नििावत्र साधना स्िाध्ा प्रर् ......व त र स...

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नवराि साधना वायाय 2016 | DSVV 1 आज का विषय - चतुथ अयाय का 34 िि ोक तविवि विपातेन परिेन से िया । उपदेयवतत ते ान ि ावननतिदवशथनः ॥ (4/34) अथ - उस ान (ानय) को तू तिदशी ावनय के पास जाकि समझ, उनको भलीभाावत दडित्-िाम किने से , उनकी सेिा किने से औि कपट छोड़कि सिलतापूिथक किने से , िपिमाम ति को भलीभाावत जानने िाले ानी महामा तुझे उस तिान का उपदेश किगे॥ (4/34) म वदिस - माा शैलपुी का वदन । नवराि अाात नौ रात । मा द ा का दन । द ा अात द ाम प को पार कर ले जाने वाली देवी । ा नौ ऱप म आती है । म ऱप है - शैलपुिी । शैलपुिी - पवात राज हम की पुिी जनका ववाह द से हुआ ा। आज ऐसी देवी का यान करे जो पवात को भेदकर , जड़ता को मटाकर नकली है । पाषण को भेद कर चेतना का उम - शैलपुिी । ुर ही सद ञान का उपदेश देते ह उनसे हम जाकर पूछ -सीख , ककर णाम कर, उनके लए सेवा कर । गीत - गुर ही नैया गुर वििैया ...। ----------------------------------------------------------- ोिी ----------------------------------------------------------- साधना के दौरान नयम ? - सामाय जीवन चयाा हो, यादा Luxury नह । दनचयाा म नितता व नर तरता । साववक भोजन । कसी कार की कोई तामसक च तन न आये इसके लए वायाय। तपियाा व यो सा सा चलना चाहए। साधना से ईर की ाि कैसे ? - साधना ारा ईर की ाि अ तजात म अनुभूत के मायम से होती है। हमारा अ तजात शत हो। तजात म सुख व शत। शा त होी तभी सुख व आन द होा। ईर ाि की अनुभूत के परणाम - i) हमेशा Positivity आती है। मन सन रहता है , हमेशा हम मुकुराते रहते है। सनता की ाि ii) सुरा - हम सुरत महसूस होता है। ईर हमारे ाण की रा करते है। iii) नरो जीवन, दीा जीवन, अमृत की ाि । अमृत - जवानी का अन त ोत। अर बीमार भी पड़ ए तो द खी नह होी नििाव साधना िायाय म वदिस दना 1 अट बर, 2016 Discourse by Shraddhey Dr. Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay & Head of All World Gayatri Pariwar)

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Page 1: नििावत्र साधना स्िाध्ा प्रर् ......व त र स V स व ध 2016 | DSVV 1 आज क व ष - चत र थअध ^ ^ क 34

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

1

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 34िाा शलोक

तविवि परविपातन परिपरशनन सिया

उपदकषयवतत त जञाना जञावननसततिदवशथनः (434)

अरथ -

उस जञान (जञानयजञ) को त ततिदशी जञावनयो क पास जाकि समझ उनको भलीभाावत दणडित-परिाम किन स उनकी

सिा किन स औि कपट छोड़कि सिलतापिथक परशन किन स ि पिमातम तति को भलीभाावत जानन िाल जञानी महातमा

तझ उस ततिजञान का उपदश किग (434)

पररम वदिस - माा शलपतरी का वदन

नवरातरि अराात नौ रात माा दराा का तरदन दराा अराात दराम पर को पार कर ल जान वाली दवी

दराा नौ रपो म आती ह पररम रप ह - शलपिी

शलपिी - पवात राज तरहम की पिी तरजनका तरववाह दकष स हआ रा

आज ऐसी दवी का धयान करर जो पवात को भदकर जड़ता को तरमटाकर तरनकली ह

पाषण को भद कर चतना का उदगम - शलपिी

रर ही सदञान का उपदश दत ह उनस हम जाकर पछ -सीख झककर परणाम कर उनक तरलए सवा कर

गीत - गर ही नया गर वििया

----------------------------------------------------------- परशनोततिी -----------------------------------------------------------

साधना क दौरान तरनयम - सामानय जीवन चयाा हो जयादा Luxury नही तरदनचयाा म तरनतरितता व तरनरतरता सातरववक भोजन

तरकसी परकार की कोई तामतरसक तरचतन न आय इसक तरलए सवाधयाय तपियाा व योर सार सार चलना चातरहए

साधना स ईशवर की परातरि कस - साधना दवारा ईशवर की परातरि अतजारत म अनभतरत क माधयम स होती ह हमारा अतजारत शात हो

अतजारत म सख व शातरत शातरत होरी तभी सख व आनद होरा

ईशवर परातरि की अनभतरत क पररणाम -

i) हमशा Positivity आती ह मन परसनन रहता ह हमशा हम मसकरात रहत ह परसननता की परातरि

ii) सरकषा - हम सरतरकषत महसस होता ह ईशवर हमार पराणो की रकषा करत ह

iii) तरनरोर जीवन दीरा जीवन अमत की परातरि अमत - जवानी का अनत सरोत अरर बीमार भी पड़ रए तो दखी नही होरी

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पररम वदिस

तरदनाक ndash 1 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

2

धयान करत समय नीद आय तो कया कर - नीद को ही आप धयान का तरवषय बना लीतरजय तरनदरा क समय तववबोध की साधना

धयान म नीद आलसय की वजह स आता ह तामतरसकता बढ़ जान पर नीद आती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की मवहमा कया ह जञान कया ह कसा जञान जञान को कयो जीिन म धािि किना चावहए जञान स मोह को दि

कस वकया जा सकता ह ऐसी जञान की मवहमा की चचाथ आज हम किग

तरकसी भी राषटर की सबस बड़ी सपतरि ञान ह ञान समाज की सपदा ह

जहा सामरथया ह वहाा ञान ह ञान Knowledge नही Wisdom ह हमार ऋतरषयो न हम ञान का खजाना तरदया ह

ञान हम अपन जीवन म तरवतरभनन रपो म तरमलता ह- ससकतरत क रप म सभयता क रप म धमा क रप म दशान क रप म तरवञान

क रप म शतरि क रप म कशलता क रप म आतरद रपो म

जो वयतरि समरा ह जो कशल ह उसक पास ञान ह अनभतरतयो क तरपचछ ञान ह

ञान क बराबर पतरवि कछ भी नही ह वह ञान जो हम जीवन जीना तरसखाए जीवन को कस तरजए हम हमार जीवन म सफलता

कशलता आतरद कस तरमल य बताय वह ञान पतरवि ह

तरजतन भी परकार क ञान ह अरर उनको तरमलकर कहा जाए तो एक होता ह परकतरत का ञान (परा परकतरत का ञान) और दसरा ह

परमावमा का ञान (परा परकतरत का ञान)

कछ लौतरकक ञान ह और कछ अलौतरकक ञान

एक ञान ऐसा ह जो जीवन क परमावम तवव स समबतरधत ह वह ञान ह आवमञान

दीपक क परकाश का वासततरवक सरोत उसक जलन वाली लौ ह ञान सवय परकाशमय ह

जीिन का आधािभत तति पिमातमा ह िही आतम चतना ह जड़ तति म भी चतनता िही लाता ह जीिततता िही लाता

जस ही शिीि म आतमतति आता ह िस ही उसम चतनता आती ह ससक ीीना हमािा शिीि कछ भी नह जस ही शिीि

वनषपपराि हआ उसम आतमतति समापत हो जाता ह आतमतति की िजह स पराि ह

ञान तरवचारो का एकिीकरण नही ह वह अनभतरत ह तरवचार हम माि एक मानतरसक अहसास द सकत ह वासततरवक नही

True Knowledge is not a collection of thoughts

ञान हम पसतक पढ़न माि स नही होता पसतक माि वचाररकता और बौतरिकता स भारती ह परनत उस अनभव हम करत ह

य ञान ह जो वयतरि को अनदर स तरवभोर कर दता ह आनतरदत कर दता ह

पर ञान आएरा कस ndash गयानी की सरती स जलदी ञान तरमलरा ररओ की वजह स ञान

ञान अभयास मारता ह ndash अभयास त कौनतय तरबना अभयास क ञान नही

अपन अनभवो को वयापक बनाओ कवल वद उपतरनषद पराण आतरद पढन माि स ञान नही आएरा जब तक की अनभव न तरकया

जाय आचरण म उस लान का परयास न तरकया जाय

तरजनन परम तरकया ह उनको परभ तरमल ह परम अनभतरत ह

ञानी जनो को परम पवाक परणाम करक जानो ञान को अपनी तरजञासाओ को उनक सामन रखो

जो ञानी ह वह तरववक क सार-सार योगयता-पािता भी दखत ह ञान दन क तरलए पहल हम योगय तो बन ञान लन क तरलए

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

3

कछ लोर ञातरनयो को छड़न क तरलए परशन पछत ह कपट करत ह छल करत ह ञातरनयो स तरनषटकपट होकर अपन परशनो को पछो

उनकी सवा करो अराात उनक ञान को जन-जन तक पहचाओ ञातरनयो को भौतरतक सवा नही आधयातरवमक सवा चातरहए सवा स

उनह परसननता तरमलरी और तब ञान का परसाद तरमलरा परसननता अराात परसाद

ञान सरलता स नही तरमलता उसक तरलए हम परीकषाओ स रजरना पड़ता ह परीकषा अराात परखना ञान परातरि क तरलए आपको

तरवतरभनन माधयमो स परखा जाता ह

रर ndashतरशषटय क तरमलन स ञान का परसरण होता ह

सीखन क तरलए जो नमर ह तरजञास ह सरल ह उस ञान तरमलता ह रर क माधयम स

जो सीखन क तरलए तवपर ह वह तरशषटय और जो ञान स अतरभभत ह वह रर

परीकषा म पास हो रय तो रर की कपा पराि होती ह

रर ञान का समपरषण करत ह सही रर का ञान तरमलना जररी ह ऐस रर सदगर ह

हम पसतकोपाठो को पढ़कर उस वचाररक व बौतरिक रप स समझ लत ह और उसको हम ञान मान लत ह वह ञान वासततरवक

नही वह माि बतरि तक ही सीतरमत ह हम बतरि स आर नही जा पात

पढ़न माि स ञान नही तरमलता जब तक उस अनभत नही तरकया जाय जीवन म उतरा न जाय

तरवडमबना यह ह तरक हम अनभव म शनय ह और ञान क अहकार म आर हम अपनी परतरतषठा अहकार म लर रहत ह

परतरतषठा स यतरद अहकार पदा होता ह तो वह तरवकतरत दती ह और तरजस परतरतषठा स अहकार नही होता वह तरवकतरत नही दती

अहाकाि छट तो अनभवत क िाि िल जञान वमल

जो जञान क वलए झक जाए उस जञान वमलता ह

ञान क तरलए झकना पड़ता ह तरवनमर बनना पड़ता ह

झकना सीखो झककर ञान परातरि क तरलए आतर बनो अहकार व परतरतषठा को रलाकर

ञान बतरि नही तरववक ह ञान समतरत नही अनभव ह ञान शबदो का सकलन नही अनभवो की सकषमता ह

ञान का सरोत ह तरचि की शतरि ञान हमार अनदर ही ह जब तरचि शि होता ह तो ञान परकट होन लरता ह

जो कामनाओ इचछाओ वासनाओ स तरचपका हआ ह उस ञान नही तरमलता

नतरतकता हमार वयवहार तक सीतरमत ह जबतरक तरचि की शतरि आधयातरवमकता ह

To Be ndash बन जाओ जो आप अनदर स ह

Be and Make ndash ीनो औि ीनाओ

ञान का उपदश शबदो म नही साधना म होता ह अपन आपको माजना साधना ह मन को माजो

अनभव क माधयम स ही ञान ह और ञान स ही आपका जीवन धनय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

4

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 35िाा शलोक

यजजजञातिा न पनमोहमिा यासयवस पाणडि

यन भतातयशषि दरकषयसयातमतयरो मवय (435)

अरथ -

वजसको जानकि विि त सस परकाि मोह को नह परापत होगा तरा ह अजथन वजस जञान क िािा त समपिथ भतो को

वनःशष भाि स पहल अपन म औि पीछ मझ सवचचदानतदघन पिमातमा म वदिगा (435)

वितीय वदिस - माा बरमहचारििी (बरमह स तपी हयी) का वदन

रायिी और दराा एक ही ह दराम वयतरि को मारन की वजह स दराा कहा रया

रर क सातरनधय म आन क बाद मोह तरमट जाता ह और सब ओर ईशवर की अनभतरत होती ह

मोह न होना सबस बड़ा वरदान

गीत - गर वीन जञान नह नह ि

रर क तरबना ञान नही तरमलता ह तरजस परकार सरज (सया इस जरत की आवमा ह) क होन क कारण चारो तरफ परकाश होता ह उसी

परकार स जब रर आत ह तो जीवन क अनधकार म परकाश कर दत ह

----------------------------------------------------------- परशनोततिी -----------------------------------------------------------

तरवदयारी जीवन म नवरातरि साधना क फायद ndash नवरातरि साधना क बहत स फायद ह पर तरवदयातररायो क तरलए दो फायद मखयरप स ह

पहला Concentration (एकागरता) एव दसरा सयम का अभयास

उपासना म सवतः ही आपको अनभतरत होरी भाव-सवदनाओ की

------------------------------------------------------- 2 अकटीि विशष ------------------------------------------------------

2 अकटीि क वदन भाित क दो सपतो का जतम हआ महातमा गााधी जी ( 2 October 1869 - 30 January 1948 aged-78 )

एिा लाल ीहादि शासतरी जी (2 October 1904 - 11 January 1966 aged-61)

शासतरी जी का जीवन अपन म साधनामय रा शासतरी जी सादरी क परतरतमतरता र तरजनहोन ldquoजय जवान - जय तरकसानrdquo का नारा तरदया

व सोमवार क वरत की पररणा दी

रााधी जी को महावमा की उपातरध तरमली रााधी जी आवमबल क धनी र अतरहसा अपररगरह एव सवयागरह क तरसिात रााधी जी न

अपनाए व समाज क तरलए एक पररणा बन और दश क आजादी म महववपणा योरदान तरदया

ऐस आज दो सपतो का जनमतरदवस ह तरजनहोन न दश की आजादी की लड़ाई म अपनी भारीदारी दी ऐस सपतो को नमन ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash वितीय वदिस

तरदनाक ndash 2 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

5

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की मवहमा अनात ह जञान हमािी सासकवत म सभयता म धमथ म हि वकसी म परिलवित होता ह

ञान की वजह स ही पशओ और मनषटयो म तरभननता ह

आज हमार पास बहत स ञान ह तरह तरह क ञान (तरवतरभनन तरवषयो स समबतरधत) ह यह ञान तरवभाजन का ञान ह यह हम

Fragmented Knowledge दता ह पणा ञान नही

उदाहरण तौर पर दख तो अरर Sociology की बात कर तो इसम समाज स समबतरधत तरवभाजन का ञान तरमलता ह जन-समदाय

जातरत वरा आदी क तरवभाजन की जानकारी अरर Physiology की बात कर तो शरीर समबतरधत तरवतरभनन भारो एव तिो(Systems)

क बार म ञान तरमलता ह History पढ़त ह तो अलर ndash अलर कालखणडो क बार म जानकारी तरमलती ह य सार ञान तरवभातरजत

ञान ह

य ञान जो ह अखणड को खतरणडत कर दता ह जो समपणा का ञान द सबका ञान द वह अखणड ञान ह

साखय और वदानत दो शासतर ह साखय म परकतरत व परष का ञान ह जबतरक वदानत म समपणाता का अधययन ह तरजसम य बताया रया

ह तरक बरमह ही सवय ह अरातो बरमह तरजञासा सभी बरमह का ही सवरप ह अलर-अलर रपो म

तरवभाजन का ञान वासततरवक ञान नही इस ञान को पराि कर लन स मोह दर नही होरा

जीवन म ऐसा ञान चातरहए जो मोह को नषट कर द

जञान ऐसा पािस ह कलपिि ह अमत ह जो हम मोह स दि किता ह

आज कही परम ह तो कही बर ह कही मोह होरा तो कही तरवरतरि यतरद अपन ndash पराय का भाव ह तो समझो मोह तरवदयमान ह

सभी हमाि ह सभी अपन ह वकसी स ईषपयाथ नह िष नह सीस परम सीक परवत आतमीयता

जहा मोह नही वहाा सब अपन ह हमार अतरसतवव को समपणाता चातरहए इसतरलय य मानना होता ह आवमा क तरलए पराण क तरलए तरक

सब अपन ह

हम मोह की वजह स अपन-पराय क चककर म पड़ जात ह

ञानी वह ह जो समपणा अतरसतवव को दखता ह ञानी वह नही जो खणड-खणड करक दखता ह

न पनमोह ndash तरफर स मोह नही आएरा अरर ञान आजाय तो

सारी आपतरियो एव परशातरनयो का मल एक ही ह ndash मोह

हमारा मन जो ह सार अतीत का अहसास करा जाता ह तरजसकी वजह स हम परशान हो जात ह सशय म जात ह जहाा Doubt होरा

वहाा ञान नही

हम Doubtless Knowledge की जररत ह

ऐसा ञान जो सतरदगध न हो सदह रतरहत हो तरजसम भरातरनत न हो सीमा न हो तरजसम अनतता हो वही ञान सचचा ञान ह

वह ञान रर की कपा स तरमलता ह खणड ञान स नही

अश को जानन स पणा को नही जान सकत परनत पणा को जान तरलए तो अश को जान तरलए

जो मोह म सदह म व तका म दाल द वह ञान वासततरवक नही ञान वह ह जो अञान स अशातरत स तरवतरभनन परकार क सशय स हम

मि कर द तरनकाल द

जञान शबद औि विचाि नह जञान सतय की अनभवत ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

6

Experience the Truth is the True Knowledge

ञान जीवन म उतरना चातरहए ञानी क जीवन म माया तरदखाई नही पड़ती ञान को आवमसात करो आवमसात अराात अपन अनदर

उतार लना अपन अनदर सोख लना

मनन तरचतन तरनतरदधयासन करोर तो आवमसात होरा

ञानी जब ञान दत ह तो ञानसर होकर ञान दत ह

आज तरचताए बहत ह तरचता स तरदमार म शोररल होता ह बस तरचता स वयवसरा नही होती जो वयतरि परशान ह उसक जीवन का

सरीत नषट होरया ह शोररल भी धवतरन ह सरीत भी धवतरन ह जब धवतरन म सर-ताल होता ह तो वह सरीत ह

आज क ञान म वयतरि परशान भी ह वयतरि म तरचता भी ह भतरि भी ह और भयभीत भी ह जब ञान आता ह तो तरचता चल जाती

ह और भय चल जाता ह

ञान म शातरत ह भतरि ह

आसतरिया जीवन की खतरटया ह तरजसम हमन अपन जीवन क कपड़ो को टार रखा ह मोह तरकसी स भी हो जाता ह जस पढन वालो

को तरकताबो स मोह जाता ह आसतरि स मि होना मतलब बधनो स मि होना तरजस मोह ह वह खणडो म बध ह हमारी आसतरि

परबल व सबल हो उसस पहल हम इनस तरनकल

मन एक परकार की भरातरनत ह तरजसकी वजह स तरचता परशातरनया भी ह ञान वह ह जो मन की भरातरनत स मि कर दता ह जहाा मोह

नही भरातरनत नही वहाा ञान ह

मोह नषट हो रया तो ञान हो रया अराात यहाा स ञान की शरआत हो रयी

जब हमारा मन तरनषटकलष होता ह तो एक परतरिया होती ह तरचि शतरि की और जब तरचि शि होता ह तो ञान की परातरि होती ह ञान

को जान लन स मोह नही होता सब अपन हो जात ह

अधयाय 6 क 29व और 30 व शलोक म बताया रया ह तरक सवावयापी अनत चतन म एकाकी भाव स तरसरत रप योर स यि आवमा

वाला तरा सबम समभाव स दखन वाला योरी आवमा को समपणा भतो म तरसरत और समपणा भतो को आवमा म कतरलपत दखता ह

जो सबक आवम रप म मर वासदवरप को दखता ह उसक तरलए म अदशय नही और मर तरलए वह अदशय नही

ररकपा स ञान दवारा मोह नषट हो जाता ह एव सभी म ईशवर की अनभतरत होती ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

7

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 36िाा शलोक

अवप चदवस पापभयः सिभयः पापकततमः

सि जञानपलिनि िवजना सततरिषपयवस (436)

अरथ -

यवद त अतय सभी पावपयो स भी अवधक पाप किन िाला ह तो भी त मि जञानरप नौका िािा वनःसादह समपिथ पाप-

समदर स भलीभाावत ति जाएगा (436)

ततीय वदिस - माा बरमचारििीचतदरघाटा का वदन

नवरातरि इस बार १० तरदनो की पद रही ह इसम दो तरदवतीया ह इसतरलए आज भी माा बरमचाररणी को याद करत ह

भरवान कहत ह तरक यतरद त पापी भी ह तो ञान की नौका स पार हो जाएरा सचच मन स परायतरित तरकया तो तर जाएरा

ञान का मतलब ह पतरविता क सारर म सनान करना

पतरविता क सारर म जो सनान कराय वह ञान ह लतरकन वह ञान कस तरमलरा रर की कपा स

रर अराात ञान को तरशषटय म उड़लन वाला वो रर जब तरमल जाय तो अनदर क कषाय-कलमस समाि हो जाय

गीत - कौन-कौन गि गाऊा गर ति कौन-कौन गि गाऊा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

भगिान की सीस ीड़ी यवद पजा ह तो िह ह उनको जानन का परयास किना हम उतह जानन का परयास ही नह कित

उतह जानन का परयास कि उनक गिो को धािि किन का परयास कि

सबस बड़ी समसया जो ह वह ह मोह मोह की वजह स पाप हो जाता ह लतरकन इस पाप स कस पार हो ञान की नौका म बठकर

पार हो सकत ह

पाप जो ह वह अधोरतरत ह अनधलोक ह तरनमनयोतरन ह अतरधयारा ह

हमार तरचि की जसी अवसरा होरी वस ही हमारा जीवन होरा

तरचि को जस ही Mold करोर सही तरदशा म मोड़ोर तो जीवन म पररवतान आएरा

यवद वचतत म अतधकाि ह तो जीिन अधोगामी होगा औि यवद वचतत म परकाश ह तो जीिन उधिथगामी ीनगा

तरचि म परकाश आता ह Positivity स हमार तप स साधना स तरचि म जो अतरधयारा ह वह समाि हो जाता ह

Too Much Attachment is RAG (िाग) and Too Much Detachment is DWESH (िष)

तरचि म अतरधयारा अशभ कमो स आता ह तरचिरि और कोई नही हमारा तरचि ही तरचिरि ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash ततीय वदिस

तरदनाक ndash 3 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

8

वचतत की अिसरा ही अशभ-शभ परिवसरवत का वनमाथि किती ह

कमा क सार जो भाव ndash तरवचार जड़ ह वह बीज बन जात ह और तरफर यही फलत ह और पररपाक होत ह और तरफर यही फल दत ह

यही परारबध बन जात ह

हम तरनतरमि बन जाना ह भरवान क

तीन चीज ह ndash नीवत वनयवत औि वनवमतत

हमाि जीिन की नीवत कया ह शली कया ह सकािातमक ह या नकािातमक हम दःि दत ह या दःि दि कित ह यवद

नीवत अचछी ह तो वनयवत अचछी ीनगी औि वनयवत जसी ीनगी िसी वनवमतत

अरर कोई अशभ कमा करता ह तो उसकी तरनयतरत तरवनाश की ओर बनरी

यतरद कोई आपकी बराई करता ह तो आप तरवचतरलत न हो कयोतरक जो आपकी बराई करता ह वह खद तरवनाश को पराि करता ह

परकतरत उस फल दती ह

हम अपनी नीतरत दवारा तरनयतरत बनात ह और तरनयतरत क अनरप तरनतरमि उपतरसरत हो जात ह

भगिान कहत ह वक यवद त पावपयो स भी अवधक पाप कि लता ह तो भी तिी वनयवत परििवतथत हो सकती ह अगि सचचा

परायवित वकया जाए तो

मनषपय क जीिन का सिरप उसक जञान पि वनभथि किता ह

अञानता की वजह स हमस पाप हो जाता ह

पाप एक भरावतत ह एक परकाि का अजञान ह

अजञानता िश वकय गए काम को पाप कहत ह

जब मोह ञान को गरतरसत कर लता ह तो पाप होन लरता ह जहा मोह होरा वहाा ञान नही होरा जहा मोह ह वहाा पाप पनपरा

पाप होरा

आज तरकसी भी पापी स यह सनना आसन नही तरक मझस पाप हो रया रलती हो रयी

भरवान कहत ह तरक जानत ह तरक पाप तरकया ह पर सवीकारत नही यह सबस बड़ी रलती ह

मनषटय अञान क अनधकार म सही तरदशा भल जाता ह

अजञान क अतधकाि म उवचत-अनवचत का भद न कि पाना पाप ह

एक ही उपाय ह पाप स तिन का िह ह जञान कषटण जी कहत ह तरक पाप क बाद भी जीवन समाि नही हआ अभी जीवन बाकी

ह एक आशा बची ह वह ह ञान का परकाश कषटण का नाम ह परकाश

वयतरि क तरचि म अशभ का सकलन हो रया ह जो उस पापी बना दता ह पर उसका पररमाजान तरकया जा सकता ह

जस पवो-वयोहारो म हम रर की साफ़-सफाई एव रर रोरन करत ह वस ह तरचि की सफाई करनी चातरहए रर रोरन होना चातरहए

रलतरतयो का परायतरित तरकया जा सकता ह पाप स भी बड़ी रलती ह तरक इसक बावजद होश म नही आ रह ह

जञान जागिि ह अजञान की मछाथ स

अपनी रलती को सवीकारना Confess करना बहत मतरशकल ह पर तरजसन रलती को सवीकार कर तरलया और परायतरित तरकया ह तो

उसस बड़ा महान कोई नही

जीवन की नीतरत तका परसतत कर सकती ह परनत परकतरत कोई तका नही सवीकारती परकतरत अपना फल दती ह

तरनतरत यतरद शभ होरा तो तरनयतरत और तरनतरमि सही बनर और यतरद अशभ हो तो तरनयतरत और तरनतरमि बर होर

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

9

जो हो चका तरपछला सो हो चका अब जीवन पर पनतरवाचार करो अञानता क कारन तरदशा मत भटको

भरवान जब पापी को पयार करत ह तो उसका पाप मारा बदल जाता ह

आज अतरवशवास का दौर ह कोई तरकसी पर तरवशवास ही नही करता आज अतरनतरितता ह

इनकी वजह स आज जीवन का सौनदया नषट हो रया ह जीवन म तरवकतरतयाा और तरनरसता आरयी ह

अञान ही ह वह तरजसकी वजह स पाप होत ह महववाकाकषाए आदमी को नषट करती ह जब तक कामनाए नही जायरी तब तक

आप रलत काम करत रहर

अनधकार और अनीतरत क तरजतन रप ह सब पाप ह जहा ञान पापो स तरररा हो वहाा ञान का कोई मतलब नही

ईशवर करणावान ह सबको अवसर दत ह

एक बार एक वयतरि क रर उसका बटा मर रया अब एक ञानी ञान द रह र तरक आवमा अमर ह अजर ह शरीर तो चला जाता ह

जो आता ह वह तो जाता ही ह शोक मत करो कयो रोत हो आतरद तरह तरह क ञान तरदय दसर तरदन लोरो न दखा तरक वह खद तरकसी

बात पर रो रहा ह जब लोरो न उसस पछा तो बताया तरक उसकी बकरी मर रयी तरजसस उस पीन क तरलए दध तरमलता रा बस सारा

ञान एक तरफ जो खद दसरो को ञान द रहा रा तरक कयो रोत हो वह खद रो रहा रा

जञान आचिि म उति तो सारथक ह जो ञान का आचरण कर ऐस कम तरमलत ह

ञान मतलब आचरण आचरण स वयतरिवव बनता ह वयतरि शरषठ बनता ह

भगिान उस जञान की ीात कित ह जो आचिि म आतमसात हो जाए हमािा जञान आचिि म आय हम चल तो

ीोल तो या विि अनभत कि तो वचतत म यवद परकाश ह तो हम दि लोक तक जा सकत ह वचतत शि ह तो पराि

शि ह

जीवन की रतरत तरचि स तय होती ह आपकी रतरत आप सवय तय करत ह आपकी नीतरत तय करती ह तरक जीवन कसा होरा आपका

भगिान कहत ह वक परकाश क मागथ म परकाश की वदशा म चलो चाह वकतन भी पाप वकय हो जञान क िािा टाि जाओग

वचतत को अशि किना पाप ह औि वचतत को शि किना पणय ह

हम सिारथ औि अहाकाि की वदशा म ीतहाशा भागत ह अपनी मयाथदाओ ा ि िजथनाओ ा को तोड़त ह ससवलए पाप कि

ीठत ह

असरता को जड़ स तरमटाओ कोई तमह राली द तो परवयिर म तम राली मत दो वमनसय और ईषटयाा स हम सवय दतरणडत होत ह

ञान की बड़ी मतरहमा ह ञान स सारी परशातरनया समाि हो जाती ह

रर दवारा हम ञान तरमलता ह रर वो होता ह ज हम ञान क चकष दता ह हमारी मछाा को तोड़ता ह अनधकार स परकाश की ओर

लजाता ह

तरजसका ञान वाणी व तरवचारो तक सीतरमत ह वह ञानी नही ह जहा तरवचार क सार आचरण ह वहाा ञान ह जब आचरण म ञान

आ जाता ह तो भरातरनत स मोह स मि कर दता ह

ञान होरा तो अशभ नही होरा पाप नही होरा अतः अपन अनदर जो अतरधयारा ह उस तरनकालो और अपन अनतः को परकातरशत करो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

11

रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

15

भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

16

अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

24

परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

31

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

33

चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

35

छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

36

आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

2

धयान करत समय नीद आय तो कया कर - नीद को ही आप धयान का तरवषय बना लीतरजय तरनदरा क समय तववबोध की साधना

