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लघुकथा पर सािहतयकारो के िवचार

"लघुकथा लेखक समाज को भीतर तक दखेते है, परखते ह ैऔर एक िवशेषज की तरहकुरपताओ, िवडमबनाओ को चीरते उधेडते ह—ैएक कुशल सजरन की तरह।"

—पदशी के एल िमश 'पभाकर' (अजर-अमर सािहतयकार)

"लघुकथा सवतनत, सशक िवधा ह।ै जैसे सतसैया के दोहरे। दखेन मे छोटे। घावगमभीर। इस िवधा की शिक के पीछे सामािजक पिरवतरन की पूरी पिकया ह।ै"

—िवषणु पभाकर ('आवारा मसीहा' जैसी कलािसक कृित के रिचयता )

"िहदी लघुकथा का केत आशयरजनक रप से फैला और बढा ह।ै नए-नए लेखक अपने-अपने अनुभवो और ताजगी से लघुकथा की मुखयधारा को समृद कर रह ेह।ै"

—डॉ कमल चोपडा (संपादक : संरचना)

"उपलबिध के अनुसार, मौजूदा वक मे िदलली के जो कथाकार लघुकथा लेखन मे संलगह ै उनमे िचता मुदल, कमल चोपडा, बलराम अगवाल, मधुदीप, बलराम, रामेशरकामबोज िहमांशु, अशोक गुजराती, कलीम आनंद, कुमार नरेनद, गजेनद रावत, पूरनिसह, रीता कशयप, वीरेनद गोयल, शोभा रसतोगी, सुभाष नीरव, अंकुश पूवारिनल,महावीर उतरांचली, सुशांत सुिपय, हरनाम शमार, अशोक वमार, असगर वजाहत,िवषणु नागर, महशे दपरण, राजकुमार गौतम, अिनल शूर आजाद, रपिसह चनदलेपभृित अनेक नाम पमुखता से िलए जा सकते ह।ै"

—िहनदी लघुकथा का ‘िदलली दरवाजा’ / डॉ॰ पुरषोतम दबुे

"महावीर उतरांचली बेशक धारदार कलम के िसपाही ह।ै लघुकथाओ मे वाप पैनापनउनकी िविशष शैली का पिरचायक ह।ै हाथ कंगन को आरसी कया!"

—कँुवर पेिमल (संपादक : ककुभ-1,2,3,4)

"आपकी रचनाएँ ('तलाश' और 'आतममंथन') अचछी ह।ै बधाई।"—महशे दपरण (विरष सािहतयकार/कथाकार व समपादक)

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USBN 08-2016-004-64

izfrfuf/k y?kqdFkk,a (Representative Short Stories)

© egkohj mRrjkapyh (Mahavir Uttranchali)

2016 izFke laLdj.k

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दो शबद

सन 1997 ईसवी मे मेरी पहली लघुकथा "साया" बदलाव का संघषरपथ (मािसक, समपादक:

सूरज िसह यादव, इटावा-मैनपुरी, यू.पी.) मे छपी थी। यह लघुकथा िवशेषांक था। इसमे"शेष" के संपादक हसन जमाल की लघुकथा भी थी। पितका वहां की सथानीय थी; अतःलघुकथा का कोई िजयादा चचार नही हआ। बात आई-गई हो गई। मै किवताओ पर केिदत होगया। इस बीच कुछ बडी कहािनयाँ भी िलखी और लघुकथाएँ भी चलती रही। समय-समयपर छोटी-बडी पत-पितकाओ मे िनरंतर छपती भी रही। लगभग पचास लघुकथाएँ एक-डेढदशक मे छप चुकी थी। इनमे से कुछ चुिनदा शेष लघुकथाए ं आपकी सेवा मे हािजर ह।ैइनको मै अपनी पितिनिध लघुकथाएँ मानता ह ँकयोिक कही न कही, इन लघुकथाओ ने मुझेएक लघुकथाकार के रप मे पहचान दी ह।ै िजन पत-पितकाओ मे इनका पकाशन हआ ह।ैउनके नाम कमशः 'संरचना' (संपादक: कमल चोपडा); 'कथासंसार' (संपादक: सुरंजन);'ककुभ-३' (संपादक: कँुवर पेिमल); 'अिवराम सािहतयकी' (संपादक: उमेश महादोषी ;बलराम अगवाल); कथाकम (संपादक: शैलेनद सागर); हिरगंधा (संपादक: मुका जी; अशोकभािटया); शुभ तािरका (संपादक: उिम कृषण); कतरव चक (संपादक: मनीष जैन); सुखनवर(संपादक: अनवारे इसलाम) ; मर गुलशन (संपादक: अिनल शमार) ; बुलनद पभा (संपादक:रमेश पसून, अनूप िसह) तथा ऑन लाइन वेब साईटस: — सवगरिवभा; पितिलिप;जयिवजय; रचनाकार; ई-कलपना; सािहतय िशलपी; सािहतय कञु और लघुकथा डॉट कॉमपर भी अनेक गुणी समपादको की िनगाहो से िनम लघु कथाएं गुजरी ह।ै

—महावीर उतरांचली

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तलाश......7 आतममंथन......8िशकक......9कददान......10थकान और सकून......12ितलचटे......14ठहाका......16

पितिकया......17

एन.आर.आई. .....18

सरहद......19

गोत......21

बालक और िवदान......22नई बात......23िदलचसप आदमी......24मिशकल समय......26

जायज......29

लुतफ......30आकोश......32

गुलाब......34िभखारी......36

साया......38

बनद दरवाजा......39

सोया हआ......40

आनदोलन......42

संवेदना......44

नई पिरभाषा......46

सवामीजी......48

जीवन संधया......50धमर िनरपेक......52

भोग......53

इनसािनयत......54

जीवन दशरन .....56सोच .....58परोपकार पुराण.....59घर-खचर.....61

तलाश......7आतममंथन......8िशकक......9कददान......10थकान और सकून......12ितलचटे......14ठहाका......16

पितिकया......17

एन.आर.आई. .....18

सरहद......19

गोत......21बालक और िवदान......22नई बात......23िदलचसप आदमी......24मिशकल समय......26

जायज......29

लुतफ......30आकोश......32

गुलाब......34िभखारी......36

साया......38

बनद दरवाजा......39

सोया हआ......40

आनदोलन......42संवेदना......44नई पिरभाषा......46

सवामीजी......48

जीवन संधया......50धमर िनरपेक......52भोग......53इनसािनयत......54

तलाश......7आतममंथन......8िशकक......9कददान......10थकान और सकून......12ितलचटे......14ठहाका......16

पितिकया......17

एन.आर.आई. .....18

सरहद......19

गोत......21बालक और िवदान......22नई बात......23िदलचसप आदमी......24मिशकल समय......26

जायज......29

लुतफ......30आकोश......32

गुलाब......34िभखारी......36

साया......38

बनद दरवाजा......39

सोया हआ......40

आनदोलन......42संवेदना......44नई पिरभाषा......46

सवामीजी......48

जीवन संधया......50धमर िनरपेक......52भोग......53इनसािनयत......54

दो शबदतलाश 1 आतममंथन 2िशकक 3 कददान 4 थकान और सकून 5 ितलचटे 8 ठहाका 10पितिकया 11एन.आर.आई. 12सरहद 13गोत 14बालक और िवदान 15नई बात 16िदलचसप 17मिशकल समय 19जायज 22लुतफ 23आकोश 25गुलाब 27िभखारी 29साया 31बनद दरवाजा 32सोया हआ 33आनदोलन 35संवेदना 37नई पिरभाषा 39सवामीजी 42जीवन संधया 44धमर िनरपेक 46भोग 47इनसािनयत 49

दो शबदतलाश 1 आतममंथन 2िशकक 3 कददान 4 थकान और सकून 5 ितलचटे 8 ठहाका 10पितिकया 11एन.आर.आई. 12सरहद 13गोत 14बालक और िवदान 15नई बात 16िदलचसप 17मिशकल समय 19जायज 22लुतफ 23आकोश 25गुलाब 27िभखारी 29साया 31बनद दरवाजा 32सोया हआ 33आनदोलन 35संवेदना 37नई पिरभाषा 39सवामीजी 42जीवन संधया 44धमर िनरपेक 46भोग 47इनसािनयत 49

िवषय सूची तलाश 1 आतममंथन 2िशकक 3 कददान 4 थकान और सकून 5 ितलचटे 8 ठहाका 10पितिकया 11एन.आर.आई. 12सरहद 13गोत 14बालक और िवदान 15नई बात 16िदलचसप 17मिशकल समय 19जायज 22लुतफ 23आकोश 25गुलाब 27िभखारी 29साया 31बनद दरवाजा 32सोया हआ 33आनदोलन 35संवेदना 37नई पिरभाषा 39सवामीजी 42जीवन संधया 44धमर िनरपेक 46भोग 47इनसािनयत 49

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तलाश

"मै तो खलील िजबान बनूँगा तािक कुछ कालजयी रचनाएँ मेरे नाम पर दजर हो।" एक अितउतावला होकर बोला। हम सब उसे दखेने लगे। हम सबकी आँखो के आगे हवा मे खलील िजबानकी उतकृष रचनाएँ तैरने लगी।

दरअसल काफी समय बाद मुलाकात मे हम पाँच लेखक इकटा हए। सभी एक-दसूरे से अचछी तरहपिरिचत। पाँचो पांडवो की तरह हम सब लेखन के हनर के धुरंधर योदा। अतः हम पाँचो के मधयसमय-समय पर सािहतय के अलावा िविवध िवषयो पर आतममंथन, गहमा-गहमी, टकराव,गितरोध, वाद-िववाद, आलोचना, टीका-िटपपणी आिद का दौर चलता रहता था। आज का िवषयबातो-बातो मे यूँ ही बनता चला गया। बात चली िक हम सािहतय कैसा रचे? हमारे इदर-िगदरसािहतय की भीड ह।ै हम िकनका अनुकरण करे! या िकस िशखर िबद ुको छूएँ?

"मै ओ’ हनेरी बनना चाहगँा। उसके जैसी कथा-दिृष अनयत नही िदखती।" पहले शखस काउतावलापन दखेकर दसूरे ने भी जोश के साथ अपने होने की पुिष कर दी। हम सभी का धयान अबउसकी ओर गया। ओ’ हनेरी की अमर कथा-कहािनयाँ "बीस साल बाद", "आिखरी पती","उपहार", और "ईसा का िचत" आिद हम सबके दरिमयान वातावरण मे घूमने लगी।

"मुझे चेखव समझो।" तीसरे ने ऐसे कहा, जैसे चेखव उसका लंगोिटया यार हो। बडे गवर से हमतीसरे की तरफ दखेने लगे। चेखव का तमाम रसी सािहतय अब हमारे इदर-िगदर था।

"और आप...!" मैने सामने बैठे विक से कहा।

"भारतीयता का पक रखने के िलए मै पेमचंद बनना चाहगँा।" उन चौथे सजन ने भी सािहतय केपित अपनी पितबदता को दोहराया।

मै मन-ही-मन सोच-िवचार मे डूब गया। 'काश! इन सबने दसूरो की तरफ दखेने की जगह अपनीरचनाओ मे खुद को तलाशने की कोिशश ...' अभी मै इतना ही सोच पाया था िक भावी पेमचंद नेमुझे झकझोर कर मेरी तनदा तोडी, "और आप कया बनना चाहोगे महाशय?"

"मै कया कह?ँ अभी मेरे अंदर खुद की तलाश जारी ह।ै िजस िदन पूरी होगी... तब शायद मै भीकुछ ...," आगे के शबद मेरे मुख मे ही रह गए और मै भिवषय के महान सािहतयकारो की सभा सेउठकर चला आया।

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NEET - 12 Years' Solved Papers (2006 - 2017)Rs. 237

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आतममंथन"समपूणर िवश मे मेरा ही वचरसव ह।ै" भूख ने भयानक सवर मे गजरना की।

"मै कुछ समझी नही।" पयास बोली।

"मुझसे वाकुल होकर ही लोग नाना पकार के उदोग करते ह।ै यहाँ तक िक कुछ अपना ईमान तकबेच दतेे ह।ै" भूख ने उसी घमंड मे चूर होकर पुन: हकंार भरी, "िनधरनो को तो मै हर समय सतातीह।ँ अिधक िदन भूखे रहने वालो के मै पाण तक हरण कर लेती ह।ँ अकाल और सूखा मेरे हीपयारयवाची ह।ै अब तक असंखय लोग मेरे कारण असमय काल का गास बने ह।ै"

यकायक मेघ गरजे और वषार पारमभ हई। समसत पकृित खुशी से झूम उठी। जीव-जंतु। वृक-लताएँ।घास-फूस। मानो सबको नवजीवन िमला हो! शीतल जल का सपशर पाकर गीषम ऋतु से वाकुलपयासी धरती भी तृप हई। पयास ने पानी का आभार वक करते हए, पितउतर मे "धनयवाद" कहा।

"िकसिलए तुम पानी का शुिकया अदा करती हो, जबिक पानी से जयादा तुम महतवपूणर हो?" भूखका अिभमान बरकरार था।

"शुक ह ैमेरी वजह से लोग नही मरते। गरीब आदमी भी पानी पीकर अपनी पयास बुझा लेते ह।ैकया तुमह ेभी अपना दभं तयागकर अन का शुिकया अदा नही करना चािहए?"

पयास के इस आतम मंथन पर भूख हरैान थी!

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29 Years NEET/ AIPMT Topic wise Solved Papers PHYSICS (1988 - 2016) 11th EditionRs. 169

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िशकक"आप हर पिरिसथित मे इतने शांत, धीर-गंभीर कैसे रहते है?" उसने आशयर से कहा।

"मै जीवन के रहसय को समझ गया ह ँबेटा।" वृद विक ने अपनी उम से आधे उस िजजासु युवा सेकहा, "कया मै तुमह ेबेटा कहने का अिधकार रखता हँ?"

"हाँ-हाँ कयो नही, आप मेरे िपता की आयु के ह।ै" उसने मुसकुराते हए कहा, "मुझे कुछ जानदीिजये।"

"बचपन कया ह?ै" यूँ ही पूछ िलया वृद ने।

"मूखरतापूणर खेलो, अजानता भरे पशो और हसँी-मजाक का समय बचपन ह।ै" उसने ठहाका लगातेहए कहा।

"नही वतस, बालयावसथा जीवन का सवणरकाल ह।ै िजजासा भरे पशो, िनसवाथर सची हसँी का समय।"वृद ने गंभीरता से जवाब िदया। िफर पुन: नया पश िकया, "और जवानी?"

"मौज-मसती, भोग-िवलास और एशो-आराम का दसूरा नाम जवानी ह।ै" युवा तरण उसी िबदाससवर मे बोला।

"दाियतवो को पूणर गंभीरता से िनभाने। उतसाह और सफूित से हर मुिशकल पर िवजय पाने। नएसवप सँजोने और समपूणर िवश को नव दिृषकोण दनेे का नाम युवावसथा ह।ै" वृद ने उसी धैयर केसाथ कहा।

"लेिकन वृदावसथा तो मृतयु की थका दनेे वाली पतीका का नाम ह।ै" वह तपाक से बोला। शायदवह बुढापे पर भी वृद के िवचारो को जानना चाहता था, "जहाँ न ऊजार का संचार है, न सवपदखेने की जररत। बीमारी और दःुख-तकलीफ का दसूरा नाम जीवन संधया। कयो आपका कयािवचार ह?ै" उसने मानो वृद पर ही कटाक िकया हो।

"वतस, तुम िफर गलत हो। जीवन के पित सकारातमक नजिरया रखो।" वृद ने अपना दिृषकोणरखा, "वृदावसथा उन सपनो को साकार करने की अवसथा है, जो तुम बचपन और जवानी मे पूणरनही कर सके। अपने अनुभव बचो और युवाओ को बाँटने की उम ह ैयह। रही बात मृतयु की तोिकसी भी कण और िकसी भी अवसथा मे आ सकती है, उसके िलए पतीका कैसी?"

