assets.vmou.ac.inassets.vmou.ac.in/mjmc1-1.pdf5 वधम न मह व र ख ल वæव jव...

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    पा य म वशषे स म त डॉ. राधाव लभ यास

    कुलप त कोटा खुला व व व यालय कोटा (अ य स म त)

    ो. ए.के. बनज पूव–अ य प का रता वभाग बनारस ह द ू व व व यालय वाराणसी

    डॉ. ए. डब य.ू खान कुलप त इि दरा गांधी रा य मु त व व व यालय नई द ल

    ो. जे.एस. यादव नदेशक भारतीय जनसंचार सं थान नई द ल

    राधे याम शमा पूव–महा नदेशक माखनलाल चतुवद रा य प का रता व व व यालय, भोपाल(म. .)

    डॉ. भंवर सुराणा यूरो चीफ/ वशेष संवाददाता दै नक हदंु तान जयपुर

    डॉ. ओ.पी. केजर वाल महा नदेशक, महा नदेशालय आकाशवाणी नई द ल

    डॉ. रमेश जैन अ य –जनसंचार वभाग कोटा खुला व व व यालय, कोटा

    संयोजक डॉ. रमेश जैन– अ य , जनसचंार वभाग कोटा खुला व व व यालय, कोटा

    पाठ–संपादक एव ंभाषा–संपादक पाठ–संपादक िजते गु ता व र ठ प कार एवं लेखक नई द ल

    भाषा–संपादक डॉ. व णु पकंज व र ठ सा ह यकार–प कार जयपुर

    अकाद मक एव ं शास नक यव था ो.(डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो.(डॉ.)एम.के. घड़ो लया नदेशक(अकाद मक)

    सकंाय वभाग

    योगे गोयल भार

    पा य साम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग

    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    उ पादन – अ लै 2012 सवा धकार सुर त : इस साम ी के कसी भी अंश क वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प म अथवा म मयो ाफ (च मु ण) वारा या अ यथा पुनः तुत करने क अनुम त नह ं है । कुलस चव

    व.म.खु. व. कोटा वारा वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा (राज.) के लये मु त एवं का शत ।

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    वधमान महावीर खलुा व व व यालय

    एम. जे. एम. सी. –1 जनसंचार –मा यम के लए लेखन

    पा य म – थम ख ड (1)

    1 इकाई 1 लेखन के मूल त व 8—20 इकाई 2 फ चर–लेखन 21—40 इकाई 3 टेल वजन के लए फ चर–लेखन 41—47 इकाई 4 टेल वजन के लए लेखन 48—59 इकाई 5 टेल वजन – संवाददाता 60—69

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    पाठ लेखक 1. डॉ. वजय कुल े ठ

    सहआचाय एवं अ य , ह द वभाग सुख ड़या व व व यालय, उदयपुर

    11. डॉ.ल मीकांत दाधीच ा यापक, वन प त शा वभाग

    राजक य महा व यालय कोटा 2. याम माथुर

    उप संपादक राज थान प का जयपुर

    12. द नानाथ दबुे प कार, लेखक कोटा

    3. डॉ. व णु पकंज व र ठ सा ह यकार, प कार जयपुर

    13. राधे याम तवार जनसंचारकम एवं लेखक जयपुर

    4. रामकुमार प कार, लेखक कोटा

    14. ीमती सुषमा जगमोहन सं या टाइ स बहादरुशाह जफर माग, नई द ल

    5. हमीदु ला ह द नाटककार जयपुर

    15. सत सोनी संपादक- सं या टाइ स बहादरुशाह जफर माग, नई द ल

    6. डॉ. र तारानी पाल वाल र डर, ह द वभाग इि दरा गांधी रा य मु त व व व यालय नई द ल

    16. डॉ. रमेश जैन अ य , जनसंचार वभाग कोटा खुला व व व यालय, कोटा

    7. डॉ. सुरे व म अ य - ह द वभाग

    ि चयन ड ी कॉलेज, लखनऊ(उ. .)

    17. डॉ. हेम त जोशी ा यापक- प का रता वभाग

    भारतीय जनसंचार सं थान नई द ल

    8. डॉ. राधामोहन ीवा तव अ य , कृ ष अथशा वभाग बड़हलगंज, गोरखपुर(उ तर देश)

    18. रामे वर म व र ठ प कार एवं लेखक नई द ल

    9. डॉ. कैलाश पपन ेवशेष संवाददाता दै नक ह दु तान, नई द ल

    19. डॉ. राम काश कुल े ठ र डर- ह द वभाग राज थान व व व यालय, जयपुर

    10. सुभाष से तया संपादक ‘आजकल’ काशन वभाग, सूचना एवं सारण मं ालय

    प टयाला हाउस, नई द ल

    20. जयदेव शमा भार - दै नक नव यो त

    कोटा

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    खंड एवं इकाई प रचय ‘जनसचंार मा यम के लए लेखन’ खंड (1) म आपको पाचं इकाई से प रचय कराया जा रहा

    ह। ये ह -1 लेखन के मलू त व, 2. फ चर लेखन, 3. टेल वजन के लए फ चर-लेखन, 4. टेल वजन के लए लेखन, 5. टेल वजन संवाददाता।

    इकाई 1. ‘लेखन के मलू त व’ क ह। इसम लेखन का ार भ, लेखन का मह व, लेखन के कार, लेखन के मूल त व, लेखन कौशल का वकास तथा लेखन म सावधा नयां आ द ब दओंु पर काश डाला गया ह। ततु इकाई आपको लेखन क संभावनाओं से प र चत कराएगी। इससे आप

    एक कुशल लेखक बन सकगे। इकाई 2. ‘फ चर लेखन क ह। इसम फ चर या ह फ चर क वशेषताएं, फ चर के मलू व प,

    फ चर-लेखन, व भ न वधाओं से तुलना, फ चर के वषय आ द पर काश डाला गया ह। इस इकाई के अ ययन के बाद आप एक कुशल फ चर-लेखक बन सकगे। आप व भ न प -प काओं के लए अ छ तरह फ चर लख पाएंगे।

    इकाई 3. ‘टेल वजन के लए फ चर लेखन’ से स बं ह। इसम टेल वजन फ चर अवधारणा एव ं व प, फ चर का उ े य, फ चर के ोत, फ चर के त व, व न एव ंछायांकन, च पक आ द ब दओंु पर यथे ट जानकार द गई ह। इसका अ ययन करने के बाद आप टेल वजन के लए फ चर- लेखन अ छ तरह लख सकगे।

    इकाई 4. ‘टेल वजन के लए लेखन’ क ह इस इकाई म टेल वजन के लए कैसे लखा जाए आ द पर यापक चचा क गई ह। टेल वजन के लए लेखन, तकनीक क जानकार , लेखक, नदशक और फ मी भाषा पर स पणू जानकार द गई ह।

    इकाई 5. ‘टेल वजन-सावदंदाता’ क ह तुत इकाई म टेल वजन संवाददाता पर यापक काश डाला गया ह। इसम टेल वजन- संवाददाता क प रभाषा, मु त, मा यम, सारण, मा यम,

    टेल वजन- संवाददाता क भू मका, संवाददाता क वशेषताएं, बा य पहल,ू आंत रक पहल,ू दा य व बोध, ब धन मता, तकनीक कुशलता, ट म भावना, न प ता, यवहा रक काय, समाचार-लेखन, भटवाता

    / साउंड लाइट, पीस कैमरा आ द त य पर यथे ट जानकार द गई ह। इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप एक कुशल टेल वजन-संवाददाता बन सकगे। आजकल टेल वजन- संवाददाता क अ धक मांग ह और इस े म रोजगार क यापक संभावनाएं ह

