assets.vmou.ac.inassets.vmou.ac.in/mahd07.pdf · 2014-04-05 · 10 खंड-1 एमए.Ñहद...

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    पा य म अ भक प स म त

    अ य ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा (राज थान)

    सयंोजक एव ंसद य

    संयोजक ो. (डॉ.) च कला पा डेय ह द वभाग कलक ता व व व यालय, कलक ता

    सम वयक डॉ. मीता शमा सहायक आचाय, ह द वभाग वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    सद य ो. (डॉ.) सदेुश ब ा

    पूव अ य , ह द वभाग राज थान व व व यालय, जयपुर

    ो. (डॉ.) जवर मल पारख अ य , मान वक व यापीठ इि दरा गाधंी रा य खुला व व व यालय, नई द ल

    (डॉ.) कुमार कृ ण अ य , ह द वभाग हमांचल व व व यालय, शमला

    ो. (डॉ.) रंजना बेन अरगडे अहमदाबाद व व व यालय, गुजरात

    ो. (डॉ.) न दलाल क ला पूव अ य , ह द वभाग जयनारायण यास व व व यालय, जोधपरु

    डॉ. हेत ुभार वाज पूव ाचाय, पार क महा व यालय जयपुर

    डॉ. न द कशोर आचाय व र ठ आलोचक व सा ह यकार, बीकानेर

    सपंादन एव ंपा य म-लेखन

    सपंादक ो. (डॉ.) च कला पा डेय ह द वभाग कलक ता व व व यालय, कलक ता

    इकाई-लेखक इकाई सं इकाई-लेखक इकाई सं डॉ. कमलेश वेद

    एसो सएट ोफेसर सरदार पटेल व व व यालय, व लभनगर ,गुजरात

    1,6 ो. (डॉ.) च कला पा डेय 5,11,20,21 ह द वभाग कलक ता व व व यालय, कलक ता

    12

    ो.(डॉ.) गीता नायक ह द वभाग व म व व व यालय, उ जैन

    2, 23 ो. (डॉ.) शलै पा डेय ह द वभाग, इलाहाबाद व व व यालय, इलाहाबाद, उ तर देश

    13,19

    डॉ. रमेश रावत ह द वभाग, अल गढ़ मुि लम यु नव सट अल गढ़, उ तर देश

    3 डॉ. रेशमी पांडा मखुज व ता, गोखले मेमो रयल ग स कॉलेज

    कलक ता

    14,22

    डॉ. मीता शमा सहायक आचाय, ह द वभाग वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    4,7 डॉ. अ ण होता ह द वभाग बारासात टेट यू नव सट , कलक ता

    24

    डॉ. सनुील कुमार ववेद व ता, ह द वभाग

    उ तर बंग व व व यालय, सल गुड़ी,दाज लगं

    8,9 डॉ. माधवे साद पा डे र डर, ह द वभाग नाथ इ टन हल यू नव सट , शलांग (मेघालय)

    24

    ो.(डॉ.) राजम ण शमा 10,15,16,17,18 डॉ. ु त र डर, ह द वभाग नाथ इ टन हल यू नव सट , शलांग (मेघालय)

    25 भूतपूव ाचाय, काशी ह द व व व यालय वाराणसी

    अकाद मक एव ं शास नक यव था ो. नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    ो. एम.के. घड़ो लया नदेशक

    संकाय वभाग

    योगे गोयल भार

    पा य साम ी उ पादन एवं वतरण वभाग

    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    पनुः उ पादन - फरवर 2012 ISBN No.-13/978-81-8496-105-8 इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व., कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या अ य पुनः तुत करने क अनुम त नह ंहै। व. म. खु. व., कोटा के लये कुलस चव व. म. खु. व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत।

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    एमएएचडी-07 वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    भाषा व ान ख ड सं. इकाई सं. इकाई का नाम पृ ठ सं या 1 भाषा और भाषा व ान : एक प रचय

    1 भाषा प रभाषा और अ भल ण 14—33 2 भाषा का उ गम और वकास 34—59 3 भाषा सरंचना और भा षक काय 60—79 4 भाषा व ान प रभाषा, े और अ ययन क प तया ं 80—99 5 भाषा व ान और अ य सामािजक व ान 100—114 6 भाषा व ान के अ ययन क भारतीय पर परा 115—135 7 भाषा व ान के अ ययन क पा चा य पर परा 136—150 2 भाषा और भा षक सरंचना

    8 व न संरचना 151—169 9 व न या 170—187 10 प संरचना : प क अवधारणा 188—203 11 वा य संरचना 204—224 12 अथ सरंचना 225—243 13 ल प का उ व एवं वकास और नागर ल प 244—265 14 ह द क श द स पदा 266—286 3 भाषा प रवार और ह द

    15 व व के मखु भाषा प रवार 287—308 16 भारोपीय भाषा प रवार 309—325 17 ाचीन एव ंम यकाल न भारतीय आय भाषाएं 326—351 18 आधु नक भारतीय आय भाषाओं का प रचय 352—368 19 ह द का उ व एवं वकास और नागर ल प 369—390 4 ह द और उसके व भ न

    20 ह द के व भ न प और उनके काय 391—409 21 ह द क संवधैा नक ि थ त 410—428 22 अनु यु त भाषा व ान 429—450 23 भाषा श ण और ह द 451—476 24 शैल व ान : उ व एवं वकास 477—491 25 शैल व ान- तमान एवं या, े और अ य अनुशासन से स ब ध 492—515

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    पा य म – प रचय सा ह य भाषा क अमू य संपि त है । भाषा ने अपने ऐ तहा सक वकास म जो कुछ अिजत कया है वह भाषा के सा ह य म ह सुर त रहता है । इस भाषा के व धवत ान के लए भाषा व ान का अ ययन ज र है । भाषा व ान समकाल न, ऐ तहा सक, तुलना मक और ायो गक अ ययन के ज रए भाषा के उ व- वकास, यु पि त गठन, कृ त एव ं विृ त का

    वै ा नक अ ययन करत ेहु ए भा षक अ ययन क सै ां तक भी न मत तथा नधा रत करता है । सा ह य और भाषा व ान के म य उपकाय और उपकारक का संबधं है । यह दोन पर पर सहयोगी ह । भाषा व ान से अन भ सा ह य श क क ि थ त उतनी ह दयनीय मानी जा सकती है िजतनी शर र व ान से अन भ च क सक क । भाषा के स यक् ान बना सा ह य का अ ययन एकांगी बन कर रह जाता है । सा ह य के हर अ येता के लए भाषा का ान और भाषा के ान के लए भाषा व ान का ान अ नवाय ह नह ंअप रहाय है ।

    अ नवायता को ि ट म रख एम.ए. ह द (उ तरा ) के पा य म के ततृीय न प को 'भाषा व ान' शीषक से अ नवाय पा य म म सि म लत कया गया है । यह परूा पा य म चार खंड म वभािजत कया गया है िजसम भाषा वकास क परंपरा और अ ययन के आयाम को अ वि छ न प म रखा गया है । नीचे चार खंड का प रचय दया जा रहा है ।

