sankhya tattva loka of hari harananda gopinath kaviraj

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Page 1: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

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साखयतचवाखोकः साखययोगाचाय शरीमतसवापिहरिदहराननदारणय विरचितः ।

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Page 9: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

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ॐ नमः परमरषय ।

साखयतचवाटखोकः ।

यथा कलावशिषटोऽपि छारी राजतयपषठतः । ह| . | तारकादखिलात‌ समयक‌ परोञञवलशच तमोऽपहः ॥ १॥ । काररादसमाकरानतमपि तददधिभाति यत‌ ।

सरवतीरथष चाखरसय वकतार कपिल नमः ॥ २॥ | ततवानि कखमानीव धीरधीमधशरनखदम‌ । |

दधनति परिशोभनत साखयाराम हि कापिट ॥ ३ ॥ विभकतियकतिरीलतरिगणसनण यो मया।

| ततवपरसनहारोऽय गरथितः सयतातमना ॥ ४॥ | ललामक स एवासत कीरथरीलसय योगिन; । महामोह विजत यः परसथितो योगवतमनि ॥ ५ ॥ | मालयनयसतपरवाला दहि शोभासबरदिदहतवः । | मननयसतावानतरा भदा यऽसत तषा तथा गतिः ॥ ६ ॥

असवदयञचकषरादिकरणरसमतपदारथः । सोऽ; अ- क समीति . भवनवाववधयत । तादगातमनवातमाववयोधः सवपरकाशसय लिङगम‌ । सवपरकारो वषयिकपरकाराशचति

ट दिविधः परकाराः । ततर परकाङवाकयोगातसिदडः वषाधिक- पकारो बदधिसमाहयो जञाताऽनञातविषयः। सवपरकारासत

Page 19: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

म‌ सा खयतकवालोकः ।

सवतः सिडपरकाशाः सदाजञातविषयः बदधरपि परकारा

कतवात‌ । यथाह “दचतनावदिव लिङगमिति ।

वयतथान चिततसय कषिपरपरिणामितवाचचलामभोगत-

सययाविमबसय सवरपाऽगरहणवत‌ न च सवपरकारोप-

लगधिः । एकोऽह जञाताऽदह करताऽह खषमहसवापसमि- 6 = वयतथान चातमावगमः । निरोघ-

समाधिबलादिलीन करणवरग यसमिनननातमभानदनय सवचतनयऽवसथानमभवति ततपरषतवम‌ । एकातमपतयय-

सारतवात‌ सबदरत मानशनयतवाच सवचतनयमविभिशरम- करसम‌ । अविमिशरतवाद‌ अपरिणामिनी चित‌ ॥ २॥

दिविधः खल परिणामः-ओपादानिको लाकषणिक-

शचति । यचचकाधिकोपादानसयोगसतसयवौपादानिकपरि- णामसभवः। यसयकमवोपादान न तसयौपादानिक- परिणामः । यथा कनककणडलातकङकणपरिणाम नासतयपादानपरिणामः । तचर च लाकषणिकपरिणामः ।

स हि दरकालावसथानमद‌ः । दरवयाणा दरवयावयवाना

वा दशावसथान मदादाकारादिमदाखयः परिणामः तथा कालावसथान मदशच रषिणिकः॥ २ ॥

असयोगजतवात‌ सवचतनयसय नासतयोपादानिक- चरिणामः। असीमतवाच नासति लाकषणिकपरिणामो

गतयाकार मदादिरपः । अदरत मानातमकतवात‌ सवचतनय-

असीमम‌ । यथाहः "“चितिराकतिः. शदा चाननता

साखयततवालोकः ।

चापरिणाभनी चति । अपरिणामितवात‌ कालना-

वयपदडयः परषः । बोधसवरपतवाच नासौ दावयापी । दरावयापितव बादयधरमो न तवधयातमधमः । दारय-

पदारथाः सावयवा; चितिाकतिरनिरवयवा। न चिनमाच-

भविनावसथितसयाऽशटमननतदश वयापयासमी ति परतययः

समभवत‌ । यतोऽदरतबोधातमक भान कतो दशारपदरत-

मानावकाराः । तथा च शरतिः-

“"एकथवानदरषटवयमतदपरमय धवम‌ ! विरजः पर आकाचादज आतमा मान‌ भरवः ॥" इति ॥

तसमात‌ परष एकः सवपराणिसाधारणः सवदरा- वयापी चति सिडानतः परमाथदटशि वयथः नयायन चासङतः । ततर दचाशरयरषोऽपारमाथिकतवदोषः

परसजयत । नयाययो दहि शानतबरहमवादिना साखयाना

परषबहतववाद‌ः ॥ ४ ॥

बतव ससीमतवभितयतसगो निरपवादः दराभित बादयपदारथ, अदराभित जञपदारथ तदतसरगसयापवादःः ।

जञपदाथशचोततरोततरकालभाविभिः परिणामः ससीमो भवति । अपारिणाभितवाद‌दत मानशननयतवाच पौरषयो- धसय वयवचछद‌कहतव भावः ॥ ५ ॥

एतसमादतातसिधयति । सवरपतो दावयापितवाभा- चात‌, वयवहारटशि च वयापीटयकत आदयवदशाशर यदो-

षपरसङगात‌, तथा च बहतवऽपि जञपदारथसय ससीमतवदो-

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{ सा खयततवालोकः ।

षाभावात‌, सवतसतलयो बहपरष इति यकतः परवाद‌ इति । शरतिरचाचर-

“जजामका लोदितशकलकरषणा

बहीः परजाः सजमाना सरपाम‌ ।

अजो दयको जषमाणोऽनदोत

जहातयना भकत भोगामजोऽनयः ॥ इति ॥ ३ ॥

न ^“ एकमवादवितीय ” भितयादिशचातिषवातमन

एकसखयकतवमवोदिषटमिति चनन, ताख आतमनि

दत मानशनयतव परषाणामकजातिपरतव वोकत न सखय- कतवम‌ । तथा च सतरम‌“ नदरतशतिविरोधो जाति- परतवादिति ।” ““एको वयापी तयादिशरतिषवीशवरोपा- धिकसयातमनः परदोसा उपासनारभमबोकता । न ताः शतय आतमनः सवरपावधारणपराः । यथादः-- “खकतातमनः परासा दयपासा वा सिदधसयति ।” इशवर विलकषणसय परषततवसय सवरपावधारणपरा शरतिः यथा--^“अदषटमवयवहारयमगरादयमलकषणमचिनतयमनयप- दङयमकातमपरतययसार परपञचोपराम चानत दिवमदरत चतथ मनयत स आतमा स विजञय" इति । तथा च-

" “भविम कणी यतो विम चशचरवो इद जयोतिहदय आहित यत‌ ।

- . विम मनशचरति दर आधीः किषि- ` . बकषयामि किस ल मानिषय इति ॥

ट । प

अत आतमनो विसतारादिसरवगरादयधरमशनयता बहता च सिदधा ॥ ७ ॥

वयचथिताया निरडाया वा चिततावसथाया परष

एकरपणावतिषठत । इनदरियगहीत विषयजञानहतचा-

ञचसय परषसननिधो बदधौ पराकाडइयपरथवसान ल मत । भदविकाराविनदरियादिसथितौ, नासति तयोः परषततवा- सादनोपायः । यथाहः--“फलमविशिषटपौ सषयारिचतत- दततिबोधः” इति । यथा विभिननवारतितल दीपरिखा- मासादकतव परापनतः तयनदियष भिननशखपणावसथिता विषया बदधौ निरविष पराकाङयपरयवसानरपसकयमा- पनयः । जञयसय जञाताऽहमितयातमवटिरव पराकाडइयपरथ- वसान सरवविषयजञानसाधारणम‌ । ततर दरषरा सह वदधर विशिषटपरतययः । त च परतयय विषया नातिकरामनति । तसमात‌ परषसय सािदरषटतव बौडविषयसय च निरविद- षटरयतवामति समबनधः सिडः ॥ ८ ॥

निरोधसमाधयभयासाचिततनलियाणा परतिलयऽसम-

तपतययगतसय बोधसय सवचतनयभावन निरविपटवाव-

सथानद दोनाततदवासमतपरतययसयाविकारि सवरपम‌ । तदा लीनानि चिततनदरियाणयवयकतभावनावतिठनत । सोऽवय-

कत भावः परकरतिः | यथाहः-- “ अनयकत कषतरिङसथगणाना परभवापययम‌ ।

` सदा पडयामयह लीन विजानामि शरणोमि च॥” इति।

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3. साखयततवारोकः ।

तथा च-

“गणाना परम रप न ट िपथसरचछति । इति ।

“नाः कारणलयः" इति नियमात‌ चिततनदरियाणा

च तसयामनयकतावसथाया विलयददीनादवयकत तषा

मलकारणम‌ । सविषटव निरोध टीनाना चिततादीना

पननवयकततािद रीनातततवदारि सतसवरपमनवयकतम‌ 'ना-

सतः सलञायतः इति नियमात‌ । परमारथ च सिदध चिदरप- णावसथानकालऽवयकततानतिकरानतरसदरपव परकतिः ।

यथाहः“ निःसतवासतव निःसदसद‌ निरसद‌वयकत-

भिति ।” तसमात‌ ततवहशि भावरपणावयकत विचारयम‌। ` परधानविषयाः शरतयो यथा-

“इनदरियभयः परा दयथाः अरथभयशच पर मनः । मनससत परा बडिवडरातमा महान‌ परः ॥ महतः परमवयकतमचयकतात‌ परषः परः ।* इति ।

“अकनाबदमसपरामरपमनयय तथाऽरस नितयम- गनधवच यत‌ । अनादयननत महतः पर धव निचायय त

ससयखखातपरसचयत ॥ ” इति । तथा च-- “तदद‌

तदनयाकरतमासी" दिति । “तमो वा इदमवागर आसीत‌

ततपरणशति विषमतव परयातीति च । परण परषा-

नतयथः ।

वयतथान सकरियष चिनतनदरियष आसमिमरलसय

1 । ७ 9, क

रषटय विकार भावः परतीयत स तसय विरपो वयवदारि-

को गरहीता । उकत च-“सा चातमना गरही सह

बदधरकातमिका सविदिति तसयाञच गररीतरनतरभावात‌ गररीतविषथः समपरजञातः!” इति । सासमिततयथः । यन

वदधयनत भतन गरहीतभावन वयवहाराः करियनत स वयवहारिको गरहीता ॥ १०॥ .

विकरियमाणासमलपरतययः चयाणा मावाना समा-

दारः। त यथा-- असमीतयतदनतगतः परकारारीलो भावः।

तसय च विकारदतः करियादील मावः, परकारासयावरकः

सथितिरीलमावरचति । इम चयो भावाः सनवरजसतम-

आखयाः सरवषा विकाराणा मौलिकाः । ततर परकारा- कीट सतवम, करियारील रजः, सथितिरीलञच तम

इति । कवलयावसथाया वकारिकपरकारातमकपरलयाशनय परवरागयण परदरततिशानय सरववससकारहीनमिरोघात‌

सथितिशनयञचानतःकरण परकरतिलीन जवति । अनय- कततवाद मः सतवरजसतमआतमिकाः परखयापरदराततिसथितयः

समतवमापदयनत । तसमादादः--““ सतवरजसतमसा

सामयावसथा परकतिः" इति ॥ ११॥

वयकतावसथाया चिततनदियष गणाना वषमयम‌ । एकनरकसय पराधानयमनययोशचोपसरजनीभावः । त हि

गणाः नितयसहचराः जातिवयकतयोः परतयक वरतमानाः । यथाहः “शणाः परसपरोपरकतपरविभागाः सयोगवि-

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^ सा खयततवालोकः ।

भागधमाणः इतरतरोपाशरयणोपारजितमरतयः ” इति । तथा च-““अनयोनयमभिथनाः सव सरव सरवतरगामिनः" इति । सरवतर तरयणयसदभावऽपि एककसयव गणसय भरधानभावात‌ सातविको राजससतामसशचति वयवहारः । तथा. चोकतम‌-“ गणपरधान भावकरतसतवषा विरोष "” इति । तथा च--“ सरवभिद गणाना सननिवरामाचरम‌ ” इति ॥ १२॥

भोगापवरगो दाववारथौ परषसय । असमिपरतययमा- तरितय दावतावथीवाचरितौ भवतः । यथादह--“तचरषटा- निषटगणसवरपावधारणमवि भागापनन भोगः भोकतः सवरपावधारणमपवग इति दयोरतिरिकतमनयददीन नासति ” इति । परषारथाचरणातमकतवादवयकतावसथायाः एरषसतसया निमिततकारणम‌ । अनयकतञच वयकतभावसयो- पादानम‌ । तसयव वयकततवपरिणातिदरछनात‌ । यथाद-- “लिङकसयानवयिकारण परषो न भवति दतसत भवति इति । अतः परधान सौकषमय निरतिशय वयाखयातम‌” इति । विकारजातसय निमिततानवपिनोररयोः कारणयो- मधय निमितत परषः सवचतनयसवरपः सदा दधः परधान तवचतनमनयकतसवरपम‌ । विरडकारणढयसदधा- वात‌ 'वयकतावसथायाः वयकतभविष चय एव भावा उपलभयनत । त यथा-परषाभिमखः चतनावदधावः, अवयकताभिञखः आदत मावसतथा च तयोः समबनध-

