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पितिनिध गजलो पर सािहतयकारो के िवचार

"मै पूरे एितमाद, पूरे यकीन के साथ कह सकता ह ँ िक िसनफे-गजल इसनौजवान शा'इर की जात से मनचाही उममीद ेबाँध सकती ह।ै इस शा'इर मेगजल को लेकर जुनून और हर लमहा इस िसनफ मे कुछ नया कर गुजरने कीचाहत यकीनन इसे इसके दौर के शुअरा मे एक अलग मकाम िदलाती नजरआती ह।ै उनकी कही गजले मेरी इस बात का िजनदा-ओ-जावेद सुबूत ह।ै"

—उसताद-ेमोहतरम मंगल नसीम (िवशिवखयात शा'इर)

"महावीर उतरांचली एक ऊजारवान शा'इर ह।ै जो िहदी-उदूर मे सामान रपसे गजल कहते ह।ै िदलली के किवयो मे इनका नाम बड े आदर-सममान केसाथ िलया जाता ह।ै"

—िवशपताप भारती (सुिवखयात किव, लेखक व पतकार)

"इलमे' अरज के पितधविनत आवशयक ततव यथा हफर -लफज, नुका व माताओके उठाने-िगराने के उपयोग सिहत शबद सिनधयो मे िनिमत रक, अकारन,िमसा-शे'र को मतला और कही-कही मकता (अपने नाम का पयोग) के साथपरोकार रदीफ-कािफया तथा वजन का समुिचत संतुलन रखते हए पयारपधविन-ताल-लय तथा गित के िनवारह से युक बहर अपनाकर गजल कापारमपिरक रप मे िवनयास िकया गया ह।ै तमामतर खूिबयो के बीचपितिनिध गजलो मे िहदी रंग और उदूर ढंग बखूबी चढा ह।ै"

—रमेश पसून (सुपिसद शा'इर, 'बुलनद पभा ' के समपादक)

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USBN 08-2016-005-64

izfrfuf/k x+t+ysa (Representative Ghazal’s)

© egkohj mRrjkapyh (Mahavir Uttranchali)

2016 izFke laLdj.k

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दो शबदभारतीय संसकृित सबसे िजयादा समृद ह।ै िविवधता िलए हए ह।ै यहाँ हवा मे कलाअंगडाई लेती ह।ै कण-कण मे संगीत रचा-बसा ह।ै ऐसे मे कौन होगा िजसके भीतरकलाकार न रहता हो। मेरे भीतर किवता के ततव इस समृद, खुले-घुले-िमले कलचर केकारण ही ह।ै गािलब की तजर पर — ".... कुछ न होता तो खुदा होता! " जबिक मैकहता ह ँ —"....कुछ न होता तो शा'इर होता"। 'रंग-ए-वफा' (सवपकाशनके०एम०बी० पकाशन से 1998 ई०); 'छाँव भी तो होगी सफर मे' (िहदी अकादमी केसहयोग से वषर 2007 मे पकािशत हई।) दोनो शुरआती दौर की तुकबंिदयो से िजयादाकुछ नही थी। धीरे-धीरे बहर पर मेहनत; समझ और अभयास ने गजल मे िनखार पैदािकया। िफर 'आग का दिरया' (2009 ई० मे अमृत पकाशन से आई।) इसमे उसताद-ेमोहतरम मंगल नसीम साहबे का अहम रोल और आशीवारद शािमल था। िफर अनाहजारे और आम आदमी आंदोलन की समझ से उपजी गजले 'आग यह बदलाव की'(2013 ई मे उतरांचली सािहतय संसथान से आई।) इस िकताब मे दषुयनत; अदमगोडवी और पाश की िवचारधारा ने भी मुझ पर पभाव डाला। इन तीनो किवयो कीरचनाओ मे जो आग ह ैउसकी तिपश को मेरे जैसे अनेक किवयो ने महसूस िकया ह।ैगजल का मूल सवर पेम से भरा हआ था िजसे इन किवयो ने यथाथर की कडवीसचाइयो से र-ब-र कराया ह।ै मै मुखयतः पेम का किव ह।ँ एक शा'इर के रप मे खुदको अतृप पेमी के रप मे पाता ह।ँ िजसके हदय की तडप िभन-िभन दिृषकोण से दखेीजा सकती ह।ै यहाँ िकसी एक शे'र का उदाहरण दनेा किठन ह।ै उममीद ह ैआप सबकोमेरी पितिनिध गजले पसनद आएँगी। अंत मे आभारी ह ँ उन संपादको का िजनहोने गजलो को पत-पितकाओ, िकताबी संकलनो और महतवपूणर िवशेषांको तथावेबसाइटस मे जगह दी।

—महावीर उतरांचली

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िवषय सूची

जो ववसथा भष हो, फौरन बदलनी चािहए...........................9गरीबो को फकत, उपदशे की घुटी िपलाते हो.........................10

आप खोये ह ैिकन नजारो मे.........................11िजदगी से मौत बोली खाक हसती एक िदन.........................12

बडी तकलीफ दतेे ह ैये िरशते.........................13तीरो-तलवार से नही होता.........................14

जां से बढकर ह ैआन भारत की.........................15तसववुर का नशा गहरा हआ है.........................16आपने कया कभी खयाल िकया.........................17

आपको मै मना नही सकता.........................18काश! होता मजा कहानी मे.........................19

चढा ह ँमै गुमनाम उन सीिढयो तक.........................20तलवारे दोधारी कया.........................21

नजर मे रौशनी ह.ै........................22सोच का इक दायरा है, उससे मै कैसे उठँू.........................23

रेशा-रेशा, पता-बूटा.........................24िदल िमरा जब िकसी से िमलता है.........................25

साधना कर यूँ सुरो की, सब कह ेकया सुर िमला.........................26यूँ जहाँ तक बने चुप ही मै रहता ह.ँ........................27

छूने को आसमान काफी है.........................28लहजे मे कयो बेरखी है.........................29

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सीनाजोरी, िरशतखोरी, ये ववसथा कैसी ह.ै........................30वतन की राह मे िमटने की हसरत पाले बैठा हँ.........................31

इक तमाशा यहाँ लगाए रख.........................32फन कया ह ैफनकारी कया.........................33

