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Page 1: प्रेमचंद - Kishore Karuppaswamy€¦ · Web viewक रम स र फ एक आव ज : 3 न क : 11 ब क जम द र : 21 अन थ लड क : 31 कर

पे्रमचंद

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क्रम

सि�र्फ� एक आवाज : 3नेकी : 11बॉँका जमींदार : 21अनाथ लड़की : 31कम� का र्फल : 40

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सि�र्फ एकआवाज

बह का वक्त था। ठाकुर दर्श�नसि�ंह के घर में एक हंगामा बरपा था। आज रात को चन्द्रग्रहण होने वाला था। ठाकुर �ाहब अपनी बूढ़ी ठकुराइन के �ाथ गंगाजी जाते थे

इ�सिलए �ारा घर उनकी पुरर्शोर तैयारी में लगा हुआ था। एक बहू उनका र्फटा हुआ कुता� टॉँक रही थी, दू�री बहू उनकी पगड़ी सिलए �ोचती थी, किक कै�े इ�की मरम्मत करंँू दोनो लड़किकयॉँ नाश्ता तैयार करने में तल्लीन थीं। जो ज्यादा दिदलचस्प काम था और बच्चों ने अपनी आदत के अनु�ार एक कुहराम मचा रक्खा था क्योंकिक हर एक आने-जाने के मौके पर उनका रोने का जोर्श उमंग पर होत था। जाने के वक्त �ाथा जाने के सिलए रोते, आने के वक्त इ�सिलए रोते किकर्शरीनी का बॉँट-बखरा मनोनुकूल नहीं हुआ। बढ़ी ठकुराइन बच्चों को रु्फ�लाती थी और बीच-बीच में अपनी बहुओं को �मझाती थी-देखों खबरदार ! जब तक उग्रह न हो जाय, घर �े बाहर न किनकलना। हँसि�या, छुरी ,कुल्हाड़ी , इन्हें हाथ �े मत छुना। �मझाये देती हँू, मानना चाहे न मानना। तुम्हें मेरी बात की परवाह है। मुंह में पानी की बूंदे न पड़ें। नारायण के घर किवपत पड़ी है। जो �ाधु—भिPखारी दरवाजे पर आ जाय उ�े रे्फरना मत। बहुओं ने �ुना और नहीं �ुना। वे मना रहीं थीं किक किक�ी तरह यह यहॉँ �े टलें। र्फागुन का महीना है, गाने को तर� गये। आज खूब गाना-बजाना होगा।

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ठाकुर �ाहब थे तो बूढे़, लेकिकन बूढ़ापे का अ�र दिदल तक नहीं पहुँचा था। उन्हें इ� बात का गव� था किक कोई ग्रहण गंगा-स्नान के बगैर नहीं छूटा। उनका ज्ञान आश्चय� जनक था। सि�र्फ� पत्रों को देखकर महीनों पहले �ूय�-ग्रहण और दू�रे पवV के दिदन बता देते थे। इ�सिलए गाँववालों की किनगाह में उनकी इज्जत अगर पण्डिYZतों �े ज्यादा न थी तो कम Pी न थी। जवानी में कुछ दिदनों र्फौज में नौकरी Pी की थी। उ�की गम[ अब तक बाकी थी, मजाल न थी किक कोई उनकी तरर्फ �ीधी आँख �े देख �के। �म्मन लानेवाले एक चपरा�ी को ऐ�ी व्यावहारिरक चेतावनी दी थी जिज�का उदाहरण आ�-पा� के द�-पॉँच गॉँव में Pी नहीं मिमल �कता। किहम्मत और हौ�ले के कामों में अब Pी आगे-आगे रहते थे किक�ी काम को मुश्किश्कल बता देना, उनकी किहम्मत को पे्ररिरत कर देना था। जहॉँ �बकी जबानें बन्द हो जाए,ँ वहॉँ वे रे्शरों की तरह गरजते थे। जब कPी गॉँव में दरोगा जी तर्शरीर्फ लाते तो ठाकुर �ाहब ही का दिदल-गुदा� था किक उन�े आँखें मिमलाकर आमने-�ामने बात कर �कें । ज्ञान की बातों को लेकर सिछड़नेवाली बह�ों के मैदान में Pी उनके कारनामे कुछ कम र्शानदार न थे। झगड़ा पण्डिYZत हमेर्शा उन�े मुँह सिछपाया करते। गरज, ठाकुर �ाहब का स्वPावगत गव� और आत्म-किवश्वा� उन्हें हर बरात में दूल्हा बनने पर मजबूर कर देता था। हॉँ, कमजोरी इतनी थी किक अपना आल्हा Pी आप ही गा लेते और मजे ले-लेकर क्योंकिक रचना को रचनाकार ही खूब बयान करता है!

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ब दोपहर होते-होते ठाकुराइन गॉँव �े चले तो �ैंकड़ों आदमी उनके �ाथ थे और पक्की �ड़क पर पहुँचे, तो याकित्रयों का ऐ�ा तॉँता लगा हुआ था किक जै�े कोई

बाजार है। ऐ�े-ऐ�े बुढ़ें लादिठयॉँ टेकते या Zोसिलयों पर �वार चले जाते थे जिजन्हें तकलीर्फ देने की यमराज ने Pी कोई जरूरत न �मझी थी। अने्ध दू�रों की लकड़ी के �हारे कदम बढ़ाये आते थे। कुछ आदमिमयों ने अपनी बूढ़ी माताओं को पीठ पर लाद सिलया था। किक�ी के �र पर कपड़ों की पोटली, किक�ी के कन्धे पर लोटा-Zोर, किक�ी के कन्धे पर काँवर। किकतने ही आदमिमयों ने पैरों पर चीथडे़ लपेट सिलये थे, जूते कहॉँ �े लायें। मगर धार्मिमंक उत्�ाह का यह वरदान था किक मन किक�ी का मैला न था। �बके चेहरे खिखले हुए, हँ�ते-हँ�ते बातें करते चले जा रहे थें कुछ औरतें गा रही थी:

चॉँद �ूरज दूनो लोक के मासिलकएक दिदना उनहूँ पर बनतीहम जानी हमहीं पर बनती

ऐ�ा मालूम होता था, यह आदमिमयों की एक नदी थी, जो �ैंकड़ों छोटे-छोटे नालों और धारों को लेती हुई �मुद्र �े मिमलने के सिलए जा रही थी।

जब यह लोग गंगा के किकनारे पहुँचे तो ती�रे पहर का वक्त था लेकिकन मीलों तक कहीं कितल रखने की जगह न थी। इ� र्शानदार दृश्य �े दिदलों पर ऐ�ा रोब और Pसिक्त का ऐ�ा Pाव छा जाता था किक बरब� ‘गंगा माता की जय’ की �दायें बुलन्द हो जाती थीं। लोगों के किवश्वा� उ�ी नदी की तरह उमडे़ हुए थे और वह नदी! वह लहराता हुआ नीला मैदान! वह प्या�ों की प्या� बुझानेवाली! वह किनरार्शों की आर्शा! वह वरदानों की देवी! वह पकिवत्रता का स्त्रोत! वह मुट्ठी Pर खाक को आश्रय देनेवीली गंगा हँ�ती-मुस्कराती थी और उछलती थी। क्या इ�सिलए किक आज वह अपनी चौतरर्फा इज्जत पर रू्फली न �माती थी या इ�सिलए किक वह उछल-उछलकर अपने पे्रमिमयों के गले मिमलना चाहती थी जो उ�के दर्श�नों के सिलए मंजिजल तय करके आये थे! और उ�के परिरधान की प्ररं्श�ा किक� जबान �े हो, जिज� �ूरज �े चमकते हुए तारे टॉँके थे और जिज�के किकनारों को उ�की किकरणों ने रंग-किबरंगे, �ुन्दर और गकितर्शील रू्फलों �े �जाया था।

अPी ग्रहण लगने में धYटे की देर थी। लोग इधर-उधर टहल रहे थे। कहीं मदारिरयों के खेल थे, कहीं चूरनवाले की लचे्छदार बातों के चमत्कार। कुछ लोग मेढ़ों की कुश्ती देखने के सिलए जमा थे। ठाकुर �ाहब Pी अपने कुछ Pक्तों के �ाथ �ैर को किनकले। उनकी किहम्मत ने गवारा न किकया किक इन बाजारू दिदलचश्किस्पयों में र्शरीक हों। यकायक उन्हें एक बड़ा-�ा र्शामिमयाना तना हुआ नजर आया, जहॉँ ज्यादातर पढे़-सिलखे लोगों की Pीड़ थी। ठाकुर �ाहब ने अपने �ासिथयों को एक किकनारे खड़ा कर दिदया और खुद गव� �े ताकते हुए र्फर्श� पर जा बैठे क्योंकिक उन्हें किवश्वा� था किक यहॉँ उन पर देहाकितयों की ईर्ष्याया�--दृमिq पडे़गी और �म्भव है कुछ ऐ�ी बारीक बातें Pी मालूम हो जायँ तो उनके Pक्तों को उनकी �व�ज्ञता का किवश्वा� दिदलाने में काम दे �कें ।

यह एक नैकितक अनुष्ठान था। दो-ढाई हजार आदमी बैठे हुए एक मधुरPाषी वक्ता का Pाषण�ुन रहे थे। रै्फर्शनेबुल लोग ज्यादातर अगली पंसिक्त में बैठे हुए थे जिजन्हें कनबकितयों का

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इ��े अच्छा मौका नहीं मिमल �कता था। किकतने ही अचे्छ कपडे़ पहने हुए लोग इ�सिलए दुखी नजर आते थे किक उनकी बगल में किनम्न श्रेणी के लोग बैठे हुए थे। Pाषण दिदलचस्त मालूम पड़ता था। वजन ज्यादा था और चटखारे कम, इ�सिलए तासिलयॉँ नहीं बजती थी।

वक्ता ने अपने Pाषण में कहा—

मेरे प्यारे दोस्तो, यह हमारा और आपका कत�व्य है। इ��े ज्यादा महत्त्वपूण�, ज्यादा परिरणामदायक और कौम के सिलए ज्यादा रु्शP और कोई कत�व्य नहीं है। हम मानते हैं किक उनके आचार-व्यवहार की दर्शा अत्यंत करुण है। मगर किवश्वा� माकिनये यह �ब हमारी करनी है। उनकी इ� लज्जाजनक �ांस्कृकितक ण्डि{कित का जिजम्मेदार हमारे सि�वा और कौन हो �कता है? अब इ�के सि�वा और कोई इलाज नहीं हैं किक हम उ� घृणा और उपेक्षा को; जो उनकी तरर्फ �े हमारे दिदलों में बैठी हुई है, घोयें और खूब मलकर धोयें। यह आ�ान काम नहीं है। जो कासिलख कई हजार वषV �े जमी हुई है, वह आ�ानी �े नहीं मिमट �कती। जिजन लोगों की छाया �े हम बचते आये हैं, जिजन्हें हमने जानवरों �े Pी जलील �मझ रक्खा है, उन�े गले मिमलने में हमको त्याग और �ाह� और परमाथ� �े काम लेना पडे़गा। उ� त्याग �े जो कृर्ष्याण में था, उ� किहम्मत �े जो राम में थी, उ� परमाथ� �े जो चैतन्य और गोकिवन्द में था। मैं यह नहीं कहता किक आप आज ही उन�े र्शादी के रिरश्ते जोZें या उनके �ाथ बैठकर खायें-किपयें। मगर क्या यह Pी मुमकिकन नहीं है किक आप उनके �ाथ �ामान्य �हानुPूकित, �ामान्य मनुर्ष्यायता, �ामान्य �दाचार �े पेर्श आयें? क्या यह �चमुच अ�म्भव बात है? आपने कPी ई�ाई मिमर्शनरिरयों को देखा है? आह, जब मैं एक उच्चकोदिट का �ुन्दर, �ुकुमार, गौरवण� लेZी को अपनी गोद में एक काला–कलूटा बच्च सिलये हुए देखता हँू जिज�के बदन पर र्फोडे़ हैं, खून है और गन्दगी है—वह �ुन्दरी उ� बचे्च को चूमती है, प्यार करती है, छाती �े लगाती है—तो मेरा जी चाहता है उ� देवी के कदमों पर सि�र रख दँू। अपनी नीचता, अपना कमीनापन, अपनी झूठी बड़ाई, अपने ह्रदय की �ंकीण�ता मुझे कPी इतनी �र्फाई �े नजर नहीं आती। इन देकिवयों के सिलए जिजन्दगी में क्या-क्या �ंपदाए,ँ नहीं थी, खुसिर्शयॉँ बॉँहें प�ारे हुए उनके इन्तजार में खड़ी थी। उनके सिलए दौलत की �ब �ुख-�ुकिवधाए ँ थीं। पे्रम के आकष�ण थे। अपने आत्मीय और स्वजनों की �हानुPूकितयॉँ थीं और अपनी प्यारी मातृPूमिम का आकष�ण था। लेकिकन इन देकिवयों ने उन तमाम नेमतों, उन �ब �ां�ारिरक �ंपदाओं को �ेवा, �च्ची किनस्वाथ� �ेवा पर बसिलदान कर दिदया है ! वे ऐ�ी बड़ी कुबा�किनयॉँ कर �कती हैं, तो हम क्या इतना Pी नहीं कर �कते किक अपने अछूत Pाइयों �े हमदद� का �लूक कर �कें ? क्या हम �चमुच ऐ�े पस्त-किहम्मत, ऐ�े बोदे, ऐ�े बेरहम हैं? इ�े खूब �मझ लीजिजए किक आप उनके �ाथ कोई रिरयायत, कोई मेहरबानी नहीं कर रहें हैं। यह उन पर कोई एह�ान नहीं है। यह आप ही के सिलए जिजन्दगी और मौत का �वाल है। इ�सिलए मेरे Pाइयों और दोस्तो, आइये इ� मौके पर र्शाम के वक्त पकिवत्र गंगा नदी के किकनारे कार्शी के पकिवत्र {ान में हम मजबूत दिदल �े प्रकितज्ञा करें किक आज �े हम अछूतों के �ाथ Pाई-चारे का �लूक करेंगे,

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उनके तीज-त्योहारों में र्शरीक होंगे और अपने त्योहारों में उन्हें बुलायेंगे। उनके गले मिमलेंगे और उन्हें अपने गले लगायेंगे! उनकी खुसिर्शयों में खुर्श और उनके दद� मे दद�मन्द होंगे, और चाहे कुछ ही क्यों न हो जाय, चाहे ताना-कितश्नों और जिजल्लत का �ामना ही क्यों न करना पडे़, हम इ� प्रकितज्ञा पर कायम रहेंगे। आप में �ैंकड़ों जोर्शीले नौजवान हैं जो बात के धनी और इरादे के मजबूत हैं। कौन यह प्रकितज्ञा करता है? कौन अपने नैकितक �ाह� का परिरचय देता है? वह अपनी जगह पर खड़ा हो जाय और ललकारकर कहे किक मैं यह प्रकितज्ञा करता हँू और मरते दम तक इ� पर दृढ़ता �े कायम रहँूगा।

रज गंगा की गोद में जा बैठा था और मॉँ पे्रम और गव� �े मतवाली जोर्श में उमड़ी हुई रंग के�र को र्शमा�ती और चमक में �ोने की लजाती थी। चार तरर्फ एक रोबीली

खामोर्शी छायी थीं उ� �न्नाटे में �ंन्या�ी की गम[ और जोर्श �े Pरी हुई बातें गंगा की लहरों और गगनचुम्बी मंदिदरों में �मा गयीं। गंगा एक गम्भीर मॉँ की किनरार्शा के �ाथ हँ�ी और देवताओं ने अर्फ�ो� �े सि�र झुका सिलया, मगर मुँह �े कुछ न बोले।