सा खयतकवालोकः । „९

भतशचचटभावो यनादतः परकाकाभिसखः करियत परकाशतहइच भाव आवरणाभिञखः करियत इति । त हि

यथाकरम परकाहारीखाः सातविकाः सथितिरीलाः

तामसाः करियाङीलारच राजसा भावा इति ॥ १२॥ वयकतावसथायामावा वयाकतरसमीति परतययमाचरातम-

को महान‌, यमाभितय सरव जञानचशादयः सिधयनति । कवलयावसथाया परखयापरानतिसथितयभावात‌ नासति वयकतसमबानधिनः महतः सदधावावकादाः । स एव महान‌ वयवहारिको गरहीता । वयकतावसथायामसमीति- परतययमाचरमभिखखीकरतय समाहित चितत यासमिननानत- र भावऽवसथानमभवति स एव महान‌ । सविकारपरकारा-

शीलो महानातमा, परषसत अविकारी चिदरपः ॥ १४॥

बदधिततवञच लिङमातरञचति महतः सजञाभदः ।

कवचिच सवरपणागदहीतो महान‌ करणकारथकरवन‌ बदिरितयभिधीयत । यथोकतम‌--““ बटिरधयवसायन

जञानन च मरहसतथति ” ॥ जञाननासमीति परतययावधा- ननतयथः । यथाह--“५ तमणामातरमातमानमनविदयासमी-

ति एव तावतर समपरजानीत `" इति । अणमाचच सकषमम‌ ।

महततव साकषातछवतो योगिन एवविधा सवित‌ समपरजायत इति भावः । सव परतयया बडिरितयाभिधी-

यनत, महान‌ आतमा पनरातमविषया शदधा बडिरिति

पिवचयम‌ ॥ १५ ॥ २

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‌ः ० साखयततलाखीकः ।

परषाभिसखखतवादबदिसतवमतिपरकारारील सा-

चविकम‌ । यथादः-“दरनयमातरमभतसततव परषसयति नि-

शचयः । ” इति । तथा च ““ अनयकतातसतवसदिकतमम‌-

ततवाय कलपत । सतवातपरतर नानयत‌ परशसनतीह

पणडिताः ॥ अनमानादविजानीमः परष सतवसशरयम‌ ।

इति ॥ १६ ॥

असय महदातमनो यः करिथारीलो भावो यना-

नातमभावन सदहातमसमबनधः परजायत सोऽहकारः। स

चासावहकारोऽभिमानातमकः ममतादहतयोमर किया- कीरतवादराजसिकः । समयत च--“ अह कततति चा-

पयनयो गणसतचन चतददाः । ममायमिति यनाय मनयत न ममति चतिः ॥ १७ ॥

यनानातमभावा आतमना सह विधतासतिटनति तदव सथितिरीट हदयाखय मनः। तदि तामसमनतः- करणाङगम‌ । परखयापरगाततिसथितय इति रयाणामनतः- करणधमणा मधय यत‌ सथितिधरमाशरयभत तनमनः । “ तथारोषससकाराधारवतवा ” दिति सतरऽपि तती- यानतःकरणसय मनसः सथितिरीरतवसकतम‌ ! नद परिभाषित मनः षषटमाभयनतर मिनदरियम‌। अनतःकरणष सातविकराजसौ वदचहकारो, ततर च यततामस तनमन इति दरषटवयम‌ ॥ १८ ॥

महदहकारमना सषि सववकरणमरलमनतःकरणम‌ ।

3

छ । ११

परषारथाचरणकरियायाः साधकतमतवाततानि करणमि- तयाभिधीयनत । एषा पारणामभताः सरवा अपयातम- दाकतयः करणम‌ । महदादयः वकषयमाणवादयकरणपरष- योमधयसथ मततवादनतःकरणमितयभिधीयनत ॥ १९ ॥

आतमबादयन हतना बौडचतनताया उदरक यसत- ददरकसय परकााभावसतदव पराकारयपयवसान परखया- सवरपम‌ । यो वा परकाराकीलसय बदधिसतवसय गरादयकरत उदरकसतदव जञानम‌ । अभिसाननवासावदरकोऽसमतप- कारामापदयत । स चाभिमान आतमानातमनोमपीवयोः समबनधोपायः । अभिमानाददधौ परतययौ समभवतः, अदनता ममता चति । धनादौ ममता, रारीरोनधि- यष चाहनता । यथा नषट ममतासपद धनऽदसारितो भवामीति परतययः तथा चाहनतासपद इनदरिय रबदादि- बादयकरिययोदरिकत साति उदरिकतसतदगताभिमानः परकाका-

लमसमदधावसदविकत करोति । परकारारीलभादसयोदरक- ` फलमव जञानम‌ । यथाभिमाननानातमभाव आतमसननि- धौ नीयत तथातमपरतययोऽपि अनातमभावन सह समब- धयत । आनभिमाननानातम भावसय सवातमीकरण पगरातति- सवरपम‌ । तथा च तसय सवातमीकरतभावसय समषटसय अवसथान सथितिसवरपम‌ ॥ २० ॥

उकत गणाना नितयसाहचरथम‌ । त सरवनव परसपर- मङगा ङकितवन वतनत । तसमाततरिगणातमकमनतःकर णाङक-

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१२ सा सयततवालोकः ।

तरयमपि अनयोनयवयतिषकत परिणमत । यचरक तननव तरीणि, एकासमिननकत इतरावधयादारयो ॥ २१ ॥

जञान सथितिकरयाभया परकारागणसयाधिकयाञजञान सातविकम‌ । चषटायासदरकसयव पराधानय ततः सा राजसी । सथितया याऽपरिटषटा करिया सादरतिसवरपा, ततः सथितिसतामसी । जञानचषासथितय परखयापरवराति- सथितयो वति तरयः सततवरजसतमोगणानवायिनः सल भावा चकषयमाणाख परमाणादिदततयो यषा भदाः ॥ २२॥

चिततनदरियरपण परिणतानतःकरणमासमिततया- खयायत । यथाहः--“ दगददरीनदाकतयोरकातमतवा- समितति । ” आतमना सह कर णराकतः आभिभानकरत- कातमकताऽसमिततयरथः । तयव ओता दर टतयादिकिर- णातमपरतययससभवः । तथा चादः-“: षषटडचाविरोषोऽ समितामाचर एत सततामातरसयातमनः महतः षडरिषप- रिणामा " इति । सोऽसौ षधटोऽविरोषधिततादिकरणो- पादानभितयवगनतवयम‌ । शरयत च--“ अथ यो वदद शशणवानीति स आतमा अजवणाय ओचर- मिति ” ॥ २३॥

आसमितायाः किलिटाषकिषटाखयो दििविधः परिणाम- पवाहो जातयनतर परिणामकारी । अकलिषटः परकाशाभि- ससव ऊदधखरोतो विदयापारणामः, आवरणाभिमखोऽवा- कसरातरचाविदयापरिणामः दिषटः । यतरानतरथकाशागण-

सा खयतचवारोकः । १३

सयोतकरषः साकतिककरणपरकरतया परशच,स विदयापारिणामः। यतर चानातमभावन सह समबनधः पषकलो भवति, स आविदयापारणामः । यथाहः“ अवाकिसरोतस इतयत मगनासतमसि तामसा ” इति । तमाकि आविदया- याभितयथः । आविदयया परकाराकरिय रधयमान भवतः ॥ २४ ॥

आिषयी भत बादयसमपकदिनतःकरणसय चिगणा- नसारी तरिविधबादयकरणपारिणामः परजायत । ““खपरागा- द‌ भचचकष रितयादयातर समरतिः । बाहयकरणानि यथा परकादवापरधान जञाननदरिय, करियापरधान करमदिरय, सथितिपरधानाः ` पराणादचति । पञच पञच जञाननधि- यादीनि ॥ २५ ॥

बादयकरणारपितविषयसयोगादनतःकरणसय याः परिणामटततयो जायनत तषा समणटिरिचततम‌ । तदि बाहयापितविषयोपजीवि चितत नियोगकरततवात‌ परधान बाहयाना भपवतपकरतीनाम‌ । दवितयी चिततनततिः चाकति- दततिरवसथाटराततिरचति । यया चिनतादयः करियनत सा राकतदरततिः। बोधचषटासथितिसहगताचततावसथा- नविशषो ऽवसथागरततिः ।

अनतःकरण त परतययससकारधरमः। तनन परखयापरडतती परतययाः । त चिततसय जञानटततयः। सथितिसत ससकारा य हदयाखयमनसः विषयाः । उकत च-“ यतो निरयाति

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[अ ¢ सा खयतवालोकः ।

विषयो यरसमिदचव विटीयत । हदयनतदविजानीयात‌ मनसः सथितिकारणमिति ” ॥ २६ ॥

पञचतययः परतयक परखयापरबरततिसथितयः । तनन

परयारपसय चिततसततवसय विजञानाखयाः पञच वरततयः,

परमाणसथरतिपरदरतति विजञान विकलपविपरथया इति । परवर- तिरपसय सकलपकमनसः उततयः, सकलपकलपनकराति-

विकलपनविपयसतचटा इति सथितिरपसय ससकारा- धारसय हदयाखयमनसः ससकारशपधायविषयाः परमा-

णससकारसखतिससकारपरवराततिससकारावकलपससकाराविप-

¢ इति ।

अथ कथ पञच भदारिचततसय समभवनतीति ?

उचयत । तरयङम‌ अनतःकरणम‌ । तसय परसपराषिरट

साचविकतामसकोदी । तसमादनतःकरण परिणमयमान

पञचधा परिणामनिषठा परापनोति । ततरादयपरिणाम

आदयङगबदधरनगतः परकाराधिकः, मधयसत आभिमान-

परधानः करिथाधिकः, अनतयरच मनोऽनगतः सथिति-

परधानः । आसा परिणामनिषठाना मधय दव परिणामनिषट

वरतयाताम‌ । तयोरका आदयमधययोः समबनधभता, अनया च मधयानतयोः; समबनध भता । एव तयङकतवदतोः परिणमयमानादनतःकरणातपचाविधाः परिणतशकतयः

सभवनतीति । ततसत चिततदाकतरबादयकरणदाकतीना च पशच पञच भदा अभवन‌ ॥ २७ ॥

(श

साखयतखारोकः । १५

परमाणादीनि विजञानानि | विजञान नाम चतसिक जञान मन आदि इनदरियरालोचनानतर समवतजञानदाकति- भिरयतस भावयत । अनधिगततचवबोधः परमा । परमायाः

करण परमाणम‌ । चिततदरततिष परमाण परकाराधिकयातसा-

तविकम‌ । “रतयकचानमानागमाः परमाणानि ।'" जञाननदर

यपराणनाडिकया यशचततिको बोधसततपरतयकचम‌ । जञान-

नदरियमानरणालोचनाखय जञान सिधयति । उकत च--

“आसत छयारोचन जञान परथम निरविकलपकम‌ । बालमका-

दिविनञानसददा सगधवसतजम‌ ॥ ततः पर पनवसत- धरमजीतयादिभिरथया । बदधयावसीयत सा हि परतयकषतवन

सममता ॥” इति ।

आलोचन हि एकनवनदरियणकदा गदयमाणविषय. खयातयातमकम‌ । तदननतरभत जातिधमादि विषिषट जञान चततिकपतयकषम‌ । यथा दरकचदरछन अकषणा दरिद- गकार विदोषमातर गयत । उततरकषण च छायापदतवा-

