-3assets.vmou.ac.in/dpm3.pdf · 2014. 4. 5. · 3 डी.पी.एम. -3 प o¢य i के...

207
1

Upload: others

Post on 30-Sep-2020

4 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • 1

  • 2

  • 3

    डी.पी.एम. -3

    प य के सामा य रोग एवं नदान अनु म णका

    इकाई सं. इकाई का नाम पृ ठ सं या इकाई -1 कु कुट रोग – ववे चत अ ययन 5—16 इकाई -2 मु गय के सं ामक रोग, उनक रोकथाम एव ंबचाव छूतदार रोग 17—28 इकाई -3 जीवाण ुज नत प ी रोग एव ंउपचार 29—40 इकाई -4 वषाणु ज नत प ी रोग एव ंउपचार 41—56 इकाई -5 प य के परजीवी एव ंफफँूद ज नत रोग 57—71 इकाई -6 ोटोजोआ ज नत बीमा रया ँ 72—79 इकाई -7 इमिजग कु कुट रोग 80—86 इकाई -8 ए वयन इफंलूएंजा – व भ न नवीन अवधारणाएँ एव ं नराकरण 87—101 इकाई -9 कु कुट पालन म ट काकरण क मह ता एव ं व भ न कार के

    ट काकरण के दौरान मु गय का रखरखाव 102—115

    इकाई -10 कु कुट शव पर ण एव ंरोग नदान क उपयो गता कु कुट रोग म पेथो नो मक ल जन

    116—126

    इकाई -11 भारत म कु कुट रोग नदान एव ंआहार व लेषण योगशालाएँ 127—141 इकाई -12 कु कुट पालन म योग म ल जाने वाल व भ न औष धयाँ एव ं

    उनका फामकोलोिजकल व लेषण 142—154

    इकाई -13 व भ न मौसमी रोग एव ंबचाव 155—174 इकाई -14 व भ न रोग से जुड़ी जै वक सुर ा एव ं नरोगी प ी पालन 175—188 इकाई -15 व भ न पोषक त व क कमी से होने वाले रोग एव ंअ य मेटाबो लक

    डसओडर 189—207

  • 4

    पा य म अ भक प स म त अ य ो.(डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा सम वयक डॉ. अशोक कुमार शमा माइ ोबायोलोिज ट एव ंव र ठ पश ु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    सद य 1. डॉ. आर.के. तंवर

    सह आचाय, मे ड सन वभाग पश ु च क सा एव ंपश ु व ान महा व यालय, बीकानेर

    संयोजक ी राकेश शमा

    सहायक आचाय, वधमान महावीर खलुा व व व यालय कोटा

    2. डॉ. ए.के. कटा रया सहायक आचाय एव ं भार अ धकार एपे स से टर पश ु च क सा एव ंपश ु व ान महा व यालय , बीकानेर

    3. डॉ. अनुजा तवार पश ु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    पाठ स पादन एव ंलेखन स पादन डॉ. अशोक कुमार शमा माइ ोबायोलोिज ट एवं व र ठ पशु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    लेखक 1. डॉ. अशोक कुमार शमा

    माइ ोबायोलोिज ट एव ंव र ठ पश ु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    2. डॉ. अनुजा तवार पश ु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    3. डॉ. ए.के. कटा रया सहायक आचाय एव ं भार अ धकार एपे स से टर पश ु च क सा एव ंपश ु व ान महा व यालय बीकानेर

    4. डॉ. अ नल शमा व र ठ पश ु च क सा अ धकार एल.एस.डी. पशपुालन वभाग कोटा (राज थान)

    5. डॉ. आर.के. तंवर सह आचाय, मे ड सन वभाग पश ु च क सा एव ंपश ु व ान महा व यालय, बीकानेर

    पा य नदेशन एव ंउ पादन नदेशक(संकाय) ो.(डॉ.) अनाम जैतल

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    नदेशक(पा य साम ी उ पादन एवं वतरण) ो.(डॉ.) पी.के. शमा

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    सवा धकार सुर त। इस पा य म का कोई भी अंश वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा क ल खत अनुम त ा त कए बना या म मयो ाफ अथवा कसी अ य साधन से पुनः तुत करना विजत है। वधमान महावीर खुला व व व यालय के पा य म के वषय म और अ धक जानकार व व व यालय के कुलस चव, वधमान महावीर खुला व व व यालय,रावतभाटा रोड, कोटा से ा त क जा सकती है।

    कुलस चव, वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा वारा का शत

  • 5

    डी.पी.एम - 3 इकाई : कु कुट रोग - ववे चत अ ययन

    इकाई – 1 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 रोग के कारण 1.3 अ व य रोगी के ल ण 1.4 व भ न कु कुट रोग एव ंउनका वग करण

    1.4.1 सं ामक रोग 1.4.2 आय ुआधा रत 1.4.3 रोग ऋतु आधा रत रोग 1.4.4 संतु लत आहार क कभी से होने वाले 1.4.5 रोग यां क रोग 1.4.6 रसाय नक रोग 1.4.7 आनवुां शक रोग 1.4.8 अ य व वध प ी रोग

    1.5 रोग का सारण 1.6 रोग के रोकथाम के उपाय 1.7 रोग नरोधी काय म एव ंरोग नदान 1.8 साराशं 1.9 नावल 1.10 संदभ पु तक

    1.0 उ े य : कु कुट उ योग म प ी मृ य ुदर, इसके पालन म यह एक गभंीर सम या है । तवष लगभग 20-30% मु गया ँव भ न कारण , िजसम प ी रोग वशेष है, के कारण मर जाती है । कु कुट के शर र का उ च ताप 40.6 से 41.6oC होने के कारण रोग क अव था म व भ न शार रक

    याओं के कारण भी यह एक अ य त मह वपणू कारक स होती है । व य प ी लाभ द कु कुट यवसाय क आधार शला है । रोग क अव था जो सामा य से भ न हो, िजसम प ी सु त हो जाए, उ पादन म कमी आ जाए अथवा व भ न द शत रोग के ल ण, अ व थ प ी क पहचान है । देश म कु कुट उ पादन वृ के साथ कु कुट उ पाद संबधंी वकास योजनाओं म कु कुट रोग क रोकथाम एव ंइससे जुड़े काय म को पया त मह व दया जा रहा है । आधु नक यगु म कु कुट रोग क रोकथाम, आहार, जनन एव ं ब ध क सफल व धय को अपनाने के कारण मु गयाँ वष क अ धकांश अव ध म अ डा देती रहती है, िजसके प रणाम व प उसक पया त शि त न ट हो जाती है और सं चत शि त म भी कमी हो जाती

  • 6

    है । उन पर रोग परजी वय के आ मण तथा अ य कारण से मृ य ुक संभावना बढ़ जाती है । इसी उ े य को यान म रखते हु ए यह आव यक हो जाता है, क हम व भ न रोग के वषय म एव ंउनक रोकथाम का पया त ान व ववे चत अ ययन ात हो ।

    1.1 तावना : मु गय म, रोग क वषम ि थ त, उसके होने वाले व ततृ कारण, िजनमे सं ामक रोग मुख है, सं मण का सारण, व वध भौगो लक प रि थ तया,ँ कु कुट समूह क व भ न क म, द शत ल ण आ द अ य त मह वपणू होते ह । चूँ क मु गया ँसमहू म रहती ह एव ंव भ न बीमा रय के ल ण भी ाय: एक जैसे ह द शत हो सकत ेह । अत: यह आव यक है क रोग वशेष म द शत ल ण के आधार पर हम रोग क जाचँ एव ं नदान कर सक । समूह म एक रोगी प ी वारा थम द शत ल ण अ य व य प य म रोग फैलने क पहचान कर एव ंउसे समूह से पथृक कर अ य प य म रोग सारण को रोका जा सकता है । इस इकाई म रोग, उससे जुडे कारण, रोग सारण, ल ण क पहचान एव ंभे दत ल ण का व ततृ ववेचन कया गया है। रोग का वग करण, सं मण के अलावा अ य कारण से होने वाले प ी रोग, योगशाला म उनके नदान, उपचार, बचाव एव ंरोकथाम के लए अपनाए जाने वाले व भ न उपाय के वषय म भी व ततृ चचा का समावेश कया गया है।

    1.2 रोग के कारण : प ी रोग व भ न कारण से हो सकते ह, िजसम मुखता से सं मण एक मह वपणू कारण है । (i) ल ण के आधार पर कु कुट रोग, अ त ती (Acute), अनतुी (Sub acute) चरकार

