैल म*ीने में चौबीस वषhय गांधीजी दभिक्षण अफ्रीका चले गये।

ज*ाज छ सप्ता* में डरबन "हुँचा। व*ाँ अब्दुल्ला सेठ ने उनकी अगवानी की। व*ाँ भारतीयों की  संख्या अमिधक थी। य*ाँ के अमिधकांश व्या"ारी मुसलमान थे। मुसलमान अ"ने को 'अरब` तो "ारसी अ"ने

आ"को '"र्शिश;यन` क*लाना "संद करते थे। य*ाँ भारतीयों को, चा*े वो कोई भी काम क्यों न करता *ों, पिकसी भी धमJ जापित के क्यों न *ों,

यूरो"ीय उन्*ें 'कुली` क*ते थे। दभिक्षण अफ्रीका के एकमात्र बैरिरस्'र एम. के. गांधी शीघ्र *ी 'कुली बैरिरस्'र` के नाम से जाने जाने लगे।

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डरबन में एक सप्ता* पिबताने के बाद गांधीजी {ंसवाल की राजधानी पिप्र'ोरिरया जाने को तैयार हुए। उनके मुवस्थिक्कल के मुकदमे की सुनवाई व*ीं *ोनी थी। अब्दुल्ला ने उन्*ें प्रथम दजT का टि'क' खरीद कर टिदया। जब गाड़ी नाताल की राजधानी मार्टि';जबगJ

"हँुची, तो रात 9 बजे के करीब एक शे्वत यात्री पिडब्बे में आया। उसने रेल कमJचारीयों की उ"स्थिस्थपित में गांधीजी को 'सामान्य पिडब्बे` में जाने का आदेश टिदया। गांधीजी ने इसे मानने से इंकार कर टिदया। इसके बाद एक क्तिस"ा*ी की मदद से उन्*ें बल"ूवJक उनके

सामान के साथ पिडब्बे के बा*र ढकेल टिदया गया। उस रात कड़ाके की ठंड थी। ठंड की उस रात में प्रपितक्षा कक्ष में बैठे गांधीजी सोचने लगे : ृृमैं अ"ने अमिधकारों के क्तिलए लडू ँया पिफर भारत वा"स लौ' जाउ?ृृ अंत में उन्*ोंने अ"ने अमिधकारों की लड़ाई लड़ने का

पिनश्चय पिकया।अगले टिदन आरभिक्षत बथJ "र यात्रा करते हुए गांधीजी चाल्सJ'ाउन "हँुचे। य*ाँ एक और

टिदक्कत उनका इंतजार कर र*ी थी। य*ाँ से उन्*ें जो*ान्स्बगJ के क्तिलए बग्गी "कड़नी थी। "*ले तो एजें' उन्*ें यात्रा की अनुमपित देने के "क्ष में *ी न*ीं था, "र गांधीजी के आग्र* "र उसने उन्*ें अनुमपित तो दे दी। लेपिकन बग्गी में न*ीं बल्किल्क कोचवान के साथ बा*र बक्से "र बैठ कर उन्*ें यात्रा करनी थी। गांधीजी अ"मान के इस कड़वे घूं' को भी "ी गये। लपेिकन कुछ देर बाद जब उस स*यात्री ने गांधीजी को "ायदान के "ास बैठने को क*ा, तापिक व*ी खुली *वा और क्तिसगारे' का आनंद कोचवान के "ास बैठ कर ले सके, तो गांधीजी ने इंकार कर टिदया। इस "र उस आदमी ने गांधीजी की खूब

पि"'ाई की। कुछ यापित्रयों ने बीच-बचाव पिकया और गांधीजी को उनकी जग* "ुनः दे दी गई।

पिप्र'ोरिरया तक की यात्रा के अनुभवों ने, {ंसवाल में भारतीयों की स्थिस्थपित का उन्*ें आभास करा टिदया था। सामाजिजक न्याय के "क्षधर गांधीजी इस संबंध में कुछ करना चा*ते थे। वे तैय्यब सेठ के "ास गये। मुकदमा उसके *ी खिखलाफ चल र*ा था। उससे उन्*ोंने मिमत्रता कर ली, य* एक पिवक्तिशष्ट प्रयास था। उसकी मदद से उन्*ोंने {ंसवाल की

राजधानी में र*ने वाले सभी भारतीयों की एक बैठक बुलाई। बैठक एक मुसलमान व्या"ारी के घर "र हुई और गांधीजी ने बैठक को संबोमिधत पिकया। अ"ने जीवन में

गांधीजी का य* "*ला भाषण था। उन्*ोंने भारत से आने वाले सभी धमk एवं जापितयों के लोगों से भेदभाव मिम'ाने का आग्र* पिकया। साथ *ी एक स्थायी संस्था बनाने का

सुझाव टिदया तापिक भारतीयों के अमिधकारों की सुरक्षा की जा सके और समय-समय "र अमिधकारीयों के समक्ष उनकी समस्याओं को उठाया जा सके।

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नाताल की उ"ेक्षा {ंसवाल में भारतीयों की स्थिस्थपित बदतर थी। य*ाँ भारतीयों को असमानताओं, पितरस्कारों और कटिठनाइयों का अमिधक सामना करना "ड़ता था। य*ाँ के कठोर कानून की मार *र भारतीय झेल र*ा था। {ंसवाल में प्रवेश के क्तिलए उन्*ें तीन "ाउंड का 'प्रवेश कर` देना "ड़ता था। रापित्र में नौ बजे के बाद बा*र पिनकलने के क्तिलए अनुमपित "त्र लेना "ड़ता था। वे सावJजपिनक फु'"ाथों "र न*ीं चल सकते थे, उन्*ें "शुओं के साथ गक्तिलयों के रास्ते में *ी चलना

"ड़ता था। एक बार तो राष्ट्र"पित कू्रगर के घर के पिनक' फु'"ाथ "र चलने के क्तिलए गांधीजी "ुक्तिलसवालों के *त्थे चढ़ गये थे।

कुछ काल के क्तिलए भारतीयों की दुदJशा की ओर से गांधीजी का ध्यान *' गया - व्याव*ारिरक कारण य* था पिक उन्*ें अब्दुल्ला सेठ की मुकदमे की ओर ध्यान देना था, जिजसके क्तिलए वे य*ाँ आये थे। उन्*ोंने अब्दुल्ला सेठ और उनके चचेरे

भाई तैय्यब सेठ के बीच सुल* करा दी। उनके इस शांपित"ूणJ समझौते की चचाJ व*ाँ का *र भारतीय करता र*ा। गांधीजी का एक वषJ समाप्त *ो गया था, और मुकदमा तय करने के बाद वे स्वदेश लौ'ने की तैयारी करने लगे थे। वे

डरबन लौ' आये। अब्दुल्ला सेठ ने उनके सम्मान में एक पिवदाई समारो* आयोजिजत पिकया। इस पिवदाई समारो* के दौरान गांधीजी की

नजर समाचार "त्र में छ"ी एक खबर "र "ड़ी, जो नाताल के 'इंपिडयन फ्रैं चाइज़ पिबल` के बारे में था। इस पिवधेयक के जरिरये व*ाँ के भारतीयों का मतामिधकार छीना जा र*ा था। गांधीजी ने इसके गंभीर "रिरणामों से लोगों को अवगत

कराया। भारतीय मूल के लोग गांधीजी से व*ाँ ठ*रने और उनका मागJदशJन करने की क्तिचरौरी करने लगे। गांधीजी ने व*ाँ एक मपि*ना ठ*रने की बात इस शतJ "र मान ली पिक सभी लोग अ"ने मतामिधकार के क्तिलए आवाज उठायेंगे।

गांधीजी ने व*ाँ स्वयंसेवकों का एक संगठन खड़ा पिकया। व*ाँ के पिवधानमंडल के अध्यक्ष को तार भेजकर य* अनुरोध पिकया पिक वे भारतीयों का "क्ष सुने पिबना मतामिधकार पिवधेयक वर ब*स न करें। लेपिकन इसे नजरंदाज कर मतामिधकार पिवधेयक ""रिरत कर टिदया गया। गांधीजी *ार मानने वाले न*ीं थे। उन्*ोंने लंदन में उ"पिनवेशों के मंत्री लाडJ रिर"न के

समक्ष अ"नी व* याक्तिचका "ेश की, जिजस "र अमिधकामिधक नाताल भारतीयों के *स्ताक्षर थे।बैचेनी भरा एक म*ीना बीत जाने के बाद छोड़ना गांधीजी के क्तिलए असंभव लगने लगा था। डरबन के भारतीयों की समस्याओं ने उन्*ें रोक क्तिलया। लोगों ने उनसे व*ीं वकालत करने का आग्र* पिकया। समाज सेवा के क्तिलए "ारिरश्रमिमक

लेना उनके स्वभाव के पिवरूm था। लेपिकन उनकी बैरिरस्'र की गरिरमा के अनुरू" तीन सौ "ाउंड प्रपितवषJ की जरूरतवाले धन की व्यवस्था भारतीस मूल के लोगों द्वारा की गई। इसके बाद गांधीजी ने अ"ने आ"को जनसेवा में

समर्ति";त कर टिदया। नाताल के सव�च्च न्यायालय में काफी "रेशापिनयाँ झेलने के बाद अंत में उन्*ें व*ाँ के प्रमुख न्यायाधीश ने वकील के रू" में श"थ टिदलाई। संघषJ करके गांधीजी काले-गोरे का भेद मिम'ाकर सव�च्च न्यायालय के

वकील बन गये।

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दभिक्षण अफ्रीका में गांधीजी का 'सत्याग्र*'गांधीजी के पिनःस्वाथJ कायk और व*ाँ जमी वकालत को देखते हुए तो ऐसा

लगने लगा था पिक जैसे व* नाताल में बस गये *ों। सन् 1896 के मध्य में व* अ"ने "ूरे "रिरवार को अ"ने साथ नाताल ले जाने के उदे्दश से भारत आये।

अ"नी इस यात्रा के दौरान उनका लक्ष्य दभिक्षण अफ्रीका के भारतीयों के क्तिलए देश में यथाशक्ति/ समथJन "ाना और जनमत तैयार करना भी था।

राजको' में र*कर उन्*ोंने प्रवासी भारतीयों की समस्या "र एक "ुस्तक क्तिलखी और उसे छ"वाकर देश के प्रमुख समाचार "त्रों में उसकी प्रपितयाँ

