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  • jft- ua- 42912@84 ISSN 0972-5636

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  • सलाहकार समिमत िनदशेक,एन.सी.इर्.आर.टी. : �षिकेशसेनापषिसंयकु्तिनदशेक,एन.सी.इर्.आर.टी. : बी.के.षत्रपाठी अध्यक्ष,डी.टी.इर्. : बी.पी.भारद्ाज अध्यक्ष,प्रकाशनप्रभाग : एम.षसराजअनवर

    सपंादकीय समिमत अकादििकसंपादक : राजरानी िखु्यसंपादक : शवेिाउप्पल

    अन्य सदस्य रंजनाअरोडा मध्ाषुलकाएस.पटेल उिाशमार् कु.अषंकिापंवार (ज.ेपी.एफ़.)

    प्रकाशन िंडल िखु्यवयापारप्रबंधक : गौिमगांगलुी

    िखु्यउतपादनअिधकारी : अ�णषचिकारा (प्रभारी)

    संपादक : रेखाअग्रवाल उतपादनसहायक : प्रकाशवीरषसंह

    आवरणअषमिश्ीवासिव

    एन.सी.ई.आर.टी. के प्रकाशन प्रभाग के कायायालय

    एन.सी.ई.आर.टी.कैं पसश्ीअरषवंदमागर्नयी मदलली 110 016 फोन:011-26562708

    108,100फ़ीटरोडहोसकेरेहललीएक्सटेंशनबनाशकंरी।।।सटेजबेंगलुरु 560 085 फोन:080-26725740

    नवजीवनट्रसटभवनडाकघरनवजीवनअहिदाबाद 380 014 फोन:079-27541446

    सी.डब्ल्यू.सी.कैं पसधनकलबससटटॉपकेसामनेपषनहटीकोलकाता 700 114 फोन:033-25530454

    सी.डब्ल्यू.सी.कटॉम्प्ललैक्समालीगाँवगुवाहाटी 781 021 फोन:0361-2674869

    िूलय एकप्रषि:`50 वाषिर्क:`200

    *जलुाई2017मेंमषुरिि

    ‘भारिी्आधषुनकषशक्ा’राष्ट्री्शलैषक्कअनसुंधानऔरप्रषशक्णपररिद्क़ीएकत्रलैमाषसकपषत्रकाहलै।इसपषत्रकाकामखु््उद्शे्हलै षशक्ाषवदों,शलैषक्कप्रशासकों, षशक्क-प्रषशक्कों, षशक्कों,शोधकोंएवं षवद्ार्थी-षशक्कोंकोएकमचंप्रदानकरना।षशक्ाएवंषशक्क-षशक्ाकेषवषभन्नअा्ामों,जलैसे—बाल्ावसर्ामेंषवकास,समकालीनभारिएवंषशक्ा,षशक्ामेंदाशर्षनकएवंसामाषजकपररपे्रक्ष्,ज्ानकेआधारएवंपाठ््च्ार्,अषधगमकाआकलन,अषधगमएवंषशक्ण,समाजएवंषवद्ाल्केसदंभर्मेंजेंडर,समावेशीषशक्ा,षशक्ाएवंषशक्क-षशक्ाहिेुआई.सी.टी.मेंनवीनषवकास,राष्ट्री्एवंअिंरार्ष्ट्री्सिरपरषशक्ाएवंषशक्क-षशक्ाकासवरूप,षवषभन्नराज््ोंमेंषशक्ाएवंषशक्क-षशक्ाक़ीषसर्षिपरमौषलकएवंआलोचनात्मकषचिंनकोप्रोत्साषहिकरनािर्ाषशक्ाएवंषशक्क-षशक्ाक़ीगणुवत्ामेंसधुारएवंषवकासकोबढावादनेा।लेखकोंद्ाराव््क्िषकएगएषवचारउनकेअपनेहैं।अि:्ेषकसीभीप्रकारसेपररिद्क़ीनीषि्ोंकोप्रसििुनहींकरिे,इसषलएइससंबंध्ामेंपररिद्काकोईउत्रदाष्त्वनहींहलै।

    © 2017.* पमरिका िें प्रकामशत लेखों का रा.शै.अ.प्र.प. द्ारा सवायामिकार सरुमषित है, पररषद् की पूवया अनुिमत के मबना, लेखों का पुनिुयाद्रण मकसी भी रूप िें िान्य नहीं होगा।

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  • ISSN 0972-5636

    भारतीय आधुिनक िशक्ावर्ष 37 अंक 1 जुलाई 2016

    इस अंक में

    संपादकीय 3

    वर्तमानशिक्ावयवस्ामेंमलूयपरकराकीआवशयकरा अनजुकुमार 5

    उत्तरप्रदिेमेंमाधयशमकसररकीशिदंीपाठ्यपसुरकों शवभाशसंिपटेल 12मेंशनशिरमानव-मलूयोंकारलुनातमकअधययन

    उच्चप्रा्शमकसररपरसामाशजकशवज्ानपाठ्यपसुरक रीटाअरोडा 25कीशवषय-वसरुमेंशनशिरमलूयोंकाशवशलेषण शवेरागपुरा

    ग.ु...डमाॅ....शनिं....गसर! केवलानंदकांडपाल 36

    उच्चशिक्ाकापररदृशय बजृेिकुमारपांडेय 43

    उच्चशिक्ाकी्चनुौशरयाँएवंसमाधान—उत्तराखडं पवनकुमार 51केशविषेसंदभ्तमें पी.के.जोिी

    भाररीयिशैक्कसंदभभोंमेंस्ूचनावसंपे्रषणरकनीकी रशशमश्ीवासरव 62शवकासएवं्चनुौशरयाँ

    “सकूलभवुन,एन.सी.ई.आर.टी.”भसू्ाशनकपोट्तल– अपणा्तपांडेय 73शवद्ालयोंमेंआधशुनकरमरकनीकद्ाराभगूोलकीखोजपरकशिक्ा

    सवामीशववेकानंदकािशैक्कश्चरंन शदनेिकुमारगपुरा 80 साशजदासाशदक

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  • समग्रमानवकेशनमा्तणमेंशिक्क-छात्रअनपुारकी प्रभारकुमार 88भशूमका–कृषणमशूर्तर्ाटैगोरकेसंदशभ्तरशव्चारों आिीषश्ीवासरवकीप्रासंशगकरा

    भाषाऔरधम्तकासंबंध अशभषकेसौरभ 98

    शवकासअनरुूपगशरशवशधयाँ–गणुवत्तापणू्तशवद्ालयी रौशमलासोनी 104पवू्तशिक्ाकाआधार!

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  • सपंादकीय

    सवरंत्रराप्राशपरकेबादिमारेदिेमेंसामाशजक,नैशरक और आधयाशतमक मलूयों का शनरंररह्ास शदखाई दे रिा ि।ै िालाँशक यि सिी िैशकआस-पासवयापरउदासीनराकेमािौलसेशवद्ालयभीप्रभाशवरिुएशबनारिनिींपाएिैंऔरउनमेंमलूयोंकेप्रशरअनादरयारटस्रापैदािुईि।ैशिरभीराषट्ीयमानसकोशनददेशिरकरने के शलए उनकी मितवपणू्त भशूमकाऔरदाशयतव से इनकार निीं शकया जा सकरा।शवद्ालयोंकोउनसाव्तभौशमकिाशवरमलूयोंकोपनुस्ा्तशपरकरनेकेशलएप्रयतनिीलरिना्चाशिएजोलोगोंकोएकराऔरएकीकरणकीओरउनमखुकरेंऔरउनिेंइसकाशबलबनाएँशकवेअपनेनैशरकऔरआधयाशतमकशवकासकेसा्अपनेभीररमौजदूिश्रकोमिससूकरसकें , समझसकें । मलूयपरक शिक्ा िमारेदिेकोकट्टररा,दभुा्तवना,शिसंा,बेईमानीऔरिोषणजैसीबीमाररयोंसेलडनेमेंसियोगदगेीऔरवयश्रकोएकशज़ममदेारनागररकबनानेमेंमददगारसाशबरिोगी।