    (Chronic) तथा ल णह न हो सकते ह । य य प कसी कु कुट समहू क रोग सत मु गय क यि तगत पर ा करना च लत नह ं है, तथा प उस समूह क वशंावल ात करना, मृ य ुदर का ान होना और मृ यपुरा त पर ण, रोग के नदान म बहु त सहायक होते ह । अत: अनेक मामल म ती (acutely) रोग सत प य म कुछ को मार कर रोग का नदान कया जाता है, चाहे उसका उपचार भले ह संभव न हो । रोग के व श ट कारण म व भ नता पाई जाती है, और रोकथाम तथा उपचार क सफलता इनके व श ट ल ण पर नभर करती ह । रोग के लए उ तरदायी सं मण का वणन न न कार से कया जा सकता है ।

    (ii) वषाणु सं मण (Virus Infections) (iii) जीवाण ुसं मण (Bacterial Infections) (iv) परजीवी सं मण (Parasitic Infections) (v) फंफूद (कवक) सं मण (Fungus Infections) (vi) वषलेै पदाथ का योग (Toxic Substance / Poisoning toxemia)

  • 7

    (vii) आनवुां शक कारण (Hereditory Factors) (viii) नयो ला म अथवा कसर (Neoplasm(s) (ix) व छता क कमी के कारण होने वाले रोग / यव था म कमी (Managemental

    problems) (x) मौसमी रोग

    1.3 अ व थ रोगी के ल ण: (i) वजन म कमी, सु त एव ंउदासी, वास म आवाज या याकुलता, शार रक तापमान कम

    या अ धक । (ii) पेट फूला, ना सका म यकूस, ने सु त, चेहरा सखूा हुआ । (iii) कॉ ब सकुड़ी हु ई, पील अथवा र त र हत, बटैल म सूजन । (iv) पखं झुके हु ये, मैले, अ यवि थत, चमड़ी बना चमक तथा खुरदर । (v) टांगे सूजी हु ई, लंगड़ापन, केल लैग । (vi) आहार उपयोग कम या ब द तथा अ धक अथवा कम यास लगना । (vii) हरे, पीले, सफेद रंग क बीट, द त के प क ।

    1.4 व भ न कु कुट रोग एव ंउनका वग करण:-

    1.4.1 सं ामक रोग:

    (अ) सं ामक एव ंसंस गत रोग(Infectious and Contagious Diseases): 1. वषाणु रोग (Virus Diseases)

    (i) रानीखेत (ii) चेचक (iii) लकवे का रोग (iv) वसन न लका का रोग (Laryngotrachietis) (v) वसन शोध (Bronchitis) (vi) मेरे स रोग (Mareks Disease)

    2. जीवाण ुरोग (Bacterial Diseases) (i) जुकाम (Coryza) (ii) द घकाल न वसन शोध (iii) कु कुट कॉलरा (iv) च चड़ी रोग (Spirochaetosis) (v) सालमो नलो सस (vi) य रोग (Tuberclosis or T.B.)

  • 8

    3. फफंूद रोग (i) ए परिजलो सस (Aspergilosis) / एफलाटोि सको सस (ii) नील कलगी (Favus)

    (ब) परजीवी रोग (Parasitic Diseases) 1. बा य परजीवी रोग (External Parasitic Diseases)

    (i) जूँ पड़ जाना (Lice infestation) (ii) चचड़ी पड़ जाना (Tick infestation) (iii) माईट, बा य परजीवी कोप (Mite infestation)

    2. आ त रक परजीवी रोग (Internal Parasitic Diseases) (i) गोल कृ म (Round worms) (ii) फ ताकृ म (Tape worm) (iii) सीकल कृ म (Caecel worm) (iv) धागेनमुा क ड़े (Thread worm) (v) का सी डयो सस

    (स) पोषक ह नता के रोग (Dietary Deficiency Diseases) (i) ए वटा मनो सस “ए” (ii) रके स (Rickets) (iii) पीरो सस (Perosis) (iv) ि ल ट टडन (Slipped Tendon)

    1.4.2 आय ुके अनसुार वग करण :-

    (अ) नगमन कए चजू के रोग : (i) अ भशीतन (Chilling) (ii) पीतक का चणू य न होना (Unabsorbed yolk) (iii) ए वयन एन सफेलोमाइलाइ टस, सालमो नला आ द

    (ब) छ: स ताह क आय ुके चजू के रोग : (i) सीकल को सी डयो सस (Caecal Coccidiosis) (ii) रानीखेत (Ranikhet or New Castle) (iii) सं ामक वसन शोध (Infectious Bronchitis)

    (स) छ: से आठ स ताह क आय ुके चजू के रोग : (i) सं ामक ले रगंो कयाइ टस (ii) कृ म (worms) (iii) च चड़ी वर (Spirochaetosis)

  • 9

    (द) आठ स ताह तथा अ धक आय ुके चूज के रोग: (i) लकवे का रोग (Avian Leucosis complex) (ii) आँत क कॉ सी डयो स (Intestinal coccidiosis) (iii) जुकाम (Infectious coryza) (iv) द घकाल न वसन शोध (Chronic Respirtory infection)

    (य) यवुा कु कुट के रोग (i) कु कुट कॉलरा (Fowl cholra) (ii) सं ामक ले रगंो े कयाइ टस (Infectious Laryngo tracheitis) (iii) लकवे का रोग (Avian Lcucosis complex) (iv) कृ म (worms)

    1.4.3 ऋतु के अनसुार वग करण

    (अ) शरद ऋतु के रोग (i) अ भशीतन (chilling) (ii) कोल से ट सी मया (iii) सालमो नला (iv) द घकाल न वसन शोध (Chronic Respiratory Diseases)

    (ब) ी म ऋतु के रोग (i) कु कुट चेचक (Fowl Pox) (ii) च चड़ी वर (Spirochaetosis) (iii) का सी डयो सस (iv) कृ म रोग (v) ए वटा मनो सस “ए” रानीखेत, चेचक, का सी डयो सस तथा कृ म रोग कसी भी आय ुके प ी को वष के

    कसी भी समय हो सकते ह । कसी नि चत थान म आव यकता से अ धक प ी रखने से वजा त भ ण (cannabalism) जुकाम (coryza) तथा कॉ सी डयो सस इ या द रोग हो सकते है ।

    1.4.4 संतु लत आहार क कमी से होने वाले रोग

    कु कुट आहार म आव यकतानसुार ोट न, वसा, काब हाइ ेट, ख नज पदाथ एव ं वटा मन क मा ा होनी चा हए । इससे आहार स तु लत हो जाता है । इसके अ त र त उसम आ सीकरण रोधी (antioxident), तजीवी (antibiotics) एव ं का सी डयो टेट (Coccidiostat) इ या द भी सि म लत कये जात ेह, िजससे प य को रोग के कोप से बचाया जा सके ।

  • 10

    1.4.5 यां क रोग (Accidents) :

    चोट लगने से मृ य ुहो जाती है अथवा घाव हो जाते ह ।

    1.4.6 रासाय नक रोग (Chemical Diseases) :

    आहार म कोई ऐसा खा य खा लेना जो क वषलैा हो, प य म वष या त हो जाता है।

    1.4.7 आनवुां शक रोग (Hereditory Diseases) :

    नि चत गणु के संर ण के लए योग कये जा रहे सघन अ त: जनन के कारण अ भावी वषय यु मजी कारक संयु मी हो सकते है । अत: यह आव यक है क इन वषययु मजी जीव को अलग कर दया जाये, िजससे क यह घातक गणु सतंान म थाना त रत न ह । घरेल ूकु कुट म 26 घातक अथवा आं शक घातक कारक का वणन मलता है, पर तु सामा य कु कुट-पालक के लए इनम से कोई भी कारक मह वपणू नह ं है ।

    1.4.8 अ य व वध प ी रोग (Miscellaneous Diseases) :

    (i) अ डा फंस जाना (Egg Bound) (ii) शर र के भीतर अ डा टूट जाना (Egg Peritonitis) (iii) द त आना (Diarrhoea) (iv) लू लगना (Heat stroke) (v) परै सड़ना (Bumble foot) (vi) मल वार का सड़ना (Ventgleet) उ त कार के रोग अनेक कारक उदाहरणाथ - र त ाव शोफ (Oedema) इ या द के कारण उ प न होत ेह और इनके नि चत कारण को ात करना सभंव नह ंहै । इनक रोकथाम करने से इनके भाव को कम कया जा सकता है ।

