हिन्द हिनt]ा की हिण्ड्र tला िn u^ा · 1 | p a g e...

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1 | Page जम - 15 जून 1929 नधन - 31 जनवरी 2004 हिदी हिनेमा की हिरेला ि रैया सुरैया का अथ होता है कृ तका, योततष म यु अठाईस न समूह म तीसरा। सुरैया 1940 और 50 के दशक म तहदी तिम जगत का एक चमचमाता न ी । इन दो दशक म कुछ बरस तो वह अपनी समकालीन नातयकाओं – नरतगस / मधुबाला / मीनाकुमारी / गीताबाली / नतलनी जयवंत / तनमी और बीना राय से यादा लोकतय रही । अतिनय का उसका अंदाज तनराला ा और सा ही वह एक सु ंकठ गातयका िी ी, जो लता मंगेशकर के अवतरण के बावजूद अपनी जगह पर कायम रही। इस कालखंड म उसने पातकतान चली गई नूरजहा और खुशीद की अदाकारी का अंदाज कायम रखा। वह पुरानी और नई पीढी के गायक-अतिने ताओं के. एल. सहगल, सुरेर, मुकेश और तलत महमूद के सा तो पदे पर आई बतक पृवीराज, जयराज और मोतीलाल जैसे वर नायक की नातयका िी बनी। सुरैया की यावसातयक सिलता का आलम यह ा तक तनमाथ ता-तनदेशक तितीय ेणी के अतिने ताओं को लेकर िी सुरैया के सहारे अपनी तिम को सिलता की वैतरणी पार करा

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    जन्म - 15 जनू 1929 ननधन - 31 जनवरी 2004

    हिन्दी हिनमेा की हिण्ड्रलेा िरैुया

    सरुयैा का अर्थ होता है कृततका,

    ज्योततष में प्रयकु्त अट्ठाईस नक्षत्र समूहों

    में तीसरा। सरुैया 1940 और 50 के

    दशक में तहन्दी तिल्म जगत का एक

    चमचमाता नक्षत्र र्ी । इन दो दशकों में

    कुछ बरस तो वह अपनी समकालीन

    नातयकाओ ं – नरतगस / मधबुाला /

    मीनाकुमारी / गीताबाली / नतलनी

    जयवंत / तनम्मी और बीना राय से

    ज्यादा लोकतप्रय रही । अतिनय का

    उसका अंदाज तनराला र्ा और सार् ही वह एक सुंकठ गातयका िी र्ी, जो लता

    मगेंशकर के अवतरण के बावजूद अपनी जगह पर कायम रही। इस कालखंड में

    उसने पातकस्तान चली गई नूरजहााँ और खशुीद की अदाकारी का अंदाज कायम

    रखा। वह परुानी और नई पीढी के गायक-अतिनेताओ ंके. एल. सहगल, सरुेन्र,

    मकेुश और तलत महमूद के सार् तो पदे पर आई बतल्क पथृ्वीराज, जयराज

    और मोतीलाल जैसे वररष्ठ नायकों की नातयका िी बनी। सुरयैा की व्यावसातयक

    सिलता का आलम यह र्ा तक तनमाथता-तनदेशक तितीय शे्रणी के अतिनेताओ ं

    को लेकर िी सरुयैा के सहारे अपनी तिल्म को सिलता की वैतरणी पार करा

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    लेखक

    श्रीराम ताम्रकर

    एम.ए., बी.एड., विद्यािाचस्पवत,

    विशारद, एफ.ए. (FTII)

    इन्दौर, म.प्र.

