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गा ि धी जीवन और वचार आर.के. पालीवाल

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  • गाांधी जीवन और ववचार

    आर.के. पालीवाल

  • ग ांधी जीवन और ववच र

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    अनुक्रम

    १. जन्म: 2अकू्तबर 1869 और वह दौर

    २. बचपन: आम बच्चों जसैा सामान्य जीवन

    ३. बाल वववाह और आरांविक ववैावहक जीवन

    ४. पढ़ाई स ेअरुवच और पाररवाररक सांकट

    ५. बैररस्टरी की पढ़ाई के वलए ववलायत जान ेका सांघर्ष

    ६. युवा गाांधी के धावमषक ववचार

    ७. पहली ववलायत यात्रा

    ८. ववलायत में िोजन, आवास और रहन सहन आवद की समस्याएां

    ९. ववलायत में गलत राह पर विसलत ेहुए बचे

    १०. ववलायत में विक्षा और विक्षा स ेइतर सीख

    ११. ववलायत स ेिारत वापसी

    १२. नहीं जमा वकालत का पिेा

    १३. अफ्रीका के बेहद त्रासद और खतरनाक अनिुव

    १४. धावमषक ववचारों की पररपक्वता और अफ्रीका के ईसाईयों का अहांकार

    १५. वकालत की सार्षकता

    १६. अफ्रीका में गाांधी का अपमान

    १७. अफ्रीका में ह्रदयजीव गाांधी

    १८. गाांधी के नतेतृ्व में अफ्रीका में पहला आांदोलन

    १९. नटेाल इांवियन काांग्रेस का गठन

    २०. बालासुांदरम का मकुदमा और गाांधी का अफ्रीका में महानायक बनना

    २१. घर वापसी और िारत में िी अफ्रीका के वहन्दसु्तानी समाज की वचांता

    २२. पनूा और मद्रास में गाांधी को वविरे् सिलता

    २३. गाांधी की दसूरी अफ्रीका यात्रा

    २४. गोरों को वहांसा और मारपीट के वलए क्षमा

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    २५. बच्चों की विक्षा और विक्षा पर ववचार

    २६. कतषव्य और सवेा को समवपषत

    २७. दाम्पत्य जीवन और िादी के बारे में ववचार

    २८. आत्म वनिषरता गलुामी स ेमवुक्त का मागष

    २९. गाांधी और गीता

    ३०. रवस्कन की ‘अन टू द लास्ट’ और गाांधी का िीवनक्स आश्रम

    ३१. गाांधी और इांवियन निेनल काांग्रेस

    ३२. गाांधी और िारतीय राजा महाराजा

    ३३. एक बार विर दवक्षण अफ्रीका में

    ३४. इांवियन ओवपवनयन साप्तावहक अख़बार की िरुुआत

    ३५. गाांधी का सांबल कस्तरूबा

    ३६. अफ्रीका का तीसरा दौरा

    ३७. जलू ुववद्रोह और गाांधी का सवेा दल

    ३८. गाांधी और ब्रह्मचयष

    ३९. एवियावटक वबल और गाांधी का पहला सत्याग्रह

    ४०. पहली जले यात्रा

    ४१. मीर आलम का हमला

    ४२. टालस्टाय िामष की स्र्ापना

    ४३. अफ्रीका में वववाह पांजीकरण का िदेिाव वाला काननू और मवहलाओ ां का ववरोध

    ४४. गाांधी की इांग्लैंि यात्रा और ‘वहांद स्वराज’ की िवूमका

    ४५. ‘वहांद स्वराज’ पसु्तक में गाांधी का वचैाररक वचांतन

    ४६. जनरल स्मट्स की वादावखलािी

    ४७. गाांधी का मजदरू माचष

    ४८. चार वदन में तीन बार वगरफ़्तारी

    ४९. अफ्रीका आांदोलन की सिलता और गाांधी का काम परूा

    ५०. इांग्लैंि के रास्त ेिारत आगमन

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    ५१. स्र्ाई रूप स ेिारत में

    ५२. दिे भ्रमण पर

    ५३. िारत में गाांधी का पहला आश्रम

    ५४. चांपारन सत्याग्रह की िरुुआत

    ५५. चांपारन आांदोलन न ेबदला गाांधी का नजररया

    ५६. अहमदाबाद की मजदरू हड़ताल और गाांधी का पहला उपवास

    ५७. खेिा वकसान सत्याग्रह

    ५८. ववश्व युद्ध में सवैनक िती में गाांधी की िवूमका

    ५९. गाांधी की बकरी और उसका जीवन रक्षक दधू

    ६०. रौलके्ट एक्ट और गाांधी का साहस

    ६१. वहांसा को पहाड़ सी िलू मानना

    ६२. काांग्रेस के ववधान और जवलयावाला स्मारक के वनमाषण में महत्त्वपणूष िवूमका

    ६३. नवजीवन और यांग इांविया अख़बार

    ६४. गाांधी की आत्मकर्ा और सावषजावनक जीवन

    ६५. वहांद ूमसुलमान एकता के अर्क प्रयास

    ६६. छुआछूत का प्रबल ववरोध

    ६७. साबरमती आश्रम की िरुुआत

    ६८. जावलयाांवाला बाग काांि और गाांधी

    ६९. खादी के वलए चरखे की तलाि

    ७०. हड़ताल में वहांसा स ेव्यवर्त गाांधी और अवहांसा के प्रयास

    ७१. असहयोग आांदोलन

    ७२. चौरी चौरा काांि और असहयोग आांदोलन का अांत

    ७३. गाांधी का मकुदमा, जले और ररहाई

    ७४. गाांधी के रचनात्मक कायषक्रम

    ७५. स्वराज दल और काांग्रेस के बीच मध्यस्र्ता

    ७६. वहांद ूमवुस्लम वहांसा स ेआहत गाांधी का एकता के वलए उपवास

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    ७७. आत्म वचांतन का एक वर्ष : १९२७

    ७८. १९२८ के कलकत्ता अवधविेन में िोवमवनयन स्टेटस की समय सीमा की चेतावनी

    ७९. गाांधी की छत्रछाया में सरदार पटेल का बारिोली आांदोलन

    ८०. १९२८ के कलकत्ता अवधविेन में गाांधी की अगवुाई में नहेरू वपता पतु्र समझौता

    ८१. पणूष स्वराज की माांग और एक और बड़े आांदोलन की तयारी

    ८२. नमक सत्याग्रह और गाांधी का ऐवतहावसक दाांिी माचष

    ८३. दाांिी माचष की िव्य सिलता

    ८४. दाांिी माचष स ेघबराई सरकार का वगरफ्तारी अवियान

    ८५. गाांधी इरववन समझौता

    ८६. लांदन के गोल मजे सम्मेलन में गाांधी की विरकत

    ८७. गोल मजे सम्मलेन की असिलता के बाद आक्रोवित गाांधी और िारत में बढ़ता असांतोर्

    ८८. गाांधी का आमरण अनिन

    ८९. हररजन उपवास

    ९०. हररजन िां ि और हररजन सवेा के काम

    ९१. सवेाग्राम के वधाष आश्रम की िरुुआत

    ९२. सवेाग्राम : िारतीय आजादी के आांदोलन का नया अि्िा

    ९३. वितीय ववश्व युद्ध और गाांधी

    ९४. वक्रप्स वमिन पर गाांधी की प्रवतवक्रया

    ९५. १९४२ में गाांधी की हुांकार – ‘अांग्रेजों िारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो’ के दो ऐवतहावसक नारे