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�ंन्या�ी की जोर्शीली पुकार किर्फजां में जाकर गायब हो गई, मगर उ� मजमे में किक�ी आदमी के दिदल तक न पहुँची। वहॉँ कौम पर जान देने वालों की कमी न थी: स्टेजों पर कौमी तमारे्श खेलनेवाले कालेजों के होनहार नौजवान, कौम के नाम पर मिमटनेवाले पत्रकार, कौमी �ं{ाओं के मेम्बर, �ेके्रटरी और पे्रसि�Zेंट, राम और कृर्ष्याण के �ामने सि�र झुकानेवाले �ेठ और �ाहूकार, कौमी कासिलजों के ऊँचे हौं�लोंवाले प्रोरे्फ�र और अखबारों में कौमी तरण्डिक्कयों की खबरें पढ़कर खुर्श होने वाले दफ्तरों के कम�चारी हजारों की तादाद में मौजूद थे। आँखों पर �ुनहरी ऐनकें लगाये, मोटे-मोटे वकीलों क एक पूरी र्फौज जमा थी। मगर �ंन्या�ी के उ� गम� Pाषण �े एक दिदल Pी न किपघला क्योंकिक वह पत्थर के दिदल थे जिज�में दद� और घुलावट न थी, जिज�में �दिदच्छा थी मगर काय�-र्शसिक्त न थी, जिज�में बच्चों की �ी इच्छा थी मदV का–�ा इरादा न था।

�ारी मजसिल� पर �न्नाटा छाया हुआ था। हर आदमी सि�र झुकाये किर्फक्र में Zूबा हुआ नजर आता था। र्शर्मिंमंदगी किक�ी को �र उठाने न देती थी और आँखें झेंप में मारे जमीन में गड़ी हुई थी। यह वही �र हैं जो कौमी चच� पर उछल पड़ते थे, यह वही आँखें हैं जो किक�ी वक्त राष्ट्रीय गौरव की लाली �े Pर जाती थी। मगर कथनी और करनी में आदिद और अन्त का अन्तर है। एक व्यसिक्त को Pी खडे़ होने का �ाह� न हुआ। कैं ची की तरह चलनेवाली जबान Pी ऐ�े महान् उत्तरदामियत्व के Pय �े बन्द हो गयीं।

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कुर दर्श�नसि�ंह अपनी जगी पर बैठे हुए इ� दृश्य को बहुत गौर और दिदलचस्पी �े देख रहे थे। वह अपने मार्मिमंक किवश्वा�ो में चाहे कट्टर हो या न हों, लेकिकन

�ांस्कृकितक मामलों में वे कPी अगुवाई करने के दोषी नहीं हुए थे। इ� पेचीदा और Zरावने रास्ते में उन्हें अपनी बुजि� और किववेक पर Pरो�ा नहीं होता था। यहॉं तक� और युसिक्त को Pी उन�े हार माननी पड़ती थी। इ� मैदान में वह अपने घर की स्त्रिस्त्रयों की इच्छा पूरी करने ही अपना कत्त�व्य �मझते थे और चाहे उन्हें खुद किक�ी मामले में कुछ एतराज Pी हो लेकिकन यह औरतों का मामला था और इ�में वे हस्तक्षेप नहीं कर �कते थे क्योंकिक इ��े परिरवार की व्यव{ा में हलचल और गड़बड़ी पैदा हो जाने की जबरदस्त आरं्शका रहती थी। अगर किक�ी वक्त उनके कुछ जोर्शीले नौजवान दोस्त इ� कमजोरी पर उन्हें आडे़ हाथों लेते तो वे बड़ी बुजि�मत्ता �े कहा करते थे—Pाई, यह औरतों के मामले हैं, उनका जै�ा दिदल चाहता है, करती हैं, मैं बोलनेवाला कौन हँू। गरज यहॉँ उनकी र्फौजी गम�-मिमजाजी उनका �ाथ छोड़ देती थी। यह उनके सिलए कितसिलस्म की घाटी थी जहॉँ होर्श-हवा� किबगड़ जाते थे और अने्ध अनुकरण का पैर बँधी हुई गद�न पर �वार हो जाता था।

ठा

लेकिकन यह ललकार �ुनकर वे अपने को काबू में न रख �के। यही वह मौका था जब उनकी किहम्मतें आ�मान पर जा पहुँचती थीं। जिज� बीडे़ को कोई न उठाये उ�े उठाना उनका काम था। वज�नाओं �े उनको आस्त्रित्मक पे्रम था। ऐ�े मौके पर वे नतीजे और म�लहत �े बगावत कर जाते थे और उनके इ� हौ�ले में यर्श के लोP को उतना दखल नहीं था जिजतना उनके नै�र्गिगंक स्वाPाव का। वना� यह अ�म्भव था किक एक ऐ�े जल�े में जहॉँ ज्ञान और �भ्यता की धूम-धाम थी, जहॉँ �ोने की ऐनकों �े रोर्शनी और तरह-तरह के परिरधानों �े दीप्त सिचन्तन की किकरणें किनकल रही थीं, जहॉँ कपडे़-लते्त की नर्फा�त �े रोब और मोटापे �े प्रकितष्ठा की झलक आती थी, वहॉँ एक देहाती किक�ान को जबान खोलने का हौ�ला होता। ठाकुर ने इ� दृश्य को गौर और दिदलचस्पी �े देखा। उ�के पहलू में गुदगुदी-�ी हुई। जिजन्दादिदली का जोर्श रगों में दौड़ा। वह अपनी जगह �े उठा और मदा�ना लहजे में ललकारकर बोला-मैं यह प्रकितज्ञा करता हँू और मरते दम तक उ� पर कायम रहँूगा।

इतना �ुनना था किक दो हजार आँखें अचमे्भ �े उ�की तरर्फ ताकने लगीं। �ुPानअल्लाह,

क्या हुसिलया थी—गाढे की ढीली मिमज�ई, घुटनों तक चढ़ी हुई धोती, �र पर एक Pारी-�ा उलझा हुआ �ार्फा, कन्धे पर चुनौटी और तम्बाकू का वजनी बटुआ, मगर चेहरे �े गम्भीरता और दृढ़ता स्पq थी। गव� आँखों के तंग घेरे �े बाहर किनकला पड़ता था। उ�के दिदल में अब इ� र्शानदार मजमे की इज्जत बाकी न रही थी। वह पुराने वक्तों का आदमी था जो अगर पत्थर को पूजता था तो उ�ी पत्थर �े Zरता Pी था, जिज�के सिलए एकादर्शी का व्रत केवल स्वास्थ्य-रक्षा की एक युसिक्त और गंगा केवल स्वास्थ्यप्रद पानी की एक धारा न थी। उ�के किवश्वा�ों में जागृकित न हो लेकिकन दुकिवधा नहीं थी। यानी किक उ�की कथनी और करनी में

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अन्तर न था और न उ�की बुकिनयाद कुछ अनुकरण और देखादेखी पर थी मगर अमिधकांर्शत: Pय पर, जो ज्ञान के आलोक के बाद वृकितयों के �ंस्कार की �ब�े बड़ी र्शसिक्त है। गेरुए बाने का आदर और Pसिक्त करना इ�के धम� और किवश्वा� का एक अंग था। �ंन्या� में उ�की आत्मा को अपना अनुचर बनाने की एक �जीव र्शसिक्त सिछपी हुई थी और उ� ताकत ने अपना अ�र दिदखाया। लेकिकन मजमे की इ� हैरत ने बहुत जल्द मजाक की �ूरत अण्डि�तयार की। मतलबPरी किनगाहें आप� में कहने लगीं—आखिखर गंवार ही तो ठहरा! देहाती है, ऐ�े Pाषण कPी काहे को �ुने होंगे, ब� उबल पड़ा। उथले गडे्ढ में इतना पानी Pी न �मा �का! कौन नहीं जानता किक ऐ�े Pाषणों का उदे्दश्य मनोरंजन होता है! द� आदमी आये, इकटे्ठ बैठ, कुछ �ुना, कुछ गप-र्शप मारी और अपने-अपने घर लौटे, न यह किक कौल-करार करने बैठे, अमल करने के सिलए क�में खाये!

मगर किनरार्श �ंन्या�ी �ो रहा था—अर्फ�ो�, जिज� मुल्क की रोर्शनी में इतना अंधेरा है, वहॉँ कPी रोर्शनी का उदय होना मुश्किश्कल नजर आता है। इ� रोर्शनी पर, इ� अंधेरी, मुदा� और बेजान रोर्शनी पर मैं जहालत को, अज्ञान को ज्यादा ऊँची जगह देता हँू। अज्ञान में �र्फाई है और किहम्मत है, उ�के दिदल और जबान में पदा� नहीं होता, न कथनी और करनी में किवरोध। क्या यह अर्फ�ो� की बात नहीं है किक ज्ञान और अज्ञान के आगे सि�र झुकाये? इ� �ारे मजमें में सि�र्फ� एक आदमी है, जिज�के पहलू में मद� का दिदल है और गो उ�े बहुत �जग होने का दावा नहीं लेकिकन मैं उ�के अज्ञान पर ऐ�ी हजारों जागृकितयों को कुबा�न कर �कता हँू। तब वह प्लेटर्फाम� �े नीचे उतरे और दर्श�नसि�ंह को गले �े लगाकर कहा—ईश्वर तुम्हें प्रकितज्ञा पर कायम रखे।

--जमाना, अगस्त-सि�तम्बर १९१३

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नेकी

वन का महीना था। रेवती रानी ने पांव में मेहंदी रचायी, मांग-चोटी �ंवारी और तब अपनी बूढ़ी �ा� ने जाकर बोली—अम्मां जी, आज Pी मेला देखने जाऊँगी।�ा

रेवती पण्डिYZत सिचन्तामभिण की पत्नी थी। पण्डिYZत जी ने �रस्वती की पूजा में ज्यादा लाP न देखकर लक्ष्मी देवी की पूजा करनी रु्शरू की थी। लेन-देन का कार-बार करते थे मगर और महाजनों के किवपरीत खा�-खा� हालतों के सि�वा पच्ची� र्फी�दी �े ज्यादा �ूद लेना उसिचत न �मझते थे।

रेवती की �ा� बचे्च को गोद में सिलये खटोले पर बैठी थी। बहू की बात �ुनकर बोली—Pीग जाओगी तो बचे्च को जुकाम हो जायगा।

रेवती—नहीं अम्मां, कुछ देर न लगेगी, अPी चली आऊँगी।रेवती के दो बचे्च थे—एक लड़का, दू�री लड़की। लड़की अPी गोद में थी और

लड़का हीरामन �ातवें �ाल में था। रेवती ने उ�े अचे्छ-अचे्छ कपडे़ पहनाये। नजर लगने �े बचाने के सिलए माथे और गालों पर काजल के टीके लगा दिदये, गुकिड़यॉँ पीटने के सिलए एक अच्छी रंगीन छड़ी दे दी और अपनी �हेसिलयां के �ाथ मेला देखने चली।

कीरत �ागर के किकनारे औरतों का बड़ा जमघट था। नीलगंू घटाए ं छायी हुई थीं। औरतें �ोलह सि�ंगार किकए �ागर के खुले हुए हरे-Pरे �ुन्दर मैदान में �ावन की रिरमजिझम वषा� की बहार लूट रही थीं। र्शाखों में झूले पडे़ थे। कोई झूला झूलती कोई मल्हार गाती, कोई �ागर के किकनारे बैठी लहरों �े खेलती। ठंZी-ठंZी खुर्शगवार पानी की हलकी-हलकी रु्फहार पहाकिड़यों की किनखरी हुई हरिरयावल, लहरों के दिदलकर्श झकोले मौ�म को ऐ�ा बना रहे थे किक उ�में �ंयम दिटक न पाता था।

आज गुकिड़यों की किवदाई है। गुकिड़यां अपनी ��ुराल जायेंगी। कंुआरी लड़किकयॉँ हाथ-पॉँव में मेंहदी रचाये गुकिड़यों को गहने-कपडे़ �े �जाये उन्हें किवदा करने आयी हैं। उन्हें पानी में बहाती हैं और छकछक-कर �ावन के गीत गाती हैं। मगर �ुख-चैन के आंचल �े किनकलते ही इन लाड़-प्यार में पली हुई गुकिड़यों पर चारों तरर्फ �े छकिड़यों और लककिड़यों की बौछार होने लगती है।

रेवती यह �ैर देख रही थी और हीरामन �ागर की �ीदिढ़यों पर और लड़किकयों के �ाथ गुकिड़यॉँ पीटने में लगा हुआ था। �ीदिढ़यों पर काई लगी हुई थीं अचानक उ�का पांव किर्फ�ला तो पानी में जा पड़ा। रेवती चीख मारकर दौड़ी और �र पीटने लगी। दम के दम में वहॉँ मदV और औरतों का ठट लग गया मगर यह किक�ी की इन्�ाकिनयत तकाजा न करती थी किक पानी में जाकर मुमकिकन हो तो बचे्च की जान बचाये। �ंवारे हुए बाल न किबखर जायेंगे! धुली हुई धोती न Pींग जाएगी! किकतने ही मदV के दिदलों में यह मदा�ना खयाल आ रहे थे। द� मिमनट गुजरे गयें मगर कोई आदमी किहम्मत करता नजर न आया। गरीब रेवती पछाडे़ खा रही थीं अचानक उधर �े एक आदमी अपने घोडे़ पर �वार चला जाता था। यह Pीड़ देखकर

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उतर पड़ा और एक तमार्शाई �े पूछा—यह कै�ी Pीड़ है? तमार्शाई ने जवाब दिदया—एक लड़का Zूब गया है ।

मु�ाकिर्फर –कहां?तमार्शाई—जहां वह औरत खड़ी रो रही है।मु�ाकिर्फर ने र्फौरन अपनी गाढे़ की मिमज�ई उतारी और धोती क�कर पानी में कूद

पड़ा। चारो तरर्फ �न्नाटा छा गया। लोग हैरान थे किक यह आदमी कौन हैं। उ�ने पहला गोता लगाया, लड़के की टोपी मिमली। दू�रा गोता लगाया तो उ�की छड़ी हाथ में लगी और ती�रे गोते के बाद जब ऊपर आया तो लड़का उ�की गोद में था। तमार्शाइयों ने जोर �े वाह-वाह का नारा बुलन्द किकया। मां दौड़कर बचे्च �े सिलपट गयी। इ�ी बीच पण्डिYZत सिचन्तामभिण के और कई मिमत्र आ पहुँचे और लड़के को होर्श में लाने की किर्फक्र करने लगे। आध घYटे में लड़के ने आँखें खोल दीं। लोगों की जान में जान आई। Zाक्टर �ाहब ने कहा—अगर लड़का दो मिमनट पानी में रहता तो बचना अ�म्भव था। मगर जब लोग अपने गुमनाम Pलाई करने वाले को ढंूढ़ने लगे तो उ�का कहीं पता न था। चारों तरर्फ आदमी दौड़ाये, �ारा मेला छान मारा, मगर वह नजर न आया।

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� �ाल गुजर गए। पण्डिYZत सिचन्तामभिण का कारोबार रोज ब रोज बढ़ता गया। इ� बीच में उ�की मां ने �ातों यात्राए ंकीं और मरीं तो ठाकुरद्वारा तैयार हुआ। रेवती बहू �े

�ा� बनी, लेन-देन, बही-खाता हीरामभिण के �ाथ में आया हीरामभिण अब एक हq-पुq लम्बा-तगड़ा नौजवान था। बहुत अचे्छ स्वPाव का, नेक। कPी-कPी बाप �े सिछपाकर गरीब अ�ामिमयों को यों ही कज� दे दिदया करता। सिचन्तामभिण ने कई बार इ� अपराध के सिलए बेटे को ऑंखें दिदखाई थीं और अलग कर देने की धमकी दी थी। हीरामभिण ने एक बार एक �ंस्कृत पाठर्शाला के सिलए पचा� रुपया चन्दा दिदया। पण्डिYZत जी उ� पर ऐ�े कु्र� हुए किक दो दिदन तक खाना नहीं खाया । ऐ�े अकिप्रय प्र�ंग आये दिदन होते रहते थे, इन्हीं कारणों �े हीरामभिण की तबीयत बाप �े कुछ खिखंची रहती थीं। मगर उ�की या �ारी र्शरारतें हमेर्शा रेवती की �ाजिजर्श �े हुआ करती थीं। जब कस्बे की गरीब किवधवायें या जमींदार के �ताये हुए अ�ामिमयों की औरतें रेवती के पा� आकर हीरामभिण को आंचल रै्फला—रै्फलाकर दुआए ंदेने लगती तो उ�े ऐ�ा मालूम होता किक मुझ�े ज्यादा Pाग्यवान और मेरे बेटे �े ज्यादा नेक आदमी दुकिनया में कोई न होगा। तब उ�े बरब� वह दिदन याद आ जाता तब हीरामभिण कीरत �ागर में Zूब गया था और उ� आदमी की तस्वीर उ�की आँखों के �ामने खड़ी हो जाती जिज�ने उ�के लाल को Zूबने �े बचाया था। उ�के दिदल की गहराई �े दुआ किनकलती और ऐ�ा जी चाहता किक उ�े देख पाती तो उ�के पांव पर किगर पड़ती। उ�े अब पक्का किवश्वा�

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हो गया था किक वह मनुर्ष्याय न था बश्किल्क कोई देवता था। वह अब उ�ी खटोले पर बैठी हुई, जिज� पर उ�की �ा� बैठती थी, अपने दोनों पोतों को खिखलाया करती थी।

आज हीरामभिण की �त्ताई�वीं �ालकिगरह थी। रेवती के सिलए यह दिदन �ाल के दिदनों में �ब�े अमिधक रु्शP था। आज उ�का दया का हाथ खूब उदारता दिदखलाता था और यही एक अनुसिचत खच� था जिज�में पण्डिYZत सिचन्तामभिण Pी र्शरीक हो जाते थे। आज के दिदन वह बहुत खुर्श होती और बहुत रोती और आज अपने गुमनाम Pलाई करनेवाले के सिलए उ�के दिदल �े जो दुआए ँ किनकलतीं वह दिदल और दिदमाग की अच्छी �े अच्छी Pावनाओं में रंगी होती थीं। उ�ी दिदन की बदौलत तो आज मुझे यह दिदन और यह �ुख देखना न�ीब हुआ है!