"आप यिद मेरे गुर बन जाएँ तो संभव ह ैमुझे नई िदशा-मागरदशरन िमल जाये।" नतमसतक होकरवह वृद िशकक के चरणो मे िगर पडा।

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कददानशाम पूरी तरह ढलने को थी; कयोिक सब जगह लाइटे जल उठी थी। हमेशा की तरह बाजारसजा हआ था। लोग-बाग अपन-ेआप मे मसरफ थे। तभी संगीत की मधुर सवर लहरी उसकेकानो मे पडी तो वह बेचैन हो गया। वह आवाज की िदशा मे िखचता चला गया। पता नही कौन-सीकिशश थी िक, चाहकर भी वह सवयं को रोक न सका। गीत को गाियका ने बडी कुशलता के साथगाया था। यकायक वह बडबडाने लगा, “यही है! हाँ, हाँ …. यही ह,ै वो गीत जो बरसो पहले सुनाथा।” गीत को सुनकर, वह पागलो की तरह बदहवास-सा हो गया था। चेहरे से वह लगभग 55-60बरस का जान पडता था। उसने लगभग पचास बरस पूवर यह गीत गामोफोन पर सुना था। इसकेपशात उसने हर तरह का गीत-संगीत सुना — िफलमी, गैर-िफलमी, सुगम संगीत से लेकर शासीयसंगीत भी मगर वैसी तृिप न िमल सकी। जैसी इस गीत मे थी। उस गीत की खाितर वह अनेकशहरो के कई संगीत िवकय केदो (मयूिजक सटोसर) से लेकर बडी-बडी सभाओ और महिफलो मेगया। मगर अफसोस वह गीत दबुारा कही सुनने को न िमल सका। यहाँ तक िक इंटरनेट पर, यू-टूबमे भी उसने गीत के बोलो को तलाश िकया। िकतु वथर वहां भी वह गीत उपलबध नही था। आजपचास वषो बाद उसकी यह उमभर की तलाश खतम हई थी। अतः उसका दीवाना होना लाजमीथा। वह िनरनतर आवाज की िदशा मे बदहवास-सा बढता रहा। आवाज कोठे के पथम तल से आरही थी। एक पुराने से गामोफोन पर उस गीत का िरकाडर बज रहा था। वह हरैान था! कमपयूटरऔर मोबाइल के अतयाधुिनक दौर मे कोई आज से पचास-साठ साल पुराने तरीके से पुराना गानासुन रहा था। शायद कोई उससे भी बडा चाहने वाला यहाँ मौजूद था।

“आप बडे शौकीन आदमी मालूम होते है, बाबू सािहब।” कोठे की मालिकन शबाना ने अपनी जुलफोको झटका दतेे हए कहा।

“शौकीन! ये गीत …. ओह मै कहाँ ह?ँ” वह विक िकसी नीद से जागा था।

“आप सही जगह आये ह ैहजूर। यहाँ हस का बाजार सजा ह।ै” शबाना ने ताली बजाई और लगभगदजरनभर लडिकयां एक कतार से कक मे पवेश कर गई।

“माफ करना मै रासते से गुजर रहा था िक गीत के बोल मेरे कानो मे पडे— बांसुरी ह ँमै ितहारी,मोह ेहोठो से लगा ले साँवरे।” उसने उतावला होकर कहा।

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“ये तो गुजरे जमाने की मशहर तवायफ रंजना बाई का गाया गीत ह।ै िजसे गीत-संगीत के शौकीननवाब साहब ने िरकाडर करवाया था। इसकी बहत कम पितयाँ ही िबक पाई थी। िफर ये गीतहमेशा-हमेशा के िलए गुमनामी के अंधेरो मे खो गया था। यूँ समझ लीिजए ये गीत तब का ह ैजबपूरे िहदसुतान मे के० एल० सहगल के गाये गीतो की धूम थी।” शबाना ने आगंतुक को गीत से जुडालगभग पूरा इितहास बता िदया।

“कया मै आपसे एक सवाल पूछ सकता हँ?” शाबाना ने िसर िहलाकर अपनी सवीकृित दी तो उसनेअपना सवाल पूछा, “आप आज भी इसे गामोफोन पर सुन रही ह।ै वजह जान सकता ह ँकयो?”

“रंजना बाई मेरी नानी थी। मेरी माँ भी अकसर उनका यह गीत इसी पकार गामोफोन पर सुनाकरती थी। उनहोने मुझे बताया था िक, यह गामोफोन मेरी नानी ने उस जमाने मे खरीदा था। जबयह शहर के िगने-चुने रईसो के पास ही हआ करता था।”

“ओह! आप तो उनकी मुझसे भी बडी पशंसक ह।ै मेरे पास हजार रपये ह।ै तुम चाहो तो ये रखलोऔर मुझे यह िरकाडर द ेदो।” उस कददान ने जेब से हजार का नोट िनकलते हए कहा।

“हजार रपये मे तो तुम पूरी रात ऐश कर सकते हो बाबूजी। इस बेकार से पडे िरकाडर पर कयो एकहजार रपये खचर करते हो।” शबाना ने िफर से डोरे डालते हए कहा।

“यह गीत मैन ेआठ-दस बरस की उम मे सुना था….” इसके पशात उसने इस गीत के पीछे अपनीदीवानगी की पूरी राम-कहानी शबाना को कह सुनाई। िफर अपनी दसूरी जेब से एक और नोटिनकलते हए कहा, “ये पांच सौ रपये और रख लो, मगर अललाह के वासते मुझे यह िरकाडर द ेदो।दखेो इससे िजयादा पैसे इस वक मेरे पास नही ह।ै ये गीत मेरी उमभर की तलाश ह।ै” उसने अपनीसारी खाली जेबे शबाना को िदखाते हए, यकीन िदलाने की चेषा की।

“बहत खूब! कला के सचे कददान हो! ले जाओ ये िरकाडर और गामोफोन भी।” शबाना ने पैसेलौटाते हए कहा, “हमारी तरफ से ये सौगात तुमहारी दीवानगी के नाम।”

“मगर ये पैसे कयो लौटा रही हो?” वह विक बोला।

“हम बाजार औरते अपना िजसम जरर बेचती है, मगर कला हमारी आतमा मे बसती ह ैऔर हमकला का सौदा नही करती।” शबाना ने बडे गवर से कहा।

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थकान और सुकून"ओहो मै तगं आ गया ह ँशोर-शराबे से, नाक मे दम कर रखा ह ैशैतानो ने।" दफतर से थके-हारेलौटे भगवान दास ने अपने आँगन मे खेलते हए बचो के शोर से तंग आकर चीखते हए कहा। िपटाईके डर से सारे बचे तुरंत गली की ओर भाग खडे हए। उनकी पती गायती िकचन मे चाय-िबिसकटकी तैयारी कर रही थी।

"गायती मै थक गया ह ँिजममेदािरयो को उठाते हए। एक पल भी सुकून मययसर नही ह।ै मन करताह ैसनयासी हो जाऊँ...।" बैग को एक तरफ फेकते हए, ठीक कूलर के सामने सोफे पर फैल कर बैठतेहए भगवान दास ने अपने शरीर को लगभग ढीला छोडते हए कहा। इसी समय एक टे मे िफज काठंडा पानी और तैयार चाय-िबिसकट िलए गायती ने कक मे पवेश िकया और टे को मेज पर पितदवेके सममुख रखते हए बोली, "पैर इधर करो, मै आपके जूते उतार दतेी ह।ँ आप तब तक खामोशी सेचाय-पानी पीिजये।" कूलर की हवा मे ठंडा पानी पीने के उपरांत भगवान दास चाय-िबिसकट काआननद लेने लगे तो ऑिफस की थकान न जाने कहाँ गायब हो गई और उनके चेहरे पर अब सुकूनछलक रहा था। वातावरण मे अजीब-सी शांित पसर गई थी।

"कया कहा था आपने सनयासी होना चाहते है? " गायती ने पितदवे के जूते उतार कर एक ओररखते हए कहा।

"िबलकुल, इसमे गलत कया ह!ै" कहकर भगवान दास ने चाय का घँूट िनगला।

"िफर शादी कयो की थी?" गायती ने भगवान दास की ओर दसूरा पश उछाला।

"मेरी मत मारी गई थी।" भगवान दास िबिसकट चबाते हए बोले, "अगर पहले पता होता, शादी केबाद इतने पचडे होगे। रोज नए पापड बेलने पडगेे। िजममेदािरयो के िहमालय पवरत उठाने पडेगे तोकभी शादी न करते।" भगवान दास को इस बहस मे बडा सुकून-सा िमलने लगा था।

"दफतर मे कुसी पर बैठे सारा िदन बाबूिगरी िकये िफरते हो। घर मे दोनो समय पकी-पकाई रोटीतोडते हो। चार वकत चाय पीते हो। लाट साहब की तरह धुले-धुलाये कपडे पहने को िमल जाते ह।ै

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िफर भी ये तेवर!" गायती अब धीरे-धीरे रौद रप धारण करने लगी थी। भगवान दास मन ही मनमुसकुरा रह ेथे। यूँ गायती से छेड िकये हए, उसे एक अरसा हो चुका था।

"और नही तो कया? इतना भी नही करोगी तो शादी का फायदा कया है?" भगवान दास ने मजाकको जारी रखा।

"अचछा, ये दीवार पर िकनकी तसवीरे टँगी है?" गायती ने अपने पित से अगला पश िकया।

"कया बचो जैसा सवाल कर रही हो गायती? मेरे माँ-बाबूजी की तसवीरे ह।ै" कहते हए भगवानदास के मनोमिसतषक मे बालयकाल की मधुर समृितयाँ तैरने लगी। कैसे भगवान दास पूरे घर-आँगनमे धमा-चौक मचाते थे! माँ-बाबू जी अपने िकतने ही कषो-दखुो को िछपाकर भी सदा मुसकुराते थे।

"कया आपको और आपके भाई-बहनो पालते वकत, आपके माँ-बाबूजी को परेशानी नही हई होगी?अगर वो भी कहते हम थक गए है, िजममेदािरयो को उठाते हए। बचो के शोर-शराबे से तंग आ चुकेह,ै तो कया आज तुम इस कािबल होते, जो हो?" गायती ने पशो की बौछार-सी भगवान दास केऊपर कर डाली, "और सारा िदन घर के काम-काज के बीच बचो के शोर-शराबे को मै झेलती ह।ँयिद मै तंग आकर मायके चली जाऊँ तो!" गायती ने गंभीर मुदा इिखतयार कर ली।

"अरे यार वो थकावट और तनाव के कणो मे मुँह से िनकल गया था।" मामला िबगडता दखे,अनुभवी भगवान दास ने अपनी गलती सवीकारी।

"अचछा जी!" गायती नाराज सवर मे ही बोली।

"अब गुससा थूको और तिनक मेरे करीब आकर बैठो।" चाय का खाली कप मेज पर रखते हएभगवान दास बोले। िफर उसी कम को आगे बढते हए, बडे ही पयार से भगवान दास ने रठी हईगायती को मानते हए कहा, "िजसकी इतनी खूबसूरत और समझदार बीबी हो, वो भलािजममेदािरयो से भाग सकता है," गायती के गाल पर हलकी-सी िचकोटी काटते हए भगवान दासबोले।

"बदमाश कही के।" गायती अजीबो-गरीब अंदाज मे बोली।

एक अजीब-सी मुसकान और शरारत वातावरण मे तैर गई।

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ितलचटे"वो दखेो दाने-पानी की तलाश मे िनकलती ितलचटो की भीड।" लेबर चौक के चौराह ेपर हरीबती की पतीका मे खडी कार के भीतर से िकसी ने मजदरूो के समूह पर िघनौनी टीका -िटपपणीकी।

"हराम के िपलले।" कार के िनकट मेरे साथ खडा कलवा उस कार वाले पर िचललाया, "हमाराशोषण करके तुम एशो-आराम की िजदगी गुजार रह ेहो और हमे ितलचटा कहते हो। मादर .... !"माँ की गाली बकते हए कलवे ने सडक िकनारे पडा पतथर उठा िलया। वह कार का शीशा फोड हीदतेा यिद मैने उसे न रोका होता। कार वाला यह दखेकर घबरा गया और जैसे ही हरी बती हई वहतुरंत कार को दौडाने लगा।

"कलवा पागल हो गए हो कया तुम?" मैने उसे शांत करने की कोिशश की।

"हाँ-हाँ पागल हो गया ह ँ मै। हम मजदरूो की तबाह-हाल िजदगी का कोई आिमरजादा मजाकउडाए तो मै बदारशत नही कर सकता। साले का सर फोड दूगँा। चाह ेवह टाटा-िबडला ही कयो नहो?" कलवा पर जनून हावी था।

"जलदी चल यार, फैकटी का सायरन बजने वाला ह।ै कही हॉफ-डे न कट जाये।" और दोनो िमतमजदरूो की भीड मे गुम हो गए।

िदन तक माहौल काफी बदल चुका था। सभी मजदरू बाहर काके के ढाबे पर िदन की चाय पीते थे।गपशप भी चलती थी। िजससे कुछ घडी आराम िमलता था। चाय तैयार थी और मैने दो िगलासउठा िलए और एक कलवा को पकडते हए कहा," साहब के िमजाज अब कैसे है? सुबह तो बड ेगुससेमे थे!"

"अरे यार दीनू रोज की कहानी है," कलवा ने गरमा-गरम चाय को फँूकते हए कहा, "घर से फैकटी... िफर फैकटी से घर... अपनी पसरनल लाइफ तो बची ही नही... सारा िदन मशीनो की न थमने

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वाली खडखडाहट। िचमनी का गलघोटू धुआँ। िकसी पागल हाथी की तरह सायरन के िचघाडने कीआवाज। कभी न खतम होने वाला काम... कया इसिलए ऊपरवाले ने हमे इनसान बनाया था?"आसमान की तरफ दखेकर जैसे कलवा ने नीली छतरी वाले से पश िकया हो, "सुबह सही बोलताथा, वह उललू का पटा… हम ितलचटे ह।ै कया कीडे-मकोडो की भी कोई िजदगी होती है? कया हमेभी सपने दखेने का हक है?"

"तुमहारी बात सुनकर मुझे पंजाबी किव पाश की पंिकयाँ याद आ रही ह।ै" मैने हसँते हए कहा।

"यार तू बंदकर अपनी सािहितयक बकवास। िजस िदन फैकटी मे कदम रखा था, बी.ए. की िडगी मैउसी िदन घर के चूलह ेमे झोक आया था।" कहकर कलवा ने चाय का घूँट भरा।

"सुन तो ले पाश की ये पंिकयाँ, जो कही न कही हमारी आनतिरक पीडा और आकोश को भी छूतीह!ै" मैने जोर दकेर कहा।

"तू सुनाये िबना मानेगा नही, चल सुना।" कलवा ने सवीकृित द ेदी।

"सबसे खतरनाक ह ैमुदार शांित से भर जानान होना तडप का, सब सहन कर जाना

घरो से रोजगार के िलए िनकलना और िदहाडी करके लौट आनासबसे खतरनाक ह ैहमारे सपनो का मर जाना,"

मेरे मुख से िनकली 'पाश' की इन पंिकयो ने आस-पास के वातावरण मे गमी पैदा कर दी। काकेचायवाले ने हरैानी से भरकर कहा," अरे तुम दोनो तो बडी ऊँची-ऊँची बाते करने लगे हो।"

"काके नपुंसक लोग बाते ही कर सकते ह ैऔर कुछ नही!" कहकर कलवा ने ठहाका लगाया, "जराअपना टीवी तो आन कर, कुछ समाचार ही दखे ले।"

टीवी पर रात हए रेलवे दघुरटना के समाचार को िदखाया जा रहा था। दघुरटना सथल के तकलीफदहे िचत। रोते-िबलखते पिरवारजन। रेलमंती दारा मुआवजे की घोषणा। मृतको को पाँच-पाँचलाख और घायलो को दो-दो लाख।

"बाप रे...!" पास खडे मजदरू ने आशये से कहा, "यहाँ िदन-रात मेहनत करके मरने से भी ससालाकुछ नही िमलता! रेल दघुरटना मे पाँच-पाँच लाख!"

"काश! मृतको और घायलो मे हम भी होते!" उस मजदरू की बातो के समथरन मे जैसे कलवा धीरे सेबुदबुदाया हो।

मेरे हाथ से चाय का िगलास छूट गया और मैने अपने िजसम पर एक झुरझुरी-सी महसूस की।

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ठहाका"साहब, भारत मे माता के नौ रपो की पूजा होती है!" मंिदर के सामने माता की मूित को नमनकरते हए राजू गाइड ने अमेिरकन टूिरसट से अंगेजी मे कहा और नवरातो का महतव तथा माता केरपो का िवसतार से वणरन करने लगा, "इतना ही नही साहब, यहाँ की सती िसयो ने तो अपने तपके पभाव से यमराज के चंगुल से अपने पित के पाण तक वािपस माँग िलए। यहाँ गाय को गौमाताकहा जाता ह।ै और तो और निदयो तक मे माता की छिव दखेी जाती ह ै जैसे मोकदायनी गंगामईया, यमुना, कृषणा, कावेरी, गोदामबरी, गोमती आिद। िवश का पहला अजूबा ताजमहलशाहजहाँ और मुमताज के अमर पेम का उतकृष उदाहरण है," इसके बाद भी राजू गाइड उस टूिरसटको िहनदसुतान की न जाने कया-कया खूिबयाँ िगनाने लगा और ऐसा कहते वकत उसके चेहरे परअित गवर का भाव था।

"लेिकन तुमहारे यहाँ आज भी कनया के जनम पर मातम कयो मनाया जाता है?" उस टूिरसट ने बडीगंभीरतापूवरक कहा।

"प ... प ... पता नही साहब!" िसर खुजाते हए राजू गाइड बडी मुिशकल से बोल पाया था औरअगले ही पल उसके िहदसुतानी होने का गौरव न जाने कहाँ गुम हो गया।

"िरलेकस राजू गाइड तुम तो सीिरयस हो गए! मै तो यूँ ही मजाक मे पूछ रहा था!" कहकर उसटूिरसट ने एक जोरदार ठहाका लगाया। साथ दनेे के िलए राजू भी हसँा, मगर उसका चेहरा उसकीहसँी मे बाधक था।

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पितिकयाटेमस नदी के तट पर बैठे गोरे आदमी ने काले विक से अित गंभीर सवर मे कहा, "काला, गुलामीऔर शोिषत होने का पतीक ह।ै जबिक गोरा, आजादी और शासकवगर का पयारय! इस पर तुमहारीकया पितिकया है?"

