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    नगर राजभाषा कार्ाान्वर्न समिमि (कार्ाालर्-2), देहरादून

    ई-पमिका पंचि अंक -2019

    संरक्षक श्रीििी प्रीिा पन्त व्यास

    कार्ाकारी मनदेशक -प्रधान-मनगमिि प्रशासन ओ. एन. जी. सी. अध्यक्ष, नगर राजभाषा कार्ाान्वर्न समिमि (कार्ाालर्-2), देहरादून

    ----------------------

    संपादक- िंडल

    राि राज मिवेदी िहा प्रबंधक(िा.सं.) - प्रभारी राजभाषा,

    सदस्य समचव नगर राजभाषा कार्ाान्वर्न समिमि (कार्ाालर्-2), देहरादून

    अमिमि संपादक

    श्रीमती रीता इन्द्रजीत स िंह केन्द्रीर् मवद्यालर् अपर कैं प ,देहरादून

    -----------------

    श्री सुनील कुिार राजभाषा अमधकारी -----------------------

    पुष्पा रावि सहार्क पदक्रि मििीर्

    विशेष सहयोग श्री मवजर् राि पाणे्डर्

    स्नािकोत्तर मशक्षक(महन्दी ) केन्द्रीर् मवद्यालर् अपर कैं प ,देहरादून

    श्री अनीश चंद्र जोशी स्नािकोत्तर मशक्षक(संगणक )

    केन्द्रीर् मवद्यालर् अपर कैं प ,देहरादून

    प्रकाशक ऑर्ल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन मलमिटेड, देहरादून

  • 3

    अनुक्रमसिका 1 संदेश श्रीमती प्रीता पन्त व्यास श्री अजय मालिक 2 संपादकीय श्री राम राज लिवेदी

    श्रीमती रीता इन्रजीत लसंह(अलतलि सम्पादक)

    3 काव्यमंजरी 3.1 शुलिया अमीत कुमार, कें रीय अकादमी राज्य वन सेवा, देहरादून 3.2 शत शत नमन लकसान को अलमता राज,कें रीय अकादमी राज्य वन सेवा,देहरादून 3.3 मुझे परूी तरह समझने से पहिे ज्योलत यादव,कें रीय अकादमी राज्य वन सेवा,देहरादून 3.4 नई दीपाविी पुष्पेंर के लिवेदी, कें रीय अकादमी राज्य वन सेवा,देहरादून

    3.5 पलिम का सरूज , नदी की कामना, शलि पटेि कें रीय अकादमी राज्य वन सेवा,देहरादून 3.6 एक ख़्वाब अलनरुद्ध जोशी

    3.7 बडा आसान िगता ह ै कु. प्रतीक्षा जोशी, – भारतीय पेट्रोलियम संस्िान, देहरादून 3.8 कारलगि में शहीद हुए जवानो... , अनपू चौधरी के. लव. एफ आर . आई ,देहरादून 3.9 तकनीकी और लवकास डॉ.पनूम लसंह,के.लव ओ.एफ.डी रायपुर देहरादून 3.10 प्रकृलत से पाया मानव ने सन्देश श्रीमती अलमता डोभाि,के.लव.एफ.आर.आई. 3.11 प्िालस्टक मुि भारत अलििेश कुमार कुमी 3.12 मेरे सपने श्रीमती संध्या जनै, भारतीय पेट्रोलियम संस्िान, देहरादून

    3.13 राष्ट्रध्वज अनपू चौधरी के. लव. एफ आर . आई ,देहरादून

    3.14 बचपन लवपदा झेि रहा शलि पटेि कें रीय अकादमी राज्य वन सेवा,देहरादून 3.15 बूूँद बूूँद बरसे ये मन लवजय राम पाण्डेय , के. लव. अपर कैम्प

    3.16 तुम आ जाते लनरुपमा चतुवेदी , केन्रीय लवद्यािय ओ एन जी सी ,देहरादून

    3.17 िुटते हैं लदन के उजािे में कलपि देव , आई टी बी पी 3.18 युद्ध में जख्मी सलैनक पवूाा , आई टी बी पी 3.19 सवेरे-सवेरे सुना मैंने ! लवजय राम पाण्डेय , के. लव. अपर कैम्प

    4 गद्य पाररजात 4.1 इको पररसर डॉ सुमन िता जनै ,भारतीय,पेट्रोलियम संस्िान, देहरादून

    4.2 सांस्कृलतक लवरासत राजीव कुमार लिवेदी ,कोटिीभेि पररयोजनाए मुख्यािय देहरादून 4.3 कें रीय लवद्यािय संगठन(एक अलभयान) अनीश चन्र जोशी के. लव. अपर कैम्प

    4.4 भारतीय नारी अतीत से वतामान शीिेन्र कुमार लिपाठी , के. लव. अपर कैम्प 4.5 प्रायलित (िघु नालटका ) अंजनी कुमार लसन्हा , के. लव. अपर कैम्प 4.6 स्वच्छ भारत अलभयान, स्वच्छ लवद्यािय : एक पहि श्रीमती अलमता डोभाि,के.लव.एफ.आर.आई 4.7 मौत के डर की जड पुष्पेन्र यादव ,आई टी बी पी

    5. तकनीकी िेि 5.1 लशक्षा और तकनीकी अवंलतका लिवेदी , के.लव आयुध लनमााणी रायपुर देहरादून 5.2 य ूपी ई महेश कुमार लसंह , कोटिीभेि पररयोजनाए देहरादून

    5.3 तकनीकी के लक्षलजत को छूता केन्रीय लवद्यािय संगठन,

    अनीश चन्र जोशी के. लव. अपर कैम्प

    5.4 ग्राउलटंग इन लसलवि इंजीलनयररंग आनंद कुमार लसंह, कोटिीभेि पररयोजनाए देहरादून 5.5 रेशम कोसोत्तर प्रौधौलगकी लदनेश चंर जोशी ,केन्रीय रेशम प्रौधौलगकी अनुसंधान संस्िान 5.6 हाइड्रो काबान अन्वेषण लनलिि लसंह , ओ एन जी सी देहरादून 5.7 ओज़ोन परत वेद प्रकाश ध्यानी ,आई॰ डी॰ टी॰ ओएनजीसी राजभाषा ररपोटा 6.1 सीएसआईआर – भारतीय पेट्रोलियम संस्िान, देहरादून 6.2 मौसम लवज्ञान केन्र, देहरादून 6.3 केन्रीय लवद्यािय अपर कैम्प , देहरादून 6.4 युनाइटेड इलण्डया इन््योरें स के्षिीय कायाािय, देहरादून 6.5 कें रीय लवद्यािय वन अनुसंधान संस्िान देहरादून। 6.6 ओ एन जी सी देहरादून

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    श्रीमती रीता इन्रजीत लसंह (अलतलि सम्पादक)

    लनज भाषा उन्नलत अह ै, सब उन्नलत को मिू

    लबन लनज भाषा ज्ञान के लमटे न लहय को शिू ||

    भारतेंदु हररिंर जी की इन पंलियों में अपनी भाषा के प्रलत जो पे्रम, सम्मान, अपनापन और उसकी अलनवायाता के पे्ररणा के भाव

    को प्रदलशात लकया गया ह,ै उसमें कहीं न कहीं भारतीय जन के पर-भाषा मोह की पीडा भी अलभव्यि होती ह ै| जब कहीं लकसी

    भाव की कमी लदिती ह ैतब उसके अभाव की पलूता के लिए पे्ररक के रूप में भारतेंदु जी जसेै िोग सामने आकर संभावनाओ ंकी

    अिि जगाते हैं|

    लहन्दी भाषा न केवि लहन्दी भाषी प्रदेशों में अलपतु देश भर में बोिी और समझी जाती ह ै| शायद ऐसी अन्य कोई भी भाषा नहीं

