tm-03 - vardhaman mahaveer open universityassets.vmou.ac.in/tm03-123.pdf · 3 वध[मान...

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    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    TM-03

    पयटन उ पाद

    ख ड –1 : पयटन उ पाद इकाई -01 पयटन क धारणा 7—21 इकाई -02 पयटन उ पाद का वग करण 22—35 इकाई -03 ाकृ तक एवं मानव न मत पयटन उ पाद 36—51

    ख ड -2 : व वध उ पाद इकाई -04 दशना मक कलाएं 52—64 इकाई -05 भारतीय संगीत पर परा 65—78 इकाई -06 भारतीय शा ीय नृ य 79—93

    ख ड -3 : ऐ तहा सक प र शय इकाई- 07 ऐ तहा सक इमारत 94—108 इकाई -08 भारतीय सं हालय 109—121 इकाई -09 भारत का व य जीवन व अभयार य 122—136 इकाई -10 भारत क ह त कलाएं 137—149

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    पा य म अ भक पना स म त पा य म लेखन ीराम कुमार

    पयटन वषय वशेष , 55, य ूआकाशवाणी कालोनी, कोटा

    पा य म स पादन डॉ. राजेश कुमार यास पयटन वषय वशेष , जयपरु

    आवरण पृ ठ स जा डॉ. राजेश कुमार यास पयटन वषय वशेष , जयपरु

    साम ी उ पादन ो. पी.के. शमा नदेशक, पा यसाम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ी योगे गोयल सहायक उ पादन अ धकार पा यसाम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    डॉ .आर.वी. यास कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो. पी.के. शमा आचाय ( ब ध) एव ंसम वयक, पयटन अ ययन, नदेशक, वा ण य एव ं ब ध अ ययन व यापीठ वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    डॉ. राजेश कुमार यास पयटन वषय वशेष , जयपरु

    ो. संद प कुल े ठ सम वयक, भारतीय पयटन एव ं या ा ब ध सं थान गो व दपरु , वा लयर (म. .)

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    पयटन उ पाद प रचय :

    तुत पा य म का उ े य पयटन संबि धत वषय व तु उपल ध करवा कर व याथ को पयटन उ पाद क उ पाद क जानकार देना है । इस पा य म म पाचँ खंड म वभ त बीस इकाइयाँ है ।

    थम ख ड- पयटन उ पाद के अंतगत तीन इकाइय म पयटन क धारणा, पयटन क धारणा, पयटन उ पाद का वग करण एव ं ाकृ तक एव ंमानव न मत पयटन उ पाद का ववेचन कया गया है ।

    वतीय ख ड- व वध उ पाद म द त तीन इकाइयो म दशना मक कलाएं, भारतीय संगीत परंपरा एव ंभारतीय शा ीय नृ य के व वध पहलुओं का वणन कया गया है । ऐ तहा सक प र शय नामक ततृीय ख ड म यु त चार इकाइय म ऐ तहा सक इमारत, अभयार य तथा भारत क ह तकलाओं का वणन है ।

    चतथु ख ड – सां कृ तक पयटन म छ: इकाइयां ह जो मश: भारतीय इ तहास क परेखा, सां कृ तक वरासत, आ म यव था, मा यताएं, मेले और यौहार, यजंन आ द का

    वणन करती है । अि तम ख ड – भारतीय समुदाय का ववेचन करता है िजसम द गई चार इकाइयाँ

    वै दक धा मक समुदाय, भारत के धा मक समदुाय, भारत के धा मक समुदाय, उ सव एव ंपयटन के व वध प पर आधा रत है ।

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    TM-03

    ख ड – 1 : पयटन उ पाद इकाई – 01 पयटन क धारणा इकाई -02 पयटन उ पाद का वग करण इकाई -03 ाकृ तक एवं मानव न मत पयटन उ पाद

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    इकाई - 1 : पयटन क धारणा परेखा :

    1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 पयटन का अथ और धारणा 1.3 पयटन के बदलत े प 1.4 पयटन का वग करण

    1.4.1 घरेल ूपयटन 1.4.2 अ तरा य पयटन

    1.5 पयटन क ेरक शि तया ँ1.6 पयटन के अवयव 1.7 पयटन वकास म जनसहयोग 1.8 पयटन के सम चुनौ तया ँ

    1. हसंा और आतंक 2. लाल फ ताशाह 3. भखा रय क सम या 4. यातायात सु वधाएं 5. भोजन यव था 6. सौदेबाजी 7. टै सी या यातायात क ऊँची दर

    1.9 पयटन : एक सेवा उ योग 1.10 पयटन क वतमान दशा- दशा 1.11 साराशं 1.12 उपयोगी सा ह य 1.13 अ यास न

    1.0 उ े य पयटन, मनु य क एक वाभा वक एव ंआ दम वृ त है। एक ह थान पर रहत-ेरहत,े

    वह प रवतन क तलाश करता है और एक थान से दसूरे थान पर जाकर कुछ प रव न और नवीनता का एहसास करना चाहता है। इसके अलावा उसक अपनी आव यकताओं क पू त एक ह थान पर नह ं होने से वह रोजगार, यवसाय या अ य कारण से भी कुछ समय के लए व भ न थान का मण करता है। इस या म वह जहा ँभी जाता है कुछ समय नकालकर ाकृ तक, ऐ तहा सक, धा मक आ द मह वपणू थान पर जाकर अपने ान को बढ़ाने, यावलोकन करने आ द के मा यम से अपनी बनी बनाई दनचया म कुछ ण बचाकर

    मनोरंजन करना चाहता है। इ ह ंसब कारण से स दय से पयटन का सल सला चला आ रहा है। इसके भ न- भ न प रहे ह और समय-समय पर पयटन के ल य, प और तौर-तर के बदलत े

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    रहे ह। भारत म तीथाटन, क वपर त प रि थ तय के दौर म भी एक ल बी पर परा रह है। यह आज भी जार है।

    इस कार पयटन, एक वभावगत या है। मौज-म ती और मनोरंजन के लए अब पयटन क वृ त भी बढ़ने लगी है। नई-नई बात को जानने, िज ासा, पू त आ द के स दभ म भी व भ न थान पर लोग जात ेह।

    इस इकाई का उ े य यह है क आप इसके अ ययन के प चात ्पयटन क अवधारणा, इसके वकास एव ंअ य व वध प के बारे म प ट जानकार कर सक और पयटन क वतमान ज रत को समझ सक। इस इकाई के अ ययन से आप यह भी जान सकगे क कस कार पर परागत प से पयटन अभी भी जार ह और साथ ह इसका आधु नक प कस कार बदलकर एक नया व प ले चुका है। पयटन का वतमान प एक वक सत उ योग क ेणी म आ गया है। वै ा नक ग त, यातायात, सचंार आ द व भ न साधन के वकास ने पयटन को बहु त आसान भी बना दया है और इसके वकास म मह वपणू योग भी दया है।

    पयटन, अ त ाचीनकाल से चला आ रहा है। मनु य, स यता के आरि भक काल म रोजी-रोट या भोजन क तलाश म घमु कड़ जीवन यतीत करता था। एक थान से दसूरे थान पर जाने का यह सल सला, मनु य क आव यकता पू त का अंग था। उसके बाद कृ ष का वकास हुआ और मनु य ने घर बनाकर एक थान पर रहना शु कया। इससे पयटन के व प म प रवतन आया और इसक अवधारणा बदल ।

