vardhaman mahaveer open universityassets.vmou.ac.in/gp05.pdf · अंजु सुथार...

277
1

Upload: others

Post on 19-Oct-2020

0 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • 1

  • 2

  • 3

  • 4

  • 5

    पा य म अ भक प स म त अ य ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा (राज थान)

    संयोजक / सद य संयोजक डॉ. बी. अ ण कुमार सह आचाय,राजनी त व ान वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    सद य ो. (डॉ.) एम.एल. शमा

    आचाय,गांधी अ ययन के पंजाब व व व यालय, चंडीगढ़

    ो. आर.एस. यादव वभागा य (राजनी तक व ान) एव ं नदेशक, गांधी अ ययन के कु े व व व यालय, कु े

    ो. के.एस. भारती वभागा य (गांधी एवं वचार) ट .के.एम. नागपुर व व व यालय, नागपुर

    ो. एम.एल. शमा आचाय,गांधी अ ययन के पंजाब व व व यालय, चंडीगढ़

    ो. एन. राधाकृ णन ्पूव अ य गाधंी मृ त एव ंदशन स म त राजघाट, नई द ल

    ो. पी. मो टयानी शां त एव ंसंदभ नवारण वभाग गुजरात व यापीठ,अहमदाबाद गुजरात

    स पादक एव ंपाठ लेखक स पादक डॉ. बी. अ ण कुमार सह आचाय,राजनी त व ान वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    इकाई लेखक इकाई सं या इकाई लेखक इकाई सं या डॉ. अंजु सथुार या याता, राजनी त व ान राजक य महा व यालय, बाडमेर

    1, 8 डॉ. फूल सहं गजुर या याता, राजनी त व ान राजक य महा व यालय, झालावाड़

    7

    डॉ. प लव म तल या याता, राजनी त व ान राजक य महा व यालय,कोटपुतल

    2 डॉ. राधाकृ ण या याता, राजनी त व ान, साभरलेख

    9

    डॉ. पकंज गु ता या याता, राजनी त व ान एल.बी.एस. राजक य महा व यालय,कोटपुतल

    3, 10, 13

    डॉ. सगंीता वजय या याता, राजनी त व ान एव ंलोक शासन वभाग बन थल व यापीठ, बन थल , टॉक

    11

    ो.(डॉ.) यंकर उपा याय बनारस ह द ूयू नव सट बनारस

    4 डॉ. पा मगंलानी या याता, राजनी त व ान एल.बी.एस. राजक य महा व यालय,कोटपुतल

    12

    डॉ. वी.के. राय सह आचाय, राजनी त व ान इलाहाबाद व व व यालय, इलाहाबाद

    5 डॉ. अशोक चोस कर या याता, राजनी त व ान वभाग शवाजी व व व यालय, को हापरु(महारा )

    14

    डॉ. जुगल दाधीच सहायक आचाय, गाँधी एव ंशां त अ ययन के जैन व व भारती व व व यालय, लाड़न ू

    6 डॉ. मनीष शमा सहायक आचाय, गाँधी अ ययन के पंजाब व व व यालय, च डीगढ़

    15

    अकाद मक एवं शास नक यव था ो.(डॉ.) वनय पाठक

    कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा

    ो. (डॉ.) बी.के. शमा नदेशक,संकाय वभाग

    वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा

    ो.(डॉ.) पी.के. शमा नदेशक, े ीय सेवाए ं

    वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा

    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    उ पादन : अ ैल 2013 ISBN - 13/978-81-8496-379-3 इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. ख.ु व., कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या अ य पनुः ततु करने क अनुम त नह ंहै। व. म. ख.ु व., कोटा के लये कुलस चव व. म. ख.ु व., कोटा (राज.) वारा मु त एव ं का शत

  • 6

    GP-05 वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    वषय सूची गाँधी एवं अ य वचारक इकाई सं या इकाई का नाम पृ ठ सं या इकाई - 1 टाल टॉय और गाधँी 7—24 इकाई - 2 रि कन एव ंगाधँी 25—44 इकाई - 3 थोरो और गाँधी 45—64 इकाई - 4 गाँधी एव ंमा स 65—89 इकाई - 5 गाँधी एव ंमाओ 90—104 इकाई - 6 गोखले एव ंगाधँी 105—119 इकाई - 7 तलक एव ंगाँधी 120—132 इकाई - 8 गाँधी एव ंनेह 133—155 इकाई - 9 गाँधी और भीमराव अ बेडकर 156—171 इकाई – 10 गाँधी और वनोबा भावे 172—191 इकाई – 11 गाँधी और जय काश नारायण 192—204 इकाई – 12 गाँधी एव ंलो हया 205—216 इकाई – 13 गाँधी और जे.सी. कुमार पा 217—229 इकाई – 14 गाँधी और एम.एन. रॉय 230—248 इकाई – 15 गाँधी और मा टन लथूर कंग जू नयर 249—264 इकाई – 16 गाँधी और ने सन म डलेा 265—276

  • 7

    इकाई-1 टाल टॉय और गाँधी

    इकाई क परेखा 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 लओ टाल टॉय (1828-1910) : सं त जीवन प रचय 1.3 गाँधी (1869-1948) : सं त जीवन प रचय 1.4 टाल टॉय और गाँधी के वचार म समानता

    1.4.1 मनु य अि त व, ई वर और धम संबधंी वचार 1.4.2 अ हसंा संबधंी वचार 1.4.3 आधु नक औ यो गक सं कृ त संबधंी वचार 1.4.4 रा य और शासन के त ि टकोण 1.4.5 आ थक वषयो पर टाल टॉय और गाँधी का ि टकोण 1.4.5 आ थक वषयो पर टाल टॉय और गाँधी का ि टकोण 1.4.6 टाल टॉय और गाँधी म अ य समानताय

    1.4.6.1 ाचीन भारतीय थ का मह व 1.4.6.2 आ मकथा लेखन 1.4.6.3 साधरणत यि त से महा मा क ओर उ व 1.4.6.4 मा उपदेश देने तक सी मत नह ,ं बि क जीवन म वय ंअपनाने

    का भी काय 1.4.6.5 गाँधी भोजन के बल समथक 1.4.6.6 अपने नाम से कसी 'वाद' को चा रत करने का ख डन

    1.5 टाल टॉय और गाँधी के वचार म भ नता 1.6 साराशं 1.7 अ यास न 1.8 संदभ थं सूची

    1.0 उ े य इस इकाई के अ ययन प चात व याथ न न ल खत के बारे म अपनी समझ

    वक सत कर सकगे:- टाल टॉय और गाँधी के जीवन के बारे जानकार । टाल टॉय के वचार और काय । गाँधी के वचार और काय । टाल टॉय और गाँधी म व यमान समानताय और असमानताय ।