    लजसकी इतनी व्यापक पररलध हो | स्वतन्िता संग्राम की भाषा भी प्रमुि रूप से लहन्दी ही रही | भारतीय लहन्दी लफल्मों को लवश्व भर

    में पसंद लकया जाता ह ै| भारतीय मीलडया की प्रमुि भाषा लहन्दी ही ह ै| ऐसे में भी देश का नागररक अंगे्रज़ी भाषा के मोह में फूँ स कर

    अपनी भाषा में काम करने में संकोच महससू करता हो तो कहीं न कहीं स्व-भाषा के प्रलत सम्मान के भाव का अभाव दृलिगोचर

    होता ह ै|

    लवज्ञान और तकनीकी की भाषा मुख्य रूप से अंगे्रज़ी ह ै| लकन्तु यह लवश्वास लकया जा सकता ह ैलक यलद भारत के िोग इन

    लवषयों को स्व-भाषा के माध्यम से सीिेंगे तो उन्हें लवषय में और गहरी पकड प्राप्त होगी | लवज्ञान और तकनीकी के के्षि में देश और

    अलधक उन्नलत कर सकेगा | जहाूँ तक बात ह ैइन लवषयों की भारतीय भाषाओ,ं लवशेष रूप से लहन्दी में उपिब्धता की, तो इसके

    लिए अगर तकनीकी शब्दों को ज्यों का त्यों जसेै वे अंगे्रजी में प्रचलित ह ैउन्हें लहन्दी में समालहत लकया जाए तो लहन्दी और अन्य

    भारतीय भाषाओ ंमें उनकी उपिब्धता सहज रूप से की जा सकती ह ै| वसेै भी लहन्दी भाषा ने लवश्व की अनेक भाषाओ ंके शब्दों को

    स्वयं में दूध-पानी की तरह समालहत लकया ह ै|

    हमारा कताव्य और धमा भी ह ैलक हम सबसे पहिे अपनी भाषा में बोिें और लििें | जसेै हमारी पहिी पहचान हमारा स्वरुप

    होता ह ैवसेै ही हमारी अपनी भाषा भी हमारी प्रिम पहचान होनी चालहए | लजस तरह शरीर में बहते रि की उपेक्षा िुद के स्वास््य

    के लिए ितरनाक लसद्ध हो सकती ह ैठीक उसी तरह िनू की तरह हमारे व्यलिव में बहने वािी भाषा की उपेक्षा भी |

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    स्वतन्िता के बाद लहन्दी भाषा को देश की राजभाषा के रूप में स्वीकार लकया गया | लहन्दी के उस रूप ने जो शलदयों से

    भारतीय जनमानस में बह रहा ह ैने अपने सहज प्रवाह को लनरंतर प्रवाहमान रिा ह ै और लवदेशों तक अपनी पररलध को व्यापाक

    बनाया ह ै| लकन्तु राजकाज की भाषा के रूप में उतनी प्रगलत नहीं हो पाई | लजसके लिए देश के लवलभन्न संस्िानों , सरकारी

    लवभाग के अलधकाररयों कमाचाररयों को लहन्दी में काया करने के लिए दृढ-प्रलतज्ञ होना होगा और लहन्दी में काया करने में गवा

    महससू करना होगा | देश का राजभाषा लवभाग तिा नगर राजभाषा सलमलतयाूँ इस काया के लिए लनरंतर प्रयत्नशीि हैं |

    लहन्दी के प्रलत िोगों की रूलच में इजाफा हो, उनकी सजृनात्मकता को जन-जन तक पहुूँचा कर अन्य िोगों के

    अंदर भी लहन्दी में काम करने और सजृन करने की भावना जागतृ हो सके , इस उदे्द्य से देहरादून लस्ित नराकास कायाािय

    -2 प्रलत वषा “देव श्लोक” नाम से एक राजभाषा पलिका का प्रकाशन करती ह ै| इस वषा नराकास-2 के पदालधकाररयों ने मुझे

    “देवश्लोक” पलिका के अलतलि संपादक के रूप में पलिका के संकिन-संपादन और संयोजन का काया सौंप कर मुझ पर जो

    लवश्वास व्यि लकया, मैं इससे स्वयं को गौरवालन्वत महससू कर रही ह ूँ | मैं इसके लिए श्रीमती प्रीता पन्त व्यास कायाकारी

    लनदेशक -प्रधान-लनगलमत प्रशासन ओ. एन. जी. सी. अध्यक्ष, नगर राजभाषा कायाान्वयन सलमलत (कायाािय-2), देहरादून

    तिा श्री रामराज लिवेदी , महा प्रबंधक(मा.सं.) - प्रभारी राजभाषा,सदस्य सलचव नगर राजभाषा कायाान्वयन सलमलत (कायाािय

    -2), देहरादून के प्रलत आभार व्यि करती ह ूँ लक उन्होंने मुझे अलतलि संपादक का आलत्य प्रदान कर सम्मालनत लकया| मैं श्री

    सुनीि कुमार , राजभाषा अलधकारी ओ एन जी सी, श्रीमती पुष्पा रावत सहायक पदिम लितीय के प्रलत उनके िारा प्रदान

    लकए गए मागादशाक सहयोग के लिए आभार व्यि करती ह ूँ | मैं नराकास-2 के सभी सदस्य कायााियों के प्रलत शुलिया अदा

    करती ह ूँ लजन्होंने अपने अप्रलतम सहयोग से देवश्लोक पलिका को आकार प्रदान करने में अहम भलूमका अदा की ह ै|

    मैं अपने लवद्यािय के लशक्षकों डा. लवजय राम पाण्डेय, पी जी टी (लहन्दी) तिा श्री अनीश चंर जोशी, पी जी टी (कम्प्युटर

    लवज्ञान) की प्रशंसा करती ह ूँ लजन्होंने “देवश्लोक” के लनमााण में महत्त्व पणूा भलूमका अदा की ह ै| प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त

