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पहला अयाय आचाय हज़ारी साद ि᳇वेदी के िव एवं कृितव

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Page 1: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 2

सािहतय सजन का सजनकार क िकततव स िकनारा करक मलयाकन सभव

नह ह| वस ही िकततव को पिरवश एव अिजत ससकार स भी पथक नह िकया

जा सकता| अथारत िकसी भी सािहितयक कित को रचनाकार की वयिकतक छाप स

रिहत नह माना जा सकता| रचनाकार का वयिकतक जीवन यिद सीध रप म

उनक सािहतय पर नह पड़ता ह तो भी परोकष रप म उनकी रचना पर अवशय

पड़ता ह| आलोचय रचनाकार हज़ारी परसाद ि वदी की रचना पर भी उनक

िकततव का परभाव सप तः पिरलिकषत होता ह| अतः हजारीपरसाद ि वदी क

सािहतय का अधययन करन क िलए उपयरकत दि स उनक िकततव का अधययन

तकरसगत ह|

आचायर हज़ारी परसार ि वदी िहनदी सािहतय जगत क सफल रचनाकार ह|

उनका िकततव अनय रचनाकार स िबलकल िभ ह| उनका िचतन उनकी सोच-

िवचार सािहतय क परित उनका दि कोण आिद उनक अलग िकततव को परितफिलत

करनलायक ह| समाज तथा सािहतय क परित उनका यह अलग दि कोण ही उनकी

रचना को दसर स अलग कर दता ह|

जनम एव िशकषा

ससकत सािहतय क अधयता िहनदी सािहतय क गौरव और भारतीय ससकित

क सचच उपासक ि वदी जी का जनम सन 1907 म हआ था| उ रपरदश क बिलया

जनपद क आरत दब का छपरा नामक गाव मसामानय लिकन परिति त बरा ण

पिरवार म उनका जनम हआ था| ि वदी क िपता अनमोल ि वदी और माता

जयोितषमती थ| ि वदी को उनह न बहत पयार स दखभाल िकया था| िकसी एक

मकदम की उलझन क समय उनक िपता को एक हज़ार रपय की पराि हई| इसी

कारण अनमोल ि वदी न अपन पतर को हज़ारी परसाद नाम रखा|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 3

ि वदी का परारिभकजीवन किठनाइय स भरा था| गाव क अकितरम

वातावरण म जनम लन क कारण ही उनक िकततव म सरलता िनरछलता और

परदःख कातरता की झलक दखा जा सकता ह| ि वदी क पिरवार की आिथक

िसथित बहत खराब थी| उनका सपणर छातर-जीवन अथर सकट स जझत हए बीता

पर उनह न कभी भी थकना िनराश होना नह जाना| व अपनी वीरता स सार

सकट को पार करत रह और िवजयी भी हए| शरी बनारसी दास चतवदी को उनह न

अपनी आिथक िवपि क बार म िलखा था| ndash ldquoथोडी अगरजी सीखकर और

एडमीशन परीकषा उ ीणर करक बड़ उतसाह स म िहनद िव िव ालय क सटरल

कॉलज म पढ़न गए| मर घर की आिथक वसथा की बात न कहना ही उिचत ह|

मझ याद आता ह िक िपताजी न बड़ी किठनाई क बाद गाव क एक िकत स

चालीस रपय उ ार िलए थ| यह मरी इटरिमिडयट की भत की परथम बिल थी|

म उसक बाद कवल कलास म बठता और फीस नह दता था| ससकत कॉलज स

पनदरह रपय वि िमलती थी और पाच रपय का एक शन करता था| कछ खाता

था और कछ बचाकर घर भज दता था| घर की दशा बहत दयनीय थी|rdquo1

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी की परारिभक िशकषा रपरा गाव क पराईमरी

सकल म हई थी| उनह न बसिरकापर गाव क िमिडल सकल स सन 1920 म िमिडल

परीकषा परथम शरणी म उ ीणर की और पनदरह-सोलह वषर की आय म व काशी आ गए|

उनक चाचा न उनह लघ िस ात कौमदी रटा दी थी| व रामचिरत मानस का भी

पाठ िकया करत थ| उनह न कचची उमर म उपिनषद और महाभारत की िहनदी

टीका को पढ़ा था| उनक चाचाजी ि वदी को बचपन म ही भारत-भारती और

जयदरथ-वध कठसथ करा िदया था| उनक िपता शरी अनमोल ि वदी उनह जयोितषी

और वकील बनान क इचछक थ| जयोितषी सभवतः इसिलए िक उनह अपन

1 हज़ारी परसाद ि वदी क उपनयास म नारी हिरशकर शमार प 11-12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 4

िपतामह शरी आरत दब क समय की जयोितष क ारा आिजत सपि -खयाित की

वापसी की थी|

हज़ारी परसद ि वदी की ससकत िशकषा पहल जनम-गराम क िनकट िसथत

lsquoपराशर आशरमrsquo म परारभ करा दी गई थी| बाद म रणवीर ससकत पाठशाला काशी

स उनह न परविशका परीकषा उ ीणर की थी| सन 1929 म काशी िहनद

िव िव ालय स सािहतयाचायार की परीकषा उ ीणर की और सन 1930 म

जयोितषाचायर की| ि वदी को सबस अिधक किठनाई अगरजी अधययन म हई थी|

आिथक सकीणरता क कारण व अगरजी की पढाई को िनयिमत बनाय नह रख सक|

ववािहक जीवन

लगभग बीस वषर की उमर म ि वदी का ववािहक जीवन परारभ हआ| सन

1927 म शरीमती भगवती दवी आपक जीवन म परवश िकया| व अतयत साधवी

पित-परायण तथा सौमय सवभाव की नारी थी| इनक चार पतर और तीन पितरया ह|

आचायरजी का पािरवािरक जीवन सखद रहा| उनक पिरवार का वातावरण उनकी

सािहितयक साधन म सदव सहायक िस होता रहा ह| िदसबर 1979 म शरीमती

भगवती दवी की मतय हई|

िकततव क िवभ पहल

सकल कॉलज की िशकषा समा करक ि वदी शािनतिनकतन म िहनदी िशकषक

हो गए| यहा क वातावरण म उनक िच की उदारता का िवपल िवकास हआ|

अधययन-िचतन लखन म व िनरतर िनमगन रह| यह उनका ससकार हआ| उनक

जीवन म चिरतर-िनमारण म और जञान वधरन म इस ससथा का महतवपणर योगदान ह|

उनह न समनजी को िलख हए पतर म कत िकया ह| ldquoमा-बाप की कपा स थोडा पढ़

गया और पढ़ भी कया गया न िहनदी न ससकत न अगरज़ी न जञान न िवजञान|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 5

सौभागयवश महापरष क दशरन हो गए| म न अपना आदशर अचछा चना था और

भगवान की कपा स अचछ आदिमय क बीच पहच गया|rdquo2

ि वदी को अनक महापरष का िव ान का तथा सत का आशीवारद पान

का सअवसर परा हआ| इनम स गाधीजी मालवीय टगोर मखय ह| परिस

पतरकार और िहनदी िव ान शरी बनारसीदास चतवदी का सपकर और अनकपा उनह

परा हो रही थी| व चतवदी को अपना सािहतय गर मानत थ| शािनतिनकतन क

शानत पराकितक और भावना सप वातावरण म उनक जीवन क बीस वषर का

महतवपणर समय तीत हआ था| यह समय उनक जञान-यजञ का सयम साधना का

तप-तयाग का समय था| ि वदी अपना दसरा जनम शािनतिनकतन पहचन क िदन

को मानत ह| (1930 नवबर 7 को व शािनतिनकतन पहच) इस वातावरण म रहकर

व सही अथर म सनत हो गय| ि वदी की शाित धीरता तथा शीलता उनक आतम-

शोधन का िशकषा का और ससकार का सपिरणाम ह|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी ससकत क िव ान तथा िहदी क कशल िशकषक

परभावी लखक और आलोचक थ| व सन 1930 म िहदी िशकषक क पद पर

शािनतिनकतन म िनयकत हए थ| बाद म उनह न िशकषा िवभाग क अनक पद को

भिषत िकया| उनकी समपराि य क सबध म कहा गया ह िक उनह जो कछ परा

हआ अथक शरम साधना क बाद ही िमला वरन उनकी उपलिबधया उनक शरम और

योगयता की तलना म कम ही थी| व िवभागाधयकष रकटर आिद परशासिनक पद

पर कायररत रह िकनत उनका िशकषक कभी स नह हआ| उनह िशकषक कायर म

आितमक आनद आता था| व वासतव म ऋिष परमपरा क तयागी िकत थ

पदिलपसा उनम नह थी|

2 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी हिरशकर शमार प 14

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 6

उनका परथम और सवारिधक महतव का पद शािनतिनकतन म िहदी िशकषक का

था| यहा उनह टगोर का आशीवारद परा हआ था| शािनतिनकतन का िशकषक पद

पाना आचायर ि वदी क िलए एक सयोग और सयोग था| सन 1930 स 1950 तक व

शािनतिनकतन म िहदी िशकषक रह|

सन 1950 म उनकी िनयिकत बनारस िव िव ालय म िहदी क परोफसर और

िवभागाधयकष क पद पर हई| 1960-1967 म व पजाब िव िव लय चणडीगढ़ म

िहदी क परोफसर और िवभागाधयकष बन| सन 1967 क बाद पनः काशी लौट आय

जहा कछ समय तक रकटर क पद पर कायर िकया| जीवन क अितम िदन म व उ र

परदश िहदी ससथा क उपाधयकष पद पर आसीन थ| सन 1955 म उनह रा पित ारा

राजभाषा आयोग का सदसय घोिषत िकया गया| सन 1945 स 1950 तक व िहदी

भवन िव भारती क सचालक रह और िव भारती िव िव ालय की एिकसकयिटव

कौिनसल क सदसय रह| सन 1950-53 म सािहतय अकादमी िदलली की साधारण

सभा और परबध सिमित क सदसय नागरी परचािरणी सभा क हसतलख की खोज

तथा अकादमी स परकािशत नशनल िबिबलयागरफी क िनरीकषक सन 1954 म रह|

लखनऊ िव िव ालय न ि वदी को सन 1949 म उनकी रचना lsquoकबीरrsquo पर

िडलीट की मानद उपािध स भिषत िकया| सन 1957 म उनह रा पित ारा

lsquoप भषणrsquo की उपािध स अलकत िकया गया| सन 1962 म पि म बगाल सािहतय

अकादमी ारा टगोर परसकार स सममिनत िकया गया तथा सन 1973 क कनदरीय

सािहतय अकादमी की ओर स परसकार परा हआ| उनक िवषय म डा राजमल बोरा

का कथन lsquoअपन जीवन म उनह न जो भी पाया हrsquo अपनी योगयता क अनपात स

कम ही पाया हrdquo3 पणरतया सतय ह|

3 आचायर हज़ारी परसाद िववदी राजमल बोरा प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 7

बालयावसथा क lsquoबजनाथrsquo शािनतिनकतन क lsquoि वदीrsquo बनारस िहनद

िव िव ालय क lsquoपिणडतजीrsquo पजाब िव िव ालय क lsquoआचायरजीrsquo और िशषय क

lsquoगरदवrsquo डॉ हज़ारी परसाद ि वदी िहदी सािहतय िवधा क अमोल र थ| उनका

िकततव बहआयामी था| वह मानवतावादी िवचारधारा क सवरशर समीकषक

सािहतयितहास क शोधकतार एव ाखयाता भारतीय ससकित क पराणवान सदश

वाहक अपरितम कथा-िशिलप िस सपादक सहज साधक भाषा लािलतय क

परित ापक मम किव कशल वागमी और सफल अधयापक थ| उनक िकततव की

िवराटता शबद म कत नह िकया जा सकता|

सफल सािहतयकार क रप म आचायर ि वदी जी की परित ा आज बहचिचत

ह| परनत जयोितष-िवधा क पिणडत जयोितषाचायर हज़ारी परसाद ि वदी का नाम

अजञात एव अपरिस ह| इस बहत कम लोग जानत ह| जयोितष िव ा आचायरजी

को पतक परमपरा स परा ह| उनक िपता तथा जयोितष िव ा गर की यह परबल

इचछा थी िक आचायारजी या तो बहत बड़ जयोितषी बन या िफर एक परिति त

वकील| काशी म रहकर उनह न जयोितष िवषय की शा ी और आचायर परीकषाय

पास की| जयोितषाचायर िशकषा उ ीणर करन क प ात पिरवार की िवषम

पिरिसथितय स सघषर करत हए कछ िदन तक कलक म रहकर एक गटर पर रखी

चौकी पर जमकर बठत और कडिलया दखा करत थ| यही नह शािनतिनकतन म

अधययन करत हए ि वदी न परचछ नाम स अपनी जयोितष िव ा गर परामदयाल

ओझा क कछ मत का खडन करत हए एक लख िलखा था| यह लख लोग को

पसनद आया और इनह इसी िवषय पर आयोिजत सममलन की िनणारयक सिमित न

बगाल परात क परितिनिध क रप म चना|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक करणा

सयमादी स अलकत होन क साथ-साथ मानवता क महान पजक थ| एक सथान पर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 8

व अपना िवचार कत करत हए िलखत ह ndash ldquoजहा औदायर ह िववक ह करणा ह

सयम ह मनषयता वह ह िकत जो मनोभाव इसक िवपरीत जात ह उनकी दि म

मनषयता नह हो सकती ह|rdquo4

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी एक सफल वागमी ह| गहन स गहन िवषय को

अतयत सहजता क साथ परसतत करन की अपवर शिकत उनम थी| व बड़ी स बड़ी बात

को गय पिरहास क साथ पानी म घली हई गड की भाती न िकसी आयास क गल

उतार दन म पणर कशल थ| डॉ परभाकर माचव िलखत ह िक ldquoि वदी जी क यहा

पता ही नह चलता था कया भाषण म और कया लखन म िक िव ता कहा ह

सहजता कहा ह|rdquo5

आचायर ि वदी िवचारशील और िस ातवादी िकत थ| परतयक िवषय पर

उनक िनणरय सिचितत और सप हआ करत थ| सािहतय धमर दश-परम राजनीित

आिद िकसी भी कषतर म उनक िवचार म या अनतिवरोध नह था| व मानवता क

पजारी थ| उनका सािहतय मानव-मिहमा का मानवोतथान का लख ह और उसकी

परगित का साधना भी| मनषयता तथा मानव-परम उनकी दि म बड़ी चीज़ ह|

उनक साथ िजन लोग न बरा स बरा वहार िकया उनक िकततव पर कीचड़

डाला उनकी जीिवका पर लाट मारी उनक िवकास सार काट स रध उनक

िवरोध म कछ करना तो दर कछ कहन का भी उनह न परय नह िकया| काशी

िहनद िव िव ालय स िवदा होत समय जाच सिमित क अधयकष क बार-बार पछन

पर भी उनह न कछ नह कहा|

4 िववदी गरथावली हज़ारी परसाद िववदी प 46 5 सा कितक आलोचना और हज़ारी परसाद िववदी परो िकशोर शमार प 63

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 9

आचायर ि वदी जी सचच दश-भकत िकत थ| उनह न शरी बनारसी दास

चतवदी को भज एक पतर म इस बात पर दःख परकट िकया था िक ndash ldquoयह कसा अधर

ह िक अपन दश क िवषय म भी हम अगरज़ी क िलखी पसतक पढ़कर जञान परा करना

पड़|rdquo6 उनह न दश को समप ससकित का गान िकया ह| व दश क िवघटन की

सभावना मातर स िथत हो जात ह| उनह न सन 1967 म अपन िपरय छातर िशव

परसाद िसह को िलख पतर म ldquoआशका हो रही ह िक दश की खणड-खणड न हो जाय|

दश कह िवयतनाम क रासत तो नह जा रहा ह|rdquo7 ि वदी क lsquoबाणभ की

आतमकथाrsquo म भि नी क माधयम स दश की एकता और सगठन क कायर क परयास का

वणरन िकया ह| lsquoचारचनदर लखrsquo म शतवाहन क चकरविततव की चदरलखा की कामना

और तदनकल पररणा म आचायर ि वदी का दशपरम अतिनिहत ह| पननरवा का आयरक

समदरग रा ीय एकता अिभयान का आधार सतभ ह| िहनदी भाषा स ि वदी को

बहत लगाव था| य िप व िहनदी को रा भाषा नह मातभाषा कहन म गवर का

अनभव करत थ| व िहनदी क परभाव को महतव को सवीकार करत हए उस

उ रो र शिकत-समप बनान की लालसा रखत थ| व िहनदी को हास और अशर

परम और शष भिकत और शर ा की रप दनवाली भाषा मानत थ| व िवदशी भाषा

क िवरोधी नह थ वरन उनक वचरसव क िवरोधी थ| उनह न भाषा नीित

आलोचना करत हए िलखा ह ndash ldquoअभी तक दश क परभावशाली लोग न िहनदी को

मन स सवीकार नह िकया ह ऐसा लगता ह| एक िदन तीसर िव की भाषा क

रप म िहनदी आनवाली ह आ रही ह|rdquo8

6 सा तािहक िह द तान प 4 7 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 37 8 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 41

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 2: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 2

सािहतय सजन का सजनकार क िकततव स िकनारा करक मलयाकन सभव

नह ह| वस ही िकततव को पिरवश एव अिजत ससकार स भी पथक नह िकया

जा सकता| अथारत िकसी भी सािहितयक कित को रचनाकार की वयिकतक छाप स

रिहत नह माना जा सकता| रचनाकार का वयिकतक जीवन यिद सीध रप म

उनक सािहतय पर नह पड़ता ह तो भी परोकष रप म उनकी रचना पर अवशय

पड़ता ह| आलोचय रचनाकार हज़ारी परसाद ि वदी की रचना पर भी उनक

िकततव का परभाव सप तः पिरलिकषत होता ह| अतः हजारीपरसाद ि वदी क

सािहतय का अधययन करन क िलए उपयरकत दि स उनक िकततव का अधययन

तकरसगत ह|

आचायर हज़ारी परसार ि वदी िहनदी सािहतय जगत क सफल रचनाकार ह|

उनका िकततव अनय रचनाकार स िबलकल िभ ह| उनका िचतन उनकी सोच-

िवचार सािहतय क परित उनका दि कोण आिद उनक अलग िकततव को परितफिलत

करनलायक ह| समाज तथा सािहतय क परित उनका यह अलग दि कोण ही उनकी

रचना को दसर स अलग कर दता ह|

जनम एव िशकषा

ससकत सािहतय क अधयता िहनदी सािहतय क गौरव और भारतीय ससकित

क सचच उपासक ि वदी जी का जनम सन 1907 म हआ था| उ रपरदश क बिलया

जनपद क आरत दब का छपरा नामक गाव मसामानय लिकन परिति त बरा ण

पिरवार म उनका जनम हआ था| ि वदी क िपता अनमोल ि वदी और माता

जयोितषमती थ| ि वदी को उनह न बहत पयार स दखभाल िकया था| िकसी एक

मकदम की उलझन क समय उनक िपता को एक हज़ार रपय की पराि हई| इसी

कारण अनमोल ि वदी न अपन पतर को हज़ारी परसाद नाम रखा|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 3

