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Pratnakirti, vol.-1, Issue-1, 2013 http://www.pratnakirti.com/ 1 अचायकवि मोहन लाल वम रवचत रामचᳯरत बालचवरिका ईदय शंकर दुबे सार-संेप भारतीय रचनाधᳶमय के वलए राम-कथा सबसे विय का-विषय रहा है। या ईर और या दवण, भारत के ियः सभी भू-भाग और ियः सभी भाषा तथा ईपभाषा रामकथा का वनररतसृजन चलता रहा। राम-कथा-का कᳱ शृंखला बुरदेलखड का राम-कथा-सावहय सदा से चचाय का विषय रहा है। मा बुरदेलखड ही दजयन ितं रामकथा-सावहय कᳱ रचना इ। कइ का ऄभी भी ि हो रहे ह। दुभायसे तो ऄभी तक आनकᳱ खोज ही पूरी हो सकᳱ है और ही आनका िकाशन ही। मोहन लाल वम, बुरदेलखड के ऐसे ही एक ऄात कवि वजरहने रामकथा-परक कइ का-रथ कᳱ रचना कᳱ। ितुत अलेख ईनकᳱ एक कृवत रामचᳯरत बालचवरिकाके हतवलवखत िवत और ईसक े ि-विषय पर िकाश डाला जा रहा है। कᳱ-िसय - मोहनलाल वम, रामचᳯरत-बालचवरिका, रामकथा, बुरदेलखड, गोिधयननाथ-मवरद, चरखारी. अचायमोहन लाल वम बुरदेलखड के ऐसे कवि वजरहने राम-कथा और हनुमान् से सबवरधत कइ रथ कᳱ रचना कᳱ। विम संित् 1839 ईनका जरम चरखारी के एक सरारत विपᳯरिार था। ईनके वपता का नाम चूडामवण वम था। मोहन लाल वम दीघायु थे। संित् 1944 विमी ईनका िगयिास अ। 1 आरहने रीवतपरक और भविपरक कइ रथ कᳱ रचना कᳱ थी। नागरीिचाᳯरणी सभा, काशी कᳱ खोज-वििरवणका आनके ारा रवचत शृंगार- सागरनामा रथ का वििरण वमलता है ᳰकरतु रमिश रथ का रचनाकाल संित् 1616 विमी ᳰदया गया है 2 , जो ᳰक ऄशु है। िसे यह रथ िकावशत है। 3 कवि के िशज अज भी चरखारी ितयमान ह। कवि मोहनलाल को चरखारी राय कᳱ ओर से िचपवत’ ‘अचायऔर गुरदेिकᳱ पदिी वमली थी। संित् 1814 विमी छसाल के पु जगतराज कᳱ मृयु के सात िषय बाद खुमान सह को संित् 1821 वि0 चरखारी कᳱ गी वमली। संित् 1839 वि0 आनका िगयिास हो गया और विमाजीत (विजय बहादुर) गी के ईरावधकारी ए। ये कु शल कवि थे। आरहने विमसतसइऔर हनुमानविरदािली नामक रथ कᳱ रचना कᳱ। आनके दरबार कइ कवि- ाम - कड़ेरअ, पोट - खमᳯरया, वजला - वमजायपुर, ईर िदेश, वपन - 221 306. 1. बुरदेलखड के ऄात रचनाकार, ‘शृंगार सागर के रचवयता मोहनलाल वम...’ पृ : 125-143. 2. वहरदी सावहय का आवतहास, रामचरि शुल, पृ : 200 एिं 225. 3. रीवत-रथ शृंगार-सागर के रचनाकाल पर विचार, ᳰकशोरी लाल गु, ‘समेलन, भाग-62, ऄंक : 3-4,

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  • Pratnakirti, vol.-1, Issue-1, 2013

    http://www.pratnakirti.com/ 1

    अचायय कवि मोहन लाल वमश्र रवचत ‘रामचररत बालचवरिका’

    ईदय शंकर दबुे

    सार-संक्षेप

    भारतीय रचनाधर्ममयों के वलए राम-कथा सबस े विय काव्य-विषय रहा ह।ै क्या ईत्तर और क्या

