deepawali pooja

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भभभभभभ - भभभभभभ भभभभभभभ भभ भभभ भभ भभभभभ भभभभभभभ भभभभभभभभ भभ भभभ भभभ भभभभभभभ भभभभभभ भभ भभ भभभभ भभभ भभ भभभभभभ भभभभभभ भभभ भ भभभभभभ भभभभ भभ भभभभभभभभभ भभभभभ भभभभ भभभभभभभभभ भभभभ भभभभभभभभ, भभभ, भभभभभ, भभभ भभभभभभभ, भभभ भभभ, भभभ भभभभ भभभ भभभ भभभभभभभभ भभ भभभभभ भभभभ भभ भभभभ भभ भभभ भभभभभभ भभभभभभ भभभभभभ भभभ भभ भभभ भभभभभभभभ , भभभ भभभभभभभ भभ भभभभभभ भभभ भभ भभभभभ भभ भभभभभभ भभ भभभभभ भभभ भभभभभभ भभ भभ भभभ भभ भभभ भभभ भभभभभभ भभभभभभभ भभ भभभभभ भभभभ भभ भभभभभभभ भभभ भभभभ भभ भभभभ भभ भभभ भभ भभभभभ ,भभभभभ भभभभभभभभभभ भभभभ भभ .. भभभभभभभभ भभ भभभभ भभभ भभभभ भभभभ भभ भभभभभभभभ भभभ भभभभभभ भभभभ भभभभभ भभभभभभभ भभभभभ भभभभ भभभभभभभ भभभभभभभ भभभभ भभ भभ भभभभ भभभभभभभभभ भभभभभभभ भभभ भभ भभभभभभभभ भभ भभभभभ भभभभ भभ भभभ-भभभभभ भभभ भभ भभभभ भभभभभभभ, भभभभभभभ भभभ भभभभभभभ भभभभभ भभ भभभ भभभभभ भभभभ भभ भभ भभभभ ‘भभभभभभ-भभभभ’ भभ भभभ भभभ भभभभभ भभभ भभ भभभभ भभ भभभ भभभभ भभभभभभभ , भभभभभभभ भभभ भभभभभभभभ भभभभभभ भभभ भभभ भभभभभभभभ : भभ भभभभ भभभभभभभ भभभभ भभ भभभभ भभभभभ भभभभ भभ भभभभ भभभभ भभभभ भभ भभभभभ भभभभ भभभभ भभभभ भभ भभभभभभभ भभभभभ भभ भभभभ भभभ भभभभभ भभभभ भभ भभभभभभभ भभभभभ भभ भभभभभभ भभ भभभभभभभ भभभभ भभभभभ भभभभ भ भभभभ भभभ भभभभभभभ भभभभ भभभभभभभ भभभ भभभभभ भभभभ भभ भभ भभभभभभभभभभ भभ भभ-भभ भभभभभभ भभभभभभभ भभभभभ भभभ भभभ भभभभभभभ भभभभभभभभभभभभ भभभभभभभभभ भभ-भभ भभ भभ भभभभ भभभभ भभभभ भभभ भभ भभभभभभभ भभभभ भभभभ भभभ

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Deepawali Pooja

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भूमि�का - भारत एक परंपराओ का देश है। नैतितक सा�ाजि�क रा�नैतितक ही नही वरन तिवज्ञान शिशक्षा की भी भारत �ें एक स्वस्थ परंपरा रही हैं। भारतीय स�ा� का वैज्ञातिनक शि$तंन एवं� दृमि&कोण उसके स्थापत्य, कला, संगीत, लोक व्यवहार, खान पान, वेष भूषा आदी सभी क्षेत्रो से प्रकट होता है। भारत की लोक परंपरा अत्यंत स�ृद्ध रही है। लोक आकृतितयां , लोक परंपराओ का प्र�ुख अंग है इन�ें ह� रंगोली से अच्छी तरह परिरशि$त है ये कला के साथ साथ गणिणतितय आकृतितयो का अदभूत संग� है। दीपावली सभी वग> के लोगो के शिलए एक दैतिवक ,भौतितक आध्यात्मित्�क पव> है ..

संस्कृतित के इतने रंग ह�ें तिकसी और संस्कृतित �ें दिदखलाइ नहीं पड़ते

दीपावली ह�ारा सबसे प्रा$ीन धार्मि�Iक पव> है। यह पव> प्रतितवष> कार्तितIक �ास की अ�ावस्या को �नाया �ाता है। देश-तिवदेश �ें यह बड़ी श्रद्धा, तिवश्वास एवं स�र्तिपIत भावना के साथ �नाया �ाता है। यह पव> ‘प्रकाश-पव>’ के रूप �ें �नाया �ाता है। इस पव> के साथ अनेक धार्मि�Iक, पौराणिणक एवं ऐतितहाशिसक �ान्यताए ं�ुड़ी हुई हैं। �ुख्यतया: यह पव> लंकापतित रावण पर तिव�य हाशिसल करके और अपना $ौदह वष> का वनवास पूरा करके अपने घर आयोध्या लौटने की खुशी �ें �नाया �ाता है। पौराणिणक कथाओं के अनुसार �ब श्रीरा� अपनी पत्नी सीता व छोटे भाई लक्ष्�ण सतिहत आयोध्या �ें वातिपस लौटे थे तो नगरवाशिसयों ने घर-घर दीप �लाकर खुशिशयां �नाईं थीं। इसी पौराणिणक �ान्यतानुसार प्रतितवष> घर-घर घी के दीये �लाए �ाते हैं और खुशिशयां �नाई �ाती हैं।

दीपावली पव> से कई अन्य �ान्यताए,ं धारणाए ंएवं ऐतितहाशिसक घटनाए ंभी �ुड़ी हुई हैं। कठोपतिनषद ्�ें य�-नशि$केता का प्रसंग आता है। इस प्रसंगानुसार नशि$केता �न्�-�रण का रहस्य य�रा� से �ानने के बाद य�लोक से वातिपस �ृत्युलोक �ें लौटे थे। एक धारणा के अनुसार नशि$केता के �ृत्यु पर अ�रता के तिव�य का ज्ञान लेकर लौटने की खुशी �ें भू-लोकवाशिसयों ने घी के दीप �लाए थे। तिकवदन्ती है तिक यही आय>वत> की पहली दीपावली थी।

एक अन्य पौराणिणक घटना के अनुसार इसी दिदन श्री लक्ष्�ी �ी का स�ुन्द्र-�न्थन से आतिवभा>व हुआ था। इस पौराणिणक प्रसंगानुसार ऋतिष दुवा>सा द्वारा देवरा� इन्द्र को दिदए गए शाप के कारण श्री लक्ष्�ी �ी को स�ुद्र �ें �ाकर स�ाना पड़ा था। लक्ष्�ी �ी के तिबना देवगण बलहीन व श्रीहीन हो गए। इस परिरस्थिस्थतित का फायदा उठाकर असुर सुरों पर हावी हो गए। देवगणों की या$ना पर भगवान तिवष्णु ने यो�नाबद्ध ढं़ग से सुरों व असुरों के हाथों स�ुद्र-�न्थन करवाया। स�ुन्द्र-�न्थन से अ�ृत सतिहत $ौदह रत्नों �ें श्री लक्ष्�ी �ी भी तिनकलीं, जि�से श्री तिवष्णु ने ग्रहण तिकया। श्री लक्ष्�ी �ी के पुनार्तिवIभाव से देवगणों �ें बल व श्री का सं$ार हुआ और उन्होंने पुन: असुरों पर तिव�य प्राप्त की। लक्ष्�ी �ी के इसी पुनार्तिवIभाव की खुशी �ें स�स्त लोकों �ें दीप प्रज्जवशिलत करके खुशिशयां �नाईं गई। इसी �ान्यतानुसार प्रतितवष> दीपावली को श्री लक्ष्�ी �ी की पू�ा-अ$>ना की �ाती है। �ाकg डेय पुराण के अनुसार स�ृजिद्ध की देवी श्री लक्ष्�ी �ी की पू�ा सव>प्रथ� नारायण ने स्वग> �ें की। इसके बाद श्री लक्ष्�ी �ी की पू�ा दूसरी बार, ब्रह्मा �ी ने, तीसरी बार शिशव �ी ने, $ौथी बार स�ुन्द्र �न्थन के स�य तिवष्णु �ी ने, पां$वी बार �नु ने और छठी बार नागों ने की थी।

दीपावली पव> के सन्दभ> �े एक पौराणिणक प्रसंग भगवान श्रीकृष्ण भी प्र$शिलत है। इस प्रसंग के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण बाल्यावस्था �े पहली बार गाय $राने के शिलए वन �ें गए थे। संयोगवश इसी दिदन श्रीकृष्ण ने इस �ृत्युलोक से प्रस्थान तिकया था। एक अन्य प्रसंगानुसार इसी दिदन श्रीकृष्ण ने नरकासुर ना�क नी$ असुर का वध करके उसके द्वारा बंदी बनाई गई देव, �ानव और गन्धवo की सोलह ह�ार कन्याओं को �ुशिp दिदलाई थी। इसी खुशी �ें लोगों ने दीप �लाए थे, �ोतिक बाद �े एक परंपरा �ें परिरवर्तितIत हो गई।

दीपावली के पावन पव> से भगवान तिवष्णु के वा�न अवतार की लीला भी �ुड़ी हुई है। एक स�य दैत्यरा� बशिल ने पर� तपस्वी गुरू शुक्रा$ाय> के सहयोग से देवलोक के रा�ा इन्द्र को परास्त करके स्वग> पर अमिधकार कर शिलया। स�य आने पर भगवान तिवष्णु ने अदिदतित के गभ> से �हर्तिषI कश्यप के घर वा�न के रूप �ें अवतार शिलया। �ब रा�ा बशिल भृगकच्छ ना�क स्थान पर अश्व�ेघ यज्ञ कर रहे थे तो भगवान वा�न ब्राहा्रण वेश �े रा�ा बशिल के यज्ञ �ण्डल �ें �ा पहुं$े। बशिल ने वा�न से इस्थिच्छत दान �ांगने का आग्रह तिकया। वा�न ने बशिल से संकल्प लेने के बाद तीन पग भूमि� �ांगी। संकल्पबद्ध रा�ा बशिल ने ब्राहा्रण वेशधारी भगवान वा�न को तीन पग भूमि� नापने के शिलए अनु�तित दे दी। तब भगवान वा�न ने पहले पग �ें स�स्त भू�ण्डल और दूसरे पग �ें तित्रलोक को नाप डाला। तीसरे पग �ें बशिल ने तिववश होकर अपने शिसर को आगे बढ़ाना पड़ा। बशिल की इस दान वीरता से भगवान वा�न प्रसन्न हुए। उन्होंने बशिल को सुतल लोक का रा�ा बना दिदया और इन्द्र को पुन: स्वग> का स्वा�ी बना दिदया। देवगणों ने इस अवसर पर दीप प्रज्जवशिलत करके खुशिशयां �नाई और पृथ्वीलोक �ें भी भगवान वा�न की इस लीला के शिलए दीप �ालाए ंप्रज्जवशिलत कीं।

दीपावली के दीपों के सन्दभ> �ें देवी पुराण का एक �हत्वपूण> प्रसंग भी �ुड़ा हुआ है। इसी दिदन दुगा> �ातेश्वरी ने �हाकाली का रूप धारण तिकया था और असंख्य असुरों सतिहत $ण्ड और �ुण्ड को �ौत के घाट उतारा था। �ृत्युलोक से असुरों का तिवनाश करते-करते �हाकाली अपना तिववके खो बैठीं और क्रोध �ें उसने देवों का भी सफाया करना शुरू कर दिदया। देवताओं की या$ना पर शिशव �हाकाली के स�क्ष प्रस्तुत हुए। क्रोधावश �हाकाली शिशव के सीने पर भी $ढ़ बैठीं। लेतिकन, शिशव-’शरीर का स्पश> पाते ही उसका क्रोध शांत हो गया। तिकवदन्ती है तिक तब दीपोत्सव �नाकर देवों ने अपनी खुशी का प्रकटीकरण तिकया।

दीपावली पव> के साथ धार्मि�Iक व पौराणिणक �ान्यताओं के साथ-साथ कुछ ऐतितहाशिसक घटनाए ंभी �ुड़ी हुई हैं। एक ऐतितहाशिसक घटना के अनुसार गुप्तवंश के प्रशिसद्ध सम्राट तिवक्र�ादिदत्य के राज्याणिभषेक के स�य पूरे राज्य �ें दीपोत्सव �नाकर प्र�ा ने अपने भावों की अणिभव्यशिp की थी। इसके अलावा इसी दिदन रा�ा तिवक्र�ादिदत्य ने अपना संवत $लाने का तिनण>य तिकया था। उन्होंने तिवद्वानों को बुलवाकर तिनण>य तिकया था तिक नया संवत $ैत्र सुदी प्रतितपदा से ही $लाया �ाए।

दीपावली के दिदन ही �हान स�ा� सुधारक, आय> स�ा� के संस्थापक और ‘सत्याथ>-प्रकाश’ के रशि$यता �हर्तिषI दयानंद सरस्वती की �हान् आत्�ा ने ३० अpूबर, १८८३ को अपने नश्वर शरीर को त्यागकर तिनवा>ण प्राप्त तिकया था। पर� संत स्वा�ी रा�तीथ> का �न्� इसी दिदन यानी कार्तितIक �ास की अ�ावस्या के दिदन ही हुआ था और उनका देह त्याग भी इसी दिदन होने का अनूठा उदाहरण भी ह�ें मि�लता है। इस प्रकार स्वा�ी रा�तीथ> के �न्� और तिनवा>ण दोनों दिदवसों के रूप �ें दीपावली तिवशेष �हत्व रखती है।

मनुस्मृति� में कहा गया है तिक

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ज्ञानेनैवापरे तिवप्राः यजन्�े �ैम�खःसदा।

ज्ञानमूलां ति यामेषा पश्चन्�ो ज्ञानचक्षुषा।।

तिहन्दी में भावार्थ�-कुछ गृहस्थ तिवद्वान अपनी तिक्रयाओं को अपने ज्ञान नेत्रों से देखते हैं। अपने काय> को ज्ञान से संपन्न करना भी एक तरह से यज्ञानुष्ठान है। वह ज्ञान को �हत्वपूण> �ानते हैं इसशिलये उन्हें श्रेष्ठ �ाना �ाता है।

ब्राह्मो मुहू�, बुध्ये� धमा�र्थ0 चानुचिचन्�ये�्।

कायक्लेशांश्च �न्मूलान्वेदा�त्तवार्थ�मेव च।।

तिहन्दी में भावार्थ�-ब्रह्म �ुहूत> �ें उठकर ध�> का अनुष्ठान करने के बाद अथ�पा�>न का तिव$ार करना $ातिहए। इस शुभ �ुहूत> �ें शारीरिरक क्लेशों को दूर करने के साथ ही वेदों के ज्ञान पर तिव$ार करना भी उत्त� रहता है।

लक्ष्�ी दो प्रकार से आती हैं - एक गरुड़ वाहनी �ो भगवान तिवष्णु के साथ आती हैं। यह सदक्�> से अर्जि�Iत की गई लक्ष्�ी के रूप �ें आती हैं। इस लक्ष्�ी के आने पर व्यशिp के काय>, व्यवहार, आ$रण �ें कहीं कोई क�ी नहीं झलकती है बल्किल्क वह तिवनम्रता से संपन्न होकर स�ा�सेवी,

परोपकारी, दरिरद्र नारायण की सेवा करने वाला होता है। उसकी लोकतिप्रयता स�ा�-देश �ें बढ़ती ही $ली �ाती है। इसके तिवपरीत उल्लू वातिहनी लक्ष्मी का आग�न अनैतितक क�> के द्वारा होता है।

उसके आने के साथ ही उल्लू का आग�न भी घर �ें हो �ाता है। फलस्वरूप उस व्यशिp �ें ता�सी प्रवृणित्त वाले दुगरुण भी आते हैं। जि�स प्रकार उल्लू रात �ें �ागता है एवं दिदन �ें सोता है, ठीक उसी प्रकार वह भी देर से उठने एवं देर रात तक काय> करने �ें प्रवृत्त हो �ाता है। ऐसे �ातकों की संतान भी संस्कार तिवहीन हो �ाती है। वैसे भी शास्त्रों �ें कहा गया है तिक अनैतितकता से प्राप्त की गई सफलता व स�ृजिद्ध लंबे स�य तक साथ नहीं देती है।लक्ष्�ी की परिरभाषा �ें आ��न केवल धन को ही �ानते हैं �बतिक लक्ष्�ी आठ प्रकार की होती हैं - आद्य लक्ष्�ी, तिवद्या लक्ष्�ी, सौभाग्य लक्ष्�ी, अ�ृत लक्ष्�ी, का� लक्ष्�ी, सत्य लक्ष्�ी, भोग लक्ष्�ी, योग लक्ष्�ी। �ैसा तिक ना� से ही अथ> स्प& हो रहा है। ये सभी लक्षण लक्ष्�ीवान के होते हैं अथा>त उपरोp �ें से एक भी लक्ष्�ी व्यशिp को स�थ> एवं सुखी बना सकती है।अत: व्यशिp को धन की $ाह के ब�ाय आदश> परिरवार की ओर उन्�ुख होना $ातिहए तातिक �ीवन �ें सभी सुख मि�ल सकें और वह उनका उपभोग भी कर सके। लक्ष्�ी �ी ने स्वयं कहा है - सत्य, दान, व्रत, तप, ध�>, पराक्र�ी, सरल व्यशिp के यहां �ैं तिनवास करती हंू तथा �हां आलस्य, तिनद्रा, असंतोष, अध��, संतान का पालन तिवमिधवत न हो रहा हो, उस स्थान को �ैं छोड़ देती हूं।लक्ष्�ी पानी की भांतित $ं$ल होती हैं। तिफर भी लक्ष्�ी को स्थायी रूप से रोकने के शिलए स्थायी प्रयास प्रतितवष> करने पड़ते हैं। दीपावली के दिदन लक्ष्�ी�ी की पू�ा तिवमिध-तिवधान से करनी $ातिहए। शुभ �ुहुत> �ें एक कंबल के आसन पर बैठ कर सम्�ुख पाटे पर पीले या लाल वस्त्र पर पीले $ावल रखकर उस पर श्रीयंत्र की स्थापना करें। दीपक, अगरबत्ती, धूपबत्ती �लाए,ं �न �ें श्रद्धापूव>क �ां लक्ष्�ी का ध्यान करें।आह्वान हेतु $ावल $ढ़ाए,ं तिफर श्रीयंत्र को �ल से उसके बाद पं$ा�ृत से, पुन: �ल से स्नान कराए।ं पुन: पदिटए पर स्थातिपत करें। केसर, $ंदन, कंकू, अबीर, गुलाल, हल्दी, �ेहंदी, सिसIदूर, अक्षत, फूल, वस्त्र, सेंट, दूवा>, धूप, दीप, बेसन की मि�ठाई, फल, सूखा �ेवा, लोंग, इलाय$ी, दणिक्षणा भेंट करें।

पश्चात तिनम्न �ंत्र की तीन �ाला का �ाप करें।ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्यामिधपतये धन धान्य �े स�ृजिद्ध देतिह दापय स्वाहा:

�ाप पूण> होने पर �ल छोड़ें, दीपक, कपूर से आरती करें। आरती लें, प्रणा� करें एवं प्राथ>ना करें तिक हे �ाता आप कुबेर के ख�ाने ऋतिष-शिसजिद्ध सतिहत यहां तिवरा��ान रहें। श्रीयंत्र को स्नान कराया हुआ �ल अपने घर-काया>लय और प्रतितष्ठान �ें शिछड़कें

श्रीसूp लक्ष्�ीपू�न - प्रथ� पू�ा

श्रीसूp के १६ �न्त्र �ॉं लक्ष्�ी को तिवशेष प्रसन्न करने वाले �ाने गए हैं । यह सूp ‘ श्री ’ अथा>त लक्ष्�ी प्रदान करने वाला है । इसी कारण इसे श्रीसूp कहते हैं । वेदोp होने के कारण यह अत्यमिधक प्रभावशाली भी है । प्रत्येक धार्मि�Iक काय> �ें , हवनादिद के अन्त �ें इन १६ सूpों से �ॉं लक्ष्�ी के प्रसन्नाथ> आहूतितयॉं अवश्य लगाई �ाती हैं । इसके १६ सूpों से �ॉं लक्ष्�ी की षोडशोप$ार पू�ा की �ाती है । दीपावली पर पुराणोp , वेदोp अथवा पारम्परिरक रुप से तो प्रतितवष> ही आप पू�न करते हैं । इस वष> इन तिवशिश& सूpों से �ॉं लक्ष्�ी को प्रसन्न कीजि�ए ।

लक्ष्मी पूजन हे�ु सामग्री

रोली , �ौली , पान , सुपारी , अक्षत ( साबुत $ावल ), धूप , घी का दीपक , तेल का दीपक , खील , बतासे , श्रीयंत्र , शंख ( दणिक्षणावत� हो , तो उत्त� ), घंटी , मिघसा हुआ $न्दन , �लपात्र , कलश , पाना ( लक्ष्�ी , गणेश एवं सरस्वती का संयुp शि$त्र ), दूध , दही , शहद , शक> रा , घृत , गंगा�ल , शिसन्दूर , नैवेद्य , इत्र , यज्ञोपवीत , शे्वताक> के पुष्प , क�ल का पुष्प , वस्त्र , कंुकु� , पुष्प�ाला , ऋतुफल , कपू>र , नारिरयल , इलाय$ी , दूवा> , एकाक्षी नारिरयल , $ॉंदी का वक> इत्यादिद ।

पूजन तिवचिध

सव>प्रथ� लक्ष्�ी -गणेश के पाने ( शि$त्र ), श्रीयन्त्र आदिद को �ल से पतिवत्र करके लाल वस्त्र से आच्छादिदत $ौकी पर स्थातिपत करें । लाल कम्बल या ऊन के आसन को तिबछाकर पूवा>णिभ�ुख या उत्तराणिभ�ुख बैठें । पू�न सा�ग्री तिनम्नशिलखिखत प्रकार से रखें :

बायीं ओर :

१ . �ल से भरा हुआ पात्र , २ . घंटी , ३ . धूपदान , ४ . तेल का दीपक ।

दायीं ओर :

१ . घृत का दीपक , २ . �ल से भरा शंख ( दणिक्षणावत� शंख हो , तो उत्त� ) ।

सामने :

१ . मिघसा हुआ $न्दन , २ . रोली , ३ . �ौली , ४ . पुष्प , ५ . अक्षत आदिद ।

भगवान के सामने : $ौकी पर नैवेद्य ।

सव>प्रथ� तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से अपने ऊपर तथा पू�न सा�ग्री के ऊपर �ल शिछडकें :

ॐ अपतिवत्रः पतिवत्रो वा सवा�वस्थां ग�ोऽतिप वा ।

यः स्मरे� पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्�रः शुचिचः ॥

अब $ौकी के दायीं ओर घी का दीपक प्रज्वशिलत करें ।

स्वस्तिस्�वाचन

इसके पश्चात दातिहने हाथ �ें अक्षत और पुष्प लेकर तिनम्न �न्त्रों से स्वल्किस्तवा$न करें :

ॐ स्वस्तिस्� न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्तिस्� नः पूषा तिवश्ववेदाः ।

