vardhaman mahaveer open universityassets.vmou.ac.in/mlis08.pdf · पुèतकालय साम...

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    पा य म नमाण स म त अ य ो.(डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    संयोजक / सम वयक एवं सद य संयोजक एवं सम वयक डॉ. एच.बी. न दवाना वभागा य , पु तकालय एव ंसचूना व ान वभाग वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    सद य 1. डॉ. एम. ई वर भ

    पु तकालया य बरला इन ट यूट ऑफ टे नोलॉजी ए ड साइंस पलानी, राज थान

    1. ो. एम.पी. सतीजा वभागा य , पु तकालय एव ंसचूना व ान वभाग गु नानक देव व व व यालय, अमतृसर, पजंाब

    2. ो. जे.सी. बनवाल वभागा य (से. न.),पु तकालय एव ंसचूना व ान वभाग नोथ–ई टन– हल व व व यालय, शलांग

    2. डॉ. पा डेय एस.के. शमा मु य पु तकालय एव ंसचूना अ धकार (से. न.) व व व यालय अनुदान आयोग, नई द ल

    3. ो. एस.बी. घोष वभागा य (से. न.,)पु तकालय एव ंसचूना व ान वभाग इं दरा गांधी रा य मु त व व व यालय, नई द ल

    3. डॉ. जे.पी. सहं अपर नदेशक, योजना एव ंसम वय नदेशालय र ा अनुसधंान एव ं वकास सगंठन, नई द ल

    4. डॉ. दनेश कुमार गु ता सहआचाय, पु तकालय एव ंसचूना व ान वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    4. ो. सी.पी. व श ठ वभागा य (से. न.),पु तकालय एव ंसचूना व ान वभाग द ल व व व यालय, द ल

    स पादन एवं पाठ लेखन स पादक डॉ. सी. एल. जाप त अ भलेख सहायक नदेशक, प रर ण र य अ भलेखागार, नई द ल पाठ लेखक 1. ो. एच.आर. चोपडा

    वभागा य , (से. न.) पु तकालय एव ंसचूना व ान वभाग पजंाब व व व यालय, चडंीगढ़

    1. ी आर. के. वेद शोध अ धकार वरासत अनुस धान एव ं ब धन सं थान, द ल

    2. ो. एस.एस. अ वाल वभागा य , (से. न.) पु तकालय एव ंसचूना व ान अ ययन शाला व म व व व यालय, उ जैन, य देश

    2. ी रामबाबू सहायक रसायन , ेड–I रा य अ भलेख के , पा डेचेर

    3. डॉ. अर व द शमा सहा. ा यापक (च. वेतमान) एम. एल. बी. कॉलेज ऑफ ए सीले स वा लयर, म य देश

    3. ी मनीष कुमार शोध सहायक इं दरा गांधी रा य कला के , द ल

    अनुवादक डॉ. सी.एल. जाप त अ भलेख सहायक नदेशक, प रर ण

    रा य अ भलेखागार, नई द ल

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    अकाद मक एव ं शास नक यव था ो.(डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो.(डॉ.) एम.के. घड़ो लया नदेशक

    सकंाय वभाग

    योगे गोयल भार

    पा य साम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग

    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    उ पादन : दस बर, 2007 पुनः मु ण जनवर 2011 ISBN–13/978–81–8496–060–0 इस साम ी के कसी भी अंश को व.म.ख.ु व. कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प म अथवा म मयो ाफ (च मु ण) वारा या अ य पनु: ततु करने क अनुम त नह ं ह । व.म.ख.ु व. कोटा के लये कुलस चव व.म.ख.ु व. कोटा (राज.) वारा मु त एव ं का शत

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    MLIS–08

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    पु तकालय साम ी का प रर ण एवं संर ण :: वषय सूची ::

    इकाई सं या इकाई का नाम पृ ठ सं या इकाई –1 प रर ण एव ंसंर ण: आव यकता, उ े य, काय एव ंउपयो गता 9—22 इकाई –2 लेखन साम ी का उ व एव ं वकास 23—38 इकाई –3 पु तकालय साम ी के हा नकारक त व : पयावरणीय कारक 39—56 इकाई –4 पु तकालय साम ी के हा नकारक त व : जै वक कारक 57—76 इकाई –5 पु तकालय साम ी के हा नकारक त व : रासाय नक कारक 77—91 इकाई –6 पु तकालय साम ी के कार एव ंउनका सरं ण : पा डु ल पयाँ

    एव ंमु त लेख 92—107

    इकाई –7 त त पु तकालय साम ी का पनु दार 108—121 इकाई –8 पु तकालय साम ी क िज दब द : मानक एव ं व नदश 122—142 इकाई –9 िज दब द हेतु साम ी, उपकरण और िज दब द या 143—158 इकाई –10 सू म लेख : माइ ो फ म, माइ ो फश आ द 159—172 इकाई –11 डिजटल प रर ण व संर ण 173—189

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    पा य म प रचय पु तकालय एंव सूचना व ान नातको तर काय म का आठवा ँपा य म “पु तकालय साम ी का प र ण एव ंसरं ण” है। इस पा य म म कुल 11 इकाईया ँहै, िजनका प रचय न न कार है: इकाई –1 प रर ण एव ंसंर ण: आव यकता, उ े य, काय एव ंउपयो गता: इस इकाई म

    प रर ण एव ंसंर ण क सामा य अवधारणा एव ंआव यकता क चचा क गई है। प रर ण एव ंसंर ण काय म यनेू को क भू मका एव ंपु तकालया य क भू मका के साथ प रर ण एव ंसंर ण क उपयो गता पर काश डाला गया है।

    इकाई –2 लेखक साम ी का उ व एव ं वकास : इस इकाई म लेखक साम ी का उ व एव ं वकास एव ंभारत म मलू प से यु त होने वाल लेखक साम ी जैसे–ताड़ प , भोजप , तुल पात एव ंकपड़ा आ द पर व तार से चचा क गई है साथ ह व भ न कार के कागज एव ंकागज बोड पर भी काश डाला गया है।

    इकाई –3 पु तकालय साम ी के हा नकारक त व : पयावरणीय कारक : इस इकाई म पु तकालय साम ी के हा नकारक त व – पयावरण कारक जसेै – ताप, व करण, आ ता, पानी, काश वायु दषुण क जानकार द गई है साथ ह पयावरणीय– नयं ण पर भी काश डाला गया है।

    इकाई –4 पु तकालय साम ी के हा नकारक त व: जै वक य कारक : इस इकाई म पु तकालय साम ी के हा नकारक त व–जै वक कारक जसेै–वान प तक कारक–फंूफूद एव ंफॉि संग एव ंज तकुारक–क ट एव ंपशु क चचा क गयी है साथ ह नरोधा मक संर ण एव ंउपचारा मक सरं ण से अवगत करवाया गया है।

    इकाई –5 पु तकालय साम ी के हा नकारक त व: रसाय नक कारक : इस इकाई म पु तकालय साम ी को त त करने वाले रसायन, त त करने वाले रसायन पु तकालय साम ी के स पक म कैसे आत ेहै? क जानकार द गई है। अ लता कस कार पु तकालय साम ी को त त करती है? पर काश डाला गया है साथ ह अ लता से बचाने के लये नरोधा मक उपाय से

    अवगत करवाया गया है। इकाई –6 पु तकालय साम ी के कार एवं उनका संर ण : पा डु ल पया ँ एव ंमु त

