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Presentation created by- Sarika Chhabra

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Page 1: Presentation created by- Sarika Chhabraग्रेंथ प्रारेंभ करन क पूवव जानन या ग्य6 बातें: ग्रेंथ का

Presentation created by-Sarika Chhabra

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तीन भुवन म ें सार, वीतराग ववज्ञानता |शिवस्वरूप शिवकार, नम्हें त्रिया ग सम्हारिकरक

मेंगलाचरण

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ग्रेंथ प्रारेंभ करन क पूवव जानन या ग्य 6 बात ें:•छहढालाग्रेंथ का नाम

•पण्डित दाौलतरामजीग्रेंथ क रचययता

•वीतराग ववज्ञानतामेंगलाचरण म ें वकस नमस्कार वकया गया हौ:

•९६ छेंद, ६ अधिकारग्रेंथ का प्रमाण

•भव्य जीवा ें क त्रनममत्तत्रनममत्त

•मा क्ष प्रात्रि ह तुह तु

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मेंगलाचरण करन क कारण

1.ग्रेंथ की त्रनवववघ्न समात्रि क मलय 2.शिष्टाचार क पालन क मलए3.नाण्स्तकता का परिकरहार क मलए4.उपकार का स्मरण करन क मलय

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छहढाला का अथवढाल = तलवार अादद क वार स रक्षा क मलय

•ममथ्यात्वादद ििु स अात्मा की रक्षा क मलय

6 अधिकार

6 छेंद (लय)

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१ ढाल १. दखु क्या हौ?

२ ढाल २. दखु का कारण क्या हौ?

३,४,५,६ ढाल

३. दखु स छूटन क उपाय क्या हौें?

छहढाला म ें 3 मुख्य बाता ें का वणवन हौ

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ढाल न. छन्द सेंख्या छन्द प्रकार ववषय वस्तु

1 17 चाौपाई ममथ्यात्व क कारण ४ गत्रतअा ें म ें भ्रमण स दुुःख

2 15 पद्धरी ममथ्या- दिवन,ज्ञान, चारिकरि का वणवन

3 17 जा गीरासा मा क्षमागव का स्वरूप,सम्यग्दिवन का वणवन

4 15 रा ला सम्यक-ज्ञान, चारिकरि, व्रती श्रावक का वणवन

5 15 छन््पाल १२ भावनाअा ें का स्वरूप

6 17 हरिकरगीत्रतका मुत्रन स भगवान बनन का उपाय, २८ मूलगुण,स्वरुपाचरण चारिकरि का वणवन

Total 96

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पहली ढाल की ववषय वस्तुछन्द ववषय वस्तु

1 – 3 मेंगलाचरण, शिक्षा सुनन का उपद ि, सेंसार परिकरभ्रमण का कारण

4 – 9 त्रतयंच गत्रत क दखु अाौर प्रात्रि क कारण

10 – 13 नरक गत्रत क दखु अाौर प्रात्रि क कारण

14 – 15 मनुष्य गत्रत क दखु अाौर प्रात्रिक कारण

16 - 17 द व गत्रत क दखु अाौर प्रात्रिक कारण

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मेंगलाचरण

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तीन भुवन म ें सार, वीतराग ववज्ञानता |शिवस्वरूप शिवकार, नमहें त्रिया ग सम्हारिकरक • वीतराग = राग द्व ष स रहहत (18 दा षा ें स रहहत)• ववज्ञानता = ववशिष्ट ज्ञान (क वलज्ञान)• शिवस्वरूप = अानेंद स्वरूप• शिवकार = मा क्ष प्राि करान वाला• नमहें = करता हें • त्रिया ग = तीना ें या ग• सम्हारिकरक = सेंभाल कर

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तीन भुवन म ें सार, वीतराग ववज्ञानता |शिवस्वरूप शिवकार, नमहें त्रिया ग सम्हारिकरक

• राग-द्व षरहहत ‘‘क वलज्ञान’’ •ऊर्धवव, मर्धय अाौर अिा इन तीन ला का ें म ें • उत्तम, अानन्दस्वरूप तथा मा क्षदायक हौ,• इसमलय मौें (दाौलतराम) अपन त्रिया ग अथावत मन-वचन-काय द्वारा साविानी पूववक

• उस वीतराग स्वरूप क वलज्ञान का नमस्कार करता हूँ 1

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•सम्यक् चारिकरिवीतराग

•सम्यग्दिवन, सम्यग्ज्ञानववज्ञान

•मा क्षमागव •शिवस्वरूप

वीतराग ववज्ञान

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वीतराग ववज्ञानता

3 ला कम ें

साररूप

अानन्दस्वरूप

शिव का करन वाला

वीतराग ववज्ञानता कैसी है?