    सहयोगों के लिए मैं संबंलधत सभी िोगों के प्रलत आभार व्यि करती ह ूँ|

    रीता इन्रजीत लसंह

    अलतलि संपादक- देवश्लोक प्राचाया

    केन्रीय लवद्यािय अपर कैं प, देहरादून

  • 9

    काव्यमिंजरी

    लदन मोहब्बत के माना तुझ को बहुत कम लमिें

    पर जो भी लमिें उसका करो शुलिया

    लजन अंधेरों में लदये बन लदि जिें

    उन अंधेरों का तुम करो शुलिया

    लदन मोहब्बत के माना तुझ को बहुत कम लमिें

    पर जो भी लमिें उसका करो शुलिया

    लदन गम ही न िा रातें िी बेचनै

    ख्याबों में ही सही तुझ को लमिा तो चनै

    उन ख्याबों-ख्यािों का तुम करो शुलिया

    लदन मोहब्बत के माना तुझ को बहुत कम लमिें

    पर जो भी लमिें उसका करो शुलिया

    ये तेरा कमा ही िा लजसका ये फि लमिा

    माना कम ही लमिा पर जो भी लमिा

    उन कमों का करो शुलिया

    लदन मोहब्बत के माना तुझ को बहुत कम लमिें

    परजोभीलमिेंउसकाकरोशुलिया

    सब कुछ देता वही ह ैतुझको पाना हीं ह ै

    सुि :दुि का तो क्या ह ैउसको आना हीं ह ै

    उसकेआने-जाने का तुम करो शुलिया

    लदन मोहब्बत के माना तुझ को बहुत कम लमिें

    पर जोभी लमिें उसका करो शुलिया

    जीवन जसैा लमिा तुझ को जी नाहीं ह ै

    अमतृ हो या जहर तुझ को पीना ही हैं

    उसदाता का तुम करो शुलिया

    लदन मोहब्बत के माना तुझ को बहुत कम लमिें

    पर जोभी लमिें उसका

    करो शुलिया... करो शुलिया।।

    द्वारा अमीत कुमार, असिकारी प्रसिक्षिार्थी कें रीय अकादमी राज्य वन वेा,

    दहेरादून

    िसुक्रया

  • 10

    देव-देवी हर एक भगवान को,

    कला और ववज्ञान को

    गवित शास्त्र और ववज्ञान को,

    पर सवसे पहले विलकर करें हि,

    शत शत निन ककसान को

    भारत ववकास की नींव ह ैजो

    ककया वजसने नव वनिााि,

    अपना सम्पूिा न्योछावर कर

    कदया वजसने, अिलू्य योगदान

    कोई और नहीं वो ह ैभारत का हर एक ककसान

    “ गाांधी-सुभाष भगत हर एक जवान को

    पर सबसे पहले विलकर करें हि

    शत- शत निन ककसान को

    िजहब वजनका एक ह,ै और एक ही ह ैकिाई,

    भारत िॉं की सेवा कर, हिपर कृपा बरसाई

    दुुःख दररद्रता इनके वहस्से, हिसे रो कैसी गवित लगाई

    इनके जान-िाल की हावन, आवखर कौन करें भरपाई

    िांकदर-िवस्जद, वगरजाघर, गरुुद्वार को

    पर सबसे पहले विलकर करें हि,

    शत-शत निन ककसान को

    अिृत टपके वजनके तन से, विल िाटी सोना बन जाए,

    वजनके सांघषापूिा जीवन से, हि खुद िें धैया जगाएां

    आज उन्हीं के आांसुओ की, हिे कह न करनी आए,

    भ्रवित हुए इस सिाज को आवखर कौन सिझाए

    पौधे जीव-जांतु हर एक इांसान को पर सबसे पहले विलकर

    करें हि,

    शत-शत निन ककसान को

    एक थाल भरी भोजन, वजसके वनत्य हि आनांद उठाते वह िात्र

    हिारे िूल्य चकुाने से नही ह ैआतें चाह ेवषाा-ग्रीष्ि और शीत

    ऋतु हो वह वनत्य यह बोझ उठाते वही हि बैठे अपने घरों िें न

    जाने खुद िें क्यू इठलाते गेहां, धान, दलहन हर एक अनाज को

    पर सबसे पहले विलकर करें हि शत-शत निन ककसान को

    इनके फसलों से हष्ट-पुष्ट हो हि औकिकरि पर ध्यान लगाए

    और प्रलय को आवाहन द,े इनकों ही भेंट चढाए

    पांचतत्व से बना ये जीवन अांत यही विल जाएगा

    पर रक्षक के बन रहें हि भक्षक काली स्याही से अांककत कोजाएगा

    अवनि, जल-वायु िृदा और आसिान को

    पर सबसे पहले विलकर करें हि

    शत-शत निन ककसान को

    कहीं बाढ की िार, तो कही पडा अकाल ह,ै

    खुद को भूखा रखकर तूने तपृ्त ककया सांसार ह ै

    ककसी और के पापों की सजा यह कैसा अत्याचार ह ै

    इनके एहसानों पर, करना हिें ववचार ह ै

    अन्ि, धन, सम्पवत हर एक सम्िान को

    पर सबसे पहले विलकर करे हि

    शत-शत निन ककसान को

    इनके िेहनत िें भ्रष्टाचार ह,ै सेंध लगाए,

    भूखों को न विल ेअनाज चाह ेखुले िें वो सड जाए

    आज नतेा चूह ेएक हुए चटकर सब वबल िें घुस जाए

    पीवडत ककसान अपनी व्याथा ककसको आज सुनाए

    अिीर-गरीब वपछ्डे ववकवसत हर एक सिाज को

    पर सबसे पहले विलकर करें हि,

    शत-शत निन ककसान को

    अलमता राज अलधकारीप्रलशक्षणािी, 2019-21 बचै

    कें रीय अकादमी राज्य वन सेवा देहरादून

    “ित ित नमन सक ान

  • 11

    तुम्हें लकताबों की एक िम्बी फेहररस्त से गुज़रना चालहए

    तुम्हें पढ़नी चालहए सबीरहका की दस कलवताये ूँ

    तालक तुम्हें इल्म हो लक

    मुहब्बत में मजदूर होना भी उतना ही ज़रूरी ह ै

    लजतना ज़रूरी ह ैकलव होना |

    तुम्हें लमिना चालहए सालदया हसनऔरउसकी दुलनया से

    क्यूंलक दंगों की आग में झोंक लदए गए पे्रम पि

    सलदयों बाद भी परूी तरह जि नहीं पाते

    तुम्हें अदीब की अदाित में भी जाना चालहए

    तब तुम महससू कर पाओगे लक

    दुलनया में चीिते लचल्िाते मुदों के बीच

    हर घडी जन्म ते ना जाने लकतने पालकस्तानों के बीच

    लकसी सिमा की मिमिी आवाज़ के मायने क्या हैं ?

    और 'गुनाहों के देवता' को पढ़ते तुम्हें सोचना चालहए

    लक चन्दर ने बेरहमी से सुधा की लकस्मत क्यों लिक्िी

    जबलक वो लिि सकता िा उसके लिए एक प्यारी नज़्म

    और बचा सकता िा अपनी परूी दुलनया

    अगर तुम नहीं जानते

    लक आधी रात को हिेिी पर पे्रम लििना

    ह्रदय पर पे्रम लििने लजतना ज़रूरी ह ै

    लक भंडारी मन्नकूासच, दुलनया के तमाम िोगों का सच ह ै|

    अगर तुम ये सब नहीं जानते,

    तो लफर तुम मुझे नहीं समझ सकते

    और हम लज़ंदगी में बहुत दूर तक साि नहीं चि सकते

    तब लफर मुझे तुम से पाश की तरह लवदा िेनी होगी दोस्त...

    और क्यूंलक जाना लहंदी की सबसे िौफनाक लिया ह ै

    मैं जाते वक़्त तुम्हें दंूगी कुछ लकताबें, दोित

    और जॉन ऐलिया का एक शेर

    तुम लकताबें पढ़ना, ित जिा देनाऔरयाद रिना

    लकआलिरी मुिाक़ात के ठीक पहिे इ्क़ जालवदानी होता ह ै

    इ्क़ को लज़ंदा रिने केिम में

    बहुत बारआलशक़ों को मर जाना होता ह ै||

    ज्योलत यादव, अलधकारी प्रलशक्षणािी, कें रीय अकादमी राज्य वन सेवा,

    देहरादून

    “मझु ेपूरी तरह मझन े े

  • 12

    आओ! आशाओ ंके दीप जिाएं, इस दुलनया को पे्रम की एक नई कलवता सुनाएं, मन के पवूााग्रहों से इत रसरिता की ओर कदम बढ़ाएं, लबना अनदेिी - सबको साि िेकर चिने का संकल्प गुनगुनाएं, लबना सुलवधनुसार चुने - सच को सच स्वीकारकर - न्याय का साम्या लदििाएं, रूलढ़यों और गित पररपाटीयों से अिग कुछ नयाकर के लदिाएं, अपने आने और होने को हम एकबार लसद्ध तो करपाएं ! ये पवा आडंबरों का ह ैनही, बस एक िालन्त गीत ह,ै िडना ह ैउस लतलमर से, जो िीि रहा इंसालनयत का जीवन संगीत ह।ै हम ना भिेू लकसी को, हमसे ना छुटे कोई, जहाूँ ह ैसबसे अलधक अंधेरा, आज वहीं कर दें एक नया सबेरा। रोशनी का त्योहार लबना मन की गांठे िोिे कब मन सकता ह ैभिा ? हाूँ ! इनसे ही तो िी जीवन में रौशनी... ह ैजीवन में रौशनी, रहेगी जीवन मे रौशनी...। आओ !जीवन को रौशन कर जाएं, आशाओ ंके दीप जिाएं, इस दुलनया को पे्रम की एक नई कलवता सुनाएं।