    आज आ थक, सामािजक, राजनै तक आ द लगभग सभी े म ाि तकार प रवतन हो गये ह और पयटन के े म भी भार वृ हु ई है और इसने एक बड़ ेउ योग का प धारण कर लया है। इ ह ं स दभ को लेकर पयटन के वकास क ल बी या ा के व भ न प क जानकार देने के लए आप स म हो सकगे और यह भी बता सकगे क कस कार पयटन के अथ बदले ह और यह अब न केवल तीथाटन, मनोरंजन आ द तक ह सी मत नह ंह बि क इसका े अ य त यापक हो गया है।

    5.1 तावना तेजी से वकास क ओर उ मखु उ योग अब रोजगार म वृ , राज व ाि त एव ंरा य

    एव ं े ीय वकास म योग देने वाला मह वपणू कारक बन गया है। यह एक ऐसा उ योग है जो व तार से फैला हुआ है और दु नया के ाचीनतम उ योग म से एक है। परुाने यगु म शासक या राजा-महाराजाओं वारा पयटन कया जाता था या खोज या धा मक उ े य क पू त के लए पयटन कया जाता था। तीथाटन का भी बहुत परुाना इ तहास है। गौतम बु ने बौ धम के स ा त के सार के लए पयटन कया, आ द शंकराचाय, आय आ द का ल य भी अपने स ा त का सार था। छुआनतु ंग, फाई यान, इब बतुवा, अल नूी आ द भी पयटक थे।

    यातायात एव ंसचंार के साधन के ाि तकार प रवतन से दु नया क दू रयाँ घट ह और लगता है क दु नयाँ समटकर एक व व गाँव बन गई है। अब तेजग त से हवा म वाययुान दौडने लगे ह और एक आदमी ल दन म ना ता करता है और दोपहर का खाना ययूाक जाकर लेता है और शाम कह ंऔर बताता है। संचार ाि त ने भी दु नया का न शा पलट दया है।

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    अब यि त अपनी िज ासा पू त के लए हमालय के यावलोकन या गोवा के समु तट का आन द लेने म स म है और धा मक, आ याि मक थल , ाकृ तक थल , मारक , मं दर ; दगु ऐ तहा सक थान आ द का मण करके अपनी ान- पपासा शा त करने म पयटन का सहारा लेने क शि त रखता है। अब मनोरंजन के साथ पयटन अ ययन, सव ण, खोज आ द कय के साथ अ ययन का जीव त एहसास भी कर सकता है। पयटन का ह चम कार है क अब दु नयाँ का ान ा त करना, पु तक तक सी मत नह ंरहा है। पयटन आज एक अ त मह वपणू सामािजक, आ थक, धा मक और राजनै तक ग त व ध बन गया है।

    पयटन ने मनु य क इ छाओं क पू त के अनसुार इसे स तुि ट दान करने का भी काय कया है। अब पयटन के चार ओर पयटन का स पणू ढाँचा तैयार हो गया है। अब यह स भव है क एक पयटक अपनी च, शैल , पस द एव ंअपनी बजट मता के अनसुार पयटन योजना बनाकर उसे पणू कर सकता है। उसके पास अनेक वक प मौजूद ह। लोग यि तगत प से भी तथा समूह के प म पयटन योजना बनाते ह और पयटन सं थाएं भी इस काय म

    लगी हु ई ह जो व भ न देश म पयटन काय म को अ जाम देती है। भारत भी दु नया का एक ऐसा देश है जहाँ पयटन उ योग ने हाल ह के वष म र तार

    पकड़ी है। यहा ँक अ त ाचीन सं कृ त और इ तहास, मारक, मं दर, दगु, ाकृ तक प र य क व वधता आ द अपार पयटन स भावनाएं पयटक के आकषण का के है। ले कन, यह च ताजनक ि थ त है क अपार पयटन च क स पदा के बावजूद भी पयटन क नयोिजत नी त एव ंस पणू यास के अभाव म व व पयटन म भारत क तुलना म थाईलड, हांगकांग, मले शया, द ण को रया जैसे कई छोटे देश पयटन क ि ट से काफ ग त कर चुके ह। ऐसे म भारतीय पयटन उ योग के लए वकास क बड़ी चुनौती है। इस दशा म आगे बढ़ने के लए पयटन के व वध े म केि त यास करने क ज रत है।

    देर आये, दु त आये। भारत सरकार ने 2002 म पयटन नी त तैयार क है िजसके तहत पयटन यवसाय एव ंउ योग को ग त दान करने और भारत क वशाल पयटन मता का समु चत वकास एव ंउपयोग के लए मुख पयटन थल और े जैसे सां कृ तक पयटन, समु तट य पयटन, नद , ामीण तर य पयटन, साहसी पयटन, पा रि थ तक य पयटन, उ सव , शॉ पगं आ द के वकास और सधुार यास क ग त देने का संक प दोहराया है। साथ ह समे कत-स कट पयटन के वकास को नई दशा देने का भी नणय कया है। साथ ह नजी े को भी सं कृ त एव ंपयटन वकास यास म स य भागीदार के लए तैयार करने क भी योजना बनाई गई है।

    1.2 पयटन का अथ और धारणा भारतीय स दभ म तो देशाटन, तीथाटन आ द प म पयटन क अ य त ाचीन, प ट

    और पर परागत धारणा चल आई ह ले कन पयटन का दायरा व ततृ होने क या म पि चमी या अ य अवधारणाएं पयटन के अथ एव ं अवधारणाओं को लेकर बदलती रह है। मनोरंजन या मौज-म ती के लए पयटन करना तो स प न लोग के लए स भव रहा है और आव यकताओं या धा मक भाव से े रत होकर देशाटन, तीथाटन या पयटन आम आदमी क वृ त रह है। भारत म तीथाटन को धा मक या माना गया है और देश के चार कोन म

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    ि थत चार महातीथ क या ा के बाद ह जीवन क साथकता मानी गई है। अ य त वषम प रि थ तय म भी यह पर परा जार रह है। भारत म केवल स प न या उ च वग के लए ह पयटन आमतौर से मनोरंजन एव ंआन द ाि त का ज रया नह ं ह। आम लोग के लए भी धा मक ि ट के तीथाटन के प म पयटन क मुखता है।

    अं ेजी म पयटन को 'टू र म' कहत ेह। यह ले टन भाषा का श द है जो मनु य क इस वृ त क ओर संकेत करता है क वह अनजान जगह के बारे म जानने का इ छुक रहता है,

    अनजान थान या चीज क खोज करने, आ चयजनक एव ंनये थान को देखने, पयावरण प रव तत करने और नये अनभुव ा त करने क दशा म एक ज मजात या आ त रक िज ासा लए होता है। इसी िज ासा पू त के य न से पयटन को ग त मल है। यह धारणा 12-13वीं सद क है। 17वीं सद म पयटन को अथ एक थान से दसूरे थान या े का मण करके व भ न थान का अवलोकन करने तक सी मत हो गया। इसका यह अथ भी बताया गया है क एक यि त अपने देश के बाहर 24 घ टे या अ धक मण करे तो वह पयटन है ले कन यह सह अथ नह ं य क पयटक के मण के ल य भ न- भ न होत ेह और इसके लए वे वदेश या वदेश कह ंभी घमूने जां सकत ेह और इसक समय सीमा म भी प रवतन हो सकत ेह।

    पयटन क व भ न प रभाषाओं पर ि ट डाले तो यह प ट होता है क जब कोई यि त कसी थान से दसूरे थान या े म घमूने का कोई अ पाका लन ल य लेकर जाता है तो वह पयटक कहलाता है। व व यापार संगठन के अनसुार पयटन म लोग क वे ग त व धया ँशा मल ह जो अपने थायी पयावरण से यवसाय या मनोरंजन या आराम के लए कसी अ य थान या पयावरण म एक साल से अ धक तक लगातार नह ंरहता है। पयटन देश म हो तो वह