    ९६. आगा खान पलैसे की जले में गाांधी को पहला बड़ा आघात – महादवे दसेाई की मतृ्यु

    ९७. अांग्रेजी िासन के दमन के वखलाि गाांधी का उपवास

    ९८. आगा खान पलैसे में गाांधी को दसूरा बड़ा आघात – कस्तरूबा गाांधी की मतृ्य ु

    ९९. गाांधी की ररहाई और आजादी की लड़ाई के अांवतम चरण की िरुुआत

    १००. आजाद वहांद िौज और गाांधी सिुार् सांबांध

    १०१. गाांधी वजन्ना वाताष और गाांधी के बांटवारा रोकन ेके प्रयास

    १०२. विमला वाताष में गाांधी

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    १०३. ववश्व युद्ध में इांग्लैंि के वमत्र राष्ट्रों की ववजय पर गाांधी का नजररया

    १०४. कैवबनटे वमिन और गाांधी

    १०५. अांतररम सरकार का गठन और वविलता के बीच गाांधी के िाांवत प्रयास

    १०६. साांप्रदावयक आग के बीच आजादी और वविाजन की पषृ्ठिवूम में गाांधी

    १०७. आजादी की घोर्णा स ेपहल ेिीर्ण दांगों की वविीवर्का

    १०८. साांप्रदावयक दांगों की आग में जल ेकलकत्ता और बांगाल में गाांधी

    १०९. नोआखली में आजादी के पहल ेका प्रचांि साांप्रदावयक उन्माद और गाांधी की अवहांसा की अवग्न परीक्षा

    ११०. नोआखली की वन मनै आमी : गाांधी

    १११. साांप्रदावयक सौहादष के वलए वबहार आए गाांधी

    ११२. आजादी के पहल ेिाांवत के वलए गाांधी की अांतहीन िागदौड़

    ११३. आजादी के एक वदन पहल ेकलकत्ता की गवलयों में

    ११४. १५ अगस्त १९४७ : िारत की आजादी का जश्ऩ और गाांधी

    ११५. कलकत्ता में िाांवत के वलए उपवास

    ११६. जलती वदल्ली के जख्मों में करूणा का मरहम

    ११७. रोती वबलखती कराहती वदल्ली में गाांधी

    ११८. वदल्ली की दास्तान कलकत्ता िी बदतर

    ११९. आजादी के बाद पहल ेकाांग्रेस अवधविेन में गाांधी

    १२०. िारतीय सनेा के बारे में गाांधी और जनरल कररयप्पा की चचाष

    १२१. िारत के मसुलमानों और िहीद सहुरावदी स ेगाांधी की वाताष

    १२२. जवाहर लाल नहेरू और पटेल के मतिदे और गाांधी

    १२३. वसांध और कश्मीर समस्या और गाांधी

    १२४. गाांधी का अांवतम उपवास

    १२५. गाांधी की अांवतम साांस – ‘ह ेराम’

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    १. जन्म: 2अकू्तबर 1869 और वह दौर

    2 अकू्तबर 1869 को वजस समय गाांधी(मोहन दास ) का पोरबांदर ररयासत स ेजड़ु ेकरमचांद (काबा )

    गाांधी और पतुलीबाई के वशै्य पररवार में जन्म हुआ र्ा वह िारत में अांग्रेजों की गुलामी का काला

    अांधकारमय समय र्ा । गाांधी के जन्म स े बारह साल पहल े 1857 के प्रर्म स्वतांत्रता सांग्राम की

    असिलता के बाद अांग्रेज अवधकाररयों और अांग्रेजी िौज न ेखोज खोज कर िारतीय देििक्तों का

    उत्पीड़न वकया र्ा तावक वनकट िववष्ट्य में िारतीय जनता विर स ेआजादी का आांदोलन चलान ेकी

    वहम्मत न जटुा सके । झाांसी, लखनऊ ,वबठूर और वदल्ली आवद के वहांसक ववरोध के नतेाओ ां के िासन

    को अांग्रेजों न ेअपन ेकब्ज ेमें कर वलया र्ा | वदल्ली पर परूा वनयांत्रण होन ेस ेलगिग परूा दिे ही अांग्रेजों

    के कब्ज ेमें आ गया र्ा |

    उन वदनो दिे के कोन ेकोन ेस ेआजादी के आांदोलन में िावमल होन ेवाल ेदिेिक्तों को वचवन्हत कर

    कड़ी सजा दी जा रही र्ी । पोरबांदर ररयासत और गुजरात में हालााँवक 1857 के आांदोलन का खास

    असर नहीं र्ा लवेकन दिे के उत्तरी िाग और वविरे् रूप स ेवतषमान उत्तर प्रदिे और वदल्ली में अांग्रेजी

    सरकार के दमन के कारण परेू दिे म ेअांग्रेजी राज का खौि बैठ गया र्ा और जनमानस के मन में गहरी

    वनरािा पठै गई र्ी ।

    गाांधी पररवार पोरबांदर के उच्च मध्यम वगष के आम वशै्य पररवारों की तरह वषै्ट्णव वहांद ूपररवार र्ा और

    खुद मोहन दास करमचांद गाांधी िी बचपन में एक आम साधारण बालक ही र्े । वषै्ट्णव पररवार होने

    के कारण घर म ेिाकाहारी िोजन बनता र्ा और ईश्वर की िवक्त का माहौल र्ा ।

    गाांधी के वपता का ररयासत स ेकुछ वववाद होन ेपर घर की आवर्षक वस्र्वत िी खराब हो रही र्ी इसवलए

    उनकी पढ़ाई िी पोरबांदर के सामान्य स्कूल में आम बच्चों की तरह ही हुई । गाांधी की आत्मकर्ा

    "सत्य के प्रयोग" स ेिी यह जानकारी वमलती ह ैवक गाांधी का बचपन आम िहरी बच्चों की तरह ही

    बीता र्ा और उनमें ऐसी कोई ववलक्षणता नहीं र्ी वजसस ेकोई यह आिास लगा सके वक िववष्ट्य में

    यह बालक िारत म ेही नहीं अवपत ुपरेू ववश्व में अपना और दिे का नाम रोिन करेगा |

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    २. बचपन : आम बच्चों जैस स म न्य जीवन

    गाांधी का बचपन िी अवधकाांि छोटे िहरों के आम साधारण बच्चों जसैा ही र्ा । न व ेिील िोल में

    बहुत ताकतवर र्े और न बहादरु | जसैा अवधकाांि बच्चों के सार् होता ह ैउन्हें िी अकेल ेमें अांधरेे म े

    जान ेम ेिर लगता र्ा । पढ़ाई में िी व ेबहुत होवियार नहीं र् े। कुल वमलाकर उन्ह ेअपन ेसमय का

    एक औसत बच्चा ही कह सकत ेहैं |

    सावत्वक वषै्ट्णव पाररवाररक माहौल के कारण गाांधी म ेकुछ वविरे् गणु िी र्े । व ेझठू नहीं बोलत ेर्े

    और कोई गलत काम िी नहीं करत ेर् े। इस साँबाँध म ेएक घटना उल्लखेनीय ह ै- एक बार उनके स्कूल

    के इांस्पके्सन के वलए इांस्पके्टर आि स्कूल आय ेर्े । उन्होंन ेबच्चों स ेकुछ िब्दो की स्पवैलांग वलखन े

    के वलए कहा | गाांधी को एक िब्द की सही स्पवैलांग नहीं आती र्ी । विक्षक न ेउन्ह ेपिौस के सार्ी

    की कापी स ेनकल करन ेकी सलाह दी लवेकन गाांधी को ऐसा करना सही नहीं लगा | गाांधी इन्ही कुछ

