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अैर-जून 2015 हदी कामयशारा के विभबन ण भुम अततथथ ो. फैजनाथ साद िाया दीऩिरभ . सरयत कु . दास, तनदेशक दीऩिभरत कयते ह सुी ऩूनभ कटारयमा, कतनठ सहामक तनदेशक भहोदम का िागत कयते ह ए तनदेशक, बा...योऩ भुम अततथथ का िागत कयते ह

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Page 1: पत्रिका सामग्री

अप्ररै-जून 2015

हहिंदी कामयशारा के विभबन्न ऺण

भुख्म अततथथ प्रो. फजैनाथ प्रसाद द्िाया दीऩप्रज्िरभ प्रो. सरयत कु. दास, तनदेशक दीऩप्रज्िभरत कयते हुए

सुश्री ऩूनभ कटारयमा, कतनष्ठ सहामक तनदेशक भहोदम का स्िागत कयते हुए तनदेशक, बा.प्रौ.सिं.योऩड़ भुख्म अततथथ का स्िागत कयते हुए

Page 2: पत्रिका सामग्री

श्री यवि िंदय कुभाय, हहिंदी अथधकायी द्िाया स्िागत बाषण प्रो. सरयत कु. दास हहिंदी कामयशारा को सिंफोथधत कयते हुए

प्रो. फजैनाथ प्रसाद द्िाया बाषण श्रोतागण

Page 3: पत्रिका सामग्री

हहिंदी तनफिंध प्रततमोथगता

ऩयुस्काय वितयण

Page 4: पत्रिका सामग्री

प्रो. सरयत कु. दास, ननदेशक स्वतंत्रता ददवस ऩय दहदंी भें बाषण देते हुए

Page 5: पत्रिका सामग्री

विविधता

(शुबभ शभाय, विद्माथी,किं प्मटूय विऻान एििं अभबमािंत्रिकी विबाग)

बािंतत बािंतत के है भनषु्म, बािंतत-बािंतत के जिंत ु

एक ही भाटी से उऩजे, फडे़ अनोखे ऩयिंत ु

अरग-अरग तयह के यिंग पूरों भें बी हदखते है इन्हीिं यिंगों से न जाने ककतने गभुरस्ता सजते है िृऺ अचर यहता है एकदभ स्स्थय औय स्थामी थगरहयी का है तनिास, उसके बोजन की व्मिस्था कयाई थगरहयी, एकदभ चिंचर, कूदे, एक डारी से दसूयी फीज पैराकय इदय-उधय, ऩौधे आयोवऩत कयती बायी एक दसूये के ऩयूक है देखो िृऺ औय जिंत ु

एक ही भाटी से उऩजे, फडे़ अनोखे है ऩयिंत ु

विविधता प्रकृतत भें ही नहीिं है, भुझभें औय तुभभें बी एहततहात के चश्भें से देखो, दतुनमा रगे यिंगीन फड़ी ही रुऩ अरग, बाषाएिं अरग, ऩसिंद-नाऩसिंद त्रफल्कुर

प्राथभभकताएिं अरग, बूषाएिं अरग, धभय अरग भान्मताएिं अरग

अगय विविधता न होती तो रगती क्मा दतुनमा यिंगीन?

ऐसी दतुनमा रगती उफाऊ, होती त्रफल्कुर यसहीन

विविधताएिं हैं जीिन भें यिंग बयने के भरए, आऩस भें दीिायें गढ़ने के भरए विकृतत प्राकृततक, विकृतत सहज, विकृतत शभयनाक नहीिं। ऩहरी औय अिंततभ इच्छा भािंग सकूिं अगय कोई काश दतुनमािारों भें भबन्नता के प्रतत सहहष्णुता हो तो सही बािंतत बािंतत के है भनषु्म, बािंतत-बािंतत के जिंत ु

एक ही भाटी से उऩजे, फडे़ अनोखे ऩयिंत ु

Page 6: पत्रिका सामग्री

व्मिंग कविता

शादी के साइड इपेक्ट (विवऩन, कतनष्ठ रेखा अथधकायी, रेखा अनबुाग)

उसका शयीय जजयय है, रगता है रुटा-रुटा सा फार बी त्रफखये-त्रफखये है, रगता है वऩटा-वऩटा सा भस्स्तष्क अस्त-व्मस्त है, है कहीिं खोमा सा जाग यहा है ऩय रगता है जैसे िो सोमा सा रगता है तफीमत उसकी अफ आधी हो गमी है

