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कालजयी दोह (िहनदी क शष किवयो खसरो, कबीर, तलसी, रसखान, रहीम, कशवदास,
िबहारीलाल व महावीर क दोह)
समपादक— सरजन
उतराचली सािहतय ससथान
बी-४/७९, पयरटन िवहार,वसनधरा एनकलव, िदलली –११००९६
USBN 06-2020-004-78
कालजयी दोह (Kaaljayi Dohe)
कॉपीराइट: समपादक सरजन (Edited by Suranjan)
अनय समसत िचत : सोबन िसह (Soban Singh)
समपरण िचत : किव चनद बरदाई, िहनदी सािहतयकार िचतावली स साभार।
२०२० पथम ससकरण
पकाशक: उतराचली सािहतय ससथान बी-४/७९, पयरटन िवहार,वसनधरा एनकलव, िदलली –११००९६
कीमत: अनमोल
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दो शबद
आदरणीय सरजन जी और म 2005 स ही काफी अचछ दोसत बन गए थ। हालािक मउनह गरदव ही मानता था कयोिक सािहतय क कत म िजतना अनभव उनक पास था।शायद ही इतना अनभवी कोई अनय विक मन अपन जीवन म दखा हो। व गद-पदम रचनाए करन वाल पबद सािहतयकार भी थ। 'कथा ससार' नामक तमािसक पितकािनकालन वाल कशल समपादक भी थ। बात उन िदनो की ह जब सरजन जी और मअचछी तरह पिरिचत हो गए थ। उनहोन मरी कहािनया, किवताय, गजल व दोह आिदपढ तो बोल, "गर तमहारी कहािनया तो पमचनद क टकर की ह और दोह तलसी,कबीर क बराबर।"
"लिकन म तो कहािनयो म मोहन राकश का पशसक ह और भिककाल ककिवयो का भक!" मन य कहा तो वो हसन लग।
"जानता ह।" िकताब क पन उलटत-पलटत हए बोल, "और मर िदमाग म एक-दोपलान चल रह ह।"
"कया?""तमहारी किवताय, कहािनया मन पढी ह। तम दोह, गजल और कहािनया
अचछी कहत हो! कयो न तमह इस कत म आग लान क िलए कछ िकताब पकािशत कीजाए। 'तीन पीिढया: तीन कथाकार।' कसा शीषरक रहगा?"
"शीषरक तो ठीक ह पर इसम होगा कया?""पमचनद, मोहन राकश और महावीर उतराचली की कहािनया।"
( 6 )
"कया बात कर रह ह, गरदव? लोग िहनदी सािहतय म तरह-तरह की बात करनलगग।"
"दसरी िकताब 'कालजयी दोह'। िजसम िहनदी क सात-आठ किवयो क साथतमहार दोह हो।" उनहोन मरी तरफ दखत हए कहा।
"आपन तो फरीदाबाद क शा'इर व किव अमर साहनी की दोहा िकताब को"दसरा कबीर" शीषरक स मगध पकाशन स पकािशत िकया ह। जबिक उनक दोहो ममाताए तक ठीक नही ह।"
"वो तो उनही का आगह था। वो मरी पितका 'कथा ससार' तमािसक को मददकरत रहत ह।" िफर मरी तरफ दखकर बोल, "जडना चाहोग, इन पोजकटस म!"
मन कहा सोचकर बताऊगा! और बात आई–गई हो गई। हालािक गरदवसरजन जी क काफी जोर दन पर म कहानी की िकताब क िलए तयार हआ। जो साल2007 म 'तीन पीिढया: तीन कथाकार' , क रप म पाठको क हाथो म आई। इसमपमचनद, मोहन राकश और महावीर उतराचली की चार-चार कहािनया थी। लिकनदोहो की बात उस वकत दबकर रह गयी। इसकी एक वजह रही कहानी की िकताब कोउतना अचछा िरसपॉनस न िमलना। िजतना की िमलना चािहए था। िफर उस वकत मरिगनती क ही दोह थ। िजनस म खद सतष नही था। इसिलए कालजयी दोहो की बातठणड बसत म चली गई। तीन पीिढया: तीन कथाकार की भिमका म सरजन जी न भीइन बाकी पिनडग पडी योजनाओ का कोई िजक नही िकया।
बाद क वषो म सरजन जी भी सािहतय स िवरक होन लग थ। अपनी पितिनिधकहानी 'अथर पराण' म मन एक जगह िजक िकया ह। ऐसा अकसर होता ह िक कमर काउिचत पािरतोिषक न िमलन पर, विक िवशष क मन म अकमरणयता घर कर जातीह। िनधरनता और ितस पर लकमी जी की अिधकतम रषता न मणीराम को भीकमरहीनता क पथ पर धकल िदया था। कछ इस कहानी क नायक मणीराम जसीिसथित हो गई थी सािहतय क कत म सरजन जी की भी। उनहोन दजरनभर स ऊपरगद-पद की िकताब िहनदी जगत को दी मगर िहनदी वालो न उनह हमशा उपिकत हीरखा। इसी वजह स वह एक शराबी म तबदील हो गए थ। जब दार उनको िजयादाचढ जाती थी तो तमाम सािहतयकारो को गाली दन लगत थ, जो अपन रसख क दमपर िहनदी िवभागो म मठाधीश बनकर बठ हए थ। सपिसद आलोचक नामवर िसह
( 7 )
जी को मन उनक कायरकम 'सरज का सातवा जनम' क िवमोचन सथल पर दखा था।उपिसथित दजर करवाई थी उनहोन, लिकन अपनी असवसथता का बहाना करक चल गएसरजन क पसतक िवमोचन समारोह म वो दो शबद न बोल। बड-बड सािहतयकारो कसाथ उनका उठना-बठना भी था। कई बार जब म उनक साथ गया तो मन कई बडसािहतयकारो क चरण सपशर कर उनका आशीवारद िलया। वो सब मसकराकर सरजन सहाथ िमलात थ और िनकल जात थ।
आदरणीय सरजन जी और म कई बार गिजयाबाद क दशी ठक क बाहर बठकरबात करत थ। वो मिदरा म अपन भीतर क सािहतयकार को डबो-डबोकर मार रह थ।कथाससार का एक अक उनहोन 'तीन पीिढया: तीन कथाकार' (अक 19; वषर 2009-10; कथा ससार का यह वषर 8-9 था) पर िनकला था। िजसम मर दोह भी उनहोन हरपष क टॉप पर लगवाए थ। य शायद उनक मन म कालजयी दोह न िनकाल पान कीछटपटाहट थी। मन पण कर िलया था िक िजस रोज मर पास कोई माधयम आया मउनकी य इचछा परी करगा। दभारगय दिखय, आज जब िकताब िनकाल रहा ह तो खदगरदव समपादकीय िलखन म असमथर! दिनया की भीड म वो कही खो गए! कमजोरयाददाशत क चलत वो एक रोज ऐसा गए िक सालभर स ऊपर हो गया ह, मगर वोघर वािपस नही आय। उनक बाल-बच भी उनकी राह ताकत-ताकत थक गए ह।
अब कछ बात दोहो की कर ल। गरदव का सपष आदश था िक दोह छनद कअनरप ही होन चािहय। चाह परान किव हो या म! अतः खसरो स लकर मझ तकिजतन भी किव हए। उनम माताओ की गलितयो को सधारा गया ह। दोह अपनपरमपरागत छनद क अनसार १३, ११ माताओ क चार सम चरणो पर आधािरत ह।इसम पतयक चरण म ११वी माता अिनवायर रप स लघ रहगी। इसकी को धयान मरखकर परान किवयो क अनक दोहो म बडी माताओ को लघ िकया गया तािक वहदोह क अनरप लग। इसम कोिशश यह की गई िक परान किवयो क दोहा दोष कोठीक करत समय उनका भावाथर न िबगड। कई जगह किवयो क नामो को भी लघमाता म करना पडा जस 'तलसी' को 'तलिस' िलखना पडा। रहीम को 'रहीमा' कबीरको 'कबीरा' करना पडा। िफर भी अनक दोहो म कछ दोष रह गए। िजनह ठीक करनाखाकसार क बस िक बात नही। उनह नए तरीक स िलखन का अथर था उनक मल दोहस छडछाड करना। जो सािहतयपिमयो को रास नही आता। अतः हमन उनह वसा ही
( 8 )
छोड िदया। भिवषय म 'कालजयी दोह' क िदतीय ससकरण म पथम ससकरण क दोषोको दर िकया जायगा। सरजन जी को मरा जो दोहा सबस िजयादा पसद था वो य —
गजल कह तो म असद, मझम बसत मीर दोहा जब कहन लग, मझम सनत कबीर
"पथवीराज रासो" जसा अिदतीय गनथ रचन वाल किव चनदबरदाई का य दोहािहनदी क आिदकाल स ही अजर-अमर ह और इस पसतक क मल समपादक सरजन जीकी जबान पर य दोहा हमशा रचा-बसा रहता था:—
चार बास चौबीस गज, अगल अष पमान ता ऊपर सलतान ह, मत चक चौहान
उनही का आगह था िक इस पसतक क समपरण पष पर किव चद बरदाई क िचत कोउपरोक दोह क साथ िदखाया जाय।
मीराबाई का एक दोहा पम स उपज गहर ददर को िकतनी सहजता स अिभविकदता ह। ऐसा दोहा शायद ही कही िमल और सनत कवियती मीराबाई का य दोहा भीगरदव सरजन जी को खब पसनद था:—
जो म ऐसा जानती, पीत िकय दःख होयनगर िढढोरा पीटती, पीत ना कीजो कोय
गरदव क इस अधर कायर को मन परा करन का बीडा उठाया ह। उनकी एकइचछा और थी िक म उनकी शष किवताओ का समपादन कर! दख गरदव की वोइचछा हिर कब परी करवायग!
— महावीर उतराचली
( 9 )
िवषय सची
किव पष सखया
(1) अमीर खसरो (1253 ई.—1325 ई.) 11 (2) सत कबीर (1398 ई.—1518 ई.) 17 (3) तलसीदास (1511 ई.—1623 ई.) 25 (4) रसखान (1548 ई.—1628 ई.) 36 (5) रहीम (1556 ई.—1627 ई.) 39 (6) कशवदास (1555 ई.—1617 ई.) 46 (7) िबहारीलाल (1595 ई.— 1663 ई.) 49 (8) महावीर उतराचली (जनम 1971 ई.) 58
••••
अमीर खसरो (1253 ई.—1325 ई.)