    लेख : इस इकाई म पा डु ल पय का इ तहास, कार, उनक ल पया ंएव ंउपल धता क जानकार द गई है पु तक क ऐ तहा सक पृ ठभू म, वग, आकार के आधार पर पु तक के कार पर काश डाला गया है साथ ह समाचार–प , प काएं, प लेट क चचा करते हु ऐ इनके संर ण के बारे म जानकार द गई है।

    इकाई –7 त त पु तकालय साम ी का पनु ार : इस इकाई म पनु ार का आशय, इसक आव यकता एव ंपनु ार क योजना से अवगत करवाया गया

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    है। पनु ार क व धयाँ, गा डग एव ंगदै रगं क चचा क गई है साथ ह पनु ार के स ा त, सलाई एव ंिज दब द पर काश डाला गया है।

    इकाई –8 पु तकालय साम ी क िज दब द : मानक एव ं व नदश : इस इकाई म िज दब द के उ े य आशय एव ं व भ न कार क िज दब द पर काश डाला गया है। िज दब द क क म, व भ न कार क पु तकालय साम ी क िज दब द एव ंिज दब द काय ववरण के साथ िज दब द के मानक क चचा क गई है।

    इकाई –9 िज दब द हेत ु साम ी, उपकरण और िज दब द या: इस इकाई म िज दब द हेतु व भ न साम ी एव ंउनक क म क व तार से चचा क गई है। िज दब द या, िज दखाने क थापना के लये आव यक उपकरण एव ं व भ न कार के िज दखाने पर भी काश डाला गया है।

    इकाई –10 सू म लेख : माइ ो फ म, माइ ो फश आ द : इस इकाई म थेतर साम ी का आशय एव ंवग करण क जानकार द गई है। सू म लेख क सरंचना, माइ ोफॉम एव ंसू म लेख के श –ुवातावरणीय कारक एव ंजै वक कारक क चचा करते हु ये सू म लेख के प रर ण पर काश डाला गया है।

    इकाई –11 डिजटल प रर ण व संर ण : इस इकाई म डिजटल प रर ण व सरं ण क सामा य अवधारणा, आव यकता, व भ न कार के डिजटल लेख एव ंडिजटल रकाड क सम याओं से अवगत करवाया गया है। डिजटल प रर ण एव ंसंर ण क सम याएं, ऑ डयो–वी डयो का प र ण के साथ मुख डिजटल प रर ण ोजे स पर भी काश डाला गया है।

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    इकाई 1 प रर ण एव ंसंर ण : आव यकता, उ े य, काय एव ं

    उपयो गता Preservation and Conservation: Need, Purpose,

    Function and Utility इकाई क परेखा 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 प रर ण एव ंसंर ण क सामा य अवधारणा 1.3 प रर ण एव ंसंर ण क आव यकता 1.4 प रर ण क भावी या 1.5 प रर ण एव ंसंर ण के लाभ 1.6 प रर ण एव ंसंर ण काय म यनेू को क भू मका 1.7 पनु ार क व धया ँ1.8 प रर ण एव ंसंर ण क भारत म पर परा 1.9 भारत म आधु नक प रर ण व संर ण का उदय व वकास 1.10 प रर ण एव ंसंर ण म पु तकालया य क भू मका 1.11 प रर ण एव ंसंर ण क उपयो गता 1.12 साराशं 1.13 अ यासाथ न 1.14 मुख श द 1.15 व ततृ अ ययनाथ थंसूची

    1.0 उ े य (objectives) इस इकाई के न न उ े य ह:

    1. प रर ण एव ंसंर ण क सामा य अवधारणा से अवगत करवाना । 2. प रर ण एव ंसंर ण क आव यकता क जानकार देना । 3. प रर ण एव ंसंर ण के उपयोग के बारे म बताना । 4. पु तकालय म भावी प रर ण क या क चचा करना । 5. प रर ण एव ंसंर ण म पु तकालया य क भू मका का अ ययन करवाना । 6. प रर ण एव ंसंर ण काय म यनेू को क भू मका को प ट करना । 7. प रर ण एव ंसंर ण क ऐ तहा सक पृ ठभू म क जानकार देना ।

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    8. प रर ण एव ंसंर ण क यां क या व कला से प र चत करवाना ।

    1.1 तावना (Introduction) प रवतन इस ससंार का नयम है । कभी यह प रवतन आदमी के प म होता है तो

    कभी वप म कुछ व तुओं म प रवतन व रत ग त से होता है तो कभी मंद ग त से । प म होने वाला प रवतन वागत यो य तथा वप म होने वाला प रवतन यागने यो य होता है। य द हम प ट प से कहे तो पु तक क साम ी कई कारक से भा वत होती है और वह वनाश को ा त होती है । चूँ क यह साम ी ान के ोत ह और ान मानव वकास व संसार के वकास के लए आव यक रहा है और रहेगा । इस लए इस साम ी क सुर ा हर यि त का दा य व है ।

    आज पु तकालय साम ी को सुर त रखने के लए संर ण (Conservation), प रर ण (Preservation) व पनु ार (Restoration) जैसी याओं का उपयोग हो रहा है । ये वषय आज पणू व ान क अवधारणा के अ दर आ गये ह । अतः इनक जानकार आव यक है। तभी हम अपनी बहु मू य पु तकालय साम ी को ल बे समय तक सुर त रखने म कामयाब ह गे । इस इकाई म आपको प रर ण एव ंसंर ण क अवधारणा, आव यकता, इसके लाभ एव ंयनेू को क भू मका का अ ययन करवाया जायेगा । मर मत क व भ न व धय एव ं भारत म प रर ण एव ं संर ण क पर परा तथा प रर ण एव ं संर ण म पु तकालया य क भू मका क व तार से जानकार द जायेगी।

    1.2 प रर ण व संर ण क सामा य अवधारणा (General Concept of Preservation and Conservation) क जवशन (Conservation), प रर ण (Preservation) का श द–कोषीय अथ

    लगभग एक जसैा ह है । उनम आधारभतू भेद सामा य तौर पर कर पाना मुि कल है । इनका शाि दक अथ है कसी व त ुको वनाश से बचाना ।

    जहा ँ तक क जवशन (Conservation) श द का न है यह आजकल बहु त से काय े जैसे क जवशन ऑफ फॉरे ट, क जवशन ऑफ फॉरे ट लाइफ, क जवशन ऑफ सॉइल, क जवशन ऑफ पै ो लयम आ द म योग हो रहा है और क जवशन ऑफ लेखीय संपदा इनसे भ न नह ंहे । वशेष अपने–अपने काय े म इस श द को प रभा षत करने व उसे समझाने के लए व भ न श दावल का योग कर रहे ह । पर त ुइन सबक आ मा एक ह है और वह है वतमान व भ व य मे लंबे समय तक उपयोग के लए व तुओं क सुर ा व संभाल। जहा ँतक लेखीय संपदा का न हे उसक कृ त काब नक होने के कारण समय के साथ उसका कमजोर होना एक वाभा वक या है ।

    आज संर ण (Conservation) एक पणू व ान के प म वक सत हो गया है । पर त ुएक अहम न दमाग म आता है या संर ण आधु नक अवधारणा है या ाचीन । इस

    न का उ तर पाने के लए यह जानना ज र है क वर ा का भाव येक ाणी, चाहे वह सू म हो या थूल सभी म कृ त द त गणु है । अतः यह कहना सवथा उ चत है क यह