    भाररीयआधशुनकशिक्ाकेइसअकंमेंमलूयपरकशिक्ासेजडेु्चारलेखिाशमलशकएगएिैं।अनजुकुमारकेलेखमेंमलूयपरकशिक्ा

    कीआवशयकरा पर शवशलेषणातमक शटपपणीकी गई िैऔरबराया गया िै शकमलूयपरकशिक्ा द्ारा िम ऐसी पीढी रैयार कर सकरेिैं जो श्म, संसकारों के द्ाराआतमशनभ्तर िो,शनभ्तय िोकर भ्रषटा्चार और अकम्तणयरा केशखलािआवाज़उठासके,जाशरवाद,वग्तभदेऔरसांप्रदाशयकरासेऊपरउठकरप्रजारांशत्रकसमाजकाशनमा्तणकरसके।शवभाशसंिपटेल,रीटाअरोडाऔरशवेरागपुरानेअपनेलेखोंकेमाधयमसेशवशभननराजयोंकीपाठ्यपसुरकोंमेंशनशिरमानवमलूयोंकाशवशलेषणप्रसररुशकयाि।ैकेवलानंदकांडपालकाअनभुवपरकलेखखलुासा कररा िै शक बच्चों में लोकरांशत्रकमलूय उश्चर ररीके से शवकशसर निीं शकएजारेिैं।लेखककामाननािैशकमलूयकेवलनीशरव्चन्ोपनेदनेेमात्रसेिीशवकशसरनिींिोंगे, बशलक शिक्क को शवद्ाश ््तयों के सा्समानरा का वयविार भी करना िोगा औरमलूयों को अपने वयविार द्ारा प्रदशि्तर भीकरनािोगा।

    अकं के दो लेखउच्च शिक्ासेजडेु िैं।बजृेिकुमारपांडेयनेभाररीयपररपे्रक्षयमेंउच्चशिक्ाकेक्ेत्रमेंआएबदलावोंकीसमीक्ाकी

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  • 4 भारतीय आधिुनक िशक्ा – जलुाई 2016

    ि,ैरोपवनकुमारऔरपी.के.जोिीनेउत्तराखडंकेसंदभ्तमेंउच्चशिक्ाकीमखुय्चनुौशरयोंऔरउनकेसमाधानकी्च्चा्तभीकीि।ै

    दोलेखिशैक्कप्रशरियामेंआई.सी.टी.केप्रयोगपररोिनीडालरिेिैं।रशशमश्ीवासरवनेआई.सी.टी. के शवकास का उललेख कररे िुए इनसे जडुी्चनुौशरयोंकाशवशलेषणशकयाि।ैअपणा्तपांडेयकालेखप्रभाविालीभौगोशलकशिक्णकीआई.सी.टी.आधारररएकनवीनरमरकनीकसेसंबंशधरिैशजसेएन.सी.ई.आर.टी.नेशवकशसरशकयाि।ै

    दोलेखमिानभाररीयदाि्तशनक,श्चरंकऔरशिक्ाशवदों केिशैक्क शव्चारोंसेरूबरूकरारे िैं।शदनेि कुमार गपुराऔरसाशजदासाशदक नेअपनेलेख में सवामी शववेकानंद के िशैक्क श्चरंन की

    वयाखयाकीि,ैशजसकीप्रासंशगकराआजभीवैसीिीबनीिुईि।ैप्रभारकुमारऔरआिीषश्ीवासरवनेकृषणमशूर्तर्ाटैगोरकेिशैक्कशव्चारोंकेअनरुूपसिीशिक्क-छात्रअनपुारकीमित्तापर्च्चा्तकीि।ैअशभषके सौरभअपने लेख के माधयमसे यिसमझारिेिैंशकिमारेदिेमेंभाषाकोधम्तसेजोडनेसे्यानकुसानिुआि।ै

    आजशवद्ालयीपूव्तशिक्ाकेमित्तवकोसभीसवीकार कर रिे िैं। इसे शकस प्रकार आयोशजरशकया जाए राशक बच्चों की िैशक्क बुशनयादमजबूरबनसकेऔरवेशवद्ालयजानेकोरैयारिोसकें , येमदु्ेबिुरमितवपूण्त िैं। रौशमलासोनीबरा रिीिैं शकगुणवत्तापूण्त शवद्ालयी शिक्ाकाआधार्यािोना्चाशिए।

    अकादमिक संपादकीय समिमि

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  • वर्तमान शिक्ा व्यवस्ा में मूल्यपरकरा की आवश्यकरा

    अनजु कुमार*

    शिक्ा का सामाशिक सरोकार से िुडा होना आवश्यक है। इसके शिए शिक्ा ऐसी होनी चाशहए शक व्यशतर में व्यावहाररक रूप से मूल्यों का समावेि सव्ंय ही हो िाए। सैदांशरक रूप से भिे ही इसकी शिरनी बारें होरी रही हैं िेशकन वासरव में ऐसा हो नहीं पा रहा है। मूल्यशवहीन शिक्ा भोगवादी प्रवशृति को बि दे रही है। शसर््त शवष्यों के ज्ान से व्यशतर में बदिाव नहीं होरा है बशलक इसका व्यावहाररक रूप भी सामने आना चाशहए। िैसे नागररक िासत्र पढ़कर िोग ्यारा्यार शन्यमों का पािन कर ही िें ्यह ज़रूरी नहीं ्या प्या्तवरण को शवष्य के रौर पर पढ़कर भी िोग इसके प्रशर सचेर हो िाए,ँ ऐसा कम ही देखा िारा है। इस िेख में शिक्ा के पाठ््यक्रम, शिक्ण शवशि्यों र्ा शिक्क की भूशमका से सबंंशिर सझुाव भी प्रसरुर शकए गए हैं।

    मानव समाज का सवरूप काफ़ी व्ापक और गतिशील ह।ै तवकास के पथ पर आगे बढ़िे हुए राजनीतिक और आतथथिक पररविथिनों के साथ इसके अन् पक्ों, जैसे – सामातजक, सांसककृ तिक, मनोवैज्ातनक व प्ाथिवरणी् आति में भी बिलाव आ जािा ह,ै कई बार इन पहलओु ंमें पररविथिन सकारातमक होिे हैं और कई बार नकारातमक। भमूडंलीकरण के िौर में वैज्ातनक

    और आतथथिक सिर के पररविथिन सराहनी् कह ेजा सकिे हैं, परंि ु िसूरी ओर सामातजक एवं भौतिक प्ाथिवरण में आए पररविथिन तििंा का तवष् बनिे जा रह ेहैं।

    आज ितुन्ा के सबसे बड़े लोकिंत्र भारि क़ी संसि में टांसपरेंसी इटंरनेशनल द्ारा जारी क़ी गई िाजी ररपोटथि का हवाले ििेे हुए भ्रषटािार क़ी भ्ावहिा पर गंभीर तििंा प्रकट क़ी जािी

    * अध्यापक (सामातजक तवज्ान), जवाहर नवोि् तवद्ाल्, तसरमौर, तजला - रीवा, मध््प्रिशे

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  • 6 भारतीय आधिुनक िशक्ा – जलुाई 2016

    ह ै िब तकसी भी संवेिनशील व्तति के माथे क़ी लक़ीरें गहरी हो जािी हैं। तजस सभ् समाज को हम आए तिन अखबारों और अन् जनसंिार माध््मों के जरर्े िखेिे, पढ़िे और सनुिे हैं, िब ्ह एहसास होिा ह ै तक हम तकधर जा रह ेहैं? आज के समाज और नई तवकतसि संसककृ ति ने हमारे मानस और ििेना में टकराहट पैिा कर िी ह।ै परुािन जीवन शलैी और मलू्ों को हमने नकारा ह।ै विथिमान का न्ा सवरूप, तवरूप, पररवतिथिि िररत्र उसके अपने सवांग से ही सामने आ्ा ह।ै संसककृ ति्ों के वकृत्त और कें द्र बिल गए हैं। जो सामने आ्ा ह ैवह नई ििेना को भी एक दृश् प्रपंि से घरेे हुए ह।ै भारि के सामातजक पररवेश में एक बड़ा प्रशन जीवन क़ी तिशा का ह।ै िशे क़ी समकृद्ध सांसककृ तिक तवरासि एक ओर हमें िशे के परंपरागि सामातजक नैतिक प्रतिमानों के प्रति आककृ षट करिी ह,ै वहीं नवीन आधतुनक पररविथिन आधतुनकिा के प्रति। निीजन पीछे मड़ुकर िखेने क़ी जरूरि तिर महससू क़ी जा रही ह।ै ्ह आवश्क नहीं तक आधतुनक तवकासातमक संिभभों के साथ खिु को जोड़कर हम अपने आपको सव्ं के पारंपररक जीवन मलू् के प्रतिमानों से पणूथििः अलग कर लें।

