एम - vardhaman mahaveer open universityassets.vmou.ac.in/mahi04-3.pdf3 एम.ए.एच.आई....

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    एम.ए.एच.आई. -04

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    एम.ए. पा य म (इ तहास)

    ख ड-3 इकाई सं या

    इकाई 10 बीसवीं शता द का इ तहास लेखन: पगलर और टायनबी के संदभ म 5—14 इकाई 11 महाका य, कौ ट य अथशा व भास के सा ह य क ऐ तहा सक ववेचना 15–38 इकाई 12 काल दास – सा ह य, परुाण व ह रषेण क याग शि त क ऐ तहा सक ववेचना 39—50 इकाई 13 फा हयान, यवुान यांग और वेत सगं क भारत या ा वतृांत 51—66

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    पा य म वकास स म त ो. बी.एस. शमा, कुलप त (अ य ) ो. र व कुमार नदेशक नेह मारक सं हालय एवं पु तकालय, नई द ल । ो. बी.आर. ोवर

    पूव नदेशक, भारतीय इ तहास अनुसंधान प रषद, नई द ल । ो. एस.पी. गु ता

    इ तहास वभाग, अल गढ़ मुि लम व. व., अल गढ़। ो. जे.पी. म ा

    पूव इ तहास वभागा य , काशी ह द ू व. व, वाराणसी। ो. के.एस. गु ता

    पूव वभागा य , मोहन लाल सुखा ड़या व. व, उदयपुर डा. बी.के. शमा इ तहास वभाग कोटा खुला व. व, कोटा। डा. ीमती कमलेश शमा इ तहास वभाग, कोटा खुला व. व, कोटा। डा. याक़ूब अल खान इ तहास वभाग कोटा खुला व. व, कोटा।

    पा य म नमाण दल

    ो. म सूरा हैदर इ तहास वभाग, अल गढ़ मुि लम व व व यालय, अल गढ़। डा. नारायण सहं भाट पूव नदेशक, चौपासनी शोध सं थान, जोधपुर। डा. व म सहं राठौर इ तहास वभाग, जयनारायण यास व व व यालय, जोधपुर। डा. अ मत मुकज इ तहास वभाग,सट जा स कॉलेज, आगरा। ो. सीताराम सहं

    इ तहास वभाग, बहार व व व यालय, मुज फरपुर।

    अकाद मक एवं शास नक यव था ो.(डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो.(डॉ.)बी.के. शमा नदेशक(अकाद मक) सकंाय वभाग

    योगे गोयल भार अ धकार

    पा य साम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग

    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    पुनः उ पादन – Oct 2012 MAHI-04/ISBN No.-13/978-81-8496-263-5

    इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व., कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या अ य पुनः तुत करने क अनुम त नह ं है। व. म. खु. व., कोटा के लये कुलस चव व. म. खु. व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत।

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    इकाई 10 बीसवीं शता द का इ तहास लेखन : पगलर और टायनबी

    के संदभ म इकाई क परेखा 10.0 उ े य 10.1 तावना 10.2 पगलर के वचार

    10.2.1 कृ त और इ तहास 10.2.2 इ तहास म सं कृ तय का उ थान और पतन 10.2.3 सं कृ त 10.2.4 सं कृ त क वृ ता मकता 10.2.5 सं कृ त और स यता 10.2.6 तोलमेक और कोपर नकल ि टकोण 10.2.7 सं कृ तय का जीवन काल

    10.3 टायनबी के वचार 10.3.1 सामािजक अ यन क मह ता 10.3.2 स यता क सम याएं 10.3.3 स यता का वकास और पतन 10.3.4 स यताओं से स पक 10.3.5 स पल स ांत

    10.4 पगलर एव ंटायनबी के वचार का तुलना मक व लेषण 10.5 बीसवी ंशता द के इ तहास दशन क ेरक शि तया ं 10.6 अ यासाथ न 10.7 संदभ थं

    10.0 उ े य इस इकाई के अ ययन का उ े य बीसवी ंसद के इ तहास लेखन क प रि थ तय एव ं

    विृ तय को समझना है । इस काल के दो वचारक पगलर एव ंटायनबी ने कस कार इ तहास लेखन को सामािजक साथकता दान क । इसे समझने म यह इकाई सहायक स होगी ।

    10.1 तावना इ तहास लेखन प त के म म 19वीं शता द क मुख वशेषता सु नयोिजत व व

    इ तहास लखने का य न थी । का लनवडु के श द म ''स पणू इ तहास वचारधाराओं का

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    इ तहास है तथा मनु य के काय वचारपणू होत े ह एव ं इ तहासकार ऐ तहा सक अ भनेता के वचार क पनुराविृ त कर अतीत का नमाण करता है ।'' इसी कम म बीसवी ंशता द के दाश नक इ तहास ने भी सोचा और ओसवॉ ड पगलर ने '' ड लाइन ऑव द वे ट'' तथा ओन ड टायनबी ने '' टडी ऑव ह '' नामक पु तक म सु नयोिजत इ तहास लखने का य न कया । इन दोन थं म उन सम याओं को त बि बत करने का य न कया गया है

    िजनको सामा यत: इ तहास ने अछूता ह छोड़ दया है । बीसवी ंशता द के इ तहास लेखन का वषय रा , सामािजक सं था अथवा जा त न

    होकर परू स यता हो गया है तथा अब इ तहासकार त सबंधंी सामािजक, आ थक और धा मक प का अ ययन करता है ।

    10.2 पगलर के वचार पगलर के वचार को अ ययन क सु वधा क ि ट से अधो ल खत ब दओंु म

    समझा जा सकता है - 10.2.1 कृ त और इ तहास : पगलर ने व व के ि थर, य, मूत न मत व प को कृ त पी व व तथा व व के ग तमान या मक और अमूत और नमाण प को इ तहास पी व व म वभािजत कया है । उसके मत म कृ त पी व व देश ( पेश) के व तार म

    तथा इ तहास पी व व काल (टाइम) के अंतराल म सा रत और या त है । इ तहास को काल के अ तराल म या त मानत े हु ए पगलर ने काल क विृ त को नय तवाद माना है तथा उ पि त, वकास, य और वलय के कम को इ तहास क नय त वीकारा है । उसके अनसुार इ तहास का अतीत और भ व य सु नि चत और बोधग य है । 10.2.2 इ तहास म सं कृ तय का उ थान और पतन: पगलर मनु य के वयैि तक और सामािजक जीवन म पया त सा यता देखत े ह, उनके अनसुार व भ न जा तया,ं कबीले, पी ढ़या,ं वश और समाज कट होत ेह और अपनी पलभर क आभा के प चात मानवता क धारा म वल न हो जात ेह । इन मानव धारा के तल पर सं कृ तया ंतरंगवत चलती रहती ह । इस कार से मानव इ तहास सं कृ तय के जीवन का सं ह है । 10.2.3 सं कृ त: पगलर ने सं कृ त को इ तहास दशन का के ब द ु वीकार कया है । वह व भ न सं कृ तय को उ चतम जीवन के सार त व क तरह वीकारत े ह । उ ह ने सं कृ तय के चार अधो ल खत काल वीकार कए ह : (क) बस त काल - यह धम न ठा का काल है, भारतीय संदभ म यह काल वै दक सं हताओं

    का यगु माना जा सकता है । इस यगु क धान वशेषता धा मक चेतना का वकास होती है ।

    (ख) ी म काल :- इस काल क मुख वशेषता, इस काल म संशय के फल व प सां कृ तक आ मबोध उ प न होना तथा आलोचना मक मनोभाव का वकास है । भारतीय संदभ म इसके अंतगत उप नषद सा ह य को रखा जाता है ।