    तदया करते रे्। सरुयैा की लोकतप्रयता का एक कारण यह िी र्ा तक तिल्म-

    उद्योग में और उद्योग से बाहर उसे चाहने वाले और अपना बनाने के इच्छुक

    लोगों की संख्या बेशुमार र्ी। लेतकन िाग्य की तवडम्बना देतखए तक उसे एक

    तसण्ड्रेला (तचर प्रतीक्षारत कुमाररका) का जीवन जीना पडा। देवआंनद और गे्रगरी

    पेक सारी सहानुिूतत के बावजूद िी उसे सार् न दे सके।

    सरुयैा के नाज-ओ-अंदाज में उत्तर

    िारतीय मतुस्लम आतिजात्य वैसी ही

    झलक र्ी, जैसी उनकी पूवथवती

    गातयका-अतिनेतत्रयों नूरजहााँ और

    खशुीद में र्ी। अनेक ऐततहातसक

    (पीररयड) तिल्मों में काम कर उसने

    इस अदाकारी का िरपूर प्रदशथन तकया और अपने तौर-तरीकों से दशथकों को

    लिुाया। देवआंनद की ‘अिसर’, ‘जीत’, ‘शायर’ जैसी तिल्मों में उसने

    प्रगततशील स्त्री की िूतमकाएाँ कर स्त्री-परुूष दोनों को प्रिातवत तकया। उसकी

    अंग-िंतगमाओ ंऔर सरुीली आवाज में मानों तसंक्रोनाइजेशन र्ा। उसका एक गीत

    है “तेरी आाँखों ने चोरी तकया, मेरा छोटा सा तजया” (प्यार की जीत)। वास्तव में

    यह शरारत स्वंय ने अपने चाहने वालें के सार् की र्ी। सुरयैा का एक पे्रमी

    शहजादा इतततखार सुरयैा से शादी की मांग को लेकर उसके घर के सामने धरने

    पर बैठ गया। सरुयैा ने उसे समझाया तक अगर तमु्हारा प्यार सच्चा है, तो मेर े

    तलए अनशन समाप्त कर दो। वह समझ गया। वह अतिनेत्री वीणा का िाई र्ा।

    पातकस्तान से सरुैया का एक पे्रमी बाकायदा बारात लेकर उसके घर पर आ

    धमका र्ा, जो पतुलस िारा धमकाये जाने के

    बाद लौटा। एक अन्य आतशक सुरयैा की

    झलक पाने के तलए वषों मेरीन राइव की रेत

    पर तपता रहा। सुरयैा एक मशहूर दीवाने का

    नाम धमेन्र है, जो उसकी तिल्म ‘तदल्लगी’

    (1949) देखने के तलए चालीस बार अपने गााँव

    से शहर तक गया र्ा।

    सरुयैा, लता मगेंशकर की हम-उम्र है। सुरयैा

    को सहगल के सार् तीन तिल्मों में अतिनय

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    सरैुया की प्रमखु वफल्म

    बाल कलाकार के रूप में–

    ‘ताजमहल’ (1941),‘स्टेशन मास्टर’,

    ‘तमन्ना’ (1942) और ‘हमारी बात’

    (1943)।

    नावयका के रूप में –

    ‘इशारा’ (1943),‘मैं क्या करूूँ ’,‘फूल’,

    ‘सम्राट चदं्रगपु्त’, ‘तदबीर’, ‘यतीम’

    (1945), ‘अनमोल घडी’

    (1957),‘हसरत’, ‘जगबीती’, ‘उमर

    खय्याम’, ‘उिवशी’ (1946),

    ‘आकाशदीप’, ‘डाक बंगला’, ‘ददव’, ‘दो

    वदल’, ‘नाटक’, ‘परिाना’ (1947), ‘आज

    की रात’, ‘गज़र’े, ‘काजल’, ‘रगमंहल’,

    ‘प्यार की जीत’, शवि, ‘विद्या’

    (1948),‘अमर कहानी’, ‘बडी बहन’,

    ‘बालम’, ‘चार वदन’,‘वदल्लगी’,‘दवुनया’,

    ‘जीत’,‘लेख’, ‘नाच’, ‘शायर’ (1949),

    ‘अफसर’,‘दास्तान’,‘कमल के फूल’,

    ‘वखलाडी’, ‘नीली’, ‘शान’, (1950), ‘दो

    वसतार’े, ‘राजपूत’, ‘शोवखयाूँ, ‘सनम’

    (1951),‘खूबसरुत’,‘गूूँज’,‘दीिाना’,‘मोती

    महल’,‘लाल कुूँ िर’(1952), ‘माशूका’

    (1953),‘वबल्ि’,‘मगंल’, ‘वमजाव गावलब’,

    ‘िाररस,‘शमा परिाना’ (1954),

    ‘इनाम’, ‘कंचन (1955), ‘वमस्टर लम्बू’