    1.5 रोग का सारण (Transmission of Diseases) : सं मण का मह वपणू ोत ऐसे वाहक प ी (carrier bird) होते ह, िजनके क ल ण प ट नह ं होते ह । रोग फैलाने वाले कारक का वणन न न कार से कया जा सकता है । (अ) संसग वारा (By contact)

    मेरे स रोग एक प ी से दसूरे प ी तक य ससंग अथवा सं पश वारा फैल सकता है । अ य प से वातावरण वारा भी यह रोग फैल जाता है । अ ययन वारा ात कया गया है क सं मत कु कुट के व ठा म वषाणु के कुछ कार

    के ेन (Strain) व ठा क अपे ा लार (Saliva) सं मण का अ धक मह वपणू ोत तीत होता है । कु कुट क पखं क वचा से झड़ी हु ई को शकाओं म भी ये वषाणु पाया जाता है । आहार म पर-चणू (feather meal) खलाने पर इस रोग के फैलने क सभंावना रहती है I

  • 11

    (ब) बछावन वारा (By Litter) बछावन वारा रोग फैलने के लए वै ा नक म मतै य नह ंहै, पर त ु बछावन म इस रोग का वषाणु 16 स ताह तक जी वत रह सकता है, इससे सकेंत मलता है क रोगफैलने म बछावन भी एक मुख ोत हो सकता है ।

    (स) रोग वाहक वारा (By vectors) ए फ टो बअस-डाईआपे रनस (Alphitobius diaperinus) नामक बीटल (better) के वारा फैलता है । इसके शर र म मेरे स रोग के वषाण ुपाये जाते ह, िजसे यह बटल अपने लाव म व ट कर देती है ।

    (द) कु कुट चीचड़ी वारा (By fowl tick) कु कुट चीचड़ी (अरगस परसीकस) भी इस वषाणु क वाहक पाई गई है । ऐसे मुगा-मुग क स तान, िजनम वय ंमेरे स रोग का सं मण अ य धक हो, इस रोग से कम भा वत होत ेह । इससे कट है क ये मुगा-मुग अपनी सतंान म अ ड के वारा पया त मा ा म तरोधी (antibody) भेजत ेह, िजससे ये चूजे उन चूज क अपे ा, िज ह तरोधी ा त नह ंहोत ेह, अ धक सीमा तक इस रोग के कोप से बच जात ेह । पतैकृ तरोधी वाले चजू म मृ य ुदर भी कम होती है ।

    इसके अ त र त श य च क सा उदाहरणाथ च च काटना (De beaking)] ट का लगाना (Vaccination), कु कुट गहृ म अ धक भीड़ होना (over crowding) अथवा गहृ प रवतन करना इ या द याओं का रोग क ा यता (Susceptibility) पर अनकूुल भाव पड़ता है।

    1.6 रोग क रोकथाम के उपाय (Prevention of Diseases) रोग क रोकथाम करने के पवू, इसके फैलाव एव ंअ भ यि त का ान होना परमाव यक है । य य प रोकथाम के अनेक उपाय ह, पर तु आ थक एव ं योगा मक मह व क ि ट से मा कुछ ह उपाय उपयोगी हो सकते ह, जो क नीचे वणन कये गये ह । 1. प य को अलगाव (Isolation) म रखना, रोग से बचाव क सुगम व ध है, पर तु

    यापक प म इसका उपयोग करना योगा मक प से संभव नह ं है और इस कार से प य को रखने से यय भी अ धक होता है ।

    2. न न ल खत व छता एव ं ब ध संबधंी याओं से लाभ होता है:- (i) समय-समय पर कु कुट समूह का मेरे स रोग से सत होने का पर ण करना

    चा हए । (ii) कु कुट गहृ म वाय ुसंचालन (Ventilation) क उ चत यव था होनी चा हए । (iii) कु कुट के कायकता वारा कोई अ य कु कुट फाम पर काय नह ंकरना चा हए। (iv) कु कुट गहृ पर काय करने वाल को न य वसं मण कया हुआ कोट (ए न) तथा

    गमबटू पहन कर काय करना चा हए । (v) कसी अ य ोत से चूज को फाम पर न रख कर उ ह एक दन क आय ुसे ह

    पालना चा हए।

  • 12

    (vi) समय - समय पर परुानी बछावन को हटाकर कु कुट-फाम क सफाई करनी चा हए। (vii) सं मत वषाणु रोग से सत कु कुट को रोग का नदान होते ह न ट कर देना

    चा हए, य क इन रोग का कोई सतंोष द उपचार नह ं है । रोग फैलने पर सावधा नयाँ (Precautions for checking spread of diseases): (i) सामा य कु कुट पालन संबधंी नयम का पालन आव यक है । (ii) रोग से मरे हु ये प य को जला देना चा हये या गाड़ देना चा हए । (iii) रोगी प ी, मरे हु ए प य क जाँच पशु च क सक / कु कुट वशेष से अव य कराय । (iv) पशु च क सालय / कु कुट वशेष क सलाह रोग के ल ण दखाई देते ह ा त कर । (v) वटा मन तथा ए ट बायो टक पानी अथवा आहार म नधा रत मा ा म द । (vi) समय - समय पर कु कुटशाला म क टाण-ुनाशक दवा का छड़काव कर । (vii) रोगी, दबुल प य को अलग रख । (viii) रोगी तथा व य प य क देखभाल के लये अलग यि त रख । (ix) अनाव यक यि तय को मुग शाला म न जाने द । (x) समय पर रोग नरोधक ट के लगवाते रह । (xi) या त ा त थान से ह चूज खर दे । (xii) व थ प य का काय पहले कर ल एव ंबीमार प य का बाद म, िजससे बीमार प य

    से सं मण व थ प य म न आये । रोग क रोकथाम के लए न न ल खत स ा त को ढ़ता से अपनाना चा हए:- (i) कु कुट फाम पर आने वाले सभी कार के नए प ी मा णत पलुोरम (Pullorum) एव ंकु कुट

    टाइफाइड (Typhoid) मु त समूह से ह लाये जाने चा हए । इसके साथ ह साथ यह भी आव यक है क इस कु कुट समूह म सालमो नला, माइको ला मो सस एव ंए वयन यकूो सस रोग के भी कोई संकेत न मलते होने चा हए । एक बार व य कु कुट समूह था पत हो जाने के प चात नए प ी य नह ं करना चा हए और य द बहु त आव यक हो जाये तो मा व छ समूह से ह य करना चा हए । य कये गये प ी परुाने प य से अलग रखे जाय।

    (ii) कु कुट गहृ सावज नक सड़क से लगभग 30 मीटर तथा अ य कु कुट गहृ से लगभग 50 मीटर क दरू पर ि थत होने चा हए ।

    (iii) प ी रखे जाने वाले आवास म जंगल प य एव ंपशुओं के वेश विजत होना चा हए । आग तुक को भी यहाँ आने क छूट नह ं होनी चा हए ।

    (iv) कु कुट के लए योग कये जाने वाला आहार व वसनीय सू से य कया जाना चा हए और संदषूण र हत तथा भल भाँ त संतु लत होना चा हए ।

    (v) फाम पर प य क नई खेप (batch) य करते समय रोग नवारण के सभी उपाय अपनाने चा हए । इ यवेूटर आ द य क व छता तथा वसं मण नयमानसुार एव ं नय मत प से करना चा हए ।

    (vi) प य को व थ बनाए रखने के लए उनके पोषण, संवातन, आवासीय यव था तथा ब ध को उ चत मह व दान करना भी अ त आव यक काय है ।

  • 13

    य द कसी कु कुट समहू म कोई सं ामक रोग फैल चकुा हो तो उसक रोकथाम के लए न न ल खत अ त र त सावधा नयाँ अपनानी चा हए:- (i) पणूत: व थ कु कुट को रोगी कु कुट से अलग करके, उनके खाने-पीने एव ंकायकता का

    अलग से ब ध होना चा हए । (ii) रोगी प य का र त अथवा शर र का कोई भी तरल पदाथ कु कुट-गहृ के फश पर नह ं पड़ना

    चा हए। (iii) सभी रोगी प य को मार कर, जला द अथवा भू म म दबा देना चा हए । (iv) रोगी अथवा मतृक प य को छूने के प चात लोर न अथवा डटॉल से हाथ धोने चा हए । (v) कु कुट के बाड़ , उपकरण और आहार तथा पानी के बतन को गम पानी से धोने के प चात

    2 तशत लाइसोल अथवा 5 तशत फनाइल के वलयन से उपचा रत करना चा हए । (vi) पीने के पानी म पोटे शयम परमगनेट मलाना चा हए, पर त ुइसक मा ा इतनी हो क पानी