ि वदी का परारिभकजीवन किठनाइय स भरा था| गाव क अकितरम

वातावरण म जनम लन क कारण ही उनक िकततव म सरलता िनरछलता और

परदःख कातरता की झलक दखा जा सकता ह| ि वदी क पिरवार की आिथक

िसथित बहत खराब थी| उनका सपणर छातर-जीवन अथर सकट स जझत हए बीता

पर उनह न कभी भी थकना िनराश होना नह जाना| व अपनी वीरता स सार

सकट को पार करत रह और िवजयी भी हए| शरी बनारसी दास चतवदी को उनह न

अपनी आिथक िवपि क बार म िलखा था| ndash ldquoथोडी अगरजी सीखकर और

एडमीशन परीकषा उ ीणर करक बड़ उतसाह स म िहनद िव िव ालय क सटरल

कॉलज म पढ़न गए| मर घर की आिथक वसथा की बात न कहना ही उिचत ह|

मझ याद आता ह िक िपताजी न बड़ी किठनाई क बाद गाव क एक िकत स

चालीस रपय उ ार िलए थ| यह मरी इटरिमिडयट की भत की परथम बिल थी|

म उसक बाद कवल कलास म बठता और फीस नह दता था| ससकत कॉलज स

पनदरह रपय वि िमलती थी और पाच रपय का एक शन करता था| कछ खाता

था और कछ बचाकर घर भज दता था| घर की दशा बहत दयनीय थी|rdquo1

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी की परारिभक िशकषा रपरा गाव क पराईमरी

सकल म हई थी| उनह न बसिरकापर गाव क िमिडल सकल स सन 1920 म िमिडल

परीकषा परथम शरणी म उ ीणर की और पनदरह-सोलह वषर की आय म व काशी आ गए|

उनक चाचा न उनह लघ िस ात कौमदी रटा दी थी| व रामचिरत मानस का भी

पाठ िकया करत थ| उनह न कचची उमर म उपिनषद और महाभारत की िहनदी

टीका को पढ़ा था| उनक चाचाजी ि वदी को बचपन म ही भारत-भारती और

जयदरथ-वध कठसथ करा िदया था| उनक िपता शरी अनमोल ि वदी उनह जयोितषी

और वकील बनान क इचछक थ| जयोितषी सभवतः इसिलए िक उनह अपन

1 हज़ारी परसाद ि वदी क उपनयास म नारी हिरशकर शमार प 11-12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 4

िपतामह शरी आरत दब क समय की जयोितष क ारा आिजत सपि -खयाित की

वापसी की थी|

हज़ारी परसद ि वदी की ससकत िशकषा पहल जनम-गराम क िनकट िसथत

lsquoपराशर आशरमrsquo म परारभ करा दी गई थी| बाद म रणवीर ससकत पाठशाला काशी

स उनह न परविशका परीकषा उ ीणर की थी| सन 1929 म काशी िहनद

िव िव ालय स सािहतयाचायार की परीकषा उ ीणर की और सन 1930 म

जयोितषाचायर की| ि वदी को सबस अिधक किठनाई अगरजी अधययन म हई थी|

आिथक सकीणरता क कारण व अगरजी की पढाई को िनयिमत बनाय नह रख सक|

ववािहक जीवन

लगभग बीस वषर की उमर म ि वदी का ववािहक जीवन परारभ हआ| सन

1927 म शरीमती भगवती दवी आपक जीवन म परवश िकया| व अतयत साधवी

पित-परायण तथा सौमय सवभाव की नारी थी| इनक चार पतर और तीन पितरया ह|

आचायरजी का पािरवािरक जीवन सखद रहा| उनक पिरवार का वातावरण उनकी

सािहितयक साधन म सदव सहायक िस होता रहा ह| िदसबर 1979 म शरीमती

भगवती दवी की मतय हई|

िकततव क िवभ पहल

सकल कॉलज की िशकषा समा करक ि वदी शािनतिनकतन म िहनदी िशकषक

हो गए| यहा क वातावरण म उनक िच की उदारता का िवपल िवकास हआ|

अधययन-िचतन लखन म व िनरतर िनमगन रह| यह उनका ससकार हआ| उनक

जीवन म चिरतर-िनमारण म और जञान वधरन म इस ससथा का महतवपणर योगदान ह|

उनह न समनजी को िलख हए पतर म कत िकया ह| ldquoमा-बाप की कपा स थोडा पढ़

गया और पढ़ भी कया गया न िहनदी न ससकत न अगरज़ी न जञान न िवजञान|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 5

सौभागयवश महापरष क दशरन हो गए| म न अपना आदशर अचछा चना था और

भगवान की कपा स अचछ आदिमय क बीच पहच गया|rdquo2

ि वदी को अनक महापरष का िव ान का तथा सत का आशीवारद पान

का सअवसर परा हआ| इनम स गाधीजी मालवीय टगोर मखय ह| परिस

पतरकार और िहनदी िव ान शरी बनारसीदास चतवदी का सपकर और अनकपा उनह

परा हो रही थी| व चतवदी को अपना सािहतय गर मानत थ| शािनतिनकतन क

शानत पराकितक और भावना सप वातावरण म उनक जीवन क बीस वषर का

महतवपणर समय तीत हआ था| यह समय उनक जञान-यजञ का सयम साधना का

तप-तयाग का समय था| ि वदी अपना दसरा जनम शािनतिनकतन पहचन क िदन

को मानत ह| (1930 नवबर 7 को व शािनतिनकतन पहच) इस वातावरण म रहकर

व सही अथर म सनत हो गय| ि वदी की शाित धीरता तथा शीलता उनक आतम-

शोधन का िशकषा का और ससकार का सपिरणाम ह|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी ससकत क िव ान तथा िहदी क कशल िशकषक

परभावी लखक और आलोचक थ| व सन 1930 म िहदी िशकषक क पद पर

शािनतिनकतन म िनयकत हए थ| बाद म उनह न िशकषा िवभाग क अनक पद को

भिषत िकया| उनकी समपराि य क सबध म कहा गया ह िक उनह जो कछ परा

हआ अथक शरम साधना क बाद ही िमला वरन उनकी उपलिबधया उनक शरम और

योगयता की तलना म कम ही थी| व िवभागाधयकष रकटर आिद परशासिनक पद

पर कायररत रह िकनत उनका िशकषक कभी स नह हआ| उनह िशकषक कायर म

आितमक आनद आता था| व वासतव म ऋिष परमपरा क तयागी िकत थ

पदिलपसा उनम नह थी|

2 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी हिरशकर शमार प 14

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 6

उनका परथम और सवारिधक महतव का पद शािनतिनकतन म िहदी िशकषक का

था| यहा उनह टगोर का आशीवारद परा हआ था| शािनतिनकतन का िशकषक पद

पाना आचायर ि वदी क िलए एक सयोग और सयोग था| सन 1930 स 1950 तक व

शािनतिनकतन म िहदी िशकषक रह|

सन 1950 म उनकी िनयिकत बनारस िव िव ालय म िहदी क परोफसर और

िवभागाधयकष क पद पर हई| 1960-1967 म व पजाब िव िव लय चणडीगढ़ म

िहदी क परोफसर और िवभागाधयकष बन| सन 1967 क बाद पनः काशी लौट आय

जहा कछ समय तक रकटर क पद पर कायर िकया| जीवन क अितम िदन म व उ र

परदश िहदी ससथा क उपाधयकष पद पर आसीन थ| सन 1955 म उनह रा पित ारा

राजभाषा आयोग का सदसय घोिषत िकया गया| सन 1945 स 1950 तक व िहदी

भवन िव भारती क सचालक रह और िव भारती िव िव ालय की एिकसकयिटव

कौिनसल क सदसय रह| सन 1950-53 म सािहतय अकादमी िदलली की साधारण

सभा और परबध सिमित क सदसय नागरी परचािरणी सभा क हसतलख की खोज

तथा अकादमी स परकािशत नशनल िबिबलयागरफी क िनरीकषक सन 1954 म रह|

लखनऊ िव िव ालय न ि वदी को सन 1949 म उनकी रचना lsquoकबीरrsquo पर

िडलीट की मानद उपािध स भिषत िकया| सन 1957 म उनह रा पित ारा

lsquoप भषणrsquo की उपािध स अलकत िकया गया| सन 1962 म पि म बगाल सािहतय

अकादमी ारा टगोर परसकार स सममिनत िकया गया तथा सन 1973 क कनदरीय

सािहतय अकादमी की ओर स परसकार परा हआ| उनक िवषय म डा राजमल बोरा

का कथन lsquoअपन जीवन म उनह न जो भी पाया हrsquo अपनी योगयता क अनपात स

कम ही पाया हrdquo3 पणरतया सतय ह|

3 आचायर हज़ारी परसाद िववदी राजमल बोरा प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 7

बालयावसथा क lsquoबजनाथrsquo शािनतिनकतन क lsquoि वदीrsquo बनारस िहनद

िव िव ालय क lsquoपिणडतजीrsquo पजाब िव िव ालय क lsquoआचायरजीrsquo और िशषय क

lsquoगरदवrsquo डॉ हज़ारी परसाद ि वदी िहदी सािहतय िवधा क अमोल र थ| उनका

िकततव बहआयामी था| वह मानवतावादी िवचारधारा क सवरशर समीकषक

सािहतयितहास क शोधकतार एव ाखयाता भारतीय ससकित क पराणवान सदश

वाहक अपरितम कथा-िशिलप िस सपादक सहज साधक भाषा लािलतय क

परित ापक मम किव कशल वागमी और सफल अधयापक थ| उनक िकततव की

िवराटता शबद म कत नह िकया जा सकता|

सफल सािहतयकार क रप म आचायर ि वदी जी की परित ा आज बहचिचत

ह| परनत जयोितष-िवधा क पिणडत जयोितषाचायर हज़ारी परसाद ि वदी का नाम

अजञात एव अपरिस ह| इस बहत कम लोग जानत ह| जयोितष िव ा आचायरजी

को पतक परमपरा स परा ह| उनक िपता तथा जयोितष िव ा गर की यह परबल

इचछा थी िक आचायारजी या तो बहत बड़ जयोितषी बन या िफर एक परिति त

वकील| काशी म रहकर उनह न जयोितष िवषय की शा ी और आचायर परीकषाय

पास की| जयोितषाचायर िशकषा उ ीणर करन क प ात पिरवार की िवषम

पिरिसथितय स सघषर करत हए कछ िदन तक कलक म रहकर एक गटर पर रखी

चौकी पर जमकर बठत और कडिलया दखा करत थ| यही नह शािनतिनकतन म

अधययन करत हए ि वदी न परचछ नाम स अपनी जयोितष िव ा गर परामदयाल

ओझा क कछ मत का खडन करत हए एक लख िलखा था| यह लख लोग को

पसनद आया और इनह इसी िवषय पर आयोिजत सममलन की िनणारयक सिमित न

बगाल परात क परितिनिध क रप म चना|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक करणा

सयमादी स अलकत होन क साथ-साथ मानवता क महान पजक थ| एक सथान पर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 8

व अपना िवचार कत करत हए िलखत ह ndash ldquoजहा औदायर ह िववक ह करणा ह

सयम ह मनषयता वह ह िकत जो मनोभाव इसक िवपरीत जात ह उनकी दि म

मनषयता नह हो सकती ह|rdquo4

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी एक सफल वागमी ह| गहन स गहन िवषय को

अतयत सहजता क साथ परसतत करन की अपवर शिकत उनम थी| व बड़ी स बड़ी बात

को गय पिरहास क साथ पानी म घली हई गड की भाती न िकसी आयास क गल

उतार दन म पणर कशल थ| डॉ परभाकर माचव िलखत ह िक ldquoि वदी जी क यहा

पता ही नह चलता था कया भाषण म और कया लखन म िक िव ता कहा ह

सहजता कहा ह|rdquo5

आचायर ि वदी िवचारशील और िस ातवादी िकत थ| परतयक िवषय पर

उनक िनणरय सिचितत और सप हआ करत थ| सािहतय धमर दश-परम राजनीित

आिद िकसी भी कषतर म उनक िवचार म या अनतिवरोध नह था| व मानवता क

पजारी थ| उनका सािहतय मानव-मिहमा का मानवोतथान का लख ह और उसकी

परगित का साधना भी| मनषयता तथा मानव-परम उनकी दि म बड़ी चीज़ ह|

उनक साथ िजन लोग न बरा स बरा वहार िकया उनक िकततव पर कीचड़

डाला उनकी जीिवका पर लाट मारी उनक िवकास सार काट स रध उनक

िवरोध म कछ करना तो दर कछ कहन का भी उनह न परय नह िकया| काशी

िहनद िव िव ालय स िवदा होत समय जाच सिमित क अधयकष क बार-बार पछन

पर भी उनह न कछ नह कहा|

4 िववदी गरथावली हज़ारी परसाद िववदी प 46 5 सा कितक आलोचना और हज़ारी परसाद िववदी परो िकशोर शमार प 63

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 9

आचायर ि वदी जी सचच दश-भकत िकत थ| उनह न शरी बनारसी दास

चतवदी को भज एक पतर म इस बात पर दःख परकट िकया था िक ndash ldquoयह कसा अधर

ह िक अपन दश क िवषय म भी हम अगरज़ी क िलखी पसतक पढ़कर जञान परा करना

पड़|rdquo6 उनह न दश को समप ससकित का गान िकया ह| व दश क िवघटन की

सभावना मातर स िथत हो जात ह| उनह न सन 1967 म अपन िपरय छातर िशव

परसाद िसह को िलख पतर म ldquoआशका हो रही ह िक दश की खणड-खणड न हो जाय|

दश कह िवयतनाम क रासत तो नह जा रहा ह|rdquo7 ि वदी क lsquoबाणभ की

आतमकथाrsquo म भि नी क माधयम स दश की एकता और सगठन क कायर क परयास का

वणरन िकया ह| lsquoचारचनदर लखrsquo म शतवाहन क चकरविततव की चदरलखा की कामना

और तदनकल पररणा म आचायर ि वदी का दशपरम अतिनिहत ह| पननरवा का आयरक

समदरग रा ीय एकता अिभयान का आधार सतभ ह| िहनदी भाषा स ि वदी को

बहत लगाव था| य िप व िहनदी को रा भाषा नह मातभाषा कहन म गवर का

अनभव करत थ| व िहनदी क परभाव को महतव को सवीकार करत हए उस

उ रो र शिकत-समप बनान की लालसा रखत थ| व िहनदी को हास और अशर

परम और शष भिकत और शर ा की रप दनवाली भाषा मानत थ| व िवदशी भाषा

क िवरोधी नह थ वरन उनक वचरसव क िवरोधी थ| उनह न भाषा नीित

आलोचना करत हए िलखा ह ndash ldquoअभी तक दश क परभावशाली लोग न िहनदी को

मन स सवीकार नह िकया ह ऐसा लगता ह| एक िदन तीसर िव की भाषा क

रप म िहनदी आनवाली ह आ रही ह|rdquo8

6 सा तािहक िह द तान प 4 7 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 37 8 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 41

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 3: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 3

ि वदी का परारिभकजीवन किठनाइय स भरा था| गाव क अकितरम

वातावरण म जनम लन क कारण ही उनक िकततव म सरलता िनरछलता और

परदःख कातरता की झलक दखा जा सकता ह| ि वदी क पिरवार की आिथक

िसथित बहत खराब थी| उनका सपणर छातर-जीवन अथर सकट स जझत हए बीता

पर उनह न कभी भी थकना िनराश होना नह जाना| व अपनी वीरता स सार

सकट को पार करत रह और िवजयी भी हए| शरी बनारसी दास चतवदी को उनह न

अपनी आिथक िवपि क बार म िलखा था| ndash ldquoथोडी अगरजी सीखकर और

एडमीशन परीकषा उ ीणर करक बड़ उतसाह स म िहनद िव िव ालय क सटरल

कॉलज म पढ़न गए| मर घर की आिथक वसथा की बात न कहना ही उिचत ह|

मझ याद आता ह िक िपताजी न बड़ी किठनाई क बाद गाव क एक िकत स

चालीस रपय उ ार िलए थ| यह मरी इटरिमिडयट की भत की परथम बिल थी|

म उसक बाद कवल कलास म बठता और फीस नह दता था| ससकत कॉलज स

पनदरह रपय वि िमलती थी और पाच रपय का एक शन करता था| कछ खाता

था और कछ बचाकर घर भज दता था| घर की दशा बहत दयनीय थी|rdquo1

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी की परारिभक िशकषा रपरा गाव क पराईमरी

सकल म हई थी| उनह न बसिरकापर गाव क िमिडल सकल स सन 1920 म िमिडल

परीकषा परथम शरणी म उ ीणर की और पनदरह-सोलह वषर की आय म व काशी आ गए|

उनक चाचा न उनह लघ िस ात कौमदी रटा दी थी| व रामचिरत मानस का भी

पाठ िकया करत थ| उनह न कचची उमर म उपिनषद और महाभारत की िहनदी

टीका को पढ़ा था| उनक चाचाजी ि वदी को बचपन म ही भारत-भारती और

जयदरथ-वध कठसथ करा िदया था| उनक िपता शरी अनमोल ि वदी उनह जयोितषी

और वकील बनान क इचछक थ| जयोितषी सभवतः इसिलए िक उनह अपन

1 हज़ारी परसाद ि वदी क उपनयास म नारी हिरशकर शमार प 11-12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 4

िपतामह शरी आरत दब क समय की जयोितष क ारा आिजत सपि -खयाित की

वापसी की थी|

हज़ारी परसद ि वदी की ससकत िशकषा पहल जनम-गराम क िनकट िसथत

lsquoपराशर आशरमrsquo म परारभ करा दी गई थी| बाद म रणवीर ससकत पाठशाला काशी

स उनह न परविशका परीकषा उ ीणर की थी| सन 1929 म काशी िहनद

िव िव ालय स सािहतयाचायार की परीकषा उ ीणर की और सन 1930 म

जयोितषाचायर की| ि वदी को सबस अिधक किठनाई अगरजी अधययन म हई थी|

आिथक सकीणरता क कारण व अगरजी की पढाई को िनयिमत बनाय नह रख सक|

ववािहक जीवन

लगभग बीस वषर की उमर म ि वदी का ववािहक जीवन परारभ हआ| सन

1927 म शरीमती भगवती दवी आपक जीवन म परवश िकया| व अतयत साधवी

पित-परायण तथा सौमय सवभाव की नारी थी| इनक चार पतर और तीन पितरया ह|

आचायरजी का पािरवािरक जीवन सखद रहा| उनक पिरवार का वातावरण उनकी

सािहितयक साधन म सदव सहायक िस होता रहा ह| िदसबर 1979 म शरीमती

भगवती दवी की मतय हई|

िकततव क िवभ पहल

सकल कॉलज की िशकषा समा करक ि वदी शािनतिनकतन म िहनदी िशकषक

हो गए| यहा क वातावरण म उनक िच की उदारता का िवपल िवकास हआ|

अधययन-िचतन लखन म व िनरतर िनमगन रह| यह उनका ससकार हआ| उनक

जीवन म चिरतर-िनमारण म और जञान वधरन म इस ससथा का महतवपणर योगदान ह|

उनह न समनजी को िलख हए पतर म कत िकया ह| ldquoमा-बाप की कपा स थोडा पढ़

गया और पढ़ भी कया गया न िहनदी न ससकत न अगरज़ी न जञान न िवजञान|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 5