    -पुष्पेंर के लिवेदी, हायक वन िंरक्षक

    उदय हुआ पलिम से देिो, कैसा ये सरूज अिबेिा। साि सभी हम इसके हो गए, रहा नहीं अब यही अकेिा।। पहनावा इसका परदेशी, िािी न कोई इसमें ह।ै गलत अनोिी तेज अलधक ह,ै रोक न अब कुछ बस में ह।ै। अलमट छाप उलजयारी इसकी, लनयलत सभी की बन गई ह।ै परूब से अब दूर हुए सब, भारत भवू्या कुि हुई ह।ै। दशान वेद में तो हम सबने, पाठ पवूा का सीिा िा | कैसे उगा रलव पलिम का, पहिे यह नदी िा िा।। जतन करो भारत भ ूके जन अपनाओ लनज देश किा। यह मागा ह ैलनत उन्नलत का यहीं से होगा सदा भिा।। कुछ ऐसा हो लक िग जाए घर घर िुलशयों का मेिा। उदय हुआ पलिम से देिो, कैसा ये सरूज अिबेिा।

    शलि पटेि, कें रीय अकादमी राज्य वन वेा, दहेरादून

    “ पसिम का ूरज “

    “ नई दीपावली ”

  • 13

    धरती की छाती से लनकिी, अनवर बहते जाना ह।ै

    सागर की बाहों में जाकर, मुझको वहाूँ समाना ह।ै।

    चट्टानों को चीरफाड कर, लहम्मत मुझे लदिाना ह।ै

    कई नलदयों को कर के शालमि, एकता शलि लसिाना ह।ै।

    बांधों में िोडा रूक जाऊूँ , लवद्यतु मुझे बनाना ह।ै

    नदी पयाटन लवकलसत कर के , डािर िबू कमाना ह।ै।

    जीव जंतु की रक्षा कर िूूँ, उनके प्राण बचाना ह।ै

    धमा नगररया की भलूम में, ईश्वर दरश कराना ह।ै।

    मोक्षदालयनीबनीरह ूँमैं, ऊजाामुझेलदिानाह।ै

    जनजनकीमैंप्यासबुझाऊूँ , जीवनज्योतजिानाह।ै।

    मानुषजीवनसेतोमेरा, रर्ताबहुतपुरानाह ै|

    धरतीकीछातीसेलनकिी, अनवरबहतेजानाह।ै

    शलि पटेि, कें रीय अकादमी राज्य वन वेा, दहेरादून

    एक ख्वाब ह,ै

    मुझे सोने दो उसे परूा करने दो, ये मेरी लज़ंदगी ह,ै

    कम ही सही िेलकन जीने दो। क्या रिा ह ैइन लकताबों में, क्या भरा ह ैइन पन्नों में, वणा, शब्द, वाक्य ही तो हैं, इन्हें इसी में रहने दो,

    एक ख्वाब ह,ै मुझे सोने दो उसे परूा करने दो।

    लफलजक्स को न्यटून को ही समझने दो,

    केलमस्ट्री िे गया िवॉयजर; बायो मेंडेि को िे जाने दो,

    कॉमसा के साि, अकाउंट्स और लबजनेस को भी जानें दो,

    और लहंदी और इंललिश, तुम बस रहने ही दो।।

    ए मेरे मन ,सुन ज़रा मुझे,

    आ गया ह ं बारहवीं में, जीवन के सिा साि संभािे हैं, भलवष्य पुकार रहा ह ैमुझे,

    और त ूकहता ह ैसोने दो मुझे। जागना ह,ै अब वि आ चिा ह,ै

    ख्वाब वही ह,ै पर मेहनत कुछ नई ह,ै देिना ह ैहौसिा लकतना इस क्ती ए समंदर में ह,ै

    और ख्वाब देिना ह ैअभीभी, आूँिे िुिी ही अब जो हैं।

    “ एक ख़्वाब ”

    “ नदी की कामना ”

  • 14

    बांसों के झुरमुटों से लघरे िेतों में माूँ का तेजी से कुदािी चिाना

    और चुनना िरपतवार को

    लपता का तेजी से दन्याि चिाना िेत में जमीं ऊपरी पपडी उिाडकर

    बचाना अनाज को बडा आसान िगता ह।ै

    दादी का तेजी से चकिे पर हाि चिाना बेिन घुमाकर रोलटयाूँ बनाना

    नरम-नरम, गोि-गोि लनरा सपना सा िगता ह ै

    वसेै ही जसेै सरूज का उगना चांद का लछपना चांद के आने पर लफर हो प्रभात

    ऋतुओ ंका बदिना बडा आसान िगता ह ै पर होता नहीं ह ै

    कुछ भी जीवन के जंगि में

    जब सलदयों की िोकसाधना और िोकज्ञान एकाकार होता ह ैतभी

    माूँ फुती से चिा पाती ह ैकुदािी लपता दन्याि (हरैो)

    और दादी चकिे पर बेिन लबल्कुि ऐसे ही लििता ह-ै एक फूि

    जब सलदयों तिक धपू-पानी -पािा सहकर पौंधे बचा कर रिते हैं- बीज

    बादि लकसान के पसीने से लमिकर पानी बन जाते हैं

    तब लििता ह ै एक फूि

    िेलकन बडा आसान िगता ह।ै जब एक बीज िुद को गिाता ह ै तब फूटती हैं नन्हीं कोपिें

    लफर उगता ह ैपौंधा जो दशकों के अनुशासन से बन पाता ह ै

    पेड लजसे लकसी सडक भवन या लवकास के नाम पर

    चंद घंटों में काट लदया जाता ह ै लजसे कटता देिना बडा आसान िगता ह ै।

    आलिर क्यों ? लकसी मनचिे की तीिी का लशकार

    हो जाता ह ैअमेजन का जंगि 47000 वगा लकिोमीटर में झुिस पडती ह ै प्रकृलत

    जि उठता ह ैप्राणी जगत हे लमट्टी के ढेिे रूपी िािची मनुष्य! इसकी टीवी पर कवरेज देिना

    बडा आसान िगता ह ैिेलकन आसान होता नहीं ह।ै

    लिोबि वालमिंग के लशकार हो रहे हैं लिेलशयर मछलियाूँ मर रही हैं सागरों में

    ररसते तेि से प्िालस्टक िा कर मर रहे हैं जानवर

    प्रदूषण से परत दर परत फट रही ह ैओजोन मानवता आतंक के साए में जी रही ह ै

    ितरे में ह ैमाततृ्व देर शाम ढिे क्िबों में

    मुस्कुराकर इन मुद्दों पर बहस करना बडा आसान िगता ह ै

    िेलकन जनाब आसान होता नहीं ह॥ै

    कु. प्रतीक्षा जोशी, वररष्ठ अनुसंधान अध्येता, सीएसआईआर – भारतीय

    पेट्रोलियम संस्िान, देहरादनू

    “ " बडा आ ान लगता ह ै"

  • 15

    नज़रों से बातें करते िे,,,,,,,,,, नज़रों में पनेै तीर लिए

    लहंद की रक्षा िालतर तुमने, लकतनों के सीने चीर लदएI अपने वीर कमा से तुमने,,,,,,,,

    का्मीर को सींचा िा लगरा रि पावन सरहद पर, िक्ष्मण रेिा को िींचा िाI बढ़ चिे लभडने दु्मन से, बात जीने मरने पर आयी िी वीर पुि िे इस माटी के,

    तुमने गोिी सीने पर िायी िीI िायी गोिी सीने पर तुम्हारा, असीम लसंधु सत्कार हुआ भारतवषा की इस माटी पर, तुम्हारा जय जय कार हुआI