    का रंग ह का गलुाबी हो जाए । उपयु त सभी उपाय बड़े तथा सु यवि थत कु कुट फाम पर ह अपनाये जा सकत ेहै, पर तु ामीण वातावरण म, जहाँ कु कुट ाय: बाड़ म न रखे जाकर वत घमूते रहत ेहै, वहां व भ न समूह के चूजे तथा मु गया ँपर पर वत तापवूक मलत ेजलुते ह । कु कुट कूड़ा के ढेर पर घमूते और एक साथ पानी पीते ह । इन प रि थ तय म न न ल खत उपाय करना चा हए । (i) ामीण कु कुट पालक को पर पर सहयोग से रोग क रोकथाम के यास करने चा हए । (ii) छ: स ताह से अ धक आय ुवाले चूज को रानीखेत और आठ स ताह से अ धक आय ुवाल

    को चेचक के ट क लगवा देना चा हए । (iii) आवासीय तथा आहार य दशाओं म सधुार करना आव यक है । (iv) रोग ार भ होते ह नकटवत पशु च क सक को सू चत करना चा हए और आव यकतानसुार

    उसक सहायता लेनी चा हए ।

    1.7 रोग नरोधी काय म एवं रोग नदान :- (Prophylactic Programme): यह काय म देश, भौगो लक े एव ंकु कुट समूह क क म के अनसुार भ न- भ न होत ेह । पर तु यह सवमा य है क सभी चजूा आहार म का सी डयो टेट मलाये जाने चा हए । का सी डयो टेट ज म से 3 माह क आय ुतक आहार म मलाया जाना चा हए । कु कुट आहार म तजीवी का भाव ु टपणू ब ध म अ धक भावशाल होता है । ब ध याओं एव ं व छता म सुधार करने से अ धक अ छे प रणाम क संभावना रहती है । आय ुके थम स ताह म सभी चजू को रानीखेत (Ranikhet) का ट का लगाया जाना चा हए । रानीखेत एफ का ट का एक दन क आय ुम एक काचँ क पचकार (dropper) वारा औष ध लेकर एक बूँद आँख और एक बूँद नाक म टपका देना चा हए । रानीखेत रोग का अ म ट का 6-8 स ताह क आय ुम लगाया जाना चा हए । य द सं ामक वसनीय शोध का रोग था नक प से पाया जाता हो तो 2-4 स ताह क आय ुम इसके ट क लगाने से लाभ होता

  • 14

    है । आजकल अनेक कार के म त यापा रक ट के उपल ध है और प य के उ पादन करने से पवू इनक अनवुधक मा ा (Booster dose) द जा सकती है । थम अनवुधक क मा ा, थम बार ट के लगाने के लगभग एक माह प चात और दसूर अनवुधक मा ा थम अनवुधक मा ा देने के लगभग तीन माह प चात ह द जानी चा हए । उ पादक आय ुभर के लए प य को रोग म बना देना, योग क जाने वाल वे सीन (Vaccine) क क म पर नभर करता है । बॉयलर चूँ क लगभग 1 1 2 माह क आय ुतक ह रखे जाते ह । अत: इ ह मा एक बार ट का लगाना भी पया त होगा । कु कुट म चेचक (fowl pox) के ट के लगभग एक माह क आय ुम लगाए जात ेह और य द आव यक समझा जाता है तो उ पादन ार भ करने के पवू एक बार और ट के लगा दए जाते है ।

    माइको ला मो सस, कॉ सी डयो सस एव ं कृ म (worms) क उपि थ त म रोग मी वक सत करने म बाधा पड़ती है और ट के के वपर त भी भाव पड़ सकता है । अत: ट का लगाने का काय म ार भ करने से पवू यह नि चत कर लेना परमाव यक है क इस कार के सं मण को नयि त कर लया गया है । पतैकृ रोग मी लगभग 2-3 स ताह तक रहती है और इससे ाकृ तक रोग मी उ प न करने म बाधा पड़ती है । अत: बहु त अ धक आव यक न होने तक यवुा चूज को ट के नह ंलगाए जाने चा हए । ट का लगाने के लए वै सीन का चयन उसके भाव एव ंम दपन (Mildness) पर नभर करता है । वै सीन का योग कई कार से कया जा सकता है, पर तु पानी के वारा इसका उपयोग अ या धक सलुभ है ।

    य द कुछ प ी इस कार के पानी को न पीयगे तो उनम रोग मी वक सत न हो सकेगी । य य प यि तगत प से प य को ट का लगाना अ धक भावशाल है, पर त ुयह बहु त अ धक समय लगने वाला होने के कारण क ठन एव ंप र मी है । अत: यह तीत होता है क रानीखेत, चेचक और सं ामक वसनीय शोध नामक रोग य द था नक प से पाये जात ेहो तो थान एव ंकु कुट समूह के यान को न रखते हु ए भी उनम

    रोग मी का वकास करना चा हए । ज म से लगभग तीन माह तक क आय ुतक कु कुट आहार म कॉ सी डयो टेट मलाया जाना चा हए । रोग नदान :-मानव एव ंअ य पशुओं क भाँ त ह प य म रोग नदान एक ज टल तकनीक

    या होती है । आमतौर पर व भ न प ी रोग का नदान कु कुट पालक वारा ल ण के आधार पर कर लया जाता है । कुछ रोग म वशेष द शत ल ण ह रोग वशेष क पहचान होते ह । इनके आधार पर उ ह अ य रोग से वभे दत कया जा सकता है । इन ल ण म वसन संबधंी दोष, ति का णाल का भा वत होना, सांस लेने म परेशानी आना, खाँसी आना ( वसन संबधंी रोग जसेै कौराइजा स.आर.डी, आई.बी, आई.एलट . इ या द) इसी कार पखं अथवा परै क पे शय का लकवा हो जाना (मेरे स), हरे अथवा सफेद रंग के द त लगना (आर.डी. अथवा रानीखेत, बी. ड य ू.डी.) आ द है ।

  • 15

    इसके अ त र त सं ामक रोग को पहचान जीवाणु / वषाणु / परजीवी वभाव, इसके फैलने क ती ग त, अ धक प य के सत होने तथा उ च मृ य ुदर आ द द शत ल ण के आधार पर क जा सकती है । योगशाला म रोग क जाचँ के लए बीट के नमूने, र त पर ण, ाव क जाचँ आ द योगशाला पर ण कर रोग नदान कया जा सकता है । र त पर ण

    म खून के अ दर परजीवी क जाचँ के साथ सं मण क अव था म उसक ती ता, गणुन के वषय म जानकार ा त होती है । इसी कार बीट क जाचँ म व भ न अ त: परजीवी पर ण कर परजीवी क कृ त का शान हो जाता है । प य म व भ न वषाणुज नत रोग एव ंकुछ जीवाणजु नत रोग क सीरम पर ण कर ए ट जन, ए ट बॉडी जाचँ जैसे ए लु टनेशन (Agglutination Test – Plate & Tube Agglutination), सीरम यू लाईजेशन (Serum Neutrilization) एव ंएलाइजा जाँच (Elisa) कर रोग का पता लगाया जाता है । प ी चूँ क समूह म रहत ेह । समूह के एक प ी क मृ य ुहोने पर शव पर ण कर पाये जाने वाले वशेष लजन (Pathognomic Lesions) के आधार पर शी जाचँ क जा सकती है । अ धक मृ य ुदर क ि थ त म शव पर ण एक वशेष कारगर पर ण स होता है एव ंशी नदान कर उपचार कया जा सकता है । कु कुट पालक को चा हए क वह शी अ तशी मतृ प ी का योगशाला म शव पर ण कराकर उपचार ार भ कर देव, ता क रोग के फैलाव को अ य व थ प य म फैलने से रोका जा सक । अ य योगशाला पर ण म जीवाणु ज नत सं मण क ए ट बायो टक स स ट वट जाचँ (Antibiotic Sensitivity Test) कर, सं मण के कार एव ंउपचार म योग लये जाने वाल ए ट बायो टक औष ध के चयन म सु वधा रहती है, िजससे शी उपचार के साथ रोग के बचाव म होने वाल आ थक हा न को रोका जा सकता है ।

    1.8 सारांश : इकाई म व णत सभी ब दओंु का व ततृ अ ययन करने के प चात यह न कष आसानी से नकाला जा सकता है क कु कुट पालक को व भ न रोग क पणू जानकार जसेै कारण, ल ण आ द के वषय म ान है, तो वह ना सफ कु कुट शाला म रोग के सारण एव ंफैलाव को रोक सकता है, अ पतु समय रहत ेउसके बचाव एव ंरोकथाम के यापक एव ंपु ता ब ध भी कर सकता हे, िजससे कु कुट पालन म रोग से होने वाल आ थक हा न को रोका जा सकता है । कु कुट शाला म व छता, हाइिजन के उपाय, जै वक सरु ा ब धन एव ंसं ामक रोग का ट काकरण कर होने वाल त काफ हद तक कम क जा सकती है ।

    1.9 नावल .1 प य म सं ामक रोग से कैसे बचा जा सकता है? उपाय का वणन क िजए? .2 व थ एव ंअ व थ प ी म भेद बताइये ? .3 प य म रोग का सारण कस कार होता है? सारण रोकने के लए कारगर उपाय

    का वणन कर?

