1.csttpublication.mhrd.gov.in/pdf/vigyan-garima-sindhu_106.pdf1. ल ख क9 स मd म ल क,...

202

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  • ISSN: 2320-7736

    foKkufoKkufoKkufoKku xfjekxfjekxfjekxfjek fla/kqfla/kqfla/kqfla/kq

    (�मैा�सक व�ान प��का)

    इंजी�नयर� वशषेांक ( ई-बुक सं करण स"हत )

    अंक-106

    (जुलाई-�सत&बर,2018)

    वै�ा�नक तथा तकनीक� श�दावल� आयोग

    मानव संसाधन वकास मं!ालय

    (उ#चतर &श'ा वभाग)

    भारत सरकार

  • ii

    ' व�ान ग+रमा &सधुं’ प+रचय एवं �नद0श

    ' व�ान ग+रमा &सधुं’ एक �ैमा�सक व�ान प��का है। प��का का उ/े0य है- "हदं� मा2यम से व0वव3यालयी

    �श4क5, इंजी�नयर5, वै�ा�नक5 एवमं शोध छा�5 के �लए व�ान एवमं तकनीक9 संबधंी उपयोगी एव ंअ3यतन पा

  • iii

    सदHयता शुIक :

    सदHयता

    अवJध

    सदHयता का Kकार

    सामाLय Mाहक3/सHंथाओं के &लए वQयाJथRय3 के &लए

    @�त अंक r. 14.00 r. 8.00

    1 वषF r. 50.00 r. 30.00

    5 वषF r. 250.00 r. 150.00

    10 वषF r. 500.00 r. 300.00

    15 वषF r. 750.00 r. 450.00

    20 वषF r. 1000.00 r. 600.00

    कापीराइट ©2018 ई-सHंकरण

    वेबसाइट : www.cstt.mhrd.gov.in www.csttpublication.mhrd.gov.in

    YबZ� हेतु प!-[यवहार का पता : सहायक �नदेशक, �बs9 एकक

    वै�ा�नक तथा तकनीक9 शCदावल� आयोग,

    मानव ससंाधन वकास मं�ालय, भारत सरकार,

    पि0चमी खंड-7, रामकृYणपुरम,् सेMटर-1,

    नई "दhल�- 110066

    दरूभाष- (011) 26105211, फैMस - (011) 26102882

    YबZ� Hथान : @काशन �नयं�क, @काशन वभाग

    भारत सरकार, �सवल लाइqस,

    "दhल�-110054

    Kकाशक : वै�ा�नक तथा तकनीक� श�दावल� आयोग

    मानव ससंाधन वकास मं�ालय,भारत सरकार,

    पि0चमी खंड-7, रामकYणपुरम,्

    नई "दhल� –110066

  • iv

    अ\य' क� कलम से

    वै�ा�नक एवं तकनीक9 शCदावल� आयोग 3वारा व�भqन वै�ा�नक, तकनीक9 एवं अqय संबu 4े�5 मA तैयार क9 गई

    शCदावल� के समुOचत उपयोग सु�नि0चत करने तथा उvचतर �श4ा के 4े� मA वै�ा�नक एवं तकनीक9 लेखन को

    @ो?सा"हत करने के उ/े0य से यह आयोग “व�ान गxरमा �सधुं” का @काशन करता है। आयोग 3वारा प��का के

    समय-समय पर कुछ वशषे वषय5 पर वशषेांक5 का @काशन Wकया है। इसी शृंखला मA “इंजी�नयर� वशषेांक” अपने

    पाठक5 व लेखक5 को सzपत े हुए मुझ े अपार हषF का अनुभव हो रहा है। एक ह� वषय पर ववध @कार क9

    जानकार� @ तुत करन ेसे पाठक5 को संबंOधत 4े�5 मA हो रहे नवीनतम अनुसंधान5 एव ंशोध-काय{ क9 अ3यतन

    सूचनाए ँएक ह� थान पर उनक9 भाषा मA उपलCध हो जाती ह_।

    “व�ान गxरमा �सधुं” का जलुाई - �सत&बर, 2018 का अकं-106 वशषे rप से इंजी�नयर� तथा अqय संबu

    वै�ा�नक 4े�5 से जड़ु ेवषय5 पर कA "|त Wकया जा रहा है। प�-प��काएँ न केवल सं था वशेष के �ान के वै�शY}य

    क9 पxरचायक होती ह_, बिhक राY~�य तर पर अलग-अलग 4े�5 मA हो रहे मह?वपूणF अनुसंधान5 व शोध काय{ का

    एक समेWकत व जनोपयोगी साथFक मंच भी ह_। य3यप अqय वै�ा�नक प��काओ ंके समानांतर ह� “व�ान गxरमा

    �सधंु” का उ/े0य भी मूल rप स े "हदं� मA वै�ा�नक लेखन को @चाxरत-@साxरत करना है, िजसका कायाFqवयन व

    अनुपालन प��का अपने @?येक अंक मA करती ह� रह� है। प��का का यह अकं कई िYटय5 से मह?वपूणF व

    संDहणीय है। प��का के अनुकूल व3वान लेखक5 ने अपनी रचनाए ँआयोग को उपलCध करवाई, िजनका मूhयांकन

    वषय-वशषे� एव ंभाषा-वशषे� से करवा कर उन रचनाओं को अOधक से अOधक @ामाKणक मA dOचकर बनाने क9

    को�शश क9 गई।

    इस वशषेांक क9 सामDी के साथ-साथ पाठक5 के �ानवधFन-हेत ु इंजी�नयर� वषय क9 मह?वपणूF व उपयोगी

    मूलभूत शCदावल� को भी सलंन Wकया गया है, ताWक पाठक व लेखक भवYय मA अपने 3वारा Wकए जा रहे

    वै�ा�नक एव ं तकनीक9 लखेन मA मानक शCदावल� का @योग कर राY~�य तर पर शCद-पयाFय5 क9 एकrपता

    सु�नि0चत करने मA सहयोग @दान कर सकA ।

    म_ इस अवसर पर देश के @�तिYठत व0वव3यालय5 और तकनीक9, वै�ा�नक एवं अqय सं थाओं के व�ैा�नक5

    एव ंअOधकाxरय5 से अपे4ा करता हँू, Wक वे अOधक से अOधक आयोग के वशषे� व3वान5 के सहयोग से तयैार क9

    गई @ामाKणक व मानक शCदावल� का @योग कर अपना साथFक सहयोग @दान करA।

    “व�ान गxरमा �सधुं” प��का के @ ततु वशषेांक के संपादन के �लए व3वान सद य5 का योगदान सराहनीय

    रहा है, िजसके �लए म_ उनका आभार� हँू। वषय-वशषे�5 एवं भाषा वशेष� के सहयोग के �लए भी उनके @�त

    आभार �नवे"दत करता हँू। अतं मA “व�ान गxरमा �सधं”ु के इस इंजी�नयर� वशेषांक के �लए आयोग के अOधकार�

    ी �शव कुमार चौधर� (सहायक �नदेशक) एव ंी जय�सहं रावत (सहायक वै�ा�नक अOधकार�) के @�त धqयवाद

    aयMत करता हँू।

    (Kोफेसर अवनीश कुमार)

    अ\य'

  • v

    संपादक�य

    व�ान गxरमा �सधुं के 106 वA अंक (इंजी�नयर� वशषेांक) को आपके सम4 @ तुत करते हुए हमA अपार हषF क9

    अनुभू�त हो रह� है। @ तुत अकं इंजी�नयर� वशेषांक के rप मA सामन ेआया है। इस प��का मA व�भqन तकनीक9

    लखे5 शोध-प�5 को सि&म�लत कर वशेषांक संपा"दत करने का यह अ�भनव @यास है।

    अ2य4 महोदय के �नदेशानुसार इंजी�नयर� वशषेांक पर @ात लेख5 का मhूयांकन करवाने तथा इसे स&पा"दत

    करने का अवसर �मला है। य3यप बहुत कम समय मA इसका मूhयांकन/सयंोजन/संपादन वा तव मA क"ठन कायF था

    लेWकन अथक @यास5 के साथ सभी लेख5 का सपंादन व @ूफ शोधन पूण हुआ। लेख5 शोध प�5 का वषयानुसार

    वगकरण, संयोजन तथा मूhयांकन एव ंपरामशF स�म�त 3वारा प��का के वशषेांक का नामकरण Wकया जाना, इस

    वशषेांक को साथFक rप देने मA अभीYट �सu हुआ।

    @ तुत वशेषांक के लखे आयोग 3वारा डी.ए.वी. इं ट�}यूट ऑफ इंजी�नयर� एड टेMनोलॉजी, जालंधर तथा

    अ�मट� व0वव3यालय वा�लयर (म2य @देश) मA आयोिजत इंजी�नयर� वषयक संगोिYठय5 मे शोध छा�,

    @�तभाOगय5 तथा �श4क5 से @ात हुये है। हालांWक इंजी�नयर� शCदावल� कायFsम5 मA "हदं� मA शोध प� वाचन तथा