क दिदन हीरामभिण ने आकर रेवती �े कहा—अम्मां, श्रीपुर नीलाम पर चढ़ा हुआ है, कहो तो मैं Pी दाम लगाऊं।ए

रेवती—�ोलहो आना है?हीरामभिण—�ोलहो आना। अच्छा गांव है। न बड़ा न छोटा। यहॉँ �े द� को� है।

बी� हजार तक बोली चढ़ चुकी है। �ौ-दौ �ौ में खत्म हो जायगी। रेवती-अपने दादा �े तो पूछोहीरामभिण—उनके �ाथ दो घंटे तक माथापच्ची करने की किक�े रु्फर�त है।हीरामभिण अब घर का मासिलक हो गया था और सिचन्तामभिण की एक न चलने पाती।

वह गरीब अब ऐनक लगाये एक गदे्द पर बैठे अपना वक्त खां�ने में खच� करते थे।दू�रे दिदन हीरामभिण के नाम पर श्रीपुर खत्म हो गया। महाजन �े जमींदार हुए अपने

मुनीम और दो चपरासि�यों को लेकर गांव की �ैर करने चले। श्रीपुरवालों को खबर हुई। नयें जमींदार का पहला आगमन था। घर-घर नजराने देने की तैयारिरयॉँ होने लगीं। पांचतें दिदन र्शाम के वक्त हीरामभिण गांव में दाखिखल हुए। दही और चावल का कितलक लगाया गया और तीन �ौ अ�ामी पहर रात तक हाथ बांधे हुए उनकी �ेवा में खडे़ रहे। �वेरे मु�तारेआम ने अ�ामिमयों का परिरचय कराना रु्शरू किकया। जो अ�ामी जमींदार के �ामने आता वह अपनी किब�ात के मुताकिबक एक या दो रुपये उनके पांव पर रख देता । दोपहर होते-होते पांच �ौ रुपयों का ढेर लगा हुआ था।

हीरामभिण को पहली बार जमींदारी का मजा मिमला, पहली बार धन और बल का नर्शा मह�ू� हुआ। �ब नर्शों �े ज्यादा तेज, ज्यादा घातक धन का नर्शा है। जब अ�ामिमयों की रे्फहरिरस्त खतम हो गयी तो मु�तार �े बोले—और कोई अ�ामी तो बाकी नहीं है?

मु�तार—हां महाराज, अPी एक अ�ामी और है, तखत सि�ंह।हीरामभिण—वह क्यों नहीं आया ?मु�तार—जरा मस्त है। हीरामभिण—मैं उ�की मस्ती उतार दँूगा। जरा कोई उ�े बुला लाये।थोड़ी देर में एक बूढ़ा आदमी लाठी टेकता हुआ आया और दYZवत् करके जमीन

पर बैठ गया, न नजर न किनयाज। उ�की यह गुस्ताखी देखकर हीरामभिण को बुखार चढ़

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आया। कड़ककर बोले—अPी किक�ी जमींदार �े पाला नही पड़ा हैं। एक-एक की हेकड़ी Pुला दँूगा!

तखत सि�ंह ने हीरामभिण की तरर्फ गौर �े देखकर जवाब दिदया—मेरे �ामने बी� जमींदार आये और चले गये। मगर कPी किक�ी ने इ� तरह घुड़की नहीं दी।

यह कहकर उ�ने लाठी उठाई और अपने घर चला आया।बूढ़ी ठकुराइन ने पूछा—देखा जमींदार को कै�े आदमी है?तखत सि�ंह—अचे्छ आदमी हैं। मैं उन्हें पहचान गया।ठकुराइन—क्या तुम�े पहले की मुलाकात है।तखत सि�ंह—मेरी उनकी बी� बर� की जान-पकिहचान है, गुकिड़यों के मेलेवली बात

याद है न?उ� दिदन �े तखत सि�ंह किर्फर हीरामभिण के पा� न आया।

महीने के बाद रेवती को Pी श्रीपुर देखने का र्शौक हुआ। वह और उ�की बहू और बचे्च �ब श्रीपुर आये। गॉँव की �ब औरतें उ��े मिमलने आयीं। उनमें बूढ़ी

ठकुराइन Pी थी। उ�की बातचीत, �लीका और तमीज देखकर रेवती दंग रह गयी। जब वह चलने लगी तो रेवती ने कहा—ठकुराइन, कPी-कPी आया करना, तुम�े मिमलकर तकिबयत बहुत खुर्श हुई।

छ:इ� तरह दोनों औरतों में धीरे-धीरे मेल हो गया। यहाँ तो यह कैकिर्फयत थी और

हीरामभिण अपने मु�तारेआम के बहकाते में आकर तखत सि�ंह को बेदखल करने की तरकीबें �ोच रहा था।

जेठ की पूरनमा�ी आयी। हीरामभिण की �ालकिगरह की तैयारिरयॉँ होने लगीं। रेवती चलनी में मैदा छान रही थी किक बूढ़ी ठकुराइन आयी। रेवती ने मुस्कराकर कहा—ठकुराइन, हमारे यहॉँ कल तुम्हारा न्योता है।

ठकुराइन-तुम्हारा न्योता सि�र-आँखों पर। कौन-�ी बर�गॉँठ है?रेवती उनती�वीं। ठकुराइन—नरायन करे अPी ऐ�े-ऐ�े �ौ दिदन तुम्हें और देखने न�ीब हो।रेवती—ठकुराइन, तुम्हारी जबान मुबारक हो। बडे़-बडे़ जन्तर-मन्तर किकये हैं तब तुम

लोगों की दुआ �े यह दिदन देखना न�ीब हुआ है। यह तो �ातवें ही �ाल में थे किक इ�की जान के लाले पड़ गये। गुकिड़यों का मेला देखने गयी थी। यह पानी में किगर पडे़। बारे, एक महात्मा ने इ�की जान बचायी । इनकी जान उन्हीं की दी हुई हैं बहुत तलार्श करवाया। उनका पता न चला। हर बर�गॉँठ पर उनके नाम �े �ौ रुपये किनकाल रखती हँू। दो हजार �े कुछ ऊपर हो गये हैं। बचे्च की नीयत है किक उनके नाम �े श्रीपुर में एक मंदिदर बनवा दें। �च मानो ठकुराइन, एक बार उनके दर्श�न हो जाते तो जीवन �र्फल हो जाता, जी की हव� किनकाल लेते।

रेवती जब खामोर्श हुई तो ठकुराइन की आँखों �े आँ�ू जारी थे।12

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दू�रे दिदन एक तरर्फ हीरामभिण की �ालकिगरह का उत्�व था और दू�री तरर्फ तखत सि�ंह के खेत नीलाम हो रहे थे।

ठकुराइन बोली—मैं रेवती रानी के पा� जाकर दुहाई मचाती हँू।तखत सि�ंह ने जवाब दिदया—मेरे जीते-जी नहीं।

�ाढ़ का महीना आया। मेघराज ने अपनी प्राणदायी उदारता दिदखायी। श्रीपुर के किक�ान अपने-अपने खेत जोतने चले। तखतसि�ंह की लाल�ा Pरी आँखें उनके

�ाथ-�ाथ जातीं, यहॉँ तक किक जमीन उन्हें अपने दामन में सिछपा लेती।अ

तखत सि�ंह के पा� एक गाय थी। वह अब दिदन के दिदन उ�े चराया करता। उ�की जिजन्दगी का अब यही एक �हारा था। उ�के उपले और दूध बेचकर गुजर-ब�र करता। कPी-कPी र्फाके करने पड़ जाते। यह �ब मु�ीबतें उ�ने झेंलीं मगर अपनी कंगाली का रोना रोने केसिलए एक दिदन Pी हीरामभिण के पा� न गया। हीरामभिण ने उ�े नीचा दिदखाना चाहा था मगर खुद उ�े ही नीचा देखना पड़ा, जीतने पर Pी उ�े हार हुई, पुराने लोहे को अपने नीच हठ की आँच �े न झुका �का।

एक दिदन रेवती ने कहा—बेटा, तुमने गरीब को �ताया, अच्छा न किकया।हीरामभिण ने तेज होकर जवाब दिदया—वह गरीब नहीं है। उ�का घमYZ मैं तोड़ दँूगा।दौलत के नर्शे में मतवाला जमींदार वह चीज तोड़ने की किर्फक्र में था जो कहीं थी ही

नहीं। जै�े ना�मझ बच्चा अपनी परछाईं �े लड़ने लगता है।

ल Pर तखतसि�ंह ने ज्यों-त्यों करके काटा। किर्फर बर�ात आयी। उ�का घर छाया न गया था। कई दिदन तक मू�लाधर मेंह बर�ा तो मकान का एक किहस्�ा किगर

पड़ा। गाय वहॉँ बँधी हुई थी, दबकर मर गयीं तखतसि�ंह को Pी ��त चोट आयी। उ�ी दिदन �े बुखार आना रु्शरू हुआ। दवा –दारू कौन करता, रोजी का �हारा था वह Pी टूटा। जासिलम बेदद� मु�ीबत ने कुचल Zाला। �ारा मकान पानी �े Pरा हुआ, घर में अनाज का एक दाना नहीं, अंधेरे में पड़ा हुआ कराह रहा था किक रेवती उ�के घर गयी। तखतसि�ंह ने आँखें खोलीं और पूछा—कौन है?

�ा

ठकुराइन—रेवती रानी हैं।तखतसि�ंह—मेरे धन्यPाग, मुझ पर बड़ी दया की ।रेवती ने लण्डिज्जत होकर कहा—ठकुराइन, ईश्वर जानता है, मैं अपने बेटे �े हैरान हँू।

तुम्हें जो तकलीर्फ हो मुझ�े कहो। तुम्हारे ऊपर ऐ�ी आर्फत पड़ गयी और हम�े खबर तक न की?

यह कहकर रेवती ने रुपयों की एक छोटी-�ी पोटली ठकुराइन के �ामने रख दी।

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रुपयों की झनकार �ुनकर तखतसि�ंह उठ बैठा और बोला—रानी, हम इ�के Pूखे नहीं है। मरते दम गुनाहगार न करो

दू�रे दिदन हीरामभिण Pी अपने मु�ाकिहबों को सिलये उधर �े जा किनकला। किगरा हुआ मकान देखकर मुस्कराया। उ�के दिदल ने कहा, आखिखर मैंने उ�का घमYZ तोड़ दिदया। मकान के अन्दर जाकर बोला—ठाकुर, अब क्या हाल है?

ठाकुर ने धीरे �े कहा—�ब ईश्वर की दया है, आप कै�े Pूल पडे़?हीरामभिण को दू�री बार हार खानी पड़ी। उ�की यह आरजू किक तखतसि�ंह मेरे पॉँव

को आँखों �े चूमे, अब Pी पूरी न हुई। उ�ी रात को वह गरीब, आजाद, ईमानदार और बेगरज ठाकुर इ� दुकिनया �े किवदा हो गया।

ढ़ी ठकुराइन अब दुकिनया में अकेली थी। कोई उ�के गम का र्शरीक और उ�के मरने पर आँ�ू बहानेवाला न था। कंगाली ने गम की आँच और तेज कर दी थीं जरूरत की चीजें

मौत के घाव को चाहे न Pर �कें मगर मरहम का काम जरूर करती है।

बूरोटी की सिचन्ता बुरी बला है। ठकुराइन अब खेत और चरागाह �े गोबर चुन लाती

और उपले बनाकर बेचती । उ�े लाठी टेकते हुए खेतों को जाते और गोबर का टोकरा सि�र पर रखकर बोझ में हॉँर्फते हुए आते देखना बहुत ही दद�नाक था। यहाँ तक किक हीरामभिण को Pी उ� पर तर� आ गया। एक दिदन उन्होंने आटा, दाल, चावल, थासिलयों में रखकर उ�के पा� Pेजा। रेवती खुद लेकर गयी। मगर बूढ़ी ठकुराइन आँखों में आँ�ू Pरकर बोला—रेवती, जब तक आँखों �े �ूझता है और हाथ-पॉँव चलते हैं, मुझे और मरनेवाले को गुनाहगार न करो।

उ� दिदन �े हीरामभिण को किर्फर उ�के �ाथ अमली हमदद� दिदखलाने का �ाह� न हुआ।

एक दिदन रेवती ने ठकुराइन �े उपले मोल सिलये। गॉँव मे पै�े के ती� उपले किबकते थे। उ�ने चाहा किक इ��े बी� ही उपले लूँ। उ� दिदन �े ठकुराइन ने उ�के यहॉँ उपले लाना बन्द कर दिदया।

ऐ�ी देकिवयॉँ दुकिनया में किकतनी है! क्या वह इतना न जानती थी किक एक गुप्त रहस्य जबान पर लाकर मैं अपनी इन तकलीर्फों का खात्मा कर �कती हँू! मगर किर्फर वह एह�ान का बदला न हो जाएगा! म�ल मर्शहूर है नेकी कर और दरिरया में Zाल। र्शायद उ�के दिदल में कPी यह �याल ही नहीं आया किक मैंने रेवती पर कोई एह�ान किकया।

यह वजादार, आन पर मरनेवाली औरत पकित के मरने के बाद तीन �ाल तक जिजन्दा रही। यह जमाना उ�ने जिज� तकलीर्फ �े काटा उ�े याद करके रोंगटे खडे़ हो जाते हैं। कई-कई दिदन किनराहार बीत जाते। कPी गोबर न मिमलता, कPी कोई उपले चुरा ले जाता। ईश्वर की मज[! किक�ी की घर Pरा हुआ है, खानेवाल नहीं। कोई यो रो-रोकर जिजन्दगी काटता है।

बुदिढ़या ने यह �ब दुख झेला मगर किक�ी के �ामने हाथ नहीं रै्फलाया।

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रामभिण की ती�वीं �ालकिगरह आयी। ढोल की �ुहानी आवाज �ुनायी देने लगी। एक तरर्फ घी की पूकिड़यां पक रही थीं, दू�री तरर्फ तेल की। घी की मोटे ब्राह्मणों के सिलए,

तेल की गरीब-Pूखे-नीचों के सिलए।ही

अचानक एक औरत ने रेवती �े आकर कहा—ठकुराइन जाने कै�ी हुई जाती हैं। तुम्हें बुला रही हैं।

रेवती ने दिदल में कहा—आज तो खैरिरयत �े काटना, कहीं बुदिढ़या मर न रही हो।यह �ोचकर वह बुदिढ़या के पा� न गयी। हीरामभिण ने जब देखा, अम्मॉँ नहीं जाना

चाहती तो खुद चला। ठकुराइन पर उ�े कुछ दिदनों �े दया आने लगी थी। मगर रेवती मकान के दरवाजे ते उ�े मना करने आयी। या रहमदिदल, नेकमिमजाज, र्शरीर्फ रेवती थी।

हीरामभिण ठकुराइन के मकान पर पहुँचा तो वहॉँ किबल्कुल �न्नाटा छाया हुआ था। बूढ़ी औरत का चेहरा पीला था और जान किनकलने की हालत उ� पर छाई हुई थी। हीरामभिण ने जो �े कहा—ठकुराइन, मैं हँू हीरामभिण।

ठकुराइन ने आँखें खोली और इर्शारे �े उ�े अपना सि�र नजदीक लाने को कहा। किर्फर रुक-रुककर बोली—मेरे सि�रहाने किपटारी में ठाकुर की हकि£यॉँ रखी हुई हैं, मेरे �ुहाग का �ेंदुर Pी वहीं है। यह दोनों प्रयागराज Pेज देना।

यह कहकर उ�ने आँखें बन्द कर ली। हीरामभिण ने किपटारी खोली तो दोनों चीजें किहर्फाजत के �ाथ रक्खी हुई थीं। एक पोटली में द� रुपये Pी रक्खे हुए मिमले। यह र्शायद जानेवाले का �र्फरखच� था!