  • 16

    .4 कु कुट रोग के वग करण पर काश डा लए?

    .5 रोग नदान क उपयो गता पर ट पणी ल खए?

    1.10 स दभ पु तक 1. कु कुट चय नका - डी. शैलेश रंजन 2. Diseases of the Domestic Fowl & Turkey.- C.J Randall 3. Diseases of Poultry. -M.S. Hofstad

  • 17

    डी.पी.एम. -3 इकाई – मु गय के सं ामक रोग, उनक रोकथाम एव ंबचाव

    छूतदार रोग इकाई - 2 2.0 उ े य 2.2 तावना 2.3 व भ न सं ामक रोग एव ंबचाव 2.4 ल ण के आधार पर वभे दत वणन 2.5 शव पर ण के आधार पर वभे दत वणन 2.6 सं ामक रोग क पहचान एव ं नदान हेतु भेजे जाने वाले नमून का वणन एव ं जरवे टव 2.7 छूतदार रोग एव ं योगशाला पर ण 2.8 साराशं 2.9 नावाल 2.10 स दभ थं

    2.0 उ े य : सं ामक रोग सं मण से फैलते है । सभी सं मण प य के व भ जै वक अंग को भा वत करत ेहै, उ ह त पहु ँचाते है तथा यह मृ य ुका कारण भी बनते है । ईकाई म मुख प से सं ामक रोग के कार, उनके सार, ल ण, शव पर ण एव ंकारण का व ततृ क त ुवभे दत नदान यु त (Differential Diagnosis) ववेचन कया गया है, ता क प ीपालक व भ न रोग क पहचान सह कार से कर सक, कोई म ना रहे, साथ ह ईकाई का उ े य सं मण क अव था म रोगी प ी से कौन से नमूने ा त कये जा सकते है । उ ह कैसे सधंा रत / संर त (Preserve) कया जावे तथा नदान हेत ुनमून को कैसे े षत कया जावे, इसकाभी वणन कया गया है, ता क बचाव एव ंरोकथाम के समय रहते बेहतर उपाय कये जा सके ।

    2.1 तावना सभी छूतदार रोग सं मण से फैलते ह,यह आव यक नह ं है क सभी सं ामक रोग छूने से ह फैले । इस मूल मं को यान म रखते हु ए इकाई म सं ामक एव ंछूतदार रोग क या या क गई है । सं मण कसी भी कार का हो, चाहे वह जीवाण ुया वषाणु हो अथवा परजीवी या फफंूद हो, उसे सारण हेतु कसी ना कसी मा यम क आव यकता होती है । सं मण परो प से सीधा स पक म आने अथवा अपरो प से हवा, दू षत वातावरण, म खी, म छर, जूँ चीचड़ी अथवा अ य क ट के कारण या अ य कसी भी कारण से हो सकता है

  • 18

    । सीधा स पक, या न रोगी प ी के वारा ा वत पदाथ जसेै सं मत लार, बीट, आँसू पखं आ द जब कसी व थ प ी के दाना-पानी, बतन, लटर, मगु शाला के उपकरण आ द के स पक म आते ह उ ह ये ाव दू षत कर देते है एव ंजसेै ह व य प ी इनका योग करता है अथवा स पक म आता है, रोगी बन जाता है । इसी कार कई सं ामक जीवाण ुएव ं वषाण ु पोर बनाते ह एव ंउनके अ दर कई दन तक, कई बार कई वष तक जी वत रहते ह, क तु जैसे ह अनकूुल वातावरण (जसेै उ चत तापमान, जलवाय,ु शु कता, नमी) इ ह ा त होता है, ये पोर से वघ टत होकर हवा, पानी, मनु य, पश,ु प ी अथवा अ य मा यम से एक थान से दसूरे थान पर दरू थ थान पर या आवागमन करते है तथा एक ह साथ, थान वशेष पर वकट रोग उ प न करते है तथा महामार का प ले लेते है । अ धकांश वषाणुज नत प ी रोग इसी ेणी म आते है एव ंकु कुट पालन को भार आ थक हा न उठानी पड़ती है । रोग क ती ता, मा यम, कारण एव ं सारण के आधार पर सं मत प य क कुल सं या (Morbidity Rate) साथ ह सं मत प य क कुल सं या म से मतृ प य क सं या (Mortality Rate) नधा रत होती है । जब कसी रोग वशेष से सभी सं मत प य क मृ य ुहो जाये , तो रोग अ य त घातक रोग क ेणी म आता है, जैसे रानीखेत, ग बोरो, पलुोरम इ या द । (i) ए डे मक (Endemic) - कसी िजले अथवा थान वशेष पर जब कोई रोग बार-बार

    एव ंलगातार थाई प से फैले तो ऐसे रोग Endemic Diseases कहलात ेहै । (ii) ए पडे मक (Epidemic) प जब कोई वशेष रोग एक थान पर एक साथ अ धक

    प य को भा वत कर तथा जो एक थान से दसूरे थान पर सा रत हो जावे और अ धक मृ य ुका कारक बने तो उसे Epidemic कहते है । इस रोग क व तार सीमा बहु त अ धक होती है ।

    (iii) पे डे मक रोग (Pandemic) :-Wide spread epidemic जब कोई रोग एक थान से दसूरे थान पर या न अपे ाकृत बहु त बड़े भाग म सा रत हो, कई बार

    यह रोग एक देश से दसूरे देश म (overseas) फैल जाते है, रोग सारण क इस ेणी को Pandemic कहा गया है । जैसे वतमान म बड लू।

    (iv) पोरे डक (Sporadic) :- जब कसी रोग वशेष से कुछ एक अथवा कम प ी भा वत या सं मत हो, ऐरने रोग Sporadic Diseases क ेणी म रखे जात े

    है । जसेै- तं से संबधंी रोग, Egg bound condition / canabalism आ द। इस इकाई म सभी सं ामक एव ं छूतदार रोग का समावेश कया गया है तथा उ ह Differential Diagnosis के आधार पर व णत कया गया है, य क इ ह व ततृ ववे चत, जीवाणजु नत / वषाणजु नत / परजीवीज नत / फफंूद ज नत आ द अ याय म पथृक से कर दया गया है ।

  • 19

    2.2 व भ न सं ामक रोग एवं बचाव :

    2.2.1 जीवाणजु नत रोग-कारण

    (i) ई. कोलाई सं मण - E. Coli (ii) पलुोरम रोग - Salmonella. pullorum (iii) कोराईजा रोग - aemophilus. gallinarium (iv) फाउल कॉलरा - asteurella. multocida (v) बोटु लज - Clostridium. botulinum (vi) ा नक रे पाइरे

    डजीज (C.R.D.) – Mycoplasma. Gallisepticum

    2.2.2 वषाणुज नत रोग

    (i) रानीखेत रोग(R.D) - रानीखेत रोग वषाण ु( म सो वायरस) (ii) ग बोरो रोग (I.B.D) - ग बोरो रोग वषाण ु( रयो वायरस ( रयो)) (iii) मेरे स रोग (M.D.) - मेरे स रोग वषाण ु(हरपीज़ वाइरस) (iv) ल ची रोग - ऐ डनो वाइरस (v) इ फे सीयस ो ाइ टस - इ0 ो0 वषाण ु( मकस वायरस)

    (vi) इ फे सीयस लैरेज ेकाइ टस - आई.एल.ट . वषाण ु(हरपीज़ वाइरस) (vii) फाउल पॉ स - फाउल पॉ स वषाण ुपॉ स वाइरस

    2.2.3 परजीवी ज नत रोग

    (i) गोल कृ म सं मण - Heterakis. gallinae (ii) गेप व स - yngamus. tracheal (iii) फ ता कृ म - Rallietina. sps (iv) कॉ सी डयो सस - Eimeria. sps