हार िकसी को भी सवीकार नही होती.........................34िदल से उसके जाने कैसा बैर िनकला.........................35

राह उनकी दखेता ह.ै........................36नजर को चीरता जाता ह ैमंजर.........................37

बीती बाते याद न कर.........................38धूप का लशकर बढा जाता है.........................39

खवाब झूठे ह.ै........................40कया अमीरी, कया गरीबी.........................41

बदली गम की जब छायेगी.........................42वो जब से गजल गुनगुनाने लगे है.........................43

सच हरदम कहना पगले.........................44लौट आया समय हषर उललास का.........................45

बीती बाते िबसरा कर.........................46घास के झुरमुट मे बैठे दरे तक सोचा िकये.........................47

तेरी तसवीर को याद करते हए.........................48चाँदनी िखलने लगी, मुसकुराना आपका.........................49

जमी कीचड को िमलकर दरू करना ह.ै........................50पग न तू पीछे हटा, आ वकत से मुठभेड कर.........................51रौशनी को राजमहलो से िनकाला चािहये.........................52

काँटे खुद के िलए जब चुने दोसतो.........................53बात मुझसे यह ववसथा कह गई ह.ै........................54

कयो बचे नामोिनशाँ जनतंत मे.........................55फैसला अब ले िलया तो सोचना कया बढ चलो.........................56

मुहबबत का मतलब इनायत नही.........................57ये चाहत की दिुनया िनराली ह ैयारो.........................58

कह ँददर अपना मै कैसे िकसी से.........................59और गम िदल को अभी िमलना ही था.........................60

हमने उस बेवफा से राह न की.........................61रह-रहकर याद सताए है.........................62

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हर घडी को चािहए जीना यहाँ.........................63काँच जडा ह ैअपना घर.........................64

शे'र इतने ही धयान से िनकले.........................65िजनके पँखो मे दो जहान हए.........................66

दशुमनी का वो इिमतहान भी था.........................67रात भर आपकी याद आती रही.........................68

िमरी नजर मे खास तू, कभी तो बैठ पास तू.........................69िदल मे तेरे पयार का दफतर खुला.........................70

कया कह ँमै वकत की इस दासताँ को.........................71पँख टूटे ह ैतो कया परवाज करते.........................72

जो हआ उसपे मलाल करके.........................73बाण वाणी के यहाँ ह ैिवष बुझे.........................74

यह पकृित का िचत अित उतम बना है.........................75मकडी-सा जाला बुनता ह.ै........................76

कांित का अब िबगुल बजा दशे मे.........................77

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जो ववसथा भष हो, फौरन बदलनी चािहए

जो ववसथा भष हो, फौरन बदलनी चािहएलोकशाही की नई, सूरत िनकलनी चािहए

मुफिलसो के हाल पर, आंसू बहाना वथर हैकोध की जवाला से अब, सता बदलनी चािहए

इंकलाबी दौर को, तेजाब दो जजबात काआग यह बदलाव की, हर वक जलनी चािहए

रोिटयाँ ईमान की, खाएँ सभी अब दोसतोदाल भषाचार की, हरिगज न गलनी चािहए

अम ह ैनारा हमारा, लाल ह ैहम िवश केबात यह हर शखस के, मँुह से िनकलनी चािहए

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गरीबो को फकत, उपदशे की घुटी िपलाते हो

गरीबो को फकत, उपदशे की घुटी िपलाते होबड ेआराम से तुम, चैन की बंसी बजाते हो

ह ैमुिशकल दौर, सूखी रोिटयाँ भी दरू ह ैहमसेमजे से तुम कभी काजू, कभी िकशिमश चबाते हो

नजर आती नही, मुफिलस की आँखो मे तो खुशहालीकहाँ तुम रात-िदन, झूठे उनह ेसपने िदखाते हो

अँधेरा करके बैठे हो, हमारी िजनदगानी मेमगर अपनी हथेली पर, नया सूरज उगाते हो

ववसथा कषकारी कयो न हो, िकरदार ऐसा हैये जनता जानती ह ैसब, कहाँ तुम सर झुकाते हो

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आप खोये ह ैिकन नजारो मे

आप खोये ह ैिकन नजारो मेलुतफ िमलता नही बहारो मे

आग कागज मे िजससे लग जायेकाश! जजबा वो हो िवचारो मे

भीड के िहससे ह ैसभी जैसेहम ह ैगुमसुम खडे कतारो मे

इशक उनको भी रास आया हैअब वो िदखने लगे हजारो मे

झूठ को चार सू पनाह िमलीसच को िचनवा िदया िदवारो मे

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िजदगी से मौत बोली खाक हसती एक िदन

िजदगी से मौत बोली खाक हसती एक िदन िजसम को रह जाएँगी रह ेतरसती एक िदन

मौत ही इक चीज ह ैकॉमन सभी इक दोसतोदिेखये कया सर बलनदी और पसती एक िदन

पास आने के िलए कुछ तो बहाना चािहए बसते-बसते ही बसेगी िदल की बसती एक िदन

रोज बनता और िबगडता हस ह ैबाजार का िदल से जयादा तो न होगी चीज ससती एक िदन

मुफिलसी ह,ै शाइरी ह,ै और ह ैदीवानगी "रंग लाएगी हमारी फाकामसती एक िदन"