    जनसंचार मा यम के लए लेखन म आपको अ य खंडो म जनसंचार के व भ न मा यम के लए कैसा लखा जाए इस संदभ म वशेष प रचय कराया जाएगा।

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    इकाई 1 लेखन के मूल त व इकाई क परेखा 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 लेखन का ारंभ 1.3 लेखन का मह व 1.4 लेखन के कार 1.5 लेखन के मूल–त व

    1.5.1 वषय या वचार 1.5.2 लेखन का व प 1.5.3 लेखन का ढांचा या तु त 1.5.4 लेखन क शलै 1.5.5 आि मक पश

    1.6 लेखन–कौशल का वकास 1.6.1 अ ययनशीलता 1.6.2 सू म– नर ण का यास 1.6.3 अनभुव पर आधा रत 1.6.4 क पनाशीलता 1.6.5 ा प या परेखा

    1.7 लेखन म सावधा नया ं1.8 मू यांकन 1.9 साराशं 1.10 उपयोगी पु तक 1.11 नबधंा मक न

    1.0 उ े य लेखन एक कला है। मनु य के भीतर वचार , भाव एव ंसंवेदनाओं क व वध कार क तरंग

    उ प न होती है िज ह अ भ यि त देना या लखना, उसक एक ज मजात विृ त है। यह एक कार क सजृन– या है। इस सजृन या को संप न करने के लए यह आव यक है क इसके मूल त व क गहर समझ हो और यथाआव यक अ यास भी हो । इस इकाई का अ ययन करने के उपरातं आप

    लेखन का मह व और उसके कार के बारे म जान जाएंगे। सजृना मक लेखन एव ंसूचना मक लेखन का अंतर समझ जाएंगे। वषय के अनु प लेखन का मह व पहचानने लगगे। अनभुव और लेखन के अंतरंग संबधं को समझ जाएंगे। शैल और भाषा का मह व जान जाएंगे।

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    एक लेखक के आव यक गणु के जानकार हो जाएंगे।

    1.1 तावना मनु य एक सामािजक ाणी है और समाज म रहते हु ए वह जानी या अनजानी व तुओं के

    बारे म ान ा त करना चाहता है। उसक विृ त सदैव िज ासु रह है। इसके साथ ह यह भी मनु य क आ दम विृ त है क वह अपनी बात या अपने अनभुव दसूर के साथ बांटे। उसके मन म जो बात है, उसे वह अ भ यि त देना चाहता है। यह अ भ यि त सकेंत , रेखाओं, श द , च , लेखन, नाटक, नृ य, संगीत आ द व भ न मा यम से क जा सकती है। कोई भी सूचना, वचार, विृ त या अनभुव इस कार सं े षत करने क मानव– विृ त ह लेखन क वधा का आधार है।

    सूचनाओं, अनभुव , वचार , सुख–दखु क भावनाओं के आदान– दान क या अना दकाल से चल आ रह है। ागै तहा सक काल म भी मनु य एक दसूरे से हाथ के वारा संकेत या चेहरे के भाव से अपनी बात को कट करने का यास करता था। आपस म संवाद क यह या संकेत के साथ व न के मा यम से भी कट क जाती थी। ले कन अ भ यि त या सं ेषण क यह या अ य धक क ठन और अ प ट थी। इस या क अनेक सीमाएं थी।ं मानव स यता के वकास के साथ–साथ मनु य ने एक दसूरे को अपनी बात समझाने और वय ंदसूर क बात समझने क दशा म िजस कला का वकास कया और इस या ने िजस मह वपणू वधा को ज म दया, वह थी–लेखन क कला।

    1.2 लेखन का ारंभ नद , घा टय और घने जंगल के बीच उन भयावह ि थ तय क क पना क जा सकती ह

    िजनम शैला य या नद ं कनार पर बने शलैा य के बीच मनु य व य जीव से अपनी र ा करता था। शलैा य और शलैाखंडो पर हजार साल पहले अथात ् ागै तहा सक काल म अं कत रेखा च , आकृ तया ंऔर पांकन ऐसे द तावेज ह जो मनु य क अपने को अ भ यि त करने और मन क गहर परत को खोलकर अपने भाव और वचार को व भ न आकृ तय , तीक आ द के मा यम से य त करने क उसक आ दम विृ त का प रचय देते ह। भाव को या वचार को अं कत कर देने क इस विृ त से व न या तीक के मा यम से अ भ यि त को दशा मल । धीरे–धीरे ये तीका मक रेखाएं

    ''अ र '' और फर ल प के प मे वक सत हु ई। इस कार य– प म अं कत तीक , रेखाओं और पांकन से आ द–मानव वारा अंधेर गफुाओं मे, पाषाण पर ारंभ क लेखन–या ा। यह भी कह सकत े

    ह क मनु य के बीच य–संकेत और तीक से सं ेषण क जो णाल ारंभ हुई, उसम न हत है –लेखन कला के वकास का पहला बीज।

    इस कार सबसे पहले श द के च न बने जो उच रत व न नह ं बि क सीधे पदाथ का बोध कराते थे। पदाथ का अथ है– सं ा, या, वशेषण आ द का बोध कराने वाला पद या श द। ये च न ल प– च न या ''आइ डयो ाफ'' कहलाते ह। इस कार पदाथ का बोध कराने वाले च न से मस, बे बलोन, चीन आ द देश म ल पयां वक सत हु ई। भारत म भी ऐसा हुआ होगा ले कन चीन और जापान म तो इस कार क ल पय के वक सत प आज भी व यमान ह । श द क रचना को कसी च न के मा यम से कट करना संभव होने के बाद यह क ठनाई पदैा हु ई क श द क अनेक व नय

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    को कस कार य त कया जाए। अत: एक व न या वण के लए एक कार का च न बनाने का य न हुआ। य धीरे–धीरे मनु य ने अपनी आव यकता क पू त के लए रा ते खोजे ओर इस संपणू खोज– या से उ प न हु ई लेखन क वधा।

    मस और मेसोपोटा मया म छह हजार साल पहले म ी के टुकड़ पर लेखन के य न ारंभ हु ए िजनम समय के साथ सुधार होता गया। शलाओं पर लखना ारंभ हुआ। लखने का अथ था–खोदना। बाद म प थर पर अ र उभारे जाने लगे जो उ क ण–लेख कहलाते ह। फर तलाश हुई सुवा य (पोटबल) साधन क । तब मला प या प ता। पखं या डं डय (कलम) का लेखन के लए योग होने लगा। ताड़ प या भोज प पर गोल लखाई शु , हुई ता क प ता कटे नह ।ं इस वकास या ा के अतं म आदमी कागज और याह तक पहु ंचा। साथ ह लेखन के वारा ान को एक पीढ़ –से दसूर पीढ़ तक पहु ंचाने का काय भी सरल हो गया। मानव इ तहास म िजतनी भी खोज हु ई उनम लेखन क खोज और इसके वकास का काय अ य धक मह वपणू है य क इससे मनु य के लए अपनी वय ंक मताओं और ान को सं चत करना सभंव हुआ। मनु य को अ भ यि त का एक मह वपणू साधन

    भी ा त हुआ। लेखन के वारा स दय क स चाइयां और ान के अथाह भडंार से सतत ् वा हत ोत मानव जा त क धरोहर बन गया। अ ान का अंधेरा छंटने लगा ।

    1.3 लेखन का मह व लेखन क वधा ने ान के भडंारण को सभंव बना दया और मनु य क िज ासा–पू त के