स्वस्तिस्� नस्�ाक्ष्य0 अरिरष्टनेमिमः स्वस्तिस्�नो बृहस्पति�द�धा�ु ॥

पयः पृचिर्थव्यां पय ओषधीषु पयो दिदव्यन्�रिरक्षे पयो धाः ।

पयस्व�ीः प्रदिदशः सन्�ु मह्यम ।

तिवष्णो रराटमचिस तिवष्णोः श्नप्त्रेस्थो तिवष्णोः स्यूरचिस तिवष्णोरु्ध्रु�वोऽचिस वैष्णवमचिस तिवष्णवे त्वा ॥

अग्नि_नद,व�ाव्वा�ोदेव�ासूर्य्योय0देव�ा चन्द्रमा देव�ाव्वसवो देव�ा रुद्रोदेव�ा आदिदत्यादेव�ा मरु�ोदेव�ा तिवशे्वदेवा देव�ा बृहस्पति�ः देव�ेन्द्रोदेव�ाव्वरुणोदेव�ा ॥

द्यौः शाग्निन्�रग्निन्�रिरक्ष शाग्निन्�ः पृचिर्थवी शाग्निन्�रापः शाग्निन्�रोषधयः शाग्निन्�ः ।

वनस्प�यः शाग्निन्�र्विवfश्वे देवाः शाग्निन्�ब्र�ह्म शाग्निन्�ः सव� शाग्निन्�ः शाग्निन्�रेव शाग्निन्�ः सा मा शाग्निन्�रेचिध ।

य�ो य�ः समीहसे ��ो नो अभयं कुरु ।

शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः । सुशाग्निन्�भ�व�ु ॥

ॐ शांति�ः शांति�ः सुशांति�भ�व�ु । सवा�रिरष्ट -शांति�भ�व�ु ॥

अब हाथ �ें शिलए हुए अक्षत -पुष्य सा�ने $ौकी पर $ढा दें ।

गणपति� आदिद देव�ाओं का स्मरण

स्वल्किस्तवा$न के पश्चात तिनम्नशिलखिखत �न्त्र के साथ भगवान गणेश का हाथ �ें पुष्प -अक्षत आदिद लेकर स्�रण करना $ातिहए तत्पश्चात उन्हें $ौकी पर $ढा दें :

सुमुखशै्चकदन्�श्च कतिपलो गजकण�कः ।

लम्बोदरश्च तिवकटो तिवघ्ननाशो तिवनायकः ॥

धूम्रके�ुग�णाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।

द्वादशै�ातिन नामातिन यः पठेचृ्छणुयादतिप ॥

अब तिनम्नशिलखिखत �न्त्रों का उच्चारण करते हुए सम्बत्मिन्धत देवताओं का का स्�रण करें :

श्रीमन्महागणाचिधप�ये नमः । लक्ष्मी -नारायणाभ्यां नमः ।

उमामहेश्वराभ्यां नमः । वाणी -तिहरण्यगभा�भ्यां नमः ।

शची -पुरन्दराभ्यां नमः । मा�ृतिप�ृचरणकमलेभ्यो नमः ।

इष्टदेव�ाभ्यो नमः । कुलदेव�ाभ्यो नमः ।

ग्राम देव�ाभ्यो नमः । वास्�ुदेव�ाभ्यो नमः ।

स्थानदेव�ाभ्यो नमः । सव,भ्यो देवेभ्यो नमः ।

सव,भ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः । चिसद्धिद्धबुद्धिद्ध सतिह�ाय श्रीमन्महागणाचिधप�ये नमः ।

तिवणिभन्न देवताओं के स्�रण के पश्चात तिनम्नशिलखिखत �न्त्र का उच्चारण करते हुए गणपतित , सूय> , ब्रह्मा , तिवष्णु , �हेश , सरस्वती इत्यादिद को प्रणा� करना $ातिहए ।

तिवनायकं गुरंु भानुं ब्रह्मतिवष्णुमहेश्वरान ।

सरस्व�ीं प्रणम्यादौ सव�काया�र्थ� चिसद्धये ॥

हाथ �ें शिलए हुए अक्षत और पुष्पों को $ौकी पर स�र्तिपIत कर दें ।

श्रीसूp लक्ष्�ीपू�न - तिद्वतीय पू�ा

गणपति� स्थापना

अब एक सुपारी लेकर उस पर �ौली लपेटकर $ौकी पर थोडे से $ावल रखकर सुपारी को उस पर रख दें । तदुपरान्त भगवान गणेश का आवाहन करें :

ॐ गणानां त्वा गणपति� हवामहे तिप्रयाणां त्वा तिप्रयपति� हवामहे तिनधीनां त्वा तिनचिधपति� हवामहे वसो मम ।

आहमजातिन गभ�धमा त्वमजाचिस गभ�धम ॥

ॐ भूभु�वः स्वः चिसद्धिद्धबुद्धिद्धसतिह�ाय गणप�ये नमः , गणपति�मावाहयामिम , स्थापयामिम , पूजयामिम च ।

आवाहन के पश्चात तिनम्नशिलखिखत �न्त्र की सहायता से गणेश�ी की प्रतितष्ठा करें और उन्हें आसन दें :

अस्यै प्राणाः प्रति�ष्ठन्�ु अस्यै प्राणाः क्षरन्�ु च ।

अस्यै देवत्वमचा�यै मामहेति� च कश्चन ॥

गजाननं ! सुप्रति�तिष्ठ�े वरदे भवे�ाम ॥

प्रति�ष्ठापूव�कम आसनार्थ, अक्ष�ान समप�यामिम । गजाननाभ्यां नमः ।

पुनः अक्षत लेकर गणेश�ी के दातिहनी ओर �ाता अत्मिम्बका का आवाहन करें :

ॐ अम्बे अग्निम्बकेऽम्बाचिलके न मा नयति� कश्चन ।

ससस्त्यश्वकः सुभदिद्रकां काम्पीलवाचिसनीम ।

हेमादिद्र�नयां देवीं वरदां शमरतिप्रयाम ।

लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम ॥

ॐ भूभुव�ःस्वः गौय, नमः , गौरीमावाहयामिम , स्थापयामिम , पूजयामिम च ।

अक्षत $ौकी पर छोड दें । अब पुनः अक्षत लेकर �ाता अत्मिम्बका की प्रतितष्ठा करें :

अस्यै प्राणाः प्रति�ष्ठन्�ु अस्यै प्राणाः क्षरन्�ु च ।

अस्यै देवत्वमचा�यै मामहेति� च कश्चन ॥

अग्निम्बके सुप्रति�तिष्ठ�े वरदे भवे�ाम ।

प्रति�ष्ठापूव�कम आसनार्थ, अक्ष�ान समप�यामिम गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः । ऐसा कहते हुए आसन पर अक्षत स�र्तिपIत करें ।

संकल्प

उपयु>p प्रतिक्रया के पश्चात दातिहने हाथ �ें अक्षत , पुष्प , दूवा> , सुपारी , �ल एवं दणिक्षणा ( शिसक्का ) लेकर तिनम्नशिलखिखत प्रकार से संकल्प करें :

ॐ तिवष्णुर्विवfष्णुर्विवfष्णुः श्रीमद्भगव�ो महापुरुषस्य तिवष्णोराज्ञया प्रव��मानस्य ब्रह्मणोऽतिr तिद्व�ीयपराध, श्रीश्वे�वाराहकल्पे वैवस्व�मन्वन्�रे अष्टाविवfशति��मे कचिलयुगे कचिलप्रर्थमचरणे जम्बूद्वीपे भार�वष, आया�व�tकदेशे ... नगरे /ग्रामे /क्षेते्र २०६७ वै माब्दे शोभननाम संवत्सरे कार्वि�fक मासे कृष्णपक्षे अमावस्यायां ति�र्थौ शु वासरे प्रदोषकाले /सायंकाले /रातित्रकाले स्थिस्थरल_ने शुभ मुहू�, ... गोत्र उत्पन्नः ... शमा� /वमा� /गुप्�ः अहं शु्रति�स्मृति�पुराणोक्त फलवाग्निप्�कामनया ज्ञा�ाज्ञा�कामियक वाचिचक मानचिसक सकल पाप तिनवृचित्तपूव�कं मम सवा�पच्छाग्निन्�पूव�क दीर्घाा�युष्यबल पुतिष्टनैरुज्यादिद सकलशुभफल प्राप्�र्थ� गज �ुरंग -रर्थराज्यैश्वया�दिद सकल सम्पदाम उत्तरोत्तराद्धिभ -वृदध्यर्थ� तिवपुल धनधान्य -प्राप्त्यर्थ, , मम सपुत्रस्य सबांधवस्य अखिखलकुटुम्ब -सतिह�स्य समस्� भय व्याचिध जरा पीडा मृत्यु परिरहारेण , आयुरारो_यैश्वया�द्धिभ -वृद्धयर्थ� परमंत्र पर�ंत्र परयंत्र परकृत्याप्रयोग छेदनार्थ� गृहे सुखशांति� प्राप्�र्थ� मम जन्मकुण्डल्यां , गोचरकुण्डल्यां , दशाविवfशोत्तरी कृ� सव�कुयोग तिनवारणार्थ� मम जन्मराशेः अखिखल कुटुम्बस्य वा जन्मराशेः सकाशादे्य केचिचतिद्वरुद्ध च�ुर्था�ष्टम द्वादश स्थान स्थिस्थ� ूर ग्रहास्�ैः सूचिच�ं सूचमियष्यमाणं च यत्सवा�रिरष्ट �तिद्वनाशाय नवम एकादश स्थान स्थिस्थ� ग्रहाणां शुभफलप्राप्त्यर्थ� आदिदत्यादिद नवग्रहानुकूल�ा चिसद्धयर्थ� दैतिहक दैतिवक भौति�क �ापत्रय शमनार्थ�म धमा�र्थ�काम मोक्ष फलवाप्त्यर्थ� श्रीमहालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिरष्ये । �दड्रत्वेन प्रर्थमं गणपत्यादिदपूजनं च करिरष्ये ।

उp संकल्प वाक्य पढकर �लाक्षतादिद गणेश�ी के स�ीप छोड दें । इसके पश्चात गणेश�ी का पू�न करें ।

गणेशाग्निम्बका पूजन

हाथ �ें अक्षत लेकर तिनम्न �न्त्र से गणेशात्मिम्बका का ध्यान करें :

गजाननं भू�गणादिदसेतिव�ं कतिपत्थजम्बूफलचारुभक्षणम ।

उमासु�ं शोकतिवनाशकारकं नमामिम तिवघ्नेश्वरपादपमजम ॥

नमो देवै्य महादेवै्य द्धिशवायै स��ं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै तिनय�ाः प्रण�ाः स्म �ाम ॥

श्रीगणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः कहकर हाथ �ें शिलए हुए अक्षतों को भगवान गणेश एवं �ाता गौरी को स�र्तिपIत करें ।

गणपतित और गौरीकी पू�ा

(पू�ा�ें �ो वस्तु तिवद्य�ान न हो उसके शिलये 'मनसा परिरकल्प्य समप�यामिम' कहे । �ैसे, आभूषणोके शिलये 'आभूषणं मनसा परिरकल्प्य समप�यामिम।)

हाथ�ें अक्षत लेकर ध्यान करे-

भगवान गणेशका ध्यान-

गजाननं भू�गणादिदसेतिव�ं कतिपत्थजमू्भफलचारुभक्षणम् ।

उमासु�ं शोकतिवनाशकारकं नमामिम तिवघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥

भगवती गौरीका ध्यान -

नमो देवै्य महादेवै्य द्धिशवायै स��ं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै तिनय�ाः प्रण�ाः स्म �ाम् ॥

श्रीगणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, ध्यानं समप�यामिम ।

भगवान गणेशका आवाहन-

ॐ गणानां त्वा गणपति�हवामहे तिप्रयाणां त्वा तिप्रयपति�हवामहे तिनधीनां त्वा तिनचिधपति�हवामहे वसो मम ।

आहमजातिन गभ�धमात्वमजाचिस गभ�धम् ॥

एहे्यतिह हेरम्ब महेशपुत्र समस्�तिवघ्नौर्घातिवनाशदक्ष ।

माङ्गल्यपूजाप्रर्थमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्�े ॥

ॐ भूभु�वः स्वः चिसद्धिद्धबुद्धिद्धसतिह�ाय गणप�ये नमः, गणपति�मावाहयामिम, स्थापयामिम, पूजयामिम च ।

हाथके अक्षत गणेश�ीपर $ढ़ा दे । तिफर अक्षत लेकर गणेश�ीकी दातिहनी ओर गौरी�ीका आवाहन करे ।

भगव�ी गौरी का आवाहन-

ॐ अम्बे अग्निम्बकेऽम्बाचिलके न मा नयति� कश् चन ।

ससस्त्यश् वकः सुभदिद्रकां काम्पीलवाचिसनीम् ॥

तिहमादिद्र�नयां देवीं वरदां शङ्करतिप्रयाम् ।

लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गौयt नमः, गौरिरमावाहयामिम, स्थापयामिम, पूजयामिम च ।

प्रति�ष्ठा -

ॐ मनो जूति�जु�ष�ामाज्यस्य बृहस्पति�य�ज्ञमिममं �नोत्वरिरषं्ट यज्ञसमिममं दधा�ु ।

तिवश् वे देवास इह आदयन्�ाम् ॐ प्रति�ष्ठ ॥

अस्यै प्राणाः प्रति�ष्ठन्�ु अस्यै प्राणाः क्षरन्�ु च ।

अस्यै देवत्वमचा�यै मामहेति� च कश् चन ॥

गणेशाग्निम्बके! सुप्रति�तिष्ठ�े वरदे भवे�ाम् ॥

प्रति�ष्ठापूव�कम् आसनार्थ, अक्ष�ान् समप�यामिम गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः ।

(आसनके शिलये अक्षत स�र्तिपIत करे) ।

पाद्य, अघ्य�, आचमनीय, स्नानीय, पुनराचमनीय

ॐ देवस्य त्वा सतिव�ुः प्रसवेऽश् तिवनोबा�हुभ्यां स्नानीय, पूष्णो हस्�ाभ्याम् ॥

ए�ातिन पाद्याघ्या�चमनीयस्नानीयपुनराचमनीयातिन समप�यामिम । गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः ।

(इतना कहकर �ल $ढ़ा दे) ।

दु_धस्नान -

ॐ पयः पृथ्वि�वयां पय औषधीषु पयो दिदव्यन्�रिरक्षे पयो धाः ।

पयस्व�ीः प्रदिदशः सन्�ु मह्यम् ॥

कामधेनुसमुद्भ�ूं सव,षां जीवनं परमं ।

पावनं यज्ञहे�ुश् च पयः स्नानार्थ�मर्विपf�म् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः । पयः स्नानं समप�यामिम ।

(दूधसे स्नान कराये) ।

दचिधस्नान -

ॐ दचिध ाव्णो अकारिरषं जिजष्णोरश् वस्य वाजिजनः ।

सुरद्धिभ नो मुखाकरत्प्राण आयूतिष �ारिरष�् ॥

पयसस्�ु समुद्भ�ंू मधुराम्लं शद्धिशप्रभम् ।

दध्यानी�ं मया देव स्नानार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भुभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः ।

दचिधस्नानं समप�यामिम ।

(दमिधसे स्नान कराये) ।

रृ्घा�स्नान -

ॐ रृ्घा�ं मिममिमक्ष ेरृ्घा�मस्य योतिनरृ्घा��े द्धिश्रयो रृ्घा�म्वस्य धाम ।

अनुष्वधमावह मादयस्व स्वाहाकृ�ं वृषभ वद्धिक्ष हव्यम् ॥

नवनी�समुत्पनं्न सव�सं�ोषकारकम् ।

रृ्घा�ं �ुभ्यं प्रदास्यामिम स्नानार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भुभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यांनमः । रृ्घा� स्नानं समप�यामिम ।

(घृतसे स्नान करये) ।

मधु स्नान

ॐ मधु वा�ा ऋ�ाय�े मधु क्षरग्निन्� चिसन्धवः ।

माध्वीन�ः सन्त्वोषधीः ॥ मधु नक्तमु�ोषसो

मधुमत्पार्थिर्थfवरजः । मधु द्यौरस्�ु नः तिप�ा ।

पुष्परेणुसमुद्भ�ूं सुस्वादु मधुरं मधु ।

�ेजः पुतिष्टकरं दिदवं्य स्नानार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, मधुस्नानं समप�यामिम ।

(�धुसे स्नान कराये )।

शक� रा स्नान

ॐ अपारसमुद्वयससूयt सन्�समातिह�म् ।

अपारसस्य यो रसस्�ं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृही�ोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष �े योतिनरिरन्द्राय त्वा जुष्ट�मम् ॥

इक्षुरससमुद्भ�ूां शक� रां पुतिष्टदां शुभाम् ।

मलापहारिरकां तिद्वव्यां स्नानार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः । शक� रास्नानं समप�यामिम ।

(शक> रासे स्नान कराये ) ।

पंचामृ� स्नान

ॐ पञ्चनद्यः सरस्व�ीमतिप यग्निन्� सस्त्रो�सः ।

सरस्व�ी �ु पञ्चधा सो देशेभवत्सरिर�् ॥

पञ्चामृ�ं मयानी�ं पयो दचिध रृ्घा�ं मधु ।

शक� रया समायुकं्त स्नानर्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः ।

पञ्चामृ�स्नानं समप�यामिम ।

(पं$ा�ृतसे स्नान कराये) ।

गन्धोदक स्नान

ॐ अऽऽशुना �े अऽऽशुः पृच्य�ां परुषा परुः ।

गन्धस्�े सोमामव�ु मदाय रसो अच्यु�ः ॥

मलयाचलसम्भू�चन्दनेन तिवतिनःसृ�म् ।

इदं गन्धोदकस्नानं कुङ्कुम्युकं्त च गृह्य�ाम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः,

गन्धोदकस्नानं समप�यामिम ।

(गन्धोदकसे स्नान कराये ।)

शुद्धोदक स्नान -

ॐ शुद्धवालः सव�शुद्धवालो मद्धिणवालस्� आश् तिवनाः ।

श्ये�ः श्ये�ाक्षोऽरुणस्�े रुद्राय पशुप�ये कणा� यामा अवचिलप्�ा रौद्रा नभोरूपाः पाज�न्याः ॥

गङ्गा च यमुना चैव गोदावरी सरस्व�ी ।

नम�दा चिसन्धु कावेरी स्नानार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः ।

शुद्धोदकस्नानं समप�यामिम ।

(शुद्ध �लसे स्नान कराये ।)

आचमन - शुद्धोदकस्नानान्�े आचमनीयं जलं समप�यामिम ।

(आ$�नके शिलये �ल दे।)

वस्त्र -

ॐ युवा सुवासाः परिरवी� आगा�् स उ शे्रयान् भवति� जायमानः ।

�ं धीराः स कवय उन्नयग्निन्� स्वाध्यो३मनसा देवयन्�ः ।

शी�वा�ोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम् ।

देहालङ्करणं वस्त्रम�ः शान्तिन्�f प्रयच्छ मे ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः । वस्तं्र समप�यामिम ।

आचमन - वस्त्रान्�े आचमनीयं जलं समप�यामिम ।

(आ$�नके शिलये �ल दे ।)

उपवस्त्र -

ॐ सुजा�ो ज्योति�षा सहशम� वरूर्थमाऽसदत्स्वः ।

वासो अ_ने तिवश्वरूपर्थसं व्ययस्व तिवभावसो ॥

यस्याभावेन शास्त्रोकं्त कम� तिकस्थिञ्चन्न चिसध्यति� ।

उपवस्त्रं प्रयच्छामिम सव�कम0पकारकम ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, उपवस्त्रं (उपवस्त्राभावे रक् �सूत्रम् समप�यामिम ।)

(उपवस्त्र स�र्तिपIत करे ।)

आचमन - उपवस्त्रान्�े आचमनीयं जलं समप�यामिम ।

(आ$�नके शिलये �ल दे ।)

यज्ञोपवी�

ॐ यज्ञोपवी�म् परमं पतिवत्रं प्रजाप�ेय,त्सहजं पुरस्�ा�् ।

आयुष्यमग्रयं प्रति�मुञ्च शुभं्र यज्ञोपवी�ं बलमस्�ु �ेजः ।

यज्ञोपवी�मचिस यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवी�ेनोपनह्यामिम ।

नवद्धिभस्�न्�ुद्धिभयु�कं्त तित्रगुणं देव�ामयम् ।

यज्ञोपवी�ं मया दतं्त गृहाण परमेश् वर ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः । यज्ञोपवी�ं समप�यामिम ।

(यज्ञोपवीत स�र्तिपIत करें ।)

आचमन - यज्ञोपवी�ान्�े आचमनीयं जलं समप�यामिम ।

(आ$�नके शिलये �ल दे ।)

चंदन

ॐ त्वां गन्धवा� अखनॅंस्त्वामिमन्द्रस्त्वां बृहस्पति�ः ।

त्वामोषधे सोमो राजा तिवद्वान् यक्ष्मादमुच्य�् ॥

श्रीखण्डं चंदनं दिदवं्य गन्धढं्य सुमनोहरम् ।

तिवलेपनं सुरश्रेषं्ठ! चन्दनं प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भुभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः ।

चन्दनानुलेपनं समप�यामिम ।

($ंदन अर्तिपIत करे ।)

अक्ष�

ॐ अक्षन्नमीमदन्� ह्यव तिप्रया अधूष� ।

अस्�ोष� स्वभानवो तिवप्रा नतिवष्ठाअ म�ी योजाग्निन्वन्द्र �े हरी ॥

अक्ष�ाश् च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुम् युक्ताः सुशोद्धिभ�ाः ।

मया तिनवेदिद�ा भक्त्या गृहाण परमेश् वर ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, अक्ष�ान् समप�यामिम ।

(अक्षत $ढ़ाये ।)

पुष्पमाला

ॐ औषधीः प्रति� मोदध्वं पुष्पव�ीः प्रसूवरीः ।

अश् वा इव सजिजत्वरीव�रुधः पारमियष्णवः ॥

माल्यादीतिन सुगन्धीतिन मालत्यादीतिन वै प्रभो ।

मयाr�ातिन पुष्पाद्धिण पूजार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भुभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, पुष्पमालां समप�यामिम ।

(पुष्प�ाला स�र्तिपIत करे ।)

दूवा�

ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्�ी परुषः परुषस्परिर ।

एवा नो दूव, प्र �नु सहस्रेण श�ेन च ॥

दूवा�ङ्कुरान् सुहरिर�ानमृ�ान् मङ्गलप्रदान् ।

आनी�ांस्�व पूजार्थ� गृहाण गणनायक ॥

ॐ भुभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, दूवा�ङ्कुरान् समप�यामिम ।

(दूवा>ङ्कुर $ढाये ।)

चिसन्दूर

ॐ चिसन्धोरिरव प्राध्वेन शूर्घानासो वा�प्रमिमयः प�यग्निन्� यह्वाः ।

रृ्घा�स्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा द्धिभन्दन्नूर्मिमfद्धिभः तिपन्वामान् ॥

चिसन्दूर शोभनं रकं्त सौभा_यं सुखवध�नम् ।

सुभदं कामदं चैव चिसन्दूर प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः । चिसन्दूर समप�यामिम ।

(शिसन्दुर अर्तिपIत करे ।)