    @का�शत करवाने का यह अ2य4 महोदय 3वारा @थम @यास है। इंजी�नयर� सं थान5 मे इंजी�नयर� वषय5 पर शोध

    प�5/लेख5 का "हदं� मA तयैार करना तथा संगोिYठय5 के मा2यम स े @ तु�तकरण एक दलुFभ कायF है। Wफर भी

    �श4क5, शोध छा�5 न ेइस वषय मA लेख5/शोध प�5 क9 "हदं� मA @ तुत करने का सराहनीय @यास Wकया है और

    यह भी कहना गलत नह�ं होगा Wक इस कायF मA शCदावल� या अqय वषय संबधंी �"ुटयाँ मानवीय भूल से रह जा

    सकती है। अतः पाठक गण इंजी�नयर� वषय क9 इस शोध प��का के @यास को और अOधक उ?कृYट बनाने का

    सुझाव आयोग क9 जrर भAजे। आयोग 3वारा आयोिजत इंजी�नयर� वषयक संगोिYठय5 म ेशोध छा�5/�श4क5 ने

    अपने तर पर शोध प�/ लेख "हदं� मA तयैार कर वाचन Wकये।

    @ तुत वशेषांक मA देश के व�भqन व0वव3यालय5, महाव3यालय5 व तकनीक9 सं थान5 के व�भqन व3वान5

    से भी लेख/शोध प� @ात हुए जो इंजी�नयर� एवं व�भqन वै�ा�नक 4े�5 से संबंOधत ह_। मूhयांकन एवं परामशF

    स�म�त 3वारा मूhयांकन के उपरांत केवल 15 आलेख @काशन योय पाए गए। इंजी�नयर� जगत स ेजुड़ ेव3वान5,

    �श4को, शोधाOथFय5, वै�ा�नक5 आ"द को इंजी�नयर� क9 मूलभूत शCदावल� से पxरOचत करने के �लए आलेख के अंत

    मA मूलभूत इलेM~ॉ�नक इंजी�नयर� शCदावल� को भी समावYट Wकया गया है।

    वशषेांक अपने वषय क9 जानकार� के आलेख5 से पxरपूणF है। शोध प�5/आलेख5 मA "हदं� जगत के सामने इस

    सवपयोगी व�ान के अनेक सारग�भFत �बदंओुं पर वचार-वमशF Wकया गया है। हम माननीय अ2य4 महोदय के

    आभार� है, िजनके मागFदशFन व @ो?साहन से ह� यह दrुह कायF �नयत समय मA �नYपा"दत हो सका। इसके साथ ह�

    परामशF/मूhयांकन एवं संपादन स�म�त के सभी सद य5 के @�त आभार �ापत करते है, िजनके अथक एव ंसमD

    @यास5 से ह� इस इंजी�नयर� वशषेंक क9 संकhपना को मूतF rप �मल सका। हमA व0वास है, Wक वशेषांक मA

    @ तुत Wकए गए इन आलेख5 से हमारे पाठक5 को अव0य @ेरणा �मलेगी।

    (&शव कुमार चौधर�) (जय&सहं रावत)

    सहायक �नदेशक स. वै�ा�नक अJधकार�

  • vi

    वशेषांक संपादक मंडल एवं परामशR स&म�त

    Kधान संपादक Kोफेसर अवनीश कुमार, अ\य'

    संपादक bी &शव कुमार चौधर�, सहायक �नदेशक

    bी जय&सहं रावत, सहायक वै�ा�नक अJधकार�

    व�ान ग+रमा &सधुं इंजी�नयर� वशेषांक ( ई-बुक संHकरण सcहत )

    अंक –106, जुलाई –&सतeबर 2018 (ISSN: 2320-7736)

    मूIयांकन एवं परामशR स&म�त

    1. ी स?यपाल अरोड़ा (इलेिM~कल इंजी.), सेवा�नव?ृत उप�नदेशक, वै.त.श. आयोग, नई "दhल�

    2. ी. एस.सी.एल शमाF (यां��क9 इंजी.), सेवा�नव?ृत सहायक �नदेशक, वै.त.श. आयोग, नई "दhल�

    3. ी धीरेq| राय (�सवल इंजी.) सेवा�नव?ृत उप�नदेशक, वै.त.श. आयोग, नई "दhल�

    4. ी हर�श दाधीच, वभागा2य4 (कंयूटर साइंस एंड इंजी.), वी.आई.ई.ट�. (V.I.E.T.) जोधपुर (राज.)

    5. डॉ. वsमा"द?य दवे, अ�स टAट @ोफेसर (इलेिM~कल इंजी.), सी.ट�.ए.ई, एम. पी. ए. य,ू उदयपुर

    6. ी वकास माथुर, अ�स टAट @ोफेसर (इलेिM~कल इंजी.), वी.आई.ई.ट�. (V.I.E.T.), जोधुपर (राज.)

    7. डॉ. @द�प गोयल, एसो�सएट @ोफेसर (�सवल इंजी.), राजक9य अ�भयां��क9 महाव3यालय, अजमेर (राज.)

    8. ीमती र�ना शमाF, "हदं� अOधकार� ("हदं� भाषावद), ए.आई.सी.ट�.ई. (AICTE), नई "दhल�

    9. ी �शव कुमार चzधर�, सहायक �नदेशक, वै�ा�नक तथा तकनीक9 शCदावल� आयोग, नई "दhल�

    10.ी जय �सहं रावत, सहायक वै�ा�नक अOधकार�, वै�ा�नक तथा तकनीक9 शCदावल� आयोग, नई "दhल�

  • vii

    अनZुमgणका

    अ\य' क� कलम स े iv संपादक�य v

    Z.सं. वषय लखेक प.ृ सं.

    1. मातभृाषा एव ंयां��क9 अ�भयां��क9 तकनीक9 �श4ा @ो. वजय कुमार 1

    2. तकनीक9 �श4ा मA मा2यम पxरवतFन : आयोग क9 भू�मका ी स?यपाल अरोड़ा 9

    3. आपदा @बंधन डॉ. @द�प कुमार गोयल 13

    4. व3युत तथा च&ुबक9य 4े� का समqवय @भाव तथा व�भqन अनु@योग ी वकास माथुर,

    ी हर�श दाधीच

    17

    5. पxरवहन का भवYय डॉ. संजीव नवल 23

    6. इंजी�नयर� मA "हदं� के @योग क9 आव0यकता डॉ. वsमा"द?य दव,े

    इंजी. जय �सहं रावत

    31

    7. पीवीसी और पोल�एनील�न सि&म के व3युत चु&बक9य गणु5 का

    अ2ययन

    डॉ. कंचन एल. �सहं,

    डॉ. संगीता पाराशर,

    डॉ. मुकेश कुमार,

    सुी सलोनी शमाF,

    36

    8. साइबर �सMयोxरट� मA �बग डाटा का @भाव ी वकास माथुर,

    ी हर�श दाधीच

    41

    9. वैकिhपक ऊजाF का कृष मA @योगः कुछ भारतीय उदाहरण डॉ. वsमा"द?य दव,े

    इंजी. जय �सहं रावत

    46

    10. चतुगुFणीय गौ�सयन लेजर बीम क9 मेनेटोलामा मA व@Wsया डॉ. �शवानी वज,

    ी कमल Wकशोर

    50

    11. मानव शर�र के बेलनाकार 4े� मA तापमान के वतरण मA आयु के @भाव डॉ. योगेश शुMला,

    सो�नया �शवहरे

    56

    12. हxरत रसायन व�ान और उसके अनु@योग सुी कोमल 64

    13. “इंटरनेट ऑफ Oथंस (IOT) एव ंइसके माटF अनु@योग5 पर एक

    समी4ा प�

    डॉ. मनोज कुमार,

    सुी पूजा अरोड़ा

    70

    14. शहर� धारा पनुवFकासः वणF रेखा, वा�लयर डॉ. Wकqजाक चौहान 75

    15. व�ान एव ं@ौ3योOगक9 और इसक9 संबOंधत शCदावल� मA नए "हदं� शCद5

    का गढनः मु/े और चनुौ�तयां

    डॉ. पाथFसारथी 79

    16. मूलभूत इलेM~ॉ�नक9 शCदावल� आयोग का @काशन 84

    इस पY!का मi Kका&शत लेख3 ,अ&भ[यjत वचार3 आcद से वै�ा�नक तथा तकनीक� श�दावल� आयोग,मानव संसाधन वकास

    मं!ालय ,भारत सरकार का सहमत होना आवkयक नह�ं है I यह पY!का वै�ा�नक तथा तकनीक� श�दावल� आयोग Qवारा �न&मRत

    श�दावल� के Kचार Kसार के साथ cहदं� मi वै�ा�नक लेखन को Kोmसाcहत करने के &लए Kका&शत क� जाती है I