दिखणानवितो नयगरोधनबरकलोऽयमिति यदविजञान भवति

तदव चततिकपरतयकषमिति ॥ २८ ॥

असह भाविसह भाविसमबनधगरहणपवकमपरतयकषप-

दारथञानमनमानम‌। आपचवचनाचछोतरयो दयविचारसिो निशचयः स आगमः। यदवाकयवादितशकतिविदोषाद-

भिभतविचारसय ओतसतदवाकयाथानिशचयो भवाति स तसय ओतरापतः। पाठजनिहचयो नागमधरमाणम‌ ।

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१६ सा खयतचवारोकः ।

अनमानजः काबदारथरमरणजो वा ततर निशचयः । आगम-

परभास त सववोधसकरानतिकामसय शरोतविचाराभिभव-

करचछकतिमतो वचछ ओरोतरच साधकतवन सदभावोऽदाः।

यथादह--“अआधिन दषटोऽनभितो वारथः परतर सवबोध-

सकरानतय चाबदनोपादिदयत काबदाततदथविषया बततिः

शओतरागम" इति । तसमात‌ . पतयकषानमानाविलकषण

परमायाः करणमागम इति सिम‌ ॥ २९. ॥

परतयकषज विदोषजञानम‌ । खरतिगदयमाणवयवधि-

धरमयकतः विरोषः। घटादीना सवविदोषशबदसपदरपाद‌-

यो मरतिः । वयवधिराकारः । अनमानागमाभया सामानयः

जञानम‌ । तदि सततामातरनिदचयः जञातमरतयादिषरभः सा

सतता विरिषयत ॥ ३० ॥

अनभतविषयासपमोषः सतिः । ततर पवीन मतसय

ससकारखपणावसथितसय विषयसयानभतिः । सषतरपि

विषयान सारतखरयो मदाः तदयथा विजञानसषतिः परठरतति-

समरतिः निदरादिरड.भावसषरतिरिति। परमाणतलनया परका-

चरालपतवाससपरतरदितीय साचिकराजसवरभऽनतभावः॥२१॥

ततीया विजञानदरततिः परततिविजञानम‌ । तच

जञानदततिष राजसम‌ । तदधदा. यथा--सकलपादिमानस-

चदधाना विजञान,कतिजनयकमणा विजञानःतथा पराणादर-

चरिदचषटानामसफटविजञानञति तरीणि चतसय

नभरयमानाना जवाना विजञानानि ॥ २२॥

साखयतततवारोकः । १७

चतभवरततिरविकलपसतललकषण यथाह--“शाबदजञाना-

नषाती वसतशनयो विकलपः” इति । “वसतशनयतवऽपि

उाबदजञानमादातमयनिवनधनो वयवहारो दयतः इति ।

वासतवारथदरानयवाकयसय यजजञान तदनपातिनी या चिततपरिणतिरजायत स विकलपः । भाषाया विकलप-

वततरपकारिता। चिविधो विकलपो यथा--वसतविकलपः,

करियाविकलपः तथा चाभावविकलपः । आशयसयोदाहरण

यथा -- “चतनय परषसय सवरपमिति” ““रादोः शिर”

इति वा।अचर वसतनोरकतवऽपि वयवहारा तयोरभद वचन

चकालपिकम‌ । अकता यचच वयवहारसिडयभर कलतवत‌

वयवहियत स करियाविकलपः । यथा “तिषठति बाणः,

छा गतिनिदतताविति धातवरथः गतिनिदततिकरियायाः

कलतखपण बाणो वयवहियत, वसततसत बाण नासति

तचकियाकरततवामिति । अभावाधपदाशरतो चिततकतति-

रभावविकलपः, यथा ““अनतपततिधमा परष” इति ।

-'उतपततिधरमसयाभावमाशरमवगमयत न परषानवयी

धरमसतसमादविकलपितः स धरमसतन चासति वयवहार” इति।

यकलमपिकौ नितयवयवहारयौ दिकषालौ । यथाह “स

सखलवथ कालो वसतशनयो वधिनिमाणः काबदजञानानपाती

लौकिकाना वयतथितदानाना वसतसवरप इवाव भासतः

इति। शरतभाविनो कालौ राबदमाचरौ अवतमानपदारथौ ।

तथा च रपादिधरमदयनयः न कदिचदवकााखयो बाषयः ३

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भटः साखयतनवाोकः ।

परमयो भावपदारथोऽवरिषयत, रपादिशनयसय बाहय: सयाकलपनीयतवात‌ । तसमात‌ साखयनय दिकषालौ वकालपिकतवन सममतौ । अवासतवतवऽपि वकालयक- विषयसय सिदधवदसौ वयवाहियत । वकषयमाणविपरथय- दाततितलनया परकाराधिकयाहिकलपसय चतथ राज-

सतामसवरगऽनतभावः ॥ ३३ ॥ पचमी विजञानरततिः विपरययः । स च मिथयाजञान

मतदरपपरतिषठम‌ । परमाणविरडतवाततामसवरगीयामति । तसथापि विषयानसारतः भदः परववत‌ । अनातमानि आतमखयातिरव रलविपरययः ॥ ३४ ॥

परततिष आदयः सकलपः सातविको जञानसानिकरषट- तवात‌ । उकत च ““ जञानजनया नवदिचछा इचछाजनया करतिभवत‌ । करतिजनया भवचटा चषटाजनधा किया भवदिति ॥ ”

चतसयनभावयमानकरियायामसमितापरयोगः सकलप- सवरपम‌ । यथा-गमिषयामीतयतर गमनकरिया अनागता, तदन भावपरवक तदत आतमनो भावन सकलपसवरपम‌ । गामिषयामयनागतगमन करियावान‌ भविषयामीतयः । करियानसमतया सदातमसमबनधोऽभिमानकरतः ।

` कलपन दवितीय सातविकराजसम‌ । या चिततचषटा आदहितविषरयानितरतरष आरोपयति ततकलपनम‌ । यथा अदषटदिमगिरिकलपनम‌ । चिचाहितपरवततदिनान

साखयतखारोकः । १९

समतिपवकर परवता तहिनमारोपय दिमादविः कलपय- त । यथोकतम‌--“नामजातयादियोजनातमिका कलपनाः ।

ततीया परवततिः कतिः राजसी । इचछाजनयया यया चिततचषटया पराणनदियष चिततावधान करियत सा कतिः । सा हि पराणदियाणा काथखला मनरचषटा । नदि गमिषयामीति मनोरथमागरणौव गमन भवति । ततसकलरपाननतर यया चिततचटया अवधानदवारण पादौ चलो करियत सव कतिः, शरयत च “मनःकतनायातय- समिजछरीर" । हति । उकत च ““परिणामोऽथ जीवनम‌ । चषटाराकतिशच चिततसय धमा ददानवरजिता" इति ।

विकलपन चतरथी परदरततिः चिततसय राजसतामसव- गया । तच सरायरपमनककोषि सधा धावन चिततसय । कालादिवकालपिकविषयनयवहरण चापि यनन विकलपवद बसतविषयसररीकरतय चितत चत तदपि विकलपनम‌ । उकत च “सराय उभयकोरिसपर- गविजञान सयादिदमव नव सयादिति ।" असति वा नासति वति, काधमिद न चा कारथमितयादीनि विकलपनानि ।

अतदरपपरतिषठा या विततचषटा सवपनादिष भवति सा विपरयसतचटा चिततसय तामसी पञचमी परदरततिरिति । उकत च-““नय ८( सवपनकालीना भावितसमरतवया ) सछतिरपि त विपयसतलकषणोपपननतवातसषरतयाभासतया सातिरकतति" ।

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२० साखयततवालोकः ।

चषटायामभिमानोदरकसया वकटपरवाहः । यतोऽ

सावनतः परजायत ततसत बहिः करमनदियादावागचछति।

बोध चानतःपरवादहाभिमानोदरकः वषपिकवसतनः

बादयतवात‌ ।

ससकाराधारसय हदयाखयमनसः अनगणाधिततधमीः

ससकारखरपा सथितिः । सथितिष परमाणससकाराः सातवि-

काः, समरतीना ससकाराः सातवकराजसाः, राजसाः

परलाततिससकाराः, राजसतामसाः विकलपससकाराः, तथा

तामसा विपथीसससकारा इति ॥ ३५॥ खखादया नवधा चिततसयावसथादरनतयः सवदततिसा-

धारणयः । उकत च--“सरवाशचता इततयः खखदःखमोदा- तमिका" इति । तासा तिसरो गोधयगतासतिसशचषटागता-

सतिखशच धाथगताः । राकतिदततिवदवसथाडततिभिशिततसय

न जञानादिकरियासिडः । जञानकरियाकाल चिततसय

यदयदधावनावसथान भवति ता एवावसथादततयः । करण-

गततवातसवी एता अनभयनत अथवा अनभवन परतय- यतवमापदयनत ॥ ३६ ॥

ततर. खखदःखमोहाः सतवरजसतमः परधानाः वोधय-

गता अवसथादततयः । सव बोधाः खखावहा वा दःखा-

वहाः वा मोदावहाः ससतपदयनत । अलकलविषयकरतो-

दरकात‌ खखम‌, परतिकलविषयाच दःखम‌ । मोहः पनः

सखखसय दःखसय वाति भोगात‌ खखदःखविवकशनयोऽ

सा खथतसवालोकः । २१

निषटो जड मावः, यथा मय । उकतञच-“अथ यनमोदह-

सयकत काय मनसि वा भवत‌ । अपरतकयमाविजञय तम- सतद पधारयत‌ ॥” इति । तथा च-“तचर विजञानसयकता तरिविधा चतना धरवा । खखदःखति ` यामाहरदःखाम- खणवति चति ॥"” भरवा अवसथिता इतयरथः ॥ ३७ ॥

रागदरषाभानवशाचषटागतावसथाठततयचिगणान सारिणयः । रकत दिषट वाभिनिविषट हि चितत चषटत ।

खसवानशायी रागः दःाजकायी दषः सवरसवादहिनी तथा

सटा चषटटावसथाभिनिवकाः । न मर णचरासमानरमथमभि-

निवदाः । सवारसिकयाः पराणादिषराततिरपाया ` आभिनि-

विषटचषटाया नाशारकव मरणभयातमिकति । अनयत‌

सव भय तथा कषिपायवसथा यतर सखदःखशनय सवरतः

चिततचटन स एवाभिनिवशाः ॥ ३८ ॥ जागरतसवभरखपपरयो धारथगतावसथादततयः । धाभ

रारीरम‌ । ततसमपकौदधारयगतावसथादरततयधिततसय ` । जागरदवसथा साततविकी, सवभरावसथा राजसी, निदरावसथा तामसी । तथा च राखरम‌ - “सतवाजञागरण विदयादरजसा सवमरमादिरोत‌ । परसवापन त तमसा तर चिष सनत- तम‌ ॥ इति । जागर चिततनदरियाधिषठानानयजडानि चषटनत । जाञयमापननषजञाननदरियकरमनदियष तदनि- यतसय भनचयवसायाधिषठानसय यदा चषटा तदवसथा सवमः । यथोकतम‌ - “इनदरियाणा जयपरम मनोऽवयपरतो

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सा खयततवालोकः ।

| । सवत विषयानव त विवयातसवभरददानम‌ ॥'" इति । उतसवतन त अजाडयम‌ करमनदरियाधिषछानानाम‌ । खषि-

लकषण यथाह-* अभावपरतययालमबना कततिरनिदर"

ति! तदा चिततदधियाधिषठानाना समयगजडतवम‌ । उकत

च--““सषसिकाट सकट विलीन तमो ऽभिभतः सख-

रपमति ॥” इति । गणानामभि मावयाभिभावकसव भा-

वादवसथादरततीनामसयमाऽऽवतनजति ॥ ३९ ॥

विविधशिततवयवसायः । सदरयवसायोऽनवयवसा-

योऽपरिदटजयवसायसरति । कतिपयराकती अधिकरतय- कदव यचिततचषित स वयवसायः । सदर यवसायो गरहण-

मनवयव सायशिनतनमपरिदषटवयवसायो धारणम‌ । जञान-

नदरिथादीनधिकरतय वतमानविषयो वयवसायः सदाखयः ।

अतीतानागतविषयोऽनवयवसायः सतविषयाखोडना-

तमकः ! यन चावशमानन वयवसायन निदरादाकपि सदा

स जायत, ससकाराशच यनानजीवनति, सोऽ

परिदषरवयव सायः । यथाद-

(सनिरोधधरमससकाराः परिणामोःऽथ जीवनम‌ । चषटा-

शकतिशच चिततसय धमा दकरीनवरजिताः ॥” इति । निरोधः समाधिविदोषः, धमः पणयापणय, ससकारा

वासनारवा आदितमावाः, परिणामोऽपरिदटवयव- खायः, जीवन पराणाः कायकारणयोर भदविवकषया

जीवन सवकारणसयानतःकरणधय धमतवनोकत, चषटा

खाखयतखालोकः । २२

अवधानरपा, राकतिशचषटाजननी सरवराकतयातमक तती-

यानतःकरण हदथाखय मन इति भावः इतयत सव

-भावासतामसा इति जञयाः ॥ ४० ॥

वयाकरतमाभयनतरकरणम‌, बादयकरणानयधनोचयनत ।

तष कणतवकचकषरसनानासा इति जञाननदरियाणि !

