· web viewप र मच द ग ल ल ड ड : 3 ज य त : 13 द ल क र न :...
TRANSCRIPT
पे्रमचंद
गुल्ली डंडा : 3ज्योति� : 13दि�ल की रानी : 26धि�क्कार : 48
गुल्ली-डंडा
मारे अँग्रेजी �ोस्� मानें या न मानें मैं �ो यही कहूँगा तिक गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजाहै। अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डंडा खेल�े �ेख�ा हँू, �ो जी लोट-पोट हो जा�ा है
तिक इनके साथ जाकर खेलने लगूँ। न लान की जरूर�, न कोट1 की, न नेट की, न थापी की।मजे से तिकसी पेड़ से एक टहनी काट ली, गुल्ली बना ली, और �ो आ�मी भी आ जाए, �ोखेल शुरू हो गया।
हति6लाय�ी खेलों में सबसे बड़ा ऐब है तिक उसके सामान महँगे हो�े हैं। जब �क कम-से-
कम एक सैंकड़ा न खर्च1 कीजिजए, खिखलातिड़यों में शुमार ही नहीं हो पा�ा। यहॉँ गुल्ली-डंडा हैतिक बना हर1-ति>टकरी के र्चोखा रंग �े�ा है; पर हम अँगरेजी र्चीजों के पीछे ऐसे �ी6ाने होरहे हैं तिक अपनी सभी र्चीजों से अरूचिर्च हो गई। स्कूलों में हरेक लड़के से �ीन-र्चार रूपयेसालाना के6ल खेलने की >ीस ली जा�ी है। तिकसी को यह नहीं सूझ�ा तिक भार�ीय खेलखिखलाऍं, जो तिबना �ाम-कौड़ी के खेले जा�े हैं। अँगरेजी खेल उनके चिलए हैं, जिजनके पास�न है। गरीब लड़कों के चिसर क्यों यह व्यसन मढ़�े हो? ठीक है, गुल्ली से ऑंख >ूट जानेका भय रह�ा है, �ो क्या तिKकेट से चिसर >ूट जाने, ति�ल्ली >ट जाने, टॉँग टूट जाने का भयनहीं रह�ा! अगर हमारे माथे में गुल्ली का �ाग आज �क बना हुआ है, �ो हमारे कई �ोस्�ऐसे भी हैं, जो थापी को बैसाखी से ब�ल बैठे। यह अपनी-अपनी रूचिर्च है। मुझे गुल्ली कीसब खेलों से अच्छी लग�ी है और बर्चपन की मीठी स्मृति�यों में गुल्ली ही सबसे मीठी है।
6ह प्रा�:काल घर से तिनकल जाना, 6ह पेड़ पर र्चढ़कर टहतिनयॉँ काटना और गुल्ली-डंडे बनाना, 6ह उत्साह, 6ह खिखलातिड़यों के जमघटे, 6ह प�ना और प�ाना, 6ह लड़ाई-झगडे़, 6ह सरल स्6भा6, जिजससे छू�्-अछू�, अमीर-गरीब का तिबल्कुल भे� न रह�ा था, जिजसमें अमीराना र्चोर्चलों की, प्र�श1न की, अभिभमान की गुंजाइश ही न थी, यह उसी 6क्तभूलेगा जब .... जब ...। घर6ाले तिबगड़ रहे हैं, तिप�ाजी र्चौके पर बैठे 6ेग से रोदिटयों परअपना Kो� उ�ार रहे हैं, अम्माँ की �ौड़ के6ल द्वार �क है, लेतिकन उनकी ति6र्चार-�ारा मेंमेरा अं�कारमय भति6ष्य टूटी हुई नौका की �रह डगमगा रहा है; और मैं हँू तिक प�ाने में मस्�हँू, न नहाने की सुधि� है, न खाने की। गुल्ली है �ो जरा-सी, पर उसमें दुतिनया-भर कीधिमठाइयों की धिमठास और �माशों का आनं� भरा हुआ है।
मेरे हमजोचिलयों में एक लड़का गया नाम का था। मुझसे �ो-�ीन साल बड़ा होगा।दुबला, बं�रों की-सी लम्बी-लम्बी, प�ली-प�ली उँगचिलयॉँ, बं�रों की-सी र्चपल�ा, 6हीझल्लाहट। गुल्ली कैसी ही हो, पर इस �रह लपक�ा था, जैसे चिछपकली कीड़ों पर लपक�ीहै। मालूम नहीं, उसके मॉँ-बाप थे या नहीं, कहॉँ रह�ा था, क्या खा�ा था; पर था हमारे
गुल्ली-कल्ब का र्चैम्पिZयन। जिजसकी �र> 6ह आ जाए, उसकी जी� तिनभि[� थी। हम सबउसे दूर से आ�े �ेख, उसका �ौड़कर स्6ाग� कर�े थे और अपना गोइयॉँ बना ले�े थे।
एक दि�न मैं और गया �ो ही खेल रहे थे। 6ह प�ा रहा था। मैं प� रहा था, मगर कुछति6चिर्चत्र बा� है तिक प�ाने में हम दि�न-भर मस्� रह सक�े है; प�ना एक धिमनट का भीअखर�ा है। मैंने गला छुड़ाने के चिलए सब र्चालें र्चलीं, जो ऐसे अ6सर पर शास्त्र-ति6तिह� नहोने पर भी क्षम्य हैं, लेतिकन गया अपना �ॉँ6 चिलए बगैर मेरा पिपंड न छोड़�ा था।
मैं घर की ओर भागा। अननुय-ति6नय का कोई असर न हुआ था।गया ने मुझे �ौड़कर पकड़ चिलया और डंडा �ानकर बोला-मेरा �ॉँ6 �ेकर जाओ।
प�ाया �ो बडे़ बहादुर बनके, प�ने के बेर क्यों भागे जा�े हो।‘�ुम दि�न-भर प�ाओ �ो मैं दि�न-भर प��ा रहँ?’‘हॉँ, �ुम्हें दि�न-भर प�ना पडे़गा।‘‘न खाने जाऊँ, न पीने जाऊँ?’‘हॉँ! मेरा �ॉँ6 दि�ये तिबना कहीं नहीं जा सक�े।‘‘मैं �ुम्हारा गुलाब हँू?’‘हॉँ, मेरे गुलाम हो।‘‘मैं घर जा�ा हँू, �ेखँू मेरा क्या कर ले�े हो!’‘घर कैसे जाओगे; कोई दि�ल्लगी है। �ॉँ6 दि�या है, �ॉँ6 लेंगे।‘‘अच्छा, कल मैंने अमरू� खिखलाया था। 6ह लौटा �ो।‘6ह �ो पेट में र्चला गया।‘‘तिनकालो पेट से। �ुमने क्यों खाया मेरा अमरू�?’‘अमरू� �ुमने दि�या, �ब मैंने खाया। मैं �ुमसे मॉँगने न गया था।‘‘जब �क मेरा अमरू� न �ोगे, मैं �ॉँ6 न दँूगा।‘मैं समझ�ा था, न्याय मेरी ओर है। आखिखर मैंने तिकसी स्6ाथ1 से ही उसे अमरू�
खिखलाया होगा। कौन तिन:स्6ाथ1 तिकसी के साथ सलूक कर�ा है। भिभक्षा �क �ो स्6ाथ1 के चिलए�े�े हैं। जब गया ने अमरू� खाया, �ो ति>र उसे मुझसे �ॉँ6 लेने का क्या अधि�कार है? रिरश्व��ेकर �ो लोग खून पर्चा जा�े हैं, यह मेरा अमरू� यों ही हजम कर जाएगा? अमरू� पैसे केपॉँर्च6ाले थे, जो गया के बाप को भी नसीब न होंगे। यह सरासर अन्याय था।
गया ने मुझे अपनी ओर खींर्च�े हुए कहा-मेरा �ॉँ6 �ेकर जाओ, अमरू�-समरू� मैंनहीं जान�ा।
मुझे न्याय का बल था। 6ह अन्याय पर डटा हुआ था। मैं हाथ छुड़ाकर भागना र्चाह�ाथा। 6ह मुझे जाने न �े�ा! मैंने उसे गाली �ी, उसने उससे कड़ी गाली �ी, और गाली-हीनहीं, एक र्चॉँटा जमा दि�या। मैंने उसे �ॉँ� काट चिलया। उसने मेरी पीठ पर डंडा जमा दि�या।मैं रोने लगा! गया मेरे इस अस्त्र का मुकाबला न कर सका। मैंने �ुरन्� ऑंसू पोंछ डाले, डंडेकी र्चोट भूल गया और हँस�ा हुआ घर जा पहुँर्चा! मैं थाने�ार का लड़का एक नीर्च जा� के
लौंडे के हाथों तिपट गया, यह मुझे उस समय भी अपमानजनक मालूम हआ; लेतिकन घर मेंतिकसी से चिशकाय� न की।
2
न्हीं दि�नों तिप�ाजी का 6हॉँ से �बा�ला हो गया। नई दुतिनया �ेखने की खुशी में ऐसा>ूला तिक अपने हमजोचिलयों से तिबछुड़ जाने का तिबलकुल दु:ख न हुआ। तिप�ाजी दु:खी
थे। 6ह बड़ी आम�नी की जगह थी। अम्मॉँजी भी दु:खी थीं यहॉँ सब र्चीज सस्�ी थीं, औरमुहल्ले की म्पिस्त्रयों से घरा6-सा हो गया था, लेतिकन मैं सारे खुशी के >ूला न समा�ा था।लड़कों में जीट उड़ा रहा था, 6हॉँ ऐसे घर थोडे़ ही हो�े हैं। ऐसे-ऐसे ऊँर्चे घर हैं तिक आसमानसे बा�ें कर�े हैं। 6हॉँ के अँगरेजी स्कूल में कोई मास्टर लड़कों को पीटे, �ो उसे जेहल होजाए। मेरे धिमत्रों की >ैली हुई ऑंखे और र्चतिक� मुद्रा ब�ला रही थी तिक मैं उनकी तिनगाह मेंतिक�ना स्पर्द्घाा1 हो रही थी! मानो कह रहे थे-�ु भाग6ान हो भाई, जाओ। हमें �ो इसी ऊजड़ग्राम में जीना भी है और मरना भी।
उ
बीस साल गुजर गए। मैंने इंजीतिनयरी पास की और उसी जिजले का �ौरा कर�ा हुआउसी कस्बे में पहँर्चा और डाकबँगले में ठहरा। उस स्थान को �ेख�े ही इ�नी म�ुर बाल-स्मृति�यॉँ हृ�य में जाग उठीं तिक मैंने छड़ी उठाई और क्स्बे की सैर करने तिनकला। ऑंखेंतिकसी प्यासे पचिथक की भॉँति� बर्चपन के उन Kीड़ा-स्थलों को �ेखने के चिलए व्याकुल हो रहीथीं; पर उस परिरचिर्च� नाम के चिस6ा 6हॉँ और कुछ परिरचिर्च� न था। जहॉँ खँडहर था, 6हॉँपक्के मकान खडे़ थे। जहॉँ बरग� का पुराना पेड़ था, 6हॉँ अब एक सुन्�र बगीर्चा था। स्थानकी काया पलट हो गई थी। अगर उसके नाम और स्थिस्थति� का ज्ञान न हो�ा, �ो मैं उसेपहर्चान भी न सक�ा। बर्चपन की संचिर्च� और अमर स्मृति�यॉँ बॉँहे खोले अपने उन पुरानेधिमत्रों से गले धिमलने को अ�ीर हो रही थीं; मगर 6ह दुतिनया ब�ल गई थी। ऐसा जी हो�ा थातिक उस �र�ी से चिलपटकर रोऊँ और कहूँ, �ुम मुझे भूल गईं! मैं �ो अब भी �ुम्हारा 6हीरूप �ेखना र्चाह�ा हँू।
सहसा एक खुली जगह में मैंने �ो-�ीन लड़कों को गुल्ली-डंडा खेल�े �ेखा। एक क्षणके चिलए मैं अपने का तिबल्कुल भूल गया। भूल गया तिक मैं एक ऊँर्चा अ>सर हँू, साहबी ठाठमें, रौब और अधि�कार के आ6रण में।
जाकर एक लड़के से पूछा-क्यों बेटे, यहॉँ कोई गया नाम का आ�मी रह�ा है?एक लड़के ने गुल्ली-डंडा समेटकर सहमे हुए स्6र में कहा-कौन गया? गया र्चमार?मैंने यों ही कहा-हॉँ-हॉँ 6ही। गया नाम का कोई आ�मी है �ो? शाय� 6ही हो।‘हॉँ, है �ो।‘‘जरा उसे बुला सक�े हो?’
लड़का �ौड़�ा हुआ गया और एक क्षण में एक पॉँर्च हाथ काले �े6 को साथ चिलएआ�ा दि�खाई दि�या। मैं दूर से ही पहर्चान गया। उसकी ओर लपकना र्चाह�ा था तिक उसकेगले चिलपट जाऊँ, पर कुछ सोर्चकर रह गया। बोला-कहो गया, मुझे पहर्चान�े हो?
गया ने झुककर सलाम तिकया-हॉँ माचिलक, भला पहर्चानँूगा क्यों नहीं! आप मजे में हो?‘बहु� मजे में। �ुम अपनी कहा।‘‘तिडप्टी साहब का साईस हँू।‘‘म�ई, मोहन, दुगा1 सब कहॉँ हैं? कुछ खबर है?‘म�ई �ो मर गया, दुगा1 और मोहन �ोनों डातिकया हो गए हैं। आप?’‘मैं �ो जिजले का इंजीतिनया हँू।‘‘सरकार �ो पहले ही बडे़ जहीन थे?‘अब कभी गुल्ली-डंडा खेल�े हो?’ गया ने मेरी ओर प्रश्न-भरी ऑंखों से �ेखा-अब गुल्ली-डंडा क्या खेलूँगा सरकार, अब
�ो �ं�े से छुट्टी नहीं धिमल�ी।‘आओ, आज हम-�ुम खेलें। �ुम प�ाना, हम प�ेंगे। �ुम्हारा एक �ॉँ6 हमारे ऊपर है।
6ह आज ले लो।‘गया बड़ी मुश्किvकल से राजी हुआ। 6ह ठहरा टके का मजदूर, मैं एक बड़ा अ>सर।
हमारा और उसका क्या जोड़? बेर्चारा झेंप रहा था। लेतिकन मुझे भी कुछ कम झेंप न थी; इसचिलए नहीं तिक मैं गया के साथ खेलने जा रहा था, बश्किल्क इसचिलए तिक लोग इस खेल कोअजूबा समझकर इसका �माशा बना लेंगे और अच्छी-खासी भीड़ लग जाएगी। उस भीड़ में6ह आनं� कहॉँ रहेगा, पर खेले बगैर �ो रहा नहीं जा�ा। आखिखर तिन[य हुआ तिक �ोनों जनेबस्�ी से बहु� दूर खेलेंगे और बर्चपन की उस धिमठाई को खूब रस ले-लेकर खाऍंगे। मैं गयाको लेकर डाकबँगले पर आया और मोटर में बैठकर �ोनों मै�ान की ओर र्चले। साथ में एककुल्हाड़ी ले ली। मैं गंभीर भा6 �ारण तिकए हुए था, लेतिकन गया इसे अभी �क मजाक हीसमझ रहा था। ति>र भी उसके मुख पर उत्सुक�ा या आनं� का कोई चिर्चह्न न था। शाय� 6हहम �ोनों में जो अं�र हो गया था, यही सोर्चने में मगन था।
मैंने पूछा-�ुम्हें कभी हमारी या� आ�ी थी गया? सर्च कहना।गया झेंप�ा हुआ बोला-मैं आपको या� कर�ा हजूर, तिकस लायक हँू। भाग में आपके
साथ कुछ दि�न खेलना ब�ा था; नहीं मेरी क्या तिगन�ी?मैंने कुछ उ�ास होकर कहा-लेतिकन मुझे �ो बराबर, �ुम्हारी या� आ�ी थी। �ुम्हारा 6ह
डंडा, जो �ुमने �ानकर जमाया था, या� है न?गया ने पछ�ा�े हुए कहा-6ह लड़कपन था सरकार, उसकी या� न दि�लाओ।‘6ाह! 6ह मेरे बाल-जी6न की सबसे रसीली या� है। �ुम्हारे उस डंडे में जो रस था,
6ह �ो अब न आ�र-सम्मान में पा�ा हँू, न �न में।‘
इ�नी �ेर में हम बस्�ी से कोई �ीन मील तिनकल आये। र्चारों �र> सन्नाटा है। पभि[मओर कोसों �क भीम�ाल >ैला हुआ है, जहॉँ आकर हम तिकसी समय कमल पुष्प �ोड़ लेजा�े थे और उसके झूमक बनाकर कानों में डाल ले�े थे। जेठ की संध्या केसर में डूबी र्चलीआ रही है। मैं लपककर एक पेड़ पर र्चढ़ गया और एक टहनी काट लाया। र्चटपट गुल्ली-डंडा बन गया। खेल शुरू हो गया। मैंने गुच्ची में गुल्ली रखकर उछाली। गुल्ली गया के सामनेसे तिनकल गई। उसने हाथ लपकाया, जैसे मछली पकड़ रहा हो। गुल्ली उसके पीछे जाकरतिगरी। यह 6ही गया है, जिजसके हथों में गुल्ली जैसे आप ही आकर बैठ जा�ी थी। 6ह �ाहने-बाऍं कहीं हो, गुल्ली उसकी हथेली में ही पहूँर्च�ी थी। जैसे गुस्थिल्लयों पर 6शीकरण डाल �े�ाहो। नयी गुल्ली, पुरानी गुल्ली, छोटी गुल्ली, बड़ी गुल्ली, नोक�ार गुल्ली, सपाट गुल्ली सभीउससे धिमल जा�ी थी। जैसे उसके हाथों में कोई र्चुम्बक हो, गुस्थिल्लयों को खींर्च ले�ा हो; लेतिकन आज गुल्ली को उससे 6ह पे्रम नहीं रहा। ति>र �ो मैंने प�ाना शुरू तिकया। मैं �रह-�रह की �ॉँ�चिलयॉँ कर रहा था। अभ्यास की कसर बेईमानी से पूरी कर रहा था। हुर्च जानेपर भी डंडा खुले जा�ा था। हालॉँतिक शास्त्र के अनुसार गया की बारी आनी र्चातिहए थी।गुल्ली पर ओछी र्चोट पड़�ी और 6ह जरा दूर पर तिगर पड़�ी, �ो मैं झपटकर उसे खु� उठाले�ा और �ोबारा टॉँड़ लगा�ा। गया यह सारी बे-काय�तिगयॉँ �ेख रहा था; पर कुछ नबोल�ा था, जैसे उसे 6ह सब काय�े-कानून भूल गए। उसका तिनशाना तिक�ना अर्चूक था।गुल्ली उसके हाथ से तिनकलकर टन से डंडे से आकर लग�ी थी। उसके हाथ से छूटकरउसका काम था डंडे से टकरा जाना, लेतिकन आज 6ह गुल्ली डंडे में लग�ी ही नहीं! कभी�ातिहने जा�ी है, कभी बाऍं, कभी आगे, कभी पीछे।
आ� घंटे प�ाने के बा� एक गुल्ली डंडे में आ लगी। मैंने �ॉँ�ली की-गुल्ली डंडे में नहींलगी। तिबल्कुल पास से गई; लेतिकन लगी नहीं।
गया ने तिकसी प्रकार का असं�ोष प्रकट नहीं तिकया।‘न लगी होगी।‘‘डंडे में लग�ी �ो क्या मैं बेईमानी कर�ा?’‘नहीं भैया, �ुम भला बेईमानी करोगे?’बर्चपन में मजाल था तिक मैं ऐसा घपला करके जी�ा बर्च�ा! यही गया ग�1न पर र्चढ़
बैठ�ा, लेतिकन आज मैं उसे तिक�नी आसानी से �ोखा दि�ए र्चला जा�ा था। ग�ा है! सारीबा�ें भूल गया।
सहसा गुल्ली ति>र डंडे से लगी और इ�नी जोर से लगी, जैसे बन्दूक छूटी हो। इसप्रमाण के सामने अब तिकसी �रह की �ां�ली करने का साहस मुझे इस 6क्त भी न हो सका, लेतिकन क्यों न एक बार सबको झूठ ब�ाने की र्चेष्टा करँू? मेरा हरज की क्या है। मान गया�ो 6ाह-6ाह, नहीं �ो-र्चार हाथ प�ना ही �ो पडे़गा। अँ�ेरा का बहाना करके जल्�ी से छुड़ालूँगा। ति>र कौन �ॉँ6 �ेने आ�ा है।
गया ने ति6जय के उल्लास में कहा-लग गई, लग गई। टन से बोली।
मैंने अनजान बनने की र्चेष्टा करके कहा-�ुमने लग�े �ेखा? मैंने �ो नहीं �ेखा।‘टन से बोली है सरकार!’‘और जो तिकसी ईंट से टकरा गई हो?मेरेमुखसेयह6ाक्यउससमयकैसेतिनकला, इसकामुझेखु�आ[य1है।इससत्य
कोझुठलाना6ैसाहीथा, जैसेदि�नकोरा�ब�ाना।हम�ोनोंनेगुल्लीको डंडे में जोर सेलग�े �ेखा था; लेतिकन गया ने मेरा कथन स्6ीकार कर चिलया।
‘हॉँ, तिकसी ईंट में ही लगी होगी। डंडे में लग�ी �ो इ�नी आ6ाज न आ�ी।‘मैंने ति>र प�ाना शुरू कर दि�या; लेतिकन इ�नी प्रत्यक्ष �ॉँ�ली कर लेने के बा� गया की
सरल�ा पर मुझे �या आने लगी; इसीचिलए जब �ीसरी बार गुल्ली डंडे में लगी, �ो मैंने बड़ीउ�ार�ा से �ॉँ6 �ेना �य कर चिलया।
गया ने कहा-अब �ो अँ�ेरा हो गया है भैया, कल पर रखो।मैंने सोर्चा, कल बहु�-सा समय होगा, यह न जाने तिक�नी �ेर प�ाए, इसचिलए इसी
6क्त मुआमला सा> कर लेना अच्छा होगा।‘नहीं, नहीं। अभी बहु� उजाला है। �ुम अपना �ॉँ6 ले लो।‘‘गुल्ली सूझेगी नहीं।‘‘कुछ पर6ाह नहीं।‘गया ने प�ाना शुरू तिकया; पर उसे अब तिबलकुल अभ्यास न था। उसने �ो बार टॉँड
लगाने का इरा�ा तिकया; पर �ोनों ही बार हुर्च गया। एक धिमतिनट से कम में 6ह �ॉँ6 खो बैठा।मैंने अपनी हृ�य की ति6शाल�ा का परिर[ दि�या।
‘एक �ॉँ6 और खेल लो। �ुम �ो पहले ही हाथ में हुर्च गए।‘‘नहीं भैया, अब अँ�ेरा हो गया।‘‘�ुम्हारा अभ्यास छूट गया। कभी खेल�े नहीं?’‘खेलने का समय कहॉँ धिमल�ा है भैया!’हम �ोनों मोटर पर जा बैठे और चिर्चराग जल�े-जल�े पड़ा6 पर पहुँर्च गए। गया र्चल�े-