    दवक्षण, भारत के िायः सभी भू-भाग और िायः सभी भाषाओं तथा ईपभाषाओं में रामकथा का वनररतर

    सृजन चलता रहा। राम-कथा-काव्यों की शंृखला में बुरदलेखण्ड का राम-कथा-सावहत्य सदा से चचाय का

    विषय रहा ह।ै मात्र बुरदलेखण्ड में ही दजयनों स्ितंत्र रामकथा-सावहत्य की रचना हुइ। कइ काव्य ऄभी भी

    िाप्त हो रह ेहैं। दभुायग्य स ेन तो ऄभी तक आनकी खोज ही पूरी हो सकी ह ैऔर न ही आनका िकाशन ही।

    मोहन लाल वमश्र, बुरदलेखण्ड के ऐसे ही एक ऄज्ञात कवि हैं वजरहोंन ेरामकथा-परक कइ काव्य-ग्ररथों की

    रचना की। िस्तुत अलेख में ईनकी एक कृवत ‘रामचररत बालचवरिका’ के हस्तवलवखत िवत और ईसके

    िण्यय-विषय पर िकाश डाला जा रहा ह।ै

    की-िर्डसय - मोहनलाल वमश्र, रामचररत-बालचवरिका, रामकथा, बुरदलेखण्ड, गोिधयननाथ-मवरदर,

    चरखारी.

    अचायय मोहन लाल वमश्र बुरदलेखण्ड के ऐसे कवि हैं वजरहोंने राम-कथा और हनुमान् स े

    सम्बवरधत कइ ग्ररथों की रचना की। विक्रम संित् 1839 में ईनका जरम चरखारी के एक सम्रारत

    विद्वत्पररिार में हुअ था। ईनके वपता का नाम चूडामवण वमश्र था। मोहन लाल वमश्र दीघाययु थे।

    संित् 1944 विक्रमी में ईनका स्िगयिास हुअ।1 आरहोंने रीवतपरक और भविपरक कइ ग्ररथों की

    रचना की थी। नागरीिचाररणी सभा, काशी की खोज-वििरवणका में आनके द्वारा रवचत ‘शृंगार-

    सागर’ नामा ग्ररथ का वििरण वमलता ह ैककरतु रमिश ग्ररथ का रचनाकाल संित् 1616 विक्रमी

    कदया गया ह2ै, जो कक ऄशुद्ध ह।ै िैसे यह ग्ररथ िकावशत ह।ै3 कवि के िंशज अज भी चरखारी में

    ितयमान हैं। कवि मोहनलाल को चरखारी राज्य की ओर से ‘िाचस्पवत’ ‘अचायय’ और ‘गुरुदिे’ की

    पदिी वमली थी।

    संित् 1814 विक्रमी में छत्रसाल के पुत्र जगतराज की मृत्यु के सात िषय बाद खुमान ससह

    को संित् 1821 वि0 में चरखारी की गद्दी वमली। संित् 1839 वि0 में आनका स्िगयिास हो गया

    और विक्रमाजीत (विजय बहादरु) गद्दी के ईत्तरावधकारी हुए। ये कुशल कवि थे। आरहोंने

    ‘विक्रमसतसइ’ और ‘हनुमानविरुदािली’ नामक ग्ररथ की रचना की। आनके दरबार में कइ कवि-

    ग्राम - कड़ेरुअ, पोस्ट - खमररया, वजला - वमजायपुर, ईत्तर िदेश, वपन - 221 306.

    1. ‘बुरदेलखण्ड के ऄज्ञात रचनाकार, ‘शृगंार सागर के रचवयता मोहनलाल वमश्र...’ पृष्ठ : 125-143.

    2. वहरदी सावहत्य का आवतहास, रामचरि शुक्ल, पृष्ठ : 200 एिं 225.