भेजी। इसी समय राजको' में फैली म*ामारी प्लेग अ"ना उग्र रू" धारण कर चुकी थी। गांधीजी स्वयंसेवक बनकर अ"नी सेवाँए देने लगें। व*ाँ की

दक्तिलत बल्किस्तयों में जाकर उन्*ोंने प्रभापिवतों की *र संभव स*ायता की।अ"नी यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात देश के प्रखर नेताओं से हुई। बदरुद्दीन तैय्यब, सर पिफरोजशा* मे*ता, सुरेंद्रनाथ बेनजh, लोकमान्य

जिजलक, गोखले आटिद नेताओं के व्यक्ति/त्व का उन "र ग*रा प्रभाव "ड़ा। इन सभी के समक्ष उन्*ोंने प्रवासी भारतीयों की समस्याओं को रखा। सर

पिफरोजश*ा मे*ता की अध्यक्षता में गांधीजी द्वारा भाषण देने का कायJक्रम बंबई में सं"न्न हुआ। इसके बाद कलकत्ता में गांधीजी द्वारा एक जनसभा को संबोमिधत पिकया जाना था। लेपिकन इससे "*ले पिक वे ऐसा कर "ाते, दभिक्षण अफ्रीका के भारतीयों का एक अत्यावश्यक तार उन्*ें आया। इसके बाद वे अ"नी "त्नी और बच्चों के साथ वषJ 1896 के नवंबर म*ीने में डरबन के

क्तिलए रवाना *ो गये।

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भारत में गांधीजी ने जो कुछ पिकया और क*ा उसकी स*ी रिर"ो'J जो नाताल न*ीं "हुँची। उसे बढ़ा-चढ़ाकर तोड़-मरोड़ कर व*ाँ "ेश पिकया गया। इसे लेकर व*ाँ के गोरे वाचिश;दे

गुस्से से आग बबुला *ो उठे थे। 'कू्ररलैंड` नामक ज*ाज से जब गांधीजी नाताल "हँुचे तो व*ाँ के गोरों ने उनके साथ अभद्र व्यव*ार पिकया। उन "र सडे़ अंडों और कंकड़ "त्थर

की बौछार *ोने लगी। भीड़ ने उन्*ें लात-घूसों से "ी'ा। अगर "ुक्तिलस सु"रिर;'ेंडं' की "त्नी ने बीच-बचाव न पिकया *ोता तो उस टिदन उनके प्राण "खेरू उड़ गये *ोते। उधर लंदन के

उ"पिनवेश मंत्री ने गांधीजी "र *मला करने वालों "र कारJवाई करने के क्तिलए नाताल सरकार को तार भेजा। गांधीजी ने ओरपि"यों को "*चानने से इंकार करते हुए उनके

पिवरुm कोई भी कारJवाई न करने का अनुरोध पिकया। गांधीजी ने क*ा, "वे गुमरा* पिकये गये *ैं, जब उन्*ें सच्चाई का "ता चलेगा तब उन्*ें अ"ने पिकये का "श्चाता" खुद *ोगा। मैं उन्*ें क्षमा करता हूँ।" ऐसा लग र*ा था जैसे ये वाक्य गांधीजी के न *ोकर उनके भीतर

स्पटंिदत *ो र*े पिकसी म*ात्मा के *ों।{ंसवाल की सरकार ने एक कानून बनाने की घोषणा की थी, जिजसके मुतापिबक आठ वषJ की आयु से अमिधक के *र भारतीय को अ"ना "ंजीकरण कराना *ोगा। उसकी अंगुक्तिलयों

के पिनशान क्तिलये जायेंगे और उसे प्रमाण "त्र लेकर *मेशा अ"ने "ास रखना *ोगा। गांधीजी ने इस काले कानून का पिवरोध पिकया। लोगों को जु'ाकर सभाए ँकी। जनवरी 1908 में गांधीजी को नके अन्य सत्याग्रपि*यों के साथ दो म*ीने के क्तिलए जेल भेज टिदया

गया।इसके बाद जनरल स्म'स् ने गांधीजी के सामने प्रस्ताव रखा - यटिद भारतीय स्वेच्छा से

"ंजीकरण करवा लेंगे, तो अपिनवायJ "ंजीकरण का कानून रद्द कर टिदया जाएगा। समझौता *ो गया और स्म'स् ने गांधीजी सं क*ा पिक अब वे आजाद *ैं। जब गांधीजी ने

अन्य भारतीय बंटिदयों के बारे में "ूछा तब जनरल ने क*ा पिक बाकी लोगों को अगली सुब* रिर*ा कर टिदया जायेगा। गांधीजी जनरल के वचन को सत्य मानकर जो*ान्सबगJ

लौ'े।इधर स्म'स् ने अ"ना वचन भंग कर टिदया। इसे लेकर भारतीय आग बबूला *ो उठे। जो*ान्सबगJ में 16 अगस्त 1908 को पिवशाल सभा हुई, जिजसमें काले कानून के प्रपित

पिवरोध प्रदर्शिश;त करते हुए लोगों ने "ंजीकरण प्रमाण "त्रों की *ोली जलाई। गांधीजी खुद कानून का उल्लंघन करने के क्तिलए आगे बढे़। एक बार पिफर 10 अ/ूबर 1908 को वे पिगरफ्तार हुए। इस बार उन्*ें एक म*ीने के कठोर श्रम कारावास की सजा सुनाई गई। गांधीजी का संघषJ जारी था। फरवरी 1909 में एक बार पिफर उन्*ें पिगरफ्तार कर तीन म*ीने के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस बार की जेल यात्रा में उन्*ोंने काफी

वाचन पिकया। य*ाँ वे पिनत्य प्राथJना भी करते थे।

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वषJ 1911 में गोखलेजी दभिक्षण अफ्रीका की यात्रा "र आये। बोअर जनरलों ने गांधीजी और गोखले से भारतीयों के खिखलाफ अमिधक भेदभाव वाली कुव्यवस्थाओं को समाप्त करने का वादा पिकया। लेपिकन व्यक्ति/ कर की व्यवस्था बंद न*ीं की गई। गांधीजी संघषJ

करने के क्तिलए तैयार *ो गये। मपि*लाए ँजो अब तक आंदोलन में सपिक्रय न*ीं थीं, गांधीजी के आवा*न "र उठ खड़ी हुईं। उनमें बक्तिलदान की मशाल जल उठी। अब सत्याग्र* नये

तेवर के रू" में सामने आ र*ा था। गांधीजी ने पिनश्चय पिकया पिक मपि*लाओं का एक जत्था कानून की धस्थि�याँ उड़ाते हुए {ंसवाल से नाताल जायेगा। व* भी पिबना कर टिदये।

मपि*लाए ँइस संघषJ यज्ञ में बढ़-चढ़कर शामिमल हुईं। उनकी "त्नी कस्तूरबा भी इसमें शामिमल हुईं। 

इस कानून को तोड़ने का प्रयास कर र*ीं मपि*लाओं को पिगरफ्तार कर क्तिलया गया। गांधीजी के मागJदशJन में कई जग* *ड़तालें हुईं। अकि*;सा का मागJ अ"नाते हुए गांधीजी ने अ"ना सत्याग्र* शुरू पिकया। गांधीजी को पिगरफ्तार कर क्तिलया गया। कई सत्याग्र*ी

कमर कस चुके थे। गांधीजी का सत्याग्र* रंग ले चुका था। कई लोगों ले अ"नी पिगरफ्तारीयाँ दीं। "ुक्तिलस की पि"'ाई और भुखमरी के बावजूद सत्याग्र*ी अ"ने मागJ "र

अ'ल थे।गांधीजी का सत्याग्र* एक अचूक *क्तिथयार क्तिसm हुआ। अंततः समझौता हुआ और "भारतीय रा*त पिवधेयकृ "ास हुआ। कानून में य* प्रावधान पिकया गया पिक पिबना अनुमपित भारतीय एक प्रांत से दूसरे प्रांत में तो न*ीं जा सकते, लेपिकन य*ाँ जन्में

भारतीय के" कॉलनी में जाकर र* सकें गे। अलावा इसके भारतीय "mपित के पिववा*ों को वैध घोपिषत पिकया गया। अनुबंमिधत श्रमिमकों "र से व्यक्ति/ कर *'ा क्तिलया गया, साथ *ी

बकाया रद्द कर टिदया गया।अब दभिक्षण अफ्रीका में गांधीजी का कायJ "ूणJ *ो चुका था। 18 जुलाई 1914 को वे गोखले के बुलावे "र समुद्री मागJ से अ"नी "त्नी के साथ इंग्लैंड रवाना हुए। जाने से

"*ले जेल में अ"ने द्वारा बनाई गई च"लों की जोड़ी उन्*ोंने स्म'स् को भें' दी। जनरल स्म'स् ने इसे "च्चीस वषk तक "*ना। बाद में उन्*ोंने क्तिलखा, "तब से मैंने कई गर्मिम;यों में इन च"लों को "*ना *ै, *ालांपिक मुझे य* अ*सास *ै पिक इतने म*ान व्यक्ति/ की मैं पिकसी

प्रकार बराबरी न*ीं कर सकता।"

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चंपारण और खेड़ागांधी की "*ली बड़ी उ"लल्किब्ध १९१८ में चम्पारन (Champaran) और खेड़ा सत्याग्र*, आंदोलन में मिमली *ालांपिक अ"ने पिनवाJ* के क्तिलए जरूरी खाद्य फसलों की बजाए नील (indigo) नकद "ैसा देने वाली खाद्य फसलों की खेती वाले आंदोलन भी म*त्व"ूणJ र*े। जमींदारों (अमिधकांश अंग्रेज) की ताकत से दमन हुए भारतीयों को नाममात्र भर"ाई भत्ता

टिदया गया जिजससे वे अत्यमिधक गरीबी से मिघर गए। गांवों को बुरी तर* गंदा और अस्वास्थ्यकर (unhygienic); और शराब , अस्पृश्यता और "दाJ से बांध टिदया गया। अब

एक पिवनाशकारी अकाल के कारण शा*ी कोष की भर"ाई के क्तिलए अंग्रेजों ने दमनकारी कर लगा टिदए जिजनका बोझ टिदन प्रपितटिदन बढता *ी गया। य* स्थिस्थपित पिनराशजनक थी। खेड़ा (Kheda), गुजरात में भी य*ी समस्या थी। गांधी जी ने व*ां एक आश्रम (ashram) बनाया ज*ाँ उनके बहुत सारे समथJकों और नए स्वेस्थिच्छक कायJकताJओं को संगटिठत पिकया गया।