अबीर गुलाल आदिद नाना परिरमल द्रव्य -

ॐ अतिहरिरव भोगैः पय,ति� बाहुं ज्याया हेवि�f परिरबाधमानः ।

हस्�घ्नो तिवश् वा वयुनातिन तिवद्वान् पुमान् पुमासं परिरपा�ु तिवश् व�ः ॥

अबीरं गुलालं च हरिरद्रादिदसमग्निन्व�म् ।

नाना परिरमलं द्रवं्य गृहाण परमेश् वर ॥

ॐ भुभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, नानापरिरमलद्रव्याद्धिण समप�यामिम ।

(अबीर आदिद $ढ़ाये ।)

सुगथ्विन्धद्रव्य

सुगत्मिन्धत द्रव्य अर्तिपIत करते स�य तिनम्न �ंत्र का उच्चारण करें ।

दिदव्यगन्धसमायुकं्त महापरिरमलाद्भ�ुम् ।

गन्धद्रव्यमिमदं भक्त्या दतं्त वै परिरगह्य�ाम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, सुगथ्विन्धद्रवं्य समप�यामिम ।

(सुगत्मिन्धत द्रव्य अप>ण करे ।)

धूप -

ॐ धूरचिस धूव� धूव�न्�ं धूव� �ं योऽस्मान् धूव�ति�

�ं धूव� यं वयं धूवा�मिमः ।

देवानामचिस वमि£�म सस्तिस्न�मं पतिप्र�ं जुष्ट�मं देवहू�मम् ॥

वनस्पति�रसोद ्भू�ो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः ।

आघ्रेयः सव�देवानां धूपोऽयं प्रति�गृह्य�ाम् ।

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, धूपमाघ्रापयामिम ।

(धूप दिदखाये ।)

दीप -

ॐ अग्नि_नन्य0ति�ज्य0ति�रग्नि_नः स्वाहा सूय0 ज्योति�ज्य0ति�ः सूय� स्वाहा ।

अग्नि_नव�च0 ज्योति�व�च�ः स्वाहा ॥

सूय0 वच0 ज्योति�व�च�ः स्वाहा ॥

ज्योति� सूय�ः सूय0 ज्योति�ः स्वाहा ॥

साज्यं चं वर्वि�fसंयुकं्त वमि£ना योजिज�ं मया ।

दीपं गृहाण देवेश तै्रलोक्यति�मिमरापहम् ॥

भक्त्या दीपं प्रयच्छामिम देवाय परमात्मने ।

त्रातिह मां तिनरयाद ्र्घाोराद ्दीपज्योति�न�मोऽस्�ु�े ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, दीपं दश�यामिम ।

(दीप दिदखाये ।)

हस्�प्रक्षालन - ॐ rतिषकेशाय नमः' कहकर हाथ धो ले ।

नैवेद्य -

नैवेद्यको प्रोणिक्षत कर गन्ध-पुष्पसे आच्छादिदत करे । तदनन्तर �लसे $तुष्कोण घेरा लगाकर भगवानके आगे रखे ।

ॐ अमृ�ोपस्�रणमचिस स्वाहा ।

ॐ प्राणाय स्वाहा ।

ॐ अपानाय स्वाहा ।

ॐ समानाय स्वाहा ।

ॐ उदानाय स्वाहा ।

ॐ व्यानाय स्वाहा ।

ॐ अमृ�ातिपधानमचिस स्वाहा ।

शक� राखण्डखाद्यातिन दचिधक्षीररृ्घा�ातिन च ।

आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेदं्य प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, नैवेद्य तिनवेदयामिम ।

(नैवेद्य तिनवेदिदत करे ।)

'नैवेद्यान्�े आचमनीयं जलं समप�यामिम'

(�ल स�र्तिपIत करे ।)

ऋ�ुफल

ॐ याः फचिलनीया� अफला अपुष्पा याश् च पुग्निष्पणी ।

बृहस्पति�प्रसू�ास्�ा नो मुञ्चन्त्वहसः ॥

इदं फलं मया देव स्थातिप�ं पुर�स्�व ।

�ेन मे सफलावाग्निप्�भ�वेज्जन्मतिन जन्मतिन ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, ऋ�ुफलातिन समप�यामिम ।

(ऋतुफल अर्तिपIत करे ।)

'फलान्�े आचमनीयं जलं समप�यामिम ।

(आ$�नीय �ल अर्तिपIत करे।)

उत्तरापोऽशन- 'उत्तरापोऽशनार्थ, जलं समप�यामिम । गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः' ।

(�ल दे।)

करोद्व��नः

ॐ अऽऽशुना �े अऽऽशुः पृच्य�ां परुषा परुः ।

गन्धस्�े सोममव�ु मदार रसो अच्यु�ः ॥

चन्दनं मलयोद्भ�ूम् कस्�ूया�दिदसमग्निन्व�म् ।

करोद ्व��नकं देव गृहाण परमेश् वर ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, करोद्व��न चन्दनं समप�यामिम ।

(�लय$न्दन स�र्तिपIत करे ।)

�ाम्बूल

ॐ यत्पुरुषेण हतिवषा देवा यज्ञम�न्व� ।

वसन्�ोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धतिवः ॥

पुंगीफल महदि¥वं्य नागवल्लीदलैयु��म ।

एलादिदचूण�संयुकं्त �ाम्बूलं प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, मुखवासार्थ�म् एलालवंगपुंगीफलसतिह�ं �ाम्बूलं समप�यामिम ।

( इलाय$ी, लौंग-सुपारी के साथ ताम्बूल (पान) अर्तिपIत करे ।)

दद्धिक्षणा

ॐ तिहरण्यगभ�ः समव���ागे्र भू�स्य जा�ः पति�रेक आसी�् ।

स दाधार पृचिर्थवीं द्यामु�ेमां कस्मै देवाय हतिवषा तिवधेम ॥

तिहरण्यगभ�गभ�सं्थ हेमबीजं तिवभावसोः ।

अनन्�पुण्यफलदम�ः शान्तिन्�f प्रयच्छ मे ॥

ॐ भूभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, कृ�ायाः पूजायाः साद्गणु्यार्थ, द्रव्यदद्धिक्षणां समप�यामिम ।

(द्रव्य दणिक्षणा स�र्तिपIत करे।)

आर�ी

ॐ इदंऽऽहतिवः प्रजननं मे अस्�ु मसह्वीरऽऽसव�गणऽऽस्वस्�ये ।

आत्मसतिन प्रजासतिन पशुसतिन लोकसन्यभयसतिन ।

अग्नि_नः प्रजां बहुलां मे करोत्वनं्न पयो रे�ो असमासु धत््त ।

ॐ आ रातित्र पार्थिर्थfवऽऽ रजः तिप�ुरप्रामिय धामतिबः ।

दिदवः सदाऽऽचिसबृह�ी तिवति�ष्ठस आ त्वेषं व���े �मः ।

कदलीगम�समू्भ�ं कपू�रं �ु प्रदीतिप�म् ।

आरार्वि�fकमहं कुव, पश्य मे वरदो भव ॥

ॐ भुभु�वः स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्यां नमः, आरार्वि�fकं समप�यामिम ।

(कपू>रकी आरती करे, आरतीके बाद �ल तिगरा दे ।)

पुष्पांजचिल

ॐ यजे्ञन यज्ञमयजन्� देवास्�ातिन धमा�द्धिण प्रर्थमान्यासन् ।

�े ह नाकं मतिहमानः सचन्� यत्र पूव, साध्याः सग्निन्� देवाः ॥

ॐ गणानां त्वा ............. ॥

ॐ अम्बे अग्निम्बके ........... ॥

नानासुगथ्विन्धपुष्पाद्धिण यर्थाकालोद्भवातिन च ।

पुष्पाञ्जचिलम�या दत्ता गृहाण परमेश् वर ॥

ॐ भुभु�व स्वः गणेशाग्निम्बकाभ्या नमः, पुष्पाञ्जचिल समप�यामिम ।

(पुष्पाञ्जशिल अर्तिपIत करे।)

अब गणेश�ी का पू�न तिनम्न प्रकार से करें :

तीन बार �ल के छींटें दें और बोलें : पादं्य , अघ्य� , आचमनीयं समप�यामिम ।

सवा�डे्रस्नानं समप�यामिम । �ल के छींटे दें ।

सवा�डे्र पंचामृ�स्नानं समप�यामिम । पं$ा�ृत से स्नान कराए ।

पंचामृ�स्नानान्�े सवा�डे्र शुद्धोदकस्नानं समप�यामिम । शुद्ध �ल से स्नान कराए ।

सुवाचिस�म इतं्र समप�यामिम । इत्र $ढाए ।

वस्तं्र समप�यामिम । वस्त्र अथवा �ौली $ढाए ।

यज्ञोपवी�ं समप�यामिम । यज्ञोपवीत $ढाए ।

आचमनीयं जलं समप�यामिम । �ल के छींटे दें ।

गन्धं समप�यामिम । रोली अथवा लाल $न्दन $ढाए ।

अक्ष�ान समप�यामिम । $ावल $ढाए ।

पुष्पाद्धिण समप�यामिम । पुष्प $ढाए ।

मंदारपुष्पाद्धिण समप�यामिम । सफेद आक के फूल $ढाए ।

शमीपत्राद्धिण समप�यामिम । श�ीपत्र $ढाए ।

दूवा�कुरान समप�यामिम । दूवा> $ढाए ।

सिसfदूरं समप�यामिम । शिसन्दूर $ढाए ।

धूपम आघ्रापयामिम । धूप करें ।

दीपकं दश�यामिम । दीपक दिदखाए ।

नैवेदं्य समप�यामिम । प्रसाद $ढाए ।

आचमनीयं जलं समप�यामिम । �ल के छींटे दें ।

�ाम्बूलं समप�यामिम । पान , सुपारी , इलाय$ी आदिद $ढाए ।

नारिरकेलफलं समप�यामिम । नारिरयल $ढाए ।

ऋ�ुफलं समप�यामिम । ऋतुफल $ढाए ।

दद्धिक्षणां समप�यामिम । नकदी $ढाए ।

कपू�रनीराजनं समप�यामिम । कपू>र से आरती करें ।

नमस्कारं समप�यामिम । न�स्कार करें ।

गणेश जी से प्रार्थ�ना

पू�न के उपरान्त हाथ �ोडकर इस प्रकार पाथ>ना करें :

तिवघ्नेश्वराय वरदाय सुरतिप्रयाय ,

लम्बोदराय सकलाय जगद्धिद्ध�ाय ।

नागाननाय शु्रति�यज्ञतिवभूतिष�ाय ,

गौरीसु�ाय गणनार्थ नमो नमस्�े ॥

भक्तार्वि�fनाशनपराय गणेश्वराय ,

सव,श्वराय शुभदाय सुरेश्वराय ।

तिवद्याधरायं तिवकटाय च वामनाय ,

भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्�े ॥

नमस्�े ब्रह्मरुपाय तिवष्णुरुपाय �े नमः ।

नमस्�े रुद्ररुपाय करिररुपाय �े नमः ॥

तिवश्वस्वरुपरुपाय नमस्�े ब्रह्मचारिरणे ।

लम्बोदरं नमस्�ुभ्यं स��ं मोदकतिप्रय ।

तिनर्विवfघ्नं कुरु मे देव सव�काय,षु सव�दा ॥

त्वां तिवघ्नशत्रुदलनेति� च सुन्दरेति�

भक्ततिप्रयेति� सुखदेति� फलप्रदेति� ।

तिवद्याप्रदेत्यर्घाहरेति� च ये स्�ुवग्निन्�

�ैभ्यो गणेश वरदो भव तिनत्यमेव ॥

अब हाथ �ें पुष्प लेकर तिनम्नशिलखिखत �न्त्र को उच्चारिरत करते हुए स�स्त पू�नक�> भगवान गणेश को अर्तिपIत कर दें :

गणेशपूजने कम� यन्न्यूनमचिधकं कृ�म ।

�ेन सव,ण सवा�त्मा प्रसन्नोऽस्�ु सदा मम ॥

अनया पूजया चिसद्धिद्धबुद्धिद्धसतिह�ो ।

महागणपति�ः प्रीय�ां न मम ॥

शंख स्थापन एवं पूजन

उp पू�न के पश्चात $ौकी पर दायीं ओर दणिक्षणावत� शंख को थोडे से अक्षत डालकर स्थातिपत करना $ातिहए । शंख का $न्दन अथवा रोली से पू�न करें । अक्षत $ढाए तथा अन्त �ें पुष्प $ढाए और तिनम्नशिलखिखत �न्त्र की सहायता से प्राथ>ना करें :

त्वं पुरा सागरोत्पन्नो तिवष्णुना तिवधृ�ः करे ।

तिनर्मिमf�ः सव�देवैश्च पाञजन्य ! नमोऽस्�ु �े ॥

श्रीसूp लक्ष्�ीपू�न - तृतीय पू�ा

कलश स्थापन एवं पूजन

$ौकी के पास ईशानकोण ( उत्तर -पूव> ) �ें धान्य ( �ौ -गेहु ) के ऊपर कलश स्थातिपत करें । अब हाथ �ें अक्षत एवं पुष्प लेकर कलश के ऊपर $ारों वेद एवं अन्य देवी -देवताओं का तिनम्नशिलखिखत �न्त्रों के द्वारा आवाहन करें :

कलशस्य मुखे तिवष्णुः कण्ठे रुद्रः समाद्धिश्र�ः ।

मूले त्वस्य स्थिस्थ�ो ब्रह्मा मध्ये मा�ृगणाः स्मृ�ाः ॥

कुक्षौ �ु सागराः सव, सप्�द्वीपा वसुन्धरा ।

ऋ_वेदोऽर्थ यजुव,दः सामवेदो ह्यर्थव�णः ॥

अडैश्च सतिह�ाः सव, कलशं �ु समाद्धिश्र�ाः ।

अत्र गायत्री सातिवत्री शाग्निन्�ः पुतिष्टकरी �र्था ॥

सव, समुद्राः सरिर�स्�ीर्था�तिन जलदा नदाः ।

आयान्�ु देवपूजार्थ� दुरिर�क्षयकारकाः ॥

गडे च यमुने चैव गोदावरिर सरस्वति� ।

नम�दे चिसन्धुकावेरिर जलेऽस्तिस्मन सचिन्नसिधf कुरु ॥

उp आवाहन के पश्चात गन्ध , अक्षत , पुष्प आदिद से कलश एवं उस�ें स्थातिपत देवों का पू�न करें । तदुपरान्त सभी देवों को न�स्कार करें ।

कलश स्थापन एवं पू�न के उपरान्त नवग्रह एवं षोडश�ातृका का पू�न यदिद सम्भव हो सके , तो �ण्डल बनाकर करें , अन्यथा नवग्रह एवं षोडश�ातृका को $ौकी पर स्थान देते हुए �ानशिसक पू�न कर लेना $ातिहए ।

नवग्रह पूजन

दोनों हाथ �ोडकर तिनम्नशिलखिखत �न्त्र का उच्चारण करें और सूया>दिद नवग्रह देवताओं का ध्यान करें :

ब्रह्मा मुरारिरस्तिस्त्रपुरान्�कारी भानुः शशी

भूमिमसु�ो बुधश्च ।

गुरुश्च शु ः शतिनराहुके�वः सव, ग्रहाः शाग्निन्�करा भवन्�ु ॥

सूय�ः शौय�मर्थेन्दुरुच्चपदवीं सन्मडलं मडलः

सदुद्धिद्धf च बुधो गुरुश्च गुरु�ां शु ः सुखं शं शतिनः ।

राहुबा�हुबलं करो�ु स��ं के�ुः कुलस्योन्नवि�f

तिनत्यं प्रीति�करा भवन्�ु मम �े सव,ऽनुकूला ग्रहाः ॥

अपने हाथ �ें एक पुष्प लेकर उस पर कंुकु� लगाए और ‘ सूया�दिद नवग्रहदेव�ाभ्यो नमः ’ कहते हूए सूय> -$न्द्र�ा आदिद नवग्रहों एक तिनमि�त्त सा�ने $ौकी पर $ढा दें ।

अब सूय> आदिद ग्रहों को ‘ दीपकं दश�यामिम ’ कहते हुए दीपक दिदखाए और अपने हाथ धो लें । इसके पश्चात उन्हें नैवेद्य अर्तिपIत करें । इसके पश्चात आ$�न हेतु �ल भी अर्तिपIत करें ।

पंचलोकपाल पूजन

दोनों हाथ �ोडकर तिनम्नशिलखिखत �न्त्र का उच्चारण करें और ब्रह्मादिद पं$लोकपाल देवताओं का ध्यान करें :

ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रर्थमं पुरस्�ातिद्व सीम�ः सुरुचो वेन आवः ।

स बुध्न्या उपमा अस्य तिवष्ठाः स�श्च योतिनमस�श्च तिववः ॥

अपने हाथ �ें एक पुष्प लेकर उस पर कंुकु� लगाए और ‘ ब्रह्मादिद पंचलोकपाल देव�ाभ्यो नमः ’ कहते हुए ब्रह्मा आदिद पं$लोकपालों के तिनमि�त्त सा�ने $ौकी पर $ढा दें ।

अब ब्रह्मा आदिद पं$लोकपालों को ‘ दीपकं दश�यामिम ’ कहते हुए दीपक दिदखाए और अपने हाथ धो लें । इसके पश्चात उन्हें नैवेद्य अर्तिपIत करें । इसके पश्चात आ$�न हेतु �ल भी अर्तिपIत करें ।

दिदक्पाल देवताओंकी स्थापना

नवग्रह �ण्डल�ें परिरमिधके बाहर पूवा>दिद दसों दिदशाओंके अमिधपतित देवताओं (दिदक्पाल देवताओं) का अक्षत छोड़ते हुए आवाहन एवं स्थापन करे ।

(पूव�में) इन्द्रका आवाहन और स्थापन -

ॐ त्रा�ारमिमन्द्रमतिव�ारमिमन्द्र हवे हवे सुहव शूरमिमन्द्रम् ।

rयामिम श ं पुरुहू�मिमन्द्र स्वस्तिस्� नो मर्घावा धाखित्वन्द्रः ॥

इन्दं्र सुरपति�शे्रष्ठं वज्रहस्�ं महाबलम् ।

आवाहये यज्ञचिसदै्ध्य श�यज्ञाचिधपं प्रभुम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः इन्द्र ! इहागच्छ, इह ति�ष्ठ इन्द्राय नमः, इन्द्रमावाहयामिम, स्थापयामिम ।

(अग्नि_नकोणमें) अग्नि_नका आवाहन और स्थापन -

ॐ अन्ति_नf दू�ं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुवे । देवॉं२ आ सादयादिदह ॥

तित्रपादं सप्�हस्�ं च तिद्वमूधा�नं तिद्वनाचिसकम् ।

षण्नेतं्र च च�ुःश्रोत्रमग्नि_नमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः अ_ने ! इहागच्छ, इह ति�ष्ठ अ_नये नमः, अग्नि_नमावाहयामिम, स्थापयामिम ।

(दद्धिक्षणमें) यमका आवाहन और स्थापन-

ॐ यमाय त्वाऽतिङ्गरस्व�े तिप�ृम�े स्वाहा । स्वाहा र्घामा�य स्वाहा र्घाम�ः तिपते्र ॥

महामतिहषमारूढं दण्डहस्�े महाबलम् ।

यज्ञसंरक्षणार्था�य यममावहयाम्यहम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः यम ! इहागच्छ इह ति�ष्ठ यमाय नमः, यममावाहयामिम, स्थापयामिम ।

(नैऋत्यकोणमें) तिनऋति�का आवाहन और स्थापन-

ॐ असुन्वन्�मयजमानमिमच्छ स्�ेनस्येत्यामग्निन्वतिह �स्करस्य ।

अन्यमस्मदिदच्छ सा � इत्या नमो देतिव तिनऋ�े �ुभ्यमस्�ु ॥

सव�पे्र�ाचिधपं देवं तिनऋवि�f नीलतिवग्रहम् ।

आवाहये यज्ञचिसदै्ध्य नरारूढं वरप्रदम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः तिनऋ�े ! इहागच्छ, इह ति�ष्ठ तिनऋ�ये नमः, तिनऋति�मावाहयामिम, स्थापयामिम ।

(पश् चिचममें) वरुणका आवाहन और स्थापन-

ॐ �त्त्वा यामिम ब्रह्मणा वन्दमानस्�दा शास्�े यजमानो हतिवर्भिभfः ।

अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश स मान आयुः प्रमोषीः ॥

शुद्धस्फदिटकसंकाशं जलेशं यादसां पति�म् ।

आवाहये प्र�ीचीशं वरुणं सव�कामदम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः वरुण ! इहागच्छ, इह ति�ष्ठ वरुणाय नमः, वरुणमावाहयामिम, स्थापयामिम ।

(वायव्यकोणमें) वायुका आवाहन और स्थापन-

ॐ आ नो तिनयुद्धिद्भः शति�नीद्धिभरध्वर सहस्तिस्त्रणीद्धिभरुप यातिह यज्ञम् ।

वायो अस्तिस्मन्त्सवने मादयस्व सव��श् चारिरणं शुभम् ।

यज्ञसंरक्षणार्था�य वायुमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः वायो ! इहागच्छ, इह ति�ष्ठ वायवे नमः, वायुमावाहयामिम, स्थापयामिम ।

(उत्तरमें) कुबेरका आवाहन और स्थापन-

ॐ कुतिवदङ्ग यवमन्�ो यवं चिचद्यर्था दान्त्यनुपूव� तिवयूय ।

इहेहैषां कृणुतिह भोजनातिन ने बर्विहfषो नम उसिक्तf यजग्निन्� ॥

उपयामगृही�ोऽस्यस्तिश् वभ्यां त्वा सरस्वत्यै त्वेन्द्राय त्वा सुत्राम्ण ।

एष �े योतिनस्�ेजसे त्वा वीया�य त्वा बलाय त्वा ॥

आवहयामिम देवेशं धनदं यक्षपूजिज�म् ।

महाबलं दिदव्यदेहं नरयानगवि�f तिवभुम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः कुबेर ! इहागच्छ, इह ति�ष्ठ कुबेराय नमः, कुबेरमावाहयामिम, स्थापयामिम ।

(ईशानकोणमें) ईशानका आवाहन और स्थापन -

ॐ �मीशानं जग�स्�स्थुषस्पवि�f चिधयस्थिञ्जन्वमवसे हूमहे वयम् ।

पूषा नो यर्था वेदसाम्सद ्वृधे रद्धिक्ष�ा पायुरदब्धः स्वस्�ये ॥

सवा�चिधपं महादेवं भू�ानां पति�मव्ययम् ।

आवाहये �मीशानं लोकानामभयप्रदम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः ईशान ! इहागच्छ, इह ति�ष्ठ ईशानाय नमः, ईशानमावाहयामिम, स्थापयामिम ।

(ईशान-पूव�के मध्यमें) ब्रह्माका आवाहन और स्थापन-

ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रर्थमं पुरस्�ातिद्व सीम�ः सुरुचो वेन आवः ।

स बुध्न्या उपमा अस्य तिवष्ठाः स�श् च योतिनमस�श् च तिव वः ॥

पद्मयोविनf च�ुमू�र्तिं�f वेदगभ� तिप�ामहम् ।

आवाहयामिम ब्रह्माणं यज्ञसंचिसद्धिद्धहे�वे ॥

ॐ भूभु�वः स्वः ब्रह्मन् ! इहागच्छ, इह ति�ष्ठ ब्रह्मणे नमः, ब्रह्माणमावाहयामिम, स्थापयामिम ।

