श्री सागर टीका श्री रा स वााीी · ससि स...

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ी सागर टीका ी रास वाीी सागर टीका ी रास वाीकाशक ी ाासाक ञासपीठ काशक ी ाासाक ञासपीठ , , सरसासरसा1 / 992 / 992

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  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 11 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    श्री तारती ाााी

    सागरटीका ा भाााकर

    श्री रा स वााीी

    प्रकाशक

    श्री प्राासाक ञासपीठसकुड ररोड, सरसााा, सहारसपुर, उ.प्र.

    www.spjin.org

    साारधधिकार सरुधकत (चौपाई छरोडकर) © २००८, श्री प्राासाक ञासपीठ ट््ञवटपी.डी.एफ. संवकरा – २०१८८

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 22 / 992/ 992

    http://www.spjin.org/

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    असुक्रीणाका असुभमूीका 10

    1 भरोी तले की क्य कहूं

    (सागर पेहेला सूर का)

    13

    2 हक बठेै रहय मीलाए के

    (सागर दसूरा रहय की शरोभा)

    138

    3 लेहेरी सुख सागर की

    (ढाल दसूरा इसी सागर)

    176

    4 अब कहू ंसागर तीसरा (सागर तीसरा एक मदली रहस की)

    195

    5 चौदे तबक की दसुी ीे (श्री रा ी का ससिससगार पेहेला - ींगलाचरस)

    226

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 33 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    6 बरसस करं बडी रह की (श्री ठकुरासी ी करो ससिससगार पेहेलरो - ींगलाचरस)

    342

    7 इस मबधि साक ी ामगए (चौसठ कभं चौक खखलात का बेारा)

    455

    8 असर तुीारा ीेरा मदल है (श्री रा ी करो ससिससगार दसूररो - ींगलाचरस)

    484

    9 बरसस करं बडी रह की (श्री ठकुरासी ी का ससिससगार दसूरा - ींगलाचरस)

    581

    10 फेर फेर सरप रो मसरखखए (श्री रा ी का ससिससगार तीसरा)

    703

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 44 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    11 सुन्दर साक बठैा अचर सय (श्री सुन्दर साक करो ससिससगार)

    772

    12 पांचीा सागर पूरस (सागर पांचीा इवक का)

    819

    13 सागर छठा ह ैअधत बडा (सागर छठा खदुाई इली का)

    862

    14 अब कहू ंदरर्ा सातीा (सागर सातीा मससबत का)

    909

    15 और सागर रो ीेहेर का (सागर आठीा ीेहेर का)

    941

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 55 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    प्रवताासा

    प्राााधिार श्री सुन्दरसाक ी! अकरातीत श्री रा ी के हद् ीे ञास के असन्त सागर ह।ै उसकी एक बूँदश्री ीहाीधत ी के धिाी-हद् ीे आ्ी, रो सागर कावारप बस ग्ी। इसखल्े कहा ग्ा है मक "सूर सागरसूर ीारफत, सब मदलय करसी ररोसस " अकारत् ्हतारती ाााी ीाररफत के ञास का सू र् ह।ै ्ह ब्ाााीसबके हद् ीे ब्ञास का उ ाला करती ह।ै

    "हक इली से हरोत है, असर बका दीदार" का ककसअकरशः श सत् ह।ै इस ब्ाााी की अलौमकक ज्रोधतसुन्दरसाक के हद् ीे ीा्ा का अन्धिकार कदामप सहीपरहसे देगी। इस तारती ाााी की करोडी सी भी अीृती्ीबूँदय का रसावाादस ीा के खल्े परब् के साकातकारएां अखणड ीुमक का दार खरोल देता ह।ै अतः श ाैधशक

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 66 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    वतर पर इस ब्ाााी का प्रसार करसा हीारा कतरव्् ह।ैइस लक् की पूरत के खल्े ्ह आाश्क है मक असेकभारती् भाषाओं ीे अातररत इस ब्ाााी की टीकासरल भाषा ीे प्रवतुत हरो। ्दमप ातरीास ीे असेकसम्ीाससी् ीसीमष्य की टीका्े प्रचखलत है, मकन्तु ऐसाअसुभा मक्ा ा रहा का मक एक ऐसी भी टीका हरो, रोमाश्लेषाातीक हरो, सन्दभर, भाााकर, वपष्टीकरा, एांमटप्पणा्य से ्कु हरो।

    ीुझ सेै अलपञ एां अलप बुधद ााले व््मक केखल्े ्ह कदामप सम्भा सहीप का , मकन्तु ीेरे ीस ीेअचासक ही ्ह माचार आ्ा मक ्मद सन्त कबीर ीऔर ञासेशर ी अपसे ्रोगबल से भैसे से ाेद ीन््य काउच्चारा कराा सकते है, तरो ीेरे प्रााालभ अकरातीतीेरे से ाााी की टीका की सेाा क्य सहीप कराा सकते?

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 77 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    इसी आशा के साक ीैसे अकरातीत श्री ी के चराय ीेअन्तरातीा से प्राकरसा की।

    धिाी धिसी श्री रा ी एां सदरु ीहारा श्रीराीरतस दास ी की ीेहर की छाँा तले ीैसे ्ह का र्प्रारम्भ मक्ा। सरकार श्री गदीश चन्् ी की पे्रराा सेीुझे इस का र् ीे दढ़तापूारक ुटे रहसे के खल्े प्रेररतमक्ा। ब्ाााी के गु् रहव्य के ञाता श्री अमसलश्रीाावता ी का इस टीका ीे माशेष सह्रोग रहा ह।ै

    सभी सम्ीाससी् पूार टीकाकारय के प्रधत श्रदासुीससीरपत करते हुए ीै ्ह आशा करता हूँ मक ्ह टीकाआपकरो रधचकर लगेगी। सभी सुन्दरसाक से मसाेदस हैमक इसीे हरोसे ााली ्ुमट्य करो सुधिारकर ीझेु भी सूधचतकरसे की कृपा कर,े ससि ससे ीै भी आपके असीरोल ाचसयसे लाभ उठा सकँू एां अपसे करो धिन््-धिन्् कर सकँू।