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बडी तकलीफ दतेे ह ैये िरशते

बडी तकलीफ दतेे ह ैये िरशतेयही उपहार दतेे रोज अपने

जमी से आसमां तक फैल जाएँधनक मे खवािहशो के रंग िबखरे

नही टूटे कभी जो मुिशकलो सेबहत खुदार हमने लोग दखेे

ये कडवा सच ह ैयारो मुफिलसी कायहाँ हर आँख मे ह ैटूटे सपने

कहाँ ले जायेगा मुझको जमानाबडी उलझन ह,ै कोई हल तो िनकले

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तीरो-तलवार से नही होता

तीरो-तलवार से नही होताकाम हिथयार से नही होता

घाव भरता ह ैधीरे-धीरे हीकुछ भी रफतार से नही होता

खेल मे भावना ह ैिजदा तोफकर कुछ हार से नही होता

िसफर नुकसान होता ह ैयारोलाभ तकरार से नही होता

उसपे कल रोिटयां लपेटे सबकुछ भी अखबार से नही होता

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जां से बढकर ह ैआन भारत की

जां से बढकर ह ैआन भारत कीकुल जमा दासतान भारत की

सोच िजदा ह ैऔर ताजादम नौ'जवां ह ैकमान भारत की

दशे का ही नमक िमरे भीतरबोलता ह ँजबान भारत की

कद करता ह ैसबकी िहनदोसतांपीिढयां ह ैमहान भारत की

सुखरर आज तक ह ैदिुनया मेआन-बान और शान भारत की

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तसववुर का नशा गहरा हआ ह ै

तसववुर का नशा गहरा हआ ह ैिदवाना िबन िपए ही झूमता है

गुजर अब साथ भी मुमिकन कहाँ था मै उसको वो मुझे पहचानता है

िगरी िबजली नशेमन पर हमारे न रोया कोई कैसा हािदसा ह ै

बलनदी नाचती ह ैसर पे चढकेकहाँ वो मेरी जािनब दखेता ह ै

िजसे कल गैर समझे थे वही अब रगे-जां मे हमारी आ बसा है

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"आपने कया कभी खयाल िकया"*

"आपने कया कभी खयाल िकया"रोज मुझसे नया सवाल िकया

िजनदगी आपकी बदौलत थी आपने कब िमरा खयाल िकया

राजे-िदल कह न पाए हम लेिकन िदल ने इसका बहत मलाल िकया

जोर गैरो पे जब चला न कोई आपने मुझको ही हलाल िकया

ह ै"महावीर" शेर खूब ितरेलोग कहते ह ैकया कमाल िकया

* "आपने कया कभी खयाल िकया" यह िमसरा परम आदरणीय तुफैल चतुवेदी जी (संपादक "लफज") ने परीका सवरप िदया था। िजसे खाकसार ने पाँच शेर मे ततकाल मौके पर कहा।

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आपको मै मना नही सकता

आपको मै मना नही सकता चीरकर िदल िदखा नही सकता

इतना पानी ह ैमेरी आँखो मे बादलो मे समा नही सकता

तू फिरशता ह ैिदल से कहता ह ँकोई तुझसा मै ला नही सकता

हर तरफ एक शोर मचता ह ैसामने सबके आ नही सकता

िकतनी ही शौहरत िमले लेिकन कजर माँ का चुका नही सकता

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काश! होता मजा कहानी मे

काश! होता मजा कहानी मेिदल िमरा बुझ गया जवानी मे

फूल िखलते न अब चमेली परबात वो ह ैन रातरानी मे

उनकी उलफत मे ये िमला हमकोजखम पाए ह ैबस िनशानी मे

आओ िदखलाये एक अनहोनीआग लगती ह ैकैसे पानी मे

तुम रह ेपाक-साफ िदल हरदममै रहा िसफर बदगुमानी मे

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चढा ह ँमै गुमनाम उन सीिढयो तक

चढा ह ँमै गुमनाम उन सीिढयो तकिमरा िजक होगा कई पीिढयो तक

ये बदनाम िकससे, िमरी िजदगी कोनया रंग दगेे, कई पीिढयो तक

जमा शायरी उमभर की ह ैपूँजीये दौलत ही रह जाएगी पीिढयो तक

"महावीर" कयो मौत का ह ैतुमह ेगमगजल बनके जीना ह ैअब पीिढयो तक

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तलवारे दोधारी कया

तलवारे दोधारी कयासुख-दःुख बारी-बारी कया

कतल ही मेरा ठहरा तोफांसी, खंजर, आरी कया

कौन िकसी की सुनता हैमेरी और तुमहारी कया

चोट कजा की पडनी हैबालक कया, नर-नारी कया

पूछ िकसी से दीवानेकरमन की गित नयारी कया

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नजर मे रौशनी ह ै

नजर मे रौशनी ह ैवफा की ताजगी ह ै

िजयूं चाह ेमै जैसे ये मेरी िजदगी ह ै

गजल की पयास हरदम

लह कयो मांगती ह ै

िमरी आवारगी मे फकत तेरी कमी है

इसे िदल मे बसा लो

ये मेरी शा'इरी है

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सोच का इक दायरा ह,ै उससे मै कैसे उठँू

सोच का इक दायरा ह,ै उससे मै कैसे उठँू सालती तो ह ैबहत यादे, मगर मै कया करँ

िजदगी ह ैतेज रौ, बह जायेगा सब कुछ यहाँ कब तलक मै आँिधयो से, जूझता-लडता रह ँ

हािदसे इतने हए ह ैदोसती के नाम पर

इक तमाचा-सा लगे ह,ै यार जब कहने लगँू

जा रह ेहो छोडकर इतना बता दो तुम मुझे मै तुमहारी याद मे तडपूँ या िफर रोता िफरँ

सच हो मेरे सवप सारे, जी, तो चाह ेकाश मै

पंिछयो से पंख लेकर, आसमाँ छूने लगँू

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रेशा-रेशा, पता-बूटा

रेशा-रेशा, पता-बूटाशाखे चटकी, िदल-सा टूटा

गैरो से िशकवा कया करतेगुलशन तो अपनो ने लूटा

ये इशक ह ैइलजाम अगर तोद ेइलजाम मुझे मत झूटा

तुम कया यार गए दिुनया सेपयारा-सा इक साथी छूटा

िशकवा कया ऊपर वाले सेभाग िमरा खुद ही था फूटा

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िदल िमरा जब िकसी से िमलता ह ै

िदल िमरा जब िकसी से िमलता हैतो लगे आप ही से िमलता है

लुतफ वो अब कही नही िमलतालुतफ जो शा'इरी से िमलता है

दशुमनी का भी मान रख लेनाजजबा ये दोसती से िमलता है

खेल यारो! नसीब का ही हैपयार भी तो उसी से िमलता है

ह ै"महावीर" जांिनसारी कयाजजबा ये आिशकी से िमलता है

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साधना कर यूँ सुरो की, सब कह ेकया सुर िमला

साधना कर यूँ सुरो की, सब कह ेकया सुर िमलाबज उठे सब साज िदल के, आज तू यूँ गुनगुना

हाय! िदलबर चुप न बैठो, राजे-िदल अब खोल दोबजमे-उलफत मे िछडा ह,ै गुफतगंू का िसलिसला