    (1956),‘मावलक’,‘ट्रोली’,‘ड्राइिर’,‘वमस’

    1958 (1958), ‘शमा’ (1961) और

    ‘रूस्तम सोहराब’ (1963)

    और गायन का अवसर तमला, लेतकन लता इससे

    वंतचत रही, जबतक वह सहगल के सार् गाने और

    उनसे बहुत सारी बातें करने के तलए लालातयत र्ी।

    लता की इस वंचना का कारण सहगल का

    आकतस्मक अवसान रहा। सरुयैा को सहगल का

    सार् इसतलए हातसल हो सका, क्योंतक उसे बहुत

    छोटी उम्र में गातयका-अतिनेत्री खशुीद के पद-तचन्हों

    पर चलने के तलए तिल्मों में उतार तदया गया। सुरयैा

    1929 में 15 जून को जन्मी र्ी और लता 28 तसतंबर को। लोगों को इन दोनों

    गातयकाओ ं के बीच टकराव और प्रततस्पधाथ की कपोल-कतल्पत बातें करने का

    बडा शौक र्ा। लेतकन दर हकीकत ऐसी कोई बात नहीं र्ी। दोनों अपनी-अपनी

    जगह ठोस आधार पर तटकी गातयकाएाँ र्ीं। िारतीय स्वतंत्रता का वषथ 1947 लता

    मगेंशकर का उदय-काल है, पर सरुयैा का पदापथण पार्श्रवथ गातयका और बाल

    कलाकार के रूप में 1941 में ही हो गया र्ा। तहन्दी-तिल्मों में गातयका-अतिनेत्री

    नस्ल की वह अंततम प्रतततनतध र्ी, तजस तरह परुुषों में तकशोर कुमार रे्।

    गायक अतिनेता सहगल के सार्

    सरुयैा ‘तदबीर’ (1945), ‘उमर

    खय्याम’ (1946), और ‘परवाना’

    (1947), में आई। सरुेन्र के सार्

    मेहबूब की ‘अनमोल घडी’ (1946),

    में सरुैया के अलावा गातयका नूरजहााँ

    िी र्ी और रतन के बाद यह नौशाद के संगीत से सजी दूसरी तहट तिल्म र्ी,

    तजसके गाने सदाबहार की सूची में आते हैं। मकेुश के सार् सरुयैा ने तिल्म

    ‘माशूक’ (1954) में आई और तलत महमूद के सार् िी उसने दो तिल्मे की –

    ‘वाररस’ (1954), और ‘मातलक’ (1958)।

    राष्ट्रीय परुस्कार से सम्मातनत सोहराब मोदी की तिल्म ‘तमजाथ गातलब’ (1954),

    में तलत ने सरुयैा के सार् जो गाना गाया – “तदले नादा तुझे हुआ क्या है”, यह

    सदैव श्रवणीय बना रहेगा। लेतकन इस गीत पर होंठ तहलाने का सौिाग्य

    िारतिूषण को तमला र्ा, तजन्होंने तिल्म में गातलब की िूतमका की र्ी। तिल्म में

    सरुयैा ने गातलब की पे्रतमका के रूप में उनकी गज़ल िी एक खास अंदाज में गाई

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    लोकहिय गीत - एकल

    “तेर े नैनों न े चोरी वकया मरेा छोटा सा

    वजया” – ‘प्यार की जीत’ / हुस्नलाल

    भगतराम

    “िो पास रहें या दूर रहें, नजरों में समाय े

    रहते है” – ‘बडी बहन’ / हुस्नलाल –

    भगतराम

    “ये कैसी अजब दास्ताूँ हो गई है, छुपाते-

    छुपाते”.... – ‘रूस्तम-सोहराब’ /

    सज्जाद

    “नैन दीिान ेइक नहीं मान ेकर ेमनमानी”

    – ‘अफसर’/सवचन दिे बमवन

    “वबगडी बनान ेिाले वबगडी बना दै नैया

    हमारी”.....- ‘बडी बहन’ / हुस्नलालाल

    भगतराम

    “मरुलीिाले मरुली बजा, सनु-सनु मरुली

    पे नाचे वजया” – ‘वदल्लगी’/ नौशाद/

    शकील बदायूनी

    “ये न थी हमारी वकस्मत के वबसाले यार

    होता” – ‘वमजाव गावलब’/गलुाम मोहम्मद

    / गावलब

    र्ीं। “ये न र्ी हमारी तकस्मत के तबसाले यार होता” और “नकु्ताचीं है गमे तदन”