    (ग) पतझड़ काल :- इस काल म येक सं कृ त ौढ़ता को ा त करती है । इस यगु क धान वशेषता बौ क पराका ठा होती है तथा इस समय बौ कता का धान आधार

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    तक होता है । भारतीय संदभ म यह काल महावीर और बु का काल है जब क ाचीन वै दक स ांत पर नवाचक च ह लगाए गए और धम क नवीन मा यताएं त ठा पत हु ई ।

    (घ) श शर काल :- इस काल क मु य वशेषता महानगर य स यताओं का उदय है । इस काल म सं कृ त न ट होकर अपने त प स यता म प रव तत होती है । पगलर क मा यता है क इस यगु म धा मकता के पल के फल व प व ान के व भ न मत ज म लेत ेह । पगलर के सं कृ त वषयक स ांत क सबसे बड़ी कमजोर उसके वारा सं कृ त के

    ज म और आर भ वषयक जानकार न दान करना है । वह सं कृ त के ज म को रह यमयी मानत ेहै, उनके अनसुार सं कृ त का आर भ एक भ-ू देश म होता है और वह वक सत होकर स यता म प रव तत हो जाती है । 10.2.4 सं कृ त क वृ ता मकता: पगलर के श द म व व इ तहास अन त नमाण और पनु नमाण का और जी वत शर रय के अदभूत उ थान और पतन का च पट है । वह इ तहास क विृ त को रेखा मक न मानकर वृ ता मक वीकारत े ह । वह इ तहास के ाचीन, म यकाल न और अवाचीन यगु म वभाजन को भी वीकार नह ंकरत ेह । 10.2.5 सं कृ त और स यता: पगलर के श द म स यता पतन, य, जड़ता क वह अव था है, िजसम सं कृ त वकास और ौढ़ता ा त कर वेश करती है । अत: स यता, सं कृ त का वाध य काल है । अथात स यता एक प रसमाि त है । पगलर ने कृ मता, बौ कता, शीतलता, शाि त, समानता, सावज नकता और नाग रकता को स यता का मुख ल ण माना है। उनक कृ त का अ धकांश भाग स यता के ल ण और प से भरा पड़ा है । वह रा और. समाज के सावज नक नगर और ा त म वभाजन को स यता का मुख ल ण वीकारत े हु ए नगर को शोषक वग के थल तथा ा त को शो षत के थल के प म

    प रभा षत करत ेह । वह सं कृ त के अ तगत वयैि तकता और भावकुता के गणु क या तता को एक गणु वीकारत े हु ए स यता को वयैि तकता क भावना का अ त करने वाल तथा आ थकता और यां कता क विृ त को बढ़ाने वाल मानत ेह । 10.2.6 तोलमेक और कोपर नकल ि टकोण: तोलमेक से पगलर का ता पय यह है क कस कार से यनूानी भौगो लक तोलेमी ने यह अशु थापना क थी क पृ वी ह सौरम डल का

    के थल है, उसी कार वह यरूोपीय इ तहासकार क इस धारणा को भी गलत वीकारत ेह क यरूोप ह सम त इ तहास का के थल है ।

    कोपर नकल से पगलर का ता पय कोपर नकल क मा यता के समान जैसे सौर म डल वृ ताकार े का समहू है, उसी कार इ तहास कसी एक सं कृ त क जीवन ल ला न होकर अनेक सं कृ तय के जीवनवृ त का कम मानने से है । उनके अनसुार सं कृ तया ंसतत ्प से उ प न होती ह और न ट होती रहती ह ।

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    10.2.7 सं कृ तय का जीवन काल: पगैलंर ने सम त व व को नौ सं कृ तय के म म वभािजत कया है, वह न न कार है - म ी, ह द , अरबी, चीनी, ला सकल, यरूो पयन, बाबलु , मैि सकन और सी ।

    पगैलंर के सं कृ तय के अ ययन से यह मा णत होता है क येक सं कृ त का सामा य जीवन कम 800 से 1000 वष का होता है और उसके प चात अ नि चत अव ध क स यता ार भ होती है । पगलर के अनसुार येक सं कृ त क अपनी व श ट शैल एव ंवयैि तकता होती है तथा वह उसी के अनु प वक सत हो वय ं को अ य सं कृ तय से व भ न कार से था पत करती है । और येक सं कृ त अपनी पणूता म वेश कर ढलना आरंभ करत ेहु ए स यता म प रव तत हो जाती है ।

    पगलर ने स यता क वशेषताओं का वणन करत ेहु ए स यता क व भ न अव थाओं का अधो ल खत ववरण दया है - (1) घर, जा त, र त समूह -और मात ृ भू म क भावना के थान पर महानगर क

    थापना। (2) वाथपरता क भावना का वकास । (3) अ तरा य समाज क थापना क ओर अ सर होकर समि वत सं कृ त का वकास । (4) लोक (फॉक) के थान पर जनता (मास) के वचार के वक सत होने से रा य जीवन

    म असंतुलन । (5) ृंगा रकता एव ंदै हक सुख क सव चता । (6) रा रा य और ामीण वातावरण के थान पर शहर करण एव ंअ तरा यकरण का

    बढ़ता हुआ भाव । इस कार से पगलर ने दाश नक गेटे के जीवन दशन को इ तहास दशन म

    त ठा पत करने क चे टा क है, पगलर क कृ तया ं गेटे के स थं ''फाउ ट '' के' उ रण से भर हु ई ह । इसके साथ ह पगलर के वचार म कठोर नय तवाद और नराशावाद त काल न यरूोप क प रि थ तय का प रणाम है य क पगलर क स कृ त ‘'पि चमी जगत का पतन'' उस समय का शत हु ई थी जब यरूोप थम व व यु क वाला म धधक रहा था ।

    उ त सभी त य के बावजूद पगलर क इ तहास दशन को महती देन है । पगलर दाश नक इ तहास म पहले ऐसे यि त ह िज ह ने इ तहास का व भ न काल - ाचीन, म यकाल न और आधु नक म वभाजन को अ वीकार करत े हु ए कोपरा न स प त को त ठा पत कया । पगलर क इ तहास दशन को दसूर धान देन इ तहास क च य ग त

    को मानता है जो उ पि त, वकास और पतन के च य म म चलता रहता है, ''स यता सं कृ त क अं तम अव था है'' पगलर का यह मत वय ंम असाधारण है । पगलर क यह धारणा भी भ व य म स हु ई क सा ा यवाद अब अपनी अि तम वासं गन रहा है तथा स - आने वाले कल का नया सतारा होगा । इस कार से पगलर ने वय ंक इ तहास

    दशन क या याओं म जमन दशन से सार त व को समा हत करने का य न कया है ।

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    10.3 टायनबी के वचार पगलर के प चात बीसवी ं शता द के दसूरे मुख वचारक टायनबी हु ए िज ह ने

    इ तहास लेखन क धारा को सवा धक भा वत कया है । टायनबी क स कृ त 'ए टडी ऑफ ह '' है जो कसी भी एक यि त वारा क गयी सव च एव ंसव तम ऐ तहा सक उपलि ध है िजसम टायनबी ने मानव समाज क सभी स यताओं के वकास एव ं पतन के कारण क ववेचना क है ।

    टायनबी के वचार तं पर यू सडाइ डस का सवा धक भाव पड़ा, जब टायनबी 1914 म अपने व या थय को यू सडाइ डस पढ़ा रहा था उसने अपने अनभुव को लखा, '' वह अनभुव जो हम आज आधु नक व व म अिजत कर रहे थे, उ ह यू सडाइ डस ने अपने समय अनभुूत कर लया था । ''इस धारणा के आधार पर टायनबी क यह धारणा बनी क स यताओं म एक समसामा यकता होती है तथा काल म क ाचीन, म यकाल न व आधु नक काल क धारणा नरथक है ।