काले ने गोरे को धयान से दखेा। उसकी संकीणर मनोदशा को भाँपते हए शांत सवर मे काले ने अपनीपितिकया वक की, "िजस िदन काला बगावत कर दगेा, उस िदन गोरे की आजादी खतरे मे पडजाएगी और काला खुद शासन करना सीख जाएगा।"

"कैसे?" उतर से असंतुष गोरे ने पूछा। उसकी हसँी मे िछछोरापन साफ झलक रहा था।

"दखेो।" अपनी उंगली से काले ने एक और इशारा िकया, "वो सामने सफेद रंग का कुता दखे रहेहो!"

"हाँ, दखे रहा ह।ँ" गोरे विक ने उतसुक होकर कहा।

"उसे गोरा मान लो।" काले ने िबदास हसँी हसँते हए कहा।

"ठीक ह।ै" अब गोरा असमंजस मे था।

"जब तक वह शांत बैठा है, हम उसे बदारशत कर रह ेह।ै जयो ही वह हम पर भौकना शुर करेगा याहमे काटना चाहगेा, हम उसका सर फोड दगेे।" इतना कहकर काले ने खा जाने वाली दिृष से गोरेकी तरफ दखेा। इस बीच कुछ दरे की खामोशी के बाद काला पुनः बोला, "िफर दो बाते होगी?"

"कया?" कुछ भयभीत सवर मे गोरा बोला।

"या तो वह मर जायेगा! या िफर भाग जायेगा!" इतना कहकर काले ने गोरे को घूरा, "तुमह ेऔरभी कुछ पूछना है?"

"नही!" गोरे ने डरते हए कहा और वहाँ से उठकर चल दनेे मे अपनी भलाई समझी।

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एन०आर०आई०

"दखे कुलवंत जमाना बहत खराब ह।ै आजकल एन० आर० आइज ने नया टेड चला रखा ह।ै कईजगह ऐसे केस हो चुके ह ैिक यहाँ िक भोली-भाली लडिकयो या िवधवा औरतो को िवदशे जाने कालालच दकेर अपवासी भारतीय उनसे शादी का नाटक रचा लेते है, और अपनी छुिटयो को रंगीनबनाकर वािपस चले जाते है... हमेशा के िलए...!"

"नही-नही, मेरा मिनदर ऐसा नही ह।ै उसने मुझे शादी से पहले ही सोने की अंगूठी भेट की थी औरकहा था इंगलैड मे वह बहत बडे बंगले का मािलक ह।ै िजसे शादी के बाद वह मेरे नाम कर दगेाऔर कुछ ही समय बाद जलद से जलद वह मुझे भी इंगलैड ले जायेगा...।"

"रब करे ऐसा ही हो कुलवंत। तेरा बचा इंगलैड मे ही आँखे खोले...।"

असहनीय पसव पीडा मे भी कुलवंत कौर के कानो मे अपनी सखी मनपीत के कह ेशबद गूंज रह ेथे।उसे यकीन नही रो रहा था िक उसके साथ भी छल हआ है, "तो कया मै उस हरामी का पाप जनरही हँ ... जो परदशे जाकर मुझे भूल ही गया, िपछले छह महीनो से िजसने एक फोन तक नहीिकया ... हाय! मै कयो उसके झांसे मे आई ... लनदन मे उसका आलीशान बंगला, टेमस नदी की सैर... इंगलैड की सुपरफासटर टेने ... आह! इन वादो की आड मे वह िगद िदन-रात मुझे नोचता रहा ...मेरे भोले-भले जजबातो से खेलता रहा ... काश! उसके इरादो का पहले पता चल जाता तो ...।"

"कुडी हई ह!ै " इस बीच नसर खुशी से िचललाई। लेडी डॉ. ने आँखे बडी करके उसे शािनत पूवरकअपना कायर करने को कहा।

नवजात बची की िकलकािरयाँ वातावरण मे गूंजने लगी। कुलवनत की आँखो मे मिननदर के साथगुजारे अतीत के छल-िचत घूमने लगे। उसका भी जी चाहा वह दहाडे मारके रोने लगे।

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सरहद

सरहद पर जैसे ही िकसी के आने की सुगबुगाहट हई। अँधाधुंध गोिलयां चल पडी। घुसपैठ करतीमानव आकृित कुछ कण के िलए तडपी और वही ँिगर पडी।

"वो मार िगराया साले को...!" वातावरण मे हषो-उललास के साथ सवर उभरा। दोनो िसपािहयो नेअपनी-अपनी सटेनगन का मुहाना चूमा।

"जरा पास चलकर दखेे तो घुसपैिठये के पास कया-कया था?" एक िसपाही बोला।

"अरे कोई गामीण जान पडता ह ैबेचारा। शायद भूले-भटके से सरहद पर आ गया!" तलाशी लेतेवकत मृतक के पास से िसवाय एक खत के कुछ न िनकला तो दसूरा िसपाही अनायास ही बोला।

"खत मुझे दो, मै उदूर पढना जानता ह।ँ" पहले िसपाही ने खत हाथ मे िलया और ऊँचे सुर मे पढनेलगा-- "पयारे अबबू ..." बाकी खत को पढते-पढते िसपाही रक गया।

"कया हआ? पढते कयो नही? जोर-जोर से पढो मै भी तो जानू मृतक ने आिखर कया िलखा है?िकसी गढे हए खजाने का िजक ह ैकया?" दसूरे िसपाही ने हरैानी वक की।

"ददरनाक ह।ै लो तुम भी सुनो!" पहले िसपाही ने गले को पुनः साफ करते हए कहा।

"पयारे अबबू,

बी० ए०/ एम० ए० करने के बाद भी, जब कही ढंग की नौकरी नही िमली और िजममेदािरयांउठाते-उठाते मेरे कंधे टूट गए, लेिकन दिुनया-जहान के ताने कम नही हए; तो आसान मौत मरनेके िलए सरहद पर चला आया ह।ँ मै इतना बुजिदल ह ँचाहकर भी खुदकुशी न कर सका ... परघुसपैठ करते वकत यकीनन िहनदोसतानी िसपाही मुझे जरर िजनदगी की कैद से आजाद कर दगेे।ऊपर जाकर खुदा से पूछँूगा—तूने हमे इंसान बनाया था; तो ढंग की िजनदगी भी तो दतेा। मुझेमाफ करना अबबू तुमहारे बूढे कनधो पर अपने पिरवार का बोझ भी डाले जा रहा ह।ँ

तुमहारा अभागा / िनकममा बेटा

रहमत अली

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दसूरे िसपाही को अपने बडे भाई 'िवकम' के दारा छत के पंखे से फंदा लगाकर आतमहतया करनेवाला वाकया याद आ गया। उस रोज उसके बेरोजगार भाई िवकम और िपता की जमकर बहस हईथी। "तू मर कयो नही जाता!" िवकम भइया के िलए गुससे मे कह ेगए िपता के यह अंितम वाकयउसके कानो मे गूंजने लगे। सामने फंद ेसे झूलता 'िवकम' भैया का शव। उसने अपने कानो पर हाथधर िलए और चीख पडा।

"कया हआ?" पहले िसपाही ने उसे झकझोरते हए पूछा।

"कुछ नही िवकम भैया की याद आ गई थी।" दसूरे िसपाही ने बडी मायूसी से कहा।

तभी दोनो िसपािहयो ने दखेा पिरदो का एक समूह पिकसतान से उडता हआ आसानी सेिहनदोसतान की सरहद मे दािखल हो गया और उनह ेिकसी ने भी नही रोका।

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गोत "दार खोल रिधया ...!" रजनी ने तेजी से दरवाजा िपटते हए कहा। तकरीबन दो िमनट बाददरवाजा खुला।

अपने असत-वसत कपडो और बालो को ठीक करते हए, रिधया का पेमी दरवाजे पर रजनी कोखडा दखे मुसकुराया और अपनी रावनाकार मूछो को ताव दतेा हआ वहां से चलता बना।

पेमी के चले जाने के करीब एक िमनट बाद रिधया आँखे तरेरते हए बाहर िनकली, "कया ह ै रे,रजनी की बची सारा खेल खराब कर िदया?"

"कैसा खेल?" रजनी चौकी, "और ये बता िकसनवा के साथ अनदर कया कर रही थी?"

"भजन-कीतरन ...!" कहते हए रिधया ने चोली का हक ठीक िकया।

"बेशमी की भी हद होती है! यही सब करना ह ैतो शादी कयो नही कर लेती िकसनवा से!"

"दखे िकसनवा हमारे ही गोत का है, इसिलए उससे शादी नही हो सकती! पंचायत और गांव वालेहमे िमलकर मार डालेगे जैसे हिरया और लाली को मारा था िपछले साल।"

"और ये सब, जो तुम कर रह ेहो कया ठीक है?"

"दखे रजनी, अपने गोत मे शादी करना गामीण समाज की नजर मे भले ही अपराध है, मगर अपनेपेमी के साथ पयार का आदान-पदान करना, न कभी गलत था न होगा।"

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बालक और िवदान

"मृतयु से अंजान उस ननह ेबालक को दखेो! अपने दादा के शव के पास कैसे खेल रहा है? जैसे कुछहआ ही नही!" सनयासी ने कहा। पृषभूिम पर पिरजनो का िवलाप जारी था।

"बालक तो िनपट अजानी और मृतयु के रहसय से अंजान ह ैमहाराज। लेिकन मृतक आपका छोटाभाई ह!ै िफर आप शोक कयो नही कर रहे? आपकी आँखो मे आंसू कयो नही?" समीप खडे विक नेपूछा।

"तुमहारे पशन मे ही उतर भी िनिहत ह।ै बालक इसिलए शोक नही कर रहा कयोिक वह मृतयु केरहसय से अनजान ह ैऔर मै पिरिचत ह।ँ यही जीवन का अंितम सतय ह।ै अत: िवदान् और बालककभी शोक नही करते।" सनयासी ने शांितपूवरक कहा।

शव को अंितम याता के िलए उठाया गया तो पृषभूिम पर 'राम नाम सतय है' की आवाजे गूंजनेलगी। पृषभूिम पर पिरजनो का िवलाप तेज हो गया।

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नई बात "काश! तुम लोगो ने मुझे इंसान ही रहने िदया होता! भगवान् नही समझा होता!" पभु िवनमसवर मे बोले।

"पभु ऐसा कयो कह रह ेहै? कया हमसे कुछ अपराध बन पडा है?" सबसे करीब खडे भक ने करवदहो, वाकुलता से कहा।

"अगर मै सचा इंसान बनने की कोिशश करता; तो संभवत: भगवान् भी हो जाता!" पभु ने पुन:िवनमता के साथ कहा।

"वाह पभु वाह।" आज आपने 'नई बात' कह दी!" भक शदा से नतमसतक हो गया और वातावरणमे चह ँओर पभु की जय-जयकार गूंजने लगी। भगवान् बनने की िदशा मे वो एक कदम और आगेबढ गए।

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िदलचसप आदमी जून की तपती दोपहरी मे बाजार की तमाम दकुाने बंद थी। कुछेक दकुानो के सटर आधे िगरे हएथे। िजनके भीतर दकुानदार आराम कर रह ेथे। एक विक पयासा भटक रहा था। एक खुली दकुानदखेकर उसने राहत की सांस ली।

"लालाजी पयासे को पानी िपला दो।" थके हारे राहगीर ने मेवे की दकुान पर बैठे सेठजी से कहा।दभुारगयवश तभी िबजली भी चली गई।

"बैठ जाओ। अभी नौकर खाना खाकर आता ही होगा। वह पानी लेने भी गया ह।ै आएगा तो तुमहेभी पानी िमलेगा और मेरा गला भी तर होगा।" लालाजी ने फरमाया और हाथ के पंखे सेखुद को हवा करने लगे।

"कया दकुान पर अितिरक जल ववसथा नही है?" वह विक यूँ ही बोल पडा।

"गिमयो मे जल बचता कहाँ है? दकुान पर जो भी आता ह ैऔर रहता है, जल ही जल पीता ह।ै"लालाजी हाथ पंखे को झालते हए ही जवाब दनेे लगे।

लगभग दस-पनदह िमनट और गुजर गए।

"लालाजी और िकनती दरे लगेगी?" करीब दस िमनट बाद पयास और गमी से वाकुल वह विकपुन: बोला।

"बस नौकर आता ही होगा; िफज का ठणडा पानी लेकर।" लाला सवयं को पंखा झालते हए पुनःआराम से बोले।

"लालाजी, दकुान दखेकर तो लगता है, आप पर लकमी जी की असीम कृपा ह।ै" विक ने बातचीतके इराद ेसे कहा।

"िपछली सात पुशतो से हम सूखे मेवो के कारोबार मे ह ैऔर फल-फूल रह ेह।ै" लालाजी ने बडे गवरसे जवाब िदया।

"आप दकुान के बाहर एक पयाऊ कयो नही लगा दतेे?"

"इससे फायदा।"

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"जो पानी पीने आएगा, वो हो सकता ह ैइसी बहाने आपसे मेवे भी खरीद ले।"

"तू खरीदगेा?"

"कया बात करते ह ैलालाजी?" वह विक हसंा, "यहाँ सूखी रोटी के भी लाले पडे है, और आपचाहते ह ैिक, मै महगंे मेवे खरीदू।ं ये तो अमीरो के चोचले ह।ै"

"चल भाग यहाँ से, तुझे पानी नही िमलेगा।" लालाजी िचढकर बोले।

"लालाजी, जाते-जाते मै एक सलाह दू।ँ"

"कया?"

"चुनाव करीब है, आप राजनीित मे कयो नही चले जाते?"

"कया मतलब?"

"मै िपछले आधे घंटे से आपसे पानी की उममीद कर रहा हँ! मगर आपने मुझे लटकाए रखा।" वहविक गंभीर सवर मे बोला, "राजनीितजो का यही तो काम ह।ै" तभी िबजली भी लौट आई। ठंडीहवा के झोके ने बडी राहत दी और माहौल को बदल िदया।

"तू आदमी बडा िदलचसप ह ैबे!" लालाजी हसँते हए बोले, "वो दखे सामने, नौकर िफज का ठंडापानी ले कर आ रहा ह।ै तू पानी पीकर जाना। वैसे कम कया करते हो भाई?"

"इस दशे के लाखो और िवशभर के करोडो युवाओ की तरह बेरोजगार ह।ँ"

•••

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मुिशकल समय

"अरे लखनवा, मै कई िदनो से दखे रहा ह।ँ तुम िजतना कमाते हो। उसे खाने-पीने मे खचर कर दतेेहो। कुछ भी भिवषय के िलए बचाकर नही रखते!" फावडे से गडढे की िमटटी िनकालते हए साथीमजदरू राम आसरे ने मुझसे कहा।

मै मुसकुरा िदया, "जरा तसला उठाने मे मेरी मदद करो, राम भाई।" मैने उसके सवाल का जवाबदनेे की जगह, उससे िमटटी भरा तसला उठाने मे सहयोग करने को कहा।

पूवर की भांित िमटटी भरा तसला सर पर उठाये मै मकान के पीछे खाली पलाट मे उसे पुनः खालीकर आया था। जहाँ अब गडढे से िनकाली गई िमटटी का ऊँचा ढेर लग गया था। थकावट औरपसीने से चूर मैने खाली तसला भरने के िलए पुनः राम आसरे के सामने फेका। सुसताने ही लगा थािक तभी मािलक मकान की दयालू पती चाय-िबसकुट लेकर आ गई।

"लो भइया चाय पी लो।" मालिकन ने चाय-िबसकुट की टे मेरे आगे फशर पर रखते हए कहा।

"भगवान आपका भला करे मालिकन।" मैने मुसकुराकर कहा, "थोडा िफज का ठंडा पानी िमलजाता।"

"हाँ मै लेके आती ह।ँ" कहकर वह भीतर गई। कुछ दरे बाद वह पानी की ठंडी बोतल के साथ पुनःपकट हई।

"लगता ह ैआज भर मे नीव की खुदाई का काम पूरा हो जायेगा। कल से ठेकेदार और मजदरू लगाकर बुिनयाद का काम चालू कर दगेा।" पानी की बोतल थमाते हए मालिकन ने मुझसे कहा।

"जी ... आजभर मे बुिनयाद का काम पूरा हो जायेगा।" मैने पानी की बोतल का ढकन खोलते हएकहा। ततपशात मालिकन भीतर चली गई।

ठंडा पानी पीकर मेरे शरीर मे पाण लौटे। राम आसरे भी फावडा वही ँछोड मेरे पास आ गया। हमदोनो मजदरू भाई अब चाय-िबसकुट का लुतफ लेने लगे।

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"तुम हमरी बात के उतर नही िदए लखन भाई। आने वाले मुिशकल बखत की खाितर पैसा काहेनही बचाते।" राम आसरे ने शान की भांित 'चप-चप' करके िबसकुट चबाते हए पुरिबया िमिशतिहदी मे कहा।