र्चल�े बोला-कल यहॉँ गुल्ली-डंडा होगा। सभी पुराने खिखलाड़ी खेलेंगे। �ुम भी आओगे? जब�ुम्हें >ुरस� हो, �भी खिखलातिड़यों को बुलाऊँ।
मैंने शाम का समय दि�या और दूसरे दि�न मैर्च �ेखने गया। कोई �स-�स आ�धिमयों कीमंडली थी। कई मेरे लड़कपन के साथी तिनकले! अधि�कांश यु6क थे, जिजन्हें मैं पहर्चान नसका। खेल शुरू हुआ। मैं मोटर पर बैठा-बैठा �माशा �ेखने लगा। आज गया का खेल, उसका नैपुण्य �ेखकर मैं र्चतिक� हो गया। टॉँड़ लगा�ा, �ो गुल्ली आसमान से बा�ें कर�ी।कल की-सी 6ह जिझझक, 6ह तिहर्चतिकर्चाहट, 6ह बेदि�ली आज न थी। लड़कपन में जो बा�थी, आज उसेन प्रौढ़�ा प्राप्� कर ली थी। कहीं कल इसने मुझे इस �रह प�ाया हो�ा, �ो मैंजरूर रोने लग�ा। उसके डंडे की र्चोट खाकर गुल्ली �ो सौ गज की खबर ला�ी थी।
प�ने 6ालों में एक यु6क ने कुछ �ॉँ�ली की। उसने अपने ति6र्चार में गुल्ली लपक लीथी। गया का कहना था-गुल्ली जमीन मे लगकर उछली थी। इस पर �ोनों में �ाल ठोकने कीनौब� आई है। यु6क �ब गया। गया का �म�माया हुआ र्चेहरा �ेखकर डर गया। अगर 6ह�ब न जा�ा, �ो जरूर मार-पीट हो जा�ी।
मैं खेल में न था; पर दूसरों के इस खेल में मुझे 6ही लड़कपन का आनन्� आ रहाथा, जब हम सब कुछ भूलकर खेल में मस्� हो जा�े थे। अब मुझे मालूम हुआ तिक कल गयाने मेरे साथ खेला नहीं, के6ल खेलने का बहाना तिकया। उसने मुझे �या का पात्र समझा। मैंने�ॉँ�ली की, बेईमानी की, पर उसे जरा भी Kो� न आया। इसचिलए तिक 6ह खेल न रहा था, मुझे खेला रहा था, मेरा मन रख रहा था। 6ह मुझे प�ाकर मेरा कर्चूमर नहीं तिनकालनार्चाह�ा था। मैं अब अ>सर हँू। यह अ>सरी मेरे और उसके बीर्च में �ी6ार बन गई है। मैंअब उसका चिलहाज पा सक�ा हँू, अ�ब पा सक�ा हँू, साहर्चय1 नहीं पा सक�ा। लड़कपनथा, �ब मैं उसका समकक्ष था। यह प� पाकर अब मैं के6ल उसकी �या योग्य हँू। 6ह मुझेअपना जोड़ नहीं समझ�ा। 6ह बड़ा हो गया है, मैं छोटा हो गया हँू।
ज्योति�
�6ा हो जाने के बा� बूटी का स्6भा6 बहु� कटु हो गया था। जब बहु� जी जल�ा �ोअपने मृ� पति� को कोस�ी-आप �ो चिस�ार गए, मेरे चिलए यह जंजाल छोड़ गए । जब
इ�नी जल्�ी जाना था, �ो ब्याह न जाने तिकसचिलए तिकया । घर में भूनी भॉँग नहीं, र्चले थेब्याह करने ! 6ह र्चाह�ी �ो दूसररी सगाई कर ले�ी । अहीरों में इसका रिर6ाज है । �ेखने-सुनने में भी बुरी न थी । �ो-एक आ�मी �ैयार भी थे, लेतिकन बूटी पति�व्र�ा कहलाने के मोहको न छोड़ सकी । और यह सारा Kो� उ�र�ा था, बडे़ लड़के मोहन पर, जो अब सोलहसाल का था । सोहन अभी छोटा था और मैना लड़की थी । ये �ोनों अभी तिकसी लायक न थे। अगर यह �ीनों न हो�े, �ो बूटी को क्यों इ�ना कष्ट हो�ा । जिजसका थोड़ा-सा काम कर�े�ी, 6ही रोटी-कपड़ा �े �े�ा। जब र्चाह�ी तिकसी के चिसर बैठ जा�ी । अब अगर 6ह कहींबैठ जाए, �ो लोग यही कहेंगे तिक �ीन-�ीन बच्चों के हो�े इसे यह क्या सूझी ।
ति6
मोहन भरसक उसका भार हल्का करने की र्चेष्टा कर�ा । गायों-भैसों की सानी-पानी, दुहना-मथना यह सब कर ले�ा, लेतिकन बूटी का मुँह सी�ा न हो�ा था । 6ह रोज एक-न-एक खुर्चड़ तिनकाल�ी रह�ी और मोहन ने भी उसकी घुड़तिकयों की पर6ाह करना छोड़ दि�याथा । पति� उसके चिसर गृहस्थी का यह भार पटककर क्यों र्चला गया, उसे यही तिगला था ।बेर्चारी का स61नाश ही कर दि�या । न खाने का सुख धिमला, न पहनने-ओढ़ने का, न औरतिकसी बा� का। इस घर में क्या आयी, मानो भट्टी में पड़ गई । उसकी 6ै�व्य-सा�ना औरअ�ृप्� भोग-लालसा में स�ै6 द्वन्द्व-सा मर्चा रह�ा था और उसकी जलन में उसके हृ�य कीसारी मृदु�ा जलकर भस्म हो गई थी । पति� के पीछे और कुछ नहीं �ो बूटी के पास र्चार-पॉँर्च सौ के गहने थे, लेतिकन एक-एक करके सब उसके हाथ से तिनकल गए । उसी मुहल्ले में उसकी तिबरा�री में, तिक�नी ही और�ें थीं, जो उससे जेठी होने पर भीगहने झमकाकर, आँखों में काजल लगाकर, माँग में सेंदुर की मोटी-सी रेखा डालकर मानोउसे जलाया कर�ी थीं, इसचिलए अब उनमें से कोई ति6�6ा हो जा�ी, �ो बूटी को खुशी हो�ीऔर यह सारी जलन 6ह लड़कों पर तिनकाल�ी, ति6शेषकर मोहन पर। 6ह शाय� सारे संसारकी म्पिस्त्रयों को अपने ही रूप में �ेखना र्चाह�ी थी। कुत्सा में उसे ति6शेष आनं� धिमल�ा था ।उसकी 6ंचिर्च� लालसा, जल न पाकर ओस र्चाट लेने में ही सं�ुष्ट हो�ी थी; ति>र यह कैसेसंभ6 था तिक 6ह मोहन के ति6षय में कुछ सुने और पेट में डाल ले । ज्योंही मोहन संध्यासमय दू� बेर्चकर घर आया बूटी ने कहा-�ेख�ी हँू, �ू अब साँड़ बनने पर उ�ारू हो गया है । मोहन ने प्रश्न के भा6 से �ेखा-कैसा साँड़! बा� क्या है ? ‘�ू रूतिपया से चिछप-चिछपकर नहीं हँस�ा-बोल�ा? उस पर कह�ा है कैसा साँड़? �ुझेलाज नहीं आ�ी? घर में पैसे-पैसे की �ंगी है और 6हाँ उसके चिलए पान लाये जा�े हैं, कपडे़रँगाए जा�े है।’
मोहन ने ति6द्रोह का भा6 �ारण तिकया—अगर उसने मुझसे र्चार पैसे के पान माँगे �ोक्या कर�ा ? कह�ा तिक पैसे �े, �ो लाऊँगा ? अपनी �ो�ी रँगने को �ी, उससे रँगाई मांग�ा? ‘मुहल्ले में एक �ू ही �न्नासेठ है! और तिकसी से उसने क्यों न कहा?’ ‘यह 6ह जाने, मैं क्या ब�ाऊँ ।’ ‘�ुझे अब छैला बनने की सूझ�ी है । घर में भी कभी एक पैसे का पान लाया?’ ‘यहाँ पान तिकसके चिलए ला�ा ?’ ‘क्या �ेरे चिलखे घर में सब मर गए ?’ ‘मैं न जान�ा था, �ुम पान खाना र्चाह�ी हो।’ ‘संसार में एक रुतिपया ही पान खाने जोग है ?’ ‘शौक-सिसंगार की भी �ो उधिमर हो�ी है ।’ बूटी जल उठी । उसे बुदिढ़या कह �ेना उसकी सारी सा�ना पर पानी >ेर �ेना था । बुढ़ापेमें उन सा�नों का महत्त्6 ही क्या ? जिजस त्याग-कल्पना के बल पर 6ह म्पिस्त्रयों के सामने चिसरउठाकर र्चल�ी थी, उस पर इ�ना कुठाराघा� ! इन्हीं लड़कों के पीछे उसने अपनी ज6ानी�ूल में धिमला �ी । उसके आ�मी को मरे आज पाँर्च साल हुए । �ब उसकी र्चढ़�ी ज6ानी थी। �ीन बचे्च भग6ान् ने उसके गले मढ़ दि�ए, नहीं अभी 6ह है कै दि�न की । र्चाह�ी �ो आज6ह भी ओठ लाल तिकए, पाँ6 में महा6र लगाए, अन6ट-तिबछुए पहने मटक�ी ति>र�ी । यहसब कुछ उसने इन लड़कों के कारण त्याग दि�या और आज मोहन उसे बुदिढ़या कह�ा है! रुतिपया उसके सामने खड़ी कर �ी जाए, �ो र्चुतिहया-सी लगे । ति>र भी 6ह ज6ान है, आैैरबूटी बुदिढ़या है! बोली-हाँ और क्या । मेरे चिलए �ो अब >टे र्चीथडे़ पहनने के दि�न हैं । जब �ेरा बाप मरा�ो मैं रुतिपया से �ो ही र्चार साल बड़ी थी । उस 6क्त कोई घर ले�ी �ो, �ुम लोगों का कहींप�ा न लग�ा । गली-गली भीख माँग�े ति>र�े । लेतिकन मैं कह �े�ी हँू, अगर �ू ति>र उससेबोला �ो या �ो �ू ही घर में रहेगा या मैं ही रहँूगी । मोहन ने डर�े-डर�े कहा—मैं उसे बा� �े र्चुका हँू अम्मा! ‘कैसी बा� ?’ ‘सगाई की।’ ‘अगर रुतिपया मेरे घर में आयी �ो झाडू मारकर तिनकाल दँूगी । यह सब उसकी माँ कीमाया है । 6ह कुटनी मेरे लड़के को मुझसे छीने ले�ी है। राँड़ से इ�ना भी नहीं �ेखा जा�ा ।र्चाह�ी है तिक उसे सौ� बनाकर छा�ी पर बैठा �े।’ मोहन ने व्यचिथ� कंठ में कहा,अम्माँ, ईश्वर के चिलए र्चुप रहो । क्यों अपना पानी आप खोरही हो । मैंने �ो समझा था, र्चार दि�न में मैना अपने घर र्चली जाएगी, �ुम अकेली पड़जाओगी । इसचिलए उसे लाने की बा� सोर्च रहा था । अगर �ुम्हें बुरा लग�ा है �ो जाने �ो । ‘�ू आज से यहीं आँगन में सोया कर।’
‘और गायें-भैंसें बाहर पड़ी रहेंगी ?’ ‘पड़ी रहने �े, कोई डाका नहीं पड़ा जा�ा।’ ‘मुझ पर �ुझे इ�ना सन्�ेह है ?’ ‘हाँ !’ ‘�ो मैं यहाँ न सोऊँगा।’ ‘�ो तिनकल जा घर से।’ ‘हाँ, �ेरी यही इच्छा है �ो तिनकल जाऊँगा।’ मैना ने भोजन पकाया । मोहन ने कहा-मुझे भूख नहीं है! बूटी उसे मनाने न आयी ।मोहन का यु6क-हृ�य मा�ा के इस कठोर शासन को तिकसी �रह स्6ीकार नहीं कर सक�ा।उसका घर है, ले ले। अपने चिलए 6ह कोई दूसरा दिठकाना ढँूढ़ तिनकालेगा। रुतिपया ने उसकेरूखे जी6न में एक म्पिस्नग्��ा भर ही �ी थी । जब 6ह एक अव्यक्त कामना से र्चंर्चल हो रहाथा, जी6न कुछ सूना-सूना लग�ा था, रुतिपया ने न6 6सं� की भाँति� आकर उसे पल्लति6�कर दि�या । मोहन को जी6न में एक मीठा स्6ा� धिमलने लगा। कोई काम करना हो�ा, परध्यान रुतिपया की ओर लगा रह�ा। सोर्च�ा, उसे क्या, �े �े तिक 6ह प्रसन्न हो जाए! अब 6हकौन मुँह लेकर उसके पास जाए ? क्या उससे कहे तिक अम्माँ ने मुझे �ुझसे धिमलने को मनातिकया है? अभी कल ही �ो बरग� के नीरे्च �ोनों में केसी-कैसी बा�ें हुई थीं । मोहन ने कहाथा, रूपा �ुम इ�नी सुन्�र हो, �ुम्हारे सौ गाहक तिनकल आएगँे। मेरे घर में �ुम्हारे चिलए क्यारखा है ? इस पर रुतिपया ने जो ज6ाब दि�या था, 6ह �ो संगी� की �रह अब भी उसके प्राणमें बसा हुआ था-मैं �ो �ुमको र्चाह�ी हँू मोहन, अकेले �ुमको । परगने के र्चौ�री हो जा6, �ब भी मोहन हो; मजूरी करो, �ब भी मोहन हो । उसी रुतिपया से आज 6ह जाकर कहे-मुझेअब �ुमसे कोई सरोकार नहीं है! नहीं, यह नहीं हो सक�ा । उसे घर की पर6ाह नहीं है । 6ह रुतिपनया के साथ माँ सेअलग रहेगा । इस जगह न सही, तिकसी दूसरे मुहल्ले में सही। इस 6क्त भी रुतिपया उसकीराह �ेख रही होगी । कैसे अचे्छ बीडे़ लगा�ी है। कहीं अम्मां सुन पा6ें तिक 6ह रा� कोरुतिपया के द्वार पर गया था, �ो परान ही �े �ें। �े �ें परान! अपने भाग �ो नहीं बखान�ीं तिकऐसी �े6ी बहू धिमली जा�ी है। न जाने क्यों रुतिपया से इ�ना चिर्चढ़�ी है। 6ह जरा पान खाले�ी है, जरा साड़ी रँगकर पहन�ी है। बस, यही �ो। र्चूतिड़यों की झंकार सुनाई �ी। रुतिपनया आ रही है! हा; 6ही है। रुतिपया उसके चिसरहाने आकर बोली-सो गए क्या मोहन ? घड़ी-भर से �ुम्हारी राह �ेखरही हँू। आये क्यों नहीं ? मोहन नीं� का मक्कर तिकए पड़ा रहा। रुतिपया ने उसका चिसर तिहलाकर ति>र कहा-क्या सो गए मोहन ? उन कोमाल उंगचिलयों के स्पश1 में क्या चिसचिर्द्घा थी, कौन जाने । मोहन की सारी आत्माउन्मत्त हो उठी। उसके प्राण मानो बाहर तिनकलकर रुतिपया के र्चरणों में समर्पिपं� हो जाने के
चिलए उछल पडे़। �े6ी 6र�ान के चिलए सामने खड़ी है। सारा ति6श्व जैसे नार्च रहा है। उसेमालूम हुआ जैसे उसका शरीर लुप्� हो गया है, के6ल 6ह एक म�ुर स्6र की भाँति� ति6श्व कीगो� में चिर्चपटा हुआ उसके साथ नृत्य कर रहा है । रुतिपया ने कहा-अभी से सो गए क्या जी ? मोहन बोला-हाँ, जरा नीं� आ गई थी रूपा। �ुम इस 6क्त क्या करने आयीं? कहीं अम्मा�ेख लें, �ो मुझे मार ही डालें। ‘�ुम आज आये क्यों नहीं?’ ‘आज अम्माँ से लड़ाई हो गई।’ ‘क्या कह�ी थीं?’ ‘कह�ी थीं, रुतिपया से बोलेगा �ो मैं परान �े दँूगी।’ ‘�ुमने पूछा नहीं, रुतिपया से क्यों चिर्चढ़�ी हो ?’ ‘अब उनकी बा� क्या कहूँ रूपा? 6ह तिकसी का खाना-पहनना नहीं �ेख सक�ीं। अबमुझे �ुमसे दूर रहना पडे़गा।’ मेरा जी �ो न मानेगा।’ ‘ऐसी बा� करोगी, �ो मैं �ुम्हें लेकर भाग जाऊँगा।’ ‘�ुम मेरे पास एक बार रोज आया करो। बस, और मैं कुछ नहीं र्चाह�ी।’ ‘और अम्माँ जो तिबगड़ेंगी।’ ‘�ो मैं समझ गई। �ुम मुझे प्यार नहीं कर�े। ‘मेरा बस हो�ा, �ो �ुमको अपने परान में रख ले�ा।’ इसी समय घर के तिक6ाड़ खटके । रुतिपया भाग गई।
2
हन दूसरे दि�न सोकर उठा �ो उसके हृ�य में आनं� का सागर-सा भरा हुआ था। 6हसोहन को बराबर डाँट�ा रह�ा था। सोहन आलसी था। घर के काम-�ं�े में जी न
लगा�ा था । मोहन को �ेख�े ही 6ह साबुन चिछपाकर भाग जाने का अ6सर खोजने लगा।मो मोहन ने मुस्कराकर कहा-�ो�ी बहु� मैली हो गई है सोहन ? �ोबी को क्यों नहीं �े�े? सोहन को इन शब्�ों में स्नेह की गं� आई। ‘�ोतिबन पैसे माँग�ी है।’ ‘�ो पैसे अम्माँ से क्यों नहीं माँग ले�े ?’ ‘अम्माँ कौन पैसे दि�ये �े�ी है ?’ ‘�ो मुझसे ले लो!’ यह कहकर उसने एक इकन्नी उसकी ओर >ें क �ी। सोहन प्रसन्न हो गया। भाई औरमा�ा �ोनों ही उसे धि�क्कार�े रह�े थे। बहु� दि�नों बा� आज उसे स्नेह की म�ुर�ा का स्6ा�धिमला। इकन्नी उठा ली और �ो�ी को 6हीं छोड़कर गाय को खोलकर ले र्चल।
मोहन ने कहा-रहने �ो, मैं इसे चिलये जा�ा हँू। सोहन ने पगतिहया मोहन को �ेकर ति>र पूछा-�ुम्हारे चिलए चिर्चलम रख लाऊँ ? जी6न में आज पहली बार सोहन ने भाई के प्रति� ऐसा सद्भा6 प्रकट तिकया था। इसमेंक्या रहस्य है, यह मोहन की समझ में नहीं आया। बोला-आग हो �ो रख आओ। मैना चिसर के बाल खेले आँगन में बैठी घरौं�ा बना रही थी। मोहन को �ेख�े ही उसनेघरौं�ा तिबगाड़ दि�या और अंर्चल से बाल चिछपाकर रसोई�र में बर�न उठाने र्चली। मोहन ने पूछा-क्या खेल रही थी मैना ? मैना डरी हुई बोली-कुछ नहीं �ो। ‘�ू �ो बहु� अचे्छ घरौं�े बना�ी है। जरा बना, �ेखँू।’ मैना का रुआंसा र्चेहरा खिखल उठा। पे्रम के शब्� में तिक�ना जादू है! मुँह से तिनकल�े हीजैसे सुगं� >ैल गई। जिजसने सुना, उसका हृ�य खिखल उठा। जहाँ भय था, 6हाँ ति6श्वासर्चमक उठा। जहाँ कटु�ा थी, 6हाँ अपनापा छलक पड़ा। र्चारों ओर र्चे�न�ा �ौड़ गई। कहींआलस्य नहीं, कहीं खिखन्न�ा नहीं। मोहन का हृ�य आज पे्रम से भरा हुआ है। उसमें सुगं� काति6कष1ण हो रहा है।
मैना घरौं�ा बनाने बैठ गई । मोहन ने उसके उलझे हुए बालों को सुलझा�े हुए कहा-�ेरी गुतिड़या का ब्याह कब होगामैना, ने6�ा �े, कुछ धिमठाई खाने को धिमले। मैना का मन आकाश में उड़ने लगा। जब भैया पानी माँगे, �ो 6ह लोटे को राख से खूबर्चमार्चम करके पानी ले जाएगी। ‘अम्माँ पैसे नहीं �े�ीं। गुड्डा �ो ठीक हो गया है। टीका कैसे भेजूँ?’ ‘तिक�ने पैसे लेगी ?’ ‘एक पैसे के ब�ासे लूँगी और एक पैसे का रंग। जोडे़ �ो रँगे जाएगँे तिक नहीं?’ ‘�ो �ो पैसे में �ेरा काम र्चल जाएगा?’ ‘हाँ, �ो पैसे �े �ो भैया, �ो मेरी गुतिड़या का ब्याह �ूम�ाम से हो जाए।’ मोहन ने �ो पैसे हाथ में लेकर मैना को दि�खाए। मैना लपकी, मोहन ने हाथ ऊपरउठाया, मैना ने हाथ पकड़कर नीरे्च खींर्चना शुरू तिकया। मोहन ने उसे गो� में उठा चिलया।मैना ने पैसे ले चिलये और नीरे्च उ�रकर नार्चने लगी। ति>र अपनी सहेचिलयों को ति66ाह काने6�ा �ेने के चिलए भागी। उसी 6क्त बूटी गोबर का झाँ6ा चिलये आ पहुंर्ची। मोहन को खडे़ �ेखकर कठोर स्6र मेंबोली-अभी �क मटरगस्�ी ही हो रही है। भैंस कब दुही जाएगी? आज बूटी को मोहन ने ति6द्रोह-भरा ज6ाब न दि�या। जैसे उसके मन में मा�ुय1 का कोईसो�ा-सा खुल गया हो। मा�ा को गोबर का बोझ चिलये �ेखकर उसने झाँ6ा उसके चिसर सेउ�ार चिलया। बूटी ने कहा-रहने �े, रहने �े, जाकर भैंस दुह, मैं �ो गोबर चिलये जा�ी हँू।
‘�ुम इ�ना भारी बोझ क्यों उठा ले�ी हो, मुझे क्यों नहीं बुजला ले�ीं?’ मा�ा का हृ�य 6ात्सल्य से ग�ग� हो उठा।‘�ू जा अपना काम �ेखं मेरे पीछे क्यों पड़�ा है!’