सौभागयवश महापरष क दशरन हो गए| म न अपना आदशर अचछा चना था और

भगवान की कपा स अचछ आदिमय क बीच पहच गया|rdquo2

ि वदी को अनक महापरष का िव ान का तथा सत का आशीवारद पान

का सअवसर परा हआ| इनम स गाधीजी मालवीय टगोर मखय ह| परिस

पतरकार और िहनदी िव ान शरी बनारसीदास चतवदी का सपकर और अनकपा उनह

परा हो रही थी| व चतवदी को अपना सािहतय गर मानत थ| शािनतिनकतन क

शानत पराकितक और भावना सप वातावरण म उनक जीवन क बीस वषर का

महतवपणर समय तीत हआ था| यह समय उनक जञान-यजञ का सयम साधना का

तप-तयाग का समय था| ि वदी अपना दसरा जनम शािनतिनकतन पहचन क िदन

को मानत ह| (1930 नवबर 7 को व शािनतिनकतन पहच) इस वातावरण म रहकर

व सही अथर म सनत हो गय| ि वदी की शाित धीरता तथा शीलता उनक आतम-

शोधन का िशकषा का और ससकार का सपिरणाम ह|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी ससकत क िव ान तथा िहदी क कशल िशकषक

परभावी लखक और आलोचक थ| व सन 1930 म िहदी िशकषक क पद पर

शािनतिनकतन म िनयकत हए थ| बाद म उनह न िशकषा िवभाग क अनक पद को

भिषत िकया| उनकी समपराि य क सबध म कहा गया ह िक उनह जो कछ परा

हआ अथक शरम साधना क बाद ही िमला वरन उनकी उपलिबधया उनक शरम और

योगयता की तलना म कम ही थी| व िवभागाधयकष रकटर आिद परशासिनक पद

पर कायररत रह िकनत उनका िशकषक कभी स नह हआ| उनह िशकषक कायर म

आितमक आनद आता था| व वासतव म ऋिष परमपरा क तयागी िकत थ

पदिलपसा उनम नह थी|

2 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी हिरशकर शमार प 14

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 6

उनका परथम और सवारिधक महतव का पद शािनतिनकतन म िहदी िशकषक का

था| यहा उनह टगोर का आशीवारद परा हआ था| शािनतिनकतन का िशकषक पद

पाना आचायर ि वदी क िलए एक सयोग और सयोग था| सन 1930 स 1950 तक व

शािनतिनकतन म िहदी िशकषक रह|

सन 1950 म उनकी िनयिकत बनारस िव िव ालय म िहदी क परोफसर और

िवभागाधयकष क पद पर हई| 1960-1967 म व पजाब िव िव लय चणडीगढ़ म

िहदी क परोफसर और िवभागाधयकष बन| सन 1967 क बाद पनः काशी लौट आय

जहा कछ समय तक रकटर क पद पर कायर िकया| जीवन क अितम िदन म व उ र

परदश िहदी ससथा क उपाधयकष पद पर आसीन थ| सन 1955 म उनह रा पित ारा

राजभाषा आयोग का सदसय घोिषत िकया गया| सन 1945 स 1950 तक व िहदी

भवन िव भारती क सचालक रह और िव भारती िव िव ालय की एिकसकयिटव

कौिनसल क सदसय रह| सन 1950-53 म सािहतय अकादमी िदलली की साधारण

सभा और परबध सिमित क सदसय नागरी परचािरणी सभा क हसतलख की खोज

तथा अकादमी स परकािशत नशनल िबिबलयागरफी क िनरीकषक सन 1954 म रह|

लखनऊ िव िव ालय न ि वदी को सन 1949 म उनकी रचना lsquoकबीरrsquo पर

िडलीट की मानद उपािध स भिषत िकया| सन 1957 म उनह रा पित ारा

lsquoप भषणrsquo की उपािध स अलकत िकया गया| सन 1962 म पि म बगाल सािहतय

अकादमी ारा टगोर परसकार स सममिनत िकया गया तथा सन 1973 क कनदरीय

सािहतय अकादमी की ओर स परसकार परा हआ| उनक िवषय म डा राजमल बोरा

का कथन lsquoअपन जीवन म उनह न जो भी पाया हrsquo अपनी योगयता क अनपात स

कम ही पाया हrdquo3 पणरतया सतय ह|

3 आचायर हज़ारी परसाद िववदी राजमल बोरा प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 7

बालयावसथा क lsquoबजनाथrsquo शािनतिनकतन क lsquoि वदीrsquo बनारस िहनद

िव िव ालय क lsquoपिणडतजीrsquo पजाब िव िव ालय क lsquoआचायरजीrsquo और िशषय क

lsquoगरदवrsquo डॉ हज़ारी परसाद ि वदी िहदी सािहतय िवधा क अमोल र थ| उनका

िकततव बहआयामी था| वह मानवतावादी िवचारधारा क सवरशर समीकषक

सािहतयितहास क शोधकतार एव ाखयाता भारतीय ससकित क पराणवान सदश

वाहक अपरितम कथा-िशिलप िस सपादक सहज साधक भाषा लािलतय क

परित ापक मम किव कशल वागमी और सफल अधयापक थ| उनक िकततव की

िवराटता शबद म कत नह िकया जा सकता|

सफल सािहतयकार क रप म आचायर ि वदी जी की परित ा आज बहचिचत

ह| परनत जयोितष-िवधा क पिणडत जयोितषाचायर हज़ारी परसाद ि वदी का नाम

अजञात एव अपरिस ह| इस बहत कम लोग जानत ह| जयोितष िव ा आचायरजी

को पतक परमपरा स परा ह| उनक िपता तथा जयोितष िव ा गर की यह परबल

इचछा थी िक आचायारजी या तो बहत बड़ जयोितषी बन या िफर एक परिति त

वकील| काशी म रहकर उनह न जयोितष िवषय की शा ी और आचायर परीकषाय

पास की| जयोितषाचायर िशकषा उ ीणर करन क प ात पिरवार की िवषम

पिरिसथितय स सघषर करत हए कछ िदन तक कलक म रहकर एक गटर पर रखी

चौकी पर जमकर बठत और कडिलया दखा करत थ| यही नह शािनतिनकतन म

अधययन करत हए ि वदी न परचछ नाम स अपनी जयोितष िव ा गर परामदयाल

ओझा क कछ मत का खडन करत हए एक लख िलखा था| यह लख लोग को

पसनद आया और इनह इसी िवषय पर आयोिजत सममलन की िनणारयक सिमित न

बगाल परात क परितिनिध क रप म चना|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक करणा

सयमादी स अलकत होन क साथ-साथ मानवता क महान पजक थ| एक सथान पर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 8

व अपना िवचार कत करत हए िलखत ह ndash ldquoजहा औदायर ह िववक ह करणा ह

सयम ह मनषयता वह ह िकत जो मनोभाव इसक िवपरीत जात ह उनकी दि म

मनषयता नह हो सकती ह|rdquo4

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी एक सफल वागमी ह| गहन स गहन िवषय को

अतयत सहजता क साथ परसतत करन की अपवर शिकत उनम थी| व बड़ी स बड़ी बात

को गय पिरहास क साथ पानी म घली हई गड की भाती न िकसी आयास क गल

उतार दन म पणर कशल थ| डॉ परभाकर माचव िलखत ह िक ldquoि वदी जी क यहा

पता ही नह चलता था कया भाषण म और कया लखन म िक िव ता कहा ह

सहजता कहा ह|rdquo5

आचायर ि वदी िवचारशील और िस ातवादी िकत थ| परतयक िवषय पर

उनक िनणरय सिचितत और सप हआ करत थ| सािहतय धमर दश-परम राजनीित

आिद िकसी भी कषतर म उनक िवचार म या अनतिवरोध नह था| व मानवता क

पजारी थ| उनका सािहतय मानव-मिहमा का मानवोतथान का लख ह और उसकी

परगित का साधना भी| मनषयता तथा मानव-परम उनकी दि म बड़ी चीज़ ह|

उनक साथ िजन लोग न बरा स बरा वहार िकया उनक िकततव पर कीचड़

डाला उनकी जीिवका पर लाट मारी उनक िवकास सार काट स रध उनक

िवरोध म कछ करना तो दर कछ कहन का भी उनह न परय नह िकया| काशी

िहनद िव िव ालय स िवदा होत समय जाच सिमित क अधयकष क बार-बार पछन

पर भी उनह न कछ नह कहा|

4 िववदी गरथावली हज़ारी परसाद िववदी प 46 5 सा कितक आलोचना और हज़ारी परसाद िववदी परो िकशोर शमार प 63

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 9

आचायर ि वदी जी सचच दश-भकत िकत थ| उनह न शरी बनारसी दास

चतवदी को भज एक पतर म इस बात पर दःख परकट िकया था िक ndash ldquoयह कसा अधर

ह िक अपन दश क िवषय म भी हम अगरज़ी क िलखी पसतक पढ़कर जञान परा करना

पड़|rdquo6 उनह न दश को समप ससकित का गान िकया ह| व दश क िवघटन की

सभावना मातर स िथत हो जात ह| उनह न सन 1967 म अपन िपरय छातर िशव

परसाद िसह को िलख पतर म ldquoआशका हो रही ह िक दश की खणड-खणड न हो जाय|

दश कह िवयतनाम क रासत तो नह जा रहा ह|rdquo7 ि वदी क lsquoबाणभ की

आतमकथाrsquo म भि नी क माधयम स दश की एकता और सगठन क कायर क परयास का

वणरन िकया ह| lsquoचारचनदर लखrsquo म शतवाहन क चकरविततव की चदरलखा की कामना

और तदनकल पररणा म आचायर ि वदी का दशपरम अतिनिहत ह| पननरवा का आयरक

समदरग रा ीय एकता अिभयान का आधार सतभ ह| िहनदी भाषा स ि वदी को

बहत लगाव था| य िप व िहनदी को रा भाषा नह मातभाषा कहन म गवर का

अनभव करत थ| व िहनदी क परभाव को महतव को सवीकार करत हए उस

उ रो र शिकत-समप बनान की लालसा रखत थ| व िहनदी को हास और अशर

परम और शष भिकत और शर ा की रप दनवाली भाषा मानत थ| व िवदशी भाषा

क िवरोधी नह थ वरन उनक वचरसव क िवरोधी थ| उनह न भाषा नीित

आलोचना करत हए िलखा ह ndash ldquoअभी तक दश क परभावशाली लोग न िहनदी को

मन स सवीकार नह िकया ह ऐसा लगता ह| एक िदन तीसर िव की भाषा क

रप म िहनदी आनवाली ह आ रही ह|rdquo8

6 सा तािहक िह द तान प 4 7 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 37 8 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 41

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 4: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 4

िपतामह शरी आरत दब क समय की जयोितष क ारा आिजत सपि -खयाित की

वापसी की थी|

हज़ारी परसद ि वदी की ससकत िशकषा पहल जनम-गराम क िनकट िसथत

lsquoपराशर आशरमrsquo म परारभ करा दी गई थी| बाद म रणवीर ससकत पाठशाला काशी

स उनह न परविशका परीकषा उ ीणर की थी| सन 1929 म काशी िहनद

िव िव ालय स सािहतयाचायार की परीकषा उ ीणर की और सन 1930 म

जयोितषाचायर की| ि वदी को सबस अिधक किठनाई अगरजी अधययन म हई थी|

आिथक सकीणरता क कारण व अगरजी की पढाई को िनयिमत बनाय नह रख सक|

ववािहक जीवन

लगभग बीस वषर की उमर म ि वदी का ववािहक जीवन परारभ हआ| सन

1927 म शरीमती भगवती दवी आपक जीवन म परवश िकया| व अतयत साधवी

पित-परायण तथा सौमय सवभाव की नारी थी| इनक चार पतर और तीन पितरया ह|

आचायरजी का पािरवािरक जीवन सखद रहा| उनक पिरवार का वातावरण उनकी

सािहितयक साधन म सदव सहायक िस होता रहा ह| िदसबर 1979 म शरीमती

भगवती दवी की मतय हई|

िकततव क िवभ पहल

सकल कॉलज की िशकषा समा करक ि वदी शािनतिनकतन म िहनदी िशकषक

हो गए| यहा क वातावरण म उनक िच की उदारता का िवपल िवकास हआ|

अधययन-िचतन लखन म व िनरतर िनमगन रह| यह उनका ससकार हआ| उनक

जीवन म चिरतर-िनमारण म और जञान वधरन म इस ससथा का महतवपणर योगदान ह|

उनह न समनजी को िलख हए पतर म कत िकया ह| ldquoमा-बाप की कपा स थोडा पढ़

गया और पढ़ भी कया गया न िहनदी न ससकत न अगरज़ी न जञान न िवजञान|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 5

सौभागयवश महापरष क दशरन हो गए| म न अपना आदशर अचछा चना था और

भगवान की कपा स अचछ आदिमय क बीच पहच गया|rdquo2

ि वदी को अनक महापरष का िव ान का तथा सत का आशीवारद पान

का सअवसर परा हआ| इनम स गाधीजी मालवीय टगोर मखय ह| परिस

पतरकार और िहनदी िव ान शरी बनारसीदास चतवदी का सपकर और अनकपा उनह

परा हो रही थी| व चतवदी को अपना सािहतय गर मानत थ| शािनतिनकतन क

शानत पराकितक और भावना सप वातावरण म उनक जीवन क बीस वषर का

महतवपणर समय तीत हआ था| यह समय उनक जञान-यजञ का सयम साधना का

तप-तयाग का समय था| ि वदी अपना दसरा जनम शािनतिनकतन पहचन क िदन

को मानत ह| (1930 नवबर 7 को व शािनतिनकतन पहच) इस वातावरण म रहकर

व सही अथर म सनत हो गय| ि वदी की शाित धीरता तथा शीलता उनक आतम-

शोधन का िशकषा का और ससकार का सपिरणाम ह|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी ससकत क िव ान तथा िहदी क कशल िशकषक

परभावी लखक और आलोचक थ| व सन 1930 म िहदी िशकषक क पद पर

शािनतिनकतन म िनयकत हए थ| बाद म उनह न िशकषा िवभाग क अनक पद को

भिषत िकया| उनकी समपराि य क सबध म कहा गया ह िक उनह जो कछ परा

हआ अथक शरम साधना क बाद ही िमला वरन उनकी उपलिबधया उनक शरम और

योगयता की तलना म कम ही थी| व िवभागाधयकष रकटर आिद परशासिनक पद

पर कायररत रह िकनत उनका िशकषक कभी स नह हआ| उनह िशकषक कायर म

आितमक आनद आता था| व वासतव म ऋिष परमपरा क तयागी िकत थ

पदिलपसा उनम नह थी|

2 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी हिरशकर शमार प 14

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 6

उनका परथम और सवारिधक महतव का पद शािनतिनकतन म िहदी िशकषक का

था| यहा उनह टगोर का आशीवारद परा हआ था| शािनतिनकतन का िशकषक पद

पाना आचायर ि वदी क िलए एक सयोग और सयोग था| सन 1930 स 1950 तक व

शािनतिनकतन म िहदी िशकषक रह|

सन 1950 म उनकी िनयिकत बनारस िव िव ालय म िहदी क परोफसर और

िवभागाधयकष क पद पर हई| 1960-1967 म व पजाब िव िव लय चणडीगढ़ म

िहदी क परोफसर और िवभागाधयकष बन| सन 1967 क बाद पनः काशी लौट आय

जहा कछ समय तक रकटर क पद पर कायर िकया| जीवन क अितम िदन म व उ र

परदश िहदी ससथा क उपाधयकष पद पर आसीन थ| सन 1955 म उनह रा पित ारा

राजभाषा आयोग का सदसय घोिषत िकया गया| सन 1945 स 1950 तक व िहदी

भवन िव भारती क सचालक रह और िव भारती िव िव ालय की एिकसकयिटव

कौिनसल क सदसय रह| सन 1950-53 म सािहतय अकादमी िदलली की साधारण

सभा और परबध सिमित क सदसय नागरी परचािरणी सभा क हसतलख की खोज

तथा अकादमी स परकािशत नशनल िबिबलयागरफी क िनरीकषक सन 1954 म रह|

लखनऊ िव िव ालय न ि वदी को सन 1949 म उनकी रचना lsquoकबीरrsquo पर

िडलीट की मानद उपािध स भिषत िकया| सन 1957 म उनह रा पित ारा

lsquoप भषणrsquo की उपािध स अलकत िकया गया| सन 1962 म पि म बगाल सािहतय

अकादमी ारा टगोर परसकार स सममिनत िकया गया तथा सन 1973 क कनदरीय

सािहतय अकादमी की ओर स परसकार परा हआ| उनक िवषय म डा राजमल बोरा

का कथन lsquoअपन जीवन म उनह न जो भी पाया हrsquo अपनी योगयता क अनपात स

कम ही पाया हrdquo3 पणरतया सतय ह|

3 आचायर हज़ारी परसाद िववदी राजमल बोरा प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 7

बालयावसथा क lsquoबजनाथrsquo शािनतिनकतन क lsquoि वदीrsquo बनारस िहनद

िव िव ालय क lsquoपिणडतजीrsquo पजाब िव िव ालय क lsquoआचायरजीrsquo और िशषय क

lsquoगरदवrsquo डॉ हज़ारी परसाद ि वदी िहदी सािहतय िवधा क अमोल र थ| उनका

िकततव बहआयामी था| वह मानवतावादी िवचारधारा क सवरशर समीकषक

सािहतयितहास क शोधकतार एव ाखयाता भारतीय ससकित क पराणवान सदश

वाहक अपरितम कथा-िशिलप िस सपादक सहज साधक भाषा लािलतय क

परित ापक मम किव कशल वागमी और सफल अधयापक थ| उनक िकततव की

िवराटता शबद म कत नह िकया जा सकता|

सफल सािहतयकार क रप म आचायर ि वदी जी की परित ा आज बहचिचत

ह| परनत जयोितष-िवधा क पिणडत जयोितषाचायर हज़ारी परसाद ि वदी का नाम

अजञात एव अपरिस ह| इस बहत कम लोग जानत ह| जयोितष िव ा आचायरजी

को पतक परमपरा स परा ह| उनक िपता तथा जयोितष िव ा गर की यह परबल

इचछा थी िक आचायारजी या तो बहत बड़ जयोितषी बन या िफर एक परिति त

वकील| काशी म रहकर उनह न जयोितष िवषय की शा ी और आचायर परीकषाय

पास की| जयोितषाचायर िशकषा उ ीणर करन क प ात पिरवार की िवषम

पिरिसथितय स सघषर करत हए कछ िदन तक कलक म रहकर एक गटर पर रखी

चौकी पर जमकर बठत और कडिलया दखा करत थ| यही नह शािनतिनकतन म

अधययन करत हए ि वदी न परचछ नाम स अपनी जयोितष िव ा गर परामदयाल

ओझा क कछ मत का खडन करत हए एक लख िलखा था| यह लख लोग को

पसनद आया और इनह इसी िवषय पर आयोिजत सममलन की िनणारयक सिमित न

बगाल परात क परितिनिध क रप म चना|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक करणा