    अच्छी आदतों के कारण माता और वपता दौनो के लािल ेबेटे र्े ।

    सत्य के प्रवत गाांधी को बचपन में ही लगाव हो गया र्ा जो बिे होकर उनके जीवन का अविन्न अांग

    बन गया | अपनी आत्म कर्ा "सत्य के प्रयोग" म ेउन्होंन ेअपन ेजीवन की उन नकारात्मक घटनाओ ां

    के बारे म ेिी परूी सच्चाई के सार् वलखा ह ैवजनका वजक्र बहुत स ेलोग अपनी आत्मकर्ा म ेकरना

    नहीं चाहते | उदाहरण के तौर पर उन्होंन ेवलखा ह ैवक बचपन में उन्होंन ेचोरी िी की , बीड़ी पी और

    दोस्त की सांगत म ेमाांस का सवेन िी वकया । लवेकन जसै ेही उन्हें अपनी गलती का अहसास होता र्ा

    विर वह उस गल्ती को आजीवन नहीं दोहरात ेर्े ।

    गाांधी के बचपन और युवपन को दखेकर कोई यह अांदाज नहीं लगा सकता र्ा वक धीरे धीरे अपनी

    तमाम कमजोररयों पर ववजय पाकर यह बच्चा एक वदन ववश्व प्रवसद्ध महात्मा बन जाएगा | और तो और

    गाांधी जी को खुद िी यह अहसास नहीं र्ा वक िववष्ट्य में व ेअपन ेदेि के वलए बेहद खास काम करेंग े

    और एक वदन दिे के राष्ट्रवपता बनन ेका गौरव अवजषत करेंगे |

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    ३. ब ल ववव ह और आरांविक वैव वहक जीवन

    हमारे दहेात में आज िी बहुत सी जगह बाल वववाह की परांपरा ह ै। बीसवीं सदी के पवूाषद्धष में तो िहरी

    समाज और उच्च वगष म ेिी यह कुरीती आम र्ी । गाांधी िी बचपन में इसके विकार हुए | सात साल

    की उम्र में पररवार वालों न ेउनकी सगाई एक जानकार पररवार की हम उम्र बावलका कस्तरू बाई के सार्

    तय कर दी र्ी और चौदह साल की अवस्र्ा तक पहुाँचत ेपहुाँचत ेदौनो का वववाह िी हो गया र्ा ।

    उन वदनों गाांधी तो पढ रह ेर्े लवेकन कस्तरू अविवक्षत र्ी | गाांधी उन्ह ेघर पर रहकर पढन ेकी सलाह

    िी दते ेर्े लवेकन कस्तरू की पढ़ाई में कतई रूवच नहीं र्ी । गाांधी इस बात के वलए उनस ेनाराज िी रहत े

    र्े लवेकन कस्तरू िी दृढ़ वनश्चयी र्ी । वजस काम में उनका मन नहीं लगता र्ा वह नहीं करती र्ी और

    अपनी रूवच के काम अवश्य करती र्ी ।

    गाांधी और कस्तरू की आदतों में और िी कई मामलों में मत विन्नता र्ी | गाांधी सांकोची स्विाव के

    अांतमुषखी युवक र्े और कस्तरू सजन ेधजन ेकी िौकीन , सबस ेवनसांकोच बात करन ेवाली बवहमुषखी

    चांचल स्विाव की युवती | गाांधी को उनका यह स्विाव पसांद नहीं र्ा और कस्तरू को गाांधी की पढ़ाई

    और सादगी स ेरहन ेवाली सलाह बेतकुी लगती र्ी |

    वसै ेिी कस्तरू उम्र में गाांधी स ेकरीब छह महीने बड़ी र्ी और गलत बात पर दबना उनकी आदत नहीं

    र्ी | बाद में उनके इस दृढ़ वनश्चयी स्विाव की गाांधी न ेिी प्रिांसा की ह ैऔर कहा ह ैवक सत्य के प्रवत

    आग्रह (सत्याग्रह) का पहला पाठ उन्होंन ेकस्तरू स ेही सीखा र्ा |

    गाांधी और कस्तरू में कुछ स्विावगत मतिदेों के बावजदू एक दसूरे के प्रवत पे्रम और सम्मान का िाव

    िी र्ा । यह िायद उन दौनो के िारतीय सांस्कारों का प्रवतिल र्ा । गाांधी कस्तरू को पढ़ाई के वलए िी

    सांिवतः इसीवलए पे्रररत करत ेर्े वजसस ेव ेिी विक्षा का लाि उठा सकें | गाांधी जी न ेयह प्रयास अांवतम

    समय तक जारी रखा |

    बहुत समय बाद कस्तरूबा जी को िी विक्षा का महत्व समझ में आया और उन्होंन ेववविन्न आश्रमो में

    रहत ेहुए काम चलाऊ ववधाध्ययन और सवाध्याय वकया िी वजसके पीछे गाांधी की पे्ररणा ही प्रमखु

    कारण र्ी |

    गाांधी और कसतरूबा का प्रारांविक वैवावहक जीवन िारतीय सांयुक्त पररवार के युवाओ ां के जसैा सामान्य

    ही र्ा । घर की छोटी बहू होन ेके कारण घर गहृस्र्ी के रसोई आवद के अवधकाांि काम कसतरूबा को

    ही करन ेपड़त ेर्े । स्वस्र् और घरेल ूकामों में दक्ष कसतरूबा ससरुाल की यह वजम्मदेारी बड़े जतन स े

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    वनिाती र्ी इसवलए बहुत जल्दी पवत और पररजनों की चहतेी बन गयी र्ी । कसतरूबा का यही गणु

    िववष्ट्य में गाांधी िारा िरुू वकय ेगये कई आश्रमो के कुिल सांचालन में काम आया र्ा और वह स्वय ॔

    िी आश्रम वावसयों की बा(मााँ ) बन गई र्ी और बाद के सालों में बा के नाम स ेमिहूर हुई ।

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    ४. पढ ई से अरूवच और प ररव ररक सांकट

    करम चांद गाांधी की मतृ्य ुके बाद गाांधी पररवार की आवर्षक वस्र्वत वदन ब वदन कमजोर हो रही र्ी |

    पतुलीबाई की वहम्मत और स्नहे के कारण सांयुक्त पररवार की गाड़ी पटरी पर र्ी | मोहनदास के बड़ ेिाई

    की कमाई पर ही युवा दांपवत के खचष का िार र्ा । परेू पररवार की नजर मोहनदास की पढ़ाई पर वटकी

    र्ी । सबकी उम्मीद र्ी वक ग्रेजुएसन के बाद उस ेकोई कायद ेकी नौकरी वमल जाएगी तो बड़े िाई को

    िी र्ोिी राहत वमलगेी इसीवलए बड़े ियैा और मााँ न ेयह वनणषय वलया र्ा वक मोहनदास िामलदास

    कालजे स ेग्रेजएुसन परूी करेगा । र्ोिी आवर्षक तांगी के बावजदू सब ठीक स ेचल रहा र्ा | कसतरूबा

    बड़ी वकिायत और सादगी स ेरहत ेहुए घर का काम कर रही र्ी । पढ़ाई में जटेु मोहनदास स ेतब तक

    िानोिौकत की कुछ उम्मीद िी नहीं की जा सकती र्ी । उन्हें िी यही आि र्ी वक जब पवतदवे पढ़ाई

    परूी कर परूा घर सांिाल लेंग ेतब वह िी अपन ेअरमान परेू कर लेंगी ।

    होनी को तो कुछ और ही मांजरू र्ा | मोहनदास का मन पढ़ाई स ेउचट गया | उन्हें यह महससू होन ेलगा

    र्ा वक ग्रेजएुिन के बाद िी कालजे के लिकों कोई खास नौकरी नहीं वमल रही ह ैविर चार साल की