‘गोबर तिनकालने का काम मेरा है।’‘और दू� कौन दुहेगा ?’‘6ह भी मैं करँूगा !’‘�ू इ�ना बड़ा जो�ा है तिक सारे काम कर लेगा !’‘जिज�ना कह�ा हँू, उ�ना कर लूँगा।’‘�ो मैं क्या करँूगी ?’‘�ुम लड़कों से काम लो, जो �ुम्हारा �म1 है।’‘मेरी सुन�ा है कोई?’
�ीन
ज मोहन बाजार से दू� पहुँर्चाकर लौटा, �ो पान, कत्था, सुपारी, एक छोटा-सापान�ान और थोड़ी-सी धिमठाई लाया। बूटी तिबगड़कर बोली-आज पैसे कहीं
>ाल�ू धिमल गए थे क्या ? इस �रह उड़ा6ेगा �ो कै दि�न तिनबाह होगा? आ
‘मैंने �ो एक पैसा भी नहीं उड़ाया अम्माँ। पहले मैं समझ�ा था, �ुम पान खा�ीं हीनहीं। ‘�ो अब मैं पान खाऊँगी !’ ‘हाँ, और क्या! जिजसके �ो-�ो ज6ान बेटे हों, क्या 6ह इ�ना शौक भी न करे ?’ बूटी के सूखे कठोर हृ�य में कहीं से कुछ हरिरयाली तिनकल आई, एक नन्ही-सी कोंपलथी; उसके अं�र तिक�ना रस था। उसने मैना और सोहन को एक-एक धिमठाई �े �ी और एकमोहन को �ेने लगी। ‘धिमठाई �ो लड़कों के चिलए लाया था अम्माँ।’ ‘और �ू �ो बूढ़ा हो गया, क्यों ?’ ‘इन लड़कों क सामने �ो बूढ़ा ही हँू।’ ‘लेतिकन मेरे सामने �ो लड़का ही है।’ मोहन ने धिमठाई ले ली । मैना ने धिमठाई पा�े ही गप से मुँह में डाल ली थी। 6ह के6लधिमठाई का स्6ा� जीभ पर छोड़कर कब की गायब हो र्चुकी थी। मोहन को ललर्चाई आँखोंसे �ेखने लगी। मोहन ने आ�ा लड्डू �ोड़कर मैना को �े दि�या। एक धिमठाई �ोने में बर्ची थी।बूटी ने उसे मोहन की �र> बढ़ाकर कहा-लाया भी �ो इ�नी-सी धिमठाई। यह ले ले। मोहन ने आ�ी धिमठाई मुँह में डालकर कहा-6ह �ुम्हारा तिहस्सा है अम्मा।
‘�ुम्हें खा�े �ेखकर मुझे जो आनं� धिमल�ा है। उसमें धिमठास से ज्या�ा स्6ा� है।’
उसने आ�ी धिमठाई सोहन और आ�ी मोहन को �े �ी; ति>र पान�ान खोलकर �ेखनेलगी। आज जी6न में पहली बार उसे यह सौभाग्य प्राप्� हुआ। �न्य भाग तिक पति� के राज मेंजिजस ति6भूति� के चिलए �रस�ी रही, 6ह लड़के के राज में धिमली। पान�ान में कई कुश्किल्हयाँ हैं।और �ेखो, �ो छोटी-छोटी चिर्चमचिर्चयाँ भी हैं; ऊपर कड़ा लगा हुआ है, जहाँ र्चाहो, लटकाकरले जाओ। ऊपर की �v�री में पान रखे जाएगँे। ज्यों ही मोहन बाहर र्चला गया, उसने पान�ान को माँज-�ोकर उसमें र्चूना, कत्था भरा, सुपारी काटी, पान को भिभगोकर �v�री में रखा । �ब एक बीड़ा लगाकर खाया। उस बीडे़ केरस ने जैसे उसके 6ै�व्य की कटु�ा को म्पिस्नग्� कर दि�या। मन की प्रसन्न�ा व्य6हार मेंउ�ार�ा बन जा�ी है। अब 6ह घर में नहीं बैठ सक�ी। उसका मन इ�ना गहरा नहीं तिकइ�नी बड़ी ति6भूति� उसमें जाकर गुम हो जाए। एक पुराना आईना पड़ा हुआ था। उसने उसमेंमुँह �ेखा। ओठों पर लाली है। मुँह लाल करने के चिलए उसने थोडे़ ही पान खाया है। �तिनया ने आकर कहा-काकी, �तिनक रस्सी �े �ो, मेरी रस्सी टूट गई है। कल बूटी ने सा> कह दि�या हो�ा, मेरी रस्सी गाँ6-भर के चिलए नहीं है। रस्सी टूट गई है�ो बन6ा लो। आज उसने �तिनया को रस्सी तिनकालकर प्रसन्न मुख से �े �ी और सद्भा6 सेपूछा-लड़के के �स्� बं� हुए तिक नहीं �तिनया ? �तिनया ने उ�ास मन से कहा-नहीं काकी, आज �ो दि�न-भर �स्� आए। जाने �ाँ� आरहे हैं। ‘पानी भर ले �ो र्चल जरा �ेखँू, �ाँ� ही हैं तिक कुछ और >सा� है। तिकसी की नजर-6जर�ो नहीं लगी ?’ ‘अब क्या जाने काकी, कौन जाने तिकसी की आँख >ूटी हो?’ ‘र्चोंर्चाल लड़कों को नजर का बड़ा डर रह�ा है।’ ‘जिजसने र्चुमकारकर बुलाया, झट उसकी गो� में र्चला जा�ा है। ऐसा हँस�ा है तिक �ुमसेक्या कहूँ!’ ‘कभी-कभी माँ की नजर भी लग जाया कर�ी है।’ ‘ऐ नौज काकी, भला कोई अपने लड़के को नजर लगाएगा!’ ‘यही �ो �ू समझ�ी नहीं। नजर आप ही लग जा�ी है।’ �तिनया पानी लेकर आयी, �ो बूटी उसके साथ बचे्च को �ेखने र्चली। ‘�ू अकेली है। आजकल घर के काम-�ं�े में बड़ा अंडस हो�ा होगा।’ ‘नहीं काकी, रुतिपया आ जा�ी है, घर का कुछ काम कर �े�ी है, नहीं अकेले �ो मेरीमरन हो जा�ी।’ बूटी को आ[य1 हुआ। रुतिपया को उसने के6ल ति��ली समझ रखा था। ‘रुतिपया!’ ‘हाँ काकी, बेर्चारी बड़ी सी�ी है। झाडू लगा �े�ी है, र्चौका-बर�न कर �े�ी है, लड़के कोसँभाल�ी है। गाढे़ समय कौन, तिकसी की बा� पूछ�ा है काकी !’
‘उसे �ो अपने धिमस्सी-काजल से छुट्टी न धिमल�ी होगी।’ ‘यह �ो अपनी-अपनी रुचिर्च है काकी! मुझे �ो इस धिमस्सी-काजल 6ाली ने जिज�नासहारा दि�या, उ�ना तिकसी भचिक्तन ने न दि�या। बेर्चारी रा�-भर जाग�ी रही। मैंने कुछ �े �ोनहीं दि�या। हाँ, जब �क जीऊँगी, उसका जस गाऊँगी।’ ‘�ू उसके गुन अभी नहीं जान�ी �तिनया । पान के चिलए पैसे कहाँ से आ�े हैं ? तिकनार�ारसातिड़याँ कहाँ से आ�ी हैं ?’ ‘मैं इन बा�ो में नहीं पड़�ी काकी! ति>र शौक-सिसंगार करने को तिकसका जी नहीं र्चाह�ा? खाने-पहनने की यही �ो उधिमर है।’ �तिनया ने बचे्च को खटोले पर सुला दि�या। बूटी ने बचे्च के चिसर पर हाथ रखा, पेट में�ीरे-�ीरे उँगली गड़ाकर �ेखा। नाभी पर हींग का लेप करने को कहा। रुतिपया बेतिनया लाकरउसे झलने लगी। बूटी ने कहा-ला बेतिनया मुझे �े �े। ‘मैं डुला दँूगी �ो क्या छोटी हो जाऊँगी ?’ ‘�ू दि�न-भर यहाँ काम-�ं�ा कर�ी है। थक गई होगी।’ ‘�ुम इ�नी भलीमानस हो, और यहाँ लोग कह�े थे, 6ह तिबना गाली के बा� नहीं कर�ी।मारे डर के �ुम्हारे पास न आयी।’ बूटी मुस्कारायी। ‘लोग झूठ �ो नहीं कह�े।’ ‘मैं आँखों की �ेखी मानँू तिक कानों की सुनी ?’कह �ो �ी होगी। दूसरी लड़की हो�ी, �ो मेरी ओर से मुंह >ेर ले�ी। मुझे जला�ी, मुझसेऐंठ�ी। इसे �ो जैसे कुछ मालूम ही न हो। हो सक�ा हे तिक मोहन ने इससे कुछ कहा ही नहो। हाँ, यही बा� है। आज रुतिपया बूटी को बड़ी सुन्�र लगी। ठीक �ो है, अभी शौक-सिसंगार न करेगी �ो कबकरेगी? शौक-सिसंगार इसचिलए बुरा लग�ा है तिक ऐसे आ�मी अपने भोग-ति6लास में मस्�रह�े हैं। तिकसी के घर में आग लग जाए, उनसे म�लब नहीं। उनका काम �ो खाली दूसरोंको रिरझाना है। जैसे अपने रूप की दूकान सजाए, राह-र्चल�ों को बुला�ी हों तिक जरा इसदूकान की सैर भी कर�े जाइए। ऐसे उपकारी प्राभिणयों का सिसंगार बुरा नहीं लग�ा। नहीं, बश्किल्क और अच्छा लग�ा है। इससे मालूम हो�ा है तिक इसका रूप जिज�ना सुन्�र है, उ�नाही मन भी सुन्�र है; ति>र कौन नहीं र्चाह�ा तिक लोग उनके रूप की बखान करें। तिकसे दूसरोंकी आँखों में छुप जाने की लालसा नहीं हो�ी ? बूटी का यौ6न कब का ति6�ा हो र्चुका; ति>रभी यह लालसा उसे बनी हुई है। कोई उसे रस-भरी आँखों से �ेख ले�ा है, �ो उसका मनतिक�ना प्रसन्न हो जा�ा है। जमीन पर पाँ6 नहीं पड़�े। ति>र रूपा �ो अभी ज6ान है। उस दि�न से रूपा प्राय: �ो-एक बार तिनत्य बूटी के घर आ�ी। बूटी ने मोहन से आग्रहकरके उसके चिलए अच्छी-सी साड़ी मँग6ा �ी। अगर रूपा कभी तिबना काजल लगाए या
बेरंगी साड़ी पहने आ जा�ी, �ो बूटी कह�ी-बहू-बेदिटयों को यह जोतिगया भेस अच्छा नहींलग�ा। यह भेस �ो हम जैसी बूदिढ़यों के चिलए है। रूपा ने एक दि�न कहा-�ुम बूढ़ी काहे से हो गई अम्माँ! लोगों को इशारा धिमल जाए, �ोभौंरों की �रह �ुम्हारे द्वार पर �रना �ेने लगें। बूटी ने मीठे ति�रस्कार से कहा-र्चल, मैं �ेरी माँ की सौ� बनकर जाऊँगी ? ‘अम्माँ �ो बूढ़ी हो गई।’ ‘�ो क्या �ेरे �ा�ा अभी ज6ान बैठे हैं?’ ‘हाँ ऐसा, बड़ी अच्छी धिमट्टी है उनकी।’ बूटी ने उसकी ओर रस-भरी आँखों से ��ेखकर पूछा-अच्छा ब�ा, मोहन से �ेरा ब्याहकर दँू ? रूपा लजा गई। मुख पर गुलाब की आभा �ौड़ गई। आज मोहन दू� बेर्चकर लौटा �ो बूटी ने कहा-कुछ रुपये-पैसे जुटा, मैं रूपा से �ेरीबा�र्ची� कर रही हँू।
दिदल की रानी
स 6ीर �ुक� के प्रखर प्र�ाप से ईसाई दुतिनया कौप रही थी , उन्हीं का रक्� आज कुस्�ुन�ुतिनया की गचिलयों में बह रहा है। 6ही कुस्�ुन�ुतिनया जो सौ साल पहले �ुक� के
आं�क से राह� हो रहा था, आज उनके गम1 रक्� से अपना कलेजा ठण्डा कर रहा है। और�ुक� सेनापति� एक लाख चिसपातिहयों के साथ �ैमूरी �ेज के सामने अपनी तिकस्म� का>ैसला सुनने के चिलए खडा है।
जिज�ैमुर ने ति6जय से भरी आखें उठाई और सेनापति� यज�ानी की ओर �ेख कर सिसंह के
समान गरजा-क्या र्चाह�ें हो जिजन्�गी या मौ� यज�ानी ने ग61 से चिसर उठाकार कहा’- इज्ज� की जिजन्�गी धिमले �ो जिजन्�गी, 6रना
मौ�।�ैमूर का Kो� प्रर्चंण्ड हो उठा उसने बडे-बडे अभिभमातिनयों का चिसर तिनर्चा कर दि�या
था। यह जबाब इस अ6सर पर सुनने की उसे �ा6 न थी । इन एक लाख आ�धिमयों की जानउसकी मुठठी में है। इन्हें 6ह एक क्षण में मसल सक�ा है। उस पर इ�ना अभ्िैमान । इज्ज� की जिज�न्गी । इसका यही �ो अथ1 हैं तिक गरीबों का जी6न अमीरों के भोग-ति6लास परबचिल�ान तिकया जाए 6ही शराब की मजजिजसें, 6ही अरमीतिनया और का> की परिरया। नही, �ैमूर ने खली>ा बायजी� का घमंड इसचिलए नहीं �ोडा है तिक �ुक� को तिपर उसी म�ां� स्6ा�ीन�ा में इस्लाम का नाम डुबाने को छोड �े । �ब उसे इ�ना रक्� बहाने की क्या जरूर�थी । मान6-रक्� का प्र6ाह संगी� का प्र6ाह नहीं, रस का प्र6ाह नहीं-एक बीभत्स �vय है, जिजसे �ेखकर आखें मुह >ेर ले�ी हैं �vय चिसर झुका ले�ा है। �ैमूर पिहंसक पशु नहीं है, जोयह �vय �ेखने के चिलए अपने जी6न की बाजी लगा �े।
6ह अपने शब्�ों में धि�क्कार भरकर बोला-जिजसे �ुम इज्ज� की जिजन्�गी कह�े हो, 6ह गुनाह और जहन्नुम की जिजन्�गी है।
यज�ानी को �ैमुर से �या या क्षमा की आशा न थी। उसकी या उसके योद्वाओं कीजान तिकसी �रह नहीं बर्च सक�ी। तिपर यह क्यों �बें और क्यों न जान पर खेलकर �ैमूर केप्रति� उसके मन में जो घणा है, उसे प्रकट कर �ें ? उसके एक बार का�र नेत्रों से उसरूप6ान यु6क की ओर �ेखा, जो उसके पीछे खडा, जैसे अपनी ज6ानी की लगाम खींर्चरहा था। सान पर र्चढे हुए, इस्पा� के समान उसके अंग-अंग से अ�ुल कोध्र की चिर्चनगारिरयोंतिनकल रहीं थी। यज�ानी ने उसकी सूर� �ेखी और जैसे अपनी खींर्ची हुई �ल6ार म्यान मेंकर ली और खून के घूट पीकर बोला-जहापनाह इस 6क्� >�हमं� हैं लेतिकन अपरा� क्षमाहो �ो कह दू तिक अपने जी6न के ति6षय में �ुक� को �ा�रिरयों से उप�ेश लेने की जरूर�नहीं। पर जहा खु�ा ने नेम�ों की 6षा1 की हो, 6हा उन नेम�ों का भोग न करना नाशुKी है।अगर �ल6ार ही सभ्य�ा की सन� हो�ी, �ो गाल कौम रोमनों से कहीं ज्या�ा सभ्य हो�ी।
�ैमूर जोर से हसा और उसके चिसपातिहयों ने �ल6ारों पर हाथ रख चिलए। �ैमूर काठहाका मौ� का ठहाका था या तिगरने6ाला 6ज्र का �डाका ।
�ा�ार6ाले पशु हैं क्यों? मैं यह नहीं कह�ा।�ुम कह�े हो, खु�ा ने �ुम्हें ऐश करने के चिलए पै�ा तिकया है। मैं कह�ा हू, यह कुफ्र
है। खु�ा ने इन्सान को बन्�गी के चिलए पै�ा तिकया है और इसके खिखला> जो कोई कुछकर�ा है, 6ह कातिपर है, जहन्नुमी रसूलेपाक हमारी जिजन्�गी को पाक करने के चिलए, हमें सच्र्चा इन्सान बनाने के चिलए आये थे, हमें हरा की �ालीम �ेने नहीं। �ैमूर दुतिनया को इस कुफ्रसे पाक कर �ेने का बीडा उठा र्चुका है। रसूलेपाक के क�मों की कसम, मैं बेरहम नहीं हूजाचिलम नहीं हू, खूखार नहीं हू, लेतिकन कुफ्र की सजा मेरे ईमान में मौ� के चिस6ा कुछ नहींहै।
उसने �ा�ारी चिसपहसालार की �र> काति�ल नजरों से �ेखा और �त्क्षण एक �े6-सा आ�मी �ल6ार सौ�कर यज�ानी के चिसर पर आ पहुर्चा। �ा�ारी सेना भी मल6ारें खीर्च-खीर्चकर �ुक� सेना पर टूट पडी और �म-के-�म में तिक�नी ही लाशें जमीन पर >डकनेलगीं।
सहसा 6ही रूप6ान यु6क, जो यज�ानी के पीछे खडा था, आगे बढकर �ैमूर केसामने आया और जैसे मौ� को अपनी �ोनों ब�ी हुई मुदिटठयों में मसल�ा हुआ बोला-ऐअपने को मुसलमान कहने 6ाले बा�शाह । क्या यही 6ह इस्लाम की यही �ालीम है तिक �ूउन बहादुरों का इस बे��ी से खून बहाए, जिजन्होनें इसके चिस6ा कोई गुनाह नहीं तिकया तिकअपने खली>ा और मुल्कों की तिहमाय� की?