    2.2.4 ोटोजोआ ज नत रोग

    (i) ह टोमो नऐ सस - Histomonas. melegridis (ii) टो सो लाजमो सस - Toxoplasma. gondii (iii) पाईरो कटो सस - Borrelia. anserina (iv) पाइरो लाजमो सस - Aegyptianella. pullorum (v) पेनोसोमो सस - Trypanosoma. avium

  • 20

    2.2.5 फफँूद ज नत रोग

    (ii) ए परिजलो सस - Aspergillus. fumigatus Aspergillus. flavus

    2.3 ल ण के आधार पर वभे दत वणन :

    2.3.1 जीवाणजु नत रोग

    (i) ई. कोलाई सं मण - एयर सै यलुाई टस, ओमफेलाई टस, पे रटोनाई टस, एि टराइ टस, काँल से ट समीया, कोल ेनलुोमा, ( लवर व आँत पर यमुर), अ डा उ पादन कम, द त लगना ।

    (ii) पलुोरम रोग - पँख लटकना, द त लगना, चूज म सफेद पतले द त, डूर म एक होना, अ धक मृ य ुदर ।

    (iii) कोराइजा रोग - छ ंक आना, नाक से बदबदूार चप चपा गाढ़ा पदाथ (Mucus) आना, चेहरा सूजा, आँख ब द, बटैल सजेू हु ए ।

    (iv) फाउल कालरा - बचेैन होना, माँस पे शय का घटना, उ पादन कम, हरे द त, सर काला पड़ना, लकवा होना ।

    (v) बाटु ल म - पँख व परै का लकवा होना, गदन का ल बी होना, आँख धंसी रहना, पँख ढ ले होना एव ंकोमा क ि थ त ।

    (vi) ा नक रेि परेटर डजीज (CRD)

    - साँस म क ठनाई, नाक से ड चाज, े कया म रेट लगं क आवाज, े ट का कमजोर होना ।

    (vii) ग ीनस डरमेटाइ टस - परै म एव ं वचा पर घाव व बदब ूआना, वचा पर छ होना, कानावा ल म पँख नोचना, एनी मया आ द ।

    2.3.2 वषाणुज नत रोग :

    (i) रानीखेत रोग (R.D) - हरे पतले द त लगना, अ या धक मृ य ुदर , वास लेने म क ठनाई एव ं वशेष आवाज (Rales) आना, उ पादन म भार कमी,

  • 21

    गेस पगं, खांसी आना, अ डे का छलका कमजोर होना ।

    (ii) ग बार रोग (I.B.D) - प ी का सु त होना, कंपकंपी आना, अ यवि थत पखं, बरसा म सजून और पतले द त लगना ।

    (iii) मेरे स रोग - मु गय म लकवा पाया जाता है, ेआई अथवा पल आई, तीन माह के उ के प य म ल ण दखाई देते ह, एक परै आगे तथा एकमड़ुा हुआ, पँख गरे हु ए, परै व पँख सजेू हु ए ।

    (iv) ल फाइड यकूो सस (L.L.) - 16 स ताह या अ धक आय ुपर यमुर या गाठ पाई जाती है । परै म लड़खड़ाहट, क तु लकवा नह ं बरसा म यमुर (Tumors)

    (v) ल ची रोग - अ डा उ पादन म कमी, बॉयलर म अ धक ती ता, माँसपे शय एव ंअवयव म हैमरेज एनी मया आ द, 3-6 स ताह के चजू म अ धकI

    (vi) इं फे सीयस ां काइ टस - स दय म अ धक पाया जाता है, कम उ क मु गयाँ अ धक भा वत, साँस म गेि पगं रे स, नाक म यकुस, यमुो नया, आँखे नम व सूजी हु ई, आहार कम ।

    (vii) इं फे सीयस लै रगंो ेकाइ टस (I.L.T.)

    - समय गदन ल बी होना, नाक से ड चाज, वेटर पर सूजन, खाँसी के साथ खून भरा यकूस आना ।

    (viii) फाउल पॉ स - को ब चेहरा, वेटल पर दाने, प पल अथवा केब (Scab) पाये जाते ह । मु ँह क अ दर

    क ले मा पर भी दाने पाया जाना, 2-4 स ताह क उ पर अ धक भावशाल , अ डा उ पादन कम ।

    2.3.3 परजीवी ज नत रोग

    (i) गोला कृ म - खून क कमी होना, प ी कमजोर, सु त व कभी-कभी लंगड़े होना, बीट पतल , खूनी द त लगना

  • 22

    (ii) फ ता कृ म - खूनी पे चस, लंगड़ापन, कमजोर आ द

    2.3.4 ोटोजोआ ज नत रोग

    (i) लू काँ ब - कलंगी का नीला पड़ना, नई फसल (गेहू)ँ आने पर रोग क संभावना, अ धक ठंड लगना, वजन घटना, र तवा हनीयाँ उभर हु ई, सफेद पानी जसेै द त, कम उ पादन, मृ य ुदर अ धक व मृ यपुवू काँपना ।

    (ii) ह टोमो नऐ सस रोग ( लैक हेड) - वजन म कमी, बीट का रंग गधंक जैसा पतल बीट व चीजी पदाथयु त

    (iii) टा सो लाजमो सस - मनु य म फैलने का खतरा, वजन म कमी, क ल बोन का दखना, े ट क माँसपे शयाँ कम होना, तापमान बढ़ना आ द ।

    (iv) ( पाइरोक टो सस - तापमान बढ़ना, परै पर सजून, को ब का पीला पड़ना, सु त व हरे द त लगना, लकवा होना तथा खून क कमी होना ।

    (v) पायरो लाजमो सस / - कमजोर होना, वजन म कमी, ताप म बढ़ना, लकवा पेनोसोमो सस क त ुर त पर ण करने पर तरु त पहचान संभव

    (vi) का सी डयो सस - सफेद द त, खूनी द त लगना, एनी मया, वजन मे कमी, अ धक मृ यु दर (50- 100 %) ,लड़खड़ाना, धीरे-धीरे मृ य ु होना , अ डा उ पादन म भार गरावट होना, बीट के साथ खून आना ।

    2.3.5 फफंूद ज नत रोग

    (i) ए परिजलो सस - खाना-पीना छोड़ देत े है, वास म क ठनाई, भार आवाज, रेट लगं क आवाज, तथा अधंापन आना ।

  • 23

    2.4 शव पर ण के आधार पर वभे दत वणन :

    (i) ई. कोलाई सं मण - आँत म सूजन, भ ती मोट होना, दय म Straw रंग का य अथवा

    ल वर व आँत म यमूर (ii) पलुोरम रोग - दय क झ ल म पीला पानी भरना,

    डशे ड या बगड़ी आकृ त के ओवा (ova), आँत पर दाने एव ंपील -सफेद बीट

    (iii) कोराइजा रोग - च च दबाने पर ना सका से चीजी यकूस आना, े कया म क जेशन व

    चीजी पदाथ (iv) फाउल कॉलरा - गजाड ोवे ट कूलस, दय एव ंआँत

    पर पट क यल ( पन पाउ ट) हेमोरेज एव ंNecrotic Foci पाया जाना।

    (v) ा नक रेस परेटर डजीज(C.R.D) - वास क नल म यकुस, ल वर के भाग से लेकर दय तक सफेद झ ल , े कया म हेमोरेज एव ंचीजी पदाथ

    (vi) रानीखेत रोग (R.D) - ोवे ट कुलस क भ ती मोट तथा उसम पेपील पर पट क यल ( पन पाउ ट) हेमोरेज या लाल दाने, आँत सूजी हु ई तथा उनम हर पतल बीट ।

    (vii) ग बोरो रोग (I.B.D.) - पेर क माँसपे शय म लाल च क त ेअथवा हेमोरेज बरसा फे कस बढ़ा हुआ तथा सजून व सये टक नव क धा रया ँ (striations) का नह ंदखलाई देना ।

    (viii) मेरे स रोग (M.D) - पँखे क जड़ म Nodules, नायु सूजे हु ए व Nodules या गाठ ।

    (ix) ल फाइड यकूो सस (L.L.) - ल वर का आकार कई गनुा बढ़ा हुआ व त ल आकार म दगुनी होना ।

    (x) ल ची रोग - दय ल ची समान दखलाई देता है । (xi) इं फे सीयस ां काइ टस - फेफड़ म सजून व क जेशन वसन

    न लका म मकुरा अथवा चीजी पदाथ (xii) कृ म रोग - आँत सुजी हु ई तथा उनम परजीवी के

  • 24

    लावा दखलाई देना । (xiii) पाइरोक टो सस - पील न व ल वर बढ़े हु ए,

    पेर कारडाई टस एनी मया आ द (xiv) कॉ सी डयो सस - आँत तथा सीकम म सूजन व र त

    पाया जाना, योगशाला पर ण म Oocysts का पाया जाना ।

    (xv) ए परिजलो सस - फेफड़ म फोड़े अथवा Abscess, Airsac म cheese पदाथ पाया जाता है । Comb पर ध बे, सफेद च ह ।

    2.5 सं ामक रोग क पहचान एवं नदान हेतु भेजे जाने वाले नमून का वणन एवं जरवे टव : (i) रानीखेत रोग – Pieces of liver, spleen

    trachea, bronchi lungs, Proventiculus in 50% buffered Glycerine saline or on ice, 10% neutral formol saline.