  • 8

    1.1 तावना शां त क कामना सदैव ह मनु य के लए सव प र ल य म से एक मह वपणू ल य

    रहा है । टाल टॉय और गाँधी दो ऐसे महान दाश नक ह िज ह ने व व शाि त के लए बहु त कुछ लखा कहा और कया है । य द हम अ हसंा मक आदोलन के इ तहास पर गौर कर तो गाँधी और टाल टॉय का इसम वशेष थान है । टाल टॉय ने अ हसंा के वषय पर अनेक प , नब ध, पै फेलैट आ द लखे और यह सं या इतनी अ धक थी क इनसे एक पु तकालय न मत हो सकता था । अ हसंा के बल समथक के साथ-साथ टाल टॉय और गाँधी लोगो म आपसी ेम और भाईचारा पर आधा रत अ तर-संब ध को वक सत कर व व-ब धु व क कामना करत ेथे । स चाई, ईमानदार , सादगी, शार रक म, परोपकार सेवा, इ या द सदगणु को दोन ने मनु य जीवन और शाि तमय व व के लए अप रहाय माना है । दोन क महानता इस त य से भी द शत होती है क दोन ने िजन स ा त को तपा दत कया, उ ह स ा तो पर अमल करत ेहु ए दोनो महापु ष ने अपना जीवन यापन करने का यास कया । सरल और सादगीपणू जीवन म उनक कथनी और करनी म अ तर समा त हो चुका था । व व शां त और अ हसंा के लए उनका यास और समपण हमारे लए ेरणा के ोत ह। आज के भौ तकवाद विै वक यगु म हम कन मू य को आ मसात करत ेहु ए आगे बढे और समकाल न सम याओं का अ हसंा मक नराकरण कैसे कर, इस दशा मे टाल टॉय और गाँधी का दशन हमारा माग श थ करता है ।

    1.2 लओ टाल टॉय (1828-1910) : सं त जीवन प रचय टाल टॉय का ज म स के तुला ांत के यासनाया पोलयाना नामक थान पर 28

    अग त 1828 को हुआ । उनके पता का नाम नकोलाइ इ लइच टाल टॉय था और मा ँका नाम मा रया वॉलकोन काया था । लओ नकोले वक टाल टॉय अपने माता- पता क चौथी संतान थे । टाल टॉय के बा याव था म ह उनके माता- पता का देहा त हो गया था । उनके माता- पता क मृ यु के बाद टाल टॉय का लालन-पालन उनक मौसी तातयाना ने कया । उनक श ा कजान व व व यालय म हु ई और यवुाव था म उनका अ धकाशं समय जुआ खेलने, म यपान इ या द मे यथ हुआ, िजसका टाल टॉय काला तर म बहु त अफसोस के साथ बयान करत ेह । कजान व व व यालय से वे डगर का अ ययन परूा नह ंकर पाए । पर त ुकुछ समय बाद टाल टॉय ने काननू का अ ययन समा त कर अपने े म दास के ब च को पढाने के लए एक ग तशील व यालय क थापना क । जीवन यापन के लए उ ह ने व भ न कार के काम कए पर कसी म सफल नह हु ए । अ त म भाई के मा यम सम वे सेना म वेश करने म सफल हु ए । टाल टॉय के सेना म रहने के दौरान उनक पहल कहानी का शत हु ई । यह मया यु का समय था। 1852 से 1856 के बीच उ ह ने अपने जीवन

    पर आधा रत तीन उप यास लखी ं और का शत करवायी – चाइ डहु ड(Childhood) बॉयहु ड(Boyhood) और यथू (Youth)। यु के य अनभुव और हसंा ने टाल टॉय के शाि तवाद झान को उ प न कया और बढाया । इ ह ंअनभुव ने उनको यु क नरथकता

  • 9

    और भयावह दु प रणाम संबधंी वचार को भा वत कया । वष 1856 म सेना से वदा लेने के बाद टाल टॉय ने पि चमी यरूोप वशेषकर ांस और जमनी क या ाएं क । इसी या ा के दौरान उ होने ांस के पे रस नगर म एक सावज नक फांसी क याि व त का य देखा िजसने उनके अराजकतावाद वचार को पनपाया। इस बारे म उ ह ने अपने म को लखा क ''स य तो यह है क रा य एक सािजश है नमाण केवल शोषण मा के लए नह ंअ पत ुनाग रक को ट करने के लए कया गया है । आगे से कभी सरकार क सेवा कह ं क नह ंक ँ गा । '' मश: उनका आ याि मक झान बढने लगा और वे भौ तकवाद विृ तय से थक रहने के सचेत यास करने लगे । वष 1862 म, 34 वष क आय ुम टाल टॉय ने अपने एक म क बहन िजनका नाम सो फया ए येवना बेहस, से ववाह कया । टाल टॉय ने सो फया को बीते जीवन क उनक सभी करनी को अपनी डायर भट कर बताने का यास कया । सो फया ने टाल टॉय को सब कुछ जानत े हु ए अपनाया और उनका ववैा हक जीवन ार भ मे सुखद रहा । वष 1862 म अपने ववाह के प चात दोन सादगीपणू जीवन जीने के यास म जुट गए । टाल टॉय ने अपने स उप यास 'वार एंड पीस' पर काय करना शु कया । सो फया ने न केवल घर के दा य व को बखूबी संभाला ब क टाल टॉय के लेखन काय म भी अनेक कार से मदद क । टाल टॉय क य तता और घर से बाहर ल बे समय तक रहने के दौरान, सो फया ने ब च को पढाना, कपड ेसीलना संगीत का अ ययन कराना जैसे अनेक काय ने संभाला । 'वार एंड पीस' के बाद टाल टॉय के कई नब ध और उप यास का शत हु ए िजसमे ‘अ ना केरे नना' मुख है । बाद के वष म उ ह ने 'द डेथ आफ इवान इ लयच’, 'द

    यटूजर सोनाटा' और रसर न' नामक उप यास लखे । पचास वष क आय ुतक आते-आते टाल टॉय अ तररा य तर पर स हो चुके थे

    । पर त ुअपने चार और हसंा मक, अनै तक और अ यायपणू वातावरण से टाल टॉय व च लत होने लगे थे और उनको गहर नराशा का भाव घेरने लगा । वे मनु य जीवन के मूल त व और उ े य से जड़ु े न के उ तर ढँूढने म त ल न हो गए । उनका दा प य जीवन मश: कलहपणू होने लगा । वष 1888 म टाल टॉय क 13वीं एव ंअं तम संतान का ज म होने के बाद टाल टॉय क प नी और उनके मु य श य चेटकोव आपस म बहु त झगड़ने लगे । इसके बाद से लेकर टाल टॉय क मृ यु तक घर का यह झगड़ा गहरा होता रहा । टाल टॉय ने अपनी स पि त, वरासत मे मल हु ई तथा वय ं वारा अिजत क हु ई, और लेखन से ा त कॉपीराइट को प र याग कया और इस दौरान टाल टॉय ने वय ंको लेखन के लए सम पत कर लया । इसम उ ह ने क पनावाद सा ह य से लेकर ईसाई अराजकतावाद पर नर तर लेखन काय कया । वष 1910 के म य मे जब उनके घर म संकट बढने लगा तो उ ह ने यासनाया पोलयाना ि थत अपना घर और प रवार छोडने का नणय कया । सद के दन का बात है, 28 अ टूबर 1910 को रात म अपनी बेट एले से ा के साथ वे घर से नकल पड े। वे नजद क के रे वे टेशन अ टापोवो तक ह पहु ँच पाए । तेज सद के कारण वे त काल टेशन पर ह नमो नया से सत हो गए । टेशन मा टर उ ह अपने घर ले गए । लगभग

  • 10

    10 दन बाद, 7 नव बर 1910 नमो नया को के कारण 82 वष क आय ुम उनका नधन हुआ ।

    1.3 गाँधी (1869-1948): सं त जीवन प रचय महा मा गाँधी का ज म 2 अ टूबर, 1669 को गजुरात ात के त काल न राजकोट