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    गणु जीव म उसक उ पि त काल से ह मौजूद है और यह गणु संर ण का के ब द ुहै । आ म सुर ा का यह भाव व भ न जीवो म प रवार, समाज, गांव, शहर व देश से आगे बढता हुआ एक समय भारतीय सं कृ त म वसुधेव कुटु बकम अथात ्सम संसार को प रवार के प म देखने क वकालत करता नजर आता है । फर कह ं अ हसंा परमोधमः अथात अ हसंा परमधम का संदेश देता दखायी पडता है। य द गहराई से वचार कया जाये तो इन दोन ह बात क आव यकता थी अथात समाज को एक थायी आसार क आव यकता थी । था य व संर ण का दसूरा नाम है । इसके अ त र त हम एक बात पर और वचार कर सकत ेह क बौ काल म तपू बनाने व अ य काल म बडी–बड़ी मीनार, गुबंद व महल (ताजमहल) बनाने का या उ े य था । इनका उ े य था सफ इनसे जुड ेलोग क याद को िजंदा रखना और कसी सूचना को िजंदा रखने का नाम ह तो संर ण है ।

    इन तमाम त य से यह सरलता से कहा जा सकता है क भारतीय समाज के लये संर ण क अवधारणा आधु नक न होकर यह अ त ाचीन है वा तव म संर ण को दो भाग म बांट सकत ेह और येक को कई उपभाग म जैसे क नीचे रेखा च 1.1 म दखाया गया है ।

    व तुपरक संर ण म, म के परा मड सबसे ाचीन उदाहरण ह । ये परा मड ह थे

    िजनका नमाण म के राज–प रवार के लोग के मतृ शर र को अना दकाल तक सुर त रखने के लए अ य धक शोध के बाद बनवाया गया था । इनका नमाण काल 4000 वष पवू था । अतः व तुपरक संर ण क ाचीनता 4000 वष से भी पहले क है ।

    भारत म आधु नक क जवशन क नीव 1891 म सै यलु चाल हल के समय म रखी गयी। आधु नक संर ण (व तुपरक संर ण) 5 त व से मलकर बना है । इसे रेखा च 1. 2 म दशाया गया है ।

    रेखा च 1.2

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    1.2.1 जाँच एव ंपर ण

    जांच व पर ण सम या जानने के लये आव यक है । बना सम या जाने व समझ ेहम उसे दरू करने का सह तर का व उपयु त रसायन योग म नह ंला पायेग और बना सह तर के तथा रसायन के उस सम या को समूल न ट नह ंकर पायगे । यह काय ठ क उसी कार ह जैसे एक डाँ टर मर ज क जाचं बीमार व उसका कारण जानने के लए करता है। यह

    जांच साधारण तौर पर जीभ, नाखून, आँख आ द क जांच से लेकर बडी–बडी जांच जैसे एम.आर.आई. व सीट कैन तक हो सकती है। इसी कार संर ण के काय म साधारण मानवीय जाचँ से लेकर पेचीदा मशीनी जाचं तक हो सकती है ।

    1.2.2 नरोधा मक एव ंउपचारा मक संर ण

    नरोधा मक संर ण एव ं उपचारा मक संर ण याओं को मलाकर प र ण (Preservation) क सं ा द गई है। यह यह प ट करना उ चत ह होगा क एक समय था जब सरं ण (Conservation) को प रर ण (Preservation) का ब चा समझा जाता था । पर त ुआधु नक काल म प रर ण को संर ण का ब चा (Offspring) समझा जाता है । सं हालय व परुात व वषय म अब भी संर ण को कसी वा त ुव मू त क मर मत के लए योग कया जाता है । पु तकालय साम ी को सुर त रखने के लए प रर ण व संर ण श द

    का एक साथ योग करना संर ण क मलू भावना के व है । पर त ुइस वषय म लोग क सी मत जानकार के कारण वे इन दोन ह श द का एक साथ योग करत ेह । जैसे बहु त सी पा य साम य म प रर ण व संर ण दोन श द का योग कया जा रहा है ।

    प र ण (Preservation) का ता पय है ऐसे उपाय करना िजनसे अ भलेखीय स पदा के अपघटन व त त होने क या को रोका जा सके । य द इस संपदा को त त करने वाले कारक भावशाल ह तो उ ह या तो अ भावी कया जा सकता है या समा त कया जा सकता है । उदाहरण व प जैसे कागज या कपडा अगर बना कसी योग के भी रख दये जाये तो वे काला तर म अपनी मजबतूी खो देते ह । यह एक त य है । इसी कार अगर लेखीय स पदा बना योग के भी य द रख द जाये तो काला तर म अपनी मजबतूी खो देती

    है । यह या अ य कारक के अलावा वायमु डल य कारक वारा क जाती है । इसी कार बहु त से सं हण क म जहा ँ लेखीय स पदा जैसे पु तक एव ंपा डु ल पया ंआ द सं हत क जाती ह वहाँ क ड ेतथा चूहे उनको त त करत ेह । य द हम उपरो त दोन ह कारक से अपनी पु तक य संपदा को बचाना चाहत ेह तो हमे प रर ण (Perservation) स ब धी मानक व धय का योग करना होता है । अपघटन रोकने के लये उपयु त ताप, रोशनी, आ ता, सफाई यव था तथा अ य उपाय करग । यह काय नरोधा मक संर ण (Preventive conservation) के अ तगत आता है । क ड , चूह व अ य त करने वाले जीव को मारने के लए धमून जैसी याओं का उपयोग उपचारा मक संर ण (Curative conservation) के अ तगत आता है ।

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    1.2.3 पनु ार य संर ण (Restorative Conservation)

    कमजोर एव ं त त पु तक व लेख को फर से मजबतूी दान करने के लये उ ह दु त कर पनुः यथासभंव मूल आकार म लाने क वधा का नाम पनु ार य संर ण (Restorative Conservation) है।

    1.2.4 अनु ल या मक संर ण (Duplicative Conservation)

    कोई भी काब नक व त ुसामा य प से अपनी पवू मजबतूी को बनाये नह ंरख सकती है । कागज व अ य लेखन आधार को समया तराल म कमजोर होने क या को म द तो कया जा सकता है पर त ुरोका नह ंजा सकता । इसी कार लेखीय साम ी कई कारण जैसे असुर त भंडारण, क ड–ेमकौड आ द के कारण त त होती है । कोई भी त त व कमजोर पु तक तथा लेख कसी योगाथ को दान करना उसे और त त होने को नमं ण देना ह । चू ं क लेख व अ य पु तकालय साम ी योगाथ के लये है अतः कमजोर व त त लेख व पु तक योगकता को देने से और त त हो सकती है । इसी कारण इ ह मर मत के बाद ह उपयोग के लये देना बु म ता पणू होगा ।

    कभी–कभी दु ा य पु तक व लेख ऐसी जजर अव था म पहु ंच जात ेह क उनका मूल प म योग उनके वनाश को आमं त करता है । इस अव था म ऐसी साम ी को मूल प म योग क अनमु त न देकर उनक फोटो त या अ य काँपी जैसे माइ ो फ म आ द उपयोगकता को देना प रर ण क ि ट से उपयोगी होगा । इसके साथ ह य द हमारे पास केवल एक ह त है और उस क मांग अ य पु तकालय या अ ययन के म है तो हम उसे उपल ध कराने के लये उसक तया ंतैयार करनी पडती ह । इस या से न सफ दु ा य थं पु तक या द तावेज को सुर त रखने म मदद मलती है बि क एक साथ कई जगह पर योगाथ लाभाि वत होते ह । त बनाने क इस या को अनु ल या मक संर ण (Duplicative Conservation) कहत ेह।

    1.3 प रर ण व सर ण क आव यकता (Need of Preservation and Conservation) अ भलेखीय संपदा सूचना एव ं ान के मह वपणू ोत ह और सूचना तथा ान ने