    यू सडाइ डस के अलावा टायनबी ने अर त ु वारा मानव जीवन क घटनाओं को समझने के लए था पत प त को भी वीकार कया जो अधो ल खत है :- (1) त य को नि चत कर उनका सं ह करना । (2) व भ न त य का तुलना मक अ ययन के प चात सामा य नयम का नधारण तथा (3) क पना के प म त य क कला मक पनुरचना ।

    टायनबी के वचार को अ ययन क सु वधा क ि ट से अधो ल खत ब दओंु म वभािजत कया जा सकता है - 10.3.1 सामािजक अ ययन क मह ता :- टायनबी के अनसुार इ तहास काल और थान म घ टत हु ई क ह ं व श ट घटनाओं का ववरण नह ंहै और न ह व भ न रा य या मानव के एक कृत व प का इ तहास है । अ पत ुऐ तहा सक अ ययन के वा त वक े तो व भ न समाज ह जो रा रा य या नगर रा य या कसी भी अ य राजनी तक समुदाय से थान और काल क ि ट से भी अ धक व ततृ ह । टायनबी के मतानसुार व भ न समाज वह परमाण ु है अथात वह सबसे छोट इकाई है िजनसे इ तहास क रचना क जाती है । इसको आगे व तार से बतात ेहु ए टायनबी कहत ेह क इ तहास के अ ययन का मुख उ े य स यता है िजसम धा मक चा र क वशेषताओं और राजनी तक त व को संयु त प से अ ययन कया जाता है । टायनबी ने अपनी रचना '' स वलाईजेशन ऑफ ायल'' म इसको समझात ेहु ए लखा है क स यता से मेरा अ भ ाय ऐ तहा सक अ ययन का वह लघु तम भाग है िजस पर अपने देश के इ तहास को समझने क चे टा करत ेसमय मनु य क ि ट पहु ंचती है'' इस कार से टायनबी ने अपने समय क सम त व व क स यताओं को व भ न अधो ल खत वग म वभािजत कया है ।

    (1) मुख स यताएं - पि चमी, यरूोपीय, बेजे टाइन, इ लामी, ह द ुतथा सुदरू पवू ' जगत।

    (2) छ न स यताएं - हेले नक, सी रयाई, इं डक और सी नक ।

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    (3) ाचीन स यताएं - मनोअन, बेबीलो नयन, ह ी । इस कार से कुल 10 स यताएं है । इसके प चात टायनबी ने इ लामी स यता को

    (1) अरबी और (2) ईरानी स यता म, तथा ाचीन ईसाई स यता को (1) अनातो लया और स क स यताओं म वभािजत कया है । इस कार से कुल 21 स यताएं हो जाती है ।

    इसके प चात वे अव व अधूर स यताओं का ववरण तुत करत े हु ए लखत ेह क सुदरू पवू इ ायल, सुदरू पि चमी इ ायल तथा केद ने वयन वह स यताएं है, जो सव काल से ह कठोर प रि थ तय के कारण वक सत न हो सक तथा पोल ने सअन, एि कम , घमु कड, पतन तथा ओसामनल आ वभूत होकर ह रह गयी ।

    अन ट बारकर ने टायनबी के स यताओं के वग करण को अ ाकृ तक बतात े हु ए इसे लनो न म क सं ा द है जो वन प त शा म यु त होने वाल एक व ध है तथा उसे यहां वीकार नह ं कया जा सकता है ।

    10.3.2 स यता क सम याएं: टायनबी ने स यताओं क तीन भौगो लक सम याओं (1) उ पि त (2) वकास और (3) पतन का ववरण तुत करत े हु ए स यताओं क उ पि त के संबधं म लखा है क कुछ समाज अि त व म आते ह ि थर य हो जात ेह तथा वह उसी ाथ मक अव था म ह रहत ेह तथा स पणू वक सत स यता के प म वक सत नह ंहो पाते

    ह, जब क इसके वपर त कुछ समाज स यता के तर तक पहु ंच जात ेह । टायनबी के अनसुार स यताओं क उ पि त जा त अथवा भौगो लक कारक पर नभर

    न करके उस समाज म न हत सजना मक अ पसं यक वग व संतु लत प रि थ तय (संतु लत प रि थ तय से यहा ंता पय उन प रि थ तय से है जो न तो बहु त अ धक प म होती है और न ह वराधी होती है) के व श ट आनपुा तक सि मलन पर नभर करती, है । उ नत जातीय कारक को स यता क उ पि त म नणायक कारण होने क मा यता को अ वीकारत े हु ए टायनबी ने लखा है क जातीय सव चता स यता क उ न त के लए उ तरदायी होती है तो हटलर उ च स यता क उ पि त कर सकत ेथे । टायनबी कसी भी स यता क उ पि त के लए सजना मक अ पसं यक वग, ग तशील नेतृ व तथा कुछ बु मान यि तय के समहू को मु य कारक वीकारत ेहु ए यह मत य त करत ेह क कसी भी स यता क उ पि त दरू ि ट परक एव ंप र मी यि तय पर नभर करती है । यहा ंसजृना मक अ पसं यक वग क तुलना मानव शर र के मि त क से क जा सकती है ।

    प रि थ तय के संतु लत भाव क ववेचना इस कार से क जा सकती है क बहु त अ धक सुगम प रि थ तया ंजहा ं ग त को रोकती है, वह ंअ य धक तकूल प रि थ तया ंहोने से भी ग त का माग अव हो जाता है । टायनबी के अनसुार जब सजना मक अ पसं यक वग और संतु लत प रि थ तया ंसमानपुा तक प से उपल ध होती है, तो एक वशेष कार क

    या, िजसे ''चुनौती और वरोध'' क या कहा जाता है, होती है तथा कसी भी स यता क उ पि त इस चुनौती और वरोध क या का ह प रणाम होती है ।

    टायनबी ने स यता क उ पि त के लए सजृना मक अ पसं यक वग और नेतृ व म स म यि तय क मह ता को तपा दत करत े हु ए नगमन और यागमन क या का

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    भी उ लेख कया है । उसके अनसुार सजना मक अ पसं यक वग के अ तगत कुछ ऐसे यि त व होते ह जो कुछ समय के लए संसार से अलग हो जात ेह और शि त का संचय कर फर संसार म वा पस आकर अपवू वेग से सजृन काय म संल न हो जात ेह । 10.3.3 स यता का वकास और पतन : टायनबी के अनसुार स यता के वकास म जहां चुनौती और वरोध तथा नगमन और यागमन क आने वाल चुनौ तय का समु चत सामना नह ंकर पाती है तथा उसका पतन ार भ हो जाता है । स यता क पतन क या को प रभा षत करत े हु ए टायनबी ने लखा है क स यताएं आ मह या कर व न ठ होती ह तथा उनक ह या कभी भी नह ंहोती है । िजस कार से स यता क उ पि त चुनौती और वरोध के संतुलन पर तथा वकास नगमन और यागमन क या पर नभर करता है । उसी कार स यता के वनाश क या वय ंका व वसं है ।

    स यता के वनाश क अव था को टायनबी के अनसुार तीन उप अव थाओं म वभािजत कया जा सकता है :

    1. स यता का वख डन 2. स यता का व छेदन, और 3. स यता का वलयन स यता के वख डन और व छेदन क या म शताि दय का समय यतीत हो

    जाता है और कभी-कभी यह या हजार वष तक भी चलती रहती है । उदाहरण के लए मल क स यता का वख डन 16वी ंशता द ई. प.ू म ार भ हो गया था । तथा इस स यता का पणू वलयन पहल शता द ई. म हुआ ।

