मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क्...

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Page 1: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

मनतख़ब तहरीरात(हज़रत मसीह मौऊद अलहहससलाम

की कहतयो क उदधरण)

परकाशकनज़ारत नशर-व-इशाअत क़ाहदयान

I

नाम पसतक मनतख़ब तहरीरात (हज़रत मसीह मौऊद अलहहससलाम की कहतयो क उदधरण)Name of book Muntakhab Tehriratअनवादक डॉ सययद शहामत अली (साहहतय रतन) Translator Dr Syed Shahamat Ali (Sahitya Ratan) टाइप सहटग नईम उल हक़ करशी मरबबी हसलहसला Type Setting Naeem Ul Haque Qureshi Murabbi silsilaपरथम ससकरण (हहनदी) 1989 ई०हवितीय ससकरण (हहनदी) 2018 ई०1st amp 2nd Ed (Hindi) 1989 amp 2018सखया Quantity 1000परकाशक नज़ारत नशर-व-इशाअत क़ाहदयान 143516 हज़ला-गरदासपर (पजाब)Publisher Nazarat Nashr-o-Ishaat Qadian 143516 Distt Gurdaspur (Punjab)मदरक फ़ज़लल उमर हपरहटग परलस क़ाहदयान 143516 हज़ला-गरदासपरPrinted at Fazl-e-Umar Printing Press Qadian 143516 Distt Gurdaspur (Punjab)

ISBN 1853722251

II

समरपणयह उन अहमहदयो को समहपपित ह हजन पर इस यग म अतयाचार

हकए जा रह ह और उनह शहीद हकया जा रहा ह कवल इसहलए हक वल अलाह तआला की lsquoतौहीदrsquo (अलाह एक ह) एव एकशवरवाद क हसदधानत सल परलम रखतल और उसका परचार करतल ह यह लोग हज़रत हबलालरहज़ क आदशपि क समारक ह

हज़रत हबलालरहज़ (अलाह उनसल राज़ी हो) हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम (अलाह की आप पर सलामती और कपा हो) क एक सहाबी (सहचर) थल इसलाम धमपि सवीकार करनल क पशात उन पर घोर अतयाचार हकए गए हकनत उन अतयाचारो क बावजद अलाह तआला की lsquoतौहीदrsquo अथापित एकशवरवाद क हसदधानत को छोड़ दलनल क सथान पर इस मागपि म शहीद हो जाना शरलषठ समझतल थल

III

विषय-सचीकरमाक विषय रषठ

1 परकाशक की ओर सल 12 अलाह तआला 43 अलाह तआला क दशपिन 54 खदा का अपनल शरदधालओ सल वयवहार 65 हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह

व सलम10

6 पहवतर क़आपिन 197 वही और इलहाम 238 हमारी आसथाए 269 अहमहदया समपरदाय क ससथापक हज़रत

मसीह मौऊद अलहहससलाम का मक़ाम29

10 पहवतर समपरदाय की सथापना और नसीहत 3111 जमाअत को नसीहत 3512 दसरो क परहत कहवचार (बदज़नी) 3613 अहमहदया समपरदाय का भहवषय 3814 अननतम हवजय 3915 रह 3916 मतय क पशात का जीवन 41

IV

17 हवशव क धमपि 4118 गनाह (पाप) 4219 नजात (मनति) 4320 हजहाद (ख़दा तआला क मागपि म सघरपि) 4421 दआ (पराथपिना) 4622 मानवजाहत सल सहानभहत 4623 फ़ररशतल (ईशदत) 4724 याजज माजज और उसकी वासतहवकता 4925 परकाश की ऋत 49

V

1

मनतख़ब तहरीरात

परकाशक की ओर सहज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब (सन 1835-1908 रइ) न

अलह तआल की ओर स सधरक होन की घोषण की और आज रस घोषण पर 129 वषज़ा बीत चक ह आपकी पसतको क उदधरणो क परसतत सकलन क परकशन अहिमदय समपरदय की सद-सल (शतबदी) जमबली क परोगिो क एक महसस ह यह समपरदय आपक िसलिन अनयमययो क वह समपरदय ह मजसको ख़द तआल न सवय क़यि मकय ह

अतयमधक वर और मवरोध बढ़ जन क बवजद यह समपरदय ससर क मवमिनन कतो ि तीवर-गमत स उननमत करत रह और अब 210 दशो ि रसक कनदर समपत हो चक ह और रसलि की यह पमवत धवमन अब आग स आग बढ़ती चली ज रही ह

अहिमदय समपरदय क सदश और उसक िहतव एव परोगिो की जनकरी क मलए शषठ और सगि िगज़ा यह ह मक अहिमदय समपरदय क ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब की घोषणओ को सिझन क यतन मकय जए एक सतय समनशचित एव नययोमचत ढग यह िी ह मक एक सतय क मजजस उन सदहो को जो हदय ि उतपनन हो उसी सधरक की सवय अपनी कमतयो क आलोक ि दर करन क परयस कर जो रिि-िहदी और िसीह िौऊद होन की घोषण करत ह

परसतत सकलन ि गदय-पदय क कछ चन हए उदधरण परसतत मकए गए ह जो िनव-जीवन क मवमिनन पको पर परकश डलत ह एक पढ़न वल स हि आश रखत ह मक वह रस सकलन क अधययन स

2

मनतख़ब तहरीरात

जो एक सधरण स परयस ह आपकी मलखी हरइ अससी स अमधक पसतको क अधययन कर लग कयोमक यह पसतक मवसततत जन और परकशदमयनी ह त मवमिनन रपो ि उसकी आधयशतिक िवनओ को उिरन वली ह

रसलि ि अहिमदय समपरदय क अशसततव अनतरज़ाषटीय ह मजसकी सपन सन 1889 रइ ि क़मदयन ि हरइ रसक ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न घोषण की मक व वही सधरक ह मजनक परदिज़ाव की परतीक मवमिनन धिज़ानययी मिनन-मिनन निो और रपो ि कर रह महनद शी कषण की रइसरइ हज़रत रइस िसीह की और बौदध िहति बदध की और िसलिन रिि िहदी और िसीह िौऊद क आन की परतीक कर रह

ईशवरीय जन त उसी क आदशनसर हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न यह एक कशनतकरी रहसयोदटन मकय मक कवल एक ही lsquolsquoपरमतजत मविमतrsquorsquo (िौऊद शशसयत) परगट होन वली ी जो सिसत धिमो क सधरक (िौऊद अक़वि आलि) क परमतमनमधतव करग उसक परदिज़ाव क उदशय कवल यह मक सिसत िनव जमत को एक अनतरज़ाषटीय और अनतजज़ातीय धिज़ा पर एकत कर आप न रस बत क िी सपषीकरण मकय मक वह परमतजत सधरक सवतनत रप ि परकट न होग अमपत वह रसलि धिज़ा क ससपक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललह अलमह वसलि की शरीअत क अधीन होग

आप यह मवशवस रखत मक रसलि अलह तआल क आमिरी िज़हब (अशनति धिज़ा) और क़आज़ान िजीद कमिल शरीअत त जीवन क सवज़ापकीय मवधन ह रस मलए आपन घोषण की मक वह lsquolsquoपरमतजत सधरकrsquorsquo हज़रत िहमिद िसतफ सललह अलमह वसलि क अधीन

3

मनतख़ब तहरीरात

होग आपन यह िी घोषण की मक आपक यग अनतजज़ातीय धिज़ा की सपन क मलए एक ऐस सवमणज़ाि यग होग मजसक मलए िनषय सवपन दख रह और बड़ी उतसकत क स उसक अमिलषी

सन 1889 रइ ि आपक ख़द तआल की तरफ स परदज़ािव हआ तमक रइशवरीय-समपरदय की नीव रख जो आपक जनि और परदि ज़ाव क उदशयो को पर करन वल हो असत आपन 23 िचज़ा सन 1889 रइ को पजब क एक नगर लमधयन ि उन वयशतियो स बअत ली (अ ज़ात उन वयशतियो को दीमकत मकय) जो आपकी सिी घोषणओ पर मवशवस और रइिन रखत रस परकर एक समपरदय की सपन की घोषण की

रस पसतक क अनवद आदरणीय सययद शहित अली (समहतय रतन) न मकय ह और अब आदरणीय शि िजमहद अहिद शसती आदरणीय फ़रहत अहिद आचयज़ा आदरणीय अली हसन एिए और आदरणीय नसीरल हक़ आचयज़ा न परफ़ रीमडग और रीमवय ि सहयोग मकय ह अलह तआल रन सब को जज़-ए-खर अत कर

अतः रस पसतक को हज़रत िलीफ़तल िसीह िमिस अययदहलह तआल मबनमरिमहल अज़ीज़ की अनिमत स जन सिनय क मलए मवितीय ससकरण क रप ि परकमशत मकय ज रह ह

हमफ़ज़ ििदि शरीफ़ नमज़र नश व रशअत

4

मनतख़ब तहरीरात

بسم اہلل الرحمن الرحیم

अलाह तआलाlsquolsquoहिर सवगज़ा हिर ख़द ह हिर जीवन क सवज़ाशषठ आननद हिर

ख़द ि ह कयोमक हि न उसको दख और परतयक सनदरत उसि परइ यह दौलत लन क योगय ह यदयमप परण दन स मिल और यह रतन िरीदन क योगय ह चह समपणज़ा अशसततव खोन स परपत हो ह िहरिो (ह वमचत लोगो) रस रिोत की ओर दौड़ो मक वह तमहरी मपपस शनत करग यह मज़नदगी क चशि (रिोत) ह जो तमह बचएग ि कय कर और मकस परकर रस ख़शिबरी को मदलो ि मबठ द मकस ितदग स बज़रो ि िनदी कर मक तमहर यह ख़द ह तमक लोग सन ल और मकस औषमध स रलज कर तमक सनन क मलए लोगो क कन खल यमद ति ख़द क हो जओग तो मनशचित सिझो मक ख़द तमहर ही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग 19 कशती नह पतषठ-2122) lsquolsquoह सनन वलो सनो मक ख़द ति स कय चहत ह बस

यही मक ति उसी क हो जओ उसक स मकसी को िी सझीदर न बनओ न आकश ि न पतथवी ि हिर ख़द वह ख़द ह जो अब िी मज़नद ह जस मक पहल मज़नद और अब िी वह बोलत ह जस मक वह पहल बोलत वह अब िी सनत ह जस मक पहल सनत यह मवचर मनरधर ह मक रस यग ि वह सनत तो ह मकनत बोलत नही अमपत वह सनत और बोलत िी ह उसकी सिसत शशतिय और मवशषतए अनमद और अनशवर ह कोरइ मवशषत मनशषकय नही न किी होगी वह वही सवज़ा एक ह और उसक कोरइ सझीदर नही मजसक कोरइ बट नही और मजसकी कोरइ पतनी नही वह वही जो अनपि ह

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मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

6

मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

7

मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

8

मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

9

मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

10

मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

11

मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

49

मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

50

मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

51

मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 2: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

नाम पसतक मनतख़ब तहरीरात (हज़रत मसीह मौऊद अलहहससलाम की कहतयो क उदधरण)Name of book Muntakhab Tehriratअनवादक डॉ सययद शहामत अली (साहहतय रतन) Translator Dr Syed Shahamat Ali (Sahitya Ratan) टाइप सहटग नईम उल हक़ करशी मरबबी हसलहसला Type Setting Naeem Ul Haque Qureshi Murabbi silsilaपरथम ससकरण (हहनदी) 1989 ई०हवितीय ससकरण (हहनदी) 2018 ई०1st amp 2nd Ed (Hindi) 1989 amp 2018सखया Quantity 1000परकाशक नज़ारत नशर-व-इशाअत क़ाहदयान 143516 हज़ला-गरदासपर (पजाब)Publisher Nazarat Nashr-o-Ishaat Qadian 143516 Distt Gurdaspur (Punjab)मदरक फ़ज़लल उमर हपरहटग परलस क़ाहदयान 143516 हज़ला-गरदासपरPrinted at Fazl-e-Umar Printing Press Qadian 143516 Distt Gurdaspur (Punjab)

ISBN 1853722251

II

समरपणयह उन अहमहदयो को समहपपित ह हजन पर इस यग म अतयाचार

हकए जा रह ह और उनह शहीद हकया जा रहा ह कवल इसहलए हक वल अलाह तआला की lsquoतौहीदrsquo (अलाह एक ह) एव एकशवरवाद क हसदधानत सल परलम रखतल और उसका परचार करतल ह यह लोग हज़रत हबलालरहज़ क आदशपि क समारक ह

हज़रत हबलालरहज़ (अलाह उनसल राज़ी हो) हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम (अलाह की आप पर सलामती और कपा हो) क एक सहाबी (सहचर) थल इसलाम धमपि सवीकार करनल क पशात उन पर घोर अतयाचार हकए गए हकनत उन अतयाचारो क बावजद अलाह तआला की lsquoतौहीदrsquo अथापित एकशवरवाद क हसदधानत को छोड़ दलनल क सथान पर इस मागपि म शहीद हो जाना शरलषठ समझतल थल

III

विषय-सचीकरमाक विषय रषठ

1 परकाशक की ओर सल 12 अलाह तआला 43 अलाह तआला क दशपिन 54 खदा का अपनल शरदधालओ सल वयवहार 65 हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह

व सलम10

6 पहवतर क़आपिन 197 वही और इलहाम 238 हमारी आसथाए 269 अहमहदया समपरदाय क ससथापक हज़रत

मसीह मौऊद अलहहससलाम का मक़ाम29

10 पहवतर समपरदाय की सथापना और नसीहत 3111 जमाअत को नसीहत 3512 दसरो क परहत कहवचार (बदज़नी) 3613 अहमहदया समपरदाय का भहवषय 3814 अननतम हवजय 3915 रह 3916 मतय क पशात का जीवन 41

IV

17 हवशव क धमपि 4118 गनाह (पाप) 4219 नजात (मनति) 4320 हजहाद (ख़दा तआला क मागपि म सघरपि) 4421 दआ (पराथपिना) 4622 मानवजाहत सल सहानभहत 4623 फ़ररशतल (ईशदत) 4724 याजज माजज और उसकी वासतहवकता 4925 परकाश की ऋत 49

V

1

मनतख़ब तहरीरात

परकाशक की ओर सहज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब (सन 1835-1908 रइ) न

अलह तआल की ओर स सधरक होन की घोषण की और आज रस घोषण पर 129 वषज़ा बीत चक ह आपकी पसतको क उदधरणो क परसतत सकलन क परकशन अहिमदय समपरदय की सद-सल (शतबदी) जमबली क परोगिो क एक महसस ह यह समपरदय आपक िसलिन अनयमययो क वह समपरदय ह मजसको ख़द तआल न सवय क़यि मकय ह

अतयमधक वर और मवरोध बढ़ जन क बवजद यह समपरदय ससर क मवमिनन कतो ि तीवर-गमत स उननमत करत रह और अब 210 दशो ि रसक कनदर समपत हो चक ह और रसलि की यह पमवत धवमन अब आग स आग बढ़ती चली ज रही ह

अहिमदय समपरदय क सदश और उसक िहतव एव परोगिो की जनकरी क मलए शषठ और सगि िगज़ा यह ह मक अहिमदय समपरदय क ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब की घोषणओ को सिझन क यतन मकय जए एक सतय समनशचित एव नययोमचत ढग यह िी ह मक एक सतय क मजजस उन सदहो को जो हदय ि उतपनन हो उसी सधरक की सवय अपनी कमतयो क आलोक ि दर करन क परयस कर जो रिि-िहदी और िसीह िौऊद होन की घोषण करत ह

परसतत सकलन ि गदय-पदय क कछ चन हए उदधरण परसतत मकए गए ह जो िनव-जीवन क मवमिनन पको पर परकश डलत ह एक पढ़न वल स हि आश रखत ह मक वह रस सकलन क अधययन स

2

मनतख़ब तहरीरात

जो एक सधरण स परयस ह आपकी मलखी हरइ अससी स अमधक पसतको क अधययन कर लग कयोमक यह पसतक मवसततत जन और परकशदमयनी ह त मवमिनन रपो ि उसकी आधयशतिक िवनओ को उिरन वली ह

रसलि ि अहिमदय समपरदय क अशसततव अनतरज़ाषटीय ह मजसकी सपन सन 1889 रइ ि क़मदयन ि हरइ रसक ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न घोषण की मक व वही सधरक ह मजनक परदिज़ाव की परतीक मवमिनन धिज़ानययी मिनन-मिनन निो और रपो ि कर रह महनद शी कषण की रइसरइ हज़रत रइस िसीह की और बौदध िहति बदध की और िसलिन रिि िहदी और िसीह िौऊद क आन की परतीक कर रह

ईशवरीय जन त उसी क आदशनसर हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न यह एक कशनतकरी रहसयोदटन मकय मक कवल एक ही lsquolsquoपरमतजत मविमतrsquorsquo (िौऊद शशसयत) परगट होन वली ी जो सिसत धिमो क सधरक (िौऊद अक़वि आलि) क परमतमनमधतव करग उसक परदिज़ाव क उदशय कवल यह मक सिसत िनव जमत को एक अनतरज़ाषटीय और अनतजज़ातीय धिज़ा पर एकत कर आप न रस बत क िी सपषीकरण मकय मक वह परमतजत सधरक सवतनत रप ि परकट न होग अमपत वह रसलि धिज़ा क ससपक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललह अलमह वसलि की शरीअत क अधीन होग

आप यह मवशवस रखत मक रसलि अलह तआल क आमिरी िज़हब (अशनति धिज़ा) और क़आज़ान िजीद कमिल शरीअत त जीवन क सवज़ापकीय मवधन ह रस मलए आपन घोषण की मक वह lsquolsquoपरमतजत सधरकrsquorsquo हज़रत िहमिद िसतफ सललह अलमह वसलि क अधीन

3

मनतख़ब तहरीरात

होग आपन यह िी घोषण की मक आपक यग अनतजज़ातीय धिज़ा की सपन क मलए एक ऐस सवमणज़ाि यग होग मजसक मलए िनषय सवपन दख रह और बड़ी उतसकत क स उसक अमिलषी

सन 1889 रइ ि आपक ख़द तआल की तरफ स परदज़ािव हआ तमक रइशवरीय-समपरदय की नीव रख जो आपक जनि और परदि ज़ाव क उदशयो को पर करन वल हो असत आपन 23 िचज़ा सन 1889 रइ को पजब क एक नगर लमधयन ि उन वयशतियो स बअत ली (अ ज़ात उन वयशतियो को दीमकत मकय) जो आपकी सिी घोषणओ पर मवशवस और रइिन रखत रस परकर एक समपरदय की सपन की घोषण की