"तुम अचछा मजाक कर लेते हो राम भाई। भला मजदरू की िजदगी मे कोई अचछा वक ह।ै उसकेिलए तो सब िदन ही मुिशकल भरे ह।ै" मैने ठहाका लगाते हए कहा, "इसी बात पर एक शेर सुनो--आगाह अपनी मौत से कोई बशर नही। सामान सौ बरस का है, पल की खबर नही।" मैने एक अित-पिसद शेर पढा था। पता नही राम आसरे उसका अथर समझा भी था या उसके सर के ऊपर से सबगुजर गया। दोनो चुपचाप चाय पीने लगे। इस बीच हलकी-सी चुपपी वातावरण मे पसर गई थी।घर के अंदर से आती टीवी की आवाज इस चुपपी को भंग कर रही थी। मालिकन टीवी पर कोईसीिरयल दखे रही थी।

"टीवी और बीवी अपन के नसीब मे नही है! लखन भाई।" राम आसरे ने िकसमत को कोसते हएकहा, "बस फावडा, गैती और तसला ही अपना मुकदर ह।ै" राम आसरे ने मेरे कह ेशेर पर तो कोईपितिकया वक नही की मगर मालिकन के टीवी की आवाज सुनकर वह यह सब बोला।

"सामने ऊँची िबिलडग दखे रह ेहो राम भाई। कभी गए हो उसमे।" मैने आठ मंिजला ईमारत कीओर इशारा िकया।

"हाँ कई बार! िलफट से भी और जीना चढकर भी।" राम आसरे ने अगला िबसकुट चाय मे डुबोयाऔर एक सैकेड मे अजगर की तरह मंुह से िनगल िलया।

"राम भाई, अगर कमाई की रफतार की बात करँ तो वह सीढी से धीरे-धीरे चढने जैसा ह।ै जबिकमहगंाई िलफट की रफतार से िनरंतर भाग रही ह।ै हम िकतना भी चाह ले। िकतना भी करले। हमारे सारे उपाय मंहगाई की रफतार को पकडने के िलए िनरथरक होगे।"

"िफर भी बीमार पड गए तो कया होगा?" राम आसरे ने मेरी ओर पश उछाला।

"बीमार पड गए तो वही होगा जो मंजूर-ए-खुदा होगा।" मैने उसी टोन मे कहा, "तुमह ेएक िकससासुनाता ह।ँ तिनक बीडी तो सुलगा लो। काफी तलब लगा ह।ै"

मैने फरमाईश की थी िक राम आसरे ने तपाक से दो बीिडयाँ सुलगा ली। शायद मुझसे जयादाधूमपान की आवशयकता उसको थी। दोनो कस खीचने लगे।

धुआँ उडाते हए मैने कहा, "जापान दशे मे एक िभखारी था। यह सची घटना लगभग तीस वषरपुरानी ह।ै मैने समाचार पत मैने कही पढा था। जापान के उस िभखारी का बैक एकाउंट भी था।जो पूरी िजनदगी भीख मे िमले पैसे को जमा करता रहा। ये सोचकर की बुढापे मे जब वह कुछकरने लायक नही रहगेा। तब वह जमा पूंजी को खायेगा। अचछे िदनो की िमथया कलपना मे रखा-सूखा खाकर उसने अपना पूरा जीवन गुजार िदया। अलबता उसका बैक बैलेनस काफी बढता रहा।"

"वाह बडा मजेदार िकससा ह ैलखन भाई।" राम आसरे बीडी फंूकते हए बोला, "िभखारी भी भीखका पैसा बैक मे रखता था।"

"जानते हो साठ साल की उम मे उसकी मृतयु कैसे हई?"

"नही!"

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"सूखी रोटी को पानी िभगो कर खाते हए जैसा िक वह िपछले चालीस वषो से कर रहा था।" बीडीका धुआँ राम आसरे के चेहरे पर छोडते हए मैने कहा, "जानते हो उसके बैक एकाउंट मे िकतनापैसा था!"

"िकतना!" कहते हए राम आसरे का मुंह खुला का खुला रह गया।

"इतना पैसा िक वह िदन-रात अचछे से अचछा भोजन भी खाता तो अगले बीस-तीस वषो तकउसका पैसा खतम नही होता। लेिकन दभुारगय दिेखये अंितम िदन भी भीख मांगते हए, सूखी रोटीको पानी से डुबोकर खाते हए उसकी मृतयु हई।" कहकर मैने पुनः बीडी का कस खीचा।

"ओह, बहत बुरा हआ उसके साथ। बेचारा सारी उम जमा करता रहा मगर एक भी पैसे को खा न सका।" राम आसरे ने ऐसे संवेदना वक की, जैसे वह खुद वह िभखारी हो।

"कमोवेश हम सब भी जापान के िभखारी जैसा ही जीवन जीते ह।ै भिवषय की सुखद कलपना मेअपने वतरमान को गला दतेे ह।ै हमारी मौत भी िकसी िदन फुटपाथ पर सूखी रोटी को पानी सेिनगलते हए होगी।"

"तो कया बचत करना गुनाह है?" राम आसरे ने ऊँची आवाज मे कहा।

"अरे जो खाते-पीते आसानी से बच जाये। वह बचत होती ह ैन िक शरीर को गला-गलाकर बचानेसे।" मैने गमछे से अपने माथे का पसीना पोछते हए कहा।

"सही कहते हो लखन भाई।" राम आसरे ने सहमित जताई और बुझी बीडी को नीचे फैक करचपपल से मसल िदया।

"इतना जान लो राम भाई। भरपूर मेहनत के बावजूद मजदरू को एक चौथाई रोटी ही नसीब ह।ैजबिक उसे एक रोटी की भूख ह।ै यिद अचछे से खाएंगे-िपएंगे नही तो हमारा मेहनत-मसकत वालाकाम ही, हमारा काम तमाम कर दगेा।" कहकर मैने बीडी का आिखरी कस खीचा और बची हईबीडी को एक तरफ फैक िदया ये कहकर, "चलो बाकी का बचा काम भी जलदी ही िनपटा डाले।आज की िदहाडी िमले तो िचकन खाएंगे।"

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जायजघटना नई िदलली रेलवे सटेशन की ह।ै

काफी बहस के बाद कूली सौ रपये मे राजी हआ तो मेरे 'साले' के चेहरे पर हषर की लहर दौड गई।एक छोटी-सी लोह ेकी ठेला-गाडी मे कूली ने दो बकसे, चार सूटकेश और िबसतरबंद बडी मुिशकलसे वविसथत िकया और बताये गए सथान पर चलने लगा।

"इस सामान का वजन कराया ह ैआपने?" सामने से आते एक िनरीकक ने मेरे साले की तरफ पशउछाला।

"कहाँ से आ रह ेहो?" दसूरा पश।

"कोटदार से ..."

"कहाँ जाओगे?" तीसरा पश।

"जोधपुर मे मेरी पोिसटग हई ह।ै सामान सिहत बाल-बचो को लेकर जा रहा ह।ँ"

"िनकालो पाँच सौ रपये का नोट, वरना अभी सामान जबत करवाता ह।ँ" हथेली पर खुजली करतेहए वह काले कोट वाला विक बोला।

"अरे साहब एक सौ रपये का नोट दकेर चलता करो इनहे! " कूली ने अपना पसीना पोछते हएबुलनद आवाज मे कहा, "ये इन लोगो का रोज का नाटक ह।ै"

"नही भाई पूरे पाँच सौ लूँगा।" और कानून का भय दखेते हए उसने पाँच सौ रपये झाड िलए औरमुसकुराकर चलता बना।

"साहब सौ रपये उसके हाथ मे रख दतेे, तो भी वह खुशी-खुशी चला जाता। उस हरामी को रेलवेजो सैलरी दतेी है, पूरी की पूरी बचती ह।ै इनका गुजारा तो रोजाना भोले-भाले मुसािफरो कोठगकर ऐसे ही चल जाता ह।ै"

"अरे यार वह कानून का भय िदखा रहा था। अडते तो टैन छूट जाती।" मैने कहा।

"अजी कानून नाम की कोई चीज िहनदसुतान मे नही ह।ै बस गरीबो को ही हर कोई दबाता ह।ैिजनका पेट भरा ह ैउनह ेसब सलाम ठोकर पैसा दतेे है!"

कूली ने गुससे मे भरकर कहा, "मैने मेहनत के जायज पैसे मांगे थे और आप लोगो ने बहस करकेमुझे सौ रपये मे राजी कर िलया जबिक उस हरामखोर को आपने खडे-खडे पाँच सौ का नोट देिदया।"

कुली की बात पर हम सब शिमनदा थे कयोिक उसकी बात जायज थी।

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लुतफ "रफता-रफता वो मेरे …", "चुपके-चुपके रात-िदन आंसू …", "िपया रे, िपया रे … लागे नहीमहारो िजया रे", एक से बढकर एक खूबसूरत गजले, नजमे, सूिफयाना गीत-संगीत के नशे मे राजेशडूबा हआ था। शाम का समय। कक मे हलका अँधेरा और डी. वी. डी. पलेयर से आती मदहोशकरती आवाजे। कभी महदंी हसन, कभी गुलाम अली तो कभी उसताद नुसरत फतेह अली खान …सभी बेजोड। सभी पुरसुकून से भर दनेे वाली आवाजे।

सोफे पर आराम से बैठा राजेश एक हाथ मे िवहसकी का िगलास और दसुरे हाथ मे िसगरेट। पूरेवातावरण मे शराब, धुआं और संगीत इस तरह घुल-िमल गए थे िक तीनो को अलगकर पानाअसंभव था।

"िडग-डांग … िडग-डांग …." डोर बैल बजी तो राजेश संगीत की दिुनया से वासतिवकता मे लौटआया. 'कौन कमबखत' वह मिदरा के खुमार मे धीमे से बुदबुदाया।

"आ जाओ दरवाजा खुला है!" बािक संवाद उसने बुलंद आवाज मे कह।े दार के कपाट खुले तो, "अरेअिखलेश तुम!"

"वाह भाई राजेश, दशे मे आग लगी हई ह ैऔर तुम मजे से दशुमन दशे के कलाकारो की गजले सुनरह ेहो … " अिखलेश िचललाया, "पता ह ैबीती रात हमारे पांच फौजी शहीद कर िदए कमीनो ने।"

"अरे यार अिखलेश मूड खराब मत करो। िकसी भी कलाकार को दशे, काल और सीमा मे मत बांधो,वह सबके िलए होते ह।ै"

"आजादी के बाद से चार बड ेहमले। संसद पर हमला। छबबीस गयाहरा। उनके िजहािदयो दाराजगह-जगह बम िवसफोट … कैसे भूल सकते हो तुम, बदमाश पडोसी की करतूत को!"

"बडा पैग लेगा या छोटा …" राजेश ने उसकी बातो को दरिकनार करते हए कहा।

"बडा।" अिखलेश बोला और मेज पर रखे िसगरेट के पैकेट से एक िसगरेट िनकालकर सुलगा ली।

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"क भी -कभी तो खंुदक आती है, हमारी िनकममी सरकार कर रही है? अलगाव को हवा दतेीराजनीित को बंद कयो नही करते ये लोग! एक सखत कानून बनाकर कयो नही दशेदोिहयो कोफांसी दतेे?"

कहकर िसगरेट के दो-तीन कश लगाने के बाद अिखलेश ने िवहसकी का पैग हलक से नीचे उडलेिदया। िफर पलेट मे रखे िचकेन का लुतफ लेने लगा।

"वोट बैक की राजनीित … जाित-धमर की राजनीित … लालफीताशाही … मुनाफाखोरी …पूंजीवाद … भषाचार … लोकतंत की सारी किडयाँ, एक-दसुरे से जुडी ह।ै कया-कया ठीक करोगेमेरे भाई? " राजेश ने पहली बार भीतर के आकोश को अिभविक दी, "चुपचाप लेग पीसचबाओ… दार िपयो … और िचता-िफक को धुंए मे उडा दो … उसताद गायको की गजलो कालुतफ लो।" कहकर राजेश ने िरमोट से सवर का सतर बढा िदया और दोनो िमत एक दसूरी हीदिुनया मे खोने लगे।

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आकोश कोई मोबाइल पर वसत था तो कोई गपपो मे लीन। कुछ चौधरी टाइप लोग पॉपटी डीिलग कीबातो मे वसत थे तो कुछ वतरमान राजनीित पर टीका-िटपपणी करने मे मसरफ। ये नजारा थादहेरादनू पिबलक सकूल (गोिवदपुरम, गािजयाबाद) के बाहर पतीकारत खडे अिभभावको के हाव-भाव का। जो फुटपाथ पर खडे बचो के पेपर खतम होने का इिनतजार कर रह ेथे। फुटपाथ के एकछोर पर कतारवद खडी सकूल की दजरन भर बसे सकूल के वैभव को दशारने का काम कर रही थी।उस पर सकूल का लमबा-चौडा हरा-भरा पाकर , यह सािबत करता था िक िवदालय पबंधन उचकोिट का ह।ै कहने की जररत नही िक सकूल की इस साज-सजा और लमबे-चौडे सटाफ को रखने केिलए शहर की जानी-मानी और मालदार असामी बचे के सकूल मे पवेश के वक िकतनी डोनेशनदतेे होगे।

"वाह! इस सकूल की शोभा तो दखेते ही बनती ह।ै खूबसूरत िबिलडग तमाम सुिवधाओ से युक।"एक ने िटपपणी की।

"अजी कया सकूल है? सब कमाई का गोरखधंधा ह।ै िजतने भी पाइवेट सकूल है, पढाई के नाम परशूनय ह।ै" दसूरे ने तीखी पितिकया की।

"पांचवी कका तक िजतना द ेचुके ह।ै इससे कम मे तो हमने अपने जमाने मे बी ए पास कर िलयाथा।" तीसरे सजन जो मेरे बगल मे हाथ मे हलेमेट थामे खडे थे। यकायक बौखलाकर बोले।

"आपका नाम!" मैने उनसे पश िकया।

"जी ओमपकाश!" उस सजन ने कहा, "इनटर करने के बाद बेकार ह ैये सब। िदमाग से खतम ह ैआजकी नई पीढी। बस कहने को िडगी िमल जाएगी िक बारहवी पास ह।ै"

"आप ऐसा कयो कह रह ेह?ै" मैने पुनः पशातमक लहजे मे कहा।

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"अरे मेरे िदए हए सवाल हल नही कर पाते ह ैये। एक को भी फामूरला याद नही ह।ै बस अंगेजी केदो-चार अकर िगटर-िपटर बोल लेते ह।ै रात-िदन मोबाइल पर ही वक गुजरते ह।ै"

"कया करे जमाने के िहसाब से अप-टू-डेट नही रहगेे तो पीछे हो जायेगे। इंटरनेट का जमाना ह।ै"मैने िटपपणी की।

"लानत ह ैआज के जमाने को। मै पचास पार हो गया ह ँमगर इनमे से कोई भी पटा मुझे दौड मेपछाड कर िदखा द।े पनदह-बीस िकलोमीटर दरू गांव मे हमारा सकूल था। रोज दौडते हए पौने-एकघंटे मे पहचँ जाते थे। और आज के बचे चार कदम चलने मे भी हाँपने लांगते ह।ै"

"लो बचो की छुटी हो गई ओमपकाश भाईसाहब। वो दखेो हरेभरे पाकर से िनकलते बचे िकतनेसुनदर लग रह ेह।ै" मैने बचो की ओर दखेते हए कहा। पीछे दखेा तो ओमपकाश जी नही िदखाईिदए। चारो तरफ अिभभावको की भीड ही भीड थी जो बाहर िनकलते हए अपने-अपने बचो कोखोज रह ेथे। मै भी अपनी बची को खोजने लगा। अचानक मेरी िनगाह सामने से आ रही बाइक परपडी। वह ओमपकाश था। उसके पीछे जो बचा बैठा था वह जनम से अपािहज जान पडता था।उसके कमर से नीचे का िहससा अिवकिसत रह गया था। मुझे ओमपकाश के हदय मे उपजे 'आकोश'की असली वजह अब समझ मे आ रही थी।

"पापा कहाँ खोये हो?" मेरी बेटी मेघा ने मुझे झकझोरते हए कहा, "आज का पेपर काफी अचछागया ह।ै कम से कम अससी नंबर तो आने ही चािहए।"

"बहत बिढया। चलो अब घर चले।" और हम बस सटैड की ओर चल पडे।

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गुलाब

"... वही गनद ेमे उगा दतेा हआ बुतापहाडी से उठे-सर ऐठकर बोला कुकुरमुता—

“अबे, सुन बे, गुलाब,भूल मत जो पायी खुशबु, रंग-ओ-आब,

खून चूसा खाद का तूने अिशष,डाल पर इतरा रहा ह ैकेपीटिलसट!िकतनो को तूने बनाया ह ैगुलाम,

माली कर रकखा, सहाया जाडा-घाम ..."