    आज परेू वैतशवक समाज को पनुःउतथान क़ी आवश्किा ह।ै इस पनुःउतथान का का थ्ि करने में जो प्रतरि्ा महवपणूथि भतूमका तनभा सकिी ह,ै वह ह ै‘तशक्ा’। इस तवष् पर लगभग सभी महान तविारक, िाशथितनक एवं तशक्ातवि ्एक मि रखिे हैं परंि ुतशक्ा क़ी प्रतरि्ा भी पररविथिनों से अछूिी नहीं रहिी ह ैवरन ्समाज के अन् पहलओु ंमें आए पररविथिनों से प्रभातवि होिी रहिी ह।ै तशक्ा क़ी प्रतरि्ा ् गु सापेक्

    होिी ह।ै ्गु क़ी गति और उसके नए-नए पररविथिनों के आधार पर प्रत्ेक ्गु में तशक्ा क़ी पररभाषा और उद्शे् के साथ उसका सवरूप भी बिल जािा ह।ै ्ह मानव इतिहास क़ी सचिाई ह।ै मानव के तवकास के तलए खलुिे तनि नए आ्ाम तशक्ा और तशक्ातविों के तलए िनुौिी का का थ्ि करिे हैं तजसके अनरुूप ही तशक्ा क़ी नई पररवतिथिि रूपरेखा क़ी आवश्किा होिी ह।ै

    इसके तलए सम्-सम् पर िाशथितनकों, तििंकों, तविारकों और तशक्ातविों से सही तिशा तमलिी ही ह।ै साथ ही इसक़ी पररविथिनकारी भतूमका को बल भी तमलिा ह।ै तशक्ा के क्ेत्र से जड़ेु सभी घटकों के तलए ्ह जानना आवश्क हो जािा ह ैतक विथिमान संिभथि में तशक्ा कैसी हो ?

    प्रत्ेक समाज एवं राषट के तवकास में तशक्ा का तवशेष महत्व ह।ै इसतलए प्रत्ेक िशे मानवी् संसाधन को श्ेषठ, ्ोग् एवं प्रतशतक्ि बनाने के तलए तशक्ा पर आतश्ि होिा ह।ै सही तशक्ा का अथथि केवल साक्रिा ्ा ्ोग्िा पा लेना नहीं ह ैबतलक अहम का तवनाश, मानविावािी बनना, सत् को पाना और ईशवर को लक्् मानकर जीवन में आगे बढ़ना ह।ै तशक्ा का क्ेत्र इिना व्ापक ह ैतक जीवन का प्रत्ेक पहल ूकहीं न कहीं इससे जड़ुिा हुआ प्रिीि होिा ह।ै तशक्ा के तवतभनन पहलओु ंपर जब ििाथि होिी ह ैिो अनेक मंिों से एक सवर मखुररि होिा ह ै तजसमें मलू् तशक्ा ्ा मलू्ों क़ी बाि क़ी जािी ह।ै हालाँतक इस पर नजरर्े अलग-अलग हैं परंि ुएक बाि पर िो सभी सहमि हैं तक हमारी विथिमान तशक्ा व्वसथा में मानवी् िथा

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  • 7वर्तमान िशक्ा व्यवस्ा में मलू्यपरकरा की आवश्यकरा

    संवैधातनक मलू्ों को ्था सथान महत्व तिए जाने क़ी आवश्किा ह।ै मनषु् एक सामातजक प्राणी ह।ै व्तति से समाज और समाज से व्तति का अतसितव जड़ुा हुआ ह।ै व्तति के आिशभों, मलू्ों में बिलाव से समाज प्रभातवि होिा ह।ै वहीं िसूरी ओर समाज के अंिर मलू्ों के पररविथिन से व्तति के मलू्ों में भी पररविथिन आ जािे हैं। ज्ानाजथिन प्रतरि्ा में कुछ ऐसे ज्ान ितव क़ी कमी रह जािी ह ैतजसका सीधा संबंध व्ततितव तवकास के साथ-साथ संपणूथि मानव समाज से जड़ुा होिा ह।ै आज मनषु् को तवतशषट तिशा में अग्रसर करने में संपणूथि तशक्ा प्रणाली अप्रासंतगक, तिशाहीन एवं तनरथथिक तसद्ध हो रही ह।ै ज्ान का सथान सिूना एवं तशक्ा का सथान परीक्ा ने ले तल्ा ह।ै पररणामसवरूप, आज तवशव अत्तधक ज्ान तवसिार से पीतड़ि ह।ै केवल तवष्ों के ज्ान से तशक्ा का लक्् परूा नहीं हो सकिा ह।ै ज्ान के तवसिार के अनपुाि में हमारे समाज में जीवन मलू् तवकतसि नहीं हो पाए हैं और विथिमान व्वसथा में ्ही िखु का मलू कारण ह।ै तशक्ा और मानवी् मलू्ों में परसपर संबद्धिा का अभाव तिखाई पड़ रहा ह।ै

    जीवन मलू्ों के तवशवव्ापी क्रण के संकट में हमें तनतशिि रूप से मानवी् मलू्ों क़ी तशक्ा क़ी सोिशे्िा को सवीकार करना ही होगा त्ोंतक तशक्ा सव्ं में एक मलू् ह।ै तशक्ा संसकार के तलए ह।ै ‘तवद्ा ििाति तवन्म’् ्ा ‘श्द्धावान लभिे ज्ानम’् ्े उतति्ाँ ससुंसककृ ि और सतुशतक्ि मनषु् क़ी पहिान हैं। इस संिभथि में सवथिप्रथम ‘मलू्’ शबि में तनतहि अथथि को सपषट करना आवश्क होगा। मलू्

    मलूिः नैतिक प्रत्् ह।ै ्ह ऐसा आधार ह ैजो हमें उतिि एवं अनतुिि का बोध करािे हैं। मलू् को पररभातषि करिे हुए कहा ग्ा ह ैतक मलू् तन्ामक मानिडं हैं तजनके आधार पर मानव क़ी िनुाव प्रतरि्ा प्रभातवि होिी ह ैिथा वे अपने प्रत्क्ीकरण के अनरुूप तवतभनन तरि्ाओ ंका िनुाव करिे हैं।

    सहज शबिों में, मलू् कोई नई वसि ु ्ा तविार नहीं ह ै बतलक सदुृढ़ आततमक इचछाशतति ह।ै हम तजसे सममान ििेे हैं, िाहिे हैं ्ा महत्वपणूथि समझिे हैं, वही मलू् ह।ै ्ह मानवी् संरिना क़ी अतभपे्ररणातमक तवद्ा ह।ै ्ह हमारे व्वहार के तलए पे्ररणा सत्रोि ह।ै व्तति का सममान और उसक़ी सामातजक उप्ोतगिा िथा समाज क़ी प्रगति में व्तति क़ी सतरि्िा और साथथिक ्ोगिान को ‘मलू्’ ही तनतशिि करिे हैं। ्ह तशक्ा का कें द्री् ममथि ह।ै आज इसका लोप हो रहा ह।ै मलू्ों के अभाव में तशक्ण का थ्ि क़ी रोिकिा समाप्ि हो रही ह।ै पररणामसवरूप, तशक्ाथथी तिगभ्रतमि और अध््ापक असमजंस में तिखाई पड़ रह ेहैं।