(नैऋत्य-पश् चिचमके मध्यमें) अनन्�का आवाहन और स्थापन-

ॐ स्योना पृचिर्थतिव नो भवानृक्षरा तिनवेशनी । यच्छा नः शम� सप्रर्थाः ।

अनन्�ं सव�नागानामचिधपं तिवश् वरूतिपणम् ।

जग�ां शाग्निन्�क�ा�रं मण्डले स्थापयाम्यहम् ॥

ॐ भूभु�वः स्वः अनन्� ! इहागच्छ, इह ति�ष्ठ अनन्�ाय नमः, अनन्�मावाहयामिम, स्थापयामिम ।

प्रति�ष्ठा - इस प्रकार आवाहन कर

'ॐ मनो०'

इस �न्त्रसे अक्षत छोड़ते हुए प्रतितष्ठा करे । तदनन्तर तिनम्नशिलखिखत ना�-�न्त्रसे यथालब्धोप$ार पू�न करे-

'ॐ इन्द्रादिददशदिदक्पालेभ्यो नमः ।'

इसके बाद

'अनया पूजया इन्द्रादिददशदिदक्पालाः प्रीयन्�ाम्, न मम'

ऐसा उच्चारण कर अक्षत �ण्डलपर छोड़ दे ।

श्रीसूp लक्ष्�ीपू�न - $तुथ> पू�ा

महालक्ष्मी पूजन

उp स�स्त प्रतिक्रया के पश्चात प्रधान पू�ा �ें भगवती �हालक्ष्�ी का पू�न करना $ातिहए । पू�ा �ें अपने सम्�ुख �हालक्ष्�ी का बडा शि$त्र अथवा लक्ष्�ी -गणेश का पाना लगाना $ातिहए । पू�न से पूव> नवीन शि$त्र और श्रीयन्त्र तथा द्रव्यलक्ष्�ी ( स्वण> अथवा $ॉंदी के शिसक्के ) आदिद की तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से अक्षत छोडकर प्रतितष्ठा कर लेनी $ातिहए :

अस्यै प्राणाः प्रति�ष्ठन्�ु अस्यै प्राणाः क्षरन्�ु च ।

अस्यै देवत्वमचा�यै मामहेति� च कश्चन ॥

ध्यान

ॐ तिहरण्यवणा� हरिरणीं सुवण�रज�स्त्रजाम ।

चन्द्रां तिहरण्मयीं लक्ष्मीं जा�वेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्मै नमः । ध्यानार्थ, पुष्पं समप�यामिम ॥

ध्यान हेतु �ॉं लक्ष्�ी को क�ल अथवा गुलाब का पुष्प अर्तिपIत करें ।

आवाहन

ॐ �ां म आ वह जा�वेदो लक्ष्मीमनगामिमनीम ।

यस्यां तिहरण्यं तिवन्देयं गामशं्च पुरुषानहम ॥

ॐ कमलायै नमः । कमलाम आवाहयामिम , आवाहनार्थ, पुष्पाद्धिण समप�यामिम ॥

�ॉं लक्ष्�ी का पू�न करने हेतु आवाहन करें और ऐसी भावना रखें तिक �ॉ लक्ष्�ी साक्षात पू�न हेतु आपके सम्�ुख आकर बैठी हों । आवाहन हेतु सा�ने $ौकी पर पुष्प अर्तिपIत करें ।

आसन

ॐ अश्वपूवा� रर्थमध्यां हस्तिस्�नादप्रमोदिदनीम ।

द्धिश्रयं देवीमुप rये श्रीमा�देवी जुष�ाम ॥

ॐ रमायै नमः । आसनं समप�यामिम ॥

आसनार्थ, पुष्पं समप�यामिम ॥

आसन हेतु सा�ने $ौकी पर पुष्प अर्तिपIत करें ।

पाद्य

ॐ कां सोमिमस्�ां तिहरण्यप्राकारामाद्रा� ज्वलन्�ीं �ृप्�ां �प�यन्�ीम ।

पदे्मस्थिस्थ�ां पद्मवणा� �ामिमहोप rये द्धिश्रयम ॥

ॐ इजिन्दरायै नमः । इजिन्दरां पादयोः पादं्य समप�यामिम ॥

�ॉ लक्ष्�ी को $न्दन आदिद मि�णिश्रत �ल से पाद्य हेतु �ल $ढाए ।

अघ्य�

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्�ीं द्धिश्रयं लोके देवजुष्टामुदाराम ।

�ां पद्धिद्मनीमीं शरणं प्र पदे्य अलक्ष्मीम, नश्य�ां त्वां वृणे ॥

ॐ समुद्र�नयायै नमः । समुद्र�नयां हस्�योरघ्य� समप�यामिम ॥

�ॉं लक्ष्�ी को सुगत्मिन्धत �ल से अर्घ्यय> प्रदान करें ।

आचमन एवं पंचामृ�

आदिद से स्नान

ॐ आदिदत्यवण, �पसोऽचिध जा�ो वनस्पति�स्�व वृक्षोऽर्थ तिबल्वः ।

�स्य फलातिन �पसा नुदन्�ु या अन्�रा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥

ॐ भृगु�नयायै नमः ॥ भृगु�नयाम आचमनीयं जलं समप�यामिम । स्नानीयं जलं समप�यामी । पंचामृ� स्नानं समप�यामी ।

�ॉं लक्ष्�ी को आ$�न हेतु �ल $ढाए एवं क्र�शः शुद्ध �ल और पं$ा�ृत से स्नान करवाए ।

वस्त्र

ॐ उपै�ु मां देवसखः कीर्वि�fश्च मद्धिणना सह ।

प्रादुभू��ोऽस्तिस्म राष्ट्रेस्तिस्मन कीर्वि�fमृद्धिद्धf ददा�ु मे ॥

ॐ पद्मायै नमः ॥ पद्मां वस्तं्र समप�यामी । उपवस्त्रं समप�यामी ॥

�ॉं लक्ष्�ी को वस्त्र और उपवस्त्र $ढाए ।

आभूषण

ॐ क्षखुित्पपासामलां ज्येष्ठालक्ष्मीं नाशयाम्यहम ।

अभूति�मसमृद्धिद्धf च सवा� तिनणु�द मे गृहा� ॥

ॐ कीत्यt नमः ॥ नानातिवधातिन कुण्डलकटकादीतिन आभूषणातिन समप�यामिम ॥

�ॉं लक्ष्�ी को तिवणिभन्न प्रकार के आभूषण अथवा तमिन्नमि�त्त अक्षत -पुष्प अर्तिपIत करें ।

गन्धाक्ष� , चिसन्दूर एवं इत्र

ॐ गन्धद्वारां दुराधषा� तिनत्यपुष्टां करीतिषणीम ।

ईश्वरीं सव�भू�ानां �ामिमहोप rये द्धिश्रयम ॥

ॐ आद्रा�यै नमः । आद्रा� गन्धं समप�यामी ।

गन्धान्�े अक्ष�ान समप�यामी ।

चिसन्दूरं समप�यामी ।

सुगथ्विन्धद्रवं्य समप�यामी ।

�ॉं लक्ष्�ी को क्र�शः गन्ध , अक्षत शिसन्दूर एवं इत्र अप>ण करें ।

पुष्प एवं पुष्पमाला

ॐ मनसः काममाकूवि�f वाचः सत्यमशीमतिह ।

पशूनां रुपमत्रस्य ममिय श्रीः श्रय�ां यशः ॥

ॐ अनपगामिमन्यै नमः । अनपगामिमनीं पुष्पमालां समप�यामिम ॥

�ॉं लक्ष्�ी को लाल रंग के पुष्प अर्तिपIत करें ।

धूप

ॐ कद�मेन प्रजा भू�ा ममिय सम्भव कद�म ।

द्धिश्रयं वासय मे कुले मा�रं पद्ममाचिलनीम ॥

ॐ महालक्ष्मै नमः । धूपम आघ्रापयामिम ।

गुग्गुल आदिद की सुगत्मिन्धत धूप �लाकर �ॉं लक्ष्�ी की ओर धूप प्रसारिरत करें ।

दीप

ॐ आपः सृजन्�ु स्तिस्न_धातिन चिचक्ली� वस मे गृहे ।

तिन च देवीं मा�रं द्धिश्रयं वासय मे कुले ॥

ॐ द्धिश्रयै नमः । द्धिश्रयं दीपकं दश�यामिम ॥

$ार बणित्तयों वाला एक दीपक प्रज्वशिलत करें । �ॉं लक्ष्�ी को यह दीपक दिदखाए ।

नैवेद्य

ॐ आद्रा� पुष्करिरणीं पुविष्टf तिपडलां पद्ममाचिलनीम ।

चन्द्रां तिहरण्मयीं लक्ष्मीं जा�वेदो म आ वह ॥

ॐ अश्वपूवा�यै नमः । अश्वपूवा� नैवेदं्य तिनवेदयामिम । मध्ये पानीयम , उत्तरापोऽशनार्थ� हस्�प्रक्षालनार्थ� मुखप्रक्षालनार्थ� च जलं समप�यामिम । ऋ�ुफलं समप�यामिम । आचमनीयं जलं समप�यामिम ।

�ॉं लक्ष्�ी को क्र�शः नैवेद्य , आ$�न , ऋतुफल तथा आ$�न अर्तिपIत करें ।

�ाम्बूल

ॐ आद्रा� यः करिरणीं यविष्टf सुवणा� हेममाचिलनीम ।

सूया� तिहरण्मयीं लक्ष्मीं जा�वेदो म आ वह ॥

ॐ गन्धद्वारायै नमः । गन्धद्वारां मुखवासार्थ� �ाम्बूलवीदिटकां समप�यामिम ॥

�ॉं लक्ष्�ी को �ुखशुजिद्ध हेतु ताम्बूल अर्तिपIत करें ।

दद्धिक्षणा

ॐ �ां म आ वह जा�वेदो लक्ष्मीमनपगामिमनीम ।

यस्यां तिहरण्यं प्रभू�ं गावो दास्योऽश्वान तिवन्देयं पुरुषानहम ॥

ॐ तिहरण्यवणा�यै नमः । तिहरण्यवणा� पूजा साफल्यार्थ� दद्धिक्षणां समप�यामिम ॥

तिकए गये पू�न क�> की पूण> सफलता के शिलए �ॉं लक्ष्�ी को यथाशशिp दणिक्षणा अर्तिपIत करें ।

अंग पूजन

अब तिनम्नशिलखिखत �न्त्रों का पाठ करते हुए �ॉं लक्ष्�ी के तिनमि�त्त अंग पू�ा करें । प्रत्येक �न्त्र को पढकर कुछ गन्धाक्षत -पुष्प सा�ने �ण्डल पर $ढाए ।

ॐ चपलायै नमः , पादौ पूजयामिम ।

ॐ चञलायै नमः , जानुनी पूजयामिम ।

ॐ कमलायै नमः , कटिटf पूजयामिम ।

ॐ कात्यायन्यै नमः , नाद्धिभf पूजयामिम ।

ॐ जगन्मात्रे नमः , जठरं पूजयामिम ।

ॐ तिवश्ववल्लभायै नमः , वक्षःस्थलं पूजयामिम ।

ॐ कमलवाचिसन्यै नमः , हस्�ौ पूजयामिम ।

ॐ पद्माननायै नमः , मुखं पूजयामिम ।

ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः , नेत्रत्रयं पूजयामिम ।

ॐ द्धिश्रयै नमः , द्धिशरः पूजयामिम ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः , सवा�डं पूजयामिम ।

श्रीसूp लक्ष्�ीपू�न - पं$� पू�ा

अष्टचिसद्धिद्ध पूजन

अंगपू�न के पश्चात अ&शिसजिद्धयों का पू�न करें । पू�न �ें तिनम्नशिलखिखत �न्त्रों का उच्चारण करते हुए गन्धाक्षत -पुष्प सा�ने �ण्डल पर $ढाए :

ॐ अद्धिणम्ने नमः , ॐ मतिहम्ने नमः , ॐ गरिरम्णे नमः , ॐ लमिर्घाम्ने नमः , ॐ प्राप्त्यै नमः , ॐ प्राकाम्यै नमः , ॐ ईद्धिश�ायै नमः , ॐ वद्धिश�ायै नमः ॥

अष्टलक्ष्मी पूजन

अ&शिसजिद्धयों के पू�न के पश्चात �ॉं लक्ष्�ी के अ& स्वरुपों का पू�न करना $ातिहए । तिनम्नशिलखिखत �न्त्रों का उच्चारण करते हुए अ&लस्थिक्ष्�यों के पू�न के शिलए गन्धाक्षत -पुष्प सा�ने �ण्डल पर $ढाए :

ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः

ॐ तिवद्यालक्ष्म्यै नमः

ॐ सौभा_यलक्ष्म्यै नमः

ॐ अमृ�लक्ष्म्यै नमः

ॐ कामलक्ष्म्यै नमः

ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः

ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः

ॐ योगलक्ष्म्यै नमः ।

आर�ी , पुष्पाज्जचिल और प्रदद्धिक्षणा

तिनम्नशिलखिखत �न्त्र का उच्चारण करते हुए �लपात्र लेकर आरती करें । आरती के पश्चात पुष्पां�शिल एवं प्रदणिक्षणा करें :

कदलीगभ�सम्भू�ं कपू�रं �ु प्रदीतिप�म ।

आरार्वि�fकमहं कुव, पश्य मे वरदो भव ॥

नानासुगथ्विन्धपुष्पाद्धिण यर्थाकालोद्भवातिन च ।

पुष्पाज्जचिलम�या दत्ता गृहाण परमेश्वरिर ॥

यातिन कातिन च पापातिन जन्मान्�रकृ�ातिन च ।

�ातिन सवा�द्धिण नश्यन्�ु प्रदद्धिक्षणा पदे पदे ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । प्रार्थ�नापूव�कं नमस्कारान समप�यामिम ॥

श्रीसूp लक्ष्�ीपू�न - आरती तथा स�प>ण

आरती तथा स�प>ण

अब घर के सभी लोग एकत्र होकर �ॉं लक्ष्�ी की आरती करें । आरती के शिलए एक थाली �ें रोली से स्वल्किस्तक बनाए । उस पर कुछ अक्षत और पुष्प डालकर गौघृत का $तु�ु>ख दीपक स्थातिपत करें और �ॉं लक्ष्�ी की शंख , घंटी , ड�रु आदिद के साथ आरती करें । दीपक के पश्चात क्र�शः कपू>र , धूप , �लशंख एवं वस्त्र की सहायता से आरती करें ।

जय लक्ष्मी मा�ा , ( मैया ) जय लक्ष्मी मा�ा ।

�ुमको तिनद्धिशदिदन सेव� हर तिवष्णु धा�ा ॥ ॐ ॥

उमा रमा ब्रह्माणी , �ुम ही जग मा�ा ।

सूय� चन्द्रमा ध्याव� , नारद ऋतिष गा�ा ॥ ॐ ॥

दुगा� रुप तिनरंजिजतिन , सुख सम्पति� दा�ा ।

जो कोई �ुमको ध्याव� , ऋचिध चिसचिध धन पा�ा ॥ ॐ ॥

�ुम पा�ाल तिनवाचिसनी , �ुम ही शुभदा�ा ।

कम� प्रभाव प्रकाद्धिशनी , भवतिनचिध की त्रा�ा ॥ ॐ ॥

जिजस र्घार �ुम रह�ी �ह सब सदुण आ�ा ।

सब सम्भव हो जा�ा , मन नविहf र्घाबरा�ा ॥ ॐ ॥

�ुम तिबन यज्ञ न हो�े , वस्त्र न हो पा�ा ।

खान पान का वैभव सब �ुमसे आ�ा ॥ ॐ ॥

शुभ गुण मजिन्दर सुन्दर क्षीरोदचिध जा�ा ।

रत्न च�ुद�श �ुम तिबन कोई नहीं पा�ा ॥ ॐ ॥

महालक्ष्मी जी की आर�ी , जो कोई नर गा�ा ।

उर आनन्द समा�ा , पाप उ�र जा�ा ॥ ॐ ॥

समप�ण : तिनम्नशिलखिखत का उच्चारण करते हुए �हालक्ष्�ी के स�क्ष पू�न क�> को स�र्तिपIत करें और इस तिनमि�त्त �ल अर्तिपIत करें : कृ�ेनानेन पूजनेन भगव�ी महालक्ष्मीदेवी प्रीय�ाम न मम ॥

अब �ॉं लक्ष्�ी के स�क्ष दण्डवत प्रणा� करें तथा अन�ानें �ें हुई त्रुदिटयों के शिलए क्ष�ा �ॉंगते हुए , देवी से सुख -स�ृजिद्ध , आरोग्य तथा वैभव की का�ना करें ।

दीपावली पर सरस्वती पू�न करने का भी तिवधान है । इसके शिलए लक्ष्�ी पू�न करने के पश्चात तिनम्नशिलखिखत �न्त्रों से �ॉं सरस्वती का भी पू�न करना $ातिहए । सव>प्रथ� तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से �ॉं सरस्वती का ध्यान करें :

या कुन्देन्दु�ुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृ�ा ,

या वीणावरदण्डमस्तिण्ड�करा या शे्व�पद्मासना ।

या ब्रह्माच्यु�शंकरप्रभृति�द्धिभद,वैः सदा वजिन्द�ा ,

सा मां पा�ु सरस्व�ी भगव�ी तिनःशेषजाड्यापहा ॥

हाथ �ें शिलए हुए अक्षतों को �ॉं सरस्वती के शि$त्र के स�क्ष $ढा दें ।

अब �ॉं सरस्वती का पू�न तिनम्नशिलखिखत प्रकार से करें :

तीन बार �ल के छींटे दें और बोलें : पादं्य , अघ्य� , आचमनीयं ।

सवा�डेस्नानं समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर �ल के छींटे दें ।

सवा�डें पंचामृ� स्नानं समप�यामिम । �ॉं सरस्वती को पं$ा�ृत से स्नान कराए ।

पंचामृ�स्नानान्�े शुद्धोदक स्नानं समप�यामिम । शुद्ध �ल से स्नान कराए ।

सुवाचिस�म इतं्र समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर इत्र $ढाए ।

वस्तं्र समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर �ौली $ढाए ।

आभूषणं समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर आभूषण $ढाए ।

गन्धं समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर रोली अथवा लाल $न्दन $ढाए ।

अक्ष�ान समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर $ावल $ढाए ।

कंुकुमं समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर कंुकु� $ढाए ।

धूपम आघ्रापयामिम । �ॉं सरस्वती पर धूप करें ।

दीपकं दश�यामिम । �ॉं सरस्वती को दीपक दिदखाए ।

नैवेदं्य तिनवेदयामिम । �ॉं सरस्वती को प्रसाद $ढाए ।

दीपावली पर सरस्व�ी पूजन

आचमनं समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर �ल के छींटे दें ।

�ाम्बूलं समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर पान , सुपारी , इलाय$ी आदिद $ढाए ।

ऋ�ुफलं समप�यामिम । �ॉं सरस्वती पर ऋतुफल $ढाए ।

दद्धिक्षणां समप�यामिम । �ॉं सरस्वती की कपू>र �लाकर आरती करें ।

नमस्कारं समप�यामिम । �ॉं सरस्वती को न�स्कार करें ।

सरस्व�ी महाभागे देतिव कमललोचने ।

तिवद्यारुपे तिवशालाद्धिक्ष तिवद्यां देतिह नमोऽस्�ु�े ।

दीपावली पर कुबेर पूजन

दीपावली एवं धनत्रयोदशी पर �हालक्ष्�ी के पू�न के साथ -साथ धनाध्यक्ष कुबेर का पू�न भी तिकया �ाता है । इनके पू�न से घर �ें स्थायी सम्पणित्त �ें वृजिद्ध होती है और धन का अभाव दूर होता है । इनका पू�न इस प्रकार करें ।

सव>प्रथ� तिनम्नशिलखिखत �न्त्र के साथ इनका आवाहन करें :

आवाहयामिम देव त्वामिमहायामिम कृपां कुरु ।

कोशं वद्ध�य तिनत्यं त्वं परिररक्ष सुरेश्वर ॥

अब हाथ �ें अक्षत लेकर तिनम्नशिलखिखत �ंत्र से कुबेर�ी का ध्यान करें :

मनुजवाह्यतिवमानवरस्थिस्थ�ं ,

गरुडरत्नतिनभं तिनचिधनायकम ।

द्धिशवसखं मुकुटादिदतिवभूतिष�ं ,

वरगदे दध�ं भज �ुजिन्दलम ॥

हाथ �ें शिलए हुए अक्षतों को कुबेरयंत्र , शि$त्र या तिवग्रह के स�क्ष $ढा दें ।

अब कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह का पू�न तिनम्नशिलखिखत प्रकार से करें :

तीन बार �ल के छींटे दें और बोलें : पादं्य , अघ्य� , आचमनीयं समप�यामिम ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , स्नानार्थ» जलं समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर �ल के छींटे दें ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , पंचामृ�स्नानार्थ, पंचामृ�ं समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह को पं$ा�ृत स्नान कराए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , सुवाचिस�म इतं्र समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर इत्र $ढाए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , वस्तं्र समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर �ौली $ढाए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , गन्धं समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर रोली अथवा लाल $न्दन $ढाए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , अक्ष�ान समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर $ावल $ढाए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , पुष्पं समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर पुष्प $ढाए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , धूपम आघ्रापयामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर धूप करें ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , दीपकं दश�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह को दीपक दिदखाए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , नैवेदं्य समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर प्रसाद $ढाए ।

आचमनं समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर �ल के छींटे दें ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , ऋ�ुफलं समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर ऋतुफल $ढाए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , �ाम्बूलं समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर पान , सुपारी , इलाय$ी आदिद $ढाए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , दद्धिक्षणां समप�यामिम । कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर नकदी $ढाए ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , कपू�रनीराजनं समप�यामिम । कपू>र �लाकर आरती करें ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , नमस्कारं समप�यामिम । न�स्कार करें ।

अंत �ें इस �ंत्र से हाथ �ोडकर प्राथ>ना करें :

धनदाय नमस्�ुभ्यं तिनचिधपद्माचिधपाय च ।

भगवन त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिदसम्पदः ॥

कुबेर पू�न के साथ यदिद तित�ोरी की भी पू�ा की �ाए , तो साधक को दोगुना लाभ मि�लता है ।

व्यापारीवग> के शिलए दीपावली का दिदन बही -खाता , तुला आदिद के पू�न का दिदवस भी होता है । सव>प्रथ� व्यापारिरक प्रतितष्ठान के �ुख्यद्वार के दोनों ओर दीवार पर ‘ शुभ -लाभ ’ और ‘ स्वस्तिस्�क ’ एवं ‘ ॐ ’ शिसन्दूर से अंतिकत करें । तदुपरान्त इन शुभ शि$ह्नों की रोली , पुष्प आदिद से ‘ ॐ ’ देहलीतिवनायकाय नमः ’ कहते हुए पू�न करें । अब क्र�शः दवात , बहीखाता , तुला आदिद का पू�न करना $ातिहए ।

दवा� पूजन : दवात को �हाकाली का रुप �ाना गया है । सव>प्रथ� नई स्याहीयुp दवात को शुद्ध �ल के छींटे देकर पतिवत्र कर लें , तदुपरान्त उसके �ुख पर �ौली बॉंध दे । दवात को $ौकी पर थोडे से पुष्प और अक्षत डालकर स्थातिपत कर दें । दवात का रोली -पुष्प आदिद से �हाकाली के �न्त्र ‘ ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः ’ के साथ पू�न करें । अन्त �ें इस प्रकार प्राथ>ना करें :

काचिलके ! त्वं जगन्मा�म�चिसरुपेण व��से ।

उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रचिसद्धये ॥

लेखनी का पूजन : दीपावली के दिदन नयी लेखनी अथवा पेन को शुद्ध �ल से धोकर तथा उस पर �ौली बॉंधकर लक्ष्�ीपू�न की $ौकी पर कुछ अक्षत एवं पुष्प डालकर स्थातिपत कर देना $ातिहए । तदुपरान्त रोली पुष्प आदिद से ‘ ॐ लेखनीस्थायै देवै्य नमः ’ �न्त्र बोलते हुए पू�न करें । तदुपरान्त तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से हाथ �ोडकर प्राथ>ना करें :

शास्त्राणां व्यवहाराणां तिवद्यानामाप्नुयाद्य�ः ।

अ�स्त्वां पूजमियष्यामिम मम हस्�े स्थिस्थरा भव ।‘’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ॐ…………………………………………..