र्चारों �र> सन्नाटा छा गया। एक यु6क, जिजसकी अभी मसें भी न भीगी थी; �ैमूरजैसे �ेजस्6ी बा�शाह का इ�ने खुले हुए शब्�ों में ति�रस्कार करे और उसकी जबान �ालू सेखिखर्च6ा ली जाए। सभी स्�स्थिम्भ� हो रहे थे और �ैमूर सम्मोतिह�-सा बैठा , उस यु6क कीओर �ाक रहा था।
यु6क ने �ा�ारी चिसपातिहयों की �र>, जिजनके र्चेहरों पर कु�ूहलमय प्रोत्साहन झलकरहा था, �ेखा और बोला-�ू इन मुसलमानों को कातिपर कह�ा है और समझा�ा है तिक �ू इन्हेंकत्ल करके खु�ा और इस्लाम की खिख�म� कर रहा है ? मैं�ुमसेपूछ�ाहू, अगर6हलोगजोखु�ाकेचिस6ाऔरतिकसीकेसामनेचिसज�ानहींकर�ें, जोरसूलेपाक कोअपनारहबरसमझ�ेहैं, मुसलमाननहींहै�ोकौनमुसलमानहैं?मैंकह�ाहू, हमकातिपरसहीलेतिकन�ेरे�ोहैंक्याइस्लामजंजीरोंमेंबं�ेहुएकैदि�योंकेकत्लकीइजाज��े�ाहैखु�ानेअगर�ूझे�ाक��ी है, अख्िै�यार दि�या है �ो क्या इसीचिलए तिक �ू खु�ा के बन्�ों का खूनबहाए क्या गुनाहगारों को कत्ल करके �ू उन्हें सी�े रास्�े पर ले जाएगा। �ूने तिक�नी बेहरमीसे सत्�र हजार बहादुर �ुक� को �ोखा �ेकर सुरंग से उड6ा दि�या और उनके मासूम बच्र्चोंऔर तिनपरा� म्पिस्त्रयों को अनाथ कर दि�या, �ूझे कुछ अनुमान है। क्या यही कारनामे है, जिजन
पर �ू अपने मुसलमान होने का ग61 कर�ा है। क्या इसी कत्ल, खून और बह�े �रिरया मेंअपने घोडों के सुम नहीं भिभगोए हैं, बल्िैक इस्लाम को जड से खो�कर पेक दि�या है। यह6ीर �ूक� का ही आत्मोत्सग1 है, जिजसने यूरोप में इस्लाम की �ौही� >ैलाई। आज सोतिपया केतिगरजे में �ूझे अल्लाह-अकबर की स�ा सुनाई �े रही है, सारा यूरोप इस्लाम का स्6ाग�करने को �ैयार है। क्या यह कारनामे इसी लायक हैं तिक उनका यह इनाम धिमले। इस खयालको दि�ल से तिनकाल �े तिक �ू खूरेजी से इस्लाम की खिख�म� कर रहा है। एक दि�न �ूझे भीपर6रदि�गार के सामने कम� का ज6ाब �ेना पडेगा और �ेरा कोई उज्र न सुना जाएगा, क्योंतिक अगर �ूझमें अब भी नेक और ब� की कमीज बाकी है, �ो अपने दि�ल से पूछ। �ूनेयह जिजहा� खु�ा की राह में तिकया या अपनी हति6स के चिलए और मैं जान�ा हू, �ूझे जसेज6ाब धिमलेगा, 6ह �ेरी ग�1न शम1 से झुका �ेगा।
खली>ा अभी चिसर झुकाए ही थी की यज�ानी ने काप�े हुए शब्�ों में अज1 की-जहापनाह, यह गुलाम का लडका है। इसके दि�माग में कुछ तिप�ूर है। हुजूर इसकी गुस्�ाखिखयों को मुआ> करें । मैं उसकी सजा झेलने को �ैयार हँू।
�ैमूर उस यु6क के र्चेहरे की �र> स्िैथर नेत्रों से �ेख रहा था। आप जी6न में पहलीबार उसे तिनभ�क शब्�ों के सुनने का अ6सर धिमला। उसके सामने बडे-बडे सेनापति�यों, मंतित्रयों और बा�शाहों की जबान न खुल�ी थी। 6ह जो कुछ कह�ा था, 6ही कानून था, तिकसी को उसमें र्चू करने की �ाक� न थी। उसका खुशाम�ों ने उसकी अहम्मन्य�ा कोआसमान पर र्चढा दि�या था। उसे ति6v6ास हो गया था तिक खु�ा ने इस्लाम को जगाने औरसु�ारने के चिलए ही उसे दुतिनया में भेजा है। उसने पैगम्बरी का �ा6ा �ो नहीं तिकया, परउसके मन में यह भा6ना �ढ हो गई थी, इसचिलए जब आज एक यु6क ने प्राणों का मोहछोडकर उसकी कीर्पि�ं का पर�ा खोल दि�या, �ो उसकी र्चे�ना जैसे जाग उठी। उसके मन मेंKो� और पिहंसा की जगह ऋद्वा का उ�य हुआ। उसकी आंखों का एक इशारा इस यु6क कीजिजन्�गी का चिर्चराग गुल कर सक�ा था । उसकी संसार ति6जधियनी शक्िै� के सामने यहदु�मुहा बालक मानो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से समुद्र के प्र6ाह को रोकने के चिलए खडा हो।तिक�ना हास्यास्प� साहस था उसके साथ ही तिक�ना आत्मति6v6ास से भरा हुआ। �ैमूर कोऐसा जान पडा तिक इस तिनहत्थे बालक के सामने 6ह तिक�ना तिनब1ल है। मनुष्य मे ऐसे साहसका एक ही स्त्रो� हो सक�ा है और 6ह सत्य पर अटल ति6v6ास है। उसकी आत्मा �ौडकरउस यु6क के �ामन में चिर्चपट जाने के चिलए अ�ीर हो गई। 6ह �ाश1तिनक न था, जो सत्य मेंशंका कर�ा है 6ह सरल सैतिनक था, जो असत्य को भी ति6v6ास के साथ सत्य बना �े�ा है।
यज�ानी ने उसी स्6र में कहा-जहापनाह, इसकी ब�जबानी का खयाल न >रमा6ें।�ैमूर ने �ुरं� �ख्� से उठकर यज�ानी को गले से लगा चिलया और बोला-काश, ऐसी
गुस्�ाखिखयों और ब�जबातिनयों के सुनने का पहने इत्�>ाक हो�ा, �ो आज इ�ने बेगुनाहोंका खून मेरी ग�1न पर न हो�ा। मूझे इस जबान में तिकसी >रिरv�े की रूह का जल6ा नजर
आ�ा है, जो मूझ जैसे गुमराहों को सच्र्चा रास्�ा दि�खाने के चिलए भेजी गई है। मेरे �ोस्�, �ुमखुशनसीब हो तिक ऐस >रिरv�ा चिस>� बेटे के बाप हो। क्या मैं उसका नाम पूछ सक�ा हँू।
यज�ानी पहले आ�शपरस्� था, पीछे मुसलमान हो गया था , पर अभी �क कभी-कभी उसके मन में शंकाए उठ�ी रह�ी थीं तिक उसने क्यों इस्लाम कबूल तिकया। जो कै�ी>ासी के �ख्�े पर खडा सूखा जा रहा था तिक एक क्षण में रस्सी उसकी ग�1न में पडेगी और6ह लटक�ा रह जाएगा, उसे जैसे तिकसी >रिरv�े ने गो� में ले चिलया। 6ह ग�ग� कंठ सेबोला-उसे हबीबी कह�े हैं।
�ैमूर ने यु6क के सामने जाकर उसका हाथ पकड़ चिलया और उसे ऑंखों से लगा�ाहुआ बोला-मेरे ज6ान �ोस्�, �ुम सर्चमुर्च खु�ा के हबीब हो, मैं 6ह गुनाहगार हू, जिजसनेअपनी जहाल� में हमेशा अपने गुनाहों को स6ाब समझा, इसचिलए तिक मुझसे कहा जा�ाथा, �ेरी जा� बेऐब है। आज मूझे यह मालूम हुआ तिक मेरे हाथों इस्लाम को तिक�ना नुकसानपहुर्चा। आज से मैं �ुम्हारा ही �ामन पकड�ा हू। �ुम्हीं मेरे खिखज्र, �ुम्ही मेंरे रहनुमा हो। मुझेयकीन हो गया तिक �ुम्हारें ही 6सीले से मैं खु�ा की �रगाह �क पहुर्च सक�ा हॅ।
यह कह�े हुए उसने यु6क के र्चेहरे पर नजर डाली, �ो उस पर शम1 की लाली छायीहुई थी। उस कठोर�ा की जगह म�ुर संकोर्च झलक रहा था।
यु6क ने चिसर झुकाकर कहा- यह हुजूर की क�र�ानी है, 6रना मेरी क्या हस्�ी है।�ैमूर ने उसे खीर्चकर अपनी बगल के �ख्� पर तिबठा दि�या और अपने सेनापति� को
हुक्म दि�या, सारे �ुक1 कै�ी छोड दि�ये जाए उनके हचिथयार 6ापस कर दि�ये जाए और जोमाल लूटा गया है, 6ह चिसपातिहयों में बराबर बाट दि�या जाए।
6जीर �ो इ�र इस हुक्म की �ामील करने लगा, उ�र �ैमूर हबीब का हाथ पकडेहुए अपने खीमें में गया और �ोनों मेहमानों की �ा6� का प्रबन्� करने लगा। और जबभोजन समाप्� हो गया, �ो उसने अपने जी6न की सारी कथा रो-रोकर कह सुनाई, जोआदि� से अं� �क धिमभि�� पशु�ा और बब1र�ा के कत्यों से भरी हुई थी। और उसने यह सबकुछ इस भ्रम में तिकया तिक 6ह ईv6रीय आ�ेश का पालन कर रहा है। 6ह खु�ा को कौन मुहदि�खाएगा। रो�े-रो�े तिहर्चतिकया ब� गई।
अं� में उसने हबीब से कहा- मेरे ज6ान �ोस्� अब मेरा बेडा आप ही पार लगा सक�ेहैं। आपने राह दि�खाई है �ो मंजिजल पर पहुर्चाइए। मेरी बा�शाह� को अब आप ही संभालसक�े हैं। मूझे अब मालूम हो गया तिक मैं उसे �बाही के रास्�े पर चिलए जा�ा था । मेरीआपसे यही इल्�मास (प्राथ1ना) हैतिकआपउसकी6जार�कबूलकरें।�ेखिखए, खु�ाकेचिलएइन्कारनकीजिजएगा, 6रनामैंकहींकानहींरहूगा।
यज�ानीनेअरजकी-हुजूरइ�नीक�र�ानी>रमा� ेहैं, �ोआपकीइनाय�है, लेतिकनअभीइसलडकेकीउम्रहीक्याहै।6जार�कीखिख�म�यहक्याअंजाम�ेसकेगा।अभी�ोइसकी�ालीमकेदि�नहै।
इ�रसेइनकारहो�ारहाऔरउ�र�ैमूरआग्रहकर�ारहा।यज�ानीइनकार�ोकररहेथे, परछा�ी>ूलीजा�ीथी।मूसाआगलेनेगयेथे, पैगम्बरीधिमलगई।कहामौ�केमुहमेंजारहेथे, 6जार�धिमलगई, लेतिकनयहशंकाभीथीतिकऐसेअस्िैथरसिर्चं�काक्यादिठकानाआजखुशहुए, 6जार��ेनेको�ैयारहै, कलनाराजहोगए�ोजानकीखैरिरय�नही।उन्हेंहबीबकीचिलयाक�परभरोसाथा, तिपरभीजीडर�ाथातिक6ीराने�ेशमेंनजानेकैसीपडे, कैसीनपडे।�रबार6ालोंमेंषडयंत्रहो�ेहीरह�ेहैं।हबीबनेकहै, समझ�ारहै, अ6सरपहर्चान�ाहै; लेतिकन6ह�जरबाकहासेलाएगा, जोउम्रहीसेआ�ाहै।उन्होंनेइसप्रvनपरति6र्चारकरनेकेचिलएएकदि�नकीमुहल�मांगीऔररूखस�हुए।
2
बीबयज�ानीकालडकानहींलडकीथी।उसकानामउम्म�ुलहबीबथा।जिजस6क्�यज�ानीऔरउसकीपत्नीमुसलमानहुए, �ोलडकीकीउम्रकुलबारहसालकीथी,
परप्रकति�नेउसेबु�ीऔरप्रति�भाकेसाथति6र्चार-स्6ा�ंस्यभीप्र�ानतिकयाथा।6हजब�कसत्यासत्यकीपरीक्षानकरले�ी, कोईबा�स्6ीकारनकर�ी।मां-बापके�म1-परिर6�1नसेउसेअशांति��ोहुई, परजब�कइस्लामकी�ीक्षानलेसक�ीथी।मां-बापभीउसपरतिकसी�रहका�बाबनडालनार्चाह�ेथे।जैसेउन्हेंअपने�म1कोब�ल�ेनेकाअधि�कारहै, 6ैसेहीउसेअपने�म1परआरूढरहनेकाभीअधि�कारहै।लडकीकोसं�ोषहुआ, लेतिकनउसनेइस्लामऔरजरथुv��म1-�ोनोंहीका�ुलनात्मकअध्ययनआरंभतिकयाऔरपूर े�ोसालके अन्6ेषणऔरपरीक्षणकेबा�उसनेभीइस्लामकी�ीक्षालेली।मा�ा-तिप�ा>ूलेनसमाए।लड़कीउनके�बा6सेमुसलमाननहींहुईहै, बल्िैकस्6ेच्छासे, स्6ाध्यायसेऔरईमानसे।�ोसाल�कउन्हेंजोशंकाघेरेरह�ीथी, 6हधिमटगई।
ह
यज�ानीकेकोईपुत्रनथाऔरउसयुगमेंजबतिकआ�मीकी�ल6ारहीसबसेबड़ीअ�ाल�थी, पुत्रकानरहनासंसारकासबसेबड़ादुभा1ग्यथा।यज�ानीबेटेकाअरमानबेटीसेपूराकरनेलगा।लड़कोंहीकीभाति�उसकीचिशक्षा-�ीक्षाहोनेलगी।6हबालकोंकेसेकपड़ेपहन�ी, घोड़ेपरस6ारहो�ी, शस्त्र-ति6�ासीख�ीऔरअपनेबापकेसाथअक्सरखली>ाबायजी�केमहलोंमेंजा�ीऔरराजकुमारीकेसाथचिशकारखेलनेजा�ी।इसकेसाथही6ह�श1न, काव्य, ति6ज्ञानऔरअध्यात्मकाभीअभ्यासकर�ीथी।यहां�कतिकसोलह6ें6ष1में6ह>ौजीति6�ालयमें�ाखिखलहोगईऔर�ोसालकेअन्�र6हाकीसबसेऊर्चीपरीक्षापाराकरके>ौजमेंनौकरहोगई।शस्त्र-ति6�ाऔरसेना-संर्चालनकलामेंइ�नीतिनपुणथीऔरखली>ाबायजी�उसकेर्चरिरत्रसेइ�नाप्रसन्नथातिकपहलेहीपहलउसेएकहजारीमन्सबधिमलगया।
ऐसीयु6�ीकेर्चाहने6ालोंकीक्याकमी।उसकेसाथकेतिक�नेहीअ>सर, राजपरिर6ारकेकेतिक�vनेहीयु6कउसपरप्राण�े�ेथे, परकोईउसकीनजरोंमेंनजार्च�ा
था।तिनत्यहीतिनकाहकेपैगामआ�ेथ े, पर6हहमेशाइंकारकर�े�ीथी।6ै6ातिहकजी6नहीसेउसेअरूचिर्चथी।तिकयु6ति�यांतिक�नेअरमानोंसेव्याहकरलायीजा�ीहैंऔरतिपरतिक�नेतिनरा�रसेमहलोंमेंबन्�कर�ीजा�ीहै।उनकाभाग्यपुरूषोंकी�याकेअ�ीनहै।
अक्सरऊर्चेघरानोंकीमतिहलाओंसेउसकोधिमलने-जुलनेकाअ6सरधिमल�ाथा।उनकेमुखसेउनकीकरूणकथासुनकर6ह6ै6ातिहकपरा�ीन�ासेऔरभी�णाकरनेलग�ीथी।औरयज�ानीउसकीस्6ा�ीन�ामेंतिबलकुलबा�ान�े�ाथा।लड़कीस्6ा�ीनहै, उसकीइच्छाहो, ति66ाहकरेयाक्6ारीरहे, 6हअपनी-आपमुख�ारहै।उसकेपासपैगामआ�े, �ो6हसा>ज6ाब�े�े�ा–मैंइसबारमेंकुछनहींजान�ा, इसका>ैसला6हीकरेगी।
य�तिपएकयु6�ीकापुरूष6ेषम ेंरहना, यु6कोंसेधिमलना-जुलन े, समाजमेंआलोर्चनाकाति6षयथा, परयज�ानीऔरउसकीस्त्री�ोनोंहीकोउसकेस�ीत्6परति6v6ासथा, हबीबकेव्य6हारऔरआर्चारमेंउन्हेंकोईऐसीबा�नजरनआ�ीथी, जिजससेउष्न्हेंतिकसी�रहकीशंकाहो�ी।यौ6नकीआ�ीऔरलालसाओंके�ू>ानमें6हर्चौबीस6ष�की6ीरबालाअपनेह�यकीसम्पति�चिलएअटलऔरअजेयखड़ीथी, मानोंसभीयु6कउसकेसगेभाईहैं।
3
स्�ुन�ुतिनयाम ें तिक�नीखुचिशया ंमनाईगई, ह6ीबका तिक�नासम्मानऔरस्6ाग�हुआ, उसेतिक�नीब�ाईयांधिमली, यहसबचिलखनेकीबा�नहींशहर�6ाहहुआ
जा�ाथा।संभ6थाआजउसकेमहलोंऔरबाजारोंसेआगकीलपटेंतिनकल�ीहो�ीं।राज्यऔरनगरकोउसकल्पना�ी�ति6पति�सेबर्चाने6ालाआ�मीतिक�नेआ�र, पे्रम�द्वाऔरउल्लासकापात्रहोगा, इसकी�ोकल्पनाभीनहींकीजासक�ी।उसपरतिक�ने>ूलोंऔरतिक�vनेलाल-ज6ाहरोंकी6षा1हुईइसकाअनुमान�ोकोईकति6हीकरसक�ाहैऔरनगरकीमतिहलाएह�यकेअक्षय भंडारसेअसीसेंतिनकाल-तिनकालकरउसपरलुटा�ीथीऔरग61से>ूलीहुईउसकामुहंतिनहारकरअपनेको�न्यमान�ीथी।उसने�ेति6योंकामस्�कऊर्चाकरदि�या।
कु
रा�को�ैमूरकेप्रस्�ा6परति6र्चारहोनेलगा।सामनेग�े�ारकुस�परयज�ानीथा- सौभ्य, ति6शाल और �ेजस्6ी। उसकी �ातिहनी �र> सकी पत्नी थी, ईरानी चिलबास में, आंखोंमें �या और ति6v6ास की ज्योति� भरे हुए। बायीं �र> उम्मु�ुल हबीब थी, जो इस समयरमणी-6ेष में मोतिहनी बनी हुई थी, ब्रहर्चय1 के �ेज से �ीप्�।
यज�ानी ने प्रस्�ा6 का ति6रो� कर�े हुए कहा – मै अपनी �र> से कुछ नहीं कहनार्चाह�ा , लेतिकन यदि� मुझे सलाह �ें का अधि�कार है, �ो मैं स्पष्ट कह�ा हंू तिक �ुम्हें इस प्रस्�ा6 को कभी स्6ीकार न करना र्चातिहए , �ैमूर से यह बा� बहु� दि�न �क चिछपी नहीं रहसक�ी तिक �ुम क्या हो। उस 6क्� क्या परिरस्थिस्थति� होगी , मैं नहीं कह�ा। और यहां इस
ति6षय में जो कुछ टीकाए होगी, 6ह �ुम मुझसे ज्या�ा जान�ी हो। यहा मै मौजू� था औरकुत्सा को मुह न खोलने �े�ा था पर 6हा �ुम अकेली रहोगी और कुत्सा को मनमाने, आरोपकरने का अ6सर धिमल�ा रहेगा।
उसकी पत्नी स्6ेच्छा को इ�ना महत्6 न �ेना र्चाह�ी थी । बोली – मैने सुना है, �ैमूरतिनगाहों का अच्छा आ�मी नहीं है। मै तिकसी �रह �ुझे न जाने दूगीं। कोई बा� हो जाए �ोसारी दुतिनया हंसे। यों ही हसने6ाले क्या कम हैं।