    गजलें सरुयैा की आवाज में जैसी

    चमत्काररक लगती हैं, वैसी तकसी अन्य

    स्वर में नहीं। वह सुरयैा की प्रततष्ठा का चरम

    क्षण र्ा, जब गायन और अतिनय के तलए

    परुस्कृत हुई सरुैया से पतंडत जवाहरलाल

    नेहरू ने कहा र्ा – लडकी तुमने तो गातलब

    की रूह को तजंदा कर तदया। सुरयैा इससे

    पहले सन् 1950 में िी सवथशे्रष्ठ अतिनेत्री का

    स्वणथ पदक प्राप्त कर चुकी र्ी ।

    सरुयैा ने कपूर खानदान के तीन परुुषों के सार् नातयका का रोल अदा तकया।

    यह संयोग ही है तक नातयका के रूप में सुरयैा की पहली तिल्म ‘इशारा’ (1943)

    और अंततम तिल्म ‘रूस्तम-सोहराब’(1963) के नायक पापा पथृ्वीराज कपूर ही

    रे्, जबतक तिल्म ‘दास्तान’ (1950), और ‘शमा-परवाना’ (1954), में उसके

    नायक क्रमश राजकपूर और शम्मी कपूर रे्। वास्ततवक जीवन में सरुयैा राजकपूर

    की बाल तमत्र र्ी। सुरयैा आतर्थक सिलता और लोकतप्रयता की सीतढयााँ लडकी

    होने के कारण जल्दी-जल्दी चढ गई, परन्त ुराजकपूर को अपनी राह खोजने में

    र्ोडा वक्त लगा। राजकपूर ने आजादी के वषथ में तिल्में बनाने के तलए कमर कसी

    और वह अपनी पहली तिल्म ‘आग’ (1946) की नातयका सरुयैा को ही बनाना

    चाहते रे्, तजसे बचपन में वे काली कलूटी कहकर तचढाया करते रे्। सरुैया की

    नानी को जो सरुैया के व्यवसातयक कायों के बार ेमें सारे तनणथय करती र्ी, युवा

    राजकपूर के प्रोजेक्ट के प्रतत संदेह र्ा और उसने बडा आया तिल्लम बनाने

    वाला कहकर राजकपूर को दिा कर तदया र्ा। राजकपूर की आग और बरसात

    तिल्म की सिलता के बाद ‘दास्तान’ के सेट पर राजकपूर ने सुरयैा से पूछा र्ा,

    अब क्या राय है मेरे बार ेमें। ऐसे वक्त पर सुरयैा अपना होठ दााँत से काटने के

    तसवाय क्या कर सकती र्ी। अतिनेत्री नरतगस

    का उदय अवश्यंिावी र्ा, इसतलए तनयतत ने

    सरुयैा को राजकपूर के प्रोजेक्ट से दूर रखा।

    सरुयैा, मधबुाला और मीनाकुमारी के तिल्मों में

    आने की पषृ्ठिूतम एक सी है। तीनों के पररवार

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    सरैुया वचरकुमारी रहन ेके वलए अवभशप्त