    आज क़ी तशक्ा मनषु् को मनषु् होने से ही वंतिि कर रही ह।ै वह व्तति को वे िमाम िीजें तसखािी ह ैजो मनषु्िा के तलए घािक हैं, जैसे – प्रति्ोतगिा, िलुना, महत्वाकांक्ा, अहकंार, पररग्रह, सवाथथिपरिा आति। ऐसा मालमू पड़िा ह ै तक मनषु् क़ी बेहिरी के तलए तक्ा जाने वाला उपरिम ही उसे बििर बना्े जा रहा ह।ै भारिी् समाज और तशक्ा बहुराषटी् कंपतन्ों के प्रभाव और िबाव में जकड़िी जा रही ह।ै हम पनुः नवउपतनवेशवािी एवं नवसाम्ाज्वािी प्रवकृतत्त्ों के घरेे क़ी ओर बढ़

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  • 8 भारतीय आधिुनक िशक्ा – जलुाई 2016

    रह ेहैं। नई िकनीक एवं प्रौद्ोतगक़ी तशक्ा के कारण तवशव सतहि भारि में एक न्ा उचि तशक्ा प्राप्ि वगथि तवकतसि हुआ ह।ै इस वगथि में नई सोि और जीवन शलैी तवकतसि हो रही ह।ै ्ह जीवन शलैी लोगों को अपने िशे क़ी सभ्िा, संसककृ ति, आसथा, अाध््ातम, भाषा, परंपरा, पंिांग, इतिहास व सथानी् पररवेश से काट रही ह।ै एक नई प्रकार क़ी अपसंसककृ ति तवकतसि हो रही ह।ै सथातपि मलू्ों क़ी अवहलेना का भाव सवसथ शतैक्क वािावरण को भी प्रभातवि कर रहा ह।ै मलू्ों को खोकर विथिमान में हमने बहुि कुछ खो ति्ा ह।ै आज जब ितुन्ा के सभी राषट भौतिक प्रभतुव सथातपि करने क़ी प्रतिसपधाथि में खड़े हो गए हैं, मानवी् मलू् व मानवी् संसककृ ति क़ी संवेिना शनू् सी हो गई ह।ै भमूडंलीकरण के िौर में आध््ाततमक जीवन मलू्ों िथा उिात्त सांसककृ तिक परंपराओ ंका लोक पराभव प्रारंभ हो ग्ा ह।ै समाज बौतद्धक िासिा व कंुतठि सांसककृ तिक पिन क़ी ओर िल पड़ा ह।ै ऐसी तवषम पररत सथति में हमारा समाज हृि्तवहीन रोबोट िथा प्राणहीन ्ंत्रों द्ारा ििैन् तवशव क़ी गतितवतध्ों का संिालन कर आतखर तकन मलू् और मान्िाओ ंको सथातपि करना िाह रहा ह?ै वासितवक सचिाई ् ह ह ैतक ् ति संसककृ ति से मानविा एवं मलू् तनकाल तिए जाए ँिो न जीवन क़ी कोई संज्ा रह जािी ह ैऔर न पहिान। मलू्परकिा के अभाव में समाज में तहसंा, अपराध, मद्पान क़ी बढ़िी प्रवकृतत्त, धनलोलपुिा, सथातपि तन्मों क़ी अवहलेना, समाज के आधारभिू संसथाओ ंके टूटने का खिरा ्था – एकल पररवार, िलाक आति के रूप में दृतषटगोिर हो रह ेहैं। सामातजक समरसिा के

    सथान पर फ़लैटवाली संसककृ ति ने पाँव पसार तलए हैं तजसमें सवतहि के अलावा और कोई मलू् क़ी आवश्किा ही नहीं रही ह।ै इन पररत सथति्ों में ्ह जानना पनुः आवश्क हो जािा ह ैतक विथिमान संिभथि क़ी तशक्ा व्वसथा कैसी हो ?

    उचि मलू् व्तति को आिशथि नागररक बनािे हैं िथा उसके व्ततितव तनमाथिण में अहम भतूमका का तनवथिहन करिे हैं। अिः तजस तशक्ा के तजिने उचि मलू् होंगे वह उिनी ही उननि एवं भावी पीढ़ी के तलए तवकासोनमखु होगी। कोई मनषु् महान िभी बन सकिा ह ैजब वह नैतिक मलू्ों क़ी साधना करिा ह।ै अगँलुीमाल डाकू और वैशाली क़ी नगरवध ूआम्पाली अपने जीवन में बौद्ध संघ के मलू्ों को आतमसाि कर तभक्कु बन जािे हैं। एक साधारण जलुाहा कबीर के रूप में ख्ाति प्राप्ि कर लेिा ह,ै एक साधारण वक़ील गांधी के रूप में सत् व अतहसंा के बल पर आिंोलन का नेिकृतव कर राषटतपिा बन जािा ह,ै वहीं पीतड़ि मानविा क़ी सेवा के बल पर मिर टेरेसा-संि के रूप में। विथिमान तशक्ा व्वसथा में वैसी मलू्परक तशक्ा क़ी आवश्किा ह ै जो तवशव नागररकिा क़ी सवधारणा का बोध करािे हुए तवशव बंधतुव क़ी भावना से ओि-प्रोि तवशवव्ापी शांतिपणूथि संसककृ ति के तवकास में सहा्क हो। क्ि-तवक्ि होिी सभ्िा क़ी रक्ा के तलए भी नैतिक शतति क़ी आवश्किा ह।ै आध््ाततमक और मानविावािी मलू्ों से तसंतिि समाज ही उसक़ी रक्ा कर सकिा ह।ै प्रतसद्ध िाशथितनक व तशक्ाशासत्री डाॅ. राधाककृ षणन ने अपने तविार व्ति करिे हुए कहा ह ैतक — ‘तवशव ने अनेक ऐसी सभ्िाए ँिखेी हैं तजन

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  • 9वर्तमान िशक्ा व्यवस्ा में मलू्यपरकरा की आवश्यकरा

    पर ् गुों क़ी धलू जम िकु़ी ह।ै हमने मान तल्ा था तक कैसा भी पररविथिन और तवकास त्ों न हो, पाशिात् सभ्िा का ठोस ढाँिा सव्ं में तटकाऊ और पणूथि ह ैतकंि ुअब हम िखे रह ेहैं तक वह तकिने भ्ावह रूप में अवशषे के रूपों में ह।ै नैतिक होना तनरापि नहीं ह,ै बरुी व्वसथाए ँअपने लोभ और अहकंार के कारण अपना तवनाश कर लेिी हैं। जो तवजेिा और शोषक मलू्ों क़ी िट्ान से टकरािे हैं वे अिंिोगतवा अपने ही तवनाश के खड्ड में तगरिे हैं।’ आज अशांि तवशव में मलू्ों का मानव में अविरण समसि तवशव को वासितवक समकृतद्ध का िशथिन कराएगा। वह समकृतद्ध, जो सथा्ी होगी व्तति के जीवन को उललास, हषथि, आनंि से आप्लातवि कर िगेी। ऐसे भी िखेा जाए िो मानवी् जीवन क़ी वासितवक समकृतद्ध का आधार उसके नैतिक जीवन में ही तछपा ह।ै

    आज तशक्ा में तवररि पररविथिन क़ी आवश्किा पहले से अतधक महससू क़ी जा रही ह।ै सविंत्रिा के बाि से लेकर विथिमान िक हम अपनी तशक्ा प्रणाली में मलू्परकिा का प्रभावी समावेश नहीं कर पाए हैं। ्द्तप सविंत्र भारि में तजिने भी तशक्ा आ्ोग और सतमति्ाँ बनी हैं सभी ने मलू्-आधाररि तशक्ा पर बल ति्ा ह।ै भारिी् संसि ने 1996 में तशक्ा में सधुार पर तविार करने क़ी दृतषट से श्ी शकंरराव िवहाण क़ी अध््क्िा में एक सतमति का गठन तक्ा, तजसने मलू्-आधाररि तशक्ा और ििनसुार पा्ठ्रिम बनाने का सझुाव ति्ा। इस सतमति के द्ारा सझुाए गए तविारों पर सववोचि न्ा्ाल् ने भी 2002 में अपने िैसले में मलू् -आधाररि तशक्ा क़ी आवश्किा को उद्धकृि करिे हुए कहा तक ‘हमारी पीढ़ी पाशिात्

