vikram sarabhai

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जन्म 12 अगस्त 1919अहमदाबाद, भारत

मतृ्यू 31 ददसम्बर 1971 (उम्र 52)

निवास भारत

राष्ट्रीयता भारतीय

क्षेत्र भौनतकी

पुरस्कार पद्म भूषण (१९६६)पद्म ववभूषण (मरणोपराांत) (१९७२)

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डॉ. साराभाई के व्यक्ततत्व का सवााधिक उल्लेखिीय पहलू उिकी रूधि की सीमा और ववस्तार तथा ऐसे तौर-तरीके थे क्जिमें उन्होंिे अपिे वविारों को सांस्थाओां में पररवनत ात ककया । सजृिशील वैज्ञानिक, सफल और दरूदशीउद्योगपनत, उच्ि कोदि के प्रवताक, महाि सांस्था निमााता, अलग ककस्म के शशक्षाववद, कला पारखी, सामाक्जक पररवताि के ठेकेदार, अग्रणी प्रबांि प्रशशक्षक आदद जैसी अिेक ववशेषताएां उिके व्यक्ततत्व में समादहत थीां । उिकी सबसे महत्त्वपूणा ववशेषता यह थी कक वे एक ऐसे उच्ि कोदि के इन्साि थे क्जसके मि में दसूरों के प्रनत असािारण सहािुभूनत थी । वह एक ऐसे व्यक्तत थे कक जो भी उिके सांपका में आता, उिसे प्रभाववत हुए बबिा ि रहता । वे क्जिके साथ भी बातिीत करत,े उिके साथ फौरी तौर पर व्यक्ततगत सौहादा स्थावपत कर लेते थे । ऐसा इसशलए सांभव हो पाता था तयोंकक वे लोगों के हृदय में अपिे शलए आदर और ववश्वास की जगह बिा लेते थे और उि पर अपिी ईमािदारी की छाप छोड़ जाते थ े।

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डॉ. ववक्रम साराभाई का अहमदाबाद में 12 अगस्त, 1919 को एक समधृ्द पररवार में जन्म हुआ । अहमदाबाद में उिका पैबत्रक घर न्ि द रररीि#न्ि में उिके बिपि के समय सभी क्षेत्रों से जुड़ ेमहत्वपूणा लोग आया करते थे । इसका साराभाई के व्यक्ततत्व के ववकास पर महत्वपूणा असर पड़ा । उिके वपता का िाम श्री अम्बालाल साराभाई और माता का िाम श्रीमती सरला साराभाई था । ववक्रम साराभाई की प्रारक्म्भक शशक्षा उिकी माता सरला साराभाई द्वारा मैडम माररया मोन्िेसरी की तरह शुरू ककए गए पाररवाररक स्कूल में हुई । गुजरात कॉलेज से इांिरमीडडएि तक ववज्ञाि की शशक्षा पूरी करिे के बाद वे 1937 में कैक्म्िज (इांग्लैंड) िले गए जहाां 1940 में प्राकृनतक ववज्ञाि में राइपोज डडग्री प्राप्त की । द्ववतीय ववश्व युध्द शुरू होिे पर वे भारत लौि आए और बांगलौर क्स्थत भारतीय ववज्ञाि सांस्थाि में िौकरी करिे लगे जहाां वह सी. वी. रमण के निरीक्षण में कॉसशमक रेज़ पर अिुसांिाि करिे लगे ।

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उन्होंिे अपिा पहला अिुसांिाि लेख न्ि िाइम डडस्रीब्यूशि ऑफ काक्स्मक रेज़ न्ि भारतीय ववज्ञाि अकादमी की कायावववरणणका में प्रकाशशत ककया । वषा 1940-45 की अवधि के दौराि कॉक्स्मक रेज़ पर साराभाई के अिुसांिाि काया में बांगलौर और कश्मीर-दहमालय में उच्ि स्तरीय केन्र के गेइजर-मूलर गणकों पर कॉक्स्मक रेज़ के समय-रूपाांतरणों का अध्ययि शाशमल था । द्ववतीय ववश्व युध्द की समाक्प्त पर वे कॉक्स्मक रे भौनतक ववज्ञाि के क्षते्र में अपिी डातरेि पूरी करिे के शलए कैक्म्िज लौि गए । 1947 में उष्ट्णकिीबांिीय अक्षाांक्ष (रॉपीकल लैिीच्यूड्स) में कॉक्स्मक रे पर अपिे शोिग्रांथ के शलए कैक्म्िज ववश्वववद्यालय में उन्हें डातररेि की उपाधि से सम्मानित ककया गया । इसके बाद वे भारत लौि आए और यहाां आ कर उन्होंिे कॉक्स्मक रे भौनतक ववज्ञाि पर अपिा अिुसांिाि काया जारी रखा । भारत में उन्होंिे अांतर-भूमांडलीय अांतररक्ष, सौर-भूमध्यरेखीय सांबांि और भू-िुम्बकत्व पर अध्ययि ककया ।