    घरेल ूपयटन कहलाता है और वदेश म अ तरा य या वदेशी पयटन कहलाता है

    1.3 पयटन के बदलते प जैसा क बताया जा चुका है क एक कार क वातावरण म रहत-ेरहत ेमनु य ऊब जाता

    है। यह कारण है क मनु य और पश,ु प ी दोन ह कुछ समय या काफ समय के लए बने बनाये अपने आवास और माहौल से दरू कह ं कुछ बदलाव के लए जात ेह। प ी भी वृ क डा लय से सुबह-सुबह नीले आकाश क ऊँचाईय को छूने के लए उड़ान भरने लगत े ह। इस कार यह सम त ाणी-जगत क वाभा वक वृ त है क वह एक थान से दसूरे थान का मण करत ेह।

    मनु य का इस मण के पीछे कोई सामािजक, राजनै तक, सां कृ तक या धा मक ल य हो सकता है। ल य जो भी ह , मण या पयटन का चलन एक अ य त ाचीन पर परा है। ार भ म पयटन, एक यि तगत इ छा से े रत एक सरल या थी। उस काल म केरल

    मनोरंजन या आराम के ण बताने का यह ज रया नह ंथा। आमतौर म ारि भक दौर म पयटक कोई यापार होता था जो एक देश क व तुएं दसूरे देश म बेचने के लए या ा करता था या कोई तीथया ी होता था जो धा मक थल पर अपनी आ था क पू त के लए जाता था। कुछ पयटक अपनी ान- पपासा परू करने या शोध का ल य लेकर पयटन करत ेथे तो कुछ लोग नये देश या थान क खोज के लए समु माग से या पदैल या ाऐं करत ेथे। यापार और वा ण य भी इनम सवा धक ेरक शि त होती थी जो यि त को दरू-दराज के देश या थान क या ा

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    करने को बढ़ावा देती है इससे यह प ट है क चाहे थलचर ह या जानवर या वाय ुम उड़ान भरने वाले प ी, सभी थान प रवतन एक नये अनभुव एव ंएहसास क ती त के लए लाला यत रहत ेआये ह।

    इसके अ त र त मनु य क िज ासा वृ त भी पयटन क प रपाट के पीछे एक बड़ा कारण रहा मनु य नई-नई बात जानने और नये-नये थान को देखने तथा नये अनभुव को ा त करने का सदैव से रहा है। इस लए अपने ान को यापक बनाने एव ंअनभुव को व तार देने के लए भी वह पयटन म सदा रहा है। हर देश के र त- रवाज, सं कृ त, जलवाय,ु रहन-सहन के तर के भ न- भ न होत े ह। मनु य इ छा रह है क इस व वध के अनभुव का रोमाचं ा त करने के लए वह घमू और थान- थान पर

    समय के साथ अनेक ए तहा सक उलटफेर हु ए। व भ न सं कृ तय का वकास हुआ। कला, ह त थाप य, श प आ द का वकास हुआ। मनु य क अ भ च इन व भ नताओं क ओर झुक और व वधता के रंग से ब होने के लए पयटन का सहारा लेने लगा। आधु नक यगु तक आत-ेआत ेतो एकदम बदल गई। यातायात एव ंसंचार साधन ने ाि त मचा द और दु नयाँ समटने लगी। मनु य के ान- ाि त, अनभुव ाि त के साथ-साथ पयटन मौज-म ती का एक ज रया बन गया। धा मक या ान तक पयटन का े अ य त यापक हो गया। आज भी चीनी या ी हुआंगतु ंग आ द के वणन उन दन क ताजा करत ेह और पयटन के ारि भक काल का मरण करात ेह। यह भी पता चलता है क कस वा को- डगामा, कोल बस, अलै जे डर, माक पोलो ने कन क ठनाईय से साहसपणू या ाय क । अब तो आराम और खु शया ँबटोरने का साधन बन गया है।

    अब पहले के पयटन के साधन जैसे मील पदैल या ा, घोड़ , टटूओं, समु म नाव , ऊँट आ द से कर तो आ चयजनक प रवतन हो गये। तुग त से चलने वाल रेलगा ड़या,ँ बस, वाययुान, जलयान आ द साधन मौजूद ह और परुाने साधन केवल दगुम पहाड़ी थल या रे ग तान म ह काम आत ेह।

    1.4 पयटन का वग करण पयटन का इतना व तार हो गया है क अब इसे कई वग म वभािजत कया जा

    सकता है। इनम इस कार ह –

    1.4.1 धरेल ुपयटन

    जब कोई यि त अपने ह देश के व भ न थान पर पयटन के लए जाता है तो यह घरेल ुपयटन ेणी म आता है। इसे आ त रक पयटन भी कह सकत ेह। यह रा य तर का पयटन है।

    1.4.2 अ तरा य पयटन

    जब लोग अपने देश को छोड़ दु नयाँ के कसी अ य देश या देश का पयटन करत ेहै तो यह अ तरा य पयटन कहलाता है।

    भारतीय स दभ म घरेल ुएव ं वदेशी पयटन, दोन के लए ह वपलु स भावनाऐं ह। इसका कारण है क यहा ँक सं कृ त अ य त ाचीन, उ नत और अनेक व वधताओं से भरपरू

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    है। यहा ँअनेक धम , स दाय और मत के लोग एक साथ रहत ेह जैसे बौ , जैन, स ख, ईसाई, मुसलमान, ह द ुसाथ यहाँ महल , दगु , ए तहा सक इमारत का खजाना है। यहा ँसमृ ह त श प और लोक कलाऐं ह। शा ीय क समृ पर पराएं ह। व य अभयार य एव ं व य जीवन है और व भ न कार क भौगो लक ि थ तया ँहै सब कुछ इतना रोमाचंक है क दु नयाँ के भ न- भ न चय वाले सैला नय के लए यह एक मह वपणू थल बन गया है।

    देश म यातायात और संचार के साधन भी बढ़ ह। होटल और रे तरांओं के व भ न कार म वृ हु ई पयटक थल तक रेल, बस, वाययुान आ द सेवाओं का भी वकास हुआ है।

    ले कन देर से पयटन नी त के नि चत होने और पयटन को वशेष ाथ मकता नह ं देने के कारण देश के अ य उ यम क तरह इसके वकास स तोषजनक नह ंमाना जा सकता है। अभी भी देश म घरेल ुएव ं वदेशी पयटन म वृ कये जाने एव ंउ योग को र तार एव ं दशा दान करने के भार य न एव ंएक ढ़ संक प क ज रत है।

    5.5 पयटन क ेरक शि तयाँ व भ न कार क पस द एव ंउ े य को लेकर पयटन पर जाने वाले लोग क ेरक

    शि तया ँभी भ न- भ न होती है। हर पयटक क अपनी ि ट और ल य होता है जो उसे थान वशेष या देश वशेष के पयटन के लए रेणा देता है।

    इस तरह केवल सैर-सपाटे के लए जाना पयटन कहलाता है तो कसी ल य को लेकर जाना देशाटन धा मक आ था से तीथ क सैर करना तीथाटन है। ले कन पयटन को इस कार अलग प म बाँटना क ठन है य क पयटन पर जाने के ल य एक से अ धक भी हो सकत ेह। यह िज ासापू त के लए भी हो सकता मा आन द के लए भी या दोन के लए भी। कसी यावसा यक काय के दौरान भी इस कार पयटन पर जा सकता है। कामकाज के ण म बचे समय का इस तरह उपयोग भी कया जाता है। पयटन अ त ाचीन रहा है और समय-समय पर इसम भार प रवतन आते रहे ह। इस कारण से पयटन के कार और इसके कारण भी बदलत ेरहे ह। इसक ेरक शि तय म भी अनेक भ नताएं ह। दरअसल, पयटन एक अ थाई समय धारणा है। कुछ लोग के अनसुार पयटन को सामािजक, सां कृ तक स मेलन से स बि धत या धा मक पयटन कार म वभािजत मानते ह। इनम भी सां कृ तक ि ट या धा मक उ े य के लेकर कये जाने वाले पयटन दबा रहता है। लोग दु नयाँ के ाचीन प एव ंसमृ पर पराओं को आज भी जीव त प म देखना चाहत ेहै इस ि ट से आने वाले पयटक के लए भारत एक अ य त रोमाचंक देश ह। यहा ँ ाचीन सं कृ त के माण व वधता और बहु लता का कोई जवाब नह ंहै। धा मक पयटन क जड़ भी भारतीय जीवन म इतनी गहर है वे पयटक के लए व मयकार होती ह।