सयमादी स अलकत होन क साथ-साथ मानवता क महान पजक थ| एक सथान पर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 8

व अपना िवचार कत करत हए िलखत ह ndash ldquoजहा औदायर ह िववक ह करणा ह

सयम ह मनषयता वह ह िकत जो मनोभाव इसक िवपरीत जात ह उनकी दि म

मनषयता नह हो सकती ह|rdquo4

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी एक सफल वागमी ह| गहन स गहन िवषय को

अतयत सहजता क साथ परसतत करन की अपवर शिकत उनम थी| व बड़ी स बड़ी बात

को गय पिरहास क साथ पानी म घली हई गड की भाती न िकसी आयास क गल

उतार दन म पणर कशल थ| डॉ परभाकर माचव िलखत ह िक ldquoि वदी जी क यहा

पता ही नह चलता था कया भाषण म और कया लखन म िक िव ता कहा ह

सहजता कहा ह|rdquo5

आचायर ि वदी िवचारशील और िस ातवादी िकत थ| परतयक िवषय पर

उनक िनणरय सिचितत और सप हआ करत थ| सािहतय धमर दश-परम राजनीित

आिद िकसी भी कषतर म उनक िवचार म या अनतिवरोध नह था| व मानवता क

पजारी थ| उनका सािहतय मानव-मिहमा का मानवोतथान का लख ह और उसकी

परगित का साधना भी| मनषयता तथा मानव-परम उनकी दि म बड़ी चीज़ ह|

उनक साथ िजन लोग न बरा स बरा वहार िकया उनक िकततव पर कीचड़

डाला उनकी जीिवका पर लाट मारी उनक िवकास सार काट स रध उनक

िवरोध म कछ करना तो दर कछ कहन का भी उनह न परय नह िकया| काशी

िहनद िव िव ालय स िवदा होत समय जाच सिमित क अधयकष क बार-बार पछन

पर भी उनह न कछ नह कहा|

4 िववदी गरथावली हज़ारी परसाद िववदी प 46 5 सा कितक आलोचना और हज़ारी परसाद िववदी परो िकशोर शमार प 63

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 9

आचायर ि वदी जी सचच दश-भकत िकत थ| उनह न शरी बनारसी दास

चतवदी को भज एक पतर म इस बात पर दःख परकट िकया था िक ndash ldquoयह कसा अधर

ह िक अपन दश क िवषय म भी हम अगरज़ी क िलखी पसतक पढ़कर जञान परा करना

पड़|rdquo6 उनह न दश को समप ससकित का गान िकया ह| व दश क िवघटन की

सभावना मातर स िथत हो जात ह| उनह न सन 1967 म अपन िपरय छातर िशव

परसाद िसह को िलख पतर म ldquoआशका हो रही ह िक दश की खणड-खणड न हो जाय|

दश कह िवयतनाम क रासत तो नह जा रहा ह|rdquo7 ि वदी क lsquoबाणभ की

आतमकथाrsquo म भि नी क माधयम स दश की एकता और सगठन क कायर क परयास का

वणरन िकया ह| lsquoचारचनदर लखrsquo म शतवाहन क चकरविततव की चदरलखा की कामना

और तदनकल पररणा म आचायर ि वदी का दशपरम अतिनिहत ह| पननरवा का आयरक

समदरग रा ीय एकता अिभयान का आधार सतभ ह| िहनदी भाषा स ि वदी को

बहत लगाव था| य िप व िहनदी को रा भाषा नह मातभाषा कहन म गवर का

अनभव करत थ| व िहनदी क परभाव को महतव को सवीकार करत हए उस

उ रो र शिकत-समप बनान की लालसा रखत थ| व िहनदी को हास और अशर

परम और शष भिकत और शर ा की रप दनवाली भाषा मानत थ| व िवदशी भाषा

क िवरोधी नह थ वरन उनक वचरसव क िवरोधी थ| उनह न भाषा नीित

आलोचना करत हए िलखा ह ndash ldquoअभी तक दश क परभावशाली लोग न िहनदी को

मन स सवीकार नह िकया ह ऐसा लगता ह| एक िदन तीसर िव की भाषा क

रप म िहनदी आनवाली ह आ रही ह|rdquo8

6 सा तािहक िह द तान प 4 7 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 37 8 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 41

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 5

सौभागयवश महापरष क दशरन हो गए| म न अपना आदशर अचछा चना था और

भगवान की कपा स अचछ आदिमय क बीच पहच गया|rdquo2

ि वदी को अनक महापरष का िव ान का तथा सत का आशीवारद पान

का सअवसर परा हआ| इनम स गाधीजी मालवीय टगोर मखय ह| परिस

पतरकार और िहनदी िव ान शरी बनारसीदास चतवदी का सपकर और अनकपा उनह

परा हो रही थी| व चतवदी को अपना सािहतय गर मानत थ| शािनतिनकतन क

शानत पराकितक और भावना सप वातावरण म उनक जीवन क बीस वषर का

महतवपणर समय तीत हआ था| यह समय उनक जञान-यजञ का सयम साधना का

तप-तयाग का समय था| ि वदी अपना दसरा जनम शािनतिनकतन पहचन क िदन

को मानत ह| (1930 नवबर 7 को व शािनतिनकतन पहच) इस वातावरण म रहकर

व सही अथर म सनत हो गय| ि वदी की शाित धीरता तथा शीलता उनक आतम-

शोधन का िशकषा का और ससकार का सपिरणाम ह|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी ससकत क िव ान तथा िहदी क कशल िशकषक

परभावी लखक और आलोचक थ| व सन 1930 म िहदी िशकषक क पद पर

शािनतिनकतन म िनयकत हए थ| बाद म उनह न िशकषा िवभाग क अनक पद को

भिषत िकया| उनकी समपराि य क सबध म कहा गया ह िक उनह जो कछ परा

हआ अथक शरम साधना क बाद ही िमला वरन उनकी उपलिबधया उनक शरम और

योगयता की तलना म कम ही थी| व िवभागाधयकष रकटर आिद परशासिनक पद

पर कायररत रह िकनत उनका िशकषक कभी स नह हआ| उनह िशकषक कायर म

आितमक आनद आता था| व वासतव म ऋिष परमपरा क तयागी िकत थ

पदिलपसा उनम नह थी|

2 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी हिरशकर शमार प 14

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 6

उनका परथम और सवारिधक महतव का पद शािनतिनकतन म िहदी िशकषक का

था| यहा उनह टगोर का आशीवारद परा हआ था| शािनतिनकतन का िशकषक पद

पाना आचायर ि वदी क िलए एक सयोग और सयोग था| सन 1930 स 1950 तक व

शािनतिनकतन म िहदी िशकषक रह|

सन 1950 म उनकी िनयिकत बनारस िव िव ालय म िहदी क परोफसर और

िवभागाधयकष क पद पर हई| 1960-1967 म व पजाब िव िव लय चणडीगढ़ म

िहदी क परोफसर और िवभागाधयकष बन| सन 1967 क बाद पनः काशी लौट आय

जहा कछ समय तक रकटर क पद पर कायर िकया| जीवन क अितम िदन म व उ र

परदश िहदी ससथा क उपाधयकष पद पर आसीन थ| सन 1955 म उनह रा पित ारा

राजभाषा आयोग का सदसय घोिषत िकया गया| सन 1945 स 1950 तक व िहदी

भवन िव भारती क सचालक रह और िव भारती िव िव ालय की एिकसकयिटव

कौिनसल क सदसय रह| सन 1950-53 म सािहतय अकादमी िदलली की साधारण

सभा और परबध सिमित क सदसय नागरी परचािरणी सभा क हसतलख की खोज

तथा अकादमी स परकािशत नशनल िबिबलयागरफी क िनरीकषक सन 1954 म रह|

लखनऊ िव िव ालय न ि वदी को सन 1949 म उनकी रचना lsquoकबीरrsquo पर

िडलीट की मानद उपािध स भिषत िकया| सन 1957 म उनह रा पित ारा

lsquoप भषणrsquo की उपािध स अलकत िकया गया| सन 1962 म पि म बगाल सािहतय

अकादमी ारा टगोर परसकार स सममिनत िकया गया तथा सन 1973 क कनदरीय

सािहतय अकादमी की ओर स परसकार परा हआ| उनक िवषय म डा राजमल बोरा

का कथन lsquoअपन जीवन म उनह न जो भी पाया हrsquo अपनी योगयता क अनपात स

कम ही पाया हrdquo3 पणरतया सतय ह|

3 आचायर हज़ारी परसाद िववदी राजमल बोरा प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 7

बालयावसथा क lsquoबजनाथrsquo शािनतिनकतन क lsquoि वदीrsquo बनारस िहनद

िव िव ालय क lsquoपिणडतजीrsquo पजाब िव िव ालय क lsquoआचायरजीrsquo और िशषय क

lsquoगरदवrsquo डॉ हज़ारी परसाद ि वदी िहदी सािहतय िवधा क अमोल र थ| उनका

िकततव बहआयामी था| वह मानवतावादी िवचारधारा क सवरशर समीकषक

सािहतयितहास क शोधकतार एव ाखयाता भारतीय ससकित क पराणवान सदश

वाहक अपरितम कथा-िशिलप िस सपादक सहज साधक भाषा लािलतय क

परित ापक मम किव कशल वागमी और सफल अधयापक थ| उनक िकततव की

िवराटता शबद म कत नह िकया जा सकता|

सफल सािहतयकार क रप म आचायर ि वदी जी की परित ा आज बहचिचत

ह| परनत जयोितष-िवधा क पिणडत जयोितषाचायर हज़ारी परसाद ि वदी का नाम

अजञात एव अपरिस ह| इस बहत कम लोग जानत ह| जयोितष िव ा आचायरजी

को पतक परमपरा स परा ह| उनक िपता तथा जयोितष िव ा गर की यह परबल

इचछा थी िक आचायारजी या तो बहत बड़ जयोितषी बन या िफर एक परिति त

वकील| काशी म रहकर उनह न जयोितष िवषय की शा ी और आचायर परीकषाय

पास की| जयोितषाचायर िशकषा उ ीणर करन क प ात पिरवार की िवषम

पिरिसथितय स सघषर करत हए कछ िदन तक कलक म रहकर एक गटर पर रखी

चौकी पर जमकर बठत और कडिलया दखा करत थ| यही नह शािनतिनकतन म

अधययन करत हए ि वदी न परचछ नाम स अपनी जयोितष िव ा गर परामदयाल

ओझा क कछ मत का खडन करत हए एक लख िलखा था| यह लख लोग को

पसनद आया और इनह इसी िवषय पर आयोिजत सममलन की िनणारयक सिमित न

बगाल परात क परितिनिध क रप म चना|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक करणा

सयमादी स अलकत होन क साथ-साथ मानवता क महान पजक थ| एक सथान पर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 8

व अपना िवचार कत करत हए िलखत ह ndash ldquoजहा औदायर ह िववक ह करणा ह

सयम ह मनषयता वह ह िकत जो मनोभाव इसक िवपरीत जात ह उनकी दि म

मनषयता नह हो सकती ह|rdquo4

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी एक सफल वागमी ह| गहन स गहन िवषय को

अतयत सहजता क साथ परसतत करन की अपवर शिकत उनम थी| व बड़ी स बड़ी बात

को गय पिरहास क साथ पानी म घली हई गड की भाती न िकसी आयास क गल

उतार दन म पणर कशल थ| डॉ परभाकर माचव िलखत ह िक ldquoि वदी जी क यहा

पता ही नह चलता था कया भाषण म और कया लखन म िक िव ता कहा ह

सहजता कहा ह|rdquo5

आचायर ि वदी िवचारशील और िस ातवादी िकत थ| परतयक िवषय पर

उनक िनणरय सिचितत और सप हआ करत थ| सािहतय धमर दश-परम राजनीित

आिद िकसी भी कषतर म उनक िवचार म या अनतिवरोध नह था| व मानवता क

पजारी थ| उनका सािहतय मानव-मिहमा का मानवोतथान का लख ह और उसकी

परगित का साधना भी| मनषयता तथा मानव-परम उनकी दि म बड़ी चीज़ ह|

उनक साथ िजन लोग न बरा स बरा वहार िकया उनक िकततव पर कीचड़

डाला उनकी जीिवका पर लाट मारी उनक िवकास सार काट स रध उनक

िवरोध म कछ करना तो दर कछ कहन का भी उनह न परय नह िकया| काशी

िहनद िव िव ालय स िवदा होत समय जाच सिमित क अधयकष क बार-बार पछन

पर भी उनह न कछ नह कहा|

4 िववदी गरथावली हज़ारी परसाद िववदी प 46 5 सा कितक आलोचना और हज़ारी परसाद िववदी परो िकशोर शमार प 63

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 9

आचायर ि वदी जी सचच दश-भकत िकत थ| उनह न शरी बनारसी दास

चतवदी को भज एक पतर म इस बात पर दःख परकट िकया था िक ndash ldquoयह कसा अधर

ह िक अपन दश क िवषय म भी हम अगरज़ी क िलखी पसतक पढ़कर जञान परा करना

पड़|rdquo6 उनह न दश को समप ससकित का गान िकया ह| व दश क िवघटन की

सभावना मातर स िथत हो जात ह| उनह न सन 1967 म अपन िपरय छातर िशव

परसाद िसह को िलख पतर म ldquoआशका हो रही ह िक दश की खणड-खणड न हो जाय|

दश कह िवयतनाम क रासत तो नह जा रहा ह|rdquo7 ि वदी क lsquoबाणभ की

आतमकथाrsquo म भि नी क माधयम स दश की एकता और सगठन क कायर क परयास का

वणरन िकया ह| lsquoचारचनदर लखrsquo म शतवाहन क चकरविततव की चदरलखा की कामना

और तदनकल पररणा म आचायर ि वदी का दशपरम अतिनिहत ह| पननरवा का आयरक

समदरग रा ीय एकता अिभयान का आधार सतभ ह| िहनदी भाषा स ि वदी को

बहत लगाव था| य िप व िहनदी को रा भाषा नह मातभाषा कहन म गवर का

अनभव करत थ| व िहनदी क परभाव को महतव को सवीकार करत हए उस

उ रो र शिकत-समप बनान की लालसा रखत थ| व िहनदी को हास और अशर

परम और शष भिकत और शर ा की रप दनवाली भाषा मानत थ| व िवदशी भाषा

क िवरोधी नह थ वरन उनक वचरसव क िवरोधी थ| उनह न भाषा नीित

आलोचना करत हए िलखा ह ndash ldquoअभी तक दश क परभावशाली लोग न िहनदी को

मन स सवीकार नह िकया ह ऐसा लगता ह| एक िदन तीसर िव की भाषा क

रप म िहनदी आनवाली ह आ रही ह|rdquo8

6 सा तािहक िह द तान प 4 7 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 37 8 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 41

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 6

उनका परथम और सवारिधक महतव का पद शािनतिनकतन म िहदी िशकषक का

था| यहा उनह टगोर का आशीवारद परा हआ था| शािनतिनकतन का िशकषक पद

पाना आचायर ि वदी क िलए एक सयोग और सयोग था| सन 1930 स 1950 तक व

शािनतिनकतन म िहदी िशकषक रह|

सन 1950 म उनकी िनयिकत बनारस िव िव ालय म िहदी क परोफसर और

िवभागाधयकष क पद पर हई| 1960-1967 म व पजाब िव िव लय चणडीगढ़ म

िहदी क परोफसर और िवभागाधयकष बन| सन 1967 क बाद पनः काशी लौट आय

जहा कछ समय तक रकटर क पद पर कायर िकया| जीवन क अितम िदन म व उ र

परदश िहदी ससथा क उपाधयकष पद पर आसीन थ| सन 1955 म उनह रा पित ारा

राजभाषा आयोग का सदसय घोिषत िकया गया| सन 1945 स 1950 तक व िहदी

भवन िव भारती क सचालक रह और िव भारती िव िव ालय की एिकसकयिटव

कौिनसल क सदसय रह| सन 1950-53 म सािहतय अकादमी िदलली की साधारण

सभा और परबध सिमित क सदसय नागरी परचािरणी सभा क हसतलख की खोज

तथा अकादमी स परकािशत नशनल िबिबलयागरफी क िनरीकषक सन 1954 म रह|

लखनऊ िव िव ालय न ि वदी को सन 1949 म उनकी रचना lsquoकबीरrsquo पर

िडलीट की मानद उपािध स भिषत िकया| सन 1957 म उनह रा पित ारा

lsquoप भषणrsquo की उपािध स अलकत िकया गया| सन 1962 म पि म बगाल सािहतय

अकादमी ारा टगोर परसकार स सममिनत िकया गया तथा सन 1973 क कनदरीय

सािहतय अकादमी की ओर स परसकार परा हआ| उनक िवषय म डा राजमल बोरा

का कथन lsquoअपन जीवन म उनह न जो भी पाया हrsquo अपनी योगयता क अनपात स

कम ही पाया हrdquo3 पणरतया सतय ह|

3 आचायर हज़ारी परसाद िववदी राजमल बोरा प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 7

बालयावसथा क lsquoबजनाथrsquo शािनतिनकतन क lsquoि वदीrsquo बनारस िहनद

िव िव ालय क lsquoपिणडतजीrsquo पजाब िव िव ालय क lsquoआचायरजीrsquo और िशषय क

lsquoगरदवrsquo डॉ हज़ारी परसाद ि वदी िहदी सािहतय िवधा क अमोल र थ| उनका

िकततव बहआयामी था| वह मानवतावादी िवचारधारा क सवरशर समीकषक

सािहतयितहास क शोधकतार एव ाखयाता भारतीय ससकित क पराणवान सदश

वाहक अपरितम कथा-िशिलप िस सपादक सहज साधक भाषा लािलतय क

परित ापक मम किव कशल वागमी और सफल अधयापक थ| उनक िकततव की

िवराटता शबद म कत नह िकया जा सकता|

सफल सािहतयकार क रप म आचायर ि वदी जी की परित ा आज बहचिचत

ह| परनत जयोितष-िवधा क पिणडत जयोितषाचायर हज़ारी परसाद ि वदी का नाम

अजञात एव अपरिस ह| इस बहत कम लोग जानत ह| जयोितष िव ा आचायरजी

को पतक परमपरा स परा ह| उनक िपता तथा जयोितष िव ा गर की यह परबल

इचछा थी िक आचायारजी या तो बहत बड़ जयोितषी बन या िफर एक परिति त

वकील| काशी म रहकर उनह न जयोितष िवषय की शा ी और आचायर परीकषाय

पास की| जयोितषाचायर िशकषा उ ीणर करन क प ात पिरवार की िवषम

पिरिसथितय स सघषर करत हए कछ िदन तक कलक म रहकर एक गटर पर रखी

चौकी पर जमकर बठत और कडिलया दखा करत थ| यही नह शािनतिनकतन म

अधययन करत हए ि वदी न परचछ नाम स अपनी जयोितष िव ा गर परामदयाल

ओझा क कछ मत का खडन करत हए एक लख िलखा था| यह लख लोग को

पसनद आया और इनह इसी िवषय पर आयोिजत सममलन की िनणारयक सिमित न

बगाल परात क परितिनिध क रप म चना|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक करणा

