premchand- putra prem

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1 http://freehindibooksforyou.blogspot.com/ http://freehindibooksforyou.blogspot.com/ ेभचॊद की कहान'-ेभ' फाफ चैतमादास ने अथथशा ख फ ऩढा था, औय केवर ऩढा ही नहीॊ था, उसका मथामोम माहाय बी वे कयते थे। वे वकीर थे , दो-तीन गाॊवो भे उनक जभीॊदायी बी थी, फक भ बी क ऩमे थे। मह सफ उसी अथथशा के ऻान का पर था। जफ कोई खचथ साभने आता तफ उनके भन भ वाबावत: न होता था-इससे वमॊ भेया उऩकाय होगा मा कसी अम ऩ का? मदद दो भ से ककसी का क छ बी उऩहाय न होता तो वे फडी नदथमता से उस खचथ का गरा दफा देते थे। मथको वे वष के सभाने सभझते थे। अथथशा के िसत उनके जीवन-तब हो गमे थे। फाफ साहफ के दो ऩ थे। फडे का नाभ ब दास था, छोटे का िशवदास। दोन कारेज भ ऩढते थे। उनभ के वर एक ेणी का अतय था। दोनो ही च तय, होनहाय म वक थे। कत दास ऩय वऩता का नेह अधधक था। उसभ सद साह की भाा अधधक थी औय वऩता को उसकी जात से फडी-फडी आशाएॊ थीॊ। वे उसे वमोननत के िरए इॊरैड बेजना चाहते थे। उसे फैरयटय फनाना उनके जीवन की सफसे फडी अिबराषा थी। कत छ ऐसा सॊमोग ह आ कक बादास को फी०ए० कऩयीा के फाद वय आने रगा। डाटय की दवा होने रगी। एक भास तक ननम डाटय साहफ आते यहे , ऩय वय भ कभी न ई द सये डाटय का इराज होने रगा। ऩय उससे बी क छ राब न आ। दास दन दन ीण होता चरा जाता था। उठने-फैठने की शत न थी महाॊ तक ऩयीा भ थभ ेणी भ उतीणथ होने का श ब-सफाद नकय बी उसक चेहये ऩय हषथ का कोई धच न दखाई दमा । वह सदैव गहयी धचॊता भ ड फा यहाता था । उसे अऩना जीवन फोझ सा जान ऩडने रगा था एक योज चैतमादास ने डाटय साहफ से छा मह मा फात है कक दो भहीने हो गमे औय अबी तक दवा कोई असय नहीॊ ? डाटय साहफ ने सदेहजनक उतय दमा- भ आऩको सॊशम भ नही डारना चाहता । भेया अन भान है क मह टम फयम रािसस है । चैतमादास ने म होकय कहा तऩेददक ?

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Page 1: Premchand- Putra Prem

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प्रेभचॊद की कहानी 'ऩुत्र-प्रेभ'

फाफू चतैन्मादास ने अथथशास्त्त्र खफू ऩढा था, औय केवर ऩढा ही नहीॊ था, उसका मथामोग्म

व्माहाय बी वे कयते थे। वे वकीर थे, दो-तीन गाॊवो भे उनक जभीॊदायी बी थी, फैंक भें बी कुछ रुऩमे थे। मह सफ उसी अथथशास्त्त्र के ऻान का पर था। जफ कोई खचथ साभने आता तफ उनके भन भें स्त्वाबावत: प्रश्न होता था-इससे स्त्वमॊ भेया उऩकाय होगा मा ककसी अन्म ऩुरुष का? मदद दो भें से ककसी का कुछ बी उऩहाय न होता तो वे फडी ननदथमता से उस खचथ का गरा दफा देते थे। ‘व्मथथ’ को वे ववष के सभाने सभझते थे। अथथशास्त्त्र के िस्धनन्त उनके

जीवन-स्त्तम्ब हो गमे थे।

फाफू साहफ के दो ऩुत्र थे। फड ेका नाभ प्रबुदास था, छोटे का िशवदास। दोनों कारेज भें ऩढते थे। उनभें केवर एक शे्रणी का अन्तय था। दोनो ही चतुय, होनहाय मुवक थे। ककन्तु प्रबुदास ऩय वऩता का स्त्नेह अधधक था। उसभें सदतु्साह की भात्रा अधधक थी औय वऩता को उसकी जात से फडी-फडी आशाएॊ थीॊ। वे उसे ववद्मोन्ननत के िरए इॊग्रैण्ड बेजना चाहते थे। उसे फैरयस्त्टय फनाना उनके जीवन की सफसे फडी अिबराषा थी।