    5.6 पयटन के अवयव पयटन अपने आप म कोई पणू वधा नह ंहै। इसके साथ कई त व और अवयव जड़ु ेह

    जो इसे स पणूता है। एक पयटक कसी थान वशेष के लए पयटन के लए जाना चाहता है अथात ् अपना ल य नधा रत करता है उसे वहा ँ उपल ध समय के अनसुार पहु ँचने के लए उपयु त यातायात के साधन क आव यकता है। पयटन थल पर घमूने के बाद शाम को उसे ठहरने और खाने के लए भी आरामदायक और मता व प कोई होटल, लॉज या थान क

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    ज रत पड़ती है। इस कार पयटन थल या पयटन से यातायात आवास यव था का नकट का र ता होता है।

    कई थान अपने आप म इतने मह वपणू और आकषण के होते ह क वहाँ यातायात के साधन , भोजन आ द क उपयु त यव थाओं का वकास न होने के बावजूद भी पयटक क उन थान के लए अ धक दलच पी होती है और अनेक पयटक इस क ठनाई को जानते हु ए भी ऐसे थान पर पयटन के लए जाते है।

    वतमान यगु म जो देश अपने यहा ँपयटन का वकास करने म संल न ह, उनका यान पयटन क देखभाल करके उनको बेहतर तर क से तुत करने, यातायात एव ंआवास यव थाओं को सुधारने अ धक च लेने लगे ह। उन सबको हम ढाँचागत सु वधाएं कह सकत े ह। य द पयटन को बढ़ाना है तो उसक ढाँचागत सु वधाओं एव ंबेहतर बधंन पर भी जोर देना आव यक है। पयटन वकास के उपाय

    पयटन का वकास करने का अथ है क उन सब त व क ओर यान देना जो पयटन यवसाय म ह। सबसे पहले पयटन मह व के थल क मर मत, देखभाल और उ चत प म तुत करने का यास है। बार देखा गया क एक अ य त मह वपणू पयटन- थल पर पयटक

    क आवक तो बहु त रहती थी य क उनके सौ दय और श प पयटक को खींचकर लाने क बेहद मता बनाये हु ए था। ले कन आसपास के लोग वहा ँकचरा डालत ेथे और ग दगी करत ेथे। पास ह झा ड़याँ और आने-जाने क परेशा नया ँउठानी पड़ती थी। सह यव था आ द का अभाव था। कहने का ता पय है क ए तहा सक एव ंसां कृ तक मह व आ द के पयटन के आसपास सफाई एव ं देखरेख पर यान देना आव यक है। इसके साथ ह व भ न थान से आने वाले पयटक के लए यातायात के सुगम साधन होने चा हए। उनक सुर ा क भी यव था क जानी चा हए य क उनके लए अनेक समाजकंटक सदैव खतरा बने रहत ेह।

    पयटक के लए जल, भोजन, आवास आ द क यव थाओं म भी गणुा मक सुधार कये जाने आव यक ह। इन कारक को सदैव यान म रखना चा हए, पयटन म इजाफे के लए खुशनमुा मौसम, सु दर एव ं या माहौल, ऐ तहा सक और सां कृ तक कारक, पयटन थल पर पहु ँचने के लए अ छ सड़क और माग, यातायात और सुर ा क यव था, ठहरने या आवास क यव था और उन सबके साथ ह आ त य क भावनाओं से वातावरण, पयटक क अहम ्ज रत होती ह।

    पयटक के लए गाईडस ्भी श त होने चा हए जो व भ न देश के पयटक क भाषा का ान रखत ेह। यह भी देखने म आया है क अनेक मामल म पयटक के लए थान वशेष के ह त श प आ द अनेक व तओंु क खर द म भी उनके साथ ठगी क जाती है। ऐसे म सरकार तर पर गाई स के यवहार एव ं थानीय यापा रय या बचौल या लपक क कारगजुा रय पर

    कड़ी नजर रखनी चा हए। पयटक क सुर ा करना अ त थ के प म उनका स कार करत ेसमय उनके साथ होने वाले कसी भी दु यवहार को स ती से रोकने उपाय करना, सरकार का पहला दा य व है।

    पयटन उ योग के वकास क या म यहा ँ व लेषण कये गये मु पर गभंीरता से यान देने के साथ-साथ यह भी सोचना होगा क ाकृ तक, सां कृ तक और सामािजक स दभ म

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    देश म अपार पयटन वकास क स भावनाएं ह। यह भी शभु संकेत है क व तीय व वयु के बाद से लेकर अब तक के पयटक क सं या म नर तर वृ के आंकड़ पर ि ट डाल तो यह प ट होगा क यह सल सला और आगे जायेगा। देश म बाक पयटन वाह को आक षत करने

    क मता है तो देश के आ थक, सामािजक वकास को ग त देने के लये पयटन स भावनाओं के पणू उपयोग क कारगर नी त के साथ कारगर या वयन कया जाना चा हए।

    दरअसल, सम त पयटन सु वधाओं के साथ देश म आ त यपणू पयटन वातावरण क रचना करना भी है ता क यहा ँआने वाला हर पयटक स तु ट होकर जाये और देश क बेहतर छ व का सार करे।

    1.7 पयटन वकास म जनसहयोग पयटन का दायरा अ य त व तार वाला है। एक पयटक का सामना न केवल यातायात,

    आवास या थल पर कायरत कमचा रय या गाई स से होता है बि क वे अपनी या ा क अव ध म अनेक लोग स पक म आत ेह और इन सब लोग का यवहार, आचरण क छाप उनके मन पर अं कत होती है। देश के वगत और सु दरता से भरपरू ाकृ तक, सां कृ तक एव ंसामािजक पयावरण क मृ तयाँ लेकर वे लौटत े इस लए पयटन से जड़ु े हर यि त एव ंसमाज के हर यि त का यह दा य व है क उसका यवहार पयटक के त नेह और शाल नता से पणू हो और दा य वपणू भी।

    इस कार पयटक क सु वधाओं म सधुार और वृ के साथ य द उ ह एक मै ीपणू एव ंपा रवा रक वातावरण मले तो उनक पयटन या ा और अ धक सुखद हो सकती है। पयटन अपनी या ा पणू करत ेसमय कसी देश वशेष या े क या ा पनूः करने क भावना लेकर जाये तो इसका अथ होगा क उस देश क पयटन यव था बेहतर है। एक स तु ट पयटक इस कार पयटन वकास के लए स पदा है, एक ेरक है।

    कई देश म ऐसे होता है क वे अपने देश म चार- सार के अ भयान चलाकर देश के लोग को इस के लए े रत करत ेह क कस कार आम नाग रक का पयटक के त नेह, वन तापणू यवहार और सहायता करने क वृ त का असर पयटन वकास म सहायक हो सकता है और पयटन उ योग को ग त देने से देश को रोजगार वृ , आ थक ग त म यह उ योग सहायक हो सकता है।