    (ii) ग बोरो डजीज - Bursa of Fabricious, paired serum, cut Pieces of visceral organs, in Transport Media or on ice, 10% neutral formol Saline.

    (iii) मुग चेचक-फाउल पॉ स - छोटे-छोटे दान के Scabs को 50% ि लसर न सेलाइन (Glycerine Saline) या PBS के घोल म भेज I

    (iv) ए.एल.सी (A.L.C.) - िजगर, त ल तथा या टक नव को 10% फारमेल न घोल म।

    (v) Infectious Bronchitis (IB) - Swabs from Exudate and lungs paired serum,

  • 25

    Trachea and bronchi in 50% buffered Glycerine.

    (vi) Marek’s disease - Feather follicles from chest and neck, Paired serum, Pieces of visceral organ and peripheral nerve in Transport media or on ice, 10% formalin.

    (vii) ा नक रे पाइरे डसीज (CRD) - सीरम के नमूने बफ म । (viii) टक फ वर (Tick Fever) - त ल तथा ल वर को 10%

    फारमोल न घोल म, र त क लाईड बनाकर मथाइल ए कोहल म टेन के उपरा त भेज ।

    (ix) Pullorum Diseases (B.W.D)

    - Blood in EDTA, paired sera samples cut pieces of visceral organs on ice or in 10% formalin in sterile vial, faecal swabs.

    (x) मुग हैजा (Fowl Cholera) - र त लाईड बनाकर एव ं िजगर, त ल , आँत के ऊपर भाग को 10% फारमोल न के घोल म भेज ।

    (xi) राउ ड वम - गोलक ड़ ेटेप-वम - ल बे क ड़ े

    - ताजे मल 'बीट' को 10%' फारमेल न के घोल म भेज अथवा नमक के संतृ त घोल म । क ड़ को 10% फारमेल न अथवा ऐ कोहॉल म भेज ।

    (xii) खूनी द त (Coccidiosis) - आंत तथा सीकम से ा त र त रंिजत बीट को 20% पोटे शयम डाइ ोमेट (Potassium Dichromate)के घोल म भेज ।

    2.6 छूतदार रोग एवं योगशाला पर ण :

    छूतदार रोग - योगशाला पर ण (i) रानीखेत रोग - वायरस यू लाईजेशन टे ट

  • 26

    ह मए लूट नेशन इनह वशन टे ट (H.I.), लोरोसट ए ट बॉडी टे ट (FAT), ए जाइम लं ड ईमुनोएवसोरवट ऐसे ELISA के लए Diagnostic Kit (EISA) उपल ध है ।

    (ii) ग बोरो रोग - एनीमल इनाकुलेशन टे ट EISA: Commercially available kit is present For EISA

    (iii) मेरे स रोग - इनडायरे ट ह मए लूट नेशन इनह वशन (Indirect HI) टे ट अगार जेल स पटेशन टे ट (AGPT) या अगार जेल इमुनो ड यजुन टे ट मेरे स रोग के लए AGID टे ट लगाने के लए मेरे स हाइपरइ यनु ए ट सीरा उपल ध है।

    (iv) पलुोरम रोग - (i) सालमोनेला - कलड ए ट जन से लेट टे ट लगात े है, िजसम सं मत प ी क र त को लाइड के ऊपर ए ट जन के साथ मलाने पर र त फट जाता है । (Agglutination) - रोग नह ंहोने क अव था म ए ट जन और र त मल जाते है । (ii) सालमोनेला पलुोरम लेन ए ट जन - इस पर ण म सीरम के व भ न Dilutions के साथ टे ट यबू म लेन ए ट जन मलाते है ।

    सं मत प ी के सीरम म यबू म अव ेपन (Agglutination) पाया जाता है । ( व थ प ी के Agglutination नह ं आता)

    (v) कॉ सी डयो सस - बीट का पर ण करने पर High Power Microscope के योग

  • 27

    से Slide के ऊपर आइमे रया के Oocyst दखलाई दे जाते है ।

    (vi) बड ल ू - ELISA AGID HI Chick embryo Inoculation Test

    (vii) फाउल पॉ स - HA, HI Tests, Virus Nentrillazation Test.

    (viii) फाउल कालरा - Rapid whole Blood – Agglutination Test AGID

    2.7 सारांश सं ामक एव ंछूतदार रोग का इलाज क अपे ा बचाव एव ंरोकथाम के उपाय कया जाना अ धक सुर त होता है, य क एक तो इन रोग से मृ यदुर अ धक एव ंइतनी शी होती है क समु चत ईलाज का समय नह ं मल पाता, दसूरे ईलाज पर कया जाने वाला यय भी काफ अ धक होता है । अत: बेहतर यह है क इन रोग क समय रहते पहचान कर (ल ण के आधार पर) अथवा शव पर ण कराके या योगशाला के से पल भेजकर जाचँ करा ल जाव एव ंतदनसुार समय पर रोग वशेष का ट काकरण मय बू टर डोज के कर लया जावे । सं ामक एव ंछूतदार रोग के लए इस तरह के बधंन को ह ाथ मकता द जानी चा हए।

    2.8 नावल : .1 सं ामक एव ंछूतदार रोग म भेद क िजए? .2 सं ामक रोग का सारण कन- कन मा यम से हो सकता है? छूतदार रोग कैसे फैलत े

    है । .3 सं ामक रोग को ल ण के आधार पर कैसे पहचाना जा सकता है? .4 शव पर ण के आधार पर रोग का नदान कैसे कया जा सकता है? .5 छूतदार रोग मेरे स एव ंपलुोरम क योगशाला म या- या पर ण कर पहचान क

    जा सकती है? .6 न न के पेथो नो मक वशेष ल जन या है?

    (i) रानीखेत (ii) ग बोरो रोग (iii) सी.आर.डी. .7 न न रोग म योगशाला पर ण कर कैसे जाचँ क जा सकती है?

    (i) कॉ सी डयो सस (ii) पाइरोक टो सस (iii) रानीखेत

  • 28

    2.9 स दभ ंथ : Diseases of Poultry by M.S Hofstad.

  • 29

    डी.पी.एम. - 3

    इकाई : जीवाणु ज नत प ी रोग एव ंउपचार इकाई - 3 3.0 उ े य 3.1 तावना 3.2 वग करण से संबं धत श द का ववरण

    बै ट रया: जीवाणु ए ट बायो टक: त जीवाणु पदाथ

    3.3 ई. कोलाई सं मण (E. Coli Infection) 3.3.1 .कारण 3.3.2 सारण 3.3.3 ल ण 3.3.4 नदान, बचाव एव ंउपचार

    3.4 पलुोरम रोग, बेसीलर हाइट डाय रया (B.W.D.) 3.4.1 प रभाषा 3.4.2 कारण 3..4.3 सार 3.4.4 ल ण 3.4.5 शव पर ण 3.4.6 रोग नदान 3.4.7 उपचार एव ंबचाव

    3.5 कोराइजा इ फे शीयस कोराइजा (Infection Coryza) 3.5.1ल ण 3.5.2उपचार एव ं नयं ण

    3.6 कॉलेरा फाउल कॉलेरा (Fowl Cholera) 3.6.1 सारण 3.6.2 ल ण 3.6.3 शव पर ण 3.6.4 बचाव एव ंउपचार

    3.7 बोटू ल म (Botulism) 3.7.1 प रभाषा 3.7.2 ल ण 3.7.3 शव पर ण

  • 30

    3.7.4 बचाव एव ंउपचार 3.8 ा नक रे पाइरे डजीज (C.R.D.)