रस पसतक क अनवद आदरणीय सययद शहित अली (समहतय रतन) न मकय ह और अब आदरणीय शि िजमहद अहिद शसती आदरणीय फ़रहत अहिद आचयज़ा आदरणीय अली हसन एिए और आदरणीय नसीरल हक़ आचयज़ा न परफ़ रीमडग और रीमवय ि सहयोग मकय ह अलह तआल रन सब को जज़-ए-खर अत कर

अतः रस पसतक को हज़रत िलीफ़तल िसीह िमिस अययदहलह तआल मबनमरिमहल अज़ीज़ की अनिमत स जन सिनय क मलए मवितीय ससकरण क रप ि परकमशत मकय ज रह ह

हमफ़ज़ ििदि शरीफ़ नमज़र नश व रशअत

4

मनतख़ब तहरीरात

بسم اہلل الرحمن الرحیم

अलाह तआलाlsquolsquoहिर सवगज़ा हिर ख़द ह हिर जीवन क सवज़ाशषठ आननद हिर

ख़द ि ह कयोमक हि न उसको दख और परतयक सनदरत उसि परइ यह दौलत लन क योगय ह यदयमप परण दन स मिल और यह रतन िरीदन क योगय ह चह समपणज़ा अशसततव खोन स परपत हो ह िहरिो (ह वमचत लोगो) रस रिोत की ओर दौड़ो मक वह तमहरी मपपस शनत करग यह मज़नदगी क चशि (रिोत) ह जो तमह बचएग ि कय कर और मकस परकर रस ख़शिबरी को मदलो ि मबठ द मकस ितदग स बज़रो ि िनदी कर मक तमहर यह ख़द ह तमक लोग सन ल और मकस औषमध स रलज कर तमक सनन क मलए लोगो क कन खल यमद ति ख़द क हो जओग तो मनशचित सिझो मक ख़द तमहर ही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग 19 कशती नह पतषठ-2122) lsquolsquoह सनन वलो सनो मक ख़द ति स कय चहत ह बस

यही मक ति उसी क हो जओ उसक स मकसी को िी सझीदर न बनओ न आकश ि न पतथवी ि हिर ख़द वह ख़द ह जो अब िी मज़नद ह जस मक पहल मज़नद और अब िी वह बोलत ह जस मक वह पहल बोलत वह अब िी सनत ह जस मक पहल सनत यह मवचर मनरधर ह मक रस यग ि वह सनत तो ह मकनत बोलत नही अमपत वह सनत और बोलत िी ह उसकी सिसत शशतिय और मवशषतए अनमद और अनशवर ह कोरइ मवशषत मनशषकय नही न किी होगी वह वही सवज़ा एक ह और उसक कोरइ सझीदर नही मजसक कोरइ बट नही और मजसकी कोरइ पतनी नही वह वही जो अनपि ह

5

मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

6

मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

7

मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

8

मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

9

मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 3: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

समरपणयह उन अहमहदयो को समहपपित ह हजन पर इस यग म अतयाचार

हकए जा रह ह और उनह शहीद हकया जा रहा ह कवल इसहलए हक वल अलाह तआला की lsquoतौहीदrsquo (अलाह एक ह) एव एकशवरवाद क हसदधानत सल परलम रखतल और उसका परचार करतल ह यह लोग हज़रत हबलालरहज़ क आदशपि क समारक ह

हज़रत हबलालरहज़ (अलाह उनसल राज़ी हो) हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम (अलाह की आप पर सलामती और कपा हो) क एक सहाबी (सहचर) थल इसलाम धमपि सवीकार करनल क पशात उन पर घोर अतयाचार हकए गए हकनत उन अतयाचारो क बावजद अलाह तआला की lsquoतौहीदrsquo अथापित एकशवरवाद क हसदधानत को छोड़ दलनल क सथान पर इस मागपि म शहीद हो जाना शरलषठ समझतल थल

III

विषय-सचीकरमाक विषय रषठ

1 परकाशक की ओर सल 12 अलाह तआला 43 अलाह तआला क दशपिन 54 खदा का अपनल शरदधालओ सल वयवहार 65 हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह

व सलम10

6 पहवतर क़आपिन 197 वही और इलहाम 238 हमारी आसथाए 269 अहमहदया समपरदाय क ससथापक हज़रत

मसीह मौऊद अलहहससलाम का मक़ाम29

10 पहवतर समपरदाय की सथापना और नसीहत 3111 जमाअत को नसीहत 3512 दसरो क परहत कहवचार (बदज़नी) 3613 अहमहदया समपरदाय का भहवषय 3814 अननतम हवजय 3915 रह 3916 मतय क पशात का जीवन 41

IV

17 हवशव क धमपि 4118 गनाह (पाप) 4219 नजात (मनति) 4320 हजहाद (ख़दा तआला क मागपि म सघरपि) 4421 दआ (पराथपिना) 4622 मानवजाहत सल सहानभहत 4623 फ़ररशतल (ईशदत) 4724 याजज माजज और उसकी वासतहवकता 4925 परकाश की ऋत 49

V

1

मनतख़ब तहरीरात

परकाशक की ओर सहज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब (सन 1835-1908 रइ) न

अलह तआल की ओर स सधरक होन की घोषण की और आज रस घोषण पर 129 वषज़ा बीत चक ह आपकी पसतको क उदधरणो क परसतत सकलन क परकशन अहिमदय समपरदय की सद-सल (शतबदी) जमबली क परोगिो क एक महसस ह यह समपरदय आपक िसलिन अनयमययो क वह समपरदय ह मजसको ख़द तआल न सवय क़यि मकय ह

अतयमधक वर और मवरोध बढ़ जन क बवजद यह समपरदय ससर क मवमिनन कतो ि तीवर-गमत स उननमत करत रह और अब 210 दशो ि रसक कनदर समपत हो चक ह और रसलि की यह पमवत धवमन अब आग स आग बढ़ती चली ज रही ह

अहिमदय समपरदय क सदश और उसक िहतव एव परोगिो की जनकरी क मलए शषठ और सगि िगज़ा यह ह मक अहिमदय समपरदय क ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब की घोषणओ को सिझन क यतन मकय जए एक सतय समनशचित एव नययोमचत ढग यह िी ह मक एक सतय क मजजस उन सदहो को जो हदय ि उतपनन हो उसी सधरक की सवय अपनी कमतयो क आलोक ि दर करन क परयस कर जो रिि-िहदी और िसीह िौऊद होन की घोषण करत ह

परसतत सकलन ि गदय-पदय क कछ चन हए उदधरण परसतत मकए गए ह जो िनव-जीवन क मवमिनन पको पर परकश डलत ह एक पढ़न वल स हि आश रखत ह मक वह रस सकलन क अधययन स

2

मनतख़ब तहरीरात

जो एक सधरण स परयस ह आपकी मलखी हरइ अससी स अमधक पसतको क अधययन कर लग कयोमक यह पसतक मवसततत जन और परकशदमयनी ह त मवमिनन रपो ि उसकी आधयशतिक िवनओ को उिरन वली ह

रसलि ि अहिमदय समपरदय क अशसततव अनतरज़ाषटीय ह मजसकी सपन सन 1889 रइ ि क़मदयन ि हरइ रसक ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न घोषण की मक व वही सधरक ह मजनक परदिज़ाव की परतीक मवमिनन धिज़ानययी मिनन-मिनन निो और रपो ि कर रह महनद शी कषण की रइसरइ हज़रत रइस िसीह की और बौदध िहति बदध की और िसलिन रिि िहदी और िसीह िौऊद क आन की परतीक कर रह

ईशवरीय जन त उसी क आदशनसर हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न यह एक कशनतकरी रहसयोदटन मकय मक कवल एक ही lsquolsquoपरमतजत मविमतrsquorsquo (िौऊद शशसयत) परगट होन वली ी जो सिसत धिमो क सधरक (िौऊद अक़वि आलि) क परमतमनमधतव करग उसक परदिज़ाव क उदशय कवल यह मक सिसत िनव जमत को एक अनतरज़ाषटीय और अनतजज़ातीय धिज़ा पर एकत कर आप न रस बत क िी सपषीकरण मकय मक वह परमतजत सधरक सवतनत रप ि परकट न होग अमपत वह रसलि धिज़ा क ससपक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललह अलमह वसलि की शरीअत क अधीन होग

आप यह मवशवस रखत मक रसलि अलह तआल क आमिरी िज़हब (अशनति धिज़ा) और क़आज़ान िजीद कमिल शरीअत त जीवन क सवज़ापकीय मवधन ह रस मलए आपन घोषण की मक वह lsquolsquoपरमतजत सधरकrsquorsquo हज़रत िहमिद िसतफ सललह अलमह वसलि क अधीन

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मनतख़ब तहरीरात

होग आपन यह िी घोषण की मक आपक यग अनतजज़ातीय धिज़ा की सपन क मलए एक ऐस सवमणज़ाि यग होग मजसक मलए िनषय सवपन दख रह और बड़ी उतसकत क स उसक अमिलषी

सन 1889 रइ ि आपक ख़द तआल की तरफ स परदज़ािव हआ तमक रइशवरीय-समपरदय की नीव रख जो आपक जनि और परदि ज़ाव क उदशयो को पर करन वल हो असत आपन 23 िचज़ा सन 1889 रइ को पजब क एक नगर लमधयन ि उन वयशतियो स बअत ली (अ ज़ात उन वयशतियो को दीमकत मकय) जो आपकी सिी घोषणओ पर मवशवस और रइिन रखत रस परकर एक समपरदय की सपन की घोषण की

रस पसतक क अनवद आदरणीय सययद शहित अली (समहतय रतन) न मकय ह और अब आदरणीय शि िजमहद अहिद शसती आदरणीय फ़रहत अहिद आचयज़ा आदरणीय अली हसन एिए और आदरणीय नसीरल हक़ आचयज़ा न परफ़ रीमडग और रीमवय ि सहयोग मकय ह अलह तआल रन सब को जज़-ए-खर अत कर

अतः रस पसतक को हज़रत िलीफ़तल िसीह िमिस अययदहलह तआल मबनमरिमहल अज़ीज़ की अनिमत स जन सिनय क मलए मवितीय ससकरण क रप ि परकमशत मकय ज रह ह

हमफ़ज़ ििदि शरीफ़ नमज़र नश व रशअत

4

मनतख़ब तहरीरात

بسم اہلل الرحمن الرحیم

अलाह तआलाlsquolsquoहिर सवगज़ा हिर ख़द ह हिर जीवन क सवज़ाशषठ आननद हिर

ख़द ि ह कयोमक हि न उसको दख और परतयक सनदरत उसि परइ यह दौलत लन क योगय ह यदयमप परण दन स मिल और यह रतन िरीदन क योगय ह चह समपणज़ा अशसततव खोन स परपत हो ह िहरिो (ह वमचत लोगो) रस रिोत की ओर दौड़ो मक वह तमहरी मपपस शनत करग यह मज़नदगी क चशि (रिोत) ह जो तमह बचएग ि कय कर और मकस परकर रस ख़शिबरी को मदलो ि मबठ द मकस ितदग स बज़रो ि िनदी कर मक तमहर यह ख़द ह तमक लोग सन ल और मकस औषमध स रलज कर तमक सनन क मलए लोगो क कन खल यमद ति ख़द क हो जओग तो मनशचित सिझो मक ख़द तमहर ही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग 19 कशती नह पतषठ-2122) lsquolsquoह सनन वलो सनो मक ख़द ति स कय चहत ह बस

यही मक ति उसी क हो जओ उसक स मकसी को िी सझीदर न बनओ न आकश ि न पतथवी ि हिर ख़द वह ख़द ह जो अब िी मज़नद ह जस मक पहल मज़नद और अब िी वह बोलत ह जस मक वह पहल बोलत वह अब िी सनत ह जस मक पहल सनत यह मवचर मनरधर ह मक रस यग ि वह सनत तो ह मकनत बोलत नही अमपत वह सनत और बोलत िी ह उसकी सिसत शशतिय और मवशषतए अनमद और अनशवर ह कोरइ मवशषत मनशषकय नही न किी होगी वह वही सवज़ा एक ह और उसक कोरइ सझीदर नही मजसक कोरइ बट नही और मजसकी कोरइ पतनी नही वह वही जो अनपि ह

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मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

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मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 4: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

विषय-सचीकरमाक विषय रषठ

1 परकाशक की ओर सल 12 अलाह तआला 43 अलाह तआला क दशपिन 54 खदा का अपनल शरदधालओ सल वयवहार 65 हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह

व सलम10

6 पहवतर क़आपिन 197 वही और इलहाम 238 हमारी आसथाए 269 अहमहदया समपरदाय क ससथापक हज़रत

मसीह मौऊद अलहहससलाम का मक़ाम29

10 पहवतर समपरदाय की सथापना और नसीहत 3111 जमाअत को नसीहत 3512 दसरो क परहत कहवचार (बदज़नी) 3613 अहमहदया समपरदाय का भहवषय 3814 अननतम हवजय 3915 रह 3916 मतय क पशात का जीवन 41

IV

17 हवशव क धमपि 4118 गनाह (पाप) 4219 नजात (मनति) 4320 हजहाद (ख़दा तआला क मागपि म सघरपि) 4421 दआ (पराथपिना) 4622 मानवजाहत सल सहानभहत 4623 फ़ररशतल (ईशदत) 4724 याजज माजज और उसकी वासतहवकता 4925 परकाश की ऋत 49

V

1

मनतख़ब तहरीरात

परकाशक की ओर सहज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब (सन 1835-1908 रइ) न

अलह तआल की ओर स सधरक होन की घोषण की और आज रस घोषण पर 129 वषज़ा बीत चक ह आपकी पसतको क उदधरणो क परसतत सकलन क परकशन अहिमदय समपरदय की सद-सल (शतबदी) जमबली क परोगिो क एक महसस ह यह समपरदय आपक िसलिन अनयमययो क वह समपरदय ह मजसको ख़द तआल न सवय क़यि मकय ह

अतयमधक वर और मवरोध बढ़ जन क बवजद यह समपरदय ससर क मवमिनन कतो ि तीवर-गमत स उननमत करत रह और अब 210 दशो ि रसक कनदर समपत हो चक ह और रसलि की यह पमवत धवमन अब आग स आग बढ़ती चली ज रही ह

अहिमदय समपरदय क सदश और उसक िहतव एव परोगिो की जनकरी क मलए शषठ और सगि िगज़ा यह ह मक अहिमदय समपरदय क ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब की घोषणओ को सिझन क यतन मकय जए एक सतय समनशचित एव नययोमचत ढग यह िी ह मक एक सतय क मजजस उन सदहो को जो हदय ि उतपनन हो उसी सधरक की सवय अपनी कमतयो क आलोक ि दर करन क परयस कर जो रिि-िहदी और िसीह िौऊद होन की घोषण करत ह

परसतत सकलन ि गदय-पदय क कछ चन हए उदधरण परसतत मकए गए ह जो िनव-जीवन क मवमिनन पको पर परकश डलत ह एक पढ़न वल स हि आश रखत ह मक वह रस सकलन क अधययन स

2

मनतख़ब तहरीरात

जो एक सधरण स परयस ह आपकी मलखी हरइ अससी स अमधक पसतको क अधययन कर लग कयोमक यह पसतक मवसततत जन और परकशदमयनी ह त मवमिनन रपो ि उसकी आधयशतिक िवनओ को उिरन वली ह

रसलि ि अहिमदय समपरदय क अशसततव अनतरज़ाषटीय ह मजसकी सपन सन 1889 रइ ि क़मदयन ि हरइ रसक ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न घोषण की मक व वही सधरक ह मजनक परदिज़ाव की परतीक मवमिनन धिज़ानययी मिनन-मिनन निो और रपो ि कर रह महनद शी कषण की रइसरइ हज़रत रइस िसीह की और बौदध िहति बदध की और िसलिन रिि िहदी और िसीह िौऊद क आन की परतीक कर रह

ईशवरीय जन त उसी क आदशनसर हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न यह एक कशनतकरी रहसयोदटन मकय मक कवल एक ही lsquolsquoपरमतजत मविमतrsquorsquo (िौऊद शशसयत) परगट होन वली ी जो सिसत धिमो क सधरक (िौऊद अक़वि आलि) क परमतमनमधतव करग उसक परदिज़ाव क उदशय कवल यह मक सिसत िनव जमत को एक अनतरज़ाषटीय और अनतजज़ातीय धिज़ा पर एकत कर आप न रस बत क िी सपषीकरण मकय मक वह परमतजत सधरक सवतनत रप ि परकट न होग अमपत वह रसलि धिज़ा क ससपक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललह अलमह वसलि की शरीअत क अधीन होग

आप यह मवशवस रखत मक रसलि अलह तआल क आमिरी िज़हब (अशनति धिज़ा) और क़आज़ान िजीद कमिल शरीअत त जीवन क सवज़ापकीय मवधन ह रस मलए आपन घोषण की मक वह lsquolsquoपरमतजत सधरकrsquorsquo हज़रत िहमिद िसतफ सललह अलमह वसलि क अधीन

3

मनतख़ब तहरीरात

होग आपन यह िी घोषण की मक आपक यग अनतजज़ातीय धिज़ा की सपन क मलए एक ऐस सवमणज़ाि यग होग मजसक मलए िनषय सवपन दख रह और बड़ी उतसकत क स उसक अमिलषी

सन 1889 रइ ि आपक ख़द तआल की तरफ स परदज़ािव हआ तमक रइशवरीय-समपरदय की नीव रख जो आपक जनि और परदि ज़ाव क उदशयो को पर करन वल हो असत आपन 23 िचज़ा सन 1889 रइ को पजब क एक नगर लमधयन ि उन वयशतियो स बअत ली (अ ज़ात उन वयशतियो को दीमकत मकय) जो आपकी सिी घोषणओ पर मवशवस और रइिन रखत रस परकर एक समपरदय की सपन की घोषण की

रस पसतक क अनवद आदरणीय सययद शहित अली (समहतय रतन) न मकय ह और अब आदरणीय शि िजमहद अहिद शसती आदरणीय फ़रहत अहिद आचयज़ा आदरणीय अली हसन एिए और आदरणीय नसीरल हक़ आचयज़ा न परफ़ रीमडग और रीमवय ि सहयोग मकय ह अलह तआल रन सब को जज़-ए-खर अत कर

अतः रस पसतक को हज़रत िलीफ़तल िसीह िमिस अययदहलह तआल मबनमरिमहल अज़ीज़ की अनिमत स जन सिनय क मलए मवितीय ससकरण क रप ि परकमशत मकय ज रह ह