कार्तितIक �ास �ें दीपदान का तिवशेष �हत्व है । श्री पुष्कर पुराण �ें आता है :-

�ुलायाँ ति�ल�ैलेन सायंकाले समाय�े ।

आकाशदीपं यो दद्यान्मासमेकं हरिरf प्रति� ॥

मह�ी द्धिश्रयमाप्नोति� रूपसौभा_यसम्पदम ॥

�ो �नुष्य कार्तितIक �ास �ें सन्ध्या के स�य भगवान श्री हरी के ना� से तितल के तेल का दीप �लाता है, वह अतुल लक्ष्�ी, रूप सौभाग्य, और सम्पणित्त को प्राप्त करता है । नारद �ी के अनुसार दीपावली के उत्सव को द्वादशी, त्रयोदशी, $तुद>शी, अ�ावस्या और प्रतितपदा – इन पां$ दिदनों तक �ानना $ातिहये । इन�ें भी प्रत्येक दिदन अलग अलग प्रकार की पु�ा का तिवधान है ।

गौवत्स द्वादशी - �हत्व

दीपावली के पाँ$ो दिदन की �ानेवाली साधनाए ँतथा पू�ातिवमिध क� प्रयास �ें अमिधक फल देने वाली होती होती है और प्रयोगों �े अभूतपूव> सफलता प्राप्त होती है ।

गौवत्स द्वादशी - व्रत-कथा। सतयुग की बात है, �हर्तिषI भृगु के आश्र� �ें भगवान् शंकर के दश>न प्राप्त करने के शिलए अनेक �ुतिन तपस्या कर रहे थे । एक दिदन शिशव, पाव>ती और कार्तितIकेय स्वयं उन �ुतिनयों को दश>न देने के शिलए क्र�शः बूढे़ ब्राह्मण, गाय एवं बछडे़ के रूप �ें उस आश्र� �ें आए । बूढे़ ब्राह्मण का वेश धरे भगवान् शिशव ने �हर्तिषI भृगु को कहा तिक ‘हे �ुतिन! �ैं यहॉं स्नान करके �म्बूक्षेत्र �ें �ाऊँगा और दो दिदन बाद लौटँूगा, तब तक आप इस गाय और बछडे़ की रक्षा करना।’ भृगु सतिहत अन्य �ुतिनयों से �ब गाय और बछडे़ की रक्षा का आश्वासन मि�ल गया तो भगवान् शिशव वहॉं से $ल दिदए । थोड़ी दूर

$लकर उन्होंने बाघ का रूप रख शिलया और पुनः आश्र� आ गए और गाय तथा बछडे़ को डराने लगे । ऋतिषगण भी बाघ को देखकर डरने लगे, तिकन्तु वे गाय एवं बछडे़ की रक्षा के प्रयास भी कर रहे थे, अन्त �ें उन्होंनें ब्रह्मा से प्राप्त भयंकर आवा� करने वाले घंटे को ब�ाना आरंभ तिकया । घंटे की आवा� सुनकर बाघ अदृश्य हो गया और भगवान् शिशव अपने सही रूप �ें प्रकट हो गए । पाव>ती �ी तथा कार्तितIकेय�ी भी अपने सही रूप �ें प्रकट हो गए । ऋृतिषयों ने उनकी पू�ा की । $ूँतिक उस दिदन कार्तितIक �ास की द्वादशी थी, इसशिलए यह व्रत गौवत्स द्वादशी के रूप �ें आरंभ हुआ ।उp प्रतिक्रया के उपरान्त ही व्रत खोलना $ातिहए ।

गोवत्स द्वादशी - कार्तितIक �ास की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी कहते हैं । इस दिदन दूध देने वाली गाय को उसके बछडे़ सतिहत स्नान कराकर वस्त्र ओढाना $ातिहये, गले �ें पुष्प�ाला पहनाना , सिसIग �ढ़ना, $न्दन का तितलक करना तथा ताम्बे के पात्र �ें सुगन्ध, अक्षत, पुष्प, तितल, और �ल का मि�श्रण बनाकर तिनम्न �ंत्र से गौ के $रणों का प्रक्षालन करना $ातिहये ।

क्षीरोदाण�वसम्भू�े सुरासुरनमस्कृ�े ।

सव�देवमये मा�गृ�हाणाघ्य� नमो नमः ॥

(स�ुद्र �ंथन के स�य क्षीरसागर से उत्पन्न देवताओं तथा दानवों द्वारा न�स्कृत, सव>देवस्वरूतिपणी �ाता तुम्हे बार बार न�स्कार है।)

पू�ा के बाद गौ को उड़द के बडे़ खिखलाकर यह प्राथ>ना करनी $ातिहए-

“सुरद्धिभ त्वं जगन्मा�द,वी तिवष्णुपदे स्थिस्थ�ा ।

सव�देवमये ग्रासं मया दत्तमिममं ग्रस ॥

��ः सव�मये देतिव सव�देवलङ्कृ�े।

मा�म�माद्धिभलातिष�ं सफलं कुरू नजिन्दनी ॥“

(हे �गदम्बे ! हे स्वग>वशिसनी देवी ! हे सव>देव�मिय ! �ेरे द्वारा अर्तिपIत इस ग्रास का भक्षण करो । हे स�स्त देवताओं द्वारा अलंकृत �ाता ! नजिन्दनी ! �ेरा �नोरथ पुण> करो।) इसके बाद रातित्र �ें इ& , ब्राम्हण , गौ तथा अपने घर के वृद्ध�नों की आरती उतारनी $ातिहए।

धनतेरस - दुसरे दिदन कार्तितIक कृष्ण त्रयोदशी के दिदन को धनतेरस कहते हैं । भगवान धनवंतरी ने दुखी �नों के रोग तिनवारणाथ> इसी दिदन आयुव§द का प्राकट्य तिकया था । इस दिदन सन्ध्या के स�य

घर के बाहर हाथ �ें �लता हुआ दीप लेकर भगवान य�रा� की प्रसन्नता हेतु उन्हे इस �ंत्र के साथ दीप दान करना $ातिहये-

�ृत्युना पाशदण्डाभ्या�् कालेन श्या�या सह ।

त्रयोदश्यां दीपदानात् सूय>�ः प्रीयतां �� ॥

(त्रयोदशी के इस दीपदान के पाश और दण्डधारी �ृत्यु तथा काल के अमिधष्ठाता देव भगवान देव य�, देवी श्या�ला सतिहत �ुझ पर प्रसन्न हो।)

नरक $तुद>शी - नरक $तुद>शी के दिदन $तु�ु>खी दीप का दान करने से नरक भय से �ुशिp मि�लती है । एक $ार �ुख ( $ार लौ ) वाला दीप �लाकर इस �ंत्र का उच्चारण करना $ातिहये –

” दत्तो दीपश्व$तुद§श्यां नरकप्रीतये �या ।

$तुव>र्तितIस�ायुpः सव>पापापनुत्तये ॥“

(आ� नरक $तुद>शी के दिदन नरक के अणिभ�ानी देवता की प्रसन्नता के शिलये तथा स�स्त पापों के तिवनाश के शिलये �ै $ार बणित्तयों वाला $ौ�ुखा दीप अर्तिपIत करता हूँ।)

यद्यतिप कार्तितIक �ास �ें तेल नहीं लगाना $ातिहए, तिफर भी नरक $तुद>शी के दिदन सूय�दय से पूव> उठकर तेल-�ाशिलश (तैलाभ्यंग) करके स्नान करने का तिवधान है। 'सन्नतकु�ार संतिहता' एवं ध�>शिसनु्ध ग्रन्थ के अनुसार इससे नारकीय यातनाओं से रक्षा होती है। �ो इस दिदन सूय�दय के बाद स्नान करता है उसके शुभक�o का नाश हो �ाता है। -

दीपावली - अगले दिदन कात�क अ�ावस्या को दीपावली �नाया �ाता है । इस दिदन प्रातः उठकर स्नानादिद करके �प तप करने से अन्य दिदनों की अपेक्षा तिवशेष लाभ होता है । इस दिदन पहले से ही स्वच्छ तिकये गृह को स�ाना $ातिहये । भगवान नारायण सतिहत भगवान लक्ष्�ी �ी की �ुत� अथवा शि$त्र की स्थापना करनी $ातिहये तत्पश्चात धूप दीप व स्वल्किस्तवा$न आदिद वैदिदक �ंत्रो के साथ या आरती के साथ पु�ा अ$>ना करनी $ातिहये । इस रातित्र को लक्ष्�ी भpों के घर पधारती है ।

अन्नकूट दिदवस / गोवध>न-पू�ा - पां$वे दिदन कार्तितIक शुक्ल प्रतितपदा को अन्नकूट दिदवस कह्ते है । ध�>शिसनु्ध आदिद शास्त्रों के अनुसार गोवध>न-पू�ा के दिदनगायों को स�ाकर, उनकी पू�ा करके उन्हें भोज्य पदाथ> आदिद अर्तिपIत करने का तिवधान है। इस दिदन गौओ को स�ाकर उनकी पू�ा करके यह �ंत्र करना $ातिहये,गौ-पू�न का �ंत्र –

लक्ष्मीया� लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिस्थ�ा ।

रृ्घा�ं वहति� यज्ञार्थ� मम पापं त्यपोह�ु ॥

(धेनु रूप �ें स्थिस्थत �ो लोकपालों की साक्षात लक्ष्�ी है तथा �ो यज्ञ के शिलए घी देती है , वह गौ �ाता �ेरे पापों का नाश करे । रात्री को गरीबों को यथा सम्भव अन्न दान करना $ातिहये । इस प्रकार पां$ दिदनों का यह दीपोत्सव सम्पन्न होता है ।

तिवशेषता - बौद्ध ध�> के प्रवत>क भगवान बुद्ध के स�थ>कों व अनुयामिययों ने २५०० वष> पूव> ह�ारों-लाखों दीप �लाकर उनका स्वागत तिकया था। आदिद शंकरा$ाय> के तिन��व शरीर �ें �ब पुन: प्राणों के सं$ारिरत होने की घटना से तिहन्दू �गत अवगत हुआ था तो स�स्त तिहन्दू स�ा� ने दीपोत्सव से अपने उल्लास की भावना को दशा>या था।

दीपावली के सन्दभ> �ें एक अन्य ऐतितहाशिसक घटना भी �ुड़ी हुई है। �ुगल सम्राट �हांगीर ने ग्वाशिलयर के तिकले �ें भारत के सारे सम्राटों को बंद कर रखा था। इन बंदी सम्राटों �ें शिसखों के छठे गुरू हरगोतिवन्द �ी भी थे। गुरू गोतिवन्द �ी बडे़ वीर दिदव्यात्�ा थे। उन्होंने अपने पराक्र� से न केवल स्वयं को स्वतंत्र करवाया, बल्किल्क शेष रा�ाओं को भी बंदी-गृह से �ुp कराया था और इस �ुशिp पव> को दीपोत्सव के रूप �ें �नाकर सम्पूण> तिहन्दू और शिसख स�ुदाय के लोगों ने अपनी प्रसन्नता को व्यp तिकया था।

गौवत्स द्वादशी - गोतित्ररात्र व्रत

गोतित्ररात्र व्रत कार्तितIक कृष्ण त्रयोदशी से अ�ावस्या तक तिकया �ाता है । यह व्रत तित्रदिदवसीय है । इसका आरम्भ सूय�दय व्यातिपनी कार्तितIक कृष्ण त्रयोदशी से होता है । यदिद सूय�दय व्यातिपनी तितशिथ दो दिदन हो अथा>त् त्रयोदशी की वृजिद्ध हो, तो यह पहले दिदन से तिकया �ाता है । गौशाला �ें लगभग

४ हाथ $ौड़ी एवं ८ हाथ लम्बी एक वेदी का तिन�ा>ण तिकया �ाता है । वेदी के ऊपर सव>तोभद्रा�ण्डल का तिन�ा>ण तिकया �ाता है । उसके ऊपर एक कृतित्र� वृक्ष बनाया �ाता है, जि�स�ें फल और पुष्प लगे होते है तथा उस पर पक्षी बैठे होते है । इस कृतित्र� वृक्ष के नी$े ही �ण्डल के �ध्य भाग �ें भगवान् गोवध>न (श्रीकृष्ण) की, उनके बायीं ओर रुस्थिक्�णी,मि�त्रतिवन्दा, शैब्या और �ाम्बवती की तथा दातिहने भाग �ें सत्यभा�ा, लक्ष्�णा, सुदेवा और नाग्रजि�ती की �ूर्तितIयॉं स्थातिपत की �ाती हैं । उनके सा�ने के भाग �ें नन्दबाबा और पीछे के भाग �ें बलभद्र, यशोदा की तथा श्रीकृष्ण के सा�ने सुरणिभ, सुभद्रा एवं का�धेनु ना�क गायों की �ूर्तितIयॉं स्थातिपत की �ाती हैं । अगर ये मि�ट्टी की तिनर्मि�Iत की गयी है, तो इनपर सुनहरा रंग होना $ातिहए इन १६ �ूर्तितIयों की अर्घ्यय>, आ$�न, स्नान, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य से क्र�शः पू�ा की �ाती है । पू�न �ें ना� �न्त्रों का प्रयोग करना $ातिहए । इनके ना� �न्त्र तिनम्नानुसार है ।

१. गोवध>नःॐ गोवध>नदेवायै न�ः।२. रुस्थिक्�णीःॐ रुस्थिक्�णीदेव्यै न�ः ।३. मि�त्रातिवन्दाःॐ मि�त्रातिवन्दादेवै्य न�ः ।४. शैब्याःॐ शैब्यादेवै्य न�ः ।५. �ाम्बवतीःॐ �ाम्बवतीदेवै्य न�ः।६. सत्यभा�ाःॐ सत्यभा�ादेवै्य न�ः।७. लक्ष्�णाःॐ लक्ष्�णादेवै्य न�ः।८. सुदेवाःॐ सुदेवादेवै्य न�ः।९. नाग्नजि�तीःॐ नाग्नजि�तीदेव्यै न�ः ।१०. नन्दबाबाःॐ नन्दबाबादेवाय न�ः।११. बलभद्रःॐ बलभद्राय न�ः।१२. यशोदाःॐ यशोदादेवै्य न�ः।

१३.सुरणिभःॐ सुरभ्यै न�ः।१४.सुनन्दाःॐ सुनन्दाये न�ः।१५.सुभद्राःॐ सुभद्रायै न�ः ।१६. का�धेनुःॐ का�धेन्वै न�ः।

अन्त�ें तिनम्�शिलखिखत �न्त्र से भगवान् गोवध>न सतिहत सभी देवी-देवताओं की अर्घ्यय> प्रदान करे ।

गवा�ाधार गोतिवन्दरुस्थिक्�णीवल्लभ प्रभो । गोपगोपीस�ोपेत गृहाणार्घ्ययg न�ोऽस्तुते ॥

तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से गायों को अर्घ्यय> प्रदान करे ।

रुद्राणां $ैव या �ाता वसूनां दुतिहता $ या । आदिदत्यानां $ भतिगनी सा नः शान्तिन्त प्रयच्छतु ॥उपयु>p �न्त्रों से गौशाला �ें उपस्थिस्थत गायों को भी अर्घ्यय> देना $ातिहए और तिनम्नशिलखिखत �न्त्रों से गौशाला �ें उपस्थिस्थत गायों को घास खिखलानी $ातिहए ।

सुरभी वैष्णवी �ाता तिनत्यं तिवष्णुपदे स्थिस्थता । प्रतितगृह्नातु �े ग्रासं सुरभी �े प्रसीदतु ॥

उपयु>p पू�न के उपरान्त �ौस� के अनुरूप फल एवं पुष्प तथा पक्वान्न का भोग लगाए ँ। उसके पश्चात् । बॉंस से तिनर्मि�Iत डशिलयाओं �ें सप्तधान्य और सात प्रकार की मि�ठाई रखकर सौभाग्यवती त्मिस्त्रयों को देना $ातिहए ।उपयु>p प्रकार से तीन दिदन कृत्य तिकए �ाते हैं । $तुथ> दिदन अथा>त् कार्तितIक शुक्ल प्रतितपदा को प्रातःकाल गायत्री �न्त्र से तितल युp हवन सा�ग्री से १०८ आहुतितयॉं देकर व्रत का तिवस�>न करना $ातिहए ।यह व्रत पुत्र, सुख एवं सम्पणित्त के लाभ के शिलए तिकया �ाता है ।

गोवध>न पू�ाकार्तितIक शुक्ल प्रतितपदा को गोवध>नोत्सव के अन्तग>त भी गायों का पू�न तिकया �ाता है । यद्यतिप इस दिदन �ुख्यतः गोवध>न की पू�ा की �ाती है, लेतिकन गोवध>न के साथ-साथ गायों के पू�न का भी तिवधान है ।.

धनत्रयोदशी - �हत्व

पं$दिदनात्�क दीपावली पव> का पहला दिदन धनत्रयोदशी है । सम्भवतः आयुव§द के �नक भगवान धन्वन्तरिर के प्राकट्य का दिदन होने के कारण कार्तितIक कृष्ण त्रयोदशी को ‘धनत्रयोदशी’ कहा �ाता है । पौराणिणक �ान्यता है तिक स�ुद्र-�न्थन के दौरान भगवान् धन्वन्तरिर इसी दिदन स�ुद्र से हाथ �ें अ�ृतकलश लेकर प्रकट हुए थे । इसशिलए आ� भी कार्तितIक कृष्ण त्रयोदशी को भगवान् धन्वन्तरिर के प्राकट्योत्सव के रूप �ें �नाया �ाता है । इस दिदन प्रातःकाल उठकर भगवान धन्वन्तरिर के तिनमि�त्त व्रत करने एवं उनके पू�न करने का संकल्प शिलया �ाता है और दिदन �ें धन्वन्तरिर का पू�न तिकया �ाता है । आयुव§द शि$तिकत्सकों के शिलये यह तिवशेष दिदन है । आयुव§द तिवद्यालयों, �हातिवद्यालयों एवं तिवश्वतिवद्यालयों तथा शि$स्थिक्कत्सालयों �ें इस दिदन भगवान् धन्वन्तरिर की तिवशेष पू�ा-अ$>ना होती है । यह आयुव§द के प्राकट्य का भी दिदन है । भगवान् धन्वन्तरिर के एक हाथ �ें अ�ृतकलश और दूसरे हाथ �ें आयुव§दशास्त्र है । इस कारण इस दिदन आयुव§द के ग्रन्थों का भी पू�न तिकया �ाता है । आयुव§द को ‘उपवेद’ की संज्ञा दी गई है ।धनत्रयोदशी का दूसरा �हत्त्व य� के तिनमि�त्त दीपदान से सम्बत्मिन्धत है । य�रा� �ृत्यु के देवता हैं । वे क�>फल का तिनण>य करने वाले हैं । धनत्रयोदशी के दिदन उन्हें प्रसन्न करने के शिलए उनके तिनमि�त्त दीपदान तिकया �ाता है । यह दीपदान प्रदोषकाल �ें करना $ातिहए । ऐसा करने से अकाल �ृत्यु का भय दूर होता है ।धनत्रयोदशी का तीसरा �हत्त्व गोतित्ररात्र व्रत है । स्कन्दपुराण के अनुसार यह व्रत कार्तितIक कृष्ण त्रयोदशी से अ�ावस्या के दिदन तक तिकया �ाता है । इस प्रकार यह तित्रदिदवसीय व्रत है । इस�ें व्रत का आरम्भ सूय�दय व्यातिपनी त्रयोदशी तितशिथ से होता है । इस बार यह व्रत 4 नवम्बर को है । इस�ें

भगवान् श्रीकृष्ण एवं गायों की पू�ा की �ाती है । प्रथ� दिदन इस तित्रदिदवसीय व्रत का संकल्प लेना $ातिहऐ और $ौथे दिदन अथा>त् कार्तितIक शुक्ल प्रतितपदा को इस व्रत का तिवस�>न कर गोवध>न उत्सव �नाना $ातिहए ।इस वष> गोवत्स द्वादशी ३ नवम्बर को है । फलतः गोवत्स द्वादशी का व्रत इस बार धनत्रयोदशी के दिदन ही होगा । आधुतिनक स�य �ें धनत्रयोदशी को धन से �ोड़ा गया है और यह �ाना �ाता है तिक यह दिदन धन के संकलन का एवं स्वणा>दिद बहू�ूल्य धातुओं के संग्रह का दिदन है । इसी $लते �ध्याह्न �ें सोने-$ॉंदी के बत>न, शिसक्के एवं आभूषण खरीदने का रिरवा� तिवद्य�ान है ।

त्योहारों पर रंगोली तिन�ा>ण की परम्परा भारतीय संस्कृतित का अणिभन्न अंग है । इस पं$दिदनात्�क दीपावली �हापव> के सभी दिदनों �ें घर के सभी प्र�ुख स्थलों की धुलाई करके दोपहर �ें रंगोली का तिन�ा>ण करना $ातिहए । रंगोली �ें फूल-पणित्तयों के साथ-साथ कलश, स्वल्किस्तक आदिद �ंगल शि$ह्नों का भी तिन�ा>ण करना $ातिहए । इसके अतितरिरp अशोक, आ� आदिद वृक्षों के पत्तों तथा फूलों से बन्दनवार का तिन�ा>ण करना $ातिहए और उसे घर के प्रवेश द्वारों तथा प्र�ुख कक्षों के प्रवेश द्वारों पर लगाना $ातिहए ।.