महाकिव िनराला की किवतायेँ पढते हए माधव सुबह की चाय का लुतफ ले रहा था। "कुकुरमुता"किवता पढते हए उसकी नजर बालकॉनी के गमले मे िखले गुलाब की तरफ पडी। पांच-छः गमलोमे अलग-अलग पौधे लगे थे। तुलसी का पौधा पूरे आँगन मे तुलसी की महक िबखेरे हए था। बाकीगमलो मे चमेली और अनय फूल महक रह ेथे। गुनगुनी धूप मे सुबह की ताजा हवा के कारण पयारपनमी थी। बीच-बीच मे पंिछयो के चहकने का सवर वातावरण मे अमृत घोलता जान पड रहा था।राघवी ने अभी-अभी गमलो मे पानी डाला था। सान के बाद पौधो को पानी डालना, उसका रोजका िनयम था। वह अनय गमलो से िजयादा गुलाब के गमले का कुछ खास खयाल रखती थी। इसकेउपरानत वह बालकॉनी मे ही एक छोर पर खडी होकर अपने गीले बालो मे मौजूद पानी कोतौिलये से िछटक-िछटक कर िनकालने लगी।

"न झटको जुलफ से पानी, ये मोती फूट जायेगे।" एक पुराने गीत की पंिकयाँ सवतः ही माधव केहोठो से बरबस सफुिटत होने लगी।

"कया बात ह,ै बहत रोमांिटक हो रह ेहो?" राघवी ने तौिलये से अपने बालो को सहलाते हए कहा।पित उतर मे माधव कुछ नही बोला। बस वह गीत की पंिकयाँ गुनगुनाता रहा और अब उसनेअपनी िनगाह ेराघवी के चेहरे की तरफ केिदत कर ली। इस बीच राघवी के चेहरे पर कई भावउभरे। अंततः वह माधव की आँखो की तिपश को बदारसत न कर सकी। शरमा कर उसने िनगाहेनीची कर ली।

"आिखर ऐसा आज कया दखे रह ेहो जी, मुझमे! सुबह-शाम तो मुझे दखेते ही रहते हो?" साहसासाहस बटोरकर राघवी ने नैन मटकाते हए पूछ ही डाला।

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"दखे रहा ह ँतुम जयादा सुनदर हो या गुलाब।" माधव ने रोमांिटक होते हए जवाब िदया, "नहाने केबाद तुमहारी संुदरता बढ जाती ह।ै"

"सच ..." राघवी को मानो माधव के कह ेपर िवशास नही हआ या वह और भी कुछ सुनना चाहतीथी।

"सचमुच। लगता ह ैनई नवेली दलुहन हो अभी भी। अभी िनराला की किवता 'कुकुरमुता' पढ रहाथा। इसमे माकसर के िसदांत सवरहारा और बुजुरवा वगर की याद हो आई। कॉलेज के िदन भी कयािदन थे।" कहते हए माधव ने उपरोक िलखी हई िनराला की पंिकयाँ पुनः ऊँचे सुर मे सुना दी।िफर अथर बताया, "किवता मे कुकुरमुता के अनुसार गुलाब शोषणकतार ह।ै महाकिव िनराला जी कहते ह ैउसकी यह सुंदरता खाद-पानी को चूसकर बनी ह।ै कइयो को गुलाम बनाया ह ैऔर मालीकर रकखा ह ैसो अलग।"

"िनराला जी का गुलाब भले ही शोषण का पतीक हो, िकनतु हमारा गुलाब तो हम दोनो का पयारपाकर िखला ह।ै" राघवी ने गमले मे िखले गुलाब को पयार से सहलाते हए कहा।

"ये बात ह।ै" कहकर माधव कुसी से उठे और गमले के पास पहचंकर गुलाब को डाल से तोडिलया।

"इसे कयो तोडा जी!" राघवी ने हरैानी से पूछा।

"अगर ये हमारे पेम से उपजा ह ैतो इस गुलाब की असली जगह तुमहारे बालो मे ह।ै" और कहते-कहते ही माधव ने कह ेको िकये मे पिरवितत कर िदया। राघवी थोडा शरमा गई।

"इतनी जलदी कया थी . . . अभी दो िदन और गमले मे गुलाब को िखला रहने दतेे!" राघवी नेमनद-मनद मुसकुराते हए कहा।

"मैडम, बादशाह जफर ने अपने शेर मे कया खूब कहा है -- उमे-दराज मांग कर लाये थे चार िदन;दो आरजू मे कट गए, दो इिनतजार मे।" माधव ने बड ेअदब से शेर पढा, "कही हमारी हालत भीऐसी न हो जाये मैडमजी। इसी वासते आज ही तोड डाला आपके पयारे गुलाब को। इिनतजार औरआरजू मे कही हमारी भी िजदगी न कट जाये।"

"मै िटिफन तैयार करती ह।ँ आपको डूटी के िलए दरे हो जाएगी!" राघवी ने घडी की ओर इशारािकया।

"कौन कमबखत .... इतने हसीन पल छोडकर डूटी जायेगा। आज का िदन अपने पयारे गुलाब केनाम।" माधव के कह ेमे इतना नशा था िक राघवी ने माधव की आँखो मे दखेा तो शरमा करअपनी आँखे बंद कर ली।

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िभखारी

सटेलर आई टी पाकर के मेन गेट पर िजस वक िरकशा रका, घडी मे सुबह के ठीक नौ बज रह ेथे।यहाँ पनदह-बीस कमपिनयो के दस हजार कमरचारी लगभग सभी िशफटो मे काम करते ह।ै िजसकारण सडक पर रेहडी-ठेला लगाये लोगो का रोजगार हमेशा गरम रहता ह।ै कुछ सुबह की िशफटवाले तो कुछ नौ से छह की जरनल डूटी वाले नाशते मे छोले-कुलचे, तो कोई पराठे खा रह ेह।ैपनवाडी की दकुान के सामने खडे कुछ लोग बीडी-िसगरेट फंूक रह ेह।ै तो कुछ पान-तमबाकू चबायेरह ेह।ै इनके अलावा रैिलग के पास खडे कुछ लोग गपप-शप लडा रह ेह।ै सूयरदवे पूरी आभा के साथआकाश मे चमक रह ेह।ै चह ँऔर सीमेट की ऊँची िबिलडगो और कंकरीट की सडको का िवसतार ह।ैइन सबके अलावा इक िवशेष बात पनवाडी का रेिडयो जो चौबीसो घणटे िफलमी रोमांिटक गीतबजाता था। आज कुछ अलग गीत (दशेभिक टाइप) बजा रहा ह।ै शायद 14 अगसत होने के कारणऐसा ह।ै आसमाँ पे ह ैखुदा, और जमी पे हम। आजकल वो इस तरफ दखेता ह ैकम। ये गीत खतम होरहा था और इसके तुरंत पशात् िबना िकसी पचार के नया गीत बजने लगा — द ेदी हमे आजादीिबना खडग िबना ढाल। सवरमती के संत तूने कर िदया कमाल। रघुपित राघव राजाराम।

"साहब बीस रपये।" िरकशेवाले ने िरकशे से उतरने के बाद गुपा जी की तरफ दखेकर कहा। वहअभी िरकशा मे ही बैठे थे।

"भगवान ने मुह ंिदया नही िक फाड िदया। सफर दस रपये का भी नही और बडा आया बीस रपयेमांगने वाला। अबे चार पैडल ही तो मारे ह ैलेबर चौक से सटेलर आई टी पाकर तक।" गुपा जीबौखलाते हए बोले और िरकशे से उतर गए।

"साहब सभी दतेे ह ैऔर यही रेट भी ह।ै" िरकशेवाला पुनः बोला।

"अबे पता भी ह ै एक-एक रपया कैसे कमाया जाता है? बडी मेहनत-मसकत करनी पडती ह।ै"िरकशेवाले को दस रपये जयादा न दनेे पडे। इस चकर मे गुपजी ने कमाई का पूरा अथरशाससमझाने की कोिशश की िरकशेवाले को।

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"ये बात िरकशेवाले से िजयादा कौन समझ सकता ह ैबाबूजी? पैडल मारते-मारते पूरी िजदगी िघसगई मगर कभी एक रपया नही बचा सका अपने िलए।" िरकशेवाले ने गमछे से अपना पसीनापोछते हए जवाब िदया।

"बहत जुबान चलने लगी ह ैतुमहारी, " कहते हए गुपा जी ने माथे से लगातार चू रह ेपसीने कोरमाल से पोछते हए कहा, "ये दस पकड, मै इससे जयादा नही द ेसकता। गुपा जी ने िरकशेवाले केहाथ मे दस का नोट रखना चाहा मगर उसने नही िलया। फलसवरप दस रपये जमीन पर िगरपडे।"अबे उठा ले।" गुपा जी िरकशेवाले पर चीखे। इससे िरकशेवाले के सवािभमान को चोट पहचंी। "आप ही रख लो साहब। िदन मे आपके चाय पीने के काम आएंगे। हम एक वक और फांका करलेगे।" िरकशेवाले ने पुनः िरकशे पर चढ कर पैडल पर अपना पैर रखा, "सोचे थे बीस रपये मेहलका-फुलका नाशता हो जायेगा। आप तो पेट भर के पवचन िखला िदए। ऊ का कहत ह ैअंगेजी मािदन के भोजन को 'लंच' ..." और पैडल लगते ही िरकशा आगे को बढ गया। गुपा जी दो िमनट सनसे खडे उसे यूँ ही जाते हए दखेते रह।े जब तक िरकशावाला उनकी नजरो से ओझल नही हो गया।उनकी तनदा टूटी तो कया दखेते ह ैएक विक जो बगल से गुजर रहा था। उसने िगरे हए दस रपएउठा िलए ह।ै

"ऐ खबरदार, ये दस रपये मेरे ह।ै इधर लाओ।" कहते हए गुपा जी ने उसके हाथ से दस रपयेलेकर अपनी जेब मे डाल िलए। िफर हाथ से अपने बाल संवारते हए बडे सटाइल से दफतर कीतरफ चल पडे। जैसे िक कुछ हआ ही नही था।

अलबता पृषभूिम पर पनवाडी का रेिडयो अब एक नया गीत बजा रहा था — हम मेहनतकस इसदिुनया से जब अपना हक मांगेगे। एक बाग नही एक खेत नही। हम सारी दिुनया मांगेगे।

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सायारात के घने अँधेरे मे एक हाथ जो दार खटकने के उदेशय से आगे बढा था। वह भीतर कावातारलाप सुनकर जयो-का-तयो रक गया।

"चलो अचछा हआ कललू की माँ, जो दगंो मे लापता लोगो को भी सरकार ने दगंो मे मरा हआ मानिलया ह।ै हमारा कललू भी उनमे से एक ह।ै अतः सरकार ने हमे भी दस लाख रपये दनेे का फैसलािकया ह।ै"

"नही … ऐसा मत कहो। मेरा लाल मरा नही, जीिवत है, कयोिक उसकी लाश नही िमली है! ईशरकरे वह जहाँ कही भी हो, सही-सलामत और जीिवत हो। हमे नही चािहए सरकारी सहयता।""चुपकर! तेरे मुंह मे कीडे पड।े हमेशा अशुभ-अमंगल ही बोलती ह।ै कभी सोचा भी ह—ैअपनीपहाड-सी िजदगी कैसे कटेगी? दोनो बेिटयो की शादी कैसे होगी? अरे पगली, दआु कर कललू जहाँकही भी हो मर चुका हो। वह सारी उमर मेहनत-मजदरूी करके ही दस लाख रपए नही बचापाता।""हाय राम! कैसे िनदरयी बाप हो? जो चंद पैसो की खाितर, अपने जवान बेटे की मौत की दआु मांगरह ेहो। आह!"

"चंद पैसे! अरी पगली कभी दखेे भी ह ैदस लाख कया होते है! दस लाख िकसे कहते है?" िपता नेऐसे कहा जैसे उसे पीढी-दर-पीढी गुबरत मे िबताई िजदगी याद आ गई हो। िजसमे गरीबी कीदगुरनध के अलावा कुछ भी नही था। अतः िघन और आकोश के िमले-जुले सवर के साथ वह पुनःबोला, "तू यहाँ पडी-पडी रो-मर! मै तो चला बहार। कम-से-कम तेरी मनहस जुबान तो नही सुनाईपडेगी।"

कहने के साथ ही दार खुला। बाहर मौजूद था िसफर अमावस का घनघोर अँधेरा। िजसमे वह साया,न जाने कहाँ गुम हो गया था, जो बाहर दार खटकाने के उदेशय से खडा था।

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बंद दरवाजा"चले जाओ, मुझे कुछ भी नही कहना ह।ै" दरवाजा खोलने वाली सी ने आगंतुको की भीड कीओर दखेकर कहा। धडाम की जोरदार आवाज के साथ दार पुनः बंद हो गया।

"भगवान के िलए मुझे मेरे हाल पर छोड दो … चले जाओ तुम लोग।" उस सी की िससकती हईआवाज आगंतुको को बंद दारवाजे के पीछे से भी साफ सुनाई दी।

"दिेखये मैडम, दरवाजा खोिलए। हम आपका भला करने के िलए ही आये ह।ै हम सभी मीिडयाऔर पत-पितकाओ से जुडे लोग ह।ै आप पर हए बलातकार की खबर को सावरजिनक करके हम उसभेिडये को बेनकाब कर दगेे िजसने तुमहारे जैसी न जाने िकतनी ही मासूम लडिकयो को िजदगीखराब की ह।ै" आगंतुको की भीड मे सबसे आगे खडे विक ने कहा।

"अचछी तरह जानती ह ँतुम लोगो को। ऐसी घटनाओ को मसाला बनाकर खूब नमक-िमचर लगाकरपरोसते हो, एक चटपटी खबर की तरह। अपने चैनल को इस तरह नाम और पचार दतेे हो औरखूब िवजापन बटोरते हो।"

"दिेखये मैडम, आप गलत सोच रही ह।ै हम वावसाियकता की दकूान चलाने वाले लोग नही ह।ैसमाज के पित हमारी कुछ नैितक िजममेदािरयाँ भी ह।ै सच को सावरजिनक करना ही हमारा मूलउदेशय ह।ै"

"हाँ जानती ह,ँ िकतने नैितकतावादी हो तुम लोग! सच की आड मे िकतना झूठ परोसते हो तुमलोग! तुम समाज का कया िहत करोगे? तुमने लोगो की संवेदनाओ का ववसाय करना सीख िलयाह।ै दफा हो जाओ सबके सब, दरवाजा नही खुलेगा।"

बंद दरवाजे के पीछे से ही उस सी को मीिडया वालो के सीिढयाँ उतरने की आवाजे सुनाई दी। बंदपीछे से ही पडोिसयो को दरे रात तक उस सी की िससिकयाँ सुनाई दी।

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सोया हआआई० ए० एस० के एगजाम की तैयािरयो मे इन िदनो रामसवरप िसह की नीद उडी हई थी।परीका की तैयारी मे उसने िदन-रात एक कर िदए थे। रामसवरप के जीजा पेम िसह अपने वकके आई० ए० एस० टॉपर थे। तभी से रामसवरप ने उनह ेअपना आदशर मान िलया था। उनही केजैसा उच अिधकारी बनने का सवप िलए वह अपने उदेशय की पूित हतेु इन िदनो जीजा जी केआवास सथान मे ही अपना डेरा डाले हए था। इसका मुखय लाभ तो यह था िक समय-समय परराम सवरप को अपने जीजाजी से परीकाओ के समबनध मे महतवपूणर िटपस िमल जाती थी। जोउसकी एगजाम की तैयािरयो मे अहम रोल अदा कर रही थी। यह सरकारी बांगला था। जो सरकारकी तरफ से पेम िसह को रहने के िलए िमला था। यहाँ लमबा-चौडा लॉन भी था। जहाँ अकसरचहल-कदमी करते हए शांितपूवरक पढा जा सकता था। िफर जीजाजी के बचे अनय शहर मे पढतेथे। अतः हॉसटल मे ही रहते थे। इसिलए बंगले मे असीम शांित पसरी हई थी। जो पढाई के िलएआदशर िसथित होती ह।ै लॉन के दसूरी तरफ सवेट काटरर था। जहाँ धमर िसह नाम का एकमातनौकर रहता था। जो बेहद हसंमुख और हािजर-जवाब आदमी था। रामसवरप जब आई० ए०एस०एगजाम की किठन पढाई से बोर हो जाता था तो समय पास करने और िदल बहलाने के िलएवह अकसर धमर िसह के काटरर मे चला जाता था।

रोज की भांित राित भोजन के उपरानत रामसवरप लॉन मे चहल-कदमी करते हए पढ रहा था।रामसवरप को िसगरेट पीने की लत थी। वह अकसर जीजा जी और दीदी से चोरी-िछपे िसगरेटपीता था। आज भी उसे िसगरेट पीने की तलब हई। जेब मे हाथ गया तो िसगरेट बाहर आई मगरसंयोग से आज वह मािचस नही रख पाया था। अब तक बंगले की बती बुझ चुकी थी। यिद इससमय बंगले मे मािचस लेने गया तो जीजाजी की नीद टूट सकती ह।ैउसने दखेा सवेनट काटरर कीलाइट जली हई ह।ै शायद धमर िसह अभी सोया नही ह।ै चलो आज उसी से मािचस ले ली जाये।इसी बहाने कुछ गपशप भी हो जाएगी तो पढाई के िलए मन हलका जायेगा।

"धमर िसह, सो गए कया?" दरवाजे से ही रामसवरप ने पुकारा।

"नही साहब! आ जाओ दरवाजा खुला ह।ै" धमर िसह ने लेटे-लेटे ही भीतर से कहा।

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"मािचस द ेथोडा िसगरेट की तलब िमटा लूँ।" भीतर पलंग के एक छोर पर बैठते हए रामसवरपबोला। उसने िकताब मेज पर रखी और िसगरेट को होठो से लगा िलया।

"तुमहारा िहसाब-िकताब बिढया ह ैधमर िसह।" धमर िसह से मािचस की िडबबी लेते हए रामसवरपबोला। उसने एक ितलली सुलगा ली और िसगरेट के मुहाने पर लगाकर वह िसगरेट सुलगाने मेवसत हो गया।

"कया बिढया िहसाब-िकताब ह ैसाहब!" हलकी-सी जमहाई लेते हए धमर िसह हरैानी से बोला।

"खा-पीकर चैन से सो जाते हो।" िसगरेट का कस लेने के उपरांत रामसवरप ने कहा। धँुआवातावरण मे इधर-उधर तैरने लगा। िफर बात को आगे बढाते हए बोला, "तुमह ेन वतरमान कीिचता, न भिवषय की िफक। मुझे दखेो परीका की तयारी मे कई िदनो से ठीक ढंग से सो नही पारहा ह।ँ िकताबो मे ऑखे गढाते हए रात के दो-ढाई बज जाते ह।ै" इस बीच िसगरेट का एक औरजोरदार कस लेने के िलए रामसवरप रका। कस लेने के बाद उसने कहना जारी रखा, "मेरी िसथितपर िकसी शाइर ने कया खूब कहा है-- िफके दिुनया मे सर खपाता ह।ँ मै कहाँ और ये वबाल कहाँ?"