इसी �रह स्त्री-पुरूष बड़ी �ेर �क ऊर्चं –नीर्च सुझा�े और �रह-�रह की शंकाएकर�े रहें लेतिकन हबीब मौन सा�े बैठी हुई थी। यज�ानी ने समझा , हबीब भी उनसे सहम�है। इनकार की सूर्चना �ेने के चिलए ही थी तिक हबीब ने पूछा – आप �ैमूर से क्या कहेंगे।
यही जो यहा �य हुआ।मैने �ो अभी कुछ नहीं कहा,मैने �ो समझा , �ुम भी हमसे सहम� हो।जी नही। आप उनसे जाकर कह �े मै स्6ीकार कर�ी हू।मा�ा ने छा�ी पर हाथ रखकर कहा- यह क्या गजब कर�ी है बेटी। सोर्च दुतिनया क्या
कहेगी।यज�ानी भी चिसर थामकर बैठ गए , मानो ह�य में गोली लग गई हो। मुंह से एक शब्
� भी न तिनकला।हबीब त्योरिरयों पर बल डालकर बोली-अम्मीजान , मै आपके हुक्म से जौ-भर भी
मुह नहीं >ेरना र्चाह�ी। आपकों पूरा अख्िै�यार है, मुझे जाने �ें या न �ें लेतिकन खल्क कीखिख�म� का ऐसा मौका शाय� मुझे जिजं�गी में तिपर न धिमलें । इस मौके को हाथ से खो �ेनेका अ>सोस मुझे उम्र – भर रहेगा । मुझे यकीन है तिक अमीन �ैमूर को मैं अपनी दि�यान�, बेगरजी और सच्र्ची 6>ा�ारी से इन्सान बना सक�ी है और शाय� उसके हाथों खु�ा के बं�ोका खून इ�नी कसर� से न बहे। 6ह दि�लेर है, मगर बेरहम नहीं । कोई दि�लेर आ�मी बेरहमनहीं हो सक�ा । उसने अब �क जो कुछ तिकया है, मजहब के अं�े जोश में तिकया है। आजखु�ा ने मुझे 6ह मौका दि�या है तिक मै उसे दि�खा दू तिक मजहब खिख�म� का नाम है, लूट औरकत्ल का नहीं। अपने बारे में मुझे मु�लक अं�ेशा नहीं है। मै अपनी तिह>ाज� आप करसक�ी हँू । मुझे �ा6ा है तिक उपने >ज1 को नेकनीय�ी से अ�ा करके मै दुvमनों की जुबानभी बन्� कर सक�ी हू, और मान लीजिजए मुझे नाकामी भी हो, �ो क्या सर्चाई और हक केचिलए कुबा1न हो जाना जिजन्�गीं की सबसे शान�ार >�ह नहीं है। अब �क मैने जिजस उसूलपर जिजन्�गी बसर की है, उसने मुझे �ोखा नहीं दि�या और उसी के >ैज से आज मुझे यह�जा1 हाचिसल हुआ है, जो बडे़-बड़ो के चिलए जिजन्�गी का ख्6ाब है। मेरे आजमाए हुए �ोस्�मुझे कभी �ोखा नहीं �े सक�े । �ैमूर पर मेरी हकीक� खुल भी जाए, �ो क्या खौ> । मेरी�ल6ार मेरी तिह>ाज� कर सक�ी है। शा�ी पर मेरे ख्याल आपको मालूम है। अगर मूझेकोई ऐसा आ�मी धिमलेगा, जिजसे मेरी रूह कबूल कर�ी हो, जिजसकी जा� अपनी हस्�ी
खोकर मै अपनी रूह को ऊर्चां उठा सकंू, �ो मैं उसके क�मों पर तिगरकर अपने को उसकीनजर कर दूगीं।
यज�ानी ने खुश होकर बेटी को गले लगा चिलया । उसकी स्त्री इ�नी जल्� आv6स्�न हो सकी। 6ह तिकसी �रह बेटी को अकेली न छोडे़गी । उसके साथ 6ह जाएगी।
4
ई महीने गुजर गए। यु6क हबीब �ैमूर का 6जीर है, लेतिकन 6ास्�6 में 6ही बा�शाहहै। �ैमूर उसी की आखों से �ेख�ा है, उसी के कानों से सुन�ा है और उसी की अक्
ल से सोर्च�ा है। 6ह र्चाह�ा है, हबीब आठों पहर उसके पास रहे।उसके सामीप्य में उसे स्6ग1 का-सा सुख धिमल�ा है। समरकं� में एक प्राणी भी ऐसा नहीं, जो उससे जल�ा हो।उसके ब�ा16 ने सभी को मुग्� कर चिलया है, क्योंतिक 6ह इन्सा> से जै-भर भी क�म नहींहटा�ा। जो लोग उसके हाथों र्चल�ी हुई न्याय की र्चक्की में तिपस जा�ें है, 6े भी उससेस�भा6 ही रख�े है, क्योतिक 6ह न्याय को जरूर� से ज्या�ा कटु नहीं होने �े�ा।
कसंध्या हो गई थी। राज्य कम1र्चारी जा र्चुके थे । शमा�ान में मोम की बति�यों जल रही
थी। अगर की सुग�ं से सारा �ी6ानखाना महक रहा था। हबीब उठने ही को था तिक र्चोब�ारने खबर �ी-हुजूर जहापनाह �शरी> ला रहे है।
हबीब इस खबर से कुछ प्रसन्न नहीं हुआ। अन्य मंतित्रयों की भापि�ं 6ह �ैमूर कीसोहब�काभूखानहींहै।6हहमेशा�ैमूरसेदूररहनेकीर्चेष्टाकर�ाहै।ऐसाशाय�हीकभीहुआहोतिकउसनेशाही�स्�रखानपरभोजनतिकयाहो।�ैमूरकीमजचिलसोंमेंभी6हकभीशरीकनहींहो�ा।उसेजबशांति�धिमलति�है, �बएकंा�मेंअपनीमा�ाकेपासबैठकरदि�न-भरकामाजराउससेकह�ाहैऔर6हउसपरअपनीपंस�कीमुहरलगा�े�ीहै।
उसनेद्वारपरजाकर�ैमूरकास्6ाग�तिकया।�ैमूरनेमसन�परबैठ�ेहुएकहा- मुझे�ाज्जुबहो�ाहैतिक�ुमइसज6ानीमेंजातिह�ोंकी-सीजिजं�गीकैसेबसरकर�ेहोहबीब।खु�ाने�ुम्हें6हहुस्नदि�याहैतिकहसीन-से-हसीननाजनीनभी�ुम्हारीमाशूकबनकरअपनेकोखुvनसीबसमझेगी।मालूमनहीं�ुम्हेंखबरहैयानही, जब�ुमअपनेमुvकीघोड़ेपरस6ारहोकरतिनकल�ेहो�ोसमरकं�कीखिखड़तिकयोंपरहजारोंआखें�ुम्हारीएकझलक�ेखनेकेचिलएमंु�जिजरबैठीरह�ीहै, पर�ुम्हेंतिकसी�र>आखेंउठा�ेनहीं�ेखा।मेराखु�ाग6ाहहै, मैतिक�नार्चाह�ाहूतिक�ुम्हारेंक�मोंकेनक्शपरर्चलू।मैंर्चाह�ाहूजैसे�ुमदुतिनयामेंरहकरभीदुतिनयासेअलगरह�ेहो, 6ैसेमैंभीरहूंलेतिकनमेरेपासन6हदि�लहैन6हदि�माग।मैंहमेशाअपने-आपपर, सारीदुतिनयापर�ा�पीस�ारह�ाहू।जैसेमुझेहर�मखूनकीप्यासलगीरह�ीह ै, �ुमबुझनेनहीं�े� ें, औरयहजान�ेहुएभीतिक�ुमजोकुछकर�ेहो, उससेबेह�रकोईदूसरानहींकरसक�ा, मैंअपनेगुस्सेकोकाबूमेंनहींकरसक�ा।�ुमजिज�रसेतिनकल�ेहो, मुहब्ब�औररोशनी
>ैला�े� ेहो।जिजसकों�ुम्हारादुvमनहोनार्चातिहए , 6ह�ुम्हारा�ोस्�है।म ैं जिज�रसेतिनकल�ान>र�औरशुबहा>ैला�ाहुआतिनकल�ाहू।जिजसेमेरा�ोस्�होनार्चातिहए6हभीमेरादुvमनहै।दुतिनयामेंबसएकहीजगहहै, जहामुझेआतिपय�धिमल�ीहै।अगर�ुममुझेसमझ�ेहो, यह�ाजऔर�ख्�मेरेरांस्�ेकेरोडे़है, �ोखु�ाकीकसम, मैंआजइनपरला�मारदंू।मैआज�ुम्हारेपासयही�रख्6ास्�लेकरआयाहूतिक�ुममुझे6हरास्�ादि�खाओ, जिजससेमैसच्र्चीखुशीपासकू।मैर्चाह�ाहूँ, �ुमइसीमहलमेंरहों�ातिकमै�ुमसेसच्र्चीजिजं�गीकासबकसीखूं।
हबीबकाह�य�कसेहोउठा।कहींअमीनपरनारीत्6कारहस्यखुल�ोंनहींगया।उसकीसमझमेंनआयातिकउसेक्याज6ाब�े।उसकाकोमलह�य�ैमूरकीइसकरूणआत्मग्लातिनपरद्रति6�होगया।जिजसकेनामसेदुतिनयाकाप�ीहै, 6हउसकेसामनेएक�यनीयप्राथीबनाहुआउसकेप्रकाशकीभिभक्षामांगरहाहै।�ैमूरकीउसकठोरति6क�शुष्कपिहंसात्मकमुद्रामेंउसेएकस्िैनग्�म�ुरज्योति�दि�खाई�ी, मानोउसकाजाग�ति66ेकभी�रसेझाकंरहाहो।उसेअपनाजी6न, जिजसमेंऊपरकीस्>ूर्पि�ंहीनरहीथी, इसति6>लउ�ोगकेसामने�ुच्छजानपड़ा।
उसन ेमुग्� कंठस ेकहा- हजूर इस गुलामकी इ�नी कद्रकर� े है, यह मेरीखुशनसीबीहै, लेतिकनमेराशाहीमहलमेंरहनामुनाचिसबनहीं।
�ैमूरनेपूछा–क्योंइसचिलएतिकजहा�ौल�ज्या�ाहो�ीहै, 6हाडाकेपड़�ेहैंऔरजहाकद्रज्या�ा
हो�ीहै, 6हादुvमनभीज्या�ाहो�ेहै।�ुम्हारीभीकोईदुvमनहोसक�ाहै।मैखु�अपनादुvमनहोजाउ गा।आ�मीकासबसेबड़ादुvमनगरूरहै।�ैमूर को जैस ेकोई रत्न धिमलगया। उस ेअपनी मन�ुष्िैट का आभासहुआ।
आ�मीकासबसेबड़ादुvमनगरूरहैइस6ाक्यकोमन-ही-मन�ोहराकरउसनेकहा-�ुममेरेकाबूमेंकभीनआओगेंहबीब।�ुम6हपरं�हो, जोआसमानमेंहीउड़सक�ाहै।उसेसोनेकेपिपंजडे़मेंभीरखनार्चाहो�ो>ड़>ड़ा�ारहेगा।खैरखु�ाहातिपज।
यह�ुरं�अपनेमहलकीओरर्चला, मानोउसरत्नकोसुरभिक्ष�स्थानमेंरख�ेनार्चाह�ाहो।यह6ाक्यपहलीबारउसनेनसुनाथापरआजइससेजोज्ञान, जोआ�ेशजोसत्प्रेरणाउसेधिमली, उसेधिमली, 6हकभीनधिमलीथी।
5
स्�खरकेइलाकेस ेबगा6�कीखबरआयीहै।हबीबकोशंकाह ै तिक�ैमूर6हापहुर्चकरकहींकत्लेआमनकर�े।6हशापि�ंमयउपायोंसेइसति6द्रोहकोठंडाकरके
�ैमूरकोदि�खानार्चाह�ाहैतिकस�भा6नामेंतिक�नीशक्िै�है।�ैमूरउसेइस मुतिहम परनहीं भेजना र्चाह�ा लेतिकन हबीब के आग्रह के सामने बेबस है। हबीब को जब और कोई
इ
युक्िै� न सूझी �ो उसने कहा- गुलाम के रह�े हुए हुजूर अपनी जान ख�रे में डालें यह नहींहो सक�ा ।
�ैमूर मुस्कराया-मेरी जान की �ुम्हारी जान के मुकाबले में कोई हकीक� नहीं है हबीब ।तिपर मैने �ो कभी जान की पर6ाह न की। मैने दुतिनया में कत्ल और लूट के चिस6ा और क्या या�गार छोड़ी । मेरे मर जाने पर दुतिनया मेरे नाम को रोएगी नही, यकीन मानों । मेरे जैसेलुटेरे हमेशा पै�ा हा�े रहेगें , लेतिकन खु�ा न करें, �ुम्हारे दुvमनों को कुछ हो गया, �ो यहसल्�vन� खाक में धिमल जाएगी, और �ब मुझे भी सीने में खंजन र्चुभा लेने के चिस6ा औरकोई रास्�ा न रहेगा। मै नहीं कह सक�ा हबाब �ुमसे मैने तिक�ना पाया। काश, �स-पार्चसाल पहले �ुम मुझे धिमल जा�े, �ो �ैमूर �6ारीख में इ�ना रूचिसयाह न हो�ा। आज अगरजरूर� पडे़, �ो मैं अपने जैसे सौ �ैमूरों को �ुम्हारे ऊपर तिनसार कर दू । यही समझ लो तिकमेरी रूह को अपने साथ चिलये जा रहे हो। आज मै �ुमसे कह�ा हू हबीब तिक मुझे �ुमसे इvक है इसे मै अब जान पाया हंू । मगर इसमें क्या बराई है तिक मै भी �ुम्हारें साथ र्चलू।
हबीब ने �ड़क�े हुए ह�य से कहा- अगर मैं आपकी जरूर� समझूगा �ो इ�लादूगां।
�ैमूर के �ाढ़ी पर हाथ रखकर कहा जैसी-�ुम्हारी मज� लेतिकन रोजाना काचिस�भेज�े रहना, 6रना शाय� मैं बेरै्चन होकर र्चला जाऊ।
�ैमूर ने तिक�नी मुहब्ब� से हबीब के स>र की �ैयारिरयां की। �रह-�रह के आरामऔर �कल्लु>ी की र्चीजें उसके चिलए जमा की। उस कोतिहस्�ान में यह र्चीजें कहा धिमलेगी।6ह ऐसा संलग्न था, मानों मा�ा अपनी लड़की को ससुराल भेज रही हो।
जिजस 6क्� हबीब >ौज के साथ र्चला, �ो सारा समरकं� उसके साथ था और �ैमूरआखों पर रूमाल रखें , अपने �ख्� पर ऐसा चिसर झुकाए बैठा था, मानों कोई पक्षी आह�हो गया हो।
6
स्�खर अरमनी ईसाईयों का इलाका था, मुसलमानों ने उन्हें परास्� करके 6हां अपनाअधि�कार जमा चिलया था और ऐसे तिनयम बना दि�ए थे, जिजससे ईसाइयों को पग-पग
अपनी परा�ीन�ा का स्मरण हो�ा रह�ा था। पहला तिनयम जजिजये का था, जो हरेक ईसाईको �ेना पड़�ा था, जिजससे मुसलमान मुक्� थे। दूसरा तिनयम यह था तिक तिगजों में घंटा नबजे। �ीसरा तिनयम का तिKयात्मक ति6रो� तिकया और जब मुसलमान अधि�कारिरयों ने शस्त्र-बल से काम लेना र्चाहा, �ो ईसाइयों ने बगा6� कर �ी, मुसलमान सूबे�ार को कै� करचिलया और तिकले पर सलीबी झंडा उड़ने लगा।
इ
हबीब को यहा आज दूसरा दि�न है पर इस समस्या को कैसे हल करे।
उसका उ�ार ह�य कह�ा था, ईसाइयों पर इन बं�नों का कोई अथ1 नहीं । हरेक �म1का समान रूप से आ�र होना र्चातिहए , लेतिकन मुसलमान इन कै�ो को हटा �ेने पर कभीराजी न होगें । और यह लोग मान भी जाए �ो �ैमूर क्यों मानने लगा। उसके �ाधिमक1 ति6र्चारोंमें कुछ उ�ार�ा आई है, तिपर भी 6ह इन कै�ों को उठाना कभी मंजूर न करेगा, लेतिकन क्या6ह ईसाइयों को सजा �े तिक 6े अपनी �ार्मिमंक स्6ा�ीन�ा के चिलए लड़ रहे है। जिजसे 6ह सत्यसमझ�ा है, उसकी हत्या कैसे करे। नहीं, उसे सत्य का पालन करना होगा, र्चाहे इसकान�ीजा कुछ भी हो। अमीन समझेगें मै जरूर� से ज्या�ा बढ़ा जा रहा हू। कोई मुजायकानही।
दूसरे दि�न हबीब ने प्रा� काल डंके की र्चोट ऐलान कराया- जजिजया मा> तिकया गया, शराब और घण्टों पर कोई कै� नहीं है।
मुसलमानों में �हलका पड़ गया। यह कुप्र है, हरामपरस्�ह है। अमीन �ैमूर ने जिजसइस्लाम को अपने खून से सीर्चां , उसकी जड़ उन्हीं के 6जीर हबीब पाशा के हाथों खु� रहीहै, पासा पलट गया। शाही >ौज मुसलमानों से जा धिमल । हबीब ने इस्�खर के तिकले मेंपनाह ली। मुसलमानों की �ाक� शाही >ौज के धिमल जाने से बहंु� बढ़ गई थी। उन्होनेंतिकला घेर चिलया और यह समझकर तिक हबीब ने �ैमूर से बगा6� की है, �ैमूर के पास इसकीसूर्चना �ेने और परिरस्थिस्थति� समझाने के चिलए काचिस� भेजा।
7
�ी रा� गुजर र्चुकी थी। �ैमूर को �ो दि�नों से इस्�खर की कोई खबर न धिमली थी।�रह-�रह की शंकाए हो रही थी। मन में पछ�ा6ा हो रहा था तिक उसने क्यों
हबीब को अकेला जाने दि�या । माना तिक 6ह बड़ा नीति�कुशल है , पर बगा6� कहीं जोरपकड़ गयी �ो मुटटी –भर आ�धिमयों से 6ह क्या कर सकेगा ।और बगा6� यकीनन जोरपकडे़गी । 6हा के ईसाई बला के सरकश है। जब उन्हें मालम होगा तिक �ैमूर की �ल6ार मेंजगं लग गया और उसे अब महलों की जिजन्�गीं पसन्� है, �ो उनकी तिहम्म� दूनी हो जाएगी।हबीब कहीं दूvमनों से धिघर गया, �ो बड़ा गजब हो जाएगा।
आ
उसने अपने जानू पर हाथ मारा और पहलू ब�लकर अपने ऊपर झुझलाया । 6हइ�ना पस्6तिहम्म� क्यों हो गया। क्या उसका �ेज और शौय1 उससे ति6�ा हो गया । जिजसकानाम सुनकर दुvमन में कम्पन पड़ जा�ा था, 6ह आज अपना मुह चिछपाकर महलो में बैठाहुआ है। दुतिनया की आखों में इसका यही अथ1 हो सक�ा है तिक �ैमूर अब मै�ान का शेर नहीं, काचिलन का शेर हो गया । हबीब >रिरv�ा है, जो इन्सान की बुराइयों से 6ातिक> नहीं। जोरहम और सा>दि�ली और बेगरजी का �े6�ा है, 6ह क्या जाने इन्सान तिक�ना शै�ान होसक�ा है । अमन के दि�नों में �ो ये बा�ें कौम और मुल्क को �रक्की के रास्� पर ले जा�ी हैपर जंग में , जबतिक शै�ानी जोश का �ूपान उठ�ा है इन खुचिशयों की गुजाइंश नही । उस
6क्� �ो उसी की जी� हो�ी है , जो इन्सानी खून का रंग खेले, खे�ों –खचिलहानों को जलाएं, जगलों को बसाए और बस्िै�यों को 6ीरान करे। अमन का कानून जंग के कानून से जू�ाहै।