    इसके अ त र त टायनबी ने वघ टत स यता के काल म समाज को तीन वग म : (1) स ताधार अ प सं यक वग, (2) आ त रक ोलेतो रअत, और (3) बा य ोलेतोरिअत म वभािजत करत ेहु ए यह मत य त कया है क वघटन के समय आ त रक ोलेतो रअत बाहर से ेरणा पाकर व व जनीन धम क सिृ ट करता है, जब क स ताधार अ पसं यक वघटन क ग त को रोकने के लए व व सा ा य का नमाण करता है तथा बा य ोलेतो रअत वघटन को परूा करने के लए आ खर ध का देने का काय करता है ।

    बा य ोलेतो रअत व आ त रक ोलेतो रअत को मश: बा य द लत वग और आ त रक द लत वग के प म माना जा सकता है । डॉ० बु काश ने समाज के तीन भाग क या या करत े हु ए लखा है क स ताधार अ पसं यक वग स यता के वघटन के समय उ च दशन क सिृ ट करता है जब क आ त रक और बा य द लत वग मश: उ च धम व वीर का य क रचना कर नवीन स यता के लए पृ ठभू म का नमाण करत ेह । 10.3.4 स यताओं से स पक : टायनबी ने स यताओं के व छेदन काल को सां कृ तक आदान- दान के अनकूुल बताया है, उनके अनसुार जब दोन मलने वाल स यताएं पतन क समान अव था म होती है तो उनके आदान- दान क प रि थ त सबसे अ धक उपयु त होती है। ऐसी दोन स यताओं के व भ न त व के मलने का कम सामा यत: न न होता है : -

    1. सव थम आ थक त व का सं मण

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    2. वतीय अव था म राजनी तक त व का सं मण 3. ततृीय अव था म बौ क, भाषा मक तथा कला मक 4. अ त म धा मक यह बहु त क ठनता से होता है । इस कार से दो स यताओं का मलन वा तव म

    मानवता के दो ख ड का वाभा वक संबधं है और इसम ऐ तहा सक अ ुणता होती है, अत: इसे केवल पतन काल न या कहना समीचीन नह ंहै । 10.3.5 स पल स ांत: टायनबी ने भी वको के समान इ तहास दशन के स पल, स ांत को वीकार कया है, उसके अनसुार स यता के पतन के वारा मनु य जो दःुख अनभुव करता है,

    उसी म ग त होती है । वह स यता और धम को एक रथ के प म देखता है िजसम प हय क ग त स यता क ग त है और रथ धम का व प है ।

    बु काश के अनसुार टायनबी ने जनवर 1955 म इ टरनेशनल अफेयस म का शत एक लेख म यह मत य त कया था क वह यहू द पर परा पर आ त ईसाई धम को व व क आशा का के न वीकार कर, भारतीय सम वय पर आधा रत ह द ुऔर बौ धम म मानव समृ और प र ाण क सं भावना का दशन करत ेहै ।

    10.4 पगलर एवं टायनबी के वचार का तुलना मक व लेषण इस कार से टायनबी ने अपने सम त दशन को अतीि दय बनाने क चे टा कर

    इ तहास को अलौ कक बनाने क चे टा क है जो वै ा नक ि ट से त यपरक और सह ि टकोण नह ंहै । ले कन इस सबके बावजूद टायनबी ने इ तहास म राजनी त को मुखता न दान कर सं कृ त और धम को धानता देकर सामािजक आ दोलन और प रवतन पर यान

    आकृ ट कया है और उनका यह वीकार करना क सम त व व का एक करण, धम का सम वयन और आ थक वषमताओं का नराकरण इ तहास क मु य विृ त है ।

    पगलर और टायनबी दोन ह बीसवी ंशता द के इ तहास दाश नक है । दोन म मुख अ तर यह है क जहा ं पगलर ने अपने वचार का तपादन यवुा अव था म कया था,

    वह ं टायनबी ने ौढ़ अव था म पहु ंचकर अपने वचार को लेखनी से आब कया । दोन ह दाश नक ने इ तहास क ग त को च क माना तथा इ तहास के ाचीन; म यकाल न और आधु नक काल म वभाजन को एक वर से अ वीकार कर दया ।

    पगलर ने जहा ं व भ न स यताओं क चचा करत े हु ए यह मत य त कया है क येक सं कृ त का एक मूलभूत तीक होता है िजसके मा यम से उस सं कृ त वशेष के

    आ त रक संबधं को समझा जा सकता है । इसके आगे वह कहता है क येक सं कृ त दसूर सं कृ त से सवथा भ न व

    वत होती है तथा उसके अपने वय ं के था पत मू य होत ेह, जो कसी भी सं कृ त के भाव से पणूत: अलग होत ेह । इसके वपर त टायनबी ने येक स यता क उ पि त और वकास के लए सजना मक अ पसं यक वग, स म नेतृ व वग एव ं जुझा यि तय को उ तरदायी बनात े हु ए यह स करने क चे टा क है क व भ न स यताएं एक दसूरे को पर पर भा वत करती है तथा उनका तुलना मक अ ययन स भव है ।

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    इस कार से दोन ह इ तहास दाश नक ने 19वीं शता द क ववरणा मक इ तहास लेखन क शैल को प र याग कर तुलना मक एव ंव तुपरक शैल को वक सत कया । पहल बार दोन दाश नक के वचार से भा वत होकर इ तहास लेखन का मु य के राजनी तक घटना म एव ंवशंाव लय से व ि त हो व भ न स यताएं, सं कृ तया ंहो गयी है । िजनके कारण साधारण मनु य इ तहास का मुख व ता बन गया ।

    यह स य है क पगलर ने इस मा यता क थापना क थी क येक स यता पणू पेण वल ण एव ं वाधीन होता है तथा वह कसी भी कार के तुलना मक व लेषण क

    स भावना नह ंछोड़ती है । पर त ु इसके बावजूद पगलर वारा सम त मानव सं कृ त को आठ सं कृ तय म वभािजत करने से तुलना मक अ ययन क स भावनाएं वक सत हु ई और टायनबी ने उसे आगे बढ़ात ेहु ए तुलना मक अ ययन कया ।

    पगलर क इस मा यता ने क सं कृ त एक ऐसी इकाई है जहां येक अ भ यि त दसूर से संबं धत होती है तथा जहा ंसब लोग उस सं कृ त वशेष क आ मा क अ भ यि त करत े ह, मानव शाि य को काफ भा वत कया है, और उ ह ने इस कथन का उपयोग आ दम सं कृ तय के अ ययन म कया है ।

    टायनबी ने अपने थं म मनो व ान स हत व भ न सामािजक व ान का उपयोग स यताओं को समझने म कया है, इस ि ट से टायनबी बीसवीं शता द का पहला ऐसा यि त था िजसने इ तहास को व भ न सामािजक व ान से जोड़ मानव क सम प से अ ययन करने क चे टा क है ।

    10.5 बीसवीं शता द के इ तहास दशन क ेरक शि तयां बीसवी ं शता द म हु ए यापक लोकतं ीकरण, मशीनी व तकनीक वकास ' के

    फल व प व व अ य धक सकुड गया है तथा व व क सभी मह वपणू व सामा य घटनाओं म आम आदमी क भू मका मह वपणू हो गयी है िजस कारण इ तहास लेखन म सामा य घटनाओं तथा आम आदमी क भू मका मह वपणू हो गयी है । इससे इ तहास लेखन म सामा य ववरणा मक व ध का प र याग करना अप रहाय हो गया है । टापनी के भाव से ह आज मानव समूह वारा न मत व भ न संगठन का अ ययन बढता ह जा रहा है तथा आज का थम को ट का इ तहासकार व भ न सामािजक व ान के योगदान का उपयोग कर मानव समाज के े ठतर इ तहास लेखन को अपना उ े य बना चकुा है ।