उन्*ोंने गांवों का एक पिवस्तृत अध्ययन और सवTक्षण पिकया जिजसमें प्राभिणयों "र हुए अत्याचार के भयानक कांडों का लेखाजोखा रखा गया और इसमें लोगों की अनुत्"ादकीय सामान्य अवस्था को भी शामिमल पिकया गया था। ग्रामीणों में पिवश् वास "ैदा करते हुए उन्*ोंने अ"ना

कायJ गांवों की सफाई करने से आरंभ पिकया जिजसके अंतगJत स्कूल और अस्पताल बनाए गए और उ"रो/ वर्णिण;त बहुत सी सामाजिजक बुराईयों को समाप्त करने के क्तिलए ग्रामीण नेतृत्व

पे्ररिरत पिकया।लेपिकन इसके प्रमुख प्रभाव उस समय देखने को मिमले जब उन्*ें अशांपित फैलाने के क्तिलए

"ुक्तिलस ने पिगरफ्तार पिकया और उन्*ें प्रांत छोड़ने के क्तिलए आदेश टिदया गया। *जारों की तादाद में लोगों ने पिवरोध प्रदशJन पिकए ओर जेल, "ुक्तिलस स्'ेशन एवं अदालतों के बा*र रैक्तिलयां पिनकालकर गांधी जी को पिबना शतJ रिर*ा करने की मांग की। गांधी जी ने जमींदारों के खिखलाफ़ पिवरोध प्रदशJन और *ड़तालों को का नेतृत्व पिकया जिजन्*ोंने अंग्रेजी सरकार के मागJदशJन में उस के्षत्र के गरीब पिकसानों को अमिधक क्षपित"ूर्तित; मंजूर करने तथा खेती "र

पिनयंत्रण , राजस्व में बढोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रपि*त करने वाले एक समझौते "र *स्ताक्षर पिकए। इस संघषJ के दौरान *ी, गांधी जी को जनता ने बा"ू पि"ता और म*ात्मा

(म*ान आत्मा) के नाम से संबोमिधत पिकया। खेड़ा में सरदार "'ेल ने अंग्रेजों के साथ पिवचार पिवमशJ के क्तिलए पिकसानों का नेतृत्व पिकया जिजसमें अंग्रेजों ने राजस्व संग्र*ण से मुक्ति/ देकर

सभी कैटिदयों को रिर*ा कर टिदया गया था। इसके "रिरणामस्वरू" , गांधी की ख्यापित देश भर में फैल गई।

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अस�योग आन्दोलनगांधी जी ने अस*योग, अकि*;सा तथा शांपित"ूणJ प्रपितकार को अंग्रेजों के खिखलाफ़ शस्त्र के रू" में उ"योग

पिकया। "ंजाब में अंगे्रजी फोजों द्वारा भारतीयों "र जक्तिलयावांला नरसं*ार जिजसे अमृतसर नरसं*ार के नाम से भी जाना जाता *ै ने देश को भारी आघात "हंुचाया जिजससे जनता में क्रोध और कि*;सा की ज्वाला भड़क

उठी। गांधीजी ने पि%टि'श राज तथा भारतीयों द्वारा प्रपितकारात्मक रवैया दोनों की की। उन्*ोंने पि%टि'श नागरिरकों तथा दंगों के क्तिशकार लोगों के प्रपित संवेदना व्य/ की तथा "ा'¤ के आरंभिभक पिवरोध के बाद दंगों की भंत्सJना की। गांधी जी के भावनात्मक भाषण के बाद अ"ने क्तिसmांत की वकालत की पिक सभी कि*;सा

और बुराई को न्यायोक्तिचत न*ीं ठ*राया जा सकता *ै। [4] किक;तु ऐसा इस नरसं*ार और उसके बाद हुई कि*;सा से गांधी जी ने अ"ना मन सं"ूणJ सरकार आर भारतीय सरकार के कब्जे वाली संस्थाओं "र सं"ूणJ

पिनयंत्रण लाने "र कें टिद्रत था जो जल् दी *ी स्वराज अथवा सं"ूणJ व्यक्ति/गत, आध् यात्मित्मक एवं राजनैपितक आजादी में बदलने वाला था।

टिदसंबर १९२१ में गांधी जो भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस.का कायJकारी अमिधकारी पिनयु/ पिकया गया। उनके नेतृत्व में कांगे्रस को स्वराज.के नाम वाले एक नए उदे्दश् य के साथ संगटिठत पिकया गया। "ाद¤ में सदस्यता

सांकेपितक शुल्क का भुगताने "र सभी के क्तिलए खुली थी। "ा'¤ को पिकसी एक कुलीन संगठन की न बनाकर इसे राष्ट्रीय जनता की "ा'¤ बनाने के क्तिलए इसके अंदर अनुशासन में सुधार लाने के क्तिलए एक "दसो"ान समिमपित गटिठत की गई। गांधी जी ने अ"ने अकि*;सात्मक मंच को स्वदेशी नीपित — में शामिमल करने के क्तिलए पिवस्तार पिकया जिजसमें पिवदेशी वस्तुओं पिवशेषकर अंग्रेजी वस्तुओं का बपि*ष्कार करना था। इससे जुड़ने वाली उनकी वकालत का क*ना था पिक सभी भारतीय अंगे्रजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अ"ेक्षा *मारे अ"ने लोगों द्वारा *ाथ से बनाई गई खादी "*नें। गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन [5] को स*योग देने के क्तिलए"ुरूषों और मपि*लाओं को प्रपितटिदन खादी के क्तिलए सूत कातने में समय पिबताने के क्तिलए क*ा। य*

अनुशासन और सम"Jण लाने की ऐसी नीपित थी जिजससे अपिनच्छा और म*त्वाकाक्षा को दूर पिकया जा सके और इनके स्थान "र उस समय मपि*लाओं को शामिमल पिकया जाए जब ऐसे बहुत से पिवचार आने लगे पिक इस प्रकार की गपितपिवमिधयां मपि*लाओं के क्तिलए सम्मानजनक न*ीं *ैं। इसके अलावा गांधी जी ने पि%'ेन की

शैभिक्षक संस्थाओं तथा अदालतों का बपि*ष्कार और सरकारी नौकरिरयों को छोड़ने का तथा सरकार से प्राप्त तमगों और सम्मान को वा"स लौ'ाने का भी अनुरोध पिकया।

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अस*योग को दूर-दूर से अ"ील और सफलता मिमली जिजससे समाज के सभी वगk की जनता में जोश और भागीदारी बढ गई।

पिफर जैसे *ी य* आंदोलन अ"ने शीषJ "र "हुंचा वैसे फरवरी १९२२ में इसका अंत चोरी - चोरा ( Chauri Chaura),

उत्तरप्रदेश में भयानक दे्वष के रू" में अंत हुआ। आंदोलन द्वारा कि*;सा का रूख अ"नाने के डर को ध् यान में रखते हुए और इस "र

पिवचार करते हुए पिक इससे उसके सभी कायk "र "ानी पिफर जाएगा, गांधी जी ने व्या"क अस*योग [6] के इस आंदोलन को

वा"स ले क्तिलया। गांधी "र पिगरफ्तार पिकया गया १० माचJ, १९२२, को राजद्रो* के क्तिलए गांधी जी "र मुकदमा चलाया गया जिजसमें उन्*ें छ* साल कैद की सजा सुनाकर जैल भेद टिदया गया। १८

माचJ, १९२२ से लेकर उन्*ोंने केवल २ साल *ी जैल में पिबताए थे पिक उन्*ें फरवरी १९२४ में आंतों के ऑ"रेशन के क्तिलए रिर*ा कर

टिदया गया।गांधी जी के एकता वाले व्यक्ति/त्व के पिबना इंपिडयन नेशनल कांगे्रस

उसके जेल में दो साल र*ने के दौरान *ी दो दलों में बं'ने लगी जिजसके एक दल का नेतृत्व सदन में "ा'¤ की भागीदारी के "क्ष

वाले क्तिचत्त रंजन दास तथा मोतीलाल ने*रू ने पिकया तो दूसरे दल का नेतृत्व इसके पिव"रीत चलने वाले चक्रवतh राजगो"ालाचायJ

और सरदार वल्लभ भाई "'ेल ने पिकया। इसके अलावा , कि*;दुओं और मुसलमानों के बीच अकि*;सा आंदोलन की चरम सीमा "र

"हुंचकर स*योग 'ू' र*ा था। गांधी जी ने इस खाई को बहुत से साधनों से भरने का प्रयास पिकया जिजसमें उन्*ोंने १९२४ की बसंत में सीमिमत सफलता टिदलाने वाले तीन सप्ता* का उ"वास करना

भी शामिमल था।

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भारत में सत्याग्र* की शुरूआत गांधीजी अप्रैल 1893 में दभिक्षण अफ्रीका गये थे। जनवरी 1915 में म*ात्मा बनकर वे भारत लौ'े।

अब उनके जीवन का एक *ी मकसद था - लोगों की सेवा। गांधीजी दभिक्षण अफ्रीका में जिजतने लोकपिप्रय थ,े उतना भारत में न*ीं, क्योंपिक अभी तक उनका संघषJ, सत्याग्र*, आंदोलन दभिक्षण

अफ्रीका में बसे भारतीयों के क्तिलए *ी सीमिमत था। रवींद्रनाथ 'गौर ने इस म*ात्मा की भारत वा"सी का स्वागत करते हुए शांपित पिनकेतन में आने का पिनमंत्रण भी टिदया। गांधीजी शांपित पिनकेतन और

भारतीय "रिरस्थिस्थती से ज्यादा "रिरक्तिचत न*ीं थे। गोखले की इच्छा थी पिक गांधीजी भारतीय राजनीपित में सपिक्रय योगदान दें। अ"ने राजनीपितक गुरू गोखले को उन्*ोंने वचन टिदया पिक वे अगले एक वषJ भारत में र*कर देश के *ालात का अध्ययन करेंगे। इस दौरान 'केवल उनके कान खुले र*ेंगे, मुँ*

"ूरी तर* बंद र*ेगा।' एक तर* से य* गांधीजी का एक वषhय 'मौन व्रत' था। वषJ की समास्टिप्त के समय गांधीजी अ*मदाबाद स्थिस्थत साबरमती नदी के त' के "ास आकर बस गये। उन्*ोंने इस संुदर जग* "र साबरमती आश्रम बनाया। इस आश्रम की स्था"ना उन्*ोंने मई