    उबाऊ पढ़ाई स ेक्या िायदा ? िाई और मााँ के समझान ेके बाद िी मोहनदास पढ़ाई में मन नहीं लगा

    पाए और अांततः उन्होंन ेघर वालों को साि कर वदया- मझु े इस पढ़ाई में कोई बेहतर िववष्ट्य नहीं

    वदखता।

    अगला यक्ष प्रश्न यह र्ा वक कालजे की पढ़ाई छोड़कर मोहनदास ऐसा क्या काम कर सकता ह ैवजसस े

    घर की आवर्षक वस्र्वत बेहतर हो । मोहनदास के कालजे की पढ़ाई छोिन ेके दृढ़ वनश्चय स ेयह तो सबन े

    िाांप वलया र्ा वक मोहनदास अपनी ही पसांद स ेकुछ चुन ेवही बेहतर है | कािी सोच ववचार और बिों

    स ेसलाह मिववरा के बाद मोहनदास को ववलायत स ेबैररस्टरी करना सबस ेअवधक जमा | उन वदनों

    ववलायत स ेबैररस्टरी वकये लोग बिी अदालतों में मकुदमों की परैवी स ेअच्छी खासी कमाई कर रह ेर् े

    और उच्च वगष के समाज म ेखास ेप्रवतवष्ठत िी हो रह ेर्े ।

    ववलायत स ेबैररस्टरी करना मोहनदास जैस ेमध्यम वगीय पररवार के लिकों के वलए कई कारणों स े

    आसान नहीं र्ा । सबस ेपहल ेतो इतनी रकम जटुाना आसान नहीं र्ा । यवद रकम िी जटुा ली जाए तो

    मोढ बवनया समाज ववलायत जान ेके वखलाि र्ा क्योंवक उनकी मान्यता के अनसुार वहाां रहकर स्वधमष

    की रक्षा नहीं हो सकती ।

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    ५. बैररस्टरी की पढ ई के वलए ववल यत ज ने क सांघर्ष

    गाांधी को ववलायत जान ेके वलए बड़े िाई की सहमवत सबस ेपहल ेवमली लवेकन वह कािी नहीं र्ी |

    कसतरूबा को िी ववश्वास में लनेा र्ा । वपता की अनपुवस्र्वत में मााँ की अनमुवत सबस ेजरूरी र्ी |

    कसतरूबा िी गाांधी के ववलायत स ेबैररसटरी कर हमिेा के वलए दिे म ेबस कर ठीक स ेघर गहृस्र्ी

    जमन ेकी सनुहरी उम्मीद में तीन चार साल का पवत ववरह सहन ेके वलए तयैार हो गयी |

    मााँ को मनान ेके वलए गाांधी को माां की तीन ितों के वलए प्रवतज्ञा लनेी पड़ी वक वह ववलायत में धमष

    भ्रष्ट करन ेवाली तीन चीजों- माांस, मवदरा और मवहलाओ ां स ेदरू रहेंग े। सार् ही उन्होंन ेपररवार के परुुर्

    मवुखया होन ेके नात ेअपन ेदेवर के पास िी गाांधी को अनमुवत के वलए िेजा र्ा । चाचा न ेगाांधी को

    यही कहा- जब तमु्हारी मााँ और िाई तयैार हैं तो मझु ेकोई आपवत्त नहीं ह ैलवेकन समाज की पांचायत

    को तमु्हारे ववलायत जान ेपर आपवत्त होगी | गाांधी सबको समझाकर और सब बिों की अनमुवत लकेर

    ववलायत जाना चाहत ेर्े । उस समय मोढ बवनया समाज के मवुखया गाांधी के स्वगीय वपता के अच्छे

    पररवचत र्े इसवलए गाांधी को उनस ेसहानुिवूत और समर्षन की उम्मीद र्ी लेवकन गाांधी को उनसे

    वमलकर वनरािा हुई | गाांधी न ेउन्हें समझान ेकी कािी कोविि की लवेकन व ेअपनी वजद पर अिे र्े ।

    उनका मानना र्ा वक समाज स ेबाहर होकर कोई सात समांदर पार नहीं गया क्योंवक ववलायत में जान ेस े

    धमष का पालन नहीं हो सकता | गाांधी न ेकहा -मैंन ेअपनी मााँ को वचन वदया ह ैवक ववलायत में रहते

    हुए धमष भ्रष्ट नहीं होन ेदूांगा लवेकन मवुखया टस स ेमस नहीं हुए और उन्होंन ेअपना िैसला सनुा वदया-

    यवद तमु ववलायत गए तो तमु्हारा जावत बवहष्ट्कार होगा और जो िी तमु्हारी मदद करेगा या तमु्हारी

    ववदाई के मौके पर िरीक होगा उस ेजमुाषना िरना पिेगा | गाांधी वहाां स ेचुपचाप चल ेआए । उन्होंन े

    अपना िैसला नहीं बदल और वनश्चय वकया वक ऐसा बेतकुा िैसला नहीं मानूांगा और ववलायत जरूर

    जाऊाँ गा | अब खचष की समस्या र्ी । न ररयासत स ेसहायता वमली और न ररश्तेदारों से मदद हुई । सबन े

    कुछ न कुछ बहाना बनाकर टाल वदया | अांत में सांयुक्त पररवार न ेही सहयोग वदया | कस्तरूबा न ेखुिी

    खुिी अपन ेगहन ेद ेवदए । बड़े िाई न ेघर का कीमती िनीचर बचेकर रकम जटुाई तब जसै ेतसै ेजरूरत

    का सामान जटुा | एक आम िारतीय के वलए आज सौ साल बाद िी कमोबेि यही वस्र्वत ह ै। ववलायत

    तो दरू अवधकाांि पररवार दिे के ही महांग ेस्कूल कालजे आवद की िीस नहीं िर पात े| गाांधी समझदार

    र् े। उन्होंन ेविद्दत स ेमहससू वकया र्ा वक कैस ेघरवालों न ेउनकी पसांद की उच्च विक्षा के वलए रकम

    जटुाई र्ी । िायद इसीवलए ववलायत में बैररस्टरी की पढ़ाई करत ेसमय उन्होंन ेबहुत वकिायत स ेकाम

    चलाया और मन लगाकर पढ़ाई परूी की हालााँवक तीन साल लांबा ववलायत प्रवास िी आसान नहीं र्ा।

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    ६. युव ग ांधी के ध वमषक ववच र

    गाांधी के पररवार का परूा माहौल कािी धावमषक र्ा । उनके वपता अपन ेअांवतम समय में रामचररत मानस

    का वनयवमत पाठ बहुत चाव स ेसनुत ेर्े । उन वदनों गाांधी एक नसष की तरह उनकी बड़े मन स ेसवेा करत े

    र्े और उतन ेही ध्यान स ेरामचररत मानस िी सनुत ेर्े । तलुसी दास के प्रवत इसी युवपन में उनका मन

    श्रद्धानवत हो गया र्ा वजस ेव ेअांवतम समय तक जब तब दोहरात ेरहत ेर्े ।

    िगवान राम के प्रवत गाांधी जी के मन में असीम श्रद्धा बचपन में ही िर गई र्ी । इसका श्रये गाांधी अपनी

    धाय रांिा को देत ेहैं वजसन ेअांधरेे और िूत वपिाच स ेिरन ेवाल ेगाांधी के मन स ेराम का नाम लकेर यह

    िर िगान ेकी सलाह दी र्ी | उसी का यह असर र्ा वक बाद में िी गाांधी जी ने अपनी रोजाना की