    रयासत पोरब दर म हुआ था । उनक माता का नाम पतुल बाई और पता का नाम करमच द गाँधी था । महा मा गाँधी उनके तीसरे पु थे और उनका नाम मोहनदास रखा गया था और यार से उ ह मो नया पकुारा जाता था । गाँधी प रवार मोध ब नया जा त के थे तथा जूनागढ़ रा य के कु टयाना जगह से स बि धत थे । यह प रवार आ थक प से समृ और राजनी तक-सामािजक प से ति ठत भी था और धा मक चचाऐं भी होती थी । महा मा गाँधी क धम और ई वर स ब धी मा यताय उनक माता पतुल बाई से काफ भा वत थी । बचपन म गाँधीजी पर माता- पता के अ त र त और अनेक भाव पड ेजैसे, उनके घर पर काम करने वाल नौकरानी र भा ने गाँधीजी को 'रामनाम' के अचूक बाण क सीख द , उ हे दो नाटक - वण पतभृि त' और ह र च ' ने अ य त भा वत कया, उनके घर पर रामायण और गीता

    का पाठ और अनेक धम के लोगो का आवगमन और धा मक चचाऐं होती थी िज होने गाँधी क धा मक वचार को भा वत कया । राजकोट म गाँधी क ाथ मक और हाई कूल क श ा परू क । उ ह ने मै क पर ा उ तीण कर भावनगर के समालदास कॉलेज म बी.ए. पा यकम म वेश लया िजसे उ ह ने बीच म छोड वा पस राजकोट लौट आये । इस समय उ ह सलाह द गई क काननू क पढ़ाई कर और इसके लए उ ह लंदन भेजा जाए । अनेक क ठनाइय का सामना करत ेहु ए अ तत: काननू के अ ययन के लए, लदंन जाने म सफल हु ए । ारि भक भटकाव के बाद उ ह ने अपना यान काननूी अ ययन म लगा कर लॉ क पर ा उ तीण क । इं लै ड के हाई कोट म गाँधीजी ने अपना नाम दज करवाया और 12 जून 1891 को भारत के लए रवाना हु ए ।

    भारत आकर गाँधीजी वकालत काय करने म असफल रहे । तभी उ हे द ण अ का म भारतीय फम दादा अ दलुा ए ड क पनी क एक मुकदमे म परैवी कर रहे नामी वक ल-बे र टर को फम का प अ छ तरह समझाने के लए काम करने का ताव ा त हुआ । गाँधीजी ने इसे वीकार कर द ण अ का जाने का नणय लया । अ ेल 1893 म गाँधीजी द ण अ का के लए रवाना हु ए ।

    गाँधी ने द ण अ का वास के दौरान पाया क वहा ँसरकार वारा अपनाये गये रंग-भेद नी त के कारण अनेक कार क अ यायपणू ि थ तया ँऔर यवहार चलन म ह । सभी अ वेत, अ का के मूल वासी काले लोग ह या भूरे रंग के कूल कहलाने वाले भारतीय, इन अ यायपणू ि थ तय और यवहार के शकार न य दन होत ेरहत ेथे । गाँधी वय ंभी इनका शकार हु ए । मा र सबग रे वे टेशन पर उ ह, उ चत टकट होने के बावजूद भी समान स हत 'फक' दया था । रेलगाड़ी के फ ट- लास के डबे म एक गोरे सा हब ने गाँधी का उनके साथ सफर करने पर आपि त य त क और य क गाँधी ने उस डबे से उतरने से मना कर दया, तो उ ह समान स हत रेलगाडी के उस डबे से बाहर 'फक' दया गया । उसी रात मा र सबग

  • 11

    रे वे टेशन पर उ ह ने द ण अ का म या त अ यायपणू ि थ तया ँऔर यवहार का वरोध करने का नणय लया । ऐसा वे केवल अपने लए नह ंकरना चाहत ेथे बि क द ण अ का म अपने ह दु तानी भाईय को भी सामािजक आ थक, राजनी तक अ धकार दलाने के लए करना चाहत ेथे । इस तरह द ण अ का म या त असमानता और अ याय का वरोध करने के संघष म गाँधी सम पत हो गये और स या ह का काला तर म द ण अ का म ज म हुआ।

    द ण अ का के सफल सावज नक जीवन प चात गांधीजी 1914 म भारत लौटे । यह उनका समकाल न भारत राजनी तक परतं ता और अनेक कार के आ थक सम याओं और धा मक-सामािजक कुर तय से सत था । 1916 से 1918 के बीच सचंा लत च पारण, अहमदाबाद मल और खेड़ा स या ह के प चात गाँधीजी ने अनेक जन आंदोलन का नेतृ व कया । अं ेज के शोषणा मक उप नवेशवाद शासन से मु त करने के लए गाँधीजी ने 1919 का रॉलत स या ह, खलाफत आदोलन, 1920 का असहयोग आदोलन, 1930 का स वनय अव ा आदोलन और 1942 का भारत छोड़ो आदोलन जैसे अनेक रा य जम आंदोलन का नेतृ व कया और भारत को आजाद दलाने म अहम भू मका नभाई । भारतीय समाज म या त धा मक-सामािजक कुर तय के उ मूलन के लये भी उ ह ने स य यास कए । ह रजन और म हलाओं के उ थान म उनका मह वपणू योगदान रहा । सा दा यक सौहाद को था पत करने म भी उ ह ने भरसक यास कए । आ थक सम याओं को दरू करने के लए

    उ ह ने कृ ष, कुट र उ योग, रोजगारो मखुी श ा, इ या द क योजनाओं के बारे म अपना दशन दया और इ ह कायाि वत करने के यास भी कए । उ हे वारा तुत रचना मक काय म भारतीय समाज और अथ यव था के पनुगठन और सु ढ़ करने क दशा म मह वपणू यास थे।

    इस तरह भारतीय वत ता आ दोलन को जन आ दोलन बनाकर नै तक और अ हसंक साधन के योग से उसे वतं करने म गाँधी का मह वपणू योगदान रहा । वतं त भारत को सश त और सव दयी रा बनाने तथा समाज म याय और भारत व भाव था पत करने का उनका अनठूा सपना था और उ ह ने इसक काय योजना

    के बारे म व ततृ ववेचना भी क और यास भी कए । पर त ुदभुा य से वतं ता ाि त के प चात ्उ ह अ धक समय नह मला य क 30 जनवर , 1948 को उनक ह या

    कर द गयी थी ।

    1.4 टाल टॉय और गाँधी के वचार म समानता य तो टाल टॉय और गाँधी के वचार म बहु त सार समानताय देखने को मलती ह

    और टाल टॉय वारा लेखन के अ ययन और कुछ प यवहार के प चात नि चत ह गाँधी टाल टॉय के वचार से अनेक कार से भा वत हु ए ह गे । ले कन गाँधी ने टाल टॉय के त न न ल खत तीन बात के लए ऋणी बताया :-

  • 12

    1. टाल टॉय ने उ ह सखाया क यि त को उन सब बात का अनसुरण अपने जीवन म करना चा हए िज ह वह दसूर को अनसुरण करने के लए कहता है । गाँधी ने कहा क टालरटॉय स य के मसाल ह ।

    2. टाल टॉय ने अ हसंा के त उनके व वास को और सु ढ कया । गाँधी ने कहा क समकाल न यगु म टाल टॉय ई वर वारा भेजे गए अ हसंा के सबसे महान दतू ह ।

    3. टाल टॉय ने 'रोट के लए शार रक म क अ नवायता' स ा त को बताया है । व ततृ प म टाल टॉय और गाँधी के वचार म व यमान समानताओं को