एतानि परणाटीभरतानि परतयकषततः 1 करियातमनः बादय-

विषयसय समपकाददरिकतायाभिनदरियातमासमिताया ततस-

मबनधिना परकाराीटनासमिपरतयथातमकन गरहीतरा यो

विषयपरकाराः करियत तदिनियज जञानम‌ । तसमाइदी-

नदरय गरादक वादकञच करिथातमनो जञयाविषथसय ॥४१॥

रहाबद गराहक ओचरम‌ । शीतोषणमाचरगराहक तवगडतति

जञाननदरिय तवगाखयम‌ । तवचि राीतोषणबोधसतथा तज

आखया अनयऽपि बोधा विदयनत । यथामनायः “तजशच

विदयोतयितवयञचति ।” “तजशच तवशिनदरियवयतिरकण

परकादािरिषटा या तवक‌। तया निभासयो विषयो

विदयोतयितवयाभिति ।” तचच न च तवकसथोपदलषबोधः

तज आखयः तवगाखयजञाननदरियकारयम‌, रीतादरादल-

घबोधसय च विसदरातवात‌ । उपरलषवोधसत करमनदरिय

पराणाना साततविको बोधाहाः। राबदरपवत‌ शीतोषण जञान

सिदधिः न तथारलषबोधसिडिः । रपगराहक चकषः, रस-

गराहक रसननदरिय, नासा च गनधगराहिणी, शरोतर इतर-

ललनया रहणसय पौषकलयमगयाहततव च, ततसतत‌

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रभ सा खयततवारोकः ।

साततिकम‌ । खाबदाततापादरनयाहततवदहानातवागिनदरिय सालतविकराजसम‌ । तवगविषयादपि रपसय वयाहति योगयतवदरानात‌ तथाच तसयाचिनतयागसखचारादा- जस चकषः । रसय तराटित सदर सननदरिय भावयति, तदधावनाविरोषोदरकादरसजञानाकिडिः । सशषमकणवयतिष- ङगाद‌ गनधनञानोदरकः । रसगनधावादयतरयादाशतौ । ततर सषमतर भावनाविरोषसाधयतवादरसना राजसतामसी, नासा पनसतामसीति । जञाननदिथविषयः परकारय- मितयाखयायत ॥ ४२ ॥

वाकपाणिपादपागरपसथाः करमनदरियाणि । तषा सामानयविषयः सवचछाचालनम‌ । परतयङगाना समजञज- सचालनन काविषयसिदधिः । धवनयतपादन वोकघारयम‌ । रिलपराकिथतराधिषठिता स पाणिः । वयवहारथदरवयाणा तदवयवाना वा भीषटदरासथापन शिलपम‌ । गमनकरियादा- कतियचराधिषटिता तत‌ पदम‌। मलमतरोतसरभः पायकारयम‌ । जननवयापार उपसथकारथम‌ | शरयत च-“तसयाननदो रतिः परजातिः" समरयत च “पायषसथविसरगारथ मिनिय तलय- कमणी । विसरग च परीषसय विसरग चापि कामिक" इति । बीजसकपरसवौ जननवयापारौ । सरवष चालन- विषयसामयात‌ एकसय करमनदरिथसय कारविषयः अनय- नापि. सिधयति । यतर यतकारयसयोतकरषः तदव तदिनति- यम‌. +. उरासि इवासयचनसय सवचछाधरीनारो तनतष च

सा खयतनततवालोकः । २५

जिहयोषठादौ च वागिनदरियसथानम‌ । “जिहवाया अधसतातत- नत रितय पदशात‌ तनतः कणठागरसथो धवनयतपादकः । करवदनचचवादौ पाणिसथानम‌ । पदपकचादौ पादनधि- यसथानम‌। बसतयादौ पायसथान, जनननदिय चोपसथवरतिः। वाकायसय सकमतवादतकरषाच वाक‌ सपतविकी । ततः; सथौलय सातविकराजससय पाणः कारयसय । पद करियाया आधिकयमतिसथौलय चति पद राजसम‌ । राजसता- मसः पायः । उपसथशच तामसः । सरवष करमनदरियषवाशछ- षवोधाखयः परकारागणसतषा चालनरपसखयकारयसयोप- सजनीशरतो वरतत । तसय चाछववोधसथ वागिनदरिय ऽतयतकषः, यतसहाया मषमा वाकयकरिया सिधयति । इतरष च तदधोधसय करमो ऽलपालपतवमिति । करम- नदरियकायविषया सयतिरयधा-“हसतौ करमनदिय जञयमथ पादौ गतीनदियम‌ । परजनाननदयोः कफो निसरग पायरि- नदियमिति ॥ ” तथा च-“"विसग; रिलपगतयकति-करम तषा हि कथयत ।” इति ॥४३॥

ततीय बाहयकरण पराणाः । “जीवसय करण(नयाहः माणान‌ हि तासत सरवदाः।यसमाततदवरागा एत दरयनत सरव- जनतष ॥” इति सौतरायणशरतौ पराणाना जीवकरणतव- खकतम‌ । पराणा दहातमकधारथविषयतवन बादय भौतिक वयवहरनति, तसमात‌ बादयकरणम‌ । "अह पचधातमान [प द

[द‌ {च भजयततहयाणमवषरभय विधारयामीति" “पराणशच विधा- -1

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२६ सखयततवारोफः; ।

रयितनय” अति शरतिभया दहधारण पराणाना सामानय- कारथमितयवगमयत। निमीणवरधनपोषणानीतयषा धारण-

कारय ऽनतमावः । तथा च सषटतिः-“तथा मास च मदश सनायवसथीनि च पोषति । कथमतानि सरवाणि रारीराणि

छारीरिणाम‌ । वदनत वरडमानसय वदत च तथा वलम‌ ॥” इति । पोषण शारीरनिरमाण वधन चति तरय म पराण- कायमितयथः । पोषणादीनामनकलकरिया अपि पराण-

कारयमिति जञयम‌ यथा इवासादि । चिततनदरियवत‌ सनति पराणानामपि पञच मदाः । त यथा पराणोदानवयानापान-

समाना इति । ताभय एव पञचभयः शाकतिभयो दहधारण-

सिडिः ॥४४॥ तनन बादयोदधवबोधाधिषठानधारण पराणकायम‌ ।

““चचकषःओओतर ससखनासिकाभया पराणः सवय परातिषठत ।” ^^ दयन चाशषष पराणमनगहणानः” इतयादिभयञच शचातिभयः,

तथा च--

“'लनोबदिरदहकारो भरतानि . विषयाशच सः। एव

तविह स सरवतर पराणन परिचालयत ॥” इतयादिसखरति- भयशच जञाननदरियादिगतबादयोदधवविषयाधजञानसरोतःख

पराणदततिरतयवगमयत । चतवारः खलग बादयोदरववबोधाः ।

त यथा चततिकपरमाण, बडीनदरियसाधयालोचन जञान, करमनदरियसथोपनछषबोधः, तथा चाजिहीषाबोध इति । वातपयाननरपसयादाथसय तरविधयात‌ तरिविध आजिरी-

सासयततथालोकः । २७.

षाबोधः, इवासचछाबोधः पिपासा च कषधा चति । आः दायसय बाहयतवादाजिहीषाबोधः बादयोदधवः ; सतर इवाः सचछादिबोधाधिषठान पराणसय सखयदततिः। थथामनायाः- 'शराणो हदयम‌” “हदि पराणः परतिषितः" “पराणो ऽतता? इतयादयः । उकतञच-

आसयनासिकयोमधय हनमधय नाभिमधयग । पराणालय इति परोकतः” इति । नाभिमधय कषदोधाधि- छान इतयथः । चिततनदरियराकतिव रागः पराणसतषा बादयो- दवबोधाधिषाना ङ विधरत ॥ ४५ ॥ .

रशारीरधातगतयधाधिषठा नधारणञदानकाथम‌ ।

“पणयन पणय लोक नयति, पापन पाप” मिति शरतः ''उदानजयालञलपडङककणट कादिषव सङग उतकरानति" ओति योगसतरात‌ “उदान उतकरानतिहत" रिति वचनाच अप- नीयमानाददानानमरणवयापारदोष इति पराघम‌ । मरण- कार आदा बादययोधचषटानिडढततिः । उकतञच--“"मरण- काल कषीणनदियशनततिः सन‌ सखयया पराणवसयावतिषठत।" तदा दारीरधातगतबोध एवावहिषयत । यसय भागाः दारीराङतयागानखरतिः।तसमाददानः रारीर धातगतबोधः। समरयत च -- “छरीर तयजत जनतदिवयमानष ममस‌" इति। मम छारीरघातगतबोधाधिषटानषवितयरथः। “अय- कयोदध उदानः"इतयादि शातिभयः “सषमना चोगामिनी ति, “ जञाननाडी भवहवि योगिना सिदिदापिनीःति च ।

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(4 सा खयतचतवालोकः ।

शाखराभयामदधखोतसविनया खषननानाडया मरदणडमधय-

गतायामानतरबोधसय सखयसरोतोभरतायासदानसय खखया

बरातिः, सरवतर च सामानयदरततिरिति । उकतच -““तयक-

थोरदः सचचदानो वायरापादतलमसतकतति" रिति । चिततिनदरियराकतिवरागा उदानराकतिसतषा च धातगत-

बोधाधिषठानारा विधरत ॥ ४९ ॥

चालनदाकतयधिषठानधारण वयानकाथम‌ । “अतो

यानयनयानि वीथवनति कमाणि यथागनमनथनमाजः

सरण दढसय धनषः आयमनः मिति, “यो वयानः सा

वाक‌ इतयादिशचतिभयः सवचछाचाटनराकतयाधषछठान-

धारण वयानकारथमिति गमयत । “अचरतदकदात नाडीना तासा दात रातमककसया दासपरतिदी सपततिः परतिराखा- नाडीखहसनाणि भवनतयास वयानशचरती ति खतहदयात‌

परसथिताख नाडष वयानडततिरितयपि च गमयत । ताहि

हनमरला नाडयो रसरकतादीन‌ सचालयनति । तथा च

सछतिः-“शरसथिता हदयातसवौः तियगदमघसतथा । वहनतयननरसाननाडयो ददरापराणपरचोदिताः ॥" इति । अतः

सवचछासचालक सवतःसचालक च रारीरारो वयान-

छततिरिति सिडम‌ । एतयोरनतय च तसय सखयवरततिः । इतरकरणङराकतिवहशागन वयानन तचरतयसचालकारो

विभधियत इति ॥ ४५ ॥

मलापनयनदराकतयधिषठानधारणमपानकायम‌ । ““नि-

सा खयतकवालोकः । २९

रोजसा निगमन मलानाच परथक‌ परथगिति" समरत

रोजोदहीनाना सरवधातगतमलाना परथककरणमवापानका- म‌ । न त विणमचरोतसगसततकाथ तसय पायकायतवात‌। ““पायपसथऽपानमिति” शरतः मतरादिमलपरथककारक

हारीरा शो पायवादौ तसय सखया इतति । सरवगातरष च सामानयदतिरिति ॥ उ८ ॥

ददोपादाननिरमाणराकतयपिषटानधारण समानका- यम‌ । तथा च शरतिः--““एष दयतङतमनन समननयति

तसमदताः सकताचिषो भवनती" ति, “यदचछरासनिदवा-

सावतावादती सम नयतीति स समान" इति च । अतः

चिविधाहारभसय दहोपादानतवन परिणमन समानकारय-

भिति सिदधम‌ । उकतञच--“पीत भकषितमाघात रकतापितत-

कफानिात‌ । सम. नयति गाचराण समानो नाम

मारतः ॥" इति । “मधय त समान" इति शरतनाभि- दरासथ आमाङायपकारायादौ सखखया समानदरततिः,

सगातरष च तसय सामानयदरततिरिति । यथोकत योगा- णव - “सरवगातर ठयवसथित” इति ॥ ४९ ॥

बादय।दवववबोधाधिषटान,घातगतबोधाधिषटानम‌, चाल- `

कराकतयधिषानम‌, मलापनयनराकतयधिषठान, ददापादा-

ननिमीणराकतयधिचछानजचति पचानामतषामधिषछठानाना सघातः चारीरम‌। एभयोऽतिरिकतः नासतयनयः रारीराशः।

परकाकाधिकयात‌ पराणः साततविकः, आदरततरतवाददानः

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३० सा खयरततवालोकः 1

सातिकराजसः, करियाधिकयादयानः राजसः, अपानः राजसतामसः, सथितयाधिकयात‌ समानशच तामसः ॥५०॥

जञाननदियकरमनदरियवत‌ भाणा अपयसमितातमकाः । शतिशातर- “आतमन एष पराणो जायतः इति । अपरिणामितवाचिदातमनः, अचर आतमनोऽसमिताया इतयथः ।

"सततवातसमानो वयानञच इति यजञविदो विदः । पराणापानावाजयभागौ तयोरमधय इतादानः ॥” इति सखतरपयनतःकरणातपराणोतपततिः सिदधा । तथा च साखयाचाशिषटिः-“सामानयकररणदतिः पराणादया वायवः; पचच इति । अनतःकरणतरयाणा पराणो ततिः पारणाम इति भावः ॥ ५१॥

बाहयकरणाना मधय जञाननदरियष परकादागणसया- धिकय करियासथितयोशचापराधानय, ततः साकतिक जञान- नदियम‌ । करमनधियष करियागणसय पराधानय परकादा- सथितयोरलपता, ततः राजस कमानयम‌ । पराणष सथितिगणसय पराधानय परकाचागणसयासषटता तथा सवचछानधीनतवात‌ करमनदियभयः करियागणसयापयपकरष- +` सतसमातपराणासतामसाः ॥ ५२ ॥

तनमाचरसगहीतानि आबदिसमानानतानि कर- णानि । गरादयाभितासतषा विषयाः । अरहणन गरादयो यथा जयवहियत स विषयः । गरादयगरहणयोनय तिषङखफल