    प्रार्षना में "रघपुवत राघव राजाराम" जसैी लोकवप्रय धनु को रखा र्ा और अपन ेअांवतम समय में िी

    उनके मुांह स े"ह ेराम" ही वनकला र्ा ।

    गाांधी की मााँ पतुलीबाई तो धावमषक मान्यताओ ां म ेबहुत ज्यादा ववश्वास करती र्ी और वनयवमत व्रत

    उपवास रखती र्ी | मन की िवुचता और िवुद्ध के वलए गाांधी जी न ेिी सांिवतः अपनी मााँ स ेही यह

    सांस्कार सीखकर समय समय पर कई महत्वपणूष उपवास वकए | गाांधी जी के धावमषक ववचार और आचरण

    पर वजन दो धावमषक कर्ाओ ां का सबस ेअवधक प्रिाव पिा वह मात ृवपत ृिक्त श्रवन कुमार की माता

    वपता की अनकुरणीय सवेा और राजा हररिचांद्र की ईमानदारी के वकस्स ेहैं । श्रवन कुमार की कर्ा स े

    उन्होंन ेअसहाय और अिक्तों की सवेा की सीख ली और राजा हररश्चांद्र की कर्ा स ेसच्चाई और

    ईमानदारी का सबक सीखा । गाांधी जी न ेअपन ेलखेों में स्वयां यह स्वीकार वकया ह ैवक अपनी सांस्कृवत

    की इन अनमोल धरोहरों के बल पर ही व े सत्य और सवेा के पर् पर वनरांतर चलत े रह े ।

    गाांधी की आरांविक धावमषक मान्यताओ ां म ेसवहष्ट्णतुा और अन्य धमों के प्रवत सम्मान की िावना िावना

    िी अपन ेधावमषक घरेल ूपररविे के कारण ही आई र्ी । उनके घर में जनै गरुु बेचर जी स्वामी का िी

    बहुत सम्मान र्ा, इसवलए वषै्ट्णव धमष का पालन करत ेहुए िी पररवार के लोग विव की िी पजूा करत े

    र्े और जनै धमष गरुु को िी मानत ेर्े । ईसाई धमष के वलए युवावस्र्ा में गाांधी के मन में अच्छी िावना

    नहीं र्ी । इसका प्रमखु कारण र्ा कुछ ईसाई पादररयों के िारा वहांदओु ां का धमष पररवतषन कराना | उनके

    यहाां वजस वहांद ूको ईसाई बनाया गया र्ा उसके बारे म ेगाांधी को यह अच्छा नहीं लगता र्ा वक धमष

    पररवतषन के बाद वह गोमाांस खान ेलगा है, मवदरा सवेन करता ह ैऔर वहांद ूधमष के दवेी दवेताओ ां के बारे

    में उल्टी सीधी बात करन ेलगा ह ै| इन हरकतों स ेईसाई धमष के वलए युवा गाांधी के मन म ेववतषृ्ट्ना का

    िाव आ गया र्ा, इसीवलए ववलायत जात ेसमय अपन ेपररवार के वहतरै्ी जनै गरुु और अपनी मााँ से

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    गाांधी जी न ेमाांस ,मवदरा और ववदेिी मवहलाओ ां स ेदरू रहन ेकी प्रवतज्ञा की र्ी । गाांधी के धावमषक

    ववचारों म ेपररपक्वता बाद म ेइांग्लैंि और अफ्रीका प्रवास के दौरान आई जहााँ उन्हें दसूरे धमष के धमष

    गरुुओ ां स ेवमलन ेऔर उनके प्रमखु धमष ग्रांर्ों एवां धावमषक पसु्तकों का अध्ययन करन ेका मौका वमला.

    ७. पहली ववल यत य त्र

    गाांधी न ेअपन ेसांयुक्त पररवार के अच्छे िववष्ट्य की कामना के वलए ही अपनी प्रानवप्रया युवा पत्नी की

    गोद म ेएक नन्हा पतु्र छोड़कर और अपनी जावत की पांचायत के हुक्म का उल्लांघन कर ववलायत में

    पढ़ाई की कवठन राह पकड़ी र्ी । इस समय आम युवाओ ां की तरह उनका एकमात्र सपना अपन ेपररवार

    की ठीक स ेआजीववका चलान ेका र्ा । समदु्री जहाज की लांबी यात्रा में मनपसांद बैररस्टरी की पढ़ाई

    का रोमाांच तो र्ा लवेकन यात्रा के दौरान ही गाांधी को आग ेकी िगर कवठन वदखाई दने ेलगी र्ी । जहाज

    म ेउनके सार्ी मजमुदार के अलावा बाकी सब अांग्रेजी म ेबोलत ेबवतयात ेअांग्रेज लोग र्े । गाांधी का

    िमीला स्विाव और अांग्रेजी बोलन ेमें असमर्षता की दोहरी दीवार न ेउन्हें अकेला कर वदया | जहाज

    के खान ेके सामान म ेमाांस ही प्रमखु र्ा | मजमूदार गाांधी के स्विाव के ववपरीत माांसाहारी और सब स े

    घलु वमल जान ेवाल ेमस्त मौला वकस्म के र्े । जब जहाज़ के िैक पर बहुत कम लोग रहत ेगाांधी तिी

    अपनी कोठरी के बाहर आत ेअन्यर्ा अांदर ही रहत ेऔर अपने सार् बाांधकर लाए खान ेके सामान

    खाकर सो जात े। जहाज पर यात्रा कर रह ेएक सकुोमल हृदय अांग्रेज सहयात्री न ेएकाकी रहत ेगाांधी से

    खुद आग ेबढ़कर बातचीत िरुू की और उन्हें समझान ेकी कौविि की वक वब्रटेन की ठांिी में माांसाहार

    जरूरी ह ै। गाांधी के वलए मााँ को दी तीन प्रवतज्ञा में वकसी की िी अवहलेना असांिव र्ी । गाांधी दृढ़

    वनश्चयी र्े वक मााँ को वदया वचन हर हाल म ेवनिाना है | चाह ेववलायत की पढ़ाई परूी हो या वापस

    वहांदसु्तान लौटना पड़े लवेकन अपनी प्रवतज्ञा पर आांच नहीं आन ेदेंगे | ववलायत पहुाँचकर कुछ वदन

    उन्होंन ेएक होटल में वबताए | वहाां का खचष गाांधी पररवार की हवैसयत के बाहर र्ा । यहाां पहुांचकर सबस े

    पहल ेउन्होंन ेप्रानजीवन महेता को तार स ेअपन ेपहुाँचन ेकी खबर की वजनके वलए व ेएक वसिाररिी

    पत्र लाए र् े। गाांधी का तार वमलत ेही महेता उनस ेवमलन ेहोटल आ गये | उन्होंन ेगाांधी को ववलायत में

    अपन ेअनिुव के आधार पर कई वहदायत दी और यह िी सलाह दी वक व ेयहाां वकराय ेके मकान में

    वकसी पररवार के सार् रहें और यहाां रहत ेहुए यहाां की विेिरू्ा और रहन सहन के तौर तरीकों को िी

    जल्द अपना लें तिी वह सांभ्राांत लोगों स ेठीक स ेघलु वमलकर ववलायत के जीवन स ेतालमेल वबठान े

    में सिल होंग े। महेता जी जैस ेिुिवचांतक की सलाह मानकर गाांधी न ेतरुांत होटल छोड़ कर दो कमरे

    का वकराए का घर वलया और िीघ्रावतिीघ्र अांग्रेजों की तरह रहन सहन की तयैारी िरुू कर दी । ववलायत

    में गाांधी का एक ही लक्ष्य र्ा- मााँ को वदए वचन वनिात ेहुए बैररस्टरी की पढ़ाई करना ।