रात को ठकुराइन के कqों का हमेर्शा के सिलए अन्त हो गया।उ�ी रात को रेवती ने �पना देखा—�ावन का मेला है, घटाए ँछाई हुई हैं, मैं कीरत

�ागर के किकनारे खड़ी हँू। इतने में हीरामभिण पानी में किर्फ�ल पड़ा। मै छाती पीट-पीटकर रोने लगी। अचानक एक बूढ़ा आदमी पानी में कूदा और हीरामभिण को किनकाल लाया। रेवती उ�के पॉँव पर किगर पड़ी और बोली—आप कौन है?

उ�ने जवाब दिदया—मैं श्रीपुर में रहता हँू, मेरा नाम तखतसि�ंह है।श्रीपुर अब Pी हीरामभिण के कब्जे में है, मगर अब रौनक दोबाला हो गयी है। वहॉँ

जाओ तो दूर �े सिर्शवाले का �ुनहरा कलर्श दिदखाई देने लगता है; जिज� जगह तखत सि�ंह का मकान था, वहॉँ यह सिर्शवाला बना हुआ है। उ�के �ामने एक पक्का कुआँ और पक्की धम�र्शाला है। मु�ाकिर्फर यहॉँ ठहरते हैं और तखत सि�ंह का गुन गाते हैं। यह सिर्शवाला और धम�र्शाला दोनों उ�के नाम �े मर्शहूर हैं।

उदू� ‘प्रेमपची�ी’ �े

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बाँका जमींदार

कुर प्रद्युम्न सि�ंह एक प्रकितमिष्ठत वकील थे और अपने हौ�ले और किहम्मत के सिलए �ारे र्शहर में मश्हूर। उनके दोस्त अक�र कहा करते किक अदालत की इजला� में

उनके मदा�ना कमाल ज्यादा �ार्फ तरीके पर जाकिहर हुआ करते हैं। इ�ी की बरकत थी किक बाबजूद इ�के किक उन्हें र्शायद ही कPी किक�ी मामले में �ुख�रूई हासि�ल होती थी, उनके मुवण्डिक्कलों की Pसिक्त-Pावना में जरा Pर Pी र्फक� नहीं आता था। इन्�ार्फ की कु�[ पर बैठनेवाले बडे़ लोगों की किनZर आजादी पर किक�ी प्रकार का �न्देह करना पाप ही क्यों न हो, मगर र्शहर के जानकार लोग ऐलाकिनया कहते थे किक ठाकुर �ाहब जब किक�ी मामले में जिजद पकड़ लेते हैं तो उनका बदला हुआ तेवर और तमतमाया हुआ चेहरा इन्�ार्फ को Pी अपने वर्श में कर लेता है। एक �े ज्यादा मौकों पर उनके जीवट और जिजगर ने वे चमत्कार कर दिदखाये थे जहॉँ किक इन्�ार्फ और कानून के जवाब दे दिदया। इ�के �ाथ ही ठाकुर �ाहब मदा�ना गुणों के �च्चे जौहरी थे। अगर मुवण्डिक्कल को कुश्ती में कुछ पैठ हो तो यह जरूरी नहीं था किक वह उनकी �ेवाए ँप्राप्त करने के सिलए रुपया-पै�ा दे। इ�ीसिलए उनके यहॉँ र्शहर के पहलवानों और रे्फकैतों का हमेर्शा जमघट रहता था और यही वह जबद�स्त प्रPावर्शाली और व्यावहारिरक कानूनी बारीकी थी जिज�की काट करने में इन्�ार्फ को Pी आगा-पीछा �ोचना पड़ता। वे गव� और �च्चे गव� की दिदल �े कदर करते थे। उनके बेतकल्लुर्फ घर की ड्योदिढ़यॉँ बहुत ऊँची थी वहॉँ झुकने की जरुरत न थी। इन्�ान खूब सि�र उठाकर जा �कता था। यह एक किवश्वस्त कहानी है किक एक बार उन्होंने किक�ी मुकदमें को बावजूद बहुत किवनती और आग्रह के हाथ में लेने �े इनकार किकया। मुवण्डिक्कल कोई अक्खड़ देहाती था। उ�ने जब आरजू-मिमन्नत �े काम किनकलते न देखा तो किहम्मत �े काम सिलया। वकील �ाहब कु�[ �े नीचे किगर पडे़ और किबर्फरे हुए देहाती को �ीने �े लगा सिलया।

ठा

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न और धरती के बीच आदिदकाल �े एक आकष�ण है। धरती में �ाधारण गुरुत्वाकष�ण के अलावा एक खा� ताकत होती है, जो हमेर्शा धन को अपनी तरर्फ खींचती है। �ूद

और तमस्�ुक और व्यापार, यह दौलत की बीच की मंजिजलें हैं, जमीन उ�की आखिखरी मंजिजल है। ठाकुर प्रद्युम्न सि�ंह की किनगाहें बहुत अ�§ �े एक बहुत उपजाऊ मौजे पर लगी हुई थीं। लेकिकन बैंक का एकाउYट कPी हौ�ले को कदम नहीं बढ़ाने देता था। यहॉँ तक किक एक दर्फा उ�ी मौजे का जमींदार एक कत्ल के मामले में पकड़ा गया। उ�ने सि�र्फ� रस्मों-रिरवाज के माकिर्फक एक आ�ामी को दिदन Pर धूप और जेठ की जलती हुई धूप में खड़ा रखा था लेकिकन अगर �ूरज की गम[ या जिजस्म की कमजोरी या प्या� की तेजी उ�की जानलेवा बन जाय तो इ�में जमींदार की क्या खता थी। यह र्शहर के वकीलों की ज्यादती थी किक कोई उ�की किहमायत पर आमदा न हुआ या मुमकिकन है जमींदार के हाथ की तंगी को Pी उ�में कुछ दखल हो। बहरहाल, उ�ने चारों तरर्फ �े ठोकरें खाकर ठाकुर �ाहब की र्शरण ली।

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मुकदमा किनहायत कमजोर था। पुसिल� ने अपनी पूरी ताकत �े धावा किकया था और उ�की कुमक के सिलए र्शा�न और अमिधकार के ताजे �े ताजे रिर�ाले तैयार थे। ठाकुर �ाहब अनुPवी �ँपेरों की तरह �ॉँप के किबल में हाथ नहीं Zालते थे लेकिकन इ� मौके पर उन्हें �ूखी म�लहत के मुकाबले में अपनी मुरादों का पल्ला झुकता हुआ नजर आया। जमींदार को इत्मीनान दिदलाया और वकालतनामा दाखिखल कर दिदया और किर्फर इ� तरह जी-जान �े मुकदमे की पैरवी की, कुछ इ� तरह जान लड़ायी किक मैदान �े जीत का Zंका बजाते हुए किनकले। जनता की जबान इ� जीत का �ेहरा उनकी कानूनी पैठ के �र नहीं, उनके मदा�ना गुणों के �र रखती है क्योंकिक उन दिदनों वकील �ाहब नजीरों और दर्फाओं की किहम्मततोड़ पेचीदकिगयों में उलझने के बजाय दंगल की उत्�ाहव��क दिदलचश्किस्पयों में ज्यादा लगे रहते थे लेकिकन यह बात जरा Pी यकीन करने के काकिबल नहीं मालूम होती। ज्यादा जानकान लोग कहते हैं किक अनार के बमगोलों और �ेब और अंगूर की गोसिलयों ने पुसिल� के, इ� पुरर्शोर हमले को तोड़कर किबखेर दिदया गरज किक मैदान हमारे ठाकुर �ाहब के हाथ रहा। जमींदार की जान बची। मौत के मुँह �े किनकल आया उनके पैरों पर किगर पड़ा और बोला—ठाकुर �ाहब, मैं इ� काकिबल तो नहीं किक आपकी खिखदमत कर �कँू। ईश्वर ने आपको बहुत कुछ दिदया है लेकिकन कृर्ष्याण Pगवान् ने गरीब �ुदामा के �ूखे चावल खुर्शी �े कबूल किकए थे। मेरे पा� बुजुग� की यादगार छोटा-�ा वीरान मौजा है उ�े आपकी Pेंट करता हँू। आपके लायक तो नहीं लेकिकन मेरी खाकितर इ�े कबूल कीजिजए। मैं आपका ज� कPी न Pूलूँगा। वकील �ाहब र्फड़क उठे। दो-चार बार किनसृ्पह बैराकिगयों की तरह इन्कार करने के बाद इ� Pेंट को कबूल कर सिलया। मुंह-मॉँगी मुराद मिमली।

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� मौजे के लोग बेहद �रदर्श और झगड़ालू थे, जिजन्हें इ� बात का गव� था किक कPी कोई जमींदार उन्हें ब� में नहीं कर �का। लेकिकन जब उन्होंने अपनी बागZोर प्रद्युम्न

सि�ंह के हाथों में जाते देखी तो चौककिड़यॉँ Pूल गये, एक बदलगाम घोडे़ की तरह �वार को कनखिखयों �े देखा, कनौकितयॉँ खड़ी कीं, कुछ किहनकिहनाये और तब गद�नें झुका दीं। �मझ गये किक यह जिजगर का मजबूत आ�न का पक्का र्शह�वार है।

इअ�ाढ़ का महीना था। किक�ान गहने और बत�न बेच-बेचकर बैलों की तलार्श में दर-

ब-दर किर्फरते थे। गॉँवों की बूढ़ी बकिनयाइन नवेली दुलहन बनी हुई थी और र्फाका करने वाला कुम्हार बरात का दूल्हा था मजदूर मौके के बादर्शाह बने हुए थे। टपकती हुई छतें उनकी कृपादृमिq की राह देख रही थी। घा� �े ढके हुए खेत उनके ममतापूण� हाथों के मुहताज। जिज�े चाहते थे ब�ाते थे, जिज� चाहते थे उजाड़ते थे। आम और जामुन के पेड़ों पर आठों पहर किनर्शानेबाज मनचले लड़कों का धावा रहता था। बूढे़ गद�नों में झोसिलयॉँ लटकाये पहर रात �े टपके की खोज में घूमते नजर आते थे जो बुढ़ापे के बावजूद Pोजन और जाप �े ज्यादा दिदलचस्प और मजे़दार काम था। नाले पुरर्शोर, नदिदयॉँ अथाह, चारों तरर्फ हरिरयाली और खुर्शहाली। इन्हीं दिदनों ठाकुर �ाहब मौत की तरह, जिज�के आने की पहले �े कोई �ूचना नहीं होती, गॉँव में आये। एक �जी हुई बरात थी, हाथी और घोडे़, और �ाज-�ामान, लठैतों का एक रिर�ाला-�ा था। गॉँव ने यह तूमतड़ाक और आन-बान देखी तो रहे-

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�हे होर्श उड़ गये। घोडे़ खेतों में ऐंड़ने लगे और गुंZे गसिलयों में। र्शाम के वक्त ठाकुर �ाहब ने अपने अ�ामिमयों को बुलाया और बुलन्द आवाज में बोले—मैंने �ुना है किक तुम लोग �रकर्श हो और मेरी �रकर्शी का हाल तुमको मालूम ही है। अब ईंट और पत्थर का �ामना है। बोलो क्या मंजूरहै?

एक बूढे़ किक�ान ने बेद के पेड़ की तरह कॉँपते हुए जवाब दिदया—�रकार, आप हमारे राजा हैं। हम आप�े ऐंठकर कहॉँ जायेंगे।

ठाकुर �ाहब तेवर बदलकर बोले—तो तुम लोग �ब के �ब कल �ुबह तक तीन �ाल का पेर्शगी लगान दाखिखल कर दो और खूब ध्यान देकर �ुन लो किक मैं हुक्म को दुहराना नहीं जानता वना� मैं गॉँव में हल चलवा दँूगा और घरों को खेत बना दँूगा।

�ारे गॉँव में कोहराम मच गया। तीन �ाल का पेर्शगी लगान और इतनी जल्दी जुटाना अ�म्भव था। रात इ�ी है�-बै� में कटी। अPी तक आरजू-मिमन्नत के किबजली जै�े अ�र की उम्मीद बाकी थी। �ुबह बड़ी इन्तजार के बाद आई तो प्रलय बनकर आई। एक तरर्फ तो जोर जबद�स्ती और अन्याय-अत्याचार का बाजार गम� था, दू�री तरर्फ रोती हुई आँखों, �द� आहों और चीख-पुकार का, जिजन्हें �ुननेवाला कोई न था। गरीब किक�ान अपनी-अपनी पोटसिलयॉँ लादे, बेक� अन्दाज �े ताकते, ऑंखें में याचना Pरे बीवी-बच्चों को �ाथ सिलये रोते-किबलखते किक�ी अज्ञात देर्श को चले जाते थे। र्शाम हुई तो गॉँव उजड़ गया।

ह खबर बहुत जल्द चारों तरर्फ रै्फल गयी। लोगों को ठाकुर �ाहब के इन्�ान होने पर �न्देह होने लगा। गॉँव वीरान पड़ा हुआ था। कौन उ�े आबाद करे। किक�के बचे्च

उ�की गसिलयों में खेलें। किक�की औरतें कुओं पर पानी Pरें। राह चलते मु�ाकिर्फर तबाही का यह दृश्य आँखों �े देखते और अर्फ�ो� करते। नहीं मालूम उन वीराने देर्श में पडे़ हुए गरीबों पर क्या गुजरी। आह, जो मेहनत की कमाई खाते थे और �र उठाकर चलते थे, अब दू�रों की गुलामी कर रहे हैं।

यइ� तरह पूरा �ाल गुजर गया। तब गॉँव के न�ीब जागे। जमीन उपजाऊ थी।

मकान मौजूद। धीरे-धीरे जुल्म की यह दास्तान र्फीकी पड़ गयी। मनचले किक�ानों की लोP-दृमिq उ� पर पड़ने लगी। बला �े जमींदार जासिलम हैं, बेरहम हैं, �ण्डि�तयॉँ करता है, हम उ�े मना लेंगे। तीन �ाल की पेर्शगी लगान का क्या जिजक्र वह जै�े खुर्श होगा, खुर्श करेंगे। उ�की गासिलयों को दुआ �मझेंगे, उ�के जूते अपने �र-आँखों पर रक्खेंगे। वह राजा हैं, हम उनके चाकर हैं। जिजन्दगी की कर्शमकर्श और लड़ाई में आत्म�म्मान को किनबाहना कै�ा मुश्किश्कल काम है! दू�रा अषाढ़ आया तो वह गॉँव किर्फर बगीचा बना हुआ था। बचे्च किर्फर अपने दरवाजों पर घरौंदे बनाने लगे, मद� के बुलन्द आवाज के गाने खेतों में �ुनाई दिदये व औरतों के �ुहाने गीत चण्डिक्कयों पर। जिजन्दगी के मोहक दृश्य दिदखाईं देने लगे।