    खंड- 1 यह खंड 'भाषा और भाषा व ान एक प रचय' शीषक से लखा गया है । इसमे कुल सात इकाइया ँह । भाषा क प रभाषा और अ भल ण, भाषा का उ व एव ं वकास, भाषा संरचना और भा षक काय, भाषा व ान क प रभाषा और अ ययन े , भाषा व ान के अ ययन क प तया ँ एव ं इसका अ य सामािजक व ान से संबधं और भाषा व ान के अ ययन क पा चा य एव ंभारतीय परंपरा को इस खंड म सि म लत कर उस पर अ ययन साम ी तैयार क गई है । इस खंड म यह प ट कया गया है क भाषा व ान जैसा यापक वषय भाषाओं के अ ययन म कस ि ट को अपनाता है । भाषा व ान के अ ययन क भारतीय और पा चा य परंपराओं को तुलना मक व ध से तुत करत ेहु ए दखाया गया है क आधु नक भाषा व ान के ति ठत होने के पवू ह भारत म भाषा चतंन क एक समृ परंपरा थी । सं कृत के भाषा चतंक ने तर य याकरण ह नह ं लखा अ पत ुअथ क स ता आ द के बारे म भी ताि वक व लेषण कया । इस े म कया गया उनका दाश नक चतंन और व लेषण प त काश त भ क तरह आज भी पथ नदश कर रहे ह । भाषाओं के म य समान त व का दशन

    करत ेहु ए और महान रचनाओं को पढ़त ेहु ए व वान क च और िज ासा बढ़ तथा उ ह ने भाषाओं के म य स पक सू तलाशना आरंभ कया । सं कृत, जमन, ले टन, ीक आ द भाषाओं के त वशेष दलच पी ने ह व वान को भाषाओं पर तुलना मक अ ययन के लए े रत कया और तुलना मक भाषा व ान क नींव रखी गई । इसी कार भाषा म बदलाव क

    खोज करत े हु ए ऐ तहा सक भाषा वइ तन और अ य सामािजक व वान का पार प रक संबधं भी दखाया गया है ।

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    खंड-2 यह खंड 'भाषा और भा षक संरचनाएं' शीषक से लखा गया है । इस खंड म कुल सात इकाइया ँह । िजनम व न संरचना के अंतगत व न के आयाम , क् ग करपा, व न नयम, व न प रवतन क दशाओं एव ं या, वन का वग करण, वन गणु, व नम संरचना का व प, व नम वतरण एव ं व लेषण पर वचार कया गया है । प संरचना के अंतगत प क

    अवधारणा, पक एव ंस प क प रभाषा, पम के भेद, काय तथा प प रवतन के कारण एव ं दशाओं पर अ ययन साम ी तैयार क गई है । वा य संरचना के अंतगत वा य ह अवधारणा, उसका वग करण, वा य व लेषण, गहन और बादय संरचना वचारणीय रहे ह । अथ संरचना म अथ क अवधारणा, अथ प रवतन के कारण तथा दशाओं को व ले षत कया गया है । इस खंड का वै श य है भाषा व ान के आधारभूत स ांत के ज रए व न संरचना, पद संरचना, अथ संरचना, एव ं वा य संरचना के नाना वध पहलुओं का सू म और सहज व लेषण । ह द क व नय के साथ अथ भेदक व नय ( व नम ) का औ चार णक प रवेश, व नम वतरण, व नम व लेषण का ववेचन कया गया है । इसी के साथ ह द के प, पद

    तथा श द एव ंपद से संर चत 'पदबधं का व लेशण कया गया है । वा य व ान भाषा का मु य और मह वपणू पहल ू है जो व ततृ के साथ ज टल भी है इसे कं चत अ धक म से सहज सं ेषणीय बनाकर तुत कया गया है । अथ व ान म याकरण थं से इतर पयायता वलोमता आ द का भी अ ययन कया गया है । इस खंड क अं तम दो इकाइय म ल प के उ व तथा वकास, संसार क कुछ मुख ल पय , नागर ल प के गणु दोष मानक करण तथा वै ा नकता पर व ततृ वचार कया गया है । ह द म आगत श द को समे कत करत े हु ए ह द क श द संपदा शीषक इकाई लखी गयी है िजसम व वध ोत से आए ह द म घलु मल हमारे अपने श द म शा मल होकर श द संसाधन को वपलु प म समृ देने वाले त सम, त व देशी, वदेशी तथा व या मक आ द श द का व लेषण है ।

    खडं-3 इस इकाई क रचना ' व भ न भाषा प रवार और ह द शीषक से क गई है । खंड 3 म कुल पांच इकाइया ंह व व के मुख भाषा प रवार के अंतगत भारोपीय प रवार का वशेष प रचय दया गया है । ाचीन एव ंम यकाल न भाषाओं वै दक तथा लौ कक सं कृत म ताि वक अंतर, वयैाकर णक वै श य, पा ल, ाकृत और अप ंश क व न एव ं प संरचनागत वशेषताएं आधु नक भारतीय आयभाषाओं के सामा य प रचय के साथ ह द के उ व और वकास उसक उपभाषाओं पि चमी एव ंपवू का व ततृ ववेचन कया गया है । भा षक वकास के नरै तय को, उसके अ वि छ न म को अ यतं सहजता एव ं सं ेषणीयता के साथ पठनीय और अ ययनयो य बनाया गया है । पा य म के इस खंड के नमाण म हमारा ल य व व के मुख भाषा प रवार से आपका प रचय करात ेहु ए ाचीन भारतीय आय भाषाओं से उनका संबधं

    जोड़कर समझाना तथा ाचीन भारतीय आय भाषाओं से म यकाल न और उनसे आधु नक

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    भारतीय आयभाषाओं के वकास के अ य सल सले को दयगंम कराना रहा है । ह द भारत क राजभाषा, रा भाषा और स पक भाषा तीन का महत ्दा य व नभाती है । ऐसी व श ट भाषा के उ व और वकास क कहानी उसक उपभाषाओं और बो लय के कारण ा त समृ के प र े य म तुत क गई है ।

    खंड-4 यह खंड ' ह द और उसके व भ न काय' शीषक से लखा गया है । यह अं तम खंड है और कुछ खा सयत भी समटे हु ए है । ह द पहले केवल. सा ह य क भाषा थी ह त ुआज बहु पी बन चुक है । अब वह योजनमूलक बन व वध वा मय और ान व ान को अपनी श दावल म अ भ य त करने म स म बनती जा रह है । रेशीय' के साथ उसका एक अ तरदेशीय प भी उभर चुका ह । हमारे सं ेषण तं म ह द का चार योग वकास पथ पर बढ़ता जा रहा है । इस खंड क छ: इकाइय म से दो म ह द के व वध प , राजभाषा, रा भाषा, संपक भाषा, मा यम एव ंसचंार भाषा के प रचय के साथ ह द क संवधैा नक ि थ त को प ट करत ेहु ए भारत सरकार क राजभाषा नी त को समझाया गया है । शेष चार इंकाइय म अनु यु त भाषा व ान का सामा य प रचय एव ंउसके मुख कार पर स व तार वचार कया गया है । इनमे भाषा श ण और ह द तथा शैल व ान क अवधारणा को प ट करत ेहु ए इसके तमान एव ं या तथा अ य अनशुासन से शैल व ान के संबधं को प ट कया गया है । भाषा श ण, अनवुाद कोश कला और शैल व ान का अ ययन आपके लए अ यतं उपयोगी होगा । शैल व ान का ान भाषा के बोधा मक, अ भधा मक ओर स दयपरक संसाधन के ायोजन मलूक प से आपको प र चत कराएगा, भाषा के सामािजक और सजृना मक काय का अ ययन होने के कारण आपको यह जानकार भी हो जाएगी क सं ेषण म कौनसी भा षक इकाइया ँआऐगी । चार खंड म वभािजत भाषा व ान का यह पा य म भाषा व ान क एक सु प ट समझ बनाने के ल य से बनाया गया है और तदनसुार पा य साम ी तैयार क गई है । हम आशा ह नह ंपणू व वास है क इस पा य म का अ ययन आपको भाषा व ान क सह और स यक जानकार देने म समथ होगा ओर ह द संरचना के मह वपणू उपादान को समझने म आपका सहायक भी । ह द भाषा के व वध प ओर योजनमूलक संदभ को भी आप वै ा नक ढंग से आ मसात कर सु प ट समझ वक सत कर पाऐंगे । भाषा और भाषा व ान से संब यह आधारभूत अ ययन साम ी आपके लए नता त उपयोगी स होगी। ात य है क येक खंड क इकाई के अंत म मह वपणू संदभ थं क सूची भी द जा रह है