धयान म नीद आलसय की वजह स आता ह तामतरसकता बढ़ जान पर नीद आती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की मवहमा कया ह जञान कया ह कसा जञान जञान को कयो जीिन म धािि किना चावहए जञान स मोह को दि

कस वकया जा सकता ह ऐसी जञान की मवहमा की चचाथ आज हम किग

तरकसी भी राषटर की सबस बड़ी सपतरि ञान ह ञान समाज की सपदा ह

जहा सामरथया ह वहाा ञान ह ञान Knowledge नही Wisdom ह हमार ऋतरषयो न हम ञान का खजाना तरदया ह

ञान हम अपन जीवन म तरवतरभनन रपो म तरमलता ह- ससकतरत क रप म सभयता क रप म धमा क रप म दशान क रप म तरवञान

क रप म शतरि क रप म कशलता क रप म आतरद रपो म

जो वयतरि समरा ह जो कशल ह उसक पास ञान ह अनभतरतयो क तरपचछ ञान ह

ञान क बराबर पतरवि कछ भी नही ह वह ञान जो हम जीवन जीना तरसखाए जीवन को कस तरजए हम हमार जीवन म सफलता

कशलता आतरद कस तरमल य बताय वह ञान पतरवि ह

तरजतन भी परकार क ञान ह अरर उनको तरमलकर कहा जाए तो एक होता ह परकतरत का ञान (परा परकतरत का ञान) और दसरा ह

परमावमा का ञान (परा परकतरत का ञान)

कछ लौतरकक ञान ह और कछ अलौतरकक ञान

एक ञान ऐसा ह जो जीवन क परमावम तवव स समबतरधत ह वह ञान ह आवमञान

दीपक क परकाश का वासततरवक सरोत उसक जलन वाली लौ ह ञान सवय परकाशमय ह

जीिन का आधािभत तति पिमातमा ह िही आतम चतना ह जड़ तति म भी चतनता िही लाता ह जीिततता िही लाता

जस ही शिीि म आतमतति आता ह िस ही उसम चतनता आती ह ससक ीीना हमािा शिीि कछ भी नह जस ही शिीि

वनषपपराि हआ उसम आतमतति समापत हो जाता ह आतमतति की िजह स पराि ह

ञान तरवचारो का एकिीकरण नही ह वह अनभतरत ह तरवचार हम माि एक मानतरसक अहसास द सकत ह वासततरवक नही

True Knowledge is not a collection of thoughts

ञान हम पसतक पढ़न माि स नही होता पसतक माि वचाररकता और बौतरिकता स भारती ह परनत उस अनभव हम करत ह

य ञान ह जो वयतरि को अनदर स तरवभोर कर दता ह आनतरदत कर दता ह

पर ञान आएरा कस ndash गयानी की सरती स जलदी ञान तरमलरा ररओ की वजह स ञान

ञान अभयास मारता ह ndash अभयास त कौनतय तरबना अभयास क ञान नही

अपन अनभवो को वयापक बनाओ कवल वद उपतरनषद पराण आतरद पढन माि स ञान नही आएरा जब तक की अनभव न तरकया

जाय आचरण म उस लान का परयास न तरकया जाय

तरजनन परम तरकया ह उनको परभ तरमल ह परम अनभतरत ह

ञानी जनो को परम पवाक परणाम करक जानो ञान को अपनी तरजञासाओ को उनक सामन रखो

जो ञानी ह वह तरववक क सार-सार योगयता-पािता भी दखत ह ञान दन क तरलए पहल हम योगय तो बन ञान लन क तरलए

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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कछ लोर ञातरनयो को छड़न क तरलए परशन पछत ह कपट करत ह छल करत ह ञातरनयो स तरनषटकपट होकर अपन परशनो को पछो

उनकी सवा करो अराात उनक ञान को जन-जन तक पहचाओ ञातरनयो को भौतरतक सवा नही आधयातरवमक सवा चातरहए सवा स

उनह परसननता तरमलरी और तब ञान का परसाद तरमलरा परसननता अराात परसाद

ञान सरलता स नही तरमलता उसक तरलए हम परीकषाओ स रजरना पड़ता ह परीकषा अराात परखना ञान परातरि क तरलए आपको

तरवतरभनन माधयमो स परखा जाता ह

रर ndashतरशषटय क तरमलन स ञान का परसरण होता ह

सीखन क तरलए जो नमर ह तरजञास ह सरल ह उस ञान तरमलता ह रर क माधयम स

जो सीखन क तरलए तवपर ह वह तरशषटय और जो ञान स अतरभभत ह वह रर

परीकषा म पास हो रय तो रर की कपा पराि होती ह

रर ञान का समपरषण करत ह सही रर का ञान तरमलना जररी ह ऐस रर सदगर ह

हम पसतकोपाठो को पढ़कर उस वचाररक व बौतरिक रप स समझ लत ह और उसको हम ञान मान लत ह वह ञान वासततरवक

नही वह माि बतरि तक ही सीतरमत ह हम बतरि स आर नही जा पात

पढ़न माि स ञान नही तरमलता जब तक उस अनभत नही तरकया जाय जीवन म उतरा न जाय

तरवडमबना यह ह तरक हम अनभव म शनय ह और ञान क अहकार म आर हम अपनी परतरतषठा अहकार म लर रहत ह

परतरतषठा स यतरद अहकार पदा होता ह तो वह तरवकतरत दती ह और तरजस परतरतषठा स अहकार नही होता वह तरवकतरत नही दती

अहाकाि छट तो अनभवत क िाि िल जञान वमल

जो जञान क वलए झक जाए उस जञान वमलता ह

ञान क तरलए झकना पड़ता ह तरवनमर बनना पड़ता ह

झकना सीखो झककर ञान परातरि क तरलए आतर बनो अहकार व परतरतषठा को रलाकर

ञान बतरि नही तरववक ह ञान समतरत नही अनभव ह ञान शबदो का सकलन नही अनभवो की सकषमता ह

ञान का सरोत ह तरचि की शतरि ञान हमार अनदर ही ह जब तरचि शि होता ह तो ञान परकट होन लरता ह

जो कामनाओ इचछाओ वासनाओ स तरचपका हआ ह उस ञान नही तरमलता

नतरतकता हमार वयवहार तक सीतरमत ह जबतरक तरचि की शतरि आधयातरवमकता ह

To Be ndash बन जाओ जो आप अनदर स ह

Be and Make ndash ीनो औि ीनाओ

ञान का उपदश शबदो म नही साधना म होता ह अपन आपको माजना साधना ह मन को माजो

अनभव क माधयम स ही ञान ह और ञान स ही आपका जीवन धनय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 35िाा शलोक

यजजजञातिा न पनमोहमिा यासयवस पाणडि

यन भतातयशषि दरकषयसयातमतयरो मवय (435)

अरथ -

वजसको जानकि विि त सस परकाि मोह को नह परापत होगा तरा ह अजथन वजस जञान क िािा त समपिथ भतो को

वनःशष भाि स पहल अपन म औि पीछ मझ सवचचदानतदघन पिमातमा म वदिगा (435)

वितीय वदिस - माा बरमहचारििी (बरमह स तपी हयी) का वदन

रायिी और दराा एक ही ह दराम वयतरि को मारन की वजह स दराा कहा रया

रर क सातरनधय म आन क बाद मोह तरमट जाता ह और सब ओर ईशवर की अनभतरत होती ह

मोह न होना सबस बड़ा वरदान

गीत - गर वीन जञान नह नह ि

रर क तरबना ञान नही तरमलता ह तरजस परकार सरज (सया इस जरत की आवमा ह) क होन क कारण चारो तरफ परकाश होता ह उसी

परकार स जब रर आत ह तो जीवन क अनधकार म परकाश कर दत ह

----------------------------------------------------------- परशनोततिी -----------------------------------------------------------

तरवदयारी जीवन म नवरातरि साधना क फायद ndash नवरातरि साधना क बहत स फायद ह पर तरवदयातररायो क तरलए दो फायद मखयरप स ह

पहला Concentration (एकागरता) एव दसरा सयम का अभयास

उपासना म सवतः ही आपको अनभतरत होरी भाव-सवदनाओ की

------------------------------------------------------- 2 अकटीि विशष ------------------------------------------------------

2 अकटीि क वदन भाित क दो सपतो का जतम हआ महातमा गााधी जी ( 2 October 1869 - 30 January 1948 aged-78 )

एिा लाल ीहादि शासतरी जी (2 October 1904 - 11 January 1966 aged-61)

शासतरी जी का जीवन अपन म साधनामय रा शासतरी जी सादरी क परतरतमतरता र तरजनहोन ldquoजय जवान - जय तरकसानrdquo का नारा तरदया

व सोमवार क वरत की पररणा दी

रााधी जी को महावमा की उपातरध तरमली रााधी जी आवमबल क धनी र अतरहसा अपररगरह एव सवयागरह क तरसिात रााधी जी न

अपनाए व समाज क तरलए एक पररणा बन और दश क आजादी म महववपणा योरदान तरदया

ऐस आज दो सपतो का जनमतरदवस ह तरजनहोन न दश की आजादी की लड़ाई म अपनी भारीदारी दी ऐस सपतो को नमन ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash वितीय वदिस

तरदनाक ndash 2 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की मवहमा अनात ह जञान हमािी सासकवत म सभयता म धमथ म हि वकसी म परिलवित होता ह

ञान की वजह स ही पशओ और मनषटयो म तरभननता ह

आज हमार पास बहत स ञान ह तरह तरह क ञान (तरवतरभनन तरवषयो स समबतरधत) ह यह ञान तरवभाजन का ञान ह यह हम

Fragmented Knowledge दता ह पणा ञान नही

उदाहरण तौर पर दख तो अरर Sociology की बात कर तो इसम समाज स समबतरधत तरवभाजन का ञान तरमलता ह जन-समदाय

जातरत वरा आदी क तरवभाजन की जानकारी अरर Physiology की बात कर तो शरीर समबतरधत तरवतरभनन भारो एव तिो(Systems)

क बार म ञान तरमलता ह History पढ़त ह तो अलर ndash अलर कालखणडो क बार म जानकारी तरमलती ह य सार ञान तरवभातरजत

ञान ह

य ञान जो ह अखणड को खतरणडत कर दता ह जो समपणा का ञान द सबका ञान द वह अखणड ञान ह

साखय और वदानत दो शासतर ह साखय म परकतरत व परष का ञान ह जबतरक वदानत म समपणाता का अधययन ह तरजसम य बताया रया

ह तरक बरमह ही सवय ह अरातो बरमह तरजञासा सभी बरमह का ही सवरप ह अलर-अलर रपो म

तरवभाजन का ञान वासततरवक ञान नही इस ञान को पराि कर लन स मोह दर नही होरा

जीवन म ऐसा ञान चातरहए जो मोह को नषट कर द

जञान ऐसा पािस ह कलपिि ह अमत ह जो हम मोह स दि किता ह

आज कही परम ह तो कही बर ह कही मोह होरा तो कही तरवरतरि यतरद अपन ndash पराय का भाव ह तो समझो मोह तरवदयमान ह

सभी हमाि ह सभी अपन ह वकसी स ईषपयाथ नह िष नह सीस परम सीक परवत आतमीयता

जहा मोह नही वहाा सब अपन ह हमार अतरसतवव को समपणाता चातरहए इसतरलय य मानना होता ह आवमा क तरलए पराण क तरलए तरक

सब अपन ह

हम मोह की वजह स अपन-पराय क चककर म पड़ जात ह

ञानी वह ह जो समपणा अतरसतवव को दखता ह ञानी वह नही जो खणड-खणड करक दखता ह

न पनमोह ndash तरफर स मोह नही आएरा अरर ञान आजाय तो

सारी आपतरियो एव परशातरनयो का मल एक ही ह ndash मोह

हमारा मन जो ह सार अतीत का अहसास करा जाता ह तरजसकी वजह स हम परशान हो जात ह सशय म जात ह जहाा Doubt होरा

वहाा ञान नही

हम Doubtless Knowledge की जररत ह

ऐसा ञान जो सतरदगध न हो सदह रतरहत हो तरजसम भरातरनत न हो सीमा न हो तरजसम अनतता हो वही ञान सचचा ञान ह

वह ञान रर की कपा स तरमलता ह खणड ञान स नही

अश को जानन स पणा को नही जान सकत परनत पणा को जान तरलए तो अश को जान तरलए

जो मोह म सदह म व तका म दाल द वह ञान वासततरवक नही ञान वह ह जो अञान स अशातरत स तरवतरभनन परकार क सशय स हम

मि कर द तरनकाल द

जञान शबद औि विचाि नह जञान सतय की अनभवत ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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Experience the Truth is the True Knowledge

ञान जीवन म उतरना चातरहए ञानी क जीवन म माया तरदखाई नही पड़ती ञान को आवमसात करो आवमसात अराात अपन अनदर

उतार लना अपन अनदर सोख लना

मनन तरचतन तरनतरदधयासन करोर तो आवमसात होरा

ञानी जब ञान दत ह तो ञानसर होकर ञान दत ह

आज तरचताए बहत ह तरचता स तरदमार म शोररल होता ह बस तरचता स वयवसरा नही होती जो वयतरि परशान ह उसक जीवन का

सरीत नषट होरया ह शोररल भी धवतरन ह सरीत भी धवतरन ह जब धवतरन म सर-ताल होता ह तो वह सरीत ह

आज क ञान म वयतरि परशान भी ह वयतरि म तरचता भी ह भतरि भी ह और भयभीत भी ह जब ञान आता ह तो तरचता चल जाती

ह और भय चल जाता ह

ञान म शातरत ह भतरि ह

आसतरिया जीवन की खतरटया ह तरजसम हमन अपन जीवन क कपड़ो को टार रखा ह मोह तरकसी स भी हो जाता ह जस पढन वालो

को तरकताबो स मोह जाता ह आसतरि स मि होना मतलब बधनो स मि होना तरजस मोह ह वह खणडो म बध ह हमारी आसतरि

परबल व सबल हो उसस पहल हम इनस तरनकल

मन एक परकार की भरातरनत ह तरजसकी वजह स तरचता परशातरनया भी ह ञान वह ह जो मन की भरातरनत स मि कर दता ह जहाा मोह

नही भरातरनत नही वहाा ञान ह

मोह नषट हो रया तो ञान हो रया अराात यहाा स ञान की शरआत हो रयी

जब हमारा मन तरनषटकलष होता ह तो एक परतरिया होती ह तरचि शतरि की और जब तरचि शि होता ह तो ञान की परातरि होती ह ञान

को जान लन स मोह नही होता सब अपन हो जात ह

अधयाय 6 क 29व और 30 व शलोक म बताया रया ह तरक सवावयापी अनत चतन म एकाकी भाव स तरसरत रप योर स यि आवमा

वाला तरा सबम समभाव स दखन वाला योरी आवमा को समपणा भतो म तरसरत और समपणा भतो को आवमा म कतरलपत दखता ह

जो सबक आवम रप म मर वासदवरप को दखता ह उसक तरलए म अदशय नही और मर तरलए वह अदशय नही

ररकपा स ञान दवारा मोह नषट हो जाता ह एव सभी म ईशवर की अनभतरत होती ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 36िाा शलोक

अवप चदवस पापभयः सिभयः पापकततमः

सि जञानपलिनि िवजना सततरिषपयवस (436)

अरथ -

यवद त अतय सभी पावपयो स भी अवधक पाप किन िाला ह तो भी त मि जञानरप नौका िािा वनःसादह समपिथ पाप-

समदर स भलीभाावत ति जाएगा (436)

ततीय वदिस - माा बरमचारििीचतदरघाटा का वदन

नवरातरि इस बार १० तरदनो की पद रही ह इसम दो तरदवतीया ह इसतरलए आज भी माा बरमचाररणी को याद करत ह

भरवान कहत ह तरक यतरद त पापी भी ह तो ञान की नौका स पार हो जाएरा सचच मन स परायतरित तरकया तो तर जाएरा

ञान का मतलब ह पतरविता क सारर म सनान करना

पतरविता क सारर म जो सनान कराय वह ञान ह लतरकन वह ञान कस तरमलरा रर की कपा स

रर अराात ञान को तरशषटय म उड़लन वाला वो रर जब तरमल जाय तो अनदर क कषाय-कलमस समाि हो जाय

गीत - कौन-कौन गि गाऊा गर ति कौन-कौन गि गाऊा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

भगिान की सीस ीड़ी यवद पजा ह तो िह ह उनको जानन का परयास किना हम उतह जानन का परयास ही नह कित

उतह जानन का परयास कि उनक गिो को धािि किन का परयास कि

सबस बड़ी समसया जो ह वह ह मोह मोह की वजह स पाप हो जाता ह लतरकन इस पाप स कस पार हो ञान की नौका म बठकर

पार हो सकत ह

पाप जो ह वह अधोरतरत ह अनधलोक ह तरनमनयोतरन ह अतरधयारा ह

हमार तरचि की जसी अवसरा होरी वस ही हमारा जीवन होरा

तरचि को जस ही Mold करोर सही तरदशा म मोड़ोर तो जीवन म पररवतान आएरा

यवद वचतत म अतधकाि ह तो जीिन अधोगामी होगा औि यवद वचतत म परकाश ह तो जीिन उधिथगामी ीनगा

तरचि म परकाश आता ह Positivity स हमार तप स साधना स तरचि म जो अतरधयारा ह वह समाि हो जाता ह

Too Much Attachment is RAG (िाग) and Too Much Detachment is DWESH (िष)

तरचि म अतरधयारा अशभ कमो स आता ह तरचिरि और कोई नही हमारा तरचि ही तरचिरि ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash ततीय वदिस

तरदनाक ndash 3 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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वचतत की अिसरा ही अशभ-शभ परिवसरवत का वनमाथि किती ह

कमा क सार जो भाव ndash तरवचार जड़ ह वह बीज बन जात ह और तरफर यही फलत ह और पररपाक होत ह और तरफर यही फल दत ह

यही परारबध बन जात ह

हम तरनतरमि बन जाना ह भरवान क

तीन चीज ह ndash नीवत वनयवत औि वनवमतत

हमाि जीिन की नीवत कया ह शली कया ह सकािातमक ह या नकािातमक हम दःि दत ह या दःि दि कित ह यवद

नीवत अचछी ह तो वनयवत अचछी ीनगी औि वनयवत जसी ीनगी िसी वनवमतत

अरर कोई अशभ कमा करता ह तो उसकी तरनयतरत तरवनाश की ओर बनरी

यतरद कोई आपकी बराई करता ह तो आप तरवचतरलत न हो कयोतरक जो आपकी बराई करता ह वह खद तरवनाश को पराि करता ह

परकतरत उस फल दती ह

हम अपनी नीतरत दवारा तरनयतरत बनात ह और तरनयतरत क अनरप तरनतरमि उपतरसरत हो जात ह

भगिान कहत ह वक यवद त पावपयो स भी अवधक पाप कि लता ह तो भी तिी वनयवत परििवतथत हो सकती ह अगि सचचा

परायवित वकया जाए तो

मनषपय क जीिन का सिरप उसक जञान पि वनभथि किता ह

अञानता की वजह स हमस पाप हो जाता ह

पाप एक भरावतत ह एक परकाि का अजञान ह

अजञानता िश वकय गए काम को पाप कहत ह

जब मोह ञान को गरतरसत कर लता ह तो पाप होन लरता ह जहा मोह होरा वहाा ञान नही होरा जहा मोह ह वहाा पाप पनपरा

पाप होरा

आज तरकसी भी पापी स यह सनना आसन नही तरक मझस पाप हो रया रलती हो रयी

भरवान कहत ह तरक जानत ह तरक पाप तरकया ह पर सवीकारत नही यह सबस बड़ी रलती ह

मनषटय अञान क अनधकार म सही तरदशा भल जाता ह

अजञान क अतधकाि म उवचत-अनवचत का भद न कि पाना पाप ह

एक ही उपाय ह पाप स तिन का िह ह जञान कषटण जी कहत ह तरक पाप क बाद भी जीवन समाि नही हआ अभी जीवन बाकी

ह एक आशा बची ह वह ह ञान का परकाश कषटण का नाम ह परकाश

वयतरि क तरचि म अशभ का सकलन हो रया ह जो उस पापी बना दता ह पर उसका पररमाजान तरकया जा सकता ह

जस पवो-वयोहारो म हम रर की साफ़-सफाई एव रर रोरन करत ह वस ह तरचि की सफाई करनी चातरहए रर रोरन होना चातरहए

रलतरतयो का परायतरित तरकया जा सकता ह पाप स भी बड़ी रलती ह तरक इसक बावजद होश म नही आ रह ह

जञान जागिि ह अजञान की मछाथ स

अपनी रलती को सवीकारना Confess करना बहत मतरशकल ह पर तरजसन रलती को सवीकार कर तरलया और परायतरित तरकया ह तो

उसस बड़ा महान कोई नही

जीवन की नीतरत तका परसतत कर सकती ह परनत परकतरत कोई तका नही सवीकारती परकतरत अपना फल दती ह

तरनतरत यतरद शभ होरा तो तरनयतरत और तरनतरमि सही बनर और यतरद अशभ हो तो तरनयतरत और तरनतरमि बर होर

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

9

जो हो चका तरपछला सो हो चका अब जीवन पर पनतरवाचार करो अञानता क कारन तरदशा मत भटको

भरवान जब पापी को पयार करत ह तो उसका पाप मारा बदल जाता ह

आज अतरवशवास का दौर ह कोई तरकसी पर तरवशवास ही नही करता आज अतरनतरितता ह

इनकी वजह स आज जीवन का सौनदया नषट हो रया ह जीवन म तरवकतरतयाा और तरनरसता आरयी ह

अञान ही ह वह तरजसकी वजह स पाप होत ह महववाकाकषाए आदमी को नषट करती ह जब तक कामनाए नही जायरी तब तक

आप रलत काम करत रहर

अनधकार और अनीतरत क तरजतन रप ह सब पाप ह जहा ञान पापो स तरररा हो वहाा ञान का कोई मतलब नही

ईशवर करणावान ह सबको अवसर दत ह

एक बार एक वयतरि क रर उसका बटा मर रया अब एक ञानी ञान द रह र तरक आवमा अमर ह अजर ह शरीर तो चला जाता ह

जो आता ह वह तो जाता ही ह शोक मत करो कयो रोत हो आतरद तरह तरह क ञान तरदय दसर तरदन लोरो न दखा तरक वह खद तरकसी

बात पर रो रहा ह जब लोरो न उसस पछा तो बताया तरक उसकी बकरी मर रयी तरजसस उस पीन क तरलए दध तरमलता रा बस सारा

ञान एक तरफ जो खद दसरो को ञान द रहा रा तरक कयो रोत हो वह खद रो रहा रा

जञान आचिि म उति तो सारथक ह जो ञान का आचरण कर ऐस कम तरमलत ह

ञान मतलब आचरण आचरण स वयतरिवव बनता ह वयतरि शरषठ बनता ह

भगिान उस जञान की ीात कित ह जो आचिि म आतमसात हो जाए हमािा जञान आचिि म आय हम चल तो

ीोल तो या विि अनभत कि तो वचतत म यवद परकाश ह तो हम दि लोक तक जा सकत ह वचतत शि ह तो पराि

शि ह

जीवन की रतरत तरचि स तय होती ह आपकी रतरत आप सवय तय करत ह आपकी नीतरत तय करती ह तरक जीवन कसा होरा आपका

भगिान कहत ह वक परकाश क मागथ म परकाश की वदशा म चलो चाह वकतन भी पाप वकय हो जञान क िािा टाि जाओग

वचतत को अशि किना पाप ह औि वचतत को शि किना पणय ह

हम सिारथ औि अहाकाि की वदशा म ीतहाशा भागत ह अपनी मयाथदाओ ा ि िजथनाओ ा को तोड़त ह ससवलए पाप कि

ीठत ह

असरता को जड़ स तरमटाओ कोई तमह राली द तो परवयिर म तम राली मत दो वमनसय और ईषटयाा स हम सवय दतरणडत होत ह

ञान की बड़ी मतरहमा ह ञान स सारी परशातरनया समाि हो जाती ह

रर दवारा हम ञान तरमलता ह रर वो होता ह ज हम ञान क चकष दता ह हमारी मछाा को तोड़ता ह अनधकार स परकाश की ओर

लजाता ह

तरजसका ञान वाणी व तरवचारो तक सीतरमत ह वह ञानी नही ह जहा तरवचार क सार आचरण ह वहाा ञान ह जब आचरण म ञान

आ जाता ह तो भरातरनत स मोह स मि कर दता ह

ञान होरा तो अशभ नही होरा पाप नही होरा अतः अपन अनदर जो अतरधयारा ह उस तरनकालो और अपन अनतः को परकातरशत करो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

16

अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

3

कछ लोर ञातरनयो को छड़न क तरलए परशन पछत ह कपट करत ह छल करत ह ञातरनयो स तरनषटकपट होकर अपन परशनो को पछो

उनकी सवा करो अराात उनक ञान को जन-जन तक पहचाओ ञातरनयो को भौतरतक सवा नही आधयातरवमक सवा चातरहए सवा स

उनह परसननता तरमलरी और तब ञान का परसाद तरमलरा परसननता अराात परसाद

ञान सरलता स नही तरमलता उसक तरलए हम परीकषाओ स रजरना पड़ता ह परीकषा अराात परखना ञान परातरि क तरलए आपको

तरवतरभनन माधयमो स परखा जाता ह

रर ndashतरशषटय क तरमलन स ञान का परसरण होता ह

सीखन क तरलए जो नमर ह तरजञास ह सरल ह उस ञान तरमलता ह रर क माधयम स

जो सीखन क तरलए तवपर ह वह तरशषटय और जो ञान स अतरभभत ह वह रर

परीकषा म पास हो रय तो रर की कपा पराि होती ह

रर ञान का समपरषण करत ह सही रर का ञान तरमलना जररी ह ऐस रर सदगर ह

हम पसतकोपाठो को पढ़कर उस वचाररक व बौतरिक रप स समझ लत ह और उसको हम ञान मान लत ह वह ञान वासततरवक

नही वह माि बतरि तक ही सीतरमत ह हम बतरि स आर नही जा पात

पढ़न माि स ञान नही तरमलता जब तक उस अनभत नही तरकया जाय जीवन म उतरा न जाय

तरवडमबना यह ह तरक हम अनभव म शनय ह और ञान क अहकार म आर हम अपनी परतरतषठा अहकार म लर रहत ह

परतरतषठा स यतरद अहकार पदा होता ह तो वह तरवकतरत दती ह और तरजस परतरतषठा स अहकार नही होता वह तरवकतरत नही दती

अहाकाि छट तो अनभवत क िाि िल जञान वमल

जो जञान क वलए झक जाए उस जञान वमलता ह

ञान क तरलए झकना पड़ता ह तरवनमर बनना पड़ता ह

झकना सीखो झककर ञान परातरि क तरलए आतर बनो अहकार व परतरतषठा को रलाकर

ञान बतरि नही तरववक ह ञान समतरत नही अनभव ह ञान शबदो का सकलन नही अनभवो की सकषमता ह

ञान का सरोत ह तरचि की शतरि ञान हमार अनदर ही ह जब तरचि शि होता ह तो ञान परकट होन लरता ह

जो कामनाओ इचछाओ वासनाओ स तरचपका हआ ह उस ञान नही तरमलता

नतरतकता हमार वयवहार तक सीतरमत ह जबतरक तरचि की शतरि आधयातरवमकता ह

To Be ndash बन जाओ जो आप अनदर स ह

Be and Make ndash ीनो औि ीनाओ

ञान का उपदश शबदो म नही साधना म होता ह अपन आपको माजना साधना ह मन को माजो

अनभव क माधयम स ही ञान ह और ञान स ही आपका जीवन धनय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

4

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 35िाा शलोक

यजजजञातिा न पनमोहमिा यासयवस पाणडि

यन भतातयशषि दरकषयसयातमतयरो मवय (435)

अरथ -

वजसको जानकि विि त सस परकाि मोह को नह परापत होगा तरा ह अजथन वजस जञान क िािा त समपिथ भतो को

वनःशष भाि स पहल अपन म औि पीछ मझ सवचचदानतदघन पिमातमा म वदिगा (435)

वितीय वदिस - माा बरमहचारििी (बरमह स तपी हयी) का वदन

रायिी और दराा एक ही ह दराम वयतरि को मारन की वजह स दराा कहा रया

रर क सातरनधय म आन क बाद मोह तरमट जाता ह और सब ओर ईशवर की अनभतरत होती ह

मोह न होना सबस बड़ा वरदान

गीत - गर वीन जञान नह नह ि

रर क तरबना ञान नही तरमलता ह तरजस परकार सरज (सया इस जरत की आवमा ह) क होन क कारण चारो तरफ परकाश होता ह उसी

परकार स जब रर आत ह तो जीवन क अनधकार म परकाश कर दत ह

----------------------------------------------------------- परशनोततिी -----------------------------------------------------------

तरवदयारी जीवन म नवरातरि साधना क फायद ndash नवरातरि साधना क बहत स फायद ह पर तरवदयातररायो क तरलए दो फायद मखयरप स ह

पहला Concentration (एकागरता) एव दसरा सयम का अभयास

उपासना म सवतः ही आपको अनभतरत होरी भाव-सवदनाओ की

------------------------------------------------------- 2 अकटीि विशष ------------------------------------------------------

2 अकटीि क वदन भाित क दो सपतो का जतम हआ महातमा गााधी जी ( 2 October 1869 - 30 January 1948 aged-78 )

एिा लाल ीहादि शासतरी जी (2 October 1904 - 11 January 1966 aged-61)

शासतरी जी का जीवन अपन म साधनामय रा शासतरी जी सादरी क परतरतमतरता र तरजनहोन ldquoजय जवान - जय तरकसानrdquo का नारा तरदया

व सोमवार क वरत की पररणा दी

रााधी जी को महावमा की उपातरध तरमली रााधी जी आवमबल क धनी र अतरहसा अपररगरह एव सवयागरह क तरसिात रााधी जी न

अपनाए व समाज क तरलए एक पररणा बन और दश क आजादी म महववपणा योरदान तरदया

ऐस आज दो सपतो का जनमतरदवस ह तरजनहोन न दश की आजादी की लड़ाई म अपनी भारीदारी दी ऐस सपतो को नमन ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash वितीय वदिस