    3. रीवत-ग्ररथ शृगंार-सागर के रचनाकाल पर विचार, ककशोरी लाल गुप्त, ‘सम्मेलन, भाग-62, ऄंक : 3-4,

  • Pratnakirti, vol.-1, Issue-1, 2013

    http://www.pratnakirti.com/ 2

    पवण्डतों को अश्रय िाप्त था वजनमें िताप सावह, मान-कवि, सभा शेखर, मोहन लाल वमश्र,

    ियागदास, भोजराज अकद िमुख थे। राजा विक्रमाजीत की संित् 1886 वि0 में मृत्यु के बाद रतन

    ससह राजा हुए। रतन ससह काव्य-िेमी थे। संित् 1919 वि0 में रतन ससह की मृत्यु के बाद जयससह

    ईत्तरावधकारी हुए। संित् 1937 वि0 जयससह की मृत्यु के पश्चात् मलखान ससह को राजगद्दी वमली।

    मोहन लाल वमश्र राजा विक्रमाजीत के शासन-काल से लेकर जयससह के समय तक चरखारी राज-

    दरबार की शोभा बढाते रह।े4

    कवि मोहन लाल वमश्र हनुमान के परम भि थे। ईनके वपता राजकीय संस्कृत-सभा,

    चरखारी के िधान थे। मोहन लाल को काव्य-िवतभा विरासत में वमली थी। ऄपने दीघय- जीिनकाल

    में ईरहोंने लगभग पैंतीस ग्ररथों की रचना की थी। यहााँ पर हम कवि द्वारा रवचत राम-काव्य और

    हनुमत्काव्य की ही चचाय करेंगे। दभुायग्यिश कवि रवचत राम-कथा विषयक एक भी ग्ररथ स्ितरत्र

    रूप स ेऄब तक िकावशत नहीं हो सका ह।ै कवि द्वारा रवचत राम-कथा परक काव्य-ग्ररथों का नाम

    आस िकार ह ै - 1. रामचररत बालचवरिका (रचनाकाल संित् 1934 वि0), 2. हनुमान-शतक

    (रचनाकाल ऄज्ञात), 3. हनुमान-पचासा (शारत), 4. हनुमान-पचासा (ईग्र), 5. हनुमान-चालीसा,

    6. हनुमत- पचीसी, 7. हनुमत रोग हरण षोडशी, 8. हनुमान ऄष्टक, 9. श्रीराम-ऄष्टक, 10.

    श्रीरामससहािलोकन-ऄष्टक, 11. श्रीराम कौशल ककशोर ऄष्टक तथा 12. श्रीराम-ब्याह षोडशी।

    अचायय मोहनलाल वमश्र राम-भवि में रवसक-सम्िदाय के थे। ‘रामचररत बालचवरिका’

    ईनका राम-कथा से सम्बवरधत विवशष्ट काव्य-ग्ररथ ह।ै आसमें राम-जरम से लेकर राम के वििाह तक

    का िणयन ह।ै कवि ने तुलसी-कृत रामचररतमानस - बालकाण्ड की कथा को अधार बनाया ह ैतथा

    केशि दास रवचत ‘रामचवरिका’ की शैली को ऄपनाया ह।ै आसमें कुल बारह सौ पचास (1250)

    छरद हैं। ऄरतःसाक्ष्यों के ऄनुसार ग्ररथ का रचना-काल संित् 1934 वि0 (1877 इ0) ह ै-

    संित ्चारर तीन नि एका। कावतक सुदी छठ रवि कदन नेका।

    जोग नखत सब सुंदर ठयई। ता कदन चररत पूणय यह भयई।।

    सौभाग्य से आस ग्ररथ की संित् 1934 वि0 की वलखी िवत िाप्त ह ै वजसे चरखारी में ही

    ककसी लाला दगुाय िसाद ने वलखा था।5

    4. बुरदेल-खण्ड का संवक्षप्त आवतहास, गोरेलाल वतिारी, पृष्ठ : 293-294. तथा ‘मेमोरेण्डा ऑन आवण्डयन स्टेट्स,

    पृष्ठ-32.