    न न ल खत प म य त कया जा सकता है :-

    1.4.1 मनु य अि त व, ई वर और धम संबधंी वचार

    टाल टॉय और गाँधी के वचार म समानता का एक मह वपणू आधार है यह है क दोनो मनु य अि त व से जुड ेहु ए न के उ तर ढँूढने का यास करत ेह और उसके आधार पर अपने सम त दशन को बढ़ात ेह । अधेड उ से जीवन के अं तम तक टाल टॉय क ची जीवन के आ याि मक प क तरफ अ धक केि त होने लगा । वष 1879 म टाल टॉय मानव अि त व से जुड़ ेमूल न को उठात े हु ए उ ह ने कहा, 'मेरा सवाल सबसे सरल है जो मूख से लेकर समझदार तक येक यि त क आ मा म न हत है । यह वह सवाल है िजसका जवाब जाने बना कोई जी वत नह ंरह सकता, जसैा क मने अपने अनभुव से जाना है । न है क, म आज या कर रहा हू ंम कल या क ंगा ? इससे या नकलकर सामने आएगा ? इसी कार मेरे परेू जीवन से या अथ नकलेगा ?'' टाल टॉय के अनसुार ई वर जीवन का पणू, अनतं और अमर ोत है । मनु य कहा ँ से आया है ? वह कौन है ? जैसे सवाल का उ तर टाल टॉय ने ई वर के संदभ म समझने का य न करत े ह । उनके मतानसुार सम त जीवन का ोत ई वर है और ई वर के लए ह मनु य को सम पत होना चा हए । उनके अनसुार ईसा मसीह का जीवन कुछ हद तक हम सखता है क मनु य ई वर के लए कैसे जी सकता है । ई वर और मनु य म उनके अनसुार पता-पु जैसे सबधं व यमान है और यह संबधं ेम पर आधा रत है । टाल टॉय के अनसुार संबधं का ेम पर आधा रत होने का मतलब है सेवा और सेवा का मतलब होता है याग करने के लए तैयार रहना । टाल टॉय के दशन म ेम, सेवा और याग आ म संयम के भाव से भी घ न ठ प से जुडा हुआ है । टाल टॉय ने कहा क समन ऑन द माऊँट कोई विै तक मुि त का रह यवाद स ा त नह ंहै बि क संपणू जीवन का दशन है । उ ह ने नई एव ंपरुानी टे टामट कई बार पढ़ा और बाई बल पर नर तर चचा और ट प णया ंक । वे स चे ईसाई थे िज ह ने सभी बाहर आड बर और पाख ड का वरोध कया । स य न ठा, अ हसंा का पालन, अप र ह, अ तःकरण क आवाज पर जीना, परोपकार क भावना रखना, इ या द टाल टॉय के अनसुार े ठ जीवन जीने के आधारभूत ल ण ह । आ मशु कर जीवन से जुड़-े उपयु त, मू य को अपने जीवन आचरण का आधार बनाने पर यापन करने पर टाल टॉय ने जोर दया । उ ह ने केवल उपदेश देने तक अपने आप को सी मत नह ं रखा बि क वय ंअपने जीवन म भी इ ह आ मसात कया ।

  • 13

    उनका मानना था क नै तक नयम को समझना मनु य का मह वपणू काय नह ,ं अ पत ुऐसा करना मानवता का एक मा काम है ।

    गाँधी के लए जीवन का आ याि मक प बहु त मह वपणू था । यि त को मूल प से आ याि मक मानत े हु ए उ होने मनु य अि त व के साथ कुछ आ याि मक मू य क अप रहायता को वीकारा है । स य, अ हसंा अप र ह, अ तेय, ब मचय, ेम, इ या द मानव अि त व से जुड ेआधारभूत मू य है । इन मू य को ा त करना अथात इ हे अपने आचरण का नधारक त व बनाना ह मनु य का धम है । इन मू य क ाि त को ह गाँधी आ मानभुू त माना है । गाँधी मानत ेथे क स पणू सिृ ट के पीछे ई वर का हाथ है, ई वर सब म नवास करता है और ई वर ह अि तम स य है । सम त सिृ ट के ोत के प म ई वर मनु य म भी व यमान है और इस प म वे अ तरा मा के प म व यमान ह । ई वर ह उनके अनसुार परम और अि तम स य है । अत: वे मानते थे क ई वर क ाि त ह मनु य जीवन का येय है । इस परम स य के त समपण ह मनु य का कत य है । गाँधी के लए ई वर क ाि त का यास कोई एका त थान जाकर या भौ तक जगत को याग कर योगी या साध ू वारा कए जाने वाला यास जैसा नह ंहोना चा हए, अ पत ुभौ तक जगत म रहत े हु ए ई वर क अ य सिृ ट के साथ, वशेष प से मनु य के साथ (इनम भी वशेष प से द न, दखुी और असहाय, लोग के साथ) सामंज यपणू और सौहादपणू संबधं था पत करत ेहु ए जीवन यापन करना है । ऐसा जीवन गाँधी के लए स य, अ हसंा अप र ह, अ तेय, ब मचय, ेम, इ या द जैसे आधारभतू मू य से प र ल त है । साथ ह ऐसा जीवन सादगी सरलता और आ म- नय ण या संयम को भी आव यक मानता है । गाँधी ने अपने आप को हदं ूकहा था, पर त ुऐसा कहने के पीछे उनका कोई वशेष स दाय या मत से जुड़ने और उनके तीक तक सी मत रहने से नह ंथा । उनक धम संबधंी धारणा अ य त यापक है और मूल प से यह नै तकता और मानवीयता से जुड़ी हु ई है । यह कोई यि त वशेष क मुि त मा का साधन नह ंअ पत ु व वब धु व और व व-क याण का भावना से े रत है । टाल टॉय क तरह गाँधी ने भी केवल श दो या उपदेश तक अपने आप को सी मत नह ंरखा बि क अपने जीवन म अनेक योग कर इनम न हत स य को पहचान कर उ ह अपने अ चरण का आधार बनाया । इस तरह टाल टॉय और गाँधी के कथनी और करनी का भेद समा त हो चुका था । इस लए यह कहना गलत नह ंहोगा क दोन दाश नक मा नह ंथे अ पत ुमानवीयता के े ठ श क थे िज ह ने अपने उपदेश को वय ं के तर पर सव थम अपनाया । मा मनु य वारा उ त यास करना टाल टॉय और गाँधी के लए मह वपणू था । दोन कमयोगी माने जा सेत े ह

    िज ह ने फल क कामना कए बना कम कया । इस संबधं म तो गाधँी टाल टॉय से भी आगे जात े हु ए तीत होत ह य क उ ह ने अपने जीवन काल म ह अपनी राजनी तक, सामािजक और आ थक ग त व धय म स य प से सामािजक तर पर, विै तक और सं थागत तर पर, आ याि मक मू य को आचरण और याओं का आधार बनाने का अथक यास कया और आं शक सफलता भी अिजत क ।

  • 14

    1.4.2 अ हसंा संबधंी वचार

    अ हसंा के बल समथक म लओ टाल टॉय का नाम अ णी है । वे एक ऐसे ता कक अ हसंावाद थे िज ह ने अ हसंा के व भ न प पर बहु त व ततृ प से लखकर मनु य जीवन और व व क याण के लए इसे अप रहाय बताने का यास कया है । उनका समकाल न व व हसंामयी वातावरण म सत था । शोषण और अ याय समाज के चार तरफ फैल चुका था । आधु नकता क चकाच ध म फंसकर यि त अपनी वाथ को कसी भी तरह से परूा करने म संल न था । हसंामयी वातावरण म अ के नमाण और भंडारण क रा य म होड़ सी मची हु ई थी । उस दौर म राजनेताओं वारा अ के नमाण और भंडारण को यायो चत ठहराने का वरोध करत े हु ए टाल टॉय ने अपनी लेखनी और तक के मा यम से इनक आलोचना क और वरोध कया । साथ म यु का वरोध कर अ हसंा और शाि त क ाि त के लए उ ह ने भरसक यास कए । नै तकतायु त जीवन और आम-आदमी (कृषक) का सादगीपणू जीवन अनके लए अनकुरणीय बन गया । अ हसंा जैसे वषय पर उ होने आम जनता से संवाद नरंतर जार रखा और इसको उनके वारा अपनाये जाने पर जोर दया गया ।