परा नाम अबल हसन यमीनदीन अमीर खसरो चौदहवी सदी क लगभग
िदलली सलतनत काल क एक महान इितहासकार, दरबारी, शा’इर, गायक,
सगीत कत म—गजल, खयाल, कववाली, रबाई, दोह, पहली, पिसद तराना,
अनक राग-रागिनया, कई वाद यतो क अिवषकारक, अनक भाषाओ क
जानकार, महान सफी सत िनजामदीन ओिलया क िपय िशषय, िजनह ईरानी
शायर हािफज िशराजी न “तितय-िहनद” नाम–सममान िदया था। अमीर
खसरो न अपन समय क गयारह सलतानो को तखतनशी होत दखा। उनहोन
सात सलतानो क दरबारो की शोभा बढाई थी। िजनम सलतान बलबन,
ककबाद, जलालदीन, अलाउदीन, मबारकशाह िखलजी व गयासदीन
तगलक थ। मधय एिशया की लाचन जाित क तकर सफदीन क पत अमीर
खसरो का जनम सन 1253ई. (652 िह.) म एटा उतर पदश क पिटयाली
नामक कसब म हआ था। लाचन जाित क तकर चगज खा क आकमणो स
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 11 )
पीिडत होकर बलबन (1266–1286 ई.) क राजयकाल म ‘’शरणाथी क रपम भारत म आ बस थ। खसरो की मा बलबन क यदमती इमादतल मलक कीपती तथा एक भारतीय मसलमान मिहला थी। अमीर खसरो पथम मिसलमकिव थ िजनहोन िहदी शबदो का खलकर पयोग िकया ह। वह पहल विक थिजनहोन िहदी, िहनदवी और फारसी म एक साथ िलखा। उनह खडी बोली कआिवषकार का शय िदया जाता ह। व अपनी पहिलयो और मकिरयो क िलएजान जात ह। सबस पहल उनही न अपनी भाषा क िलए िहनदवी का उललखिकया था। व फारसी क पमख किव भी थ। खसरो को िदलली सलतनत काआशय िमला हआ था। खसरो क गथो की सची बहत बडी ह।
खसरो क दोह
खसरो दिरया पम का, उलटी वा की धारजो उतरा सो डब गया, जो डबा सो पार // 1. //
गोरी सोव सज पर, मख पर डार कसचल खसरो घर आपन, साझ भयी चह दस // 2. //
रनी चढी रसल की, रग मौला हाथिजसक कपर रग िदए, धन धन वाक भाग // 3. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 12 )
खसरो बाजी पम की, म खल पी सगजीत गयी मोर िपया, हारी पी क सग // 4. //
चकवा चकवी दो जन, इन मत मारो कोयय मार करतार क, रन िबछोया होय // 5. //
खसरो ऐसी पीत कर, जस िहनद जोयपत पराए कारन, जल कोयला होय // 6. //
शयाम सत गोरी िलए, जनमत भई अनीतइक पल म िफर जात ह, जोगी काक मीत // 7. //
पखा होकर म डली, साती तरा चावमझ जलती का जनम, बीता लखन भाव // 8. //
नदी िकनार म खडी, पानी िझलिमल होयपी गोरी म सावरी, िकस िवध िमलना होय // 9. //
साजन य मत जािनयो, तोह िबछडत चनिदया जलत ह रात म, िजया जलत िबन रन // 10. //
रन िबना जग ह दखी, दखी चनद िबन रनतम िबन साजन म दखी, दखी दरस िबन नन // 11. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 13 )
खसरो पाती पम की, िबरला बाच कोयवद, करा, पोथी पढ, पम िबना का होय // 12. //
सतो की िनदा कर, पर नारी स हतव नर ऐस िमट गए, रणरही का खत // 13. //
‘खसरो’ दह सराय ह, कयो सोव सख-चनकच नगारा सास का, बाजत ह िदन-रन // 14. //
अगना तो परबत भयो, दहरी ह िवदसजा बाबल घर आपन, म चली िपया दस // 15. //
खसरो रन सहाग की, जागी पी क सगतन मरो मन ह िपया, दोउ भए इक रग // 16. //
दोहा पहिलया
माटी रौद चक धर, फर बारमबारचातर हो तो जान ल, मरी जात गवार // 17. //
उतर: कमहार
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 14 )
दो बालक इक नार क, दोनो एकिह रगइक िफर इक ठाढा रह, िफर भी दोनो सग // 18. //
उतर: चकी
आग-आग बिहना रह, पीछ-पीछ भाइदात िनकाल ह िपता, बरका ओढ माइ // 19. //
उतर: भटा
गोरी सनदर पातली, कहर काल रगगयारह दवर छोड कर, चली जठ क सग // 20. //
उतर: अहरह की दाल
एक रग ह ऊपरी, भीतर िचतीदारसो पयारी बात कर, िफकर अनोखी नार // 21. //
उतर: सपारी
बाल नच कपड फट मोती िलए उतारयह िबपदा कसी बनी, नगी कर दी नार // 22. //
उतर: भटा (छलली)
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 15 )
उलटबािसया, ढकोसल या अनमिलया
भार भजावन हम गए, पलल बाधी ऊनकता चरखा ल गयो, कात फटक चन // 23. //
भस चढी बा'बल पर, लप लप गलर खाय उतर उतर परमशरी, मठा िसरानो जाय // 24. //
खीर पकाई जतन स, चरखा िदया जलायआयो कतो खा गयो, बठी ढोल बजाय // 25. //
*और तब खसरो न कहा (ला पानी िपलाय)
•••
*पयास खसरो जब कए पर गए तो पानी भरन वाली मिहलाओ न उनकी बिद की परीका लत हएशतर म चार शबद िदए—'खीर, चरखा, कता, ढोल।' मिहलाओ न कहा, "पानी तभी िमलगा, पहलइन शबदो को जोड कर किवता म ढालो।" और तब खसरो न ततकाल य दोहा कहा और फलसवरपपानी िपया।
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 16 )
सत कबीर (1398 ई.—1518 ई.)
आपक अनय नाम भक कबीर व कबीरदास क रप म भी िहनदी सािहतय म
पिसद ह। 15वी सदी क वह रहसयवादी किव थ और व िहनदी सािहतय क
भिककालीन यग म जानाशयी-िनगरण शाखा की कावधारा क पवतरक थ।
इनकी रचनाओ न िहनदी पदश क भिक आदोलन को गहर पभािवत िकया।
उनकी वाणी िसकखो क धािमक गथ (गर गथ साहब) म भी दजर की गई ह।
कबीर पथ नामक धािमक समपदाय इनकी िशकाओ क अनयायी ह। उनक
परोकारो को कबीर िशषय क तौर पर जाना जाता ह। उनकी पमख रचनाय
बीजक, साखी गथ, कबीर गथावली और अनराग सागर ह। कबीर िनडर,
बहादर, समाज सधारक थ। उनहोन अपनी रचना आम लोगो की बोली म
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 17 )
रची। व िहनद व इसलाम धमर को न मानत हए, अजीवन धमर िनरपक रह।उनहोन सामाज म फली करीितयो, अधिवशास, कमरकाड की सवरत िनदा कीऔर सामािजक बराइयो की कडी आलोचना।
हालािक कबीर क जनम सथान (14वी–15वी शताबदी) क बार मिवदानो म मतभद ह परनत अिधकतर जनम काशी म ही मानत ह, िजसकीपिष सवय कबीर का यह कथन भी करता ह— “काशी म परगट भय,रामानद चताय" कबीर क गर क समबनध म पचिलत कथन ह िक कबीर कोउपयक गर की तलाश थी। वह वषणव सत आचायर रामानद को अपनाअपना गर बना िलया। रामाननद जी गगासान करन क िलय सीिढया उतररह थ िक तभी उनका पर कबीर क शरीर पर पड गया। उनक मख सततकाल ‘राम-राम’ शबद िनकल पडा। उसी राम को कबीर न दीका-मनतमान िलया और रामाननद जी को अपना गर सवीकार कर िलया।जीिवकोपाजरन क िलए कबीर जलाह का काम करत थ। कबीर की दढमानयता थी िक कमो क अनसार ही गित िमलती ह सथान िवशष क कारणनही। अपनी इस मानयता को िसद करन क िलए अत समय म वह मगहरचल गए; कयोिक लोगो की मानयता थी िक काशी म मरन पर सवगर औरमगहर म मरन पर नरक िमलता ह। मगहर म उनहोन अितम सास ली। आजभी वहा पर मजार व समाधी िसथत ह। कबीर की भाषा सधकडी एवपचमल िखचडी ह। इनकी भाषा म िहदी भाषा की सभी बोिलयो क शबदसिममिलत ह। राजसथानी, हरयाणवी, पजाबी, खडी बोली, अवधी,बजभाषा क शबदो की बहलता ह।
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 18 )
कबीर क दोह
बरा ज दखन म चला, बरा न िमिलया कोयजो िदल खोजा आपना, मझस बरा न कोय // 1. //
पोथी पिढ पिढ जग मआ, पिडत भया न कोयढाई आखर पम का, पढ स पिडत होय // 2. //
साध ऐसा चािहए, जसा सप सभायसार-सार को गिह रह, थोथा दइ उडाय // 3. //
ितनका कबह न िनिनदय, जो पावन तर होयकबह उडी आिखन पड, पीर घनरी होय // 4. //
धीर-धीर र मना, धीर सब कछ होयमाली सीच सौ घडा, ॠत आए फल होय // 5. //
माला फरत जग भया, िफरा न मन का फरकर का मनका डार द, मन का मनका फर // 6. //
जाित न पछो साध की, पछ लीिजय जानमोल करो तरवार का, पडा रहन दो मयान // 7. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 19 )
दोस पराए दिख किर, चला हसनत हसनतअपन याद न आवई, िजनका आिद न अत // 8. //
िजन खोजा ितन पाइया, गहर पानी पठम बपरा बडन डरा, रहा िकनार बठ // 9. //
बोली तो अनमोल ह, जो कोइ बोल जािनिहय तराज तौिल क, तब मख बाहर आिन // 10. //
अित का भला न बोलना, अित की भली न चपअित का भला न बरसना, अित की भली न धप // 11. //
िनदक िनयर रािखए, ऑगन कटी छवायिबन पानी, साबन िबना, िनमरल कर सभाय // 12. //
दलरभ मानष जनम ह, दह न बारमबारतरवर जयो पता झड, बहिर न लाग डार // 13. //
एक ही बार परिखय, ना वा बारमबारबाल तो ह िकरिकरी, जो छान सौ बार // 14. //
कबीरा कहा गरिबयो, काल गह कर कसन जान कहा मािरसी, क घर क परदस // 15. //
पानी करा बदबदा, अस मानस की जातएक िदना िछप जायगा, जयो तारा परभात // 16. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 20 )