हमफ़ज़ ििदि शरीफ़ नमज़र नश व रशअत

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मनतख़ब तहरीरात

بسم اہلل الرحمن الرحیم

अलाह तआलाlsquolsquoहिर सवगज़ा हिर ख़द ह हिर जीवन क सवज़ाशषठ आननद हिर

ख़द ि ह कयोमक हि न उसको दख और परतयक सनदरत उसि परइ यह दौलत लन क योगय ह यदयमप परण दन स मिल और यह रतन िरीदन क योगय ह चह समपणज़ा अशसततव खोन स परपत हो ह िहरिो (ह वमचत लोगो) रस रिोत की ओर दौड़ो मक वह तमहरी मपपस शनत करग यह मज़नदगी क चशि (रिोत) ह जो तमह बचएग ि कय कर और मकस परकर रस ख़शिबरी को मदलो ि मबठ द मकस ितदग स बज़रो ि िनदी कर मक तमहर यह ख़द ह तमक लोग सन ल और मकस औषमध स रलज कर तमक सनन क मलए लोगो क कन खल यमद ति ख़द क हो जओग तो मनशचित सिझो मक ख़द तमहर ही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग 19 कशती नह पतषठ-2122) lsquolsquoह सनन वलो सनो मक ख़द ति स कय चहत ह बस

यही मक ति उसी क हो जओ उसक स मकसी को िी सझीदर न बनओ न आकश ि न पतथवी ि हिर ख़द वह ख़द ह जो अब िी मज़नद ह जस मक पहल मज़नद और अब िी वह बोलत ह जस मक वह पहल बोलत वह अब िी सनत ह जस मक पहल सनत यह मवचर मनरधर ह मक रस यग ि वह सनत तो ह मकनत बोलत नही अमपत वह सनत और बोलत िी ह उसकी सिसत शशतिय और मवशषतए अनमद और अनशवर ह कोरइ मवशषत मनशषकय नही न किी होगी वह वही सवज़ा एक ह और उसक कोरइ सझीदर नही मजसक कोरइ बट नही और मजसकी कोरइ पतनी नही वह वही जो अनपि ह

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मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

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मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 5: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

17 हवशव क धमपि 4118 गनाह (पाप) 4219 नजात (मनति) 4320 हजहाद (ख़दा तआला क मागपि म सघरपि) 4421 दआ (पराथपिना) 4622 मानवजाहत सल सहानभहत 4623 फ़ररशतल (ईशदत) 4724 याजज माजज और उसकी वासतहवकता 4925 परकाश की ऋत 49

V

1

मनतख़ब तहरीरात

परकाशक की ओर सहज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब (सन 1835-1908 रइ) न

अलह तआल की ओर स सधरक होन की घोषण की और आज रस घोषण पर 129 वषज़ा बीत चक ह आपकी पसतको क उदधरणो क परसतत सकलन क परकशन अहिमदय समपरदय की सद-सल (शतबदी) जमबली क परोगिो क एक महसस ह यह समपरदय आपक िसलिन अनयमययो क वह समपरदय ह मजसको ख़द तआल न सवय क़यि मकय ह

अतयमधक वर और मवरोध बढ़ जन क बवजद यह समपरदय ससर क मवमिनन कतो ि तीवर-गमत स उननमत करत रह और अब 210 दशो ि रसक कनदर समपत हो चक ह और रसलि की यह पमवत धवमन अब आग स आग बढ़ती चली ज रही ह

अहिमदय समपरदय क सदश और उसक िहतव एव परोगिो की जनकरी क मलए शषठ और सगि िगज़ा यह ह मक अहिमदय समपरदय क ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब की घोषणओ को सिझन क यतन मकय जए एक सतय समनशचित एव नययोमचत ढग यह िी ह मक एक सतय क मजजस उन सदहो को जो हदय ि उतपनन हो उसी सधरक की सवय अपनी कमतयो क आलोक ि दर करन क परयस कर जो रिि-िहदी और िसीह िौऊद होन की घोषण करत ह

परसतत सकलन ि गदय-पदय क कछ चन हए उदधरण परसतत मकए गए ह जो िनव-जीवन क मवमिनन पको पर परकश डलत ह एक पढ़न वल स हि आश रखत ह मक वह रस सकलन क अधययन स

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मनतख़ब तहरीरात

जो एक सधरण स परयस ह आपकी मलखी हरइ अससी स अमधक पसतको क अधययन कर लग कयोमक यह पसतक मवसततत जन और परकशदमयनी ह त मवमिनन रपो ि उसकी आधयशतिक िवनओ को उिरन वली ह

रसलि ि अहिमदय समपरदय क अशसततव अनतरज़ाषटीय ह मजसकी सपन सन 1889 रइ ि क़मदयन ि हरइ रसक ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न घोषण की मक व वही सधरक ह मजनक परदिज़ाव की परतीक मवमिनन धिज़ानययी मिनन-मिनन निो और रपो ि कर रह महनद शी कषण की रइसरइ हज़रत रइस िसीह की और बौदध िहति बदध की और िसलिन रिि िहदी और िसीह िौऊद क आन की परतीक कर रह

ईशवरीय जन त उसी क आदशनसर हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न यह एक कशनतकरी रहसयोदटन मकय मक कवल एक ही lsquolsquoपरमतजत मविमतrsquorsquo (िौऊद शशसयत) परगट होन वली ी जो सिसत धिमो क सधरक (िौऊद अक़वि आलि) क परमतमनमधतव करग उसक परदिज़ाव क उदशय कवल यह मक सिसत िनव जमत को एक अनतरज़ाषटीय और अनतजज़ातीय धिज़ा पर एकत कर आप न रस बत क िी सपषीकरण मकय मक वह परमतजत सधरक सवतनत रप ि परकट न होग अमपत वह रसलि धिज़ा क ससपक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललह अलमह वसलि की शरीअत क अधीन होग

आप यह मवशवस रखत मक रसलि अलह तआल क आमिरी िज़हब (अशनति धिज़ा) और क़आज़ान िजीद कमिल शरीअत त जीवन क सवज़ापकीय मवधन ह रस मलए आपन घोषण की मक वह lsquolsquoपरमतजत सधरकrsquorsquo हज़रत िहमिद िसतफ सललह अलमह वसलि क अधीन

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मनतख़ब तहरीरात

होग आपन यह िी घोषण की मक आपक यग अनतजज़ातीय धिज़ा की सपन क मलए एक ऐस सवमणज़ाि यग होग मजसक मलए िनषय सवपन दख रह और बड़ी उतसकत क स उसक अमिलषी

सन 1889 रइ ि आपक ख़द तआल की तरफ स परदज़ािव हआ तमक रइशवरीय-समपरदय की नीव रख जो आपक जनि और परदि ज़ाव क उदशयो को पर करन वल हो असत आपन 23 िचज़ा सन 1889 रइ को पजब क एक नगर लमधयन ि उन वयशतियो स बअत ली (अ ज़ात उन वयशतियो को दीमकत मकय) जो आपकी सिी घोषणओ पर मवशवस और रइिन रखत रस परकर एक समपरदय की सपन की घोषण की

रस पसतक क अनवद आदरणीय सययद शहित अली (समहतय रतन) न मकय ह और अब आदरणीय शि िजमहद अहिद शसती आदरणीय फ़रहत अहिद आचयज़ा आदरणीय अली हसन एिए और आदरणीय नसीरल हक़ आचयज़ा न परफ़ रीमडग और रीमवय ि सहयोग मकय ह अलह तआल रन सब को जज़-ए-खर अत कर

अतः रस पसतक को हज़रत िलीफ़तल िसीह िमिस अययदहलह तआल मबनमरिमहल अज़ीज़ की अनिमत स जन सिनय क मलए मवितीय ससकरण क रप ि परकमशत मकय ज रह ह

हमफ़ज़ ििदि शरीफ़ नमज़र नश व रशअत

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मनतख़ब तहरीरात

بسم اہلل الرحمن الرحیم

अलाह तआलाlsquolsquoहिर सवगज़ा हिर ख़द ह हिर जीवन क सवज़ाशषठ आननद हिर

ख़द ि ह कयोमक हि न उसको दख और परतयक सनदरत उसि परइ यह दौलत लन क योगय ह यदयमप परण दन स मिल और यह रतन िरीदन क योगय ह चह समपणज़ा अशसततव खोन स परपत हो ह िहरिो (ह वमचत लोगो) रस रिोत की ओर दौड़ो मक वह तमहरी मपपस शनत करग यह मज़नदगी क चशि (रिोत) ह जो तमह बचएग ि कय कर और मकस परकर रस ख़शिबरी को मदलो ि मबठ द मकस ितदग स बज़रो ि िनदी कर मक तमहर यह ख़द ह तमक लोग सन ल और मकस औषमध स रलज कर तमक सनन क मलए लोगो क कन खल यमद ति ख़द क हो जओग तो मनशचित सिझो मक ख़द तमहर ही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग 19 कशती नह पतषठ-2122) lsquolsquoह सनन वलो सनो मक ख़द ति स कय चहत ह बस

यही मक ति उसी क हो जओ उसक स मकसी को िी सझीदर न बनओ न आकश ि न पतथवी ि हिर ख़द वह ख़द ह जो अब िी मज़नद ह जस मक पहल मज़नद और अब िी वह बोलत ह जस मक वह पहल बोलत वह अब िी सनत ह जस मक पहल सनत यह मवचर मनरधर ह मक रस यग ि वह सनत तो ह मकनत बोलत नही अमपत वह सनत और बोलत िी ह उसकी सिसत शशतिय और मवशषतए अनमद और अनशवर ह कोरइ मवशषत मनशषकय नही न किी होगी वह वही सवज़ा एक ह और उसक कोरइ सझीदर नही मजसक कोरइ बट नही और मजसकी कोरइ पतनी नही वह वही जो अनपि ह

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मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

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मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 6: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

परकाशक की ओर सहज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब (सन 1835-1908 रइ) न

अलह तआल की ओर स सधरक होन की घोषण की और आज रस घोषण पर 129 वषज़ा बीत चक ह आपकी पसतको क उदधरणो क परसतत सकलन क परकशन अहिमदय समपरदय की सद-सल (शतबदी) जमबली क परोगिो क एक महसस ह यह समपरदय आपक िसलिन अनयमययो क वह समपरदय ह मजसको ख़द तआल न सवय क़यि मकय ह

अतयमधक वर और मवरोध बढ़ जन क बवजद यह समपरदय ससर क मवमिनन कतो ि तीवर-गमत स उननमत करत रह और अब 210 दशो ि रसक कनदर समपत हो चक ह और रसलि की यह पमवत धवमन अब आग स आग बढ़ती चली ज रही ह

अहिमदय समपरदय क सदश और उसक िहतव एव परोगिो की जनकरी क मलए शषठ और सगि िगज़ा यह ह मक अहिमदय समपरदय क ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब की घोषणओ को सिझन क यतन मकय जए एक सतय समनशचित एव नययोमचत ढग यह िी ह मक एक सतय क मजजस उन सदहो को जो हदय ि उतपनन हो उसी सधरक की सवय अपनी कमतयो क आलोक ि दर करन क परयस कर जो रिि-िहदी और िसीह िौऊद होन की घोषण करत ह

परसतत सकलन ि गदय-पदय क कछ चन हए उदधरण परसतत मकए गए ह जो िनव-जीवन क मवमिनन पको पर परकश डलत ह एक पढ़न वल स हि आश रखत ह मक वह रस सकलन क अधययन स

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मनतख़ब तहरीरात

जो एक सधरण स परयस ह आपकी मलखी हरइ अससी स अमधक पसतको क अधययन कर लग कयोमक यह पसतक मवसततत जन और परकशदमयनी ह त मवमिनन रपो ि उसकी आधयशतिक िवनओ को उिरन वली ह

रसलि ि अहिमदय समपरदय क अशसततव अनतरज़ाषटीय ह मजसकी सपन सन 1889 रइ ि क़मदयन ि हरइ रसक ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न घोषण की मक व वही सधरक ह मजनक परदिज़ाव की परतीक मवमिनन धिज़ानययी मिनन-मिनन निो और रपो ि कर रह महनद शी कषण की रइसरइ हज़रत रइस िसीह की और बौदध िहति बदध की और िसलिन रिि िहदी और िसीह िौऊद क आन की परतीक कर रह

ईशवरीय जन त उसी क आदशनसर हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न यह एक कशनतकरी रहसयोदटन मकय मक कवल एक ही lsquolsquoपरमतजत मविमतrsquorsquo (िौऊद शशसयत) परगट होन वली ी जो सिसत धिमो क सधरक (िौऊद अक़वि आलि) क परमतमनमधतव करग उसक परदिज़ाव क उदशय कवल यह मक सिसत िनव जमत को एक अनतरज़ाषटीय और अनतजज़ातीय धिज़ा पर एकत कर आप न रस बत क िी सपषीकरण मकय मक वह परमतजत सधरक सवतनत रप ि परकट न होग अमपत वह रसलि धिज़ा क ससपक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललह अलमह वसलि की शरीअत क अधीन होग

आप यह मवशवस रखत मक रसलि अलह तआल क आमिरी िज़हब (अशनति धिज़ा) और क़आज़ान िजीद कमिल शरीअत त जीवन क सवज़ापकीय मवधन ह रस मलए आपन घोषण की मक वह lsquolsquoपरमतजत सधरकrsquorsquo हज़रत िहमिद िसतफ सललह अलमह वसलि क अधीन

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मनतख़ब तहरीरात

होग आपन यह िी घोषण की मक आपक यग अनतजज़ातीय धिज़ा की सपन क मलए एक ऐस सवमणज़ाि यग होग मजसक मलए िनषय सवपन दख रह और बड़ी उतसकत क स उसक अमिलषी

सन 1889 रइ ि आपक ख़द तआल की तरफ स परदज़ािव हआ तमक रइशवरीय-समपरदय की नीव रख जो आपक जनि और परदि ज़ाव क उदशयो को पर करन वल हो असत आपन 23 िचज़ा सन 1889 रइ को पजब क एक नगर लमधयन ि उन वयशतियो स बअत ली (अ ज़ात उन वयशतियो को दीमकत मकय) जो आपकी सिी घोषणओ पर मवशवस और रइिन रखत रस परकर एक समपरदय की सपन की घोषण की

रस पसतक क अनवद आदरणीय सययद शहित अली (समहतय रतन) न मकय ह और अब आदरणीय शि िजमहद अहिद शसती आदरणीय फ़रहत अहिद आचयज़ा आदरणीय अली हसन एिए और आदरणीय नसीरल हक़ आचयज़ा न परफ़ रीमडग और रीमवय ि सहयोग मकय ह अलह तआल रन सब को जज़-ए-खर अत कर

अतः रस पसतक को हज़रत िलीफ़तल िसीह िमिस अययदहलह तआल मबनमरिमहल अज़ीज़ की अनिमत स जन सिनय क मलए मवितीय ससकरण क रप ि परकमशत मकय ज रह ह

हमफ़ज़ ििदि शरीफ़ नमज़र नश व रशअत

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मनतख़ब तहरीरात

بسم اہلل الرحمن الرحیم

अलाह तआलाlsquolsquoहिर सवगज़ा हिर ख़द ह हिर जीवन क सवज़ाशषठ आननद हिर

ख़द ि ह कयोमक हि न उसको दख और परतयक सनदरत उसि परइ यह दौलत लन क योगय ह यदयमप परण दन स मिल और यह रतन िरीदन क योगय ह चह समपणज़ा अशसततव खोन स परपत हो ह िहरिो (ह वमचत लोगो) रस रिोत की ओर दौड़ो मक वह तमहरी मपपस शनत करग यह मज़नदगी क चशि (रिोत) ह जो तमह बचएग ि कय कर और मकस परकर रस ख़शिबरी को मदलो ि मबठ द मकस ितदग स बज़रो ि िनदी कर मक तमहर यह ख़द ह तमक लोग सन ल और मकस औषमध स रलज कर तमक सनन क मलए लोगो क कन खल यमद ति ख़द क हो जओग तो मनशचित सिझो मक ख़द तमहर ही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग 19 कशती नह पतषठ-2122) lsquolsquoह सनन वलो सनो मक ख़द ति स कय चहत ह बस

यही मक ति उसी क हो जओ उसक स मकसी को िी सझीदर न बनओ न आकश ि न पतथवी ि हिर ख़द वह ख़द ह जो अब िी मज़नद ह जस मक पहल मज़नद और अब िी वह बोलत ह जस मक वह पहल बोलत वह अब िी सनत ह जस मक पहल सनत यह मवचर मनरधर ह मक रस यग ि वह सनत तो ह मकनत बोलत नही अमपत वह सनत और बोलत िी ह उसकी सिसत शशतिय और मवशषतए अनमद और अनशवर ह कोरइ मवशषत मनशषकय नही न किी होगी वह वही सवज़ा एक ह और उसक कोरइ सझीदर नही मजसक कोरइ बट नही और मजसकी कोरइ पतनी नही वह वही जो अनपि ह

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मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

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मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 7: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

जो एक सधरण स परयस ह आपकी मलखी हरइ अससी स अमधक पसतको क अधययन कर लग कयोमक यह पसतक मवसततत जन और परकशदमयनी ह त मवमिनन रपो ि उसकी आधयशतिक िवनओ को उिरन वली ह

रसलि ि अहिमदय समपरदय क अशसततव अनतरज़ाषटीय ह मजसकी सपन सन 1889 रइ ि क़मदयन ि हरइ रसक ससपक हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न घोषण की मक व वही सधरक ह मजनक परदिज़ाव की परतीक मवमिनन धिज़ानययी मिनन-मिनन निो और रपो ि कर रह महनद शी कषण की रइसरइ हज़रत रइस िसीह की और बौदध िहति बदध की और िसलिन रिि िहदी और िसीह िौऊद क आन की परतीक कर रह

ईशवरीय जन त उसी क आदशनसर हज़रत मिज़ज़ा ग़लि अहिद समहब न यह एक कशनतकरी रहसयोदटन मकय मक कवल एक ही lsquolsquoपरमतजत मविमतrsquorsquo (िौऊद शशसयत) परगट होन वली ी जो सिसत धिमो क सधरक (िौऊद अक़वि आलि) क परमतमनमधतव करग उसक परदिज़ाव क उदशय कवल यह मक सिसत िनव जमत को एक अनतरज़ाषटीय और अनतजज़ातीय धिज़ा पर एकत कर आप न रस बत क िी सपषीकरण मकय मक वह परमतजत सधरक सवतनत रप ि परकट न होग अमपत वह रसलि धिज़ा क ससपक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललह अलमह वसलि की शरीअत क अधीन होग

आप यह मवशवस रखत मक रसलि अलह तआल क आमिरी िज़हब (अशनति धिज़ा) और क़आज़ान िजीद कमिल शरीअत त जीवन क सवज़ापकीय मवधन ह रस मलए आपन घोषण की मक वह lsquolsquoपरमतजत सधरकrsquorsquo हज़रत िहमिद िसतफ सललह अलमह वसलि क अधीन