    िजसक सहायता से आप अपने इयन म अपे त वृ कर पाऐंगे । आपके उ वल भ व य क कामना स हत भाषा व ान का यह पा य म आपके अ ययनाथ

    तुत है ।

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    खंड-1 एमए. ह द (उ तरा ) के भाषा व ान (ततृीय न प ) पा य म का पहला खंड 'भाषा और भाषा व ान-एक प रचय' शीषक से र चत है । पा य म प रचय क भमूका म भाषा व ान पर जो प रचया मक ट पणी द गई है उसे यहा ँयथावत संयकुा करत ेहु ए बना कसी ा कथन के हम सीधे खंड क इकाइय पर आ जात ेह । इस खंडम कुल सात इकाइया ंह िजनम न न ल खत प म अ ययन साम ी तुत क गई ह:- इकाई- 1 भाषा मानव स यता के वकास क सव कृ ट उपलि ध है, यह एक यव था ओर सं ेषण का सहजतम मा यम है । इस इकाई म भारतीय और पा चा य व वान वारा द गई भाषा क व भ न प रभाषाओं, भाषा के अ भल ण एव ं वशेषताओं पर वचार कया गया है । इकाई-2 भाषा के उ व और वकास क रोचक कथा को अनेक उदाहरण के साथ इस इकाई म या या यत कया गया है । इकाई-3. इस इकाई म भाषा के संरचना प और भा षक काय को सहज सरल शत। म व ले षत कर अ ययन साम ी तुत क गई है । इकाई-4 चौथी इकाई म भाषा का अ ययन तुत करने वाले े , भाषा व ान क उन व वध प रभाषाओं का प रचय और व लेषण कया गया है िज ह पा चा य और भारतीय भाषा वद ने अलग अलग ि टकोण से तुत कया है । इसी इकाई म भाषा व ान के अ ययन के े एव ंभाषा वै ा नक अ ययन प तय पर वचार कया गया है । इकाई-5 भाषा सभी सामािजक व ान क बु नयाद है । इस इकाई म भाषा व ान एव ंअ य सामािजक व ान के म य के संबधं को दशाया गया है । इकाई-6 इस इकाई 'भाषा व ान के अ ययन क भारतीय परंपरा' म प ट कया गया है क कस कार आधु नक भाषा व ान क अवधारणा के पवू ह भारत म भाषा चतंन क समृ धरोहर तैयार क जा चुक थी । सं कृत भाषा चतक ने न केवल सं कृत भाषा के लए उ नत याकरण ह लखा अ पत ुअथ क स ता आ द के वषय म भी सोचा । इकाई-7 यह इस खंड क अं तम इकाई है जो 'भाषा व ान के अ ययन क पा चा य परंपरा' शीषक से र चत है । इसके आधु नक भाषा व ान के उ व और वकास क चचा क गई है । अं तम दोन इकाइय को एक म म पढ़ तो प ट होगा भाषा व ान एक यापक और गभंीर वषय है, िजसे अपने वतमान व प म पहु ँचने म सकैड़ वष लग गए ह और पा ण न, पतंज ल, का यायन से लेकर स यरू, लमूफ ड, चॉ क तक सैकड़ मनी षय ने इसे अपने ान और चतंन से समृ बनाया है ।

    खंड –– 2: भाषा व ान के पा य म क भू मका के म म हम यहा ँइकाइय के प रचय पर आ जात े ह । यह खंड भाषा और भा षक संरचनाएँ शीषक से र चत है । इसम कुल सात इकाइया ंह िजनका प रचय न न ल खत प म दया जा रहा है- इकाई-8 यह इकाई ' व न सरंचना शीषक से र चत है । इसम व न के व वध आयाम , उ चारणा मक, सार णक तथा वणा मक का प रचय देते हु ए व नय का वग करण, वर

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    और यजंन का वग करण, व न प रवतन के कारण और दशाएं तथा म, बनर और ासमैन के व न नयम क चचा क गई है ।

    इकाई -9. इस इकाई म वन संरचना के व प और शाखाओं, वागवयव वन का वग करण एव ं वन गणु का ववरण दया गया है । इसी के साथ व नम क अवधारणा पर वचार करत ेहु ए, व नम संरचना के व प, व नम के भेद एव ं व नम के व लेषण पर काश डाला गया है । इकाई- 10. फप संरचना शीषक इस इकाई म प क अवधारणा, पम एव ं स प क प रभाषा, पम के भेद एव ं काय तथा प प रवतन के कारण एव ं दशाओं पर अ ययन साम ी तैयार क गई है । इकाई- 11. वा य संरचना शीषक से र चत यह इकाई वा य क अवधारणा, वा य का वग करण, वा य वशेषण क व ध तथा गहन संरचना एव ंबाहय संरचना पर वचार करती है। इकाई- 12 यह इकाई 'अथ संरचना शीषक से र चत है । इसम अथ क अवधारणा, अथ प रवतन के कारण एव ं दशाओं पर वचार कया गया है । इकाई- 13 ल प भाषा का एक मह वपणू घटक है । ' ल प का उ व और वकास' शीषक से लखी गई इस इकाई म व व क कुछ मुख ल पय पर प रचया मक ट पणी के साथ नागर ल प पर व ततृ वचार साम ी द गई है । नागर ल प के उ व एव ं वकास के साथ इस ल प के गणु-दोष, इसमे सुधार क आव यकता, वै ा नकता एव ंमानक करण के साथ नागर ल प और व या मक लेखन पर भी सं त ट पणी तुत क गई है । इकाई- 14 इस खंड क यह अं तम इकाई है जो ह द क 'श द स पदा' शीषक से र चत है । इसम ह द म यु त उन सभी श द के ोत पर वचार कया गया है । जहा ँ से आगत श द आज ह द क कृ त म ढल ह द के अपने श द बन चुके ह । खंड 3 का प रचय यह खंड व भ न भाषा प रवार और ह द शीषक से र चत है । इसम कुल पांच इकाइया ँह, िजनका प रचय न न ल खत प से दया जा रहा है:- इकाई- 15 इस इकाई क रचना ' व व के मुख भाषा प रवार' शीषक से क गई है । व व के मुख भाषा प रवार और उनम बोल जाने वाल मुख भाषाओं का प रचय उनक व न, प

    अथ व यास संबधंी वशेषताओं के साथ इस इकाई म ततु कया गया है । इकाई- 16 'भारोपीय भाषा प रवार शीषक इस इकाई म भारोपीय भाषा प रवार क भाषाओं का व ततृ ववेचन कया गया है । भाषाओं के व नगत और पगत वै श य को भी अ ययन म समेटा गया है । इकाई- 17 ाचीन और म यकाल न भारतीय भाषाओं, वै दक तथा लौ कक सं कृत दोन का ताि वक अंतर, उनक याकरणगत वशेषताएं, पा ल, ाकृत, अप शं और उनक वयैाकर णक वशेषताओं का प रचय इस इकाई म दया गया है ।