उसने हरदम कष पाए, कामना िजसने भी कीवथर मत जी को जलाओ, सोच सब अचछा हआ

इशक की दिुनया िनराली, कया कह ँमै दोसतोिबन िपए ही मय की पयाली, छा रहा मुझपर नशा

मीरो-गािलब की जमी पर, शेर जो मैने कहेकहकशां सजने लगा और लुतफे-महिफल आ गया

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यूँ जहाँ तक बने चुप ही मै रहता ह ँ

यूँ जहाँ तक बने चुप ही मै रहता हँकुछ जो कहना पडे तो गजल कहता हँ

जो भी कहना हो कागज पे करके रकम िफर कलम रखके खामोश हो रहता हँ

दजर होने लगे शे'र तारीख मे बात इस दौर की खास मै कहता हँ

दोसतो! िजन िदनो िजदगी थी गजलखुश था मै उन िदनो, अब नही रहता हँ

ढंूढते हो कहाँ मुझको ऐ दोसतोआबशारे-गजल बनके मै बहता हँ

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छूने को आसमान काफी ह ै

छूने को आसमान काफी ह ैपर अभी कुछ उडान बाकी ह ै

कैसे ईमाँ बचाएं हम अपना सामने खुशबयान साकी ह ै

कैसे वो ददर को जबां दगेा कैद मे बेजबान पाखी ह ै

लकय पाकर भी कयो कह ेदिुनया

कुछ ितरा इिमतहान बाकी ह ै

कहने ह ैकुछ नए फसाने भी इक नया आसमान बाकी है

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लहजे मे कयो बेरखी ह ै

लहजे मे कयो बेरखी ह ैआपको भी कुछ कमी ह ै

पढ िलया उनका भी चेहरा

बंद आँखो मे नमी ह ै

सच जरा छूके जो गुजरा िदल मे अब तक सनसनी ह ै

भूल बैठा हािदसो मे

गम ह ैकया और कया खुशी ह ै

ददर कागज मे जो उतरा तब ये जाना शाइरी ह ै

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सीनाजोरी, िरशतखोरी, ये ववसथा कैसी है

सीनाजोरी, िरशतखोरी, ये ववसथा कैसी ह ैहोती ह ैपग-पग पर चोरी, ये ववसथा कैसी ह ै

कषो मे गुजरे जीवन, जाने कैसा दौर नया टूटी आशाओ की डोरी, ये ववसथा कैसी ह ै

सबकी खाितर धान उगाये, खुद मगर न खा पाए दाने को तरसे ह ैहोरी, ये ववसथा कैसी ह ै

जनता फांके करती ह,ै अन सड ेभणडारो मे भीग रही बािरश मे बोरी, ये ववसथा कैसी ह ै

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वतन की राह मे िमटने की हसरत पाले बैठा हँ

वतन की राह मे िमटने की हसरत पाले बैठा हँ न जाने कबसे मै इक दीप िदल मे बाले बैठा हँ

भगत िसह की तरह मेरी शहादत दासताँ मे हो यही अरमान लेके मौत अब तक टाले बैठा हँ

िमरे िदल की सदाये लौट आई आसमानो से खुदा सुनता नही ह ैकरके ऊँचे नाले बैठा हँ

थके ह ैपाँव मिनजल चनद ही कदमो के आगे है मुझे मत रोकना अब फोड सारे छाले बैठा हँ

िमरी खामोिशयो का टूटना मुमिकन नही ह ैअब लबो पर मै न जाने कुफल िकतने डाले बैठा हँ

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इक तमाशा यहाँ लगाए रख

इक तमाशा यहाँ लगाए रख सोई जनता को तू जगाए रख

भेिडये लूट लेगे िहनदसुतां शोर जनतनत मे मचाए रख

आएगा इनकलाब भारत मे आग सीने मे यूँ जलाए रख

पार कशती को गर लगाना है िदल मे तूफान तू उठाए रख

लोग ढंूढे तुझे करोडो मे लौ िवचारो की तू जलाए रख

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फन कया ह ैफनकारी कया

फन कया ह ैफनकारी कयािदल कया ह ैिदलदारी कया

पूछ जरा इन अशको से गम कया ह,ै गम खवारी कया

जान रही ह ैजनता सबसर कया ह,ै सरकारी कया

झांक जरा गुबरत मे तूजर कया ह,ै जरदारी कया

सोच फकीरो के आगेदर कया ह,ै दरबारी कया

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हार िकसी को भी सवीकार नही होती

हार िकसी को भी सवीकार नही होती जीत मगर पयारे हर बार नही होती

एक िबना दजेू का, अथर नही रहता जीत कहाँ पाते, यिद हार नही होती

बैठा रहता मै भी एक िकनारे पर राह अगर मेरी दशुवार नही होती

डर मत लहो से, आ पतवार उठा ले बैठ िकनारे, नैया पार नही होती

खाकर रखी-सूखी, चैन से सोते सब इचछाएं यिद लाख उधार नही होती

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िदल से उसके जाने कैसा बैर िनकला