1915 में की थी। वे इसे 'सत्याग्र* आश्रम' क*कर संबोमिधत करते थे। आरंभ में इस आश्रम से कुल 25 मपि*ला-"ुरुष स्वयंसेवक जुडे़। जिजन्*ोंने सत्य, पे्रम, अकि*;सा, अ"रिरग्र* और अस्तेय के मागJ "र

चलने का संकल्" क्तिलया। इन स्वयंसेवकों ने अ"ना "ूरा जीवन 'लोगों की सेवा में' पिबताने का पिनश्चय पिकया।

गांधीजी का 'मौन व्रत' समाप्त *ो चुका था। "*ली बार भारत में गांधीजी सावJजपिनक सभा में भाषण देने के क्तिलए तैयार थे। 4 फरवरी 1916 के टिदन बनारस पि*न्दू पिवश्वपिवद्यालय के उद्घा'न

समारो* में छात्रों, प्रोफेसरों, म*ाराजाओं और अंग्रेज अमिधकारीयों की उ"स्थिस्थपित में उन्*ोंने भाषण टिदया। इस अवसर "र वाइसराय भी स्वयं उ"स्थिस्थत था। एक पि*न्दू राष्ट्रीय पिवश्वपिवद्यालय के उद्घा'न समारो* में अंग्रेजी भाषा में बोलने की अ"नी पिववशता "र खेद प्रक' करते हुए उन्*ोंने भाषण की

शुरूआत की। उन्*ोंने भारतीय राजाओं की तड़क-भड़क, शानो-शौकत, *ीरे-जवा*रातों तथा धूमधाम से आयोजनों में *ोने वाली पिफजूल खचh की चचाJ की। उन्*ोंने क*ा,"एक ओर तो

अमिधकांश भारत भूखों मर र*ा *ै और दूसरी ओर इस तर* "ैसों की बबाJदी की जा र*ी *ै।" उन्*ोंने सभा में बैठी राजकुमारीयों के गले में "ड़े *ीरे-जवा*रातों की ओर देखते हुए क*ा पिक

'इनका उ"योग तभी *ै, जब ये भारतवाक्तिसयों की दरिरद्रता देर करने के काम आयें।' कई राजकुमारीयों और अंग्रेज अमिधकारीयों ने सभा का बपि*ष्कार कर टिदया। उनका भाषण देश भर में

चचाJ का पिवषय बन गया था।

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भारत में गांधीजी का "*ला सत्याग्र* पिब*ार के चम्पारन में शुरू हुआ। व*ाँ "र नील की खेती करने वाले पिकसानों "र बहुत अत्याचार *ो र*ा था। अंग्रेजों की ओर से खूब शोषण *ो र*ा था। ऊ"र से कुछ बगान

माक्तिलक भी जुल्म छा र*े थे। गांधीजी स्थिस्थपित का जायजा लेने व*ाँ "हुँचे। उनके दशJन के क्तिलए *जारों लोगों की भीड़ उमड़ "ड़ी। पिकसानों ने अ"नी सारी समस्याए ँबताईं। उधर "ुक्तिलस भी *रकत में आ गई। "ुक्तिलय सु"रिर'ेंडं' ने गांधीजी को जिजला छोड़ने का आदेश टिदया। गांधीजी ने आदेश मानने से इंकार कर

टिदया। अगले टिदन गांधीजी को को'J में *ाजिजर *ोना था। *जारों पिकसानों की भीड़ को'J के बा*र जमा थी। गांधीजी के समथJन में नारे लगाये जा र*े थे। *ालात की गंभीरता को देखते हुए मेजिजस्{े' ने पिबना

जमानत के गांधीजी को छोड़ने का आदेश टिदया। लपेिकन गांधीजी ने कानून के अनुसार सजा की माँग की।

फैसला स्थपिगत कर टिदया गया। इसके बाद गांधीजी पिफर अ"ने कायJ "र पिनकल "ड़े। अब उनका "*ला उदे्दश लोगों को 'सत्याग्र*' के मूल क्तिसmातों से "रिरचय कराना था। उन्*ोंने स्वतंत्रता प्राप्त करने की "*ली

शतJ *ै - डर से स्वतंत्र *ोना। गांधीजी ने अ"ने कई स्वयंसेवकों को पिकसानों के बीच में भेजा। य*ाँ पिकसानों के बच्चों को क्तिशभिक्षत करने के क्तिलए ग्रामीण पिवद्यालय खोले गये। लोगों को साफ-सफाई से र*ने का तरीका क्तिसखाया गया। सारी गपितपिवमिधयाँ गांधीजी के आचरण से मेल खाती थीं। स्वयंसेवकों ले मैला

ढोने, धुलाई, झाडू-ब*ुारी तक का काम पिकया। लोगों को उनके अमिधकारों का ज्ञान कराया गया।चं"ारन के इस गांधी अभिभयान से अंग्रेज सरकार "रेशान *ो उठी। सारे भारत का ध्यान अब चं"ारन "र

था। सरकार ने मजबूर *ोकर एक जाँच आयोग पिनयु/ पिकया, गांधीजी को भी इसका सदस्य बनाया गया।। "रिरणाम सामने था। कानून बनाकर सभी गलत प्रथाओं को समाप्त कर टिदया गया। जमींदार के लाभ के क्तिलए नील की खेती करने वाले पिकसान अब अ"ने जमीन के माक्तिलक बने। गांधीजी ने भारत में

सत्याग्र* की "*ली पिवजय का शंख फँूका। चम्पारन *ी भारत में सत्याग्र* की जन्म स्थली बना।गांधीजी चं"ारन में *ी थे, तभी अ*मदाबाद के मिमल-मजदूरों द्वारा तत्काल साबरमती बुलाया गया। मिमल-मजदूरों के खिखलाफ मिमल-माक्तिलक कठोर कदम उठाने जा र*े थे। दोनों "क्षों के बीच गांधीजी को सुल* करानी थी। जाँच-"ड़ताल और दोनों "क्षों से बातचीत करने के बाद गांधीजी का पिनणJय मजदूरों के "क्ष में गया। लेपिकन मिमल-मालक मजदूरों को कोई भी आश्वासन देने के क्तिलए तैयार न थे। इसक्तिलए गांधीजी ने मजदूरों का उत्सा* घ'ता गया और कि*;सा की आशंका बढ़ने लगी। गांधीजी ने इसे बनाये रखने के क्तिलए खुद उ"वास "र बैठ गये। इसके बाद माक्तिलकों और मजदूरों का एक बैठक हुई जिजसमें बातचीत करके

समस्या का *ल पिनकाला गया और *ड़ताल समाप्त *ो गई।गुजरात के खेड़ा जिजले के पिकसानों की फसलें बरबाद *ो चुकी थी। गरीब पिकसानों को सरकार द्वारा

लगान चुकाने के क्तिलए दबाव डाला जा र*ा था। गांधीजी ने खेड़ा जिजले में एक गांव से दूसरे गांव तक की "दयात्रा आरंभ की। गांधीजी ने 'सत्याग्र*' का आवा*न पिकया। उन्*ोंने पिकसानों से क*ा पिक वे तब तक

सत्याग्र* के मागJ "र चलें, जब तक सरकार उनका लगान माफ करने की घोषणा न करे। चार म*ीने तक य* संघषJ चला। इसके बाद सरकार ने गरीब पिकसानों का लगान माफ करने की घोषणा की। गांधीजी

एक बार पिफर सफल हुए।

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१९०६ के जaलु युद्ध में भूमिमका१९०६ में , ज¶लु (Zulu) दभिक्षण अफ्रीका में नए चुनाव कर के लागू करने के बाद दो अंगे्रज अमिधकारिरयों को मार डाला गया।बदले में अंगे्रजों ने जूलू के खिखलाफ

युm छेड़ टिदया। गांधी जी ने भारतीयों को भतh करने के क्तिलए पि%टि'श अमिधकारिरयों को सपिक्रय रू" से प्रेरिरत पिकया। उनका तकJ था अ"नी नागरिरकता के दावों को

कानूनी जामा "*नाने के क्तिलए भारतीयों को युm प्रयासों में स*योग देना चापि*ए। तथापि", अंगे्रजों ने अ"नी सेना में भारतीयों को "द देने से इंकार कर टिदया था।

इसके बावजूद उन्*ोने गांधी जी के इस प्रस्ताव को मान क्तिलया पिक भारतीय घायल अंगे्रज सैपिनकों को उ"चार के क्तिलए स्'ेचर "र लाने के क्तिलए स्वैच्छा "ूवJक कायJ कर सकते *ैं। इस कोर की बागडोर गांधी ने थामी।२१ जुलाई (July 21), १९०६ को गांधी जी ने इंपिडयन ओपि"पिनय (Indian Opinion) में क्तिलखा पिक २३ भारतीय [1] पिनवाक्तिसयों के पिवरूm चलाए गए आप्रेशन के संबंध में प्रयोग द्वारा ने'ाल सरकार के क*ने "र एक कोर का गठन पिकया गया *ै।दभिक्षण अफ्रीका में भारतीय लोगों से इंपिडयन ओपि"पिनयन में अ"ने कॉलमों के माध् यम से इस युm में शामिमल *ोने के

क्तिलए आग्र* पिकया और क*ा, यटिद सरकार केवल य*ी म*सूस करती *े पिक आरभिक्षत बल बेकार *ो र*े *ैं तब वे इसका उ"योग करेंगे और असली लड़ाई के

क्तिलए भारतीयों का प्रक्तिशक्षण देकर इसका अवसर देंगे।[2]

गांधी की राय में , १९०६ का मसौदा अध्यादेश भारतीयों की स्थिस्थपित में पिकसी पिनवासी के नीचे वाले स्तर के समान लाने जैसा था। इसक्तिलए उन्*ोंने सत्याग्र*

(Satyagraha), की तजJ "र "कापिफर (Kaffir)s " .का उदा*रण देते हुए भारतीयों से अध्यादेश का पिवरोध करने का आग्र* पिकया। उनके शब्दों में , " य*ाँ तक पिक आधी जापितयां और कापिफर जो *मसे कम आधुपिनक *ैं ने भी सरकार का पिवरोध पिकया *ै। "ास का पिनयम उन "र भी लागू *ोता *ै किक;तु वे "ास [3] न*ीं टिदखाते *ैं।

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'रौले' एक्'' पिवरोध और दांडी यात्राय* 'रौले' एक्'' *ी था, जिजसके कारण गांधीजी ने भारतीय राजनीपित में कदम रख। वषJ 1919 से लेकर 1948 तक भारतीय राजनीपित के कें द्र में म*ात्मा गांधी *ी छाये र*े। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वक नायक बने र*े। राजनीपित में सपिक्रय *ोते *ी गांधीजी ने भारतीय राजनीपित का रू"-रंग *ी बदल डाला। उनके संघषJ के कारण