    मानव स यता के वकास तथा संसार को आगे बढ़ने म मह वपणू योगदान दया है । आज जो मानव अंत र म अ य स यताओं क खोज म नरंतर आगे बढ़ रहा है तथा हमारे चार ओर जो वकास के नमूने क यटूर, दरू संचार आ द के प म फैले पड ेह वे कसी एक यि त व रा क देन नह ंहै बि क व भ न लोग व व भ न रा के द घकाल न यास का फल ह िजसम सं चत ान व सूचना का योगदान मह वपणू है ।

    सूचना व ान के ये ोत काब नक कृ त के होने के कारण कई कारक जैसे वातावरणीय, जै वक य, रसाय नक, िजन पर व तार से चचा आगे क इकाईय म क जायेगी, से भा वत व त त होत े ह । चू ं क ये ोत मह व के ह अत: इनक सुर ा व संर ा

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    हमारा दा य व है और इसके लये मा य प रर ण (Preservation) याओं का सहारा लेना आव यक होता है ।

    चाहे पु तकालय हो या अ भलेखागार, चाहे सूचना के हो या डा यमेू टेशन के चाहे डाटा के हो व अ य सचूना सं ह करने वाले के य द वे सूचना को लंबे समय तक लोग को उपल ध कराना चाहत ेह तो उ ह उसका प रर ण व संर ण करना आव यक होगा य क यह साम ी काब नक होने के कारण धीरे धीरे कमजोर होती है और कुछ क ट वारा भोजन के प म योग क जाती है । इसके फल व प ये वनाश को ा त होती है । इसके लये न न

    साम यक कदम उठाने आव यक ह गे जैसे : 1. पु तक य संपदा को अपघटन व त त होने से रोकना । 2. त त करने वाले कारक का समय से पता लगाना तथा उ ह नमूल करना । 3. भा वत लेख व पु तक को उ चत या वारा बचाना । 4. त त व कमजोर लेख को पनु: ठ क करना तथा मजबतू बनाना । 5. अ य त जीणशीण लेख व दु ा य पु तक को मूल प म योगा थय को न देकर उनक

    त तैयार करना और दान करना । बोध न–1 अपना उ तर लखने के लए खाल थान का योग करे। 1. प रर ण एवम संर ण क अवधारणा प ट करे। .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... ............. . ......... ....... 2. आधु नक संर ण कतने त व से मलकर बना है, बताइये । .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... ....... 3. पुन ार य संर ण या है? .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... ..... ..... ......... ......... .......... ...... .............. ......... ....... 4. अनु ल या मक संर ण (Duplicative Conservation) का अथ बताइये । .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... ....... 5. प रर ण एवं संर ण क आव यकता के मुख ब दु ल खये । .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .......

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    1.4 प रर ण क भावी या (Effective Process of Conservation) पु तकालय साम ी को व भ न कार के श ओंु जैसे पयावरण श ,ु रासाय नक श ,ु

    भौ तक य श ,ु जै वक श ,ु मानव न मत व ाकृ तक आपदाओं सुर त रखना तथा इनसे भा वत साम ी को इनसे बचाना ह प रर ण है । भावशाल प रर ण को न न दो कार

    क याओं पर काय करना आव यक होता है: (i) नरोधा मक संर ण (Preventivecare or Preventive Conservation) (ii) उपचारा मक संर ण (Curative Conservation)

    नरोधा मक संर ण व उपचारा मक संर ण को संयु त प से प रर ण कहा जाता ह।

    1.4.1 नरोधा मक संर ण के मूल आयाम:

    पु तकालय साम ी को य एव ं वनाश से बचाने के लये जो मूल उपाय कये जात ेहै वे न न ल खत है । 1. वै ा नक भंडारण यव था (i) उपयु त पु तकालय भवन (ii) वृ त करने वाला (क डयू सव) भंडारण वातावरण

    अ. उ णता तथा तापमान ब. आ ता स धूलर हत भंडारण क द. हवा का भंडारण क म वतरण य. उपयु त भंडारण यव था एव ंउपयु त भंडारण साम ी र. दषूण र हत भंडारण क ल. उपयु ता काश ब धन

    2. आग क रोकथाम व नयं ण 3. जै वक य कारक से रोकथाम आ द

    1.4.2 उपचारा मक संर ण (Curative Conservation) के मलू आयाम:

    1. रासाय नक उपचार 2. धूमन इन सम त बात क व ततृ जानकार , इसी पा य म क व भ न इकाईय म

    उपल ध है ।

    1.5 प रर ण व संर ण के लाभ (Benefits of Preservation and Conservation) प रर ण व संर ण से न न ल खत लाभ ह:

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    1. दु ा य पु तक, लेख व अ य पठनीय साम ी सूचना के मुख साधन ह । इनके वनाश से मह वपणू सूचना एव ं ान न ट हो सकता है । ान व सां कृ तक धरोहर जो हमारे पु तकालय , सं हालय , थंागार व अ भलेखागार म सं ह त है, उसे हम प रर ण व संर ण क वधा वारा हजारो वष तक सुर त रख सकत ेह । इससे हमार आने वाल पी ढ़या,ं इस ान का योग कर दु नया के वकास व मानव क याण का काय आगे बढ़ाने म स म हो सकगी ।

    2. य द हमारा प रर ण काय सफल रहता है तो मर मत काय को ल बे समय तक टालकर, इसम खच होने वाले धन को बचाया जा सकता है और उसे अ य काय म लगाया जा सकता है ।

    1.6 प रर ण एवं संर ण काय म यूने को क भू मका (Role of UNESCO in Preservation and Conservation) दु नया म बहु त से ऐसे देश ह िजनके पास लेखीय व पु तकालय साम ी तो है पर त ु

    उनके पास प रर ण व संर ण संबधंी जानकार व धन का अभाव है । इसके कारण उनक बहु मू य लेखीय साम ी शनःै–शनःै ीण हो रह है और वनाश को ा त हो रह है । यनेू को ऐसे देश को उनके यहा ँउपल ध पु तक , लेख व अ य सां कृ तक साम ी को सुर त रखने के लये धन व प रर ण संबधंी ान उपल ध कराता है । प रर ण संबधंी ान अिजत कराने के लए यनेू को स बि धत देश के लोग को अंतरा य तर के श ण सं थाओं म श त कराता है और इस पर होने वाले खच को वय ंवहन करता है । इस कार यनेू को व व क लेखीय व सां कृ तक संपदा को प रर त व संर त करने म एक अ त मह वपणू िज मेदार नभा रहा है । अगर यनेू को जैसी सं था आज व व म न होती तो बहु त से देश क अमू य सां कृ तक संपदा व लेखीय संपदा आज गायब हो जाती । प रर ण व संर ण संबधंी ान आज व व म कोने कोने तक न पहु ंचता और न ह व व–मानस पटल पर प रर ण संबधंी चेतना का बगलु बजता ।

    1.7 पुन ार (मर मत) क व धयाँ (Methods of Restoration) सव थम यह जानना आव यक है क पनु ार (Restoration) तथा उसक पणू

    वै ा नक प त या है? जैसा क आप जानत ेह क पु तकालय साम ी क कृ त काब नक होने के कारण वह मंदग त से त त होती ह । यह साम ी क ड,े मकौड वारा भोजन के प म योग होती है । मानव वारा इसका सह तर के से योग न होने व उ चत रख रखाव