िदल से उसके जाने कैसा बैर िनकला िजससे अपनापन िमला वो गैर िनकला

था करम उस पर खुदा का इसिलए ही

डूबता वो शखस कैसा तैर िनकला

मौज-मसती मे आिखर खो गया कयो जो बशर करने चमन की सैर िनकला

सभयता िकस दौर मे पहचँी ह ैआिखर

बंद बोरी से कटा इक पैर िनकला

वो वफादारी मे िनकला यूँ अबबल आंसुओ मे धुलके सारा बैर िनकला

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राह उनकी दखेता है

राह उनकी दखेता ह ैिदल िदवाना हो गया ह ै

छा रही ह ैबदहवासी ददर मुझको पी रहा ह ै

कुछ रहम तो कीिजये अब

िदल हमारा आपका ह ै

आप जबसे हमसफर हो रासता कटने लगा ह ै

खतम हो जाने कहाँ अब िजदगी का कया पता है

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नजर को चीरता जाता ह ैमंजर

नजर को चीरता जाता ह ैमंजर बला का खेल खेले ह ैसमनदर

मुझे अब मार डालेगा यकीनन

लगा ह ैहाथ िफर काितल के खंजर

ह ैमकसद एक सबका उसको पाना िमल मिसजद मे या मंिदर मे जाकर

पलक झपके तो जीवन बीत जाये ये मेला चार िदन रहता ह ैअकसर

नवािजश ह ैितरी मुझ पर तभी तो िमरे मािलक खडा ह ँआज तनकर

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बीती बाते याद न कर

बीती बाते याद न कर जी मे चुभता ह ैनशतर

हािसल कब तकरार यहाँ

टूट गए िकतने ही घर

चाँद-िसतारे साथी थे नीद न आई एक पहर

तनहा ह ँमै बरसो से

मुझ पर भी तो डाल नजर

पीर न अपनी वक करो यह उपकार करो मुझ पर

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धूप का लशकर बढा जाता है

धूप का लशकर बढा जाता ह ैछाँव का मंजर लुटा जाता ह ै

रौशनी मे इस कदर पैनापन आँख मे सुइयां चुभा जाता ह ै

चहचहाते पंिछयो के कलरव मे पयार का मौसम िखला जाता ह ै

फूल-पतो पर िलखा कुदरत ने वो किरशमा कब पढा जाता ह ै

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खवाब झूठे है

खवाब झूठे हैददर दतेे है

रंग िरशतो केरोज उडते है

कैसे-कैसे सचलोग सहते है

पयार सचा था जखम गहरे है

हाथ मे िसगेट

तनहा बैठे है

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कया अमीरी, कया गरीबी

कया अमीरी, कया गरीबी भेद खोले ह ैफकीरी

गम से तेरा भर गया िदल गम से मेरी आँख गीली

तीरगी मे जी रहा था तूने आ के रौशनी की

खूब भाएं मेरे िदल को मिसतयाँ फरहाद की सी

मौत आये तो सुकँू हो कया िरहाई, कया असीरी

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बदली गम की जब छायेगी

बदली गम की जब छायेगी रात यहाँ गहरा जायेगी

गर इजजत बेचेगी गुरबत बचो की भूख िमटायेगी

सािहर ने िजसका िजक िकया वो सुबह कभी तो आयेगी

बस कतल यहाँ होगे मुफिलस आह तलक कुचली जायेगी

खामोशी ओढो ऐ शा' इर कुछ बात न समझी जायेगी

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वो जब से गजल गुनगुनाने लगे ह ै

वो जब से गजल गुनगुनाने लगे ह ैमहबबत के मंजर सुहाने लगे ह ै

मुझे हर पहर याद आने लगे ह ैवो िदल से िजगर मे समाने लगे ह ै

िमरे सब को आजमाने की खाितर वो हर बात पर मुसकुराने लगे ह ै

असमभव को समभव बनाने की खाितर हथेली पे सरसो जमाने लगे ह ै

नए दौर मे भूख और पयास िलखकर मुझे बात हक की बताने लगे ह ै

सुखन मे नई सोच की आँच लेकर गजलकार िहदी के आने लगे ह ै

िक ढंूढो "महावीर" तुम अपनी शैली तुमह ेमीरो-गािलब बुलाने लगे ह ै

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सच हरदम कहना पगले

सच हरदम कहना पगलेझूठ न अब सहना पगले

सजनी बोली साजन से तू मेरा गहना पगले

घबराता ह ँतनहा मैदरू न अब रहना पगले

िदल का ददर उभारे जोशेर वही कहना पगले

राखी का िदन आया हैयाद करे बहना पगले

रक मत जाना एक जगहदिरया सा बहना पगले

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"लौट आया समय हषर उललास का"

"लौट आया समय हषर उललास का" रंग ऐसा चढा आज मधुमास का

नाचती रािधका, नाचती गोिपयाँ खेल अदभुत रचा ह ैमहारास का

पाठशाला यह जीवन बना आजकल िनत नया पाठ ह ैभूख और पयास का

अतयिधक था भरोसा मुझे आपपर आपने कयो िकया कतल िवशास का

दशे संकट मे ह ैमत िठठोली करो आज अवसर नही हास-पिरहास का

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बीती बाते िबसरा कर

बीती बाते िबसरा करअपने आज को अचछा कर

कर द ेदफन बुराई कोअचछाई की चचार कर

लोग तुझे बेहतर समझेवो जजबा तू पैदा कर

हर शय मे ह ैनूरे-खुदाहर शय की तू पूजा कर

जब गम से जी घबरायेऔरो के गम बाँटा कर

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घास के झुरमुट मे बैठे दरे तक सोचा िकये

घास के झुरमुट मे बैठे दरे तक सोचा िकयेिजनदगानी बीती जाए और हम कुछ ना िकये

जोड ना पाए कभी हम चार पैसे ठीक सेपेट भरने के िलए हम उमभर भटका िकये

हम दखुी ह ैगीत खुिशयो के भला कैसे रचेआदमी का रप लेकर गम ही गम झेला िकये

फूल जैसे तन पे दो कपड ेनही ह ैठीक सेशबनमी अशको की चादर उमभर ओढा िकये

कया अमीरी, कया फकीरी, वकत का सब खेल हैभेष बदला, इक तमाशा, उमभर दखेा िकये

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तेरी तसवीर को याद करते हए

तेरी तसवीर को याद करते हएएक अरसा हआ तुझको दखेे हए

एक िदन खवाब मे िजनदगी िमल गईमौत की शकल मे खुद को जीते हए

आह भरते रह ेउमभर इशक मेिजनदगी जी गये तुझपे मरते हए

िकतनी उममीद तुमसे जुडी खुद-ब-खुदिकतने अरमान ह ैिदल मे िसमटे हए

िफर मुकममल बनी तेरी तसवीर योखेल ही खेल मे रंग भरते हए

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चाँदनी िखलने लगी, मुसकुराना आपका

चाँदनी िखलने लगी, मुसकुराना आपका दखेकर खुश ह ैसभी, िदल लुभाना आपका

ह ैवो िकसमत का धनी, आपका जो हो गयाचाँद भी चाह ेयहाँ, साथ पाना आपका

खूब ये महिफल सजी, झूमने आये सभीिदल को मेरे भा गया, गुनगुनाना आपका

आपको कैसे कह,ँ दखेकर मदहोश ह ँगंूजती शहनाई पर, िखलिखलाना आपका

जी लगाकर ही सदा, जब कहा उसने कहाजी चुराकर ले गया, जी लगाना आपका

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जमी कीचड को िमलकर दरू करना ह ै