  • ISSN 2320-7736 1 �व�ान ग�रमा �सधुं अकं - 106

    मातभृाषा एवं यां��क� अ�भया�ं�क� तकनीक� �श�ा

    �ोफेसर �वजय कुमार, �चतकारा �व�व�व�यालय,पंजाब

    1- भाषा का मह"व

    यूने�को के अनसुार “मातभृाषा म! पढ़ाई ब$च% के &लए सबसे अ$छा तर)का होना चा+हए ,य%-क यह घरेलु भाषा

    और &श1ा क2 भाषा के बीच के अतंर को ख5म करता है। हर भाषा अपने उपयोगकता:ओ ंको उ$च कौशल देने के

    &लए पया:>त है और कोई भाषा बड़ी या छोट) नह)ं होता है इस&लए, मातभृाषा के CनदDश को यथासंभव लंब ेसमय

    तक बढ़ाया जाना चा+हए। कोई भी दसूर) संचार क2 भाषा -कसी भी मातभृाषा क2 �वकFप नह)ं हो सकती है, और

    जब तक ब$चा अपनी मातभृाषा पूर) तरह से हा&सल नह)ं कर लेता तब तक दसूर) भाषा का �योग टाला जाना

    चा+हए।”

    इCतहास म! कई समाज मानत ेहH -क भाषा मनुIय को देवताओं का उपहार है। ऐसा माना जाता है क2 आदम न े

    सभी जी�वत �ाLणय% के नाम +दए। भाषा क2 उ5पि5त के बारे म! बहुत सी पOरकFपनाएँ हH। इनम! स े एक

    पOरकFपना म! ये भी माना गया है -क भाषा क2 शुQआत तब हुई जब मनुIय% ने वा�त�वक जीवन म! -कसी

    पहचानने योRय आवाज के बाद व�तुओं, कायS और घटनाओं का नाम देना शुQ -कया। इस पOरकFपना के अनुसार

    पहले मानव शTद मौLखक �चUन का एक �कार था, िजसका �चVह अपने अथ: क2 एक सट)क छ�व है। भाषा म!

    कुछ शTद �पIट Wप से -कसी व�तु से जड़ुी �ाकृCतक XवCनय% क2 नकल से �ा>त हुए।

    भाषा के �वारा ह) हम -कसी दसूरे Yयि,त के भाव%, �वचार% के साथ-साथ उसके Yयि,त5व व पाOरवाOरक-

    पIृठभू&म का पOरचय �ा>त करते हH। जब Yयि,त कोई बात मँुह से उ$चOरत करता है या उसे &लखकर अ&भYय,त

    करता है तो उसक2 भाषा म! उसके अंतरंग भाव% के साथ-साथ उसका रा\य, वग: और �ांतीयता भी �द&श:त

    (reflect) होती है। भाषा के इVह)ं मह5व% को मनुIय ने लाख% वष: पूव: पहचान कर उसका Cनरंतर �वकास -कया है।

    मनुIय को सeय व पणू: बनाने के &लए &श1ा जWर) है और सभी �कार क2 &श1ा का माXयम भाषा ह) है।

    सा+ह5य, �वfान, अथ:शा�g, सeयता आ+द सभी 1ेg% म! �ारं&भक से लेकर अ�धकतम &श1ा तक भाषा का मह5व

    �पIट है। जीवन के सभी 1gे% म! -कताबी &श1ा हो या YयावहाOरक &श1ा, वह भाषा के �वारा ह) �ा>त क2 जा

    सकती है।

    भाषा क2 आव�यकता केवल संचार के &लए ह) नह)ं है, बिFक इसका उपयोग सोचने के &लए एक उपकरण के

    Wप म! भी -कया जाता है। �व�व म! �वfान के 1ेg% म! नए-नए आ�वIकार व शोध होते रहते हH। इनम! अXययन

    और शोध लेखन के &लए नए-नए शTद या पाOरभा�षक शTद रचे जाते हH। इन शTद% से सामािजक-वैfाCनक �वकास

    क2 अ&भYयि,त होती है।

    1

  • ISSN 2320-7736 2 �व�ान ग�रमा �सधुं अकं - 106

    �भावी &श1ण के &लए मातभृाषा सबसे उपयु,त साधन है ,य%-क इसम! &श1ाथi के रोजाना क2 िजदंगी के

    अनुभव शा&मल हH। उन ब$च% क2 उ�चत उj, उ�चत समय पर �व�यालय म! �वशे करने और Cनय&मत Wप से

    �कूल म! जाने क2 अ�धक संभावना है िजन ब$च% को &श1ा अपनी मातभृाषा म! &मलती है। �वदेशी भाषा म! CनदDश

    �ा>त करने वाले ब$च% म! ये संभावनाएँ कम होती हH। �योग% ने साkबत कर +दया -क मातभृाषा म! &श1ा क2 कमी

    ब$च% के पढ़ाई छोड़ने का एक मुlय कारण है। &श1ा क2 भाषा अगर अपनी मातभृाषा नह)ं है तो ब$च% के �कूल

    छोड़ने क2 संभावना तीन गनुा बढ़ जाती है। इसके साथ ह) ब$च% क2 रचना5मक 1मता भी पाँच गनुा कम हो जाती

    है। इस �कार &श1ा म! सबसे पहले �वेश के Wप म! मातभृाषा, &श1ा म! सफलता क2 कंुजी है। यह Yयि,तगत

    समूह% क2 सं�कृCत को बनाए रखने का सबसे अ$छा साधन है, और राIm)य �वकास और पुनCनमा:ण म! भी इसक2

    �मुख भागीदार) है। शैn1क उपलिTधय%, &श1ा �वकास, राIm)य �वकास और राIm)य पुनCन:मा:ण के &लए मातभृाषा

    को &श1ा के माXयम के Wप म! इ�तेमाल -कया जाना चा+हए।

    2- �व$व%यापी ि(थ*त (Global Status)

    कुछ देश% को छोड़कर, इजराइल,जापान,चीन, Wस, कोOरया, जम:नी, �वीडन जसैे कई देश% और अVय कई

    देश% ने इन पाpयqम% को अपनी भाषा म! पढ़ाया है और �गCत क2 है।

    �व$व के 20 सबसे अ9छे �श�ा ;णाल> वाले देश (2016)

    1. साउथ कोOरया 6. इंRलHड 11. इजराइल 16. नावD

    2. जापान 7. अमेOरका 12. कनाडा 17. �लोवCेनया

    3. Wस 8. डनेमाक: 13. जम:नी 18. �वीडन

    4. &सगंापरु 9. चीन 14. हाँगकाँग 19 {ांस

    5. -फनलHड 10. हालHड 15. आयरलHड 20. हंगर)

    New Jersey Minority Educational Development

    �5येक देश क2 रH-कंग पांच शैn1क �तर% पर आधाOरत हैः शुQआती बचपन के नामाकंन दर, �ाथ&मक गLणत,

    �वfान पढ़ने क2 दर, माXय&मक �व�यालय गLणत, उ$च �व�यालय �नातक दर और महा�व�यालय (कॉलेज)

    �नातक दर।

    �व$व के 20 सबसे अ9छQ �श�ा ;णाल> वाले देशR मS ;योग आने वाल> भाषा

    1. साउथ कोOरयाई 11. इजराइल +हू/अरेkबक

    2. जापान जपैनीज 12. कनाडा इंिRलश

    3. Wस र&सयन 13. जम:नी डCेनश

    4. &सगंापरु इंिRलश/चाइनीज 14. हाँगकाँग इंिRलश/क! टोनीज

    5. -फनलHड -फCनश/�वीडश 15. आयरलHड इंिRलश/आईOरस

    6. इंRलHड इंिRलश 16. नावD नोवा:िजयन

    7. अमेOरका इंिRलश 17. �लोवेCनया चेक

    8. डनेमाक: डCेनश 18. �वीडन �वीडश

    9. चीन चाइनीज 19. {ांस {H च

    10. हालHड डच 20. हंगर) �लोवCनयन

  • ISSN 2320-7736 3 �व�ान ग�रमा �सधुं अकं - 106

    3- भारत मS �श�ा के आयोग

    मानव ससंाधन �वकास मंgालय हमार) &श1ा �णाल) के जVमदाता क2 तरह काम करता है। हमार) &श1ा

    �णाल) बेहतर ढंग से काम करे इसके &लए मा.सं.�व.मंgा.(MHRD) ने कुछ अलग-अलग �तर पर बोड: एवं पOरषदो

    (क&सल) का गठन -कया है। �ारं&भक &श1ा से लेकर उ$च माXय&मक &श1ा के &लए क! )य माXय&मक &श1ा बोड:

    वष: 1962 म! ग+ठत हुआ। यह माg 309 �व�यालय% से �ारंभ होकर आज 19316 �व�यालय इस बोड: से संब हH

    िजसम! 25 देश% के 211 �व�यालय भी शा&मल हH। 1118 क! )य �व�यालय, 2734 सरकार) सहायता �ा>त