लोगों ने उन्*ें देवता तक मान क्तिलया।यँू तो रौले' पिबल कोई सामान्य न*ीं था। इसे लेकर "ूरे भारत में खलबली मची थी।

गांधीजी भी य* तय करने में जु'े थे पिक इस पिबल के पिवरोध का रू" कैसा *ो ? उनकी चिच;ता का पिवषय कि*;सा था। वे न*ीं चा*ते थे पिक अ"ार उत्सा* में पिवरोध करने में जु'ा जनमानस कि*;सा "र उतारू *ो। अंत में गांधीजी के मन में य* पिवचार आया

पिक क्यों न पिवरोध दजJ कराने के क्तिलए सभी क्षेत्रों में शांपित"ूणJ *ड़ताल की जाये।गांधीजी के आवा*न "र देशव्या"ी *ड़ताल शुरू हुई। कि*;दु-मुस्थिस्लम के उत्सा* ने

सभी को आश्चयJ में डाल टिदया। गांधीजी तक को भी इस बात का अंदाजा न*ीं था पिक लोगों का इतना जबरदस्त समथJन मिमलेगा। अंगे्रज सरकार के भी कान खडे़ *ो गये। ऐसा लगा पिक जैसे कोई भूकं" पि%टि'श साम्राज्य को पि*ला र*ा *ो। टिदल्ली से

लेकर अमृतसर तक गांधीजी का जादू छा गया था। गांधीजी "ंजाब जाना चा*ते थे, लेपिकन उन्*ें रास्ते में *ी पिगरफ्तार कर बंबई वा"स लाया गया।

गांधीजी की पिगरफ्तारी की खबर जंगल में लगी आग की तर* फैल गयी। लोगों की भीड़ पिवभिभन्न श*रों में जु'ने लगीं, कुछ क्तिछ'"ु' कि*;सक घ'नायें भी हुई। जब गांधीजी अ*मदाबाद लौ'े तो उन्*ें सूचना मिमली पिक क्रोमिधत भीड़ ने एक "ुक्तिलस अमिधकारी की *त्या कर दी। गांधीजी ने क*ा, 'यटिद मेरे सीने में खंजर घों" टिदया जाता तो भी मुझे इतनी "ीड़ा न*ीं *ोती, जिजतनी पिक कि*;सा की इस घ'ना से हुई *ै।' इस घ'ना से वे

बेचैन *ो उठे। गांधीजी ने सत्याग्र* वा"स ले क्तिलया और इस "ा" का प्रायभिश्चत करने के क्तिलए तीन टिदनों का उ"वास रखा।

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जिजस टिदन 13 अप्रैल 1919 को गांधीजी ने तीन टिदन के उ"वास की घोषणा की, उसी टिदन "ंजाब के अमृतसर जिजले के जाक्तिलयाँवाला बाग में भीषण

घ'ना घ'ी। पि%टि'श जनरल डायर ने अ"नी फौज के साथ जाक्तिलयाँवाला बाग में धावा बोल टिदया। शांत, पिनर"राध जनता "र बेर*मी से कई चक्र गोक्तिलयाँ दागी गयीं। बाद में सरकार ने अ"नी रिर"ो'J में बताया पिक इस घ'ना में कुल 400 लोग मारे गये और 1,000 से 2,000 लोग मारे गये और 3,600 लोग

गंभीर रू" से जख्मी हुए। इसके खिखलाफ "ूरा देश इकट्ठा हुआ। *ालात की गंभीरता को देखते हुए "ंजाब में 'माशJल लॉ' लागू हुआ। य* कारJवाई इतनी

अमानवीय थी पिक स्वयं सर वैलें'ाइन ने क*ा पिक, ृयृ* टिदन एक एकसा 'काला टिदन' था, जिजसे पि%टि'श सरकार चा*कर भी न*ीं भूल "ायेगी।ृृ अब

गांधीजी के क्तिलए चु" बैठना असंभव था।गांधीजी ने अब एक नये मागJ को खोजा जो पि%टि'श सरकार को पि*ला कर रख दे। कि*;दु-मुस्थिस्लम को एक मंच "र लाकर उन्*ोंने अंगे्रजी हुकूमत के खिखलाफ

'अस*योग आंदोलन' शुरू करने का मंत्र टिदया। पिकसी जादूगर की तर* उन्*ोंने अ"ना आंदोलन शुरू पिकया। देश के कोने-कोने तक उनका आंदोलन रंग ला र*ा था। सबसे "*ले इस आंदोलन की शुरूआत खुद गांधीजी ने की। प्रथम पिवश्व युm के दौरान की गई उनकी सेवा के क्तिलए जो मेडल उन्*ें मिमला था, उसे उन्*ोंने वाईसराय को लौ'ा टिदया। कई भारतीय पिवद्वानों ने अ"नी

"दवी लौ'ा दीं। कुछेक ने सरकार द्वारा टिदये सम्मान को लौ'ाया। वकीलों ने वकालत, छात्रों ने स्कूल और कॉलेज छोड़ टिदये। *जारों की संख्या में लोंगो ने गाँव-गाँव जाकर इस आंदोलन की मशाल को जलाया। सब कुछ अकि*;सा का "ालन करते हुए *ो र*ा था। पिवदेशी क"ड़ों की *ोली देश के कोने-कोने में जलने लगी। लोग चरखा कातने लगे। चूल्*ा-चौकों तक क्तिसम'ी भारतीय

मपि*लाए ँभी रास्ते "र आकर प्रदशJन करने लगीं। गांधीजी के भाषण, लेख लोगों को और भी आंदोक्तिलत कर र*े थे। 'यंग इंपिडया' और 'नवजीवन'

साप्तापि*क में छ"े उनके लेचा लो काफी रस लेकर "ढ़ते थे। *जारों लोगों को उठाकर जेल में बंद पिकया गया। कई नागरीकों "र अदालत में मुकदमे चले।

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फरवरी 1922 में इस आंदोलन में उस समय ठ*राव आ गया, जब उग्र भीड़ ने चौरी-चौरा में कि*;सा की। इस कि*;सा के समाचार सं गांधीजी काफी पिनराश हुए। उन्*ोंने आंदोलन कां स्थपिगत कर टिदया। साथ *ी जनता की इस कि*;सात्मक कारJवाई को

अ"राध मानते हुए उन्*ोंने "ाँच टिदन का उ"वास शुरू पिकया। इस दौरान वे ईश्वर से प्राथJना करके लोगों के इस कायJ के प्रपित क्षमा भी माँगते र*े। आंदोलन स्थपिगत हुआ

देख सरकार के *ाथ सुन*रा मौका लगा, उसने गांधीजी को पिगरफ्तार कर क्तिलया। अदालत में जज़ ने उन्*ें 6 वषJ की सजा सुनाई। साथ *ी स* भी जोड़ा पिक यटिद इस दौरान आंदोलन थम गया तो गांधीजी की सजा और कम कर दी जायेगी। जज़ ने

क*ा, ृृयटिद ऐसा हुआ तो मुझे काफी प्रसन्नता *ोगी।ृृ गांधीजी के क्तिलए य* सजा, सजा न *ोकर एक वरदान सापिबत हुई। वे अ"ना सारा समय प्राथJना करने, अध्ययन करने और सूत कातने में पिबताते थे। लेपिकन जनवरी

1924 में वे 'एक्यू' ए"ेंपिडसायटि'स' के क्तिशकार *ोकर गंभीर रू" से बीमार "ड़ गये। उन्*ें "ूना के एक अस्पताल में ले जाया गया। ज*ाँ एक पि%टि'श सजJन ने उनका

सफल ऑ"रेशन पिकया। इसके बाद सरकार ने उन्*ें रिर*ा कर टिदया।इसके बाद की स्थिस्थपित ने गांधीजी को और भी पिवचक्तिलत कर टिदया। सांप्रदामियक दंगों में झुलसते देश को देख उनका हृदय करा*ने लगा। स्थिस्थपित को देखते हुए गांधीजी ने 21 टिदन उ"वास का पिनश्चय पिकया। ृृव्रत और प्राथJना इसक्तिलए तापिक मेरे देश के लोगों के टिदल आ"स में मिमल सकें । वे एक-दूसरे के धमJ और उनकी भावनाओं को समझ

सकें ।ृृने सबसे "*ले प्राथJना की। इसके बाद वे नमक के खेत के "ास गये और मुठ्ठी भर नमक उठाकर 'नमक कानून' को भंग कर टिदया। इसके बाद राष्ट्रीय स्तर "र देश के कोने-कोने में गांधीजी का अनुकरण करते हुए इस कानून को लोगों ने तोड़ा। "ुरुष-मपि*लाए,ँ गाँवों के पिकसानों ने *जारों ने *जारों की संख्या में जुलूस पिनकाले। लोगों ने पिगरफ्तारीयाँ दीं। "ुक्तिलस ने लाठी चाजJ पिकअगले "ाँच वषk तक गांधीजी ने भारतीय राजनीपित में कुछ पिवशेष योगदान न*ीं टिदया। अब उनका लक्ष्य भारतीय समाज में

"रिरव्याप्त पिवषमताओं को दूर करना था। लोगों की प्राथमिमक आवश्यकताओं, कि*;दु-मुस्थिस्लम एकता, अस्पृश्यता (छूआछूत) मपि*लाओं की समानता, जनसंख्या समस्या आटिद की ओर उन्*ोंने ध्यान टिदया। भारतीय गाँवों के "ुनर्तिन;माJण का स्वप्न वे देखने लगे। ृूमैं चा*ता हँू पिक अंग्रेजी गुलामी के साथ-साथ देश के नागरिरक सामाजिजक

और आर्शिथ;क गुलामी से भी मुक्ति/ "ायें।ृृ

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य* भी एक सच्चाई *ै पिक जेल सं आजाद *ोने के बाद गांधीजी ने देखा पिक कांग्रेस ब'ँ चुकी *ै। वषJ 1929 तक कई नेता अ"न-ेअ"ने स्तर "र, अलग-अलग मंच बनाकर आजादी की लड़ाई लड़ने लगे। य* पिबखराव गांधीजी के मन को न*ीं जँचा। एक बार पिफर गांधीजी उठ खड़े हुए। राष्ट्र के नेतृत्व की कमान उन्*ोंने सँभाल ली। 26 जनवरी 1930 को उनके नेतृत्व में देश को आजाद कराने की श"थ देश के कोने-कोने में ली गई। य* पि%टि'श सरकार को एक कड़ी चेतावनी थी। गांधीजी का '"ूणJ स्वराज' का नारा देश के कोने-कोने में गूँज र*ा था। अब सारे देश की नजरें साबरमती की ओर