जमी कीचड को िमलकर दरू करना ह ैउठ, आगे बढो, कुछकर गुजरना ह ै

कदम कैसे रकेगे इनकलाबी के हो कुछ भी, मौत से पहले न मरना ह ै

िमल नाकामी या तकलीफ राहो मे कभी इलजाम औरो पे न धरना ह ै

झुकेगा आसमाँ भी एक िदन यारो िसतमगर हो बडा कोई, न डरना ह ै

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पग न तू पीछे हटा, आ वकत से मुठभेड कर

पग न तू पीछे हटा, आ वकत से मुठभेड कर हाथ मे पतवार ले, तूफान से िबलकुल न डर

कया हआ जो चल न पाए, लोग तेरे साथ मे तू अकेले ही कदम, आगे बढा होके िनडर

िजनदगी ह ैबेवफा, ये बात तू भी जान ले अंत तो होगा यकीनन, मौत से पहले न मर

बांध लो सर पे कफन, ये जंग खुशहाली की ह ैकािनत पथ पे बढ चलो अब, बढ चलो होके िनडर

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रौशनी को राजमहलो से िनकाला चािहये

रौशनी को राजमहलो से िनकाला चािहयेदशे मे छाये ितिमर को अब उजाला चािहये

सुन सके आवाम िजसकी, आहटे बेखौफ अब आज सता के िलए, ऐसा िजयाला चािहये

िनधरनो का खूब शोषण, भष शासन ने िकया बनद हो भाषण फकत, सबको िनवाला चािहये

सूचना के दौर मे हम, चुप भला कैसे रह ेभष हो जो भी यहाँ, उसका िदवाला चािहये

िगर गई ह ैआज कयो इतनी िसयासत दोसतो एक भी ऐसा नही, िजसका हवाला चािहये

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काँटे खुद के िलए जब चुने दोसतो

काँटे खुद के िलए जब चुने दोसतोआम से खास यूँ हम बने दोसतो

राह दशुार थी, हर कदम मुिशकले पार जंगल िकये यूँ घने दोसतो

रख हवा का जरा आप पहचािनए आँिधयो मे िगरे वृक घने दोसतो

काितलो को िदया, हमने खनजर तभी खून से हाथ उनके सने दोसतो

सब बदल जायेगा, सोच बदलो जरा सोच से ही बडे, सब बने दोसतो

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बात मुझसे यह ववसथा कह गई ह ै

बात मुझसे यह ववसथा कह गई ह ैहर तमना िदल मे घुटके रह गई है

चार सू जनतनत मे जुलमो-िसतम ह ैअब यहाँ िकसमे शराफत रह गई है

दःुख की बदली बन गई ह ैलोकशाही िजनदगी बस आँसुओ मे बह गई है

थी कभी महलो की रानी ये ववसथा भष लोगो की ये दासी रह गई है

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कयो बचे नामोिनशाँ जनतंत मे

कयो बचे नामोिनशाँ जनतंत मे कोई ह ैकया बागवाँ जनतंत मे

रहनुमा खुद लूटते ह ैकारवाँ दःुख भरी ह ैदासताँ जनतंत मे

कयो िकरण रह-रह के अब ह ैटूटती कौन होगा पासवाँ जनतंत मे

मुफिलसी महगंाई से भयकांत है दनेे होगे इिमतहाँ जनतंत मे

जानवर से भी बुरे हालात है आदमी ह ैबेजुबाँ जनतंत मे

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फैसला अब ले िलया तो सोचना कया बढ चलो

फैसला अब ले िलया तो सोचना कया बढ चलो जो भी होगा अचछा होगा, बोलना कया बढ चलो

राह कब आसान थी, कोई हमारे वासते आँिधयो के सामने भी बैठना कया बढ चलो

इनकलाबी रासते ह ैमुिशकले तो आएँगी डर के अब पीछे कदम िफर खीचना कया बढ चलो

वक के माथे पे जो िलख दगेे अपनी दासताँ उनके आगे सर झुकाओ, सोचना कया बढ चलो

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मुहबबत का मतलब इनायत नही

मुहबबत का मतलब इनायत नही इनायत रहम ह ैमुहबबत नही

अदावत करो तो िनभाओ उसे िक दशुमन करे िफर िशकायत नही

गमो से ितरा वासता ह ैकहाँ गमो की मुझे भी तो आदत नही

मुझे िमल गए तुम जो जाने-िजगर!खुदा की भी अब तो जररत नही

'महावीर' अब कौन पूछे तुमह ेिक जब तुमपे कुछ मालो-दौलत नही

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ये चाहत की दिुनया िनराली ह ैयारो

ये चाहत की दिुनया िनराली ह ैयारोकोई कुछ कह,े बस खयाली ह ैयारो

उमंगे ह ैरौशन, जवाँ और रवाँ ह ैयहाँ रोज ही तो िदवाली ह ैयारो

मुकममल नही ह ैकोई शय यहाँ पर ये दिुनया अधूरी ह,ै खाली ह ैयारो

िकया याद ने उनकी तनहा मुझे िफर मुसीबत िफर इक मैने पाली ह ैयारो

तमाशा िदखाया ह ैगुबरत ने मेरी जुबाँ खुशक ह,ै पेट खाली ह ैयारो

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कह ँददर अपना मै कैसे िकसी से

कह ँददर अपना मै कैसे िकसी से िक लगता ह ैडर मुझको अपनी खुदी से

समनदर न जाने ह ैकतरे की कीमत िक बनता ह ैआिखर समनदर इसी से

न िहममत तुमहारी मै कम होने दूगंा मै हारा हआ ह ँभले िजनदगी से

भला ऐसी दिुनया मे कोई िजए कया जहाँ आदमी खुद डरे आदमी से

िमरा साथ द ेजो दमे-आिखरी तक रखँू वासता मै भी बस इक उसी से

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और गम िदल को अभी िमलना ही था