    व्यिा नही बलिदान तुम्हारा तुम, भारत वषा के प्यारे हो

    ना उतरता िोगों से कज़ा दूध का, तुम माटी का कज़ा उतारें होI रहते हो तुम लदि में सदा,

    याद आता बलिदान तुम्हारा ह ैकारलगि लवजय लदवस पर, तुमको सादर नमन हमारा हiै

    अनपू चौधरी (भारतीय)

    केन्रीय लवद्यािय वन अनुसंधान संस्िान ,देहरादून

    पुराकाि में चाणक्य की नीलतयों का यशोगान िा,

    औ’ भमंूडिीकरण में तकनीकी का भी प्रशस्त राग ह|ै

    दौर ह ैलवकास का ,प्रगलत और प्रकाश का,

    प्रशलस्त गान हो रहा, लहन्द देश की धरा और आकाश का |

    ज्ञान हो,लवज्ञान हो,तकनीकी का आधार हो,

    लवश्व-पटि में भारत ही तकनीकी का सिूधार हो |

    अटि हो,असीम हो ,अलवराम अलविम्ब हो,

    लवकास तकनीकी का हर के्षि में अिंड हो |

    आत्मलनभार देश हो,आलिाक प्रगलत करें ,

    सामालजक उत्िान में भी तकनीकी ही पि प्रशस्त करे||

    डॉ.पनूम लसंह प्राचायाा

    के.लव ओ.एफ.डी रायपुर देहरादून

    " तकनीकी और सवका "

    " कारसगल के िहीद "

  • 16

    शीश झुकाकर लवनम्रता का मानव ने लकया समावेश |

    बसंत की फुिवारी देती ह ैसन्देश,

    नव स्फूलता ,नव शलि पाए मानव अलनमेष|

    पतझड देता मानव को सन्देश,

    जसेै आए िे,वसेै ही जाओगे ,

    मोह-माया सब व्यिा हुई ,

    सत्पि से ही जीवन में ,

    लफर बसंत आएगा |

    नन्हा पौधा –जीवन में करता नव संचार,

    अपनाओ तुम जीवन में सदा लशिाचार |

    वकृ्ष दरख्त ह ै, साक्षी हमारे .

    मानव तो आया-गया , पयाावरण ने लदया सहारा |

    वकृ्ष लसििाता जीवन जीना ,

    सदा लस्िर ,चेतन ह ैपर वह,

    मानव के हर कमा में वह ,लनत्य साि लनभाता,

    अपनी संलचत देह को , होम करता ,

    हवनकंुड में देता –

    यज्ञ की पलवि हुताशन में ,

    नवलशशु लिि- लिि जाता |

    युवावस्िा में लनिय वह साि लनभाता –

    यज्ञकंुड में डाि स्वयं को साक्षी वह बन जाता ,

    नव पि पर चिने की सीि हमें दे जाता |

    और अंततः समालहत कर ,

    आश्रय देती प्रकृलत मोक्षदालयनी |

    लक्षलतज लमिन के बाद मानव,

    पुन: धरा पर अवतररत होगा ,

    नए रास्ते नई गलत का संचार होगा |

    वकृ्षों का मानव से यह नाता ,

    लजसे वकृ्ष आजीवन लनभाता |

    वहीं पौध ,वहीं दरख्त साक्ष्य होगें ,

    नव पल्िवन ,नव लशशु होगा ,

    वही जीवन , वही वकृ्ष से वायु और वायु से आयु ,

    तभी तो होगा ,रे ! मानव त ूदीघाायु |

    श्रीमती अलमता डोभाि,

    के.लव.एफ.आर.आई.)

    " प्रकृसत ेपाया मानव न े

    न्द्दिे "

  • 17

    बांसों के झुरमुट से जो, देिा िा एक नीरा सपना।

    हो रहा आज,साकार वो, स्वच्छ बन रहा भारत अपना।

    सतत प्रयास हमारा ह,ै लक जीवन को िुशहाि बनाये।

    लफर प्रभात हो िुशहािी का, कहीं भी कचडा रहना पाये।

    कदम उठाया एक लनरािा, घर हो चाहे, हो प्रयोगशािा।

    लमलश्रत हो रहे कूडे को भी, अब हमने पिृक कर डािा।

    एक कदम उठाया ह ैहमने,प्िालस्टक से ईधंन बनाएंगे।

    सीलमत प्रयोग हो प्िालस्टक का, ऐसी जीवन शिैी

    अपनाएंगे।

    िेकर लनकिो कपडे का ििैा, प्िालस्टक के न अब ििेै

    होंगे।

    लफर वो लमट्टी के ढेिे होंगे, लजनसे बचपन में हम िेिे होंगे।

    धरा तभी बच पायेगी, जब साि सभी का होगा।

    न दूलषत होगा जन जीवन, न माूँ का आूँचि मिैा होगा।

    एक कदम पयाावरण बचाने का, एक स्वच्छता िाने का।

    एक जवै ईधंन बनाने का, जीवन िुशहाि बनाने का।

    हम िेते हैं प्रण आज अभी, इस प ृ् वी को बचाएंगे।

    पररवलतात हो रही सोच से, जन जागरूकता िाएंगे।

    आलिर, आने वािी पु्तों का भी तो, ख्याि हमे रिना

    होगा।

    पृ् वी को अगर बचाना ह ैतो, जन जन को जगना होगा।

    जो आज नही जागे तो, देर बहुत हो जाएगी।

    लफर आने वािी पीढ़ी ही,हम सब पर पछताएगी।

    -अलििेश कुमार कुमी

    मेरी आशा - मेरी लनराशा सब मेरा ह ैअपना

    मेरी आंिें भी देिें, लनत एक लनरा सपना

    सपना लजसमें देिूं, लनत नए अभ्यास

    कभी अंधेरी रात हो तो, लफर हो नई प्रभात

    नई प्रभात में मेरे पंि चह ं और हैं फैिे

    कभी गगन छूते हैं तो कभी लमट्टी के ढेिे

    इन सपनों के सागर में ऐसी मैं िो जाऊं

    लदिते नए अवतारों पर, लनत लनत म ैइतराऊ

    प्रफुलल्ित मन में दीप जिाकर, आगे कदम बढ़ाऊं

    लनत नई ऊंचाइयों को, छूने का मन बनाऊं

    कलठनाइयां होंगी रस्ते पर, नहीं पग पीछे करना

    जब ठानी मुल्कि से िडने की, तो लफर कैसा डरना

    क्या सच होंगे सपने सारे सोच के मन हषााए

    इरादा पक्का ह ैनहीं रुकना ह,ै मन में यही उमंग भरमाए.

    श्रीमती संध्या जनै,

    अलभयंता, सीएसआईआर –

    भारतीय पेट्रोलियम संस्िान, देहरादून

    " प्लासटिक मकु्त भारत "

    “ मरेे पन े”

  • 18

    राष्ट्रध्वज सतरिंग ेतर्था इनको बनान ेवाल े

    सपिंगली वेंकैया जी को मसपित कसवता

    घनाक्षरी छिंद में

    वीरो का हैं अलभमान,

    मात भारती की शान

    केसरी सफ़ेद हरे,,,,,,,,,,,,,,,

    रंग का लतरंगा हIै

    राष्ट्रवाद का आधार,,,,,,,,

    सत्य अलहंसा प्यार

    जन गन मन की,,,,,,,,,,,,,

    तरंग का लतरंगा हIै

    भिे ही गूँवा दी जान,,,

    कम नहीं लकया मान

    झुकने लदया ना कभी,,,,,,

    जंग का लतरंगा हIै

    नमन ह ैसौ सौ बा,,,,,,,,,,,,,,,,

    इसको तयैार

    लपंगिी वेंकैया की,,,,,,,

    उमंग का लतरंगा हIै

    अनपू चौधरी

    (भारतीय)