    थी, जबवक उसके कई आवशक बारात

    लेकर उसके दरिाजे पर आ गए थ।े

    बाल कलाकारों के रूप में प्रिशे लेकर

    सरैुया न ेबाइस साल के वफल्मी जीिन में

    सडसठ वफल्मों में नावयका-गावयका के

    रोल वनभाए।

    आजादी के आस पास के दौर में सरैुया

    के पोस्टर साइज फोटो काूँच की फ्रें म में

    दशे के 5 स्टार होटलों में शान स ेलगाए

    जाते थ।े ग्रामोफोन पर उसके ररकॉडव

    वदन भर बजते थ।े

    को बेटी की कमाई की दरकार र्ी। इतनी अतधक की बचपन में ही इन्हें सेट पर

    धकेल तदया गया । 1941 में नानािाई िट्ट को अपनी तिल्म ताजमहल में

    ममुताज के बचपन के रोल के तलए एक बातलका की जरूरत र्ी। तब बेबी सुरयैा

    अपने मामा जहूर के सार् स्टूतडयो जाया करती र्ी। नानािाई ने सरुयैा को देखा

    तो वह उन्हें अपनी तिल्म के तलए उपयुक्त जान पडी। मामा ने िी कमाई का एक

    नया रास्ता खलुने की खशुी में हााँ कर दी। इससे पहले उनकी बहन ममुताज

    (यानी सरुयैा की माता) को िी मेहबूब ने अपनी तिल्म में हीरोइन बनाना चाहा

    र्ा, मगर सरुयैा के तपता ने इंकार कर तदया र्ा। ममुताज बेगम एक सलोने

    व्यतक्तत्व की स्वातिमानी र्ी, तजसकी झलक बाद में लोगों ने यवुा सुरयैा के रूप

    में देखी। यहीं नहीं, ममुताज गातयका-अतिमेत्री खशुीद की अच्छी दोस्त र्ी। इसी

    दोस्ती की वजह से सरुैया ने खशुीद को अपना आदशथ मान तलया। लता मेगेशकर

    की आदशथ नूरजहााँ र्ी।

    सरुयैा का जन्म लाहौर में हुआ र्ा, लेतकन डेढ साल की उम्र में वह अपने माता-

    तपता के सार् ममु्बई में आ गई र्ी। उनके मामा जहूर स्टूतडयो में स्टंट खलनायक

    रे्। सरुयैा के तपता जमाल शेख आतकथ टेक्ट रे्, लेतकन अपने खराब स्वास्थ्य के

    कारण उन्हें समय से पहले घर बैठना पडा। इसतलए सरुैया को पैसा कमाने के

    तलए तिल्मों में काम करना पडा। उसके तलए तकस्मत के दरवाजे एक के बाद एक

    खलुते चले गये। इधर ‘ताजमहल’ में काम तमला, उधर नौशाद ने अपनी कुछ

    तिल्मों में पाश्वगायन कराने के तलए बलुाना शरुू तकया। सरुैया ने सबसे पहले ‘नई

    दतुनया’ (1942) में नौशाद के तलए गाया और तिर ‘शारदा’, ‘कानून’ , ‘संजोग’,

    ‘जीवन’, ‘शमा’ आतद तिल्मों के तलए। इन तिल्मों की नातयका सोहराब मोदी की

    पत्नी मेहताब र्ी। शुरू में तो वह नौशाद साहब से तचढ गई तक इतनी छोटी बच्ची

    से मेर े तलए गाना गवा रहे हो, पर बाद में जब गाने

    सिल रहे तो वे सरुयैा को बहुत चाहने लगी। कहते हैं

    तक मेहताब, सरुैया को अपने तलए गाने के तलए दगुने

    पैसे देने को तैयार र्ी, बशते सरुैया गाने की ररकाडों

    पर अपना नाम न दे, तातक लोगों का यह भ्रम बना पहे

    तक इन गानों की गातयका मेहताब ही है।

    मोहन तपक्चसथ की ताजमहल के बाद सरुैया ने

    ‘स्टेशन मास्टर’, ‘तमन्ना’ और बॉम्बे टॉकीजकी ‘हमारी बात’ तिल्म में िी बाल-

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    दिेआनदं न ेसरैुया को सगाई की अूँगूठी

    दी, तो नानी न ेउस ेसमदु्र में फें क वदया।

    वमजाव गावलब में सरैुया का रोल दखेकर

    प्रधानमतं्री जिाहरलाल नहेरू ने कहा था

    - लडकी तुमन ेकमाल कर वदया।

    वहन्दी वफल्मों में 40 स े 50 का दशक

    सरैुया के नाम कहा जा सकता है। उनकी

    लोकवप्रयता का आलम यह था वक

    उनकी एक झलक पाने के वलए उनके

    प्रशसंक मुबंई में उनके घर के सामन ेघटंों

    खड े रहते थे और यातायात जाम हो

    जाता था।

    कलाकार की िूतमकाएाँ तनिाई। ‘हमारी बात’

    (1943) के नायक-नातयका जयराज-देतवका

    रानी रे्। इसमें सुरयैा ने ममुताज अली (मेहमूद

    के तपता) के सार् दो नतृ्य-गीतों में िाग तलया

    र्ा। इस तिल्म के समय सुरयैा पााँछ वषों के

    तलए बॉम्बे टॉकीज से अनुबंतधत र्ी। पर के.