और गम िदल को अभी िमलना ही था चाक अरमाँ, चुप मगर, रहना ही था

कौन दतेा िजनदगी भर साथ यूँ आदमी को एक िदन मरना ही था

एक दिरया आग का दोनो तरफ इशक मे यूँ डूबके जलना ही था

इशक मे नाकािमयो का िसलिसला िहज मे बरसो बरस जलना ही था

जानता ह ँमै ितरी मजबूिरयाँ बेवफा को तो अलग चलना ही था

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हमने उस बेवफा से राह न की

हमने उस बेवफा से राह न की तडपे ताउम, उसकी चाह न की

ददर की रेत मे चले मीलो फूट छाले गए तो आह न की

हम-सा हमददर, हमनवा न िमला आह! कयूँ तुमने िफर िनबाह न की

जाँ भी तुम पर िनसार की हमने हाय! तुमने मगर िनगाह न की

थे गनहगार दोसतो! हम भी तुमने ही िजनदगी तबाह न की

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रह-रहकर याद सताए ह ै

रह-रहकर याद सताए ह ैकयो बेचैनी तडपाए ह ै

ओढो इस गम की चादर को जो जीना तो िसखलाए ह ै

चुपचाप िमरे िदल मे कोई खामोशी बनता जाए है

कया कीजै, सब का दामन भी अब हमसे छूटा जाए ह ै

वो ददर िमला ह ै'महावीर'परवाजे-तमना जाए है

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हर घडी को चािहए जीना यहाँ

हर घडी को चािहए जीना यहाँ तिलखयो को पडता ह ैपीना यहाँ

िजनदगी भर हसँता-गाता ही रह ेइतना पतथर िकसका ह ैसीना यहाँ

िगर पडगेे आके मुँह के बल हजूर!छत से गर उतरेगे िबन जीना यहाँ

रशक तुझपे गैर भी करने लगे यूँ तुझे अब चािहए जीना यहाँ

कया हआ ह ैआज के इंसान को आँख होते भी ह ैनाबीना यहाँ

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काँच जडा ह ैअपना घर

काँच जडा ह ैअपना घर सारे लोग बने पतथर

कतरा-कतरा दखे जरा मेरी आँखो मे सागर

अपनो ने वो जखम िदए रह मे चुभते ह ैनशतर

गम की यूँ बरसात हई भीग उठा हर इक मंजर

सािहब! गम की मत पूछो पीता ह ैखून िनरनतर

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शे'र इतने ही धयान से िनकले

शे'र इतने ही धयान से िनकले तीर जैसे कमान से िनकले

भूल जाये िशकार भी खुद को यूँ िशकारी मचान से िनकले

था बुलनदी का वो नशा तौबा जब िगरे आसमान से िनकले

ह ँमै कतरा, िमरा वजूद कहाँ कयो समनदर गुमान से िनकले

दखेकर फख हो जमाने को यूँ 'महावीर' शान से िनकले

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िजनके पँखो मे दो जहान हए

िजनके पँखो मे दो जहान हए वे ही पंछी लहलुहान हए

दोसती के जहाँ तकाजे है फजर भी खूब इिमतहान हए

सुन नही पाए बात मेरी जो हमवतन मेरे हमजुबान हए

आपने कह दी बात मेरी भी आप ही िदल की दासतान हए

कयो 'महावीर' मौत का डर है हािदसे रोज दरिमयान हए

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दशुमनी का वो इिमतहान भी था

दशुमनी का वो इिमतहान भी था दोसती की वो दासतांन भी था

रख िदया खुद को दाँव पर मैने सब का खूब इिमतहान भी था

मै अकेला नही था यार िमरे!बदगुमानी मे तो जहान भी था

खून ही तो बहाया बस उसने शाह-ेयूनान कया महान भी था

जब बुजुगो के उठ गए साये हर कदम एक इिमतहान भी था

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रात भर आपकी याद आती रही

रात भर आपकी याद आती रही िदन चढे भी हमे जो सताती रही

फूल जैसा बदन हो गया आपका कोई खुशबू-सी भीतर समाती रही

दीप उममीद का जलता-बुझता रहा िदल मे तू ही िमरे िझलिमलाती रही

िजस तमना से हम तुझको दखेा िकये उमभर वो तमना रलाती रही

दद-ेिदल को िमरे बाँटने के िलए िजनदगी इक लतीफा सुनाती रही

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िमरी नजर मे खास तू, कभी तो बैठ पास तू

िमरी नजर मे खास तू, कभी तो बैठ पास तू ितरे गमो को बाँट लूँ, ह ैकयो बता उदास तू

लगे ह ैआज भी मुझे, भुला नही सकँू तुझे कभी जो िमट न पायेगी, वही ह ैमेरी आस तू

िछपी तुझी मे तशगी, नुमाँ तुझी मे हसरते लुटा द ेआज मिसतयाँ, बुझा द ेमेरी पयास तू

वजूद अब ितरा नही, ये जानता ह ँयार मै िमरा रगो मे आ बसा है, अब तो और पास तू

िछपाए राजे-जखम तू ऐ यार टूट जायेगा गमो से चूर-चूर यूँ, ह ैकबसे बदहवास तू

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िदल मे तेरे पयार का दफतर खुला

िदल मे तेरे पयार का दफतर खुला कया िनहायत खूबसूरत दर खुला

वो पिरनदा कैद मे तडपा बहत िजसके ऊपर था कभी अमबर खुला

खवाब आँखो से चुरा वो ले गए राजे-उलफत तब कही हम पर खुला

जी न पाए िजनदगी अपनी तरह मर गए तो मयकद ेका दर खुला

शेर कहने का सलीका पा गए 'मीर' का दीवान जब हम पर खुला

वो 'असद िमजार' मुझे सोने न द ेखवाब मे दीवान था अकसर खुला

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कया कह ँमै वकत की इस दासताँ को

कया कह ँमै वकत की इस दासताँ को िजनदगी तैयार ह ैहर इिमतहाँ को

चोट पर वो चोट दतेा ही रहा है कब तलक खामोश रकखँू मै जुबाँ को

हर घडी बेचैन था, सहमा हआ था कह नही पाया कभी मै दासताँ को

यूँ तो ऊँचा ही उडा मन का पिरनदा छू नही पाया मगर ये आसमाँ को

कारवाँ से दरू मिनजल हो गई है ऐ खुदा! तू ही बता जाऊँ कहाँ को

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पँख टूटे ह ैतो कया परवाज करते