    �व�यालय,14868 मु,त �व�यालय, 590 जवाहर नवोदय �व�यालय एव ं 14 क! )य CतTबतन �कूल हH। बोड: के

    चाट:र म! बहुत से उे�य &लखे हुए हH िजन पर बोड: अपनी >लाCनगं करता है।

    हमारे देश क2 उ$च &श1ा के &लए �व�व�व�यालय अनुदान आयोग सीधे (MHRD) के तहत काम करता

    है। �व�व�व�यालय अनुदान आयोग को औपचाOरक Wप से भारत म! केवल �व�व�व�यालय &श1ा के मानक% के

    समVवय, Cनधा:रण और रखरखाव के &लए 1956 म! ह) भारत सरकार के सां�व�धक Cनकाय के Wप म! �था�पत

    -कया गया था।

    इसी तरह तकनीक2 &श1ा के &लए अLखल भारतीय तकनीक2 &श1ा पOरष� क2 �थापना 1945म! परामश:क

    के Wप हुई थी। 1986म! &श1ा नीCत म!AICTEको एक सां�व�धक Cनकाय बनाने क2 &सफाOरश क2 गई। अतः 1987

    म! संसद के 52व!अ�धCनयमके तहत इसे एक सां�व�धक Cनकाय बना +दया गया। ऐसे कुछ और भी Cनकाय हH जो

    हमार) &श1ा �णाल) के �व&भVन आयाम% को मजबूती देने के &लए बनाए गए हH।

    मानव संसाधन �वकास मंgालय कई तरह क2 Oरपोटस: भी बनाता है इनम! से दो Oरपो:स बहुत मह5वपणू:

    हH। पहल), �कूल &श1ा और सा1रता �वभाग क2 शै1Lणक सांिlयक2 एक नजर म!(Educational Statistics at a

    Glance)इस Oरपोट: म! सा1रता, नामांकन, &श1क% क21मता, &श1ा पर खच: जसैे मह5वपणू: शैn1क संकेतक

    शा&मल हH। दसूर), उ$च &श1ा�वभाग (Department of Higher Education) क2 उ$च &श1ा पर अLखल भारतीय

    सवD1ण (All India Survey on Higher Education) ये समझा जाता है -क इस Oरपोट: के अंदर ��तुत डाटा

    नीCत Cनमा:ताओं और +हतधारक% को Cनधा:Oरत नीCत और योजना बनाने के अवसर �दान करेगा। इस Oरपोट: के

    आधार पर क! सरकार और रा\य सरकार! अपनी नीCतय% का Cनमा:ण करती हH।

    �gोत (Source) : Educational Statistics at a Glance 2016 (वष: 2016 क2 &श1ा सांिlयक2 क2 झलक)

  • ISSN 2320-7736 4 �व�ान ग�रमा �सधुं अकं - 106

    University Type

    Number of Universities

    2010-11 2011-12 2012-13 2013-14 2014-15 2015-16

    State Public University 281 286 292 309 316 329

    State Private University 87 105 122 153 181 197

    Deemed University-Private 91 90 91 91 90 90

    Institute of National Importance 59 59 62 68 75 75

    Central University 41 42 42 42 43 43

    Deemed University-Government 40 38 36 36 32 32

    �gोत (Source) : UGC Annual Report (�व�व�व�यालय अनुदान आयोग क2 वा�ष:क Oरपोट:)

    �gोत Source: UGC Annual Report (�व�व�व�यालय अनुदान आयोग क2 वा�ष:क Oरपोट:)

    �gोत (Source) : All India Survey on Higher Education – 2016A उ$च &श1ा-2016 का अLखल भारतीय

    सवD1ण

  • ISSN 2320-7736 5 �व�ान ग�रमा �सधुं अकं - 106

    अगर हम क! )य माXय&मक &श1ा बोड: CBSE क2 2016 क2 वा�ष:क Oरपोट: देख! तो हम! बहुत सा डाटा

    &मलता है। इन सभी म! रा\य के अनुसार पास �Cतशत, शहर) और गाँव क2 नामंकन दर का अनुपात म+हलाओ ं

    और पQुष% का अनुपात और बहुत सा डाटा &मलता है। ऐसा ह) एक डाटा इस �चg म! +दखाया गया है।

    �gोत (Source) : CBSE Annual Report (सी.बी.एस.ई. क2 वा�ष:क Oरपोट:)

    इन सभी के बीच ऐसा एक भी डाटा नह)ं है िजससे यह पता लगता है -क -कतने �कूल ऐस ेहH जो -क

    मातभृाषा म! &श1ा का संचार करते हH ना ह) ऐसा कोई डाटा है िजससे यह पता लगता है -क -कतने ब$चे

    +हदं)/मातभृाषा को माXयम लकेर पर)1ा म! बैठते हH इससे हम! सरकार के उे�य क2 गंभीरता का पता चलता है।

    &सफ: +हदं) +दवस को मनाने से +हदं)/मातभृाषा का �सार और �व�तार नह)ं होगा।

    भाषा का &श1ा सचंार म! मह5व, (UNESCO) युने�को क2 �व�वYयापी ि�थCत Oरपोट: को देखकर ये �पIट

    है -क मातभृाषा म! तकनीक2 &श1ा के चलन से हम हमारे ब$च% क2 रचना5मक 1मता का परूा उपयोग कर पाएंगे।

    इस सब के &लए हमार) सरकार को चा+हए -क वो Cनय&मत तौर पर मातभृाषा के �ाथ&मक से उ$च महा�व�यालय%

    तक के आंकड़% का �व�लेषण करे।

    वैfाCनक और तकनीक2 शTदावल) आयोग 1 अ,टूबर, 1961 को भारत सरकार, &श1ा मंgालय के एक ��ताव

    �वारा �था�पत -कया गया था। इनके मुlय उे�य ये हH-

    • +हदं) और मुlय भारतीय भाषाओ ं म! वfैाCनक और तकनीक2 शTद% को �वक&सत और पOरभा�षत

    करना तथा �व�वकोश �का&शत करना।

    • यह देखने के &लए -क �वक&सत शTद और उनक2 पOरभाषाए ँ छाg%, &श1क%, �व�वान%, वैfाCनक%,

    अ�धकाOरय% आ+द तक पहँुचे।

    • उपयोगी �Cत-qया �ा>त करके (काय:शालाओ/ंसे&मनार/अ&भ�वVयास काय:qम% के माXयम से) उ�चत

    सुधार सुCनि�चत करना।

  • ISSN 2320-7736 6 �व�ान ग�रमा �सधुं अकं - 106

    �श�ा पर राkl>य नी*त 1986म! तैयार क2 कई थी और 1992 म! संशो�धत क2 गई थी। तब से हमार) &श1ा

    नीCत म! समय-समय पर कई बदलाव हुए हH। एक बार -फर भारत सरकार गणुव5ता क2 &श1ा, नवाचार और शोध

    के संबधं म! जनमानस क2 बदलती आव�यकता संचलनता को पूरा करने के &लए एक राIm)य &श1ा नीCत तैयार

    करना चाहती है, िजससे अपने छाg% को आव�यक कौशल और fान के साथ लHस करके भारत को fान महाशि,त

    बनाने का लय रखा जा सके। �वfान, �ौ�यो�गक2, &श1ा1ेg और उ�योग म! मानव शि,त क2 कमी को समा>त

    करने के &लए पहल) बार भारत सरकार ने तर)के से जमीनी �तर पर समयब तर)के से परामश: �-qया शुW क2

    है।

    राkl>य बाल अmधकार संर�ण आयोग (NCPCR) क2 ओर से भारत क2 नई &श1ा नीCत पर बहुत सी

    &सफाOरश! क2 हH। भारत क2 2001 क2 जनगणना के अनुसार, देश के मूल लोग% �वारा लगभग 1635 तक: संगत

    मातभृाषाएँ बोल) जाती हH। ब$च% को भाषाओं ऐसे तर)के से पढ़ाया जाना चा+हए िजससे वे रचना5मक सोच सक!