सयमादी स अलकत होन क साथ-साथ मानवता क महान पजक थ| एक सथान पर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 8

व अपना िवचार कत करत हए िलखत ह ndash ldquoजहा औदायर ह िववक ह करणा ह

सयम ह मनषयता वह ह िकत जो मनोभाव इसक िवपरीत जात ह उनकी दि म

मनषयता नह हो सकती ह|rdquo4

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी एक सफल वागमी ह| गहन स गहन िवषय को

अतयत सहजता क साथ परसतत करन की अपवर शिकत उनम थी| व बड़ी स बड़ी बात

को गय पिरहास क साथ पानी म घली हई गड की भाती न िकसी आयास क गल

उतार दन म पणर कशल थ| डॉ परभाकर माचव िलखत ह िक ldquoि वदी जी क यहा

पता ही नह चलता था कया भाषण म और कया लखन म िक िव ता कहा ह

सहजता कहा ह|rdquo5

आचायर ि वदी िवचारशील और िस ातवादी िकत थ| परतयक िवषय पर

उनक िनणरय सिचितत और सप हआ करत थ| सािहतय धमर दश-परम राजनीित

आिद िकसी भी कषतर म उनक िवचार म या अनतिवरोध नह था| व मानवता क

पजारी थ| उनका सािहतय मानव-मिहमा का मानवोतथान का लख ह और उसकी

परगित का साधना भी| मनषयता तथा मानव-परम उनकी दि म बड़ी चीज़ ह|

उनक साथ िजन लोग न बरा स बरा वहार िकया उनक िकततव पर कीचड़

डाला उनकी जीिवका पर लाट मारी उनक िवकास सार काट स रध उनक

िवरोध म कछ करना तो दर कछ कहन का भी उनह न परय नह िकया| काशी

िहनद िव िव ालय स िवदा होत समय जाच सिमित क अधयकष क बार-बार पछन

पर भी उनह न कछ नह कहा|

4 िववदी गरथावली हज़ारी परसाद िववदी प 46 5 सा कितक आलोचना और हज़ारी परसाद िववदी परो िकशोर शमार प 63

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 9

आचायर ि वदी जी सचच दश-भकत िकत थ| उनह न शरी बनारसी दास

चतवदी को भज एक पतर म इस बात पर दःख परकट िकया था िक ndash ldquoयह कसा अधर

ह िक अपन दश क िवषय म भी हम अगरज़ी क िलखी पसतक पढ़कर जञान परा करना

पड़|rdquo6 उनह न दश को समप ससकित का गान िकया ह| व दश क िवघटन की

सभावना मातर स िथत हो जात ह| उनह न सन 1967 म अपन िपरय छातर िशव

परसाद िसह को िलख पतर म ldquoआशका हो रही ह िक दश की खणड-खणड न हो जाय|

दश कह िवयतनाम क रासत तो नह जा रहा ह|rdquo7 ि वदी क lsquoबाणभ की

आतमकथाrsquo म भि नी क माधयम स दश की एकता और सगठन क कायर क परयास का

वणरन िकया ह| lsquoचारचनदर लखrsquo म शतवाहन क चकरविततव की चदरलखा की कामना

और तदनकल पररणा म आचायर ि वदी का दशपरम अतिनिहत ह| पननरवा का आयरक

समदरग रा ीय एकता अिभयान का आधार सतभ ह| िहनदी भाषा स ि वदी को

बहत लगाव था| य िप व िहनदी को रा भाषा नह मातभाषा कहन म गवर का

अनभव करत थ| व िहनदी क परभाव को महतव को सवीकार करत हए उस

उ रो र शिकत-समप बनान की लालसा रखत थ| व िहनदी को हास और अशर

परम और शष भिकत और शर ा की रप दनवाली भाषा मानत थ| व िवदशी भाषा

क िवरोधी नह थ वरन उनक वचरसव क िवरोधी थ| उनह न भाषा नीित

आलोचना करत हए िलखा ह ndash ldquoअभी तक दश क परभावशाली लोग न िहनदी को

मन स सवीकार नह िकया ह ऐसा लगता ह| एक िदन तीसर िव की भाषा क

रप म िहनदी आनवाली ह आ रही ह|rdquo8

6 सा तािहक िह द तान प 4 7 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 37 8 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 41

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 7: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 7

बालयावसथा क lsquoबजनाथrsquo शािनतिनकतन क lsquoि वदीrsquo बनारस िहनद

िव िव ालय क lsquoपिणडतजीrsquo पजाब िव िव ालय क lsquoआचायरजीrsquo और िशषय क

lsquoगरदवrsquo डॉ हज़ारी परसाद ि वदी िहदी सािहतय िवधा क अमोल र थ| उनका

िकततव बहआयामी था| वह मानवतावादी िवचारधारा क सवरशर समीकषक

सािहतयितहास क शोधकतार एव ाखयाता भारतीय ससकित क पराणवान सदश

वाहक अपरितम कथा-िशिलप िस सपादक सहज साधक भाषा लािलतय क

परित ापक मम किव कशल वागमी और सफल अधयापक थ| उनक िकततव की

िवराटता शबद म कत नह िकया जा सकता|

सफल सािहतयकार क रप म आचायर ि वदी जी की परित ा आज बहचिचत

ह| परनत जयोितष-िवधा क पिणडत जयोितषाचायर हज़ारी परसाद ि वदी का नाम

अजञात एव अपरिस ह| इस बहत कम लोग जानत ह| जयोितष िव ा आचायरजी

को पतक परमपरा स परा ह| उनक िपता तथा जयोितष िव ा गर की यह परबल

इचछा थी िक आचायारजी या तो बहत बड़ जयोितषी बन या िफर एक परिति त

वकील| काशी म रहकर उनह न जयोितष िवषय की शा ी और आचायर परीकषाय

पास की| जयोितषाचायर िशकषा उ ीणर करन क प ात पिरवार की िवषम

पिरिसथितय स सघषर करत हए कछ िदन तक कलक म रहकर एक गटर पर रखी

चौकी पर जमकर बठत और कडिलया दखा करत थ| यही नह शािनतिनकतन म

अधययन करत हए ि वदी न परचछ नाम स अपनी जयोितष िव ा गर परामदयाल

ओझा क कछ मत का खडन करत हए एक लख िलखा था| यह लख लोग को

पसनद आया और इनह इसी िवषय पर आयोिजत सममलन की िनणारयक सिमित न

बगाल परात क परितिनिध क रप म चना|

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक करणा

सयमादी स अलकत होन क साथ-साथ मानवता क महान पजक थ| एक सथान पर

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व अपना िवचार कत करत हए िलखत ह ndash ldquoजहा औदायर ह िववक ह करणा ह

सयम ह मनषयता वह ह िकत जो मनोभाव इसक िवपरीत जात ह उनकी दि म

मनषयता नह हो सकती ह|rdquo4

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी एक सफल वागमी ह| गहन स गहन िवषय को

अतयत सहजता क साथ परसतत करन की अपवर शिकत उनम थी| व बड़ी स बड़ी बात

को गय पिरहास क साथ पानी म घली हई गड की भाती न िकसी आयास क गल

उतार दन म पणर कशल थ| डॉ परभाकर माचव िलखत ह िक ldquoि वदी जी क यहा

पता ही नह चलता था कया भाषण म और कया लखन म िक िव ता कहा ह

सहजता कहा ह|rdquo5

आचायर ि वदी िवचारशील और िस ातवादी िकत थ| परतयक िवषय पर

उनक िनणरय सिचितत और सप हआ करत थ| सािहतय धमर दश-परम राजनीित

आिद िकसी भी कषतर म उनक िवचार म या अनतिवरोध नह था| व मानवता क

पजारी थ| उनका सािहतय मानव-मिहमा का मानवोतथान का लख ह और उसकी

परगित का साधना भी| मनषयता तथा मानव-परम उनकी दि म बड़ी चीज़ ह|

उनक साथ िजन लोग न बरा स बरा वहार िकया उनक िकततव पर कीचड़

डाला उनकी जीिवका पर लाट मारी उनक िवकास सार काट स रध उनक

िवरोध म कछ करना तो दर कछ कहन का भी उनह न परय नह िकया| काशी

िहनद िव िव ालय स िवदा होत समय जाच सिमित क अधयकष क बार-बार पछन

पर भी उनह न कछ नह कहा|

4 िववदी गरथावली हज़ारी परसाद िववदी प 46 5 सा कितक आलोचना और हज़ारी परसाद िववदी परो िकशोर शमार प 63

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 9

आचायर ि वदी जी सचच दश-भकत िकत थ| उनह न शरी बनारसी दास

चतवदी को भज एक पतर म इस बात पर दःख परकट िकया था िक ndash ldquoयह कसा अधर

ह िक अपन दश क िवषय म भी हम अगरज़ी क िलखी पसतक पढ़कर जञान परा करना

पड़|rdquo6 उनह न दश को समप ससकित का गान िकया ह| व दश क िवघटन की

सभावना मातर स िथत हो जात ह| उनह न सन 1967 म अपन िपरय छातर िशव

परसाद िसह को िलख पतर म ldquoआशका हो रही ह िक दश की खणड-खणड न हो जाय|

दश कह िवयतनाम क रासत तो नह जा रहा ह|rdquo7 ि वदी क lsquoबाणभ की

आतमकथाrsquo म भि नी क माधयम स दश की एकता और सगठन क कायर क परयास का

वणरन िकया ह| lsquoचारचनदर लखrsquo म शतवाहन क चकरविततव की चदरलखा की कामना

और तदनकल पररणा म आचायर ि वदी का दशपरम अतिनिहत ह| पननरवा का आयरक

समदरग रा ीय एकता अिभयान का आधार सतभ ह| िहनदी भाषा स ि वदी को

बहत लगाव था| य िप व िहनदी को रा भाषा नह मातभाषा कहन म गवर का

अनभव करत थ| व िहनदी क परभाव को महतव को सवीकार करत हए उस

उ रो र शिकत-समप बनान की लालसा रखत थ| व िहनदी को हास और अशर

परम और शष भिकत और शर ा की रप दनवाली भाषा मानत थ| व िवदशी भाषा

क िवरोधी नह थ वरन उनक वचरसव क िवरोधी थ| उनह न भाषा नीित

आलोचना करत हए िलखा ह ndash ldquoअभी तक दश क परभावशाली लोग न िहनदी को

मन स सवीकार नह िकया ह ऐसा लगता ह| एक िदन तीसर िव की भाषा क

रप म िहनदी आनवाली ह आ रही ह|rdquo8

6 सा तािहक िह द तान प 4 7 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 37 8 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 41

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

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सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 8

व अपना िवचार कत करत हए िलखत ह ndash ldquoजहा औदायर ह िववक ह करणा ह

सयम ह मनषयता वह ह िकत जो मनोभाव इसक िवपरीत जात ह उनकी दि म

मनषयता नह हो सकती ह|rdquo4

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी एक सफल वागमी ह| गहन स गहन िवषय को

अतयत सहजता क साथ परसतत करन की अपवर शिकत उनम थी| व बड़ी स बड़ी बात

को गय पिरहास क साथ पानी म घली हई गड की भाती न िकसी आयास क गल

उतार दन म पणर कशल थ| डॉ परभाकर माचव िलखत ह िक ldquoि वदी जी क यहा

पता ही नह चलता था कया भाषण म और कया लखन म िक िव ता कहा ह

सहजता कहा ह|rdquo5

आचायर ि वदी िवचारशील और िस ातवादी िकत थ| परतयक िवषय पर

उनक िनणरय सिचितत और सप हआ करत थ| सािहतय धमर दश-परम राजनीित

आिद िकसी भी कषतर म उनक िवचार म या अनतिवरोध नह था| व मानवता क

पजारी थ| उनका सािहतय मानव-मिहमा का मानवोतथान का लख ह और उसकी

परगित का साधना भी| मनषयता तथा मानव-परम उनकी दि म बड़ी चीज़ ह|

उनक साथ िजन लोग न बरा स बरा वहार िकया उनक िकततव पर कीचड़

डाला उनकी जीिवका पर लाट मारी उनक िवकास सार काट स रध उनक

िवरोध म कछ करना तो दर कछ कहन का भी उनह न परय नह िकया| काशी

िहनद िव िव ालय स िवदा होत समय जाच सिमित क अधयकष क बार-बार पछन

पर भी उनह न कछ नह कहा|

4 िववदी गरथावली हज़ारी परसाद िववदी प 46 5 सा कितक आलोचना और हज़ारी परसाद िववदी परो िकशोर शमार प 63

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 9

आचायर ि वदी जी सचच दश-भकत िकत थ| उनह न शरी बनारसी दास

चतवदी को भज एक पतर म इस बात पर दःख परकट िकया था िक ndash ldquoयह कसा अधर

ह िक अपन दश क िवषय म भी हम अगरज़ी क िलखी पसतक पढ़कर जञान परा करना

पड़|rdquo6 उनह न दश को समप ससकित का गान िकया ह| व दश क िवघटन की

सभावना मातर स िथत हो जात ह| उनह न सन 1967 म अपन िपरय छातर िशव

परसाद िसह को िलख पतर म ldquoआशका हो रही ह िक दश की खणड-खणड न हो जाय|

दश कह िवयतनाम क रासत तो नह जा रहा ह|rdquo7 ि वदी क lsquoबाणभ की

आतमकथाrsquo म भि नी क माधयम स दश की एकता और सगठन क कायर क परयास का

वणरन िकया ह| lsquoचारचनदर लखrsquo म शतवाहन क चकरविततव की चदरलखा की कामना

और तदनकल पररणा म आचायर ि वदी का दशपरम अतिनिहत ह| पननरवा का आयरक

समदरग रा ीय एकता अिभयान का आधार सतभ ह| िहनदी भाषा स ि वदी को

बहत लगाव था| य िप व िहनदी को रा भाषा नह मातभाषा कहन म गवर का

अनभव करत थ| व िहनदी क परभाव को महतव को सवीकार करत हए उस

उ रो र शिकत-समप बनान की लालसा रखत थ| व िहनदी को हास और अशर

परम और शष भिकत और शर ा की रप दनवाली भाषा मानत थ| व िवदशी भाषा

क िवरोधी नह थ वरन उनक वचरसव क िवरोधी थ| उनह न भाषा नीित

आलोचना करत हए िलखा ह ndash ldquoअभी तक दश क परभावशाली लोग न िहनदी को

मन स सवीकार नह िकया ह ऐसा लगता ह| एक िदन तीसर िव की भाषा क

रप म िहनदी आनवाली ह आ रही ह|rdquo8

6 सा तािहक िह द तान प 4 7 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 37 8 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 41

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 9: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 9

आचायर ि वदी जी सचच दश-भकत िकत थ| उनह न शरी बनारसी दास

चतवदी को भज एक पतर म इस बात पर दःख परकट िकया था िक ndash ldquoयह कसा अधर

ह िक अपन दश क िवषय म भी हम अगरज़ी क िलखी पसतक पढ़कर जञान परा करना

पड़|rdquo6 उनह न दश को समप ससकित का गान िकया ह| व दश क िवघटन की

सभावना मातर स िथत हो जात ह| उनह न सन 1967 म अपन िपरय छातर िशव

परसाद िसह को िलख पतर म ldquoआशका हो रही ह िक दश की खणड-खणड न हो जाय|

दश कह िवयतनाम क रासत तो नह जा रहा ह|rdquo7 ि वदी क lsquoबाणभ की

आतमकथाrsquo म भि नी क माधयम स दश की एकता और सगठन क कायर क परयास का

वणरन िकया ह| lsquoचारचनदर लखrsquo म शतवाहन क चकरविततव की चदरलखा की कामना

और तदनकल पररणा म आचायर ि वदी का दशपरम अतिनिहत ह| पननरवा का आयरक

समदरग रा ीय एकता अिभयान का आधार सतभ ह| िहनदी भाषा स ि वदी को

बहत लगाव था| य िप व िहनदी को रा भाषा नह मातभाषा कहन म गवर का

अनभव करत थ| व िहनदी क परभाव को महतव को सवीकार करत हए उस

उ रो र शिकत-समप बनान की लालसा रखत थ| व िहनदी को हास और अशर

परम और शष भिकत और शर ा की रप दनवाली भाषा मानत थ| व िवदशी भाषा

क िवरोधी नह थ वरन उनक वचरसव क िवरोधी थ| उनह न भाषा नीित

आलोचना करत हए िलखा ह ndash ldquoअभी तक दश क परभावशाली लोग न िहनदी को

मन स सवीकार नह िकया ह ऐसा लगता ह| एक िदन तीसर िव की भाषा क

रप म िहनदी आनवाली ह आ रही ह|rdquo8

6 सा तािहक िह द तान प 4 7 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 37 8 िह दी तथा अ य भाषाए आचायर हज़ारी परसाद िववदी प 41

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 10

धमर क िवषय म ि वदी जी की सप मानयता ह िक धमर वह ह िजसस मानव

का अतयिधक कलयाण हो| उनह िकसी सपरदाय िवशष स घणा नह थी और न व

िकसी सपरदाय क अनधानयायी थ| उनह न lsquoबाणभ की आतमकथाrsquo म भि नी क

माधयम स इसलाम की सरल समाज- वसथा की परशसा की ह| व सवय भागवत

धमारनयायी थ और शरीकषणावतार क परम भकत| lsquoपननरवाrsquo म तपिसवनी क माधयम

स उनह न इस मानयता को परकट िकया ह|

राजनीित क कषतर म शरी ि वदी इिनदररागाधी क परित सममान भाव रखत और

लोिहया जी क नाम पर मह िबचकत ह| परनत परजाततर क वतरमान सवरप स व

सत नह थ| राजनीित क ारा धमर को दबा दन क कारण व कषबध थ| उनह न सन

1969 म प ािरकापरसाद िमशर को एक पतर म िलखा था ndash ldquoपरजाततर का जो रप

हमार सामन आ रह ह सचमच कया वही ह िजसक िलए िपछली पीढ़ी न सघषर

िकया था राजनीित क

इसी परकार क कमर को अब दषकमर नह माना जाता|rdquo9

िनषपकषता और नयायिपरयता आचायर क िस ात थ| व िनणरय लन क पवर

पयार िवचार करत थ परनत िनणरय लन क बाद अिडग-अटल रहना उनका िस ात

था| उनह न शरी बनारसी दास चतवदी को एक िकतगत पतर म िलखा ndash ldquoिनणारयक

क आसन बठकर म िकसी भी िकत क परित सकोच और पकषपात को पाप मानता

ह|rdquo10 तयाग को व शर मानव गण मानत ह| दिलत दराकषा की भाित िनचोड़कर

सबक िलए िनछावर करक परमपरयानत को समिपत हो जाना ही मनषय-धमर ह यह

उनकी दढ़ धारणा ह| िनषपकष और िनसवाथर भावना को व महतवपणर मानव-गण

9 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी प 22 10 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 11