साखयतशबालोकः 1 ३९१

विषयः। शरयत च-““एता ददोव भतमातरा अधिपरजञ दा- महापरजञामातरा अधिभत यदि भतमातरा न सयम परजञा- माचा सथयदवा परजञामातरा न सयम भतमाचाः सयः" इति। आदयो विषयदवारण गदयत तसमादिषयः समपरकफलभतो- ऽपि गराहयाथित इवाव भासत । यथा चाबद‌विषयः गरादया शचित इव परतीयत, वसततसत नासति गरायदवय शाबदः, ततर घातजनयो वपथरबासति । विषया परादयाभितधरमरपण गरादया"५ च धमोशनयरपण वयवहियनत तसमाननासति गराहयसय वासतवमरलसवरपसाकषातकारोपायः। गौणनान- मानादिना ततसवरपमवगमपत । विषयासत साकषातकरत- सवरपाः । करणपरसादविदोषादविषयसयव सकषमावसथा साकषातकरियत योगिभिः न रलगरादयाभिति ॥ ५३ ॥

बादयधमौशरयो गरादयो विषयोऽधना विचारथत । बो- धयतव, करियातव जाड चति यरादयघमीः । तचर सविषाः राबदसपदारपर सगनधा इति पचच परकादयधमीः, अनय च वोधयविषया रादयाभितवोधयतवधरमीः । ददानतर गति- वादयसय करियातवधरमलकषणम‌ । करमनिथः दारीर सचालय तथा परकादयविषयपरिणाति दरानतरगति चावलोकय करियातवधरमा उपलभयनत, करियावरोधका जाडयधरमा; । शारीरवाधा बदधा तथा जाबयापगमातमक रारीर चालन कमचाकतिवययञच बदधा, तथा च परकाङयविषयावरणम- लोकय जाडगयधरमा अवगमयनत । काडिनिता-तरलता-

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६ साखयतततालोकः ।

वायवीयता-रदहिमतादयः. जालयमरला बोधाः ॥ ५४ ॥

परतयक बादयदरवयष बोधयतवकरियातवजाङयधमाणा कतिपयाकदोषधमौ वरतनत । तादरदि तरिविदोषधमोशचय-

दरवयाणि परभत भोतिक वोचयनत । यथा घटपटघात- पाषाणादयः । करियातवजाङययोरपि बोधयतवाततयोरबो-

धयतवधरम उपसरजनी भावः । दविविधो हि बादयबोधयतव-

धरमः--परकाशयविषयो बादयोदधवानमावयविषयशचति ।

तनन परकाडयधमीाणामव बादयाभिविधिः विसतारयकतः

बादयवसतपरतीतिरपः . । बादयजनयतवऽपि नान भावय- विषयसय खखकरतवादः बादयाभिविधिः तसमात‌ सरवबो-

धयतवकरियातवजाञयधरमष परोवरतिनः परकारयधरमाः ।

तान‌ परसकतयानय उपलभयनत। तसमातपकाहयधममानसा- रत एव सथलविषया समावषयष वि भजय साकषातक-

रणीयाः । परतयकषविषयाणा परकाहयधरमाणा राबदसप-

दरपरसगनधा इति पञच भदाः । तसमात‌ पञच एव तततडरमाशरयभतानि साकषातकारयोगयानि भौतिकोपा- दानानि भरताखयदरवयाणि । करियातवजाञय परिणामरड-

तारपाभथा सामानयतः भतष समनवागत ॥ ५५ ॥

आकाङावायतजोऽपकषितयो भतानि । ततर

शबदमगर जडपरिणामिदरवयमाकाराम‌ । तथा- सपरा- दिमया यथाकरम वायवादयः । परकाहयधरममरलवि भाग- तवानन भतानि रसतादिभिः परथकषरणीयानि । इसता-

सा खयततवालोकः । २३

निरढष तवगादिष अनिरडन ओतरमातरण यवरादय

चराबदमय वसत असतीति परतयकषीकरियत तदाकारासवर- पम‌ । एतन वायवादीनामपि सवरपखकतम‌। कचिदरदनति,

न सनति राबदादयककगणाशचयाणि परथरभरतानि दरवयाणि,

हसतादिभिः परथककरताना तादामलाभाद‌ इति ।

लौकिकानामरवागददा पकष तत‌ सतयम‌, न त योगिना समाधिवलयकतानामति वयाखयातम‌ । तः पनरिद-

मचयत, एकसयव जडवादयदरवयसथ करिथाभदाः शबदा-

दयः, कि पञचदरवयकरपननति । तचरद वकतवय राबदा-

दीना करियाजनयतवानन च डबदादयाशरयसय वादयदरवयसय

यसय करियाभयः चाबदादय उतपदयनत, तसयासति परतय-

कषयोगयता । वादयसयानमयमपरतयकषयोगय मलमसमि

तातमकसपरिषठात‌ परतिपादयिषयामः । वादयमरलाया

असया असमितायाः परिणाममदा एव राबदादीनामाभर-

यदरवयाणि । यषामसमितातमक बादयमरटमननमत, तषा

चाबदादयाशरयदरवय सवथाऽपरमय सयात‌ । अपरमयदरवय-

` मकमनक वति न विचारयम‌ । कि च परतयकषधरमालसारत

एव भरतविभागः । मषषमातिमकषममपि वादयभाव साकलातछरवतः पचवव वादयोपलनधिः सयात‌ ॥ ५६ ॥

यथा लौकरिकसतिविरोषधमाशरयाणि. भौतिक- दरवयाणि सनतीति निशचीयत, तथा योगिभिरपि भत- तततव साकषातकरवदधिः राबदायककधरमाशरयिणो वादय- ध ५.

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३४ सा खयततवालोकः ।

भावा निशचीयनत । यथा वा लौकिकः {.

भौतिकानि विभजय शिलपादौ परयजयनत, तथा योगि-

भिरपि समौतिकष राबदमयादीनि भरताखयानि पच

दरवयाणि साकषातछरवदधिसवरिकालदरौनादौ तानि परय-

ञयनत । भरतलकषण यथाह--““राबदलकषणमाकाद

वायसत सपरलकषणः । जयोतिषा लकषण रपमापशच

रसलकचषणाः ॥ धारिणी सरवभरताना परथिवी गनधलकषणा'

इति ॥ ५७ ॥

चातमनथनादिजनयतवात‌ करियातमकाः चाबदादय

इति परारवयाखयाताः । ततर चबदगणसयावयाहतता

विदवतःपरसायता तथतरतलनया च पषकलगराहयता, ततः राबदाशरयमाकारा साततिकम‌ । तापादः रबदादप-

सारयताददीनात‌ वायः साकतिकराजसः । तदभयाभया

रपसय वयाहततरः परसारः, तथाऽचिनतयाकच-सचाराच

तसय करियाधिकयम‌, ततसतजो राजसम‌ । रसो गनधा-

तसशमकरियातमकसतसमादञशरत राजसतामसम‌ । सथर

छकरियातमकतवादभनधसय कषितिभत तामसम‌ । समरयत

च--“'अनयोनयवयातिषकताशच तरिगणाः पच धातव"

इति । पच धातवः पच भतानीतयरथः ॥ ५८ ॥ षडजष भनीलपीतमधरामलादयः छाबदादिगणाना

विरोषाः । सीषमयादयतर षडजादयः भदाः परतयसतमिता भवनति, तदविदोषराबदादिभावाशरय वाचयदरवय तनमा-

सारयतततवालोकः । ३५

तरम‌ । सथलसय खषमसघातजनयतवाततनमातर भतकारणम‌ ।

भरतवचततनमाचरमपि परतयकतततव, नानमयमाचम‌ । परतयकषण

यतततवसपलभयत ततपतयकषतततवम‌ । उकतमिददियाणा

विषयातमककरियावाहकतवम‌ । समाधिना सयथकाषटापरा- पषविनदरियष तषा विषयातमचाचलयगराहकताऽभाव च

परतयसतमयत विषयजञानम‌ । परागसतगमनादतिसथिरय-

नदरिथपरणालिकया गदयमाणातिसकषमवषयिकोदरको यडा- चयजञानखतपादयति कषणपरतियोगिनी सा करिथापरिण-

तिसतनमाचरसवरपम‌ । तदातिसयरयादिनधियाणा सथल- करिथातमानोा विरोषविषयाः सषषमया एकयव दिका गरदयनत । तसमाततनमाचराणि अआविशषा इतयचयत यथोकतम‌--““तसमिसतसमिसत तनमातरा तन तनमातरता

समता । न चानता नापि घोरासत न खरहाशचाकदिषिणः॥ इति । विदोषाः षडजादयसतदरहिता आिरोषा इतयथः,

यथाकतम‌-“"विदोषाः षडजगानधारादयः रीतोषणादयः

नीरपीतादयः कषायमधर।दयः खरमभयादय"इति। विरोष- रादिततवाततानि रानततादिशनयानि । चानतः सखकरः घोरः दःखकरः, बबढो मोहकर इति । वादयसय नीरपीता- दिविदोषगणभय एव खखादिकरतवम‌, तदरहितसयाषिशष- सथकरससय तनमातरसय नासति खसवादिकरतवमिति। तनमा- तराणि यथा चाबदतनमात, सपरछतनमातर, रपतनमाचन, रसतनसातर, गनधतनमातरमिति । तानि यथाकरममाका-

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| ३६ साखयतचवालोकः ।

चादीना कारणानि । चाबदादिगणाना यातिसषमावसथा

तदाशरदरवयमव तनमातरम‌ । यथोकत भासकराचारयण

वासनाभाषय-““गणसयातिखषमरपावसथान तनमानरा-

बदनोचयत" इति । खकषमगणाशरयसय कषणकरमण गदय-

भाणसथ सशमकोऽवयवः परमाणः। तवततनमानराणयपि

जञाननदरियमाचरगरादयाणि । निरडषवपरष एकनव जञान-

नदरियण विचारानगतसमाधिसथिरण गदयमाणानि तानि

पथगपरभयनत ॥ ५९ ॥

तनमानरभयः परः मकषमो वादयो भावो न परतयकष-

योरयः । भरततनमाचरयोः सवशपपरतयक योग विदतम‌ ।

तननाचरकारण न वाचयतवन परतयकची मवति । ततत अन

जनिन निशचीयत । योगिना परमपरतयकषपवक दि तदन-

मानम‌ ! तनमातरसाकचातकार विषयसय खधमचाचचटयाः

तमकलतवमन भयत । ततत इनदरियाणामपि शभिनानतति-

कलतवसपलभयत = 3 चाभिमानसय गरादयकरतोदरकाजजञा

नम‌ । यदभिमान चालयति तदभिमानसजातीय

सथादिति । तसमादगरादयमभिमानातमकमितयनया दिला

शरादयमलगरहणयोः सजातीयतव निशचीयत । किच विषय

सल वसत करियारीलम‌। वादयकरिथा दशानतरगतिः .।

दाजञानशच राबद‌दरविना भावि । गरादयमल राबदादर-

नावासन तनन दशवयापिनी करिया कलपनीया । तसमात‌

-विषयमलवसतन करियाऽदकचनयापिनी । लाटी च

सा खयतशवालोकः । ३७

करिया अभिमानसयव । तसमादभिमानरप वादय- मलमिति ॥ प० ॥

सतः विषयासरयदरनयसय बादयमलसय गतयनतरा- भावादपि अभिमानातमकलतवकलपन यकतम‌ । सददधिः परतयकष भाव गदयमाणधरमरविशिषय समपरजायत, अप-

तयकष च भाव परवजञातधरमरविशिषटा उतपदयत, नाऽवि- रि सहदिः सथातसतसदहत । अतयधयकषसय वादयम‌- लसय सतता सवमाहातमयनवोपतिषत, सा च सहिः

करव धरमः विरि कलपनीया सयात‌ । न रपादिध-

समासततर कलपनीयाः, वादयगरल तद भावात‌ । तसमादरतय-

नतरा भावादानतरदरवयधमा एव तचर कलपनीयाः । यतः

वादयसय रपादरानतरसय चाभिमानादरतिरिकतो वसत-

धरमो नासमाभिजञायत । सवी अपरतयकचजञयपदाथसतता

वादयरवानतरधमरव विरिषटा कलपनीया ॥ ६१ ॥ अतः सिद वादयसरटसथाभिमानातमकतवम‌ । यसय

तदभिमानः, स विराट‌ परष इतयभिधीयत । असमनत-

खनया तसय निरतिरायबरततवम‌ । तथा च राखम‌-

` “तसमादिराडजायत विराजोऽधिपरष” इति । अनयच- “यदा परबदधो भगवान‌ परषदडमखिल जगत‌ । तसमिन‌

खर जगतखपत तनमथ च चराचरमिति” । पवदधो योग-

निदरोतथितः खसो योगनिदरागत इतयरथः । खपिजाग-

राभया चलञगतः लयाभिवयकती तदा तयोराशरयदरवथ-

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(3 ८ सा खयततवारोकः ।

भत विराजयपरषसयानतःकरणमव जगद‌ातमकमिति

सिदधम‌ ॥ ६२॥ ।

परषविरोषसयचछासमशरतामिद जगदितयभयपगमऽ

पि जगतोऽभिमानातमकतव सयात‌ । इचछाया अनतःकर-

णदततिता परागवयाखयाता, सा चजञगत एकमव कारण;