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    इकाई- 18 यह इकाई 'आधु नक भारतीय आयभाषाओं का प रचय' शीषक से र चत है तथा मुख आधु नक भारतीय आयभाषाओं के व न, प, अथ एव ंवा य वै या सक वै श य का व लेषण तुत करती है । इकाई- 19 इस इकाई क रचना ह द का उ व और वकास शीषक से क गई है । इसम ह द के उ ु व और वकास के ववेचन के साथ ह द क उपभाषाओं पि चमी एव ंपवू का व ततृ व लेषण तुत कया गया है । खंड 4 का प रचय भाषा व ान पा य म का यह अं तम खंड ह द और उनके व भ न काय' शीषक से वग कृत है । इसम कुल 6 इकाइया ँह, िजनका प रचय न नानसुार दया जा रहा है:- इकाई-20 इस इकाई म ह द के व वध प और उनके काय का प रचय तुत कया गया है । ह द के प म राजभाषा, रा भाषा, संपक भाषा, मा यम एव ंसंचार भाषा क वशेषताएं व तारपवूक लखी गई ह । इकाई-21 : इस इकाई म भारत सरकार क राजभाषा नी त का प करण कया गया है इसी संदभ म ह द क संवधैा नक ि थ त पर भी चचा क गई है । इकाई-22 : यह. इकाई अनु यु त भाषा व ान शीषक से र चत है । यह ायो गक भाषा व ान है इसके अंतगत अ ययनयो य मुख वषय पर यहा ँसमी ा मक ट प णया ँ तुत ह। इकाई-23 : भाषा श ण और ह द शीषक से र चत यह इकाई भाषा के श ण म भाषा व ान क उपादेयता को प ट करती है । इकाई-24 : शैल व ान क अवधारणा, इसके उ व और वकास, शैल व ान के व लेषण तमान एव ं या पर इस इकाई म पया त अ ययन साम ी द गई है ।

    इकाई-25 : इस खंड क अं तम इकाई म शलै व ान का अ य सामािजक व ान से संबधं दखाया गया है ।, ात य है क उपयु त सभी खंड क येक इकाई के अंत म श दावल , अ यास के लए नबधंा मक एव ंलघू तर न दये गये ह । व ततृ एव ंगहन अ ययन के लए सहायक एवं उपयोगी संदभ थं सूची द गई है, आप इ ह भी देख और अ ययन कर ।

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    इकाई-1 भाषा : प रभाषा और अ भल ण इकाई क परेखा 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 स ेषण के साधन

    1.2.1 मूक साधन 1.2.1.1 इं गत भाषा 1.2.1.2 संकेत भाषा

    1.2.2 मुखर साधन 1.3 भाषा क प रभाषा

    1.3.1 पा चा य व वान के मत 1.3.2 भारतीय व वान के मत

    1.4 भाषा के अ भल ण 1.4.1 मानव और मनावे तर भाषा 1.4.2 या ि छकता 1.4.3 अनकुरणशीलता 1.4.4 सजृना मकता 1.4.5 प रवतनशीलता 1.4.6 बहु घटकता या वि छ नता 1.4.7 अ भरचना क वतैता 1.4.8 व ता- ोता क दोहर भू मका 1.4.9 दशा और काल क अंतरणता 1.4.10 असहजविृ तकता

    1.5 भाषा और भा षक यवहार 1.6 वचार संदभ / श दावल 1.7 साराशं 1.8 अ यासाथ न 1.9 भाषा और भा षक यवहार

    1.0 उ े य तुत इकाई के अ ययन के प चात आप

    स ेषण के व वध प और उसम भाषा के मह व क जानकार दे सकगे । भाषा स ब धी भारतीय एव ंपा चा य व वान के मत क जानकार ा त कर

    भाषा क नि चत प रभाषा बता सकगे ।

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    मानव और मानवे तर स ेषण यव था के प र े य म मानव भाषा के अ भल ण को प ट कर सकगे ।

    1.1 तावना मानव का सव तम सजृन भाषा है । स ेषण के लये उपल ध सभी साधन म भाषा

    अनपुम साधन है । भाषा के वारा ह मनु य समाज के व वध े के बारे म, सभी ानानशुासन क जानकार ा त करता ह । मानव एव ंमानव समाज के वकास म भाषा क

    मह वपणू भू मका है । भाषा केवल भाव एव ं वचार के आदान दान का साधन मा नह ंहै अ पत ुमानव के चतंन एव ंसोचने का साधन है । मानव, मानव समाज तथा समाज के व वध े को जोड़ने वाल शृंखला भाषा है । तुत इकाई म स ेषण के एक अहम साधन के प

    म आप भाषा क प रभाषा एव ं मानव मानवे तर भाषा के अ तर के आधार पर भा षक अ भल ण क जानकार ा त कर सकगे ।

    1.2 स ेषण के साधन मनु य एक सामािजक ाणी है । समाज म अ य लोग से वह अपने भाव एव ं वचार

    बातचीत के वारा स ेषण करता है । भाव- वचार के आदान दान क यह या अनेक तर क से, अनेक प म होती है । अपने भाव या वचार दसूर तक पहु ंचाने या ा त करने के साधन को मोटे तौर पर दो प म देखा जा सकता है- मकू और मुखर ।

    मूक साधन म वाणी का योग सवथा नह ंहोता है जब क दसूरे साधन मुखर म वाणी का ह मह व है ।

    1.2.1 मूक साधन

    य द इसे गहराई से देख तो मूक साधन को पनु: दो भाग म वभािजत कया जा सकता है :

    1.2.1.1 इं गत भाषा

    इं गत भाषा के अ तगत चे टाएँ जैसे - हाथ- हलाना, ने भं गमा, मुख वकार, गदन हलाना इ या द आती ह । ठ क इसी कार अपने व भ न भाव जैसे क घणृा, ोध, उ लास, ेम, सहम त, असहम त क अ भ यि त व वध आं गक चे टाओं के मा यम से मनु य करता

    आया है । अमर का के पि चमी देश म इि डयन जा तय म ऐसी इं गत भाषा देखी गई है । ऑ े लया के कुछ आ दम जन-गण को रात म बात-चीत करत ेसमय आग का सहारा लेना पड़ता है । इं गत के सहारे वे अपनी बात को समझात ेह ।

    1.2.1.2 संकेत भाषा

    भावा भ यि त का दसूरा एक तर का यह भी है क भाव या वचार को कसी संकेत या तीक के मा यम से अ भ य त कया जाय । उदाहरण के प म श क के वारा मेज पर

    हाथ पटकना- इसके वारा शांत हो जाने का संकेत । एक म के वारा मुँह पर अंगलु रखकर

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    दसूरे म को चुप रहने का संकेत । दरू खड़ े कसी को हाथ उठाकर अपनी ओर बलुाने का संकेत तो कभी केवल सर हलाकर ह हाँ या ना का संकेत करना । रेलगाडी को लाल या हर ब ती के वारा कने या जाने का संकेत । चोर वारा हाथ दबाकर या ऐसे कुछ इशार के वारा संकेत पर पर लये- दये जात ेह । इं गत -संकेत के मा यम से होने वाले भाव या वचार

    के आदान- दान का े यापक होत े हु ए भी उसे भाषा नह ंकहा जा सकता य क उसक अपनी कुछ सीमाएं भी ह ।

    1.2.2 मुखर साधन

    मनु य अपने भाव वचार के आदान- दान हेत ुिजस दसूरे साधन को अपनाता है, वह मुखर साधन है । इसके अ तगत मानव और मानवे तर सभी णय क बो लय का समावेश होता है । मुख साधन म वाक् का योग होता है । पनु: इसके य त वाक् और अ य त वाक् दो वभाग कये जा सकत ेह । मानव क अपे ा मानवे तर भाषा म बहु त अ तर तो होता है, ले कन मूलभूत अ तर यह है क - ा णय क भाषा अ नि चत और अ प ट होती है; अत: उसे अ य त वाक् या वाणी कहा गया है । मानव वारा िजस मुखर साधन का योग कया जाता है उसे य त वाणी अथात ् नि चत प ट वाणी कहा जाता है । मानव वारा िजस मुखर साधन का योग कया जाता है उसे य त वाणी अथात ् नि चत प ट वाणी कहा जाता है । मानव वारा यु त बोल क नि चतता एव ं प टता के पीछे उसका चतंन है । एक सु यवि थत चतंन, य न के प रणाम व प नःसतृ होने के कारण ह वह प ट एव ंनि चत होती है । उसका अ ययन व लेषण कया जा सकता है । उसे सीखा और सखाया जा सकता है ।