    हारा खोल दए। ान– व ान क ग त का ोत बन गया–मनु य वारा र चत ान–भंडार। इसके अलावा मनु य क अपने को अ भ यि त करने क आ दम विृ त को सहज माग मल गया। लेखन का वकास ह एक कार से मनु य क ग त और स यता–सं कृ त क ग त का आधार है। लेखन का मह व मनोवै ा नक और स दय बोध क ि ट से भी कम नह ंहै य क मनु य के भावा मक एव ंवचैा रक धरातल पर या– त या या संवेदनाओं क जो लहर उ प न होती ह, उ ह अ भ यि त देने और वचार तथा भाव को कट कर देने क उसक विृ त उसी कार एक वाभा वक या है िजस कार मा ंम अपने ब चे को ज म देने क विृ त है या बीज के म ी म डालने के बाद खाद–पानी–ऊजा मलने पर उसके अकुंर नकलने क या है। ाणी मा अपनी संवेदना या आवेग को अ भ य त करता है। ावण माह म जब चार ओर ह रयाल छा जाती है तो मोर पखं फैलाकर नाचने लगता है और अपनी स नता के आवेग को मुखर अ भ यि त देने लगता है। इसी कार सखु–दखु या अ य कार के वचार और भाव को लेखन के वारा अ भ यि त देकर संवेदनशील मनु य एक राहत या

    संतोष क अनभुव करता है। अिजत ान और अनभुव का ल खत सं ेषण भी उसे आ म वभोर करता है। इस लए लेखन एक कार क ववशता है जो मनु य को लखने के लए बा य करती है। वह अपनी बात लखकर अपने को मु त अनभुव करता है।

    लेखन के वारा मनु य अपने वचार , अनभुव और ान को समाज के साथ बाटता है। समाज के एक अंग के प म मनु य और समाज के र त ेको गाढ़ करने का काय भी लेखन से संप न होता है। इ ह ंकारण से सा ह य क रचना होती है और लेखन क वधा आज भी इले ा नक मा यम क होड़ म भी टक हु ई है।

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    1.4 लेखन के कार लेखन क या का े यापक है और इसके व वध आयाम और कार ह। लेखन मा

    सूचना मक, ववरणा मक और सतह चीज क अ भ यि त तक भी सी मत हो सकता है। त यपरक या व लेषणा मक लेखन क भी एक ेणी होती है। सा ह य क ि ट से ग य, प य नाटक आ द वग म भी लेखन को बांटना संभव है। मोटे तौर पर लेखन को सजृना मक और असजृना मक , इन दो वग म वभािजत कया जा सकता है। पर तु यहा ंयह भी यान मै रखना चा हए क कोई भी लेखन पणू पेण सजृना मक या असजृना मक नह ं हो सकता है। जहां सजृना मक या रचना मकता का अ धक पटु हो, उसे हम सजृना मक लेखन क ेणी म रख सकते ह और जहा ंत य या व लेषण अ धक हो, उसे असजृना मक लेखन कह सकत ेह। ले कन इसका ता पय यह नह ं क सचूना धान लेखन या खी, वचारह न, क पना र हत अ भ यि त ह होती है।

    सजृना मक लेखन के अंतगत भाव वण, संवेदनशील, ल लत भाषा और क पना से यु त सा ह यक लेखन को ले सकत ेह। इस कार के लेखन का उ े य मा सचूना देना नह ं होता बि क कसी अ य भाव या वचार अनभुू त को कट करना होता है। लेखन क रचना मकता के स दभ म मनन, चतंन या य–जगत के बारे म या अमूत वचार जैसे ेम, देव व आ द व भ न पहलुओं को लेकर लेखन कया जाता है। सामािजक ि थ तय , जीवन के व भ न प आ द पर क पनाशीलता के साथ जो मौ लक लेखन परंपरा है, उसे वशेष प से सजृना मक लेखन माना जाता है। इसम कथा, कहानी, ल लत नबधं, उप यास आ द शा मल है। जीवन के त यि त का नजी सोच और ि ट ऐसे लेखन म मुख होती है। भाषा और शैल का ला ल य भी सा ह य लेखन का सहज वाभा वक अंग है। सजृना मक लेखन का ल य, मनु य को उसके अंतमन क अ भ यि त क अनभुू त देने, उसे उ तम और अ छा बनाने क दशा लए होता है।

    असजृना मक लेखन म वचार और त य के लेखन का वह दायरा शा मल होता है जहा ंसजृना मक प म मनु य के ान का व तार हो। इ तहास, भूगोल, व ान, परुात व आ द को इस कार के लेखन म स म लत कर सकत ेह। ऐसे लेखन म तक या व लेषण के वारा नि चत व ध

    से कसी वषय का ववेचन कया जाता है। यहां भी लेखन म ग त और कौशल का होना आव यक है।

    कुल मलाकर लेखन को पणूत: अलग–अलग वग म वभािजत करना संभव नह ं है य क यह एक ऐसी वधा है िजसका फैलाव बहु त अ धक है। सचूना धान लेखन म लेखक क व श ट अ भ च और अनभुवा त शलै के कारण सजृना मक लेखन क छाप नजर आने लगती है। सु वधा के लए और समझने के लए लेखन को व भ न कार के वग या े णय म बांटा जाता है। सूचना मक लेखन का उदाहरण ततु है िजससे कसी थान या देश क ि थती का ान होता है। यहां क पना या रचना मकता क बजाय त य ततु कए गये ह –

    ''भारत क मु य भू म के द ण पि चम कोने पर ि थत छोटे–से रा य केरल म ाकृ तक स दय का अ तु खजाना है । 38,663 वग कलोमीटर े फल वाले इस देश को तीन भाग –उ च भू म, म य भू म और नचल भू म म बांटा जा सकता है। इस छोटे से देश क जनसं या 1981 क जनगणना के अनसुार 2 करोड़ 84 लाख 680 है। आबाद के घन व के हसाब से यह 655 बठैता

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    है अथात ् येक कलोमीटर पर सवा धक लोग, इतनी आबाद के बावजूद यह देश धरती पर वग–सा लगता है तो सफ इस लए क कृ त ने यहां खुले हाथ से सु दरता लुटाई है।''

    इस कार के ववरणा मक लेखन म भी वाह, ग त और संयम का पटु आव यक है। इससे हटकर सजृना मक लेखन म बात पर क पना के पखं लग जाते ह। केरल क भौगो लक ि थ त के बारे म तुत उदाहरण से भ न यहा ंअंडमान के बारे म कुछ पिं तया ंलेखन म सजृना मकता का प रचय देने वाल ह

    ''बहर अगर बहर न होता तो बयाबान होता।'' गा लब क यह अ त यथाथवाद ढंग क क पना अंडमान म एक खास तरह से याद आती

    है जैसे हम एक साथ बहर यानी समु और बयाबान म पहु ंच गए ह । गभंीर, अनतं नीला समु और बीच–बीच मे उभरे खूब हरे बयाबान वीप. समु पहले अ भभतू करता है और फर चुप कर देता है।...समु मन म वसैी उ सुकता नह ंजगाता जसैी क पहाड़ जगाते ह। पहाड़ ऊंचाई का और शायद उनके सामने हमारे बौनेपन का भी एहसास देते ह और साथ ह कुछ और आगे जाकर कुछ और िज ासा भी जगाते ह, परंतु समु अपनी वशालता और नजनता के आगे हम लाचार–सा कर देता है। शायद समु भी एक तरह का बयाबान है. पानी का बीहड़, नजन नगंा– व तार (मंगलेश डबराल) बोध न – 1 1. लेखन का योजन बताइए। 2. सजृना मक लेखन कसे कहते ह? सोदाहरण बताइए। 3. लेखन के मह व पर काश डाल1