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    ८. ववल यत में ग ांधी की िोजन, आव स और रहन सहन आवद की समस्य एां

    ववलायत में गाांधी के आवास की समस्या तो होटल के बजाय वकराए के मकान में सामान जमाकर हल

    हो गई र्ी लवेकन दो बिी समस्याएाँ अिी िी पार करनी र्ी । एक र्ी िर पटे स्वावदष्ट िाकाहारी िोजन

    और दसूरा अांग्रेजी रहन सहन | वकराए के मकान में मकान मालवकन जसै ेतसै ेिाकाहारी िोजन तो

    बना दतेी र्ी लवेकन उसस ेगाांधी का पेट नहीं िरता र्ा | वजन लोगों को गुजरात के वैष्ट्णव पररवार का

    िदु्ध िाकाहारी िोजन खान ेका सौिाग्य प्राप्त हुआ ह ैव ेजानत ेहैं वक उसमें चटपटे नमक मसाल ेअचार

    पापड़ आवद का स्वाद समावहत होता है | उसके मकुाबल ेववलायत के िाकाहारी खान ेम ेउबली िीकी

    सब्जी और सखूी रोटी । गाांधी की खुराक अच्छी खासी र्ी लवेकन उन्हें अपन ेिमील ेस्विाव के कारण

    मकान मालवकन स ेअवधक रोटी माांगन ेमें सांकोच होता र्ा और अक्सर िखूे ही रह जात ेर्े । धीरे धीरे

    गाांधी न ेिोजन का इलाज िी खोज वलया | वसै ेिी िोजन और नींद दो ऐसी चीज हैं वजन्हें हम अवधक

    समय तक स्र्वगत नहीं कर सकत े| गाांधी न ेएक िदु्ध िाकाहारी िोजनालय खोज वलया जहााँ िर पटे

    िोजन वकया जा सकता है | गाांधी के बड़े िाई जैस ेतसै ेगाांधी की हर आवश्यकता की पवूतष के वलए

    धन महुयैा करा दते ेर्े लवेकन गाांधी अपन ेसांयुक्त पररवार की आवर्षक वस्र्वत स ेवावकि र्े इसवलए

    बहुत वदन तक रेस्टोरेंट में खाना नहीं खा सकत ेर् े| इस समस्या का स्र्ाई समाधान गाांधी न ेएक अांगीठी

    खरीद कर खुद अपनी पसांद का खाना पकाकर वकया । अब गाांधी को एक ही धनु सवार र्ी वक यर्ा

    िीघ्र ववलायत के रांग में रांगना ह ैवजसस ेयहाां के सांभ्राांत समाज म ेप्रविे हो सके | इस के वलए जरूरी

    बातें महेता जी न ेपहली मलुाकात में ही बता दी र्ी | गाांधी न ेववलायत के प्रवसद्ध िैसनबेल सूट बनवाए

    । खुद टाई बाांधकर जेंटलमनै बनना सीखा । पाश्चात्य सांगीत और नतृ्य की रेवनांग लनेा िरुू वकया और

    अांग्रेजी के अध्ययन पर वविरे् जोर दनेा िरुू वकया | यहाां तक वक िाई की आवर्षक पररवस्र्वतयों को

    जानत ेहुए िी दसूरों को प्रिाववत करन ेके वलए जबे में रखन ेवाली सोन ेकी चेन वाली घड़ी िी खरीदी।

    दरअसल गाांधी को यह आिास हो गया र्ा वक ववलायत की बैररस्टरी की पढ़ाई बहुत कवठन नहीं ह ै

    लवेकन बैररस्टरी के वलए बाहरी तामझाम और वदखावा अवधक जरूरी ह ै| करीब तीन महीन ेगाांधी पर

    ववलायत का रहन सहन आत्मसात करन ेका िूत सवार रहा । इसस ेउनका खचष िी कािी बढ रहा र्ा

    । कुछ समय बाद गाांधी के सांपकष में कुछ ऐस ेछात्र िी आए जो बेहद वकिायत स ेअपनी पढ़ाई कर रह े

    र्े और गरीब बस्ती में एक छोटी सी कोठरी म ेरहकर काम चला रह ेर्े | गाांधी पर उनका िी प्रिाव पिा

    । उन्हें अहसास हुआ वक ववलायत में व े बसन े नहीं वसिष तीन साल के वलए पढन े आए हैं |

    यह अहसास होन ेपर गाांधी न ेदो कमरों का घर छोड़ कर एक कमरे का मकान वकराए पर लकेर र्ोड़ी

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    सादगी स ेरहना िुरू वकया । सार् ही उन्होंन ेनतृ्य सांगीत की विक्षा िी बांद कर दी हालााँवक महांग ेकपिों

    के प्रवत अिी िी उनका आकर्षण बरकरार रहा । कपड़ों की सादगी का पववत्र िाव तो उनके मन म ेबीस

    साल बाद चांपारन के वकसान पररवारों की ददुषिा दखेन ेके बाद ही आया |

    ९. ववल यत में गलत र ह पर विसलते हुए बचे

    गाांधी के बचपन और युवावस्र्ा म ेऐसी कोई ववलक्षण प्रवतिा के दिषन नहीं होत ेवजनस ेखुद गाांधी या

    उनके वमत्रों और पररजनों को यह आिास हो सके वक िववष्ट्य में यह साधारण कद काठी का बेहद

    िमीला नौजवान धीरे धीरे महानता की ऊां ची सीवढ़यााँ चढता हुआ ऐस ेकीवतषमान स्र्ावपत करेगा वजस

    की बराबरी करना आन ेवाली सवदयों तक बिे बि ेलोगों के वलए असांिव होगा ।

    अपन ेगहृ नगर में गलत सांगत के कारण गाांधी न ेचोरी वछप ेबीिी पीन ेकी लत लगाई र्ी | यह लत परूी

    करन ेके वलए नौकर की जबे स ेचोरी िी की । चोरी में सिलता वमली तो वहम्मत और िी बढी | िाई

    के कजष को चुकान ेके वलए सोन ेके किे स ेसोना िी चुराया । एक ऐस ेवमत्र के सार् वमलकर चोरी चोरी

    माांस िी खाना िरुू वकया वजस ेगलत आदतों के कारण कसतरूबा ,गाांधी के बड़े िाई और मााँ कतई

    पसांद नहीं करत ेर्े लवेकन उसकी ताकत और साहस के कारण गाांधी को उसकी वमत्रता में रस आता

    र्ा । गाांधी न ेगलत सोहबत में यह सब आदतें िाल तो ली र्ी लवेकन उनकी अांतआषत्मा अक्सर उन्हें

    कचोटती र्ी वक व ेअपन ेसत्य वप्रय मााँ बाप स ेवछपकर ऐस ेगलत काम करन ेलगें हैं वजनकी सच्चाई

    सामन े आन े पर बहुत िवमिंदगी उठानी पड़ेगी और इसस े मााँ बाप को िी बहुत दखु पहुाँचेगा ।

    गाांधी न ेएक वदन िाई के किे चोरी करन ेके अपराध के वलए मािी मााँगत ेहुए अपन ेवपता को बड़ा

    मावमषक पत्र वलखा । उन्हें उम्मीद र्ी वक वपता यह जानकर आग बबूला होंग ेलवेकन गाांधी मन पर िारी

    बोझ बन ेइस अपराध के वलए हर सजा िुगतन ेके वलए तयैार र्े । जो हुआ वह एकदम अप्रत्यावित र्ा

    । बीमार वपता न ेपत्र पढकर क्रोध नहीं वकया उल्टे उनकी आांखों में आांस ूआ गए | यह घटना गाांधी के