    ससंककृ ति के बढ़िे नकारातमक कुप्रभावों से ग्रसि ह।ै भारि प्रािीन िशे ह ै जो वैतवध््ों से भरा हुआ ह।ै प्रािीन काल से भारि में महान संिों व दृषटाओ ंक़ी �कृखंला रही ह।ै ्हाँ के तवतभनन धमभों और संप्रिा्ों ने शाशवि मलू्ों का उललेख तशक्ा का बीजारोपण करने के तलए तक्ा ह।ै धमभों के आधारभिू मलू्ों से तवद्ातथथ्ि ों का पररि् कराना ह ैतजससे वे सभी धमभों के िशथिन का िलुनातमक अध्््न कर सकें ।’ माननी् सववोचि न्ा्ाल् का तनणथ्ि विथिमान तशक्ा व्वसथा में मलू्परकिा क़ी आवश्किा को रेखांतकि करने क़ी दृतषट से वैधातनक आधार भी प्रिान करिा ह।ै शाले् तशक्ा से तवशवतवद्ाल् सिर िक क़ी तशक्ा प्रिान करने वाली सभी संसथाओ ं का ्ह िात्तव ह ै तक तवतभनन उपागमों को अपनाकर तशक्ाथथी में मानवी् मलू्ों को आतमसाि कराए।ँ िूतँक तशक्ा के सामातजक सरोकार भी हैं, अिः जो तशक्ा सामातजक िात्तव बोध तवकतसि नहीं करािी ह ैवह व्ततिवािी और भोगवािी प्रवकृतत्त को बल प्रिान करिी ह।ै तशक्ा के सामातजक िात्तवों क़ी पतूिथि िभी संभव होगी जब वह व्तति में मानवी् मलू्ों और सामातजक का्भों को करने के तलए प्रतिबद्धिा तवकतसि करे। विथिमान तवशव क़ी समस्ाओ ंके समाधान क़ी दृतषट से तशक्ा को मूल्ों से जोड़ा जाना आवश्क है। व्ावहाररक रूप से िेखा ग्ा है तक तसफथि तवष्ों के ज्ान मात्र से व्वहार पररविथिन नहीं हो पािा है। नागररक शास्त्र पढ़कर भी लोग ्ािा्ाि तन्मों का पालन नहीं करिे हैं। प्ाथिवरण संरक्ण क़ी महत्ता के ज्ान के बाि भी वासितवक जीवन में प्ाथिवरण के प्रति सिेि नहीं होिे हैं।

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  • 10 भारतीय आधिुनक िशक्ा – जलुाई 2016

    इसका कारण ह ै शतैक्क प्रतरि्ा के िौरान भावातमक सिर पर पररविथिन का प्र्ास नहीं तक्ा जाना। विथिमान तशक्ा प्रणाली में िथ्ों के संपे्रषण से आगे बढ़कर ‘बलमू’ क़ी भाषा में व्तति के िीन पक्ों ् था– ज्ानातमक, तरि्ातमक व भावातमक सिर के तवकास अपेतक्ि जान पड़िे हैं। सदुृढ़ परंपराओ ंसे अत्ंि ओजसवी, गहन और शाशवि सत् को मखुररि करने वाला ज्ान भडंार भारि के प्रािीन ग्रंथों में समातहि ह।ै हमारा िशे ऐसा राषट ह ैतजसमें सभी संसककृ ति्ों के मानवी् ितवों को आतमसाि करने क़ी क्मिा ह।ै ्ह अपने नागररकों को मलू्ों एवं पहिान से जोड़िी ह ै िथा मानवी् व्ततितव क़ी मलू प्रवकृतत्त्ों में संशोधन एवं पररमाजथिन कर समाज के अनकूुल बनािी ह।ै

    हमारे िशे के प्रािीन तशक्ा कें द्र ्था –िक्तशला, नालंिा, तवरिमतशला, उजजैन, मथरुा, वललभी, काशी आति मलू्परक तशक्ा के तलए ही तवशवतवख्ाि रह ेहैं। तिर हमने इनक़ी तनरंिरिा को का्म रखने में भलू क़ी। तशक्ा में मलू्परकिा के समावेश द्ारा हम ऐसी पीढ़ी िै्ार कर सकिे हैं जो भाग्वािी-अवसरवािी न होकर श्म संसकारों द्ारा आतमतनभथिर हो, तनभथीक होकर भ्रषटािार और अकमथिण्िा के तवरुद्ध आवाज उठा सके। जातिवाि, वगथिभिे, सांप्रिात्किा से ऊपर उठकर प्रजािांतत्रक समाज व राषटी् िररत्र का तनमाथिण कर सके।

    इन पररविथिनों क़ी आरंतभक पहल पररवार के संसकारों से ही करनी होगी। पररवार बालक क़ी प्रथम पाठशाला ह।ै ्ति बिपन से ही मािा-तपिा का संसकार्ुति, तवन््ुति और मलू्वािी

    दृतटिकोण से आचछातिि पररवेश तमले, िो बालक संसकारों से भरा मानव के रूप में िै्ार होिा ह।ै अमेररका के राषटपति तलंकन, मराठा छत्रपति तशवाजी, राषटतपिा महातमा गांधी को मनीषी के रूप में सथातपि करने में इनक़ी मािा और पाररवाररक पकृषठभतूम का महत्वपणूथि सथान रहा ह।ै अतभपे्ररक क़ी िसूरी कड़ी में, अध््ापकों क़ी भतूमका और उनका िात्तव भी महवपणूथि ह ैतजनके जीवन और आिशभों से समाज सिा से पे्ररणा व तिशा ज्ान लेिा रहा ह।ै तशक्क समाज का िपथिण ह।ै कोई भी अध््ापक जब तशक्ण का थ्ि करिा ह ैिब वह अपने साथ अपनी मान्िा, नजरर्ा, तवशवास, सोि व मलू्ों को भी छात्रों के सममखु आिशथि के रूप में प्रसििु करिा ह।ै तशक्क सव्ं भी मलू्ों को आतमसाि कर छात्रों के सममखु आिशथि प्रसििु कर सकिे हैं। कई बार जीवन मलू्ों को संपे्रतषि करने वाले अध््ापक क़ी करनी और कथनी का अंिर ही गणुों के तवकास में अवरोधक बन जािा ह।ै इस दृतषट से हमें अध््ापक और शैतक्क प्रशासकों क़ी अतभवकृतत्त में भी पररविथिन लाने का प्र्ास करना होगा। अध््ापक मलू्ों के प्रति अपने तवशवास को सदुृढ़ बनाएँ त्ोंतक उनके द्ारा जीवन मलू्ों के अतभतसंिन से छात्रों में सि्ग्णुों का पौधा पललतवि और पतुषपि होगा। पररत सथति्ों और संसककृ ति के प्रभाव के कारण अध््ापक क़ी तसथति में आई तगरावट को पनुः शीषथि पर लाने क़ी तजममेिारी सव्ं अध््ापकों क़ी ही ह।ै

    भारिी् परंपरा में तशक्ा संसथानों में आतमोननति हिे ु प्राथथिना का सथान सववोपरर ह।ै प्राथथिना मानतसक रूप से तवद्ाल् क़ी गतितवतध्ों

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  • 11वर्तमान िशक्ा व्यवस्ा में मलू्यपरकरा की आवश्यकरा

    में छात्र के एकाकार होने का माध््म ह।ै इस प्राथथिना का सवरूप कुछ भी हो परंि ु उससे हमारे हृि् में शदु्धिा क़ी लौ सलुगने लगिी ह।ै ्द्तप प्राथथिना को लेकर तववाि भी उभरिे रह ेहैं परंि ुखलेु तविारों से सोिने पर मलू्परकिा का बीज ्हीं से प्रसिुतटि होिा ह।ै भारि क़ी आध््ाततमक ज्ान गंगा में िथा नैतिक व सांसककृ तिक परंपराओ ंमें आज क़ी वैज्ातनक िकनीक़ी आधतुनक ज्ान का तमश्ण करना ह।ै सारा संसार एक तवशवतवद्ाल् ह।ै सांसाररक जीवन के सभी उप्ोगी अनभुव और तरि्ाएँ, आिशथि, नैतिकिा, एकिा, अनशुासन, सम् क़ी पाबंिी, पारसपररक सह्ोग के ितव पा्ठ्रिम में सतममतलि तकए जाने िातहए। ्द्तप तशक्ा के क्ेत्र में राषटी्