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 88 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    आप सबकी चरा-र

    रा स वााीी

    श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा

    ससि ला सहारसपुर (उ.प्र)

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 99 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    श्री कुल ी सरप

    मस साी श्री ी सामहब ी, असामद अछरातीत।

    सरो तरो अब ाहेर भए, सब माधि ातस सहीत।।

    सागर

    श्री मकताब आठय सागर ीूल मीलााे के खलखे है

    अकरातीत का हद् मदव््ताओं का सागर ह।ै सागरशब्द का प्र्रोग ्हाँ "असन्त" के भाा ीे मक्ा ग्ा ह।ैससि स प्रकार ीासाी् बुधद के खल्े ीा्ा की दमष्ट सेसागर का ल असन्त (अकाह) हरोता ह,ै उसी प्रकारश्री रा ी के मदल के सागरय करो सीीाबद करसाअसम्भा ह।ै

    सागर की गहराई ीापसे का प्र्ास करसे ााला सीकका टुकडा सेै ही सागर ीे गरोता लगाता है , ाैसे ही

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1010 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    करोडी देर ीे अपसे असवतता करो उस असन्त सागर ीेमालीस कर लेता ह।ै ावतुतः श उसका प्रकटस भी तरो उसीसागर से हुआ ह,ै ससि सकी ाह ीाप करसा चाहता का।

    अकरातीत श्री रा ी के हद् ीे पे्री, सौन्द र्, ञास,ते , एकता आमद के असन्त सागर लहरा रहे है ,ससि सका प्रकट रप परीधिाी के पच्चीस पक, श्ाीा ी,सखख्ाँ, अकर ब्, और ीहालकीी आमद ह।ै

    सागर अपसी लहरय के साक कैसे लीला करता है ,इसका असुभा सागर ीे डुबकी लगा कर सहीप, बसलकसागर के मकसार ेबठैकर ही खल्ा ा सकता है?

    असहरोसी घटसा के रप ीे परीधिाी की आतीाओं काइस सशर गत ीे पदापरा हुआ, ससि सके कारा वा्ंअकरातीत भी अपसे आाेश वारप से इस संसार ीेीहाीधत ी के धिाी हद् ीे प्रगट हुए तका सागर गन्क

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1111 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    के रप ीे उन्हयसे अीृत की ऐसी धिारा बहा्ी, ससि सकापास करसे ााली आतीाओं से सागरय के उस गु् भेदयकरो भी ास खल्ा, ससि सकरो ाे परीधिाी ीे भी सहीप ाससकी कीप।

    सागर गन्क का अातरा मा.सं. १८७४४ ीे पदाातीपुरी धिाी (पन्ना) ीे हुआ ह।ै ्ह गन्क अकरातीत केमदल एां वारप के आठय सागरय पर माशेष रप सेप्रकाश डालता ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1212 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    सागर पहला सूर का

    इस प्रकरा ीे सूर की माशेषताओं करो प्रकट मक्ा ग्ाह।ै

    भरोी तले की क्य कहू,ं मावतार बडरो अततं।

    सेक सेक मससास मदए हामद्य, ीै करं सरोई ससिसफत।।१८।।

    श्री ीहाीधत ी की आतीा कहती है मक ीै रगंीहल कीप्रकी भूमीका ीे सवकत पहली गरोल हाेली का कैसे ाारसकरँ, ससि सका मावतार बहुत अधधिक (असन्त) ह?ैउसके बारे ीे ीुहम्ीद सामहब तका सदरु धिसी श्रीदेाचन्् ी से करोडा ाारस मक्ा ह।ै अब ीै उस ीूलमीलााे की शरोभा के सम्बन्धि ीे कह रही हूँ।

    भाााकर- ीुहम्ीद सामहब से कुरआस ीे ीा् संकेतय केदारा ही ीूल मीलााे का ाारस मक्ा है, बमक सदरु

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1313 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    धिसी श्री देाचन्् ी चचार के दारा ीूल मीलााे का वपष्टरप से ाारस करते के तका ाहाँ का ध््ास भी कराते के।्ह प्रसंग बीतक ीे इस प्रकार ारात है-

    भाा काढ़ मदखााहीप, सब चरचा करो रप।

    बरसस कर ेश्री रा करो, सुन्दर रप असूप।।

    बीतक १८१८/१८९

    इस दरोसय वारपय (बशरी तका ीलकी) करो हादी कहसेका कारा ्ह है मक इसके दारा ब्सृमष्ट्य करो महदा्त(ससिसखापस, मसदरशस) दी ग्ी ह।ै हकी सूरत श्रीप्राासाक ी के दारा ही इसका वपष्ट मााेचस हुआ ह।ै

    इस चौपाई के दसूरे चरस ीे "असन्त" शब्द का प्र्रोगहुआ ह,ै रो अपसे ीे गहस रहव् णछपा्े हुए ह।ैपरीधिाी ीे ाहदत की भूमीका है, ससि सके कारा ाहाँ केएक-एक का ीे सम्पूार परीधिाी की शरोभा सीा्ी हुई

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1414 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    ह।ै ाहाँ की मकसी भी ावतु करो गणात की ीाप ीे सहीपबाँधिा ा सकता। इस सम्बन्धि ीे इसी प्रकरा की चौपाई५६,५७ ीे कह मद्ा ग्ा है मक ब्सृमष्ट्य के मदल ीेाहाँ की शरोभा करो वपष्ट करसे के खल्े ही असीी करोसीीाबद कर मद्ा ग्ा ह।ै