सहसा र्चौतिक�ार ने इस्�खर से एक काचिस� के आने की खबर �ी। काचिस� ने जमीनर्चूमी और एक तिकनारें अ�ब से खड़ा हो गया। �ैमूर का रोब ऐसा छा गया तिक जो कुछ कहनेआया था, 6ह भूल गया।
�ैमूर ने त्योरिरयां र्चढ़ाकर पूछा- क्या खबर लाया है। �ीन दि�न के बा� आया भी �ोइ�नी रा� गए।
काचिस� ने तिपर जमीन र्चूमी और बोला- खु�ा6ं� 6जीर साहब ने जजिजया मुआ> करदि�या ।
�ैमूर गरज उठा- क्या कह�ा है, जजिजया मा> कर दि�या।हाँ खु�ा6ं�।तिकसने।6जीर साहब ने।तिकसके हुक्म से।अपने हुक्म से हुजूर।हँू।और हुजूर , शराब का भी हुक्म हो गया है।हँू।तिगरजों में घंटों बजाने का भी हुक्म हो गया है।हँू।और खु�ा6ं� ईसाइयों से धिमलकर मुसलमानों पर हमला कर दि�या ।�ो मै क्या करू।हुजूर हमारे माचिलक है। अगर हमारी कुछ म�� न हुई �ो 6हा एक मुसलमान भी जिजन्
�ा न बरे्चगा।हबीब पाशा इस 6क्� कहाँ है।इस्�खर के तिकले में हुजूर ।और मुसलमान क्या कर रहे है।हमने ईसाइयों को तिकले में घेर चिलया है।उन्हीं के साथ हबीब को भी।हाँ हुजूर , 6ह हुजूर से बागी हो गए।और इसचिलए मेरे 6पा�ार इस्लाम के खादि�मों ने उन्हें कै� कर रखा है। मुमतिकन है, मेरे
पहुर्च�े-पहुर्च�े उन्हें कत्ल भी कर �ें। ब�जा�, दूर हो जा मेरे सामने से। मुसलमान समझ�ेहै, हबीब मेरा नौकर है और मै उसका आका हंू। यह गल� है, झूठ है। इस सल्�न� कामाचिलक हबीब है, �ैमूर उसका अ�ना गुलाम है। उसके >ैसले में �ैमूर �स्�ं�ाजी नहीं कर
सक�ा । बेशक जजिजया मुआ> होना र्चातिहए। मुझे मजाज नहीं तिक दूसरे मजहब 6ालों सेउनके ईमान का �ा6ान लू। कोई मजाज नहीं है, अगर मस्िैज� में अजान हो�ी है, �ोकलीसा में घंटा क्यों बजे। घंटे की आ6ाज में कुफ्र नहीं है। कातिपर 6ह है, जा दूसरों का हकछीन ले जो गरीबों को स�ाए, �गाबाज हो, खु�गरज हो। कातिपर 6ह नही, जो धिमटटी या पत्थर क एक टुकडे़ में खु�ा का नूर �ेख�ा हो, जो नदि�यों और पहाड़ों मे, �रख्�ों और झास्थि¥डयोंमें खु�ा का जल6ा पा�ा हो। यह हमसे और �ुझसे ज्या�ा खु�ापरस्� है, जो मस्िै�ज मेंखु�ा को बं� नहीं समझ�ा ही कुफ्र है। हम सब खु�ा के ब�ें है, सब । बस जा और उन बागीमुसलमानों से कह �े, अगर >ौरन मुहासरा न उठा चिलया गया, �ो �ैमूर कयाम� की �रहआ पहुरे्चगा।
काचिस� ह�बुतिद्व –सा खड़ा ही था तिक बाहर ख�रे का तिबगुल बज उठा और >ौजेंतिकसी समर-यात्रा की �ैयारी करने लगी।
8
सरे दि�न �ैमूर इस्�खर पहुर्चा, �ो तिकले का मुहासरा उठ र्चुका था। तिकले की �ोपों नेउसका स्6ाग� तिकया। हबीब ने समझा, �ैमूर ईसाईयों को सजा �ेने आ रहा है।
ईसाइयों के हाथ-पा6 >ूले हुए थे , मगर हबीब मुकाबले के चिलए �ैयार था। ईसाइयों के स्6प्न की रक्षा में यदि� जान भी जाए, �ो कोई गम नही। इस मुआमले पर तिकसी �रह कासमझौ�ा नहीं हो सक�ा। �ैमूर अगर �ल6ार से काम लेना र्चाह�ा है,�ो उसका ज6ाब�ल6ार से दि�या जाएगा।
�ी
मगर यह क्या बा� है। शाही >ौज स>े� झंडा दि�खा रही है। �ैमूर लड़ने नहीं सुलहकरने आया है। उसका स्6ाग� दूसरी �रह का होगा। ईसाई सर�ारों को साथ चिलए हबीबतिकले के बाहर तिनकला। �ैमूर अकेला घोडे़ पर स6ार र्चला आ रहा था। हबीब घोडे़ सेउ�रकर आ�ाब बजा लाया। �ैमूर घोडे़ से उ�र पड़ा और हबीब का माथा र्चूम चिलया औरबोला-मैं सब सुन र्चुका हू हबीब। �ुमने बहु� अच्छा तिकया और 6ही तिकया जो �ुम्हारे चिस6ादूसरा नहीं कर सक�ा था। मुझे जजिजया लेने का या ईसाईयों से मजहबी हक छीनने काकोई मजाज न था। मै आज �रबार करके इन बा�ों की �स�ीक कर दूगा और �ब मै एकऐसी �ज6ीज ब�ाऊगा ख् जो कई दि�न से मेरे जेहन में आ रही है और मुझे उम्मी� है तिक�ुम उसे मंजूर कर लोगें। मंजूर करना पडे़गा।
हबीब के र्चेहरे का रंग उड़ गया था। कहीं हकीक� खुल �ो नहीं गई। 6ह क्या�ज6ीज है, उसके मन में खलबली पड़ गई।
�ैमूर ने मूस्कराकर पूछा- �ुम मुझसे लड़ने को �ैयार थे।हबीब ने शरमा�े हुए कहा- हक के सामने अमीन �ैमूर की भी कोई हकीक� नही।
बेशक-बेशक । �ुममें >रिरv�ों का दि�ल है,�ो शेरों की तिहम्म� भी है, लेतिकन अ>सोसयही है तिक �ुमने यह गुमान ही क्यों तिकया तिक �ैमूर �ुम्हारे >ैसले को मंसूख कर सक�ा है।यह �ुम्हारी जा� है, जिजसने �ुझे ब�लाया है तिक सल्�नv� तिकसी आ�मी की जाय�ा� नहीबल्िैक एक ऐसा �रख्� है, जिजसकी हरेक शाख और प�ी एक-सी खुराक पा�ी है।
�ोनों तिकले में �ाखिखल हुए। सूरज डूब र्चूका था । आन-की-बान में �रबार लग गयाऔर उसमें �ैमूर ने ईसाइयों के �ार्मिमंक अधि�कारों को स्6ीकार तिकया।
र्चारों �र> से आ6ाज आई- खु�ा हमारे शाहंशाह की उम्र �राज करे।�ैमूर ने उसी चिसलचिसले में कहा-�ोस्�ों , मैं इस दुआ का हक�ार नहीं हँू। जो र्चीज मैने
आपसे जबरन ली थी, उसे आपको 6ालस �ेकर मै दुआ का काम नहीं कर रहा हू। इससेकही ज्या�ा मुनाचिसब यह है तिक आप मुझे लान� �े तिक मैने इ�ने दि�नों �क से आ6ाज आई-मरहबा। मरहबा।
�ोस्�ों उन हको के साथ-साथ मैं आपकी सल्�vन� भी आपको 6ापस कर�ा हू क्योंतिक खु�ा की तिनगाह में सभी इन्सान बराबर है और तिकसी कौम या शख्स को दूसरी कौमपर हुकूम� करने का अख्िै�यार नहीं है। आज से आप अपने बा�शाह है। मुझे उम्मी� हैतिक आप भी मुस्िैलम आजा�ी को उसके जायज हको से महरूम न करेगें । मगर कभीऐसा मौका आए तिक कोई जातिबर कौम आपकी आजा�ी छीनने की कोचिशश करे, �ो �ैमूरआपकी म�� करने को हमेशा �ैयार रहेगा।
9
ले में जvन खत्म हो र्चुका है। उमरा और हुक्काम रूखस� हो र्चुके है। �ी6ाने खासमें चिस>1 �ैमूर और हबीब रह गए है। हबीब के मुख पर आज स्िैम� हास्य की 6ह
छटा है,जो स�ै6 गंभीर�ा के नीरे्च �बी रह�ी थी। आज उसके कपोंलो पर जो लाली, आखोंमें जो नशा, अंगों में जो र्चंर्चल�ा है, 6ह और कभी नजर न आई थी। 6ह कई बार �ैमूर सेशोखिखया कर र्चुका है, कई बार हंसी कर र्चुका है, उसकी यु6�ी र्चे�ना, प� और अधि�कारको भूलकर र्चहक�ी तिपर�ी है।
तिक
सहसा �ैमूर ने कहा- हबीब, मैने आज �क �ुम्हारी हरेक बा� मानी है। अब मै �ुमसेयह मज6ीज कर�ा हू जिजसका मैने जिजK तिकया था, उसे �ुम्हें कबूल करना पडे़गा।
हबीब ने �ड़क�े हुए ह�य से चिसर झुकाकर कहा- >रमाइए।पहले 6ाय�ा करो तिक �ुम कबूल करोगें।मै �ो आपका गुलाम हू।नही �ुम मेरे माचिलक हो, मेरी जिजन्�गी की रोशनी हो, �ुमसे मैने जिज�ना >ैज पाया है,
उसका अं�ाजा नहीं कर सक�ा । मैने अब �क सल्�न� को अपनी जिजन्�गी की सबसे प्यारी र्चीज समझा था। इसके चिलए मैने 6ह सब कुछ तिकया जो मुझे न करना र्चातिहए था।
अपनों के खून से भी इन हाथों को �ाग�ार तिकया गैरों के खून से भी। मेरा काम अब खत्महो र्चुका। मैने बुतिनया� जमा �ी इस पर महल बनाना �ुम्हारा काम है। मेरी यही इल्�जा हैतिक आज से �ुम इस बा�शाह� के अमीन हो जाओ, मेरी जिजन्�गी में भी और मरने के बा�भी।
हबीब ने आकाश में उड़�े हुए कहा- इ�ना बड़ा बोझ। मेरे कं�े इ�ने मजबू� नही है।�ैमूर ने �ीन आग्रह के स्6र में कहा- नही मेरे प्यारे �ोस्�, मेरी यह इल्�जा माननी
पडे़गी।हबीब की आखों में हसी थी, अ�रों पर संकोर्च । उसने आतिहस्�ा से कहा- मंजूर है।�ैमूर ने प्र>ुल्िैल� स्6र में कहा – खु�ा �ुम्हें सलाम� रखे।लेतिकन अगर आपको मालूम हो जाए तिक हबीब एक कच्र्ची अक्ल की क्6ारी बाचिलका
है �ो।�ो 6ह मेरी बा�शाह� के साथ मेरे दि�ल की भी रानी हो जाएगी।आपको तिबलकुल �ाज्जुब नहीं हुआ।मै जान�ा था।कब से।जब �ुमने पहली बार अपने जाचिलम आखों से मुझें �ेखा ।मगर आपने चिछपाया खूब।
�ुम्हीं ने चिसखाया । शाय� मेरे चिस6ा यहा तिकसी को यह बा� मालूम नही।आपने कैसे पहर्चान चिलया।�ैमूर ने म�6ाली आखों से �ेखकर कहा- यह न ब�ाऊगा।यही हबीब �ैमूर की बेगम हमी�ों के नाम से मशहूर है।
धि�क्कार
नाथ और ति6�6ा मानी के चिलए जी6न में अब रोने के चिस6ा दूसरा अ6लम्ब न था ।6ह पांर्च 6ष1 की थी, जब तिप�ा का �ेहां� हो गया। मा�ा ने तिकसी �रह उसका
पालन तिकया । सोलह 6ष1 की अ6स्था मकं मुहल्ले6ालों की म�� से उसका ति66ाह भी होगया पर साल के अं�र ही मा�ा और पति� �ोनों ति6�ा हो गए। इस ति6पति� में उसे उपने र्चर्चा6ंशी�र के चिस6ा और कोई नज़र न आया, जो उसे आ�य �े�ा । 6ंशी�र ने अब �क जो व्य6हार तिकया था, उससे यह आशा न हो सक�ी थी तिक 6हां 6ह शांति� के साथ रह सकेगीपर 6ह सब कुछ सहने और सब कुछ करने को �ैयार थी । 6ह गाली, जिझड़की, मारपीट सबसह लेगी, कोई उस पर सं�ेह �ो न करेगा, उस पर धिमथ्या लांछन �ो न लगेगा, शोह�ों औरलुच्र्चों से �ो उसकी रक्षा होगी । 6ंशी�र को कुल मया1�ा की कुछ चिर्चन्�ा हुई । मानी की6ार्चना को अस्6ीकार न कर सके ।
अ
लेतिकन �ो र्चार महीने में ही मानी को मालूम हो गया तिक इस घर में बहु� दि�नों �कउसका तिनबाह न होगा । 6ह घर का सारा काम कर�ी, इशारों पर नार्च�ी, सबको खुश रखनेकी कोचिशश कर�ी पर न जाने क्यों र्चर्चा और र्चर्ची �ोनों उससे जल�े रह�े । उसके आ�े हीमहरी अलग कर �ी गई । नहलाने-�ुलाने के चिलए एक लौंडा था उसे भी ज6ाब �े दि�या गयापर मानी से इ�ना उबार होने पर भी र्चर्चा और र्चर्ची न जाने क्यों उससे मुंह >ुलाए रह�े ।कभी र्चर्चा घुड़तिकयां जमा�े, कभी र्चर्ची कोस�ी, यहां �क तिक उसकी र्चरे्चरी बहन लचिल�ाभी बा�-बा� पर उसे गाचिलयां �े�ी । घर-भर में के6ल उसक र्चरे्चरे भाई गोकुल ही को उससेसहानुभूति� थी । उसी की बा�ों में कुछ स्नेह का परिरर्चय धिमल�ा था । 6ह उपनी मा�ा का स्6भा6 जान�ा था। अगर 6ह उसे समझाने की र्चेष्टा कर�ा, या खुल्लमखुल्ला मानी का पक्षले�ा, �ो मानी को एक घड़ी घर में रहना कदिठन हो जा�ा, इसचिलए उसकी सहानुभुति� मानीही को दि�लासा �ेने �क रह जा�ी थी । 6ह कह�ा-बहन, मुझे कहीं नौकर हो जाने �ो, िै>र�ुम्हारे कष्टों का अं� हो जाएगा । �ब �ेखंूगा, कौन �ुम्हें ति�रछी आंखों से �ेख�ा है । जब�क पढ़�ा हंू, �भी �क �ुम्हारे बुरे दि�न हैं । मानी यह स्नेह में डूबी हुई बा� सुनकर पुलतिक�हो जा�ी और उसका रोआं-रोआं गोकुल को आशी6ा1� �ेने लग�ा ।
2
ज लचिल�ा का ति66ाह है । सबेरे से ही मेहमानों का आना शुरू हो गया है। गहनोंकी झनकार से घर गूंज रहा है । मानी भी मेहमानों को �ेख-�ेखकर खुश हो रही
है । उसकी �ेह पर कोई आभूषण नहीं है और न ठसे सुन्�र कपडे़ ही दि�ए गए हैं, िै>र भीउसका मुख प्रसन्न है।
आ
आ�ी रा� हो गई थी । ति66ाह का मुहू�1 तिनकट आ गया था। जन6ासे से पहना6े कीर्चीजें आईं । सभी और�ें उत्सुक हो-होकर उन र्चीजों को �ेखने लगीं । लचिल�ा को आभूषणपतिहनाए जाने लगे । मानी के ह�य में बड़ी इच्छा हुई तिक जाकर 6�ू को �ेखे । अभी कलजो बाचिलका थी, उसे आज 6�ू 6ेश में �ेखने की इच्छा न रोक सकी । 6ह मुस्का�ी हुईकमरे में घुसी। सहसा उसकी र्चर्ची ने जिझड़ककर कहा-�ुझे यहां तिकसने बुलाया था, तिनकलजा यहां से ।
मानी ने बड़ी-बड़ी या�नाए ंसही थीं, पर आज की 6ह जिझड़की उसके ह�य में बाणकी �रह र्चुभ गई । उसका मन उसे धि�क्कारने लगा । ‘�ेरे चिछछोरेपन का यही पुरस्कार है ।यहां सुहातिगनों के बीर्च में �ेरे आने की क्या जरूर� थी ‘ 6ह खिखचिसयाई हुई कमरे से तिनकलीऔर एकां� में बैठकर रोने के चिलए ऊपर जाने लगी । सहसा जीने पर उसी इंद्रनाथ सेमुठभेड़ हो गई । इंद्रनाथ गोकुल का सहपाठी और परम धिमत्र था 6ह भी न्यै�े में आया हुआथा । इस 6क्� गोकुल को खोजने के चिलए ऊपर आया था । मानी को 6ह �ो-बार �ेख र्चुकाथा और यह भी जान�ा था तिक यहां बड़ा दुव्य16हार तिकया जा�ा है । र्चर्ची की बा�ों कीभनक उसके कान में भी पड़ गई थी । मानी को ऊर जा�े �ेखकर 6ह उसके चिर्च� का भा6समझ गया और उसे सांत्6ना �ेने के चिलए ऊपर आया, मगर �र6ाजा भी�र से बं� था ।उसने तिक6ाड़ की �रार से भी�र झांका । मानी मेज के पास खड़ी रो रही थी ।
उसने �ीरे से कहा-मानी, द्वार खोल �ो।मानी उसकी आ6ाज सुनकर कोने में चिछप गई और गम्भीर स्6र में बोली-क्या काम
है ? इंद्रनाथ ने ग�ग� स्6र में कहा-�ुम्हारे पैरों पड़�ा हंू मानी, खोल �ो ।
यह स्नेह में डूबा हुआ हुआ ति6नय मानी के चिलए अभू�पू61 था । इस तिन�1य संसार में कोईउससे ऐसे ति6न�ी भी कर सक�ा है, इसकी उसने स्6प्न में भी कल्पना न की थी । मानी नेकांप�े हुए हाथों से द्वारा खोल दि�या । इंद्रनाथ झपटकर कमरे में घुसा, �ेखा तिक छ� से पुखेके कडे़ से एक रस्सी लटक रही है । उसका ह�य कांप उठा। उसने �ुरन्� जेब से र्चाकूतिनकालकर रस्सी काट �ी और बोला-क्या करने जा रही थीं मानी ? जान�ी हो, इस अपरा�का क्या �ंड है ?