थीं।12 माचJ 1930 को गांधीजी ने वाइसराय को सूक्तिचत पिकया पिक वे अ"ने 78 अनुयाइयों के साथ दांडी यात्रा करने जा र*े *ैं। आश्रम के कई सदस्य, "ुरुष और मपि*लायें 24 टिदन की ऐपित*ाक्तिसक यात्रा "र रवाना हुए। गरीब पिकसान पि%टि'श कानून के कारण अ"नी नमक की खेती न*ीं कर "र र*े थे। वैसे देखने में तो य* सामान्य मुद्दा था,

लेपिकन एक 'बूढे़' द्वारा 241 मील तक की इस "ैदल यात्रा ने पि%टि'श सरकार की नींद *राम कर दी। 6 अपै्रल 1930 की सुब* गांधीजी या, कई स्थलों "र "ुक्तिलस ने गोक्तिलयाँ भी चलाईं। 4 मई की रात गांधीजी को भी पिगरफ्तार कर क्तिलया गया। कुछ *ी *फ्तों में

*जारों लोग जेल में ढकेल टिदये गये।नवंबर 1930 में प्रथम गोलमेज "रिरषद आयोजिजत हुई। सरकार ने देश में फैले इस

आंदोलन की समीक्षा की। इस सम्मेलन की समास्टिप्त वाले सत्र में 19 जनवरी 1931 के टिदन रामसे मैकडोनाल्ड ने य* आशा व्य/ की पिक दूसरे गोलमेज "रिरषद में कांग्रेस भी शामिमल *ोगी। गांधीजी और अन्य कांग्रेसी नेताओं को पिबना पिकसी शतJ के 26 जनवरी को रिर*ा कर टिदया गया। ठीक उसके एक वषJ बाद जब स्वतंत्रता प्रास्टिप्त की प्रपितज्ञा की

गई थी। जल्द *ी 14 फरवरी को गांधीजी और इरपिवन के बीच में शुरू हुई। कई अस*मपितयों के बाद भी बातचीत जारी र*ी। साढे़ तीन घं'े की "*ली वाताJ 17

फरवरी को हुई और इसके बाद कई टिदनों तक चली। 5 माचJ 1931 को गांधी-इरपिवन समझौता *ो गया। गांधीजी ने क*ा - 'य* समझौता सशतJ *ै।' इस समझौते से भारत में शांपित व्यवस्था कायम *ोनी थी। सपिवनय अवज्ञा आंदोलन वा"स ले क्तिलया गया था।

सभी राजनैपितक बंटिदयों को रिर*ा कर टिदया गया था। इसके साथ *ी समुद्र त'ों के आस"ास नमक की पिबक्री खुली कर दी गई। राजनैपितक दृमिष्ट से सबसे बड़ा

ऐपित*ाक्तिसक लाभ य* हुआ पिक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, लंदन में *ोने वाली गोलमेज सम्मेलन के दूसरे दौर में भाग लेने को स*मत *ो गई।

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' भारत छोड़ो आंदोलन 'गांधीजी ने 'राजनीपित' से संन्यास ले क्तिलया था। लेपिकन वास्तव में वे भारतीय

जनजीवन की समस्याओं से ग*राई से जुडे़ थे। पिद्वतीय पिवश्व युm ने उन्*ें राजनीपितक अखाडे़ में पिफर लाकर खड़ा कर टिदया। भारतीयों से "ूछे पिबना पि%टि'श सरकार ने भारत को भी युm में झेंक टिदया। बोअर यmु में गांधीजी की भूमिमका से अंग्रेज

"रिरक्तिचत थे। वाइसराय लॉडJ क्तिलनक्तिलथगो ने युm की घोषणा के अगले टिदन गांधीजी को क्तिसमला बुलाया। युm के पिवनाश की दुखी मन से चचाJ करते हुए गांधीजी ने

इंग्लैंड के प्रपित स*ानुभूपित जताई। वे पिबना शतJ इंग्लैंड का समथJन देने को तैयार थे। वे न*ीं चा*ते थे पिक इंग्लैंड की मजबूरी का फायदा उठाया जाये, य* उनके क्तिसmांत के खिखलाफ था। दूसरी ओर कांग्रेस चा*ती थी पिक शतJ पिवशेष "र *ी इंग्लैंड को समथJन

टिदया जाये।14 क्तिसतंबर 1939 को कांग्रेसी नेताओं ने घोषणा"त्र जारी कर टिदया, जिजसमें पि*'लर के *मले की किन;दा की गई और क*ा गया पिक 'एक स्वतंत्र भारत' अन्य स्वतंत्र राष्ट्रों का समथJन करेगा। इस घोषणा "त्र में गांधीजी के दृमिष्टकोण का समावेश न*ीं था। कांग्रेस को 'न*ीं' में उत्तर दे टिदया गया, साथ *ी क*ा गया पिक पि%'ेन ऐसी भारतीय

सरकार को सत्ता न*ीं सौं" सकता, जिजस "र भारतीय जनता के बडे़ पि*स्से को आ"भित्त *ो। संकेत गैर-कांग्रेसी और कांग्रेस पिवरोधी मुस्थिस्लमों की ओर था, जिजनकी

कमान मो*म्मद अली जिजन्ना के *ाथ में थी।गांधीजी को य* क*ते हुए बीस बरस से भी ज्यादा समय *ो गया था पिक कि*;दु-

मुस्थिस्लम एकता के पिबना भारत को स्वतंत्रता न*ीं मिमल सकती। लेपिकन सांप्रदामियकता का रंग बार-बार चढ़ता र*ा। अंत में गांधीजी ने 'भारत छोड़ो' का नारा बुलंद पिकया।

'भारत छोड़ो' आंदोलन एक साथ दो खतरों का *ल था - "*ला जा"ानी आक्रमण से देश की रक्षा और आ"सी फू' को मिम'ाकर एकता स्थापि"त करना। एक बार पिफर

गांधीजी ने 'सत्याग्र*' शुरू पिकया। लोगों को तैयार करने लगे गांधीजी। इस आंदोलन ने देश के वातावरण को गरम कर टिदया था। 7 अगस्त 1942 को बंबई में एक

ऐपित*ाक्तिसक बैठक हुई। बैठक में फैसला क्तिलया गया पिक, ृूयटिद पि%टि'श राज्य को भारत से तुंत *'ाया न*ीं गया तो गांधीजी के नेतृत्व में सपिवनय अवज्ञा आंदोलन शुरू

कर टिदया जायेगा।ृृ

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गांधीजी पिकसी भी योजना "र कायJ करने से "*ले एक बार वाइसराय से मिमलना चा*ते थे। उसने गांधीजी से वाताJ करना उक्तिचत न*ीं समझा। उसने कडे़ *ाथ से काम

लेने का फैसला क्तिलया। 9 अगस्त की सुब* कांगे्रस के सभी वरिरष्ठ नेताओं को पिगरफ्तार कर क्तिलया गया। इन पिगरफ्तारीयों की खबर में "ूरा देश जलने लगा। बंगाल, पिब*ार, बंबई आटिद स्थलों "र जनता ने थाने, डाकघर, अदालतें, रेलवे स्'ेशन आटिद जला डाले। खूब उ"द्रव हुआ। इन उ"द्रवों की जिजम्मेदारी के संबंध में "ूना स्थिस्थत

आगा खाँ काफी लंबा "त्र-व्यव*ार हुआ। लॉडJ क्तिलनक्तिलथगो ने जब अकि*;सा में गांधीजी की आस्था और ईमानदारी में *ी संदे* प्रक' कर टिदया तो म*ात्माजी का हृदय फ'

सा गया। इस आत्मित्मक कष्ट से शांपित "ाने के क्तिलए उन्*ोंने 10 फरवरी 1943 से इक्कीस टिदन का उ"वास आरंभ कर टिदया। कैद में गुजारे ये वक़्त गांधीजी के क्तिलए बडे़ दुखदायी सापिबत हुए। पिगरफ्तारी के छः टिदन बाद उनके 24 वषJ से स*योगी र*े तथा सेके्र'री की भूमिमका पिनभा र*े म*ादेव देसाई *ा'J फेल *ोने से चल बसे। इसी दौरान उनकी "त्नी कस्तूरबा गंभीर रू" से बीमार "ड़ीं। उन्*ोंने भी इस दुपिनया को

अलपिवदा क* टिदया। मानो गांधीजी "र दुखों का "*ाड़ 'ू' "ड़ा *ो। गांधीजी की मानक्तिसक स्थिस्थपित स्वाभापिवक रू" से शे्रष्ठ न*ीं थी। कस्तूरबा की मृत्यु के 6 सप्ता* बाद मलेरिरया ने गांधीजी को भी अ"नी च"े' में ले क्तिलय। तेज बुखार र*ने

लगा। सरकार के क्तिलए उनकी रिर*ाई उनके जेल में मर जाने से कम "रेशानी का कारण *ोती। उन्*ें पिबना शतJ के 6 मई को जेल से रिर*ा कर टिदया गया। वे काफी

कमजोर *ो चुके थे। कुछ समय तो उन*ी स्थिस्थपित बे*द खराब हुई, लेपिकन धीरे-धीरे देश कामों में ध्यान देने लायक शक्ति/ उनमें आ गई थी। उन्*ोंने देश की दशा देखी।

गांधीजी की इच्छा थी पिक वे वाइसराय लॉडJ वॉवेल से मिमलें, लेपिकन वॉवेल ने बातचीत करने से साफ मना कर टिदया। गांधीजी जानते थे पिक पि%टि'श मुस्थिस्लमों की माँगों को प्रोत्सापि*त कर र*ी *ै तापिक कि*;दुओं के साथ मतभेद के अवसर बने र*ें। वे उनकी

'फू' डालो और राज्य करो' की नीपित से "ूरी तर* "रिरक्तिचत थे। गांधीजी कि*;दु-मुस्थिस्लम एकता के "क्ष में थे। दोनों समुदायों को एकता की कड़ी में पि"रोने के क्तिलए उन्*ोंने

उ"वास भी रखा। उन्*ोंने काफी प्रयास पिकया किक;तु मुस्थिस्लमों के नेता जिजन्ना 'मुस्थिस्लमों के क्तिलए अलग राज्य' से कुछ कम "ाकर समझौता करने को पिबलकुल तैयार न थे।

जिजन्ना ने मुसलमानों के क्तिलए अलग राज्य की माँग रखी।

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देश को मिमली आजादी, "र गांधीजी न*ीं र*े!