तरदनाक ndash 2 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

5

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की मवहमा अनात ह जञान हमािी सासकवत म सभयता म धमथ म हि वकसी म परिलवित होता ह

ञान की वजह स ही पशओ और मनषटयो म तरभननता ह

आज हमार पास बहत स ञान ह तरह तरह क ञान (तरवतरभनन तरवषयो स समबतरधत) ह यह ञान तरवभाजन का ञान ह यह हम

Fragmented Knowledge दता ह पणा ञान नही

उदाहरण तौर पर दख तो अरर Sociology की बात कर तो इसम समाज स समबतरधत तरवभाजन का ञान तरमलता ह जन-समदाय

जातरत वरा आदी क तरवभाजन की जानकारी अरर Physiology की बात कर तो शरीर समबतरधत तरवतरभनन भारो एव तिो(Systems)

क बार म ञान तरमलता ह History पढ़त ह तो अलर ndash अलर कालखणडो क बार म जानकारी तरमलती ह य सार ञान तरवभातरजत

ञान ह

य ञान जो ह अखणड को खतरणडत कर दता ह जो समपणा का ञान द सबका ञान द वह अखणड ञान ह

साखय और वदानत दो शासतर ह साखय म परकतरत व परष का ञान ह जबतरक वदानत म समपणाता का अधययन ह तरजसम य बताया रया

ह तरक बरमह ही सवय ह अरातो बरमह तरजञासा सभी बरमह का ही सवरप ह अलर-अलर रपो म

तरवभाजन का ञान वासततरवक ञान नही इस ञान को पराि कर लन स मोह दर नही होरा

जीवन म ऐसा ञान चातरहए जो मोह को नषट कर द

जञान ऐसा पािस ह कलपिि ह अमत ह जो हम मोह स दि किता ह

आज कही परम ह तो कही बर ह कही मोह होरा तो कही तरवरतरि यतरद अपन ndash पराय का भाव ह तो समझो मोह तरवदयमान ह

सभी हमाि ह सभी अपन ह वकसी स ईषपयाथ नह िष नह सीस परम सीक परवत आतमीयता

जहा मोह नही वहाा सब अपन ह हमार अतरसतवव को समपणाता चातरहए इसतरलय य मानना होता ह आवमा क तरलए पराण क तरलए तरक

सब अपन ह

हम मोह की वजह स अपन-पराय क चककर म पड़ जात ह

ञानी वह ह जो समपणा अतरसतवव को दखता ह ञानी वह नही जो खणड-खणड करक दखता ह

न पनमोह ndash तरफर स मोह नही आएरा अरर ञान आजाय तो

सारी आपतरियो एव परशातरनयो का मल एक ही ह ndash मोह

हमारा मन जो ह सार अतीत का अहसास करा जाता ह तरजसकी वजह स हम परशान हो जात ह सशय म जात ह जहाा Doubt होरा

वहाा ञान नही

हम Doubtless Knowledge की जररत ह

ऐसा ञान जो सतरदगध न हो सदह रतरहत हो तरजसम भरातरनत न हो सीमा न हो तरजसम अनतता हो वही ञान सचचा ञान ह

वह ञान रर की कपा स तरमलता ह खणड ञान स नही

अश को जानन स पणा को नही जान सकत परनत पणा को जान तरलए तो अश को जान तरलए

जो मोह म सदह म व तका म दाल द वह ञान वासततरवक नही ञान वह ह जो अञान स अशातरत स तरवतरभनन परकार क सशय स हम

मि कर द तरनकाल द

जञान शबद औि विचाि नह जञान सतय की अनभवत ह

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Experience the Truth is the True Knowledge

ञान जीवन म उतरना चातरहए ञानी क जीवन म माया तरदखाई नही पड़ती ञान को आवमसात करो आवमसात अराात अपन अनदर

उतार लना अपन अनदर सोख लना

मनन तरचतन तरनतरदधयासन करोर तो आवमसात होरा

ञानी जब ञान दत ह तो ञानसर होकर ञान दत ह

आज तरचताए बहत ह तरचता स तरदमार म शोररल होता ह बस तरचता स वयवसरा नही होती जो वयतरि परशान ह उसक जीवन का

सरीत नषट होरया ह शोररल भी धवतरन ह सरीत भी धवतरन ह जब धवतरन म सर-ताल होता ह तो वह सरीत ह

आज क ञान म वयतरि परशान भी ह वयतरि म तरचता भी ह भतरि भी ह और भयभीत भी ह जब ञान आता ह तो तरचता चल जाती

ह और भय चल जाता ह

ञान म शातरत ह भतरि ह

आसतरिया जीवन की खतरटया ह तरजसम हमन अपन जीवन क कपड़ो को टार रखा ह मोह तरकसी स भी हो जाता ह जस पढन वालो

को तरकताबो स मोह जाता ह आसतरि स मि होना मतलब बधनो स मि होना तरजस मोह ह वह खणडो म बध ह हमारी आसतरि

परबल व सबल हो उसस पहल हम इनस तरनकल

मन एक परकार की भरातरनत ह तरजसकी वजह स तरचता परशातरनया भी ह ञान वह ह जो मन की भरातरनत स मि कर दता ह जहाा मोह

नही भरातरनत नही वहाा ञान ह

मोह नषट हो रया तो ञान हो रया अराात यहाा स ञान की शरआत हो रयी

जब हमारा मन तरनषटकलष होता ह तो एक परतरिया होती ह तरचि शतरि की और जब तरचि शि होता ह तो ञान की परातरि होती ह ञान

को जान लन स मोह नही होता सब अपन हो जात ह

अधयाय 6 क 29व और 30 व शलोक म बताया रया ह तरक सवावयापी अनत चतन म एकाकी भाव स तरसरत रप योर स यि आवमा

वाला तरा सबम समभाव स दखन वाला योरी आवमा को समपणा भतो म तरसरत और समपणा भतो को आवमा म कतरलपत दखता ह

जो सबक आवम रप म मर वासदवरप को दखता ह उसक तरलए म अदशय नही और मर तरलए वह अदशय नही

ररकपा स ञान दवारा मोह नषट हो जाता ह एव सभी म ईशवर की अनभतरत होती ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 36िाा शलोक

अवप चदवस पापभयः सिभयः पापकततमः

सि जञानपलिनि िवजना सततरिषपयवस (436)

अरथ -

यवद त अतय सभी पावपयो स भी अवधक पाप किन िाला ह तो भी त मि जञानरप नौका िािा वनःसादह समपिथ पाप-

समदर स भलीभाावत ति जाएगा (436)

ततीय वदिस - माा बरमचारििीचतदरघाटा का वदन

नवरातरि इस बार १० तरदनो की पद रही ह इसम दो तरदवतीया ह इसतरलए आज भी माा बरमचाररणी को याद करत ह

भरवान कहत ह तरक यतरद त पापी भी ह तो ञान की नौका स पार हो जाएरा सचच मन स परायतरित तरकया तो तर जाएरा

ञान का मतलब ह पतरविता क सारर म सनान करना

पतरविता क सारर म जो सनान कराय वह ञान ह लतरकन वह ञान कस तरमलरा रर की कपा स

रर अराात ञान को तरशषटय म उड़लन वाला वो रर जब तरमल जाय तो अनदर क कषाय-कलमस समाि हो जाय

गीत - कौन-कौन गि गाऊा गर ति कौन-कौन गि गाऊा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

भगिान की सीस ीड़ी यवद पजा ह तो िह ह उनको जानन का परयास किना हम उतह जानन का परयास ही नह कित

उतह जानन का परयास कि उनक गिो को धािि किन का परयास कि

सबस बड़ी समसया जो ह वह ह मोह मोह की वजह स पाप हो जाता ह लतरकन इस पाप स कस पार हो ञान की नौका म बठकर

पार हो सकत ह

पाप जो ह वह अधोरतरत ह अनधलोक ह तरनमनयोतरन ह अतरधयारा ह

हमार तरचि की जसी अवसरा होरी वस ही हमारा जीवन होरा

तरचि को जस ही Mold करोर सही तरदशा म मोड़ोर तो जीवन म पररवतान आएरा

यवद वचतत म अतधकाि ह तो जीिन अधोगामी होगा औि यवद वचतत म परकाश ह तो जीिन उधिथगामी ीनगा

तरचि म परकाश आता ह Positivity स हमार तप स साधना स तरचि म जो अतरधयारा ह वह समाि हो जाता ह

Too Much Attachment is RAG (िाग) and Too Much Detachment is DWESH (िष)

तरचि म अतरधयारा अशभ कमो स आता ह तरचिरि और कोई नही हमारा तरचि ही तरचिरि ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash ततीय वदिस

तरदनाक ndash 3 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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वचतत की अिसरा ही अशभ-शभ परिवसरवत का वनमाथि किती ह

कमा क सार जो भाव ndash तरवचार जड़ ह वह बीज बन जात ह और तरफर यही फलत ह और पररपाक होत ह और तरफर यही फल दत ह

यही परारबध बन जात ह

हम तरनतरमि बन जाना ह भरवान क

तीन चीज ह ndash नीवत वनयवत औि वनवमतत

हमाि जीिन की नीवत कया ह शली कया ह सकािातमक ह या नकािातमक हम दःि दत ह या दःि दि कित ह यवद

नीवत अचछी ह तो वनयवत अचछी ीनगी औि वनयवत जसी ीनगी िसी वनवमतत

अरर कोई अशभ कमा करता ह तो उसकी तरनयतरत तरवनाश की ओर बनरी

यतरद कोई आपकी बराई करता ह तो आप तरवचतरलत न हो कयोतरक जो आपकी बराई करता ह वह खद तरवनाश को पराि करता ह

परकतरत उस फल दती ह

हम अपनी नीतरत दवारा तरनयतरत बनात ह और तरनयतरत क अनरप तरनतरमि उपतरसरत हो जात ह

भगिान कहत ह वक यवद त पावपयो स भी अवधक पाप कि लता ह तो भी तिी वनयवत परििवतथत हो सकती ह अगि सचचा

परायवित वकया जाए तो

मनषपय क जीिन का सिरप उसक जञान पि वनभथि किता ह

अञानता की वजह स हमस पाप हो जाता ह

पाप एक भरावतत ह एक परकाि का अजञान ह

अजञानता िश वकय गए काम को पाप कहत ह

जब मोह ञान को गरतरसत कर लता ह तो पाप होन लरता ह जहा मोह होरा वहाा ञान नही होरा जहा मोह ह वहाा पाप पनपरा

पाप होरा

आज तरकसी भी पापी स यह सनना आसन नही तरक मझस पाप हो रया रलती हो रयी

भरवान कहत ह तरक जानत ह तरक पाप तरकया ह पर सवीकारत नही यह सबस बड़ी रलती ह

मनषटय अञान क अनधकार म सही तरदशा भल जाता ह

अजञान क अतधकाि म उवचत-अनवचत का भद न कि पाना पाप ह

एक ही उपाय ह पाप स तिन का िह ह जञान कषटण जी कहत ह तरक पाप क बाद भी जीवन समाि नही हआ अभी जीवन बाकी

ह एक आशा बची ह वह ह ञान का परकाश कषटण का नाम ह परकाश

वयतरि क तरचि म अशभ का सकलन हो रया ह जो उस पापी बना दता ह पर उसका पररमाजान तरकया जा सकता ह

जस पवो-वयोहारो म हम रर की साफ़-सफाई एव रर रोरन करत ह वस ह तरचि की सफाई करनी चातरहए रर रोरन होना चातरहए

रलतरतयो का परायतरित तरकया जा सकता ह पाप स भी बड़ी रलती ह तरक इसक बावजद होश म नही आ रह ह

जञान जागिि ह अजञान की मछाथ स

अपनी रलती को सवीकारना Confess करना बहत मतरशकल ह पर तरजसन रलती को सवीकार कर तरलया और परायतरित तरकया ह तो

उसस बड़ा महान कोई नही

जीवन की नीतरत तका परसतत कर सकती ह परनत परकतरत कोई तका नही सवीकारती परकतरत अपना फल दती ह

तरनतरत यतरद शभ होरा तो तरनयतरत और तरनतरमि सही बनर और यतरद अशभ हो तो तरनयतरत और तरनतरमि बर होर

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

9

जो हो चका तरपछला सो हो चका अब जीवन पर पनतरवाचार करो अञानता क कारन तरदशा मत भटको

भरवान जब पापी को पयार करत ह तो उसका पाप मारा बदल जाता ह

आज अतरवशवास का दौर ह कोई तरकसी पर तरवशवास ही नही करता आज अतरनतरितता ह

इनकी वजह स आज जीवन का सौनदया नषट हो रया ह जीवन म तरवकतरतयाा और तरनरसता आरयी ह

अञान ही ह वह तरजसकी वजह स पाप होत ह महववाकाकषाए आदमी को नषट करती ह जब तक कामनाए नही जायरी तब तक

आप रलत काम करत रहर

अनधकार और अनीतरत क तरजतन रप ह सब पाप ह जहा ञान पापो स तरररा हो वहाा ञान का कोई मतलब नही

ईशवर करणावान ह सबको अवसर दत ह

एक बार एक वयतरि क रर उसका बटा मर रया अब एक ञानी ञान द रह र तरक आवमा अमर ह अजर ह शरीर तो चला जाता ह

जो आता ह वह तो जाता ही ह शोक मत करो कयो रोत हो आतरद तरह तरह क ञान तरदय दसर तरदन लोरो न दखा तरक वह खद तरकसी

बात पर रो रहा ह जब लोरो न उसस पछा तो बताया तरक उसकी बकरी मर रयी तरजसस उस पीन क तरलए दध तरमलता रा बस सारा

ञान एक तरफ जो खद दसरो को ञान द रहा रा तरक कयो रोत हो वह खद रो रहा रा

जञान आचिि म उति तो सारथक ह जो ञान का आचरण कर ऐस कम तरमलत ह

ञान मतलब आचरण आचरण स वयतरिवव बनता ह वयतरि शरषठ बनता ह

भगिान उस जञान की ीात कित ह जो आचिि म आतमसात हो जाए हमािा जञान आचिि म आय हम चल तो

ीोल तो या विि अनभत कि तो वचतत म यवद परकाश ह तो हम दि लोक तक जा सकत ह वचतत शि ह तो पराि

शि ह

जीवन की रतरत तरचि स तय होती ह आपकी रतरत आप सवय तय करत ह आपकी नीतरत तय करती ह तरक जीवन कसा होरा आपका

भगिान कहत ह वक परकाश क मागथ म परकाश की वदशा म चलो चाह वकतन भी पाप वकय हो जञान क िािा टाि जाओग

वचतत को अशि किना पाप ह औि वचतत को शि किना पणय ह

हम सिारथ औि अहाकाि की वदशा म ीतहाशा भागत ह अपनी मयाथदाओ ा ि िजथनाओ ा को तोड़त ह ससवलए पाप कि

ीठत ह

असरता को जड़ स तरमटाओ कोई तमह राली द तो परवयिर म तम राली मत दो वमनसय और ईषटयाा स हम सवय दतरणडत होत ह

ञान की बड़ी मतरहमा ह ञान स सारी परशातरनया समाि हो जाती ह

रर दवारा हम ञान तरमलता ह रर वो होता ह ज हम ञान क चकष दता ह हमारी मछाा को तोड़ता ह अनधकार स परकाश की ओर

लजाता ह

तरजसका ञान वाणी व तरवचारो तक सीतरमत ह वह ञानी नही ह जहा तरवचार क सार आचरण ह वहाा ञान ह जब आचरण म ञान

आ जाता ह तो भरातरनत स मोह स मि कर दता ह

ञान होरा तो अशभ नही होरा पाप नही होरा अतः अपन अनदर जो अतरधयारा ह उस तरनकालो और अपन अनतः को परकातरशत करो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

10

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

11

रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

26

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

4

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 35िाा शलोक

यजजजञातिा न पनमोहमिा यासयवस पाणडि

यन भतातयशषि दरकषयसयातमतयरो मवय (435)

अरथ -

वजसको जानकि विि त सस परकाि मोह को नह परापत होगा तरा ह अजथन वजस जञान क िािा त समपिथ भतो को

वनःशष भाि स पहल अपन म औि पीछ मझ सवचचदानतदघन पिमातमा म वदिगा (435)

वितीय वदिस - माा बरमहचारििी (बरमह स तपी हयी) का वदन

रायिी और दराा एक ही ह दराम वयतरि को मारन की वजह स दराा कहा रया

रर क सातरनधय म आन क बाद मोह तरमट जाता ह और सब ओर ईशवर की अनभतरत होती ह

मोह न होना सबस बड़ा वरदान

गीत - गर वीन जञान नह नह ि

रर क तरबना ञान नही तरमलता ह तरजस परकार सरज (सया इस जरत की आवमा ह) क होन क कारण चारो तरफ परकाश होता ह उसी

परकार स जब रर आत ह तो जीवन क अनधकार म परकाश कर दत ह

----------------------------------------------------------- परशनोततिी -----------------------------------------------------------

तरवदयारी जीवन म नवरातरि साधना क फायद ndash नवरातरि साधना क बहत स फायद ह पर तरवदयातररायो क तरलए दो फायद मखयरप स ह

पहला Concentration (एकागरता) एव दसरा सयम का अभयास

उपासना म सवतः ही आपको अनभतरत होरी भाव-सवदनाओ की

------------------------------------------------------- 2 अकटीि विशष ------------------------------------------------------

2 अकटीि क वदन भाित क दो सपतो का जतम हआ महातमा गााधी जी ( 2 October 1869 - 30 January 1948 aged-78 )

एिा लाल ीहादि शासतरी जी (2 October 1904 - 11 January 1966 aged-61)

शासतरी जी का जीवन अपन म साधनामय रा शासतरी जी सादरी क परतरतमतरता र तरजनहोन ldquoजय जवान - जय तरकसानrdquo का नारा तरदया

व सोमवार क वरत की पररणा दी

रााधी जी को महावमा की उपातरध तरमली रााधी जी आवमबल क धनी र अतरहसा अपररगरह एव सवयागरह क तरसिात रााधी जी न

अपनाए व समाज क तरलए एक पररणा बन और दश क आजादी म महववपणा योरदान तरदया

ऐस आज दो सपतो का जनमतरदवस ह तरजनहोन न दश की आजादी की लड़ाई म अपनी भारीदारी दी ऐस सपतो को नमन ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash वितीय वदिस

तरदनाक ndash 2 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की मवहमा अनात ह जञान हमािी सासकवत म सभयता म धमथ म हि वकसी म परिलवित होता ह

ञान की वजह स ही पशओ और मनषटयो म तरभननता ह

आज हमार पास बहत स ञान ह तरह तरह क ञान (तरवतरभनन तरवषयो स समबतरधत) ह यह ञान तरवभाजन का ञान ह यह हम

Fragmented Knowledge दता ह पणा ञान नही

उदाहरण तौर पर दख तो अरर Sociology की बात कर तो इसम समाज स समबतरधत तरवभाजन का ञान तरमलता ह जन-समदाय

जातरत वरा आदी क तरवभाजन की जानकारी अरर Physiology की बात कर तो शरीर समबतरधत तरवतरभनन भारो एव तिो(Systems)

क बार म ञान तरमलता ह History पढ़त ह तो अलर ndash अलर कालखणडो क बार म जानकारी तरमलती ह य सार ञान तरवभातरजत

ञान ह

य ञान जो ह अखणड को खतरणडत कर दता ह जो समपणा का ञान द सबका ञान द वह अखणड ञान ह

साखय और वदानत दो शासतर ह साखय म परकतरत व परष का ञान ह जबतरक वदानत म समपणाता का अधययन ह तरजसम य बताया रया

ह तरक बरमह ही सवय ह अरातो बरमह तरजञासा सभी बरमह का ही सवरप ह अलर-अलर रपो म

तरवभाजन का ञान वासततरवक ञान नही इस ञान को पराि कर लन स मोह दर नही होरा

जीवन म ऐसा ञान चातरहए जो मोह को नषट कर द

जञान ऐसा पािस ह कलपिि ह अमत ह जो हम मोह स दि किता ह

आज कही परम ह तो कही बर ह कही मोह होरा तो कही तरवरतरि यतरद अपन ndash पराय का भाव ह तो समझो मोह तरवदयमान ह

सभी हमाि ह सभी अपन ह वकसी स ईषपयाथ नह िष नह सीस परम सीक परवत आतमीयता

जहा मोह नही वहाा सब अपन ह हमार अतरसतवव को समपणाता चातरहए इसतरलय य मानना होता ह आवमा क तरलए पराण क तरलए तरक

सब अपन ह

हम मोह की वजह स अपन-पराय क चककर म पड़ जात ह

ञानी वह ह जो समपणा अतरसतवव को दखता ह ञानी वह नही जो खणड-खणड करक दखता ह

न पनमोह ndash तरफर स मोह नही आएरा अरर ञान आजाय तो

सारी आपतरियो एव परशातरनयो का मल एक ही ह ndash मोह

हमारा मन जो ह सार अतीत का अहसास करा जाता ह तरजसकी वजह स हम परशान हो जात ह सशय म जात ह जहाा Doubt होरा

वहाा ञान नही

हम Doubtless Knowledge की जररत ह

ऐसा ञान जो सतरदगध न हो सदह रतरहत हो तरजसम भरातरनत न हो सीमा न हो तरजसम अनतता हो वही ञान सचचा ञान ह

वह ञान रर की कपा स तरमलता ह खणड ञान स नही

अश को जानन स पणा को नही जान सकत परनत पणा को जान तरलए तो अश को जान तरलए

जो मोह म सदह म व तका म दाल द वह ञान वासततरवक नही ञान वह ह जो अञान स अशातरत स तरवतरभनन परकार क सशय स हम

मि कर द तरनकाल द

जञान शबद औि विचाि नह जञान सतय की अनभवत ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

6

Experience the Truth is the True Knowledge

ञान जीवन म उतरना चातरहए ञानी क जीवन म माया तरदखाई नही पड़ती ञान को आवमसात करो आवमसात अराात अपन अनदर

उतार लना अपन अनदर सोख लना

मनन तरचतन तरनतरदधयासन करोर तो आवमसात होरा

ञानी जब ञान दत ह तो ञानसर होकर ञान दत ह

आज तरचताए बहत ह तरचता स तरदमार म शोररल होता ह बस तरचता स वयवसरा नही होती जो वयतरि परशान ह उसक जीवन का

सरीत नषट होरया ह शोररल भी धवतरन ह सरीत भी धवतरन ह जब धवतरन म सर-ताल होता ह तो वह सरीत ह

आज क ञान म वयतरि परशान भी ह वयतरि म तरचता भी ह भतरि भी ह और भयभीत भी ह जब ञान आता ह तो तरचता चल जाती

ह और भय चल जाता ह

ञान म शातरत ह भतरि ह

आसतरिया जीवन की खतरटया ह तरजसम हमन अपन जीवन क कपड़ो को टार रखा ह मोह तरकसी स भी हो जाता ह जस पढन वालो

को तरकताबो स मोह जाता ह आसतरि स मि होना मतलब बधनो स मि होना तरजस मोह ह वह खणडो म बध ह हमारी आसतरि

परबल व सबल हो उसस पहल हम इनस तरनकल

मन एक परकार की भरातरनत ह तरजसकी वजह स तरचता परशातरनया भी ह ञान वह ह जो मन की भरातरनत स मि कर दता ह जहाा मोह

नही भरातरनत नही वहाा ञान ह

मोह नषट हो रया तो ञान हो रया अराात यहाा स ञान की शरआत हो रयी

जब हमारा मन तरनषटकलष होता ह तो एक परतरिया होती ह तरचि शतरि की और जब तरचि शि होता ह तो ञान की परातरि होती ह ञान

को जान लन स मोह नही होता सब अपन हो जात ह

अधयाय 6 क 29व और 30 व शलोक म बताया रया ह तरक सवावयापी अनत चतन म एकाकी भाव स तरसरत रप योर स यि आवमा

वाला तरा सबम समभाव स दखन वाला योरी आवमा को समपणा भतो म तरसरत और समपणा भतो को आवमा म कतरलपत दखता ह

जो सबक आवम रप म मर वासदवरप को दखता ह उसक तरलए म अदशय नही और मर तरलए वह अदशय नही

ररकपा स ञान दवारा मोह नषट हो जाता ह एव सभी म ईशवर की अनभतरत होती ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 36िाा शलोक

अवप चदवस पापभयः सिभयः पापकततमः

सि जञानपलिनि िवजना सततरिषपयवस (436)

अरथ -

यवद त अतय सभी पावपयो स भी अवधक पाप किन िाला ह तो भी त मि जञानरप नौका िािा वनःसादह समपिथ पाप-

समदर स भलीभाावत ति जाएगा (436)

ततीय वदिस - माा बरमचारििीचतदरघाटा का वदन

नवरातरि इस बार १० तरदनो की पद रही ह इसम दो तरदवतीया ह इसतरलए आज भी माा बरमचाररणी को याद करत ह

भरवान कहत ह तरक यतरद त पापी भी ह तो ञान की नौका स पार हो जाएरा सचच मन स परायतरित तरकया तो तर जाएरा

ञान का मतलब ह पतरविता क सारर म सनान करना

पतरविता क सारर म जो सनान कराय वह ञान ह लतरकन वह ञान कस तरमलरा रर की कपा स

रर अराात ञान को तरशषटय म उड़लन वाला वो रर जब तरमल जाय तो अनदर क कषाय-कलमस समाि हो जाय

गीत - कौन-कौन गि गाऊा गर ति कौन-कौन गि गाऊा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

भगिान की सीस ीड़ी यवद पजा ह तो िह ह उनको जानन का परयास किना हम उतह जानन का परयास ही नह कित

उतह जानन का परयास कि उनक गिो को धािि किन का परयास कि

सबस बड़ी समसया जो ह वह ह मोह मोह की वजह स पाप हो जाता ह लतरकन इस पाप स कस पार हो ञान की नौका म बठकर

पार हो सकत ह

पाप जो ह वह अधोरतरत ह अनधलोक ह तरनमनयोतरन ह अतरधयारा ह

हमार तरचि की जसी अवसरा होरी वस ही हमारा जीवन होरा

तरचि को जस ही Mold करोर सही तरदशा म मोड़ोर तो जीवन म पररवतान आएरा

यवद वचतत म अतधकाि ह तो जीिन अधोगामी होगा औि यवद वचतत म परकाश ह तो जीिन उधिथगामी ीनगा

तरचि म परकाश आता ह Positivity स हमार तप स साधना स तरचि म जो अतरधयारा ह वह समाि हो जाता ह

Too Much Attachment is RAG (िाग) and Too Much Detachment is DWESH (िष)

तरचि म अतरधयारा अशभ कमो स आता ह तरचिरि और कोई नही हमारा तरचि ही तरचिरि ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash ततीय वदिस

तरदनाक ndash 3 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

8

वचतत की अिसरा ही अशभ-शभ परिवसरवत का वनमाथि किती ह

कमा क सार जो भाव ndash तरवचार जड़ ह वह बीज बन जात ह और तरफर यही फलत ह और पररपाक होत ह और तरफर यही फल दत ह

यही परारबध बन जात ह

हम तरनतरमि बन जाना ह भरवान क

तीन चीज ह ndash नीवत वनयवत औि वनवमतत

हमाि जीिन की नीवत कया ह शली कया ह सकािातमक ह या नकािातमक हम दःि दत ह या दःि दि कित ह यवद

नीवत अचछी ह तो वनयवत अचछी ीनगी औि वनयवत जसी ीनगी िसी वनवमतत

अरर कोई अशभ कमा करता ह तो उसकी तरनयतरत तरवनाश की ओर बनरी

यतरद कोई आपकी बराई करता ह तो आप तरवचतरलत न हो कयोतरक जो आपकी बराई करता ह वह खद तरवनाश को पराि करता ह

परकतरत उस फल दती ह

हम अपनी नीतरत दवारा तरनयतरत बनात ह और तरनयतरत क अनरप तरनतरमि उपतरसरत हो जात ह

भगिान कहत ह वक यवद त पावपयो स भी अवधक पाप कि लता ह तो भी तिी वनयवत परििवतथत हो सकती ह अगि सचचा

परायवित वकया जाए तो

मनषपय क जीिन का सिरप उसक जञान पि वनभथि किता ह

अञानता की वजह स हमस पाप हो जाता ह

पाप एक भरावतत ह एक परकाि का अजञान ह

अजञानता िश वकय गए काम को पाप कहत ह

जब मोह ञान को गरतरसत कर लता ह तो पाप होन लरता ह जहा मोह होरा वहाा ञान नही होरा जहा मोह ह वहाा पाप पनपरा

पाप होरा

आज तरकसी भी पापी स यह सनना आसन नही तरक मझस पाप हो रया रलती हो रयी

भरवान कहत ह तरक जानत ह तरक पाप तरकया ह पर सवीकारत नही यह सबस बड़ी रलती ह

मनषटय अञान क अनधकार म सही तरदशा भल जाता ह

अजञान क अतधकाि म उवचत-अनवचत का भद न कि पाना पाप ह

एक ही उपाय ह पाप स तिन का िह ह जञान कषटण जी कहत ह तरक पाप क बाद भी जीवन समाि नही हआ अभी जीवन बाकी

ह एक आशा बची ह वह ह ञान का परकाश कषटण का नाम ह परकाश

वयतरि क तरचि म अशभ का सकलन हो रया ह जो उस पापी बना दता ह पर उसका पररमाजान तरकया जा सकता ह

जस पवो-वयोहारो म हम रर की साफ़-सफाई एव रर रोरन करत ह वस ह तरचि की सफाई करनी चातरहए रर रोरन होना चातरहए

रलतरतयो का परायतरित तरकया जा सकता ह पाप स भी बड़ी रलती ह तरक इसक बावजद होश म नही आ रह ह

जञान जागिि ह अजञान की मछाथ स

अपनी रलती को सवीकारना Confess करना बहत मतरशकल ह पर तरजसन रलती को सवीकार कर तरलया और परायतरित तरकया ह तो

उसस बड़ा महान कोई नही

जीवन की नीतरत तका परसतत कर सकती ह परनत परकतरत कोई तका नही सवीकारती परकतरत अपना फल दती ह

तरनतरत यतरद शभ होरा तो तरनयतरत और तरनतरमि सही बनर और यतरद अशभ हो तो तरनयतरत और तरनतरमि बर होर