    मनु य क भाषा ह उसके भाव , वचार को प टता, पणूता एव ंसु नि चतता दान करती है । यहा ंएक बात और समझ लेना ज र है क मनु य वारा यु त वाणी आव यक नह ं क हमेशा साथक ह हो । मानव कृत व नया ँसाथक भी हो सकती है और नरथक भी । भाषा व ान केवल साथक व नय का अ ययन व लेषण करता है । भाषा के संबधं म एक और बात मह वपणू है वह यह क भाषा के वारा हमेशा अपने भाव क शत तशत अ भ यि त नह ंहोती है । कभी कभार भाव तरेक क ि थ त म भाषा असमथ हो जाती है तब भं गमा के वारा भाव क अ धक सु दर अ भ यि त होती है । सा ह य म वरह, मलन आ द व वध ि थ तय म सा ह यकार नायक ना यकाओं क भाव-भं गमा का सु दर अंकन करता है ।

    भाषा केवल भाव- वचार क अ भ यि त का ह नह ं वचार करने एव सोचने का भी मा यम-साधन ह । बना भाषा मनु य का वचार करना, सोचना भी बदं हो जाता है । अत: भाषा एव ं वचार का अटूट स ब ध स होता है । वष से भाषा से या भाषा वारा मनु य और समाज दोन का नर तर वकास होता आया है, हो रहा है और होता रहेगा । मनु य और भाषा का पार प रक टकराव ह नये चतंन, नयी सं कृ त, नयी सोच और नये समाज को ज म देता है । मानव और मानवे तर भाषा म यह मूलभूत अ तर है क- बरस से पश-ुप य क वह भाषा है जब क मानव भाषा म और मानव समाज म नर तर वकास और प रवतन देखा जा सकता है ।

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    1.3 भाषा क प रभाषा ऐसी मानव भाषा को नि चत सीमा म बांधना अथात ् उसक प रभाषा देना उतना

    आसान नह ंह । आ दकाल से मानवभाषा को प रभा षत करने का उप म भारत एव ंपि चम म अनेक व वान ने कया है तथा प कसी भी प रभाषा को भाषा के पणू व प का उ घाटन करनेवाल प रभाषा का नाम नह ं दया जा सकता । वसेै प रभाषा श द अपने आप म बड़ा अ प ट है य क, िजसे हम प रभाषा कहत ेह वह प रभा य व त ुके ल ण , उ े य आ द के आधार पर उसक या या भर होती है । ववे य व त ुका यथाशि त पणू एव ंसं त प रचय देना आव यक होता है । यह काय प रभाषा के वारा स प न होता है । शा कार ने प रभाषा क प रभाषा देते हु ए लखा है:

    “तदेव ह ल ण ं(यद या य त या यसंभव प)ं दोष य शू यम"् अथात ् जो अ याि त, अ त याि त और असंभव प तीन दोष से मु त हो, वह

    प रभाषा है । यहा ँभाषा क प रभाषा देते समय इस बात का यान रखा जायेगा । भाषा क नि चत प रभाषा तक पहु ंचने के लये भारतीय एव ं पि चमी व वान के वारा भाषा के स ब ध म जो वचार य त कये गये ह उ ह जानना आव यक है ।

    1.3.1 पा चा य व वान के मत

    1. ”Language is a system of arbitrary vocal symbols by means of which members of a social group co-operate and interacte“ (stutevant) अथात ्भाषा उन वा चक तीक क या ि छक यव था हे िजसके वारा समाज वशेष के सद य पर पर यवहार और या- त या म संलगन होत ेह ।( ु वा)ँ

    2. ”Language may be defined as the expression of thought by means of speech sounds“ (Henry sweet) अथात ्भाषा वाक् तीक के मा यम से वचार क अ भ यि त है ।( वीट)

    3. “The common defination of speech is the use of articulate sound-symbols for the expression of thought” (A.H. Gardiner) अथात ् वचार क अ भ यि त के लये उ च रत व न तीक के योग को भाषा कहत ेह ।(ए.एच.गाडनर)

    4. “Language is a purely human and non-instincitive method of communicating ideas, emotions, and desires by means of a system of volunatarily produced symbols. These symbols are in the first instance auditory and they are produced by the so-called organs of speech” (Edard Spir)

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    अथात ् वचार , भावनाओं और इ छाओं को वे छा से उ प न तीक के मा यम से स े षत करने क वषु मानवीय ओर य नज प त को भाषा कहत ेह । उ चारण अवयव से उ प न मा यम- तीक ाथ मकत: ाव णक होत ेह । (एडवड सपीर)

    5. “The essence of Language is human acitivityon the part of an individual to make him-self under-stood by another and activity on the part of that other to understand what was in the mind of the first.” (Jospoerson Otto) भाषा का सार त व यह है क - वह एक मानवीय स यता है, मनु य-मनु य के बीच पार प रक बोध के लए स यता, ता क व ता के मन क बात को ोता समझ सके।

    -ये पसन 6. “A Language is a system of arbitrary vocal symbols by means of

    which a social group co-operate”(Block and Triager) ''भाषा या ि छक व न- तीक क वह यव था है, िजसके सहारे कोई सामािजक समुदाय पर पर सहयोग करता है ।

    - लाग तथा ेगर 7. “Language is a system of conventional sign that can be voluntarily

    produced at any time” (Ebbinghaus) भाषा ऐसे परंपरागत च ह क यव था है िज ह वे छा से मनु य कभी भी उ प न कर सकता है |

    8. ”Language is articulated with limited sound organised for the purpose of Expression“(Croce-aesthetics) भाषा सी मत व नय से संयोिजत यव था है, िजसका उ े य अ भ यि त होता है ।

    - ाचे ए थेि कस 9. “Language can be thought of as organised noise used in situations

    actual social situations or in other words contextualised systematic sounds” (A. Mclntosh-M.K. Halliday) भाषा एक यवि थत व न योजना है, िजसका योग वा त वक सामािजक ि थ तय म कया जाता है । दसूरे श द म भाषा को संदभ ज नत यवि थत व न योजना कहना समीचीन होगा ।

    -ए.मै कनटोश-एम.के.है लड े10. “A Language is an instument of communication in value of which

    human experience is analyzed differently in each given community.” (Elements of General Linguistics, Matinet)

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    भाषा स ेषण का एक साधन है, िजसके वारा अलग-अलग मानव समदुाय अपने-अपने अनभुव का व लेषण करत है ।

    -मा टने एल मे टस ऑफ जनरल लि वि टकस 11. “Language is structured ie. eachutterance far from being a random

    series of words is put together according to some principle or set of principles which determines the word that occure and te form and order of the words.”(Ed. J.P. Allen & S Pit Corder) भाषा संच रत होती है, अथात ् येक भा षक उि त स ांत के आधार पर संघ टत होती है । ये स ांत यु त श द के प, श द म आ द का न चय करत ेह ।

    जे.पी. एलेन और एस. पट काडर 12. “I will consider a language to be a set (finite orinfinite) of

    sentences, each finite in length and constructed out of a finite set of elements” (Noam chomsky) चॉ सक भाषा को प रभा षत करत े हु ए उसे असीम ओर सी मत वा य समहू का समु चय मानत ेह ।