    के अभाव म सह साम ी त त होती है । पु तकालय साम ी चाहे वह लेख हो या पु तक, य द उसका कोई भी ह सा आं शक या पणू प से कमजोर या त त होता है और उसे समय पर ठ क नह ं कया जाता तो नि चत प से उसका वनाश व रत ग त से होगा । अत: इस कार क साम ी को था य व दान करने तथा उसे पनु: मजबतू बनाने के लये, इस साम ी का रासाय नक उपचार (Chemical Treatment) व मर मत आव यक होता है । रासाय नक उपचार व मजबतूी दान करने क इसी या को हम पनु ार य संर ण के नाम

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    से जानत े ह । पनु ार य संर ण आज एक पणू वक सत वै ा नक व कला मक पहल ू है िजसको न न ल खत सोपान से होकर गजुरना पडता है:– 1. भौ तक सफाई 2. साम ी क जांच 3. पृ ठांकन 4. पाइन का खोलना 5. छटाई 6. नरा ल करण 7. दाग व ध ब का हटाना 8. लैट नगं 9. मर मत 10. मूल म म इक ा करना 11. गा डग व गदै रगं 12. गेट–इन–पेपर का भरना 13. सलाई 14. िज दबदं 15. इ बो सगं आ द

    इन वषय पर व ततृ जानकार इस पा य पु तक क आगे क इकाई म उपल ध है।

    1.8 प रर ण व संर ण क भारत म पर परा (Tradition of Preservation and Conservation in India) भारत म संर ण क पर परा अ त ाचीन है । व वान का वचार है क वेद काल न

    भारतीय समाज को पढ़ना– लखना नह ंआता था । न उठता है क जब वे पढने लखने क कला से अन भ थे तो ाचीन थं ऋगवेद व अ य वेद का ान आज हमारे सम कैसे उपल ध है । वा तव म उस काल म लोग ान को मि त क म रखत ेथे । या यो कह क गु कुल म मानव मोबाइल बकु तैयार क जाती थी िजससे ान तो सुर त रहता ह था इसके साथ समाज के अ य लोग को ये मानव मोबाइल पु तक वय ंचलकर ान को बांटती थी ं। इस कार उस काल म भी िजस समय लोग पढ़ना लखना नह ंजानत ेथे, ान को सुर त रख सक और एक पीढ़ से दसूर पीढ़ को यह ान दे सके । अगर ऐसा न होता तो ऋगवेद व अ य वेद का ान को बचाना संभव न होता । इससे यह प ट होता है क भारत के लोग ान के मह व को समझत े थे तथा उसे सुर त रखने के त सतक एव ंजाग क थे ।

    उदाहरण के लये एक व वान ने परुाण म कहा है, जलात ्र ेत, थलात ्र ेत, श थल बधंलात ्मूख ह तेन न दा य,ं एत ंवद त पिु तका । ।

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    अथात ्पु तक को पानी व धलू से वनाश होने से बचाना ह चा हये तथा श थल बधंन से भी बचाना चा हए । शा का कथन है क पठन साम ी को अगर बचाना है तो उसे मूख के हाथ म कभी नह ंस पना चा हए ।

    अ नेन र ेत, जलात ्र ेत मूषके यो वशेषतः क टेन ल खतम शा ंय नेन प रपालयेत । । अथात ्पु तक क अि न व जल से र ा करनी चा हये पर त ुचूह से वशेष तौर से ।

    पु तक क र ा म यह यान रहे क क ट से तैयार क गयी इस साम ी को पु क तरह पालना चा हए ।

    1.9 भारत म आधु नक प रर ण व संर ण का उ व व वकास (Origin and Development of Modern Preservation and Conservation in India) वा तव म पु तकालय साम ी के प रर ण के लये वन प तय , जै वक य व तुओं जैसे

    घोराबाच, पा डी, लाल मच, त बाकू, मोरपखं और सांप क कचलु इ या द का योग भारत म ाचीन काल से ह च लत है पर त ु इन वषय म खोज के अभाव के कारण यह कहना

    मुि कल ह क कस व त ुको कौन से वष म प रर ण काय के लये योग कया गया । पर त ुआधु नक संर ण (Conservation) का उदय भारत म वष 1891 से माना जाता है ।

    टश ऑ डटर स ड ेमैन क 1860 क ट पणी ''मह वपणू लेख को एक जगह पर इक ा करके रखना चा हए ता क उ ह सुर त रखा जा सके'' को यान म रखकर इ पी रयल रकाड ऑ फस क नींव कलक ता म (1891 म) रखी गयी । संर ण व प रर ण संबधंी जो भी ान आज उपल ध है वह आधु नक रा य अ भलेखागार(तब इ पी रयल रकाड ऑ फस) के वै ा नक वारा लेख को सुर त रखने के लये कये गये यास का प रणाम है । यह ान समय के साथ–साथ रा य अ भलेखागार क सीमा से नकल कर पु तकालय व अ य सं थाओं म भी पहु ंचा जहां द तावेजी धरोहर सुर त थी ।

    संर ण का काला तर म वकास मक ग त से हुआ । संर ण क थम या जो क मर मत के नाम पर हु ई थी, वह मुड े हु ए लेख को सीधा करना तथा उ ह लैट करके अ ल र हत डाकेट कवर के अ दर रखना था । यह काय 1899 म सैमुअल चाल हल जो उस समय इ पी रयल रकाड ऑ फस म क पर ऑफ रकाड के पद पर थे, के समय से ारंभ कया गया । इसके बाद अल वन फैबर के समय म े सगं पेपर के थान पर अ धक मजबतू सफान कपड ेका योग लेख मर मत काय के लए चुना गया । इस कार जीणशीण अ भलेख को पनु: मजबतूी व जीवन दान देने का काय ारंभ हुआ । यह यह बताना उ चत ह होगा क एक बार जो सफान कपड ेका योग ारंभ हुआ तो वह आज भी पा डु ल पय तथा पु तक क मर मत के लये योग हो रहा है ।

    काला तर म 1948 ई0 के आसपास अ भलेख व पु तक प रर ण क कई आधु नक व धय जैसे धूमन, मशीन वारा धूल को हटाना व मर मत (Lamination) को ार भ कया

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    गया । आज भारतीय संर ण इस अव था म है क यहा ंके क सवशन वशेष अ ो–ए शयन देश व अ य देश म जाकर वहा ंके लोग को इस वषय क जानकार देते ह तथा इस वषय म तकनीक सलाह भी देते ह । आधु नक प रर ण के घटक व आयाम क जानकार इसी इकाई के ारंभ म द जा चुक है।

    1.10 प रर ण एवं संर ण म पु तकालया य क भू मका (Role of Librarian in Preservation and Conservation) पु तक ान के ोत व काश ह । सभी लोग सभी कार क पु तक नह ंखर द

    सकत ेअत: वे ान के लये पु तकालय का सहारा लेते ह । दसूरे पु तकालय का काय नत नयी व भ न वषय क पु तक को अपने बहु मू य धरोहर म जोडना भी है ता क हर कार के ान– पपास ुपु तकालय से ान ा त कर सके । अगर एक पु तकालय क पु तक य धरोहर

    अ पकाल म ह वनाश को ा त हो जाये तो उनको पनु: खर दने म पसैा खच करना पडेगा । इस कार नये वषय पर आने वाल पु तक को खर दने म धन क कमी महसूस होती रहेगी। इस काय को भावी तभी बनाया जा सकता है जब पु तकालय म उपल ध पु तक य संपदा को ल बे समय तक सुर त रखा जा सकता हो । ये तमाम काय पु तकालया य क काय सीमा के अ तगत आते ह । अत: पु तक य संपदा को सुर त रखना पु तकालया य क नै तक िज मेदार है । पर त ुयह काय तभी सभंव है जब पु तकालया य व पु तकालय म काय करने वाले कमचार पु तकालय व ान के साथ परुतकालय साम ी के प रर ण व संर ण क वधा म श त ह ।