जी हािं आऩ सही सभझ े

उसकी शादी हो गमी है

माय दोस्त जफ बी फरुाते सदा िो पिं सता था खचाय बी कयता था हयदभ कपय बी हिंसता था जफ बी भभसता भुस्कुयाता औय हषायता था सूखा-सूखा रगता है फादर-सा फयसता था रगता है कक अिंगे्रजी ऩतरून

अफ खादी हो गमी है

जी हािं, आऩ सही सभझ े

उसकी शादी हो गमी है

अये खुल्रे हदर का भाभरक था, किं जूस हो गमा है दो की जगह एक ही खाता, भक्खीचूस हो गमा है ऩाटी कयता भौज उड़ाता क्मा यिंग िो जभाता था ऩयूा एटभ फभ था िो, फेचाया पुस्स हो गमा है रगता है फीिी उसकी, उसकी दादी हो गमी है

जी हािं, आऩ सही सभझ े

उसकी शादी हो गमी है

Page 7: पत्रिका सामग्री

योज भभरा कयते थे हभ साये दोस्त गरी के नकु्कड़ ऩय भौ़ा ताड़ते यहते थे औय नजय ऩड़ोसी के कुक्कड़ ऩय एक हदन देखा जफ भैंने उसे कई-कई थैरों सेंग

सोचता हूिं कैसा हो गमा, जफ नज़य ऩड़ी उस सुक्कड़ ऩय ऩहरे सार भें हैं जुड़िािं डफर आफादी हो गमी है

जी हािं, आऩ सही सभझ े

उसकी शादी हो गमी है

कबी तो इसको कबी तो उसको ढूिंढता यहता था बिंिये जैसा उड़ता-कपयता घभूता यहता था फन गमा है ऩारतू अफ ऩत्नीव्रता ऩतत िो जो हय करी हय पूर को फाग़ भें चूभता यहता था रगता उसकी स्जिंदगी अफ

इन सफकी आदी हो गमी है

जी हािं, आऩ सही सभझ े

उसकी शादी हो गमी है

कहता था शादी का रड्डू इक न इक हदन खा रूिंगा ऩछताना ही है तो क्मा, अये, फाद भें ऩछता रूिंगा माय दोस्त तुभ साथ हो भेये कबी जो विऩदा आन ऩड़ी तो तुभभें से भदद के भरए ककसी को बी फरुा रूिंगा रगता है रड्डू हजभ न हुआ

गसै औय फादा हो गमी है

जी हािं, आऩ सही सभझ े

उसकी शादी हो गमी है

Page 8: पत्रिका सामग्री

गभुसुभ ऩऺी

(ऩिन झा, विद्माथी, विद्मतु अभबमािंत्रिकी विबाग)

एक यिंग-त्रफयिंगा ऩऺी है

ऩिंख है उसके यिंगीन

फस एक फात सभझ न आती भाभरा रगता है कुछ सिंगीन

न हॅंसता है न गाता है

न ऩिंतछमों सिंग चहचहाता है

चुऩ ही चुऩ तो यहता है

न जाने, चुप्ऩी से क्मा नाता है

क्मा हदर भें कोई ठेस है

मा शािंतत की तराश है

मा दखु है उसे उस चीज का जो चीज न उसके ऩास है

सुना है कक एक िक्त था िो हॅंसके जीिन जीता था साये सिंसाय भें सैय कय अभतृ का जर िो ऩीता था

िो जीना बी क्मा जीना खुभशमों का स्जसभें िास नहीिं दखु सहने की न हो ऺभता औय सुख ऩाने की प्मास नहीिं।

Page 9: पत्रिका सामग्री

खुशनसीफ हैं िो, भािं-फाऩ स्जनके साथ होते हैं, क्मोंकक भािं-फाऩ की आशीषों के हजायों हाथ होते हैं।

(निीन, कतनष्ठ सहामक, बौततक विबाग)