    1.5 लेखन के मूल त व अ भ यि त के प म लेखन एक जीव त वधा है। अतंमन या भावना के तरल धरातल पर

    उ प न वचार और संवेग को श द म पारदश ढंग से ढाल देना और अ भ यि त के तर पर वचार और भाव को सजीव तु त देना ह भावपणू और ठोस लेखन का सबतू है। वचार और भाव को मा श द का जामा पहना देना ह लेखन नह ंहै। लेखन क सफलता क कसौट यह है क उसम लेख क आ मा क अनभुू तया ंधलुती– मल और रची–बसी हो। पाक को लगे क जो कुछ वह पढ़ रहा है, उसके भीतर भी कह ं वसैा ह एहसास जीवतं हो रहा है। इस ि ट से लेखन कह ं शू य म घ टत नह ं होता। मनु य शर र क तरह उसका एक ढाचंा होता है। लेखन कसी घटना, वषय या वचार से संबधं रखता है। इस कार लेखन का कोई ब द ुया वषय आव यक है। वषय और ढाचें के अलावा उसका एक प–रंग या व प भी होता है। लेखन क जीवतंता का भाव तभी हो सकता है जब उसके भीतर एक आि मक पश हो। इस कार, एक वषय– व प, ढांचे के अलावा लेखन क कोई शलै होनी चा हए । मनु य का शर र िजस कार पाचँ त व से बना होता है, उसी कार लेखन को ग तमय, वाहमय एव ं भावपणू बनाने के लए उसम पांच त व क मुखता होनी चा हए।

    1.5.1 वषय या वचार

    लेखन म वषय या वचार का मूल अनभुव पर आधा रत रहता है। ाने य क सहायता से अपने आसपास का अवलोकन करके मनु य जीवन म अनभुव ा त करता है। य और अ य प

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    से जीवन के सखु–दखु क घटनाएं, व वध ि थ तया ंआ द मानव मन पर नरंतर अं कत होती रहती ह और उसके भीतर या– त या क एक नरंतर चलने वाल धारा उसे आंदो लत करती रहती है। इस कार अनभुव क एक सतत या के दारा मनु य क भावना या वचार पर भाव पड़ता है और उसके भीतर बहु त कुछ संगहृ त हो जाता है।

    मनु य को बाहर ससंार क घटनाएं एव ंि थ तयां वचार करने, चतंन करने और मथंन करने के लए उसे नरंतर े रत करती ह। इस बा य एव ंभीतर ससंार के यथाथ का वह अपने लेखन म ताना–बाना बनुता है। वषय या वचार क कोई सीमा नह ं है। लेखन के लए हजार और अ य चीज, घटनाएं, प रि थ तया ंया मानव मन म नरंतर हलचल पदैा करने वाले वचार या भावनाएं लेखन का वषय बन सकती है। ले कन यहा ंयह यान रखना भी आव यक है क कसी भी वषय पर लखने का ल य या है? कोई बात अ भ य त करके मनु य अपने को संतु ट करना चाहता है या वह अ य लोग तक अपनी बात पहु ंचाकर अपने भाव एव ं वचार को समाज के साथ बांटना चाहता है। यह भी हो सकता है क ान क ि ट से िजस वषय को छूने का यास कया गया है, वह मानव मा के लए सूचना मक, शै णक, मनोरंजक या क याणकार हो। लेखन कोई न े य संप न क जाने वाल या नह ं है। उसे सो े य, भावी और साथक होना चा हए।

    1.5.2 लेखन का व प

    बा य संसार पर ि ट डाल तो ात होगा क हर व तु क अपनी कृ त, वभाव और रंग– प है। इस कार लेखन के भी व वध रंग– प या एक व प (फॉम) होता है। लेखन क अनेक वधाएं और प ह। कोई भी यि त कसी भी वषय पर क वता, गीत, कहानी, नाटक, नबधं, उप यास आ द लख सकता है। लेखन के वषय और कस उ े य क पू त के लए लेखन कया जा रहा है, इन दो न के उ तर म लेखन का व प तय होता है। य द फलक या कैनवास छोटा है और कुछ ह पा

    को लेकर जीवन क कसी घटना या कथा को लखना है तो वह कहानी का प होगा और कथा का फलक व ततृ है तो वह उप यास के दायरे म समेट जा सकेगी।

    लेखन के व भ न त व आपस म एक–दसूरे से गहरा स ब ध रखते ह । य द कसी वचार भाव या वषय पर क वता लखी जाती है तो उसी के अनु प शैल , भाषा, व प, ढांचा तय होगा।

    1.5.8 लेखन का ढांचा या तु त

    िजस कार कसी इमारत का ढांचा तैयार करने के लए एक न शा तैयार कया जाता है और उस न श ेको बनाते समय उस थान क सीमा या े फल ( पेस) को यान म रखना पड़ता है और इमारत के ढाचें के लए आव यक साम ी जुटानी पड़ती है, ठ क उसी तरह, लेखन के लए यह आव यक है क चुने गए वषय के अनु प त य या जानकार एक त क जाए। इस कार एक त साम ी को सल सलेवार संयोिजत करने के बाद लेखन क परेखा तैयार करनी चा हए।

    लेखन म आव यक गणु का समावेश करने, उसे ा य एव भावपणू बनाने के लए यह भी आव यक है क उसे एक यवि थत आकार दया जाए। उसक कोई यवि थत तु त हो। आमतौर से, ारंभ, म य और अंत, इन तीन भाग म कसी भी लेखन को वभािजत करने या तीन तभं पर अवि थत करने का चलन है। कसी भी कृ त को य तीन भाग म ततु करने क स दय परुानी

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    लेखन–परंपरा चल आ रह है ।ले कन सजृना मक लेखन के लए बधंी–बधंाई परंपरा का पालन हमेशा संभव नह ं होता। तभावान लेखक योग धम होता है। सा ह य के े म तो नरंतर योगध मता का नवाह होता है। समय–समय पर लेखन के ढांचे और तु त क तकनीक बदलती आई ह। तु त के व प म प रवतन भी कए जा सकत ेह य क ढाचंा या तु त अपने आप म लेखन का उ े य नह ं है बि क यह तो ल य तक पहु ंचने का मा यम है।

    जैसा क आप पढ़ चकेु ह क लेखन क वधा म तु त या ढांचा, एक श प है और लेखक श पकार है। वह ढांचे को लचीला बना सकता है। यह बात ज र है क श प के अपने मलू–त व होत ेह और इनका संयोजन ह स दयबोध क ि ट से साथक भाव क सिृ ट करता है। लेखन क साम ी श द है जो वचार या भाव को अ भ यि त देता है। श द , वा य के योग और उ ह कसी पु तक के अ याय म तुत करके एक पु तक क सरंचना क जाती है। संगीत म वर और वा य के तालमेल से एक रचना को ततु करके संगीत क रसमय लहर क तु त क जाती है। जैसे संगीत, च , नृ य, नाटक आ द म व वध श प वधान वारा अ भ यि त को भावशाल बनाया जाता है उसी तरह लेखन म भी श प मह वपणू है। लेखन वांत: सखुाय या केवल सा हि यक अ भ यि त के लए भी हो सकता है। पु तक, प का या समाचारप के लए भी लखा जा सकता है। नाटक मचंन के लए लखे जात ेह। फ म या टेल वजन पर तु त के लए भी लेखन हो सकता है या रे डयो के लए भी।

    हर मा यम के तकनीक और कला मक प को यान म रखना ज र है। उदाहरण के लए एक फ चर या आलेख समाचारप म मु ण के लए भी लखा जा सकता है या रे डयो सारण के लए भी। उसी वषय पर फ चर ट .वी. पर भी दखाया जा सकता है। लखते समय मु ण, य और य मा यम के तकनीक प को यान म रखना आव यक होता है।