    आज इ तहास लेखन म टायनबी क सम त व व के एक करण क भावना और आ थक वषमताओं के नराकरण क भावना, इ तहास क मुख विृ त बन गयी है।

    आज मानव ने थानीय भेदोपभेद को भुला दया है तथा येक देश और जा त का मनु य व व क सां कृ तक एकता को अनभुव कर रहा है । अत: इस कारण इ तहासकार क ि ट और तज भी यापक हो गए है । आज इ तहास का ता पय स पणू इ तहास को मानव

    एकता के ि टकोण से देखना हो गया है । इ तहास क यह ि ट परुात व वद क खोज से और भी अ धक पु ट हो गयी है । परुात वेता आ दम युग क सं कृ तय का अ ययन करत ेसमय भौगो लक सीमाओं म रहकर आ दम मानव क विृ तय का जब अ ययन करता है तो उसे जो आ चयजनक समानताएं ि टकोण होती है तो उसक समझ म मानव सं कृ त क

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    एकता आती है । वा तव म मानव सं कृ त एक अख ड और अ वतै स य है । जब इसे देशीय, जातीय या धा मक वभाग म वभ त कर इसक आय ु नि चत करने क को शश क जाती है तो एकदम अ यव था हो जाती है अत: आज का इ तहास दशन मानव सं कृ त क इस एकता पर ह आधा रत है ।

    भारतीय संदभ म यह त य इस तरह से समझा जा सकता है क आज सम भारतीय सं कृ त को उसम न हत ा मण, बौ , जैन यनूानी, शक, हु ण इ लामी व इसाई त व के सि म लत प म ह समझा जा सकता है ।

    य द इ तहासकार इन सभी त व को टुकड़-ेटुकड़ ेकरने का य न करेगा तो सब कुछ ह दरू हो जाएगा और बचेगी - अ यव था । अत: भारतीय सं कृ त का उसके ाचीन, म यकाल न व आधु नक काल ख ड व राजनै तक घटना कम के प म अ ययन न करके य द उसम हु ए सामािजक धा मक आ दोलन के इ तहास को और उसम न हत आ थक कारक को समझने क चे टा क जाएगी और वह अपने सम व प म समझी जा सकेगी और वतमान म भारतीय इ तहास लेखन म सामािजक अ ययन क बढ़ती लोक यता पगलर व टायनबी भाव को ह य त करती है ।

    10.6 अ यासाथ न 1. पगलर और टायनबी के इ तहास दशन क मुख वशेषताओं का ववरण द िजए? 2. बीसवी ंशता द के इ तहास लेखन को पगलर और टायनबी ने कस कार भा वत कया,

    भारतीय इ तहास के संदभ म प ट क िजये ।

    10.7 संदभ ंथ 1. पा ड,े गो व दच , इ तहास : व प एव ं स ांत, राज थान ह द थं अकादमी जयपरु,

    1973 2. बु काश, इ तहास दशन ह द स म त, सूचना वभाग, उ तर देश 1962 3. शेख अल , द ., ह , : इ स योर एंड मेथड, मैक मलन इं डया ल मटेड, म ास 1904

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    इकाई - 11 महाका य, कौ टल य अधशा , धमशा व मास सा ह य

    क , तहा सक ववेचना इकाई क संरचना 11.0 उ े य 11.1 तावना 11.2 महाका य 11.3 रचना काल

    11.3.1 रामायण 11.3.2 महाभारत

    11.4 महाका य का कथानक 11.4.1 रामायण 11.4.2 महाभारत

    11.5 महाका य का मह व 11.6 महाका य: ऐ तहा सक ोत के प म

    11.6.1 राजनी तक जीवन 11.6.2 सामािजक जीवन 11.6.3 आ थक जीवन 11.6.4 धा मक जीवन

    11.7 अनभुागीय साराशं 11.8 अथशा

    11.8.1 अथशा का कृ त व 11.8.2 अथशा वषयक ववाद 11.8.3 अधशा का भाव 11.8.4 अधशा क वषय व त ु

    11.9 अथशा ऐ तहा सक ोत के प म 11.10 धमशा

    11.10.1 धम 11.10.2 धमशा का प रचय 11.10.3 धमशा थं का नमाण काल

    11.11 ऐ तहा सक ोत के प म धमशा 11.12 मृ त थं म व णत जीवन

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    11.12.1 आय सं कृ त का े 11.12.2 राजनी तक जीवन 11.12.3 सामािजक जीवन 11.12.4 आ थक जीवन

    11.13 मास का काल 11.14 मास क रचनाऐं 11.15 इकाई साराशं व अ यास काय 11.16 ासं गक पठनीय थं

    11.0 उ े य तुत इकाई के अ ययन के बाद आप यह जान सकगे क

    1. महाका य का ऐ तहा सक मह व या है? 2. कौ टल य अशशा का या मह व है? 3. धमशा या ह और उनक वषय व त ु या है? 4. मास क रचनाओं का या मह व है?

    11.1 तावना महाका य, कौ टल य अथशा , धमशा व भास क रचनाऐं ऐ तहा सक ि ट से बहु त

    मह वपणू ह । ाचीन भारतीय जीवन के व वध प क जानकार इससे ा त होती है । ाचीन भारतीय थं का काल नधारण एक मुख सम या है । ाचीन थं कई शताि दय

    तक तो मौ लक-परंपरा के प म अि त व म रहे । बाद म उ ह ल पब कया गया । फर समय-समय पर उनम ताशं भी जुडत ेरहे । महाका य (रामायण व महाभारत) म भारतीय के सां कृ तक जीवन क झांक मलती है । कौ टल य अथशा म ाचीन राजशा पर व तार से चचा हु ई है । धमशा म ाचीन भारतीय क जीवन शैल का च ण हुआ है । भास क रचनाऐं भी उ कृ ट ह और ऐ तहा सक ि ट से भी मह वपणू ह ।

    11.2 महाका य रामायण और महाभारत आय के दो मुख थं है । भारतीय समाज म आज भी

    इनका मह व माना गया है । रामायण के र चयता वाि मक व महाभारत के यास माने गये हे। आज उनका जो प हमारे सम है वह कसी एक यगु या एक ह लेखक क कृ त नह ंहै। इनम समय-समय पर सशंोधन और प रवतन कये गये ह । सं कृत के मूल रामायण म केवल पांच का ड ह थे, पर त ुआज इसम सात का ड और 24000 लोक ह । वा मी क के पांच कांड वाले मूल रामायण थं म राम को यगु का एक महान पु ष माना है, और उसी प म च र - च ण हुआ है । रामायण के थम और स तम कांड म राम को ई वर के अवतार के प म माना गया । प ट हो जाता है क ये दो कांड बाद के ह ।

    रामायण तीन ह - वा मी क रामायण, आ या म रामायण और तुलसी क रामायण (रामच रतमानस) । इन तीन क मूल कथा तो एक है पर त ुइनके रचनाकार ने अपने-अपने