    लोग को यह महसूस कराना चा हए क पयटन वकास का उनम घ न ठ स ब ध है य क अ य से देश के यापार और आ थक ग त व धय म योग देता है। इससे देश के होटल यवसाय, ह त श प, यातायात आ द अनेक यवसाय को लाभ होता है। य य प भारत म ह अपने नगर को साफ-सुथरा रखने और पयटक को 'अ त थ देवो भव:' या 'पधारो हारे देश’ जैसे नार के साथ भावा मक पश देने आ द के अ भयान कराये जात ेह। ले कन यावहा रक तर पर अभी भारतीय पयटन को इस दशा म बहु त कुछ यास क ज रत है।

    पयटक का भाव-भीना वागत करने के लए रे वे टेशन , बस टडस ्या हवाईअ ड आ द के पास लगाना और उनक सूचनाओं एव ंमागदशन के लए पयटक सचूना के खोलना आ द उपाय शंसनीय ह। पयटक के लए अ तरा य हवाईअ ड पर वीजा आ द क

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    औपचा रकताओं म भी सधुार कये गये ह। यह भी तेजी पकड़ रहा है क पयटक के लए औपचा रकताएं यनूतम ह ता क उ ह परेशानी से बचाया जाये।

    पयटन वकास को ग त देने के लए एक जागृ त आई है और यह अनभुव कया गया है क भारत म पयटन उ योग के वकास के लए भ व य उ वल है ले कन आज का यगु हर े म त प ा का है। हर देश अ धक से अ धक सं या म अपने यहा ँपयटक को आक षत करने के उपाय करके इस उ योग से अ धकतम लाभ म लगा है। ऐसे म भारत को भी अपने पयटन उ योग के वकास पर वशेष यान देना होगा।

    1.8 पयटन के सम चुनौ तयाँ जैसा क बताया जा चुका है क यह यगु सम-भावनाओं का भी है तो इस यगु म

    त प ा भी है और इसक चुनौ तया ँभी कम नह ंह। इस लए कसी भी े म वकास को ग त देने के उपाय पर वचार करने के साथ-साथ उस े क सम याओं और चुनौ तय को भी समझना चा हए और उनका मुकाबला करने क पया त तयैार भी होनी चा हए। पयटन उ योग क भी कई क ठनाईया ँह। 1. हसंा और आतकंवाद - पयटन क चुनौ तय म हसंा और आतंकवाद मुख बाधाएं है। दु नयाँ के कई देश म हसंा और आतंकवाद ने पयटन उ योग को चौपट कया है। भारत म भी इसका भाव पड़ा है। क मीर क धरती को वग क सं ा द गई है और यह अपने रोमाचंक, ाकृ तक य , ह त श प एव ंसं कृ त के कारण पयटक क पस द रहा है। ले कन पछले

    कुछ साल से जब से आतंक और हसंा ने अपने पाँव पसारे ह, यह वग अपनी छ व खोने लगा है। पयटक तो दरू क बात है, यहा ँके मूल नवासी हजार पं डत भी हसंा के शकार होने के कारण अपने घरबार छोड़कर पलायन कर गये ह। पयटक को बधंक बनाने एव ंआतंकवा दय वारा मार दये जाने क घटनाएं भी हु ई है। इन सबके भाव से अनेक वदेशी पयटक जो

    क मीर का मण करत ेथे, वहा ँक वा दय एव ंवहा ँक झील म पयटन का आन द लेत ेथे और वहा ँकुछ समय ठहरकर क मीर के सौ दय का अवलोकन करत ेथे, उ ह ने अब क मीर क हसंा, भय और आतंकवाद के कारण अपना ख बदल लया है और पयटन यवसाय चौपट हो गया है।

    इससे अनेक क मीर वा सय क आ थक ि थ त बगड़ी है। और उनके यवसाय ख म ाय: हो गये ह। य य प भारत सरकार नर तर क मीर से आतंक का सफाया करने म जुट ह

    और उसके कुछ अ छे प रणाम आये ह ले कन वदेशी मु ा अजन एव ंपयटन से क मीर को होने वाल आय म भार गरावट दज क गई है। 1981 तक तो हालात इतने खराब नह ंथे और क मीर जाने वाले पयटक क उस समय 7.22 लाख सं या थी। ले कन 1989 के बाद पासा पलट गया और यह सं या घटकर 5.77 लाख पर नीचे आ गई। यहा ँतक क पयटक के घटने क र तार इतनी तेज हु ई क केवल 5-6 साल अथात ्1995-96 तक आते-आते क मीर जाने वाले पयटक क सं या मा 9300 रह गई। इसके बाद यह सं या 3000 तक आ गई। इस कार पयटन वकास क सबसे बड़ी चुनौती हसंा एव ंआतंक का वातावरण है।

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    2. लालफ ताशाह - भारत आने वाले वदेशी पयटक व भ न भाषा-भाषी होते ह और उ ह सबसे पहले इमी शेन एव ंक टम वभाग क जाँच का सामना करना पड़ता है। इसम आने वाल क ठनाईय को दरू करने एव ं या म सुधार के उपाय भी ज र है। लालफ ताशाह क सम या को सुधारना आव यक है। 3. भखा रय क सम या - भारत म वशेषकर पयटन- थल , बाजार , पयटक के ठहरने के थान आ द पर भखा रय क भीड़ लग जाती है जो उनके लए भार परेशा नय का सबब तो है ह साथ ह देश क छ व बगड़ने का काम भी करता है। इससे पयटक परेशान होकर कई बार अपनी खर द का काय रोक भी देते ह। इस लए काननू एव ंपु लस के वारा इस बरुाई को दरू करने के उपाय कये जाने चा हए।

    पयटक के लए मु ा के प रवतन क भी सम या होती है। य य प होटलस ्इसम योग देते ह ले कन इसम और सुधार क गुजंायश है। 4. यातायात सु वधाएं - पयटक को रोड, रेल एव ंवाय ुइन तीन तरह के यातायात साधन क आव यकता रहती है। पयटक इस लए दरू-दराज से आकर पसैा खच करत ेह य क वे कम से कम समय म या ा करके ग त य थान पर जाना चाहत ेह और उसक पयटन या ा को सुखद एव ं आरामदायक बनाना चाहत े ह। इस लए यातायात के इन साधन म सुधार एव ंसु वधाएं बढ़ाने का काय पयटक क ज रत के अनु प कया जाना चा हए। कई या ी अपनी कार से या ा करत ेह। इ ह कसी चैक-पो ट या अ य जाचँ या म भी कई बार असु वधाएं होती ह। अत: बेहतर यातायात मुहैया कराना भी पयटन े का बड़ा दा य व है। 5. भोजन यव था - िजस कार घर म अ त थ के आने पर समु चत खान-पान क यव था पर यान दया जाता है। ठ क इसी कार वदे शय या देशी पयटक को गणुवतापणू एव ंउ चत दर पर अ छा भोजन उपल ध होना चा हए। इसके लए भोजन क गणुव ता एव ंसेवाओं को लेकर पयटक को होने वाल असु वधाओं को दरू करना और उ ह भारतीय यजंन का वाद उपल ध कराना भी एक क ठन काम है िजसके सु बधंन क यव था पर यान दया जाना चा हए। ट स ्को रोकना - कई बार देखा गया है क सेवा-शु क अथात ्स वस-चाजज और होट स आ द म टपस ् देने का रवाज भी पयटक क परेशानी का कारण बनता है। इस कार क यव थाओं पर जापान अमे रका आ द म तो काननून पाब द है। भारत म भी पयटक क इस कार क छोट -छोट परेशा नयो को दरू कया जाना ज र है।

