कहानी का शीषक है " कह खो गई है मा" ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------- जब हम अपने शहर या गाव को छोड़ कर ककसी द ू सरे शहर म जाते है चाहे वह रोजगार की तलाश हो या किर एक अछे भववय की , तब हम धीरे -धीरे उस शहर के रग म रगने लगते है और जजस शहर या गाव को छोड़ कर आये होते ह वहा की सोच और सकार को धककयाते ह ु ए इस शहर की दौड़ती भीड़ म शाममल हो जजदगी को दौड़ाना चाहते है लेककन तभी भागते ह ु ए हमारा पैर भावनाओ के पीड ेकर से टकराता है क ु छ लोग उसे पीछे की सोच मान कर अपनी जजदगी की गाड़ी क ु दा देते है चाहे ये गाड़ी ट ू टे या बचे इसकी परवाह भला ककसको रहती है | लेककन क ु छ लोग उस पीड ेकर को देखकर क जाते ह और अपने आप से प ू छते ह या त ु झमे है.. हहमत जो इस पीड ेकर से जजदगी की गाड़ी को क ु दा सके , मै भी उनमे से एक ह ू भागती-दौड़ती जजदगी के सिर म य ूह अचानक भावनाओ के पीड ेकर पर का ख ु द से सवाल प ू छ रहा ह ू | इह सवालो और जवावो से ज ू झते ह ु ए सची घटना पर आधाररत ये कहानी मलखी है यहद मेरे मलखे ये शद आपको भी दौड़ते ह ु ए उस पीड ेकर की तरह रोके और ख ु द के अदर