मानी ने ग�1न झुकाकर कहा-इस �ंड से कोई और �ंड कठोर हो सक�ा है ? जिजसकीसूर� से लोगों का घणा है, उसे मरने के चिलए भी अगर कठोर �ंड दि�या जाए, �ो मैं यहीकहूंगी तिक ईv6र के �रबार में न्याय का नाम भी नहीं है ।
इन्द्रनाथ की आंखे सजल हो गईं । मानी की बा�ों में तिक�ना कठोर सत्य भ्ंरा हुआथा । बोला-स�ा ये दि�न नहीं रहेंगे मानी । अगर �ुम यह समझ रही हो तिक संसार में �ुम्हाराकोई नहीं है, �ो यह �ुम्हार भ्रम है । संसार में कम-से-कम एक मनुष्य ऐसा है, जिजसे �ुम्हारेप्राण आने प्राणों से भी प्यारे हैं ।
सहसा गोकुल आ�ा हुआ दि�खाई दि�या । मानी कमरे से तिनकल गई 1 इन्द्रनाथ केशब्�ों से उसके मन में एक �ू>ान-सा उठा दि�या । उसका क्या आशय है, यह उसकी समझमें न आया । िै>र भी आज उसे अपना जी6न साथ्क1 मालूक हो रहा था । उसके अन्�कारमय जी6न में एक प्रकाश का उ�य हो गया था ।
3
न्द्रनाथ को 6हां बैठे और मानी को कमरे से जा�े �ेखकर गोकुल को कुछ खटक गया ।उसकी त्योरिरयां ब�ल गईं । कठोर स्6र में बोला-�ुम यहां कब आये ?इ
इदं्रनाथ ने अति6र्चचिल� भा6 से कहा-�ुम्हीं को खोज�ा हुआ यहां आया था। �ुम यहांन धिमले �ो नीरे्च लौटा जा रहा था, अगर र्चला गया हो�ा �ो इस 6क्� �ुम्हें यह कमरा बन्�धिमल�ा और पंखे के कडे़ में एक लाश लटक�ी हुई नजर आ�ी ।
गोकुल ने समझा, यह अपने अपरा� के चिछपाने के चिलए कोई बहाना तिनकाल रहा है। �ीव्र कंठ से बोला-�ुम यह ति6v6ासघा� करोगे, मुझे ऐसी आशा न थी ।
इन्द्रनाथ का र्चेहरा लाल हो गया । 6ह आ6ेश में आकार खड़ा हो गया और बोला-नमुझे यह आशा थी तिक �ुम मुझ पर इ�ना बड़ा लांछन रख �ोगे । मुझे ने मालुम था तिक �ुममुझे इ�ना नीर्च और कुदिटल समझ�े हो । मानी �ुम्हारे चिलए ति�रस्कार की 6स्�ु हो, मेरे चिलए6ह �द्धा की 6स्�ु है और रहेगी । मुझे �ुम्हारे सामने अनी स>ाई �ेने की जरूर� नहीं है, लेतिकन मानी केरे चिलए उससे कहीं पति6त्र है, जिज�नी �ुम समझ�े हो । मैं नहीं र्चाह�ा था तिकइस 6क्� �ुमसे उससे ये बा�ें कहूं । इसके चिलए और अनूकूल परिरस्थति�यों की राह �ेख रहाथा, लेतिकन मुआमला आ पड़ने परकहना ही पड़ रहा है । मैं यह �ो जान�ा था तिक मानी का�ुम्हारे घर में कोई आ�र नहीं, लेतिकन �ुम लोग उसे इ�ना नीर्च और त्याज्य समझ�े हो, यहतिक आज �ुम्हारी मा�ाजी की बा�ें सुनकर मालूम हुआ । के6ल इ�नी-सी बा� के चिलए 6हर्चढ़ा6े के गहने �ेखने र्चली गयी थी, �ुम्हारी मा�ा ने उसे इस बुरी �रह जिझड़का, जैसे कोईकुत्�े को भी न भिभड़केगा । �ुम कहोगे, इसमें मैं क्या करंू, मैं कर ही क्या सक�ा हंू । जिजसघर में एक अनाथ स्त्री पर इ�ना अत्यार्चार हो, उस घर का पानी पीना भी हराम है । अगर�ुमने अपनी मा�ा को पहले ही दि�न समझा दि�या हो�ा, �ो आज यह नौब� न आ�ी । �ुमइस इलजाम से नहीं बर्च सक�े । �ुम्हारे घर में आज उत्स6 है, मैं �ुम्हारे मा�ा-तिप�ा से कुछनहीं बा�र्ची� नहीं कर सक�ा, लेतिकन �ुमसे कहने में संकोर्च नहीं हे तिक मानी को को मैंअपनी जी6न सहर्चरी बनाकर अपने को �न्य समझूंगा । मैंने समझा था, उपना कोईदिठकाना करके �ब यह प्रस्�ा6 करंूगा पर मुझे भय है तिक और ति6लम्ब करने में शाय� मानीसे हाथ �ोना पडे़, इसचिलए �ुम्हें और �ुम्हारें घर 6ालों को चिर्चन्�ा से मुक्� करने के चिलए मैंआज ही यह प्रस्�ा6 तिकए �े�ा हंू ।
गोकुल के ह�य में इंद्रनाथा के प्रति� ऐसी �द्धा कभी न हुई थी । उस पर ऐसा सन्�ेहकरके 6ह बहु� ही लज्ज� हुआ । उसने यह अनुभ6 भी तिकया तिक मा�ा के भय से मैं मानी
के ति6षय में �टस्थ रहकर कायर�ा का �ोषी हुआ हंू । यह के6ल कायर�ा थी और कुछ नहीं। कुछ झेंप�ा हुआ बोला-अगर अम्मां ने मानी को इस बा� पर जिझड़का �ो 6ह उनकीमूख1�ा है। मैं उनसे अ6सर धिमल�े ही पूछँूगा ।
इन्द्रनाथ-अब पूछने-पाछने का समय तिनकल गया । मैं र्चाह�ा हंू तिक �ुम मानी से इसति6षय में सलाह करके मुझे ब�ला �ो । मैं नहीं र्चाह�ा तिक अब 6ह यहां क्षण-भर भी रहे ।मुझे आज मालूम हुआ तिक 6ह गर्पि6ंणी प्रकति� की स्त्री है और सर्च पूछो �ो मैं उसके स्6भा6पर मुग्� हो गया हंू । ऐसी स्त्री अत्यार्चार नहीं सह सक�ी ।
गोकुल ने डर�े-डर�े कहा-लेतिकन �ुम्हें मालूम है, 6ह ति6�6ा है ?जब हम तिकसी के हाथों अपना असा�ारण तिह� हो�े �ेख�े हैं, �ो हम अपनी सारी
बुराइयों उसके सामने खोलकर रख �े�े हैं । हम उसे दि�खाना र्चाह�े हैं तिक हम आपकी इसकपा के स61था योग्य नहीं है ।
इन्द्रनाथ ने मुस्कराकर कहा-जान�ा हंू सुन र्चुका हंू और इसीचिलए �ुम्हारे बाबूजी सेकुछ कहने का मुझे अब �क साहस नहीं हुआ । लेतिकन न जान�ा �ो भी इसका मेरे तिनvर्चयपर कोई अ6सर न पड़�ा । मानी ति6�6ा ही नहीं, अछू� हो, उससे भी गयी-बी�ी अगर कुछअगर कुछ हो सक�ी है, 6ह भी हो, ति>र भी मेरे चिलए 6ह रमणी-रत्न है । हम छोटे-छोटेकामों के चिलए �जुब©कार आ�मी खोज�े हैं, जिजसके साथ हमें जी6न-यात्रा करनी है, उसमें�जुब© का होना ऐब समझ�े हैं । मैं न्याय का गला घोटने6ालो में नहीं। ति6पति� से बढ़कर�जुबा1 चिसखाने 6ालो कोई ति6द्वालय आज �क नही खुला। जिजसने इस ति6द्वालय में तिडग्री लेली, उसके हाथों में हम होकर जी6न की बागडोर �े सक�े हैं । तिकसी रमणी का ति6�ा होनामेरी आंखों में �ोष नहीं, गुण है।
गोकुल ने पूछा-अगर �ुम्हारे घर6ाले आपति� करें �ो ?इन्द्रनाथ न प्रसन्न होकर कहा-मैं अपने घर6ालों को इ�ना मुख1 नहीं समझ�ा तिक
इस ति6षय में आपति� करें, लेतिकन 6े आपति� करें भी �ो मैं अपनी तिकस्म� अपने हाथ में हीरखना पसं� कर�ा हंू । मेरे बड़ों को मुझपर अनेकों अधि�कार हैं । बहु�-सी बा�ों में मैंउनकी इच्छा को कानून समझ�ा हंू, लेतिकन जिजस बा� को मैं अपनी आत्मा के ति6कास केचिलए शुभ समझ�ा हंू, उसमें मैं तिकसी से �बना नहीं र्चाह�ा । मैं इस ग61 का आनन्�उठाना र्चाह�ा हंू तिक मैं स्6यं अपने जी6न का तिनमा1�ा हंू ।
गोकुल ने कुछ शंतिक� होकर कहा-और मानी न मंजूर करे ।इन्द्रनाथ को यह शंका तिबलकुल तिनम1ल जान पड़ी । बोले-�ुम इस समय बच्र्चों की-
सी बा� कर रहे हो गोकुल । यह मानी हुई बा� है मानी आसनी से मंजूर न करेगी । 6ह इसघर में ठोकरे, जिझड़तिकयॉं सहेगीण् गाचिलयॉं सुनेगी, पर इसी घर में रहेगी। युगों के संस्कारों को धिमटा �ेना आसन नहीं है, लेतिकन हमें उसका राजी करना पड़गा । उसके मन से संचिर्च� संस्कारों को तिनकालना पडे़गा । हमें ति6�6ाओं के पुनर्पि6ं6ाह के पक्ष में नहीं हँू। मेरा ख्याल हैतिक पति�व्र� का यह अलौतिकक आ�श1 संसार का अमूल्य रत्न है और हमें बहु� सोर्च-
समझकर उस पर आघा� करना र्चातिहए, लेतिकन मानी के ति6षय में यह बा� नहीं उठ�ी ।पे्रम और भचिक्त नाम से नहीं, व्यस्थिक्� से हो�ी है । जिजस पुरूष से उसने सूर� भी नीं �ेखी, उससे उसे पे्रम नहीं हो सक�ा । के6ल रस्म की बा� है। इस आडम्बर की, इस दि�खा6े की, हमें पर6ाह नह करनी र्चातिहए । �ेखो, शाय� कोई �ुम्हें बुला रहा है । मैं भी जा रहा हंू । �ो-�ीन �तिन में ति>र धिमलूंगा, मगर ऐसा न हो तिक �ुम संकोर्च में पड़कर सोर्च�े-ति6र्चार�े रहजाओ और दि�न तिनकल�े र्चले जाए ं।
गोकुल ने उसके गले में हाथ डालकर कहा-मैं परसों खु� ही आऊंगा ।
4
रा� ति6�ा हो गई थी । मेहमान भी रूखस� हो गए । रा� के नौ बज गए थे । ति66ाहके बा� की नीं� मशहूर है । घर के सभी लोग सरेशाम से सो रहे थे । कोई र्चरपाई
पर, कोई �ख्� पर, कोई जमीन पर, जिजसे जहां जगह धिमल गई, 6हीं सो रहा था । के6लमानी घर की �ेखभाल कर रही थी और ऊपर गोकुल अपने कमरे में बैठा हुआ समार्चार पढ़रहा था।
बासहसा गोकुल ने पुकारा-मानी, एक ग्लास ठंडा पानी �ो लाना, प्यास लगी है।मानी पानी लेकर ऊपर गई और मेज पर पानी रखकर लौटना ही र्चाह�ी थी तिक
गोकुल ने कहा-जरा ठहरो मानी, �ुमसे कुछ कहना है ।मानी ने कहा-अभी >ुरस� नहीं है भाई, सारा घर सो रहा है । कहीं कोई घुस आए �ो लोटा-थाली भी न बरे्च ।
गोकुल ने कहा-घुस आने �ो, मैं �ुम्हारी जगह हो�ा, �ो र्चोरों से धिमलकर र्चोरी कर6ा�े�ा । मुझे इसी 6क्� इन्द्रनाथ से धिमलना है । मैंने उससे आज धिमलने का 6र्चन दि�या है-�ेखो संकोर्च म� करना, जो बा� पूछ रहा हंू, उसका लल्� उ�र �ेना । �ेर होगी �ो 6हघबराएगा । इन्द्रनाथ को �ुमसे पे्रम है, यह �ुम जान�ी हो न ?
मानी ने मुंह >ेरकर कह-यही बा� कहने के चिलए मुझे बुलाया था ? मैं कुछ नहींजान�ी।
गोकुल-खैर, यह 6ह जाने या �ुम जानो । 6ह �ुमसे ति66ाह करना र्चाह�ा है। 6ैदि�करीति� से ति66ाह होगा । �ुम्हें स्6ीकार है ?
मानी की ग�1न शम1 से झुक गई । 6ह कुछ ज6ाब न �े सकी ।गोकुल ने ति>र कहा-�ा�ा और अम्मां से यह बा� नहीं कही गई, इसका कारण �ुम
जान�ी ही हो । 6ह �ुम्हें घुड़तिकयां �े-�ेकर जला-जलाकर र्चाहे मार डालें, पर ति66ाह करनेकी सम्मति� कभी नह �ेंगे। इससे उनकी नाक कट जाऐगी, इसचिलए अब इसका तिनण1य �ुम्हारे ही ऊपर है । मैं �ो समझ�ा हंू, �ुम्हें स्6ीकार कर लेना र्चातिहए । इंद्रनाथ �ुमसे पे्रमकर�ा ही हैं, यों भी तिनष्कलंक र्चरिरत्र आ�मी और बला का दि�लेर है 1 भय �ो उसे छू ही नहींगया । �ुम्हें सुखी �ेखकर मुझे सच्र्चा आन्न� होगा ।
मानी के ह�य में एक 6ेग उठ रहा था, मगर मुंह से आ6ाज न तिनकली ।गोकुल ने अबी खीझकर कहा-�ेखो मानी, यह र्चुप रहने का समय नहीं है । क्या
सोर्च�ी हो ?मानी ने कांप�े स्6र में कहा-हां ।गोकुल के ह�य का बोझ हल्का हो गया । मुस्काने लगा । मानी शम1 के मारे 6हा भाग गई ।
5
म को गोकुल ने अपनी मां से कहा-अम्मा, इंद्रनाथ्ंैा के घर आज कोइ उत्स6 है ।उसकी मा�ा अकेली घबड़ा रही थी तिक कैसे सब काम होगा, मैंने कहा, मैं मानी
को कल भेज दंूगा । �ुम्हारी आज्ञा हो, �ो मानी का पहुंर्चा दँू। कल-परसों �क र्चली आयेगी।शा
मानी उसी 6क्� 6हां आ गई, गोकुल ने उसकी ओर कनखिखयों से �ाका । मानी लज्जा से गड़ गई । भागने का रास्�ा न धिमला ।
मां ने कहा-मुझसे क्या पूछ�ी हो, 6ह जाय, ले जाओ ।गोकुल ने मानी से कहा-कपडे़ पहनकर �ैयार हो जाओ, �ुम्हें इंद्रनाथ के घर र्चलना
है ।मानी ने आपभित्त की-मेरा जी अच्छा नहीं है, मैं न जाऊंगी।
गोकुल की मां ने कहा-र्चली क्यों नहीं जा�ी, क्या 6हां कोई पहाड़ खो�ना है?मानी एक स>े� साड़ी पहनकर �ांगे पर बैठी, �ो उसका ह�य कांप रहा था और
बार-बार आंखों में आंसू भर आ�े थे । उकसा ह�य बैठा जा�ा था, मानों न�ी में डुबन जारही हो।
�ांगा कुछ दुर तिनकल गया �ो उसने गोकुल से कहा-भैया, मेरा जी न जाने कैस होरहा है । घर र्चलो, �ुम्हारे पैर पड़�ी ।
गोकुल ने कहा-�ू पागल है । 6हां सब लोग �ेरी राह �ेख रहे हैं और �ू कह�ी है लौटर्चलो ।
मानी-मेरा मन कह�ा है, कोई अतिनष्ट होने 6ाला है ।गोकुल-और मेरा मन कह�ा है �ू रानी बनने जा रही है ।मानी-�स-पांर्च दि�न ठहर क्यों नहीं जा�े ? कह �ेना, मानी बीमार है।गोकुल-पागलों की-सी बा�ें न करो ।मानी-लोग तिक�ना-हंसेंगे ।गोकुल-मैं शुभ काय1 कें तिकसी की हॅसी की पर6ाह नहीं कर�ा ।मानी-अम्मॉ �ुम्हें घर में घुसने न �ेंगी । मेरे कारण �ुम्हें भी जिझड़तिकयॉ धिमलेंगी ।गोकुल-इसकी कोई पर6ाह नहीं है । उसकी �ो यह आ�� ही है ।�ॉंगा पहुंर्च गया । इंद्रनाथ की मा�ा ति6र्चारशील मतिहला थीं । उन्होंन आकर 6�ू को
उ�ारा और भी�र ले गयीं ।
6
कुल 6हां से घर र्चला �ो ग्यारह बज रहे थे । एक ओर �ो शुभ काय1 के पूरा करने काआनं� था, दूसरी ओर भय था तिक कल मानी न जाएगी, �ो लोगों को क्या ज6ाब दंूगा
। उसने तिनvर्चय तिकया, र्चलकर सा>-सा> कह दंू। चिछपाना व्यथ1 है । आज नहीं कल, कलनहीं परसों �ो सब-कुछ कहना ही पडे़गा । आज ही क्यों न कह दंू ।
गोयह तिनvर्चय करके घर में �ाखिखल हुआ ।मा�ा ने तिक6ाड़ खोल�े हुए कहा-इ�नी रा� �क क्या करने लगे ? उसे भी क्यों न
ले�े आये ? कल स6ेरे र्चौका-ब�1न कौन करेगा ?गोकुल ने चिसर झुकाकर कहा-6ह �ो अब शाय� लोटकर न आये अम्मा, उसके 6हीं
रहने का प्रबं� हो गया है। मा�ा ने आंखे >ाड़कर कहा-क्या बक�ा है, भला 6ह 6हां कैसे रहेगी?गोकुल-इंद्रनाथ से उसका ति66ाह हो गया है ।मा�ा मानो आकाश से तिगर पड़ी । उन्हें कुछ सु� न रही तिक मेंरे मुंह से क्या तिनकल
रहा है, कुलांगार, भड़6ा, हरामजा�ा, न जाने क्या-क्या कहा । यहां �क तिक गोकुल का �ैय1र्चरमसीमा का उल्लंघन कर गया । उसका मुंह लाल हो गया, त्योरिरयॉ र्चढ़ गई, बोला-अम्मा, बस करो। अब, मुझमें इससे ज्या�ा सुनने की सामथ्य1 नहीं है । अगर मैंन कोई अनुचिर्च� कम1तिकया हो�ा, �ो अपकी जूति�यां खकार भी चिसर न उठा�ा, मगर मैंने कोई अनुचिर्च� कम1 नहींतिकया । मैंने 6ही तिकया जो ऐसी �शा में मेंरा क�1व्य था और जो हर एक भले आ�मी काकरना र्चातिहए । �ुम मूखा1 हो, �ुम्हें नहीं मालूम तिक समय की क्या प्रगति� । इसीचिलए अब �कमैनें �ैय1 के साथ् �ुम्हारी गाचिलयॉ सुनी । �ुमने, और मुझे दु:ख के साथ कहना पड़�ा है तिकतिप�ाजी ने भी, मानी के जी6न का नारकीय बना रखा था । �ुमने उसे ऐसी-ऐसी �ाड़नाऍ�ीं, जो कोई अपने शतु्र को भी न �ेगा । इसीचिलए न तिक 6ह �ुम्हारी आभि�� थी ? इसी चिलएन तिक 6ह अनाचिथन थी ? अब 6ह �ुम्हारी गाचिलयॉ खाने न आएगी । जिजस दि�न �ुम्हारे घरति66ाह का उत्स6 हो रहा था, �ुम्हारे ही एक कठोर 6ाक्य से आह� होकर 6ह आत्महत्याकरने जा रही थी। इंद्रनाथ उस समय ऊपर न पहुंर्च जा�े �ो आज हम, �ुम, सारा घरह6ाला� में बैठा हो�ा ।
मा�ा ने आंखे मटकाकर कहा-आहा । तिक�ने सपू� बेटे हो �ुम, तिक सारे घर कोसंकट से बर्चा चिलया । क्यों न हो ? अभी बहन की बारी है । कुछ दि�न में मुझे ले जाकरतिकसी के गले में बां� आना । ति>र �ुम्हारी र्चां�ी हो जायेगी । यह रोजगार सबसे अच्छा है ।पढ़ चिलखकर क्या करोगे ?
गोकुल मम1-6े�ना से ति�लधिमला उठा । व्यचिथ� कंठ से बोला-ईv6र न करे तिक कोईबालक �ुम जैसी मा�ा के गभ1 से जन्म ले । �ुम्हारा मुंह �ेखना भी पाप है ।
यह कह�ा हुआ 6ह घर से तिनकल पड़ा और उन्मत्तों की �रह एक �र> र्चल खड़ाहुआ । जोर से झोंके र्चल रहे थे, पर उसे ऐसा मालूम हो रहा था तिक सॉस लेने के चिलए ह6ानहीं है ।
7
क सप्�ाह बी� गया पर गोकुल का कहीं प�ा नहीं। इंद्रनाथ को बम्बई में एक जगहधिमल गई थी। 6ह 6हां र्चला गया था। 6हां रहने का प्रबं� करके 6ह अपनी मा�ा को
�ार �ेगा और �ब सास और बहू र्चली जाऍगी । 6ंशी�र को पहले सं�ेह हुआ तिक गोकुलइंद्रनाथ के घर चिछपा होगा, पर जब 6हां प�ा न र्चला �ो उन्होंने सारे शहर में खोज-पूछ शुरूकी। जिज�न धिमलने 6ाले, धिमत्र, स्नेही, सम्बन्�ी थे, सभी के घर गये, पर सब जगह से सा>ज6ाब पाया । दि�न-भर �ौड़-�ूप कर शाम को घर आ�े, �ो स्त्री के आडे़ हाथों ले�े-औरकोसो लड़के को, पानी पी-पीकर कोसो । न जाने �ुम्हें कभी बुजिद्ध आयेगी भी या नहीं । गयीथी र्चुडै़ल, जाने �े�ी । एक बोझ चिसर से टला । एक महरी रख लो, काम र्चल जाएगा । जब6ह न थी, �ो घर क्या भूखों मर�ा था ? ति6�6ाओं के पुनर्पि6ं6ाह र्चारों ओर �ो हो रहे हैं, यहकोई अनहोनी बा� नहीं है । हमारे बस की बा� हो�ी, �ो ति6�6ा-ति66ाह के पक्षपाति�यों को�ेश से तिनकाल �े�े, शाप �ेकर जला �े�े, लेतिकन यह हमारे बस की बा� नहीं । ति>र �ुमसेइ�नी भी न हो सका तिक मुझसे �ो पूछ ले�ीं । मैं जो उचिर्च� समझ�ा, कर�ा । क्या �ुमनेसमझा था, मैं �प्�र से लौटकर आऊंगा ही नहीं, 6हीं अत्येतिषट हो जाएगी ? बस, लड़के परटूट पड़ी। अब रोओ, खूब दि�ल खोलकर।
ए
संध्या हो गई थी। 6ंशी�र स्त्री को >टकारें सुनाकर द्वार पर उदे्वग की �शा में टहलरहे थे। रह-रहकर मानी पर Kो� आ�ा था। इसी राक्षसी के कसरण मेरे घर का स61नाशहुआ 1 न जाने तिकस बुरी साइ� में आयी तिक घर को धिमटाकर छोड़ा । 6ह न आयी हो�ी, �ोआज क्यों यह बुरे दि�न �ेखने पड़�े । तिक�ना होनहार, तिक�ना प्रति�भाशाली लड़का था । नजाने कहां गया ?
एकाएक एक बुदिढया उनके समीप आयी और बोली-बाबू साहब, यह ख� लायी हंू, ले लीजिजए ।
6ंशी�र ने लपककर बुदिढया के हाथ से पत्र ले चिलया, उनकी छा�ी आशा से �क-�क करने लगी । गोकुल ने शाय� यह पत्र चिलखा होगा । अं�ेरे में कुछ ने सुझा । पूछा-कहॉसे आयी है ?