�ाल Pर गुजरा। जब रबी की दू�री र्फ�ल आयी तो �ुनहरी बालों को खेतों में लहराते देखकर किक�ानों के दिदल लहराने लगते थे। �ाल Pर परती जमीन ने �ोना उगल दिदया थां औरतें खुर्श थीं किक अब के नये-नये गहने बनवायेंगे, मद� खुर्श थे किक अचे्छ-अचे्छ बैल मोल लेंगे और दारोगा जी की खुर्शी का तो अन्त ही न था। ठाकुर �ाहब ने यह

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खुर्शखबरी �ुनी तो देहात की �ैर को चले। वही र्शानर्शौकत, वही लठैतों का रिर�ाला, वही गुंZों की र्फौज! गॉँववालों ने उनके आदर �त्कार की तैयारिरयॉँ करनी रु्शरू कीं। मोटे-ताजे बकरों का एक पूरा गला चौपाल के दरवाज पर बाँधां लकड़ी के अम्बार लगा दिदये, दूध के हौज Pर दिदये। ठाकुर �ाहब गॉँव की मेड़ पर पहुँचे तो पूरे एक �ौ आदमी उनकी अगवानी के सिलए हाथ बॉँधे खडे़ थे। लेकिकन पहली चीज जिज�की र्फरमाइर्श हुई वह लेमनेZ और बर्फ� थी। अ�ामिमयों के हाथों के तोते उड़ गये। यह पानी की बोतल इ� वक्त वहॉँ अम़ृत के दामों किबक �कती थी। मगर बेचारे देहाती अमीरों के चोचले क्या जानें। मुजरिरमों की तरह सि�र झुकाये Pौंचक खडे़ थे। चेहरे पर झेंप और र्शम� थी। दिदलों में धड़कन और Pय। ईश्वर! बात किबगड़ गई है, अब तुम्हीं �म्हालो।,’

बर्फ� की ठYZक न मिमली तो ठाकुर �ाहब की प्या� की आग और Pी तेज हुई, गुस्�ा Pड़क उठा, कड़ककर बोले—मैं रै्शतान नहीं हँू किक बकरों के खून �े प्या� बुझाऊँ, मुझे ठंZा बर्फ� चाकिहए और यह प्या� तुम्हारे और तुम्हारी औरतों के आँ�ुओं �े ही बुझेगी। एह�ानर्फरामोर्श, नीच मैंने तुम्हें जमीन दी, मकान दिदये और हैसि�यत दी और इ�के बदले में तुम ये दे रहे हो किक मैं खड़ा पानी को तर�ता हँू! तुम इ� काकिबल नहीं हो किक तुम्हारे �ाथ कोई रिरयायत की जाय। कल र्शाम तक मैं तुममें �े किक�ी आदमी की �ूरत इ� गॉँव में न देखँू वना� प्रलय हो जायेगा। तुम जानते हो किक मुझे अपना हुक्म दुहराने की आदत नहीं है। रात तुम्हारी है, जो कुछ ले जा �को, ले जाओ। लेकिकन र्शाम को मैं किक�ी की मनहू� �ूरत न देखँू। यह रोना और चीखना किर्फजू है, मेरा दिदल पत्थर का है और कलेजा लोहे का, आँ�ुओं �े नहीं प�ीजता।

और ऐ�ा ही हुआ। दू�री रात को �ारे गॉँव कोई दिदया जलानेवाला तक न रहा। रू्फलता-र्फलता गॉँव Pूत का Zेरा बन गया।

हुत दिदनों तक यह घटना आ�-पा� के मनचले किकस्�ागोयों के सिलए दिदलचश्किस्पयों का खजाना बनी रही। एक �ाहब ने उ� पर अपनी कलम। Pी चलायी। बेचारे ठाकुर

�ाहब ऐ�े बदनाम हुए किक घर �े किनकलना मुश्किश्कल हो गया। बहुत कोसिर्शर्श की गॉँव आबाद हो जाय लेकिकन किक�की जान Pारी थी किक इ� अंधेर नगरी में कदम रखता जहॉँ मोटापे की �जा र्फॉँ�ी थी। कुछ मजदूर-पेर्शा लोग किकस्मत का जुआ खेलने आये मगर कुछ महीनों �े ज्यादा न जम �के। उजड़ा हुआ गॉँव खोया हुआ एतबार है जो बहुत मुश्किश्कल �े जमता है। आखिखर जब कोई ब� न चला तो ठाकुर �ाहब ने मजबूर होकर आराजी मार्फ करने का काम आम ऐलान कर दिदया लेकिकन इ� रिरया�त �े रही-�ही �ाख Pी खो दी। इ� तरह तीन �ाल गुजर जाने के बाद एक रोज वहॉँ बंजारों का काकिर्फला आया। र्शाम हो गयी थी और पूरब तरर्फ �े अंधेरे की लहर बढ़ती चली आती थी। बंजारों ने देखा तो �ारा गॉँव वीरान पड़ा हुआ है।, जहॉँ आदमिमयों के घरों में किग� और गीदड़ रहते थे। इ� कितसिलस्म का Pेद �मझ में न आया। मकान मौजूद हैं, जमीन उपजाऊ है, हरिरयाली �े लहराते हुए खेत हैं और इन्�ान का नाम नहीं! कोई और गॉँव पा� न था वहीं पड़ाव Zाल दिदया। जब �ुबह हुई,

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बैलों के गलों की घंदिटयों ने किर्फर अपना रजत-�ंगीत अलापना रु्शरू किकया और काकिर्फला गॉँव �े कुछ दूर किनकल गया तो एक चरवाहे ने जोर-जबद�स्ती की यह लम्बी कहानी उन्हें �ुनायी। दुकिनया Pर में घूमते किर्फरने ने उन्हें मुश्किश्कलों का आदी बना दिदया था। आप� में कुद मर्शकिवरा किकया और रै्फ�ला हो गया। ठाकुर �ाहब की ड्योढ़ी पर जा पहुँचे और नजराने दाखिखल कर दिदये। गॉँव किर्फर आबाद हुआ।

यह बंजारे बला के चीमड़, लोहे की-�ी किहम्मत और इरादे के लोग थे जिजनके आते ही गॉँव में लक्ष्मी का राज हो गया। किर्फर घरों में �े धुए ंके बादल उठे, कोल्हाड़ों ने किर्फर धुए ँओर Pाप की चादरें पहनीं, तुल�ी के चबूतरे पर किर्फर �े सिचराग जले। रात को रंगीन तकिबयत नौजवानों की अलापें �ुनायी देने लगीं। चरागाहों में किर्फर मवेसिर्शयों के गल्ले दिदखाई दिदये और किक�ी पेड़ के नीचे बैठे हुए चरवाहे की बॉँ�ुरी की मजि�म और र�ीली आवाज दद� और अ�र में Zूबी हुई इ� प्राकृकितक दृश्य में जादू का आकष�ण पैदा करने लगी।

Pादों का महीना था। कपा� के रू्फलों की �ुख� और �रे्फद सिचकनाई, कितल की ऊदी बहार और �न का र्शोख पीलापन अपने रूप का जलवा दिदखाता था। किक�ानों की मडै़या और छप्परों पर Pी र्फल-रू्फल की रंगीनी दिदखायी देती थी। उ� पर पानी की हलकी-हलकी रु्फहारें प्रकृकित के �ौंदय� के सिलए सि�ंगार करनेवाली का कमा दे रही थीं। जिज� तरह �ाधुओं के दिदल �त्य की ज्योकित �े Pरे होते हैं, उ�ी तरह �ागर और तालाब �ार्फ-र्शफ़्फ़ाफ़ पानी �े Pरे थे। र्शायद राजा इन्द्र कैलार्श की तरावट Pरी ऊँचाइयों �े उतरकर अब मैदानों में आनेवाले थे। इ�ीसिलए प्रकृकित ने �ौन्दय� और सि�जि�यों और आर्शाओं के Pी PYZार खोल दिदये थे। वकील �ाहब को Pी �ैर की तमन्ना ने गुदगुदाया। हमेर्शा की तरह अपने रईं�ाना ठाट-बाट के �ाथ गॉँव में आ पहुँचे। देखा तो �ंतोष और किनभिश्चन्तता के वरदान चारों तरर्फ स्पq थे।

ववालों ने उनके रु्शPागमन का �माचार �ुना, �लाम को हाजिजर हुए। वकील �ाहब ने उन्हें अचे्छ-अचे्छ कपडे़ पहने, स्वाभिPमान के �ाथ कदम मिमलाते हुए देखा। उन�े

बहुत मुस्कराकर मिमले। र्फ�ल का हाल-चाल पूछा। बूढे़ हरदा� ने एक ऐ�े लहजे में जिज��े पूरी जिजम्मेदारी और चौधरापे की र्शान टपकती थी, जवाब दिदया—हुजूर के कदमों की बरकत �े �ब चैन है। किक�ी तरह की तकलीर्फ नहीं आपकी दी हुई नेमत खाते हैं और आपका ज� गाते हैं। हमारे राजा और �रकार जो कुछ हैं, आप हैं और आपके सिलए जान तक हाजिजर है।

गाँ

ठाकुर �ाहब ने तेबर बदलकर कहा—मैं अपनी खुर्शामद �ुनने का आदी नहीं हँू।बूढे़ हरदा� के माथे पर बल पडे़, अभिPमान को चोट लगी। बोला—मुझे Pी खुर्शामद

करने की आदत नहीं है।ठाकुर �ाहब ने ऐंठकर जवाब दिदया—तुम्हें रई�ों �े बात करने की तमीज नहीं।

ताकत की तरह तुम्हारी अक्ल Pी बुढ़ापे की Pेंट चढ़ गई।

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हरदा� ने अपने �ासिथयों की तरर्फ देखा। गुस्�े की गम[ �े �ब की आँख रै्फली हुई और धीरज की �द� �े माथे सि�कुडे़ हुए थे। बोला—हम आपकी रैयत हैं लेकिकन हमको अपनी आबरू प्यारी है और चाहे आप जमींदार को अपना सि�र दे दें आबरू नहीं दे �कते।

हरदा� के कई मनचले �ासिथयों ने बुलन्द आवाज में ताईद की—आबरू जान के पीछे है।

ठाकुर �ाहब के गुस्�े की आग Pड़क उठी और चेहरा लाल हो गया, और जोर �े बोले—तुम लोग जबान �म्हालकर बातें करो वना� जिज� तरह गले में झोसिलयॉँ लटकाये आये थे उ�ी तरह किनकाल दिदये जाओगे। मैं प्रद्युम्न सि�ंह हँू, जिज�ने तुम जै�े किकतने ही हेकड़ों को इ�ी जगह कुचलवा Zाला है। यह कहकर उन्होंने अपने रिर�ाले के �रदार अजु�नसि�ंह को बुलाकर कहा—ठाकुर, अब इन चीदिटयों के पर किनकल आये हैं, कल र्शाम तक इन लोगों �े मेरा गॉँव �ार्फ हो जाए।

हरदा� खड़ा हो गया। गुस्�ा अब सिचनगारी बनकर आँखों �े किनकल रहा था। बोला—हमने इ� गॉँव को छोड़ने के सिलए नहीं ब�ाया है। जब तक जिजयेंगे इ�ी गॉँव में रहेंगे, यहीं पैदा होंगे और यहीं मरेंगे। आप बडे़ आदमी हैं और बड़ों की �मझ Pी बड़ी होती है। हम लोग अक्खड़ गंवार हैं। नाहक गरीबों की जान के पीछ मत पकिड़ए। खून-खराबा हो जायेगा। लेकिकन आपको यही मंजूर है तो हमारी तरर्फ �े आपके सि�पाकिहयों को चुनौती है, जब चाहे दिदल के अरमान किनकाल लें।

इतना कहकर ठाकुर �ाहब को �लाम किकया और चल दिदया। उ�के �ाथी गव� के �ाथ अकड़ते हुए चले। अजु�नसि�ंह ने उनके तेवर देखे। �मझ गया किक यह लोहे के चने हैं लेकिकन र्शोहदों का �रदार था, कुछ अपने नाम की लाज थी। दू�रे दिदन र्शाम के वक्त जब रात और दिदन में मुठPेड़ हो रही थी, इन दोनों जमातों का �ामना हुआ। किर्फर वह धौल-धप्पा हुआ किक जमीन थरा� गयी। जबानों ने मुंह के अन्दर वह माक§ दिदखाये किक �ूरज Zर के मारे पण्डिश्छम में जा सिछपा। तब लादिठयों ने सि�र उठाया लेकिकन इ��े पहले किक वह Zाक्टर �ाहब की दुआ और रु्शकिक्रये की मुस्तहक हों अजु�नसि�ंह ने �मझदारी �े काम सिलया। ताहम उनके चन्द आदमिमयों के सिलए गुड़ और हल्दी पीने का �ामान हो चुका था।

वकील �ाहब ने अपनी र्फौज की यह बुरी हालतें देखीं, किक�ी के कपडे़ र्फटे हुए, किक�ी के जिजस्म पर गद� जमी हुई, कोई हॉँर्फते-हॉँर्फते बेदम (खून बहुत कम नजर आया क्योंकिक यह एक अनमोल चीज है और इ�े ZंZों की मार �े बचा सिलया गया) तो उन्होंने अजु�नसि�ंह की पीठ ठोकी और उ�की बहादुरी और जॉँबाजी की खूब तारीर्फ की। रात को उनके �ामने लड्डू और इमरकितयों की ऐ�ी वषा� हुई किक यह �ब गद�-गुबार धुल गया। �ुबह को इ� रिर�ाले ने ठंZे-ठंZे घर की राह ली और क�म खा गए किक अब Pूलकर Pी इ� गॉँव का रूख न करेंगे।

तब ठाकुर �ाहब ने गॉँव के आदमिमयों को चौपाल में तलब किकया। उनके इर्शारे की देर थी। �ब लोग इकटे्ठ हो गए। अण्डि�तयार और हुकूमत अगर घमंZ की म�नद �े उतर आए तो दुश्मनों को Pी दोस्त बना �कती है। जब �ब आदमी आ गये तो ठाकुर �ाहब एक-एक करके उन�े बगलगीर हुए ओर बोले—मैं ईश्वर का बहु ऋणी हँू किक मुझे गॉँव के सिलए जिजन आदमिमयों की तलार्श थी, वह लोग मिमल गये। आपको मालूम है किक यह गॉँव कई

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बार उजड़ा और कई बार ब�ा। उ�का कारण यही था किक वे लोग मेरी क�ौटी पर पूरे न उतरते थे। मैं उनका दुश्मन नहीं था लेकिकन मेरी दिदली आरजू यह थी किक इ� गॉँव में वे लोग आबाद हों जो जुल्म का मद� की तरह �ामना करें, जो अपने अमिधकारों और रिरआयतों की मद� की तरह किहर्फाजत करें, जो हुकूमत के गुलाम न हों, जो रोब और अण्डि�तयार की तेज किनगाह देखकर बच्चों की तरह Zर �े �हम न जाऍं। मुझे इत्मीनान है किक बहुत नुक�ान और र्शर्मिंमंदगी और बदनामी के बाद मेरी तमन्नाए ँपूरी हो गयीं। मुझे इत्मीनान है किक आप उल्टी हवाओं और ऊँची-ऊँची उठनेवाली लहरों का मुकाबला कामयाबी �े करेंगे। मैं आज इ� गॉँव �े अपना हाथ खींचता हँू। आज �े यह आपकी मिमश्किल्कयत है। आपही इ�के जमींदार और मासिलक हैं। ईश्वर �े मेरी यही प्राथ�ना है किक आप र्फलें-रू्फलें ओर �र�ब्ज हों।