    6. सौदेबाजी - पयटक क च दशनीय थल एव ंपयटन थल का मण करने के साथ-साथ कसी थान वशेष के ह त श प, कार गर क व तुओं, अपने प रजन के लए उपहार खर दने आ द म भी च होती है। ले कन, यह देखा गया है क इस कार के बाजार पर सरकार का नय ण न होने या सरकार उपे ा के कारण सौदेबाजी, एक कार क ठगी या ऊँचे दाम पर पयटक को माल बेचने क वृ त होती है। यह धोखेबाजी और सौदेबाजी भी एक बड़ी चुनौती है पयटक म देश क यव था के त गलत भाव डालती है। अत: इसके लए ऐसी व तुओं क क मत नि चत क जानी चा हए और सौदेबाजी पर पाब द लगानी चा हए।

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    7. टै सी या यातायात क ऊँची दर - पयटक वारा मण या थानीय तर पर टै सी या अ य साधन का उपयोग कया जाता है। ऐसे म, उ ह इन साधन वारा ल जाने वाल दर का ठ क पता नह ंहोता और इनसे अ धक वसूल कया जाता है। यह भी एक कार क ठगी है। इसका समु चत नयमन व नय ण करना भी पयटन क चुनौती है।

    इन चुनौ तय का सामना करके समु चत प से पयटन उ योग को आगे बढ़ाने के लए जन-जागृ त को बढ़ाना भी ज र है और पयटन को सुचा प से चलाने के लए ठोस नी त का पालन भी आव यक है।

    1.9 पयटन : एक सेवा उ योग अपने ारि भक काल म पयटन, एक वमेव सचंा लत और असंग ठत काय रहा है।

    ले कन य - य इसका वकास होता गया, पयटन स ब धी ढाँचागत सु वधाओं के वकास क आव यकता बढती गई। इस यगु म तो यह एक ढाँचागत सेवा-उ योग या स वस इ ड का प ले चुका है। पयटन के साथ पयटन थल क देखरेख, यातायात सु वधाएं, ठहरने, खाने-पीने आ द क व भ न आव यकताएं भी जुड़ गई ह और ढाँचागत सु वधाओं को बेहतर बनाने के साथ-साथ पयटन एक ऐसा उ पाद बन गया है िजसके वपणन या माक टगं क भी आव यकता है। िजस कार कसी भी उ योग और यवसाय के संचालन के लए ढाँचागत सु वधाएं जुटाना, उ पाद

    तैयार करना, उनका वपणन करना आ द याएं और बधंन क ज रत होती है, ठ क वसेै ह पयटन एक लाभकार उ योग है िजसके ठ क बधंन म उ योग से स बि धत सभी उपाय करने अ नवाय बन गये ह। लगातार पयटन थल को सधुारने और देखभाल के साथ पयटन से जड़ुी सेवाओं को चु त-दु त करके ह इस उ योग के वकास को ग तशील बनाना स भव हो सकता है।

    पयटन, ऐसा उ पाद या ोड ट है िजसम कई अ य सेवा उ यम का योग सि म लत है। इससे अ भ न प से जड़ु ेउप-उ पाद या सब- ोड स म टूर ऑपरेटस एव ं ेवल एजेि सयॉ,ं होटलस,् केट रगं, यातायात के सम त साधक, मनोरंजन एव ंह त श प आ द के यवसाई आ द के सि म लत ह। पयटन का व प लघ ुउ योग का भी है और बड़ ेउ योग का भी। जैसा क चचा क जा चुक है इस उ योग का आवास, यातायात, आ त य सेवाओं, सचंार नेटवक, गाईड सु वधाओं आ द के साथ घ न ठ स ब ध ह। इस लए पयटन वकास तभी स भव है जब क इन सब उ योग का भी वकास हो और ये अपनी-अपनी भू मका और दा य व का ठ क नवहन कर। आज का पयटन इ ह ंअ तर-स ब ध से यु त ढाँचे पर खड़ा है। हर सेवा उ योग क अह मयत को समझकर उसके व प को वतमान क आव यकताओं से जोड़कर ह पयटन को भावपणू दशा देना मुम कन है। पयटक क सु वधा को संयोिजत प से मुखता देकर ह ये सेवा-उ योग अपने काम और पयटन ल य क पू त म सफल हो सकत ेह।

    1.10 पयटन क वतमान दशा- दशा पयटन का े हर आय,ु हर आ थक वग एव ं हर दज के लोग क आव यकता है।

    इसके पीछे तो ेरक शि तया ँ है उनके कारण देश- वदेश के लोग पयटन या ाऐ करत ेह और स दय से संचा लत पयटन ने आधु नक यगु म तो व तार से फैले हु ए एक वशाल उ योग का

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    प धारण कर लया है। दु नयाँ म कई देश का तो पयटन उ योग ह आ थक आधार बन गया हे। सवा धक आ थक लाभ जैसे े ीय वकास, वदेशी मु ा अजन, यापार एव ंयातायात जैसे ढाँचागत वकास, जीवन तर म सधुार, ह त श प एव ंपर परागत लोककलाओं के वकास आ द म मह वपणू योग देने वाला एक कारक बन गया है। संचार, यातायात, आवास सु वधाओं एव ंउपभो ता सेवाओं के व तार म भी यह सहायक स हुआ है। इस कार पयटन का यापक भाव पड़ता है और यह देश क छ व को बेहतर बनाने म भी सहायक होता है।

    इस कार व भ न सेवाओं के साथ पयटन एक ऐसा उ योग है िजसका वकास करने म हर देश य नशील है। पयटन का सीधा असर देश के होट स, रे तरा,ं यातायात, खान-पान, बाजार पर देखा जा सकता है। इसके अलावा पयटन से अ य प से भी कई लोग को लाभ होता है। ा त आंकड़ को देख तो ात होगा क जहा ँसो टवेयर उ योग से भारत को सालाना कुल वदेशी मु ा क बचत 4,500 करोड़ . होती है, वह ंपयटन से होने वाल वदेशी मु ा क आय लगभग 12,000 करोड़ . वा षक है। इस कार देश क आ थक एव ंसामािजक ग त म मह वपणू ह सेदार के कारण पयटन का दजा बहु त बढ़ गया है।

    दु नयाँ के कई देश म आय अ धक होने के कारण वे बहु त स प न ह। इस लए वे अपनी कामकाज क य त िज दगी म कुछ ण आराम के बताने या मनोरंजन एव ंप रवतन के लए पयटन या ाएं करत ेहै। इससे अ धक आय पदैा करने वाले देश से कम आय वाले देश क और कुछ आय का थाना तरण होता है। ले कन यह या व भ न सेवाओं एव ं े के मा यम से स प न होती है। इस कारण इसका य एव ंतुर त आ थक भाव महसूस नह ं कया जाता है। क मीर या अ य ऐसे थान पर जहा ँपयटन कभी ऊँचाईय पर या ले कन आज वह दयनीय ि थ त म पहु ँच गया है, वहा ँके दकुानदार , शि पय , होटल या शकारा या यातायात के े म कायरत लोग से पयटन के भाव पर बात क जाये, तो यह प ट होगा क आ थक ि ट से पयटन कतना मह वपणू है।

    पयटन न केवल आ थक समृ एव ंरोजगार वृ म सहायक है बि क यापार, सेवाओं आ द कई े म अपना योगदान देता है। यहा ँकारण है क पयटन उ योग वकासो मखु है और इसका मह व नर तर अनभुव कया जा रहा है। भारत म इस समय पयटन 4,000 करोड़ . का उ योग है िजसम 5.8 म लयन लोग को रोजगार ा त है। साथ ह बना कोई सामान नयात कये, केवल सेवाओं के मा यम से वदेशी मु ा का भी यह अ छा ोत है। इन कारण से पयटन क दशा और दशा उ वल भ व य लए हु ए है य य प अभी बहु त कुछ य न करने बाक ह।