    चौसठ कभं चबूतरा, दराा े तखत बरसस।

    रह ीरोमीस हरोए सरो देखख्रो, करके मदल ररोसस।।२।।

    ीूल मीलााा ीे कीर भर ऊँचा चबूतरा है , ससि सकेमकसारे पर चौसठ कम्भय (वतम्भय) की शरोभा आ्ी ह।ैचबूतरे के ीध्् ीे ससहासस है तका ीसन्दरय ीे दराा ेसुशरोणभत ह।ै रो भी ब्सृमष्ट हरो, ाह तारती ाााी सेअपसे मदल ीे ञास का उ ाला करे , और प्रेी भरकरध््ास (धचतामस) दारा ाहाँ की शरोभा का दीदार कर।े

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1515 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    भाााकर- रगंीहल की प्रकी भूमीका (ीसन् ल) ीे चारचौरस हाेखल्य करो पार करसे के पशात् पाँचाी हाेलीगरोलाकार आती है, ससि से ीूल मीलााा कहते ह।ै इसहाेली ीे ६० ीसन्दरय की एक हार तका ६४-६४ कम्भयकी तीस हार ेआ्ी ह।ै इस हाेली ीे अधत सुन्दर दराा ेशरोभा्ीास ह।ै चबूतरे के ीध्् ीे तखत (ससहासस) ह,ैससि स पर ्गुल वारप मारा ीास ह।ै

    ीे्रा हुआ ीहींद पर, परोहयच््ा हक ह ूर।

    सरो साहेदी दई ीहींदे, सरो ीरोमीस कर ेी कूर।।३।।

    ीुहम्ीद सामहब करो परब् (अलाह तआला) का दशरसहुआ और ाे ीूल मीलााा ीे धिसी के सम्ीुख पहुँचे।उन्हयसे ीूल मीलााा की साकी दी है, ससि सके माष् ीेब्सृमष्ट्ाँ चचार करती ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1616 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    भाााकर- कुरआस के पारः श २७ ीे "ीे्रा " का ाारसह,ै ससि सीे खलखा है मक ीुहम्ीद सामहब की आती-दमष्टहद तका बेहद करो पार कर परीधिाी पहुँचती है औरपरब् का साकातकार करती ह।ै इस घटसाक्री से ीूलमीलााा की साकी मीलती ह।ै इस रहव् करो ीा्ब्सृमष्ट्ाँ ही ्काकर रप से ासती ह।ै

    सरो रहे असर दरगाह की, कही ीहींद बार ेह ार।

    दे साहेदी मगररो ीहींदी, ाकरो ातस सूर के पार।।४।।

    परीधिाी से इस खेल ीे आसे ााली ब्सृमष्ट्य कीसंख्ा ीुहम्ीद सामहब से बारह ह ार कही ह।ै श्ाीा ीकी अंगवारपा ब्सृमष्ट्ाँ ससि सका घर अकर धिाी से भीपरे परीधिाी ीे है, ाे भी उस ीूल मीलााे की साकी देरही ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1717 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    भाााकर- कुरआस के पारा ३० सूरत अीेत सालूस कीव््ाख्ा ीे तका "तफ्सीर-ए-हुसैसी" के पृष ७ ीेब्सृमष्ट्य की बारह ह ार संख्ा के माष् ीे संकेत ह।ैइसी प्रकार पुराा संमहता ३१८/७६ ीे तका ीाहेशर तन््९/१८४, १८३/३७ ीे भी १८२००० की संख्ा बता्ीग्ी ह।ै

    हुकी से अब केहेत हय, सुमस्रो ीरोमीस मदल दे।

    हक सहूर ेमाचारर्रो, हके सरोभा दई तुीे ए।।५।।

    श्री ीहाीधत ी कहते ह ैमक हे सुन्दरसाक ी ! आपमदल देकर (सच्चे ीस से) ीेरी बात सुमस्े, अब ीै धिाीधिसी के हुकी से कह रहा हूँ। श्री रा ी का धचन्तसकरते हुए ीेरे ाचसय पर माचार करसा। धिाी धिसी से ीा्आपकरो ही इस प्रकार की शरोभा दी ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1818 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    हके असर मक्ा मदल ीरोमीस, सरो ीता आ्ा हक मदल से।

    तीुे ऐसी बडाई हके खलखी, हाए हाए ीरोमीस गल सा गए इस ीे।।६।।

    मप्र्ती अकरातीत ब्सृमष्ट्य के धिाी हद् ीेमारा ीास ह।ै धिाी धिसी के हद् ीे ञास का रो असन्तसागर लहरा रहा है, उससे ही ब्सृमष्ट्य के अन्दरब्ञास का प्रााह आ रहा ह।ै हे सुन्दरसाक ी! आपइस बात का माचार कीससि ए मक धिीरगन्कय ीे आपकीइतसी अधधिक ीमहीा खलखी है, मफर भी मकतसे खेद कीबात है मक आप अभी भी धिसी के पे्री ीे डूब सहीप पा रहेह।ै

    भाााकर- ततैरी्रोपमसषद ीे कहा ग्ा है मक "सत्ंञासं असन्तं ब्" तका "ब्मादरो ब्ेा भाधत" अकारत् रो परब् सत् है, प्रकृष्ट ञास वारप है, और असन्तसाीर र् ााला है, उसे ाससे ााला (साकातकार करसे

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 1919 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    ााला) उसके सैा ही हरो ाता ह।ै इसका भाा ्ह हैमक अकरातीत करो अपसे हद् धिाी ीे बसा लेसे पर ,्दमप साकात् अकरातीत तरो हद् ीे सहीप आ सकते ,मकन्तु उसके हद् ीे अकरातीत की ञासधिारा अखणडरप से प्राामहत हरोसे लगती ह।ै ाह संसार ीे ब् वारपकहा ासे लगता ह।ै

    सूर ससिसफत दार ससीुख, और सूर दार पीछल।

    एक दाएं बाएं एक, हुआ बेारा चारय मील।।७।।

    सूरी्ी ीूल मीलााे की शरोभा इस प्रकार की है मकउसके चबूतरे की चारय मदशाओं ीे चार ीेहराबी दार ह।ैसाीसे की ओर पूार मदशा ीे एक दार है तका पीछे कीओर पधशी मदशा ीे दसूरा दार ह।ै उतर मदशा ीे बा्ीपओर तीसरा दार है, तरो दधका मदशा ीे दा्ीप ओर चौका