    3.81. सारण 3.8.2 ल ण 3.8.3 शव पर ण 3.8.4 बचाव एव ंउपचार

    3.9 ऑमफेलाई टस (Omphalitis) 3.9.1 ल ण 3.9.2 शव पर ण / बचाव एव ंउपचार

    3.10 ग ीनस डरमेटाई टस (Gangrenous Dermatitis) 3.10.1 सारण 3.10.2 ल ण 3.10.3 बचाव / उपचार

    3.11 साराशं 3.12 नावल

    3.0 उ े य: मु गय म सं मण से होने वाले रोग म जीवाणु ज नत सं मत रोग से होने वाल मृ यदुर काफ अ धक रहती है, भ न- भ न जीवाणु के सारण एव ंसं मण को जीवाणु क कृ त के वषय म जानकर, उनसे होने वाल त का आकलन कर, तजीवाणु औष धय (Antibiotic) के योग से रोग से बचाव के साथ-साथ उसका इलाज कया जाना आसान रहता है । भ न- भ न कृ त के जीवाणओंु पर वशेष कार के ए ट बायो टक औष ध का भाव भी सट क रहता है एव ंए ट बायो टक सेि स ट वट पर ण योगशाला म कर शी ह रोग का भावी उपचार सभंव है, िजससे रोग के उपचार पर कये जाने वाले आ थक भार को भी कम कया जा सकता है । ल ण के आधार पर जीवाणजु नत रोग क पहचान करने के साथ-साथ ह इन रोग का योगशाला म पर ण आसानी से कया जा सकता है एव ंशी ह भावी नतीजे सामने आ

    जाते है ।

    3.1 तावना : इस इकाई म मु गय म होने वाले सभी मु य जीवाणजु नत रोग का समावेश कया गया है । जीवाणुज नत रोग के सारण के तर के के वषय म जानकर उसका भावी नयं ण कया जा सकता है । सामा यत: अ धकांश जीवाणुज नत प ी रोग मलत-ेजुलते ल ण द शत करत ेहै, िजसके कारण थम टया उनम भेद करना क ठन होता है, क त ुयहाँ येक जीवाणजु नत रोग के लए वशेष द शत ल ण का उ लेख कर शी नदान कये जाने का यास कया गया है।

  • 31

    जीवाणु के कार के आधार पर एव ंउसक Virulence या न बीमार पदैा करने क मता के वषय म भी चचा क गई है, व भ न तं पर पड़ने वाले वपर त भाव का भी उ लेख कया गया है । जीवाणु क कृ त के आकलन एव ंउससे पड़ने वाले भावी भाव को जानकर रोग का समय पर नय ण एव ंउपचार कया जा सकता है । इन रोग से प ी क मृ य ुहोने पर अ य प य म सं मण के सारण को, मतृ प ी का शव पर ण कर रोका जा सकता है । इस कार प ी गहृ म होने वाल मृ यदुर काफ कम हो जाती है ।

    कुछ जीवाणजु नत प ी रोग जूनो टक रोग होते ह, जैसे सालमोनेला सं मण (पलुोरम रोग) मनु य म भी सं मत अ ड अथवा सं मत मुग वारा दये गये अ ड के उपयोग से फैल सकते ह एव ंमनु य म रोग का कारण बनते ह । इन रोग का प य के र त अथवा सीरम पर ण कर समय पर मनु य म सा रत होने से रोका जा सकता है । इकाई म सभी आव यक वै ा नक जानका रय का समावेश इन रोग के प ी एव ंमनु य म पड़ने वाले दु भाव को कम करने के उ े य से कया गया है ।

    3.2 वग करण से संबं धत श द का ववरण बै ट रया : जीवाण ु ए ट बायो टक : त जीवाण ुपदाथ

    3.3 ई. कोलाई स मण: प य का यह एक जीवाणु ज नत रोग है, िजससे कई कार के सं मण प य म हो सकत ेह । इस जीवाणु वारा कोल बेसीले सस, एगपेर टोनाइ टस, एयरसे यलूाइ टस, साल पगंजाई टस, हजारे डजीज, कोल से ट सी मया आ द रोग के ल ण देखे जा सकते ह । सामा यत: यह जीवाण ुपशुओं, प य एव ंमनु य आ द के पेट एव ंआंत म पाया जाता है । ेस एव ंअ य अव थाओं म हो ट को सं मत कर व भ न रोग कट करता है ।

    3.3.1 कारण एव ं सारण:

    इ चेरे शया . कोलाई, ाम नेगे टव रोड शेप जीवाण,ु ये जीवाणु रोग उ प न करने म स म होते ह और ये वष (Toxin) भी बनाते ह, िजससे द त लग जाते ह ।

    यह जीवाण ुएक वशेष कार के मी डया ई .एम.बी. अगार पर वृ करता है एव ंइसक कोलोनी अगार लेट पर धात ुजसैी चमक पदैा करती है, िजससे इस जीवाणु को आसानी से पहचाना जा सकता है। यह ले टोज नामक शकरा का उपयोग कर अ ल उ प न करता है।

    इस रोग का सार अ ड के मा यम से हो सकता है, िजससे चूज म अ य धक मृ य ुदर देखी जा सकती है ।

  • 32

    3.3.2 सारण :

    लटर व बीट रोग को फैलाने म सहायक है, जब क पो फाम म पाया जाने वाला ड ट (धूल कण) िजसम अनमुा नत 105 से 108' तक ई. कोलाई के जीवाणु पाये जा सकत ेह, जो क सं मण के लये पया त है ।

    दू षत पानी वारा यह रोग अ धक फैलता है । मुँह एव ंहवा के मा यम से यह सं मण फैल सकता है ।

    3.3.3 ल ण:

    कॉल से ट सी मया - र त म जीवाणु के मलने से यह अव था कट होती है एव ंइसम सव थम गदु एव ं दय क झ ल म सूजन तथा दय म ा कलर का तरल पदाथ मलता है ।

    एयरसे यलूाइ टस - र त से अथवा सीधे ह वास नल से यह जीवाणु फेफड़ म पहु ँच कर एयरसे यलूाइ टस नामक रोग कट करता है, िजसम उ पादन कम होना, खाँसी आना तथा रेट लगं आ द ल ण दखलाई देते ह । इसम नमो नया नामक रोग भी हो जाता है ।

    से ट समीया के कारण ओवीड ट म भी यह सं मण पहु ँच जाता है, िजससे अ डा उ पादन कम हो जाता है एव ंसं मत अ ड का उ पादन होने लगता ह i

    चूजे क ना भ वारा सं मण वेश कर ओमफलाइ टस रोग के ल ण दखलाता है, जब क एयरसे यलूाइ टस के भाव के साथ पेरेटो नयम झ ल म सूजन पाई जाती है, िजसे एगपेर टोनाइ टस कहते ह ।

    एंटेराइ टस - ई. कोलाई का आंत म सं मण एं ाइ टस नामक रोग पदैा करता है, िजससे आंतो के अ दर क सतह पर सूजन पाई जाती है व प ी पतल बीट जैसे ल ण कट करता है । इस अव था म आंत म अ य सं मण जैसे क आइमे रया जा त के लगने क सभंावना रहती है ।

    कोल े यलूोमा अथवा हजारे डजीज - आंत एव ंल वर पर जगह जगह यमूर या गांठे दखाई पड़ती ह । इस अव था को कोल े यलूोमा कहते ह I

    3.3.4 नदान, बचाव एव ंउपचार:

    कु कुट शाला के ब धन एव ंहाइजीन का वशेष यान रख । मुग गहृ क सफाई, आहार व पीने के पानी के बतन, क टाणु नाशक औष ध का योग कर साफ करने चा हए ।

    ेस क अव था जसेै डीवी कंग डीबीक म थान प रवतन आ द म वशेष सतकता बरतते हु ए ए ट बाइयो टक व वटा मन का योग उ चत रहेगा ।

    मुग गहृ म वे ट लेशन उपयु त रहे एव ंनमी न रहने पाये । यथासमय लटर बदल देव, वशेषकर येक सं मण के प चात ्ऐसा करना आव यक

    है । साफ पानी पलाये । यह रोग दू षत पानी वारा भी उ प न होता है ।

  • 33

    3.4 पलुोरम रोग, बेसीलर हाईट डाय रया (B.W.D.):

    3.4.1 प रभाषा:

    पलुोरम रोग सभी प य मेम स (खरगोश, ब दर, लोमड़ी) आ द के अ त र त मनु य म भी होता है । जीवाणु ज नत यह रोग बेसीलर हा