    और �वतgं Wप से अपने �वचार Yय,त कर सक! । बचपन क2 �ारं&भक अव�था के दौरान सोच और अ&भYयि,त को

    �वक&सत करने के &लए �वशेष जोर +दया जाना चा+हए। मातभृाषा, +हदं), अेंजी को kg-भाषा सूg के तहत भाषा के

    �वषय% के Wप मे पढ़ाया जाता है। अVय भारतीय भाषाओं को, अेंजी भाषा या �मुख 1ेgीय भाषाओं के साथ

    मातभृाषा को बढ़ावा देने के &लये पढ़ाया जा सकता है। रा\य% के लोग% क2 गCतशीलता को बढ़ाने म! अंतर-रा\यीय

    भाषाओं को सीखना और बढ़ावा देना �मुख भू&मका Cनभा सकता है। भाषा बोलन ेवाल) जनसंlया के &लए सीखन े

    क2 सामी �वक&सत करने के &लए बोल) और संबं�धत ि�q>ट पर Cनण:य लेना चा+हए।

    4- तकनीक� �श�ा, भाषा व शnदावल>

    तकनीक2 &श1ा क2 पOरभाषा के अनुसार एक अ$छा इंजीCनयर वो है जो हमारे सामािजक जीवन को सहज

    और आरामदायक बनाने के &लए नई व�तएुँ बनाए या -फर �व�यमान व�तओंु को Wपांतर करके और बेहतर बना

    सके।

    यहाँ हम! ये जानना जWर) है -क भाषा एक संचार का माXयम है। जब हम भाषा को fान के संचार के

    &लए �योग कर रहे हH तो ये और भी \यादा जWर) हो जाता है -क भाषा सरल हो। शTदावल) के माXयम से हम

    इस fान के संचार को ठक से समझ या समझा पाते हH। हम एक ह) वा,य को अलग-अलग शTद% से ठक स े

    समझ या समझा पात ेहH। हम एक ह) वा,य को अलग-अलग शTद% के साथ &लख या बोल सकते हH। एक �व�याथi

    जब तकनीक2 &श1ा तक पहँुचता है तब तक उसके पास अपनी मातभृाषा के अलावा कुछ सामाVय तौर पर �योग

    होने वाल ेऐस ेशTद% का भी संह हो जाता है, जो-क अतंरा:Im)य �तर पर �योग म! लाए जात ेहH। उन शTद% को

    �योग म! लाने के �थान पर अगर हम कुछ नए शTद समा�वIट (introduce) कर! तो fान का संचार आसान होन े

    -क जगह मुि�कल हो जाएगा, इस&लए ये बहुत जWर) हो जाता है -क हम तकनीक2 &श1ा म! मातभृाषा का �योग

    इस उे�य के साथ कर! -क हमार) तकनीक2 &श1ा का संचार सरल एव ं�भावी (effective) तर)के से हो।

    हमारे देश म! लगभग 15 लाख ब$चे इंजीCनयर बन कर Cनकलत ेहH। �व&भVन सवD1ण इस बात क2 तरफ

    इशारा करते हH -क इनम! से लगभग 1 लाख इंजीCनयर ह) अपना काम ठक से जानत ेहH। मातभृाषा म! तकनीक2

    &श1ा को नौकर) से जोड़न ेके संबधं म! बहुत कुछ करना पड़गेा। साथ ह) हम! इस तरह के आंकड़% पर भी Xयान

    देना होगा -क हमारे -कतने �Cतशत इंजीCनयर �ांतीय, राIm)य व अंतरा:Im)य �तर पर काम करत ेहH, ऐसी इंड�m)ज

    म! जो संचार का माXयम है वो कैसा है। ये आंकड़ा हम! जWर मदद करेगा -क हमार) तकनीक2 &श1ा का माXयम

    कैसा होना चा+हए। हम! चा+हए -क हम �ाथ&मकता म! अपनी इंड�m) क2 जWरत को रख! न -क अतंरा:Im)य जWरत।

    इसके &लए मातभृाषा म! तकनीक2 &श1ा के साथ इंिRलश को एक नौकर) के &लए 1मताएँ बढ़ाने के &लए जWर)

  • ISSN 2320-7736 7 �व�ान ग�रमा �सधुं अकं - 106

    �वषय के +हसाब से पढ़ना होगा, िजससे -क एक इंजीCनयर जWरत पड़ने पर अतंरा:Im)य �तर पर बेहतर पOरणाम दे

    सके।

    5- ;*तबल-�वकृ*त आरेख ((lेस-(lेन डायqाम)

    य+द -कसी �5या�थ पदाथ: क2 लंबाई एव ंA अनु��थ 1ेgफल (cross-section area) वाल) छड़ पर F

    बल लगाने पर उसक2 लंबाई म! ∆∆∆∆l क2 व�ृ होती है तो इकाई लंबाई म! व�ृ∆∆∆∆l/l को �वकृCत (strain) तथा �Cत

    इकाई 1ेgफल (per unit area) पर लगने वाल ेबल F/A को �Cतबल (stress) कहते हH।

    k+टश भौCतकशा�gी राबट: हुक ने 1676 म! यांkgक युि,तय% को -कसी बल �वारा �वकृत करने के बारे म!

    एक सामाVय बात कह) जो लंबाई म! पOरवत:न (�वकृCत) और लगाए गए बल के संबधं म! है। इसके अनुसार-कसी

    �5या�थ व�तु (elastic material) क2 लंबाई म! पOरवत:न, उस पर आरो�पत बल के समानुपाती होता है।

    F αααα अथवा αααα

    �वकृCत को εεεεसे तथा �Cतबल को σσσσ से �द&श:त -कया जाता है।

    अतः हुक के Cनयमानुसार,

    σ σ σ σ = E ∈ ∈ ∈ ∈

    जहाँ, E को पदाथ: क2 यंग �5या�थता गणुांक (Young's Modulus of Elasticity) कहते हH। हुक के Cनयम का

    उपयोग यांkgक और &स�वल �ौ�यो�गक2 के 1ेg% म! अ5य�धक उपयोग होता है।

  • ISSN 2320-7736 8 �व�ान ग�रमा �सधुं अकं - 106

    ������������ = 400 - 450 ������������

    ������������ = 200 - 250 ������������

    = 210

    ����

    E =

    6. *नkकषx :

    I. इस लेख के सभी तय% के आधार पर हम Cनन kबVदओुं म! अपने CनIकष: को ��तुत कर सकते हH।

    II. �ांतीय, राIm)य व अंतरा:Im)य �तर पर काम करने वाले इंजीCनयर का सवD1ण।

    III. �ांतीय, रा\यीय राIm)य व अंतरराIm)य �तर पर इंड�m)ज म! भाषा का सवD1ण।

    IV. उपरो,त के �व�लेषण से fात होता है -क तकनीक2 &श1ा के सदंभ: म! CनदDश मातभृाषा म! ह) +दए जाएँ।

    V. मातभृाषा के माXयम से उ$च महा�व�यालय% तक के आंकड़% का �व�लेषण।

    VI. मातभृाषा म! पढ़ाई सामी बनाने क2 जWरत के &लए उठाए उ�चत कदम।

    ���

  • �व�ान ग�रमा �सधं ुअकं - 106

    ISSN 2320-7736 9

    तकनीक� �श�ा म� मा�यम प�रवत�न :

    आयोग क� भू�मका "ी स#यपाल अरोड़ा

    हमारे देश म तकनीक� �श�ा को ब�ुनयाद� �प से तीन �तर� म रखा जा सकता ह�। तकनीक� �श�ा का एक !मुख

    भाग !�श�ण अथा'त (े�नगं होता है। +बना ,यावहा.रक !�श�ण के तकनीक� �श�ा अपू'ण और प.रणाम देने वाल�

    नह�ं होती ले2कन आव4यक �प से !�श�ण से पूव' पर संबं5धत 7वषयो का 9ान उपल;ध कराना होता है। इसी

    आधार पर हमारे देश म �श�ा को �न=न तीन �तर� म रखा गया ह�।

    1. आई.ट�.आई अथा'त ्इंडि�(यल (े�नगं इंि�टEयूट �तर

    2. GडHलोमा �तर

    3. GडJी अथा'त �नातक और उKच �तर।

    सव'!थम आई.ट�.आई �तर क� �श�ा और माMयम के बारे म चचा' करग। हमारे देश म शैN�क �तर पर

    तकनीक� �श�ा का यह मूल �तर है।मूल से हमारा अ�भ!ाय ऐस े�तर से है िजसम Pयनूतम �श�ा के साथ अथा'त ्

    संबं5धत 7वषय� के Pयनूतम 9ान से पया'Hत तकनीक� !�श�ण उपल;घ कराया जा सकता ह�। सामाPय �प से इस

    !�श�ण 7वशषे म साइPस अथवा अPय संबं5धत 7वषय� का दसवीं तथा 2कसी (ेड के �लए �मGडल अथा'त ्आठवीं

    क�ा तक 9ान होना अ�नवा'य होता ह�। इस !कार से !�शN�त 7वधा5थ'य� के �लए जॉब अथा'त ्नौकर� पाना अथवा

    Pयूनतम �नवेश के साथ छोटा-मोटा कारोबार आर=भ करना आसान हो जाता ह� और ऐसा देखने म आया ह� 2क

    कई-कई �थान� पर इसी �तर पर !�शN�त ,यिWतय� ने अKछा बड़ा उYयोग �था7पत 2कया ह�। ऐसेकई उदाहरण

    हमारे सामने ह�। इस �तर पर �श�ा का माMयम अ�नवाय' �प से Zहदं� तथा �े+[य भाषा होती ह�। Zहदं� भाषी �े[ो

    को छोड़ कर अPय शषे !देश� म अ�नवाय' �प से अMयापक/!�श�क तथा 7वधाथ] �े[ीय भाषा का ह� !योग करत े