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2020 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    दार ह।ै चारय दारय का ्ह इस प्रकार का माारा ह।ै

    भाााकर- चबूतरे की चारय मदशाओं से ३-३ सीमढ़्ाँउतरी ह।ै इस सीमढ़्य के दा्े-बा्े चबूतरे पर रो दरोकम्भ है, उसके ीेहराब करो ही ्हाँ दार कहा ह।ै ्हीप सेचबूतरे ीे प्राेश कर सकते है, बाकी गह ीे कम्भय केीध्् कठेडा शरोभा्ीास ह।ै

    सरोणभत दार ससीुख का, सूर कभं पाच के दरोए।

    कभं सीलाी दरो इसय लगते, सरोभा लेत अधत सरोए।।८।।

    साीसे की ओर पूार मदशा ीे रो ीेहराबी दार है , उसीेपाच के दरो सूरी कम्भ शरोभा ले रहे है, ससि सका रगं हरा ह।ैइसके दा्े-बा्े दरोसय ओर सीलाी के दरो कम्भ है ,ससि सकी बहुत अधधिक शरोभा ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2121 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    इस साीी दार पीछल, कभं दरोए सीलाी के।

    दरो कभं रो इसय लगते, सूर पाच के कभं ए।।९।।

    पूार मदशा ीे पाच के रो दरो कम्भ (ीेहराबी दार के)आ्े ह,ै उसके ठीक साीसे पधशी मदशा ीे भी ीेहराबीदार ह,ै ससि सीे सीलाी के दरो कम्भ आ्े ह।ै इसके दा्े-बा्े पाच के दरो सूरी कम्भ शरोभा ले रहे ह।ै

    सूर दार कभं दरो ीामसक, धतस पासे दरो पुखरा ।

    ए दार तरफ दामहसी, र्ा सूर इत मबरा ।।१८०।।

    ीूल मीलााा ीे दधका मदशा ीे दा्ीप ओर रो सूरी्ीीेहराबी दार आ्ा ह,ै उसके दरोसय कम्भ ीाणाक केलाल रगं के ह।ै इसके अगल-बगल पुखरा के पीले रगंके दरो कम्भ आ्े ह।ै श्री रा ी के सूर की ्हाँअलौमकक शरोभा ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2222 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    भाााकर- अकरातीत का सूर इस संसार के सू र्,चन््ीा, और तारय का ड प्रकाश सहीप है , बसलक धिाीधिसी के माञास (ीाररफत) वारप हद् का प्रकट रप(हकीकत) ह।ै इसे श्रीीुखाााी ीे इस शब्दय ीे व््कमक्ा ग्ा ह-ै

    रो गुस महरदे अन्दर, सरो ीुख देखे ासे ाए।

    ऊपर सागरता पूरस, ताके मदल की सब देखाए।।

    ससिससगार २०/३६

    सूर ही शाशत् प्रेी, सौन्द र्, आसन्द, और ीास ह।ैाह अकरातीत के हद् का उलास ह।ै प्रफुलता औरद्ा उसी ीे मसमहत ह।ै मप्र्ती के से्य का आकषरातका ीुख की कासन्त भी ाही ह।ै धिाी धिसी केीुखारमान्द की छटा, आभा, वाच्छता, चीक, औरउ लापस भी सूर ही ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2323 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    तरफ बांई दार पुखरा ी, दरो ीामसक कभं धतस पास।

    चार कभं सूर सरभर, ए अदभुत सूर खूबी खास।।१८१८।।

    हाेली की उतर मदशा ीे बा्ीप ओर ीेहराबी दार ीेपुखरा के पीले रगं के दरो कम्भ ह।ै उसके अगल-बगलीाणाक के दरो कम्भ ह।ै इस चारय कम्भय की ्ह सूरी्ीशरोभा सीास ह ैऔर माशेष रप से अलौमकक ह।ै

    सूर चारय पौरी बराबर, रो करत ह ैझलकार।

    ए ुबां खूबी तरो कहे, रो पाइए काहू ंसुीार।।१८२।।

    इस सूरी्ी कम्भय पर बसे हुई चारय ीेहराबी दार सीासरप से झलझला ( गीगा) रहे ह।ै ्मद इसकी शरोभासीमीत हरोती, तब तरो कुछ ाारस भी मक्ा ा सकता।उसकी असन्त शरोभा का ाारस करसा इस संसार केशब्दय से सम्भा सहीप ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2424 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    कभं बार ेबार ेचारय खांचय, कहू ंधतसका बेारा कर।

    बार ेसगं चार धिात के, रगं ुदे रोत बराबर।।१८३।।

    इस प्रकार (उपररोक चारय मदशाओं के ४-४ कम्भय केअधतररक) चारय भागय (खाँचय) ीे १८२-१८२ कम्भ बचतेह,ै ससि सका माारा ीै दतेी हूँ। ाैसे एक दराा े से दसूरेदराा े तक कुल १८६ कम्भ है, ससि सीे से १८२ कम्भ सगयके ह ैतका ४ कम्भ धिातओुं के ह।ै ्दमप इस सभी कम्भयके रगं अलग-अलग ह,ै परन्तु उसकी सूरी्ी ज्रोधताहदत के कारा एक सीास ह।ै

    भाााकर- मदशाओं के ४-४ कम्भय के अधतररक चारयखाँचय ीे रो १८२-१८२ कम्भ ह,ै ाे इस प्रकार है- १८.हीरा, २. लसमस्ा (लहसुमस्ा), ३. गरोीामदक(गरोीेद), ४. ीरोती, ५. पन्ना, ६. प्रााल (ीूँगा), ७.मपररो ा, ८. कपूर रर्ा, ९. पाच, १८०. सीली (सीलाी),