    पयटन के आ थक और सामािजक लाभ तो ह ह ले कन सां कृ तक वरासत क देखभाल एव ंसंव न म भी सहायक है य क पयटन के लाभदायक काय से जड़ुने के बाद कसी भी ऐ तहा सक एव ंसां कृ तक मह व के थल के त उदासीनता क वृ त ख म होती है और उसक सार स भाल के कुछ य न भी होते ह। व भ न देश के लोग के पयटन से देश के बीच बेहतर समझ और स पक बनत ेह और राजनै तक स ब ध म भी सधुार होता है। यह सां कृ तक आदान- दान एव ंअ तरा य स ब धो के लहाज से भी लाभ द है।

    अमे रक लेखक माक वेन के वचार है क भारत, दु नयाँ का एक ऐसा देश है िजसम हर वग के लोग क कभी ख म न होने वाल च हो सकती है चाहे वह कसान हो, बु मान हो

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    या साधारण यि त, गर ब हो या स प न, िजसने इसक एक झलक देख ल , वह उसे अपने दल म बसा लेता है और कसी भी हाल म उसे व मतृ नह ं करता ह। इसी कार म समूलर ने कहा है क दु नयाँ म कह ंमनु य का मि त क सवा धक हुआ है तो तो वह भारत है। समृ , शि त, सौ दय और ाकृ तक छटा म अ वतीय, भारत को उसने धरती पर वग बताया है।

    बहरहाल भारत क ाचीन सां कृ तक वशेषताओं, अपार सां कृ तक धरोहर, व वधतापणू जनजीवन, रंग भरे उ सव और यौहार , लोकजीवन आ द के साथ पयटन के त बदले सरकार ि टकोण एव ंअ य धारणाओं म प रवतन के कारण पयटन उ योग के वकास क स मावनाएं

    बढ़ है और लगता है आने वाले समय म इन उपाय के कारण भारत क पयटन भागीदार म इजाफा होगा।

    1.11 सारांश भारतीय स दभ म पयटन पर एक ि ट डाल तो यह प ट है क भारत पयटन वकास

    क अनेक स भावनाओं वाला देश है। यहा ँ र त- रवाज और मल , यौहार , उ सव क ल बी ृंखला साल भर जार रहती है। व वधतापणू सां कृ तक और धा मक वरासत का भी भारत धनी

    है। वशेष बात यह है क हर च के पयटक के लए यहा ंअपार खजाना है। यह कहना भी गलत नह ं होगा क भारतीय संगीत म एक जाद ूहै और यहा ँके नृ य म एक लय है जो कसी का भी मन मोह ले। ाचीन इमारत, लोकगीत, संगीत-वा य क घनु, सरल सीधे एव ंशाि त, जनजीवन, झील, पवत, न दया,ँ अभयार य, व य जीवन आ द अनेक ऐसे प ह जो हर क म के पयटक क भारत या ा को रोमांचक एव ंसाथक बना दे।

    भारत के कई चेहरे ह और हर चेहरा मोहक है। इसम एक ऐसा आकषण है जो कभी ख म नह ं हो। केरल और गोवा के समु तट है, राज थान म जैसलमर के रेतीले ट ल क खामोशी और लोक ररंगीत क लहर ह, बहार म बौ धम के तीथ ह, महारा म बौ गफुाएं, उ तर देश म यागराज है, या- या सूचीब कर- व वधता का आलम ह कुछ ऐसा है क इसका फलक अ य त यापक है।

    इन सब के बावजूद, भारत म आधु नक अथ म पयटन वकास का काय आजाद के कुछ वष बाद शु हुआ। पि चमी देश ने अपने सामािजक एव ंआ थक लाभ के लए यह काम पहले ह शु कर दया था। भारत म पयटन के वकास म वल ब के ऐ तहा सक कारण भी रहे ह। वा तव म, भारत म पयटन ने 1960 के बाद संग ठत यास के प म ग त पकड़ी। एक बार एक पयटन वभाग के अ धकार से इस स दभ म पछूा गया तो उसका उ तर ह केपन के साथ था। उसका मत था क ''मौज, मजा और वदेशी मु ा” यहा ँपयटन का ल य है। ले कन यह पयटन ि ट से अप रप व उ तर है। दरअसल, भारत म पयटन का आधार, यहा ँका वभैवशाल इ तहास और सं कृ त है। भारत, जहा ँ ाचीनतम सां कृ तक धरोहर का खजाना है और एक समृ एव ंल बा इ तहास, वहा ँपयटन को इनसे अलग करके नह ं देखा जा सकता है। भारत, एक ऐसा देश जहा ँ हजार वदेशी आ मणकार आये, व वसं कये, अपनी स ता जमाई और यहा ँक सं कृ त को न ट करने का यास कया, वह आज भी अपनी स पणू व वधताओं, सभी जा तय , धम आ द के साथ सामंज यपणू शा त यवहार के साथ अ डग खड़ा है। कोई बात है क हजार साल से यह सां कृ तक धारा वाहमय है। कोई बात है क ह ती मटती नह ं हमार । इसी

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    वशेषता, ाकृ तक, भौगो लक, सामािजक, धा मक, सां कृ तक व वधता म एकता के कारण आज भी भारत, पयटक के लए एक आ चय बना हुआ है और इसके मोहक रंग उ ह यहा ँखींच लात ेह।

    भारत म आजाद से पवू 1945 म भी पयटन वकास के बारे म सोचा गया था ले कन व वयु ने इस वचार पर पणू वराम लगा दया। उस समय पयटन स भावनाओं का पता लगाने के लए सर जोहन सारजे ट कमट बनी थी। उस कमट को पयटन क कृ त एव ंभारत आने वाले वदेशी पयटक के बारे म समी ा करनी थी तथा पयटन वकास के लए ज र सु वधाए तैयार करने एव ंपयटक को आक षत करने के लए चार सार के तर के बताने के लए कहा गया था। इस कमट ने 1946 म अपनी रपोट तुत क ।

    उ त कमेट ने भारत म घरेल ु एव ं वदेशी पयटन को बढ़ावा देने क आव यकता तपा दत क तथा पयटन ो साहन से होने वाले राज व एव ंअ य फायद का िज कया। साथ

    ह पयटन वकास के लए अलग संगठन क रचना करने का भी सुझाव दया। साथ ह ढाँचागत सु वधाएं बढ़ाने एव ं चार सार क यहू-रचना के उपाय भी बताये।

    भारत क आजाद के बाद देश म सां कृ तक एव ंअ य कार क स भावनाएं भी थीं और साधन भी थे ले कन के तर कोई ऐसा पयटन संगठन नह ंथा जो पयटन को दशा और ग त दान करे। 1949 म टू र ट ा फक ाँच खोल गई। साज ट कमट क सफा रश के अनु प द ल , ब बई, म ास, कलक ता जैसे महानगर म पयटन शाखाएं खोल गई।

    1955-56 म टू र ट ा फक स भाग का व तार कया गया। टू र ट ा फक से शन, शास नक, चार, वतरण आ द शु कये गये। रा य तर पर पयटक सचूना के क थापना इस दशा म मह वपणू कदम था। 1955 के अ त तक देश म ऐसे 9 के हो गये।

    इसके बाद वदेश म भी सूबना कायालय खोले गये। 1958 म प रवहन मं ालय के अ तगत अलग से पयटन वकास खुला। इसके महा नदेशक एव ं नदेशक को पयटन वकास का काम स पा गया। 1967 म पहल बार अलग से पयटन मं ालय बना। इस कार आजाद के 18 साल बाद पयटन मं ालय और वभाग का अलग से वजूद बना।