ककन्तु कुछ ऐसा सॊमोग हुआ कक प्रबादास को फी०ए० की ऩयीऺा के फाद ज्वय आने रगा। डाक्टयों की दवा होने रगी। एक भास तक ननत्म डाक्टय साहफ आते यहे, ऩय ज्वय भें कभी न हुई दसूये डाक्टय का इराज होने रगा। ऩय उससे बी कुछ राब न हुआ। प्रबुदास ददनों ददन ऺीण होता चरा जाता था। उठन-ेफैठने की शक्क्त न थी महाॊ तक कक ऩयीऺा भें प्रथभ शे्रणी भें उत्तीणथ होने का शुब-सम्फाद सुनकय बी उसक चहेये ऩय हषथ का कोई धचन्ृ न ददखाई ददमा । वह सदैव गहयी धचॊता भें डुफा यहाता था । उसे अऩना जीवन फोझ सा जान ऩडने रगा था ।

एक योज चतैन्मादास ने डाक्टय साहफ से ऩूछा मह क्मा फात है कक दो भहीन ेहो गमे औय अबी तक दवा कोई असय नहीॊ हुआ ?

डाक्टय साहफ न ेसन्देहजनक उत्तय ददमा- भैं आऩको सॊशम भें नही डारना चाहता । भेया अनुभान है कक मह टमुफयक्मुरािसस है ।

चतैन्मादास ने व्मग्र होकय कहा – तऩेददक ?

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डाक्टय - जी हाॊ उसके सबी रऺण ददखामी देते है।

चतैन्मदास ने अववश्वास के बाव से कहा भानों उन्हे ववस्त्भमकायी फात सुन ऩडी हो –तऩेददक हो गमा ! डाक्टय ने खेद प्रकट कयते हुए कहा- मह योग फहुत ही गुप्तयीनत से शयीय भें प्रवश ेकयता है।

चतैन्मदास – भेये खानदान भें तो मह योग ककसी को न था।

डाक्टय – सम्बव है, िभत्रों से इसके जभथ (कीटाणु ) िभरे हो।

चतैन्मदास कई िभनट तक सोचने के फाद फोरे- अफ क्मा कयना चादहए ।

डाक्टय -दवा कयते यदहमे । अबी पेपडो तक असय नहीॊ हुआ है इनके अच्छे होने की आशा है ।

चतैन्मदास – आऩके ववचाय भें कफ तक दवा का असय होगा?

डाक्टय – ननश्चम ऩूवथक नहीॊ कह सकता । रेककन तीन चाय भहीने भें वे स्त्वस्त्थ हो जामेगे । जाडो भें इसयोग का जोय कभ हो जामा कयता है ।

चतैन्मदास – अच्छे हो जाने ऩय मे ऩढने भें ऩरयश्रभ कय सकें गे ?

डाक्टय – भानिसक ऩरयश्रभ के मोग्म तो मे शामद ही हो सकें ।

चतैन्मदास – ककसी सेनेटोरयमभ (ऩहाडी स्त्वास्त्थमारम) भें बेज दूॉ तो कैसा हो?

डाक्टय - फहुत ही उत्तभ ।

चतैन्मदास तफ मे ऩूणथयीनत से स्त्वस्त्थ हो जाएॊगे?

डाक्टय - हो सकते है, रेककन इस योग को दफा यखने के िरए इनका भानिसक ऩरयश्रभ से फचना ही अच्छा है।

चतैन्मदास नैयाश्म बाव से फोरे – तफ तो इनका जीवन ही नष्ट हो गमा।

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गभी फीत गमी। फयसात के ददन आमे, प्रबुदास की दशा ददनो ददन बफगडती गई। वह ऩड-ेऩड ेफहुधा इस योग ऩय की गई फड ेफड ेडाक्टयों की व्माख्माएॊ ऩढा कयता था। उनके अनुबवो से अऩनी अवस्त्था की तुरना ककमा कयता था। उनके अनुबवो स ेअऩनी अवस्त्था की तुरना ककमा कयता । ऩहरे कुछ ददनो तक तो वह अक्स्त्थयधचत –सा हो गमा था। दो चाय ददन बी दशा सॊबरी यहती तो ऩुस्त्तके देखने रगता औय ववरामत मात्रा की चचाथ कयता । दो चाय ददन बी ज्वय का प्रकोऩ फढ जाता तो जीवन से ननयाश हो जाता । ककन्तु कई भास के ऩश्चात जफ उसे ववश्वास हो गमा कक इसयोग से भुक्त होना कदठन है तफ उसने जीवन की बी धचन्ता छोड दी ऩथ्माऩथ्म का ववचाय न कयता , घयवारो की ननगाह फचाकय औषधधमाॊ जभीन ऩय धगया देता