पि%टि'श सरकार भारत की स्थिस्थपित को पिनयंपित्रत न*ीं कर "ा र*ी थी। चारों ओर उसके खिखलाफ भारतीयों ने मोचाJ खेल टिदया था। 1945 में पि%'ेन में हुए चुनावों में चर्शिच;ल *ार गये, लेबर सरकार सत्ता में आई। नया प्रधानमंत्री भारत को अ"ने *ाथ से पिनकलना न*ीं देना चा*ता था। लॉडJ वॉवेल को

वा"स भारत भेजा गया। वा"स आने "र उसने एक नयी योजना की घोषणा की। जिजसके अनुसार नये संपिवधान की शुरूआत के रू" में प्रांतीय और कें टिद्रय पिवधान सभाओं के चुनाव *ोने थे। इंग्लैंड से एक कैपिबने' मिमशन आया। इस मिमशन का उदे्दश भारतीय नेताओं से बातचीत कर संयु/ भारत के क्तिलये संपिवधान बनाना था। लेपिकन कांग्रेस और मुस्थिस्लमों को एक साथ लेकर चलने में वे नाकाम र*े। मुस्थिस्लमों की राय भारत से अलग

*ोने की थी। 12 अगस्त 1946 को वाइसराय ने वाताJ के क्तिलए जवा*रलाल ने*रू को आमंपित्रत पिकया। उधर जिजन्ना ने 'सीधी कारJवाई टिदन' का ऐलान कर टिदया। बंगाल में काफी खून-खराबा हुआ। देश के कोने-कोने में सांप्रदामियक दंगे भड़क उठे। गांधीजी के समझ में न*ीं आ र*ा था पिक अलग से मुस्थिस्लम राष्ट्र की माँग क्यों की जा र*ी *ै? उन्*ोंने मु*म्मद अली जिजन्ना से अनुरोध करते हुए क*ा था, ृूयटिद तुम चा*ो तो मेरे 'ुकडे़ कर लो, "र भारत को

दो पि*स्सों में न बाँ'ो।" गांधीजी टिदल्ली की भंगी बस्ती में र*ने चले गये, ज*ाँ टिदन-प्रपितटिदन कि*;सा के खिखलाफ उनका स्वर जोर "कड़ता गया।तभी टिदल को द*ला कर रख देने वाला समाचार आया। "ूवh बंगाल के नोआखली जिजले में कई पिनद�ष नागरिरक सांप्रदामियक दंगे में मारे गये। अब गांधीजी के क्तिलए शांत बैठे र*ना असंभव था। उन्*ोंने पिनश्चय पिकया पिक दोनों धम½ के बीच ग*राती जा र*ी खाईं को वे अवश्य "ा'ेंगे, भले *ी उसके क्तिलए उन्*ें अ"ने प्राणों का बक्तिलदान देना "डे़। उनका क*ना था, ृूयटिद भारत को आजादी मिमल भी गई और उसमें कि*;सा *ोती र*ी तो व* आजादी गुलामी से भी बदतर *ोगी।" नोआखली में मुस्थिस्लम सरकार सत्ता में थी, गांधीजी ने व*ाँ "दयात्रा करने का पिनणJय क्तिलया। जब वे कलकत्ता में थे तो उन्*ें समाचार मिमला पिक नोआखली का बदला लेने के क्तिलए पिब*ार में भी कि*;सा का मिघनौना कायJ पिकया गया। गांधीजी का टिदल रोने लगा। य* व*ी

स्थल था ज*ाँ से इस म*ात्मा ने भारत में अ"ना "*ला सत्याग्र* शुरू पिकया था। गांधीजी ने पिब*ारिरयों को चेतावनी देते हुए क*ा पिक, "यटिद कि*;सक कारJवाई जल्द न*ीं रोकी गई तो वे तब तक उ"वास रखेंगे जब तक उनकी मृत्यु न*ीं *ो जाती।" गांधीजी के इस प्रण को सुनते *ी तुंत पिब*ार में

कि*;सा रोक दी गई। गांधीजी नोआखली रवाना *ो गये।व*ाँ के *ालात ने उन्*ें पिवचक्तिलत कर टिदया। जिजस क्षेत्र में वे प्रेम व भाईचारे का मंत्र ले गये थे। व*ाँ तो एक समुदाय दूसरे समुदाय के खून का

प्यासा हुआ था। कई लोगों की *त्याए ँहुई। मपि*लाओं "र बलात्कार हुए और कईयों का जबरन धमJ "रिरवतJन कराया गया। गांधीजी के रोंग'े खडे़ *ो गये। "ुक्तिलस सुरक्षा को इंकार करते हुए, केवल एक बंगाली स्'ेनोग्राफर को साथ क्तिलए 77 वषJ का य* म*ात्मा गाँव-से-गाँव तक, घर-स-ेघर तक की "दयात्रा कर र*ा था। गांधीजी दोनों धमk के बीच पे्रम का सेतु ("ुल) बनाना चा*ते थे। वे फला*ार *ी करते और कि*;दु-मुस्थिस्लम के टिदलों को एक करने के क्तिलए टिदन-रात एक कर र*े थे। "मेरे जीवन का एक *ी उदे्दश्य *ै पिक ईश्वर कि*;दुओं और मुस्थिस्लमों के टिदलों को मिमलायें। एक दूसरे के प्रपित

उनके मन में कोई डर या दुश्मनी न र*े।"

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नोआखली में 7 नवंबर 1946 से 2 माचJ 1947 तक गांधीजी र*े। इसके बाद वे पिब*ार चले गये। य*ाँ भी उन्*ोंने व*ी पिकया, जो नोआखली में पिकया था। गाँव-से-गाँव तक की "दयात्रा की। लोगों

को उनकी गलती का ए*सास कराने के साथ जिजम्मेदारिरयों से भी "रिरक्तिचत कराया। घायलों के इलाज के क्तिलए उन्*ोंने रू"ए इकटे्ठ करने शुरू पिकये। य* गांधीजी का *ी प्रभाव था पिक एक धमJ

की मपि*लाए ँदूसरे धमJ के लोगों के इलाज के क्तिलए अ"ने ग*ने तक उतार कर दे र*ीं थी। गांधीजी ने पिब*ार के लोगों से क*ा, "यटिद दुबारा उन्*ोंने कि*;सा का मागJ अ"नाया, तो वे गांधीजी को *मेशा

के क्तिलए खो देंगे।"नये वाइसराय लॉडJ माउं'ब'ेन ने मई 1947 में गांधीजी को टिदल्ली बुलाया। ज*ाँ कांग्रेसी नेताओं

के साथ जिजन्ना भी उ"स्थिस्थत थे। जिजन्ना मुस्थिस्लमों के क्तिलए अलग राष्ट्र की माँग "र अडे़ थे। गांधीजी ने जिजन्ना को समझाने का लाख प्रयास पिकया "र व* 'स-से-मस न*ीं हुए।

आखिखर व* टिदन भी आ गया, जब भारत आजाद हुआ। 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हुआ। गांधीजी ने इस टिदन आयोजिजत पिकये गये समारो* में भाग न लेकर कलकत्ता जाना उक्तिचत समझा। ज*ाँ सांप्रदामियक दंगों की आग सब कुछ त*स-न*स कर र*ी थी। गांधीती के व*ाँ जाने "र धीरे-

धीरे स्थिस्थपित शांत *ो गई। कुछ टिदन व*ाँ "र गांधीजी ने प्राथJना एवं उ"वास में गुजारें। दुभाJग्य से 31 अगस्त को कलकत्ता दंगों की आग में जलने लगा। सांप्रदामियक दंगों की आड़ में लू', *त्या,

बलात्कार का भीषण कांड शुरू हुआ। अब गांधीजी के "ा एक *ी पिवकल्" था 'अ"ने जीवन के अंपितम क्षणों तक व्रत करना।' गांधीजी की इस घोषणा ने सारी स्थिस्थपित *ी बदल डाली। उनका जादू लोगों "र चल गया। 4 क्तिसतंबर को पिवभिभन्न धमk के नेताओं ने उनसे इस धार्मिम;क "ागल"न के क्तिलए माफी माँगी। साथ *ी य* प्रपितज्ञा की पिक अब कलकत्ता में दंगे न*ीं *ोंगे। नेताओं की इस श"थ के बाद गांधीजी ने व्रत तोड़ टिदया। कलकत्ता तो शांत *ो गया किक;तु भारत-"ाक पिवभाजन के कारण

अन्य श*रों में दंगों ने जोर "कड़ क्तिलया।गांधीजी क्तिसतंबर 1947 में तब टिदल्ली लौ'े तो उस श*र में भी सांप्रदामियक दंगे भड़के हुए थे।

"भिश्चमी "ापिकस्तान में कि*;दुओं और क्तिसखों "र हुए पिनममJ अत्याचार ने आग में घी का काम पिकया। टिदल्ली के क्तिसखों और कि*;दुओं ने बदले की भावना से कानून को अ"ने *ाथ में ले क्तिलया। मसु्थिस्लमों के घरों को लू'ा गया, धार्मिम;क स्थलों को नुकसान "हुँचाया गया, *त्याओं का दौर शुरू हुआ। सरकार सख्त कदम उठाना चा*ती थी, लेपिकन जनता के स*योग के पिबना व* कुछ भी कर "ाने में असमथJ थी। इस डरावने और अराजकता के मा*ौल में गांधीजी पिनडर *ोकर रास्ते "र आ खड़े हुए। लोगों

के बीच इस तर* आने का सा*स कर ना उसी म*ात्मा के वश की बात थी।

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गांधीजी का जन्मटिदन आ गया। 2 अ/ूबर को "ूरे देश में *ी न*ीं, बल्किल्क पिवश्व में उनका जन्मटिदन धूमधाम से मनाया जाने वाला था। गांधीजी को बधाइयाँ देने वालों का ताताँ बँध गया। गांधीजी ने क*ा, "बधाई क*ाँ से आ गई? इधर देश जल र*ा *ै। चारों ओर कि*;सा का साम्राज्य *ै। मेरे हृदय में जरा भी प्रसन्नता न*ीं...। लोगों

को इस तर* लड़ते-झगड़ते देख मुझे और जीने की पिबलकुल इच्छा न*ीं *ोती।"गांधीजी की "ीड़ा बढ़ती *ी जा र*ी थी। उनके टिदल्ली में *ोने के बावजूद कि*;सा-लू'"ा' रूकने का नाम न*ीं