    ह�। वसेै तो इस �तर ,यावहा.रक 7वषयो क� अ5धकता होने के कारण 5च[, Jाफ, डायJाम तथा फोटोJाफ क�

    सहायता स ेह� पठन- पाठन अMयापन काय' होता ह� परPतु 2फर भी मशीन�, इ`याZद के बारे मे तथा मशीन� के

    !योग, उनक� देखभाल तथा कलपजुa के बारे मे जो 9ान होता ह� वह मूल �प से अJेंजी भाषा म होता ह�।

    7वYया5थ'य� क� सु7वधा के �लए इसे उन तक �े[ीय भाषा म पहँुचाना अ�नवाय' हो जाता ह�। ऐसी ि�थ�त म जहां

    तक आयोग क� श;दावल� का !4न ह� तो इसका कोई मह`व नह�ं ह�। !�श�क/अMयापक अपनी ह� भाषा मे !च�लत

    श;द� के माMयम स े7वधाथ] को !�शN�त करत ेह�। उनके �लए प�ुतक� म !का�शत श;दावल� इतना मह`व नह�ं

    रखती, वे तो बाजार म दकुान� परबोले जाने वाले बोलचाल के श;द� से ह� प.र5चत होता ह� और उPह� से उनका

    सारा काय' पूरा हो जाता ह�।

    ऐसी ि�थ�त म आयोग का यह कत',य ह� 2क इस �तर पर चल रह� श;दावल� को अपनी श;दावल� म

    समावेश करल तथा आई.ट�.आई के अMयापक� को �नशुcक मूल श;दावल� उपल;ध करा कर उन म अपनी

    श;दावल� को लोक7!य करने का !यास कर िजससे 7वYया5थ'य� क� तकनीक� भाषा क� जानकार� म सुधार होगा

    और उनमे आ`म7व4वास आएगा।

    आई.ट�.आई �तर क� �श�ा के प4चात अब हम देश म तकनीक� �श�ा के दसूरे �तर अथा'त ् GडHलोमा

    �तर क� �श�ा क� चचा' करगे। �वत[ंता !ािHत से पवू' तक भारत म इस �तर क� तकनीक� �श�ा ह� शायद

    2

  • �व�ान ग�रमा �सधं ुअकं - 106

    ISSN 2320-7736 10

    अ�ंतम �तर क� �श�ा समझी जाती थी। यहा ंतक 2क वष' 1847 म �था7पत थॉमसन कॉलेज ,�ढक� जो आज

    आई.आई.ट� के नाम से 7वiयात ह� म भी आर=भमे �स7वल इंजी�नयर� का GडHलोमा ह� Zदया जाताथा। इसके

    प4चात ् पूणे तथा कोलक`ता इ`याZद म कई तकनीक� 7वYयालयो क� �थापना क� गई और �वंत[ता !ािHत के

    प4चात तो भारत म GडHलोमा �तर क� �श�ा का !सार काफ� तजेी से हुआ।

    इस �तर पर �श�ा म !वशे पाने के �लए 10 वीं परPतु अ5धकतर 12 वीं क�ा तक 7व9ान अथवा कई

    शाखाओं के�लए उससे संबं5धत 7वषयो क� 12वीं तक क� �कूल� �श�ा का होना अ�नवाय' ह�। भारत म आज

    GडHलोमा �तर पर पढाए जाने वाले सं�थानो क� संiया अन5गनत ह�। सरकार� तथा �नजी �तर पर GडHलोमा �तर

    क� �श�ा के �लए सं�थान� क� कोई कमी नह�ं ह� परPतु �श�ा के !सार के साथ-साथ इसके �तर म 2कPह� कारणो

    से इतना सुधार नह�ं आ पाया िजतना !`या�शत था।

    GडHलोमा �तर पर 2कसी भी सं�थान मे अ5धकतम ,�थानीय 7वYयाथ] का !वेश होता है। यह 7वYयाथ]

    अ5धकतर 10 वीं अथवा 12 वीं तक क� �श�ा अपनी �े[ीय भाषा म !ाHत करत ेह�। इसी भाषा म 7व9ान तथा

    अPय 7वषय� क� जानकार� !ाHत होती ह� परPतु सामाPय अंJेजी भाषा का भी काम चलाऊ 9ान आव4यक होता

    ह�।अJेंजी का अKछा 9ान होने पर भी अJेंजी म बात चीत करना अथवा �लखना ऐसे 7वYया5थ'य� के �लए अ`यंत

    कZठन होता ह�।

    जहाँ तक GडHलोमा �तर पर पढाए जाने वाले 7वषयो का !4न ह� इन म से कुछ 7वषय तो �नातक �तर

    पर पढ़ाए जाने वाल े�तर के अनु�प ह� होत ेह�। अतंर केवल इतना होता ह� 2क GडHलोमा �तर पर िजस 7वषय क�

    जानकार� !ारंि=भक तथा सीधी ,यावहा.रक होती ह�। वह�ं पर �नातक �तर पर उसी 7वषय का कुछ और गहन

    अMययन होता ह�। 7वषयो म ेकाफ� सीमा तक समानता होती ह� परPत ुउसके �तर म काफ� अतंर होता ह�। यहाँ पर

    हमारा ता`पय' यह ह� 2क �नातक �तर 2क कुछ पु�तक तथा सामJी GडHलोमा �तर के 7वYया5थ'य� के �लए

    संदभ'Jंथ� या सहायक Jथं� के �प म !योग क� जाती ह�। सभी शाखाओं जैसे �स7वल, 7वYयुत, इलेW(ॉ�नक,

    दरूसंचार तथा धातकुम' म �नातक �तर पर !थम और Y7वतीय वष' म पढ़ाए जाने वाल� पु�तक /Jथं GडHलोमा �तर

    के Y7वतीय और ततृीय वष' के 7वYया5थ'य� Yवारा !योग 2कये जात ह�। !ाईवटे !काशक ZहPद� तथा �े[ीय भाषाओ ं

    म ऐस े7वYया5थ'य� के �लए प�ुतक� म पाoय सामJी !का�शत तो करत ेह� ले2कन वा�तव म इनका �तर वांछनीय

    नह�ं होता। यह कुछ कामचलाऊ तथा �म5pत भाषा म होता ह�। ऐसी ि�थ�त म आयोग से अपे�ा क� जाती ह� 2क

    वह �े[ीय तकनीक� �श�ा बोडa के साथ �मल कर इस �तर के 7वYया5थ'यो के �लए अपनी तकनीक� श;दावल� का

    !योग करते हुए कुछ पु�तक !का�शत कर। ZहPद� भाषी �े[ो के �लए तो पाठक का वग' भी !ाHत सiंया म

    उपलबध होगा Wय�2क इसम दस राqय तथा अPय �े[ीय भी आ जात ह�। ऐसे करके आयोग तकनीक� �श�ा के

    �े[ मे अपनी 7वक�सत श;दावल� को लोक7!य कर सकेगा तथा साथ ह� साथ मानक Jंथ� क� उपल;धता के कारण

    तकनीक� �श�ा मे कुछ सुधार भी होगा। GडHलोमा !ाHत 7वYयाथ] ए.एम.आई.ई क� पर��ा उ`तीण' करके अपना

    �श�ा �तर बढ़ा सकत े ह�। और (A.M.I.E) ने भी ZहPद� माMयम से GडHलोमा करने वाल� के �लए पर��ा का

    माMयम ZहPद� रखा हुआ ह�। ऐसे 7वYया5थ'य� क� सहायता के �लए तथा उPह मानक तकनीक� प�ुतक उपल;ध

    कराने के �लए आयोग को कुछ पहल करनी चाZहए और ऐसे 7वYया5थ'य� के �लए AMIE के पाoयxम के अनुसार

    तकनीक� पु�तके !का�शत कर अपनी श;दावल� को लोक7!य बनाकर इसके उपयोग का दायरा बढ़ाना चाZहए।

    इसके प4चात ्हम �नातक तथा इससे ऊँच �तर पर तकनीक� �श�ा तथा माMयम के बारे म चचा' करगे।

    इससे पूव' यह आव4यक ह� 2क भारत म �नातक तथा उKच �तर पर तकनीक� �श�ा का अवलोकन 2कया जाए।

    वै9ा�नक-तकनीक� जन-शिWत के संबधं म भारत क� ि�थ�त 7व4व म तीसरे �थान पर आकं� जाती ह�। देश

    भर म 789 7व4व7वYयालय� से हजार� डॉWटरेट तथा कई हजार �नातको`तर Gड5Jयाँ !दान क� जाती ह� और भारत

    म सी.एस.आई.आर. (वै9ा�नक तथा औYयो5गक अनुसंधान प.रषद) तथा डी.आर.डी.ओ (र�ा अनुसंधान 7वकास

  • �व�ान ग�रमा �सधं ुअकं - 106

    ISSN 2320-7736 11

    संगठन) तथा भाभा एटॉ�मक एनज] ब=बई, �पेस साzस इ`याZद कई !योगशालाओ ंके अPतग'त अनेक अनुसंधान