    सेवा ्ोजना, राषटी् कैडेट कोर, भारि सकाउट व गाइड, ्ोग तशक्ा, राषटी् गीि, समहू गान, राषटी् गणवेश, सामतूहक प्रतिज्ा जैसी संसथाएँ और तरि्ाए ँहृि् क़ी गहराई को सपशथि करिे हुए सि्ग्णों के प्रति ही सिेषट करिे हैं। मलू्परक खेलों के आ्ोजन, महापरुुषों क़ी ज्ंति्ाँ ध््ान-साधना के तशतवरों पर बल िकेर वैिाररक सामथ थ्ि को तवकतसि करने का प्र्ास सिलीभिू होिा तिखाई पड़िा ह।ै

    शैतक्क उपलतबध्ों के मलू्ाँकन में भी नैतिक व मानवी् मलू्ों क़ी पकृषठभतूम होना अतनवा थ्ि करना सम् क़ी आवश्किा ह।ै तशक्ा में मलू्परकिा के तवतवध उपागमों के द्ारा भारि पनुः तवशव गरुु क़ी उपातध प्राप्ि कर लेगा। ऐसा मेरा पणूथि तवशवास ह।ै

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  • उत्तर प्रदेश में माध्यममक स्तर की मिंदी पाठ््यपुस्तकों में मिमि्त मािव-मूल्यों का ्ुतलिातमक अध्य्यि

    विभा विंह पटेल*

    सामित्य मािव की समृटि िै लेमकि वि मािव ्तक सीमम्त ििीं अमप्ुत वि शेष जग्त के साथ मािव के रागातमक सबंंध को पुटि कर्ता िै। आज सपूंर्ण भार्तवष्ण एवं मवश्व स्तर पर मूल्य मशक्ा की बा्त ज़ोर-शोर से किी जा रिी िै। सामित्य के माध्यम से मूल्यों की मशक्ा अमधक प्रभावकारी और सथा्यी रूप से दी जा सक्ती िै। मिंदी की पाठ््यपुस्तकों के माध्यम से मिंदी सामित्य की मवमवध मवधाओ ंद्ारा मवद्ामथ्ण्यों में मािव-मूल्यों का मवकास मक्या जा्ता िै। प्रस्ुत्त अध्य्यि का प्रमुख उदे्श््य मवमभनि मशक्ा पररषदों की कक्ा 10 की मिंदी पाठ््यपुस्तकों की मवष्यवस्ुत का मवश्लेषर करिा ्तदोपरां्त उिमें मवद्माि मािव-मूल्यों की पिचाि कर मवमभनि प्रकार की पररषदों की पाठ््यपुस्तकों में मवद्माि मािव-मूल्यों की ्ुतलिा करिा िै। मािव-मूल्यों के मवकास में मिंदी गद् पाठ््यपुस्तकों की अिम भूममका िो्ती िै। पाठ््यपुस्तकों के सपंादि में मवमभनि पररषदों के अपिे-अपिे दृमटिकोर िो्ेत िैं मिर भी उनिें एक सव्णमान्य दृमटिकोर की आवश््यक्ता िो्ती िै। इनिीं बा्तों को ध्याि में रख्ेत िुए अिुसधंाि का्य्ण कर मिटकष्ण एवं सझुाव मदए गए िैं।

    * शोध छात्ा, विक्ा िंकाय, कािी वहदं ूविश्िविद्ालय, िाराणिी, उत्तर प्रदिे

    पृटठभूमम

    िर्तमान िमाज में मनुषय में नैवरक और मानिीय िंिेदनाएँ प्रवरवदन घटरी जा रही हैं और इिका स्ान सिा ््तपररा लेरी जा रही है। अर: यह ज़रूरी है वक आधुवनक विक्ा वयिस्ा को

    मूलयपरक बनाया जाए। इिके वलए पाठ्यचया्त

    इि प्रकार वनवम्तर होनी चावहए वक िह मानि-

    मूलयों के विकाि में िहायक हो। िावहतय के

    माधयम िे मनुषय अपनी मनुषयरा के चरररा ््त

    कररा है। िावहतय मानि की िृवषट है लेवकन िह

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  • 13उत्तर प्रदशे में माध्यममक स्तर की मिदंी पाठ््यपसु्तकों में मिमि्त मािव-मलू्यों का ्तलुिातमक अध्य्यि

    मानि रक िीवमर नहीं अवपरु िह िेष जगर के िा् मानि के रागातमक िंबंध को पुषट कररा है। िावहतय मनुषय को उन मूलयों की पे्ररणा देरा ह ैवजनिे उनका जीिन िा ््तक ि िफल हो।

    विवभनन पाठ्यपसुरकों के माधयम िे मानि-मलूयों का विकाि वकया जा िकरा ह।ै वहदंी की पाठ्यपसुरकों के माधयम िे वहदंी िावहतय की विविध विधाओ ंद्ारा विद्ाव ््तयों में मानि-मलूयों का विकाि वकया जारा ह।ै मानि-मलूय की वनवहररा के दृवषटकोण िे माधयवमक सरर की विवभनन पररषदों की पाठ्यपसुरक में कया िसरवुस्वर ह,ै इिका अधययन करना एिं पररणामसिरूप प्राप्र िंकेरों के आधार पर िझुाि दनेा उवचर प्ररीर होरा ह।ै

    अध्य्यि की आवश््यक्ता

    आज िंपणू्त भाररिष्त एिं विश्ि सरर पर मलूय विक्ा की बार ज़ोर-िोर िे कही जा रही ह।ै िावहतय के माधयम िे मलूयों की विक्ा अवधक प्रभािकारी और स्ायी रूप िे दी जा िकरी ह।ै वहदंी िावहतय के माधयम िे मात्र वहदंी भाषा का विकाि ही नहीं होरा िरन ्यह बालकों में मलूयों के विकाि में िहायक भी ह।ै अर: विवभनन पररषदों द्ारा अपनाई गई पाठ्यपसुरकों में मानि-मलूयों की वनवहररा वकरनी ह ै र्ा कौन-िी पररषद ् ििवोत्तम ह,ै यह जानना अतयंर आिश्यक ह।ै

    समस्या कथि

    उत्तर प्रदिे में माधयवमक सरर की प्रचवलर वहदंी पाठ्यपसुरकों में वनवहर मानि-मलूयों का रलुनातमक अधययन।

    शीष्णक में प्र्ुयक््त शबदों की मरि्यातमक पररभाषा

    उत्तर प्रदेश – भाररिष्त का एक प्रमखु प्रांर।माध्यममक स्तर की मवमभनि मशक्ा पररषदें् – यहाँ पर उत्तर प्रदिे माधयवमक विक्ा पररषद ्आईिीएिई, िीबीएिई को िव्म वलर वकया गया ह।ै पाठ््यपुस्तक – ऐिी पसुरक, जो वकिी विषय-वििषे के अधययन के वलए प्रयोग की जारी ह,ै उि ेउि विषय की पाठ्यपसुरक कहरे हैं। मािव-मूल्य – कुछ वनवश्च र जीिन आदिशों को मानदडं के रूप में वलया जारा ह ैऔर इनहीं मानदडंों या किौवटयों को हम मानि-मलूय कहरे हैं। ्ुतलिातमक अध्य्यि – विविध-पररषदों की वहदंी गद् की पाठ्यपसुरकों पर विचारपिू्तक वचरंन करने के बाद विगर रथयों की िकू्मरा के िा् रलुना करना ही रलुनातमक अधययन ह।ै अध्य्यि के उदे्श््य – इि अधययन के प्रमखु उद्शे्य वन्नवलवखर हैं –

    • विवभनन विक्ा पररषदों की कक्ा 10 की वहदंी पाठ्यिसर ुकी विषयिसर ुका विश्लेषण करना।

    • उपरोकर विश्लेषण के उपरांर उनमें विद्मान मानि-मलूयों की पहचान करना।

    • विवभनन प्रकार की पररषदों की कक्ा 10 की वहदंी पाठ्यपसुरकों में विद्मान मानि-मलूयों की रलुना करना।

    पररसीमि

    1. अधययन में िव्मवलर की गई रीनों पररषदों के केिल वहदंी गद् पाठों को िावमल वकया गया ह।ै