    चॉ सक 13. “Language may be defined as an arbitrary system of vocal

    symbols by means of which, human leving as member of a social group and participants in culture interact and communicate. भाषा या ि छक व न तीक क वह यव था है िजसके ज रए एक सामािजक समुदाय के लोग जो एक ह सं कृ त के सहचर ह, भाव व नमय या संवाद करत ेह ।

    -इ साइ लोपी डया टे नका

    1.3.2 भारतीय व वान के मत

    1. ''भाषा वह साधन है िजसके वारा मनु य अपने वचार दसूर पर भल -भां त कट कर सकता है ओर दसूर के वचार आप प टतया समझ सकता है ।''

    -पं डत कामता साद गु 2. ''िजसक सहायता से मनु य पर पर वचार व नमय या सहयोग करत े ह उस

    या ि छक ढ़ व नसंकेत णाल को भाषा करत ेह ।'' -डॉ. देवे नाथ शमा

    3. ''मनु य और मनु य के बीच व तुओं के वषय म अपनी इ छा और म त का आदान-दान करने के लए यि त व न संकेत को जो यवहार होता है उसे भाषा कहत ेह

    ।'' -डॉ. याम सु दर दास

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    4. ''भाषा उ चारण अवयव से उ चा रत मलूत: ाय: या ि छक व न तीक क वह यव था है िजसके वारा कसी भाषा समाज के लोग आपस म वचार को आदान- दा करत ेह।

    डॉ. भोलाना तवार 5. भाषा मनु य क उस चे टा या यापार को कहत ेह, िजसम मनु य अपने उ चारण पयोगी

    शर रावयव से उ चारण कये गये वणा मक या य त श द वारा अपने वचार को कट करत ेह''

    - डॉ. मंगलदेवी शा ी 6. '' व या मक श द वारा दयगत भाव तथा वचार का कट करण ह भाषा है ।''

    - डॉ. पी.डी. गणेु 7. ''अथवान ्क ठ से नःसतृ व न समि ट ह भाषा है ।”

    - सुकुमार सेन ‘भाषा’ श द 'भाष’् धात ु से बना है, िजसका अथ है कहना या बोलना । भाषा का

    सहारा हम अपनी बात दसूर तक पहु ंचाने के लये तथा दसूर क बात खुद समझने के लये लेत ेह ।

    ाचीन सं कृत व वान म भाषा संबधंी चतंन देखने को मलता है । मह ष पतंज ल ने भाषा के संबधं म कहा है '' य त वा च वणा येषा ंत इमे य त वाच: ' अथात ्जो वाणी वण म य त होती है उसे भाषा कहत ेह । भाषा के इस य त भाव को आगे चलकर कई व वान ने व ले षत कया है ।

    आचाय भतहृ र ने ‘वा य पद य' म श द क उ पि त और हण के स ब ध म लखा है-

    “श दकारणमभध य स ह तेनोपज यत ेतथा च बु वषयादद ा छ द: तीयते । 3.3.3.2. बु यथादेव बु यथ जात ेतदा न यत े। 3.3.3.3. अथात ्आशय यह हे क - ''श द- यापार या भाषण- या बु य के बीच आदान-

    दान का मा यम है ।'' इस कार देखा जा सकता है क -भारतीय सं कृत व वान तथा भाषा वद के वारा तथा पा चा य व वान के वारा भाषा को प रभा षत करने का य न समय-समय पर होता रहा है तथा प भाषा क अपनी कृ त प रवतनशीलता एव ंसजृना मकत को म ेनजर रख येक समय पर भाषा नया प धारण करती है अत: कसी एक प रभाषा को समीचीन या उपयु त कहना ठ क नह ंह । हाँ यह ज र है क - कुछ प रभाषाएँ भाषा के व प को अ धक कर बी एव ं प टता से उजागर करने म सहायक स होती है । उपयु त

    सभी मत को यान म रखत े हु ए भाषा के व प को न न ल खत मु म य त कया जा सकता है । क. भाषा तीका मक होती है अथात ् व न, श द, प, वा य, अथ येक तर पर भाषा

    म तीक ह है । भाषा तीक क यव था है ।

  • 21

    ख. भाषा व या मक तीक क यव था होती ह । भाषा म यु त तीक व या मक होत ेह मानव उ चारण अवयव से उ चा रत-वाक तीक होत े है । अ य साधन से अ य कार क व नय जैसी ताल बजाना, चुटक बजाना आ द से जो व न उ प न होती है वह व न भाषा के अ तगत नह ंआती है भले ह उससे कामचलाऊ व नमय होता हो ।

    ग. भाषा म यु त व न तीक या ि छक होते है । Arbitrary Vocal symbols- अथात ् व न, श द, प आ द सभी तर पर भाषा क

    यव था या ि छक होती है । या ि छक अथात ् 'माना हुआ' । भाषा म यु त तीक भाषा-भाषी समाज वारा माने हु ए होत े है, यि त वारा नह ंसमि ट भाषा म व न-समि ट या श द का जो अथ होता है वे य ह , बना कसी तक, या नयम याकरण आ द के माना हुआ होता है । य द यह स ब ध सहजात, तकपणू, वाभा वक या नय मत होता तो सभी भाषाओं म सा य मलता । उदाहरण के प म अं ेजी म िजसे ‘वाटर’ कहत ेह उसे ह द म 'पानी’ या अ य भाषाओं म अलग-अलग श द तीक से पहचाना जाता है । अगर यह संबधं या ि छक नह ंहोता तो संसार क सभी भाषाओं म एक व त ुके लए एक ह श द तीक का योग होता । ऐसी ि थ त म भाषा भी एक ह होती । ले कन ऐसा नह ंहै ।

    भाषा क व वध प रभाषाओं के व लेषण से भाषा के दो प उभर कर सामने आत ेह - पहला है भाषा का मान सक प और दसूरा है उसका भौ तक प मान सक प भाषा का अमूत या अ कट प है जब क भौ तक मूत या कट प । कसी भी व ता के बोलने वाले के मन म भाव और वचार क अवि थ त अमूत प म रहती ह है उ ह कट करने क इ छा होने पर व ता को वा गि य क मदद लेनी पड़ती है िजससे वह भाषा को मूत प देता है । ोता या सुनने वाले के मन म भी भाव और वचार के प म भाषा अमतू प म मौजूद

    रहती है । व ता के अ भ ाय को ोता इसी कारण यथावत समझ लेता है य क व ता वारा उ चा रत भाषा वणेि य के मा यम से उसके मन म ि थत वचार से सामंज य बठैा लेती है । सं ेषणीयता और ा यता क इस या से ह वचार का पार प रक व नमय भाषा के मा यम से संभव हो जाता है ।

    इस या म व ता और ोता के म य सामंज य होना अ त आव यक है । य द ोता व ता क भाषा नह जानता तो अथ सं ेषण नह ंहो पाएगा । कई बार व ता और ोता

    के म य बौ क तर भेद के कारण भी अथ सं ेषण म बाधा पहु ंचती है । भाषा क इसी वशेषता को ल य कर बी.एल. हाफ ने अपनी पु तक Linguistic velativity (भाषा सापे यता) म कहा है “भाषा व व को देखने के लए एक कार क ऐनक है जो केवल एक भाषायी समाज के लए नजर बनने का काम करती है । दसूरा समाज उसे ऐनक के प म यव त नह ंकर पाता है और करे भी तो देख नह ंपाता ह ।

    भा षक सं ेषण के आधार पर भाषा के तीन प माने गये ह । पहला है - उ चारण प दसूरा संवहन प और तीसरा हण प ।