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

9

जो हो चका तरपछला सो हो चका अब जीवन पर पनतरवाचार करो अञानता क कारन तरदशा मत भटको

भरवान जब पापी को पयार करत ह तो उसका पाप मारा बदल जाता ह

आज अतरवशवास का दौर ह कोई तरकसी पर तरवशवास ही नही करता आज अतरनतरितता ह

इनकी वजह स आज जीवन का सौनदया नषट हो रया ह जीवन म तरवकतरतयाा और तरनरसता आरयी ह

अञान ही ह वह तरजसकी वजह स पाप होत ह महववाकाकषाए आदमी को नषट करती ह जब तक कामनाए नही जायरी तब तक

आप रलत काम करत रहर

अनधकार और अनीतरत क तरजतन रप ह सब पाप ह जहा ञान पापो स तरररा हो वहाा ञान का कोई मतलब नही

ईशवर करणावान ह सबको अवसर दत ह

एक बार एक वयतरि क रर उसका बटा मर रया अब एक ञानी ञान द रह र तरक आवमा अमर ह अजर ह शरीर तो चला जाता ह

जो आता ह वह तो जाता ही ह शोक मत करो कयो रोत हो आतरद तरह तरह क ञान तरदय दसर तरदन लोरो न दखा तरक वह खद तरकसी

बात पर रो रहा ह जब लोरो न उसस पछा तो बताया तरक उसकी बकरी मर रयी तरजसस उस पीन क तरलए दध तरमलता रा बस सारा

ञान एक तरफ जो खद दसरो को ञान द रहा रा तरक कयो रोत हो वह खद रो रहा रा

जञान आचिि म उति तो सारथक ह जो ञान का आचरण कर ऐस कम तरमलत ह

ञान मतलब आचरण आचरण स वयतरिवव बनता ह वयतरि शरषठ बनता ह

भगिान उस जञान की ीात कित ह जो आचिि म आतमसात हो जाए हमािा जञान आचिि म आय हम चल तो

ीोल तो या विि अनभत कि तो वचतत म यवद परकाश ह तो हम दि लोक तक जा सकत ह वचतत शि ह तो पराि

शि ह

जीवन की रतरत तरचि स तय होती ह आपकी रतरत आप सवय तय करत ह आपकी नीतरत तय करती ह तरक जीवन कसा होरा आपका

भगिान कहत ह वक परकाश क मागथ म परकाश की वदशा म चलो चाह वकतन भी पाप वकय हो जञान क िािा टाि जाओग

वचतत को अशि किना पाप ह औि वचतत को शि किना पणय ह

हम सिारथ औि अहाकाि की वदशा म ीतहाशा भागत ह अपनी मयाथदाओ ा ि िजथनाओ ा को तोड़त ह ससवलए पाप कि

ीठत ह

असरता को जड़ स तरमटाओ कोई तमह राली द तो परवयिर म तम राली मत दो वमनसय और ईषटयाा स हम सवय दतरणडत होत ह

ञान की बड़ी मतरहमा ह ञान स सारी परशातरनया समाि हो जाती ह

रर दवारा हम ञान तरमलता ह रर वो होता ह ज हम ञान क चकष दता ह हमारी मछाा को तोड़ता ह अनधकार स परकाश की ओर

लजाता ह

तरजसका ञान वाणी व तरवचारो तक सीतरमत ह वह ञानी नही ह जहा तरवचार क सार आचरण ह वहाा ञान ह जब आचरण म ञान

आ जाता ह तो भरातरनत स मोह स मि कर दता ह

ञान होरा तो अशभ नही होरा पाप नही होरा अतः अपन अनदर जो अतरधयारा ह उस तरनकालो और अपन अनतः को परकातरशत करो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

10

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

11

रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

14

आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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21

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की मवहमा अनात ह जञान हमािी सासकवत म सभयता म धमथ म हि वकसी म परिलवित होता ह

ञान की वजह स ही पशओ और मनषटयो म तरभननता ह

आज हमार पास बहत स ञान ह तरह तरह क ञान (तरवतरभनन तरवषयो स समबतरधत) ह यह ञान तरवभाजन का ञान ह यह हम

Fragmented Knowledge दता ह पणा ञान नही

उदाहरण तौर पर दख तो अरर Sociology की बात कर तो इसम समाज स समबतरधत तरवभाजन का ञान तरमलता ह जन-समदाय

जातरत वरा आदी क तरवभाजन की जानकारी अरर Physiology की बात कर तो शरीर समबतरधत तरवतरभनन भारो एव तिो(Systems)

क बार म ञान तरमलता ह History पढ़त ह तो अलर ndash अलर कालखणडो क बार म जानकारी तरमलती ह य सार ञान तरवभातरजत

ञान ह

य ञान जो ह अखणड को खतरणडत कर दता ह जो समपणा का ञान द सबका ञान द वह अखणड ञान ह

साखय और वदानत दो शासतर ह साखय म परकतरत व परष का ञान ह जबतरक वदानत म समपणाता का अधययन ह तरजसम य बताया रया

ह तरक बरमह ही सवय ह अरातो बरमह तरजञासा सभी बरमह का ही सवरप ह अलर-अलर रपो म

तरवभाजन का ञान वासततरवक ञान नही इस ञान को पराि कर लन स मोह दर नही होरा

जीवन म ऐसा ञान चातरहए जो मोह को नषट कर द

जञान ऐसा पािस ह कलपिि ह अमत ह जो हम मोह स दि किता ह

आज कही परम ह तो कही बर ह कही मोह होरा तो कही तरवरतरि यतरद अपन ndash पराय का भाव ह तो समझो मोह तरवदयमान ह

सभी हमाि ह सभी अपन ह वकसी स ईषपयाथ नह िष नह सीस परम सीक परवत आतमीयता

जहा मोह नही वहाा सब अपन ह हमार अतरसतवव को समपणाता चातरहए इसतरलय य मानना होता ह आवमा क तरलए पराण क तरलए तरक

सब अपन ह

हम मोह की वजह स अपन-पराय क चककर म पड़ जात ह

ञानी वह ह जो समपणा अतरसतवव को दखता ह ञानी वह नही जो खणड-खणड करक दखता ह

न पनमोह ndash तरफर स मोह नही आएरा अरर ञान आजाय तो

सारी आपतरियो एव परशातरनयो का मल एक ही ह ndash मोह

हमारा मन जो ह सार अतीत का अहसास करा जाता ह तरजसकी वजह स हम परशान हो जात ह सशय म जात ह जहाा Doubt होरा

वहाा ञान नही

हम Doubtless Knowledge की जररत ह

ऐसा ञान जो सतरदगध न हो सदह रतरहत हो तरजसम भरातरनत न हो सीमा न हो तरजसम अनतता हो वही ञान सचचा ञान ह

वह ञान रर की कपा स तरमलता ह खणड ञान स नही

अश को जानन स पणा को नही जान सकत परनत पणा को जान तरलए तो अश को जान तरलए

जो मोह म सदह म व तका म दाल द वह ञान वासततरवक नही ञान वह ह जो अञान स अशातरत स तरवतरभनन परकार क सशय स हम

मि कर द तरनकाल द

जञान शबद औि विचाि नह जञान सतय की अनभवत ह

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Experience the Truth is the True Knowledge

ञान जीवन म उतरना चातरहए ञानी क जीवन म माया तरदखाई नही पड़ती ञान को आवमसात करो आवमसात अराात अपन अनदर

उतार लना अपन अनदर सोख लना

मनन तरचतन तरनतरदधयासन करोर तो आवमसात होरा

ञानी जब ञान दत ह तो ञानसर होकर ञान दत ह

आज तरचताए बहत ह तरचता स तरदमार म शोररल होता ह बस तरचता स वयवसरा नही होती जो वयतरि परशान ह उसक जीवन का

सरीत नषट होरया ह शोररल भी धवतरन ह सरीत भी धवतरन ह जब धवतरन म सर-ताल होता ह तो वह सरीत ह

आज क ञान म वयतरि परशान भी ह वयतरि म तरचता भी ह भतरि भी ह और भयभीत भी ह जब ञान आता ह तो तरचता चल जाती

ह और भय चल जाता ह

ञान म शातरत ह भतरि ह

आसतरिया जीवन की खतरटया ह तरजसम हमन अपन जीवन क कपड़ो को टार रखा ह मोह तरकसी स भी हो जाता ह जस पढन वालो

को तरकताबो स मोह जाता ह आसतरि स मि होना मतलब बधनो स मि होना तरजस मोह ह वह खणडो म बध ह हमारी आसतरि

परबल व सबल हो उसस पहल हम इनस तरनकल

मन एक परकार की भरातरनत ह तरजसकी वजह स तरचता परशातरनया भी ह ञान वह ह जो मन की भरातरनत स मि कर दता ह जहाा मोह

नही भरातरनत नही वहाा ञान ह

मोह नषट हो रया तो ञान हो रया अराात यहाा स ञान की शरआत हो रयी

जब हमारा मन तरनषटकलष होता ह तो एक परतरिया होती ह तरचि शतरि की और जब तरचि शि होता ह तो ञान की परातरि होती ह ञान

को जान लन स मोह नही होता सब अपन हो जात ह

अधयाय 6 क 29व और 30 व शलोक म बताया रया ह तरक सवावयापी अनत चतन म एकाकी भाव स तरसरत रप योर स यि आवमा

वाला तरा सबम समभाव स दखन वाला योरी आवमा को समपणा भतो म तरसरत और समपणा भतो को आवमा म कतरलपत दखता ह

जो सबक आवम रप म मर वासदवरप को दखता ह उसक तरलए म अदशय नही और मर तरलए वह अदशय नही

ररकपा स ञान दवारा मोह नषट हो जाता ह एव सभी म ईशवर की अनभतरत होती ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 36िाा शलोक

अवप चदवस पापभयः सिभयः पापकततमः

सि जञानपलिनि िवजना सततरिषपयवस (436)

अरथ -

यवद त अतय सभी पावपयो स भी अवधक पाप किन िाला ह तो भी त मि जञानरप नौका िािा वनःसादह समपिथ पाप-

समदर स भलीभाावत ति जाएगा (436)

ततीय वदिस - माा बरमचारििीचतदरघाटा का वदन

नवरातरि इस बार १० तरदनो की पद रही ह इसम दो तरदवतीया ह इसतरलए आज भी माा बरमचाररणी को याद करत ह

भरवान कहत ह तरक यतरद त पापी भी ह तो ञान की नौका स पार हो जाएरा सचच मन स परायतरित तरकया तो तर जाएरा

ञान का मतलब ह पतरविता क सारर म सनान करना

पतरविता क सारर म जो सनान कराय वह ञान ह लतरकन वह ञान कस तरमलरा रर की कपा स

रर अराात ञान को तरशषटय म उड़लन वाला वो रर जब तरमल जाय तो अनदर क कषाय-कलमस समाि हो जाय

गीत - कौन-कौन गि गाऊा गर ति कौन-कौन गि गाऊा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

भगिान की सीस ीड़ी यवद पजा ह तो िह ह उनको जानन का परयास किना हम उतह जानन का परयास ही नह कित

उतह जानन का परयास कि उनक गिो को धािि किन का परयास कि

सबस बड़ी समसया जो ह वह ह मोह मोह की वजह स पाप हो जाता ह लतरकन इस पाप स कस पार हो ञान की नौका म बठकर

पार हो सकत ह

पाप जो ह वह अधोरतरत ह अनधलोक ह तरनमनयोतरन ह अतरधयारा ह

हमार तरचि की जसी अवसरा होरी वस ही हमारा जीवन होरा

तरचि को जस ही Mold करोर सही तरदशा म मोड़ोर तो जीवन म पररवतान आएरा

यवद वचतत म अतधकाि ह तो जीिन अधोगामी होगा औि यवद वचतत म परकाश ह तो जीिन उधिथगामी ीनगा

तरचि म परकाश आता ह Positivity स हमार तप स साधना स तरचि म जो अतरधयारा ह वह समाि हो जाता ह

Too Much Attachment is RAG (िाग) and Too Much Detachment is DWESH (िष)

तरचि म अतरधयारा अशभ कमो स आता ह तरचिरि और कोई नही हमारा तरचि ही तरचिरि ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash ततीय वदिस

तरदनाक ndash 3 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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वचतत की अिसरा ही अशभ-शभ परिवसरवत का वनमाथि किती ह

कमा क सार जो भाव ndash तरवचार जड़ ह वह बीज बन जात ह और तरफर यही फलत ह और पररपाक होत ह और तरफर यही फल दत ह

यही परारबध बन जात ह

हम तरनतरमि बन जाना ह भरवान क

तीन चीज ह ndash नीवत वनयवत औि वनवमतत

हमाि जीिन की नीवत कया ह शली कया ह सकािातमक ह या नकािातमक हम दःि दत ह या दःि दि कित ह यवद

नीवत अचछी ह तो वनयवत अचछी ीनगी औि वनयवत जसी ीनगी िसी वनवमतत

अरर कोई अशभ कमा करता ह तो उसकी तरनयतरत तरवनाश की ओर बनरी

यतरद कोई आपकी बराई करता ह तो आप तरवचतरलत न हो कयोतरक जो आपकी बराई करता ह वह खद तरवनाश को पराि करता ह

परकतरत उस फल दती ह

हम अपनी नीतरत दवारा तरनयतरत बनात ह और तरनयतरत क अनरप तरनतरमि उपतरसरत हो जात ह

भगिान कहत ह वक यवद त पावपयो स भी अवधक पाप कि लता ह तो भी तिी वनयवत परििवतथत हो सकती ह अगि सचचा

परायवित वकया जाए तो

मनषपय क जीिन का सिरप उसक जञान पि वनभथि किता ह

अञानता की वजह स हमस पाप हो जाता ह

पाप एक भरावतत ह एक परकाि का अजञान ह

अजञानता िश वकय गए काम को पाप कहत ह

जब मोह ञान को गरतरसत कर लता ह तो पाप होन लरता ह जहा मोह होरा वहाा ञान नही होरा जहा मोह ह वहाा पाप पनपरा

पाप होरा

आज तरकसी भी पापी स यह सनना आसन नही तरक मझस पाप हो रया रलती हो रयी

भरवान कहत ह तरक जानत ह तरक पाप तरकया ह पर सवीकारत नही यह सबस बड़ी रलती ह

मनषटय अञान क अनधकार म सही तरदशा भल जाता ह

अजञान क अतधकाि म उवचत-अनवचत का भद न कि पाना पाप ह

एक ही उपाय ह पाप स तिन का िह ह जञान कषटण जी कहत ह तरक पाप क बाद भी जीवन समाि नही हआ अभी जीवन बाकी

ह एक आशा बची ह वह ह ञान का परकाश कषटण का नाम ह परकाश

वयतरि क तरचि म अशभ का सकलन हो रया ह जो उस पापी बना दता ह पर उसका पररमाजान तरकया जा सकता ह

जस पवो-वयोहारो म हम रर की साफ़-सफाई एव रर रोरन करत ह वस ह तरचि की सफाई करनी चातरहए रर रोरन होना चातरहए

रलतरतयो का परायतरित तरकया जा सकता ह पाप स भी बड़ी रलती ह तरक इसक बावजद होश म नही आ रह ह

जञान जागिि ह अजञान की मछाथ स

अपनी रलती को सवीकारना Confess करना बहत मतरशकल ह पर तरजसन रलती को सवीकार कर तरलया और परायतरित तरकया ह तो

उसस बड़ा महान कोई नही

जीवन की नीतरत तका परसतत कर सकती ह परनत परकतरत कोई तका नही सवीकारती परकतरत अपना फल दती ह

तरनतरत यतरद शभ होरा तो तरनयतरत और तरनतरमि सही बनर और यतरद अशभ हो तो तरनयतरत और तरनतरमि बर होर

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जो हो चका तरपछला सो हो चका अब जीवन पर पनतरवाचार करो अञानता क कारन तरदशा मत भटको

भरवान जब पापी को पयार करत ह तो उसका पाप मारा बदल जाता ह

आज अतरवशवास का दौर ह कोई तरकसी पर तरवशवास ही नही करता आज अतरनतरितता ह

इनकी वजह स आज जीवन का सौनदया नषट हो रया ह जीवन म तरवकतरतयाा और तरनरसता आरयी ह

अञान ही ह वह तरजसकी वजह स पाप होत ह महववाकाकषाए आदमी को नषट करती ह जब तक कामनाए नही जायरी तब तक

आप रलत काम करत रहर

अनधकार और अनीतरत क तरजतन रप ह सब पाप ह जहा ञान पापो स तरररा हो वहाा ञान का कोई मतलब नही

ईशवर करणावान ह सबको अवसर दत ह

एक बार एक वयतरि क रर उसका बटा मर रया अब एक ञानी ञान द रह र तरक आवमा अमर ह अजर ह शरीर तो चला जाता ह

जो आता ह वह तो जाता ही ह शोक मत करो कयो रोत हो आतरद तरह तरह क ञान तरदय दसर तरदन लोरो न दखा तरक वह खद तरकसी

बात पर रो रहा ह जब लोरो न उसस पछा तो बताया तरक उसकी बकरी मर रयी तरजसस उस पीन क तरलए दध तरमलता रा बस सारा

ञान एक तरफ जो खद दसरो को ञान द रहा रा तरक कयो रोत हो वह खद रो रहा रा

जञान आचिि म उति तो सारथक ह जो ञान का आचरण कर ऐस कम तरमलत ह

ञान मतलब आचरण आचरण स वयतरिवव बनता ह वयतरि शरषठ बनता ह

भगिान उस जञान की ीात कित ह जो आचिि म आतमसात हो जाए हमािा जञान आचिि म आय हम चल तो

ीोल तो या विि अनभत कि तो वचतत म यवद परकाश ह तो हम दि लोक तक जा सकत ह वचतत शि ह तो पराि

शि ह

जीवन की रतरत तरचि स तय होती ह आपकी रतरत आप सवय तय करत ह आपकी नीतरत तय करती ह तरक जीवन कसा होरा आपका

भगिान कहत ह वक परकाश क मागथ म परकाश की वदशा म चलो चाह वकतन भी पाप वकय हो जञान क िािा टाि जाओग

वचतत को अशि किना पाप ह औि वचतत को शि किना पणय ह

हम सिारथ औि अहाकाि की वदशा म ीतहाशा भागत ह अपनी मयाथदाओ ा ि िजथनाओ ा को तोड़त ह ससवलए पाप कि

ीठत ह

असरता को जड़ स तरमटाओ कोई तमह राली द तो परवयिर म तम राली मत दो वमनसय और ईषटयाा स हम सवय दतरणडत होत ह

ञान की बड़ी मतरहमा ह ञान स सारी परशातरनया समाि हो जाती ह

रर दवारा हम ञान तरमलता ह रर वो होता ह ज हम ञान क चकष दता ह हमारी मछाा को तोड़ता ह अनधकार स परकाश की ओर

लजाता ह

तरजसका ञान वाणी व तरवचारो तक सीतरमत ह वह ञानी नही ह जहा तरवचार क सार आचरण ह वहाा ञान ह जब आचरण म ञान

आ जाता ह तो भरातरनत स मोह स मि कर दता ह

ञान होरा तो अशभ नही होरा पाप नही होरा अतः अपन अनदर जो अतरधयारा ह उस तरनकालो और अपन अनतः को परकातरशत करो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

11

रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

15

भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

16

अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

17

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

18

शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

6

Experience the Truth is the True Knowledge

ञान जीवन म उतरना चातरहए ञानी क जीवन म माया तरदखाई नही पड़ती ञान को आवमसात करो आवमसात अराात अपन अनदर

उतार लना अपन अनदर सोख लना

मनन तरचतन तरनतरदधयासन करोर तो आवमसात होरा

ञानी जब ञान दत ह तो ञानसर होकर ञान दत ह

आज तरचताए बहत ह तरचता स तरदमार म शोररल होता ह बस तरचता स वयवसरा नही होती जो वयतरि परशान ह उसक जीवन का

सरीत नषट होरया ह शोररल भी धवतरन ह सरीत भी धवतरन ह जब धवतरन म सर-ताल होता ह तो वह सरीत ह

आज क ञान म वयतरि परशान भी ह वयतरि म तरचता भी ह भतरि भी ह और भयभीत भी ह जब ञान आता ह तो तरचता चल जाती

ह और भय चल जाता ह

ञान म शातरत ह भतरि ह

आसतरिया जीवन की खतरटया ह तरजसम हमन अपन जीवन क कपड़ो को टार रखा ह मोह तरकसी स भी हो जाता ह जस पढन वालो

को तरकताबो स मोह जाता ह आसतरि स मि होना मतलब बधनो स मि होना तरजस मोह ह वह खणडो म बध ह हमारी आसतरि

परबल व सबल हो उसस पहल हम इनस तरनकल

मन एक परकार की भरातरनत ह तरजसकी वजह स तरचता परशातरनया भी ह ञान वह ह जो मन की भरातरनत स मि कर दता ह जहाा मोह

नही भरातरनत नही वहाा ञान ह

मोह नषट हो रया तो ञान हो रया अराात यहाा स ञान की शरआत हो रयी

जब हमारा मन तरनषटकलष होता ह तो एक परतरिया होती ह तरचि शतरि की और जब तरचि शि होता ह तो ञान की परातरि होती ह ञान

को जान लन स मोह नही होता सब अपन हो जात ह

अधयाय 6 क 29व और 30 व शलोक म बताया रया ह तरक सवावयापी अनत चतन म एकाकी भाव स तरसरत रप योर स यि आवमा

वाला तरा सबम समभाव स दखन वाला योरी आवमा को समपणा भतो म तरसरत और समपणा भतो को आवमा म कतरलपत दखता ह

जो सबक आवम रप म मर वासदवरप को दखता ह उसक तरलए म अदशय नही और मर तरलए वह अदशय नही

ररकपा स ञान दवारा मोह नषट हो जाता ह एव सभी म ईशवर की अनभतरत होती ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

7

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 36िाा शलोक

अवप चदवस पापभयः सिभयः पापकततमः

सि जञानपलिनि िवजना सततरिषपयवस (436)

अरथ -

यवद त अतय सभी पावपयो स भी अवधक पाप किन िाला ह तो भी त मि जञानरप नौका िािा वनःसादह समपिथ पाप-

समदर स भलीभाावत ति जाएगा (436)

ततीय वदिस - माा बरमचारििीचतदरघाटा का वदन

नवरातरि इस बार १० तरदनो की पद रही ह इसम दो तरदवतीया ह इसतरलए आज भी माा बरमचाररणी को याद करत ह

भरवान कहत ह तरक यतरद त पापी भी ह तो ञान की नौका स पार हो जाएरा सचच मन स परायतरित तरकया तो तर जाएरा

ञान का मतलब ह पतरविता क सारर म सनान करना

पतरविता क सारर म जो सनान कराय वह ञान ह लतरकन वह ञान कस तरमलरा रर की कपा स

रर अराात ञान को तरशषटय म उड़लन वाला वो रर जब तरमल जाय तो अनदर क कषाय-कलमस समाि हो जाय

गीत - कौन-कौन गि गाऊा गर ति कौन-कौन गि गाऊा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

भगिान की सीस ीड़ी यवद पजा ह तो िह ह उनको जानन का परयास किना हम उतह जानन का परयास ही नह कित

उतह जानन का परयास कि उनक गिो को धािि किन का परयास कि

सबस बड़ी समसया जो ह वह ह मोह मोह की वजह स पाप हो जाता ह लतरकन इस पाप स कस पार हो ञान की नौका म बठकर

पार हो सकत ह

पाप जो ह वह अधोरतरत ह अनधलोक ह तरनमनयोतरन ह अतरधयारा ह

हमार तरचि की जसी अवसरा होरी वस ही हमारा जीवन होरा

तरचि को जस ही Mold करोर सही तरदशा म मोड़ोर तो जीवन म पररवतान आएरा

यवद वचतत म अतधकाि ह तो जीिन अधोगामी होगा औि यवद वचतत म परकाश ह तो जीिन उधिथगामी ीनगा

तरचि म परकाश आता ह Positivity स हमार तप स साधना स तरचि म जो अतरधयारा ह वह समाि हो जाता ह

Too Much Attachment is RAG (िाग) and Too Much Detachment is DWESH (िष)

तरचि म अतरधयारा अशभ कमो स आता ह तरचिरि और कोई नही हमारा तरचि ही तरचिरि ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash ततीय वदिस

तरदनाक ndash 3 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

8

वचतत की अिसरा ही अशभ-शभ परिवसरवत का वनमाथि किती ह

कमा क सार जो भाव ndash तरवचार जड़ ह वह बीज बन जात ह और तरफर यही फलत ह और पररपाक होत ह और तरफर यही फल दत ह

यही परारबध बन जात ह

हम तरनतरमि बन जाना ह भरवान क

तीन चीज ह ndash नीवत वनयवत औि वनवमतत

हमाि जीिन की नीवत कया ह शली कया ह सकािातमक ह या नकािातमक हम दःि दत ह या दःि दि कित ह यवद

नीवत अचछी ह तो वनयवत अचछी ीनगी औि वनयवत जसी ीनगी िसी वनवमतत

अरर कोई अशभ कमा करता ह तो उसकी तरनयतरत तरवनाश की ओर बनरी

यतरद कोई आपकी बराई करता ह तो आप तरवचतरलत न हो कयोतरक जो आपकी बराई करता ह वह खद तरवनाश को पराि करता ह

परकतरत उस फल दती ह

हम अपनी नीतरत दवारा तरनयतरत बनात ह और तरनयतरत क अनरप तरनतरमि उपतरसरत हो जात ह

भगिान कहत ह वक यवद त पावपयो स भी अवधक पाप कि लता ह तो भी तिी वनयवत परििवतथत हो सकती ह अगि सचचा

परायवित वकया जाए तो

मनषपय क जीिन का सिरप उसक जञान पि वनभथि किता ह

अञानता की वजह स हमस पाप हो जाता ह

पाप एक भरावतत ह एक परकाि का अजञान ह

अजञानता िश वकय गए काम को पाप कहत ह

जब मोह ञान को गरतरसत कर लता ह तो पाप होन लरता ह जहा मोह होरा वहाा ञान नही होरा जहा मोह ह वहाा पाप पनपरा

पाप होरा

आज तरकसी भी पापी स यह सनना आसन नही तरक मझस पाप हो रया रलती हो रयी

भरवान कहत ह तरक जानत ह तरक पाप तरकया ह पर सवीकारत नही यह सबस बड़ी रलती ह

मनषटय अञान क अनधकार म सही तरदशा भल जाता ह

अजञान क अतधकाि म उवचत-अनवचत का भद न कि पाना पाप ह

एक ही उपाय ह पाप स तिन का िह ह जञान कषटण जी कहत ह तरक पाप क बाद भी जीवन समाि नही हआ अभी जीवन बाकी

ह एक आशा बची ह वह ह ञान का परकाश कषटण का नाम ह परकाश

वयतरि क तरचि म अशभ का सकलन हो रया ह जो उस पापी बना दता ह पर उसका पररमाजान तरकया जा सकता ह

जस पवो-वयोहारो म हम रर की साफ़-सफाई एव रर रोरन करत ह वस ह तरचि की सफाई करनी चातरहए रर रोरन होना चातरहए

रलतरतयो का परायतरित तरकया जा सकता ह पाप स भी बड़ी रलती ह तरक इसक बावजद होश म नही आ रह ह

जञान जागिि ह अजञान की मछाथ स

अपनी रलती को सवीकारना Confess करना बहत मतरशकल ह पर तरजसन रलती को सवीकार कर तरलया और परायतरित तरकया ह तो

उसस बड़ा महान कोई नही

जीवन की नीतरत तका परसतत कर सकती ह परनत परकतरत कोई तका नही सवीकारती परकतरत अपना फल दती ह

तरनतरत यतरद शभ होरा तो तरनयतरत और तरनतरमि सही बनर और यतरद अशभ हो तो तरनयतरत और तरनतरमि बर होर

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

9

जो हो चका तरपछला सो हो चका अब जीवन पर पनतरवाचार करो अञानता क कारन तरदशा मत भटको

भरवान जब पापी को पयार करत ह तो उसका पाप मारा बदल जाता ह

आज अतरवशवास का दौर ह कोई तरकसी पर तरवशवास ही नही करता आज अतरनतरितता ह

इनकी वजह स आज जीवन का सौनदया नषट हो रया ह जीवन म तरवकतरतयाा और तरनरसता आरयी ह

अञान ही ह वह तरजसकी वजह स पाप होत ह महववाकाकषाए आदमी को नषट करती ह जब तक कामनाए नही जायरी तब तक

आप रलत काम करत रहर

अनधकार और अनीतरत क तरजतन रप ह सब पाप ह जहा ञान पापो स तरररा हो वहाा ञान का कोई मतलब नही

ईशवर करणावान ह सबको अवसर दत ह

एक बार एक वयतरि क रर उसका बटा मर रया अब एक ञानी ञान द रह र तरक आवमा अमर ह अजर ह शरीर तो चला जाता ह

जो आता ह वह तो जाता ही ह शोक मत करो कयो रोत हो आतरद तरह तरह क ञान तरदय दसर तरदन लोरो न दखा तरक वह खद तरकसी

बात पर रो रहा ह जब लोरो न उसस पछा तो बताया तरक उसकी बकरी मर रयी तरजसस उस पीन क तरलए दध तरमलता रा बस सारा

ञान एक तरफ जो खद दसरो को ञान द रहा रा तरक कयो रोत हो वह खद रो रहा रा

जञान आचिि म उति तो सारथक ह जो ञान का आचरण कर ऐस कम तरमलत ह

ञान मतलब आचरण आचरण स वयतरिवव बनता ह वयतरि शरषठ बनता ह

भगिान उस जञान की ीात कित ह जो आचिि म आतमसात हो जाए हमािा जञान आचिि म आय हम चल तो

ीोल तो या विि अनभत कि तो वचतत म यवद परकाश ह तो हम दि लोक तक जा सकत ह वचतत शि ह तो पराि

शि ह

जीवन की रतरत तरचि स तय होती ह आपकी रतरत आप सवय तय करत ह आपकी नीतरत तय करती ह तरक जीवन कसा होरा आपका

भगिान कहत ह वक परकाश क मागथ म परकाश की वदशा म चलो चाह वकतन भी पाप वकय हो जञान क िािा टाि जाओग