    1.5.4 लेखन क शलै

    शैल का अथ है – वचार और भाव को अ भ यि त देने का अ दाज या तर का। एक ह वषय पर कया गया लेखन शलै क ि ट से अलग– अलग हो सकता है। अंदाजेबया ंया अ भ यि त के तर के से भाव क सिृ ट होती है। श द ह म है। लेखक का श द भंडार कतना यापक है, भाषा क कृ त क कतनी गहर पकड़ है, श द को कस कार वा य म परोया गया है और बात कहने का ढंग कैसा है, ये सब बात शैल का नमाण करती ह । शलै गत वशेषताओं का नमाण यि त क नजी वशेषताओं से होता है। शलै के लए कई बार लोग एक वशेष लेखक क कृ तय का अ ययन करत–ेकरत ेउससे भा वत होकर उस शैल क नकल करने लगते ह ले कन यह उधार क शलै होती है। िजस शैल पर आपके यि त व क छाप होगी वह आपक असल शैल कहलाएगी। इसके लए कोई बना–बनाया माग या फामूला नह ं है। शलै यि तगत पहचान का मा यम है।

    वणना मक, ववरणा मक, व लेषणा मक, सं मरणा मक, डायर शलै जैसा वग करण आलेख क विृ त बताते ह, वषय व तु क तु त के व प का बखान करते ह। लेखन को इस तरह क शै लय म वभािजत नह ं कया जा सकता। क य का संयोजन त यपरक, वचारपरक सूचना मक, भावा मक हो सकता है। ले कन कसी भी शैल क वशेषताओं म, उसका सीधा, सरल, सरस, रोचक, कला मक और भावपणू होना अ नवाय है। यह कसी भी लेखक क शलै क सफलता

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    का योतक है, य द वह श द म जीवतं य क अनभुू त दे सके या य को अपनी रचनाओं म चल च क तरह जीवतं कर दे। अपनी बात को पाठक के मन या दय पर अं कत कर दे। लेखक और पाठक के बीच सं ेषण के तर पर कोई दरू नह ं रहे तो यह लेखन शलै क सफलता माना जाना चा हए।

    1.5.5 आि मक पश

    लेखन म ईमानदार का होना आव यक है। एक सबा और ईमानदार लेखक वह है जो वह देखता है, उसे लखता है या जो भोगता या अनभुव करता है, उसे बना कसी चतरुाई या चालाक के सधी अ भ यि त देता है। य द लेखक वचार, च तन, सुख–दखु आ द क अ भ यि त को ऐसा धरातल दान कर दे क पाठक को लगे क कसी ने उसके वचार , कंुठाओं या भाव को स ची अ भ यि त

    द है तो ऐसे लेखन को जीवतं कह सकते ह। इसे य भी कह सकते ह क ऐसा लेखन सभंव है जब क लेखक अपनी आ मा को लेखन म उंडेल दे अथात ्लेखन म एक आ मीय पश भर दे जो पाठक के अंतमन को छू जाए। उरने लेखन क स यता का आभास दे दे। हंसी–खुशी, दखु–दद आ द क अनभुू तया ंमनु य मा म समान है। कसी भी ाणी को दखु पहु ंचाना उसके त हसंा है। अत: आि मक पश से पणू और गभंीरता के साथ कया गया लेखन, पाठक को यह अनभुू त देने म सफल हो सकता है क लेखक ने अपने वचार , भाव सखु–दखु क अनभुू तया ंके मा यम से उसके सुख–दखु को अ भ यि त द है। पाठक और लेखक को एक समान धरातल पर खड़ा करने के लए यह आव यक है क लेखन म लेखक क आ मा क गधं बसी हो। बोध न – 2 1. वषय और वचार मह वपणू ह या व प? 2. लेखन के ढांचे से या ता पय है? 3. आि मक का मह व बताइए।

    1.6 लेखन– कौशल का वकास कई बार लोग इस सम म रहत ेह क लेखक बनना तो ज मजात तभा से ह सभंव हो सकता

    है। अत: वे अ धक यास नह ंकरते । कुछ सीमा तक यह कहा जा सकता है क आनवुां शक प रि थ तय या वातावरण क अनकूुलता से कई लोग म लेखन के त एक वाभा वक ललक होती है और यह ललक उनका माग सरल बना देती है । परंत,ु अ यास, लगन और नरंतर प र म से मनु य असभंव को भी संभव बना सकता है। लेखन भी एक वधा है । एक कला है । कसी भी वधा या कला के त अ भ च के साथ संबधं जोड़ने और उसको सीखने के लए सतत य न करने से उसम कुशलता अिजत करना सभंव है । आव यकता है –समपण के साथ अ यास करते रहने क । हर व तु पर उसक क मत लखी रहती है । कसी भी व त ुको ा त करने के लए िजस कार उसक क मत चुकानी पड़ती है, उसी कार कसी भी वधा म सफलता ा त करने के लए नरंतर चतंन, अ यास और प र म करत ेरहना आव यक होता है । लेखन म कुशलता का वकास करने के लए कुछ ब दओंु पर यान देकर आगे बढ़ने का यास करना चा हए ।

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    1.6.1 अ ययनशीलता

    लेखन का े अ त यापक है । इस लए लेखन म द ता एव ंकुशलता ा त करने के लए कोई भी े अपनी अ भ च के अनु प चुना जा सकता है । इसके अलावा िजस भाषा म लेखन करना हो, उसम द ता ा त करना या उस भाषा म अपने को सहज अ भ यि त देना आव यक है । अत: भाषा का ान ह नह ं उसक गहर समझ भी होनी चा हए । लेखन म श द का सह ढंग से उ चत प म योग करने के लए श द ान भी समृ होना ज र है । यह ान ा त करने के लए भाषा

    पर अपनी पकड़ मजबतू करने के अलावा भाषा– वशेष म र चत सा ह य एव ंलेखन का अ ययन करत ेरहना चा हए ।

    आमतौर से अ ययन क विृ त को नर तर कायम रखना क ठन होता है । पर तु एक अ छा लेखक बनने और लेखन म स ह त होने का रा ता सरल होते हु ए भी नरंतर कदम बढ़ात ेरहने क मांग करता है । लेखन म कुशलता ा त करने के लए अ ययनशीलता का होना आव यक है । ऐसा करने से जहां सामा य ान एव ं व वध वषय का ान ा त होने के साथ–साथ रचनाशीलता, श द–रचना, उनके योग, शैल क ौढ़ता, लेखन म प टता एव ं वाह जैसे गणु को सीखने म सहायता मलती है वहां नरंतर अ ययन से, ान के अथाह भंडार म डुबक लगाने से महान लेखक के रचना– संसार से भी सा ा कार होता है । अ ययनशीलता से आ म– श ण क या संप न होती है । यि त क िज ासु – विृ त और अ धक से अ धक सीखत ेरहने क अ भ च, उसे नरंतर ग तमान और सबल बनाने का काय करती है । अ ययनशीलता विृ त से लेखन म नखार आता है । इस कार नरंतर प ने – लखने क आदत से वचार एव ं ि टकोण को प ट, सरल, सुगम और सुबोध शलै म ततु करने का माग श त होता है । अ भ यि त म द ता और ौढ़ता आती है । वय ंको लेखन म पारंगत जानकर य द अ ययन से हाथ खींच लया तो अपे त नपणुता ा त करना सभंव नह ंहो पाएगा । एक सफल लेखक बनने के लए पढ़ने क आदत डालने का यास करना चा हए । समय काटने या मनोरंजन के लए पढ़ना एक बात है और गभंीरता से अ ययन करना, पढ़ हु ई पु तक का व लेषण करना और कृ त– वशेष के व वध प क बार कय म झांकना दसूर बात है । गभंीरता से कया गया अ ययन, श द– ान को समृ करने के अलावा लेखन के लए एक सु ढ़ आधार भी देता है ।