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डॉ. साराभाई एक स्वप्िरष्ट्िा थे और उिमें कठोर पररश्रम की असािारण क्षमता थी । फ्ाांसीसी भौनतक वैज्ञानिक पीएरे तयूरी (1859-1906) क्जन्होंिे अपिी पत्िी मैरी तयूरी (1867-1934) के साथ शमलकर पोलोनियम और रेडडयम का आववष्ट्कार ककया था, केअिुसार डॉ. साराभाई का उद्देश्य जीवि को स्वप्ि बिािा और उस स्वप्ि को वास्तववक रूप देिा था । इसके अलावा डॉ. साराभाई िे अन्य अिेक लोगों को स्वप्ि देखिा और उस स्वप्ि को वास्तववक बिािे के शलए काम करिा शसखाया । भारत के अांतररक्ष कायाक्रम की सफलता इसका प्रमाण है ।

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डॉ. साराभाई में एक प्रवताक वैज्ञानिक, भववष्ट्य रष्ट्िा, औद्योधगक प्रबांिक और देश के आधथाक, शैक्षक्षक और सामाक्जक उत्थाि के शलए सांस्थाओां के पररकाल्पनिक निमााता का अद्भुत सांयोजि था। उिमें अथाशास्त्र और प्रबांि कौशल की अद्ववतीय सूझ थी । उन्होंिे ककसी समस्या को कभी कम कर के िहीां आांका । उिका अधिक समय उिकी अिुसांिाि गनतववधियों में गुजरा और उन्होंिे अपिी असामनयक मतृ्युपयान्त अिुसांिाि का निरीक्षण करिा जारी रखा । उिके निरीक्षण में 19 लोगों िे अपिी डातरेि का काया सम्पन्ि ककया । डॉ. साराभाई िे स्वतांत्र रूप से और अपिे सहयोधगयों के साथ शमलकर राष्ट्रीय पबत्रकाओां में 86 अिुसांिाि लेख शलखे ।कोई भी व्यक्तत बबिा ककसी डर या हीि भाविा के डॉ. साराभाई से शमल सकता था, कफर िाहे सांगठि में उसका कोई भी पद तयों ि रहा हो । साराभाई उसे सदा बैठिे के शलए कहते । वह बराबरी के स्तर पर उिसे बातिीत कर सकता था । वे व्यक्ततववशेष को सम्माि देिे में ववश्वास करते थे और इस मयाादा को उन्होंिे सदा बिाये रखिे का प्रयास ककया । वे सदा िीजों को बेहतर और कुशल तरीके से करिे के बारे में सोिते रहते थे । उन्होंिे जो भी ककया उसे सजृिात्मक रूप में ककया । युवाओां के प्रनत उिकी उद्ववग्िता देखते ही बिती थी । डॉ. साराभाई को युवा वगा की क्षमताओां में अत्यधिक ववश्वास था । यही कारण था कक वे उन्हें अवसर और स्वतांत्रता प्रदाि करिे के शलए सदा तैयार रहते थे ।

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डॉ. साराभाई एक महाि सांस्थाि निमााता थे । उन्होंिे ववशभन्ि क्षेत्रों में बड़ी सांख्या में सांस्थाि स्थावपत करिे में अपिा सहयोग ददया । साराभाई िे सबसे पहले अहमदाबाद वस्त्र उद्योग की अिुसांिाि एसोशसएशि (एिीआईआरए) के गठि में अपिा सहयोग प्रदाि ककया । यह काया उन्होंिे कैक्म्िज से कॉक्स्मक रे भौनतकी में डातरेि की उपाधि प्राप्त कर लौििे के तत्काल बाद हाथ में शलया । उन्होंिे वस्त्र प्रौद्योधगकी में कोई औपिाररक प्रशशक्षण िहीां शलया था । एिीआईआरए का गठि भारत में वस्त्र उद्योग के आिुनिकीकरण की ददशा में एक महत्वपूणा कदम था । उस समय कपड़ ेकी अधिकाांश शमलों में गुणवत्ता नियांत्रण की कोई तकिीक िहीां थी । डॉ. साराभाई िे ववशभन्ि समूहों और ववशभन्ि प्रकक्रयाओां के बीि परस्पर वविार-ववमशा के अवसर उपलब्ि कराए । डॉ. साराभाई द्वारा स्थावपत कुछ सवााधिक जािी-मािी सांस्थाओां के िाम इस प्रकार हैं- भौनतकी अिुसांिाि प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद; भारतीय प्रबांिि सांस्थाि (आईआईएम) अहमदाबाद; सामुदानयक ववज्ञाि केन्र; अहमदाबाद, दपाण अकादमी फॉर परफाशमिंग आट्र्स, अहमदाबाद; ववक्रम साराभाई अांतररक्ष केन्र, नतरूविांतपुरम; स्पेस एप्लीकेशन्स सेंिर, अहमदाबाद; फास्िर िीडर िेस्ि ररएतिर (एफबीिीआर) कलपतकम; वैरीएबल एिजी साईतलोरोि प्रोजति, कोलकाता; भारतीय इलेतरानिक निगम शलशमिेड (ईसीआईएल) हैदराबाद और भारतीय यूरेनियम निगम शलशमिेड (यूसीआईएल) जादगुुडा, बबहार ।

