हिंदी कहानी कहीं खो गई है माँ

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कहानी का शीषक है " कह खो गई है मा" ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------- जब हम अपने शहर या गाव को छोड़ कर कसी द सरे शहर म जाते है चाहे वह रोजगार की तलाश हो या किर एक अछे भववय की , तब हम धीरे -धीरे उस शहर के रग म रगने लगते है और जजस शहर या गाव को छोड़ कर आये होते ह वहा की सोच और सकार को धकयाते ए इस शहर की दौड़ती भीड़ म शामल हो जजदगी को दौड़ाना चाहते है लेककन तभी भागते ह ए हमारा पैर भावनाओ के पीड ेकर से टकराता है क छ लोग उसे पीछे की सोच मान कर अपनी जजदगी की गाड़ी क दा देते है चाहे ये गाड़ी ट टे या बचे इसकी परवाह भला ककसको रहती है | लेककन क छ लोग उस पीड ेकर को देखकर क जाते ह और अपने आप से प छते ह या त झमे है.. हमत जो इस पीड ेकर से जदगी की गाड़ी को क दा सके , मै भी उनमे से एक ह भागती-दौड़ती जजदगी के सिर म य ह अचानक भावनाओ के पीड ेकर पर का ख द से सवाल प छ रहा ह | इह सवालो और जवावो से ज झते ह ए सची घटना पर आधारत ये कहानी मलखी है यहद मेरे मलखे ये शद आपको भी दौड़ते ह ए उस पीड ेकर की तरह रोके और ख द के अदर

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Post on 19-Jan-2017

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Category:

Entertainment & Humor


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