    टाल टॉय ने इसाई अ हसंा पर धम थंस मत और थंा मक माण के साथ अ धकारपवूक तक कए । ईसाई धम के 'टेन कमा डम स म व णत नदश म, वशेष प से ये नदश क 'एक यि त को वह आचरण करना चा हए जो वह अ य यि त से अपने त आचरण क इ छा रखता हो' और 'अपने पडोसी को भी उतना ह ेम कर िजतना क आप वय ंअपने आप से करत ेह' को टाल टॉय ने अ हसंा का उपदेश या ेरणा ोत माना । उनके

    अनसुार ईसाई धम सभी यि तय क समानता का स ा त तपा दत करता है और ातृ व क भावना तपा दत करता है । उनके वचार म इन उपदेश का अनकुरण नगमना मक प से हसंा, शोषण और अ याय का प र याग और अ हसंा को अपनाना है । अपनी कृ तय द कगडंम आफ गॉड इज वदइन य,ू वाइट शलै वी डू, गो पे स इन ीफ, इ या द के ज रए टाल टॉय ने अ हसंा क आव यकता, मह व, इ या द वषय पर व तार से ववेचन कया । व व के अनेक स लोग जो सावज नक े म स य थे, िजसम गाँधी भी सि म लत ह, और साधारण या आम यि तय से भी टाल टॉय ने संवाद जार रखत ेहु ए आ हसंा को बढावा देने का यास कया । उस दौर म जब राजनेता परमाण ुह थयार क सं या म वृ कर रहे थे और यु को शाि त समझौता और ववाद को नपटाने के लए यायो चत ठहरा रहे थे ऐसे समय म द कंगडम आफ गॉड इज वदइन य ूम टाल टॉय का न कष वशेष प से ासं गक तीत होता है । इसमे उ ह ने लखा- 'ऐसा अकसर कहा जाता है क मौत के खतरनाक सै य

    ह थयार का आ व कार यु का अंत कर देगा, जो ब कुल गलत जान पडता है ।' अपने लेखन म टाल टॉय ने इस वषय क चचा करत े हु ए सै ाि तक और नै तक ि टकोण के ज रए यावहा रक और कृ तवाद नजर से व तार म हसंा का बल वरोध कया और अ हसंा का समथन कया । द कगडंम आफ गॉड इज वदइन य,ू वाईट शैल वी डू जैसी अपनी कृ तय म वे यह के य न को उठात ेह क मानव स यता को 'अब या करना चा हए' । लेटस टू लबर स' म लखे लेख म टाल टॉय ने इस सवाल का जवाब देने का यास करत े हु ए कहा,

  • 15

    “अपने अ धकार के लए खडा होना, एक यापार के तौर पर नह ,ं कसी सा ह य स म त के सद य के तौर पर भी नह ंऔर न ह एक संसद सद य के तौर पर, बि क एक ववेकशील और वतं मनु य के तौर पर अपने अ धकार के लए खडा होना और उनक र ा करना बना कोई समझौता कए, यह एक मा तर का है िजसके मा यम से नै तक और मानवीय त ठा क र ा क जा सकती है । '' टाल टॉय का सा ह य अ हसंा, शां त और याय के बीच घ न ठ संबधं को तपा दत करता है और एक के अभाव म दसूरे क ाि त को असभंव मानता है । अ हसंा संबधंी उनका लेखन बहु त भावशील रहा है । गाँधी से लेकर मा टन लूथर कंग जू नयर तक जो भी महापु ष अ हसंा और उस पर आधा रत आदोलन के संचालन के त सम पत रहे ह, उनके लए टाल टॉय का सा ह य मूलभूत ेरणा या आधार क तरह रहा है ।

    टाल टॉय के अ हसंा संबधंी वचार से गाँधी काफ भा वत थे । य तो भारतीय पर परा म ह द ुधम, महावीर वामी और गौतम बु के अ हसंा संबधंी वचार ने गाँधी के इस वषय संबधंी च तन को आधार दान कया है । गाँधी का मानना था क ई वर सम त सिृ ट म व यमान है । इस नात ेसम त मनु य मे भी ई वर व यमान है और इस लए सभी मनु य मलू प से समान ह । पर त ुगाँधी ने ई वर और मनु य म अ तर करत ेहु ए यह भी वीकार कया क ई वर पणू, सव े ठ ान और परम स य का ोत है । उनके लए ई वर ु ट-र हत है । य य प मनु य म ई वर का नवास गाँधी वीकार करत ेह, उनका मानना है क मानव होने के नाते उसम कुछ न हत क मया ँभी ह िजसके कारण वह कभी भी पणू स य या ान को ा त नह ंकर सकता । पर त ुगाँधी ने यह ज र भी माना क मनु य को पणू स य या ई वर को ा त करने का नर तर यास भी करना चा हए । कोई भी यि त उनके अनसुार वय ंको ु ट-र हत नह ंमान सकता ऐसा करना गाँधी के लए हसंा करने के समान है । मानव अपनी न हत क मया ँ के बाद भी ई वर या परम स य क ाि त के यास म नर तर संल न रहे इसके लए गाँधी ने अ हसंा को अपनाना अप रहाय माना । गाँधी के अनसुार हसंा कसी व त ुया जीव के अि त व को व त करता है और उनम न हत स य को पहचानने और समझने म बाधा उ प न करता है, जब क अ हसंा कसी व त ुया जीव के अि त व को संर त करत ेहु ए उसे पो षत और प ल वत करता है । इस लए स य क ाि त के यास म अ हसंा को गाँधी अ नवाय मानत ेह । गाँधी अ हसंा क पर परागत अ भ यि त जैसे मन, वचन और कम से हसंा नह ंकरने तक सी मत नह ंरहत ेह बि क उपयु त भाव म संल न सकारा मकता और नि यता को याग कर स पणू व त ुया जीव के त आदर और नेह द शत करने पर बल देत ेह । ऐसे आदर और नेह दशन से वे वरो धय के दय

    प रवतन कर उ ह बरुाई को याग करने के लए े रत करने क बात करत ेह । अ हसंा को अपनाना उनके अनसुार कोई अवसरवा दता या कायरता का त न ध व नह होना चा हए, अ पत ुइसे जीवन स ा त के प मै अपनाना चा हए । जीवन स ा त के प अ हसंा का मतलब गाँधी के लए हर प रि थय मे इस मू य के त तब रहना है । ऐसी तब ता के लए गाँधी असाधारण अनशुासन, याग और आ म पीड़ा सहना, कसी भी कार का हसंा मक तकार नह ंकरना, जैसे गणु को आव यक मानत ेह । वे साधन और सा य के घ न ठ संबधं को भी वीकार करत ेह । उनके अनसुार साधन और सा य दोन प व होना

  • 16

    चा हए और इस प व ता को अ हसंा के बना सु नि चत नह ं कया जा सकता है । गाधँी के लये अ हसंा केवल यिै तक मिु त का साधन नह ंथा । यह उनका अनठूा योगदान रहा क उ ह ने इसे सामािजक मू य और मुि त के साधन के प म तपा दत करत ेहु ए व व-ब धु व और सव क याण क कामना क ।

    1.4.3 आधु नक औ यो गक सं कृ त संबधंी वचार

    टाल टॉय और गाँधी ने समान प से आधु नक औ यो गक सं कृ त क कटु आलोचना क । दोन ह अपने समकाल न समाज म हु ए औ यो गक ग त से य थत थे । दोनो ने वीकारा क औ यो गक ाि त न मानवीय जीवन का ट कया है और उसम अनेक कार