तदा जगनमरलतोऽनतःकरणातमक सयादिति । गरादया-

तमकरो वराजाभिमानः भरतादीति आखयायत । गरहण

यः परकाराधरमो भरादयतापननायामसमिताया स बोधयतव-

धरमतवन भासत । तथा गरहण यः परदरततिधमः गरादय

ततकरियातवम‌ । गरहण च यदावरण गरादय तजञाञयम‌ । गरा-

हयरपण वराजाभिमानन विषयातमकरियाशीलन सखदरि-

कतायामसमदसमिताया गरहणगरादय भावा अभिवयजञजनति।

गरहणभावसयाधिकरण काटः, गरादयभावसय दिक‌ .।

परिणामसयाननतयातकालावकादायोरननतता परतीयत ।

अतः; सतवकरियाधिकरणभतौ दिककालौ अपरिभयो ।

गरहणासमिकाया असमिताया याः पचधा परिणतयः

गरादयतापननासता एव पचशरततनमाचररपावराहय भावाः ।

यथा गरहण गणवि भागसतथव गरादय ॥ ६२ ॥

न भतातततवानतर भौतिकम‌ । भरकाङइयकारयधाय-

घमीणा सकीणगरहणमव [= । चाचरलया-

ससथलनदरियसय तथा गरहणम‌ । राबदसपररपरसगनधा इति पञचपरकाशयविषयाः वाकयरिलपगमयसजयजनया-

साखयततवारोकः । ३९

नीति पचकाविषयाः, तथा च वादयोदधवबोधाधिषठान;

धातगतबोधाधिषठान, चालनराकतयधिषठान, अपनयन-

हाकतययिषठान समनयनराकतयधिषठान चति पच धाय-

विषयाः यषा सघातः रारीरभिति ॥ द ॥

वयाखयातानि तचवानि । लोकाना सरगघरतिसरगा-

वचयत । अनादी परधानपरषौ उपादाननिमितत भत

करणानाम‌ । विदयमान कारण परतिबनधाभाव च काय-

सयापि विदयमानता सयादिति नियमात‌ करणानयना-

दीनि । तथाहः “धरथिणामनादिसयोगाडरममातराणा-

मपयनादिसयोगः” इति । तथा च “अनादिरथकतः

सयोग” इति । तथा च गौपवनशचतिः “नितय मनोऽ-

नादितवाननदयमनाः पमोसतिषटतीति । अगनिवहमशचति-

आआचर--““सोऽनादिना पणयन पापन चानबनधः परण

निरखकतोऽननताय कलपत” इतयादिशाखरातभयोऽपि

परषसयानादिकरणवतता सिधयति । तनमाचरसगहीतानि

करणानि लिङगदारीरमितयचयनत । लिङराररराणाम-

सखयतवददीनादसखयाताः शषतरजञाः । कसमादसखयानि

लिङशारीराणि, सवोपादानसयामयतवादिति । अपरिम-

यसयोपादानसय परिमितकायीणयसखयानि सथः । गण-

ससथानमदानामाननतयादसखयाताः करणपरकरतयः । अतः

असखयाः जीवयोनयः। उपादानसयामयतवाजञीवनिवासा

लोका अपयननतासतथा चाननतयवचितरयानविताः। यथो-

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६2 साखयतततवालोकः ।

म‌-- “ति चाननतय न पडयनति नभसः परथितौजसः ।

दरगमतवादननततवादिति म विदधि मानसमिति” ॥ अत-

सतदयसखययाः; कषिजञाः कदाचिरटीनकरणाः कदाचि-

दवयकतकरणा वाऽसखयायोनी आपदयमाना व तयजनतो

वा असखयषठ लोकष वरतनत ॥ ३५ ॥

दिविधः करणलयः, साधितः सासिषडिकङइच ।

ल योगन‌-खाधितः लिङगहारीरलयः, गरादयभावटलयाच

सासिदडिकः । गराहयाभाव करणकायौ भावः, कायौभाव

करियातमना करणाना लय इति नियमादवादयलय खयः

करणराकतीनाम‌ । यथाह-““चिचर यथाशरयसरत सथा-

णवादिभयो विना यथा छाया । तदवदधिनाविदोषन तिषठति निराशरय लिङमिति" लीन गरि करणानि लीनानि

तिषठनति । नच तषामतयनतनादरो नाभावो विदयत सत

इति नियमात‌ । गरादयाभिनयकतौ तानि पनरभिवयजयनत

शचतिशचानन-“तऽविनषटा एव विरीयनतऽविनषटा एव

उतपदयनत” इति । ““भतयरामः स एवाय भतवा शरतवा परलीयत" इति चाचर समतिः ॥ ३३ ॥

उकत जगतः वराजाभिमानातमकतवम‌ । समरतिसततर चथा-"“अभिमान इति खयातः सव भतातमभतकरत‌ । जरहमा व स महातजा यनन त पच धातवः । शटसतसया- सथिसजञासत मदोमासञच मदिनीति ॥

तदनतःकरणसय च निरोधानिरोधरपाभया खि-

साखयतचवालोकः । ४१

जागरामभया जगतो लयाभिनयकती। खो जडता करिथा- शनयता वा भवति । विषयाणा करयातमकतवाजाडध- मापनन भराहमल वराजाभिमान विषया रीयनत । ततः असमदादीनामपि लिङलयः । जागर च करियारील

वराजाभिमान विषया अभिवयजयनत । ततः सजातीय- तवात‌ तभावितानयसमदादीना करणानि वयकततामा- पदयनत । यथा खरः परषशचालयमान उननिदरो भवति तदत‌ । सवमलसय करियावोचतयात‌ राबदादीना वचि-

चयम‌ । समरत च-““अहकारणादहरत गणानिमान‌ भता- दिरव खजत ख भतकरत‌ । वकारिकः सरवमिद विचषटत सवतजसा रञजयत जगततथा” इति । स भरतकरदरतादि- ककारिकोऽहकारः अभिमानन इमान‌ राबदादिगणाना-

इरत विचषटत च विचषट‌ च जगदिद सवतजसा रञञ-

यत विषयानारोपयतीतयथः ॥ ६७ ॥ योगनिदराया निषकरिय वराजाभिमान तदगतादोष-

करियातमानो य अङदोषविरदोषासततपरतिषटा-विषया निसतल- दीपवत‌ लीयनत । तदाऽपरतकय सतिमित वादय मवति।

यथाह‌-““परासतिमितमाकाङामननतमचलोपमम‌ । नषट-

चनदराकपवन परखरमिव सबभौ ॥ " इति ।

निदराजागरतोरनतरार सवभावसथा तसया जाडय

वादयकरणाना चतसशच कलपनशखपा चषटा । वाहयवाशिनः

खषटः सषषम भतकलपना गराहयतापनना आदौ कारणसालि- ६

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र सा खयततवालोकः ।

लाखय तनमाचरसरगसतपादयति 1 तथा च सछतिः--“'ततः सरखिलसतपनन तमसीवापर तम इति । ततः. परागकत-

सतिमितावसथानाननतरमितयथः । सनधयाखय सवपनखयान कलपनरपा खषटिरितयसति शरतिसखरतिपरवादः ॥ ६८ ॥

विराजपरषाणा सथलकरियारालिनोऽभिमानादगरा-

हता पननातकठिनताकोमलतासनिगधतावायनयताराकमिता- दिधमौशरयदरवयातमकः भोतिकसग आवि मवति । ततर कठिनताऽतिरडता करियायाः । विपरीतकरिययव.करिया-

रोधददीनातकविनि दरवय सवगतरडकरियाऽनभीयत ।

रिमता च अतयरडता करियायाः । न च ततर जडता- $भावः योगिना रदिमष विहारसमभवात‌ । यथाद‌- ““ततसतणनाभितनतमातर विहतय रदिमघ विहरतीति ” । कोमलतादया अलपालपरडकरियातमिकाः । वराजाभिमा- नसय कलपनरप-करियाभद‌ाद‌ मरादय कारिनयादिमदः। भर

तादयाखयसय तदभिमानसय भततनमाचराभिमानिदवतरवि-

धतसय करियाविशषो गराहयसय वयव धिदतजलावरतवत‌ । तदभिमानसय गरहणातमकसय यौगपदिकमिव परिणाम- बाहलय गरादयतापनन विसतारबोधमारोपयति । तसय च परिणामपरवाहविदोषः गरादयभतो दशानतरगति- भवाति ॥ ६९ ॥ ` सथखोतपततौो साखयानमता सषरतिधथा-“' परा सतिभितमाकाहशामननतमचलोपमम‌ । नषटचनदराकपवन

साखयतततवारोकः । ह

परखशषमिव सबभौ ॥ ततः सखिलसतपनन तमसीवापर तमः । . तसमाच सलिरोतपीडाददतिषठत मारतः ॥ यथा भाजनमचछिदर निःराबदमिव लकषयत | तचामभसा- पयमाण सकाबद‌ करतऽनिलः ॥ तथा सलिलससड- नभसोऽनत निरनतर । भितवाणवतल वायः सखतपतति घोषवान‌ ॥ तसमिनवायवमबसघरष दशच तजा महा- बलः । परादर भद‌ शिरः कतवा निसतिमिर नभः ॥ अगनिपवनसयकत ख समाकषिपत जलम‌ । सोऽगनिमी- रतसयोगाद‌ घनतवसपपदयत ॥ तसथाकाहो निपततः सनद- सतिषठति योऽपरः । स सघाततवमापननो भमितवमन- गचछति ॥ रसाना सरवगनधाना सनहाना पाणिना तथा । भमिरयोनिरिह जञया यसया सथ परसयत इति ।

एकरससय कारणसकिलसय सथौलयपरिणाम परिचछिननभोतिकदरनयपरकीणी बरहमाणड वभव । तदा सशलखकषमवायकरतानतराल जयोतिःपिणडमथ जगदा- सीत‌ । घनतवमापदयमानात‌ कारिनयादयतिसथोलयातम- कात‌ दरवयातछकषमतराणि वायवीयदरवयाणि परथगबभवः। तसमादाह-“भिकवति" । घनतवािजनितसघरषाच उनता- पोदभवो यनोततपतानि सथल भोतिकानि जयोतिःपिणडा- काराणि बभवः । तत आह-"“तसमिन‌ वायवमबस- घरष” इति । अथ तषा जयोतिःपिणडाना ख विचरता मधय कचिदाययोगतः निसतापतवमापयमानाः सनदतव-

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॥ 8. साखयततवालोकः ।

मथ सघाततवमापदयनत, कचिचच वरहतवात‌ सवयपर मञयो-

तिषकरपणावयापि वतनत । उकतच-““उपरिषटोपरि. छात परजजवलदधिः सवयपरभः । निरडमतद‌ाकादहामपरमरथ

खररपि ॥ इति । तसमाचचाहः--““सोऽगनिमीरत- सयोगादिति ˆ ॥ ७० ॥

यो गरहणदाशि विराजः सथलनजञानरपपरबलकरिया- ससदरकः, गरादयदरि सा घनतवाधिः सथौलयातमिका । “पादोऽसय विशवाभतानि चरिपादसयामत दिवीति “ शतरदशयमाना लोकाः पादमाचरम‌, खवः सवरादयः खकषमाञच लोकादिपादः । तष ओषठो महततमशच सतय- लोकः । स च वराजमहदातमपरतिषितः । गरहणदरि सरवाः गरहणकरियाः महदातमनि निवदडासततो गरादय- दशि सतयलोकाभयनतर निबदधाः सरव सथलसकम- लोकाः । गरहण तामसाभिमानः सथितिहतः, गराय तदभिमानपरतिषठा सकरषणाखया तामसी चाकति- छौकधारणहतः । उकतच - ‹ मधय समनतादणडसय भगोलो वयोकनि तिषठति । विशराणः ` परमा शाकति हमणो धारणातमिकामिति ।” तथा च दरषटटरययोः सकषणमहमितयभिमानलकषणमिति" । अनया सकरष- णाखयघारणङाकतया सतयलोकाभयनतर निबदधाः सथल- लोका विचरनति वरतनत च ॥ ७१ ॥

भतादरविराजोऽभिवयकतौ सतया धरजापतिरदिरणय-

साखयतचालोकः । ४९

गभ आविरासीत‌ । शरयत च--“ तसमादविराडजायत विराजोऽपिपरष ” इति । स एष भगवान‌ परजापतिः हिरणयगरभः पवीसिदडः सरगऽसमिन‌ सरवभावाधिषठातरतव-

सरवजञाततवससकारण सहाभिवयकतो बभव । शरयत च--““ हिरणयग भः समवरततागर विशवसय जालः पतिरक आसीत‌ । स दाधार परथिवी वयासतमा कसम दवाय हविषा विधम ” इति ॥ सरवजञाततव सरव भावाधिषठातरतव- ससकारमादातमयनोदभतष सपरजलोकष स सरवजञोऽधीरो भतवा वतत । तसय सरवजञाततवसव भावो दिरणयगभ- सवरपम‌ । सब भावाधिषटाततवसव भावसत विराजसव- रपम‌ । परव खल सरग सपरजलोकष तसय हौशतरतवा- भिमानात‌ तचछकतया सरगऽसमिन‌ परजाभः सदह रोका