हाड जल जय लाकडी, कस जल जय घाससब तन जलता दिख किर, भया कबीर उदास // 17. //
झठ सख को सख कह, मानत ह मन मोदखलक चबना काल का, कछ मह म कछ गोद // 18. //
ऐसा कोई ना िमल, हमको द उपदसभौ सागर म डबता, कर गिह काढ कस // 19. //
कबीर सो धन सचय, जो आग को होयसीस चढाए पोटली, लत न दखयो कोय // 20. //
माया मई न मन मआ, मर-मर गया सरीरआसा ितसना न मई, यो कह गए कबीर // 21. //
रात गवाई सोय क, िदवस गवाया खायहीरा जनम अमोल सा, कोडी बदल जाय // 22. //
बडा हआ तो कया हआ, जस पड खजरपछी को छाया नही, फल लाग अित दर // 23. //
हिरया जाण रखडा, उस पाणी का नहसका काठ न जानई, कबह बरसा मह // 24. //
िझरिमर- िझरिमर बरिसया, पाहन ऊपर महमाटी गिल सजल भई, पाहन बोही तह // 25. //
हीरा परख जौहरी, शबदिह परख साधकबीर परख साध को, ताका मता अगाध // 26. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 21 )
िझरिमर-िझरिमर बरिसया, पाहन ऊपर महमाटी गिल सजल भई, पाहन बोही तह // 27. //
मन मला तन ऊजला, बगला कपटी अगतासो तो कौआ भला, तन मन इक ही रग // 28. //
कबीर पम न चिकखया,चिकख ना िलया सावसन घर का पाहना, जय आया तय जाव // 29. //
मान, महातम, पम रस, गरवा तण गण नहए सबही अहला गया, जबही कहा कछ दह // 30. //
यह तन काचा कमभ ह, िलया िफर था साथढबका लागा फिटगा, कछ न आया हाथ // 31. //
म-म बडी बलाय ह, सक त िनकसी भािगकब लग राखौ ह सखी, रइ लपटी आिग // 32. //
िजिह घट पम न पीित रस, पिन रसना ना नामत नर या ससार म, उपजी भए बकाम // 33. //
लबा मारग दिर घर, िबकट पथ बह मारकहौ सतो कय पाइए, दलरभ हिर दीदार // 34. //
इस तन का दीवा करो, बाती मलय जीवलोही सीचौ तल जय, कब मख दखो पीव // 35. //
कबीर सीप समद की, रट िपयास िपयाससमदिह ितनका किर िगन, सवाित बद की आस // 36. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 22 )
सातो सबद ज बाजत, घिर घिर होत रागत मिदर खाली पर, बसन लाग काग // 37. //
कबीरा कहा गरिबयौ, ऊच दिख अवासकालिह परयौ भ लटना, ऊपिर जाम घास // 38. //
जामण मरण िबचािर किर, कड काम िनबािरिजिन पथ तझ चालणा, सोई पथ सवािर // 39. //
िबन रखवाल बािहरा, िचिडय खाया खतआधा परधा ऊबर, चती सक त चत // 40. //
रात गवाई सोय कर, िदवस गवायो खायहीरा जनम अमोल था, कौडी बदल जाय // 41. //
कबीर मिदर लाख का, जिडया हीर लािलिदवस चािर का पषणा, िबनस जायगा कािल // 42. //
कबीर यह तन जात ह, सक त लह बहोिरनग हाथ त गए, िजनक लाख करोिड // 43. //
ह तन तो सब बन भया, करमा भए कहािडआप आप क कािट ह, कह कबीर िबचािर // 44. //
म म मरी िजन कर, मरी सल िबनासमरी पग का पषणा, मरी गल की पास // 45. //
कबीर नाव जजररी, कड खवनहारहलक-हलक ितिर गए, बड ितिन सर भार // 46. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 23 )
हाड जल लकडी जल, जल जलावन हारकौितकहारा भी जल, कासो कर पकार // 47. //
ऊच कल कया जनिमया, करनी ऊच न होयसबरन कलस सरा भरा, साध िननद सोय // 48. //
जािन बिझ साचिह तज, कर झठ स नहताकी सगित रामजी, सिपन ही िजिन दह // 49. //
तरवर तास िबलिमबए, बारह मास फलतसीतल छाया गहर फल, पछी किल करत // 50. //
मन क हार हार ह, मन क जीत जीतकह कबीर हिर पाइए, मन ही की परतीत // 51. //
पम न बाडी उपज, पम न हाट िबकाइराजा परजा जिह रच, सीस दिह ल जाइ // 52. //
कबीर सोई पीर ह, जो जान पर पीरजो पर पीर न जानई, सो कािफर बपीर // 53. //
•••
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 24 )
तलसीदास (1511 ई.—1623 ई.)
िहदी सािहतय म भिककाल क महान किव िशरोमिण गोसवामी तलसीदास
राम भिक क चमकत सयर ह। िजनकी आभा बीतत वकत क साथ और
पकाशवान हई ह। इनह आिद काव रामायण क रचियता महिष वालमीिक
का कलयगी अवतार भी सवीकार िकया गया ह। "राम चिरत मानस" का
समपणर कथानक रामायण स िलया गया ह। जानकर आशयर होता ह और
हदय गवर स भर जाता ह िक महाकाव शीरामचिरतमानस को िवश क 100
सवरशष लोकिपय कावो म 46वा सथान पाप ह। महाकिव तलसीदास दारा
अवधी म रचा रामचिरतमानस लोक गनथ ह और समपणर भारतवषर म इस
बड भिकभाव स पढा जाता ह। अनक सपिसद किवयो की भाित इनका
जनम सथान भी िववािदत ह। कछ लोग मानत ह की इनका जनम सोरो
शकरकत (कासगज [एटा] उ.प. ) म हआ था। जबिक अनय िवदान इनका
जनम राजापर िजला बादा (िचतकट) म मानत ह। इनक अितिरक तीसर पक
क िवदान तलसीदास जी का जनमसथान राजापर को मानन क पक म ह।
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 25 )
उतर पदश क िचतकट िजला क अतगरत िसथत एक गाव राजापर ह।वहा क कमरकाणडी पकाणड पिणडत शी आतमाराम शकल एव हलसी क पतका नाम महाकिव गोसवामी तलसीदास था, िजनहोन शीरामचिरतमानसमहागथ की रचना की थी। नददास जी, तलसीदास जी क खास चचर भाईथ। नददास जी न भी अनक रचनाए ह। तलसीदास न वषर 1631 म चतमास क रामनवमी पर अयोधया म रामचिरतमानस को िलखना शर िकयाथा। रामचिरतमानस को तलसीदास न मागरशीषर महीन क िववाह पचमी(राम-सीता का िववाह) पर वषर 1633 म 2 साल, 7 महीन, और 26 िदनका समय लकर परा िकया। इसको परा करन क बाद तलसीदास वाराणसीआय और काशी क िवशनाथ मिदर म िशव–पावरती को महाकावरामचिरतमानस सनाया। तलसीदास जी की अनय रचनाए ह—दोहावली;किवतावली; गीतावली; कषणा गीतावली या कषणावली; िवनय पितका;बरव रामायण; पावरती मगल; जानकी मगल; रामालला नहछ; रामाजा पश;वरागय सदीपनी; हनमान चालीसा; सकटमोचन हनमानाषक; हनमानबाहक;तलसी सतसाई ह।
तलसी क दोह
दस काल करता करम, बचन िवचार िबहीनत सरतर तर दािरदी, सरसिर तीर मलीन // 1. //
तलसी उदम करम जग, जिह राम सडीिठहोइ सफल सो तािह सब, सनमख पभ तन पीिठ // 2. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 26 )
िमथया माहर सजनिह, खलिह गरल सम साचतलसी छअत पराइ जयो, पारद पावन आच // 3. //
जड चतन गन दोषमय, िबसव कीनह करतारसत हस गन गहिह पथ, पिरहिर बािर िबकार // 4. //
तलसी दखत अनभव, सनत न समझत नीचचपिर चपट दत िनत, कस गह कर मीच // 5. //
वचन वष तन स बन, सो िबगर पिरनामतलसी मन त जो बन, बनी बनाई राम // 6. //
साधन सगन धरम सगन, सदह सभय महीपतलसी ज अिभमान िबन, त ितभवन क दीप // 7. //
होत पात मिन वष धिर, ज न राम वन जािहमोर मरन राउर अयस, नप समझिह मन मािह // 8. //
राम नाम की लट ह, लट सक तो लटअतकाल पछतायगा, जब पाण जायग छट // 9. //
तलिस भरोस राम क, िनभरय हो क सोयअनहोनी होनी नही, होनी हो सो होय // 10. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 27 )
सत सग अपबगर कर, कामी भव कर पथकहिह सत किब कोिबदा, शित परान सदनथ // 11. //
का भाषा, का ससकती, पम चािहए साचकाम ज आव कामरी, का ल कर कमाच // 12. //
तलसी तोरत तीर तर, बक िहत हस िबडािरिवगत निलन अिल मिलन जल, सरसिरह बिढआिर // 13. //
सिचव बद गर तीिन जौ, िपय बोलिह भय आसराज धमर तन तीिन कर, होइ बिगही नास // 14. //
पभ तर तर किप डार पर, त िकय आप समानतलसी कह न राम स, सािहब सील िनधान // 15. //
तलसी जाक होयगी, अतर बािहर दीिठसो िक कपालिह दइगो, कवटपालिह पीिठ // 16. //
तलसी रामिह आप त, सवक की रिच मीिठसीतापित स सािहबिह, कस दीज पीिठ // 17. //
तलसी इस ससार म, भाित भाित क लोगसबस हस िमल बोिलए, नदी नाव सजोग // 18. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 28 )
तलिस साथी िवपित क, िवदा िवनय िववकसाहस सकित ससतय वत, राम भरोस एक // 19. //
िबप धन सर सत िहत, लीनह मनज अवतारिनज इचछा िनिमत तन, माया गन गो पार // 20. //
तलसी मीठ वचन त, सख उपज चह ओरवशीकरण यह मत ह, तिजय वचन कठोर // 21. //
सरनागत कह ज तजिह, िनज अनिहत अनमािनत नर पावर पापमय, ितिनह िबलोकित हािन // 22. //
राम बाम िदिस जानकी, लखन दािहनी ओरधयान सकल कलयानमय, सरतर तलसी तोर // 23. //
तलसी नर का कया बडा, समय बडा बलवानभीला लटी गोिपया, वो अजरन वो बान // 24. //
एक भरोसो एक बल, एक आस िवशासएक राम घनशयाम िहत, चातक तलसीदास // 25. //
कािमिह नािर िपआिर िजिम, लोिभिह िपय िजिम दामिनत हो िपय रघनाथ ितिम, लागह मोह राम // 26. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 29 )
दया धमर का मल ह, पाप मल अिभमानतलसी दया न छािडए, जब लग घट म पाण // 27. //