    क बरुाइय को ज म और बढ़ावा दया है । औ यो गक समाज म हो रहे अनै तकता और अ याय के व टाल टॉय और गाँधी ने अपनी आवाज उठाई और वशेष कर के मनु य के शोषण को तुर त समा त करने पर जोर दया । टाल टॉय ने अपने लेखन वॉ ट आड़ बल व वॉ ट देन म ट वी डू?, ऑन लाइफ और द कगडंम ऑफ गॉड इस व दन य,ू इ या द म मनु य जीवन म आए पतन क ओर इशारा करत े हु ए इस पतन से कैसे उभरा जाए संबधंी ववेचन व ततृ प से करत ेह । वे जीवन को ई वर य सिृ ट के त ेम, अ हसंा और याग क भावना रखत ेहु ए सादा और सरल जीवन जीने पर बल देते ह ।

    टाल टॉय क भाँ त गाँधी ने भी माना क आधु नक औ यो गक समाज म मनु य जीवन म पतन हुआ है । इस स यता को शैतानी स यता क सं ा देते हु ए गाँधी ने इसे समचुय प म नकारा है । गाँधी के अनसुार आधु नक और औ यो गक स यता ने मनु य म भौ तकवाद विृ तय को बढ़ावा दया है और उसे वला सता, यसन और अनेक बीमा रय से

    सत कया है । मशीनीकरण को गाँधी ने मानवीय मताओं और कौशल को कुि ठत करने का आरोप भी लगाया है । उनके अनसुार इस स यता ने यि त के चा र क पतन के साथ उसको समाज म रहने वाले सा थय के त संवेदनह न बना दया है और अपनी वाथ क पू त करने म वह हर कार के साधन, भले वह अनै तक य न हो, को बना सोचे और समझ ेबे झझक अ य के अ धकार और अि त व को र दत ेहु ए आगे बढ़ने के लए ो सा हत कया है । इसी कारण गाँधी ने समाज म अ याय और शोषण को यापक होने तथा हसंा एव ंअशाि त फैलने क बात कह है । गाँधी ने आधु नक औ यो गक समाज क न दा तक अपने को सी मत नह ंरखा है । स ची स यता के अ नवाय ल यो क बात करत ेहु ए उ ह ने उसके तीन बात क ओर यान आक षत कया । उनके अनसुार स ची स यता का पहला अ नवाय ल ण है स य या वा त वकता क खोज न क बाहर आवरण क चकाच ध म संतुि ट । दसूरा ल ण है तप या या आ म नयं ण और सादगी । तीसरा ल ण है आ मा और शर र क आव यकताओं म, या दसूरे श द म ई वर या आ या म एव ंभौ तक जगत के म य उ चत सं लेषण और सम वय । गाँधी ने इन ल ण को समकाल न समाज म सवागीन प से अपनाने क ओर भी बल दया । सार प म कहा जा सकता है क आधु नक औ यो गक स यता के वक प के प गाँधी ने सव दय समाज का आदश तुत कर यायो चत, नै तक, ग तशील, संतु लत और शाि तमय व व क ओर बढ़ने का माग द शत कया ।

  • 17

    1.4.4 रा य और शासन के त ि टकोण

    टाल टॉय और गाँधी को अ सर अराजकतावाद दाश नक क ेणी, म रखा जाता है । दोन रा य को संग ठत हसंा के सं था के प म वीकार करत ेह । टाल टॉय के अनसुार रा य व व का सबसे अ धक शि त का दु पयोग करने वाल सं था है य क वह न केवल यि तय को अपने कहे अनसुार काम करने के लए मजबरू करता है बि क शि तशाल शासक के वाथ पू त हेत ुयु करने और अपने ाण योछावर करने के लए भी बा य करता है । टाल टॉय कहत ेह क जहा ँशि त का दु पयोग काननू के समान व यमान है वह शेष और दासता भी व यमान है । उनके अनसुार रा य िजन साधन के मा यम से अपने उ े य को ा त करने का यास करता है वे हमेशा ह ववादा पद होत ेह । रा य के भीतर और बाहर,

    दोन तर पर इनक आलोचना क जाती है और इ तहास देखा जाए तो अ सर यह पाया जाता है क उसके उ े य गलत रहे ह या मानवता के व अपराध ह । रा य और यि त के अ तर-संब ध के बारे म वचार य त करत ेहु ए टाल टॉय कहत ेह क भा य के त यि त का कोई दा य व नह ंहै, अ पत ु यि त का दा य व केवल अ य यि तय के त दा य व है और यह दा य व है - उ तरदा य वपणू यवहार । टाल टॉय समकाल न कुल नतं क यव था का गर ब पर बोझ मानते थे । उनके अनसुार राजनी तक आ थक यव था साधारण यि त को आ थक वषमताओं तथा नै तक पतन क और धकेलता है और दोनो ह ि थ तय म रा य का भाव मानव क याण क ि ट से तकूल है । टाल टॉय यि त क वतं ता का भी बल

    समथन करत ेथे । वे चाहत ेथे क रा य और शासन ववेकशील और िज मेदार आचरण करने वाले यि तय पर कसी कार का दबाव डालने का यास नह ंकरे । वे रा य क शि त को संदेह क ि ट से देखते थे और उसके सभी सै यवाद उ े य और नी तय का वरोध करत ेथे । वे कहत ेथे क हसंा हर ि थ त म बरु होती है । पर त ुवे इस बात पर भी बल देत ेथे क संरचना मक हसंा यि त के हसंा से बरु है । टाल टॉय के लए जीवन के नै तक नयम मानव वारा न मत नयम और काननू से उपर ह । मनु य को अपनी अ तरा मा क आवाज के आधार पर जीवन यापन करना चा हए । टाल टॉय ने बरुाई को ख म करने के लए शि त या हसंा के योग का वरोध कया और कहा क शासन को सभी के क याण के लए सम पत रहना चा हए और मनु य के अ तर-स ब ध को अ छा बनाने के लए यास करना चा हए । य द रा य वारा यि त पर दबाव या शि त आधा रत यवहार का टाल टॉय वरोध करत ेह तो वे व यमान रा य और शासन यव था को हसंा और ाि तकार उपाय से प रवतन करने का भी वरोध करत ेह । टाल टॉय यु के भी खलाफ ह ।

    गाँधी का रा य, शासन, अ हसंा इ या द वषय के संबधं म वचार उनके वारा 1909 मे लखी गई कताब ह द वराज म य त क गई है । उ ह ने रा य को हसंा का एक संग ठत प माना है और आदश के तौर पर एक रा य वह न यव था को वीकार। है । इस लए इ ह अराजकतावाद कहा है । जहा ँगाँधी मनु य को एक सचेतन आ मावान ाणी मानत ेह वह वे रा य को एक आ माह न य मानत ेह । वे मानत ेथे क रा य को हसंा से पथृक नह ं कया जा सकता य क इसक उ पि त हसंा से हु ई है । गाँधी ने दाश नक आधार पर रा य क स ता का वरोध करत ेहु ए कहा क रा य यि त के नै तक वकास म बाधक है

  • 18

    य क वह यि त के आ याि मक और आ त रक प को छू नह ंसकता । रा य केवल यि त के बाहर आचरण को भा वत कर सकता है । रा य को गाँधी ने अनै तक भी माना य क उनके अनसुार रा य नाग रक को अपनी इ छा से नह ंवरन ्द ड के भय और काननू