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िभत्रोंके साथ फैठकय जी फहराता। मदद कोई उससे स्त्वास्त्थ्म केववषम भें कुछ ऩूछता तोधचढकय

भुॊह भोड रेता । उसके बावों भें एक शाक्न्तभम उदासीनता आ गई थी, औय फातो भें एक दाशथननक भभथऻता ऩाई जाती थी । वह रोक यीनत औय साभाक्जक प्रथाओॊ ऩय फडी ननबीकता से आरोचना ककमा कयता । मद्मवऩ फाफू चतैन्मदास के भन भें यह –यहकय शॊका उठा कयती थी कक जफ ऩरयणाभ ववददत ही है तफ इस प्रकाय धन का अऩव्मम कयने से क्मा राब तथावऩ वे कुछ तो ऩुत्र-प्रेभ औय कुछ रोक भत के बम से धमैथ के साथ ्दवा दऩथन कयते जात ेथें ।

जाड ेका भौसभ था। चतैन्मदास ऩुत्र के िसयहाने फैठे हुए डाक्टय साहफ की ओय प्रश्नात्भक दृक्ष्ट से देख यहे थे। जफ डाक्टय साहफ टेम्ऩयचय रेकय (थभाथभीटय रगाकय ) कुसी ऩय फैठे तफ चतैन्मदास ने ऩूछा- अफ तो जाडा आ गमा। आऩको कुछ अन्तय भारूभ होता है ?

डाक्टय – बफरकुर नहीॊ , फक्कक योग औय बी दसु्त्साध्म होता जाता है।

चतैन्मदास ने कठोय स्त्वय भें ऩूछा – तफ आऩ रोग क्मो भुझ ेइस भ्रभ भें डारे हुए थे कक जाड ेभें अच्छे हो जामेगें ? इस प्रकाय दसूयो की सयरता का उऩमोग कयना अऩना भतरफ साधने का साधन हो तो हो इसे सज्जनताकदावऩ नहीॊ कह सकते।

डाक्टय ने नम्रता स ेकहा- ऐसी दशाओॊ भें हभ केवर अनुभान कय सकते है। औय अनुभान सदैव सत्म नही होते। आऩको जेयफायी अवश्म हुई ऩय भैं आऩको ववश्वास ददराता हूॊ कक भेयी इच्छा आऩको भ्रभ भें डारने के नहीॊ थी ।

िशवादास फड ेददन की छुदटटमों भें आमा हुआ था , इसी सभम वदह कभये भें आ गमा औय डाक्टय साहफ से फोरा – आऩ वऩता जी की कदठनाइमों का स्त्वमॊ अनुभान कय सकते हैं । अगय

उनकी फात नागवाय रगी तो उन्हे ऺभा कीक्जएगा ।

चतैन्मदास ने छोटे ऩुत्र की ओय वात्सकम की दृक्ष्ट से देखकय कहा-तुम्हें महाॊ आने की जरुयत थी? भै तुभस ेककतनी फाय कह चकुा हूॉ कक मह ॉँ भत आमा कयो । रेककन तुभको सफय ही नही होता ।

िशवादास ने रक्ज्जत होकय कहा- भै अबी चरा जाता हूॉ। आऩ नायाज न हों । भै केवर डाक्टय

साहफ से मह ऩूछना चाहता था कक बाई साहफ के िरए अफ क्मा कयना चादहए ।

डाक्टय साहफ ने कहा- अफ केवर एक ही साधन औय है इन्हे इटरी के ककसी सेनेटारयमभ भे बेज देना चादहमे ।

चतैन्मदास ने सजग होकय ऩूछा- ककतना खचथ होगा? ‘ज्मादा से ज्मादा तीन हजाय । सार बय यहना होगा?

ननश्चम है कक वहाॊ से अच्छे होकय आवेगें ।

जी नहीॊ महा तो मह बमॊकय योग है साधायण फीभायीमो भें बी कोई फात ननश्चम रुऩ से नही

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कही जा सकती ।‘

इतना खचथ कयनेऩय बी वहाॊ से ज्मो के त्मो रौटा आमे तो?