    5. अचायय मोहन लाल वमश्र कृत ‘रामचररत बाल-चवरिका’ की मूल हस्तवलवखत िवत का िथम पत्र/पृष्ठ ऄत्यरत

    जीणय हो गया था ऄतः ककसी सज्जन ने दसूरे कागज पर छरदों को वलखकर मूल िवत लगा कदया ह।ै दभुायग्यिश

    आस पर भी पानी पड़ जाने से ऄक्षर ऄस्पष्ट हो गए हैं। दसूरे पत्र से मूल िवत ठीक ऄिस्था में ह।ै मूल हस्तवलवखत

    िवत के अकद और ऄवरतम पृष्ठ की स्कैन-कॉपी ‘ित्नकीर्मत’ के पाठकों की सुविधा हतेु लेख के ऄरत में तो िकावशत

    ककए ही जा रह ेहैं, िथम पत्र में ईपलब्ध छः छरदों को भी आस लेख के ऄरत में िकावशत ककया गया ह।ै

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    कवि मोहन ने ग्ररथारम्भ में भगिान राम, रामचररतमानस, गणेश, सरस्िती, हनुमान और

    शंकर की िरदना से ग्ररथ का श्रीगणेश ककया ह।ै वशिा और शम्भु के संिाद से बालचररत की मूल-

    कथा को िारम्भ ककया ह।ै कवि ने ऄत्यरत सहजता के साथ भाि-विभोर होकर राम के बाल-चररत्र

    का बखान ककया ह।ै भाि-पक्ष और कला-पक्ष की दवृष्ट से ईनकी यह सिोत्तम कृवत ह।ै आसमें िमुख

    रूप स े दोहा, सोरठा, चौपाइ, छप्पय, सिैया, कवित्त, हररगीवतका, करहचं, वत्रभंगी, मदनहरा,

    मंज, हरपद, मधुभार, पद्धरी, तोटक अकद छरदों का ियोग हुअ ह।ै मोहन कवि संिाद-संयोजन में

    पटु हैं। रािण-बाणासुर संिाद, परशुराम-लक्ष्मण संिाद ऄच्छे बन पड़ ेहैं।

    कवि ने राम-जरम और वििाह-पिय पर िैकदक-रीवत, दशे-रीवत, लोक-रीवत का विशद िण्रन

    ककया ह।ै व्रजभाषा के साथ बुरदलेी के विपुल शब्दों का आसमें ियोग हुअ ह।ै राम-सीता के वििाह

    के ऄिसर पर ककए गए लोकाचार, लोकरीवत, कुलरीवत अकद का आतना विस्तार- पूियक िणयन

    ककसी ऄरय कवि ने नहीं ककया ह ै वजतना मोहन लाल ने। जनकपुर की युिवतयों द्वारा राम पटा

    (पीढा) पर वबठाकर हल्दी-तेल चढाना और मंगल हतेु मंगलगीत गाना, कुछ युिवतयों द्वारा राम की

    कलाइ में बााँधने के वलए कंकन पूरना, रेशम के डोरे को दगुुना, वतगुना, चौगुना बट करके हल्दी,

    दबू, लोटे की ऄंगूठी के साथ राम के दावहने हाथ में बााँधना, कंकन बााँधने के बाद राम को ईबटन

    लगाकर विवधित् स्नान कराया गया किर नख-वशख तक िस्त्राभूषणों से सजाया गया। ईरहें जामा-

    जरकसी पहनाकर मवणयों से जड़ा हुअ मौर ईनके वशर पर बााँधा गया। ललाट पर चरदन का खौर

    लगाया गया, कमर में कटार बााँधी गइ। आस िकार जनकपुर की युिवतयों ने वमलकर राम को िनरा

    (दलू्हा) बना कदया। आसके ईपरारत कवि ने राछरा किरने की लोकरीवत का िणयन ककया ह,ै वजसमें

    पीनस, मयानै, सुखपाल, डोला-डोली, तांम-झांम, पालकी-नालकी, चंडोल, सजे हुए हाथी, घोड़े,

    ईंट तथा विविध िकार के िाद्य सवम्मवलत थे। राछरा किरने का िणयन कवि के शब्दों में दवेखए -