    1.11 प रर ण एवं संर ण क उपयो गता (Utility of Preservation and Conservation) सभी कार क पु तकालय साम ी जैसे पु तक, पा डु ल पया,ं पी रयो डक स,

    माइ ोडॉ यमेू स व य– य साम ी इ या द, काब नक कृ त क होने के कारण समया तराल कमजोर पड जाती है तथा योग व अ य कारण से त त हो जाती है । अत: इ ह सुर त रखना पु तकालया य , अ भलेख अ धकार , सं हालया य व अ य क टो डय स क नै तक िज मेदार है । इस काय को बखूबी नवाह करने के लए प रर ण व संर ण वधा म श त होना आव यक है । प रर ण व संर ण उपयो गता को न न कार से समझा जा सकता है:– 1. संर ण क याओं से पु तक, लेख , समाचार प को ल बे समय तक सुर त रखा जा

    सकता है िजसके कारण नये वषय पर आने वाल पु तक पर अ धक धन खच करके पु तकालय क संपदा को और अ धक बढ़ाया जा सकता ह ।

    2. पु तक के अ त र त नान–बकु संपदा जैसे माइ ो डॉ यमेू स, टेप, ड क, व य– य संपदा को भी सुर त रखा जा सकता है ।

    3. अ तरा य, रा य व े ीय डॉ यमेू टेशन के व अनवुाद के म उपल ध साम ी को ल बे समय तक सुर त रखा जा सकता है ।

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    4. डाटा के , डाटा बक म उपल ध डाटा जो क औ यो गक व रा य वकास के लये मह वपणू है, को बचाया जा सकता है और उपयोगा थयो को मुहैया कराया जा सकता है।

    5. प रर ण व संर ण के ान से यि त को यह अहसास कराया जाता है क लेखीय स पदा व सां कृ तक संपदा मानव के वकास के लय आव यक रह है, और आगे भ व य म भी आव यक रहेगी । अत: इसको सुर त रखना हर नाग रक का परम कत य है चाहे वह उपयोगकता हो या पु तकालया य या अ य ।

    बोध न–2 अपना उ तर लखने के लए खाल थान का योग कर। 1. उपचारा मक संर ण के मूल आयाम बताइये। .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... ........... ... ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. . ........ ....... 2. प रर ण काय म यूने२को क या भू मका है? 3. भारत म आधु नक प रर ण एवं संर ण का उ व एवं वकास कब से माना

    जाता है? .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... . ...... 4. पर ण एवं संर ण क उपयो गता के मु य ब दु बताइये। .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... ... .... 5. पुन ार के व भ न सोपान बताइये । .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .......

    1.12 सारांश (Summary) इस इकाई म प रर ण व संर ण क मूलधारणा तथा इनके अवयव के बारे म

    जानकार देने के साथ–साथ इनके ाचीन, म य व आधु नक भारत म उ व व वकास क चचा क गयी है । इसके अ त र त प रर ण व संर ण क आव यकता, भावी या, लाभ व उपयो गता क भी चचा क गयी । इतना ह नह इस वषय पर यनेू को व पु तकालया य क भू मका पर भी काश डाला गया है ।

    1.13 अ यासाथ न (Questions) 1. संर ण (Conservation), प रर ण (Preservation) और पनु ार (Restoration) से

    आप या समझत ेह? इनम या त मूल अ तर बताइये। 2. प रर ण (Preservation) के या लाभ ह? 3. संर ण क उपयो गता पर उदाहरण स हत काश डा लये।

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    4. संर ण (Conservation) के व भ न घटक के नाम ल खये तथा उनक याओं पर सं ेप म काश डा लए।

    5. संर ण व प रर ण म यनेू को क या भू मका रह है?’’ इस पर चचा कर । 6. पु तकालय साम ी को सुर त रखने म पु तकालया य क या भू मका है? 7. “ या प रर ण व संर ण म श ण के बना पु तकालया य व अ य सहयोगी

    पु तकालय साम ी को कारगर प से बहु त समय तक सरु त रख सकत ेहै”? इस वषय के प व वप म अपना मत उदाहरण स हत तुत कर ।

    8. “प रर ण का काय भारतीय वारा व भ न प म अ त ाचीन काल से कया जा रहा है।'' इस वषय पर अपने वचार उदाहरण स हत य त कर ।

    9. पु तकालय साम ी का प रर ण व संर ण य आव यक ह? 10. पहले प रर ण आव यक है या मर मत? और य ? स व तार वणन कर।

    1.14 मुख श द (Key Words) अ भलेखागार (Archives)

    वह जगह जहा ँ लेख को सुर त रखा जाता है तथा उ ह योगा थयो को पढने के लये उपल ध कराया जाता है।

    धूमन (Fumigation)

    वह या िजसम क टनाशक व फफंूद नाशक क गसै से क ड व फफंूद को न ट कया जाता है ।

    ले मनेशन (Lamination)

    सेललूोज ए सटेट फोइल व टश ू वारा लेख को मजबतू बनाने क या को ले मनेशन कहत ेह । इस कया म लेख को दो ए सटेट फोइल तथा दो टश ू पेपर के बीच

    सड वच बना दया जाता है । माइ ोडॉ यमेू स (Microdocuments)

    कोई भी डॉ यमेू ट जो इतने बार क (Redused) केल म लखा हो उसे पढने के लये पठनीय मशीन क आव यकता हो । नगंी आँख से नह पढा जा सके, वह माइ ोडॉ यमेू ट कहलाता ह उदाहरण माइ ो फ मस, माइ ो फश, अ ामाइ ो फश, इ या द ।

    सफॉन लॉथ (Chiffon Cloth)

    स क के मह न धाग से बना कपडा, जो लेख को मजबतू बनाने म काम आता है । इसक मह नता के कारण, इससे मर मत के बाद लेख क लखावट क पारद शता भा वत नह ंहोती।

    टश ूपेपर (Tissue Paper)

    ल बे मह न वन प त रेशो से बना कागज । यह लेख के मर मत म काम आता है ।

    प रर ण Preservation संर ण Conservation जांच एव ंसव Examination and Survey

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    नरोधा मक संर ण Preventive Conservation अनु ल या मक संर ण Duplicative Conservation पनु ार य संर ण Restorative Conservation पनु ार Restoration

    1.15 व ततृ अ ययनाथ ंथसूची (References and Further Readings)

    1. Harvery Ross, Preservation in libraries: A Reader, London: Bauker Saua, 1993, 485P.

    2. Elyate D.M.ed., Preservation or document and paper, Washington: Council on Library Resources, 1968, 134p.

    3. Mahapatra P.K. Chakrabarti B., Preservation in libraries: Preservatives, principles and practice, New Delhi: Ess Ess Publication, 2003, 261p.

    4. Mount Ellis, ed., Preservation and conservation of science and technology materials, New York: Haworth press, 1987, 171p.

    5. Mukhopadhyay, Kalyan Kumar and Guha, Parthan Subir, Library conservation, Calcutta: Information Research Academy., 1990, 328p.

    6. Plumbe, W.J., “Storage and Preservation of books, periodicals and newspapers in tropicalclimates,” UNESCO Bulletian for libraries Vol 12, 1958, pp 156–62.

    7. Prajapati C.L., Achivo–library materials: Their enemies and need of first phase conservation, New Delhi: Mittal Publications, 1997, 225p.