तो ईश्वाय की इच्छा। आऩको मह तसकीन हो जाएगी कक इनके िरए भै जो कुछ कय सकता था। कय ददमा ।

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आधी यात तक घय भें प्रबुदास को इटरी बेजने के प्रस्त्तवा ऩय वाद-वववाद होता यहा । चतैन्मदास का कथन था कक एक सॊददग्म पर के िरए तीन हजाय का खचथ उठाना फुव्धनभत्ता के प्रनतकूर है। िशवादास पर उनसे सहभत था । ककन्तु उसकी भाता इस प्रस्त्ताव का फडी ढृझ्ता के साथ ववयोध कय यही थी । अतॊ भें भाता की धधक्कायों का मह पर हुआ कक िशवादास रक्ज्जत होकय उसके ऩऺ भें हो गमा फाफू साहफ अकेरे यह गमे । तऩेश्वयी ने तकथ से काभ िरमा । ऩनत के सदबावो को प्रज्विरत कयेन की चषे्टा की ।धन की नश्वयात कीरोकोक्क्तमाॊ कहीॊ इन शस्त्त्रों से ववजम राब न हुआ तो अश्र ुफषाथ कयने रगी । फाफू साहफ जर –बफन्दओु क इस शय प्रहाय के साभने न ठहय सके । इन शब्दों भें हाय स्त्वीकाय की- अच्छा बाई योओॊ भत। जो कुछ

कहती हो वही होगा।

तऩेश्वयी –तो कफ ?

‘रुऩमे हाथ भें आने दो ।’

‘तो मह क्मों नही कहते कक बेजना ही नहीॊ चाहते?’

बेजना चाहता हूॉ ककन्तु अबी हाथ खारी हैं। क्मा तुभ नहीॊ जानतीॊ?’

‘फैक भें तो रुऩमे है? जामदाद तो है? दो-तीन हजाय का प्रफन्ध कयना ऐसा क्मा कदठन है?’

चतैन्मदास ने ऩत्नी को ऐसी दृक्ष्ट से देखा भानो उसे खा जामेगें औय एक ऺण के फाद फोरे –

बफरकूर फच्चों की सी फाते कयतीहो। इटरी भें कोई सॊजीवनी नही यक्खी हुई है जो तुयन्त चभत्काय ददखामेगी । जफ वहाॊ बी केवर प्रायफध ही की ऩयीऺा कयनी है तो सावधानी से कय रेगें । ऩूवथ ऩूरुषो की सॊधचत जामदाद औय यखें हुए रुऩमे भैं अननक्श्चत दहत की आशा ऩय फिरदान नहीॊ कय सकता।

तऩेश्वयी ने डयते – डयत ेकहा- आखखय , आधा दहस्त्सा तो प्रबुदास का बी है?

फाफू साहफ नतयस्त्काय कयते हुए फोरे – आधा नही, उसभें भै अऩना सवथस्त्व दे देता, जफ उससे कुछ आशा होती , वह खानदान की भमाथदा भै औय ऐश्वमथ फढाता औय इस रगामे हुए धन के परस्त्वरुऩ कुछ कय ददखाता । भ ैकेवर बावुकता के पेय भें ऩडकय धन का ह्रास नहीॊ कय

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सकता ।

तऩेश्वीय अवाक यह गमी। जीतकय बी उसकी हाय हुई ।

इस प्रस्त्ताव के छ: भहीने फाद िशवदास फी.ए ऩास होगमा। फाफू चतैत्मदास ने अऩनी जभीॊदयी के दो आने फन्धक यखकय कानून ऩढने के ननिभत्त उस ेइॊग्रैड बेजा ।उसे फम्फई तक खदु ऩहुॉचान ेगमे । वहाॊ स ेरौटे तो उनके अतॊ: कयण भें सददच्छामों से ऩरयिभत राब होने की आशा थी उनके रौटने केएक सप्ताह ऩीछे अबागा प्रबुदास अऩनी उच्च अिबराषओॊ को िरमे हुए ऩयरोक िसधाया ।

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चतैन्मदास भखणकखणथका घाट ऩय अऩने सम्फक्न्धमों के साथ फैठे धचता – ज्वारा की ओय देख