मानत ह| अपन आपको दिलतदराकषा की भाित िनचोड़कर सबक िलए िनछावर नह

कर िदया जाता तब तक सवाथर खणड सतय ह वह मोह को बढ़ावा दता ह तषणा को

उतप करता ह और मनषय को दयनीय तथा कपण बनाता ह| िनभरयता उनका

मल-मतर ह अिवरोध उनका मानव-परम और ई र भिकत तथा गरदव ारा िलिखत

lsquoशाबार ऊपर मनषय सतय ताहार उपर नाईrsquo उनका जीवन दशरन ह|

आचायर ि वदी का बा िकततव अतयत सरल और सहज-परापय था| उनका

वश और रप उनक अतर को पणरतया परकट कर दता था| उनका जीवन खली पसतक

थी| व यवावसथा स ही खादी धारण करत थ| व जीवन स अिधक परम करनवाल ह|

जञान और अनभव क िलए उनह भख ह| सई स लकर सोषयिलसम तक सभी वसत

का अनसनधान करन क िलए उतसक रहत ह| शरीमनोहरशयाम जोशी न उनक

िकत िचतर का परसततीकरण इस परकार िकया ह ndash ldquoि वदी जी जयोितषाचायर

धमरशा ी सािहतयजञ इितहास समपादक पराधयापक शोधकतार िचर िजजञास

सबकछ ह और य सब उनकी बातचीत स झलकता रहता ह|rdquo11 रिवनदरनाथ टगोर

उनह िव ान मानत थ| किववर रामधारी िसह िदनकर न उनक िकततव क िवषय

म िलखा ह िक िव ान और लखक व आज ब-जोड़ ह िकनत मनषयता की दि स

भी उनक समककष पहचान वाल लोग दश म कम ह ग| बनारसीदास चतवदी न

उनक िकततव का िचतर इस परकार परसतत िकया ह ndash ldquoिजतन बिढ़या वह सािहतयक

थ उसस कह आग बढ़कर सहदय मनषय थ|rdquo12 यही सहदयता या मानव-परम

ि वदी क िकततव को महानता दनवाली िवशषता ह|

11 सा तािहक िह द तान ी मनोहर याम जोशी प 2 12 हज़ारी परसाद िववदी क उप यास म नारी बनारसी दास चतवदी प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 12: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 12

पररणाशरोत

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िवराट िकततव को परभािवत करनवाली

अनक महान शिकतया ह| उनक जीवन और उनकी िवचारधारा को परभािवत

करनवाल महापरष म मखयतः महामानव रिवनदरनाथ टगोर पिणडत मदन मोहर

मालवीय आचायर िकषितज मोहन सन कलािवद िवधशखर भ ाचायर पिणडत

बनारसी दास चतवदी महाकिव कािलदास बाणभट कबीरदास एव तलसीदास ह|

इनह महापरष न आचायर ि वदी क बहआयामी सािहतय सजन और िवकासशील

परितभा को िनखारन क मल म रहकर अनकल जलवाय परदान की| साथ ही

शािनतिनकतन क सािहतयक ससकित एव कलातमक वातावरण क समिनवत परभाव

न उिचत योगदान दकर एक जयोितषाचायर को इस यग क शर सािहतय सर ा क रप

म परिति त िकया|

िव किव रिवनदर नाथ टगोर आचायर ि वदी को बहत परभािवत िकय|

ि वदीजी क मानवतावाद क मल म महाकिव रवीनदर जी ही रह ह| पिरणामतः

आपका समगर सािहतय पथ इसी धरातल पर िनिमत हआ ह| व अपन जीवन का

मागरदशरक lsquoशािनतिनकतनrsquo आगमन तथा गरदव lsquoटगोरrsquo को मानत ह| उनह न

पिणडत बनारसीदास चतवदी को एक पतर म िलखा था िक ldquoमर जीवन की सबस

बड़ी घटना शािनतिनकतन म गरदव का दशरन पाना ह| न जान िकस पवर पणय फल

स मझ यह सौभागय िमला| दशरन पा सकना ही परम पणय का फल ह परनत मझ तो

ह िमला था| बाद म गरवर क दशरन िमल| भगीरथी की िनमरल जलधारा क

समान उस परिमल महापरष का साि धय िकतना आहलाद करता था इस बात को

वही जान सकता ह िजसन कभी उस रस का अनभव िकया हो|rdquo13 यह उनक जीवन

की शभ घडी ही रही ह गी जब उनह गरदव का हपणर साि धय िमला होगा|

13 सा तािहक िह द थान प 10

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 13: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 13

सभवतः गरदव क गहर परभाव क कारण ही व 1930 6 7 8 नवबर को अपन

lsquoि जतव पराि की ितिथयाrsquo मानकर परितवषर हष ललास क साथ उतसव मनाकर उस

यग म राजिष गरदव क परित अपनी हािदक कतजञता अिपत करत रह ह| ि वदी को

गरदव स सबस बड़ा गरमतर िमला था ndash ldquoजथा तचछ आचारर मरबालराशी

िवचारर सरोतपथ फल नाइ गरासी पोरशर करनी शतधाrdquo (जहा तचछ आचार की

बाल का ढर िवचार क सरोत पथ को िनगलकर पौरष क टकड़-टकड़ न कर द)|14

उनका सारा किततव इसी मल मतर पर आधािरत ह| आचायर ि वदी न lsquoकय और

कय नह rsquo सतमभ क अतगरत पछ गय एक पर ndash ldquoरवीनदरनाथ क साि धय म आप

काफी समय तक रह ह| आपका लखन और जीवन दशरन उनस कहा तक परभािवत

हआ ह ndash इसक उ र म उनह न िलखा ndash lsquoबहत परभािवत हआ ह| सकषप म कया

िलखrsquo|15 आचायर ि वदी की सजनातमक शिकत को परभािवत करन म शािनतिनकतन

क बारह वष का गरदव का सपकर एव उनकी जीवन दि ही ह| आचायरजी उनक

परभाव को सवीकार करत हए lsquoमतयजय रवीनदरrsquo की भिमका म एक सथान पर िलखत

ह िक ldquoउनक िनकट रहन वाल को सदा यह अनभव होता था िक वह अिधक

पिरषकत और अिधक बड़ा होकर लौट रहा ह| बड़ा आदमी वह होता ह िजसक

सपकर म आनवाल का अपना दवतव जाग उठता ह|rdquo16 रवीनदर क सपकर स उनका

दवतव तो जागत हआ ही साथ ही साथ उनकी रचनातमकता न उनक पािडतय को

गलाकर सहज बना िदया ह|

कछ िव ान समालोचक न ि वदी की सािहितयक रचनाशीलता पर

रवीनदरीकरण का आरोप लगाया ह| डॉ कमल रrsquo अपन िनबध म इस ओर सकत

14 आलोचना डा िशवमगल समन का लख प 92 15 पर न क घर सपादक राज दर अव ती प 35 16 म यजय रवी दर हज़ारी परसाद िववदी (भिमका) प 3

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 14: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 14

करत हए िलखत ह ndash ldquoजब भी वह कछ सोचतबोलत या िलखत ह तो कछ ही दर

म वह रवीनदरनाथ की भाषा म सोचन बोलन या िलखन लगत ह|rdquo17 यह सच ह िक

ि वदी पर टगोर का गहरा परभाव पड़ा ह परनत एक का िकततव कभी भी दसर क

िकततव क साच म नह ढल सकता ह| यह किववर रवीनदर क िकततव न आचायर

ि वदी की िवचारधारा को सवारिधक परभािवत िकया ह|

पिणडत मदन मोहन मालवीय का भी ि वदी जी पर गहरा असर पड़ा था|

जब कभी आचायर ि वदी भीतर-भीतर थकन अनभव करत तब उनह मालवीय जी

ारा परसाद रप म िकया गया महाभारत का कछ अश याद आत ndash (जागो

थाहीनिच स सतत कलयाण काय म जट रहो और मानकर चलो िक व पणर ह ग

ही|) उनकी धारणा ह िक यिद इस मतर को भारतीय यवक जीवन म उतार ल तो

कौन उनक रासत म रोड़ा अटका सकता ह| मालवीय जी क अनसार सबकी उ ित

ही वासतिवक नीित हो सकती ह| ि वदी क जीवन पर इस बात की गहरी छाप

पड़ी थी| ि वदी अपन जीवनकाल म अनक बार दसर ारा अपमान तथा

मानिसक उतपीडन का अनभव करता था| उनकी उदारता और सहजता क मल म

उनमकत अनभव ही रही ह| उनकी िवचार धारा पिणडत मदन मोहन मालवीय जी स

अवशय परभािवत हई ह|

शािनतिनकतन का अनकल वातावरण गरदव का साि धय मालवीय जी की

सहजता की भाित आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा न भी ि वदी क

िकततव एव किततव को परभािवत िकया ह| डॉ िशवमगल समन न अपन एक लख

म िलखा ह िक आचायर िकषितजमोहन सन ि वदी को अपना मानस पतर मानत थ|

शािनतिनकतन म जब म ि वदीजी क साथ उनस िमलन गया तो सतकिवय की

17 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ndash यिकत व एव कित व डा कमल वर प 132

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

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वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

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इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 15

जीिवत परमपरा पर चचार करत-करत उदास भाव स कहन लग िक इस कायर को नई

पीढ़ी महतव नह द रही ह कह यह मर साथ ही समा न हो जाय| िफर बड़ ह

स ि वदी जी की पीठ थपथपात हए बोल िक हज़ारी परसाद ही उस परा करग|rsquo

गरदव और िकषितज मोहन सन क पयार-दलार न ि वदी जी का कायाकलप कर

िदया| आचायर ि वदी न सनत सािहतय की जो पन ारखया परसतत की ह उसक मल

म आचायर सन ारा परसतत सनत परमपरा क अधययन और उनकी िवचारधारा ही ह|

पिणडत बनारसदास चतवदी क िकततव और िवचारधारा का परभाव आचायर

ि वदी पर लिकषत होता ह| पिणडत जी lsquoिवशाल भारतrsquo क सपादक थ| आचायर

ि वदी पिडतजी को अपना सािहितयक गर मानत थ| ि वदी न िलखा ह िक मर

सािहतय गर अनक ह पर िजनकी एक िच ी न मर अनदर एक अपवर जीवनी शिकत

भर िद थी उनको म कया कह उन िदन म अजञात ndash अखयात लखक था|

रवीनदरनाथ की किवता पर लख िलखकर lsquoिवशाल भारतrsquo म छपन को भजा था

तो मझ एक पतर िमला िक ndash आज हमार जस बहतर को पीछ छोड़ गय ह| यह पतर

िमलत ही एक नई शिकत का अनभव हआ| आचायर ि वदी न पिडतजी को अपना

सािहितयक गर तो माना ही साथ ही साथ उनक पतर क एक-एक शबद को

पररणासरोत क रप म सवीकार िकया ह|

इसी परकार कलािवद िवधशखर भ ाचायर क परभाव क कारण ही आप

िचतरकला म रिच लत थ| महाकिव कािलदास क सौनदयर बोध मसतमौला कबीर क

फककडपन बाण भ की समाजसवा भावना एव तलसीदास की समनवयशीलता

आिद की िविश ता स आचायर ि वदी क बहआयामी िकततव को िनखारत हए

उनकी िवचारधारा पर गहराई स परभाव डाला ह| उसकी िवचारधारा पणर रप स

मानवतावादी रही ह| उनकी समाजशाि य और सासकितक धारणाए उनक समगर

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 16

सािहतय को परभािवत करती रही ह| ि वदी असीम मानवीय गण औदायर िववक

करणा सयम आिद स अलकत होन क साथ ही साथ मानवता क महान पजक थ|

डॉ ि वदी न आदशरवाद क धरातल पर परसपर िवरोधी िवचारधारा

परमपरा तथा आधिनकता ससकित और सभयता समाज और िकत धमर तथा

िवजञान आिद म समनवय सथािपत करन का परयास िकया ह| ि वदी क िकततव म

औदायरपणर समगर भाव-चतना का पणर पिरपाक िदखाई दत ह| उ त कल जात

होकर भी व जाित-पाित क िवचार स मकत थ| िजस यग म ि वदी क िकततव का

िवकास हआ उस रा ीय दि स lsquoगाधीयगrsquo कह सकत ह| व गाधी क िकततव एव

दशरन स बहत परभािवत थ| उनका जीवन दशरन परमपरागत रिढय एव

अनधिव ास पर आधािरत नह थ उनह न िवजञान की नवीनतम सथापना क

आधार पर िचतन को परिति त िकया ह|

आचायर क माता-िपता की भिकत-भावना तथा पािरवािरक ससकार क

अनरप उनकी सरलता और िवनमरता न उनक सािहितयक िकततव क िनमारण म

महतवपणर योगदान िदया ह| उनक जीवन की बहत बड़ी उपलिबध इसी िवशषता

पर िनभरर करती ह| व सादगी क अवतार थ| उनकी सहज सरलता टगोर क

मानवतावाद तथा आचायर िकषितज मोहन सन की सनत परमपरा स परभािवत थी| व

िजतना दखन म सरल और िवनमर लगत थ उतना ही व िवचार म भी सरल थ|

गभीर िवषय को व आतमसात करक उस सरलतम रप म परसतत करन म पणर दकष

थ| अपन पािडतय की गिरमा को अकषण रखत हए उसक सरलीकत रप को सभी क

िलए अिपत करना उनक जीवन का परम ल य था| िवनोदिपरयता उनक िकततव

की और एक िवशषता ह| दःख म रोत रहना व पसद नह करत थ| उनका िव ास

ह िक lsquoदःख तो कवल मन का िवकलप ह अपन को िनःशषता स द दन म ही सचचा

आनद ह जीवन की साथरकता ह| इस परकार उनका िवराट िकततव उस िवशाल

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 17: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 17

वटवकष की भाित बह आयामी था जो अतीत की गहराईय स lsquoरसrsquo ख चकर आज क

मकत आकाश म सास लता ह|

किततव

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी का सािहतय िवपल िविवध और िविश ह|

उनक अनसार सािहतय का मखय उ शय सहज भाषा म ऊच िवचार और शर जीवन

मलय को अनायास गरा बनाना ह| उनह न किवता सािहतयितहास िनबध

उपनयास और आलोचना कषतर म ही नह जीवनी समपादन और अनवाद क कषतर म

भी कायर िकया ह| व सचच अथर म कित और सकित िकत ह| उनका सािहतय िवपल

होकर भी गभीर ह| ि वदी न ससकित इितहास समाजशा मानव-िवजञान आिद

िविवध िवषय पर गवषणातमक तथा आलोचनातमक लख िलख ह यिद एक ओर

धमर-चकर मानव-सतय सकीणरता भाषा-समसया जनता का अनतःसपदन आिद

िवषय पर लख िलख ह तो दसरी और सािहतय का ममर सािहतय म मौिलकता का

पर सािहतय की नवीन मानयताए ससकत महाका की परमपरा आिद सािहितयक

िवषय पर भी गभीर तथा सािहितयक लख परसतत िकय ह|

आचायर जी की मानयता ह िक िकसी रचना का सपणर आनद पान क िलए

रचियता क साथ हमारा घिन पिरचय और सहानभित मनषयता क नात भी

आवशयक ह| हम आलोचक होन क पहल आलोचय गरनथकार का िव सयोगय िमतर

बनना चािहए| इसक अभाव म हम उसक परित सख-दःख की अनभित का भाव नह

रख सकत तथा उसका सही मलयाकन हम नह कर सकत ह| आचायर ि वदी की

दि किवता क सदभर म सदव का ालोचना पर रही ह| आचायर रामचदरशकल की

lsquoिबमब गरहणrsquo की मानयता को ि वदी जी न किव का पहला एव अिनवायर कतर

माना ह| यही कारण ह िक अपनी समीकषा-दि म आपन उस ततव पर भी पनी दि

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 18: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 18

रखी ह| ि वदीजी का ालोचन किव क जीवन एव उसस जडी परमपरा क

पिरपर य म करत थ| इसम उसका पािणडतय कभी भी बाधक बनकर नह आया

अिपत साधक ही िस हआ ह|

आचायर ि वदी की सप धारणा थी िक वही सािहतय वासतिवक सािहतय कहा

जा सकता ह जो मनषय की पाि क वि य को तरल एव उसकी जमी हई

अनतःसिरता को परवाहमान कर सक तथा उसकी सवदनशीलता को उभार कर

lsquoसहानभितrsquo और lsquo हादररताrsquo को जागत कर सक| इसी सदभर म उनह न िलखा ह िक

ldquoजो सािहतयकार अपन जीवन म मानव-सहानभित स पिरपणर नह ह और जीवन

क िविभ सतर को हादर दि स नह दख सका ह वह बड़ सािहतय की सि नह

कर सकता|rdquo18 जहा तक सािहतय क परयोजन का पर ह आचायर ि वदी न मनषय को

ही सािहतय क कनदर म परिति त िकया ह| यहा तक िक का क परसग म भी यही

दि सामन रखत थ| उनह न िलखा ह िक ldquoमनषय को दवता बनाना ही का का

सबस बड़ा उ शय ह| मनषय को उसकी सवाथर बि स ऊपर उठाना उसक इहलोक

की सकीणरता स उपर उठाकर सतवगण म परिति त करना परदखकातर और

सवदनशील बनाना और िनिखल जगत क भीतर िचरसतबध एक अनभित क ारा

परािणमातर क साथ आतमीयता का अनभव कराना ही सािहतय का काम ह|rdquo19

आचायर ि वदी सािहतय क परित अपनी दढ़ मानयता िसथर करत हए कहत ह िक जो

सािहतय हम एकतव की अनभित की ओर उनमख करगा हम पश सामानय

मनोवितय स ऊपर उठाकर परम और मगलमय मनषय धमर म परिति त करगा वही

वसततः सािहतय कहलान का अिधकारी होगा|

18 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 41 19 भारतीय सािह य का म दड हज़ारी परसाद िववदी प 42

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 19: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 19

िनबध

ि वदी क िनबध िवधा म परवश क साथ िनबध लखन को बहआयामी िवकास

िमला| आचायर शकल न िनबध को जो िविश सवरप िदया उसका िवकिसत और

पिरपकव रप ह ि वदी का िनबध| आचायर न लिलत व आलोचनातमक िनबध लखन

म अपनी िनपणता िदखाई ह| दोन ही परकार क िनबध म उनक िवरत जञान का

सरस रप दखन को िमलता ह| पािणडतय क बोझ स रिहत ि वदी क िनबध पढ़त

हए परायः पाठक लखक क साथ सामीपय-भाव का अनभव करता ह| कभी पाठक

ि वदी की मोहक वणरन शली क दशय का दशरक बन जाता ह| ldquoजहा बठक यह लख

िलख रहा ह उसक आग-पीछ दाय-बाय िशरीष क अनक पड़ ह| जठजी जलती

धप म जबिक धिरितर िनधरम अिगनकणड बनी हई थी िशरीष नीच स ऊपर तक फल

स लद गया था|rdquo20 इसी परकार अनक सथल पर पाठक लखक का सहगामी

सहयातरी बन जाता ह| कभी लखक क िववचय सथल का िनरीकषक बन जाता ह तो

कभी आचायर का िसर िहलाकर सहमती दनवाला समथरक बन जाता ह| इस सबध

म ि वदी क लिलत िनबध िवशष रप स द ह|

सन 1951 म lsquoकलपलताrsquo िनबध सगरह का परकाशन हो गया था और उसक

प ात उनकी लखनी स 1964 म lsquoकटजrsquo िनबध सगरह परकािशत हआ| lsquoिशरीष क

फलrsquo lsquoआम िफर बौरा गएrsquo lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo lsquoभगवान महाकाल का