    8. Prajapati, C.L., Conservation of documents: Problems and solutions, New Delhi: Mittal Publications 2006.

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    इकाई–2 लेखन साम ी का उदभव एव ं वकास

    Origin and Development of Writing Material इकाई क परेखा 2.0 उ े य 2.1 तावना 2.2 लेखन समा ी का उदभव एव ं वकास 2.3 भारत म मूल प से योग होने वाल लेखन साम ी

    2.3.1 ताड़प 2.3.2 भोजप 2.3.3 सांचीपात 2.3.4 तुल पात 2.3.5 कपड़ा 2.3.6 कागज

    2.4 व भ न कार के कागज एव ंकागज बोड 2.5 साराशं 2.6 अ यासाथ न 2.7 मुख श द 2.8 व ततृ अ ययनाथ थंसचूी

    2.0 उ े य (Objectives) इस इकाई के न न उ े य ह:

    1. लेखन साम ी के उदभव एव ं वकास से अवगत करवाना । 2. मानव स यता के साथ–साथ लेखन साम ी के वकास क जानकार देना । 3. भारत म योग होने वाल लेखन साम ी का अ ययन करवाना । 4. कागज व अ य लेखन साम ी तैयार करने क व धय से प र चत करवाना ।

    2.1 तावना (Introduction) लेखन कला का वकास मानव स यता के वकास के इ तहास म एक मुख तंभ है ।

    लेखन कला के वकास से ह इतर स यता का वकास ती ग त से संभव हो सका है । यहा ँयह कहना गलत नह ंहोगा क लेखन कला व च कला का वकास साथ–साथ ह

    हुआ । ये दोन एक ह तने क दो शाखाय ह । आज क लेखन या से आ दकाल न लेखन या भ न थी । पहले सांके तक लेखन क था च लत थी जैसे क आज आशुलेखन ।

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    व व म जापान, चीन ऐसे देश ह जहा ँआज भी सांके तक लेखन क था है । भारत म सांके तक लेखन था मोहनजोदाड व हड पाकाल न स यता म योग क जाती थी । फर भी चाहे साकें तक लेखन क था हो या आधु नक, दोन म लखने के लये 3 या 4 व तुओं क आव यकता होती है । जैसे आधार, कलम, याह व लखने वाला । जहां कलम वय ंअ र उ क ण कर सकती है वहा ं सफ तीन व तुओं से ह लखा जा सकता है । उदाहरण व प म ी या प थर से प थर या जमीन पर लखना । पर त ु लेख के दो मूलभतू त व होत ेह–थम–आधार, वतीय–म स या याह । इस इकाई म लेखन साम ी के उदभव व वकास तथा

    भारत म योग म आने वाल लेखन –साम ी जैसे भोजप , ताडप , कपडा आ द क जानकार द गई है साथ ह लेखन साम ी तैयार करने क व धय से भी अवगत करवाया गया है ।

    2.2 लेखन साम ी का उदभव एवं वकास (Origin and Development of Writing Material) जब हम लेखन साम ी क बात करत े ह तो दो चीज जैसे आधार व याह हमारे

    मि त क पर उभरती है । यह ज र नह ंहै क ारं भक काल म जब लेखन कला का उदभव हुआ तब आधार के साथ याह का भी योग हुआ हो । हो सकता है लेखन कला के वकास म एक ऐसे यि त का योगदान रहा हो िजसने अपनी अंगलु को कलम के प म योग कर जमीन पर अपने वचार को मूत आधार दया हो । दभुा यवश आज ऐसे महापु ष का नाम हमारे सामने नह ंहै । पर त ुलेखन कला के उदभव म इस या से इ कार नह ं कया जा सकता । कारण कोई भी यि त लेखन कला से पहले कलम व याह क क पना नह ंकर सकता था । अथात य द यह कहा जाये क कलम व याह लेखन कला के उदभव के बाद क खोज ह तो यह कहना कदा प गलत नह ंहोगा ।

    लेखन साम ी के उदभव व वकास क चचा क इस कडी म हम सबसे पहले आधार क बात करग । व व म चर ाचीन काल से आज तक योग म आने वाले लेखन आधार को न न ल खत मुख दो भाग म बांटा जा सकता है । इसे रेखा च 2. 1 म दशाया गया है:

    रेखा च 2.1

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    2.2.1 अकाब नक लेखन आधार

    अकाब नक लेखन आधार क व तार से चचा न नानसुार है: 1. प थर

    अकाब नक लेखन आधार काब नक लेखन आधार क तुलना म थायी मह व के ह । यह नि चत प से कहना मुि कल है क पहले कौनसा लेखन आधार, प थर या प ता लेखन काय के लये योग म लया गया । पर त ुिजस अव था म आ दमानव ने अनेक आकि मक खोज क वह पाषाण काल था । या न वह प थर क गफुाओं म रहता था । उसी का योग उसने अपने दै नक काय म योग होने वाले औजार तथा साम ी को तैयार करने के लये कया । यह संभव है क उसी काल म उसने अपने खाल ण म अपने मन क भावनाओं को मूत प देने के लये प थर से प थर के आधार पर च बनाये हो । अथात ् लखने के लये प थर का योग कया हो । यह एक शोध का वषय हो सकता है । पर त ुयह स य है क वदेश व भारत म लखने के लये प थर का योग कया गया । भारत म मौय काल व इसके बाद के काल म प थर पर शलालेख तैयार करवाये गये । इनम से कई तो अ त स ह । जैसे याग (इलाहबाद) का शलालेख िजसे '' याग शि त'' के नाम से जाना जाता है । यह शलालेख समु गु त का इ तहास लखने के लये एक मुख ोत है ।

    कहा जाता ह क इिज ट का रोसेटा टोन (Roseta Stone of Egypt) जो 5000 वष परुाना है, प थर पर लखाई का अ य त परुाना नमूना है । 2. धातुएँ

    धात ुप का लेखन के लये योग प थर पर लेखन के बाद ह आता है । भारत म ता व का य लेट का योग चुरता से कया गया । इनके अ त र त द ल के कुतुबमीनार के पास एक ऐसा धात–ु तंभ है िजसम लखावट मौजूद है । यह शलालेख एक ऐसी म धात ुसे बना है जो धूप, काश, वषा म वष से खुला खडा है पर त ुजंग का कह ंभी नामो नशान नजर नह ंआता । व वान का कथन है क यह धात–ु तभं मौय काल न है । न चय ह यह हमारे भारतीय के लये गौरव का वषय ह क आज से 2500 वष पवू भी हमारे पवूज ऐसी धात ुका म ण तैयार करत ेथे िजस पर जंग का असर नह ंहोता था । यहा ंयह यान देने यो य बात यह है क प थर व धात ुप पर लखा तो गया पर त ुउ ह पु तकालय साम ी म सि म लत नह ं कया गया । 3. ले टेबलेट व ईट

    अकाब नक लेखन साम ी म जो पु तकालय–स पदा के प म शा मल क जाती ह वे ले टेबलेट व ट ह । इस कार क ले टेबले स 19वीं सद के परुात वीय उ खनन म

    जमीन के अंदर दफन परुानी स यता के अवशेष के साथ ा त हु यी ह । कहा जाता है क सबसे ाचीन टेबलेट पांचवी मले नयम ईसापवू क है और बेबीलो नया क स यता से संबं धत है । इसके अलावा असी रया (Assyria) व ह ीस के लोग ाचीन काल म इस कार क टेबलेट व ईट लखने के लये बनात े थे । व वास कया जाता है क ले टेबलेट का योग बेबीलो नया से असी रया व पि चम म म (Egypt) तक यापार के मा यम से फैला ।

