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भगवदगीता थम अयाय अनुबम पहले अयाय का माहाय ................................................................................................ 1 पहला अयायःअजुनिवषादयोग ......................................................................................... 4 पहले अयाय का माहाय पावती जी ने कहाः भगवन ! आप सब तǂवɉ के ाता हɇ | आपकी कृ पा से मुझे िवणु -सबधी नाना कार के धम सुनने को िमले , जो समःत लोक का उƨार करने वाले हɇ | देवेश ! अब मɇ गीता का माहाय सुनना चाहती हँ , िजसका वण करने से हिर की भिƠ बढ़ती है | महादेवजी बोलेः िजनका िवमह अलसी के फू ल की भाँित याम वण का है , पिराज गड़ ही िजनके वाहन हɇ , जो अपनी मिहमा से कभी युत नहीं होते तथा शेषनाग की शáया पर शयन करते हɇ , उन भगवान महािवणु की हम उपासना करते हɇ | एक समय की बात है | मुर दैय के नाशक भगवान िवणु शेषनाग के रमणीय आसन पर सुखपूवक िवराजमान थे | उस समय समःत लोकɉ को आनद देने वाली भगवती लआमी ने आदरपूवक ư िकया | लआमीजी ने पूछाः भगवन ! आप सपूण जगत का पालन करते हए भी अपने ऐƳय के ित उदासीन से होकर जो इस ीरसागर मɅ नींद ले रहे हɇ , इसका या कारण है ? भगवान बोलेः सुमुिख ! मɇ नींद नहीं लेता हँ , अिपतु तǂव का अनुसरण करने वाली अतिƴ के Ʈारा अपने ही माहेƳर तेज का सााकार कर रहा हँ | यह वही तेज है , िजसका योगी पुष कु शाम बुिƨ के Ʈारा अपने अतःकरण मɅ दशन करते हɇ तथा िजसे मीमांसक िवƮान वेदɉ का सार-तǂव िनिLJचत करते हɇ | वह माहेƳर तेज एक, अजर, काशःवप, आमप, रोग-शोक से रिहत, अखड आनद का पुंज, िनपद तथा Ʈैतरिहत है | इस जगत का जीवन उसी के अधीन है | मɇ उसी का अनुभव करता हँ | देवेƳिर ! यही कारण है िमɇ तुहɅ नींद लेता सा तीत हो रहा हँ | लआमीजी ने कहाः िषके श ! आप ही योगी पुषɉ के येय हɇ | आपके अितिरƠ भी कोई यान करने योय तǂव है , यह जानकर मुझे बड़ा कौतूहल हो रहा है | इस चराचर जगत की सृिƴ और संहार करने वाले वयं आप ही हɇ | आप सवसमथ हɇ | इस

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