"सही कह रह ेहो साहब!" आिखर धमर िसह ने अपनी चुपपी तोडी, "हम सोये हए लोग ह।ै आपजागे हए लोग ह।ै"

"कया मतलब?" रामसवरप िसह ने चौकते हए कहा।

"मतलब यह िक आज मै आपके जीजा जी और दीदी के बतरन-भांडे धो रहा ह।ँ कल को आप भीअफसर हो जायेगे तो मेरे बचे आपके बतरन-भांडे धोएंगे।"

"धमर िसह आप गलत समझ रह े हो मेरे कहने का यह अथर नही था! " शिमदगी महसूस करतेहए रामसवरप ने अपनी बात की सफाई दनेी चाही मगर उसे समझ नही आ रहा था िक आिखरवह कह ेतो कया कहे?

"जानता ह ँसाहब! आपके कहने का यह अथर नही था।" धमर िसह ने हसँते हए कहा, "लेिकन सचाईतो यही ह ैसाहब।"

"अचछा अब मै चलता ह।ँ" हसंी की एक गंभीर लकीर चेहरे पर िलए रामसवरप मेज से अपनीिकताब उठाकर धमर िसह के कक से बाहर चले आये। यह सोचते हए शायद बेइरादा ही सही उनहेऐसी कठोर बात नही कहनी चािहए थी।

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आनदोलन "भारत माता की।" वातावरण मे गूंजता एक सवर।

"जय।" पितिकया सवरप कई सवर एक सुर मे गूंजे।

"एक, दो, तीन, चार।" वह सवर इस बार तीव आकोश के साथ।

"बंद करो ये भषाचार।" उसी आकोश को बरकरार रखते हए सामूिहक सवर।

पूरे दशे मे आजकल उपरोक दशृय मंजरे-आम पर ह।ै लोग गली-मुहललो मे रैिलयां िनकाल-िनकालकर अना हजारे के 'जनलोकपाल िबल' के समथरन मे सडको पर उतर आये ह।ै नारो केमाधयम से सरकार और िवपक के भष नेताओ तथा बडे अफसरो तक को फटकार रह ेह।ै दशे केिविभन राजयो से बैनर और सलोगनस के साथ आनदोलन समथरक िदलली के रामलीला मैदान मेपधार रह ेह।ै जहाँ अना हजारे िपछले बारह िदनो से अनशन पर बैठे ह।ै उनके समथरक बीच-बीचमे उतसाहवधरन करते हए नारे लगा रह ेह।ै 'अना नही आंधी ह।ै दशे का दसूरा गांधी ह।ै' 'अना तुमसंघषर करो। हम तुमहारे साथ ह।ै' चारो तरफ जन सैलाब। भारी भीड ही भीड। लोग ही लोग।टोिपयाँ ही टोिपयाँ। िजन पर िलखा है -- मै भी अना, तू भी अना। इस हगंामे को कवरेज करतेसभी चैनलो के मीिडयाकमी . सभी चैनलो पर इसी तरह की िमली-जुली बयानबाजी।

रामलीला मैदान मे उपिसथत "मै" सवयं हरैान था-- 'कैसे एक साधारण-सी कद-काठी वाले विकने समूचे राष को ही आनदोिलत कर िदया ह।ै' हदय शदा से अना हजारे के आगे नत-मसतक होगया। मुझे यह जानकार अतयंत पसनता हई िक अना तेरहवे िदन अपना अनशन तोडेगे। मैने भीराहत की सांस ली --'चलो दरे आये दरुसत आये' वाली बात। रामलीला मैदान से िनकलकरमै बाहर फुठपाथ पर आ गया। जहाँ सडक िकनारे अना के नाम पर आनदोलन से जुड ेबैनर, पोसटर,टोिपयाँ, झंडे, सटीकर आिद बेचने वाले बैठे थे। िजनह ेमै अकसर चौराहो पर गािडयाँ साफ करते,कभी अखबार-िकताबे या अनय सामान बेचते और भीख मांगते भी दखेता था।

"अममा कया सचमुच अना कल अपना अनशन खतम कर दगेे।" बडी मायूसी से एक आठ-नौ बरसकी लडकी ने अपनी माँ से पूछा।

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"हाँ बेटी।" उसकी माँ भी उसी मायूसी से बोली।

"ये तो बहत बुरा हआ, अममा।" बची के सवर मे असीम वेदना उभर आई।

"ऐसा कयो कह रही हो गुिडया? कोई आदमी बारह िदनो से भूखा ह ैऔर अपना अनशन खतमकरना चाह रहा ह।ै यह तो खुशी की बात होनी चािहए।" मैने टोकते हए कहा, "इसका मातम कयोमना रही हो?"

"ऐसी बात नही ह ैबाबूजी, िपछले दस-बारह िदनो से आनदोलन का सामान बेचकर हम पेटभरभोजन खा रह े थे। कल अनशन टूटने के साथ ही आनदोलन भी खतम हो जायेगा तो हमे िफर सेिजदा रहने के िलए कडा संघषर करना होगा। बचो को भीख मांगनी पडेगी। लोगो की जूठन खाकरपेट भरना होगा। कूडे-करकट के ढेर मे अपनी रोजी-रोटी तलाश करनी होगी। पता नही दबुारापेटभर भोजन अब कब नसीब होगा? बची यही सोच-सोचकर परेशान ह।ै" उस औरत ने बडे हीकरणा भरे सवर मे कहा, "कया ऐसे आनदोलन सालभर नही हो सकते बाबूजी?"

माँ-बेटी के दखुी, हतास-उदास चेहरो को दखेकर मै यह सोचने लगा — "काश! कोई एकआनदोलन ऐसा भी हो, िजसमे इन गरीबो को पेटभर भोजन िमले।"

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संवेदना "एक जबरदसत टकर लगी और सब कुछ खतम …" अपने मोबाइल से हवलदार सीताराम नेइंसपेकटर पुरषोतम को ठीक वैसे ही और उसी अंदाज मे कहा, जैसािक उसने एक पतयकदशी गवाहके मुख से सुना था, "सर डाईवर को चीखने तक का मौका नही िमला। एक चशमदीद ने मुझे यहसब बताया … खून के छीटे …"

"जयादा िवसतार मे जाने की जररत नही ह ैबेवकूफ। तुमह ेपता नही मै हाटर पेशंट ह ँ…." इंसपेकटरपुरषोतम ने टोकते हए कहा।

"सॉरी सर" सीताराम झेपते हए बोला।

"ये बताओ, दघुरटना हई कैसे?" पुरषोतम का सवर कुछ गंभीर था।

"सर ये वाकया तब घटा, जब एक कार सामने से आ रह ेटक से जा टकराई।"

"टक डाइवर का कया हआ? कुछ पैसे-वैसे हाथ लगे की नही।"

"पैसे का तो कोई पश ही नही सर"

"कयो?"

"वह मौके से फरार हो गया था. मै दघुरटना सथल पर बाद मे पंहचा था।"

"तुमह ेदो-चार िदन के िलए िनलंिबत करना होगा।"

"कयो सर?"

"तुम मौके पर कभी नही पंहचते?"

"सॉरी सर!"

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"अबे सॉरी कह रहा ह ैबेवकूफ। कया जानता नही दघुरटनाएं हमारे िलए फायद ेका सौदा होती है?आज के दौर मे िबना ऊपरी कमाई के गुजर -बसर करना मुिशकल ह।ै िजतने अपराध … उतनीआमदनी … " पुरषोतम ने िवसतार पूवरक सीताराम को समझाया, "खैर अब भी कुछ नही िबगडाह ै… टक और कार की अचछी तरह जाँच-पडताल करो, शायद कुछ कीमती सामान हाथ आ जाये।एक काम करो मुझे टक और कार का नंबर िलखवा दो. … इससे इनके मािलको का पता चलजायेगा तो वहां से कुछ फायदा …" कहते-कहते इंसपेकटर के सवर मे चमक आ गई।

"साब िजस जगह दघुरटना हई है, वहां अँधेरा है. नंबर ठीक से िदखाई नही पड रहा ह।ै एक सेकेणडसर … मोबाईल की रौशनी मे कार का नंबर पढने की कोिशश करता ह।ँ" और सीताराम ने जैसेही कार का पूरा नंबर पढकर पुरषोतम को सुनाया वह बुरी तरह चीख पडा, "नही, ये नही होसकता … ये कार तो मेरे लडके अिमत की ह…ै." और फोन पर पहली बार मानवीय संवेदनाएंउमड पडी। अब तक जो इंसपेकटर दघुरटना मे नफा-नुकसान ही दखे रहा था। पहली बार उसकेहदय का िपता जीिवत हआ था।

"संभािलये सर अपने आपको …" बेवकूफ सीताराम इतना ही कह सका था िक फोन िडसकनेकटहो गया।

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नई पिरभाषा"असलाम वालेकुम, भाईजान!" उसने बडे अदब से कहा। "वालेकुम असलाम!" आलम ने मुसकुराते हए अपिरिचत का अिभवादन सवीकार करते हए कहा।

"भाईजान मेरा नाम रहमान ह।ै मैने सुना ह ै िक दगंो मे आपके वािलद ...." कहते-कहते रहमानरक गया। आलम के चेहरे पर पुराने जखम हरे हो गए।

"कबूतरो को दाना डालते हए, मुझे बडा सकँू िमलता ह।ै लीिजए, आप भी इस नेक काम कोअंजाम दीिजये।" आलम ने अपने चेहरे पर मुसकान लाते हए कहा और रहमान की तरफ दानो सेभरा थाल बढाया। नेकी से जो चमक और ऊजार पैदा होती ह।ै रहमान को आलम के चेहरे पर इसवक वही चमक िदखाई दी।

"तुमह ेये शौक कबसे पैदा हआ?" रहमान ने चंद दाने कबूतरो के समूह की ओर फैकते हए कहा।

"मेरे दादा जान से।" आलम ने मुसकुराते हए कहा।

"और तुमहारे अबबा!" कहते-कहते रहमान िफर रक गया।

"वो गोधरा कांड के बाद भडके दगंो मे मारे गए थे।" आलम ने कबूतरो की तरफ दाना फैकते हएअित-शांितपूवरक कहा।

"कया तुमहारे मन मे बदले की भावना पैदा नही हई?" रहमान ने अपना लहजा थोडा सखत िकया।

"कया िकसी बेकसूर को मार दनेे से बदला पूरा हो जाता ह।ै कया मेरे अबबू ऐसा करने से लौटआते?" रहमान के पश के उतर मे आलम ने ही उससे एक और पश िकया।

"नही ... लेिकन इससे तुमहारे िदल को तसलली िमलती।"

"नही ... कोई तसलली हांिसल नही होती। रहमान भाई आपकी सोच एकदम गलत है! नफरत सेकभी नफरत नही िमटाई जा सकती।" आलम ने उसी सादगी से जवाब िदया, "रहा सवाल तसललीका तो रोजाना कबूतरो को दाना डालने से मुझे जो सकून िमलता ह ैउसका फायदा जािहर तौर सेमेरे वािलद की रह तक भी पहचँता ह।ै"

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"बेशक, अललाह के नेक बनद ेहो आप!" रहमान ने आकाश की ओर दखेते हए कहा।

"अबबू .... तुमहारी चाय।" पयाला आलम के सामने बढाते हए आठ-नौ बरस की एक बची वहांपकट हई।

"बेटी एकता, एक पयाला और ले आओ। ये रहमान चाचा िपएंगे।" आलम ने चाय का पयालारहमान को थमाया।

"जी अबबू ..." कहकर िबिटया पुनः घर के अंदर चली गई।

"आपकी बची का नाम एकता? ये तो िहनद ूनाम जान पडता है!" कहकर रहमान ने चाय की चुसकीली।

"िहनद ूकी बेटी ह ैतो िहनद ूनाम ही होगा!" आलम ने ठहाका सा लगाया।

"मतलब ... मै कुछ समझा नही।" रहमान ने हरैानी जताई।

"गोधरा मे अयोधया से लौट रह ेकार सेवको की िजस बोगी को आग के हवाले िकया गया था।उसमे एकता के िपता भी ...." आगे के शबद आलम के मंुह मे ही रह गए थे।

"ओह! यतीम बची को गोद लेकर आपने बडा नेक काम िकया आलम भाई। आप फिरशता...."रहमान ने इतना कहा ही था िक बची पुनः एक पयाला चाय लेकर हािजर थी।

"अबबू आपकी चाय।" ननही एकता ने मुसकुराते हए कहा।

"एकता, अपनी अममी को कहना, रहमान चाचा भी िदन का भोजन हमारे साथ करेगे।" चाय कापयाला पकडते हए आलम बोला।

"ठीक ह ैअबबू।" कहकर एकता अंदर चली गई।

लगभग दो-तीन िमनट तक वातावरण मे चुपपी सी छाई रही। दोनो के चाय पीने का सवर, कबूतरोके गुटर-गंू का सवर अब सपष रप से सुना जा सकता था।

"भाईजान, आज आपने मुझे जीवन की नई पिरभाषा समझा दी।" खाली कप जमीन पर रखने केबाद, कहते हए रहमान ने जेब से िरवॉलवर िनकाली और आलम के चरणो मे डाल दी।

"ये सब कया ह ैरहमान भाई?" आलम हरैान थे।

"मुझे इिनडयन मुजािहदीन ने आपके अबबू के काितलो के बारे मे मालुमात हांिसल करने और उसकेबाद उन काितलो को सजा दनेे के िलए भेजा था।" रहमान ने अपनी सचाई जािहर की।

"और अब कया करोगे?" आलम ने पूछा।

"अब उमभर अललाह की इबादत और लोगो की िखदमत करँगा।" रहमान ने खुशिदली से कहा।

"आमीन!" और दआुओ के िलए आलम के हाथ अपने आप उठ गए।

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सवामी जी

सवामीजी पर बलातकार का आरोप लगा! पता नही सही था या आधारहीन कयोिक पभु राम कीतरह पूजनीय सवामीजी को अब भी कोई रावन मानने के िलए तैयार न था। िफलहाल दशे-िवदशेमे फैले हए उनके समसत अनुयािययो मे हडकंप मच गया। "ये सब झूठ ह।ै सािजश ह।ै धोका ह।ैछलावा ह।ै षडंत ह।ै जालसाजी ह।ै सरासर गलत ह।ै" सवामी जी सिहत उनके तकरीबन चाहनेवालो ने मीिडया और पत-पितकाओ मे कुछ इसी तरह के िमले-जुले बयान िदए।

बलातकार की िशकार युवती ने जो बयान िदया था। उसके आधार पर सवामी जी के भवतमआशम पर पुिलस के रेड पडी और अनिगिनत आपितजनक चीजे बरामद हई। जैसे - - िहरोइन,अफीम, चरस, गंजा समैक और िवलायती शराब का बहत बडा भणडार सीलकर िदया गया। इसकीकीमत अंतरारषीय मुदाकोष मे अरबो-खरबो डालर आँकी गई थी। दहे वापार मे िलप आशम कीसैकडो युवितयां, िजनमे से अिधकांश िवदशेी थी, बरामद की गई। उनमे से कुछ काल-गलसर केबयान चौका दनेे वाले थे। सतारढ व िवपक के अनेक मंतीगण इन गैरकानूनी कामो मे सवामीजीके भागीदार और सहयोगी बताये गए थे। इसी कारण अब सरकार के िगरने का भी खतरा पैदा होगया था। कया आम आदमी, कया राजनेता सभी की नीद उड गई थी। सवामी जी ने रपया-पैसापानी की तरह बहाया मगर मामला शांत नही हआ। अत: राजनीितजो दारा तुरंत आनन-फानन मेएक आपात मीिटग बुलाई गई। िजसमे सवामीजी, बलातकार की िशकार युवती और पक-िवपक केफंसे हए तमाम मंितगण मौजूद थे। िजनह ेमीिडया ने लोकतंत का कणरधार बताया था। बैठक मेकया-कया कायरवाही हई और कया-कया फैसले िलए गए, यह उस रात तक परम गोपनीय था। आमआदमी तक अपना जररी काम छोडकर समाचार चैनलो से िचपका हआ था िक आगे कया होनेवाला ह?ै

सुबह वातावरण पूरी तरह से बदला हआ था। खादीधािरयो ने कैमरे के सामने िनमिलिखत बयानिदए:—

"ये सवामी जी को बदनाम करने की सािजश थी, महज घिटया पिबलिसटी सटंट था," एक मंतीजीिसगरेट का धुँआ उडाते हए बोले।

"सवामीजी की पीठ पीछे सारे गैर कानूनी कम हो रह ेथे," दसुरे मंती ने पान की पीक थूकी।

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"िजन कालरगलसर ने नेताओ के नाम उछाले, वह सब पािकसतान की सवोच गुपचर संसथा आई०एस० आई० के िलए काम करती थी," कहते हए तीसरे मंतीगण ने गुटके का पूरा पाउच मुंह मेउडेल िलया।

"पूरा िवश जान ले की संसद के बाहर पक-िवपक एक है, भले ही संसद के भीतर हमारे बीचिकतने ही मतभेद कयो न हो?" चौथे ने मुटी भीचकर दांत फाडते हए कहा और िचललाया, "हमसब साथ-साथ ..."