    आतसि ने तिल्म ‘िूल’ में काम करने के तलए

    सरुयैा को चालीस हजार रुपए देने की पेशकश की, तो बादशाह बेगम ने

    देतवकारानी पर दबाव बनाकर सरुैया को अनुबधं से मकु्त कर तदया और सुरयैा

    स्वतंत्र कलाकार रूप में तवतिन्न तिल्मों के तलए काम करने लगी और गातयका-

    नातयका के रूप में उसकी तिल्मों का मीटर तेजी से चलने लगा। नातयका के रूप

    में उसकी पहली तिल्म ‘इशारा’ 1943 में आई र्ी। 1945 में उसकी पााँच तिल्में

    प्रदतशथत हुई। 1946-47 में उसकी छः तिल्में आई, जबतक 1948 में सात और

    1949 में दस। 1950 में िी उसकी आधा दजथन तिल्में ररलीज हुई। इसके बाद

    साल-दर-साल उसके तिल्मों की संख्या घटती गई। इसका कारण र्ा देवआनंद

    के सार् उसके पे्रम का चक्कर। काम का अतधक बोझ और व्यतक्तगत स्वतंत्रता

    का अिाव। नानी और मामा के दबाव के बादजूद उसने स्वास्थ्य के आधार पर

    तिल्मों के प्रस्ताव अस्वीकार करने शुरू कर तदए रे्।

    देवआंनद के सार् सरुैया ने 1948 से

    51 के बीच कुल सात तिल्में की। तिल्में

    आतर्थक दृति से बहुत सिल नहीं हुई,

    लेतकन राज नरतगस के सार् समानांतर

    देव आंनद-सरुयैा के पे्रम की अनेक

    कहातनयों ने जन्म तलया । सुरयैा ‘तवद्या’

    (1948) के बाद ‘जीत’, ‘शायर’,

    ‘अिसर’, ‘नीली’, ‘दो तसतारे’ और ‘सनम’ तिल्मों में देव आनंद के सार् आई।

    देव ने सरुयैा को सगाई की अाँगूठी िी दी र्ी, तजसे उसकी नानी ने गरुूदत्त के

    सामने देखते-देखते समरु में िें क तदया र्ा। एस. डी. वमथन, दगुाथ खोटे, चेतन

    आनंद कोई िी बादशाह बेगम को सरुयैा-देव की शादी के तलए राजी न कर सके।

    दूसरी तरि उनके सार् काम करने पर िी पाबदंी लग गई। देव आनंद ने 1954

    में कल्पना काततथक को अपनी जीवन संतगनी बना कर इस प्रकरण का पटाके्षप

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    कहा जाता है वक वहन्दी वफल्मों में

    नावयका के करन े के वलए कुछ नहीं

    रहता, इसवलए स्टारडम भी उनस ेदूर ही

    रहती है। यह बात बीते दौर की कलाकार

    सरैुया के मामले में गलत सावबत हो

    जाती है, क्योंवक 1948 स े 1951 तक

    केिल तीन िर्व के दौरान सरैुया ही ऐसी

    मवहला कलाकार थीं, वजन्हें बॉलीिुड में

    सिाववधक पाररश्रवमक वदया जाता था।

    कर तदया।

    तिल्म इंडस्री में ही सुरयैा के कुछ और आतशक रे्, रहमान, सरुशे और एम.

