तत्त्वार्थसत्र छठा अध्याय २ · या ग...

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  • तत्त्वार्थसूत्र छठा अध्याय (२)Presentation Created by: श्रीमतत सारिका जैन

  • ‡ अधिकिणं जीवाजीवााः।।७।‡अधिकिण जीव अाैि अजीवरुप है ॥७॥

    Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • अधिकिण (अािाि)

    जीव

    जीव की पयाथय ं

    अजीव

    अजीव की पयाथय ंPresentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • ‡ अाद्यं संिम्भ-समािम्भािम्भ-या ग-कृत-कारितानुमत-कषाय-ववश षैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतशु्चैकशाः।।८।।

    ‡ अादि का जीवाधिकिण संिंभ, समािंभ, अािंभ, मन, वचन, काय या ग, कृत, कारित, अनुमा िना अाैि कषाय ववश षा ं क द्वािा ३,३,३ अाैि ४ भ िा ं स एक-एक क सार् हा त हुए १०८ भ ि वाला है

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  • जीवाधिकिण

    संिंभ समािंभ अािंभ

    मन

    वचन

    काय

    कृत

    कारित अनुमा िना

    कषाय

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  • •प्रयत्न ववश ष (Planning)संिंभ • हहंसािी क सािना ंका एकतत्रत किना (acquiring)समािंभ •कायथ प्रािंभ कि ि ना (Starting )अािंभ •मन, वचन, काय की विया या ग हैया ग • स्वतंत्र रूप स अात्मा क द्वािा जा कायथ वकया जाता हैकृत•जा िसूिा ंक द्वािा किाया जाता हैकारित •कायथ किन वाल की मानस परिणामा ंकी स्वीकृतत अनुमत हैअनुमा िना •जा अात्मा का कसती हैकषाय Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • जीवाधिकिण क 108 भ ि

    3334 = 108

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  • भंग (12)‡ िा ि कृत काय संिम्भ‡ मान कृत काय संिम्भ‡ माया कृत काय संिम्भ‡ ला भ कृत काय संिम्भ‡ िा ि कारित काय संिम्भ‡ मान कारित काय संिम्भ‡ माया कारित काय संिम्भ‡ ला भ कारित काय संिम्भ

    ‡ िा ि अनुमा दित काय संिम्भ‡ मान अनुमा दित काय संिम्भ‡ माया अनुमा दित काय संिम्भ‡ ला भ अनुमा दित काय संिम्भ

    ‡ 12 3 3 = 108

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  • ववश ष भ ि‡108 4 = 432

    ‡(अनन्तानुबन्िी+ अप्रत्याख्यान +प्रत्याख्यान+संज्वलन )

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  • ‡तनवथतथना-तनक्ष प-संया ग-तनसगाथ हद्व-चतुद्वीथतत्र-भ िााः पिम्।।९।।

    ‡ तनवथतथना, तनक्ष प, संया ग अाैि तनसगथ क िमशाः िा , चाि,िा , तीन भ ि िसुि अजीवाधिकिण क हैं

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  • अजीवाधिकिण

    तनवथतथना तनक्ष प संया ग तनसगथ

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  • •जजसक द्वािा िचना की जाती हैतनवथतथना•वस्तु िखन का तनक्ष प कहत हैतनक्ष प•जा ममलाया जाता हैसंया ग •प्रवृत्ति का तनसगथ कहत हैतनसगथ

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  • तनवथतथना

    मूल गुण (अन्तिंग सािन)

    शिीिवचनमनप्राणअपान

    उिि गुण (बहहिंग सािन)

    काष्ठ कमथमचत्र कमथपुस्त कमथ

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  • तनवथतथना

    शिीिशिीि की असाविानता पूवथक प्रवृत्ति किन स शिीि हहंसा का उपकिण बन जाता है

    उपधि जीव बािा क कािण ए स छछद्र सहहत उपकिण बनाना

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  • तनक्ष प•वबना ि ख अप्रत्यव क्षक्षत