भनषु्म ईश्वय की उत्कृष्ट एव ंअनऩुभ यचना है। एक ऩौयाणणक कथा के अनसुाय सषृ्ष्ट की यचना कयते सभम सफ कुछ फनाने के फाद ईश्वय ने जफ भनषु्म फनामा तो उन्होंने अऩनी करभ तोड़ दी। अथाात भानव ईश्वय की सवाशे्रष्ठ कृनत है। ईश्वय ने अऩनी इस अतुल्म, उत्कृष्ट यचना का संयऺण, ऩारन-ऩोषण कयने के लरए अऩना अप्रत्मऺ रुऩ एव ंअऩना अंश इस ऩथृ्वी ऩय बेजा, भाता पऩता के रुऩ भें, क्मोंकक ईश्वय प्रत्मऺ रुऩ भें तो सफके साथ नहीं यह सकते इसलरए उन्होंने भाता-पऩता रुऩी उऩहाय भानव को प्रदान ककमा। भाता-पऩता ईश्वय का वो अनऩुभ उऩहाय है जो भांस औय हड्डडमों से ननलभात शयीय को भनषु्म फनाता हैं। जीवन भें सवाप्रथभ गरुु भाता-पऩता ही होते है जो भनषु्म को ऻान प्राप्त कयवाते है। इसलरए शास्त्रों भें भाता-पऩता का स्थान सवोऩरय कहा गमा है। एक ऩौयाणणक कथा के अनसुाय एक फाय बगवान शंकय औय भाता ऩावती जी ने अऩने दोनों ऩतु्रों कानताक औय गणेश जी को ब्रहभांड की ऩरयक्रभा कयने को कहा। भाता-पऩता का आदेश ऩाकय कानताक जी ने तो अऩने वाहन ऩय आसीन होक ऩरयक्रभा के लरए प्रस्थान कय लरमा ऩयन्तु गणेश जी अऩने भाता-पऩता को सभस्त ब्रहभांड भानकय उनकी ऩरयक्रभा कयने रगे। याभचरयत भानस भें बी गोस्वाभी तुरसीदास जी ने लरखा है कक “प्रातकार उहठ कय यघनुाथा, भात वऩता गरुु नािहहिं भाथा।” अथाात बगवान श्रीयाभ प्रात् कार उठकय सफसे ऩहरे अऩने भाता-पऩता, कपय गरुु को प्रणाभ कयते थे।

भनषु्म पवद्मारमों, पवश्वपवद्मारमों से लशऺा तो प्राप्त कय रेता है ऩयन्तु ऻान औय संस्काय तो भाता-पऩता से ही प्राप्त होते है। भाता-पऩता वो छामादाय वृऺ है ष्जनकी छामा भें एक फारक सभस्त सुखों की अनबुूनत कयते हुए अऩना फौपिक तथा शायीरयक पवकास कयते हुए फड़ा होतै है। भाता-पऩता उस कुम्हाय की बांनत होते है जो फतान को आकाय देने के लरए फाय के कठोय प्रहायों का प्रदशान तो कयते है ऩयन्तु अन्दय से हय सम्बव सहाया ददए हुए यहते है ष्जससे फतान का आकाय बी उचचत यहे औय उसे कोई कष्ट बी न हो।

भां मदद वात्सल्म की भूनत ा है तो वहीं पऩता पवषभ से पवषभ ऩरयष्स्थनतमों भें बी अऩना धैमा न खोते हुए अऩने फच्चों के आगे चट्टान की बांनत खड़े यहते है। भां तो कबी-कबी बावकु होकय यो बी देती है ऩयन्तु पऩता अऩने न भें ही जूझते हुए ऩरयष्स्थनतमों का साभना कयते है।

Page 10: पत्रिका सामग्री

मदद संऺेऩ भें कहा जाए तो भाता-पऩता प्रत्मऺ ईश्वय है जो हभाये पवकास औय उत्थान के लरए साऺात उत्तयदामी है। भाता-पऩता एक सीढी है औय ईश्वय भष्न्जर। सीढी के बफना भष्न्जर ऩय नहीं ऩहंुचा जा सकता। भाता-पऩता के स्नेह, वात्सल्म, त्माग को शब्दों भें व्मक्त तो नहीं ककमा जा सकता कपय बी ननम्नलरणखत कुछ ऩषं्क्तमों से उन संवेदनाओं की अनबुूनत हो सकती है्-

भां ऩथृ्वी है, जगत है, धूयी है, इसके बफना तो सषृ्ष्ट की कल्ऩना बी अधूयी है।

पऩता अऩनी इच्छाओं का हनन औय ऩरयवाय की ऩनूता है, पऩता यक्त भें ददए हुए संस्कायों की भूनत ा है।।

करभ है, दवात है, स्माही है भां। उस ऩयभात्भा की स्वम ंएक गवाही है भां।

पऩता उस ऩयभात्भा की जगत के प्रनत आसष्क्त है, पऩता गहृस्थ आश्रभ भें उच्च ष्स्थनत की बष्क्त है।।