बुदिढया ने कहा-6ह जो बाबू हुसनेगंज में रह�े हैं, जो बम्बई में नौकर हैं, उन्हीं कीबहु ने भेजा है ।
6ंशी�र ने कमरे में जाकर लैम्प जलाया और पत्र पढ़ने लगे । मानी का ख� थाचिलखा था ।
‘पूज्य र्चार्चाजी, आभातिगनी मानी का प्रणाम स्6ीकार कीजिजए ।
मुझे यह सुनकर अत्यन्� दु:ख हुआ तिक गोकुल भैया कहीं र्चले गए और अब �कउनका प�ा नहीं है । मैं ही इसका कारण हंू । यह कलंक मेरे ही मुख पर लगना था 6ह भीलग गया । मेरे कारण आपको इ�ना शोक हुआ, इसका मुझे बहु� दु:ख है, मगर भैयाआएगंे अ6vय, इसका मुझे ति6v6ास है । मैं भी नौ बजे 6ाली गाड़ी से बम्बई जा रही हंू ।मुझझे जो कुछ अपरा� हुआ है, उसे क्षमा कीजिजएगा और र्चार्ची से मेरा प्रणाम कतिहएगा।मेरी ईv6र से यही प्राथ1ना है तिक शीघ्र ही गोकुल भैया सकुशल घर लौट आयें । ईv6र कीअच्छा हुई �ो भैया के ति66ाह में आपके र्चरणों के �श1न करंूगी ।
6ंशी�र न पत्र को >ाड़कर पुज©-पुज© कर डाला । घड़ी में �ेखा �ो आठ बज रहे थे ।�ुरन्� कपडे़ पहने, सड़क पर आकर एक्का तिकया और स्टेशन र्चले ।
8
म्बई मेल प्लेट>ाम1 पर खड़ा था । मुसाति>रों में भग�ड़ मर्ची हुई थी। खोमर्चे 6ालों कीर्चीख-पुकार से कान पड़ी आ6ाज न सुनाई �े�ी थी। गाड़ी छूटने में थोड़ी ही �ेर थी
मानी और उसकी सास एक जनाने कमरे में बैठी हुई थी । मानी सजल नेत्रों से सामने �ाकरही थी । अ�ी� र्चाहे दुख:� ही क्यों न हो, उसकी स्मति�यॉ म�ुर हो�ी हैं । मानी आज बुरेदि�नों को स्मरण करके दु:खी हो रही थी । गोकुल से अब न जाने कब भेंट होगी। र्चार्चाजीआ जा�े �ो उनके �श1न कर ले�ी । कभी-कभी तिबगड़�े थे �ो क्या, उसके भले ही के चिलए�ो डांट�े थे । 6ह आ6ेंगे नहीं । अब �ो गाड़ी छूटने में थोड़ी ही �ेर है । कैसे आऍ, समाज मेंहलर्चल न मर्च जाएगी । भग6ान की इच्छा होगी, �ो अबकी जब यहॉ आऊंगी, �ो जरूरउनके �श1न करंूगी ।
ब
एकाएक उसने लाला 6ंशी�र को आ�े �ेखा । 6ह गाड़ी से तिनकलकर बाहर खड़ी होगई और र्चार्चाजी की ओर बढ़ी । र्चरणों पर तिगरना र्चाह�ी थी तिक 6ह पीछे हट गए औरऑखे तिनकालकर बोले-मुझे म� छू, दूर रह, अभतिगनी कहीं की । मुंह की काचिलख लगाकरमुझे पत्र चिलख�ी है । �ुझे मौ� नहीं आ�ी । �ूने मेरे कुल का स61नाश कर दि�या 1 आज �कगोकुल का प�ा नहीं है । �ेरे कारण 6ह घर से तिनकला और �ू अभी �क मेरी छा�ी पर मूंग�लने को बैठी है । �ेरे चिलए क्या गंगा में पानी नहीं है ? मैं �ुझे कुलटा, ऐसी हरजाईसमझ�ा, �ो पहले दि�न �ेरा गला घोंट �े�ा । अब मुझे अपनी भस्थिक्� दि�खलाने र्चली है । �ेरेजैसी पातिपष्ठाओं का मरना ही अच्छा है, पथ्6ी का बोझ कम हो जाएगा ।
प्लेट>ाम1 पर सैकड़ो आ�धिमयों की भीड़ लग गई थी और 6ंशी�र तिनल1ज्ज भा6 सेगाचिलयों की बौछार कर रहे थे । तिकसी की समझ में न आ�ा था, क्या माजरा है, पर मन सेसब लाला को धि�क्कार रहे थे ।
मानी पाषाण-मूर्पि�ं के सामान खड़ी थी, मानो 6हीं जम गई हो । उसका साराअभिभमान र्चूर-र्चूर हो गया । ऐसा जी र्चाह�ा था, �र�ी >ट जाए और मैं समा जाऊं, कोई6ज्र तिगरकर उसके जी6न-अ�म जी6न-का अन्� कर �े । इ�ने आ�धिमयों के सामने उसका
पानी उ�र गया 1 उसी आंखों से पानी की एक बूं� भी न तिनकला । ह�य में ऑसू न थे ।उसकी जग एक �ा6नल-सा �हक रहा था, जो मानो 6ेग से मश्किस्�ष्क की ओर बढ़�ा र्चलाजा�ा था । संसार में कौन जी6न इ�ना अ�म होगा ।
सास ने पुकारा-बहू, अन्�र आ जाओ ।
9
ड़ी र्चली �ो मा�ा ने कहा-ऐसा बेशम1 आ�मी नहीं �ेखा । मुझे �ो ऐसा Kो� आरहा था तिक उसका मुंह नोर्च लूं ।गामानी ने चिसर ऊपर न उठाया ।मा�ा ति>र बोली-न जाने इन सतिडयलों को बुजिद्ध कब आएगी, अब �ो मरने के दि�न
भी आ गए । पूछो, �ेरा लड़का भाग �ो हम क्या करें; अगर ऐसे पापी ने हो�े �ो यह 6ज्र क्यों तिगर�ा ।
मानी ने ति>र भी मुंह न खोला । शाय� उसे कुछ सुनाई ही न दि�या था। शाय� उसेअपने अचिसत्�6 का ज्ञान भी न था । 6ह टकटकी लगाए खिखड़की की ओर �ाक रही थी ।उस अं�कार में जाने क्या सूझ रहा था ।कानपुर आया । मा�ा ने पूछ-बेटी, कुछ खाओगी ? थोड़ी-सी धिमठाई खा लो; �स कब केबज गए ।
मानी ने कहा-अभी �ो भूख नहीं है अम्मा, ति>र खा लूंगी ।मा�ाजी सोई। मानी भी लेटी; पर र्चर्चा की 6ह सूर� आंखों के सामने खड़ी थी और
उनकी बा�ें कानों में गूंज रही थीं-आह, मैं इ�नी नीर्च हंू, ऐसी पति��, तिक मेरे मर जाने से पथ्6ी का भार हल्का हो जाएगा ? क्या कहा था, �ू अपने मॉ-बाप की बेटी है �ो ति>र मुंह म�दि�खाना । न दि�खाऊंगी, जिजस मुंह पर ऐसी काचिलमा लगी हुई है, उसे तिकसी को दि�खाने कीइच्छा भी नहीं है ।
गाड़ी अं�कार को र्चीर�ी र्चली जा रही थी । मानी ने अपना टंक खोला और अपनेआभषण तिनकालकर उसमें रख दि�ए । ति>र इंद्रनाथ का चिर्चत्र तिनकालकर उसे �ेर �क �ेख�ीरही । उसकी आखों से ग61 की एक झलक-सी दि�खाई �ी । उसने �स6ीर रख �ी औरआप-ही-आप बोली-नहीं-नहीं, मैं �ुम्हारे जी6ने को कलंतिक� नहीं कर सक�ी । �ुम �े6�ुल्य हो, �ुमन मुझ पर �या की है । मैं अपने पू61 संस्कारों का प्रायस्थिvर्च� कर रही थी । �ुमनेमुझे उठाकर ह�य से लगा चिलया; लेतिकन मैं �ुम्हें कलंतिक� न करंूगी । �ुमने मुझसे पे्रम है ।�ुम मेरे चिलए अना�र, अपमान, तिनन्�ा सब सह लोगे; पर मैं �ुम्हारे जी6न का भार न बनंूगी ।
गाड़ी अं�कार को र्चीर�ी र्चली जा रही थी । मानो आकाश की ओर इ�नी �ेर �क�ेख�ी रही तिक सारे �ारे अ�य हो गए और उस अन्�कार में उसे अपनी मा�ा का स्6रूपदि�खाई दि�या-ऐसा प्रत्यक्ष तिक उसने र्चौंककर आंखें बन्� कर लीं ।
10
जाने तिक�नी रा� गुजर र्चुकी थी । �र6ाजा खुलने की आहट से मा�ा जी की आंखेंखुल गईं । गाड़ी �ेजी से र्चल�ी जा रही थी; मगर बहू का प�ा न था 6ह आखें मलकर
उठ बैठी और पुकारा-बहू । बहू । कोई ज6ाब न धिमला।न
उसका ह�य �क-�क करने लगा । ऊपर के बथ1 पर नजर डाली, पेशाबखान में�ेखा, बेंर्चों के नीरे्च �ेखा, बहू कहीं न थी । �ब 6ह द्वार पर आकर खड़ी हो गई । बहू का क्या हुआ, यह द्वार तिकसने खोला ? कोई गाड़ी में �ो नहीं आया । उसका जी घबराने लगा ।उसने तिक6ाड़ बन्� कर दि�या और जोर-जोर से रोने लगी । तिकससे पूछे ? डाकगाड़ी अब नजाने तिक�नी �ेर में रूकेगी । कह�ी थी, बहू, मर�ानी गाड़ी में बैठें । मेरा कहना न माना ।कहने लगी, अम्माजी, आपको सोने की �कली> होगी । यही आराम �े गई।
सहसा उसे ख�रे की जंजीर या� आई । उसने जोर-जोर से कई बार जंजीर खींर्ची ।कई धिमनट के बा� गाड़ी रूकी । गाड1 आया । पड़ोस के कमरे से �ो-र्चार आ�मी और भीआये । ति>र लोगों ने सारा कमरा �लाश तिकया । तिकया नीरे्च �ख्�े को ध्यान से �ेखा । रक्�का कोई चिर्चन्ह न था । असबाब की जॉर्च की । तिबस्�र, संदूक, संदुकर्ची, बर�न सब मौजू�थे । �ाले भी सबसे बं� थे । कोई र्चीज गायब न थी । अगर बाहर से कोई आ�मी आ�ा, �ोर्चल�ी गाड़ी से जा�ा कहॉ ? एक स्त्री को लेकर गाड़ी से कू� असम्भ6 था । सब लोग इनलक्षणों से इसी न�ीजे पर पहुरे्च तिक मानी द्वार खोलकर बाहर झाकने लगी होगी औरमुदिठया हाथ से छूट जाने के कारण तिगर पड़ी होगी । गाड1 भला आ�मी था । उसने नीरे्चउ�रकर एक मील �क सड़क के �ोनों �र> �लाश तिकया । मानी को कोई तिनशान न धिमला। रा� को इससे ज्या�ा और क्या तिकया जा सक�ा था ? मा�ाजी को कुछ लोग आग्रहपू61कएक मर�ाने डब्बे में ले गए । यह तिनvर्चय हुआ तिक मा�ाजी अगले स्टेशन पर उ�र पडे़ औरसबेरे इ�र-उ�र दूर �क �ेख-भाल की जाए ।
ति6पभित्त में हम परमुखपेक्षी हो जा�े हैं । मा�ाजी कभी इसका मुंह �ेख�ी, कभीउसका । उसकी यार्चना से भरी हुई आंखें मानो सबसे कह रही थीं-कोई मेरी बच्र्ची कोखोज क्यों नहीं ला�ा ?हाय, अभी �ो बेर्चारी की र्चुं�री भी नहीं मैली हुई । कैसे-कैसे सा�ोंऔर अरमानों से भरी पति� के पास जा रही थी । कोई उस दुष्ट 6ंशी�र से जाकर कह�ा क्यों नहीं-ले �ेरी मनोभिभलाषा पूरी हो गई- जो �ू र्चाह�ा था, 6ह पूरा हो गया । क्या अब भी�ेरी छा�ी नहीं जुडा�ी ।
6ुद्धा बैठी रो रही थी और गाड़ी अं�कार को र्चीर�ी र्चली जा�ी थी ।
11
ति66ार का दि�न था । संध्या समय इंद्रनाथ �ो-�ीन धिमत्रों के साथ अपने घर की छ� परबैठा हुआ था । आपस में हास-परिरहास हो रहा था । मानी का आगमन इस परिरहास का
ति6षय था ।र
एक धिमत्र बोले-क्यों इंद्र, �ुमने �ो 6ै6ातिहक जी6न का कुछ अनुभ6 तिकया है, हमें क्या सलाह �े�े हो ? बनाए कहीं घोसला, या यों ही डाचिलयों पर बैठे-बैठे दि�न काटें ? पत्र-पतित्रकाओं को �ेखकर �ो यही मालूम हो�ा है तिक 6ै6ातिहक जी6न और नरक में कुछ थोड़ाही-सा अं�र है ।
इंद्रनाथ ने मुस्कराकर कहा-यह �ो �क�ीर का खेल है, भाई, सोलहों आना �क�ीरका । अगर एक �शा में 6ै6ातिहक जी6न नरक�ुल्य है, �ो दूसरी �शा में 6ग1 में कम नहीं ।
दूसरे धिमत्र बोल-इ�नी आजा�ी �ो भला क्या रहेगी ?इंद्रनाथ—इ�नी क्या, इसका श�ांश भी न रहेगी। अगर �ुम रोज चिसनेमा �ेखकर बारह बजेलौटना र्चाह�े हो, नौ बजे सोकर उठना र्चाह�े हो और �फ्�र से र्चार बजे लौटकर �ाशखेलना र्चाह�े हो, �ो �ुम्हें ति66ाह करने से कोई सुख न होगा। और जो हर महीने सूटबन6ा�े हो, �ब शाय� साल-भर भी न बन6ा सको।
‘�ीम�ीजी, �ो आज रा� की गाड़ी से आ रही हैं?’‘हॉँ, मेल से। मेरे साथ र्चलकर उन्हें रिरसी6 करोगे न?’‘यह भी पूछने की बा� है। अब घर कौन जा�ा है, मगर कल �ा6� खिखलानी पडे़गी।‘सहमा �ार के र्चपरासी ने आकर इंद्रनाथ के हाथ में �ार का चिल>ा>ा रख दि�या।इंद्रनाथ का र्चेहरा खिखल उठा। झट �ार खोलकर पढ़ने लगा। एक बार पढ़�े ही
उसका हृ�य �क हो गया, साँस रूक गई, चिसर घूमने लगा। ऑंखों की रोशनी लुप्� हो गई, जैसे ति6श्व पर काला पर�ा पड़ गया हों उसने �ार को धिमत्रों के सामने >ें क दि�या ओर �ोनोंहाथों से मुँह ढॉँपकर >ूट->ूटकर रोने लगा। �ोनों धिमत्रों ने घबड़ाकर �ार उठा चिलया औरउसे पढ़�े ही ह�बुजिद्ध-से हो �ी6ार की ओर �ाकने लगे। क्या सोर्च रहे थे ओर क्या हो गया।
�ार में चिलखा था—मानी गाड़ी से कू� पड़ी। उसकी लाश लालपुर से �ीन मील परपाई गई। में लालपुर में हँू, �ुरं� आओ।
एक धिमत्र ने कहा—तिकसी शतु्र ने झूठी खबर न भेज �ी हो?दूसरे धिमत्र ने बोले—हॉँ, कभी-कभी लोग ऐसी शरार�ें कर�े हें।इंद्रनाथ ने शून्य नेत्रों से उनकी ओर �ेखा, पर मुँह से कुछ बोले नहीं।कई धिमनट �ीनों आ�मी तिन6ा1क् तिनसं्प� बैठे रहे। एकाएक इंद्रनाथ खडे़ हो गए और
बोले—मैं इस गाड़ी से जाऊंगा।बम्बई से नौ बजे को गाड़ी छू, टूट�ी थी। �ोनों ने र्चटपट तिबस्�र आदि� बाँ�कर �ैयार
कर दि�या। एक ने तिबस्�र उठाया, दूसरे ने टं्रक। इंद्रनाथ ने र्चटपट कपडे़ पहने और स्टेशनर्चले। तिनराशा आगे थी, आशा रो�ी हुई पीछे।
12
एक सप्�ाह गुजर गया था। लाला 6ंशी�र �फ्�र से आकर द्वार पर बैठे ही थे तिक इंद्रनाथ नेआकर प्रणाम तिकया। 6ंशी�र उसे �ेखकर र्चौंक पडे़, उसके अनपेभिक्ष� आगमन पर नहीं, उसकी ति6कृ� �शा पर, मानो �ी�राग शोक सामने खड़ा हो, मानो कोई हृ�य से तिनकली हुईआह मूर्पि�ंमान् हो गई हों
6ंशी�र ने पूछा—�ुम �ो बम्बई र्चले गए थे न?इंद्रनाथ ने ज6ाब दि�या—जी हॉँ, आज ही आया हँू।6ंशी�र ने �ीखे स्6र में कहा—गाकुल को �ो �ुम ले बी�े! आये? �ुमसे कहॉँ उसकी
भेंट हुई? क्या बम्बई र्चला गया था?‘जी नहीं, कल मैं गाड़ी से उ�रा �ो स्टेशन पर धिमल गए।‘‘�ो जाकर चिल6ी लाओ न, जो तिकया अच्छा तिकया।‘यह कह�े हुए 6ह घर में �ौडे़। एक क्षण में गोकुल की मा�ा ने उसे उं�र बुलाया।6ह अं�र गया �ो मा�ा ने उसे चिसर से पॉँ6 �क �ेखा—�ुम बीमार थे क्या भैया?इंद्रनाथ ने हाथ—मुँह �ो�े हुए काह—मैंने �ो कहा था, र्चलो, लेतिकन डर के मारे नहीं
आ�े। ‘और था कहॉँ इ�ने दि�न?’
‘कह�े थे, �ेहा�ों में घूम�ा रहा।‘‘�ो क्या �ुम अकेले बम्बई से आये हो?’‘जी नहीं, अम्मॉँ भी आयी हैं।गोकुल की मा�ा ने कुछ सकुर्चाकर पूछा— मानी �ो अच्छी �रह है?इंद्रनाथ ने हँसकर कहा—जी हॉँ, अब 6ह बडे़ सुख से हैं। संसार के बं�नों से छूट
गई।मा�ा ने अति6श्वास करके कहा—जी हॉँ, अब 6ह बडे़ सुख से है। संसार के बं�नों से
छूट गई।मा�ा ने अति6श्वास करके कहा—र्चल, नटखट कँही का! बेर्चारी को कोस रहा है,
मगर जल्�ी बम्बई से लौट क्यों आये?इंद्रनाथ ने मुस्का�े हुए कहा—क्या कर�ा! मा�ाजी का �ार बम्बई में धिमला तिक मानी
ने गाड़ी से कू�कर प्राण �ें दि�ए। 6ह लालपुर में पड़ी हुई थी, �ौड़ा हुआ आया। 6हीं �ाह-तिKया कीं आज घर र्चला आया। अब मेरा अपरा� क्षमा कीजिजए।
6ह और कुछ न कह सका। ऑंसुओ के 6ेग ने गला बं� कर दि�यां जेब से एक पत्रतिनकालकर मा�ा के सामने रख�ा हुआ बोला—उसके संदूक में यही पत्र धिमला है।
गोकुल की मा�ा कई धिम�ट �क ममा1ह�—सी बैठी जमीन की ओर �ाक�ी रही! शोक और उससे अधि�क प[ा�ाप ने चिसर को �बा रखा था। ति>र पत्र उठाकर पढ़ने लगी—
‘स्6ामी,जब यह पत्र आपके हाथों में पहुँरे्चगा, �ब �क में इस संसार से ति6�ा हो जाऊँगी। मैं
बड़ी अभातिगन हँू। मेरे चिलए संसार में स्थान नहीं हे। आपको भी मेरे कारण क्लेश और तिनन्�ाही धिमलेगी। मैने सोर्चकर �ेखा ओर यही तिन[य तिकया तिक मेरे चिलए मरना ही अच्छा हे। मुझपर आपने जो �या की थी, उसके चिलए आपको क्या प्रति��ान करँू? जी6न में मेंने कभीतिकसी 6स्�ु की इच्छा नहीं की, परन्�ु मुझे दु:ख है तिक आपके र्चरणों पर चिसर रखकर न मरसकी। मेरी अंति�म यार्चना है तिक मेरे चिलए आप शोंक न कीजिजएगा। ईश्वर आपको स�ा सुखीरखे।‘
मा�ाजी ने पत्र रख दि�या और ऑंखों से ऑंसू बहने लगे। बराम�े में 6ीशी�र तिनसं्प�खडे़ थे और जैसे मानी लज्जान� उनके सामने खड़ी थी।