    क शि त से बा य करता है । उनका मानना था क रा य का बढता हुआ काय े , यि त के वाल बन और आ म व वास के गणु पर भी तकूल असर डालता है और उसके सवागीन, वकास म अवरोध उ प न करता है । इस लए गाँधी रा य के काय े को सी मत करने के प मे थे । वे यि तवा दय क तरह मानत े थे क मनु य मूल प से नै तक, ववेकशील और शाि त य है । वह अपना अ छा और बरुा खुद पहचान कर सकता है और इस लये उस पर कोई बाहर नय ण क आव यकता नह ं है । पर त ुयथाथ प रि थ तय को भी गाँधी ने यान म रखा और व यमान प रि थ तय म यनूतम काय करने वाले रा य को वीकारा ।

    इस रा य को गाँधी ने नै तक नयम क अनपुालना कर सभी यि तय का अ धकतम क याण के उ े य परूा करने के त आव यकता जताई । शासन हसंा मु ता हो इस लए उ ह ने रा य स ता का वके करण भी बल समथन कया ।

    1.4.5 आ थक वषयो पर टाल टॉय और गाँधी का ि टकोण

    टाल टॉय और गाँधी के आ थक ि टकोण म भी समानता नजर आता है । दोनो जीवन के आ याि मक प को ाथ मकता देते ह । दोनो भौ तकवाद सं कृ त क चकाच द और से यि त को दरू रहने का उपदेश देते ह । दोनो आम गर ब नाग रक क आव यकताओं और सम याओं के त संवेदनशील थे । काला तर म टाल टॉय और गाँधी वय ंके जीवन को सरल कृत और सादगीपणू करने के यास म संल न रहे । दोन ने स पि त सचंयन क विृ त और नजी स पि त का वरोध कया । अपने यवहा रक जीवन म दोन स पि त संचयन और नजी स पि त से काला तर म पथृक भी रहने लगे । औ यो गकरण को दोन ने यि त के हत के वपर त बताया य क दोनो मानत ेथे क अंधाधु ध मशीनीकरण यि त के कौशल को कुि ठत करता है और शोषण को बढावा देता है । टाल टॉय और गाँधी दोनो शार रक म को मह व दान ह और 'रोट के लए म क अ नवायता के स ा त का समथन करत े ह । वशेषा धकार को धान मानने वाले यगु म जहा ँसम त शार रक म गर ब वारा स प न कए जा रहे थे, ऐसे यगु म टाल टॉय ने शार रक म के मह व का गणुगान कया और अपने नजी जीवन म कसान वारा सम वय कए जाने वाले शार रक म कए और जूत ेबनाने का कौशल भी सीखा । टाल टॉय का कहना था क मनु य के संबधं म दो कार के नयम व यमान ह - शार रक जीवन से जुड़ े नयम और आ याि मक जीवन से जुड े नयम । शार रक जीवन से जुड़ े नयम म है और आ याि मक जीवन से जुड़ े नयम यार है । उनका मानना था क जो यि त शार रक जीवन से जुड े नयम म क अवहेलना करता है वह अप रहाय प से आ याि मक जीवन से जुड े नयम यार क उ लंघना भी करता है । शार रक म और मन:ि थ त के अ तर-संबधं को भी टाल टॉय वीकार करत ेहु ए कहत ेथे क शार रक म, वशेष प से खेती करने से जुड े म, न केवल शर र के लए बि क आ मा के लए भी

    अ छा है । टाल टॉय के अनसुार वह यि त जो शार रक म करने से दरू रहता है, वह

  • 19

    साधारण और व थ नणय लेने म अस म होत ेह और उनक आ मा भी अशा त रहती है । टालरटॉय के अनसुार म के वारा अ तत: प रणाम ा त करना तो आनदं देता ह है, साथ ह वह कृ त क काय व ध समझने और उसम यि त के थान को पहचानने म भी मदद करती है । उनका मानना था क य द मनु य शार रक म नह ंकरेगा तो उसम व यमान ऊजा का सकारा मक नकास नह ंहो पाएगा और ऐसी ि थ त म वह अपनी ऊजा को बरेु काम म लगायेगा । टाल टॉय का मानना था क स प न या अमीर लोग शार रक म नह ंकरत ेऔर उनम व यमान ऊजा का सकारा मक नकास नह ं हो पाने के कारण वे बरेु काम म संल न हो जात ेह । टाल टॉय ने यि त वारा म करने के फायदे गनात े हु ए बताया क ऐसा करने से यि त अ धक स न, व थ, सतक और बेहतर इंसान बनता है और जीवन के स चे अथ को पहचान सकता है । टाल टॉय ने माना क म अ तरा मा क सुखद अनभुू त को बढाता है यो क म से यि त दसूरो क भलाई करने का काय करता है, वतं जीने का आनदं दान करता है और आ याि मक दु नया म वेश करने का मौका मलता है । उनके अनसुार पूँजीवाद यव था म मनु य का सि त व एक दास, मशीन और व त ु के समान है और उसक मानवीयता को दरू कर दया जाता है । उनके अनसुार शार रक म ह ऐसी अव था से यि त को मुि त दला सकता है । उ ह ने धन को ऐसी शि त के प म वीकारा जो उससे थक यि त को मजबरू करता है क वह उस काम को करे जो वह सामा यत: अ यथा नह ंकरना चाहता है । इस कार टाल टॉय ने धन को यि त क वतं ता के व यु त शि त के प म वीकार कया गया और शोषण का साधन माना ।

    1.4.6 टाल टॉय और गाँधी म अ य समानताय

    टाल टॉय और गाँधी के संदभ म व यमान समानताओं के अ य ब द ु न न कार से य त कए जा सकते ह ।

    1.4.6.1 ाचीन भारतीय थ का मह व

    जीवन के स चे अथ क खोज म टाल टॉय ने अनेक थ पढे और योग कए । उ ह ने ाचीन भारतीय थ जैसे वेद, रामायण और महाभारत का अनवुाद पढा और शंकर, रामकृ ण परमहंस, ववेकान द आ द के आ याि मक दशन को एक मानवतावाद के प म समझने का यास कया । अपने प लेटर त ूए हदं ूम कसी रा के वावलंबन और उसक वतं ता के लए उसक अपनी पर परा और सं कृ त कतनी मह वपणू है, उसके बारे म

    टाल टॉय अपने वचार को य त करत े हु ए कहत ेह क भारतीय ने अपनी ाचीन स यता और सं कृ त को व मतृ कर दया है और पा चातीय स यता और सं कृ त को े ठ मानकर उसका मधानकुरण करने का यास कया है । यह उनके अनसुार भारत क परतं ता का मूल कारण है ।

    गाँधी के संदभ म यह कहा जा सकता है क टाल टॉय का प लेटर टू ए हदं ूअ यतं भा वत करने वाला प था । उ ह ने टाल टॉय का प लखकर इस प को उनके वारा ह लखे जाने क पिु ट और इसे द ण अ का म अपने सावज नक संघष के दौरान का शत कए जाने वाल प का इं डयन ओपी नयन म का शत करने क अनमु त माँगी । गाँधी ने प

  • 20

    के अ त मे अपने आप को टाल टॉय के अनयुायी बताकर ह ता र कया । आधु नक स यता क घोर न दा करने वाल उनक कताब ह द वराज को भी गाँधी ने टाल टॉय को भेजा । गाँधी भी ाचीन भारतीय थं और पर पराओं के त आदर भाव रखत े थे और रा य वावलंबन और वतं ता के लए भारतीय वारा अपनी पर परा और सं कृ त को अपनाने और