    केन्रीय लवद्यािय वन अनुसंधान संस्िान, देहरादून

    िेि रही िी कांटो पर वो माता िी भिूो दर ही। लपता कुदािी लिए हाि में लनयलत हाि में गोद रही।।

    नन्हीं सी वो जान िी पर बस ठण्ड में लसकुडन फैिी िी। लजस पर सोई वह बच्ची वह चादर भी मिैी िी।।

    आूँिों के ऊपर िा काूँटा लजसको नयन लनहारे हैं। हे परमेश्वर क्या हाित देिो कैसे कि तुम्हारे हैं।।

    हाि फावडा िा पररजन के श्रम सी कर की धार घनी। राहलकनारेलबस्तरकैसा िोहेकीिीतारबनी।।

    पतिा सा िा उदर अनोिा भिू की व्यिा सुनाता िा। आूँिों में िी अशु्रधारा जि वह बहता जाता िा।।

    दृ्य मांद के तट का ह ैयह दूरभाष लनत फ़ैि रहा। जनजीवन को सुिभ बनाने बचपन लवपदा झेि रहा।।

    करो जतन आगे सब आओ बचपन को मत मारो यूं। पढ़ो पढ़ाओ िबू बढ़ाओ बचपन को अब तारो यूं।।

    िसक्त पिले, कें रीय अकादमी राज्य वन वेा, दहेरादून

    शलि पटेि,

    " सतरिंगा "

    “ बचपन सवपदा झले रहा ”

  • 19

    बूूँद-बूूँद बरसे ये मन लति लति लति तरसे ये मन हुिस हुिस हलषात भी होता भावों में बरसे ये मन बूूँद-बूूँद बरसे ये मन ॥

    भाव भंलगता राग रंलजता पीर भरी ये पे्रम-पररणीता शब्द श्लालघता अिा भालवता कलवता में कूके ये मन बूूँद-बूूँद बरसे ये मन ॥

    कभी कसक िी कभी ठसक िी कभी पीर और पे्रम पुिक िी प्रकृलत लबम्ब में भाव श ंग में बरस-बरस हरसे ये मन बूूँद-बूूँद बरसे ये मन ॥

    शब्द-अिा का बोध नहीं ह ैभाव भलि का शोध नहीं ह ैबस अन्धे की िाठी कोई ह ैशब्द राह लदििावे मन बूूँद-बूूँद बरसे ये मन ॥

    डॉ . सवजय राम पाण्डये , के. सव. अपर कैम्प

    नव यौवन सलज्जत ऋतु का तन ,

    औ’ सुमन लिि रहे वन-उपवन ; सौरभ भर िाया चपि पवन , महका-महका-सा घर-आूँगन | लफर भी सनूा-सनूा जीवन , मुरझाया-सा ह ैहृदय-सुमन ; मन का उपवन सरसा जाते , बस एक बार तुम आ जाते ||

    कलियाूँ मुसकातीं डाि-डाि , मकरंद पी रहे भ्रमर-बाि ; जग में छाया आनंद, लकन्तु मन ने पीडा का बुना जाि | नयनों में भर अनुराग सरस , दुःि से जिती यह देह परस ; घायि मन को सहिा जाते | बस एक बार तुम आ जाते ||

    होठों पर लििते हास-फूि , िुद को भी जाती आज भिू ; दशान की मधु रसधारा में , धुि जाते लम्या मान-दंभ , बह जाते संलचत उपािंभ | धर शीश तुम्हारे काूँधे पर , युग-युग के प्यासे नयन युगि , दो बूूँद अशु्र ढुिका जाते | बस एक बार तुम आ जाते ||

    िारा –लनरुपमा चतुवेदी प्रलशलक्षत स्नातक

    लशलक्षका(लहंदी) केन्रीय लवद्यािय

    ओ एन जी सी , देहरादून

    " बूूँद बूूँद बर ेय ेमन "

    “ तमु आ जात े“

  • 20

  • 21

    सवेरे-सवेरे सुना मैंने आज एक फूि की किी , अपनी लििी स्नेह-ओसं से गीिी लप्रय-पे्रम से रंगीिी वय:प्राप्त पुलष्पता मौसी से बोिी - इस बार शरद समय से गुनगुनाने िगा ह,ै हर मौसम जसेै समय से ड्यटूी आने की तयैारी में जगा ह ै! लपछिे सािों देिा नहीं वो तपन मौसी जाने का नाम नहीं िेती िी बेचारी शरद-शीत सबको अपनी गोद में भर िेती िी और उन्हें लनष्प्रभ कर िेती िी वो बेचारी सहमी लसकुडी रह जाती िीं और िास नहीं लदि पाती िी ! हेमंत , वसंत , पावस सबके यही हाि िे सब लशकार िे प्रदूषण की बुरी चाि के ! पुलष्पता कुछ सुस्ताई लफर मस्कुराई अधलििी किी की बात पर कुछ गंभीर हो बताई- अरी नन्हीं गुलडया

    तुम हो समझदारी की पुलडया आज तक कलियाूँ बहुत लििीं पर तुम जसैी समझदार न लमिी, तेरे तेवर अिग से िगते हैं तुझे देि मन में लजंदगी के सपने जगते हैं ! मौसी राज की बात बताऊूँ - "बहती ह ैस्वच्छ पवन अब सुमन स्वस्ि लििते हैं नदी कूि अब पावन िगते स्वच्छ पंि लदिते हैं !

    ऊूँ च-नीच के भाव मुि सब

    स्वच्छ राह अपनाते

    कूडा-कंटक राह पडा जो

    िुद के हाि उठाते !

    शुलचता सम्पद लमिी धरणी को

    अब स्वस्ि सोच बन बठैी

    ऋतु ऋतुमय ऋतु चि बन गया

    अब वसुधा जसुमलत जसैी !"

    मौसी !

    मैं स्वच्छ भारत की किी ह ूँ

    शुलचता में पिी ह ूँ

    मेरे पल्िव , मेरी सुवास

    कुछ िास हैं

    इनमें सत युग का रंग ह ै

    राम-कृष्ण का ढंग ह ै

    गौतम का त्याग ह ै

    मीरा का राग ह ै

    धरती का सुहाग ह ै!

    अगर सब ऐसा ही रहा तो

    ऋतुएूँ समय से गुनगुनाएूँगी

    कोयि भादौ में नहीं

    वासंती गीत गाएंगी

    लपतरों की पलूडयाूँ िेने

    कौवे आलश्वन में आएूँगे

    और कलव सुिवह हवा में

    लनष्किुष गीत गाएूँगे !

    **

    डॉ . सवजय राम पाण्डये , के. सव. अपर कैम्प

    " वरेे- वरेे ुना मैंन े!