    और खोज क� गई ह�। भारत क� तकनीक� जनशिWत का देश 7वशषेकर अमे.रका म 7वशेष !�त{ठा और मान ह�।

    7पछले तीन दशक� से जब सूचना !ौYयो5गक� का 7वकास तथा !सार हुआ ह� तब से भारत के इंजी�नयर और

    कंHयूटर वै9ा�नक� को 7वशेष !�त{ठा �मल� ह�। इस सPदभ' म अWसर कहत ेहुए सुना जाता ह� 2क भारतीय� को इस

    �े[ म अ5धक सफलता �मलने का एक कारण यहाँ तकनीक� �श�ा का अंJेजी माMयम होना ह�। इसम कोई संशय

    नह�ं परPतु सारा pेय इसी भाषा क 9ान को ह� नह�ं जाता। वा�तव म भारतीय अपन ेकाय' म ईमानदार, वफादार

    और मेहनती ह�, ऐसे �थान� पर भी उPह�ने धाक जमाई ह� और नाम कमाया ह� जहाँ अंJेजी न बोल� जाती ह� और

    न ह� समझी जाती ह� 2कसी �शN�त प.रपWव ,यिWत को 2कसी भी दसूरे देश क� अथवा दसूरे �थान क� काम

    चलाऊ तकनीक� भाषा सीखने म तुलना`मक �प से बहुत कम समय और मेहनत करनी पड़ती ह� ऐसा मेरा अनभुव

    ह�। इस�लए अगर भारतीय� क� तकनीक� �श�ा का माMयम अJेंजीन होकर उनक� �े[ीय भाषा अथवा ZहPद� होती

    तो 7व4व म उनका उतना ह� स=मान होता। �वतं[ता !ािHत के प4चात ्भारत म तकनीक� �श�ा का !सार काफ�

    तेजी से हुआ और यह !सार 7पछले दो-तीन दशक� म तो अ!`या�शत �प से हुआ ह�। 1947 से पूव' भारत म केवल

    36 सं�थाओ म इंजी�नयर� क� �श�ा !दान क� जाती थी। िजसमे कुल 7वYया5थ'य� क� सiंया 2500 स ेभी कम थी

    जब2क आज AICTE Yवारा जार� आकंड़� के अनुसार इस समय (2017-18) अखल भारतीय तकनीक� �श�ा

    प.रषY (AICTE) Yवारा अनुमोZदत 10396 सं�थान ह� िजसम से महारा{( म सबसे अ5धक 1564, त�मलनाडु म

    1339 और उ`तर!देश म 1165 ह�। देश म इंजी�नयर� क� �श�ा Jहण कर रहे 7वYया5थ'य� क� संiया लाखो म ह�।

    उपरोWत आकड़ो को !द�श'त करने का मेरा अ�भ!ाय यह ह� 2क भारत म इस समय तकनीक� �श�ा का

    !सार बड़ े�तर पर हो चुका ह�। 2कसी भी सामाPय 7वYयाथ को GडJी �तर तक क� तकनीक� �श�ा पाने के �लए

    अपने नजद�क के ह� 2कसी इंजी�नयर� कॉलेज म !वेश आसानी से �मल सकता ह� अथा'त ्अब यह सब काफ� सुलभ

    हो गया ह�। इस �श�ा के !सार के साथ यह भी �प{ट ह� 2क अब इंजी�नयर� क� �श�ा Jहण करने वाला 7वYयाथ

    Jामीण प.रवशे से भी आ रहा ह�, वैसे तो पहले भी कई !�तभाशाल� 7वYयाथ] Jामीण प.रवशे स ेभी आते थ े

    ले2कन इंजी�नयर� सं�थांए कम होने के कारण इनक� संiया भी कम होती थी। मेरा ता`पय' यह ह� 2क अब

    इंजी�नयर� !ाHत करने के �लए अ5धकतर 7वYयाथ] सभी ZहPद� अथवा �े[ीय भाषा से 7व9ान के 7वषय पढ़ कर

    आत ेह�। ऐसा पहले भी होता था परPत ुअब यह सम�या तुलना`मक �प से अ5धक 7वYया5थ'य� के �लए ह�। 7पछल े

    दो दशक� म युवा अMयापक� क� भत] हुई और !ाय देखन ेम आया 2क ऐस ेअMयापक भी इंजी�नयर� के ऐसे 7वषय

    िजनम 7वषय क� ,याiया अथवा वण'न क� आव4यकता होती ह� वहां पर चचा' के दौरान अJेंजी को छोड़ एकदम

    ZहPद� तथा �े[ीय भाषा पर आ जाते ह�। 60 के दशक म भी कुछ-कुछ ऐसा होता था ल2ेकन उस समय अ5धकतर

    अMयापक अपनी झेप �मटाने के �लए एकदम देशी से अंJेजी भाषा क� ओर आ जात ेथे जब2क आजकल ऐसा बहुत

    कम होता है और नए-नए अMयापक अपनी भाषा म वण'न करना और ,याiया करने म सहज होत ेह�।

    इस चचा' से आशय यह ह� 2क अब समय ऐसा आ चुका ह� जब हमारे 7वYयाथ] अJेंजी भाषा क� अपे�ा

    ZहPद� तथा �े[ीय भाषाओं म 9ान !ाHत करने म सुगमता अनुभव करत ेह� और अMयापक वग' भी इस काय' के

    �लए त`पर ह�। कZठनाई केवल यह� ह� 2क ZहPद� माMयम स ेपढन,े पढ़ान ेवाले 7वYयाथ] और अMयापक म ह�न

    भावना होती ह� और रोज़गार के �े[ म भी ऐसे लोगो का �वागत नह�ं होता। जब अपन ेह� देश म अपनी भाषा स े

    7वYयाथ]य� का �वागत नह�ं होता तो 7वदेश के �लए Wया कहा जाए। खैर धीरे-धीरे यह गलतफहमी �वयं दरू हो

    रह� ह�। जब 2कसी तकनीक� 7वशषे9 को अपने उ`पादन को बेचने के �लए बाज़ार म आना पड़ता ह� तो उसे �वतः

    ह� बाज़ार क� !च�लत भाषा म संवाद करना पड़ता ह� तभी वह अपने उ`पाद क� जानकार� और गणु� का वखान कर

    सकता ह� और आजकल के इस �पधा'̀ मक युग म तो �नमा'ण क� अपे�ा उ`पाद क� +बx� कZठन काय' ह�, इसी�लए

    हमारे देश मे कई बार Jेजऐुट (�नातक) इंजी�नयर से यह अपे�ा क� जाती ह� 2क उसे अJेंजी के साथ-साथ �े[ीय

    भाषा का पया'Hत 9ान होना अ�नवाय' ह�।

  • �व�ान ग�रमा �सधं ुअकं - 106

    ISSN 2320-7736 12

    इस 7वषय को बहुत आगे बढ़ाने स ेपूव' यहां पर आयोग क� साथ'क भू�मका के बारे म 7वचार करत ेह�।

    वै9ा�नक श;दावल� आयोग 7पछले लगभग 50 वषa स ेतकनीक� �े[ म �नातक �तर तक JPथ �नमा'ण योजना

    पर काय' कर रहा ह� परPत ुइसम !ग�त सPतोषजनक नह�ं ह�। आर=भ म तो इसका कारण यह था 2क तकनीक�

    9ान रखने वाले अMयापक� को Zहदं� भाषा और आयोग Yवारा �न�म'त श;दावल� का !या'Hत 9ान नह�ं था और सब

    से बड़ी द7ुवधा यह रह� ह� 2क �नातक �तर पर �लखी तकनीक� पु�तक को पढेगा कौन? 7वYयाथ] 2कसी भी पु�तक

    को तभी छूता ह� जब उसे उस पु�तक का अपनी पर��ा से कोई संबंध Zदखता हो अथा'त ्पर��ा म सहायक ह�। यह

    तभी संभव ह� जब अMयापक पर��ा का माMयम वह� हो।

    इन वष के दौरान उKच अ5धका.रय� Yवारा अ5धकतर यह कहते हुए सुना जाता ह� 2क �श़�ा का माMयम

    Zहदं� �े[ीय भाषा तो कर द परPत ुपया'Hत संiया म पु�तक तथा पाoय सामJी तो उपल;ध ह� नह�ं। इसका उ`तर

    यह ह� 2क वां�छत पु�तके तथा पाoय सामJी बाजार म रात� रात आ जाएगी बशत उसके पढने वाले 7वYयाथ]

    उपल;ध हो और 7वYयाथ] तभी उपल;ध होग जब �श�ा का माMयम पणू' �प स ेZहदं� अथवा संबं5धत भाषा होगा।

    आज क� ि�थ�त मे 25 वष' पहले क� अपे�ा कुछ सुधार ह� और काफ� 7वYयाथ] Zहदं� तथा �े[ीय भाषा के माMयम