इन र्शब्दों ने दिदलों पर जादू का काम किकया। लोग स्वामिमPसिक्त के आवेर्श �े मस्त हो-होकर ठाकुर �ाहब के पैरों �े सिलपट गये और कहने लगे—हम आपके, कदमों �े जीते-जी जुदा न होंगे। आपका-�ा कद्रदान और रिरआया-परवर बुजुग� हम कहॉँ पायेंगे। वीरों की Pसिक्त और �हनुPूकित, वर्फादारी और एह�ान का एक बड़ा दद�नाक और अ�र पैदा करने वाला दृश्य आँखों के �ामने पेर्श हो गया। लेकिकन ठाकुर �ाहब अपने उदार किनश्चय पर दृढ़ रहे और गो पचा� �ाल �े ज्यादा गुजर गये हैं। लेकिकन उन्हीं बंजारों के वारिर� अPी तक मौजा �ाहषगंज के मार्फीदार हैं। औरतें अPी तक ठाकुर प्रद्युम्न सि�ंह की पूजा और मन्नतें करती हैं और गो अब इ� मौजे के कई नौजवान दौलत और हुकूमत की बुलंदी पर पहुँच गये हैं लेकिकन गूढे़ और अक्खड़ हरदा� के नाम पर अब Pी गव� करते हैं। और Pादों �ुदी एकादर्शी के दिदन अPी उ�ी मुबारक र्फतेह की यादगार में जश्न मनाये जाते हैं।

—जमाना, अकू्तबर १९१३

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अनाथ लड़की

ठ पुरुषोत्तमदा� पूना की �रस्वती पाठर्शाला का मुआयना करने के बाद बाहर किनकले तो एक लड़की ने दौड़कर उनका दामन पकड़ सिलया। �ेठ जी रुक गये और मुहब्बत �े

उ�की तरर्फ देखकर पूछा—क्या नाम है?�े

लड़की ने जवाब दिदया—रोकिहणी।�ेठ जी ने उ�े गोद में उठा सिलया और बोले—तुम्हें कुछ इनाम मिमला?लड़की ने उनकी तरर्फ बच्चों जै�ी गंPीरता �े देखकर कहा—तुम चले जाते हो,

मुझे रोना आता है, मुझे Pी �ाथ लेते चलो।�ेठजी ने हँ�कर कहा—मुझे बड़ी दूर जाना है, तुम कै�े चालोगी?रोकिहणी ने प्यार �े उनकी गद�न में हाथ Zाल दिदये और बोली—जहॉँ तुम जाओगे वहीं

मैं Pी चलँूगी। मैं तुम्हारी बेटी हँूगी।मदर�े के अर्फ�र ने आगे बढ़कर कहा—इ�का बाप �ाल Pर हुआ नही रहा। मॉँ

कपडे़ �ीती है, बड़ी मुश्किश्कल �े गुजर होती है।�ेठ जी के स्वPाव में करुणा बहुत थी। यह �ुनकर उनकी आँखें Pर आयीं। उ�

Pोली प्राथ�ना में वह दद� था जो पत्थर-�े दिदल को किपघला �कता है। बेक�ी और यतीमी को इ��े ज्यादा दद�नाक ढंग �े जाकिहर कना नामुमकिकन था। उन्होंने �ोचा—इ� नन्हें-�े दिदल में न जाने क्या अरमान होंगे। और लड़किकयॉँ अपने खिखलौने दिदखाकर कहती होंगी, यह मेरे बाप ने दिदया है। वह अपने बाप के �ाथ मदर�े आती होंगी, उ�के �ाथ मेलों में जाती होंगी और उनकी दिदलचश्किस्पयों का जिजक्र करती होंगी। यह �ब बातें �ुन-�ुनकर इ� Pोली लड़की को Pी �वाकिहर्श होती होगी किक मेरे बाप होता। मॉँ की मुहब्बत में गहराई और आस्त्रित्मकता होती है जिज�े बचे्च �मझ नहीं �कते। बाप की मुहब्बत में खुर्शी और चाव होता है जिज�े बचे्च खूब �मझते हैं।

�ेठ जी ने रोकिहणी को प्यार �े गले लगा सिलया और बोले—अच्छा, मैं तुम्हें अपनी बेटी बनाऊँगा। लेकिकन खूब जी लगाकर पढ़ना। अब छुट्टी का वक्त आ गया है, मेरे �ाथ आओ, तुम्हारे घर पहुँचा दँू।

यह कहकर उन्होंने रोकिहणी को अपनी मोटरकार में किबठा सिलया। रोकिहणी ने बडे़ इत्मीनान और गव� �े अपनी �हेसिलयों की तरर्फ देखा। उ�की बड़ी-बड़ी आँखें खुर्शी �े चमक रही थीं और चेहरा चॉँदनी रात की तरह खिखला हुआ था।

ठ ने रोकिहणी को बाजार की खूब �ैर करायी और कुछ उ�की प�न्द �े, कुछ अपनी प�न्द �े बहुत-�ी चीजें खरीदीं, यहॉँ तक किक रोकिहणी बातें करते-करते कुछ थक-�ी

गयी और खामोर्श हो गई। उ�ने इतनी चीजें देखीं और इतनी बातें �ुनीं किक उ�का जी Pर गया। र्शाम होते-होते रोकिहणी के घर पहुँचे और मोटरकार �े उतरकर रोकिहणी को अब कुछ आराम मिमला। दरवाजा बन्द था। उ�की मॉँ किक�ी ग्राहक के घर कपडे़ देने गयी थी। रोकिहणी

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ने अपने तोहर्फों को उलटना-पलटना रु्शरू किकया—खूब�ूरत रबड़ के खिखलौने, चीनी की गुकिड़या जरा दबाने �े चूँ-चूँ करने लगतीं और रोकिहणी यह प्यारा �ंगीत �ुनकर रू्फली न �माती थी। रेर्शमी कपडे़ और रंग-किबरंगी �ाकिड़यों की कई बYZल थे लेकिकन मखमली बूटे की गुलकारिरयों ने उ�े खूब लुPाया था। उ�े उन चीजों के पाने की जिजतनी खुर्शी थी, उ��े ज्यादा उन्हें अपनी �हेसिलयों को दिदखाने की बेचैनी थी। �ुन्दरी के जूते अचे्छ �ही लेकिकन उनमें ऐ�े रू्फल कहॉँ हैं। ऐ�ी गुकिड़या उ�ने कPी देखी Pी न होंगी। इन खयालों �े उ�के दिदल में उमंग Pर आयी और वह अपनी मोकिहनी आवाज में एक गीत गाने लगी। �ेठ जी दरवाजे पर खडे़ इन पकिवत्र दृश्य का हार्दिदंक आनन्द उठा रहे थे। इतने में रोकिहणी की मॉँ रुण्डिक्मणी कपड़ों की एक पोटली सिलये हुए आती दिदखायी दी। रोकिहणी ने खुर्शी �े पागल होकर एक छलॉँग Pरी और उ�के पैरों �े सिलपट गयी। रुण्डिक्मणी का चेहरा पीला था, आँखों में ह�रत और बेक�ी सिछपी हुई थी, गुप्त सिचंता का �जीव सिचत्र मालूम होती थी, जिज�के सिलए जिजंदगी में कोई �हारा नहीं।

मगर रोकिहणी को जब उ�ने गोद में उठाकर प्यार �े चूमा मो जरा देर के सिलए उ�की ऑंखों में उन्मीद और जिजंदगी की झलक दिदखायी दी। मुरझाया हुआ रू्फल खिखल गया। बोली—आज तू इतनी देर तक कहॉँ रही, मैं तुझे ढँूढ़ने पाठर्शाला गयी थी।

रोकिहणी ने हुमककर कहा—मैं मोटरकार पर बैठकर बाजार गयी थी। वहॉँ �े बहुत अच्छी-अच्छी चीजें लायी हँू। वह देखो कौन खड़ा है?

मॉँ ने �ेठ जी की तरर्फ ताका और लजाकर सि�र झुका सिलया।बरामदे में पहुँचते ही रोकिहणी मॉँ की गोद �े उतरकर �ेठजी के पा� गयी और

अपनी मॉँ को यकीन दिदलाने के सिलए Pोलेपन �े बोली—क्यों, तुम मेरे बाप हो न?�ेठ जी ने उ�े प्यार करके कहा—हॉँ, तुम मेरी प्यारी बेटी हो।रोकिहणी ने उन�े मुंह की तरर्फ याचना-Pरी आँखों �े देखकर कहा—अब तुम रोज

यहीं रहा करोगे?�ेठ जी ने उ�के बाल �ुलझाकर जवाब दिदया—मैं यहॉँ रहँूगा तो काम कौन करेगा?

मैं कPी-कPी तुम्हें देखने आया करँूगा, लेकिकन वहॉँ �े तुम्हारे सिलए अच्छी-अच्छी चीजें Pेजूँगा।

रोकिहणी कुछ उदा�-�ी हो गयी। इतने में उ�की मॉँ ने मकान का दरवाजा खोला ओर बड़ी रु्फत[ �े मैले किबछावन और र्फटे हुए कपडे़ �मेट कर कोने में Zाल दिदये किक कहीं �ेठ जी की किनगाह उन पर न पड़ जाए। यह स्वाभिPमान स्त्रिस्त्रयों की खा� अपनी चीज है।

रुण्डिक्मणी अब इ� �ोच में पड़ी थी किक मैं इनकी क्या खाकितर-तवाजो करँू। उ�ने �ेठ जी का नाम �ुना था, उ�का पकित हमेर्शा उनकी बड़ाई किकया करता था। वह उनकी दया और उदारता की चचा�ए ँअनेकों बार �ुन चुकी थी। वह उन्हें अपने मन का देवता �मझा कतरी थी, उ�े क्या उमीद थी किक कPी उ�का घर Pी उ�के कदमों �े रोर्शन होगा। लेकिकन आज जब वह रु्शP दिदन �ंयोग �े आया तो वह इ� काकिबल Pी नहीं किक उन्हें बैठने के सिलए एक मोढ़ा दे �के। घर में पान और इलायची Pी नहीं। वह अपने आँ�ुओं को किक�ी तरह न रोक �की।

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आखिखर जब अंधेरा हो गया और पा� के ठाकुरद्वारे �े घYटों और नगाड़ों की आवाजें आने लगीं तो उन्होंने जरा ऊँची आवाज में कहा—बाईजी, अब मैं जाता हँू। मुझे अPी यहॉँ बहुत काम करना है। मेरी रोकिहणी को कोई तकलीर्फ न हो। मुझे जब मौका मिमलेगा, उ�े देखने आऊँगा। उ�के पालने-पो�ने का काम मेरा है और मैं उ�े बहुत खुर्शी �े पूरा करँूगा। उ�के सिलए अब तुम कोई किर्फक्र मत करो। मैंने उ�का वजीर्फा बॉँध दिदया है और यह उ�की पहली किकस्त है।

यह कहकर उन्होंने अपना खूब�ूरत बटुआ किनकाला और रुण्डिक्मणी के �ामने रख दिदया। गरीब औरत की आँखें में आँ�ू जारी थे। उ�का जी बरब� चाहता था किक उ�के पैरों को पकड़कर खूब रोये। आज बहुत दिदनों के बाद एक �च्चे हमदद� की आवाज उ�के मन में आयी थी।

जब �ेठ जी चले तो उ�ने दोनों हाथों �े प्रणाम किकया। उ�के हृदय की गहराइयों �े प्राथ�ना किनकली—आपने एक बेब� पर दया की है, ईश्वर आपको इ�का बदला दे।

दू�रे दिदन रोकिहणी पाठर्शाला गई तो उ�की बॉँकी �ज-धज आँखों में खुबी जाती थी। उस्ताकिनयों ने उ�े बारी-बारी प्यार किकया और उ�की �हेसिलयॉँ उ�की एक-एक चीज को आश्चय� �े देखती और ललचाती थी। अचे्छ कपड़ों �े कुछ स्वाभिPमान का अनुPव होता है। आज रोकिहणी वह गरीब लड़की न रही जो दू�रों की तरर्फ किववर्श नेत्रों �े देखा करती थी। आज उ�की एक-एक किक्रया �े रै्शर्शवोसिचत गव� और चंचलता टपकती थी और उ�की जबान एक दम के सिलए Pी न रुकती थी। कPी मोटर की तेजी का जिजक्र था कPी बाजार की दिदलचश्किस्पयों का बयान, कPी अपनी गुकिड़यों के कुर्शल-मंगल की चचा� थी और कPी अपने बाप की मुहब्बत की दास्तान। दिदल था किक उमंगों �े Pरा हुआ था।

एक महीने बाद �ेठ पुरुषोत्तमदा� ने रोकिहणी के सिलए किर्फर तोहरे्फ और रुपये रवाना किकये। बेचारी किवधवा को उनकी कृपा �े जीकिवका की सिचन्ता �े छुट्टी मिमली। वह Pी रोकिहणी के �ाथ पाठर्शाला आती और दोनों मॉँ-बेदिटयॉँ एक ही दरजे के �ाथ-�ाथ पढ़तीं, लेकिकन रोकिहणी का नम्बर हमेर्शा मॉँ �े अव्वल रहा �ेठ जी जब पूना की तरर्फ �े किनकलते तो रोकिहणी को देखने जरूर आते और उनका आगमन उ�की प्र�न्नता और मनोरंजन के सिलए महीनों का �ामान इकट्ठा कर देता।

इ�ी तरह कई �ाल गुजर गये और रोकिहणी ने जवानी के �ुहाने हरे-Pरे मैदान में पैर रक्खा, जबकिक बचपन की Pोली-Pाली अदाओं में एक खा� मतलब और इरादों का दखल हो जाता है।

रोकिहणी अब आन्तरिरक और बाह्य �ौन्दय� में अपनी पाठर्शाला की नाक थी। हाव-Pाव में आकष�क गम्भीरता, बातों में गीत का-�ा खिखंचाव और गीत का-�ा आस्त्रित्मक र� था। कपड़ों में रंगीन �ादगी, आँखों में लाज-�ंकोच, किवचारों में पकिवत्रता। जवानी थी मगर घमYZ और बनावट और चंचलता �े मुक्त। उ�में एक एकाग्रता थी ऊँचे इरादों �े पैदा होती है। स्त्रिस्त्रयोसिचत उत्कष� की मंजिजलें वह धीरे-धीरे तय करती चली जाती थी।

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ठ जी के बडे़ बेटे नरोत्तमदा� कई �ाल तक अमेरिरका और जम�नी की युकिनवर्सि�ंदिटयों की खाक छानने के बाद इंजीकिनयरिरंग किवPाग में कमाल हासि�ल करके वाप� आए थे।

अमेरिरका के �ब�े प्रकितमिष्ठत कालेज में उन्होंने �म्मान का पद प्राप्त किकया था। अमेरिरका के अखबार एक किहन्दोस्तानी नौजवान की इ� र्शानदार कामयाबी पर चकिकत थे। उन्हीं का स्वागत करने के सिलए बम्बई में एक बड़ा जल�ा किकया गया था। इ� उत्�व में र्शरीक होने के सिलए लोग दूर-दूर �े आए थे। �रस्वती पाठर्शाला को Pी किनमंत्रण मिमला और रोकिहणी को �ेठानी जी ने किवरे्शष रूप �े आमंकित्रत किकया। पाठर्शाला में हफ्तों तैयारिरयॉँ हुई। रोकिहणी को एक दम के सिलए Pी चैन न था। यह पहला मौका था किक उ�ने अपने सिलए बहुत अचे्छ-अचे्छ कपडे़ बनवाये। रंगों के चुनाव में वह मिमठा� थी, काट-छॉँट में वह र्फबन जिज��े उ�की �ुन्दरता चमक उठी। �ेठानी कौर्शल्या देवी उ�े लेने के सिलए रेलवे स्टेर्शन पर मौजूद थीं। रोकिहणी गाड़ी �े उतरते ही उनके पैरों की तरर्फ झुकी लेकिकन उन्होंने उ�े छाती �े लगा सिलया और इ� तरह प्यार किकया किक जै�े वह उनकी बेटी है। वह उ�े बार-बार देखती थीं और आँखों �े गव� और पे्रम टपक पड़ता था।

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इ� जल�े के सिलए ठीक �मुन्दर के किकनारे एक हरे-Pरे �ुहाने मैदान में एक लम्बा-चौड़ा र्शामिमयाना लगाया गया था। एक तरर्फ आदमिमयों का �मुद्र उमड़ा हुआ था दू�री तरर्फ �मुद्र की लहरें उमड़ रही थीं, गोया वह Pी इ� खुर्शी में र्शरीक थीं।