  • 22

    " गद्य पाररजात "

  • 23

    ‘स् वच् छता और स् वास् ् य’ एक दूसर के परूक हैं । जहां स् वच् छता होगी वहीं अच् छा स् वास् ् य होगा । इसी

    लदशा में नव भारत के लनमााण हेतु हमारे वतामान प्रधानमंिी माननीय श्री नरेन् र मोदी जी ने 2 अक् तबूर,

    2014 को राजघाट से भाषण देते हुए एक मुलहम चिाई ‘स् वच् छ भारत’इस मुलहम का प्रमुि उदे्द् य एक

    स् वच् छ व स् वस् ि भारत का लनमााण करना िा । इस मुलहम के प्रमुि पहि ूहैं :

    िुिे में हो रहे मित् याग का उन् मिून

    हर घर तक स्वच्छ जि पहंुचाना

    कूडे का सही तरीके से लनस् तारण

    आस-पास, गिी मौहल् िे, गांव व शहर की सफाई इत् यालद ।

    अगर हम स् वच् छता की बात करें तो यह लसफा सरकार का ही तिा सफाई कमाचाररयों का ही काया नहीं ह ै

    । देश के प्रत् येक नागररक का यह कताव् य ह ैलक वह ना लसफा स् वयं की अलपतु आस-पास की स् वच् छता

    में भी अपना योगदान दें । माननीय प्रधानमंिी जी की इस मुलहम को सफि बनाने हेतु तिा अपने

    पररसर को स् वच् छता के पमैाने पर एक मॉडि के रूप में प्रस् तुत करने हेतु लसतंबर, 2017 में भारतीय

    पेट्रोलियम संस् िान में ‘ इको-पररसर’ की पररयोजना शुरू की गई । ।

    इस पररयोजना के अंतगात सवाप्रिम आठ सदस् यों की एक टीम बनाई गई । इस पररयोजना के प्रमुि

    उदे्द् य इस प्रकार िे :-

    भा.पे.सं. के आवासीय पररसर में स् वच् छता एवं इसके महत् व का प्रचार

    पररसर मे प्रत् येक व् यलि, बच् चे को सफाई के प्रलत जागरूक करना 1

    स् वच् छता से होने वािे िाभ का प्रचार

    कूडे का सही तरीके से पिृक् करण अिाात गीिा (लवघटनशीि) कूडा एवं सिूा का अिग – अिग संग्रह

    आवास में रहने वािे व् यलक्त्तयों को इस काया में सहयोग प्रदान करने की अपीि करना ।

    इन् हीं उदे्द् यों के साि हमने अपना काया शुरू लकया । भा.पे.सं. का संपणूा पररसर करीबन 2ए7 एकड

    जमीन पर लस्ित ह ै। साि ही पररसर में िगभग 2ए0 आवास हैं । सवाप्रिम आकषाक पोस् टर बनवाये

    गए, जो साफ तौर से गीिे तिा सिेू के पिृक् करण की लवलध को प्रदलशात करते िे और इन पर

    स्िोगन लििा िा :

    इको परर र’ अपना पूरा करेगा ट वच् छ और हररत भारत का

  • 24

    ‘गीिे और सिेू कूडे का रिें ध् यान

    एक नहीं अब दो हैं कूडे दान ’

    ये पोस् टर आवासीय पररसर के प्रत् येक घर पर लचपकवाये गए । साि ही पररसर में प्रत् येक स् िान

    पर गीिे व सिेू कूडे के लिए अिग-अिग कूडेदान स् िालपत लकए गए । आवासीय पररसर में रह

    रहे प्रत् येक पररवार को गीिे व सिेू कूडे के सही ढंग से पिृक् करण की लवलध समझाई गई तिा

    सहयोग देने की अपीि की गई । कूडे के सही तरीके से लनस् तारण हेतु दो कमाचारी लनयुक् त

    लकए गए जो प्रत् येक लदन हर घर से गीिा व सिूा कूडा उठाते हैं । पररसर में लजतना भी गीिा

    कूडा (करीबन 40-ए0 लकिोग्राम प्रलतलदन)उत् पन् न् होता ह,ै पररसर में ही बनाई गई कम् पोस् ट

    लपटस में डािा जा रहा ह ै । कम् पोलस्टंग के दौरान जो िाद बन रही ह ै । वह पररसर के अंदर ही

    पौधों में इस् तेमाि की जा रही ह ै । गीिे कचरे के सही लनस् तारण के बाद सिेू कूडे का भी सही

    तरीके से पिृक् करण लकया जा रहा ह ै । कूडे से प् िालस्टक को अिग करके भारतीय पेट्रोलियम

    संस्िान में स्िालपत ‘ वेस् ट प् िालस्टक प् िाटं’ में भेजा जा रहा ह,ै जहाूँ इससे डीज़ि बनाया जाता ह ै

    । पुनचाकीय कचरा जसेै पेपर, गत् ता, धातु इत् यालद को अिग कर कबाडी को बेचा जा रहा ह,ै

    लजससे हुई आय को आवासीय कल्याण सलमलत िारा । बहुत ही कम मािा में उत् पन् न हो रहा

    एकदम बेकार कचरा (10-1ए लकिो प्रलत सप् ताह) लजसे नगर लनगम िारा पररसर में प्रलत सप् ताह

    आ रहे वाहन को लदया जा रहा ह ै । इस प्रकार हमारे पररसर में कचरे का ना लसफा सही ढंग से

    पिृक् करण अलपतु इसका लनस् तारण भी उलचत ढंग से लकया जा रहा ह ै। हमारे िारा लकए गए इन् हीं

    प्रयासों के पररणाम स् वरूप आज हमारा पररसर एकदम साफ रहता ह ै । प्रत् येक कचरे का सही

    तरीके से लनस् तारण लकया जा रहा ह ै। सही मायने में हमारा पररसर एक मॉडि इको-पररसर बन

    चुका ह.ै काया को सुचारू तिा प्रभावी ढंग से चिाने हेतु प्रलतलदन लनररक्षण लकया जाता ह ै ।

    हमारी टीम के कलठन पररश्रम तिा प्रयासों के कारण ही हमने एक स् वच् छ पररसर का सपना

    साकार लकया ह ै। आज आस-पास के संस् िानों से िोग हमारे पररसर में घमूने आते हैं तिा हमारे

    प्रयासों की सराहना करते तिा इसी मॉडि को अपने पररसर में अपनाने के लिए हमसे जानकारी

    प्राप् त करते हैं ।

    आज हमारे इन् हीं प्रयासों के कारण हमारा पररसर स् वच् छता व हररयािी का लमसाि बन गया ह ै

    और हाि ही में हुए स्वच्छता सवेक्षण में हमारे पररसर को दूसरा स्िान प्राप्त हुआ ह.ै

  • 25

    मैं अपने और अपनी टीम के इन प्रयासों को यहीं लवराम नहीं देना चाहती ह ू ं तिा उम् मीद करती ह ं

    लक अन्य सभी आवासीय पररसरों, लशक्षण संस् िानों व सरकारी कायााियों िारा भी इसी प्रकार के

    प्रयास लकए जायेंगे और बहुत ही शीघ्र हमारा शहर स् वच् छता की एक लमसाि बनेगा । हमने

    शुरूआत अपने घर से की ह,ै लफर पडोस से होते हुए परेू पररसर को स् वच् छ बनाया, अब उम् मीद

    करते हैं लक हमारी आवाज इस पररसर के बाहर भी जाएगी तिा न केवि परूा शहर अलपतु संपणूा

    भारत स् वच् छ और हररत बनेगा ।

    भारत का प्रत् येक नागररक अगर स् वच् छता की शपि िे तिा अपना योगदान प्रदान करे तो हमारे

    माननीय प्रधानमंिी जी का सपना ‘’नए भारत का लनमााण ‘’ 2022 तक अव् य परूा हो जाएगा ।

    ट मरि रहे सक ट वच् छता ही ट वट र्थ भारत की जननी ह ैऔर हररयाली ही प्रकृसत का ददयि ह ै

    डॉ सुमन िता जनै

    प्रधान वजै्ञालनक,

    सीएसआईआर- भारतीय पेट्रोलियम संस् िान, देहरादून

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    ऋसिकेि (संस्कृत : हृषीकेश) उत्तरािण्ड के देहरादून लजिे का एक धालमाक नगर, लहन्दू तीिास्िि, नगरलनगम तिा तहसीि ह।ै यह गढ़वाि लहमािय का प्रवेशिार एवं योग की वलैश्वक राजधानी ह।ै ऋलषकेश, हररिार से 2ए लकमी उत्तर में तिा देहरादून से 43 लकमी दलक्षण-पवूा में लस्ित ह।ै