ले र*ा था। अभी भी श*र के मुसलमान पिनडर *ोकर टिदल्ली की सड़कों "र न*ीं चल सकते थे। गांधीजी "ापिकस्तान भी जाना चा*ते थे तापिक व*ाँ के "ीपिड़तों के क्तिलए भी कुछ कर सकें । लेपिकन टिदल्ली के *ालात काफी नाजुक थे। ऐसे बुरे दौर में टिदल्ली को छोड़ना उनके क्तिलए संभव न*ीं था। गांधीजी स्वयं को अस*ाय

म*सूस करने लगे। 'मैने अ"ने आ"को कभी भी इतना अस*ाय म*सूस न*ीं पिकया था।' वे 13 जनवरी 1948 को उ"वास "र बैठ गये। उन्*ोंने य* भी क*ा, 'ईश्वर ने मुझे व्रत रखने के क्तिलए *ी भेजा *ै।' उन्*ोंने लोगों सं

क*ा पिक वे उनकी चिच;ता न करें, बल्किल्क 'नई रोशनी' की खोज में जु'ें।"रिरस्थिस्थपितयाँ बदलने जा र*ी थीं। य* क*ना मुल्किश्कल *ै पिक रोशनी पिकस-पिकसके टिदल में उतरी। 18 जनवरी को दुख-ददJ भरे सप्ता* के बाद गांधीजी के "ास पिवभिभन्न धमk, संस्थाओं और कि*;दु संघ 'आर एस एस' के लोग गांधीजी से मिमलने टिदल्ली के पिबरला *ाउस आये। व*ाँ गांधीजी ल्किस्तर "डे़ हुए थे। उन्*ोंने लोगों का

मुस्कुरा कर स्वागत पिकया। सभी लोगों के गांधीजी को एक "त्र टिदया, जिजसमें क्तिलखा था - '*म सब लोगों के प्राणों की रक्षा करेंगे। मुस्थिस्लमों का पिवश्वास जीतेंगे। अब पिफर टिदल्ली में इस तर* की घ'नाए ँन*ीं *ोंगी।'

गांधीजी ने अ"ना व्रत तोड़ टिदया। संसार के पिवभिभन्न कोने में इस घ'ना की चचाJ हुई।अब तक गांधीजी के व्रत ने पिवश्व के करोड़ों लोगों के टिदलों को छू क्तिलया था। लेपिकन कट्टर कि*;दुओं "र इसका

अलग प्रभाव "ड़ा। उन्*ें लगा पिक गांधीजी ने इस तर* का व्रत करके कि*;दुओं को 'ब्लैकमेल' पिकया *ै। गांधीजी के "ापिकस्तान के प्रपित दृमिष्टकोन "र भी उनका नजरिरया कुछ ज्यादा अच्छा न*ीं था।

व्रत समास्टिप्त के दूसरे टिदन *मेशा की तर* जब गांधीजी शाम की प्राथJना में थे तो उन "र बम फें का गया। सौभाग्य से पिनशाना चूक गया। गांधीजी बच गये। "र गांधीजी जरा भी पिवचक्तिलत न*ीं हुए, वे नीचे बैठ गये

और अ"नी प्राथJना जारी रखी। गांधीजी कई वषk से जनता के साथ प्राथJना कर र*े थे। *र शाम वे ज*ाँ क*ीं भी *ोते, वे अ"नी प्राथJना सभा खुले मैदान में रखते। ज*ाँ वे लोगों से वाताJ भी करते। इस प्राथJना सभा में सभी का स्वागत था। इसमें रूटिढवाटिदता को, पिकसी पिवशेष धमJ को कोई स्थान न*ीं था। सभी लोग प्राथJना गीत गाते। अंत में गांधीजी कि*;दी भाषा में दो शब्द बोलते। य* जरूरी न*ीं था पिक वे पिकसी धार्मिम;क थीम "र

*ी बोलें, वे टिदन भर की पिकसी भी घ'ना "र बोलते। य* गांधीजी का पिनयम था। वे पिकसी भी पिवषय "र बोलते लेपिकन उनका मकसद लोगों को स*ी टिदशा देना *ी *ोता था।

कई बार गांधीजी का सुनने सैकड़ों तो कई अवसरों "र *जारों की भीड़ उमड़ती। ज*ाँ भी उनकी प्राथJना सभा *ोती उनके अनुयाइयों का ताताँ लग जाता। एक छो'े से मंच "र बैठकर गांधीजी अ"नी बात क*ते।

कि*;सा का क्रम जारी था। गांधीजी इस स्थिस्थपित से बा*र पिनकलने के क्तिलए लोगों से आग्र* करते र*े। "ापिकस्तान के पिवभाजन और बदले की भावना से समाज का एक बड़ा वगJ क्रोमिधत था। गांधीजी को चेतावनी दी गई पिक उनका जीवन खतरे में *ै। "ुक्तिलस अमिधकारी चिच;पितत थ,े क्योंपिक गांधीजी ने सुरक्षा लेने से इंकार कर टिदया।

'अ"ने *ी देश में, अ"ने *ी लोगों के बीच मुझे सुरक्षा लेने की आवश्यकता न*ीं।' 40 वषJ "ूवJ दभिक्षण अफ्रीका में गांधीजी ने क*ा था, "जीवन में सभी की मृत्यु पिनभिश्चत *ै। चा*े कोई अ"ने भाई के *ाथों मरे, चा*े पिकसी रोग का क्तिशकार *ोकर या पिफर पिकसी और ब*ाने। मरना कोई दुख की बात न*ीं *ै। मैं इससे न*ीं डरता।"

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गांधीजी को मृत्यु से भय न*ीं था। बम फें के जाने की घ'ना के दस टिदन बाद 30 जनवरी 1948 के टिदन गांधीजी पिबरला "ाकJ के मैदान में प्राथJना सभा के क्तिलए जा र*े थे। वे कुछ मिमन' देरी से "हँुचे। समय से "ाँच-दस मिमन' देरी से "हुँचने के कारण वे मन-*ी-मन में बड़बड़ाने लगे। 'मुझे ठीक "ाँच बजे य*ाँ "र "हँुचना था।' गांधीजी ने व*ाँ "हुँचते *ी अ"ना *ाथ पि*लाया, भीड़ ने भी अ"ने *ाथों को पि*लाकर उनका अभिभवादन पिकया। कई लोग उनके "ाँव छूकर आशीवाJद

लेने के क्तिलए आगे बढे़। उन्*ें ऐसा करने से रोका गया क्योंपिक गांधीजी को "*ले *ी देरी *ो चुकी थी। लेपिकन "ूना के एक कि*;दू युवक ने भीड़ को चीरते हुए अ"ने क्तिलए जग* बनाई। गांधीजी के नजदीक "हुँचते *ी उसने अ"नी अ'ॉमेटि'क पि"स्तोल से गांधीजी के टिदल को पिनशाना बनाते हुए तीन गोलीयाँ दाग दी। गांधीजी पिगर "डे़, उनके *ोठों से ईश्वर का नाम पिनकला - '*े राम'।

इससे "*ले की उन्*ें अस्पताल ले जाया जाता, उनके प्राण पिनकल चुके थे। पे्रम का य* "ुजारी दुपिनया को अलपिवदा क* गया।

अ"ने *ी लोगों द्वारा म*ात्मा की *त्या उन लोगों के क्तिलए शमJ की बात थी जो गांधीजी के पे्रम, सत्य, अकि*;सा के क्तिसmांत को न समझ सके। राष्ट्र की उमड़ी भावना को प्रधानमंत्री जवा*रलाल

ने*रू ने दुखी, करूणाभरी आवाज में रेपिडयो "र कुछ यूँ क*ा - "व* ज्योपित चली गई, जिजसने लोगों के अंधकारमय जीवन को रोशनी दी। चारों ओर अंधेरा *ो गया *ै। मैं चु" न*ीं र* सकता। लेपिकन मेरी समझ में न*ीं आ र*ा *ै पिक मैं आ" लोगों से क्या कहँू और कैसे कहंू। *म सबके लाड़ले नेता, जिजन्*ें *म 'बा"ू' क*ते थे, देश के राष्ट्रपि"ता अब

न*ीं र*ें... *मारे क्तिसर से उनका साया चला गया। 'बा"ू' ने देश को जो प्रकाश टिदया था व* कोई सामान्य न*ीं था। व* जीवन जीने का मंत्र देने वाली ज्योपित थी। उस रोशनी ने देश के कोने-कोने में उजाला फैलाया। सं"ूणJ पिवश्व ने इसे देखा। उनके सत्य, पे्रम, अकि*;सा के टिद"क *मेशा

इस देश के लोगों को अ"नी रोशनी देते र*ेंगे.....।"ऐसे लोग मर कर भी जिज;दा र*ते *ै। गांधीजी ने अ"ने दम "र पिवश्व को य* टिदखला टिदया पिक

पे्रम, सत्य और अकि*;सा का मागJ *ी श्रेष्ठ मागJ *ै। इसी का प्रयोग करके उन्*ोंने देश को आजादी टिदलाई। समाज के गरीब, अस*ाय और अछूतों के उmार के क्तिलए पिकये गये उनके कायk को भी भुलाया न*ीं जा सकता। स्वराज, सत्याग्र*, प्राथJना, सत्य, पे्रम, अकि*;सा, स्वतंत्रता के संबंध में उनके क्तिसmांत बडे़ बेशकीमती रत्न *ैं। गांधीजी का जीवन लोगों के क्तिलए था। उन्*ोंने मानवता

के क्तिलए अ"ना बक्तिलदान दे टिदया। य* भी सच *ै पिक जिजस व्यक्ति/ ने सबको अ"ने बराबर समझा, *मारे इस युग में उसके बराबर कोई न*ीं था। जिजतना भी *म उनके बारे में जानते *ैं,

बस य*ी पिक व* 'कथनी-करनी' में एकपिनष्ठ र*ने वाले थे। सबसे बुजिmमान, संवेदनशील, ईमानदार, कतJव्यपिनष्ठ, क्तिसmांतवादी थे। ऐसे म*ा"ुरुष बार-बार जन्म न*ीं लेते। गांधीजी के

पिवचारो "र चलकर देश की वतJमान और भपिवष्य की "ीढ़ी सुन*रे भारत का सुन*रा इपित*ास क्तिलख सकती *ै। '*े बा"ू तुम्*ें नमन!'