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मनतख़ब तहरीरात

होग आपन यह िी घोषण की मक आपक यग अनतजज़ातीय धिज़ा की सपन क मलए एक ऐस सवमणज़ाि यग होग मजसक मलए िनषय सवपन दख रह और बड़ी उतसकत क स उसक अमिलषी

सन 1889 रइ ि आपक ख़द तआल की तरफ स परदज़ािव हआ तमक रइशवरीय-समपरदय की नीव रख जो आपक जनि और परदि ज़ाव क उदशयो को पर करन वल हो असत आपन 23 िचज़ा सन 1889 रइ को पजब क एक नगर लमधयन ि उन वयशतियो स बअत ली (अ ज़ात उन वयशतियो को दीमकत मकय) जो आपकी सिी घोषणओ पर मवशवस और रइिन रखत रस परकर एक समपरदय की सपन की घोषण की

रस पसतक क अनवद आदरणीय सययद शहित अली (समहतय रतन) न मकय ह और अब आदरणीय शि िजमहद अहिद शसती आदरणीय फ़रहत अहिद आचयज़ा आदरणीय अली हसन एिए और आदरणीय नसीरल हक़ आचयज़ा न परफ़ रीमडग और रीमवय ि सहयोग मकय ह अलह तआल रन सब को जज़-ए-खर अत कर

अतः रस पसतक को हज़रत िलीफ़तल िसीह िमिस अययदहलह तआल मबनमरिमहल अज़ीज़ की अनिमत स जन सिनय क मलए मवितीय ससकरण क रप ि परकमशत मकय ज रह ह

हमफ़ज़ ििदि शरीफ़ नमज़र नश व रशअत

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मनतख़ब तहरीरात

بسم اہلل الرحمن الرحیم

अलाह तआलाlsquolsquoहिर सवगज़ा हिर ख़द ह हिर जीवन क सवज़ाशषठ आननद हिर

ख़द ि ह कयोमक हि न उसको दख और परतयक सनदरत उसि परइ यह दौलत लन क योगय ह यदयमप परण दन स मिल और यह रतन िरीदन क योगय ह चह समपणज़ा अशसततव खोन स परपत हो ह िहरिो (ह वमचत लोगो) रस रिोत की ओर दौड़ो मक वह तमहरी मपपस शनत करग यह मज़नदगी क चशि (रिोत) ह जो तमह बचएग ि कय कर और मकस परकर रस ख़शिबरी को मदलो ि मबठ द मकस ितदग स बज़रो ि िनदी कर मक तमहर यह ख़द ह तमक लोग सन ल और मकस औषमध स रलज कर तमक सनन क मलए लोगो क कन खल यमद ति ख़द क हो जओग तो मनशचित सिझो मक ख़द तमहर ही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग 19 कशती नह पतषठ-2122) lsquolsquoह सनन वलो सनो मक ख़द ति स कय चहत ह बस

यही मक ति उसी क हो जओ उसक स मकसी को िी सझीदर न बनओ न आकश ि न पतथवी ि हिर ख़द वह ख़द ह जो अब िी मज़नद ह जस मक पहल मज़नद और अब िी वह बोलत ह जस मक वह पहल बोलत वह अब िी सनत ह जस मक पहल सनत यह मवचर मनरधर ह मक रस यग ि वह सनत तो ह मकनत बोलत नही अमपत वह सनत और बोलत िी ह उसकी सिसत शशतिय और मवशषतए अनमद और अनशवर ह कोरइ मवशषत मनशषकय नही न किी होगी वह वही सवज़ा एक ह और उसक कोरइ सझीदर नही मजसक कोरइ बट नही और मजसकी कोरइ पतनी नही वह वही जो अनपि ह

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मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

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मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 8: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

होग आपन यह िी घोषण की मक आपक यग अनतजज़ातीय धिज़ा की सपन क मलए एक ऐस सवमणज़ाि यग होग मजसक मलए िनषय सवपन दख रह और बड़ी उतसकत क स उसक अमिलषी

सन 1889 रइ ि आपक ख़द तआल की तरफ स परदज़ािव हआ तमक रइशवरीय-समपरदय की नीव रख जो आपक जनि और परदि ज़ाव क उदशयो को पर करन वल हो असत आपन 23 िचज़ा सन 1889 रइ को पजब क एक नगर लमधयन ि उन वयशतियो स बअत ली (अ ज़ात उन वयशतियो को दीमकत मकय) जो आपकी सिी घोषणओ पर मवशवस और रइिन रखत रस परकर एक समपरदय की सपन की घोषण की

रस पसतक क अनवद आदरणीय सययद शहित अली (समहतय रतन) न मकय ह और अब आदरणीय शि िजमहद अहिद शसती आदरणीय फ़रहत अहिद आचयज़ा आदरणीय अली हसन एिए और आदरणीय नसीरल हक़ आचयज़ा न परफ़ रीमडग और रीमवय ि सहयोग मकय ह अलह तआल रन सब को जज़-ए-खर अत कर

अतः रस पसतक को हज़रत िलीफ़तल िसीह िमिस अययदहलह तआल मबनमरिमहल अज़ीज़ की अनिमत स जन सिनय क मलए मवितीय ससकरण क रप ि परकमशत मकय ज रह ह

हमफ़ज़ ििदि शरीफ़ नमज़र नश व रशअत

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मनतख़ब तहरीरात

بسم اہلل الرحمن الرحیم

अलाह तआलाlsquolsquoहिर सवगज़ा हिर ख़द ह हिर जीवन क सवज़ाशषठ आननद हिर

ख़द ि ह कयोमक हि न उसको दख और परतयक सनदरत उसि परइ यह दौलत लन क योगय ह यदयमप परण दन स मिल और यह रतन िरीदन क योगय ह चह समपणज़ा अशसततव खोन स परपत हो ह िहरिो (ह वमचत लोगो) रस रिोत की ओर दौड़ो मक वह तमहरी मपपस शनत करग यह मज़नदगी क चशि (रिोत) ह जो तमह बचएग ि कय कर और मकस परकर रस ख़शिबरी को मदलो ि मबठ द मकस ितदग स बज़रो ि िनदी कर मक तमहर यह ख़द ह तमक लोग सन ल और मकस औषमध स रलज कर तमक सनन क मलए लोगो क कन खल यमद ति ख़द क हो जओग तो मनशचित सिझो मक ख़द तमहर ही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग 19 कशती नह पतषठ-2122) lsquolsquoह सनन वलो सनो मक ख़द ति स कय चहत ह बस

यही मक ति उसी क हो जओ उसक स मकसी को िी सझीदर न बनओ न आकश ि न पतथवी ि हिर ख़द वह ख़द ह जो अब िी मज़नद ह जस मक पहल मज़नद और अब िी वह बोलत ह जस मक वह पहल बोलत वह अब िी सनत ह जस मक पहल सनत यह मवचर मनरधर ह मक रस यग ि वह सनत तो ह मकनत बोलत नही अमपत वह सनत और बोलत िी ह उसकी सिसत शशतिय और मवशषतए अनमद और अनशवर ह कोरइ मवशषत मनशषकय नही न किी होगी वह वही सवज़ा एक ह और उसक कोरइ सझीदर नही मजसक कोरइ बट नही और मजसकी कोरइ पतनी नही वह वही जो अनपि ह

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मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

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मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 9: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

بسم اہلل الرحمن الرحیم

अलाह तआलाlsquolsquoहिर सवगज़ा हिर ख़द ह हिर जीवन क सवज़ाशषठ आननद हिर

ख़द ि ह कयोमक हि न उसको दख और परतयक सनदरत उसि परइ यह दौलत लन क योगय ह यदयमप परण दन स मिल और यह रतन िरीदन क योगय ह चह समपणज़ा अशसततव खोन स परपत हो ह िहरिो (ह वमचत लोगो) रस रिोत की ओर दौड़ो मक वह तमहरी मपपस शनत करग यह मज़नदगी क चशि (रिोत) ह जो तमह बचएग ि कय कर और मकस परकर रस ख़शिबरी को मदलो ि मबठ द मकस ितदग स बज़रो ि िनदी कर मक तमहर यह ख़द ह तमक लोग सन ल और मकस औषमध स रलज कर तमक सनन क मलए लोगो क कन खल यमद ति ख़द क हो जओग तो मनशचित सिझो मक ख़द तमहर ही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग 19 कशती नह पतषठ-2122) lsquolsquoह सनन वलो सनो मक ख़द ति स कय चहत ह बस

यही मक ति उसी क हो जओ उसक स मकसी को िी सझीदर न बनओ न आकश ि न पतथवी ि हिर ख़द वह ख़द ह जो अब िी मज़नद ह जस मक पहल मज़नद और अब िी वह बोलत ह जस मक वह पहल बोलत वह अब िी सनत ह जस मक पहल सनत यह मवचर मनरधर ह मक रस यग ि वह सनत तो ह मकनत बोलत नही अमपत वह सनत और बोलत िी ह उसकी सिसत शशतिय और मवशषतए अनमद और अनशवर ह कोरइ मवशषत मनशषकय नही न किी होगी वह वही सवज़ा एक ह और उसक कोरइ सझीदर नही मजसक कोरइ बट नही और मजसकी कोरइ पतनी नही वह वही जो अनपि ह

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मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

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मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 10: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

मजसक सिन दसर कोरइ नहीमजसकी मवशषतओ की बरबरी करन वल कोरइ नही और मजसकी कोरइ शशति कि नही वह मनकट ह बवजद दर होन क और दर ह बवजद मनकट होन क वह सब स ऊपर ह मकनत नही कह सकत मक उसक नीच कोरइ और िी ह और वह आकश पर ह मकनत नही कह सकत मक पतथवी पर नही वह पज ह सवज़ारपी सिसत मवशषतओ क और िज़हर (पररप) ह सिसत वसतमवक परशसओ क और रिोत ह सिसत खमबयो क और सकलन ह सिसत शशतियो क और रिोत ह सिसत बरकतो क परतयक वसत उसी की ओर लौटन वली ह वह परतयक दश क सविी ह वह हर परकर क किल स अलकत ह त हर परकर क दोष और दबज़ालत स पमवत ह और रस बत ि वह मवमशष ह मक पतथवी और आकश वल उसकी उपसन करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309-310)

अलाह तआला क दशशनlsquolsquoमजसको सनदहो स छटकर नही उसको अज़ब स िी छटकर

नही जो वयशति रस जगत ि अलह तआल क दशज़ान करन स वमचत ह वह परलय क मदन िी अनधकर ि मगरग

ख़द क कन ह-ۃاعمی

خر

من کان ف ھذہ اعمی فھو ف الارسائیل73) (بین

अज़ात - lsquolsquoजो वयशति रस लोक ि अनध होग वह परलोक ि िी अनध होगrsquorsquo (बनी ररिरइल 73)

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-65)

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मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 11: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

ख़दा का अपन शरदालओ स वयवहारlsquolsquoवसतव ि वह ख़द बड़ ज़बरदसत और सवज़ाशशतििन ह मजसकी

तरफ परि और शदध स झकन वल कदमप नष नही मकए जत शत कहत ह मक ि अपनी योजनओ स उसको नष कर द और अमहतषी चहत ह मक ि उनको कचल डल िगर ख़द कहत ह मक ह िखज़ा कय त िर स लड़ग और िर पयर को त नष कर सकग वसतव ि पतथवी पर कछ नही हो सकत िगर वही जो आसिन पर पहल हो चक ह पतथवी क कोरइ ह उसस अमधक लमब नही हो सकत मजतन मक वह आसिन पर लमब मकय गय ह अत अतयचर की योजनए बनन वल सवज़ा िखज़ा ह जो अपनी घतणसपद और लजसपद योजनओ क सिय अलह की उस िहन सत को यद नही रखत मजसक ररद क मबन एक पत िी मगर नही सकत अत वह अपन ररदो ि सदव असफल और लशजत रहत ह और उनक कचको स सतयवमदयो को कोरइ हमन नही पहचती अमपत अलह क चितकर परकट होत ह त िनव सिज ि रइशवर को पहचनन की शशति बढ़ती ह वह सवज़ाशशतििन और हर परकर स सिज़ा अलह यदयमप रन िौमतक नतो स मदखरइ नही दत मकनत अपन अलौमकक चितकरो स सवय को परकट कर दत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 िमिक मकतबल बरीय पतषठ-19-20)lsquolsquoख़द आसिनो और ज़िीन क नर (परकश) ह अज़ात परतयक

परकश जो ऊचरइ और नीचरइ ि मदखरइ दत ह चह आतिओ ि ह अव शरीरो ि चह मनजी ह अव पमज़ाव चह वह परकट रप ि ह अव परचछनन रप ि चह िनमसक ह अव बहय उसकी कप क दन ह यह रस बत की ओर सकत ह मक सिसत बरहणड क उस िहन रिष और पलनहर अलह की अपर बरकत परतयक वसत

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 12: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

पर छरइ हरइ ह और कोरइ िी उस बरकत स वमचत नही वही सिी वदनयतओ क रिोत और सिसत परकशो क आमद करण और सिसत कपओ क उदगि सन सतोत ह उसकी िहन सत समपणज़ा बरहणड को शसर रखन वली ह त सिसत तचछ-िहन क मलए शरण ही वही ह मजसन परतयक वसत को अशसततवहीन अनधकर स बहर मनकल कर अशसततव रप परदन मकय उसक अमतररति कोरइ ऐसी सत नही ह जो अपन आप ि सयोगय और सवयि हो अव उसस लि न उठती हो अमपत पतथवी और आकश िनषय और अनय जीवधरी त पतर और वतक एव आति और शरीर सब उसी की अनगह स अशसततव ि आए ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय फट नोट 191-192)हमदो सन उसी को जो ज़त-जमवदनी हिसर नही ह उसक कोरइ न कोरइ सनी

बक़ी वही हिश ग़र उसक सब ह फ़नी

ग़रो स मदल लगन झठी ह सब कहनीसब ग़र ह वही ह रक मदल क यर-ए-जनी

मदल ि िर यही ह सबहन िययरनी

सब क वही सहर रहित ह आशकर

हिको वही पयर मदलबर वही हिरउस मबन नही गज़र गर उसक झठ सर यह रोज़कर िबरक सबहन िययरनी

(रहनी िज़यन िग-12 िहिद की आिीन पतषठ-319)

हमदो सन = सब परकर की परशसए ज़त जवदनी = सदव रहन वली सत हिसर = सिन सनी = दसर फ़नी = नशवन यर-ए-जनी = हमदज़ाक दशिन सबहन िययरनी = वह सत पमवत ह मजसन िझ पर यह कप दशष की रहित ह आशकर = उसकी कप सपष ह

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 13: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

lsquolsquoि सच-सच कहत ह मक यमद आतिओ ि सची खोज पद हो और मदलो ि सची पयस लग जए तो लोग रस िगज़ा को ढढ और रस िगज़ा की तलश कर मकनत यह िगज़ा मकस परकर खलग और यह पदज़ा मकस दव स उठग ि सिसत मजजसओ को मवशवस मदलत ह मक कवल रसलि ही ह जो रस िगज़ा की शि सचन दत ह दसरी कौि तो ख़द क रलहि (रइशवणी) पर लमब सिय स ही िहर लग चकी ह अत मनसनदह सिझो मक यह अलह की ओर स िहर नही बशलक वमचत रहन क करण िनषय एक बहन बन लत ह और मनचियपवज़ाक यह सिझो मक मजस परकर यह समिव नही मक हि मबन नतो क दख सक य मबन कनो क सन सक य मबन जीि क बोल सक उसी परकर यह िी समिव नही मक मबन क़आज़ान क उस पयर िहबब (परि मपरय ख़द) क दशज़ान कर सक ि जवन अब बढ़ हआ लमकन िन कोरइ न पय मजसन रस पमवत रिोत क मबन रस खल-खल बरहजन क अिततपन मकय हो

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-442-43)(1) मकस क़दर ज़महर ह नर उस िबदउल अनवर क बन रह ह सर आलि आरइन अबसर क(2) चद को कल दख कर ि सत बकल हो गय कयोमक कछ कछ मनश उसि जिल यर क (3) उस बहर हसन क मदल ि हिर जोश ह ित करो कछ मज़क हि स तकक य ततर क (4) ह अजब जलव तरी क़दरत क पयर हर तरफ

िबदउल अनवर = जयोमत क रिोत आलि = बरहणड आरइन अबसर क = आखो क दपज़ाण जिल यर = परिी क सौनदयज़ा बहर हसन = हसन की बहर

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 14: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

मजस तरफ़ दख वही रह ह तर दीदर क (5) चशिए खशशीद7 ि िौज8 तरी िशहद ह हर मसतर ि तिश ह तरी चिकर क (6) तन खद रहो प अपन ह स मछड़क निक रसस ह शोर िोहबबत आमशकन ज़र क(7) कय अजब तन हर रक ज़रर ि रख ह िवस कौन पढ़ सकत ह सर दफ़तर उन असरर क (8) तरी क़दरत क कोरइ िी रशनतह पत नहीमकस स खल सकत ह पच रस उक़दए दशवर क (9) खबरयो ि िलहत ह तर उस हसन की हर गलो गलशन ि ह रग उस तरी गलज़र क (10) चशि िसत हर हसी हर दि मदखती ह तझ ह ह तरी तरफ हर गसए ििदर क

(रहनी िज़यन िग-2 पतषठ-52 सिज़ा चषि आयज़ा पतषठ-4) lsquolsquoतौहीद एक नर ह जो बहय एव आनतररक (िौमतक) उपसयो की

सिपती क पचित हदय ि पद होत ह और िति क अशसततव क रोि-रोि ि सि जत ह असत वह मबन ख़द और उसक रसल क विर िनषय अपनी शशति स मकस परकर परपत कर सकत ह िनषय क कवल यह कयज़ा ह मक अपन अह पर िततय लव एव रकसीय घिणडो को तयग द मक ि िहजनी और बड़ मवविन ह और अपन आप को एक अजनी की तरह सिझ ल और दआ ि लग रह तब तौहीद क नर ख़द की तरफ दीदर = दशज़ान चशिय खशशीद = सयज़ा मक मकरण िौज = लहर िशहद = मदखरइ दत ह आमशकन ज़र = परि ि मदवन िवस = मवशषतए असरर = रहसय उक़दए दशवर = कमठन सिसय खबरओ = सनदर चहर वल िलहत = सलोनपन गसए ििदर = टढी जलफ

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 15: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

स उस पर परकट होग और एक नय जीवन उस परदन करगrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वहयी पतषठ-148)

lsquolsquoवह ख़द अतयनत वफ़दर ख़द ह वफ़दरी क मलए उसक मवमचत कयज़ा परकट होत ह दमनय चहती ह मक उनको ख जए और परतयक शत उन पर दत पीसत ह मकनत वह जो उनक मित ह परतयक खतर क सन पर उनकी रक करत ह त परतयक कत ि उनको मवजयी करत ह कय ही सौिगयशली वह वयशति ह जो उस ख़द स अपन समबनध न तोड़rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ- 20)