काम कोध मद लोभ की, जौ लौ मन म खानतौ लौ पिणडत मरखौ, तलसी एक समान // 28. //
राम नाम मिन दीप धर, जीह दहरी दार तलिस िभतर बाहर ह, जो चाहिस उिजयार // 29. //
तन गन धन मिहमा धरम, त िबन ज अिभयानतलसी िजअत िबडमबना, पिरनामह गत जान // 30. //
तलसी ज कीरित चहिह, पर की कीरित खोइितनक मह मिस लागह, िमिटिह न मिरह धोइ // 31. //
आवत ही हरष नही, ननन नही सनहतलसी तहा न जाइय, कचन बरस मह // 32. //
नीच िनचाई ना तज, सजनह क सगतलसी चदन िबटप बिस, िबन िबष भय न भजग // 33. //
तलसी ममता राम सो, समता सब ससारराग न रोष न दोष दख, दास भए भव पार // 34. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 30 )
राम दिर माया बढी, घटित जािन मन माहभरी हो रिब दिर लिख, िसर पर पगतर छाह // 35. //
नाम राम को अक ह, सब साधन ह सनअक गए कछ हाथ ना, अक रह दास गन // 36. //
तलसी इस ससार म, सबस िमिलयो धाइन जान किह रप म, नारायण िमल जाइ // 37. //
तलसी हिर अपमान त, होइ अकाज समाजराज करत रज िमल गए, सकल सकल करराज // 38. //
बहजान िबन नािर नर, कह न दसरी बातकौडी लागी लोभ बस, करिह िबप गर बात // 39. //
गोधन गजधन बािजधन, और रतन धन खानजब आवत सनतोष धन, सब धन धिर समान // 40. //
नाम रामी कलपतर, किलह कलया िनवासज िसमरत भयो भाग त, तलसी तलसीदास // 41. //
नम धमर आचार तप, गया न जगय जप दानभषज पिन कोिटनह निह, रोग जािह हिरजान // 42. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 31 )
फोरिह िसल लोढा सदन, लाग अदक पहारकायर, कर, कपत किल, घर घर सहस अहार // 43. //
तलसी अपन राम को, भजन करौ िनरसकअिद अनतग िनरबािहवो, जस नौ को अक // 44. //
राम राज राजत सकल, धरम िनरत नर नािरराग न रोष न दोष द:ख, सलभ पदारथ चािर // 45. //
नाम राम को अक ह, सब साधन ह सनअक गए कछ हाथ ना, अक रह दस गन // 46. //
िबना तज क परष की, सदा अवजा होयआिग बझ जयो राख की, आप छव सब कोय // 47. //
मिखया मख सो चािहऐ, खान पान कह एकपालइ पोषइ सकल अग, तलसी सिहत िववक // 48. //
भलो भलाइिह प लहइ, लहइ िनचाइिह नीचसधा सरािहअ अमरता, गरल सरािहअ मीच // 49. //
जथा सअजन अिज दग, साधक िसद सजानकौतक दखत सल बन, भतल भिर िनधान // 50. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 32 )
सत सरल िचत जगत िहत, जािन सभाउ सनहबालिबनय सिन किर कपा, राम चरन रित दह // 51. //
का बरनउ छिब आज की, भल िबराज नाथतलसी मसतक जब नव, धनष बान ल हाथ // 52. //
खिरया खरी कपर सब, उिचत न िपय ितय तयागक खिरया मो मिल क, अचल करौ अनराग // 53. //
गर सगित गर होइ सो, लघ सगित लघ नामचार पदारथ म गन, नरक दारह काम // 54. //
होइ भल क अनभलो, होइ दान क समहोइ कपत सपत क, जयो पावक म धम // 55. //
चल िनसान बजाइ सर, िनज िनज पर सख पाइकहत परसपर राम जस, पम न हदय समाइ // 56. //
कीनह सौच सब सहज सिच, सिरत पनीत नहाइपातिकया किर तात पिह, आए चािरउ भाइ // 57. //
िपत सरपर िसय राम बन, करन कहह मो राजएिह त जान मोर िहत, क आपन बड काज // 58. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 33 )
कारन त कारज किठन, होइ दोस निह मोरकिलस अिसथ त उपल त, लोह कराल कठोर // 59. //
गह गहीत पिन बात बस, तिह पिन बीिछ मारतिह िपआइअ बारनी, कहह काह उपचार // 60. //
िपय लािगिह अित सबिह मम, भिनित राम जस सगदार िबचार िक करइ को, बिदअ मलय पसग // 61. //
सयाम सरिभ पय िबसद अित, गनद करिह सब पानिगरा गामय िसय राम जस, गाविह सनिह सजान // 62. //
सिन समझिह जन मिदत मन, मजिह अित अनरागलहिह चािर फल अछत तन, साध समाज पयाग // 63. //
बदउ सत समान िचत, िहत अनिहत निह कोइअजिल गत सभ समन िजिम, सम सगध कर दोइ // 64. //
उदासीन अिर मीत िहत, सनत जरिह खल रीितजािन पािन जग जोिर जन, िबनती करइ सपीित // 65. //
बरषा िरत रघपित भगित, तलसी सािल सदासराम नाम बर बरन जग, सावन भादव मास // 66. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 34 )
सर समर करनी करिह, किह न जनाविह आपिबदमान रन पाइ िरप, कायर कथिह पताप // 67. //
मो सम दीन न दीन िहत, तम समान रघबीरअस िबचािर रघबस मिन, हरह िबषम भव भीर // 68. //
सहज सहद गर सवािम िसख, जो न करइ िसर मािनसो पिछताइ अघाइ उर, अविस होइ िहत हािन // 69. //
तलसी िकए कसग िथित, होिह दािहन बामकिह सिन सकिचअ सम खल, रत हिर सकर नाम // 70. //
•••
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 35 )
रसखान (1548 ई.—1628 ई.)
रसखान का वासतिवक नाम सयद इबािहम खान था। य परम कषण भक
मिसलम किव थ। अतः कषण रस म डबन क कारण, इनका नाम 'रसखान'
पडा। रसखान नाम का शािबदक अथर ह ‘रस की खान’। इनका जनम िपहानी,
भारत म 1548 ई. हआ था। िहनदी क कषण भक तथा रीितकालीन
रीितमक किवयो म रसखान का सथान सवोपिर ह। व िवटलनाथ क शािगदर
(िशषय) थ एव वललभ सपदाय क सिकय सदसय थ। इनक काव म समपणर
भिक व शगार रस दोनो की एक समान पधानता ह। रसखान मखयतः कषण
भक किव ह और वह भगवान शीकषण क सगण और िनगरण (िनराकार रप)
अथारत दोनो क पित शदावनत ह। किव क सगण कषण—व सारी लीलाए
करत ह; जो कषण लीला म पचिलत रही ह। यथा— भगवान की बाल
लीलाय, रास लीलाय, फाग लीलाय, कज लीलाय, पम वािटका, सजान
रसखान आिद। आशयर होता ह िक कस उनहोन अपन काव की सीिमत
पिरिध म इन असीिमत लीलाओ को बखबी बाधा ह?
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 36 )
रसखान (1548 ई.—1628 ई.)
रसखान का वासतिवक नाम सयद इबािहम खान था। य परम कषण भक
मिसलम किव थ। अतः कषण रस म डबन क कारण, इनका नाम 'रसखान'
पडा। रसखान नाम का शािबदक अथर ह ‘रस की खान’। इनका जनम िपहानी,
भारत म 1548 ई. हआ था। िहनदी क कषण भक तथा रीितकालीन
रीितमक किवयो म रसखान का सथान सवोपिर ह। व िवटलनाथ क शािगदर
(िशषय) थ एव वललभ सपदाय क सिकय सदसय थ। इनक काव म समपणर
भिक व शगार रस दोनो की एक समान पधानता ह। रसखान मखयतः कषण
भक किव ह और वह भगवान शीकषण क सगण और िनगरण (िनराकार रप)
अथारत दोनो क पित शदावनत ह। किव क सगण कषण—व सारी लीलाए
करत ह; जो कषण लीला म पचिलत रही ह। यथा— भगवान की बाल
लीलाय, रास लीलाय, फाग लीलाय, कज लीलाय, पम वािटका, सजान
रसखान आिद। आशयर होता ह िक कस उनहोन अपन काव की सीिमत
पिरिध म इन असीिमत लीलाओ को बखबी बाधा ह?
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 26 )
भारतनद न िजन मिसलम हिरभको क िलय कहा था, “इन मसलमानहिरजनन पर कोिटन िहनद वािरए” उनम रसखान सवोपिर ह। बोधा औरआलम भी इसी परमपरा म आत ह। अकबर का राजयकाल 1556–1605 ई.ह, य अकबर क समकालीन ह। रसखान का जनम सथान िपहानी जो कछलोगो क इस िदलली क समीप बतात ह। तो कछ िपहानी, उतरपदश कहरदोई िजल म मानत ह। माना जाता ह की इनकी मतय 1628 ई. मवनदावन म हई थी। जहा मथरा िजल क महाबन म इनकी समािध ह। यहभी सना गया ह िक, रसखान न भागवत का अनवाद फारसी और िहदी मिकया ह। रसखान क काव को पढ क जो रस िमलता ह। उसक आधार पर यमानना पडता ह िक रसखान जसा शीकषण का भक होना मिशकल ह। जयशी कषणा!
रसखान क दोह
पम अगम अनपम अिमत, सागर सिरस बखानजो आवत इिह िढग बहिर, जात नही रसखान // 1. //
दमपित सख अर िवषय रस, पजा िनषा धयानइन ह पर बखािनय, सद पम रसखान // 2. //
मोहन सनदर सयाम को, दखयो रप अपारिहय िजय ननिन म बसो, वह बज राजकमार // 3. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 37 )
ए सजनी लोनो लला, लहो नदो गहिचतयो मद मिसकाइ क, हरी सब सिध गह // 4. //
जिह िबन जान कछिह निह, जानयो जात िबसससोइ पम जिह जािनक, रिह न जात कछ सस // 5. //
पम फास म फिस मर, सोई िजय सदािहपम-मरम जान िबना, मिर को जीवत नािह // 6. //
नन दलालिन चौहट, मन मािनक िपय हाथरसखा ढोल बजाइ क, बचयौ िहय िजय साथ // 7. //
हिर क सब आधीन प, हरी पम आधीनयाही त हिर आप ही, यािह बडपपन दीन // 8. //
पम-पम सब को कहत, पम न जानत कोयजो जन जान पम तो, मर जगत कयो रोय // 9. //
भल वथा किर पिच मरौ, जान गरर बढायिबना पम फीको सब, कोिटन िकयो उपाय // 10. //
लोक-वद-मरजाद सब, लाज काज सदहदत बहाए पम किर, िविध िनषध को नह // 11. //
•••
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 38 )
रहीम (1556 ई.—1627 ई.)