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2525 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    १८१८. ीाणाक, १८२. पुखरा । कुल मीलाकर प्रत्ेकखाँचे ीे रो १८६-१८६ कम्भ है, उसीे से चार कम्भधिातओुं (हेी अकारत् सरोसा, चाँदी, लरोहा और कञस) केह।ै

    वाार करो ब साढ़े सरोलह बार अम् ीे तपा्ा ाता है,तरो ाह लाखलीा से भरपूर हरो ाता ह।ै इसे ही कञसकहते ह।ै इस प्रकार वाार तका कञस ीे अन्तर ह।ै

    सेक देखाए रगं असर के, कई खूबी रगं अलेखे।

    रह सहूर कर ेहक इलीे, हक देखाएं देखे।।१८४।।

    ्हाँ पर तरो ीैसे परीधिाी के सगय की एक हलकी सीझलक मदखा्ी ह।ै परीधिाी ीे असन्त प्रकार के रगं हैऔर उसकी बहुत सी माशेषता्े भी ह।ै उसका असुभातब हरोता ह,ै ब आतीा ्ा तरो ब्ाााी के धचन्तस ीे

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2626 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    गहराई तक डूब ा्े ्ा धिाी धिसी अपसी ीेहर सेउसकी आती-दमष्ट करो खरोलकर प्रत्क रप से दीदारकरा दे।

    भाााकर- इस सशर गत ीे भी इस प्रकार की ीान््ताहै मक शेत प्रकाश ीे असन्त प्रकार के रगं णछपे हरोते है ,मकन्तु केाल सात प्रकार के ही रगंय की तरगंय काअसुभा हरो पाता ह।ै ्ही कारा है मक सात प्रकार के हीरगंय (हरा, पीला, सीला, लाल, आसीासी, सारगंी,बैगसी) की कलपसा की ाती ह।ै ब ीा्ााी गत केप्रकाश ीे कई रगं हरो सकते है, तरो परीधिाी के सूरी्ीप्रकाश ीे कई रगं क्य सहीप हरो सकते ? धिाी धिसी कीकृपा से ब आती-दमष्ट खलुती है, तरो परीधिाी के रगंयका साकातकार हरोता ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2727 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    असल पांच साी रगं के, सीला पीला लाल सेत व्ाी।

    एक एक रगं ीे कई रगं, सरो क्य कहे ाएं मबसा साी।।१८५।।

    ीूल रप से पाँच रगं हरोते है- १८. सीला २. पीला ३.लाल ४. शेत और ५. काला। इस एक-एक रगं सेअसेक प्रकार के रगं प्रकट हरो ाते है, ससि न्हे अलग-अलग साीय से सम्बरोधधित मक्ा ाता ह।ै

    भाााकर- रगंय के मीश्रा से असेक प्रकार के स्े रगंय कीउतपखत हरोती ह,ै सेै लाल और पीला मीलासे से सारगंी,सीला और पीला मीलासे से हरा, लाल तका सीलामीलासे से बैगसी, इत्ामद। परीधिाी ीे तरो वातः श हीएक-एक रगं से असन्त रगंय का प्रकटीकरा हरोता है ,क्यमक ाहाँ का प्रत्ेक का ाहदत का वारप ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2828 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    देखरो चौसठ कभं चबूतरा, रगं सगं असेक असर।

    साी खलए स ांए रगंय के, रगं एक पे और सरस।।१८६।।

    हे साक ी! चौंसठ कम्भय से सुशरोणभत उस गरोलचबूतरे की शरोभा करो देखखए, ससि सीे परीधिाी के असेकरगंय के सग झलझला रहे ह।ै ाहाँ तरो इतसे (असन्त) रगंह ैमक उसके साीय का ाारस ही सहीप हरो सकता। इसकेसाक ही एक और माशेषता ्ह है मक हर रगं दसूरे सेअधधिक अच्छा लगता ह।ै

    भाााकर- परीधिाी ीे रगंय की संख्ा करो सीीा ीे सहीपबाँधिा ा सकता। एक रगं करो दसूरे से अच्छा कहसे काभाा ्ह सहीप सीझसा चामहए मक ाहाँ के रगंय कीसुन्दरता ीे कीी ्ा अधधिकता ह।ै ावतुतः श ्ह बातआलकंाररक रप ीे कही ग्ी है मक प्रत्ेक रगं दसूरे सेअधधिक सुन्दर है अकारत् सभी की सुन्दरता सीास ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 2929 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    ाहदत ीे की ्ा अधधिक सुन्दर हरोसे का प्रश ही सहीपउठता। सौन्द र् का ाारस प्रा्ः श तुलसातीक दमष्ट से हीमक्ा ाता ह।ै

    ीै तरो साी लेत ाेरय, ासय बरोहरोत साी खलए ांए।

    सगं साी धिात कहे मबसा, रगं साी आाे सा ुबांए।।१८७।।

    ब ीै ााहरात का साी लेती हूँ, तरो ऐसा लगता हैमक बहुत से ाेरय के साीय का ाारस हरोसा चामहए।साीान््त्ा सगय और धिातुओं के साी का ाारस हुएमबसा उसके रगंय करो अपसी ाााी से व््क सहीप मक्ा ासकता।

    भाााकर- इस ीा्ााी गत ीे प्रत्ेक धिातु और सगंका एक मसधशत रगं है, सेै पुखरा (पुष्पराग) का रगंपीला और ीाणाक् का रगं लाल ह।ै इस आधिार पर

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3030 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    धिातु का साी लेसे पर रगं का बरोधि हरो ाता है, मकन्तुपरीधिाी की प्रत्ेक धिातु ्ा सगं धिसी का ही वारप ह।ैाह सधच्चदासन्दी्ी ह।ै उसके एक-एक रगं से असंख्यरगंय का प्रकटस हरोता है, ऐसी सवकधत ीे रगंय के आधिारपर धिातु ्ा ााहरातय का मसार् करसा सम्भा सहीप है,मकन्तु लीला रप ीे सीझ ीे आसे के खल्े ही इससीमीत रगंय के साीय का प्र्रोग मक्ा ग्ा ह।ै