    झांझ झननात रब्बी ढोल ठनठनात, गज-घंटा घननात सोर वत्रभुिन झूला की।

    बाज, गजराज, स्यंदन कौं साज बजैं, बाज ेगाज-गाज औ ऄिाज रमतूला की।

    मेहन भनत बना गािैं राजा-रानी, होत भौत धूम-धांनी रसरंग ऄनुकूला की।

    ऄत छब छौनी ऄत ऄतहीं वनरौनी, लौनी राछ किरै नौनी नृप कदन दलूा की।।

    वििाह-मण्डप में सीता को चढािा चढ रहा ह।ै अचायय कवि मोहन एक-एक अभूषणों का

    नामोल्लेख करते हैं -

    िकरीं, पटेला ऄलबेला छबदार चूरीं, चूरा चार चार कर कंकन यहााँ नीके

    चंिका ऄमोल लेत िैंदा मन मोल, कट कककनी ऄमोल नथ ऄकथ कहानी के।

    मोहन भनत गत मौवतन की माल गज,े हार हीरा लाल नही और जाकी सानी के

    ऄत छब छाय,े विध विरच बनाय,े अज चढत चढाय ेवसया रानी महारानी के।।

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    जगमगी जेटर जड़ाई बड़ ेघूंघरा हैं, पायजेब, पैजना ऄनौख ेछब पाय ेहैं

    रत्न चौक मूाँदरी, बजुल्ला, िरा, बाजूबंद, पहुची स ुकंकन सुहाय ेहैं।

    पचलरी, सतलरी, लल्लरी, वबचौली, छूटा हरा छब भरा बैंदी बीज दरुल्याय ेहैं

    सीसिूल, बैनीिूल, कनयिूल, वसरजेब, ऄैस ेअज सीता जू के चढत चढाय ेहैं।।

    सांकरै ऄजूबा कटे चुरा खूब-खूबा, अछी गूजरीं स ुउजरी ऄनौटा छब छाय ेहैं।

    पायपोस, वबवछया, वतषररया औ बांकै गैंद,े छींगुरी स ुपोत तोरा ऄत मन भाय ेहैं।

    दांिनी-तरौना, पानजासन, हमेल, चंपकली, कंठवसरी, सरसुवतया वलअय ेहैं।

    दहुरीं चुटीला और नौघरीं तबीज टीका, ऄैस ेअज सीता जू के चढत चढाय ेहैं।।

    सुकवि मोहन, अचायय थे। आरहें वििाह की िैकदक, दशेरीवत, लोकरीवत और कुलरीवत का

    ज्ञान था। ईरहोंने क्रम से एक-एक रीवतयों का िणयन ककया ह ैजो अज भी बुरदलेखण्ड में िचवलत हैं।

    यहााँ हम मात्र कुलदिेी के पूजन और दीया-बाती वमलान परक कुल और लोकरीवत का िसंग िस्तुत

    कर दते ेहैं -

    पद्धरी - पुन कावतय मात हस हात जोर।

    आत नेग अय कररय ेस ुओर।

    ईठ चल ेराम भैयन समेत।

    गुर भौन गईं लै कै सहते।

    बैठार पूज मुख लै बलाय। लछमी वनध रानी कवहब अय।

    पूजौ आनकौं श्री राम भूप। कुल देिी ज ेहमरीं ऄनूप।।

    रानी और ईनकी सवखयों ने राम से कहा कक ये हमारी कुलदिेी हैं, आनकी पूजा कररये। राम

    मौन रह ेतब भरत ने ईत्तर कदया कक हम आनकी कैसे पूजा करें ये तो वसया के पूजी (जूती) हैं -

    पूजौ राम येबीं, य ेहमारी कुलदेिी, भौत सेिी, सुख देिी, देिी आनसी न दजूी जू।

    रंग-रंग िारी छब िारी हैं वपयारी, वचत्रकरन सम्हारी य ेहमारी हैं वतलूजी जू।

    मोहन भनत सुन बोल ेभत्तय बैन कहौ, तुम सब ऄैन प ैन हम आरहैं छूजी जू।

    हाँस-हाँस ऄैस ेकहौ बातैं छली जैसैं, हम पूजैं आरहैं कैसैं, य ेवसया की पद पूजी जू।।