परा नाम अबदल रहीम खान-ए-खाना या िसफर रहीम था। इनह अनक जगह
रहीमदास कहकर भी सबोिधत िकया गया ह। रहीम न अपन दोह म खद को
“रिहमन” कहकर भी समबोिधत िकया ह। इनका जनम लाहौर म हआ था।
रहीम की मा वतरमान हिरयाणा पात क मवाती राजपत जमाल खा की सदर
एव गणवती कनया सलताना बगम थी। रहीम क िपता बरम खा तरह वषीय
अकबर क िशकक तथा अिभभावक थ। बरम खा खान-ए-खाना की उपािध स
सममािनत थ। व हमाय क साढ और अतरग िमत थ। जब रहीम पाच साल
क ही थ, तब गजरात क पाटण नगर म सन 1561 ई. म इनक िपता बरम
खा की हतया कर दी गई। िपता की हतया होन क बाद रहीम का पालन-
पोषण मगल समाट अकबर न अपन धमर-पत की तरह िकया। रहीम गणो की
खान थ, बहभाषािवद, कलापमी, एव िवदान होन क साथ-साथ वह
मधयकाल म भिककालीन किव, सनापित, पशासक, आशयदाता, दानवीर
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 39 )
एव कटनीितज भी थ। व भारतीय ससकित क आराधक व सभी सपदायो कपित समान भाव क परम सतयिनष साधक थ। व एक ही साथ कलम औरतलवार चला सकत थ। व मानव पम क सतधार थ, य बात उनक सािहतय,िवशष कर दोहो म यत-तत-सवरत झलकती ह।
जनम स मिसलम होत हए भी िहद जीवन क अतमरन म बठकर रहीम नजो कछ रचा, उनक िवशाल हदय होन का पिरचय दती ह। िहद दवी-दवताओ, पवो, पतीको, मानयताओ व परपराओ का जहा भी रहीम क दाराउललख िकया गया ह, परी ईमानदारी क साथ िकया गया ह। आप जीवनभर िहद जीवन को भारतीय जीवन का यथाथर मानत रह। रहीम न दोह मरामायण, महाभारत, पराण व गीता जस गथो को उदाहरण क िलए चनाऔर लौिकक जीवन ववहार पक को उसक दारा समझन व समझान कापयत िकया, जो भारतीय परमपरा व ससकित की झलक को पश बखबीकरता ह। रहीम की सभी कितया “रहीम गथावली” म समािहत ह। रहीम कगथो म रहीम दोहावली या सतसई, बरव, मदनाषठक, राग पचाधयायी,नगर शोभा, नाियका भद, शगार, सोरठा, फटकर बरव, फटकर छद तथापद, फटकर किवतव, सवय, ससकत काव पिसद ह। इनक काव म नीित,भिक, पम और शगार का सनदर समावश िमलता ह। रहीम का दहात71 वषर की आय म सन 1627 ई. म हआ।
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 40 )
रहीम क दोह
जो बडन को लघ कह, निह रहीम घट जािहिगरधर मरलीधर कह, कछ दःख मानत नािह // 1. //
जो रहीम उतम पकित, का कर सकत कसगचनदन िवष वाप नही, िलपट रहत भजग // 2. //
रिहमन धागा पम का, मत तोरो चटकायटट प िफर ना जर, जर गाठ पिर जाय // 3. //
रिहमन दिख बडन को, लघ न दीिजए डारजहा काम आव सई, कहा कर तरवार // 4. //
समय पाय फल होत ह, समय पाय झर जातसदा रह निह एक सी, का रहीम पिछतात // 5. //
व रहीम नर धनय ह, पर उपकारी अगबाटन वार को लग, जयो महिद को रग // 6. //
िबगरी बात बन नही, लाख करो की कोयरिहमन फाट दध को, मथ न माखन होय // 7. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 41 )
रठ सजन मनाइय, जो रठ सौ बाररिहमन िफिर िफिर पोइए, टट मका हार // 8. //
जिस पर सो सिह रह, कह रहीम यह दहधरती ही पर परत ह, िसत घाम और मह // 9. //
खीर िसरा त कािट क, मिलयत लौन लगायरिहमन करए मखन को, चािहय यही सजाय // 10. //
रिहमन िनज मन की िबथा, मन ही राखो गोयसिन इठलह लोग सब, बाटी लह कोय // 11. //
िछमा बडन को चािहय, छोटन को उतपातकह रहीम हिर का घटौ, जो भग मारी लात // 12. //
खर, खन, खासी, खसी, बर, पीित, मदपानरिहमन दाब ना दब, जानत सकल जहान // 13. //
जो रहीम ओछो बढ, तौ अित ही इतरायपयाद सो फरजी भयो, टढो टढो जाय // 14. //
रिहमन पानी रािखय, िबन पानी सब सनपानी गय न ऊबर, मोती, मानष, चन // 15. //
ज सलग त बिझ गय, बझ तो सलग नािहरिहमन दाह पम क, बिझ बिझ क सलगािह // 16. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 42 )
रिहमन खोज ईख म, जहा रसिन की खािनजहा गाठ तह रस नही, यही पीित म हािन // 17. //
सबको सब कोऊ कर, क सलाम क रामिहत रहीम तब जािनय, जब अटक कछ काम // 18. //
रिहमन पीत न कीिजय, जस खीरा न कीनऊपर स िदल िमला, भीतर फाक तीन // 19. //
रिहमन मारग पम को, ममरत हीन मझावजो िडिगह तो िफर कह, निह धरन को पाव // 20. //
रिहमन िरस को छािड क, करो गरीबी भसमीठो बोलो न चलो, सब तमहारो दस // 21. //
रिहमन बात अगमय की, कहन-सनन की नािहजो जानत सो कहत निह, कहत जानत नािह // 22. //
अतर दाव लगी रह, धआ न पगट सोयक िजय जान आपनो, जा िसर बीती होय // 23. //
जहा गाठ तह रस नही, यह रहीम जग जोयमडप तर की गाठ म, गाठ-गाठ रस होय // 24. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 43 )
जाल पर जल जात बिह, तिज मीनन को मोहरिहमन मछरी नीर को, तउ ना छाडित छोह // 25. //
रिहमन पडा पम को, िनपट िसलिसली गलिबछलत पाव िपपीिलका, लोग लदावत बल // 26. //
रिहमन पीित सरािहय, िमल होत रग दनजयो जरदी हरदी तज, तज सफदी चन // 27. //
नात निह दिर भली, जो रहीम िजय जािनिनकट िनरादर होत ह, जयो गडही को पािन // 28. //
चिढबो मोम तरग पर, चिलब पावक मािहपम पथ ऐसो किठन, सब को िनबहत नािह // 29. //
रिहमन वहा न जाइय, जहा कपट को हतहम तन ढारत ढकली, सीचत अपनो खत //30.//
रिहमन सो ना कछ गन, जासो लागो ननसिह क सोच बसािहयो, गयो हाथ को चन //31.//
रीित पीित सबसो भली, बर न िहत िमत गोतरिहमन याही जनम की, बहिर न सगित होत //32.//
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 44 )
वह पीित निह रीित वह, नही पािछलो हतघटत घटत रिहमन घट, जयो कर लीनह रत //33.//
यह न रहीम सरािहए, लन दन की पीितपानन बाजी रािखए, हार होय क जीित //34.//
दादर मोर िकसान मन, लगयौ रह धन मािहप रहीम चातक रटिन, सरवर का को नािह //35.//
मानो कागद की गडी, चढी स पम अकाससरत दर िचत खचई, आइ रह उर पास //36.//
िबरह िवथा कोई कह, समझ कछ ना तािहवाक जोबन रप की, अकथ कथा कछ आिह //37.//
•••
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 45 )
कशवदास (1555 ई.—1617 ई.)
आचायर कशवदास िम शा का जनम 1555 ई. म ओरछा म हआ था। वसनाढय बाहण थ। उनक िपता का नाम काशीनाथ था। ओरछा कराजदरबार म उनक पिरवार का बडा मान था। कशवदास सवय ओरछा नरशमहाराज रामिसह क भाई इनदजीत िसह क दरबारी किव, मनती और गर थ।इनदजीत िसह की ओर स इनह इकीस गाव िमल हए थ। व आतमसममान कसाथ िवलासमय जीवन वतीत करत थ। कशवदास ससकत क उदट िवदानथ। उनक कल म भी ससकत का ही पचार था। नौकर-चाकर भी ससकतबोलत थ। उनक कल म भी ससकत छोड िहदी भाषा म किवता करना उनहकछ अपमानजनक-सा लगा—
भाषा बोल न जानही, िजनक कल क दासितन भाषा किवता करी, जडमित कशव दास
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 46 )
सवत 1608 ई. क लगभग जहागीर न ओरछा का राजय वीर िसह दवको द िदया। कशव कछ समय तक वीर िसह क दरबार म रह, िफर गगातटपर चल गए और वही रहन लग। 1617 ई. म उनका दहावसान हो गया।
आचायर रामचद शकल क शबदो म—
सर सर, तलसी शिश, उडगन कशवदासअब क किव खदोत सम, जह तह करत पकाश
आचायर कहत ह, "सरदास सयर, तलसीदास चनदमा कशवदास तार कसमान ह / और आज कल क किव जगन की तरह यहा वहा पकाश कर रह ह|कशवदास रिचत पामािणक गथ नौ ह:— रिसकिपया, किविपया, नखिशख,छदमाला, रामचिदका, वीरिसहदव चिरत, रतनबावनी, िवजानगीता औरजहागीर जसचिदका।
कशवदास क दोह
छनद िवरोधी पग सन, नगन जो भषण हीनमतक कहाव अथर िबन, कशव सनह पवीन // 1. //
भाषा बोिल न जानही, िजलक कल क दासभाषा किव भो मनदमित, तिह कल कशवदास // 2. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 47 )
जदिप सजाित सलचछनी, सबरन सरस सवतभषण िबन न िवराजई, किवती विनता िमत // 3. //
कौन क सत बािल क, कौन बािल न जािनय
तमह यो काख चािप जो, सागर नहात बखिनय // 4. //
उतम पद किव गग क, किवता को बलवीरकशव अथर गभीर को, सर तीन गन धीर // 5. //
कशव कसिन अिस करी, बिरह जस न करािहचदवदन मगलोचनी बाबा किह किह जािह // 6. //
गद करउ म खल की, हर-िगिर कशोदाससीस चढाए आपन, कमल समान सहास // 7. //
िवषमय यह गोदावरी, अमतन को फल दितकशव जीवन हार को, दख अशष हर लित // 8. //
िरपिह मािर सहािरदल, यम त लह छडायलविह िमल हो दिखहो, माता तर पाय // 9. //
शी पर म बन मधय ह, त मग करी अनीितकिह मदरी अब ितयन की, को किर ह परतीित // 10. //
•••
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 48 )
िबहारीलाल (1595 ई.— 1663 ई.)