    एकै रस के सब रगं, कर े ुदे दुे झलकार।

    रगं सगं धिात तरो कमहए, रो आाे कहू ंसुीार।।१८८।।

    परीधिाी के सभी रगंय ीे एकरसता ह।ै ाे आपस ीेअलग-अलग रपय ीे झलकार कर रहे ह।ै धिाी के रगंय,सगय, और धिातओुं की संख्ा असन्त ह।ै इसका ाारस तरोतभी सम्भा ह,ै ब इसकी सीीा मसधिारररत हरो।

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3131 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    भाााकर- एक ही सूर तता अपसे ीे ाहदत, मसवबत,खखलात, सौन्द र्, और इशक के रस करो सीा्े हुए ह।ैइस प्रकार परीधिाी के सूरी्ी सगय और धिातुओं के रगंयीे सौन्द र् की एकरपता ह।ै सौन्द र् की कहीप भी कीी्ा अधधिकता सहीप ह।ै इसे ही एकरस शब्द से सम्बरोधधितमक्ा ग्ा ह।ै

    पर महरदे आासे रहय के, ीै कई मबधि करत ब्ास।

    सा तरो क्य कहू ंरगं संग धिात की, ए तरो खखलात बका सुभास।।१८९।।

    मकन्तु ब्सृमष्ट्य के हद् ीे ाहाँ की शरोभा बस ा्े ,इसखल्े ीै असेक प्रकार से कह रही हूँ , अन््कापरीधिाी के रगंय, सगय, और धिातुओं की शरोभा का ाारसकरसा कदामप सम्भा सहीप ह।ै भला ्ह मकसका साीर र्है मक अकरातीत की अखणड पे्रीी्ी लीला के वकास

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3232 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    का ाारस कर सके?

    भाााकर- परीधिाी के का-का ीे ीा् अकरातीत हीसभी रपय ीे लीला कर रहे ह।ै इस सम्बन्धि ीे खलुासागन्क का ्ह ककस बहुत ही ीहतापूार ह-ै

    स असर ससि मीएं दसूरा, करोई और धिरााे साउँ।

    ए खलख्ा ाेद कतेब ीे, करोई साहीप खदुा मबस काहू।ं।

    और खेलौसे रो हक के, सरो दसूरा क्य केहेलाए।

    एक रा कमहए तरो दसूरा, रो हक मबसा हरोए इपदाए।।

    खलुासा १८६/८३,८४

    इससे ्ह वपष्ट हरोता है मक ब परीधिाी की सम्पूारसाीगी ही सधच्चदासन्दी्ी है, तरो ाहाँ के सगय, धिातओुं,और रगंय की शरोभा का ्काकर ाारस सम्भा सहीप।

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3333 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    असर धिात सा रगं सगं रसेी, ससि त स्ा स पुरासा हरोए।

    ससि त पदैा कछू स्ा सहीप, धतत क्य साी धिर े ाएं सरोए।।२०।।

    परीधिाी ीे प्रत्ेक ावतु श्री रा ी का ही वारप ह।ैाहाँ अलग-अलग लौमकक धिातओुं, सगय, रगंय, औररशेीी ासय की उपसवकधत सहीप ह।ै ाहाँ स तरो करोई ावतुस्े रप ीे उतपन्न हरोती है और स पुरासी ही हरोती ह।ैससि स असामद परीधिाी ीे करोई स्ी ची पदैा स हरो औरस मकसी स्े रप ीे मदखा्ी पडे, ाहाँ पर मकसी कासाीकरा कैसे मक्ा ा सकता है?

    भाााकर- परीधिाी ीे श्री रा ी का सूर ही असंख्पदाकर (सगं, धिात,ु रशेी आमद) के रप ीे दमष्टगरोचरहरोता ह।ै पूाारधतपूार धिाी ीे उतपखत और मासाश कीप्रमक्र्ा सहीप हरोती, इसखल्े मकसी के भी साीकरा काप्रश ही सहीप ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3434 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    ्हाँ ्ह संश् हरोता ह ैमक खलुासा, पररक्रीा, तका श्री ााहर दास ी की ाृत आमद के आधिार पर ्ह बातकही ाती ह ैमक परीधिाी ीे ब ही मकसी ाृक के फलकी इच्छा करते ह ैतरो पल भर ीे ही ाह हीारे हाकय ीेआ ाता ह,ै मकन्तु उस डाल पर भी ैसा का तसैा हीफल मदखा्ी दतेा ह।ै तरो क्ा हाक ीे आसे के बाद डालपर मदखा्ी देसे ााला फल स्ा सहीप है?

    ीेाे चामहए सरो लीससि ए, फल फूल ीूल पात।

    धतत र्ा तसैा ही बन््ा, ए बका बागय की बात।।

    खलुासा ५/४६

    कालीा्ा के ब्ाणड ीे भी ्व्् की अमासाणशता काससिसदान्त ीासा ाता ह,ै ससि सके असुसार ्व्् ीूलतः शसष्ट सहीप हरोता , बसलक ऊ ार ( =E mc2) ीे रपान्तररतहरो ाता ह।ै सेै मक लकडी करो लासे पर ाह राख ीे

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3535 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    बदल तरो ाती है, मकन्तु लकडी का कुछ अंश ऊ ार(उष्ीा+प्रकाश) ीे पररारतत हरो ाता ह।ै इस सवकधतीे साीान्् रप से ्ही कहा ा सकता है मक लकडीसष्ट हरो ग्ी। ाावतमाकता ्ह है मक उसका ातरीासवारप अाश् सष्ट हरो ग्ा, मकन्तु ीूल वारप सष्ट सहीपहुआ। ्व्् से मसकलसे ााली ऊ ार उधचत पररसवकधत्यीे पुसः श ्व्् का रप धिारा कर लेती ह।ै