"लोकतंत ऐसी बेहदा हरकतो से टूटने वाला नही है, " पीछे से एक उतावले नेता ने औरो कोधिकयाते हए कैमरे के आगे अपना थोबडा चमकाते हए कहा।

इन सब बयानो से जयादा चौका दनेे वाला सीन, जो सभी समाचार चैनलो ने पमुखता से िदखाया,उसे दखे सब लोग आशयरचिकत थे। सवामी जी ने मुसकुराते हए सावरजिनक रप से उस युवती कोबहन कहकर संबोिधत िकया और राखी भी बंधवाई, िजस युवती पर कल तक सवामी जी के दाराबलातकार का आरोप लगा था। इसके उपरांत दोनो भाई-बहन एक ही कार मे बैठकर हाथ िहलातेहए िवदा हए।

"यह लोकतंत की महान जीत है," कार के ओझल हो जाने के उपरांत भीड मे से िकसी ने पता नहीकटाक िकया था या तारीफ?

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जीवन संधया "लडकपन खेल मे खोया, जवानी नीद भर सोया बुढापा दखेकर रोया, वही िकससा पुराना है ....सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना ह ै...” — रेिडयो पर िफलमी गीत बज रहा था। उम कीढलान पर बैठे साठ वषीय रामेशर ने इन बोलो को धयान से सुना और दोहराने लगा। बगल मे बैठाउसका पैतीस वषीय जवान बेटा मोहन, बाबुजी के मुखारिबद से यह गीत सुनकर मुसकुरा िदया।वह अपने पांच वषीय बेटे गोलू के साथ खेलने मे वसत था।

"बेटा मोहन, िवधाता ने जीवन भी कया खूब रचा है? बचपन, जवानी और वृदावसथा का ये खेलसिदयो से चला आ रहा ह।ै मृतयुबोध का अहसास िजतना इस उम मे सताता है, उतना बचपन औरजवानी मे नही। लगता ह ै िदया अब बुझा या तब बुझा।" रामेशर पसाद के सवर मे पयारपदाशरिनकता का पुट था।

"सब कुछ नाशवान ह ैिपताजी, मौत के िलए उम कया? उसके िलए तो बुढा, जवान, बालक सबएक समान ह।ै" मोहन ने गंभीरतापूवरक कहा।

"ये बात नही ह ैबेटा, मेरे कहने का अिभपाय यह था िक लडकपन हम खेल मे खो दतेे है, जो िकजान पाप करने की उम होती है, कयोिक इस उम मे न तो कमाने की िचता होती है, न भिवषयबनाने की िफक। धीरे-धीरे जवानी की दहलीज मे आकर यह अहसास होता ह ै िक वह समयिकतना अनमोल था। िफर युवावसथा मे हम मोहमाया के जंजाल मे फंसे रहते ह ैतथा जवानी केमद मे खोये-खोये रहते ह।ै जबिक साथरक कायो को करने की उम होती ह ैयह। घर-पिरवार कीिजममेदािरयां, रोजगार की िचनता-िफक, हर िकसी को िनगल जाती है, और आदमी खुद काकमाया भी, खुद पर खचर नही कर पाता।" रामेशर ने वाकुल होकर कहा, "तुमने पेमचनद कीकहानी 'बूढी काकी' पढी थी न?" रामेशर के कथन पर मोहन ने 'हाँ' मे सर िहला िदया, "कई बूढोकी हालत तो इससे भी गई गुजरी ह।ै"

"िपताजी आप भी वथर की कया-कया कलपनाएँ करते रहते है!" मोहन ने मुसकान िबखेरी, "आपकोहमसे कोई कष ह ैकया? मैने या सुशीला ने कभी कुछ कहा आपसे?"

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"नही बेटा ... इस मामले मे तो मै बडा भागयवान ह ँतुमहारी तो राम-सीता की जोडी है, मुझे तोकष केवल बुढापे से ह।ै शरीर रोगो का घर हो जाता है, हर तरह की बीमािरयाँ बढ जाती ह ै-- उचरकचाप, हदय रोग तो आम बात है, जयादा खा लो, तो िदकत। कुछ पी लो, तो मुसीबत। िलखनेवाला आदमी, िलखने के लायक नही रहता, उंगिलयाँ काँपने लगती ह।ै िदमाग सोचना बंद करदतेा ह।ै हाय! कमबखत बुढापा! हाय! िकसी किव ने कया खूब कहा है -- िफर जाकर न आई, वोजवानी दखेी, आकर न गया वो बुढापा दखेा।"

"आिखर कया बात ह ैिपताशी, आज आप इतना उपदशे कयो द ेरह ेहै!" मोहन ने गोलू को गोदी मेिबठाते हए कहा।

"कुछ नही बेटा, मन की परतो मे कुछ बातो की काई जमी थी, सो तुमसे बाँट ली।" रामेशर ने पुतकी िनमूरल शंका का समाधान करते हए कहा, "आज तो िककेट मैच ह।ै रेिडयो बंद करके टी०वी०तो लगा जरा ... काफी िदनो से सिचन की बैिटग नही दखेी ..." कहकर रामेशर िजनदािदली से हसंिदए।

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धमर िनरपेक

अमेिरका से िहदसुतान के िलए एक िवमान ने उडान भरी। एक िजजासु बचा अपने िपता के साथबैठा था। "पापा, अब हमारा िवमान कौन से दशे के ऊपर उड रहा है?""इंगलेड ...""यहाँ के लोग िकसमस मनाते ह ैकया?""हाँ बेटा, यह ईसाई मुलक ह।ै यहाँ िसफर िकसमस ही मनाई जाती ह।ै यूरोप और अमेिरका केअिधकांश दशे िकसमस ही मनाते ह।ै""पापा, अब हम कहाँ है?" कुछ समय बाद बचे ने पुन: पश िकया।"अब हमारा िवमान सऊदी अरब के ऊपर से उड रहा ह।ै""कया यहाँ भी िकसमस मनाते है?""नही बेटा, यहाँ से पािकसतान तक कई मुिसलम राष ह।ै यहाँ िसफर ईद मनाई जाती ह।ै""और अब हम कहाँ है?" कुछ समय बाद बचे का वही पश।"अब हमारा िवमान िहनदसुतान मे दािखल हो चुका ह।ै अब िदलली दरू नही। हम मंिजल के करीबपहचँने ही वाले ह।ै""पापा, यहाँ के लोग िकसमस मनाते ह ैकया?" वही पश। हाँ बेटा, यहाँ सभी धमो के तयौहार मनाये जाते ह।ै यहाँ ईसाई िकसमस मनाते ह।ै यहाँ मुसलमानईद मनाते ह।ै यहाँ िहनद ूिदवाली, होली, दशहरा आिद मानते ह।ै यहाँ बौद धमर वाले बुद पूिणमा,जैन धमर वाले महावीर जयंती मनाते ह ैतो िसख समुदाय गुर पवर मनाते ह ैऔर पारसी भी अपनातयौहार मनाते ह।ै""वाह पापा वाह! इतने सारे तयौहार! वो भी एक दशे मे एक ही जगह ... मजा आ गया।" बचे ने पुरेसफर मे पहली बार खुश होकर तािलयाँ बजाई। अगल-बगल मे बैठे अनय याती भी बचे की खुशीमे शािमल होकर तािलयाँ बजा रह ेथे।

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भोग

"आ ठकुराइन ... आ बैठ।" मंिदर के पुजारी पंिडत राम आसरे जी ने अपने सामने बडे आदर-सतकार के साथ बूढी ठकुराइन को िबठाया और शाम के समय ईशर को चढाया जाने वाला पसादठकुराइन के सामने परोस िदया।

"भोजन गहण करो ठकुराइन ... राधा िबिटया ने बडे मन से बनाया ह।ै" पुजारी जी ने आगह िकयाऔर ठकुराइन की आँखे छलछला आई। यह दखेकर पुजारी जी की िबिटया राधा कोिधत हो गईलेिकन चुपचाप रही।

"राधा जरा लौटे मे जल तो भर ला बेटी।" पंिडत जी ने िबिटया को आदशे िदया।

भोजन के उपरानत लाख-लाख आशीष दकेर ठकुराइन लाठी टेकती हई वहां से चली गई। मंिदर कीसीिढयाँ उतरने मे पुजारी जी ने भी ठकुराइन की सहायता की। जब पुजारी जी मंिदर मे वािपसलौटे तो िबिटया को कोिधत अवसथा मे दखेकर चौके।

"बाबा आपने ऐसा कयो िकया? मैने बड ेजतन से ठाकुर जी के िलए पसाद बनाया था और आपनेठकुराइन को िखला िदया," राधा ने कोिधत सवर मे कहा।

"िबिटया तुमहारा कोध उिचत ह।ै तुम तो जानती ही हो िक दो महीने पहले जब ठाकुर साहब कािनधन हआ था तो ठकुराइन के दोनो िनकममे बेटो धीर और वीर ने सारे सामान और समपित केसाथ-साथ माँ का भी बंटवारा कर िदया। यह तय िकया िक आधे महीने एक बेटा भोजन दगेा तोआधे महीने दसूरा ... फरवरी मे दोनो ने १४-१४ िदन माँ को भोजन िखलाया ... लेिकन बेटी तुझेतो पता ही ह ैमाचर का महीना ३१ िदन का ह।ै"

"तो िफर ..."

"दोनो बेटो ने १५-१५ िदन तो माँ को भोजन करवा िदया लेिकन आज िकसी ने भी ठकुराइन कोभोजन के िलए नही पूछा। रासते मे अचानक मेरी भेट ठकुराइन से हई तो सारा बात का पताचला। ठकुराइन ने बडी वाकुलता से कहा था—पंिडत जी सांझ होने को आई ह ैऔर मै सुबह सेभूखी ह।ँ" इतना कहकर पंिडत जी राधा से ही बोले, "अब तू ही फैसला कर ... गांव का एक विकसुबह से भूखा ह ैऔर हम भोजन कर रह ेह ैतो हमसे बडा नीच कौन होगा? पतथर के ठाकुरजी तोएक वकत का उपवास सह सकते ह ैलेिकन हाड-मांस की ठकुराइन वृदावसथा मे पूरे एक िदन भूखकैसे बदारशत करेगी?" कहते-कहते पुजारी जी की आँखे भर आई, "बेटी, सही अथो मे मेरी जीवनभर की पूजा-अचरना आज सफल हई ह।ै"

"बाबा ..." राधा की आँखो मे भी आंसू थे।

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इंसािनयत दगें के िवरोध मे मोहलले के चार घिनष िमत एकजुट हए। संयोग से चारो िमत अलग-अलग धमोके मानने वाले थे। उनहोने एक बैनर बनवाया, िजस पर िलखा था -- "मानवता पर रहम करो, दगंाखतम करो।" चारो संयुक सवर मे नारे लगाते गुए बैनर उठाये सडक पर चलने लगे। शहर मे दगंे काखौफ अब भी पसरा हआ था। इसिलए कफयुर मे ढील के बावजूद कोई भी घर से बाहर िनकलने काजोिखम नही उठा रहा था। लोग-बाग अभी भी डरे-सहमे घरो मे दबुके बैठे ह।ै पता नही, कब कहाँसे, कौन-सी बल टूट पडे? इंसान तो इंसान कालोनी के आवारा कुते तक न जाने कहाँ गायब थे।चारो तरफ दिृष पडने पर लुटे हए घर .. . उजडी हई दकुाने . . . यत-तत टूटी-फूटी गािडयाँ।गािडयो के िबखरे हए शीशे। जले हए टक और बसो के अवशेष ... सारी चीजे कुल िमलाकर दगंोकी ददरनाक कहानी बयान कर रही थी। "खून-खराबा बंद करो। मानवता पर रहम करो। दगंा खतमकरो।" यकायक चारो िमत तेज सवर मे नारे लगाने लगे।

"कौन हो तुम लोग?" सडक िकनारे घायल पडे विक का सवर उभरा।

"मै िहनद ूह ँ... राम िसह नाम ह ैमेरा।" पहला विक बोला।

"मै रहीम खान ... कटर सुनी मुसलमान ह।ँ" दसुरे ने कहा।

"ओ बादशाहो अससी सरदार खुशवंत िसह ... अमृतधारी िसख, वाह ेगुर दा खालसा, वाह ेगुर दीफतेह।" पगडी ठीक करते हए सरदार जी बोले।

"और मै जीसस काइसट को मानने वाला इसाई जॉन िडसूजा ह।ँ" चौथे ने अपने गले पर लटकेलाकेट को चूमकर कहा। िजस पर सलीब मे लटके ईसा मसीह का िचत था।

"अफसोस तुम चारो मे से कोई भी इंसान नही है," उसने मायूसी से कहा, "तुममे से एक ने भी नहीकहा--मै इंसान ह।ँ मेरा धमर इंसािनयत ह।ै"

"तुमहारा कया मतलब है?" राम िसह चौका, "यह बैनर नही दखे रह ेहो। जो हमने दगंे के िवरोध मेउठाया है ... िसफर मानवता को बचाने के िलए, और तुम कहते हो हम इंसान नही ह।ै अलग-अलगधमो के होते हए भी हम चारो िमत एक साथ खड ेह ैिसफर इंसािनयत की खाितर।"

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"यह धमर ही तो है, िजसके कारण आज मानवता का अिसततव संकट मे पड गया ह।ै जब तक आदमीमजहबी चोला पहने हए ह ैकभी इंसान नही बन सकता," उसने ददर से कराहते हए कहा।

"लेिकन तुमहारी ये हालत की िकसने?" रहीम ने पूछा।

"धमर के ठेकेदारो ने ... उनहोने पूछा तुम कौन हो? मैने कहा, मै तुमहारी तरह इंसान ह।ँ उनहोनेिफर पूछा तुमहारा धमर कया है? मैने कहा -- इंसािनयत ... और उनहोने मुझे छूरा मार िदया। यहकहकर िक ससाला सयाणा बनता ह।ै ये दखेो मेरे घाव ...," कहकर उसने करवट बदली। आधे सेजयादा चाकू पेट मे घुसा हआ था और उसके नीचे की धरती लाल थी।

"अरे तुमहारा तो काफी खून बह गया है, तुमह ेतो असपताल ...," मगर आधे शबद राम िसह के मुंहमे ही रह गए कयोिक इंसािनयत दम तोड चुकी थी और चारो िमतो ने बैनर को कफन मे तबदीलकर िदया। राम िसह के िदमाग मे गोपालदास "नीरज" की ये पंिकयाँ गूंजने लगी, जो उसने िकसीकिव सममलेन मे सुनी थी--

अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जायेिजसमे इंसान को इंसान बनाया जाये

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जीवन दशरन

यह लगभग तय हो चुका था िक दाशरिनक को िवषपान करना ही पडेगा। जब जहर से भरा पयालादाशरिनक के सममुख लाया गया तो उनसे पुन: कहा गया—"अब भी वकत ह,ै यिद तुम अपनीिवदता और िसदांतो की झूठी माला उतार फैको तो हम तुमह ेमृतयु का वरन नही करने दगेे। हमतुमह ेअभयदान दगेे। मगरर समाट की बात सुनकर दाशरिनक ने जोरदार ठहाका लगाया। "कयोहसेँ तुम?" पश िकया गया।

"समाट मेरी मृतयु तो आज होनी तय ह ैिकनतु आपकी मृतयु कब तक आपके िनकट नही आएगी?"पश के उतर मे दाशरिनक ने सता के मद मे चूर समाट से सवयं पश िकया। वह िनरतर था औरअपनी मृतयु का यूँ उपहास करने वाले इस महान दाशरिनक की िजदािदली पर दगं भी।