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  • 14 भारतीय आधिुनक िशक्ा – जलुाई 2016

    2. दििीं कक्ा में पढाए जाने िाले िंसकृर, कावय खडं र्ा परूक वहदंी गद् पाठ्यपसुरक को िावमल नहीं वकया गया ह।ै

    3. एक ही पाठ में कई मानि-मलूय एक िे पाए गए हैं, अर: जो मानि-मलूय प्रमखु लगे उनहीं को अधययन में वलया गया ह।ै गौण मानि-मलूय को अधययन िे बाहर रखा गया ह।ै

    4. इि बारे में कुछ कहना कवठन ह ैवक वकि मानि-मलूय को पाठ्यपसुरक में वकरना महत्ि वदया जाए कयोंवक यह अतयंर वििाद का विषय ह।ै

    5. मानि-मलूयों के िगगीकरण पर आम िहमवर नहीं ह,ै मलूयों का िगगीकरण कई अनय ररीकों िे भी वकया जा िकरा ह।ै

    6. उनहीं मानि-मलूयों को प्रमखुरा दी गई ह,ै जो अपेक्ारया अनय मानि-मलूयों की रलुना में ज़्यादा पररलवक्र होरे हैं। वनषकष्त के िंपादन में गौण मानि-मलूयों की वगनरी एिं रलुना नहीं की गई ह।ै

    7. कें द्ीय माधयवमक विक्ा पररषद ्की दििीं कक्ा में वहदंी की पाठ्यपसुरक में अब िे पाठ्यपसुरकें चलरी हैं वजिमें 'अ' पाठ्यपसुरक को वलया गया ह।ै

    अिुसधंाि मवमध – यह अधययन विषयिसर ुविश्लेषणातमक ह।ै इिके अरंग्तर विवभनन

    पाठ्यपसुरकों में विद्मान मानि-मलूयों के विश्लेषण के उपरांर पहचान की गई ह ै एिं रदोपरांर रलुना की गई ह।ै

    इि अधययन में वन्नवलवखर छह मानि-मलूयों को ही वचवनहर वकया गया है –

    • िारीररक मानि-मलूय • आव ््तक मानि-मलूय • िामावजक मानि-मलूय • मनोिैज्ञवनक मानि-मलूय • बौवधिक मानि-मलूय • आधयावतमक मानि-मलूय

    इनहीं छह मानिीय मलूयों के आधार पर अधययन के अरंग्तर रख ेगए पसुरकों के िभी पाठों का मलूयाँकन वकया गया र्ा प्रधान एिं गौण मलूयों को पाठों की विषयिसर ुके आधार पर िंग्रवहर वकया गया ह ैजो पाठ्यक्रमानिुार आगे वदया गया ह।ै

    कें द्ी्य माध्यममक मशक्ा पररषद् की मिंदी की पाठ््यपुस्तक (दसवीं कक्ा) में मािव-मूल्य

    उपयु्तकर पररषद ् के अरंग्तर वहदंी की पाठ्यपसुरक (दििीं कक्ा) के रूप में 'वक्वरज भाग – 2' नामक पाठ्यपसुरक सिीकृर ह।ै इिके गद् खडं में वदए गए पाठों का वििरण वन्नवलवखर ह ै–

    साररी 1गद् खंड में मदए गए पाठों का मववरर

    पाठ रिमाँक पाठ का िाम मवधा10. नेराजी का चश्मा कहानी11. बालगोवबन भगर रेखावचत्र

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  • 15उत्तर प्रदशे में माध्यममक स्तर की मिदंी पाठ््यपसु्तकों में मिमि्त मािव-मलू्यों का ्तलुिातमक अध्य्यि

    12. लखनिी अदंाज़ कहानी13. मानिीय करुणा की वदवय चमक िंसमरण14. एक कहानी यह भी आतमकथय15. स्ती विक्ा के विरोधी कुरकशों का खडंन वनबंध16. नौबरखाने में इबादर वयवकर-वचत्र17. िंसकृवर वनबंध

    पाठों में मािव-मूल्यों का रेखांकि

    पाठ 10 ‘िे्ता जी का चश्मा’ — सव्ंय प्रकाश

    प्रसररु कहानी ‘नेरा जी का चश्मा’ सियं प्रकाि द्ारा वलवखर ह।ै इि कहानी में लेखक ने कैप्टन चश्म ेिाले के माधयम िे दिेभवकर को दिा्तया ह ैऔर िा् ही िा् यह वदखाया ह ै वक हर कोई अपने-अपने ररीके िे भारर के वनमा्तण में िहयोग कररा ह ैर्ा इिमें बड़ों िे लेकर बचच ेरक िावमल हैं। इि पाठ में दिेभवकर र्ा िहयोग के माधयम िे िामावजक मानि-मलूयों की झलक वमलरी ह।ै

    पाठ 11 ‘बालगोमबि भग्त’ — रामवकृ् बेिीपुरी

    प्रसररु रेखावचत्र ‘बालगोवबन भगर’ रामिकृ् बेनीपरुी द्ारा वलवखर ह।ै इि रेखावचत्र के माधयम िे लेखक ने बालगोवबन भगर का एक ऐिी विलक्ण वचत्र उद्घ्ावटर वकया ह ैजो लोक धम्त र्ा िामवूहक चरेना का प्ररीक ह।ै इिके िा् ही िा् िंयािी होने की िामानय धारणा का खडंन वकया र्ा इिमें यह वदखाया गया ह ै वक िंयाि का आधार मनषुय के मानिीय िरोकार होरे हैं। इि रेखावचत्र में बालगोवबन भगर के माधयम िे िामावजक मानि-मलूयों की विक्ा वमलरी ह।ै

    पाठ 12 ‘लखिवी अंदाज़’ — ्यशपाल

    प्रसररु कहानी ‘यिपाल’ द्ारा वलवखर ह।ै लखनिी अदंाज़़ के माधयम िे लेखक ने भारर में परजीिी िंसकृवर पर वयंगय वकया ह ैर्ा परनिील िामरंी िग्त पर कटाक् वकया ह ैजो िासरविकरा िे बेखबर एक बनािटी जीिन िलैी के आदी हैं। इि प्रकार अप्रतयक् रूप िे भाररीय िंसकृवर पर ज़ोर दरेे हुए िामावजक मानि-मलूयों को दिा्तया गया ह।ै

    पाठ 13 ‘मािवी्य करुरा की मदव्य चमक’ — सववेश्वर द्याल सक्सेिा

    यह िंसमरण ििवेश्िर दयाल िकिेना द्ारा वलखा गया ह।ै इि िंसमरण के माधयम िे दििीं कक्ा के विद्ाव ््तयों की भारर की आधयावतमक वििषेरा, फादर कावमल बलुके के माधयम िे बरायी गई ह ैर्ा बलुके के सिभाि को प्रकाविर कर ितय, करुणा, िांवर, िील इतयावद आधयावतमक मानि-मलूयों की विक्ा प्रदान की गई ह।ै इिके िा् ही िा् अिंर: मनोिैज्ञावनक मानि-मलूयों की विक्ा भी दी गई ह।ै

    पाठ 14 ‘एक किािी ्यि भी’ — मनिू भंडारी

    अपनी आतमक्ा, ‘एक कहानी यह भी’ के माधयम िे मनन ू भडंारी ने वदखाया ह ै वक वकि प्रकार एक िाधारण लड़की, अिाधारण वयवकरति प्राप्र कररी

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  • 16 भारतीय आधिुनक िशक्ा – जलुाई 2016

    ह ैर्ा आज़ादी की लड़ाई में उिका उतिाह, ओज, िंगठन-क्मरा और विरोध करने का ररीका दखेरे ही बनरा ह।ै इि पाठ के माधयम िे विद्ाव ््तयों को िामावजक मानि-मलूयों की विक्ा प्रदान की जा िकरी ह।ै