हज़रत महममद मसतफ़ा सललाहो अलहह व सलम

lsquolsquoवह सवज़ाशषठ परकश जो िनव को मदय गय- अज़ात पणज़ा िनव (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) को वह फररशतो ि नही मसतरो ि नही चनदरि ि नही सयज़ा ि िी नही वह पतथवी पर फल हए सिदरो और नमदयो ि िी नही वह िरकत-िमण नीलि -िमण रतन अव मकसी िमणक िोती ि िी नही अज़ात पतथवी और आकश की मकसी वसत ि नही कवल िनव ि ह उस पणज़ा िनव ि मजसक अशनति और समपणज़ा और सवज़ाशषठ एव सववोच रप सिसत िनव-सिज क सविी त सिसत पग़मबरो क सरदर हिर हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ह सो वह परकश उस िहपरष को मदय गय त योगयतनसर उसक अनरप उन सिी लोगो को िी मदय गय जो मकसी सीि तक वही रग रखत और यह शन शषठति एव पणज़ा रप ि हिर सविी

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 16: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

हिर उमिी प-परदशज़ाक नबी सतयवरती एव सतय की कसौटी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि परइ जती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ 160-162) lsquolsquoि सदव आचियज़ा स दखत ह मक यह अरबी lsquoनबीrsquo मजसक नि

िहमिद ह (हज़र हज़र दरद और सलि उस पर) यह कस सववोच सतर क नबी ह रसक िहन सतर की चरि-सीि की जनकरी समिव नही और रसक पवन परिव क अनिन करन िनषय क कयज़ा नही खद ह मक पहचनन क जो ढग ह (उसक अनसर) उसक सन को पहचन नही गय वह lsquoतौहीदrsquo (अलह तआल क अवित एव मनरकर होन क मसदधनत) जो ससर स लपत हो चकी ी वही एक पहलवन ह जो पन उसको दमनय ि लय उसन अलह स चरि-सीि तक परि मकय और चरि-सीि तक िनव जमत की सहनिमत ि उसक हदय दरमवत हआ अत अलह न जो उसक हदय क रहसयो को जनत - उसको सिसत पग़मबरो और सिी ित-िमवषयकलीन िनवो पर शषठत परदन की और उसकी िनोकिनओ को उसक जीवन ि ही पर मकयrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हक़ीक़तल वही पतषठ 118-119)lsquolsquoहिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि

सिसत नमबयो क नि अपन अनदर एकत रखत ह कयोमक वह पवन मविती मवमिनन मवशषतओ और योगयतओ क सिह ह अत वह िस िी ह और रइस िी आदि िी ह और रबरहीि िी यसफ िी ह और यकब िी रसी की ओर सकत करत हए अलह फ़िज़ात ह-

(अनआि - 91) فبھداھم اقتدہअज़ात ह अलह क रसल त उन सिसत मवमिनन मशकओ को

अपन वयशतितव ि एकत कर ल जो परतयक पग़मबर मवशष रप ि अपन

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 17: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

स रखत असत रस स मसदध ह मक सिसत पग़मबरो की मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत ी और यज़ा ि िहमिद क नि (सललहो अलमह व सलि) रसी की ओर सकत करत ह कयोमक िहमिद क यह अज़ा ह मक मजस की अतयमधक परशस की गरइ हो अतयमधक परशस तिी कशलपत की ज सकती ह मक सिसत नमबयो की मवमिनन सिथयज़ा और मवमशष मवशषतए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि ि एकत होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-ए-किलत-ए-रसलि पतषठ-343)lsquolsquoिझ सिझय गय ह मक सब रसलो ि स कमिल तलीि (पणज़ा

मशक) दन वल और शषठति एव पमवत और सरगमिज़ात (पर महकित) मशक दन वल और सववोच िनवीय योगयतओ क अपन जीवन ि मकयतिक आदशज़ा उपशसत करन वल हिर सविी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन न-1 पतषठ-345)lsquolsquoहि जब नयय की दशष स दखत ह तो समपणज़ा नमबयो ि स

शषठति वीर-मशरोिमण नबी (अवतर) और जीवन की समपणज़ा शषठतओ स अलकत ख़द तआल क परि मपरय नबी कवल एक िदज़ा को जनत ह अज़ात वही नमबयो क सरदर रसलो क गवज़ा पग़मबरो क मसरिौर मजसक नि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-82)lsquolsquoवह जो अरब क िरसलीय दश ि एक आचियज़ा जनक घटन

हरइ मक लखो िदर ोड़ ही मदनो ि जीमवत हो गए और पीमढ़यो क मबगड़ ईलही-रग पकड़ गए त आखो क अनध सजख हो गए िको की वणी स ईशवरीय ततव-जन की चचज़ा होन लगी और ससर ि दखत ही

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 18: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

दखत एक ऐसी कशनत उतपनन हरइ मक न पहल उस स मकसी आख न दखी और न मकसी कन न सनी कछ जनत हो वह कय वह एक अलह ि लीन और उसी ि खोए हए की अधरी रतो की दआए ही ी मजनहोन दमनय ि शोर िच मदय और वह आचियज़ाजनक कयज़ा मकए जो उस मनरकर (हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि) असहय और सधनहीन वयशति स असमिव मदखरइ दत -

ہ وحزنہ ہ وغم م وبارک علیہ وال بعددھم صل وسل ھ الل

بد

علیہ انوار رحمتک ال الۃوانزل م

لھذہ ال

अज़ात ह िर अलह हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि और आपक सिसत अनयमययो पर रहित और सलिती और बरकत नमज़ल फ़िज़ा मजस न रस उमित िशसलि (रसलि) क मलए कष उठए और यतनए सही और आप पर अपनी रहित की वषज़ा सदव बरस तसत rsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-6 बरकतदआ पतषठ-1011)lsquolsquoसिसत िनव जमत क मलए हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो

अलमह व सलि क अमतररति अब कोरइ रसल और lsquoशफ़ी (अज़ात मसफ़ररश करन वल) नही सो ति कोमशश करो मक सच पयर उस िहन परतपी नबी क स रखो और मकसी को उस पर मकसी परकर की बड़रइ ित दो तमक आसिन पर ति िशति परपत करन वल मलख जओ यद रखो मक िशति वह वसत नही जो िततय क पचित परकट होगी अमपत वसतमवक िशति वह होगी जो रसी जगत ि अपनी जयोमत मदखती ह िशति परपत कौन ह वह जो मवशवस रखत ह मक ख़द सच ह और िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह वसलि उसि और समपणज़ा सतशष क िधय ि lsquolsquoशफ़ीrsquorsquo (मसफ़ररश करन वल) ह और आसिन

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 19: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

क नीच उसक सिन सतर क कोरइ अनय रसल ह और न क़आज़ान क सिकक कोरइ अनय पसतक ह और मकसी क मलए ख़द न न चह मक वह हिश जीमवत रह मकनत यह सपरमतशषठत नबी हिश क मलए जीमवत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ 13-14)lsquolsquoहज़रत ितिल अशमबय िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व

सलि क जीवन क अधययन स यह बत पणज़ा रप स ससपष ह मक आ हज़रत उचकोमट मनशछल एव सतयवदी आपकी िवनए शदध और अनतरति पमवत ी और ख़द क िगज़ा ि आति बमलदन क मलए सदव ततपर रहत त िनव जमत स िय और आश स मनतनत िह फरन वल और एक ित ख़द पर िरोस करन वल आपन ख़द की रचछ और उसकी िज़शी ि लीन होकर और अपन अशसततव को मिट कर रस बत की कछ िी परवह न की मक lsquoतौहीदrsquo (ईशवर क एक और मनरकर होन क मसदधनत) की घोषण करन क पररणि सवरप मकन मकन मवपमतयो क सिन करन पड़ग और िमशको (रशवरतर दवी दवतओ और सतशष की पज करन वलो) क ह स कसी कसी पीड़ और कष झलन होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-111)lsquolsquoकय यह आचियज़ा-जनक घटन नही मक एक मनधज़ान अशति

मनससहय-मनरपय मनरकर अन अकल और मनरीह वयशति ऐस यग ि मक मजसि परतयक जमत आमज़ाक समनक और बौमदधक (मशक समबनधी) दशष स पणज़ा शशतिशली ी-ऐसी अनपि मशक लय मक अपन अकटय तकमो ओर जवलनत परिणो स सब को मनरतर करक उनक िह बनद कर मदय बड़ बड़ लोगो की जो धरनधर मवविन और दशज़ामनक कहलत िहन तमटय मनकली और मफर बवजद मनससहय मनरपय क जोर िी

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 20: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

ऐस मदखय मक समटो को मसहसनो स मगर मदय और उनही मसहसनो पर मनधज़ानो को मबठय यमद यह ख़द तआल क सिज़ान और उसकी सहयत नही ी तो और कय ी कय सिसत ससर पर बमदध मवदय और शशति मक दशष स आमधपतय प जन मबन ईशवरीय सहयत क हआ करत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-119)lsquolsquoरसी परकर हज़रत दऊद अलमहससलि न हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क परतप और तज और िहतव को सवीकर करक lsquoज़बरrsquo पतलीस ि य वणज़ान मकय ह-

(1) त सौनदयज़ा ि लोगो स कही अमधक ह तर होठो ि िोहक आकषज़ाण ह रसीमलए ख़द न तझ को सतशष क अनत तक िबरक मकय

(2) ह वीर मशरोिमण अपन तज और परतप स अपनी तलवर अपनी जघ पर बध कर लटक

(3) सतयत दीनत एव नयय पर अपनी परमतषठ और गौरव स सवर हो कयोमक तर दमहन ह तझ उतजनपणज़ा कयज़ा मदखलएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा पतषठ 333-334) lsquolsquoमवचर करन चमहए मक मकस धयज़ा क स हज़रत िहमिद

िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न अपन lsquoदव-ए-नबववतrsquo (नबी होन की घोषण) पर बवजद सहसतो खतर खड़ हो जन और विनसय रखन वलो और बधए उतपनन करन वलो और िय मदलन वलो क आमद स अनत तक दढ़तपवज़ाक शसर रह वषमो तक वह मवपमतय दखी और वह दख उठन पड़ जो सफलत क परमत पणज़ातय मनरश करत और (व दख) परमत मदन बढ़त जत मजन पर धयज़ा रखन स मकसी ससररक उदशय की परशपत की कलपन िी नही की ज सकती ी

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 21: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

अमपत नबववत की घोषण करन स अपन ह स अपन पहल सिज को िी खो बठ और एक बत कह कर लख मवरोध खरीद मलय और हज़रो मवपमतयो को अपन सर पर बल मलय गव स मनकल गए कतल क मलए पीछ मकय गय घर और गतहसी सिी कछ नष हो गय कई बर मवष मदय गय- जो महतषी वह दशिन बन गए जो मित वह शतत करन लग ओर दीघज़ाकल तक वह कटतए सहन करनी पड़ी मक मजन पर दढ़तपवज़ाक ठहर रहन धोखबज़ और िककर क कि नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय पतषठ-108)िसतफ पर तर बहद हो सलि और रहित उस स यह नर मलय बर-ए-ख़दय हिन रबत ह जन-ए-िहमिद स िरी ज को िदि

मदल को वह जि लबलब ह मपलय हिन उस स बहतर नज़र आय न कोरइ आलि ि ल जरि ग़रो स मदल अपन छड़य हिनशन-ए-हक तर शियल ि नज़र आती ह तर पन स ही उस ज़त को पय हिनछक दिन तर हर दि स मिलती ह नजत ल जरि दर प तर सर को झकय हिनमदल बर िझको क़सि ह तरी यकतरइ की आप को तरी िोहबबत ि िलय हिन बख़द मदल स मिट गए सब ग़रो क नकश जब स मदल ि यह तर नकश जिय हिन

रबत - समबनध िदि - सदव लजरि -मनससनदह शियल - आदत सविव यकतरइ - तौहीद एकईशवरवद

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 22: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

हि हए िर-ए-उिि तझ स ही ऐ िर-ए-रसल

तर बढ़न स कदि आग बढ़य हिन आदिी ज़द तो कय चीज़ फ़ररशत िी तिि िदह ि तरी वह गत ह जो गय हिन

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन-किलत-ए-रसलि पतषठ-225226)lsquolsquoऔर िर मलए रस नित (वदनयत) क पन समिव न यमद

ि अपन सविी मजन पर सिसत नबी गवज़ा करत ह और जो ससर क समपणज़ा लोगो स शषठ ह अज़ात हज़रत िहमिद सललहो अलमह व सलि क िगमो क अनसरण न करत अत िन जो कछ पय उस अनसरण स ही पय ह ि अपन सच और पणज़ा जन स जनत ह मक कोरइ वयशति मबन पग़मबर रसलि हज़रत िहमिद िसतफ सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन क ख़द तक नही पहच सकत त न पणज़ा रप स ख़द की पहचन ही कर सकत ह रस जगह ि यह िी बतलत ह मक वह कय वसत ह मक सच और पणज़ा अनसरण हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क बद सब बतो स पहल हदय ि पद होती ह सो यद रह मक वह lsquoपमवत-हदयrsquo ह अज़ात हदय स ससर क पयर और उसक िोह मनकल जत ह तब हदय एक सद रहन वल और एक अनशवर आननद क अमिलषी हो जत ह ततपचित एक सवचछ और पणज़ा ईशवरपरि रस पमवत हदय को परपत होत ह यह सब नित (वदनयतए) आ हज़रत सललहो अलमह व सलि क अनसरण करन स पततक समपमत क रप ि मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-22 हकीक़तल वहयी पतषठ-6465)

िर-ए-उिि - उमितो ि शषठ िर-ए- रसल - रसलो ि शषठ िदह - परशस

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 23: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

वह पशव हिर मजस स ह नर सर नि उसक ह िहमिद मदलबर िर यही ह सब पक ह पयमबर रक दसर स बहतर लक अज़ ख़दए बर तर खरलवर यही ह पहलो स ख़बतर ह खबी ि रक क़िर हउस पर हर रक नज़र ह बदरदज यही ह पहल तो रह ि हर पर उसन ह उतर ि जऊ उसक बर बस नख़द यही ह वह यर ल िकनी वह मदलबर मनहनी

दख ह हिन उस स बस रहनि यही ह वह आज शह दी ह वह तज िसज़ाली ह वह तययबो अिी ह उसकी सन यही ह आख उसकी दरबी ह मदल यर स करी ह हो ि शिए दी ह ऐनमज़य यही ह जो रज़ दी िर उसन बतए सर दौलत क दन वल फ़रिरव यही हउस नर पर मफ़द ह उस क ही ि हआ ह वह ह ि चीज़ कय ह बस फ़सल यही ह (रहनी िज़यन िग-20 क़मदयन क आयज़ा और हि पतषठ-456)

िरलवर - सतशष ि शषठ क़िर - चद बदरददज - अनधर क चदयर ल िकनी - ल िकन िहबब मदलबर मनहनी - मदल क िहबब तज िसज़ाली - रसलो क तज तययबो अिी - पमवत अिनतदर सन - परशस क़री - मनकट ऐनमज़य - जयोमत क चशि

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 24: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

पहवतर क़आशनlsquolsquoपमवत क़आज़ान िमणक िोमतयो की ली ह और लोग रस स

अपररमचत हrsquorsquo (िलफ़ज़त िग-2 पतषठ-344)lsquolsquoक़आज़ान क वह िहन गौरव ह मक परतयक गौरव स ऊच ह

वह lsquoहकिrsquo ह अज़ात फसल करन वल ह वह lsquoिोहमिनrsquo ह अज़ात सिसत मनदरशो एव प-परदशज़ानो क सगह ह उसन सिसत तकक एकत कर मदए और शतओ क सिह को मततर-मबतर कर मदय वह ऐसी पसतक ह मक मजस ि परतयक वसत क मववरण ह और उसि ित और िमवषय की सचनए मवदयिन ह और झठ को उसकी तरफ कोरइ िगज़ा नही न आग स न पीछ स वह ख़द तआल क परकश हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-16 ख़तब रलहमिय पतषठ-103)lsquolsquoजत होन चमहए मक खल-खल चितकर पमवत क़आज़ान क जो

परतयक जमत और िष-िषी पर परकट हो सकत ह मजसको उपशसत करक हि परतयक दश क िनषय को चह वह िरतीय हो य परसी यरोपीय हो य अिरीकन य मकसी अनय दश क हो- अमियति िौन त मनरतर कर सकत ह पमवत क़आज़ान क वह असीि गढ़ अज़ा और ततव और किी न सिपत होन वल िव ह जो परतयक यग ि उस यग की आवशयकत क अनसर खलत जत ह और परतयक यग की मवचरधर क िक़बल करन क मलए सशसत समनको की िमत खड़ ह यमद पमवत क़आज़ान अपन गढ़ अमो और िवो की दशष स एक सीमित चीज़ होती तो कदमप वह पणज़ा चितकर नही ठहर सकती ीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-1 पतषठ-255)lsquolsquoपमवत क़आज़ान एक ऐस चितकर ह मक न वह परि उदहरण

हआ न अशनतक किी होग उसकी वदनयतओ और बरकतो क विर

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 25: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

सदव खल और जरी ह वह परतयक यग ि उसी परकर सपष और उदीपत ह जस हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क वति रस क अमतररति यह िी यद रखन चमहए मक परतयक वयशति क कलि उसकी महमित क अनसर होत ह मजतनी उसकी महमित और सकलप और िहन उदशय होग उसी कोमट क वह कलि होग वहयी-ए-रलही (ईश-वतज़ा) ि िी वही रग होग मजस वयशति की तरफ उसकी lsquoवहयीrsquo (ईश-वतज़ा) आती ह मजतन सहस ऊच रखन वल वह होग उसी कोमट क कलि उस मिलग हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की महमित सिथयज़ा और सकलप क कत चमक अतयमधक मवसततत रसमलए आपको जो कलि मिल वह िी उस सतर और उस कोमट क ह मक दसर कोरइ वयशति उस महमित और सहस क पद न होगrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-3 पतषठ-57)lsquolsquoहि सच-सच कहत ह और सच-सच कहन स मकसी हलत ि

रक नही सकत मक यमद हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि आए न होत और पमवत क़आज़ान मजसक परिव हिर धमिज़ाक नत-गण और रिि परचीन कल स दखत आए और आज हि दख रह ह नमज़ल न हआ होत तो हिर मलए यह मवषय बहत ही कमठन होत मक हि ित बरइबल क दखन स मनशचित रप स पहचन कर सकत मक हज़रत िस और हज़रत िसीह और अनय मवगत नबी-पग़मबर वसतव ि उसी पमवत और पवन जिअत ि स ह मजनको ख़द न अपनी मवशष कप स अपनी lsquoररसलतrsquo (सनदश) क मलए चन मलय ह यह हिको क़आज़ान िजीद क एहसन (उपकर) िनन चमहए मजसन अपन परकश सवय मदखलय और मफर उस पणज़ा परकश स मवगत नमबयो की सचरय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 26: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