    •वबना परिमाजजथत (िषु्टता स )ि:ुप्रमृष्ट

    •भय, शीघ्रता क कािणसहसा

    •उपया ग िहहत कहीं भीअनाभा गPresentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • संया गभक्तपान

    ववरुद्ध जल अादि ममलाना

    उपकिण

    शीत का उष्ण, शुद्धका अशुद्ध स स्पशथ

    किानाPresentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • तनसगथ

    कायशिीि स

    कुच ष्टा अादि

    वचनिषु्ट वचन अादि

    मनमनम िषु्ट

    ववचाि अादि

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  • ८ कमा ों म ं प्रत्य क क अािव क कािण

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  • ज्ञानाविण अाैि िशाथनाविण कमथ क अािव क कािण

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  • ‡तत्प्रिा ष तनह्नव-मात्सयाथन्तिायासािना पघाता ज्ञानिशथनाविणया ाः।।१०।।

    ‡ज्ञान अाैि िशथन म ं वकया गया प्रिा ष, तनह्नव, मात्सयथ, अंतिाय, अासािन अाैि उपघात ज्ञानाविण अाैि िशाथनाविण कमथ क अािव क कािण हैं

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  • • वकसी ववद्वान की प्रशंसा ना सुहाना, ईष्याथ हा ना, हषथ नहीं हा नाप्रिा ष •जानत हुए बात का छछपाना तनह्नव• ि न या ग्य ज्ञान का भी या ग्य पात्र क मलय नहीं ि नामात्सयथ •ज्ञान का ववच्छ ि किनाअंतिाय• प्रशस्त ज्ञान का वचन अाैि काय स वजथन किनाअासािन• प्रशस्त ज्ञान का भी िषूण लगानाउपघात

    Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • उपघात अाैि अासािन म ं क्या अंति है?

    ‡ अासािना म ं ता ववद्यमान ज्ञान का ववनय, प्रकाशन अाैि गुण कीतथन अादि न किक अनािि वकया जाता है

    ‡ जबवक उपघात म ं ज्ञान का अज्ञान कहकि ज्ञान का ही नाश वकया जाता है

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  • Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

    • वकसी पिार्थ क अवला कन की प्रशंसा ना सुहाना, ईष्याथ हा ना, हषथ नहीं हा नाप्रिा ष

    •िशथन संबंिी पिार्थ का जानत हुए बात का छछपाना तनह्नव• वकसी बहान ममलना नहीं, िशथन नही ंि नामात्सयथ •िशथन म ं अंतिाय ड़ालनाअंतिाय•प्रशस्त िशथन का वचन अाैि काय स वजथन किनाअासािन•प्रशस्त िशथन का भी िषूण लगानाउपघात

  • िा ना ंक अािव क कािण एक क्या ं कह ?

    ‡ जैस सूयथ म ं प्रताप अाैि प्रकाश एक सार् िहत हैं‡ ए स ही ज्ञान अाैि िशथन का जब ववकास हा ता है ता एक

    सार् ही हा ता है

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  • असाता व िनीय क अािव क कािण

    ‡िाुःख-शा क-तापािन्िन-वि-परिि वनान्यात्म-पिा भय- स्र्ानान्यसद्व द्यस्य।।११।।

    ‡ अात्मस्र्, पिस्र्, अाैि उभय म ं हा न वाल िाुःख, शा क, ताप, अािन्िन, वि, परिि वन य असाता व िनीय कमथ क अािव क कािण हैं

    Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • • पीड़ ा लक्षण परिणाम िाुःख है | इष्ट ववया ग, अतनष्ट संया ग, तनषु्ठि वचन श्रवण अादि बाह्य सािना ं की अप क्षा स उत्पद्यमान पीड़ ा लक्षण परिणाम िाुःख है

    िाुःख• उपकािक का ववच्छ ि हा न पि बाि बाि ववचाि किक मचंता, ख ि, ववकलता स मानक्षसक ताप हा ना वह शा क हैशा क