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    क उ चारण प - व ता के मन म अवि थत भाव या वचार पहले मान सक तर पर वा य के प म आकार हण करत ेह इसके प चात वकता म से वा य क व नय को उ चा रत करता है । उदाहरण के लए तुम घर जाओ = त ्+ उ + म ्+ अ + घ ्+ अ + र ्+ अ + ज + अ + ओ । भाषा के इस प का अ ययन व न व ान के अंतगत कया जाता है ।

    ख संवहन प - जब व ता व नय का उ चारण करता है तो वे वाय ुतरंग से वा हत होती हु ई ोता के कण कुहर म वेश करती है । जैसे शातं तालाब म कंकड़ फकने पर लहर का एक वृ त आकार हण करता है और कुछ दरू तक जात ेजात ेलहर का वतृ ीण होकर पनु: जल म खो जाता है, उसी कार उ च रत व नया ंएक खास दरू के

    बाद सुनाई नह ं देती । इसे भाषा का संवहन प कहत े ह इस प का अ ययन भौ तक व ान के अ तगत सू मता से एव ं व तार पवूक कया जाता है ।

    ग हण प - व ता िजन व नय का उ चारण करता है, वे वायतुरंग के मा यम से ोता के कान तक पहु ंचती है और उसके मन म उसी श द बबं का नमाण करती है

    जो व ता के मन म अवि थत था । यह अथ बोध है । कान के ज रए व नया ंमि त क तंतुओं तक कस कार पहु ंचती है और उनसे श द बबं कैसे बनता है? इस पहल ूका अ ययन शर र व ान के अ तगत कया जाता है ।

    घ जब दो यि त बातचीत करत े है तो मश: दोन व ता एव ं ोता क भू मका का नवहन करत ेह । व ता क बात ख म होने पर वह ोता बन जाता है और ोता व ता । यह म बातचीत समा त होने तक चलता रहता है ।

    ङ भाषा क अपनी यव था होती है । हर भाषा क व न, श द, प, वा य एव ंअथ तर क नि चत यव था होती है यव था के कारण ह भाषा का अपना वतं अि त व और मह व होता है । यव था के कारण ह वह भाषा बनती है, उसे मानक थान क ाि त होती है अ यथा वह बोल या सामा य व नय का समूह मा रह जाती है । यव था से ह भाषा क पहचान होती है ।

    च भाषा का मुख काय स ेषण है अथात ्भाव वचार का आदान- दान । दु नया म अभी तक इससे अ धक समथ और स म साधन नह ंबना है । य द सिृ ट परमा मा वारा र चत सु दर सजृन है तो इस सिृ ट म भाषा सबसे मह वपणू वचार- व नमय

    साधन है । भाषा के मा यम से सामा य से लेकर वशेष कार के भाव- वचार का आदान- दान होता है । दु नया म मानव समाज, सं कृ त स यता या व वध े म हु ए वकास और उस वकास को जन-जन तक पहु ंचाने का मा यम एकमा भाषा है ।

    छ भाषा का योग नि चत मानव-समदुाय या समाज वशषे म होता है । भाषा के यो ताओं का वग तथा उसका नि चत े होता है । जैसे मराठ का महारा ,

    गजुराती का गजुरात, अस मया का असम, आ द । वसेै भाषा योग क ि ट से कसी सीमाकंन क आव यकता नह ंहोती है य क एक व ता और ोता अथात दो समान भाषाभाषी मलने पर दु नया म कह ंभी कसी भी भाषा को बोला-समझा जा सकता है

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    वह जैसा क - बताया गया क - वहा ँव ता ोता के समान भाषाभाषी होना ज र है जब क, भाषा के नि चत े म आप भाषा का योग कसी से भी सहज प से कर सकत ेह । इस ि ट से भाषा बोलने वाल का नि चत समुदाय, वग एव ं े होता है। न कषत: कहा जा सकता है क – “भाषा मानव उ चारण अवयव से उ च रत

    या ि छक व न तीक क वह यव था है िजसके वारा समुदाय वशेष के लोग पर पर वचार- व नमय करत ेह । ''

    1.4 भाषा के अ भल ण जब भाषा के अ भल ण क बात क जाती है तो उससे आशय यह हे क भाषा (मानव

    भाषा) क वशेषता या मूलभतू ल ण कौन से ह जो उसे मानवे तर भाषा से अलग करत ेहै । ऐसी कौन सी बात है िजससे मानव भाषा मानवे तर भाषा या अ य भाषा प से अलगाती है । संसार म मानवभाषा सं ेषण का सव कृ ट साधन ह । वसेै भाव या वचार के आदान- दान के अनेक तर क क चचा इत:पवू क जा चुक है । सिृ ट म सभी पश-ुप ी, जीव ज त ुओर यहा ंतक वन प त, पेड़-पौध , जलवाय ुआ द के बीच भी एक वशेष कार से तार जुड़ा हुआ है पार प रक जुड़ ेत त ुसे पर पर आदान दान भी होता है । स ेषण को यापक धरातल पर देखने पर व भ न ानानशुासन ने अपने-अपने े म खोज करके इस बात को एक या दसूरे प म, एक या दसूरा नाम देकर इसे स कया है । यहा ंउस व ततृ संदभ क चचा असंगत

    होगी पर त ुमोटे तौर पर मानव और मानवे तर भाषा के बीच अ तर के मुख मु क चचा करना आव यक है । िजसक चचा जाने माने भाषा वै ा नक ने क ह िजसक पी ठका पर भाषा के अ भल ण क बात क जा सकती है ।

    1.4.1 मानव और मनावे तर भाषा

    भाषा क प रभाषा क चचा करत ेसमय मानव और मानवे तर भाषा के कुछ मूलभतू मु का िज कय गया है । व तुत: कुछ सा य होते हु ए भी मानव और मानवे तर भाषा एक नह ंहै । इस बात को भूलना नह ंचा हए । स भाषा वै ा नक हॉकेट Hockett : The origin of speech लेख म, मैकनेल – Mc Neill : The Aquisition of Language लेख म, तथा चो सक - Chomsky : Cartesian Linguistics म इस वषय पर अपने वचार कट कये ह । हॉकेट ने मानव ओर मानवे तर भाषा क तुलना सजना मकता या ि छकता

    तथा पटैन क वतैता आ द तेरह आधार पर क है । मैकनेल ने दो आधार क बात क है - संरचना मक ओर काया मक, जैसे संरचना मक ि ट से मानव भाषा म योजन- यव था होती है । व भ न व नय के संयोग से श द, श द के संयोग से वा य बनत ेह । काया मक आधार म तीन काय क चचा है- व तुओं को संके तक करने वाला व तुपरक काय, भाव को संकेतक करने वाला भाव का काय क चचा है - व तुओं को संके तत करने वाला व तुपरक काय, भाव को संके तत करने वाला भाव पर काय तथा बा य घटनाओं या आंत रक ि थ त

    के वषय म कथन करने वाला कथनपरक काय है । चो सक ने सजृना मकता के आधार पर

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    मानव और मानवे तर भाषा को अलगाने का यास कया हे । मानव अपनी भाषा के मा यम से नये या परुाने भाव को असी मत प म अ भ यि त दे सकता है जब क मानवे तर भाषा म अ भ यि त क शि त सी मत होती है, दसूर बात यह क - मानवे तर भाषा ाय: उ ीपन-अनु या के प म ह होती है जब क मानव भाषा नह ं। तीसर मुख बात यह कह है क मानव भाषा कसी भी अननमुा नत, अ ान, या नये से नये संदभ को अ भ यि त देने म समथ होती है जब क मानवे तर भाषा म यह मता नह ंहोती है ।