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    ि टकोण से त काल न सामािजक जीवन, धा मक दशा आ द का वणन कया है । पा के च र - च ण म थोडा अंतर आ गया है । वाि मक के राम मनु य प म च त हु ए ह । मानवी वभाव क दबुलताऐं और ढताऐं उनम ह - पर त ु तुलसी के राम सव यापी व सवशि तमान ह । वे मो दायक ह और भगवान व ण ुके अवतार ह । रामायण म धा मकता आ गयी है । महाभारत म अठारह पव और लगभग एक लाख लोक ह । सं कृत के पा चा य व वान मेकडान ड का मत है क मूल महाभारत म केवल बीस हजार लोक थे । भ न- भ न यि त उनम प रवतन करत ेरहे । महाभारत एक ऐ तहा सक थं है व इसक कहा नय और गाथाओं के साथ इतनी अ धक घलु मल गयी है क इनम से ऐ तहा सक त य क सह जांच नह ं हो सकती है । ये दोन थं ाचीन च लत अनु ु तय क सं हताऐं ह । रामायण से प ट हो जाता है क इस समय तक द ण भारत म आय ने वेश कया । महाभारत यह प ट करती है क कस तरह छोटे-छोटे मह वह न ववाद ने ववाद त सम याओं के प म

    ज म लया ।

    11.3 रचना काल 11.3.1 रामायण:-

    रामायण म व णत भौगो लक वातावरण के आधार पर ह रामायण को महाभारत से ाचीन माना गया है । यह कहा जा सकता है क रामायण क रचना ईसा पवू 500 या 600

    वष पवू के यगु म हु ई । रामायण म बहु त से ताशं ह । वटंर न स का मानना है क रामायण का वतमान प नि चत प से 200 ईसवी ंतक बन गया था । ( ह ऑफ इं डयन लटरेचर प०ृ 503) अ य व वान ने भी रामायण के रचनाकाल के बारे म भ न- भ न मत य त कए ह । का मन बु के ने इसका समय 600 ई. प.ू माना है । मैकडोनल के अनसुार रामायण क रचना 500 ई.प.ू म और इसका संशोधन 200 ई. प.ू म हुआ । ये सभी मत अनमुान पर ह आधा रत ह और रामायण क पवू सीमा न बताकर ऊपर सीमा का संकेत करत ेह । ये सभी मत न न बात को यान म रखकर य त कये गये ह - रामायण म बौ धम का अभाव है । अत: मूल रामायण बु (ज म 563 ई.प.ू - नवाण 483 ई.प.ू) से पवूवत है । दोन ह महाका य क पवू सीमा वै दक काल क समाि त है । रामायण म पाट लपु , िजसे अजातश ु ' (ई.प.ू 491 -459 तक) ने बनवाया था, उनका उ लेख नह ं है । रामायण म वशाल और म थला का उ लेख हुआ है । ये दोन वतं रा य थे । यह अव था बु से पवू क ह है । रामायण म यनूानी भाव भी बहु त कम दखाई देता है, इसक रचना भारत म यनूा नय के आगमन से पवू हु ई । मूल रामायण म राम को अवतार नह ंमाना गया है । अवतार क भावना का उदय बु के बाद म हुआ है । रामायण का अ धकाशं च ण 5वीं श.ई.प.ू का है । त काल न समाज के आ थक, राजनी तक, धा मक जीवन का इसम अ छा च ण मलता है । न कषतः हम कह सकत ेह क रामायण 600 ई.प.ू के बाद क रचना नह ंहै । इसके आंत रक सा य से इसक पिु ट हो जाती है । रामायण का वतमान प थम या वतीय 25 ई.प.ू म नि चत प से इस प म आ चुका था।

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    11.3.2 महाभारत:

    महाभारत क रचनाकाल के बारे म ववाद है । अ धकाशं व वान का मत है क महाभारत का यु 2000 ई.प.ू और 1000 ई.प.ू के बीच म हुआ था (दे खये - पािजटर, ऐं शयट इं डयन ह टो रकल ेडीश स) । इस यु के बाद ह चारण ने इसक घटनाओं और पा क वीरता के संबधं म गीत का नमाण कया होगा । प ट है क महाभारत के लेखब होने के सैकड़ वष पवू भी महाभारत चारण गीत के प म व यमान रह होगी । इसी आधार पर यास ने इसे लेखब कया होगा । महाभारत को लेखब कब कया गया यह ववाद का वषय बना हुआ है । अपने वतमान प म महाभारत एक लाख लोक का सं ह है । महाभारत के रचनाकाल के बारे म भी अनमुान ह लगाया जा सकता है । कुछ हद तक इसक पवू सीमा और अपर सीमा नधा रत क जा सकती है । महाभारत क पवू सीमा 500 ई.प.ू मानी गयी है । इसके न न आधार है

    (1) आ वलायन य सू (3-4-4) म भारत और महाभारत दोन का ह उ लेख है । इसका समय कम से कम 400 ई.प.ू है ।

    (2) बौधायन धमसू म भी महाभारत क चचा है । इनका समय कम से कम 400 ई.प.ू है ।

    (3) सास (450 ई.प.ू के लगभग) के कई थं महाभारत पर आधा रत ह । पा णनी ने भी महाभारत के पा का उ लेख कया है ।

    (4) महाभारत म दस अवतार के वणन म बु का उ लेख नह ंहै । प ट है यह बु (563 ई.प.ू 483 ई.प.ू) के समय से पवू क रचना है ।

    क तपय लोक से प ट ह क एक लाख लोक वाला महाभारत थम शता द ई. म व यमान था । इसे महाभारत क अपर सीमा मान सकत ेहै । 1. अ वघोष (78 ई. के लगभग) ने महाभारत का उ लेख कया है । 2. अनेक व वान ने वतीय और ततृीय शता द ई. के बाद एक लाख लोक वाले महाभारत

    का उ लेख करने वाले संदभ का सं ह कया है । कुभा रल भ (700 ई.), सबु ध ु(600 ई.), बाण (608- 640 ई) आ द ने भी महाभारत का उ लेख कया है ।

    3. भारत के पांचवी ंव छठ शता द के शलालेख म महाभारत का उ लेख है । व भ न व वान ने इ ह ंत य को यान म रखा है ।

    महाभारत का काल 500 या 400 ई.प.ू माना जा सकता है । मैकडानल ने इसे 500 ई.प.ू और व टर न ज ने इसे 400 ई.प.ू माना है । ी आर. जी भ डारकर का मत है क ई.प.ू 500 तक महाभारत एक स धा मक थं बन चुका था ।

    समय-समय पर महाभारत म अनेक ेप जोड़ दये गये । इसी लए यह थं इतना यापक हो गया । महाभारतकाल के कुछ भाग म भारत म रहने वाल वदेशी जा तय , यनूानी, शक आ द का उ लेख है । ये जा तया ंभारत म ई.प.ू पहल और दसूर शताि दय म आयी । ई.प.ू क ारं भक स दय म महाभारत के महाका य म प रवतन और प रव न हो गये थे । इससे प ट हो जाता है क ई वी सन ्क पांचवी शता द के पवू ह महाभारत का प रवतन

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    और प रव न स पणू हो चुका था । यह प रव त प ईसा पवू थम शता द म पणू हो चुका था । महाभारत म 5 वीं 6वी ंशता द ई तक प रवतन, प रवधन और संशो धन होत ेरहे ह । इस कार यह प ट हो जाता है क वतमान प म रामायण और महाभारत कसी एक यि त अथवा एक काल क रचनाऐं नह ंहै ।

    महाका य म व णत स यता कसी एक समय क नह ंहै । यह भ न- भ न काल क है । कह ं -कह ंपर तो इनम मानवीय स यता के मक प का च ण कया गया है । ले कन इतना होने पर भी दोन महाका य म व णत अव थाऐं एव ं वचारधाराऐं बहु त कुछ समान प ह । (पा डेय, वमलच द, ाचीन भारत का राजनी तक तथा सां कृ तक इ तहास, भाग 1, पृ ठ 207)