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    बेबीलो नया व असी रया के पु तकालय म ऐसी ले टेबलेटस बहु तायत क सं या म उपल ध ह । 1833 म एक टश परुा वद सर हेनर लायाड ने ईराक म मोसलू (Mosul) के ननवेह (Nineveh) नामक थान पर एक सावज नक पु तकालय म 10000 ले टेबलेट क खोज क थी । कहत ेह क इस परुतकालय को असी रया के बादशाह अशुरबनीपालन ने 6वीं शता द ई.प.ू म था पत कया था । अ य ाचीन शहर जैसे उर, कश, टेलो व नधूर के पु तकालय म भी ऐसी ले टेबले स उपल ध ह । इन ले टेबले स म धम–शा , ग णत, यापार, याय व इ तहास संबधंी जानकार उ क ण है ।

    ले टेबले स व ईट (Bricks) को साफ गील म ी से तैयार कया जाता था और गीले म टाइलस से लखा जाता था, ता क आसानी से लखा जा सके । लखने के उपरा त उ ह छाया या धूप म सुखाया जाता था । चू ं क म ी क ये टेबले स सूखने के बाद भी गरने पर टूट सकती थी अत: कुछ और मजबतूी दान करने के लये इ ह पकाया भी जाता था ।

    ले टेबले स पर लखने का एक टका था िजसे यनूी फाम राइ टगं के नाम से जाना जाता है । लखावट के लये वेज क आकृ त वाले (Wedgeshaped) टाइलस का योग कया जाता था । यह वेज शेप के माक बनाता था । पर त ु6वी शता द ई.पवू म अर मक अ फाबेट व अर मक भाषा के वकास के बाद लेटेबले स का योग धीरे–धीरे कम होने लगा य क यह अर मक लखावट के अनकूुल नह ंथी । कैनीफाम लखावट वाल ले टेबले को च 2.1 म दशाया गया है ।

    च 2.1 – कैनीफाम लखावट क एक ले टेबलेट

    बोध न – 1 अपना उ तर लखने के लए खाल थान का योग करे । 1. लेखन समा ी का उ व बताइये । .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... ............ .. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... ...... ........ ......... .... 2. अकाब नक लेखन आधार कौन–कौन से है ? .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... ............ .. ......... .... .............. ......... .. ........ ......... ......... .......... ...... .. ............ ......... .... 3. काब नक लेखन आधार कौन–कौन से है ?

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    .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... ... .............. ......... .......... ......... ......... .. ........ ...... .............. ..... .... ...... 4. प थर लेखन आधार के बारे मे अपने वचार ल खये । .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... ...... ........ ......... ....... 5. धातु लेखन आधार को प ट क िजये । .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .............. ......... .... .............. ......... .......... ......... ......... .......... ...... .... .......... ......... .......

    2.2.2 काब नक लेखन आधार

    1. पेपाइरस पेपाइरस का थम योग 3500 ई.प.ू कया गया । पेपाइरस शीट पेपारस के पौधे से बनाया जाता था । इस पौधे के तने के ह से से ल बा क त ुपतला रेशेदार त त ुतैयार करत ेथे तथा उनसे पेपाइरस शीट तैयार करत ेथे । पेपाइरस पौधे को च सं या 2.2 म दशाया गया है । । शीट तैयार करने के लये एक समतल व चकने मजबतू फश पर पहले ये रेश ेएक दशा म समाना तर फैलात ेथे तथा इसके बाद इनके ए ास दसूरे रेश ेफैलात ेथे । इन रेश म अपनी जगह ि थर (Fix) रखने के लये इनके कनार पर नील नद क म ी का योग करत ेथे । तदोपरा त इस ढांचे को ट या प थर से कुचलत ेथे ता क पेपाइरस पदाथ से ह रेश के बीच का र त थान भर जाये । इस कार से एक खुरदर शीट तैयार करत ेथे । दे खये च 2.3।

    च 2.2 – पेपाइरस का पौधा

    च 2.3- पेपाइरस शीट

    यह शीट लखने यो य नह ंहोती थी । इस शीट से लखने क माप क छोट –छोट शीट काट ल जाती थी तथा इनके दोनो सतह पर नील नद क चकनी म ी का लेप चढा

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    कर सुखा लया जाता था । अब ये शीट लखने के लये तैयार मानी जाती थी । यह पेपाइरस शीट तैयार करने क आरं भक कला थी । जैसे–जैसे समय बीता, मनु य ने अपना ान आगे बढाया और इतर काल म आधु नक कागज से मेल खाने वाल पेपाइरस शीट बनायी तथा उनका लखने के लये योग कया ।

    म वा सय ने आगे चलकर पेपाइरस क छोट शीट के अ त र त बडी शीट पर भी लखा और प रर ण क ि ट से उ ह रोल बनाकर रखा । यह बात म वा सय क वाल प टगं पर दशाये पेपाइरस रोल से प ट होती है । म वासी पेपाइरस शीट के ऊपर अपने जादईु मं लखकर उ ह क म दफन करने क व तुओं के अ दर रख देते थे । इस कार के द तावेज को ''बकु ऑफ डेड' क सं ा द जाती थी ।

    लेखन साम ी के प म पेपाइरस शीट का योग म से ीस, असी रया व इटल तक फैला और एक समय यह उस समय क मुख लेखन साम ी बन गया । उपल ध ाचीन लेख से इस बात का पता चलता है क यह साम ी 900 ई.प.ू तक भूम य सागर के आस

    पास के इलाक म लेखन के लये योग क जाती थी । ीक वा सय ने पेपाइरस पर लखे द तावेज के पु तकालय उन तमाम शहर म था पत कये िज ह उ ह ने ससल से कालासागर तक बनाया था । कहा जाता ह क एले जे डर महान ने एले जेि या नाम का शहर 332 ई0 प0ू बनाया और वहा ं पेपाइरस पर लखी पु तक का एक पु तकालय था पत कया । एले जे डर महान के उ तरा धका रय के समय म यह पु तकालय हेलेनेि टक संसार का गौरव था और यहा ं500000 से यादा पेपाइरस ो स सुर त थे । इसम भारत समेत दु नया के बहु त से देश का सा ह य सुर त था ।

    वयना के आचडयवू रेनर म आज पेपाइरस का सबसे अ धक भ डार सुर त है । इसक सं या लगभग 100000 से भी यादा बतायी जाती है । इसम से 50 तशत से यादा आर बक मे लखे ह ।

    आज उपल ध पेपाइरस के लेख व रोल बडी जीण–शीण दशा म है । इनम से कुछ धूप व गम के भाव से मुड गये है, कुछ के कोने टूट गये ह और कुछ पर बार क छ हो गये ह । इसके अलावा कुछ सूख कर आपस म चपक गये ह । उनका पेपाइरस इतना कमजोर हो गया ह क इ ह बना नमी दये अलग करना उनक मौत को बलुावा देना है । काश व अ य कारण से कुछ लख क याह धू मल पड गयी है िजनको पढने के लये मै नीफाइंग लास का योग करना पडता है । 2. खाल (Animal skin)

    जहा ँतक खाल को लेखन–आधार के प म योग क बात ह इसका योग पेपाइरस के वक प के प म 2500 वष ई.प.ू परगमम म ारंभ हुआ । ऐसा व वास कया जाता है क क ह राजनै तक कारण को लेकर जब म के राजा ने परगमम रा य को पेपाइरस क आपू त बदं कर द तो वहा ं के राजा ने अपने दरबार कमचा रय को यह हदायत द क पेपाइरस का वक प ढंूढे।

    मानव उदभव व �