    उत्तरािंड की वालदयों में लस्ित ऋलषकेश एक बेहद ही िबूसरूत पावन धालमाक स्िि ह।ै यहां के िबूसरूत प्राचीन, गंगा घाट, िबूसरूत पररदृ्य, आलद ऋलषकेश को पयाटकों के बीच िोकलप्रय बनाते ह।ै योग राजधानी बनने के बाद ऋलषकेश पयाटन में अचानक से तेजी आई, ऋलषकेश में हर साि िािों िोग योग सीिने पहंुचते हैं। िेलकन अगर आप ऋलषकेश के आसपास भी घमूना चाहते हैं, तो आज हम आपको से ऋलषकेश के पास लस्ित कुछ बेहद ही िबूसरूत जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं। एक बार मां गंगा की गोद में आ गए आप तो लफर आपका जाने का मन नही करें गा। लहमािय का प्रवेश िार, ऋलषकेश जहाूँ पहुूँचकर गंगा पवातमािाओ ंको पीछे छोड हररिार से होती हुई समति धराति की तरफ आगे बढ़ जाती ह।ै ऋलषकेश का शांत वातावरण कई लवख्यात आश्रमों का घर ह।ै उत्तरािण्ड में समुर ति से 1360 फीट की ऊंचाई पर लस्ित ऋलषकेश भारत के सबसे पलवि तीिास्ििों में एक ह।ै लहमािय की लनचिी पहालडयों और प्राकृलतक सुन्दरता से लघरे इस धालमाक स्िान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती ह।ै

    ऋलषकेश को केदारनाि, बरीनाि, गंगोिी और यमुनोिी का प्रवेशिार माना जाता ह।ै कहा जाता ह ैलक इस स्िान पर ध्यान िगाने से मोक्ष प्राप्त होता ह।ै इसे वरैालय नगरी के नाम से भी जाना जाता ह ै। हर साि यहाूँ के आश्रमों के बडी संख्या में तीिायािी ध्यान िगाने और मन की शालन्त के लिए आते हैं। लवदेशी पयाटक भी यहाूँ आध्यालत्मक सुि की चाह में लनयलमत रूप से आते रहते हैं।

    ऋलषकेश से सम्बंलधत अनेक धालमाक किाएूँ प्रचलित हैं। कहा जाता ह ैलक समुर मंिन के दौरान लनकिा लवष लशव ने इसी स्िान पर लपया िा। लवष पीने के बाद उनका गिा नीिा पड गया और उन्हें नीिकंठ के नाम से जाना गया। एक अन्य अनुशु्रलत के अनुसार भगवान राम ने वनवास के दौरान यहाूँ के जंगिों में अपना समय व्यतीत लकया िा। रस्सी से बना िक्ष्मण झिूा इसका प्रमाण माना जाता ह।ै 1939 ई० में िक्ष्मण झिेू का पुनलनामााण लकया गया। यह भी कहा जाता ह ैलक ऋलष रैभ्य ने यहाूँ ईश्वर के दशान के लिए कठोर तपस्या की िी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान हृषीकेश के रूप में प्रकट हुए। तब से इस स्िान को ऋलषकेश नाम से जाना जाता ह।ै

    ऋलषकेश का लनकटतम हवाई अड्डा जॉिी ग्रांट एयरपोटा देहरादून ह ैजो ऋलषकेश से 2ए लकमी की दूरी पर ह।ै आप लदल्िी या ििनऊ से हवाई यािा करके यहां पहंुच सकते हैं इसके बाद से बस, रेगुिर टकै्सी के जररए ऋलषकेश जा सकते हैं। वाया देहरादून सडकमागा से ऋलषकेश की दूरी 4ए लकमी माि ह।ै

    ऋलषकेश का लनकटतम रेिवे स्टेशन हररिार ह ै जो इससे 2ए लकिोमीटर की दूरी पर ह।ै यह स्टेशन मंुबई, लदल्िी, कोिकाता, ििनऊ और वाराणसी से रेिमागा िारा जुडा ह।ै आप शताब्दी, जनशताब्दी, मसरूी एक्सपे्रस जसैी लवलभन्न टे्रनों के माध्यम से हररिार पहंुचकर लफर वहां से बस या टकै्सी िारा ऋलषकेश जा सकते हैं। इसके अिावा नई लदल्िी से वाया हररिार, रेि मागा या बस के माध्यम से भी ऋलषकेश जाया जा सकता ह।ै हररिार एवं देहारादून से ऋलषकेश के लिए

    ािंटकृसतक सवरा त-िासमिक नगरी

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    कुब्जाम्रके महातीिे वसालम-रमया सह। हृषीकालण पुरा लजत्वा देशः संप्रालिातस्त्वया।। यिाहं तु हृषीकेशो भवाम्यि समालश्रतः। ततोऽस्या परकं नाम हृषीकेशालश्रतंस्ििम्।।

    (स्कन्द पुराण केदार िंड 116/38 व 39)

    स्कन्द पुराण केदार िंड (116/42) के अनुसार सतयुग में वराह, िेता में परशुराम, िापर में वामन तिा कलियुग में भरत नाम से जो उपासना कर प्रणाम करें गे, वे लनिय ही मुलि के अलधकारी होंगे। वराह पुराण के 122 वें अध्याय में इसी स्िान पर रैभ्य मुलन के तप से प्रसन्न होकर भगवान लवष्णु िारा आम के वकृ्ष पर बठैकर दशान देने तिा भार से वकृ्ष झुकने (कुब्ज-कुबडा होने) के कारण इस स्िान को‘कुब्जाम्रक’ नाम लदये जाने का उल्िेि प्राप्त होता ह।ै रैभ्य एक प्रलसद्ध मुलन हैं, जो लक भारिाज ऋलष के लमि िे। इनके अवाावसु तिा परावसु नाम के दो पुि हुए। पौरालणक उल्िेि के अनुसार भारिाज ऋलष ने एक बार भ्रम में पडकर रैभ्य ऋलष को श्राप दे लदया, लजसके प्रायलित्त में जिकर भारिाज ने शरीर त्याग लदया। रैभ्य ऋलष के यशस्वी पुि अवाावसु ने इन्हें पुनः अपने तपोबि से जीलवत कर लदया। श्रीमद्भागवत के अनुसार भारिाज ऋलष का िािन-पािन दुष्यन्त पुि भरत के संरक्षण में हुआ। भरत िारा एए अश्वमेघ एवं राजसयू यज्ञ गंगा-यमुना के तट पर लकए जाने का उल्िेि महाभारत में प्राप्त होता ह,ै लजससे अनुमालनत होता ह ैलक उनमें से यह स्िान भी एक ह।ै भारतिाज एवं धतृाची नाम की अप्सरा से उत्पन्न रोणाचाया का सम्बन्ध देहरादून से जोडा जाता ह।ै महाभारत वन पवा में इस पलवितम तीिा की मलहमा सहस्त्रों गोदान फिों के बराबर बताई गयी ह।ै वामन पुराण के 76 वें अध्याय में भि प्रहिाद िारा बदररकाश्रम जाते समय इस स्िान पर भगवान हृषीकेश (भरत जी) की अचाना लकए जाने का उल्िेि ह।ै नरलसंह पुराण के 6एवें अध्याय में इस स्िान को भगवान हृषीकेश (लवष्णु) का लप्रय एवं पलवितम स्िान कहा गया ह।ै सतयुग में परम तपस्वी ब्राह्मण सोमशमाा के तप िारा भगवान लवष्णु के दशान प्राप्त कर उनकी माया के चमत्कार को देिने का भी स्कन्द पुराण में लवस्ततृ लववरण प्राप्त होता ह।ै भारत भलूम में लवधलमायों तिा लवदेशी आिान्ताओ ंके अत्याचारों से यह पलवि मलन्दर भी अछूता नहीं रहा। समय-समय पर इसके पुनलनामााण एवं जीणोद्धार का काया होता रहा। ऋलषकेश के अलधष्ठालि देव भगवान “हृलषक