िबहारीलाल का जनम गवािलयर म हआ। व जाित क माथर चौब (चतवदी)
थ। उनक िपता का नाम कशवराय था। जब िबहारी 8 वषर क थ तब इनक
िपता इनह ओरछा ल आय तथा उनका बचपन बदलखड म बीता। इनक गर
नरहिरदास थ और यवावसथा ससराल मथरा म वतीत हई। जयपर-नरश
सवाई राजा जयिसह अपनी नयी रानी क पम म इतन डब रहत थ िक व
महल स बाहर भी नही िनकलत थ और राज-काज की ओर कोई धयान नही
दत थ। मती आिद लोग इसस बड िचितत थ, िकत राजा स कछ कहन को
शिक िकसी म न थी। िबहारी न यह कायर अपन ऊपर िलया। उनहोन
िनमिलिखत दोहा िकसी पकार राजा क पास पहचाया—
निह पराग निह मधर मध, निह िवकास यिह काल
अली कली ही सौ बधयो, आग कौन हवाल
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 49 )
इस दोह न राजा पर मत जसा कायर िकया। व रानी क पम-पाश समक होकर पनः अपना राज-काज सभालन लग। व िबहारी की कावकशलता स इतन पभािवत हए िक उनहोन िबहारी स और भी दोह रचन किलए कहा और पित दोह पर एक सवणर मदा दन का वचन िदया। िबहारीजयपर नरश क दरबार म रहकर काव-रचना करन लग, वहा उनह पयारपधन और यश िमला। िबहारी की एकमात रचना सतसई (सपशती) ह। यहमकक काव ह। इसम 719 दोह सकिलत ह। सतसई को तीन मखय भागो मिवभक कर सकत ह- नीित िवषयक, भिक और अधयातम भावपरक, तथा ।शगारपरक। इनम स शगारातमक भाग अिधक ह। कला-चमतकार सवरतचातयर क साथ पाप होता ह।
िबहारीलाल क दोह
सोहत सग समान को, इह कहत सब लोगपन पीक ओठन बन, कजरा ननन जोग // 1. //
इक भीज चहल पर, बड बह हजारिकतो न औगन जग करत, न व छडती बार // 2. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 50 )
गोर मख प ितल बनयो, तािह करौ परनाममानो चद िबछाइक, पौढ सालीगाम // 3. //
नीकी लािग अनाकनी, फीकी पिर गोहािरतजयो मनो तारन िबरद, बारक बारिन तािर // 4. //
कब को टरत दीन हव, होत न सयाम सहायतम ह लागी जगत गर, जगनायक जग बाय // 5. //
सोहत ओढ पीत पट, सयाम, सलौन गातमनौ नीलमिन सल पर, आतप परयौ पभात // 6. //
बतरस लालच लाल की, मरली धरी लकाइसौह कर भौहन हस, दन कह निट जाइ // 7. //
जपमाला, छाप, ितलक, सर न एकौ काममन-काच नाच बथा, साच राच राम // 8. //
रच न लिखयित पिहिर यौ, कचन-स तन बालकिभलान जानी पर, उर चमपक की माल // 9. //
िमिल चदन बदी रही, गोर मख न लखाइजयो-जयो मद लाली चढ, तयो-तयो उभरत जाइ // 10. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 51 )
अजौ तरौना ही रहो, सित सवत इक अगनाक बास बसर लहयो, बिस मकतन क सग // 11. //
कहत नटत रीझत िखझत, िमलत िखलत लिजयातभर भौन म करत ह, ननन ही सो बात // 12. //
बहिक न इिह बिहनापली, जब तक बार िवनासबच न बडी सबील ह, चील घोसला मास // 13. //
दर भजत पभ पीिठ द, गन-िवसतारन कालपगटत िनगरन िनकट रिह, चग रग भपाल // 14. //
बज भाषा बरनी सब, किववर बिद िवशालसब की भषण सतसरइ, रची िबहारी लाल // 15. //
बस बराई जास तन, ताही को सनमानभलौ-भलौ किह छोिडय, खोट गह जप दान // 16. //
ओठ उच हासी भरी, दग भौहन की चालमो मन कहा न पी िलय, िपयत तमाक लाल // 17. //
भाविर अनभाविर भर, करौ कोिर बकवादअपनी-अपनी भाित कौ, छट न सहज सवाद // 18. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 52 )
कनक कनक त सौगनौ, मादकता अिधकाइउिह खाए बौराइ इिह, पाऐ ही बौराइ // 19. //
अर हस या नगर म, जयो आप िबचािरकागिन सौ िजन पीित किर, कोिकल दई िबडािर // 20. //
नासा मोरी नचाइ दग, करी काका सौहकाट सी कसकत वह, गाडी कटीली भौह // 21. //
छला छबील लाल को, नवल नह लिह नािरचमित चाहित लाय उर, पिहरित धरित उतािर // 22. //
रप सधा-आसव छकयो, आसव िपयतब ननपयाल ओठ, िपया बदन, रहो लगाय नन // 23. //
सोनजही सी जगमगी, अग-अग जोवन जोितसरग कसभी चनरी, दरग दहदित होित // 24. //
भषन भार सभािरह, कयो यह तन सकमारसध पाय न परत ह, सोभा ही क भार // 25. //
मरी भववाधा हरौ, राधा नागिर सोयजा तन की झाई पर, सयाम हिरत दित होय // 26. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 53 )
व न इहा नागर भल, िजन आदर तौ आबफलयो अनफलयो भलो, गवई गाव गलाब // 27. //
सनी पिथक मह माह िनिस, लव चल विह गामिबन पछ, िबन ही कह, जरित िबचारी बाम // 28. //
कोिट जतन कोऊ कर, पर न पकितिह बीचनल बल जल ऊचो चढ, तऊ नीच को नीच // 29. //
कर ल सिघ, सरािह क, सब रह धिर मौनगधी गध गलाब को, गवई गाहक कौन // 30. //
किर फलल को आचमन, मीठो कहत सरािहर गधी मितमद त, इतर िदखावत कािह // 31. //
म ही बौरी िवरह बस, क बौरो सब गावकहा जािन य कहत ह, सिसिह सीतकर नाव // 32. //
इन दिखया अिखयान, कौ सख िसरजयौई नािहदख बन न दखत, अनदख अकलािह // 33. //
चटक न छाडत घटत ह, सजन नह गभीरफीको फर न वर फट, रगयौ चोल रग चीर // 34. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 54 )
इित आवत चली जात उत, चली छःसातक हाथचढी िहडोर सी रह, लगी उसासन साथ // 35. //
औधाई सीसी सलिख, िबरह िवथा िवलसातबीचिह सिख गलाब गो, छीटो छयो न गात // 36. //
दग उरझत, टटत कटम, जरत चतर-िचत पीितपिरित गािठ दरजन-िहय, दई नई यह रीित // 37. //
िलखन बिठ जाकी सबी गिह गिह गरब गररभए न कत जगत क, चतर िचतर कर // 38. //
िगिर त ऊच रिसक-मन बढ जहा हजारबह सदा पस नरन कौ पम-पयोिध पगार // 39. //
सवारथ सकत न, शम वथा,दिख िवहग िवचािरबाज पराय पािन पिर, त पिछन न मािर // 40. //
बिठ रही अित सघन बन, पिठ सदन तन माहदिख दपहरी जठ की छाहौ चाहित छाह // 41. //
जस अपजस दखत नही दखत सावल गातकहा करौ, लालच-भर चपल नन चिल जात // 42. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 55 )
तो पर वारौ उरबसी, सिन रािधक सजानत मोहन क उर बसी, हव उरबसी समान // 43. //
कहा कह बाकी दसा, हिर पानन क ईसिवरह-जवाल जिरबो लख, मिरबौ भई असीस // 44. //
घर-घर डोलत दीन हव, जन-जन जाचत जाइिदय लोभ-चसमा चखन, लघ पिन बडौ लखाइ // 45. //
कोऊ कोिरक सगहौ, कोऊ लाख हजारमो सपित जदपित सदा, िवपित-िबदारनहार // 46. //
पता ही ितिथ पाइय, वा घर क चह पासिनत पित पनयौई रह, आनन-ओप-उजास // 47. //
या अनरागी िचत की, गित समझ निह कोइजयौ-जयौ बड सयाम रग, तयौ-तयौ उजल होइ // 48. //
अग-अग नग जगमगत, दीपिसखा सी दहिदया बढाए ह रह, बडौ उजयारौ गह // 49. //
पगट भए िदजराज कल, सबस बस बज आइमर हरौ कलस सब, कसव कसवराइ // 50. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 56 )
नािहन य पावक पबल, लऐ चलित चह पासमानो िबरह बसत क, गीषम लत उसास // 51. //
इन दिखया अिखयान कौ, सख िसरजोई नािहदखत बन न दखत, िबन दख अकलािह // 52. //
अधर धरत हिर क परत, ओठ, दीठ, पट जोितहिरत बास की बासरी, इद धनष दित होित // 53. //
बामा भामा कािमनी, किह बोल पानसपयारी कहत लजात नही, पावस चलत िबदस // 54. //
•••
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 57 )
महावीर उतराचली (जनम 1971 ई.)
24 जलाई 1971 ई. को िदलली म जनम महावीर उतराचली बहमखीपितभा क धनी ह। गद-पद म िनरनतर सािहतय सजन आपकी खबी ह। दोहोम एक िवशष पहचान "रामभक िशव" क आधयाितमक दोहो स िमली। साथही आपक दोहा पहली और वतरमान समसत िवषयो पर दोह कहना आपकीिवशषता ह। पद म गीत-गजल, छनदमक किवता, दोह, जनक छनद,कणडिलया, हाइक आिद। कहानी, लघकथा, आलख आिद। पत-पितकाओ,िविभन सकलनो, िवशषाको म पकािशत। िहनदी-उदर की महतवपणरवबसाइटस किवताकोश, गदकोश; पितिलिप; सवगरिवभा; सािहतयपीिडया;रचनाकार; जय िवजय; जखीरा; रखता आिद-आिद पर रचनाए पकािशत।
सरजन क साथ 'कथा ससार' (तमािसक, गािजयाबाद) म बतौरउपसपादक कायर करत रह। सपिसद किव रमश पसन व डॉ. अनप िसह जीक साथ 'बलनदपभा' (तमािसक, बलनदशहर) म बतौर सािहतय सहभागी रह।उतराचली सािहतय ससथान क िनदशक रह। यहा किव क 'रामभक िशव'नामक पसतक म स 108 दोह िलए गए ह। इस पसतक क आरमभ म उनकिपताशी िशव जी की सिकप जीवनी भी ह। जो तलसीदास दारा रिचत'रामचिरतमानस' क परम पशसक थ। अतः िपताशी की भिक स उपज'तलसी अनभवो' को आधार बनाकर किव न य दोह रच।
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 58 )
महावीर उतराचली (जनम 1971 ई.)