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डॉ. होमी जे. भाभा की जिवरी, 1966 में मतृ्यु के बाद डॉ. साराभाई को परमाणु ऊजाा आयोग के अध्यक्ष का कायाभार सांभालिे को कहा गया । साराभाई िे सामाक्जक और आधथाक ववकास की ववशभन्ि गनतववधियों के शलए अांतररक्ष ववज्ञाि और प्रौद्योधगकी में नछपी हुई व्यापक क्षमताओां को पहिाि शलया था । इि गनतववधियों में सांिार, मौसम ववज्ञािमौसम सांबांिी भववष्ट्यवाणी और प्राकृनतक सांसाििों के शलए अन्वेषण आदद शाशमल हैं । डॉ. साराभाई द्वारा स्थावपत भौनतक अिुसांिाि प्रयोगशाला, अहमदाबाद िे अांतररक्ष ववज्ञाि में और बाद में अांतररक्ष प्रौद्योधगकी में अिुसांिाि का पथ प्रदशाि ककया । साराभाई िे देश की रॉकेि प्रौद्योधगकी को भी आगे बढाया । उन्होंिे भारत में उपग्रह िेलीववजि प्रसारण के ववकास में भी अग्रणी भूशमका निभाई ।डॉ. साराभाई भारत में भेषज उद्योग के भी अग्रदतू थे । वे भेषज उद्योग से जुड़ ेउि िांद लोगों में से थे क्जन्होंिे इस बात को पहिािा कक गुणवत्ता के उच्च्तम मािक स्थावपत ककए जािे िादहए और उन्हें हर हालत में बिाए रखा जािा िादहए । यह साराभाई ही थे क्जन्होंिे भेषज उद्योग में इलेतरानिक आांकड़ा प्रसांस्करण और सांिालि अिुसांिाि तकिीकों को लागू ककया । उन्होंिे भारत के भेषज उद्योग को आत्मनिभार बिािे और अिेक दवाइयों और उपकरणों को देश में ही बिािे में महत्वपूणा भूशमका निभाई । साराभाई देश में ववज्ञाि की शशक्षा की क्स्थनत के बारे में बहुत धिक्न्तत थे । इस क्स्थनत में सुिार लािे के शलए उन्होंिे सामुदानयक ववज्ञाि केन्र की स्थापिा की थी।

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डॉ. साराभाई साांस्कृनतक गनतववधियों में भी गहरी रूधि रखते थे । वे सांगीत, फोिोग्राफी, पुरातत्व, लशलत कलाओां और अन्य अिेक क्षेत्रों से जडु़ ेरहे । अपिी पत्िी मणृाशलिी के साथ शमलकर उन्होंिे मांिि कलाओां की सांस्था दपाण का गठि ककया। उिकी बेिी मक्ल्लका साराभाई बड़ी होकर भारतिाट्यम और कुिीपुड्डी की सुप्रशसध्द ितृ्याांग्िा बिीां ।डॉ. साराभाई का कोवलम, नतरूविांतपुरम (केरल) में 30 ददसम्बर, 1971 को देहाांत हो गया । इस महाि वैज्ञानिक के सम्माि में नतरूविांतपुरम में स्थावपत थुम्बा इतवेिोररयल रॉकेि लाउां धि ांग स्िेशि (िीईआरएलएस) और सम्बध्द अांतररक्ष सांस्थाओां का िाम बदल कर ववक्रम साराभाई अांतररक्ष केन्र रख ददया गया । यह भारतीय अांतररक्ष अिुसांिाि सांगठि (इसरो) के एक प्रमुख अांतररक्ष अिुसांिाि केन्र के रूप में उभरा है । 1974 में शसडिी क्स्थत अांतरााष्ट्रीय खगोल ववज्ञाि सांघ िे निणाय शलया कक 'सी ऑफ सेरेनििी' पर क्स्थत बेसल िामक मूि के्रिर अब साराभाई के्रिर के िाम से जािा जाएगा।

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