िी हि पर परकट कर दी यह उपकर न कवल हि पर अमपत आदि स लकर िसीह तक उन सिसत नमबयो पर ह जो पमवत क़आज़ान स पहल गज़र चक ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ 290)lsquolsquoआज सिसत ििणडल पर सिसत रलहिी पसतको ि स एक

क़आज़ान िजीद ही ह मक मजसक कलि-ए-रलही होन अकटय तकमो स मसदध ह मजसक िशति क मसदधनत सवज़ा सतय और परकमतक कसौटी पर आधररत ह मजसक मसदधनत ऐस वयपक और ठोस ह मजनकी सचरइ पर अखणडनीय तकक िखररत-सकी ह मजसक आदश मनतनत सचरइ पर आधररत ह मजसकी मशकए परतयक परकर की मशकक मबदअत (रमढ़वदी मवचरधर स समबशनधत रसिो ररवज) और सतशषपज क मिशण स पणज़ात रमहत ह मजसि lsquoतौहीदrsquo ईशवर की परमतषठ एव उसक चितकर परकट करन क मलए चरि सीि तक जोश ह मजसि यह मवशषत ह मक मनतनत अलह तआल की वहदमनयत (एकशवरवद क मसदधनत) स िर हआ ह और मकसी परकर की नयनत क दोष एव अयोगयत क कलक अलह तआल की पमवत सत पर नही लगत और मकसी आस को बलत सवीकर नही करन चहत अमपत जो मशक दत ह उसकी सचरइ क करण पहल मदखल लत ह और परतयक िव और उदशय को ठोस तकमो स मसदध करत ह और परतयक मसदधनत की वसतमवकत पर सपष तकक उपशसत करक पणज़ा मवशवस और पणज़ा पहचन क सन तक पहचत ह और जो िरमबय (मवकर) और अपमवततए और बधए और झगड़ लोगो की आसओ किमो कनो और मकयओ ि पड़ हए ह उन सिसत झगड़ो को जवलनत परिणो स दर करत ह वह सवज़ा परकर क मशषचर मसखत ह मक मजनक जनन िनषय को

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 27: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

िनषय बनन क मलए अतयवशयक ह और परतयक झगड़ को सिपत करन क मलए रस तीवरत स पग उठत ह मक मजस तीवरत स वह आज कल फल हआ ह रसकी मशक अतयनत सरल ठोस और शशनतमपरय ह-िनो ईशवरीय आदशो क एक दपज़ाण ह और परकमतक मवधन क एक परमतमबमब ह एव हमदज़ाक मववक और अनतजज़ान क मलए चिकत हआ सरज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय पतषठ-8182) नर फका ह जो सब नरो स अजल मनकलपक वह मजस स यह अनवर क दररय मनकलहक़ की तौहीद क िझज़ा ही चल पौदन गह गब स यह चशिय असफ मनकल य रलही तर फ़का ह मक रक आलि हजो ज़ररी वह सब रस ि िहय मनकल सब जगह छन चक सरी दकन दखीिए रफा क यही एक ही शीश मनकल मकस स रस नर की ििमकन हो जह ि तशबीहवह तो हर बत ि हर वसफ़ ि यति मनकल पहल सिझ मक िस क अस ह फ़का मफर जो सोच तो हर रक लफज़ िसीह मनकल ह क़सर अपन ही अनधो क वगरन वह नरऐस चिक ह मक सद नययर बज़ मनकल मज़नदगी ऐसो की कय िक ह रस दमनय ि मजनक रस नर क होत िी मदल अि मनकल

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय िग-3 ह मशय दर ह मशय पतषठ-305-6)

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 28: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

अए अज़ीजो सनो मक ब करआहक़ को मिलत नही किी रनसमदल ि हर वक़त नर िरत हसीन को ख़ब सफ़ करत ह उसक औसफ़ कय कर ि बयवह तो दत ह ज को और रक ज वह तो चिक ह नययर अकबररस स रनकर हो सक कयोकरबहर-ए-महकित ह वह कलि तििरशक-ए-हक क मपल रह ह जि ददज़ािनदो की ह दव वही एक ह ख़द स ख़द-नि एक हिन पय खद हद वही एकहिन दख ह मदलरब वही एक उसक िनमकर जो बत कहत ह य ही रक वमहयत कहत ह

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय िग-3 हमशय दर हमशय पतषठ-299-300)

वहयी और इलहामlsquolsquoजब परिशवर अपन िति को मकसी परोक बत पर उसकी दआ

क पचित अव सवय ही समचत करन चहत ह तो सहस एक बहोशी और ऊघ उस पर पद कर दत ह मजस स वह अपन अशसततव को मबलकल िल जत ह और ऐस उस मनचितन और ऊघ और बहोशी

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 29: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

ि डबत ह जस कोरइ पनी ि गोत िरत ह और नीच पनी क चल जत ह असत जब िति उस ऊघ की हलत स जो जल ि गोत लगन स बहत मिलती जलती ह बहर आत ह तो अपन अनतकरण ि कछ ऐस अनिव करत ह जस एक धवमन की गज हो रही ह और जब वह गज कछ कि होती ह तो सहस उसको अपन अनदर स एक अतयनत सज़ाक और सिमचत और सकि और आननदपरद कलि क अनिव हो जत ह और यह ऊघ क गोत एक बहत आचियज़ाजनक मवषय ह मजसक चितकरो क वणज़ान करन क मलए शबदो ि सिथयज़ा नही यही अवस ह मजसस बरहजन क एक रिोत रनसन पर फट पड़त ह कयोमक जब बर-बर दआ करन क सिय अलह तआल उस गोत और ऊघ की अवस को अपन िति पर आचछमदत करक उसकी परतयक दआ क उसको एक सकि और आननदपरद कलि ि उतर दत ह और परतयक परशन पर व िद उस पर खोलत ह मजनक खलन िनवीय शशति स बहर ह तो यह बत उसक मलए और अमधक ईशवर-जन और परि की पणज़ा पहचन क करण बन जती ह िति क दआ करन और ख़द क अपनी ख़दई तजली स परतयक दआ क उतर दन यह एक ऐस मवषय ह िनो रस जगत ि िति अपन परि को दख लत ह और दोनो जगत उसक मलए मबन मकसी अनतर क एक जस हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन-ए-अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-260 262)

lsquolsquoरलहि की पचवी सरत वह ह मजसक िनषय क हदय स कोरइ समबनध नही अमपत एक बहरी धवमन सनरइ पड़ती ह त यह धवमन ऐसी परतीत होती ह जस एक पदर क पीछ स कोरइ आदिी बोलत ह मकनत यह धवमन अतयननदपरद ससपष और अपककत तज़ी क स होती ह

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 30: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

और हदय को उसस एक आननद क अनिव होत ह िनषय मकसी सीि तक परि ि डब हआ होत ह मक सहस यह धवमन गज उठती ह और आवज़ सनकर वह हरन रह जत ह मक कह स यह आवज़ आरइ और मकसन िझस कलि मकय त आचियज़ा चमकत होकर आग पीछ दखत ह मफर वह सिझ जत ह मक मकसी फ़ररशत न आवज़ दी ह यह बहरी आवज़ परय उस अवस ि खशखबरी क रप ि आती ह जब आदिी मकसी मवषय ि अतयनत मचशनतत और दःखी होत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-287)lsquolsquoयही क़नन ह मक मजसक पस कछ परकश ह उसी को और

परकश िी मदय जत ह और मजसक पस कछ नही उसको कछ नही मदय जत जो वयशति नतो की जयोमत रखत ह वही सयज़ा क परकश पत ह और मजसक पस नतो की जयोमत नही वह सयज़ा क परकश स िी वमचत रहत ह और मजसको परकमतक जयोमत कि मिली ह उसको दसर परकश िी कि ही मिलत ह और मजसको परकमतक जयोमत अमधक मिली ह उसको दसर परकश िी अमधक मिलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय पतषठ-195196) lsquolsquoख़द तआल न अपन आचियज़ाजनक ससर को तीन िगो ि मविति कर रख ह-

(1) िौमतक ससर जो आखो और कनो और अनय बहय रशनदरयो क विर और बहय सधनो क िधयि स अनिव मकय ज सकत ह

(2) आनतररक ससर जो बमदध और अनिन क विर सिझ ि आ सकत ह

(3) आनतररक दर आनतररक ससर जो ऐस गढ़ ह जो सिझ और कलपन स दर ह ोड़ ह जो उसस पररमचत ह वह मनतनत ह मजस

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

40

मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 31: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

तक पहचन क मलए ित कलपन क बमदध को शशति नही दी गरइ उस ससर क बर ि कशफ़1 वहयी और रलहि क विर पत चलत ह न अनय मकसी सधन स मजस परकर ईशवर क मवधन सपष रप स मसदध और परिमणत ह मक उसन रन दो पहल ससरो क जनन क मलए- मजनक ऊपर उलख हो चक ह- िनषय को तरह-तरह की जनशनदरय परदन की ह उसी परकर रस तीसर ससर को जनन क मलए उस एक ित दत न िनषय क मलए एक सधन रख ह और वह सधन lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo और lsquoकशफ़rsquo ह जो मकसी ज़िन ि पणज़ा रप स बनद ओर सिपत नही हो सकत अमपत उसकी शतमो को पर करन वल सदव उसको पत रह ह और हिश पत रहगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-2 सरि चशि आयज़ा हमशय पतषठ-175-76)

हमारयी आसाएlsquolsquoहिर िज़हब (धिज़ा क परमत आस) क सरश और मनचोड़

यह ह मक

سول اہلل در محم اہلل ال الل

lsquoल रलह रललहो िहमिदरइसललहrsquo (अलह तआल क अमतररति कोरइ उपसय नही और िहमिद सललहो अलमह व सलि अलह तआल क रसल ह) हिरी आस जो हि रस िौमतक जीवन ि रखत ह मजसक स हि परि की कप और उसकी दी हरइ सिथयज़ा स रस नशवन ससर क कच करग यह ह मक हिर सविी और िमलक हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि lsquoखतिननबीरइन व

1 कशफ़ = सवपन ि दखन अदधज़ा मनदरवस ि आधयशतिक दशय दखन वहयी = सकत करन मवशष ईशवणी क सकत रलहि = ईशवणी

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 32: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

िरल िसज़ालीनrsquo ह अज़ात सिसत नमबयो की िोहर और सब रसलो स शषठ ह मजनक ह स धिज़ा को पणज़ात परपत हरइ और वह नित अपनी समपणज़ात की चरि सीि को पहच चकी मजसक विर िनषय सनिगज़ा को गहण कर क ख़द तक पहच सकत ह हि पणज़ा मवशवस क स रस बत पर रइिन रखत ह मक पमवत क़आज़ान सिसत आसिनी (ईशवरीय) गनो क िति अज़ात िोहर और सवज़ाशषठ ह और एक शोश य नति (मबनद) उसक मवधन और उसकी सीिओ और आदशो स अमधक नही हो सकत और न कि हो सकत ह अब कोई ऐसी lsquoवहयीrsquo य ऐस lsquoरलहिrsquo परिशवर की ओर नही हो सकत जो क़आज़ान क आदशो को पररवमतज़ात य सिपत कर सकत हो अव मकसी एक आदश ि पररवमतज़ात य उस नयनमधक कर सकत हो यमद कोरइ ऐस मवचर कर तो हिर मनकट िोमिनो क समपरदय स पतक और कमफ़र और बरइिन हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ पतषठ-169170)lsquolsquoऔर हि रस बत पर रइिन लत ह मक ख़द तआल क मसव

कोरइ उपसय नही और हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि उसक रसल और ितिल अशमबय ह और हि रइिन लत ह मक फ़ररशत हक़ (सतय) और हशर-ए-अजसद (शरीर क अनत) हक़ और रोज़-ए-महसब (मनणज़ाय क मदन) हक़ और जननत हक़ और जहनि हक़ ह अज़ात सवगज़ा और नरक सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो कछ अलह तआल न पमवत क़आज़ान ि फ़रिय ह और जो कछ हिर नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि न फ़रिय ह वह सब ऊपर मकए गए वणज़ान क अनसर सतय ह और हि रइिन लत ह मक जो वयशति रस रसलिी शरीअत ि स एक ज़रज़ा कि कर अव एक ज़रज़ा अमधक कर य कतज़ावयो क तयगन य अनमचत आज

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 33: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

दन की नीव डल वह बरइिन और रसलि स िटक हआ ह और हि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक वह सच हदय स रस कमलि पर रइिन रख मक

سول اہلل در محم اہلل ال ال

ل

लरलह रललहो िहमिदरइसललह और रसी पर िर और सब नबी और सब पसतक मजनकी सचरइ पमवत क़आज़ान स मसदध ह उन सब पर रइिन लव और रोज़ निज़ ज़कत हज और अलह तआल और उसक रसल क मनशचित मकए हए सिसत कतज़ावयो को कतज़ावय सिझ कर और सिसत मनमषदध बतो को मनमषदध सिझ कर ठीक ठीक रसलि पर आचरण कर असत वह सिी बत मजन पर मवगत िहपरषो क सदधशनतक त मकयतिक रप ि एक ित और वह बत जो सननत जिअत क बज़गमो क सिमहक ित स रसलि कहलत ह उन सब को सवीकर करन कतज़ावय ह हि आसिन और ज़िीन को रस बत पर सकी ठहरत ह मक यही हिर धिज़ा हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिससलह पतषठ-323)lsquolsquoह सिसत व लोगो जो पतथवी पर रहत हो और ह सिसत व

िनवीय आतिओ जो पवज़ा और पशचिि ि आबद हो ि पर जोर क स आपको रस तरफ आिशनतत करत ह मक अब पतथवी पर सच धिज़ा कवल रसलि ह और सच ख़द िी वही ख़द ह जो पमवत क़आज़ान न बतय ह और सद क आधयशतिक जीवन वल lsquolsquoनबीrsquorsquo परतप और पमवतत क मसहसन पर बठन वल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयक़ल क़लब पतषठ-141)

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 34: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

अहमहदया समपरदाय क ससापकहज़रत मसयीह मौऊद

अलहहससलाम का मक़ामlsquolsquoसवपन ि दख मक लोग एक िोहयी अज़ात मज़नद करन वल

को तलश करत मफरत ह एक वयशति रस मवनीत क सिन आय और सकत करत हए उसन कह मक-

یحب رسول اہلل

ھذا رجل

अज़ात यह वह वयशति ह जो रसललह स िोहबबत रखत ह रस वकय क ततपयज़ा यह मक रस पदवी क मलए सबस बड़ी शतज़ा रसल ख़द हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि स परि ह सो वह शतज़ा रस वयशति ि सपष रप ि मवदयिन हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-1 बरहीन अहिमदय हमशय दर हमशय पतषठ-598)

lsquolsquoदमनय िझ सवीकर नही कर सकती कयोमक ि दमनय ि स नही ह मकनत मजनकी परकमत को उस जगत क अश मदय गय ह व िझ सवीकर करत ह और करग जो िझ छोड़त ह वह उसको छोड़त ह मजसन िझ िज ह और जो िझ स समबनध जोड़त ह वह उसस समबनध जोड़त ह मजसकी ओर स ि आय ह िर ह ि एक दीपक ह जो वयशति िर पस आत ह वह अवशय ही उस परकश स महसस पएग मकनत जो वयशति सनदह और शक स दर िगत ह वह अनधकर ि डल मदय जएग रस यग क अिदय दगज़ा ि ह जो िझ ि परवश करत ह वह चोरो और डकओ और दररनदो स अपन परण बचएगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फ़तह रसलि पतषठ-34)lsquolsquoऔर िझ उस ख़द की क़सि ह मजसक ह ि िरी जन ह मक

िझ पमवत क़आज़ान क हक़यक़ और िआररफ़ (तथय और सकि जन)

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 35: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

सिझन ि परतयक वयशति पर ग़लब (मवजय) मदय गय ह यमद कोरइ िौलवी ििमलफ़ िर िक़मबल पर आत जस मक िन क़आज़ानी तफ़सीर (वयय) क मलए बर-बर मवरोधी िौलमवयो को बलय तो ख़द उसको ज़लील और शमिज़ानद करत असत जो पमवत क़आज़ान को सिझन की पमवत शशति िझ को दी गरइ ह यह अलह क चितकर ह अलह तआल क फल स िझ पणज़ा मवशवस ह मक अमत शीघर दमनय दखगी मक ि रस बयन ि सच हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-41)lsquolsquoि अकल नही वह िौल करीि िर स ह और कोरइ

उस स बढ़ कर िझ स मनकटति नही उसी क फ़ज़ल स िझ को यह lsquoआमशकनrsquo परवतमत मिली ह मक दख उठ कर िी उसक धिज़ा (रसलि) क मलए सव कर और रसलि की धमिज़ाक मवजय क मलए पर उतसह और शदध हदय स अपनी सवए सिमपज़ात कर रस कयज़ा पर सवय उसी न िझ मनयति मकय ह अब मकसी क कहन स ि रक नही सकतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-5 आरइन किलत-ए-रसलि पतषठ-35)lsquolsquoएक पमवतति वयशति क मलए यह पयज़ापत मक ख़द न िझ

झठ बधन वलो की तरह नष नही मकय अमपत िर बहर और िर अनदर एव िर शरीर िरी आति पर वह उपकर मकए मजनको ि मगन नही सकत ि जवन जब ख़द की lsquoवहयीrsquo और lsquoरलहिrsquo की घोषण की और अब ि बढ़ हो गय त घोषण क आरमि पर बीस वषज़ा स अमधक सिय बीत गय बहत स िर मित और समबनधी जो िर स छोट उनकी िततय हो गरइ और उसन िझ दीघज़ाय परदन की एव परतयक मवपमत क सिय िर सहयक बन रह असत कय उन लोगो

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 36: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

क यही मचनह हआ करत ह मक जो ख़द तआल पर झठ बधत हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-11 अजि-ए-आि पतषठ 50-51)

पहवतर समपरदाय की सापना और उपदशlsquolsquoह िर मितो जो िरी बअत ि दमिल हो ख़द हि और तमह