पँख टूटे ह ैतो कया परवाज करते पोच ह ैतकदीर तो कया नाज करते

बेच आये अपने ही जब िदल हमारा िफर भला हम कया उनह ेनाराज करते

िकस तरह करते िशकायत हम खुदा से कर िदया गूँगा तो कयो आवाज करते

यूँ मुझे तुमने कभी चाहा कहाँ था इक दफा ही काश! तुम आवाज करते

हो गई गुसतािखयाँ कुछ बेखुदी मे वरना उनको और हम, नाराज करते

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जो हआ उसपे मलाल करके

जो हआ उसपे मलाल करके कया िमलेगा यूँ बवाल करके

कौन-सा िरशता बचा ह ैभाई बीच आँगन मे िदवाल करके

खवाब मे माजी ने जब दी दसतक लौट आया कुछ सवाल करके

इस ववसथा ने गरीब को ही छोड रकखा ह ैिनढाल करके

वकत हरैाँ ह ैजमाने से खुद एक पेचीदा सवाल करके

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बाण वाणी के यहाँ ह ैिवष बुझे

बाण वाणी के यहाँ ह ैिवष बुझे ह ैउिचत हर आदमी अचछा कहे

भूले से िवशास मत तोडो कभी धयान हर इक आदमी इसका धरे

रोिटयाँ ईमान को झकझोरती मुफिलसी मे आदमी कया ना करे

भूख ही ठुमके लगाए रात-िदन नाचती कोठे पे अबला कया करे

िजनदगी ह ैहर िसयासत से बडी लोकशाही िजनदगी बेहतर करे

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यह पकृित का िचत अित उतम बना ह ै

यह पकृित का िचत अित उतम बना है"मत कहो आकाश मे कुहरा घना है"

पितिदवस ही सूयर उगता और ढलता चार पल ही िजनदगी की कलपना है

लकय पाया मैने संघषो मे जीकर मुिशकलो से लडते रहना कब मना है

कया हदय से हीन हो, ऐ दषु िनषुर रक से हिथयार भी दखेो सना है

तुम रचो जग मे नया इितहास अपना हर िपता की पुत को शुभ कामना है

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मकडी-सा जाला बुनता है

मकडी-सा जाला बुनता हैये इशक तुमहारा कैसा है

ऐसे तो न थे हालात कभीकयो गम से कलेजा फटता है

मै शुकगुजार तुमहारा हँमेरा ददर तुमह ेभी िदखता है

चारो तरफ तसववुर मे भीइक सनाटा-सा पसरा है

करता ह ँखुद से ही बातेकोई हम सा तनहा दखेा है

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कांित का अब िबगुल बजा दशे मे

कांित का अब िबगुल बजा दशे मे तू भी कुछ इंकलाब ला दशे मे

कर रहा आम आदमी चेषा इक नया रासता खुला दशे मे

छोडकर मुफिलसो को और पीछे हकमरानो ने कया िकया दशे मे

कोिशशो से िमली थी आजादी सोिचये हमने कया िकया दशे मे

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उतरांचली सािहतय संसथान (उदेशय व लकय)

उतरांचली सािहतय संसथान की सथापना महावीर उतरांचली (वासतिवक नाम: महावीर िसह

रावत) दारा 2007 ईसवी० मे की गई थी। िजसके तहत राषभाषा से जुडे मुदे, िवकास और लकयकी पािप मुखय उदेशय था। यह सािहितयक और सामािजक आयोजन बन गया। "तीन पीिढयाँ :तीन कथाकार" पहली महतवपूणर पुसतक थी। िजसे सुरंजन जी ने समपािदत िकया। िजसका पकाशन'उतरांचली सािहतय संसथान' के आिथक सहयोग बारह हजार (12,000) से "मगध पकाशन" दारासमभव हो सका। इसकी सफलता के उपरांत अब तक दजरन भर छोटी-बडी िकताबे िबना िकसीआिथक लाभ के आई। सािहितयक पत-पितकाओ को समय-समय पर अनुदान लगभग पचास हजार(50,000) रपये िदए जा चुके ह।ै पुसतके-पितकाएँ खरीदकर नए सािहतयकारो का उतसाहवधरनकरना। सािहितयक आयोजनो के अलावा सामािजक कायो के अनतगरत उतरांचली संसथान ने वषर2008 ईसवी० मे सूदखोर लीले गुजर (िनवासी पताप िवहार, खोडा कॉलोनी) के चंुगल से शीमतीउषा दवेी (धमरपती शी मनोज कुमार) नाम की मिहला को शीमती सािवती दवेी (कोषाधयकउतरांचली सािहतय संसथान) ने पनदह हजार (15,000) रपये दकेर आजाद करवाया। आज उषासवतनतता पूवरक जीवन वतीत कर रही ह।ै तमाम घाटे के बावजूद उतरांचली सािहतय संसथानिपछले एक दशक से िनसवाथर भाव से चल रहा ह।ै यिद "पितिनिध लघुकथाएँ" और "पितिनिधगजले" शंृखला सफल रहती ह ैतो सथािपत रचनाकारो के साथ-साथ नवोिदत सािहतयकारो की

पुसतको को िनःशुलक पकािशत िकया जायेगा।

महावीर उतरांचली (संसथापक व िनदशेक)उतरांचली सािहतय संसथान (सािहितयक व सामािजक लकय)

मुखय कायारलय : ए-44, पताप िवहार,

खोडा कॉलोनी, गािजयाबाद (उ० प०)

उतरांचली सािहतय संसथान अपने सािहितयक और सामािजक कायो को िनिवघ व सवेचछापूवरक चला सके। इसकेिलए अनुदान के इचछुक विक ऑनलाइन अथवा चेक दारा दान कर सकते ह ै:—

MAHAVIR SINGH RAWAT / SAVITRI DEVI

A/C NO. 21350100007417

IFSC: BARB0TRDCHW [Fifth character is ZERO]

Bank Branch: Bank of Baroda, Mayur Vihar, Phase 3, New Delhi 110096

चैक इस पते पर भेज सकते ह ै—

उतरांचली सािहतय संसथान का शाखा कायारलय:

MAHAVIR SINGH RAWAT / SAVITRI DEVI —

बी-4 / 79, पयरटन िवहार, वसंुधरा एनकलेव, िदलली 110096

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