एक अन्य �ान्यता के अनुसार धन्वन्तरिर आयुव§द की एक परम्परा के ही प्रवत>क हैं । अन्य परम्पराओं �ें इन्द्र, भरद्वा�, अणिश्वनीकु�ार, सुश्रुत, $रक आदिद हैं । भाव मि�श्र ने अपने ग्रन्थ ‘भावप्रकाश’ �े ऐसी $ार परम्पराओं का उल्लेख तिकया है । इन सभी परम्पराओं �ें धन्वन्तरिर एवं अणिश्वनी कु�ार की परम्परा ही प्र�ुख है । ज्ञातव्य रहे तिक अणिश्वनी कु�ार सूय> एवं संज्ञा के पुत्र हैं । वे देवताओं के शि$तिकत्सक हैं । ब्रह्मा�ी ने दक्ष प्र�ापतित को आयुव§द की शिशक्षा दी थी । दक्ष प्र�ापतित से अणिश्वनी कु�ारों ने शिशक्षा प्राप्त की थी । ‘अणिश्वनीकु�ारसंतिहता’ के र$मियता सूय>पुत्र अणिश्वनी कु�ार ही हैं ।

‘आरोग्य देवता’, ‘देव-शि$तिकत्सक’ एवं ‘आयुव§द के �नक’ के रूप �ें तीनों लोकों �ें तिवख्यात भगवान् धन्वन्तरिर के प्राकट्य का दिदन है धनत्रयोदशी । कार्तितIक कृष्ण त्रयोदशी इसी कारण भगवान धन्वन्तरिर के प्राकट्योत्सव अथवा �यन्ती के रूप �ें �नायी �ाती है । क्षीरसागर के �न्थन के दौरान भगवान् धन्वन्तरिर एक हाथ �ें अ�ृत कलश शिलए हुए और दूसरे हाथ �ें आयुव§दशास्त्र को लेकर प्रकट हुए थे । भगवान् धन्वन्तरिर की गणना भगवान् तिवष्णु के 24 अवतारों �ें होती है । वे उनके अंशावतार �ाने �ाते है ।

भगवान धन्वन्तरिर ने देवादिद के �ीवन के शिलए आयुव§दशास्त्र का उपदेश �हर्तिषI तिवश्वामि�त्र के पुत्र सुश्रुत को दिदया । सुश्रुत ने �नकल्याण के शिलए ‘सुश्रुतसंतिहता’ का तिन�ा>ण करके इसका प्र$ार-प्रसार पृथ्वीलोक पर तिकया । स्वयं धन्वन्तरिर भगवान् तिवष्णु के तिनद§शानुसार काशिशरा� के वंश �ें अगले �न्� �ें उत्पन्न हुए और उन्होंने लोककल्याणाथ> ‘धन्वन्तरिरसंतिहता’ की र$ना की ।

धनत्रयोदशी - पू�न-तिवमिध

धनत्रयोदशी के दिदन �ध्याह्न काल �ें भगवान् धन्वन्तरिर का पू�न तिकया �ाना $ातिहए । इसे न केवल आयुव§द शि$तिकत्सा से �ुडे़ हुए व्यशिpयों को ही करना $ातिहए , वरन् आरोग्य प्रान्तिप्त के तिनमि�त्त सभी व्यशिpयों को करना $ातिहऐ । जि�न व्यशिpयों की शारीरिरक एवं �ानशिसक बी�ारिरयॉं आए दिदन पीतिड़त करती रहती है , उन्हें तो आरोग्य देवता एवं देव -शि$तिकत्सक भगवान् धन्वन्तरिर का धनत्रयोदशी को श्रद्धापूव>क पू�न करना $ातिहए और उनसे इन क&ों के तिनवारण तथा आरोग्य की प्रान्तिप्त की प्राथ>ना करनी $ातिहए ।

सव>प्रथ� भगवान् धन्वन्तरिर का शि$त्र $ौकी पर स्वच्छ वस्त्र तिबछाकर स्थातिपत करें । साथ ही भगवान् गणपतित की स्थापना धन्वन्तरिर के स�क्ष अक्षत से बने हुए स्वल्किस्तक या अ&दल के केन्द्र �ें सुपारी पर �ौली लपेटकर करें ।

सव>प्रथ� अपनें ऊपर तथा पू�न सा�ग्री पर �ल शिछड़ककर पतिवत्र करे । तदुपरान्त भगवान् गणपतित का पू�न करें । उनके स�क्ष अर्घ्यय> , आ$�न एवं स्नान हेतु थोड़ा -सा �ल छोड़ें । तदुपरान्त रोली का टीका लगाए ँ। अक्षता लगाए ँ। वस्त्र के रूप �ें �ौली का एक टुकड़ा $ढ़ाए ँ। पुष्प $ढ़ाए ँ। नैवेद्य $ढ़ाए ँऔर अन्त �ें न�स्कार करें ।

अब प्रधान देवता के रूप �ें भगवान् धन्वन्तरिर का पू�न करना है । इसके शिलए सव>प्रथ� हाथ �ें पुष्प और अक्षत लेकर अग्रशिलखिखत श्लोक से भगवान् धन्वन्तरिर का ध्यान करें :

देवान् कृशानसुरसंर्घातिनपीतिड�ाङ्गान्

दृष््टवा दयालुरमृ�ं तिवपरी�ुकामः ।

पार्थोचिधमन्थनतिवधौ प्रकटोऽभवद्यो धन्वन्�रिरः स भगवानव�ा�् सदा नः ॥

ध्यानार्थ, अक्ष�पुष्पाद्धिण समप�यामिम ॐ धन्वन्�रिरदेवाय नमः ।

ऐसा कहते हुए भगवान धन्वन्तरिर के स�क्ष अक्षत -पुष्प छोड़ दें । इसके पश्चात् धन्वन्तरिर �ी का पू�न प्रारम्भ करें ।

तीन बार �ल के छीटे दें और बोलें :

पादं्य , अघ्य� , आचमनीयं समप�यामिम ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । स्नानार्थ, जलं समप�यामिम ।

स्नान के शिलए �ल के छीटें दें ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । पंचामृ�स्नानार्थ, पंचामृ�ं समप�यामिम । पं$ा�ृत से स्नान कराए ँ।

पंचामृ�स्नानान्�े शुद्धोदक स्नानं समप�यामिम । शुद्ध �ल से स्नान कराए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । सुवाचिस�ं इतं्र समप�यामिम । इत्र $ढाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । वस्तं्र समप�यामिम । �ौली का टुकड़ा अथवा वस्त्र $ढ़ाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । गन्धं समप�यामिम । रोली या लाल $न्दन $ढ़ाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । अक्ष�ान् समप�यामिम । $ावल $ढ़ाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । पुष्पं समप�यामिम । पुष्प $ढ़ाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । धूपम् आघ्रापयामिम । धूप करें ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । दीपकं दश�यामिम । दीपक दिदखाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । नैवेदं्य तिनवेदयामिम । प्रसाद $ढ़ाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । आचमनीयं जलं समप�यामिम । �ल के छीटें दें ।

ॐ धन्वन्�रये नमः। ऋ�ुफलं समप�यामिम । ऋतुफल $ढ़ाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । �ाम्बूलं समप�यामिम । पान , सुपारी , इलाय$ी आदिद $ढाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । दद्धिक्षणां समप�यामिम । नकदी $ढ़ाए ँ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । कपू�रनीराजनं समप�यामिम । कपू>र �लाकर आरती करें ।

ॐ धन्वन्�रये नमः । नमस्कारं समप�यामिम । न�स्कार करें ।

अंत �ें तिनम्नशिलखिखत �ंत्र हाथ से हाथ �ोड़कर प्राथ>ना करें ।

अर्थोदधेम��यमाना�् काश्यपैरमृ�ार्थिर्थfद्धिभः । उदति�ष्ठन्महाराज पुरुषः परमाद ्भु�ः ॥

दीर्घा�पीवरदोद�ण्डः कम्ब्रुग्रीवोऽरुणेक्षणः । श्यामलस्�रुणः स्र_वी सवा�भरणभूतिष�ः ॥

पी�वासा महोरस्कः सुमृष्टमद्धिणकुण्डलः । स्तिस्न_धकंुस्थिञ्च�केशान्�ः सुभगः सिसfहतिव मः ॥

अमृ�ापूण�कलशं तिवभ्रद ्वलयभूतिष�ः । स वै भगव�ः साक्षातिद्वष्णोरंशांशसमम्भवः ॥

इस प्रकार प्राथ>ना करने के उपरान्त भगवान् धन्वन्तरिर से अपने , अपने परिर�नों एवं मि�त्रों के आरोग्य की प्रान्तिप्त के शिलए प्राथ>ना करें और सा&ांग दण्डवत् प्रणा� करें ।

धनत्रयोदशी - य�-दीपदान

धनत्रयोदशी पर करणीय कृत्यों �ें से एक �हत्त्वपूण> कृत्य है , य� के तिनमि�त्त दीपदान । तिनण>यशिसनु्ध �ें तिनण>या�ृत और स्कन्दपुराण के कथन से कहा गया है तिक ‘कार्तितIक कृष्ण त्रयोदशी को घर से बाहर प्रदोष के स�य य� के तिनमि�त्त दीपदान करने से अकाल�ृत्यु का भय दूर होता है । ’

य�देवता भगवान् सूय> के पुत्र हैं । उनकी �ाता का ना� संज्ञा है । वैवस्वत �नु , अणिश्वनीकु�ार एवं रैवंत उनके भाई हैं तथा य�ुना उनकी बतिहन है । उनकी सौतेली �ाँ छाया से शतिन , तपती , तिवमि& , सावर्णिणI �नु आदिद १० सन्तानें हुई हैं , �ो तिक उनके सौतेले भाई -बतिहन भी है । वैसे य� शतिन ग्रह के अमिधदेवता �ाने �ाते हैं ।

य�रा� प्रत्येक प्राणी के शुभाशुभ क�o के अनुसार गतित देने का काय> करते हैं । इसी कारण उन्हें ‘ध�>रा� ’ कहा गया है । इस सम्बन्ध �ें वे तु्रदिट रतिहत व्यवस्था की स्थापना करते हैं । उनका पृथक् से एक लोक है , जि�से उनके ना� से ही ‘य�लोक ’ कहा �ाता है । ऋग्वेद (९ /११ /७ ) �ें कहा गया है तिक इनके लोक �ें तिनरन्तर अनश्वर अथा>त् जि�सका नाश न हो ऐसी ज्योतित �ग�गाती रहती है । यह लोक स्वयं अनश्वर है और इस�ें कोई �रता नहीं हैं ।

य� की आँखें लाल हैं , उनके हाथ �ें पाश रहता है । इनका शरीर नीला है और ये देखने �ें उग्र हैं । भैंसा इनकी सवारी हैं । ये साक्षात् काल हैं ।

यमदीपदान

स्कन्दपुराण �ें कहा गया है तिक कार्तितIक के कृष्णपक्ष �ें त्रयोदशी के प्रदोषकाल �ें य�रा� के तिनमि�त्त दीप और नैवेद्य स�र्तिपIत करने पर अप�ृत्यु अथा>त् अकाल �ृत्यु का नाश होता है । ऐसा स्वयं य�रा� ने कहा था ।

य�दीपदान �ैसा तिक पूव> �ें कहा गया है , प्रदोषकाल �ें करना $ातिहए । इसके शिलए मि�ट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ �ल से धो लें । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बणित्तयॉं बना लें । उन्हें दीपक �ें एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें तिक दीपक के बाहर बणित्तयों के $ार �ुँह

दिदखाई दें । अब उसे तितल के तेल से भर दें और साथ ही उस�ें कुछ काले तितल भी डाल दें । प्रदोषकाल �ें इस प्रकार तैयार तिकए गए दीपक का रोली , अक्षत एवं पुष्प से पू�न करें । उसके पश्चात् घर के �ुख्य दरवा�े के बाहर थोड़ी -सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है । दीपक को रखने से पहले प्रज्वशिलत कर लें और दणिक्षण दिदशा की ओर देखते हुए तिनम्�शिलखिखत �न्त्र का उच्चारण करते हुए $ार�ुँह के दीपक को खील आदिद की ढेरी के ऊपर रख दें ।

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह । त्रयोदश्यां दीपदाना�् सूय�जः प्रीय�ामिमति� ।

अथा>त् त्रयोदशी को दीपदान करने से �ृत्यु , पाश , दण्ड , काल और लक्ष्�ी के साथ सूय>नन्दन य� प्रसन्न हों । उp �न्त्र के उच्चारण के पश्चात् हाथ �ें पुष्प लेकर तिनम्नशिलखिखत �न्त्र का उच्चारण करते हुए य�देव को दणिक्षण दिदशा �ें न�स्कार करें ।

ॐ यमदेवाय नमः । नमस्कारं समप�यामिम ॥

अब पुष्प दीपक के स�ीप छोड़ दें और पुनः हाथ �ें एक बताशा लें तथा तिनम्नशिलखिखत �न्त्र का उच्चारण करते हुए उसे दीपक के स�ीप ही छोड़ दें ।

ॐ यमदेवाय नमः । नैवेदं्य तिनवेदयामिम ॥

अब हाथ �ें थोड़ा -सा �ल लेकर आ$�न के तिनमि�त्त तिनम्नशिलखिखत �न्त्र का उच्चारण करते हुए दीपक के स�ीप छोडे़ ।

ॐ यमदेवाय नमः । आचमनार्थ, जलं समप�यामिम ।

अब पुनः य�देव को ‘ॐ य�देवाय न�ः ’ कहते हुए दणिक्षण दिदशा �ें न�स्कार करें ।

धनत्रयोदशी पर यमदीपदान क्यों ?

‘ स्कन्द ’ आदिद पुराणों �ें , ‘ तिनण>यशिसनु्ध ’ आदिद ध�>शास्त्रीय तिनबन्धों �ें एवं ‘ ज्योतितष सागर ’ �ैसी पतित्रकाओं �ें धनत्रयोदशी के करणीय कृत्यों �ें य�दीपदान को प्र�ुखता दी �ाती है । कभी आपने सो$ा है तिक धनत्रयोदशी पर यह दीपदान क्यों तिकया �ाता है ? तिहन्दू ध�> �ें प्रत्येक करणीय कृत्य के पीछे कोई न कोई पौराणिणक कथा अवश्य �ुड़ी होती हैं । धनत्रयोदशी पर य�दीपदान भी इसी प्रकार पौराणिणक कथा से �ुड़ा हुआ है । स्कन्दपुराण के वैष्णवखण्ड के अन्तग>त कार्तितIक �ास �हात्म्य �ें इससे सम्बत्मिन्धत पौराणिणक कथा का संणिक्षप्त उल्लेख हुआ है ।

एक बार य�दूत बालकों एवं युवाओं के प्राण हरते स�य परेशान हो उठे । उन्हें बड़ा दुःख हुआ तिक वे बालकों एवं युवाओं के प्राण हरने का काय> करते हैं , परन्तु करते भी क्या ? उनका काय> ही प्राण हरना ही है । अपने कत>व्य से वे कैसे च्युत होते ? एक और कत>व्यतिनष्ठा का प्रश्न था , दुसरी ओर जि�न बालक एवं युवाओं का प्राण हरकर लाते थे , उनके परिर�नों के दुःख एवं तिवलाप को देखकर स्वयं को होने वाले �ानशिसक क्लेश का प्रश्न था । ऐसी स्थिस्थतित �ें �ब वे बहुत दिदन तक रहने लगे , तो तिववश होकर वे अपने स्वा�ी य�रा� के पास पहँु$े और कहा तिक ‘‘�हारा� ! आपके आदेश के अनुसार ह� प्रतितदिदन वृद्ध , बालक एवं युवा व्यशिpयों के प्राण हरकर लाते हैं , परन्तु �ो अप�ृत्यु के शिशकार होते हैं , उन बालक एवं युवाओं के प्राण हरते स�य ह�ें �ानशिसक क्लेश होता है । उसका कारण यह है तिक उनके परिर�न अत्यामिधक तिवलाप करते हैं और जि�ससे ह�ें बहुत अमिधक दुःख होता है । क्या बालक एवं युवाओं को असा�मियक �ृत्यु से छुटकारा नहीं मि�ल सकता है ?’’ ऐसा सुनकर ध�>रा� बोले ‘‘दूतगण तु�ने बहुत अच्छा प्रश्न तिकया है । इससे पृथ्वीवाशिसयों का कल्याण होगा । कार्तितIक कृष्ण त्रयोदशी को प्रतितवष> प्रदोषकाल �ें �ो अपने घर के दरवा�े पर तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से उत्त� दीप देता है , वह अप�ृत्यु होने पर भी यहॉं ले आने के योग्य नहीं है ।

मृत्युना पाश्दण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।

त्रयोदश्यां दीपदाना�् सूय�जः प्रीय�ामिमति� ॥ ’’

उसके बाद से ही अप�ृत्यु अथा>त् असा�मियक �ृत्यु से ब$ने के उपाय के रूप �ें धनत्रयोदशी पर य� के तिनमि�त्त दीपदान एवं नैवेद्य स�र्तिपIत करने का कृत्य प्रतितवष> तिकया �ाता है । .

यमराज की सभा

देवलोक की $ार प्र�ुख सभाओं �ें से एक है ‘य�सभा ’। य�सभा का वण>न �हाभारत के सभापव> �ें हुआ है । इस सभा का तिन�ा>ण तिवश्वक�ा> �ी ने तिकया था । यह अत्यन्त तिवशाल सभा है । इसकी १०० यो�न लम्बाई एवं १०० यो�न लम्बाई एवं १०० यो�न $ौड़ाई है । इस प्रकार यह वगा>कार है । यह सभा न तो अमिधक शीतल है और न ही अमिधक ग�> है अथा>त् यहॉं का तापक्र� अत्यन्त सुहावना है । यह सभी के �न को अत्यन्त आनन्द देने वाली है । न वहॉं शोक , न बुढ़ापा है , न भूख है , न प्यास है और न ही वहॉं कोई अतिप्रय वस्तु है । इस प्रकार वहॉं दुःख , क& एवं पीड़ा के करणों का अभाव है । वहॉं दीनता , थकावट अथवा प्रतितकूलता ना��ात्र को भी नही है ।

वहा सदैव पतित्रत सुगन्ध वाली पुष्प �ालाए ँएवं अन्य कई रम्य वस्तुए ँतिवद्य�ान रहती हैं ।

य�सभा �ें अनेक रा�र्तिषI और ब्रह्मर्तिषI य�देव की उपासना करते रहते हैं । ययातित , नहुश , पुरु , �ान्धाता , कात>वीय> , अरिर&ने�ी , कृतित , तिनमि� , प्रतद>न , शिशतिव आदिद रा�ा �रणोणरान्त यहां बैठकर ध�>रा� की उपासना करते हैं । कठोर तपस्या करने वाले , उत्त� व्रत का पालन करने वाले

सत्यवादी , शान्त , संन्यासी तथा अपने पुण्यक�> से शुध्द एवं पतिवत्र �हापुरुषों का ही इस सभा �ें प्रवेश होता है ।

रूप$तुद>शी - �हत्व

प्रातःकाल $न्द्रोदय के स�य $तुद>शी तिवद्य�ान होने के कारण रूप$तुद>शी का स्नान एवं दीपदान इसी दिदन तिकया �ाएगा । रूप$तुद>शी के दिदन सूय�दय से पूव> अथा>त् तारों की छॉंव �ें स्नान करने का तिवधान है । स्नान तेल�द>न एवं उबटन के पश्चात् तिकया �ाना $ातिहए । इसके पश्चात् अपा�ाग> का प्रोक्षण तथा तुम्बी को अपने ऊपर सात बार घु�ाने की तिक्रया की �ाती है । उसके पश्चात् य�तप>ण तिकया �ाता है । य�तप>ण का तिवशेष �हत्त्व है । $तुव>गंशि$न्ता�णिण �ें उल्लेख है तिक य�तप>ण से वष>भर के संशि$त पापों का नाश हो �ाता है ।रूप$तुद>शी को प्रातःकाल देवताओं के शिलए दीपदान तिकया �ाता है । दीपदान पूवा>णिभ�ुख होकर तिकया �ाना $ातिहए । दीपदान के साथ अपने इ&देव एवं सव>देवों का पू�न तिकया �ाता है ।दीपावली पर प्रदोषकाल, वृषभलग्न अथवा सिसIह लग्न �ें �हालक्ष्�ी का पू�न तिकया �ाता है । �हालक्ष्�ी पू�न के साथ ही दीप�ाला प्रज्वलन का काय> होता है । उसके पश्चात् रातित्र �ें अखण्ड दीपक का प्रज्वलन करते हुए �ागरण तिकया �ाना $ातिहए । �ागरण के दौरान �हालक्ष्�ी के तिवशिश& स्तोत्र यथा; श्रीसूp, �हालक्ष्�ी-अ&क, �हालक्ष्�ी-कव$, क�लाशतना�स्तोत्र एवं ना��न्त्रावली इत्यादिद का एक या अमिधक बार पाठ करना $ातिहए । इसके अतितरिरp पुरुषसूp, गोपालसहस्त्रना�, गोपालशतना�स्तोत्र एवं ना��न्त्रावली, श्री काली अ&ोत्तरशतना�स्तोत्र एवं ना��न्त्रावली इत्यादिद का भी पाठ करना $ातिहए ।.

रूप$तुद>शी - उबटन से स्नान

रूप$तुद>शी पर उबटन से स्नान, अपा�ाग> का प्रोक्षण एवं य�तप>ण

रूप$तुद>शी के दिदन सूय�दय से पूव> अथा>त् तारों से युp आस�ान के नी$े स्नान करना $ातिहए । यदिद आपके स�ीप कोई नदी अथवा सरोवर है , तो प्रयास करें तिक इस दिदन का स्नान वहीं हो । इस दिदन स्नान से पूव> तितल्ली के तेल से शरीर की �ाशिलश करनी $ातिहए , क्योंतिक इस दिदन तेल �ें लक्ष्�ी और �ल �ें गंगा तिनवास करती है और प्रातःकाल स्नान करने वाला व्यशिp य�लोक नहीं �ाता है । यद्यतिप कार्तितIक �ास �ें तेल �ाशिलश का तिनषेध है , परन्तु वह तिनषेध कार्तितIक कृष्ण $तुद>शी के अलावा दिदनों के शिलए है । तदुपनान्त शरीर पर अपा�ाग> का प्रोक्षण करना $ातिहए तथा तुंबी (लौकी का टुकड़ा ), अपा�ाग> (ओंगा या शि$$ड़ा ), प्रपुन्नाट ($कवड़ ) और कट्फल (कायफल ) इनको अपने शिसर के $ारों और सात बार घु�ाना $ातिहए , इससे नरक भय दूर होता है (पद्मपुराण ), तत्पश्चात् तिनम्नशिलखिखत श्लोक का पाठ करे ।

चिस�ालोष्ठसमायुकं्त सकण्टकलदलाग्निन्व�ं । हर पापमपामाग� भ्राम्यमाणः पुनः पुनः ॥

‘ हे तंुबी , हे अपा�ाग> तु� बारबार तिफराए ( घु�ाए ) �ाते हुए , �ेरे पापों को दूर करो और �ेरी कुबुजिद्ध का नाश कर दो । ’

स्नान के उपरान्त तंुबी , अपा�ाग> आदिद को घर के बाहर दणिक्षण दिदशा �ें तिवसर्जि�Iत कर देना $ातिहए । स्नान के पश्चात् शुद्ध वस्त्र पहनकर तितलक लगाकर तिनम्नशिलखिखत ना� �ंत्रों से य�तप>ण करना $ातिहए ।

१ . ॐ यमाय नमः ।

२ . ॐ धम�राजाय नमः।

३ . ॐ मृत्यवे नमः ।

४ . ॐ अन्�काय नमः ।

५ . ॐ वैवस्व�ाय नमः ।

६ . ॐ कालाय नमः ।

७ . ॐ सव�भू�क्षयाय नमः ।

८ . ॐ औदुम्बराय नमः ।

९ . ॐ दध्नाय नमः ।

१० . ॐ नीलाय नमः ।

११ . ॐ परमेतिष्ठने नमः ।

१२ . ॐ वृकोदराय नमः।

१३ . ॐ चिचत्राय नमः ।

१४ . ॐ चिचत्रगुप्�ाय नमः।

$तुद>शी होने के कारण य� के $ौदह ना�ें से तप>ण करवाया गया है ।

य�तप>ण काले तितलयुp शुद्ध �ल से करना $ातिहए । प्रत्येक �ंत्र के साथ तीन बार तप>ण करना $ातिहए । तप>ण �लां�शिल से करना $ातिहए और दणिक्षणाणिभ�ुख होकर करना $ातिहए । यह तप>ण सव्य होकर करं ।

हे�ादिद्र का कथन है तिक य�तप>ण से वष>भर संशि$त पाप क्षण भर �ें दूर हो �ाते हैं । जि�न व्यशिpयों के तिपता �ीतिवत है , वे भी य�तप>ण कर सकते हैं , क्योंतिक पद्मपुराण के अनुसार य�तप>ण और भीष्� तप>ण कोई भी �नुष्य कर सकता है ।

स्नान के उपरान्त देवताओं का पू�न करके दीपदान करना $ातिहए । दणिक्षण भारत �ें स्नान के उपरान्त ‘कारीट ’ ना�क कड़वे फल को पैर से कु$लने की प्रथा भी है । ऐसा �ाना �ाता है तिक यह नरकासुर के तिवनाश की स्�ृतित �ें तिकया �ाने वाला कृत्य है । .