    इस कार गत तीन चार दशक क अव ध म ह पयटन मं ालय, वभाग और रा य के पयटन वभाग का सार भी हुआ और भारत म पयटन को भी एक नई दशा द गई। इसके प रणाम भी आये ह। भारत म पयटन क ढाँचागत एव ंअ य सभी ि टय म ग त हु ई है। पयटन सु वधाएं बढ़ ह। पयटक क आवक भी बढ़ है। य य प अभी भी काफ यास करने ह गे य क स भावनाओं के अनु प भारत का दु नया के पयटन म ह सा बहु त कम है।

    भारतीय प र े य म पयटक क सं या, उनके ल य, कार आ द व वध प के आकड़ ेएक त करने तथा उनका व लेषण करने का भी यास कया जाता है। यह सच है क सं कृ त, इ तहास, कला, थाप य आ द कई गभंीर वषय को लेकर अ धकांश पयटक नह ंआते ह। इस दु नयाँ म अ धक लोग भागदौड़ क िज दगी बताते ह और वे कम समय म बहु त कुछ बहु त ह आराम एव ंसरलता से देखने के इ छुक होते ह या केवल मनोरंजन, समय प रवतन एव ंआन द के लए पयटन का सहारा लेत े ह। ले कन ऐसे पयटक क भी कमी नह ं है िजनक च सां कृ तक व वधता म होती है।

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    बहरहाल, वतमान पयटन प र य क समी ा एव ं व लेषण से कई न कष नकाले जा सकत ेह और भारतीय पयटन के वकास को ग त द जा सकती है ता क सां कृ तक मह व के थल का वकास हो, आ थक लाभ हो, रोजगार म भी वृ हो और भारतीय पयटन का व व

    स दभ म ह सा भी बढ़ सके। पयटन वकास क दशा म क मया ँभी ह और चुनौ तया ँभी। ले कन एक संक प के

    साथ आगे बढने क इ छा हो तो रा ता सुगम होता जाता है। अपे ा है क भारतीय पयटनन आने वाले समय म अपनी नींव को और अ धक ठोस कर पायेगा और पयटन स भावनाओं का उपयोग ठ क से कर पाने म समथ होगा।

    1.12 उपयोगी सा ह य 1. Tourism Policy, Planning, Strategy, K.C. Sharma, Pointer Publishers, Jaipur,

    1996. 2. Fundamentals of Tourism & Indian Religion, Chamanlal Raina, Abhinav

    Raina, Kanishka Publishers, Distributors, New Delhi, 2005. 3. Dyanamics of Tourism, R.N. Kaul, Sterling Publishers Pvt. Ltd., New Delhi,

    1985. 4. Tourism in India, Trends & Issues, S. Sharmarajan & Rabindra Seth,

    Haranand Publications, New Delhi, 1994.

    1.13 अ यास न 1. पयटन क आपके अनसुार अवधारणा या है और इसका या अथ है? 2. पयटन क ेरक शि तय का वणन क िजए? 3. पयटन वकास के लए जनसहयोग य ज र है? 4. पयटन वकास म या- या सम याएं है? 5. पयटन क वतमान दशा एव ं दशा पर काश डा लए।

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    इकाई - 2 : पयटन उ पाद का वग करण परेखा :

    2.0 उ े य 2.1 तावना 2.2 व भ न पयटन उ पाद 2.3 व व पयटन म भारतीय ह सेदार 2.4 पयटन उ पाद

    2.4.1 ह तकलाएं 2.4.2 सं हालय और मारक 2.4.3 मेले, यौहार और उ सव 2.4.4 संगीत, नृ य एव ं दशना मक कलाएं 2.4.5 व य जीवन, अभयार य एव ंउ यान

    2.5 आवास के लए सु वधाएं 2.5.1 भारतीय यजंन

    2.6 यातायात 2.6.1 पलेैस ऑन ह लस ्2.6.2 व भ न पयटन उ पाद योग

    2.7 उ पाद का चार- सार 2.8 उ पाद क माक टगं 2.9 पयटन उ पाद क वशेषताएं 2.9.1 यहू-रचना 2.10 साराशं 2.11 उपयोगी सा ह य 2.12 अ यासाथ न

    2.0 उ े य पयटन उ योग, एक बहुआयामी उ योग है। इससे कई उ योग जुड़ ेहु ए ह। ये व भ न

    उ योग पयटन क आव यकताओं क पू त करत ेह। ये सेवाएं या व तुएं कसी थान वशेष पर पयटक को आक षत करने म योग देती ह और इनका थाना तरण स भव नह ं होता। ये व तुएं एव ंसेवाएं थान वशेष पर खर दकर पयटक इनका वह ंउपयोग करत ेह। पयटन उ सव क मांग उनक गणुव ता के तर और पयटक क आय पर नभर करती है। इस इकाई का ल य आपको इस बात से अवगत कराता है क पयटन उ योग के संचालक वे कौन से त व (क पोने स) ह जो पयटक क पयटन या ा म मदद करत े ह। ऐसी या- या व तुऐं एव ंसेवाऐं ह जो वह खर दता है। उन सबको पयटन उ पाद क सं ा द गई है। इन व भ न उ पाद का यहा ँवग करण तुत कया गया है।

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    पयटन उ पाद को तीन मुख भाग म वग कृत कर सकत ेह - (1) पयटक के ग त य थल (डे ट नेशन) का आकषण िजसम उस थान वशेष क पयटक के मि त क म बनी छ व

    भी शा मल है। (2) उस थान पर उपल ध सु वधाएं जैसे ठहरने का थान (एकोमोडशेन), खान-पान सु वधाएं (केट रगं), मनोरंजन क यव थाएं एव ं (3) ग त य तक पहु ँचने के लए साधन क उपल धता।

    जैसा क आप जानते ह क कोई उ योग जो उ पाद बनाता है, उ ह वह उपभो ताओं तक पहु ँचाता है जो उ ह खर दत ेह। यहा ँपयटक, एक कार का खर ददार है जो अ धकाशंत: सेवाएं खर दता है अथात ् िजन सेवाओं का वह उपयोग करता है उनके लए सेवाएं दान करने वाल को उनके काम क क मत चकुाता है। यहा ँआपका उन व भ न उ पाद से सा ा कार कराया जायेगा और इनको वग कृत कया जायेगा।

    2.1 तावना पयटन के व भ न उ पाद म कसी थान वशेष पर उपल ध आकषण, आवास-सु वधा,

    यातायात के साधन एव ंमनोरंजन क यव थाएं, मुख प से शा मल ह। इसे पयटन क भाषा म संयु ता प से ''पकेैज'' भी कहत ेह जो सभी उ पाद या सेवा उ पाद का मलाजलुा प होता है। इस कार पयटन उ योग के उ पाद म सेवाओं क एक स पणू यव था सि म लत है। उस पयटन उ योग के उ पाद क एक ल बी ृंखला है िजसक अलग-अलग वग म व तार से चचा आव यक है।

    इस इकाई म यह भी प ट करने का यास कया गया है क जहाँ तक पयटक के मि त क म इनक पस द के ग त य थल के आकषण का न है, भारत म व वध कार के आकषण से भरपरू थल है जैसे श प से पणू मं दर, महल, दगु, मारक, कृ त एव ं व य जीवन से आबाद अभयार य एव ंउ यान, व भ न यौहार, शा ीय संगीत एव ंनृ य शै लया,ँ भ न- भ न कार का लोकजीवन एव ंएक समृ सं कृ त आ द। ये ग त य कसी भी पयटक को अपने आकषण से म मु ध करने क मता रखत ेह। पयटन के मह व को समझत े हु ए ढाँचागत सु वधाओं जैसे आवास एव ं खानपान के लए होटलस