    जीवन में एक नया मोड़ लाई | उन्होंन ेसीखा वक अपनी गलती का सहज स्वीकार सामन ेवाल ेके मन में

    क्षमा और ममता का अहसास पदैा कर सकता है । बाद में गाांधी अपन ेववरोवधयों के हृदय पररवतषन के

    वलए इसी मांत्र का इस्तमेाल करत ेर्े ।

    ववलायत में िी गाांधी न ेकम उम्र में िादीिदुा िारतीयों के खुद को अवववावहत बतान ेकी आम परांपरा

    के अनसुार लोगों स ेअपन ेवववाह को वछपाकर रखा र्ा । एक ववधवा न ेगाांधी की एक अवववावहत

    लड़की स ेयह सोचकर मलुाकात कराई र्ी वक व ेएक दसूरे को समझकर िादी कर सकें | कुछ वदन तक

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    गाांधी उस ववधवा के घर इस युवती स ेबातें करन ेके मोहवि जान ेलग ेर्े लवेकन यहाां िी उनकी आत्मा

    को यह सांबांध ज्यादा आग ेबढाना उवचत नहीं लगा | इस बार िी सांकोच के सार् गाांधी न ेइन ववधवा

    मवहला को पत्र वलखकर मािी मााँगी । सौिाग्य स ेइनस ेिी पतु्र समान गाांधी को न केवल मािी वमली

    अवपत ुआग ेिी उनस ेस्नहे सांबांध बन ेरह े।

    गाांधी के जीवन में कुछ और िी ऐसी ही घटनाएाँ घटी वजसके कारण व ेगलत आदतों के विकार बन

    सकत ेर्े लवेकन कोई न कोई ऐसा सखुद सांयोग होता र्ा वक समय रहत ेव ेअपनी आत्मा की आवाज

    सनुकर गिढे की तरि बढ़त ेअपन ेकदमों को रोकन ेम ेसिल हो जात ेर्े । एक बार सांिलन ेपर वह यह

    सांकल्प अवश्य लते ेर्े वक दबुारा अपन ेकदम ऐस ेरास्तों पर नहीं पड़न ेदेंगे | इसी सांकल्प िवक्त न ेधीरे

    धीरे एक साधारण मानव को महात्मा बनान ेम ेमहत्वपणूष िवूमका अदा की र्ी । --

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    १०. ववल यत में विक्ष और विक्ष स ेइतर सीख

    ववलायत में पहल ेकुछ महीन ेगाांधी न ेठीक स ेअपन ेपरै जमान ेकी कौविि में जाया वकये । नतृ्य और

    िैिन के चक्कर म ेिाई की गाढी कमाई का कािी पसैा िी सूट बूट पर बबाषद वकया लेवकन कुछ गरीब

    महेनती सावर्यों को बहुत वकिायत स ेपढ़ाई करत ेदखेा तो गाांधी को िी बाहरी तामझाम के बजाय

    अवधक स ेअवधक पढ़ाई करन ेके वलए प्रेरणा वमली |

    कुछ वदन की पढ़ाई के बाद और वररष्ठ लोगों स ेमलुाकात के बाद गाांधी को लगन ेलगा र्ा वक बैररसटरी

    की पढ़ाई बहुत कवठन नहीं ह ैइसवलए उन्होंन ेतय वकया वक इसके सार् व ेलवैटन और फ्रैं च िार्ा की

    परीक्षा िी देंग ेक्योंवक लवैटन के बहुत स ेिब्दों का इस्तमेाल बड़ ेबैररसटर और न्यायाधीि अक्सर

    करत ेहैं और फ्रैं च उन वदनों यूरोप की लोकवप्रय िार्ा र्ी । पहली बार म ेगाांधी इस परीक्षा में िेल हो

    गये लवेकन गाांधी असिलता स ेिरे नहीं और अगली बार अवधक महेनत स ेसिलता िी पायी ।

    गाांधी न ेदो और अच्छी चीजें ववलायत प्रवास म ेसीखी । एक - उन्हें पढ़ाई स ेइतर अखबार और

    वकताबें पढन ेका िौक लगा और दसूरा समाज सवेा के काम करन ेवाली सांस्र्ा स ेजड़ुन ेका अनिुव

    हुआ । िाकाहारी िोजन के वलए गाांधी पहल ेजहाज़ की लांबी यात्रा और विर लांदन में कािी परेिान

    होत ेइधर उधर िटके र्े । इस दौरान उन्होंन ेिाकाहार पर कुछ वकताबें िी पढ़ी और इस ववर्य म ेअपन े

    परुान ेववचार बदल ेवजसके अनसुार ववलायत और खासकर ठांिे इलाके में माांसाहार स्वस्र् जीवन के

    वलए आवश्यक ह ै। अब उन्हें यह ववश्वास हो गया र्ा वक िाकाहार स ेहम अच्छा स्वास््य बना सकत े

    हैं | िाकाहारी जीवन के प्रचार प्रसार के उद्दशे्य स ेउन्होंन ेिाकाहारी लोगों की एक सांस्र्ा िी बनाई र्ी

    वजसके व ेमांत्री बन े। वकसी सांस्र्ा के वनमाषण और सांचालन का गाांधी का यह पहला अनिुव र्ा | बाद

    के जीवन में तो वह सांस्र्ा बनान ेऔर उनके कुिल सांचालन में वसद्धहस्त हो गए र्े ।

    ववलायत में ही गाांधी न ेववविन्न धमष ग्रांर्ो का अध्ययन वकया र्ा | िारत में रहत ेहुए उनका धावमषक

    ज्ञान बहुत सीवमत र्ा और वह जो कुछ अपन ेवषै्ट्णव पररवार में दखेा सनुा र्ा वसिष उतना ही र्ा ।

    वर्योसोविकल सोसायटी के सदस्य कुछ वमत्रों के सांपकष म ेआन ेपर उन्होंन े पहली बार गीता का

    अध्ययन वकया | गीता का गाांधी पर दरूगामी प्रिाव पिा | बाद के वर्ों में उन्होंन ेगीता पर आधाररत

    अनािवक्त योग नाम की एक लोकवप्रय कृवत िी वलखी और अपन ेजीवन में िी गीता के सांदिे को

    आत्मसात करन ेकी हर सांिव कौविि की और गीता में उवल्लवखत वस्र्तप्रज्ञ की तरह जीवन वबताया।

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    इसी दौरान गाांधी न ेबुद्ध दिषन का अध्ययन वकया और बाईबल पढी । इन दो धावमषक कृवतयों को पढन े

    के दौरान गाांधी न ेपाया वक सिी धमों के सार तत्व एक समान हैं | बाईबल पढन ेके बाद उनके मन स े

    ईसाई धमष के प्रवत निरत के परुान ेिाव िी वनकल गये जो िारत म ेधमािंतरण को दखेकर बन ेर्े ।

    गाांधी न ेअपनी आत्म कर्ा म ेिी वलखा ह ैवक ववलायत में बैररसटरी की पढ़ाई के बाद उनमें अच्छे

    वकील बनन ेकी काबवलयत तो नहीं आई र्ी लवेकन धमष की अच्छी जानकारी हो गई र्ी |

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    ११. ववल यत से ि रत व पसी

    ववलायत में गाांधी का पहला प्रवास बैररस्टरी की पढ़ाई के वलए ही र्ा । जसै ेही उन्हें विग्री वमली उसके

    अगल ेवदन इांग्लैंि के हाईकोटष में रवजस्रेिन कराकर तीसरे वदन उन्होंन ेबम्बई वापसी का जहाज पकड़