    कालीा्ा का ्ह ब्ाणड अव््ाकृत के वाप्स कापररााी ह।ै अव््ाकृत से लेकर सतवारप तक एक हीसूरी्ी तता क्रीडा कर रहा ह।ै ाहाँ इच्छा ीा् से करोईभी ावतु पल भर ीे दमष्टगरोचर हरो ाती है और असन्तकाल तक बसी रहती है, मकन्तु कालीा्ा का ्हब्ाणड वाप्स का है, ससि सके कारा ्हाँ की प्रत्ेकावतु का रप सशर ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3636 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    इसके मापरीत परीधिाी ीे अकरातीत का सूरी्ीवारप ही सार् लीला कर रहा ह।ै ाहाँ के का-का ीेब्रपता ह।ै इसखल्े लीला रप ीे ्मद मकसी ावतु कीइच्छा हरो, तरो ाह मदखा्ी भी देती है, उसकारसावाादस भी मक्ा ाता है, मकन्तु उसके ीूल ्ाातरीास वारप ीे मकसी भी प्रकार की माकृधत सहीपहरोती, क्यमक परीधिाी ्ा परब् वा्ं ीे पाूर (असन्त)ह।ै उसकी शरोभा, शमक, लीला, और आसन्द आमद ीेसाी ीा् के खल्े भी न््ूसता सहीप आ सकती। इसखल्ेतरो धिीरगन्कय (बृहदारण्करोपमसषद) ीे कहा ग्ा है-

    पूारीदः श पूारमीदी् पाूारत् पाूरीुदचु््ते।

    पूारव् पाूरीादा् पाूरीेााऽाणशष््ते।।

    अकारत् सधच्चदासन्द परब् पूार (असन्त) आसन्द केवारप ह।ै उसके पे्री, आसन्द, और ते से ्ह सम्पूार

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3737 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    परीधिाी भी ाैसा ही ह।ै उस असन्त परीधिाी ीे ्मदअसन्त रोडा ा्े ्ा मसकाला ा्े, तरो असन्त हीबचता ह।ै

    हेी ाेर ्ा रो कछू, सरो सब ससि ीी पदैास।

    इत साी पदैास के क्य कमहए, ससि त पदैा स सास।।२१८।।

    इस सशर गत ीे सरोसा आमद धिातुएँ तका अन्् ााहरात भी परृाी के अन्दर से मसकाले ाते ह।ै ससि सअसामद परीधिाी ीे स तरो करोई सई ावतु पदैा हरो सकतीहै और स सष्ट हरो सकती है, ाहाँ की ावतुओं (सरोसा,चाँदी इत्ामद) का साी ्हाँ की सशर ावतुओं के आधिारपर कैसे रखा ा सकता है?

    भाााकर- असामद परीधिाी इशक, आसन्द, और ाहदत(एकमदली) की भूमीका ह।ै ऐसी अावका ीे ाहाँ साी की

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3838 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    करोई भी आाश्कता सहीप हरोती। हीारी ीासाी् बुधद ीेाहाँ की शब्दातीत लीला सीझ ीे आ सके, इसखल्े ही्गुल वारप समहत सभी लीला रपी पदाकर केसम्बरोधिस ीे साी का प्र्रोग मक्ा ग्ा ह।ै

    कभं और ची स आाे सब्द ीे, कर ीरोमीस देखरो सहूर।

    असर बासी देख माचाररए, तब महरदे हरोए हूर।।२२।।

    हे साक ी! ्मद आप गहस धचन्तस करके देखे तरो ्हवपष्ट हरोगा मक परीधिाी के सूरी्ी कम्भय और अन््ावतुओं की शरोभा का ाारस शब्दय ीे सहीप आ सकता।्मद आप इस ब्ाााी का धचन्तस-ीसस कर,े तरोआपके हद् ीे ाहाँ की शरोभा की एक झलक आ ा्ेगी।

    भाााकर- इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक ससि स

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 3939 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    शरोभा करो शब्दातीत कहा ग्ा है, उसे अगली ही पंमक ीेअपसे हद् ीे बसासे की बात क्य कही ग्ी है?

    ावतुतः श परीधिाी की शरोभा शब्दातीत ही ह।ै ्हाँ कीउपीा देकर भी मस धिाी की ाावतमाक शरोभा का ाारससम्भा सहीप ह।ै ्ह ब्ाााी धिाी धिसी के आाेश सेअातररत है और ्हाँ के भााय के आधिार पर गागर ीेसागर करो भरा ग्ा है, मकन्तु ्मद ही उसका धचन्तस-ीसस और धचतामस (ध््ास) करते है, तरो हीारे हद्धिाी ीे ाहाँ की शब्दातीत शरोभा अाश् ही बस ाती ह।ै

    साी मससास इत झूठ ह,ै तरो भी धतस पर हरोत साबूत।

    रोत झूठी देख सासूत की, अधधिक ह ैीलकूत।।२३।।

    ्दमप इस गत् के सभी पदाकर और साी झूठे है, मफरभी इसकी उपीा से ाहाँ की कुछ पहचास हरो ाती ह।ै

    प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, , सरसााा सरसााा 4040 / 992/ 992

  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    ीृत्लुरोक ीे सू र् , चन््ीा, तका तारय ीे रो ज्रोधतमदखा्ी पडती है, ाैकुणठ लरोक ीे उससे अधधिक ज्रोधतह।ै