जब उपण्डि{त लोगों ने रोकिहणी बाई के आने की खबर �ुनी तो हजारों आदमी उ�े देखने के सिलए खडे़ हो गए। यही तो वह लड़की है। जिज�ने अबकी र्शास्त्री की परीक्षा पा� की है। जरा उ�के दर्श�न करने चाकिहये। अब Pी इ� देर्श की स्त्रिस्त्रयों में ऐ�े रतन मौजूद हैं। Pोले-Pाले देर्शपे्रमिमयों में इ� तरह की बातें होने लगीं। र्शहर की कई प्रकितमिष्ठत मकिहलाओं ने आकर रोकिहणी को गले लगाया और आप� में उ�के �ौन्दय� और उ�के कपड़ों की चचा� होने लगी।

आखिखर मिमस्टर पुरुषोत्तमदा� तर्शरीर्फ लाए। हालॉँकिक वह बड़ा सिर्शq और गम्भीर उत्�व था लेकिकन उ� वक्त दर्श�न की उत्कंठा पागलपन की हद तक जा पहुँची थी। एक Pगदड़-�ी मच गई। कुर्सि�ंयों की कतारे गड़बड़ हो गईं। कोई कु�[ पर खड़ा हुआ, कोई उ�के हत्थों पर। कुछ मनचले लोगों ने र्शामिमयाने की रण्डिस्�यॉँ पकड़ीं और उन पर जा लटके कई मिमनट तक यही तूर्फान मचा रहा। कहीं कुर्सि�ंयां टूटीं, कहीं कुर्सि�ंयॉँ उलटीं, कोई किक�ी के ऊपर किगरा, कोई नीचे। ज्यादा तेज लोगों में धौल-धप्पा होने लगा।

तब बीन की �ुहानी आवाजें आने लगीं। रोकिहणी ने अपनी मYZली के �ाथ देर्शपे्रम में Zूबा हुआ गीत रु्शरू किकया। �ारे उपण्डि{त लोग किबलकुल र्शान्त थे और उ� �मय वह �ुरीला राग, उ�की कोमलता और स्वच्छता, उ�की प्रPावर्शाली मधुरता, उ�की उत्�ाह Pरी वाणी दिदलों पर वह नर्शा-�ा पैदा कर रही थी जिज��े पे्रम की लहरें उठती हैं, जो दिदल �े बुराइयों को मिमटाता है और उ��े जिजन्दगी की हमेर्शा याद रहने वाली यादगारें पैदा हो जाती हैं। गीत बन्द होने पर तारीर्फ की एक आवाज न आई। वहीं ताने कानों में अब तक गूँज रही थीं।

गाने के बाद किवभिPन्न �ं{ाओं की तरर्फ �े अभिPनन्दन पेर्श हुए और तब नरोत्तमदा� लोगों को धन्यवाद देने के सिलए खडे़ हुए। लेकिकन उनके Pाषाण �े लोगों को थोड़ी किनरार्शा

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हुई। यों दोस्तो की मYZली में उनकी वकृ्तता के आवेग और प्रवाह की कोई �ीमा न थी लेकिकन �ाव�जकिनक �Pा के �ामने खडे़ होते ही र्शब्द और किवचार दोनों ही उन�े बेवर्फाई कर जाते थे। उन्होंने बड़ी-बड़ी मुश्किश्कल �े धन्यवाद के कुछ र्शब्द कहे और तब अपनी योग्यता की लण्डिज्जत स्वीकृकित के �ाथ अपनी जगह पर आ बैठे। किकतने ही लोग उनकी योग्यता पर ज्ञाकिनयों की तरह सि�र किहलाने लगे।

अब जल�ा खत्म होने का वक्त आया। वह रेर्शमी हार जो �रस्वती पाठर्शाला की ओर �े Pेजा गया था, मेज पर रखा हुआ था। उ�े हीरो के गले में कौन Zाले? पे्रसि�ZेYट ने मकिहलाओं की पंसिक्त की ओर नजर दौड़ाई। चुनने वाली आँख रोकिहणी पर पड़ी और ठहर गई। उ�की छाती धड़कने लगी। लेकिकन उत्�व के �Pापकित के आदेर्श का पालन आवश्यक था। वह �र झुकाये हुए मेज के पा� आयी और कॉँपते हाथों �े हार को उठा सिलया। एक क्षण के सिलए दोनों की आँखें मिमलीं और रोकिहणी ने नरोत्तमदा� के गले में हार Zाल दिदया।

दू�रे दिदन �रस्वती पाठर्शाला के मेहमान किवदा हुए लेकिकन कौर्शल्या देवी ने रोकिहणी को न जाने दिदया। बोली—अPी तुम्हें देखने �े जी नहीं Pरा, तुम्हें यहॉँ एक हफ्ता रहना होगा। आखिखर मैं Pी तो तुम्हारी मॉँ हँू। एक मॉँ �े इतना प्यार और दू�री मॉँ �े इतना अलगाव!

रोकिहणी कुछ जवाब न दे �की।यह �ारा हफ्ता कौर्शल्या देवी ने उ�की किवदाई की तैयारिरयों में खच� किकया। �ातवें

दिदन उ�े किवदा करने के सिलए स्टेर्शन तक आयीं। चलते वक्त उ��े गले मिमलीं और बहुत कोसिर्शर्श करने पर Pी आँ�ुओं को न रोक �कीं। नरोत्तमदा� Pी आये थे। उनका चेहरा उदा� था। कौर्शल्या ने उनकी तरर्फ �हानुPूकितपूण� आँखों �े देखकर कहा—मुझे यह तो �याल ही न रहा, रोकिहणी क्या यहॉँ �े पूना तक अकेली जायेगी? क्या हज� है, तुम्हीं चले जाओ, र्शाम की गाड़ी �े लौट आना।

नरोत्तमदा� के चेहरे पर खुर्शी की लहर दौड़ गयी, जो इन र्शब्दों में न सिछप �की—अच्छा, मैं ही चला जाऊँगा। वह इ� किर्फक्र में थे किक देखें किबदाई की बातचीत का मौका Pी मिमलता है या नहीं। अब वह खूब जी Pरकर अपना दद§ दिदल �ुनायेंगे और मुमकिकन हुआ तो उ� लाज-�ंकोच को, जो उदा�ीनता के परदे में सिछपी हुई है, मिमटा देंगे।

ण्डिक्मणी को अब रोकिहणी की र्शादी की किर्फक्र पैदा हुई। पड़ो� की औरतों में इ�की चचा� होने लगी थी। लड़की इतनी �यानी हो गयी है, अब क्या बुढ़ापे में ब्याह होगा?

कई जगह �े बात आयी, उनमें कुछ बडे़ प्रकितमिष्ठत घराने थे। लेकिकन जब रुण्डिक्मणी उन पैमानों को �ेठजी के पा� Pेजती तो वे यही जवाब देते किक मैं खुद किर्फक्र में हँू। रुण्डिक्मणी को उनकी यह टाल-मटोल बुरी मालूम होती थी।

रुरोकिहणी को बम्बई �े लौटे महीना Pर हो चुका था। एक दिदन वह पाठर्शाला �े लौटी

तो उ�े अम्मा की चारपाई पर एक खत पड़ा हुआ मिमला। रोकिहणी पढ़ने लगी, सिलखा था—बहन, जब �े मैंने तुम्हारी लड़की को बम्बई में देखा है, मैं उ� पर रीझ गई हँू। अब उ�के

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बगैर मुझे चैन नहीं है। क्या मेरा ऐ�ा Pाग्य होगा किक वह मेरी बहू बन �के? मैं गरीब हँू लेकिकन मैंने �ेठ जी को राजी कर सिलया है। तुम Pी मेरी यह किवनती कबूल करो। मैं तुम्हारी लड़की को चाहे रू्फलों की �ेज पर न �ुला �कँू, लेकिकन इ� घर का एक-एक आदमी उ�े आँखों की पुतली बनाकर रखेगा। अब रहा लड़का। मॉँ के मुँह �े लड़के का बखान कुछ अच्छा नहीं मालूम होता। लेकिकन यह कह �कती हँू किक परमात्मा ने यह जोड़ी अपनी हाथों बनायी है। �ूरत में, स्वPाव में, किवद्या में, हर दृमिq �े वह रोकिहणी के योग्य है। तुम जै�े चाहे अपना इत्मीनान कर �कती हो। जवाब जल्द देना और ज्यादा क्या सिलखँू। नीचे थोडे़-�े र्शब्दों में �ेठजी ने उ� पैगाम की सि�र्फारिरर्श की थी।

रोकिहणी गालों पर हाथ रखकर �ोचने लगी। नरोत्तमदा� की तस्वीर उ�की आँखों के �ामने आ खड़ी हुई। उनकी वह पे्रम की बातें, जिजनका सि�लसि�ला बम्बई �े पूना तक नहीं टूटा था, कानों में गूंजने लगीं। उ�ने एक ठYZी �ॉँ� ली और उदा� होकर चारपाई पर लेट गई।

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रस्वती पाठर्शाला में एक बार किर्फर �जावट और �र्फाई के दृश्य दिदखाई दे रहे हैं। आज रोकिहणी की र्शादी का रु्शP दिदन। र्शाम का वक्त, ब�न्त का �ुहाना मौ�म।

पाठर्शाला के दारो-दीवार मुस्करा रहे हैं और हरा-Pरा बगीचा रू्फला नहीं �माता।�

चन्द्रमा अपनी बारात लेकर पूरब की तरर्फ �े किनकला। उ�ी वक्त मंगलाचरण का �ुहाना राग उ� रूपहली चॉँदनी और हल्के-हल्के हवा के झोकों में लहरें मारने लगा। दूल्हा आया, उ�े देखते ही लोग हैरत में आ गए। यह नरोत्तमदा� थे।

दूल्हा मYZप के नीचे गया। रोकिहणी की मॉँ अपने को रोक न �की, उ�ी वक्त जाकर �ेठ जी के पैर पर किगर पड़ी। रोकिहणी की आँखों �े पे्रम और आन्दद के आँ�ू बहने लगे।

मYZप के नीचे हवन-कुYZ बना था। हवन रु्शरू हुआ, खुर्शबू की लपेटें हवा में उठीं और �ारा मैदान महक गया। लोगों के दिदलो-दिदमाग में ताजगी की उमंग पैदा हुई।

किर्फर �ंस्कार की बारी आई। दूल्हा और दुल्हन ने आप� में हमदद�; जिजम्मेदारी और वर्फादारी के पकिवत्र र्शब्द अपनी जबानों �े कहे। किववाह की वह मुबारक जंजीर गले में पड़ी जिज�में वजन है, ��ती है, पाबजिन्दयॉँ हैं लेकिकन वजन के �ाथ �ुख और पाबजिन्दयों के �ाथ किवश्वा� है। दोनों दिदलों में उ� वक्त एक नयी, बलवान, आस्त्रित्मक र्शसिक्त की अनुPूकित हो रही थी।

जब र्शादी की रस्में खत्म हो गयीं तो नाच-गाने की मजसिल� का दौर आया। मोहक गीत गूँजने लगे। �ेठ जी थककर चूर हो गए थे। जरा दम लेने के सिलए बागीचे में जाकर एक बेंच पर बैठ गये। ठYZी-ठYZी हवा आ रही आ रही थी। एक नर्शा-�ा पैदा करने वाली र्शान्तिन्त चारों तरर्फ छायी हुई थी। उ�ी वक्त रोकिहणी उनके पा� आयी और उनके पैरों �े सिलपट गयी। �ेठ जी ने उ�े उठाकर गले �े लगा सिलया और हँ�कर बोले—क्यों, अब तो तुम मेरी अपनी बेटी हो गयीं?

--जमाना, जून १९१४28

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कम" का र्फल

झे हमेर्शा आदमिमयों के परखने की �नक रही है और अनुPव के आधार पर कह �कता हँू किक यह अध्ययन जिजतना मनोरंजक, सिर्शक्षाप्रद और उदधाटनों �े Pरा हुआ है, उतना

र्शायद और कोई अध्ययन न होगा। लेकिकन अपने दोस्त लाला �ाईंदयाल �े बहुत अ�§ तक दोस्ती और बेतकल्लुर्फी के �म्बन्ध रहने पर Pी मुझे उनकी थाह न मिमली। मुझे ऐ�े दुब�ल र्शरीर में ज्ञाकिनयों की-�ी र्शान्तिन्त और �ंतोष देखकर आश्चय� होता था जो एक़ नाजुक पौधे की तरह मु�ीबतों के झोंकों में Pी अचल और अटल रहता था। ज्यों वह बहुत ही मामूली दरजे का आदमी था जिज�में मानव कमजोरिरयों की कमी न थी। वह वादे बहुत करता था लेकिकन उन्हें पूरा करने की जरूरत नहीं �मझता था। वह मिमथ्याPाषी न हो लेकिकन �च्चा Pी न था। बेमुरौवत न हो लेकिकन उ�की मुरौवत सिछपी रहती थी। उ�े अपने कत्त�व्य पर पाबन्द रखने के सिलए दबाव ओर किनगरानी की जरुरत थी, किकर्फायतर्शारी के उ�ूलों �े बेखबर, मेहनत �े जी चुराने वाला, उ�ूलों का कमजोर, एक ढीला-ढाला मामूली आदमी था। लेकिकन जब कोई मु�ीबत सि�र पर आ पड़ती तो उ�के दिदल में �ाह� और दृढ़ता की वह जबद�स्त ताकत पैदा हो जाती थी जिज�े र्शहीदों का गुण कह �कते हैं। उ�के पा� न दौलत थी न धार्मिमंक किवश्वा�, जो ईश्वर पर Pरो�ा करने और उ�की इच्छाओं के आगे सि�र झुका देने का स्त्रोत है। एक छोटी-�ी कपडे़ की दुकान के सि�वाय कोई जीकिवका न थी। ऐ�ी हालतों में उ�की किहम्मत और दृढ़ता का �ोता कहॉँ सिछपा हुआ है, वहॉँ तक मेरी अन्वेषण-दृमिq नहीं पहुँचती थी।

मु

प के मरते ही मु�ीबतों ने उ� पर छापा मारा कुछ थोड़ा-�ा कज� किवरा�त में मिमला जिज�में बराबर बढ़ते रहने की आश्चय�जनक र्शसिक्त सिछपी हुई थी। बेचारे ने अPी

बर�ी �े छुटकारा नहीं पाया था किक महाजन ने नासिलर्श की और अदालत के कितलस्मी अहाते में पहुँचते ही यह छोटी-�ी हस्ती इ� तरह रू्फली जिज� तरह मर्शक र्फलती है। किZग्री हुई। जो कुछ जमा-जथा थी; बत�न-Pॉँड़ें, हॉँZी-तवा, उ�के गहरे पेट में �मा गये। मकान Pी न बचा। बेचारे मु�ीबतों के मारे �ाईंदयाल का अब कहीं दिठकाना न था। कौड़ी-कौड़ी को मुहताज, न कहीं घर, न बार। कई-कई दिदन र्फाके �े गुजर जाते। अपनी तो खैर उन्हें जरा Pी किर्फक्र न थी लेकिकन बीवी थी, दो-तीन बचे्च थे, उनके सिलए तो कोई-न-कोई किर्फक्र करनी पड़ती थी। कुनबे का �ाथ और यह बे�रो�ामानी, बड़ा दद�नाक दृश्य था। र्शहर �े बाहर एक पेड़ की छॉँह में यह आदमी अपनी मु�ीबत के दिदन काट रहा था। �ारे दिदन बाजारों की खाक छानता। आह, मैंने एक बार उ� रेलवे स्टेर्शन पर देखा। उ�के सि�र पर एक Pारी बोझ था। उ�का नाजुग, �ुख-�ुकिवधा में पला हुआ र्शरीर, प�ीना-प�ीना हो रहा था। पैर मुश्किश्कल �े उठते थे। दम रू्फल रहा था लेकिकन चेहरे �े मदा�ना किहम्मत और मजबूत इरादे की रोर्शनी टपकती थी। चेहरे �े पूण� �ंतोष झलक रहा था। उ�के चेहरे पर ऐ�ा इत्मीनान था

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किक जै�े यही उ�का बाप-दादों का पेर्शा है। मैं हैरत �े उ�का मुंह ताकता रह गया। दुख में हमदद� दिदखलाने की किहम्मत न हुई। कई महीने तक यही कैकिर्फयत रही। आखिखरकार उ�की किहम्मत और �हनर्शसिक्त उ�े इ� कदिठन दुग�म घाटी �े बाहर किनकल लायी।