उन बतो की सिथयज़ा द मजनस वह रज़ी हो जए आज ति ोड़ हो और लोगो की दशष ि तचछ सिझ ज रह हो और एक कमठन परीक क सिय ति पर ह ठीक उसी ईशवरीय मवधन क अनसर जो आमदकल स जरी ह परतयक मदश स यतन होग मक ति ठोकर खओ एव ति हर तरह स सतए जओग और िमत-िमत की बत तमह सननी पडगी परतयक जो तमह ह य ज़बन स दख दग वह सिझग मक रसलि की सव कर रह ह कछ ईशवरीय परीकओ क िी तमह सिन करन पड़ग तमक ति हर परकर स आज़िए जओ सो ति रस सिय सन रखो मक तमहरी सफलत एव मवजय क यह रसत नही मक ति अपन शषक तकमो स कि लो अव हसी ठट की बत करो य गली क बदल गली दो कयोमक यमद ति न रनही िगमो को अपनय तो तमहर हदय कठोर हो जएग और ति ि कवल बत ही बत होगी मजनस ख़द तआल घतण करत ह और उस अचछी दशष स नही दखत ह असत ति ऐस न करो मक ति अपन पर दो अमिशप एकत कर लो एक मिलक़त अज़ात सतशष की और दसर परिशवर क िीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि पतषठ- 546547)lsquolsquoयह ित खयल करो मक ख़द तमह नष कर दग ति ख़द क

ह क एक बीज हो जो ज़िीन ि बोय गय ख़द फिज़ात ह मक यह

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 37: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

बीज बढ़ग और फलग और हर तरफ स रसकी शखए मनकलगी और एक बहत बड़ वतक हो जएग अत उस वयशति को बधरइ हो जो परिशवर की बत पर रइिन रख त िधय ि आन वली मवपमतयो स न डर कयोमक ऐसी मवपमतयो क आन िी आवशयक ह तमक परिशवर तमहरी परीक ल मक कौन अपनी बअत की घोषण ि सच ह और कौन झठ ह वह जो मकसी परीक-जनय मवपमत स डगिगयग वह कछ िी ख़द की हमन नही करग और दिज़ागय उसको नरक तक पहचएग यमद वह पद न होत तो उसक मलए अचछ मकनत व सिी लोग जो अनत तक धयज़ा रखग और उन पर मवपमतयो क िचल आएग त आपदओ की आमधय चलगी और क़ौि मतरसकर जनय हसी और ठट करगी और ससर उनस अतयनत घतण करन लगग व अनतत मवजयी होग त बरकतो और वदनयतओ क विर उन पर खोल जएग

ख़द न िझ समबोमधत करक फ़रिय मक ि अपनी जिअत को समचत कर मक जो लोग रइिन लए ऐस रइिन मक उसक स दमनय क मिशण नही और वह रइिन हसी ठट य कयरत स दमषत नही त वह रइिन आज पलन क मकसी सतर स वमचत नही- ऐस लोग ख़द क मपरयजन ह और ख़द फ़िज़ात ह मक वही ह मजनक क़दि सचरइ क क़दि हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-309)lsquolsquoअनयय पर हठ कर क सचरइ क खन न करो सतय को

सवीकर कर लो यदयमप एक बच स मिल यमद मवरोधी की ओर सतय पओ तो मफर तरनत अपन शषक तकक को छोड़ दो सतय पर ठहर जओ और सची गवही दो जस मक अलह तआल फ़रित ह

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 38: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

ور وثان واجتنبواقول الز

جس من ال فاجتنبواالر(अल हज - 31)अज़ात बतो (िमतज़ायो) की अपमवतत स बचो और झठ स िी

(सरत अलहज आयत 31) कयोमक वह (झठ) बत स कि नही जो वसत सतय रपी मक़बल स तमहर िख फरती ह वही तमहर िगज़ा ि बत ह सची गवही दो चह तमहर मपतओ य िरयो य मितो पर हो चमहए मक कोरइ शतत िी तमहर नयय ि बधक न हो परसपर की सकीणज़ात अनदरत ईषयज़ा-विष एव और कठोरत छोड़ दो और एक हो जओ पमवत क़आज़ान क बड़ आदश दो ही ह--- परि अलह की तौहीद (अवितवद और मनरकर क मसदधनत) त उसस परि और उसकी आज क पलन दसर अपन िरयो और समपणज़ा िनव-सिज क परमत सहनिमतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग-2 पतषठ-550) lsquolsquoसचरइ गहण करो सचरइ गहण करो कयोमक वह (ख़द) दख रह ह मक तमहर हदय कस ह कय िनषय उसको िी धोख द सकत ह कय उसक समिख िी छल परपच और िककररय पश जती ह

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल औहि िग -2 पतषठ-549)lsquolsquoसो ह व सिी लोगो जो अपन मनकट िरी जिअत ि शिर

करत हो आसिन पर ति उस सिय िरी जिअत शिर मकए जओग जब सचिच सयि क िगमो पर क़दि िरोग अत अपनी पचो वक़त की निज़ो को ऐसी िय एव एकगमचत होकर अद करो मक िनो ति ख़द तआल को दखत हो त अपन रोजो को ख़द क मलए सचरइ क स पर करो परतयक जो ज़कत क योगय ह ज़कत द और मजस पर हज फ़ज़ज़ा हो चक ह और कोरइ बध नही वह हज कर नकी (पणय) को

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 39: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

बड़ी सवधनी स अद करो और बररइ को उसस घतण करत हए छोड़ दो मनचिय पवज़ाक यद रखो कोरइ किज़ा परिशवर तक नही पहच सकत जो सयि स खली हो परतयक पणय की जड़ सयि ह मजस कयज़ा ि यह जड़ नष नही होगी वह किज़ा िी नष नही होग यह अतयवशयक ह मक कषो और मवपमतयो और दखो क नन रपो स तमहरी परीक िी हो जस मक पहल िोमिनो की परीक हरइ असत सवधन हो जओ ऐस न हो मक ठोकर खओ ज़िीन तमहर कछ िी नही मबगड़ सकती अगर आसिन स तमहर दढ़ समबनध ह जब किी ति अपनी हमन करोग तो अपन हो स न मक शत क हो स यमद तमहरी सिसत ससररक िन-ियज़ाद जती रह तो ख़द तमह एक किी न सिपत होन वली परमतषठ आसिन पर दग अत ति उसको न छोड़ो तमह अवशय दख मदए जएग और अपनी करइ आशओ स तमह वमचत मकय जएग रस स ति हतश न हो कयोमक तमहर ख़द तमह आज़ित ह मक ति उसक िगज़ा ि दढ़ सकलप हो य नही यमद ति चहत हो मक आसिन पर िी फ़ररशत तमहरी परशस कर तो ति िर खओ और परसनन रहो गमलय सनो और परि क धनयवद करो असफ़लतए दखो और समबनध न तोड़ो ति ख़द की अशनति जिअत हो सो व शि कयज़ा करो जो अपनी समपणज़ात ि चरिसीि पर होrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-15)lsquolsquoति यमद चहत हो मक आसिन पर ति स ख़द रज़ी हो तो ति

परसपर ऐस एक हो जओ जस एक पट ि स दो िरइ ति ि स अमधक आदरणीय वही ह जो अमधक अपन िरइ क अपरधो को कि करत ह अिग ह वह जो हठ करत ह और कि नही करत अत उसक िझस समबनध नही परिशवर क अमिशप स अमधक स अमधक डरत रहो

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 40: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

कयोमक वह पमवत और सवमििनी ह दषकिशी ख़द की सिीपत परपत नही कर सकत त परतयक जो उसक नि क मलए आतिसिपज़ाण क िव नही रखत उसकी मनकटत परपत नही कर सकत अमििनी उसकी सिीपत परपत नही कर सकत अतयचरी उसकी मनकटत परपत नही कर सकत वह जो धरोहर को कमत पहचत ह वह परिशवर की सिीपत परपत नही कर सकत वह जो ससररकत पर कतो और चीमटयो और मगदधो की िमत मगरत ह त ससर ि ऐशवयज़ावन ह व उसकी मनकटत परपत नही कर सकत परतयक अपमवत आख उसस दर ह परतयक अपमवत हदय उसस अपररमचत ह वह जो उसक मलए अशगन ि ह वह अशगन स िशति पएग वह जो उसक मलए रोत ह वह हसग वह जो उसक मलए दमनय स समबनध तोड़त ह वह उस मिलग ति सतय हदय स और परी सचरइ क स और तीवर गमत स ख़द क मित बनो तमक वह िी तमहर मित बन जए ति अपन अधीनो अपनी पशतनयो और अपन मनधज़ान िरयो पर दय करो तमक आसिन पर ति पर िी दय की जए ति सचिच उसक हो जओ तमक वह िी तमहर हो जएrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-19 कशती-ए-नह पतषठ-1213)

जमाअत को नसयीहतlsquolsquoि अपनी जिअत को नसीहत करत ह मक अहकर स बचो

कयोमक अहकर हिर परतपी ख़द क नतो ि अतयनत घतमणत कयज़ा ह मकनत ति कदमचत नही सिझोग मक अहकर कय चीज़ ह अत िझ स सिझ लो मक ि ख़द की आति स बोलत ह

परतयक जो अपन िरइ को रसमलए तचछ सिझत ह मक वह (सवय) उस स अमधक मवविन य अमधक बमदधिन य अमधक कलकर ह वह

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 41: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

अहकरी ह कयोमक वह ख़द को जन और बमदध क रिोत नही सिझत और अपन आप को कछ चीज़ सिझत ह कय ख़द यह सिथयज़ा नही रखत मक उसको पगल कर द और उसक उस िरइ को मजसको वह छोट सिझत ह उसस शषठ बमदध-मवदय और कल द द ऐस ही वह वयशति जो अपन मकसी धन और ऐशवयज़ा की कलपन करक अपन िरइ को तचछ सिझत ह वह िी अहकरी ह कयोमक वह रस बत को िल गय ह मक ऐशवयज़ा ख़द न ही मदय वह अनध ह और वह नही जनत मक वह ख़द पणज़ा अमधकर रखत ह मक उस पर ऐसी मवपमत ल आए मक वह कण ित ि रसतल ि ज पड़ और उसक उस िरइ को मजसको वह तचछ सिझत ह उसस बढ़ कर धनशवयज़ा परदन कर और ऐस ही वह वयशति जो अपन शरीररक सवसथय पर घिणड करत ह य अपनी सनदरत और शशति पर अहकर करत ह और अपन िरइ क वयगय और हसी ठट स मनकषत सचक नि रखत ह और उसक शरीररक दोष लोगो को सनत ह वह िी घिणडी ह वह उस ख़द स अनमिज ह मक जो एक कण ि उस को ऐस शरीररक रोग लग द मक उस िरइ स उस को मनकषति और करप बन दrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-18 नज़लल िसीह पतषठ-402)

दसरो क परहत कहवचार (बदज़नयी) lsquolsquoदसरो क परमत कमवचर एक ऐसी ियकर मविीमषक ह जो रइिन

को अमतशीघर रस परकर िसि कर दती ह जस मक धधकती हरइ अशगन शषक घस को वह जो ख़द क नमबयो क परमत कमवचर और दमषत मवचर रखत ह ख़द सवय उस क शत हो जत ह और उस स यदध क मलए खड़ होत ह वह अपन पग़मबरो क मलए रतन सवमििन रखत

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 42: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

ह मजसकी उपि परसतत नही की ज सकती िर पर जब िमत-िमत क आकिण हए तो वही ख़द क सवमििन िर मलए जग उठrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत हमशय पतषठ-317)lsquolsquoि सच कहत ह मक दसरो क परमत कमवचर ऐस ियकर रोग

ह जो िनषय क रइिन को नष कर दत ह और शदध और सतय क प भरष करक दर फक दत ह और मितो को शत बन दत ह मसददीको (सतयवरमतयो) की मवशषतए परपत करन क मलए आवशयक ह मक िनषय दसरो क परमत कमवचर स बहत ही बच यमद मकसी क समबनध ि कोरइ दमषत मवचर पद हो तो अतयमधक रशसतग़फ़र (ईशवर स कि यचन) कर त ख़द स दआए कर तमक उस पप और उसक दषपररणि स बच जव जो उस कमवचर क पीछ आन वल ह उसको किी सधरण वसत नही सिझन चमहए यह अमत ियकर रोग ह मजस स िनषय क शीघर ही सवज़ानश हो जत हrsquorsquo

(िलफ़ज़त िग-1 पतषठ-372)lsquolsquoऔर चमहए मक ति िी सहनिमत और अपन अनतकरणो और

अनतरतिओ को पमवत करन स lsquoरहलक़दसrsquo (िहन पमवतति) स महसस लो कयोमक मबन lsquoरहल क़दसrsquo क वसतमवक सयि परपत नही हो सकत मवकत िवनओ को सवज़ा तयग कर ख़द की रचछ क मलए वह िगज़ा गहण करो जो उसस अमधक कोरइ सकीणज़ा िगज़ा न हो ससररक िोगो पर अनरति ित हो कयोमक वह परिशवर स पतक करत ह परिशवर क मलए जीवन की कटतओ को सहन करो वह पीड़ मजस स ख़द परसनन हो उस मवजय स शषठ ह जो ख़द क परकोप क करण बन उस परि को छोड़ दो जो ख़द क कोध क मनकट ल जए यमद ति हदय को सवचछ और पमवत करक उसकी तरफ़ आ जओ तो

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 43: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

परतयक कत ि वह तमहरी सहयत करग और कोरइ शत तमह हमन नही पहच सकगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-20 अलवसीयत पतषठ-307)lsquoमलबसततकrsquo (सयि क वसत) पमवत क़आज़ान क शबद ह यह

रस बत की ओर सकत ह मक आति की सनदरत और सजवट सयि स ही पद होती ह सयि यह ह मक िनषय अलह तआल की सिसत धरोहरो और रइिनी परमतजओ और रसी परकर सतशष की सिी धरोहरो और मकए हए वचनो को यशशति पर कर अज़ात उनक सकि अमत सकि पको पर अपनी शशति और सिथयज़ा क अनसर आचरण करrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 ज़िीि बरहीन अहिमदय िग-5 पतषठ-210)

अहमहदया समपरदाय का भहवषयlsquolsquo ि पणज़ा मनचिय स कहत ह मक ि सतय पर ह और ख़द

तआल क फ़ज़ल स रस कत ि िरी ही मवजय ह जह तक ि दरदशशी दशष स कि लत ह तो ि पर ससर को अनतत अपनी सचरइ क क़दिो क नीच दखत ह और मनकट ह मक ि एक िहन मवजय पऊ कयोमक िरी वणी क सिज़ान ि एक अनय वणी बोल रही ह और िर ह की िज़बती क मलए एक और ह चल रह ह मजसको दमनय नही दखती मकनत ि दख रह ह िर अनदर एक आसिनी रह बोल रही ह जो िर शबद-शबद और अकर-अकर को जीवन परदन करती ह आसिन पर एक जोश और उबल पद हआ ह मजसन एक पतली की िमत रस िशत-ए-िक (मवनीत) को खड़ कर मदय ह परतयक वह वयशति मजस पर तौब (परयशचित) क विर बनद नही मनकट ही दख लग मक ि अपनी तरफ स नही ह कय व आख ह जो सच

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 44: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

को पहचन नही सकती कय वह िी मज़नद ह मजसको रस आसिनी आवज़ क अनिव नही

(रहनी िज़यन िग-3 रज़ल ओहि पतषठ-403)lsquolsquoमनचियपवज़ाक सिझो मक यह ख़द क ह क लगय हआ

पौध ह ख़द रसको कदमप नष नही करग वह रज़ी नही होग जब तक मक उसको चरि सीि तक न पहच द वह उसकी मसचरइ करग और उसक चरो ओर बड़ लगएग और आचियज़ाजनक उननमत दग कय तिन कछ कि जोर लगय अत यमद यह िनषय क कयज़ा होत तो कब क यह वतक कट जत और उसक लश ित िी शष न रहतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-11 अनजि-ए-आि पतषठ-64)

अनतम हवजयlsquolsquoज़िीन क लोग ियल करत होग मक कदमचत अनतत ईसई

धिज़ा ससर ि फल जए अव बौदध धिज़ा सिसत ससर पर छ जए मकनत व रस ियल ि ग़लती पर ह यद रह पतथवी पर कोरइ घटन नही घटती जब तक उस बत क आकश पर मनणज़ाय न हो जए अत आसिन क ख़द (सवज़ाशशतििन परिशवर) िझ बतलत ह मक अनतत रसलि क धिज़ा हदयो पर मवजय परपत करगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-427)

रहlsquolsquoमवचर करन पर मवमदत होत ह मक रह की जननी शरीर ही ह

गिज़ावती सती क गिज़ा ि रह किी ऊपर स नही मगरती अमपत वह एक

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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اک

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 45: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

परकर की जयोमत ह जो वीयज़ा ि गपत रप ि मनमहत रहती ह और शरीर क मवकस क स वह िी मवकमसत होती जती ह ख़द तआल की पमवत वणी हि सिझती ह मक आति उस शरीर ि स ही उतपनन हो जती ह जो वीयज़ा विर गिज़ा ि तयर होत ह जस मक अलह तआल क अपनी पमवत वणी क़आज़ान िजीद ि कन ह-

خالقی احسن ال ط فتبارک اہلل

قااخر

نہ خل

شا

ثم ان

(अल िोमिनन - 15)अज़ात मफर हि उस शरीर को जो गिज़ा ि तयर हआ एक

अनय रप ि परकट करत ह एव एक नवीन सतशष क रप उस परदन करत ह मजस जीवति की सज दी जती ह ख़द तआल अननय वरदनो क रिोत और ऐस िहन सतष ह मक उसक सिन अनय कोरइ नहीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ- 321)lsquolsquoजस कोरइ बग़ पनी क मबन जीमवत नही रह सकत ह उसी

परकर कोरइ रइिन सतकिमो क मबन मज़नद रइिन नही कहल सकत यमद रइिन हो और सतकिज़ा न हो तो वह रइिन हय ह और यमद सतकिज़ा हो और रइिन न हो तो व किज़ा आडमबर ित ह रसलिी सवगज़ा की यही वसतमवकत ह मक वह रस ससर क रइिन और किज़ा क एक परमतमबमब ह वह कोरइ नवीन चीज़ नही जो बहर स आकर िनषय को मिलगी अमपत िनषय क सवगज़ा उसक िीतर स ही मनकलत ह त परतयक क सवगज़ा उसी क रइिन और उसी क सतकिज़ा ह मजनक रसी ससर ि आननदनिव शर हो जत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-10 रसलिी उसल की मफलसफी पतषठ-390)

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 46: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