    सातदक। 1948-49 में रहमान-सरुयैा की दो तिल्में

    (‘प्यार की जीत’ और ‘बडी बहन’) तहट रही र्ी। रहमान

    की तरह सरुशे ने िी सरुैया के सार् चार तिल्में की र्ी

    और वह िी मानते रे् तक सरुयैा से शादी करने के

    वास्ततवक दावेदार वे ही हैं। एम. सातदक ने िी सुरयैा

    को चार तिल्मों में तनदेतशत तकया र्ा। तदलीप कुमार ने िी सुरयैा को के आतसि

    की ‘जानवर’ तिल्म के माध्यम से अपने िंदे में उलझाने की कौतशश की। जब

    सरुयैा को उसकी नीयत पर संदेह हुआ तो उसने तिल्म ही छोड दी। के. आतसि

    इस तिल्म को तिर किी पूरी नहीं कर पाये। इसतलए हम पाते हैं तक सुरयैा की

    67 तिल्में की सूची में एक िी तिल्म में तदलीप कुमार नहीं है। (उनके िाई नातसर

    खान के सार् अवश्य सरुैया ने तीन तिल्में की)। सरुयैा वास्ततवक जीवन में

    अपनी नानी के तवरूद्ध नहीं जा सकी और उसके माता-तपता िी सीधे स्विाव के

    रे्, इसतलए सरुैया के तलए तसण्ड्रेला (कुमाररका) बने रहने के अलावा कोई चारा

    नहीं र्ा। उसके 1963 में तिल्मों से संन्यास तलया र्ा और चररत्र अतिनेत्री या

    पाश्रगातयका के रूप में इस मायावी दतुनया में लौटना कबूल नहीं तकया। उसकी

    इस तरह की तजंदगी को

    देखकर लोग इसे गे्रटा

    गाबो कहने लगे रे्।

    हॉलीवडु की अतिनेत्री

    गे्रटा गाबो (1905-90)