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वीतरागी म ें नहीें पाय जान वाल 18 दा ष1. जन्म2. बुढ ापा3. प्यास4. भूख5. ववस्मय6. अरत्रत7. ख द8. रा ग9. िा क

10.मद11.मा ह12.भय13.त्रनद्रा14.मचन्ता15.स्व द16.राग 17.द्व ष18.मरण

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ग्रन्थ रचना का उद्द श्य अाौर जीवा ें की इच्छा

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ज त्रिभुवन म ें जीव अनन्त, सुख चाहौें दखुतौें भयवन्त ।तातौें दखुहारी सुखकार, कहौें सीख गुरु करुणा िार 2

• ज = जा • त्रिभवुन म ें= तीना ें ला का ें म ें• जीव= प्राणी • चाहौें= इच्छा करत हौें• दखुतौें= दुुःख स • भयवन्त= िरत हौें • तातौें= इसमलय • दुुःखहारी= दुुःख का नाि करन वाली

• सुखकार= सुख का द न वाली

• कहौें= कहत हौें • सीख= शिक्षा • गुरु= अाचायव • करुणा= दया • िार= करक

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•तीन ला क म ें जा अनन्त जीव (प्राणी) हौें,

•व दुुःख स िरत हौें अाौर •सुख का चाहत हौें; इसमलय •अाचायव दुुःख का नाि करन वाली तथा सुख का द न वाली शिक्षा द त हौें 2

ज त्रिभुवन म ें जीव अनन्त, सुख चाहौें दखुतौें भयवन्त ।तातौें दखुहारी सुखकार, कहौें सीख गुरु करुणा िार 2

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सुख-दखु

सुखइण्न्द्रयजन्यमानससकप्रिमा त्पन्नअात्मा त्पन्न

दखुअागेंतुकमानससकिारीरिकरकस्वाभाववक

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गुरु शिक्षा सुनन का अाद ि तथा सेंसार-परिकरभ्रमण का कारण

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ताहह सुना भवव मन मथर अान, जा चाहा अपना कल्यान ।मा ह महामद वपया अनादद, भूल अापका भरमत वादद 3

• ताहह = गुरु की वह शिक्षा • भवव = ह भव्यजीवा ! • मथर = स्स्थर • अान = करक • जा = यदद • चाहा =चाहत हा • अपना = अपना• कल्यान = हहत

• मा ह महामद = मा हरूपी महामददरा

• वपया = पीकर• अनादद = अनाददकाल स • भूल = भूलकर • अापका = अपन अात्मा का • भरमत = भटक रहा हौ ।• वादद = व्यथव

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ताहह सुना भवव मन मथर अान, जा चाहा अपना कल्यान ।मा ह महामद वपया अनादद, भूल अापका भरमत वादद 3

❖ ह भद्र (भव्य) प्राणणया ! यदद अपना हहत चाहत हा ता अपन मन का स्स्थर करक यह शिक्षा सुना ।❖यह जीव अनाददकाल स मा हमददरा स फूँ सकर, ❖अपनी अात्मा क स्वरूप का भूलकर ❖चारा ें गत्रतया ें म ें जन्म-मरण िारण करक भटक रहा हौ 3

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भव्य त्रनकट भव्य

िीघ्र ही मा क्ष प्राि कर गा

दरू भव्य

कुछ समय बाद मा क्षप्राि कर गा

दरूान्दरू भव्य

या ग्यता हा न पर भी जा

मा क्ष नहीें प्रािकर गा

जा सम्यग्दिवन प्राि करन की या ग्यता रखता हौ

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मा ह

जो आत्मा कोमूर्च्छित करे,

स्व-पर वववेकको भुला दे मोह महामद

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जीव क्या ेंभ्रमा? •भूल स

वकसकी भूलस ? •अपनी

काौन सी भूल?

•अपन स्वरूप का भूलाअाौर पर का अपना माना

यह भूल ममट कौ स ?

• स्व-पर का भ द ज्ञान करन स

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➢ Reference : श्री गा म्मटसार जीवकाडिजी, श्री जौन न्द्रससद्धान्त का ष, तत्त्वाथवसिूजी

➢ Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra➢ For updates / comments / feedback / suggestions, please

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