मतय क पशात का जयीवनlsquolsquoरसलि ि यह उचकोमट की मफलसफी ह मक परतयक को

कबर ि ही ऐस शरीर मिल जत ह जो कष और आननद की अनिमत करन क मलए आवशयक होत ह हि ठीक-ठीक नही कह सकत मक वह शरीर मकस ततव स तयर होत ह कयोमक यह नशवर शरीर तो परयः नष हो जत ह और न कोरइ दखत ह मक वसतव ि यही शरीर कबर ि मज़नद होत ह रसमलए मक किी-किी यह शरीर जलय िी जत ह और अजयबघरो ि िी शव रख जत ह और दीघज़ाकल तक कबर स बहर िी रख जत ह यमद यही शरीर मज़नद हो जय करत तो लोग उसको अवशय दखत मकनत उसक बवजद पमवत क़आज़ान स एक और सकि रप ि मज़नद हो जन मसदध ह अत हि यह िनन पड़त ह मक मकसी अनय शरीर क विर मजसको हि नही दख पत िनषय को मज़नद मकय जत ह समिवत वह शरीर रसी शरीर क सकि ततवो स बनत ह तब शरीर मिलन क पचित िनवीय शशतिय सजग हो जती ह यह दसर शरीर चमक पहल शरीर की अपक अमत सकि होत ह रसमलए उस पर अनिमतयो क विर मवसततत रप ि खलत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-13 मकतबल बरीय पतषठ-70 71)

हवशव क धमशlsquolsquoव सिी मसदधनत मजन पर िझ क़यि मकय गय ह उनि स एक

यह ह मक ख़द न िझ समचत मकय ह मक ससर ि नमबयो और पग़मबरो क विर मजतन धिज़ा फल गए ह और िज़बती पकड़ गए ह और पतथवी क एक ि-िग पर छ गए ह त एक आय प गए ह और एक यग उन पर बीत गय ह उनि स कोरइ धिज़ा िी िौमलक रप स झठ नही

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 47: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

और न उन नमबयो ि स कोरइ नबी झठ हrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ क़सररय पतषठ- 256)

lsquolsquoयह मसदधनत अतयनत पयर और शशनतपरद और िती की नीव डलन वल और चररमतक अवसओ को सहयत दन वल ह मक हि उन सिी पग़मबरो को सच सिझ ल जो दमनय ि आए चह िरत ि परकट हए अव फरस ि चीन ि परकट हए य मकसी अनय दश ि और ख़द न करोड़ो हदयो ि उनकी परमतषठ और िहनत मबठ दी और उनक धिज़ा की जड़ कयि कर दीrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 तोहफ़ कसररय पतषठ-259)

गनाह (पाप) lsquolsquoगनह वसतव ि एक ऐस मवष ह जो उस सिय पद होत ह

मक जब िनषय ख़द तआल की आजपलन और उसक परजोश परि और सिरण स वमचत और बनसीब हो एव मजस परकर एक वतक जब ज़िीन स उखड़ जए और पनी चसन क योगय न रह तो वह शन शन सखन लगत ह त उसकी सिसत हररयली नष हो जती ह यही हल उस िनषय क होत ह मजसक हदय परि-परि स उखड़ हआ होत ह मफर शषकत क सिन पप उस पर अपन अमधकर जि लत ह अतएव उस शषकत क रलज ख़द तआल क परकमतक मवधन ि तीन परकर स ह (1) lsquoपरिrsquo (2) lsquoरशसतग़फ़रrsquo मजस क अज़ा ह- दबन और ढकन की रचछ कयोमक जब तक मिटी ि वतक की जड़ जिी रह तब तक वह हररयली क उमिीदवर होत ह (3) तीसर रलज lsquoतौबrsquo (परयशचित) ह अज़ात जीवन क पनी खीचन क मलए अतयनत मवनय पवज़ाक परि की ओर झकन और अपन आप को उसक मनकट करन और पप क पदर

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 48: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

स शि किमो क स अपन आप को बहर मनकलन तौब lsquoकवल वणी स नही अमपत तौब की पणज़ात शि किमो क स ह सिी पणय किज़ा तौब की पणज़ात क मलए हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरजदीन रइसरइ क चर सवलो क जवब पतषठ-328 329)

नजात (मनति)lsquolsquoिशति क मसदधनत मजस क रजीलो ि वणज़ान मकय गय ह मक

हज़रत िसीह क सली पर िरन क विर ही गनहो क lsquolsquoकफफ़रrsquorsquo परपत हो सकत ह रस मशक को पमवत क़आज़ान न सवीकर नही मकय यदयमप हज़रत रइस अलमहससलि को पमवत क़आज़ान एक पमवत नबी िनत ह और परि क पयर उसक मनकटवतशी त शीिख (रोबदर चहर वल ) घोमषत करत ह परनत उसको कवल िनषय ही बतत ह और िशति क मलए रस बत को आवशयक नही ठहरत मक एक पपी क बोझ मकसी मनरपरध पर डल मदय जए यह बत बमदध िी सवीकर नही करती मक पप तो lsquoज़दrsquo कर और lsquoबकरrsquo पकड़ जए रस मसदधनत पर तो िनवीय सरकरो न िी पलन नही मकय खद ह मक िशति क समबनध ि जस मक रइसरइ समहबो न ग़लती की ह रसी परकर आयज़ा सिज न िी ग़लती की ह और वसतमवक सचई को िल गए कयोमक आयज़ा सिज की आस क अनसर तौब (परयशचित) और रशसतग़फ़र (परि स अपन पपो की कि यचन करन) कछ िी चीज़ नही और जब तक िनषय एक पप क बदल व सिी योमनयो ि चककर न कट ल जो उस पप क मलए दणड क रप ि मनशचित ह तब तक िशति असमिव हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-23 चशि-ए-िररफत पतषठ-414)

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मनतख़ब तहरीरात

हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

ر

اک

ل

अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

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हजहाद(ख़दा तआला क मागश म सघरश)

lsquolsquoरसलि ि किी (धिज़ा क समबनध ि) बल परयोग क पठ नही पढ़य यमद पमवत क़आज़ान और सिसत हदीसो और रमतहस की पसतको को धयन पवज़ाक दख जए और जह तक रनसन क मलए समिव ह धयन स पढ़ य सन जए तो रस मवसततत जन क पचित रस मनचिय पर पहचग मक िनो यह आकप मक रसलि न धिज़ा को बल पवज़ाक फलन क मलए तलवर उठरइ ह मबलकल मनरधर और लजसपद ह यह उन लोगो की धरण ह मजनहोन विनसयत ि पड़कर पमवत क़आज़ान और हदीस और रसलि की परिमणक ऐमतहमसक पसतको को नही दख अमपत झठ और दषरोपण स पर-पर कि मलय मकनत ि जनत ह मक वह सिय अब मनकट आत जत ह मक सतय क िख और पयस उन आकपो की वसतमवकत को िली परकर जन लग मक कय उस धिज़ा को हि बल-पवज़ाक फलय हआ कह सकत ह मजसक धिज़ा-गन पमवत क़आज़ान ि सपष रप ि यह आदश ह मक -(सर बकरः - 257) ین اہ ف ادل

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अज़ात धिज़ा ि दमखल करन क मलए बल-परयोग उमचत नही कय हि मवशव क उस िहन अवतर पग़मबर-ए-रसलि हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि पर बल परयोग क आकप लग सकत ह मजसन िकक शहर ि तरह वषज़ा तक अपन सिसत मितो को मदन-रत यही उपदश मदय मक शररत क िक़बल ित करो और धयज़ा स कि लो ह जब शतओ की शररत सीि पर कर गरइ और रसलि-धिज़ा को जड़ स मिट दन क मलए सब कौिो न मिल कर कोमशश की तो उस सिय ख़द तआल क सवमििन

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

47

मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

51

मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 50: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

जग उठ मक जो लोग तलवर उठत ह वह तलवर स ही िर जए अनय क़आज़ान शरीफ़ न कदमप बलत धिज़ा-परचर की मशक नही दी यमद बलत धिज़ा-परचर की मशक होती तो हिर नबी सललहो अलमह व सलि क सहचर (सहबी) धिज़ा ि बल परयोग की मशक क करण रस योगय न होत मक कमठन परीकओ क अवसर पर सच रइिनदरो की िॉमत हदय की सतयत मदख सकत लमकन हिर सयद व िौल हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि क सहचरो की वफ़दरी एक ऐस सतय ह मक उसक वणज़ान करन की हि आवशयकत नही यह बत मकसी स मछपी नही मक उनकी सचई और वफदरी क आदशज़ा रस शणी क परकट हए मक दसरी कौिो ि उसक उदहरण मिलन कमठन ह उस वफ़दर कौि न तलवरो क नीच िी अपनी वफ़दरी और सचई को नही छोड़ अमपत अपन परमतशषठत और पमवत नबी हज़रत िहमिद िसतफ़ सललहो अलमह व सलि की मितत ि वह आदशज़ा परसतत मकय मक िनषय ि किी वह सचई पद नही हो सकती जब तक रइिन (क परकश) स उसक मदल और सीन रोशन न होrsquorsquo (रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-1112)

lsquolsquoसिसत सच िसलिन जो दमनय ि हए ह किी उनकी यह आस नही हई मक रसलि को तलवर स फलन चमहए अमपत सदव रसलि अपनी मनजी मवशषतओ क करण स ही ससर ि फल ह अत जो लोग िसलिन कहल कर कवल यही बत जनत ह मक रसलि को तलवर स फलन चमहए व रसलि की मनजी मवशषतओ स सवज़ा अनमिज हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 मतरयकल क़लब हमशय पतषठ-167)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

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मनतख़ब तहरीरात

दआ (पराशना)lsquolsquoजब ख़द की कप मनकट आती ह तो वह परज़ान क सवीकर

होन क सधन जट दत ह हदय ि एक आदरत और ददज़ा पद हो जती ह मकनत जब परज़ान क सवीकर क सिय नही होत तो हदय ि सतोष और झकव पद नही होत मदल पर मकतन ही ज़ोर डलो परनत मचत ि एकगत नही होती उसक करण यह ह मक किी अलह तआल अपन मनणज़ाय िनवन चहत ह और किी परज़ान सवीकर करत ह रसमलए ि तो जब तक ईशवर की आज क लकण न प ल परज़ान क सवीकर होन की कि आश करत ह और उसक मनणज़ाय पर उस स यद ख़शी क स जो दआ क क़बल होन ि होती ह रज़ी हो जत ह कयोमक ख़द तआल की िज़शी पर रज़ी रहन क फल और बरकत रस स बहत यद हrsquorsquo

(िलफज़त िग-1 पतषठ-460)

मानवजाहत स सहानभहतlsquolsquoहिर यह मसदधनत ह मक समपणज़ा िनव-जमत स सहनिमत करो

यमद एक वयशति अपन पड़ोसी महनद को दखत ह मक उस क घर ि आग लग गरइ और यह नही उठत मक आग बझन ि सहयत कर तो ि सच-सच कहत ह मक वह िझ स नही ह यमद एक वयशति हिर िरीदो (अनयमययो) ि स दखत ह मक एक रइसरइ को कोरइ क़तल करत ह और वह उसक छड़न क मलए सहयत नही करत तो ि तमह मबलकल सच कहत ह मक वह हि ि स नही हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-12 मसरज-ए-िनीर पतषठ-28)lsquolsquoि सिसत िसलिनो और रइसरयो और महनदओ और आयमो

47

मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

49

मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

50

मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

51

मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 52: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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मनतख़ब तहरीरात

पर यह बत सपष करत ह मक ससर ि िर कोरइ शत नही ह ि िनव-सिज स ऐस परि करत ह मक जस एक दयल ि अपन बचो स अमपत उसस बढ़कर ि कवल उन मिथय आसओ क शत ह मजनस सतयत क हनन होत ह िनषय की सहनिमत िर कतज़ावय ह और झठ और मशकक (ईशवर को छोड़ कर सतशष की उपसन करन) और अतयचर त परतयक दरचरण अनयय और दषत स मविखत िर मसदधनतrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-17 अरबईन िग-1 पतषठ-344)

फ़ररशत (ईशदत)lsquolsquoपमवत क़आज़ान पर गहरी दशष डलन और गिीर मचनतन करन

स मवमदत होत ह मक िनषय अमपत बरहणड की समपणज़ा सतशष की आनतररक एव बहय मशक और दीक क मलए कछ सधनो क होन आवशयक ह पमवत क़आज़ान क कमतपय सकतो स जत होत ह मक कछ व पमवत आतिए मजनको फररशतो की सज दी गरइ ह उनक आकशीय सबध पतक-पतक ह कछ अपन मवमशष परिवो स वय क चलन वल और कछ जल बरसन वल और कछ अनय परिवो को पतथवी पर उतरन वल ह

(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-70)यह िी यद रखन चमहए मक रसलिी शरीअत क अनसर

फररशतो की मवशषतओ क सन िनषय की मवशषतओ स कछ अमधक नही अमपत िनषय की मवशषतए फररशतो की मवशषतओ स शषठ ह अत िौमतक मवधन य आधयशतिक मवधन ि उनक िधयि ठहरन उनकी शषठत मसदध नही करत अमपत पमवत क़आज़ान क आदशनसर व

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मनतख़ब तहरीरात

सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

ھی

(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

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सवको की िॉमत रस कि ि लगए गए ह(रहनी िज़यन िग-3 तौज़ीह िरि पतषठ-74)

lsquolsquoफररशतो क उतरन कय अज़ा रखत ह रसमलए सपष हो मक ख़द तआल क मवधन रस ढ़ग पर चल रह ह मक जब कोरइ रसल य नबी य िोहदस िनव-सिज क सधर क मलए आसिन स उतरत ह (अज़ात मकसी पग़मबर य अवतर य िहपरष क ससर क सधर क मलए परदिज़ाव होत ह) तो अवशय ही उसक स चलन वल ऐस फ़ररशत उतर करत ह जो मजजस हदयो ि महदयत डलत ह और सतकिमो की पररण दत ह और मनरनतर उतरत रहत ह जब तक मक कफर और गिरही क अनधकर दर होकर रइिन और सचरइ की रौशनी परकट न होन लग जस मक अलह तआल फिज़ात ह-

وح فیھاباذن ربھ من کل امر- سلم ئکۃ والر ملل ال تنز

فجر حت مطلع ال

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(अल क़दर - 56)(अज़ात (परतयक परकर क) फ़ररशत और कमिल रह (रहलक़दस)

उस रत ि अपन रब क आदश स सर (िौमतक और आधयशतिक) ििल लकर उतरत ह मफर फररशतो क उतरन क बद तो सलिती (ही सलिती) होती ह यह अवस परतःकल उदय होन तक रहती ह)

अतः फररशतो और रहलक़दस (पमवत आति) क आसिन स उतरन उसी सिय होत ह जब एक िहन अधयशतिक िहपरष ख़द मक और स मिलफ़त क समिन धरण कर और उसकी वणी स समिमनत होकर धरती पर अवतररत होत ह पमवत आति अज़ात रहलक़दस मवशष रप स उस को मिलती हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-3 फतह रसलि हमशय पतषठ-12)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

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मनतख़ब तहरीरात

याजज माजज और उसकी वासतहवकता lsquolsquoिसीह िौऊद क यजज िजज क सिय ि आन ज़ररी ह

lsquoअजीजrsquo आग को कहत ह मजसस यजज िजज क शबद बन ह (अत) यजज िजज वह क़ौि ह जो सिसत क़ौिो स अमधक ससर ि आग स कि लन ि कशल अमपत उस कि की आमवषकरक ह रन निो ि यह सकत ह मक उनक जहज़ उनकी रल-गमड़य उनकी िशीन और कल-करखन आग क विर चलग और उनक यदध आग क विर होग और व लोग अशगन स कि लन की कल ि ससर की सिसत जमतयो ि सववोपरर होग और रसी करण स व यजज िजज कहलएग अतएव व यरोप की कौि ह जो अशगन क उदयोगो ि ऐसी छरइ हरइ ह मक रस समबनध ि कछ अमधक कहन की मवशष आवशयकत नही पहली पसतको ि िी जो बनी ररिरइल की कौिो को दी गरइ यरोप की क़ौिो को ही यजज िजज ठहरय गय ह अमपत िसको क नि िी मलख ह जो परचीन कल ि रस की रजधनी अत मनशचित हो चक मक िसीह िौऊद यजज िजज क सिय ि परकट होगrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-14 अययिसलह पतषठ-424425)

नर (परकाश) की ऋतlsquolsquoजस मक ति दखत हो मक फल अपन सिय पर आत ह ऐस

ही परकश िी अपन सिय पर ही उतरत ह और रसस पवज़ा मक वह सवय उतर कोरइ उसको उतर नही सकत एव जब वह उतर तो कोरइ उसको बनद नही कर सकत मकनत ज़रर ह मक झगड़ हो और मवरोध हो मकनत अनतत सतय की मवजय ह कयोमक यह कयज़ा िनषय क नही

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मनतख़ब तहरीरात

ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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मनतख़ब तहरीरात

नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

Page 55: मुन्तख़ब ्तहरीरा्त · रस पुसतक क् अनुव्द आदरणीय सययद शह्ित अली (स्महतय

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ह और न मकसी िनव सनतन क हो स अमपत उस ख़द की तरफ़ स ह जो ॠतओ को बदलत और सियो को फरत और मदन स रत और रत स मदन मनकलत ह वह अनधकर को िी पद करत ह मकनत चहत रौशनी को ह वह मशकक (ईशवर क अमतररति अनय दवी दवतओ को ईशवर क बरबर सन द कर उनकी उपसन करन) को िी फलन दत ह मकनत पयर उसक lsquoतौहीदrsquo स ही ह और नही चहत मक उसक परतप दसर को मदय जए जब स मक िनषय पद हआ ह (और) उस वति तक मक वह नष हो जए-ख़द क परकमतक मवधन यही ह मक वह तौहीद क सदव सिज़ान करत हrsquorsquo

(रहनी िज़यन िग-15 िसीह महनदसतन ि पतषठ-65)ऐ ख़द ऐ करसज़ो ऐब पोशो मकर मदगर ऐ िर पयर िर िोहमसन िर परवरमदगरयह सरसर फ़लो एहस ह मक ि आय पसनद वरन दरगह ि तरी कछ कि न मिदितगज़र दोसती क दि जो िरत व सब दशिन हए पर न छोड़ स तन अए िर हजत बररऐ िर यर यगन ऐ िरी ज की पनहबस ह त िर मलए िझको नही तझ मबन बकरि तो िर कर िक होत गर न होत तर लतफ़ मफर ख़द जन कह यह फ़क दी जती ग़बरऐ मफ़द हो तरी रह ि िर मजसिो जनो मदलि नही पत मक तझ स कोरइ करत हो पयररशबतद स तर ही सय ि िर मदन कट गोद ि तरी रह ि मिसल मतफल-ए-शीर ख़वर

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नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)

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नसल रनस ि नही दखी वफ़ जो तझ ि ह तर मबन दख नही कोई िी यर-ए-ग़ि गसरलोग कहत ह मक नलयक़ नही होत क़बलि तो नलयक़ िी होकर प गय दरगह ि बर रस क़दर िझ पर हरइ तरी रनयतो करि मजनक िशशकल ह मक त रोज़-ए-क़यित हो शिर

(रहनी िज़यन िग-21 बरहीन-ए-अहिमदय िग-5 पतषठ-127)