वचतत को अशि किना पाप ह औि वचतत को शि किना पणय ह

हम सिारथ औि अहाकाि की वदशा म ीतहाशा भागत ह अपनी मयाथदाओ ा ि िजथनाओ ा को तोड़त ह ससवलए पाप कि

ीठत ह

असरता को जड़ स तरमटाओ कोई तमह राली द तो परवयिर म तम राली मत दो वमनसय और ईषटयाा स हम सवय दतरणडत होत ह

ञान की बड़ी मतरहमा ह ञान स सारी परशातरनया समाि हो जाती ह

रर दवारा हम ञान तरमलता ह रर वो होता ह ज हम ञान क चकष दता ह हमारी मछाा को तोड़ता ह अनधकार स परकाश की ओर

लजाता ह

तरजसका ञान वाणी व तरवचारो तक सीतरमत ह वह ञानी नही ह जहा तरवचार क सार आचरण ह वहाा ञान ह जब आचरण म ञान

आ जाता ह तो भरातरनत स मोह स मि कर दता ह

ञान होरा तो अशभ नही होरा पाप नही होरा अतः अपन अनदर जो अतरधयारा ह उस तरनकालो और अपन अनतः को परकातरशत करो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

11

रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

12

जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

13

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

14

आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

15

भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

22

चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

7

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 36िाा शलोक

अवप चदवस पापभयः सिभयः पापकततमः

सि जञानपलिनि िवजना सततरिषपयवस (436)

अरथ -

यवद त अतय सभी पावपयो स भी अवधक पाप किन िाला ह तो भी त मि जञानरप नौका िािा वनःसादह समपिथ पाप-

समदर स भलीभाावत ति जाएगा (436)

ततीय वदिस - माा बरमचारििीचतदरघाटा का वदन

नवरातरि इस बार १० तरदनो की पद रही ह इसम दो तरदवतीया ह इसतरलए आज भी माा बरमचाररणी को याद करत ह

भरवान कहत ह तरक यतरद त पापी भी ह तो ञान की नौका स पार हो जाएरा सचच मन स परायतरित तरकया तो तर जाएरा

ञान का मतलब ह पतरविता क सारर म सनान करना

पतरविता क सारर म जो सनान कराय वह ञान ह लतरकन वह ञान कस तरमलरा रर की कपा स

रर अराात ञान को तरशषटय म उड़लन वाला वो रर जब तरमल जाय तो अनदर क कषाय-कलमस समाि हो जाय

गीत - कौन-कौन गि गाऊा गर ति कौन-कौन गि गाऊा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

भगिान की सीस ीड़ी यवद पजा ह तो िह ह उनको जानन का परयास किना हम उतह जानन का परयास ही नह कित

उतह जानन का परयास कि उनक गिो को धािि किन का परयास कि

सबस बड़ी समसया जो ह वह ह मोह मोह की वजह स पाप हो जाता ह लतरकन इस पाप स कस पार हो ञान की नौका म बठकर

पार हो सकत ह

पाप जो ह वह अधोरतरत ह अनधलोक ह तरनमनयोतरन ह अतरधयारा ह

हमार तरचि की जसी अवसरा होरी वस ही हमारा जीवन होरा

तरचि को जस ही Mold करोर सही तरदशा म मोड़ोर तो जीवन म पररवतान आएरा

यवद वचतत म अतधकाि ह तो जीिन अधोगामी होगा औि यवद वचतत म परकाश ह तो जीिन उधिथगामी ीनगा

तरचि म परकाश आता ह Positivity स हमार तप स साधना स तरचि म जो अतरधयारा ह वह समाि हो जाता ह

Too Much Attachment is RAG (िाग) and Too Much Detachment is DWESH (िष)

तरचि म अतरधयारा अशभ कमो स आता ह तरचिरि और कोई नही हमारा तरचि ही तरचिरि ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash ततीय वदिस

तरदनाक ndash 3 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

8

वचतत की अिसरा ही अशभ-शभ परिवसरवत का वनमाथि किती ह

कमा क सार जो भाव ndash तरवचार जड़ ह वह बीज बन जात ह और तरफर यही फलत ह और पररपाक होत ह और तरफर यही फल दत ह

यही परारबध बन जात ह

हम तरनतरमि बन जाना ह भरवान क

तीन चीज ह ndash नीवत वनयवत औि वनवमतत

हमाि जीिन की नीवत कया ह शली कया ह सकािातमक ह या नकािातमक हम दःि दत ह या दःि दि कित ह यवद

नीवत अचछी ह तो वनयवत अचछी ीनगी औि वनयवत जसी ीनगी िसी वनवमतत

अरर कोई अशभ कमा करता ह तो उसकी तरनयतरत तरवनाश की ओर बनरी

यतरद कोई आपकी बराई करता ह तो आप तरवचतरलत न हो कयोतरक जो आपकी बराई करता ह वह खद तरवनाश को पराि करता ह

परकतरत उस फल दती ह

हम अपनी नीतरत दवारा तरनयतरत बनात ह और तरनयतरत क अनरप तरनतरमि उपतरसरत हो जात ह

भगिान कहत ह वक यवद त पावपयो स भी अवधक पाप कि लता ह तो भी तिी वनयवत परििवतथत हो सकती ह अगि सचचा

परायवित वकया जाए तो

मनषपय क जीिन का सिरप उसक जञान पि वनभथि किता ह

अञानता की वजह स हमस पाप हो जाता ह

पाप एक भरावतत ह एक परकाि का अजञान ह

अजञानता िश वकय गए काम को पाप कहत ह

जब मोह ञान को गरतरसत कर लता ह तो पाप होन लरता ह जहा मोह होरा वहाा ञान नही होरा जहा मोह ह वहाा पाप पनपरा

पाप होरा

आज तरकसी भी पापी स यह सनना आसन नही तरक मझस पाप हो रया रलती हो रयी

भरवान कहत ह तरक जानत ह तरक पाप तरकया ह पर सवीकारत नही यह सबस बड़ी रलती ह

मनषटय अञान क अनधकार म सही तरदशा भल जाता ह

अजञान क अतधकाि म उवचत-अनवचत का भद न कि पाना पाप ह

एक ही उपाय ह पाप स तिन का िह ह जञान कषटण जी कहत ह तरक पाप क बाद भी जीवन समाि नही हआ अभी जीवन बाकी

ह एक आशा बची ह वह ह ञान का परकाश कषटण का नाम ह परकाश

वयतरि क तरचि म अशभ का सकलन हो रया ह जो उस पापी बना दता ह पर उसका पररमाजान तरकया जा सकता ह

जस पवो-वयोहारो म हम रर की साफ़-सफाई एव रर रोरन करत ह वस ह तरचि की सफाई करनी चातरहए रर रोरन होना चातरहए

रलतरतयो का परायतरित तरकया जा सकता ह पाप स भी बड़ी रलती ह तरक इसक बावजद होश म नही आ रह ह

जञान जागिि ह अजञान की मछाथ स

अपनी रलती को सवीकारना Confess करना बहत मतरशकल ह पर तरजसन रलती को सवीकार कर तरलया और परायतरित तरकया ह तो

उसस बड़ा महान कोई नही

जीवन की नीतरत तका परसतत कर सकती ह परनत परकतरत कोई तका नही सवीकारती परकतरत अपना फल दती ह

तरनतरत यतरद शभ होरा तो तरनयतरत और तरनतरमि सही बनर और यतरद अशभ हो तो तरनयतरत और तरनतरमि बर होर

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जो हो चका तरपछला सो हो चका अब जीवन पर पनतरवाचार करो अञानता क कारन तरदशा मत भटको

भरवान जब पापी को पयार करत ह तो उसका पाप मारा बदल जाता ह

आज अतरवशवास का दौर ह कोई तरकसी पर तरवशवास ही नही करता आज अतरनतरितता ह

इनकी वजह स आज जीवन का सौनदया नषट हो रया ह जीवन म तरवकतरतयाा और तरनरसता आरयी ह

अञान ही ह वह तरजसकी वजह स पाप होत ह महववाकाकषाए आदमी को नषट करती ह जब तक कामनाए नही जायरी तब तक

आप रलत काम करत रहर

अनधकार और अनीतरत क तरजतन रप ह सब पाप ह जहा ञान पापो स तरररा हो वहाा ञान का कोई मतलब नही

ईशवर करणावान ह सबको अवसर दत ह

एक बार एक वयतरि क रर उसका बटा मर रया अब एक ञानी ञान द रह र तरक आवमा अमर ह अजर ह शरीर तो चला जाता ह

जो आता ह वह तो जाता ही ह शोक मत करो कयो रोत हो आतरद तरह तरह क ञान तरदय दसर तरदन लोरो न दखा तरक वह खद तरकसी

बात पर रो रहा ह जब लोरो न उसस पछा तो बताया तरक उसकी बकरी मर रयी तरजसस उस पीन क तरलए दध तरमलता रा बस सारा

ञान एक तरफ जो खद दसरो को ञान द रहा रा तरक कयो रोत हो वह खद रो रहा रा

जञान आचिि म उति तो सारथक ह जो ञान का आचरण कर ऐस कम तरमलत ह

ञान मतलब आचरण आचरण स वयतरिवव बनता ह वयतरि शरषठ बनता ह

भगिान उस जञान की ीात कित ह जो आचिि म आतमसात हो जाए हमािा जञान आचिि म आय हम चल तो

ीोल तो या विि अनभत कि तो वचतत म यवद परकाश ह तो हम दि लोक तक जा सकत ह वचतत शि ह तो पराि

शि ह

जीवन की रतरत तरचि स तय होती ह आपकी रतरत आप सवय तय करत ह आपकी नीतरत तय करती ह तरक जीवन कसा होरा आपका

भगिान कहत ह वक परकाश क मागथ म परकाश की वदशा म चलो चाह वकतन भी पाप वकय हो जञान क िािा टाि जाओग

वचतत को अशि किना पाप ह औि वचतत को शि किना पणय ह

हम सिारथ औि अहाकाि की वदशा म ीतहाशा भागत ह अपनी मयाथदाओ ा ि िजथनाओ ा को तोड़त ह ससवलए पाप कि

ीठत ह

असरता को जड़ स तरमटाओ कोई तमह राली द तो परवयिर म तम राली मत दो वमनसय और ईषटयाा स हम सवय दतरणडत होत ह

ञान की बड़ी मतरहमा ह ञान स सारी परशातरनया समाि हो जाती ह

रर दवारा हम ञान तरमलता ह रर वो होता ह ज हम ञान क चकष दता ह हमारी मछाा को तोड़ता ह अनधकार स परकाश की ओर

लजाता ह

तरजसका ञान वाणी व तरवचारो तक सीतरमत ह वह ञानी नही ह जहा तरवचार क सार आचरण ह वहाा ञान ह जब आचरण म ञान

आ जाता ह तो भरातरनत स मोह स मि कर दता ह

ञान होरा तो अशभ नही होरा पाप नही होरा अतः अपन अनदर जो अतरधयारा ह उस तरनकालो और अपन अनतः को परकातरशत करो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

11

रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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वचतत की अिसरा ही अशभ-शभ परिवसरवत का वनमाथि किती ह

कमा क सार जो भाव ndash तरवचार जड़ ह वह बीज बन जात ह और तरफर यही फलत ह और पररपाक होत ह और तरफर यही फल दत ह

यही परारबध बन जात ह

हम तरनतरमि बन जाना ह भरवान क

तीन चीज ह ndash नीवत वनयवत औि वनवमतत

हमाि जीिन की नीवत कया ह शली कया ह सकािातमक ह या नकािातमक हम दःि दत ह या दःि दि कित ह यवद

नीवत अचछी ह तो वनयवत अचछी ीनगी औि वनयवत जसी ीनगी िसी वनवमतत

अरर कोई अशभ कमा करता ह तो उसकी तरनयतरत तरवनाश की ओर बनरी

यतरद कोई आपकी बराई करता ह तो आप तरवचतरलत न हो कयोतरक जो आपकी बराई करता ह वह खद तरवनाश को पराि करता ह

परकतरत उस फल दती ह

हम अपनी नीतरत दवारा तरनयतरत बनात ह और तरनयतरत क अनरप तरनतरमि उपतरसरत हो जात ह

भगिान कहत ह वक यवद त पावपयो स भी अवधक पाप कि लता ह तो भी तिी वनयवत परििवतथत हो सकती ह अगि सचचा

परायवित वकया जाए तो

मनषपय क जीिन का सिरप उसक जञान पि वनभथि किता ह

अञानता की वजह स हमस पाप हो जाता ह

पाप एक भरावतत ह एक परकाि का अजञान ह

अजञानता िश वकय गए काम को पाप कहत ह

जब मोह ञान को गरतरसत कर लता ह तो पाप होन लरता ह जहा मोह होरा वहाा ञान नही होरा जहा मोह ह वहाा पाप पनपरा

पाप होरा

आज तरकसी भी पापी स यह सनना आसन नही तरक मझस पाप हो रया रलती हो रयी

भरवान कहत ह तरक जानत ह तरक पाप तरकया ह पर सवीकारत नही यह सबस बड़ी रलती ह

मनषटय अञान क अनधकार म सही तरदशा भल जाता ह

अजञान क अतधकाि म उवचत-अनवचत का भद न कि पाना पाप ह

एक ही उपाय ह पाप स तिन का िह ह जञान कषटण जी कहत ह तरक पाप क बाद भी जीवन समाि नही हआ अभी जीवन बाकी

ह एक आशा बची ह वह ह ञान का परकाश कषटण का नाम ह परकाश

वयतरि क तरचि म अशभ का सकलन हो रया ह जो उस पापी बना दता ह पर उसका पररमाजान तरकया जा सकता ह

जस पवो-वयोहारो म हम रर की साफ़-सफाई एव रर रोरन करत ह वस ह तरचि की सफाई करनी चातरहए रर रोरन होना चातरहए

रलतरतयो का परायतरित तरकया जा सकता ह पाप स भी बड़ी रलती ह तरक इसक बावजद होश म नही आ रह ह

जञान जागिि ह अजञान की मछाथ स

अपनी रलती को सवीकारना Confess करना बहत मतरशकल ह पर तरजसन रलती को सवीकार कर तरलया और परायतरित तरकया ह तो

उसस बड़ा महान कोई नही

जीवन की नीतरत तका परसतत कर सकती ह परनत परकतरत कोई तका नही सवीकारती परकतरत अपना फल दती ह

तरनतरत यतरद शभ होरा तो तरनयतरत और तरनतरमि सही बनर और यतरद अशभ हो तो तरनयतरत और तरनतरमि बर होर

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जो हो चका तरपछला सो हो चका अब जीवन पर पनतरवाचार करो अञानता क कारन तरदशा मत भटको

भरवान जब पापी को पयार करत ह तो उसका पाप मारा बदल जाता ह

आज अतरवशवास का दौर ह कोई तरकसी पर तरवशवास ही नही करता आज अतरनतरितता ह

इनकी वजह स आज जीवन का सौनदया नषट हो रया ह जीवन म तरवकतरतयाा और तरनरसता आरयी ह

अञान ही ह वह तरजसकी वजह स पाप होत ह महववाकाकषाए आदमी को नषट करती ह जब तक कामनाए नही जायरी तब तक

आप रलत काम करत रहर

अनधकार और अनीतरत क तरजतन रप ह सब पाप ह जहा ञान पापो स तरररा हो वहाा ञान का कोई मतलब नही

ईशवर करणावान ह सबको अवसर दत ह

एक बार एक वयतरि क रर उसका बटा मर रया अब एक ञानी ञान द रह र तरक आवमा अमर ह अजर ह शरीर तो चला जाता ह

जो आता ह वह तो जाता ही ह शोक मत करो कयो रोत हो आतरद तरह तरह क ञान तरदय दसर तरदन लोरो न दखा तरक वह खद तरकसी

बात पर रो रहा ह जब लोरो न उसस पछा तो बताया तरक उसकी बकरी मर रयी तरजसस उस पीन क तरलए दध तरमलता रा बस सारा

ञान एक तरफ जो खद दसरो को ञान द रहा रा तरक कयो रोत हो वह खद रो रहा रा

जञान आचिि म उति तो सारथक ह जो ञान का आचरण कर ऐस कम तरमलत ह

ञान मतलब आचरण आचरण स वयतरिवव बनता ह वयतरि शरषठ बनता ह

भगिान उस जञान की ीात कित ह जो आचिि म आतमसात हो जाए हमािा जञान आचिि म आय हम चल तो

ीोल तो या विि अनभत कि तो वचतत म यवद परकाश ह तो हम दि लोक तक जा सकत ह वचतत शि ह तो पराि

शि ह

जीवन की रतरत तरचि स तय होती ह आपकी रतरत आप सवय तय करत ह आपकी नीतरत तय करती ह तरक जीवन कसा होरा आपका

भगिान कहत ह वक परकाश क मागथ म परकाश की वदशा म चलो चाह वकतन भी पाप वकय हो जञान क िािा टाि जाओग

वचतत को अशि किना पाप ह औि वचतत को शि किना पणय ह

हम सिारथ औि अहाकाि की वदशा म ीतहाशा भागत ह अपनी मयाथदाओ ा ि िजथनाओ ा को तोड़त ह ससवलए पाप कि

ीठत ह

असरता को जड़ स तरमटाओ कोई तमह राली द तो परवयिर म तम राली मत दो वमनसय और ईषटयाा स हम सवय दतरणडत होत ह

ञान की बड़ी मतरहमा ह ञान स सारी परशातरनया समाि हो जाती ह

रर दवारा हम ञान तरमलता ह रर वो होता ह ज हम ञान क चकष दता ह हमारी मछाा को तोड़ता ह अनधकार स परकाश की ओर

लजाता ह

तरजसका ञान वाणी व तरवचारो तक सीतरमत ह वह ञानी नही ह जहा तरवचार क सार आचरण ह वहाा ञान ह जब आचरण म ञान

आ जाता ह तो भरातरनत स मोह स मि कर दता ह

ञान होरा तो अशभ नही होरा पाप नही होरा अतः अपन अनदर जो अतरधयारा ह उस तरनकालो और अपन अनतः को परकातरशत करो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

17

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

18

शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

26

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

9

जो हो चका तरपछला सो हो चका अब जीवन पर पनतरवाचार करो अञानता क कारन तरदशा मत भटको

भरवान जब पापी को पयार करत ह तो उसका पाप मारा बदल जाता ह

आज अतरवशवास का दौर ह कोई तरकसी पर तरवशवास ही नही करता आज अतरनतरितता ह

इनकी वजह स आज जीवन का सौनदया नषट हो रया ह जीवन म तरवकतरतयाा और तरनरसता आरयी ह

अञान ही ह वह तरजसकी वजह स पाप होत ह महववाकाकषाए आदमी को नषट करती ह जब तक कामनाए नही जायरी तब तक

आप रलत काम करत रहर

अनधकार और अनीतरत क तरजतन रप ह सब पाप ह जहा ञान पापो स तरररा हो वहाा ञान का कोई मतलब नही

ईशवर करणावान ह सबको अवसर दत ह

एक बार एक वयतरि क रर उसका बटा मर रया अब एक ञानी ञान द रह र तरक आवमा अमर ह अजर ह शरीर तो चला जाता ह

जो आता ह वह तो जाता ही ह शोक मत करो कयो रोत हो आतरद तरह तरह क ञान तरदय दसर तरदन लोरो न दखा तरक वह खद तरकसी

बात पर रो रहा ह जब लोरो न उसस पछा तो बताया तरक उसकी बकरी मर रयी तरजसस उस पीन क तरलए दध तरमलता रा बस सारा

ञान एक तरफ जो खद दसरो को ञान द रहा रा तरक कयो रोत हो वह खद रो रहा रा

जञान आचिि म उति तो सारथक ह जो ञान का आचरण कर ऐस कम तरमलत ह

ञान मतलब आचरण आचरण स वयतरिवव बनता ह वयतरि शरषठ बनता ह

भगिान उस जञान की ीात कित ह जो आचिि म आतमसात हो जाए हमािा जञान आचिि म आय हम चल तो

ीोल तो या विि अनभत कि तो वचतत म यवद परकाश ह तो हम दि लोक तक जा सकत ह वचतत शि ह तो पराि

शि ह

जीवन की रतरत तरचि स तय होती ह आपकी रतरत आप सवय तय करत ह आपकी नीतरत तय करती ह तरक जीवन कसा होरा आपका

भगिान कहत ह वक परकाश क मागथ म परकाश की वदशा म चलो चाह वकतन भी पाप वकय हो जञान क िािा टाि जाओग

वचतत को अशि किना पाप ह औि वचतत को शि किना पणय ह

हम सिारथ औि अहाकाि की वदशा म ीतहाशा भागत ह अपनी मयाथदाओ ा ि िजथनाओ ा को तोड़त ह ससवलए पाप कि

ीठत ह

असरता को जड़ स तरमटाओ कोई तमह राली द तो परवयिर म तम राली मत दो वमनसय और ईषटयाा स हम सवय दतरणडत होत ह

ञान की बड़ी मतरहमा ह ञान स सारी परशातरनया समाि हो जाती ह

रर दवारा हम ञान तरमलता ह रर वो होता ह ज हम ञान क चकष दता ह हमारी मछाा को तोड़ता ह अनधकार स परकाश की ओर

लजाता ह

तरजसका ञान वाणी व तरवचारो तक सीतरमत ह वह ञानी नही ह जहा तरवचार क सार आचरण ह वहाा ञान ह जब आचरण म ञान

आ जाता ह तो भरातरनत स मोह स मि कर दता ह

ञान होरा तो अशभ नही होरा पाप नही होरा अतः अपन अनदर जो अतरधयारा ह उस तरनकालो और अपन अनतः को परकातरशत करो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

11

रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

17

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

18

शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

10

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 37िाा शलोक

यरधाावस सवमिोऽवननभथसमसातकरतऽजथन

जञानावननः सिथकमाथवि भसमसातकरत तरा (437)

अरथ -

कयोवक ह अजथन जस परजजिवलत अवनन ई ाधनो को भसममय कि दता ह िस ही जञानरप अवनन समपिथ कमो को भसममय

कि दता ह (437)

चतरथ वदिस - माा चादरघाटा का वदन तरजनहोन नाद का पररम अनभव तरकया साधना की तरसरतरत म पररम अनभव

सतरषट का जनम नाद स हआ ह

रर ऐसी शतरि ह तरजसन ञान को अपन जीवन म उतरा और उसक बाद जो कछ पाया अनभव तरकया उस औरो को तरसखाया और

तरदया रर की मतरहमा अपरमपार ह

गीत - गर की छाया म शिि जो पा गया उसक जीिन म समागल आगया

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

वदवय अवनन जस सवमधा को भसमभत कि दती ह

जञान अवनन िस कमो को परििवधथत कि दती ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

जञान की अवनन जो ह िह समपिथ कमो को भसम कि दती ह

ऐस रर जो बरमहतरनषठ ह तरजनहोन अपन जीवन म ञान को उतारा ह उनक पास यतरद जाए तो ञान पराि हो

इस शलोक म ञान की अतरगन की चचाा ह अरर ञान जीवन म आ जाय तो हम ञान म परतरततरषठत हो जायर और कमा स मि हो जायर

कमा स मि होना मतलब कमा का न होना नही ह बतरलक दतरषत कमो का नषट होना कमो स बध न रहना इचछाओ कामनाओ स

जीिन की सीस जवटल पहली ह lsquoकमथrsquo

दो तिह स हम कमथ किन क वलए वििश ह एक ह मनःवसरवतिश एिा दसिा ह परिवसरवतिश

मनःवसरवत ndash रतरच इचछा रार दवष परम तरवरतरि मोह और आसतरि इनकी वजह स कमा |

परिवसरवत ndash कभी-कभी पररतरसरतरतयाा कमा करन म तरववश कर दती ह हम तरभनन पररतरसरतरतयो म कया कर सोच ही नही पात

पररतरसरतरतयो की जतरटलता हम कमापाश म बाधती ह कमा परारबध बन जात ह और तरफर ससकार

नििावतर साधना सिाधयाय ndash चतरथ वदिस

तरदनाक ndash 4 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

11

रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

26

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

11

रार-दवष परम मोह आसतरि स जो कमा होता ह उसम भटकन ह लतरकन यतरद मनःतरसरतरत म ञान हो तो कमा की तरदशा सही होरी

भटकन नही आएरा

परजवतरलत अतरगन ईधन को भसम कर दती ह ईधन और अतरगन सार-सार नही रह सकत

तरकसी भी परकार की अतरगन हो आर हो वह बहत तजी स बढ़ती ह चाह कामना की आर हो या वासना की

कमा का आरमभ अञान स होता ह

जो भी हम काम करत ह वह कमा नही तरिया ह जब तरिया म सकलप इचछाए भावनाए परम आतरद तरमलत ह तो वह तरिया कमा

का रप ललती ह

तरिया का पररणाम लरकातरलक होता ह परनत कमा का पररणाम दीराकातरलक होता ह

पाप की बजाय पणय सचय का महवव ह जब पणय मजबत होरा तो इचछा-भावना मजबत बनरी सबस जयादा जररी ह पयााि पणय

चातरहए तप चातरहए और सकारावमक ऊजाा चातरहए

परकतरत कभी इचछा की पतरता नही करती परकतरत तरवशि रप स कमो का पररणाम दती ह परकतरत कमो क पररणाम क दवारा इचछा पतरता

करती ह

शभ कमो क शभ िल होत ह औि अशभ कमो क अशभ िल

जीवन म यतरद कछ नही तरमला तो दोषी कौन हम सवय ह न की पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

अशभ कमा आपक दोषी ह इस ससार म शि रप म कमाफल की परातरि का तरवधान ह इसतरलए पणय का सचय करो

कमथ वकया ह तो परििाम तो आएगा कमथ क परििाम स ीाि नह सकत कमथ सिया ही आपको िोजता हआ आएगा

वनदावन क एक बहत परतरसदद सत र उतरड़या बाबा सतो क बीच उनका खब नाम रा उनक जीवन का जब अत समय आया तो

उनहोन सबको बलाकर कहा तरक एक जतरटल कमा रह रया ह मर सार एक भारी रटना रटन वाली ह इसतरलए तम सब परशान मत

होना य रटना होक रहरी कोई रोक नही सकता इसतरलए कोई परयास भी न कर हमारा शरीर तो चला जाएरा बस हमन जो सनदश

तरदया ह तमसबको उस अपन जीवन म उतारन का अभयास करना परयास करना (व एक सत र और उनह अपनी दरदतरषट दवारा पहल

ही आभास हो चका रा आन वाली रटना का)

उपरोि रटना यह दशााती ह तरक कमा का फल भरतना तो पड़रा ही कमा तरकया ह तो फल तो तरमलरा ही तरकसी न तरकसी तरनतरमि क

माधयम स

हर तरकसी क जीवन का अत होता ह पर हम जीवन पयत इचछा स तरचपक रहत ह

कमा का जनम अञान स होता ह परनत इसका मतलब यह नही ह तरक ञानीजन कमा नही करत ह व कमा करत ह परनत उनक कमाबीज

नही बनत अञान स जो कमा होता ह वह कमा बीज का रप ल लता ह कयोतरक उन कमो म रार दवष परमआसतरि आतरद होत ह

पचकलश जीवन को बाध रखत ह ndash अतरवदयाअतरसमता रार दवष अतरभतरनवश

अतरवदया अराात भरम भरातरनत सदह तरवदया क तरवपरीत ह अतरवदया फल की इचछा स व आसतरि स कमा करना सही नही

हमन सवय को य मान तरलया ह तरक ldquo म ह ाrdquo (अतरभमान) अराात म अनय स तरभनन ह ा अलर ह ा ऐसा भाव (अतरसमता) हमारा होरया ह

आज जहा मरा ndash तरा का भाव आरया तो वह हम कमा स बाधरा हमारा जीवन रार-दवष स बधा ह परम-रणा स बधा ह

रार-दवष म बड़ी सकषमता होती ह समझ नही आएरा तरक कब रार- दवष की भावनाए आपको बााध लरी

अतरभतरनवश ndash जनम-जनमानतरो तक बध रहना Attachment - रार Detachment ndash दवष

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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जब तक जीवावमा को सही रतरत नही तरमलती अवरोध बन रहता ह रीता क अधयाय 6 क 41व शलोक म बताया रया ह तरक योरभरषट

परष पणयवानो क लोको को अराात सवराातरद उिम लोको को पराि होकर उनम बहत वषो तक तरनवास करक तरफर शि आचरण वाल

शरीमान परषो क रर म जनम लता ह

एक छोटा सा Attachment ससकार बन जाता ह कमा बाधता ह अञान बाधता ह रार-दवष बाधता ह

याद जो ह वो हम रलाती ह तड़पाती ह इसी को कहत ह कमापाश पाश अराात बााध लना

पाश की वजह स भटकन आती ह भटकन यह ह तरक हम जीवन की तरदशा भल रए ह हम अपना लकषय भल रए ह

जञान ीड़ी मधि चीज ह जीिन का एक आियथजनक तति ह

ञानी क तरलए अतीत और भतरवषटय का कोई मतलब नही होता ञान आज अभी सति होता ह

जो अतीत और भतरवषटय स जड़ा ह वह अञानी ह

जो रा सो रा जो ह सो ह बस इसी कषण को अपना मान लो उसी स परम करो

रीता क अधयाय 2 क 55व शलोक म बताया रया ह तरक तरजस काल म जो मन की समपणा कामनाओ को वयार दता ह और आवमा

स ही आवम म सतषट होता ह वही उस काल म तरसरतपरञ ह

वह ञान अतरगन स माया अञान को जला दता ह

ञान की अतरगन तरनरतर परजवतरलत रह तीन परकार की अतरगन होती ह ndash जठरातरगन (अननमय कोश रप म ) पराणातरगन (पराणमय कोश रप

म ) और ञानातरगन (मनोमय कोश रप म)

ञान स सतरचत तरियामण व परारबध (कमा) नषट हो जात ह

सि जञानी को ीााध नह सकता औि दःि जञानी को विचवलत नह कि सकता

रीता क अधयाय 6 क 22व शलोक म बताया रया ह तरक योरी बड़ भारी दःख स भी चलायमान नही होता