    आसी िकार दीया-बाती वमलान, लोट-पटा, धान-बुिाइ जैसी ऄनेक कुलरीवतयों का िणयन

    हुअ ह।ै धान-बुिाइ का िसंग दखेें -

    मंज - पुन बैठार कदय ेजोकदन जुत पलकन पर आक असन।

    सो ईपमा सुषमा सुख मुख की बरनी जाआ स ुकासन।

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    करतीं वनज कुल रीत िीत कर गा-गा गीत सुहाये।

    मुद मन मान धान बोिन वहत पुन भूपत बुलिाये।।

    कवित्त – मंवडि सजाय ेचार चौक पुरिाय ेचार, पलना वबछाय ेछब छाय ेरंग मो रह।े

    मीन प ैस ुदलूा बैठे चार सुख मूला, ऄत सुंदर ऄतूला वतरहैं देख जन जो रह।े

    मोहन भनत रानी-राजा संग होकै, धांन गेर-गेर बोकैं जे कैं ईर मैं स ुगो रह।े

    ऄतही रसाल गीत गािैं बाल जाल, मोद माल पुरय पाल पलका के चार हो रह।े।

    ग्ररथ की िलश्रुवत ह ै-

    श्रीराम बाल चररत्र की यह चवरिका जु सुन ैपढै।

    वतवह सकल वसवद्ध समृवद्ध सब सुख ऄत सुवन वनत वनतही बढै।।

    जो भुि मुि सयुि सो िभु भि जन मनमैं बसै।

    दखु दषु्ट-दषु्ट कुयोग रोग वियोग सोग सब ैनसै।।

    चौपाइ - जे रघुिीर चररत यह गािैं। ते जन ईर ऄनंद ऄत पािैं।

    वसध्ध मनोथय हौंय सब सोइ। राम भि मुद मंगल होइ।।

    मोहन लाल वमश्र हनुमान के सच्चे ईपासक थे। यहााँ िसंग-िाप्त ईनकी हनुमद-्विषवयणी कुछ

    दलुयभ रचनाओं पर भी हम िकाश डालना ईवचत समझते हैं। ईरहोंने रामचररत मानस के

    सुरदरकाण्ड को अधार मानकर ‘हनुमानशतक’ की रचना की। आसमें कुल वमलाकर 183 छरद हैं।

    िारम्भ के तेइस कवित्तों में हनुमान के शौयय का िणयन ह।ै सुरदरकाण्ड सुरदर आसवलये ह ैकक आसमें

    हनुमान की सुरदर कथा ह।ै कवि का कथन ह ैकक ‘वजस िकार विषम विष से विकल एिंज लते हुए

    सुर-िृरद की रक्षा के वलये वशि ने महागरल को पी वलया और दिेों के मध्य महादिे बन गए, ईसी

    िकार समुि लााँघ कर, सुरसा का परीक्षा-रूपी सागर पार कर, लंककनी को परास्त कर, ऄशोक-

    िारटका को ईजाड़ कर, लंका को क्षार कर, महाबली रािण के ऄहकंार को धक्का मारकर हनुमान ने

    जो शौयय िदर्मशत ककया ईसी महािीरता के बल पर िे महािीर हुए। सीता की सुवध का सरदशे राम

    को सुनाया आसी कारण सुरदर-काण्ड की कथा सुरदर ह।ै हनुमान का जैसा ओजमय कायय ह ैईसी

    िकार कवि ने ओजमयी िाणी में ईनकी कथा वलखकर ऄपनी िाणी को सिल ककया ह।ै ियाग में

    गंगा-घाट पर सोए हुए हनुमान पर भी एक छरद वलखा ह ैजो आस िकार ह-ै

    गज्ज गल गज्ज िीर तरन तरंजख ्सज्ज सत्र रस रज्ज ऄंग जंग में लरे ह ैज,े

    कंुभकनय िीर रािनाकदक ऄभीर, मेघनाथ रनधीर गिय वतनके हरे हैं जे।

    मोहन भनत वसया सोध के वलिैया, राम ऄनुज वजिैया, ससध ुतरन तरे हैं जे,

    सुर वसरताज बज्र ऄंग छब छाज, त ेि ेबरदौं कविराज, तीथयराज में परे हैं जे।।

    (हस्तवलवखत िवत से)