    से पढ़न ेके �लए तैयार ह�। इस ि�थ�त म आयोग को पहल करनी चाZहए तथा अपनी सी�मत �[ोत के आधार पर

    सभी राqय� म �नातक �तर 2क !`येक 7वषय पर दो-दो या अ5धक पु�तक �लखाई जानी चाZहए। इस !कार संदभ'

    हेत ुपु�तक� का एक ब�क बन जाएगा इसके आधार पर यह अनुरोध 2कया जा सकता 2क अMयापक और पर��ा का

    माMयम Zहदं� अथवा �े[ीय भाषाए ंह� इस !कार आर=भ म माMयम प.रवत'न के �लए �वतः ह� एक प.रवशे बन

    जाएगा और जब 7वYयाथ] को पूर� तरह अपने माMयम से पढ़ने �लखने क� सु7वधा �मलेगी तो माMयम प.रवत'न क�

    मागँ पूर� करने म कZठनाई कम होगी। इस !कार के काय' से आयोग का काय'�े[ तो बढ़ेगा ह� और साथ -साथ

    वषa से �न�म'त श;दावल� का !योग और पर��ण हो पाएगा। जो काय' आयोग काय'शालाओं Yवारा संपPन करता ह�

    वह काय' अ5धक 2xया`मक और !भावी �प स ेसंपPन होगा और पाठक वग' !युWत श;दावल� पर ZटHपणयां और

    फ�ड बैक दग िजसक� आयोग को अ`य5धक आव4यकता ह�।

    ���

  • ISSN 2321-0443 ISSN 2320-7736 13 �व�ान ग�रमा �सधंु अकं - 106

    आपदा �बंधन

    डॉ. �द�प कुमार गोयल, �वभागा य!, �स�वल इंजी%नयर� �वभाग,

    राजक&य अ�भयां'(क& महा�व*यालय, अजमेर (राज.)

    सार:

    आज �व�व को कई तरह क� आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। आपदाए ं�ाकृ�तक एवं मानवज�नत

    होती ह�। आपदाओं के !लए #कसी न #कसी $प म% हम उ'तरदायी है। आपदाओं से जान माल क� बहुत हा�न होती है

    और जीवन अ-त-/य-त हो जाता है। संकट को रोका नह1ं जा सकता है। पर2त ुआपदा से होने वाले नुकसान को

    उ3चत योजना और �बंध स ेकम #कया जा सकता है इसम% आपदा �बंधन के !लए उपयोग म% आने वाल1 �व!भ2न

    तकनीक9 के साथ-साथ मानवीय मूदन �व�व

    के #कसी न #कसी भाग म% आपदाएँ आती रहती ह�। �वक!सत देश9 न ेआपदाओ ं से �नपटने के !लए तकनीक

    �वक!सत कर इस पर �नयंAण करने क� को!शश क� है। �वकासशील व अ�वक!सत देश9 म% आपदाओ ं के कारण

    जान-माल क� हा�न अ3धक होती है। आपदा स ेहोने वाल ेनुकसान को कम करने के !लए उ3चत �बंधन क� ज$रत

    होती है। आपदा �बधंन म% #कसी न #कसी $प म% सभी का योगदान हो सकता है। इसम% इंजी�नयर, 3च#क'सक,

    आम लोग, सभी का योगदान हो सकता है। भारत सरकार आपदा को रोकने के !लए काफ� �यास कर रह1 है।

    राDE1य -तर पर देश म% “राDE1य आपदा �बंधन �ा3धकरण” (National Disaster Management Authority)

    बनाया हुआ है तथा देश म% रा\य एवं िजला -तर पर आपदा �बंधन �ा3धकरण बनाए गए ह�। परंतु आम गया

    लोग9 के सहयोग के ^बना आपदा �बंधन को �भावी नह1ं बनाया जा सकता है।

    संकट और आपदा

    संकट (Hazard) �ाकृ�तक एवं मानवज�नत होते ह�। इ2ह% �नbन �कार स ेवगcकृत #कया जा सकता है।

    3

  • ISSN 2321-0443 ISSN 2320-7736 14 �व�ान ग�रमा �सधंु अकं - 106

    संकट जब ऐसे -थान पर आता है जहाँ वह अ3धक नुकसान कर सकता है तो वह आपदा बन जाती है।

    आज िजस तरह से भवनो का �नमाeण हो रहा ह� उसम% 2यायालय के �नयम9 का पालन नह1ं हो रहा है।

    तथा असुरfgत gेA (Vulnerable Area) म% जनसंjया बढ़ रह1 है। िजससे जान-माल क� हा�न क� संभावना बढ़

    रह1 है। असुरfgत gेA9 म% �वकास के कायe हो रहे ह�। भारत देश म% भी कई आपदाओं के कारण जान-माल क� हा�न

    हुई है। केदारनाथ क� Aासद1 इसका जीता जागता उदाहरण है।

    भवन9 को भूकbप रोधी (Earthquake proof) हवारोधी (wind resistant) तथा िजस आपदा के ��त

    असुरgा क� संभावना अ3धक हो उसके अनुसार भवन क� योजना तथा भवन सं>हता के अनुसार �नमाeण करना

    चा>हए। जसैे -

    IS1893, IS8326 - भूकंप के !लए

    IS875 (part 3), हवारोधी के !लये

    • पुराने भवन9 क� मरbमत करना (Retrofitting of structures) िजससे #क नुकसान कम से कम हो।

    • �व!भ2न सरकार1 सं-थान9 के ~वारा (जसैे #क �नमाeण सामी एवं �ौ~यो3गक� संवधeन परष~ (CBMTPC), भारतीय �ौ~यो3गक� सं-थाओं, राDE1य आपदा �बंधन �ा3धकरण (NDMA), रा\य आपदा �बंधक

    आयोग9/सं-थान9 ~वारा) आपदा से संबं3धत सभी >दशा �नदश9 (Guidelines) का अनुपालन #कया जाना

    चा>हए।

    Hazards) Valnerability

    Disasterआपदा

    असुरfgत

    संकट

    संकट (Hazards)

    �ाकृ�तक सकंट (Natural Hazards)

    मानवज�नत संकट (Man-Made Hazards)

    भूकbपचवातभू-खलनबाढ़

    सनुामी\वालामुखीसखूा

    (Earthquake) (Cyclone)

    (Flood)

    (Tsunami) (Volcanos) (Drought)

    (Landslide)

    पयाeवरणीय �नगमन�दषूणदघुeटना

    आग

    (Pollution)

    (Accident) (Fire)

    (Environmental degradation)

  • ISSN 2321-0443 ISSN 2320-7736 15 �व�ान ग�रमा �सधंु अकं - 106

    • �नमाeण सामी एव ं �ौ~यो3गक� संवधeन परष~ (BMTPC) ~वारा �न!मeत भारतीय वूलनेरे^ब!लट1 एटलस (Vulnerability Atlas of India) बनाया हुआ है उसम% परेू भारत के हर gेA का परूा �ववरण >दया गया है #क

    कौनसा gेA #कस संकट म% असुरfgत (Vulnerability) है। इसके अनुसार योजना बनाकर आपदा से बचा जा

    सकता है।

    आपदा �बंधन म3 मानवीय मू5य6 क& भू�मका

    आपदा �बंधन म% तकनीक (Technology) का बहुत योगदान है। इसम% सभी अ!भय2ता (!स�वल, यां^Aक�,

    इलेEॉ�नक, �व~युत इ'या>द) 3च#क'सक, सेना, आम नागरक, आ>द का योगदान होता है।

    आपदा स ेहोने वाल ेनुकसान को तकनीक� उपयोग के साथ-साथ हम अपना योगदान देकर भी कम कर सकत े

    ह�। आज कल मनुDय9 म% संवेदनशीलता और सं-कार9 का �नरंतर छास हो रहा िजससे हम लोग -वाथc होते जा रहे ह�।

    इस!लए #कसी पर कोई आपदा आती है तोह म% कोई मतलब नह1ं होता है। !शgा म% मानवीय मूदखाया गया है:-

    vkink izcaèku pØ

    iqu%izkI

    r

    djuk

    izfrfØ;k

    rS;kjh

    'keu

    (DisasterManagement

    Cycle)(Preareations)

    (Response)

    (Rec

    ov

    ery

    )

    (Mitigation)

    शमन (Mitigation) आपदाओं के �भाव को 2यूनतम करना। इसम% जसैे भवन सं>हता तथा gेA9 को संकट

    के अनुसार �वभािजत करना (zonation) असुरgा �व�लेषण (Vulnerability analysis) आ>द।

    पूवH तैयार� (preparedness): आपदा के दौरान #कस तरह से कायeवाह1 करनी है उसक� योजना बनाना।

    जसैे पवूeयोजना क� तैयार1 (preparedness plan)आपातकाल1न अयास करना(emergency exercise),आपात

    ि-थ�त से �नपटने के !लये �!शgण देना, च