रूप$तुद>शी - हनू�ानुत्सव

हनू�ान् के भpों को कार्तितIक कृष्ण $तुद>शी को उत्सव �नाना $ातिहए । प्रातःकाल स्नानादिद से तिनवृत्त होकर तिनम्नशिलखिखत संकल्प लेना $ातिहए ।

ॐ तिवष्णुर्विवfष्णुर्विवfष्णुः श्रीमद्भगव�ो महापुरुषस्य तिवष्णोराज्ञया प्रव��मानस्य अदै्य�स्य ब्रह्मणोऽमि£ तिद्व�ीयपराध, श्रीश्वे�वाराहकल्पे वैवस्व�मन्वन्�रे अष्टविवfशति��मे

कचिलयुगे कचिलप्रर्थमचरणे जम्बूद्वीपे भार�वष, भर�खण्डे आया�व�tकदेशे २०६७ वै माब्दे शोभन संवत्सरे कार्वि�fक मासे कृष्णपक्षे च�ुद�श्याम ति�र्थौ शु वासरे मध्या£समये शुभ मुहू�, ...

( अपने गोत्र का ना� लें ) गोत्रोत्पन्नो ... ( अपने ना� का उच्चारण करें ) शमा� / वमा� / गुप्�ः अहं मम शौयÇदाय�धैया�दिदवृदध््य़र्थ� हनूमत्प्रीति�कामनया हनूमत्महोत्सवमहं करिरष्ये ।

हनू�ान भp को इस दिदन उपवास करना $ातिहए । दोपहर �ें हनू�ान् �ी पर शिसन्दूर �ें सुगत्मिन्धत तेल या घी मि�लाकर उसका लेप ($ोला ) करना $ातिहए । तदुपरान्त $ॉंदी के वक> लगाने $ातिहए । $ोला $ढ़ाने के उपरान्त हनू�ान् �ी का षोडशोप$ार पू�न करना $ातिहए । इसके शिलए सव>प्रथ� गणेश अत्मिम्बका पू�न करें । तदुपरान्त षोडश�ातृका एवं नवग्रह की पू�ा करें ।

हनू�ान् �ी के पू�न से पूव> सीतारा� �ी का पू�न भी अवश्य करना $ातिहए । उp स�स्त प्रतिक्रया के पश्चात् प्रधान पू�ा �ें हनू�ान् �ी के पू�न हेतु सव>प्रथ� हाथ �ें अक्षत एवं पुष्प लें तथा तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से हनू�ान् �ी का ध्यान करे ।

अ�ुचिल� बलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञातिननामग्रगण्यं । सकलगुणतिनधानं वानराणामधीशं ररु्घापति�तिप्रयभकं्त वा�जा�ं नमामिम ॥ ॐ हनूम�े नमः ध्यानार्थ, पुष्पाद्धिण सम�पयामिम ।

अक्षता एवं पुष्प हनू�ान�ी के स�क्ष अर्तिपIत करें ।

आवाहनः हाथ �ें पुष्प लेकर तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से श्री हनू�ान् �ी का आवाहन करें ।

ॐ हनूम�े नमः आवाहनार्थ, पुष्पाद्धिण समप�यामिम ॥

अब पुष्प स�र्तिपIत करें ।

आसनः तिनम्नशिलखिखत �ंत्र से हनू�ान् �ी को आसन अर्तिपIत करे ।

�प्�काञ्चनणा�भं मुक्तामद्धिणतिवराजिज�म् । अमलं कमलं दिदव्यमासनं प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , आसनार्थ, पुष्पाद्धिण समप�यामिम ॥

आसन के शिलए क�ल अथवा गुलाब का पुष्प अर्तिपIत करें । इसके पश्चात् तिनम्नशिलखिखत �न्त्रों का उच्चारण करते हुए हनू�ान् �ी के स�क्ष तिकसी पात्र अथवा भूमि� पर तीन बार बल छोडे़ और बोलें ।

पादं्य , अघ्य� , आचमनीयं समप�यामिम

स्नानः इस �न्त्र के द्वारा गंगा�ल अथवा अन्य तिकसी पतिवत्र नदी के �ल से अथवा शुद्ध �ल से हनू�ान् �ी को स्नान कराए ँ।

मन्दातिकन्यास्�ु यद ्वारिर सव�पापहरं शुभम् ।

�दिददं कस्तिल्प�ं देव स्नानार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , शुद्धोदक स्नानं समप�यामिम ।

पञ्चामृ� स्नानः शुद्धोदक स्नान के पश्चात् हनू�ान् �ी को पञ्$ा�ृत से स्नान करवाए ँ।

पयो दचिध रृ्घा�ं चैव मधुशक� रयाग्निन्व�म् । पञ्चामृ�ं मयानी�ं स्नानार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , पंचामृ� स्नानं समप�यामिम ॥

शुद्धोदक स्नानः तिनम्नशिलखिखत �ंत्र का उच्चारण करते हुए हनू�ान् �ी को पुनः शुद्ध �ल से स्नान कराएँ

मन्दातिकन्यास्�ु यद्वारिर सव�पापहरं शुभम् । �दिददं कस्तिल्प�ं �भ्यं स्नानार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , शुद्धोदक स्नानं समप�यामिम ॥

वस्त्रः इस �न्त्र से वस्त्र स�र्तिपIत करेः

शी�वा�ोष्णंसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम् । देहालंकरणं धृत्वा , म�ः शाग्निन्� प्रयच्छ मे ॥

ॐ हनूम�े नमः , वस्त्रोपवस्तं्र समप�यामिम ।

आभूषणः हनू�ान् �ी को आभूषण अर्तिपIत करेः

रत्नकंकणवैदूय�मुक्ताहारादिदकातिन च । सुप्रसने्नन मनसा दत्तातिन स्वीकुरुष्व भोः ॥

ॐ हनूम�े नमः , आभूषणं समप�यामिम ॥

गन्ध : हनू�ान् �ी को गन्ध (रोली -$न्दन ) अर्तिपIत करेः

श्रीखण्डं चन्दनं दिदवं्य गन्धाढं्य सुमनोहरम् । तिवलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , गन्धं समप�यामिम ॥

चिसन्दूरः इसके पश्चात् तिनम्नशिलखिखत �ंत्र से हनू�ान् �ी को शिसन्दूर अर्तिपIत करेः

चिसन्दूरं रक्तवण� च चिसन्दूरति�लकतिप्रये । भक्त्यां दतं्त मया देव चिसन्दूरं प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , चिसन्दूरं समप�यामिम ॥

कंुकुमः इस�ें पश्चात् तिनम्नशिलखिखत �ंत्र से हनू�ान् �ी को कंुकु� अर्तिपIत करेः

तैलातिन $ सुगन्धीतिन द्रव्याणिण तिवतिवधातिन $ । �या दत्तातिन लेपाथg गृहाण पर�ेश्र्वरः॥

ॐ हनू�ते न�ः कंुकु�ं स�प>यामि� ।

अक्ष�ः तिनम्नशिलखिखत �ंत्र से हनू�ान् �ी को अक्षत अर्तिपIत करेः

अक्षताश्च सुरश्रेषे्ठ कु�ु�ाpाः सुशोणिभताः । �या तिनवेदिदता भक्त्या गृहाण पर�ेश्र्वरः॥

ॐ हनूम�े नमः , अक्ष�ान् समप�यामिम ॥

पुष्प एवं पुष्पमालाः हनू�ान् �ी को पुष्प एवं पुष्प�ाला अर्तिपIत करे ।

माल्यादीतिन सुगन्धीतिन मालत्यादीतिन वै प्रभो । मयानी�ातिन पुष्पाद्धिण पूजार्थ� प्रति�गृह्य�ाम् ।

ॐ हनूम�े नमः , पुष्पं पुष्पमालां च समप�यामिम ॥

धूपः तिनम्नशिलखिखत �ंत्र का उच्चारण करते हुए हनू�ान् �ी को सुगंमिधत धूप अर्तिपIत करे ।

वनस्पति�रसोद्भ�ो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः । आघ्रेयः सव�देवानां धूपोऽयं प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , धूपमाघ्रापयामिम ॥

दीपः धूप के पश्चात् तिनम्न �ंत्र का उच्चारण करते हुए हनू�ान् �ी को दीप दिदखाए ँ।

साज्यं च वर्वि�fसंयुकं्त वमि£ना योजिज�ं मया । दीपं गृहाण देवेद्धिश तै्रलोक्यति�मिमरापहम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , दीपकं दश�यामिम ॥

नैवद्यः तिनम्नशिलखिखत �ंत्र का उच्चारण करते हुए हनू�ान् �ी को नैवेद्य (प्रसाद ) अर्तिपIत करे ।

शक� राखण्डखाद्यातिन दचिधक्षीररृ्घा�ातिन च । आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेदं्य प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , नैवेदं्य तिनवेदयामिम ॥

उत्तरापाऽनार्थ� हस्�प्रक्षालनार्थ� मुखप्रक्षालनार्थ� च जलं समप�यामिम ।

ऐसा कहते हुए �ल अर्तिपIत करें ।

ऋ�ुफलः अग्रशिलखिखत �ंत्र का उच्चारण करते हुए हनू�ान् �ी को ऋतुफल अर्तिपIत करेः

इदं फलं मया देव स्थातिप�ं पुर�स्�व । �ेन मे सफलावाग्निप्�भ�वेज्जन्मतिन जन्मतिन ॥

ॐ हनूम�े नमः , ऋ�ुफलं समप�यामिम ॥

ऋ�ुफलान्�े आचमनीयं जलं समप�यामिम ॥

इसके पश्चात् आ$�न हेतु �ल छोडे़ ।

�ाम्बुलः तिनम्नशिलखिखत �न्त्र का उच्चारण करते हुए लौंग इलाय$ीयुp पान $ढ़ाए ँ:

पूगीफलं महदि¥वं्य नागवल्लीदलैयु��म् । एलालवङ्गसंयुकं्त �ाम्बूलं प्रति�गृह्य�ाम् ॥

ॐ हनूम�े नमः , मुखवासार्थ, �ाम्बूलवीदिटकां समप�यामिम ।

दद्धिक्षणाः इस �न्त्र के द्वारा हनू�ान् �ी को दणिक्षणा $ढ़ाए ँ।

तिहरण्यगभ�गभ�सं्थ हेमबीजं तिवभावसोः।

अनन्�पुण्यफलदम�ः शांति� प्रयच्छ मे ॥

ॐ हनूम�े नमः , पूजासाफल्यार्थ� दद्धिक्षणां समप�यामिम ॥

आरतीः अन्त �ें एक थाली �ें कपू>र एवं घी का दीपक प्रज्वशिलत कर आरती करें ।

पुष्पाञ्जचिल और प्रदद्धिक्षणाः अब पुष्पाञ्जचिल और प्रदद्धिक्षणा करे ।

नानासुगथ्विन्धपुष्पाद्धिण यर्थाकालोद्भवातिन च ।

पुष्पाञ्जचिलम�या दत्ता गृहाण परमेश्र्वरः॥

यातिन कातिन च पापातिन जन्मान्�रकृ�ातिन च ।

�ातिन सवा�द्धिण नश्यन्�ु प्रदद्धिक्षण पदे पदे ।

ॐ श्रीहनू�मे नमः , प्रार्थ�नापूव�कं नमस्कारान् समप�यामिम ॥

स�प>णः तिनम्नशिलखिखत का उच्चारणय करते हुए हनू�ान् �ी के स�क्ष पू�न क�> को स�र्तिपIत करें और इस तिनमि�त्त �ल अर्तिपIत करे ।

कृ�ेनानेन पूजनेन श्री हनूमत्देव�ायै प्रीय�ां न मम ॥

उp प्रतिक्रया के पश्चात् श्रीहनू�ान�ी के स�क्ष दण्डवत् प्रणा� करें तथा अन�ाने �ें हुई त्रुदिटयों के शिलए क्ष�ा �ाँगते हुए , हनू�ान�ी से सुखस�ृजिद्ध , आरोग्य तथा वैभव की का�ना करें। .

दीपावली के पां$ दिदन

दिदवाली खुशी, वैभव, $�क और खुशी का त्योहार है। यह रोशनी का त्योहार है और सभी भारतीयों द्वारा पूरी दुतिनया �ें बडे़ उत्साह के साथ �नाया है। इस त्योहार की तिवशिश&ता पाँ$ तिवणिभन्न दिदनों तक होती है, प्रत्येक दिदन का अपना अलग �हत्व है। पाँ$ दिदनों तक लोग इस त्योहार को बडे़ उत्साह के साथ �नाते हैं।

दीवाली का पहला दिदन: धन�ेरस दीवाली के पहले दिदन को धनतेरस के रूप �ें �नाया �ाता है। धनतेरस को धनवन्तरी दिदवस भी कहा �ाता है। यह वास्तव �ें कृष्ण पक्ष, कार्तितIक के �हीने के तेरहवें दिदन �नाया �ाता है। इस दिदन भगवान धनवन्तरी �ानव �ातित के उद्धार के शिलए स�ुद्र से बाहर आए थे। इस दिदन दीपावली स�ारोह की पूरे �ोश के साथ शुरुआत हो �ाती है।

सूया>स्त के दौरान इस दिदन हिहIदु नहा कर �ृत्यु के देवता य� रा� की असा�मियक �ृत्यु से ब$ाव के शिलए प्राथ>ना करते हैं।पू�ा का स्थान ह�ेशा तुलसी या तिकसी अन्य पतिवत्र वृक्ष के तिनकट बनाया �ाना $ातिहए। इस दिदन धन के देवता कुबेर की पू�ा की �ाती है। कुबेर यन्त्र की स्थापना कर, दीपक �ला कर पू�ा करें और मि�ठाई का प्रसाद अर्तिपIत करें।

दिदवाली का दूसरा दिदन: छोटी दीवाली दीपावली के दूसरे दिदन नरक $तुद>शी भी कहा �ाता है।ऐसा कहा �ाता है तिक इस दिदन भगवान कृष्ण ने दानव नका>सुर को न& कर दुतिनया को भय से �ुp बना दिदया था। इस दिदन तेल से शरीर की �ाशिलश की �ाती है तातिक थकान से राहत मि�ल �ाए और दीवाली शशिp और भशिp के साथ �नाया �ा सके। इस दिदन नवरत्न माला धारण करें जि�ससे आप उच्च पद प्राप्त कर सकें गे और �ीवन �ें तिवकास करेंगे।

दिदवाली का �ीसरा दिदन: दीवाली पर लक्ष्मी पूजा �ब तक �ाँ लक्ष्�ी और भगवान गणेश की अराधना ना की �ाए दिदवाली का उत्सव अधूरा �ाना �ाता है। हिहIदू स्वयं को और उनके परिरवारों को शुद्ध कर दिदव्य देवी लक्ष्�ी से बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की तिव�य प्राप्त करने का ,अमिधक धन और स�ृजिद्ध का आशीवा>द �ाँगते हैं। दिदवाली के दिदन लक्ष्�ी और गणेश यंत्र के साथ ह� श्री यन्त्र की भी स्थापना कर सकते हैं। श्री यंत्र के द्वारा घर की सभी नकारात्�क ऊ�ा> का नाश होता है व शांतित, स�ृजिद्ध और सद्भाव की वृजिद्ध होती है।

दिदवाली का चौर्था दिदन: पड़वा व गोवध�न पूजा $ौथे दिदन गोवध>न पू�ा की �ाती है। कई ह�ारों साल पहले, भगवान कृष्ण ने गोवध>न पव>त को उठा कर बृ� के लोगों का उद्धार तिकया था।यही कारण है तिक तब से, हर साल तिहन्दू गोवध>न पू�ा कर के इस दिदन को उत्सव के रूप �ें �नाते हैं। एक मुखी रुद्राक्ष को धारण कर आप �ीवन �ें सफलता, सम्�ान और धन की प्रान्तिप्त कर सकते हैं।

दीवाली का पांचवा दिदन: भाई दूजदीवाली के पां$वें दिदन को भाई दूज कहा �ाता है। सा�ान्य रूप से यह दिदन भाई बहनों को ही स�र्तिपIत होता है। यह �ान्यता है तिक वैदिदक युग �ें �ृत्यु के देवता य� ने इस दिदन अपनी बहन य�ुना के घर �ाकर उनसे तितलक करवा कर उन्हे �ोक्ष का वरदान दिदया था। उसा प्रकार भाई इस दिदन बहन के घर �ाते हैं और बहनें टीका कर भाई की सुख स�ृजिद्ध की �ंगल का�ना करती हैं। भाई इस दिदन बहनों को भेंट स्वरूप कुछ उपहार देते हैं। भाई उपहार के रूप �ें फें ग शुई तिगफ्ट दे सकते हैं �ो दिदखने �ें भी आकष>क होंगे और बहन के शिलए सुख स�ृजिद्ध ले कर आएगंे। बहनें बगला �ुखी यंत्र भाई को उपहार स्वरूप दे सकती हैं, �ो सभी बुरी नज़र से भाई की रक्षा करेगा।

दीपावली के दिदन व्यापारी वग> नए बहीखातों का शुभारम्भ करते हैं । नए बहीखाते लेकर उन्हें शुद्ध �ल के छींटे देकर पतिवत्र कर लें । तदुपरान्त उन्हें लाल वस्त्र तिबछाकर तथा उस पर अक्षत एवं पुष्प डालकर स्थातिपत करें । तदुपरान्त प्रथ� पृष्ठ पर स्वल्किस्तक का शि$ह्न $ंदन अथवा रोली से बनाए ।

अब बहीखाते का रोली , पुष्प आदिद से ‘ ॐ श्रीसरस्वत्यै नमः ’ �न्त्र की सहायता से पू�न करें ।

�ुला का पूजन : सव>प्रथ� तुला को शुद्ध कर लेना $ातिहए । तदुपरान्त उस पर रोली से स्वल्किस्तक का शि$ह्न बनाए । तुला पर �ौली आदिद बॉंध दें तथा‘ ॐ �ुलाचिधष्ठा�ृदेव�ायै नमः ’ कहते हुए रोली , पुष्प आदिद से तुला का पू�न करें ।

आ$�न और प्राणाया�

पू�ासे पहले पात्रोंको क्र�से यथास्थान रखकर पूव> दिदशाकी ओर �ुख करके आसनपर बैठकर तीन बार आ$�न करना $ातिहये -

ॐ केशवाय नमः ।

ॐ नारायणाय नमः ।

ॐ माधवाय नमः ।

पतिवत्री धारण करनेके पश् $ात प्राणाया� करे ।

१. प्राणायामका तिवतिनयोग -

प्राणाया� करनेके पूव> उसका तिवतिनयोग इस प्रकार पढे़ -

ॐकारस्य ब्रह्मा ऋतिषदtवी गायत्री छन्दः अग्नि_नः परमात्मा देव�ा शुक्लो वण�ः सव�कमा�रम्भे तिवतिनयोगः ।

ॐ सप्�व्याr�ीनां तिवश् वामिमत्रजमदग्नि_नभरद्वाजगौ�मातित्रवचिसष्ठकश्यपा ऋषयो

गायत्र्युस्थिष्णगनुषु्टब्बृह�ीपतिङक्ततित्रष्�ुब्जगत्यश् छन्दांस्थिस्र्य्यो_नवार्य्योवादिदत्यबृहसग्निप्�वरुणेन्द्रत्िवष्णवो देव�ा

अनादिदष्टप्रायश् चिचते्त प्राणायामे तिवतिनयोगः ।

ॐ आपो ज्योति�रिरति� द्धिशरसः प्रजापति�ऋतिषय�जुश्छन्दो ब्रह्माग्नि_नवायुसूया� देव�ाः प्राणायामे तिवतिनयोगः ।

२. प्राणायामके मन्त्र -

तिफर आखे बंद कर नी$े शिलखे �न्त्रोंका प्रत्येक प्राणाया��ें तीन-तीन बार (अथवा पहले एक बारसे ही प्रारम्भ करे, धीरे-धीरे

तीन-तीन बारका अभ्यास बढ़ावे) पाठ करे ।

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ �पः ॐ सत्यम् । ॐ �त्सतिव�ुव�रेण्यं भग0 देवस्य धीमतिह ।

चिधयो यो नः प्रचोदया�् । ॐ आपो ज्यो�ी रसोऽमृ�ं ब्रह्म भूभु�वः स्वरोम् ।

प्राणायामकी तिवचिध -

प्राणाया�के तीन भेद होते है-

१. पूरक, २. कुम्भक, ३. रेचक ।

१- अंगूठेसे नाकके दातिहने शिछद्रको दबाकर बायें शिछद्रसे श् वासको धीरे-धीरे खीं$नेको 'पूरक प्राणाया�' कहते है । पूरक प्राणाया�

करते स�य उपयु>p �न्त्रोंका �नसे उच्चारण करते हुए नाणिभदेश�ें नीलक�लके दलके स�ान नीलवण> $तुभु>� भगवान

तिवष्णुका ध्यान करे ।

२. �ब सॉंस खीं$ना रुक �ाय, तब अनामि�का और कतिनमिष्ठका अंगुलीसे नाकके बायें शिछद्रको भी दबा दे । �न्त्र �पता रहे ।

यह कुम्भक प्राणाया� हुआ । इस अवसरपर ह्रदय�ें क�लपर तिवरा��ान लाल वण>वाले $तु�ु>ख ब्रह्माका ध्यान करे ।

३ - अंगूठेको हटाकर दातिहने शिछद्रसे श्वासको धीरे-धीरे छोड़नेको रे$क प्राणाया� कहते है । इस स�य ललाट �ें श् वेतवण>

शंकरका धयन करना $ातिहए । �नसे �न्त्र �पता रहे ।

प्राणायामके बाद आचमन - ( प्रातःकालका तिवतिनयोग और �न्त्र )

प्रातःकाल नी$े शिलखा तिवतिनयोग पढ़कर पृथ्वीपर �ल छोड़ दे-

सूय�श् च मेति� नारायण ऋतिषः अनुषु्टपछन्दः सूय0 देव�ा अपामुपस्पश�ने तिवतिनयोगः ।

पश् $ात् नी$े शिलखे �न्त्रको पढ़कर आ$�न करे-

ॐ सूय�श् च मा मन्युश् च मन्युप�यश् च मन्युकृ�ेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्�ाम् ।

यद्रात्र्या पापमकाष� मनसा वाचा हस्�ाभ्यां पद ्भ्यामुदरेण द्धिशश्ना रातित्रस्�दवलुम्प�ु ।

यखित्कञ्ज दुरिर�ं ममिय इदमहमापोऽमृ�योनौ सूय, ज्योति�तिष जुहोमिम स्वाहा ॥

इसके बाद बायें हाथ�ें �ल लेकर दातिहने हाथसे अपने ऊपर और पू�ासा�ग्रीपर शिछड़कना $ातिहये-

ॐ अपतिवत्रः पतिवत्रो वा सवा�वस्थां ग�ोऽतिप वा ।

यः स्मरे�् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्�रः शुचिचः ॥

ॐ पुण्डरीकाक्षः पुना�ु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुना�ु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुना�ु ।

तदनन्तर पात्र�ें अ&दल-क�ल बनाकर यदिद गणेश-अत्मिम्बकाकी �ूर्तितI न हो तो सुपारी�ें �ौली लपेटकर अक्षतपर स्थातिपत कर

देनेके बाद हाथ�ें अक्षत और पुष्प लेकर स्वस्त्ययन पढ़ना $ातिहये ।

तिफर तीन बार आ$�न करें और उच्चारण करे ।

श्रीगोतिवन्द को नमस्कार ।

श्री माधव को नमस्कार ।

श्री केशव को नमस्कार ॥

संकल्प

तिनष्काम संकल्प

ॐ तिवष्णुर्विवfष्णुर्विवfष्णुः श्रीमद्भगव�ो महापुरुषस्य तिवष्णोराज्ञया प्रव��मानस्य ब्रह्मणोऽमि£ तिद्व�ीयपराध,

श्रीश्वे�वाराहकल्पे वैवस्व�मन्वं�रे अष्टाविवfशति��मे कचिलयुगे कचिलप्रर्थमचरने जंबुद्वीपे भार�वष, आया�व�tकदेशे....