24 जलाई 1971 ई. को िदलली म जनम महावीर उतराचली बहमखीपितभा क धनी ह। गद-पद म िनरनतर सािहतय सजन आपकी खबी ह। दोहोम एक िवशष पहचान "रामभक िशव" क आधयाितमक दोहो स िमली। साथही आपक दोहा पहली और वतरमान समसत िवषयो पर दोह कहना आपकीिवशषता ह। पद म गीत-गजल, छनदमक किवता, दोह, जनक छनद,कणडिलया, हाइक आिद। कहानी, लघकथा, आलख आिद। पत-पितकाओ,िविभन सकलनो, िवशषाको म पकािशत। िहनदी-उदर की महतवपणरवबसाइटस किवताकोश, गदकोश; पितिलिप; सवगरिवभा; सािहतयपीिडया;रचनाकार; जय िवजय; जखीरा; रखता आिद-आिद पर रचनाए पकािशत।
सरजन क साथ 'कथा ससार' (तमािसक, गािजयाबाद) म बतौरउपसपादक कायर करत रह। सपिसद किव रमश पसन व डॉ. अनप िसह जीक साथ 'बलनदपभा' (तमािसक, बलनदशहर) म बतौर सािहतय सहभागी रह।उतराचली सािहतय ससथान क िनदशक रह। यहा किव क 'रामभक िशव'नामक पसतक म स 108 दोह िलए गए ह। इस पसतक क आरमभ म उनकिपताशी िशव जी की सिकप जीवनी भी ह। जो तलसीदास दारा रिचत'रामचिरतमानस' क परम पशसक थ। अतः िपताशी की भिक स उपज'तलसी अनभवो' को आधार बनाकर किव न य दोह रच।
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 48 )
महावीर क दोह
// शभ आरमभ "रामभक िशव " दोहा छनद //
रामभक िशव जी बड, जपत आठो यामजनम वह िशवराित को, पाया य िशव नाम // 1. //
वषर रहा ‘अडतीस’ वह, िशवराित महापवरपर काणडी गाव म, ‘िशव’ आय तो गवर // 2. //
दह जाय तक थाम ल, राम नाम की डोरफल तीनो लोक तक, इस डोरी क छोर // 3. //
भको म ह किव अमर, सवामी तलसीदास‘रामचिरत मानस’ रचा, राम भक न खास // 4. //
राम-कषण क काज पर, रीझ सकल जहानदोनो हिर क नाम ह, दोनो रप महान // 5. //
छट गई मन की लगन, कहा िमलग रामलोभ-मोह म डब कर, बना रह बस दाम // 6. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 59 )
सोत-जाग सब जगह, याद रहा य नामखद को जाऊ भल म, भल कस राम // 7. //
पिरजनो सग कीिजय, चचार पभ शीरामपम बढगा आपसी, बनग सभी काम // 8. //
जग म सब ह सवाथरवश, िसवाय पभ का नामयही ह मनोकामना, िजवहा पर हो राम // 9. //
राम चल वनवास को, दशरथ न दी जानपछताई तब ककयी, चर हआ अिभमान // 10. //
राजा दशरथ क यहा, हए राम अवतारकौशलया मा धनय ह, िकया जगत उदार // 11. //
मख म िजनक राम ह, ह शष वही लोगपाप कट, िनशिदन जप, दर रह सब रोग // 12. //
अनधकार िमटन लगा, घट म उपजा जानराम रसायन पास तो, पास सभी िवजान // 13. //
िसयाराम वो नाव ह, कर द जो उदारभवसागर म इस तरह, लग जाय त पार // 14. //
िजवहा म यिद राम ह, और शदा अपारल जायगा पार भी, मखरपी यह दार // 15. //
जीवन क हर यद म, सग खड ह रामदःख स नही हताश जो, पाए वो सख धाम // 16. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 60 )
राम नाम ह कलपतर, मन क िमल पदाथरआप ही मनोकामना, पणर कर िसदाथर // 17. //
तलसी समान पजय ह, सवक तलसीदासपरम भक ‘िशव’ आपका, रखो मझ भी पास // 18. //
जो भक महादव का, खाय धतरा-भागम तो सवक राम का, रामचिरत की माग // 19. //
नशामक जीवन िजया, िकया ना धमपानपरा जीवन राम धन, िकया यही गणगान // 20. //
छल जाय अिधकाश ही, ह िवष सनदर वशसवणर मग स हरी िसया, सनदर रप कलश // 21. //
जान गया सब वद का, दख िसया का रपरावण मरख बन गया, िवष ह नार सवरप // 22. //
मन स अपन तयाग दो, काम कोध मद लोभहोगी असीम शािनत तब, िमट जायगा कोभ // 23. //
जानी मखर समान ह, जीता ना यिद कामहो मनवा िसथर-शानत भी, अगर जपोग राम // 24. //
अनभव बढी आख का, धमर-कमर क कामजपत रिहय रात िदन, राम-राम अिवराम // 25. //
दःख-सःख म जो िसथर रह, समझ एक समानमहावीर किवराय वह, मानव ह िवदान // 26. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 61 )
धीरज धारण कीिजय, सवोतम यह बातराम-नाम की ओढनी, ओढ रिहय तात // 27. //
जीवन क हर यद को, जीतत धयरवानसकट म ही होत ह, योदा की पहचान // 28. //
राजपाठ तज वन गए, धनय-धनय शीरामतयागी जीवन आपका, कालजयी य नाम // 29. //
राजभवन या वनगमन, दत यह सनदशसवोतम हर हाल म, धमर-कमर आदश // 30. //
टट धन को दख कर, कोध म परशरामऐ मढ जनक सच बता, िकसका ह यह काम // 31. //
धनवा तोडा कौन य, फरसा दख बाटउसकी इक ही वार म, खडी करगा खाट // 32. //
शरवीर की वीरता, िदखलाय रणभिमकायर डीग हाकत, कागजी मयान चिम // 33. //
मन म गहर छदत, लखन लाल क बोलपरशराम अब कया कह, धयर गया ह डोल // 34. //
शानत तभी हो कोध अब, पतयचा को खीचराम सभी क सामन, भरी सभा क बीच // 35. //
पतयचा जब खीच दी, िदए सभी आशीषहाथ जोड बोल परश, धनय-धनय जगदीश // 36. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 62 )
िसया सवयमवर दखकर, आनिनदत सब लोगधम धाम बारात म, खात छपपन भोग // 37. //
िहत चाह जो आपका, मानो उसकी बातसबस बढकर िमत वह, समझो उसको तात // 38. //
दर रहो उस पनथ स, उलटी द जो सीखराम भिक अपनाइय, य सवोतम भीख // 39. //
यिद मनती लोभी बडा, कर राज का नाशऔर वद भी लालची, तब समझ सवरनाश // 40. //
राम नाम अपनाइय, लालच खद िमट जायसब सकट िमटत वहा, जीवन म सख छाय // 41. //
मीठी वाणी बोल कर, मन मोह हर कोयलिकन मनम िवष भरा, िहत न िकसीका होय // 42. //
राम नाम ही बोिलय, िहत सबका ही होयराम नाम ह वो सधा, िजसका तोड न कोय // 43. //
पाप यही सबस बडा, शरणागत का तयागदया सभी म शष ह, जीवन का यह राग // 44. //
राम नाम स सीिखए, नीित-पीित अनरागिवभीषण शत नाथ का, िफर भी िकया न तयाग // 45. //
लोग जहा पसन नही, वहा न जाओ आपिजया रमाओ राम म, िमट सभी सनताप // 46. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 63 )
राम नाम वह तज ह, तमस कही ना वापिजधर न कछ दीखता, ‘राम नाम’ पयारप // 47. //
अनहोनी होगी नही, होनी ह तो होयह पभ तर साथ जब, िफर कयो रोना रोय // 48. //
जीवन क हर यद को, राम भरोस छोडपभ तर सघषर को, दग अचछ मोड // 49. //
िननदा स िननदा िमल, शिमनदा हो जानऔरो को सममान द, िमल तझ सममान // 50. //
दजो क अपमान स, यश न तझ िमल पायरहा सहा य तज भी, कणभर म िमट जाय // 51. //
तन सनदर तो गवर कयो, एक िदवस ढल जायपदा नक िवचार कर, कायजयी कहलाय // 52. //
गलत राह कोई चन, द दो अचछी रायसबस उतम मागर यह, यही सभी को भाय // 53. //
रावण की लका जली, बजरग थ अशानतिचतकट क धार पर, हनमत हए शानत // 54. //
भज िदए थ राम जी, जवाला करन शानतिचतकट क धाम य, राम जप िवकानत // 55. //
िचतकट क तीथर पर, लका क उपरानतधारा म हनमान जी, अिग िकय थ शानत // 56. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 64 )
सजन क साथी बनो, भली करग रामदजरन िमत न रािखय, आप हए बदनाम // 57. //
िसयाराम यिद नाम ह, सजन समझ लोगमयारदा रख राम की, तझ िमला यह योग // 58. //
भटक चौरासी जगह, तब मानव तन पायय चोला भी वथर ह, राम न बोला जाय // 59. //
छोड द त बर वसन, जपता रह शीरामअचछ कमो स बन, तर िबगड काम // 60. //
तन की आभा वस ह, मन की शोभा बातउतम बात कीिजय, याद रह िदनरात // 61. //
हदय वस यिद साफ ह, तन भी शोभा पायतरा उलटा आचरण, तरा मान घटाय // 62. //
िजसकी दासी इिनदया, उसको उतम मानवो नर राम समान ह, िमल उस सममान // 63. //
तयाग िदए िजसन वसन, वो नर बन महानराज सखो को तयाग कर, बढी राम की शान // 64. //
तप स सब कछ पाप हो, तप स ह ससारतप स आव राम पभ, तप का तज पहार // 65. //
बहा जी न सिष की, रच डाला ससारपालक इसक िवषण जी, िशव करत उदार // 66. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 65 )
सगीव-िवभीषण सखा, दःख स िदया उभारकहा िमत जब राम न, सता दी उपहार // 67. //
सःख-दःख म जो िमत क, आत हर पल कामपभ उनक सकट हर, पसन उनस राम // 68. //
गण-अवगण क साथ यिद, करत सोच-िवचारअचछ मानव आप ह, उतम यह ववहार // 69. //
बिदमान यिद िमत ह, समझो बडा पारमखरतापणर आचरण, धर बीच मझधार // 70. //
लन-दन म िमत स, करो उिचत ववहारतझको खद सममान द, तरा यह सतकार // 71. //