    1.6.2 सू म– नर ण के यास

    अ ययनशीलता के साथ यह भी आव यक है क एक अ छा लेखक बनने या लेखन म कुशलता ा त करने के लए ि ट को सदैव खुला और चौक ना रखने क आदत का वकास कया जाए । जीवन

    के व वध प , ि थ तय और चार और फैले व तार का सू म पयवे ण करने का सतत ् यास कया जाए । जीवन के ज टल न को उ घा टत करना, कृ त के स दय और रह य को समझना, चीज को सह प र े य म जांचना, वभावगत वशेषताओं और चीज क परू तरह पहचान करना आ द तभी संभव है, जब उनका बार क से नर ण करने क आदत डाल जाए ।

    1.6.3 अनभुव पर आधा रत

    दसूर के अनभुव और वचार को पढ़कर भी लेखन का अ यास तो कया जा सकता है ले कन मौ लक एव ंरचना मक लेखन के लए यह आव यक है क वह यि त के वय ंका अनभुव भंडार

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    वक सत हो । अपने ह अनभुव को लेकर उ ह अ भ यि त देने का काय लेखन म ाण क त ठा करता है । ले कन अनभुव को य का य लख देना, मौ लक लेखन या सजृन नह ं कहलाता है । जीवन म ा त अनभुव या सकं लत त य को लख देना काफ नह ं । अनभुव का मथंन और उन पर चतंन करना भी ज र है । मथंन और चतंन से अनाव यक त य क काटं–छांट करके अनभुव को प रप वता देनी चा हए । अपने भीतर अनभुव क आंच को अनभुूत करने से वे यि तगत, नजी और अ धकृत बन जात ेह । लेखन का काय कसी सजीव कृ त को ज म देने क या के समान है । िजस कार मां के गभ म नौ मह ने रहने के बाद शश ुका वत: ह ज म होता है, ठ क वसेै ह अपने अनभुव को तपने के बाद ह अ भ यि त के यो य समझना चा हए । ऐसा करने से लेखन म एक शि त और ऊजा उ प न होगी । एक ग त और फू त का संचार हो सकेगा ।

    लेखन मे द ता ा त करने का छोटा या तुरंत ल य तक पहु ंचाने वाला कोई रा ता नह ंहै। लेखक म धैय और संयम होना चा हए । पहाड़ से फूट पड़ने वाले झरन क तरह एक वाभा वक ग त और वाह क सजृन म लय होनी चा हए। समझ एव ंअ यास से ह ऐसा हो सकता है

    1.6.4 क पनाशीलता

    लेखन क वधा म सजृना मकता के नमाण के लए कुछ वशेष बात को यान म रखना चा हए । िजस वषय या वचार पर लेखन करना है, उसके बारे म यह जानना चा हए क उस वषय पर बहु त लोग लख रहे ह या वह एक नया वषय या वचार है? यह भी न अपने आपसे पछूा जा सकता है क उ त वषय क साथकता या उपयोग या हो सकता है? लेखन का ल य या है? य द मौ लक और नया वचार है तो े ठ बात है । वचार या वषय नया नह ं हो तो भी उस पर लखा जा सकता है य क हमेशा नए वषय और वचार तो उपल ध नह ंहो सकते । जीवन, मृ यु, ेम, घणृा, भूख, बेकार आ द वषय ह िजन पर अनेक लोग लख चुके ह और इन वषय पर लेखन का सल सला जार है । वषय कोई भी हो, उसके व वध पहलू होते ह । कसी भी वषय क गहराई म जाने, क पना और यि तगत चतंन का पश देने के बाद एक लेखक क मता कसी भी वषय को रोचक और पठनीय आधार दे सकती है । क पना के पखं पर सवार होने क आदत डालनी चा हए पर तु यह सावधानी भी रखनी होगी क यथाथ का सू हाथ म रहे ।

    1.6.5 ारंभ या परेखा

    एक बार यह प ट होने पर क कस वषय या वचार पर लेखन करना है, उस वचार या वषय के व भ न पहलओंु पर चतंन करना चा हए । च तन क या म क य या वषय, कथानक, ि थ तय , पा , संवाद आ द को स म लत कया जा सकता है । िजस वषय को छूने का यास कया गया है, उसका उपयोग कहां होगा, मु ण के लए लेखन है या रे डयो या ट .वी. के लए सा रत कया जाना है या उसका उपयोग कह ं अ य उ े य से कया जाना है, आ द न पर भी वचार करना चा हए। इस या के बाद लेखन का ा प तैयार कर लेना चा हए ।

    मौ लक लेखन को सम पत लोग के मि त क म एक अ प ट वचार आने पर भी वे ाय: लखना ारंभ कर देत ेह और उनके मि त क म पहले से सकं लत अनभुव उनके लेखन को े रत करके कसी ल य तक उनक रचना को पहु ंचा सकते ह पर तु लेखन क या ा ारंभ करने वाले लेखक

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    को तो अपना ल य नधा रत करके यवि थत ढंग से लेखन या का अ यास शु करना चा हए । संगीत क तरह एक भाव क सिृ ट करने के लए उ ह रचना के ारंभ और अतं को यान म रखत ेहु ए एक परेखा बनाकर संपणू लेखन या को संयोिजत करने का अ यास करना चा हए । लेखन म ग त और वाह भी हो, इसक जाचं का मापदंड यह है क पाठक कसी रचना को पढ़ना ारंभ करे तो वह उस रचना को दलच पी के साथ तक पढ़े । लेखन म इस गणु का समावेश करने के लए ारंभ और अंत, दोन को चकर बनाने पर यान दया जाना चा हए और उसका म य भाग भी कमजोर न हो, यह भी सावधानी बरतनी चा हए।

    कोई भी यि त ज म से बड़ा या महान लेखक नह ं होता । कसी भी बड़े काय का आरंभ एक कदम आगे बढाने से होता है । अत: लेखन कला म आगे बढ़ने के लए डायर लेखन का नय मत अ यास भी शु कया जा सकता है ले कन यह काय मा घटनाओं या दनचया के आलेखन तक सी मत न हो । इसम संवेदना एव ंरचना मकता का पटु हो । बड़े–बड़े लेखक के डायर लेखन क वधा का अ ययन इस दशा म मागदशन कर सकता है ।

    1.7 लेखन म सावधा नयां लेखन क वशेषताओं म मखु है–लेखन म ग त एव ं वाह का होना । यह गणु तभी पदैा होता

    है जब क लेखन म प टता हो । यह प टता तभी आती है जब लेखक के मन म वचार या वषय व तु क प ट परेखा बन चकु हो । य द लेखक वय ं वषय क बार कय और ववरण के बारे म परू तरह आ व त नह ं है तो वह अपना संदेश या वचार पाठक को समझा नह ंपाएगा । आलेख म भटकाव होगा. पनैापन और वाह नह ं होगा ।

    प टता के साथ लेखन के वषय या वचार के त लेखक क च और वषय म पठै होनी चा हए । ऐसा नह ंहोने पर लेखन म रचना मकता का अभाव होगा और कोई भी रचना पाठक के दलो दमाग पर भाव डालने म सफल नह ं हो सकेगी । आप लेख लख रहे ह या कहानी, पाठक क दलच पी बनाए रखने के लए आव यक है क क य ता कक ढंग से आगे बड़,े एक के बाद एक परत खुलती चल जाए और अत म पाठक कसी नतीजे पर पहु ंच सके ।