    11.4 महाका य का कथानक 11.4.1 रामायण

    रामायण म इ वाकु वशंीय दशरथ व उसके पु क कथा है । कौशल नरेश दशरथ के तीन रा नयां, कौश या, सु म ा, कैकयी तथा चार पु राम, ल मण, भरत और श ु न थे । वृ ाव था म दशरथ अपने ये ठ पु राम को रा य देना चाहत ेथे । परंत ुकैकई ने इसम बाधा डाल । उसने दशरथ से दो वर मांगे, थम राम के बदले म अपने पु भरत को राज सहंासन और वतीय राम को चौदह वष का वनवास । राम अपनी प नी सीता और छोटे भाई ल मण के साथ वन म चले गये । भरत ने राजपद हण नह ं कया । पु के वयोग म दशरथ क मृ यु हो गयी । राम सीता व ल मण के साथ दःुख झेलत ेहु ए द ण तक बढ़ गये । लंका के राजा रावण ने सीता का अपहरण कया । राम ने वानर के नेता हनमुान और राजा सु ीव क सेना क सहायता से रावण पर आ मण कया । अंत म रावण परािजत हुआ और राम सीता व ल मण के साथ अयो या लौट आये । रावण के यहा ंरहने से सीता क आलोचना हु ई । राम ने गभवती सीता को याग दया । वह ऋ ष वाि मक के आ म म रहने लगी । वहा ंउसने लव व कुश को ज म दया' । राम ने जब अ वमेघ य कया तब लव-कुश ने य के घोड़ ेको रोक लया । राम क सेना व लव कुश म यु हुआ। अंत म राम वय ंउनसे मलने आये और उनको अयो या ले गये ।

    11.4.2 महा भारत

    महाभारत का कथानक इस कार है । हि तनापरु के राजा शांतन ुके पौ धतृरा और पा डु थे । धतृरा ज म से अंधे होने के कारण पा डु राजग ी पर बठेै । धतृरा के पु कौरव तथा पा डु के पु पा डव कहलाये । पांच पा डव थे, इनम यु ध ठर बड़ ेथे । कौरव सौ थे तथा दयु धन बड़ा था । ारंभ से ह इनम वमैन य था । पा डव को रा य से नकालना, ोपद का अजुन से ववाह, पा डव वारा इं थ को राजधानी बनाना, पांडव का जुए म

    हारना, पनु: 13 वष का वनवास, पनु: रा य ाि त हेत ु ीकृ ण क म य थता के यास पर त ुअसफलता के कारण महाभारत का यु , ीकृ ण वारा अजुन को गीता का उपदेश, पा डव क वजय, यु धि ठर वारा अ वमेघ य करना, पा डव का पर त को रा य स पकर

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    हमालय म जाना व वह ंउनका देहावसान होना आ द मखु घटनाओं का महाभारत म उ लेख हुआ है ।

    11.5 मह व दोन महाका य ऐ तहा सक, सा हि यक, दाश नक व धा मक ि ट से मह वपणू ह ।

    भारतीय सं कृत सा ह य क ये सव कृ ट कृ तया ंह । भारतीय सा ह यकार के लये ये ेरणा ोत ह । भारतीय नी त और दशन के भी ये मूल ोत ह । महाभारत को सम त दशन का

    सार, मृ तय का ववेचन थं एव ंपचंम वेद माना गया है । वै णव, शैव व अ य धम पर भी ये काश डालत ेह । महाभारत म कम, तप, ान, भि त आ द का समावेश है ।

    सां कृ तक ि ट से रामायण के बाद महाभारत का ह थान आता है, ले कन वा त वक ि ट से महा भारत रामायण से भी बढ़ कर है । भगव गीता ह दओंु क आचार सं हता ह नह ंवरन ् वेद के समक एक धम थं है । महाभारत म व भ न सं कृ तय का सम वय दखाई देता है । द ड नी त क व ततृ या या हु ई है । राजधम का उपदेश भी इसम दया गया है । साध ह मो - धम क भी चचा हु ई है । इसम एक तरफ कममाग है तो दसूर ओर ान माग भी है । एक तरफ ीकृ ण, भी म, अजुन, यु ध ठर जैसे अनकुरणीय पा ह तो दसूर ओर दःुशासन, शकु न जैसे पा भी ह ।

    रामायण भारतीय सं कृ त का दपण है । यह उ च मानवीय आदश से ओत- ोत है । येक ह द ुके घर म यह व यमान रहती है ।

    रामायण केवल वीर का य ह नह ंहै, आचार शाम एव ंधमशा भी है । इसम मानव जीवन के व भ न आदश बताए गये ह । इसम ाचीन भारतीय सं कृ त, धा मक जीवन, नै तक मू य क चचा हु ई है । सामािजक ि ट से यह प त-प नी के संबधं, पता-पु के कत य, गु -श य का पार प रक यवहार, भाई का भाई के त कत य, यि त का समाज के त उ तरदा य व, आदश पता-माता, पु - भाई -प त एव ंप नी का च ण, आदश ह थ जीवन क अ भ यि त करता है । इसम राजा का जा से सोहा उ लेखनीय है । राम रा य का आदश बताया गया है । राजा के कत य और अ धकार, राजा- जा संबधं, उ च नाग रकता, सै य संचालन आ द वषय पर भी मह वपणू काश डाला गया है । इसम ाचीन भारतीय स यता, नगर, ामा द, नमाण सेतुबधं, वणा म यव था आ द व वध प से संबि धत ववरण मलता है ।

    दोन महाका य म गहृ थ जीवन के उ च आदश को अपनाया गया है । इनके अ धकतर पा कसी न कसी उ च आदश को था पत करत ेह । दोन महाका य ने भारतीय स यता और सं कृ त क र ा करने म योगदान दया है । इनम व णत, धम, आचार- वचार, सं थाऐं, थाऐं, णा लया ंऔर आदश स दय से भारतीय को भा वत करत ेआ रहे ह ।

    11.6 महाका य: ऐ तहा सक ोत के प म त काल न सामािजक, राजनी तक, आ थक ि थ त व आ याि मक वचारधारणाओ के

    वषय म बहु मू य साम ी ा त होती है । इनम ऐ तहा सक घटनाओं के साथ-साथ त काल न

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    नै तक, धा मक, दाश नक, आदश को भी सं ह त कया गया है । ऐ तहा सक ि ट से ी राम क द ण या ा आय के द ण वजय का थम वणन है । यह भी प ट हो जाता है क सुदरू द ण म आय के उप नवेश था पत करने म राम अ णी रहे । महाभारत म कौरव पा डव के पार प रक राजनी तक संघष का इ तहास है । इसके अलावा इसम ऐ तहा सक मह व क घटनाऐं व णत क गयी ह । महाका य से ाचीन भारतीय स यता और सं कृ त का संपणू च हमारे सम उपि थत हो जाता है । अब हम व भ न शीषक म इसका वणन करगे :-

    11.6.1 राजनी तक जीवन:

    इस समय तक आय लोग ने पवू क और अ धक व तार कर लया था । कु , पांचाल, कौश बी, कौशल, काशी, वदेह आ द इस यगु के वशाल रा य थे । महाभारत क भौगो लक सीमाऐं रामायण से अ धक यापक ह । सा ा य व तार क भावना ने जोर कया । ी राम और यु ध ठर ने अ वमेघ य कये । यह य सा ा यवाद भावना का तीक है ।