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    हनुमान-पचासा - मोहन लाल ने दो िकार का हनुमान-पचासा वलखा ह,ै ईग्र हनुमान-

    पचासा और शारत हनुमान-पचासा। शारत हनुमान-पचासा में एकमुखी हनुमान के शौयय और

    पराक्रम का िणयन ह ै तो ईग्र हनुमान-पचासा में पंचमुखी हनुमान की यशः-कीर्मत, िीरता का

    ओजपूणय िाणी में िणयन ह।ै चरखारी-राज्य की ओर से ईरहें ‘मरत्र-िाचस्पवत’ की पदिी दी गइ थी।

    हनुमान के ईग्र स्िरूप का िणयन ईरहोंने तावरत्रक पद्धवत से ककया ह।ै आसमें दोहा, सिैया, कवित्त

    छरद का ियोग ह।ै कायय की वसवद्ध न होने से कवि हनुमान को ईलाहना दतेा ह,ै ललकारता ह ैऔर

    ऄरततोगत्िा तो ईरहें ‘बरदरा’ तक कह दतेा ह ै-

    कहती जुबान हम जो रन पैज ठान, तौन कीनी न िमान, बीत ेकदन दस पंदरा।

    ताकौ बड़ौ सोच-सकोच ह ैहमारे ही, न सोच ह ैतुम्हारे धारे तो ऄंदरा।

    मोहन समेट गुच्छ, पुच्छ को ईमेठ, ऄब बैठे रह ेमेंठ के कहौ ज ूकौन कंदरा।

    औरन की बेर और कहाँ कीनी न ऄबार, ऄब मेरी बार बेर कैसी करत ऄरे बंदरा।।

    (हस्तवलवखत िवत, छरद संख्या-38)

    आस िकार मोहन लाल की रचनाओं का पररशीलन करें तो िायः सभी रचनाओं में ईनकी

    भवि की ऄगाधता और ऄपने अराध्य राम तथा हनुमान के िवत ईनकी गहरी श्रद्धा सहज ही िकट

    हो ईठती ह।ै श्रद्धा एिं भवि के आस मंजुल सामंजस्य ने ईनकी कवि-िवतभा को वनखारने में और भी

    भूवमका वनभाइ ह।ै मोहनलाल वमश्र द्वारा रवचत ‘रामचररत बाल-चवरिका’6 ग्ररथ तो ऄपन ेअप में

    बहुत ही महत्त्िपूणय कृवत ह।ै आसके छरद ऄत्यरत िभािोत्पादक हैं। विस्तार-भय से यहााँ विस्तृत

    वििरण नहीं कदए जा रह।े

    ‘रामचररत बाल-चवरिका’ के िथम-पत्र में ईपलब्ध छः छरद

    चार भुज चार चार िदन स ुचार-चार तन छब चार वतरहें ईर धर ध्याउं मैं।

    गुन गन मील ेसत्त गुनन गुनील,े िेद िरदन िसील ेदरसील ेकौ ररझाउं मैं।

    मेहन भनत मन मोहन सुमन ताके, सुरदर सुगुन सुन-सुन सुख पाउं मैं।

    अद ब्रह्म इश के, पालन मुनीश के, त ेरघुकुल इश के चारु चररत सुगाउं मैं।।1।।

    ऄत छब जाला लाल लाल ओ विशाला, महाकालह को काल ताह ईर धर ध्यािनै।

    कल मल नासब ेको, सुमत िकाशब ेको, जग जस गासब ेकौ पूजकै मनािनै।

    6. ‘रामचररत बाल-चवरिका’ की हस्तवलवखत िवत िस्तुत पंवियों के लेखक को मोहनलाल वमश्र के िंशज श्री