    मानव और मानवे तर भाषा को अलगाने क इस या से ह भाषा के अ भल ण का ज म हुआ । अलग-अलग भाषा वै ा नक ने इन अ भल ण क चचा अलग-अलग सं या म गनात ेहु ए क है जैसे हॉकेट ने सात अ भल ण का उ लेख कया है तो ह द भाषा वै ा नक ने भी अलग-अलग नाम देकर उसक चचा क ह । सं या या नाम के च कर म पड़ े बना भाषा क कृ त को समझना आव यक है अत: यहा ं ह द के स भाषा वै ा नक भोलानाथ तवार वारा च चत भाषा के मुख दस अ भल ण क चचा तुत है-

    1.4.2 या ि छकता

    'या ि छक’ का अथ है - 'जैसी इ छा हो' या 'माना हुआ' । भाषा का यह मुख अ भल ण है । भाषा म या ि छकता सभी तर पर पायी जाती है । भाषा म जो व न, श द, प, वा य या अथ होता है वह कसी भाषाभाषी समाज वारा माना हुआ होता है ।

    या ि छकता वयैि तक नह ंसमाज, भाषाभाषी वारा माना हुआ वै श य है । जैसे कोई एक यि त कहे क म ' कताब' को 'ता कब’ कहू ंगा ऐसा मान लेता है तो वह भले ह माने पर इससे सं ेषण नह ंहोगा । जब तक यह समाज वारा वीकृत या समाज वारा माना नह ंजाता तब तक वह या ि छक नह ंहोगा । दसूर बात यह क या ि छकता से आशय यह है क - वह तक सूत नह ंहोता । श द तीक एव ंश द तीक से िजस व त ुका अथ बोध होता है उसके बीच कोई ता कक या वै ा नक संबधं नह ंहोता है और न ह कोई सहजात संबधं होता है । जैसे ' कताब' श द तीक और उस श द तीक से मान सक यय के वारा िजस व त ुको बोध होता है उनके बीच का संबधं माना हुआ होता है । ह द भाषाभाषी समुदाय वारा उस व त ुके लए ' कताब' श द माना हुआ है वीकृत है । अत: ' कताब' श द बोलत ेह जैसे कोई ह द भाषा-भाषी सुनता है तो उसके मि त क म...... ऐसा नह ंहै ह द भाषा म ' कताब' है अ जी भाषा म kooB’'' तो गजुराती म ’चौपडी‘ या 'पु तक' । व त ुएक है पर उस व त ुया भाव के लए यु त श द तीक अलग-अलग होत ेह । यह या ि छकता के कारण ह है ।

    1.4.3 अनकुरणशीलता

    भाषा अिजत संपि त है । मनु य को भाषा ज म से या पतैकृ संपि त के प म ा त नह ंहोती है । मनु य िजस प रवार, समाज म ज म लेता है वह ंसे भाषा का अजन करता है । भाषा सीखी जाती ह । भाषा सजृन क या अनकुरण के वारा होती है । येक मनु य अनकुरण करके ह भाषा सीखता है । अनकुरण क यह या दो प म होती है । बालक

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    अपने माता पता, प रवार, पास-पड़ोस या अपने आस-पास के वातावरण से जाने अनजाने भाषा सीखता है । लोग-बोलत ेह, वह सुनता है । बार-बार सुनने पर उ च रत व नय का अनकुरण कर उ चारण करता है । साथ म अमकु चीज, व त,ु पदाथ आ द को इस नाम से पहचाना जाता है, यह भी सब सीख लेता है जैसे कसी वशेष ाणी के लये 'गाय' श द बार बार सुनने पर उसे बोध हो जाता है क - इसे गाय' कहा जाता है साथ ह 'गाय' व नय का उ चारण । ऐसे ह सम त पदाथ , भाव , यवहार आ द क जानकार ा त करता है । इस कार से भाषा अ धगम क या को अनौपचा रक अनकुरण के वारा भाषा अजन क या कहा जाता है।

    जब क, बालक एक उ के बाद कूल, कॉलेज, व व व यालय या अनौपचा रक प से श ा देने वाल सं थाओं से जो भाषा अजन करता है, उसे अनौपचा रक भाषा अ धगम या कहा जाता है । संभव हे क जहा ँबालक औपचा रक प से भाषा सीखने के म म गलत उ चारण, अपणू जानकार के कारण या अनकुरण म खामी के कारण भाषा का अजन दोषपणू प म करता है । इन सारे भाषा संबधंी दोष का उपचार एव ं नदान औपचा रक भाषा श ण

    अ धगम या के अ तगत हो जाता है । एक बात और भी यान रहे क-मनु य जीवनभर अनौपचा रक प से भाषा का अजन करता ह रहता है, औपचा रक श ा उसे भाषा सीखने-सखाने के लए यवि थत दशा नदशन करती है । समाज के व भ न े क जानकार सामािजक, आ थक आ द यावहा रक काय म भाषा ह मा यम के प म काम करती है । अत: मनु य जीवन के हर कदम पर भाषा का अजन करता रहता है- अनकुरण के वारा और भाषा के मा यम से उसके यि त व का वकास भी होता है । भाषा सीखने यो य होती है अत: उसी अ धग यता के प म समाज के व वध े क जानकार ा त होती है इसी को सां कृ तक सं ेषणीयता या परमपरानगुा मता भी कहा जाता है । कुल मलाकर कह तो भाषा मनु य को मानवे तर पश-ुप ी, जीव क भां त ज मजात या आनवुां शक प म नह ं मलती उसे सीखना-अिजत करना पडता ह यह अजन अनकुरण के प म होता है ।

    1.4.4 सजृना मकता

    मानव ओर मानवे तर भाषा को अलगानेवाला यह अ भल ण है स भाषा वै ा नक चौ सक ने सजृना मकता को आधार बनाकर भाषा के असी मतता के त व क चचा क है । भाषा म सी मत व नया,ँ श द प होने के बावजूद मानव अपनी आव यकता अनसुार न य-नवीन वा य का योग करता रहा है और भाव वचार के आदान- दान क शृंखला अ वरत प से बरस से जार है । उसम कह ं कोई अवरोध या बाधा उपि थत नह ं हु ई है । सब से मह वपणू बात तो यह है क हमेशा नये वा य के योग के उपरा त भी व ता ोता के बीच स ेषण सहजता, सरलता से हो जाता है दोन क भा षक मता के अनु प वा य नर तर सं ेषण का काय पणू करत ेह । मानवे तर भाषा म यह संभव नह ं है । एक पश ुवष से जैसा बोल रहा है वसैा ह आज भी बोलता है । इसी कारण मानवे तर भाषा म सजृना मकता या नया नह ंह । मानव भाषा म सजृना मकता होने के कारण ह बरस से सभी भाषा म भाषा-भाषी भाषा का योग अपनी इ छा और आव यकता अनसुार करत ेआ रहे ह तथा प भाषा

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    हर यो ता को हर समय नयेपन या ताजगी क अनभुू त कराती है जैसे म, तुम, वह, मलना इन चार श द से - 'मुझ'े, तुमसे वह बात कहने के लये मलना है ।' 'वह तुमसे मुझ ेमलवाने क इ छा रखता है', ’तुम मुझसे मलो, उसम उसक खुशी है', 'मुझ ेतुमको उससे मलवाना है । आ द अनेक वा य क रचना हो सकती है ।

    1.4.5 प रवतनशीलता

    भाषा प रवतनशील होती है । भाषा क जीव तता का यह माण है । भाषा और समाज का अ त: स ब ध होता है । समाज भी प रवतनशील होता है । समाज के प रवतन से आशय है समाज म रहनेवाले लोग-मनु य आ द का प रवतन । यह प रवतन भौ तक और मान सक दोन तर पर होता ह प रि थ