अपशबदो स होत ह, चिरत की पहचानगसस म अपशबद का, रिखए हर पल धयान // 72. //
मख आग मीठा कह, मार पीठ कटारऐस दजरन िमत का, कीिजय बिहषकार // 73. //
छल ह, माया रप ह, सब िमथया ससारराम नाम स नह कर, बाकी सब बकार // 74. //
पमलोक सब सवाथर ह, इसस पाओ मिकराम भजन हो रातिदन, ढढो ऐसी यिक // 75. //
पिवत जल धोता रहा, यग-यग सबक पापसरज-चनदा की तरह, गगा भी िनषपाप // 76. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 66 )
समझ सको तो राम ह, ना समझो तो मितपजा अगर ढकोसला, मत कर खानापित // 77. //
सागर स दरी धरो, निदया जहा समायअिसततव कहा आपका, िफर आप न रह पाय // 78. //
बड न लघ को राह द, तो दःख की य बातबढो का आशीष तो, हो सःख की बरसात // 79. //
ह पम नाम तयाग का, तयागी बन महानऔरो क दःख बाटकर, बन राम भगवान // 80. //
राम कह ससार म, सबस बढकर सतोषजान ह तो जहान ह, दयाकर आशतोष // 81. //
धन म धन सतोष धन, जो उपज मन शानतकपा दिष अपनी सदा, रखना लकमीकानत // 82. //
मन कमर वचन स सदा, बोलत राम-रामबन जाए सच मािनए, उनक िबगड काम // 83. //
राम भिक वो फल ह, िजसका फल ह जानवर द उनको शारद, वो सब ह िवदान // 84. //
िजसन पाया राम को, उस न जग स कामिजसको लागी राम धन, वो पाए सखधाम // 85. //
पाए जो नर राम धन, वो सबस धनवानकरत जो सबका भला, ऐस ह भगवान // 86. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 67 )
जनम-मरण क कष स, तार पभ शी रामजीत जी जपत रहो, जाओग शी धाम // 87. //
पसनिचत जीवन रह, बरस-बरस आरामकरक यही िवचार तम, जपो-जपो शीराम // 88. //
बढो सदा तम लकय पर, मत होना भयभीतजीवन म हरपल नही, समय यहा िवपरीत // 89. //
साहस कभी न छोिडए, साथ सभी क रामदतय बड बलवान थ, मगर गए हिर धाम // 90. //
िसयाराम समझ नही, कसा ह य भदसोन का कसा िहरन, हआ न कछ भी खद // 91. //
वाण लगा जब लखन को, रघवर हए अधीरम भी तयाग पाण अब, रोत ह रघवीर // 92. //
मघनाद की गरजना, रावण का अिभमानराम-लखन तोडा िकय, वकत बडा बलवान // 93. //
या दही स पीित कया, एक िदवस िमट जायपीित करो शी राम स, कई जनम फल पाय // 94. //
मरत मिनदर राम की, भक झकाए शीशिवपदा म हम पर सदा, दया करो जगदीश // 95. //
जनम-जनम म आपका, बना रह पभ दासअपन भोल भक की, सन लो य अरदास // 96. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 68 )
कहा िमलग राम जी, हम खोज नाकामराम तो हदय म बस, म भटका हर धाम // 97. //
रावण कल को तार क, िकय जगत उदारऐस दीनानाथ का, जनम-जनम आभार // 98. //
राम-लखन स पत हो, मात-िपता की चाहरामायण जीवन बन, उतम ह य राह // 99. //
जीवन बटी कौन सी, सझा नही उपायमहावीर हनमान न, परवत िलया उठाय // 100. //
जीवन वथर न कीिजय, करो राम क नाममानव जीवन कीमती, करो नक हर काम // 101. //
आसथाओ क लप स, भर मानिसक घावरामभिक ह वो िकरण, उभर आशा भाव // 102. //
राम भिक क दीप स, सवरत ह पकाशजगी सभी म चतना, जगा नया िवशास // 103. //
राह किठन हो दख नही, बढ चलो िदनरातरावण कल वापक सही, दग उसको मात // 104. //
हारा रावण, हिर िवजय, यद हआ िवकरालपभ क सममख ना चली, महा दष की चाल // 105. //
रामिवजयशी पवर का, अनपम यह उपहारसतय-धमर की जीत ह, दीपो का तयौहार // 106. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 69 )
रामराजय का लकय यह, भय मक हो समाजपितिदन ही तयौहार अब, ह जनता का राज // 107. //
राम अयोधया आगमन, मौसम आया खासिशवजी आवाहन कर, खतम हआ वनवास // 108. //
// इित रामभक िशव दोहा छनद //
•••
बीस शष दोह
गजल कह तो म ‘असद’, मझम बसत ‘मीर’दोहा जब कहन लग, मझम सत ‘कबीर’ // 1. //
यग बदल, राजा गए, गए अनको वीरअजर-अमर ह आज भी, लिकन सत कबीर // 2. //
धवज वाहक म शबद का, हर िहया की पीरऊच सर म गा रहा, मझम सत कबीर // 3. //
काध पर बताल-सा, बोझ उठाय रोजपशोतर स जझत, नए अथर त खोज // 4. //
िवकम तर सामन, वकत बना बतालपशोतर क दनद म, जीवन हआ िनढाल // 5. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 70 )
िवकम-िवकम बोलत, मजा लत बतालकाध पर लाद हए, बदल गए सरताल // 6. //
एक िदवस बताल पर, होगी मरी जीतिवकम की यह सोचत, उम गई ह बीत // 7. //
महानगर न खा िलए, िरशत-नात खाससबक िदल म नकश ह, ददर भर अहसास // 8. //
रखाओ को लाघकर, बच खल खलबटवार को तोडती, छक-छक करती रल // 9. //
िचनतन, मनथन ही रहा, िनरनतर महायददिवधा म वह पाथर थ, या सनयासी बद // 10. //
सच को आप िछपाइए, यही बाजारवादनितकता को तयागकर, हो जाओ आबाद // 11. //
वहा न कछ भी शष ह, जहा गया इसानपथवी पर सकट बना, पगितशील िवजान // 12. //
िकतन मार ठणड न, मर शमभनाथउतर सभय समाज स, पछ रहा फटपाथ // 13. //
गीता म शी कषण न, कही बात गभीरऔरो स दिनया लड, लड सवय स वीर // 14. //
हिथयारो की होड स, िवश हआ भयभीतरोज परीकण गा रह, बरबादी क गीत // 15. //
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 71 )
महगाई पितपल बढ, कस हो हम तपकलयग का अहसास ह, भख-पयास म िलप // 16. //
सबका खवनहार ह, एक वही मललाहिहदी म भगवान ह, अरबी म अललाह // 17. //
होता आया ह यही, अचरज की कया बातसच की खाितर आज भी, जहर िपए सकरात // 18. //
अजगर डब जश म, मारा एक भजगसक िसयासी रोिटया, बच गए सब दबग // 19. //
िहनदी न पदा िकया, अजर-अमर अिवरामकिव ‘भषण’ क बाद वो, धारी ‘िदनकर’ नाम // 20. //
21 दोहा पहिलया
मझ न कोई पा सक, चीज बडी म खासमझ न कोई खो सक, रहती सबक पास // 1. //
उतर: परछाई
छोटी-सी ह दह पर, मर वस पचासखान की इक चीज ह, म ह सबस खास // 2. //
उतर: पयाज
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 72 )
लमबा-चौडा िजक कया, दो आखर का नामदिनया भर म घमता, शीश ढक यह काम // 3. //
उतर: टोपी
िवश क िकसी छोर म, चाह हम आबादरख सकत ह हम उस, दन क भी बाद // 4. //
उतर: वचन
वो ऐसी कया चीज ह, िजसका ह आकारचाह िजतना ढर हो, तिनक न उसका भार // 5. //
उतर: अकर
दखा होगा आपन, हर जगह डगर-डगरहरदम ही वो दौडता, कभी न चलता मगर // 6. //
उतर: इजन
घरा ह अदभत हरा, पील भवन-दकानउनम यारो पल रह, सब काल हवान // 7. //
उतर: सरसो
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 73 )
पानी जम क बफर ह, काप रहा नाचीजिपघल लिकन ठणड म, अजब-गजब कया चीज // 8. //
उतर: मोमबती
म ह खब हरा-भरा, मह मरा ह लालनकल कर म आपकी, िमल ताल स ताल // 9. //
उतर: तोता
सोन की वह चीज ह, आती सबक काममहगाई िकतनी बढ, उसक बढ न दाम // 10. //
उतर: चारपाई
नाटी-सी वह बािलका, वस हर, कछ लालखा जाए कोई उस, मच जाए बवाल // 11. //
उतर: िमचर
अग-रप ह काच-का, रग सभी अनमोलआऊ काम शगार क, काया मरी गोल // 12. //
उतर: चिडया
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 74 )
अदभत ह इक जीव म, कोई पछ, न बालबठा करवट ऊट की, मग सी भर उछाल // 13. //
उतर: मढक
िबन खाय सोय िपए, रहता सबक दारडटी दता रात-िदन, छटी ना इतवार // 14. //
उतर: ताला
तनकर बठा नाक प, खीच सबक कानउसका वजद काच का, दना इसपर धयान // 15. //
उतर: ऐनक
सर भी उसका पछ भी, मगर न उसक पाविफर भी िदख नगर-डगर, गली-महलला-गाव // 16. //
उतर: साप
आ धमक वो पास म, लकर खवाब अनकदिनया भर म िमतवर, शत न उसका एक // 17. //
उतर: नीद
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 75 )
पछ कट तो जानकी, शीश कट तो यारबीच कट तो खोपडी, नई पजल तयार // 18. //
उतर: िसयार
तज धप-बािरश िखल, दख छाव मरझायअजब-गजब वो फल ह, काम सभी क आय // 19. //
उतर: छतरी
गोरा-िचटा शत तन, हरी-भरी ह पछसमझ न आय आपक, तो कटवा लो मछ // 20. //
उतर: मली
दिरया ह पानी नही, नही पड पर पातदिनया ह धरती नही, बडी अनोखी बात // 21. //
उतर: मानिचत (नकशा)
***
कालजयी दोह —समपादक सरजन
( 76 )
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