    भाााकर- इस चौपाई ीे ्ह ससि ञासा हरोती है मक इसपृराी लरोक ीे ब सू र् , चन््ीा, और सक्य की ज्रोधतमदखा्ी पडती है, तरो ाैकुणठ की ज्रोधत कहाँ है? क्ाइस ताराीणडल के परे ाैकुणठ ह?ै इसके सीाधिास ीे्ही कहा ा सकता है मक सू र् , चन््ीा, तका तारागावकूल पदाकर ह ैऔर इसकी ज्रोधत भी वकूल हरोती है , रो आँखय से दमष्टगरोचर हरोती ह।ै ाैकुणठ लरोक सूकीलरोक ह,ै ससि से इस भौधतक आँखय से सहीप देखा ासकता। ससि स प्रकार शरीर ीे ीस, धचत, बुधद, अहकंार,तका ीा का असवतता है, मकन्तु उन्हे आँखय से देखसासम्भा सहीप, बसलक ध््ास-सीाधधि की अावका ीे ही

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    देखा ा सकता ह,ै उसी प्रकार ाैकुणठ लरोक काअसवतता भी ताराीणडल से परे खरो सा उधचत सहीप।बसलक सूकीता ीे ही खरो ा ा सकता ह।ै

    सासा ( National Aeronautics and Space) Administration की ररपरोटर के असुसार कालीा्ा के

    इस ब्ाणड ीे लगभग १८२५ अरब मसहाररका्े(आकाशगँगा्े) ह,ै ससि सीे असँख् तारे ह।ै इसके परेाैकुणठ की कलपसा उधचत सहीप। साीान्् अावका ीे रो ीा शरीर ीे रहसे पर ्ा बाहर मसकलते सी् आँखय सेमदखा्ी सहीप दतेा, ाही सीाधधि की अावका ीे १८६ सू्रसे भी अधधिक प्रकाशीास अावका ीे मदखाई देता ह।ैइसी प्रकार ीस, धचत, बुधद आमद भी चन््ीा , सू र्,तका मादतु की चीक के सीास प्रकाश रप ीे मदखा्ीपडते ह।ै

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    इस प्रकार ाैकुणठ प्रकृधत ीणडल का ाह सूकी लरोकह,ै हाँ सूकी प्रकाश है और ीा् सूकी शरीरधिारी ीाही ाहाँ रहते ह।ै पृराी लरोक के वकूल दश्य से ाहाँ कीतुलसा सहीप की ा सकती।

    सरो ीलकूत पदैा फसा पल ीे, कई करत खाांद बरत।

    सरो ररोससी मसीूसा दखे के, पीछे देखरो असर लाहूत।।२४।।

    अकर धिाी के वााीी अकर ब् पल भर ीे ही कररोडयाैकुणठ उतपन्न करते ह ैऔर ल् कर देते ह।ै हेसुन्दरसाक ी! आप पृराी लरोक तका ाैकुणठ लरोक कीज्रोधत करो देखकर ( ासकर) परीधिाी की अखणडसूरी्ी ज्रोधत करो देखखए (सीससिझए)।

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  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    इस मबधि सहूर रो कीससि ए, कछू तब आाे रह लजत।

    और भांत मसीूसा सा बसे, ए तरो असर अ ीी खखलात।।२५।।

    पृराी, ाैकुणठ, तका परीधिाी की ज्रोधत की ्मद आपसीीका (सम््क् ईका अकारत् देखसा) करते है, तबआपकी आतीा करो परीधिाी की सूरी्ी शरोभा का करोडासा वााद (असुभा) मील सकता ह।ै कालीा्ा-्रोगीा्ा से भी परे परीधिाी के ीूल मीलााा की शरोभाकरो सीझसे के खल्े सीीकातीक दमष्ट के अधतररक अन््करोई भी साधिस सहीप ह।ै

    भाााकर- पृराी लरोक ीे सू र् के माशाल ते से सभीपररधचत ह।ै ऐसे १८०२१८ अकारत् एक लाख कररोड अरबसू र् हीारी आकाशगंगा ीे ह ैऔर इस कालीा्ा ीेलगभग १८२५ अरब आकाशगंगा्े है, बमक ्ह ब्ाणडके ञात रप करोडा सा ही अंश ह।ै अभी अञात रप ीे

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  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    मकतसी आकाशगंगा्े है, इसका ञास मकसी भी ीासाकरो सहीप ह।ै ्रोगीा्ा के ते के साीसे कालीा्ा केसू र् कुछ भी असवतता सहीप रखते। मसत् ाृन्दाास कीशरोभा का ाारस देखखए-

    एक रा धतस ससि ीी का, ताके ते आगे सूर करोट।

    सरो सूर दषे्ट स आाहीप, इस ससि ीी र ेकी ओट।।

    हेी ाेर के बस कहू,ं तरो ए सब झूठी ावत।

    सरोभा रो अमासास की, कही स ाए ीुख हवत।।

    बरसस करं एक पात की, सरो भी इस बुां कही स ाए।

    करोट ससी रो सूर कहू,ं तरो एक पात तले ढंपाए।।

    कलस महन्दवुतासी २०/१८८-२०

    ससि स रास ीणडल की ऐसी शरोभा है, ाह सतवारप कीपहली बमहशत के साीसे फीकी ही ह।ै

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  • श्री सागर टीका श्री रा स वााीीश्री सागर टीका श्री रा स वााीी

    हद सब्द दसुी ीे रह्ा, परोहयच््ा सहीप सूर रास।

    तरो क्य परोहयचे असल सूर करो, ससि सकी ए पदैास।।

    सूर रास भी बरन््रो सा ग्रो, तरो णभवत बरसस क्य हरोए।

    बरोहरोत बडी तफाात, रास णभवत इस दरोए।।

    ससधंि ३९/३०,३२

    ्ह ध््ास देसे ्रोग् तर् है मक रास ीणडल ्ासतवारप ीे रो सूरी्ी ते है, उसका ीूल ाह अकरधिाी ह,ै हाँ अकर ब् मारा ीास है-

    रास णभवत ्ा रो कछू, ए सब पदैा असल सूर।

    धतस असल सूर की क्य कहूं, रो दार आगूं ह ूर।।

    ए रो सूर ीकास आगूं असर के, सूर बका असल।

    ए रहे असलूं कासय सुमस्रो, असल तसय के मदल।।

    ससधंि ३९/३६,३७

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