    िी युवावस्र्ा में तिल्मों

    से संन्यास लेने के बाद

    शेष जीवन रहस्यमय

    एकांत में गजुारा। लेतकन जैसा तक सुरयैा का एक गाना है “ये कैसी अजब दास्तां

    हो गई, छुपाते-छुपाते बयां हो गई है”, सरुैया ने अपने जीवन के अंततम तदनों में

    रहस्य को अनावृत करना शुरू कर तदया र्ा। कुछ वषों से वह सिा-समारोहों में

    िाग लेने लगी र्ी और किी-किार पत्रकारों से िी बातचीत कर लेती र्ी। उसके

    जीवन का सत्य यह है तक उसकी नानी मामा जहूर के कहने से चलती र्ी और

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  • 8 | P a g e

    जहूर का एकमात्र लक्ष्य सरुयैा को सोने का अंडा देनेवाली मगुी के रूप में कायम

    रखना थ।। सरुैया न तो मनमातिक खा पी सकती र्ी, न सो सकती र्ी। तिल्म

    ‘तमजाथ गातलब’ के प्रदथशन के बाद उसे लो-ब्लडपे्रशर हो गया र्ा और वह काम

    करते-करते तिल्मों के सेट पर बेहोश हो जाया करती र्ी। वह तिल्मों में तसिथ 22

    वषथ सतक्रय रही। 34 वषथ की उम्र में वह स्वेच्छा से मायवी दतुनया से हट गई र्ी।

    सन् 2004 में सरुयैा का तनधन हुआ।

    िुरैया बॉलीवुड की िबि ेिुुंदर और पिुंदीदा अहिनते्री

    बॉलीवडु के 100 साल पूर ेहोने के उपलक्ष में इंटरनेशनल

    इंतडयन तिल्म एकेडमी और "सेवन ईस्ट" िारा पहले छः

    महीने से कर रहे एक सवेक्षण में बॉलीवडु सुंदरी की शे्रणी

    में सबसे ज्यादा वोट तदवंगत गातयका और अतिनेत्री

    "सरुयैा" को तमली है ।

    यह सवेक्षण सेवन ईस्ट ने अपने ग्राहकों से स्टोर में लगाई

    गई 100 अतिनेतत्रयों की तस्वीरों के संग्रह में से सबसे

    पसंदीदा अतिनेत्री को चनुने को कहा। उन्हें इनमें से शीषथ सात का चनुाव करने को कहा

    गया इसमे 6,000 ग्राहकों ने तहस्सा तलया।

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  • 9 | P a g e

    िुरैया और ग्रगेरी पकै की मलुाकात

    लोग सबुह-शाम सरुयैा की एक झलक देखने की खाततर उसके

    घर के बाहर िीड लगाए खडे रहते रे्। किी-किी तो िीड

    इतनी बढ जाती र्ी तक पतुलस को बलुाना पडता र्ा और

    तजस सुरयैा के चाहने वालों का यह आलम रहा हो, वही खदु

    हॉलीवडु के गे्रगरी पैक की दीवानी हो जाए,ं तो यह तकस्सा

    तकतना तदलचस्प होगा।

    वही गे्रगरी पैक एक तदन अचानक सरुयैा के राइंग रूम में बैठे

    उनके आने का इंतजार कर रहे रे्। खबर सनुी, तो पहले सुरयैा को यकीन ही नहीं हुआ।

    जब तस्दीक हो गई तक उनके सपनों के हीरो राइंग रूम में उनकी आमद में पलकें तबछाए

    बैठे हैं, तो खशुी के मार ेपूरा घर घूमने लगा। ऐसा महसूस हुआ सरुयैा को।

    रात साढे बारह बजे उनका दरवाजा खटखटाया गया। सरुयैा की मम्मी ने दरवाजा खोला,

    तो सामने अतिनेता अल नातसर खडे रे्। उनके सार् दो लोग और िी रे्। अल नातसर ने

    मम्मी को बताया, "गे्रगरी पैक को लेकर आया हू।ं सरुैया को िौरन बलुाओ।" सुनकर मम्मी

    िी बदहवास हो गई,ं लेतकन यह समय ज्यादा आश्चयथ में डूबकर गंवाने का नहीं र्ा।

    िागकर मम्मी सुरयैा के कमरे में पहुचंीं, जो उस वक्त गहरी नींद के आगोश में समा चुकी

    र्ीं।

    मम्मी ने झकझोरते हुए कहा "जल्दी उठो बेटी। देखो गे्रगरी तमुसे तमलने घर आए हैं। तुझे

    यकीन नहीं हो रहा है मेरी बात का। अल नातसर लेकर आए हैं। जल्दी से तैयार होकर आ

    जाओ।" सरुयैा के तो मानो हार्-पांव ही िूल गए। तकसी बात का उन्हें होश ही न रहा।

    जल्दी-जल्दी उन्होंने कपडे बदले और धडकते हुए तदल के सार् राइंग रूम में दातखल

    हुई, तो अपनी आंखों पर पलिर के तलए तवश्वास ही नहीं कर पाई।

    तवश्वास तो उनको यह सोचकर अपनी तकस्मत पर िी नहीं हुआ तक तजस गे्रगरी पैक को

    देखने के तलए वह न जाने कब से तरस रही र्ीं, वह खदु चलकर उनके घर आए हुए हैं।

    दरअसल हुआ यह र्ा तक गे्रगरी पैक के तलए कोई पाटी सरुयैा के घर के तबल्कुल पास

    होटल एम्बेसेडर में हो रही र्ी। उस पाटी में अतिनेता अल नातसर िी आमतंत्रत रे्।

    वह बहुत आकषथक नाक-नक्शे के रे्। शराब पीने के शौकीन अल नातसर पूरी महतिल में

    सबसे बेखबर एक कोने में खडे अकेले शराब पी रहे रे् तक गे्रगरी की नजर उन पर पडी,

    तो वह उनकी तरि बस देखते ही रह गए। उन्होंने तकसी से िुसिुसा कर पूछा, "यह

    आकषथक मेहमान कौन है?" तो पता चला, यह मूक तिल्मों के हीरो अल नातसर हैं। यह

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    सनुकर गे्रगरी खदु को रोक नहीं पाए। वह अल नातसर के पास पहुचें और अपना पररचय

    तदया।

    पररचय पाते ही अल नातसर को सरुैया का ध्यान

    आया तक तकस तरह वह उनके नाम की दीवानी

    हैं। उन्होंने गे्रगरी से तबना तझझक कहा, "सरुयैा के

    तमु मनपसंद आतटथस्ट हो अगर चल सको, तो

    उसे तुमसे तमलकर बडी खुशी होगी।" गे्रगरी ने

    िौरन अल नातसर की बात मान ली और पाटी

    छोडकर वहीं से सरुयैा के घर के तलए चल पडे।

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