यहे थे ।उनके नेत्रों से अश्रुधाया प्रवादहत हो यही थी । ऩुत्र –प्रेभ एक ऺण के िरए अथथ –िस्धनाॊत ऩय गािरफ हो गमा था। उस ववयक्तावस्त्था भें उनके भन भ ेमह ककऩना उठ यही थी । सम्बव है, इटरी जाकय प्रबुदास स्त्वस्त्थ हो जाता । हाम! भैने तीन हजाय का भुॊह देखा औय ऩुत्र यत्न को हाथ स ेखो ददमा। मह ककऩना प्रनतऺण सजग होती थी औय उनको ग्रानन, शोक औय ऩश्चात्ताऩ के फाणो से फेध यही थी । यह यहकय उनके ृदम भें फेदना की शुर सी उठती थी । उनके अन्तय की ज्वारा उस धचता –ज्वारा से कभ दग्धकारयणी न थी। अक्स्त्भात उनके कानों भें शहनाइमों की आवाज आमी। उन्होने आॊख ऊऩय उठाई तो भनुष्मों का एक सभूह एक अथी के साथ आता हुआ ददखाई ददमा। वे सफ के सफ ढोर फजाते, गात,े ऩुष्म आदद की वषाथ कयते चरे आते थे । घाट ऩय ऩहुॉचकय उन्होने अथी उतायी औय धचता फनाने रगे । उनभें से एक मुवक आकय चतैन्मदास के ऩास खडा हो गमा। फाफू साहफ ने ऩूछा –ककस भुहकरे भें यहते हो?

मुवक ने जवाफ ददमा- हभाया घय देहात भें है । कर शाभ को चरे थे । मे हभाये फाऩ थे । हभ रोग महाॊ कभ आते है, ऩय दादा की अक्न्तभ इच्छा थी कक हभें भखणकखणथका घाट ऩय रे जाना ।

चतैन्मदास –मे सफ आदभी तुम्हाये साथ है?

मुवक -ह ॉँ औय रोग ऩीछे आते है । कई सौ आदभी साथ आमे है। महाॊ तक आने भें सैकडो उठ गमे ऩय सोचता हूॉ ककफूढे वऩता की भुक्क्त तो फन गई । धन औय ही ककसिरए ।

चतैन्मदास- उन्हें क्मा फीभायी थी ?

मुवक ने फडी सयरता स ेकहा , भानो वह अऩने ककसी ननजी सम्फन्धी से फात कय यहा हो।- फीभाय का ककसी को कुछ ऩता नहीॊ चरा। हयदभ ज्वय चढा यहता था। सूखकय काॊटा हो गमे थे

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। धचत्रकूट हरयद्वाय प्रमाग सबी स्त्थानों भें रे रेकय घूभे । वैद्मो ने जो कुछ कहा उसभे कोई

कसय नही की।

इतन ेभें मुवक का एक औय साथी आ गमा। औय फोरा –साहफ , भुॊह देखा फात नहीॊ, नायामण रडका दे तो ऐसा दे । इसने रुऩमों को ठीकये सभझा ।घय की सायी ऩूॊजी वऩता की दवा दारु भें स्त्वाहा कय दी । थोडी सी जभीन तक फेच दी ऩय कार फरी के साभने आदभी का क्मा फस

है।

मुवक ने गदगद स्त्वय से कहा – बैमा, रुऩमा ऩैसा हाथ का भैर है। कहाॊ आता है कहाॊ जाता है,

भुनष्म नहीॊ िभरता। क्जन्दगानी है तो कभा खाउॊगा। ऩय भन भें मह रारसा तो नही यह गमी कक हाम! मह नही ककमा, उस वैद्म के ऩास नही गमा नही तो शामद फच जाते। हभ तो कहते है कक कोई हभाया साया घय द्वाय िरखा रे केवर दादा को एक फोर फुरा दे ।इसी भामा –भोह का नाभ क्जन्दगानी हैं , नहीॊ तो इसभे क्मा यक्खा है? धन से प्मायी जान जान से प्माया ईभान ।

फाफू साहफ आऩसे सच कहता हूॉ अगय दादा के िरए अऩने फस की कोई फात उठा यखता तो आज योते न फनता । अऩना ही धचत्त अऩने को धधक्कायता । नहीॊ तो भुझ ेइस घडी ऐसा जान ऩडता है कक भेया उ्धनाय एक बायी ऋण से हो गमा। उनकी आत्भा सुख औय शाक्न्त से यहेगीतो भेया सफ तयह ककमाण ही होगा।

फाफू चतैन्मादास िसय झुकाए मे फात ेसुन यहे थे ।एक -एक शब्द उनके ृदम भें शय के सभान चबुता था। इस उदायता के प्रकाश भें उन्हें अऩनी ृदम-हीनता, अऩनी आत्भशुन्मता अऩनी बौनतकता अत्मनत बमॊकय ददखामी देती थी । उनके धचत्त ऩय इस घटना का ककतना प्रबाव ऩडा मह इसी से अनुभान ककमा जा सकता हैं कक प्रबुदास के अन्त्मेक्ष्ट सॊस्त्काय भें उन्होने हजायों रुऩमे खचथ कय डारे उनके सन्तप्त ृदम की शाक्न्त के िरए अफ एकभात्र मही उऩाम यह गमा था।