    पाठ 15 ‘सती-मशक्ा के मवरोधी कु्तककों का खंडि’ — मिावीर प्रसाद मद्वेदी

    प्रसरुर वनबंध महािीर प्रिाद वद्िेदी द्ारा वलवखर ‘मवहला मोद’ नामक पुसरक में िावमल ह।ै इि वनबंध के माधयम िे सत्री-विक्ा के विरोध में दी गई दलीलों का खंडन कररे हुए सत्री-विक्ा के िामावजक मलूय की स्ापना की गई ह ैर्ा सत्री-विक्ा को िामावजक विकाि में अवनिाय्त रति माना गया ह,ै अर: यहाँ िामावजक मानि-मलूय पररलवक्र होरा ह।ै

    पाठ 16 ‘िौब्तखािे में इबाद्त’ — ्य्तींद् ममश्र

    ‘नौबरखाने में इबादर’ प्रविधि िहनाई िादक उसराद वबवसमलला खाँ पर यरींद् वमश्र द्ारा रोचक िैली में वलखा गया वयवकर-वचत्र ह।ै इि वयवकर वचत्र के माधयम िे यरींद् वमश्र ने वबवसमलला खाँ

    का पररचय रो वदया ही ह,ै िा् ही उनकी रुवचयों, उनके अंरम्तन की बुनािट, िंगीर की िाधना और लगन को भी वयकर वकया ह।ै यहाँ पर िंगीर का पररचय आराधना के रूप में वदया गया ह ैर्ा इिके वलए गुरु-विषय की परंपरा, पूण्त रनमयरा, धैय्त र्ा मं्न को ज़रूरी बराया ह।ै इि पाठ के माधयम िे िामावजक मानि-मलूयों की विक्ा र्ा अंिर: िंगीर को अराधना के रूप में आधयावतमक मानि-मलूय की विक्ा गई ह।ै पाठ 17 ‘ससंकृम्त’ — भद्ंत आिंद कौसल्या्यि

    ‘िंसकृवर’ वनबंध भदरं आनंद कौिलयायन द्ारा वलवखर ह।ै इि वनबंध के माधयम िे हमें िभयरा और िंसकृवर िे जडेु़ अनेक जवटल प्रश्नों िे टकराने की पे्ररणा वमलरी ह।ै इि पाठ के माधयम िे मानि िमाज के वलए कलयाणकारी भािना के रूप में िंसकृवर और िभयरा को वचवत्रर वकया गया ह।ै इिके माधयम िे बौवधिक मानि-मलूयों की विक्ा दी गई ह,ै कयोंवक िंसकृवर और िभयरा का िंबंध कलयाण िे ह ैवजिका वनधा्तरण वििेक र्ा औवचतय वनधा्तरण द्ारा वकया जारा ह।ै

    साररी 2 पाठािुसार मवमभनि मािव-मूल्यों की मसथम्त

    रिमाँक मािव-मूल्य पाठ सखं्या पाठ सखं्या का ्योग प्रम्तश्त1. िारीररक मानि-मलूय 0 0 0%2. आव ््तक मानि-मलूय 0 0 0%3. िामावजक मानि-मलूय 10,11,12,14,15, 16 6 75%4. मनोिैज्ञावनक मानि-मलूय 0 0 0%

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  • 17उत्तर प्रदशे में माध्यममक स्तर की मिदंी पाठ््यपसु्तकों में मिमि्त मािव-मलू्यों का ्तलुिातमक अध्य्यि

    भार्ती्य प्रमार-पत माध्यममक मशक्ा पररषद के मिंदी गद् की पाठ््यपुस्तक (दसवीं कक्ा) में मािव-मूल्य

    इिके अरंग्तर वहदंी की पाठ्यपसुरक (दििीं कक्ा) के रूप में ‘गद् िंकलन’ नामक पाठ्यपसुरक सिीकृर ह।ै इिके गद् िंकलन में वदए गए 15 पाठों में िे 7 पाठों का वििरण वन्नवलवखर ह ै–

    लेखक ने िद्ग्णुों की प्रवरषठा की ह।ै िरदार िजुान

    विहं द्ारा पंवडर जानकीना् को दीिान वनयकुर करना

    इनहीं गणुों के महत्ि को स्ावपर कररा ह ैिा् ही दया

    और धम्त के माग्त पर चलने िाले वयवकर को दीिान का

    पद दकेर आवंिक रूप ि ेआधयावमक मानि-मलूय की

    विक्ा प्रदान की गई ह।ै इि पाठ में मखुयर: िामावजक

    मानि-मलूय की विक्ा दी गई ह।ै

    5. बौवधिक मानि-मलूय 17 1 12.5%6. आधयावतमक मानि-मलूय 13 1 12.5%

    8 100%

    साररी 3गद् खंड में मदए गए पाठों का मववरर

    रिमांक पाठ का िाम मवधा1. परीक्ा कहानी2. राई कहानी3. उिकी माँ कहानी4. अकेली कहानी5. चप्पल कहानी6. चीफ की दािर कहानी7. ममरा कहानी

    पाठों में मािव-मूल्यों का रेखांकि

    पाठ 1 ‘परीक्ा’ — पे्रमचंद

    ‘परीक्ा’ नामक कहानी ‘क्ा िम्ाट’ पे्रमचदं द्ारा वलवखर ह।ै इि कहानी के माधयम ि े वयवकर की िचची परीक्ा उिके हृदय में वस्र दया, आतमबल और परमा ््त भाि की उचचरा के िदंभ्त में करिाकर

    पाठ 2 ‘्ताई’ — मवश्वमभर िाथ शमा्ण ‘कौमशक’

    ‘राई’ विश्ि्भर ना् िमा्त ‘कौविक’ द्ारा वलवखर बहुचवच्तर ि प्रिवंिर कहानी ह।ै ‘राई’ कहानी के माधयम िे राई के चररत्र में वििषे उलझनें पैदा करने र्ा उििे वििषे वदिा की ओर वनवद्तषट करने िाली पररवस्वरयों के वचत्रण को अवधक महत्ि वदया गया

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  • 18 भारतीय आधिुनक िशक्ा – जलुाई 2016

    ह ैर्ा रामशे्िरी के रूप में ‘कौविक’ ने मारतृि भाि िे भर उठने िाली वन:िंरान राई का जीिंर वचत्रण वकया ह।ै इिके माधयम िे पाररिाररक जीिन जैिे िामावजक मानि-मलूयों की स्ापना की ह।ै

    पाठ 3 ‘उसकी माँ’ — पांडे्य बेचि शमा्ण ‘उग्र’

    ‘उिकी माँ’ नामक कहानी पांडेय बेचन िमा्त ‘उग्र’ द्ारा वलवखर ह।ै इि कहानी के माधयम िे दिे-पे्रम की भािना का अतयंर मावम्तक ि क्रांवरकारी भाि वचवत्रर वकया गया ह।ै इिमें दिा्तया गया ह ैवक वकि प्रकार भारर मारा को सिरंत्र कराने के वलए ‘लाल’ जैिे न जाने वकरने क्रांवरकारी फाँिी के रखरे पर झलू गए होंगे। न जाने वकरनी माराए ँऐिी रही होंगी जो ‘उिकी माँ’ की ररह कलेजे पर पत्र रखकर अपने पतु्र को फाँिी लगने की िचूनाए ँपारे ही दम रोड़ गइइं। इि कहानी के माधयम िे राषट्रधम्त, धयै्त, िौय्त, तयाग जैिे िामावजक मानि-मलूयों की विक्ा दी गई ह।ै

    पाठ 4 ‘अकेली’ — मनिू भंडारी

    ‘अकेली’ िीष्तक कहानी मनन ूभडंारी की बहुचवच्तर मनोिैज्ञावनक कहानी ह ैवजिमें एक अकेली नारी के मानविक िंिार ि िामावजक वयिहार का हृदयसपिगी वचत्रण हुआ ह।ै इि कहानी में िोमा बआु के रूप में एक पररतयकरा का िण्तन हुआ ह ैवजिका पवर, पतु्र की मतृय ु के बाद िंनयािी होकर हररद्ार जा बैठरा ह ैऔर िष्त में केिल एक माह के वलए घर आरा ह।ै इि एक माह में िोमा को मानविक उतपीड़न िहना पड़रा ह,ै वफर भी िह अपना जीिन आि-पाि की दवुनया में लोक-वहर के कायशों में वयसर कररी जारी ह।ै इि पाठ के माधयम िे िामावजक मानि-मलूयों

    की विक्ा दी गई ह ैर्ा मन