कणडनतयrsquo lsquoठाकरजी की बटोरrsquo lsquoससकितय का सगमrsquo lsquoधमरसय ततव िनिहत गहायाrsquo

आिद lsquoकलपलताrsquo क िनबध ह| lsquoकटजrsquo म lsquoदवदारrsquo lsquoआतमदान का सदशवाहक

वसनतrsquo lsquoजीवन शरत शतमrsquo lsquoदीपावली-सामािजक मगलचछा का परितमापवरrsquo

lsquoवशालीrsquo lsquoभारत की ऐकय-साधना सािहतय क कषतर मrsquo lsquoभारतीय ससकित का

20 िशरीष क फल हज़ारी परसाद िववदी प

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 20: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 20

सवरपrsquo lsquoमानव धमरrsquo lsquoधािमक एव सचचिरतर नारी कडब की शोभा हrsquo आिद परमख ह|

1948 म परकािशत lsquoअशोक क फलrsquo िनबध सगरह म lsquoवसनत आ गयाrsquo lsquoनया वषर आ

गया हrsquo lsquoमरी जनम भमीrsquo lsquoघर जोड़न की मायाrsquo भारतीय फिलत जयोितषrsquo

lsquoभारतीय ससकित की दनrsquo lsquoपरानी पोिथयाrsquo lsquoभारतवषर की सासकितक समसयाrsquo

परयाि त की घड़ीrsquo आिद िनिहत ह| 1959 म परकािशत िवचार परवाह का परमख

िनबध ह lsquoवषार-धनपित स घनशयाम तकrsquo| ि वदी की lsquoसभयता और ससकितrsquo नामक

िनबध सगरह का परमख िनबध ह lsquoसौनदयर सि म परकित की सहायताrsquo सभयता

lsquoसभयता और ससकितrsquo lsquoससकित और सािहतयrsquo lsquoकला का परयोजनrsquo और lsquoभारतीय

सािहतय का मरदणडrsquo| 1954 म परकािशत िवचार और िवतकर िनबध सगरह का एक

परमख िनबध ह िहनद ससकित क अधययन क उपादान|

1972 म आचायर ि वदीजी का िनबध सगरह lsquoआलोक पवरrsquo परकािशत हई|

उनम lsquoपराचीन भारत म मदनोतसवrsquo lsquoआलोक पवर की जयोितमरय दवीrsquo lsquoअनधकार स

जझना हrsquo lsquo ोमकश शा ी हज़ारी परसाद ि वदीrsquo lsquoपराचीन जयोितष

जयोितिवजञानrsquo lsquoिहमालयrsquo lsquoभारतीय ससकित और िहदी का पराचीन सािहतयrsquo lsquoपव

एिशया क तीथरयाितरय का सवागतrsquo lsquoमधयम मागरrsquo lsquoसवागतrsquo lsquoभारत की समनवय

साधना-धमर और दशरन क कषतर मrsquo lsquoितलक का गीता दशरनrsquo आिद आत ह|

lsquoदवदारrsquo िनबध म आचायर ि वदी भारतीय ससकित को ज़ोर स पकड़ता ह

लिकन अशोक क फल म आकर व अपनी शका परकट करत ह िक आज िजस हम

बहमलय ससकित मान रह ह कया वह ऐसी ही बनी रहगी21 lsquoकटजrsquo िनबध म

कटज भारतीय ससकित का परतीक ह| वह दसर क ार पर भीख मागन नह जाता

कोई िनकट आ गया तो भी भय क मार अधमरा नह हो जाता नीित और धमर का

उपदश दकर नह िफरता दसर को अपमािनत करन क िलए गरह की खशामद नह

21 अशोक क फल गरथावली 9 हज़ारी परसाद िववदी प 24

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 21

करता जीता ह तो शान स जीता ह|22 इन पिकतय म ि वदीजी का सवािभमान

कत ह|

lsquoआम िफर बौरा गएrsquo म ि वदी कहत ह िक परान इितहास म दि डाल तो

वतरमान इितहास िनराशाजनक नह मालम होता ह|23 वसनत अ गया ह आतमादान

का सदश वाहक वसनत पराचीन भारत म मदनोतसव आिद िनबधो क ारा

िनबधकार न बताया ह िक भारत उतसव का दश ह| lsquoमरी जनमभिमrsquo म ि वदी की

समाज कलयाण की भावना कत ह| व िलखत ह ndash ldquoजब हमारी सपणर जनता

साहसपणर धमारनकल कमर करती हई सौ वषर का जीवन पान की इचछा करगी और

उसक चिरतर बल को दबरल बनानवाली सामिजक शिकतया कषीण हो जायगी तब

हमारा नितक धरातल ऊचा होगा| तभी समगर दश का मगल होगा और हमार

दशवासी कवल कमरमय जीवन ही नह यापन करग व सार जगत को इस परकार क

जीवन की और उदब करग|24

lsquoनाखन कय बढ़त हrsquo िनबध म ि वदी पछत ह िक मनषय िकस ओर जा रहा

ह पशता की और या मनषयता की ओर व उपदश दत ह िक मनषय क अनदर अनक

ऐस आदत ह जो हमार िववक को कषीण करता ह| नाखन की तरह यिद इन बर भाव

बढ़ता जा रहा ह तो उस काट दना चािहए| िजस परकार नाखन काटन स हमार हाथ

का सौनदयर बढ़ जाता ह उसी तरह हमार मन क बर भाव को दर करन स हम म

मनषयता आ जायगी|rdquo25

22 कटज हज़ारी परसाद िववदी प 33 23 आम िफर बौरा गए हज़ारी परसाद िववदी प 46 24 नाख़न कय बढता ह हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 64 25 मरी ज मभिम हज़ारी परसाद िववदी गरथावली 9 प 110

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 22: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 22

lsquoिजनदगी और मौत क दसतावज मrsquo मतय की अिनवायरता पर ि वदी परकाश

डालत ह| यकष क सवाल क िलए यिधि र उ र दत ह िक परितिदन लोग मर रह ह

िफर भी जो बच रह जात ह उनम जीन की इचछा बराबर बनी रहती ह| यही बहत

बड़ा आ यर ह|26 पराचीन जयोितष जयोितिवजञान भारतीय फिलत जयोितष आिद

िनबधो स िनबधकार क जयोितिवजञान का पता हम िमलत ह| िहमालय वशाली

ठाकरजी की बटोर सवागत आिद िनबध ससकित और इितहास स प ह|

lsquoभीषम को कषमा नह िकया गयाrsquo म भीषम क माधयम स आचायर न उन

समसत बि जीवीय क अपराध पर िवचार िकया ह जो िनणरय लन की पिरिसथित

म मौन रह जात ह| ि वदी की दि म ऐसा मौन बि जीवी समय पर िनणरय लन

की अकषमतावाल िव ान इितहास क भयकर रथचकर क नीच िपस जात ह| lsquoिजनदगी

और मौत क दसतावजrsquo म उनह न अपन जीवन का िसहावलोकन करत हए िलखा ndash

ldquoबनन चला था जयोितषी और बन गया िहदी का लखक जो िलखना चाहा वह नह

िलखा अपरतयािशत रप स कछ ऐसा िलख गया िजसकी कलपना भी मन म नह

थी|27

अनक पतर-पितरका म भी आचायर ि वदी क कई िनबध परकािशत होचक ह|

बरस भी (सा ािहक िहनदसतान 1973 जलाई 19) भारत म धतकीड़ा (सधािबद

1974 नवबर) िजनदगी और मौत क दसतावज (कादािमबनी फ़रवरी 1978) बोलो

का क ममरजञ (आरती 1941 मई) भीषम को कषमा नह िकया गया (सा ािहक

िहनदसतान 1978 जनवरी 19) सवरकाल नमसय महामानव (नव भारत टाइमस

26 िज दगी और मौत क द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 111 27 िज दगी और मौत का द तावज हज़ारी परसाद िववदी प 12

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 23

वािषकाक ndash 1975) आतमजयी भगवान महावीर (हिरयाणा सवाद 1974 नवबर)

वनदमातरम (समगर वािषकाक 1977) य सब ि वदी क उललखनीय िनबध ह|

िनबध लखन म सरसता धारा परवाह और सगठन जस ततव को आचायर न

परा महतव िदया ह| िकल िवषय को सरलीकत करन की उनकी कषमता क परमाण

उनक िनबध ह| वदी क िनबध लखन की कला को शबद दन क िलए िव ािनवास

िमशर का यह कथन उपयकत ह ndash ldquoि वदी का िनबधकार अशोक क फल की तरह

रागानकल िशरीष की तरह अवधत कटज की तरह बीहड़ मनमौजी और दवदार

की तरह ोमकश ह| यह वसनत की अगवानी क िलए सबस आग जान को आतर ह

वह ितरपर सनदरी क पद-सचार की आकाकषा म पलिकत होन वाला ह वह िनदाध क

ताप पर ठठाकर हसता ह पर हलकी सी दभारवना क सपशर स कमहला जाता ह| वह

कठोर पाषाण को भदकर अपना योगय सगरह करता ह परनत इसक साथ ही वह

चारिसमत ह वह मघ क िलए आतमदानी क िलए परथम अधयर ह वह मड़क ो को

पराभत करनवाला िहमालय की गिरमा का साकषी ह पर अपन िकततव को

परषणीय बनान क लाभ म समझौता करन को तिनक भी परसतत नही ह|rdquo28

उपनयास

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी न कल चार उपनयास की रचना की ह|

बाणभ की आतमकथा- बाणभ की आतमकथा का परकाशन वषर 1946 ई ह|

इसम कथाकार न महाराज हषरवधरन क शासनकाल को प भिम बनाया ह और

कलपना का भरपर परयोग करक ऐितहािसकता को परसतत िकया ह| परसतत उपनयास

आतमकथा शली म िलखी गई ह| बाणभ की कथा परारभ स ही रहसय कतहल

िजजञासा म इस परकार डब जाती ह िक पाठक अत तक उसक सवाद म डबा रह जाता

28 आचायर हज़ारी परसाद िववदी ि ट और सि ट हिरदास यास प 83

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 24: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 24

ह और एक असग ति का अनभव करता ह| इस उपनयास का परमख पातर बाण भ

और िनपिणका ह| भि नी अघोर भरव महामाया आिद भी इसक परमख पातर ह|

इसक किलपत पातर भी यगीन समाज ससकित और पिरवश क रग म ऐस रग िमलत

ह िक श ऐितहािसक परतीत होत ह| परसतत उपनयास की कथावसत एक अपहत

नारी तनवरिमिलद की कनया भि नी को मकत करान स समबिधत ह और उस िपता

को पनः सौपना ह| इस उपनयास की शली रोचक ह| परसतत उपनयास क ारा

ि वदी न नारी को दव मिदर की भावना स सममािनत कर नारी क चिरतर को

उजजवल बना िदया ह| उपनयासकार का मखय उ शय परम भावना नारी उ ार

धमरिन ा रा ीय जागरण और मानवता की परित ा ह|

चारचनदरलख - परसतत उपनयास 1963 म िलखा गया ह| चारचनदरलख म पवर

मधयकालीन ऐितहािसक एव सासकितक पिरिसथित का यथाथर िचतरण िमलता ह|

राजा सातवाहन इसका नायक ह| रानी चदरलखा एव मना अनय महतवपणर पातर ह|

िव ाधर भ नारी माता जलहण धीर शमार और गर गोरखनाथ इसक ऐितहािसक

पातर ह| मधययग क ततर-मतर िसि आिद क अनसार ततकालीन इितहास ससकित

धमर एव राजनीित उपनयास म उभरकर आयी ह| ताितरक साधन क साथ

मनोवजञािनकता भी जगह जगह दि गोचर होती ह| उपनयासकार न इसम राजा

सातवाहन रानी चदरलखा और मना को परतीकातमकता दन का परयास िकया ह| य

तीन इचछा जञान और िकरया क रप म परसतत िकय गय ह| परसतत उपनयास म

ि वदी की परम सवदनशील लखनी ारा बारव एव तरहव शित क भारत क

िकत और समाज का यथाथर और सहानभितपणर िचतरण हआ ह|

पननरवा - परसतत उपनयास की रचना सन 1973 ई म हई| इस उपनयास म तीस

अधयाय ह| एक अधयाय दसर अधयाय स इस परकार जड़ा हआ ह िक पाठक

उपनयास को छोड़ता ही नह | दवरात स सबिधत पहला छः अधयाय अतयनत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 25: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 25

आकषरक एव पाठक को कलपना जगत म िवचरण करानवाल ह| मजला और दवरात

का िमलन आयरक शयामरप और मणाल का पालन तथा िशकषा शयामारप का

भागकर नट मणडली म सिममिलत होना तथा आयरक और मणाल मजरी का

पिरणय कल िमलकर पननरवा को औपनयािसक भावभिम और रोचकता परदान

करनवाल घटनाकरम ह| इन अधयाय की घटनाए इतनी सहजता सवाभािवकता

तथा शालीनता क साथ परसतत की गई ह िक पाठक आग का अधययन किलए उतसक

होता जाता ह|

अनामदास का पोथा - 1976 म िलखा गया आचायरजी का चौथा एव अितम

उपनयास ह lsquoअनामदास का पोथाrsquo| इस उपनयास म लखक क जीवनानभव गौरव

मिहमा चिरतर बि आधयाितमक एव सािहितयक चतना दशरिनक िचतन ससकित

तथा ससकत जञान का सार िनिहत ह| उपनयासकार न मल रप म छादोगय और

परासिगक रप स बहदारणयक उपिनषद स बीज लकर लौिकक यवा-यवती की परम

कथा क माधयम स अलौिकक समझ जानवाल अधयातम की ावहािरक ाखया का

समगर इितहास परसतत िकया ह| यह उपनयास परम अधयातम दशरन मनोिवजञान

आिद का अदभत सगम ह| बीस अधयाय म िवभकत यह उपनयास छनदोगय उपिनषद

क कथा सतर क सहार अपरितम बनावट क साथ वद-वदाग योग की बर िव ा तथा

शरगार शात एव करण रस स साकार हआ ह| सबका समाहार लोक सगरह

लोकसवा और परोपकार की भावना स रत हो जाना ह| यह उपनयास जीवन क

यथाथर को उ ािटत करता ह| लखक न सही अथर म लोक जीवन की पीड़ा का

साकषातकार िकया ह और उनका मत ह िक िजस यग म मनषय का एक िवशाल

समदाय अ -व की पीड़ा म ाकल ह रोग-शोक एव अकाल म तड़प रहा ह उस

यग म बर की एकात योग साधना थर ह| इस परकार lsquoअनामदास का पोथाrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 26: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 26

अधयातम स भरपर काम चतना क सवर स झकत लोक कलयाण की भावना को

उजागर करनवाला एक सफल उपनयास ह|

ि वदी क चार उपनयास िहदी सािहतय क दपरण क रप म सामन आत ह

िजसम नय-नय परयोग क साथ उनह न आधिनक बोध साकार िकय ह| दीन दिखय

की दीनता का सवर चार उपनयास स मखिरत हो उठता ह| अनक नितक मलय स

यकत य उपनयास िहदी सािहतय जगत म महतवपणर सथान रखन योगय ह|

इितहास

सन 1940 म lsquoिहदी सािहतय की भिमकाrsquo क आगमन क साथ ही िहदी सािहतय

क इितहास म एक नया अधयाय खल गया| शकलजी ारा सथािपत मानयताए

ि वदी न पहली बार सपरमाण खिणडत िकया| वीरगाथा काल क अिधकाश गरनथ

अपरमािणक िस हो रह थ भिकतकाल क कायर-कारण की शकलीय अवधारणा भी

ि वदी न नाथ सपरदाय क आधार पर गलत परमािणत की| इसी तरह शकलजी ारा

समसत जन सािहतय को धािमक रचनाए कहकर सािहतय म सिममिलत न करन को

भी ि वदी न अनिचत मानत हए कहा िक इस तकर क आधार पर तो भिकतकालीन

किव तलसीदास का सािहतय भी असािहितयक हो जाएगा|

1950 म lsquoमधयकालीन धमर साधनाrsquo म ि वदी न मधयकाल की ाखया करत

हए मल रप स मधयकालीनता और उसक सदभर म आधिनकता की अवधारणा

पर िवचार िकया ह| मधयकालीनता की lsquoजबदी मनोवि rsquo का उनह न िव षण िकया

ह| इसी क पिरपर य म आचायर न भिकतकाल और रीितकाल को परखा ह|

सन 1950 म नाथ क सासकितक और ऐितहािसक महतव का गहन िववचन

lsquoनाथ सपरदायrsquo म परकािशत हआ| नाथ सपरदाय क इितहास और उसक बदलत

सवरप साधना का सवरप और परवत काल म ा अनाचार तथा मखय नाथ का

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 27: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 27

िव षणातमक अधययन नाथ सपरदाय म हआ ह| 1951 म lsquoभारतीय वाडमयrsquo तथा

1952 म िव ािथय क िलए िवशष रप स िलख इितहास गरनथ lsquoिहदी सािहतय

उतभव और िवकासrsquo परकािशत हए| िव ान न िहदी सािहतय को ि वदी क अनरप

सतर का गरनथ नह कहा पर ि वदी इस सबध म पवर घोषणा कर चक थ िक यह

गरनथ अधययन कर रह िव ािथय क िलए िहदी सािहतय क इितहास को समझन का

सरलीकत रप ह|

1952 म lsquoिहदी सािहतय का आिदकालrsquo परकािशत हआ| इस गरनथ म आिदकाल

की दोन सीमा पवर और परवत क वातावरण भाषा-सवरप व सािहतय िवधा

सवरप क िवचार क साथ आिदकाल क किवय और सािहतय का वजञािनक अधययन ह|

सन 1965 म परकािशत lsquoआधिनक सािहतय बोधrsquo भी सािहतयितहास की दि

स उललखनीय ह| ि वदी न इितहास अधययन को lsquoशव साधनाrsquo कहा ह| पर यही

शव साधना lsquoिशव साधयrsquo क िलए साधन ह िजसम साधना क उपरात शव का मखय

ऊधरमखी हो जाता ह| इितहास क रख िववचय िवषय को ि वदी न कछ ऐसी

सरसता और सवाभािवकता स थर क गर गाभीयर क भार स मकत होकर िवविचत

िकया ह िक वह सजरनातमक सवरप हो गया| ि वदी न इितहास लखन परमपरा को

एक नया सवरप परदान िकया| उनह न सप तः िवधयवादी शकल परमपरा स िभ

परितजञा की ह| व सािहतय की िविभ परवि य और उसक मल और वासतिवक

सवरप का पिरचय दना ही अपना ल य घोिषत करत ह व अटकलबािजय और

अपरासिगक िववचना तथा नाम िगनान की परवि स बचन की भी कोिशश करत

ह| इस परकार ि वदी अनकानक शकलो र सािहतयितहासकार की तलना म िहदी

म पहली बार कदािचत समसत भाषा म सबस पहल शकलजी ारा परवितत

िवधयवादी सािहतयितहास स िभ सािहितयक सािहतयितहास िलखन क शरय की

अिधकारी िस होत ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

helliphelliphellip helliphelliphellip

Page 28: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 28

आलोचना

ि वदी न स ाितक तथा ावहािरक दोन ही आलोचनाए िलखी ह|

स ाितक आलोचना

lsquoकिवताrsquo lsquoउपनयास और कहानीrsquo lsquoसािहतय का ाकरणrsquo lsquoसािहतयrsquo

lsquoसािहतयकारrsquo lsquoनाटकrsquo lsquoसािहितयक समालोचनाrsquo lsquoिनबधrsquo lsquoरस कया हrsquo कथा