    महाभारत म रामायण क अपे ा बहु त से े , जैसे राजनी त, यु काल, कूटनी त आ द म अ धक वक सत स यता दखाई देती है । महाभारत म वक सत राजनी तक चतंन दखाई देता है । भी म को इन वचार का तपादक बताया गया है । महाभारत के शां तपव के राजधमानशुासन पव म मह वपणू राजनी तक चतंन मलता है । राजसं था क उ पि त के बारे म भी वचार वमश हुआ है । राजा को मह वपणू थान दान कया गया है । सभा और मं ीप रष का रा य न त नधारण म मह वपणू थान था । महाभारत म गणतं प त का भी उ लेख है । शां तपव के 81 व अ याय म अठधक, वाृ ण, यादव कुकुर, भोज इन पांच गणु के संयु त शासन का उ लेख मलता है । गणतं क उ न त के लए बहु त सी मह वपणू बात का उ लेख महाभारत म हुआ है । भी म- पतामह कहत ेह क गण के लोग को आपस म मेल रखना चा हए, बड ेलोग को तुरंत ह फूट का अंत कर देना चा हए, शासक पर व वास रखना चा हए, कोष भरा रहना चा हए और सबसे बडी बात यह है क एकता रखनी चा हए (महाभारत, महापव 5) । गणतं शासन यव था म स ता कसी एक यि त के हाथ म केि त न होकर व वध जा तय अथवा वशं के अनेक त न धय के हाथ म रहती थी । महाभारत म कहा गया है क बहु सं यक राजस ताधार त न धय के होने के कारण ह गणरा य म बहु धा भेद हो जाता है और उनक मं णा गु त नह ं रह पाती है । (महाभारत शां त पव 107,8,24) महाभारत म कर के स ब ध म भी व ततृ ववेचन मलती है । भी म के नदश मह वपणू ह । कर को राजा वारा क गई जा क र ा पी सेवा व वेतन माना है । कर यायपणू तर क से ह लगाने चा हए । सेना, यु , कूटनी त, गु तचर यव था आ द पर थी महाका य म व ततृ ववेचन मलता है । महाभारत म यहू क रचना, मंडल स ांत, अंतरा य संबधं के छ: कार भी बताए गये ह, जो न न है : - सं ध, यु , आसन (तट थता) यान (सै नक अ भयान), सं य (शि तशाल राजा क शरण लेना), वधैीभाव (कभी श तुा और क भी म ता का यवहार करना) ।

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    11.6.2 सामािजक जीवन:

    रामायण व महाभारत दोन म ह सामािजक जीवन व सं थाओं के बारे म व ततृ ववेचना मलती है । रामायण के पा पा रवा रक या सामािजक जीवन के ऊंचे आदश तुत नह ंकरत े। महाभारत का मह व इस काल म है क उसम हम सामािजक जीवन एव ंसं थाओं के संबधं म मह वपणू चतंन म ता है ।

    साधारणतया लोग गांव म नवास करत े थे । गाँव आ म नभर थे । नगर का सामािजक जीवन भी वभैव तथा स प नता से प रपणू था । जनसाधारण म शाकाहार भोजन ह अ धक लोक य था । य म मांसाहार भोजन का भी चलन था । लोग क वेशभूषा साद थी । अ धकतर सूती, ऊनी, रेशमी व का उपयोग होता था । लोग का जीवन नै तककता से ओत - ोत था । उनका ि टकोण आशावाद था । महाभारत म भा य क अपे ा पु षाथ पर बल दया गया है वणा म यव था का चलन था । रामायण व महाभारत दोन म ह चार वण क उ पि त मा के व भ न अंग से बतायी गई है । ा मण को समाज म उ च थान ा त था । ले कन इसका आधार, उनका वा याय, तप तथा अ छे कम थे । रामायण म भी उ लेख है क वण के व काय करने वाला ा मण शू से भी अ धक नदंनीय है । (रामायण 3-313) 1117 प ट हो जाता है क यव थाकार पवू नयोिजत काय वभाजन म उजर फेर नह ंचाहत ेथे । (पा डेय, वमल च , ाचीन भारत का राजनी तक तथा सां कृ तक इ तहास - प ृ० 214) महाभारत म य के लए वीरता, तेज, धैय, दान, यु से न भागना आ द गणु आव यक माने गये ह । दु ट का दमन, साधुओं क र ा, वण संकर को रोकना ये य के मुख कत य माने गये ह । महाभारत म दोन वण के बीच सौहादपणू संबधं था पत करने के यास दखाई देत ेह । महाभारत म ज मजात वण यव था के व व ोह दखाई देता है । इसम शू क ि थ त म सुधार है । सदाचार शू को समाज म स माननीय थान ा त था । वदरु, काय य और भतंग इन तीन ज मजात शू को सदाचार के बल पर आदर ा त था । भी म शां तपव म राजा क 37 सद य क प रषद म 3 शू अमा य क नयिु त का भी आदेश देते ह । यह आव यक नह ं है क एक वण का यि त दसूरे वण के काय नह कर सकता । ोणाचाय, अ व थामा, परशरुाम, य के काय करत ेथे । इस समय तक कई वदेशी जा तय (यवन, शक, प लव, करात आ द) का ादभुाव हो चुका था । ये भारतीय समाज म समा हत हो चुक थी ं। महाका य म आ म यव था च लत थी । मचया म, गहृ था म, वान था म, स यासआ म चार के लए 25-25 वष का समय नधा रत था । गहृ था म को शेष अ य आ म का आ म तथा लौ कक जीवन का आधार बताया गया है । यह यव था यवहारतः समाज म च लत थी । वान था म म कभी- कभी म हलाऐं आ म णाल के अ त र त समाज म अनेक सं कार भी च लत थे । य का भी चलन था । महाका य काल म य य प ि य क ि थ त म गरावट दखाई देती है । ले कन

    कुछ ि य को उ च त ठा ा त थी । सीता, सा व ी, देवयानी, कु ती, ोपद आ द ऐसी ह ि या ँथी।

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    समाज म बाल ववाह का अभाव था । ि य का श ा पर यान दया जाता था । समाज म आठ कार क ववाह थाऐं च लत थी ं : - मा, देव, आष, ाजाप य, गधंव, असुर, रा स, पशैाच व अह य । ा म ववाह को ह सव े ठ माना जाता था । इसम माता-पता के संर ण म ववाह होता था । समाज म अंतजातीय ववाह था का चलन था । फर भी तलोम ववाह णाल दन- त दन कम होती जा रह थी ।

    महाका य म श ा को मह वपणू थान ा त था । अनावी क (दशनशा व तकशा ), यी (वेद), वाता (कृ ष, वा ण य आ द) और द ड नी त (रानी तशा ) को श ा के पा य म म मुख थान ा त था ।

    11.6.3 आ थक जीवन:

    महाका य म कृ ष व पश ुपालन का मह वपणू थान था । जा त था के वकास के साथ-साथ अनेक उ योगध ध का चलन हुआ । इनम मु य थे - जुलाहे, लोहे, शीश,े रांगे आ द धातुओं क व तुऐं बनाना, कु हार, धोबी, वणकार, वै या आ द । आ थक समृ व वभैव कायम था । महाका य म व णत समृ क पिु ट परुाताि वक सा य से नह ंहोती है । व भ न यवसाय को रा य का संर ण ा त होता था । देश के अ धकांश यवसायी े णय म संग ठत थे । इन े णय के अ य थे जो '' मु य '' कहलात ेथे । रामायण व महाभारत दोन म ह ेणी मु य का उ लेख है । लंका से अयो या लौटने पर राम का वागत ेणी मु य ने कया था । रामायण, लंकाका ड 129 महाका य म वा ण य का उ लेख है । महाभारत म उ लेख है क पा डव को उपहार म पवू देश के हाथी, का बोज, गांधार, बा ल क तथा ा यो तष के घोड़,े पि चमी देशो के ऊँट, क बोज से बी व , बा ल क तथा चीन के रेशमी व , सधं ुके शील तथा मूले छ देश के मोती आ द मले थे । ये व तुए कृ ण तथा पा डव के सहयोगी एव ंआ त