डे़ ही दिदनों के बाद मु�ीबतों ने किर्फर उ� पर हमला किकया। ईश्वर ऐ�ा दिदन दुश्मन को Pी न दिदखलाये। मैं एक महीने के सिलए बम्बई चला गया था, वहॉँ �े लौटकर उ��े

मिमलने गया। आह, वह दृश्य याद करके आज Pी रोंगटे खडे़ हो जाते हैं। ओर दिदल Zर �े कॉँप उठता है। �ुबह का वक्त था। मैंने दरवाजे पर आवाज दी और हमेर्शा की तरह बेतकल्लुर्फ अन्दर चला गया, मगर वहॉँ �ाईंदयाल का वह हँ�मुख चेहरा, जिज� पर मदा�ना किहम्मत की ताजगी झलकती थी, नजर न आया। मैं एक महीने के बाद उनके घर जाऊँ और वह आँखों �े रोते लेकिकन होंठों �े हँ�ते दौड़कर मेरे गले सिलपट न जाय! जरूर कोई आर्फत है। उ�की बीवी सि�र झुकाये आयी और मुझे उ�के कमरे में ले गयी। मेरा दिदल बैठ गया। �ाईंदयाल एक चारपाई पर मैले-कुचैले कपडे़ लपेटे, आँखें बन्द किकये, पड़ा दद� �े कराह रहा था। जिजस्म और किबछौने पर मण्डिक्खयों के गुचे्छ बैठे हुए थे। आहट पाते ही उ�ने मेरी तरर्फ देखा। मेरे जिजगर के टुकडे़ हो गये। हकि£यों का ढॉँचा रह गया था। दुब�लता की इ��े ज्यादा �च्ची और करुणा तस्वीर नहीं हो �कती। उ�की बीवी ने मेरी तरर्फ किनरार्शाPरी आँखों �े देखा। मेरी आँ�ू Pर आये। उ� सि�मटे हुए ढॉँचे में बीमारी को Pी मुश्किश्कल �े जगह मिमलती होगी, जिजन्दगी का क्या जिजक्र! आखिखर मैंने धीरे पुकारा। आवाज �ुनते ही वह बड़ी-बड़ी आँखें खुल गयीं लेकिकन उनमें पीड़ा और र्शोक के आँ�ू न थे, �न्तोष और ईश्वर पर Pरो�े की रोर्शनी थी और वह पीला चेहरा! आह, वह गम्भीर �ंतोष का मौन सिचत्र, वह �ंतोषमय �ंकल्प की �जीव स्मृकित। उ�के पीलेपन में मदा�ना किहम्मत की लाली झलकती थी। मैं उ�की �ूरत देखकर घबरा गया। क्या यह बुझते हुए सिचराग की आखिखरी झलक तो नहीं है?

थो

मेरी �हमी हुई �ूरत देखकर वह मुस्कराया और बहुत धीमी आवाज में बोला—तुम ऐ�े उदा� क्यों हो, यह �ब मेरे कम� का र्फल है।

गर कुछ अजब बदकिकस्मत आदमी था। मु�ीबतों को उ��े कुछ खा� मुहब्बत थी। किक�े उम्मीद थी किक वह उ� प्राणघातक रोग �े मुसिक्त पायेगा। Zाक्टरों ने Pी जवाब दे

दिदया था। मौत के मुंह �े किनकल आया। अगर Pकिवर्ष्याय का जरा Pी ज्ञान होता तो �ब�े पहले मैं उ�े जहर दे देता। आह, उ� र्शोकपूण� घटना को याद करके कलेजा मुंह को आता है। मिधककार है इ� जिजन्दगी पर किक बाप अपनी आँखों �े अपनी इकलौते बेटे का र्शोक देखे।

मकै�ा हँ�मुख, कै�ा खूब�ूरत, होनहार लड़का था, कै�ा �ुर्शील, कै�ा मधुरPाषी,

जासिलम मौत ने उ�े छॉँट सिलया। प्लेग की दुहाई मची हुई थी। र्शाम को किगल्टी किनकली और �ुबह को—कै�ी मनहू�, अरु्शP �ुबह थी—वह जिजन्दगी �बेरे के सिचराग की तरह बुझ गयी। मैं उ� वक्त उ� बचे्च के पा� बैठा हुआ था और �ाईंदयाल दीवार का �हारा सिलए हुए

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खामोर्शा आ�मान की तरर्फ देखता था। मेरी और उ�की आँखों के �ामने जासिलम और बेरहम मौत ने उ� बचे को हमारी गोद �े छीन सिलया। मैं रोते हुए �ाईंदयाल के गले �े सिलपट गया। �ारे घर में कुहराम मचा हुआ था। बेचारी मॉँ पछाड़ें खा रही थी, बहनें दौZ-दौड़कर Pाई की लार्श �े सिलपटती थीं। और जरा देर के सिलए ईर्ष्याया� ने Pी �मवेदना के आगे सि�र झुका दिदया था—मुहल्ले की औरतों को आँ� बहाने के सिलए दिदल पर जोर Zालने की जरूरत न थी।

जब मेरे आँ�ू थमे तो मैंने �ाईंदयाल की तरर्फ देखा। आँखों में तो आँ�ू Pरे हुए थे—आह, �ंतोष का आँखों पर कोई ब� नहीं, लेकिकन चेहरे पर मदा�ना दृढ़ता और �मप�ण का रंग स्पq था। इ� दुख की बाढ़ और तूर्फानों मे Pी र्शान्तिन्त की नैया उ�के दिदल को Zूबने �े बचाये हुए थी।

इ� दृश्य ने मुझे चकिकत नहीं स्तश्किम्भत कर दिदया। �म्भावनाओं की �ीमाए ँकिकतनी ही व्यापक हों ऐ�ी हृदय-द्रावक ण्डि{कित में होर्श-हवा� और इत्मीनान को कायम रखना उन �ीमाओं �े परे है। लेकिकन इ� दृमिq �े �ाईंदयाल मानव नहीं, अकित-मानव था। मैंने रोते हुए कहा—Pाई�ाहब, अब �ंतोष की परीक्षा का अव�र है। उ�ने दृढ़ता �े उत्तर दिदया—हॉँ, यह कम� का र्फल है।

मैं एक बार किर्फर Pौंचक होकर उ�का मुंह ताकने लगा।

किकन �ाईंदयाल का यह तपश्किस्वयों जै�ा धैय� और ईश्वरेच्छा पर Pरो�ा अपनी आँखों �े देखने पर Pी मेरे दिदल में �ंदेह बाकी थे। मुमकिकन है, जब तक चोट ताजी है �ब्र का

बाँध कायम रहे। लेकिकन उ�की बुकिनयादें किहल गयी हैं, उ�में दरारें पड़ गई हैं। वह अब ज्यादा देर तक दुख और र्शोक की जहरों का मुकाबला नहीं कर �कता।

लेक्या �ं�ार की कोई दुघ�टना इतनी हृदयद्रावक, इतनी किनम�म, इतनी कठोर हो

�कता है! �ंतोष और दृढ़ता और धैय� और ईश्वर पर Pरो�ा यह �ब उ� आँधी के �मान घा�-रू्फ� �े ज्यादा नहीं। धार्मिमंक किवश्वा� तो क्या, अध्यात्म तक उ�के �ामने सि�र झुका देता है। उ�के झोंके आ{ा और किनष्ठा की जड़ें किहला देते हैं।

लेकिकन मेरा अनुमान गलत किनकला। �ाईंदयाल ने धीरज को हाथ �े न जाने दिदया। वह बदस्तूर जिजन्दगी के कामों में लग गया। दोस्तों की मुलाकातें और नदी के किकनारे की �ैर और तर्फरीह और मेलों की चहल-पहल, इन दिदलचश्किस्पयों में उ�के दिदल को खींचने की ताकत अब Pी बाकी थी। मैं उ�की एक-एक किक्रया को, एक-एक बात को गौर �े देखता और पढ़ता। मैंने दोस्ती के किनयम-कायदों को Pुलाकर उ�े उ� हालत में देखा जहॉँ उ�के किवचारों के सि�वा और कोई न था। लेकिकन उ� हालत में Pी उ�के चेहरे पर वही पुरूषोसिचत धैय� था और सिर्शकवे-सिर्शकायत का एक र्शब्द Pी उ�की जबान पर नहीं आया।

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�ी बीच मेरी छोटी लड़की चन्द्रमुखी किनमोकिनया की Pेंट चढ़ गयी। दिदन के धंधे �े रु्फर�त पाकर जब मैं घर पर आता और उ�े प्यार �े गोद में उठालेता तो मेरे हृदय को

जो आनन्द और आस्त्रित्मक र्शसिक्त मिमलती थी, उ�े र्शब्दों में नहीं व्यक्त कर �कता। उ�की अदाए ँसि�र्फ� दिदल को लुPानेवाली नहीं गम को Pुलानेवाली हैं। जिज� वक्त वह हुमककर मेरी गोद में आती तो मुझे तीनों लोक की �ंपभित्त मिमल जाती थी। उ�की र्शरारतें किकतनी मनमोहक थीं। अब हुक्के में मजा नहीं रहा, कोई सिचलम को किगरानेवाला नहीं! खाने में मजा नहीं आता, कोई थाली के पा� बैठा हुआ उ� पर हमला करनेवाला नहीं! मैं उ�की लार्श को गोद में सिलये किबलख-किबलखकर रो रहा था। यही जी चाहता था किक अपनी जिजन्दगी का खात्मा कर दँू। यकायक मैंने �ाईंदयाल को आते देखा। मैंने र्फौरन आँ�ू पोंछ Zाले और उ� नन्हीं-�ी जान को जमीन पर सिलटाकर बाहर किनकल आया। उ� धैय� और �ंतोष के देवता ने मेरी तरर्फ �ंवेदनर्शील की आँखों �े देखा और मेरे गले �े सिलपटकर रोने लगा। मैंने कPी उ�े इ� तरह चीखें मारकर रोते नहीं देखा। रोते-रोते उ�ी किहचकिकयॉँ बंध गयीं, बेचैनी �े बे�ुध और बेहार हो गया। यह वही आदमी है जिज�का इकलौता बेटा मरा और माथे पर बल नहीं आया। यह कायापलट क्यों?

� र्शोक पूण� घटना के कई दिदन बाद जबकिक दुखी दिदल �म्हलने लगा, एक रोज हम दोनों नदी की �ैर को गये। र्शाम का वक्त था। नदी कहीं �ुनहरी, कहीं नीली, कहीं

काली, किक�ी थके हुए मु�ाकिर्फर की तरह धीरे-धीरे बह रही थी। हम दूर जाकर एक टीले पर बैठ गये लेकिकन बातचीत करने को जी न चाहता था। नदी के मौन प्रवाह ने हमको Pी अपने किवचारों में Zुबो दिदया। नदी की लहरें किवचारों की लहरों को पैदा कर देती हैं। मुझे ऐ�ा मालूम हुआ किक प्यारी चन्द्रमुखी लहरों की गोद में बैठी मुस्करा रही है। मैं चौंक पड़ा ओर अपने आँ�ुओं को सिछपाने के सिलए नदी में मुंह धोने लगा। �ाईंदयाल ने कहा—Pाई�ाहब, दिदल को मजबूत करो। इ� तरह कुढ़ोगे तो जरूर बीमार हो जाओगे।

मैंने जवाब दिदया—ईश्वर ने जिजतना �ंयम तुम्हें दिदया है, उ�में �े थोड़ा-�ा मुझे Pी दे दो, मेरे दिदल में इतनी ताकत कहॉँ।

�ाईंदयाल मुस्कराकर मेरी तरर्फ ताकने लगे।मैंने उ�ी सि�लसि�ले में कहा—किकताबों में तो दृढ़ता और �ंतोष की बहुत-�ी

कहाकिनयॉँ पढ़ी हैं मगर �च मानों किक तुम जै�ा दृढ़, कदिठनाइयों में �ीधा खड़ा रहने वाला आदमी आज तक मेरी नजर �े नहीं गुजरा। तुम जानते हो किक मुझे मानव स्वPाव के अध्ययन का हमेर्शा �े र्शौक है लेकिकन मेरे अनुPव में तुम अपनी तरह के अकेले आदमी हो। मैं यह न मानँूगा किक तुम्हारे दिदल में दद� और घुलावट नहीं है। उ�े मैं अपनी आँखों �े देख चुका हँू। किर्फर इ� ज्ञाकिनयों जै�े �ंतोष और र्शान्तिन्त का रहस्य तुमने कहॉँ सिछपा रक्खा है? तुम्हें इ� �मय यह रहस्य मुझ�े कहना पडे़गा।

�ाईंदयाल कुछ �ोच-किवचार में पड़ गया और जमीन की तरर्फ ताकते हुए बोला—यह कोई रहस्य नहीं, मेरे कम� का र्फल है।

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यह वाक्य मैंने चौथी बार उ�की जबान �े �ुना और बोला—जिजन, कम� का र्फल ऐ�ा र्शसिक्तदायक है, उन कम� की मुझे Pी कुछ दीक्षा दो। मैं ऐ�े र्फलों �े क्यों वंसिचत रहँू।

�ाईंदयाल ने व्याथापूण� स्वर में कहा—ईश्वर न करे किक तुम ऐ�ा कम� करो और तुम्हारी जिजन्दगी पर उ�का काला दाग लगे। मैंने जो कुछ किकया है, व मुझे ऐ�ा लज्जाजनक और ऐ�ा घृभिणत मालूम होता है किक उ�की मुझे जो कुछ �जा मिमले, मैं उ�े खुर्शी के �ाथ झेलने को तैयार हँू। आह! मैंने एक ऐ�े पकिवत्र खानदान को, जहॉँ मेरा किवश्वा� और मेरी प्रकितष्ठा थी, अपनी वा�नाओं की गन्दगी में सिलथेड़ा और एक ऐ�े पकिवत्र हृदय को जिज�में मुहब्बत का दद� था, जो �ौन्दय�-वादिटका की एक अनोखी-नयी खिखली हुई कली थी, और �च्चाई थी, उ� पकिवत्र हृदय में मैंने पाप और किवश्वा�घात का बीज हमेर्शा के सिलएबो दिदया। यह पाप है जो मुझ�े हुआ है और उ�का पल्ला उन मु�ीबतों �े बहुत Pारी है जो मेरे ऊपर अब तक पड़ी हैं या आगे चलकर पZेंगी। कोई �जा, कोई दुख, कोई क्षकित उ�का प्रायभिश्चत नहीं कर �कती।

मैंने �पने में Pी न �ोचा था किक �ाईंदयाल अपने किवश्वा�ों में इतना दृढ़ है। पाप हर आदमी �े होते हैं, हमारा मानव जीवन पापों की एक लम्बी �ूची है, वह कौन-�ा दामन है जिज� पर यह काले दाग न हों। लेकिकन किकतने ऐ�े आदमी हैं जो अपने कम� की �जाओं को इ� तरह उदारतापूव�क मुस्कराते हुए झेलने के सिलए तैयार हों। हम आग में कूदते हैं लेकिकन जलने के सिलए तैयार नहीं होते।

मैं �ाईंदयाल को हमेर्शा इज्जत की किनगाह �े देखता हँू, इन बातों को �ुनकर मेरी नजरों में उ�की इज्जत कितगुनी हो गयी। एक मामूली दुकिनयादार आदमी के �ीने में एक र्फकीर का दिदल सिछपा हुआ था जिज�में ज्ञान की ज्योकित चमकती थी। मैंने उ�की तरर्फ श्र�ापूण� आँखों �े देखा और उ�के गले �े सिलपटकर बोला—�ाईंदयाल, अब तक मैं तुम्हें एक दृढ़ स्वPाव का आदमी �मझता था, लेकिकन आज मालूम हुआ किक तुम उन पकिवत्र आत्माओं में हो, जिजनका अश्किस्तत्व �ं�ार के सिलए वरदान है। तुम ईश्वर के �च्चे Pक्त हो और मैं तुम्हारे पैरों पर सि�र झुकाता हँू।

—उदू� ‘प्रेम पची�ी’ �े

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