हम कमथ की डोि स कमथ की कवड़याा जोड़ िह ह

ञानी को तरकसी भी परकार स आपतरि-तरवपतरि नही बाधती

परवयक पररतरसरयो म ञान जारत हो ञान अनदर स आनद दता ह हर पररतरसरतरतयो म

तरचि म शतरि होरी तो ञान आएरा जीवन परकातरशत होरा ञानी कलष और कालष स मि रहता ह

ञानी क सातरनधय स आनद की परातरि होती ह

ञान यतरद जर तो कछ कहन की आवशयकता नही

जब ञान जाररा तो कमा ञान क अतरगन म भसम हो जाएरा ऐसा ञान तरजसको होता ह वह कमा स पार कर दता ह कमा कर पर कमा

को रार-दवष स न जोड़ ञान स ही जीवन परकाशमय बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

15

भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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16

अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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17

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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18

शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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19

तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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20

शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

22

चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

35

छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

Page 13: नििावत्र साधना स्िाध्ा प्रर् ......व त र स V स व ध 2016 | DSVV 1 आज क व ष - चत र थअध ^ ^ क 34

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

13

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 38िाा शलोक

न वह जञानन सदशा पवितरवमह विदयत

ततसिया योगसावसिः कालनातमवन वितदवत (438)

अरथ -

सस सासाि म जञान क समान पवितर किन िाला वनःसादह कछ भी नह ह उस जञान को वकतन ही काल स कमथयोग क िािा

शिाततः किि हआ मनषपय अपनआप ही आतमा म पा लता ह (438)

पाचम वदिस - माा कषपमाणडा का वदन

कषटमाणड ndash तरपणड म बरमहाणड की वयाखया तरपणड म बरमहाणड का दशान कराया

ldquoयि तरपणड ति बरमहाणडrdquo

काया म ही समपणा बरमहाणड समाया हआ ह अण म तरवभ लर म महान

ञान क मतरहमा क िम म पाचव तरदन ञान की पतरविता की चचाा

जञान जी आता ह तो पवितर ीना दता ह अराथत जञान क माधयम स पवितरता

सबस जयादा यतरद कोई पतरवि ह तो वह ह ञान ञान क दवारा पतरविता कस इसकी वयाखया

गीत ndash हम भवि दो माा हम शवि दो माा सतत साधना का ििि माागत ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

जञान समान पवितर न कोई जञान ही भवि पजा

जञान आिाधना लकषय ीन हम सीका औि न दजा

कमथयोग मय जीिन सीका अातःकिि परिषपकत

भि आतमा पा लग अततः कि लग शोवधत

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

इस शलोक म भरवान कहत ह तरक इस ससार म ञान क समान पतरवि कछ भी नही

जीवन म सख-शातरत ञान क माधयम स आती ह और शातरत पतरवि मन म होती ह ञान स पतरविता की ओर बढ़ना

अपन जीवन म जब होश आता ह तो मनषटय को अपनी रलतरतया अशतरियाा मन क कलमष सबकछ तरदखाई दन लरत ह रलतरतया

अशतरियाा अपतरवि करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash पाचम वदिस

तरदनाक ndash 5 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज समाज म पतरविता क बार म अनक भरातरतया तरवदयमान ह लोर समझत ह तरक जल स सनान कर तरलया नहा तरलया तो पतरवि हो

रए नहा लन माि स पतरवि नही होत

पवितरता ीहत गहिी चीज ह जो जञान क माधयम स आता ह

ञान माि तरकताब पढ़ लन स नही आता तरकताबो स वासततरवक ञान नही पढ़ा जा सकता आज जो ञान Teaching Techniques

कशलता स Education Colleges म तरमलत ह य माि एक सचना ह Information माि ह

ञान इनस अलर ह ञान जो ह वह पतरवि ह परनत ञान क तरवषय म अनक भरातरतया ह उसी परकार पतरविता क तरलए भरातरतया ह ञान

तभी होता ह जब अतःकरण तरनमाल होता ह

आज पतरविता भरातरतयो म पड़ी हयी ह छआछत म धस रयी ह पतरविता क नाम पर जातरतभद वराभद आतरद भरातरतया समाज म ह

जबतरक रीता म भरवन कहत ह तरक (413 म कहत ह) तरक बरमहाण कषतरिय वशय और शदर- इन चार वणो का समह रण और कमो

क तरवभारपवाक मर दवारा रचा रया ह

लोरो न जातरत और वरो को पतरविता की भरातरनत म डाल तरदया ह आज पतरविता भरातरनत म फस रयी ह और पतरविता की भरातरनत न

भदभाव और छआछत पदा कर तरदए ह समाज म उच-नीच का भाव आरया ह

तकथ ि विचािो स जञान का समीतध नह जञान का समीतध आपकी पवितरता स ह वक आपका अातःकिि वकतना पवितर

आज समाज क रतरढ़वादी मानयताओ न दश म भदभाव पदा कर तरदए ह पतरविता क नाम स

दह(शरीर) की पतरविता जल स ह जो शरीर को सवचछ बनाता ह सवचछता एक रण ह जो वयतरिवव को अचछा बनाता ह मातर

दह तक पवितरता सीवमत नह कवल सनान क दवारा पतरवि नही माना जा सकता शरीर की पतरविता का मलय ह महवव ह परनत

पतरविता का य पमाना नही ह

जञान स जो जड़ गया िह पवितरतम ीन गया पिम पजजय गरदि न गायतरी क जञान क माधयम स सािी जावत समदायो

िगो को एक वकया उनक ीीच क भदभाि को दि वकया औि एक परििाि िड़ा वकया - अविल विशव गायतरी परििाि

गायतरी परििाि अराथत सभी जावतयो समदायो का समचचय परििाि जो विचाि काावत क माधयम स यग वनमाथि

योजना पि कायथ कि िहा ह

दह(शिीि) स जजयादा पवितरता मन की ह हमाि मन म कोई दवषत विचाि कलवषत भाि न िह तरवचारो क परदषण को दर

करन क तरलए पतरविता

रीता क अधयाय 17 क16व शलोक म भरवान कषटण कहत ह तरक मन की परसननता शातरत भाव भरवत तरचतन करन का सवभाव मन

का तरनगरह और अनतःकरण क भावो की भलीभाातरत पतरविता ndash इसपरकार यह मन समबनधी तप कहा जाता ह

वासततरवक मौन वह ह तरजसम वयतरि भरवत तरचतन करता ह मौन मतलब भरवत तरचतन न तरक तरसफा मह स चप हो जाना

हम अपन मन म कवल पतरवि तरवचारो का वरण कर सनान का मतलब कवल सवासरथय की दतरषट स ह

आज मन म अनको भरातरतया ह अपतरविता ह मन स अपरातरधक चतना को हटाना पड़रा अतरधयारा मन म ह तो तन को सवचछ

करन स कस तरमटरा

कई ीाि गलवतयाा अपिाधो को हम सिया स वचपका कि िित ह उनस ीाध जात ह वक हमस य होगया य गलती हो

गयी कई ीाि सनकी िजह स मनोिोग हो जात ह जस वचाता तनाि आवद हम जो भी गलती कित ह या जो भी अपिाध

ह िह मातर वकया नह ह उसस पहल मन म जो विचाि आत ह भाि आत ह तो एक ऊजाथ ीनती ह औि वदशा भटक जात

ह वजसस कमथ ीन जात ह उसस वनकलन क वलए परायवित किना जरिी ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

15

भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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16

अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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17

आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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18

शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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19

तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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20

शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

22

चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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भाितीय सासकवत म Confession की ीजाय परायवित का विधान ह अपनी गलवतयो स मि होना ह तो गलवतयो को

सिीकाि कि परायवित किना आिशयक ह गलवतयो को सिीकाि कि ही विशवावमतर विशविर स विशवावमतर ीन

अपनी रलती को सवीकार करना बहत साहस का काम ह

भरवान शरी कषटण कहत ह तरक अरर अपन पातरपयो स भी अतरधक पाप तरकया ह तो भी आप ञान क नौका दवारा पाप समदर स पार हो

सकत ह भरवान अवयत उदार ह

परशन य नह वक कमथ स मि हो परशन यह ह वक उस भाि (कमथ स पहल जो भाि आय) स मि हए की नह

शरीर की सवचछता सवासरथय क तरलए मन की सवचछता शातरत क तरलए

मन की शतरि स कछ भी तरकया जा सकता ह सवामी तरववकनद जी कहत ह ndash ldquoEach soul is potentially divine

The goal is to manifest this divinity by controlling nature external and internal

Do this either by work or worship or psychic control or philosophy - by one or

more or all of these - and be free This is the whole of religion Doctrines or

dogmas or rituals or books or temples or forms are but secondary detailsrdquo

जञान एक ऊजाथ ह ऊजाथ का परिाह ह मन जी हमाि अतदि सस परिाह म भािि पड़ जाता ह तो वदककत होती ह साि

मनोिोग भािि ह भािि िह ह जहाा हम अटक जात ह िा स जात ह

तरचता एक परकार का मनोरोर ह तरचता तरचता समान होता ह तरचता negative बनाती ह सोचना ही ह तो सकारावमक सोचो तरचता

क कारण नीद नही आती लोरो को

मन म वयतरतरक आता ह तो जीवनी शतरि परभातरवत होती ह जस ही आपका मन कमजोर हआ जीवनी शतरि कमजोर होती ह कई

बार अपनी सोच की वजह स हम बीमार पड़ जात ह Positive Thinking क सार बीमाररयो का सामना करो

कया कभी आपन बचचो को अवसाद म दखा ह बचच हमशा मसकरात रहत ह हासत रहत ह बचच पतरवि होत ह

पतरविता का तरशखर ह तरचि शतरि हमारा तरचि कमा मि हो परारबध मि हो तरचि को पतरवि बना लो मन सशि हो जाएरा

कई ीाि शरषठ आचिि किन िाल भी मोह परािबध स ीाध होत ह ससका उपाय ह जञान स अततः किि को शि ीना लना

हमािी असवियाा कमथ को परभावित किती ह परदवषत किती ह हम दो चीज चावहए ndash वनषपकामता औि अनासवि

यरारथ पवितरता न तन की ह न मन की ह यरारथ पवितरता ह वचतत की

तरचत की पतरविता योर की तरसतरि ह पतरविता योर की उचचतम तरसतरि ह हम दो चीजो स ीाध ह आसवि औि अतधकाि

आसतरि की वजह स रलत रासत पर चल दत ह परायतरित हमार अनदर स आना चातरहए

पतरविता हमार अनतः कारन म तब आती ह जब तरनषटकामता आती ह आसतरि मि अहकार मि कमा हो

पवितरता क चििndash

1 वनषपकाम कमथ

2 तप

3 धयान

4 भगिान स वमलन की अनात सति की भािना

5 सतसाग

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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अरर आपकी अनत अनरतरि ह रर क परतरत शतरि क परतरत तो अनदर स ञान आता ह अनदर स ञान वस आता ह जस कए म

सवचछ पानी शि तरचि ञान का सरोत बन जाता ह

जो ञानी ह उसका वयतरिवव पतरवि होता ह और जो पतरवि वयतरिवव वाला ह वह ञानी ह

ञान सितरमत होता ह ञान बाटन स बढ़ता ह फलता ह

इसतरलए परम पजय ररदव न कहा तरक मर सातरहवय मर तरवचार जन-जन तक पहाचाओ

ञान क तरलए सवाधयाय क सार ndashसार सवसर जररी ह

ञानी जनो का यतरद सरत तरमल जाय तो अपतरविता ख़वम हो जाती ह

हमार यहाा ररा क तरकनार तरकतन योरी हए जो ररा क तरकनार साधना तरकया करत र वातावरण का परभाव पड़ता ह इसतरलए हमार

यहाा सया तरहमालय अतरगन व ररा का महवव ह

शरी अरतरवनद जब जल म र उसक बाद जब कोठरी स चल रए तब तरकसी दसर अपराधी को उस कोठरी म भजा रया तो पहल बहोश

होरया उसन डॉ क पास उठन म कहा तरक मझ उस कोठरी म मत भजो मरा मन कही और चला जाता ह तरजस कोठरी म शरी अरतरवनद

जसा योरी रहा हो उस कोठरी म चतना की पराकाषठा री तरजस समहालन क तरलए पािता सामरथया चातरहए जो उस अपराधी म नही रा

इस तरलए सहन नही कर पाया

कहन का तावपया ह तरक वातावरण का परभाव पड़ता ह हम तरजस वातावरण म ह वहाा अपतरविता स तरनकलना जररी ह

ञान क जो समीप रहरा हमशा पतरवि बना रहरा ञान क सार रहो न ञान को पढ़ो न जो जीवन क तरलए अनावशयक ह बकार ह

उस कयो पढ़त हो

तरजस रण को वतरि को हम बार-बार दोहरात ह हम वस ही बन जात ह अनतःकरण की शतरि स ञान तरवकतरसत होता ह ञान तरकसी

भी समदाय को समाज को सवसर बनाता ह यतरद ञान की चचाा समाज म होरी तो अचछा समाज बनरा अचछी ससकतरत तरवकतरसत

होरी ञान समदाय बनरा ञान मलक समाज बनरा ञान मलक वयतरि बनर और जहा ञान होरा वहाा परम होरा इस परकार ञान

की पतरविता स एक शरषठ समाज व जीवन बनरा

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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20

शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 39िाा शलोक

शरिािााललभत जञाना ततपिः सायतवतदरयः

जञाना लबधिा पिाा शावततमवचििावधगचछवत (439)

अरथ -

वजतवतदरय साधनपिायि औि शरिािान मनषपय जञान को परापत होता ह तरा जञान को परापत होकि िह वीना विलमी क

ततकाल ही भगितपरावपत रप पिमशाावत को परापत हो जाता ह (439)

षषठम वदिस - माा सका दमाता का वदन

माा दराा का पाचवा सवरप माता सकनद भरवान तरशव क पि सकनद(कातरताकय) क पालन पोषण करन वाली माता ldquoसकदमाताrdquo मोकष क दवार खोलन वाली माता ञान क माधयम स हमारा नया जनम हो जाय य सकनद माता का सवरप ह

गीत ndash मातशविी िि द हम ति चिि का पयाि द भि ीाध क तफ़ान स ह िदमाता ताि द

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साधक वदवय वजतवतदरय शरिािान जञान को पाता ह

ईशोतमि हो जञान आिाधक शि अततः ीनाता ह

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

ञान की मतरहमा का छठवा तरदन

आज इस शलोक म भरवान कहत ह ndash ldquoशरिावान लभत ञानमrdquo शरिावान को ञान तरमलता ह

दो शबद ह शरिावान और बतरिवान जो शरिा स यि वह शरिावान और जो बतरि स यि वह बतरिवान

वान अराात ldquoयि होनाrdquo ससस पहल हमन कमशः चचाथ वकया गया रा -

1 वशषपय कस ीनत ह (434)

2 मोह का तयाग मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान क आशरय िािा ति जाना यवद पापी स भी जजयादा पापी हो तो भी (436)

4 कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह (438)

ञान की बड़ी तरवलकषण मतरहमा ह भरवान कहत ह तरक शरिावान को ही ञान तरमलता ह ञान स परम आनद की परातरि होती ह

शरिा व शातरत दो चीज तरमलती ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash षषठम वदिस

तरदनाक ndash 6 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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शरिा अराात आदशो स असीम पयार

दो तरह की कषमताए ह ndash बौतरिक कषमता (IQ) और भावनावमक कषमता (EQ)

पढ़न स बौतरिक कषमता माि बढ़ती ह बौतरिक कषमता का समबनध ञान स नही ह शरीकषटण जी कहत ह ञान शरिावान को ही तरमलता

ह इन दोनो कषमताओ क आधार पर ही मनषटय रतरत-पररतरत करता आया ह

मनषपय क वयविति म जञान िमता का आधाि भािना ह

वयतरि की कषमताओ क दो आधार ह बतरि और भाव

बतरि - अराात जो तका तरवशलषण आतरद कर और भाव ndash भाव स हम अनभतरत पराि करत ह हम भावनाओ क माधयम स ही सवय

और अनयो को समझत ह

भाव तरजतन रहर ह तरजतन वयापक ह उतना ही ञान तरवसतत ह

भावना स हम ञान की परातरि और समझ की परातरि होती ह

ञान जो ह वह अनभव ह अनभव तरजतना रहरा होरा वयापक होरा ञान उतना ही वयापक होरा

बौतरिक ञान और भावनावमक ञान म अतर ह

सचच अरो म शरिा तरकस कहत ह - कई बार भावकता को हम शरिा कहत ह जस कछ क सार ऐसा होता ह तरक पजा कर रह तो

उनक आाखो म आस आजात ह य भावकता ह शरिा नही शरिा उसस (ऊपरी भावकता ) भी रहरी ह शरिा का समबनध भाव स

ह भावकता स नही

भावकता म ndash भावनाओ की अतरसररता होती ह पल-पल म तरवचार-भावो का पररवतान होत रहता ह कछ पल म परम कछ पल

म रणा नफरत आतरद अतरसररता क पररणाम सवरप ही ह भावकता व भावनाशीलता दोनो अलर- अलर ह पल ndashपल की

भावनाओ की अतरसररता वयतरि म उदवर आिोश आवश आतरद को जनम दता ह

शरिा का अरा य नही तरक अनकलता ही तरमल बजाय इसक तरक जो भी तरमल उस सहषा सवीकार तरकया जाय परतरतकलताओ म

तरजस परतरतकलताओ म जीन का साहस पदा हो जाए समझो उसकी शरिा रहरी ह

उदाहरण क तरलए भरत तरसह राजरर सखदव तरबतरसमल आजाद य सब िातरतकारी र तरजनकी एक ही शरिा री राषटर क परतरत शरिा

अपन दश क परतरत समपाण और कछ नही

शरिा ndash भावनाओ की तरसररता का नाम ह

अरर हम शरिा पर तरटक ह तो हम भावना क तरशखर पर ह ऊा च स ऊा च पवातो स भी ऊा चा भावनाओ का तरशखर ह

जो भावनाओ क तरशखर पर आरढ़ ह वह परमावमा को छ लता ह

मनषटय का जीवन दो रासतो स होकर जाता ह ndash बतरि का रासता और भावना का रासता

भतरि क माधयम स ञान क सवोचच तरशखर पर पहचना वासततरवक ञान पान क तरलए शरिा चातरहए

शरिा वयतरिवव को मजबत बनाती ह दढ़ बनाती ह और सशि बनाती ह

रोना भावकता माि ह शरिा नही शरिा भावकता स और भी रहरी ह

ञानी क दो रण होत ह - पहला यह तरक हमशा तवपर रहता ह (परयासरत) और दसरा उसकी सारी इतरनदरयाा सधी रहती ह

शरिा परायण वयतरि वयतरिवव को वजर की तरह बना लता ह

महतरषा पतजतरल न तप सवाधाय ईशवर परतरणधान बताया

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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तरबना तप क तरकसी को भी मजबती नही तरमलती तप क पररणाम म दो चीज तरमलती ह ndash शतरि और तरसि तप आवशयक ह शतरि

क तरलए तप

मन तरजस इतरनदरय क सार होती ह वह इतरनदरय बतरि को हर लती ह

रीता क 267 म भरवान कहत ह तरक जस जल म चलन वाली नाव को वाय हर लती ह वस ही तरवषयो म तरवचरती हयी इतरनदरयो म

स मन तरजस इतरनदरय क सार रहता ह वह एक ही इतरनदरय इस अयि परष की बतरि को हर लती ह

महतरषा पतजतरल न अषटार योर बताया - यम तरनयम आसन पराणायाम परवयाहार धारणा धयान समातरध

यम तरनयम आसन पराणायाम ndash बतरहरर योर

परवयाहार ndash य अनतरर योर म जान क तरलए दरवाज का काम करती ह बतरहरर स अनतरर का Root

धारणा धयान समातरध - अनतरर योर

परतयाहाि ndash आहार का अरा होता ह गरहण करना (आहरण स आहार शबद बना ह )और परतयाहाि का अरा ह परतरत+आहार ndash आहार

न लना

हम साि सवतदरयो स आहिि कित ह गरहि कित ह पितत सवतदरयो का आहाि कया ह

विषय रप िस गाध सपशथ य सवतदरयो क आहाि ह

जब भी कोई अचछा दशय हम आाखो स दखत ह तो उस अचछा कहत ह मनोहारी कहत ह मनोहारी अराात मन का हरण करन

वाला दशय मन म लीन हो जाता ह दशय दषटा म और दषटा दशय म लीन हो जाता ह

सपशा न सरध न सवाद न मन को लीन कर तरदया ह

हर इतरनदरय म मन को हरण करन की ग़जब की कषमता ह

परवयाहार जररी ह जो शरिावान ह तवपर ह ञानवान ह उनकी इतरनदरयाा सयतरमत होती ह कयोतरक वह नसतरराक परवयाहार करत ह गरहण

नही करत

परवयाहार का मतलब ह सवय को खीच लना Widrawl कर लना तरवषयो स

साधक का भोजन औषतरध की तरह होना चातरहए औषतरध मनोहारी नही होती

इतरनदरयाा न तो तरवषयो म लीन ह नी चातरहए और न मन म जहा उसका मल सरान ह वही पर तरसरर रहना चातरहए

तीन चीज ह ndash सयत (सयतरमत) समतरचत (समान रप स ठीक-ठीक) समयक (एकदम सही-सही)

सयततरनदरय वयतरि तरजतना जररी ह उतना ही इतरनदरयो का उपयोर करता ह जस तरजतना जररी ह उतना ही खायरा तरजतना अनकल ह

उतना ही भोजन लरा

सयततरनदरय वयतरि म य तीन चीज होती ह ndash सयत समतरचत व समयक

इतरनदरयो का दरपयोर करोर तो इतरनदरयाा काम करना बद कर दरी परवयक इतरनदरय क तरलए तरजतना काया तरनधााररत ह उतना ही उसका

उपयोर कर

इतरनदरयो की अनभतरत रड़बड़ इसतरलए होती ह कयोतरक इतरनदरयो का दरपयोर करत ह

हमािा शिीि एक परयोगशाला ह जस सागीत क सासरमटस को अचछ सागीत क वलए Calibrate वकया जाता ह िस ही

हमाि शिीि क ततरो (सासरमटस) का भी Calibration होना चावहए

Calibration अराथत सासरमटस को ठीक-ठीक सधािना (Perfect किना)

भरवन चाहत ह तरक हमार शरीर का Calibration हो मन व शरीर का Calibration हो

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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शरिा जञान ततपिता ि सायतवतदरय की कसौटी पि Calibration हो

समपणा शरीर का यतरद Calibration तरबरड़ा तो सब बकार हो जाएरा आपका जीवन जप तप आतरद

उजाथ हमािी ठीक ठीक हो ससवलए हम जञानसर होत ह

योरी का वयतरिवव मन भाव तरसरर होता ह तरसररता जस दीपक क लौ की होती ह जब वाय अशतः तरनवाात म होती ह तब जब

हवा उस परभातरवत नही करती

वजतनी चाचल सवतदरयाा होगी वसरिता उतनी िीि होगी

वजतनी शरिा की वसरिता उतनी जञान की गहिाई जञान की गहनता पिम वयापक ीनाती ह अनभवतयो क माधयम स

जञान साशय स वघिा नह होना चावहए शरिािान वयवि का जञान शि अातःकिि िाल वयवि का जञान साशयिवहत होता

जब भावनाए परराढ़ होती ह अतःकरण शि होता ह तब जो भी रड़बतरड़या होती ह Error रहत ह वह ठीक होता ह

शरिावान वयतरि की ही दरदतरशाता का रण बढ़ता ह (ESP ndash Extra Sensory Perception)

आपक जीवन म ञान की रहराई ञान की वयापकता इसपर तरनभार करती ह तरक आपका वयतरिवव आपका अतःकरण तरकतना शि

तरसरर और एकागर ह

तरजस ञान क ऊपर शरिा हो जाए उस ञान तरमलता ह

साधना क मारा म तीन चीज ह ndash शरिा तवपरता और सयत होना दढ़ शरिा तरनरतरता व तरनयतरमतता आवशयक ह शरिावान मतलब

उस काया म अपन आप को झोक दना तपसवी होना

तपसया स जो ञान तरमलता ह उसस परम शातरत तरमलती ह आज लोरो क जीवन म शातरत की कमी ह

जो वसरि होगा अविचवलत होगा जञानिान होगा शरिािान होगा उस ही जीिन म शाावत वमलगी

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 40िाा शलोक

अजञिशरददधानि साशयातमा विनशयवत

नाया लोकोऽवसत न पिो न सिा साशयातमनः (440)

अरथ ndash

वििकहीन औि शरिािवहत साशययि मनषपय पिमारथ स अिशय भरषट हो जाता ह ऐस साशययि मनषपय क वलए न यह लोक

ह न पिलोक ह औि न सि ही ह (440)

सपतम वदिस - माा कातयायनी का वदन

कत ऋवष क पतर कातयायन की ीटी कातयायनी असरो क तरवनाश क तरलए जनम तरलया मतरहसासर का वध तरकया और

मतरहसासरमदानी कहलायी साधक क अतदि क िजोगि को समापत किती ह

आज क शलोक म जो चचाा ह वह यह ह तरक सशय नही करना चातरहए यतरद Doubt हआ तो वयतरि नाश की ओर जाएरा तीन

बात बताई रयी ह तरववकहीन शरिारतरहत व सशययि इसन जो यि होता ह उनको ञान नही तरमलता इसतरलए शरिापररत बन

गीत ndash माा ति चििो म हम शीश झकात ह शरिापरित हो कि माा दो अशर चढ़ात ह

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाएा

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाय

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

तरववकहीन शरिारतरहत सशययि वयतरि क तरलए न लोक ह न परलोक ह और न ही सख ह

यतरद वयतरि म अञानता ह और तरववक नही ह तो सशय होरा अञानता और अतरववक का पररणाम ह- सशय

तरववक अराात कया सही ह और कया रलत इसका चयन करना उतरचत-अनतरचत म भद

यह ससार जड़-चतन रण-दोषो स भरा हआ ह ससार इन सबका तरमशरण ह आपको कया चातरहए इनम स य आपको तय करना

तलसी दास जी कहत ह वक ndash

जड़ चतन गन दोषमय वीसि कीतह किताि

सात हास गन गहवहा पय परिहरि ीारि वीकाि

अराथत - विधाता न इस जड-चतन विशव को गण-दोषमय रचा ह वकनत सत रपी हस दोष रपी जल को छोडकर गण

रपी दध को ही गरहण करत ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash सपतम वदिस

तरदनाक ndash 7 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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चारो तरफ की परकतरत जड़ ह (Including Our Body) और आवमा चतना ह

हम जीवन क चि म फस हए ह आतरवमक शातरत क बार म नही सोच पात ह यतरद शरीर म चतना न हो तो शरीर अपना अतरसतवव

खो दरा

चतना क कारण हम जीतरवत ह तरियावान ह जीवावमा क आशरय स शरीर ताकत तरदखाता ह जीवावमा शरीर म आशरय लती ह

परा और अपरा परा अराात चतन और अपरा अराात जड़ ndash दोनो तरमलक शरीर बनता ह

हम कयो अपन को नही पहचानत अपन रण- दोषो को पहचान कर कयो चयन नही कर पात

ससार म अनक रण-दोष ह हर चीज म रण - दोष ह जस-साप का जहर अरर तरकसी को साप काट द तो उसका तरवष दोषयि ह

जहर क रप म और यही जहर जब औषतरध तरनमााण म लर तो रणयि ह वही तरवष ह जो जहर ह उसक अनदर रण भी ह औषतरध

का

इसी परकार हमार अनदर भी रण ह और दोष भी ह पर हम नही पहचान पात इस पहचानन क तरलए तरववक चातरहए

वििक िािा गि को पहचान कि उसका उपयोग किना औि दोषो को दि किना तरजस परकार चाणकय न तरनतरतपवाक अपन

दश की रकषा क तरलए यनातरनयो को भरान क तरलए उनस यि लड़न क तरलए तरवनधयाचल क डाकओ की सना को चदररि की सना क

तरलए खड़ा तरकया उनहोन उन डाकओ क सामरथया व अनय रणो को पहचान कर उनको दश रकषा क तरहत स तयार तरकया व उपयोर

तरकया

साहस और परािम सही जरह लरना चातरहए

ससार म ऐसा कोई भी नही तरजसम दोष न हो

कबीर कहत ह तरक ndash

अवत का भला न ीिसना अवत की भली न धप

अवत का भला न ीोलना अवत की भली न चप

पानी यतरद जयादा बरस जाए तो सही नही इसस नकसान होरा यतरद धप अतरत हो बहत तज हो तो भी नकसान ह जररत स जयादा

बोलना भी सही नही और जररत स जयादा चप रहना भी सही नही जहा जररत हो वहाा बोल लना चातरहए

अतरतवाद भी बरा होता ह जहा जो जररी ह वहाा उसका उपयोर कर हर जरह रण-दोष वयाि ह आवशयकता क अनसार रण-

दोषो का चयन होता ह

हम अपन गि-दोषो को पहचानना ह वह जीवन जीना ह तरजसम हम अपन रणो का पता हो इसक तरलए तरववक

(Discriminative Wisdom) चातरहए जञान दवषट सोच औि समझ चावहए

तरववक नीर-कषीर होता ह तरववक का ञान जीवन की तरदशा तय करता ह तरववक क आधार पर ही जीवन शली का मापन होता ह

तरववक ही परामीटर ह आधयातरवमक जीवन का

अरर वयतरि क जीवन म तरववक का अभाव ह तो वह तरवनाश की ओर जा रहा ह

जो वयतरि शरिारतरहत ह वह भी मारा स भटक जाता ह

शरिारतरहत अराात शरिा का न होना शरिा तरसररता का नाम ह भावनाओ की सरन उजाा ह शरिा भावना की तरसररता का नाम शरिा

दो चीज ह एक ह शरिा दसिी ह वनषठा शरिा ndash लकषय क परतरत होता ह शरिा लकषय ह तरनषठा ndash उस मारा क परतरत जो हम लकषय

तक पहचाए तरनषठा रतवय ह इस परकार एक लकषय ह तो दसरी रतवय

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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शरिा भािनाओा का तति ह

उदाहिि क रप म जस हम अपन तरकसी तरमि या पररवार क सदसय स तरमलन जाना ह तो तरमलन की ख़शी की वजह स यािा की