नगरे/ग्रामे/क्षेते्र (अतिवमुक्तवाराणसीक्षेते्र आनन्दवने महाश्मशाने गौरीमुखे तित्रकण्टकतिवराजिज�े).......

वै माब्दे...संवत्सरे.....मासे....शुक्ल/कृष्णपक्षे... ति�र्थौ....वासरे....प्रा�/सायंकाले.....गोत्र....शमा�/ वमा�/गुप्�ः

अहं ममोपात्तदुरिर�क्षयद्वारा श्रीपरमेश् वरप्रीत्यर्थ�....देवस्य पूजनं करिरष्ये ।

सकाम संकल्प

यदिद सका� पू�ा करनी हो तो का�ना-तिवशेषका ना� लेना $ातिहये- या तिनम्नशिलखिखत संकल्प करना $ातिहये-

.......अहं शु्रति�स्मृति�पुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ� मम सकुटुम्बस्य सपरिरवारस्य

क्षेमस्थौय�आयुरारो_यऐश्वरया�द्धिभवृद्ध्यर्थ�माचिधभौति�काचिधदैतिवकाध्याति�मिमकतित्रतिवध�ापशमनार्थ�

धमा�र्थ�काममोक्षफलप्राप्त्यर्थ� तिनत्यकल्याणलाभाय भगवत्प्रीत्यर्थ�..... देवस्य पूजनं करिरष्ये ।

अब दातिहने हाथ �ें अक्षत , पुष्प , $न्दन , �ल तथा दणिक्षणा लेकर तिनम्नशिलखिखत संकल्प बोलें ।

संकल्प हिहIदी अथ> -‘

श्रीगणेश जी को नमस्कार । श्री तिवष्णु जी को नमस्कार । मैं .....( अपने नाम का उच्चारण करें ) जाति� .....( आपनी जाति� का उच्चारण करें ) गोत्र .....( अपने गोत्र का उच्चारण करें ) आज ब्रह्मा की आयु के तिद्व�ीय पराद्ध� में , श्री शे्व�वाराह कल्प में , वैवस्व� मन्वन्�र में , २८वें कचिलयुग के प्रर्थम चरण में , बौद्धाव�ार में , पृ�वी लोक के जम्बू द्वीप में , भर� खण्ड नामक भार�वष� के .....( अपने क्षेत्र का नाम लें )..... नगर में ( अपने नगर का नाम लें )..... स्थान में ( अपने तिनवास स्थान का नाम लें ) संव�् २०६७ , कार्वि�fक मास , कृष्ण पक्ष , अमावस्या ति�चिर्थ , शु वार को सभी कमÍ की शुद्धिद्ध के चिलए वेद , स्मृति� , पुराणों में कहे गए फलों की प्राग्निप्� के चिलए , धन - धान्य , ऐश्वय� की प्राग्निप्� के चिलए , अतिनष्ट के तिनवारा �र्था अभीष्ट की प्राग्निप्� के चिलए परिरवार सतिह� महालक्ष्मी पूजन तिनमिमत्त �र्था माँ लक्ष्मी की तिवशेष अनुकम्पा हे�ु गणेश पूजनादिद का संकल्प कर रहा हूँ । ’

न्यास

पुरुषसूp के द्वारा न्यास तिवमिध

संकल्पके पश् $ात् न्यास करे । �न्त्र बोलते हुए दातिहने हाथसे कोष्ठ�ें तिनर्दिदI& अङ्गोका स्पश> करे ।

अङ्गन्यास

सहस्त्रशीषा� पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपा�् ।

स भूमिम सव�� स्पृत्वाऽत्यति�ष्ठ¥शाङु्गलम् ॥ (बाया हाथ)

पुरुष एवेद सव� यद्भ�ूं यच्च भाव्यम् ।

उ�ामृ�त्वस्येशानो यदने्ननाति�रोहति� ॥ (दातिहना हाथ)

ए�ावानस्य मतिहमा�ो ज्यायॉंश् च पूरुषः ।

पादोऽस्य तिवश् वा भू�ातिन तित्रपादस्यामृ�ं दिदतिव ॥ (बायॉं पैर)

ॐ तित्रपादू�ध्व� उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः ।

��ो तिवष्वङ् व्य ामत्साशनानशने अद्धिभ ॥ (दातिहना पैर)

��ो तिवराडजाय� तिवराजो अचिध पूरुषः ।

स जा�ो अत्यरिरच्य� पश् चाद्भमूिममर्थो पुरः ॥ (वा� �ानु)

�स्माद्यज्ञात्सव�हु�ः सम्भृ�ं पृषदाज्यम् ।

पशॅंस्�ॉंश् च े वायव्यानारण्या ग्राम्याश् च ये ॥ (दणिक्षण �ानु)

�स्माद्यज्ञा�् सव�हु� ऋचः सामातिन जचिज्ञरे ।

छन्दा चिस जचिज्ञरे �स्माद्यजुस्�स्मादजाय� ॥ (वा� कदिटभाग)

�स्मादश् वा अजायन्� ये के चोभयाद�ः ।

गावो ह जचिज्ञरे �स्मात्तस्माज्जा�ा अजावयः ॥ (दणिक्षण कदिटभाग)

�ं यजं्ञ बर्विहfतिष प्रौक्षन् पुरुषं जा�मग्र�ः ।

�ेन देवा अयजन्� साध्या ऋषयश् च ये ॥ (नाणिभ)

यत्पुरुषं व्यदधुः कति�धा व्यकल्पयन् ।

मुखं तिकमस्यासी�् विकf बाहू तिकमूरू पादा उच्ये�े ॥ (ह्रदय)

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद ्बाहू राजन्यः कृ�ः ।

ऊरू �दस्य यद ्वैश्यः पद ्भ्या शूद्रो अजाय� ॥ (वा� बाहु)

चन्द्रमा मनसोजा�श् चक्षोः सूय0 अजाय� ।

श्रोत्राद्वायुश् च प्राणश् च मुखादग्नि_नरजाय� ॥ (दणिक्षण बाहु)

नाभ्या आसीदन्�रिरक्ष शीष्ण0 द्यौः समव��� ।

पद्‍भ्यां भूमिमर्दिदfशः श्रोत्रात्तर्था लोकॉं२ अकल्पयन् ॥ (कण्ठ)

यत्पुरुषेण हतिवषा देवा यज्ञम�न्व� ।

वसन्�ोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धतिवः ॥ (�ुख)

सप्�ास्यासन् परिरधयस्तिस्त्रः सप्� समिमधः कृ�ाः ।

देवा यद्यज्ञं �न्वाना अबध्नन् परुषं पशुम् ॥ (ऑंख)

यजे्ञन यज्ञमयजन्� देवास्�ातिन धमा�द्धिण प्रर्थमान्यासन् ।

�े ह नाकं मतिहमानः सचन्� यत्र पूव, साध्याः सग्निन्� देवाः ॥ (�ूधा>)

पञ्चाङ्गन्यास

अद ्भ्यः सम्भृ�ः पृचिर्थवै्य रसाच्च तिवश् वकम�णः समव���ागे्र ।

�स्य त्वष्टा तिवदधद्रूपमेति� �न्मत्य�स्य देवत्वमाजानमगे्र ॥ (ह्रदय)

वेदाहमे�ं पुरुषं महान्�मादिदत्यवण� �मसः परस्�ा�् ।

�मेव तिवदिदत्वाति� मृत्युमेति� नान्यः पन्था तिवद्य�ेऽयनाय ॥ (शिसर)

प्रजापति�श् चरति� गभ, अन्�रजायमानो बहुधा तिव जाय�े ।

�स्य योविनf परिर पश्यग्निन्� धीरास्�स्तिस्मन् ह �स्थुभु�वनातिन तिवश् वा ॥ (शिशखा)

यो देवेभ्य आ�पति� यो देवानां पुरोतिह�ः । (कव$ाय हु�् दोनो कंधो-

पूव0 यो देवेभ्यो जा�ो नमो रुचाय ब्राह्मये ॥ का स्पश> करे)

रुचं ब्राह्मं जनयन्�ो देवा अग्रे �दब्रुवन् ।

यस्त्वैवं ब्राह्मणो तिवद्यात्तस्य देवा असन् वशे ॥ (अस्त्राय फट्, बायीं हथेलीपर ताली ब�ाये)

करन्यास

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद ्बाहू राजन्यः कृ�ः ।

ऊरू �दस्य यदै्वश्यः पद्भया शूद्रो अजाय� ॥ अङु्गष्ठाभ्यां नमः । (दोनो अंगूठोंका स्पश> करे)

चन्द्रमा मनसो जा�श् चक्षोः सूय0 अजाय� ।

श्रोत्राद्वायुश् च प्राणश् च मुखादग्नि_नरजाय� ॥ �ज�नीभ्यां नमः । (दोनों त�>तिनयोंका)

नाभ्यां आसीदन्�रिरक्ष शीष्ण0 द्यौः समव��� ।

पद ्भ्यां भूमिमर्दिदfशः श्रोत्रात्तर्था लोकॉं२ अकल्पयन् ॥ मध्यमाभ्यां नमः । (दोनो �ध्य�ाओंका)

यत्पुरुषेण हतिवषा देवा यज्ञम�न्व� ।

वसन्�ोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धतिवः ॥ अनामिमकाभ्यां नमः । (दोनो अनामि�काओंका)

सप्�ास्यासन् परिरधयस्तिस्त्रः सप्� समिमधः कृ�ाः ।

देवा यद्यज्ञं �न्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम् ॥ कतिनतिष्ठकाभ्यां नमः । (दोनो कतिनमिष्ठकाओंका)

यजे्ञन यज्ञमयजन्� देवास्�ातिन धमा�द्धिण प्रर्थमान्यासन् ।

�े ह नाकं मतिहमानः सचन्� यत्र पूव, साध्याः सग्निन्� देवाः ॥

कर�लकरपृष्ठाभ्यां नमः । (दोनों करतल और करपृष्ठोंका स्पश> करे)

दीपावली की पू�ा - सरस्वती पू�न

दीपावली पर सरस्वती पू�न करने का भी तिवधान है । इसके शिलए लक्ष्�ी पू�न करने के पश्चात् तिनम्नशिलखिखत �न्त्रों से �ाँ सरस्वती का भी पू�न करना $ातिहए । सव>प्रथ� तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से �ाँ सरस्वती का ध्यान करे ।

या कुन्देन्दु�ुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृ�ा ,

या वीणावरदण्डमस्तिण्ड�करा या श्र्वे�पद्मासना ।

या ब्रह्माच्यू�शंकरप्रभृति�द्धिभद,वैः सदा वजिन्द�ा ,

सा मां पा�ु सरस्व�ी भगव�ी तिनःशेषजाड्यापहा ॥

हाथ �ें शिलए हुए अक्षतों को �ाँ सरस्वती के शि$त्र के स�क्ष $ढ़ा दें । अब �ाँ सरस्वती का पू�न तिनम्नशिलखिखत प्रकार से करे ।

तीन बार �ल के छींटे दें और बोलेः पाद्यं , अर्घ्ययg , आ$�नीयं ।सवा>ङे्गस्नानं स�प>यामि� । �ाँ सरस्वती पर �ल के छीटे दें ।

सवा�ङे्ग पंचामृ� स्नानं समप�यामिम । �ाँ सरस्वती को पं$ा�ृत से स्नान कराए ँ।

पंचामृ�स्नानान्�े शुद्धोदक स्नानं समप�यामिम । शुद्ध �ल से स्नान कराए ँ।

सुवाचिस�म् इतं्र समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर �ौली $ढ़ाए ँ।

आभूषण समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर आभूषण $ढ़ाए ँ।

गन्धं समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर रोली अथवा लाल $न्दन $ढ़ाए ँ।

अक्ष�ान् समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर $ावल $ढ़ाए ँ।

पुष्पमालां समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर पुष्प�ाला $ढ़ाए ँ।

कंुकुमं समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर कंुकु� $ढ़ाए ँ।

धूपम् आघ्रापयामिम । �ाँ सरस्वती पर धूप करें ।

दीपक दश�यामिम । �ाँ सरस्वती को दीपक दिदखाए ँ।

नैवेदं्य तिनवेदयामिम । �ाँ सरस्वती को प्रसाद $ढ़ाए ँ।

आचमनं समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर �ल के छीटे दें ।

�ाम्बूलं समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर पान , सुपारी , इलाय$ी आदिद $ढ़ाए ँ।

ऋ�ुफलं समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर ऋतुफल $ढ़ाए ँ।

दद्धिक्षणां समप�यामिम । �ाँ सरस्वती पर नकदी $ढ़ाए ँ।

कपू�रनीराजनं समप�यामिम । �ाँ सरस्वती की कपू>र �लाकर आरती करें ।

नमस्कारं समप�यामिम । �ाँ सरस्वती को न�स्कार करें ।

पू�न के उपरांत हाथ �ोड़कर इस प्रकार प्राथ>ना करे ।

सरस्व�ी महाभागे देतिव कमललोचने ।

तिवद्यारूपे तिवशालाद्धिक्ष तिवद्यां देतिह नमोऽस्�ु�े ।

दीपावली की पू�ा - कुबेर पू�न

दीपावली एवं धनत्रयोदशी पर �हालक्ष्�ी के पू�न के साथ -साथ धनाध्यक्ष कुबेर का पू�न भी तिकया �ाता है । इनके पू�न से घर �ें स्थायी सम्पणित्त �ें वृजिद्ध होती है और धन का अभाव दूर होता है । इनका पू�न इस प्रकार करें ।

सव>प्रथ� तिनम्नशिलखिखत �न्त्र के साथ इनका आवाहन करे ।

आवाहयामिम देव त्वामिमहायामिम कृपां कुरु ।

कोशं वद्ध�य तिनत्यं त्वं परिररक्ष सुरेश्वर ॥

अब हाथ �ें अक्षत लेकर तिनम्नशिलखिखत �ंत्र से कुबेर�ी का ध्यान करे ।

मनुजवाह्यतिवमानवरस्थिस्थ�ं ,

गरुड़रत्नतिनभं तिनचिधनायकम् ।

द्धिशवसखं मुकुटादिदतिवभूतिष�ं ,

वरगदे दध�ं भज �ुजिन्दलम् ॥

हाथ �ें शिलए हुए अक्षतों को कुबेरयंत्र , शि$त्र या तिवग्रह के स�क्ष $ढ़ा दें ।

अब कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह का पू�न तिनम्नशिलखिखत प्रकार से करे ।

तीन बार �ल के छीटे दें और बोलेः पाद्यं , अर्घ्ययg , आ$�नीयं स�प>यामि� ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , स्थानार्थ, जलं समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर �ल के छीटें दें ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , पंचामृ�स्नानार्थ, पंचामृ�ं समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह को पं$ा�ृत से स्नान कराए ँ।

पंचामृ�स्नानान्�े शुद्धोदक स्नानं समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह को शुद्ध �ल से स्नान कराए ँ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , सुवाचिस�म् इतं्र समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर इत्र $ढ़ाए ँ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , वस्तं्र समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर �ौली $ढ़ाए ँ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , गन्धं समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर रोली अथवा लाल $न्दन $ढ़ाए ँ।

ॐवैश्रवणाय नमः , अक्ष�ान् समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर $ावल $ढ़ाए ँ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , पुष्पं समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर पुष्प $ढ़ाए ँ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , धूपम् आघ्रापयामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर धूप करें ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , दीपकं दश�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह को दीपक दिदखाए ँ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , नैवेदं्य समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर प्रसाद $ढ़ाए ँ।

आचमनं समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर �ल के छीटे दें ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , ऋ�ुफलं समप�यामिम ।

कुबेर यंत्र , शि$त्र या तिवग्रह पर पान , सुपारी , इलाय$ी आदिद $ढ़ाए ँ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , कपू�रनीराजनं समप�यामिम ।

कपू>र �लाकर आरती करें ।

ॐ वैश्रवणाय नमः , नमस्कारं समप�यामिम ।

न�स्कार करें ।

अंत �ें इस �ंत्र से हाथ �ोड़कर प्राथ>ना करेः

धनदाय नमस्�ुभ्यं तिनचिधपद्माचिधपायं च ।

भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिदसम्पदः ॥

कुबेर पू�न के साथ यदिद तित�ोरी की भी पू�ा की �ाए , तो साधक को दोगुना लाभ मि�लता है । .

दीपावली की पू�ा - एकाक्षी नारिरयल पू�न

�हालक्ष्�ी पू�न करने के पश्चात एकाक्षी नारिरयल का पू�न करना $ातिहए । सव>प्रथ� हाथ �ें अक्षत लेकर तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से एकाक्षी नारिरयल का ध्यान करें :

तिद्वजटश्चैकनेत्रस्�ु नारिरकेलो मही�ले ।

चिचन्�ामद्धिण -सम : प्रोक्तो वांचिछ�ार्थ�प्रदान�ः ॥

आचिधभू�ादिद -व्याधीनां रोगादिद -भयहारिरणीं । तिवचिधव� ति य�े पूजा , सम्पचित्त -चिसद्धिद्धदायकम ॥

हाथ �ें शिलए अक्षतों को एकाक्षी नारिरयल पर $ढा दें । अब एकाक्षी नारिरयल का पू�न तिनम्न प्रकार से करें :

तीन बार �ल के छींटे दें और बोलें : पादं्य , अघ्य� , आचमनीयं समप�यामिम ।

स्नानं समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर �ल के छींटे दें ।

पंचामृ� स्नानं समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर पं$ा�ृत के छींटे दें ।

पंचामृ�स्नानान्�े शुद्धोदक स्नानं समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल को शुद्ध �ल से स्नान कराए ।

चिसन्दूरं समप�यामिम । घी मि�णिश्रत शिसन्दूर का लेप करें और वक> $ढाए ।

सुवाचिस�ं इतं्र समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर इत्र $ढाए ।

वस्तं्र समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर �ौली $ढाए ।

गन्धं समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर रोली अथवा लाल $न्दन $ढाए ।

अक्ष�ान समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर $ावल $ढाए ।

पुष्पं समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर पुष्प $ढाए ।

धूपम आघ्रापयामिम । एकाक्षी नारिरयल पर धूप करें ।

दीपकं दश�यामिम । एकाक्षी नारिरयल को दीपक दिदखाए ।

नैवेदं्य तिनवेदयामिम । एकाक्षी नारिरयल पर प्रसाद $ढाए ।

आचमनं समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर �ल के छींटे दें ।

ऋ�ुफलं समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर ऋतुफल $ढाए ।

�ाम्बूलं समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर पान , सुपारी , इलाय$ी आदिद $ढाए ।

दद्धिक्षणां समप�यामिम । एकाक्षी नारिरयल पर नकदी $ढाए ।

कपू�रनीराजनं समप�यामिम । कपू>र से आरती करें ।

नमस्कारं समप�यामिम । न�स्कार करें ।

अन्त �ें तिनम्नशिलखिखत �न्त्र से हाथ �ोडकर प्राथ>ना करें :

ॐ श्रीं rीं क्लीं ऐं महालक्ष्मीस्वरुपाय एकाद्धिक्षनारिरकेलाय नमः सव�चिसद्धिद्धf कुरु कुरु स्वाहा ॥

कुल मि�लाकर दीपावली पव> से �ुड़ी हर धार्मि�Iक व पौराणिणक �ान्यता और ऐतितहाशिसक घटना इस पव> के प्रतित �न�ानस �ें अगाध आस्था तथा तिवश्वास बनाए हुए है। दीपावली न केवल धार्मि�Iक, पौराणिणक एवं ऐतितहाशिसक दृमि& से �हत्वपूण> है, बल्किल्क वैज्ञातिनक दृमि& से भी बड़ी �हत्वपूण> है। क्योंतिक दीपावली पव> ऐसे स�य पर आता है, �ब �ौस� वषा> ऋतु से तिनकलकर शरद ऋतु �ें प्रवेश करता है। इस स�य वातावरण �ें वषा> ऋतु �ें पैदा हुए तिवषाणु एवं कीटाणु सतिक्रय रहते हैं और घर �ें दुग>न्ध व गन्दगी भर �ाती है।

दीपावली पर घरों व दफ्तरों की साफ-सफाई व रंगाई-पुताई तो इस आस्था एवं तिवश्वास के साथ की �ाती है, तातिक श्री लक्ष्�ी �ी यहां वास करें। लेतिकन, इस आस्था व तिवश्वास के $लते वषा> ऋतु से उत्पन्न गन्दगी स�ाप्त हो �ाती है। दीपावली पर दीपों की �ाला �लाई �ाती है। घी व वनस्पतित तेल से �लने वाल दीप न केवल वातावरण की दुग>न्ध को स�ाप्त सुगत्मिन्धत बनाते हैं, बल्किल्क वातावरण �ें सतिक्रय कीटाणुओं व तिवषाणुओं को स�ाप्त करके एकद� स्वच्छ वातावरण का तिन�ा>ण करते हैं। कहना न होगा तिक दीपावली के दीपों का स्थान तिब�ली से �लने वाली रंग-तिबरंगे बल्बों की लतिड़यां कभी नहीं ले सकतीं। इसशिलए ह�ें इस ‘प्रकाश-पव>’ को पारंपरिरक रूप �े ही �नाना $ातिहए।

सन्दर्णिभIत पुस्तके .-श्री लशिलतोप$ार पू�ा संग्रह /

दीपावली पू�ा पद्धतित

ग्रहशांतित /

तिनत्यक�> पू�प्रकाश /

ह�ने अपना सारा प्रयत्न तिकया है की दीपावली की �ुख्य सारी पू�ाए और तिवमिधयां अपने लेख �ें स�ातिहत करे /

गुरु कृपा से ही यह संभव हुआ /

यह लेख और समू्पण> पू�ा पद्धतित शिलखने और सं$यन का काय> तिकया है -प० श्री �ोहन दुबे

प ० श्री अमि�तोष तिद्ववेदी