    य द कसी रचना म वषय क संपणूता या प टता नह ंहै तो वह अपने ल य म वफल हो जाती है । यि तगत कंुठाओं या वचार को कसी न हत उ े य क पू त के लए लेखन का आधार नह ं बनाना चा हए । ऐसा करने से लेखन क उपादेयता समा त हो जाती है । न प ता और पारद शता के गणु का भी हाल हो जाता है । अत: इस विृ त से बचना चा हए ।

    लेखन म कसी भी क य को घमुा– फराकर कहने के बजाए सीधे और सरल ढंग से अपनी बात कहने का अ यास करना चा हए । घमुा– फराकर बात को कहने या लखने से अ प टता का खतरा बना रहता है । इसके अलावा सजृना मक लेखन म बहु त यादा त य और तक के साथ कसी बात को पाठक के मि त क पर थोपने क विृ त भी उ चत नह ं मानी जाती । लेखन म एक चकर वाह और लचीलापन ज र है । प ट, सुगम, सहज और वाभा वक अ भ यि त ह सजृना मक लेखन क पहचान है । ि ल ट या क ठन श द के जाल के मा यम से अपनी लेखन– मता दशाने या ल छेदार भाषा का योग करने क विृ त से बचना चा हए ।

    च लत श द , मुहावर या लोकोि तय का यथा आव यकता योग कया जाना चा हए । साथ ह लेखन करत ेसमय सदैव उन पाठक को यान म रखना चा हए िजनके लए लेखन काय कया

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    जा रहा है । ब च के लए जो शैल और श दावल अपनाई जाएगी वह श त वय क के लए लखे गए लेख से अलग होगी । साधारण पाठक के लए पां ड यपणू श दावल का उपयोग कभी उ चत नह ंसमझा जाएगा । अपनी व व ता या लेखन तभा का चम कार दखाने क को शश म अ सर बात बगड़ जाती है । सहजता हमेशा चकर होती है ।

    लेखन म सु प टता एव ं भाव क सिृ ट करने के लए सदैव यह यान रखना चा हए क पाठक को समझने के लए कसरत न करनी पड़े । लेखक और पाठक के बीच कह ं कोई दरू न रहे। वा य भी छोटे–छोटे होने चा हए । लेखन क सफलता इस बात म है क रचना म सहजता हो, आ मीयता हो और पाठक के त ईमानदार एव ंदा य व भावना से जुड़ा एक सरोकार हो ।

    1.8 मू याकन लेखन वधा म द ता ा त करने के लए धैय और संयम के साथ नरंतर अ यास करते

    रहने के साथ–साथ अपने लेखन का वय ंमू याकन करने क आदत भी डालनी चा हए । लखने के बाद थोड़ा जोर से पढ़ । इससे लेखन क अ भ यि त और वचार क प टता म कह ंकमी है तो उसका एहसास हो जायेगा । हो सकता है क लखत ेसमय वचार और भाव को य त करने क धुन म कह ं कुछ ऐसा लख दया गया हो जो अनाव यक लगे या िजसम कोई बात दोहराई हु ई लगे । ऐसे श द या वा य को काट सकते ह । अपने लेखन को काट देना क ठन काय ज र है, परंतु जो बात वय ंको ठ क नह ं लगे, उसे पाठक के सामने परोसना उ चत नह ं है । अपने ह लेखन क समालोचना

    करना आसान काय तो नह ंहै पर तु अ यास से बहुत कुछ संभव है । एक स ताह या कुछ दन ठहरकर भी अपने लेखन को फर से पढ़ सकते ह।

    इसके अलावा सजृना मक लेखन म च रखने वाले या स य पाठक का एक समूह तैयार करके उनसे अपने लेखन पर चचा कर सकते ह । समालोचना से डरना नह ं चा हए । समालोचना से सोचने और करने के लए नया माग मलता है । इस कार वय ंअपना मू याकंन करने क विृ त से गतं य तक पहु ंचने म सहायता मल सकती है । बोध न–3 1. अ ययनशीलता के लाभ बताइए । 2. लेखन म अनभुव क उपयो गता का मह व समझाएं। 3. लेखक अपनी रचना का मू याकंन कैसे कर सकता है।

    1.9 सारांश वचार और अ भ यि त के तर पर प रप वता और सु प टता का रा ता तय कर लया जाए,

    श द को म के प म मह व दया जाए और बना कसी आडबंर या बनावट के सहज प से, सम पत भाव से लेखन वधा के व भ न प का अ ययन करके अपने आपको अ भ य त करने का अ यास कया जाए तो लेखन वधा म द ता ा त करना संभव है।

    पाठक के लए रचना बो झल न बने, इसका यान रखने के साथ–साथ सजृना मकता क यह भी पहचान है क कसी भी वषय या वचार पर लेखक क बात को समझने के बाद पाठक क क पना और सोच के तर पर एक हलचल पदैा हो सके । एक भाव क सिृ ट हो और उसके सोचने के लए भी कह ं कोई गुजंाइश बची रहे ।

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    1.10 उपयोगी पु तक 1. Hopper, Vincent F. And Cesric Gale: Essentials of Writing, 3rd Ed.

    (LC–61–8198) Baron Pubs, 1986. 2. Jackson, Donald, the story of Writing (ISBN O–8008–00172–5) Pentalic,

    Taplinges, 1981. 3. Lyman, Edna, What to tell and how to tell 57 (3rd ed,) rpt. of 1911 ed

    Gale University Press, 1971. 4. Quigly Pat, Creative Writing. A Handbook of Technques for Effective 5. Writing Vol. II, Potentials Development, 1983 (ISBN 0–932910–40–8) 6. व वधा : काशन वभाग, नई द ल । 7. भारतीय सारण के व वध आयाम : मधकुर गगंाधर, महरौल , नई द ल – 301

    1.11 नब धा मक न 1. लेखन के मूल त व कौन–कौन से ह? इनक सं त ववेचना क िजए । 2. लेखन–कौशल से आप या समझते ह? 3. लेखन म या– या सावधा नयां रखनी चा हए? 4. सं त ट प णयां ल खए–

    (अ) लेखन क शैल (ब) लेखन का ढांचा (स) लेखन मे आि मक– पश (द) लेखन म क पनाशील

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    इकाई 2 फ चर–लेखन इकाई क परेखा 2.0 उ े य 2.1 तावना 2.2 फ चर या है 2.3 फ चर क वशेषताएं

    2.3.1 िज ासा और नौ र न 2.3.2 दसूर वधाओं के उपादान 2.3.3 संवेदनशीलता

    2.4 फ चर के मलू व प 2.4.1 समाचार फ चर 2.4.2 व श ट फ चर

    2.5 फ चर लेखन 2.5.1 फ चर–लेखक क यो यताएं 2.5.2 फ चर–लेखन क तैयार 2.5.3 भाषा, शैल और आ त रक गठन 2.5.4 शीषक 2.5.5 तावना या भू मका 2.5.6 ववेचना या व लेषण 2.5.7 उपसंहार या न कष 2.5.8 च ांकन

    2.6 व भ न वधाओं से तलुना 2.6.1 नबधं, लेख और फ चर 2.6.2 समाचार और फ चर 2.6.3 कम और फ चर 2.6.4 कहानी और फ चर 2.6.5 संपादक य और फ चर 2.6.6 अ य वधाएं और फ चर

    2.7 फ चर के वषय 2.7.1 यि त व–फ चर 2.7.2 समाचार–फ चर 2.7.3 यौहार स ब धी फ चर 2.7.4 रे डयो–फ चर 2.7.5 व ान–फ चर