"मुझे मृतयु का अभयदान दनेे वाले समाट कया आप सदवै अजर-अमर रहगेे? कभी मृतयु का वरननही करेगे? यिद आप ऐसा करने मे समथर ह ैऔर मृतयु को भी टाल दगेे तो मै अपने िसदांतो कीबिल दनेे को पसतुत ह।ँ" दाशरिनक की बातो का ममर शायद समाट की समझ से परे था या वहजानकर भी अंजान बना हआ था।

चह ँऔर एक सनाटा वाप था। हदय की धडकने रोके सभी उपिसथतजन अपने समय के महानदाशरिनक की बाते सुन रहे थे। जो इस समय भी मृतयु के भय से तिनक भी िवचिलत नही था। "मृतयुतो आनी ही है, आज नही तो कल। उसे न तो मै रोक सकता ह ँन आप, और न ही यहाँ उपिसथतकोई अनय विक। यह पकृित का अटल िनयम है और कठोर सतय भी, जो जनमा है, उसे मृतयु कावरन भी करना ह।ै इस अंितम घडी को िवधाता ने जनम से ही तय कर रखा ह।ै िफर मृतयु के भय सेअपने िसदांतो से पीछे हट जाना तो कोई अचछी बात नही। यह तो कायरता ह ैऔर मृतयु से पूवरमृतयु का वरन कर लेने जैसा ही हआ न।" दाशरिनक ने बडी शांित से कहा। मगरर समाट के इदर-िगदर शूनय तैर रहा था। दाशरिनक की बातो ने समसत उपिसथतजनो के मिसतषक की िखडिकयो केकपाट खोल िदए थे।

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"आपने ठीक ही कहा था िक मै जीिवत रहगँा, मरँगा नही कयोिक मुझे जीिवत रखेगी मेरे िवचारोकी वह अिग, जो युगो तक अँधेरे को चीरती रहगेी। लेिकन कैसी िवडमबना ह ैसमाट िक मेरे जोिसदांत और िवचार मुझे अमरता पदान करेगे, उनके िलए आज मुझे सवयम मृतयु का वरन करनापड रहा ह।ै"

"तुमहारी कोई अंितम इचछा?" समाट ने बेरखी से पूछा।

"अंत मे इतना अवशय कहगँा िक जीवन की साथरकता उसके दीघर होने मे नही; वरन उसका सहीअथर और िदशा पा लेने मे ह।ै" दाशरिनक की िवदता के आगे सभी नतमसतक थे और इस असमंजसमे थे िक कैसे समाट के मन मे दया उतपन हो और इस अनहोनी को टाला जाये ... मगर तभी एकगहरा सनाटा सभी के िदमागो को चीरता हआ िनकल गया। जब दाशरिनक ने हसँते-हसँते िवष कापयाला अपने होठो से लगा िलया।

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सोच

सडक पर दघुरटनागसत आदमी को दखेकर भीड तरह-तरह की बाते बना रही थी—

"हाय राम! िकतनी बेददी से कुचल गया ह ैटक वाला इसे, शायद ही बचेगा!"

"आग लगा दो टक वाले को… साले अनधे होकर चलते ह।ै"

"बहत खून बह गया ह ैबेचारे का।"

"अरे कोई हािसपटल ले चलो बेचारे को शायद बच जाये।"

"अरे भाईसाहब आप तो टैकसी वाले ह।ै"

"तो िफर ..."

"िफर कया आप अपनी टैकसी मे िबठाकर ले चिलए उसे असपताल?"

"इसके खून से जो सीटे खराब होगी, उसकी धुलाई के पैसे कया तेरा बाप दगेा?"

"ओये भैण के ... तमीज से बोल वरना अभी िमनट मे रामपुरी अनदर कर दूगंा।"

"अरे भाईसाहब, आप लोग कयो लड रह ेहो? मैने एमबुलेस और पुिलस वालो को फोन कर िदयाह।ै बस थोडी दरे मे आ जायेगे।"

"चलो-चलो, सब भीड मत लगाओ। ऐसे हादसे तो होते ही रहते ह।ै" इसी तरह भीड हटती औरछंटती रही। सभी लोग दघुरटनागसत विक का तमाशा दखेते रह।े

लडने-झगडने के उपरांत वह कार वाला अगले चौराह ेपर पहचँा ही था िक सामने उलटी िदशा सेआ रह े एक टक ने उसे टकर मार दी। कार का अगला िहससा कितगसत हो गया था। बुरीतरह घायल कार वाले ने नीम बेहोशी की हालत मे महसूस िकया िक अब बाते बनाने वाली भीडका दायरा उसके इदर-िगदर फैलता जा रहा ह।ै िसफर चेहरे बदले हए ह।ै सोच वही थी।

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परोपकार पुराण

"भाई साहब पूरी टैन मे धके खाने के बावजूद मुझे कही भी सीट नही िमली। बडी मुिशकल सेभागते-भागते जनरल िडबबे को पकड पाया ह।ँ यह िडबबा भी खचाखच भरा हआ ह।ै आपकीमेहरबानी होगी यिद आपके बगल मे बैठने की थोडी-सी जगह िमल जाये।" याचना भरे सवर मेदबुले-पतले विक ने कहा।

"हाँ-हाँ, कयो नही बैठ जाओ ... आजकल लोगो के भीतर से परोपकार की भावना ही उठ गई ह।ै"जगह दनेे वाले विक ने अनय याितयो को सुनते हए कहा। इसके पशात् उसने नेकी, परोपकार,धमर-कमर और संसकार आिद िवषयो पर लमबा-चौडा वाखयान द ेडाला। दबुला-पतला विक जोपरोपकार के बोझ तले दबा था, मजबूरीवश बीच-बीच मे 'हाँ-ह ँ...' करता रहा। सटेशन पर गाडीरकी तो िटकट िनरीकक उसमे चढ गया। खचाखच भरे िडबबे मे वह एक-एक करके सबके िटकटजांचने लगा।

"िटकट िनरीकक हमारे करीब आ रहा ह।ै" तुमहारे बाये हाथ के ठीक नीचे सीट पर मेरा बैग रखाह।ै तुमहारी मेहरबानी होगी बैग की बाहर वाली छोटी जेब मे मेरा िटकट रखा ह।ै कृपयािटकट िनकालकर आप िटकट िनरीकक को मेरा िटकट दखेा दो। भीड-भाड मे यिद जरा-सा भीिहले तो अगल-बगल मे खडे लोग सीट पर कबजा कर लेगे। तुमह े पता ही ह ै िकतनी मुिशकलसे एडजेसट करके मैने तुमह े यहाँ िबठाया ह,ै " उसने दबुले-पतले विक से कहा और अपनापरोपकार पुराण जारी रखा। दबुले-पतले ने उसके आदशे का पालन िकया। िटकट िनरीकक के आनेसे पूवर ही उसने बैग से परोपकारी महाशय का िटकट िनकल िलया था। जब िटकट जांचते हए दोिमनट बाद िटकट िनरीकक उनके सामने पहचंा तो दबुले-पतले ने परोपकारी का िटकट िदखािदया।

"और आपका िटकट .. . " दबुले-पतले विक का िटकट दखेने के पशात् िटकट िनरीकक नेपरोपकारी से पूछा।

"इनहोने अभी िदखाया तो ह!ै" परोपकारी ने दबुले-पतले की तरफ इशारा करके कहा।

"वो तो मेरा िटकट ह।ै" दबुले-पतले ने तेज सवर मे कहा।

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"कया बात कर रह ेहो? आपने ये िटकट सीट के नीचे रखे मेरे बैग से िनकाल कर इनह ेिदखाया ह।ै"परोपकारी हरैान था। उसे इस िवशासघात पर जरा भी यकीन नही हो रहा था।

"मै कयो आपकी जेब से िटकट िनकालूँगा भाईसाहब, ये तो मेरी िटकट ह।ै" दबुले-पतले विक नेपरोपकारी को झूठा सािबत कर िदया।

"साहब, ये तो गािजयाबाद से चढे ह ैमै तो िदलली से बैठा ह।ँ" परोपकारी ने कहा।

"उलटा चोर कोतवाल को डांटे।" दबुला-पतला विक परोपकारी के ऊपर ही फैल गया, "िदलली सेमै चढा ह।ँ ये गािजयाबाद से चढे ह।ै"

"एक तो तुमह ेबैठने को सीट दी और उसका तुमने ये बदला।" बाकी शबद परोपकारी के मुख मे हीरह गए कयोिक गलती उसी की थी एक अनजान आदमी को कयो उसने अपने बैग मे हाथ डालनेिदया।"दिेखये, मै कुछ नही जानता िक आप दोनो मे से कौन िदलली से चढा और कौन गािजयाबाद से? येिटकट इनहोने िदखाया ह ैतो ये इनका हआ। आपके पास िटकट नही ह ैतो आपको जुमारना भरनापडेगा। मै दसूरा िटकट बना दूगंा।" िटकट िनरीकक ने कुछ पैसे बनाने के इराद ेसे कहा।

"पर मेरे पास जुमारना दनेे और िटकट लेने के िलए पैसे नही ह।ै" परोपकारी िटकट िनरीकक केसामने िगडिगडाया।

"तो चिलए। नीचे उतािरये। ये भारतीय रेलवे ह।ै कोई िभखािरयो के िलए खोला गया खैरातीआशम नही ह।ै तुमहारे जैसे मुफतखोर मुसािफरो से मेरा रोज ही सामना होता ह।ै" और परोपकारीसीट के नीचे से अपना बैग िलए; शिमदा होकर िटकट िनरीकक के पीछे चल पडा।

"जय हो परोपकारी बाबा की।" भीड मे से िकसी ने वंगय िकया।

हसंी की एक लहर दौड गई। नीचे उतरते हए परोपकारी, दबुले-पतले विक को घूर कर दखे रहाथा। जो अब उसी के िटकट की बदौलत उसी के सथान पर बेशमी से पैर पसारे बैठा; कानो मे लीडलगाये अपने मोबाइल से िफलमी गाने सुनने मे वसत था।

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घर-खचर

"आज िपताशी फोन पर पैसो की माँग कर रह ेथे।" बैग मेज के ऊपर रखते हए मैने बडे ही भारीसवर मे कहा और कुसी पर पसर गया। िफर घरवाली से इशारे मे पानी िपलाने को कहा।

"यहाँ तो जैसे पैसो का झाड लगा ह।ै" घरवाली ने पानी का भरा िगलास थमाते हए कहा। इसकेपशात वह बोली, "आप हाथ-मँुह धो लीिजये। चाय भी तैयार ह।ै"

हाथ-मँुह धोने के उपरांत मै तौिलये से मँुह पोछता हआ कक मे पहचँा तो मेज पर पयालेमे चाय पसतुत थी। मै चुपचाप चाय पीने लगा। चाय के अमृतनुमा घंूटो मे दफतर की थकान कोिमटाने मे काफी सहायता की। ततपशात मैने सोचना आरमभ िकया। फोन पर िपताजी ने हालचालपूछने की औपचािरकता के बाद पािरवािरक मजबूिरयो का उललेख करते हए कई बाते कही। जैसेछोटे भाई की कॉलेज फीस। बहन के िववाह की िचनता के अलावा मुखयरप से खेती-बाडी मे इसबार कुछ खास फसल का न होना। लगभग पाँच-दस हजार रपये की माँग। सोचते-सोचते दबुाराथकावट-सी होने लगी अपने भीतर कही। चाय के खाली कप को मैने मेज पर रख िदया।

शहरी िजनदगी कुछ-कुछ ऐसी ही ह ैजैसे मेज पर पडा खाली कप। जो बाहर से िदखने मे सुनदरऔर बेशकीमती है, मगर अंदर से एकदम खोखला। मन मे कुछ ऐसे िवचार सवतः ही तैरने लगे।जब तक पयाला भरा ह।ै हर जगह पूछ ह।ै कीमत ह।ै खाली हो जाने पर कुछ भी नही। वाह रीदिुनया।

"दखेो जी, भावुक होने की जररत नही। मैने महीनेभर का बजट पहले ही बना िलया ह।ै एक नजरइस पर भी डाल लेना। िफर राजा हिरशनद बनने की कोिशश करना।" शीमतीजी के सवर ने मेरीतनदा तोडी। एक कागज का पुजार मेरे हाथ मे थमाकर जूठा कप िलए पैर पटकते हए पुनः रसोई मेचली गई।

कागज के पुजे पर नजरे दौडाई तो पाया घर-खचर की लमबी-चौडी रपरेखा मुँह उठाये पसतुत थी।मकान का िकराया। दधूवाले का बकाया। राशन-पानी का खचार। बचे के पिबलक सकूल की भारी-भरकम फीस। सकूटर का पेटोल। िबजली का िबल। मोबाईल फोन की िसरददी इतयािद। महीनेभरके अनेक जररी खचे थे। िजनसे मुँह मोडना संभव न था।

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'कया होता ह ैबारह-पनदह हजार रपये मे आजकल? यिद ओवर टाइम न करँ तो मै खुद ही कजर मेडूब जाऊँ।' मैने जैसे अपने-आपसे ही पश िकया, 'कया िदन थे वे भी, जब सकूल लाइफ थी! कँुवारेथे। कोई िचता न थी। खा-पीकर मसत रहते थे। िचता मे तब भी िपताजी ही घुलते थे। सच ही कहाह ैकहनेवाले ने, बेटा बनकर सबने खाया मगर िपता बनकर िकसी ने कुछ नही पाया।'

"कया सोचने लगे? कल तनखवाह िमलेगी! इस िलसट मे जो-जो िलखा ह।ै वो सब कर दो तो कुछभेज दनेा अपने बाबूजी को।" घरवाली ने मुझे लगभग नीद से जगाते हए कहा।

अगले िदन डाकघर पहचँा तो िपताजी की िचताओ को दरिकनार करते हए मैने पाँच-दस हजाररपये की जगह उनह ेमात एक हजार रपये का ई-मनीऑडरर कर िदया।

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उतरांचली सािहतय संसथान (उदेशय व लकय)

उतरांचली सािहतय संसथान की सथापना महावीर उतरांचली (वासतिवक नाम: महावीर िसह

रावत) दारा 2007 ईसवी० मे की गई थी। िजसके तहत राषभाषा से जुडे मुदे, िवकास और लकयकी पािप मुखय उदेशय था। यह सािहितयक और सामािजक आयोजन बन गया। "तीन पीिढयाँ :तीन कथाकार" पहली महतवपूणर पुसतक थी। िजसे सुरंजन जी ने समपािदत िकया। िजसका पकाशन'उतरांचली सािहतय संसथान' के आिथक सहयोग बारह हजार (12,000) से "मगध पकाशन" दारासमभव हो सका। इसकी सफलता के उपरांत अब तक दजरन भर छोटी-बडी िकताबे िबना िकसीआिथक लाभ के आई। सािहितयक पत-पितकाओ को समय-समय पर अनुदान लगभग पचास हजार(50,000) रपये िदए जा चुके ह।ै पुसतके-पितकाएँ खरीदकर नए सािहतयकारो का उतसाहवधरनकरना। सािहितयक आयोजनो के अलावा सामािजक कायो के अनतगरत उतरांचली संसथान ने वषर2008 ईसवी० मे सूदखोर लीले गुजर (िनवासी पताप िवहार, खोडा कॉलोनी) के चंुगल से शीमतीउषा दवेी (धमरपती शी मनोज कुमार) नाम की मिहला को शीमती सािवती दवेी (कोषाधयकउतरांचली सािहतय संसथान) ने पनदह हजार (15,000) रपये दकेर आजाद करवाया। आज उषासवतनतता पूवरक जीवन वतीत कर रही ह।ै तमाम घाटे के बावजूद उतरांचली सािहतय संसथानिपछले एक दशक से िनसवाथर भाव से चल रहा ह।ै यिद "पितिनिध लघुकथाएँ" और "पितिनिधगजले" शंृखला सफल रहती ह ैतो सथािपत रचनाकारो के साथ-साथ नवोिदत सािहतयकारो की

पुसतको को िनःशुलक पकािशत िकया जायेगा।

महावीर उतरांचली (संसथापक व िनदशेक)उतरांचली सािहतय संसथान (सािहितयक व सामािजक लकय)

मुखय कायारलय : ए-44, पताप िवहार,

खोडा कॉलोनी, गािजयाबाद (उ० प०)

उतरांचली सािहतय संसथान अपने सािहितयक और सामािजक कायो को िनिवघ व सवेचछापूवरक चला सके। इसकेिलए अनुदान के इचछुक विक ऑनलाइन अथवा चेक दारा दान कर सकते ह ै:—

MAHAVIR SINGH RAWAT / SAVITRI DEVI

A/C NO. 21350100007417

IFSC: BARB0TRDCHW [Fifth character is ZERO]

Bank Branch: Bank of Baroda, Mayur Vihar, Phase 3, New Delhi 110096

चैक इस पते पर भेज सकते ह ै—

उतरांचली सािहतय संसथान का शाखा कायारलय:

MAHAVIR SINGH RAWAT / SAVITRI DEVI —

बी-4 / 79, पयरटन िवहार, वसंुधरा एनकलेव, िदलली 110096

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