आखयाियका और उपनयासrsquo lsquoसािहतय का नया रासताrsquo आिद शीषरक िनबधो स

आचायर न का शा पर आधािरत स ाितक आलोचना की ह| इस आलोचना म

का ागो का सवरप िनणरय व अनक इितहास पर िवशद ाखया की गई ह| अपनी

इस आलोचना म आचायर ि वदी न का शा ीय िस ात का िव षण करत हए

वजञािनक परितमान सथािपत िकय हrsquo| उनही क आधार पर ि वदी न सािहतय की

आलोचना की ह| आचायर क िलए सािहतय का पहला उ शय रहा ह िक वह

सामिजक मानव क िहताथर हो| ि वदी क िलए तो सािहतय का ल य मनषय ही ह

उनक अनसार जो सािहतय मनषय को अधकार स परकाश की ओर ल जाय उस

सािहतय कहना ही गलत होगा| सािहतय को व सनतिलत दि स दखन का परयास

करत ह| lsquoसनतिलत दि rsquo को सप करत हए व कहत ह िक सनतिलत दि वह नह

ह जो अितवािदय की आवग-तरल िवचारधारा का िशकार नह हो जाती और

िकसी पकष क उस मल सतय को पकड सकती ह िजस पर बहत बल दन और परभाव

बढ़ा ह| सनतिलत दि सतयानवषी की दि ह|

ावहािरक आलोचना

1936 म lsquoसर सािहतयrsquo 1942 म lsquoकबीरrsquo 1963 म lsquoमतयजय रवीनदरrsquo और

1965 म कािलदास की लािलतय योजना नामक ावहािरक आलोचना क गरथ

परकािशत हए| य गरनथ ावहािरक आलोचना क परितमान क रप म सथािपत हए|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 29: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 29

अपन सािहितयक िनषकष अवधारणा को परितमान क रप म सथािपत कर

उनह न सर और कबीर को मान पनज िवत कर िदया| य आलोचनातमक गरनथ

सजरनातमक कितया हो गई ह| यह ि वदी की मथा ही थी िजसन इितहास क प

म िवल होत किवय को नई पीढ़ी क िलए अधययन और उतसकता का िवषय ही

नह अिपत सामियक भी बना िदया| lsquoकािलदास की लािलतय योजनाrsquo म उनह न

लािलतय और सौनदयर तथा भावानपरवश तथा यथा िलिखतानपरवश क आधार पर

कािलदास क रचना ससार क नय आयाम क दशरन कराय ह| आचायर की यह

सजरनातमक कषमता पणर आलोचना ही ह िजसन मघदत को lsquoमघदत-एक परानी

कहानीrsquo क रप म एक नया और आधिनक सवरप परदान िकया|

कहानी

हज़ारी परसाद ि वदी का कहानी ससार बहत छोटा ह| िफर भी अपनी

छोटी-छोटी कहािनय क माधयम स उनह न वतरमान समाज की समसया का

िचतरण ख चन का परयास िकया ह| lsquoधन वषरणrsquo नामक कहानी म गर िशषय सबध

का गहरा छाप हम िमलत ह| lsquoमतर-ततरrsquo म ि वदी यह िस करत ह िक दसर की

भलाई कोई भी नह चाहता| lsquo वसाय बि rsquo नामक कहानी क माधयम स

कहानीकार कहत ह िक उ ित म भी हम यह सोचना चािहए िक हम न िकस रासत

म चला था| यह आदमी का एक परम परधान गण ह जो इस समाज स न हो गया

ह| आचायर ि वदी की मानयता ह िक जाित कल दश िव ा आिद सभी स ऊचा ह

मानव का चिरतर| चिरतर अचछा ह तो हम उसका आदर करग बर चिरतरवाल स

हम घणा का भाव होगा| इसकी पहचान lsquoबड़ा कौन हrsquo नामक कहानी स हम िमलत

ह| lsquoदवता की मनौतीrsquo म ि वदी की सासकितक दि परकट होती ह| समाज म

छआछत की समसया को उजागर करनवाली कहानी ह lsquoअछतrsquo| वतरमान समाज म

नारी की दयनीयता का िचतरण भी परसतत कहानी स हम िमलती ह| lsquoपरितशोधrsquo

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 30: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 30

नामक कहानी क माधयम स लखक कहत ह िक परोपकार की भावना भाई-चारा

अपनी गलती पर पछतान का मन आिद गण मनषय को दवता बनाता ह|

इस परकार दख तो छोटी होन पर भी ि वदी की कहािनय का आशय महान

िस होता ह|

किवता

आचायर हज़ारी परसाद ि वदी किव क रप म भी अपनी तिलका चलाई ह|

ि वदी का रचनाकाल भारतीय सवाधीनता सगराम काल था| इसिलए उनकी

किवता म भारत की आतिरक िवसगितय और िवषमता को दर करन का

आहवान और मिकत क िलए सवाधीनता सगराम म भाग लन की पररणा दखा जा

सकता ह| lsquoमश दाबादrsquo lsquoलािडलीrsquo lsquoर किवrsquo lsquoआतमा की ओर सrsquo lsquoबोलो का क

ममरजञrsquo आिद उनकी परमख किवताए ह|

िवषय की िविवधता अकी किवता म पाई जाती ह| lsquoता क परितrsquo नामक

किवता का िवषय परम ह| इसम किव न अपनी िपरयतमा को lsquoदिनया की दवीrsquo कहा

ह| माया को सवागत करत हए उनह न अपनी एक किवता म िलखा-

ldquoसवागत सवागत मरी माया

म न तम म सबकछ पाय|rdquo29

ि वदी न और एक किवता म ससार क परित अपनी आशका को परकट हए

पछत ह िक lsquoकया िनराशा की धारा म बहता ह ससारrsquo30

आचायर ि वदी की अनपलबध किवता lsquoमरा सव rsquo शाितिनकतन स 1941

जनवरी 8 को बरा महतर म िलखी गई ह| किव क सव म सारी परकित रमणीय

29 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 21 30 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 23

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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Page 31: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 31

होकर सामन आत ह| नदी सागर पहाड़ आकाश वन आिद धरती क कण-कण को

छकर ही उनह न परसतत किवता का सजन िकया ह| इसक अत म किव िनराश होकर

कह उठत ह

ldquoआज मरा िच बहत उदास ह

िकतना कषिणक था मरा सव rdquo31

इस परकार दख तो पता चलता ह िक ि वदी की किवताए िवषय विवधय की

दि स महतवपणर ह|

अनवाद सािहतय

हज़ारी परसाद ि वदी न कछ बगला और ससकत गरथो का िहदी अनवाद भी

िकया ह| इनकी अनिदत रचनाए कछ परकािशत ह और कछ अपरकािशत| इसी

परकार कछ रचना का उनह न अनवाद िकया और कछ का छायानवाद|

अपरकािशत अनिदत रचनाए - रिवनदर नाथ टगोर की lsquoचचलाrsquo lsquoलाल कनरrsquo और

मरा बचपनrsquo का इनहोन अनवाद िकया ह| इन अनिदत रचना की भाषा-शली

इतनी लिलत ह िक इनम मौिलक रचना जसी रोचकता िव मान ह| lsquoपरबध

िचतामिणrsquo का भी उनह न अनवाद िकया ह|

अपरकािशत अनवाद सािहतय - ि वदी की दो अनिदत रचनाए lsquoपरातन परबध सगरहrsquo

और lsquoपरबधकोशrsquo अपरकािशत ह|

छायानवाद

ि वदी की दो रचनाए छायानवािदत ह| एक पराचीन भारत का कलातमक

िवकास और दसरा पराचीन भारत क कला-िवनोद| वसततः यह एक ही पसतक दो

रप म उपिसथत हई ह| शािनतिनकतन की ओर स नतय गीतादी क अन ान क

31 हज़ारी परसाद िववदी गरथावली ख ड 11 प 32

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

helliphelliphellip helliphelliphellip

Page 32: First pages------ -sign - Shodhganga : a reservoir of Indian ...shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/97696/9/6...पहल अध य य आच यर हज र पर स

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 32

ावहािरक पकष का पराचीन का गरथो म जो उललख िमलता ह उस पर दो

ाखयान दन क अनरोध को पणर करन की दि स इस पसतक परारभ हआ था| इसम

ि वदी न पराचीन ससकत गरथो वद उपिनषद समित नाटक उपाखयान सभी क

आधार पर सामानय जन क िनतय कम उतसव और अवसर का सनदर वणरन िकया

ह| lsquoपराचीन भारत का कलातमक िवकासrsquo म छाप की अिधक अशि या थी| नई

पसतक lsquoपराचीन भारत क कला िवनोदrsquo उस कलातमक िवकास का ही पिरविधत

ससकरण ह| इसम अनक नय िवषय को जोड़ा गया ह|

समपादन सािहतय

ि वदी की बहआयामी सािहितयक परितभा न कोई कषतर अछता नह छोड़ा ह|

कछ गरथो और कछ पितरका का भी उनह न सफलतापवरक सपादन िकया ह|

सपािदत गरनथ - (क) सिकष पथवीराज रासो- इसक सह सपादक डॉ नामवरिसह

ह| इसका सिकष ससकरण सन 1957 म परकािशत हआ था| इनकी भिमका ि वदी

न िलखी ह| इसम गयारह अधयाय ह|

(ख) नाथ िस ो की बािनया - ि वदी न इस पसतक का सपादन सन 1957 म

िकया था|

(ग) अबदरहमान कत सदश रासक - इसका समपादन ि वदी न डॉिव नाथ क

सह-सपादन म िकया ह| इसकी भिमका ि वदी न िलखी ह| उनह न इस गरनथ

को अपभरश का महतवपणर गरनथ माना ह|

सपािदत पतर-पितरकाए

ि वदी न सन 1941 तक lsquoिव भारतीrsquo का कलक ा स समपादन िकए थ

और सािहतय अकादमी स परकािशत lsquoनशनल िबिबलयोगराफीrsquo क समपादन िनिरकषण

का कायर उनह न सन 1954 म सप िकया था|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 33

जीवनी एव ससमरण

ि वदी न टगोर की जीवनी lsquoमतयजय रिवनदरrsquo क नाम स िलखी ह| इसम

गरदव क महान िकततव की झलक परसतत की ह| उनक हदय की उदारता उनका

मानव परम उनकी सतय साधना क साथ साथ उनकी िदनचयार का भी उललख िकया

ह| रचना क अत म गरदव की जनम कणडली दी ह| इस कणडली क िवषय म ि वदी

न कहा ह िक गरदव की कणडली न महापरष योग िवल ण रप घिटत होता ह| इस

जीवनी और ससमरण सािहतय क अितिरकत अनय अनक ससमरण ि वदी न िलखी ह|

lsquoपतरrsquo नामक परकाशन म उनक अनक ससमरण सगहीत ह| उनह न अपन पिरजन क

नाम भरमण करत समय सागर तट और शल िशखर क सनदर ससमरण पतर िलख ह|

लखक मल रप स समालोचक होता ह| आचायर ि वदी क इितहास गरथो म

अनक समीकषा िस ात सथािपत हो चक थ परनत उनह न सवततर समीकषा गरनथ भी

िलख ह| आचायर शकलजी को िहदी सािहतय का परथम समीकषक और ि वदी को

उनका परक समीकषक मानय िकया जाता ह| ि वदी ससकत क परकाणड पिणडत

िकनत िहदी क परमख पकषधर ह उनकी रचना न िहदी सािहतय को परचर सप ता

परदान की ह| ि वदी की समीकषा दि बड़ ापक धरातल पर बनी ह| व पराचीन

पिणडत ह नवीन ाखयाता ह बि क धनी ह सामािजक शिकत क आकाकषी ह

सौनदयर क उपासक ह भाव और िवचार की समि सािहतय म दखना चाहत ह

िकनत शबद क भी ममरजञ और िशलपी ह स ा क िकततव क अधयता ह और उसक

समच पिरवश क सतय को जानन क आगरही ह| ि वदी का समीकषा सािहतय िन

परकार ह|

सर-सािहतय - सन 1934 म परकिशत इस गरनथ क सात अधयाय म सरदास क

सािहतय का सगोपाग िववचन िकया गया ह| इस रचना म ि वदी न कषण भिकत

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 34

को महाभारत काल स उिदत माना ह| इसम ि वदी न िलखा ह ndash ldquoजो लोग

दिकषणातय आचायर क दाशरिनक और धािमक मत का अधययन करक ही तलसी और

सर क रहसय का उ ाटन करत ह व लोकमत क साथ अिवचार करत ह| िजस

भिकत साधना न दव मितराम और प ाकर को पदा िकया वह िकसी आचायर का ही

साधना नह थी| आचायर िवशष की दीकषा तो उस पर रग चढ़ा गई मल कछ और

ही था|rdquo32

सािहतय का साथी- सन 1949 म परकािशत इस पसतक का पनपररकाशन lsquoसािहतय

सहचरrsquo क नाम स सन 1965 म हआ था| ऐितहािसक सासकितक िवचार का

परितिनिधतव करनवाली इस रचना को छातरोपयोगी दि स िलखा गया ह| इस गरनथ

म ि वदी की समीकषा प ित का ससप सवरप परकट हआ ह|

कबीर- 1942 म इसका परकाशन हआ| इस रचना म ि वदी की अनसनधान वि

और िव ता का रप परकट हआ ह| कबीर की भिकत साधना इस पसतक की

महतवपणर बात ह| कबीर ारा परयकत शबद की यातरा और उनक अथर िवकास को

इस रचना म अनसनधान का आधार बनाया ह| शनय िनरजन नाद िबद राम

रहीम आिद शबद को ि वदी न पिरिसथित क अनसार अथर नजक कहा ह|

नाथ सपरदाय- सन 1950 म परकािशत इस रचना म ि वदी न गोरखनाथ को

सासकितक सरोत माना ह| व उनह कवल सनत नह मानत वरन बौ िस और

परवत काल क सतो क मधय की कड़ी कहत ह| इस रचना म ि वदी न सािहतय

समीकषा क िलए किव और उसक का को समझन क िलए लोकजीवन की रिढय

रीित-िरवाज़ धािमक परमपरा आिद का अधययन आवशयक बताया ह|

32 सर सािह य हज़ारी परसाद िववदी प 44

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 35

मधयकालीन धमर साधना- इसका परकाशन सन 1952 म हआ था| इस रचना म

ि वदी न िस िकया ह िक मधयकालीन का की परतयक परवि पवरकालीन परवि

रप ह| उनह न कहा ह िक भिकतकालीन साधक क शबद स परवत िहदी क

भिकतकाल को समझन म सहायता परा ह|

सहज साधना- यह सन 1954 म परकािशत समीकषा कित ह| इसम ि वदी न शव

ब और शकत साधक का कनदर lsquoशरीशलrsquo को बताया ह| इस गरनथ म मधययगीन सतो

की मानवतावादी भावना का िववचन ह|

मधयकालीन बोध का सवरप- यह सन 1960 म परकािशत हई थी| इस समीकषा गरनथ

म आठव शताबदी तक की रचना की चचार की गई ह| ससकत का म बढती हई

लकषण िपरयता और अपभरश का की सरल मोहकता का उललख हआ ह| इसम

ि वदी न अपभरश भाषा-िवषयक और अपभरश का सबधी खोजपणर तथय परसतत

िकय ह| िहदी भाषा क अधययन क िलए व अपभरश को समझना अिनवायर मानत ह|

उनक अनसार गोरखनाथ शकराचायर स भी बड़ सासकितक परमपरा क रकषक ह|

इस रचना म ि वदी न लोक सािहतय क महतव को परितपािदत िकया ह|

कािलदास की लािलतय योजना- इसका परथम ससकरण सन 1965 म हआ| इस

रचना म ि वदी न कािलदास क का की ाखयातमक आलोचना परसतत की ह|

सि रचना क िस ात की ाखया क साथ-साथ इसम नारी सौनदयर भावानपरवश

आिद िवषय पर भी िवचार कत िकय ह|

सािहतय का ममर- तीन ाखयान म सकिलत इस गरनथ रप का परकाशन सन 1950

म हआ था| इसम समीकषा क िलए सामािजक मलय को समझन का आगरह िकया

गया ह|

पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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पहला अधयाय आचायर हज़ारी परसाद ि वदी क िकततव एव किततव

इितहास ससकित िमथक क पिरपर य म हज़ारी परसाद ि वदी की रचना का िव षणातमक अधययन 36

आचायर ि वदी का रचना ससार िनि त रप स िहदी क िलए अमलय और

ऐितहािसक िनिध ह| उनक उदार दि कोण क पिरणामसवरप उनकी रचना म

सहज ही एक भ ता का दशरन िकया जा सकता ह| इस भ ता म सरसता का

सि वश ह| यह सरसता उनक िकततव की सरसता ह जो लखनी क माधयम स

रचना म उतर आई ह| आधिनक जीवन की िवषमता और िवरोधी िसथितय का

ि वदी क जीवन म भी बाहलय था| परत उनक मानवतावादी दि कोण क कारण

ही उनकी रचना म शका का सवर िबलकल नह िदखाई दता| मनषय जीवन क

िलए य रचनाए परकाश परदान करनलायक ह| िवपरीत पिरिसथितय स लड़न का

साहस तथा मनोबल इसस हम िमलत ह| समाज क टटत मलय को हय दि कोण

स दखत हए अपनी िभ रचना क माधयम स व उसक पर ार की घोषणा करत

ह| कराित की भावना को अपनात हए ि वदी आधिनक जनता को तथा साथ-ही-

साथ आधिनक सािहतयकार को सचत कर काम करन की पररणा दत ह| मनषय तथा

समाज ही उनकी तिलका का िवषय बना ह इनह िवशषता क कारण ि वदी का

लखन िहदी सािहतय की अकषणण अमलय और अतलनीय िनिध ह|

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