रकान नही रहती आनद ही रहता ह तरक कब जलदी तरमल इसक तरवपरीत यतरद कोई दसरा हो और तरमलन जाएा तो उतनी ख़शी आनद

नही होती जस अपन पररवार क सदसय या तरमि स तरमलन पर होती ह

जहा शरिा होती ह वहाा साधना पनपती ह

रतवय शबद रतरत स बना ह रतरतपररतरतरतवय इसी स बन ह

रतवय म पहचना ह तो शरिा और तरनषठा दोनो चातरहए

हमार कमा की कशलता तब परकट होती ह जब लकषय क परतरत शरिा होती ह

जस ndash भरत तरसह राजरर सखदव आतरद िातरतकाररयो का लकषय एक ही रा दश की आजादी लकषय क परतरत उनकी अटट शरिा री

पता रा तरक पररणाम कया होरा काकोरी चोरी काणड का या तरफर कोटा म बम फोड़न का तरफर भी उनका जो लकषय रा दश की

आजादी उसक परतरत शरिा स आर बढ़त रह और हासत हए दश क तरलए शहीद हए

परम पजय ररदव न अवतारो क तीन रप बताय ह ndash सत शहीद व सधारक तीनो म भरवत चतना तरशखर पर होती ह

शरिा तरकसी क परतरत भी पनप सकती ह जस दश क परतरत महापरषो क परतरत आतरद शरिा मतलब आदशो स असीम परम मनषटय

जीवन म शतरि का परम शरोत शरिा ह

वििक जी हमाि सामन लकषय सपषट कि दता ह तो शरिा औि वनषठा स आग ीढ़त जात ह

शरिा वयविति को वसरिता दती ह

रानी लकषमी बाई अपनी पीठ पर अपन बचच को लकर गवातरलयर क तरकल स कदी री यि क दौरान य सब व ह जो दश क तरलए

कबाान होन मर तरमटन क तरलए तयार र

मनषपय जीिन म दो शवियाा ह एक ह विचाि शवि और दसरी भाि शवि शरीर और कमा सब इनक पीछ चल दत ह

यतरद आराधय क परतरत शरिा ह तो सब परकार क कषट सहन कर लत ह सहन हो जात ह और यतरद शरिा न हो तो सशय होता ह

शरिा को कौन तोड़ता ह - शक सशय य शरिा को तोड़त ह

सार मनोरोर सशय स उपजत ह जस तरकसी क परतरत रससा आजाता ह तो हम बस उनस बदला लना चाहत ह य बदल का भाव

मनोरोर क समान ह

जीिन म यवद परम न हो तो परििाएा मि जाती ह

शरिा को शरषठतम परम कहा रया ह आदशो स असीम पयार

सशय स डर परकट होता ह रतवय मतवय सब ख़वम हो जाता ह

शरिा औि वििक ह तो लोक म भी सिलता ह औि पिलोक म भी शरिा और तरववक नही तो तरसफा तरवनाश तरमलरा न सख

न लोक और न ही परलोक

हम मनषटय जीवन म जो कछ भी पात ह वह परतरतभा क रप म परतरतभा ndash Talent

परवतभा की परिभाषा वसरिता ह

यतरद सशय हो और तरववक न हो तो तरनणाय कस लर हमारा ञान Doubtless होना चातरहए

आप तरकसी भी काम को सही स नही कर सकत यतरद आप चतना क तरशखर पर होकर काम नही करत

उसकी चतना तरटकी रहती ह तरजसकी शरिा और तरववक बन रहती ह

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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परम पजय ररदव आचाया पतरडत शरीराम शमाा कहत ह तरक हमार जीवन की मलभत पजी शरिा ह आज इनता बड़ा तरवशाल रायिी

पररवार ररदव क परतरत शरिा और परम पर ही खड़ा ह हम सब तरनतरमि माि ह

जीवन की समची उजाा का आधार शरिा और तरववक ह यह दोनो जहा पर भी हो बड़ स बड़ा काम भी हो जाता ह

हमार जीवन म चयन का आधार ह तरववक चयन म यतरद रलत करोर तो तरवनाश की ओर जाओर और चयन म यतरद सही करोर तो

तरवकास की ओर

हम अपन जीिन म कया चयन कित ह ससपि सी वनभथि किता ह हम शरिा को मजीत कि शरिा को दढ़ कि

एक छोटी सी घटना ह ndash महातमा गााधी जी न दश की आजादी क नाम पर दहरादन म एक सभा ककया महावीर तयागी जो उस समय

रकषामातरी हआ करत थ उनहोन उनका सहयोग ककया इस सभा क किए गााधी जी न आजादी की िड़ाई िड़न क किए धन इकठठा

करन क किए कहा कक जो कजतना द सकता ह वो उतना द जनता न गााधी जी क परकत शरदधा क नाम पर धन कदए किर इकटठ धन स

िड़ाई िड़ी गयी जब धन को कगनन क किए गााधी जी न कहा तो उसम एक मकहिा की एक कान की बािी गायब थी नही थी

और एक कान की थी तब गााधी जी न उस खोजन क किए कहा िोग गए खोज पर बािी नही कमिी जब आकर गााधी जी को

बताया की बािी नही कमिी गााधी जी सोच की बािी कहाा गयी तब सवया वह िािटन िकर रात म भी खोजत रह अाततः सबह

4 बज क िगभग उनको बािी कमि गयी वह ख़शी ख़शी किर िौट आय इस घटना का भाव यह था कक िोगो की शरदधा न टटन

पाय िोगो की आसथा नही टटनी चाकहए िोगो न ककतन शरदधा क भाव स चीज दी थी कजतना उनस बन पड़ा था उतना

जब बड़ा नायक आता ह तो इस रप म आता ह तरक उनक जीवन म शरिा और तरववक कट-कट कर भरी हो

वयतरिवव को खरा परामातरणक और उपलतरबध पर पहाचाना चाहत ह तो यह तरववक और शरिा स ही सभव ह

तरजसका तरववक परखर ह उसका जीवन परखर ह

दो मारा ह ndash एक ञान का एक भतरि का

ञान का मारा तरववक स ह और भतरि का मारा शरिा स

शरिा और तरववक की ताकत बहत ह आज लोर सशय स परशान ह लोर बचन ह भार रह ह भटक रह ह जीवन म सशय की

वजह स

मनोरोरी का तरववक ख़वम हो जाता ह

सशय कछ नही पल-पल की बचनी ह जो भरतरमत ह वह कछ पराि नही कर सकत तरकसी भी लोक म

शरिा की Powerful Energy ह शरिा की शतरि म लोर रकत भी नही ह जीवन म ञान क तरलए तरववक और शरिा

वििक औि शरिा नि स नािायि होन का मागथ ह वििक औि शरिा की अनभवत ही जञान ह वििक शील जीिन हो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

Page 25: नििावत्र साधना स्िाध्ा प्रर् ......व त र स V स व ध 2016 | DSVV 1 आज क व ष - चत र थअध ^ ^ क 34

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 41िाा शलोक

योगसतनयसतकमाथिा जञानसवतनसाशयम

आतमितता न कमाथवि वनीधनवतत धनजय (441)

अरथ ndash

ह धनजय वजसन कमथयोग की विवध स समसत कमो का पिमातमा म अपथि कि वदया ह औि वजसन वििक िािा समसत

साशयो का नाश कि वदया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह ीााधत (441)

41वाा और 42वाा शलोक दोनो ही बहत महववपणा ह दोनो को समझ लर तो ञान की मतरहमा समझ आजायरी तरक ञान कयो हमार

जीवन म जररी ह ञान क माधयम स कयो हमको इन चीजो को जीवन म उतारना चातरहए तरजनस सशयो स पार हो सक तरववक का

मतलब होता ह सशयमि होना तरववक सशयमि कर दता ह हमको तरजस तरदन तरववक आजायरा उस तरदन हम तरकसी चीज को

सशय स नही दखर

अषटम वदिस ndash कालिावतर माा का वदन

पिथतः काली महाकाली मधकटप का वध करती ह तरचि की शतरि व अतरवदया पर अतरतम परहार

तमोरण का नाश सवव का तरवकास तरकसी भी ससकारो का जनम न होन क तरलए सार ससकारो का (कसकारो का) नाश करती ह

रि बीजो का नाश इनहो क दवारा होता ह साधक म अनदर तरछप रणो को दखन की तरदवय दतरषट आ जाती ह सतोरण की वतरि क

तरलए दवी की अचाना

गीत ndash महाकाल की चली सिािी चलो सार हो जाय

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

पिमातमा म अपथि िद को जो किता कमथयोग की विवध म पराि जो ह भिता

सवििक क िािा साशय जो नषट कि अततः शि िह परष कमथ को मि कि

वचतत सिवटक शि-ीि सा ीन जाए

आतमिान ीन शरिा जीिन म आय

साशय मि आतमा ईशवि ीन जाता

आतमितत ीनकि जीिन भी सध जाता

नििावतर साधना सिाधयाय ndash अषटम वदिस

तरदनाक ndash 8 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

धननजय ndash (अजान) अदर तरछप खजान धन को खोजन वाला

कमायोर क माधयम स जो अपन कमो को परमावमा को अतरपात कर तरववक दवारा सशय का नाश करता ह उनह कमा नही बाधत वह कमा

फल स मि हो जाता ह

आवमवनत ndash वह तरजसका अपन ऊपर Control ह

योर मतलब कमायोर तरजसस आदमी का तरवयोर टट जाए आदमी का आवमा स तरवयोर हो रया ह आवमा का परमावमा स तरवयोर

हो रया ह वह तरवयोर न रह अरर तरवयोर का टट कर योर हो जाना योर का पहला पररणाम कब होता ह सार परकार क कमो स

वयतरि छट जाता ह

जो कमायोर दवारा अपन कमो को परमावमा म अतरपात करता ह और जो तरववक स सशय का नाश करता ह उसक सार कमा छट जात

ह कमो का पररणाम नही तरमलता नही आता उनक पास

हम जो भी कमा करत ह उसका पररणाम वापस लौट लार हमार पास ही आता ह

ञान स सार सशय तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जस सरज आत ही हवा चलत ही बादल तरछनन-तरभनन हो जात ह वस ही ञान सया स

तरववक क ऊपर तररर बादल तरछनन ndash तरभनन हो जात ह जो योर म आरढ़ होता ह उस ञान होता ह वह आवमवान हो जाता ह

इस शलोक की उपलतरबध ह ndash आवमवान हो जाना अपन ऊपर Control

आवमवान बनन क तरलए पहला चरण ह ldquoयोरसनयसर कमााणrdquo तरक योर क माधयम स कमा छट जाए कमो का नयास हो जाए

कोई भी तरबना कमा क नही रह सकता कमा तो करना ही पड़रा परनत कमा फल की इचछा नही होनी चातरहए

शरीकषटण अधयाय 3 क 5व शलोक म कहत ह तरक तरनःसदह कोई भी मनषटय तरकसी भी काल म कषणमाि भी तरबना कमा तरकय नही रह

सकता ह कयोतरक सारा मनषटय समदाय परकतरतजतरनत रणो दवारा परवश हआ कमा करन क तरलए बाधय तरकया जाता ह

कमो क नयास स मतलब ह कमो क पररणाम का नाश जो कमा हम करत ह उसकी अपनी ऊजाा होती ह हर कमा की उजाा होती ह

शभ कमा की शभ ऊजाा अशभ की अशभ ऊजाा जो भी ऊजाा होती ह वह हमार तरचि को ढाक लती ह बीज रप रप म तरचि म रह

जाती ह उन बीजो का नाश

जस लालटन म जलती दीपक क धएा स जो काच ह तरजसस उस ढका जाता ह काच क चारो तरफ कातरलख जम जाती ह तब दीय

की रौशनीपरकाश सही स नही तरदखती और जब कातरलख को पोछा जाता ह तो दीय की रौशनी पनः तरदखाई दन लरती ह चमकदार

तरदखती ह उसी परकार तरचि की सवाभातरवक तरसरतरतदशा उसी कातरलख की तरह होती ह अतः हम चातरहए तरक हमारा तरचि सफतरटक

की तरह तरनमाल हो तरचि सवचछ हो तरचि की रौशनी साफ़ हो लतरकन ऐसा होता नही ह कमो की परत ससकारो की परत उसपर

चढ़ रहती ह तरफर हम भल जात ह तरक हम कौन ह हम होश ही नही रहता तरक हम कौन ह हम भरवान क भज हए महामानव ह

हम ईशवर दवारा उनक तरवतरशषठ कायो को करन क तरलए धरती पर भज रए ह

एक पारल को कछ होश नही रहता याद नही रहता हमारी तरसरतरत भी उसी तरह की ह योरी होश म रहता ह

आज योर का बहत परचार-परसार ह परनत योर अपनी वासततरवक सही तरसरतरत स वतरचत ह आसन-पराणायाम को ही योर समझ बठ

ह जबतरक य योर की एक तरिया ह एक भार ह न तरक योर योर इसक ऊपर ह

आसन-पराणायाम शरीर शतरि म मदद करत ह पर इसस आवमवान नही हो सकत सवसर जरर हो सकत ह

यम-तरनयम क बाद योर फतरलत होरी आवमवान बनना ह तो परा योर समझो योर एक दशान ह इसका परदशान नही होता योर

परदशान नही ह

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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जब कमो की रखा कमो की कालष आपको छ रही हो और यतरद आप उनस मि हो जात ह तो योर ह योर परमावमा स तरमलन ह

योर - परमावमा क तरमलन अभी तो दहरी पार करनी ह परवयाहार की तरफर धारणा धयान तरफर समातरध वासतव म कोई चमवकार नही

ह जो आसनो का परदशान बड़ अचछ स करत ह परनत परदशान को योर नही मानना चातरहए YOG is Union between GOD

and its SON

घटना - बड़ी परानी एक रटना ह रमण महतरषा क आशरम म एक पतरिमी वयतरि आया नाम रा िवजा दोसतोकवच (पोलड का रा)

रमण महतरषा उस जमान म भारतभतरम क सवाशरषठ जीवावमाओ म स एक र अरणाचल पवात ह तरतरअननमलाई क पास उसम रहत र

इस पवात को सकनद का अवतार कहा जाता ह मतलब कातरताकय का अवतार ह और उसी रप म जस सरावणााम तरहमालय

तरहमालय की परतरतमा ह जस उसी रप म उस भी पजा जाता ह दोसतोतरवच न पछा महतरषा रमण स तरक आप हम योर बताए और तरकस

तरवतरध स चमवकार आत ह Can you show me the miracles of Yoga रमण महतरषा न कहा तरक ऐसी तो कोई तरवतरध म जानता

नही और न ही मन कोई तरवतरध सीखी ह मझ तो य मालम ह तरक एक योरी को तरजञासा होनी चातरहए सबस पहल

ldquoततरदवतरि परतरणपातन पररपरशनन सवयाrdquo तरजसक अनदर तरजञासा होरी परशन पछन तरक उसको तरमल जाएरा आवमवान होन की तरजञासा

होनी चातरहए अधयाय 4 क 34व शलोक म शरीकषटण कहत ह तरक उस ञान को त तववदशी ञातरनयो क पास जाकर समझ उनको

भलीभाातरत दणडवत परणाम करन स उनकी सवा करन स और कपट छोड़कर सरलतापवाक परशन करन स व परमावम तवव को भलीभाातरत

जानन वाल ञानी महावमा तझ उस तवव ञान का उपदश करर

म कौन ह ा य तरजञासा होनी चातरहए रमण महतरषा की तरकताब ह ldquoम कौन ह ाrdquo जो उनक बोल हए उपदशो पर आधाररत ह जो म नही

ह ा उसक परतरत साकषी भाव होना चातरहए We Should Be Observer तरक म कौन ह ा जो म नही ह ा उसक परतरत अनासतरि होनी

चातरहए म नही ह ा म पदारा नही ह ा ससार नही ह ा आकषाण का कनदर तरबद नही ह ा

रमण महतरषा बतात रए दोसतोतरवज सनत रह पहल रटना िम क साकषी बनो जो करना ह करो लतरकन आसतरि मत होबर कमा मत

करो आतरद सब बताय व सनत रह पहल रटनािम क साकषी बनोशरीर क साकषी बनोसबधो क साकषी बनो मन क साकषी भाव

इतरनदरयो क साकषी भाव य सब बताय साकषी भाव बड़ी तरवलकषण चीज ह इसक तरवकास स अधयातरवमक तरवकास होरा साकषीभाव स

आवमवान बन जायर दोसतोतरवज क कछ समझ म नही आया इसन कहा तरक तरकतन अजीब इसान ह दोसतोतरवज न अपनी तरकताब

म तरलखा तरक रमण महतरषा भल ह पर बात अजीब अजीब करत ह उसन सोचा तरक कछ तो तरवतरध बताएार पर कछ और ही बतान

लर अनासतरि करो हर आदमी यह चाहता ह तरक आधयातरवमक कषि म उवकषा क तरलए कया कर हम बहत स कमा करत ह और

कई बार खश होत ह कई बार रोत भी ह भरवान को दोष दत ह रमण महतरषा न कहा सारी रटनाए कमाानसार चल रही ह पर हम

परशान होत रहत ह य बताया रमण महतरषा न उनको महतरषा रमण आवमवान र अपनी आवम म ही तषट र तरदवय दषटा र पर बतात

नही र तरकसी चमवकार को अब उस आदमी को जो तलाश री उस वो समझ नही आया भटकता रहा जो तरवतरध जाननी री उसक

तरलए भटकता-भटकता महावमा राधी क पास पहचा महावमा रााधी जी न जो बताया उसको वो बात जम रयी उसन रााधी जी क

बार म तरलखा तरक वह आधी धोती पहनत र सोमवार का वरत करत र मौन रखत ह उनहोन दखा तरक असवाद वरत रखत ह नीम

की चटनी भी खात ह कछ खास बात ह कया इस खान म उसन पछा इसस कोई चमवकार होरा रााधी जी न कहा नही चमवकार

नही भई य तो हमारा Routine ह तमहारा मन ह तो तम भी य करो उनको य समझ आरया तरक रााधी जी महावमा ह उस लरा

तरक जो कछ रााधी जी न बताया वो कछ करन क तरलए कह रह ह पर रमण महतरषा न तो कछ करन क तरलए ऐसा कछ नही बताया

उनहोन कहा साकषी भाव हो जाओ कछ समझा तो रह नही ह तरजसस योर तरसि हो जाएरा रााधी जी न चलन क तरलए बताया पर

महतरषा रमण न तो य भी नही बताया दोसतोतरवज न अपन ससमरण म तरलखा तरक भारत रमन क बाद परभातरवत हए तो रााधी जी स

हए उसन रााधी जी की फोटो लकर महतरषा रमण क पास तरफर स पहच और बोल आप इनस कछ सीखो रााधी जी स रााधी जी को

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

Page 28: नििावत्र साधना स्िाध्ा प्रर् ......व त र स V स व ध 2016 | DSVV 1 आज क व ष - चत र थअध ^ ^ क 34

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महतरषा रमण न परणाम तरकया दोसतोतरवज न कहा तरक आप भल वयतरि ह तो हमन सोचा तरक रााधी जी की फोटो आपको दत ह आप

इस लरा कर रखर तो आप कछ सीखर रमण महतरषा न कहा लरा दो फोटो फोटो लरान म कोई परशानी नही इतनी फोटो लरी ह

य भी लरा दो उसन फोटो लरा तरदया लतरकन जो वासततरवक रप म योर म परतरततरषठत र उनको नही समझ पाया

महतरषा रमण और शरी अरतरवनद उस जमान क महान योरी हए तरजनहोन सकषम जरत को अपन परचणड तप स आदोतरलत तरकया तरजसक

माधयम स सतयर की वापसी का वातावरण बना और भारत आजाद हआ

एक और दसरा तरवदशी पहचा रा रमण महतरषा क पास तरजसका नाम रा पाल तरबरनटन तरजनका जनम 1898 म हआ रा और 1981 म

मवय हयी ररतरफल हसटा उसका नाम रा पर उसन अपना नाम पाल तरबरनटन रख तरलया उसन तरकताब तरलखी ह ldquoSearch in Secret

India (रि भारत म एक खोज)rdquo एक ऐसी खोज भारत म आधयावम तवव की खोज उसन कई महावमाओ क बार म तरलखा रमण

महतरषा स वह बहत परभातरवत हआ ldquoHidden Teachings Beyond Yogardquo क नाम स एक तरकताब तरलखी तरजसम जो बात उसन

रमण महतरषा स की उसका उललख रा इस वयतरि न रमण महतरषा को समझ तरलए पर पहल वाल पतरिमी वयतरि न कयो नही समझा

शायद कोई उचच आवमा री शायद कोई चमवकार की खोज री

हम सभी योग क नाम पि वचतर विवचतर वकयाएा कित िहत ह अधयातम क नाम पि कई चीज कित ह विपिीत ढाग स भी

जीत ह पितत योग को नह समझ पात ह योग की अनभवत नह कि पात कमो स ीाधत जात ह

कमो क पाश वजस विवध स िीि हो िह योग ह िह परवकया जो कवड़यो को तोड़ द िह योग ह पणय-पाप ीााधत ह

ीाधन दोनो ही ह

कमो का फल भोरना पड़ता ह पाप ndash वह काम जो परकतरत क तरवपरीत तरवरि करत ह वह पाप ह और पणय वह काम जो परकतरत क

अनकल करत ह

पणय जब आय तो अहकार नही होना चातरहए पणय-पाप दोनो तरसरतरत म तरनरहकारी होना होरा

जी कमथ क ीाधन टट जाए कमो की अघथलाय टट जाए तभी योग होगा

कमा को योर बनाओ कमा योर बनरा तब आर बढरा

Union with God Union with micro Cosmos Union with Almighty

एक ीहत पयािा गरतर ह योग िवशषठ जो महािामायि क रप म भी जानी जाती ह राम जी को महतरषा वतरशषठ न जो ञान तरदया

रा वह इसम सगरतरहत ह इसम अनक कराए भी ह भरवान राम को तरकशोरावसरा म ही वरागय हो रया रा कमा नही करत र शोक

की अवसरा म र य महल सख सतरवधा क साधन इनको परशान कर रही ह भोजन छट रया उनमद रहन लर र अपन म लीन रहन

लर भजन करत मनन करत तब दशरर न य समसया कलरर वतरशषठ को बतायी महराज आप कछ कररए तब उनको कमा का ञान

तरदया रया महतरषा वतरशषठ दवारा महतरषा वतरशषठ न दवपरयार म राम जी को ञान का उपदश तरदया रा

योर वतरशषठ म एक करा रानी चडाला की ह उनक पतरत का नाम रा तरशखधवज रानी चडाला तरवदषी सतरी री तरजञास री समझदार

री उनका मन तरजञासा सचचा रा पकका रा राजा स तरववाह हआ राजा ससकार वान र शीलवान र दोनो ही परमारा क काम म

लर हए र राजा रानी दोनो पतरत-पवनी क समबनध की बजाय साधक-सातरधका क रप म रहत र दोनो तरमलक काम करत र परनत

जब भी सतरी ndashपरष तरमलकर काम करत ह तो परष का अहम सामन आजाता ह तरकसी भी काम म परष जो ह अपन अहम क माधयम

स सतरी पर छाप छोड़ बठता ह महाराज को भी अपन म य अहम रा अपन परष होन का रानी चडाला यह जानती री तरक न तो कोई

परष ह और न कोई सतरी परष और सतरी कवल वश ह जीवावमा का रभीरता स तरनषटकामता स चडाला धीर-धीर योर की सीढी को

चढ़ती चली जा रही री ञान की भतरम को पार करती जा रही री पररतरत तजी स होत जारही री एक तरदन ऐसा आया तरजसको भरवान

कहत ह योरसयसर कमााण योर क माधयम स कमा जो ह उनका नाश हो जाता ह रानी चडाला क सार कमा नषट हो रए कमो क

पररणाम व दोष स दर हो रयी योर म तरसरत हो रयी एक योरी हो रयी तरजसका पररणाम ञान होता ह तरववक दवारा सशयो का नाश

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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हो जाता ह रानी परसनन रहन लरी जब तरचितरनमाल होता ही मन सशयरतरहत होता ह तो हमार अनदर परसननता तरहलोर लन लरती ह

हम दखत ह तरक जो अशभ कमो स तरररा होता ह उसका चहरा मलीन होता ह अशभ कमो स काली छाया चढ़ती ह अपरसननता

छाई रहती ह और जो शभ कमा करता ह अचछा करता ह उसका चहरा मसकरात हए लरता ह परसननतरचि रहता ह चमक होती ह

पणय कमो का रानी चडाला क अनदर योर का परकाश आरया हर काया करत हए वह राजकाया भी करती री यह भी धयान रहता रा

तरक राजा की साधना म भी हसतकषप न हो पाए रानी क चहर पर शातरत री मनःतरसरतरत अपररवतरतात व परसनन रहती री राजा न पछा

महारानी आप इतनी परसनन कयो रहती ह रानी न कहा महाराज मझ ञान हो रया ह मझ सवय का ञान हो रया ह मर सशय तरनकल

रए सार क सार म जीवन का वासततरवक सवय जान चकी ह ा म आवमवान हो चकी ह ा दोनो एक सार साधना करत र राजा न

कहा य कस हआ अचानक तम तो वस ही रहती री जस हम रहत र तमन कोई तरवशष साधना भी नही की पर तमको कस उपलतरबध

तरमल रयी और हमको कयो नही तरमली रानी बोली म जीवन को समझन की कोतरशश करती री और कछ नही करती री म सोचती

री तरक म कौन ह ा और सार तरदन तरचतन मनन करती री तरक म शरीर नही ह ा मझ परमावमा न तरवशष काम क तरलए भजा ह अपन अनदर

ही अपना अनसधान तरकया धीर ndashधीर मझ समझ आया तरक म दह नही ह ा म दह स भी रहरी ह ा मर कमा छटत रए समबनध टटत

रए आपक और हमार बीच पतरत-पवनी नही साधक व सातरधका क समबनध र बधन टटत रए और म अपनी आवमा म एक तरदन

धीर स परतरततरषठत हो रयी

राजा न सना राजा को तरजञासा री राजा को कही न कही पर आवमहीनता का भाव लरा तरक य सतरी होत हए भी हमस आर तरनकल

रयी य राजा का अहम कह रहा ह तरक एक सतरी हमस कस आर तरनकल रयी राजा को छोटपन का अहसाह हआ कमतर होन का

भाव हआ रानी न कहा महाराज म आपको बताती ह ा तरक दह की सीमा स पार कस जाया जाता ह राजा न बोला तम कया बताओरी

मझ तम हमारी रर बनोरी पवनी हो तम हमारी और पवनी का रर बनना हम शोभा नही दता हम राजा ह चिवती समराट ह बड़

शमा की बात ह य भाव राजा पर हावी होत रए रानी समझ रयी सारी बातो को तरक परष अहकार हावी हो रया ह समझाना बकार

ह उसन कहा महाराज आप साधक ह तपसवी ह आप जो चाह वह चयन कर ल राजा न कहा रानी म साधना क तरलए वन म जाना

चाहता ह ा रानी बोली महाराज आप जसा चाहत ह कररए म आपका सहयोर करा री आप जाइए आप चाहत ह तरक राजय वहाा स

चलाएर तो आप वही स चलाईय और अरर राजय आप मर बलबत छोड़ना चाहत ह तो छोड़ जाइए म राजय चला लरी रानी

आवमतरवशवास स भरी हयी री परी रानी कशल री राजा न कहा अप राजा भी तम रानी भी तम ही हो राजय तम समहालो रानी योरी

बन चकी री रानी चडाला न परा राजय समहाल तरलया अपन पतरत राजा को साधना क तरलए मि कर तरदया लतरकन ऐस मि होन

स कोई मि होता ह वासततरवक बधन मन क होत ह मन ही मनषटय क बधन और मतरि का कारण ह (65 66 शलोक - रीता)

अब राजा कोतरशश करत र तरक हमार बधन अहकार आवमहीनता सब समाि हो जाय अब वह वन चल रए सब कछ छोड़कर

पर रानी न समझ तरलया तरक य मि नही हो पायर ञानी न हो सक र इनका मन तो राजय म लर रहरा महाराज हमार परतरत गरहणशील

नही ह इसतरलए हमस कछ सीखर भी नही वन म जाकर राजा रानी क परतरत तरवषाद म रहन लर तरक सतरी को सब पराि हो रया मझ कयो

नही हआ जबतरक दोनो न साधना सार म आरमभ की री वन म आकर राजा और अवसाद म चल रए रानी समझदार री पतरत की

पीड़ा को दर करना चाहती री रानी तरदन म राजय को समहालती री रर को समहालती री और रात म योरी क रप म एक सकमार

परष योरी क रप म राजा क पास जाती री रानी न कहा तरक महाराज हमार ऊपर शराप लरा हआ ह तरक हम कवल रात म पढ़ा

सकत ह आपको राजा तयार र तरसखन क तरलए एक सनदर नवयवक को दख राजा परभातरवत हए उनहोन कहा तरक रानी और हम सार

ndash सार साधना आरमभ तरकय र पर रानी सब कछ सीख रयी हम नही तरसख पाय हम बड़ा अवसाद ह हम वरत करत ह उपवास

करत ह भातरत- भातरत क आसन करत ह पराणायाम करत ह पर मन क बधन नही नही टट रह रानी न कहा कोई बात नही तन क

परयास स मन क बधन नही टटर रानी(नवयवक क रप म ) न कहा हम आपको साधन बताएार आप तरसरर होकर बतरठय मन को

शात कीतरजय आप भल जाइए तरक आप राजा ह आप एक जीवावमा ह आरमभ कररए तरवधाता न आपको जीवन तरदया ह य जीवन

आपको कमाानसार तरमला ह ससकारवश वह आपकी रानी ह वसी मनःतरसरतरत बनी पररतरसरतरत बनी सभी पररतरसरतरत व मनःतरसरतरत

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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स जीवावमा ऊपर ह रानी न योर मारा का मि तरदया और कोई तकनीक नही तरसखाई योर मारा स कस रटनािम हमार जीवन म

रटत ह कमा बनत ह अहकार कस बाधता ह य सब तरसखाया और रोज रात म वन जाकर अचछ आचाया की तरह तरसखाती री

कभी भी उनक मन म कोई कमजोरी नही आई तरक सतरीरप जो ह परकट हो जाए राजा क सशय दर होन लर वह समझ रए तरक कस