    • अपवाि, तनंिा, अािा प अादि क तनममि स जा पश्चाताप, का प, ख ि, द्व ष हा ता है वह ताप हैताप

    Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • • मानक्षसक परिताप क कािण अंगववकाि पूवथक ववलाप, िंिन, रुिन, अश्रुपात किना अािंिन हैअािन्िन

    •अाय,ु इन्द्न्द्रयबल, श्वासा च्छवास अादि का ववया ग किना वि हैवि

    • संक्ल श रूप परिणामा ं क हा न पि गुणा ं का स्मिण अाैि प्रशंसा कित हुए अपन अाैि िसूि क उपकाि की अमभलाषा स करुणाजनक िा ना परिि वन है

    परिि वनPresentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • शा कादि िाुःखरूप ही हैं पि इन्ह ं अलग स क्या ं तनरुवपत वकया?

    ‡उत्पत्ति कािण अाैि अमभव्यमक्त पयाथया ंकी अप क्षा इनम ंपिस्पि मभन्नता है

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  • Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

    अािथध्यान अाैि िाैद्र ध्यान रूप परिणाम असाता व िनीय क कािण हैं

  • िखुादि जब स्वंय म ं वकय जात हैं

    तब अितत रूप परिणाम हैं,

    संक्ल श है अािथध्यान है

    िखुादि जब िसूि का वकय जात हैं

    तब िूि परिणाम है

    िाैद्र ध्यान हैPresentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

    क शलुन्चन अादि वियाए ंिाुःख उत्पन्न किन वाली हा न स इन्ह ं भी असाता व िनीय क अािव क कािण मानना चाहहय क्या?

  • िा िादि क कािण द्व षपूवथक हा न वाल स्व-पि अाैि उभय क िखुािी परिणाम पापिव क ह तु

    मान गए हैं

    स्व च्छा स अात्मववशुछद्ध क अर्थ वकय जान वाल तप अादि बंि क कािण नहीं मान गए हैं

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  • साता व िनीय क अािव क कािण‡भूत-व्रत्यनुकम्पा-िान सिागसंयमादिया गाः

    क्षान्द्न्ताः शाैचममतत सद्व द्यस्य।।१२।।

    ‡ भूत, व्रती अनुकम्पा, िान, सिागसयंम अादि, या ग, क्षान्द्न्त अाैि शाैच य साता व िनीय क अास्रव क कािण हैं

    Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • भूत •अायु अाैि नाम कमथ क उिय स 4 गततया ंम ं उत्पन्न हा न वाल प्राछणया ंका भूत कहत हैं

    व्रती •जा अहहंसादि व्रत िािण कित हैंPresentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • Presentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

    अनुग्रह स ियाद्रथ मचि वाल क िसूि की पीड़ ा का अपनी ही मानन काजा भाव है वह अनुकम्पा है

    अनुकम्पा

  • •समस्त संसािी प्राछणया ंपि िया का परिणाम हा नाभूत अनुकम्पा

    •अणुव्रततया ं अाैि महाव्रततया ंपि िया का परिणाम हा नाव्रती अनुकम्पा

    • तनज अाैि पि क उपकाि ह तु या ग्य वस्त ुका ि नािान

    •िाग सहहत संयमािीसिागसयंम

    •शुभ भावना पूवथक िा िादि कषाया ंकी तनवृत्तिक्षान्द्न्त

    •ला भ का त्याग शाैचPresentation Created by- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • संयामादि अर्ाथत्• एकि श तनजथिासंयमासंयम•कमा थिय का अात्मा अमभप्राय नहीं िहत हुए पितन्त्रता क कािण भा गा पभा ग का तनिा ि हा न पि शान्द्न्त पूवथक सहन किनाअकाम तनजथिा

    •यर्ार्थ प्रततपत्ति क अभाव स अज्ञानी का अग्नि म ं प्रव श, पंचाग्नि तप अादि बाल तप हैबाल तप

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  • Reference : तत्त्वार्थसतू्रजी , सवाथर्थक्षसछद्धजी, तत्त्वार्थमञ्जूषाजी

    Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra

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