जायरन‌ । तथा च रतरम‌--“ स हि सरववित‌ सरवकतौ ”

इति । ““ इटरोदवर सिदधिः सिदधति ” च । शारइवताः ससारिणो जीवाः खलवादौ वकषयमाणपरणालिकया तददवमादातमयात‌ दहिनो भतवा आविरासन‌ । ततो वीजबकचनयायन पराणिना सनतानः । भगवान‌ हिरणयगभः

सासमितमहासमाधिसिडः यदा योगनिदरोतथित आतम

सथोऽपि दशवथमन भवति तदा बरहमाणडसय वयाकतिः ।

यदा पनः सवातमनयव तिषठन‌ निरोधसमाधिमधिगचछति

तदा योगनिदरागत इतयभिधीयत । तदा च बरहमाणड

विीयत इति । एव परजापतरशवरथवशातसथलखशमलो-

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द साखयततवालोकः ।

कसरगाननतर धारथपरातौ टीनकरणा जीवाः वयकतकरणाः खकषमवीजरपाः परादरबभवः । करमारायचोचितयादवमान- षतिरयगदधितधकरतयापरितरविचितरकरणः समनवितासत खकषमवीजजीवा अभिवयजञियः । तषवसखयष वीजजीवष मधय य तवौपपादिकदहवीजा भततनमातराभिभानि- दवतादया जीवासत सवतः परादरभवनतिसम । अथ उदधिजनदहवीजा जीवाः हारीराणि परिजगहः । सरति- आतरय भवति-- “ भितवा त पएराधिवी यानि जायनत कालपथयात‌ । उदभिजजानि च तानयादभरतानि दिजस- तमाः ‡ ॥ इति । तथा च “ उदभिजजा जनतवो यदरचछ- कलजीवा यथा यथा । अनिमिततातसमभवनतीति » ॥ अथानय पराणिनसतदशवरथवदातसमजायनत । पराणिष य असफटवरकरणाः तथाचातिपरवलाऽवरकरणासतषवकाय- तनसथिता जननी राकतिमवति। सफटवरकरणपराणिष पाणकाकतरपावलयाद‌ दविधा विभकता जननी चाकतिरवतत । तसमात‌ सतरीपमद‌ इति ॥ ५२ ॥

इति साखययोगाचारयशरीमडरिदराननद‌-आरणथ- विराचितः साखयततवाटोकः समाघः ।

साखयततवारखोकः पारिभाषिक-शबदाथाः ।

४ >> = 9

एतनिबनधपाठकार पाठकाः समरयः- पदारथः-पदाभषयमाचर, पदारथः दिविघः-भावः,

अभावशच । ततर भावः = वसत = दरवय गणशचति।

दरवय = वयकतसकषमगणाञरयभावः । तच आनतर तथा वादय । गणः ( सतवादिवयतिरिकतः ) = धरमः =

दरवयाना बदधमावः। वयकतगणाः-- वरतमानाः; सचम- गणाः- अतीताशचानागताशच । गणाः = वादया आनत-

राशच । ततर मरलवाहयगणाः = बोधयतव, करियातव, जडतवशचति ।

मोलिका आनतरगणाः = परखयापरडततिसथितयः । विषयः = वादयानतरकरणनयापारः । विषयाः = बोधय-

विषयाः, कायविषयाः, धायविषयाशचति । बोधय- विषयाः = विजञया आलोचयाशचति । कायविषयाः

सवचछकायाविषयाः सवतःकायविषयाशच । धारय विषयाः = छारीरादि दरवयाणि शकतय । तचर पनः विजञय विषयाः गदयमाणाः परतयकषविषयाः, अगरदयमाणा

अनमयसमरयादयः । . 7.

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( ४८ )

सवचछकरियाविषयाः = करममनदियादीना कायणि पराणादीना कायाौण च सवतःकरियाविषयाः । सरव

विषया वाहया आभयनतरा वा भवनति ।

बोधः = जञरपः । स च बोधः तरिविधः = सवबोधः,

विजञान, आलोचनरति ।

सवबोधः = चतनय-चिति-चिद‌-जञमातर-टक‌-सव- परकारासजञामदोऽसय ।

विजञान = चतसिकः ततवबोधः नामजातयादिस- हितः चबदादिवाघयाना इचछादिमानसानाञर ।

आलोचन = वादयाभयनतराषषयाणा पराथमिकः

सजञामाचरबोधो नामजातयादिदीनः ।

करणो = आबदिसमानानताः सवा आतमहाकतयो ( भोगापवगकरियायाः साधकतमाः । करणसमादारः लिङनदारीर ।

चाकतिः = अनमय कारण = चितिराकतिः ददयदा-

कतिशचति । तचर चितिचराकतिः करियादीना सवपरकाङासव-

-भावनातमपरकारादतः । रडयराकतः = करियाया सषन-

रपा पवौवसथा परावसथा च । आनतर दाकतिः = ससकार- रपा हदयाखया । वादयदाकतिः = करियोदधवानमया अकरि

-पफावसथा । करिया=राकतवयकतावसथा = वाहया आनतराच ।

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Page 45: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

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Page 47: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

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Page 48: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

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Page 49: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

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Page 50: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

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Page 51: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

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25. 3-12

१,९.५ प०7९, &8]110०] 2113 2४, €३त1012] {0869101 3010181, (०९. 89810111 (011९06९, एन" ©७, 128. 1-4

78०, 26-¶0९ 21६4 भलत] 1९811 ( शगाङकलखाना टकरा ) [ नाटिका], ए 1६.208 [2९४8 ]रवभा, 12016 "0 [णएतपलम‌ 6९. 0 रद, 9४) 6851; 1२15 28111; 26182, 851. [10धाकष, (०रलणफालौ 8811811 [न भाफ, 0609168, 8. 1-0

पण, 27-प16 एातरषलछाक१६ एवौ गाभा ( विदरषरितपञचकम‌ ) [ निबनध ], एए दकषा 8.6 11916, 5का11४58- गादा, 853 [नामतकण, (0०१, उताना 1०11९86, &€वा85ए९॥1 [3]19.ए 08 [नभफ, 6४168, प} 90 [०170त‌परल० 0 11. 1. 26. ग008018. वण], 01. ^, शि7णल])१‌, ६०९४, उकणशतत( (०11९6, ९0४68, ऽ, 2-0

7०, 28- 1116 1818 1९0६2 (बरतकोशय) [धमजाल|, 0४ ¶१९६२०70३1}1४ 8831 ५६170६9 880115५] 8111 33, 5819191 68९वाल1 80]110ध, 880शत# (1011९8९, 1868168, पाणा 8 एगलकमत ए 11. 14, 20. 0001०818 १९11६], 11. ^, [णला]ष‌, ७०९, §808त# ०11९९, ए€91९8, 15. 4-0

7०. 29-116 एवा 1 8 (इततिदीपिकरा) [वयाकरण], 0४ प पापक ४, परवात फन‌ 1णणनवपलाम+ €1८, ए 71, (थ 2411418 68.301 121214१ द]४, ९016880, (०४, 8408४ ०1९९९, एला का७६, 8. 1-

पण, 80-106 ०वक/(1९ कषत ण (पद थमणडन ) [वशषिक], १ इन एलणप६१. एवः४ठव णप णपतवपला० ०८. 0४ ?०101॥ &०]81० 6 दत पि€०९, 2170९60, 0४, 38४0811 (1011९&९, 8५०६7९8, 8, 0-14

०. 31- ( एअ+ 1 }-106 वरणाभा ध० ( तनतररन ) [मीमासा], ए एदा णा 8278011 21767, तासव‌ 05 21, 21. 77, ७०१८३ 2018 व}३, 11.4.17), [1 ४106-(षणटनाग ^1121208‌ तणणल, + 1१0९7४१ 5. 1-14

7०. 81-( 79५ } 19. 79. पपापटव एए 2४, उगठा इद पिकण6, (णण, 8808] 011९९, 86065,

Page 52: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

7०, 32-7105 1500०४८द78 (तशतरसार) [नयाय], ४7 81131858

गवि $ णादा१, एत‌ा16त‌ का णकठत‌पला०ण 6९. फफ

परिभाषा 58८, ए€०४1९8 पराणव = णरल,

पि०. 38-( एष 1 ) (105 पिक एए कपडाप ४ ( नयायकरौसतम )

[नयाय], 05 01210216९2 एपणादधशा, एतापठत‌ फा

णणवपलमा &€, ए ९६४ 115, 01. ^.

61191808 एणएल+, ^ 11४0१.

०. 34-( एष 1 ) 16 तरस, एत‌

अदरततरियातिलकष‌ ) [ साङकगवरानत ], ए उण धापा एतद 018. पाती ४ (०फणलणषिए फ

8८1 0 शा19\ 2 [0150४ ए ता{6त‌ पापी [प४०प९*

णा, €6. 07 कष090ष४1 1.8] च), 01. 4. 8110191

68687011 = उिनाणका) ०४१, वणप [नथ ए6168.

7०. 35-706 षा०8 ए1]58 ३8१18 ( धमवरिजयनाटक )

[नारक ], 0 8१९९४ 8६४. 4४64 पन

1णनषणतपजमप €॥९, एए = एवन‌ दव 8 8841

11506, ^581, [नणि कण, चणा, उिवणञपा॥ [थक

8602168.

प०. 36-4116 60208 1९ ०१8 (५10 प ( आननदकनद चमप }

[ चमप ], 05 0110718 011६7. पवतालत‌, जा ४ एग९-

णणात‌ ए 11. 11.26. कगाणडााप एए], 1.4...

पिरणत8 (18078 38110; दन] हाप, विखटथाःठ)) इनाम], 88०8४ (नाशद९, लप ९६,

०. 37-716 एएणवदण५ उितपशरण ( उपनिदानसतरम‌ ) [ वद ], ‰.0108त‌ क) [णदठवपलाणण ए 77, 2197 62120698 इड), 21. 4.1). ए

०. 38-716 कणडरा एाणादध9 [वापि ( @षा)९ ),

( किरणावलीपकरालद धिति ) [वशषिक], 0४ 21078111 07801 परतापटव ङ २४०४ एषव 18018 इण, 11. 4. 1/पनातणठण णरललकक,

9. 39.46 एदा४ एकि 0णोदाए२, , ( शापवरिजय-

महाकावय) [कावय], ४ (ष) 9०8018. ५४९१ ए ए# 0०१]४४ह‌ १०२, 01, ^.

88. 1-9

8. 3-4

९३. 1-4

88. 1-4

8. 3-8

28. 1-0

९5, 1-18

28. 2-0

9

0०. 40-( एम [ } (16 51०12४४, ए एतन २०४ (कालतस-

विवचन) [धरमश], ७४ ६९९71 2119 ण, एरता४९त, फा) ५ रकिा€णणत‌ ए 14. 1 2. 60011808

णाद], 21. 4, एद पषणवर 11419 8178 88111} 2231272, = चडलछाणा = उनागषय, = §दणतताौ

(०11९6, 8५0९168.

० 40-( २०५7 ) 0०९ ०.

पि०..41-( ए 1 ) (06 उवाह ०४५ दरथा (तिदधानत-

सावभोम ) [ जयोततिष ], ४४ 8.7 कपणई४४२. {त४७ब‌

फा [पपरणववटिकि ८, एकि वनमा 8.1४

रिणप४ कपणवीध वणप, 1416 ईदवोाजभ‌ 80110187, 8०३111४ (1०1९6) 260 968,

विण, 42-1106 81642 614411 (भरसिदधि) [नयाय] 0 ४15 षणी

70118२०, 8112 {83132: प, 10116 1} ००1९8

€00., ए वि 2४४ ४) ३1६ य1210831180 98 2५०6 इफ, क हा) 8१६१, 21045801, (०१४. उ 2ण5]ला0

०11९६७० 86.168

0०. 48-( ९९४ 1 ) {716 88191188 (समारतोहटस) [कमकराणड],

एकग 81४० [852 |, = त।४६त‌ पो [णषठवलनरम)

00168, €{0. 0 # ९१8३. 2८४ २२०१1 8।,2 २४२१४

९८४३ 18 = 1187४, = 10८, (@0ए॥, 32050

०1९९९, 6९1५8.

पण. 43- ( 2४५ [ ) 100. 0०,

विण. 44-( ८०५४५ ) 8१५18 31818. 1111 (शदाचारकिगमणि)

[मशा], 124116व $ 8811८581. (षपता

8.87) ॥ 8430711 1113016. (3

पण. 44- ( एग [ ) 10. 00.

तण. 45-( एम ४ 1 ) ाकएडरभा शिशदई१ (उपप) र) करिरणातरकी

धकारा-गण ) [ वषिक ], एए एत‌ 2०४. एत1९‌

फा 8 एणिहकणत‌ ४ 11. 11. रा. ` चणक"

दतणद+ 11, 4., ए एतणता॥ एषव णा18 सवज, 21. ^, [लपठक णरलगकक.