    काला तर म इसम आए वकृ तय को दरू करने पर जोर देते थे । उ होने इस बात पर बल दया क यि त को बाहर से वा हत होने वाल सभी भाव के त ववेक स मत ख अपनाना होगा पर त ु अपनी मूल सं कृ त और पर पराओं को व मतृ या याग करना आ मघाती होगा । ाचीन भारतीय थ म समा हत ान को गाँधी ने अपने आ याि मक वचार का मह वपणू आधार बनाया और इस ान को न केवल यि त के मुि त का साधन के प म सी मत रखा बि क समाज और रा के मुि त का साधन भी बनाया ।

    1.4.6.2 आ मकथा लेखन

    1852 से 1856 के बीच टाल टॉय ने अपने जीवन पर आधा रत तीन उप यास लखीं और का शत करवायी - चाइ डहु ड (Childhood) बॉयहु ड (Boyhood) और यथू (Youth) । ए कनफेशन (A Confession), जो उनके वारा 1879 म 51 वष क उ म लखी गई थी, म भी टाल टॉय तब तक के अपने जीवन को यथ जीने संबधंी नराशा को य त करत ेह । उनके उप यास भी जीवन अनभुव पर आधा रत है ।

    गाँधी मे भी अपनी आ म कथा लखी और उसको शीषक दया एन आटोबायो ाफ ओर द टोर ऑफ मय ए सपी रम स वथ थ िजसे हदं म अनवुाद कर तो क आ मकथा या स य के साथ मेरे योग क कहानी के प म लखा जा सकता है । इस कताब म गाँधी ने 1869 से 1921 तक के जीवन के बारे म लखा है । उ ह ने कताब के प रचया मक भाग मे कहा है क इस कताब के मा यम से वे प से अपने आ याि मक और नै तक योग और अनभुव को बताना चाहत ेह । गाँधी यह भी कहत ेह क संभवतः वे बाद म इस कताब म य त वचार से भ न वचार य त कर सकत ेह और इस कताब को लखने पीछे उनका मकसद केवल इतना है क वे स य के साथ उनके वारा कये गये योग को बयान कर सके । स या ह इन साऊथ अ का म गाधी ने द ण अ का म उनके वारा संप न स या ह के बारे व ततृ प से लखा है । तीसर कताब ह द वराज है जो उनके राजनी तक, आ थक और सामािजक वषय के बारे म य त करत ह ।

    1.4.6.3 साधारण यि त से महा मा क ओर उ व

    टाल टॉय और गाँधी दोन का ज म सं ांत और अमीर प रवार म हुआ । टाल टॉय ने चाइ डहु ड, बॉयहु ड़, यथू और ए कनफेशन म और गांधी ने एन आटोबायो ाफ ओर द टोर ऑफ मय ए सपी रम स बॉयहु ड वथ थ अपने प रवार के बारे म तो बताया ह है, साथ म जीवन के ारं भक दौर म उनके वारा सह रा त ेसे भटकाव के ववरण भी बना कुछ छुपाये प ट प से य त करत ेह । अपने जीवन म दोन काफ समय तक स प नता जुटाने के यास म संल न रहे । काला तर म दोन ने भौ तकवाद विृ तय को याग कर नै तक और

    सादा और सरल जीवन यापन करने लगे और अ त तक ऐसे जीवन के त तब भी रहे ।

  • 21

    इस तरह टाल टॉय और गाँधी काला तर म साधारण यि त से प व आ मा और महापु ष बने ।

    1.4.6.4 मा उपदेश देने तक सी मत नह ,ं बि क जीवन म वय ंअपनाने का भी काय

    टाल टॉय और गाँधी दो ऐसे महापु ष थे िज ह ने जीवन से जुड़ ेअनेक वषय पर बहु त कुछ लखा और कहा । दान का नाम महान दाश नक म गना जाता है । पर टाल टॉय और गाँधी केवल कोर बात या उपदेश तक सी मत नह ंथे । जो उपदेश उ ह ने दया, वशेष कर के ातृ व, मानव क याण, परोपकार और सादा एव ंसरल जीवन के संदभ म, उनको दोनो ने वय ंअपने जीवन म अंगीकृत कया । टाल टॉय वला सतापणू जीवन को याग कर कृषक क वेशभूषा अपनायी, उ हे अपने सवा म व से मु त कया, उनके साथ शार रक म कया, अपनी स पि त को याग दया ।

    1.4.6.5 गाँधी भोजन के बल समथक

    टाल टॉय और गाँधी दान गाँधी भोजन और जीवन शलै के बल समथक थे । टाल टॉय के अनसुार मनु य कृ त से हसंा करने या कसी भी ाणी का वध करने के खलाफ है । पर त ु वाथ के कारण या तक के आधार पर या आदत के कारण उसक इस सहज अ हसंक कृ त म प रवतन आता है और वह हसंक हो जाता है । उनका कहना था क सदगणुी जीवन के लए अ छा आचरण अप रहाय है । इस अ छ आचरण म टाल टॉय ने आ म य ण को आव यक माना । टाल टॉय ने आ म नय ण वाद अथवा भोजन के संदभ म आ म नय ण ाथ मक माना । नयि त भोजन म टाल टॉय ने मासं खाना विजत य क उनके अनसुार ऐसा खाना एक मह वपणू नै तक धारणा - हसंा नह ंकरने क धारणा, क उ लंघना करता है । गाँधी भोजन टाल टॉय के अनसुार मानव स यता के नै तक ग त का तीक है । टाल टॉय ने 1892 म लखी कताब फ ट टेप म कहा है क सरल आहार पेटुपन

    और मानवीय इ छाओं को नयं त करने का मह वपणू साधन है । अपने जीवन म टाल टॉय ने गाँधी भोजन के साथ त बाकू और म दरा भी याग दया था । फादर सरिजयस म टाल टॉय शु चता और यौन संयम पर भी बल देत ेह ।

    टाल टॉय क तरह गाँधी ने सरल और गाँधी भोजन को े ट जीवन के लए मह वपणू माना है । अवनी आ मकथा म गाँधी ने बना कुछ छुपाये अपनी कशोर अव था म जोश और िज ासा के कारण भटकाव से जुड़ े कुछ सं मरण बताय ह और उनसे ा त न कष अथवा सीख के बारे म भी लखा ह । गाँधीजी ने इन योग से जीवन के मौ लक स य को पहचानने का यास कया और पहचानने के बाद मू य के प म इनक अ भ यि त को जीवन पय त आ मसात ् कया । लंदन के अपने व याथ जीवन म गाँधी खान-पान के स ब ध म उ ह अनेक क ठनाइय का सामना करना पड़ा, पर त ुअपनी मा ँको दए हु ए गाँधी खान-पान संबधंी वादे को उ ह ने खूब नभाया । लंदन म गाँधी भोजनालय क खोज म दरू-दरू तक पदैल चलकर उ ह ने गाँधी भोजनालय ढँूढ नकाला । यह ं उ ह हेनर सा ट वारा र चत पु तक 'ए ल फॉर वेजीटे रय न म' भी खर दने को मल । उ ह ने सा ट जैसे अ य लोग जो गाँधी

  • 22

    भोजन के समथक थे उनके लखे गये वचार का अ ययन कया, शाकाहार क प काय खर द और लंदन क वेिजटे रयन सोसायट क सद यता हण क । द ण अ का के सावज नक जीवन के दौरान उ ह ने अपनी प नी बा से वचार वमश कर और सहम त से मचय जीवन पालन करने का नणय कया । गाँधी ने जीवन म एकादश नयम क पालना करने और सरल और संय मत जीवन जीने का संदेश ह नह ं दया बि क उनका अनकुरण खुद अपने जीवन म भी कया ।

    1.4.6.6 अपने नाम से कसी 'वाद' को चा रत करने का ख डन

    टाल टॉय और गाँधी महान दाश नक थे । दोन ने अपने जीवन काल म ह इस बात क प ट न दा क उनके जीव