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    2.7.6 च ा मक–फ चर 2.7.7 यं या मक–फ चर 2.7.8 या ा–फ चर 2.7.9 मानवीय च वषयक फ चर 2.7.10 ऐ तहा सक फ चर

    2.8 साराशं 2.9 श दावल 2.10 कुछ उपयोगी पु तक 2.11 नबधंा मक न

    2.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के बाद आप फ चर का अथ समझ सकगे, फ चर क वशेषताओं के बारे म जानकार ा त कर सकगे । फ चर–लेखन क ाथ मक आव यकताओं से प र चत हो सकगे, फ चर के व प को समझ सकगे, फ चर के व वध कार का प रचय ा त कर सकगे, समाचारप के व भ न तंभ और फ चर का अतंर समझ सकगे, और आप एक अ छे फ चर–लेखक बन सकगे ।

    2.1 तावना समाचार म सभी े क घटनाओं के समाचार तो होत ेह ह, इसके अलावा सपंादक य, वशषे

    आलेख, हा य– यं य, काटून और फ चर भी होते ह जो समाचार प का च र और यि त व करत ेह । व भ न अखबार म बहु त–से समाचार एक जसेै होते ह । संवाद स म त से आए समाचार का पाठ थोड़ ेबहु त अंतर के साथ सभी अखबार म एक–जैसा हो सकता है । संवाद स म त का समाचार न हो तो भी वह कौन–कब–कह ं आ द ककार या समाचार के याकरण म बधंा होता है । ले कन दसूरे तंभ पर यह बात नह ं लाग ूहोती । इनम फ चर का थान सव प र है । स अमे रक प कार एले सस मैकनी के अनसुार सामा य समाचार आधारभूत े कौन, कब, कह ं, य और कैसे (छह ककार) से बाहर अथवा परे हटकर संघात करने वाला लेखन फ चर है । फ चर म मु यत: कसी मा मक प का तपादन होता है । समाचार म यह प ाय: नह ं आ पाता । अब तो हर अखबार को शश करता

    है क हर दन कुछ समाचार फ चर शलै म लखे जाएं । अगर समाचार अखबार का शर र है तो फ चर उसक आ मा । इस पाठ म हम फ चर के सभी प का व लेषण करगे ।

    2.2 फ चर या है? फ चर (Feature) श द लै टन के फै ा (Factura) से बना है । फ चर के अनेक अथ ह।

    वे टर के नए श दकोश के अनसुार फ चर के कुछ अथ ह –

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    1. यि त या व तु का व प 2. चेहरे अथवा चेहरे के अंग वशेष, जैसे आख, नाक, मु ंह आ द का व प 3. समाचारप या प का म का शत व श ट रचना 4. परू लंबाई का चल च आ द

    फ चर को ह द म कुछ व वान ने '' पक'' भी कहा है । यह श द का यशा के एक अलंकार, य–का य और नाटक के अथ म ढ़ हो चुका है । दसूरे, फ चर का इ तेमाल बहु त हो रहा है । रे डयो

    फ चर, फोटो फ चर आ द धड़ ले से चलते ह इस लए यह श द इसी प म यव त करना समीचीन होगा । प का रता म फ चर से ता पय समाचारप तथा प काओं म का शत व श ट आलेख से है, जो हम जानकार देने के अलावा आनं दत और फुि लत भी करते ह । इन लेख म व य वषय का ततुीकरण इस कार कया जाता है क उनका वा त वक अथ और व प सा ात ्व य हो उठता है । इसी लए ये फ चर कहे जाते ह । प रभाषा

    फ चर क कोई सवमा य प रभाषा नह ंक जा सक है । अनेक व वान ने फ चर क व वध ि टय से जो प रभाषाएं क ह वे फ चर के गणु का प ट करण करती ह ।

    रा.र. खा डलकर क ि ट म, '' फ चर वे लेख ह जो पाठक को यह बताएं क कोई घटना य हु ई तथा उसका प रणाम या होगा । ''

    डॉन डकंन के अनसुार ''फ चर जीवन के त एक नवीन ि टकोण, दै नक जीवन क क णा, उसक नाटक यता और प रहास प को हण करके उसका च ण करने क एक व ध है । फ चर एक ''सड वच'' के समान है, िजसके दोन पा व श कर क परत से ढंके हु ए केक के टुकड़ ेतथा बीच म मसालेदार मासं तथा आलू भरे रहत ेह ।''

    जे स बे वस के अनसुार, '' फ चर समाचार को नया आयाम देता है, उसका पर ण करता है, व लेषण करता है तथा उस पर नया काश डालता है । फ चर का सव े ठ कार वह है जो साम यक हो तथा समाचार से जुड़ा हुआ हो ।''

    मुख लेखक डॉ. ववेक राय के अनसुार समाचारा मक नबधं पक है और वह व भ न े क नवीनतम हलचल का श द– च होता है । पी.डी. टंडन के अनसुार फ चर एक कार का गदय गीत है । यं य लेखक ीकृ ण च शमा के लए फ चर कसी वचार (मा यता), यि त, घटना आ द का वध शाि दक च ण है िजसे थायी प दे दया गया हो ।

    इन प रभाषाओं म फ चर को व भ न ि टय से देखने का यास कया गया है । येक प रभाषा उसक कसी न कसी एक वशेषता पर बल देती है । फ चर को सम प से समझने के लए कोई एक प रभाषा पया त नह ं है । फर भी कहा जा सकता है क ''फ चर'' व तुत: विृ तय और भावनाओं का सरस, मधुर और अनभुू तपणू वणन है । फ चर लेखक गौण है, वह मा एक मा यम है जो फ चर वारा पाठक क िज ासा, उ सुकता और उ कंठा को शातं करता हुआ समाज क व भ न विृ तय का आकलन करता है । इस कार फ चर म साम यक त य का यथे ट समावेश तो होता

    ह है ले कन अतीत क घटनाओं तथा भ व य क स भावनाओं से भी वह जुड़ा रहता है । उसम समय क धड़कन गूजंती ह।

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    2.3 फ चर क वशषेताएं फ चर ि थ त का वहंगावलोकन ह नह ं करता, वह न का उ तर भी देता है और अ ात

    का ान भी कराता है । फ चर मानो कसी घटना क दरूबीन से जांच करता है । अ छे फ चर के गणु क जब हम बात करते ह, तो उसके मलू चार आधार पर हमारा यान जाना आव यक है । ये ह –िज ासा, स यता, यो यता और व वास ।

    2.3.1 िज ासा और नौ र न

    वह फ चर नःसार है, जो थम वा य से ह पाठक के मन म उ तरो तर िज ासा उ प न न कर सके । फ चर जानकार क यास पदैा करे और उसे बझुाता भी रहे । फ चर स य पर आधा रत हो । उसम ऐसी कोई क पना भी न क जाए, जो कसी आधार पर टक न हो, का लदास के थं के ट काकार मि लनाथ का कहना है –लेखक को यह सदैव याद रखना चा हए– ''नामूल ंल यत े कं चत'', अथात ्िजस बात का आधार नह ं हो उसे लखना नह ं चा हए । यो यता, लेखक के वा याय, त य के ेषण और शैल के दय ाह व प म समा हत है । व वास लेखक और पाक दोन के लए ज र है । आ म– व वास के साथ और व वास क शलै म लखा गया फ चर पाक म भी व वास उ प न करेगा । फ चर पढ़कर य द पाठक को लगा क बात जंची नह ,ं तो फ चर का उ े य ह परूा नह ं होता। पाठक को मला संतोष, लेखक वारा उ प न व वास का ह पांतर है । अत: प