फण, 45-( 2 7 ) 100. 7०. 7०, 46-( ए० 1 ) एह णभण 8 ( कानयपरकारा-

68. 4-0

8, 8-9

Page 53: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

¢ & )

दीपिका) [ अलङकार ], 07 6" (11५1. 1898. 1724146त‌ णि इष @अरभ‌<३१० ए) डनादरा४२, 11. ^ 21088801, ?1€डवलणस (@नगा९९, (मलपा.

पि. 47-20९0१) 276 ( भदजयभी ) [ माधववदानत ], 0४ 5 पद &.1६8 11318 एदा) १२॥8०)0का-9 2. 124146त‌

फ [णरठवपठनिण 6९. एङ एषणवा6 व परए९०३

०58१2 108005४२, =, ^., [णशःवलणः ग

88081 = 2210488185, = 10116 = ए0ए1०068,

68168,

7०. 45-ऽकणक कर उवपवतशाङञत‌। एपववाोकाभ08- 1214599 (समयक‌बदधभाषित परतिमालकषणम‌) [ शिलप- शानम‌ ], ४11] 116 (0फफठण(वा ङ 88 फएपतव‌]8- एदञातवि-णणड-ध5व3 पारथ). (वण 64४64 कता [णर०वपठणप ९6. = परच १३5४ 8, 01. ^. एारईणव का, 6दपणा ल.

पि०, 49-80९त ०००8 ( भदरतन ) [ नयाय ], ए 8५०1५19 1117४. एवःप९व का] 1 पकनवपलौ ०, {९ ए 38 कदाचफकषा8 पा], 488४. राणा, 0४४ 88081110 (011९९, € 9९8

फ०. 500३ ©)9119 ए;*612 ( मातकाचकरविवक ) [तनतर] ए 8 एकवण इप8त‌2 र108, क] 8 एनफफटणदाफ

एवापटत‌ फा कण [णतरठवपलकणय ए ?, 1. २०३१8 = [षा एडथाथपदलदवा2, (मणा नौका, (0४४. उकणशतः॥ (गाद९, एवप8 &

पान 8 जिषरकणव‌ एङ ४. #, ए४. (गणड) ए५ण78]8, 11. ^

24०.51-52-( & ) 0098 अपव78 ०८५ ए;त४0109 ( अदरत- सिदानत भििदयोतन ) [ शङकर वदानत ], 91०9 ३.०९०१8, 8219880

(४) 2०1४ ए) 0979098 ( कसि विजञापन ) [ शङकर वदानत ], ए 781०102 6678018,

01॥6व‌ कौ! [णतणवपनण एङ २४, पठ

11.11.311 8१ा]०, 85४. एारठकमः ०१

88४४ 01९९, 860९8,

८ 9)

7०, 58 पप १०)२ 15818. ४ 7808} 19. 818 ( नतिहपरसादः

वयवहार सारः ) [ धरमश ], ए» 5८ 19गष ए)९. दरवाकलत‌ णा [णपरठवपरलनत ङ ४, एाणदभार४

8887 (प

7१०, 54- पपाश0108 21852१2. रिवन 02 € ( बसिह-

परसादः-पायशचितसारः ) [धरमदानञ], 0; 61 [0५190४४ (द. ‰प10९त‌ पाप [णठवपलजय ङ २६, किणव 16०8 वाह ६00) इण दा $8 2० 21, कणण पपणदठा 818 ईद 8011क7 9

2१०, 55 पिअ ०10 1258018 8181त‌}09 हा ( सिह परसाद शादधसारः ) [धभशासतर], ४ 12121091 एद}2. एवा+लव‌ णो [णणवपमान ए ए, एात3 इवाा2ा8 1178,

पण, 56--ए19रण2०ण०का)४ 11818112 9व007812 पण)

(०पाणाठणणफ उपता ए एवापठाः ( भवननाम

माहातमयसपरहः सधा रीकष सहितः ) [ भकतिशासर ], पतातत तो [णणवपकनण एङ ए, ०४०६४ ७०]8| € दशा 1४१॥६९, 4881, ए1088801, 0

20811 (011९९, 69168 2०, 57-( ९9 ) ६०१५४ ए कपफपत ( गसित कोमदी )

गणित ], 0 81898 ९\०९१९. 72416 ४ ए ९१०३1२19 1) ए1४९4‌7, ८०88809, (०९॥, 88096 011९&€, 36118168

0०. 58--ए15811,805 ( खयातितराद ) [ शाङकावरानत ] ए अिथणा8, (नवर काव, 4146 0 §५०- 178 (81187038 कषा फ) 2 णिलकणत‌ ए 21. 01. 2४. धग" 201. ०१ द/३, 0, 4,

7०, 59-88).05 19105 8101५ (साखयतसरालोक) [ साखय ], छ पतभाायकघाकषात‌ 4790 ४8, एतवापठत‌ फण) 80 1णणतपमठण ए एवम, वथ ~क नमी, 1, ^, धव & [0लकणात‌ ए 2, 21. ५ तगणा 9४ 1५५३), 21, ^

० 60-( ए 1 ) 88.041 उप)» ( शाणडिलय सहिता ) [ पञचरातर ], 01160 ए 121. 4०५५ ०] 68 121841९, ^ 881, 0६8०, ॥0१ला706४ 880शतन# (णा९९, 8609168,

2

Page 54: Sankhya Tattva Loka Of Hari Harananda Gopinath Kaviraj

ध 10 )

7०, 61-7श णडा उता ( दकषिणामतिसहिता

[ तनतर ], 241४6 ए २५. पिह 84 11806 88105 8411412, 6581, [/1011189, 60१1, 8४081

०11९९, 8611168,

2०, 62-पिञण॥ ४८12, वण < ( च सिहपरसादः-

तीथसारः ) [ धमशासर ], ए 8८ [षष‌ (2 2११6 ए पा 818०9 ताद, ४81

27088801, 0४, 8808६16 @गलदव<, एला ९6,

2०, 68 छात षपााए भाण 8]8 = ( भकतययिकरणमाला } [ भकतिशाल ], ए} 2878790 पत], णा (०फा- कणि ए व110ा, ता१त‌ ए ए, 4०६०08४

७०8।२ 8890} 1६1९, 4881, ९1080, (०९४. 84081117 ०11९९, 8००११९8,

कण, 64-- ए8जऽ{19 10975808 ( वासिषठ दशनम‌ ) [ वदानत ], (णणात‌ & दवात णनि कण पाठवपलना एफ ए, 8. 1, ^ धक, 1, 4. 21. 1)., 1.ललपाला,

868९8 पराणप णमक, 1) 2 लिटकत‌ ए 21. 71. ९६४. (दणणडना २ एवा], 11. 4.

2 ०.65-67-( 2 ) 18 भा उण | तरिसथलीसतः ) [ घमशाल ], 0 एम 1519.

(४) 7िपफौरणवप ताता ( तीरथनद शखर ) [ धरम. शाचन ], 07 2, 22९82 211218,

(०) 86 11०58 ए16]) ४ ( काशी मौकच वरिचारः ) [ वदानत ], एफ 3पाटईणणाद०) हा प४. [त‌1लव‌

फा] = [पपरकतपरकाणया एए ए, रिता

पा 2४९०६ 8१1८१, 4.88, 20168801, (०१४

8ध8]प# @011९&९, 2609168

फ०, 68 ताए कपातढापतो हात ( पधवरमलालङकारः ) [ माघव वदानत ], ए ५०९78] 11179, वालव कात भ वणणणवपछ० ४ २. निणा०1020)कएफ 2 ए४९९-

तवा, 880. ए70दडडणि, 38एशरा॥ = (णादर, 860४7९6, णा » िरकगत‌ ए 14, 11, २५, 6०

02018 87118}, 01, ^. १

( 11 ) ठार 11 {06 1688,

पण. 1- ददणहात० इ 9 कता ताद एोषनो४

( सिदधानतमाषयषहित आशररायनशरोतम‌तर ) [ वद ]

क०. एप भीष ( नीतिमजञरी ) [ वद ], ए 758 1) रारवत,

०. 3-पिरकक रकपडापफाः ( एषि [आ ) (पपहपयतोषत‌8

(नयायकोसतभ-अनमानलणड) [नयाय], ४5 011846४४ पपाद,

पण. 4--11718058 (@15णवाःड ( मीमाकताचनदरिकरा ) { मीमासा |: फ

0178110 .804008 81४5781.

पण, 5--शणाक8 ( एक [आ ) ( तनतर ) [ मीमा], ण 00108 ६8८] 21178

०. 6--ए हए एवः [8 ( एष 1 ) ( कानयपरकराजञ दीपिका) | अलङकार], 0; 81 11५1} 0108589.

०. 7--18ए िःकषएाप 8 एदरपा88 ग एण फ ४6 एफ ग (णण काफि छण‌ तणापालतथत

ण ए पाकाईाण एक दनाः 1 इ19.

7०, 8-- पि हका उका) §8पदव०त‌09 एङ प2०४.0]1 01178,

वण, 9-एफनणवाः४ ए 1]08०8 उ॥8 ए (0फापणछपथा फ,

पण. 10- 680१15० 3070118 ( एषम [1 },

7०. 11-18रनपपकपव। पाती) 1०18, [भ]ध08, 610.

7०, 12--88ण]\§3]0६ 11811111 ए पिष 78018.

पि०. 18-1१४४४ कविा४४ 3वत‌}18 ०८१ 8877810५ एङ ?)हपप एग.

7०. 14-ए80भपन @ीदणवपा४ ( एद वा ) 0 रि दवाद० ¶ 1111.

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ए दयि 85 07 7 .+1.28 94५45 ^ गा

एप ४4 प अ¶त775,;

रवाषलव ए

किणव (4 एत, अ, 4, एण]. [- (१ ) 3॥पव68 ‡ पोत 1.8 (1); 165 एषणप०पण,

एष अो६8०8॥18 क18., ( ४) 106 एदण-कमण ० 873 ए91वञा० एः

105गणौक+ एक उणण०8 (8४ वणाद). (०) विणषए० 1९३४२, 0 6०]0०३॥108 1 वणाद)२. 88. 1-12 ए०], [1-( ४) एमारणाडढात ][1 त 21188 ए 211 [६०७३ |8 68.78,

१ 0णणणडण दणद], (४) 1णवलब 10 8808198 8178599, ए 116 1916 (ज,

(७. 4. 4६००१. ( ¢ ) ऽपता७ ० पतणतप 1.४ (2 )-1/8 80068, एफ (५7६8०३8 व 18. (१) .4 पठण भत 8४९, ए दगण३॥१४ ९1/11 ( € ) 106 शल ० (काशत 2५८० त‌17 0 ०95४

१2118, 0 (णणड8 4, 1.4 (7) वश 1० पल 1०१, ए दणड 9 811. (£ ) पराणप एणलौ ०, ए एभगारण(2 इग, (} ) 3९शछपटला (णपा =

~

ए एषवणडर9ः णनत.

(1) 8०णठ 3368 9 ए इभा पाण, ए 00008018. कण].

(1) 5४ पणणड ब) (णाग पकणडाकर०ण), ए ६,11.111 4,1.19 ( £ ) 116 6 णः४०० ग ए०वाफ, ए पदध 20919 83

ए 0186. ( 1 ) 8०००९]& पावा, एफ तण 9 ए 9रा7ह}8, 1२8, 5-0 ०], 1-( 9) [णव (0 6808785 31859, 0 116 1,416

८०1. ©. 4. १९००४. - (४) णवा 3० पताणवप [म ( 8 ): वपतलश

एषणवलवपाल ए 6०६३०३५1 च78, ( ०) (ल 1० ^ एल@# 1०११, ए 6ग०8(४ 1.4.111

चि तरणय द‌ > -

~ - ~

£

18 }

(१) पराश ४०त‌ 18.311 1 [तपलदषपा6, एए वरणणदन 9 ५118}.

( © ) ष६९व)& 9० इन परथ एफ कवााभभणः. >, 1111111

(1) [णवा णप, फ ?. पि, एदकभप, ४०. [ए--( ० ) ऽपपवा९३ 1० परणवप [धफ (4); वपवालभ‌

21066 प९; एए ७००९३०81 9 व18. (४) पराऽणक कत‌ एवह ग 3४ एोईलडाःय

तलकपाल एक णण ए वणा द)४. ( ०) ^०8]$88 0 116 (गालण8 ० 116 &०९१०-

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(४) 106 ६०।१दा# ० "6 णव भा (दभाला8)

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(५) एादढछक एष एमथफतषववाष, ए 8०५६२ ©18.0 018 (प)9,

(१) ४०९६० ४३, णत‌ 8016 9 {06 `फोपण

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(9) ^० [पतटह ॥0 (© [ण ४६7९ छतलापणडठ ण 10 हापा 18 120.804०8, एफ 21102118 १8५१४ 7.

(7) 716 (11०8० ग वतप पण, ए 6०08608 1१५६४, 1, ^,

(8 ) २५८९8 ०१ 785प]0%18 ए;1गणगो, एक तगण 4.111.111 8, 5-0

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(५) ६८००१ तदषड०, 1190५०४ 11679 ए (णाणव

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(४) 88448 २95809०४ 07 कव 8४०२ 689; 0516.

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