    पवण्डत बलभि िसाद वमश्र गुरुदेि, पुजारी श्रीगोिधयन-नाथ मवरदर, चरखारी, वजला-हमीरपुर, ईत्तर िदेश, के

    संग्रह से िाप्त हुइ थी। लेखक श्रीगुरुदेि और ईनके पुत्रों के िवत अभारी ह।ै

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    मोहन भनत िर देन िरदान मुद, मंगल महान हनुमान ही ररझािनैं

    ऄत ही ऄनंद बना भाि बड छंद ते, ि ैबंदौं मम चररत पुनीत मन भािनै।।2।।

    सरस सयानी िर देन िरदानी राम-रंगन में सानी ब्रह्मरानी तुम्हें ध्याउं मैं।

    दीज ेदशय दौर कर दीज ेक्रपा कोर, कीज ेऄत मत मोर मात यह िर पाउं मैं।।

    कीवजय ेसहाय जन जान आत ैअय, दीज ेईि ईि ईपजाय ससय कवित्त बनाउं मैं।

    होकै ही सभोत िह ैशंभ ुकर होत मात, नेत-नेत हमें तौन राम गुन गाउं मैं।।3।।

    ऄत छब जाल लाल-लाल सुंद ईरघ-ईघ्िल चरि भाल कौ मनाउं मैं।

    दशन ईदार नैन मद वगल चार भुजा, सुंदर सुचार ईर ऄंदर बसाउं मैं।।

    मोहन भनत मन रंजन ईमा के, षल गंजन ह ैिाके ताके गुन गन गाउं मैं।

    बुद्ध बवसब ेको, राम गुन गासब ेकौ, सिय विघ्न नासब ेकौ, विघ्ननासन को ध्याउं मैं।।4।।

    सुंदर सुरंग ऄंग ऄंग बजरंग भरौ, ऄतही ईमंग सि जंग छब छाता कौ।

    लंक गढ जारौ, जाम माली कौ सुमारौ, जो वपयारो वसया माता कौ।।

    मोहन भनत दौन वगर कौ वलयायौ ऄत हर िर अयौ जी जीयायौ राम राता कौ।

    राम रस राता, राम भिन कौ राता, बंदौ दीन जन त्राता, महािीर िर दाता कौ।।5।।

    दोहा - वसयाराम के िरभगत महािीर रणधीर।

    कि मोहन बरनन करत रघुपवत चररत सुधीर।।6।।

    (हस्तवलवखत िवत, पत्र-1)

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    सरदभय ग्ररथ-सूची -

    1. गुप्त, डॉ. ककशोरी लाल, ‘रीवत-ग्ररथ श्रृंगार सागर के रचनाकाल पर विचार, ‘सम्मेलन’

    शोध-त्रैमावसकी, भाग-62, ऄंक : 3-4, अषाढ-मागयशीषय, संित ्1980 शक, वहरदी सावहत्य

    सम्मेलन, ियाग, आलाहाबाद, भारत.

    2. गुप्त, डॉ. गंगािसाद ‘बरसैंया’ एिं दबुे, ईदयशंकर, 2002 इ0, बुरदलेखण्ड के ऄज्ञात

    रचनाकार : ‘शृंगार सागर के रचवयता मोहनलाल वमश्र - समय और सावहत्य, साथयक

    िकाशन, नइ कदल्ली, भारत.

    3. वतिारी, गोरेलाल, 2021 विक्रमी संित्, बुरदलेखण्ड का संवक्षप्त आवतहास, नागरीिचाररणी

    सभा, काशी

    4. मेमोरेण्डा ऑन आवण्डयन स्टेट्स, 1937 इ0, गिनयमेण्ट-िेस, कदल्ली.

    5. शुक्ल, डॉ. रामचरि, 2022 विक्रम संित्, वहरदी सावहत्य का आवतहास, नागरीिचाररणी

    सभा, काशी, भारत.

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