भाता-पऩता की कभी कोई ऩाट नहीं सकता,

औय स्वम ंईश्वय बी इनके आशीषों को काट नहीं सकता।

भां की गोद भें फठैकय खेर फचऩन साया,

पऩता के संग दनुनमा सभझी, सभझा खेर मे साया।।

पवश्व भें ककसी बी देवता का स्थान दजूा है,

भां फाऩ की सेवा ही सफसे फड़ी ऩजूा है।

Page 11: पत्रिका सामग्री

माइक्रो/नैनो इलेक्ट्राननक्ट्स की और..........(डॉ. रनिशंकर रड्डी िी.,

सहायक प्राध्यापक, निद्युत अनभ. निभाग)

हम कंप्यूटर और सॉफ्टिेयर उद्यम, दरूसंचार और मीनडया

उद्योग, िानणज्य, रसद और पररिहन, प्राकृनतक निज्ञान और

नचककत्सा, निद्युत उत्पादन एिं नितरण और यहां तक कक नित्त और

प्रशासन सनहत इलेक्ट्राननक्ट्स और उसके वु्यत्पन्न से नघरे हुए ह।ै कई चुनौनतयों पर काबु पाने के पश्चात आज भी

इलेक्ट्राननक्ट्स और अनधक निशेष रुप से माइक्रो /नैनो इलेक्ट्राननक्ट्स के निकास या उत्क्रांनत के इनतहास को

समझना रोचक होगा। माइक्रोइलेक्ट्राननक्ट्स और अत्यंत सुक्ष्म इल्क्टक्ट्राननक्ट्स भागों अथिा घटकों से ननमााण

इलेक्ट्राननक नसस्टम को समझने और प्रौद्योनगकी से संबंद्ध के्षत्र के रुप में पाररभानषत ककया जा सकता ह।ै

फोटो

शुरुिाती इलेक्ट्राननक्ट्स सर्ककट कुछ िैक्ट्युम ट्यूब, रांसफामार, कैपेनसटर, प्रनतरोधों और तारों से बने थे।

िे सर्ककट का आकार और उसकी जरटलता में िृनद्ध करने के नलए उन्मुख थे। ढांचा के साथ िैक्ट्युम ट्यूब

इलेक्ट्राननक्ट्स 25 कक.ग्रा िजन होता था और उसे 1 से 2 मीनट का शुरुिाती समय लगता

था। इन तमाम प्रनतकूलता के अलािा िैक्ट्युम

ट्यूब से ठोस उपकरणों का संक्रमण तेजी से

हुआ। रांनसटर और डायड का नया प्रकार

बनाया गया जो सर्ककट के साथ जुडा हुआ

था। आकार, िजन और नबजली के उपयोग में

कटौती

Page 12: पत्रिका सामग्री

प्रभािशाली थी। भारी घटकों के स्थान पर कुछ हल्क्टके नडिाइस के द्वारा जहां शुरिाती नडिाइस 25

कक.ग्राम थे िह घटकर कुछ ग्राम के दनसयों रह गये।

आधुननक इलेक्ट्राननक्ट्स में 1947 में बेल प्रयोगशालाओं के जे. बाडेन, डब्लल्क्टयु.एच. ब्राटेन, और डब्लल्क्टयु.

शॉक्ट्ली द्वारा पहला नद्वध्रुिी रांनसस्टर का निकास सबसे महत्िपूणा कदम था। ठोस डायोड और रांनसस्टर ने

माइक्रोइलेक्ट्राननक्ट्स के द्वार खोले। पहला ठोस सर्ककट सर्ककट बोडा पर तारों के द्वारा हजारों रांनसस्टर के जोड से

और अन्य अत्याधुननक ठोस नडिाइस से जुडा हुआ था। 1958 में टेक्ट्सास इन्स्रयुमेंट्स के जे.एस. ककल्क्टबी द्वारा

एकीकृत सर्ककट का आनिष्कार हुआ। एकल आईसी में घटकों की संख्या में लगातार िृनद्ध के आधारपर गोडान मूर

ने यह ननरीक्षण ककया कक प्रत्येक 12 माह में घटकों की संख्या दोगुनी होती ह ैऔर 1965 में यह प्रस्तानित

ककया कक यह प्रिृनत्त कम से कम 10 िषों के नलए जारी रहगेी। दरअसल 1975 से हर 18 मनहने में नडिाइस

की संख्या में दोगुनी होना उल्क्टलेखननय ह।ै यह प्रिृनत्त अब िैध ह।ै एकल चीप पर असंख्य नडिाइस का द्रतु

निकास मूर की निनध के नाम से जाना जाता ह ैजो कक नीचे कदये गये आंकडों में कदखाया गया हैैः-