साकषी भाव म परतरततरषठत हआ जाता ह कस जीवावमा ndash परमावमा स तरमल सकती ह राजा का तरववक बढ़ता रया सब समझ आता

रया तरक असली ञान आता रया राजा का दःख अवसाद दर हो रया व परसनन रहन लर दह क पार राजा अपनी आवमा म तरसरत

होन लर एक तरदन परष वश म रानी न पछा तरक राजा कया आपको लरता ह तरक आप धीर-धीर आवमवान हो रह ह राजा न कहा

हाा तम एक कशल कलाकार हो तमन हम आवमवान होना तरसखा तरदया हम योर म आरढ़ हो रए तरफर पछा अरर य उपदश

रानी दती तो कया आप सवीकारत राजा न कहा शायद म उनतरदनो नही सवीकार करता कयोतरक म राजा रा परष रा पतरत रा पर म

अब न राजा ह ा न परष ह ा न पतरत ह ा म तो बस एक साधक की तरह स यहाा तरवराजमान ह ा

(शवताशवतरोकननषद म एक शलोक आता ह अ4 शलोक3 ndash अथथ ह ndash ह सवशवर आप सतरी भी ह परष भी ह आप कमार भी हआप

कमारी भी ह आप अनक रप वाि ह इन सबक रप म आप ही परकट होत ह आप ही बढ़ होकर लाठी क सहार चलत ह ह

परमावमा आप ही तरवराट रप म सब ओर मख तरकय हए ह समपणा सवरप आपका ही जरत ह )

रानी को लरा राजा आसतरि व अहकार स मि हो रह ह राजा बोल अब म उस तरसरतरत म आरया ह ा जहा ञान ह अब मझ तरवनमर

भाव स तरशषटय भाव स अपनी पवनी को भी सवीकार करना चातरहए अब वो ञान दन तरफर स आजाएरी तो तरवनमर भाव स अब म

उनस ञान गरहण कर लारा य पररवतान रानी की वजह स आया तरनवय परतरत का िम रा रातरि म तरसखन का रानी न एक तरदन कहा तरक

महाराज आज ञान योर की अतरतम परीकषा हो जाए राजा न कहा ठीक ह रानी न कहा आप 1 तरमनट क तरलए आाख बद कर लीतरजय

तरफर जब आाख खोल तो दखा रानी खड़ी ह सामन बोल तम तो नवयवक क रप म री रानी न कहाा तरक मन योर क चमवकार स

सवय को सतरी रप स परष म बदला म ही आपकी रानी ह ा अब राजा को कोई गलानी नही हयी कोई तरचता नही हयी उनहोन कहा

तम इस बीच राजय भी समहालती री और मझ भी पितरत री हमारी भरातरतयो को तमन दर कर तरदया तम महान हो य कहानी बताती

ह तरक परष सतरी स भी तरसख सकता ह और आवमा अरर आवमवनत ह तो सतरी भी तरसखा सकती ह परष को दव परष बना सकती ह

हमार जीवन क परतरत भातरत-भातरत क परशन सशय पदा करत ह यतरद जीवन का परशन सही हो जाए तो भरातरतया दर हो

(उपतरनषद कहत ह मणडकोपतरनषद म अधयाय 2 क खड-2 का 8वा शलोक ndash तरजसक सार कमा कषीण हो जात ह उसकी परा दतरषट खल

जाती ह )

हमार मन म जो राठ ह वो खल जाए टट जाएा राठ एक भरातरनत ह इनस तरनकल ऊपर उठ

योर और ञान दोनो तरमलक आवमवनत बना दत ह जब योर होता ह तो ञान होता ह और अनदर ही अनदर आदमी तषट हो जाता ह

हमार मनोगरतरर भटकन हमारी जीवन उजाा का कषय करती ह मनोगरतररयो को हम समाि कर द तो कमा नही बाधरा ञानी हर

कमा क पषटप को परभ को अतरपात कर दता ह

सशय और अहकारो स हम दर होन की कोतरशश कर हम भी आवमवान हो सकत ह यतरद सशय समाि हो तो

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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आज का विषय - चतरथ अधयाय का 42िाा शलोक

तसमादजञानसमभता हतसरा जञानावसनातमनः

वछतिना साशया योगमावतषठोवततषठ भाित (442)

अरथ ndash

ससवलए ह भितिाशी अजथन त हदय म वसरत सस अजञान जवनत अपन साशय का वििक जञानरप तलिाि िािा छदन

किक समतिरप कमथयोग म वसरत हो जा औि यि क वलए िड़ा हो जा (442)

नवरातरि का अतरतम तरदन शलोक 442वा ndash ञान की मतरहमा का तरशखर इस शलोक म यह बताया रया ह तरक ञान क तरशखर म कसा

लरता ह जीवन की साड़ी दतरवधाए समाि हो जाती ह हम अपन जीवन को तरकस परकार जीना चातरहए यह तरसखाता ह शलोक

गीत ndash लागी ि लगन हो माा एक ति नाम की

नििावतर क 9 वदन तक हमन अधयाय 4 क शलोक 34ि स 42ि (9 शलोक) क माधयम स जञान की मवहमा का सिाधयाय

वकया -

1 वशषपय कस ीनत ह गर का उपदश सनो (434)

2 मोह नह किना चावहए (435)

3 जञान की नौका म ीठकि पापसमदर स पाि हो जाना यवद पापी स भी पापी हो तो भी ति जाओग (436)

4 कमो को सवमधा की तिह भसम कि द कमो का भसमीकिि जञान की अवनन िािा (437)

5 पवितरता ndash जञान की पवितरता ही शरषठ ह उस जञान को पान की कोवशश किनी चावहए (438)

6 शरिािान ndash शरिािान को ही जञान का लाभ वमलता ह (439)

7 वििकहीन शरिािावहत औि साशययि विनाश को परापत होत ह उनक वलए न लोक ह न पिलोक औि न ही सि

(440)

8 वििक िािा समसत साशयो का नाश वजसन कि वलया ह ऐस िश म वकय हए अातःकिि िाल परष को कमथ नह

ीााधत (441)

यह गीता का उपदश योनय को ही दना चावहए भगिान कषपि कहत ह वक (18अ67ि शलोक) तझ यह िहसयमय उपदश

वकसी भी काल म न तो तपिवहत मनषपय स कहना चावहए न भवििवहत स औि न वीना सनन की की सचछा िाल स ही

कहना चावहए तरा जो मझम दोषदवषट ििता ह उसस तो कभी भी नह किना चावहए

शरीकषपि जी (18अ72ि शलोक) म पछत ह वक कया सस गीताशासतर को तन एकागरवचतत स शरिि वकया औि ह धनजय

कया तिा अजञानजवनत मोह नषट हो गया

सस अावतम शलोक म मोह पिी तिह स नषट होता ह

नििावतर साधना सिाधयाय ndash निम वदिस

तरदनाक ndash 9 अकटबर 2016

Discourse by Shraddhey Dr Pranav Pandya Ji (Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalay amp Head of All World Gayatri Pariwar)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

Page 32: नििावत्र साधना स्िाध्ा प्रर् ......व त र स V स व ध 2016 | DSVV 1 आज क व ष - चत र थअध ^ ^ क 34

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निम वदिस ndash माा वसविदातरी का वदन सभी परकाि की वसवियो को दन िाली

---------------------------------------------------------- उदबोधन साि ---------------------------------------------------------

साशय औि कीवि छोड़ शरिा को अपनाय

सतिलोक सिमय वचि होगा लोक धतय कि जाएा

---------------------------------------------------------- विषय िसत ----------------------------------------------------------

शरीकषटण अजान को योर क तरशखर पर तरसरत होन और यि करन की पररणा दत ह

वह कहत ह तरक हदय म जो अञानजतरनत सशय ह उस तरववकरप तलवार दवारा छद कर कमायोर म तरसरत हो जा और यि क तरलए

खड़ा हो जा

भरततरसह न अपन सातररयो को Instruction तरदए जनरल डायर तरजसन लाला लाजपतराय क ऊपर लाठी चलाई री उस जनरल

डायर को मारना ह उस जनरल को मारन क तरलए अपन आदमी तरनयि तरकय भरत तरसह न कहा तरक जब तमलोर जनरल डायर

को पहचान लो तरक यही आदमी ह तरजस मारना ह तो बस उस दखकर तमहार हार नही कापन चातरहए हार अरर कााप रए रसस क

मार तो तमहारा तरनशाना चक जाएरा और यही हआ जस ही जनरल आया और सारी न तरपतौल तरनकाली चलान क तरलए तरबलकल

आमन सामन जब आय तो हार कााप रया और तरनशाना चक रया य लोर भार तजी स पर दसर न इस बीच तरनशाना बना तरलया

अततः बदला ल तरलया

रसस म आन स हार कापन लरती ह रसस म आन स सारा शरीर कापन लरता ह रसस म आन स जवर आता ह

भरवान कहत ह तरवरतजवर तरबना तरकसी जवर क यि करो जवर यान सताप तरबना कााप यि करो

जस लौ नही कापती ऐस ही हमारा तरचि भी होना चातरहए तरचि चचल नही होना चातरहए कमपायमान नही होना चातरहए

भरतवश म जनम लन की वजह स अजान - भरतवशी

हदय म तरसरत अञान को पहचान और उसका खणडन कर सशय को तरमटाओ

हमार हदय म भाातरत ndash भाातरत क सदह ह सशय ह कई तरह क शक चलत रहत ह तो इन शको को सशयो को तरववक रपी तलवार

स छदन दवारा तरनकालो

दो शवियाा ह वजसस आदमी अनभि किता ह ndash िह शवि ह विचाि औि भाि अनभतरत क हमार पास दो ही धाराए ह

तरवचार और भाव भाव अहसास करन की ताकत ह ञान क दवारा तरवचार क दवारा सभी शतरियो क तरथयो का अनभव पराि होता ह

बतरि स तका स तरवचार स तरवशलषण स हम उस अतरभवयि करत ह आभास होता ह भाव दवारा

हमाि पास जीिन की चाि अिसराएा ह ndash

1 जागत अिसरा ndash सदी-रमी का अहसाह होता ह जारत अवसरा का अपना अहसास ह जारत अवसरा म इतरनदरयाा अनभतरत

होती ह

2 सिपन अिसरा ndash इसम हम सो रह होत ह पर हमारा मन नही सोता ह मन चचल ह नही सोता इसम मन दवारा अहसाह होत ह

मन चलायमान रहता ह शरीर सोता ह पर मन जारता ह

3 ससपत अिसरा - शरीर व मन दोनो सोया होता ह इसम भी एक अहसास होता ह सोन म रहरी नीद आती ह एक अहसाह ह

पर कछ बतान की तरसरतरत नही तरक कसा अहसाह ह

4 तिीय अिसरा ndash इस अवसरा म दो चीज होती ह ndash रहर शयन का अहसास और आनद क जाररणरहर जाररण का अहसाह

(जाररण जसा होश और रहरी नीद)

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

Page 33: नििावत्र साधना स्िाध्ा प्रर् ......व त र स V स व ध 2016 | DSVV 1 आज क व ष - चत र थअध ^ ^ क 34

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चारो अवसरा की अनभतरतयाा हम तरवचार और भाव दवारा अतरभवयतरि करत ह अनभतरत करत ह

लवकन सन अनभवतयो म भरावतत हो जाए साशय हो जाए तो हमािी धाििाएा हमािी अनभवतयाा जीिन का गवित गड़ीड़ा

दती ह एक वयवि वजसक परवत हम विशवास ह अविशवास आ जाय वयिहाि भल ही सामातय ीना िह पि एक पीड़ा का

भाि मन म ीना िहगा मन पिशान िहगा वचतत की अशवियो की िजह स कछ का कछ वदिता ह

हदय म तरसरत जो अञान ह सशय ह वह अनभतरतयो क दवार को रोकी हयी ह इस सशय को ञानरपी तलवार स काटो

करा ndash एक करा ह आती ह अटकाव और भटकाव की य करा भरवान ऋषभदव स समबतरधत ह तरजनह भारतीय ससकतरत म भी

अवतार माना रया ह और जतरनयो क पररम तीरकर भी मान रए ह बहत बड़ राजा र शासक र महान ञानी र तपसवी र योरी

र कषतरिय र पर जन धमा का शभारमभ उनहोन ही तरकया रा वयतरिवव उनका समगर रा उनकी दो सतान री भरत और बाहबली

भरत बड़ और बाहबली छोट दो लडतरकया री सदरी (बड़ी बहन) और बरामही (छोटी बहन) य तीनो भरत स छोट र ऋषभदव

न दोनो राजयो को अलर ndash अलर कर तरदया भरत को एक राजय द तरदया और बाहबली को एक राजय द तरदया और कहा तरक तम

अपन-अपन शासन को बतरढ़या ढर स चलाओ तरफर तरपता वन म चल रए तपसया क तरलए जब तक वो र तब तक धमाराज रा

बतरढया चलाअभी भी कोई तरदककत नही री दोनो बट बतरढ़या ढर स राजय चला भी रह र परजा का पालन कर रह र दोनो शील

ससकार सदगण वयवहार सब अपन तरपता स पाए र भरत अपन राजय का पर भारतवषा का और बाहबली अपन छोट तरहसस वाल

राजय का अचछी तरह स पालन करन लर एकबार महाराज भरत न सकलप तरलया चिवती होन का अनषठान करर अशवमध यञ

करर बड़ा यञ करर अशवमध क अनषठान स चिवती होना रा एक कषिशासन समपणा धरती पर तरदतरगवजय अतरभयान छड़ा रया ndash

दव ससकतरत तरदतरगवजय अतरभयान बलशाली महाराज भरत न एक स एक राजाओ स तरवजय पराि कर तरलया कछ न समपाण कर तरदए

तो कछ यि करक समपाण तरकया कई लोर जानत र तरक महाराजा भरत अचछ शासक ह उनक शासन म कोई तरदककत नही होरी

ऋषभदव की बड़ी परतरतषठा री तरक ऋषभदव क पि ह तो ञानी ह महाराज भरत न जब तरदतरगवजय पणा कर ली तो उनका तरदतरगवजय

चि नरर म परवश करन वाला रा और चि रक रया रर भी रक रया राजा भरत न सोचा हमन तो सारी तरवजय पराि कर ली ह

कहाा-कया बाकी रह रया कया कमी रह रयी हमारा तरदतरगवजय कयो पणा नही हो रहा मतरियो न कहा आपन सब जीत तरलया पर

बाहबली का राजय नही जीता राजा बोल बाहबली हमारा छोटा भाई ह वह तो अपन आप राजय ददरा अपना सारा उसम तरवजय

की कया जररत ह मतरियो न कहा नही राजय की कछ धारणा ह धमा ह तरबना बाहबली को जीत आप चिवती समराट नही कहलायर

राजा - तो तरफर कया कर मतरियो न कहा सनदश पहचा दो तरक अपन आप को समतरपात करद या तो यि लड़ सनदश भजा रया तरक

बाहबली तम हमस छोट हो और छोटा भाई बड़ भाई को समपाण कर द तो कोई बरी बात नही ह तमहार वश क तरलए भी बहत

अचछा ह तम छोट भाई हो और दोनो भाई तरमलकर क पर तरवशव म परशासन करर बाहबली न सनदश पढ़ा महाराजा का और कहा

तरक हम आपका सममान करत ह लतरकन एक राजा क रप म हम समपाण नही कर सकत अरर आप बड़ भाई क रप म आत ह तो

हम आपको सबकछ द दर परा राजय द दर पर चिवती समराट क रप म आत ह तो हम लड़र हम चनौती सवीकार होरी आपस

हम यि करर और यि तरकय तरबना आप चिवती नही बन सकत एक तरवतरचि तरसरतरत आरई बड़ भाई और छोट भाई म यि की

महाराज भरत को तो तरकसी न तरकसी हालत म चिवती बनना ही रा उनहोन न यि की रोषणा कर दी और सना सज रयी दोनो

तरफ उनकी बहन सदरी और बरामही बहत परशान हो रयी उनहोन दोनो भाइयो क बीच तालमल तरबठान की परी कोतरशश की बहनो

न भाइयो स बात की बाहबली बोल समराट क रप म आत ह तो हम भी यि सवीकार करर जबतरक भाई क रप म दोनो यि नही

चाहत र यि होन लरा तभी मतरियो न कहा महाराज यि तो दोनो भाईयो क बीच म ह दो सनाओ क बीच म नही वयरा का

रिपात कयो कर आप दोनो लड़ लीतरजय यि करक फसला कर लीतरजय वयरा सतरनको की हवया स कया फायदा दोनो बलवान र

वीर र परािमी र बाहबली शारीररक दतरषट स भरत स जयादा बल शाली र यि म सारी कलाओ का उपयोर दोनो न तरकया

लासट म मलल यि कशती होन लरा इसी क दवारा फसला होना रा कौन जीतरा मलल यि हआ अततः बाहबली न राजा भरत को

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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उठा तरलया बस अब कया रा उनको लरा तरक उठा क पटक दत तो जीत जात यि समाि हो जाता जब उठाय तो अचानक उनक मन

म एक तरवचार आया तरक तरकस बात का यि तरकस बात का राजय तरजसक तरलए दो भईयो म यि हो रया पटकन क बजाय उनहोन

भरत को उतारा अखाड़ म खड़ा तरकया और समपाण तरकया बोल आप ही चिवती हो हम चिवती नही बनना ऐसा कहकर भरत

को परणाम तरकया चरण सपशा तरकय बड़ भाई को और बोल आप बड़ आनद स राजय का उपभोर कीतरजय हम वन म तपसया क तरलए

जारह ह हम जा रह ह अपना राजय समतरपात करक वयार क माधयम स उनहोन यि को टाल तरदया तरजस राजय की वजह स हम

दोनो न अपन तरपता की तरशकषा भला दी हम उस राजय का वयार करत ह भरत न बहत समझाया तरक नही ऐसा नही ह हम तमहारा

राजय हड़पना नही चाहत र हम तो कवल चिवती शासन की मयाादा सरातरपत कर रह र बाहबली नही मान नही अब हम राजय

नही करर आप ही राजय कररए बाहबली न कहा हमन आपको यि की तरजतनी नतरतकता ह उस सीमा तक ल जा करक हमन अपन

आप को समतरपात कर तरदया हमन आपको मारा नही आपको परणाम कर माफ़ी मार ली वन म चल रए बाहबली और बहत कतरठन

तप तरकया वरतो का पालन तरकया राजा क रप म भरत की खयातरत फ़ल रयी राजा चिवती हो रए महाराज भरत क नाम पर ही

इस दश को भारत कहा जाता ह वषो तक बाहबली तप करत रह और भरत शासन करत रह एक समय ऐसा आरया जब भरत

सोचन लर बहत हो रया तरपता जी क मयाादा क अनसार हम भी सनयास ल लना चातरहए भरत न भी अपन वशजो को बलाया

उिरातरधकाररयो को बलाया बटो को बलाया नातरत-पोतो को बलाया और बोल हम इनको राजय द रह ह और तमलोर इनकी

तरमलकर मदद करना भरत न राजय द तरदया और सनयास ल तरलया और तपसया करन चल रए बाहबली और भरत की तपसया

चलती रही पर भरत की तपसया की चचाा नही री भरत क शासन की चचाा री और बाहबली क तपसया की चचाा री अपार

खयातरत री लतरकन इसक बाद भी कवलय ञान नही हआ बाहबली को मोकष का ञान नही हआ बाहबली को शर का ञान हआ

तरनतरवाकलप ञान नही हआ तरनतरवाकलप समातरध नही हआ अब बार ndashबार उनक मन म खद होता रा तरक सब कछ छोड़ तरदया तरफर

भी परमावमा का अनभव नही कया हआ कहाा कमी रह रयी य तरवचार उनक मन म आत रह जबतरक हम अपना राजय भी छोड़

आय राजा भरत क मन म पिाताप का भाव रा भरत राजय करत रह परजा का पालन करत रह लतरकन उनक मन म रा तरक कछ

अचछा नही तरकया छोट भाई का राजय ल तरलया चिवती बन बड़ी परतरतषठा हयी लोरो क बीच बड़ा सममान हआ लतरकन कही

कोई गलातरन का भाव रा उनक मन म कही कोई पछतावा रा राजय छोड़ा तो अचछा लरा उनह लरा य अचछा तरकया राजय छोड़

तरदया तपसया करन का मौका तरमला अब उस राजय स मतरि तरमल रयी हमार सतानो स बड़ अचछ स समहाल तरलया अब राजय

भारत तरपता क पास रए दीकषा तरलया और योराभयास म लीन हो रए अब महाराज भरत को तपसया क बाद कलमस-कषाय कषीण

होन क बाद धीर-धीर कवलय ञान हआ भरत को कवलय ञान हो रया तरकतन सौभागयशाली रह तरक राजय भी तरमला चिवती

भी बन और कवलय ञान भी पहल तरमल रया और बाहबली को कवलय ञान भी नही तरमल पाया कारण ह उसक पीछ भरत

समातरध क आनद म डब रए लतरकन बाहबली को समाधी का सख नही तरमला बाहबली तपसया तो करत रह शतरिया तो री लतरकन

उनको जब परसननता की खबर तरमली की महाराज भरत को तो कवलय ञान तरमल रया समातरध का अनभव हो रया बहन न आक

बताया उनको अब भरत क पास पहच रए तो भरत न कहा तरक जीवन म सबकछ पराि तरकयाचिवती समराट बन रए पर जीवन म

एक पछतावा रहा तरक हमन बाहबली क सार अचछा वयवहार नही तरकया भल ही उसन अपन मन स राजय तरदया पर हमार ही कारण

हआ जो हआ तरपता जी क आशीवााद स ञान सभव हो पाया बाहबली क पास बात पहची बाहबली बोल बहन तपसया तो बहत

की हमन भी बहत शतरिया आयी तरसतरियाा भी आयी पर तरसतरियो और तरवभतरतयो क बीच म हम कवलय ञान नही तरमला समाधी

का सख नही तरमल पाया तम जाओ तरपता जी स पछो तरक हमारा मन कहाा अटक रया सही तरनदान वही करर उनस कहना हमार

भी उिार का उपाय बताए तरक हम कहाा अटक रए बहन तरपता क पास रयी बोली तरपता जी आप तो तीरकर ह आप तो जानत ह

दोनो भाइयो क बार म तरपता ऋषभदव जी हास मसकराए और बोल ndash आनद आरया सनकर बोल भरत चिवती बना तरसहासन

पर बठा और तरसहासन स उतर रया बाहबली अभी भी तरसहासन पर बठा हआ ह तरजस तरदन तरसहासन स नीच उतर आएरा उस

तरदन वो तरनतरवाकलप समाधी को पराि कररा तरसहासन कौन सा ldquoअहकार स सामराजय का तरसहासनrdquo वयार का अहकार तरक मन राजय

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

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आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

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छोड़ तरदया वयार का अहकार भयकर होता ह य आदमी को खा जाता ह तरजस तरदन इस अहकार क तरसहासन स उतर जाएरा उस

तरदन उसको ञान हो जाएरा अभी तो उसक जीवन म अहकार का राजय ह जब य तरमटरा तब आवमञान पराि होरा आवमराजय पराि

होरा जब अहकार क तरसहासन स उतररा तो उसका सशय कषीण होरा सशय इसान को नषट कर दता ह अभी तो सशय म जी रहा

ह बाहबली अहकार क तरसहासन पर बठकर तपसया कर रहा ह बहन बाहबली क पास पहची बोली तरपता जी न कहा ह बड़ भाई

भरत तो तरसहासन स उतर रए आप तो अभी भी तरसहासन पर बठ हए ह तरपता जी सही कहत ह हम तो वासतव म नही उतर ह हम

तो बार ndash बार यही सोचत ह तरक चिवती राजय पर तो मरा अतरधकार रा महाराज तो म बनता य बात बार ndash बार मर मन म आती

री म तो एक बार म भरत को परातरजत कर दता पर मन राजय वयार तरदया लतरकन वयारन का अहकार मन म बना रहा बाहबली न

सवीकार तरकया सवीकार करना भी बहत कतरठन ह बाहबली क जीवन म रहन तरचतन क कषण आय और तब जाकर ञान क तलवार

स तरफर उस सशय को बाहबली न काटा और अञान क भरम स तरनकलत ही कवलय म तरसरत हो रए तरफर तरत उनकी समाधी लर

रयी

कवल अहकार भाव क जान की जररत री यतरद रोर मन म ह तो तरनदान ही समाधान ह तरनदान हो तो आसानी स समाधान हो

जाता ह तरपता न जो तरनदान बताया उस बाहबली न तरकया और ञान को पराि हए

परमावमा को तवव स जान लन पर हदय की सार राठ खल जाती ह परशानी वह रााठ ह जो हदय म ह सार सशय कट जात ह

समसत शभाशभ कमा नषट हो जात ह

रीता क 9व अधयाय क 28व शलोक म भरवान कहत ह तरक ndash समसत कमा यतरद मझम अपाण होत ह तो कमाबधन स मतरि तरमल

जायरी और मि होकर त मझको ही पराि होरा

हम कही न कही अटक हए ह हम अनजान म तरवतरचि सा बर तरवतरचि सी गररी हम पाल हए ह तरजसक बार म हम कछ मालम नही

नतरतकता कछ ऐसी ह तरक आप जो तरदखत ह उसक आधार पर शरषठ या तरनकषठ माना जाता ह लतरकन आधयातरवमकता ऐसी नही ह

आधयातरवमकता तरदखन म नकली हो सकता ह पर वासततरवक आचरण म उतरन पर दखी जा सकती ह आप जो तरदखत ह उस समाज

सवीकार करता ह लतरकन यरारा म आप अनदर स जो होत ह उस आपकी आवमा सवीकार करती ह

जड़ चतन क माधयम स गरतरर पड़ जाती ह अपन हदय म बठो धयान करो और राठो को दर करो रर सरकषण करर आपका

आपक पास जो ह उसी म सतषट रहो अपन आपको जानो आसतरि का कोई भी रप रलत ह

भतरि की आसतरि भी वयारो भतरि की भी आसतरि नही होनी चातरहए आसतरि को वयारना पड़रा

राम कषटण परम हस जी महाकाली क परम भि र उनको खाना तरखलाती री उनक आर पीछ रमती री एक तरवतरचि सा अनभव

रा पर कही न कही एक मोह भी रा काली क परतरत तरक काली हमारी ह जब वो ञान की साधना कर रह र तो उनक रर तोतापरी

उनहोन कहा धयान लराओ तरनतरवाचार अवसरा म पहचना ह शि सातरववक तरनमाल मन परमहस दव का धयान लर रया अब

काली की छतरव सामन खड़ हो रयी बोल बार ndash बार काली सामन आजाती ह रर बोल काली को मत आन दो बीच म उसक

बीच स आर ndashपार हो जाओ परमहस बोल जरतमाता सामन मसकराकर खड़ी हो जाती ह रर बोल मन को और ऊपर उठाओ 6

चि पार कर चक हो 7व को पार करो सहसतरार को पहाचो और परम ञान को महासमातरध को पराि करो रर बोल काली माता को

परणाम करो अब आर चलो परमहस बोल नही आर जात नही बन रहा तोतापरी महाराज न काच का टकड़ा उठाया और आञाचि

क सरान पर चभोया और बोल काली तरदख रही ह परमहस बोल हाा तरदख रही ह रर बोल बस छद दो उनको दखो म भी चभो रहा ह ा

चभन क आभास म sensation म काली को उनहोन छद तरदया अराात काली को पार कर तरलया और तरत बठ रए परमहस की

तरसरतरत म उनहोन कहा अब दशान हए तरनतरवाकार परमावमा की उनहोन कहा अपन हमारी भतरि को नषट कर तरदया रर बोल भतरि को

नषट नही तरकया भतरि काली क परतरत यरावत रहरी पर भतरि जब आसतरि बन जाय तो तरदककत का कारण बनती ह भतरि की

नवरातरि साधना सवाधयाय 2016 | DSVV

36

आसतरि को उनहोन वयारा और अखड परमावमा काली का तरवराट रप तरदखन लरा उनको भतरि क दवार को लार रए ञान की

तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

----------------------------------------------------------- ॐ शाावत -----------------------------------------------------------

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दि सासकवत विशवविदयालय गायतरीका ज-हरििाि

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तलवार स सञान का खड कर तरदया

ञान वह ह जो अञान को दर कर द उसका तरनवारण कर द हमार जीवन की तरजतनी भी बाधाए ह वो हम सवय ह बस अरर हम

खद बाधा को ख़तम कर द तो अञान समाि हो जाएरा

अहकार महाभरम ह तरवनमरता स भरवान तरमलत ह अहकार स नही

अञान कभी ndash कभी आसतरि का रप ल लता ह तो कभी अहकार का रार और दवष दो ही सशय ह

साशयो को वनकाल दो वियोग स योग की ओि चलो अहाकाि क पिद को वमटा दो जीि ि पिमातमा क ीीच की

हदय की गााठ िोल दो अवतिाद मत किो समयक िहो

आसवि औि ीि सनकी िजह स पनजथतम होता ह पचकलशो म अावतम शबद ह अवभवनिश अवभवनिश का मतली

ह पकड़ लना जकड़ लना कभी परम क भरम न तो कभी साशयो न जकड वलया ह

ञानी का न कोई अतीत होता ह और न भतरवषटय भरवन कहत ह (14अ 22 शलोक रीता) ndash पररतरसरतरत कसी भी हो चाह सतोरण

का रजोरण का या तमोरण का ञानी पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होता ह सम रहता ह

पररतरसरतरतयो स परभातरवत नही होना ह जो कछ तरमला ह उसी को शरषठ मानना ह

योर म आरढ़ हो जाओ ञान अरर ह तो इसी कषण होरा अभी होरा यही होरा अपन सशयो को समाि तो कर लो पहल योर

क तरशखर पर बठो जब आवमा स आवमा म तषट हो जाता ह वयतरि तो सबकछ हो जाता ह

हमाि परतयक कमथ परभ की अचथना ीन जाय कमो स अचथना करिए जञान म वसरत हो जासए औि साशयो स मि हो जासए

अञान ही तरवषाद ह अवसाद ह पीड़ा ह अञान ही पतन ह सार दोष दराण अञान ह ञान म ही आनद ह और अञान म ही

अवसाद ञान ही परमानद ह

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