    वलया । बम्बई पहुाँचत ेही उन्हें लने ेआए बड़ ेिाई न ेउन्हें मााँ की मतृ्य ुका दखुद समाचार वदया | गाांधी

    की पढ़ाई में बाधा न हो यही सोचकर यह खबर अब तक उनस ेवछपाई गई र्ी । गाांधी इस खबर स ेटूट

    स ेगये | उन्ह ेइस बात का बेहद मलाल र्ा वक वपता की तरह वह अांवतम समय में माां की जरा िी सवेा

    नहीं कर सके । गाांधी उन्हें यह िी नहीं बता सके वक उन्हें दी गई तीनों प्रवतज्ञा उन्होंन ेअक्षुण्ण रखी और

    उसी के कारण तमाम अवसरों, समस्याओ ां और प्रलोिनो के बावजदू उन्होंन ेमाांस, मवदरा और ववदिेी

    मवहलाओ ां स ेखुद को दरू रखा |

    ववलायत छोड़त ेसमय गाांधी इस बात स ेिी वचांवतत र् ेवक बैररस्टरी की पढ़ाई म ेउन्हें वसैा व्यावहाररक

    ज्ञान हावसल नहीं हुआ वजसके कारण िारत में वकालत जमाई जा सके । एक तो पढ़ाई के दौरान िारतीय

    काननूों की जानकारी नहीं दी गई र्ी और न अदालतों की कारषवाई का व्यावहाररक अनिुव हुआ र्ा |

    िारत की अदालतों के अहांकारी अांग्रेज अवधकाररयों एवां वतकिमी वकीलों की तरह तरह की

    कारगजुाररयों से िी गाांधी पररवचत र्े | िारत आत ेसमय उनमें यह आत्म ववश्वास नहीं आया र्ा वक

    ववलायत स ेपढ़ाई के बावजदू व ेयहाां अपनी वकालत जमा पाएाँग े | दसूरी तरि पररवार के लोगों को

    उन स ेबहुत उम्मीद र्ी | सब यही सोचत ेर्े वक गाांधी के लौटत ेही घर की आवर्षक वस्र्वत एक बार

    विर स ेपरुान ेढरे पर लौट आएगी ।

    िाई और ििुवचांतकों स ेसलाह मिववरे के बाद यही तय हुआ वक बम्बई में ही वकालत करना बेहतर

    ह ै। इस वनणषय के पीछे एक कारण और र्ा । गाांधी के िाई का राजकोट ररयासत स ेकोई वववाद हो गया

    र्ा वजसके कारण वहाां के अांग्रेज अवधकारी न ेिी उनके बारे म ेगलत राय बना ली र्ी | उस अांग्रेज

    अवधकारी स ेववलायत में गाांधी की मलुाकात हुई र्ी हालााँवक वह पररचय दोस्ती जसैा नहीं र्ा । विर

    िी िाई की वजद के सामन ेन चाहत ेहुए िी गाांधी को उनस ेिाई का पक्ष रखन ेके वलए वमलना पड़ा ।

    अवधकारी न ेइस ेवसिाररि मानकर गाांधी स ेइस ववर्य पर कुछ िी नहीं सनुन ेका िरमान सुना वदया |

    गाांधी न ेअपनी बात रखन ेकी कौविि की तो अवधकारी न ेदरबान स ेउनकी बाांह पकड़कर बाहर करा

    वदया | गाांधी अपन ेअपमान की विकायत करना चाहत ेर्े लवेकन वररष्ठ बैररस्टर विरोजिाह न ेउन्हें

    रोक वदया और कहा- िारत में ऐस ेव्यवहार आम हैं | इस स ेआपके वलए आग ेवकालत करना मवुश्कल

    हो जाएगा |

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    गाांधी यह अपमान बदाषश्त कर गए । उन्ह ेअिी अपन ेघर की आवर्षक वस्र्वत ठीक करनी र्ी । इसवलए

    वकालत जमान ेबम्बई आ गए ।

    १२. नहीं जम वक लत क पेि

    वजस समय गाांधी न ेअपनी आजीववका के वलए वकालत का पिेा चुना र्ा उस समय उन्हें इस पिे ेकी

    अांदरूनी पचेीवदयों का कतई िान नहीं र्ा । यवद उन्हें वकालत की र्ि्यांत्री वतकिमो की र्ोड़ी सी िी

    जानकारी होती तो बेहद सांकोची और िमील ेस्विाव के गााँधी बैररस्टरी का सपना वबल्कुल नहीं दखेत।े

    ववलायत म ेबैररस्टरी की पढ़ाई करत ेहुए ही उन्हें यह सांिय सतान ेलगा र्ा वक िारत में बैररस्टरी करना

    उनके वलए आसान काम नहीं होगा । उस समय तक उन्होंन ेयह िी नहीं सोचा र्ा वक इस काम के वलए

    व ेबेकार सावबत होंग े।

    बम्बई आन ेके बाद अच्छी खासी कमाई तो दरू दो तीन महीन ेउनके पास एक िी मकुदमा नहीं आया।

    उन वदनों िी वकीलों को मकुदमा पकड़न ेके वलए दलाली दनेी पड़ती र्ी जो गाांधी के वलए अनवैतक

    काम र्ा ।

    तीनके महीन ेबाद गाांधी को एक मकुदमा वबना कमीिन वदए वमल िी गया | गाांधी न ेपरेू मन स ेतयैारी

    की लवेकन वजस समय मकुदम ेमें वजरह करन ेकी गाांधी की बारी आई उस समय गाांधी के हार् परै िूल

    गये और अदालत में व ेठीक स ेखड़ ेिी नहीं हो सके | अांततः बड़ी मवुश्कल स ेहार् लग ेपहल ेमकुदम े

    स ेिी उन्हें हार् धोना पड़ा | वबना काम वमल ेबम्बई के खचष अवधक वदन चलाना सांिव नहीं र्ा इसवलए

    गाांधी को मजबूरी में वापस राजकोट लौटना पड़ा ।

    राजकोट में िी वकालत जमाना गाांधी जसै ेनौवसवखए और नवैतकता के सार् वकालत करन ेके आग्रही

    गाांधी के वलए सांिव नहीं र्ा इसवलए वहाां िी उन्होंन ेअजी आवद वलखन ेके हल्के काम िरुू वकये |

    गाांधी की पढ़ाई के वहसाब स ेयह काम िोिनीय नहीं र्ा और इसस ेआमदनी िी बहुत अवधक नहीं

    र्ी।

    िाई के एक पररवचत के मकुदम ेस ेजड़ुे काम के वलए गाांधी को एक बार विर स ेववदिे जाने का काम

    वमला | हालााँवक गाांधी को ववदेि जान ेका कोई खास चाव नहीं र्ा लवेकन इस बार पढ़ाई की बजाय

    कमाई का ठीक ठाक अवसर र्ा | अफ्रीका के एक िारतीय मवुस्लम व्यापारी का अफ्रीका की अदालत

    में एक बड़ा मकुदमा चल रहा र्ा वजसके वलए उन कम पढ़े अमीर व्यापाररयों को एक ऐस ेिारतीय

    वकील की आवश्यकता र्ी जो उनके अांग्रेज वकील के सहायक के रूप में काम कर सके | कम पढ़ े

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    वलखे होन ेके कारण वह लोग गाांधी के माध्यम स ेअांग्रेज वकील को अपना मामला अच्छी तरह समझा

    सकत ेर्े इसवलए उन्हें गाांधी की सवेाओ ां की आवश्यकता र्ी |

    गाांधी को वकालत की बजाय अफ्रीका के बड़ ेवकील की सहायता करना अवधक आसान लगा | इस